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Adultery सपना या हकीकत [ INCEST + ADULT ]

DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
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Raj Kumar Kannada

Good News
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💥 अध्याय 02 💥

UPDATE 08

गाड़ी शहर की तंग गलियों से निकलकर हाईवे की ओर बढ़ चुकी थी । सुबह के करीब दस बज रहे थे। हाईवे पर हल्की-सी धुंध अब भी बाकी थी, जो सूरज की गुनगुनी किरणों के साथ मिलकर एक सुनहरा सा नजारा बना रही थी। सड़क के दोनों ओर लंबी सिवान फैली हुई थी, जहां गन्ने के हरे-भरे खेत लहलहा रहे थे। कहीं-कहीं पेड़ों की कतारें तेजी से पीछे छूट रही थीं, मानो वो भी मंजू और मुरारी की इस यात्रा में उनके साथ दौड़ रही हों। गाड़ी की खिड़की से आती ठंडी हवा मंजू के चेहरे को छू रही थी, लेकिन उसका मन अभी भी उस सुबह के हादसे की गिरफ्त में था।मंजू की आंखों के सामने बार-बार वही मंजर घूम रहा था—मुरारी का अकेले उन गुंडों से भिड़ जाना, उसका गुस्सा, उसकी हिम्मत। वो शब्द, जो मुरारी ने उस आदमी को ललकारते हुए कहे थे, अब भी उसके कानों में गूंज रहे थे:
“मैंने मेरे बेटे से वादा किया है कि मैं उसकी चाची को हर कीमत पर घर लेकर आऊंगा।”

इन शब्दों में एक अजीब-सी ताकत थी, एक ऐसा जज्बा जो मंजू को हैरान कर गया था। मुरारी, जिसे वो रात वाली हरकत की वजह से गलत समझ बैठी थी, जिसे उसने मन ही मन कोसा था, वही मुरारी आज उसकी इज्जत और जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर उन गुंडों से भिड़ गया था।मंजू का मन उदासी से भरा था। उसे अपनी गलतफहमी पर पछतावा हो रहा था। बीते रात मुरारी ने जो हरकत की थी, वो शायद उसकी मजबूरी थी, या शायद उसका इरादा वैसा नहीं था, जैसा मंजू ने समझ लिया था। अब जब वो मुरारी की इस हिम्मत और जिम्मेदारी को देख चुकी थी, तो उसके मन में मुरारी के लिए एक नया सम्मान जाग रहा था। लेकिन साथ ही, वो डर भी अभी तक उसके दिल से गया नहीं था। उन गुंडों की गालियां, उनका क्रूर हंसी, और मोहल्ले वालों की चुप्पी—ये सब उसके मन पर भारी था। वो खिड़की से बाहर देख रही थी, लेकिन उसकी नजरें कहीं खोई हुई थीं। उसका चेहरा शांत था, मगर उस शांति के पीछे एक तूफान सा उमड़ रहा था।
मुरारी लंबे समय तक उसे चुप और शांत देख रहा था , वो समझ रहा था कि आज सुबह जो कुछ भी हुआ उसको लेके मंजू कितनी डर गई होगी । मुरारी के जहन में उस घटना को लेकर कितने सारे सवाल थे , मगर इस नाजुक पल में वो और मंजू को परेशान नहीं करना चाहता था । वो जानता था कि इस पल मंजू को एक कंधे की तलाश है और वो सिर्फ एक औरत ही पूरी कर सकती थी । उसे ममता का ख्याल आया
सुबह की भगदड़ में वो ममता को भूल ही गया था , और उसने अभी तक उससे बात भी नहीं की थी कि वो लोग निकल गए है ।
मुरारी ने जेब से मोबाइल निकाला और ममता को फोन घुमा दिया ।

3 से 4 रिंग और फोन पिकअप

: हैलो ( ममता की सहज आवाज आई )
: हा हैलो अमन की मां , कैसी हो ( मुरारी खुश होकर बोला ) भाई हम लोग निकल गए है
: अच्छा सच में , मेरी देवरानी कैसी है ? जरा बात कराएंगे ( ममता खुश होकर बोली )
: हा बगल में ही है , लो बात करो ( मुरारी मुस्कुरा कर मंजू को फोन देता है )
मंजू को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बात करे , उसकी चेतना तो जैसे खोई हुई थी ।
: हा , नमस्ते दीदी ...जी ठीक हूं और आप ( मंजू ने महीन आवाज में बोली उसका गला बैठा हुआ था )
अब मुरारी को ममता की आवाज नहीं आ रही थी ।
: जी , पता नहीं हाइवे पर है हम लोग हा अभी रुक कर खा लेंगे .. जी ठीक है .... लीजिए ( मंजू ने फोन वापस मुरारी को दिया )

: हा अमन की मां कहो
: अरे क्या बोलूं , उदास उदास सी क्यों लग रही थी वो ? ( ममता के तीखे सवालों से मुरारी अटक गया वो मंजू को देख रहा था कि क्या जवाब दे तो मंजू खामोशी से ना में सर हिला दी)
: ऐसा कुछ नहीं है , रात भर तो पैकिंग में निकल गई और अब झपकियां ले रही है हाहा ( मुरारी बात बनाते हुए बोला )
: अच्छा ठीक है , समय से खाने पीने के लिए रुक जाना और थोड़ा देखना की बाथरूम वगैरह की सुविधा हो । वो आपसे कहने नहीं न जायेंगी बार बार , समझ रहे हो न ( ममता ने मुरारी को समझाया )
: क्या अमन की मां तुम भी ( मुरारी ने मुस्कुरा कर मंजू को देखा तो वो भी फीकी मुस्कुराहट से उसे देखी) पता है मुझे , चलो ठीक है सफर लंबा है मोबाइल चार्ज नहीं कर पाया हुं। रखता हूं। बाय
: हा बाय

फोन कट गया और फिर मंजू खिड़की से बाहर देखने लगी ।
वही दूसरी ओर ममता ने फोन रखा और एक बार फिर उसके चेहरे पर बेचैनी हावी होने लगी ।
सुबह से आज वो अपने कमरे से बाहर नहीं आई थी । मदन सुबह बोलकर गया था कि कही काम से जा रहा है अभी तक वापस नहीं आया ।
ममता के पैर की चोट उसे दुख रही थी चलना दूभर था ।
किसी तरह हिम्मत कर उसने खाना बनाने के सोचा और किचन में आने लगी ।
जैसे ही वो हाल में आई तो चौकी , किचन में तो मदन भिड़ा हुआ है ।

ममता की आहट से मदन उसकी ओर घूमा
सीने पर एप्रेन बांधे हुए टीशर्ट और लांग वाले चढ़्ढे में खड़ा था
: अरे भाभी जी , आराम से ( ममता को लड़खड़ाते देख वो भाग कर उसके पास आया और उसका बाजू पकड़ कर सोफे पर बिठाने लगा )
: अह्ह्ह्ह देवर जी , आप क्यों खाना बना रहे है ? ( ममता असहज होकर बोली) और सब्जी भी नहीं होगी
: सब्जी मै ले आया हूं और आपकी तबियत भी ठीक लग रही थी तो सोचा मै ही कुछ बना दु आपके लिए ( मदन खिल कर हाथ में कल्चुल पकड़े हुए उसके आगे झुकता बोला , जैसे बीते रात कुछ हुआ ही न हो )
: क्या आप भी ( ममता मदन के हरकत से मुस्कुराई )
: हम्मम तो मैडम जी कोई खास फरमाइश ( अपने दोनों हाथ बांध कर मदन अदब से झुक कर बोला जैसे किसी होटल का वेटर हो )
: हीही, क्या आप ये सब ? ( ममता हसने लगी ) छोड़िए इधर दीजिए मुझे । आपको ये सब नहीं करना चाहिए था
: आहा, आज नहीं ! आज तो मै ही बनाऊंगा । बताओ क्या खाओगे ( मदन उसकी पहुंच से थोड़ा पीछे खिसक कर बोला )
: अच्छा ठीक है एक चाय मिलेगी क्या ? ( ममता ने बड़े भारी मन से कहा )
: उसके साथ आलू सैंडविच भी रेडी है , लेना चाहेंगी आप ( मदन ने फिर वही वेटरों वाली स्टाइल में बोला )
: हीहि, जी लाइए ( ममता जो अब तक उदास थी और सोच रही थी कि अपने देवर से कैसे सामना करेगी , अब थोड़ी बेफिक्र थी । )
मगर उसके पैर के अंगूठे में हल्की सूजन आ गई थी ।
थोड़ी ही देर में मदन एक ट्रे में गर्मागर्म चाय और सैंडविच लेकर आया

: एनीथिंग एल्स मैडम ( मदन फिर से बोला )
: उम्हू ( ममता ने मुस्कुरा कर ना में सर हिलाया और मदन वहां से निकल कर अपने रूम में चला गया और एक प्लास्टिक बॉक्स लेकर आया )

हाल से स्टूल खींच कर उसने ममता के पास रखा खुद नीचे बैठ गया
: अरे देवर जी , ये सब क्या ? ( ममता उसको प्लॉस्टिक बॉक्स को खोलते देख रही थी , जो असल में एक मेडिकल किट थी )
: क्या आप अपना पैर इसपर रखेंगी मैडम ( मदन मुस्कुरा कर बोला )
: क्या कर रहे हो आप , मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है ( ममता उलझी हुई अपनी चोट वाली टांग को सोफे पर बैठे हुए उस स्टोल पर रखा )

जिससे उसकी नाइटी का गैप बढ़ा हो गया , मदन इस वक्त ठीक उसके आगे उकङू होकर बैठा था , वहा से ममता के फैले हुए काटन नाइटी के गैप से दूर अंदर तक उसकी चिकनी लंबी गोरी टांगे दिख रही थी जांघों तक
मदन ने अपने नजरो को झटका और सेवलान से ममता के घाव धुलने लगा

: अह्ह्ह्ह सीईईई फ़ूऊऊ( ममता सिसकी एक ठंडा चुनचुनाहट भरा एहसास उसने अपने चोट के आसपास महसूस किया )
मदन ने काटन से उसके घाव साफ किए और एक मलहम निकाली और उसका ढक्कन खोलते हुए

: भाभी सैंडविच खाओ न ( वो ममता के घाव पर फूंकता हुआ बोला )
ममता ने सैंडविच को जैसे ही मुंह में दबाया उसी समय मदन ने वो मलहम की ट्यूब को दबाया और मलहम ममता को घाव पर फैलने लगी

: उम्ममम फ़ूऊ फ़ूऊऊ , अह्ह्ह्ह मम्मीईईई ये क्या है अह्ह्ह्ह( ममता जोर से चीखी अपनी टांग पकड़ते हुए )
: बस हो गया भाभी , अभी ठंडा हो जाएगा । शुरू में थोड़ा लगता है आप सैंडविच खाओ न ( मदन हंसते हुए बोला )
: भक्क, बहुत बुरे हो आप , अह्ह्ह्ह्ह सीईईई मम्मी ऊहू ( ममता का चेहरा दर्द से बेचैन था मानो अभी वो रो ही देगी)

मगर कुछ ही देर में उसे एकदम से आराम मिल गया और उसका गुस्सा भींनकना मुस्कुराहट में बदल गया ।
तो वो उठ कर किचन में आई

: उह ऊहू .. (ममता मुस्कुराती हुई नाइटी में मदन के पास खड़ी हो गई तो मदन मुस्कुरा कर उसे देखा ) थैंक यू
और उसने मदन के हाथ से चाकू ले लिया जिससे वो सब्जियां काट रहा था
: अच्छा जी , वो किस लिए ( मदन अपने हाथ बांधता हुआ ममता के मुस्कुराते चेहरे को देखते हुए किचन स्लैब पर अपने कूल्हे टिकाते हुए बोला )
: आपकी सर्विस के लिए ( ममता सब्जियां काटती हुई आंखे रोल करती हुई मुस्कुराई बिना मदन की ओर देखे )
: बिना टीप के सिर्फ थैंक यू ? इतनी खराब थी क्या सर्विस ( मदन ने मुंह बनाया )
: अरे नहीं ( ममता हस पड़ी और उसके मोतियों जैसे दांत होंठों पर खिल उठे ) अच्छा ठीक है कल आपको एक बहुत अच्छी टिप मिलेगी ओके
: क्या कल ? ( मदन चौका )
: वो मैने ऑर्डर दे दिया है कल तक आ जाएगा तो मिलेगा आपको ( ममता ने मदन को उलझाया ).
: ऐसा क्या मंगवा रही हो भाभी ( मदन सोचते हुए बोला )
: कल मिलेगा कल हीही

और वो काम करने लगी

प्रतापपुर

रसोई के पास लगी चौकी पर रंगीलाल और उसका ससुर बनवारी खाना खा रहे थे

: भाई मेरा हो गया , बहू जरा हाथ धुलवा दे ( बनवारी चौकी से उतरकर आंगन की ओर चला गया और सुनीता एक लोटा पानी लेकर चली गई पीछे )
इधर रंगीलाल के जहन में काफी कुछ चल रहा था । रात से अब तक जो कुछ भी घटित हुआ उससे सुनीता के लिए उसकी हवस को और हवा मिल चुकी थी ।
थोड़ी देर बाद ही बनवारी अपने गमछे से हाथ पोंछता हुआ आया और पीछे उसके सुनीता
रंगी की नजर अनायास उसके सर से हटे हुए पल्लू पर गई सीने का उभार हल्का सा झलक रहा था । सुनीता ने रंगी की नजर भाप ली और झट से अपने सर पर पल्लू करते हुए अपने ब्लाउज को ढक दिया।

: जमाई बाबू चलना है या फिर आराम करोगे ? ( बनवारी अपने हथेली के खैनी रगड़ता हुआ बोला )
रंगीलाल बनवारी के सवाल पर उसके पीछे खड़ी अपनी खूबसूरत सलहज को देखता है और मुस्कुरा देता है ।
: नहीं बाउजी , अभी थोड़ा आराम करूंगा घर पर । मन हुआ तो आता हूं ( रंगी लाल खाना खाने लगा और उसके जवाब पर सुनीता मुझ फेर कर मुस्कुराने लगी क्योंकि वो जान रही थी कि रंगीलाल उसके लिए ही रुकेगा )
इधर बनवारी निकल गया और रंगीलाल का खाना भी लगभग हो गया
: और कुछ दूं ( सुनीता ने रंगी से पूछा )
: जो चाहिए वो तो आप दे नहीं रही हो ( रंगी ने मुस्कुरा कर उसे देखा और सुनीता लजाई ) हाथ धुला दीजिए अब ।

रंगीलाल चौकी से उतर कर जूठे हाथ लिए आंगन की ओर आ गया और सुनीता पानी लेकर उसके पीछे गई मुस्कुराती हुई

रंगी आगे झुक कर हाथ आगे किया और सुनीता भी उससे कुछ दूरी पर ही सामने थोड़ा सा झुक कर पानी गिराने लगी। रंगी ने मुस्कुरा कर उसे देखा तो दोनों की नजरे टकराई
मगर असल धोखेबाज तो उसका पल्लू निकला , बिना पिन का पल्लू झुकने की वजह से उसके कंधे से सरक कर कलाई के आ गया और उसके बड़े गले वाले ब्लाउज़ से उसके मोटे रसीले गोल मटोल मम्मे दिखाई देने लगे ।


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रंगीलाल की नजर एकाएक उन पर गई और उसकी नजर का पीछा किया तो सुनीता ने देखा कि वो उसके मुलायम चूचों को ही घूर रहा है ।
सुनीता बेचैन होने लगी , उसकी सांसे तेज हो गई और वो झट से खड़ी होकर अपना पल्लू सही किया ।

रंगी मुस्कुराया कर उसे निहारता रहा और सुनीता नजरे चुराती रही । फिर रंगी हाथ पोछने के लिए कुछ खोजने लगा कि उसकी नजर सुनीता के पल्लू पर गई और वो उसे पकड़ लिया
सुनीता एकाएक चौकी और अपनी साड़ी को छातियों के पास कस कर पकड़ लिया

मगर रंगी मुस्कुरा कर बस उसके पल्लू में हाथ पोंछ कर छोड़ दिया ।
सुनीता के दिल अभी तक कांप रहा था ।

रंगीलाल : अरे डरिए मत , जब तक आप हा नहीं कहेंगी हम आगे नहीं बढ़ेंगे
सुनीता मुस्कुराई : धत्त , आप जो चाहते है वो सही नहीं है ।
रंगीलाल उसके करीब आकर उसकी आंखों में देखता हुआ : किसी को चाहना गलत है क्या ?
रंगीलाल का यू उसकी ओर चढ़ आना सुनीता की हालत पतली हो गई ,उसकी सांसे चढ़ने लगी और आंखों में हल्का सा डर दिखा : नहीं , लेकिन मै उन्हें छोड़ नहीं सकती हूं, प्लीज
रंगीलाल : मैने तो नहीं कहा आप छोड़ दो , बस मेरा हाथ थाम लो यही चाहता हूं
रंगीलाल की आंखों के खुमारी सी थी और दोनों की सांसे बेकाबू हुई जा रही थी
सुनीता को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले : हटिए जाने दीजिए , मुझे कपड़े धुलने है
ये बोलकर वो तेजी से निकल गई और रंगीलाल मुस्कुरा कर उसके रसीले मटके हिल्कोरे खाता देखता रहा ।

वही बबीता के कमरे में आज सालों बाद राजेश घुसा था , इधर उधर नजर पड़ रही थी । गीता को बड़ा ताज्जुब लग रहा था कि उसको पापा आए है ।
वही बबीता बड़ी खुश नजर आ रही थी अपने पापा का साथ पाकर
फुदक रही थी , टीशर्ट में बिना ब्रा के उसके गोल मटोल मौसमी जैसे चूचे खूब हिल रहे थे और नंगी चिकनी जांघें देख कर राजेश का लंड अकड़ रहा था ।

तभी उसकी नजर कमरे के दरवाजे के पीछे वाल हैंगर में लटके हुए ब्रा और पैंटी पर गई , उसे समझते देर नहीं लगी कि ये उसकी बेटियों के होंगे ।
उन ब्रा पैंटी के सेट देख कर राजेश की बेचैनी बढ़ने लगी । वो बबीता की नाप जानने को इच्छुक हो उठा ।
इतने बबीता आई और उसके पास सट कर बैठ गई

: पापा ये वाली मूवी में बहुत हसी है हीही ( बबीता खिलखिला कर बोली तो राजेश उसकी कमर के हाथ डाल कर उसे अपने पास खींच लिया )

ये सब देख कर गीता को अजीब सा लग रहा था , एकदम से बबीता और उसपे पापा के रिश्ते में आया बदलाव उसे समझ से परे लगा। उसके जहन में तो उसके दादा जी का बड़ा मोटा लंड घूम रहा था । ताज्जुब हो रहा था उसे कि इस उम्र में भी उसके दादू का लंड इतना मोटा है ।
राज के यहां से आने के बाद बबीता ने अपने बॉयफ्रेंड से मिलना जारी रखा मगर गीता अकेली थी और दादाजी का लंड उसे ललचा खूब रहा था ।
वो बेचैन हो रही थी और उसने तय किया कि वो दादा जी के पास जाएगी
उसने आलमारी से कपड़े लिए

: मीठी कहा जा रही है ( पापा की बाहों में लिपटी हुई बबीता ने पूछा तो राजेश ने भी गीता को देखा )
: वो मै दादू के पास जा रही हूं , ऐसे ही घूमने ( गीता ने साफ साफ जवाब दिया और अपने कपड़े लेकर निकल गई)
: आराम से जाना बेटा ठीक है ? ( राजेश ने उसको बोला और गीता हा में सर हिला कर निकल गई दरवाजा खींच कर दूसरे कमरे में कपड़े बदलने )
उसके जाते ही राजेश ने बबीता को दोनों हाथों से पकड़ा और उठा कर गोदी में बिठा लिया

: हीही पापा , मै बच्ची थोड़ी हूं जो ऐसे बिठा रहे हो ( बबीता अपने अपना की जांघों पर बैठी खिलखिलाई )
वही राजेश अपनी बिटिया के नरम चर्बीदार चूतड़ का गद्देदार स्पर्श पाकर सिहर उठा था ,उसके नथुनों में अपनी बेटी की कोरी खुशबू आ रही थी
: तू तो हमेशा मेरी गुड़िया रहेगी ( हाथ बढ़ा कर उसने बबीता के पेट पर टीशर्ट के ऊपर से गुदगुदी की तो वो उसके गोद में छटकने लगी )
: हाहाहाहाहा पापा
( फिर उसकी नजरें अपने पापा से मिली तो उसने अपने पापा को देखा और दोनों हाथों से उसका चेहरा थामा )
: आई लव यू पापा ( उसने झट से राजेश को हग कर लिया) आप प्लीज ऐसे रहा करो प्लीज
राजेश बबीता की भावुकता समझ रहा था , बचपन से उसने कभी भी अपनी बेटियों को एक पिता का प्यार नहीं दिया । अपनी अय्याशी और नशे की लत में वो इतना बहक गया कि उसे घर परिवार का ख्याल तक नहीं रहा था । मगर आज बबीता का यू उससे लिपटना उसे पिघला रहा था ।
उसने झट से बबीता को अपने सीने से कस लिया , उसके छोटे छोटे मौसमी जैसे चूचे अपने सीने पर कठोर बॉल के जैसे धंस रहे थे और वो अपनी बेटी के पीठ को सहला रहा था ।
कितना कोमल अहसास था
: आई लव यू मेरी गुड़िया उम्माह ( उसने बबीता के कान के पास चुम्मी ली तो बबीता को हल्की गुदगुदी लगी और वो खिलखिला उठी और अलग होने का प्रयास की तो राजेश उसे हंसी में और कस कर पकड़ लिया)

: हीही , छोड़ो अब पापा ( बबिता खिलखिलाई )
: नहीं, मै नहीं छोड़ने वाला अपनी गुड़िया को ( उसने बबीता को अपनी बाहों में और कसा जिससे बबीता के नरम फुले हुए चूचे उसके सीने से दब गए और जब जब बबीता उससे अलग होने को खुद को कसमसाती उसके निप्पल पर अपने पापा के गर्म सीने का घर्षण होता , जिससे उसके निप्पल टाइट होने लगे और वो बेचैन होने लगी ।
उसे शर्मिंदगी सी होने लगी कि उसके पापा को जरूर उसके तने हुए निप्पल चुभ रहे होगे , उसके जहन में कुछ बातें घूमने लगी , कि क्या सोच रहे होंगे उसके पापा उसके बारे में।
वो थोड़ा सा जोर लगा कर अपने छातियों को अपने पापा से सीने से दूर किया और राजेश भी समझ गया कि बबीता असहज हो रही है इसलिए उसने भी छोड़ दिया
बबीता लजा कर सीधी उसके गोद में चुप होकर बैठ गई , वही राजेश उसके टीशर्ट में उभरे हुए उसके निप्पल के दाने को देख आकर उसके लंड में हरकत होने लगी ।

मगर उसे माहौल को सहज ही रखना था इसीलिए उसने पीछे से बबीता के पेट को पकड़ कर उससे लिपट गया
बबीता को फिर से गुदगुदी हुई मगर वो अब सहज महसूस कर रही थी ।
मगर राजेश के जहन में वो ख्याल आ रहे थे जब उसने बबीता को पूरी नंगी देखा था उसके उपले जैसे गोल मटोल चूतड़ पानी में उपराए हुए थे और वो तैर रही थी नंगी । उसका लंड पजामे में अकड़ने लगा था
जिसका अहसास बबीता को भी हो चुका था अपने नरम चर्बीदार चूतड़ों पर
जैसे उसे अपने चूतड़ों के नीचे कुछ कड़कपन का अहसास हुआ वो चिहुकी , उसकी आंखे बड़ी हो गई
उसे लगने लगा कि जरूर जब उसके दूध उसके पापा के सीने से रगड़े होंगे इसी वजह से उसके पापा का खड़ा हो गया ।
उसका कलेजा डर रहा था , वो अपने पापा के सुपाड़े की कठोरता महसूस कर पा रहे थी । उसकी चूत बिलबिला उठी और वो राजेश के गोद से खड़ी हो गई

: पापा वो मै मम्मी को कपड़े देकर आती हूं नहीं तो गुस्सा करेंगी ( बबीता ने बहाना बनाया और निकल गई )
राजेश वही बैठा हुआ अपना लंड मसलने लगा ।
इधर बबीता तेजी से कमरे से निकल कर पीछे आंगन की ओर जाने लगी
जिसकी आहट पाते ही रंगीलाल जो छिप कर अपनी सहलज को कपड़े धुलते देख रहा था वो रसोई की ओर चला गया और जब बबीता वापस जाने लगी तो वो लपक और आंगन के दरवाजे के पास आया और भीतर झांकने लगा


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जहां सुनीता अपने सीने का पल्लू कमर में खोसे हुए बैठ कर कपड़े धूल रही थी और उसके बड़े बड़े रसीले मम्में ब्लाउज से बाहर झांक रहे थे
वो नजारा देख कर रंगीलाल का लंड अकड़ने लगा था ।
उसको तत्काल चुदाई चाहिए थी और सुनीता से अभी कोई उम्मीद नहीं नजर आ रही थी इसलिए वो निकल गया अपने ससुर के पास
वही रंगीलाल से पहले ही गीता निकल गई थी बनवारी के पास
इठलाती उछलती हुई वो मुख्य सड़क की जगह खेतों से होकर गोदाम के पीछे वाले रास्ते से बनवारी के पास जा रही थी । उसका अक्सर यही रूट रहता है हमेशा से , इससे दो फायदे होते थे , उसे गांव के कम लोगो का सामना करना पड़ता था और कम समय में वो पहुंच जाती थी ।
तेजी से चलते हुए वो गोदाम की ओर जा रही थी , इस उद्देश्य से आज उसके फूफा रंगीलाल घर पर है और उसके दादाजी अकेले में क्या करते है वो भलीभाती जानती है ।
वो अपने तय जगह पर आ पहुंची थी और वो जगह थी , गोदाम के सबसे पीछे वाले कमरे में जहां बनवारी अपनी कामलीलाये करता था ।
वही से एक खिड़की खुली थी जहां से अंदर का नजारा देखा जा सकता था और वो वही खड़ी होकर एड़ी उठा कर भीतर झांकने लगी
उसका तुक्का सही निकला , कमरे में उसके दादा बनवारी एक औरत को अपनी बाहों में लेकर सहला रहे थे , कभी उसके ब्लाउज में हाथ घुसा कर उसकी गुदाज मुलायम छातियां मिजता तो कभी उसके चर्बीदार पेट को मसलता वो औरत खिलखिला रही थी
: अह्ह्ह्ह्ह सेठ जी छोड़िए न , आज नहीं उम्मम अह्ह्ह्ह्ह, घर पर मेहमान आए है
: अह्ह्ह्ह कितने दिन बाद तो आई हो थोड़ा सा दूध पिला दो ( बनवारी उसके चूचे मसलने लगा )
: नहीं , मै हाथ जोड़ती हु सेठ घर पर मेरी बुढ़िया राह रही होगी । ( वो औरत अलग हुई और कपड़े सही करते हुए वो पैसे जो अभी उसे मिले थे उसे अपने ब्लाउज में खोंसते हुए बोली )
फिर तेजी से बाहर निकल गई और बनवारी अंगड़ाई लेता हुआ बिस्तर की ओर आने लगा , इधर गीता वहा से हटने को हुई कि उसका बैलेंस बिगड़ा और वो पीछे की ओर गिर पड़ी

उसकी सिसकी से बनवारी चौका और लपक कर खिड़की से बाहर झांका तो देखा कि खिड़की के बाहर खेत में उसकी नातिन गीता गिरी है

बनवारी चिंता में उसको आवाज दिया और जल्दी से कमरे की पीछे वाले दरवाजे को खोला जो खेत में खुलता है , अक्सर ये दरवाजा बनवारी औरतों को बुलाने के लिए यूज करता था ।
वो झट से दरवाजा खोलता हुआ गीता की ओर भागा

: अरे मीठी , क्या हुआ बेटी ,तू गिर कैसे गई ? और तू यहां क्या कर रही थी ?
एक एक करके सवाल और सवाल
पैर में चोट आई थी और दर्द से बिलख रही थी ,
: वो मै ऐसे ही आई थी घूमने , आज छुट्टी थी स्कूल की , अह्ह्ह्ह्ह मम्मी दर्द हो रहा है
: लेकिन तू पीछे से क्यों आ रही थी ( तभी बनवारी को सुबह वाली घटना याद आई और उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी नातिन यहां पीछे क्या कर रही थी ) चल उठ कमरे में आ चल
बनवारी ने उसे उठाया और कमरे के लेकर आया
: बहुत बिगड़ गई है आजकल तू , कभी छत से कभी खिड़की से क्या है ये सब तेरा बोल ? ( बनवारी ने डांट लगाई )
: सॉरी दादू ( वो बिलखते हुए बोली , इस उम्मीद में कि रोने से शायद वो सजा से बच जाए )
: मै देख रहा हूं कई रोज से तू आंगन में झांकती है , ये अच्छी बात है क्या ? बोल ( बनवारी ने उसे समझाना चाहा )
: नहीं दादू , वो मै , अह्ह्ह्ह दर्द हो रहा है सॉरी ( गीता को समझ नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे वो )
बनवारी ने पानी से उसके पाव धुले और एक मलहम लगाया जो उसके दराज में उपलब्ध था ।
: नहीं करना चाहिए न बेटा , ये अच्छी आदत नहीं है और तू मेरी प्यारी बेटी है न ( बनवारी उसकी एड़ी में मलहम से सहलाने लगा )
: जी दादू , अब नहीं करूंगी

कुछ देर कि चुप्पी और फिर कुछ बाते थी जो बनवारी के जहन में उठ रही थी सवालों के रूप में
: अच्छा सुन , तूने बहु को कहा तो नहीं इस बारे में जो तू ताक झांक करती है ( बनवारी ने सवाल किया )
: ऊहु ( गीता ने थोड़ी लजा कर मुस्कुराती हुई न में सर हिलाई ) उन्हें पता चलेगा तो आपको अपने पास आने थोड़ी देंगी हीही

एकाएक बनवारी के कान खडे हो गए
: क्या कहा तूने अभी ,
: जैसे मुझे पता नहीं चलेगा क्या कि मम्मी रात में आपके कमरे में क्यों जाती है ? ( गीता मुस्कुरा कर बनवारी को देखी )
बनवारी अब असहज होने लगा और उसका हल्क सूखने लगा , उसे उम्मीद नहीं थी उसकी बाते इस कदर उसकी नातिन जान लेगी ।
: तू कुछ ज्यादा नहीं जानती तेरी उम्र के हिसाब से ( बनवारी को हंसी आई )
: आप भी कुछ ज्यादा ही करते हो वो सब अपनी उम्र के हिसाब से ( गीता ने पलट कर जवाब दिया )
जिसपर बनवारी हस दिया
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो भला क्या ही रिएक्ट करे गीता की बातों पर , जिसमें बचपना भरा है । भले उसका जिस्म भर आया हो और उम्र बढ़ रही हो मगर बनवारी के लिए ये मानना आसान नहीं था कि उसकी नातिन की रुचि अब सेक्स को लेकर भी होने लगी है ।

: तू , तूने कब देखा तेरी मां मेरे कमरे में आती है ? ( बनवारी ने सवाल किया )
: कई बार , कभी कभी किचन में भी । एक बार तो मैने आप दोनों को पापा से भी बचाया था हीही ( गीता बड़ी मासूमियत से बोली )
राजेश का जिक्र होते ही बनवारी ठिठक गया
: क्या ? कब ?
: वो आप लोग किचन में थे और पापा पानी पीने जा रहे थे तो मै उन्हें घुमा लाई कमरे में । काफी दिन हो गए

बनवारी को अब समझ आ रहा था , उसकी नातिन को सही गलत को समझ है । वो सिर्फ बहकी नहीं बल्कि उस चीज को समझती भी अच्छे से है । लेकिन फिर भी वो उसके लिए लाडली नातिन थी । अभी पिछले बरस ही तो उसने अपनी दसवीं पास की है ।

: अच्छा ठीक है ठीक है , लेकिन अब तू घर जा ( बनवारी ने कड़े शब्दों के कहा ) और ये सब किसी से कहना मत
अपने दादू से ये सब सुनते ही गीता का मुंह फूल गया , गीता का स्वभाव बचपन से जिद्दी था , और अपने दादा के आगे कुछ ज्यादा ही दुलारी थी ।
बनवारी उसकी भावनाएं समझ रहा था मगर क्या करे । उसके सामने उसके गोद में खेली हुई बच्ची थी जो खुद को श्यानी समझ रही थी ।
: अच्छा ठीक है , चौराहे से तेरे लिए शाम को फुल्की लेकर आऊंगा अब खुश ( बनवारी ने गीता का चेहरा देखा )
वो भीतर से जल रही थी कि क्यों उसके दादू उसकी बात समझ नहीं रहे है , जबसे उसने दादू और अपने मम्मी की चुदाई देखी थी वो पगलाई घूम रही थी । उसके जहन में अपने दादू का मोटा लंबा लंड घूमता रहता था सुबह शाम और आज जब सारे भेद खुल गए तो उसकी बेसबरी और बढ़ गई ।
वो पिनक कर उठी और बिना कुछ बोले पीछे वाले दरवाजे से खेतों की ओर निकल गई । बनवारी का मन भी थोड़ा उदास हो गया अपनी लाडली नातिन को उदास देख कर । लेकिन अभी तक उसके जहन के गीता को लेकर कोई भी बुरे ख्याल नहीं आए । न ही उसने गीता के बड़े हुए संतरों और चर्बी भरी मोटी चूतड़ों की थिरकन को पलट कर देखा । बस नजरे फेर कर बिस्तर पर बैठ गया ।

वही रंगीलाल मेन सड़क से होता हुआ गोदाम आ रहा था कि बोरियो के बीच उसे कमला मिली और झट से उसे वो एक कोने खींच ले गया ।
: अह्ह्ह्ह छोड़ो जमाई बाबू , काहे तंग कर रहे हो अह्ह्ह्ह्ह ( कमला बोरियो के छलियों से लगी छटपटा रही थी और आगे रंगी उसकी कलाई पकड़े हुए था और अपनी टांग को उसकी जांघों के साड़ी के ऊपर से भेद रखा था जिससे वो भाग न सके )
: ओहो कमला रानी सारी जवानी अब क्या सिर्फ मेरे साले और ससुर पर न्योछावर करोगी , तनिक हम पर भी रहम करो( रंगी उसको अपनी ओर कसता हुआ बोला )
: अह्ह्ह्ह्ह उम्मम क्या करते सीईईई ( अपने गुदाज नर्म चूचों को रंगीलाल के सीने से रगड़ खाते ही कमला सिसकी )
रंगी उसके चर्बीदार चूतड़ों को साड़ी के ऊपर से मसलता हुआ : अह्ह्ह्ह कमला रानी , कल तुमने अपने इन रसीले जोबनो से मुझे जो घाव दिए बहुत दर्द रहा रात भर कसम से

: धत्त , छोड़ो न जमाई बाबू कोई देख लेगा ( कमला शर्मा कर मुस्कुराती हुई अलग होने लगी )
: रात में मिले फिर ?
: कहा ?
: बाउजी के बगल वाला कमरा मेरा है, कल सारी रात तुम्हारी सिसकियां सुनकर इसे मसलता रहा ( रंगीलाल उसके आगे पजामे के ऊपर से अपना खड़ा हुआ लंड मसलता हुआ बोला )

: क्या मेरी ? मै कब आई हीही ( असहज होकर कमला हसी )
: तुम नहीं थी तो फिर कौन था ? बाउजी ने तो ... ( रंगी अपनी बात अधूरी छोड़ दिया)
: अभी बहुत कुछ है जो आपके बाउजी आपसे छुपाए हुए है हीही, मिलती हु रात में

और वो मुस्कुराती हुई अपने कूल्हे झटकती निकल गई । वही रंगी लाल सोच में पड़ गया कि आखिर फिर वो दूसरी कौन हो सकती है ? जिसके बारे में बाउजी ने मुझसे झूठ बोलने लगे ।
रंगी वहा से निकल कर सीधे अपने ससुर के पास चला गया
: अरे जमाई बाबू , आइए आइए बैठिए
: लग रहा है आज अकेले ही आराम फरमा रहे है हाहाहाहाहा ( रंगी ने हस कहा )
: अरे वो कमला आई थी , लेकिन उसके घर मेहमान आए है तो चली गई , वरना अभी तक दरवाजा बंद ही मिलता हाहाहाहाहा ( बनवारी हस कर बोला )
: वैसे सच कहूं बाउजी , समान जोरदार है कमला ( रंगी सिहर कर बोला )
: ओहो कही जमाई बाबू का ईमान भी तो नहीं डोल रहा है हाहा ( बनवारी के छेड़ा रंगी को )
रंगी उसकी बातों और थोड़ा लजाया: अरे नहीं बाउजी , रागिनी के आगे फीकी है ये , उसके चूतड़ तो इससे भी.... सॉरी बाउजी ( रंगी बोलते हुए रुक गया )
बनवारी हंसता हुआ : हा हा समझता हूं भाई, बीवी की दीवानगी होती ही ऐसे है । अब तुम्हारी स्वर्गवासी सास को ही लेलो डिट्टो मेरी रज्जो की फोटोकापी थी और घाघरे में जब उसके बड़े चौड़े कूल्हे झटके खाते , उफ्फफ
: क्या सच में अम्मा जी रज्जो जीजी जैसे थी ? फिर तो बड़े किस्मत वाले निकले बाउजी हाहाहा ( रंगीलाल ठहाका लगा कर बोला)
बनवारी हस कर : अरे किस्मत वाले तो कमलनाथ बाबू है क्यों ?
रंगी अपने ससुर के इस मजाक और थोड़ा सा झेप गया और असहज भरी मुस्कुराहट से हंसता है : अह बात तो सही है आपकी , किस्मत वाले तो है ही कमल भाई

बनवारी ने अब रंगी को शर्माता देख कर छेड़ा : कही आपकी भी पहली पसंद रज्जो तो नहीं थी ? हाहाहाहाहा

रंगी बनवारी के मजाक में शामिल होता हुआ हस कर : अब मेरी बारी ही लेट आई तो क्या कर सकता हूं बाउजी , सिवाय हाथ मलने के हाहा

बनवारी हस कर : वैसे उदास होने की जरूरत नहीं है , छोटकी भी ... हीही ( बनवारी बातें आधी छोड़ कर हस पड़ा और रंगी भी मुस्कुराने लगा )

शिला के घर

" Send me video plzz "
" Okay , wait 5 mins "
...................................
अरुण बेचैन होकर कालेज के बरामदे में चक्कर लगा रहा था और बार बार मोबाइल देख रहा था ,
तभी एक वीडियो क्लिप उसके ****gram पर आया , जिसे देखते ही उसकी सांसे चढ़ने लगी । वो एक सुरक्षित जगह तलाशने लगा और लपक कर तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गया

वही कालेज के ऑफिस में मानसिंह बैठा था और उसका मोबाइल बजने लगा
: हा शिला कहो ( मानसिंह ने फोन उठाया )
: कुछ खास भेजा है मैने आपके लिए चेक करो और बताओ हीही ( शिला मुस्कुराती हुई फोन काट दी )

मानसिंह को समझते देर नहीं लगी कि आखिर क्या खास चीज होगी और उसने झट से अपना व्हाट्सअप खोला और दो तीन तस्वीरों के साथ एक वीडियो आया था , जिसके नीचे एक मैसेज लिखा हुआ था । " आज का लंच स्पेशल है 😜"
मानसिंह उन तस्वीरों को देख कर समझ चुका था कि वीडियो में वही सब होगा और जैसे ही उसने वीडियो खोला ,उसका लंड फुदकने लगा


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वीडियो में शिला सिर्फ ब्लाउज और पैंटी में किचन में खड़ी होकर खाना बना रही थी । पैंटी में बाहर निकले हुए उसके बड़े चौड़े चूतड़ देख कर मानसिंह का लंड अकड़ने लगा वो उसको पकड़ कर सिहर गया ।

वही कालेज के बाथरूम में दरवाजा बंद करके खड़ा होकर अरुण तेजी से अपना लंड भींच रहा था । उसके मोबाईल स्क्रीन पर म्यूट में एक वीडियो चल रहा था जिसमें एक मोटी गदराई हुई औरत शावर के नीचे सिर्फ पैंटी में नहा रही थी और पीछे से उसकी भीगी हुई गाड़ दिख रही थी "

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" अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह क्या मस्त माल है यार कितनी मोटी गाड़ है और भीगती हुई तो अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म फक्क्क् यूयू बिच ओह्ह्ह्ह "
तभी वो औरत कैमरा की ओर अपनी गाड़ किए हुए ही अपनी पैंटी नीचे उतारने लगी और उसकी मोटी गदराई गाड़ नंगी होने लगी , शावर का पानी अब सीधे उसके बड़े चौड़े चूतड़ों के दरारों में जाने लगा , जिसे देख कर अरुण खुद को रोक नहीं पाया और भलभला कर झड़ने लगा

" अह्ह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् यूयू ओह्ह्ह्ह यशस्स अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह उम्ममम अमीईईई अह्ह्ह्ह कितना बड़ा है आह्ह्ह्ह "
अरुण अपना लंड झाड़ कर वापस क्लास के लिए निकल गया और वही मानसिंह शिला से फोन पर बातें कर रहा था । जबकि रज्जो ने शिला का मोबाइल स्पीकर पर रखा हुआ था ताकि वो भी मानसिंह के जज्बात सुन सके

: ओह्ह्ह्ह मेरी जान , क्या मस्त चूतड़ है उफ्फ , जी करता है आकर काट लूं अभी , और खोल कर लंड घुसा दु ( मानसिंह फोन पर बोला और उसकी बाते सुन कर रज्जो और शिला मुंह पकड़ कर खिलखिलाई )
: उफ्फ तो रोका किसने है, आजाओ न मै तो अभी तक वैसी ही हूं कपड़े भी नहीं पहने, आजाओ न मेरे राजा और घुसा दो जहां जो घुसाना चाहते हो उम्ममम ( शिला ने मानसिंह को उत्तेजित किया और मानसिंह का लंड अकड़ गया )
: बस 5 मिनट , मै निकल रहा हूं
मानसिंह की बौखलाहट पर शिला और रज्जो मुंह दबा कर हस रही थी और फिर फोन कट हो गया ।

कुछ ही देर में मानसिंह घर के अंदर दाखिल हो गया था , और उसका लंड पेंट के पूरा कड़क हो गया था
वो लपक कर तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ गया ।
कि तभी उसका मोबाइल बजा ये कॉल शिला ने ही किया था

" कहा हो मेरे राजा उम्मम आओ न " , शिला ने फोन पर सिसक कर कहा ।
मानसिंह शिला के कामुक और आकर्षक आवाज से उत्तेजित हो उठा : आ गया हु मेरी जान, कहा हो तुम
शिला : सीधे कमरे में चले आओ अह्ह्ह्ह्ह कबसे मेरी चूत कुलबुला रही है अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म
शिला ने फोन पर मानसिंह को और उकसाया
मानसिंह : अरे वो रज्जो भाभी कहा.....( मानसिंह आगे कुछ बोलता उससे पहले ही शिला ने फोन काट दिया )
अब तक वो शिला के कमरे तक आ पहुंचा था और जैसे ही उसने कमरे का दरवाजा खोला , अंदर बत्तियां बंद थी बस एक गुलाबी सीलिंग लाइट जल रही थी । उस गुलाबी सीलिंग लाइट को शिला तभी ऑन रखती थी जब वो पूरी तरह से वाइल्ड महसूस करती हो और ये एक तरह का सिंगनल था मानसिंह के लिए और जैसे ही उसकी नजर बिस्तर पर गई उसकी आंखे फेल गई और मुंह में लार बढ़ने लगा ।


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सामने उसके शिला वही वाली पैंटी और ब्लाउज पहने हुए हवा में अपने चूतड़ उठाए हुए लेती थी , उसका मुंह दूसरी ओर था ।
तभी बिस्तर की ओर से आवाज आई
: आओ न जानू अह्ह्ह्ह ( शिला ने अपने बड़े भड़कीले चूतड़ हवा में हिला कर उसे रिझाया )
मानसिंह का लंड एकदम से बौराया हुआ था और वो पेंट के ऊपर से उसको पकड़े हुए मसल रहा था
: उफ्फ मेरी जान उस गुलाबी रौशनी में तुम्हारे चूतड़ और भी बड़े और रसीले नजर आ रहे है ।
मानसिंह आगे बढ़ कर शिला के चूतड़ के नंगे गोल बड़े हिस्से को सहलाते हुए कहा , उसका स्पर्श पाते ही वो अकड़ गई ।
: उम्मम कितनी मादक गंध है अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह आज तो तुम्हारे चूतड़ और भी नरम है आह्ह्ह्ह मेरी जान उम्मन( मानसिंह घुटनों के बल होकर दोनों हाथों से शिला के बड़े भड़कीले चूतड़ों को सहलाते हुए अपने नथुने करीब ले गया )
मानसिंह के स्पर्श के शिला के जांघों के कम्पन हो रहा था और थोड़ी मादक महीन सी सिसकियां उठने लगी और अगले ही मानसिंह के अपना मुंह सीधा शिला के बड़े भड़कीले चूतड़ों के दरारों में मुंह दे दिया


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अह्ह्ह्ह उम्मम अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह यस्स अह्ह्ह्ह्ह
मानसिंह के कानो में कुछ अनजानी सी कुनमुनाहट भरी आह आई मगर वो पंजे से दोनों चूतड़ों को फाड़े हुए पैंटी के ऊपर से ही उसके गाड़ की सुराख को चाटने लगा ।
और वो उतनी ही अकड़ने ऐंठने लगी

: ओह मेरे राजा पूरा खा जाओगे क्या ( मानसिंह के कान में शिला के मादक स्वर आए )


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: कितनी रसीली गाड़ है , इसको तो मै नंगा करके उम्मम्म सीईईईई ( मानसिंह के अगले ही पल पैंटी हटा कर उसके दरारों को फैलाते हुए अपनी जीभ की टिप से गाड़ की सुराख को गिला करने लगा और वो पूरी तरह से छटकने लगी )
: मस्त है न मेरी जान , और चाटो ने जीभ डाल के अह्ह्ह्ह ऐसे ( शिला ठीक उसके पास बैठती हुई बोली और एकाएक मानसिंह की नजर अपने ठीक बगल में पड़ी और वो चौका )
अगर शिला उसके बगल में बैठी थी तो वो कौन है जिसकी गाड़ की सुराख वो गीली कर रहा था ।
मानसिंह के मन में शंका के अंकुर फूटे और झट से उसने कमरे की बत्ती जला दी

: रज्जो भाभी आप ??



जारी रहेगी
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Napster

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💥 अध्याय 02 💥

UPDATE 08

गाड़ी शहर की तंग गलियों से निकलकर हाईवे की ओर बढ़ चुकी थी । सुबह के करीब दस बज रहे थे। हाईवे पर हल्की-सी धुंध अब भी बाकी थी, जो सूरज की गुनगुनी किरणों के साथ मिलकर एक सुनहरा सा नजारा बना रही थी। सड़क के दोनों ओर लंबी सिवान फैली हुई थी, जहां गन्ने के हरे-भरे खेत लहलहा रहे थे। कहीं-कहीं पेड़ों की कतारें तेजी से पीछे छूट रही थीं, मानो वो भी मंजू और मुरारी की इस यात्रा में उनके साथ दौड़ रही हों। गाड़ी की खिड़की से आती ठंडी हवा मंजू के चेहरे को छू रही थी, लेकिन उसका मन अभी भी उस सुबह के हादसे की गिरफ्त में था।मंजू की आंखों के सामने बार-बार वही मंजर घूम रहा था—मुरारी का अकेले उन गुंडों से भिड़ जाना, उसका गुस्सा, उसकी हिम्मत। वो शब्द, जो मुरारी ने उस आदमी को ललकारते हुए कहे थे, अब भी उसके कानों में गूंज रहे थे:
“मैंने मेरे बेटे से वादा किया है कि मैं उसकी चाची को हर कीमत पर घर लेकर आऊंगा।”
इन शब्दों में एक अजीब-सी ताकत थी, एक ऐसा जज्बा जो मंजू को हैरान कर गया था। मुरारी, जिसे वो रात वाली हरकत की वजह से गलत समझ बैठी थी, जिसे उसने मन ही मन कोसा था, वही मुरारी आज उसकी इज्जत और जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर उन गुंडों से भिड़ गया था।मंजू का मन उदासी से भरा था। उसे अपनी गलतफहमी पर पछतावा हो रहा था। बीते रात मुरारी ने जो हरकत की थी, वो शायद उसकी मजबूरी थी, या शायद उसका इरादा वैसा नहीं था, जैसा मंजू ने समझ लिया था। अब जब वो मुरारी की इस हिम्मत और जिम्मेदारी को देख चुकी थी, तो उसके मन में मुरारी के लिए एक नया सम्मान जाग रहा था। लेकिन साथ ही, वो डर भी अभी तक उसके दिल से गया नहीं था। उन गुंडों की गालियां, उनका क्रूर हंसी, और मोहल्ले वालों की चुप्पी—ये सब उसके मन पर भारी था। वो खिड़की से बाहर देख रही थी, लेकिन उसकी नजरें कहीं खोई हुई थीं। उसका चेहरा शांत था, मगर उस शांति के पीछे एक तूफान सा उमड़ रहा था।
मुरारी लंबे समय तक उसे चुप और शांत देख रहा था , वो समझ रहा था कि आज सुबह जो कुछ भी हुआ उसको लेके मंजू कितनी डर गई होगी । मुरारी के जहन में उस घटना को लेकर कितने सारे सवाल थे , मगर इस नाजुक पल में वो और मंजू को परेशान नहीं करना चाहता था । वो जानता था कि इस पल मंजू को एक कंधे की तलाश है और वो सिर्फ एक औरत ही पूरी कर सकती थी । उसे ममता का ख्याल आया
सुबह की भगदड़ में वो ममता को भूल ही गया था , और उसने अभी तक उससे बात भी नहीं की थी कि वो लोग निकल गए है ।
मुरारी ने जेब से मोबाइल निकाला और ममता को फोन घुमा दिया ।

3 से 4 रिंग और फोन पिकअप

: हैलो ( ममता की सहज आवाज आई )
: हा हैलो अमन की मां , कैसी हो ( मुरारी खुश होकर बोला ) भाई हम लोग निकल गए है
: अच्छा सच में , मेरी देवरानी कैसी है ? जरा बात कराएंगे ( ममता खुश होकर बोली )
: हा बगल में ही है , लो बात करो ( मुरारी मुस्कुरा कर मंजू को फोन देता है )
मंजू को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बात करे , उसकी चेतना तो जैसे खोई हुई थी ।
: हा , नमस्ते दीदी ...जी ठीक हूं और आप ( मंजू ने महीन आवाज में बोली उसका गला बैठा हुआ था )
अब मुरारी को ममता की आवाज नहीं आ रही थी ।
: जी , पता नहीं हाइवे पर है हम लोग हा अभी रुक कर खा लेंगे .. जी ठीक है .... लीजिए ( मंजू ने फोन वापस मुरारी को दिया )

: हा अमन की मां कहो
: अरे क्या बोलूं , उदास उदास सी क्यों लग रही थी वो ? ( ममता के तीखे सवालों से मुरारी अटक गया वो मंजू को देख रहा था कि क्या जवाब दे तो मंजू खामोशी से ना में सर हिला दी)
: ऐसा कुछ नहीं है , रात भर तो पैकिंग में निकल गई और अब झपकियां ले रही है हाहा ( मुरारी बात बनाते हुए बोला )
: अच्छा ठीक है , समय से खाने पीने के लिए रुक जाना और थोड़ा देखना की बाथरूम वगैरह की सुविधा हो । वो आपसे कहने नहीं न जायेंगी बार बार , समझ रहे हो न ( ममता ने मुरारी को समझाया )
: क्या अमन की मां तुम भी ( मुरारी ने मुस्कुरा कर मंजू को देखा तो वो भी फीकी मुस्कुराहट से उसे देखी) पता है मुझे , चलो ठीक है सफर लंबा है मोबाइल चार्ज नहीं कर पाया हुं। रखता हूं। बाय
: हा बाय

फोन कट गया और फिर मंजू खिड़की से बाहर देखने लगी ।
वही दूसरी ओर ममता ने फोन रखा और एक बार फिर उसके चेहरे पर बेचैनी हावी होने लगी ।
सुबह से आज वो अपने कमरे से बाहर नहीं आई थी । मदन सुबह बोलकर गया था कि कही काम से जा रहा है अभी तक वापस नहीं आया ।
ममता के पैर की चोट उसे दुख रही थी चलना दूभर था ।
किसी तरह हिम्मत कर उसने खाना बनाने के सोचा और किचन में आने लगी ।
जैसे ही वो हाल में आई तो चौकी , किचन में तो मदन भिड़ा हुआ है ।

ममता की आहट से मदन उसकी ओर घूमा
सीने पर एप्रेन बांधे हुए टीशर्ट और लांग वाले चढ़्ढे में खड़ा था
: अरे भाभी जी , आराम से ( ममता को लड़खड़ाते देख वो भाग कर उसके पास आया और उसका बाजू पकड़ कर सोफे पर बिठाने लगा )
: अह्ह्ह्ह देवर जी , आप क्यों खाना बना रहे है ? ( ममता असहज होकर बोली) और सब्जी भी नहीं होगी
: सब्जी मै ले आया हूं और आपकी तबियत भी ठीक लग रही थी तो सोचा मै ही कुछ बना दु आपके लिए ( मदन खिल कर हाथ में कल्चुल पकड़े हुए उसके आगे झुकता बोला , जैसे बीते रात कुछ हुआ ही न हो )
: क्या आप भी ( ममता मदन के हरकत से मुस्कुराई )
: हम्मम तो मैडम जी कोई खास फरमाइश ( अपने दोनों हाथ बांध कर मदन अदब से झुक कर बोला जैसे किसी होटल का वेटर हो )
: हीही, क्या आप ये सब ? ( ममता हसने लगी ) छोड़िए इधर दीजिए मुझे । आपको ये सब नहीं करना चाहिए था
: आहा, आज नहीं ! आज तो मै ही बनाऊंगा । बताओ क्या खाओगे ( मदन उसकी पहुंच से थोड़ा पीछे खिसक कर बोला )
: अच्छा ठीक है एक चाय मिलेगी क्या ? ( ममता ने बड़े भारी मन से कहा )
: उसके साथ आलू सैंडविच भी रेडी है , लेना चाहेंगी आप ( मदन ने फिर वही वेटरों वाली स्टाइल में बोला )
: हीहि, जी लाइए ( ममता जो अब तक उदास थी और सोच रही थी कि अपने देवर से कैसे सामना करेगी , अब थोड़ी बेफिक्र थी । )
मगर उसके पैर के अंगूठे में हल्की सूजन आ गई थी ।
थोड़ी ही देर में मदन एक ट्रे में गर्मागर्म चाय और सैंडविच लेकर आया

: एनीथिंग एल्स मैडम ( मदन फिर से बोला )
: उम्हू ( ममता ने मुस्कुरा कर ना में सर हिलाया और मदन वहां से निकल कर अपने रूम में चला गया और एक प्लास्टिक बॉक्स लेकर आया )

हाल से स्टूल खींच कर उसने ममता के पास रखा खुद नीचे बैठ गया
: अरे देवर जी , ये सब क्या ? ( ममता उसको प्लॉस्टिक बॉक्स को खोलते देख रही थी , जो असल में एक मेडिकल किट थी )
: क्या आप अपना पैर इसपर रखेंगी मैडम ( मदन मुस्कुरा कर बोला )
: क्या कर रहे हो आप , मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है ( ममता उलझी हुई अपनी चोट वाली टांग को सोफे पर बैठे हुए उस स्टोल पर रखा )

जिससे उसकी नाइटी का गैप बढ़ा हो गया , मदन इस वक्त ठीक उसके आगे उकङू होकर बैठा था , वहा से ममता के फैले हुए काटन नाइटी के गैप से दूर अंदर तक उसकी चिकनी लंबी गोरी टांगे दिख रही थी जांघों तक
मदन ने अपने नजरो को झटका और सेवलान से ममता के घाव धुलने लगा

: अह्ह्ह्ह सीईईई फ़ूऊऊ( ममता सिसकी एक ठंडा चुनचुनाहट भरा एहसास उसने अपने चोट के आसपास महसूस किया )
मदन ने काटन से उसके घाव साफ किए और एक मलहम निकाली और उसका ढक्कन खोलते हुए

: भाभी सैंडविच खाओ न ( वो ममता के घाव पर फूंकता हुआ बोला )
ममता ने सैंडविच को जैसे ही मुंह में दबाया उसी समय मदन ने वो मलहम की ट्यूब को दबाया और मलहम ममता को घाव पर फैलने लगी

: उम्ममम फ़ूऊ फ़ूऊऊ , अह्ह्ह्ह मम्मीईईई ये क्या है अह्ह्ह्ह( ममता जोर से चीखी अपनी टांग पकड़ते हुए )
: बस हो गया भाभी , अभी ठंडा हो जाएगा । शुरू में थोड़ा लगता है आप सैंडविच खाओ न ( मदन हंसते हुए बोला )
: भक्क, बहुत बुरे हो आप , अह्ह्ह्ह्ह सीईईई मम्मी ऊहू ( ममता का चेहरा दर्द से बेचैन था मानो अभी वो रो ही देगी)

मगर कुछ ही देर में उसे एकदम से आराम मिल गया और उसका गुस्सा भींनकना मुस्कुराहट में बदल गया ।
तो वो उठ कर किचन में आई

: उह ऊहू .. (ममता मुस्कुराती हुई नाइटी में मदन के पास खड़ी हो गई तो मदन मुस्कुरा कर उसे देखा ) थैंक यू
और उसने मदन के हाथ से चाकू ले लिया जिससे वो सब्जियां काट रहा था
: अच्छा जी , वो किस लिए ( मदन अपने हाथ बांधता हुआ ममता के मुस्कुराते चेहरे को देखते हुए किचन स्लैब पर अपने कूल्हे टिकाते हुए बोला )
: आपकी सर्विस के लिए ( ममता सब्जियां काटती हुई आंखे रोल करती हुई मुस्कुराई बिना मदन की ओर देखे )
: बिना टीप के सिर्फ थैंक यू ? इतनी खराब थी क्या सर्विस ( मदन ने मुंह बनाया )
: अरे नहीं ( ममता हस पड़ी और उसके मोतियों जैसे दांत होंठों पर खिल उठे ) अच्छा ठीक है कल आपको एक बहुत अच्छी टिप मिलेगी ओके
: क्या कल ? ( मदन चौका )
: वो मैने ऑर्डर दे दिया है कल तक आ जाएगा तो मिलेगा आपको ( ममता ने मदन को उलझाया ).
: ऐसा क्या मंगवा रही हो भाभी ( मदन सोचते हुए बोला )
: कल मिलेगा कल हीही

और वो काम करने लगी

प्रतापपुर

रसोई के पास लगी चौकी पर रंगीलाल और उसका ससुर बनवारी खाना खा रहे थे

: भाई मेरा हो गया , बहू जरा हाथ धुलवा दे ( बनवारी चौकी से उतरकर आंगन की ओर चला गया और सुनीता एक लोटा पानी लेकर चली गई पीछे )
इधर रंगीलाल के जहन में काफी कुछ चल रहा था । रात से अब तक जो कुछ भी घटित हुआ उससे सुनीता के लिए उसकी हवस को और हवा मिल चुकी थी ।
थोड़ी देर बाद ही बनवारी अपने गमछे से हाथ पोंछता हुआ आया और पीछे उसके सुनीता
रंगी की नजर अनायास उसके सर से हटे हुए पल्लू पर गई सीने का उभार हल्का सा झलक रहा था । सुनीता ने रंगी की नजर भाप ली और झट से अपने सर पर पल्लू करते हुए अपने ब्लाउज को ढक दिया।

: जमाई बाबू चलना है या फिर आराम करोगे ? ( बनवारी अपने हथेली के खैनी रगड़ता हुआ बोला )
रंगीलाल बनवारी के सवाल पर उसके पीछे खड़ी अपनी खूबसूरत सलहज को देखता है और मुस्कुरा देता है ।
: नहीं बाउजी , अभी थोड़ा आराम करूंगा घर पर । मन हुआ तो आता हूं ( रंगी लाल खाना खाने लगा और उसके जवाब पर सुनीता मुझ फेर कर मुस्कुराने लगी क्योंकि वो जान रही थी कि रंगीलाल उसके लिए ही रुकेगा )
इधर बनवारी निकल गया और रंगीलाल का खाना भी लगभग हो गया
: और कुछ दूं ( सुनीता ने रंगी से पूछा )
: जो चाहिए वो तो आप दे नहीं रही हो ( रंगी ने मुस्कुरा कर उसे देखा और सुनीता लजाई ) हाथ धुला दीजिए अब ।

रंगीलाल चौकी से उतर कर जूठे हाथ लिए आंगन की ओर आ गया और सुनीता पानी लेकर उसके पीछे गई मुस्कुराती हुई

रंगी आगे झुक कर हाथ आगे किया और सुनीता भी उससे कुछ दूरी पर ही सामने थोड़ा सा झुक कर पानी गिराने लगी। रंगी ने मुस्कुरा कर उसे देखा तो दोनों की नजरे टकराई
मगर असल धोखेबाज तो उसका पल्लू निकला , बिना पिन का पल्लू झुकने की वजह से उसके कंधे से सरक कर कलाई के आ गया और उसके बड़े गले वाले ब्लाउज़ से उसके मोटे रसीले गोल मटोल मम्मे दिखाई देने लगे ।


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रंगीलाल की नजर एकाएक उन पर गई और उसकी नजर का पीछा किया तो सुनीता ने देखा कि वो उसके मुलायम चूचों को ही घूर रहा है ।
सुनीता बेचैन होने लगी , उसकी सांसे तेज हो गई और वो झट से खड़ी होकर अपना पल्लू सही किया ।

रंगी मुस्कुराया कर उसे निहारता रहा और सुनीता नजरे चुराती रही । फिर रंगी हाथ पोछने के लिए कुछ खोजने लगा कि उसकी नजर सुनीता के पल्लू पर गई और वो उसे पकड़ लिया
सुनीता एकाएक चौकी और अपनी साड़ी को छातियों के पास कस कर पकड़ लिया
मगर रंगी मुस्कुरा कर बस उसके पल्लू में हाथ पोंछ कर छोड़ दिया ।
सुनीता के दिल अभी तक कांप रहा था ।

रंगीलाल : अरे डरिए मत , जब तक आप हा नहीं कहेंगी हम आगे नहीं बढ़ेंगे
सुनीता मुस्कुराई : धत्त , आप जो चाहते है वो सही नहीं है ।
रंगीलाल उसके करीब आकर उसकी आंखों में देखता हुआ : किसी को चाहना गलत है क्या ?
रंगीलाल का यू उसकी ओर चढ़ आना सुनीता की हालत पतली हो गई ,उसकी सांसे चढ़ने लगी और आंखों में हल्का सा डर दिखा : नहीं , लेकिन मै उन्हें छोड़ नहीं सकती हूं, प्लीज
रंगीलाल : मैने तो नहीं कहा आप छोड़ दो , बस मेरा हाथ थाम लो यही चाहता हूं
रंगीलाल की आंखों के खुमारी सी थी और दोनों की सांसे बेकाबू हुई जा रही थी
सुनीता को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले : हटिए जाने दीजिए , मुझे कपड़े धुलने है
ये बोलकर वो तेजी से निकल गई और रंगीलाल मुस्कुरा कर उसके रसीले मटके हिल्कोरे खाता देखता रहा ।

वही बबीता के कमरे में आज सालों बाद राजेश घुसा था , इधर उधर नजर पड़ रही थी । गीता को बड़ा ताज्जुब लग रहा था कि उसको पापा आए है ।
वही बबीता बड़ी खुश नजर आ रही थी अपने पापा का साथ पाकर
फुदक रही थी , टीशर्ट में बिना ब्रा के उसके गोल मटोल मौसमी जैसे चूचे खूब हिल रहे थे और नंगी चिकनी जांघें देख कर राजेश का लंड अकड़ रहा था ।

तभी उसकी नजर कमरे के दरवाजे के पीछे वाल हैंगर में लटके हुए ब्रा और पैंटी पर गई , उसे समझते देर नहीं लगी कि ये उसकी बेटियों के होंगे ।
उन ब्रा पैंटी के सेट देख कर राजेश की बेचैनी बढ़ने लगी । वो बबीता की नाप जानने को इच्छुक हो उठा ।
इतने बबीता आई और उसके पास सट कर बैठ गई

: पापा ये वाली मूवी में बहुत हसी है हीही ( बबीता खिलखिला कर बोली तो राजेश उसकी कमर के हाथ डाल कर उसे अपने पास खींच लिया )

ये सब देख कर गीता को अजीब सा लग रहा था , एकदम से बबीता और उसपे पापा के रिश्ते में आया बदलाव उसे समझ से परे लगा। उसके जहन में तो उसके दादा जी का बड़ा मोटा लंड घूम रहा था । ताज्जुब हो रहा था उसे कि इस उम्र में भी उसके दादू का लंड इतना मोटा है ।
राज के यहां से आने के बाद बबीता ने अपने बॉयफ्रेंड से मिलना जारी रखा मगर गीता अकेली थी और दादाजी का लंड उसे ललचा खूब रहा था ।
वो बेचैन हो रही थी और उसने तय किया कि वो दादा जी के पास जाएगी
उसने आलमारी से कपड़े लिए

: मीठी कहा जा रही है ( पापा की बाहों में लिपटी हुई बबीता ने पूछा तो राजेश ने भी गीता को देखा )
: वो मै दादू के पास जा रही हूं , ऐसे ही घूमने ( गीता ने साफ साफ जवाब दिया और अपने कपड़े लेकर निकल गई)
: आराम से जाना बेटा ठीक है ? ( राजेश ने उसको बोला और गीता हा में सर हिला कर निकल गई दरवाजा खींच कर दूसरे कमरे में कपड़े बदलने )
उसके जाते ही राजेश ने बबीता को दोनों हाथों से पकड़ा और उठा कर गोदी में बिठा लिया

: हीही पापा , मै बच्ची थोड़ी हूं जो ऐसे बिठा रहे हो ( बबीता अपने अपना की जांघों पर बैठी खिलखिलाई )
वही राजेश अपनी बिटिया के नरम चर्बीदार चूतड़ का गद्देदार स्पर्श पाकर सिहर उठा था ,उसके नथुनों में अपनी बेटी की कोरी खुशबू आ रही थी
: तू तो हमेशा मेरी गुड़िया रहेगी ( हाथ बढ़ा कर उसने बबीता के पेट पर टीशर्ट के ऊपर से गुदगुदी की तो वो उसके गोद में छटकने लगी )
: हाहाहाहाहा पापा
( फिर उसकी नजरें अपने पापा से मिली तो उसने अपने पापा को देखा और दोनों हाथों से उसका चेहरा थामा )
: आई लव यू पापा ( उसने झट से राजेश को हग कर लिया) आप प्लीज ऐसे रहा करो प्लीज
राजेश बबीता की भावुकता समझ रहा था , बचपन से उसने कभी भी अपनी बेटियों को एक पिता का प्यार नहीं दिया । अपनी अय्याशी और नशे की लत में वो इतना बहक गया कि उसे घर परिवार का ख्याल तक नहीं रहा था । मगर आज बबीता का यू उससे लिपटना उसे पिघला रहा था ।
उसने झट से बबीता को अपने सीने से कस लिया , उसके छोटे छोटे मौसमी जैसे चूचे अपने सीने पर कठोर बॉल के जैसे धंस रहे थे और वो अपनी बेटी के पीठ को सहला रहा था ।
कितना कोमल अहसास था
: आई लव यू मेरी गुड़िया उम्माह ( उसने बबीता के कान के पास चुम्मी ली तो बबीता को हल्की गुदगुदी लगी और वो खिलखिला उठी और अलग होने का प्रयास की तो राजेश उसे हंसी में और कस कर पकड़ लिया)

: हीही , छोड़ो अब पापा ( बबिता खिलखिलाई )
: नहीं, मै नहीं छोड़ने वाला अपनी गुड़िया को ( उसने बबीता को अपनी बाहों में और कसा जिससे बबीता के नरम फुले हुए चूचे उसके सीने से दब गए और जब जब बबीता उससे अलग होने को खुद को कसमसाती उसके निप्पल पर अपने पापा के गर्म सीने का घर्षण होता , जिससे उसके निप्पल टाइट होने लगे और वो बेचैन होने लगी ।
उसे शर्मिंदगी सी होने लगी कि उसके पापा को जरूर उसके तने हुए निप्पल चुभ रहे होगे , उसके जहन में कुछ बातें घूमने लगी , कि क्या सोच रहे होंगे उसके पापा उसके बारे में।
वो थोड़ा सा जोर लगा कर अपने छातियों को अपने पापा से सीने से दूर किया और राजेश भी समझ गया कि बबीता असहज हो रही है इसलिए उसने भी छोड़ दिया
बबीता लजा कर सीधी उसके गोद में चुप होकर बैठ गई , वही राजेश उसके टीशर्ट में उभरे हुए उसके निप्पल के दाने को देख आकर उसके लंड में हरकत होने लगी ।

मगर उसे माहौल को सहज ही रखना था इसीलिए उसने पीछे से बबीता के पेट को पकड़ कर उससे लिपट गया
बबीता को फिर से गुदगुदी हुई मगर वो अब सहज महसूस कर रही थी ।
मगर राजेश के जहन में वो ख्याल आ रहे थे जब उसने बबीता को पूरी नंगी देखा था उसके उपले जैसे गोल मटोल चूतड़ पानी में उपराए हुए थे और वो तैर रही थी नंगी । उसका लंड पजामे में अकड़ने लगा था
जिसका अहसास बबीता को भी हो चुका था अपने नरम चर्बीदार चूतड़ों पर
जैसे उसे अपने चूतड़ों के नीचे कुछ कड़कपन का अहसास हुआ वो चिहुकी , उसकी आंखे बड़ी हो गई
उसे लगने लगा कि जरूर जब उसके दूध उसके पापा के सीने से रगड़े होंगे इसी वजह से उसके पापा का खड़ा हो गया ।
उसका कलेजा डर रहा था , वो अपने पापा के सुपाड़े की कठोरता महसूस कर पा रहे थी । उसकी चूत बिलबिला उठी और वो राजेश के गोद से खड़ी हो गई

: पापा वो मै मम्मी को कपड़े देकर आती हूं नहीं तो गुस्सा करेंगी ( बबीता ने बहाना बनाया और निकल गई )
राजेश वही बैठा हुआ अपना लंड मसलने लगा ।
इधर बबीता तेजी से कमरे से निकल कर पीछे आंगन की ओर जाने लगी
जिसकी आहट पाते ही रंगीलाल जो छिप कर अपनी सहलज को कपड़े धुलते देख रहा था वो रसोई की ओर चला गया और जब बबीता वापस जाने लगी तो वो लपक और आंगन के दरवाजे के पास आया और भीतर झांकने लगा


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जहां सुनीता अपने सीने का पल्लू कमर में खोसे हुए बैठ कर कपड़े धूल रही थी और उसके बड़े बड़े रसीले मम्में ब्लाउज से बाहर झांक रहे थे
वो नजारा देख कर रंगीलाल का लंड अकड़ने लगा था ।
उसको तत्काल चुदाई चाहिए थी और सुनीता से अभी कोई उम्मीद नहीं नजर आ रही थी इसलिए वो निकल गया अपने ससुर के पास
वही रंगीलाल से पहले ही गीता निकल गई थी बनवारी के पास
इठलाती उछलती हुई वो मुख्य सड़क की जगह खेतों से होकर गोदाम के पीछे वाले रास्ते से बनवारी के पास जा रही थी । उसका अक्सर यही रूट रहता है हमेशा से , इससे दो फायदे होते थे , उसे गांव के कम लोगो का सामना करना पड़ता था और कम समय में वो पहुंच जाती थी ।
तेजी से चलते हुए वो गोदाम की ओर जा रही थी , इस उद्देश्य से आज उसके फूफा रंगीलाल घर पर है और उसके दादाजी अकेले में क्या करते है वो भलीभाती जानती है ।
वो अपने तय जगह पर आ पहुंची थी और वो जगह थी , गोदाम के सबसे पीछे वाले कमरे में जहां बनवारी अपनी कामलीलाये करता था ।
वही से एक खिड़की खुली थी जहां से अंदर का नजारा देखा जा सकता था और वो वही खड़ी होकर एड़ी उठा कर भीतर झांकने लगी
उसका तुक्का सही निकला , कमरे में उसके दादा बनवारी एक औरत को अपनी बाहों में लेकर सहला रहे थे , कभी उसके ब्लाउज में हाथ घुसा कर उसकी गुदाज मुलायम छातियां मिजता तो कभी उसके चर्बीदार पेट को मसलता वो औरत खिलखिला रही थी
: अह्ह्ह्ह्ह सेठ जी छोड़िए न , आज नहीं उम्मम अह्ह्ह्ह्ह, घर पर मेहमान आए है
: अह्ह्ह्ह कितने दिन बाद तो आई हो थोड़ा सा दूध पिला दो ( बनवारी उसके चूचे मसलने लगा )
: नहीं , मै हाथ जोड़ती हु सेठ घर पर मेरी बुढ़िया राह रही होगी । ( वो औरत अलग हुई और कपड़े सही करते हुए वो पैसे जो अभी उसे मिले थे उसे अपने ब्लाउज में खोंसते हुए बोली )
फिर तेजी से बाहर निकल गई और बनवारी अंगड़ाई लेता हुआ बिस्तर की ओर आने लगा , इधर गीता वहा से हटने को हुई कि उसका बैलेंस बिगड़ा और वो पीछे की ओर गिर पड़ी

उसकी सिसकी से बनवारी चौका और लपक कर खिड़की से बाहर झांका तो देखा कि खिड़की के बाहर खेत में उसकी नातिन गीता गिरी है

बनवारी चिंता में उसको आवाज दिया और जल्दी से कमरे की पीछे वाले दरवाजे को खोला जो खेत में खुलता है , अक्सर ये दरवाजा बनवारी औरतों को बुलाने के लिए यूज करता था ।
वो झट से दरवाजा खोलता हुआ गीता की ओर भागा

: अरे मीठी , क्या हुआ बेटी ,तू गिर कैसे गई ? और तू यहां क्या कर रही थी ?
एक एक करके सवाल और सवाल
पैर में चोट आई थी और दर्द से बिलख रही थी ,
: वो मै ऐसे ही आई थी घूमने , आज छुट्टी थी स्कूल की , अह्ह्ह्ह्ह मम्मी दर्द हो रहा है
: लेकिन तू पीछे से क्यों आ रही थी ( तभी बनवारी को सुबह वाली घटना याद आई और उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी नातिन यहां पीछे क्या कर रही थी ) चल उठ कमरे में आ चल
बनवारी ने उसे उठाया और कमरे के लेकर आया
: बहुत बिगड़ गई है आजकल तू , कभी छत से कभी खिड़की से क्या है ये सब तेरा बोल ? ( बनवारी ने डांट लगाई )
: सॉरी दादू ( वो बिलखते हुए बोली , इस उम्मीद में कि रोने से शायद वो सजा से बच जाए )
: मै देख रहा हूं कई रोज से तू आंगन में झांकती है , ये अच्छी बात है क्या ? बोल ( बनवारी ने उसे समझाना चाहा )
: नहीं दादू , वो मै , अह्ह्ह्ह दर्द हो रहा है सॉरी ( गीता को समझ नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे वो )
बनवारी ने पानी से उसके पाव धुले और एक मलहम लगाया जो उसके दराज में उपलब्ध था ।
: नहीं करना चाहिए न बेटा , ये अच्छी आदत नहीं है और तू मेरी प्यारी बेटी है न ( बनवारी उसकी एड़ी में मलहम से सहलाने लगा )
: जी दादू , अब नहीं करूंगी

कुछ देर कि चुप्पी और फिर कुछ बाते थी जो बनवारी के जहन में उठ रही थी सवालों के रूप में
: अच्छा सुन , तूने बहु को कहा तो नहीं इस बारे में जो तू ताक झांक करती है ( बनवारी ने सवाल किया )
: ऊहु ( गीता ने थोड़ी लजा कर मुस्कुराती हुई न में सर हिलाई ) उन्हें पता चलेगा तो आपको अपने पास आने थोड़ी देंगी हीही

एकाएक बनवारी के कान खडे हो गए
: क्या कहा तूने अभी ,
: जैसे मुझे पता नहीं चलेगा क्या कि मम्मी रात में आपके कमरे में क्यों जाती है ? ( गीता मुस्कुरा कर बनवारी को देखी )
बनवारी अब असहज होने लगा और उसका हल्क सूखने लगा , उसे उम्मीद नहीं थी उसकी बाते इस कदर उसकी नातिन जान लेगी ।
: तू कुछ ज्यादा नहीं जानती तेरी उम्र के हिसाब से ( बनवारी को हंसी आई )
: आप भी कुछ ज्यादा ही करते हो वो सब अपनी उम्र के हिसाब से ( गीता ने पलट कर जवाब दिया )
जिसपर बनवारी हस दिया
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो भला क्या ही रिएक्ट करे गीता की बातों पर , जिसमें बचपना भरा है । भले उसका जिस्म भर आया हो और उम्र बढ़ रही हो मगर बनवारी के लिए ये मानना आसान नहीं था कि उसकी नातिन की रुचि अब सेक्स को लेकर भी होने लगी है ।

: तू , तूने कब देखा तेरी मां मेरे कमरे में आती है ? ( बनवारी ने सवाल किया )
: कई बार , कभी कभी किचन में भी । एक बार तो मैने आप दोनों को पापा से भी बचाया था हीही ( गीता बड़ी मासूमियत से बोली )
राजेश का जिक्र होते ही बनवारी ठिठक गया
: क्या ? कब ?
: वो आप लोग किचन में थे और पापा पानी पीने जा रहे थे तो मै उन्हें घुमा लाई कमरे में । काफी दिन हो गए

बनवारी को अब समझ आ रहा था , उसकी नातिन को सही गलत को समझ है । वो सिर्फ बहकी नहीं बल्कि उस चीज को समझती भी अच्छे से है । लेकिन फिर भी वो उसके लिए लाडली नातिन थी । अभी पिछले बरस ही तो उसने अपनी दसवीं पास की है ।
: अच्छा ठीक है ठीक है , लेकिन अब तू घर जा ( बनवारी ने कड़े शब्दों के कहा ) और ये सब किसी से कहना मत
अपने दादू से ये सब सुनते ही गीता का मुंह फूल गया , गीता का स्वभाव बचपन से जिद्दी था , और अपने दादा के आगे कुछ ज्यादा ही दुलारी थी ।
बनवारी उसकी भावनाएं समझ रहा था मगर क्या करे । उसके सामने उसके गोद में खेली हुई बच्ची थी जो खुद को श्यानी समझ रही थी ।
: अच्छा ठीक है , चौराहे से तेरे लिए शाम को फुल्की लेकर आऊंगा अब खुश ( बनवारी ने गीता का चेहरा देखा )
वो भीतर से जल रही थी कि क्यों उसके दादू उसकी बात समझ नहीं रहे है , जबसे उसने दादू और अपने मम्मी की चुदाई देखी थी वो पगलाई घूम रही थी । उसके जहन में अपने दादू का मोटा लंबा लंड घूमता रहता था सुबह शाम और आज जब सारे भेद खुल गए तो उसकी बेसबरी और बढ़ गई ।
वो पिनक कर उठी और बिना कुछ बोले पीछे वाले दरवाजे से खेतों की ओर निकल गई । बनवारी का मन भी थोड़ा उदास हो गया अपनी लाडली नातिन को उदास देख कर । लेकिन अभी तक उसके जहन के गीता को लेकर कोई भी बुरे ख्याल नहीं आए । न ही उसने गीता के बड़े हुए संतरों और चर्बी भरी मोटी चूतड़ों की थिरकन को पलट कर देखा । बस नजरे फेर कर बिस्तर पर बैठ गया ।

वही रंगीलाल मेन सड़क से होता हुआ गोदाम आ रहा था कि बोरियो के बीच उसे कमला मिली और झट से उसे वो एक कोने खींच ले गया ।
: अह्ह्ह्ह छोड़ो जमाई बाबू , काहे तंग कर रहे हो अह्ह्ह्ह्ह ( कमला बोरियो के छलियों से लगी छटपटा रही थी और आगे रंगी उसकी कलाई पकड़े हुए था और अपनी टांग को उसकी जांघों के साड़ी के ऊपर से भेद रखा था जिससे वो भाग न सके )
: ओहो कमला रानी सारी जवानी अब क्या सिर्फ मेरे साले और ससुर पर न्योछावर करोगी , तनिक हम पर भी रहम करो( रंगी उसको अपनी ओर कसता हुआ बोला )
: अह्ह्ह्ह्ह उम्मम क्या करते सीईईई ( अपने गुदाज नर्म चूचों को रंगीलाल के सीने से रगड़ खाते ही कमला सिसकी )
रंगी उसके चर्बीदार चूतड़ों को साड़ी के ऊपर से मसलता हुआ : अह्ह्ह्ह कमला रानी , कल तुमने अपने इन रसीले जोबनो से मुझे जो घाव दिए बहुत दर्द रहा रात भर कसम से

: धत्त , छोड़ो न जमाई बाबू कोई देख लेगा ( कमला शर्मा कर मुस्कुराती हुई अलग होने लगी )
: रात में मिले फिर ?
: कहा ?
: बाउजी के बगल वाला कमरा मेरा है, कल सारी रात तुम्हारी सिसकियां सुनकर इसे मसलता रहा ( रंगीलाल उसके आगे पजामे के ऊपर से अपना खड़ा हुआ लंड मसलता हुआ बोला )
: क्या मेरी ? मै कब आई हीही ( असहज होकर कमला हसी )
: तुम नहीं थी तो फिर कौन था ? बाउजी ने तो ... ( रंगी अपनी बात अधूरी छोड़ दिया)
: अभी बहुत कुछ है जो आपके बाउजी आपसे छुपाए हुए है हीही, मिलती हु रात में

और वो मुस्कुराती हुई अपने कूल्हे झटकती निकल गई । वही रंगी लाल सोच में पड़ गया कि आखिर फिर वो दूसरी कौन हो सकती है ? जिसके बारे में बाउजी ने मुझसे झूठ बोलने लगे ।
रंगी वहा से निकल कर सीधे अपने ससुर के पास चला गया
: अरे जमाई बाबू , आइए आइए बैठिए
: लग रहा है आज अकेले ही आराम फरमा रहे है हाहाहाहाहा ( रंगी ने हस कहा )
: अरे वो कमला आई थी , लेकिन उसके घर मेहमान आए है तो चली गई , वरना अभी तक दरवाजा बंद ही मिलता हाहाहाहाहा ( बनवारी हस कर बोला )
: वैसे सच कहूं बाउजी , समान जोरदार है कमला ( रंगी सिहर कर बोला )
: ओहो कही जमाई बाबू का ईमान भी तो नहीं डोल रहा है हाहा ( बनवारी के छेड़ा रंगी को )
रंगी उसकी बातों और थोड़ा लजाया: अरे नहीं बाउजी , रागिनी के आगे फीकी है ये , उसके चूतड़ तो इससे भी.... सॉरी बाउजी ( रंगी बोलते हुए रुक गया )
बनवारी हंसता हुआ : हा हा समझता हूं भाई, बीवी की दीवानगी होती ही ऐसे है । अब तुम्हारी स्वर्गवासी सास को ही लेलो डिट्टो मेरी रज्जो की फोटोकापी थी और घाघरे में जब उसके बड़े चौड़े कूल्हे झटके खाते , उफ्फफ
: क्या सच में अम्मा जी रज्जो जीजी जैसे थी ? फिर तो बड़े किस्मत वाले निकले बाउजी हाहाहा ( रंगीलाल ठहाका लगा कर बोला)
बनवारी हस कर : अरे किस्मत वाले तो कमलनाथ बाबू है क्यों ?
रंगी अपने ससुर के इस मजाक और थोड़ा सा झेप गया और असहज भरी मुस्कुराहट से हंसता है : अह बात तो सही है आपकी , किस्मत वाले तो है ही कमल भाई

बनवारी ने अब रंगी को शर्माता देख कर छेड़ा : कही आपकी भी पहली पसंद रज्जो तो नहीं थी ? हाहाहाहाहा

रंगी बनवारी के मजाक में शामिल होता हुआ हस कर : अब मेरी बारी ही लेट आई तो क्या कर सकता हूं बाउजी , सिवाय हाथ मलने के हाहा

बनवारी हस कर : वैसे उदास होने की जरूरत नहीं है , छोटकी भी ... हीही ( बनवारी बातें आधी छोड़ कर हस पड़ा और रंगी भी मुस्कुराने लगा )

शिला के घर

" Send me video plzz "
" Okay , wait 5 mins "
...................................
अरुण बेचैन होकर कालेज के बरामदे में चक्कर लगा रहा था और बार बार मोबाइल देख रहा था ,
तभी एक वीडियो क्लिप उसके ****gram पर आया , जिसे देखते ही उसकी सांसे चढ़ने लगी । वो एक सुरक्षित जगह तलाशने लगा और लपक कर तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गया

वही कालेज के ऑफिस में मानसिंह बैठा था और उसका मोबाइल बजने लगा
: हा शिला कहो ( मानसिंह ने फोन उठाया )
: कुछ खास भेजा है मैने आपके लिए चेक करो और बताओ हीही ( शिला मुस्कुराती हुई फोन काट दी )

मानसिंह को समझते देर नहीं लगी कि आखिर क्या खास चीज होगी और उसने झट से अपना व्हाट्सअप खोला और दो तीन तस्वीरों के साथ एक वीडियो आया था , जिसके नीचे एक मैसेज लिखा हुआ था । " आज का लंच स्पेशल है 😜"
मानसिंह उन तस्वीरों को देख कर समझ चुका था कि वीडियो में वही सब होगा और जैसे ही उसने वीडियो खोला ,उसका लंड फुदकने लगा


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वीडियो में शिला सिर्फ ब्लाउज और पैंटी में किचन में खड़ी होकर खाना बना रही थी । पैंटी में बाहर निकले हुए उसके बड़े चौड़े चूतड़ देख कर मानसिंह का लंड अकड़ने लगा वो उसको पकड़ कर सिहर गया ।

वही कालेज के बाथरूम में दरवाजा बंद करके खड़ा होकर अरुण तेजी से अपना लंड भींच रहा था । उसके मोबाईल स्क्रीन पर म्यूट में एक वीडियो चल रहा था जिसमें एक मोटी गदराई हुई औरत शावर के नीचे सिर्फ पैंटी में नहा रही थी और पीछे से उसकी भीगी हुई गाड़ दिख रही थी "


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" अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह क्या मस्त माल है यार कितनी मोटी गाड़ है और भीगती हुई तो अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म फक्क्क् यूयू बिच ओह्ह्ह्ह "
तभी वो औरत कैमरा की ओर अपनी गाड़ किए हुए ही अपनी पैंटी नीचे उतारने लगी और उसकी मोटी गदराई गाड़ नंगी होने लगी , शावर का पानी अब सीधे उसके बड़े चौड़े चूतड़ों के दरारों में जाने लगा , जिसे देख कर अरुण खुद को रोक नहीं पाया और भलभला कर झड़ने लगा

" अह्ह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् यूयू ओह्ह्ह्ह यशस्स अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह उम्ममम अमीईईई अह्ह्ह्ह कितना बड़ा है आह्ह्ह्ह "
अरुण अपना लंड झाड़ कर वापस क्लास के लिए निकल गया और वही मानसिंह शिला से फोन पर बातें कर रहा था । जबकि रज्जो ने शिला का मोबाइल स्पीकर पर रखा हुआ था ताकि वो भी मानसिंह के जज्बात सुन सके

: ओह्ह्ह्ह मेरी जान , क्या मस्त चूतड़ है उफ्फ , जी करता है आकर काट लूं अभी , और खोल कर लंड घुसा दु ( मानसिंह फोन पर बोला और उसकी बाते सुन कर रज्जो और शिला मुंह पकड़ कर खिलखिलाई )
: उफ्फ तो रोका किसने है, आजाओ न मै तो अभी तक वैसी ही हूं कपड़े भी नहीं पहने, आजाओ न मेरे राजा और घुसा दो जहां जो घुसाना चाहते हो उम्ममम ( शिला ने मानसिंह को उत्तेजित किया और मानसिंह का लंड अकड़ गया )
: बस 5 मिनट , मै निकल रहा हूं
मानसिंह की बौखलाहट पर शिला और रज्जो मुंह दबा कर हस रही थी और फिर फोन कट हो गया ।

कुछ ही देर में मानसिंह घर के अंदर दाखिल हो गया था , और उसका लंड पेंट के पूरा कड़क हो गया था
वो लपक कर तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ गया ।
कि तभी उसका मोबाइल बजा ये कॉल शिला ने ही किया था

" कहा हो मेरे राजा उम्मम आओ न " , शिला ने फोन पर सिसक कर कहा ।
मानसिंह शिला के कामुक और आकर्षक आवाज से उत्तेजित हो उठा : आ गया हु मेरी जान, कहा हो तुम
शिला : सीधे कमरे में चले आओ अह्ह्ह्ह्ह कबसे मेरी चूत कुलबुला रही है अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म
शिला ने फोन पर मानसिंह को और उकसाया
मानसिंह : अरे वो रज्जो भाभी कहा.....( मानसिंह आगे कुछ बोलता उससे पहले ही शिला ने फोन काट दिया )
अब तक वो शिला के कमरे तक आ पहुंचा था और जैसे ही उसने कमरे का दरवाजा खोला , अंदर बत्तियां बंद थी बस एक गुलाबी सीलिंग लाइट जल रही थी । उस गुलाबी सीलिंग लाइट को शिला तभी ऑन रखती थी जब वो पूरी तरह से वाइल्ड महसूस करती हो और ये एक तरह का सिंगनल था मानसिंह के लिए और जैसे ही उसकी नजर बिस्तर पर गई उसकी आंखे फेल गई और मुंह में लार बढ़ने लगा ।


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सामने उसके शिला वही वाली पैंटी और ब्लाउज पहने हुए हवा में अपने चूतड़ उठाए हुए लेती थी , उसका मुंह दूसरी ओर था ।
तभी बिस्तर की ओर से आवाज आई
: आओ न जानू अह्ह्ह्ह ( शिला ने अपने बड़े भड़कीले चूतड़ हवा में हिला कर उसे रिझाया )
मानसिंह का लंड एकदम से बौराया हुआ था और वो पेंट के ऊपर से उसको पकड़े हुए मसल रहा था
: उफ्फ मेरी जान उस गुलाबी रौशनी में तुम्हारे चूतड़ और भी बड़े और रसीले नजर आ रहे है ।
मानसिंह आगे बढ़ कर शिला के चूतड़ के नंगे गोल बड़े हिस्से को सहलाते हुए कहा , उसका स्पर्श पाते ही वो अकड़ गई ।
: उम्मम कितनी मादक गंध है अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह आज तो तुम्हारे चूतड़ और भी नरम है आह्ह्ह्ह मेरी जान उम्मन( मानसिंह घुटनों के बल होकर दोनों हाथों से शिला के बड़े भड़कीले चूतड़ों को सहलाते हुए अपने नथुने करीब ले गया )
मानसिंह के स्पर्श के शिला के जांघों के कम्पन हो रहा था और थोड़ी मादक महीन सी सिसकियां उठने लगी और अगले ही मानसिंह के अपना मुंह सीधा शिला के बड़े भड़कीले चूतड़ों के दरारों में मुंह दे दिया


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अह्ह्ह्ह उम्मम अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह यस्स अह्ह्ह्ह्ह
मानसिंह के कानो में कुछ अनजानी सी कुनमुनाहट भरी आह आई मगर वो पंजे से दोनों चूतड़ों को फाड़े हुए पैंटी के ऊपर से ही उसके गाड़ की सुराख को चाटने लगा ।
और वो उतनी ही अकड़ने ऐंठने लगी

: ओह मेरे राजा पूरा खा जाओगे क्या ( मानसिंह के कान में शिला के मादक स्वर आए )


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: कितनी रसीली गाड़ है , इसको तो मै नंगा करके उम्मम्म सीईईईई ( मानसिंह के अगले ही पल पैंटी हटा कर उसके दरारों को फैलाते हुए अपनी जीभ की टिप से गाड़ की सुराख को गिला करने लगा और वो पूरी तरह से छटकने लगी )
: मस्त है न मेरी जान , और चाटो ने जीभ डाल के अह्ह्ह्ह ऐसे ( शिला ठीक उसके पास बैठती हुई बोली और एकाएक मानसिंह की नजर अपने ठीक बगल में पड़ी और वो चौका )
अगर शिला उसके बगल में बैठी थी तो वो कौन है जिसकी गाड़ की सुराख वो गीली कर रहा था ।
मानसिंह के मन में शंका के अंकुर फूटे और झट से उसने कमरे की बत्ती जला दी

: रज्जो भाभी आप ??


जारी रहेगी
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Deepaksoni

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💥 अध्याय 02 💥

UPDATE 08

गाड़ी शहर की तंग गलियों से निकलकर हाईवे की ओर बढ़ चुकी थी । सुबह के करीब दस बज रहे थे। हाईवे पर हल्की-सी धुंध अब भी बाकी थी, जो सूरज की गुनगुनी किरणों के साथ मिलकर एक सुनहरा सा नजारा बना रही थी। सड़क के दोनों ओर लंबी सिवान फैली हुई थी, जहां गन्ने के हरे-भरे खेत लहलहा रहे थे। कहीं-कहीं पेड़ों की कतारें तेजी से पीछे छूट रही थीं, मानो वो भी मंजू और मुरारी की इस यात्रा में उनके साथ दौड़ रही हों। गाड़ी की खिड़की से आती ठंडी हवा मंजू के चेहरे को छू रही थी, लेकिन उसका मन अभी भी उस सुबह के हादसे की गिरफ्त में था।मंजू की आंखों के सामने बार-बार वही मंजर घूम रहा था—मुरारी का अकेले उन गुंडों से भिड़ जाना, उसका गुस्सा, उसकी हिम्मत। वो शब्द, जो मुरारी ने उस आदमी को ललकारते हुए कहे थे, अब भी उसके कानों में गूंज रहे थे:
“मैंने मेरे बेटे से वादा किया है कि मैं उसकी चाची को हर कीमत पर घर लेकर आऊंगा।”

इन शब्दों में एक अजीब-सी ताकत थी, एक ऐसा जज्बा जो मंजू को हैरान कर गया था। मुरारी, जिसे वो रात वाली हरकत की वजह से गलत समझ बैठी थी, जिसे उसने मन ही मन कोसा था, वही मुरारी आज उसकी इज्जत और जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर उन गुंडों से भिड़ गया था।मंजू का मन उदासी से भरा था। उसे अपनी गलतफहमी पर पछतावा हो रहा था। बीते रात मुरारी ने जो हरकत की थी, वो शायद उसकी मजबूरी थी, या शायद उसका इरादा वैसा नहीं था, जैसा मंजू ने समझ लिया था। अब जब वो मुरारी की इस हिम्मत और जिम्मेदारी को देख चुकी थी, तो उसके मन में मुरारी के लिए एक नया सम्मान जाग रहा था। लेकिन साथ ही, वो डर भी अभी तक उसके दिल से गया नहीं था। उन गुंडों की गालियां, उनका क्रूर हंसी, और मोहल्ले वालों की चुप्पी—ये सब उसके मन पर भारी था। वो खिड़की से बाहर देख रही थी, लेकिन उसकी नजरें कहीं खोई हुई थीं। उसका चेहरा शांत था, मगर उस शांति के पीछे एक तूफान सा उमड़ रहा था।
मुरारी लंबे समय तक उसे चुप और शांत देख रहा था , वो समझ रहा था कि आज सुबह जो कुछ भी हुआ उसको लेके मंजू कितनी डर गई होगी । मुरारी के जहन में उस घटना को लेकर कितने सारे सवाल थे , मगर इस नाजुक पल में वो और मंजू को परेशान नहीं करना चाहता था । वो जानता था कि इस पल मंजू को एक कंधे की तलाश है और वो सिर्फ एक औरत ही पूरी कर सकती थी । उसे ममता का ख्याल आया
सुबह की भगदड़ में वो ममता को भूल ही गया था , और उसने अभी तक उससे बात भी नहीं की थी कि वो लोग निकल गए है ।
मुरारी ने जेब से मोबाइल निकाला और ममता को फोन घुमा दिया ।

3 से 4 रिंग और फोन पिकअप

: हैलो ( ममता की सहज आवाज आई )
: हा हैलो अमन की मां , कैसी हो ( मुरारी खुश होकर बोला ) भाई हम लोग निकल गए है
: अच्छा सच में , मेरी देवरानी कैसी है ? जरा बात कराएंगे ( ममता खुश होकर बोली )
: हा बगल में ही है , लो बात करो ( मुरारी मुस्कुरा कर मंजू को फोन देता है )
मंजू को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बात करे , उसकी चेतना तो जैसे खोई हुई थी ।
: हा , नमस्ते दीदी ...जी ठीक हूं और आप ( मंजू ने महीन आवाज में बोली उसका गला बैठा हुआ था )
अब मुरारी को ममता की आवाज नहीं आ रही थी ।
: जी , पता नहीं हाइवे पर है हम लोग हा अभी रुक कर खा लेंगे .. जी ठीक है .... लीजिए ( मंजू ने फोन वापस मुरारी को दिया )

: हा अमन की मां कहो
: अरे क्या बोलूं , उदास उदास सी क्यों लग रही थी वो ? ( ममता के तीखे सवालों से मुरारी अटक गया वो मंजू को देख रहा था कि क्या जवाब दे तो मंजू खामोशी से ना में सर हिला दी)
: ऐसा कुछ नहीं है , रात भर तो पैकिंग में निकल गई और अब झपकियां ले रही है हाहा ( मुरारी बात बनाते हुए बोला )
: अच्छा ठीक है , समय से खाने पीने के लिए रुक जाना और थोड़ा देखना की बाथरूम वगैरह की सुविधा हो । वो आपसे कहने नहीं न जायेंगी बार बार , समझ रहे हो न ( ममता ने मुरारी को समझाया )
: क्या अमन की मां तुम भी ( मुरारी ने मुस्कुरा कर मंजू को देखा तो वो भी फीकी मुस्कुराहट से उसे देखी) पता है मुझे , चलो ठीक है सफर लंबा है मोबाइल चार्ज नहीं कर पाया हुं। रखता हूं। बाय
: हा बाय

फोन कट गया और फिर मंजू खिड़की से बाहर देखने लगी ।
वही दूसरी ओर ममता ने फोन रखा और एक बार फिर उसके चेहरे पर बेचैनी हावी होने लगी ।
सुबह से आज वो अपने कमरे से बाहर नहीं आई थी । मदन सुबह बोलकर गया था कि कही काम से जा रहा है अभी तक वापस नहीं आया ।
ममता के पैर की चोट उसे दुख रही थी चलना दूभर था ।
किसी तरह हिम्मत कर उसने खाना बनाने के सोचा और किचन में आने लगी ।
जैसे ही वो हाल में आई तो चौकी , किचन में तो मदन भिड़ा हुआ है ।

ममता की आहट से मदन उसकी ओर घूमा
सीने पर एप्रेन बांधे हुए टीशर्ट और लांग वाले चढ़्ढे में खड़ा था
: अरे भाभी जी , आराम से ( ममता को लड़खड़ाते देख वो भाग कर उसके पास आया और उसका बाजू पकड़ कर सोफे पर बिठाने लगा )
: अह्ह्ह्ह देवर जी , आप क्यों खाना बना रहे है ? ( ममता असहज होकर बोली) और सब्जी भी नहीं होगी
: सब्जी मै ले आया हूं और आपकी तबियत भी ठीक लग रही थी तो सोचा मै ही कुछ बना दु आपके लिए ( मदन खिल कर हाथ में कल्चुल पकड़े हुए उसके आगे झुकता बोला , जैसे बीते रात कुछ हुआ ही न हो )
: क्या आप भी ( ममता मदन के हरकत से मुस्कुराई )
: हम्मम तो मैडम जी कोई खास फरमाइश ( अपने दोनों हाथ बांध कर मदन अदब से झुक कर बोला जैसे किसी होटल का वेटर हो )
: हीही, क्या आप ये सब ? ( ममता हसने लगी ) छोड़िए इधर दीजिए मुझे । आपको ये सब नहीं करना चाहिए था
: आहा, आज नहीं ! आज तो मै ही बनाऊंगा । बताओ क्या खाओगे ( मदन उसकी पहुंच से थोड़ा पीछे खिसक कर बोला )
: अच्छा ठीक है एक चाय मिलेगी क्या ? ( ममता ने बड़े भारी मन से कहा )
: उसके साथ आलू सैंडविच भी रेडी है , लेना चाहेंगी आप ( मदन ने फिर वही वेटरों वाली स्टाइल में बोला )
: हीहि, जी लाइए ( ममता जो अब तक उदास थी और सोच रही थी कि अपने देवर से कैसे सामना करेगी , अब थोड़ी बेफिक्र थी । )
मगर उसके पैर के अंगूठे में हल्की सूजन आ गई थी ।
थोड़ी ही देर में मदन एक ट्रे में गर्मागर्म चाय और सैंडविच लेकर आया

: एनीथिंग एल्स मैडम ( मदन फिर से बोला )
: उम्हू ( ममता ने मुस्कुरा कर ना में सर हिलाया और मदन वहां से निकल कर अपने रूम में चला गया और एक प्लास्टिक बॉक्स लेकर आया )

हाल से स्टूल खींच कर उसने ममता के पास रखा खुद नीचे बैठ गया
: अरे देवर जी , ये सब क्या ? ( ममता उसको प्लॉस्टिक बॉक्स को खोलते देख रही थी , जो असल में एक मेडिकल किट थी )
: क्या आप अपना पैर इसपर रखेंगी मैडम ( मदन मुस्कुरा कर बोला )
: क्या कर रहे हो आप , मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है ( ममता उलझी हुई अपनी चोट वाली टांग को सोफे पर बैठे हुए उस स्टोल पर रखा )

जिससे उसकी नाइटी का गैप बढ़ा हो गया , मदन इस वक्त ठीक उसके आगे उकङू होकर बैठा था , वहा से ममता के फैले हुए काटन नाइटी के गैप से दूर अंदर तक उसकी चिकनी लंबी गोरी टांगे दिख रही थी जांघों तक
मदन ने अपने नजरो को झटका और सेवलान से ममता के घाव धुलने लगा

: अह्ह्ह्ह सीईईई फ़ूऊऊ( ममता सिसकी एक ठंडा चुनचुनाहट भरा एहसास उसने अपने चोट के आसपास महसूस किया )
मदन ने काटन से उसके घाव साफ किए और एक मलहम निकाली और उसका ढक्कन खोलते हुए

: भाभी सैंडविच खाओ न ( वो ममता के घाव पर फूंकता हुआ बोला )
ममता ने सैंडविच को जैसे ही मुंह में दबाया उसी समय मदन ने वो मलहम की ट्यूब को दबाया और मलहम ममता को घाव पर फैलने लगी

: उम्ममम फ़ूऊ फ़ूऊऊ , अह्ह्ह्ह मम्मीईईई ये क्या है अह्ह्ह्ह( ममता जोर से चीखी अपनी टांग पकड़ते हुए )
: बस हो गया भाभी , अभी ठंडा हो जाएगा । शुरू में थोड़ा लगता है आप सैंडविच खाओ न ( मदन हंसते हुए बोला )
: भक्क, बहुत बुरे हो आप , अह्ह्ह्ह्ह सीईईई मम्मी ऊहू ( ममता का चेहरा दर्द से बेचैन था मानो अभी वो रो ही देगी)

मगर कुछ ही देर में उसे एकदम से आराम मिल गया और उसका गुस्सा भींनकना मुस्कुराहट में बदल गया ।
तो वो उठ कर किचन में आई

: उह ऊहू .. (ममता मुस्कुराती हुई नाइटी में मदन के पास खड़ी हो गई तो मदन मुस्कुरा कर उसे देखा ) थैंक यू
और उसने मदन के हाथ से चाकू ले लिया जिससे वो सब्जियां काट रहा था
: अच्छा जी , वो किस लिए ( मदन अपने हाथ बांधता हुआ ममता के मुस्कुराते चेहरे को देखते हुए किचन स्लैब पर अपने कूल्हे टिकाते हुए बोला )
: आपकी सर्विस के लिए ( ममता सब्जियां काटती हुई आंखे रोल करती हुई मुस्कुराई बिना मदन की ओर देखे )
: बिना टीप के सिर्फ थैंक यू ? इतनी खराब थी क्या सर्विस ( मदन ने मुंह बनाया )
: अरे नहीं ( ममता हस पड़ी और उसके मोतियों जैसे दांत होंठों पर खिल उठे ) अच्छा ठीक है कल आपको एक बहुत अच्छी टिप मिलेगी ओके
: क्या कल ? ( मदन चौका )
: वो मैने ऑर्डर दे दिया है कल तक आ जाएगा तो मिलेगा आपको ( ममता ने मदन को उलझाया ).
: ऐसा क्या मंगवा रही हो भाभी ( मदन सोचते हुए बोला )
: कल मिलेगा कल हीही

और वो काम करने लगी

प्रतापपुर

रसोई के पास लगी चौकी पर रंगीलाल और उसका ससुर बनवारी खाना खा रहे थे

: भाई मेरा हो गया , बहू जरा हाथ धुलवा दे ( बनवारी चौकी से उतरकर आंगन की ओर चला गया और सुनीता एक लोटा पानी लेकर चली गई पीछे )
इधर रंगीलाल के जहन में काफी कुछ चल रहा था । रात से अब तक जो कुछ भी घटित हुआ उससे सुनीता के लिए उसकी हवस को और हवा मिल चुकी थी ।
थोड़ी देर बाद ही बनवारी अपने गमछे से हाथ पोंछता हुआ आया और पीछे उसके सुनीता
रंगी की नजर अनायास उसके सर से हटे हुए पल्लू पर गई सीने का उभार हल्का सा झलक रहा था । सुनीता ने रंगी की नजर भाप ली और झट से अपने सर पर पल्लू करते हुए अपने ब्लाउज को ढक दिया।

: जमाई बाबू चलना है या फिर आराम करोगे ? ( बनवारी अपने हथेली के खैनी रगड़ता हुआ बोला )
रंगीलाल बनवारी के सवाल पर उसके पीछे खड़ी अपनी खूबसूरत सलहज को देखता है और मुस्कुरा देता है ।
: नहीं बाउजी , अभी थोड़ा आराम करूंगा घर पर । मन हुआ तो आता हूं ( रंगी लाल खाना खाने लगा और उसके जवाब पर सुनीता मुझ फेर कर मुस्कुराने लगी क्योंकि वो जान रही थी कि रंगीलाल उसके लिए ही रुकेगा )
इधर बनवारी निकल गया और रंगीलाल का खाना भी लगभग हो गया
: और कुछ दूं ( सुनीता ने रंगी से पूछा )
: जो चाहिए वो तो आप दे नहीं रही हो ( रंगी ने मुस्कुरा कर उसे देखा और सुनीता लजाई ) हाथ धुला दीजिए अब ।

रंगीलाल चौकी से उतर कर जूठे हाथ लिए आंगन की ओर आ गया और सुनीता पानी लेकर उसके पीछे गई मुस्कुराती हुई

रंगी आगे झुक कर हाथ आगे किया और सुनीता भी उससे कुछ दूरी पर ही सामने थोड़ा सा झुक कर पानी गिराने लगी। रंगी ने मुस्कुरा कर उसे देखा तो दोनों की नजरे टकराई
मगर असल धोखेबाज तो उसका पल्लू निकला , बिना पिन का पल्लू झुकने की वजह से उसके कंधे से सरक कर कलाई के आ गया और उसके बड़े गले वाले ब्लाउज़ से उसके मोटे रसीले गोल मटोल मम्मे दिखाई देने लगे ।


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रंगीलाल की नजर एकाएक उन पर गई और उसकी नजर का पीछा किया तो सुनीता ने देखा कि वो उसके मुलायम चूचों को ही घूर रहा है ।
सुनीता बेचैन होने लगी , उसकी सांसे तेज हो गई और वो झट से खड़ी होकर अपना पल्लू सही किया ।

रंगी मुस्कुराया कर उसे निहारता रहा और सुनीता नजरे चुराती रही । फिर रंगी हाथ पोछने के लिए कुछ खोजने लगा कि उसकी नजर सुनीता के पल्लू पर गई और वो उसे पकड़ लिया
सुनीता एकाएक चौकी और अपनी साड़ी को छातियों के पास कस कर पकड़ लिया

मगर रंगी मुस्कुरा कर बस उसके पल्लू में हाथ पोंछ कर छोड़ दिया ।
सुनीता के दिल अभी तक कांप रहा था ।

रंगीलाल : अरे डरिए मत , जब तक आप हा नहीं कहेंगी हम आगे नहीं बढ़ेंगे
सुनीता मुस्कुराई : धत्त , आप जो चाहते है वो सही नहीं है ।
रंगीलाल उसके करीब आकर उसकी आंखों में देखता हुआ : किसी को चाहना गलत है क्या ?
रंगीलाल का यू उसकी ओर चढ़ आना सुनीता की हालत पतली हो गई ,उसकी सांसे चढ़ने लगी और आंखों में हल्का सा डर दिखा : नहीं , लेकिन मै उन्हें छोड़ नहीं सकती हूं, प्लीज
रंगीलाल : मैने तो नहीं कहा आप छोड़ दो , बस मेरा हाथ थाम लो यही चाहता हूं
रंगीलाल की आंखों के खुमारी सी थी और दोनों की सांसे बेकाबू हुई जा रही थी
सुनीता को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले : हटिए जाने दीजिए , मुझे कपड़े धुलने है
ये बोलकर वो तेजी से निकल गई और रंगीलाल मुस्कुरा कर उसके रसीले मटके हिल्कोरे खाता देखता रहा ।

वही बबीता के कमरे में आज सालों बाद राजेश घुसा था , इधर उधर नजर पड़ रही थी । गीता को बड़ा ताज्जुब लग रहा था कि उसको पापा आए है ।
वही बबीता बड़ी खुश नजर आ रही थी अपने पापा का साथ पाकर
फुदक रही थी , टीशर्ट में बिना ब्रा के उसके गोल मटोल मौसमी जैसे चूचे खूब हिल रहे थे और नंगी चिकनी जांघें देख कर राजेश का लंड अकड़ रहा था ।

तभी उसकी नजर कमरे के दरवाजे के पीछे वाल हैंगर में लटके हुए ब्रा और पैंटी पर गई , उसे समझते देर नहीं लगी कि ये उसकी बेटियों के होंगे ।
उन ब्रा पैंटी के सेट देख कर राजेश की बेचैनी बढ़ने लगी । वो बबीता की नाप जानने को इच्छुक हो उठा ।
इतने बबीता आई और उसके पास सट कर बैठ गई

: पापा ये वाली मूवी में बहुत हसी है हीही ( बबीता खिलखिला कर बोली तो राजेश उसकी कमर के हाथ डाल कर उसे अपने पास खींच लिया )

ये सब देख कर गीता को अजीब सा लग रहा था , एकदम से बबीता और उसपे पापा के रिश्ते में आया बदलाव उसे समझ से परे लगा। उसके जहन में तो उसके दादा जी का बड़ा मोटा लंड घूम रहा था । ताज्जुब हो रहा था उसे कि इस उम्र में भी उसके दादू का लंड इतना मोटा है ।
राज के यहां से आने के बाद बबीता ने अपने बॉयफ्रेंड से मिलना जारी रखा मगर गीता अकेली थी और दादाजी का लंड उसे ललचा खूब रहा था ।
वो बेचैन हो रही थी और उसने तय किया कि वो दादा जी के पास जाएगी
उसने आलमारी से कपड़े लिए

: मीठी कहा जा रही है ( पापा की बाहों में लिपटी हुई बबीता ने पूछा तो राजेश ने भी गीता को देखा )
: वो मै दादू के पास जा रही हूं , ऐसे ही घूमने ( गीता ने साफ साफ जवाब दिया और अपने कपड़े लेकर निकल गई)
: आराम से जाना बेटा ठीक है ? ( राजेश ने उसको बोला और गीता हा में सर हिला कर निकल गई दरवाजा खींच कर दूसरे कमरे में कपड़े बदलने )
उसके जाते ही राजेश ने बबीता को दोनों हाथों से पकड़ा और उठा कर गोदी में बिठा लिया

: हीही पापा , मै बच्ची थोड़ी हूं जो ऐसे बिठा रहे हो ( बबीता अपने अपना की जांघों पर बैठी खिलखिलाई )
वही राजेश अपनी बिटिया के नरम चर्बीदार चूतड़ का गद्देदार स्पर्श पाकर सिहर उठा था ,उसके नथुनों में अपनी बेटी की कोरी खुशबू आ रही थी
: तू तो हमेशा मेरी गुड़िया रहेगी ( हाथ बढ़ा कर उसने बबीता के पेट पर टीशर्ट के ऊपर से गुदगुदी की तो वो उसके गोद में छटकने लगी )
: हाहाहाहाहा पापा
( फिर उसकी नजरें अपने पापा से मिली तो उसने अपने पापा को देखा और दोनों हाथों से उसका चेहरा थामा )
: आई लव यू पापा ( उसने झट से राजेश को हग कर लिया) आप प्लीज ऐसे रहा करो प्लीज
राजेश बबीता की भावुकता समझ रहा था , बचपन से उसने कभी भी अपनी बेटियों को एक पिता का प्यार नहीं दिया । अपनी अय्याशी और नशे की लत में वो इतना बहक गया कि उसे घर परिवार का ख्याल तक नहीं रहा था । मगर आज बबीता का यू उससे लिपटना उसे पिघला रहा था ।
उसने झट से बबीता को अपने सीने से कस लिया , उसके छोटे छोटे मौसमी जैसे चूचे अपने सीने पर कठोर बॉल के जैसे धंस रहे थे और वो अपनी बेटी के पीठ को सहला रहा था ।
कितना कोमल अहसास था
: आई लव यू मेरी गुड़िया उम्माह ( उसने बबीता के कान के पास चुम्मी ली तो बबीता को हल्की गुदगुदी लगी और वो खिलखिला उठी और अलग होने का प्रयास की तो राजेश उसे हंसी में और कस कर पकड़ लिया)

: हीही , छोड़ो अब पापा ( बबिता खिलखिलाई )
: नहीं, मै नहीं छोड़ने वाला अपनी गुड़िया को ( उसने बबीता को अपनी बाहों में और कसा जिससे बबीता के नरम फुले हुए चूचे उसके सीने से दब गए और जब जब बबीता उससे अलग होने को खुद को कसमसाती उसके निप्पल पर अपने पापा के गर्म सीने का घर्षण होता , जिससे उसके निप्पल टाइट होने लगे और वो बेचैन होने लगी ।
उसे शर्मिंदगी सी होने लगी कि उसके पापा को जरूर उसके तने हुए निप्पल चुभ रहे होगे , उसके जहन में कुछ बातें घूमने लगी , कि क्या सोच रहे होंगे उसके पापा उसके बारे में।
वो थोड़ा सा जोर लगा कर अपने छातियों को अपने पापा से सीने से दूर किया और राजेश भी समझ गया कि बबीता असहज हो रही है इसलिए उसने भी छोड़ दिया
बबीता लजा कर सीधी उसके गोद में चुप होकर बैठ गई , वही राजेश उसके टीशर्ट में उभरे हुए उसके निप्पल के दाने को देख आकर उसके लंड में हरकत होने लगी ।

मगर उसे माहौल को सहज ही रखना था इसीलिए उसने पीछे से बबीता के पेट को पकड़ कर उससे लिपट गया
बबीता को फिर से गुदगुदी हुई मगर वो अब सहज महसूस कर रही थी ।
मगर राजेश के जहन में वो ख्याल आ रहे थे जब उसने बबीता को पूरी नंगी देखा था उसके उपले जैसे गोल मटोल चूतड़ पानी में उपराए हुए थे और वो तैर रही थी नंगी । उसका लंड पजामे में अकड़ने लगा था
जिसका अहसास बबीता को भी हो चुका था अपने नरम चर्बीदार चूतड़ों पर
जैसे उसे अपने चूतड़ों के नीचे कुछ कड़कपन का अहसास हुआ वो चिहुकी , उसकी आंखे बड़ी हो गई
उसे लगने लगा कि जरूर जब उसके दूध उसके पापा के सीने से रगड़े होंगे इसी वजह से उसके पापा का खड़ा हो गया ।
उसका कलेजा डर रहा था , वो अपने पापा के सुपाड़े की कठोरता महसूस कर पा रहे थी । उसकी चूत बिलबिला उठी और वो राजेश के गोद से खड़ी हो गई

: पापा वो मै मम्मी को कपड़े देकर आती हूं नहीं तो गुस्सा करेंगी ( बबीता ने बहाना बनाया और निकल गई )
राजेश वही बैठा हुआ अपना लंड मसलने लगा ।
इधर बबीता तेजी से कमरे से निकल कर पीछे आंगन की ओर जाने लगी
जिसकी आहट पाते ही रंगीलाल जो छिप कर अपनी सहलज को कपड़े धुलते देख रहा था वो रसोई की ओर चला गया और जब बबीता वापस जाने लगी तो वो लपक और आंगन के दरवाजे के पास आया और भीतर झांकने लगा


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जहां सुनीता अपने सीने का पल्लू कमर में खोसे हुए बैठ कर कपड़े धूल रही थी और उसके बड़े बड़े रसीले मम्में ब्लाउज से बाहर झांक रहे थे
वो नजारा देख कर रंगीलाल का लंड अकड़ने लगा था ।
उसको तत्काल चुदाई चाहिए थी और सुनीता से अभी कोई उम्मीद नहीं नजर आ रही थी इसलिए वो निकल गया अपने ससुर के पास
वही रंगीलाल से पहले ही गीता निकल गई थी बनवारी के पास
इठलाती उछलती हुई वो मुख्य सड़क की जगह खेतों से होकर गोदाम के पीछे वाले रास्ते से बनवारी के पास जा रही थी । उसका अक्सर यही रूट रहता है हमेशा से , इससे दो फायदे होते थे , उसे गांव के कम लोगो का सामना करना पड़ता था और कम समय में वो पहुंच जाती थी ।
तेजी से चलते हुए वो गोदाम की ओर जा रही थी , इस उद्देश्य से आज उसके फूफा रंगीलाल घर पर है और उसके दादाजी अकेले में क्या करते है वो भलीभाती जानती है ।
वो अपने तय जगह पर आ पहुंची थी और वो जगह थी , गोदाम के सबसे पीछे वाले कमरे में जहां बनवारी अपनी कामलीलाये करता था ।
वही से एक खिड़की खुली थी जहां से अंदर का नजारा देखा जा सकता था और वो वही खड़ी होकर एड़ी उठा कर भीतर झांकने लगी
उसका तुक्का सही निकला , कमरे में उसके दादा बनवारी एक औरत को अपनी बाहों में लेकर सहला रहे थे , कभी उसके ब्लाउज में हाथ घुसा कर उसकी गुदाज मुलायम छातियां मिजता तो कभी उसके चर्बीदार पेट को मसलता वो औरत खिलखिला रही थी
: अह्ह्ह्ह्ह सेठ जी छोड़िए न , आज नहीं उम्मम अह्ह्ह्ह्ह, घर पर मेहमान आए है
: अह्ह्ह्ह कितने दिन बाद तो आई हो थोड़ा सा दूध पिला दो ( बनवारी उसके चूचे मसलने लगा )
: नहीं , मै हाथ जोड़ती हु सेठ घर पर मेरी बुढ़िया राह रही होगी । ( वो औरत अलग हुई और कपड़े सही करते हुए वो पैसे जो अभी उसे मिले थे उसे अपने ब्लाउज में खोंसते हुए बोली )
फिर तेजी से बाहर निकल गई और बनवारी अंगड़ाई लेता हुआ बिस्तर की ओर आने लगा , इधर गीता वहा से हटने को हुई कि उसका बैलेंस बिगड़ा और वो पीछे की ओर गिर पड़ी

उसकी सिसकी से बनवारी चौका और लपक कर खिड़की से बाहर झांका तो देखा कि खिड़की के बाहर खेत में उसकी नातिन गीता गिरी है

बनवारी चिंता में उसको आवाज दिया और जल्दी से कमरे की पीछे वाले दरवाजे को खोला जो खेत में खुलता है , अक्सर ये दरवाजा बनवारी औरतों को बुलाने के लिए यूज करता था ।
वो झट से दरवाजा खोलता हुआ गीता की ओर भागा

: अरे मीठी , क्या हुआ बेटी ,तू गिर कैसे गई ? और तू यहां क्या कर रही थी ?
एक एक करके सवाल और सवाल
पैर में चोट आई थी और दर्द से बिलख रही थी ,
: वो मै ऐसे ही आई थी घूमने , आज छुट्टी थी स्कूल की , अह्ह्ह्ह्ह मम्मी दर्द हो रहा है
: लेकिन तू पीछे से क्यों आ रही थी ( तभी बनवारी को सुबह वाली घटना याद आई और उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी नातिन यहां पीछे क्या कर रही थी ) चल उठ कमरे में आ चल
बनवारी ने उसे उठाया और कमरे के लेकर आया
: बहुत बिगड़ गई है आजकल तू , कभी छत से कभी खिड़की से क्या है ये सब तेरा बोल ? ( बनवारी ने डांट लगाई )
: सॉरी दादू ( वो बिलखते हुए बोली , इस उम्मीद में कि रोने से शायद वो सजा से बच जाए )
: मै देख रहा हूं कई रोज से तू आंगन में झांकती है , ये अच्छी बात है क्या ? बोल ( बनवारी ने उसे समझाना चाहा )
: नहीं दादू , वो मै , अह्ह्ह्ह दर्द हो रहा है सॉरी ( गीता को समझ नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे वो )
बनवारी ने पानी से उसके पाव धुले और एक मलहम लगाया जो उसके दराज में उपलब्ध था ।
: नहीं करना चाहिए न बेटा , ये अच्छी आदत नहीं है और तू मेरी प्यारी बेटी है न ( बनवारी उसकी एड़ी में मलहम से सहलाने लगा )
: जी दादू , अब नहीं करूंगी

कुछ देर कि चुप्पी और फिर कुछ बाते थी जो बनवारी के जहन में उठ रही थी सवालों के रूप में
: अच्छा सुन , तूने बहु को कहा तो नहीं इस बारे में जो तू ताक झांक करती है ( बनवारी ने सवाल किया )
: ऊहु ( गीता ने थोड़ी लजा कर मुस्कुराती हुई न में सर हिलाई ) उन्हें पता चलेगा तो आपको अपने पास आने थोड़ी देंगी हीही

एकाएक बनवारी के कान खडे हो गए
: क्या कहा तूने अभी ,
: जैसे मुझे पता नहीं चलेगा क्या कि मम्मी रात में आपके कमरे में क्यों जाती है ? ( गीता मुस्कुरा कर बनवारी को देखी )
बनवारी अब असहज होने लगा और उसका हल्क सूखने लगा , उसे उम्मीद नहीं थी उसकी बाते इस कदर उसकी नातिन जान लेगी ।
: तू कुछ ज्यादा नहीं जानती तेरी उम्र के हिसाब से ( बनवारी को हंसी आई )
: आप भी कुछ ज्यादा ही करते हो वो सब अपनी उम्र के हिसाब से ( गीता ने पलट कर जवाब दिया )
जिसपर बनवारी हस दिया
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो भला क्या ही रिएक्ट करे गीता की बातों पर , जिसमें बचपना भरा है । भले उसका जिस्म भर आया हो और उम्र बढ़ रही हो मगर बनवारी के लिए ये मानना आसान नहीं था कि उसकी नातिन की रुचि अब सेक्स को लेकर भी होने लगी है ।

: तू , तूने कब देखा तेरी मां मेरे कमरे में आती है ? ( बनवारी ने सवाल किया )
: कई बार , कभी कभी किचन में भी । एक बार तो मैने आप दोनों को पापा से भी बचाया था हीही ( गीता बड़ी मासूमियत से बोली )
राजेश का जिक्र होते ही बनवारी ठिठक गया
: क्या ? कब ?
: वो आप लोग किचन में थे और पापा पानी पीने जा रहे थे तो मै उन्हें घुमा लाई कमरे में । काफी दिन हो गए

बनवारी को अब समझ आ रहा था , उसकी नातिन को सही गलत को समझ है । वो सिर्फ बहकी नहीं बल्कि उस चीज को समझती भी अच्छे से है । लेकिन फिर भी वो उसके लिए लाडली नातिन थी । अभी पिछले बरस ही तो उसने अपनी दसवीं पास की है ।

: अच्छा ठीक है ठीक है , लेकिन अब तू घर जा ( बनवारी ने कड़े शब्दों के कहा ) और ये सब किसी से कहना मत
अपने दादू से ये सब सुनते ही गीता का मुंह फूल गया , गीता का स्वभाव बचपन से जिद्दी था , और अपने दादा के आगे कुछ ज्यादा ही दुलारी थी ।
बनवारी उसकी भावनाएं समझ रहा था मगर क्या करे । उसके सामने उसके गोद में खेली हुई बच्ची थी जो खुद को श्यानी समझ रही थी ।
: अच्छा ठीक है , चौराहे से तेरे लिए शाम को फुल्की लेकर आऊंगा अब खुश ( बनवारी ने गीता का चेहरा देखा )
वो भीतर से जल रही थी कि क्यों उसके दादू उसकी बात समझ नहीं रहे है , जबसे उसने दादू और अपने मम्मी की चुदाई देखी थी वो पगलाई घूम रही थी । उसके जहन में अपने दादू का मोटा लंबा लंड घूमता रहता था सुबह शाम और आज जब सारे भेद खुल गए तो उसकी बेसबरी और बढ़ गई ।
वो पिनक कर उठी और बिना कुछ बोले पीछे वाले दरवाजे से खेतों की ओर निकल गई । बनवारी का मन भी थोड़ा उदास हो गया अपनी लाडली नातिन को उदास देख कर । लेकिन अभी तक उसके जहन के गीता को लेकर कोई भी बुरे ख्याल नहीं आए । न ही उसने गीता के बड़े हुए संतरों और चर्बी भरी मोटी चूतड़ों की थिरकन को पलट कर देखा । बस नजरे फेर कर बिस्तर पर बैठ गया ।

वही रंगीलाल मेन सड़क से होता हुआ गोदाम आ रहा था कि बोरियो के बीच उसे कमला मिली और झट से उसे वो एक कोने खींच ले गया ।
: अह्ह्ह्ह छोड़ो जमाई बाबू , काहे तंग कर रहे हो अह्ह्ह्ह्ह ( कमला बोरियो के छलियों से लगी छटपटा रही थी और आगे रंगी उसकी कलाई पकड़े हुए था और अपनी टांग को उसकी जांघों के साड़ी के ऊपर से भेद रखा था जिससे वो भाग न सके )
: ओहो कमला रानी सारी जवानी अब क्या सिर्फ मेरे साले और ससुर पर न्योछावर करोगी , तनिक हम पर भी रहम करो( रंगी उसको अपनी ओर कसता हुआ बोला )
: अह्ह्ह्ह्ह उम्मम क्या करते सीईईई ( अपने गुदाज नर्म चूचों को रंगीलाल के सीने से रगड़ खाते ही कमला सिसकी )
रंगी उसके चर्बीदार चूतड़ों को साड़ी के ऊपर से मसलता हुआ : अह्ह्ह्ह कमला रानी , कल तुमने अपने इन रसीले जोबनो से मुझे जो घाव दिए बहुत दर्द रहा रात भर कसम से

: धत्त , छोड़ो न जमाई बाबू कोई देख लेगा ( कमला शर्मा कर मुस्कुराती हुई अलग होने लगी )
: रात में मिले फिर ?
: कहा ?
: बाउजी के बगल वाला कमरा मेरा है, कल सारी रात तुम्हारी सिसकियां सुनकर इसे मसलता रहा ( रंगीलाल उसके आगे पजामे के ऊपर से अपना खड़ा हुआ लंड मसलता हुआ बोला )

: क्या मेरी ? मै कब आई हीही ( असहज होकर कमला हसी )
: तुम नहीं थी तो फिर कौन था ? बाउजी ने तो ... ( रंगी अपनी बात अधूरी छोड़ दिया)
: अभी बहुत कुछ है जो आपके बाउजी आपसे छुपाए हुए है हीही, मिलती हु रात में

और वो मुस्कुराती हुई अपने कूल्हे झटकती निकल गई । वही रंगी लाल सोच में पड़ गया कि आखिर फिर वो दूसरी कौन हो सकती है ? जिसके बारे में बाउजी ने मुझसे झूठ बोलने लगे ।
रंगी वहा से निकल कर सीधे अपने ससुर के पास चला गया
: अरे जमाई बाबू , आइए आइए बैठिए
: लग रहा है आज अकेले ही आराम फरमा रहे है हाहाहाहाहा ( रंगी ने हस कहा )
: अरे वो कमला आई थी , लेकिन उसके घर मेहमान आए है तो चली गई , वरना अभी तक दरवाजा बंद ही मिलता हाहाहाहाहा ( बनवारी हस कर बोला )
: वैसे सच कहूं बाउजी , समान जोरदार है कमला ( रंगी सिहर कर बोला )
: ओहो कही जमाई बाबू का ईमान भी तो नहीं डोल रहा है हाहा ( बनवारी के छेड़ा रंगी को )
रंगी उसकी बातों और थोड़ा लजाया: अरे नहीं बाउजी , रागिनी के आगे फीकी है ये , उसके चूतड़ तो इससे भी.... सॉरी बाउजी ( रंगी बोलते हुए रुक गया )
बनवारी हंसता हुआ : हा हा समझता हूं भाई, बीवी की दीवानगी होती ही ऐसे है । अब तुम्हारी स्वर्गवासी सास को ही लेलो डिट्टो मेरी रज्जो की फोटोकापी थी और घाघरे में जब उसके बड़े चौड़े कूल्हे झटके खाते , उफ्फफ
: क्या सच में अम्मा जी रज्जो जीजी जैसे थी ? फिर तो बड़े किस्मत वाले निकले बाउजी हाहाहा ( रंगीलाल ठहाका लगा कर बोला)
बनवारी हस कर : अरे किस्मत वाले तो कमलनाथ बाबू है क्यों ?
रंगी अपने ससुर के इस मजाक और थोड़ा सा झेप गया और असहज भरी मुस्कुराहट से हंसता है : अह बात तो सही है आपकी , किस्मत वाले तो है ही कमल भाई

बनवारी ने अब रंगी को शर्माता देख कर छेड़ा : कही आपकी भी पहली पसंद रज्जो तो नहीं थी ? हाहाहाहाहा

रंगी बनवारी के मजाक में शामिल होता हुआ हस कर : अब मेरी बारी ही लेट आई तो क्या कर सकता हूं बाउजी , सिवाय हाथ मलने के हाहा

बनवारी हस कर : वैसे उदास होने की जरूरत नहीं है , छोटकी भी ... हीही ( बनवारी बातें आधी छोड़ कर हस पड़ा और रंगी भी मुस्कुराने लगा )

शिला के घर

" Send me video plzz "
" Okay , wait 5 mins "
...................................
अरुण बेचैन होकर कालेज के बरामदे में चक्कर लगा रहा था और बार बार मोबाइल देख रहा था ,
तभी एक वीडियो क्लिप उसके ****gram पर आया , जिसे देखते ही उसकी सांसे चढ़ने लगी । वो एक सुरक्षित जगह तलाशने लगा और लपक कर तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गया

वही कालेज के ऑफिस में मानसिंह बैठा था और उसका मोबाइल बजने लगा
: हा शिला कहो ( मानसिंह ने फोन उठाया )
: कुछ खास भेजा है मैने आपके लिए चेक करो और बताओ हीही ( शिला मुस्कुराती हुई फोन काट दी )

मानसिंह को समझते देर नहीं लगी कि आखिर क्या खास चीज होगी और उसने झट से अपना व्हाट्सअप खोला और दो तीन तस्वीरों के साथ एक वीडियो आया था , जिसके नीचे एक मैसेज लिखा हुआ था । " आज का लंच स्पेशल है 😜"
मानसिंह उन तस्वीरों को देख कर समझ चुका था कि वीडियो में वही सब होगा और जैसे ही उसने वीडियो खोला ,उसका लंड फुदकने लगा


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वीडियो में शिला सिर्फ ब्लाउज और पैंटी में किचन में खड़ी होकर खाना बना रही थी । पैंटी में बाहर निकले हुए उसके बड़े चौड़े चूतड़ देख कर मानसिंह का लंड अकड़ने लगा वो उसको पकड़ कर सिहर गया ।

वही कालेज के बाथरूम में दरवाजा बंद करके खड़ा होकर अरुण तेजी से अपना लंड भींच रहा था । उसके मोबाईल स्क्रीन पर म्यूट में एक वीडियो चल रहा था जिसमें एक मोटी गदराई हुई औरत शावर के नीचे सिर्फ पैंटी में नहा रही थी और पीछे से उसकी भीगी हुई गाड़ दिख रही थी "

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" अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह क्या मस्त माल है यार कितनी मोटी गाड़ है और भीगती हुई तो अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म फक्क्क् यूयू बिच ओह्ह्ह्ह "
तभी वो औरत कैमरा की ओर अपनी गाड़ किए हुए ही अपनी पैंटी नीचे उतारने लगी और उसकी मोटी गदराई गाड़ नंगी होने लगी , शावर का पानी अब सीधे उसके बड़े चौड़े चूतड़ों के दरारों में जाने लगा , जिसे देख कर अरुण खुद को रोक नहीं पाया और भलभला कर झड़ने लगा

" अह्ह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् यूयू ओह्ह्ह्ह यशस्स अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह उम्ममम अमीईईई अह्ह्ह्ह कितना बड़ा है आह्ह्ह्ह "
अरुण अपना लंड झाड़ कर वापस क्लास के लिए निकल गया और वही मानसिंह शिला से फोन पर बातें कर रहा था । जबकि रज्जो ने शिला का मोबाइल स्पीकर पर रखा हुआ था ताकि वो भी मानसिंह के जज्बात सुन सके

: ओह्ह्ह्ह मेरी जान , क्या मस्त चूतड़ है उफ्फ , जी करता है आकर काट लूं अभी , और खोल कर लंड घुसा दु ( मानसिंह फोन पर बोला और उसकी बाते सुन कर रज्जो और शिला मुंह पकड़ कर खिलखिलाई )
: उफ्फ तो रोका किसने है, आजाओ न मै तो अभी तक वैसी ही हूं कपड़े भी नहीं पहने, आजाओ न मेरे राजा और घुसा दो जहां जो घुसाना चाहते हो उम्ममम ( शिला ने मानसिंह को उत्तेजित किया और मानसिंह का लंड अकड़ गया )
: बस 5 मिनट , मै निकल रहा हूं
मानसिंह की बौखलाहट पर शिला और रज्जो मुंह दबा कर हस रही थी और फिर फोन कट हो गया ।

कुछ ही देर में मानसिंह घर के अंदर दाखिल हो गया था , और उसका लंड पेंट के पूरा कड़क हो गया था
वो लपक कर तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ गया ।
कि तभी उसका मोबाइल बजा ये कॉल शिला ने ही किया था

" कहा हो मेरे राजा उम्मम आओ न " , शिला ने फोन पर सिसक कर कहा ।
मानसिंह शिला के कामुक और आकर्षक आवाज से उत्तेजित हो उठा : आ गया हु मेरी जान, कहा हो तुम
शिला : सीधे कमरे में चले आओ अह्ह्ह्ह्ह कबसे मेरी चूत कुलबुला रही है अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म
शिला ने फोन पर मानसिंह को और उकसाया
मानसिंह : अरे वो रज्जो भाभी कहा.....( मानसिंह आगे कुछ बोलता उससे पहले ही शिला ने फोन काट दिया )
अब तक वो शिला के कमरे तक आ पहुंचा था और जैसे ही उसने कमरे का दरवाजा खोला , अंदर बत्तियां बंद थी बस एक गुलाबी सीलिंग लाइट जल रही थी । उस गुलाबी सीलिंग लाइट को शिला तभी ऑन रखती थी जब वो पूरी तरह से वाइल्ड महसूस करती हो और ये एक तरह का सिंगनल था मानसिंह के लिए और जैसे ही उसकी नजर बिस्तर पर गई उसकी आंखे फेल गई और मुंह में लार बढ़ने लगा ।


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सामने उसके शिला वही वाली पैंटी और ब्लाउज पहने हुए हवा में अपने चूतड़ उठाए हुए लेती थी , उसका मुंह दूसरी ओर था ।
तभी बिस्तर की ओर से आवाज आई
: आओ न जानू अह्ह्ह्ह ( शिला ने अपने बड़े भड़कीले चूतड़ हवा में हिला कर उसे रिझाया )
मानसिंह का लंड एकदम से बौराया हुआ था और वो पेंट के ऊपर से उसको पकड़े हुए मसल रहा था
: उफ्फ मेरी जान उस गुलाबी रौशनी में तुम्हारे चूतड़ और भी बड़े और रसीले नजर आ रहे है ।
मानसिंह आगे बढ़ कर शिला के चूतड़ के नंगे गोल बड़े हिस्से को सहलाते हुए कहा , उसका स्पर्श पाते ही वो अकड़ गई ।
: उम्मम कितनी मादक गंध है अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह आज तो तुम्हारे चूतड़ और भी नरम है आह्ह्ह्ह मेरी जान उम्मन( मानसिंह घुटनों के बल होकर दोनों हाथों से शिला के बड़े भड़कीले चूतड़ों को सहलाते हुए अपने नथुने करीब ले गया )
मानसिंह के स्पर्श के शिला के जांघों के कम्पन हो रहा था और थोड़ी मादक महीन सी सिसकियां उठने लगी और अगले ही मानसिंह के अपना मुंह सीधा शिला के बड़े भड़कीले चूतड़ों के दरारों में मुंह दे दिया


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अह्ह्ह्ह उम्मम अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह यस्स अह्ह्ह्ह्ह
मानसिंह के कानो में कुछ अनजानी सी कुनमुनाहट भरी आह आई मगर वो पंजे से दोनों चूतड़ों को फाड़े हुए पैंटी के ऊपर से ही उसके गाड़ की सुराख को चाटने लगा ।
और वो उतनी ही अकड़ने ऐंठने लगी

: ओह मेरे राजा पूरा खा जाओगे क्या ( मानसिंह के कान में शिला के मादक स्वर आए )


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: कितनी रसीली गाड़ है , इसको तो मै नंगा करके उम्मम्म सीईईईई ( मानसिंह के अगले ही पल पैंटी हटा कर उसके दरारों को फैलाते हुए अपनी जीभ की टिप से गाड़ की सुराख को गिला करने लगा और वो पूरी तरह से छटकने लगी )
: मस्त है न मेरी जान , और चाटो ने जीभ डाल के अह्ह्ह्ह ऐसे ( शिला ठीक उसके पास बैठती हुई बोली और एकाएक मानसिंह की नजर अपने ठीक बगल में पड़ी और वो चौका )
अगर शिला उसके बगल में बैठी थी तो वो कौन है जिसकी गाड़ की सुराख वो गीली कर रहा था ।
मानसिंह के मन में शंका के अंकुर फूटे और झट से उसने कमरे की बत्ती जला दी

: रज्जो भाभी आप ??



जारी रहेगी
Superb bhai ji kya mast or kamuk update Diya h land khada ho gya
Ab to arun ko bhi apni mummy ya badi mummy ki chut ka sukh milna cahiye kab tak wo ese hi sirf pic or video se kam chalata rahega

Waise Bhai aap se ek request h ki salini or ragini pe bhi thoda dyan de aap ko salini ko bhul hi gye ho
 

Akaash04

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💥 अध्याय 02 💥

UPDATE 08

गाड़ी शहर की तंग गलियों से निकलकर हाईवे की ओर बढ़ चुकी थी । सुबह के करीब दस बज रहे थे। हाईवे पर हल्की-सी धुंध अब भी बाकी थी, जो सूरज की गुनगुनी किरणों के साथ मिलकर एक सुनहरा सा नजारा बना रही थी। सड़क के दोनों ओर लंबी सिवान फैली हुई थी, जहां गन्ने के हरे-भरे खेत लहलहा रहे थे। कहीं-कहीं पेड़ों की कतारें तेजी से पीछे छूट रही थीं, मानो वो भी मंजू और मुरारी की इस यात्रा में उनके साथ दौड़ रही हों। गाड़ी की खिड़की से आती ठंडी हवा मंजू के चेहरे को छू रही थी, लेकिन उसका मन अभी भी उस सुबह के हादसे की गिरफ्त में था।मंजू की आंखों के सामने बार-बार वही मंजर घूम रहा था—मुरारी का अकेले उन गुंडों से भिड़ जाना, उसका गुस्सा, उसकी हिम्मत। वो शब्द, जो मुरारी ने उस आदमी को ललकारते हुए कहे थे, अब भी उसके कानों में गूंज रहे थे:
“मैंने मेरे बेटे से वादा किया है कि मैं उसकी चाची को हर कीमत पर घर लेकर आऊंगा।”

इन शब्दों में एक अजीब-सी ताकत थी, एक ऐसा जज्बा जो मंजू को हैरान कर गया था। मुरारी, जिसे वो रात वाली हरकत की वजह से गलत समझ बैठी थी, जिसे उसने मन ही मन कोसा था, वही मुरारी आज उसकी इज्जत और जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर उन गुंडों से भिड़ गया था।मंजू का मन उदासी से भरा था। उसे अपनी गलतफहमी पर पछतावा हो रहा था। बीते रात मुरारी ने जो हरकत की थी, वो शायद उसकी मजबूरी थी, या शायद उसका इरादा वैसा नहीं था, जैसा मंजू ने समझ लिया था। अब जब वो मुरारी की इस हिम्मत और जिम्मेदारी को देख चुकी थी, तो उसके मन में मुरारी के लिए एक नया सम्मान जाग रहा था। लेकिन साथ ही, वो डर भी अभी तक उसके दिल से गया नहीं था। उन गुंडों की गालियां, उनका क्रूर हंसी, और मोहल्ले वालों की चुप्पी—ये सब उसके मन पर भारी था। वो खिड़की से बाहर देख रही थी, लेकिन उसकी नजरें कहीं खोई हुई थीं। उसका चेहरा शांत था, मगर उस शांति के पीछे एक तूफान सा उमड़ रहा था।
मुरारी लंबे समय तक उसे चुप और शांत देख रहा था , वो समझ रहा था कि आज सुबह जो कुछ भी हुआ उसको लेके मंजू कितनी डर गई होगी । मुरारी के जहन में उस घटना को लेकर कितने सारे सवाल थे , मगर इस नाजुक पल में वो और मंजू को परेशान नहीं करना चाहता था । वो जानता था कि इस पल मंजू को एक कंधे की तलाश है और वो सिर्फ एक औरत ही पूरी कर सकती थी । उसे ममता का ख्याल आया
सुबह की भगदड़ में वो ममता को भूल ही गया था , और उसने अभी तक उससे बात भी नहीं की थी कि वो लोग निकल गए है ।
मुरारी ने जेब से मोबाइल निकाला और ममता को फोन घुमा दिया ।

3 से 4 रिंग और फोन पिकअप

: हैलो ( ममता की सहज आवाज आई )
: हा हैलो अमन की मां , कैसी हो ( मुरारी खुश होकर बोला ) भाई हम लोग निकल गए है
: अच्छा सच में , मेरी देवरानी कैसी है ? जरा बात कराएंगे ( ममता खुश होकर बोली )
: हा बगल में ही है , लो बात करो ( मुरारी मुस्कुरा कर मंजू को फोन देता है )
मंजू को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बात करे , उसकी चेतना तो जैसे खोई हुई थी ।
: हा , नमस्ते दीदी ...जी ठीक हूं और आप ( मंजू ने महीन आवाज में बोली उसका गला बैठा हुआ था )
अब मुरारी को ममता की आवाज नहीं आ रही थी ।
: जी , पता नहीं हाइवे पर है हम लोग हा अभी रुक कर खा लेंगे .. जी ठीक है .... लीजिए ( मंजू ने फोन वापस मुरारी को दिया )

: हा अमन की मां कहो
: अरे क्या बोलूं , उदास उदास सी क्यों लग रही थी वो ? ( ममता के तीखे सवालों से मुरारी अटक गया वो मंजू को देख रहा था कि क्या जवाब दे तो मंजू खामोशी से ना में सर हिला दी)
: ऐसा कुछ नहीं है , रात भर तो पैकिंग में निकल गई और अब झपकियां ले रही है हाहा ( मुरारी बात बनाते हुए बोला )
: अच्छा ठीक है , समय से खाने पीने के लिए रुक जाना और थोड़ा देखना की बाथरूम वगैरह की सुविधा हो । वो आपसे कहने नहीं न जायेंगी बार बार , समझ रहे हो न ( ममता ने मुरारी को समझाया )
: क्या अमन की मां तुम भी ( मुरारी ने मुस्कुरा कर मंजू को देखा तो वो भी फीकी मुस्कुराहट से उसे देखी) पता है मुझे , चलो ठीक है सफर लंबा है मोबाइल चार्ज नहीं कर पाया हुं। रखता हूं। बाय
: हा बाय

फोन कट गया और फिर मंजू खिड़की से बाहर देखने लगी ।
वही दूसरी ओर ममता ने फोन रखा और एक बार फिर उसके चेहरे पर बेचैनी हावी होने लगी ।
सुबह से आज वो अपने कमरे से बाहर नहीं आई थी । मदन सुबह बोलकर गया था कि कही काम से जा रहा है अभी तक वापस नहीं आया ।
ममता के पैर की चोट उसे दुख रही थी चलना दूभर था ।
किसी तरह हिम्मत कर उसने खाना बनाने के सोचा और किचन में आने लगी ।
जैसे ही वो हाल में आई तो चौकी , किचन में तो मदन भिड़ा हुआ है ।

ममता की आहट से मदन उसकी ओर घूमा
सीने पर एप्रेन बांधे हुए टीशर्ट और लांग वाले चढ़्ढे में खड़ा था
: अरे भाभी जी , आराम से ( ममता को लड़खड़ाते देख वो भाग कर उसके पास आया और उसका बाजू पकड़ कर सोफे पर बिठाने लगा )
: अह्ह्ह्ह देवर जी , आप क्यों खाना बना रहे है ? ( ममता असहज होकर बोली) और सब्जी भी नहीं होगी
: सब्जी मै ले आया हूं और आपकी तबियत भी ठीक लग रही थी तो सोचा मै ही कुछ बना दु आपके लिए ( मदन खिल कर हाथ में कल्चुल पकड़े हुए उसके आगे झुकता बोला , जैसे बीते रात कुछ हुआ ही न हो )
: क्या आप भी ( ममता मदन के हरकत से मुस्कुराई )
: हम्मम तो मैडम जी कोई खास फरमाइश ( अपने दोनों हाथ बांध कर मदन अदब से झुक कर बोला जैसे किसी होटल का वेटर हो )
: हीही, क्या आप ये सब ? ( ममता हसने लगी ) छोड़िए इधर दीजिए मुझे । आपको ये सब नहीं करना चाहिए था
: आहा, आज नहीं ! आज तो मै ही बनाऊंगा । बताओ क्या खाओगे ( मदन उसकी पहुंच से थोड़ा पीछे खिसक कर बोला )
: अच्छा ठीक है एक चाय मिलेगी क्या ? ( ममता ने बड़े भारी मन से कहा )
: उसके साथ आलू सैंडविच भी रेडी है , लेना चाहेंगी आप ( मदन ने फिर वही वेटरों वाली स्टाइल में बोला )
: हीहि, जी लाइए ( ममता जो अब तक उदास थी और सोच रही थी कि अपने देवर से कैसे सामना करेगी , अब थोड़ी बेफिक्र थी । )
मगर उसके पैर के अंगूठे में हल्की सूजन आ गई थी ।
थोड़ी ही देर में मदन एक ट्रे में गर्मागर्म चाय और सैंडविच लेकर आया

: एनीथिंग एल्स मैडम ( मदन फिर से बोला )
: उम्हू ( ममता ने मुस्कुरा कर ना में सर हिलाया और मदन वहां से निकल कर अपने रूम में चला गया और एक प्लास्टिक बॉक्स लेकर आया )

हाल से स्टूल खींच कर उसने ममता के पास रखा खुद नीचे बैठ गया
: अरे देवर जी , ये सब क्या ? ( ममता उसको प्लॉस्टिक बॉक्स को खोलते देख रही थी , जो असल में एक मेडिकल किट थी )
: क्या आप अपना पैर इसपर रखेंगी मैडम ( मदन मुस्कुरा कर बोला )
: क्या कर रहे हो आप , मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है ( ममता उलझी हुई अपनी चोट वाली टांग को सोफे पर बैठे हुए उस स्टोल पर रखा )

जिससे उसकी नाइटी का गैप बढ़ा हो गया , मदन इस वक्त ठीक उसके आगे उकङू होकर बैठा था , वहा से ममता के फैले हुए काटन नाइटी के गैप से दूर अंदर तक उसकी चिकनी लंबी गोरी टांगे दिख रही थी जांघों तक
मदन ने अपने नजरो को झटका और सेवलान से ममता के घाव धुलने लगा

: अह्ह्ह्ह सीईईई फ़ूऊऊ( ममता सिसकी एक ठंडा चुनचुनाहट भरा एहसास उसने अपने चोट के आसपास महसूस किया )
मदन ने काटन से उसके घाव साफ किए और एक मलहम निकाली और उसका ढक्कन खोलते हुए

: भाभी सैंडविच खाओ न ( वो ममता के घाव पर फूंकता हुआ बोला )
ममता ने सैंडविच को जैसे ही मुंह में दबाया उसी समय मदन ने वो मलहम की ट्यूब को दबाया और मलहम ममता को घाव पर फैलने लगी

: उम्ममम फ़ूऊ फ़ूऊऊ , अह्ह्ह्ह मम्मीईईई ये क्या है अह्ह्ह्ह( ममता जोर से चीखी अपनी टांग पकड़ते हुए )
: बस हो गया भाभी , अभी ठंडा हो जाएगा । शुरू में थोड़ा लगता है आप सैंडविच खाओ न ( मदन हंसते हुए बोला )
: भक्क, बहुत बुरे हो आप , अह्ह्ह्ह्ह सीईईई मम्मी ऊहू ( ममता का चेहरा दर्द से बेचैन था मानो अभी वो रो ही देगी)

मगर कुछ ही देर में उसे एकदम से आराम मिल गया और उसका गुस्सा भींनकना मुस्कुराहट में बदल गया ।
तो वो उठ कर किचन में आई

: उह ऊहू .. (ममता मुस्कुराती हुई नाइटी में मदन के पास खड़ी हो गई तो मदन मुस्कुरा कर उसे देखा ) थैंक यू
और उसने मदन के हाथ से चाकू ले लिया जिससे वो सब्जियां काट रहा था
: अच्छा जी , वो किस लिए ( मदन अपने हाथ बांधता हुआ ममता के मुस्कुराते चेहरे को देखते हुए किचन स्लैब पर अपने कूल्हे टिकाते हुए बोला )
: आपकी सर्विस के लिए ( ममता सब्जियां काटती हुई आंखे रोल करती हुई मुस्कुराई बिना मदन की ओर देखे )
: बिना टीप के सिर्फ थैंक यू ? इतनी खराब थी क्या सर्विस ( मदन ने मुंह बनाया )
: अरे नहीं ( ममता हस पड़ी और उसके मोतियों जैसे दांत होंठों पर खिल उठे ) अच्छा ठीक है कल आपको एक बहुत अच्छी टिप मिलेगी ओके
: क्या कल ? ( मदन चौका )
: वो मैने ऑर्डर दे दिया है कल तक आ जाएगा तो मिलेगा आपको ( ममता ने मदन को उलझाया ).
: ऐसा क्या मंगवा रही हो भाभी ( मदन सोचते हुए बोला )
: कल मिलेगा कल हीही

और वो काम करने लगी

प्रतापपुर

रसोई के पास लगी चौकी पर रंगीलाल और उसका ससुर बनवारी खाना खा रहे थे

: भाई मेरा हो गया , बहू जरा हाथ धुलवा दे ( बनवारी चौकी से उतरकर आंगन की ओर चला गया और सुनीता एक लोटा पानी लेकर चली गई पीछे )
इधर रंगीलाल के जहन में काफी कुछ चल रहा था । रात से अब तक जो कुछ भी घटित हुआ उससे सुनीता के लिए उसकी हवस को और हवा मिल चुकी थी ।
थोड़ी देर बाद ही बनवारी अपने गमछे से हाथ पोंछता हुआ आया और पीछे उसके सुनीता
रंगी की नजर अनायास उसके सर से हटे हुए पल्लू पर गई सीने का उभार हल्का सा झलक रहा था । सुनीता ने रंगी की नजर भाप ली और झट से अपने सर पर पल्लू करते हुए अपने ब्लाउज को ढक दिया।

: जमाई बाबू चलना है या फिर आराम करोगे ? ( बनवारी अपने हथेली के खैनी रगड़ता हुआ बोला )
रंगीलाल बनवारी के सवाल पर उसके पीछे खड़ी अपनी खूबसूरत सलहज को देखता है और मुस्कुरा देता है ।
: नहीं बाउजी , अभी थोड़ा आराम करूंगा घर पर । मन हुआ तो आता हूं ( रंगी लाल खाना खाने लगा और उसके जवाब पर सुनीता मुझ फेर कर मुस्कुराने लगी क्योंकि वो जान रही थी कि रंगीलाल उसके लिए ही रुकेगा )
इधर बनवारी निकल गया और रंगीलाल का खाना भी लगभग हो गया
: और कुछ दूं ( सुनीता ने रंगी से पूछा )
: जो चाहिए वो तो आप दे नहीं रही हो ( रंगी ने मुस्कुरा कर उसे देखा और सुनीता लजाई ) हाथ धुला दीजिए अब ।

रंगीलाल चौकी से उतर कर जूठे हाथ लिए आंगन की ओर आ गया और सुनीता पानी लेकर उसके पीछे गई मुस्कुराती हुई

रंगी आगे झुक कर हाथ आगे किया और सुनीता भी उससे कुछ दूरी पर ही सामने थोड़ा सा झुक कर पानी गिराने लगी। रंगी ने मुस्कुरा कर उसे देखा तो दोनों की नजरे टकराई
मगर असल धोखेबाज तो उसका पल्लू निकला , बिना पिन का पल्लू झुकने की वजह से उसके कंधे से सरक कर कलाई के आ गया और उसके बड़े गले वाले ब्लाउज़ से उसके मोटे रसीले गोल मटोल मम्मे दिखाई देने लगे ।


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रंगीलाल की नजर एकाएक उन पर गई और उसकी नजर का पीछा किया तो सुनीता ने देखा कि वो उसके मुलायम चूचों को ही घूर रहा है ।
सुनीता बेचैन होने लगी , उसकी सांसे तेज हो गई और वो झट से खड़ी होकर अपना पल्लू सही किया ।

रंगी मुस्कुराया कर उसे निहारता रहा और सुनीता नजरे चुराती रही । फिर रंगी हाथ पोछने के लिए कुछ खोजने लगा कि उसकी नजर सुनीता के पल्लू पर गई और वो उसे पकड़ लिया
सुनीता एकाएक चौकी और अपनी साड़ी को छातियों के पास कस कर पकड़ लिया

मगर रंगी मुस्कुरा कर बस उसके पल्लू में हाथ पोंछ कर छोड़ दिया ।
सुनीता के दिल अभी तक कांप रहा था ।

रंगीलाल : अरे डरिए मत , जब तक आप हा नहीं कहेंगी हम आगे नहीं बढ़ेंगे
सुनीता मुस्कुराई : धत्त , आप जो चाहते है वो सही नहीं है ।
रंगीलाल उसके करीब आकर उसकी आंखों में देखता हुआ : किसी को चाहना गलत है क्या ?
रंगीलाल का यू उसकी ओर चढ़ आना सुनीता की हालत पतली हो गई ,उसकी सांसे चढ़ने लगी और आंखों में हल्का सा डर दिखा : नहीं , लेकिन मै उन्हें छोड़ नहीं सकती हूं, प्लीज
रंगीलाल : मैने तो नहीं कहा आप छोड़ दो , बस मेरा हाथ थाम लो यही चाहता हूं
रंगीलाल की आंखों के खुमारी सी थी और दोनों की सांसे बेकाबू हुई जा रही थी
सुनीता को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले : हटिए जाने दीजिए , मुझे कपड़े धुलने है
ये बोलकर वो तेजी से निकल गई और रंगीलाल मुस्कुरा कर उसके रसीले मटके हिल्कोरे खाता देखता रहा ।

वही बबीता के कमरे में आज सालों बाद राजेश घुसा था , इधर उधर नजर पड़ रही थी । गीता को बड़ा ताज्जुब लग रहा था कि उसको पापा आए है ।
वही बबीता बड़ी खुश नजर आ रही थी अपने पापा का साथ पाकर
फुदक रही थी , टीशर्ट में बिना ब्रा के उसके गोल मटोल मौसमी जैसे चूचे खूब हिल रहे थे और नंगी चिकनी जांघें देख कर राजेश का लंड अकड़ रहा था ।

तभी उसकी नजर कमरे के दरवाजे के पीछे वाल हैंगर में लटके हुए ब्रा और पैंटी पर गई , उसे समझते देर नहीं लगी कि ये उसकी बेटियों के होंगे ।
उन ब्रा पैंटी के सेट देख कर राजेश की बेचैनी बढ़ने लगी । वो बबीता की नाप जानने को इच्छुक हो उठा ।
इतने बबीता आई और उसके पास सट कर बैठ गई

: पापा ये वाली मूवी में बहुत हसी है हीही ( बबीता खिलखिला कर बोली तो राजेश उसकी कमर के हाथ डाल कर उसे अपने पास खींच लिया )

ये सब देख कर गीता को अजीब सा लग रहा था , एकदम से बबीता और उसपे पापा के रिश्ते में आया बदलाव उसे समझ से परे लगा। उसके जहन में तो उसके दादा जी का बड़ा मोटा लंड घूम रहा था । ताज्जुब हो रहा था उसे कि इस उम्र में भी उसके दादू का लंड इतना मोटा है ।
राज के यहां से आने के बाद बबीता ने अपने बॉयफ्रेंड से मिलना जारी रखा मगर गीता अकेली थी और दादाजी का लंड उसे ललचा खूब रहा था ।
वो बेचैन हो रही थी और उसने तय किया कि वो दादा जी के पास जाएगी
उसने आलमारी से कपड़े लिए

: मीठी कहा जा रही है ( पापा की बाहों में लिपटी हुई बबीता ने पूछा तो राजेश ने भी गीता को देखा )
: वो मै दादू के पास जा रही हूं , ऐसे ही घूमने ( गीता ने साफ साफ जवाब दिया और अपने कपड़े लेकर निकल गई)
: आराम से जाना बेटा ठीक है ? ( राजेश ने उसको बोला और गीता हा में सर हिला कर निकल गई दरवाजा खींच कर दूसरे कमरे में कपड़े बदलने )
उसके जाते ही राजेश ने बबीता को दोनों हाथों से पकड़ा और उठा कर गोदी में बिठा लिया

: हीही पापा , मै बच्ची थोड़ी हूं जो ऐसे बिठा रहे हो ( बबीता अपने अपना की जांघों पर बैठी खिलखिलाई )
वही राजेश अपनी बिटिया के नरम चर्बीदार चूतड़ का गद्देदार स्पर्श पाकर सिहर उठा था ,उसके नथुनों में अपनी बेटी की कोरी खुशबू आ रही थी
: तू तो हमेशा मेरी गुड़िया रहेगी ( हाथ बढ़ा कर उसने बबीता के पेट पर टीशर्ट के ऊपर से गुदगुदी की तो वो उसके गोद में छटकने लगी )
: हाहाहाहाहा पापा
( फिर उसकी नजरें अपने पापा से मिली तो उसने अपने पापा को देखा और दोनों हाथों से उसका चेहरा थामा )
: आई लव यू पापा ( उसने झट से राजेश को हग कर लिया) आप प्लीज ऐसे रहा करो प्लीज
राजेश बबीता की भावुकता समझ रहा था , बचपन से उसने कभी भी अपनी बेटियों को एक पिता का प्यार नहीं दिया । अपनी अय्याशी और नशे की लत में वो इतना बहक गया कि उसे घर परिवार का ख्याल तक नहीं रहा था । मगर आज बबीता का यू उससे लिपटना उसे पिघला रहा था ।
उसने झट से बबीता को अपने सीने से कस लिया , उसके छोटे छोटे मौसमी जैसे चूचे अपने सीने पर कठोर बॉल के जैसे धंस रहे थे और वो अपनी बेटी के पीठ को सहला रहा था ।
कितना कोमल अहसास था
: आई लव यू मेरी गुड़िया उम्माह ( उसने बबीता के कान के पास चुम्मी ली तो बबीता को हल्की गुदगुदी लगी और वो खिलखिला उठी और अलग होने का प्रयास की तो राजेश उसे हंसी में और कस कर पकड़ लिया)

: हीही , छोड़ो अब पापा ( बबिता खिलखिलाई )
: नहीं, मै नहीं छोड़ने वाला अपनी गुड़िया को ( उसने बबीता को अपनी बाहों में और कसा जिससे बबीता के नरम फुले हुए चूचे उसके सीने से दब गए और जब जब बबीता उससे अलग होने को खुद को कसमसाती उसके निप्पल पर अपने पापा के गर्म सीने का घर्षण होता , जिससे उसके निप्पल टाइट होने लगे और वो बेचैन होने लगी ।
उसे शर्मिंदगी सी होने लगी कि उसके पापा को जरूर उसके तने हुए निप्पल चुभ रहे होगे , उसके जहन में कुछ बातें घूमने लगी , कि क्या सोच रहे होंगे उसके पापा उसके बारे में।
वो थोड़ा सा जोर लगा कर अपने छातियों को अपने पापा से सीने से दूर किया और राजेश भी समझ गया कि बबीता असहज हो रही है इसलिए उसने भी छोड़ दिया
बबीता लजा कर सीधी उसके गोद में चुप होकर बैठ गई , वही राजेश उसके टीशर्ट में उभरे हुए उसके निप्पल के दाने को देख आकर उसके लंड में हरकत होने लगी ।

मगर उसे माहौल को सहज ही रखना था इसीलिए उसने पीछे से बबीता के पेट को पकड़ कर उससे लिपट गया
बबीता को फिर से गुदगुदी हुई मगर वो अब सहज महसूस कर रही थी ।
मगर राजेश के जहन में वो ख्याल आ रहे थे जब उसने बबीता को पूरी नंगी देखा था उसके उपले जैसे गोल मटोल चूतड़ पानी में उपराए हुए थे और वो तैर रही थी नंगी । उसका लंड पजामे में अकड़ने लगा था
जिसका अहसास बबीता को भी हो चुका था अपने नरम चर्बीदार चूतड़ों पर
जैसे उसे अपने चूतड़ों के नीचे कुछ कड़कपन का अहसास हुआ वो चिहुकी , उसकी आंखे बड़ी हो गई
उसे लगने लगा कि जरूर जब उसके दूध उसके पापा के सीने से रगड़े होंगे इसी वजह से उसके पापा का खड़ा हो गया ।
उसका कलेजा डर रहा था , वो अपने पापा के सुपाड़े की कठोरता महसूस कर पा रहे थी । उसकी चूत बिलबिला उठी और वो राजेश के गोद से खड़ी हो गई

: पापा वो मै मम्मी को कपड़े देकर आती हूं नहीं तो गुस्सा करेंगी ( बबीता ने बहाना बनाया और निकल गई )
राजेश वही बैठा हुआ अपना लंड मसलने लगा ।
इधर बबीता तेजी से कमरे से निकल कर पीछे आंगन की ओर जाने लगी
जिसकी आहट पाते ही रंगीलाल जो छिप कर अपनी सहलज को कपड़े धुलते देख रहा था वो रसोई की ओर चला गया और जब बबीता वापस जाने लगी तो वो लपक और आंगन के दरवाजे के पास आया और भीतर झांकने लगा


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जहां सुनीता अपने सीने का पल्लू कमर में खोसे हुए बैठ कर कपड़े धूल रही थी और उसके बड़े बड़े रसीले मम्में ब्लाउज से बाहर झांक रहे थे
वो नजारा देख कर रंगीलाल का लंड अकड़ने लगा था ।
उसको तत्काल चुदाई चाहिए थी और सुनीता से अभी कोई उम्मीद नहीं नजर आ रही थी इसलिए वो निकल गया अपने ससुर के पास
वही रंगीलाल से पहले ही गीता निकल गई थी बनवारी के पास
इठलाती उछलती हुई वो मुख्य सड़क की जगह खेतों से होकर गोदाम के पीछे वाले रास्ते से बनवारी के पास जा रही थी । उसका अक्सर यही रूट रहता है हमेशा से , इससे दो फायदे होते थे , उसे गांव के कम लोगो का सामना करना पड़ता था और कम समय में वो पहुंच जाती थी ।
तेजी से चलते हुए वो गोदाम की ओर जा रही थी , इस उद्देश्य से आज उसके फूफा रंगीलाल घर पर है और उसके दादाजी अकेले में क्या करते है वो भलीभाती जानती है ।
वो अपने तय जगह पर आ पहुंची थी और वो जगह थी , गोदाम के सबसे पीछे वाले कमरे में जहां बनवारी अपनी कामलीलाये करता था ।
वही से एक खिड़की खुली थी जहां से अंदर का नजारा देखा जा सकता था और वो वही खड़ी होकर एड़ी उठा कर भीतर झांकने लगी
उसका तुक्का सही निकला , कमरे में उसके दादा बनवारी एक औरत को अपनी बाहों में लेकर सहला रहे थे , कभी उसके ब्लाउज में हाथ घुसा कर उसकी गुदाज मुलायम छातियां मिजता तो कभी उसके चर्बीदार पेट को मसलता वो औरत खिलखिला रही थी
: अह्ह्ह्ह्ह सेठ जी छोड़िए न , आज नहीं उम्मम अह्ह्ह्ह्ह, घर पर मेहमान आए है
: अह्ह्ह्ह कितने दिन बाद तो आई हो थोड़ा सा दूध पिला दो ( बनवारी उसके चूचे मसलने लगा )
: नहीं , मै हाथ जोड़ती हु सेठ घर पर मेरी बुढ़िया राह रही होगी । ( वो औरत अलग हुई और कपड़े सही करते हुए वो पैसे जो अभी उसे मिले थे उसे अपने ब्लाउज में खोंसते हुए बोली )
फिर तेजी से बाहर निकल गई और बनवारी अंगड़ाई लेता हुआ बिस्तर की ओर आने लगा , इधर गीता वहा से हटने को हुई कि उसका बैलेंस बिगड़ा और वो पीछे की ओर गिर पड़ी

उसकी सिसकी से बनवारी चौका और लपक कर खिड़की से बाहर झांका तो देखा कि खिड़की के बाहर खेत में उसकी नातिन गीता गिरी है

बनवारी चिंता में उसको आवाज दिया और जल्दी से कमरे की पीछे वाले दरवाजे को खोला जो खेत में खुलता है , अक्सर ये दरवाजा बनवारी औरतों को बुलाने के लिए यूज करता था ।
वो झट से दरवाजा खोलता हुआ गीता की ओर भागा

: अरे मीठी , क्या हुआ बेटी ,तू गिर कैसे गई ? और तू यहां क्या कर रही थी ?
एक एक करके सवाल और सवाल
पैर में चोट आई थी और दर्द से बिलख रही थी ,
: वो मै ऐसे ही आई थी घूमने , आज छुट्टी थी स्कूल की , अह्ह्ह्ह्ह मम्मी दर्द हो रहा है
: लेकिन तू पीछे से क्यों आ रही थी ( तभी बनवारी को सुबह वाली घटना याद आई और उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी नातिन यहां पीछे क्या कर रही थी ) चल उठ कमरे में आ चल
बनवारी ने उसे उठाया और कमरे के लेकर आया
: बहुत बिगड़ गई है आजकल तू , कभी छत से कभी खिड़की से क्या है ये सब तेरा बोल ? ( बनवारी ने डांट लगाई )
: सॉरी दादू ( वो बिलखते हुए बोली , इस उम्मीद में कि रोने से शायद वो सजा से बच जाए )
: मै देख रहा हूं कई रोज से तू आंगन में झांकती है , ये अच्छी बात है क्या ? बोल ( बनवारी ने उसे समझाना चाहा )
: नहीं दादू , वो मै , अह्ह्ह्ह दर्द हो रहा है सॉरी ( गीता को समझ नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे वो )
बनवारी ने पानी से उसके पाव धुले और एक मलहम लगाया जो उसके दराज में उपलब्ध था ।
: नहीं करना चाहिए न बेटा , ये अच्छी आदत नहीं है और तू मेरी प्यारी बेटी है न ( बनवारी उसकी एड़ी में मलहम से सहलाने लगा )
: जी दादू , अब नहीं करूंगी

कुछ देर कि चुप्पी और फिर कुछ बाते थी जो बनवारी के जहन में उठ रही थी सवालों के रूप में
: अच्छा सुन , तूने बहु को कहा तो नहीं इस बारे में जो तू ताक झांक करती है ( बनवारी ने सवाल किया )
: ऊहु ( गीता ने थोड़ी लजा कर मुस्कुराती हुई न में सर हिलाई ) उन्हें पता चलेगा तो आपको अपने पास आने थोड़ी देंगी हीही

एकाएक बनवारी के कान खडे हो गए
: क्या कहा तूने अभी ,
: जैसे मुझे पता नहीं चलेगा क्या कि मम्मी रात में आपके कमरे में क्यों जाती है ? ( गीता मुस्कुरा कर बनवारी को देखी )
बनवारी अब असहज होने लगा और उसका हल्क सूखने लगा , उसे उम्मीद नहीं थी उसकी बाते इस कदर उसकी नातिन जान लेगी ।
: तू कुछ ज्यादा नहीं जानती तेरी उम्र के हिसाब से ( बनवारी को हंसी आई )
: आप भी कुछ ज्यादा ही करते हो वो सब अपनी उम्र के हिसाब से ( गीता ने पलट कर जवाब दिया )
जिसपर बनवारी हस दिया
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो भला क्या ही रिएक्ट करे गीता की बातों पर , जिसमें बचपना भरा है । भले उसका जिस्म भर आया हो और उम्र बढ़ रही हो मगर बनवारी के लिए ये मानना आसान नहीं था कि उसकी नातिन की रुचि अब सेक्स को लेकर भी होने लगी है ।

: तू , तूने कब देखा तेरी मां मेरे कमरे में आती है ? ( बनवारी ने सवाल किया )
: कई बार , कभी कभी किचन में भी । एक बार तो मैने आप दोनों को पापा से भी बचाया था हीही ( गीता बड़ी मासूमियत से बोली )
राजेश का जिक्र होते ही बनवारी ठिठक गया
: क्या ? कब ?
: वो आप लोग किचन में थे और पापा पानी पीने जा रहे थे तो मै उन्हें घुमा लाई कमरे में । काफी दिन हो गए

बनवारी को अब समझ आ रहा था , उसकी नातिन को सही गलत को समझ है । वो सिर्फ बहकी नहीं बल्कि उस चीज को समझती भी अच्छे से है । लेकिन फिर भी वो उसके लिए लाडली नातिन थी । अभी पिछले बरस ही तो उसने अपनी दसवीं पास की है ।

: अच्छा ठीक है ठीक है , लेकिन अब तू घर जा ( बनवारी ने कड़े शब्दों के कहा ) और ये सब किसी से कहना मत
अपने दादू से ये सब सुनते ही गीता का मुंह फूल गया , गीता का स्वभाव बचपन से जिद्दी था , और अपने दादा के आगे कुछ ज्यादा ही दुलारी थी ।
बनवारी उसकी भावनाएं समझ रहा था मगर क्या करे । उसके सामने उसके गोद में खेली हुई बच्ची थी जो खुद को श्यानी समझ रही थी ।
: अच्छा ठीक है , चौराहे से तेरे लिए शाम को फुल्की लेकर आऊंगा अब खुश ( बनवारी ने गीता का चेहरा देखा )
वो भीतर से जल रही थी कि क्यों उसके दादू उसकी बात समझ नहीं रहे है , जबसे उसने दादू और अपने मम्मी की चुदाई देखी थी वो पगलाई घूम रही थी । उसके जहन में अपने दादू का मोटा लंबा लंड घूमता रहता था सुबह शाम और आज जब सारे भेद खुल गए तो उसकी बेसबरी और बढ़ गई ।
वो पिनक कर उठी और बिना कुछ बोले पीछे वाले दरवाजे से खेतों की ओर निकल गई । बनवारी का मन भी थोड़ा उदास हो गया अपनी लाडली नातिन को उदास देख कर । लेकिन अभी तक उसके जहन के गीता को लेकर कोई भी बुरे ख्याल नहीं आए । न ही उसने गीता के बड़े हुए संतरों और चर्बी भरी मोटी चूतड़ों की थिरकन को पलट कर देखा । बस नजरे फेर कर बिस्तर पर बैठ गया ।

वही रंगीलाल मेन सड़क से होता हुआ गोदाम आ रहा था कि बोरियो के बीच उसे कमला मिली और झट से उसे वो एक कोने खींच ले गया ।
: अह्ह्ह्ह छोड़ो जमाई बाबू , काहे तंग कर रहे हो अह्ह्ह्ह्ह ( कमला बोरियो के छलियों से लगी छटपटा रही थी और आगे रंगी उसकी कलाई पकड़े हुए था और अपनी टांग को उसकी जांघों के साड़ी के ऊपर से भेद रखा था जिससे वो भाग न सके )
: ओहो कमला रानी सारी जवानी अब क्या सिर्फ मेरे साले और ससुर पर न्योछावर करोगी , तनिक हम पर भी रहम करो( रंगी उसको अपनी ओर कसता हुआ बोला )
: अह्ह्ह्ह्ह उम्मम क्या करते सीईईई ( अपने गुदाज नर्म चूचों को रंगीलाल के सीने से रगड़ खाते ही कमला सिसकी )
रंगी उसके चर्बीदार चूतड़ों को साड़ी के ऊपर से मसलता हुआ : अह्ह्ह्ह कमला रानी , कल तुमने अपने इन रसीले जोबनो से मुझे जो घाव दिए बहुत दर्द रहा रात भर कसम से

: धत्त , छोड़ो न जमाई बाबू कोई देख लेगा ( कमला शर्मा कर मुस्कुराती हुई अलग होने लगी )
: रात में मिले फिर ?
: कहा ?
: बाउजी के बगल वाला कमरा मेरा है, कल सारी रात तुम्हारी सिसकियां सुनकर इसे मसलता रहा ( रंगीलाल उसके आगे पजामे के ऊपर से अपना खड़ा हुआ लंड मसलता हुआ बोला )

: क्या मेरी ? मै कब आई हीही ( असहज होकर कमला हसी )
: तुम नहीं थी तो फिर कौन था ? बाउजी ने तो ... ( रंगी अपनी बात अधूरी छोड़ दिया)
: अभी बहुत कुछ है जो आपके बाउजी आपसे छुपाए हुए है हीही, मिलती हु रात में

और वो मुस्कुराती हुई अपने कूल्हे झटकती निकल गई । वही रंगी लाल सोच में पड़ गया कि आखिर फिर वो दूसरी कौन हो सकती है ? जिसके बारे में बाउजी ने मुझसे झूठ बोलने लगे ।
रंगी वहा से निकल कर सीधे अपने ससुर के पास चला गया
: अरे जमाई बाबू , आइए आइए बैठिए
: लग रहा है आज अकेले ही आराम फरमा रहे है हाहाहाहाहा ( रंगी ने हस कहा )
: अरे वो कमला आई थी , लेकिन उसके घर मेहमान आए है तो चली गई , वरना अभी तक दरवाजा बंद ही मिलता हाहाहाहाहा ( बनवारी हस कर बोला )
: वैसे सच कहूं बाउजी , समान जोरदार है कमला ( रंगी सिहर कर बोला )
: ओहो कही जमाई बाबू का ईमान भी तो नहीं डोल रहा है हाहा ( बनवारी के छेड़ा रंगी को )
रंगी उसकी बातों और थोड़ा लजाया: अरे नहीं बाउजी , रागिनी के आगे फीकी है ये , उसके चूतड़ तो इससे भी.... सॉरी बाउजी ( रंगी बोलते हुए रुक गया )
बनवारी हंसता हुआ : हा हा समझता हूं भाई, बीवी की दीवानगी होती ही ऐसे है । अब तुम्हारी स्वर्गवासी सास को ही लेलो डिट्टो मेरी रज्जो की फोटोकापी थी और घाघरे में जब उसके बड़े चौड़े कूल्हे झटके खाते , उफ्फफ
: क्या सच में अम्मा जी रज्जो जीजी जैसे थी ? फिर तो बड़े किस्मत वाले निकले बाउजी हाहाहा ( रंगीलाल ठहाका लगा कर बोला)
बनवारी हस कर : अरे किस्मत वाले तो कमलनाथ बाबू है क्यों ?
रंगी अपने ससुर के इस मजाक और थोड़ा सा झेप गया और असहज भरी मुस्कुराहट से हंसता है : अह बात तो सही है आपकी , किस्मत वाले तो है ही कमल भाई

बनवारी ने अब रंगी को शर्माता देख कर छेड़ा : कही आपकी भी पहली पसंद रज्जो तो नहीं थी ? हाहाहाहाहा

रंगी बनवारी के मजाक में शामिल होता हुआ हस कर : अब मेरी बारी ही लेट आई तो क्या कर सकता हूं बाउजी , सिवाय हाथ मलने के हाहा

बनवारी हस कर : वैसे उदास होने की जरूरत नहीं है , छोटकी भी ... हीही ( बनवारी बातें आधी छोड़ कर हस पड़ा और रंगी भी मुस्कुराने लगा )

शिला के घर

" Send me video plzz "
" Okay , wait 5 mins "
...................................
अरुण बेचैन होकर कालेज के बरामदे में चक्कर लगा रहा था और बार बार मोबाइल देख रहा था ,
तभी एक वीडियो क्लिप उसके ****gram पर आया , जिसे देखते ही उसकी सांसे चढ़ने लगी । वो एक सुरक्षित जगह तलाशने लगा और लपक कर तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गया

वही कालेज के ऑफिस में मानसिंह बैठा था और उसका मोबाइल बजने लगा
: हा शिला कहो ( मानसिंह ने फोन उठाया )
: कुछ खास भेजा है मैने आपके लिए चेक करो और बताओ हीही ( शिला मुस्कुराती हुई फोन काट दी )

मानसिंह को समझते देर नहीं लगी कि आखिर क्या खास चीज होगी और उसने झट से अपना व्हाट्सअप खोला और दो तीन तस्वीरों के साथ एक वीडियो आया था , जिसके नीचे एक मैसेज लिखा हुआ था । " आज का लंच स्पेशल है 😜"
मानसिंह उन तस्वीरों को देख कर समझ चुका था कि वीडियो में वही सब होगा और जैसे ही उसने वीडियो खोला ,उसका लंड फुदकने लगा


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वीडियो में शिला सिर्फ ब्लाउज और पैंटी में किचन में खड़ी होकर खाना बना रही थी । पैंटी में बाहर निकले हुए उसके बड़े चौड़े चूतड़ देख कर मानसिंह का लंड अकड़ने लगा वो उसको पकड़ कर सिहर गया ।

वही कालेज के बाथरूम में दरवाजा बंद करके खड़ा होकर अरुण तेजी से अपना लंड भींच रहा था । उसके मोबाईल स्क्रीन पर म्यूट में एक वीडियो चल रहा था जिसमें एक मोटी गदराई हुई औरत शावर के नीचे सिर्फ पैंटी में नहा रही थी और पीछे से उसकी भीगी हुई गाड़ दिख रही थी "

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" अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह क्या मस्त माल है यार कितनी मोटी गाड़ है और भीगती हुई तो अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म फक्क्क् यूयू बिच ओह्ह्ह्ह "
तभी वो औरत कैमरा की ओर अपनी गाड़ किए हुए ही अपनी पैंटी नीचे उतारने लगी और उसकी मोटी गदराई गाड़ नंगी होने लगी , शावर का पानी अब सीधे उसके बड़े चौड़े चूतड़ों के दरारों में जाने लगा , जिसे देख कर अरुण खुद को रोक नहीं पाया और भलभला कर झड़ने लगा

" अह्ह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् यूयू ओह्ह्ह्ह यशस्स अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह उम्ममम अमीईईई अह्ह्ह्ह कितना बड़ा है आह्ह्ह्ह "
अरुण अपना लंड झाड़ कर वापस क्लास के लिए निकल गया और वही मानसिंह शिला से फोन पर बातें कर रहा था । जबकि रज्जो ने शिला का मोबाइल स्पीकर पर रखा हुआ था ताकि वो भी मानसिंह के जज्बात सुन सके

: ओह्ह्ह्ह मेरी जान , क्या मस्त चूतड़ है उफ्फ , जी करता है आकर काट लूं अभी , और खोल कर लंड घुसा दु ( मानसिंह फोन पर बोला और उसकी बाते सुन कर रज्जो और शिला मुंह पकड़ कर खिलखिलाई )
: उफ्फ तो रोका किसने है, आजाओ न मै तो अभी तक वैसी ही हूं कपड़े भी नहीं पहने, आजाओ न मेरे राजा और घुसा दो जहां जो घुसाना चाहते हो उम्ममम ( शिला ने मानसिंह को उत्तेजित किया और मानसिंह का लंड अकड़ गया )
: बस 5 मिनट , मै निकल रहा हूं
मानसिंह की बौखलाहट पर शिला और रज्जो मुंह दबा कर हस रही थी और फिर फोन कट हो गया ।

कुछ ही देर में मानसिंह घर के अंदर दाखिल हो गया था , और उसका लंड पेंट के पूरा कड़क हो गया था
वो लपक कर तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ गया ।
कि तभी उसका मोबाइल बजा ये कॉल शिला ने ही किया था

" कहा हो मेरे राजा उम्मम आओ न " , शिला ने फोन पर सिसक कर कहा ।
मानसिंह शिला के कामुक और आकर्षक आवाज से उत्तेजित हो उठा : आ गया हु मेरी जान, कहा हो तुम
शिला : सीधे कमरे में चले आओ अह्ह्ह्ह्ह कबसे मेरी चूत कुलबुला रही है अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म
शिला ने फोन पर मानसिंह को और उकसाया
मानसिंह : अरे वो रज्जो भाभी कहा.....( मानसिंह आगे कुछ बोलता उससे पहले ही शिला ने फोन काट दिया )
अब तक वो शिला के कमरे तक आ पहुंचा था और जैसे ही उसने कमरे का दरवाजा खोला , अंदर बत्तियां बंद थी बस एक गुलाबी सीलिंग लाइट जल रही थी । उस गुलाबी सीलिंग लाइट को शिला तभी ऑन रखती थी जब वो पूरी तरह से वाइल्ड महसूस करती हो और ये एक तरह का सिंगनल था मानसिंह के लिए और जैसे ही उसकी नजर बिस्तर पर गई उसकी आंखे फेल गई और मुंह में लार बढ़ने लगा ।


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सामने उसके शिला वही वाली पैंटी और ब्लाउज पहने हुए हवा में अपने चूतड़ उठाए हुए लेती थी , उसका मुंह दूसरी ओर था ।
तभी बिस्तर की ओर से आवाज आई
: आओ न जानू अह्ह्ह्ह ( शिला ने अपने बड़े भड़कीले चूतड़ हवा में हिला कर उसे रिझाया )
मानसिंह का लंड एकदम से बौराया हुआ था और वो पेंट के ऊपर से उसको पकड़े हुए मसल रहा था
: उफ्फ मेरी जान उस गुलाबी रौशनी में तुम्हारे चूतड़ और भी बड़े और रसीले नजर आ रहे है ।
मानसिंह आगे बढ़ कर शिला के चूतड़ के नंगे गोल बड़े हिस्से को सहलाते हुए कहा , उसका स्पर्श पाते ही वो अकड़ गई ।
: उम्मम कितनी मादक गंध है अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह आज तो तुम्हारे चूतड़ और भी नरम है आह्ह्ह्ह मेरी जान उम्मन( मानसिंह घुटनों के बल होकर दोनों हाथों से शिला के बड़े भड़कीले चूतड़ों को सहलाते हुए अपने नथुने करीब ले गया )
मानसिंह के स्पर्श के शिला के जांघों के कम्पन हो रहा था और थोड़ी मादक महीन सी सिसकियां उठने लगी और अगले ही मानसिंह के अपना मुंह सीधा शिला के बड़े भड़कीले चूतड़ों के दरारों में मुंह दे दिया


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अह्ह्ह्ह उम्मम अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह यस्स अह्ह्ह्ह्ह
मानसिंह के कानो में कुछ अनजानी सी कुनमुनाहट भरी आह आई मगर वो पंजे से दोनों चूतड़ों को फाड़े हुए पैंटी के ऊपर से ही उसके गाड़ की सुराख को चाटने लगा ।
और वो उतनी ही अकड़ने ऐंठने लगी

: ओह मेरे राजा पूरा खा जाओगे क्या ( मानसिंह के कान में शिला के मादक स्वर आए )


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: कितनी रसीली गाड़ है , इसको तो मै नंगा करके उम्मम्म सीईईईई ( मानसिंह के अगले ही पल पैंटी हटा कर उसके दरारों को फैलाते हुए अपनी जीभ की टिप से गाड़ की सुराख को गिला करने लगा और वो पूरी तरह से छटकने लगी )
: मस्त है न मेरी जान , और चाटो ने जीभ डाल के अह्ह्ह्ह ऐसे ( शिला ठीक उसके पास बैठती हुई बोली और एकाएक मानसिंह की नजर अपने ठीक बगल में पड़ी और वो चौका )
अगर शिला उसके बगल में बैठी थी तो वो कौन है जिसकी गाड़ की सुराख वो गीली कर रहा था ।
मानसिंह के मन में शंका के अंकुर फूटे और झट से उसने कमरे की बत्ती जला दी

: रज्जो भाभी आप ??



जारी रहेगी
Overall good update hope next update will be more excited and please give next update little fast
Waiting for next
 

ajaydas241

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💥 अध्याय 02 💥

UPDATE 08

गाड़ी शहर की तंग गलियों से निकलकर हाईवे की ओर बढ़ चुकी थी । सुबह के करीब दस बज रहे थे। हाईवे पर हल्की-सी धुंध अब भी बाकी थी, जो सूरज की गुनगुनी किरणों के साथ मिलकर एक सुनहरा सा नजारा बना रही थी। सड़क के दोनों ओर लंबी सिवान फैली हुई थी, जहां गन्ने के हरे-भरे खेत लहलहा रहे थे। कहीं-कहीं पेड़ों की कतारें तेजी से पीछे छूट रही थीं, मानो वो भी मंजू और मुरारी की इस यात्रा में उनके साथ दौड़ रही हों। गाड़ी की खिड़की से आती ठंडी हवा मंजू के चेहरे को छू रही थी, लेकिन उसका मन अभी भी उस सुबह के हादसे की गिरफ्त में था।मंजू की आंखों के सामने बार-बार वही मंजर घूम रहा था—मुरारी का अकेले उन गुंडों से भिड़ जाना, उसका गुस्सा, उसकी हिम्मत। वो शब्द, जो मुरारी ने उस आदमी को ललकारते हुए कहे थे, अब भी उसके कानों में गूंज रहे थे:
“मैंने मेरे बेटे से वादा किया है कि मैं उसकी चाची को हर कीमत पर घर लेकर आऊंगा।”

इन शब्दों में एक अजीब-सी ताकत थी, एक ऐसा जज्बा जो मंजू को हैरान कर गया था। मुरारी, जिसे वो रात वाली हरकत की वजह से गलत समझ बैठी थी, जिसे उसने मन ही मन कोसा था, वही मुरारी आज उसकी इज्जत और जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर उन गुंडों से भिड़ गया था।मंजू का मन उदासी से भरा था। उसे अपनी गलतफहमी पर पछतावा हो रहा था। बीते रात मुरारी ने जो हरकत की थी, वो शायद उसकी मजबूरी थी, या शायद उसका इरादा वैसा नहीं था, जैसा मंजू ने समझ लिया था। अब जब वो मुरारी की इस हिम्मत और जिम्मेदारी को देख चुकी थी, तो उसके मन में मुरारी के लिए एक नया सम्मान जाग रहा था। लेकिन साथ ही, वो डर भी अभी तक उसके दिल से गया नहीं था। उन गुंडों की गालियां, उनका क्रूर हंसी, और मोहल्ले वालों की चुप्पी—ये सब उसके मन पर भारी था। वो खिड़की से बाहर देख रही थी, लेकिन उसकी नजरें कहीं खोई हुई थीं। उसका चेहरा शांत था, मगर उस शांति के पीछे एक तूफान सा उमड़ रहा था।
मुरारी लंबे समय तक उसे चुप और शांत देख रहा था , वो समझ रहा था कि आज सुबह जो कुछ भी हुआ उसको लेके मंजू कितनी डर गई होगी । मुरारी के जहन में उस घटना को लेकर कितने सारे सवाल थे , मगर इस नाजुक पल में वो और मंजू को परेशान नहीं करना चाहता था । वो जानता था कि इस पल मंजू को एक कंधे की तलाश है और वो सिर्फ एक औरत ही पूरी कर सकती थी । उसे ममता का ख्याल आया
सुबह की भगदड़ में वो ममता को भूल ही गया था , और उसने अभी तक उससे बात भी नहीं की थी कि वो लोग निकल गए है ।
मुरारी ने जेब से मोबाइल निकाला और ममता को फोन घुमा दिया ।

3 से 4 रिंग और फोन पिकअप

: हैलो ( ममता की सहज आवाज आई )
: हा हैलो अमन की मां , कैसी हो ( मुरारी खुश होकर बोला ) भाई हम लोग निकल गए है
: अच्छा सच में , मेरी देवरानी कैसी है ? जरा बात कराएंगे ( ममता खुश होकर बोली )
: हा बगल में ही है , लो बात करो ( मुरारी मुस्कुरा कर मंजू को फोन देता है )
मंजू को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बात करे , उसकी चेतना तो जैसे खोई हुई थी ।
: हा , नमस्ते दीदी ...जी ठीक हूं और आप ( मंजू ने महीन आवाज में बोली उसका गला बैठा हुआ था )
अब मुरारी को ममता की आवाज नहीं आ रही थी ।
: जी , पता नहीं हाइवे पर है हम लोग हा अभी रुक कर खा लेंगे .. जी ठीक है .... लीजिए ( मंजू ने फोन वापस मुरारी को दिया )

: हा अमन की मां कहो
: अरे क्या बोलूं , उदास उदास सी क्यों लग रही थी वो ? ( ममता के तीखे सवालों से मुरारी अटक गया वो मंजू को देख रहा था कि क्या जवाब दे तो मंजू खामोशी से ना में सर हिला दी)
: ऐसा कुछ नहीं है , रात भर तो पैकिंग में निकल गई और अब झपकियां ले रही है हाहा ( मुरारी बात बनाते हुए बोला )
: अच्छा ठीक है , समय से खाने पीने के लिए रुक जाना और थोड़ा देखना की बाथरूम वगैरह की सुविधा हो । वो आपसे कहने नहीं न जायेंगी बार बार , समझ रहे हो न ( ममता ने मुरारी को समझाया )
: क्या अमन की मां तुम भी ( मुरारी ने मुस्कुरा कर मंजू को देखा तो वो भी फीकी मुस्कुराहट से उसे देखी) पता है मुझे , चलो ठीक है सफर लंबा है मोबाइल चार्ज नहीं कर पाया हुं। रखता हूं। बाय
: हा बाय

फोन कट गया और फिर मंजू खिड़की से बाहर देखने लगी ।
वही दूसरी ओर ममता ने फोन रखा और एक बार फिर उसके चेहरे पर बेचैनी हावी होने लगी ।
सुबह से आज वो अपने कमरे से बाहर नहीं आई थी । मदन सुबह बोलकर गया था कि कही काम से जा रहा है अभी तक वापस नहीं आया ।
ममता के पैर की चोट उसे दुख रही थी चलना दूभर था ।
किसी तरह हिम्मत कर उसने खाना बनाने के सोचा और किचन में आने लगी ।
जैसे ही वो हाल में आई तो चौकी , किचन में तो मदन भिड़ा हुआ है ।

ममता की आहट से मदन उसकी ओर घूमा
सीने पर एप्रेन बांधे हुए टीशर्ट और लांग वाले चढ़्ढे में खड़ा था
: अरे भाभी जी , आराम से ( ममता को लड़खड़ाते देख वो भाग कर उसके पास आया और उसका बाजू पकड़ कर सोफे पर बिठाने लगा )
: अह्ह्ह्ह देवर जी , आप क्यों खाना बना रहे है ? ( ममता असहज होकर बोली) और सब्जी भी नहीं होगी
: सब्जी मै ले आया हूं और आपकी तबियत भी ठीक लग रही थी तो सोचा मै ही कुछ बना दु आपके लिए ( मदन खिल कर हाथ में कल्चुल पकड़े हुए उसके आगे झुकता बोला , जैसे बीते रात कुछ हुआ ही न हो )
: क्या आप भी ( ममता मदन के हरकत से मुस्कुराई )
: हम्मम तो मैडम जी कोई खास फरमाइश ( अपने दोनों हाथ बांध कर मदन अदब से झुक कर बोला जैसे किसी होटल का वेटर हो )
: हीही, क्या आप ये सब ? ( ममता हसने लगी ) छोड़िए इधर दीजिए मुझे । आपको ये सब नहीं करना चाहिए था
: आहा, आज नहीं ! आज तो मै ही बनाऊंगा । बताओ क्या खाओगे ( मदन उसकी पहुंच से थोड़ा पीछे खिसक कर बोला )
: अच्छा ठीक है एक चाय मिलेगी क्या ? ( ममता ने बड़े भारी मन से कहा )
: उसके साथ आलू सैंडविच भी रेडी है , लेना चाहेंगी आप ( मदन ने फिर वही वेटरों वाली स्टाइल में बोला )
: हीहि, जी लाइए ( ममता जो अब तक उदास थी और सोच रही थी कि अपने देवर से कैसे सामना करेगी , अब थोड़ी बेफिक्र थी । )
मगर उसके पैर के अंगूठे में हल्की सूजन आ गई थी ।
थोड़ी ही देर में मदन एक ट्रे में गर्मागर्म चाय और सैंडविच लेकर आया

: एनीथिंग एल्स मैडम ( मदन फिर से बोला )
: उम्हू ( ममता ने मुस्कुरा कर ना में सर हिलाया और मदन वहां से निकल कर अपने रूम में चला गया और एक प्लास्टिक बॉक्स लेकर आया )

हाल से स्टूल खींच कर उसने ममता के पास रखा खुद नीचे बैठ गया
: अरे देवर जी , ये सब क्या ? ( ममता उसको प्लॉस्टिक बॉक्स को खोलते देख रही थी , जो असल में एक मेडिकल किट थी )
: क्या आप अपना पैर इसपर रखेंगी मैडम ( मदन मुस्कुरा कर बोला )
: क्या कर रहे हो आप , मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है ( ममता उलझी हुई अपनी चोट वाली टांग को सोफे पर बैठे हुए उस स्टोल पर रखा )

जिससे उसकी नाइटी का गैप बढ़ा हो गया , मदन इस वक्त ठीक उसके आगे उकङू होकर बैठा था , वहा से ममता के फैले हुए काटन नाइटी के गैप से दूर अंदर तक उसकी चिकनी लंबी गोरी टांगे दिख रही थी जांघों तक
मदन ने अपने नजरो को झटका और सेवलान से ममता के घाव धुलने लगा

: अह्ह्ह्ह सीईईई फ़ूऊऊ( ममता सिसकी एक ठंडा चुनचुनाहट भरा एहसास उसने अपने चोट के आसपास महसूस किया )
मदन ने काटन से उसके घाव साफ किए और एक मलहम निकाली और उसका ढक्कन खोलते हुए

: भाभी सैंडविच खाओ न ( वो ममता के घाव पर फूंकता हुआ बोला )
ममता ने सैंडविच को जैसे ही मुंह में दबाया उसी समय मदन ने वो मलहम की ट्यूब को दबाया और मलहम ममता को घाव पर फैलने लगी

: उम्ममम फ़ूऊ फ़ूऊऊ , अह्ह्ह्ह मम्मीईईई ये क्या है अह्ह्ह्ह( ममता जोर से चीखी अपनी टांग पकड़ते हुए )
: बस हो गया भाभी , अभी ठंडा हो जाएगा । शुरू में थोड़ा लगता है आप सैंडविच खाओ न ( मदन हंसते हुए बोला )
: भक्क, बहुत बुरे हो आप , अह्ह्ह्ह्ह सीईईई मम्मी ऊहू ( ममता का चेहरा दर्द से बेचैन था मानो अभी वो रो ही देगी)

मगर कुछ ही देर में उसे एकदम से आराम मिल गया और उसका गुस्सा भींनकना मुस्कुराहट में बदल गया ।
तो वो उठ कर किचन में आई

: उह ऊहू .. (ममता मुस्कुराती हुई नाइटी में मदन के पास खड़ी हो गई तो मदन मुस्कुरा कर उसे देखा ) थैंक यू
और उसने मदन के हाथ से चाकू ले लिया जिससे वो सब्जियां काट रहा था
: अच्छा जी , वो किस लिए ( मदन अपने हाथ बांधता हुआ ममता के मुस्कुराते चेहरे को देखते हुए किचन स्लैब पर अपने कूल्हे टिकाते हुए बोला )
: आपकी सर्विस के लिए ( ममता सब्जियां काटती हुई आंखे रोल करती हुई मुस्कुराई बिना मदन की ओर देखे )
: बिना टीप के सिर्फ थैंक यू ? इतनी खराब थी क्या सर्विस ( मदन ने मुंह बनाया )
: अरे नहीं ( ममता हस पड़ी और उसके मोतियों जैसे दांत होंठों पर खिल उठे ) अच्छा ठीक है कल आपको एक बहुत अच्छी टिप मिलेगी ओके
: क्या कल ? ( मदन चौका )
: वो मैने ऑर्डर दे दिया है कल तक आ जाएगा तो मिलेगा आपको ( ममता ने मदन को उलझाया ).
: ऐसा क्या मंगवा रही हो भाभी ( मदन सोचते हुए बोला )
: कल मिलेगा कल हीही

और वो काम करने लगी

प्रतापपुर

रसोई के पास लगी चौकी पर रंगीलाल और उसका ससुर बनवारी खाना खा रहे थे

: भाई मेरा हो गया , बहू जरा हाथ धुलवा दे ( बनवारी चौकी से उतरकर आंगन की ओर चला गया और सुनीता एक लोटा पानी लेकर चली गई पीछे )
इधर रंगीलाल के जहन में काफी कुछ चल रहा था । रात से अब तक जो कुछ भी घटित हुआ उससे सुनीता के लिए उसकी हवस को और हवा मिल चुकी थी ।
थोड़ी देर बाद ही बनवारी अपने गमछे से हाथ पोंछता हुआ आया और पीछे उसके सुनीता
रंगी की नजर अनायास उसके सर से हटे हुए पल्लू पर गई सीने का उभार हल्का सा झलक रहा था । सुनीता ने रंगी की नजर भाप ली और झट से अपने सर पर पल्लू करते हुए अपने ब्लाउज को ढक दिया।

: जमाई बाबू चलना है या फिर आराम करोगे ? ( बनवारी अपने हथेली के खैनी रगड़ता हुआ बोला )
रंगीलाल बनवारी के सवाल पर उसके पीछे खड़ी अपनी खूबसूरत सलहज को देखता है और मुस्कुरा देता है ।
: नहीं बाउजी , अभी थोड़ा आराम करूंगा घर पर । मन हुआ तो आता हूं ( रंगी लाल खाना खाने लगा और उसके जवाब पर सुनीता मुझ फेर कर मुस्कुराने लगी क्योंकि वो जान रही थी कि रंगीलाल उसके लिए ही रुकेगा )
इधर बनवारी निकल गया और रंगीलाल का खाना भी लगभग हो गया
: और कुछ दूं ( सुनीता ने रंगी से पूछा )
: जो चाहिए वो तो आप दे नहीं रही हो ( रंगी ने मुस्कुरा कर उसे देखा और सुनीता लजाई ) हाथ धुला दीजिए अब ।

रंगीलाल चौकी से उतर कर जूठे हाथ लिए आंगन की ओर आ गया और सुनीता पानी लेकर उसके पीछे गई मुस्कुराती हुई

रंगी आगे झुक कर हाथ आगे किया और सुनीता भी उससे कुछ दूरी पर ही सामने थोड़ा सा झुक कर पानी गिराने लगी। रंगी ने मुस्कुरा कर उसे देखा तो दोनों की नजरे टकराई
मगर असल धोखेबाज तो उसका पल्लू निकला , बिना पिन का पल्लू झुकने की वजह से उसके कंधे से सरक कर कलाई के आ गया और उसके बड़े गले वाले ब्लाउज़ से उसके मोटे रसीले गोल मटोल मम्मे दिखाई देने लगे ।


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रंगीलाल की नजर एकाएक उन पर गई और उसकी नजर का पीछा किया तो सुनीता ने देखा कि वो उसके मुलायम चूचों को ही घूर रहा है ।
सुनीता बेचैन होने लगी , उसकी सांसे तेज हो गई और वो झट से खड़ी होकर अपना पल्लू सही किया ।

रंगी मुस्कुराया कर उसे निहारता रहा और सुनीता नजरे चुराती रही । फिर रंगी हाथ पोछने के लिए कुछ खोजने लगा कि उसकी नजर सुनीता के पल्लू पर गई और वो उसे पकड़ लिया
सुनीता एकाएक चौकी और अपनी साड़ी को छातियों के पास कस कर पकड़ लिया

मगर रंगी मुस्कुरा कर बस उसके पल्लू में हाथ पोंछ कर छोड़ दिया ।
सुनीता के दिल अभी तक कांप रहा था ।

रंगीलाल : अरे डरिए मत , जब तक आप हा नहीं कहेंगी हम आगे नहीं बढ़ेंगे
सुनीता मुस्कुराई : धत्त , आप जो चाहते है वो सही नहीं है ।
रंगीलाल उसके करीब आकर उसकी आंखों में देखता हुआ : किसी को चाहना गलत है क्या ?
रंगीलाल का यू उसकी ओर चढ़ आना सुनीता की हालत पतली हो गई ,उसकी सांसे चढ़ने लगी और आंखों में हल्का सा डर दिखा : नहीं , लेकिन मै उन्हें छोड़ नहीं सकती हूं, प्लीज
रंगीलाल : मैने तो नहीं कहा आप छोड़ दो , बस मेरा हाथ थाम लो यही चाहता हूं
रंगीलाल की आंखों के खुमारी सी थी और दोनों की सांसे बेकाबू हुई जा रही थी
सुनीता को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले : हटिए जाने दीजिए , मुझे कपड़े धुलने है
ये बोलकर वो तेजी से निकल गई और रंगीलाल मुस्कुरा कर उसके रसीले मटके हिल्कोरे खाता देखता रहा ।

वही बबीता के कमरे में आज सालों बाद राजेश घुसा था , इधर उधर नजर पड़ रही थी । गीता को बड़ा ताज्जुब लग रहा था कि उसको पापा आए है ।
वही बबीता बड़ी खुश नजर आ रही थी अपने पापा का साथ पाकर
फुदक रही थी , टीशर्ट में बिना ब्रा के उसके गोल मटोल मौसमी जैसे चूचे खूब हिल रहे थे और नंगी चिकनी जांघें देख कर राजेश का लंड अकड़ रहा था ।

तभी उसकी नजर कमरे के दरवाजे के पीछे वाल हैंगर में लटके हुए ब्रा और पैंटी पर गई , उसे समझते देर नहीं लगी कि ये उसकी बेटियों के होंगे ।
उन ब्रा पैंटी के सेट देख कर राजेश की बेचैनी बढ़ने लगी । वो बबीता की नाप जानने को इच्छुक हो उठा ।
इतने बबीता आई और उसके पास सट कर बैठ गई

: पापा ये वाली मूवी में बहुत हसी है हीही ( बबीता खिलखिला कर बोली तो राजेश उसकी कमर के हाथ डाल कर उसे अपने पास खींच लिया )

ये सब देख कर गीता को अजीब सा लग रहा था , एकदम से बबीता और उसपे पापा के रिश्ते में आया बदलाव उसे समझ से परे लगा। उसके जहन में तो उसके दादा जी का बड़ा मोटा लंड घूम रहा था । ताज्जुब हो रहा था उसे कि इस उम्र में भी उसके दादू का लंड इतना मोटा है ।
राज के यहां से आने के बाद बबीता ने अपने बॉयफ्रेंड से मिलना जारी रखा मगर गीता अकेली थी और दादाजी का लंड उसे ललचा खूब रहा था ।
वो बेचैन हो रही थी और उसने तय किया कि वो दादा जी के पास जाएगी
उसने आलमारी से कपड़े लिए

: मीठी कहा जा रही है ( पापा की बाहों में लिपटी हुई बबीता ने पूछा तो राजेश ने भी गीता को देखा )
: वो मै दादू के पास जा रही हूं , ऐसे ही घूमने ( गीता ने साफ साफ जवाब दिया और अपने कपड़े लेकर निकल गई)
: आराम से जाना बेटा ठीक है ? ( राजेश ने उसको बोला और गीता हा में सर हिला कर निकल गई दरवाजा खींच कर दूसरे कमरे में कपड़े बदलने )
उसके जाते ही राजेश ने बबीता को दोनों हाथों से पकड़ा और उठा कर गोदी में बिठा लिया

: हीही पापा , मै बच्ची थोड़ी हूं जो ऐसे बिठा रहे हो ( बबीता अपने अपना की जांघों पर बैठी खिलखिलाई )
वही राजेश अपनी बिटिया के नरम चर्बीदार चूतड़ का गद्देदार स्पर्श पाकर सिहर उठा था ,उसके नथुनों में अपनी बेटी की कोरी खुशबू आ रही थी
: तू तो हमेशा मेरी गुड़िया रहेगी ( हाथ बढ़ा कर उसने बबीता के पेट पर टीशर्ट के ऊपर से गुदगुदी की तो वो उसके गोद में छटकने लगी )
: हाहाहाहाहा पापा
( फिर उसकी नजरें अपने पापा से मिली तो उसने अपने पापा को देखा और दोनों हाथों से उसका चेहरा थामा )
: आई लव यू पापा ( उसने झट से राजेश को हग कर लिया) आप प्लीज ऐसे रहा करो प्लीज
राजेश बबीता की भावुकता समझ रहा था , बचपन से उसने कभी भी अपनी बेटियों को एक पिता का प्यार नहीं दिया । अपनी अय्याशी और नशे की लत में वो इतना बहक गया कि उसे घर परिवार का ख्याल तक नहीं रहा था । मगर आज बबीता का यू उससे लिपटना उसे पिघला रहा था ।
उसने झट से बबीता को अपने सीने से कस लिया , उसके छोटे छोटे मौसमी जैसे चूचे अपने सीने पर कठोर बॉल के जैसे धंस रहे थे और वो अपनी बेटी के पीठ को सहला रहा था ।
कितना कोमल अहसास था
: आई लव यू मेरी गुड़िया उम्माह ( उसने बबीता के कान के पास चुम्मी ली तो बबीता को हल्की गुदगुदी लगी और वो खिलखिला उठी और अलग होने का प्रयास की तो राजेश उसे हंसी में और कस कर पकड़ लिया)

: हीही , छोड़ो अब पापा ( बबिता खिलखिलाई )
: नहीं, मै नहीं छोड़ने वाला अपनी गुड़िया को ( उसने बबीता को अपनी बाहों में और कसा जिससे बबीता के नरम फुले हुए चूचे उसके सीने से दब गए और जब जब बबीता उससे अलग होने को खुद को कसमसाती उसके निप्पल पर अपने पापा के गर्म सीने का घर्षण होता , जिससे उसके निप्पल टाइट होने लगे और वो बेचैन होने लगी ।
उसे शर्मिंदगी सी होने लगी कि उसके पापा को जरूर उसके तने हुए निप्पल चुभ रहे होगे , उसके जहन में कुछ बातें घूमने लगी , कि क्या सोच रहे होंगे उसके पापा उसके बारे में।
वो थोड़ा सा जोर लगा कर अपने छातियों को अपने पापा से सीने से दूर किया और राजेश भी समझ गया कि बबीता असहज हो रही है इसलिए उसने भी छोड़ दिया
बबीता लजा कर सीधी उसके गोद में चुप होकर बैठ गई , वही राजेश उसके टीशर्ट में उभरे हुए उसके निप्पल के दाने को देख आकर उसके लंड में हरकत होने लगी ।

मगर उसे माहौल को सहज ही रखना था इसीलिए उसने पीछे से बबीता के पेट को पकड़ कर उससे लिपट गया
बबीता को फिर से गुदगुदी हुई मगर वो अब सहज महसूस कर रही थी ।
मगर राजेश के जहन में वो ख्याल आ रहे थे जब उसने बबीता को पूरी नंगी देखा था उसके उपले जैसे गोल मटोल चूतड़ पानी में उपराए हुए थे और वो तैर रही थी नंगी । उसका लंड पजामे में अकड़ने लगा था
जिसका अहसास बबीता को भी हो चुका था अपने नरम चर्बीदार चूतड़ों पर
जैसे उसे अपने चूतड़ों के नीचे कुछ कड़कपन का अहसास हुआ वो चिहुकी , उसकी आंखे बड़ी हो गई
उसे लगने लगा कि जरूर जब उसके दूध उसके पापा के सीने से रगड़े होंगे इसी वजह से उसके पापा का खड़ा हो गया ।
उसका कलेजा डर रहा था , वो अपने पापा के सुपाड़े की कठोरता महसूस कर पा रहे थी । उसकी चूत बिलबिला उठी और वो राजेश के गोद से खड़ी हो गई

: पापा वो मै मम्मी को कपड़े देकर आती हूं नहीं तो गुस्सा करेंगी ( बबीता ने बहाना बनाया और निकल गई )
राजेश वही बैठा हुआ अपना लंड मसलने लगा ।
इधर बबीता तेजी से कमरे से निकल कर पीछे आंगन की ओर जाने लगी
जिसकी आहट पाते ही रंगीलाल जो छिप कर अपनी सहलज को कपड़े धुलते देख रहा था वो रसोई की ओर चला गया और जब बबीता वापस जाने लगी तो वो लपक और आंगन के दरवाजे के पास आया और भीतर झांकने लगा


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जहां सुनीता अपने सीने का पल्लू कमर में खोसे हुए बैठ कर कपड़े धूल रही थी और उसके बड़े बड़े रसीले मम्में ब्लाउज से बाहर झांक रहे थे
वो नजारा देख कर रंगीलाल का लंड अकड़ने लगा था ।
उसको तत्काल चुदाई चाहिए थी और सुनीता से अभी कोई उम्मीद नहीं नजर आ रही थी इसलिए वो निकल गया अपने ससुर के पास
वही रंगीलाल से पहले ही गीता निकल गई थी बनवारी के पास
इठलाती उछलती हुई वो मुख्य सड़क की जगह खेतों से होकर गोदाम के पीछे वाले रास्ते से बनवारी के पास जा रही थी । उसका अक्सर यही रूट रहता है हमेशा से , इससे दो फायदे होते थे , उसे गांव के कम लोगो का सामना करना पड़ता था और कम समय में वो पहुंच जाती थी ।
तेजी से चलते हुए वो गोदाम की ओर जा रही थी , इस उद्देश्य से आज उसके फूफा रंगीलाल घर पर है और उसके दादाजी अकेले में क्या करते है वो भलीभाती जानती है ।
वो अपने तय जगह पर आ पहुंची थी और वो जगह थी , गोदाम के सबसे पीछे वाले कमरे में जहां बनवारी अपनी कामलीलाये करता था ।
वही से एक खिड़की खुली थी जहां से अंदर का नजारा देखा जा सकता था और वो वही खड़ी होकर एड़ी उठा कर भीतर झांकने लगी
उसका तुक्का सही निकला , कमरे में उसके दादा बनवारी एक औरत को अपनी बाहों में लेकर सहला रहे थे , कभी उसके ब्लाउज में हाथ घुसा कर उसकी गुदाज मुलायम छातियां मिजता तो कभी उसके चर्बीदार पेट को मसलता वो औरत खिलखिला रही थी
: अह्ह्ह्ह्ह सेठ जी छोड़िए न , आज नहीं उम्मम अह्ह्ह्ह्ह, घर पर मेहमान आए है
: अह्ह्ह्ह कितने दिन बाद तो आई हो थोड़ा सा दूध पिला दो ( बनवारी उसके चूचे मसलने लगा )
: नहीं , मै हाथ जोड़ती हु सेठ घर पर मेरी बुढ़िया राह रही होगी । ( वो औरत अलग हुई और कपड़े सही करते हुए वो पैसे जो अभी उसे मिले थे उसे अपने ब्लाउज में खोंसते हुए बोली )
फिर तेजी से बाहर निकल गई और बनवारी अंगड़ाई लेता हुआ बिस्तर की ओर आने लगा , इधर गीता वहा से हटने को हुई कि उसका बैलेंस बिगड़ा और वो पीछे की ओर गिर पड़ी

उसकी सिसकी से बनवारी चौका और लपक कर खिड़की से बाहर झांका तो देखा कि खिड़की के बाहर खेत में उसकी नातिन गीता गिरी है

बनवारी चिंता में उसको आवाज दिया और जल्दी से कमरे की पीछे वाले दरवाजे को खोला जो खेत में खुलता है , अक्सर ये दरवाजा बनवारी औरतों को बुलाने के लिए यूज करता था ।
वो झट से दरवाजा खोलता हुआ गीता की ओर भागा

: अरे मीठी , क्या हुआ बेटी ,तू गिर कैसे गई ? और तू यहां क्या कर रही थी ?
एक एक करके सवाल और सवाल
पैर में चोट आई थी और दर्द से बिलख रही थी ,
: वो मै ऐसे ही आई थी घूमने , आज छुट्टी थी स्कूल की , अह्ह्ह्ह्ह मम्मी दर्द हो रहा है
: लेकिन तू पीछे से क्यों आ रही थी ( तभी बनवारी को सुबह वाली घटना याद आई और उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी नातिन यहां पीछे क्या कर रही थी ) चल उठ कमरे में आ चल
बनवारी ने उसे उठाया और कमरे के लेकर आया
: बहुत बिगड़ गई है आजकल तू , कभी छत से कभी खिड़की से क्या है ये सब तेरा बोल ? ( बनवारी ने डांट लगाई )
: सॉरी दादू ( वो बिलखते हुए बोली , इस उम्मीद में कि रोने से शायद वो सजा से बच जाए )
: मै देख रहा हूं कई रोज से तू आंगन में झांकती है , ये अच्छी बात है क्या ? बोल ( बनवारी ने उसे समझाना चाहा )
: नहीं दादू , वो मै , अह्ह्ह्ह दर्द हो रहा है सॉरी ( गीता को समझ नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे वो )
बनवारी ने पानी से उसके पाव धुले और एक मलहम लगाया जो उसके दराज में उपलब्ध था ।
: नहीं करना चाहिए न बेटा , ये अच्छी आदत नहीं है और तू मेरी प्यारी बेटी है न ( बनवारी उसकी एड़ी में मलहम से सहलाने लगा )
: जी दादू , अब नहीं करूंगी

कुछ देर कि चुप्पी और फिर कुछ बाते थी जो बनवारी के जहन में उठ रही थी सवालों के रूप में
: अच्छा सुन , तूने बहु को कहा तो नहीं इस बारे में जो तू ताक झांक करती है ( बनवारी ने सवाल किया )
: ऊहु ( गीता ने थोड़ी लजा कर मुस्कुराती हुई न में सर हिलाई ) उन्हें पता चलेगा तो आपको अपने पास आने थोड़ी देंगी हीही

एकाएक बनवारी के कान खडे हो गए
: क्या कहा तूने अभी ,
: जैसे मुझे पता नहीं चलेगा क्या कि मम्मी रात में आपके कमरे में क्यों जाती है ? ( गीता मुस्कुरा कर बनवारी को देखी )
बनवारी अब असहज होने लगा और उसका हल्क सूखने लगा , उसे उम्मीद नहीं थी उसकी बाते इस कदर उसकी नातिन जान लेगी ।
: तू कुछ ज्यादा नहीं जानती तेरी उम्र के हिसाब से ( बनवारी को हंसी आई )
: आप भी कुछ ज्यादा ही करते हो वो सब अपनी उम्र के हिसाब से ( गीता ने पलट कर जवाब दिया )
जिसपर बनवारी हस दिया
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो भला क्या ही रिएक्ट करे गीता की बातों पर , जिसमें बचपना भरा है । भले उसका जिस्म भर आया हो और उम्र बढ़ रही हो मगर बनवारी के लिए ये मानना आसान नहीं था कि उसकी नातिन की रुचि अब सेक्स को लेकर भी होने लगी है ।

: तू , तूने कब देखा तेरी मां मेरे कमरे में आती है ? ( बनवारी ने सवाल किया )
: कई बार , कभी कभी किचन में भी । एक बार तो मैने आप दोनों को पापा से भी बचाया था हीही ( गीता बड़ी मासूमियत से बोली )
राजेश का जिक्र होते ही बनवारी ठिठक गया
: क्या ? कब ?
: वो आप लोग किचन में थे और पापा पानी पीने जा रहे थे तो मै उन्हें घुमा लाई कमरे में । काफी दिन हो गए

बनवारी को अब समझ आ रहा था , उसकी नातिन को सही गलत को समझ है । वो सिर्फ बहकी नहीं बल्कि उस चीज को समझती भी अच्छे से है । लेकिन फिर भी वो उसके लिए लाडली नातिन थी । अभी पिछले बरस ही तो उसने अपनी दसवीं पास की है ।

: अच्छा ठीक है ठीक है , लेकिन अब तू घर जा ( बनवारी ने कड़े शब्दों के कहा ) और ये सब किसी से कहना मत
अपने दादू से ये सब सुनते ही गीता का मुंह फूल गया , गीता का स्वभाव बचपन से जिद्दी था , और अपने दादा के आगे कुछ ज्यादा ही दुलारी थी ।
बनवारी उसकी भावनाएं समझ रहा था मगर क्या करे । उसके सामने उसके गोद में खेली हुई बच्ची थी जो खुद को श्यानी समझ रही थी ।
: अच्छा ठीक है , चौराहे से तेरे लिए शाम को फुल्की लेकर आऊंगा अब खुश ( बनवारी ने गीता का चेहरा देखा )
वो भीतर से जल रही थी कि क्यों उसके दादू उसकी बात समझ नहीं रहे है , जबसे उसने दादू और अपने मम्मी की चुदाई देखी थी वो पगलाई घूम रही थी । उसके जहन में अपने दादू का मोटा लंबा लंड घूमता रहता था सुबह शाम और आज जब सारे भेद खुल गए तो उसकी बेसबरी और बढ़ गई ।
वो पिनक कर उठी और बिना कुछ बोले पीछे वाले दरवाजे से खेतों की ओर निकल गई । बनवारी का मन भी थोड़ा उदास हो गया अपनी लाडली नातिन को उदास देख कर । लेकिन अभी तक उसके जहन के गीता को लेकर कोई भी बुरे ख्याल नहीं आए । न ही उसने गीता के बड़े हुए संतरों और चर्बी भरी मोटी चूतड़ों की थिरकन को पलट कर देखा । बस नजरे फेर कर बिस्तर पर बैठ गया ।

वही रंगीलाल मेन सड़क से होता हुआ गोदाम आ रहा था कि बोरियो के बीच उसे कमला मिली और झट से उसे वो एक कोने खींच ले गया ।
: अह्ह्ह्ह छोड़ो जमाई बाबू , काहे तंग कर रहे हो अह्ह्ह्ह्ह ( कमला बोरियो के छलियों से लगी छटपटा रही थी और आगे रंगी उसकी कलाई पकड़े हुए था और अपनी टांग को उसकी जांघों के साड़ी के ऊपर से भेद रखा था जिससे वो भाग न सके )
: ओहो कमला रानी सारी जवानी अब क्या सिर्फ मेरे साले और ससुर पर न्योछावर करोगी , तनिक हम पर भी रहम करो( रंगी उसको अपनी ओर कसता हुआ बोला )
: अह्ह्ह्ह्ह उम्मम क्या करते सीईईई ( अपने गुदाज नर्म चूचों को रंगीलाल के सीने से रगड़ खाते ही कमला सिसकी )
रंगी उसके चर्बीदार चूतड़ों को साड़ी के ऊपर से मसलता हुआ : अह्ह्ह्ह कमला रानी , कल तुमने अपने इन रसीले जोबनो से मुझे जो घाव दिए बहुत दर्द रहा रात भर कसम से

: धत्त , छोड़ो न जमाई बाबू कोई देख लेगा ( कमला शर्मा कर मुस्कुराती हुई अलग होने लगी )
: रात में मिले फिर ?
: कहा ?
: बाउजी के बगल वाला कमरा मेरा है, कल सारी रात तुम्हारी सिसकियां सुनकर इसे मसलता रहा ( रंगीलाल उसके आगे पजामे के ऊपर से अपना खड़ा हुआ लंड मसलता हुआ बोला )

: क्या मेरी ? मै कब आई हीही ( असहज होकर कमला हसी )
: तुम नहीं थी तो फिर कौन था ? बाउजी ने तो ... ( रंगी अपनी बात अधूरी छोड़ दिया)
: अभी बहुत कुछ है जो आपके बाउजी आपसे छुपाए हुए है हीही, मिलती हु रात में

और वो मुस्कुराती हुई अपने कूल्हे झटकती निकल गई । वही रंगी लाल सोच में पड़ गया कि आखिर फिर वो दूसरी कौन हो सकती है ? जिसके बारे में बाउजी ने मुझसे झूठ बोलने लगे ।
रंगी वहा से निकल कर सीधे अपने ससुर के पास चला गया
: अरे जमाई बाबू , आइए आइए बैठिए
: लग रहा है आज अकेले ही आराम फरमा रहे है हाहाहाहाहा ( रंगी ने हस कहा )
: अरे वो कमला आई थी , लेकिन उसके घर मेहमान आए है तो चली गई , वरना अभी तक दरवाजा बंद ही मिलता हाहाहाहाहा ( बनवारी हस कर बोला )
: वैसे सच कहूं बाउजी , समान जोरदार है कमला ( रंगी सिहर कर बोला )
: ओहो कही जमाई बाबू का ईमान भी तो नहीं डोल रहा है हाहा ( बनवारी के छेड़ा रंगी को )
रंगी उसकी बातों और थोड़ा लजाया: अरे नहीं बाउजी , रागिनी के आगे फीकी है ये , उसके चूतड़ तो इससे भी.... सॉरी बाउजी ( रंगी बोलते हुए रुक गया )
बनवारी हंसता हुआ : हा हा समझता हूं भाई, बीवी की दीवानगी होती ही ऐसे है । अब तुम्हारी स्वर्गवासी सास को ही लेलो डिट्टो मेरी रज्जो की फोटोकापी थी और घाघरे में जब उसके बड़े चौड़े कूल्हे झटके खाते , उफ्फफ
: क्या सच में अम्मा जी रज्जो जीजी जैसे थी ? फिर तो बड़े किस्मत वाले निकले बाउजी हाहाहा ( रंगीलाल ठहाका लगा कर बोला)
बनवारी हस कर : अरे किस्मत वाले तो कमलनाथ बाबू है क्यों ?
रंगी अपने ससुर के इस मजाक और थोड़ा सा झेप गया और असहज भरी मुस्कुराहट से हंसता है : अह बात तो सही है आपकी , किस्मत वाले तो है ही कमल भाई

बनवारी ने अब रंगी को शर्माता देख कर छेड़ा : कही आपकी भी पहली पसंद रज्जो तो नहीं थी ? हाहाहाहाहा

रंगी बनवारी के मजाक में शामिल होता हुआ हस कर : अब मेरी बारी ही लेट आई तो क्या कर सकता हूं बाउजी , सिवाय हाथ मलने के हाहा

बनवारी हस कर : वैसे उदास होने की जरूरत नहीं है , छोटकी भी ... हीही ( बनवारी बातें आधी छोड़ कर हस पड़ा और रंगी भी मुस्कुराने लगा )

शिला के घर

" Send me video plzz "
" Okay , wait 5 mins "
...................................
अरुण बेचैन होकर कालेज के बरामदे में चक्कर लगा रहा था और बार बार मोबाइल देख रहा था ,
तभी एक वीडियो क्लिप उसके ****gram पर आया , जिसे देखते ही उसकी सांसे चढ़ने लगी । वो एक सुरक्षित जगह तलाशने लगा और लपक कर तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गया

वही कालेज के ऑफिस में मानसिंह बैठा था और उसका मोबाइल बजने लगा
: हा शिला कहो ( मानसिंह ने फोन उठाया )
: कुछ खास भेजा है मैने आपके लिए चेक करो और बताओ हीही ( शिला मुस्कुराती हुई फोन काट दी )

मानसिंह को समझते देर नहीं लगी कि आखिर क्या खास चीज होगी और उसने झट से अपना व्हाट्सअप खोला और दो तीन तस्वीरों के साथ एक वीडियो आया था , जिसके नीचे एक मैसेज लिखा हुआ था । " आज का लंच स्पेशल है 😜"
मानसिंह उन तस्वीरों को देख कर समझ चुका था कि वीडियो में वही सब होगा और जैसे ही उसने वीडियो खोला ,उसका लंड फुदकने लगा


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वीडियो में शिला सिर्फ ब्लाउज और पैंटी में किचन में खड़ी होकर खाना बना रही थी । पैंटी में बाहर निकले हुए उसके बड़े चौड़े चूतड़ देख कर मानसिंह का लंड अकड़ने लगा वो उसको पकड़ कर सिहर गया ।

वही कालेज के बाथरूम में दरवाजा बंद करके खड़ा होकर अरुण तेजी से अपना लंड भींच रहा था । उसके मोबाईल स्क्रीन पर म्यूट में एक वीडियो चल रहा था जिसमें एक मोटी गदराई हुई औरत शावर के नीचे सिर्फ पैंटी में नहा रही थी और पीछे से उसकी भीगी हुई गाड़ दिख रही थी "

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" अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह क्या मस्त माल है यार कितनी मोटी गाड़ है और भीगती हुई तो अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म फक्क्क् यूयू बिच ओह्ह्ह्ह "
तभी वो औरत कैमरा की ओर अपनी गाड़ किए हुए ही अपनी पैंटी नीचे उतारने लगी और उसकी मोटी गदराई गाड़ नंगी होने लगी , शावर का पानी अब सीधे उसके बड़े चौड़े चूतड़ों के दरारों में जाने लगा , जिसे देख कर अरुण खुद को रोक नहीं पाया और भलभला कर झड़ने लगा

" अह्ह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् यूयू ओह्ह्ह्ह यशस्स अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह उम्ममम अमीईईई अह्ह्ह्ह कितना बड़ा है आह्ह्ह्ह "
अरुण अपना लंड झाड़ कर वापस क्लास के लिए निकल गया और वही मानसिंह शिला से फोन पर बातें कर रहा था । जबकि रज्जो ने शिला का मोबाइल स्पीकर पर रखा हुआ था ताकि वो भी मानसिंह के जज्बात सुन सके

: ओह्ह्ह्ह मेरी जान , क्या मस्त चूतड़ है उफ्फ , जी करता है आकर काट लूं अभी , और खोल कर लंड घुसा दु ( मानसिंह फोन पर बोला और उसकी बाते सुन कर रज्जो और शिला मुंह पकड़ कर खिलखिलाई )
: उफ्फ तो रोका किसने है, आजाओ न मै तो अभी तक वैसी ही हूं कपड़े भी नहीं पहने, आजाओ न मेरे राजा और घुसा दो जहां जो घुसाना चाहते हो उम्ममम ( शिला ने मानसिंह को उत्तेजित किया और मानसिंह का लंड अकड़ गया )
: बस 5 मिनट , मै निकल रहा हूं
मानसिंह की बौखलाहट पर शिला और रज्जो मुंह दबा कर हस रही थी और फिर फोन कट हो गया ।

कुछ ही देर में मानसिंह घर के अंदर दाखिल हो गया था , और उसका लंड पेंट के पूरा कड़क हो गया था
वो लपक कर तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ गया ।
कि तभी उसका मोबाइल बजा ये कॉल शिला ने ही किया था

" कहा हो मेरे राजा उम्मम आओ न " , शिला ने फोन पर सिसक कर कहा ।
मानसिंह शिला के कामुक और आकर्षक आवाज से उत्तेजित हो उठा : आ गया हु मेरी जान, कहा हो तुम
शिला : सीधे कमरे में चले आओ अह्ह्ह्ह्ह कबसे मेरी चूत कुलबुला रही है अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म
शिला ने फोन पर मानसिंह को और उकसाया
मानसिंह : अरे वो रज्जो भाभी कहा.....( मानसिंह आगे कुछ बोलता उससे पहले ही शिला ने फोन काट दिया )
अब तक वो शिला के कमरे तक आ पहुंचा था और जैसे ही उसने कमरे का दरवाजा खोला , अंदर बत्तियां बंद थी बस एक गुलाबी सीलिंग लाइट जल रही थी । उस गुलाबी सीलिंग लाइट को शिला तभी ऑन रखती थी जब वो पूरी तरह से वाइल्ड महसूस करती हो और ये एक तरह का सिंगनल था मानसिंह के लिए और जैसे ही उसकी नजर बिस्तर पर गई उसकी आंखे फेल गई और मुंह में लार बढ़ने लगा ।


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सामने उसके शिला वही वाली पैंटी और ब्लाउज पहने हुए हवा में अपने चूतड़ उठाए हुए लेती थी , उसका मुंह दूसरी ओर था ।
तभी बिस्तर की ओर से आवाज आई
: आओ न जानू अह्ह्ह्ह ( शिला ने अपने बड़े भड़कीले चूतड़ हवा में हिला कर उसे रिझाया )
मानसिंह का लंड एकदम से बौराया हुआ था और वो पेंट के ऊपर से उसको पकड़े हुए मसल रहा था
: उफ्फ मेरी जान उस गुलाबी रौशनी में तुम्हारे चूतड़ और भी बड़े और रसीले नजर आ रहे है ।
मानसिंह आगे बढ़ कर शिला के चूतड़ के नंगे गोल बड़े हिस्से को सहलाते हुए कहा , उसका स्पर्श पाते ही वो अकड़ गई ।
: उम्मम कितनी मादक गंध है अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह आज तो तुम्हारे चूतड़ और भी नरम है आह्ह्ह्ह मेरी जान उम्मन( मानसिंह घुटनों के बल होकर दोनों हाथों से शिला के बड़े भड़कीले चूतड़ों को सहलाते हुए अपने नथुने करीब ले गया )
मानसिंह के स्पर्श के शिला के जांघों के कम्पन हो रहा था और थोड़ी मादक महीन सी सिसकियां उठने लगी और अगले ही मानसिंह के अपना मुंह सीधा शिला के बड़े भड़कीले चूतड़ों के दरारों में मुंह दे दिया


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अह्ह्ह्ह उम्मम अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह यस्स अह्ह्ह्ह्ह
मानसिंह के कानो में कुछ अनजानी सी कुनमुनाहट भरी आह आई मगर वो पंजे से दोनों चूतड़ों को फाड़े हुए पैंटी के ऊपर से ही उसके गाड़ की सुराख को चाटने लगा ।
और वो उतनी ही अकड़ने ऐंठने लगी

: ओह मेरे राजा पूरा खा जाओगे क्या ( मानसिंह के कान में शिला के मादक स्वर आए )


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: कितनी रसीली गाड़ है , इसको तो मै नंगा करके उम्मम्म सीईईईई ( मानसिंह के अगले ही पल पैंटी हटा कर उसके दरारों को फैलाते हुए अपनी जीभ की टिप से गाड़ की सुराख को गिला करने लगा और वो पूरी तरह से छटकने लगी )
: मस्त है न मेरी जान , और चाटो ने जीभ डाल के अह्ह्ह्ह ऐसे ( शिला ठीक उसके पास बैठती हुई बोली और एकाएक मानसिंह की नजर अपने ठीक बगल में पड़ी और वो चौका )
अगर शिला उसके बगल में बैठी थी तो वो कौन है जिसकी गाड़ की सुराख वो गीली कर रहा था ।
मानसिंह के मन में शंका के अंकुर फूटे और झट से उसने कमरे की बत्ती जला दी

: रज्जो भाभी आप ??



जारी रहेगी
Lajawab jabrdast update :bj2: :bj2: :bj2: :bj2: :bj2: :bj2: :bj2: :bj2: :bj2: :bj2: :bj2: :bj2: :bj2: :bj2: :bj2: :heartbeat:
 

Rock2500

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💥 अध्याय 02 💥

UPDATE 08

गाड़ी शहर की तंग गलियों से निकलकर हाईवे की ओर बढ़ चुकी थी । सुबह के करीब दस बज रहे थे। हाईवे पर हल्की-सी धुंध अब भी बाकी थी, जो सूरज की गुनगुनी किरणों के साथ मिलकर एक सुनहरा सा नजारा बना रही थी। सड़क के दोनों ओर लंबी सिवान फैली हुई थी, जहां गन्ने के हरे-भरे खेत लहलहा रहे थे। कहीं-कहीं पेड़ों की कतारें तेजी से पीछे छूट रही थीं, मानो वो भी मंजू और मुरारी की इस यात्रा में उनके साथ दौड़ रही हों। गाड़ी की खिड़की से आती ठंडी हवा मंजू के चेहरे को छू रही थी, लेकिन उसका मन अभी भी उस सुबह के हादसे की गिरफ्त में था।मंजू की आंखों के सामने बार-बार वही मंजर घूम रहा था—मुरारी का अकेले उन गुंडों से भिड़ जाना, उसका गुस्सा, उसकी हिम्मत। वो शब्द, जो मुरारी ने उस आदमी को ललकारते हुए कहे थे, अब भी उसके कानों में गूंज रहे थे:
“मैंने मेरे बेटे से वादा किया है कि मैं उसकी चाची को हर कीमत पर घर लेकर आऊंगा।”

इन शब्दों में एक अजीब-सी ताकत थी, एक ऐसा जज्बा जो मंजू को हैरान कर गया था। मुरारी, जिसे वो रात वाली हरकत की वजह से गलत समझ बैठी थी, जिसे उसने मन ही मन कोसा था, वही मुरारी आज उसकी इज्जत और जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर उन गुंडों से भिड़ गया था।मंजू का मन उदासी से भरा था। उसे अपनी गलतफहमी पर पछतावा हो रहा था। बीते रात मुरारी ने जो हरकत की थी, वो शायद उसकी मजबूरी थी, या शायद उसका इरादा वैसा नहीं था, जैसा मंजू ने समझ लिया था। अब जब वो मुरारी की इस हिम्मत और जिम्मेदारी को देख चुकी थी, तो उसके मन में मुरारी के लिए एक नया सम्मान जाग रहा था। लेकिन साथ ही, वो डर भी अभी तक उसके दिल से गया नहीं था। उन गुंडों की गालियां, उनका क्रूर हंसी, और मोहल्ले वालों की चुप्पी—ये सब उसके मन पर भारी था। वो खिड़की से बाहर देख रही थी, लेकिन उसकी नजरें कहीं खोई हुई थीं। उसका चेहरा शांत था, मगर उस शांति के पीछे एक तूफान सा उमड़ रहा था।
मुरारी लंबे समय तक उसे चुप और शांत देख रहा था , वो समझ रहा था कि आज सुबह जो कुछ भी हुआ उसको लेके मंजू कितनी डर गई होगी । मुरारी के जहन में उस घटना को लेकर कितने सारे सवाल थे , मगर इस नाजुक पल में वो और मंजू को परेशान नहीं करना चाहता था । वो जानता था कि इस पल मंजू को एक कंधे की तलाश है और वो सिर्फ एक औरत ही पूरी कर सकती थी । उसे ममता का ख्याल आया
सुबह की भगदड़ में वो ममता को भूल ही गया था , और उसने अभी तक उससे बात भी नहीं की थी कि वो लोग निकल गए है ।
मुरारी ने जेब से मोबाइल निकाला और ममता को फोन घुमा दिया ।

3 से 4 रिंग और फोन पिकअप

: हैलो ( ममता की सहज आवाज आई )
: हा हैलो अमन की मां , कैसी हो ( मुरारी खुश होकर बोला ) भाई हम लोग निकल गए है
: अच्छा सच में , मेरी देवरानी कैसी है ? जरा बात कराएंगे ( ममता खुश होकर बोली )
: हा बगल में ही है , लो बात करो ( मुरारी मुस्कुरा कर मंजू को फोन देता है )
मंजू को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बात करे , उसकी चेतना तो जैसे खोई हुई थी ।
: हा , नमस्ते दीदी ...जी ठीक हूं और आप ( मंजू ने महीन आवाज में बोली उसका गला बैठा हुआ था )
अब मुरारी को ममता की आवाज नहीं आ रही थी ।
: जी , पता नहीं हाइवे पर है हम लोग हा अभी रुक कर खा लेंगे .. जी ठीक है .... लीजिए ( मंजू ने फोन वापस मुरारी को दिया )

: हा अमन की मां कहो
: अरे क्या बोलूं , उदास उदास सी क्यों लग रही थी वो ? ( ममता के तीखे सवालों से मुरारी अटक गया वो मंजू को देख रहा था कि क्या जवाब दे तो मंजू खामोशी से ना में सर हिला दी)
: ऐसा कुछ नहीं है , रात भर तो पैकिंग में निकल गई और अब झपकियां ले रही है हाहा ( मुरारी बात बनाते हुए बोला )
: अच्छा ठीक है , समय से खाने पीने के लिए रुक जाना और थोड़ा देखना की बाथरूम वगैरह की सुविधा हो । वो आपसे कहने नहीं न जायेंगी बार बार , समझ रहे हो न ( ममता ने मुरारी को समझाया )
: क्या अमन की मां तुम भी ( मुरारी ने मुस्कुरा कर मंजू को देखा तो वो भी फीकी मुस्कुराहट से उसे देखी) पता है मुझे , चलो ठीक है सफर लंबा है मोबाइल चार्ज नहीं कर पाया हुं। रखता हूं। बाय
: हा बाय

फोन कट गया और फिर मंजू खिड़की से बाहर देखने लगी ।
वही दूसरी ओर ममता ने फोन रखा और एक बार फिर उसके चेहरे पर बेचैनी हावी होने लगी ।
सुबह से आज वो अपने कमरे से बाहर नहीं आई थी । मदन सुबह बोलकर गया था कि कही काम से जा रहा है अभी तक वापस नहीं आया ।
ममता के पैर की चोट उसे दुख रही थी चलना दूभर था ।
किसी तरह हिम्मत कर उसने खाना बनाने के सोचा और किचन में आने लगी ।
जैसे ही वो हाल में आई तो चौकी , किचन में तो मदन भिड़ा हुआ है ।

ममता की आहट से मदन उसकी ओर घूमा
सीने पर एप्रेन बांधे हुए टीशर्ट और लांग वाले चढ़्ढे में खड़ा था
: अरे भाभी जी , आराम से ( ममता को लड़खड़ाते देख वो भाग कर उसके पास आया और उसका बाजू पकड़ कर सोफे पर बिठाने लगा )
: अह्ह्ह्ह देवर जी , आप क्यों खाना बना रहे है ? ( ममता असहज होकर बोली) और सब्जी भी नहीं होगी
: सब्जी मै ले आया हूं और आपकी तबियत भी ठीक लग रही थी तो सोचा मै ही कुछ बना दु आपके लिए ( मदन खिल कर हाथ में कल्चुल पकड़े हुए उसके आगे झुकता बोला , जैसे बीते रात कुछ हुआ ही न हो )
: क्या आप भी ( ममता मदन के हरकत से मुस्कुराई )
: हम्मम तो मैडम जी कोई खास फरमाइश ( अपने दोनों हाथ बांध कर मदन अदब से झुक कर बोला जैसे किसी होटल का वेटर हो )
: हीही, क्या आप ये सब ? ( ममता हसने लगी ) छोड़िए इधर दीजिए मुझे । आपको ये सब नहीं करना चाहिए था
: आहा, आज नहीं ! आज तो मै ही बनाऊंगा । बताओ क्या खाओगे ( मदन उसकी पहुंच से थोड़ा पीछे खिसक कर बोला )
: अच्छा ठीक है एक चाय मिलेगी क्या ? ( ममता ने बड़े भारी मन से कहा )
: उसके साथ आलू सैंडविच भी रेडी है , लेना चाहेंगी आप ( मदन ने फिर वही वेटरों वाली स्टाइल में बोला )
: हीहि, जी लाइए ( ममता जो अब तक उदास थी और सोच रही थी कि अपने देवर से कैसे सामना करेगी , अब थोड़ी बेफिक्र थी । )
मगर उसके पैर के अंगूठे में हल्की सूजन आ गई थी ।
थोड़ी ही देर में मदन एक ट्रे में गर्मागर्म चाय और सैंडविच लेकर आया

: एनीथिंग एल्स मैडम ( मदन फिर से बोला )
: उम्हू ( ममता ने मुस्कुरा कर ना में सर हिलाया और मदन वहां से निकल कर अपने रूम में चला गया और एक प्लास्टिक बॉक्स लेकर आया )

हाल से स्टूल खींच कर उसने ममता के पास रखा खुद नीचे बैठ गया
: अरे देवर जी , ये सब क्या ? ( ममता उसको प्लॉस्टिक बॉक्स को खोलते देख रही थी , जो असल में एक मेडिकल किट थी )
: क्या आप अपना पैर इसपर रखेंगी मैडम ( मदन मुस्कुरा कर बोला )
: क्या कर रहे हो आप , मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है ( ममता उलझी हुई अपनी चोट वाली टांग को सोफे पर बैठे हुए उस स्टोल पर रखा )

जिससे उसकी नाइटी का गैप बढ़ा हो गया , मदन इस वक्त ठीक उसके आगे उकङू होकर बैठा था , वहा से ममता के फैले हुए काटन नाइटी के गैप से दूर अंदर तक उसकी चिकनी लंबी गोरी टांगे दिख रही थी जांघों तक
मदन ने अपने नजरो को झटका और सेवलान से ममता के घाव धुलने लगा

: अह्ह्ह्ह सीईईई फ़ूऊऊ( ममता सिसकी एक ठंडा चुनचुनाहट भरा एहसास उसने अपने चोट के आसपास महसूस किया )
मदन ने काटन से उसके घाव साफ किए और एक मलहम निकाली और उसका ढक्कन खोलते हुए

: भाभी सैंडविच खाओ न ( वो ममता के घाव पर फूंकता हुआ बोला )
ममता ने सैंडविच को जैसे ही मुंह में दबाया उसी समय मदन ने वो मलहम की ट्यूब को दबाया और मलहम ममता को घाव पर फैलने लगी

: उम्ममम फ़ूऊ फ़ूऊऊ , अह्ह्ह्ह मम्मीईईई ये क्या है अह्ह्ह्ह( ममता जोर से चीखी अपनी टांग पकड़ते हुए )
: बस हो गया भाभी , अभी ठंडा हो जाएगा । शुरू में थोड़ा लगता है आप सैंडविच खाओ न ( मदन हंसते हुए बोला )
: भक्क, बहुत बुरे हो आप , अह्ह्ह्ह्ह सीईईई मम्मी ऊहू ( ममता का चेहरा दर्द से बेचैन था मानो अभी वो रो ही देगी)

मगर कुछ ही देर में उसे एकदम से आराम मिल गया और उसका गुस्सा भींनकना मुस्कुराहट में बदल गया ।
तो वो उठ कर किचन में आई

: उह ऊहू .. (ममता मुस्कुराती हुई नाइटी में मदन के पास खड़ी हो गई तो मदन मुस्कुरा कर उसे देखा ) थैंक यू
और उसने मदन के हाथ से चाकू ले लिया जिससे वो सब्जियां काट रहा था
: अच्छा जी , वो किस लिए ( मदन अपने हाथ बांधता हुआ ममता के मुस्कुराते चेहरे को देखते हुए किचन स्लैब पर अपने कूल्हे टिकाते हुए बोला )
: आपकी सर्विस के लिए ( ममता सब्जियां काटती हुई आंखे रोल करती हुई मुस्कुराई बिना मदन की ओर देखे )
: बिना टीप के सिर्फ थैंक यू ? इतनी खराब थी क्या सर्विस ( मदन ने मुंह बनाया )
: अरे नहीं ( ममता हस पड़ी और उसके मोतियों जैसे दांत होंठों पर खिल उठे ) अच्छा ठीक है कल आपको एक बहुत अच्छी टिप मिलेगी ओके
: क्या कल ? ( मदन चौका )
: वो मैने ऑर्डर दे दिया है कल तक आ जाएगा तो मिलेगा आपको ( ममता ने मदन को उलझाया ).
: ऐसा क्या मंगवा रही हो भाभी ( मदन सोचते हुए बोला )
: कल मिलेगा कल हीही

और वो काम करने लगी

प्रतापपुर

रसोई के पास लगी चौकी पर रंगीलाल और उसका ससुर बनवारी खाना खा रहे थे

: भाई मेरा हो गया , बहू जरा हाथ धुलवा दे ( बनवारी चौकी से उतरकर आंगन की ओर चला गया और सुनीता एक लोटा पानी लेकर चली गई पीछे )
इधर रंगीलाल के जहन में काफी कुछ चल रहा था । रात से अब तक जो कुछ भी घटित हुआ उससे सुनीता के लिए उसकी हवस को और हवा मिल चुकी थी ।
थोड़ी देर बाद ही बनवारी अपने गमछे से हाथ पोंछता हुआ आया और पीछे उसके सुनीता
रंगी की नजर अनायास उसके सर से हटे हुए पल्लू पर गई सीने का उभार हल्का सा झलक रहा था । सुनीता ने रंगी की नजर भाप ली और झट से अपने सर पर पल्लू करते हुए अपने ब्लाउज को ढक दिया।

: जमाई बाबू चलना है या फिर आराम करोगे ? ( बनवारी अपने हथेली के खैनी रगड़ता हुआ बोला )
रंगीलाल बनवारी के सवाल पर उसके पीछे खड़ी अपनी खूबसूरत सलहज को देखता है और मुस्कुरा देता है ।
: नहीं बाउजी , अभी थोड़ा आराम करूंगा घर पर । मन हुआ तो आता हूं ( रंगी लाल खाना खाने लगा और उसके जवाब पर सुनीता मुझ फेर कर मुस्कुराने लगी क्योंकि वो जान रही थी कि रंगीलाल उसके लिए ही रुकेगा )
इधर बनवारी निकल गया और रंगीलाल का खाना भी लगभग हो गया
: और कुछ दूं ( सुनीता ने रंगी से पूछा )
: जो चाहिए वो तो आप दे नहीं रही हो ( रंगी ने मुस्कुरा कर उसे देखा और सुनीता लजाई ) हाथ धुला दीजिए अब ।

रंगीलाल चौकी से उतर कर जूठे हाथ लिए आंगन की ओर आ गया और सुनीता पानी लेकर उसके पीछे गई मुस्कुराती हुई

रंगी आगे झुक कर हाथ आगे किया और सुनीता भी उससे कुछ दूरी पर ही सामने थोड़ा सा झुक कर पानी गिराने लगी। रंगी ने मुस्कुरा कर उसे देखा तो दोनों की नजरे टकराई
मगर असल धोखेबाज तो उसका पल्लू निकला , बिना पिन का पल्लू झुकने की वजह से उसके कंधे से सरक कर कलाई के आ गया और उसके बड़े गले वाले ब्लाउज़ से उसके मोटे रसीले गोल मटोल मम्मे दिखाई देने लगे ।


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रंगीलाल की नजर एकाएक उन पर गई और उसकी नजर का पीछा किया तो सुनीता ने देखा कि वो उसके मुलायम चूचों को ही घूर रहा है ।
सुनीता बेचैन होने लगी , उसकी सांसे तेज हो गई और वो झट से खड़ी होकर अपना पल्लू सही किया ।

रंगी मुस्कुराया कर उसे निहारता रहा और सुनीता नजरे चुराती रही । फिर रंगी हाथ पोछने के लिए कुछ खोजने लगा कि उसकी नजर सुनीता के पल्लू पर गई और वो उसे पकड़ लिया
सुनीता एकाएक चौकी और अपनी साड़ी को छातियों के पास कस कर पकड़ लिया

मगर रंगी मुस्कुरा कर बस उसके पल्लू में हाथ पोंछ कर छोड़ दिया ।
सुनीता के दिल अभी तक कांप रहा था ।

रंगीलाल : अरे डरिए मत , जब तक आप हा नहीं कहेंगी हम आगे नहीं बढ़ेंगे
सुनीता मुस्कुराई : धत्त , आप जो चाहते है वो सही नहीं है ।
रंगीलाल उसके करीब आकर उसकी आंखों में देखता हुआ : किसी को चाहना गलत है क्या ?
रंगीलाल का यू उसकी ओर चढ़ आना सुनीता की हालत पतली हो गई ,उसकी सांसे चढ़ने लगी और आंखों में हल्का सा डर दिखा : नहीं , लेकिन मै उन्हें छोड़ नहीं सकती हूं, प्लीज
रंगीलाल : मैने तो नहीं कहा आप छोड़ दो , बस मेरा हाथ थाम लो यही चाहता हूं
रंगीलाल की आंखों के खुमारी सी थी और दोनों की सांसे बेकाबू हुई जा रही थी
सुनीता को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले : हटिए जाने दीजिए , मुझे कपड़े धुलने है
ये बोलकर वो तेजी से निकल गई और रंगीलाल मुस्कुरा कर उसके रसीले मटके हिल्कोरे खाता देखता रहा ।

वही बबीता के कमरे में आज सालों बाद राजेश घुसा था , इधर उधर नजर पड़ रही थी । गीता को बड़ा ताज्जुब लग रहा था कि उसको पापा आए है ।
वही बबीता बड़ी खुश नजर आ रही थी अपने पापा का साथ पाकर
फुदक रही थी , टीशर्ट में बिना ब्रा के उसके गोल मटोल मौसमी जैसे चूचे खूब हिल रहे थे और नंगी चिकनी जांघें देख कर राजेश का लंड अकड़ रहा था ।

तभी उसकी नजर कमरे के दरवाजे के पीछे वाल हैंगर में लटके हुए ब्रा और पैंटी पर गई , उसे समझते देर नहीं लगी कि ये उसकी बेटियों के होंगे ।
उन ब्रा पैंटी के सेट देख कर राजेश की बेचैनी बढ़ने लगी । वो बबीता की नाप जानने को इच्छुक हो उठा ।
इतने बबीता आई और उसके पास सट कर बैठ गई

: पापा ये वाली मूवी में बहुत हसी है हीही ( बबीता खिलखिला कर बोली तो राजेश उसकी कमर के हाथ डाल कर उसे अपने पास खींच लिया )

ये सब देख कर गीता को अजीब सा लग रहा था , एकदम से बबीता और उसपे पापा के रिश्ते में आया बदलाव उसे समझ से परे लगा। उसके जहन में तो उसके दादा जी का बड़ा मोटा लंड घूम रहा था । ताज्जुब हो रहा था उसे कि इस उम्र में भी उसके दादू का लंड इतना मोटा है ।
राज के यहां से आने के बाद बबीता ने अपने बॉयफ्रेंड से मिलना जारी रखा मगर गीता अकेली थी और दादाजी का लंड उसे ललचा खूब रहा था ।
वो बेचैन हो रही थी और उसने तय किया कि वो दादा जी के पास जाएगी
उसने आलमारी से कपड़े लिए

: मीठी कहा जा रही है ( पापा की बाहों में लिपटी हुई बबीता ने पूछा तो राजेश ने भी गीता को देखा )
: वो मै दादू के पास जा रही हूं , ऐसे ही घूमने ( गीता ने साफ साफ जवाब दिया और अपने कपड़े लेकर निकल गई)
: आराम से जाना बेटा ठीक है ? ( राजेश ने उसको बोला और गीता हा में सर हिला कर निकल गई दरवाजा खींच कर दूसरे कमरे में कपड़े बदलने )
उसके जाते ही राजेश ने बबीता को दोनों हाथों से पकड़ा और उठा कर गोदी में बिठा लिया

: हीही पापा , मै बच्ची थोड़ी हूं जो ऐसे बिठा रहे हो ( बबीता अपने अपना की जांघों पर बैठी खिलखिलाई )
वही राजेश अपनी बिटिया के नरम चर्बीदार चूतड़ का गद्देदार स्पर्श पाकर सिहर उठा था ,उसके नथुनों में अपनी बेटी की कोरी खुशबू आ रही थी
: तू तो हमेशा मेरी गुड़िया रहेगी ( हाथ बढ़ा कर उसने बबीता के पेट पर टीशर्ट के ऊपर से गुदगुदी की तो वो उसके गोद में छटकने लगी )
: हाहाहाहाहा पापा
( फिर उसकी नजरें अपने पापा से मिली तो उसने अपने पापा को देखा और दोनों हाथों से उसका चेहरा थामा )
: आई लव यू पापा ( उसने झट से राजेश को हग कर लिया) आप प्लीज ऐसे रहा करो प्लीज
राजेश बबीता की भावुकता समझ रहा था , बचपन से उसने कभी भी अपनी बेटियों को एक पिता का प्यार नहीं दिया । अपनी अय्याशी और नशे की लत में वो इतना बहक गया कि उसे घर परिवार का ख्याल तक नहीं रहा था । मगर आज बबीता का यू उससे लिपटना उसे पिघला रहा था ।
उसने झट से बबीता को अपने सीने से कस लिया , उसके छोटे छोटे मौसमी जैसे चूचे अपने सीने पर कठोर बॉल के जैसे धंस रहे थे और वो अपनी बेटी के पीठ को सहला रहा था ।
कितना कोमल अहसास था
: आई लव यू मेरी गुड़िया उम्माह ( उसने बबीता के कान के पास चुम्मी ली तो बबीता को हल्की गुदगुदी लगी और वो खिलखिला उठी और अलग होने का प्रयास की तो राजेश उसे हंसी में और कस कर पकड़ लिया)

: हीही , छोड़ो अब पापा ( बबिता खिलखिलाई )
: नहीं, मै नहीं छोड़ने वाला अपनी गुड़िया को ( उसने बबीता को अपनी बाहों में और कसा जिससे बबीता के नरम फुले हुए चूचे उसके सीने से दब गए और जब जब बबीता उससे अलग होने को खुद को कसमसाती उसके निप्पल पर अपने पापा के गर्म सीने का घर्षण होता , जिससे उसके निप्पल टाइट होने लगे और वो बेचैन होने लगी ।
उसे शर्मिंदगी सी होने लगी कि उसके पापा को जरूर उसके तने हुए निप्पल चुभ रहे होगे , उसके जहन में कुछ बातें घूमने लगी , कि क्या सोच रहे होंगे उसके पापा उसके बारे में।
वो थोड़ा सा जोर लगा कर अपने छातियों को अपने पापा से सीने से दूर किया और राजेश भी समझ गया कि बबीता असहज हो रही है इसलिए उसने भी छोड़ दिया
बबीता लजा कर सीधी उसके गोद में चुप होकर बैठ गई , वही राजेश उसके टीशर्ट में उभरे हुए उसके निप्पल के दाने को देख आकर उसके लंड में हरकत होने लगी ।

मगर उसे माहौल को सहज ही रखना था इसीलिए उसने पीछे से बबीता के पेट को पकड़ कर उससे लिपट गया
बबीता को फिर से गुदगुदी हुई मगर वो अब सहज महसूस कर रही थी ।
मगर राजेश के जहन में वो ख्याल आ रहे थे जब उसने बबीता को पूरी नंगी देखा था उसके उपले जैसे गोल मटोल चूतड़ पानी में उपराए हुए थे और वो तैर रही थी नंगी । उसका लंड पजामे में अकड़ने लगा था
जिसका अहसास बबीता को भी हो चुका था अपने नरम चर्बीदार चूतड़ों पर
जैसे उसे अपने चूतड़ों के नीचे कुछ कड़कपन का अहसास हुआ वो चिहुकी , उसकी आंखे बड़ी हो गई
उसे लगने लगा कि जरूर जब उसके दूध उसके पापा के सीने से रगड़े होंगे इसी वजह से उसके पापा का खड़ा हो गया ।
उसका कलेजा डर रहा था , वो अपने पापा के सुपाड़े की कठोरता महसूस कर पा रहे थी । उसकी चूत बिलबिला उठी और वो राजेश के गोद से खड़ी हो गई

: पापा वो मै मम्मी को कपड़े देकर आती हूं नहीं तो गुस्सा करेंगी ( बबीता ने बहाना बनाया और निकल गई )
राजेश वही बैठा हुआ अपना लंड मसलने लगा ।
इधर बबीता तेजी से कमरे से निकल कर पीछे आंगन की ओर जाने लगी
जिसकी आहट पाते ही रंगीलाल जो छिप कर अपनी सहलज को कपड़े धुलते देख रहा था वो रसोई की ओर चला गया और जब बबीता वापस जाने लगी तो वो लपक और आंगन के दरवाजे के पास आया और भीतर झांकने लगा


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जहां सुनीता अपने सीने का पल्लू कमर में खोसे हुए बैठ कर कपड़े धूल रही थी और उसके बड़े बड़े रसीले मम्में ब्लाउज से बाहर झांक रहे थे
वो नजारा देख कर रंगीलाल का लंड अकड़ने लगा था ।
उसको तत्काल चुदाई चाहिए थी और सुनीता से अभी कोई उम्मीद नहीं नजर आ रही थी इसलिए वो निकल गया अपने ससुर के पास
वही रंगीलाल से पहले ही गीता निकल गई थी बनवारी के पास
इठलाती उछलती हुई वो मुख्य सड़क की जगह खेतों से होकर गोदाम के पीछे वाले रास्ते से बनवारी के पास जा रही थी । उसका अक्सर यही रूट रहता है हमेशा से , इससे दो फायदे होते थे , उसे गांव के कम लोगो का सामना करना पड़ता था और कम समय में वो पहुंच जाती थी ।
तेजी से चलते हुए वो गोदाम की ओर जा रही थी , इस उद्देश्य से आज उसके फूफा रंगीलाल घर पर है और उसके दादाजी अकेले में क्या करते है वो भलीभाती जानती है ।
वो अपने तय जगह पर आ पहुंची थी और वो जगह थी , गोदाम के सबसे पीछे वाले कमरे में जहां बनवारी अपनी कामलीलाये करता था ।
वही से एक खिड़की खुली थी जहां से अंदर का नजारा देखा जा सकता था और वो वही खड़ी होकर एड़ी उठा कर भीतर झांकने लगी
उसका तुक्का सही निकला , कमरे में उसके दादा बनवारी एक औरत को अपनी बाहों में लेकर सहला रहे थे , कभी उसके ब्लाउज में हाथ घुसा कर उसकी गुदाज मुलायम छातियां मिजता तो कभी उसके चर्बीदार पेट को मसलता वो औरत खिलखिला रही थी
: अह्ह्ह्ह्ह सेठ जी छोड़िए न , आज नहीं उम्मम अह्ह्ह्ह्ह, घर पर मेहमान आए है
: अह्ह्ह्ह कितने दिन बाद तो आई हो थोड़ा सा दूध पिला दो ( बनवारी उसके चूचे मसलने लगा )
: नहीं , मै हाथ जोड़ती हु सेठ घर पर मेरी बुढ़िया राह रही होगी । ( वो औरत अलग हुई और कपड़े सही करते हुए वो पैसे जो अभी उसे मिले थे उसे अपने ब्लाउज में खोंसते हुए बोली )
फिर तेजी से बाहर निकल गई और बनवारी अंगड़ाई लेता हुआ बिस्तर की ओर आने लगा , इधर गीता वहा से हटने को हुई कि उसका बैलेंस बिगड़ा और वो पीछे की ओर गिर पड़ी

उसकी सिसकी से बनवारी चौका और लपक कर खिड़की से बाहर झांका तो देखा कि खिड़की के बाहर खेत में उसकी नातिन गीता गिरी है

बनवारी चिंता में उसको आवाज दिया और जल्दी से कमरे की पीछे वाले दरवाजे को खोला जो खेत में खुलता है , अक्सर ये दरवाजा बनवारी औरतों को बुलाने के लिए यूज करता था ।
वो झट से दरवाजा खोलता हुआ गीता की ओर भागा

: अरे मीठी , क्या हुआ बेटी ,तू गिर कैसे गई ? और तू यहां क्या कर रही थी ?
एक एक करके सवाल और सवाल
पैर में चोट आई थी और दर्द से बिलख रही थी ,
: वो मै ऐसे ही आई थी घूमने , आज छुट्टी थी स्कूल की , अह्ह्ह्ह्ह मम्मी दर्द हो रहा है
: लेकिन तू पीछे से क्यों आ रही थी ( तभी बनवारी को सुबह वाली घटना याद आई और उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी नातिन यहां पीछे क्या कर रही थी ) चल उठ कमरे में आ चल
बनवारी ने उसे उठाया और कमरे के लेकर आया
: बहुत बिगड़ गई है आजकल तू , कभी छत से कभी खिड़की से क्या है ये सब तेरा बोल ? ( बनवारी ने डांट लगाई )
: सॉरी दादू ( वो बिलखते हुए बोली , इस उम्मीद में कि रोने से शायद वो सजा से बच जाए )
: मै देख रहा हूं कई रोज से तू आंगन में झांकती है , ये अच्छी बात है क्या ? बोल ( बनवारी ने उसे समझाना चाहा )
: नहीं दादू , वो मै , अह्ह्ह्ह दर्द हो रहा है सॉरी ( गीता को समझ नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे वो )
बनवारी ने पानी से उसके पाव धुले और एक मलहम लगाया जो उसके दराज में उपलब्ध था ।
: नहीं करना चाहिए न बेटा , ये अच्छी आदत नहीं है और तू मेरी प्यारी बेटी है न ( बनवारी उसकी एड़ी में मलहम से सहलाने लगा )
: जी दादू , अब नहीं करूंगी

कुछ देर कि चुप्पी और फिर कुछ बाते थी जो बनवारी के जहन में उठ रही थी सवालों के रूप में
: अच्छा सुन , तूने बहु को कहा तो नहीं इस बारे में जो तू ताक झांक करती है ( बनवारी ने सवाल किया )
: ऊहु ( गीता ने थोड़ी लजा कर मुस्कुराती हुई न में सर हिलाई ) उन्हें पता चलेगा तो आपको अपने पास आने थोड़ी देंगी हीही

एकाएक बनवारी के कान खडे हो गए
: क्या कहा तूने अभी ,
: जैसे मुझे पता नहीं चलेगा क्या कि मम्मी रात में आपके कमरे में क्यों जाती है ? ( गीता मुस्कुरा कर बनवारी को देखी )
बनवारी अब असहज होने लगा और उसका हल्क सूखने लगा , उसे उम्मीद नहीं थी उसकी बाते इस कदर उसकी नातिन जान लेगी ।
: तू कुछ ज्यादा नहीं जानती तेरी उम्र के हिसाब से ( बनवारी को हंसी आई )
: आप भी कुछ ज्यादा ही करते हो वो सब अपनी उम्र के हिसाब से ( गीता ने पलट कर जवाब दिया )
जिसपर बनवारी हस दिया
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो भला क्या ही रिएक्ट करे गीता की बातों पर , जिसमें बचपना भरा है । भले उसका जिस्म भर आया हो और उम्र बढ़ रही हो मगर बनवारी के लिए ये मानना आसान नहीं था कि उसकी नातिन की रुचि अब सेक्स को लेकर भी होने लगी है ।

: तू , तूने कब देखा तेरी मां मेरे कमरे में आती है ? ( बनवारी ने सवाल किया )
: कई बार , कभी कभी किचन में भी । एक बार तो मैने आप दोनों को पापा से भी बचाया था हीही ( गीता बड़ी मासूमियत से बोली )
राजेश का जिक्र होते ही बनवारी ठिठक गया
: क्या ? कब ?
: वो आप लोग किचन में थे और पापा पानी पीने जा रहे थे तो मै उन्हें घुमा लाई कमरे में । काफी दिन हो गए

बनवारी को अब समझ आ रहा था , उसकी नातिन को सही गलत को समझ है । वो सिर्फ बहकी नहीं बल्कि उस चीज को समझती भी अच्छे से है । लेकिन फिर भी वो उसके लिए लाडली नातिन थी । अभी पिछले बरस ही तो उसने अपनी दसवीं पास की है ।

: अच्छा ठीक है ठीक है , लेकिन अब तू घर जा ( बनवारी ने कड़े शब्दों के कहा ) और ये सब किसी से कहना मत
अपने दादू से ये सब सुनते ही गीता का मुंह फूल गया , गीता का स्वभाव बचपन से जिद्दी था , और अपने दादा के आगे कुछ ज्यादा ही दुलारी थी ।
बनवारी उसकी भावनाएं समझ रहा था मगर क्या करे । उसके सामने उसके गोद में खेली हुई बच्ची थी जो खुद को श्यानी समझ रही थी ।
: अच्छा ठीक है , चौराहे से तेरे लिए शाम को फुल्की लेकर आऊंगा अब खुश ( बनवारी ने गीता का चेहरा देखा )
वो भीतर से जल रही थी कि क्यों उसके दादू उसकी बात समझ नहीं रहे है , जबसे उसने दादू और अपने मम्मी की चुदाई देखी थी वो पगलाई घूम रही थी । उसके जहन में अपने दादू का मोटा लंबा लंड घूमता रहता था सुबह शाम और आज जब सारे भेद खुल गए तो उसकी बेसबरी और बढ़ गई ।
वो पिनक कर उठी और बिना कुछ बोले पीछे वाले दरवाजे से खेतों की ओर निकल गई । बनवारी का मन भी थोड़ा उदास हो गया अपनी लाडली नातिन को उदास देख कर । लेकिन अभी तक उसके जहन के गीता को लेकर कोई भी बुरे ख्याल नहीं आए । न ही उसने गीता के बड़े हुए संतरों और चर्बी भरी मोटी चूतड़ों की थिरकन को पलट कर देखा । बस नजरे फेर कर बिस्तर पर बैठ गया ।

वही रंगीलाल मेन सड़क से होता हुआ गोदाम आ रहा था कि बोरियो के बीच उसे कमला मिली और झट से उसे वो एक कोने खींच ले गया ।
: अह्ह्ह्ह छोड़ो जमाई बाबू , काहे तंग कर रहे हो अह्ह्ह्ह्ह ( कमला बोरियो के छलियों से लगी छटपटा रही थी और आगे रंगी उसकी कलाई पकड़े हुए था और अपनी टांग को उसकी जांघों के साड़ी के ऊपर से भेद रखा था जिससे वो भाग न सके )
: ओहो कमला रानी सारी जवानी अब क्या सिर्फ मेरे साले और ससुर पर न्योछावर करोगी , तनिक हम पर भी रहम करो( रंगी उसको अपनी ओर कसता हुआ बोला )
: अह्ह्ह्ह्ह उम्मम क्या करते सीईईई ( अपने गुदाज नर्म चूचों को रंगीलाल के सीने से रगड़ खाते ही कमला सिसकी )
रंगी उसके चर्बीदार चूतड़ों को साड़ी के ऊपर से मसलता हुआ : अह्ह्ह्ह कमला रानी , कल तुमने अपने इन रसीले जोबनो से मुझे जो घाव दिए बहुत दर्द रहा रात भर कसम से

: धत्त , छोड़ो न जमाई बाबू कोई देख लेगा ( कमला शर्मा कर मुस्कुराती हुई अलग होने लगी )
: रात में मिले फिर ?
: कहा ?
: बाउजी के बगल वाला कमरा मेरा है, कल सारी रात तुम्हारी सिसकियां सुनकर इसे मसलता रहा ( रंगीलाल उसके आगे पजामे के ऊपर से अपना खड़ा हुआ लंड मसलता हुआ बोला )

: क्या मेरी ? मै कब आई हीही ( असहज होकर कमला हसी )
: तुम नहीं थी तो फिर कौन था ? बाउजी ने तो ... ( रंगी अपनी बात अधूरी छोड़ दिया)
: अभी बहुत कुछ है जो आपके बाउजी आपसे छुपाए हुए है हीही, मिलती हु रात में

और वो मुस्कुराती हुई अपने कूल्हे झटकती निकल गई । वही रंगी लाल सोच में पड़ गया कि आखिर फिर वो दूसरी कौन हो सकती है ? जिसके बारे में बाउजी ने मुझसे झूठ बोलने लगे ।
रंगी वहा से निकल कर सीधे अपने ससुर के पास चला गया
: अरे जमाई बाबू , आइए आइए बैठिए
: लग रहा है आज अकेले ही आराम फरमा रहे है हाहाहाहाहा ( रंगी ने हस कहा )
: अरे वो कमला आई थी , लेकिन उसके घर मेहमान आए है तो चली गई , वरना अभी तक दरवाजा बंद ही मिलता हाहाहाहाहा ( बनवारी हस कर बोला )
: वैसे सच कहूं बाउजी , समान जोरदार है कमला ( रंगी सिहर कर बोला )
: ओहो कही जमाई बाबू का ईमान भी तो नहीं डोल रहा है हाहा ( बनवारी के छेड़ा रंगी को )
रंगी उसकी बातों और थोड़ा लजाया: अरे नहीं बाउजी , रागिनी के आगे फीकी है ये , उसके चूतड़ तो इससे भी.... सॉरी बाउजी ( रंगी बोलते हुए रुक गया )
बनवारी हंसता हुआ : हा हा समझता हूं भाई, बीवी की दीवानगी होती ही ऐसे है । अब तुम्हारी स्वर्गवासी सास को ही लेलो डिट्टो मेरी रज्जो की फोटोकापी थी और घाघरे में जब उसके बड़े चौड़े कूल्हे झटके खाते , उफ्फफ
: क्या सच में अम्मा जी रज्जो जीजी जैसे थी ? फिर तो बड़े किस्मत वाले निकले बाउजी हाहाहा ( रंगीलाल ठहाका लगा कर बोला)
बनवारी हस कर : अरे किस्मत वाले तो कमलनाथ बाबू है क्यों ?
रंगी अपने ससुर के इस मजाक और थोड़ा सा झेप गया और असहज भरी मुस्कुराहट से हंसता है : अह बात तो सही है आपकी , किस्मत वाले तो है ही कमल भाई

बनवारी ने अब रंगी को शर्माता देख कर छेड़ा : कही आपकी भी पहली पसंद रज्जो तो नहीं थी ? हाहाहाहाहा

रंगी बनवारी के मजाक में शामिल होता हुआ हस कर : अब मेरी बारी ही लेट आई तो क्या कर सकता हूं बाउजी , सिवाय हाथ मलने के हाहा

बनवारी हस कर : वैसे उदास होने की जरूरत नहीं है , छोटकी भी ... हीही ( बनवारी बातें आधी छोड़ कर हस पड़ा और रंगी भी मुस्कुराने लगा )

शिला के घर

" Send me video plzz "
" Okay , wait 5 mins "
...................................
अरुण बेचैन होकर कालेज के बरामदे में चक्कर लगा रहा था और बार बार मोबाइल देख रहा था ,
तभी एक वीडियो क्लिप उसके ****gram पर आया , जिसे देखते ही उसकी सांसे चढ़ने लगी । वो एक सुरक्षित जगह तलाशने लगा और लपक कर तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गया

वही कालेज के ऑफिस में मानसिंह बैठा था और उसका मोबाइल बजने लगा
: हा शिला कहो ( मानसिंह ने फोन उठाया )
: कुछ खास भेजा है मैने आपके लिए चेक करो और बताओ हीही ( शिला मुस्कुराती हुई फोन काट दी )

मानसिंह को समझते देर नहीं लगी कि आखिर क्या खास चीज होगी और उसने झट से अपना व्हाट्सअप खोला और दो तीन तस्वीरों के साथ एक वीडियो आया था , जिसके नीचे एक मैसेज लिखा हुआ था । " आज का लंच स्पेशल है 😜"
मानसिंह उन तस्वीरों को देख कर समझ चुका था कि वीडियो में वही सब होगा और जैसे ही उसने वीडियो खोला ,उसका लंड फुदकने लगा


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वीडियो में शिला सिर्फ ब्लाउज और पैंटी में किचन में खड़ी होकर खाना बना रही थी । पैंटी में बाहर निकले हुए उसके बड़े चौड़े चूतड़ देख कर मानसिंह का लंड अकड़ने लगा वो उसको पकड़ कर सिहर गया ।

वही कालेज के बाथरूम में दरवाजा बंद करके खड़ा होकर अरुण तेजी से अपना लंड भींच रहा था । उसके मोबाईल स्क्रीन पर म्यूट में एक वीडियो चल रहा था जिसमें एक मोटी गदराई हुई औरत शावर के नीचे सिर्फ पैंटी में नहा रही थी और पीछे से उसकी भीगी हुई गाड़ दिख रही थी "

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" अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह क्या मस्त माल है यार कितनी मोटी गाड़ है और भीगती हुई तो अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म फक्क्क् यूयू बिच ओह्ह्ह्ह "
तभी वो औरत कैमरा की ओर अपनी गाड़ किए हुए ही अपनी पैंटी नीचे उतारने लगी और उसकी मोटी गदराई गाड़ नंगी होने लगी , शावर का पानी अब सीधे उसके बड़े चौड़े चूतड़ों के दरारों में जाने लगा , जिसे देख कर अरुण खुद को रोक नहीं पाया और भलभला कर झड़ने लगा

" अह्ह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् यूयू ओह्ह्ह्ह यशस्स अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह उम्ममम अमीईईई अह्ह्ह्ह कितना बड़ा है आह्ह्ह्ह "
अरुण अपना लंड झाड़ कर वापस क्लास के लिए निकल गया और वही मानसिंह शिला से फोन पर बातें कर रहा था । जबकि रज्जो ने शिला का मोबाइल स्पीकर पर रखा हुआ था ताकि वो भी मानसिंह के जज्बात सुन सके

: ओह्ह्ह्ह मेरी जान , क्या मस्त चूतड़ है उफ्फ , जी करता है आकर काट लूं अभी , और खोल कर लंड घुसा दु ( मानसिंह फोन पर बोला और उसकी बाते सुन कर रज्जो और शिला मुंह पकड़ कर खिलखिलाई )
: उफ्फ तो रोका किसने है, आजाओ न मै तो अभी तक वैसी ही हूं कपड़े भी नहीं पहने, आजाओ न मेरे राजा और घुसा दो जहां जो घुसाना चाहते हो उम्ममम ( शिला ने मानसिंह को उत्तेजित किया और मानसिंह का लंड अकड़ गया )
: बस 5 मिनट , मै निकल रहा हूं
मानसिंह की बौखलाहट पर शिला और रज्जो मुंह दबा कर हस रही थी और फिर फोन कट हो गया ।

कुछ ही देर में मानसिंह घर के अंदर दाखिल हो गया था , और उसका लंड पेंट के पूरा कड़क हो गया था
वो लपक कर तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ गया ।
कि तभी उसका मोबाइल बजा ये कॉल शिला ने ही किया था

" कहा हो मेरे राजा उम्मम आओ न " , शिला ने फोन पर सिसक कर कहा ।
मानसिंह शिला के कामुक और आकर्षक आवाज से उत्तेजित हो उठा : आ गया हु मेरी जान, कहा हो तुम
शिला : सीधे कमरे में चले आओ अह्ह्ह्ह्ह कबसे मेरी चूत कुलबुला रही है अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म
शिला ने फोन पर मानसिंह को और उकसाया
मानसिंह : अरे वो रज्जो भाभी कहा.....( मानसिंह आगे कुछ बोलता उससे पहले ही शिला ने फोन काट दिया )
अब तक वो शिला के कमरे तक आ पहुंचा था और जैसे ही उसने कमरे का दरवाजा खोला , अंदर बत्तियां बंद थी बस एक गुलाबी सीलिंग लाइट जल रही थी । उस गुलाबी सीलिंग लाइट को शिला तभी ऑन रखती थी जब वो पूरी तरह से वाइल्ड महसूस करती हो और ये एक तरह का सिंगनल था मानसिंह के लिए और जैसे ही उसकी नजर बिस्तर पर गई उसकी आंखे फेल गई और मुंह में लार बढ़ने लगा ।


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सामने उसके शिला वही वाली पैंटी और ब्लाउज पहने हुए हवा में अपने चूतड़ उठाए हुए लेती थी , उसका मुंह दूसरी ओर था ।
तभी बिस्तर की ओर से आवाज आई
: आओ न जानू अह्ह्ह्ह ( शिला ने अपने बड़े भड़कीले चूतड़ हवा में हिला कर उसे रिझाया )
मानसिंह का लंड एकदम से बौराया हुआ था और वो पेंट के ऊपर से उसको पकड़े हुए मसल रहा था
: उफ्फ मेरी जान उस गुलाबी रौशनी में तुम्हारे चूतड़ और भी बड़े और रसीले नजर आ रहे है ।
मानसिंह आगे बढ़ कर शिला के चूतड़ के नंगे गोल बड़े हिस्से को सहलाते हुए कहा , उसका स्पर्श पाते ही वो अकड़ गई ।
: उम्मम कितनी मादक गंध है अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह आज तो तुम्हारे चूतड़ और भी नरम है आह्ह्ह्ह मेरी जान उम्मन( मानसिंह घुटनों के बल होकर दोनों हाथों से शिला के बड़े भड़कीले चूतड़ों को सहलाते हुए अपने नथुने करीब ले गया )
मानसिंह के स्पर्श के शिला के जांघों के कम्पन हो रहा था और थोड़ी मादक महीन सी सिसकियां उठने लगी और अगले ही मानसिंह के अपना मुंह सीधा शिला के बड़े भड़कीले चूतड़ों के दरारों में मुंह दे दिया


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अह्ह्ह्ह उम्मम अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह यस्स अह्ह्ह्ह्ह
मानसिंह के कानो में कुछ अनजानी सी कुनमुनाहट भरी आह आई मगर वो पंजे से दोनों चूतड़ों को फाड़े हुए पैंटी के ऊपर से ही उसके गाड़ की सुराख को चाटने लगा ।
और वो उतनी ही अकड़ने ऐंठने लगी

: ओह मेरे राजा पूरा खा जाओगे क्या ( मानसिंह के कान में शिला के मादक स्वर आए )


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: कितनी रसीली गाड़ है , इसको तो मै नंगा करके उम्मम्म सीईईईई ( मानसिंह के अगले ही पल पैंटी हटा कर उसके दरारों को फैलाते हुए अपनी जीभ की टिप से गाड़ की सुराख को गिला करने लगा और वो पूरी तरह से छटकने लगी )
: मस्त है न मेरी जान , और चाटो ने जीभ डाल के अह्ह्ह्ह ऐसे ( शिला ठीक उसके पास बैठती हुई बोली और एकाएक मानसिंह की नजर अपने ठीक बगल में पड़ी और वो चौका )
अगर शिला उसके बगल में बैठी थी तो वो कौन है जिसकी गाड़ की सुराख वो गीली कर रहा था ।
मानसिंह के मन में शंका के अंकुर फूटे और झट से उसने कमरे की बत्ती जला दी

: रज्जो भाभी आप ??



जारी रहेगी
Nice Update
 

Raj Kumar Kannada

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