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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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Sidd19

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भाई इसबार क्षमा चाहूँगा
छह तारीख से पहले लिखना संभव नहीं है
हमारे यहाँ ड्रामा कॉम्पिटिशन चल रहा है
स्क्रिप्टिंग से लेकर डायरेक्शन तक मेरे जिम्मे है
इसलिये जब तक कॉम्पिटिशन ख़तम नहीं हो जाती
मैं नया अपडेट दे नहीं सकता
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parkas

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भाई इसबार क्षमा चाहूँगा
छह तारीख से पहले लिखना संभव नहीं है
हमारे यहाँ ड्रामा कॉम्पिटिशन चल रहा है
स्क्रिप्टिंग से लेकर डायरेक्शन तक मेरे जिम्मे है
इसलिये जब तक कॉम्पिटिशन ख़तम नहीं हो जाती
मैं नया अपडेट दे नहीं सकता
apko compitition ke liye All the best...
Hamari shubhkamayayien apke sath hai ki ap hi winner ho....
And tab tak intezaar rahega next update ka Kala Nag bhai...
 

Thakur

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👉दुसरा अपडेट
--------------
यह क्या है....? वह खाकी रंग के चिट्ठी को दिखाते हुए पूछती है वह औरत l
अपना टाई बांधते हुए तापस मुस्कराता है l औरत खीज जाती है, फ़िर चिढ़ कर पूछती है - आप हंस क्यूँ रहे हैं.....?

तापस उस औरत के तरफ मुड़ कर कहता है - अरे यार तुमने तो पढ़ लिया होगा l फ़िर पूछ क्यूँ रहे हो l

वह औरत पूछती है - इसका मतलब आप अपने जॉब से VRS ले रहे हैं l
तापस - हाँ....
औरत - पर क्यूँ...
तापस- अरे मेरे साथी जीवन साथी मैंने इस्तीफा तो नहीं दी है ना l मैंने नौकरी से VRS मांगा, यह उसकी क्लीयरेंस है l
औरत - हाँ... दिख रही है मुझे l पर क्यूँ...? और एक बार भी आपने मुझसे कहा भी नहीं l (दुखी स्वर में) क्या हमारे बीच इतना गैप आ गया है l
तापस - (कुछ सीरियस होते हुए) नौकरी में रहकर मैंने क्या उखाड़ लिया l पहले फील्ड में था l वहां से प्रमोशन दे कर मुझे जैल सुप्रीनटेंडेंट बना कर डम्मी बना कर बिठा दिया l जब अपने बच्चे के लिए कुछ करना चाहा तब.....
तब भी एक डम्मी ही रहा
अब नहीं.... हाँ अब और नहीं
मैं नौकरी में रहकर शायद तुम्हारे प्रताप को वह मदद नहीं दे सकता था जो अब मैं उसके लिए कर सकता हूँ प्रतिभा l
प्रतिभा - क्यूँ नहीं कर सकते थे......
नौकरी में रहकर अपने कनेक्शन से भी तो मदद किया जा सकता है l
तापस- नहीं कर सकता था l तुम जानती हो..
मैं सरकारी तंत्र से बंधा हुआ था और तब मैं खुद भी तन मन से सरकारी मशीनरी का पुर्जा ही होता l लेकीन अब वह बंदिश नहीं है मुझ पर l कहने को मैं इस्तीफा भी दे सकता था, पर दस साल और नौकरी रहते हुए अगर इस्तीफा देता तो इंक्वायरी विंग के रेडार में रहता l अब मैं निश्चिंत हो कर अपना काम कर सकता हूं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म .... आप शायद ठीक कर रहे हैं l लेकिन मुझे इतना गैर क्यूँ कर दिया
तापस - इस बात के लिए मुझे माफ कर दो l मुझे अंदाजा नहीं था कि तुम इस बात से इस हद तक दुखी होगी l सॉरी प्रतिभा मुझे माफ़ नहीं करोगी.....

प्रतिभा - ठीक है, ठीक है... अब इतना सीन बढ़ाने की जरूरत नहीं है l लेकिन हमे आगे चलते कनेक्शनस की जरूरत पड़ेगी..... तब
तापस-तुम मुझ पर भरोसा रखो मैंने इन डेढ़ सालों में अपना जो कनेक्शनस डिवेलप किया है l तुम्हें आगे चलते अंदाज़ा हो जाएगा l
इतना सुनते ही प्रतिभा के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और चेयर से उठ कर तापस से कहती है - ठीक है सेनापति जी तो क्या अब पूरी चलें l
तापस - अरे सीधे सुप्रीनटेंडेंट से सेनापति जी....
प्रतिभा - जी... क्यूँ के अब आप जैल सुप्रीनटेंडेंट तो रहे नहीं...
तापस - ठीक है वकील साहिबा चलें...
हा हा हा हा दोनों हंसते हुए घर से बाहर निकालते हैं..

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ठीक उसी समय भुवनेश्वर से पांच सौ किलोमीटर दूर पश्चिम में यशपुर प्रांत के राजगड़ कस्बे में एक बड़ी सी महल है l उसी महल के एक कमरे में एक बहुत ही सुंदर सी लड़की रीडिंग टेबल के पास रखे चेयर पर कोई किताब पढ़ रही है.....
तभी उस कमरे के दरवाजे पर दस्तक होती है l
वह लड़की - कौन है
बाहर से आवाज आती है - जी राज कुमारी जी मैं सेबती.
लड़की - हाँ सेबती अंदर आओ (सेबती अंदर आती है) हाँ अब बोलो क्या हुआ l
सेबती- जी वह राजा साहब ने आपको नाश्ते के लिए बुलाया है...
लड़की - अच्छा l तो आज कमरे तक नाश्ता नहीं आएगा...
बहुत दिनों बाद नाश्ते के टेबल पर जाना पड़ेगा...
सेबती- अब मैं क्या कह सकती हूँ..
लड़की - हाँ ठीक कहा..
तुम चलो मैं पहुँचती हूँ..
सेबती कमरे से निकल जाती है l उसके जाते ही लड़की अपनी किताब टेबल पर रख देती है और कमरे से निकल कर नीचे डायनिंग हॉल में पहुंचती है
तो देखती है उसके परिवार के सभी सदस्य टेबल पर बैठे हैं

( राजगड़ इस महल में रह रहे सदस्यों के बारे में थोड़ा-सा विवरण

लड़की - रूप नंदिनी क्षेत्रपाल
लड़की के पिता - भैरव सिंह क्षेत्रपाल/राजा साहब
लड़की के दादाजी - नागेंद्र सिंह क्षेत्रपाल/बड़े राजा जी
लड़की के चाचा - पिनाक सिंह क्षेत्रपाल/छोटे राजा जी
लड़की की चाची- सुषमा सिंह क्षेत्रपाल
लड़की की बड़ा भाई - विक्रम सिंह क्षेत्रपाल/युवराज
लड़की की भाभी - शुभ्रा सिंह क्षेत्रपाल

लड़की की चचेरा भाई और पिनाक सिंह का बेटा - वीर सिंह क्षेत्रपाल/राज कुमार )
रूप जब डायनिंग टेबल के पास शुभ्रा को देखती है खुशी के मारे भाभी कह कर उसके गले लग जाती है l और पूछती है - क्या भाभी आप कब आईं और मुझे बताया भी नहीं l
शुभ्रा - वह कल अचानक से राजा साहब का फोन आया और कहा तुरंत राजगड़ पहुंचो l तो सीधे यहां आ गए l पर तब तक आप सो चुकीं थी....
रूप - चलो अच्छा हुआ...
इतना कह कर रूप शुभ्रा से ज़ोर से गले मिली

यह देख कर पिनाक सिंह कहता है - यह क्या है रूप.... ऐसे क्यूँ गले मिल रही हैं ... मत भूलिए आप राज कुमारी हैं और राजकुमारी जैसी एटिट्यूड रखिए l अपने इमोशंस को काबु में रखें l
यह सुन कर रूप का चेहरा उतर जाता है l शुभ्रा उसके कंधे पर हाथ रखकर रूप को अपने पास बिठाती है l
इतने में राजा साहब उर्फ़ भैरव सिंह क्षेत्रपाल डायनिंग हॉल में प्रवेश करता है और रूप से कहता है - छोटे राजा जी ने ठीक कहा है......
आपको अपने एटिट्यूड पर ध्यान देना चाहिए l कल को आपके विवाह के बाद यही एटिट्यूड आगे चलकर आप ही के काम आएगी....
रूप - जी राजा साहब...
फिर भैरव सिंह एक नौकर को कहता है- है तु... जा कर बड़े राजा जी को ले कर आ l
वह नौकर दौड़ कर जाता है और एक बुजुर्ग को व्हीलचेयर पर बिठा कर लता है l
बुजुर्ग के हॉल में प्रवेश करते ही सभी सदस्य अपने चेयर से खड़े हो जाते हैं
नागेंद्र की व्हीलचेयर डायनिंग टेबल पर लगते ही भैरव सिंह पहले बैठता है और उसके बाद सभी अपने अपने चेयर पर बैठ जाते हैं
कुछ नौकर आ कर सबको नाश्ता परोस देते हैं..
भैरव सिंह एक चम्मच से निवाला उठा कर नागेंद्र के मुहं पर देता है, नागेंद्र के निवाला खाते ही पास खड़े नौकर से नागेंद्र को खिलते रहने को बोलता है फिर अपना नाश्ता शुरू करता है l भैरव सिंह के नाश्ता शुरू करने के बाद सभी अपना नाश्ता शुरू करते हैं l
नाश्ता सभी का लगभग ख़त्म होते ही भैरव सिंह बोलता है - आज बहुत दिनों बाद हम सब इक्कठे हो कर यहाँ बैठ कर खा रहे हैं इसकी एक विशेष वजह है l
सब के चेहरे पर आश्चर्य झलक रहा है.. शुभ्रा और रूप एक दूसरे को देख कर आँखों आंखों पूछ रहे हैं क्या खबर हो सकती है और एक दूसरे को सर हिला कर ना में जवाब देते हैं l
भैरव सिंह - रूप आज शाम को युवराज व आपने भाभी के संग भुवनेश्वर जाएंगी l और वीर सिंह जिस कॉलेज में MA कर रहे हैं उसी कॉलेज में ग्रेजुएशन करेंगी l
यह सुनते ही रूप, शुभ्रा और सुषमा के चेहरे पर खुशी छा जाती है, पर वहीं सारे पुरुषों के चेहरे पर सवाल तैर रहे होते हैं l
विक्रम - माफी चाहूँगा राजा साहब पर आप तो रूप के आगे पढ़ने के विरुद्ध थे, फिर अचानक l
भैरव - हाँ अब वही बताने जा रहा हूँ... परसों हमारे यहाँ स्टेट के उद्योग मंत्री श्री गजेंद्र सिंह देव आये थे बड़े राजा जी से मिलने l मिलकर जाते वक्त वे रूप को देखे l उन्हें रूप उनके सुपुत्र दिव्य शंकर सिंह देव के लिए पसंद कर लिया और बातों बातों में मुझसे कह भी दिया l हमारे जैसे ही रजवाड़ों से संबंधित हैं l उनका परिवार दसपल्ला रजवाड़ों से है और देश विदेश में कारोबार फैला हुआ है बिल्कुल हमारी तरह l पर उनके सुपुत्र दिव्य शंकर फ़िलहाल अपनी उच्च शिक्षा के लिए तीन वर्षो के लिए विदेश जा रहे हैं l इसलिए रूप उनके आने तक भुवनेश्वर में अपना ग्रेजुएशन पूरी करेंगी l
वीर - ठीक है यह बहुत ही अच्छी ख़बर है पर इस विवाह से और रूप के ग्रेजुएशन से क्या सम्बंध है l

भैरव - (अपने चेहरे पर थोड़ी कठोरता ला कर) मुझे इस विवाह से मतलब है ना कि रूप कि ग्रेजुएशन से l उनको एक ग्रेजुएट बहु चाहिए और हमे हमारी बेटी के लिए एक रजवाड़ा खानदानी परिवार l
यह सुन कर सब खामोश हो जाते हैं l सभी औरतें जिनके चेहरे कुछ देर पहले जो खिली हुई थी अब मुर्झा जाती है l
भैरव सिंह - वीर आपके कॉलेज में रूप जाएंगी तो आपकी जिम्मेदारी बढ़ गई है l मैंने प्रिन्सिपल से बात कर ली है l आपको सीधे जा कर रूप का एडमिशन कराना है l
वीर - जैसी आपकी आज्ञा....
भैरव - युवराज आप रूलिंग पार्टी के युवा मंच के अध्यक्ष हैं फ़िर भी आप जितना ध्यान पार्टी को देंगे उतना ही रूप का खयाल रखेंगे l
विक्रम - जी राजा साहब
भैरव - एक बात याद रहे आप सबको, वहाँ कोई रूप को नजर उठाकर भी नहीं देखेगा ऐसा खौफ होना चाहिए उस कॉलेज के हर छात्रों में l
वीर व विक्रम - जी राजा साहब.....
भैरव - (सुषमा व शुभ्रा से) आप दोनों रूप कि सामान वगैरह पैकिग में सहायता करें l और बहू रानी खास कर आपके लिए हिदायत है.....
इतना सुनते ही शुभ्रा के माथे पर कुछ पसीने की बूंदे दिखने लगी l
भैरव - आपके यहाँ रूप हमारे घर की बेटी से ज्यादा सिंह देव परिवार की होने वाली बहु की तरह रहनी चाहिए l
शुभ्रा - (बड़ी मुश्किल से हलक से आवाज़ निकालती है) ज..... ज... जी राजा साहब l
भैरव - ठीक है अब आप जनानी लोग यहाँ से प्रस्थान करें l
यह सुनते ही तीनों औरतें तुरंत प्लेट में हाथ साफ कर रूप कि कमरे की चले जाते हैं l
उनके जाते ही भैरव सिंह उस नौकर से जो नागेंद्र को खिला रहा था, कहता है - जाओ बड़े राजा जी को उनके कमरे तक ले कर आराम से सुला देना l
"जी मालिक " कहकर वह नौकर नागेंद्र को ले कर चला जाता है l
अब भैरव पिनाक, विक्रम व वीर से कहता है मुझे थोड़ी देर में आप सब बैठक में आ कर मिलें l
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इधर रूप के कमरे में बिस्तर पर बैठ कर रूप सिसक रही है l पास बैठ कर सुषमा उसे दिलासा दे रही है और कमरे में शुभ्रा चहल कदम कर रही है l
रूप - चाची माँ मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ होता है.... दो साल पहले मैंने कितने चाव से इंटर किया था पूरे जिला मे फर्स्ट आए और राज्य में सेवेंथ l हम सोचे जो उपलब्धियां भाईयों हासिल नहीं हुआ तो मेरे उपलब्धी शायद राजा साहब को खुश करदे l मगर ऐसा न हुआ उल्टा मेरे आगे की पढ़ाई बंद करवा दी... और अब शादी के लिए मुझे आगे पढ़ाया जा रहा है l
सुषमा - बेटी तू अगर कम मार्क से पास हो रही होती तो शायद आगे पढ़ाई में कोई असुविधा ना होती पर तेरी अच्छी पढ़ाई उनके अहं को ठेस पहुंचाई l इसलिए उन्हों ने तेरी पढ़ाई रोक दी थी l अब इसी बहाने इस कैद खाने से बाहर जाएगी तीन साल के लिए ही सही बाहर तो जाएगी ना बेटी l
शुभ्रा - हाँ रूप चाची माँ सही कह रही हैं l तुझे अब जीवन भर की बंधन में बंधने से पहले तीन साल की आजादी की ज़मानत मिली है l चल उसे जी भर के जी l तेरे साथ मैं पुरी तरह से खड़ी रहूंगी l तेरी भाभी बन कर नहीं बल्कि तेरी दोस्त बन कर l
सुषमा - अच्छी बात कही बहु l युग युग जियो l इस परिवार में हम तीन ही हैं जो आपस में रिश्ते निभा रहे हैं l वरना राजा साहब, छोटे राजा, बड़े राजा, युवराज व राज कुमार में बंधे हुए इन मर्दों को और किसी रिश्तों से कोई मतलब ही नहीं है l
रूप- हाँ चाची माँ, आप ठीक कह रही हैं l हम इस घर से रिश्तों से बंधे हुए हैं इसलिए बचे हुए हैं वरना....
सुषमा- ना मेरी बच्ची यह बात अपने मुँह से मत कह...
शुभ्रा - चाची माँ ठीक कह रहे हैं l यहाँ उनके खिलाफ हवा भी नहीं बह सकता और हम कह कैसे सकते हैं l
रूप - ठीक है चाची माँ l पर आप भी मेरे साथ चलिए ना l
सुषमा - नहीं मैं नहीं जा सकती l तेरे दादाजी की देखभाल मुझे ही करना है l पर तू जा मेरा आशीर्वाद तेरे साथ हमेशा रहेगी l जा...... (सुषमा की आंखों से आंसू निकल जाते हैं)
यह देख कर रूप सुषमा के गले लग जाती है
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पिनाक, विक्रम और वीर डायनिंग हॉल से निकल कर बैठक में पहुंचते हैं l वीर अपना चेयर पर बैठ कर आवाज़ देता है - अरे कोई है.....
भीमा आता है - हुकुम मालिक
वीर - राजा साहब दिख नहीं रहे हैं
भीमा-जी राजा साहब ने कहा है आप थोड़ी देर बैठे वह शीघ्र ही पधार रहे हैं l
पिनाक-लगता है कुछ विशेष है...
भैरव - हाँ विशेष तो है (बैठक के अंदर आते हुए) पर चिंता करने लायक नहीं है
विक्रम - अगर चिंता की बात नहीं तो हम सब यहाँ पर किस विषय पर चर्चा करेंगे l
भैरव - हमारे लीगल एडवाइजर बल्लभ प्रधान को किसी बात की चिंता है l इसलिए यश पुर के अपने लाव-लश्कर को लेकर आ रहा है l इसलिए हमे देखना होगा कि उसकी चिंता क्या है....
विक्रम - हमारा लीगल एडवाइजर किसी घोर चिंता में है और उसकी चिंता वह आपसे दूर करवाएगा l तो हम उसे अपना लीगल एडवाइजर क्यूँ रखे l
भैरव - हमे उसकी चिंता दूर करना होगा ताकि भविष्य में हमे चिंतित न होना पड़े....
भीमा-मालिक दस गाड़ियों से बारह लोग आए हैं l अंदर आने की इजाजत मांग रहे हैं l
भैरव - हाँ वे सब खास महमान हैं l उन्हें भीतर ले आओ और सबको बिठाओ l
भीमा सारे लोगों को अंदर लाता है
भैरव - आओ प्रधान आओ l कुछ तो ऐसा हुआ है जो पूरे लश्कर लेकर आए हो l आओ और आप सब विराजे l
सब के बैठने के बाद प्रधान बोलता है - राजा साहब यह महाशय हमारे नए BDO हैं सुधांशु मिश्र हमारे यहां अभी इनकी सरकारी पोस्टिंग हुई है.....
भैरव - ह्म्म्म्म रुक क्यों गए बोलते रहो
प्रधान - जी अब मेरे पास कुछ नहीं है कहने के लिए...... अब अगर मिश्र जी कहेंगे l
भैरव, सुधांशु मिश्र को देखता है l सुधांशु भैरव को अपने तरफ देखते हुए पाया तो कहाना शुरू किया - राजा साहब मैं यश पुर के लिए नया हूँ पर इस प्रोफेशन में नया नहीं हूँ l ब्लॉक के डेवलपमेंट के खर्चों पर NOC व UC देना हमारा काम होता है l मैंने ऑडिट कराने के बाद पाया कि दो साल पहले जितने भी ब्लॉक प्रोजेक्ट व मनरेगा के काम दिखाया गया है सब में दस से पंद्रह प्रतिशत ही काम हुआ है जब कि UC में मेरा मतलब युटीलाइजेशन सर्टिफिकेट में सौ फीसदी दिखाया गया है....
बैठक में इतनी शांति थी के अगर एक सुई भी गिर जाए तो जोर से सुनाई देती l
मिश्र - इन दो वर्षो में कोई भी प्रोजेक्ट नहीं लाया गया क्यूंकि भारत सरकार ने जब से डिजिटल इंडिया का मुहीम शुरू की है और मनरेगा में काम करने वालों की बैंक अकाउंट आधार कार्ड से जुड़ गया है तब से आप सबके हाथ खाली हैं......
भैरव सिंह के चेहरे पर ना तो कोई शिकन था ना कोई चिंता एक दम भाव हीन l भैरव सिंह के चेहरे पर कोई भाव न देख कर मिश्र के चेहरे पर थोड़ी सी निराशा दिखा
मिश्र फिर कहने लगा - राजा साहब भले ही भारत सरकार डिजिटल इंडिया की मुहिम चलाएं है पर पिछले दो साल पहले की तरह अब भी सबके हाथ में पैसा आ सकता है l मेरे पास इसका फूल प्रूफ़ प्लान है l पर इसके बदले में पिछला BDO जितना लेता था मुझे उससे डबल चाहिए l
बड़ी आशा भरी नजर से मिश्र भैरव सिंह को देख रहा था l पर उसकी बात सुन कर पिनाक कुछ कहना चाहता था l भैरव पिनाक को हाथ दिखा कर चुप रहने को इशारा किया और मिश्र से कहा - आपने आज हमे खुश कर दिया है l आप सबको हम दावत का निमंत्रण दे रहे हैं l आप सब आज रंग महल में दोपहर का भोजन करें और शाम को हम मिश्र से प्लान सुनेंगे l भीमा यह सब आज हमरे मेहमान हैं l इन्हें रंग महल में ठहराव और खाने पीने का पूरा ध्यान रखो l
भीमा- जी मालिक
भीमा सबको अपने साथ लेकर रंग महल की और चला जाता है l
अब पिनाक भैरव सिंह से पूछता है - यह क्या राजा साहब एक अदना सा मुलाजिम हमारे सामने इतना कह गया और हमसे हिस्से की सौदा भी कर गया फिर भी आपने उसे छोड़ दिया और मेहमान बना कर दावत दे रहे हैं l
विक्रम - हाँ छोटे राजा ठीक कह रहे हैं l हमारी आँखों में आँख डाल कर बात कर रहा था l कहीं यह उसकी आदत ना बन जाये......
भैरव - इच्छायें जितनी बड़ी होती हैं उतनी ही खूबसूरत होती हैं........
लालच बहुत बुरी बला है फ़िर भी इंसानी फितरत है........
वक्त कम हो या झोली छोटी फिर भी सब समेट लेना इंसानी आदत है.......
यह स्टेट हमारी मिल्कियत है और सारा सिस्टम पानी, हम इस पानी के मगरमच्छ हैं
यह वह सुना है,
पर जाना नहीं है

यह अब जानना उसकी जरूरत है....
Amazing story bhai just amazing : :bow:
2 update me he fan ho gaya hu . Aur aage bhi padhke update by update review dete rahunga.
 

Thakur

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Update 3
Dono jailer n lawyer ke shayad ek beta aur beti he , Pratap aur vaidehi ke naam se aur maa pratap se milne jail aayi he (uska apradh ?) Aur behen ki di hui rakhi bandhti he. Par Pratap ka bhi apna mission he. Pita jailer kone se unhe dekh ke kam chalata he jo ke jailer hone ke bavajud bete se nahi milta.
Wahi lawyer ma kshetrapal family pe najar banaye hue he jo dikhata he ke sambandh he aur najdik ka hoga.
Rup ka khud ko Nandini nam se introduce karana filmi laga ya fir purana style laga identify hide karne wala jo ki bohot si Stories me dikha he par hamari utsukta kayam he . Rocky ka nature abhi se judge nahi karunga jo ki half knowledge hoga.
Bohot sahi naag bhai bohot sahi. :applause:
 

sunoanuj

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भाई इसबार क्षमा चाहूँगा
छह तारीख से पहले लिखना संभव नहीं है
हमारे यहाँ ड्रामा कॉम्पिटिशन चल रहा है
स्क्रिप्टिंग से लेकर डायरेक्शन तक मेरे जिम्मे है
इसलिये जब तक कॉम्पिटिशन ख़तम नहीं हो जाती
मैं नया अपडेट दे नहीं सकता

Ok bro we are waiting for next update…
 

Rajesh

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👉एक सौ बत्तीसवां अपडेट
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सारे सिक्युरिटी गार्ड्स अपने सिर झुकाए खड़े थे l सामने राजसी एटीट्यूड के साथ पैर पर पैर रख कर दोनों हैंड रेस्ट पर हाथ रख कर भैरव सिंह अपने ठुड्डी पर हाथ रखकर बैठा हुआ था l तभी कुछ देर बाद उस बैठक वाले कमरे में पिनाक अपना सिर पकड़ कर आता है और विक्रम भी अपने कमरे से निकल कर लगभग वैसी हालत में कमरे में आता है l

पिनाक - आह... मेरा सिर... बहुत भारी लग रहा है... शुभोदय राजा साहब...
विक्रम - शुभोदय राजा साहब...
भैरव सिंह - आपको कुछ नहीं लग रहा युवराज...
विक्रम - हाँ... सिर इतना भारी लग रहा है कि... आह... लगता है... देर रात सोने की वज़ह से.. ऐसा लग रहा है...
भैरव सिंह - (पिनाक से) और आपका...
पिनाक - लगता है... शराब कुछ ज्यादा हो गया था.. शायद हैंग ओवर का असर है...
भैरव सिंह - ताज्जुब की बात है ना.... जो हालत आप दोनों की है... बिल्कुल वैसी ही हालत... रात को.. इस घर की पहरेदारी करने वाले हर सिक्युरिटी स्टाफ्स की भी हुई है...
विक्रम - (चौंकता है) ह्वाट...
भैरव सिंह - हाँ... अब सवाल है... कैसे और कब...
विक्रम - अगर ऐसा है... तो यह कोई साजिश लग रहा है... तब सवाल और भी हैं... कौन और क्यूँ...
पिनाक - क्या... घर में इतना बड़ा कांड हो गया... चोरी या डकैती के लिए... (गार्ड्स से) कौन आया था यहाँ...


सभी गार्ड्स अपना सिर झुकाए चुपचाप वैसे ही खड़े रहते हैं जैसे पहले से ही थे, तभी उन सभी गार्ड्स के इनचार्ज वहाँ पहुँचता है l उसके हाथ में एक पेपर पैक में पैक्ड कुछ था l वह उस पैकेट को हाथ में लिए अपने साथियों के साथ भैरव सिंह के सामने सिर झुका कर खड़ा हो जाता है l

भैरव सिंह - कुछ पता चला...
इनचार्ज - जी राजा साहब... हमारा एक आदमी जो नाइट शिफ्ट में था... वह गायब है... सीसीटीवी भी काम इसलिए करना बंद कर दिया... क्यूँकी.. (कहते कहते वह पेपर वाला पैकेट खोलता है, जिसके अंदर एक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट निकाल कर दिखाते हुए) यह गैजेट सीसीटीवी की एक ट्रांसमीटर के केबल में लगा हुआ था... जिसके वज़ह से... सारे सीसीटीवी की ट्रांसमिशन डिस्टर्ब हुई और सिस्टम मालफंकशन करने लगे....
पिनाक - यह क्या है...
इनचार्ज - एक तरह का जैमर... ट्रांसमिशन जाम कर देता है...
विक्रम - (हैरान होते हुए) जैमर... मतलब... कल किसने घुसने की कोशिश की या...
इनचार्ज - पता नहीं... पर सारे के सारे... गार्ड्स... किसी के द्वारा इनहैलड एनास्थेसिक गैस से... आई मिन... स्लीपिंग गैस से इन्फेक्टेड थे...
विक्रम - ह्वाट... हाउ इट इज पॉसिबल...
इनचार्ज - आई एम सॉरी... बट इट हैपंड...
भैरव सिंह - क्या ऐसी है तुमारी सिक्युरिटी... यह तुम्हारे सिक्युरिटी संस्था के दामन पर... एक बदनुमा दाग है...
इनचार्ज - आई एम... सॉरी अगैन... राजा साहब...
भैरव सिंह - गेट आउट ऑफ हीयर....
इनचार्ज - राजा साहब...
भैरव सिंह - गेट.. आउट...

इनचार्ज अपने साथियों को लेकर वहाँ से बाहर चला जाता है l उन सबके जाने के बाद कमरे में भैरव सिंह, पिनाक और विक्रम रह जाते हैं


भैरव सिंह - पहली बार ऐसा हुआ कि हम अपनी सिक्युरिटी के वगैर बाहर स्टेट में हैं... पता नहीं हमारे सिक्युरिटी होती तो... यह सब होता या नहीं...
विक्रम - इन सबकी हालत देख कर... लगता है... हम सभी इनहैलड एनास्थेसिक से इन्फेक्ट हुए हैं... पर... (भैरव सिंह को देख कर) आपको देख कर ऐसा नहीं लगता है कि आप... इन्फेक्ट हुए हैं...

भैरव सिंह विक्रम की ओर घूर कर देखने लगता है l विक्रम भी भैरव सिंह की ओर देख रहा था कुछ देर बाद अपनी नजरें झुका लेता है l

भैरव सिंह - कभी कभी गणित भूल हो जाती है... पर जिंदगी सबक सिखाने से नहीं चूकती... सुबह तड़के हमारी नींद में खलल डाल कर कोई गया है...
पिनाक - क्या... इतनी चाक बंदोबस्त को धता बता कर कौन आया था...
भैरव सिंह - (कुछ देर चुप रह कर) वही... जिससे मिलना हमारा कलकत्ता आने का प्राथमिक उद्देश्य था...
पिनाक - ओह... मतलब वह माफिया... डैनी..
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म.... (दोनों अभी भी खड़े हुए थे) आप दोनों... बैठ सकते हैं....

विक्रम और पिनाक दोनों पास पड़े सोफ़े पर बैठ जाते हैं l उनके बैठने के बाद पिनाक भैरव सिंह से पूछता है

पिनाक - तो यहाँ का काम सब ख़तम हो गया है... इसका मतलब अब हम भुवनेश्वर जा सकते हैं...
भैरव सिंह - नहीं... सारे काम तमाम नहीं हुए हैं... आपके हिस्से का काम अभी बाकी है... वह काम खत्म होगी... हम भुवनेश्वर को निकल जाएंगे...
विक्रम - छोटे राजा जी का कौन सा काम...
भैरव सिंह - (पहले विक्रम को देखता है, फिर पिनाक की ओर देख कर) छोटे राजा जी... क्या अभी तक आपने... युवराज को बताया नहीं...
पिनाक - वह... हाँ.. हाँ... कल ही सारी जानकारी... सारी बातें... युवराज को हमने बताये थे...

भैरव सिंह विक्रम की ओर सवालिया नजर से देखता है l विक्रम भी भैरव सिंह को घूर के देखने की कोशिश करता है पर कुछ देर बाद नजरें झुका लेता है l


भैरव सिंह - क्या बात है युवराज... राजकुमार के विषय में... आपकी मन में कुछ नकारात्मक लग रहा है... आपकी नजरों में असंतोष... नाराजगी साफ दिख रहा है...
विक्रम - (थोड़ा अटक कर, बात घूमते हुए ) यह... डैनी का क्या चक्कर है...
भैरव सिंह - यह आपकी मतलब कि बात नहीं है...
विक्रम - मुझे लगा... आपसे जुड़े हर खास बात... मुझसे ताल्लुक़ रखता होगा...

भैरव सिंह कुछ देर के लिए विक्रम की ओर देखते हुए सोचने लगता है फिर अपनी जगह से उठ खड़ा होता है l विक्रम और पिनाक भी उठ खड़े होते हैं l भैरव सिंह चलते हुए दीवार की ओर जाता है और इनके तरफ पीठ कर खड़ा होता है l फिर मुड़ कर विक्रम को देखते हुए

भैरव सिंह - राजवंशीयों की मूंछें हमेशा उपर की ओर तने होते हैं... (अपनी मूँछों के दोनों तरफ ताव दे कर) एक तरफ़ वंश के नाम का गौरव व अभिमान और दुसरी तरफ गरुर व अहंकार... जिसके दम पर बिना तोले भी कोई बोल बोल भी देने पर... उस बोल की वजन हाथी बराबर रहता है... अब तक की जिंदगी में अपनी नाक की आन के लिए जो कुछ भी किया... उसे पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखा... पर (भैरव सिंह रुक जाता है)
विक्रम - पर...
भैरव सिंह - पर पहली बार... कोई वज़ह बना है... की हम... पीछे मुड़ कर देखने को मजबूर हो गए हैं... के सात साल पहले जो किया... उसे नजरअंदाज क्यूँ कर दिया था...
विक्रम - (एक पॉज लेने के बाद) विश्वा....
भैरव सिंह - हाँ... जिसका कद हमारे जुते से भी उपर नहीं था... वह डैनी को सीढ़ी बना कर... हमारे गिरेबां तक पहुँचने की जुगत में है...
विक्रम - इसका मतलब... सिर्फ हम ही बेहोश थे... आप होश में इसलिए रहे... डैनी आपसे मिलने आया था...
भैरव सिंह - हाँ...
पिनाक - तो विश्वा का क्या किया जाए...
भैरव सिंह - कुछ जरुरी बातेँ हमें कल मालुम हुई... अब देखना यह है कि... डैनी ने जितना उसके बारे में कहा... क्या वाकई वह उतना बड़ा छलांग लगा चुका है...
पिनाक - क्या मतलब...
भैरव सिंह - जुते मजबूत हों... तो राह में कील भी कंकर के बराबर होते हैं... अगर जुते कमजोर हों... तो कील जुते फाड़ कर तलवे को चुभेंगे.... अब सवाल है... इन सात सालों में... हमने कील को कंकर समझ कर अनदेखा किया... या हमारे जुते कमजोर पड़ गए...
पिनाक - अब वह क्या करेगा... ज्यादा से ज्यादा... रुप फाउंडेशन की केस को दोबारा उछालेगा...
भैरव सिंह - पर वह है किस काबिल... क्या जुते में छेद कर सकता है... जोडार ग्रुप के लिए निर्मल सामल का काम कैसे बिगाड़ेगा...
पिनाक - निर्मल सामल का प्रोजेक्ट को बिगाड़ने के लिए कुछ बचा ही नहीं है... प्रधान ने सब सेट कर दिया है... BDA से मंजुरी भी ले लिया है...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... यह रिश्ता बहुत जरूरी है... केके का हमसे टूटने के बाद... हमें अपनी रियल एस्टेट की धाक को निर्मल सामल के जरिए फिर से एस्टाब्लीश करना है...
पिनाक - जी... अगर प्रधान सही जा रहा है... तो कोई अड़चन नहीं होगी आगे...
भैरव सिंह - बात अड़चन की नहीं है... रिश्ते की है... और यह रिश्ता हाथ से छूटना नहीं चाहिए... क्यूंकि पश्चिम ओडिशा में.. निर्मल सामल उतना ही हैसियत रखता है... जितना केके भुवनेश्वर में...

कह कर बैठ जाता है और इशारे से पिनाक और विक्रम को बैठने के लिए कहता है l पिनाक तो बैठ जाता है पर विक्रम खड़े ही रहता है l

भैरव सिंह - क्या हुआ युवराज...
विक्रम - ज़मी जमाया अपना धंधा और सिक्का जारी रखने के लिए... आपको यह रिश्ता चाहए... पर राजकुमार के दिल रखने के लिए नहीं.... उनके खुशी के लिए नहीं...
भैरव सिंह - (चेहरा भाव हीन हो जाता है) दिल... वह क्या होता है...
विक्रम - आपको मेरे दिल की ज़ज्बात का खयाल रहा... पर राजकुमार का...
भैरव सिंह - युवराज जी... बी मैच्योर... मत भूलिए... आप क्षेत्रपाल हैं.... यह क्षेत्रपाल होना अभिशाप नहीं वरदान है.... जो आपको... आपकी पहचान को इस स्टेट में रुतबा दिलाता है... यह सियासत और हुकूमत... हमारी जागीर है... कल को हमारी जगह आपको लेनी है... सो प्लीज बी मैच्योर... आपके सामने एक बनी बनाई सल्तनत होगी... जिस पर आपको हुकूमत करनी है....
विक्रम - किस किमत पर... अपने ही भाई की दिल को ठेस पहुँचा कर... उसका दिल तोड़ कर... हमने भी दिल लगाया था... हो सकता है... अपने ज़माने में आपने भी लगाया होगा...
भैरव सिंह - नहीं... जहां आपने दिल लगाया... हमने वहाँ अपना दिमाग लगाया... जिस रिश्ते से क्षेत्रपाल परिवार की नाक ऊंची हो... हम वहाँ समझौता कर सकते हैं...
विक्रम - नाक...
भैरव सिंह - हाँ राज कुमार नाक... एक नाक ही तो है... जिसकी ऊँचाई मूँछ की तख्त पर समाज में रुतबा देता है... इसी लिए तो... कुदरत ने... दिल को नाक नीचे की माले में.. और दिमाग को नाक से उपर की माले में रखा है... आप भी अब दिल से नहीं दिमाग से काम लीजिए...
विक्रम - मैं राजकुमार जी के लिए...
भैरव सिंह - (विक्रम की बात को काट कर) आपने दिल लगाया... आपके दिल का काम ख़तम हो गया... राजकुमार ने दिल लगाया... उसका काम भी ख़तम समझिए... राजकुमार ने जहां दिल लगाया.. वहाँ... हमने दिमाग लगाया तो पाया... राजकुमार की दिल की सुनेंगे तो हमारी नाक नीची हो जाएगी...

विक्रम और कुछ नहीं कह पाता l वह छटपटा जाता है l उसकी छटपटाहट भैरव सिंह के आखों से छुपती नहीं है l

भैरव सिंह - हम जानते हैं... राजकुमार थोड़े समय के लिए... टुटेंगे बहकेंगे... उस वक़्त उन्हें आपको ही संभलना होगा... और मंगनी के लिए तैयार करना होगा...
विक्रम - कैसे...
भैरव सिंह - वैसे... जैसे... रंगमहल प्रवेश में राजकुमार जी ने आपको संभाला था...
विक्रम - मतलब कभी भी... अनु का...
पिनाक - कभी भी नहीं... आज शाम तक हमें शायद खबर मिल जाएगी....


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वीर के केबिन में अनु आती है l वीर की केबिन खाली था l अनु अपने काम में लग जाती है l वह अटेंडेंट से कहलवा कर सारे फ्लावर पोट में ताजे फुल लगवा देती है l केबिन में खुशबूदार जैस्मीन की फ्रैगनेंश छिड़क देती है और कॉफी मेकर के क्रॉसर पॉट में कॉफी बिन डाल कर मुस्कराते हुए टेबल के सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाती है और वीर का इंतजार करने लगती है l थोड़ी देर बाद केबिन का दरवाज़ा खुलता है l अनु की नज़र उस तरफ जाती है l वीर अंदर आ चुका था l हर रोज की तरह अपनी बाहें फैला देता है l अनु भी कुर्सी से उठ कर दौड़ते हुए वीर के गले लग जाती है l वीर उसे अपने चेहरे के बराबर उपर उठा लेता है l अनु के पैर फर्श से सात आठ इंच उपर हो जाती है l कुछ देर बाद अनु वीर से कहती है

अनु - राजकुमार जी...
वीर - ह्म्म्म्म...
अनु - मुझे उतारिए ना...
वीर - क्यूँ... तुम्हें कोई परेशानी हो रही है...
अनु - नहीं... (अपना चेहरा वीर के चेहरे के सामने लाकर) पर आप मुझे कब तक ऐसे उठाए रहेंगे...
वीर - जिंदगी भर... मरते दम तक... (वीर अनु को जोर से भींच लेता है)
अनु - प्लीज राजकुमार जी.. मुझे उतारिए ना.. कोई देख लेगा... तो क्या सोचेगा...
वीर - यही की... मालिक ने जीने वाली मालकिन को गले से लगा रखा है...
अनु - देखिए ना... मैंने कॉफी क्रॉसर पॉट में... कॉफी बिन रख दी है...
वीर - तो...
अनु - आपके लिए कॉफी बनाना है....

वीर अनु को तुरंत छोड़ देता है और अपनी कुर्सी पर बैठ कर अपना मुहँ फ़ेर लेता है l अनु वीर की यह बात देख कर मुस्कराते हुए कॉफी मेकर के पास जाती है और कॉफी मेकर को चलाती है l कुछ देर बाद दो ग्लास में कॉफी बना कर एक वीर को देती है, पर वीर लेने के बजाय मुहँ फ़ेर लेता है और यह जताता है जैसे वह अनु से नाराज़ है l अनु हँस देती है और एक मुखड़ा गाने लगती है

अनु - आप रूठे रहो... मैं मनाती रहूँ...
इन अदाओं पर और प्यार आता है...
थोड़े शिकवे भी हो.... थोड़ी शिकायत भी हो
तो जीने में और मजा आता है...
वीर - ओ हो... तो आज कल गाना भी सीख रही हो...
अनु - (हँसते हुए) क्या करूँ... आज कल आप बात बात पर... झूठ मूठ रूठ जो रहे हैं...
वीर - (अचानक अनु की तरफ घुम कर) मैं झूठ मूठ रूठ रहा हूँ....
अनु - हाँ... आप का मुझ पर रूठना... एक दम झूठ है...
वीर - अच्छा तुम्हें क्यूँ लगता है कि मेरी नाराजगी झूठी है...
वीर - इन पाँच छह महीनों में... आपको अच्छी तरह से जान गई हूँ... चाहे कुछ भी हो... आप मुझसे कभी रूठ ही नहीं सकते...
वीर - (हल्का से मुस्कराते हुए, बगल से एक चेयर खिंच कर लाता है और उस पर अनु को बिठाते हुए) अनु... क्या करूँ... तुम मुझ पर कभी रूठती जो नहीं हो...
अनु - मैं आपसे क्यूँ रूठुँ...
वीर - अरे... रूठना चाहिए... जानती हो... हर प्रेम कहानी में.. प्रेमिका कभी ना कभी रूठती जरूर है... और उसे उसका प्रेमी मनाता है... रूठना तो प्रेमिका का अधिकार है..
अनु - वह सब कहानियाँ हैं... हमारा प्यार कहानी नहीं है... सच है... और मैं जितना आपके जानने लगी हूँ... उतना आप पर मेरा प्यार बढ़ता ही जा रहा है....
वीर - अच्छा... (कॉफी की ग्लास उठा कर सीप लेते हुए) ऐसे क्या क्या जान गई हो मेरे बारे में...
अनु - यही के... भले ही रोज... आपकी गाड़ी मुझे ऑफिस लेने और घर छोड़ने जाती है... पर फिर भी... आप उस गाड़ी की पीछे पीछे रोज आते हैं... मेरी खैरियत के खातिर... है ना...
वीर - (थोड़ी हैरानी जताते हुए) वहम है तुम्हारा... जब मैंने तुम्हारे लिए... ड्राइवर रखा हुआ है... तो भला मैं तुम्हारे पीछे क्यूँ आऊँ...
अनु - आप ना.. आज कल झूठ भी बोलने लगे हो... झूठे...
वीर - मैं झूठ बोल रहा हूँ... (अनु मुस्कराते हुए वीर की ओर देखती है) अच्छा... ठीक है... ठीक है.... वैसे... तुम्हें कब पता चला... के मैं तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ... जब कि मेरी गाड़ी तुम्हें लाने और ले जाने के लिए रखा है...
अनु - कल शाम को... और अभी भी आते वक़्त आप.. गाड़ी के पीछे ही आ रहे थे... और यह भी मालूम है... की मेरे घर के पास कुछ लोग हैं... जिन्हें आपने लगाए हैं... मुझ पर नजर रखने के लिए...
वीर - (ग्लास को रख कर, थोड़ी सीरियस हो कर) मैं क्यूँ तुम्हारे पीछे... (एक पॉज लेकर) तुम जानती हो ना... क्यूँ...
अनु - (अपना सिर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... कोई शायद... मुझे नुकसान पहुँचाना चाहता है...
वीर - (अनु की हाथ से ग्लास लेकर टेबल पर रख देता है और उसकी दोनों हाथ पकड़ कर, उसके आँखों में झांकते हुए) अनु... मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा...
अनु - मैं जानती हूँ... आप के होते हुए... मुझे कुछ नहीं होगा...
वीर - तुम्हें मुझ पर इतना भरोसा है... जब कि.. मेरा विश्वास हर एक दिन के साथ डोलता जा रहा है...
अनु - पर मेरा प्यार... मेरा विश्वास... हर एक दिन के साथ बढ़ता ही जा रहा है....

वीर अपनी जगह से खड़ा हो जाता है और अनु को अपने पास खिंच कर गले लगा लेता है l

अनु - आह... कभी कभी आप मुझे इतनी खुशी दे देते हैं कि... बर्दास्त करना... संभलना मुश्किल हो जाता है... सच कहूँ.... इतनी खुशी के साथ तो मर जाने को दिल करता है....

वीर अनु को अलग कर उसके मुहँ पर अपना हाथ रख देता है l

वीर - चुप.. यह क्या कह रही है.... मरने की बात कर रही है... यह भी नहीं सोच रही है... मैं तेरे वगैर जियुँगा कैसे...

अनु अपने मुहँ से वीर की हाथ निकाल कर चूमती है फिर उस हाथ को अपने गाल पर रखती है और वीर के आँखों में देखते हुए

अनु - कितना प्यार करते हैं मुझसे... मेरे साये तक को खरोंच नहीं सकता कोई... यह मैं जानती हूँ... कभी कभी मुझे अपनी किस्मत पर रस्क होता है... क्या मैं सच में जी रही हूँ... या सपना देख रही हूँ... कहाँ छोटे से खोली में रहने वाली.. कहाँ एक राजकुमार... कहाँ कहानी.. कहाँ हकीकत..
वीर - (दोनों हाथों में अनु की चेहरे को लेकर) कितनी बड़ी बड़ी बातेँ कर रही है... कहाँ से सीखा यह सब...
अनु - कहाँ से क्यूँ सीखुंगी... यह बातेँ मेरे दिल की है... आज मौका मिला तो कह दी...
वीर - (अनु की दोनों गालों को खिंचते हुए) ओह मेरी प्यारी अनु... तेरी यही सारी बातेँ सुनने के लिए ही तो... तुझसे शादी करना चाहता हूँ... सोने से पहले.. जागने के बाद तुझे अपने सामने देखना चाहता हूँ... तु मेरी जिंदगी का अटूट हिस्सा है... और तु अभी भी... सपना और हकीकत में उलझी हुई है...

अनु अपनी गाल से वीर के हाथों को हटाते हुए वीर की हाथों को पकड़ कर l

अनु - (थोड़ी उदासी भरी लहजे में) राजकुमार जी... माँ जी ने मुझे स्वीकारा... आपके भाई... भाभी... बहन ने भी मुझे स्वीकारा... हाँ मैं आपकी जिंदगी की हिस्सा हूँ.. पर... जिनके स्वीकारने पर... मैं आपके परिवार की हिस्सा बन पाती... उनकी स्वीकृति अभी तक नहीं मिली है ना...
वीर - मुझे भी तो उनकी मंजुरी लेनी है...
अनु - क्या... मुझे... स्वीकारेंगे...
वीर - उन्हें करना पड़ेगा... कौन नहीं जानता तेरे मेरे बारे में... हमारे ऑफिस के स्टाफ से लेकर हमारे परिवार तक सभी तो जानते हैं.. पर हाँ.. मैं अपने पिता और राजा साहब की सहमती लेना चाहता हूँ...
अनु - फिर...
वीर - फिर शादी... क्यूंकि... अब तकिए के साथ नहीं सो पा रहा हूँ....

अनु शर्मा कर अपना हाथ छुड़ा लेती है और अपने हाथों से चेहरा छुपा कर वीर की तरफ पीठ कर मुड़ जाती है l वीर पीछे से आकर उसके कमर पर अपना हाथ का घेरा बना कर कस लेता है l

वीर - अनु...
अनु - हूँ...
वीर - आई लव यू...
अनु - हूँ...
वीर - क्या हूँ... मुझे भी जवाब दो...
अनु - ऊँ... हूँ...
वीर - क्यूँ...
अनु - छोड़िए ना... म्म्म्म.. मुझे शर्म आती है...
वीर - आह... किस लड़की से पाला पड़ा है... सिर्फ शर्माती रहती है...
अनु - (खि खि कर हँस देती है)
वीर - अनु...
अनु - ह्म्म्म्म...
वीर - मैं ना... यह चाहता हूँ... के जब हमारा प्यार भरा संसार बस जाए... तुम ना रोज सुबह देर से उठना... मैं तुम्हारे लिए कॉफी बना कर जगाउँगा... तुम मुझ पर हुकूमत करना... मैं तुम्हारी गुलामी करूँगा...
अनु - (अपने चेहरे से हाथ हटा कर) झुठे...
वीर - देखो मैं झूठ नहीं सच कह रहा हूँ... तुम्हें... (दोनों बाहें फैलाते हुए) अपनी दुनिया का रानी बना कर रखूँगा... तुम राज करना.. और मैं तुम्हारी सेवा...
अनु - झूठे...
वीर - तुम फिर से मुझे झूठा कहा...
अनु - (शर्माते हुए) ह्म्म्म्म...
वीर - बोलो क्या झूठ बोला मैंने...
अनु - आपको कॉफी बनाना कहाँ आता है... (खिल खिला कर हँस देती है)
वीर - तो... मैं सीख लूँगा... देखना तुमसे भी अच्छा कॉफी बना कर तुम्हें पीलाउँगा...
अनु - अच्छा जी...
वीर - हाँ जी... जब तुमसे प्यार करना... केयर करना सीख लिया है.. तो कॉफी बनाना भी सीख लूँगा... देख लेना...
अनु - पर मैंने कब कहाँ सिखाया है...
वीर - तुम्हें देखते देखते सीख लिया है... यह भी देख देख कर सीख लूँगा...
अनु - (हँसते हुए) ठीक है... ठीक है... देखेंगे...

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गाड़ी चलती जा रही थी और रुप अभी भी फंसी हुई थी, कभी सीट बेल्ट को निकालने की कोशिश कर रही थी तो कभी पीछे की ओर लुढ़की सीट की लिवर को खिंच कर सीधा करने की कोशिश कर रही थी पर चिल्ला नहीं रही थी l अंत में थक हार कर चिल्ला कर कहती है

रुप - गाड़ी... रोको... (गाड़ी फिर भी नहीं रुकती, तो फिर से चिल्ला कर) अनाम गाड़ी रोको...

चर्र्र्र्र्र्र् आवाज़ करती हुई गाड़ी रुक जाती है l ड्राइविंग सीट से पीछे की ओर मुड़ कर विश्व रुप की ओर देख कर मुस्कराता है, रुप अपना मुहँ और आँखे सिकुड़ कर जोर जोर से साँस लेते हुए विश्व को खा जाने वाली नजर से देख रही थी l

विश्व - हे हे हे... (मस्का मारने वाली हँसी हँसते हुए) आपको कैसे मालुम हुआ... के आपको मैं किडनैप कर लिए जा रहा हूँ...
रुप - पहले मुझे सीधा कर बिठाओ....
विश्व - नहीं पहले आप यह बताओ... आपको कैसे मालुम हुआ... के किडनैपर मैं ही हूँ...
रुप - देखो... अगर तुमने मेरी सीट को सीधा नहीं किया तो...
विश्व - तो...
रुप - तो मैं तुम्हें कच्चा ही चबा जाऊँगी...
विश्व - इसका मतलब यह हुआ कि... अगर मैंने सीधा कर दिया... तो आप मुझे फ्राई कर खा जाएंगी...
रुप - आ आह... अनाम...
विश्व - अरे कर दूँगा सीधा... इतनी परफेक्ट प्लानिंग के साथ किडनैप किया... पर फिर भी... आपको पता चल गया... कैसे... प्लीज बताइए ना...
रुप - मुझे इस सीट से पहले आजाद करो...
वीर - ना ना... मेरी प्लान को कैसे बेनकाब किया पहले आप बताओ...
रुप - उह... अच्छा सुनो... भले ही कार की विंड स्क्रीन ट्रांसपरेंट है... फिर भी तुम्हारा अक्स हल्के से दिख रहा था... अब समझ में आया...
विश्व - ओह शीट... आपकी दिमाग के आगे तो मैं गच्चा खा गया...
रुप - ओह ओ... अब मेरी सीट को नॉर्मल करोगे भी...
विश्व - हाँ हाँ... अभी लीजिए...

विश्व पहले ड्राइविंग सीट से उतरता है फिर रुप की तरफ की डोर खोल कर सिर्फ सीट बेल्ट की लॉक को खोल देता है l रुप झट से उठ कर कार के बाहर आ कर विश्व को दबोचने के लिए लपकती है l विश्व को पहले से ही अंदाजा था, ऐसा ही कुछ होगा वह भागने लगता है l रुप उसके पीछे भागने लगती है l

रुप - मैं कहती हूँ रुको...
विश्व - नहीं...
रुप - देखो अगर नहीं रुके तो...
विश्व - हाँ नहीं रुका तो...

रुप रुक जाती है और मुहँ फुला कर एक बेंच पर बैठ जाती है, विश्व जब देखता है रुप बैठ गई है तो वह धीरे धीरे बड़ी सावधानी के साथ रुप के पास आता है l रुप का चेहरा गुस्से से लाल हो चुकी थी और तमतमा रही थी l

विश्व - हे हे हे... राजकुमारी जी...
रुप - तुमने ऐसा मज़ाक क्यूँ किया...
विश्व - मैं आपको सर प्राइज देने आया था... कल रात को आपने दिल से आवाज दी... हम सुबह आपके सेवा में हाजिर हो गए...
रुप - अच्छा तो यह सेवा है..
विश्व - सर प्राइज के लिए इतना हक तो बनता है...
रुप - यू...

कह कर इसबार झपट्टा मारती है l विश्व पीठ के बल गिरता है रुप उसके उपर गिरती है l अब सीन कुछ ऐसा बन जाता है विश्व नीचे गिरा है और रुप उसके उपर उसके कलर पकड़ कर झींझोडते हुए उसके सीने पर मारने लगती है l

विश्व - राज कुमारी जी... देखिए हम एक पार्क में हैं... लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे...

रुप मारते मारते रुक जाती है l देखती है वाक़ई एक पार्क था, उसे अपनी हालत का भी अंदाजा हो जाता है l वह चारों तरफ नजरें दौड़ाती है, कोई नहीं था आस-पास पर वह विश्व के उपर थी, शर्म से उसके गाल लाल हो जाते हैं और विश्व के उपर से उठ कर चुप चाप बेंच पर आकर बैठ जाती है l विश्व भी नीचे जमीन से उठता है और उसी बेंच पर रुप से थोड़ी दुर बैठता है l

विश्व - आई एम सॉरी...
रुप - (शर्माते हुए) ऐसे कौन करता है...
विश्व - अपनी राजकुमारी के लिए ऐसा सिर्फ अनाम करता है...
रुप - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) कब आए और... मुझसे सीधे बात क्यूँ नहीं की...
विश्व - लो कर लो बात... एक सुबह से फोन बंद आ रहा था... तो कैसे बात करता... इसलिए अपनी मुहँ बोली बहन के जरिए... आपको आपके घर से निकाला... मैं कल रात को... एक लॉरी वाले की मदत से कटक पहुँचा... माँ की गाड़ी लेकर बस आपसे मिलने आ गया...
रुप - क्या... माँ ने पूछा नहीं...
विश्व - पूछा ना... पर बात जब उनकी बहु की हो... तो झट से गाड़ी की चाबी मेरे हाथों में थमा दी...
रुप - तो फिर भाश्वती... उसकी गाड़ी...
विश्व - मैंने उसे कॉन्टैक्ट किया... मैंने उसकी गाड़ी की सीट में थोड़ी छेड़छाड़ की... वह आपको ले आयीं... उसके बाद माँ की गाड़ी उसके हवाले कर... मैंने उसकी गाड़ी ले ली...

रुप शर्मा जाती है, फिर अचानक अपना मुड़ बदल कर गुस्से वाली एक्सप्रेशन दे कर मुहँ मोड़ देती है l

विश्व - पल दो पल में यह मौसम क्यूँ बदल जाती है...
कभी बहार तो कभी पतझड़ आ जाती है...
आपकी दीदार ए हुस्न को रात जाग कर आए हैं...
एक मुस्कान भरी नजरों से देख तो लीजिए...
इस कातिल हुस्न के हाथों कत्ल होने आए हैं...
रुप - (मुस्करा देती है, विश्व की ओर देखती है)
विश्व - वाव...
रुप - (अपनी एक टांग पर टांग रखती है फिर एक हल्की सी अंगड़ाई लेते हुए अपनी आँखों में मादकता भरी नजर से देखते हैं अपनी पलकों को आधी बंद कर इठलाते हुए अपनी गर्दन हिला कर अपने पास आने आने को इशारा करती है)
विश्व - (रुप की इस अंगड़ाई भरी आमंत्रण देख कर पहले विश्व का मुहँ खुला रह जाता है फिर हलक से थूक गटकता है) रा... राज... कु.. कुमारी जी... आ.. आपको... घ.. घ.. घर छोड़ दूँ...
रुप - (मादक भरे आवाज में) क्यूँ...
विश्व - अब दिन खुल गया है... भीड़ भी बढ़ने वाली है...
रुप - (अब एक बड़ी सी अंगड़ाई लेते हुए, विश्व की ओर थोड़ी खिसक कर) तो...
विश्व - तततत तो...
रुप - ह्म्म्म्म (और थोड़ी खिसक कर) तो...
विश्व - तो... (अब आवाज बदली हुई थी, बिल्ली जैसी) गगगगग.. गलती... हो गई.... फिर... कभी... आआआआपको... ऐसे नहीं... (अपनी गर्दन मुश्किल से ना में हिलाते हुए) नहीं बुलाउंगा...
रुप - (विश्व से लगभग एक फुट की दूरी पर) डर लग रहा है...
विश्व - (वही बिल्ली वाली आवाज में) हाँ... नहीं... हाँ...
रुप - कत्ल होने से... इतना डर लग रहा है...
विश्व - नहीं... हाँ.. नहीं...

रुप फिर से गुस्सा दिखाते हुए बेंच के दुसरे सिरे पर खिसक कर चली जाती है तो विश्व अपनी साँसों को दुरुस्त करने लगता है l उसकी हालत ऐसी हो गई थी जैसे उसकी साँसे कब रुकी हुई थी l वह बड़ी बड़ी और गहरी साँस लेने लगता है l साँस थोड़ी दुरुस्त होने पर वह रुप की मुस्कराने की कोशिश करते हुए देखता है l

रुप - हुँह्ह्ह... फट्टु कहीं के...
विश्व - (थोड़ी ताव में आकर) ऐ... मैं कोई फट्टु वट्टु नहीं हूँ... याद नहीं... मैंने कैसे आपको प्रपोज किया था...
रुप - तो... उस बात को कितने दिन हो गए... और उस दिन तो फोन पर बड़े बड़े हांक रहे थे... आज मौका भी था दस्तूर भी था... (रुक जाती है)
विश्व - वह वह... जो भी हो... मैं.. मैं... फट्टु नहीं हूँ...
रुप - अच्छा नहीं हो...
विश्व - नहीं हूँ...
रुप - (विश्व की ओर थोड़ी खिसक जाती है) तो फिर मेरे गालों पर किस करो...
विश्व - क्या... (ऐसे रिएक्ट करता है जैसे उसके हाथों से तोते उड़ गए)
रुप - देखा... फट्टु...
विश्व - (थोड़े ताव में आकर) बस बहुत हुआ.. मैं अगर किस कर दूँ तो...
रुप - तो कर क्यूँ नहीं रहे हो...
विश्व - वह वह... ताकि... आपकी रुसवा ना हो...
रुप - ओ हैलो... वह मैं देख लुंगी... पहले यह साबित करो... तुम फट्टु नहीं हो...
विश्व - बस... (कह कर उठ जाता है) अब मैं साबित करके ही रहूँगा..
रुप - (अपनी मुहँ के पास उबासी लेते हुए चुटकी बजाती है) क्या तुम जितने शरारती हो... उतने फट्टु भी हो...
विश्व - इनॉफ...

कह कर विश्व रुप के बग़ल में दो फुट की दूरी पर बैठ जाता है l रुप मुस्कराते हुए अपना गाल विश्व की तरफ आगे करती है l विश्व पहले अपना नजर चारों तरफ घुमाता है फिर अपनी आँखे मूँद कर धीरे धीरे किस करने के लिए अपना होंठ बढ़ाता है l उसकी होंठ जितना आगे ले जा रहा था उतना ही अपनी आँखों को कसके बंद कर रहा था l आधा मिनट, फिर एक मिनट जाता है पर किस नहीं हो पा रहा था l रुप हैरान हो कर विश्व की ओर देखती है l करीब छह इंच की दूरी पर विश्व अपनी आँखे बंद कर किस करने की मुद्रा में रुका हुआ था l रुप अपना हाथ सिर पर मार कर बेंच के कोने तक सरक कर विश्व की ओर देखने लगती है l

बहुत कोशिश के बाद जब किस नहीं हो पाई तो पहले एक आँख खोल कर देखता है रुप मुहँ फुला कर विश्व को बेंच के सिरे पर बैठ कर देख रही थी l वह अपनी दुसरी आँख खोल कर अपनी हालत का जायजा लेता है l उसके दोनों हाथ उसके जांघों के बीच था और किस करने के मुद्रा में वह स्टैच्यु बना बैठा हुआ था l

विश्व - (खिसियाते हुए) ही ही ही...
रुप - सो मिस्टर बहादुर... वाह क्या बहादुरी दिखाई... छह इंच की दूरी भी तुमसे तय नहीं हो पाई...
विश्व - वह.. वह... इसलिए...
रुप - अच्छा... तो इसके लिए भी आपके पास... लॉजिक है...
विश्व - हाँ... वह इसलिए कि... प्यार में प्रेमी एक दूसरे की कमी को पूरा करते हैं... इसी में प्यार की पूर्णता है... मुझ में जो कमी है... वह आप पुरा करेंगी... आपके भीतर जो कमी है... वह मैं पुरा करूँगा...
रुप - (खीज कर, खड़ी हो जाती है) आआआह्ह्ह... मतलब... प्यार में... मुझे बेशरम होना पड़ेगा...
विश्व - (डर कर खड़ा हो जाता है) नहीं मेरा मतलब है...

रुप अब झपट्टा मारती है, विश्व के उपर पहले की तरह गिरती है l विश्व के बालों को पकड़ कर चेहरे को सीधा करती है और धीरे धीरे झुकती है, अंत में विश्व की नाक पर काटती है l

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बल्लभ प्रधान का घर
घर में कोई औरत नहीं है केवल कुछ नौकर हैं l वे सब बल्लभ के सामान पैक कर रहे थे l बल्लभ बाथरूम में फ्रेश हो रहा था l बाहर कमरे में एक कुर्सी पर रोणा बैठा हुआ था l ठुड्डी पर हाथ रख कर कुछ सोच में खोया हुआ सा लग रहा था l तभी उसकी मोबाइल पर मैसेज अलर्ट की ट्यून बजने से उसका ध्यान टूटता है l जेब से मोबाइल निकाल कर देखता है टोनी ने कुछ फोटो चाट मैसेज में भेजा था l रोणा की भवें सिकुड़ जाती हैं l वह टोनी के भेजे फोटों को डाउन लोड करने लगता है l जैसे जैसे फोटोस डाउन लोड होते जाते हैं उसके आँखे फड़फड़ाने लगते हैं और जबड़े सख्त होते जाते हैं, तुनक कर खड़ा हो जाता है l वह सारे फोटो देखने के बाद टोनी को फोन लगाता है l टोनी के फोन लिफ्ट करते ही

रोणा - यह सब क्या है...
टोनी - प्रेम के दो परिंदे हैं... चोंच लड़ा रहे हैं...
रोणा - मेरे जले पर नमक छिड़क रहा है तु...
टोनी - ना... ऐसी मेरी औकात या हिम्मत कहाँ...
रोणा - यह फोटोस कब की है...
टोनी - अभी कुछ देर पहले की... लाइव में था... इसलिए फोटो ले ली...
रोणा - विश्वा... अभी भुवनेश्वर में है...
टोनी - हाँ... इत्तेफाक से हाँ... आज वह गाड़ी... वह लड़की और उस लड़की के साथ विश्वा दिखा... इसलिए उनकी फोटो निकाल कर आपको भेज दिया...
रोणा - भोषड़ी के... मैंने लड़की की डिटेल निकाल कर भेजने को कहा था...
टोनी - आज पहली बार... गाड़ी और लड़की इकट्ठे दिखे हैं... पर कबाब में हड्डी... विश्वा भी है उसके साथ... आज का काम बस इतना ही...
रोणा - क्या मतलब इतना...
टोनी - लड़की के साथ विश्वा है... इसलिए मेरा काम आज के लिए इतना ही... अब आपके हिस्से का काम बचा है... वह निपटा कर मुझे फोन कीजिए...
रोणा - मेरे हिस्से कौनसा काम है...
टोनी - रोणा साहब... आपका यह काम उठाने से पहले मैंने कहा था... मैं विश्वा के हाथों... वह दुसरा नहीं बनना चाहता... इसलिए... जब आप मेरे लिए नई आइडेंटिटी की जुगाड़ कर लो... मुझे ख़बर कर दीजियेगा.... आपको डिटेल्स मिल जाएंगे...
रोणा - विश्वा से तेरी इतनी फटती है...
टोनी - मेरी तो सिर्फ फटती है... आपको तो एक नहीं तीन तीन बार फाड़ कर रख दी है... भुल गए...
रोणा - बे मादरचोद... अपनी औकात भुल रहा है...
टोनी - नहीं... अपनी हिफ़ाज़त की सोच रहा हूँ... यह आप भी जानते हो... विश्वा का नेट वर्क कितना तगड़ा है... मैं उसकी मौजूदगी में... उसके नेट में फंसना नहीं चाहता... खबर तो अब हर हाल में निकाल लूँगा ही... बस आप मेरे लिए... एक नई बंगाली आधार कार्ड... वोटर आईडी... जुगाड़ कर दीजिए.. मैं ओड़िशा छोड़ देना चाहता हूँ... विश्वा से दुर बहुत दुर चला जाना चाहता हूँ...
रोणा - ठीक है.... हफ्ते दस दिन में तैयार करवा दूँगा...
टोनी - और हाँ.... एक बात और...
रोणा - भौंक ले.. जो भी भौंकना है...
टोनी - बंगाल की कोई आदिवासी आइडेंटिटी चाहिए... और उसकी गिनती भारत की जन गणना की रजिस्टर में होनी चाहिए....
रोणा - ह्म्म्म्म... हो जाएगा.... आज से ठीक दस दिन के बाद... तुझे तेरे सामान मिल जाएंगे...
टोनी - तो मैं भी वादा करता हूँ... आपको दस दिन के बाद... इस लड़की की डिटेल्स मिल जाएगी...

फोन कट जाता है, रोणा अपनी नजरें घुमाता है तो कमरे में हाथ में टावल लिए बल्लभ खड़ा था l बल्लभ अपनी भवें सिकुड़ कर रोणा को देख रहा था l

रोणा - तु कब आया...
बल्लभ - जब तु फोन पर लगा हुआ था... (टावल को बेड के उपर फेंकते हुए) यह तु किसके साथ बकचोदी कर रहा था....

रोणा अपना मोबाइल बल्लभ के हाथ में देता है l बल्लभ सारे फोटोस देखने लगता l सारे फोटो देख लेने के बाद मोबाइल को वापस लौटाते हुए l

बल्लभ - ह्म्म्म्म... बड़े अच्छे फोटो निकाले हैं... टोनी ने...
रोणा - (बिदक कर) अब तु भी शुरु हो गया...
बल्लभ - नहीं कसम से... मैं पक्का कह सकता हूँ... यह सारे फोटो... डीएसएलआर कैमरा से लिया होगा...
रोणा - मेरी पहले से ही सुलगी हुई है... भोषड़ी के... तेल छिड़क रहा है...
बल्लभ - छिड़क नहीं रहा हूँ... तुझे अभी से आगाह कर रहा हूँ... जरा सोच यही फोटो... कल राजा साहब के हाथ लगे... तो क्या होगा... (रोणा चुप रहता है) तुने ही कहा है... की इस लड़की की... विश्व से कोई संबंध नहीं है...
रोणा - मैंने कहा ना... यह मामला पुरी तरह निजी है...
बल्लभ - यह लड़की जो तेरे दिमाग पर नाच रही है... तेरी मति भ्रष्ट हो गई है... अबे राजा साहब के दुश्मनों से कोई निजी खुन्नस नहीं पाल सकता...
रोणा - हाँ हाँ हाँ... (थोड़े ऊँचे आवाज़ में) जानता हूँ... पर इस लड़की को मैं अपनी पर्सनल रखैल बना कर रखना चाहता हूँ... समझा... (बल्लभ बिना कोई प्रतिक्रिया के चुपचाप उसे देख रहा था) (रोणा भी अपनी नजरें चुराते हुए) राजा साहब को आभास हुआ तो... वह लड़की अब तक रंग महल की भेंट चढ़ चुकी होती... (फिर अचानक लहजा बदल जाता है) मैं.. उसे एक बार सही... पर विश्व के सामने उसकी लेना चाहता हूँ... जितना घिन मुझे अपने आप से हो रही है... विश्वा भी खुद से उतना ही नफरत करेगा... अपनी बेबसी पर... रोएगा...
बल्लभ - उससे पहले... कहीं वैसा ही हालत तेरी ना हो जाए... (एक कुर्सी पर बैठ जाता है)
रोणा - कभी कभी एक बड़ी बाजी जीत ने के लिए... एक बड़ा दाव लगाना पड़ता है... सो मैंने लगा दिया है... जब जो होगा... तब देखा जाएगा... खैर... (दुसरे कुर्सी पर बैठते हुए) तु जिस वज़ह से आया था... वह तो पुरा हो गया है... क्या इसीलिए तु अब जा रहा है...
बल्लभ - हाँ मैं यहाँ खबर लेने आया था... ले लिया... पर अभी मैं कलकत्ता नहीं... भुवनेश्वर जा रहा हूँ... चल तु भी चल...
रोणा - क्यूँ कोई खास बात...
बल्लभ - हाँ... परसों राजकुमार जी की मंगनी है...
रोणा - (चौंकते हुए) क्या... इतनी जल्दी... वह भी बिना कोई शोर शराबे के...
बल्लभ - राजा साहब ने तय की है... चट मंगनी... पट शादी...
रोणा - जाहिर है... रिसेप्शन राजगड़ में होगी...
बल्लभ - हाँ इसलिये चल... भुवनेश्वर में थोड़ा फ्रेश हो जाएगा...
रोणा - नहीं तु जा... अब भुवनेश्वर नहीं... कुछ ऐसा करूँगा की विश्वा यहीं आकर अपना सिर फोड़ेगा..
बल्लभ - आआआआहहह... (चिढ़ जाता है) विश्वा तेरे सिर पर भूत बन कर छाया हुआ है... पर कोई ना... मैंने उसका इलाज ढूंढ लिया है... बस यह मंगनी हो जाने दे.... फिर देखना विश्वा का रोग कैसे छु मंतर होता है...
रोणा - (अपनी भवें सिकुड़ कर) क्यूँ ऐसा कौनसा तीर मारने वाला है...

इसबार बल्लभ थोड़ी उत्सुकता के साथ अपनी कुर्सी को खिंच कर रोणा के पास लाता है l

बल्लभ - विश्वा... इतना सब कैसे कर लेता है... कभी सोचा है... (रोणा सिर हिला कर ना कहता है) उसकी वज़ह है... जोडार ग्रुप्स ऑफ कंपनी का मालिक स्वपन जोडार...
रोणा - क्या...
बल्लभ - हाँ... स्वपन जोडार... कंस्ट्रक्शन फिल्ड में धीरे धीरे अपना सिक्का जमा रहा है... विश्वा उसका लीगल एडवाइजर है... और सबसे अहम बात.. उसकी अपनी सिक्युरिटी सर्विस भी है...
रोणा - (हैरानी भरे नजरों से बल्लभ की ओर देखने लगता है)
बल्लभ - हाँ हाँ हाँ... अब तु ठीक सोच रहा है... विश्वा अपनी लीगल एडवाइज के बदले... जोडार के सेक्यूरिटी एजेंसी की हेल्प ले रहा है... तभी तो वह हम पर इसीलिए भारी पड़ा...
रोणा - ओ... अच्छा... तो यह राज है... उसके नेट वर्क की... पर तु करना क्या चाहता है...
बल्लभ - (अपनी सीट पर आराम से टिक कर बैठते हुए) मैंने जोडार की बर्बादी की कागजात पर... BDA की अप्रूवल ले ली है... राजकुमार की मंगनी और शादी भी इसी बात से जुड़ी हुई है...
रोणा - (नासमझ की तरह) क्या... मैं कुछ भी नहीं समझा...
बल्लभ - बताता हूँ सुन... याद है... मैं हमेशा कहा करता था... जहां दिमाग लगे... वहां ताकत इस्तमाल नहीं करना चाहिए... विश्वा हर बार हम पर भारी पड़ा... वज़ह तलाशी तो जोडार का खेल समझ में आया... यानी अगर जोडार ख़तम तो विश्वा का तेवर ख़तम....
रोणा - अभी भी... मैं समझ नहीं पाया... राजकुमार की मंगनी और शादी से... जोडार कैसे ख़तम होगा...
बल्लभ - अबे भुतनी के... हमेशा की तरह उतावला क्यूँ हो रहा है... मेरी बातों को गौर से सुन... जोडार अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी वेंचर में अपना सबकुछ लगा दिया है... एक डुप्लेक्स हाउसिंग सोसाईटी की प्रोजेक्ट... हम उसकी इस प्रोजेक्ट को फैल कर रहे हैं... एवज में... राजकुमार की शादी करा रहे हैं...
रोणा - कैसे...
बल्लभ - उसी हाउसिंग प्रोजेक्ट के सामने वाली जमीन पर... जो कि ना तो सरकारी है.. ना ही निजी... उसी जमीन पर निर्मल सामल अपना एक डुप्लेक्स सोसाइटी का मेगा प्रोजेक्ट ला रहे हैं... वह भी जोडार ग्रुप्स के आधे दाम में...
रोणा - ओ... इस तरह से... जोडार ग्रुप के घर... अनसोल्ड रह जाएंगे... इससे कंपनी डूब जाएगी...
बल्लभ - और विश्वा का विष दांत भी गिर जाएंगे... वह ऐसा सांप बन कर रह जाएगा... जिसका फन तो होगा... पर दांत नहीं होगा... और ऐसे सांपों को कुचलने में तुझे बड़ा मजा आता है ना...

रोणा की आँखों में एक चमक दिखने लगता है l वह एक अंदरुनी खुशी के साथ चेयर से उठ खड़ा होता है l

रोणा - वाह वकील वाह... तेरे मुहँ में घी शक्कर... अगर सच में ऐसा हो गया... तो कसम से... तु जो बोलेगा.. मैं हार जाऊँगा...
बल्लभ - बैठ जा खाकी वाले बैठ जा... बोला तो था तुझे... और राजा साहब के सारे कारींदों को... पर किसीने मेरी बात नहीं सुनी... सबकी चूल मची थी...
रोणा - (बैठते हुए) सच कह रहा था तु... हर बात ताकत से नहीं सुलझाने चाहिए... दिमाग का भी कभी कभी इस्तमाल करनी चाहिए...

तभी एक नौकर आकर खबर करता है कि उसका सारा सामान पैक हो चुका है l बल्लभ उन्हें बाहर इंतजार करने के लिए कहता है l नौकर जाने के बाद

बल्लभ - वही मैं ना जाने कब से कह रहा था... के दिमाग वकील रखता है... इसलिए अब तुझे बोल रहा हूँ... चल मेरे साथ... अपना दिमाग रिफ्रेश करने...
रोणा - नहीं वकील नहीं... तु जिस काम के लिए जा रहा है... वह कर... साथ में मेरा एक काम कर देना...
बल्लभ - तेरा कौनसा काम...
रोणा - मैं अपने एक बंदे को खबर कर दूँगा... वह तुझे एक पार्सल देगा... मेरे लिए... तुझे वह पार्सल लाना है...
बल्लभ - पार्सल... क्या होगा उसमें...
रोणा - तकदीर...

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शाम का वक़्त था
xxxx मॉल की कॉफी डे शॉप के सामने लगे टेबल पर वीर बैठा अपने ख़यालों में खोया हुआ था l थोड़ी देर बाद उसके सामने दो कॉफी ग्लास कोई रख देता है l वीर ग्लास रखने वाले को नजर उठा कर देखता है l वह शख्स और कोई नहीं था उसका दोस्त प्रताप था l वीर बेहद खुशी के साथ अपनी जगह से उठता है और प्रताप के गले लग जाता है l विश्व भी उसे गले लगा लेता है l वीर बहुत ही भावुक हो जाता है l मॉल में सभी की नजर वहीँ पर ठहर जाता है l

वीर - (भावुकता में कहे जा रहा था) मेरे यार.. मेरे दोस्त... शुक्रिया... बहुत बहुत शुक्रिया...
विश्व - पहले बैठ जाते हैं... लोग अपने काम बंद कर हमें घुर रहे हैं...

यह सुन कर वीर विश्व से अलग होता है l दोनों अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं और अपनी अपनी कॉफी की ग्लास उठाकर चुस्कियां लेने लगते हैं l

वीर - थैंक्स यार... तुम आ गए... ऐसा लग रहा है... मैंने दुनिया जीत ली है...
विश्व - मेरा आने का प्रोग्राम तो था... पर दो तीन दिन बाद.... फोन पर तुमने जिस तरह से बात की... मुझे लगा तुम टूट से गए हो... तुम्हारी आवाज में दर्द बहुत था... इसलिए सब छोड़ कर आ गया...
वीर - हाँ यार.. किसी ने सच ही कहा है... a friend in need is a friend indeed...
विश्व - (कॉफी की सीप लेते हुए) वैसे... क्या need है तुम्हारी...
वीर - बताता हूँ... वैसे दोस्तों के लिए एक और कहावत भी बड़ी मशहूर है... (विश्व अपना भवें नचा कर सवाल इशारे से पूछता है) when Love leaves tears in eyes... Friendship brings chears in life...
विश्व - क्या हुआ... तुम प्यार और दोस्ती के बारे में क्यूँ कह रहे हो... अनु ने कुछ किया क्या...
वीर - नहीं नहीं यार... अनु है... तो जिंदगी है... जिंदगी में रंग है.. खुशी है... इससे पहले मैं जिंदा ही कहाँ था... (बात बदल देता है) वैसे तुम्हारी शेरनी की क्या खबर है....
विश्व - (सवाल से थोड़ा असमंजस हो जाता है) वह... वह ठीक ही है...
वीर - क्या मतलब...
विश्व - अरे यार... क्या कहूँ... शेरनी है... झपटती है... पंजा मारती है... (अपनी नाक सहलाते हुए) काटती भी है...
वीर - अच्छा... तुम उसे अपने उपर हावी होने देते हो...
विश्व - हाँ... क्यूँ नहीं... मैं दुनिया से जीतने की कुव्वत रखता हूँ... एक उसी के आगे हारने से अच्छा लगता है... दुनिया पर हुकुमत करने का जिगर रखता हूँ... पर उसीकी गुलामी मुझे खुशी देती है... पर बात मेरी करने तो नहीं बैठे हैं...
वीर - हाँ... बात तुम्हारी नहीं है... मेरी है..
विश्व - क्या बात अनु से ताल्लुक रखता है... (वीर अपना सिर हिला कर हाँ में उत्तर देता है) तो बोलो यार... तुम्हारे दिल में कौन सी टीस है... बोलो तो सही...
वीर - यार... यह प्यार व्यार क्या होता है... यह तुमने मुझे बताया है... इस एहसास में जीना भी क्या ग़ज़ब लगता है यार... जी करता है... खुद बिछ जाऊँ उसके राह में... हर नाज़ ओ अंदाज को उठा लूँ अपनी पलकों पे... अपनी हर आगाज़ उसके बाहों से शुरु हो... हर अंजाम उसके आगोश में हासिल करना चाह रहा हूँ... अपने प्यार की चमन में... फूलों का बहार देखना चाहता हूँ... पता नहीं क्या क्या करना चाहता हूँ... पर जो भी हो... अब अनु के नाम हर सुबह हर शाम कर देना चाहता हूँ...

कहते कहते वीर रुक जाता है, ज़वाब में विश्व कोई प्रतिक्रिया नहीं देता l थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच में एक चुप्पी पसर जाती है l थोड़ी देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए

वीर - कुछ समझे...
विश्व - ह्म्म्म्म... तुम अनु से शादी करना चाहते हो...
वीर - हाँ... पर...
विश्व - शायद बड़े राजी नहीं हो रहे हैं...
वीर - नहीं बात वह नहीं है... उन तक शायद बात पहुँची भी ना हो... मैंने सिर्फ माँ से... भैया और भाभी से... और बहन नंदिनी से कहा है... राजा साहब को बता कर... जल्द से जल्द शादी करना चाहता हूँ...
विश्व - तो राजा साहब से डरते हो क्या... या उनकी इंकार से...
वीर - नहीं... अपने प्यार के लिए... मैं किसी का भी सामना कर सकता हूँ...
विश्व - यार तुम साफ साफ कहो ना... तुम्हें मेरी मदत कहाँ पर चाहिए...
वीर - (एक पॉज लेता है) यार मैं अनु के लिए डर रहा हूँ... अनु का मुझसे छिन जाने का डर सता रहा है...
विश्व - पर तुम तो अभी कह रहे थे... अनु और तुम्हारे बीच सब ठीक है...
वीर - अनु और मेरे बीच कोई तीसरा आ रहा है... जो मुझसे अनु को छीन ने की कोशिश में है...
विश्व - मतलब कोई अनु को स्टॉक कर रहा है क्या...
वीर - अरे यार तुम बात को समझ नहीं रहे हो...
विश्व - तो समझाओ ना... तुम बात भी कहाँ ठीक से कह रहे हो...

वीर अपने शर्ट के एक दो बटन खोलता है l अपने हाथ के आस्तीन के भी बटन खोलता है l विश्व महसुस करता है वीर कहना बहुत कुछ चाह रहा है पर वह गहरी दुविधा में है, क्या कहे कैसे कहे l

विश्व - (वीर के हाथ में हाथ रखकर) वीर... मुझे दोस्त मान कर बुलाया है... तो विश्वास रखो... मुझसे जो बन पड़ेगा... मैं करूँगा...
वीर - (विश्व की हाथ पर अपना हाथ रखकर) मैं जानता हूँ प्रताप... पर मेरी प्रॉब्लम यह है कि... मैं तुम्हारे जैसे नहीं हूँ... तुम वह खुली किताब हो... जिसके पन्ने साफ हैं... पर मेरी जिंदगी की किताब के पन्ने गहरे स्याह हैं... फिर भी मैं आज तुम्हें सब कुछ बताऊँगा... बस मेरे दोस्त मुझे इस भंवर से निकाल देना...
विश्व - मैंने कहा ना... मुझसे जो भी... जितना भी बन पड़ेगा... मैं करूँगा...
वीर - तुम शायद जानते होगे... पाँच साढ़े पाँच महीने पहले छोटे राजा... यानी मेरे पिता जी पर एक स्नाइपर शॉट हमला हुआ था... जब वह पार्टी मीटिंग से लौट रहे थे...

वीर सारी बातेँ बताने लगता है, एक एक करके वह इन पाँच महीनों में जो भी कुछ झेला था सब बता देता है l सारी बातेँ बताने के बाद एक ग्लानि भाव से उसका सिर झुक जाता है l विश्व को एहसास होता है तो वीर को दिलासा देते हुए उसके हाथ पर हाथ रख देता है l

वीर - (वैसे ही अपना सिर झुकाए) यार यही मेरी कहानी है... जो बात मुझसे जुड़ी हुई थी मैंने सब बता दिया है... (एक छटपटाहट के साथ) यार मैं... अनु को किसी कीमत पर खो नहीं सकता... बात अगर मेरी जान की होती तो मैं सामना कर सकता था... पर मेरी अनु की है... मेरे कुकर्मों की कीमत... अनु नहीं चुका सकती... उस दुश्मन को बदला ही लेना है... तो सीधे मुझसे क्यूँ नहीं ले लेता...

कह कर विश्व की ओर देखता है l विश्व अपनी सोच में डूबा हुआ था l वीर विश्व की हाथ को हिला कर उसका ध्यान खिंचता है l

वीर - क्या सोच रहे थे...
विश्व - कुछ सवाल करता हूँ... जितना भी याद हो मुझसे कहना...
वीर - ठीक है... पूछो...
विश्व - तुम्हारे पिता... यानी छोटे राजा जी पर जो हमला हुआ था... वह बड़े बड़े न्यूज पेपर की हेड लाइन बनी थी... इस लिए मुझे मालुम है... पर यह सब की नींव उससे पहले ही पड़ी होगी... अच्छा इन छह महीनों में... तुम्हारे जिंदगी में... मतलब भुवनेश्वर में या तुम्हारे ऑफिस में कौन कौन आया है...
वीर - (सोचते हुए) इन छह महीनों में... नंदिनी... मृत्युंजय और अनु... इन तीनों के सिवा...
विश्व - ठीक है... इन तीनों को तुम अपने तरीके से विश्लेषण करो...
वीर - क्या बात कर रहे हो... नंदिनी बहन है मेरी... आज अगर मैं बदला हूँ... उसकी वज़ह से... और अनु को तो तुम जानते ही हो... तुमने देखा भी है उसे... और मृत्युंजय के बारे में... मैं... मैं उसका गुनहगार हूँ यार...

विश्व अपनी आँखे बंद कर फिर से सोचने लगता है, थोड़ी देर बाद अपनी आँखे खोल कर वीर की ओर देखता है

विश्व - कल किसीका पीछा किया था...
वीर - हाँ... मेरे जनम दिन में... मैं अनु को रिटर्न खुशी देना चाहता था... जो उसने मुझे अपनी जनम दिन पर दी थी... उस दिन पुरी कोणार्क मेराइन ड्राइव बीच में... जो दो लड़के अनु को छेड़े थे... उन्हीं में से एक मुझे पार्टी ऑफिस में दिख गया... तो मैं उसके पीछे भगा... यह उसी अनजान दुश्मन का आदमी था... उसके पुलिस हेड क्वार्टर सरेंडर के बाद... उस दुश्मन का फोन आया था...
विश्व - ह्म्म्म्म... (फिर सोचने लगता है)
वीर - (थोड़ी देर बाद) कुछ सोचा... कौन हो सकता है...
विश्व - ह्म्म्म्म... एक बात तो तुम्हारे मरहूम महांती बाबु ने सही कहा था... वगैर जांच और इंटरव्यू के जो तुम्हारे ESS में जॉइन किए थे... उन्हीं में कोई एक है...
वीर - हाँ... विक्रम भैया का भी यही मानना था...
विश्व - इस बात पर मैं... विक्रम से इत्तेफाक रखता हूँ...
वीर - तो क्या अनु...
विश्व - ना ना ना... अनु को तो महांती बाबु ने क्लियरेंस दे दिया था ना...
वीर - तो इसका मतलब... सबकी फाइल फिर से जांचनी होगी...
विश्व - शायद उसकी जरूरत ना पड़े..
वीर - कैसे...
विश्व - मुझे एक बार तुम मृत्युंजय से बात करा सकते हो...
वीर - (थोड़ा हैरान होता है) क्या तुम मृत्युंजय पर शक कर रहे हो...
विश्व - देखो वीर... मृत्युंजय के ESS जॉइन होने से पहले... और बाद में... जो भी उसके साथ हुआ... मुझे उस पर सिंपथी है... यहाँ तक कि उसके बहन के साथ जो हुआ... बहुत ही गलत हुआ... पर मैं अपनी शक दुर करने के लिए... उसके साथ एक बार बात करना चाहता हूँ...
वीर - पर वह तो हस्पताल से चला गया... अब कहाँ गया... हम में से कोई नहीं जानता... (थोड़ी देर चुप रह कर) पर तुम्हारा उस पर शक की वज़ह...
विश्व - देखो वीर... तुम्हारे परिवार के कई दुश्मन हो सकते हैं... पर जिस तरह से... तुम्हारे पिता या तुम पर यह सब कांड हुआ है... कोई बाहर से आकर नहीं कर सकता... कोई पास रह कर ही यह सब कर सकता है... यह सब देख कर मुझे मृत्युंजय पर शक तो हो रहा है... पर उसकी बहन की मौत.... मुझे कंफ्यूज भी कर रही है...
वीर - प्रताप... प्लीज... तुम मुझे डिटेल्स में समझाओगे...
विश्व - साढ़े पाँच महीने पहले... मृत्युंजय तुम्हारा रिकमेंडेशन पर ESS में जॉइन होता है... और यह सब कांड करने के लिए उसके पास वज़ह दिखती है...
वीर - (थोड़ा सीरियस हो जाता है) वह जो भी सब हुआ... एक अकेला कैसे कर सकता है...
विश्व - मैं कब कह रहा हूँ अकेला कर रहा था... मैं बस यह कह रहा हूँ... उसे मालुम था... तुम्हारी रिकमेंडेशन की क्या वाल्यू है... तुम्हारे राजनीतिक दुश्मन... व्यापारिक दुश्मन... और निजी तौर पर दुश्मनी रखने वालों के साथ मिलकर ऐसा किया हो सकता है... ऐसा मेरा अनुमान है... (वीर विश्व की बातों को गौर से सुन रहा था और चुप था) मृत्युंजय के पास वज़ह था... उसकी बाप की हत्या हुई थी... उसकी माँ की नाजायज सबंध... यह सब मृत्युंजय जैसा कॉलेज जाने वाला स्टूडेंट... ना जान पाया हो... मुझे नहीं लगता...
वीर - पर उसकी बहन की हत्या...
विश्व - इसी लिए तो... मैं मृत्युंजय से एक बार बात करना चाहता हूँ... उससे बात कर लेने के बाद... अगर वह बेकसूर निकला... तो हम दूसरों पर तहकीकात कर सकते हैं...
वीर - उसकी बहन की हत्या के बाद भी... तुम्हारी उस पर शक की वज़ह...
विश्व - उसका अनु के जरिए... अपनी पोस्टिंग करवाना... उसका हस्पताल से जिस तरह से गायब होना... यह कोई आम आदमी नहीं कर सकता... यही वज़ह है कि मुझे लिंक जोड़ने पर मजबूर कर देता है... मुझे लगता है... महांती को शायद उसकी भनक लग गई थी... इसलिए उसे अपने साथ लेकर तुम लोगों के पास शायद आ रहे थे... एक्सीडेंट हो गया... महांती बाबु मारे गए... पर मृत्युंजय बच जाता है... गाड़ी अंदर बैठ कर ही कोई आसानी से... फ्रेगनैंस बॉटल ए सी वेंट से बदल सकता है... और सोने पे सुहागा देखो... एक्सीडेंट के स्पॉट पर... उन लोगों को रेस्क्यू किया कौन... रॉय ग्रुप सिक्युरिटी के लोग... जो महांती बाबु के बिजनैस राइवल...

वीर यह सब सुन कर स्तब्ध हो जाता है, उसे बहुत जोर का शॉक लगा था l उसके मन में कहीं ना कहीं विश्व की बात बैठ जाता है l

विश्व - है... है वीर... देखो हो सकता है... वह इनोसेंट हो... यह मेरा अनुमान सिर्फ है... एक बार उससे बात करवा दो... फिर शायद हम कोई कंक्लुजन लें...
वीर - पर मैं उसे कहाँ ढूंढु... वह हस्पताल से ऐसे गायब हुआ कि... उसका फोन नंबर भी तभी से आउट ऑफ सर्विस आ रहा है..
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Thakur

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एक आलीशान बंगलों में एक बड़ी सी गाड़ी आती है l एक आदमी शूट बूट पहने उतरता है l वह उस बंगले में लगे नाम का फलक देखता है जिसमें लिखा है *THE HELL" वह आदमी एक गहरी सांस छोड़ता है और वहाँ खड़े एक गार्ड से पूछता है - युवराज विक्रम सिंह क्षेत्रपाल जी हैं....
गार्ड - हाँ हैँ अपने जीम में व्यस्त हैं....
आदमी - जीम कहाँ पर है....
गार्ड हाथ उठाकर एक तरफ दिखाता है l वह आदमी तेजी से जीम के तरफ भागता हुआ जाता है l
जैसे ही वह जीम के भीतर आता है तो देखता है विक्रम सिंह एक पंच बैग पर किक बॉक्सिंग प्रेक्टिस कर रहा है l पास एक कुर्सी पर वीर बैठकर जूस पी रहा है l और कुछ दूर दस से बारह गार्ड्स खड़े हुए हैं l
उस आदमी को देखते ही वीर - अरे क्या बात है.... कंस्ट्रक्शन किंग्स KK... यहाँ कैसे आना हुआ....
KK - वह युवराज जी से काम है...
विक्रम - क्या काम है....
KK- वह कुछ दिन हुए हैं... एक गुंडा मुझे.... परेशान कर रहा है...
विक्रम - क्या कर रहा है...?
KK- रेत की ख़ुदाई की टेंडर इस बार ना डालने के लिए दबाव बना रहा था.... मैंने सोचा कि मैं उससे निपट लूँगा... पर लगता है वह किसी की संरक्षण में ऐसा कर रहा है... क्यूंकि अब NH Bybass टेंडर भी ना डालने को बोल रहा है...
मैंने उसे आपके बारे में आगाह किया था... पर उसने उल्टा आपको देख लेने की....
इतना ही कहा था KK विक्रम के पंच व किकस में तेजी और ताकत बढ़ गया l
विक्रम - और कुछ....
KK - हाँ अगर मैंने इसबार टेंडर की प्रक्रिया में हिस्सा लिया तो वह मेरी बेटी को उठा लेगा... ऐसा बोला...
विक्रम - तुम क्या चाहते हो...
KK - मैं तो आपका सेवक हूँ... मैं क्या चाह सकता हूँ...(दोनों हाथ जोड़ कर) मेरी बिजनैस आपकी कृपा छाया में फल फुल रहा है.... मैं जानता हूँ यह सब आइकॉन ग्रुप्स वालों की है जो ओड़िशा में आपके पैरालल ताकत बनने की कोशिश में हैं...
विक्रम अब अपनी पुरी ताकत से पंच मारता है l अब वह गार्ड्स से टवेल ले कर अपना चेहरा साफ करता है और पास पड़ी एक कुर्सी पर बैठता है और KK को पूछता है - भोषड़ी के मैंने पूछा तू क्या चाहता है...
KK - थूक निगल कर युवराज जी आप मुझे इस मुसीबत से निकाल दीजिए...... बदले में आप मुझसे कुछ भी मांग लीजिए...
विक्रम गुस्से से कुर्सी से उठता है और KK को अपने हाथ से एक धक्का लगाता है, पास पड़े एक बड़े से आर्म चेयर में KK गिरता है l विक्रम अपना दाहिना पैर उठा का सीधे KK के टट्टों पर रख देता है l KK की आंखें दर्द से बड़ी हो जाती हैं l
विक्रम - पहली बात जो पूछा जाए उसका जबाव दे..... (KK के टट्टों पर दबाव और बढ़ाता है, KK चिल्ला नहीं रहा है,पर असहनीय दर्द चेहरे पर झलकता है) भोषड़ी के हम क्षेत्रपाल हैं.... जिस क्षेत्र में पाँव रख दें वह क्षेत्र हमारा हो जाता है....... हम पैसों के लिए नहीं अपनी अहंकार के लिए जीते हैं... और हम इसके बदले सरकार व लोगों से टैक्स लेते हैं...... (गोटियों पर दबाव बढ़ाते हुए) हमारा हाथ कभी आसमान नहीं देखता है.... हमारा हाथ हमेशा ज़मीन की और देखता है....

हम किसीसे मांगते नहीं है..... हम या तो दे देते हैं या फिर छीन लेते हैं.....
साले दो टके का इंसान मुझे मांगने को बोल रहा है....

KK - (दर्द से कराहते हुए) गलती हो गई युवराज..... माफ़ कर दीजिए.....
विक्रम अपना पैर उठा देता है और पास खड़े एक गार्ड को - ऐ जूस पीला रे इसको....
गार्ड तुरंत KK को जूस बढ़ाता है पर KK मना कर देता है l हाथ जोड़ कर विक्रम को देखता है l विक्रम पूछता है - क्या नाम था उस गुंडे का....
KK- सुरा....

विक्रम एक गार्ड को इशारा करता है तो वह गार्ड भागते हुए पंच बैग तक जाता है और पंच बैग का जिप खोल देता है l KK की आँखे हैरानी से चौड़ी हो जाती है l पंच बैग के अंदर एक अधमरा आदमी गिरता है l
KK- ये... य... यह तो सुरा है....
वीर - हाँ तो.... तू क्षेत्रपाल के राज में क्षेत्रपाल के शरण में है... बच्चा तुझ पर कैसे कोई आपदा आ सकती है...
क्यूँकी क्षेत्रपाल के भक्तों के लिए युवराज सदैव आपदा प्रबंधन का भार सम्भाले हुए रहते हैं....
KK - मुझे माफ कर दीजिए... थोड़ा डर गया था...
विक्रम - लोग डर के मारे औकात भूल जाते हैं यह पहली बार देखा....
KK - सॉरी अब आप हुकुम कीजिए....

वीर - हाँ तो बारंग और आठगड़ रोड पर तेरा जो एकाम्र रिसॉर्ट है वह राजा साहब भैरव सिंह क्षेत्रपाल के नाम कर दे.....
KK - पर वह तो दो सौ करोड़ की है...
विक्रम उसे घूरता है
KK - ठीक है ठीक है मैं उसका कागजात बनवा देता हूँ...
अंदर उसी समय आते हुए पिनाक - और बहुत जल्द करना.... राजा साहब दो तीन दिन में भुवनेश्वर आने वाले हैं....
KK पिनाक को देखते ही सर झुका कर नमस्कार करता है और सबसे इजाज़त लेकर वहाँ से निकल जाता है....
विक्रम - कहिए छोटे राजा जी... कैसे आना हुआ
पिनाक - यह याद है ना रंग महल खाली रहे यह राजा साहब को पसंद नहीं
विक्रम एक गार्ड को इशारा करता है तो वह गार्ड एक फाइल को लाकर विक्रम के हाथ में देता है l विक्रम वह फाइल पिनाक के हाथ में देता है l पिनाक वह फाइल हाथ ले कर खोलता है तो उस में एक खूबसूरत लड़की की फोटो दिखती है l

पिनाक - यह कौन है.... यह इस सुरा की महबूबा है.... एक बी ग्रेड की मॉडल और म्यूजिक वीडियोज़ में कमर हिलाती है...
पिनाक - अच्छी है... चलो राजा साहब खुश हो जाएं बस..
वीर - (गार्ड्स को इशारा कर कहता है) अरे इसको देखो यह जिंदा है या नहीं...
गार्ड्स उसे चेक कर कहते हैं जिंदा है पर हालत बहुत खराब है.
विक्रम - इसे और इसकी महबूबा दोनों को राजगड़ पार्सल कर दो...
कुछ गार्ड्स सुरा को स्ट्रैचर पर डाल कर ले जाते हैं l उनके जाते ही एक गार्ड अंदर आकर वीर के कान कुछ कहता है l
वीर - (उस गार्ड को कहता है) जाओ बुलाओ उसे....
गार्ड बाहर जा कर एक लड़के को लेकर वापस आता है l वीर उसे एक चिट्ठी दे कर कहता है - जाओ ESS ऑफिस जाओ वहाँ पर तुम्हें भर्ती कर लेंगे...

वह लड़का यह सुन कर वीर के पैरों में गिर जाता है l वीर उसे दिलासा दे कर गार्ड के साथ भेज देता है l विक्रम और पिनाक उसे सवालिया दृष्टि से देखते हैं तो वह कहता है
वीर - वह हमारी पार्टी का एक कार्यकर्ता का बेटा है.... बिचारा अनाथ हो गया उसकी एक विधवा माँ है और एक छोटी बहन है.... इसलिए मैंने उसे नौकरी में लगा दिआ....

पिनाक - सच सच बोलो राज कुमार आपको किसी का डर है क्या...
वीर - क्या बात कर रहे हैं... मुझे किसका दर वह तो एक कार्यकर्ता था दिन रात पार्टी के सेवा में लगा हुआ था एक दिन अपना घर पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी बीवी मेरे साथ लगी हुई थी l बेचारा मुझे बहुत गाली दिआ... मुझे उसका दुख देखा नहीं गया..... तब उसने अपने आपको फांसी लगा ली... मेरा मतलब है कि मैंने उसके दुख को महसुस कर उसे पंखे से टांग कर मुक्ति दे दी...
पिनाक - ह्म्म्म्म मतलब उसकी बीवी बहुत कड़क है क्या....
वीर - मैं आपकी स्टेनो, सेक्रेटरी के बारे में कभी नहीं पूछा है....
पिनाक - वह पर्सनल है....
वीर - यह भी पर्सनल है और वह कोई रंग महल की नहीं.....
विक्रम - ठीक है... अब बहस बंद कीजिए....
दोनों चुप हो जाते हैं, फिर पिनाक कहता है - अच्छा मैं जाता हूँ पार्टी के काम से l

इतना कह कर पिनाक निकल जाता है और दोनों भाई घर के भीतर चले जाते हैं, और ड्रॉइंग रूम में आकर कुछ बात कर रहे होते हैं कि कॉलेज से नंदिनी घर के अंदर पहुंचती है तो पाती है ड्रॉइंग हॉल में विक्रम वीर के साथ बैठ कर कुछ डिस्कस कर रहा है l नंदिनी को देखते ही - कैसा रहा आज का पहला दिन...
नंदिनी - बहुत ही अच्छा... जैसा सोचा था उससे कहीं बेहतर...
वीर - अच्छा कोई दोस्त वोस्त बनाए की नहीं....?
नंदिनी उन दोनों को गौर से देखती है और फिर कहती है - क्षेत्रपाल परिवार से दोस्ती कौन कर सकता है युवराज जी.... सब हम से ऐसी दूरी बना रहे हैं जैसे समाज में लोग अछूतों से रखता है....
वीर - बहुत बढ़ीआ यह लोग बहुत छोटे व ओछे होते हैं... तभी तो प्रिन्सिपल से कहा कि आपका परिचय सिर्फ़ स्टूडेंट्स तक ही नहीं बल्कि सभी लेक्चरर को भी दे देने के लिए....
ताकि कोई अपना औकात ना भूले...
नंदिनी - जी राजकुमार जी... क्या अब मैं अंदर जाऊँ....
वीर - हाँ हाँ जाइए.... और पढ़ाई में ध्यान दे या ना दें आप पास तो आप हो ही जाएंगी... बस अपना एटिट्यूड बनाएं रखें....
नंदिनी - जी जरूर...
इतना कह कर नंदिनी घर के अंदर चली जाती है l
विक्रम - तुम्हें क्या लगता है राजकुमार... नंदिनी सच कह रही है..
वीर - वह झूठ क्यूँ बोलेगी... वैसे भी मैंने सुबह प्रिन्सिपल को अच्छे से समझा दिया है.....
विक्रम - हाँ वह तो है... फिर भी अपनी तसल्ली के लिए हर दस पंद्रह दिन में एक बार कॉलेज का चक्कर लगाते रहना...
वीर - जी युवराज...
नंदिनी शुभ्रा के रूम में आती है l शुभ्रा विस्तर पर बैठ कर कोई मैगाजिन पढ़ रही थी l शुभ्रा को देख कर खुशी से झूमती हुई नाचते हुए शुभ्रा के पास आती है
नंदिनी - आ हा आह भाभी क्या बताऊँ आज कॉलेज में कितना मजा आया...
शुभ्रा - वह तो तुझे देखते ही पता चल गया है.... अच्छा बता आज कॉलेज में क्या क्या हुआ...
नंदिनी आज कॉलेज में क्या क्या हुआ सब बता देती है l सब सुनने के बाद शुभ्रा - यह रॉकी कुछ ज्यादा ही तेज है
नंदिनी - हाँ अपनी गाड़ी बिना ब्रेक के दौड़ा रहा है...

शुभ्रा- नंदिनी के चेहरे को गौर से देखती है जैसे खुशी के मारे एक तेज नुर झलक रही थी l उसके गालों को हाथों में ले कर कहती है - रुप कितनी खुश है तु... पर ध्यान रखना अपना..... पहली बार तु सही मायनों में घर से बाहर निकली है.... बाहर की दुनिया जितनी अच्छी दिखती या लगती है... उतनी ही छलावे होती हैं....
नंदिनी - भाभी मैंने रुप बन कर जितना देखा देख लीआ.... आज नंदिनी बन कर देखा जिंदगी में रुप ने कितना कुछ खोया है...जितना नंदिनी ने एक दिन में पाया है..... और रही दुनिया की बात तो वह मुझे तोल ने दीजिए... और आप तो मेरे साथ हो ना मेरी सबसे अच्छी सहेली....
यह सुन कर शुभ्रा उसे गले से लगा लेती है l
इसी तरह पंद्रह दिन ऐसे ही गुजर जाते हैं l
जैल के ऑफिस में तापस अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ है तभी एक संत्री एक लेटर ला कर देता है l लेटर पढ़ते ही संत्री को कहता है - अरे जाओ उन्हें अंदर लाओ... कलसे तुम लोगों को उन्ही की ड्यूटी बजानी है...
संत्री तापस को सैल्यूट कर बाहर निकल जाता है और एक पचास वर्षीय आदमी के साथ अंदर आता है l
तापस उस आदमी को देख कर बहुत खुश होता है और उसे सैल्यूट करता है बदले में वह आदमी भी उसे सैल्यूट करता है और कहता है - जान निसार खान रिपोर्टिंग सर...
फ़िर सैल्यूट तोड़ कर दोनों एक दूसरे के गले मिलते हैं l
तापस-क्या बात है खान बहुत दिनों बाद मिले... कैसे हो मेरे दोस्त... आओ बैठो यार...

खान - हाँ बहुत दिनों बाद मिले तो है (बैठते हुए) पर यह क्या.... (हैरानी से) तुम अभी से VRS ले रहे हो...
तापस - अरे यार अब नौकरी में रह कर क्या करूंगा l पुस्तैनी घर और जमीन को कब तक किसी और के भरोसे देख भाल में छोड़ सकते हैं l
खान - क्या यार मुझसे भी छुपा रहा है... हाँ बताना नहीं चाहता तो बात अलग है....
तापस - देख... हम पति पत्नी बहुत कमाया है पर हमारी कमाई खाने वाला कोई है ही नहीं.....मैं इसलिए उब गया हूँ नौकरी बजाते बजाते... मुझसे अब आगे हो नहीं पाएगा दोस्त....
खान - यार सेनापति हम पुलिस ट्रेनिंग समय से दोस्त हैं.... और जितना मैं तुझे जानता था.... तु कभी इतना कमज़ोर तो नहीं था....
तापस- उम्र मेरे दोस्त उम्र... मैं और मेरी पत्नी जिसके लिए इतना कमाया वह हमारे जीवन से चला गया हमे बेसहारा कर.... अब घर और जीवन में हम पति पत्नी एक दुसरे के सहारा बने हुए हैं.... ना अब अपनी नौकरी खिंच पा रहा हूँ और ना ही प्रतिभा अपनी वकालत नामा....
खान - समझ सकता हूँ यार... सॉरी अगर दिल दुखा तो...
तापस - छोड़ यार.... अच्छा क्यूँ न तु एक राउंड ले ले मैं तब तक चार्ज हैंड ओवर फाइल तैयार कर लेता हूँ...
खान - (हंसते हुए) तुझे चार्ज हैंड ओवर करने की जल्दी पड़ी है...
तापस - अरे यार आज मैं जल्दी घर जाना चाहता हूँ.... इतने वर्षो बाद मुझे लगना चाहिए कि घर जैल सुपरिटेंडेंट नहीं जैल से छूट कर तापस सेनापति जा रहा है....
दोनों साथ हंसते हैं l तापस बेल बजता है तो उसका अर्दली आता है l तापस उसे कहता है - तुम्हारे नए साहब को राउंड पर ले जाओ....
खान - अच्छा मैं राउंड से आता हूँ..... फ़िर बात करते हैं....
खान और अर्दली बाहर निकल जाते हैं और तापस फाइल बनाने में लग जाता है l
उधर कॉलेज की कैन्टीन में नंदिता अपनी कुछ दोस्तों के साथ बैठी थी l अब उसके सिर्फ बनानी ही नहीं बल्कि और तीन दोस्त बन चुके हैं l सारे के सारे कैन्टीन में मजे से बात कर रहे हैं l कैन्टीन में जितने भी लड़के थे सब बड़ी आशा भरी नजर से नंदिता को देख रहे हैं कि कास इस हसीना की नजरें इनायत हो जाए l तभी वीर कैन्टीन आता है जिसे देख कर जितने भी स्टूडेंट्स थे सभी धीरे धीरे खिसक गए, नंदिता के दोस्त भी l वीर आकर सीधे नंदिता के सामने बैठता है और पूछता है - कहिए राज कुमारी जी पढ़ाई कैसी चल रही है l
नंदिता - अच्छी चल रही है...
वीर - ह्म्म्म्म कुछ दोस्त बनालिए हैं तुमने l
नंदिता - सिर्फ़ चार दोस्त वह भी मैंने बनाएं हैं l वरना मुझसे दोस्ती कोई कर ही नहीं रहा है यहां पर l
वीर - हाँ तो दोस्त बनाने की जरूरत ही क्या है...आप अपनी पढ़ाई एंजॉय करो...
नंदिता - सुबह नौ बजे से दो पहर तीन बजे तक अकेले.... छह घंटे तक अकेले किसी से बात ना करूँ सिर्फ लेक्चर सुनूँ या लाइब्रेरी में बैठूं...
वीर - अच्छा चलो ठीक है... पर दोस्ती इतनी रखो की तुम्हें कोई अपने घर ना बुलाए....
नंदिता - जी...
वीर - ह्म्म्म्म अच्छा कोई लड़का तुमसे दोस्ती नहीं की है अब तक....
नंदिता - किसी में इतनी हिम्मत नहीं है कि कोई मुझसे दोस्ती करे... बात करने से ही कन्नी काट कर निकल जाते हैं...
वीर - (अपनी भौवें उठा कर) क्यूँ तुम्हें लड़कों से बात करने की क्यूँ जरूरत पड़ रही है....
नंदिता - जरूरत.... कैन्टीन में, लाइब्रेरी में या क्लास में किसी को अगर साइड देने को कहते ही ऐसे गायब होते हैं जैसे गधे के सिर से सिंग...
वीर - हा हा हा हा... अच्छी बात है... अच्छा मैं चलता हूँ... कोई तकलीफ़ हो तो मुझे फोन कर देना...
इतना कह कर वीर चला जाता है l वैसे कॉलेज में सबको यह मालुम था कि यह लड़की ज़रूर खास है जिसे विक्रम सिंह क्षेत्रपाल व वीर सिंह क्षेत्रपाल छोड़ने आए थे l बहुतों ने कोशिस की पता लगाने की पर क्यूंकि नंदिता ने प्रिन्सिपल के ज़रिए सेट कर दिया था इसलिए किसको ज्यादा कुछ पता लगा नहीं l वीर के जाने के बाद भी जब कैन्टीन में कोई नहीं आया तो नंदिता बिल दे कर क्लास की और निकल पड़ी l
उधर जैल के अंदर खान अर्दली के साथ राउंड ले रहा था l सारे बैरक घुम लेने के बाद स्किल डेवलपमेंट वर्क शॉप पहुंचा जहां सरकार द्वारा कैदी सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत क़ैदियों को काम सिखाया जाता है l खान ने देखा एक कैदी कुछ क़ैदियों को कारपेंटरी के बारे में सीखा रहा है l
खान - यह कौन है.. जगन..
अर्दली उर्फ़ जगन - साहब यह विश्वा है...
खान - कितने सालों से है...
जगन - सात सालों से... और दो महीने बाद रिहाई है उसकी...
खान - कैदी सुधार कार्यक्रम को बड़े अच्छे से निभा रहा है....
जगन - सर यह बहुत ही अच्छा आदमी है....
खान - क्या बात है... एक कैदी की इतनी तारीफ....
जगन - वैसी बात नहीं है सर... मैंने तो सच ही कहा है...
खान - अच्छा यह बताओ अर्दली को घर में होना चाहिए तुम यहाँ क्या कर रहे हो
जगन - वह सर उनके बेटे के देहांत के बाद सेनापति सर क्वार्टर में दो ही कमरे इस्तमाल करते हैं... उन्होंने कहा कि मैं उनके कुछ काम सिर्फ ऑफिस मैं ही कर दिआ करूँ......
खान - ह्म्म्म्म वैसे तुम्हारी नौकरी यहाँ पर कैसे लगी
जगन - मेरे पिता हेल्पर कांस्टेबल थे ड्यूटी के दौरान उनकी देहांत हुई तो कंपेसेसन के तहत सेनापति सर ने ही मुझे यहाँ लगवा दिया था और मुझसे कहा भी था के जाने से पहले मुझे हेल्पर कांस्टेबल बना कर ही जायेंगे....
खान - अगर सेनापति ने कहा है तो वह जरूर तुम्हारे लिए जरूर करेगा.... वैसे विश्वा की और क्या खासियत है....
जगन - सर विश्वा ने इसी जैल में रहकर अपना ग्रैजुएशन खतम किया और अपनी वकालत भी जैल में रहकर पुरी की है...
खान - क्या.... ह्म्म्म्म... इंट्रेस्टिंग... जैल में रह कर वकालत किया है...
जगन - अब क्या बताऊँ सर बस आदमी बहुत अच्छा है और सबकी मदत को हमेशा तैयार रहता है...
खान - इतना ही अच्छा है तो यहाँ चक्की पीसने आया क्यूँ... ह्म्म्म्म
जगन - किस्मत साहब किस्मत
खान - क्या मतलब है तुम्हारा....
जगन - सर अच्छे बर्ताव के लिए विश्वा का नाम सिफारिश किया जाने वाला था... जब विश्वा को मालुम हुआ तो सेनापति सर को ऐसा करने से मना कर दिया... सेनापति सर ने वज़ह पुछा तो विश्वा ने कहा कि उसे कानून से इंसाफ़ चाहिए ना रहम ना एहसान या हमदर्दी...
खान - ओह.... ह्म्म्म्म... अच्छा यह बताओ के यह तुम्हें कैसे मालूम हुआ जगन - एक बार सर जी के घर गया था तो उन्हें मैडम जी से कहते सुना था....
खान - अच्छा आपके सेनापति सर वक्त से पहले रिटायर्मेंट क्यूँ ले रहे हैं....
जगन -पता नहीं पर मुझे लगता है उसकी वजह भी विश्वा है सर....
खान का मुहँ खुला रह जाता है l जैसे जगन ने कोई बम फोड़ दिया हो l
खान - क.. का... क्या.....
जगन - जी सर विश्वा चूँकि दो महीने बाद जैल से छुट रहा है.... तो प्लान करके सेनापति सर रिटायर्मेंट ले रहे हैं... ऐसा मुझे लगता है..
खान - क्यूँ... मेरा मतलब.. आख़िर क्यूँ... विश्वा से क्या संबंध...
जगन - सेनापति सर बेवजह उससे लगाव नहीं रखे हैं...
खान सवालिया नजरों से देखता है
जगन - विश्वा ने जैल में एक बड़ा कांड होने से पहले सेनापति सर को आगाह किया था और फ़िर जब उससे भी बड़ा कांड हुआ तब सेनापति सर ही नहीं बहुत से पुलिस वालों की जान भी बचाया था... इसलिए विश्वा से उनका बहुत लगाव भी है और जुड़ाव भी...
खान आपनी आँखे सिकुड़ कर जगन को ऐसे देख रहा था, जैसे जगन कोई झूठ बोल रहा हो, पर जगन बिना कोई शिकन चेहरे पर लाए कहने लगा
जगन - सर आप जान कर हैरान रह जाएंगे विश्वा को सजा कराने वाली कोई और नहीं... बल्कि सेनापति सर की पत्नी ही थीं.. जिन्होंने विश्वा के खिलाफ़ मुकद्दमा लड़ा और उसे सजा दिलाई...
खान - अरे रुको यार... झटके पर झटके दिए जा रहे हो... एक दिन में इतना सब कुछ हज़म नहीं हो सकता है भाई...
चलो पहले सेनापति को रिलीव करते हैं...
फिर दोनों ऑफिस के तरफ चल पड़ते हैं l
उधर कॉलेज कैन्टीन में रॉकी आ पहुंचता है देखता है कैन्टीन पूरा खाली पड़ा है l तो वह वहाँ के एक वेटर से पूछता है - क्यूँ रे गोलू.. यह कैन्टीन ऐसे खाली खाली क्यूँ लग रहा है... अपना कोई बंदा भी नहीं दिख रहा है....
गोलू - रॉकी भाई... वह प्रेसिडेंट वीर सिंह जी आए थे... इसलिए सभी उठ कर चले गए..
रॉकी - अच्छा... वह क्यूँ आया था यहाँ...
गोलू - क्या पता क्यूँ आया था... वह बस उस नए लड़की से बात कर रहा था... एक बात बोलूँ भाई... वीर सिंह से बात करते सबकी फटती है.. पर क्या लड़की थी वह वीर सिंह के आंखों में आंखें डाल कर बात कर रही थी....
रॉकी - ह्म्म्म्म...
गोलू - मेरे को तो लगता है.... कि वह जरूर वीर सिंह की कोई आइटम होगी....
रॉकी - अबे मुहँ सम्भाल अपना... वीर सिंह की पहचान की है वह.... वीर उसे अपना बहन मानता है... समझा और हाँ यह राज अपने अंदर ही रख किसीको बोला... तो वीर सिंह तुझे बीच से फाड़ देगा...
गोलू अपना हाथ अपने मुहँ पर ले कर चुप रहने के लिए अपना सर हिलाता है l
रॉकी - कैन्टीन से बाहर आ कर सब दोस्तों को फोन पर कॉन्फ्रेंसिंग में लेकर कहता है - मेरे चड्डी बड्डी कमीनों... आज शाम हमारे होटल में मेरी प्राइवेट शूट में तुम सालों के लिए पार्टी है.. आ जाना....मिशन नंदिनी को ऑपरेट करना है...
इतना कह कर अपना फोन जेब में रखता है और अपनी गाड़ी से बाहर निकल जाता है l उधर जैसे ही क्लास में नंदिनी आती है सारे स्टूडेंट्स एक दम से चुप हो जाते हैं l नंदिनी देखती है बनानी के आखों में भी डर है l नंदिनी चुप चाप अपनी सीट पर बैठ जाती है l थोड़ी देर बाद एक लेक्चरर आता है और पढ़ाना शुरू करता है l नंदिनी इस बार देखती है कि लेक्चरर भी नजरें मिलने से कतरा रहा है l किसी तरह क्लास खतम होता है तो लेक्चरर के साथ सारे स्टूडेंट्स जल्दी जल्दी क्लास रूम से निकल जाते हैं l क्लास में नंदिनी अकेली बैठी हुई है, उसे बुरा भी लग रहा है, वह सर उठाकर अपनी चारों और देखती है और कुछ सोच में डुब जाती है, उधर रॉकी आज रात की पार्टी में अपने दोस्तों के साथ मिशन नंदिनी को कैसे आगे बढाए उस प्लान के बारे में सोच रहा है और जैल से तापस जा चुका है और उसकी कुर्सी पर अब खान बैठा हुआ है l चार्ज हैंड ओवर के बाद तापस तुरंत निकल गया l अब जगन ने खान के मन में क्युरोसिटी जगा दिया था कि सेनापति को एक कैदी से इतना जुड़ाव हो गया है कि उसकी रिहाई के चलते सेनापति अपनी नौकरी से VRS ले लिया है, और उसी कैदी को सज़ा भी सेनापति की बीवी ने करवाया था l
खान - या आल्हा पता लगाना पड़ेगा माजरा क्या है....
यह कह कर अपनी सोच में गुम हो जाता है

👉छटा अपडेट
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नंदिनी घर पहुंच कर सीधे अपनी भाभी शुभ्रा के पास जाती है l शुभ्रा देखती है कि आज नंदिनी का चेहरा थोड़ा उतरा हुआ है l
शुभ्रा - क्या बात है ननद जी, आज आपका चेहरा उतरा क्यूँ है....
नंदिनी - आज... वीर भैया कॉलेज आए थे...
शुभ्रा - ओह तो यह बात है.... ह्म्म्म्म मतलब आज तेरे दोस्त तुझसे दूर भाग गए होंगे....
नंदिनी - (अपनी भाभी के गोद में अपना सर रख कर) हाँ.... भाभी(थोड़ा उखड़े हुए) बड़ी मुस्किल से मैंने ना चार दोस्त बनाए थे....
शुभ्रा - ह्म्म्म्म तुम्हारे राजकुमार भाई के जाने से सब बिगड़ गया ह्म्म्म्म...
नंदिनी अपना सिर हिला कर हाँ कहती है....
शुभ्रा - (शरारत करते हुए) तो अब क्या होगा मेरी ननद जी का... जानेंगे ब्रेक के बाद...
नंदिनी - भा.... भी... उहन् हूं...
शुभ्रा -(हा हा हा) अब तू ही बता अब हम क्या कर सकते हैं....
नंदिनी - भाभी.... भाई साहब की इमेज क्या इतना खराब है...
शुभ्रा - (हंसती है, और कहती है) यह इमेज क्या होती है.... इसे चरित्र कहते हैं...
नंदिनी - उं... हुँ... हूँ अब मैं क्या करूं भाभी...
शुभ्रा - अगर मेरी माने तो, तु अपने दोस्तों को सब सच बता दे.... उन्हें अगर तेरी फिलिंगस का कदर होगी... तो वे... अपनी दोस्ती जरूर निभाएंगे.... बरकरार रखेंगे....
नंदिनी -(चुप रहती है)
शुभ्रा - ऐ... क्या हुआ... बहुत दुख हो रहा है...
नंदिनी - नहीं भाभी थोड़ा बुरा लग रहा है... पर दुख नहीं हो रहा है.... क्यूंकि ऐसा तो बचपन से ही मेरे साथ होता आ रहा है... फिर अब क्या नया हो गया....
शुभ्रा नंदिनी के बालों को प्यार से सहला देती है l नंदिनी उसके गोद से अपना चेहरा उठाती है और शुभ्रा को देख कर पूछती है l
नंदिनी - भाभी आप बुरा ना मानों... तो... एक बात पूछूं l
शुभ्रा - ह्म्म्म्म पुछ..
नंदिनी - आप और विक्रम भैया में कुछ...
शुभ्रा - (शुभ्रा झट से खड़ी हो जाती है) रूप कुछ बातेँ बहुत दर्द देते हैं....
नंदिनी - सॉरी भाभी...
शुभ्रा - देख तूने पूछा है तो तुझे बताऊंगी जरूर.... लेकिन फिर कभी.... आज नहीं...
और इस घर में तेरे सिवा मेरा है ही कौन....
नंदिनी उसके पास जाती है और उसके गले लग जाती है l

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होटल BLUE Inn..
कमरा नंबर 504 में हल्का अंधेरा है और अंधेरे में रॉकी और उसके चार दोस्त सब महफ़िल ज़माये हुए हैं, सारे मॉकटेल की मस्ती में महफ़िल जमाए हुए हैं, सिवाय रॉकी के, म्यूजिक भी बज रहा है और सब धुन के साथ थिरक रहे हैं l कमरे के बीचों-बीच एक व्हाइट बोर्ड रखा हुआ है l सब अपना अपना ड्रिंक खतम करते हैं तो रॉकी जाकर लाइट्स ऑन करता है l जैसे ही कमरे में उजाला होता है तो सबका थिरकना बंद हो जाता है l सब रॉकी को देखते हैं तो रॉकी सबको चीयर करते हुए उनके बीच से जाते हुए म्यूजिक भी बंद कर देता है l

रॉकी - तो भाई लोग... अपना जिगर मजबुत कर लो और अपने जिगरी यार के लिए एक मिशन है जिसको पूरा करना है.....
सब चुप रहते हैं l सब को चुप देख कर रॉकी कहता है - अरे पहले अपना अपना पिछवाड़ा तो सोफा पर रख लो यारों...
सब बैठ जाते हैं, सबके बैठते ही रॉकी एक मार्कर पेन लेकर व्हाइट बोर्ड तक पहुंचता है, और बोर्ड में एक सर्कल बनाता है l
रॉकी - मित्रों यह है नंदिनी.... तो इससे पहले कि हम यह मिशन आरंभ करें.... यह मेरा दोस्त, मेरा यार, मेरा दिलदार मेरा जिगर मेरे फेफड़ा राजु कुछ तथ्यों पर रौशनी डालेगा....
राजू - हाँ तो मित्रों मैं इससे पहले इस पागल के पागलपन में साथ देना नहीं चाहता था..... पर इस मरदूत ने मुझे इतना मजबूर कर दिया..... कहा कि मैं इसका बड़ा चड्डी वाला बड्डी हूँ क्यूँ के तुम सब इसके छोटे चड्डी वाले बड्डी हो..... बस यह जान के मैं इसका काम करने को तैयार हो गया....

राजू की बात खतम होते ही सब हंसते हुए ताली मारते हैं l
रॉकी - (सबको हाथ दिखा कर) अरे रुको यारों रुको..... यहां छोटे मतलब बचपन और बड़ा मतलब इंटर कॉलेज... हाँ अब राजु आगे बढ़....
रॉकी की बात खतम होते ही राजु व्हाइट बोर्ड के पास पहुंचता है और मार्कर पेन लेकर रॉकी के बनाये उस सर्कल के पास कुछ लकीरें खिंचता है और कहता है - जैसा कि मैंने पहले ही बताया था कि नंदिनी विक्रम व वीर की बहन है l तीन पीढ़ियों के बाद क्षेत्रपाल परिवार में लड़की हुई है.... पर रूप नंदिनी जब चार साल की थी तब उसकी माँ का देहांत हुआ था l अब इसपर भी कुछ विवाद है हमारे राजगड में दबे स्वर में कुछ बुजुर्ग आज भी कहते हैं कि रूप कि माँ ने आत्महत्या की थी.... खैर अब वह इस दुनियां में नहीं हैं और रूप के पिता भैरव सिंह क्षेत्रपाल दूसरी शादी भी नहीं की..... अब क्यूँ नहीं की... वेल यह उनका निजी मामला है.....
तो अब परिवार में रूप के दादा जी नागेंद्र सिंह हैं पर वह अब पैरालाइज हैं... ना चल फिर सकते हैं ना ही किसीको कुछ कह पाते हैं...
फिर आते हैं उनके पिता भैरव सिंह पर.... तो यह शख्स पूरे स्टेट में किंग व किंग् मेकर की स्टेटस रखते हैं.... या यूँ कहें कि भैरव सिंह पुरे राज्य में एक पैरलल सरकार हैं....
फिर आते हैं रूप नंदिनी जी के चाचाजी पिनाक सिंह जी के पास...

फ़िलहाल यह महानुभव भुवनेश्वर के मेयर हैं...
इनकी पत्नी श्रीमती सुषमा सिंह जो सिर्फ राजगढ़ महल में ही रहती हैं....
फिर विक्रम सिंह, रूप के सगे भाई व बड़े भाई यह अब भुवनेश्वर में रूलिंग पार्टी के युवा मंच के अध्यक्ष हैं और इनकी पत्नी हैं शुभ्रा सिंह.... इनसे विक्रम सिंह की प्रेम विवाह हुआ है... पर इनके विवाह पर भी लोग तरह तरह की कहानियाँ कह रहे हैं.... खैर अब आते हैं रूप जी के चचेरे भाई वीर सिंह जी...
यह हमारे कालेज के छात्रों के अपराजेय अध्यक्ष हैं...
अब आगे हमारे रॉकी साहब कहेंगे....
इतना कह कर राजू चुप हो जाता है l अब रॉकी अपने जगह से उठता है और अपने सारे दोस्तों को कहता है - यारों सब दुआ करो..
मिलके फ़रियाद करो...
दिल जो चला गया है....
उसे आबाद करो... यारो तुम मेरा साथ दो जरा....
आशीष - बस रॉकी बस ... हम यहाँ तेरे दोस्त इसी लिए ही तो आए हुए हैं और तेरी धुलाई की सोच कर मेरा मतलब है कि तुझे नंदिनी तक पहुंचने की रास्ता बताने वाले हैं.....
पर यार भले ही वह क्षेत्रपाल बहुत पैसे वाले हैं पर यार तु भी तो कम नहीं है....
ठीक हैं पार्टी से जुड़े हुए हैं इसलिए रुतबा बहुत है.... पर समाज में तुम्हारा खानदान का भी बहुत बड़ा नाम है.....
चल माना रूप बहुत सुंदर है..... पर सुंदरता रूप पर खतम हो जाए ऐसा तो नहीं...
तुझे रूप से भी ज्यादा खूबसूरत लड़की मिल सकती है....
पर तुझ पर यह कैसा पागलपन है और क्यूँ है..... के तु... रूप को हासिल करना चाहता है....
देख दोस्त सब सच सच बताना क्यूंकि हम तेरे साथ थे हैं पर कल को अगर कुछ गडबड हुआ तो यह भी सच है कि हमारे जान पर भी आएगा....
आशीष के इतना कहते ही रॉकी अपने अतीत को याद करने लगता है

फ्लैश बैक........

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पांच साल पहले जब रॉकी इंटर में पढ़ना शुरू किया था l तब एक दिन घरसे कॉलेज जाने के लिए कार में बैठा l कार की खिड़की से अपनी मम्मी को हाथ हिला कर बाइ कह खिड़की का कांच उठा दिया l ड्राइवर गाड़ी घर से निकाल कर कॉलेज के रोड पर दौड़ा दिया l कुछ देर बाद म्यूनिसिपाल्टी के लोग रास्ता खोदते दिखे तो ड्राइवर दिशा बदल कर गाड़ी ले जाने लगा l गाड़ी के भीतर रॉकी अपने धुन में मस्त, आई-पॉड से गाने सुन रहा था l जब गाड़ी एक सुनसान सड़क पर जा रही थी तभी एक एम्बुलेंस सामने आकर रुकी तो ड्राइवर ने तुरंत ब्रेक लगा कर गाड़ी रोक दिआ l ड्राइवर एम्बुलेंस के ड्राइवर पर चिल्लाने लगा l गाड़ी के ऐसे रुकते ही और ड्राइवर के चिल्लाते ही रॉकी का भी ध्यान टूटा और उसने देखा कुछ लोग एक स्ट्रेचर लेकर कार की बढ़ रहे हैं l इससे पहले कुछ समझ पाता ड्राइवर के मुहं पर रूमाल डाल कर बेहोश कर दिए और इससे पहले रॉकी कुछ और सोच पाता वैसा ही हाल रॉकी का भी हुआ l रॉकी जब आँखे खोल कर देखा तो अपने आप को एक बिस्तर पर पाया l पास एक आदमी जो काले लिबास में एक चेयर पर बैठ कर कोई फ़िल्मी मैग्जीन देख रहा था l रॉकी अचानक से बेड पर उठ कर बैठ गया l
रॉकी -(डरते हुए) त....त.... तुम... लोग... कौन हो l
वह आदमी - अरे हीरो.... होश आ गया तेरे को...... वाह.... हम लोग तेरे फैन हैं.... हम लोगों ने तेरे नाम पर एक बहुर बड़ा फैन क्लब बनाए हैं.... और तेरे फैन लोग बहुत सोशल सर्विस करते रहते हैं... इसलिए तेरे बाप से उस क्लब के लिए डोनेशन मांगने वाले हैं....
तब रॉकी इतना तो समझदार हो गया था और वह समझ गया कि उसका किडनैप हुआ है और बदले में उसके बाप से पैसा वसूला जाएगा l
वह आदमी उठा और बाहर जा कर दरवाजा बंद कर दिआ l फिर रॉकी चुप चाप उसी बिस्तर पर लेट गया l थोड़ी देर बाद वह आदमी और उसके साथ तीन और आदमी अंदर आए l
(पहला वाला आदमी को आ 1, और वैसे ही सारे लोगों की क्रमिक संख्या दे रहा हूँ)
आ 1- सुन बे हीरो... तेरी उम्र इतनी तो है के... तु अब तक समझ गया होगा कि तु यहाँ क्यूँ है...
रॉकी ने हाँ में सर हिलाया l
आ 2- गुड.... चल अब बिना देरी किए अपना बाप का पर्सनल नंबर बता.....
रॉकी - 98XXXXXXXX
आ 1- (और दोनों से) हीरो को खाना दे दो...
और हीरो खाना खा और चुपचाप सो जा....
दो दिन बाद तुझे तेरे फॅमिली के हवाले कर दिया जाएगा l
रॉकी अपना सर हिला कर हाँ कहा, तो सब उस कमरे से बाहर चले गए और कुछ देर बाद उनमें से एक आदमी एक थाली और एक पार्सल दे कर चला गया l रॉकी ने इधर उधर पानी के लिए नजर घुमाया तो देखा वश बेसिन के ऊपर अक्वागार्ड लगा हुआ है l इसलिए रॉकी चुप चाप खाना खाया और बिस्तर पर सोने की कोशिश करने लगा l ऐसे ही दो दिन बीत गए l तीसरे दिन शाम को रॉकी के आँखों में पट्टी बांध कर उसे कहीं ले गए l जब एक जगह उसकी आँखों से पट्टी खुली तो खुदको एक अंजान कंस्ट्रक्शन साइट् पर पाया l उसने गौर किया तो देखा कि असल में वह चार आदमियों की गैंग नहीं थी बल्कि एक बीस पच्चीस लोगों की गैंग थी l सबके हाथों में एसएलआर(Self Loaded Rifle) गनस् थे l थोड़ी देर बाद जिसने रॉकी से उसके बाप का फोन नंबर मांगा था शायद वह उस गिरोह का लीडर था वह बदहवास भागता हुआ आ रहा था और उसके पीछे एक आदमी शिकारी के ड्रेस में चला आ रहा था l गैंग लीडर - (चिल्ला कर) कोई गोली मत चलाओ, कोई गोली मत चलाओ
सब के हाथों में गनस् होने के बावज़ूद उनका लीडर किससे डर कर भाग कर आ रहा है, यह सोच कर गैंग के लोग एक दूसरे को देख रहे हैं l
तभी गैंग लीडर आ कर रुक जाता है और पिछे मुड़ता है l पीछे शिकारी के ड्रेस में काला चश्मा पहने हुए वह शख्स दोनों हाथ जेब में डाले खड़ा हो जाता है l तभी उस गैंग का एक आदमी उस शिकारी के पैरों के पास गोलियां बरसाने लगता है l पर वह शिकारी बिना किसी डर के वहीं खड़ा रहता है l गैंग का लीडर उस गोली चलाने वाले को अपनी जेब से माउजर निकाल कर शूट कर देता है और घुटनों पर बैठ जाता कर अपना सर झुका लेता है l
शिकारी - कल तक तुम लोग क्या करते थे मुझे कोई मतलब नहीं...
पर आज से और अभी से यह हमारा इलाक़ा है... और हमारे इलाके में...
गैंग लीडर - हमे मालुम नहीं था युवराज जी हम आपके इलाके से फिर कभी नजर नहीं आयेंगे...
शिकारी - बहुत अच्छे...
चल छोकरे चल मेरे साथ...
रॉकी उस शिकारी के साथ निकल गया और पीछे वह गुंडे वैसे के वैसे ही रह जाते हैं l
रॉकी उस शिकारी के साथ एक गाड़ी में बैठ जाता है l गाड़ी चलती जा रही थी और रॉकी एक टक उस शिकारी को देखे जा रहा था और सोच रहा था क्या ताव है, गोलियों से भी डरता नहीं, एक अकेला आया उस गिरोह के बीच से उसे कितनी आसानी से लेकर आ गया l
रॉकी उस शिकारी की पर्सनैलिटी से काफ़ी इम्प्रेस हो चुका था l कुछ देर बाद रॉकी का घर आया l दोनों अंदर गए तो रॉकी के पिता सिंहाचल पाढ़ी उस शिकारी के सामने घुटनों के बल पर बैठ गए l तब वहाँ पर बैठे दुसरे शख्स ने कहा - अब कोई फ़िकर नहीं पाढ़ी बाबु... आप क्षेत्रपाल जी के संरक्षण में हैं...
सिंहाचल- युवराज विक्रम सिंह जी.... कहिए मुझे क्या करना होगा...
विक्रम सिंह - आप जब तक हमें प्रोटेक्शन टैक्स देते रहेंगे...... तब तक...
इस सहर ही नहीं इस राज्य में भी आपकी तकलीफ़ हमारी तकलीफ़....
इतना कह कर विक्रम और वह आदमी चले जाते हैं l
रात भर रॉकी विक्रम के बारे में सोचता रहा और उसकी चाल, बात और ताव से इम्प्रेस जो था l
अगले दिन वह कॉलेज में मालुम हुआ वह जो दुसरा आदमी उसके घर में था वह राजकुमार वीर सिंह था l
रॉकी की उम्र जितना बढ़ता जा रहा था उतना ही विक्रम उसके दिलों दिमाग पर छाया हुआ था l
जब बी-कॉम के साथ साथ अपने पिता की बिजनैस में ध्यान देने लगा, तब उसे यह एहसास होने लगा किसी भी फील्ड में हुकुमत करनी है तो आदमी के पास या तो बेहिसाब दौलत होनी चाहिए या फिर बेहिसाब ताकत, क्षेत्रपाल के परिवार के पास दोनों ही था l एक तरह से रॉकी के मन में इंफेरिअर कॉम्प्लेक्स बढ़ रहा था l हमेशा उसके मन में एक ख्वाहिश पनप रहा था कास ऐसी ताव ऐसी रुतबा उसके पास होता l
ऐसे में उसे रूप दिखती है और उसके बारे में जानते ही वह एक फ़ैसला करता है, अगर कैसे भी वह रूप के जरिए क्षेत्रपाल परिवार से जुड़ जाए तो वह भी ऐसा ही रौब रुतबा मैंटैंन कर पाएगा l

रॉकी.... हे.... रॉकी..... आशीष उसे जगाता है तो रॉकी अपनी फ्लैश बैक से बाहर निकालता है l

XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX

रॉकी - ओह... असल में कैसे कहूँ समझ में नहीं आ रहा है..... ह्म्म्म्म.... ठीक है.... सुनो दोस्तों... आप चाहें जैसे भी हो... आपके जीवन में एक लड़की ऐसी आती है जो आपके जीने की मायने बदल जाते हैं... जब जिंदगी उसके बगैर जिंदगी नहीं लगती..
.. जिसके लिए... जान भी कोई कीमत नहीं रखती...

मेरे जीवन में रूप नंदिनी वही लड़की है जिसके प्यार में मैं मीट जाना चाहता हूँ....
अगर तुम सबको मेरे भावनाओं में सच्चाई दिखे और उसका कद्र हो तो मेरी मदत करो और मेरी राह बनाओ.....

सब चुप रहते हैं

राजु - देख अगर तेरी भावनाएँ सच में रूप के लिए इतनी गहरी है तो..... ठीक है हम तेरी मदत करेंगे...... तेरे लिए हम रास्ता बनाएंगे और तुझे उस पर अमल करना होगा... समझ ले एक रियलिटी गेम है.... तु कंटेस्टेंट है और हम जज जो तुझे पॉइंट्स देते रहेंगे और हर लेवल पर इंप्रुवमेंट के लिए बोलते रहेंगे,.. ताकि ..... तुझे... तेरे हर ऐक्ट पर स्कोर मालुम होता रहे....
"यीये......" सारे दोस्त उसे चीयर्स करते हैं l
रॉकी व्हाइट बोर्ड पर जो भी लिखा था सब मिटाता है और बोर्ड पर मिशन नंदिनी लिखता है l
रॉकी - आशीष पहले तु बता..
आशीष - देखो मुझे जो लगा.... या राजू से जितना मैंने समझा....
नंदिनी अपने पारिवारिक पहचान से दूरी बनाए रखना चाहती है क्यूंकि उसकी पारिवारिक पहचान से उसे दोस्त नहीं मिल रहे हैं l
रॉकी - करेक्ट..
अब... सुशील तु बोल..
सुशील - देख तुझे उसकी बात जानने के लिए उसकी दोस्तों के ग्रुप में एक लड़की स्पाय डेप्लॉय करना होगा...
रॉकी - करेक्ट... पर वह लड़की कौन होगी..
सुशील - रवि की गर्ल फ्रेंड... और कौन...
रवि - क्यों तुम सब रंडवे हो क्या....
सुशील - भोषड़ी के रंडवे नहीं हैं हम.... पर तेरी वाली साइंस मैं है इसलिए...
रवि - ठीक है...
रॉकी - ह्म्म्म्म फिर उसके बाद
राजु - ऑए जरा धीरे... जल्दबाजी मत करियो.... देख कॉलेज में सब जानते हैं कि वह क्षेत्रपाल परिवार से ताल्लुक रखती है...... इसलिए तेरी राह में कोई ट्रैफिक नहीं है... क्यूंकि कोई कंपटीटर नहीं है...
रवि - हाँ यह बात तो है...
रॉकी - अब करना क्या है...
राजु - अबे बोला ना धीरे... जिस तेजी से गाड़ी दौड़ा रहा है ना ब्रेक लगा तु... अबे पुरे स्टेट में जिसके आगे कोई सर भी नहीं उठाता उसकी बेटी है वह.... जिसकी मर्जी से भुवनेश्वर में कंस्ट्रक्शन से लेकर कोई नये प्रोजेक्ट तक हो रहे हैं उसकी भतीजी है वह.... जिसके आगे सारे गुंडे पानी भरते हैं उसकी बहन है वह... और यह मत भूल इस कॉलेज के अनबिटेबल प्रेसिडेंट वीर सिंह भी उसका भाई है....
अगर वह तुझे सिद्दत से चाहेगी तो तब तेरे लिए अपने बाप व भाई से टकराएगी....लड़ जाएगी....
तुझे सिर्फ दोस्ती नहीं करनी है बल्कि तुझे उसके दिल, उसके आत्मा में उतरना है... बसना है...
जल्दबाज़ी बहुत ही घातक सिद्ध होगा....

आशीष - राजु बिल्कुल सही कह रहा है.... बेशक क्षेत्रपाल परिवार की ल़डकी है ... शायद तेरे लिए ही तीन पीढ़ीयों बाद आयी हो.....
तेरा बेड़ा पार वही लगाएगी.... मगर तब जब वह तुझे सिद्दत से चाहेगी...
रवि - हाँ अब तक हमने जितना एनालिसिस किया है... उससे इतना तो मालुम हो गया है कि उसके परिवार के रौब के चलते रूप भी ऐसे मामलों से सावधानी बरतती होगी....
राजु - इसलिए पहला काम यह कर के उसके आस पास अपना कोई स्पाय डेप्लॉय कर... जब उसके कुछ पसंद व ना पसंद मालुम पड़ेगा...
हम अगला कदम उसी के हिसाब से उठाना होगा..
रॉकी सबको शांति से सुन रहा था l उसे सबकी बात सही लगी l
रॉकी - ठीक है दोस्तों अब से हर शनिवार यहाँ पर मॉकटेल पार्टी और मिशन नंदिनी की एनालिसिस...

सारे के सारे जो उस कमरे में थे सब अंगूठा दिखा कर उसके बातों का समर्थन किया l
Ya to Rocky ghor murkh he ya fir bohot hoshiyar jo aisa kadam uthaya he. Kher man to gali dene ka he par aage pudhts hu
 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
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अपने चैम्बर में बैठे खान अपने टाई को थोड़ा ढीला करता है, और रुमाल से अपना चेहरा पोंछता है, फ़िर अचानक - ओ ह्... व्हाट आइ आम डुइंग.... एक मुज़रिम ही तो आ रहा है..... कौन सा VIP आ रहा है... यह... यह मुझे क्या.... हो गया है.... म.. मैं इतना नर्वस क्यूँ फिल कर रहा हूँ.... या.... आ.. आ.. क्या मैं डर रहा हूँ...
ओह... शीट...(टेबल पर एक घूंसा मारता है, फिर अपने दोनों मुट्ठीयों को भिंच कर टेबल पर रगड़ने लगता है )

इतने में एक आवाज़ उसे सुनाई देती है - क्या मैं अंदर आ सकता हूँ....
खान दरवाज़े पर खड़े विश्वा को देखता है और देखता ही रह जाता है l

सुंदर, सौम्य, शांत व सुदर्शन पर भाव हीन चेहरा लिए एक नौजवान उसके सामने खड़ा था, खान अपने आपको संभाला और कहा
खान - आओ विश्व प्रताप... आओ.. बैठो..
विश्वा - (अपना सर ना में हिलाते हुए) नहीं... सर... आप इस कारागृह के सरकारी अधिकारी हैं... और मैं एक सजायाफ्ता अपराधी.. हाँ अगर साधारण नागरिक होता तो ज़रूर बैठता... माफ लीजिए
मैं नहीं बैठ सकता...
खान - अरे नहीं... देखो बेशक यह केंद्रीय कारागृह है.... पर मैं अभी तुम्हें सरकारी काम से ही बुलाया है.. और क्यूँकी तुम अब यहाँ कुछ ही दिनों में रिहा हो कर जाने वाले हो... तो मुझे तुम पर एक रिपोर्ट बना कर हेड ऑफिस व गृहमंत्रालय को भेजना पड़ेगा... यह प्रोसिजर और प्रोटोकोल भी है ... इसलिए बैठ जाओ...
विश्वा आगे बढ़ता है और एक कुर्सी खिंच कर खान के सामने बैठ जाता है l
खान - सो.. विश्वा... उर्फ़ श्री विश्व प्रताप महापात्र
मेरे लिए यह रिपोर्ट बनाना जितना महत्वपूर्ण है उससे भी ज्यादा तुम्हारे बारे में जानने के लिए मेरी उत्सुकता भी है.......
अगर... बुरा ना मानों तो कुछ पुछ सकता हूँ...
विश्वा - जी...
खान - विश्वा... मुझे पुलिस में नौकरी करते हुए पच्चीस साल से अधिक हो चुका है.... और मेरा कई तरह के लोगों से सामना हुआ है... तुम कुछ अलग हो... शायद बहुत... तुमने जैल में रहकर अपना ग्रेजुएशन किया और लॉ भी...
विश्वा- नहीं मैं जैल में आने से पहले करेस्पंडींग डिस्टेंसिंग एजुकेशन में ग्रेजुएशन शुरु कर चुका था.... यहाँ पर रह कर पुरा किया....
खान - ओह अच्छा... पर तुमने लॉ तो यहाँ रहते शुरू भी किया और पुरा भी किया...
विश्वा - जी.....
खान - वैसे रिहा होने के बाद.... मेरा मतलब है कि तुम दुसरे स्किल में भी माहिर हो.. जैसे कारपेंटरी, प्लंबिंग, गैरेज मेकैनिक तो तुम... उनमें क्यूँ अपना प्रफेशन नहीं बनाना चाहा....
विश्वा - समाज इतना खुला हुआ नहीं है खान साहब..... कि वह किसी सजायाफ्ता मुज़रिम को काम दे...
खान - तो क्या... तुमने
लॉ में ही अपना... आई मिन... यु आर कंविक्टेड... तुम लॉ में अपना प्रोफेशनल कैरियर कैसे बनाओगे...
विश्वा - किसी बड़े एडवोकेट के असिस्टेंट बन कर....
खान - ओह... हाँ... बस एक आखिरी सवाल...
विश्वा -.............
खान - तुम्हारे बैंक अकाउंट में सात लाख पंद्रह हजार एक सौ पैंसठ रुपये है...
जब कि तुमने... सरकारी स्किल युटीलाइजेशन स्कीम में ही काम किया है... जिसमें शायद दो लाख तक बनते हैं... पर अकाउंट में इतना पैसा....
विश्वा - मैंने लॉ करते वक़्त मिसेज़ प्रतिभा सेनापति जी के साथ एक कंट्राक्ट साइन किया था.... उनके कुछ केसस् में उन्हें असिस्ट किया और मदत भी... उसके बदले में उन्होंने मेरे अकाउंट में वह पैसे जमा कराए हैं....

यह खान के लिए एक और झटका था l

खान - ओह... अच्छा....
ह्म्म्म्म... ठीक है... अब तुम जा सकते
हो.....
इतना सुनते ही विश्वा चुप चाप उठ कर बाहर निकल जाता है, उसके जाते ही खान ऐसे गहरी सांस लेता है जैसे कितने घंटों से सांस दबाए रखा हो फिर उस दरवाजे पर खान की नजर रुक जाती है और बड़बड़ाता है - क्या है यह... जैसे कोई बिजली की नंगी तार... जितना ज्यादा जानने लगा हूँ इसके बारे में... उतना ही ज़ोर का झटका लग रहा है.....

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गाड़ी से उतरते ही नंदिनी तेजी से घर के अंदर जाती है l उसकी खुशी छुपाये नहीं छुप रही है l ऐसा लग रहा है जैसे नंदिनी किसी मजबूरी के तहत चलते हुए घर के भीतर जा रही है, वर्ना वह उड़ते हुए चली जाती l नंदिनी जैसे ही अपनी भाभी के कमरे में पहुंचती है तुरंत ही दरवाज़ा बंद कर देती है और चहकते हुए शुभ्रा के पास आ कर उसे अपने दोनों हाथों से उठा कर नाचने लगती है l
शुभ्रा - अरे.. रुक... देख मैं गिर जाऊँगी... आ.. ह... अरे नीचे उतार मुझे..
नंदिनी शुभ्रा को नीचे उतार देती है और खुद शुभ्रा के बिस्तर पर पीठ के बल गिर जाती है l
शुभ्रा - अरे... रूप.. य.. यह.. तुझे क्या हुआ...
देखा... कहा था उतार दे मुझे... अब तु मेरी वजन नहीं.. सम्भाल पाई ना...
नंदिनी उठ कर बैठती है और शुभ्रा के गालों पर एक चुंबन जड़ देती है l
शुभ्रा - छि... रूप... आज कॉलेज कुछ हुआ क्या... बिगड़ रही तु आज कल...
नंदिनी - अरे भाभी आज मैं बहुत खुश हूँ.... आपने मुझे जैसा कहा था मैंने वैसा ही किया....(गाते हुए कहती है) और मुझे मेरे दोस्त वापस मिल गए.....
शुभ्रा - अच्छा.... ह्म्म्म्म... यह तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तुने...
नंदिनी - और यह क्या भाभी.... आपकी वजन तो फूलों की तरह है... मैं तो अभी भी आपको उठा कर नाच कुद कर सकती हूँ....
शुभ्रा - हाँ... हाँ मालुम है.. पहलवान भाई की बहन जो है....
दोनों हंसते हैं l नंदिनी शुभ्रा के गले लग जाती है और कहती है - थैंक्स भाभी...
शुभ्रा - (उसके गालों को सहलाते हुए) जो किया तूने ही तो किया... मुझे क्यूँ थैंक्स कह रही है....
नंदिनी - आप आज मेरी माँ, दीदी, सहेली बन कर राह दिखाई और मुझे कामयाबी हासिल हुई.... थैंक्यू.... थैंक्यू... थैंक्यू..
शुभ्रा - बस बस आज तेरी गाड़ी वहीँ.... थैंक्यू पर ही रुक गई है....
नंदिनी - तो क्या हुआ भाभी.... जो है.. सो है.. भाभी आज चाची माँ से बात करने को मन कर रहा है.... उनको लगाईये न फोन...
नंदिनी की बात सुन कर शुभ्रा थोड़ा मुस्कराती है और अपना सर हिलाकर सुषमा को फोन लगाती है l
शुभ्रा - प्रणाम चाची माँ...
सुषमा - (फोन से ) जीती रह बहु... और बता... मेरी गुड़िया नंदिनी कैसी है... और कैसी गई उसकी, आज की कॉलेज की दिन.....
शुभ्रा - लो आप ही पुछ लो.... (इतना कहकर फोन नंदिनी को थमा देती है)
नंदिनी - चाची माँ.... प्रणाम... (खुशी से गला थर्रा गई) क.. कैसी हैं आप....
सुषमा - जुग जुग जिए मेरी बच्ची... मैं बहुत अच्छी हूँ... तु बोल.. जाते ही मुझे भूल गई....(नंदिनी अपनी जीभ निकाल कर दांतों तले दबा देती है) आज कैसे याद आ गयी तेरी चाची माँ... ह्म्म्म्म..
नंदिनी - वह चाची माँ. .. सॉरी... वह यहाँ... मेरा मूड हमेशा ख़राब ही रहता था.... इसलिए...
सुषमा - ठीक है... ठीक है.... अब तो मेरी लाडो सहर की रंग में रंग रही है...
नंदिनी - सॉरी... चाची माँ... कसम से... मैं कभी आपको भुला
नहीं सकती हूँ... प्लीज(गला भर आती है)
सुषमा - हे... अरे... पागल लड़की... मैं तो तुझे.. ऐसे ही छेड़ रही थी.... वरना तेरी हर दिन की खबर मैं बहु से लेती रहती थी... और हाँ आज जो तुझे तेरे दोस्त वापस मिले हैं ना.. वह मेरा ही आईडिया था... समझी...
नंदिनी - व्हाट.... मेरा मतलब.. ठीक है कि आप ने भाभी को आईडिया दिया होगा... पर आपको कैसे मालुम हुआ कि मुझे.... आज मेरे दोस्त वापस मिल गए....
सुषमा - बचपन से तुझे पाला है मैंने.... तेरी नस नस से वाकिफ़ हूँ.... तु कब खुलती है और कब सिमट जाती है....
नंदिनी - हाँ... अखिर माँ जो हो आप मेरे..
सुषमा - कोई शक़....
नंदिनी - नहीं.... बिल्कुल नहीं.... फ़िर भी एक शिकायत है और प्रार्थना भी... उपर वाले से... अगले जनम में मुझे आपकी ही कोख से भेजे...
सुषमा - देख यही तेरी अच्छी बात नहीं है... अब तु रोयेगी और मुझे भी रुलाएगी.....अब... अपनी भाभी को फोन दे...
नंदिनी कुछ कह नहीं पाती, उसके आँखों से आंसुओं के धार फुट पड़ते हैं वह चुपचाप फ़ोन शुभ्रा को दे देती है l शुभ्रा उसकी मनःस्थिति को समझ जाती है और नंदिनी से फ़ोन ले लेती है l
शुभ्रा - ह.. हे.. हैलो..
सुषमा - (सिसकते हुए) देखा बहु ऐसी ही है मेरी रूप.. पर मुझे खुशी है कि की तेरे संग रहकर उसके भीतर की लड़की बाहर आ रही है... उसे चहकने दे, उड़ने दे पर थाम के रखना.... बेचारी आजादी मेहसूस कर रही है... बस देखना मेरी बच्ची को.. के वह कहीं बहक ना जाए... कोई उसे बहका ना दे....
शुभ्रा - (बड़ी मुश्किल से भारी गले में) जी... जी... चाची माँ...
शायद सुषमा से और बातेँ करना संभव ना हुआ इसलिए सुषमा उधर से फ़ोन रख देती है l इधर अपने हाथों से अपना मुहँ छुपाये नंदिनी सिसक रही है l
शुभ्रा - (भारी गले में) देखा आते वक्त चहकते हुए आई थी पर अब माहौल देख... तूने क्या कर दिआ...
नंदिनी - (अपनी आँखे पोछते हुए और खुद को सही करते हुए) सॉरी भाभी... पर जानती हो भाभी...(हंसने की कोशिश करते हुए) आज से हम पांच नहीं छह लड़कियों का ग्रुप है...
शुभ्रा - अच्छा....
नंदिनी - एक नई लड़की.. आज ही मुझसे दोस्ती की... नाम है दीप्ति...
शुभ्रा - अरे वाह कल तक एक एक के लाले पड़ गए थे.... आज तो ऊपर वाले ने छप्पर फाड़ कर छह छह दोस्तों को भेज दिया...
नंदिनी - हाँ भाभी... पर वह दीप्ति ना... (मुहँ बनाते हुए) कुछ ज्यादा ही बोलती है... हाँ...
शुभ्रा - ओ हो... ऐसा क्या कह दिआ उसने...
नंदिनी - वह आज ही दोस्त हुई... मगर सबको सर्टिफिकेट देते घूम रही है.... हूं ह
शुभ्रा - ओ... ह्म्म्म्म... मतलब यह हुआ कि... आज उसने तुम्हें भी कुछ सर्टिफिकेट दिया है...
नंदिनी - हाँ... (कहकर नंदिनी अपना मुहँ फूला कर बिस्तर पर आलती पालती मार कर बैठ जाती है)
उसकी ऐसी हालत देख कर शुभ्रा की हंसी छूट जाती है l शुभ्रा को अपने ऊपर हंसते हुए देख कर नंदिनी भड़क जाती है और
नंदिनी - भाभी....
शुभ्रा नंदिनी के चेहरे को अपने दोनों हाथों से ले कर उसके माथे को चूम लेती है और कहती है - रूप... जरा याद करके बताना.... आखिरी बार... तुमने किस पर मुहँ बनाया था या रूठ गई थी...
नंदिनी इतना सुनते ही शुभ्रा को देखती है और कहती है - पता नहीं भाभी....
शुभ्रा - देखा रूप जब दोस्त जीवन में आते हैं.... विरान जीवन में भी बाहर ले आते हैं.... हर रंग में रंग देते हैं... वैसे.. वह दीप्ति ने तुझे कौनसा सर्टिफिकेट दे दिया है....
नंदिनी - (अपनी दोनों मुट्ठी को कस कर भींच लेती है) वह.... वह... मुहं जली कहती है.... कि मैं जब बातेँ शुरू करती हूँ... तो नन स्टॉप मैं ही बातेँ करती हूँ बिना किसीको मौका दिए....
शुभ्रा जोर जोर से हंसने लगती है नंदिनी को देखते हुए फ़िर अपना पेट पकड़ कर हंसने लगती है और कहती है - सच ही कहा है उसने... हा हा हा...
उसे ऐसे हंसता हुआ देख नंदिनी चिढ़ जाती है और चिल्लाती है- भा.... भी
शुभ्रा अपनी हंसी को काबु करती है l बात बदलने के लिए नंदिनी कहती है - जानती हो भाभी... आज हमने अपने ग्रुप का नाम करण किया है... और नाम भी मैंने दिआ है..
इस वार शुभ्रा फ़िर से हंसने लगी - हाँ... हाँ मालुम है... छटी गैंग...
इतना कहते ही शुभ्रा की हंसी रुक जाती है l उसे लगता है कि उसने यह कह कर गलती कर दी l उधर यह सुनकर हैरानी से नंदिनी की आंखे चौड़ी हो जाती है l
नंदिनी - भाभी क्या आपने मेरे पीछे जासूस लगाए हैं.... या फ़िर किसी और के जरिए मुझ पर नजर रखे हुए हैं....
शुभ्रा -शुभ्रा - देख रूप इस सहर में... जब तक तु है... तब तक तु मेरी जिम्मेदारी है.... और हाँ अभी के लिए बस इतना जान ले... मैंने किसी और को तेरे पीछे नहीं लगाया है.... पर हाँ जो तेरी खबर मुझ तक पहुंचा रही है... वह मेरी और तेरी अपनी है.... और मेरे होते हुए... तुझे कुछ भी होने नहीं दूंगी.... अभी फिलहाल इसे सस्पेंस रखते हैं... पर तुझे एक दिन मिलवाउंगी उससे....
नंदिनी - ठीक है भाभी... सारा मजा किरकिरा कर दिया... अब जब कॉलेज से लौटुंगी तब आपसे शेयर करते वह मजा नहीं आएगा....
शुभ्रा - धत पागल.... मुझे थोड़े ना हर दिन की खबर मिलेगी.... वह तो कभी कभी.... फिर भी रूप... मेरे पास अपने दिल में कभी कुछ मत रखना.... क्यूंकि दिल में कोई बात घर कर गई तो वह रिश्तों पर बुरा असर करती है...
नंदिनी - ठीक है भाभी... अच्छा भाभी.... क्यूँ न आज अपने हाथों से कुछ मीठा बना कर खिलाओ.....
शुभ्रा - श् श्श्श श्श्श.... रूप ऐसी बातें तब करना जब इस घर के मर्द इस सहर में ना हो.....
यह जो क्षेत्रपाल परिवार के मर्द मूछों पर ताव देते रहते हैं ना.... वह असल में एक तरफ दौलत की धौंस और दूसरी तरफ खानदानी पहचान का रौब....
उनको मालुम हुआ तो अपने मूछों पर ताव देते कहेंगे.... क्षेत्रपाल परिवार की औरतें क्यूँ कर रसोई में जाएं... हमने इतने नौकर चाकर रखे किसलिए हैं.....
नंदिनी - सौ फीसद सच कह रही हो आप.... तो आप ही बताओ... कब खाएं... मुझे तो आपके हाथ से खाने को बड़ा मन कर रहा है... चाहे खाना कैसे भी बना हो... पर खाना है...
शुभ्रा - ऐ चाहे कैसे भी बना हो मतलब... मैं खाना बहुत अच्छा बनाती हूँ... अगर मेरे हाथ का बना खाना है..... तो फिर कुछ दिन इंतजार कर..... जब तेरे भाई यहाँ नहीं होंगे.... उस दिन तुझे खिलाउंगी...
नंदिनी - वैसे भाभी..... मेरे दोनों भाई पूनम के चांद हो गए हैं..... कभी कभी ही दिखते हैं इस घर में .... देर रात घर आते हैं.... फिर पता नहीं कब उठते हैं और कहां चले जाते हैं.....
शुभ्रा - हाँ इस घर की नियति यही है.... पता नहीं कहाँ कहाँ घूमते फिरते हैं.... सिर्फ़ रात को आते हैं... जब मन किया खाते हैं वरना....
नंदिनी - अब वे लोग कहाँ हो सकते हैं....
शुभ्रा - पता नहीं.... ज़रूरत भी नहीं....

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शाम ढल रही है और रात गहरी हो रही है l एक फाइट रिंग में विक्रम पांच पांच फाइटरों के साथ लड़ रहा है l
नीचे चेयर पर बैठ कर वीर और एक अधेड़ आदमी बैठ कर विक्रम को लड़ते हुए देख रहे हैं l
वह आदमी - वाह क्या लड़ रहे हैं युवराज....
वीर - हाँ... महांती.... यह तो दूध, बादाम, घि से जो चर्बी बनाया जाता है, फिर उसे उतारने के लिए जबर्दस्त कसरत कर पसीना बहाना पड़ता है और यह रिंग व फाइट उसीका परिणाम है.... जितना ज्यादा खाओगे.... उतना ही ज्यादा पसीना बहाओगे.... यह नियम है.... अच्छे स्वास्थ्य के लिए चुस्त-दुरुस्त रहने के लिए....
महांती - पर माफ कीजिएगा राजकुमार जी... मैंने आपको ना तो कभी पसीना बहाते देखा है ना ही लड़ते हुए...
वीर - अरे मैं भी पसीना खूब बहाता हूँ.... और कसरत भी बहुत करता हूँ... अरे महांती.... कसरत तो मैं इतना करता हूं ऐसी के ठंडक में भी पसीना पानी की तरह निकालता रहता है....
महांती - क्या.... आप बहुत कसरत भी करते हैं.... कब और कहां...
वीर - तुझे बड़ी उत्सुकता है महांती.... मुझे कसरत व पसीना बहाते हुए.... देखने के लिए... ह्म्म्म्म
महांती - नहीं ऐसी बात नहीं है.... मेरा मतलब है... आपको कभी युवराज जी की तरह रिंग में नहीं देखा है...
महांती - अबे वे युवराज हैं.... आने वाले समय में वे राज करेंगे.... और हमारे हिस्से में सारी काज ही आएंगे....
महांती - मैं कुछ समझा नहीं....
वीर - यह बहुत हाई लेवल की बातेँ है... इसे समझने के लिए लेवल बराबरी का होना चाहिए...
उधर फाइट खतम होता है, सारे फाइटर्स जो विक्रम के साथ लड़ रहे थे,सबके सब नीचे गिरे पड़े हैं l
वीर-(ताली मारते हुए) वाह युवराज जी वाह l
महांती - क्या बात है युवराज जी.... आपने तो इन प्रोफेशनल्स को धुल चटा दिआ....
विक्रम - (चेयर पर बैठते हुए) महांती सिर्फ इन सबकी ही नहीं... बल्कि हमारे सिक्युरिटी सर्विस में काम करने वाले सभी गार्ड्स की ट्रेनिंग थोड़ा टफ कर दो.... इन प्रफेशनल्स के रिफ्लेक्सेस अगर इतने स्लो रहेंगे तो.... हमारे सिक्युरिटी सर्विस की डिमांड कम ही जायेगी....
महांती - जी समझ गया युवराज....
विक्रम - अच्छा... अब बताओ.... वह... नभ वाणी के ऑफिस में जो लड़की प्रवीण के बारे में जानकारी जुटा रही थी.... उसका क्या हुआ...
महांती - जी.... अबतक हमारे हाथ खाली है....
विक्रम - जानता हूँ.... मैं बस यह जानना चाहता हूँ... अब तक तुम लोगों ने क्या क्या उखाड़ा है... वह बता....
महांती - सर माफ़ी के साथ.... पहली बात, हमने सिर्फ एक महीने पहले नभ वाणी ऑफिस की सिक्युरिटी को टेक ओवर किया है.... वह लड़की जरूर पहले आ कर रेकी कर जा चुकी थी... इसलिए पिछली बार जब वह आई थी तब चेहरे को अपने दुपट्टे से ढक कर आई थी.... और उसे पहले से ही कैमरा का अंदाजा था... वह जब भी कैमरा के सामने गुजरी... वह अपनी वैनिटी बैग का सहारा लिया था.... इसलिए वह कैमरा से बच पाई थी.... किसीने उसका चेहरा देखा नहीं था तो स्केच आर्टिस्ट के पास जाना बेकार था...
और राम मंदिर एक पब्लिक प्लेस था वहाँ पर झगड़ा कर अंदर जाना मुश्किल था.... क्यूंकि वह जगह एक धार्मिक जगह है.... और सबसे अहम बात.. बेशक इस सहर में राजा साहब का दबदबा है., दखल भी है ... पर यह भी सच है कि यह यश पुर नहीं है.....
विक्रम - बहुत लंबा चौड़ा एक्सप्लेनेशन दे दिया तूने....
महांती - सर फ़िर भी हमने सभी संस्थाओं में अपने आदमी छोड़ रखे हैं.... अगर उस केस में कहीं भी हलचल होती है... तो हम फौरन एक्शन में आयेंगे....
वीर - पर मुझे नहीं लगता है कि.... अब कोई भी प्रवीण की खैरियत पूछेगा.... तक जितने एक्शन हुए हैं.... पूछ ताछ करने वाले को अब अक्ल आ चुकी होगी.... इसलिए अब वह हमसे टकराने से पहले सौ बार सोचेगा.....
विक्रम - अगर तुम्हारी और महांती की लॉजिक सही है.... तो चलो हम जाल बिछायेंगे.... प्रवीण के इंफॉर्मेशन का रुमर उड़ाओ... तो शायद कुछ हाथ लगे....
वीर - हाँ यह हो सकता है.... क्यों महांती..
महांती - जी सर.... ऐसा हम कर सकते हैं...
विक्रम - तो फिर लग जाओ अपने काम पर....
महांती - जी सर... कहकर सैल्यूट ठोक कर चला जाता है,उसके जाते ही
विक्रम - हाँ तो राज कुमार जी.... वैसे आप कौन कौन से कसरत और कहाँ करते हैं कि आप दूध, बादाम व घि की चर्वी उतारते हैं....
वीर - क्या युवराज जी.... आप भी...
विक्रम - महांती ठीक कह रहा था... तुम्हें खुद को कॅंबैट के तैयार करना चाहिए....
वीर - युवराज जी मैं जब भी कॅंबैट करता हूँ... बहुत ही भयंकर घमासान करता हूं....
विक्रम - (उसे घूरते हुए देखता है)......
वीर - देखिए युवराज जी मैं वात्स्यायन के सभी आसनों को बड़ी शिद्दत के साथ करता हूँ.... और ऐसी कमरे में भी जमकर पसीना बहाता हूँ....
विक्रम - राजकुमार..... आप महांती की एक बात ना भूलें.... भले ही हमारा दबदबा यहाँ पर बहुत है.... फ़िर भी यह ना भूलें... यह भुवनेश्वर है यश पुर नहीं..... जो भी करो.. सोच समझ कर करो...
वीर - हाँ यह आपने सही कही.... पर युवराज एक बात पूछूं....
विक्रम - हाँ पूछिए....
वीर - पिछले कई महीनों से देख रहा हूँ.... आप रंग महल के लिए प्रबंधन करते तो हैं ..... पर डेरा नहीं डाल रहे हैं.... क्या मन भर गया आपका या रावण अब राम के राह पर निकला है....
विक्रम - (कुछ देर खामोश रह कर एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मैं कभी राम नहीं बन सकता.... इस जनम में तो बिलकुल नहीं..... जब तक मैं विक्रम सिंह क्षेत्रपाल हूँ.... मैं रावण ही हूँ....
वीर - तभी तो आप मुझे मेरी तरह रहने दें....
विक्रम - जो मर्जी आए वह करो.... पर इतना ध्यान रहे यहां हमरे दुश्मनों की तादात बहुत है..... आज तक हमने किसी को मौका नहीं दिया है.... तुम भी किसीको मौका मत देना...
वीर - ना ना ना.... मैं सिर्फ अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की परिवार को देखता हूँ.... बहुत मदत भी करता हूँ... बदले में वह भी अपनी मर्जी से... मेरी मदत के बदले भेंट देते हैं.... जिन्हें में दिल व बाहें खोल कर स्वीकार करता हूँ....
विक्रम - इसलिए तुम्हें सम्भलने को कह रहा
हूँ.... रंग महल की रस्म हमारे दुश्मनों के लिए है... और यहां पार्टी के कार्यकर्ता अपने हैं.... यह यशपुर नहीं है.... यशपुर में कुछ भी हो जाए कोई नजर नहीं उठा सकता..... पर यहाँ, कहीं उनका गुस्सा हमला तक तो नहीं.... पर कहीं भड़ास गाली बनकर ना निकले....
वीर - हाँ तो क्या हुआ...मैं कौनसा सुदर्शन चक्र धारी भगवान हूँ.... अगर गाली बर्दास्त ना हुआ तो सुदर्शन चक्र निकाल कर छोड़ दूँ.... मैं जो भी कर रहा हूँ गालियाँ बर्दास्त करने के लिए....... अब कोई मुझे मादरचोद या बहनचोद कहेगा.... तो मुझे बड़ा दुख होगा.... इससे पहले कि वह इस तरह की गालियाँ दे कर मेरा मन दुखा दे इसलिए मैं उन सबकी माँ बहन चोद रहा हूँ....
विक्रम - तुमसे बात करना भी बेकार है....
वीर - ठीक है युवराज जी आप घर जाइए.... मैं किसी पार्टी के कार्यकर्ता के घर जा रहा हूँ...
इतना कह कर वीर निकल जाता है, पर वहीं चेयर पर बैठे विक्रम रह जाता है

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रात को डिनर के टेबल पर तापस व प्रतिभा दोनों डिनर कर रहे हैं l
प्रतिभा - तो सेनापति जी आपके VRS का क्या स्टेटस है....
तापस - क्यूँ वकील साहिबा... लगता है मुझसे भी ज्यादा जल्दी है आपको....
प्रतिभा - आपसे बात करना मतलब अपना सर फोड़ना.... अगर बताना नहीं है तो मत बताओ...
तापस - ऐ मेरी जानेमन...
तुमको इस डिनर की कसम....
रूठा ना करो.....
रूठा ना करो...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...
प्रतिभा - अब तो बता दीजिए...
तापस - अरे जान... विजिलेंस क्लियरेंस हो गया है l अब सिर्फ खान से नो ड्यू और नो ऑबजेक्सन सर्टिफिकेट लेना है.... उसे लेने में अगले हफ्ते जाऊँगा...
प्रतिभा - क्यूँ... अगले हफ्ते क्यूँ....
तापस - क्यूँकी मैंने वहाँ जैल छोड़ कर जाने से पहले किसीको कुछ देने का वादा किया है.....
प्रतिभा - क्या वादा किया था और किसइस....
तापस - अरे प्रिये प्राणेश्वरी हमारा अर्दली था ना... वह जगन... उसकी हेल्पर कांस्टेबल पोस्ट की अप्रूवल जो बाकी है.....
प्रतिभा - क्या इस हफ्ते हो जाएगा.....
तापस- हाँ लगभग हो चुका है.... बस लेटर मिलते ही.. मैं अपना नो ड्यू व एनओसी ले आऊंगा....
प्रतिभा - अच्छा (कुछ देर रुक कर) और.... वह... नभ वाणी न्यूज रिपोर्टर....
तापस - (गहरी सांस लेते हुए) सच्चाई बहुत कड़वी और पीड़ा दायक होती है.... और सच यह है कि वह और उसके परिवार में से कोई भी जिंदा नहीं हैं...
प्रतिभा - (हैरानी व दुखी हो कर) क्या........
तापस - मुझे पुरा यकीन है... उनकी लाशें ढूंढने से भी नहीं मिलेंगी....
प्रतिभा - मतलब..
तापस - (अपना खाना खतम कर उठते हुए) मैंने कुछ फैक्टस पर गौर किया और अपने सोर्सेस को इस्तेमाल कर के यह नतीज़ा निकाला के.... जिनको क्षेत्रपाल सहर या दुनिया से ग़ायब करता है... उनके गायब होने के एक ही स्थान है...
प्रतिभा - कौनसी जगह....
तापस - राजगड़....
प्रतिभा - (कुछ चिंतित होते हुए) क्या....
तापस - मैं समझता हूँ तुम्हें अब कौनसी चिंता सता रही है....(प्रतिभा के कंधे पर हाथ रखते हुए) उसे कुछ नहीं होगा... कुछ होने नहीं दूँगा... कम से कम मेरे जीते जी तो नहीं....
तुमने जितना उसे देखा है, समझा है ... मैंने उसे तुमसे कहीं ज्यादा किसी और सांचे में ढलते हुए देखा है.....
और उसकी हिफाज़त के लिए हम दोनों तो हैं ना.... हमने अपनी औलाद के लिए भले ही कुछ ना कर पाए.... पर इसबार ऐसा नहीं होगा.... अपना सब कुछ बाजी लगा देंगे... पर उसे कुछ नहीं होने देंगे..
प्रतिभा तापस के हाथ को पकड़ कर उसे पलकें झपका कर अपनी सम्मति देती है....
Update 7 aur 8 me yah pata chala ke vishwa Rajgad se he jaha uski behen vaidehi jo gajab jigre wali he rehti he, vidhwa ko ek tarike se senapati dampatya ne god he liya he aur uski jung me uske sath he. Par dushman asadharan he , Vikrant aur veer dono kutil, krur aur nirdayi he. Bohot khub likha he apane :applause:
 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
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👉नौवां अपडेट
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कैन्टीन में आते ही नंदिनी ने देखा, एक टेबल पर उसकी छटी गैंग के सभी दोस्त उसीका इंतजार कर रहे हैं l नंदिनी सबको हाथ हिला कर हाइ करती है l बदले में सभी हाथ हिला कर उसको जवाब देते हैं l
नंदिनी गोलू से - गोलू...
गोलू - जी दीदी...
जल्दी से तीन बाई छह ला...
गोलू - जी ठीक है...
टेबल पर बैठते ही नंदिनी - क्या हो रहा है... दोस्तों...
बनानी - इंतजार हो रही थी जिनकी....
वह आए यहाँ..

दे दिए ऑर्डर तीन बाई छह वाली चाय की......
लेने के लिए गरमा गरम चाय की चुस्की......
तबसुम- वाह.... वाह.... क्या बात है इरशाद इरशाद...
सब हंस देते हैं और एक-दूसरे को हाइ फाई करते हैं इतने में गोलू चाय लाकर टेबल पर रख देता है l सब क्लास की इधर उधर बातेँ करते हुए चाय खतम करते हैं l तब दीप्ति काउन्टर पर जा कर पैसे भर देती है और वापस टेबल पर आ जाती है l
बनानी कहती है - अरे क्लास बंक करने का इरादा है क्या...
इतिश्री - वैसे आईडीया बुरा नहीं है....
दीप्ति - तो अभी हम क्यूँ बैठे हुए हैं...
नंदिनी - नहीं क्लास का टाइम हो गया है.... चलो चलते हैं...
तबसुम - हाँ चलो... चलते हैं (सब उठने को होते हैं )
दीप्ति - (नंदिनी की हाथ को पकड़ कर) एक मिनिट.... तुम सब जाओ... नंदिनी से मेरा एक काम है... बस पांच मिनिट बाद हम तुम लोगों को जॉइन करेंगे....
भाश्वती - ऐ क्या चक्कर है तुम दोनों में...... कहीं तुम लोग लेसबो तो नहीं हो...
दीप्ति - क्या बोली कमीनी...
सब हंसने लगते हैं l
नंदिनी - अरे अरे.. ठीक है... अच्छा तुम लोग चलो... वैसे दीप्ति आज जान लेवा दिख रही है.... उसको अकेले में मुझसे क्या काम है... मुझे जान लेने तो दो....
इतिश्री - हाँ भई... इन लोगों को अकेले में काम है... हमारे सामने न हो पाएगा....
सब हंसने लगते हैं l दीप्ति अपना मुहँ बना लेती है l बनानी यह देख कर कहती है - चील दीप्ति चील.... अरे यार मज़ाक ही तो कर रहे हैं सब.... ओके फ्रेंडस... लेटस गो... दे विल जॉइन अस लेटर...
बनानी सबको ले कर चली जाती है l सबके जाते ही नंदिनी दीप्ति से
नंदिनी - हाँ तो मिस. दीप्ति मयी गिरी... कहिए हमसे क्या काम है... जो(धीमी आवाज़ में) सबके आगे नहीं कह सकीं....
दीप्ति - छी... तु भी....
नंदिनी - (हंसते हुए) हा हा हा... चील यार... अब बोल....
दीप्ति - अच्छा नंदिनी.... तूने गौर किया... अगले हफ्ते गुरुवार को बनानी की बर्थडे है....
नंदिनी - क्या... सच में... पर... तुझे कैसे मालूम हुआ...
दीप्ति - अरे यार (नंदिनी के गले में लटकी उसकी आइडी कार्ड दिखा कर) इससे.... हम सबके गले में ऐसी तख्ती लटकी हुई है... मेरी नजर उसके DOB पर पड़ गई.... इसलिए मैंने तुझे यहाँ पर रोक लीआ....
नंदिनी - अरे हाँ....(अपनी आइडी कार्ड को देखते हुए) हमारे आइडी कार्ड में डेट ऑफ बर्थ साफ लिखा है... और देख दो महीने बाद मेरा भी बर्थ डे है.... पर बनानी के बर्थ डे पर तेरा क्या कोई प्लान है...
दीप्ति - प्लान तो ग़ज़ब का है.... अगर तु साथ दे तो....
नंदिनी - ओ.... कोई सरप्राइज है क्या...
दीप्ति - बिल्कुल....
नंदिनी - ह्म्म्म्म तेरे खुराफाती दिमाग़ मे जरूर कुछ पक रही है...
चल उगल भी दे अभी...
दीप्ति - देख कल सन डे है.... क्यूँ ना हम सब सिवाय बनानी के.. डिऑन मॉल चले... वहाँ पर सब अपनी-अपनी कंट्रिब्युशन जोड़ कर उसके लिए गिफ्ट तैयार करें.... और गुरुवार को केमिकल लैब में प्रैक्टिकल के दौरान उसे गिफ्ट दे कर उसकी बर्थ डे सेलिब्रिट करें....
नंदिनी - वाव क्या आइडिया है... पर यार... एक प्रॉब्लम है...
दीप्ति - क्या....
नंदिनी - देख मेरी घर से.... मेरी एंट्री और एक्जिट फ़िक्स है.... सॉरी यार... तु मुझसे कुछ पैसे लेले... और किसी और को लेकर.... बनानी के लिए गिफ्ट पैक करा ले....

दीप्ति का मुहँ उतर जाता है, वह नंदिनी को देखती है, नंदिनी भी थोड़ी उदास दिखने लगी l दीप्ति और नंदिनी अब उठ कर क्लास की और निकालते हैं l फ़िर अचानक दीप्ति एक चुटकी बजाती है और चहक कर कहती है - आईडीआ...
नंदिनी उसे इशारे से पूछती है क्या हुआ
दीप्ति - अररे यार... अगर हम मॉल नहीं जा सकते तो ना सही... पर मॉल तो यहाँ आ सकती है ना....
नंदिनी - क्या मतलब..
दीप्ति - अरे यार... अपनी मोबाइल में.... क्यूँ ना हम ऑन लाइन शौपिंग से गिफ्ट मंगाये....
नंदिनी - पर वह गिफ्ट हमे कब मिलेगा और हम उसे कब देंगे....
दीप्ति - ऑए मैडम.... यह भुवनेश्वर है.... यहाँ आज ऑर्डर डालो... तो कल मिल जाता है...
नंदिनी भी खुश होते हुए
नंदिनी - अच्छा.... वाव... तब तो मजा ही आ जाएगा....
दीप्ति - तो एक काम करते हैं.... हम बुधवार को ऑर्डर करेंगे और हमे गुरुवार को मिल जायेगा... और हम बनानी को सरप्राइज करते हुए लैब में ही उसकी बर्थ डे सेलिब्रिट करेंगे....
नंदिनी - या.... आ.... हा.. आ
दीप्ति - है ना मज़ेदार प्लान....
नंदिनी - यार मजा आ गया... जानती है... मैं न पहली बार... किसी की बर्थडे मनाने वाली हूँ.... थैंक्स यार....
दीप्ति - ऐ... दोस्ती में नो थैंक्स...
नंदिनी - नो सॉरी....
दोनों हंसते हैं
दीप्ति - अच्छा सुन... मैं अपनी गैंग में सबको इंफॉर्म कर तैयार कर देती हूँ.... पर गिफ्ट तु मंगाना...
नंदिनी - क्यूँ... इसमें कोई प्रॉब्लम है क्या..
दीप्ति - अरे तेरे नाम से पार्सल आएगा तो प्रिन्सिपल भी चुप रहेगा... अगर हमारे किसी के नाम पर आया तो... क्लास लेना शुरू कर देगा......
नंदिनी - चल ठीक है... अच्छा एक बात बता... क्या ऑनलाइन में केक भी ऑर्डर किया जा सकता है...
दीप्ति - हाँ... अगर तेरा... यह आईडीआ है.. तो बुधवार को ही ऑर्डर कर देते हैं... गिफ्ट पार्सल और केक दोनों एक साथ पहुंचेंगे.... हम उसे बर्थ-डे सरप्राइज देंगे...
नंदिनी - वाव... दीप्ति वाव... तेरा ज़वाब नहीं... उम्म आह्
नंदिनी दीप्ति को चूम लेती है l
दीप्ति - अरे क्या कर रही है.... अभी अभी हमारी छटी गैंग वालों ने जो ताने मारे हैं... उसे कहीं सब सच ना मान लें
फिर दोनों जोर जोर से हंसते हुए अपनी क्लास की ओर चले जाते हैं

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कॉलिंग बेल की आवाज़ सुन कर प्रतिभा दरवाज़ा खोलती है तो देखती सामने वैदेही खड़ी है l
प्रतिभा - अरे वाह आज सुरज कहीं पश्चिम से तो नहीं निकला..... जरा हट तो मैं थोड़ा बाहर जाकर देख लूँ...
वैदेही - क्या मासी.... मैं इतने दिनों बाद आपसे मिलने आई... और आप हैं कि मुझसे... ठिठोली कर रहे हैं....
प्रतिभा - अरे चल चल... इतने सालों से मैं तुझे घर बुला रही थी... कभी आई है भला.... आज अचानक ऐसे टपकेगी.. तो मैं क्या सोचूंगी बोल...
वैदेही - अच्छा सॉरी...
प्रतिभा - ठीक है... ठीक है.. चल आ जा...
वैदेही - नहीं... पहले आप जरा... एक लोटा पानी लेकर आओ...
प्रतिभा उसे चकित हो कर रहती है
वैदेही - अरे मासी.. मुझे अपने पैर धोने हैं... और पैर बिना धोए... मैं भीतर नहीं जा सकती....
प्रतिभा - अरे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है... चल आ जा...(वैदेही ऐसे ही खड़ी रहती है) अरे क्या हुआ...
वैदेही - नहीं मासी.... हम कभी बिना पैर धोए... घर के भीतर नहीं जाते हैं... प्लीज...
हमारे गांव के हर घर के बाहर एक कुंड होता है... जिससे हम पानी निकाल कर पैर धो कर ही किसीके घर में जाते हैं...
प्रतिभा - पर सहर मैं तो ऐसा नहीं होता है ना...
वैदेही - फिरभी...
प्रतिभा - अच्छा अच्छा रुक... कब से हम बहस कर रहे हैं.. वह भी बेवजह... मैं पानी लेकर आई रुक....
प्रतिभा अंदर जाकर बाल्टी भर पानी और एक मग लाकर वैदेही को देती है l वैदेही अपने दोनों पैरों को धो कर अंदर आने को होती है के उसे प्रतिभा रोक देती है l
प्रतिभा - रुक...(अब वैदेही उसे देखती है) यह ले टवेल... अपने पैरों को पोंछ कर आ...(वैदेही हंस कर टवेल लेकर पैर पोंछ कर अंदर आ जाती है)
दोनों ड्रॉइंग रूम में आकर बैठ जाते हैं l
प्रतिभा - पहली बार आई है... तुझे खिलाउंगी और फिर जाने दूंगी समझी... (वैदेही अपना सिर हिलाकर हामी देती है) अच्छा यह बता तु आज यहाँ कैसे...

वैदेही - वह सुपरिटेंडेंट साब जी के काम से आई थी... जैल गई तो पता चला कि.... वह रिटायर्मेंट ले रहे हैं.. तो मुझे मजबूरन यहाँ आना पड़ा...
प्रतिभा - हा हा हा.. देखा तुझे सेनापति जी ने आख़िर घर पर खिंच ले ही आए.... कितनी बार बुलाने पर भी नहीं आई थी.... याद है.... आख़िर सेनापति जी अपनी जिद पुरी कर ही लिए... हा हा हा...
वैदेही मुस्करा देती है और पूछती है - वैसे मासी... सुपरिटेंडेंट सर रिटायर्मेंट क्यूँ ले रहे हैं...
प्रतिभा - अरे उन पर तेरे भाई का जादू चल गया है.... अब डेढ़ महीने बाद प्रताप छूट जाएगा तो जैल में उनका मन नहीं लगेगा.... इसलिए वह VRS ले लिए...
वैदेही - ओ.. वैसे कहाँ हैं... दिखाई नहीं दे रहे हैं...
प्रतिभा - अरे अब कुछ..... ऑफिसीयल काम बाकी रह गया है... उसे निपटाने के लिए कहीं गए हुए हैं....
वैदेही सुन कर मुस्करा देती है और खामोश हो जाती है l
उसे खामोश देख कर प्रतिभा - क्या हुआ क्या सोचने लगी है...
वैदेही - सोच नहीं रही हूँ... बल्कि भगवान को धन्यवाद अर्पण कर रही हूँ....
प्रतिभा - भला वह क्यूँ....
वैदेही - विशु... जनम के बाद माँ की ममता से वंचित रहा.... फिर कुछ सालों बाद वह अपनी पिता के साये से वंचित हो गया.... मगर फिर भी भगवान ने भरी जवानी में उसे आपके रूप में माँ बाप लौटा दिए... इसलिए...
वह आपका सगा नहीं है... फ़िर भी कितना प्यार करते हैं.... उससे...
प्रतिभा - वह तेरा भी सगा नहीं है... फ़िर भी तु उसके लिए मरने मारने के लिए तैयार रहती है... पर एक बात बता... प्रताप मुझे माँ कहता है... तु उसकी दीदी है... तु मुझे माँ नहीं बुलाती...
वैदेही - हाँ वह मेरा सगा नहीं है... पर हम गांव से हैं... और गांव में बंधन घर में या चारदीवारी में सिमट कर नहीं रह जाता है.... मौसा, मौसी, भैया, दीदी, बहना, मामा मामी जैसे संबंध यूँ ही जुबानी नहीं होती निभाई भी जाते हैं.... क्यूंकि वह उस गांव की मिट्टी से जुड़े हुए होते हैं..... और आप हमारे गांव से भी तो नहीं हैं.... रही मेरी बात तो माँ बुलाना किसी की बेटी बनना मेरे लिए एक अभिशाप है... इसलिए नहीं बुलाती... पर विशुने मेरे लिए जो भी किया है... अगर भगवान मुझे मौका दे... तो भगवान से प्रार्थना करूंगी की वह मुझे विशु की बेटी बना कर दुनिया में भेजे... ताकि मैं उसकी कर्ज उतार सकूँ....
प्रतिभा वैदेही के चेहरे को एक टक देखे जा रही है l

वैदेही - एक ही तो मर्द था पुरे यश पुर में.... जब पहली बार मुझे क्षेत्रपाल के आदमियों ने मुझे उठाने आए थे.... तो मुझे बचाने के लिए भीड़ गया था उन दरिंदों से.... सिर्फ़ बारह साल का था तब वह.... एक आदमी का हाथ कुल्हाड़ी से काट दिया था... ऐसा था मेरा विशु.... (वैदेही अपनी आँखों में आंसू पोछते हुए) अच्छा... अब आप बताओ मासी... उस रिपोर्टर का कुछ पता चला...
प्रतिभा - हाँ... सेनापति जी कह रहे थे... उस रिपोर्टर और उसके परिवार को राजगड़ उठा लिया गया था.... शायद अब वे लोग जिवित ना हों...
वैदेही - ओह यह तो बुरा हुआ...
प्रतिभा - और हाँ... तु अब उस ऑफिस को मत जाना... वहाँ पर रिपोर्टर प्रवीण के बारे में कुछ अफवाहें उड़ाए गए हैं... ताकि उनके शिकार को फांस सके... समझी....
वैदेही कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद - अच्छा मासी विशु में मुझे बचपन से ही छोटा भाई ही दिखता था... पर उसके अंदर आपने अपने बेटे को कैसे पाया...
प्रतिभा - तेरी कहानी अधुरी है.... पहले वह तो बता दे.....
वैदेही - ज़रूर बताऊंगी मासी... आज जब ज़िक्र छेड़ ही दिया है... तो अपनी बीती जरूर बताऊंगी... मगर पहले आप अपनी बताइए ना...
इतना सुन कर प्रतिभा अपनी जगह से उठ जाती है और एक गहरी सांस लेती है l फ़िर मुड़ कर वैदेही को देखती है और कहना शुरू करती है.....

प्रतिभा -हम तब कटक में रहा करते थे... मैं और सेनापति जी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे... वह मेरे सीनियर थे... और मेरे पड़ोसी भी थे... मेरे पिता हाइकोर्ट में टाइप राइटर थे... और उनके पिता पुलिस में वायर लैस ऑफिसर थे...चूंकि हम पड़ोसी थे... तो जान पहचान थी ही और दोस्ती भी थी.... ऐसी हमारी अपनी जिंदगी चल रही थी... की एक दिन सेनापति जी के पिताजी का अचानक देहांत हो गया... तब उनकी माता जी ने कंपेंसेटरी ग्राउंड में नौकरी स्वीकार कर लिया था... क्यूँकी उनका लक्ष था कि उनका बेटा ज्यादा पढ़े और उनके पिता से भी बड़ी नौकरी करे l सेनापति जी अपनी माँ का मान रखा और ग्रेजुएशन के बाद पुलिस इंटरव्यू में सिलेक्ट हुए और ट्रेनिंग के अंगुल चले गए l एक दिन उनके माँ जी को बुखार चढ़ गया था और उस वक़्त वह ट्रेनिंग में थे तब चूंकि हम पड़ोसी थे तो उनको मैंने हस्पताल ले जाकर थोड़ी देखभाल किया और उनके ट्रेनिंग खत्म होने तक मैं अपने माता पिता के साथ साथ उनकी माँ जी का भी देखभाल करती थी.... एक दिन उनकी ट्रेनिंग खतम हुई और कोरापुट में पोस्टिंग हुई... कहाँ कटक और कहाँ कोरापुट.... माँ जी को चिंता सताने लगी थी... तब माँ जी ने सीधा हमारे घर आ कर मेरी और सेनापति जी की शादी की बात छेड़ दी.... इससे हम दोनों चौंक गए... हम अच्छे दोस्त तो थे पर शादी.... सेनापति जी को पता था मेरी अपनी कुछ इच्छायें थी... मैं खुद कुछ करना चाहती थी... मेरी इस भावनाओं को वह समझते थे इसलिए उन्होंने शादी का विरोध किया... पर माँ जी नहीं मानी... तो एक शर्त पर शादी हुई... उस वक़्त चूँकि मेरी ग्रेजुएशन खतम हो चुकी थी... तो उन्हों ने मुझे कोरापुट ले जाने के वजाए कटक में ही माजी के पास छोड़ देने की बात की .... पर सच्चाई यह थी के मुझे वह समय दे रहे थे... ताकि मैं कुछ कर सकूँ.... उनके सारे शर्त माजी और मेरे माता पिता मान गए.... फ़िर हमारी शादी हो गई...
शादी के बाद वह कोरापुट चले गए और मैं कटक में अपनी माता पिता के साथ साथ माँ जी का भी देखभाल करती रही और लॉ करती रही....
मैं डिग्री के बाद बार लाइसेन्स हासिल किया ही था कि हाईकोर्ट में पब्लिक प्रोसिक्यूटर के पोस्ट के लिए आवेदन निकला था... मैंने इंटरव्यू दिया तो PP की जॉब भी मिल गई....

जिंदगी अब खूबसूरत थी और मनचाहा भी थी.. क्यूंकि मुझे अब कटक से कहीं नहीं जाना था इसलिए उनकी स्पाउस सर्विस ग्राउण्ड में कटक के आसपास ही पोस्टिंग और ट्रांसफ़र होती रही.. ऐसे में मैं पेट से हुई... तब कटक मेडिकल कॉलेज में मेरे पिताजी के एक मित्र रेडियोलॉजीस्ट हुआ करते थे उन्होंने एक दिन चेक करके बताया कि मेरे पेट में जुड़वा बच्चे हैं... वह भी लड़के.... हमारे घर में खुशियां दुगनी हो गई थी... हमने तब निश्चय किया कि हम अपने बेटों का नाम अपने नाम से लेकर रखें.... यह बात हमने हमारे अपने बुजुर्गों को बताई.... तो उन्होंने ही एक का नाम प्रत्युष और एक का नाम प्रताप रखा... और एक दिन ऐसा भी आया जब हमरे घर में दो नन्हें नन्हें मेहमान आए.... अब हमारे जीवन में खुशियाँ पंख लगा कर उड़ रही थी... एक तरफ जीवन में नए मेहमान से घर में शोर हो रहा था और एक तरफ हमारे बुजुर्ग हमे एक एक कर छोड़ गए.... ऐसे में एक दिन उनके पारादीप ट्रांसफ़र की खबर मिली... मैंने भी बच्चों को लेकर कुछ दिन छुट्टी लेकर उनके साथ पारादीप चली गई .... नए क्वार्टर में उनकी सहूलियत का जायजा ले कर मुझे कटक वापस चले जाना था....... पर भाग्य को कुछ और ही मंजुर था.... ओड़िशा में पहली बार सुपर साइक्लोन आया... जिसका सेंटर पारादीप था... सेनापति जी को सरकारी फरमान था इसलिए मुझे घर पर छोड़ कर आसपास के लोगों को बचा कर सुरक्षित जगह पर पहुंचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन में चले गए... पर साइक्लोन हमारे जिंदगी में भी तूफ़ान ला खड़ा कर दिया था.... वह जब रेस्क्यू ऑपरेशन खतम कर पहुंचे... तब उन्होंने देखा कि क्वार्टर गिर चुका था... अपने स्टाफ के सहायता से मुझे और बच्चों को बचा कर हस्पताल ले गए.... पर उस परिस्थिति में कोई भी हस्पताल खाली नहीं था.... बिजली नहीं थी... पानी नहीं नहीं थी, दवा तक नहीं थी.... आस पास ऐसा लगता था जैसे सूखा पड़ा हुआ था...... उस वक़्त खाने पीने की बड़ी समस्या थी... हर तरफ हाहाकार था.... मुझमें दूध की समस्या निकली... ऐसे में हमारा प्रताप चल बसा बड़ी मुश्किल से प्रत्युष ही जिंदा रहा... पंद्रह दिन बाद सब धीरे धीरे जिंदगी नॉर्मल हो गई तो हम वापस कटक आ गए.... फ़िर हमारा सारा प्यार हमने प्रत्युष पर लुटा कर आगे बढ़ते रहे....
फिर हमारे जीवन में तुम्हारा विशु आया.... अदालती कार्यवाही से लेकर विशु के सजा तक तुम सब जानती हो....
फिर एक के बाद एक ना जाने जिंदगी में क्या से क्या अनहोनी होने लगी.... हमारे प्रत्युष हमे छोड़ चला गया.... मैं प्रत्युष की कानूनी लड़ाई हार चुकी थी..... इसलिए मैंने PP की जॉब से इस्तीफा दे दिया... हम पति पत्नी ही रह गए थे... और जिंदगी से ऊबने लगे थे कि तब सेनापति जी के ऊपर जैल में जानलेवा हमला हुआ था.... पर तेरे विशु ने उन पर खरोंच भी आने नहीं दी थी... पर खुद थोड़ा ज़ख्मी हो गया था.... मैं वैसे भी टुट चुकी थी... अगर सेनापति जी को कुछ हो गया होता तो मैं खत्म ही हो गई होती.... पर एकाम्रेश्वर लिंगराज जी को कुछ और ही मंजूर था.... सेनापति जी को बचाने के लिए धन्यबाद देने मैं हस्पताल मैं पहुंची तो देखा एक बिस्तर पर विशु ज़ख्मी हालत में लेता हुआ है..... मैं उसे पहचानने की कोशिश करने लगी.... उसे पहचानते ही मैं शर्म से अपने भीतर गड़ने लगी... यह तो वही है जिसे मैंने ही सजा दिलवाई थी... और इसने मेरे सुहाग की रक्षा की.... मैं अपने आप को कोश रही थी कि उस वक़्त विश्वा आँखे खोल कर मुझे देखने लगा...
मैं उसकी आँखों में देखने लगी तो पता नहीं मेरे सीने में कुछ हूक सी उठी..... वह मुझे हैरानी से टकटकी नजर से देख रहा था.... मेरी रो रो कर बुरा हाल था.... चेहरा काला पड़ गया था और हालत बिखरी हुई थी.... मैंने उसे पुछा क्या नाम है तुम्हारा.... उसने कहा विश्व प्रताप......

पर मुझे सिर्फ प्रताप ही सुनाई दिआ.... मैं खुद को रोक नहीं पाई और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से लेकर उसके माथे को चूम लिया... उसे चूमते ही पता नहीं क्या हुआ मुझे मैं उसे अपने सीने से लगा कर रोने लगी... मेरे मुहँ से सिर्फ यही निकला - प्रताप मेरे बच्चे... अब मैं तुझे नहीं जाने दूंगी... मेरे बच्चे....
तब पास खड़े सेनापति जी मुझे झिंझोडते हुए - प्रतिभा होश में आओ....
पर मैं तो होश में आना ही नहीं चाहती थी..
तापस-माफ़ करना विश्वा... बेटे के ग़म में बदहवास हो गई है...
विश्वा - जी कोई बात नहीं...
मैं - नहीं नहीं यह मेरा प्रताप है... मुझे बर्षों बाद मिला है.... मुझे माफ़ कर देना मेरे बच्चे.... मैं... मैं तेरी केस रिओपन करवाउंगी.... असली मुज़रिम को सलाखों के पीछे डालूंगी... जिसने मेरे बेटे को इस हाल पहुंचाया है... उन्हें अब सबक सिखाउंगी...
विश्वा - नहीं माँ जी नहीं...
मैं - क्यूँ...
विश्वा - आप अगर इस केस में कोई भी हल चल पैदा करोगी... तो आपके जान पर बन आएगी...
मैं - तो क्या हुआ... मैं अपने बच्चे के लिए किसी भी हद तक गुजर जाऊँगी...
विश्वा - अगर आप मेरे लिए सच में कुछ करना चाहती हैं तो...
मैं - हाँ बोल...
विश्वा - मैंने ग्रेजुएशन कर लिया है... क्या मैं लॉ कर कर सकता हूं...
मैं - तू लॉ करना चाहता है....

विश्वा - हाँ
मैं - तो ठीक है इसमे मैं तेरी पूरी मदत करूंगी...

पर मेरी एक शर्त है..
विश्वा - क्या...
मैं - तु मुझे माजी नहीं, माँ कहेगा...
विश्वा - जी ठीक है...
बस उसके बाद वह मेरा बेटा बन गया.... मैं जानती हूं उसने लॉ पढ़ने की बात इसलिए छेड़ा था ताकि मैं भावनाओं में बह ना जाऊँ...... उसकी मदत करते हुए मैं कहीं क्षेत्रपाल के नजर में ना आ जाऊँ...
फिर भी मुझे प्रताप मिल चुका था... यही मेरे लिए बहुत था....
ऐसे में उनके वार्तालाप में दखल करते हुए कॉलिंग बेल बजने लगा l दोनों अपने अपने ख़यालों से बाहर निकले l
प्रतिभा - ओह लगता है.... सेनापति जी आ गए.... (कह कर प्रतिभा दरवाजा खोलने चली गई)
वैदेही के आँखों में जो आँसू आकर ठहर गए थे, वैदेही उन्हें साफ करने लगी l
तापस - आरे वैदेही.... तुम यहाँ... व्हाट ए सरप्राइज...
वैदेही - (हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए) जी.... आपने जो काम कहा था.... वह पूरा कर लाई हूँ...
इतना कह कर अपनी थैली से कुछ कागजात निकालती है और तापस की ओर बढ़ा देती है l तापस उन कागजात को जांचने लगता है l सारे कागजात जांच लेने के बाद तापस का चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, वह वैदेही को देख कर कहता है- वाह वैदेही वाह.... तुमने तो कमाल ही कर दिआ.... शाबास....
प्रतिभा - किस बात की शाबासी दी जा रही है....
तापस - यह मौसा और भतीजी के बीच की हाइ लेवल की बातेँ हैं.... तुम नहीं समझोगी......
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अजी कहाँ... अभी तो शुरू हुआ है....
प्रतिभा - क्या कहा आपने....
तापस - अरे जान मेरी इतनी हिम्मत कहाँ के मैं तुम्हें छेड़ सकूँ..... यह तुम्हारे लाडले के लिए हैं... ताकि उसकी लड़ाई में उसके हाथ मजबूत हथियार हो....
प्रतिभा - मतलब तुम मौसा भतीजी मेरे पीठ के पीछे आपस में खिचड़ी पका कर.... इतना कांड कर रहे हो...
तापस - अरे भाग्यवान जरा जुबान सही करो.... कोई बाहर वाला सुनेगा तो क्या सोचेगा....
प्रतिभा - तुम, प्रताप और यह वैदेही मिले हुए हो.... मुझसे छुप छुपा कर पता नहीं क्या क्या कर रहे हो.... सबसे पहले तो मैं प्रताप की कान खींचुंगी....
लेकिन उससे पहले यह क्या है मुझे बताओ.... नहीं तो आज खाना भूल जाओ....

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शुभ्रा को महसुस हुआ घर में नंदिनी आई है l वह सोचने लगती है "कमाल है आज माहौल इतना शांत क्यूँ है l रोज आती थी तो चहकते हुए आती थी और एक का सौ कहानी बना कर सुनाती थी l पर आज गंगा उल्टी क्यूँ बह रही है l लगता है कुछ गड़बड़ हुई है l पर क्या हुआ होगा l जा कर देखना होगा"
शुभ्रा अपने कमरे से निकल कर नंदिनी के कमरे की ओर जाती है l कमरे का दरवाजा आधा खुला हुआ है l शुभ्रा अंदर झाँकती है l नंदिनी अपने बिस्तर के किनारे बैठी हुई है और अपने दोनों हाथों से मुहँ को ढक कर अपनी कोहनी को घुटनों पर टेक् लगा कर बैठी हुई है l
शुभ्रा - रूप....
नंदिनी अपना चेहरे से हाथ हटाती है l शुभ्रा देखती है, नंदिनी की आँखे लाल हो गई हैं और उसके आँखे भीगी हुई भी हैं l शुभ्रा नंदिनी के पास पहुंचती है और उसके पास बैठ जाती है l
शुभ्रा - रूप... क्या हुआ आज... तेरी हालत ऐसी क्यूँ है....
नंदिनी हंसती है l शुभ्रा को उसकी हंसी फीकी व खोखली लगती है, नंदिनी के हंसी के पीछे एक दर्द महसुस होता है शुभ्रा को l
शुभ्रा - देख रूप... तेरी ऐसी हालत देख कर मुझे बहुत डर लग रहा है... क्या हुआ है रूप.... प्लीज.. बता दे.. मुझे
नंदिनी - भाभी.... यह दिल बहुत ही लालची है.... (हंसते हुए) अभी अभी कितनी खुशियाँ मिलने लगी थी.... पर इस दिल को यह अब कम लगने लगा है... जब लालच बढ़ने लगा... और खुशियाँ मांगने लगा तब... मतलब... आज पहली बार मुझे एहसास हो गया.... मेरी यह जो आजादी भी एक सीमा में बंधे हुए हैं....
शुभ्रा - यह क्या कह रही है रुप....
नंदिनी - हाँ... भाभी... हाँ... थोड़ी आजादी क्या मिली.... मैं अपना पंख फैलाने लगी.... तभी मुझे मालुम हुआ कि मैं एक छोटे पिंजरे से निकल कर एक बड़े से पिंजरे में आयी हूँ.... जिसने मुझे यह एहसास दिला दिया के मैं उड़ तो सकती हूं.... पर आसमान छू नहीं सकती
शुभ्रा - यह... यह कैसी बहकी बहकी बातेँ कर रही है तु.....
नंदिनी - जानती हो भाभी... आज से ठीक चार दिन बाद... बनानी की जनम दिन है... दीप्ति ने उसके लिए एक सरप्राइज प्लान किया.... हम सबको बहुत पसंद भी आया... पर सबने किसी मॉल में जा कर बनानी के लिए गिफ्ट खरीदने की प्लान बनाया.... पर उनके प्लान पर पानी फिर गया... जब उनको मालुम हुआ... मैं कहीं नहीं जा सकती.... सिवाय घर और कॉलेज के.. हर जगह मेरे लिए वर्जित है...
शुभ्रा अपना हाथ नंदिनी के कंधे पर रखती है l नंदिनी फ़िर से एक फीकी हंसी हंसती है l
नंदिनी - फ़िर दीप्ति ने ऑनलाइन शॉपिंग से गिफ्ट खरीदने की आइडिया दी.... सबने मेरे ख़ातिर... ऑनलाइन गिफ्ट खरीदकर बनानी को सरप्राइज देने के लिए राजी हो गए....
शुभ्रा - अगर अब सब ठीक हो गया तो.... तुझे तो खुश होना चाहिए ना...
नंदिनी - भाभी... मैंने अपने सभी दोस्तों से वादा किया था.... उनकी खुशी मेरी खुशी और उनके ग़म मेरे ग़म... इस दोस्ती में मेरा कुछ नहीं होगा... पर... आज मेरे वजह से उनकी वह खुशी अधूरी रही....
शुभ्रा - तो क्या हुआ रूप..उन्होंने तेरे लिए उनका प्लान बदल दिया.... जरा सोच तु उनके लिए कितनी खास है....
नंदिनी - खास.... हम खास क्यूँ हैं भाभी.... क्यूँ....
हम आम क्यूँ नहीं... हैं
हम जिस घर में रहते हैं... भाभी उसमें बहुत बड़ा सा मार्वल तख्ती पे लिखा है... "The Hell".... और यह सच है.... शायद इसलिए हम आम नहीं हो सकते.... क्यूंकि वह आम लोग जहां रहते हैं.... वह जरूर स्वर्ग होगा.....
शुभ्रा - रूप... आज तुझे हो क्या गया है....
नंदिनी - कुछ नहीं हुआ है भाभी.... आज पहली बार... मेरे दोस्त आज जब बाहर घूमने झूमने की बात कर रहे थे... मुझे उनकी हर बात बहुत दुख दे रहा था.... उनकी वह खुशियां मुझे चुभ रही थी.... उनकी वह हंसी, खुशी से पता नहीं क्यूं आज मुझे जलन महसूस हुई....
(एक गहरी सांस ले कर)
भाभी मैं भी खुद को इस सहर के भीड़ में खो देना चाहती हूँ.... और उसी भीड़ में से खुद को ढूंढना चाहती हूँ.... पर मैं जानती हूं यह मुमकिन नहीं है....
भाभी कितना अच्छा होता अगर हम कभी बड़े ही नहीं होते.....
बचपन की वह बेवकुफीयाँ... कितनी मासूम होती थीं... आज जवानी में मासूम ख्वाहिशें भी बेवकुफी लग रही है...
शुभ्रा - रूप.... रूप.... रूप... (अपने दोनों हाथों से झिंझोड कर)
नंदिनी चुप हो जाती है l
शुभ्रा - देख तेरी इस हालत के लिए कहीं ना कहीं मैं भी जिम्मेदार हूँ.... मैंने चाची माँ से वादा किया था.... तेरी आज़ादी, तेरी खुशी की... पर शायद मैं ही तुझे ठीक से समझ नहीं पाई....
नंदिनी - नहीं भाभी आपकी कोई कसूर नहीं है... आप भी कहाँ बाहर जा पा रही हो....
शुभ्रा - (एक गहरी सांस लेते हुए) रूप इतने दिनों में... तुझे मालुम तो हो गया होगा... के तेरे भैया और मैं इस घर में अजनबीयों की तरह रह रहे हैं....
(नंदिनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देती) पर तेरे भाई ने मुझे कभी कैद में नहीं रखा.... मैं जब भी उनसे कुछ मांगा... उन्होंने कभी मना नहीं किया... हाँ उन्होंने हमेशा एक शर्त रखा.... मैं उनसे कभी फोन पर बात ना करूँ.... सीधे सामने से बात करूँ....
नंदिनी - क्या....
शुभ्रा - हाँ पर मैं कभी बाहर नहीं निकलती हूँ... जानती है क्यूँ......? क्यूँकी इसी सहर में जन्मी, पली, बढ़ी... मैं बाहर इसलिए नहीं निकालती क्यों कि मुझे डर रहता है.. कहीं कोई मुझे पहचान ना ले.... मैं नहीं चाहती हूँ... कोई पहचान का मेरे सामने आए... क्यूंकि मेरे जीवन के किताब के कुछ पन्ने बहुत ही काले हैं... जिसके वजह से मैं खुद को इस घर में कैद कर रखा है...?
पर अब ऐसा नहीं होगा.... इस बार तेरे भैया जब आयेंगे... मैं उनसे इजाज़त ले लुंगी के तु बाहर जा पाएगी....
नंदिनी - कोई नहीं भाभी... कोई नहीं.... मैं जानती हूं.... आप ने कहा है... तो आप ज़रूर कर ही लोगी.... पर इतनी जल्दी मैं अपने दोस्तों के साथ साथ खुलना नहीं चाहती हूँ....
शुभ्रा - क्या मतलब....
नंदिनी - अरे भाभी... दोस्ती पक्की हुई है.... गहरी नहीं.... जिस दिन गहरी हो जाएगी... तब उनके साथ जाने के लिए... मैं खुद हिम्मत करूंगी....
शुभ्रा - तो अब तक...
नंदिनी - भाभी मैं खुद को किसी आम से तुलना कर रही थी....
पर घूमने तो मैं आपके साथ ही शुरू करूंगी....
नंदिनी शुभ्रा को बिठाती है और अपना सिर उसके गोद में रख देती है l
शुभ्रा उसके सर को सहलाते हुए - अच्छा रूप...
नंदिनी - हूँ..
शुभ्रा - तेरे बचपन की बेवक़ूफ़ीयाँ भले ही मासूमियत से भरा हो.... पर पूरी तो नहीं होती थी ना.... उस महल में....
नंदिनी - नहीं भाभी.... कोई था जो मेरी खुशी के लिए... वह बेवकुफी भरी मांग को पूरी करने की कोशिश करता था....
शुभ्रा - अच्छा... ऐसा कौन था...
नंदिनी - पता नहीं... मुझे उसका नाम मालुम नहीं है...
शुभ्रा - कैसे... कितने दिन था तुम्हारे साथ या पास....
नंदिनी - मालुम नहीं... शायद सात या आठ साल...
शुभ्रा - अरे बाप रे... और.. तु उसका नाम भी नहीं जानती... या याद नहीं...
नंदिनी - ऐसी बात नहीं भाभी.... मेरी माँ की देहांत के बाद... मैं अकेली हो गई थी... सिर्फ चाची माँ से चिपकी रहती थी.... यहाँ जिस तरह तुम हो उसी तरह महल में चाची माँ होती थी...
एक दिन छोटे राजा मतलब चाचा जी एक लड़के को लेकर मेरे पास आए.... जिसके सिर पर पट्टी बंधी हुई थी.... उसे मेरी पढ़ाई के लिए महल में लाया गया था....
मैंने जब उसका नाम पूछा तो वह कहते कहते चुप हो गया था.... फिर उसने मुझे कहा कि वह अनाम है..... जो उसे पढ़ाने आया है... (हंसते हुए, आगे चल कर पता चला, अनाम का मतलब कोई नाम नहीं हैं) उसने मुझसे झूट बोला था.... पर फ़िर भी... भाभी... उस महल में... मैं सबसे डरती थी.... कहीं कोई मुझ पर गुस्सा ना हो जाए.... पर वह था जिससे मेरे गुस्से, और दुख का परवाह था.... मैं रोती थी तो वह मुझे हँसता था....

शुभ्रा - अच्छा तो फिर तेरी जिंदगी से... वह दूर कैसे चला गया...
नंदिनी - वह जब मैं बारह साल की हुई... तब मुझे रजोदर्शन(Menarche) हुआ...
तो महल में उसका प्रवेश वर्जित हो गया...
इस बात को आठ साल हो चुके हैं...
शुभ्रा - ओह तो बचपन में ही राजकुमारी जी की नखरे कोई उठाता था....
नंदिनी - हाँ... भाभी... एक वही था... जिस पर मैं रूठ सकती थी... गुस्सा हो सकती थी... और पूरे महल में एक वही था जो मुझे मनाता था....रोने नहीं देता था...
शुभ्रा - तो क्या हुआ, आज जवानी में तुझे मनाने के लिए छह छह हैं....
नंदिनी - छह कौन...
शुभ्रा - वह तेरे कॉलेज के पांच पकाउ और छटी मैं....
दोनों मिलकर हंस देते हैं

👉दसवां अपडेट
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वीर म्युनिसिपल ऑफिस के अंदर आता है और पिनाक सिंह के चैम्बर की तरफ बढ़ता है l बाहर ऑफिस के एक मुलाजिम उसे देखते ही सलाम ठोकता है l
एक आदमी - यहाँ कैसे आना हुआ राजकुमार जी....
वीर - अपने ही रियासत में... किसीकी इजाज़त लेने की जरूरत है क्या...
आदमी - नहीं नहीं.... ऐसे ही पुछ लिया.... वैसे बहुत दिनों बाद आप यहाँ आये हैं....
वीर - राज कुमार हैं.... अपनी प्रजा के हालत का जायजा लेने आये हैं...
वैसे मेयर जी अपने चेंबर ही हैं ना.......
आदमी - जी नहीं राजकुमार जी..... अभी पार्टी मुख्यालय से अध्यक्ष जी का बुलावा आया था.... इसलिए वह वहाँ गए हैं....
वीर - अच्छा..... कब तक लौट सकते हैं...
आदमी - यह मैं कैसे बता सकता हूँ.... हाँ आप चाहें तो उनके चेंबर में उनका इंतजार कर सकते हैं....
वीर - हाँ... यही ठीक रहेगा....
इतना कह कर वीर पिनाक सिंह के चेंबर में घुस जाता है l अंदर ऐसी चालू कर पिनाक सिंह के चेयर पर बैठ जाता है l थोड़ी देर बाद वही आदमी एक कुल ड्रिंक का बॉटल लेकर आता है और टेबल पर रख देता है l
वीर - और स्वाइं क्या चल रहा है...
स्वाइं - सब आपकी कृपा है....
वीर - (कुल ड्रिंक पीते हुए) ह्म्म्म्म अच्छा... मेयर साहब कुछ काम रह गया है.. क्या... जो मुझसे हो...
स्वाइं- पता नहीं... एक औरत अभी थोड़ी देर पहले अपनी पोती को लेकर आयी है.... मेयर साहब के पास....
वीर - (उसकी आंखों में एक चमक आ जाती है) क्यूँ... किस लिए....
स्वाइं- वो... कल... मेयर साहब... एक साइट पर गए थे.... वहीँ एक औरत से मिले... उसके दुख देख कर.... उसे और उसकी पोती को आज बुलाया था.... शायद कहीं नौकरी पे लगा दें...
वीर - अरे.... मेयर साहब के पास... कहाँ नौकरी है... नौकरी तो हमारे पास है..... जाओ अगर नौकरी की ही बात है.... तो मैं भी उस लड़की को एंनगेज कर सकता हूँ....
स्वाइं - यह तो और भी अच्छी बात है.... मैं अभी उन दादी पोती को आपके पास भेजता हूँ....
इतना कह कर स्वाइं वहाँ से निकल जाता है l वीर अपना कुल ड्रिंक खतम करने में मसरूफ हो जाता है l थोड़ी देर बाद स्वाइं दो औरतों के साथ रूम में आता है l वीर देखता है एक अधेड़ औरत जो थोड़ी बीमार लग रही है और उसके साथ एक लड़की साँवली सी, पर तीखे नैन नक्स के साथ दुबली पर जहां भरी होनी चाहिए वहीं पर भरी हुई है l
उस लड़की को देखकर वीर मन ही मन बोला - परफेक्ट.... क्या बॉडी है और क्या बम्पर है... ह्म्म्म्म परफेक्ट...
वह बुढ़ी औरत और वह लड़की दोनों वीर को नमस्कार करते हैं l
वीर - जी नमस्ते... आइए.. बैठिए...
औरत - जी नहीं राजकुमार जी.... आप के सामने हम खड़े जो कर बात कर पा रहे हैं... यही हमारी अहोभाग्य है....
वीर - आरे.... आप कौनसे ज़माने की बात कर रहे हैं....
औरत - नहीं राज कुमार जी... हम छोटे लोग हैं.... हमे आप अपने जुते तक ही रहने दीजिए...
वीर - ठीक है.... कहिए आपको कैसी मदत चाहिए....
औरत हाथ जोड़ कर अपनी पोती की ओर इशारा करते हुए - राजकुमार जी यह मेरी पोती है... बचपन से अनाथ है बिचारी.... अब मैं भी कब तक इसके साथ रह पाउंगी नहीं जानती.... इसे कहीं नौकरी पर रख दीजिए.... ताकि आगे चलते उसकी शादी हो जाए.... तो मैं आराम से पूरी जा कर मर सकूंगी...
वीर - (उस लड़की से) कहाँ तक पढ़ी हो....
लड़की - जी जी वो म मैट्रिक तक....
वीर - ह्म्म्म्म आगे क्यों नहीं पढ़ी....
औरत - कैसे पढ़ती... पढ़ाई में बहुत कमजोर है.... मैट्रिक भी तीन बार में पास हुई है....
वीर - अच्छा.... ह्म्म्म्म... वैसे क्या नाम बताया तुमने....
लड़की - जी अभी तक बताया नहीं मैंने....
वीर - अच्छा... अरे.. हाँ... मैंने पूछा कहाँ है....ह्म्म्म्म बोलो फ़िर...
लड़की-जी क्या....
वीर - अरे.... तुम्हारा नाम...

लड़की-जी मेरा नाम अनु है..
वीर - बड़ा प्यारा नाम है.... मेरा मतलब है... बहुत ही सुंदर नाम है... वैसे दादी जी सिर्फ मैट्रिक पास कर लेने से... वह भी तीन बार में..... क्या लगता है... नौकरी मिल जाएगी...
औरत - अब क्या बताऊँ... राज कुमार जी... बाप इलेक्ट्रिसियन था एक दिन बिजली की खंबे पर ही चल बसा और इसकी माँ अपने पति के दुख में चल बसी...
इस अभागिन को मेरे पल्लू से बांध गए... लड़की मंद बुद्धि है..... छोटी सी उम्र में माँ बाप देहांत के बाद मेरे लाड-प्यार से सांसारिक ज्ञान से भी दूर रही.... अब मुझे कब बुलावा आ जाए.... अगर यह किसी किनारे लग जाए... तो मैं समझूँगी चन्द्रभागा नहा ली मैंने....
वीर - तो व्याह क्यूँ नहीं करा दिया...
औरत - व्याह ही तो कराना है.. राजकुमार जी.... फूटी कौड़ी नहीं है... अगर नौकरी लग गई तो शायद... नौकरी को देख कर कोई व्याह करले.... आप तो जानते हैं... जवान लड़की अगर घर में रहेगी.... तो उस पर आसपास की भी बुरी नजर लग सकती है... इसलिए... अब आप से ही आस है....
वीर - ठीक है अनु.... समझो तुम्हें नौकरी मिल गई..... कल ठीक साढ़े दस बजे ESS ऑफिस में आ कर मुझसे मिलो.... तुम्हें... नौकरी मिल जाएगी....

औरत - जुग जुग जियो राजकुमार.... आपको यह बुढ़िया आशीर्वाद ही दे सकती है....
वीर - बस बस यही काफी है.... अच्छा अब आप जाइए....
अनु और उसकी दादी वीर को नमस्कार कर बाहर निकल जाते हैं l
स्वाइं - वाह राजकुमार जी वाह... आपने तो उनके दुख दूर कर दिए..
वीर - अरे नौकरी जैसी छोटी छोटी बातों के लिए मेयर साहब को मेरे पास भेजना चाहिए.... ना कि खुद इस बात में सर खपाना चाहिए....
अच्छा जाओ यार कुछ गरमा गरम भेजो....
स्वाइं- जी राजकुमार जी...
स्वाइं बाहर चला जाता है l वीर अनु के ख़यालों में खो जाता है, अपने पैंट के भीतर करवट ले रहा लंड को मसलने लगा और बुदबुदाने लगता है - क्या गरम माल थी.... उफ... कौन कहता है रंग ही सब कुछ है.... साँवली सलोनी... वह भी हर जगह से दूसरी कसी हुई..... ओ... ह.. मैंने कितना सम्भाला खुदको... पता नहीं कुछ और देर रहती तो उठा कर यहीं पटक कर चोद देता....
तभी दरवाजा खुलता है l वीर देखता है अनु अंदर झाँक रही है l
वीर - क्या हुआ अनु....
अनु - जी मैं अंदर आऊं...
वीर - हाँ आओ...
अनु आकर वीर के पास आती है और झट से उसके पैर पकड लेती है l
वीर - अरे.. अरे... यह क्या कर रही हो....
अनु - आप नहीं जानते राजकुमार जी...(वीर के पैर पकड़े हुए और अपनी नजर झुकाए हुए) अपने मेरे और दादी के लिए क्या किया है... किस तरह आपका धन्यबाद अर्पण करूँ...
वीर - अररे... नजरें झुका कर क्यूँ बात कर रहे हो....
अनु- दादी ने कहा कि.... आप... अन्नदाता हैं... आपसे कभी नजरे नहीँ मिलाना चाहिए...
वीर के पैर पकड़े हुए अनु विनम्रता से और झुक गई तो वीर की नजर अनु के कुर्ते क्लीवेज से झाँकती हुई चुचों पर ठहर गई l वीर की आंखों में चमक आ गई,
बड़ी मुश्किल से वीर खुदको सम्भाला और अनु के चुचों को घूरते हुए अपने गले से थूक निगल कर कहा - अनु मुझसे तुम्हारा दुध.. ख.. (गले का खराश ठीक करते हुए) दुख देखा नहीं जा रहा है...
अनु वैसे ही वीर के पैर पकड़े हुए और नजरें झुका कर - दादी ठीक कह रही थी... आप बड़े लोग बड़े दिल वाले हैं... आज से आप हमारे मालिक हैं.....
वीर - (जुबान लड़खड़ाने लगी, मुहँ में लार भरने लगा) तुम्हारे भी तो कम नहीं है.... दुख.... कैसे उठाती हो इतने बड़े बड़े दुख.... अब बिल्कुल चिंता मत करो... मैं अपने दोनों हाथों से उठाऊंगा... तुम्हारे दुख...
अनु - जी मालिक.. जी..
वीर - अनु अब तुम जाओ....और थोड़ी देर अगर तुम रुकी तो तुम्हारे दुखों को देख कर रो दूँगा...
जाओ अनु जाओ और कल ESS ऑफिस पहुंच जाना... अपने वक्त पर...
अनु - जी मालिक....
अनु उठती है और अपना सर झुकाए बाहर निकलने को होती है l
वीर - सुनो अनु...
अनु - जी मालिक....
वीर अनु के नर्म मुलायम हाथों को पकड़ता है और उसके हाथों में कुछ पैसे रख देता है l
वीर - यह लो... यह शगुन है... तुम्हारे नए जीवन की.... कल याद कर के आ जाना...
अनु ने अपना सर हिला कर बाहर निकल गई, उसके जाते ही वीर जल्दी से वश रूम में घुस जाता है और अपना पैंट निकाल कर मूठ मारने लगता है l रिलेक्स होने के बाद अपना हाथ साफ करता है l उसे बाहर कुछ चिल्लाने की आवाज आती है l वीर वश रूम से बाहर आता है तो पिनाक सिंह को स्वाइं पर चिल्लाते देखता है l
वीर - क्या हुआ छोटे राजा जी...
पिनाक - तुम मेरे फटे में क्यूँ टांग अड़ाने लगे....

पिनाक - स्वाइं तुम बाहर जाओ... (स्वाइं बाहर निकल जाता है, पिनाक वीर के तरफ मुड़ कर) बाथरूम जा कर हल्के हो लिए....
वीर - हाँ....

पिनाक - तुम कबसे लोगों को नौकरी बांटने लगे....
वीर - सेक्योरिटी सर्विस मेरे हिस्से में आता है... और लड़की के पास क्वालिफीकेशन भी नहीं है... इसलिए मैंने उसे फिमेल ग्रुप में शामिल करने का फैसला किया है...
पिनाक - अच्छा.... और वह वहाँ पर क्या करेगी....
वीर - आज कल मेरा स्ट्रेस लेवल बहुत बढ़ रहा है... डॉक्टर ने मुझे स्माइली बॉल दबाते रहने को कहा है...
पिनाक - अच्छा तो जनाब को BP की शिकायत है...
वीर - हाँ... डॉक्टर ने यह भी कहा है.. चाहे रोज बॉल मिले ना मिले... पर रोज दबाते रहना चाहिए... इसलिए वह लड़की परफेक्ट है...
पिनाक - यू...(गुस्से से टेबल पर रखे फाइल को नीचे फेंक देता है)
तभी टेबल पर रखी फोन बजने लगती है l पिनाक गुस्से से फोन को स्पीकर पर डालता है और चिल्ला के पूछता है - हैलो....
पिनाक की यह हालत देख कर वीर मन ही मन मुस्कराने लगता है l फोन के दूसरे तरफ कोई जवाब नहीं आते देख फिर से चिल्लाता है - हैलो कौन है..
फोन - चिल्ला क्यूँ रहा है बे.. किसीने तेरी मार कर पैसे नहीं दी है क्या....
पिनाक - कौन है बे हरामी... किसकी मौत आयी है.. जो हमसे ऐसी बात कर रहा है...
फोन - मैं तेरी मौत बोल रहा हूँ...
पिनाक - (झल्ला कर) कौन है कुत्ते...
फोन - मैं तेरा कर्मा....
पिनाक - अबे पागल तु जानता भी है... तु किससे बात कर रहा है...
फोन - पिनाक सिंह क्षेत्रपाल... मेयर भुवनेश्वर से बात कर रहा हूँ... जिसके दुकान पर बहुत जल्द लात मारने वाला हूँ....
पिनाक - तु सच में पागल हो गया है.... क्षेत्रपाल हूँ मैं क्षेत्रपाल... यह जान कर भी तुने फोन पर बकवास कर मेरा वक्त बर्बाद करने की जुर्म में.... तुझे तेरे खानदान समेत नर्क भेज दिआ जाएगा.. ...
फोन - हा हा हा... कितना अच्छा जोक मारा... पास होता तो तुझे टीप देता... हा हा हा.. अच्छा... चल...तेरे बकचोदी के जुर्म में अगले हफ्ते तुझ पर जानलेवा हमला होगा....
पिनाक - क्या...
फोन - तैयार रहना बे हरामी...
फोन कट जाता है l वीर जो अब तक चुपचाप सुन रहा था, अब कुछ सोचने पर मजबूर हो गया l
पिनाक - प्रांक कॉल था...

वीर - (अपना सर ना में हिलाते हुए) मुझे नहीं लगता.... जरूर कोई नया दुश्मन है... पता लगाना होगा.....

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किचन में प्रतिभा बर्तन साफ कर रही है l पास खड़ी वैदेही घूर कर देख रही है l
प्रतिभा - तू चाहे कैसे भी देख... बर्तन में तुझे मांजने नहीं देने वाली...
वैदेही - पर क्यूँ मासी....
प्रतिभा - आज तु मेहमान... बनने का लुफ्त उठा ले.... आगे से जब आयेगी... मेजबान बन जाना.... पर आज नहीं...
वैदेही - वाह इसे कहते हैं चालाकी.... मुझे गिल्टी फिल् करवा कर... फिर से आने का फरमान जारी कर दिया....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... अब समझी.... तेरा पाला किसी वकील से पड़ा है...
दोनों हंसने लगते हैं l
प्रतिभा - अच्छा... मेरा काम खतम हो गया....
चल बैठक में बैठते हैं... और तुझसे तेरी कहानी सुनते हैं....
वैदेही - रुकिए मासी...
प्रतिभा - अब क्या हुआ...
वैदेही - मासी... मेरे ज़ख्म बहुत गहरे हैं... आज अगर इस बंद चारदीवारी में खुरचती हूँ... तो दिलसे, आंखों से खुन की फब्बारें निकलेगी.... कहीं बाहर चलते हैं... मैं आपको वहीँ सब बताने की कोशिश करूंगी....

प्रतिभा उसे देखती है l वैदेही के चेहरे पर आ रहे भावों को देख कर उसे कहती है - अच्छा चल.... कहीं बाहर चलते हैं.... मैं सेनापति जी को बोल देती हूँ... फिर बाहर निकलते हैं...

प्रतिभा किचन से बाहर निकल कर बेडरुम से कपड़े बदल कर तुरंत आ जाती है और तापस को आवाज देती है - सेनापति जी....
तापस - जी... जी कहिए... क्या खिदमत करें आपकी...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ...
प्रतिभा - ओह ओ... कुछ तो शर्म करो... भतीजी के सामने कुछ भी...
तापस - अरे वैदेही को मालूम है कि मैं उसकी मासी से बात कर रहा हूँ... क्यूँ वैदेही...
प्रतिभा - सेना... पति... जी..
तापस - अच्छा आप कहिए... क्या.... हुआ
प्रतिभा - हम दोनों बाहर जा रहे हैं.... आते आते थोड़ी देर हो जाएगी...
तापस-उम्र की इस मोड़ पर... तुम मुझे अकेले में किसके सहारे छोड़े जा रहे हो...
प्रतिभा कुछ नहीं कहती l नथुने फूला कर तापस को घूरने लगती है l तापस किसी भीगी बिल्ली के जैसे अपने कमरे में घुस जाता है l
कुछ देर से पति पत्नी की नोक झोंक देख कर बड़ी देर से अपनी हंसी रोके रखी थी वैदेही l तापस के कमरे में घुसते ही जोर जोर से अपना पेट पकड़ कर हंसने लगती है l
प्रतिभा - ठीक है ठीक है ज्यादा दांत मत दिखा... चल बाहर चलते हैं.....

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रॉकी अपने सभी दोस्तों को बारी बारी से फोन लगाता है और सबको कंफेरेंसिंग में लेता है l
रॉकी - मित्रों,मेरे चड्डी बड्डी लवड़ो, खुशामदीन...
भूल ना जाना... आज तुम सबको मीटिंग में है आना... आज हमारी मीटिंग है...
राजु - अच्छा... इसका मतलब... एक हफ्ता हो गया...
आशीष - यह दिन भी कितने तेजी से गुजर रहे हैं....
रॉकी - ऑए... तेजी से मतलब.... अबे हम सबने एक मिशन शुरू की है... उसे अंजाम तक पहुंचाने का काम बाकी है.... और तुम कमीनों ने वादा जो किया है... मुझे और नंदिनी को मिलाने की...
सभी दोस्त - अच्छा अच्छा... आज विकेंड है... और सब वहीँ मिलेंगे मॉकटेल पार्टी में...
सुशील - अबे रॉकी... तु.. मॉकटेल पर ही क्यु रुक गया है... कॉकटेल तक कब पहुंचेगा...
रॉकी - ना भाई ना... मुझे सिर्फ नंदिनी के नशे में झूमना है... किसी और नशे में नहीं....
रवि - वाव रॉकी वाव... इसलिए तो हम चड्डी बड्डी हैं.... और अपना टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप का मोटो है....
वन फॉर ऑल.. ऑल फॉर वन है
सभी - यी.... ये... (चिल्लाने लगते हैं)

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गाड़ी आकर दया नदी के पास रुकती है l प्रतिभा और वैदेही दोनों गाड़ी से उतर कर नदी के किनारे पर एक पेड़ के नीचे वाले एक घाट के पत्थरों पर आ कर बैठते हैं l
प्रतिभा - वैदेही देख इस नदी को.... इस नदी का नाम पुरे इतिहास में प्रसिद्ध है... दया नदी....
वैदेही इसी नदी के किनारे इतिहास का वह प्रसिध्द कलिंग युद्ध हुआ था.... जब अशोक ने कौरबकी के लिए पुरे कलिंग को लहू-लुहान कर दिया था...... यह नदी उस युद्ध में मरने वाले और घायल होने वालों के रक्त से लाल हो गया था.... जिसे देख कर चंडा अशोक, धर्माशोक में परिवर्तित हो गया था......
तूने कहा था कि तेरे सोये ज़ख्मों से जो खुन की फव्वारे निकलेंगे उसे उस घर की चारदीवारी समेट नहीं पाएगी.....
पर यह दया नदी है.... यह तेरे दुख सुन कर तेरे लहू को निगल लेगी.... देखना....
प्रतिभा यह सब बिना वैदेही को देख कर कहती चली गई l अपनी बात खतम करने के बाद वैदेही को देखने लगी l वैदेही जो अब तक एक मूक गुड़िया की तरह सुन रही थी, प्रतिभा से अपना नजर हटा कर दया नदी को देखने लगी l
(वैदेही अपना अतीत कुछ फ्लैश बैक में और कुछ वर्तमान में रहकर कहेगी)
वैदेही - मासी क्या बताऊँ, कहाँ से बताऊँ.... जब से होश सम्भाला मैंने खुद को एक महल में पाया... मेरी माँ मेरे पास कभी कभी ही आ पाती थी... मेरे पास मेरी देखभाल के लिए एक औरत हमेशा रहती थी.... मैं उसे गौरी काकी कहा करती थी.....
पर मैंने कभी अपने पिता को नहीं देखा.... ना मेरे कोई दोस्त थे ना ही कोई भाई बहन और ना ही कोई और रिश्तेदार....
सिर्फ़ दो ही औरत जिनके पास मेरी पूरी दुनिया थी.... एक मेरी माँ और एक गौरी काकी....
एक दिन गौरी काकी ने आकर मुझसे कहा कि मेरा या तो कोई बहन या भाई आनेवाले हैं...
मैं खुश हो गई.... अब मेरी माँ मेरे साथ रहने जो लगी थी... मैं देख रही थी माँ का पेट बढ़ रहा था.... मुझे बस इतना मालुम था... मेरा भाई या बहन कोई तो इस पेट में हैं.... जिसके बाहर आते ही मुझे उसका खयाल रखना होगा.... जैसे काकी मेरी रखती है.... मैं काकी के बनाए हुए कपड़ों के गुड्डे गुड्डीयों को अपना भाई बहन बना कर रोज खेला करती थी....
एक दिन माँ का दर्द उठा.... तब कुछ औरतें आयीं और माँ को कहीं ले गईं....
अगले दिन काकी रोती हुई मेरे पास आई और बिना कुछ बताए मुझे अपने साथ ले गई l मैं बचपन से महल के एक हिस्से में पल बढ़ आयी थी.... पर काकी जिस हिस्से में ले कर आई थी वहाँ पर मैं पहली बार आई थी.... काकी मुझे एक कमरे में ले गई... मैंने वहाँ पर देखा मेरी माँ का रो रो कर बहुत बुरा हाल हो गया था.... उसके आँखों में आंसू सुख चुके थे... उस कमरे में कुछ टूटे हुए कांच गिरे हुए थे......
मैंने माँ को पुकारा... माँ ने मेरी तरफ देखा.... अपनी बाहें फैला कर मुझे अपने पास बुलाया.... मैं भाग कर माँ के गले लग गई.... माँ मुझे गले से लगा कर बहुत देर तक रोती रही.... फिर अचानक मुझे चूमने लगी.... चूमते चूमते मेरे माथे पर एक लंबा चुंबन जड़ा.... फ़िर पता नहीं क्या हुआ माँ ने एक कांच का टुकड़ा उठाया और मेरे दाहिने हाथ में गड़ा दिया.... (वैदेही ने अपने दाहिने हाथ पर एक कटा हुआ पुराना निसान प्रतिभा को दिखाया) मेरे हाथ में कांच का टुकड़ा घुसा हुआ था.... मैं जोर जोर से चिल्ला कर रो रही थी.... यह ज़ख्म देते हुए मेरी माँ ने मुझसे कहा - देख वैदेही मैंने तुझे यह ज़ख़्म इसलिए दिआ ताकि तु यह बात याद रखे.... अगर भूल भी जाएगी तो यह ज़ख़्म तुझे मेरी यह बात याद दिलाती रहेगी....
इतना कह कर मेरी माँ ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़ कर मेरी हाथ में पट्टी बांध दी.... फिर मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से लेकर कहा - मेरी बच्ची... मैं मजबूर हूँ... इसके सिवा कोई और चारा नहीं था.... उन्होंने तेरे भाई को मार डाला.... (इतना सुनते ही मेरा रोना बंद हो गया, मुझे ऐसा लगा जैसे किसीने मेरे कानों में जलता हुआ कोयला डाल दिया, माँ फिर कहने लगी) बेटी तुझे यह काकी यहाँ से दूर छोड़ देगी.... फिर तु कहीं भी चले जाना.... मगर मुझे वचन दे.... की तु कभी भी... इस रंग महल को लौट कर नहीं आएगी.... वचन दे... (माँ ने हाथ बढ़ाया पर मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैंने बस अपना हाथ माँ के हाथ में रख दिया, फिर माँ ने रोते हुए मुझे अपने सीने से लगाया और कहा) बेटी मुझे माफ कर देना... मैं तेरे भाई को ना बचा पाई... अगर तु यहीं रहेगी तो मैं तुझे भी ना बचा पाऊँगी..... इसलिए तुझे काकी बाहर तक छोड़ देगी.... फिर तु पीछे बिना मुड़े यहाँ से चली जा.... फिर कभी मत आना... तुझे कसम है.... अपनी माँ की... तु कभी वापस मत आना....
फिर माँ ने एक पोटली मेरे हाथ में दी और काकी के साथ भेज दिया.... काकी ने मुझे अंधेरे में कुछ दूर ले जाकर मुझे छोड़ दिया....
काकी - जा वैदेही जा.... यहाँ सिर्फ़ राक्षस रहते हैं.... अपनी माँ की बात याद रखना.... कुछ भी हो जाए वापस मत आना....
इतना कह कर काकी भी वापस चली गई लेकिन मैं सिर्फ पांच साल की लड़की, अपनी ज़ख्मी हाथ में पोटली लिए बिना पीछे मुड़े चली जा रही थी.... पता नहीं कितनी देर चलती रही... मुझे कमज़ोरी मेहसूस होने लगी फ़िर मैं एक घर के आँगन के बाहर सो गई... फ़िर जब नींद टूटी तो मैंने खुद को एक बिस्तर पर पाया... मेरे सर पर कोई अपने हाथ से सहला रहा था... मैंने अपने हाथ को देखा माँ की कपड़े के पट्टी के जगह एक सफेद पट्टी बंधी हुई थी.... अपनी आँखे ऊपर कर देखा तो मेरे सिरहाने एक देवी बैठी हुई थी... मेरे मुहँ से निकल गया माँ...
वह देवी इतना सुनते ही आवाज दी अजी सुनते हो... लड़की को होश आ गया... मुझे अभी भी कमज़ोरी महसूस हो रही थी... तभी एक आदमी अपने हाथ में एक दुध की ग्लास लाकर उस देवी को दिए... उस देवी ने मुझे उठा कर बिठाया और ग्लास देते हुए कहा - इसे पी ले बेटी यह हल्दी व लौंग वाला दुध है... सुबह तक तेरी कमजोरी भाग जाएगी.... मैंने वह दुध पी कर सो गई....

सुबह जब जगी तो उसी देवी को फिर अपने सिरहाने पाया...
उस देवी ने मुझ से मेरी हालत के बारे में पूछा.... और मेरे साथ जो बिता था मैंने सब बता दिआ.... सब सुनते ही उस देवी ने आवाज़ दी - सुनिए.... फिर वही आदमी आया, उसे देखते ही देवी ने कहा - यह वैदेही है और आज से यह हमारी बेटी है....
वैदेही आज से मैं तेरी माँ और ये तेरे बाबा हैं....

मुझे सपना जैसा लग रहा था l जैसे कोई कहानी की तरह जो मुझे कभी सुलाने के लिए काकी सुनाया करती थी.....

क्यूंकि मैं बेशक महल के किसी अनजान कोने में जन्मी, पली थी पर सिर्फ माँ और काकी को छोड़ किसीको ना जानती थी ना ही किसीसे माँ मिलने देती थी.... पर यहाँ तो रिश्तों का अंबार था... घर के भीतर मेरे नए माँ और बाबुजी.... बाहर...
मौसा, मौसी, भैया, भाभी, मामा, मामी, चाचा, चाची, नाना, नानी ना रिश्ते कम थे ना लोग.... जो भी दिखते थे हर कोई किसी ना किसी रिश्ते में बंध जाता था...
सच कहूँ तो मेरा परिवार (अपने दोनों हाथों को फैला कर) इतना बड़ा हो गया था....
एक दिन बाबुजी मुझे स्कुल ले गए... मेरा एडमिशन कराने.... मेरा नाम लिखवाया "वैदेही महापात्र"
पिता का नाम - रघुनाथ महापात्र
माता का नाम - सरला महापात्र
मैं स्कुल में दोस्त बनाये... अब मेरे दोस्त सिर्फ अपने गली मोहल्ले में ही नहीं थे.... स्कुल में भी थे....
एक दिन जब स्कुल से लौटी तो माँ को बिस्तर पर पाया... पड़ोस की मौसी पास माँ से कुछ गपशप कर रही थी...
मैंने माँ से पूछा - माँ आपको क्या हुआ...
माँ ने हंस कर मुझे पास बिठाया और पूछा - अच्छा बोल तुझे भाई चाहिए या बहन...
मुझे भाई का ग़म था इसलिए तपाक से बोला - मुझे भाई चाहिए...
माँ और मौसी दोनों हंस पड़े...
मौसी - अगर बहन हुई तो...
मैं - तो भी चलेगा... लेकिन बेटी तो मैं हूँ... तो माँ और बाबा को बेटा चाहिए कि नहीं...
माँ ने बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराया और कहा - भाई हो या बहन... भगवान हमे जो भी देगा... तु उसे बहुत प्यार करना... ह्म्म्म्म
मैंने हाँ में सर हिलाया... जब शाम को बाबुजी आए मैंने उनसे उछल कर कहा जानते हो बाबा मेरी बहन या भाई आने वाले हैं...
बाबा - अच्छा हमे तो मालुम ही नहीं है.... क्या आप हमे अपने भाई से खेलने दोगे....
मैं - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...
माँ और बाबुजी दोनों हंस पड़े....
रात को जब हम सो रहे थे,मैं नींद में नहीं थी पर आँखे मूँदे सोई हुई थी और माँ मेरे सर पर हाथ फ़ेर रही थी तब माँ ने बाबुजी से कहा - देखा वैदेही के कदम कितने शुभ हैं.... आते ही हमे माँ बाप की खुशियाँ देती... और आज इतने सालों बाद मैं सच में माँ बन रही हूँ....
बाबा - हाँ सरला.... लक्ष्मी है लक्ष्मी हमारी वैदेही....
ऐसे बातेँ करते हुए सब सो गए पर मुझे माँ और बाबा के व ह बाते गुदगुदा रहे थे....
पर दुखों को तो जैसे मेरी हर छोटी छोटी खुशी से बैर था....
फिर मेरे जीवन में दुख का आना बाकी था
दादी ठीक कह रही थी... आप बड़े लोग बड़े दिल वाले हैं... आज से आप हमारे मालिक हैं.....
वीर - (जुबान लड़खड़ाने लगी, मुहँ में लार भरने लगा) तुम्हारे भी तो कम नहीं है.... दुख.... कैसे उठाती हो इतने बड़े बड़े दुख.... अब बिल्कुल चिंता मत करो... मैं अपने दोनों हाथों से उठाऊंगा... तुम्हारे दुख...
Veer ke dialogs bade sahi likhe he ustad :lol1: .
Baki story me past jab jab aaya dukhi kar gaya. Ummed he ke khush khabri bhi milegi. Par Vikrant ki baton se lagata he ke uske upari chehre ke under bhi bohot kuchh he.
 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
3,231
6,756
159
👉नौवां अपडेट
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कैन्टीन में आते ही नंदिनी ने देखा, एक टेबल पर उसकी छटी गैंग के सभी दोस्त उसीका इंतजार कर रहे हैं l नंदिनी सबको हाथ हिला कर हाइ करती है l बदले में सभी हाथ हिला कर उसको जवाब देते हैं l
नंदिनी गोलू से - गोलू...
गोलू - जी दीदी...
जल्दी से तीन बाई छह ला...
गोलू - जी ठीक है...
टेबल पर बैठते ही नंदिनी - क्या हो रहा है... दोस्तों...
बनानी - इंतजार हो रही थी जिनकी....
वह आए यहाँ..

दे दिए ऑर्डर तीन बाई छह वाली चाय की......
लेने के लिए गरमा गरम चाय की चुस्की......
तबसुम- वाह.... वाह.... क्या बात है इरशाद इरशाद...
सब हंस देते हैं और एक-दूसरे को हाइ फाई करते हैं इतने में गोलू चाय लाकर टेबल पर रख देता है l सब क्लास की इधर उधर बातेँ करते हुए चाय खतम करते हैं l तब दीप्ति काउन्टर पर जा कर पैसे भर देती है और वापस टेबल पर आ जाती है l
बनानी कहती है - अरे क्लास बंक करने का इरादा है क्या...
इतिश्री - वैसे आईडीया बुरा नहीं है....
दीप्ति - तो अभी हम क्यूँ बैठे हुए हैं...
नंदिनी - नहीं क्लास का टाइम हो गया है.... चलो चलते हैं...
तबसुम - हाँ चलो... चलते हैं (सब उठने को होते हैं )
दीप्ति - (नंदिनी की हाथ को पकड़ कर) एक मिनिट.... तुम सब जाओ... नंदिनी से मेरा एक काम है... बस पांच मिनिट बाद हम तुम लोगों को जॉइन करेंगे....
भाश्वती - ऐ क्या चक्कर है तुम दोनों में...... कहीं तुम लोग लेसबो तो नहीं हो...
दीप्ति - क्या बोली कमीनी...
सब हंसने लगते हैं l
नंदिनी - अरे अरे.. ठीक है... अच्छा तुम लोग चलो... वैसे दीप्ति आज जान लेवा दिख रही है.... उसको अकेले में मुझसे क्या काम है... मुझे जान लेने तो दो....
इतिश्री - हाँ भई... इन लोगों को अकेले में काम है... हमारे सामने न हो पाएगा....
सब हंसने लगते हैं l दीप्ति अपना मुहँ बना लेती है l बनानी यह देख कर कहती है - चील दीप्ति चील.... अरे यार मज़ाक ही तो कर रहे हैं सब.... ओके फ्रेंडस... लेटस गो... दे विल जॉइन अस लेटर...
बनानी सबको ले कर चली जाती है l सबके जाते ही नंदिनी दीप्ति से
नंदिनी - हाँ तो मिस. दीप्ति मयी गिरी... कहिए हमसे क्या काम है... जो(धीमी आवाज़ में) सबके आगे नहीं कह सकीं....
दीप्ति - छी... तु भी....
नंदिनी - (हंसते हुए) हा हा हा... चील यार... अब बोल....
दीप्ति - अच्छा नंदिनी.... तूने गौर किया... अगले हफ्ते गुरुवार को बनानी की बर्थडे है....
नंदिनी - क्या... सच में... पर... तुझे कैसे मालूम हुआ...
दीप्ति - अरे यार (नंदिनी के गले में लटकी उसकी आइडी कार्ड दिखा कर) इससे.... हम सबके गले में ऐसी तख्ती लटकी हुई है... मेरी नजर उसके DOB पर पड़ गई.... इसलिए मैंने तुझे यहाँ पर रोक लीआ....
नंदिनी - अरे हाँ....(अपनी आइडी कार्ड को देखते हुए) हमारे आइडी कार्ड में डेट ऑफ बर्थ साफ लिखा है... और देख दो महीने बाद मेरा भी बर्थ डे है.... पर बनानी के बर्थ डे पर तेरा क्या कोई प्लान है...
दीप्ति - प्लान तो ग़ज़ब का है.... अगर तु साथ दे तो....
नंदिनी - ओ.... कोई सरप्राइज है क्या...
दीप्ति - बिल्कुल....
नंदिनी - ह्म्म्म्म तेरे खुराफाती दिमाग़ मे जरूर कुछ पक रही है...
चल उगल भी दे अभी...
दीप्ति - देख कल सन डे है.... क्यूँ ना हम सब सिवाय बनानी के.. डिऑन मॉल चले... वहाँ पर सब अपनी-अपनी कंट्रिब्युशन जोड़ कर उसके लिए गिफ्ट तैयार करें.... और गुरुवार को केमिकल लैब में प्रैक्टिकल के दौरान उसे गिफ्ट दे कर उसकी बर्थ डे सेलिब्रिट करें....
नंदिनी - वाव क्या आइडिया है... पर यार... एक प्रॉब्लम है...
दीप्ति - क्या....
नंदिनी - देख मेरी घर से.... मेरी एंट्री और एक्जिट फ़िक्स है.... सॉरी यार... तु मुझसे कुछ पैसे लेले... और किसी और को लेकर.... बनानी के लिए गिफ्ट पैक करा ले....

दीप्ति का मुहँ उतर जाता है, वह नंदिनी को देखती है, नंदिनी भी थोड़ी उदास दिखने लगी l दीप्ति और नंदिनी अब उठ कर क्लास की और निकालते हैं l फ़िर अचानक दीप्ति एक चुटकी बजाती है और चहक कर कहती है - आईडीआ...
नंदिनी उसे इशारे से पूछती है क्या हुआ
दीप्ति - अररे यार... अगर हम मॉल नहीं जा सकते तो ना सही... पर मॉल तो यहाँ आ सकती है ना....
नंदिनी - क्या मतलब..
दीप्ति - अरे यार... अपनी मोबाइल में.... क्यूँ ना हम ऑन लाइन शौपिंग से गिफ्ट मंगाये....
नंदिनी - पर वह गिफ्ट हमे कब मिलेगा और हम उसे कब देंगे....
दीप्ति - ऑए मैडम.... यह भुवनेश्वर है.... यहाँ आज ऑर्डर डालो... तो कल मिल जाता है...
नंदिनी भी खुश होते हुए
नंदिनी - अच्छा.... वाव... तब तो मजा ही आ जाएगा....
दीप्ति - तो एक काम करते हैं.... हम बुधवार को ऑर्डर करेंगे और हमे गुरुवार को मिल जायेगा... और हम बनानी को सरप्राइज करते हुए लैब में ही उसकी बर्थ डे सेलिब्रिट करेंगे....
नंदिनी - या.... आ.... हा.. आ
दीप्ति - है ना मज़ेदार प्लान....
नंदिनी - यार मजा आ गया... जानती है... मैं न पहली बार... किसी की बर्थडे मनाने वाली हूँ.... थैंक्स यार....
दीप्ति - ऐ... दोस्ती में नो थैंक्स...
नंदिनी - नो सॉरी....
दोनों हंसते हैं
दीप्ति - अच्छा सुन... मैं अपनी गैंग में सबको इंफॉर्म कर तैयार कर देती हूँ.... पर गिफ्ट तु मंगाना...
नंदिनी - क्यूँ... इसमें कोई प्रॉब्लम है क्या..
दीप्ति - अरे तेरे नाम से पार्सल आएगा तो प्रिन्सिपल भी चुप रहेगा... अगर हमारे किसी के नाम पर आया तो... क्लास लेना शुरू कर देगा......
नंदिनी - चल ठीक है... अच्छा एक बात बता... क्या ऑनलाइन में केक भी ऑर्डर किया जा सकता है...
दीप्ति - हाँ... अगर तेरा... यह आईडीआ है.. तो बुधवार को ही ऑर्डर कर देते हैं... गिफ्ट पार्सल और केक दोनों एक साथ पहुंचेंगे.... हम उसे बर्थ-डे सरप्राइज देंगे...
नंदिनी - वाव... दीप्ति वाव... तेरा ज़वाब नहीं... उम्म आह्
नंदिनी दीप्ति को चूम लेती है l
दीप्ति - अरे क्या कर रही है.... अभी अभी हमारी छटी गैंग वालों ने जो ताने मारे हैं... उसे कहीं सब सच ना मान लें
फिर दोनों जोर जोर से हंसते हुए अपनी क्लास की ओर चले जाते हैं

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कॉलिंग बेल की आवाज़ सुन कर प्रतिभा दरवाज़ा खोलती है तो देखती सामने वैदेही खड़ी है l
प्रतिभा - अरे वाह आज सुरज कहीं पश्चिम से तो नहीं निकला..... जरा हट तो मैं थोड़ा बाहर जाकर देख लूँ...
वैदेही - क्या मासी.... मैं इतने दिनों बाद आपसे मिलने आई... और आप हैं कि मुझसे... ठिठोली कर रहे हैं....
प्रतिभा - अरे चल चल... इतने सालों से मैं तुझे घर बुला रही थी... कभी आई है भला.... आज अचानक ऐसे टपकेगी.. तो मैं क्या सोचूंगी बोल...
वैदेही - अच्छा सॉरी...
प्रतिभा - ठीक है... ठीक है.. चल आ जा...
वैदेही - नहीं... पहले आप जरा... एक लोटा पानी लेकर आओ...
प्रतिभा उसे चकित हो कर रहती है
वैदेही - अरे मासी.. मुझे अपने पैर धोने हैं... और पैर बिना धोए... मैं भीतर नहीं जा सकती....
प्रतिभा - अरे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है... चल आ जा...(वैदेही ऐसे ही खड़ी रहती है) अरे क्या हुआ...
वैदेही - नहीं मासी.... हम कभी बिना पैर धोए... घर के भीतर नहीं जाते हैं... प्लीज...
हमारे गांव के हर घर के बाहर एक कुंड होता है... जिससे हम पानी निकाल कर पैर धो कर ही किसीके घर में जाते हैं...
प्रतिभा - पर सहर मैं तो ऐसा नहीं होता है ना...
वैदेही - फिरभी...
प्रतिभा - अच्छा अच्छा रुक... कब से हम बहस कर रहे हैं.. वह भी बेवजह... मैं पानी लेकर आई रुक....
प्रतिभा अंदर जाकर बाल्टी भर पानी और एक मग लाकर वैदेही को देती है l वैदेही अपने दोनों पैरों को धो कर अंदर आने को होती है के उसे प्रतिभा रोक देती है l
प्रतिभा - रुक...(अब वैदेही उसे देखती है) यह ले टवेल... अपने पैरों को पोंछ कर आ...(वैदेही हंस कर टवेल लेकर पैर पोंछ कर अंदर आ जाती है)
दोनों ड्रॉइंग रूम में आकर बैठ जाते हैं l
प्रतिभा - पहली बार आई है... तुझे खिलाउंगी और फिर जाने दूंगी समझी... (वैदेही अपना सिर हिलाकर हामी देती है) अच्छा यह बता तु आज यहाँ कैसे...

वैदेही - वह सुपरिटेंडेंट साब जी के काम से आई थी... जैल गई तो पता चला कि.... वह रिटायर्मेंट ले रहे हैं.. तो मुझे मजबूरन यहाँ आना पड़ा...
प्रतिभा - हा हा हा.. देखा तुझे सेनापति जी ने आख़िर घर पर खिंच ले ही आए.... कितनी बार बुलाने पर भी नहीं आई थी.... याद है.... आख़िर सेनापति जी अपनी जिद पुरी कर ही लिए... हा हा हा...
वैदेही मुस्करा देती है और पूछती है - वैसे मासी... सुपरिटेंडेंट सर रिटायर्मेंट क्यूँ ले रहे हैं...
प्रतिभा - अरे उन पर तेरे भाई का जादू चल गया है.... अब डेढ़ महीने बाद प्रताप छूट जाएगा तो जैल में उनका मन नहीं लगेगा.... इसलिए वह VRS ले लिए...
वैदेही - ओ.. वैसे कहाँ हैं... दिखाई नहीं दे रहे हैं...
प्रतिभा - अरे अब कुछ..... ऑफिसीयल काम बाकी रह गया है... उसे निपटाने के लिए कहीं गए हुए हैं....
वैदेही सुन कर मुस्करा देती है और खामोश हो जाती है l
उसे खामोश देख कर प्रतिभा - क्या हुआ क्या सोचने लगी है...
वैदेही - सोच नहीं रही हूँ... बल्कि भगवान को धन्यवाद अर्पण कर रही हूँ....
प्रतिभा - भला वह क्यूँ....
वैदेही - विशु... जनम के बाद माँ की ममता से वंचित रहा.... फिर कुछ सालों बाद वह अपनी पिता के साये से वंचित हो गया.... मगर फिर भी भगवान ने भरी जवानी में उसे आपके रूप में माँ बाप लौटा दिए... इसलिए...
वह आपका सगा नहीं है... फ़िर भी कितना प्यार करते हैं.... उससे...
प्रतिभा - वह तेरा भी सगा नहीं है... फ़िर भी तु उसके लिए मरने मारने के लिए तैयार रहती है... पर एक बात बता... प्रताप मुझे माँ कहता है... तु उसकी दीदी है... तु मुझे माँ नहीं बुलाती...
वैदेही - हाँ वह मेरा सगा नहीं है... पर हम गांव से हैं... और गांव में बंधन घर में या चारदीवारी में सिमट कर नहीं रह जाता है.... मौसा, मौसी, भैया, दीदी, बहना, मामा मामी जैसे संबंध यूँ ही जुबानी नहीं होती निभाई भी जाते हैं.... क्यूंकि वह उस गांव की मिट्टी से जुड़े हुए होते हैं..... और आप हमारे गांव से भी तो नहीं हैं.... रही मेरी बात तो माँ बुलाना किसी की बेटी बनना मेरे लिए एक अभिशाप है... इसलिए नहीं बुलाती... पर विशुने मेरे लिए जो भी किया है... अगर भगवान मुझे मौका दे... तो भगवान से प्रार्थना करूंगी की वह मुझे विशु की बेटी बना कर दुनिया में भेजे... ताकि मैं उसकी कर्ज उतार सकूँ....
प्रतिभा वैदेही के चेहरे को एक टक देखे जा रही है l

वैदेही - एक ही तो मर्द था पुरे यश पुर में.... जब पहली बार मुझे क्षेत्रपाल के आदमियों ने मुझे उठाने आए थे.... तो मुझे बचाने के लिए भीड़ गया था उन दरिंदों से.... सिर्फ़ बारह साल का था तब वह.... एक आदमी का हाथ कुल्हाड़ी से काट दिया था... ऐसा था मेरा विशु.... (वैदेही अपनी आँखों में आंसू पोछते हुए) अच्छा... अब आप बताओ मासी... उस रिपोर्टर का कुछ पता चला...
प्रतिभा - हाँ... सेनापति जी कह रहे थे... उस रिपोर्टर और उसके परिवार को राजगड़ उठा लिया गया था.... शायद अब वे लोग जिवित ना हों...
वैदेही - ओह यह तो बुरा हुआ...
प्रतिभा - और हाँ... तु अब उस ऑफिस को मत जाना... वहाँ पर रिपोर्टर प्रवीण के बारे में कुछ अफवाहें उड़ाए गए हैं... ताकि उनके शिकार को फांस सके... समझी....
वैदेही कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद - अच्छा मासी विशु में मुझे बचपन से ही छोटा भाई ही दिखता था... पर उसके अंदर आपने अपने बेटे को कैसे पाया...
प्रतिभा - तेरी कहानी अधुरी है.... पहले वह तो बता दे.....
वैदेही - ज़रूर बताऊंगी मासी... आज जब ज़िक्र छेड़ ही दिया है... तो अपनी बीती जरूर बताऊंगी... मगर पहले आप अपनी बताइए ना...
इतना सुन कर प्रतिभा अपनी जगह से उठ जाती है और एक गहरी सांस लेती है l फ़िर मुड़ कर वैदेही को देखती है और कहना शुरू करती है.....

प्रतिभा -हम तब कटक में रहा करते थे... मैं और सेनापति जी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे... वह मेरे सीनियर थे... और मेरे पड़ोसी भी थे... मेरे पिता हाइकोर्ट में टाइप राइटर थे... और उनके पिता पुलिस में वायर लैस ऑफिसर थे...चूंकि हम पड़ोसी थे... तो जान पहचान थी ही और दोस्ती भी थी.... ऐसी हमारी अपनी जिंदगी चल रही थी... की एक दिन सेनापति जी के पिताजी का अचानक देहांत हो गया... तब उनकी माता जी ने कंपेंसेटरी ग्राउंड में नौकरी स्वीकार कर लिया था... क्यूँकी उनका लक्ष था कि उनका बेटा ज्यादा पढ़े और उनके पिता से भी बड़ी नौकरी करे l सेनापति जी अपनी माँ का मान रखा और ग्रेजुएशन के बाद पुलिस इंटरव्यू में सिलेक्ट हुए और ट्रेनिंग के अंगुल चले गए l एक दिन उनके माँ जी को बुखार चढ़ गया था और उस वक़्त वह ट्रेनिंग में थे तब चूंकि हम पड़ोसी थे तो उनको मैंने हस्पताल ले जाकर थोड़ी देखभाल किया और उनके ट्रेनिंग खत्म होने तक मैं अपने माता पिता के साथ साथ उनकी माँ जी का भी देखभाल करती थी.... एक दिन उनकी ट्रेनिंग खतम हुई और कोरापुट में पोस्टिंग हुई... कहाँ कटक और कहाँ कोरापुट.... माँ जी को चिंता सताने लगी थी... तब माँ जी ने सीधा हमारे घर आ कर मेरी और सेनापति जी की शादी की बात छेड़ दी.... इससे हम दोनों चौंक गए... हम अच्छे दोस्त तो थे पर शादी.... सेनापति जी को पता था मेरी अपनी कुछ इच्छायें थी... मैं खुद कुछ करना चाहती थी... मेरी इस भावनाओं को वह समझते थे इसलिए उन्होंने शादी का विरोध किया... पर माँ जी नहीं मानी... तो एक शर्त पर शादी हुई... उस वक़्त चूँकि मेरी ग्रेजुएशन खतम हो चुकी थी... तो उन्हों ने मुझे कोरापुट ले जाने के वजाए कटक में ही माजी के पास छोड़ देने की बात की .... पर सच्चाई यह थी के मुझे वह समय दे रहे थे... ताकि मैं कुछ कर सकूँ.... उनके सारे शर्त माजी और मेरे माता पिता मान गए.... फ़िर हमारी शादी हो गई...
शादी के बाद वह कोरापुट चले गए और मैं कटक में अपनी माता पिता के साथ साथ माँ जी का भी देखभाल करती रही और लॉ करती रही....
मैं डिग्री के बाद बार लाइसेन्स हासिल किया ही था कि हाईकोर्ट में पब्लिक प्रोसिक्यूटर के पोस्ट के लिए आवेदन निकला था... मैंने इंटरव्यू दिया तो PP की जॉब भी मिल गई....

जिंदगी अब खूबसूरत थी और मनचाहा भी थी.. क्यूंकि मुझे अब कटक से कहीं नहीं जाना था इसलिए उनकी स्पाउस सर्विस ग्राउण्ड में कटक के आसपास ही पोस्टिंग और ट्रांसफ़र होती रही.. ऐसे में मैं पेट से हुई... तब कटक मेडिकल कॉलेज में मेरे पिताजी के एक मित्र रेडियोलॉजीस्ट हुआ करते थे उन्होंने एक दिन चेक करके बताया कि मेरे पेट में जुड़वा बच्चे हैं... वह भी लड़के.... हमारे घर में खुशियां दुगनी हो गई थी... हमने तब निश्चय किया कि हम अपने बेटों का नाम अपने नाम से लेकर रखें.... यह बात हमने हमारे अपने बुजुर्गों को बताई.... तो उन्होंने ही एक का नाम प्रत्युष और एक का नाम प्रताप रखा... और एक दिन ऐसा भी आया जब हमरे घर में दो नन्हें नन्हें मेहमान आए.... अब हमारे जीवन में खुशियाँ पंख लगा कर उड़ रही थी... एक तरफ जीवन में नए मेहमान से घर में शोर हो रहा था और एक तरफ हमारे बुजुर्ग हमे एक एक कर छोड़ गए.... ऐसे में एक दिन उनके पारादीप ट्रांसफ़र की खबर मिली... मैंने भी बच्चों को लेकर कुछ दिन छुट्टी लेकर उनके साथ पारादीप चली गई .... नए क्वार्टर में उनकी सहूलियत का जायजा ले कर मुझे कटक वापस चले जाना था....... पर भाग्य को कुछ और ही मंजुर था.... ओड़िशा में पहली बार सुपर साइक्लोन आया... जिसका सेंटर पारादीप था... सेनापति जी को सरकारी फरमान था इसलिए मुझे घर पर छोड़ कर आसपास के लोगों को बचा कर सुरक्षित जगह पर पहुंचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन में चले गए... पर साइक्लोन हमारे जिंदगी में भी तूफ़ान ला खड़ा कर दिया था.... वह जब रेस्क्यू ऑपरेशन खतम कर पहुंचे... तब उन्होंने देखा कि क्वार्टर गिर चुका था... अपने स्टाफ के सहायता से मुझे और बच्चों को बचा कर हस्पताल ले गए.... पर उस परिस्थिति में कोई भी हस्पताल खाली नहीं था.... बिजली नहीं थी... पानी नहीं नहीं थी, दवा तक नहीं थी.... आस पास ऐसा लगता था जैसे सूखा पड़ा हुआ था...... उस वक़्त खाने पीने की बड़ी समस्या थी... हर तरफ हाहाकार था.... मुझमें दूध की समस्या निकली... ऐसे में हमारा प्रताप चल बसा बड़ी मुश्किल से प्रत्युष ही जिंदा रहा... पंद्रह दिन बाद सब धीरे धीरे जिंदगी नॉर्मल हो गई तो हम वापस कटक आ गए.... फ़िर हमारा सारा प्यार हमने प्रत्युष पर लुटा कर आगे बढ़ते रहे....
फिर हमारे जीवन में तुम्हारा विशु आया.... अदालती कार्यवाही से लेकर विशु के सजा तक तुम सब जानती हो....
फिर एक के बाद एक ना जाने जिंदगी में क्या से क्या अनहोनी होने लगी.... हमारे प्रत्युष हमे छोड़ चला गया.... मैं प्रत्युष की कानूनी लड़ाई हार चुकी थी..... इसलिए मैंने PP की जॉब से इस्तीफा दे दिया... हम पति पत्नी ही रह गए थे... और जिंदगी से ऊबने लगे थे कि तब सेनापति जी के ऊपर जैल में जानलेवा हमला हुआ था.... पर तेरे विशु ने उन पर खरोंच भी आने नहीं दी थी... पर खुद थोड़ा ज़ख्मी हो गया था.... मैं वैसे भी टुट चुकी थी... अगर सेनापति जी को कुछ हो गया होता तो मैं खत्म ही हो गई होती.... पर एकाम्रेश्वर लिंगराज जी को कुछ और ही मंजूर था.... सेनापति जी को बचाने के लिए धन्यबाद देने मैं हस्पताल मैं पहुंची तो देखा एक बिस्तर पर विशु ज़ख्मी हालत में लेता हुआ है..... मैं उसे पहचानने की कोशिश करने लगी.... उसे पहचानते ही मैं शर्म से अपने भीतर गड़ने लगी... यह तो वही है जिसे मैंने ही सजा दिलवाई थी... और इसने मेरे सुहाग की रक्षा की.... मैं अपने आप को कोश रही थी कि उस वक़्त विश्वा आँखे खोल कर मुझे देखने लगा...
मैं उसकी आँखों में देखने लगी तो पता नहीं मेरे सीने में कुछ हूक सी उठी..... वह मुझे हैरानी से टकटकी नजर से देख रहा था.... मेरी रो रो कर बुरा हाल था.... चेहरा काला पड़ गया था और हालत बिखरी हुई थी.... मैंने उसे पुछा क्या नाम है तुम्हारा.... उसने कहा विश्व प्रताप......

पर मुझे सिर्फ प्रताप ही सुनाई दिआ.... मैं खुद को रोक नहीं पाई और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से लेकर उसके माथे को चूम लिया... उसे चूमते ही पता नहीं क्या हुआ मुझे मैं उसे अपने सीने से लगा कर रोने लगी... मेरे मुहँ से सिर्फ यही निकला - प्रताप मेरे बच्चे... अब मैं तुझे नहीं जाने दूंगी... मेरे बच्चे....
तब पास खड़े सेनापति जी मुझे झिंझोडते हुए - प्रतिभा होश में आओ....
पर मैं तो होश में आना ही नहीं चाहती थी..
तापस-माफ़ करना विश्वा... बेटे के ग़म में बदहवास हो गई है...
विश्वा - जी कोई बात नहीं...
मैं - नहीं नहीं यह मेरा प्रताप है... मुझे बर्षों बाद मिला है.... मुझे माफ़ कर देना मेरे बच्चे.... मैं... मैं तेरी केस रिओपन करवाउंगी.... असली मुज़रिम को सलाखों के पीछे डालूंगी... जिसने मेरे बेटे को इस हाल पहुंचाया है... उन्हें अब सबक सिखाउंगी...
विश्वा - नहीं माँ जी नहीं...
मैं - क्यूँ...
विश्वा - आप अगर इस केस में कोई भी हल चल पैदा करोगी... तो आपके जान पर बन आएगी...
मैं - तो क्या हुआ... मैं अपने बच्चे के लिए किसी भी हद तक गुजर जाऊँगी...
विश्वा - अगर आप मेरे लिए सच में कुछ करना चाहती हैं तो...
मैं - हाँ बोल...
विश्वा - मैंने ग्रेजुएशन कर लिया है... क्या मैं लॉ कर कर सकता हूं...
मैं - तू लॉ करना चाहता है....

विश्वा - हाँ
मैं - तो ठीक है इसमे मैं तेरी पूरी मदत करूंगी...

पर मेरी एक शर्त है..
विश्वा - क्या...
मैं - तु मुझे माजी नहीं, माँ कहेगा...
विश्वा - जी ठीक है...
बस उसके बाद वह मेरा बेटा बन गया.... मैं जानती हूं उसने लॉ पढ़ने की बात इसलिए छेड़ा था ताकि मैं भावनाओं में बह ना जाऊँ...... उसकी मदत करते हुए मैं कहीं क्षेत्रपाल के नजर में ना आ जाऊँ...
फिर भी मुझे प्रताप मिल चुका था... यही मेरे लिए बहुत था....
ऐसे में उनके वार्तालाप में दखल करते हुए कॉलिंग बेल बजने लगा l दोनों अपने अपने ख़यालों से बाहर निकले l
प्रतिभा - ओह लगता है.... सेनापति जी आ गए.... (कह कर प्रतिभा दरवाजा खोलने चली गई)
वैदेही के आँखों में जो आँसू आकर ठहर गए थे, वैदेही उन्हें साफ करने लगी l
तापस - आरे वैदेही.... तुम यहाँ... व्हाट ए सरप्राइज...
वैदेही - (हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए) जी.... आपने जो काम कहा था.... वह पूरा कर लाई हूँ...
इतना कह कर अपनी थैली से कुछ कागजात निकालती है और तापस की ओर बढ़ा देती है l तापस उन कागजात को जांचने लगता है l सारे कागजात जांच लेने के बाद तापस का चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, वह वैदेही को देख कर कहता है- वाह वैदेही वाह.... तुमने तो कमाल ही कर दिआ.... शाबास....
प्रतिभा - किस बात की शाबासी दी जा रही है....
तापस - यह मौसा और भतीजी के बीच की हाइ लेवल की बातेँ हैं.... तुम नहीं समझोगी......
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अजी कहाँ... अभी तो शुरू हुआ है....
प्रतिभा - क्या कहा आपने....
तापस - अरे जान मेरी इतनी हिम्मत कहाँ के मैं तुम्हें छेड़ सकूँ..... यह तुम्हारे लाडले के लिए हैं... ताकि उसकी लड़ाई में उसके हाथ मजबूत हथियार हो....
प्रतिभा - मतलब तुम मौसा भतीजी मेरे पीठ के पीछे आपस में खिचड़ी पका कर.... इतना कांड कर रहे हो...
तापस - अरे भाग्यवान जरा जुबान सही करो.... कोई बाहर वाला सुनेगा तो क्या सोचेगा....
प्रतिभा - तुम, प्रताप और यह वैदेही मिले हुए हो.... मुझसे छुप छुपा कर पता नहीं क्या क्या कर रहे हो.... सबसे पहले तो मैं प्रताप की कान खींचुंगी....
लेकिन उससे पहले यह क्या है मुझे बताओ.... नहीं तो आज खाना भूल जाओ....

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शुभ्रा को महसुस हुआ घर में नंदिनी आई है l वह सोचने लगती है "कमाल है आज माहौल इतना शांत क्यूँ है l रोज आती थी तो चहकते हुए आती थी और एक का सौ कहानी बना कर सुनाती थी l पर आज गंगा उल्टी क्यूँ बह रही है l लगता है कुछ गड़बड़ हुई है l पर क्या हुआ होगा l जा कर देखना होगा"
शुभ्रा अपने कमरे से निकल कर नंदिनी के कमरे की ओर जाती है l कमरे का दरवाजा आधा खुला हुआ है l शुभ्रा अंदर झाँकती है l नंदिनी अपने बिस्तर के किनारे बैठी हुई है और अपने दोनों हाथों से मुहँ को ढक कर अपनी कोहनी को घुटनों पर टेक् लगा कर बैठी हुई है l
शुभ्रा - रूप....
नंदिनी अपना चेहरे से हाथ हटाती है l शुभ्रा देखती है, नंदिनी की आँखे लाल हो गई हैं और उसके आँखे भीगी हुई भी हैं l शुभ्रा नंदिनी के पास पहुंचती है और उसके पास बैठ जाती है l
शुभ्रा - रूप... क्या हुआ आज... तेरी हालत ऐसी क्यूँ है....
नंदिनी हंसती है l शुभ्रा को उसकी हंसी फीकी व खोखली लगती है, नंदिनी के हंसी के पीछे एक दर्द महसुस होता है शुभ्रा को l
शुभ्रा - देख रूप... तेरी ऐसी हालत देख कर मुझे बहुत डर लग रहा है... क्या हुआ है रूप.... प्लीज.. बता दे.. मुझे
नंदिनी - भाभी.... यह दिल बहुत ही लालची है.... (हंसते हुए) अभी अभी कितनी खुशियाँ मिलने लगी थी.... पर इस दिल को यह अब कम लगने लगा है... जब लालच बढ़ने लगा... और खुशियाँ मांगने लगा तब... मतलब... आज पहली बार मुझे एहसास हो गया.... मेरी यह जो आजादी भी एक सीमा में बंधे हुए हैं....
शुभ्रा - यह क्या कह रही है रुप....
नंदिनी - हाँ... भाभी... हाँ... थोड़ी आजादी क्या मिली.... मैं अपना पंख फैलाने लगी.... तभी मुझे मालुम हुआ कि मैं एक छोटे पिंजरे से निकल कर एक बड़े से पिंजरे में आयी हूँ.... जिसने मुझे यह एहसास दिला दिया के मैं उड़ तो सकती हूं.... पर आसमान छू नहीं सकती
शुभ्रा - यह... यह कैसी बहकी बहकी बातेँ कर रही है तु.....
नंदिनी - जानती हो भाभी... आज से ठीक चार दिन बाद... बनानी की जनम दिन है... दीप्ति ने उसके लिए एक सरप्राइज प्लान किया.... हम सबको बहुत पसंद भी आया... पर सबने किसी मॉल में जा कर बनानी के लिए गिफ्ट खरीदने की प्लान बनाया.... पर उनके प्लान पर पानी फिर गया... जब उनको मालुम हुआ... मैं कहीं नहीं जा सकती.... सिवाय घर और कॉलेज के.. हर जगह मेरे लिए वर्जित है...
शुभ्रा अपना हाथ नंदिनी के कंधे पर रखती है l नंदिनी फ़िर से एक फीकी हंसी हंसती है l
नंदिनी - फ़िर दीप्ति ने ऑनलाइन शॉपिंग से गिफ्ट खरीदने की आइडिया दी.... सबने मेरे ख़ातिर... ऑनलाइन गिफ्ट खरीदकर बनानी को सरप्राइज देने के लिए राजी हो गए....
शुभ्रा - अगर अब सब ठीक हो गया तो.... तुझे तो खुश होना चाहिए ना...
नंदिनी - भाभी... मैंने अपने सभी दोस्तों से वादा किया था.... उनकी खुशी मेरी खुशी और उनके ग़म मेरे ग़म... इस दोस्ती में मेरा कुछ नहीं होगा... पर... आज मेरे वजह से उनकी वह खुशी अधूरी रही....
शुभ्रा - तो क्या हुआ रूप..उन्होंने तेरे लिए उनका प्लान बदल दिया.... जरा सोच तु उनके लिए कितनी खास है....
नंदिनी - खास.... हम खास क्यूँ हैं भाभी.... क्यूँ....
हम आम क्यूँ नहीं... हैं
हम जिस घर में रहते हैं... भाभी उसमें बहुत बड़ा सा मार्वल तख्ती पे लिखा है... "The Hell".... और यह सच है.... शायद इसलिए हम आम नहीं हो सकते.... क्यूंकि वह आम लोग जहां रहते हैं.... वह जरूर स्वर्ग होगा.....
शुभ्रा - रूप... आज तुझे हो क्या गया है....
नंदिनी - कुछ नहीं हुआ है भाभी.... आज पहली बार... मेरे दोस्त आज जब बाहर घूमने झूमने की बात कर रहे थे... मुझे उनकी हर बात बहुत दुख दे रहा था.... उनकी वह खुशियां मुझे चुभ रही थी.... उनकी वह हंसी, खुशी से पता नहीं क्यूं आज मुझे जलन महसूस हुई....
(एक गहरी सांस ले कर)
भाभी मैं भी खुद को इस सहर के भीड़ में खो देना चाहती हूँ.... और उसी भीड़ में से खुद को ढूंढना चाहती हूँ.... पर मैं जानती हूं यह मुमकिन नहीं है....
भाभी कितना अच्छा होता अगर हम कभी बड़े ही नहीं होते.....
बचपन की वह बेवकुफीयाँ... कितनी मासूम होती थीं... आज जवानी में मासूम ख्वाहिशें भी बेवकुफी लग रही है...
शुभ्रा - रूप.... रूप.... रूप... (अपने दोनों हाथों से झिंझोड कर)
नंदिनी चुप हो जाती है l
शुभ्रा - देख तेरी इस हालत के लिए कहीं ना कहीं मैं भी जिम्मेदार हूँ.... मैंने चाची माँ से वादा किया था.... तेरी आज़ादी, तेरी खुशी की... पर शायद मैं ही तुझे ठीक से समझ नहीं पाई....
नंदिनी - नहीं भाभी आपकी कोई कसूर नहीं है... आप भी कहाँ बाहर जा पा रही हो....
शुभ्रा - (एक गहरी सांस लेते हुए) रूप इतने दिनों में... तुझे मालुम तो हो गया होगा... के तेरे भैया और मैं इस घर में अजनबीयों की तरह रह रहे हैं....
(नंदिनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देती) पर तेरे भाई ने मुझे कभी कैद में नहीं रखा.... मैं जब भी उनसे कुछ मांगा... उन्होंने कभी मना नहीं किया... हाँ उन्होंने हमेशा एक शर्त रखा.... मैं उनसे कभी फोन पर बात ना करूँ.... सीधे सामने से बात करूँ....
नंदिनी - क्या....
शुभ्रा - हाँ पर मैं कभी बाहर नहीं निकलती हूँ... जानती है क्यूँ......? क्यूँकी इसी सहर में जन्मी, पली, बढ़ी... मैं बाहर इसलिए नहीं निकालती क्यों कि मुझे डर रहता है.. कहीं कोई मुझे पहचान ना ले.... मैं नहीं चाहती हूँ... कोई पहचान का मेरे सामने आए... क्यूंकि मेरे जीवन के किताब के कुछ पन्ने बहुत ही काले हैं... जिसके वजह से मैं खुद को इस घर में कैद कर रखा है...?
पर अब ऐसा नहीं होगा.... इस बार तेरे भैया जब आयेंगे... मैं उनसे इजाज़त ले लुंगी के तु बाहर जा पाएगी....
नंदिनी - कोई नहीं भाभी... कोई नहीं.... मैं जानती हूं.... आप ने कहा है... तो आप ज़रूर कर ही लोगी.... पर इतनी जल्दी मैं अपने दोस्तों के साथ साथ खुलना नहीं चाहती हूँ....
शुभ्रा - क्या मतलब....
नंदिनी - अरे भाभी... दोस्ती पक्की हुई है.... गहरी नहीं.... जिस दिन गहरी हो जाएगी... तब उनके साथ जाने के लिए... मैं खुद हिम्मत करूंगी....
शुभ्रा - तो अब तक...
नंदिनी - भाभी मैं खुद को किसी आम से तुलना कर रही थी....
पर घूमने तो मैं आपके साथ ही शुरू करूंगी....
नंदिनी शुभ्रा को बिठाती है और अपना सिर उसके गोद में रख देती है l
शुभ्रा उसके सर को सहलाते हुए - अच्छा रूप...
नंदिनी - हूँ..
शुभ्रा - तेरे बचपन की बेवक़ूफ़ीयाँ भले ही मासूमियत से भरा हो.... पर पूरी तो नहीं होती थी ना.... उस महल में....
नंदिनी - नहीं भाभी.... कोई था जो मेरी खुशी के लिए... वह बेवकुफी भरी मांग को पूरी करने की कोशिश करता था....
शुभ्रा - अच्छा... ऐसा कौन था...
नंदिनी - पता नहीं... मुझे उसका नाम मालुम नहीं है...
शुभ्रा - कैसे... कितने दिन था तुम्हारे साथ या पास....
नंदिनी - मालुम नहीं... शायद सात या आठ साल...
शुभ्रा - अरे बाप रे... और.. तु उसका नाम भी नहीं जानती... या याद नहीं...
नंदिनी - ऐसी बात नहीं भाभी.... मेरी माँ की देहांत के बाद... मैं अकेली हो गई थी... सिर्फ चाची माँ से चिपकी रहती थी.... यहाँ जिस तरह तुम हो उसी तरह महल में चाची माँ होती थी...
एक दिन छोटे राजा मतलब चाचा जी एक लड़के को लेकर मेरे पास आए.... जिसके सिर पर पट्टी बंधी हुई थी.... उसे मेरी पढ़ाई के लिए महल में लाया गया था....
मैंने जब उसका नाम पूछा तो वह कहते कहते चुप हो गया था.... फिर उसने मुझे कहा कि वह अनाम है..... जो उसे पढ़ाने आया है... (हंसते हुए, आगे चल कर पता चला, अनाम का मतलब कोई नाम नहीं हैं) उसने मुझसे झूट बोला था.... पर फ़िर भी... भाभी... उस महल में... मैं सबसे डरती थी.... कहीं कोई मुझ पर गुस्सा ना हो जाए.... पर वह था जिससे मेरे गुस्से, और दुख का परवाह था.... मैं रोती थी तो वह मुझे हँसता था....

शुभ्रा - अच्छा तो फिर तेरी जिंदगी से... वह दूर कैसे चला गया...
नंदिनी - वह जब मैं बारह साल की हुई... तब मुझे रजोदर्शन(Menarche) हुआ...
तो महल में उसका प्रवेश वर्जित हो गया...
इस बात को आठ साल हो चुके हैं...
शुभ्रा - ओह तो बचपन में ही राजकुमारी जी की नखरे कोई उठाता था....
नंदिनी - हाँ... भाभी... एक वही था... जिस पर मैं रूठ सकती थी... गुस्सा हो सकती थी... और पूरे महल में एक वही था जो मुझे मनाता था....रोने नहीं देता था...
शुभ्रा - तो क्या हुआ, आज जवानी में तुझे मनाने के लिए छह छह हैं....
नंदिनी - छह कौन...
शुभ्रा - वह तेरे कॉलेज के पांच पकाउ और छटी मैं....
दोनों मिलकर हंस देते हैं

👉दसवां अपडेट
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वीर म्युनिसिपल ऑफिस के अंदर आता है और पिनाक सिंह के चैम्बर की तरफ बढ़ता है l बाहर ऑफिस के एक मुलाजिम उसे देखते ही सलाम ठोकता है l
एक आदमी - यहाँ कैसे आना हुआ राजकुमार जी....
वीर - अपने ही रियासत में... किसीकी इजाज़त लेने की जरूरत है क्या...
आदमी - नहीं नहीं.... ऐसे ही पुछ लिया.... वैसे बहुत दिनों बाद आप यहाँ आये हैं....
वीर - राज कुमार हैं.... अपनी प्रजा के हालत का जायजा लेने आये हैं...
वैसे मेयर जी अपने चेंबर ही हैं ना.......
आदमी - जी नहीं राजकुमार जी..... अभी पार्टी मुख्यालय से अध्यक्ष जी का बुलावा आया था.... इसलिए वह वहाँ गए हैं....
वीर - अच्छा..... कब तक लौट सकते हैं...
आदमी - यह मैं कैसे बता सकता हूँ.... हाँ आप चाहें तो उनके चेंबर में उनका इंतजार कर सकते हैं....
वीर - हाँ... यही ठीक रहेगा....
इतना कह कर वीर पिनाक सिंह के चेंबर में घुस जाता है l अंदर ऐसी चालू कर पिनाक सिंह के चेयर पर बैठ जाता है l थोड़ी देर बाद वही आदमी एक कुल ड्रिंक का बॉटल लेकर आता है और टेबल पर रख देता है l
वीर - और स्वाइं क्या चल रहा है...
स्वाइं - सब आपकी कृपा है....
वीर - (कुल ड्रिंक पीते हुए) ह्म्म्म्म अच्छा... मेयर साहब कुछ काम रह गया है.. क्या... जो मुझसे हो...
स्वाइं- पता नहीं... एक औरत अभी थोड़ी देर पहले अपनी पोती को लेकर आयी है.... मेयर साहब के पास....
वीर - (उसकी आंखों में एक चमक आ जाती है) क्यूँ... किस लिए....
स्वाइं- वो... कल... मेयर साहब... एक साइट पर गए थे.... वहीँ एक औरत से मिले... उसके दुख देख कर.... उसे और उसकी पोती को आज बुलाया था.... शायद कहीं नौकरी पे लगा दें...
वीर - अरे.... मेयर साहब के पास... कहाँ नौकरी है... नौकरी तो हमारे पास है..... जाओ अगर नौकरी की ही बात है.... तो मैं भी उस लड़की को एंनगेज कर सकता हूँ....
स्वाइं - यह तो और भी अच्छी बात है.... मैं अभी उन दादी पोती को आपके पास भेजता हूँ....
इतना कह कर स्वाइं वहाँ से निकल जाता है l वीर अपना कुल ड्रिंक खतम करने में मसरूफ हो जाता है l थोड़ी देर बाद स्वाइं दो औरतों के साथ रूम में आता है l वीर देखता है एक अधेड़ औरत जो थोड़ी बीमार लग रही है और उसके साथ एक लड़की साँवली सी, पर तीखे नैन नक्स के साथ दुबली पर जहां भरी होनी चाहिए वहीं पर भरी हुई है l
उस लड़की को देखकर वीर मन ही मन बोला - परफेक्ट.... क्या बॉडी है और क्या बम्पर है... ह्म्म्म्म परफेक्ट...
वह बुढ़ी औरत और वह लड़की दोनों वीर को नमस्कार करते हैं l
वीर - जी नमस्ते... आइए.. बैठिए...
औरत - जी नहीं राजकुमार जी.... आप के सामने हम खड़े जो कर बात कर पा रहे हैं... यही हमारी अहोभाग्य है....
वीर - आरे.... आप कौनसे ज़माने की बात कर रहे हैं....
औरत - नहीं राज कुमार जी... हम छोटे लोग हैं.... हमे आप अपने जुते तक ही रहने दीजिए...
वीर - ठीक है.... कहिए आपको कैसी मदत चाहिए....
औरत हाथ जोड़ कर अपनी पोती की ओर इशारा करते हुए - राजकुमार जी यह मेरी पोती है... बचपन से अनाथ है बिचारी.... अब मैं भी कब तक इसके साथ रह पाउंगी नहीं जानती.... इसे कहीं नौकरी पर रख दीजिए.... ताकि आगे चलते उसकी शादी हो जाए.... तो मैं आराम से पूरी जा कर मर सकूंगी...
वीर - (उस लड़की से) कहाँ तक पढ़ी हो....
लड़की - जी जी वो म मैट्रिक तक....
वीर - ह्म्म्म्म आगे क्यों नहीं पढ़ी....
औरत - कैसे पढ़ती... पढ़ाई में बहुत कमजोर है.... मैट्रिक भी तीन बार में पास हुई है....
वीर - अच्छा.... ह्म्म्म्म... वैसे क्या नाम बताया तुमने....
लड़की - जी अभी तक बताया नहीं मैंने....
वीर - अच्छा... अरे.. हाँ... मैंने पूछा कहाँ है....ह्म्म्म्म बोलो फ़िर...
लड़की-जी क्या....
वीर - अरे.... तुम्हारा नाम...

लड़की-जी मेरा नाम अनु है..
वीर - बड़ा प्यारा नाम है.... मेरा मतलब है... बहुत ही सुंदर नाम है... वैसे दादी जी सिर्फ मैट्रिक पास कर लेने से... वह भी तीन बार में..... क्या लगता है... नौकरी मिल जाएगी...
औरत - अब क्या बताऊँ... राज कुमार जी... बाप इलेक्ट्रिसियन था एक दिन बिजली की खंबे पर ही चल बसा और इसकी माँ अपने पति के दुख में चल बसी...
इस अभागिन को मेरे पल्लू से बांध गए... लड़की मंद बुद्धि है..... छोटी सी उम्र में माँ बाप देहांत के बाद मेरे लाड-प्यार से सांसारिक ज्ञान से भी दूर रही.... अब मुझे कब बुलावा आ जाए.... अगर यह किसी किनारे लग जाए... तो मैं समझूँगी चन्द्रभागा नहा ली मैंने....
वीर - तो व्याह क्यूँ नहीं करा दिया...
औरत - व्याह ही तो कराना है.. राजकुमार जी.... फूटी कौड़ी नहीं है... अगर नौकरी लग गई तो शायद... नौकरी को देख कर कोई व्याह करले.... आप तो जानते हैं... जवान लड़की अगर घर में रहेगी.... तो उस पर आसपास की भी बुरी नजर लग सकती है... इसलिए... अब आप से ही आस है....
वीर - ठीक है अनु.... समझो तुम्हें नौकरी मिल गई..... कल ठीक साढ़े दस बजे ESS ऑफिस में आ कर मुझसे मिलो.... तुम्हें... नौकरी मिल जाएगी....

औरत - जुग जुग जियो राजकुमार.... आपको यह बुढ़िया आशीर्वाद ही दे सकती है....
वीर - बस बस यही काफी है.... अच्छा अब आप जाइए....
अनु और उसकी दादी वीर को नमस्कार कर बाहर निकल जाते हैं l
स्वाइं - वाह राजकुमार जी वाह... आपने तो उनके दुख दूर कर दिए..
वीर - अरे नौकरी जैसी छोटी छोटी बातों के लिए मेयर साहब को मेरे पास भेजना चाहिए.... ना कि खुद इस बात में सर खपाना चाहिए....
अच्छा जाओ यार कुछ गरमा गरम भेजो....
स्वाइं- जी राजकुमार जी...
स्वाइं बाहर चला जाता है l वीर अनु के ख़यालों में खो जाता है, अपने पैंट के भीतर करवट ले रहा लंड को मसलने लगा और बुदबुदाने लगता है - क्या गरम माल थी.... उफ... कौन कहता है रंग ही सब कुछ है.... साँवली सलोनी... वह भी हर जगह से दूसरी कसी हुई..... ओ... ह.. मैंने कितना सम्भाला खुदको... पता नहीं कुछ और देर रहती तो उठा कर यहीं पटक कर चोद देता....
तभी दरवाजा खुलता है l वीर देखता है अनु अंदर झाँक रही है l
वीर - क्या हुआ अनु....
अनु - जी मैं अंदर आऊं...
वीर - हाँ आओ...
अनु आकर वीर के पास आती है और झट से उसके पैर पकड लेती है l
वीर - अरे.. अरे... यह क्या कर रही हो....
अनु - आप नहीं जानते राजकुमार जी...(वीर के पैर पकड़े हुए और अपनी नजर झुकाए हुए) अपने मेरे और दादी के लिए क्या किया है... किस तरह आपका धन्यबाद अर्पण करूँ...
वीर - अररे... नजरें झुका कर क्यूँ बात कर रहे हो....
अनु- दादी ने कहा कि.... आप... अन्नदाता हैं... आपसे कभी नजरे नहीँ मिलाना चाहिए...
वीर के पैर पकड़े हुए अनु विनम्रता से और झुक गई तो वीर की नजर अनु के कुर्ते क्लीवेज से झाँकती हुई चुचों पर ठहर गई l वीर की आंखों में चमक आ गई,
बड़ी मुश्किल से वीर खुदको सम्भाला और अनु के चुचों को घूरते हुए अपने गले से थूक निगल कर कहा - अनु मुझसे तुम्हारा दुध.. ख.. (गले का खराश ठीक करते हुए) दुख देखा नहीं जा रहा है...
अनु वैसे ही वीर के पैर पकड़े हुए और नजरें झुका कर - दादी ठीक कह रही थी... आप बड़े लोग बड़े दिल वाले हैं... आज से आप हमारे मालिक हैं.....
वीर - (जुबान लड़खड़ाने लगी, मुहँ में लार भरने लगा) तुम्हारे भी तो कम नहीं है.... दुख.... कैसे उठाती हो इतने बड़े बड़े दुख.... अब बिल्कुल चिंता मत करो... मैं अपने दोनों हाथों से उठाऊंगा... तुम्हारे दुख...
अनु - जी मालिक.. जी..
वीर - अनु अब तुम जाओ....और थोड़ी देर अगर तुम रुकी तो तुम्हारे दुखों को देख कर रो दूँगा...
जाओ अनु जाओ और कल ESS ऑफिस पहुंच जाना... अपने वक्त पर...
अनु - जी मालिक....
अनु उठती है और अपना सर झुकाए बाहर निकलने को होती है l
वीर - सुनो अनु...
अनु - जी मालिक....
वीर अनु के नर्म मुलायम हाथों को पकड़ता है और उसके हाथों में कुछ पैसे रख देता है l
वीर - यह लो... यह शगुन है... तुम्हारे नए जीवन की.... कल याद कर के आ जाना...
अनु ने अपना सर हिला कर बाहर निकल गई, उसके जाते ही वीर जल्दी से वश रूम में घुस जाता है और अपना पैंट निकाल कर मूठ मारने लगता है l रिलेक्स होने के बाद अपना हाथ साफ करता है l उसे बाहर कुछ चिल्लाने की आवाज आती है l वीर वश रूम से बाहर आता है तो पिनाक सिंह को स्वाइं पर चिल्लाते देखता है l
वीर - क्या हुआ छोटे राजा जी...
पिनाक - तुम मेरे फटे में क्यूँ टांग अड़ाने लगे....

पिनाक - स्वाइं तुम बाहर जाओ... (स्वाइं बाहर निकल जाता है, पिनाक वीर के तरफ मुड़ कर) बाथरूम जा कर हल्के हो लिए....
वीर - हाँ....

पिनाक - तुम कबसे लोगों को नौकरी बांटने लगे....
वीर - सेक्योरिटी सर्विस मेरे हिस्से में आता है... और लड़की के पास क्वालिफीकेशन भी नहीं है... इसलिए मैंने उसे फिमेल ग्रुप में शामिल करने का फैसला किया है...
पिनाक - अच्छा.... और वह वहाँ पर क्या करेगी....
वीर - आज कल मेरा स्ट्रेस लेवल बहुत बढ़ रहा है... डॉक्टर ने मुझे स्माइली बॉल दबाते रहने को कहा है...
पिनाक - अच्छा तो जनाब को BP की शिकायत है...
वीर - हाँ... डॉक्टर ने यह भी कहा है.. चाहे रोज बॉल मिले ना मिले... पर रोज दबाते रहना चाहिए... इसलिए वह लड़की परफेक्ट है...
पिनाक - यू...(गुस्से से टेबल पर रखे फाइल को नीचे फेंक देता है)
तभी टेबल पर रखी फोन बजने लगती है l पिनाक गुस्से से फोन को स्पीकर पर डालता है और चिल्ला के पूछता है - हैलो....
पिनाक की यह हालत देख कर वीर मन ही मन मुस्कराने लगता है l फोन के दूसरे तरफ कोई जवाब नहीं आते देख फिर से चिल्लाता है - हैलो कौन है..
फोन - चिल्ला क्यूँ रहा है बे.. किसीने तेरी मार कर पैसे नहीं दी है क्या....
पिनाक - कौन है बे हरामी... किसकी मौत आयी है.. जो हमसे ऐसी बात कर रहा है...
फोन - मैं तेरी मौत बोल रहा हूँ...
पिनाक - (झल्ला कर) कौन है कुत्ते...
फोन - मैं तेरा कर्मा....
पिनाक - अबे पागल तु जानता भी है... तु किससे बात कर रहा है...
फोन - पिनाक सिंह क्षेत्रपाल... मेयर भुवनेश्वर से बात कर रहा हूँ... जिसके दुकान पर बहुत जल्द लात मारने वाला हूँ....
पिनाक - तु सच में पागल हो गया है.... क्षेत्रपाल हूँ मैं क्षेत्रपाल... यह जान कर भी तुने फोन पर बकवास कर मेरा वक्त बर्बाद करने की जुर्म में.... तुझे तेरे खानदान समेत नर्क भेज दिआ जाएगा.. ...
फोन - हा हा हा... कितना अच्छा जोक मारा... पास होता तो तुझे टीप देता... हा हा हा.. अच्छा... चल...तेरे बकचोदी के जुर्म में अगले हफ्ते तुझ पर जानलेवा हमला होगा....
पिनाक - क्या...
फोन - तैयार रहना बे हरामी...
फोन कट जाता है l वीर जो अब तक चुपचाप सुन रहा था, अब कुछ सोचने पर मजबूर हो गया l
पिनाक - प्रांक कॉल था...

वीर - (अपना सर ना में हिलाते हुए) मुझे नहीं लगता.... जरूर कोई नया दुश्मन है... पता लगाना होगा.....

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किचन में प्रतिभा बर्तन साफ कर रही है l पास खड़ी वैदेही घूर कर देख रही है l
प्रतिभा - तू चाहे कैसे भी देख... बर्तन में तुझे मांजने नहीं देने वाली...
वैदेही - पर क्यूँ मासी....
प्रतिभा - आज तु मेहमान... बनने का लुफ्त उठा ले.... आगे से जब आयेगी... मेजबान बन जाना.... पर आज नहीं...
वैदेही - वाह इसे कहते हैं चालाकी.... मुझे गिल्टी फिल् करवा कर... फिर से आने का फरमान जारी कर दिया....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... अब समझी.... तेरा पाला किसी वकील से पड़ा है...
दोनों हंसने लगते हैं l
प्रतिभा - अच्छा... मेरा काम खतम हो गया....
चल बैठक में बैठते हैं... और तुझसे तेरी कहानी सुनते हैं....
वैदेही - रुकिए मासी...
प्रतिभा - अब क्या हुआ...
वैदेही - मासी... मेरे ज़ख्म बहुत गहरे हैं... आज अगर इस बंद चारदीवारी में खुरचती हूँ... तो दिलसे, आंखों से खुन की फब्बारें निकलेगी.... कहीं बाहर चलते हैं... मैं आपको वहीँ सब बताने की कोशिश करूंगी....

प्रतिभा उसे देखती है l वैदेही के चेहरे पर आ रहे भावों को देख कर उसे कहती है - अच्छा चल.... कहीं बाहर चलते हैं.... मैं सेनापति जी को बोल देती हूँ... फिर बाहर निकलते हैं...

प्रतिभा किचन से बाहर निकल कर बेडरुम से कपड़े बदल कर तुरंत आ जाती है और तापस को आवाज देती है - सेनापति जी....
तापस - जी... जी कहिए... क्या खिदमत करें आपकी...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ...
प्रतिभा - ओह ओ... कुछ तो शर्म करो... भतीजी के सामने कुछ भी...
तापस - अरे वैदेही को मालूम है कि मैं उसकी मासी से बात कर रहा हूँ... क्यूँ वैदेही...
प्रतिभा - सेना... पति... जी..
तापस - अच्छा आप कहिए... क्या.... हुआ
प्रतिभा - हम दोनों बाहर जा रहे हैं.... आते आते थोड़ी देर हो जाएगी...
तापस-उम्र की इस मोड़ पर... तुम मुझे अकेले में किसके सहारे छोड़े जा रहे हो...
प्रतिभा कुछ नहीं कहती l नथुने फूला कर तापस को घूरने लगती है l तापस किसी भीगी बिल्ली के जैसे अपने कमरे में घुस जाता है l
कुछ देर से पति पत्नी की नोक झोंक देख कर बड़ी देर से अपनी हंसी रोके रखी थी वैदेही l तापस के कमरे में घुसते ही जोर जोर से अपना पेट पकड़ कर हंसने लगती है l
प्रतिभा - ठीक है ठीक है ज्यादा दांत मत दिखा... चल बाहर चलते हैं.....

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रॉकी अपने सभी दोस्तों को बारी बारी से फोन लगाता है और सबको कंफेरेंसिंग में लेता है l
रॉकी - मित्रों,मेरे चड्डी बड्डी लवड़ो, खुशामदीन...
भूल ना जाना... आज तुम सबको मीटिंग में है आना... आज हमारी मीटिंग है...
राजु - अच्छा... इसका मतलब... एक हफ्ता हो गया...
आशीष - यह दिन भी कितने तेजी से गुजर रहे हैं....
रॉकी - ऑए... तेजी से मतलब.... अबे हम सबने एक मिशन शुरू की है... उसे अंजाम तक पहुंचाने का काम बाकी है.... और तुम कमीनों ने वादा जो किया है... मुझे और नंदिनी को मिलाने की...
सभी दोस्त - अच्छा अच्छा... आज विकेंड है... और सब वहीँ मिलेंगे मॉकटेल पार्टी में...
सुशील - अबे रॉकी... तु.. मॉकटेल पर ही क्यु रुक गया है... कॉकटेल तक कब पहुंचेगा...
रॉकी - ना भाई ना... मुझे सिर्फ नंदिनी के नशे में झूमना है... किसी और नशे में नहीं....
रवि - वाव रॉकी वाव... इसलिए तो हम चड्डी बड्डी हैं.... और अपना टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप का मोटो है....
वन फॉर ऑल.. ऑल फॉर वन है
सभी - यी.... ये... (चिल्लाने लगते हैं)

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गाड़ी आकर दया नदी के पास रुकती है l प्रतिभा और वैदेही दोनों गाड़ी से उतर कर नदी के किनारे पर एक पेड़ के नीचे वाले एक घाट के पत्थरों पर आ कर बैठते हैं l
प्रतिभा - वैदेही देख इस नदी को.... इस नदी का नाम पुरे इतिहास में प्रसिद्ध है... दया नदी....
वैदेही इसी नदी के किनारे इतिहास का वह प्रसिध्द कलिंग युद्ध हुआ था.... जब अशोक ने कौरबकी के लिए पुरे कलिंग को लहू-लुहान कर दिया था...... यह नदी उस युद्ध में मरने वाले और घायल होने वालों के रक्त से लाल हो गया था.... जिसे देख कर चंडा अशोक, धर्माशोक में परिवर्तित हो गया था......
तूने कहा था कि तेरे सोये ज़ख्मों से जो खुन की फव्वारे निकलेंगे उसे उस घर की चारदीवारी समेट नहीं पाएगी.....
पर यह दया नदी है.... यह तेरे दुख सुन कर तेरे लहू को निगल लेगी.... देखना....
प्रतिभा यह सब बिना वैदेही को देख कर कहती चली गई l अपनी बात खतम करने के बाद वैदेही को देखने लगी l वैदेही जो अब तक एक मूक गुड़िया की तरह सुन रही थी, प्रतिभा से अपना नजर हटा कर दया नदी को देखने लगी l
(वैदेही अपना अतीत कुछ फ्लैश बैक में और कुछ वर्तमान में रहकर कहेगी)
वैदेही - मासी क्या बताऊँ, कहाँ से बताऊँ.... जब से होश सम्भाला मैंने खुद को एक महल में पाया... मेरी माँ मेरे पास कभी कभी ही आ पाती थी... मेरे पास मेरी देखभाल के लिए एक औरत हमेशा रहती थी.... मैं उसे गौरी काकी कहा करती थी.....
पर मैंने कभी अपने पिता को नहीं देखा.... ना मेरे कोई दोस्त थे ना ही कोई भाई बहन और ना ही कोई और रिश्तेदार....
सिर्फ़ दो ही औरत जिनके पास मेरी पूरी दुनिया थी.... एक मेरी माँ और एक गौरी काकी....
एक दिन गौरी काकी ने आकर मुझसे कहा कि मेरा या तो कोई बहन या भाई आनेवाले हैं...
मैं खुश हो गई.... अब मेरी माँ मेरे साथ रहने जो लगी थी... मैं देख रही थी माँ का पेट बढ़ रहा था.... मुझे बस इतना मालुम था... मेरा भाई या बहन कोई तो इस पेट में हैं.... जिसके बाहर आते ही मुझे उसका खयाल रखना होगा.... जैसे काकी मेरी रखती है.... मैं काकी के बनाए हुए कपड़ों के गुड्डे गुड्डीयों को अपना भाई बहन बना कर रोज खेला करती थी....
एक दिन माँ का दर्द उठा.... तब कुछ औरतें आयीं और माँ को कहीं ले गईं....
अगले दिन काकी रोती हुई मेरे पास आई और बिना कुछ बताए मुझे अपने साथ ले गई l मैं बचपन से महल के एक हिस्से में पल बढ़ आयी थी.... पर काकी जिस हिस्से में ले कर आई थी वहाँ पर मैं पहली बार आई थी.... काकी मुझे एक कमरे में ले गई... मैंने वहाँ पर देखा मेरी माँ का रो रो कर बहुत बुरा हाल हो गया था.... उसके आँखों में आंसू सुख चुके थे... उस कमरे में कुछ टूटे हुए कांच गिरे हुए थे......
मैंने माँ को पुकारा... माँ ने मेरी तरफ देखा.... अपनी बाहें फैला कर मुझे अपने पास बुलाया.... मैं भाग कर माँ के गले लग गई.... माँ मुझे गले से लगा कर बहुत देर तक रोती रही.... फिर अचानक मुझे चूमने लगी.... चूमते चूमते मेरे माथे पर एक लंबा चुंबन जड़ा.... फ़िर पता नहीं क्या हुआ माँ ने एक कांच का टुकड़ा उठाया और मेरे दाहिने हाथ में गड़ा दिया.... (वैदेही ने अपने दाहिने हाथ पर एक कटा हुआ पुराना निसान प्रतिभा को दिखाया) मेरे हाथ में कांच का टुकड़ा घुसा हुआ था.... मैं जोर जोर से चिल्ला कर रो रही थी.... यह ज़ख्म देते हुए मेरी माँ ने मुझसे कहा - देख वैदेही मैंने तुझे यह ज़ख़्म इसलिए दिआ ताकि तु यह बात याद रखे.... अगर भूल भी जाएगी तो यह ज़ख़्म तुझे मेरी यह बात याद दिलाती रहेगी....
इतना कह कर मेरी माँ ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़ कर मेरी हाथ में पट्टी बांध दी.... फिर मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से लेकर कहा - मेरी बच्ची... मैं मजबूर हूँ... इसके सिवा कोई और चारा नहीं था.... उन्होंने तेरे भाई को मार डाला.... (इतना सुनते ही मेरा रोना बंद हो गया, मुझे ऐसा लगा जैसे किसीने मेरे कानों में जलता हुआ कोयला डाल दिया, माँ फिर कहने लगी) बेटी तुझे यह काकी यहाँ से दूर छोड़ देगी.... फिर तु कहीं भी चले जाना.... मगर मुझे वचन दे.... की तु कभी भी... इस रंग महल को लौट कर नहीं आएगी.... वचन दे... (माँ ने हाथ बढ़ाया पर मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैंने बस अपना हाथ माँ के हाथ में रख दिया, फिर माँ ने रोते हुए मुझे अपने सीने से लगाया और कहा) बेटी मुझे माफ कर देना... मैं तेरे भाई को ना बचा पाई... अगर तु यहीं रहेगी तो मैं तुझे भी ना बचा पाऊँगी..... इसलिए तुझे काकी बाहर तक छोड़ देगी.... फिर तु पीछे बिना मुड़े यहाँ से चली जा.... फिर कभी मत आना... तुझे कसम है.... अपनी माँ की... तु कभी वापस मत आना....
फिर माँ ने एक पोटली मेरे हाथ में दी और काकी के साथ भेज दिया.... काकी ने मुझे अंधेरे में कुछ दूर ले जाकर मुझे छोड़ दिया....
काकी - जा वैदेही जा.... यहाँ सिर्फ़ राक्षस रहते हैं.... अपनी माँ की बात याद रखना.... कुछ भी हो जाए वापस मत आना....
इतना कह कर काकी भी वापस चली गई लेकिन मैं सिर्फ पांच साल की लड़की, अपनी ज़ख्मी हाथ में पोटली लिए बिना पीछे मुड़े चली जा रही थी.... पता नहीं कितनी देर चलती रही... मुझे कमज़ोरी मेहसूस होने लगी फ़िर मैं एक घर के आँगन के बाहर सो गई... फ़िर जब नींद टूटी तो मैंने खुद को एक बिस्तर पर पाया... मेरे सर पर कोई अपने हाथ से सहला रहा था... मैंने अपने हाथ को देखा माँ की कपड़े के पट्टी के जगह एक सफेद पट्टी बंधी हुई थी.... अपनी आँखे ऊपर कर देखा तो मेरे सिरहाने एक देवी बैठी हुई थी... मेरे मुहँ से निकल गया माँ...
वह देवी इतना सुनते ही आवाज दी अजी सुनते हो... लड़की को होश आ गया... मुझे अभी भी कमज़ोरी महसूस हो रही थी... तभी एक आदमी अपने हाथ में एक दुध की ग्लास लाकर उस देवी को दिए... उस देवी ने मुझे उठा कर बिठाया और ग्लास देते हुए कहा - इसे पी ले बेटी यह हल्दी व लौंग वाला दुध है... सुबह तक तेरी कमजोरी भाग जाएगी.... मैंने वह दुध पी कर सो गई....

सुबह जब जगी तो उसी देवी को फिर अपने सिरहाने पाया...
उस देवी ने मुझ से मेरी हालत के बारे में पूछा.... और मेरे साथ जो बिता था मैंने सब बता दिआ.... सब सुनते ही उस देवी ने आवाज़ दी - सुनिए.... फिर वही आदमी आया, उसे देखते ही देवी ने कहा - यह वैदेही है और आज से यह हमारी बेटी है....
वैदेही आज से मैं तेरी माँ और ये तेरे बाबा हैं....

मुझे सपना जैसा लग रहा था l जैसे कोई कहानी की तरह जो मुझे कभी सुलाने के लिए काकी सुनाया करती थी.....

क्यूंकि मैं बेशक महल के किसी अनजान कोने में जन्मी, पली थी पर सिर्फ माँ और काकी को छोड़ किसीको ना जानती थी ना ही किसीसे माँ मिलने देती थी.... पर यहाँ तो रिश्तों का अंबार था... घर के भीतर मेरे नए माँ और बाबुजी.... बाहर...
मौसा, मौसी, भैया, भाभी, मामा, मामी, चाचा, चाची, नाना, नानी ना रिश्ते कम थे ना लोग.... जो भी दिखते थे हर कोई किसी ना किसी रिश्ते में बंध जाता था...
सच कहूँ तो मेरा परिवार (अपने दोनों हाथों को फैला कर) इतना बड़ा हो गया था....
एक दिन बाबुजी मुझे स्कुल ले गए... मेरा एडमिशन कराने.... मेरा नाम लिखवाया "वैदेही महापात्र"
पिता का नाम - रघुनाथ महापात्र
माता का नाम - सरला महापात्र
मैं स्कुल में दोस्त बनाये... अब मेरे दोस्त सिर्फ अपने गली मोहल्ले में ही नहीं थे.... स्कुल में भी थे....
एक दिन जब स्कुल से लौटी तो माँ को बिस्तर पर पाया... पड़ोस की मौसी पास माँ से कुछ गपशप कर रही थी...
मैंने माँ से पूछा - माँ आपको क्या हुआ...
माँ ने हंस कर मुझे पास बिठाया और पूछा - अच्छा बोल तुझे भाई चाहिए या बहन...
मुझे भाई का ग़म था इसलिए तपाक से बोला - मुझे भाई चाहिए...
माँ और मौसी दोनों हंस पड़े...
मौसी - अगर बहन हुई तो...
मैं - तो भी चलेगा... लेकिन बेटी तो मैं हूँ... तो माँ और बाबा को बेटा चाहिए कि नहीं...
माँ ने बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराया और कहा - भाई हो या बहन... भगवान हमे जो भी देगा... तु उसे बहुत प्यार करना... ह्म्म्म्म
मैंने हाँ में सर हिलाया... जब शाम को बाबुजी आए मैंने उनसे उछल कर कहा जानते हो बाबा मेरी बहन या भाई आने वाले हैं...
बाबा - अच्छा हमे तो मालुम ही नहीं है.... क्या आप हमे अपने भाई से खेलने दोगे....
मैं - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...
माँ और बाबुजी दोनों हंस पड़े....
रात को जब हम सो रहे थे,मैं नींद में नहीं थी पर आँखे मूँदे सोई हुई थी और माँ मेरे सर पर हाथ फ़ेर रही थी तब माँ ने बाबुजी से कहा - देखा वैदेही के कदम कितने शुभ हैं.... आते ही हमे माँ बाप की खुशियाँ देती... और आज इतने सालों बाद मैं सच में माँ बन रही हूँ....
बाबा - हाँ सरला.... लक्ष्मी है लक्ष्मी हमारी वैदेही....
ऐसे बातेँ करते हुए सब सो गए पर मुझे माँ और बाबा के व ह बाते गुदगुदा रहे थे....
पर दुखों को तो जैसे मेरी हर छोटी छोटी खुशी से बैर था....
फिर मेरे जीवन में दुख का आना बाकी था
दादी ठीक कह रही थी... आप बड़े लोग बड़े दिल वाले हैं... आज से आप हमारे मालिक हैं.....
वीर - (जुबान लड़खड़ाने लगी, मुहँ में लार भरने लगा) तुम्हारे भी तो कम नहीं है.... दुख.... कैसे उठाती हो इतने बड़े बड़े दुख.... अब बिल्कुल चिंता मत करो... मैं अपने दोनों हाथों से उठाऊंगा... तुम्हारे दुख...
Veer ke dialogs bade sahi likhe he ustad :lol1: .
Baki story me past jab jab aaya dukhi kar gaya. Ummed he ke khush khabri bhi milegi. Par Vikrant ki baton se lagata he ke uske upari chehre ke under bhi bohot kuchh he.
 
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