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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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romanchak update.. nilabh ka janm kaise hua ye pata chal gaya ..kahani padhne me maja aa raha hai ..naye rahasy saamne aa rahe hai .
Neelaabh jahar ke karan hi nerla hai, aur megna ka dharm pita bhi,
Sath bane rahiye aage qur bhi rahasya aur khatarnaak romanch bhara hai,:declare:
Thanks for your valuable review and support bhai :thanx:
 

Raj_sharma

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dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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#106.

“मायावन: एक रहस्यमय जंगल”

दोस्तों माया सभ्यता अमेरिका की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में गिनी जाती है, जिसके प्राप्त अवशेषों में कई देवताओं जैसे शि..व, ग..श और ना..रा.. आदि देवताओं की मूर्तियां प्रचुर मात्रा में पायी गयी हैं। भारतवर्ष से इतनी दूर आखिर कैसे हिंदू सभ्यता विकसित हुई? यह आज भी रहस्य बना हुआ है।

कुछ पुरातत्वविद् माया सभ्यता का सम्बन्ध दैत्यराज मयासुर से जोड़ते हैं। मयासुर, एक ऐसा दैत्य, जिसे उसके अद्भुत निर्माण कार्य के लिये देवताओं ने भी सराहा। तारका सुर के समय में ‘त्रिपुरा ’ नामक 3 भव्य नगरों का निर्माण, दैत्यराज वृषपर्वन के लिये बिंदु सरोवर के निकट अद्भुत सभा कक्ष का निर्माण, रामायण काल में रावण के लिये सोने की लंका का निर्माण एवं महाभारत काल में पांडवों के लिये, खांडवप्रस्थ के वन में अकल्पनीय इन्द्रप्रस्थ का निर्माण मयासुर की अद्भुत शिल्पकला की कहानी कहतें हैं।

रावण की पत्नि मंदोदरी का पिता मयासुर, वास्तुशिल्प और खगोल शास्त्र में प्रवीण था। खगोल शास्त्र के क्षेत्र में मयासुर ने सूर्य से विद्या सीखकर ‘सूर्य सिद्धान्तम’ की रचना की। आज भी हम ज्योतिष शास्त्र की गणनाएं सूर्य सिद्धान्तम के आधार पर ही करते हैं।

म..देव के इस परमज्ञानी शिष्य ने किस प्रकार की ये अद्भुत रचनाएं? क्या शि..व की पारलौकिक शक्तियां मयासुर के पास थीं ? तो दोस्तों तैयार हो जाइये, इस कथानक के अद्भुत संसार में डूब जाने के लिये, जहां का हर एक दृश्य आपको वस्मीभूत कर देगा। हिमालय की गुफाओं से माया सभ्यता तक, ग्रीस के ओलंपस पर्वत से अंटार्कटिका की बर्फ की चादर तले फैले, अविश्वसनीय और अद्वितीय कहानी को पढ़ने के लिये। जिसका नाम है- “मायावन- एक रहस्यमयी जंगल”

आज से 19000 वर्ष पहले जब अटलांटिस की सभ्यता को, ग्रीक देवता पोसाईडन ने समुद्र में विलीन कर दिया, तब किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन इसी सभ्यता के अवशेष फिर से पूरी पृथ्वी पर, अपनी विचित्र शक्तियां बिखेरना शुरु कर देंगे और इन्हीं शक्तियों को प्राप्त करने के लिये, ब्रह्मांड के कुछ शक्तिशाली जीव पृथ्वी पर आ जायेंगे।

ब्रह्मांड के निर्माण के समय ईश्वर ने अपनी कुछ अलौकिक शक्तियों को, पृथ्वी के अलग-अलग भागों में छिपा दिया।

उन्हें पता था कि जब पृथ्वी फिर से संकट में आयेगी, तो यही दिव्य शक्तियां मनुष्यों की रक्षा करेंगी। अब ईश्वर को तलाश थी कुछ ऐसे मनुष्यों की, जो बुद्धि, विवेक और अपने ज्ञान से उन अद्भुत शक्तियों का वरण करें और उन शक्तियों के माध्यम से पृथ्वी की रक्षा का भार उठायें। जी हां आज की भाषा में आप इन्हें सुपर हीरोज कह सकते हैं।

‘सुप्रीम’ नामक एक छोटे से जहाज से चले कुछ मनुष्य, दुर्घटना का शिकार होकर, अटलांटिस द्वीप के आखिरी अवशेष अराका द्वीप पर जा पहुंचे।

अराका द्वीप पर उनका सामना मायावन से हुआ। मायावन ईश्वर की विचित्र शक्तियों से निर्मित एक ऐसा जंगल था, जहां पर विचित्र पेड़-पौधे, अनोखे जीव और प्रकृति की अद्भुत शक्तियां, मुसीबत बनकर सभी मनुष्यों पर टूट पड़ीं।

धीरे-धीरे उन मनुष्यों ने सभी को चमत्कृत करते हुए उस रहस्यमयी जंगल को पार कर लिया और प्रवेश कर गये इस ब्रह्मांड के सबसे बड़े तिलिस्म में, जहां उनका सामना होना था- सप्ततत्व, 12 राशियों, ब्रह्मांड के अनोखे ग्रह और जीवों से।

फिर शुरु हुई एक अद्भुत प्रश्नमाला-

1) क्या वह साधारण मनुष्य तिलिस्म को तोड़ पाये?
2) क्या था माया सभ्यता के निर्माण का रहस्य?
3) क्या था रहस्य उस विचित्र ग्रेट ब्लू होल का, जो कैरेबियन सागर
में बेलिज शहर के पास स्थित था ?
4) गंगा की पहली बूंद से बनी गुरुत्व शक्ति, क्या गुरुत्वाकर्षण के
नियमों को नहीं मानती थी ?
5) क्या हिमालय में स्थित ‘वेदालय’ नामक विद्यालय में अद्भुत
शक्तियां छिपी हुईं थीं ?
6) क्या प्रकाश और ओऽम् की शक्ति से ही कैलाश पर्वत और
मानसरोवर का निर्माण हुआ था ?
7) क्या सुदूर ब्रह्मांड से आकर पृथ्वी पर गिरने वाली शक्ति, समय
को नियंत्रित कर भविष्य बदल सकती थी?
8) क्या थी उस पंचशूल की शक्तियां, जो गहरे सागर में स्थित स्वर्ण
महल में छिपा था ?
9) क्या था समुद्र की लहरों पर तैर रहे, अविश्वसनीय माया महल का
रहस्य?
तो दोस्तों देर किस बात की आइये शुरु करते हैं, ब्रह्मांड की अलौकिक शक्तियों के राज को खोलती, एक ऐसी कहानी, जो आपको कल्पनाओं के एक ऐसे अदभुत संसार में ले जाएगी, जहां का हर एक पात्र किसी सुपर हीरो की तरह आपके मस्तिष्क पर छा जायेगा। तो शुरु करते हैं मायावन- एक रहस्यमय जंगल


चैपटर-1

समुद्र मंथन (क्षीर सागर, सतयुग)

सागर में समुद्र मंथन का कार्य चल रहा था। मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया गया था और नागराज वासुकि को नेति की भांति प्रयोग में लाया गया था।

भगवान वि… स्वयं कछुए के रुप में मंदराचल पर्वत को अपने ऊपर उठाये थे। कछुए की पीठ एक लाख योजन चौड़ी थी।

दैत्यराज बलि के साथ सभी दैत्यों ने वासुकि को मुंह की तरफ से पकड़ रखा था और देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं ने वासुकि को पूंछ की ओर से पकड़ रखा था।

इतने विशालकाय क्षीर सागर के मंथन से एक भयानक कोलाहल उत्पन्न हो रहा था।

अमृत निकलने की कल्पना कर सभी दैत्यों के मुख पर एक अजीब सा तेज दिखाई दे रहा था।

देवता भी उत्सुक निगाहों से समुद्र की ओर देख रहे थे। आसमान से ब्रह्म… भी सारा नजारा देख रहे थे।

तभी एक दैत्य को जोर से खांसी आयी और वह लड़खड़ा कर लहरों पर गिर गया। तुरंत एक दूसरे दैत्य ने उसकी जगह ले ली।

यह देखकर दैत्यराज बलि की निगाहें चारों ओर घूमी और नागराज वासुकि के चेहरे पर जाकर अटक गयी।

वासुकि के चेहरे पर थकावट का भाव था। थकने की वजह से वह जोर-जोर से साँस ले रहा था। जिसके कारण वासुकि के मुंह से जहर भरी हवा निकलकर, दैत्यों की तरफ के वातावरण में मिल रही थी।

उसी जहर भरी हवा के प्रवाह से वह दैत्य बेहोश हुआ था। एक पल में ही दैत्यराज बलि को यह समझ आ गया कि क्यों देवताओं ने वासुकि के पूंछ की तरफ का हिस्सा लिया है?

पर अब जगहों का स्थानांतरण संभव नहीं था, यह सोच बलि ने एक जोर की हुंकार भरकर दैत्यों का जोश बढ़ाया।

अपने राजा की हुंकार भरी आवाज सुन, दैत्य और उत्साह में आ गये। वह और ताकत लगा कर समुद्र मंथन करने लगे। दैत्यों की शक्ति को घटता देख देवताओं में भी उत्साह भर गया।

उन्हों ने भी जोर-जोर से वासुकि की पूंछ को खींचना शुरु कर दिया।

तभी समुद्र से एक जोर की गड़गड़ाहट सुनाई दी। देवता और दैत्य दोनों की लालच भरी निगाहें समुद्र पर टिक गयीं।

तभी समुद्र के नीचे से कोई नीले रंग का द्रव्य निकलकर, क्षीरसागर के श्वेत जल पर फैल गया। सभी दैत्य और देवता उसे अमृत समझ उसकी ओर भागे।

“ठहर जाओ मूर्खों !” वातावरण में दैत्यगुरु शुक्राचार्य की आवाज गूंजी- “पहले ध्यान से देख तो लो कि वह अमृत ही है या कुछ और है?”

लेकिन दैत्यराज बलि के सिवा किसी ने भी शुक्राचार्य की आवाज नहीं सुनी।

तभी क्षीरसागर की सतह पर फैले उस नीले द्रव्य से, जोरदार धुंआ निकलना शुरु हो गया।
यह धुंआ इतना खतरनाक था कि कुछ ही क्षणों में, इसने पूरे आसमान को ढंक लिया।

इस महा विषैले धुंए के प्रभाव से किसी का वहां खड़ा रहना भी संभव नहीं बचा।

सभी को अपना दम घुटता सा महसूस होने लगा। चेहरे पर जलन उत्पन्न कर, इस धुंए ने सभी की त्वचा का भी ह्रास शुरु कर दिया।

“यह ‘कालकूट’ विष है।” ब्रह्म.. ने सभी का मार्गदर्शन करते हुए बताया- “हम इसे ‘हलाहल’ भी कह सकते हैं। यह इस ब्रह्मांड का सबसे खतरनाक विष है।”

तब तक उस विष का प्रभाव सम्पूर्ण सृष्टि पर होने लगा। पृथ्वी पर मौजूद सभी जीव-जन्तु एक-एक कर मरने लगे।

सभी देवता और दैत्यों के चेहरे इस हलाहल से निस्तेज हो गये। घबरा कर सभी देवताओ और दैत्यों ने ब्रह्.. जी की शरण ली।

“हे ब्रह्... आप इस सृष्टि के रचयिता हैं।” देवराज इंद्र ने कहा-“अब आप ही अपने पुत्रों को इस कालकूट विष से बचा सकते हैं। हमारी रक्षा करिये ....हमारी रक्षा करिये।”

इंद्र _________के शब्द सुन सभी देवता और दैत्यों ने ब्रह्.. के सामने अपने हाथ जोड़ लिये।

“मेरे पास भी इस कालकूट विष का कोई तोड़ नहीं है।” ब्रह्.. ने कहा- “आप सबको इसके लिये म….देव की उपासना करनी पड़ेगी। अब वही धरती को इस प्रलय से बचा सकते हैं।”

ब्र….व की बात सुन वहां खड़े सभी देवता और दैत्य, एक साथ म….देव की उपासना करने लगे।

हलाहल का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। उसके प्रभाव से पूरी पृथ्वी का वातावरण इतना दूषित हो गया कि अब सूर्य की किरणें भी धरा पर नहीं पहुंच पा रहीं थीं।

तभी वातावरण में डमरु बजने की जोर की आवाज सुनाई दी, जो कि म…देव के आने का द्योतक थी । आखिरकार भक्तों की पुकार सुनकर आसमान के एक छोर से म…देव प्रकट हुए।

“हे देवाधि देव, हमें इस कालकूट विष से बचाइये।” इंद्र ने म…देव को प्रणाम करते हुए कहा- “यह विष सम्पूर्ण पृथ्वी का नाश कर रहा है।”

“यह विष तुम सभी के लालच से प्रकट हुआ है।” म…देव ने कहा-“यह विष इतना जहरीला है कि मैं इसे ब्रह्मांड के किसी भी कोने में नहीं फेंक सकता, इसलिये मुझे स्वयं इसका वरण करना पड़ेगा। पर अगर मैं इसका वरण कर भी लूं, तो भी यह इस पृथ्वी से नहीं जायेगा। जब तक पृथ्वी पर एक भी लालची इंसान रहेगा, यह विष पृथ्वी का हिस्सा बना रहेगा।"

यह कहकर म…देव ने अपने शरीर को अत्यंत विशालकाय बना लिया। अब उनका सिर आसमान को छू रहा था।

अब म…..देव के हाथों में एक विशाल शंख नजर आने लगा।

म…देव ने अपने हाथों को क्षीर सागर में डालकर सम्पूर्ण विष को अपने शंख में भर लिया, फिर शंख को अपने होंठों से लगा कर कालकूट विष का पान करने लगे।

चूंकि हलाहल अत्यंत विनाशकारी था, इसलिये म……देव ने उसे अपने कंठ से आगे नहीं जाने दिया, पर उस कालकूट विष ने म….देव के कंठ का रंग नीला कर दिया।

“नीलकंठ देव की जय!” देवताओं और दैत्यों ने विष को समाप्त होते देख हर्षातिरेक में जयकारा लगाया।

तभी कालकूट विष की एक आखिरी बूंद शंख से छलककर पृथ्वी पर जा गिरी ।

उस आखिरी बूंद ने पृथ्वी पर गिरते ही मानव आकार धारण कर लिया।

उसके शरीर का रंग नीला, बाल घुंघराले और आँखें मनमोहक थीं।

“मैं कौन हूं?” उस मनुष्य ने स्वयं को देखते हुए सवाल किया- “मेरा नाम क्या है? मैंने क्यों जन्म लिया?”

तभी उस मनुष्य को आसमान में महा..देव की छाया दिखाई दी और एक आवाज सुनाई दी-

“तुम देवताओं द्वारा उत्पन्न हुए हो। इसलिये तुम्हें आज से, युगों-युगों तक ब्रह्मांड में वेदों के द्वारा लोगों को शिक्षा देनी होगी।

चूंकि तुम्हारे शरीर का रंग नीला है, इसलिये आज से तुम्हारा नाम ‘नीलाभ’ होगा। हिमालय पर जाओ वत्स, वहीं पर तुम्हें ज्ञान की प्राप्ति होगी।"

“जो आज्ञा महा..देव।” नीलाभ ने हाथ जोड़कर महा..देव को प्रणाम किया।

नीलाभ के सिर उठाते ही महादेव की छाया आसमान से गायब हो गई और नीलाभ हिमालय की ओर चल पड़ा।



जारी रहेगा_________✍️
Wonderful update brother.

Ye story maine kai baar tv par dekha tha ek baar phir se padh kar acha laga.

Lekin kahin par maine Neelabh ke bare mein nahi padha tha.

Mayavan ki story interesting hone wali hai jaise aapne isko start kiya hai. Aur ek character ka introduction ho gaya hai Neelabh ya ye pahle bhi story mein aa chuka hai mujhe yaad nahi aa raha hai.

Let's see ye story mein kya naya lata hai.

Sorry thoda late se padhne ke liye thoda fever tha isliye forum par bahut baar aaya lekin story nahi padha.
 

Raj_sharma

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Wonderful update brother.

Ye story maine kai baar tv par dekha tha ek baar phir se padh kar acha laga.

Lekin kahin par maine Neelabh ke bare mein nahi padha tha.

Mayavan ki story interesting hone wali hai jaise aapne isko start kiya hai. Aur ek character ka introduction ho gaya hai Neelabh ya ye pahle bhi story mein aa chuka hai mujhe yaad nahi aa raha hai.

Let's see ye story mein kya naya lata hai.

Sorry thoda late se padhne ke liye thoda fever tha isliye forum par bahut baar aaya lekin story nahi padha.
Koi baat nahi dost, take your time, :dost: Personal life pahle hai👍
Guru neelabh ka jikar pahle bhi ho chuka hai:approve: Jab suyash singhasan se udkqr samay yatra kiya tha.
Thank you very much for your valuable review and support bhai :thanx:
 

Raj_sharma

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#107.

माया महल

(19,110 वर्ष पहलेः ऐजीयन सागर, ग्रीक प्रायद्वीप)


नीले रंग का समुद्र का पानी देखने में बहुत सुंदर लग रहा था। बहुत से खूबसूरत जलीय जंतु गहरे समुद्र में तैर रहे थे।


समुद्र का पानी बिल्कुल पारदर्शी और स्वच्छ लग रहा था। मछलियों का विशाल झुंड पानी में बुलबुले बनाते हुए अठखेलियां खेल रहा था।

उसी गहरे पानी में एक बड़ा सा मगरमच्छ तेजी से तैरता हुआ एक दिशा की ओर जा रहा था। उस मगरमच्छ पर एक अजीब सा दिखने वाला जलमानव सवार था।

देखने में वह जलमा नव मनुष्य जैसा ही था, पर उसके हाथ की उंगलियों के बीच मेढक के समान जालीदार संरचना थी। उसके शरीर की चमड़ी का रंग भी हल्के हरे रंग की थी।

उसके कान के पीछे मछलियों की भांति गलफड़ बने हुए थे, जिसके द्वारा वह जलमानव पानी में भी आसानी से साँस ले रहा था।

पानी के सभी जलीय जंतु, उस मगरमच्छ को देखकर उसके रास्ते से हट जा रहे थे।

कुछ ही देर में उस जलमानव को पानी की तली में एक जलमहल दिखाई दिया।
वह महल पूरी तरह से मूंगे और मोतियों से बना हुआ था। महल बनाने में कुछ जगह पर धातुओं का भी प्रयोग किया गया था।

वह महल काफी विशालकाय था। समुद्री रत्न जड़े उस महल की भव्यता देखने लायक थी।

महल के बाहर पहुंचकर वह जलमानव मगरमच्छ से उतरा और तेजी से भागकर महल में दाखिल हो गया।

महल के अंदर भी हर जगह पानी भरा था। महल में कुछ अंदर चलने के बाद उस जलमानव को एक बड़ा सा दरवाजा दिखाई दिया।

उस दरवाजे के बाहर एक घंटा लगा था। जलमानव ने घंटे को 2 बार जोर से बजाया और दरवाजे के बाहर खड़े होकर, सिर झुकाकर दरवाजे के खुलने का इंतजार करने लगा।

कुछ ही देर में वह दरवाजा खुला। दरवाजे के खुलते ही जलमानव अंदर दाखिल हो गया।

दरवाजा एक बहुत बड़े कमरे में खुल रहा था, वह कमरा देखने में किसी राजा के दरबार की मांनिंद प्रतीत हो रहा था।

उस कमरे के एक किनारे पर लगभग 50 सीढ़ियां बनीं थीं। ये सीढ़ियां एक विशालकाय सिंहासन पर जा कर खत्म हो रहीं थीं। वह सिंहासन भी समुद्री रत्नों से बना था।

उस सिंहासन पर एक भीमकाय 7 फिट का मनुष्य बैठा था, जिसने हाथ में एक सोने का त्रिशूल पकड़ रखा था।

यह था समुद्र का देवता- पोसाईडन।

पोसाईडन के घुंघराले बाल पानी में लहरा रहे थे। पोसाईडन की पोशाक भी सोने से निर्मित थी और जोर से चमक बिखेर रही थी।

वह जलमानव पोसाईडन के सामने सिर झुकाकर खड़ा हो गया।

“बताओ नोफोआ क्या समाचार लाये हो?” पोसाईडन की तेज आवाज वातावरण में गूंजी।

पोसाईडन की आवाज सुन नोफोआ ने अपना सिर ऊपर उठाया और फिर धीरे से बोला-

“ऐ समुद्र के देवता मैंने आज अटलांटिक महासागर में, समुद्र की लहरों पर तैरता हुआ एक बहुत खूबसूरत महल देखा। मैंने आज तक वैसा सुंदर महल इस दुनिया में कहीं नहीं देखा। वह नाजाने किस तकनीक से बना है कि पत्थरों से बने होने के बावजूद भी वह पानी पर तैर रहा है।”

“पानी पर तैरने वाला महल?” पोसाईडन की आँखों में भी आश्चर्य के भाव उभरे- “यह कौन सी तकनीक है? और कौन है वह दुस्साहसी जिसने बिना पोसाईडन की अनुमति लिये समुद्र की लहरों पर महल बनाने की
हिम्मत की?”

“मैंने भी यह जानने के लिये, उस महल में घुसने की कोशिश की, पर किसी अदृश्य दीवार की वजह से मैं उस महल में प्रवेश नहीं कर पाया।” नोफोआ ने कहा।

“ठीक है, तुम मुझे वहां की लहरों की स्थिति बता दो, मैं स्वयं जा कर उस महल को देखूंगा।” पोसाईडन ने नोफोआ को देखते हुए कहा।

“ठीक है देवता।” यह कहकर नोफोआ ने उस कमरे में रखे एक बड़े से ग्लोब को देखा।

वह ग्लोब पूर्णतया पानी से बने पृथ्वी के एक मॉडल जैसा था, जो कि पानी में होकर भी अपनी अलग ही उपस्थिति दर्ज कर रहा था।

वह पानी का ग्लोब एक छोटी सी सोने की टेबल पर रखा था। ग्लोब के बगल में लकड़ी में लगे, कुछ लाल रंग के फ्लैग रखे थे। फ्लैग आकार में काफी छोटे थे।

नोफोआ ने पास रखे एक छोटे से फ्लैग को उस ग्लोब में एक जगह पर लगा दिया- “यही वह जगह है देवता, जहां मैंने उस महल को देखा था।”

“ठीक है अब तुम जा सकते हो।” पोसाईडन ने नोफोआ को जाने का इशारा किया।

इशारा पाते ही नोफोआ कमरे से बाहर निकल गया।

“मेरी जानकारी में पानी पर महल बनाने की तकनीक तो पृथ्वी पर किसी के पास भी नहीं है।” पोसाईडन ने मन ही मन में सोचा - “अब तो इस महल के रचयिता से मिलकर, मेरा इस नयी तकनीक के बारे में जानना बहुत जरुरी है।”

यह सोच पोसाईडन अपने स्थान से खड़ा हुआ और सीढ़ियां उतरकर उस पानी के ग्लोब के पास आ गया।

पोसाईडन ने एक बार ध्यान से ग्लोब पर लगे फ्लैग की लोकेशन को देखा और फिर अपने महल के बाहर की ओर चल पड़ा।

महल के बाहर निकलकर पोसाईडन ने अपने त्रिशूल को पानी में गोल-गोल घुमाया।

त्रिशूल बिजली की रफ्तार से पोसाईडन को लेकर समुद्र में एक दिशा की ओर चल दिया।

साधारण इंसान के लिये तो वह दूरी बहुत ज्यादा थी, पर पोसाईडन, नोफोआ के बताए नियत स्थान पर, मात्र आधे घंटे में ही पहुंच गया।

पोसाईडन अब समुद्र की गहराई से निकलकर लहरों पर आकर खड़ा हो गया।

अब वह उस दूध से सफेद महल के सामने था। नोफोआ ने जितना बताया था, वह महल उस से कहीं ज्यादा खूबसूरत था।

समुद्र की लहरों पर एक 400 मीटर क्षेत्रफल का संगमरमर के पत्थरों का गोल बेस बना था, जिसकी आधे क्षेत्र में उन्हीं सफेद पत्थरों से एक शानदार हंस की आकृति बनी थी। उस हंस की पीठ पर सफेद पत्थरों से निर्मित एक बहुत ही खूबसूरत महल बना था।

दूर से देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी हंस ने एक महल को अपनी पीठ पर उठा रखा हो।
हंस अपने पंखों को भी धीरे-धीरे हिला रहा था।

हंस के सिर के ऊपर एक सफेद बादलों की टुकड़ी भी दिखाई दे रही थी, जो उस महल के ऊपर सफेद मखमली बर्फ का छिड़काव कर रही थी।

हंस की चोंच से एक विशाल पानी का झरना गिर रहा था, जो कि हंस के नीचे खड़े एक काले रंग के हाथी पर गिर रहा था।

हाथी के चारो ओर एक पानी का तालाब बना था, हाथी अपनी सूंढ़ से पानी भरकर चारो ओर, हंस के सामने मौजूद बाग में फेंक रहा था।

हंस के सामने बना बाग खूबसूरत फूलों और रसीले फलों से भरा हुआ था, जहां पर बहुत से हिरन और मोर घूम रहे थे।

बाग में एक जगह पर एक विशाल फूलों का बना झूला भी लगा था। उस बाग में कुछ अप्सराएं घूम रहीं थीं।

महल के बाहर समुद्र के किनारे-किनारे पानी में कुछ जलपरियां हाथों में नुकीले अस्त्र लिये घूम रहीं थीं।

उन्हें देखकर ऐसा महसूस हो रहा था, मानों वह महल की रखवाली कर रहीं हों। पोसाईडन इतना शानदार महल देखकर मंत्रमुग्ध रह गया।

“इतना खूबसूरत महल तो मैंने भी आजतक नहीं देखा, ऐसा महल तो समुद्र के देवता के पास होना चाहिये। लेकिन पहले मुझे पता करना पड़ेगा कि ये महल बनाया किसने? और इसको बनाने में किस तकनीक का इस्तेमाल किया गया है?” यह सोच पोसाईडन उस महल की ओर बढ़ गया।

महल में जाने के लिये सीढ़ियां बनीं हुईं थीं। पोसाईडन जैसे ही सीढ़ियों पर कदम रखने चला, जलपरियों ने
पोसाईडन का रास्ता रोक लिया।

यह देखकर पोसाईडन को पहले तो आश्चर्य हुआ और फिर जोर का गुस्सा आया। वह गर्जते हुए बोला- “तुम्हें पता भी है कि तुम किसका रास्ता रोक रही हो ?”

“हमें नहीं पता?” एक जलपरी ने कहा- “पर हम बिना इजाजत किसी को भी अंदर जाने नहीं दे सकतीं। आपको हमारे स्वामी से महल में प्रवेश करने की अनुमति लेनी पड़ेगी।”

“बद्तमीज जलपरी, मैं सर्वशक्तिमान समुद्र का देवता पोसाईडन हूं, मेरे क्षेत्र में मुझे किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। पर तुम्हें मुझे रोकने की सजा जरुर भुगतनी पड़ेगी।”

इतना कहकर पोसाईडन ने अपना त्रिशूल हवा में लहराया, तुरंत एक पानी की लहर उठी और उस जलपरी को लेकर पानी की गहराई में समा गयी।

“और किसी में है हिम्मत मुझे रोकने की?” पोसाईडन फिर गुस्से से दहाड़ा।

पर इस बार कोई भी जलपरी आगे नहीं आयी, लेकिन सभी जलपरियां अपनी जगह खड़ी हो कर मुस्कुराने लगीं।

पोसाईडन को उन जलपरियों का मुस्कुराना समझ में नहीं आया, पर वह उनकी परवाह किये बिना सीढ़ियों की ओर आगे बढ़ा।

सिर्फ 4 सीढ़ियां चढ़ने के बाद पोसाईडन को अपने आगे एक अदृश्य दीवार महसूस हुई।

पोसाईडन ने दीवार पर एक घूंसा मारा, पर दीवार पर कोई असर नहीं हुआ। यह देख पोसाईडन ने गुस्से से अपना त्रिशूल खींचकर उस दीवार पर मार दिया।

त्रिशूल के उस दीवार से टकराते ही एक जोर की बिजली कड़की, पर अभी भी दीवार पर कोई असर नहीं हुआ।

अब पोसाईडन की आँखों में आश्चर्य उभरा- “ये कैसी अदृश्य दीवार है, जिस पर मेरे त्रिशूल का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा ?”

अब पोसाईडन की आँखें गुस्से से जल उठीं। उसे अब जलपरियों के हंसने का कारण समझ आ गया।
इस बार पोसाईडन ने अपना त्रिशूल उठा कर आसमान की ओर लहराया।

आसमान में जोर से बिजली कड़की और समुद्र का पानी अपना विकराल रुप धारण कर सैकड़ों फिट ऊपर आसमान में उछला और पूरी ताकत से आकर उस महल पर गिरा।

सारी जलपरियां इस भयानक तूफान का शिकार हो गईं, पर एक बूंद पानी भी उस छोटे से महल के ऊपर नहीं गिरा, सारा का सारा पानी उस अदृश्य दीवार से टकरा कर वापस समुद्र में समा गया।

पोसाईडन के क्रोध का पारा अब बढ़ता जा रहा था। अब पोसाईडन ने अपना त्रिशूल पूरी ताकत से उस महल की सीढ़ियों पर मारा, एक भयानक ध्वनि ऊर्जा वातावरण में गूंजी।

महल की 4 सीढ़ियां टूटकर समुद्र में समा गईं, पर उस अदृश्य दीवार ने पूरी ध्वनि ऊर्जा, अपने अंदर सोख ली और महल पर इस बार भी कोई असर नहीं आया।

अब पोसाईडन की आँखें आश्चर्य से सिकुड़ गईं। लेकिन इससे पहले कि पोसाईडन अपनी किसी और शक्ति का प्रयोग उस महल पर कर पाता, तभी महल का द्वार खोलकर एक लड़का और एक लड़की बाहर आये।

उन्होंने झुककर पोसाईडन का सम्मान किया और फिर लड़के ने कहा-
“सर्वशक्तिमान, महान समुद्र के देवता को कैस्पर और मैग्ना का नमस्कार। शांत हो जाइये देवता, उन जलपरियों को आपके बारे में कुछ
नहीं पता था। अच्छा किया जो आपने उन्हें दंड दिया। देवता, हम आपका अपमान नहीं करना चाहते थे, सब कुछ गलती से हो गया। जिसके लिये हम एक बार फिर आपसे क्षमा मांगते हैं और हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप हमारे महल का आतिथ्य स्वीकार करें।”

ऐसे विनम्र स्वर को सुनकर पोसाईडन का गुस्सा बिल्कुल ठंडा हो गया।

कैस्पर ने महल से बाहर आकर पोसाईडन के हाथ पर एक रिस्टबैंड बांध दिया- “अब आप अंदर प्रवेश कर सकते हैं देवता।”

पोसाईडन ने एक बार अपने हाथ में बंधे रिस्टबैंड को देखा और फिर कैस्पर और मैग्ना के साथ महल के अंदर की ओर चल दिया।

महल के अंदर जाने का रास्ता हंस के गले के नीचे से था, वहां कुछ सीढ़ियां बनी थीं जो कि एक द्वार तक जा रहीं थीं। द्वार से अंदर जाते ही पोसाईडन मंत्रमुग्ध हो गया।

वह एक बहुत ही खूबसूरत कमरा था। कमरे की एक तरफ की दीवारों पर प्रकृति के बहुत ही सुंदर चित्र बने हुए थे, उन चित्रों में दिख रहे झरने और जानवर चलायमान थे।

कमरे की दूसरी ओर की दीवारों पर रंग-बिरंगे फूलों के पौधे, तितलियां और पंछियों के चित्र बने थे। चित्र में मौजूद तितलियां और पंछी भी आश्चर्यजनक तरीके से चल-फिर रहे थे।

कमरे की छत पर ब्रह्मांड दिखाई दे रहा था, जिसमें अनेकों ग्रह हवा में घूमते हुए दिख रहे थे।
कमरे की जमीन काँच से निर्मित थी, जिसके नीचे जलीय-जंतु तैरते हुए दिख रहे थे।

उसी काँच की जमीन पर एक बहुत बड़ी अंडाकार काँच की टेबल रखी थी, जिस पर हजारों तरीके के पकवान और फल रखे नजर आ रहे थे।

काँच की टेबल के चारो ओर सोने की कुर्सियां रखीं थीं। कैस्पर ने पोसाईडन को बीच वाली बड़ी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।

पोसाईडन उस महल की कारीगरी देख बहुत खुश हुआ।

कैस्पर और मैग्ना ने अपने हाथों से पोसाईडन के लिये कुछ पकवान और फल परोस दिये।

थोड़ी सी चीजें खाने के बाद पोसाईडन ने अपने हाथ उठा दिये, जो अब कुछ ना खाने का द्योतक था।

कैस्पर और मैग्ना अब हाथ बांधकर पोसाईडन के सामने खड़े हो गये और उसके बोलने का इंतजार करने लगे।

“तुम लोग कौन हो? और इस महल का निर्माण किसने किया?” पोसाईडन ने पूछा।

“हम साधारण मनुष्य हैं देवता। हमें हमारी गुरुमाता ‘माया’ ने पाला है।”

कैस्पर ने कहा- “इस महल का निर्माण हम दोनों ने ही मिलकर किया है। यह विद्या हमारी गुरुमाता ने ही हमें सिखाई है, इसलिये हमने अपनी इस पहली रचना का नाम ‘माया महल’ रखा है।”

“मैं तुम्हारी गुरुमाता से मिलना चाहता हूं।” पोसाईडन ने कहा- “उनसे जा कर कहो कि समुद्र का देवता पोसाईडन स्वयं उनसे मिलना चाहता है।”

“क्षमा चाहता हूं देवता, पर हमारी गुरुमाता यहां नहीं रहती हैं। वह यहां से 5000 किलोमीटर दूर समुद्र की अंदर बनी गुफाओं में रहतीं हैं।” इस बार मैग्ना ने कहा।

“समुद्र के अंदर बनी गुफाओं में?” पोसाईडन ने आश्चर्य से कहा- “समुद्र के अंदर ऐसी कौन सी गुफा है, जिसके बारे में मुझे नहीं पता।”

“वह स्थान किसी भी मनुष्य और देवता की पहुंच से दूर है।” कैस्पर ने खड़े हो कर चहलकदमी करते हुए कहा- “वह पिछले लगभग 900 वर्षों से वहीं पर रह रहीं हैं, वह हमारे सिवा किसी से नहीं मिलतीं, पर मैं
आपका यह संदेश उन्हें जरुर दे दूंगा और उन्हें आपसे मिलने के लिये आग्रह भी करुंगा।”

“मैं चाहता हूं कि तुम दोनों मेरे लिये भी, समुद्र के अंदर ऐसा ही एक महल बनाओ।” पोसाईडन ने दोनों को बारी-बारी देखते हुए कहा।

“अवश्य बनाएंगे देवता।” मैग्ना ने कहा- “आपके लिये महल बनाना हमारे लिये सौभाग्य की बात है, पर इसके लिये एक बार हमें गुरुमाता से मिलकर बात करनी होगी।”

“ठीक है कर लो बात।” पोसाईडन ने खड़े होते हुए कहा- “मैं तुम्हें 5 दिन का समय देता हूं, 5 दिन बाद मेरा सेवक नोफोआ आकर तुमसे यहीं पर मिल लेगा। उसके आगे का निर्देश तुम्हें वही देगा।”

“ठीक है देवता।” कैस्पर ने कहा।

इसके बाद कैस्पर और मैग्ना पोसाईडन को सम्मान देते हुए बाहर तक छोड़ आये।


जारी रहेगा________✍️
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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