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Romance Ek Duje ke Vaaste..

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parkas

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Update 53





एकांश एकदम से हड़बड़ा कर उठ बैठा... वो पूरा पसीने से भीगा हुआ था..

उसे आसपास का सब कुछ धुंधला दिख रहा था... शायद उसकी आंखों में आंसू थे इसलिए...

उसने हाथ से अपनी आंखें पोंछीं... और महसूस किया कि ये बस एक सपना था... डरावना, पर सपना ही था...

एकांश ने नीचे देखा तो उसकी गोद मे अक्षिता की तस्वीर रखी थी, मुसकुराते हुए... और वो देखकर उसकी आंखों से फिर से आंसू बह निकले...

लेकिन उसे पता था कि वो हमेशा ऐसे नहीं रह सकता था... उसे आगे बढ़ना होगा... पर कैसे? ये वो खुद नहीं जानता था

वो थोड़ा झुका, और उसने उसकी डायरी उठाई... वही डायरी जिसमें आख़िरी कुछ पन्ने उसने उसके लिए लिखे थे...

"अगर तुम ये पढ़ रहे हो... तो शायद मैं अब तुम्हारे पास नहीं हूं"

"मुझे पता है तुम्हारे लिए ये यकीन करना मुश्किल होगा, लेकिन यही सच है, और शायद तुम सोच रहे हो कि मैंने ये सब क्यों लिखा... तो सिर्फ़ इसलिए, क्योंकि मुझे पता था कि तुम टूट जाओगे"

"मुझे पूरा यकीन है कि तुमने खुद को कमरे में बंद कर लिया होगा... किसी से बात नहीं कर रहे होगे... खाना भी ठीक से नहीं खा रहे होगे... और खुद का ध्यान रखना भी छोड़ दिया होगा"

"इसलिए लिख रही हूं, ताकि तुम्हें लगे कि मैं अब भी तुम्हारे आसपास हूं... तुम्हें देख रही हूं"

"काश मेरे बस में होता तो मैं कभी भी तुम्हें छोड़कर ना जाती... लेकिन किस्मत और टाइम से तो कोई नहीं जीतता ना.. जो होना था, हो गया... लेकिन प्लीज़, खुद को इसके लिए ज़िम्मेदार मत मानो"

"मुझे पता है तुम खुद को कोस रहे हो, लेकिन ये सब तुम्हारी गलती नहीं थी.. मुझे हमेशा से पता था कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, और एक दिन मैं चली जाऊंगी.. प्लीज़, उस चीज़ का बोझ मत उठाओ जो तुम्हारे हाथ में ही नहीं थी"

"सबसे ज़्यादा दुख मुझे इस बात का है कि मैं अब तुम्हारे पास नहीं हूं तुम्हें गले लगाने, तुम्हारे आंसू पोंछने और ये कहने के लिए कि 'सब ठीक हो जाएगा'"

"एकांश, प्लीज़... अपने आप को तकलीफ़ मत दो.. अगर तुम ऐसे दुखी रहोगे तो मेरी रूह कभी चैन नहीं पाएगी"

"मैं समझ सकती हूं कि तुम्हें नहीं पता कि अब कैसे आगे बढ़ना है... लेकिन जो लोग तुम्हें प्यार करते हैं उन्हें और तकलीफ़ मत दो मेरे लिए ऐसे मत रोओ कि उन्हें और दर्द हो... मैं चाहती हूं कि तुम सबके साथ खुश रहो अपने पेरेंट्स, मेरे मम्मी पापा, और हमारे दोस्त, सबके साथ"

"मुमकिन है तुम मुझसे नाराज़ हो जाओ ये सब सुनकर... पर मैं सच कह रही हूं प्लीज़ इसे अपना लो.."

"मैं ये अपने लिए नहीं कह रही... मैं तुम्हारे लिए कह रही हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि तुम अपने प्यार करने वालों को यूं तकलीफ़ में देखो"

"कभी कभी... किसी को जाने देना ही सही होता है और मुझे तुम्हें छोड़ना पड़ा एकांश, ये आसान नहीं था मेरे लिए, लेकिन मुझे करना पड़ा क्योंकि मेरे पास कोई चॉइस नहीं थी अब तुम्हें भी मुझे जाने देना होगा... यही हमारी किस्मत है"

"ज़िंदगी रुकती नहीं है... और किसी के चले जाने से रुकनी भी नही चाहिए"

"मुझे पता है ये एक्सेप्ट करना आसान नहीं है कि अब मैं तुम्हारे पास नहीं हूं... लेकिन तुमको जीना पड़ेगा मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हारी ज़िंदगी रुक जाए.."

"दुनिया को लग सकता है कि मैं मर चुकी हूं... लेकिन तुम्हारे लिए? मैं हमेशा जिंदा रहूंगी.. तुम्हारे दिल में... तुम्हारे साथ"

"जब भी तुम अपनी आंखें बंद करोगे, मुझे अपने पास पाओगे, जब भी तुम मुझे याद करोगे, मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगी, जब भी तुम्हें मेरी ज़रूरत होगी, मैं तुम्हारा हाथ थाम लूंगी, बस... अब मेरी शक्ल नहीं दिखेगी, लेकिन मेरा एहसास तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा"

"पता है, कहना आसान है... पर निभाना मुश्किल लेकिन अंश, कभी ये मत सोचना कि तुम अकेले हो.. मैं हूं तुम्हारे साथ, तुम्हारी हर सांस में, हर धड़कन में, हर सोच में... और तुम्हारी मुस्कान में भी.."

"अब क्योंकि मैं तुम्हारी स्माइल में जिंदा हूं... तो प्लीज़, हमेशा मुस्कुराते रहना.."

"I love you."

"I love you."

"I love you..."


वो लगातार वही शब्द दोहराता रहा… डायरी को उसने सीने से यू चिपका रखा था मानो वो ही उसकी आख़िरी उम्मीद हो… और उसकी आंखों से बहते आंसू थम ही नहीं रहे थे..

कमरे के बाहर खड़े हर किसी ने उसकी सिसकियों को साफ़ साफ़ सुना था… हर आवाज़ जैसे सीधा दिल चीर रही हो..
लेकिन वो लोग कुछ कर भी नहीं पा रहे थे बस खामोशी से रोना ही उनका एकमात्र सहारा बन गया था.. उन सबकी आँखों में भी वही दर्द था… लेकिन जो उस कमरे के अंदर था, वो सबसे ज़्यादा टूटा हुआ था...

***

रात के बारा बज रहे थे वो धीरेधीरे चुपचाप से घर के अंदर दाखिल हुआ ताकि आवाज ना हो और किसी को उसके आने का पता ना चले लेकिन अंदर घुस के जैसे ही उसकी नज़र सामने गई… वहाँ उसके मम्मी पापा और अक्षिता के मम्मीपापा खड़े थे, जिनकी आंखों में बेचैनी साफ़ झलक रही थी..

उन्हें देख एकांश वहीं थम गया

अचानक अक्षिता की मम्मी तेज़ क़दमों से उसके पास आईं… और उन्होंने गुस्से में उसके गाल पर एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया..

उसने चुपचाप उनकी तरफ देखा… उनकी आंखों से बहते आंसुओं में ग़ुस्से से ज़्यादा डर था... डर उसे खो देने का

फिर उसने अपने मम्मीपापा की ओर देखा, जो हैरानी में बस उसे देखे जा रहे थे… कुछ कहने की हालत में नहीं थे

"तुम कहां थे?" अक्षिता की मम्मी का गला भर आया था, लेकिन आवाज़ में अब भी गुस्सा था

एकांश ने कोई जवाब नहीं दिया

"हम पूरे दिन परेशान थे! फोन तुम उठा नही रहे… मैसेज का।कोई जवाब नही… हमें कुछ पता ही नहीं था कि तुम कहां हो!"
वो चिल्लाईं और फिर उनकी आंखें फिर से भीग गईं।

"तुम्हारे मम्मीपापा भी इसी चिंता में यहां आ गए, सोचो हम सब पर क्या गुज़री है!"

एकांश अब भी बस नीचे देख रहा था… एकदम चुप मानो उसके पास कहने को शब्द ही न हो

"एकांश?" उसके पापा ने धीमे से आवाज़ दी

उसने धीरे से ऊपर देखा… अपने पापा की तरफ, जिनकी आंखों में हार झलक रही थी.. फिर मां की तरफ देखा जिनकी आंखें में आंसू थे, फिर उसने अक्षिता की मम्मी की तरफ देखा… और उनके गाल से बहता एक आंसू अपने हाथ से पोंछ दिया..

"मैं ठीक हूं… आपलोग प्लीज़ टेंशन मत लीजिए" एकांश ने धीरे से कहा, और फिर सीधा अक्षिता के कमरे की तरफ बढ़ गया जो अब उसी का कमरा बन चुका था

पीछे से अक्षिता की मां की कांपती हुई आवाज़ आई

"हमने अपनी बेटी खो दी है एकांश… हम तुम्हें भी नहीं खोना चाहते…"

एकांश के कदम जैसे वहीं थम गए.. वो एक पल को जड़ सा हो गया… फिर उसने अपनी आंखें ज़ोर से भींच लीं, जैसे खुद से लड़ रहा हो, अपने आप कर कंट्रोल बना रहा हो फिर वो धीरे से दांत भींचते हुए बोला, "हमने उसे नहीं खोया…"

"एकांश… एक महीना हो गया है… तुम्हें अब आगे बढ़ना होगा… तुमने उससे वादा किया था ना?" अक्षिता की मां ने कहा

एकांश के अंदर एक द्वंद चल रहा था लेकिन ऊपर से उसने अपने आप को शांत खड़ा रख रखा था

"आगे बढ़ जाऊं?" एकांश की आवाज़ में कड़वाहट और तकलीफ़ एक साथ थी, "उसे ऐसे ही छोड़ दूं? जैसे कुछ हुआ ही नहीं?" वो चीखा, उसकी आंखों में गुस्से से ज़्यादा बेबसी थी... और अब अक्षिता के पापा अब चुप नहीं रह सके

"तो फिर बताओ, करोगे क्या?" उन्होंने ऊंची आवाज में कहा, "क्या यूं ही अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर लोगे? एक बार खुद से पूछो आख़िरी बार कब तुमने ढंग से खाना खाया था? कब चैन से सोए थे? कब मुस्कुराए थे? कब किसी से ठीक से बात की थी? कब… आख़िरी बार तुम्हारा चेहरा नॉर्मल दिखा था?"

एकांश कुछ नहीं बोला, वो बोलना बहुत कुछ चाहता था लेकिन उसके पास शब्द नहीं थे..

"मैं अभी इस बारे में बात नहीं करना चाहता," वो बुदबुदाया और वहाँ से मुड़कर चला गया

"नहीं तुम अभी कही नही जाओगे" अक्षिता की मां ने कहा,
"तुम हमसे इन बातो से भाग नही सकते एकांश, तुम अपनी ज़िंदगी यूं ही खत्म कर रहे हो, और हम इसे बस देखते नहीं रह सकते! हम उसे वापस नहीं ला सकते एकांश… हमें ये मानना होगा… और एक नई शुरुआत करनी होगी…" और ये कहते हुए सरिताजी फूट फूट रोने लगी..

एकांश के मां पापा चुपचाप ये सब देख रहे थे

अक्षिता के मम्मीपापा इस तरह एकांश की फिक्र कर रहे थे जैसे वो उनका अपना बेटा हो… और ही देखकर वो भी भावुक हो उठे

और तभी एकांश बोला

"प्लीज़ ऐसा मत कहो आंटी प्लीज for god's sake वो मरी नहीं है! और मुझे पूरा यकीन है… वो वापस आएगी... मैं जानता हूं… वो वापस ज़रूर आएगी!" एकांश ने चिल्ला कर कहा और सभी एक पल को चुप हो गए.. पूरे कमरे में जैसे ठहराव सा आ गया..

फिर एकांश ने सबकी तरफ देखा और फिर बोला

"आप लोग ऐसा क्यों बोल रहे हो जैसे वो अब कभी लौटेगी ही नहीं? जैसे वो सच में मर गई है?"

एकांश ने उन सब से सवाल किया और अबकी बार जवाब उसकी मां ने दिया

"तुम्हे लगता है के हममें से कोई ऐसा सोच सकता है" एकांश की मां ने कहा, उनकी आंखे भले नम थी पर शब्दो मे सख्ती थी,"असल में तो वो तुम ही हो जो ऐसा बर्ताव कर रहे हो… जैसे वो मर गई हो, तुम ही हो जो यूं रो रहे हो… जैसे अब कोई उम्मीद ही नहीं बची, तुम ही हो जो दुनिया को दिखा रहे हो कि वो अब कभी नहीं लौटेगी… तुम ही हो जो ये साबित कर रहे हो कि तुम्हारा प्यार कमज़ोर था… और वो अब इस दुनिया में नहीं है…" उनकी आवाज़ में दर्द भी था, और गुस्सा भी

हर शब्द जैसे सीधा एकांश के दिल में उतर रहा था… और वो बस खड़ा सुनता रहा, चुपचाप...

"माँ! अक्षिता मरी नहीं है… वो कोमा में है!" एकांश अचानक ज़ोर से चिल्ला पड़ा जैसे दिल का बोझ ज़ुबान पर आ गया हो

"हाँ एकांश, हमें पता है… वो मरी नहीं है," उसकी माँ ने धीमे लेकिन गंभीर लहज़े में कहा, "वो कोमा में है.. लेकिन सच ये भी है कि हमें नहीं पता वो कब जागेगी… या कभी जागेगी भी या नहीं"

वो एक पल रुकीं, फिर उसकी आंखों में देखते हुए बोलीं,

"लेकिन तुम्हारा बर्ताव… तुम्हारी ये हार मान लेने वाली हालत… ये हमें महसूस करा रही है कि जैसे सब ख़त्म हो चुका है.. एक महीना हुआ है बस… और तुमने कोशिश करना छोड़ दिया है.. जैसे तुमने अपने ही हाथों से उम्मीद का गला घोट दिया हो.."

एकांश कुछ नहीं बोला, वो बस एकटक अपनी मां को देख रहा था और तभी उसके पिता उसके पास आए और बोले

"तुम्हारी माँ बिलकुल सही कह रही है बेटा, हम हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं… बड़े से बड़े डॉक्टर्स से मिल रहे हैं… बस, अब ज़रूरत है कि तुम भी हमारे साथ खड़े रहो"

अक्षिता की माँ अब थोड़ा आगे आईं, उनकी आवाज़ अब भी कांप रही थी लेकिन उसमें अपनापन और दर्द दोनों थे

"हमें पता है कि तुम उसकी हालत देख नहीं पा रहे हो, उसे यूँ बेबस देखकर तुम्हारा दिल टूट रहा है… लेकिन बताओ हम क्या करें? अब बस तुम और तुम्हारा प्यार ही है जो कोई चमत्कार कर सकता है" उन्होंने उसका हाथ थाम लिया

"क्या तुम ही नहीं थे जो कहते थे कि जब तक वो तुम्हारे सामने है, सांसें ले रही है, तुम उम्मीद नहीं छोड़ोगे? तो अब क्या हो गया? वो अब भी ज़िंदा है, एकांश… और तुम्हारे सामने है, हमें उसके लिए खुश रहना चाहिए, उसे आवाज़ लगाते रहना चाहिए, उसे एहसास दिलाते रहना चाहिए कि हम उसके साथ हैं लेकिन हम बस रो रहे हैं… चुपचाप हार मान रहे हैं…"

इतना सुनते ही एकांश वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गया… और फूटफूट कर रोने लगा

"मुझे नहीं पता मुझे क्या करना चाहिए…" उसकी आवाज़ बिखरी हुई थी, "मैं उसे ऐसे बिना हिलेडुले, बिना कुछ कहे हुए नहीं देख सकता, हर दिन, हर पल डर लगता है कि क्या वो कभी अपनी आंखें खोलेगी भी या नहीं.. आज भी मैं पूरा दिन अस्पताल में उसके पास बैठा रहा… उससे बातें करता रहा… उसे उठने के लिए मनाता रहा… पर अंदर से डर लग रहा है कि क्या वो कभी उठेगी भी?"

उसने दोनों हाथों से सिर पकड़ लिया और सिसकते हुए नीचे झुक गया

उसे इस हालत में देख सबका कलेजा कांप उठा

कोई कुछ नहीं बोल पाया सब उसके पास आकर झुक गए, उसे गले से लगाया… और बस उसकी पीठ थपथपाते रहे, जैसे अपने हाथों से उसका दर्द थोड़ाथोड़ा कम करने की कोशिश कर रहे हों..

सच तो ये था कि उनके पास अब कुछ करने को बचा ही नहीं था… बस इंतज़ार ही बाकी था

जो भी होना था, अब किस्मत ही तय करने वाली थी

जब डॉक्टर्स ने बताया था कि ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा है, और अंदरुनी ब्लीडिंग भी कंट्रोल हो गई है तब एक पल को उम्मीद जागी थी… लेकिन उसी के साथ ये भी कह दिया गया था कि उसकी जान बचने के चांस सिर्फ़ 3-4% हैं..

पर वो बच गई… लेकिन कोमा में चली गई

अब डॉक्टर्स की तरफ से भी बस एक ही बात बारबार सुनने को मिलती थी "हमें इंतज़ार करना होगा।"

उसे रोज़ दवाइयाँ दी जा रही थीं… हर दिन एक नई उम्मीद दी जाती थी… लेकिन हर उम्मीद की डोर आख़िर में जाकर किस्मत से ही बंधी हुई थी...

अब बस किसी चमत्कार का इंतज़ार था…

और वही चमत्कार… वो सब मिलकर मांग रहे थे....

क्रमश:
Welcome back Adirshi bhai....
Bahut hi badhiya update diya hai Adirshi bhai....
Nice and beautiful update....
 

dhparikh

Well-Known Member
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Update 53





एकांश एकदम से हड़बड़ा कर उठ बैठा... वो पूरा पसीने से भीगा हुआ था..

उसे आसपास का सब कुछ धुंधला दिख रहा था... शायद उसकी आंखों में आंसू थे इसलिए...

उसने हाथ से अपनी आंखें पोंछीं... और महसूस किया कि ये बस एक सपना था... डरावना, पर सपना ही था...

एकांश ने नीचे देखा तो उसकी गोद मे अक्षिता की तस्वीर रखी थी, मुसकुराते हुए... और वो देखकर उसकी आंखों से फिर से आंसू बह निकले...

लेकिन उसे पता था कि वो हमेशा ऐसे नहीं रह सकता था... उसे आगे बढ़ना होगा... पर कैसे? ये वो खुद नहीं जानता था

वो थोड़ा झुका, और उसने उसकी डायरी उठाई... वही डायरी जिसमें आख़िरी कुछ पन्ने उसने उसके लिए लिखे थे...

"अगर तुम ये पढ़ रहे हो... तो शायद मैं अब तुम्हारे पास नहीं हूं"

"मुझे पता है तुम्हारे लिए ये यकीन करना मुश्किल होगा, लेकिन यही सच है, और शायद तुम सोच रहे हो कि मैंने ये सब क्यों लिखा... तो सिर्फ़ इसलिए, क्योंकि मुझे पता था कि तुम टूट जाओगे"

"मुझे पूरा यकीन है कि तुमने खुद को कमरे में बंद कर लिया होगा... किसी से बात नहीं कर रहे होगे... खाना भी ठीक से नहीं खा रहे होगे... और खुद का ध्यान रखना भी छोड़ दिया होगा"

"इसलिए लिख रही हूं, ताकि तुम्हें लगे कि मैं अब भी तुम्हारे आसपास हूं... तुम्हें देख रही हूं"

"काश मेरे बस में होता तो मैं कभी भी तुम्हें छोड़कर ना जाती... लेकिन किस्मत और टाइम से तो कोई नहीं जीतता ना.. जो होना था, हो गया... लेकिन प्लीज़, खुद को इसके लिए ज़िम्मेदार मत मानो"

"मुझे पता है तुम खुद को कोस रहे हो, लेकिन ये सब तुम्हारी गलती नहीं थी.. मुझे हमेशा से पता था कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, और एक दिन मैं चली जाऊंगी.. प्लीज़, उस चीज़ का बोझ मत उठाओ जो तुम्हारे हाथ में ही नहीं थी"

"सबसे ज़्यादा दुख मुझे इस बात का है कि मैं अब तुम्हारे पास नहीं हूं तुम्हें गले लगाने, तुम्हारे आंसू पोंछने और ये कहने के लिए कि 'सब ठीक हो जाएगा'"

"एकांश, प्लीज़... अपने आप को तकलीफ़ मत दो.. अगर तुम ऐसे दुखी रहोगे तो मेरी रूह कभी चैन नहीं पाएगी"

"मैं समझ सकती हूं कि तुम्हें नहीं पता कि अब कैसे आगे बढ़ना है... लेकिन जो लोग तुम्हें प्यार करते हैं उन्हें और तकलीफ़ मत दो मेरे लिए ऐसे मत रोओ कि उन्हें और दर्द हो... मैं चाहती हूं कि तुम सबके साथ खुश रहो अपने पेरेंट्स, मेरे मम्मी पापा, और हमारे दोस्त, सबके साथ"

"मुमकिन है तुम मुझसे नाराज़ हो जाओ ये सब सुनकर... पर मैं सच कह रही हूं प्लीज़ इसे अपना लो.."

"मैं ये अपने लिए नहीं कह रही... मैं तुम्हारे लिए कह रही हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि तुम अपने प्यार करने वालों को यूं तकलीफ़ में देखो"

"कभी कभी... किसी को जाने देना ही सही होता है और मुझे तुम्हें छोड़ना पड़ा एकांश, ये आसान नहीं था मेरे लिए, लेकिन मुझे करना पड़ा क्योंकि मेरे पास कोई चॉइस नहीं थी अब तुम्हें भी मुझे जाने देना होगा... यही हमारी किस्मत है"

"ज़िंदगी रुकती नहीं है... और किसी के चले जाने से रुकनी भी नही चाहिए"

"मुझे पता है ये एक्सेप्ट करना आसान नहीं है कि अब मैं तुम्हारे पास नहीं हूं... लेकिन तुमको जीना पड़ेगा मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हारी ज़िंदगी रुक जाए.."

"दुनिया को लग सकता है कि मैं मर चुकी हूं... लेकिन तुम्हारे लिए? मैं हमेशा जिंदा रहूंगी.. तुम्हारे दिल में... तुम्हारे साथ"

"जब भी तुम अपनी आंखें बंद करोगे, मुझे अपने पास पाओगे, जब भी तुम मुझे याद करोगे, मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगी, जब भी तुम्हें मेरी ज़रूरत होगी, मैं तुम्हारा हाथ थाम लूंगी, बस... अब मेरी शक्ल नहीं दिखेगी, लेकिन मेरा एहसास तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा"

"पता है, कहना आसान है... पर निभाना मुश्किल लेकिन अंश, कभी ये मत सोचना कि तुम अकेले हो.. मैं हूं तुम्हारे साथ, तुम्हारी हर सांस में, हर धड़कन में, हर सोच में... और तुम्हारी मुस्कान में भी.."

"अब क्योंकि मैं तुम्हारी स्माइल में जिंदा हूं... तो प्लीज़, हमेशा मुस्कुराते रहना.."

"I love you."

"I love you."

"I love you..."


वो लगातार वही शब्द दोहराता रहा… डायरी को उसने सीने से यू चिपका रखा था मानो वो ही उसकी आख़िरी उम्मीद हो… और उसकी आंखों से बहते आंसू थम ही नहीं रहे थे..

कमरे के बाहर खड़े हर किसी ने उसकी सिसकियों को साफ़ साफ़ सुना था… हर आवाज़ जैसे सीधा दिल चीर रही हो..
लेकिन वो लोग कुछ कर भी नहीं पा रहे थे बस खामोशी से रोना ही उनका एकमात्र सहारा बन गया था.. उन सबकी आँखों में भी वही दर्द था… लेकिन जो उस कमरे के अंदर था, वो सबसे ज़्यादा टूटा हुआ था...

***

रात के बारा बज रहे थे वो धीरेधीरे चुपचाप से घर के अंदर दाखिल हुआ ताकि आवाज ना हो और किसी को उसके आने का पता ना चले लेकिन अंदर घुस के जैसे ही उसकी नज़र सामने गई… वहाँ उसके मम्मी पापा और अक्षिता के मम्मीपापा खड़े थे, जिनकी आंखों में बेचैनी साफ़ झलक रही थी..

उन्हें देख एकांश वहीं थम गया

अचानक अक्षिता की मम्मी तेज़ क़दमों से उसके पास आईं… और उन्होंने गुस्से में उसके गाल पर एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया..

उसने चुपचाप उनकी तरफ देखा… उनकी आंखों से बहते आंसुओं में ग़ुस्से से ज़्यादा डर था... डर उसे खो देने का

फिर उसने अपने मम्मीपापा की ओर देखा, जो हैरानी में बस उसे देखे जा रहे थे… कुछ कहने की हालत में नहीं थे

"तुम कहां थे?" अक्षिता की मम्मी का गला भर आया था, लेकिन आवाज़ में अब भी गुस्सा था

एकांश ने कोई जवाब नहीं दिया

"हम पूरे दिन परेशान थे! फोन तुम उठा नही रहे… मैसेज का।कोई जवाब नही… हमें कुछ पता ही नहीं था कि तुम कहां हो!"
वो चिल्लाईं और फिर उनकी आंखें फिर से भीग गईं।

"तुम्हारे मम्मीपापा भी इसी चिंता में यहां आ गए, सोचो हम सब पर क्या गुज़री है!"

एकांश अब भी बस नीचे देख रहा था… एकदम चुप मानो उसके पास कहने को शब्द ही न हो

"एकांश?" उसके पापा ने धीमे से आवाज़ दी

उसने धीरे से ऊपर देखा… अपने पापा की तरफ, जिनकी आंखों में हार झलक रही थी.. फिर मां की तरफ देखा जिनकी आंखें में आंसू थे, फिर उसने अक्षिता की मम्मी की तरफ देखा… और उनके गाल से बहता एक आंसू अपने हाथ से पोंछ दिया..

"मैं ठीक हूं… आपलोग प्लीज़ टेंशन मत लीजिए" एकांश ने धीरे से कहा, और फिर सीधा अक्षिता के कमरे की तरफ बढ़ गया जो अब उसी का कमरा बन चुका था

पीछे से अक्षिता की मां की कांपती हुई आवाज़ आई

"हमने अपनी बेटी खो दी है एकांश… हम तुम्हें भी नहीं खोना चाहते…"

एकांश के कदम जैसे वहीं थम गए.. वो एक पल को जड़ सा हो गया… फिर उसने अपनी आंखें ज़ोर से भींच लीं, जैसे खुद से लड़ रहा हो, अपने आप कर कंट्रोल बना रहा हो फिर वो धीरे से दांत भींचते हुए बोला, "हमने उसे नहीं खोया…"

"एकांश… एक महीना हो गया है… तुम्हें अब आगे बढ़ना होगा… तुमने उससे वादा किया था ना?" अक्षिता की मां ने कहा

एकांश के अंदर एक द्वंद चल रहा था लेकिन ऊपर से उसने अपने आप को शांत खड़ा रख रखा था

"आगे बढ़ जाऊं?" एकांश की आवाज़ में कड़वाहट और तकलीफ़ एक साथ थी, "उसे ऐसे ही छोड़ दूं? जैसे कुछ हुआ ही नहीं?" वो चीखा, उसकी आंखों में गुस्से से ज़्यादा बेबसी थी... और अब अक्षिता के पापा अब चुप नहीं रह सके

"तो फिर बताओ, करोगे क्या?" उन्होंने ऊंची आवाज में कहा, "क्या यूं ही अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर लोगे? एक बार खुद से पूछो आख़िरी बार कब तुमने ढंग से खाना खाया था? कब चैन से सोए थे? कब मुस्कुराए थे? कब किसी से ठीक से बात की थी? कब… आख़िरी बार तुम्हारा चेहरा नॉर्मल दिखा था?"

एकांश कुछ नहीं बोला, वो बोलना बहुत कुछ चाहता था लेकिन उसके पास शब्द नहीं थे..

"मैं अभी इस बारे में बात नहीं करना चाहता," वो बुदबुदाया और वहाँ से मुड़कर चला गया

"नहीं तुम अभी कही नही जाओगे" अक्षिता की मां ने कहा,
"तुम हमसे इन बातो से भाग नही सकते एकांश, तुम अपनी ज़िंदगी यूं ही खत्म कर रहे हो, और हम इसे बस देखते नहीं रह सकते! हम उसे वापस नहीं ला सकते एकांश… हमें ये मानना होगा… और एक नई शुरुआत करनी होगी…" और ये कहते हुए सरिताजी फूट फूट रोने लगी..

एकांश के मां पापा चुपचाप ये सब देख रहे थे

अक्षिता के मम्मीपापा इस तरह एकांश की फिक्र कर रहे थे जैसे वो उनका अपना बेटा हो… और ही देखकर वो भी भावुक हो उठे

और तभी एकांश बोला

"प्लीज़ ऐसा मत कहो आंटी प्लीज for god's sake वो मरी नहीं है! और मुझे पूरा यकीन है… वो वापस आएगी... मैं जानता हूं… वो वापस ज़रूर आएगी!" एकांश ने चिल्ला कर कहा और सभी एक पल को चुप हो गए.. पूरे कमरे में जैसे ठहराव सा आ गया..

फिर एकांश ने सबकी तरफ देखा और फिर बोला

"आप लोग ऐसा क्यों बोल रहे हो जैसे वो अब कभी लौटेगी ही नहीं? जैसे वो सच में मर गई है?"

एकांश ने उन सब से सवाल किया और अबकी बार जवाब उसकी मां ने दिया

"तुम्हे लगता है के हममें से कोई ऐसा सोच सकता है" एकांश की मां ने कहा, उनकी आंखे भले नम थी पर शब्दो मे सख्ती थी,"असल में तो वो तुम ही हो जो ऐसा बर्ताव कर रहे हो… जैसे वो मर गई हो, तुम ही हो जो यूं रो रहे हो… जैसे अब कोई उम्मीद ही नहीं बची, तुम ही हो जो दुनिया को दिखा रहे हो कि वो अब कभी नहीं लौटेगी… तुम ही हो जो ये साबित कर रहे हो कि तुम्हारा प्यार कमज़ोर था… और वो अब इस दुनिया में नहीं है…" उनकी आवाज़ में दर्द भी था, और गुस्सा भी

हर शब्द जैसे सीधा एकांश के दिल में उतर रहा था… और वो बस खड़ा सुनता रहा, चुपचाप...

"माँ! अक्षिता मरी नहीं है… वो कोमा में है!" एकांश अचानक ज़ोर से चिल्ला पड़ा जैसे दिल का बोझ ज़ुबान पर आ गया हो

"हाँ एकांश, हमें पता है… वो मरी नहीं है," उसकी माँ ने धीमे लेकिन गंभीर लहज़े में कहा, "वो कोमा में है.. लेकिन सच ये भी है कि हमें नहीं पता वो कब जागेगी… या कभी जागेगी भी या नहीं"

वो एक पल रुकीं, फिर उसकी आंखों में देखते हुए बोलीं,

"लेकिन तुम्हारा बर्ताव… तुम्हारी ये हार मान लेने वाली हालत… ये हमें महसूस करा रही है कि जैसे सब ख़त्म हो चुका है.. एक महीना हुआ है बस… और तुमने कोशिश करना छोड़ दिया है.. जैसे तुमने अपने ही हाथों से उम्मीद का गला घोट दिया हो.."

एकांश कुछ नहीं बोला, वो बस एकटक अपनी मां को देख रहा था और तभी उसके पिता उसके पास आए और बोले

"तुम्हारी माँ बिलकुल सही कह रही है बेटा, हम हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं… बड़े से बड़े डॉक्टर्स से मिल रहे हैं… बस, अब ज़रूरत है कि तुम भी हमारे साथ खड़े रहो"

अक्षिता की माँ अब थोड़ा आगे आईं, उनकी आवाज़ अब भी कांप रही थी लेकिन उसमें अपनापन और दर्द दोनों थे

"हमें पता है कि तुम उसकी हालत देख नहीं पा रहे हो, उसे यूँ बेबस देखकर तुम्हारा दिल टूट रहा है… लेकिन बताओ हम क्या करें? अब बस तुम और तुम्हारा प्यार ही है जो कोई चमत्कार कर सकता है" उन्होंने उसका हाथ थाम लिया

"क्या तुम ही नहीं थे जो कहते थे कि जब तक वो तुम्हारे सामने है, सांसें ले रही है, तुम उम्मीद नहीं छोड़ोगे? तो अब क्या हो गया? वो अब भी ज़िंदा है, एकांश… और तुम्हारे सामने है, हमें उसके लिए खुश रहना चाहिए, उसे आवाज़ लगाते रहना चाहिए, उसे एहसास दिलाते रहना चाहिए कि हम उसके साथ हैं लेकिन हम बस रो रहे हैं… चुपचाप हार मान रहे हैं…"

इतना सुनते ही एकांश वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गया… और फूटफूट कर रोने लगा

"मुझे नहीं पता मुझे क्या करना चाहिए…" उसकी आवाज़ बिखरी हुई थी, "मैं उसे ऐसे बिना हिलेडुले, बिना कुछ कहे हुए नहीं देख सकता, हर दिन, हर पल डर लगता है कि क्या वो कभी अपनी आंखें खोलेगी भी या नहीं.. आज भी मैं पूरा दिन अस्पताल में उसके पास बैठा रहा… उससे बातें करता रहा… उसे उठने के लिए मनाता रहा… पर अंदर से डर लग रहा है कि क्या वो कभी उठेगी भी?"

उसने दोनों हाथों से सिर पकड़ लिया और सिसकते हुए नीचे झुक गया

उसे इस हालत में देख सबका कलेजा कांप उठा

कोई कुछ नहीं बोल पाया सब उसके पास आकर झुक गए, उसे गले से लगाया… और बस उसकी पीठ थपथपाते रहे, जैसे अपने हाथों से उसका दर्द थोड़ाथोड़ा कम करने की कोशिश कर रहे हों..

सच तो ये था कि उनके पास अब कुछ करने को बचा ही नहीं था… बस इंतज़ार ही बाकी था

जो भी होना था, अब किस्मत ही तय करने वाली थी

जब डॉक्टर्स ने बताया था कि ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा है, और अंदरुनी ब्लीडिंग भी कंट्रोल हो गई है तब एक पल को उम्मीद जागी थी… लेकिन उसी के साथ ये भी कह दिया गया था कि उसकी जान बचने के चांस सिर्फ़ 3-4% हैं..

पर वो बच गई… लेकिन कोमा में चली गई

अब डॉक्टर्स की तरफ से भी बस एक ही बात बारबार सुनने को मिलती थी "हमें इंतज़ार करना होगा।"

उसे रोज़ दवाइयाँ दी जा रही थीं… हर दिन एक नई उम्मीद दी जाती थी… लेकिन हर उम्मीद की डोर आख़िर में जाकर किस्मत से ही बंधी हुई थी...

अब बस किसी चमत्कार का इंतज़ार था…

और वही चमत्कार… वो सब मिलकर मांग रहे थे....

क्रमश:
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एकांश एकदम से हड़बड़ा कर उठ बैठा... वो पूरा पसीने से भीगा हुआ था..

उसे आसपास का सब कुछ धुंधला दिख रहा था... शायद उसकी आंखों में आंसू थे इसलिए...

उसने हाथ से अपनी आंखें पोंछीं... और महसूस किया कि ये बस एक सपना था... डरावना, पर सपना ही था...

एकांश ने नीचे देखा तो उसकी गोद मे अक्षिता की तस्वीर रखी थी, मुसकुराते हुए... और वो देखकर उसकी आंखों से फिर से आंसू बह निकले...

लेकिन उसे पता था कि वो हमेशा ऐसे नहीं रह सकता था... उसे आगे बढ़ना होगा... पर कैसे? ये वो खुद नहीं जानता था

वो थोड़ा झुका, और उसने उसकी डायरी उठाई... वही डायरी जिसमें आख़िरी कुछ पन्ने उसने उसके लिए लिखे थे...

"अगर तुम ये पढ़ रहे हो... तो शायद मैं अब तुम्हारे पास नहीं हूं"

"मुझे पता है तुम्हारे लिए ये यकीन करना मुश्किल होगा, लेकिन यही सच है, और शायद तुम सोच रहे हो कि मैंने ये सब क्यों लिखा... तो सिर्फ़ इसलिए, क्योंकि मुझे पता था कि तुम टूट जाओगे"

"मुझे पूरा यकीन है कि तुमने खुद को कमरे में बंद कर लिया होगा... किसी से बात नहीं कर रहे होगे... खाना भी ठीक से नहीं खा रहे होगे... और खुद का ध्यान रखना भी छोड़ दिया होगा"

"इसलिए लिख रही हूं, ताकि तुम्हें लगे कि मैं अब भी तुम्हारे आसपास हूं... तुम्हें देख रही हूं"

"काश मेरे बस में होता तो मैं कभी भी तुम्हें छोड़कर ना जाती... लेकिन किस्मत और टाइम से तो कोई नहीं जीतता ना.. जो होना था, हो गया... लेकिन प्लीज़, खुद को इसके लिए ज़िम्मेदार मत मानो"

"मुझे पता है तुम खुद को कोस रहे हो, लेकिन ये सब तुम्हारी गलती नहीं थी.. मुझे हमेशा से पता था कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, और एक दिन मैं चली जाऊंगी.. प्लीज़, उस चीज़ का बोझ मत उठाओ जो तुम्हारे हाथ में ही नहीं थी"

"सबसे ज़्यादा दुख मुझे इस बात का है कि मैं अब तुम्हारे पास नहीं हूं तुम्हें गले लगाने, तुम्हारे आंसू पोंछने और ये कहने के लिए कि 'सब ठीक हो जाएगा'"

"एकांश, प्लीज़... अपने आप को तकलीफ़ मत दो.. अगर तुम ऐसे दुखी रहोगे तो मेरी रूह कभी चैन नहीं पाएगी"

"मैं समझ सकती हूं कि तुम्हें नहीं पता कि अब कैसे आगे बढ़ना है... लेकिन जो लोग तुम्हें प्यार करते हैं उन्हें और तकलीफ़ मत दो मेरे लिए ऐसे मत रोओ कि उन्हें और दर्द हो... मैं चाहती हूं कि तुम सबके साथ खुश रहो अपने पेरेंट्स, मेरे मम्मी पापा, और हमारे दोस्त, सबके साथ"

"मुमकिन है तुम मुझसे नाराज़ हो जाओ ये सब सुनकर... पर मैं सच कह रही हूं प्लीज़ इसे अपना लो.."

"मैं ये अपने लिए नहीं कह रही... मैं तुम्हारे लिए कह रही हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि तुम अपने प्यार करने वालों को यूं तकलीफ़ में देखो"

"कभी कभी... किसी को जाने देना ही सही होता है और मुझे तुम्हें छोड़ना पड़ा एकांश, ये आसान नहीं था मेरे लिए, लेकिन मुझे करना पड़ा क्योंकि मेरे पास कोई चॉइस नहीं थी अब तुम्हें भी मुझे जाने देना होगा... यही हमारी किस्मत है"

"ज़िंदगी रुकती नहीं है... और किसी के चले जाने से रुकनी भी नही चाहिए"

"मुझे पता है ये एक्सेप्ट करना आसान नहीं है कि अब मैं तुम्हारे पास नहीं हूं... लेकिन तुमको जीना पड़ेगा मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हारी ज़िंदगी रुक जाए.."

"दुनिया को लग सकता है कि मैं मर चुकी हूं... लेकिन तुम्हारे लिए? मैं हमेशा जिंदा रहूंगी.. तुम्हारे दिल में... तुम्हारे साथ"

"जब भी तुम अपनी आंखें बंद करोगे, मुझे अपने पास पाओगे, जब भी तुम मुझे याद करोगे, मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगी, जब भी तुम्हें मेरी ज़रूरत होगी, मैं तुम्हारा हाथ थाम लूंगी, बस... अब मेरी शक्ल नहीं दिखेगी, लेकिन मेरा एहसास तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा"

"पता है, कहना आसान है... पर निभाना मुश्किल लेकिन अंश, कभी ये मत सोचना कि तुम अकेले हो.. मैं हूं तुम्हारे साथ, तुम्हारी हर सांस में, हर धड़कन में, हर सोच में... और तुम्हारी मुस्कान में भी.."

"अब क्योंकि मैं तुम्हारी स्माइल में जिंदा हूं... तो प्लीज़, हमेशा मुस्कुराते रहना.."

"I love you."

"I love you."

"I love you..."


वो लगातार वही शब्द दोहराता रहा… डायरी को उसने सीने से यू चिपका रखा था मानो वो ही उसकी आख़िरी उम्मीद हो… और उसकी आंखों से बहते आंसू थम ही नहीं रहे थे..

कमरे के बाहर खड़े हर किसी ने उसकी सिसकियों को साफ़ साफ़ सुना था… हर आवाज़ जैसे सीधा दिल चीर रही हो..
लेकिन वो लोग कुछ कर भी नहीं पा रहे थे बस खामोशी से रोना ही उनका एकमात्र सहारा बन गया था.. उन सबकी आँखों में भी वही दर्द था… लेकिन जो उस कमरे के अंदर था, वो सबसे ज़्यादा टूटा हुआ था...

***

रात के बारा बज रहे थे वो धीरेधीरे चुपचाप से घर के अंदर दाखिल हुआ ताकि आवाज ना हो और किसी को उसके आने का पता ना चले लेकिन अंदर घुस के जैसे ही उसकी नज़र सामने गई… वहाँ उसके मम्मी पापा और अक्षिता के मम्मीपापा खड़े थे, जिनकी आंखों में बेचैनी साफ़ झलक रही थी..

उन्हें देख एकांश वहीं थम गया

अचानक अक्षिता की मम्मी तेज़ क़दमों से उसके पास आईं… और उन्होंने गुस्से में उसके गाल पर एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया..

उसने चुपचाप उनकी तरफ देखा… उनकी आंखों से बहते आंसुओं में ग़ुस्से से ज़्यादा डर था... डर उसे खो देने का

फिर उसने अपने मम्मीपापा की ओर देखा, जो हैरानी में बस उसे देखे जा रहे थे… कुछ कहने की हालत में नहीं थे

"तुम कहां थे?" अक्षिता की मम्मी का गला भर आया था, लेकिन आवाज़ में अब भी गुस्सा था

एकांश ने कोई जवाब नहीं दिया

"हम पूरे दिन परेशान थे! फोन तुम उठा नही रहे… मैसेज का।कोई जवाब नही… हमें कुछ पता ही नहीं था कि तुम कहां हो!"
वो चिल्लाईं और फिर उनकी आंखें फिर से भीग गईं।

"तुम्हारे मम्मीपापा भी इसी चिंता में यहां आ गए, सोचो हम सब पर क्या गुज़री है!"

एकांश अब भी बस नीचे देख रहा था… एकदम चुप मानो उसके पास कहने को शब्द ही न हो

"एकांश?" उसके पापा ने धीमे से आवाज़ दी

उसने धीरे से ऊपर देखा… अपने पापा की तरफ, जिनकी आंखों में हार झलक रही थी.. फिर मां की तरफ देखा जिनकी आंखें में आंसू थे, फिर उसने अक्षिता की मम्मी की तरफ देखा… और उनके गाल से बहता एक आंसू अपने हाथ से पोंछ दिया..

"मैं ठीक हूं… आपलोग प्लीज़ टेंशन मत लीजिए" एकांश ने धीरे से कहा, और फिर सीधा अक्षिता के कमरे की तरफ बढ़ गया जो अब उसी का कमरा बन चुका था

पीछे से अक्षिता की मां की कांपती हुई आवाज़ आई

"हमने अपनी बेटी खो दी है एकांश… हम तुम्हें भी नहीं खोना चाहते…"

एकांश के कदम जैसे वहीं थम गए.. वो एक पल को जड़ सा हो गया… फिर उसने अपनी आंखें ज़ोर से भींच लीं, जैसे खुद से लड़ रहा हो, अपने आप कर कंट्रोल बना रहा हो फिर वो धीरे से दांत भींचते हुए बोला, "हमने उसे नहीं खोया…"

"एकांश… एक महीना हो गया है… तुम्हें अब आगे बढ़ना होगा… तुमने उससे वादा किया था ना?" अक्षिता की मां ने कहा

एकांश के अंदर एक द्वंद चल रहा था लेकिन ऊपर से उसने अपने आप को शांत खड़ा रख रखा था

"आगे बढ़ जाऊं?" एकांश की आवाज़ में कड़वाहट और तकलीफ़ एक साथ थी, "उसे ऐसे ही छोड़ दूं? जैसे कुछ हुआ ही नहीं?" वो चीखा, उसकी आंखों में गुस्से से ज़्यादा बेबसी थी... और अब अक्षिता के पापा अब चुप नहीं रह सके

"तो फिर बताओ, करोगे क्या?" उन्होंने ऊंची आवाज में कहा, "क्या यूं ही अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर लोगे? एक बार खुद से पूछो आख़िरी बार कब तुमने ढंग से खाना खाया था? कब चैन से सोए थे? कब मुस्कुराए थे? कब किसी से ठीक से बात की थी? कब… आख़िरी बार तुम्हारा चेहरा नॉर्मल दिखा था?"

एकांश कुछ नहीं बोला, वो बोलना बहुत कुछ चाहता था लेकिन उसके पास शब्द नहीं थे..

"मैं अभी इस बारे में बात नहीं करना चाहता," वो बुदबुदाया और वहाँ से मुड़कर चला गया

"नहीं तुम अभी कही नही जाओगे" अक्षिता की मां ने कहा,
"तुम हमसे इन बातो से भाग नही सकते एकांश, तुम अपनी ज़िंदगी यूं ही खत्म कर रहे हो, और हम इसे बस देखते नहीं रह सकते! हम उसे वापस नहीं ला सकते एकांश… हमें ये मानना होगा… और एक नई शुरुआत करनी होगी…" और ये कहते हुए सरिताजी फूट फूट रोने लगी..

एकांश के मां पापा चुपचाप ये सब देख रहे थे

अक्षिता के मम्मीपापा इस तरह एकांश की फिक्र कर रहे थे जैसे वो उनका अपना बेटा हो… और ही देखकर वो भी भावुक हो उठे

और तभी एकांश बोला

"प्लीज़ ऐसा मत कहो आंटी प्लीज for god's sake वो मरी नहीं है! और मुझे पूरा यकीन है… वो वापस आएगी... मैं जानता हूं… वो वापस ज़रूर आएगी!" एकांश ने चिल्ला कर कहा और सभी एक पल को चुप हो गए.. पूरे कमरे में जैसे ठहराव सा आ गया..

फिर एकांश ने सबकी तरफ देखा और फिर बोला

"आप लोग ऐसा क्यों बोल रहे हो जैसे वो अब कभी लौटेगी ही नहीं? जैसे वो सच में मर गई है?"

एकांश ने उन सब से सवाल किया और अबकी बार जवाब उसकी मां ने दिया

"तुम्हे लगता है के हममें से कोई ऐसा सोच सकता है" एकांश की मां ने कहा, उनकी आंखे भले नम थी पर शब्दो मे सख्ती थी,"असल में तो वो तुम ही हो जो ऐसा बर्ताव कर रहे हो… जैसे वो मर गई हो, तुम ही हो जो यूं रो रहे हो… जैसे अब कोई उम्मीद ही नहीं बची, तुम ही हो जो दुनिया को दिखा रहे हो कि वो अब कभी नहीं लौटेगी… तुम ही हो जो ये साबित कर रहे हो कि तुम्हारा प्यार कमज़ोर था… और वो अब इस दुनिया में नहीं है…" उनकी आवाज़ में दर्द भी था, और गुस्सा भी

हर शब्द जैसे सीधा एकांश के दिल में उतर रहा था… और वो बस खड़ा सुनता रहा, चुपचाप...

"माँ! अक्षिता मरी नहीं है… वो कोमा में है!" एकांश अचानक ज़ोर से चिल्ला पड़ा जैसे दिल का बोझ ज़ुबान पर आ गया हो

"हाँ एकांश, हमें पता है… वो मरी नहीं है," उसकी माँ ने धीमे लेकिन गंभीर लहज़े में कहा, "वो कोमा में है.. लेकिन सच ये भी है कि हमें नहीं पता वो कब जागेगी… या कभी जागेगी भी या नहीं"

वो एक पल रुकीं, फिर उसकी आंखों में देखते हुए बोलीं,

"लेकिन तुम्हारा बर्ताव… तुम्हारी ये हार मान लेने वाली हालत… ये हमें महसूस करा रही है कि जैसे सब ख़त्म हो चुका है.. एक महीना हुआ है बस… और तुमने कोशिश करना छोड़ दिया है.. जैसे तुमने अपने ही हाथों से उम्मीद का गला घोट दिया हो.."

एकांश कुछ नहीं बोला, वो बस एकटक अपनी मां को देख रहा था और तभी उसके पिता उसके पास आए और बोले

"तुम्हारी माँ बिलकुल सही कह रही है बेटा, हम हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं… बड़े से बड़े डॉक्टर्स से मिल रहे हैं… बस, अब ज़रूरत है कि तुम भी हमारे साथ खड़े रहो"

अक्षिता की माँ अब थोड़ा आगे आईं, उनकी आवाज़ अब भी कांप रही थी लेकिन उसमें अपनापन और दर्द दोनों थे

"हमें पता है कि तुम उसकी हालत देख नहीं पा रहे हो, उसे यूँ बेबस देखकर तुम्हारा दिल टूट रहा है… लेकिन बताओ हम क्या करें? अब बस तुम और तुम्हारा प्यार ही है जो कोई चमत्कार कर सकता है" उन्होंने उसका हाथ थाम लिया

"क्या तुम ही नहीं थे जो कहते थे कि जब तक वो तुम्हारे सामने है, सांसें ले रही है, तुम उम्मीद नहीं छोड़ोगे? तो अब क्या हो गया? वो अब भी ज़िंदा है, एकांश… और तुम्हारे सामने है, हमें उसके लिए खुश रहना चाहिए, उसे आवाज़ लगाते रहना चाहिए, उसे एहसास दिलाते रहना चाहिए कि हम उसके साथ हैं लेकिन हम बस रो रहे हैं… चुपचाप हार मान रहे हैं…"

इतना सुनते ही एकांश वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गया… और फूटफूट कर रोने लगा

"मुझे नहीं पता मुझे क्या करना चाहिए…" उसकी आवाज़ बिखरी हुई थी, "मैं उसे ऐसे बिना हिलेडुले, बिना कुछ कहे हुए नहीं देख सकता, हर दिन, हर पल डर लगता है कि क्या वो कभी अपनी आंखें खोलेगी भी या नहीं.. आज भी मैं पूरा दिन अस्पताल में उसके पास बैठा रहा… उससे बातें करता रहा… उसे उठने के लिए मनाता रहा… पर अंदर से डर लग रहा है कि क्या वो कभी उठेगी भी?"

उसने दोनों हाथों से सिर पकड़ लिया और सिसकते हुए नीचे झुक गया

उसे इस हालत में देख सबका कलेजा कांप उठा

कोई कुछ नहीं बोल पाया सब उसके पास आकर झुक गए, उसे गले से लगाया… और बस उसकी पीठ थपथपाते रहे, जैसे अपने हाथों से उसका दर्द थोड़ाथोड़ा कम करने की कोशिश कर रहे हों..

सच तो ये था कि उनके पास अब कुछ करने को बचा ही नहीं था… बस इंतज़ार ही बाकी था

जो भी होना था, अब किस्मत ही तय करने वाली थी

जब डॉक्टर्स ने बताया था कि ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा है, और अंदरुनी ब्लीडिंग भी कंट्रोल हो गई है तब एक पल को उम्मीद जागी थी… लेकिन उसी के साथ ये भी कह दिया गया था कि उसकी जान बचने के चांस सिर्फ़ 3-4% हैं..

पर वो बच गई… लेकिन कोमा में चली गई

अब डॉक्टर्स की तरफ से भी बस एक ही बात बारबार सुनने को मिलती थी "हमें इंतज़ार करना होगा।"

उसे रोज़ दवाइयाँ दी जा रही थीं… हर दिन एक नई उम्मीद दी जाती थी… लेकिन हर उम्मीद की डोर आख़िर में जाकर किस्मत से ही बंधी हुई थी...

अब बस किसी चमत्कार का इंतज़ार था…

और वही चमत्कार… वो सब मिलकर मांग रहे थे....

क्रमश:
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एकांश एकदम से हड़बड़ा कर उठ बैठा... वो पूरा पसीने से भीगा हुआ था..

उसे आसपास का सब कुछ धुंधला दिख रहा था... शायद उसकी आंखों में आंसू थे इसलिए...

उसने हाथ से अपनी आंखें पोंछीं... और महसूस किया कि ये बस एक सपना था... डरावना, पर सपना ही था...

एकांश ने नीचे देखा तो उसकी गोद मे अक्षिता की तस्वीर रखी थी, मुसकुराते हुए... और वो देखकर उसकी आंखों से फिर से आंसू बह निकले...

लेकिन उसे पता था कि वो हमेशा ऐसे नहीं रह सकता था... उसे आगे बढ़ना होगा... पर कैसे? ये वो खुद नहीं जानता था

वो थोड़ा झुका, और उसने उसकी डायरी उठाई... वही डायरी जिसमें आख़िरी कुछ पन्ने उसने उसके लिए लिखे थे...

"अगर तुम ये पढ़ रहे हो... तो शायद मैं अब तुम्हारे पास नहीं हूं"

"मुझे पता है तुम्हारे लिए ये यकीन करना मुश्किल होगा, लेकिन यही सच है, और शायद तुम सोच रहे हो कि मैंने ये सब क्यों लिखा... तो सिर्फ़ इसलिए, क्योंकि मुझे पता था कि तुम टूट जाओगे"

"मुझे पूरा यकीन है कि तुमने खुद को कमरे में बंद कर लिया होगा... किसी से बात नहीं कर रहे होगे... खाना भी ठीक से नहीं खा रहे होगे... और खुद का ध्यान रखना भी छोड़ दिया होगा"

"इसलिए लिख रही हूं, ताकि तुम्हें लगे कि मैं अब भी तुम्हारे आसपास हूं... तुम्हें देख रही हूं"

"काश मेरे बस में होता तो मैं कभी भी तुम्हें छोड़कर ना जाती... लेकिन किस्मत और टाइम से तो कोई नहीं जीतता ना.. जो होना था, हो गया... लेकिन प्लीज़, खुद को इसके लिए ज़िम्मेदार मत मानो"

"मुझे पता है तुम खुद को कोस रहे हो, लेकिन ये सब तुम्हारी गलती नहीं थी.. मुझे हमेशा से पता था कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, और एक दिन मैं चली जाऊंगी.. प्लीज़, उस चीज़ का बोझ मत उठाओ जो तुम्हारे हाथ में ही नहीं थी"

"सबसे ज़्यादा दुख मुझे इस बात का है कि मैं अब तुम्हारे पास नहीं हूं तुम्हें गले लगाने, तुम्हारे आंसू पोंछने और ये कहने के लिए कि 'सब ठीक हो जाएगा'"

"एकांश, प्लीज़... अपने आप को तकलीफ़ मत दो.. अगर तुम ऐसे दुखी रहोगे तो मेरी रूह कभी चैन नहीं पाएगी"

"मैं समझ सकती हूं कि तुम्हें नहीं पता कि अब कैसे आगे बढ़ना है... लेकिन जो लोग तुम्हें प्यार करते हैं उन्हें और तकलीफ़ मत दो मेरे लिए ऐसे मत रोओ कि उन्हें और दर्द हो... मैं चाहती हूं कि तुम सबके साथ खुश रहो अपने पेरेंट्स, मेरे मम्मी पापा, और हमारे दोस्त, सबके साथ"

"मुमकिन है तुम मुझसे नाराज़ हो जाओ ये सब सुनकर... पर मैं सच कह रही हूं प्लीज़ इसे अपना लो.."

"मैं ये अपने लिए नहीं कह रही... मैं तुम्हारे लिए कह रही हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि तुम अपने प्यार करने वालों को यूं तकलीफ़ में देखो"

"कभी कभी... किसी को जाने देना ही सही होता है और मुझे तुम्हें छोड़ना पड़ा एकांश, ये आसान नहीं था मेरे लिए, लेकिन मुझे करना पड़ा क्योंकि मेरे पास कोई चॉइस नहीं थी अब तुम्हें भी मुझे जाने देना होगा... यही हमारी किस्मत है"

"ज़िंदगी रुकती नहीं है... और किसी के चले जाने से रुकनी भी नही चाहिए"

"मुझे पता है ये एक्सेप्ट करना आसान नहीं है कि अब मैं तुम्हारे पास नहीं हूं... लेकिन तुमको जीना पड़ेगा मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हारी ज़िंदगी रुक जाए.."

"दुनिया को लग सकता है कि मैं मर चुकी हूं... लेकिन तुम्हारे लिए? मैं हमेशा जिंदा रहूंगी.. तुम्हारे दिल में... तुम्हारे साथ"

"जब भी तुम अपनी आंखें बंद करोगे, मुझे अपने पास पाओगे, जब भी तुम मुझे याद करोगे, मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगी, जब भी तुम्हें मेरी ज़रूरत होगी, मैं तुम्हारा हाथ थाम लूंगी, बस... अब मेरी शक्ल नहीं दिखेगी, लेकिन मेरा एहसास तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा"

"पता है, कहना आसान है... पर निभाना मुश्किल लेकिन अंश, कभी ये मत सोचना कि तुम अकेले हो.. मैं हूं तुम्हारे साथ, तुम्हारी हर सांस में, हर धड़कन में, हर सोच में... और तुम्हारी मुस्कान में भी.."

"अब क्योंकि मैं तुम्हारी स्माइल में जिंदा हूं... तो प्लीज़, हमेशा मुस्कुराते रहना.."

"I love you."

"I love you."

"I love you..."


वो लगातार वही शब्द दोहराता रहा… डायरी को उसने सीने से यू चिपका रखा था मानो वो ही उसकी आख़िरी उम्मीद हो… और उसकी आंखों से बहते आंसू थम ही नहीं रहे थे..

कमरे के बाहर खड़े हर किसी ने उसकी सिसकियों को साफ़ साफ़ सुना था… हर आवाज़ जैसे सीधा दिल चीर रही हो..
लेकिन वो लोग कुछ कर भी नहीं पा रहे थे बस खामोशी से रोना ही उनका एकमात्र सहारा बन गया था.. उन सबकी आँखों में भी वही दर्द था… लेकिन जो उस कमरे के अंदर था, वो सबसे ज़्यादा टूटा हुआ था...

***

रात के बारा बज रहे थे वो धीरेधीरे चुपचाप से घर के अंदर दाखिल हुआ ताकि आवाज ना हो और किसी को उसके आने का पता ना चले लेकिन अंदर घुस के जैसे ही उसकी नज़र सामने गई… वहाँ उसके मम्मी पापा और अक्षिता के मम्मीपापा खड़े थे, जिनकी आंखों में बेचैनी साफ़ झलक रही थी..

उन्हें देख एकांश वहीं थम गया

अचानक अक्षिता की मम्मी तेज़ क़दमों से उसके पास आईं… और उन्होंने गुस्से में उसके गाल पर एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया..

उसने चुपचाप उनकी तरफ देखा… उनकी आंखों से बहते आंसुओं में ग़ुस्से से ज़्यादा डर था... डर उसे खो देने का

फिर उसने अपने मम्मीपापा की ओर देखा, जो हैरानी में बस उसे देखे जा रहे थे… कुछ कहने की हालत में नहीं थे

"तुम कहां थे?" अक्षिता की मम्मी का गला भर आया था, लेकिन आवाज़ में अब भी गुस्सा था

एकांश ने कोई जवाब नहीं दिया

"हम पूरे दिन परेशान थे! फोन तुम उठा नही रहे… मैसेज का।कोई जवाब नही… हमें कुछ पता ही नहीं था कि तुम कहां हो!"
वो चिल्लाईं और फिर उनकी आंखें फिर से भीग गईं।

"तुम्हारे मम्मीपापा भी इसी चिंता में यहां आ गए, सोचो हम सब पर क्या गुज़री है!"

एकांश अब भी बस नीचे देख रहा था… एकदम चुप मानो उसके पास कहने को शब्द ही न हो

"एकांश?" उसके पापा ने धीमे से आवाज़ दी

उसने धीरे से ऊपर देखा… अपने पापा की तरफ, जिनकी आंखों में हार झलक रही थी.. फिर मां की तरफ देखा जिनकी आंखें में आंसू थे, फिर उसने अक्षिता की मम्मी की तरफ देखा… और उनके गाल से बहता एक आंसू अपने हाथ से पोंछ दिया..

"मैं ठीक हूं… आपलोग प्लीज़ टेंशन मत लीजिए" एकांश ने धीरे से कहा, और फिर सीधा अक्षिता के कमरे की तरफ बढ़ गया जो अब उसी का कमरा बन चुका था

पीछे से अक्षिता की मां की कांपती हुई आवाज़ आई

"हमने अपनी बेटी खो दी है एकांश… हम तुम्हें भी नहीं खोना चाहते…"

एकांश के कदम जैसे वहीं थम गए.. वो एक पल को जड़ सा हो गया… फिर उसने अपनी आंखें ज़ोर से भींच लीं, जैसे खुद से लड़ रहा हो, अपने आप कर कंट्रोल बना रहा हो फिर वो धीरे से दांत भींचते हुए बोला, "हमने उसे नहीं खोया…"

"एकांश… एक महीना हो गया है… तुम्हें अब आगे बढ़ना होगा… तुमने उससे वादा किया था ना?" अक्षिता की मां ने कहा

एकांश के अंदर एक द्वंद चल रहा था लेकिन ऊपर से उसने अपने आप को शांत खड़ा रख रखा था

"आगे बढ़ जाऊं?" एकांश की आवाज़ में कड़वाहट और तकलीफ़ एक साथ थी, "उसे ऐसे ही छोड़ दूं? जैसे कुछ हुआ ही नहीं?" वो चीखा, उसकी आंखों में गुस्से से ज़्यादा बेबसी थी... और अब अक्षिता के पापा अब चुप नहीं रह सके

"तो फिर बताओ, करोगे क्या?" उन्होंने ऊंची आवाज में कहा, "क्या यूं ही अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर लोगे? एक बार खुद से पूछो आख़िरी बार कब तुमने ढंग से खाना खाया था? कब चैन से सोए थे? कब मुस्कुराए थे? कब किसी से ठीक से बात की थी? कब… आख़िरी बार तुम्हारा चेहरा नॉर्मल दिखा था?"

एकांश कुछ नहीं बोला, वो बोलना बहुत कुछ चाहता था लेकिन उसके पास शब्द नहीं थे..

"मैं अभी इस बारे में बात नहीं करना चाहता," वो बुदबुदाया और वहाँ से मुड़कर चला गया

"नहीं तुम अभी कही नही जाओगे" अक्षिता की मां ने कहा,
"तुम हमसे इन बातो से भाग नही सकते एकांश, तुम अपनी ज़िंदगी यूं ही खत्म कर रहे हो, और हम इसे बस देखते नहीं रह सकते! हम उसे वापस नहीं ला सकते एकांश… हमें ये मानना होगा… और एक नई शुरुआत करनी होगी…" और ये कहते हुए सरिताजी फूट फूट रोने लगी..

एकांश के मां पापा चुपचाप ये सब देख रहे थे

अक्षिता के मम्मीपापा इस तरह एकांश की फिक्र कर रहे थे जैसे वो उनका अपना बेटा हो… और ही देखकर वो भी भावुक हो उठे

और तभी एकांश बोला

"प्लीज़ ऐसा मत कहो आंटी प्लीज for god's sake वो मरी नहीं है! और मुझे पूरा यकीन है… वो वापस आएगी... मैं जानता हूं… वो वापस ज़रूर आएगी!" एकांश ने चिल्ला कर कहा और सभी एक पल को चुप हो गए.. पूरे कमरे में जैसे ठहराव सा आ गया..

फिर एकांश ने सबकी तरफ देखा और फिर बोला

"आप लोग ऐसा क्यों बोल रहे हो जैसे वो अब कभी लौटेगी ही नहीं? जैसे वो सच में मर गई है?"

एकांश ने उन सब से सवाल किया और अबकी बार जवाब उसकी मां ने दिया

"तुम्हे लगता है के हममें से कोई ऐसा सोच सकता है" एकांश की मां ने कहा, उनकी आंखे भले नम थी पर शब्दो मे सख्ती थी,"असल में तो वो तुम ही हो जो ऐसा बर्ताव कर रहे हो… जैसे वो मर गई हो, तुम ही हो जो यूं रो रहे हो… जैसे अब कोई उम्मीद ही नहीं बची, तुम ही हो जो दुनिया को दिखा रहे हो कि वो अब कभी नहीं लौटेगी… तुम ही हो जो ये साबित कर रहे हो कि तुम्हारा प्यार कमज़ोर था… और वो अब इस दुनिया में नहीं है…" उनकी आवाज़ में दर्द भी था, और गुस्सा भी

हर शब्द जैसे सीधा एकांश के दिल में उतर रहा था… और वो बस खड़ा सुनता रहा, चुपचाप...

"माँ! अक्षिता मरी नहीं है… वो कोमा में है!" एकांश अचानक ज़ोर से चिल्ला पड़ा जैसे दिल का बोझ ज़ुबान पर आ गया हो

"हाँ एकांश, हमें पता है… वो मरी नहीं है," उसकी माँ ने धीमे लेकिन गंभीर लहज़े में कहा, "वो कोमा में है.. लेकिन सच ये भी है कि हमें नहीं पता वो कब जागेगी… या कभी जागेगी भी या नहीं"

वो एक पल रुकीं, फिर उसकी आंखों में देखते हुए बोलीं,

"लेकिन तुम्हारा बर्ताव… तुम्हारी ये हार मान लेने वाली हालत… ये हमें महसूस करा रही है कि जैसे सब ख़त्म हो चुका है.. एक महीना हुआ है बस… और तुमने कोशिश करना छोड़ दिया है.. जैसे तुमने अपने ही हाथों से उम्मीद का गला घोट दिया हो.."

एकांश कुछ नहीं बोला, वो बस एकटक अपनी मां को देख रहा था और तभी उसके पिता उसके पास आए और बोले

"तुम्हारी माँ बिलकुल सही कह रही है बेटा, हम हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं… बड़े से बड़े डॉक्टर्स से मिल रहे हैं… बस, अब ज़रूरत है कि तुम भी हमारे साथ खड़े रहो"

अक्षिता की माँ अब थोड़ा आगे आईं, उनकी आवाज़ अब भी कांप रही थी लेकिन उसमें अपनापन और दर्द दोनों थे

"हमें पता है कि तुम उसकी हालत देख नहीं पा रहे हो, उसे यूँ बेबस देखकर तुम्हारा दिल टूट रहा है… लेकिन बताओ हम क्या करें? अब बस तुम और तुम्हारा प्यार ही है जो कोई चमत्कार कर सकता है" उन्होंने उसका हाथ थाम लिया

"क्या तुम ही नहीं थे जो कहते थे कि जब तक वो तुम्हारे सामने है, सांसें ले रही है, तुम उम्मीद नहीं छोड़ोगे? तो अब क्या हो गया? वो अब भी ज़िंदा है, एकांश… और तुम्हारे सामने है, हमें उसके लिए खुश रहना चाहिए, उसे आवाज़ लगाते रहना चाहिए, उसे एहसास दिलाते रहना चाहिए कि हम उसके साथ हैं लेकिन हम बस रो रहे हैं… चुपचाप हार मान रहे हैं…"

इतना सुनते ही एकांश वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गया… और फूटफूट कर रोने लगा

"मुझे नहीं पता मुझे क्या करना चाहिए…" उसकी आवाज़ बिखरी हुई थी, "मैं उसे ऐसे बिना हिलेडुले, बिना कुछ कहे हुए नहीं देख सकता, हर दिन, हर पल डर लगता है कि क्या वो कभी अपनी आंखें खोलेगी भी या नहीं.. आज भी मैं पूरा दिन अस्पताल में उसके पास बैठा रहा… उससे बातें करता रहा… उसे उठने के लिए मनाता रहा… पर अंदर से डर लग रहा है कि क्या वो कभी उठेगी भी?"

उसने दोनों हाथों से सिर पकड़ लिया और सिसकते हुए नीचे झुक गया

उसे इस हालत में देख सबका कलेजा कांप उठा

कोई कुछ नहीं बोल पाया सब उसके पास आकर झुक गए, उसे गले से लगाया… और बस उसकी पीठ थपथपाते रहे, जैसे अपने हाथों से उसका दर्द थोड़ाथोड़ा कम करने की कोशिश कर रहे हों..

सच तो ये था कि उनके पास अब कुछ करने को बचा ही नहीं था… बस इंतज़ार ही बाकी था

जो भी होना था, अब किस्मत ही तय करने वाली थी

जब डॉक्टर्स ने बताया था कि ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा है, और अंदरुनी ब्लीडिंग भी कंट्रोल हो गई है तब एक पल को उम्मीद जागी थी… लेकिन उसी के साथ ये भी कह दिया गया था कि उसकी जान बचने के चांस सिर्फ़ 3-4% हैं..

पर वो बच गई… लेकिन कोमा में चली गई

अब डॉक्टर्स की तरफ से भी बस एक ही बात बारबार सुनने को मिलती थी "हमें इंतज़ार करना होगा।"

उसे रोज़ दवाइयाँ दी जा रही थीं… हर दिन एक नई उम्मीद दी जाती थी… लेकिन हर उम्मीद की डोर आख़िर में जाकर किस्मत से ही बंधी हुई थी...

अब बस किसी चमत्कार का इंतज़ार था…

और वही चमत्कार… वो सब मिलकर मांग रहे थे....

क्रमश:
Lazwab behtreen update
 
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