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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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Thakur

Alag intro chahiye kya ?
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ESS के यूनीफॉर्म में अनु वीर के कैबिन में आती है और वीर को एक जोरदार सैल्यूट देती है l वीर उसे गौर से देखता है, एक हाई नेक कुर्ती अनु के जिस्म से पुरी तरह से चिपकी हुई है, अनु के जिस्म की हर कटाव को जैसे उकेर के सामने ला रही है l वीर की आंखे अनु के जिस्म के हर हिस्से पर घूम रही है l अनु की चेहरे को देखता है, बहुत ही क्यूट लग रही है, साँवली सूरत में भी ग़ज़ब का आकर्षण, सफेद आँखों से झाँकती हुई कत्थई पुतलियां अनु के चेहरे को और भी आकर्षण दे रहे हैं.... जैसे शिशिर की बूंदे फूलों को l वीर के शरीर में एक मीठा सा सिहरन दौड़ गई l अपने शरीर को झटका दे कर खुद को अनु के आकर्षण से बाहर लता है l
वीर - अरे.. अनु... तुम पर यह यूनीफॉर्म बहुत जंच रही है... वाकई...
अनु - राजकुमार जी जानते हैं.... पहले ना हमारे मौहल्ले में... कुछ लड़के, यहाँ तक कुछ अंकल टाइप के लोग भी गंदी गंदी फबतीयाँ कसते थे, मुझे सुनाते थे... दादी यह सब सुन कर कभी कभी उनसे लड़ जाती थी... पर जिस दिन से यह यूनीफॉर्म पहन कर ड्यूटी आ रही हूँ.... तब से कोई भी मुझ पर फबतीयाँ नहीं कस रहे हैं... आज कर दादी भी बहुत खुश है... आप यकीन नहीं करोगे... इन तीन दिनों में दादी की सेहत में काफी सुधार हुआ है..... (एक कृतज्ञता भरी दृष्टि से) आपका बहुत बहुत शुक्रिया....
वीर उसकी बातेँ सुन कर मुस्कुराया l अनु की बातेँ, जैसे कोई मीठी चासनी में घुले हुए हैं, जो वीर के कानो से गुजर कर उसके जिस्म को गुदगुदा रहे हैं l
वीर फिरसे खुद को इस खयाल से खुद को बाहर लाता है l
वीर मन ही मन बुदबुदाने लगता है (यह मैं बार बार डिस्टर्ब क्यूँ हो रहा हूँ)
वीर - एक काम करोगी....
अनु - जी कहिए....
वीर - मेरे लिए एक कप कॉफी.. लाओगी...
अनु - जी... अभी लाई...
अनु इतना कह कर मुड़ती है और तेजी से बाहर निकल जाती है l उसके जाते ही वीर उसके बारे में सोचने लगता है " क्या ग़ज़ब की दिखती हो... जैसे कोणार्क की मुर्ति हो... किसी कारीगर की कल्पना हो या कुदरत की करामात हो... यह तेरे जिस्म को कुदरत ने कुछ इसतरह से तरासा है... खुद कुदरत भी हैरान हो जाए ऐसा तेरे जिस्म का हर हिस्सा है...

कौन कहता है... खूबसूरती के लिए रंग जरूरी है... साँवली सलोनी तू वन की हिरनी, सावन में झूमती मोरनी, तेरे बिन रंग ही स्वयं में अधुरी है..
तु कल कल बहती चंचल शीतल झरना है
यह प्यास बुझे या ना बुझे मुझे तेरे किनारे पर ही मरना है...
वीर ऐसा सोच सोच कर अपने आप मुस्करा रहा है, कि उसे लगता है कोई उसे देख रहा है l वीर की खयाल टूटता है और अपने पास देखता है तो टेबल पर कॉफी का कप रखा हुआ है और कुछ दूर हाथों में स्माइली बॉल लिए कुछ घबराहट और परेसानी भरी नजर से अनु वीर को घूर रही है l वीर अपनी आँखों के इशारे से पूछता है "क्या हुआ"
अनु - वह राजकुमार जी... मैं जब कॉफी ले कर आयी तो देखा... आप अपने मन में कभी मुस्करा रहे हैं.. और कभी आपके चेहरे से मुस्कराहट गायब भी हो रही है... इसलिए मैंने यह बॉल निकाल ली... पर समझ में नहीं आया कि आपको बॉल जरूरत है या नहीं...
वीर - हा हा हा हा... ओह... अनु... तुम वाकई.. मेरा खयाल करती हो.... हा हा हा.... जानती हो... मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारे होते हुए... शायद मुझे इन बॉल्स की जरूरत नहीं पड़ेगी...
अनु - तो इन बॉल्स का क्या करूँ....
वीर - अपने पास ही रखो... मैंने कहा शायद... जिस दिन तुम्हें लगे... की मुझे इन बॉल्स की जरूरत नहीं पड़ेगी.... उस दिन फेंक देना....
अनु - (मुस्कराते हुए) जी बहुत अच्छा.... (कह कर बॉल्स को अपने पर्स में रख लेती है, और एक मासूमियत भरी स्माइल से वीर को देखने लगती है l वीर भी उसकी खूबसूरती को निहारता रहता है l

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राजभवन मार्ग से राजमहल स्क्वेयर की एक फॉरचुनर गाड़ी दौड़ रही है l गाड़ी के भीतर पिनाक सिंह बैठा अपने टेबलेट में कुछ देख रहा है कि तब उसका मोबाइल बजने लगता है l वह मोबाइल उठा कर देखता है तो स्क्रीन पर प्राइवेट नंबर लिखा दिख रहा है l पिनाक फोन उठाता है - हैलो...
फोन - हैलो... कैसे हो मेयर साहब...
पिनाक - हैलो... कौन बोल रहा है...
फोन - अरे.. भोषड़ी के... इतना जल्दी भूल गया...
पिनाक - यू... ब्लडी.. मॉरॉन... बास्टर्ड.... कौन है बे तु...
फोन - हाँ... अब तूने मुझे सही पहचाना...
पिनाक - कमीने... हराम के पिल्लै... बोल कौन है तु...
फोन - क्या ज़माना आ गया... हरामियों को अपना इंट्रोडक्सन देना पड़ रहा है... अबे मादरचोद मैं बोल रहा हूँ... मैं... यानी तेरी मौत... पर तु इतनी जल्दी नहीं मरेगा... धीरे धीरे... हौले हौले... आहिस्ता आहिस्ता... रोज थोड़ा थोड़ा कर मरेगा...
पिनाक गुस्से से अपना फोन बंद कर देता है l तभी गाड़ी की साइड मिरर टूट कर गिर जाता है l तो ड्राइवर गाड़ी रोक देता है l तभी गाड़ी के एक टायर ब्रस्ट होता है, उसके बाद दुसरा, तीसरा फिर चौथा l
ड्राइवर - सर हमारे चारों टायर्स ब्रस्ट हुए हैं, लगता है किसी ने गोली चला कर ऐसा किया है l
जल्दी ही पिनाक की सुरक्षा में तैनात ESS के तीन गाड़ी पिनाक की गाड़ी को घेर लेते हैं l और कुछ गार्ड्स गाड़ी से उतर कर चारो ओर नजर दौड़ने लगते हैं और कुछ गार्ड्स पोलिस और ESS हेड क्वार्टर को VHF से हादसे की इन्फॉर्मेशन देते हैं और पिनाक को गाड़ी से ना उतरने के लिए कहते हैं l पिनाक गाड़ी के भीतर बैठा हुआ होता है कि फिर से उसकी फोन बजने लगती है l पिनाक स्क्रीन पर देखता है प्राइवेट नंबर डिस्प्ले हो रहा है l पिनाक फोन उठाता है - हैलो..
फोन - क्या बात है... गरमी उतरी या नहीं...
पिनाक - कुत्ते... हरामी... छुप कर क्यूँ खेल रहा है... सामने आ कर वार कर....
फोन - अले.. अले... ले.. कितना मासूम है ले... तुम कौनसे सामने से अपना जुर्म कर रहे हो... कानून के पीछे छुपे हुए हो... और मुझे सामने आने के लिए ललकार रहे हो... अबे मेयर के बच्चे मैं सामने आ गया.. तो तेरी पतलून आगे से गिला और पीछे से पीला हो जाएगा..
पिनाक - बस कुत्ते बस... तु.. चाहे जहाँ भी छुपा हो... तुझे ढूंढ निकालूँगा और सुवर की मौत मरूंगा...
फोन - हा हा हा हा हा.. अबे तु मुझे ढूंढ निकालेगा... अबे हिजड़े पहले अपनी गाड़ी से तो निकल.... हा हा हा हा..
यह सुन कर पिनाक गुस्से से अपनी गाड़ी से निकलने की कोशिश करता है, ऐसे में उसके मोबाइल वाला हाथ गाड़ी के छत के ऊपर रख और दूसरा हाथ गाड़ी की दरवाजे पर रख गाड़ी से उतरने लगा कि उसकी मोबाइल पर गोली लगी, मोबाइल पिनाक के हाथों से छूट कर दूर गिरती है l पर इस बार पिनाक गाड़ी के अंदर नहीं जाता l अपने गाड़ी से उतर कर चारों ओर नजर घुमाता है l तभी और एक दूसरी गाड़ी आती है l जिसमें बैठ कर पिनाक निकल जाता है l


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वीर - (अपने कैबिन में) अनु.... बॉल्स कहाँ है....
अनु - जी.. जी वह...मैं आज घर पर भूल आई....
वीर - आ... आ.. ह... तुम जानती हो मेरा स्ट्रेस कम करने के लिए.... डॉक्टर ने वह बॉल्स दबाते रहने को कहा है....
अनु - अब.... क्या... और कुछ दबा कर काम नहीं चला सकते....
वीर - (अपने चेयर पर बैठते हुए) ओ.. ह... मेरा सर..... मेरा सर फटा जा रहा है...
अनु - राजकुमार जी.... प्लीज... बोलिए मैं क्या करूं....
वीर - अनु... क्या तुम चाहती हो.... मेरा सर दर्द कम हो जाए....
अनु - जी...
वीर - तो मेरे गोद में बैठ जाओ.... प्लीज...
अनु - जी... जी... क्या...
वीर - हाँ अनु... प्लीज... आह... मेरा सर... प्लीज...
अनु आकर वीर के गोद में पीठ करके बैठ जाती है l वीर उसके कमर के इर्द गिर्द अपना हाथ लपेट लेता है और अपना गाल अनु के पीठ पर रगड़ने लगता है l अनु थोड़ा अनकंफर्टेबल फ़ील् करती है l फिर वीर के हाथ अनु के कमर से फिसल कर अनु के चुचीयों पर हाथ रख देता है l अनु के अनछुए चुची पर वीर के हाथ लगते ही, अनु के मुहँ से आह निकल जाती है l जैसे ही अनु की आह सुनता है, वीर जोर से उसकी चुचीयों को दबाने लगता है l
अनु - आ.. ह... र र राज.. कु.. मार जी... आ.. ह इतना जोर से ना द.. दबाइए... दुख रहा है...
वीर - बस थोड़ी देर और... मेरी जान.... मेरा सर दर्द कम हो जाएगा... और तुम्हें मजा आएगा.... (कह कर और जोर से दबा देता है) क्या बॉडी है... क्या बम्पर है... आगे से दबाओ... या पीछे से दबाओ... कहीं से भी दबाओ जी...
वीर आहें भरने लगता है.... मदहोशी में कराहने लगता है..
फ़िर वीर अपनी आँखे खोलता है, तो अपनी नजर पहले कैबिन में दौड़ाता है, फिर अपनी हालत पर गौर करता है, वह अपनी ही रिवल्वींग कुर्सी पर लंबा हो कर लेटा हुआ है, वीर समझ जाता है... की अब तक वह अपने ख़यालों में खोया हुआ था l अपने ऊपर हंसता है और कुर्सी पर ठीक से बैठ कर घूमता है, सामने अनु को देख कर हड़ बड़ा जाता है, क्यूंकि अनु के हाथ में उसके स्माइली बॉल दिखते हैं l अनु वह स्माइली बॉल हाथ में लिए वीर को मुहँ फाड़े हैरानी और घबराहट भरी नजरों से घूर रही है l
वीर - अरे... अनु... क्या हुआ....
अनु - जी... आपको क्या हुआ...
वह आप अभी कराह रहे थे... म मुझे लगा... आपको दौरा पड़ा है... इसलिए बॉल निकाल कर आपके पास आ ही रही थी के आपको होश आ गया....
वीर - हाँ.... वह.. कभी कभी मुझे ऐसे दौरे पड़ने लगे हैं..... यह स्ट्रेस लेवल हाई होने की वजह है...
अनु - अच्छा... अब कैसा... फिल् हो रहा है.... मेरा मतलब है कि मैं इन बॉल्स का क्या करूँ....
वीर - अच्छा लगा जान कर के तुम्हें मेरी इतनी फ़िकर है.... अब एक काम करो इन बॉल्स को अपने पास रख दो....
अनु उन दोनों बॉल्स को अपने पर्स में रख लेती है l तभी टेबल पर रखी लैंड लाइन फोन बजने लगती है l अनु फोन उठाती है,
अनु - हैलो...
फोन - *****
अनु - जी...
इतना कह कर वीर को फोन बढ़ाती है l वीर फोन का स्पीकर अन कर क्रैडल को वापस रख देता है l
फोन पर विक्रम था - हैलो राजकुमार..
वीर - जी युवराज जी
विक्रम - छोटे राजा जी के कार पर हमला हुआ है...
वीर - क्या....
विक्रम - हाँ... इसलिए.. आप अभी के अभी ESS के कॉन्फ्रेंस हॉल में सेक्यूरिटी इमर्जेंसी मीटिंग बुलाओ.... हम सब थोड़ी ही देर बाद पहुंचेंगे....
वीर - जी... ठीक है....
फोन कट जाता है l वीर सामने देखता है तो समझ जाता है l विक्रम से हुई बातों को अनु बिल्कुल भी समझ नहीं पाई l
वीर - देखो अनु उपर कॉन्फ्रेंस हॉल में एक हाई लेवल सिक्युरिटी मीटिंग होगी....
तुम बस यहीँ रहोगी... मेरा जो भी फोन आयेगी... तुम रिसीव कर लेना... और डायरी में नोट कर लेना...
और हाँ इस कमरे से बाहर मत निकलना....
ठीक है.....
अनु किसी आज्ञाकारी छात्रा की तरह अपना सर हिलती है l
फिर वीर अपने कैबिन से बाहर निकल जाता है l


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नंदिनी और दीप्ति भाग कर प्रिन्सिपल के ऑफिस तक पहुंचते हैं l पिओन उन्हें देख कर डिलीवरी बॉय के तरफ इशारा करता है l दोनों उस डिलीवरी बॉय के पास जाते हैं l डिलीवरी बॉय OTP मांगता है l नंदिनी उसे OTP दे कर उससे गिफ्ट और केक ले लेती है l दोनों दोस्त बहुत खुश हो कर मुड़ते हैं, तो उन्हें प्रिन्सिपल को भागते हुए देखते हैं l उन्हें माजरा कुछ समझ में नहीं आता l एक स्टूडेंट भाग कर जा रहा था तो नंदिनी उसे रोक कर वजह पूछती है l वह स्टूडेंट बताता है कि साइंस स्ट्रीम के केमिकल लैब में आग लगी हुई है l यह सुनते ही दोनों के होश उड़ जाते हैं l दोनों अब लैब की ओर भागते हैं l सीढियों पर चढ़ कर जब वहाँ पहुँचते हैं तो देखते हैं सारे स्टूडेंट लैब के बाहर खड़े हैं aurप्रिन्सिपल लैब असिस्टेंट से कुछ पुछ रहा है l
प्रिन्सिपल - तुम कहाँ थे...
असिस्टेंट - सर मैं यहीं था....
प्रिन्सिपल - तो शुरू से बताओ क्या हुआ....
असिस्टेंट - सर एक्जाट क्या हुआ बताना तो मुस्किल है...
प्रिन्सिपल - ठीक है... तुमने जो देखा वह बताओ....
असिस्टेंट - सर ट्यूब लाइट की चोक ब्लास्ट हुआ जिससे इलेक्ट्रिक शॉर्ट सर्किट हुआ.... उस ब्लास्ट के वजह से लैब के अंदर अफरा-तफरी हो गई.... इतने में नौ नंबर टेबल पर रखी कंशेंट्रेट एल्कोहल का जारकिन था जो गिर गया... और ब्लास्ट के वजह से जो शॉर्ट सर्किट हुआ उसके स्पार्क से एल्कोहल ने आग पकड़ लिया.....
प्रिन्सिपल - ह्म्म्म्म... अंदर कौन फंस गया था...
असिस्टेंट - सर (बनानी लैब के बाहर एक स्टूल पर बैठी हुई थी, डरी हुई लग रही थी, उसके तरफ इशारा करते हुए) यह लड़की अंदर रह गई थी.... असल में उस वक़्त वह वश रूम में थी और आग वश रूम के करीब फैल गया था इसलिए यह बाहर नहीं निकल पाई...
"नहीं" इतना सुनते ही नंदिनी की चीख निकल जाती है l और दौड़ कर बनानी के पास पहुंच जाती है l
प्रिन्सिपल - तो... यह बाहर कैसे और निकली.....
असिस्टेंट - यह निकल नहीं पाई.... इसे निकाला गया है...
प्रिन्सिपल - मतलब... किसने निकाला...
असिस्टेंट - सर... वह... कॉमर्स स्ट्रीम का लड़का है... नाम रॉकी....
प्रिन्सिपल - (हैरानी से) कॉमर्स स्ट्रीम का लड़का... यहाँ क्या कर रहा था...
असिस्टेंट - वह सर... मेरा उससे पर्सनल काम था.... इसलिए मैंने सबको उनके एसाइनमेंट दे कर उसे बुलाया था....
प्रिन्सिपल - ह्म्म्म्म... वह लड़का कहाँ है इस वक्त....
असिस्टेंट - सर... (बनानी को दिखाते हुए) इस लड़की को बचाते वक्त उसके कपड़ों में आग लग गई थी.... तो मैंने सिज फायर, फायर एस्टींगुइसर से उस पर लगे आग को बुझाया.... फिर वह जेन्ट्स वश रूम में खुद को कपड़े समेत भिगोया और लिफ्ट से उतर कर... शायद अभी किसी हस्पताल गया होगा...
प्रिन्सिपल - व्हाट..... ह्म्म्म्म... वेरी ब्रेव बॉय...
फिर प्रिन्सिपल सारे स्टूडेंट्स की ओर देख कर पूछता है - सो किड्स यहाँ एक थ्रिल मोमेंट हुआ है.... किसी के पास कोई रिकॉर्डिंग है....
कुछ लड़कियाँ एक्साइटमेंट में प्रिन्सिपल को अपना अपना मोबाइल दिखाने लगे l
प्रिन्सिपल - अब सब वह वीडियो अपने अपने मोबाइल से डिलीट कर दो.....
सारे लड़कियाँ एक साथ - सर...
प्रिन्सिपल - देखो बच्चों... तुम लोगों को अगर अपने कॉलेज से प्यार है तो... वह वीडियो डिलीट कर दो... अगर यह वीडियो वाइरल हुआ... तो कॉलेज के साथ साथ इस लड़की और उस लड़के की जिंदगी प्रॉब्लम में आ जाएगी.... और मैं यह रिक्वेस्ट कर रहा हूँ... आप लोग इसे अपना मॉरल रेस्पांसिबल समझ कर डिलीट करें.....
सभी लड़कियाँ - ओक सर...
फिर प्रिन्सिपल नंदिनी की ओर देखते हुए - ह्म्म्म्म तो... किसकी बर्थ डे थी आज....
नंदिनी - थी नहीं सर.... है.... इसकी... मिस. बनानी मोहंती की...
प्रिन्सिपल - ओह... अच्छा चलो इस लड़की का बर्थ डे हम अभी यहीं मनाते हैं....
सब हैरान हो जाते हैं और एक साथ - सर...
प्रिन्सिपल - अरे... अभी अभी शॉक से निकली है... उसे शॉक से निकालो... हादसे यादें नहीं बननी चाहिए.... उत्साह, उल्लास और उत्सव को यादें बनाओ... लाओ केक काटो और जनम दिन मुबारक हो...
सभी स्टूडेंट्स ताली मारते हैं l नंदिनी बनानी को खड़ी कर देती है और उसी स्टूल पर केक निकाल कर रख देती है l बनानी केक काटती है, सभी स्टूडेंट्स और प्रिन्सिपल मिलकर "हैप्पी बर्थ डे टू यु" गाते हैं l प्रिन्सिपल बनानी को आशीर्वाद दे कर चला जाता है l बनानी के सारे दोस्त उसे जनम दिन की बधाई देते हैं l छटी गैंग की लड़कियों की तरफ से दीप्ति बनानी को गिफ्ट देती है l बनानी सबको धन्यबाद करती है l
क्यूंकि लैब बंद हो चुकी थी, इसलिए सारे स्टूडेंट्स धीरे धीरे चले गए l सिर्फ वहीँ पर छटी गैंग रुक गई l
नंदिनी अभी तक खुद को सम्भाले हुई थी l सबके जाते ही रोने लगती है l उसे रोते देख,
बनानी - क्या हुआ नंदिनी....
नंदिनी - मुझे माफ कर दे... बनानी... मुझे माफ कर दे... तु जब मुसीबत में थी... मैं तेरे पास नहीं थी....
बनानी - अरे... आज तो तुम लोगों ने मेरा दिन बना दिया है... और तुझे थोड़े ना पता था.. के ऐसा कोई हादसा हो सकता है....
नंदिनी - आज सुबह से तेरा मुड़ हमने बिगाड़ के रखा था.... ताकि तुझे सरप्राइज दे सकें....
बनानी - हाँ... मुझे मालूम था...
दीप्ति - ऐ.... झूट क्यूँ बोल रही है....
बनानी - अरे मैं सच कह रही हूँ...
नंदिनी - (अपनी आँसू पोछते हुए) कैसे...
बनानी - देखो तुम सबको मेरी कसम है उसे... कुछ कहा तो...
इतिश्री - क्या तुझे किसीने बताया था...
बनानी - हाँ.... मुझे... तबस्सुम ने बताया...
सारे लड़कियाँ - व्हाट...
तबस्सुम- (अपना जीभ अपने दांतों तले दबाते हुए) देखो मुझसे बनानी का टॉर्चर होते हुए देखा नहीं गया.... इसलिए मैंने भंडा फोड़ दी....
नंदिनी - कमीनी... थोड़ी देर के लिए चुप नहीं रह सकती थी....
बनानी - नंदिनी... यह सब तेरा प्लान था ना.... यह ले.... (केक उसके मुहँ पर पोत दी)
नंदिनी - आ... आ.. ह तेरा बर्थ डे है कमीनी रुक.... (फिर नंदिनी बचे हुए केक के टुकड़े से बनानी के मुहँ पर पोत देती)
सारे लड़कियाँ खुशी से चिल्लाते हैं l बनानी और नंदिनी एक दूसरे के गले लग जाते हैं l और सभी उनके इर्द गर्द चिपक जाते हैं

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आज साढ़े बारह बजे के आस पास राज भवन से लौट रहे भुवनेश्वर सहर के मेयर श्री पिनाक सिंह क्षेत्रपाल जी के ऊपर कुछ आततायियों ने गोली चला कर हमला किया l इस हमले से श्री क्षेत्रपाल बाल बाल बच गए l इस हादसे के वजह से समूचा राज्य स्तब्ध व चकित हो गया है l लोग इस घटना पर तरह तरह से अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं l कुछ आपसी या राजनीतिक रंजिश बता रहे हैं और कुछ लोगों का मानना है कि अपने सक्त रवैये के कारण माफ़िया के आँखों मे किरकिरी बने हुए थे इसलिए हो सकता है उनपर हमले के वजह अंडरवर्ल्ड से ताल्लुक हो और कुछ सूत्र ऐसे भी दर्शा रहे हैं शायद सहर में आतंकवादी भय फैलाने का वातावरण बनाने की कोशिश कर रहे हैं l हमारे सम्वाददाता श्री क्षेत्रपाल जी से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने जवाब देने से मना कर दिया और इस मामले में पुलिस भी चुप्पी बनाए हुए है l
विक्रम सिंह रिमोट से टीवी बंद कर देता है और हॉल में बैठे सभी को देखने लगता है l सब खामोश हैं l सबकी ख़ामोशी तोड़ते हुए विक्रम कहना शुरू करता है - अब यह हादसे पर कहानियाँ बनने लगी है l अब यह शुरू कहाँ से और कब हुआ... बात करें...
महांती - युवराज जी पिछले शनिवार को... मेयर साहब जी को एक फोन आया था कि... उनपर एक जान लेवा हमला होगा.... और आज हुआ...
विक्रम सिंह, पिनाक सिंह को देखता है l
पिनाक - हाँ ऐसा कॉल आया था.... मुझे लगा शायद कोई प्रांक कॉल होगा....
वीर - पर उस दिन... मैंने आपको चेताया था.... शायद वो प्रांक कॉल ना हो...
विक्रम - महांती तुम्हें कैसे मालुम हुआ... की छोटे राजा जी को कोई ऐसा कॉल आया था...
महांती - आज जब यह हादसा हुआ.... उसके बाद राजकुमार जी ने मुझे वह कॉल ट्रेस करने के लिए कहा...
विक्रम - तो.... नतीज़ा...
महांती - जीरो.... वह एक प्राइवेट नंबर से आया था जो हिडन था पर था एक कंप्यूटराइज कॉल..... जो हर तीस सेकेंड के बाद लोकेशन बदलता रहता है...
विक्रम - क्या लगता है.... आपको छोटे राजा जी.....
पिनाक - वह जो भी है.... वह मुझसे अपना खुन्नस निकाल रहा है....
कॉन्फ्रेंस हॉल के टेबल पर लैंडलाइन बजने लगता है l वीर उसकी स्पीकर ऑन कर देता है l
फोन - हा हा हा हा हा हा हा..... क्या बात है पिनाक साहब.... वाह क्या बात है.... मैं तो समझा था के तुम दुम दबा कर भाग जाओगे.... पर तुम तो बड़े हिम्मत वाले निकले.... मोबाइल पर गोली लगने पर भी गाड़ी में छुपे नहीं.....
पिनाक - हम छुपते नहीं हैं.... तु छुपा हुआ है...
फोन - तु छुपता नहीं है.... पर छुपाता बहुत है..
पिनाक - हरामजादे तु चाहता क्या है....
फोन - वेरी सिम्पल... मैं तुझे जिंदा देखना नहीं चाहता....
पिनाक - तो हरामजादे गोली मारते वक़्त हाथ कांपने लगा क्या....
फोन - ना ना ना.... तु अपनी जिंदगी से ऊब जाएगा... और मौत मांगेगा... तब तुझे गोली भीक में दे दूँगा.... यह पक्का वाला वादा है....
पिनाक - तो मैं भी तुझसे वादा करता हूँ.... जब तु मेरे हाथ लगेगा..... उस दिन तेरे जीते जी मैं तेरी खाल उधेड दूँगा....

फोन - मैं जब हाथ लगूंगा.... तब देख लेना.... फ़िलहाल सहर में चर्चा है.... किसीने क्षेत्रपाल की पीछे से मार ली..... बेचारे क्षेत्रपाल को मालूम भी नहीं हो पाया.... हा हा हा हा
पिनाक - यू......
फोन - चु... चु.... चु.... कितना मजा आ रहा है.... अगले हफ्ते और एक सरप्राइज के लिए तैयार रहना....

फोन कट जाता है l फिर हॉल में सब कुछ शांत हो जाता है l विक्रम गहरी सोचमें है l
पिनाक - यह जो भी है... मुझे चाहिए... मैं इसे अपनी हाथों से मारना चाहता हूँ...
वीर - फ़िलहाल हम अभी अंधेरे में हैं...
पिनाक - तो क्या हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे....
विक्रम - महांती.... यह क्या है.... कोई हमारी रेकी कर... इस हादसे को अंजाम दे दिया... और हमे भनक तक नहीं लगा....
महांती - युवराज जी.... रेकी की बात गलत है....
विक्रम - कैसे...
महांती - छोटे राजा जी कोई मामुली शख्सियत नहीं हैं...
उनकी आवाजाही की खबर हर पार्टी मेंबर से लेकर पार्टी से जुड़े हर साधारण आदमी को भी मालूम है....
वीर - फ़िर भी... एक तरफ वह फोन से बात करते हुए.... गोली चलाए.... मतलब छोटे राजा जी को वह लाइव देख रहा हो जैसे....
महांती - जी राजकुमार जी..... वह लाइव ही देख रहा था....
वीर - व्हाट.....
महांती - राजमहल स्कोयेर के सीसी टीवी हैक किया था.... छोटे राजा जी की मूवमेंट को देख रहा था... और जहां पर उसने पहले से... अपने स्नाइपरों को छुपा रखा था... यह हादसा वहीँ हुआ....
वीर - वह तो ठीक है.... पर उसे कैसे मालूम हुआ कि हम कांफ्रेंस हॉल में हैं....
महांती - अंदाजा लगाया होगा... और दुसरा.... फोन लाइन हैक...
विक्रम - (पिनाक से) आपको कुछ अंदाजा है... ऐसा कौन दुश्मन हो सकता है....
पिनाक - हमारे या तो मुलाजिम हो सकते हैं.... या फिर दुश्मन.... हमारे कोई दोस्त नहीं होते हैं... युवराज....
विक्रम - तो महांती... फाइनल...
महांती - युवराज जी.... वह जो भी है... फ़िलहाल वह अपनी पूरी तैयारी के साथ है.... और छुपा हुआ है.... अब हमे अपनी तैयारी करनी होगा.....
विक्रम - ह्म्म्म्म.... अब खेल शिकार और शिकारी का हो गया है....
वीर - यहाँ शिकारी कौन है.... और शिकार कौन है....
विक्रम - शिकारी हम हैं और वह शिकार....
पिनाक - पर वह हमें चौंका रहा है....
विक्रम - बाघ अगर आदम खोर हो जाए... फ़िर भी शिकार हो सकता है... पर अगर तेंदुआ आदम खोर हो जाए.... तो उसका शिकार सबसे मुश्किल होता है..... क्यूंकि तेंदुआ... छिपने में माहिर होता है.... लेकिन मारता आखिर में तेंदुआ ही है..... फ़िलहाल हमारा तेंदुआ छुपा हुआ है.....
Update 11, 12 n 13 me 2 karistan hue aur safal hue. Matlab mene abtak jitni thriller stories yaha padhi he wo sabhi apane aap me ek behtarin writing piece thi par nag bhai ki story alag he hai. Bohot khub
 

Thakur

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👉पंद्रहवा अपडेट
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शाम ढल चुकी है, रात परवान चढ़ रही है l एकाम्र रिसॉर्ट को दुल्हन की तरह सजा दी गई है l रौशनी से रिसॉर्ट जग मगा रहा है l अंदर मेहमान आने शुरू हो गए हैं l सारे मेहमानों को महांती के साथ KK बाहर खड़े हो कर स्वागत कर रहे हैं और अंदर पिनाक नौकरों को सबको ठंडा गरम पूछने को हिदायत दे रहा है l विक्रम और वीर एक जगह पर बैठे हुए हैं l
विक्रम - क्या बात है.... राजकुमार.... तुम कब सुधरोगे.... राजकुमार हो... राजकुमार जैसे दिखो तो सही.... सिर्फ धौंस ज़माने के लिए राजकुमार वाला एटिट्यूड दिखाने से क्या होगा..... कपड़ों से और चेहरे से वह रौब और रुतबा झलकना चाहिए....
वीर - अब आप भी... छोटे राजाजी की तरह बोलने लगे....
विक्रम - तो क्या गलत बोलते हैं... छोटे राजाजी...
वीर - xxxxxxx
विक्रम - पार्टी हम दे रहे हैं... हमारे रौब और रुतबा भी अनुरूप होना चाहिए....
वीर - xxxxxxx
विक्रम - राजकुमार जी...
वीर - युवराज जी.... मैं समझ रहा हूँ... चूंकि आपको बोर लग रहा है... इसलिए आप मुझे पका रहे हैं....
विक्रम - xxxxxxx
वीर - आप मुझे समझा नहीं रहे हैं.... बल्कि खीज निकाल रहे हैं....
विक्रम - xxxxxx
वीर - क्या बात है युवराज..... लगता है... आपके दिल में कोई बात है....
विक्रम वहाँ से उठ कर चला जाता है l वीर उसे जाते हुए देखता है l
"राजकुमार" आवाज़ सुन कर वीर पलट कर देखता है l पिनाक उसे इशारे से बुला रहा है l वीर अपने जगह से उठता है और पिनाक के पास जाता है l
वीर - क्या हुआ... छोटे राजा जी.... नौकर चाकर मर गए क्या.... आपको आवाज़ दे कर बुलाना पड़ रहा है.....
पिनाक - कुछ खास लोगों से पहचान करवानी थी.... इसलिए आवाज़ दे कर बुलाया आपको.... इनसे मिलिए... यह हैं छत्तीसगड से रायगड़ के राजा हैं भास्कर सिंह जुदेव....
वीर - प्रणाम... महाराज...
भास्कर - यशस्वी भव... राजकुमार... क्या कर रहे हैं आज कल...
वीर -( एक गहरी सांस लेने के बाद) एम कॉम फाइनल ईयर में हूँ... स्टूडेंट्स यूनियन प्रेसिडेंट हूँ और अभी जो सेक्यूरिटी सर्विस देख रहे हैं अपने इर्द गिर्द मैं उस संस्थान में CEO हूँ...
भास्कर - वाव... ग्रेट.. इतनी सी उम्र में... इतना कुछ..सम्भाल रखा है आपने... वैसे आप इंडिया में क्यूँ पढ़ाई कर रहे हैं.... फॉरेन में क्यूँ नहीं की.....
वीर - (पिनाक पर एक नजर डालने के बाद) अपनी मिट्टी से दूर होने से लोगों के बीच रौब और रुतबा कम हो जाता है....
भास्कर - ठीक.. ठीक... वाह छोटे राजा जी... आपका राजकुमार तो हीरा है..
पिनाक-कोई शक़...
भास्कर - वैसे राजकुमार... मानना पड़ेगा आपके ESS गार्ड्स को.... मैं इस साल झारसुगड़ा में मित्तल ग्रुप के फंक्शन में गेस्ट बन कर गया था... वहीँ पर ESS कमांडोज की डेमॉनस्टेशन देखा था... वाकई किसी भी सरकारी कमांडोज को मात दे सकते हैं....
वीर - शुक्रिया... महाराज जी...
भास्कर - अरे छोटे राजा जी यह राजा साहब कब आयेंगे...
पिनाक - राजा साहब वक्त के साथ नहीं... वक्त राजा साहब के साथ चलता है... घड़ी में कुछ ही सेकंड रह गए हैं... यकीन मानिये... राजा साहब पहुंच ही जायेंगे...
इतने में सभी गार्ड्स मैन गेट के तरफ भागते हैं, एक सफेद रंग की रॉल्स रॉयस आकर रुकती है, जिस पर 0001 का नंबर लिखा हुआ है l जब सारे गार्ड्स अपनी पोजीशन ले लेते हैं तभी भैरव सिंह गाड़ी से उतरता है l KK उसकी गाड़ी का दरवाजा खोलता है l
भैरव सिंह अकड़ और गुरूर के साथ पहनावे को ठीक करते हुए लॉन में बने पंडाल की बढ़ने लगा l सब मेहमान उसे ही देख रहे हैं l पंडाल पर पहुंच कर सीधे अपनी कुर्सी पर बैठ गया l किसीको कोई अभिवादन नहीं किया ना ही किसीको हाथ उठा कर नमस्ते किया l पर सभी मेहमान उसे सम्मान के साथ बधाई भी दे रहा था l पिनाक भास्कर को लेकर पंडाल की ओर बढ़ गया l वीर जा कर विक्रम के पास खड़ा हो गया l
वीर KK को भाग दौड़ करते हुए देख कर विक्रम को कहा - युवराज जी इस पार्टी में होस्ट कौन है और घोस्ट कौन... पता ही नहीं चल रहा है...
विक्रम - ह्म्म्म्म....
पंडाल में पहले दीप प्रज्वलन किया जाता है l फ़िर ग्यारह ओड़िशी नर्तकियाँ मंगला चरण नृत्य प्रस्तुत करते हैं l
विक्रम अपनी जगह से निकला और एक वेटर से दो शराब की बोतल ले कर कहीं बाहर चला जाता है l वीर उसे जाता देख कर उसके पीछे चला जाता है l विक्रम रिसॉर्ट के एक तरफ़ जहां एक नकली झरना बना हुआ है उसके तालाब के किनारे जा कर बैठ जाता है और एक बोतल खोल कर सीधे गटक ने लगता है l उसे देख कर वीर भाग कर जाता है और कहता है
वीर - यह क्या कर रहे हैं राजकुमार... ऐसे रॉ पियेंगे तो लिवर जल जायेगा...
विक्रम - (आधी बोतल गटकने के बाद) जले हुए को क्या जलायेगा...
वीर - युवराज जी... यह आप अपनी ऐसी हालत क्यों बना रखी है...
विक्रम - (उसे देखते हुए ) जानते हो राज कुमार हम दोनों का रिस्ता क्या है....
वीर - हम... भाई हैं... क्षेत्रपाल परिवार के वारिस हैं...
विक्रम - फिर तुम्हें मैं राजकुमार क्यूँ कह रहा हूँ... और तुम मुझे युवराज....
वीर - xxxxxx
विक्रम - क्यूंकि हमे बचपन से यही दिव्य और ब्रह्म ज्ञान दिया गया है... यही पहचान है घर दुनिया के लिए और हर रिश्तों के लिए....
वीर इस बार भी चुप रहता है और विक्रम के पास बैठ जाता है l
विक्रम - हमे यही सिखाया गया... कभी किसीके आगे मत झुकना.... अभी तुमने देखा ना... सब राजा साहब को हाथ जोड़ रहे थे... बधाई दे रहे थे... पर राजा साहब किसीको ना अभिवादन किया... यही उन्होंने हमे विरासत में दी है....
जिसकी वजन के नीचे हमारी आपसी रिश्ते दम तोड़ चुकी हैं..... हम राजा साहब की धौंस को सब पर थोप रहे हैं... यही हमे सिखाया गया है... कोई हमे पहचाने या ना पहचाने पर सबके मन में राजा साहब का डर होना चाहिए... और हमे यह रेस्पांसीबिलीटी दी गई है... के हम राजा साहब की खौफ को जन जन तक पहुंचाए.....
विक्रम बोतल उठाकर उसे खाली कर देता है और खाली बोतल को फेंक देता है l
मैंने उसे टूटकर चाहा.... इतना चाहा कि.... राजा साहब के इच्छा के विरुद्ध जा कर शादी भी की... पर ना उसका प्यार मिला ना उसका दिल जीत सका....
जानते हो.... राजा साहब भी शादी के लिए तैयार क्यूँ हुए.. क्यूंकि उसकी पिता जगबंधु सामंत सिंहार का पार्टी में राजा साहब से भी बड़ा और जबरदस्त रुतबा था.... इसलिए मजबूरी में शादी को राजी हुए.... पर अकड़ देखो ऐसा जैसे किसीके आगे नहीं झुकते....
हम झूट और नकली जिंदगी जी रहे हैं....

वीर विक्रम के कंधे पर अपना हाथ रखता है l विक्रम भी अपना एक हाथ कंधे पर ले कर वीर के हाथ पर रख देता है.
मैं हर सुबह एक आस लिये उठता हूँ... के एक बार... हाँ एक बार... उसकी आँखों में अपने लिए सिर्फ एक बार चाहत देखूँ... उसके लिए मैं कई मौतें मरने के लिए तैयार भी हूँ... पर हर शाम सूरज की तरह मेरी आस भी डूब जाती है... फिर एक नई सुबह के इंतजार में....
उसके और मेरे बीच एक समंदर के जितना फासला है.... उस समंदर के जितना मेरे दिल में उसके लिए प्यार है.... हाँ यह बात और है कि उसी समंदर के जितना मेरे लिए उसके दिल में नफरत है....
विक्रम और एक बोतल खोलता है, वीर उसे रोकने की कोशिश करता है तो विक्रम उसके हाथों को छिटक देता है, और फ़िर बोतल को अपने मुहँ से लगा कर कुछ घूंट पीता है l
विक्रम - राजा साहब उसे बहु नहीं मानते.... भले ही उसे उपर से कभी कभी बहु बुलाते हैं... वह राजगड़ में नहीं रह सकीं तो हम भुवनेश्वर आ गए... और यहाँ हम इतने बड़े घर में सिर्फ़ चार लोग रहते हैं.. हमारी अपनी अपनी चारदीवारी है... पर उस घर में हम एक दूसरे से पीठ किए खड़े हुए हैं और जुड़े हुए हैं....
मैं... भगवान को नहीं मानता, क्यूँकी हम राक्षस हैं.... शायद राक्षस भी बहुत छोटा हो जाएगा हमारे कर्मों के आगे....
तुम पूछ रहे थे ना मैं क्यूँ रंग महल नहीं जा रहा हूँ.... रंग महल में हम क्या बन जाते हैं... हमारे बीच क्या कोई रिस्ता रहता भी है... शराब, कबाब और औरत को वहाँ हम आपस में ऐसे बांटते हैं जैसे भेड़िये गोश्त को आपस में बांटते हैं....
मैं ऊब गया हूँ... इन सब चीजों से.... मेरा इन सबमें ना.... साचुरेशन लेवल पर आ गया है.... हम क्षेत्रपाल हैं... कभी राम की राह पर नहीं चल सकते हैं.... और रावण भी छोटा लगने लगता है... ऐसे कर्म करने लगे हैं....
बस एक ही ख्वाहिश है... एक मुस्कान उसके चेहरे पर, वह भी अपने लिए... एक बार देख लूँ... पर यह अब कभी मुमकिन नहीं होगा...
शादी के फोरॉन बाद जब मुझे पता चला...... कि वह माँ बनने वाली है... तब मैंने कसम खाई की उसके कदमों में दुनिया की हर खुशी ला कर रख दूँ... मैं उस दिन सहर के एक दुकान से सारे खिलौने ख़रीद कर घर ले आया था... पर उसी दिन मुझे मालूम हुआ... उसने मेरे बच्चे को गिरा दिया है....
यह कह कर विक्रम की रुलाई फुट पड़ती है, और वीर यह नई बात जान कर बहुत हैरान हो जाता है l रोते रोते विक्रम बेहोश हो जाता है l वीर अपने चारो तरफ देखता है, कोई उनके तरफ नहीं देख रहा है, शायद उन पर किसीका ध्यान ही नहीं है l वीर विक्रम को अपने कंधे पर उठा कर अपनी गाड़ी के पिछले सीट पर सुला देता है और चारों तरफ नजर दौड़ाता है, सभी लोग पार्टी में इंजॉय कर रहे हैं l वीर गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है और गाड़ी स्टार्ट कर रिसॉर्ट से निकल कर घर की ओर चल देता है l आज विक्रम के बारे में कुछ ऐसा मालूम हुआ है जो उसके दिमाग को हिला कर रख दिया है l वह सोचने लगता है - "युवराज और शुभ्रा भाभी जी के बीच संबंध इतने खराब हैं.... युवराज जी कितने बहादुर हैं, मजबूत हैं... पर अंदर से इतने टूटे हुए.... युवराज जी प्यार करते हैं... टूट कर चाहते हैं.. शुभ्रा भाभी जी को... उनकी एक मुस्कराहट के लिए खुद को मिटा सकते हैं... ऐसा कह रहे थे.... क्या कोई ऐसा कर सकता है..
ओह ऊफ मैं क्यूँ ऐसा सोच रहा हूँ....
नहीं... नहीं
ऐसे सोचते सोचते घर पहुंच जाता है l गाड़ी को पार्क कर पिछला दरवाजा खोलता है, विक्रम गाड़ी से निकाल कर अपने कंधे पर डाल कर घर दरवाजे पर पहुंचता है और बेल बजाता है l एक नौकर दरवाजा खोलता है और किनारे खड़ा हो जाता है l वीर विक्रम को ले कर उसके कमरे में बेड सुला देता है और अपने कमरे की बढ़ जाता है l जैसे ही अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करने को होता है तो देखता है कि विक्रम के कमरे की ओर शुभ्रा को जाते हुए l वीर चुपके से विक्रम के कमरे के बाहर खड़े हो कर अंदर देखता है l कमरे के अंदर शुभ्रा विक्रम के जुते उतार देती है, और बिस्तर पर विक्रम को सही दिशा में सुलाती है फिर उसके ऊपर चादर ओढ़ देती है l शुभ्रा जैसे ही मुड़ती है, वीर दबे पांव में वापस अपने कमरे में वापस आ जाता है और शुभ्रा को विक्रम के कमरे से निकल कर जाते हुए देखता है, शुभ्रा के जाते ही वीर भी अपने कमरे का दरवाजा बंद कर अपने बिस्तर पर गिर जाता है l उसे रह रह कर विक्रम की कही सारी बातेँ याद आ रही है l वह अपने बिस्तर पर बैठ जाता है, इधर उधर नजर दौड़ाने लगता है, उसे उसकी टेबल पर एक पेन स्टैंड पर पड़ती है जो एक क्रिकेट के बल के डिजाइन की थी, उस बॉल नुमा पेन स्टैंड को देखते ही उसे अनु और अनु के हाथ में दो स्माइली बॉल याद आ जाती है l अनु के याद आते ही वीर के होठों पर मुस्कान आ जाती है l वह एक तकिया को सीने से लगा कर अनु को याद करते हुए अपनी आँखे मूँद लेता है l
सुबह नौ बजे वीर की आँखें खुलती हैं तो वह हड़बड़ा कर उठ जाता है l जल्दी जल्दी बाथरूम में फ्रेश हो कर अच्छे कपड़े पहन कर, कंघी कर नीचे दौड़ते हुए उतरता है l डायनिंग टेबल पर सिर्फ विक्रम बैठा था जो दोनों हाथों से अपना सर पकड़ कर बैठा हुआ है, और उसके सामने नींबू पानी का ग्लास रखा हुआ है l विक्रम जैसे ही वीर को देखता है पूछता है - कहाँ चल दिए... राजकुमार जी...
वीर - जी ऑफिस...
विक्रम - ऑफिस....(एक नौकर को इशारा करते हुए) इनके लिए भी निंबु पानी के तीन ग्लास लेकर आओ...
वीर - युवराज जी... आप शायद भूल रहे हैं... कल शराब आपने पी रखी थी... मैं नहीं...
विक्रम - पर नशा आपको हुआ है... राजकुमार जी...
वीर - जी नहीं...
विक्रम - जी हाँ...
वीर - कैसे....
विक्रम - आज सन डे है...
वीर - क्या.... ओ... हाँ... वह मैं... कुछ इंस्पेक्शन करना था इसलिए ऑफिस जा रहा था....
विक्रम - ओ... अच्छा.. ठीक है... जाओ...
वीर - नहीं... आप अगर मना कर रहे हैं... तो नहीं जाता हूँ...
विक्रम - मैंने कब मना किया....
वीर - अभी आपने किया ना.... युवराज जी आपको नशा बहुत जोर का हो गया है.... (नौकर को) ऐ अच्छे से युवराज जी को नींबू की पानी देना... हाँ...
कह कर वीर अपने कमरे की ओर चला जाता है

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तापस ट्रैक शूट पहन कर अपने बैठक में बैठे अख़बार पढ़ रहा है, और प्रतिभा किचन में व्यस्त है, कॉलींग बेल बजती है l
तापस - अरे जानेमन जाने जिगर, जरा ध्यान दो इधर... लगता है कोई आया है... ना जाने क्या खबर लाया है....
प्रतिभा अपने हाथ में एक बेलन लेकर आती है, उसे बेलन की अवतार में देख कर तापस टी पोय पर अखबार रख देता है l
तापस - माँ गो बेलन धारिणी...
जगदंबे तारिणी क्षमा क्षमा
मैं जाता हूँ दरवाजा खोलता हूँ आप रसोई में जाएं हमारे लिए बिना शक्कर वाली चाय लाएं...
प्रतिभा - हो गया आपका...
तापस - हाँ.. हाँ.. वैसे दो चाय लाना...
प्रतिभा - ठीक है...
तापस दरवाजा खोलता है और सामने खान को देख कर
तापस - वाह क्या बात है... वह आए हमारे क्वार्टर में उनकी मेहरबानी और खुदा की कुदरत है...
कभी हम उनको और अपने फटीचर क्वार्टर को देखते हैं....
खान - हा हा हा हा... इरशाद इरशाद...
तापस और खान दोनों बैठक में आते हैं l तापस खान को बैठने का इशारा करता है l खान सोफ़े पर बैठ जाता है l प्रतिभा ट्रे में दो चाय के कप के साथ अंदर आती है l
प्रतिभा - कैसे हैं खान भाई...
खान - नमस्ते भाभी...
प्रतिभा - यह लीजिए चाय... गरमा गरम.. वह भी बिना चीनी के....
खान - वाह भाभी... आपको तो सब याद है...
प्रतिभा - कैसी बात कर रहे हैं... खान भाई... मलकानगिरी में तीन साल हम आपस में पड़ोसी थे....
और आज आपके बहाने से यह भी आज जाफरानी पुलाव खाने वाले हैं....
सब एक साथ हंसते हैं l प्रतिभा वापस किचन में चली जाती है l खान अपने कोट के भीतरी जेब से एक फाइल निकाल कर टीपोय के ऊपर रखता है l फिर धीरे धीरे चाय पीते हुए तापस को देखने लगता है l तापस फाइल पर एक नजर डालकर मजे में चाय पीने लगता है l चाय खतम होने के बाद तापस कप टी पोय पर रख देता है और खान भी अपना कप रख देता है l
तापस - भाई मेरे... मुझ पर ही पुलिसिया तकनीक आजमाओगे...
खान - मतलब तुम जानते हो मैं क्या जानकारी चाहता हूँ...
तापस - देखो तुम मेरे बारे में अच्छे तरह से जानते हो और मैं तुम्हारे बारे में.... तुम्हारे मन में उत्सुकता है... तो जानकारी लो और मिटाओ.... माना कि अब तुम जॉब में हो और मैं नहीं हूँ.... पर हमने कोई क्राइम तो नहीं कि है.... जिस देश का कानून... फांसी की सजा पाने वाले को भी शादी की परमिशन देता हो... उस कानून का मुहाफीज रहा हूँ... और हमने कोई गुनाह नहीं किया है... यह तुम भी जानते हो...
खान - हाँ... मैं बस तुम्हारा कॉन्फिडेंस देखना चाहता था....
खान अपनी जगह से उठता है और कहता है - सेनापति... हम ट्रेनिंग मेट थे... कुछ जगहों में मिलकर काम किया है... हमने नक्सल प्रभावित इलाकों में साथ साथ कुंभींग ऑपरेशन को अंजाम दिया है... बस आखिरी के दस साल तुमसे दूर रहा... पर फिर भी इतना तो कह ही सकता हूँ... तुम्हें गुनहगारों से कितनी नफरत है... इसलिए जब जैल में जाना कि तुम्हें एक कैदी जो कि एक सजायाफ्ता मुजरिम है... उससे लगाव हो गया है... बल्कि उसकी पढ़ाई का भी ध्यान रख रहे हो... और तो और भाभी उसे अपना बेटा मानतीं हैं... तब से दिल में तुम्हारे और उस विश्व प्रताप के बारे में जानने की जिज्ञासा है.... मुझे लगता है... तुम मुझे यह सब बता सकते थे... पर बताया नहीं... क्यूँ...
तापस - उसे ज्ञान फ़ालतू में देना नहीं चाहिए.... जिस के मन में जानने की इच्छा ना हो... इसलिए दोस्त होने के बावजूद जब तक तुमने जानने की इच्छा नहीं की... तब तक मैंने बताने की जरूरत नहीं समझी...
खान - तो अब...
तापस - बताऊँगा जरूर... पर पहले कुछ विषयों पर और तथ्यों पर विमर्ष कर लें....
खान - (सोफ़े पर बैठते हुए) ठीक है....
तापस - हाँ तो पहले यह बताओ... तुमने क्या पता किया और क्या जानना चाहते हो...
खान - पता क्या करना है... मेरे सबअर्डीनेट, कॉलीग सब कहते हैं.... विश्वा ज़रूर बेकसूर है...
तो सवाल है.. अगर बेकसूर है तो.. कोर्ट में रि हियरींग पिटीशन की अर्जी क्यूँ नहीं दी.....
मेरा यार और उसकी बीवी दोनों ही कानून के सिपाही हैं, मुहाफिज हैं.. और तो और जिनके मजबुत दलीलों के दम पर विश्वा सजायाफ्ता है... मेरी भाभी जी उसे अपना बेटा मानते हैं...
वह BA इम्तिहान के लिए पैरॉल में बाहर जाता रहा... उस वक़्त उसके लिए पैरॉल का इंतजाम जयंत चौधरी नामक वकील करता रहा था... उसे जब ट्रेस किया तो पता चला... वह असल में पोलिटिकल सुपारी किलर और ईस्टर्न बेल्ट अंडरवर्ल्ड डॉन डैनी का वक़ील था... अब यहां मैं कैसे मान लूँ की विश्वा बेकसूर रहा होगा... जिसका पैरॉल एक डॉन का वकील कर रहा हो.... सब कहते हैं कि उसने आज से साढ़े चार साल पहले जैल में जो दंगा हुआ था... उसमें तुम्हें और दूसरे पुलिस वालों को बचाया था.... जबकि तुमने खुद रिपोर्ट बनाया है... दंगो में पुलिस व मुज़रिमों की बीच मुठभेड़ हुई थी.... जिससे पुलिस की तरफ से बाषठ राउन्ड गोलियां चली और सारे हथियार बंद अपराधी मारे गए थे....
हाँ और एक बात... एक लड़की जैल विजिटर लिस्ट में वैदेही नाम है उसका... वह आती थी सिर्फ तुमसे मिलकर चली जाती थी... पर जब से भाभी विश्वा से जैल में मिलने गई... उसके बाद वह फिर कभी जैल नहीं गई....
विश्वा जैल में रहकर लॉ किया.... सारा इंतज़ाम उसके लिए भाभी जी ने की.... और तो और (कहकर एक लिफ़ाफ़ा निकाल कर टेबल पर रखते हुए) AIBE इम्तिहान के लिए स्टेट बार काउंसिल से रजिस्ट्रेशन और रिकॉमेंडेशन भी जरूर भाभी ने कराई होगी.... आखिर वे स्वयं भी बार काउंसिल में पोस्ट पर हैं.... अब यह जानने के बाद... किसका सिर नहीं चकराएगा....
तापस - ह्म्म्म्म... खान लगता है... आज तुम सिर्फ दुपहर का खाना ही नहीं.... रात का खाना खा कर ही जाओगे....
खान - ह्म्म्म्म... तो.. फ़िर..
तापस अब सोफ़े से उठता है और अपने बैठक के दीवार पर लगे ओड़िशा के मानचित्र के सामने खड़ा होता है l
तापस - खान..... यह मैप अपना राज्य ओड़िशा की पोलिटिकल मैप है.... क्या तुम मुझे यशपुर या राजगड़ दिखा सकते हो....
खान अपनी जगह से उठ कर तापस के बगल में खड़े हो कर मैप देखने लगता है, फ़िर अपना सर हिला कर ना में इशारा करता है l
तापस - ठीक है... कम से कम यह तो दिखा सकते हो... कहाँ हो सकता है....
खान केंदुझर, देवगड़ और सुंदरगड़ के सीमा पर हाथ रख देता है l
तापस - ठीक... अच्छा यह बताओ तुम राजगड़ के बारे में क्या जानकारी रखते हो...
खान - ज्यादा कुछ नहीं... बस ओड़िशा के राजनीति में जो परिवार अपना दबदबा और दखल रखता है... वह इसी क्षेत्र से आते हैं...
तापस - बिल्कुल सही... कभी सोचा है... एक जगह जिसे मानचित्र में ढूंढे तो नहीं मिलती मगर... ऐसी जगह से आने वाला एक परिवार राज्य की राजनीति में इतना प्रभाव या दखल रखती है.. कैसे और क्यों...
खान - नहीं... कभी.. सोचा नहीं... या यूँ कहूँ कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी....
तापस - ह्म्म्म्म... कभी मेरी सोच भी तुम्हारी ही तरह थी.... पर तब तक.... जब तक विश्व से नहीं जुड़ा था... (खान के तरफ देख कर) आओ अब सोफ़े पर बैठते हैं.....
दोनों आकर सोफ़े पर बैठते हैं l
तापस - खान.... मैं जानता हूं... तुम्हें कोई हैरानी नहीं हुई होगी... जब मैंने तुमसे राजगड़ के पूछा...
खान - नहीं... क्यूंकि मैंने विश्व की फाइल पढ़ी है... वह राजगड़ से है और तुमनें इसलिए राज़गड़ का जिक्र छेड़ा है...
तापस - हाँ... अब कहानी पर आने से पहले... तुम क्षेत्रपाल परिवार के बारे में क्या जानते हो....
खान - (अपना सर ना में हिलाते हुए) नहीं.. कुछ भी नहीं जानता...
तापस - तो तुम पहले इस राजवंश के बारे में सब कुछ जान लो.... फिर मेरी कहानी और भावनाओं को समझ सकोगे....

तापस फ़िर से सोफा छोड़ कर खड़ा होता है, फिर ओड़िशा के मानचित्र के सामने आकर रुक जाता है l कुछ बातेँ हैं जो ओड़िशा को भारत में स्वतंत्र पहचान देती है,अगर सही मानों में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों की सशस्त्र संग्राम की बात करें तो पहली बार 1803 पाइक विद्रोह था भारत का पहला स्वतंत्रता विद्रोह.... पहली भाषा भीतिक राज्य बना ओड़िशा 1936 में.... यहाँ तक रसगुल्ला ओड़िशा का है जो रथयात्रा के बाद लक्ष्मी जी भोग लगाया जाता है... वह ओड़िशा का है.... जिसका इतिहास में ग्यारहवीं शताब्दी में स्पष्ट जिक्र मिलता है और जिसे हाल ही में जियो इंडेक्स का सर्टिफिकेट भी मिला है....
खान - हाँ मैं जानता हूँ... पर इस कहानी में इन सबका क्या काम है....
तापस - जब भोई राजवंश की अगुवाई में सन 1795 से 1803 तक जो पाइक विद्रोह हुआ... उस विद्रोह को दमन करने के लिए पाटना से इस्ट इंडिया के ईस्टर्न रेजिमेंट जब आज के यशपुर के रास्ते खुर्दा जाती थी... तब उनकी असलहा, बारूद व रसद सब लूट ली जाती थी... और वह ग्रुप कोई आम नागरिक का ग्रुप नहीं था... बल्कि डकैतों का गिरोह हुआ करता था... अब अंग्रेज अपने कुट नीति के जरिए उस डकैतों के सरदार के पास सुलह के लिए संदेश भेजा...
उनकी सुलह वाली मीटिंग में यह तय हुआ आज का यशपुर प्रांत के ढाई सौ गांव को उस डाकुओं के सरदार यश वर्धन सिंह को दे दिआ जाएगा.. और उन्हें एक राजा का मान्यता दी जाएगी....
यह डील पक्की होते ही यश वर्धन के ग्रुप अंग्रेजों के साथ दिया.... और ओड़िशा के पतन के साथ एक नए राजवंश सामने आया....
चूंकि वह इलाक़ा बियाबान, बीहड़ व जंगलों से भरा हुआ था... इसलिए ओड़िशा के पतन के बाद वह इलाक़ा अंग्रेजों के काम की नहीं थी.... पर यश वर्धन के काम की थी... उसने अपने नाम के अनुसार उस प्रांत के नाम "यशपुर" रखा... और जहां महल बनाया उस इलाके का नाम राजगड़ रखा... चूंकि अब यश वर्धन राजा था... इसलिए दूसरे राजाओं की तरह उसने भी अपने वंश के लिए एक नया सरनेम जोड़ा "क्षेत्रपाल"... यह है इस राज वंश की आरंभ की कहानी.... अंग्रेजों ने क्षेत्रपाल की राज पाठ व झंडा को मान्यता दे दी...
खान - ठीक है... पर विश्व से उस राजवंश का क्या संबंध...
तापस - बताता हूँ...आजादी के बाद जब भारत में लोक तंत्र के लिए चुनाव कराए जाने लगे, तो जाहिर है यश पुर इससे अछूता नहीं रह सका... तब सारे राज पाठ भारत में खत्म किए जा रहे थे.... इसलिए शासन दंड को हाथों में रखने के लिए.... यश पुर के तत्कालीन राजा सौरभ सिंह क्षेत्रपाल भैरव सिंह क्षेत्रपाल के परदादा जी ने भी चुनाव लड़ने का निश्चय किया.... तब राजगड़ के एक स्कूल शिक्षक लंबोदर पाइकराय लोक तंत्र की मंत्र व शक्ति को लोगों तक पहुंचाने के लिए कमर कस ली... वे चुनाव में सौरभ सिंह के खिलाफ़ लड़े.... नतीज़ा.... लंबोदर भारी मतों से जीत दर्ज की.....
राजा सौरभ सिंह को अंदाजा नहीं था के लोग उसे हरा देंगे.... उसकी हार पूरे यशपुर पर अभिशाप बन कर टूटा... सौरभ सिंह ने हार की शर्म के मारे आत्म हत्या कर ली... उस दिन लोग लंबोदर के जीत के साथ राज साही से आजादी की जश्न दिन भर मनाते रहे.... फ़िर आई वह काली रात.... जिसकी सुबह आज तक यश पुर वाले नहीं देखे हैं... (इतना कह कर तापस थोड़ी देर चुप रहा) उस रात सौरभ सिंह का बेटा रुद्र सिंह क्षेत्रपाल का अहम तांडव बनकर पूरे राज गड़ में नाचा.... रुद्र सिंह अपने सारे लोगों को इकट्ठा किया और सबसे पहले लंबोदर पाइकराय को पूरे राजगड़ में घोड़ों से बाँध कर गली गली खिंचा... फ़िर उसके बीवी और बहनों को उठा कर ले गया.... पाइकराय परिवार के सारे मर्द उस रात मारे गए.... और औरतों का बलात्कार होता रहा... तुम्हें शायद यकीन ना आये... उन औरतों से जनम लेने वाली ल़डकियों के साथ भी वही सलूक किया जाता रहा.... कुछ देर पहले तुमने वैदेही का जिक्र किया था ना.... यह वैदेही क्षेत्रपाल व पाइकराय परिवार की अंतिम बायोलॉजीकाल पीढ़ी है....
खान - या.. अल्लाह... (अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया)
तापस - मैंने तुम्हें उस परिवार की इतिहास इसलिए बताई... ताकि तुम उसे वर्तमान से जोड़ कर देख सको...

👉सोलहवां अपडेट
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खान - क्षेत्रपाल परिवार का इतिहास, राजगड़, और विश्वा और वर्तमान... आपस में जुड़े हुए हैं...


तापस - हाँ.... और.. विश्वा.. इतिहास को एक नई दिशा देगा.... भूगोल भी बदल जाएगा....
प्रतिभा अब बैठक में आती है, एक थाली को चम्मच से बजते हुए
प्रतिभा - सॉरी फर इंट्रेपशन.... खाना तैयार है... अब जो भी कहना सुनना है... सब खाने के बाद....
खान - हाँ.. हाँ... क्यूँ नहीं....
प्रतिभा - वैसे खान भाई साहब.... आज रात का खाना खा कर ही जाइएगा....
खान - क्यूं...
प्रतिभा - क्यूंकि आप के सारे सवालों का ज़वाब मिलते मिलते रात हो जायेगी....
तापस - हाँ भाई... खाने के टेबल पर भी... बात चित हो सकती है... चलो...
प्रतिभा - नहीं बिलकुल नहीं..... खाना खाने के बाद....
तापस - जैसी आपकी आज्ञा देवी जी.....
प्रतिभा - हाँ... हो गया.... चलो यार... खाना न मिलने से अच्छा है... की पहले पेट भर लेते हैं....

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रॉकी - (फोन पर) अरे... यार... यह बीच बीच में सन डे क्यूँ आता है यार....
आशीष - (फोन पर) अबे साले रोमियो की औलाद.... तूने अपनी जिंदगी बर्बाद करने की ठानी है.... तो ठीक है.... कमीने हमे भी उसमें घसीट कर..... हमारा रात, दिन, दिमाग और टाइम भी बर्बाद कर रहा है.....
रॉकी - ऑए... मुझे रोमियो ना बुलाईयो.... अबे रोमियो तो विदेशी है.... अपन... फूल टुस देसी... समझा क्या....
आशीष - अबे मैं तो समझ गया.... पर देसी लवर ऐसा कौन है बे... जिसने इश्क़ के मैदान में झंडे गाड़े हों....
रॉकी - अबे... तू कम्बख्त है, बदबख्त है... कमीने... हर मिट्टी की अपनी प्यार कहानी होती है.... उसमें सिर्फ प्यार, प्यार और प्यार की खुशबु होती है....
आशीष - हाँ तो बोल ना... अपनी ओड़िशा के मिट्टी में कौनसी प्रेम कहानी की खुशबु तैर रही है....
रॉकी - अबे... तुम जैसों को तो गोली मार देनी चाहिए.... अपनी मिट्टी की अमर प्रेम कहानी है केदार गौरी की....
आशीष - ठीक है ठीक है... तो आशिक केदार की औलाद... आज तू मेरा दिन खराब क्यूँ कर रहा है.... अबे साले हफ्ते में एक ही तो दिन आता है... जब जितना मर्जी हम सो सकते हैं... मेरा यह दिन क्यूँ बर्बाद कर रहा है....
रॉकी - अबे... सुनना...
आशीष - नहीं.. बिल्कुल.. नहीं... मैं फोन स्विच ऑफ कर रहा हूँ... अगर कुछ काम आए तो... मेरे घर पहुंच जाईयो....
इतना कह कर आशीष अपना फोन ऑफ कर देता है, जैसे ही आशीष फोन काट देता है, रॉकी अपना मुहँ बना कर फोन रख देता है

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विक्रम तैयार हो कर डायनिंग टेबल पर आता है, देखता है कोई नहीं है वहाँ
विक्रम - (एक नौकर से) आज लंच के लिए अभी तक कोई आया क्यूँ नहीं है....
नौकर - जी युवराज जी.... मालकिन अपनी और राजकुमारी जी के लिए खाना... बेड रूम में ही मंगवा लिया है....
विक्रम - ओह.....
नौकर टेबल पर प्लेट लगाता है तो विक्रम उसे पूछता है
विक्रम - अच्छा.... वो राज कुमार जी... उन्होंने खाना खा लिया क्या...
नौकर - जी.... अभी तक वह भी नहीं आये हैं....
विक्रम - अच्छा तुम अभी प्लेट मत लगाओ.... मैं राजकुमार जी को बुला कर लता हूँ...
नौकर - जी... आप क्यूँ... तकलीफ कर रहे हैं... युवराज जी... मैं उन्हें आपका सन्देशा दे दूँगा...
विक्रम - अरे नहीं.... अपने ही घर में... अपने ही भाई को बुलाने जा रहा हूँ.... तुम रुको थोड़ी देर....

इधर शुभ्रा के कमरे में एक टेबल पर शुभ्रा और नंदिनी दोनों बैठ कर खाना खा रहे हैं
शुभ्रा - हाँ तो रूप... कहो कैसे चल रही है आपकी कॉलेज लाइफ...
नंदिनी - भाभी... आप मुझे नंदिनी बुलाने की आदत डाल लो ना....
शुभ्रा - ठीक है नंदिनी जी... कहिए... आज कल...
नंदिनी - अच्छी चल रही है... भाभी... एकदम मस्त.....
शुभ्रा - वह.... तुम्हारे कॉलेज का हीरो कैसा है....
नंदिनी - अच्छा ही होगा....
शुभ्रा - अच्छा ही होगा मतलब...
नंदिनी - क्या मतलब....
शुभ्रा - अरे आज कल तुम्हारे पीछे... मंडराता है या नहीं....
नंदिनी - भाभी... आप कहाना क्या चाहते हो...
शुभ्रा - अरे अब वह कॉलेज का हीरो है... और हमारी नंदिनी कॉलेज की सबसे खूब सूरत लड़की...
नंदिनी - भाभी... ऐसा कुछ नहीं है..... हाँ...
शुभ्रा - क्यूँ...
नंदिनी - भाभी... अब वास्तव में आयें.... मेरी शादी राजा साहब ने तय कर दिया है... इसलिए मैं अपनी आँखों में इस तरह के सपने और दिल में ख्वाहिशों को पलने नहीं दे रही....
शुभ्रा - ह्म्म्म्म....
नंदिनी - रॉकी... अच्छा लड़का है.... शायद कोई भी आम लड़की उसे पाना चाहेगी.... पर वह मेरे टाइप का नहीं है....
शुभ्रा - और तेरे टाइप का कौन है......
नंदिनी - पता नहीं क्यूंकि इस विषय में... मैं कोई आम लड़की नहीं हूँ... मैं खास हूँ....
शुभ्रा - (हंस कर) याद है... पिछले हफ्ते हम क्यूँ खास हैं... आम क्यूँ नहीं है... इस बात पर तु कितनी अपसेट थी....
नंदिनी - पर सच्चाई यही है... की मैं आम लड़की नहीं हूँ.... और मेरी शादी तय हो चुकी है....
शुभ्रा - अच्छा... फ़र्ज़ कर तुझे किसीसे प्यार हो जाए.... मतलब अगर तुझे तेरे टाइप का मिल गया तो...
नंदिनी - भाभी... ऐसा शायद... कोई है नहीं....
शुभ्रा - क्यूँ.....
नंदिनी - मुझे इम्प्रेस कर सके ऐसा मर्द कोई नहीं है...
शुभ्रा - क्यूँ.... तुझे अपनी जीवन साथी के लिए किस तरह का मर्द होना चहिये ....
नंदिनी - कोई ऐसा जो मेरे बाप राजा साहब के आँखों में... आँखे डाल कर बात कर सके... जिसके आगे मेरे बाप की अकड़ घुटने टेक् दे...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म तब तो रॉकी ही क्या... कोई भी नहीं होगा...
नंदिनी - तभी तो मैंने कहा.... मैं ऐसी ख्वाहिशों को ना अपने दिल में पलने देती हूँ और ना ही आँखों में सपनों को इजाजत देती हूँ..

इधर वीर अपने बेड पर लेटा हुआ मोबाइल की स्क्रीन को स्क्रोल कर रहा है और चिढ़ रहा है उधर विक्रम वीर के कमरे के बाहर आकर खड़ा होता है l कुछ सोचने के बाद दरवाजे पर दस्तक देता है l अंदर से
वीर - कौन है...
विक्रम - मैं हूँ...
वीर - कौन....
विक्रम - राजकुमार जी मैं हूँ...
वीर दरवाजा खोलता है, सामने विक्रम को देख कर
वीर - अरे युवराज जी आप... यहाँ...
विक्रम - हाँ.. वो... तुम खाना खाने नीचे नहीं आए तो... बुलाने आ गया....
वीर - आप बुलाने आए हैं....
विक्रम - हाँ... क्यूँ तुम्हें अच्छा नहीं लगा....
वीर - नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है... पर.. शायद हम आज तक परिवार के हर सदस्य तक ख़बरें पहुंचाई है..... कभी ख़बर लेकर नहीं गए किसीके पास....
विक्रम - हाँ... शायद इसलिए हम एक ही छत के नीचे... एक दूसरे से अजनबी ही रहे हैं... अबतक..... क्या तुम... चलोगे डायनिंग टेबल पर मेरा साथ देने....
वीर - हाँ हाँ क्यों नहीं.....
वीर अपने कमरे से निकल कर विक्रम के साथ चल देता है l दोनों डायनिंग टेबल पर पहुंचते हैं l नौकर दोनों के लिए प्लेट लगाता है और खाना परोसता है l
विक्रम - राजकुमार लगता है... किसी बात की कोई खीज है आपके मन में....
वीर - ऐसी बात नहीं... युवराज जी.... सोच रहा था... की कल मुझे भी आपके ही तरह पी कर लुढ़क जाना चाहिए था....
विक्रम - ऐसा क्यूँ....
वीर - मुझे इतनी जल्दी उठने की आदत नहीं थी... पिछले कुछ दिनों से यह आदत पड़ गई.... कास कल शनिवार था यह याद होता.... तो मैं भी पी कर अभी तक सोया रहता...
विक्रम - जल्दी उठना अच्छी आदत है...
वीर-मेरे लिए नहीं... वक्त बर्बाद होता है... टाइम स्पेंड ही नहीं होता..
विक्रम - तो इसलिए खीज गए थे....
वीर - जी युवराज जी... फोन पर इतने नंबर हैं... पर बातेँ करने लायक कोई नहीं... सब या तो नौकर चाकर हैं या फिर हमारे मुलाजिम....
विक्रम - ठीक कहा आपने... हमारे या तो नौकर, चाकर, मुलाजिम हो सकते हैं या फिर दुश्मन... कोई दोस्त नहीं है... या फिर हमने बनाए नहीं....
इतने में एक नौकर आकर वहां खड़ा होता है,
विक्रम - क्या हुआ...
नौकर - जी महांती बाबु आए हैं... कह रहे थे.. कुछ जानकारी हाथ लगे हैं...
विक्रम - उन्हें बिठाओ खाने को पूछो और ठंडा गरम पूछो... हम पहुंच रहे हैं....

बैठक में महांती अपने हाथ में फाइल लिए बैठा हुआ है, बार बार अपनी घड़ी देख रहा है, नौकर आकर खाने पीने के लिए पूछता है तो वह मना कर देता है l नौकर के जाते ही महांती उस बड़े से बैठक में टहलता रहता है l फिर टहलते टहलते एक बड़े से तस्वीर के सामने आकर खड़ा हो जाता है l वह फोटो भैरव सिंह की एक आदमकद तस्वीर है, जिसमें भैरव सिंह एक सिंहासन पर बैठा हुआ है और उसके पैरों के नीचे एक बड़ा सा बाघ लेटा हुआ है l महांती उस तस्वीर में खोया हुआ है कि उसे उस तस्वीर में दो अक्स की छाया दिखती है l महांती मुड़ कर देखता है विक्रम और वीर दोनों आकर सोफा पर बैठ चुके हैं l
महांती - गुड आफ्टर नून युवराज जी... गुड आफ्टर नून राजकुमार जी....
विक्रम - गुड आफ्टर नून महांती.... तुमने खाने से मना कर दिया...
महांती - जी वो मैं खा कर ही निकला था....
विक्रम - ठीक है... अब बताओ.... क्या जानकारी लाए हो....
महांती विक्रम के सामने पड़ी छोटे टेबल पर अपना फाइल रखता है और उसमें से चार फोटो निकाल कर टेबल पर रख देता है l
महांती - यह वही लोग हैं... जो गुरुवार को छोटे राजा जी पर हादसे को अंजाम दिया था....
वीर तुरंत उन फोटो पर झुक जाता है और महांती से - महांती तुम्हें उनके लाशें लानी चाहिए थी... ना कि यह फोटोज..
महांती - राजकुमार जी यह लोग ट्रेस हो गए हैं... और हमारे सर्विलांस पर हैं.... हम जब चाहें इन्हें दबोच सकते हैं... पर युवराज जी ने कहा था कि पता लगा कर नजर रखने के लिए.... इसलिए... हमने उन्हें छोड़ रखा है....
विक्रम - राजकुमार जी... महांती सही कह रहा है.... जो आदमी छोटे राजा जी पर हमला करवाया है... वह इतनी आसानी से सामने नहीं आएगा.... हाँ तो महांती कैसे खोजा इन्हें तुमने और क्या पता लगाया है इनके बारे में...
महांती - युवराज... उस दिन की हादसे को देख कर... हमे इतना तो मालूम हो गया था की उन्होंने हादसे के लिए उसी जगह को पहले से ही मुकर्रर कर लीआ था..... और हमले के लिए जरूर रेकी की होगी.... इसलिए हम हमले के दिन व हमले के एक महीने पहले तक के.... उस एरिया के सारे सीसीटीवी फूटेज हासिल कर ली... वह चार सनाइपर्स हैं... प्रोफेशनल हैं... पैसा उठा कर किसी का भी गेम कर सकते हैं...
विक्रम - सबूत कुछ छोड़ा था क्या...
महांती - नहीं... उनके हिसाब से तो नहीं...
वीर - फिर... तुमने कैसे पता लगा लिया.....
महांती - क्यूँ की... हम अपने काम में प्रोफेशनल हैं...
विक्रम - शाबाश... महांती... अब बताओ कैसे पता लगाया...
महांती - चारों अपनी अपनी जगह चुन लेने के बाद... वहाँ पहुंचने के लिए कोई जोमाटो डिलिवरी बॉय, कोई इलेक्ट्रिसियन तो कोई टेलीफोन रिपैरींग वाला बन कर गए थे.... चूंकि महीने भर से किसी ना किसी रूप में जगह की रेकी कर रहे थे... इसलिए बारीकी से चेक करने पर नजर में आ गए...
वीर - महांती.... अगर वो प्रोफेशनल थे... फिर इतनी आसानी से कैसे तुम्हारे नजर में आ गए...
महांती - आसानी से कहाँ... राजकुमार जी... वे बहुत ही चालाक थे.... वह अपनी अपनी जगह के लिए दूसरों से रेकी कारवाई थी.... अगर हमने महीने भर की फुटेज चेक ना किया होता तो उनको ट्रेस करना बहुत ही मुश्किल था.....
विक्रम - (ताली बजाते हुए) वाव महांती वाव... गुड जॉब...
महांती - थैंक्यू युवराज जी... अब आगे क्या करना है....
विक्रम - उन्हें हाथ मत लगाओ.... बस उनकी अगले स्टेप की इंतजार करते हैं....

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लंच खतम हो चुका है l प्रतिभा ने सारे बर्तन समेट कर किचन चली गई l अब सोफ़े पर दो मित्र आकर बैठ जाते हैं l
खान - क्षेत्रपाल परिवार का इतना क्रुर इतिहास रहा है....
तापस - अभी खतम कहाँ हुई है... इतिहास को और थोड़ा क्रूरता देखना बाकी था....
खान - क्या मतलब...
तापस - चूंकि सौरभ सिंह की हार और लंबोदर पाइकराय की जीत का उत्सव दिन में मनाया गया था... और उसकी सदमें में सौरभ सिंह दिन में आत्म हत्या की थी.... इसलिए रुद्र सिंह ने घोषणा की के राजगड़ में आम जनता कभी भी दिन में उत्सव या मातम नहीं मना पाएंगे..... उस दिन के बाद राजगड़ में आज तक शादी, जन्म दिन या शव का दाह संस्कार सब आधी रात के समय की जाती है... और बहुत ही कम लोगों की उपस्थिति में.....
खान - व्हाट...
तापस - हाँ... और एक वक़्त दहशत इतनी थी लोगों में की लड़की की माहवारी की उम्र शुरू होती थी... तब से लड़की को घर में बंद कर रख देते थे और यहाँ तक लड़की को काले रंग लगा कर छुपा कर रखते थे....
खान - इंपसिबल... ऐसा हुआ था... या तुम बढ़ा चढ़ा के पेश कर रहे हो....
तापस - मैं... तुम्हें कोई कोरी बकवास नहीं सुना रहा हूँ... आज जब हम सिक्स्थ जेनेरेशन की तकनीक से खुद को विकसित कर रहे हैं..... वहीँ हमारे देश में एक ऐसा प्रांत है... जिसे देख कर लगता है.. जैसे वह प्रांत हमारे ग्रह की है ही नहीं.....
खान - क्या कभी किसी सरकार ने सुध नहीं ली....
तापस - यहीं पर क्षेत्रपाल परिवार चालाकी कर गई.... रुद्र सिंह दूर की सोच कर... किंग् मेकर बनने का प्लान बनाया....
उसकी दहशत इस कदर लोगों के मन में घर कर गई..... के रुद्र सिंह का फरमान ही काफी होता था... किसीको वोट देने के लिए...
इस तरह सरकार व सरकारी संस्थाओं में अपनी पैठ ज़माने लगा... इस परंपरा को रुद्र सिंह के बाद नागेंद्र सिंह और नागेंद्र सिंह के बाद अब भैरव सिंह आगे बढ़ा रहा है.... वैसे नागेंद्र सिंह जिंदा है... पर पैरालाइज है....
खान - खैर... दोस्त..विश्वा की केस हिस्ट्री में.... कहीं पर भी क्षेत्रपाल परिवार का जिक्र नहीं आता....
तापस - कैसे आएगा.... जब सारे संस्थान क्षेत्रपाल के उंगलियों पर नाच रहें हो... खान... यार जरा सोचो... एक एक इक्कीस वर्ष का नौजवान.... जो सिर्फ इंटर तक पढ़ा है... वह भी अव्वल नम्बरों से और राजगड़ पंचायत का सरपंच बनता है और तो और सिर्फ़ एक ही वर्ष में इतना क़ाबिल हो जाता है कि वह दो सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर पुरे यश पुर कस्बे में खर्च होने वाले पांच साल की राशि साढ़े सात सौ करोड़ रुपए गवन कर देता है... क्या तुम इस फैब्रिकेटेड थ्योरी को मान सकते हो...
खान सोच में पड़ जाता है और चुप रहता है l
तापस - देखा... हो गए ना लाज़वाब.... सच पूछो तो मैं भी... मैं क्या प्रतिभा भी इस झूट को सच ही मान कर चले थे... पर हमारे जीवन में जो भूचाल आया... तो मैंने अपने तरफ से पर्सनल एंक्वेरी की... तब हाती का वह दांत दिखा... जिसे छुपाया गया था....
खान - हाँ... तुम्हारे... थ्योरी में दम तो है.... सच कहूँ तो... विश्वा की केस फाइल देख कर लग ही नहीं रहा था... पर अब वाकई मैं लाज़वाब हूँ....
तापस - विश्वा... क्षेत्रपाल के ट्रैप में फंस गया था.... लेकिन विश्वा अपनी पर्सनल लड़ाई के चलते भैरव सिंह से नहीं टकराया था.... वह लड़ाई भी राजगड़ के लोगों की थी... जिसमें वह अभिमन्यु बन गया...
खान - एक बात मेरे समझ में नहीं आया....
खान का इसतरह बीच में पूछे जाने पर तापस उसे सवालिया नजर से देखता है
खान - रुद्र सिंह और नागेंद्र सिंह के परंपरा को..... आगे बढ़ाते हुए अगर भैरव सिंह उसी दहशत को कायम रखा.... फिर ऐसी क्या वजह हुई कि क्षेत्रपाल परिवार को... राजनीति में सीधे आना पड़ा....
तापस - उसका सिर्फ एक ही ज़वाब है..... विश्वा....
खान - विश्वा.... कैसे...
तापस - साढ़े सात सौ करोड़ कोई मामुली रकम नहीं है.... उसे डकार ने के लिए अपना दायरा राजगड़ से बाहर राजधानी भुवनेश्वर तक लाना जरूरी था....
और विश्वा एक साधारण आदमी हो कर भी जिस तरह से भैरव सिंह को कानून की चपेट में लाने की कोशिश की.... फ्यूचर सैफटी के लिए क्षेत्रपाल परिवार को सीधे राजनीति से जुड़ना मजबूरी बन गया.....
खान - ओह.... विश्वा.. का कानून पढ़ने की वजह यह है....
तापस - हाँ भी और नहीं भी...
खान - तुम मुझे कंफ्यूज कर रहे हो.....
तापस - नहीं... जब हमारी कहानी जान जाओगे.... तब तुम्हारी सारी कंफ्यूजन दूर हो जाएगी....
खान - तो फिर बताओ... विश्वा की कहानी....
तापस - ना... विश्वा के राजगड़ वाली कहानी नहीं बता सकता... सच कहूँ तो... उसकी कहानी हमने कभी विश्वा से पूछा ही नहीं.... इसलिए मैं सिर्फ विशु का विश्वा बनना.... और कैसे विश्वा हमारे जीवन में आया,... हमसे जुड़ कर हमारा हिस्सा बन गया.... यही बता सकता हूँ...
खान - तो फिर तुम... इस निष्कर्ष पर कैसे पहुँचे.... के विश्वा बेकसूर है....
तापस - तुम खुद समझ जाओगे....
अब कहानी फ्लैश बैक में जाएगी l बेशक फ्लैश बैक को प्रस्तुति तापस की है पर यह कहानीकार की नजरिए से प्रस्तुत होगा l

सात साल पहले..

तापस को भुवनेश्वर जैल की चार्ज लेते हुए दो साल हो चुके हैं l उसकी सरकारी क्वार्टर में एक दिन सुबह,
प्रतिभा एक कमरे में आती है, उस कमरे में बेड पर एक लड़का सोया हुआ है जिसे प्रतिभा हिला कर उठाने की कोशिश करती है l
प्रतिभा - उठिए डॉक्टर साहब... आज कॉलेज नहीं जाना है क्या...
लड़का - माँ.... थोड़ी देर और सोने दो ना....
प्रतिभा - क्या... अररे.. डॉक्टर साहब आप ऐसे सो जाएंगे तो आगे चलकर आपके पास कोई मरीज़ नहीं आएगा...
"प्रत्युष" बाहर एक कड़क आवाज आती है l जिसे सुनते ही वह लड़का बेड छोड़ कर सीधे अपने रूम के अटैच बाथ रूम में घुस जाता है l प्रतिभा उसकी यह हालत देख कर हंसती हुई बाहर आती है l
बाहर तापस बैठ कर अखबार पढ़ते हुए चाय की चुस्की ले रहा है l
तापस - देखा जान.... सिर्फ़ एक ही आवाज़ से बेटा एकदम फुर्तीला हो गया...
प्रतिभा - आप भी ना उसे बेवजह डराते रहते हो....
तापस - अरे कहाँ... तुम उसे दब्बू बना रही थी... मैं उसमें स्पाइडर मैन की चुस्ती भर दिया...
प्रतिभा - हाँ.. हाँ... आप सुपर मैन जो ठहरे...
तापस - क्यूँ.. झूट बोल रही हो... तुम माँ बेटे दोनों... मुझे मेरे पीठ के पीछे हिटलर कहते हो.... तुम क्या समझती हो... मुझे कुछ नहीं पता...
प्रतिभा - हाँ... तो... क्या झूट... बोलते हैं हम... जब देखो मेरे मेरे बच्चे के पीछे पड़े रहते हो.... जैल में चोर डाकू शायद आपसे संभलते नहीं... इसलिए चले हैं मेरे बेटे पर... अपना रौब झाड़ने...
तापस - हाँ... हाँ... वह तो बस आपका ही बेटा है... हमारा कुछ भी नहीं....
"गुड मॉर्निंग डैड" दोनों की बहस के बीच यह आवाज़ सुनाई देता है l
तापस - गुड मॉर्निंग बेटा... चलो मुझे जॉइन करो नाश्ते में...
प्रत्युष - जी...
प्रतिभा - अरे वाह... शुरू हो गए बाप बेटे... और मुझ दुखियारी को किनारे कर दिया...
प्रत्युष - ओह माँ... आप से ही सुबह शुभ होती है... उम्म्म्म्म (कह कर प्रतिभा के गाल को चूम लेता है)
प्रतिभा - जगन...
जगन - जी माजी...
प्रतिभा - चलो सबका प्लेट लगा दो...
जगन - जी माजी... अभी लगाता हूँ...
सभी डायनिंग टेबल पर बैठे हुए हैं l जगन सबको नाश्ता परोस देता है l
तापस - अरे जगन... टीवी जरा लगा दो....नाश्ता करते वक्त न्यूज सुनने का मजा ही कुछ और है...
प्रतिभा - हाँ जगन लगा दे टीवी.... इनकी बड़बड़ सुनने से अच्छा है... देश दुनिया की खबर जान लेना...
जगन टीवी ऑन कर उसमें एक न्यूज चैनल लगा देता है l सुबह सुबह उस न्यूज चैनल में ब्रेकिंग न्यूज चल रही है
"आज की बड़ी खबर... राजगड़ में बहुत ही बड़ी पैसों की हेरा फेरी सामने आई है l पिछ्ले कुछ वर्षों से मनरेगा और ब्लॉक उन्नयन के लिए सरकार की ओर से नियमित दिआ जा रहा पैसों को कुछ सरकारी अधिकारियों के मिली भगत से दबा कर रखा गया था l राजगड़ के नए सरपंच श्री विश्व प्रताप महापात्र के साथ मिल कर करीब साढ़े साथ सौ करोड़ रुपये गवन कर लिए l हमारे संवाददाता के अनुसार यह भेद खुलते ही कुछ अधिकारी भाग गए हैं l पर पुलिस की सूझ बुझ से सरपंच विश्व प्रताप धर लिए गए हैं l राजगड़ के एक पुलिस अधिकारी ने हमारे संवाददाता बताया है कि श्री विश्व प्रताप अपने सहयोगियों के साथ भाग रहे थे, इसलिए मजबूरन पुलिस को गोली चलानी पड़ी l सारे सहयोगी तो भाग गए पर गोली पांव में लगने के वजह से विश्व प्रताप पुलिस के हाथ लगे l अब मुख्य मंत्री जी ने इस केस को सीधे हाई कोर्ट में चलाने का निर्देश दिया है l
हमसे जुड़े रहें, ब्रेक के बाद हम इस केस से जुड़े तथ्यों को आगे और बतायेंगे"

यह देखकर प्रत्युष - टीवी पर वह सरपंच मेरे ही उम्र का लग रहा है.. है ना माँ...
प्रतिभा - है भगवान... इतना बड़ा जुर्म वो भी इतनी छोटी उम्र में... वैसे तेरे डैड की तो लॉटरी लग गई...
तापस - क्यूँ भई... इसमें लॉटरी लगने वाली बात कहाँ से आ गई....
प्रतिभा - अरे चीफ मिनिस्टर जी कहा है कि... इस केस की सुनवाई हाई कोर्ट में हो... तो इसका मतलब तो यह हुआ ना... वह मुजरिम आपका मेहमान होगा....
तापस - अरे यार... तुम कहाँ की बाते कहाँ जोड़ रही हो... जब फील्ड में था... मुज़रिमों से मेरा कड़क व्यवहार के चलते... मुझे तीन तीन ऑफिसीयल वॉर्निंग के बाद जब मैं सुधर ना पाया..... तो जैल में पोस्टिंग कर दी... ताकि मेरी BP हमेशा अब नॉर्मल रहे...
सब जानते हैं... मुझे मुज़रिमों से कितना चिढ़ है... पर डिपार्टमेंट की नजाने मुझसे कौनसी दुश्मनी है कि मुझे सीधे जैल में पोस्टिंग कर दिए...
यह सुनते ही माँ बेटे दोनों हंस देते हैं l फिर अपना नाश्ता खतम करने के बाद,
प्रत्युष - ओके माँ.. ओके डैड... मैं कॉलेज के लिए निकालता हूँ...
प्रतिभा - रुक ना मैं उसी रास्ते से जाऊँगी... तुझे छोड़ दूंगी...
प्रत्युष - ना माँ.. आप जब भी मुझे कॉलेज में छोड़ती हो... सब मुझे ममास् बॉय कह कर चिढ़ाते हैं.... वैसे भी बड़ा हो रहा हूँ... बच्चा तो नहीं हूँ... चला जाऊँगा...
प्रतिभा - अच्छा वो चिढ़ाते हैं.... तो तुझे बुरा लगता है.... अररे मैदान ए जंग में माई का लाल को चैलेंज दिआ जाता है... समझा... और ममास् बॉय को हिंदी में क्या कहते हैं... बता जरा...
प्रत्युष - (हाथ जोड़ कर) मेरी वकील माँ... मुझसे बड़ी गलती हो गई... अब मुझे बक्स दो.. और मुझे अपने दोस्तों के साथ जाने दो ना प्लीज l
तापस - ठीक ही तो कह रहा है.... उसे अपने दोस्तों के साथ एंजॉय करने दो... जाओ... बेटे.. एंजॉय योर डे..
प्रत्युष - ओह थैंक्स डैड...
इतना कह कर प्रत्युष निकल जाता है l उसके जाते ही
प्रतिभा - ऐसे मौकों पर.. हमेशा आप उसके साथ देते हैं...
तापस - ओह कॉम ऑन... इस उम्र में... बच्चों को अपने दोस्तों का साथ बहुत अच्छा लगता है.. यू नो इट... तुमने भी तो कॉलेज लाइफ एंजॉय किया है...
प्रतिभा मुहँ फूला कर बैठ जाती है l उसका मुहँ बुलाना देख कर तापस हंस देता है
तापस हंसता देख कर प्रतिभा अपनी आँखे सिकुड़ कर गुस्से से देखती है l तापस को वहाँ से खिसकने में ही अपनी भलाई दिखी l वह धीरे से निकलने लगता है कि उसका मोबाइल बजने लगता है l
तापस - (अपना मोबाइल उठाता है, एक अंजान नंबर देखता है ) हैलो,...
फोन - सुपरिटेंडेंट सेनापति जी बोल रहे हैं...
तापस - जी... आप कौन...
फोन - मैं... इंस्पेक्टर राजगड़ से.... हम कटक के ××××× हस्पताल से बोल रहा हूँ..
तापस - कहिये... मुझे क्यूँ फोन किया...
फोन - आपके हवाले एक सरकारी मुजरिम करना है... यह प्रोटोकोल है... इसलिए आपको फोन किया है...
तापस - कहीं.. वो साढ़े सात सौ करोड़ फ्रॉड केस वाला तो नहीं...
फोन - जी... वही है..
तापस - ठीक है... मुझे पहुंचते पहुंचते दुपहर हो जाएगी....
फोन - जी ठीक है... हम इंतजार कर लेंगे.... जय हिंद..
तापस - जी बेहतर... जय हिंद....
तापस एक गहरी सांस लेकर सोफ़े पर बैठ जाता है, प्रतिभा अब तक उसे देख रही थी और फोन पर हुए तापस की बातों से उसे अंदाजा हो गया था, तापस को अब सरकारी फरमान के वजह से अब वो करना है जो तापस को बिल्कुल पसंद नहीं है l
तापस सोफ़े पर अपनी आँखे मूँद कर बैठा हुआ है, प्रतिभा उसके पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखती है l
प्रतिभा - एक काम करते हैं... हम मिलकर कटक जाते हैं... जब तक आप उसे रिसीव कर लेंगे.. मैं अपना काम निपटा लुंगी.. फ़िर हम मिलकर वापस आ जाएंगे....
तापस अपना सर हिला कर हामी भरता है, और फोन कर के ऑफिस से गाड़ी के लिए कह देता है और तैयार होने के लिए अंदर चला जाता है l
थोड़ी देर बाद घर के सामने एक कार आ कर रुकती है l दोनों पति पत्नी अपने अपने कर्म मय जीवन के लिबास में आ कर गाड़ी में बैठ जाते हैं l गाड़ी कटक की और दौड़ती है l पहले हाई कोर्ट में प्रतिभा उतर जाती है और फ़िर गाड़ी ×××××× हस्पताल में आकर रुकती है l
तापस गाड़ी से उतर कर फोन पर राजगढ़ के इंस्पेक्टर को फोन लगाता है l
तापस - जी आप कहाँ पर हैं...
फोन - कैजुअलटी में ग्यारह नंबर की बेड के पास....
तापस फोन काट कर अपने सिपाहीयों के साथ कैजुअलटी वर्ड में पहुंचता है l इंस्पेक्टर तापस की वर्दी देख कर पहचान लेता है और उसके साथ उसके सारे सिपाही तापस को सैल्यूट करते हैं l
तापस - कहाँ है आपका मुज़रिम...
इंस्पेक्टर - वह सिर्फ हमारा ही नहीं पूरे ओड़िशा का, पूरे भारत का और पूरे कानून व संविधान का मुज़रिम है.....
तापस - जस्ट इन्फॉर्मेशन मांगा.... किसी राजनेता का भाषण नहीं....
इंस्पेक्टर - सॉरी...
तापस - कहाँ है....
इंस्पेक्टर अपनी हाथों से इशारा करते हुए एक बेड की तरफ दिखाता है
Gajab past he Kshetrapal family ka , matlab Naag bhai ne nafrat karne ke liye puri wajah di he hume bhi :superb:
 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
3,235
6,761
159
👉बीसवां अपडेट
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एक बड़ा सा गल्फ कोर्ट है, बहुत बड़ा तो नहीं है, पर छोटा भी नहीं है l हरे रंग के मैदान को हरे रंग के नेट से चारो ओर से घेर रखा गया है l वहीँ मैदान के एक कोने में एक बड़ा सा छाता गड़ा हुआ है l उस छाते के साये के नीचे भैरव सिंह एक सिंहासन नुमा कुर्सी पर दोनों हाथों को फैला कर और बाएं पैर पर पैर रख कर बैठा हुआ है l उसके पास भीमा और भीमा के सारे साथी भैरव सिंह के आसपास खड़े हुए हैं l
तब एक लक्जरी कार आकर मैदान के बाहर रुकती है l एक आदमी उस कार में से उतरता है और सीधे भैरव सिंह के पास जा कर पहुंचता है l
उसे देखते ही भैरव सिंह अपना घड़ी देखता है और मुस्करा देता है l
भैरव - आओ ... तहसीलदार ... आओ... वक्त के बड़े पाबंद हो... बिल्कुल घड़ी के सुई की साथ चलते हो....
तहसीलदार - जी राजा साहब.... मैं हमेशा वक्त के साथ चलता हूँ.... और मैं यह भी जनता हूँ... वक्त को आप अपने साथ लिए चलते हैं.... या यूँ कहूँ... वक्त आपके साथ चलता है....
भैरव - बहुत अच्छे... तुम पूरी खबर रखे हुए हो....
तहसीलदार - हाँ... यह हमारे प्रोफेशनल रिक्वेर्मेंट है.... वाकई... यशपुर में तो जैसे व्यक्त रुक गया है.... कछुए ली रफ्तार से रेंग रहा है...
भैरव - ह्म्म्म्म....
तहसीलदार - जबकि... वक्त के साथ दुनिया.... कहाँ से कहाँ पहुंच गया है....
भैरव - तुम्हारा वक्त क्या कह रहा है.... मिस्टर. तहसीलदार...

तहसीलदार - आप तो सबकी खबर रखते हैं.... बिना आपकी मर्जी के... यशपुर और राजगड़ में किसी भी सरकारी अधिकारी की पोस्टिंग हो ही नहीं सकती.... और राजा साहब मेरा वक्त कह रहा है..... मुझे बहुत पैसा कमा लेना चाहिए....
भैरव - हा हा हा हा... तुम बहुत ही शार्प हो... चलो एक एक स्ट्रोक हो जाए.... अपना क्लब चुन लो.... (कह कर भैरव एक बैग के तरफ इशारा करता है) भीमा...
भीमा - हुकुम....
भैरव - देखो तहसीलदार को क्या जरूरत पड़ेगी...
भीमा - जी हुकुम....
भीमा बॉल को सेट कर देता है, तहसीलदार अपना स्टैंड सही करता है और ऐम बना कर स्ट्रोक मारता है l भैरव सिंह ताली मारते हुए
- वाह... बहुत खूब.... बहुत अच्छे...
फिर भैरव एक क्लब लेता है और वह भी अपना स्ट्रोक खेलता है l
कलेक्टर - वाव... राजा साहब... माइंड ब्लोइंग....
भैरव - तुम भी कुछ कम नहीं हो....
तहसीलदार - नॉट गुड एज यु.... राजा साहब...

ज़वाब में भैरव सिंह मुस्करा देता है l
भैरव - (अपना हाथ मिलाने को बढ़ाते हुए) माय... कंप्लीमेंट...

तहसीलदार - ना राजा साहब... ना... मुझे अपनी हद व औकात की पहचान है.... मुझे आपके छत्रछाया में रह कर काम करना है... आपके हाथ के नीचे.... और आपसे हाथ मिलाने के लिए... या तो मुझे आपका दोस्त होना चाहिए.... या फिर आपके बराबर.... और यह दोनों.... इस जनम में तो होने से रहे.....
भैरव सिंह, के चेहरे पर मुस्कान गहरी हो गई l उसने अपना गोल्फ क्लब बैग में रख दिया और कलेक्टर के तरफ मुड़ कर कहा,
-वेलकम मिस्टर. नरोत्तम पत्रि एज मजिस्ट्रेट ऑफ यशपुर...
पत्रि- थैंक्यू... राजा साहब....
तभी एक नौकर हाथ में एक चांदी की थाली में वायर लेस फ़ोन लेकर दौड़ते हुए आता है और भैरव की ओर बढ़ाता है l
नौकर - राजा साहब... छोटी रानी जी.... महल से...
भैरव - (फोन उठा कर अपने कान मेँ लगाता है) हाँ बोलिए.... छोटी रानी...
सुषमा - प्रणाम.... राजा साहब... वह... बड़े राजा जी को सांस लेने मेँ... तकलीफ हो रही है.... कृपया.... डॉक्टर को खबर भिजवा दीजिए....
भैरव - ह्म्म्म्म (फोन काट कर नौकर को देते हुए) डॉक्टर को फोन लगाओ....
नौकर फोन लेकर डॉक्टर को लगाता है और फोन पर डॉक्टर के मिलते ही भैरव सिंह को बढ़ा देता है l
भैरव - हैलो... डॉक्टर... बड़े राजा जी की हालत थोड़ी नासाज़ है.... उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही..... जल्दी महल पहुंच कर उनके लिए कुछ बंदोबस्त करो....
इतना कह कर भैरव सिंह फोन काट देता है और नौकर को दे देता है l
पत्रि - गुस्ताखी माफ राजा साहब... आपने डॉक्टर के ज़वाब का इंतजार नहीं किया....
भैरव - हम किसीके सुनने की आदि नहीं हैं.... तकलीफ उसे है जो हमें ना सुने...
पत्रि - जी समझ गया... और गांठ भी बांध ली...
भैरव - बहुत अच्छे पत्रि..... एंड वन्स ऐगेन वेलकम... टू... राजगड़....

पत्रि - थैंक्यू राजा साहब... थैंक्यू... अ... लॉट....
भैरव - ह्म्म्म्म... अब तुम... जा सकते हो... पत्रि....
पत्रि - जी बेहतर.... थैंक्यू...
पत्रि अपनी गाड़ी के तरफ जाता है और गाड़ी में बैठ कर निकल जाता है l उसके जाने के बाद भीमा भैरव सिंह के पास आता है,
भीमा - हुकुम.... इसे यहाँ बुलाकर.... यह सब करने की क्या जरूरत थी....
भैरव - भीमा.... आज से तकरीबन आठ या नौ साल पहले.... याद है.... हमने... एक तहसीलदार को उसी के ऑफिस में... सबके सामने... उसीके पियोन के जुतोंसे पिटाई कारवाई थी....
भीमा - हाँ... याद है... हुकुम....
भैरव - तुझे याद है उस कलेक्टर का नाम....
भीमा - नहीं.... हुकुम...
भैरव - उसका नाम राधे श्याम पत्रि था..... यह उसका बेटा है....
भीमा - पर हुकुम.... उसे.. फिर आपने राजगड़ में उसे आने क्यूँ दिया....
भैरव - हम उसे टटोल रहे थे..... हम पहले ही उसका फाइल चेक कर चुके हैं.... यह अपने बाप के उलट... करप्ट और रंडीबाज है.... पर कहीं यह बाप के इगो के लिए यहाँ आया तो नहीं.... बस यही सोच कर उसे यहाँ बुलाया था....
वैसे भी जिंदगी में चैलेंजस होने चाहिए.... वरना कुछ मजा नहीं आयेगा.... इस पर नजर रखो...
भीमा - जी हुकुम....

तभी वह नौकर फ़िर से भागते हुए आता है और थाली को बढ़ाते हुए कहता है - छोटे राजा जी.... हुकुम...
भैरव सिंह थाली से फोन उठाता है - हैलो....
पिनाक - वह... राजा साहब... एक... गड़बड़ हो गई है....
भैरव की भौंहे तन जाती है और पूछता - किसके तरफ से....
पिनाक - हमारे तरफ से नहीं.... वह.... रंगा के तरफ से....
भैरव - कौन रंगा....
पिनाक - रंगा... वह जिसे... हमने... विश्व को तोड़ने के लिए जैल में डाला था....
भैरव - तो....
पिनाक - विश्व ने... रंगा पर हमला कर दिया.... और रंगा अभी हस्पताल में है...
भैरव - क्यूँ...... कैसे... विश्व ने रंगा को... आपने रंगा को आगाह नहीं किया था....... रंगा को विश्व से सावधान रहने को...... रंगा ने ऐसा क्या किया .......
पिनाक - विश्व को देख कर.... रंगा को जोश आ गया... इसलिए वह उसे... बार बार छेड़ने लगा था शायद.... जिससे विश्व ने...... प्रतिक्रिया में उस पर हमला कर दिया.....
भैरव - ह्म्म्म्म... तो फिर कुछ दिनों के लिए विश्व को भूल जाओ...
पिनाक - और रंगा....
भैरव - जो चूक जाए.... उसे थूक दो... अब वह हमारे किसी काम का नहीं है.... उसे भाड़ में भेजो...
पिनाक - मतलब...
भैरव - उसे... किसी सब-जैल में शिफ्ट करा दो... और उसे भी भूल जाओ.....
पिनाक - जी बेहतर....
इतना कहकर पिनाक फोन रख देता है l
पिनाक इस वक्त भुवनेश्वर में एक होटल के कमरे में है l उसके सामने एक वकील बैठा हुआ है l वकील को देख कर,
पिनाक - सुन बे काले कोट वाले.... उस रंगा को किसी दूसरे जैल में शिफ्ट कर दे....
वकील - जी... पर वह अब... हस्पताल में है....
पिनाक - तो हम क्या करें.... ज्यादा चूल मची थी.... हरामी के गांड में... सुलेमानी कीड़ा कुलबुला रहा था उसके गांड में... उसे... बोला गया था.... विश्व से सावधान रहे और धीरे धीरे अपने काम को अंजाम दे...... अगर इतना ही चूल मची थी तो बिना देरी किए.... अपना खुजली उतार लेना चाहिए था.... पर नहीं.... खुजली इतनी मची थी कि... इलाज कराने सीधे.... विश्व के पास गया.... अब विश्व ने उसका इलाज कर दी है.... साला हरामी.... अब ना सीधा ना टेढ़ा कैसे भी नहीं सो पा रहा है... बैठ भी नहीं सकता.... चला था विश्व के गांड मारने.... विश्व ने ऐसी मारी है... के साला उसे अब वह गांडु कहलाएगा.... इसलिए उसे किसी और जैल में शिफ्ट करा दो... बादमें देखते हैं.... विश्व का क्या करना है... जाओ...
वकील पिनाक का फ्रस्ट्रेशन भरा भाषण सुनने के बाद रुकना भी मुनासिब नहीं समझा l बिना देरी किए वहाँ से निकल गया l
उसके जाते ही इंटरकॉम में डायल करता है l दुसरे तरफ से हैलो की आवाज़ सुनते ही.,
पिनाक - आप दोनों जल्दी से फ्रेश हो जाएं फ़िर मेरे... मतलब हमारे कमरे में आयें.... (इतना कह कर इंटरकॉम रख देता है I

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जैल में विश्व नाश्ते के लिए डायनिंग हॉल में पहुंचता है l विश्व के वहाँ पहुँचते ही कुछ कैदी विश्वा भाई कहकर बुलाते हैं और सलाम करते हैं l

विश्व उनके सलाम का जवाब तो देता है पर उसे बड़ा अजीब लगता है l वह अपना थाली में नाश्ता ले कर जैसे ही मुड़ता है l कुछ कैदी उसे अपने टेबल पर बुलाते हैं l पर विश्व देखता है डैनी एक कोने में बैठा अपना नाश्ता कर रहा है, तो सीधे डैनी के टेबल पर पहुंच कर डैनी के सामने बैठ जाता है l
डैनी - ह्म्म्म्म... बड़ा नाम हो गया है तेरा.... सब इज़्ज़त दे रहे हैं तुझे....
विश्व - मुझे इनकी हरकत समझ में नहीं आ रहा है..... जब पहले दिन मैं टेबल ढूंढ रहा था... किसी ने अपने टेबल पर नहीं बुलाया था.... किसी किसी टेबल पर तो इशारे से ना आने को बोला था.... पर आज... सब मुझे अपने टेबल पर बुला रहे हैं....
डैनी - यही तो खेल है... प्यारे.... यह जो इज़्ज़त दे रहे हैं... असल में इनके अंदर का खौफ है... इस खौफ और इज़्ज़त के बीच एक बहुत पतली सी लाइन है.... इसे मेंटेन कर बनाए रखना.... वरना इनके आँखों से इज़्ज़त और खौफ उतरते देर नहीं लगेगी.....
विश्व - मुझे... इनसे इज़्ज़त नहीं लेनी...
डैनी - कल तक तु इस जंगल में एक सुवर था.... तुने एक शेर को ढेर कर दिया.... और अब तेरा इवोल्यूशन हो चुका है.... अब इस जंगल का तु एक शेर है.... और शेर शेर बना रहे यह शेर का धर्म है...
विश्व - (विश्व एक हंसी हंसकर) क्या वक्त आ गया.... इंसानों को अब इंसानी पहचान के वजाए..... जानवरों की पहचान से पहचाना जा रहा है....
डैनी - यही सच है.... कहने को सब इंसान हैं..... मगर सब के सब इंसानी खोल में छुपे जानवर हैं.... और हर कोई इस इंसानी समाज रूपी जंगल में अपना राज कायम करना चाहता है.... कोई धर्म के नाम पर, कोई मजहब के नाम पर, कोई जाति वाद पर कोई समाज वाद के नाम पर, कोई साम्यवाद के नाम पर, कोई एकछत्र वाद पर और कोई गणतंत्र के नाम पर .... बस किसी तरह से इंसानी रूपी जानवर पर शेर बन कर राज करना चाहता है.....
विश्व - मुझे ऐसे समाज का हिस्सा नहीं बनना...
डैनी - यह तुम्हारा भ्रम... है... पूरे संसार में ऐसा कोई समाज नहीं है... जहां इंसानी रूपी जानवर ना रहाता हो.... प्रकृति का नियम है.... मरे हुए को चींटी खाती है... चींटी को टिड्डी, टिड्डी को मेढ़क, मेढ़क को सांप, सांप को नेवला, नेवले को भेड़िया, भेड़िया को बाघ.... यह समाज जहां हम रह रहे हैं.... यह भी इस नियम से अछूता नहीं है...... यहां अपने से कमजोर पर राज करने के लिए हर कोई तैयार रहता है....
हर तरफ सिर्फ़ प्यार विश्वास बसता हो....
हाँ ऐसा समाज मुमकिम हो सकता है.... बशर्ते वहां सिर्फ़ इंसान ही बसते हों.....


विश्व खामोश हो जाता है, पर डैनी का नाश्ता खतम हो चुका था, वह अपनी थाली लेकर वहाँ से चला जाता है, पर विश्व वहीँ बैठा डैनी के बातों के गहराई को अनुभव कर रहा है l

अपने चैम्बर में तापस बैठा कुछ फाइलों पर काम कर रहा है l तभी जगन वहाँ आता है और एक काग़ज़ की पर्ची देता है l काग़ज़ की पर्ची पर वैदेही महापात्र लिखा हुआ है l कुछ सोचने के बाद तापस जगन को कहता है -
- जाओ उसे ले आओ यहाँ....
जगन बाहर चला जाता है और थोड़ी देर बाद तापस के चैम्बर में वैदेही आती है l
तापस - आओ वैदेही... आओ बैठो....
वैदेही - नहीं सर... मैं ठीक हुँ...
तापस - अरे.. तुम... तुम कोई मुज़रिम नहीं हो... तुम आम नागरिक हो... बैठो तो सही.... वरना मुझे खड़ा होना पड़ेगा....
वैदेही - ठीक है... सर... मैं... बैठ जाती हूँ.... (कह कर बैठ जाती है)
तापस - तो... तुम अपने भाई से मिलने आई हो....
वैदेही - नहीं सर नहीं... मैं बस उसे एक नजर देख कर चली जाना चाहती हूँ....
तापस - क्यूँ.... क्यूँ नहीं मिलना चाहती.....
वैदेही के आँखों में आँसू आ जाते हैं l
वैदेही - उसे मैं.. डॉक्टर बनते देखना चाहती थी... पर भाग्य को मंजूर ना था... तो उसे सरपंच बनते देखा तो सोचा.... डॉक्टर बनकर लोगों का इलाज ना कर पाया तो क्या हुआ.... सरपंच बन कर अपने लोगों के दुखों का कष्टों का इलाज तो कर पाएगा.... पर भाग्य को यह भी मंजूर नहीं हुआ... आज एक अपराधी के रूप में इस जैल में है....
तापस - तो तुम इसलिए उससे नहीं मिलना चाहती..... सिर्फ़ दूर से एक नजर देख कर चली जाना चाहती हो...
वैदेही - हाँ सर.... माँ ने इसे पैदा कर मेरे ही हाथों में सौंप कर चल बसी थी... मैं इसे माँ, दीदी और गुरु बन कर पाल पोष कर बड़ा किया.... पर यह दिन देखने के लिए तो नहीं.... उसकी ऐसी हालत देखने के लिए तो नहीं....

तापस को उसके दर्द का एहसास होता है, वह एक गहरी सांस छोड़ कर वैदेही को पूछता है,
- ह्म्म्म्म क्या तुम... अपने भाई को देखना चाहोगी....
वैदेही अपना सर हिला कर अपना सम्मति देती है l तापस उसे इशारे से अपने पीछे आने को कहता है l वैदेही उसके पीछे चल देती है और दोनों ऑफिस के दूसरे माले पर पहुंचते हैं l
वैदेही देखती है एक लंबा सा टेबल बीच कमरे में पड़ी है, कम से कम पच्चीस तीस कुर्सियां पड़ी हुई हैं, बीच दीवार पर एक टीवी लगी है, और कमरे अलमारियां भरी हुई हैं और हर आलमारी किताबों से भरी हुई है l
तापस-(वैदेही को कमरे को ऐसे घूरते हुए देख) यह इस जैल की लाइब्रेरी है.... पढ़ कर समय व्यतीत करने के लिए यह लाइब्रेरी बनाई गई.... ह्यूमन राइट्स वालों की डिमांड पर... पर अफ़सोस.... कोई भी यहां नहीं आता....
तापस एक खिड़की के पास खड़े हो कर कॉटन को हल्का सा खिंचता है, फ़िर वैदेही को पास बुलाता है और दूर विश्व को कोई काम करते हुए दिखाता है l विश्व को देखते ही वैदेही के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है पर अगले ही क्षण उसके चेहरे पर मायूसी छा जाती है l
वैदेही - कितना... भोला... कितना मासूम लग रहा है... मेरा भाई.... भगवान करे वह ऐसे ही हमेशा रहे.....
तापस - नहीं वैदेही.... विश्व जब जैल से निकलेगा.... मुझे अफ़सोस हो रहा है... यह कहते हुए.... वह ना मासूम रहेगा ना भोला....
वैदेही - यह आप.... क्या कह रहे हैं सर....
तापस - मैं सच कह रहा हूँ वैदेही.... हाल के दिनों में क्या हुआ है उसके साथ.... और मैं कहना भी नहीं चाहता... तुम नहीं जानती.... इस जैल में हर कदम पर... हर मोड़ पर उसे तरह तरह के लोग मिलते रहेंगे..... और हर मिलने वाला उससे उसकी मासूमियत और भोला पन को निचोड़ता रहेगा... और जिस दिन वह अपनी सजा काट कर बाहर निकलेगा.... तब वह तुम्हारा मासूम और भोला विश्व नहीं रहेगा.... पता नहीं क्या हो गया होगा.....
वैदेही तापस को एक टक देखे जा रही है, तापस जब वापस वैदेही को देखता है तो वैदेही के आँखों में कुछ पढ़ने की कोशिश करता है l
वैदेही अपनी नजर हटा लेती है और खिड़की से विश्व को देखते हुए तापस से कहती है
- अगर नियति को यही मंजूर है..... तो यही सही.... वह भोला और मासूम बना रहा... इसलिए आज उसकी यह हालत है.... अगर वह भोला और मासूम ना होता तो कहानी कुछ और ही होती ना सर....
तापस वैदेही के आक्रोश को अंदर तक महसूस करता है l

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कुछ देर बाद पिनाक के कमरे के दरवाजे पर धक्का लगता है और उस कमरे में एक नौजवान और एक किशोर प्रवेश करते हैं l
पिनाक - आओ आओ युवराज... आओ राजकुमार....
(यह दोनों सात साल पहले वाले विक्रम और वीर हैं)
विक्रम - छोटे राजा जी... हमे यूँ.. अचानक कलकत्ते से क्यूँ बुलाया गया.... हमे कुछ समझ में नहीं आया....
पिनाक - वही समझाने तो आप लोगों को यहां पर बुलाया गया है.... बैठिए आप दोनों....
विक्रम और वीर दोनों पास के सोफ़े पर बैठ जाते हैं l
पिनाक - युवराज आप अभी बीस वर्ष के हैं...
और वीर आप सत्रह वर्ष के....
सो युवराज आपकी कॉमर्स की ग्रैजुएशन ख़त्म होने को है.... और राजकुमार आपका इंटर का भी यह आखरी साल है.... पर आप दोनों आपका अपना पढ़ाई अब यहीं पर खतम करेंगे....
दोनों भाई एक दूसरे को देखते हुए - क्या.... पर क्यूँ....
पिनाक - बड़े राजा जी ने... हम तीनों को मिशन दिया है... जिसे हम तीनों मिलकर पुरा करना है.....
विक्रम - कैसा मिशन...
पिनाक - अब आप न्यूज चैनल्स के ज़रिए समझ चुके होंगे.... हम अभी रूलिंग पार्टी की सदस्यता ली है....
विक्रम - जी....
पिनाक - वह इसलिए.... के आने वाले दो साल बाद.... हमे भुवनेश्वर सहर का मेयर बनना है....
विक्रम - क्या.... राजगड़ से बाहर.... राजनीतिक पदवी.... पर क्यूँ...
पिनाक - कुछ हालात ऐसे बन गए हैं... की हमे खुदको राजगढ़ में सीमित रखना असंभव हो गया है.... यह राजधानी है... समूचे राज्य के राजनीतिक गड़.... यहाँ पर नजर भी रखना है... और पीछे रहकर परिचालन भी करना है...
विक्रम - ठीक है.... आपका तो समझ में आ गया.... हमे क्या करना होगा....
पिनाक - आप दोनों को ******* कॉलेज में एडमिशन लेनी होगी.. आगे की पढ़ाई के लिए....
विक्रम - और... कॉलेज में... हमे क्या करना होगा.....
पिनाक - आपको कॉलेज में इलेक्शन लड़ना होगा.... स्टूडेंट्स यूनियन का प्रेसिडेंट बनना होगा....
विक्रम - उससे... होगा क्या...
पिनाक - युवराज.... हमे लक्ष दिया गया है.... दो साल बाद मेयर बनने के लिए.... और आपको सारे स्टूडेंट्स को लीड करना है.... फिर पार्टी में.... युवा मंच का चेहरा बनना है.... उसका अध्यक्ष बनना है....
वीर - और मेरा क्या काम है.....
पिनाक - आप युवराज जी को फॉलो करेंगे... उनके बाद कॉलेज के यूनियन के प्रेसिडेंट बनेंगे... और हाँ आइंदा ध्यान रहे... बड़े राजा जी या राजा साहब जी के सामने मैं, या तुम हरगिज़ मत कहिएगा... सिर्फ हम या आप...
वीर - ठीक है....
विक्रम - इस साल हम कॉलेज में जॉइन करेंगे... और इसी साल हमे स्टूडेंट्स इलेक्शन जितना भी होगा....
पिनाक - हाँ... युवराज... क्यूंकि कॉलेज से ही नई पीढ़ी वोट देने निकलती है... उसी नई पीढ़ी के हीरो बनना है आपको.... बाई हूक ओर क्रुक.... आप अपने कॉलेज के बॉक्सिंग चैंपियन रहे हैं... इसलिए उस जरिए भी आपको काम लेना होगा....
विक्रम - क्या यह आपको इतना आसान लगता है....
पिनाक - नहीं बिल्कुल भी नहीं.... पर जो आसानी से हो जाए... उसे करने में मजा ही क्या....
विक्रम - किसीकी बने बनाए खेल में घुस कर अपने नाम करना है... किसीका जमाया हुआ सिक्का अपने नाम करना है... वह भी एक साल में...
पिनाक - हाँ.... युवराज... आप क्षेत्रपाल हैं.... यह ना भूलें.... आज हमारे वंश का एक महा मंत्र आप दोनों को प्रदान करता हूं.... क्षेत्रपाल परिवार के पुरुषों के हाथ कभी आकाश की ओर नहीं होती..... सिर्फ ज़मीन की ओर होती है.... हम कुछ दे सकते हैं या फिर छीन सकते हैं.... पर हाथ ऊपर कर मांग नहीं सकते.... इसलिए चाहे कोई भी हो..... जिसका बना बनाया या जमाया हुआ सिक्का... आपको छिनना है.... कैसे यह आप तय करें....
विक्रम यह सब सुनने के बाद एक गहरी सांस लेता है और चल कर खिड़की के पास खड़ा होता है l नीचे जाते हुए गाड़ियों को देखता है l
पिनाक उसके पास आकर खड़ा होता है l
पिनाक - क्या सोचने लगे युवराज....
विक्रम - इस सहर पर राज करना है.... पर कैसे और कहाँ से शुरू करें....
पिनाक - राजगढ़ में जैसा है वैसे तो बिल्कुल नहीं..... सबके मन में खौफ को इज़्ज़त के साथ बिठाना है.... खौफ और इज़्ज़त के बीच एक पतली सी लाइन होनी चाहिए.....
विक्रम पिनाक की ओर देखता है और फिर कमरे में चहल कदम करने लगता है l पिनाक आकर वीर के पास बैठ जाता है और इंटरकॉम में तीन चाय के लिए ऑर्डर करता है l

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वैदेही जा चुकी है, तापस वैदेही को बाहर छोड़ कर अपने चैम्बर की ओर जा रहा है l तभी उसकी मोबाइल बजने लगता है l मोबाइल निकाल कर देखता है तो उसे स्क्रीन पर प्रतिभा का नाम दिखता है तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l फोन उठा कर - हैलो जान....
प्रतिभा - एक खबर है.... शायद आपको खुश करदे....
तापस को शरारत सूझती है - मुझे खुश करदे.... वाव... अररे.... जान घर पर नया मेहमान आने वाला है... वाव... मुझे तो तुम्हारे फोन से ही मालुम हो गया है.... के मुझे यह खुश खबरी सिर्फ़ अपने स्टाफ वालों से ही नहीं..... बल्कि पूरे मोहल्ले में मिठाई बंटवा देता हूं.... प्रत्युष को भी खबर कर देता हूँ.... आख़िर इतने सालों बाद खुशी का मौका हाथ लगा है....
प्रतिभा - (गुस्से से) हो गया...
तापस - अररे अभी कहाँ.... मैंने जगन के हाथों से मिठाई.. अभी तक मंगवाया नहीं है....
प्रतिभा - (अपनी दांत पिसते हुए) अगर अभी आप चुप नहीं हुए.... तो आज ड्रॉइंग रूम में सोईयेगा....
तापस - इतनी छोटी गुस्ताखी के लिए.... इतना बड़ा सजा.....
प्रतिभा - मैं... अब... अपना फोन काटती हूँ...
तापस - अरे.... गुस्सा... थूक दो.... यार थोड़ा मज़ाक कर रहा था..... सुबह से इधर उधर की सोच सोच कर टेंशन में था.... तुमसे बात की.... तो सारा टेंशन दूर हो गया....
प्रतिभा - ठीक है... ठीक है.....
तापस - अरे यार... थोड़ा मुस्कराते हुए.... कहो ना...

प्रतिभा - हाँ तो सुनो..... तुम्हारे जैल में जो कांड हुआ है ना.... विश्व और रंगा वाला.....
तापस - हाँ क्या हुआ....
प्रतिभा - अरे कुछ नहीं.... उस रंगा का वकील.... रंगा के झारपडा सब जैल को शिफ्ट कराने के लिए पीटीशन फाइल किया है....
तापस - ओह.... उसने वजह क्या डाला है....
प्रतिभा - यही तो खुशी की बात है......... उसने वजह हेल्थ लिखा है..... कोई सेक्यूरिटी की बात लिखी नहीं है.... और यह भी लिखा है.... डॉक्टर के फिटनेस सर्टिफिकेट देने के तुरंत बाद सेंट्रल जैल के बजाय सीधे... झारपडा सब जैल को शिफ्ट कराया जाए.....
तापस - यह वाकई.... बहुत अच्छी खबर दी है तुमने....
प्रतिभा - अच्छा ठीक है.... फोन रखती हूँ.... अब.... और हाँ शाम को मिठाई तैयार रखना....
तापस - क्यूँ... मौहल्ले में बंटवाना है क्या....
प्रतिभा - आ..... ह..... आज तो तुम्हें... मैं बेड रूम में घुसने नहीं दूंगी....
इतना कह कर प्रतिभा फोन काट देती है l तापस के चेहरे पर एक शरारत भरा मुस्कान नाच रही है l फोन रख कर मुड़ा तो देखा उसके पास दास खड़ा है l
तापस - अरे दास... आओ... एक अच्छी खबर है...
फिर तापस दास को रंगा के शिफ्ट होने की बात बताता है l
दास - यह अच्छी खबर तो है..... पर....
तापस - पर क्या दास...
दास - सर... सॉरी फॉर अब्युसिव लैंग्वेज... बट.... विथ योर परमिशन... सर....
तापस दास को घूर के देखता है फ़िर अपना सर हिलाते हुए - ओके दास... कंटिन्यु....
दास - सर थ्योरी के हिसाब से बात दिल की होती है.... पर लोग प्रैक्टिकल में लोग गांड की बात करते हैं....
तापस - (आवाज़ को कड़क करते हुए) दास.....
दास - सर इसीलिए तो आपसे..
परमिशन ली थी....
तापस - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म.... ठीक है..... आगे बोलो......
दास - सर अगर दिल कमजोर हो तो.... किसी किसी परिस्थिति में डर लगना स्वाभाविक है.... यह थ्योरी है.... पर लोग प्रैक्टिकल में गांड फटना कहते हैं....
दास ने जिस तरह से कहा तापस की हंसी छूट जाती है l पर दास नहीं हंस रहा है, तो तापस इशारे में आगे बोलने को कहता है l
दास - और सर अगर कोई डर को जीत जाता है.... आई मिन हरा देता है... तो थ्योरी के हिसाब से दिल मजबुत होना कहते हैं.... पर प्रैक्टिकली लोग गांड में दम होना कहते हैं....
तापस - (अपनी हंसी को रोकते हुए) ह्म्म्म्म तो....
दास - सर अब आते हैं असली मुद्दे पर.... रंगा अपने इलाके में मशहूर था.... आख़िर अपने इलाके का नामचीन पहलवान था.... फिर गुंडागर्दी में नाम और रुतबा कमाया....
तापस अब दास को सिरीयस हो कर सुनने लगा l
दास - रंगा का सब कुछ सही जा रहा था... के उसके गांड के दम में विश्व ने आधा इंच गहरा और चार साढ़े चार इंच चीरा मार दिया...
एक ऐसी जगह.... जहां का तकलीफ ना रंगा खुद देख पा रहा है.... ना आगे चलकर किसीको दिखा पाएगा....
तापस - तुम कहना क्या चाहते हो दास.....
दास - यही.... के विश्व ने रंगा की गांड फाड़ दी है प्रैक्टिकली...
तापस - दास... आखिर कहाना क्या चाहते हो......
दास - रंगा.... वापस आएगा सर.... विश्व से बदला लेने.... अभी तो नहीं.... पर आएगा जरूर.... अपना रौब और रुतबा फिरसे कायम करने..... और तब शायद जैल में एक खूनी मंज़र देखने को मिले.....
तापस के माथे पर अब चिंता दिखने लगता है

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होटल के कमरे में वीर बेड पर लेटा हुआ है, विक्रम एक कोने से दूसरे कोने तक चहल कदम कर रहा है और पिनाक एक सोफ़े पर बैठा हुआ है l
पिनाक - युवराज जी... चाय नाश्ता खतम हो चुका है.... कुछ सोच लिए हों... तो प्रकाश करें...
विक्रम - छोटे राजा जी आप हमसे क्या चाहते हैं....
पिनाक - यहाँ के पुराने खिलाड़ियों के बसे बसाये को उजाड़ना और जमे जमाये को हथियाना है....
विक्रम - और यह सब तब होगा... जब इस सहर में हमारा सिक्का चलेगा.... राइट्
पिनाक - राइट्....
विक्रम - और उसके लिए... हमे डेयर एंड डेविल होना पड़ेगा...
पिनाक - राइट्...
विक्रम - इसका मतलब यह हुआ कि.... हमे इस सहर में.... एक पैरालाल सरकार चलानी है...
पिनाक - राइट्....
विक्रम - तो फिर उसके लिए हमे एक डेविल हाउस चाहिए.... ठीक राज भवन के विपरीत दिशा में.... पर सहर के बीचों-बीच.... जहां दो मीटिंग हॉल होने चाहिए.... एक प्राइवेट मीटिंग हॉल... जो नॉर्मली हर घर में होती है.... और एक पब्लिक मीटिंग हॉल जो घर के साथ अटैच हो.... और उस घर के बगल में एक जीम भी हो.....
पिनाक - ह्म्म्म्म पहली बॉल पर छक्का... गुड...
पिनाक - डेविल हाउस का नाम होगा "द हेल"...
वीर - वाव... क्या बात है...
पिनाक - आप शांत रहेंगे.... राजकुमार जी....
विक्रम - डेयर एंड डेविल के लिए एक डेविल आर्मी चाहिए.... वह भी ऑफिसीयल रजिस्टर्ड....

पिनाक - मतलब.....
विक्रम - हम एक प्राइवेट सेक्योरिटी संस्था बनाएंगे.... आज कल बड़े बड़े कॉर्पोरेट ऑफिस, बड़े बड़े बैंक, बड़े बड़े हस्पताल, बड़े बड़े होटल सब प्राइवेट सेक्यूरिटी एडोप्ट करते हैं....
तो हम भी प्राइवेट सेक्यूरिटी संस्था बनाएंगे और सबको सुरक्षा प्रदान करेंगे.... पर असल में वह हमारी आर्मी होगी....
पिनाक - वाह क्या बात है.... अब तो आपने सेंचुरी मार दी.....
विक्रम - हम जो प्राइवेट आर्मी बनाएंगे.... उसकी ऑफिस और ट्रेनिंग सेंटर भी होगी.... जिसके जरिए हम अपनी आर्मी को सबसे सक्षम बनाएंगे.... जिसकी अपनी इंटेलिजंस विंग भी होगी.... आज की डेट में किसी भी सरकारी एजेंसी को मात दे दे... हम अपनी आर्मी को उतना कॉम्पिटेटीव बनाएंगे....
पिनाक - (ताली मारते हुए) बहुत दूर की सोची है.... शाबाश....
वीर - पर यह इतना आसान नहीं है....
पिनाक - आपको क्यूँ तकलीफ़ हो रही है....
वीर - मुझे नहीं अब आपको होगी.... सेक्योरिटी संस्था का रजिस्ट्रेशन आसान नहीं होता.... उसके लिए एक्स आर्मी पर्सन या किसी बड़े ओहदे वाले एक्स पुलिस पर्सन की जरूरत पड़ेगी....
विक्रम - हाँ यह तो सच है....
पिनाक - तो उसका जुगाड़....
विक्रम - आप पहले घर की तलाश कीजिए.... बाकी मैं तलाशता हूँ....
वीर - और हम... हम क्या करें....
पिनाक - जस्ट फॉलो योर युवराज....
Dushman sach me chatur aur dur ki soch rakhta he
 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
3,235
6,761
159
👉बाइसवां अपडेट
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विनय - बे कुत्ते..... चल आज मेरे जुते साफ कर.... मैं तुझे तेरे जोक पर तेरी जान बक्स कर जान का टीप दे कर विदा करूंगा... चल जल्दी से साफ कर.... अगर तुने मेरे जुते साफ नहीं किया.... तो आज.......
विक्रम - (अपनी होंठ पर उंगली रख कर) श्.. श्.. श्... श् (विनय चुप हो जाता है) जुबान उतना ही लंबा कर... जितना हलक में वापस घुसेड़ सके..... बात उतनी बड़ी कर... जिसके साये में अपनी औकात ढक सके...
विनय अपने बैठे हुए जगह से उठ जाता है और एक खतरनाक हंसी हंसते हुए, विक्रम की उंगली दिखाते हुए
विनय - हे...इ.. हे...इ... यु डोंट नो... मि.. हाँ.. तु यहाँ जिनको मेरे साथ देख कर स्टूडेंट्स समझ रहा है ना.... गौर से देख इन्हें.... यह कोई स्टूडेंट्स नहीं हैं.... यह सारे के सारे छटे हुए क्रिमिनलस हैं... भुवनेश्वर में किसी भी पुलिस स्टेशन में देख लेना... इनके चेहरे वांटेड लिस्ट में दिख जाएंगे... और यह लोग हर वक्त तैयार रहते हैं.....
विक्रम बेफिक्री में बैठा अपने दाहिने हाथ के उंगलियों को अपने अंगूठे से मालिश कर रहा था l उसका ऐसे बिना डरे, बिना भाव दिए अपने में व्यस्त रहना विनय को और भी सुलगा दिया l
विनय - तु... होगा कोई क्षेत्रपाल... राजगड़ वाला... यह भुवनेश्वर है... बच्चे... (विनय अपने साथियों से) आज इसकी दी हुई दारू और कबाब के बदले इस हराम जादे की हड्डी पसली ऐसे तोड़ना... के कोई डॉक्टर जोड़ नहीं पाएगा.... हा हा हा...
इतना कह कर विनय अपने हाथ में शराब का एक ग्लास उठाता है और बड़े स्टाइल में विक्रम के सामने बैठ कर घूंट भरता है।
इतने में चार पांच लड़कों में से एक अपना बेल्ट निकालता है जिसमें छोटे
छोटे नुकीले कांटे लगे हुए हैं, और एक अपनी कार्गो प्यांट के जेब से साइकिल चेन निकालता है, और एक साइकिल की चेन की फ्री व्हील से बने एक कांटे दार पंच निकालता है, और एक लोहे की रॉड निकालता है और पांचवां चाकू निकालता है l पांचो विक्रम के तरफ बढ़ते हैं l विनय उन्हें रोक देता है और कहता है
विनय - रुको... यार..इसकी दी हुई दारू पी है... बेचारे पर बिल फाड़ा है... मैं उधर घुम कर खड़ा हो जाता हूँ... तुम लोग शुरू हो जाना... ठीक... हाँ...
सब हंसने लगते हैं, और विनय हाथ में ग्लास लिए कुर्सी से उठ जाता है और मुड़ कर थोड़ी दूर जाता है l इतने में कुछ टूटने की आवाज़ आती है l विनय के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l और वह ग्लास खाली कर जब वापस मुड़ता है तो देखता है उसके पांचो साथी खुन से लथपथ नीचे गिर कर कराह रहे हैं l विक्रम वैसे ही अपने अंदाज में कुर्सी पर बैठा हुआ है पर इस बार उसके दाहिने हाथ में एक टूटी हुई खून से सनी बोतल का मुहँ है l
विनय की आँखें और मुहँ हैरानी से खुल जाती है l वह अपने दुसरे साथियों को देखता है, उनकी भी विनय के जैसा हाल है l सब ऐसे हैरान हो कर विक्रम को देख रहे हैं के जैसे मानो कोई भूत देख रहे हों l
विनय, विक्रम के हाथ में टुटे हुए बोतल को देख कर अपने सर पर खुद चपत लगाता है और अनुमान लगाने की कोशिश करता है l
***जैसे ही विनय मुड़ा, वह पांच आदमी विक्रम के पास पहुंचे, विक्रम तेजी से सामने रखे बोतल को उठा कर पहले के सिर पर दे मारा, बोतल की मार से उसका सर फट गया और नीचे गिर गया, बोतल के सर पर लगने से बोतल टुट भी गया l विक्रम फिर झुक कर टुटे हुए बोतल को दुसरे के जांघ पर घोंप दिया, फ़िर तीसरे के दाहिने बांह में बोतल घोंप दिया, इतने में चौथा अपना चाकू वाला हाथ चलाया विक्रम झुक कर तेजी से उसके पीछे पहुंचा और बोतल को उसके पिछवाड़े घोंप दिया और पांचवां कुछ समझ पाता विक्रम उसके कंधे पर बोतल घोंप कर निकाल देता है और फ़िर अपनी जगह आकर बैठ जाता है l***
हाँ ऐसा ही हुआ है... विनय अपने मन में सोचता है और चिल्ला कर
विनय - आ... ह... मार डालो इस हरामी को... पैसों की चिंता मत करो... इसकी लाश के वजन बराबर पैसों से तोल दूंगा मैं तुम सबको....
सब अपने हाथों में अपना अपना हथियार निकाल कर विक्रम पर टूट पड़ते हैं l अंजाम वही सब के सब कुछ ही देर में फर्श पर गिर कर छटपटा रहे हैं l
यह सब देख कर विनय के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगते हैं l वह ग्लास को विक्रम पर फेंक मारता है और पीछे मुड़ कर दरवाजे की और भागने लगता है l विक्रम भी उसकी फेंकी हुई ग्लास से झुक कर खुदको बचाता है और तेजी से बोतल उठा कर विनय के सर की ओर फेंक मारता है l बोतल सटीक अपने निशाने पर लगता है l विनय गिर जाता है और बेहोश हो जाता है l
विनय जब अपनी आँखे खोलता है तो छत के झूमर नजर आते हैं l उसे अपने चेहरे पर कुछ गिला गिला सा महसूस होता है l अचानक उसके मुहँ से कराह निकालता है l उसे उसके सर के पीछे दर्द महसूस होता है तो अपना हाथ लगा कर देखता है तो उसके हाथ में खुन देख कर झट से उठ बैठता है, तो खुद को फर्श पर पड़े नर्म दरी पर पाता है l अपने चारो तरफ नजर दौड़ा कर देखता है l उसके सारे साथी जिनको ले कर आज जम कर पार्टी कर विक्रम के नाम पर बिल फाड़ने के आया था, सब के सब फर्श गिर कर दर्द से कराह रहे हैं l सारे कमरे की हालत खराब है l कुछ चेयर और कुछ टेबल टुटे हुए हैं, और तो और एक बड़ा सा कांच का दीवार था वह भी टुट कर बिखरा हुआ है l विनय दुसरी तरफ नजर घुमाता है तो देखता है विक्रम डायनिंग टेबल पर खाना खा रहा है l विनय को होश में आया देख कर विक्रम मुस्कराता है,
विक्रम - बड़ी जल्दी होश में आ गए... अकल भी ठिकाने आ गई होगी...
विनय को अब सब याद आता है l उस कमरे में क्या क्या हुआ है और अपने साथियों को देखता है l सभी दर्द के मारे छटपटा रहे हैं l विनय दरवाजे की ओर भागता है l पर दरवाजा बंद मिलता है सेवन लॉक सिस्टम से बंद है दरवाजा l अंदर से विनय चिल्लाता है और दरवाजे पर ठोकर मारता है l

विक्रम - ऐ कुत्ते... चु... चु... चु.... इधर आ....
विनय अपना फोन निकालने की कोशिश करता है पर उसे अपना फोन नहीं मिलता l
विक्रम - कहीं इसे तो नहीं ढूंढ रहा है....
विक्रम के हाथ में विनय अपना फोन देखता है l विक्रम डायनिंग टेबल से उठता है और और एक सोफ़े पर आ कर बैठ जाता है l विक्रम, विनय के फोन को टी पोए पर रख देता है और अपने उंगली से इशारे से विनय को पास बुलाता है l विनय डरते हुए विक्रम के पास आता है l
विक्रम - समझाया था... पर... वो एक कहावत है... कुत्तों को घि... और सुवरों को छेनापोडो हज़म नहीं होते.... और तुझे सही बात...
विनय बदहवास विक्रम को देख रहा है l
विक्रम - मैं तेरे... और तेरे चमचों के बारे में... पहले से ही अच्छी तरह से जानता हूँ....
अब तुझे तेरी औकात बताने का वक्त आ गया है..... यह रहा तेरा फोन.... लगा अपने बाप को...
विनय झट से अपना फोन उठा कर अपने बाप को लगाता है l
विक्रम - स्पीकर पर डाल...
विनय फोन का स्पीकर ऑन करता है l फोन पर रिंग जा रही है l उधर से
- हैलो बेटे... और कैसी रही तेरी पार्टी....
विनय - (रोते हुए) पापा यह कमीना... मुझे बहुत मारा... मेरे लोगों को भी बहुत मारा... मुझे यहाँ से ले जाओ पापा... प्लीज...
- अबे कौन है वह... जिसने अपने मौत को छेड़ा है...
विनय - वह... हमारी बात सुन रहा है पापा... फोन स्पीकर पर है...
- बे कौन है बे तु... मेरे बेटे को हाथ लगाने की जुर्रत भी कैसे की... हराम के पिल्लै.... मैं तेरी बोटी बोटी कर सहर के हर कुत्तों को खिलाउंगा... कुत्ते...
अपने बाप की रौबदार धमकी सुनकर विनय बहुत खुश हो जाता है l उसके चेहरे पर हंसी आ जाती है l
विक्रम - मिस्टर. कमल कांत महानायक... हम युवराज बोल रहे हैं....
कमल - कौन युवराज....
विक्रम - इस राज्य में एक ही शेर को राजा साहब कहा जाता है....
कमल - क... क.. कौन... भैरव सिंह क्षेत्रपाल....
विक्रम - हाँ... हम उनके युवराज.... विक्रम सिंह क्षेत्रपाल बोल रहे हैं....
कमल - य.. यु.. युवराज जी आप... मेरे बेटे को माफ कर दीजिए.... मैं उसके तरफ से माफी मांगता हूं आपसे....
विक्रम - अभी तो मेरी बोटीयों को कुत्तों में बांटने की बात कर रहे थे....
कमल - जी... जी.. व.. वह... चमड़ी की जुबान थी... फ़िसल गई...
विक्रम - ठीक है.... फोन रख... तेरे बेटे को... दुनियादारी समझा कर छोड़ दूँगा....
कमल - जी.. शुक्रिया... युवराज जी... शुक्रिया...
विक्रम - फोन रख....
उधर से फोन कट जाता है l विक्रम मुस्कराते हुए विनय को देखता है l विनय का चेहरा बुरी तरह उतर गया है l चेहरे पर डर साफ दिख रहा है l उसे इस हालत में देख कर विक्रम अपना पैर टी पोए पर रखता है l
विक्रम - आज तुम्हारे वजह से.... मेरे जुते खराब हो गए हैं... देखो खुन से सन गए हैं... ऐसे गंदे जुते पहन कर मैं कैसे इस कमरे से बाहर निकालूँगा....
इतना सुनते ही विनय फौरन झुक जाता है और अपने आस्तीन से विक्रम के जुते साफ़ करने लगता है l जुते साफ होते ही,
विक्रम - कुत्ता हमेशा कुत्ता ही रहता है... चाहे नाम में महानायक ही क्यूँ ना हो... और शेर हमेशा शेर ही रहता है... चाहे नाम में सिंह हो या ना हो....
विनय - जी... जी.. युवराज.....
विक्रम - शाबाश... अब आ गए ना लाइन पर... चलो इस बात पर मैं तुझे तेरे जान की टीप देता हूँ....
इतना कह कर विक्रम उठता है और दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल जाता है l रिसेप्शन में पहुंच कर मैनेजर को बुलाता है,
मैनेजर - जी कहिए... क्षेत्रपाल सर...
विक्रम - मैनेजर... एम्बुलेंस बुलाओ.... और 702 कमरे से सभी लोगों को फायर एक्जिट के रास्ते हस्पताल पहुंचाओ.... और जो भी बिल हो वह... (अपना कार्ड देते हुए) इस नाम पर बना देना....
मैनेजर का मुहँ डर व हैरानी से खुला रह जाता है l विक्रम उसे उसी हालत में छोड़ कर बाहर निकल कर गार्ड को इशारा करता है l गार्ड गरम जोशी के साथ सैल्यूट मारता है और विक्रम के गाड़ी को लेने पार्किंग के अंदर भाग कर जाता है l थोड़ी देर बाद गार्ड गाड़ी लेकर विक्रम के पास रुकता है और फिर से सैल्यूट कर गाड़ी की चाबी देता है l विक्रम गाड़ी लेकर होटल के गेट तक पहुंचा ही था कि एक लड़की उसकी गाड़ी के आगे दोनों हाथ फैलाए खड़ी हो कर गाड़ी को रोक देती है, जैसे ही विक्रम की गाड़ी रुकती है वह लड़की तुरंत ड्राइविंग साइड पर आकर झुक कर विंडों ग्लास नीचे करने को कहती है l विक्रम ग्लास उतार कर देखता है यह वही लड़की है जो उससे होटल की लॉबी में टकरायी थी l
लड़की - एक्शक्युज मी... क्या आप मुझे वह आगे की जंक्शन पर ड्रॉप कर देंगे....
विक्रम अपना सर हिला कर अपना सहमती देता है l लड़की आकर दूसरे तरफ बैठ जाती है l विक्रम को गाड़ी के अंदर एक जबरदस्त खुशबु महसूस होती है l
लड़की - चलिए.... चलिए... जल्दी... चलिए...
विक्रम गाड़ी स्टार्ट करता है l गाड़ी होटल से बाहर निकल कर सड़क पर दौड़ने लगती है l विक्रम देखता है कि लड़की अपने आप से कुछ बड़बड़ा रही है l उसे यूँ बड़बड़ाते हुए देख विक्रम हंस देता है l विक्रम को हंसता देख लड़की पूछती है,
लड़की - आप क्यूँ बे वजह हंस रहे हैं...
विक्रम - पहली बार देख रहा हूँ... किसीको खुद से बात करते हुए....
लड़की चुप हो जाती है l उसके चुप होते ही विक्रम को बुरा लगता है l
विक्रम - सॉरी... शायद आपको मेरी बात बुरी लगी....
लड़की - नहीं.. ऐसी बात नहीं...
विक्रम - आप... किसी बात से रूठी हुई लग रही हैं..
लड़की - हाँ (उखड़ कर ज़वाब देती है)
विक्रम कुछ नहीं कहता, उसकी उखड़ी हुई जवाब सुन कर l
विक्रम - अगैन.. सॉरी...
लड़की - क्यूँ...
विक्रम - वह शायद आपको मेरा बात करना अच्छा नहीं लगा....
लड़की - नहीं ऐसी बात नहीं है.... मैं अपने मॉमा और पापा से उखड़ी हुई हूँ... और सॉरी आपसे लिफ्ट ली है... और आप पर उनका गुस्सा उतार दिया...
विक्रम - कोई नहीं... पर आप अपने माँ बाप से क्यूँ गुस्सा हैं...
लड़की - मुझे उनकी पिछड़ी मानसिकता से प्रॉब्लम है.... लड़की अट्ठारह साल की हुई नहीं की उसकी शादी करा दो... जैसे वह बेटी नहीं कोई बोझ है...
विक्रम - कोई माँ बाप ऐसे हो नहीं सकते... आप को शायद कोई गलत फहमी हो गया हो....
लड़की - आप जानते हैं... हम इस होटल में क्यूँ आए हैं... आज मेरा जनम दिन है...
विक्रम - ओ अच्छा... मैनी मैनी हैप्पी रिटर्नस ऑफ दी डे.... माय बेस्ट विश फॉर अ ब्यूटीफुल गर्ल...
लड़की - थैंक्यू... पर आपने मुझे बीच में टोका क्यूँ...
विक्रम - अरे... क्या बात कर रही हैं.... आज आपका जनम दिन है... और मैंने आपको विश भी नहीं करूँ...
लड़की - ठीक है... पर फिलहाल आप चुप रहिए....
विक्रम चुप हो जाता है l
लड़की - हाँ तो.. आज मेरा बर्थ डे... इस होटल में सेलिब्रिट करने के बहाने... मेरे पेरेंट्स आज मेरी मंगनी कराने के लिए प्लान किए थे... इसलिए उन्हें वहीँ छोड़ कर भाग आई... और सीधे अपनी सहेली के घर जा रही हूँ...
विक्रम - ओ... तो यह बात है... वैसे एक ना एक दिन आपको शादी तो करनी पड़ेगी ना...
लड़की - हाँ शायद.. पर शादी से पहले... मुझे जिंदगी में कुछ एचीव करना है... आई वांट टू डु सम थिंग इन माय लाइफ... लड़की होने का मतलब यह तो नहीं कि बालिग होते ही शादी करले और बच्चे पैदा करे... रुकिए.. रुकिए... यहीं गाड़ी रोक दीजिए...
विक्रम गाड़ी रोक देता है l लड़की तुरंत उतर जाती है l
लड़की - थैंक्यू... (कह कर मुड़ने को हुई)
विक्रम - सुनिए....
लड़की - जी कहिए...
विक्रम - आपने अपना नाम बताया नहीं...
लड़की - आपने मुझे लिफ्ट दी... उसके लिए शुक्रिया.... और अगर संयोग से हम फिर कभी मिले तब सोचेंगे.... तब तक के लिए हमे अजनबी ही रहने दीजिए...
इतना कह कर लड़की पलट कर चली जाती है l विक्रम उसे अपनी आँखों से ओझल होते देखता है l फिर विक्रम एक गहरी सांस लेता है l उसके नथुनों में उस लड़की के फ्रैगनेंस की खुशबु खिल जाती है l विक्रम के होठों पर एक मुस्कराहट खिल उठता है l विक्रम उसके खयालों में खोया हुआ था के उसका फोन बजने लगता है l विक्रम फोन उठाता है और कुछ सुनने के बाद वह गाड़ी स्टार्ट कर दौड़ता है l कुछ देर बाद *** पुलिस स्टेशन में पहुंचता है l
पुलिस स्टेशन के अंदर सीधे इंस्पेक्टर के पास पहुँचता है l
विक्रम - हैलो.. इंस्पेक्टर...
इंस्पेक्टर अपना सर उठा कर देखता है l
इंस्पेक्टर - जी... कौन हैं आप... और यहाँ आने की वजह....
विक्रम - अभी कुछ देर पहले... आपके पुलिस वालों ने... एक आदमी को गिरफ्तार किया है... जिसका नाम अशोक महांती है....
इंस्पेक्टर - ओ... तो... तुम... उस शराबी की ज़मानत देने आए हो....
विक्रम - क्या मैं जान सकता हूँ... वह गिरफ्तार हो जाए... ऐसा क्या गुनाह किया है....
इंस्पेक्टर - वह... शराब के नशे में धुत... आर ग्रुप सिक्योरिटी सर्विस के ऑफिस में दंगा कर रहा था....
विक्रम - क्या मैं... उनका एफ आई आर की कॉपी देख सकता हूँ....
इंस्पेक्टर - क्यूँ... आप क्या उसके वकील हो... वैसे आपको मालूम कैसे हुआ... वह गिरफ्तार हुआ है....
विक्रम - वह क्या है कि... इंस्पेक्टर... मैं उसका बहुत जबरा फैन हूँ... इसलिए उसके गिरफ्तार होते ही... मुझे खबर लग गई...
इंस्पेक्टर - ऑए... होश में तो है ना... या उसके तरह... तु भी पी कर यहाँ दंगा करने आया है क्या.... चल जा यहाँ से... यह सुबह तक यहाँ बंद रहेगा.... सुबह आ कर ले जाना...
विक्रम - मुझे... अभी... इसी वक्त... इसे लेकर जाना है.... और आप ज्यादा देर तक मेरा वक्त खोटी ना करें... और उसे छोड़ दें...
इंस्पेक्टर - अच्छा... तु तो ऐसे हुकुम दे रहा है ... जैसे तु कोई तोप है.....
विक्रम - हम युवराज हैं...
इंस्पेक्टर - कौन युवराज.... लुक... मिस्टर.. हू द हेल् यू आर.... आई डोंट केयर... कल आ कर अपने सुपर स्टार को ले जाना....
विक्रम अपना मोबाइल निकाल कर कहीं फोन लगाता है l और थाना, थाने का इंचार्ज और अशोक महांती के बारे में बात करता है l यह सब देख कर इंस्पेक्टर को गुस्सा आता है l
इंस्पेक्टर - ऐ... हवलदार... निकालो इसको यहाँ से...
तभी एक हवलदार आता है और विक्रम को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाता है l विक्रम उसे इशारे से रुकने को कहता है l हवलदार रुक जाता है, फ़िर विक्रम उसे टेबल पर रखे फोन के तरफ इशारा करता है l हवलदार और इंस्पेक्टर दोनों ही फोन के तरफ देखते हैं l फोन बजने लगता है l
इंस्पेक्टर - (फोन उठा कर) हैलो... (अपनी जगह से उठ कर, सैल्यूट मारते हुए) सर... यस सर.... जी सर... ओके सर... यस सर.... कहकर फोन रख देता है और हवलदार को बाहर जाने के लिए हाथ से इशारा करता है l हवलदार के जाते ही, विक्रम धीरे धीरे चल कर इंस्पेक्टर के सीट पर बैठ जाता है, उसका यह रूप देखकर इंस्पेक्टर अपने हलक से थूक निगलता है और,अपना हाथ जोड़ते हुए
इंस्पेक्टर - आप कौन साहब हैं... सर...
विक्रम - इस पुरे राज्य में... एक ही आदमी राजा साहब के नाम से जाने जाते हैं....
इंस्पेक्टर - जी... भैरव सिंह क्षेत्रपाल....
विक्रम - हम उनके युवराज हैं... और इस नाम की आदत डाल लो... इंस्पेक्टर.... क्यूंकि कुछ ही अर्से में यह नाम गूंजने वाली है... जाओ उस अशोक महांती को मेरे हवाले करो....
इंस्पेक्टर - जी... जी युवराज जी...
इंस्पेक्टर खुद चाबी लेकर कमरे से बाहर जाता है और कुछ देर बाद अशोक महांती को लेकर आता है l विक्रम इंस्पेक्टर के सीट से उठ कर अशोक महांती के पास जा कर उसे गौर से देखता है l महांती के चेहरे पर थोड़ी मार पीट की निशानी दिखती है l विक्रम इंस्पेक्टर के तरफ मुड़ता है
विक्रम - क्या मैं इनका ज़मानत कर सकता हूँ...
इंस्पेक्टर - ज़मानत की कोई जरूरत नहीं है.... युवराज जी.... इन पर अभी तक एफ आइ आर नहीं हुआ है.... नशे में थे... सिर्फ सुबह तक हवालात में रख कर छोड़ने के लिए कहा गया था......
विक्रम - ठीक है... इंस्पेक्टर... गुड नाइट...
इंस्पेक्टर - जी... गुड नाइट...
विक्रम और महांती दोनों बाहर आते हैं l बाहर आते ही महांती विक्रम से,
महांती - हे...तुम जो भी हो... थैंक्स... तुम्हारा... उपकार रहा मुझ पर... मौका मिला तो चुका दूँगा....
विक्रम - अभी मौका ले लो....
महांती उसे मुड़ कर देखता है,
विक्रम - यहाँ... थोड़ी दूर... एक बार एंड रेस्टोरेंट है... हाईवे 24/7.... मुझे थोड़ी देर के लिए कंपनी दे दो... तुम्हारा उपकार चुकता हो जाएगा....
महांती उसे घूरते हुए देखता है और अपना सर हिला कर हामी भरता है l विक्रम अपनी गाड़ी में बैठता है और उसके बगल में महांती बैठता है l दोनों हाईवे 24/7 को आते हैं l विक्रम काउन्टर के पास जा कर एक कैबिन बुक करता है, और एक बैरा को पांच सौ का टीप देते हुए ड्रिंक के लिए ऑर्डर करता है l उसके बाद विक्रम, महांती को लेकर एक कैबिन के अंदर आता है l कैबिन के अंदर बैठते ही,
विक्रम - हाँ तो महांती.... क्या लेना पसंद करोगे....
महांती - मुहँ पर तुम्हारे नए नए मूँछ उग रहे हैं... उन्हें भाव देने की आदत डालो.... उनपर ताव देने की उम्र नहीं है तुम्हारी.... मुझे या मेरी पसंद ऑफर्ड कर सको... यह औकात नहीं है... तुम्हारी....
उसकी बात सुनकर विक्रम मुस्करा देता है l इतने में बैरा एक ट्रे में एक कपड़े से ढका बोतल, एक सोडा बोतल, एक पानी का बोतल और एक खाली ग्लास रख देता है l
बैरा - सर चखने में क्या लेंगे....
विक्रम - सलाद, तंदूर मुर्गा और चिकन 65..
महांती हैरानी से विक्रम को देखता है l बैरा के जाते ही विक्रम बोतल से कवर हटाता है l बोतल को देखते ही महांती की आंखे चौड़ी हो जाती है l वह हैरानी से विक्रम को देखने लगता है l क्यूंकि शराब पीते वक्त उसके पसंदीदा चखना का ऑर्डर हो चुका था और उसके सामने उसका फेवरेट ब्रांड जॉनी वकर था l महांती इसबार जब विक्रम को देखता है तो विक्रम अपने मूँछों पर ताव देता है l
महांती - लगता है तुम... मेरे बारे में... बहुत कुछ जानते हो...
विक्रम - बहुत कुछ नहीं.. सब कुछ....
महांती - सब कुछ या तो दोस्त जानते हैं.... या फिर दुश्मन....
विक्रम - ना मैं दोस्त हूँ... ना दुश्मन.... फ़िलहाल हम एक दुसरे के ज़रूरत हैं...
महांती कुछ नहीं कहता, विक्रम जॉनीवकर खोलता है और ग्लास में एक लार्ज पेग बनाता है l उसमे आधा सोडा और आधा पानी डालता है l
विक्रम - अशोक महांती,... घर आठगड़.... , 2007 के बैच के एन डी ए पास आउट.... मेजर प्रमोशन मिलने के बाद आई बी में सात साल सर्विस दिए.... फिर आर्म्स स्मगलिंग में नाम उछला.... पर कोर्ट मार्शल में साफ बच गए.... नौकरी से वी. आर. एस ले लिया... फिर सुकांत रॉय के साथ मिल कर आर ग्रुप सिक्योरिटी सर्विस से एक प्राइवेट संस्था शुरू की..... जिसमें तुम सेक्यूरिटी कंसल्टेंट थे... अब चूँकि धंधा जम चुका था... रॉय को तुम्हारी कोई जरूरत नहीं पड़ी.... इसलिए तुम्हें निकाल दिया और तुम्हारे बकाया पैसे भी नहीं दिया.... उल्टा तुम्हें ऑफिस से धक्के मार कर निकाल दिया.....
इतने में कैबिन का दरवाजा खुलता है l बैरा अंदर आता है और थाली रख कर विक्रम को देखने लगता है l विक्रम उसे और एक पांच सौ देता है तो बैरा खुश हो कर सैल्यूट कर पैसा ले कर बाहर निकल जाता है l उसके जाते ही,
महांती - ह्म्म्म्म तुम मेरी कुंडली जानते हो.... अब बको.. तुम कौन हो और तुमको मुझसे क्या काम है....
विक्रम - महांती.... अगर सरकार और पालिटिक्स के बारे में कुछ खबर रखते हो.... तो तुम यह जानते ही होगे.... इस स्टेट में राजा साहब किन्हें कहा जाता है....
महांती - हाँ बेशक... स्टेट पालिटिक्स के किंग् मेकर..... भैरव सिंह क्षेत्रपाल....
विक्रम - हम उनके युवराज हैं.... विक्रम सिंह क्षेत्रपाल.....
महांती के चेहरे पर हैरानी छा जाती है l
महांती - आप को मुझसे क्या काम पड़गया....
विक्रम - मुझे... इस सहर में... राज करना है... इसके लिए मुझे.... एक प्राइवेट रजिस्टर्ड आर्मी चाहिए.... और उस आर्मी के तुम कमांडर होगे.....
महांती - मुझे... ब्रीफिंग कर समझायेंगे....
विक्रम - देखो महांती.... हम एक प्राइवेट सिक्युरिटी सर्विस शुरू करेंगे.... तुम उसके पार्टनर, डायरेक्टर और कंसल्टेंट भी रहोगे.... तुमको पूरी आजादी होगी लोगों को चुनने की.... उन्हें ट्रेन्ड करने की.... हमारे सर्विस गार्ड्स किसी भी आर्मी कमांडोज से कम नहीं होंगे.... हमारी अपनी इंटेलिजंस विंग होगी.... हमारे गार्ड्स इतने क़ाबिल होंगे कि... लोग अपनी पर्सनल सेक्यूरिटी तक सरकार के वजाए हमसे मांगेंगे.... एक दिन पुरे ओड़िशा में... हर संस्थान में... हमारे ही सेक्यूरिटी सर्विस के लोग होंगे.... यहां तक सीसी टीवी सर्विलांस के लिए भी... ऑर्गनाइजेशन हमसे सर्विस मांगेंगे....
महांती - कल को आप कहीं रॉय की तरह रंग बदला तो....
विक्रम - रॉय छोटी सोच का है... और मेरा लक्ष... यहाँ के पॉलिटिशियन से लेकर हर ऑर्गनाइजेशन और हर बिजनैस मैन पर मुझे राज करना है... मैं बहुत बड़ी सोच रखने वाला.... युवराज हूँ...
वैसे भी तुमने वह कहावत तो सुनी ही होगी.... दूध का जला... छाछ भी फूंक फूंक कर पिता है....
महांती के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है l और अपना ग्लास उठाता है पर रुक जाता है
महांती - यह क्या युवराज.... आपका ग्लास कहाँ है.... आपने तो मुझे कंपनी देने के लिए बुलाया था....
विक्रम - आज... तुम्हारा दिन है... महांती... पीलो... आज... हम अभी तक एलीजीबल नहीं हुए हैं....
महांती जिस दिन हमे हमारे राजा साहब... रंग महल को लेके जाएंगे.... उस दिन के बाद हम शराब पीने के लिए एलीजीबल हो जाएंगे....
महांती - ठीक है युवराज जी....
विक्रम - एक बात और महांती... हम क्षेत्रपाल हैं.... हमे अच्छा समझने की भूल मत करना.... महांती - युवराज जी.... मुझे अच्छे लोगों से डर लगता है
.... और मुझे खुशी है कि आप.... अच्छे नहीं है...
विक्रम मुस्कराता है l तभी महांती चिल्ला कर,
महांती - इन द नेम ऑफ... एक मिनिट... हम अपना सिक्योरिटी सर्विस का क्या नाम रखेंगे....
विक्रम - ह्म्म्म्म अभी तक सोचा नहीं है.... अब तुम डायरेक्टर हो... सोचो क्या हो सकता है....
महांती कुछ देर सोचता है और चेहरे पर खुशी छा जाती है l महांती अपना ग्लास उठा कर,
महांती - लेट चीयर्स फॉर एक्जिक्युटीव सिक्योरिटी सर्विस....
विक्रम - चीयर्स... (कहकर ताली मारता है)
महांती - युवराज जी.... अगर बुरा ना मानो तो आज की राज मैं.. इस कैबिन में बिताना चाहता हूँ.... कल आपकी सेवा में हाजिर हो जाऊँगा...
विक्रम - जरूर... इंजॉय.. द नाइट...
इतना कह कर विक्रम महांती को कैबिन में छोड़ कर बाहर आता है, बाहर उसे वह बैरा खड़ा मिलता है l विक्रम उसे फिरसे दो पांच सौ रुपये देता है और कहता है
विक्रम - मेरा बिल करा दो..... आज रात यह इस कैबिन में रहेगा.... जब होश में आएगा... उसे यह कार्ड दे देना....
बैरा टीप के पैसे लेकर बिल बना कर विक्रम को दे देता है l विक्रम पेमेंट कर बाहर अपनी गाड़ी में आता है l गाड़ी खोल कर ड्राइविंग सीट पर बैठता है और अपने पास सीट के ओर देखता है l अचानक उसे एक मोती की झूमका जैसा मिलता है जिसमें धागों के रेसे दिखते हैं l शायद उस लड़की के लेहंगे से टुट कर गिरा है l विक्रम उस मोती को उठा लेता है और मन ही मन मुस्कराते हुए बुदबुदाता है
मुझे किस्मत पर कभी भरोसा नहीं था... पर तुम आज दो बार मिली... मेरे दोनों काम आज हो गए.... आज ऐसा लग रहा है.... तुम ही मेरी किस्मत हो... और मुझे तुमको हासिल करना ही होगा......
shayad he kisi kahani me antagonist ke rise ko aise dikhaya hoga :wooow:
 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
3,235
6,761
159
👉सत्ताईसवां अपडेट
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प्रतिभा सुबह सुबह तापस और प्रत्युष को चाय नाश्ता दे कर डायनिंग टेबल पर अपनी चाय की कप लेकर बैठ जाती है l दोनों बाप बेटे गौर करते हैं, प्रतिभा चाय की कप में शुगर क्यूब डाल कर चम्मच से घोल रही है, और उसका ध्यान कहीं और है l
प्रत्युष, तापस को आखों के इशारे से प्रतिभा को दिखा कर पूछता है - माँ को क्या हुआ है,
तापस अपने कंधे उचका कर और मुहं पिचका कर इशारे से कहता है - मुझे नहीं पता
प्रत्युष फिर अपनी माँ को गौर से देखता है, अभी भी प्रतिभा चम्मच को चाय में हिला रही है l प्रत्युष अपनी गले का खारास ठीक करता है l फ़िर भी प्रतिभा का ध्यान नहीं टूटती l
प्रत्युष - माँ...
प्रतिभा - (चौंक कर) हाँ... क... क्या.. कहा..
प्रत्युष - अरे माँ.... क्या हुआ है... आपको आज... आपका ध्यान कहाँ है....
प्रतिभा - क.. कुछ.. (अपना सर ना में हिलाते हुए) कुछ नहीं....
प्रत्युष - डैड... आपको कुछ मालूम है...
तापस - ऑफकोर्स माय सन... मैं जानता हूं....
प्रतिभा - खीज कर... अच्छा तो जानते हैं आप...
प्रत्युष - आप रुको मॉम... अभी थोड़ी देर पहले डैड ने मुझसे झूठ कहा था....
तापस - मैंने कब झूठ बोला.... वैसे माँ से मॉम... यह ट्रांसफर्मेशन कब हुआ....
प्रत्युष - जब आपने मुझे झूठ बोला....
प्रतिभा - ओह ओ... यह क्या... फ़ालतू बकवास ले कर बैठ गए तुम लोग.... वैसे सेनापति जी... आपको मालूम क्या है.... बताने का कष्ट करेंगे....
तापस - प्रोफेशनल टैक्लींग में मात खा गई तुम....
प्रतिभा - व्हाट....
प्रत्युष - यह क्या बला है... डैड...
तापस - बेटे वकालत में... केस के सुनवाई के दौरान... वकील एक दुसरे पर... साइकोलॉजीकल दबाव बना कर एक तरह से जिरह के दौरान.... एडवांटेज लेने की कशिश करते हैं..... इसमें कोई शक नहीं... की तुम्हारी माँ... अपनी फील्ड में एक्सपेरियंस्ड है... पर वह जिनको टक्कर दे रही हैं... वह एक वेटरन हैं.... इसलिए तुम्हारी माँ का ध्यान भटका हुआ है....
प्रत्युष - ओ.... तो यह बात है...
तापस - देखो भाग्यवान... तुम अपनी कोशिश पूरी रखना.... बाकी.... वक्त पर छोड़ दो....
प्रतिभा एक गहरी सांस छोड़ कर हाँ में सर हिलाती है l
प्रत्युष - (प्रतिभा के हाथ पकड़ कर) हे... माँ... चीयर अप...
प्रतिभा प्रत्युष के हाथ को पकड़ कर मुस्करा कर अपनी आँखे वींक करती है और तापस से पूछती है
प्रतिभा - आपने कैसे अंदाजा लगाया....
तापस - कल मैं देख रहा था.... तुम अपनी प्रेजेंटेशन के दौरान... कुछ खास पॉइंट पर जब जोर दे रही थी.... तब तुम जयंत सर को भी देख रही थी.... और वह एक दम निर्विकार भाव से बैठे हुए थे.... तब तुम भले ही जाहिर ना किया हो... पर अंदर ही अंदर तुम ऑनइज़ी फिल् कर रही थी... यह मैंने तब महसूस कर ली थी....
प्रतिभा - ओ ह...
तापस - भाग्यवान... इतना कहूँगा.... तुम इस केस को... प्रोफेशनली डील करो... ना कि पर्सनली..... तुम पब्लिक प्रोसिक्यूटर हो.... सरकारी वकील.... इस केस को अपने दिल या दिमाग पर हावी होने मत दो...
प्रतिभा मुस्कराते हुए अपनी गर्दन हाँ में हिलती है l
प्रत्युष - दैट्स माय मॉम.... मतलब मेरी प्यारी माँ...

तीनों हंस देते हैं
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उसी समय एक कमरे में रोणा और बल्लभ दोनों खड़े हुए हैं और उनके सामने पिनाक कमरे में एक तरफ से दुसरे तरफ तक अपने दोनों हाथों को पीठ के पीछे बांध कर, तो कभी अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी को अपने बाएं हाथ पर मारते हुए चहल पहल कर रहा है और उसके चेहरे पर तनाव साफ झलक रही है l
पिनाक - तुम दोनों पिछले दो दिनों से कटक से भुवनेश्वर,... भुवनेश्वर से कटक हो रहे हो... हमसे मिलने की ज़हमत भी नहीं उठा सके.... जब कि तुम लोगों के राजगड़ से निकालते ही... भीमा ने हमे खबर कर दी थी...
बल्लभ - वह... हम.. यहां रह कर केस की... हर पहलू पर काम कर रहे थे...
पिनाक - काम कर रहे थे.... या झक मार रहे थे...
बल्लभ - एक गलती तो हुई है.... हमे अपनी तरफ से वकील देना चाहिए था....
पिनाक - तो... भोषड़ी के... राजा साहब को यह आइडिया दी क्यूँ नहीं... उस वक़्त... तु हमारा कानूनी जानकार है.... सलाहकार है... तो आइडिया भी तुझे ही देना चाहिए था ना....
बल्लभ - छोटे राजा जी... हम सलाह तब देते हैं... जब पूछा जाए... अगर हम अपने तरफ से.... राय दिए... तो अंजाम सभी जानते हैं... राजा साहब किसीके सुनते नहीं हैं.... और राजा साहब जो कह दें... उसकी तामील करना... हमारा धर्म...
पिनाक - ह्म्म्म्म... तो जब तुझे पूछा था... सरकार विश्व के लिए वकील दे रहा है... तब तो तु बड़ी डिंगे हांक रहा था.... सब परफेक्ट है... कुछ नहीं होगा....
बल्लभ - हाँ... तब मैंने राजा साहब जी के.. सरकार पर प्रभाव को देख कर... इस बात को हल्के में ले लिया था...
पिनाक - अब.... देखो प्रधान... मैंने तब भी कहा था.... आज भी दोहरा रहा हूं... यह राजा साहब के नाक और मूँछ का सवाल है....
बल्लभ - इसलिए तो हम दोनों... यहाँ आए हुए हैं...
पिनाक - क्या... हम... जयंत से बात करें...
बल्लभ - जी नहीं छोटे राजा जी.... बिल्कुल नहीं.... मैंने... जयंत पर पूरी छानबीन कर ली है.... हम बात करेंगे तो बाहर आ सकते हैं... और यह आत्मघाती होगा...
पिनाक - ह्म्म्म्म
रोणा - मैं तो कहता हूँ... उसका एक्सीडेंट ही करा देते हैं.... उन दो बॉडी गार्ड्स के साथ.... सारा झंझट ही खतम...
पिनाक - तब... सरकार... और एक सरकारी वकील नियुक्त करेगी..... तो हरामजादे कितनों को मारता रहेगा..
रोणा कुछ कहने को होता है पर बल्लभ इशारे से उसे चुप रहने को कहता है l पिनाक एक सोफ़े पर धप कर बैठ जाता है l और अपने दोनों हाथो से अपना सर पकड़ लेता है l
पिनाक - प्रधान..... कुछ सोचो.... याद रखो... राजासाहब वह डाइनामाइट है.... अगर फटे.... तबाही और बरबादी होगी सो अलग.... लाशें कितनी बिछेंगी और किन किन की... गिनना मुश्किल हो जाएगा..... इसलिए सोचो... जिस तरह से... उस जयंत ने... अपनी दो बार उपस्थिति में...ना सिर्फ अपनी ही चलाई है... बल्कि अदालत की रुख को अपने हिसाब से मोड़ा है....
बल्लभ - छोटे राजा जी... हम पहले जयंत क्या कहेगा कल कोर्ट में... वह पहले सुन लेते हैं.... बाद में उसी हिसाब से... हम गवाहों को हैंडल करेंगे.... ताकि कोई गवाह ना टूटे....
पिनाक - ठीक है... इस बाबत कुछ कदम उठाए हैं क्या तुमने....
बल्लभ - जी मैं और रोणा पहले से ही इसी काम में लग चुके हैं.... सावधानी से कर रहे हैं... ताकि हम में से किसीका नाम बाहर निकल कर ना आए....
पिनाक - ठीक है.... और हाँ कुछ भी करने से पहले.... मुझे इन्फॉर्म कर दिया करो.... क्यूंकि यह याद रहे.... यह ना तो यशपुर है और ना ही राजगड़ है... यह भुवनेश्वर और कटक है.... और यहाँ पर अभी तक... ना हमने पांव पसारे हैं... और ना ही पंख फैलाए हैं....

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उधर जैल में डायनिंग टेबल पर अपनी थाली हाथ में लिए विश्व बैठा हुआ है और वह भी किसी सोच में गुम है l
-क्या हुआ है... हीरो... किस सोच में तु खोया हुआ है....
डैनी अपना थाली ले कर विश्व के पास बैठते हुआ कहा l
विश्व अपना सर हिलाते हुआ ना कहा l
डैनी - पहले न्यूज में... जिस तरह धज्जियाँ उड़ाया जा रहा था... तेरा... अब वैसा नहीं हो रहा है...
विश्व - हाँ.. वह जयंत... सर ने... कोर्ट में... मीडिया एक्टिविटी को गलत ठहरा दिया... यही वजह है...
डैनी - एक बात तो है.... तुझे वकील... वाकई बहुत जबरदस्त मिला है... वह भी सरकारी ख़र्चे पर.... तेरे केस में सबसे इंट्रेस्टिंग क्या है... जानता है तेरी वाट लगाने के लिए भी सरकारी वकील... और तेरा बेड़ा पार करने वाला भी सरकारी वकील... और दोनों कामों के लिए सरकार अपनी जेब ढीली कर रही है.... हा हा हा हा...
विश्व - आप यहां कितने सालों के लिए हैं...
डैनी - मैं भी बहुत खास मुज़रिम हुं... सरकार के लिए.... हाँ... यह बात और है.. मैं यहाँ... अपनी मर्जी से आता हूँ... और अपनी मर्जी से जाता हूँ....
विश्व - वह कैसे... और आप यहाँ... कौनसे बैरक में रहते हैं...
डैनी - मैं यहाँ स्पेशल सेल में रहता हूँ.... क्यूंकि मैं यहाँ... स्पेशल अपराधी हूँ... मेरी जान को खतरा बता कर... मैं यहाँ... छुट्टियां इंजॉय कर रहा हूँ... ख़ैर तुने बताया नहीं... किस सोच में डूबा हुआ था...
विश्व - वह... मैं जयंत सर जी के बारे में.. सोच रहा था... मैं उनके व्यक्तित्व को... बिल्कुल भी समझ नहीं पा रहा हूँ...
डैनी - क्यूँ... तुझे... उन पर शक हो रहा है... क्या....
विश्व - नहीं... बिल्कुल नहीं... सच कहूँ तो... आज..... जब भी भगवान को याद करते हुए अपनी आँखे बंद करता हूँ..... मुझे सिर्फ उनका ही चेहरा दिखता है....
डैनी - तो फिर.... उनके बारे सोच क्या रहा है...अगर उनको भगवान के जगह रख दिया है.... तो उनके बारे में सोचना भी मत... क्यूँ की भगवान किसीके भी सोच से परे हैं.... पर यह बता... तुझे उन इतना भरोसा कैसे हो गया...
विश्व - नहीं जानता... पर जब भी काले कोट में अदालत में उनको मेरे लिए खड़े होते देखता हूँ... तो मुझे अंदर से ऐसा लगता है.... मुझ होने वाले जैसे दुनिया भर की हमलों के आगे..... वह ढाल बन कर खड़े हुए हैं.... और जब तक वह खड़े हों.... दुनिया की कोई भी बुरी ताकत... मुझे छू भी नहीं सकती....
डैनी - वाह.... क्या बात है.... अगर तू इतना ही उन परभरोसा करता है.... तो फिर उनके बारे में... सोच क्या रहा है....
विश्व - हमने हमेशा एक बात सुनी है... अपने बड़ों से.. या फिर... किसी और से.... की सफेद कोट वाले से.... मतलब डॉक्टर से... अपनी बीमारी के बारे में... और काले कोट वाले से, मतलब वकील से... अपनी गलतियों के बारे में.... कभी भी कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए...
डैनी - हाँ.... यह बात तो है.... क्यूँ तूने कुछ छुपाया है.. क्या....
विश्व - छुपाता तब ना.... जब उन्होंने... मुझसे कुछ पूछा हो.... उन्होंने मुझसे कुछ पूछा ही नहीं है..... पर वह मेरे लिए... मुझे इन्साफ देने के लिए... जिस तरह लड़ रहे हैं.... मुझे कुछ भी नहीं होगा ऐसा मुझे लगता है... जब भी उन्हें देखता हूँ.... पर कल वह मेरा पक्ष रखेंगे.... अदालत में... क्या रखेंगे... कैसे रखेंगे.... बस यही सोच रहा हूँ.....
डैनी - ह्म्म्म्म... तेरे बात सुन कर... मेरा सिर घूम गया है.... फिर भी... बेस्ट ऑफ लक...
विश्व - जी... बहुत बहुत शुक्रिया....

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काठजोड़ी नदी के गणेश घाट के पास सिमेंट से बनी एक कुर्सी पर वैदेही बैठी हुई है l शाम की चहल पहल बढ़ गई है l बहुत से बुजुर्ग कोई हाथ में लकड़ी लेकर और कोई अपने साथ कुत्तों को लेकर इवनिंग वक कर रहे हैं l

-अरे वैदेही तुम यहाँ.... यहाँ क्या कर रही हो....
वैदेही की ध्यान टूटती है और आवाज़ को तरफ देखती है जयंत वहाँ पर खड़ा हुआ है l
वैदेही - जी नमस्ते जयंत सर...
जयंत - हाँ... नमस्ते.... पर तुमने बताया नहीं... के इस वक्त तुम यहाँ क्या कर रही हो....
वैदेही - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) जी फिलहाल यहाँ बैठी हुई हूँ...
जयंत - अच्छा... मुझसे ही होशियारी.... ह्म्म्म्म
वैदेही - जी... माफ कर दीजिए... दर असल... कल विश्व के तरफ से.... आप क्या कहेंगे... और उस पर जज साहब की... क्या प्रतिक्रिया होगी... बस यही सोच रही थी...
जयंत - अरे... इतनी सी बात पर तुम डर गई.... बिल्कुल एक तोते की तरह पटर पटर कैसे बोल गई...
वैदेही अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है
जयंत - ह्म्म्म्म (वैदेही के पास बैठते हुए) तो तुम्हें क्या लगता है..
कहीं मुझसे भरोसा तो नहीं उठ गया....
वैदेही - क्या बात कर रहे हैं सर... मैंने तो उसी दिन कह दिया था आपको.... अब हमे अंजाम की कोई परवाह नहीं है.... पर फिर भी एक जिज्ञासा तो मन में है ही....

जयंत - ह्म्म्म्म तो यह बात है... देखो वैदेही... मैं अपनी मुवकील से... सहानुभूति से या भावनात्मक रूप से जुड़ना नहीं चाहता हूँ.... बस केस से जुड़े तथ्यों को छोड़ मैं किसी भी प्रकार से दूसरे निजी तथ्यों से किनारा कर लेता हूँ... क्यूंकि मैं अपनी मुवकील को जज के सामने या न्यायालय में बेचारा साबित नहीं करना चाहता हूँ.... या तो दोषी साबित करूं.. या फ़िर निर्दोष..... अब सरकार ने खुद मुझे यह जिम्मा सौंपा है... के मैं तुम्हारे भाई को निर्दोष साबित करूँ... तो मेरी कोशिश तो पूरी यही रहेगी...
यह सब सुन कर वैदेही के चेहरे पर एक खुशी छा जाती है, जो जयंत को साफ दिख भी जाता है l
जयंत - अच्छा... कल जब सुनवाई है... तो अब तुम यहीँ... कटक में रहोगी या... अपने गांव चली जाओगी....
वैदेही - वह मैं... एक हफ्ते से गांव नहीं गई हूँ.... यहीं... रेल्वे स्टेशन जा कर... जनरल टिकेट कर देती हूँ.... और जनाना प्रतीक्षालय में रात को सो जाती हूँ... और वहीँ शौचालय में... अपना नहाना धोना कर लेती हूँ... फिर दिन भर बाहर इधर-उधर होती रहती हूँ....

जयंत का चेहरा इतना सुनते ही सख्त हो जाता है l वह अपनी आँखे बंद कर लेता है l इतने में वैदेही पूछती है l
वैदेही - सर आपके वह... बॉडी गार्ड्स कहाँ हैं... दिखाई नहीं दे रहे हैं....
जयंत - वह देखो.... उस चने बेचने वाले के पास चने चर रहे हैं....
यह सुनते ही वैदेही की हंसी निकल जाती है
जयंत - (उठता है) चलो मेरे साथ...
वैदेही - (चौंकते हुए) जी... ज... जी... कहाँ...
जयंत - तुम्हारे लिए... रात का बंदोबस्त करने....
वैदेही - पर....
जयंत - अरे... चलो भी.... मैं तुम्हें... अपने घर नहीं ले जा रहा हूँ... तुम लड़की हो... कहीं कोई ऊँच नीच हो गई तो.... इसलिए बातेँ हम चलते चलते या बाद में कर लेंगे... अब बिना देरी किए मेरे साथ चलो....
वैदेही उठती है और जयंत के पीछे चल देती है l उन दोनों के पीछे जयंत के बॉडी गार्ड्स भी चलने लगते हैं l जयंत चांदनी चौक के जगन्नाथ मंदिर में पहुंच कर एक दुकान से छोटी टोकरी में पूजा का सामान लेता है और मंदिर के अंदर जाता है l वैदेही भी उसके पीछे पीछे चल देती है l मंदिर में पहुंचते ही मं
दिर के पुजारी उसे देख कर बाहर आता है और जयंत के हाथों में से पूजा की टोकरी ले जाता है
पुजारी - अहोभाग्य हमारे... जगन्नाथ के घर में जयंत पधारे...
दोनों - हा हा हा हा हा...
पुजारी - क्यूँ भई वकील... आज मंदिर... क्या बात है...
जयंत- कुछ नहीं पंडा जी... कुछ नहीं.... जिंदगी पेड़ के पत्ता हिल रहा है... पता नहीं कब झड़ जाए.... मतलब बुलावा आ जाए... इसलिए... उसके पास जाने से पहले... मस्का लगाने आ गया...
पुजारी - तुम नहीं सुधरोगे... भगवान घर में ठिठोली....
इतना कह कर पुजारी मंदिर के गर्भ गृह में जा कर, पूजा करता है और पूजा की टोकरी ला कर जयंत को लौटा देता है l
पंडा - कहो... आज कई सालों बाद... मंदिर में... अपने लिए तो नहीं आए होगे.... बोलो किसके लिए....
जयंत - क्या... पंडा... अरे... मैं कोर्ट में... अपनी नौकरी पेशा जीवन का... अंतिम केस लड़ रहा हूँ... इसलिए कई सालों बाद आया हूँ... कालीया को भोग का मस्का लगाने...
पंडा - फिर.. ठिठोली... तुम... भले ही मंदिर ना आओ.... पर इस मंदिर के कमेटी में हो.... और कमेटी मीटिंग बराबर.... अटेंड करते हो.... क्या भगवान को इस बात का भान नहीं है....(जयंत चुप रहता है) पर तुमने तो केस लेना बंद कर दिया था ना..... फिर अचानक यह केस...
दोनों मंदिर की परिक्रमा करते हुये
जयंत - पंडा..... तुम्हें क्या लगता है.... सारे राज्य वासियों के भावना के विरुद्ध... मैं वह केस लड़ रहा हूँ....
पंडा - देखो जयंत.... मैं दुनिया की नहीं जानता.... पर तुम्हें अच्छी तरह से जानता हूँ... तुम कभी गलत हो ही नहीं सकते.... और मैं यह भी जानता हूँ... जब तक कोर्ट में तुम डटे हुए हो..... कोई भी उस लड़के का बाल भी बांका नहीं कर सकता....
जयंत, थोड़ा मुस्करा देता है l तभी जयंत की नजर एक जगह ठहर जाता है l
जयंत - वैदेही.... सुनो तो जरा...
वैदेही उस वक्त मंदिर के आनंद बाजार (जहां अन्न प्रसाद मिलता है) के एक खंबे के टेक् लगा कर वैदेही खड़े हो कर उनकी बातें सुन रही है l
जयंत - आरे... वैदेही... तुम यहाँ.... आओ
पंडा - तुम जानते हो इस लड़की को.... यह रोज दो पहर को... आ जाती है और अन्न प्रसाद सेवन तक यहीं बैठी रहती है....
जयंत - आरे.... पंडा... यह पागल लड़की.... का यहीं... मंदिर के धर्म शाला में रहने की प्रबंध कर दो....
वैदेही - आरे... सर... आप हमारे लिए... इतना तो कर रहे हैं...
जयंत - अरे... मूर्ख... अगर मैंने केस हाथ में लिया है... तो केस की सुनवाई खत्म होने तक... विश्व की तरह तुम भी मेरी... जिम्मेदारी हो...
वैदेही चुप रहती है
जयंत - मैं अब अपने घर में... तुम्हें रख नहीं सकता.... क्यूँकी मेरे घर में.... मेरे साथ... मेरे सुरक्षा के लिए... और दो मर्द रह रहे हैं... पर कटक सहर में... मैं तुम्हारे रहने का बंदोबस्त तो कर सकता हूँ....
वैदेही उसे नजर उठा कर देखती है
जयंत - (पुजारी को देख कर) अरे पंडा... मंदिर के धर्मशाला में... एक कमरा... इस लड़की के लिए...
पंडा - समझ गया.... देखो वैदेही... अब हमारे मंदिर की धर्मशाला में एक कमरा लेलो.... और चूंकि तुम्हारी सिफारिश जयंत ने की है.... इसलिए मैं तुमको... नियम के बाहर जा कर.... जब तक केस समाप्त नहीं हो जाती... तब तक भाड़े में रह सकती हो....
जयंत - घबराओ नहीं.... भाड़ा.. भी नहीं लगेगा.... नियम में यह भी है.... ट्रस्टी के रिकॉमेंड हो... तो पैसा भी नहीं लगता...
पंडा, जयंत को मुहं फाड़े देखता है l वैदेही खुश हो कर जयंत को हाथ जोड़ती है l
जयंत - अच्छा जाओ (हाथ दिखा कर) वहां धर्मशाला... अरे पंडा... जाओ यार इस लड़की को कमरा दे दो...
पंडा अपना सर को हिलाते हुए, वैदेही को धर्मशाला की ओर ले जाता है l वैदेही को एक कमरा दिलाने के बाद, जयंत के पास वापस आता है l
पंडा - भई... कौनसे नियम के अनुसार... ट्रस्टी के सिफारिश हो... तो पैसा देना नहीं पड़ता...

जयंत - पंडा.... यह लड़की बहुत गरीब है.... और मैं तो ठहरा... अकेला.... पैसे इस गरीब के भले के लिए थोड़े खर्च हो जाए... तो क्या फर्क़ पड़ता है.... उसकी बिल मुझे भेज देना.... मैं भर दूँगा..... और हाँ... उसे मालुम ना हो.... क्यूंकि बहुत खुद्दार किस्म के लोग है यह.....

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आज कानून के बड़े बड़े दिग्गज और विशेषज्ञों की नजरे अदालत के आज की कारवाई पर टिकी हुई है.... पिछली सुनवाई में अभियोजन पक्ष की वकील श्रीमती प्रतिभा सेनापति जी ने एसआइटी और पुलिस के जांच को अपनी मजबूत दलीलों को अदालत के सम्मुख प्रस्तुत किया था..... आज का दिन भी इस केस के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है.... क्यूंकि आज अभियुक्त पक्ष के दलीलों को अदालत के समक्ष श्री जयंत कुमार राउत प्रस्तुत करेंगे.... एसआइटी जांच में दोषी पाए गए अभियुक्त श्री विश्व के पक्ष अपनी किन मजबूत दलीलों के द्वारा अदालत को प्रभावित करेंगे यह देखना दिलचस्प होगा.... चूंकि अभी कुछ ही समय पूर्व अभियुक्त को पुलिस की सुरक्षा के घेरे में ले जाया गया है.... थोड़ी देर बाद सुनवाई शुरू हो जाएगी.... सुनवाई के फौरन बाद... आज अदालत में क्या क्या हुआ... हम दर्शकों के सामने लाएंगे.... तब तक के लिए कैमरा मैन सतबीर के साथ मैं प्रज्ञा..... खबर ओड़िशा के लिए....
इस खबर की प्रसारण कर रिपोर्टर ने अपना माइक निकाला और अदालत के बाहर पुलिस के द्वारा बनाए गए बैरिगेट के पास चली जाती है l उधर कोर्ट की स्पेशल रूम में पिछले दिनों की तरह ही दृश्य दिख रहा है l हमेशा की तरह तीनों जज अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं l औपचारिकता के बाद
मुख्य जज - ऑर्डर ऑर्डर... आज की कारवाई शुरू की जाए..
हॉकर - अभियुक्त श्री विश्व प्रताप को हाजिर किया जाए...
पुलिस विश्व को लेकर मुल्जिम वाले कटघरे में खड़ा कर देती है
जज - जैसा कि पिछली सुनवाई में... अभियोजन पक्ष.... पुलिस और एसआइटी की जांच की पक्ष और साथ साथ गवाहों के बयानात और गवाहों के नाम... अदालत और बचाव पक्ष को उपलब्ध कराया... है... आज का दिन केवल बचाव पक्ष की दलीलें सुनी जाएंगे.... और यह अदालत दोनों पक्षों को सूचित करती है.... के पिछली सुनवाई बाद सभी गवाहों को समन कर दी गई है.... इसलिए अगले हफ्ते में जो गवाह आयेंगे.... उनकी गवाही की दोनों पक्षों के द्वारा जिरह की जाएगी.... पर अभी के लिए.... अभियुक्त पक्ष के वकील श्री जयंत राउत जी को अपना पक्ष रखने के लिए अनुमती देते हुए कारवाई को आगे बढ़ाया जाता है.... श्री जयंत जी आप अपना पक्ष रखें....
जयंत - जी धन्यबाद... योर ऑनर.....
अपनी जगह से उठते हुए जयंत ने कहा l जयंत के उठते ही कुछ लोगों की धड़कने उत्सुकता वश तेज हो गई l इन में विश्व और वैदेही तो हैं ही, प्रतिभा, तापस ही नहीं यहाँ तक जज भी जयंत के द्वारा दी जाने वाली दलील को सुनने के बेताब हो उठे l पूरा कोर्ट रूम में केवल शांति ही शांति विराजमान है l
जयंत - योर ऑनर.... मैं प्रोसिक्युशन की इस बात से इत्तेफाक रखता हूँ.... के आज अदालत में चल रही इस केस की ओर.... साधारण जन मानस बड़े ध्यान से देख रही है.... और न्याय प्रक्रिया के दौरान और समाप्त होने तक... न्याय की परिभाषा क्या होगी यह आने वाली समय के गर्भ छुपा हुआ है......
माय लॉर्ड.... अंग्रेजी में एक कहावत है.... रोम नेवर बिल्ट इन वन नाइट.... अर्थात बड़े बड़े साम्राज्य... या बड़े बड़े स्वर्णिम अध्याय... कभी अचानक से नहीं बनते... क्रम अनुसार, धीरे धीरे बनते बनते समयानुसार विशाल रूप में प्रकट होती है... षडयंत्र भी इसी तरह होते हैं.... माय लॉर्ड... षडयंत्र, वह भी आर्थिक घोटाले की... एक काले साम्राज्य की तरह होता है... योर ऑनर.... यह भी धीरे धीरे.... दिमाग से निकल कर... वास्तविकता में उतर कर... आकार लेते लेते विशाल हो जाता है... यह आर्थिक घोटाले... आर्थिक अनाचार... एक समाज में एक नए नगर बधु की तरह होती है.... हर सामर्थ्य व पुरूषार्थ रखने वाला... इसे लूटना चाहता तो है... पर उसके साथ अपने परिचय को स्वीकार नहीं करता.... अगर उसके कर्म फूटने को होते हैं... तब वह सामर्थ्यबान किसी ऐसे व्यक्ति का जुगाड़ करते हैं... जिस पर अपनी काली करनी को थोप देते हैं....
आज का यह मनरेगा घोटाला केस भी ऐसा है योर ऑनर....
एक बच्चे को जन्म लेने के लिए.... प्रकृति ने नौ महीने का विधान किया है... पर उसके लिए भी पुरुष एवं स्त्री की मिलन की प्रस्तुति की जाती है..... इस प्रक्रिया में भी समय लगता है योर ऑनर.... पर यहाँ एसआइटी के जांच रिपोर्ट यह दर्शा रही है.... की यह कांड विश्व के सरपंच बनने के सिर्फ़ सात महीने में पूरा हो गया.... कितनी प्यारी... और मासूम... थ्योरी है...
इतना कह कर जयंत थोड़ी देर रुक जाता है और अपने टेबल के पास आकर एक फाइल उठा लेता है l
जयंत - योर ऑनर... प्रोसिक्युशन ने... पिछले सुनवाई के दौरान... अपना तथ्य प्रस्तुत किया... पहले पन्ने पर मुल्जिम की परिचय, शिक्षा गत योग्यता और देव पुरुष राजा साहब की उदारता का उल्लेख किया.... उसके बाद हम आते हैं... दूसरे पन्ने पर... जहां विश्व के इक्कीस वर्ष होने की बात की गई है... और उसके बाद...(प्रतिभा भी अपनी फाइल खोल कर देखने लगती है) योर ऑनर... यह तीसरी लाइन को गौर से पढ़ा जाए.... जहां पर यह लिखा गया है... राजा साहब ने... राजगड़ व उसके आसपास इलाकों के विकास के लिए एक नया जोश, एक नया खून वाले नौ जवान विश्व को सरपंच चुनाव में... भाग लेने के लिए कहा.... इसके आगे की लाइन को प्रोसिक्युशन पढ़ना या बताना शायद भूल गई.... मगर यह जांच रिपोर्ट में साफ साफ लिखा है... योर ऑनर.... राजा साहब के आग्रह को विश्व ने पहले इंकार कर दिया... पर विश्व के पारिवारिक मित्र और उसके गुरु श्री उमाकांत आचार्य जी के कहने पर... विश्व चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुआ.... मतलब एक वर्ग ऐसा जरूर था... जो चाहता था... की विश्व सरपंच बनें.... ताकि उनके किए कुकर्मों को ढोने वाला कंधा विश्व के हो.... और ताजूब की बात यह है कि.... विश्व के किए घोटाले की... योर ऑनर... विश्व के जरिए जिस आवंटित राशि की बात की जा रही है.... वह राशि पिछले सरपंच के काल की हैं.... ना कि विश्व के काल की... और राशि है किसकी.... पीएम आवास योजना, पीएम ग्राम सड़क योजना, नए कैनाल बनाने की योजना, कैनाल सफाई के योजना, नए तालाब निर्माण योजना और कैनाल पर बनने वाले कल्वर्ट निर्माण योजना... इस सब योजना के ब्लू प्रिंट... पहले बनी होगी.... उसकी बजट एस्टीमेशन के बाद... प्रोजेक्ट अप्रूवल के ब्लाक ऑफिस फिर तहसील ऑफिस गई होगी.... फिर उसके बाद उस प्रोजेक्ट का पैसा तहसील को आया होगा... फिर उस प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए... टेन्डर के जरिए कंट्रैक्ट अवॉर्ड हुआ होगा... फ़िर काम शुरू हुआ होगा.... तभी तो आवंटित राशि वापस लौट ना सकी... पर चूंकि प्रोजेक्ट कंप्लीशन सर्टिफिकेट और पहले अलॉट किए राशि की युटीलाइजेशन सर्टिफिकेट ना हो तो बकाया राशि की भुगतान नहीं हो सकती थी.... इसलिए वह खास वर्ग... विश्व को चुना... क्यूंकि.. विश्व एक नव युवक था और इस राजनीति के खेल में अनभिज्ञ भी.....
इतनी बड़ी राशि को लूटने के लिए.... प्रोसिक्युशन की मानें तो विश्व के पास प्लान बना कर उसे एक्जीक्युट करने के लिए सिर्फ़ सात महीने थे... योर ऑनर... और इन साथ महीनों में उसे टीम भी बनानी थी... जिसे सौ सेल कंपनीयों के रजिस्ट्रेशन करना था... ऊपर से इन्हीं सात महीनों में उसे रूप यानी... राजगड़ उन्नयन परिषद नाम की एनजीओ का रजिस्ट्रेशन के साथ साथ उसके अकाउंट भी ऑपरेट कर.. उसके पैसे हथियाने थे... और सबसे अहम बात योर ऑनर.... यह सब प्रोसिजर को परफेक्ट करने के लिए... विश्व को पांच हजार मृत् लोगों के आधार कार्ड भी जुगाड़ने थे इन्हीं सात महीने में.... वाह क्या जांच है... और क्या कहानी है....
योर ऑनर... मैं और इसे ज्यादा नहीं खींचना चाहता हूँ....
प्रोसिक्यूशन के तरफ से जितने बयान और गवाहों के नामों का उल्लेख किया है.... उनमें प्रमुख सिर्फ पांच गवाह हैं... जिनसे बचाव पक्ष जिरह करना चाहती है... योर ऑनर...
जज - वह गवाह... कौन कौन हैं.... डिफेंस लॉयर...
जयंत - पहले गवाह हैं... मिस्टर दिलीप कुमार कर... जो पहले तो विश्व से चेक साइन करवाया और आगे चल कर एसआइटी के सरकारी गवाह बनें....
दुसरे - तहसील ऑफिस के एक और क्लर्क... मिस्टर एके सुबुद्धी... जिनके सामने तहसील ऑफिस के अंदर यह सारे कांड हुए...
तीसरे - राजगड़ थाना के प्रभारी... श्री अनिकेत रोणा...
चौथे - राजा साहब... श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी...
और अंत में एसआइटी के मुख्य जांच अधिकारी श्री के सी परीडा
जज - ठीक है... क्या प्रोसिक्यूशन को कोई ऐतराज है....
प्रतिभा - (अपनी जगह से उठकर) जी नहीं योर ऑनर...
जज - ठीक है... जयंत बाबु... आपको किन क्रम में... गवाहों से जिरह करेंगे....
जयंत - कोई फर्क़ नहीं पड़ता... योर ऑनर... कोई भी किसी भी क्रम में आ सकते हैं... या फिर गवाही के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकते हैं....
जज - ठीक है... आज बचाव पक्ष के दलीलों को सुनने के बाद... अगले हफ्ते से गवाहों से दोनों पक्ष अपने अपने तरीके से जिरह करेंगे... आज बचाव पक्ष ने जिन नामों की उल्लेख किया है... सबसे पहले उन्हीं लोगों को समन किया जाए.... इसके साथ ही अदालत की कारवाई आज के लिए स्थगित कि या जाता है....
:bow: Aakhri para me jis tarah se Adv. Jayant ji ne case ko takeover kiya he manna padega bhai :applause:
 
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रूप और अनु दोनो का चरित्र एक दूसरे से बिल्कुल अलग गढ़ा है आपने। कभी कभार रूप मुझे " सीता और गीता " की गीता की तरह लगने लगती है। चंचल , शोख , डेरिंग , रोमांटिक , बातूनी , और आत्मविश्वास से भरपूर ।
वहीं अनु थोड़ा कम बोलने वाली , शर्मीली , गाय की तरह सीधी , संकोची , और नाजुक बदन की खुबसूरत लड़की।

अनु और वीर के प्रेम मे जहां शराफत और एक ठहराव झलकता है वहीं रूप और विश्व का प्रेम शरारतपन और चंचलता लिए हुए है।
दो लड़की और दोनो का कैरेक्टर भिन्न-भिन्न है। ये आपके लेखन की खुबसूरती है जो इनके कैरेक्टर मे विभिन्नता दिखाई दे रहा है।

रूप और विश्व का प्रेम मे छेड़-छाड़ करना , मस्ती मजाक करना , कभी रूप का विश्व पर हावी हो जाना तो कभी विश्व का रूप पर हावी पड़ जाना बहुत खुबसूरत लगा मुझे।

विश्व और वीर की मुलाकात अवश्य रंग लाएगी। विश्व ने बिल्कुल सही जज किया है मृत्युंजय के बारे मे। वैसे विश्व के लिए भी यह पहेली है कि मृत्युंजय की बहन की मौत क्यों और किस वजह से हुई।
अगर इस पहेली का हल निकल आए तो यह गुत्थी आसानी से हल हो जाएगा।

इधर विक्रम साहब ने थोड़ा-बहुत हिम्मत जुटाने लायक काम तो जरूर किया है लेकिन इतने से बात नही बनने वाली। उन्हे खुलकर वीर को सपोर्ट करना चाहिए था। जब तक वो भैरव सिंह के आदेश के खिलाफ नही जाएंगे तब तक भैरव सिंह के मन मे उसके लिए कड़वाहट कैसे पैदा होगी !

एक बार फिर से बेहतरीन अपडेट ब्लैक नाग भाई । इस अपडेट मे भी संवाद लेखन का अच्छा काम किया।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग।
 
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