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Romance Ek Duje ke Vaaste..

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Adirshi

Royal कारभार 👑
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अक्षिता का इलाज के बाद कोमा मे चले जाना और एकांश का अक्षिता को याद कर नयनों से अश्रु बहाना इस अध्याय का अत्यंत ही भावुक पल था । संवेदनशील रीडर को ऐसे लम्हात भाव विह्वल कर ही देते है ।

पर , शायद यही जीवन है !
मुकेश और लता मंगेशकर के इस दर्द भरे नग्मे मे जीवन का सार छुपा हुआ है -
" कुछ पाकर खोना है , कुछ खोकर पाना है ।
जीवन का मतलब तो , आना और जाना है ।
दो पल के जीवन से , एक उम्र चुरानी है ,
जिंदगी और कुछ भी नही , तेरी मेरी कहानी है ।
एक प्यार का नगमा है , मौजों की रवानी है ,
जिंदगी और कुछ भी नही , तेरी मेरी कहानी है । "

जीवन के हर पल को पुरी तरह से जीना ही जीवन का सार है , वह जीवन भले ही अल्प उम्र की ही क्यों न हो !

मै अपनी बहन से बहुत स्नेह करता था , लेकिन वह बहुत कम उम्र मे ही भगवान को प्यारी हो गई । मै अपनी मां के वगैर अपने जीवन की कल्पना तक नही कर पाता था , लेकिन वह भी मुझे छोड़कर चली गई । मेरे पिता जी से बढ़कर मेरा कोई दोस्त नही था , लेकिन उन्होने भी मेरा साथ छोड़ दिया । मेरे कुछ बहुत ही खास दोस्त वक्त से पहले ईश्वर के पास पहुंच गए ।
उनकी यादें मुझे अक्सर भावुक करती है लेकिन जब भी इस गीत को सुनता हूं तो फिर जीवन के अर्थ का आभास हो जाता है ।

मै एक पोजिटिव माइंड सेट व्यक्ति हूं । मुझे यकीन है अक्षिता पुरी तरह से स्वस्थ हो जायेगी । एकांश और अक्षिता के लव स्टोरी का खुशहाल एंडिंग होगा ।

खुबसूरत और इमोशनल अपडेट Adirshi भाई ।
Thank you so much for this lovely Review bade bhai :thanx:
 

Adirshi

Royal कारभार 👑
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Update 54



एकांश नींद में हल्के से हिला ही था कि उसे अचानक लगा जैसे कोई बहुत ही नरम सा हाथ उसके बालों को सहला रहा है.. उस स्पर्श को महसूस करते ही उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई… उसे पता था, ये किसका हाथ था...

अक्षिता का...

धीरे से उसने अपनी आँखें खोलीं… लेकिन कमरे में कोई नहीं था, सच्चाई से सामना होते ही एकांश का चेहरा उतर गया था, ये पहली बार नहीं था जब उसे ऐसा महसूस हुआ था जैसे अक्षिता उसके पास हो… बिल्कुल पास...

वो तकिए में खुद को और अंदर तक समेटता चला गया, जैसे उसमें छुप जाना चाहता हो.. उसने चादर को अपने पास खींचा… और जैसे ही उसने उसे सूंघा, उसकी आँखें नम हो गईं, अब भी उसकी चादर में वही खुशबू थी… वही महक… जो उसे एकदम अक्षिता के पास ले जाती थी... एक पल को उसे सच में लगा जैसे वो यहीं, उसी बिस्तर पर, उसके साथ है

वो उठकर बैठ गया और उसकी नजर सामने बनी दीवार पर गई, जिस पर अक्षिता का बनाया हुआ फोटो कोलाज था

अब ये उसकी रोज़ की आदत बन गई थी, वो सुबह उठते ही सबसे पहले उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर को देखता, वहा मौजूद हर तस्वीर जैसे कोई किस्सा सुना रही थी.. और फिर उसकी नज़र उस एक फोटो पर अटक गई जो अस्पताल में ऐड्मिट होने से ठीक पहले ली गई थी

वो उसके कंधे पर झुकी हुई थी… और एकांश उसका माथा चूम रहा था.. ये फोटो अक्षिता की मम्मी ने चुपचाप खींच ली थी और तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं था, कि ये उनकी आख़िरी तस्वीर बन जाएगी…

उसकी आँख से एक आंसू बह निकला… और तभी उसे फिर से वही एहसास हुआ जैसे किसी ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा हो

उसने पलटकर देखा… और वो वहीं थी... उसकी आंखों में झाँकती हुई

वो कुछ नहीं बोला… बस उसने आंखों से बहते उन आंसुओं को पोंछ दिया, और फिर उसके माथे पर एक हल्का सा किस रख दिया, जैसे वो हमेशा करता था

उसने अक्षिता की अपने पास की मौजूदगी को पूरी तरह महसूस किया… और आंखें बंद कर ली.. लेकिन जब उसने दोबारा आंखें खोलीं तब वो वहाँ नहीं थी... पर एकांश जानता था… वो यहीं कहीं है.. उसे अब भी हर पल उसकी मौजूदगी का एहसास होता था और यही बात उसे सबसे ज़्यादा सुकून देती थी...

क्योंकि अक्षिता ने उससे वादा किया था कि वो कभी उसे अकेला नहीं छोड़ेगी.. और वो अब भी अपने वादे पर कायम थी...

जब एकांश ने ये बात अक्षिता के मम्मी-पापा को बताई वो बस मुस्कुराये लेकिन कोई कुछ बोला नहीं पर एकांश उनकी आँखों मे देख उनके मन की बात को समझ रहा था, उन्हे लग रहा था की वो ये सब बस अपनी कल्पनाओ मे महसूस कर रहा है

लेकिन एकांश को इससे फर्क नहीं पड़ता था.. उसे कोई चिंता नाही थी की लोग क्या सोचते है, उसे पागल कहते है या उसकी बात को वहम बताते है, उसके लिए तो बस एक ही बात मायने रखती थी, अक्षिता उसके साथ थी और यही बात उसे अब भी होश में रखे हुए थी..

उसे पूरा यकीन था कि वो वापस आएगी.. क्योंकि वो जानती है… एकांश उसके बिना नहीं रह सकता.. और कम से कम उसी की ख़ातिर… उसके प्यार की खातिर… वो ज़रूर लौटेगी..

एकांश जल्दी से तैयार हुआ और बाहर आ गया,

डाइनिंग टेबल पर अक्षिता के मम्मी-पापा बैठे हुए थे एकदम चुपचाप, उदास… और शायद भूखे भी, पर खाने का मन ही कहाँ था किसी का?

"Good morning!" एकांश की आवाज़ जैसे कमरे की उदासी को थोड़ी देर के लिए रोक गई, वो मुस्कराते हुए कुर्सी खींचकर बैठ गया और शांति से नाश्ता करने लगा, आज उसके बर्ताव मे कुछ तो अलग था

अक्षिता के मम्मी-पापा उसे यू देख हैरान रह गए...

वो बस उसे देखे जा रहे थे, सोच रहे थे की कल तक जो लड़का टूटा हुआ था, बिखरा हुआ था… आज इतनी शांति से नाश्ता कर रहा है?

ऐसा क्या हुआ है? कौन सी बात है जिसने उसके अंदर का दर्द कुछ हल्का कर दिया?

वो इसी सोच में थे कि उन्होंने उसकी आवाज़ सुनी

"मैं निकल रहा हूँ," एकांश ने कहा और उठने लगा

"एकांश बेटा…" अक्षिता की मम्मी ने उसे आवाज़ दी

"तुम्हें क्या हुआ है?" उन्होंने धीरे से पूछा

"मुझे? कुछ भी तो नहीं, सब ठीक है" एकांश ने हल्का सा मुसकुराते हुए कहा

"पिछले पूरे महीने तुम इतने डिप्रेस थे कि हमें डर लगने लगा था कि हम तुम्हें भी खो देंगे… लेकिन पिछले एक हफ्ते से तुममें कुछ बदला-बदला सा है... खुश लग रहे हो, क्या हुआ है बेटा?" अक्षिता के पापा ने पूछा

एकांश ने बस हल्की सी मुस्कान दी लेकिन कुछ नहीं बोला

"एकांश… प्लीज़ बेटा, हमें तुम्हारी फिक्र है," अक्षिता की मम्मी ने कहा

"मम्मी आप चिंता न कीजिए… मैं खुश दिख रहा हूँ क्योंकि मैं वाकई खुश हूँ" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा और एक पल रुका और फिर धीरे से बोला

"और इसका कारण ये है… कि मैं उसकी presence को महसूस करता हूँ, वो मेरे साथ है… और यही मेरी खुशी की वजह है" ये कहकर वो कमरे से बाहर चला गया और पीछे छोड़ गया वो चिंतित निगाहे जो उसकी मुस्कराहट तो देख पा रही थीं… पर उस मुस्कराहट के पीछे का भरोसा अभी भी पूरी तरह समझ नहीं पा रही थीं..

--

एकांश ने धीरे से दरवाज़ा खोला… और चुपचाप कमरे में झाँका.. अंदर वही चेहरा था… जो उसके लिए सुकून का दूसरा नाम बन चुका था... वो मुस्कुराया और धीरे-धीरे उस बिस्तर की तरफ़ बढ़ा जहाँ वो लड़की शांत, गहरी नींद में लेटी हुई थी… जैसे किसी दूसरी दुनिया में हो..

उसने अपने हाथ से उसके गाल को बड़े प्यार से छुआ… और फिर उसके माथे पर हल्का सा किस किया... उसके बालों की तरफ़ देखा, खासकर उस जगह, जहाँ सर्जरी हुई थी... पट्टी अभी भी बंधी थी… और उसे देखकर उसके चेहरे पर एक तकलीफ़-सी आई… सोचकर कि उसे कितना दर्द झेलना पड़ा होगा

लेकिन उसी वक़्त उसकी नज़र उस छोटे से हिस्से पर पड़ी जहाँ बाल दोबारा उगने लगे थे…

एकांश हल्के से मुस्कुराया

ये छोटा सा बदलाव उसके लिए एक बड़ी राहत जैसा था, जैसे कोई चुपचाप कह रहा हो कि “वो ठीक हो रही है…”

वो उसके पास बैठ गया, और उसने उसका हाथ अपने हाथों में लिया, उसके हाथ को अपने होंठों से छूते हुए एकांश ने धीमे से फुसफुसाते हुए कहा

"Please जाग जाओ अक्षु… मैं यहीं हूँ… तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ"

और फिर एक पल ठहरकर उसने धीरे से कहा..

"अक्षु, तुम्हारे मम्मी-पापा परेशान हैं, सब लोग बस तुम्हारे उठने का इंतज़ार कर रहे हैं… प्लीज़, अपनी आंखें खोलो ना…"

बोलते हुए एकांश की आंखें नम हो गईं थी… कुछ आंसू चुपचाप उसके हाथ पर गिर पड़े

उसने साइड टेबल की तरफ़ देखा, वहां उनकी एक प्यारी सी फोटो रखी थी, वही तस्वीर जिसे वो सबसे ज़्यादा पसंद करता था…

वो मुस्कुराया जैसे उस फोटो में भी उसने अपनी अक्षिता की शरारत देख ली हो

"अक्षु, मेरी तरफ देखो ना…"

एकांश की आवाज बहुत धीमी थी मानो बस वो ये सिर्फ अक्षिता से कहना चाहता हो

"मैं रो नहीं रहा हूँ… और न ही उदास हूँ... मैं खुश हूँ… या कम से कम खुश रहने की कोशिश कर रहा हूँ, जैसे तुमसे वादा किया था, मैं अपना वादा निभा रहा हूँ… अब तुम्हारी बारी है अक्षु, तुमने मुझसे वादा किया था कि तुम मेरे पास वापस आओगी… है ना?"

ये कहते हुए उसने अपना माथा उसके हाथ पर रख दिया… उसकी हथेली की गर्माहट को अपने चेहरे पर महसूस करने लगा जैसे वही अब उसकी सबसे बड़ी उम्मीद हो...

उसी वक्त दरवाज़े पर खड़े थे डॉ. अवस्थी, वो चुपचाप उस इंसान को देख रहे थे… जो पूरे दिल से सिर्फ़ अपने प्यार के जागने की दुआ कर रहा था

उन्होंने अपने करियर में ऐसे कई रिश्ते देखे थे, लोगों को अपने अपनों के लिए रोते देखा था… पर ऐसा निस्वार्थ, ऐसा बेपनाह प्यार शायद ही उन्होंने कभी देखा हो

उन्होंने अब तक किसी लड़के को अपनी प्रेमिका से इतना गहराई से प्यार करते नहीं देखा था,

आजकल तो प्यार एक ट्रेंड बन गया है बस एक कैप्शन भर का, एक इंस्टाग्राम स्टोरी भर का, युवाओं के लिए प्यार अक्सर बस आकर्षण होता है… डेटिंग ऐप्स पर शुरू होता है, और अगर 'वर्क नही किया' तो दूसरा ढूंढ लिया जाता है.. रिश्ते की असली गहराई से ज़्यादा उन्हें उस रिश्ते का दिखावा ज़रूरी लगता है

डॉ. अवस्थी एकांश को देख रहे थे और सोच रहे थे कि जब तक वो एकांश ने नहीं मिले थे वो समझ ही नहीं पाए थे कि सच्चा प्यार होता क्या है....

एकांश रघुवंशी, एक अमीर, बिज़ी, घमंडी कहे जाने वाला बिज़नेसमैन… जिसने उन्हें वो सिखाया जो कोई किताब या मेडिकल केस नहीं सिखा सका... कि प्यार वाकई क्या होता है... हाँ, वो खुद भी अपनी पत्नी से प्यार करते थे… लेकिन वो कुछ और था जो उन्होंने एकांश और अक्षिता के बीच देखा था, वो कुछ अलग ही था… कुछ और ही लेवल का

पिछले दो महीने में जो उन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा वो सिर्फ़ एक रिश्ते की कहानी नहीं थी… वो प्यार की परिभाषा थी... एक अमर प्यार की कहानी

चाहे वो दोनों ज़िंदा रहें या ना रहें… लेकिन उनका रिश्ता हमेशा जिंदा रहेगा.. क्योंकि प्रेम वक्त से परे होता है... जो ना हालातों में बंधता है, ना सालों में गिनता है... ज़िंदगी में हम बहुत लोगों से प्यार करते हैं… पर responsibilities, बदलते हालात या फिर वक्त का असर… धीरे-धीरे वो रिश्ते फीके पड़ जाते हैं...

लेकिन एकांश और अक्षिता का प्यार…

वो कुछ और ही था कुछ ऐसा जिसे वक़्त भी नहीं हरा सकता... ये सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक एहसास था और वो हमेशा रहेगा

अक्षिता का केस भी बाकियों से बिल्कुल अलग था... आमतौर पर जिस ट्यूमर को वक्त रहते फटना चाहिए था, उसने बहुत समय ले लिया था और जब फटा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी... डॉक्टर्स ने उसे बचाने की पूरी कोशिश की… डॉ. हेनरी फिशर तक ने अपनी हर expertise झोंक दी थी, और जो सबसे critical चीज़ वो कर सकते थे वो था उसके अंदरूनी रक्तस्राव को कंट्रोल करना, ब्लीडिंग तो संभाल लि गई, लेकिन ब्रेन पर जो असर हुआ था, वो रोका नहीं जा सका...

अक्षिता के दिमाग़ का एक हिस्सा डैमेज हो गया… और इसी वजह से वो कोमा में चली गई

अब डॉक्टर्स के पास कोई जवाब नहीं था… ना इस सवाल का कि वो कब जागेगी, ना ही इस बात का कि वो कभी जागेगी भी या नहीं..

उसी वक्त, डॉ. अवस्थी की नज़र एकांश पर पड़ी जो अब भी उसी सादगी से उसके सामने बैठा बात कर रहा था, जैसे वो सब सुन रही हो

डॉ. अवस्थी हल्के से मुस्कराए.. उन्हें एक बात और पता थी, जो उन्होंने अब तक किसी से शेयर नहीं की थी

उन्हें याद था, पिछले महीने की एक रात जब एकांश उनके हाथों को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था उस वक़्त उन्होंने मॉनिटर पर अक्षिता की धड़कनों में हलचल देखी थी…

हर बार जब एकांश वहां होता था तो कुछ न कुछ बदलता था... उसके दिल की बीट्स में हरकत होती थी… जैसे उसके अंदर कुछ जाग रहा हो...

डॉक्टर को धीरे-धीरे ये यकीन होने लगा था कि वो सब सुन सकती है, महसूस कर सकती है… बस अभी रिस्पॉन्ड नहीं कर पा रही

उन्होंने अब तक ये बात एकांश से नहीं कही थी… क्योंकि एक तो वो खुद डॉ. फिशर से इसे कन्फर्म करना चाहते थे,

और दूसरा ये कि वो नहीं चाहते थे कि एकांश की उम्मीदें कहीं फिर से टूट जाएं क्योंकि ये अब एक ज़िंदगी का मामला नहीं रह गया था… ये दो ज़िंदगियों की लड़ाई थी, ये साफ था कि अगर अक्षिता को कुछ हो गया, तो एकांश भी ज़िंदा नहीं बचेगा, कम से कम अंदर से तो बिल्कुल नहीं...

डॉक्टर चुपचाप आगे बढ़े और एकांश के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा... एकांश ने ऊपर देखा और हल्की सी मुस्कान दी

"डॉक्टर, देखा आपने? उसके बाल वापस उग रहे हैं!" वो एक बच्चे की तरह खुश होकर बोला

डॉक्टर भी उसकी मुस्कान देखकर मुस्कराए… और बोले,

"मैं तुम्हें एक और चीज़ बताना चाहता हूँ… जिससे तुम्हारी खुशी और बढ़ेगी"

एकांश सीधा खड़ा हो गया उसके चेहरे पर एक चमक आ गई थी

"क्या?" उसने उम्मीद भरी नज़रों से पूछा

डॉक्टर ने मॉनिटर की ओर इशारा किया, "इधर देखो"

"अब उसका हाथ पकड़ो" डॉक्टर ने कहा

एकांश ने उसका हाथ धीरे से थामा… और फिर प्यार से चूम लिया

मॉनिटर पर अचानक कुछ हरकत दिखी और एकांश कुछ पल के लिए एकदम स्तब्ध रह गया

उसने मॉनिटर की तरफ देखा… फिर अक्षिता की तरफ… फिर फिर से मॉनिटर की तरफ

डॉक्टर ने उसके पास आकर मुस्कराते हुए कहा,

"हाँ, वो तुम्हें feel कर सकती है, वो सुन सकती है कि तुम क्या कह रहे हो… और जब तुम उसे छूते हो, तो वो उसे महसूस भी करती है"

एकांश की आंखों से आंसू बहने लगे थे लेकिन उसके होंठों पर एक सच्ची सी मुस्कान थी

"ये एक बहुत पॉज़िटिव साइन है और मैंने इस बारे में डॉ. फिशर से भी बात की है, और उन्होंने कहा कि तुम्हें उससे बात करते रहना चाहिए… उसे महसूस कराते रहो कि तुम वहीं हो...

शायद इससे वो जवाब देने लगे… और धीरे-धीरे… जाग भी जाए"

एकांश ने अपनी आंखें पोंछी और सिर हिलाकर हाँ कहा, अब तो जैसे अब उसके अंदर कोई नई जान आ गई हो... अब उसे सबसे पहले ये बात अपने दोस्तों और पेरेंट्स को बतानी थी

उसने फ़ोन निकाला, जल्दी-जल्दी नंबर डायल किए… और सबको इस नन्हीं सी उम्मीद के बारे में बताया... सुनते ही सबकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा हालाँकि उनकी चिंता एकांश को लेकर अब भी थी… लेकिन पहली बार, वो चिंता एक उम्मीद में बदलती दिख रही थी....



क्रमश:
 

Ambhu

"जीवन का अमृत स्रोत"
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Yo Hello XF ki janta how you all doin :D
I know I am a bit late ye story main Diwali ke baad hi lane wala tha but har baar aisa hi hota mere soche hisab se kuch nahi hota khair wo alag baat hai..
Ab waise to main is story ko 9 din pehle New year pe shuru karne wala tha lekin us din apne ko kaam aa gaya to ab chuki aaj bahut badhiya din hai aur muhurat bhi acha hai to fir aaj hi shubharambh karte hai :D
And you guys know me apun story puri karta hai :cool:
ab apun isme daily update ka wada nahi karega but regular update rahenge ye maan ke chalo bole to har dusre din :esc:
Khair to presenting you apun ki nayi story



Ek Duje ke Vaaste..

aur umeed karta hu isko bhi har story jaisa pyar milega, aaj response dekhte hai update kal se dunga :D

now congrats ke message karo :waiting:
p.s. Story devnagiri me hogi to kisi ko koi samasya ho to batane ka

Mai pahli baar apki story read kar raha hoon lekin pratavna me apni bate kahne ka jo tarika apnya isse lagta hai aap bade maharathi hoon khair aage ki story me dekhte hai maharati ne kaha kaha apne maharathi honi ka prmaan diya hai 😁
 
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Adirshi

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Mai pahli baar apki story read kar raha hoon lekin pratavna me apni bate kahne ka jo tarika apnya isse lagta hai aap bade maharathi hoon khair aage ki story me dekhte hai maharati ne kaha kaha apne maharathi honi ka prmaan diya hai 😁
aapka kahani par swagat hai mitra, maharathi hu ya nahi main nahi jaanta wo aap batao bas kayi kahaniya likh chuka hu to thoda anubhavi hu bas aur ab bhi kahani likhne ki kala seekh hi raha hu, aapki samikshao ka intajar rahega :dost:
 
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Ambhu

"जीवन का अमृत स्रोत"
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एक दूजे के वास्ते
प्रोलॉग



शाम का वक्त था और सुहाना मौसम था, पिछले कुछ दिनों से हो रही बारिश ने मौसम मे ठंड बढ़ा दी थी और ऐसे मे वो पार्क मे बेंच पर बैठी उसका इंतजार कर रही थी, ये वही जगह थी जहा वो लोग अक्सर मिला करते थे

“हे”

ये आवाज सुन उसने ऊपर देखा तो उस इंसान को पाया जिसका वो यहा इंतजार कर रही थी

“हाइ” उसने मुस्कुरा कर कहा और खड़ी हो गई

“क्या सोच रही थी? उसने जब आते हुए उसे बेंच पर सोच मे डूबा देखा तो पुछ लिया

“नहीं कुछ नहीं, तुम बताओ तुमने मुझे इतना अर्जन्टली मिलने क्यू बुलाया है?”

“वो मुझे कुछ बताना था तुम्हें, वो मैंने कल हमारे बारे मे घर पर मेरी मा को बात दिया” उसने नर्वसली अपनी गर्दन खुजाते हुए उससे कहा और वो शांति से उसकी बात सुन रही थी

“पहले तो वो थोड़ी गुस्सा हुई लेकिन फिर जब मैंने उन्हे तुम्हारे बारे मे बताया, हमारे बारे मे बताया के हम एक दूसरे से कितना प्यार करते है और मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता तब..... वो मान गई और वो एक बार तुमसे मिलना चाहती है” उसने मुस्कुराते हुए कहा, उसकी खुशी उसके चेहरे से साफ देखि जा सकती थी

“तुम्हारी मा से मिलना है? इतनी जल्दी?” उसने नर्वस होते हुए कहा

“अरे तो उसमे क्या है, मैं जल्द ही बिजनस टेकओवर करने वाला हु और मा पापा चाहते है के मैं जल्द ही सेटल हो जाऊ और जब मैंने उन्हे तुम्हारे बारे मे बताया तो वो बस तुमसे मिलना चाहते है” उसने कहा

“उम्म... मैं नहीं कर सकती ये, नहीं मिल सकती” उसने नीचे देखते हुए कहा

“क्या???? लेकिन क्यू?? वो कन्फ्यूज़ था

“मुझे अभी ये सब नहीं चाहिए, मैं फिलहाल कोई कमिट्मन्ट नहीं चाहती थी” उसने सपाट चेहरे के साथ कहा

“लेकिन क्यू अक्षु? तुम मुझसे प्यार करती हो ना? अब वो इस से डर रहा था

वो चुप रही

“अक्षिता.... तुम जानती हो ना मैं तुमसे कितना प्यार करता हु और मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता”

उसने अपनी गर्दन हिला दी

“तो फिर ये सब क्यू??” अब उसे गुस्सा आ रहा था

उसमे उसका सामना करने ही अब हिम्मत नहीं थी वो पलट गई

“क्युकी... मैं तुमसे प्यार नहीं करती” उसने कहा

और वो ये शब्द सुन वो अपनी जगह स्तब्ध खड़ा हो गया

“तुम.... तुम मजाक कर रही हो ना” उसे खोने का डर उसकी आवाज मे साफ झलक रहा था

“नहीं!”

“क्या??” वो थोड़ा चिल्लाया

कुछ पल वहा उन दोनों के बीच शांति छाई रही

“मैं नहीं मानता! मुझे तुम्हारी इस बात पर यकीन नहीं है, तुमने कहा था तुम मुझसे प्यार करती हो यार” वो चिल्लाया

“मैंने झूठ कहा था” उसने आराम से कहा

“तो तुम कह रही हो हमारे बीच पिछले दो सालों मे जो कुछ भी हुआ वो सब कुछ झूठ था” उसकी आंखे नम हो चुकी थी उनमे पानी जमने लगा था

“हा”

“लेकिन क्यू??”

“क्युकी मुझे तुम्हारा पैसा तुम्हारा अटेंशन अच्छा लगा था, तुम्हारा लुक तुम्हारा स्टैटस पसंद था... बस”

उसकी बात सुन वो अब कुछ कहने की हालत मे नहीं था, वो शॉक मे था

“तुम मुझे तुम्हारे साथ सेटल होने कह रहे हो जिसके लिए मैं रेडी नहीं हु, मेरी भी फॅमिली है जिम्मेदारिया है सपने है अपनी जिंदगी है और मैं ये सब फिर एक अट्रैक्शन के लिए नहीं छोड़ सकती”

उसने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी ओर घुमाया

“मेरी आँखों मे देखक कर कहो अक्षिता... के तुम मुझसे प्यार नहीं करती” वो गुस्से मे चिल्लाया गुस्से से उसकी आंखे लाल हो गई थी

“मैं तुमसे प्यार नहीं करती” उसने उसकी आँखों मे देखते हुए कहा

अक्षिता की बात सुन उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, आज उसके दिल के टुकड़े टुकड़े हो गए थे

अब उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, उसने अक्षिता को वही छोड़ा और वहा से चला गया और पीछे छोड़ गया अपने प्यार अपनी जिंदगी को....


पता नहीं इनकी कहानी मे आगे क्या होगा... क्या ये अंत है या एक नई शुरुवात... क्या सच मे अक्षिता उससे प्यार नहीं करती?? और अगर वो अक्षिता को इतना चाहता है तो क्या वो उसके इस धोके से उबर पाएगा.... जानने के लिए पढिए, एक दूजे के वास्ते.....

अपने कहानी को देवनागरी में लिखा हैं यहां विचार अच्छा हैं क्योंकि देवनागरी में बहुत से शब्दों का उच्चारण ठीक ठीक हो जाता हैं लेकिन हिंग्लिश में वैसा नहीं हो पाता हैं। देवनागरी लिपि की इस खुबी के साथ एक दुष्परिणाम भी हैं और वह है वर्तनी में अशुद्धियां जो संभवतः जल्दी पकड़ में आ जाता हैं।

बाकी कहानी की सारांश की बात करूं तो ये संपूर्ण कथा की एक रूप रेखा हैं जिसमें दो प्रेमी जोड़े के बीच विचार विमर्श हो रहा संभवतः ये दोनों प्रेमी कथा का मूल नायक और नायिका हो सकते हैं। बाकी आगे पढ़कर ही जाना जा सकता हैं।
 

parkas

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एकांश नींद में हल्के से हिला ही था कि उसे अचानक लगा जैसे कोई बहुत ही नरम सा हाथ उसके बालों को सहला रहा है.. उस स्पर्श को महसूस करते ही उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई… उसे पता था, ये किसका हाथ था...

अक्षिता का...

धीरे से उसने अपनी आँखें खोलीं… लेकिन कमरे में कोई नहीं था, सच्चाई से सामना होते ही एकांश का चेहरा उतर गया था, ये पहली बार नहीं था जब उसे ऐसा महसूस हुआ था जैसे अक्षिता उसके पास हो… बिल्कुल पास...

वो तकिए में खुद को और अंदर तक समेटता चला गया, जैसे उसमें छुप जाना चाहता हो.. उसने चादर को अपने पास खींचा… और जैसे ही उसने उसे सूंघा, उसकी आँखें नम हो गईं, अब भी उसकी चादर में वही खुशबू थी… वही महक… जो उसे एकदम अक्षिता के पास ले जाती थी... एक पल को उसे सच में लगा जैसे वो यहीं, उसी बिस्तर पर, उसके साथ है

वो उठकर बैठ गया और उसकी नजर सामने बनी दीवार पर गई, जिस पर अक्षिता का बनाया हुआ फोटो कोलाज था

अब ये उसकी रोज़ की आदत बन गई थी, वो सुबह उठते ही सबसे पहले उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर को देखता, वहा मौजूद हर तस्वीर जैसे कोई किस्सा सुना रही थी.. और फिर उसकी नज़र उस एक फोटो पर अटक गई जो अस्पताल में ऐड्मिट होने से ठीक पहले ली गई थी

वो उसके कंधे पर झुकी हुई थी… और एकांश उसका माथा चूम रहा था.. ये फोटो अक्षिता की मम्मी ने चुपचाप खींच ली थी और तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं था, कि ये उनकी आख़िरी तस्वीर बन जाएगी…

उसकी आँख से एक आंसू बह निकला… और तभी उसे फिर से वही एहसास हुआ जैसे किसी ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा हो

उसने पलटकर देखा… और वो वहीं थी... उसकी आंखों में झाँकती हुई

वो कुछ नहीं बोला… बस उसने आंखों से बहते उन आंसुओं को पोंछ दिया, और फिर उसके माथे पर एक हल्का सा किस रख दिया, जैसे वो हमेशा करता था

उसने अक्षिता की अपने पास की मौजूदगी को पूरी तरह महसूस किया… और आंखें बंद कर ली.. लेकिन जब उसने दोबारा आंखें खोलीं तब वो वहाँ नहीं थी... पर एकांश जानता था… वो यहीं कहीं है.. उसे अब भी हर पल उसकी मौजूदगी का एहसास होता था और यही बात उसे सबसे ज़्यादा सुकून देती थी...

क्योंकि अक्षिता ने उससे वादा किया था कि वो कभी उसे अकेला नहीं छोड़ेगी.. और वो अब भी अपने वादे पर कायम थी...

जब एकांश ने ये बात अक्षिता के मम्मी-पापा को बताई वो बस मुस्कुराये लेकिन कोई कुछ बोला नहीं पर एकांश उनकी आँखों मे देख उनके मन की बात को समझ रहा था, उन्हे लग रहा था की वो ये सब बस अपनी कल्पनाओ मे महसूस कर रहा है

लेकिन एकांश को इससे फर्क नहीं पड़ता था.. उसे कोई चिंता नाही थी की लोग क्या सोचते है, उसे पागल कहते है या उसकी बात को वहम बताते है, उसके लिए तो बस एक ही बात मायने रखती थी, अक्षिता उसके साथ थी और यही बात उसे अब भी होश में रखे हुए थी..

उसे पूरा यकीन था कि वो वापस आएगी.. क्योंकि वो जानती है… एकांश उसके बिना नहीं रह सकता.. और कम से कम उसी की ख़ातिर… उसके प्यार की खातिर… वो ज़रूर लौटेगी..

एकांश जल्दी से तैयार हुआ और बाहर आ गया,

डाइनिंग टेबल पर अक्षिता के मम्मी-पापा बैठे हुए थे एकदम चुपचाप, उदास… और शायद भूखे भी, पर खाने का मन ही कहाँ था किसी का?

"Good morning!" एकांश की आवाज़ जैसे कमरे की उदासी को थोड़ी देर के लिए रोक गई, वो मुस्कराते हुए कुर्सी खींचकर बैठ गया और शांति से नाश्ता करने लगा, आज उसके बर्ताव मे कुछ तो अलग था

अक्षिता के मम्मी-पापा उसे यू देख हैरान रह गए...

वो बस उसे देखे जा रहे थे, सोच रहे थे की कल तक जो लड़का टूटा हुआ था, बिखरा हुआ था… आज इतनी शांति से नाश्ता कर रहा है?

ऐसा क्या हुआ है? कौन सी बात है जिसने उसके अंदर का दर्द कुछ हल्का कर दिया?

वो इसी सोच में थे कि उन्होंने उसकी आवाज़ सुनी

"मैं निकल रहा हूँ," एकांश ने कहा और उठने लगा

"एकांश बेटा…" अक्षिता की मम्मी ने उसे आवाज़ दी

"तुम्हें क्या हुआ है?" उन्होंने धीरे से पूछा

"मुझे? कुछ भी तो नहीं, सब ठीक है" एकांश ने हल्का सा मुसकुराते हुए कहा

"पिछले पूरे महीने तुम इतने डिप्रेस थे कि हमें डर लगने लगा था कि हम तुम्हें भी खो देंगे… लेकिन पिछले एक हफ्ते से तुममें कुछ बदला-बदला सा है... खुश लग रहे हो, क्या हुआ है बेटा?" अक्षिता के पापा ने पूछा

एकांश ने बस हल्की सी मुस्कान दी लेकिन कुछ नहीं बोला

"एकांश… प्लीज़ बेटा, हमें तुम्हारी फिक्र है," अक्षिता की मम्मी ने कहा

"मम्मी आप चिंता न कीजिए… मैं खुश दिख रहा हूँ क्योंकि मैं वाकई खुश हूँ" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा और एक पल रुका और फिर धीरे से बोला

"और इसका कारण ये है… कि मैं उसकी presence को महसूस करता हूँ, वो मेरे साथ है… और यही मेरी खुशी की वजह है" ये कहकर वो कमरे से बाहर चला गया और पीछे छोड़ गया वो चिंतित निगाहे जो उसकी मुस्कराहट तो देख पा रही थीं… पर उस मुस्कराहट के पीछे का भरोसा अभी भी पूरी तरह समझ नहीं पा रही थीं..

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एकांश ने धीरे से दरवाज़ा खोला… और चुपचाप कमरे में झाँका.. अंदर वही चेहरा था… जो उसके लिए सुकून का दूसरा नाम बन चुका था... वो मुस्कुराया और धीरे-धीरे उस बिस्तर की तरफ़ बढ़ा जहाँ वो लड़की शांत, गहरी नींद में लेटी हुई थी… जैसे किसी दूसरी दुनिया में हो..

उसने अपने हाथ से उसके गाल को बड़े प्यार से छुआ… और फिर उसके माथे पर हल्का सा किस किया... उसके बालों की तरफ़ देखा, खासकर उस जगह, जहाँ सर्जरी हुई थी... पट्टी अभी भी बंधी थी… और उसे देखकर उसके चेहरे पर एक तकलीफ़-सी आई… सोचकर कि उसे कितना दर्द झेलना पड़ा होगा

लेकिन उसी वक़्त उसकी नज़र उस छोटे से हिस्से पर पड़ी जहाँ बाल दोबारा उगने लगे थे…

एकांश हल्के से मुस्कुराया

ये छोटा सा बदलाव उसके लिए एक बड़ी राहत जैसा था, जैसे कोई चुपचाप कह रहा हो कि “वो ठीक हो रही है…”

वो उसके पास बैठ गया, और उसने उसका हाथ अपने हाथों में लिया, उसके हाथ को अपने होंठों से छूते हुए एकांश ने धीमे से फुसफुसाते हुए कहा

"Please जाग जाओ अक्षु… मैं यहीं हूँ… तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ"

और फिर एक पल ठहरकर उसने धीरे से कहा..

"अक्षु, तुम्हारे मम्मी-पापा परेशान हैं, सब लोग बस तुम्हारे उठने का इंतज़ार कर रहे हैं… प्लीज़, अपनी आंखें खोलो ना…"

बोलते हुए एकांश की आंखें नम हो गईं थी… कुछ आंसू चुपचाप उसके हाथ पर गिर पड़े

उसने साइड टेबल की तरफ़ देखा, वहां उनकी एक प्यारी सी फोटो रखी थी, वही तस्वीर जिसे वो सबसे ज़्यादा पसंद करता था…

वो मुस्कुराया जैसे उस फोटो में भी उसने अपनी अक्षिता की शरारत देख ली हो

"अक्षु, मेरी तरफ देखो ना…"

एकांश की आवाज बहुत धीमी थी मानो बस वो ये सिर्फ अक्षिता से कहना चाहता हो

"मैं रो नहीं रहा हूँ… और न ही उदास हूँ... मैं खुश हूँ… या कम से कम खुश रहने की कोशिश कर रहा हूँ, जैसे तुमसे वादा किया था, मैं अपना वादा निभा रहा हूँ… अब तुम्हारी बारी है अक्षु, तुमने मुझसे वादा किया था कि तुम मेरे पास वापस आओगी… है ना?"

ये कहते हुए उसने अपना माथा उसके हाथ पर रख दिया… उसकी हथेली की गर्माहट को अपने चेहरे पर महसूस करने लगा जैसे वही अब उसकी सबसे बड़ी उम्मीद हो...

उसी वक्त दरवाज़े पर खड़े थे डॉ. अवस्थी, वो चुपचाप उस इंसान को देख रहे थे… जो पूरे दिल से सिर्फ़ अपने प्यार के जागने की दुआ कर रहा था

उन्होंने अपने करियर में ऐसे कई रिश्ते देखे थे, लोगों को अपने अपनों के लिए रोते देखा था… पर ऐसा निस्वार्थ, ऐसा बेपनाह प्यार शायद ही उन्होंने कभी देखा हो

उन्होंने अब तक किसी लड़के को अपनी प्रेमिका से इतना गहराई से प्यार करते नहीं देखा था,

आजकल तो प्यार एक ट्रेंड बन गया है बस एक कैप्शन भर का, एक इंस्टाग्राम स्टोरी भर का, युवाओं के लिए प्यार अक्सर बस आकर्षण होता है… डेटिंग ऐप्स पर शुरू होता है, और अगर 'वर्क नही किया' तो दूसरा ढूंढ लिया जाता है.. रिश्ते की असली गहराई से ज़्यादा उन्हें उस रिश्ते का दिखावा ज़रूरी लगता है

डॉ. अवस्थी एकांश को देख रहे थे और सोच रहे थे कि जब तक वो एकांश ने नहीं मिले थे वो समझ ही नहीं पाए थे कि सच्चा प्यार होता क्या है....

एकांश रघुवंशी, एक अमीर, बिज़ी, घमंडी कहे जाने वाला बिज़नेसमैन… जिसने उन्हें वो सिखाया जो कोई किताब या मेडिकल केस नहीं सिखा सका... कि प्यार वाकई क्या होता है... हाँ, वो खुद भी अपनी पत्नी से प्यार करते थे… लेकिन वो कुछ और था जो उन्होंने एकांश और अक्षिता के बीच देखा था, वो कुछ अलग ही था… कुछ और ही लेवल का

पिछले दो महीने में जो उन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा वो सिर्फ़ एक रिश्ते की कहानी नहीं थी… वो प्यार की परिभाषा थी... एक अमर प्यार की कहानी

चाहे वो दोनों ज़िंदा रहें या ना रहें… लेकिन उनका रिश्ता हमेशा जिंदा रहेगा.. क्योंकि प्रेम वक्त से परे होता है... जो ना हालातों में बंधता है, ना सालों में गिनता है... ज़िंदगी में हम बहुत लोगों से प्यार करते हैं… पर responsibilities, बदलते हालात या फिर वक्त का असर… धीरे-धीरे वो रिश्ते फीके पड़ जाते हैं...

लेकिन एकांश और अक्षिता का प्यार…

वो कुछ और ही था कुछ ऐसा जिसे वक़्त भी नहीं हरा सकता... ये सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक एहसास था और वो हमेशा रहेगा

अक्षिता का केस भी बाकियों से बिल्कुल अलग था... आमतौर पर जिस ट्यूमर को वक्त रहते फटना चाहिए था, उसने बहुत समय ले लिया था और जब फटा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी... डॉक्टर्स ने उसे बचाने की पूरी कोशिश की… डॉ. हेनरी फिशर तक ने अपनी हर expertise झोंक दी थी, और जो सबसे critical चीज़ वो कर सकते थे वो था उसके अंदरूनी रक्तस्राव को कंट्रोल करना, ब्लीडिंग तो संभाल लि गई, लेकिन ब्रेन पर जो असर हुआ था, वो रोका नहीं जा सका...

अक्षिता के दिमाग़ का एक हिस्सा डैमेज हो गया… और इसी वजह से वो कोमा में चली गई

अब डॉक्टर्स के पास कोई जवाब नहीं था… ना इस सवाल का कि वो कब जागेगी, ना ही इस बात का कि वो कभी जागेगी भी या नहीं..

उसी वक्त, डॉ. अवस्थी की नज़र एकांश पर पड़ी जो अब भी उसी सादगी से उसके सामने बैठा बात कर रहा था, जैसे वो सब सुन रही हो

डॉ. अवस्थी हल्के से मुस्कराए.. उन्हें एक बात और पता थी, जो उन्होंने अब तक किसी से शेयर नहीं की थी

उन्हें याद था, पिछले महीने की एक रात जब एकांश उनके हाथों को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था उस वक़्त उन्होंने मॉनिटर पर अक्षिता की धड़कनों में हलचल देखी थी…

हर बार जब एकांश वहां होता था तो कुछ न कुछ बदलता था... उसके दिल की बीट्स में हरकत होती थी… जैसे उसके अंदर कुछ जाग रहा हो...

डॉक्टर को धीरे-धीरे ये यकीन होने लगा था कि वो सब सुन सकती है, महसूस कर सकती है… बस अभी रिस्पॉन्ड नहीं कर पा रही

उन्होंने अब तक ये बात एकांश से नहीं कही थी… क्योंकि एक तो वो खुद डॉ. फिशर से इसे कन्फर्म करना चाहते थे,

और दूसरा ये कि वो नहीं चाहते थे कि एकांश की उम्मीदें कहीं फिर से टूट जाएं क्योंकि ये अब एक ज़िंदगी का मामला नहीं रह गया था… ये दो ज़िंदगियों की लड़ाई थी, ये साफ था कि अगर अक्षिता को कुछ हो गया, तो एकांश भी ज़िंदा नहीं बचेगा, कम से कम अंदर से तो बिल्कुल नहीं...

डॉक्टर चुपचाप आगे बढ़े और एकांश के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा... एकांश ने ऊपर देखा और हल्की सी मुस्कान दी

"डॉक्टर, देखा आपने? उसके बाल वापस उग रहे हैं!" वो एक बच्चे की तरह खुश होकर बोला

डॉक्टर भी उसकी मुस्कान देखकर मुस्कराए… और बोले,

"मैं तुम्हें एक और चीज़ बताना चाहता हूँ… जिससे तुम्हारी खुशी और बढ़ेगी"

एकांश सीधा खड़ा हो गया उसके चेहरे पर एक चमक आ गई थी

"क्या?" उसने उम्मीद भरी नज़रों से पूछा

डॉक्टर ने मॉनिटर की ओर इशारा किया, "इधर देखो"

"अब उसका हाथ पकड़ो" डॉक्टर ने कहा

एकांश ने उसका हाथ धीरे से थामा… और फिर प्यार से चूम लिया

मॉनिटर पर अचानक कुछ हरकत दिखी और एकांश कुछ पल के लिए एकदम स्तब्ध रह गया

उसने मॉनिटर की तरफ देखा… फिर अक्षिता की तरफ… फिर फिर से मॉनिटर की तरफ

डॉक्टर ने उसके पास आकर मुस्कराते हुए कहा,

"हाँ, वो तुम्हें feel कर सकती है, वो सुन सकती है कि तुम क्या कह रहे हो… और जब तुम उसे छूते हो, तो वो उसे महसूस भी करती है"

एकांश की आंखों से आंसू बहने लगे थे लेकिन उसके होंठों पर एक सच्ची सी मुस्कान थी

"ये एक बहुत पॉज़िटिव साइन है और मैंने इस बारे में डॉ. फिशर से भी बात की है, और उन्होंने कहा कि तुम्हें उससे बात करते रहना चाहिए… उसे महसूस कराते रहो कि तुम वहीं हो...

शायद इससे वो जवाब देने लगे… और धीरे-धीरे… जाग भी जाए"

एकांश ने अपनी आंखें पोंछी और सिर हिलाकर हाँ कहा, अब तो जैसे अब उसके अंदर कोई नई जान आ गई हो... अब उसे सबसे पहले ये बात अपने दोस्तों और पेरेंट्स को बतानी थी

उसने फ़ोन निकाला, जल्दी-जल्दी नंबर डायल किए… और सबको इस नन्हीं सी उम्मीद के बारे में बताया... सुनते ही सबकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा हालाँकि उनकी चिंता एकांश को लेकर अब भी थी… लेकिन पहली बार, वो चिंता एक उम्मीद में बदलती दिख रही थी....



क्रमश:
Bahut hi shaandar update diya hai Adirshi bhai....
Nice and lovdely update....
 

Ambhu

"जीवन का अमृत स्रोत"
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Update 1


1.5 साल बाद...

“अक्षु उठो अब तुमने रात मे कहा था न तुम्हें ऑफिस जल्दी जाना है लेट हो जाएगा तुम्हें”

इस वक्त सुबह के 8 बज रहे थे और अक्षिता की मा उसे नींद से जगाने की कोशिश मे लगी हुई थी

“उमहू, मम्मी यार सोने दो ना, चली जाऊँगी ऑफिस भी”

“अरे पर तुमने ही तो कहा था के तुम्हें आज ऑफिस जल्दी जाना था आज जरूरी काम है ऑफिस मे और अब सोई हो उठो, 8 बजे गए है”

और जैसे ही अक्षिता के कानों ने 8 बजने की बात सुनी अक्षिता उठ बैठी, उसे 8.30 तक ऑफिस पहुचना था लेकिन 8 उसे घर पर ही बज चुके थे और आज इतने इम्पॉर्टन्ट दिन उसका ऑफिस के लिए लेट होना लगभग तय हो चुका था, वो जल्दी से बेड से उठी और रेडी होकर ऑफिस के लिए रवाना हो गई,

अक्षिता जितनी जल्दी हो सकता था ऑफिस पहुच गई थी फिर भी उसे लेट हो चुका था और जैसे ही वो ऑफिस मे घुसी

“अक्षु इधर”

अक्षिता की दोस्त और कलीग स्वरा ने उसे आवाज दिया और अक्षिता मुसकुराते हुए उसके पास गई

“तुमको कोई आइडीया है के कितने बज रहे है?” स्वरा ने गुस्से मे कहा

“सवा नौ” अक्षिता ने नीचे देखते हुए धीमे से कहा

“और आपको ऑफिस कितने बजे तक आना था?”

“साढ़े आठ बजे तक” अक्षिता ने वैसे ही नीचे देखते हुए कहा

“और वो क्यू??”

“क्युकी आज हमारा नया बॉस आने वाला है” अक्षिता ने स्माइल के साथ कहा, उसको जरा भी अपने लेट आने का पछतावा नहीं था और इसको कोई फरक नहीं पड़ा ये देख स्वरा ने अपना सर झटक लिया

“सॉरी ना यार स्वरू और इतना भी लेट नहीं हुआ है वैसे भी मैं उसके आने के पहले तो आ ही गई हु ना अब चल जल्दी हॉल मे”

जिसके साथ ही अक्षिता स्वरा को अपने साथ खिच के ले जाने लगी

“ओये रोहन कहा है” अक्षिता ने अपने दूसरे दोस्त के बारे मे पूछा

“वो पहुच गया है हमारी राह देख रहा है” स्वरा ने कहा

आज से 1 साल पहले अक्षिता स्वरा और रोहन ने एक साथ ही इस कंपनी मे जॉइन किया था और तभी से तीनों की दोस्ती काफी अच्छी हो गई थी, वो दोनों मीटिंग हॉल मे पहुची जहा रोहन पहले ही मौजूद था

“हाश पहुच गए.... हाइ रोहन” अक्षिता ने रोहन को देखते ही कहा

“चलो तुम दोनों पहुची तो” रोहन ने उन दोनों को देख कहा

“ओये तुम लोगों को पता है क्या अपना नया बॉस कौन है?? मैंने सुना है वो बहुत हैन्डसम है, ऊपर से बैच्लर भी है” स्वरा ने अपने नए बॉस के बारे मे सोचते हुए उन दोनों से पूछा

“और मैंने तो ये भी सुना है के वो हैन्डसम होने के साथ साथ गुस्से वाला और ऐरगन्ट भी है तो मैडम सपने से बाहर आओ और बेहतर होगा के उसके सामने तमीज से रहो क्युकी मैंने यहा तक सुना है के वो किसी को फायर करने से पहले एक बार भी नहीं सोचता” रोहन ने स्वरा को सपनों से बाहर लाते हुए सच्चाई से अवगत कराया।

पूरा हॉल लगभग भर चुका था, ऑफिस के सभी कर्मचारी आ गए थे और जैसे ही बॉस की एंट्री होने लगी पूरा हॉल एकदम शांत हो गया, लेकिन ये उनका नया नहीं बल्कि पुराना बॉस था, जो आज रिटायर हो रहे थे, उन्होंने कंपनी के बारे मे, अपने इक्स्पीरीअन्स के बारे मे बहुत सी बाते की, और आज जब उन्होंने अपनी कंपनी को बेच दिया था तो उन्हे कैसा फ़ील हो रहा था ये उन्होंने अपने एम्प्लॉईस को बताया

अक्षिता अपने पुराने बॉस को देख मुस्कुराई जब उन्होंने अपनी स्पीच के दौरान उसके काम की तारीफ की, वो लगभग 60 साल के थे और चुकी उनके कोई बाल बच्चे नहीं थे जो उनका बिजनस आगे बढ़ाए तो उन्होंने कंपनी को बेच कर रेटाइरमेंट लेकर बाकी जिंदगी अपनी वाइफ के साथ बिताने का फैसला किया था, ये न तो कोई बड़ी कंपनी थी ना ही ज्यादा छोटी, लेकिन उनका बिजनस अच्छे खासे प्रॉफ़िट मे था जिसने कई सालों तक कई लोगों को नौकरिया दी थी और अब चुकी वो रेटायर हो रहे थे उन्होंने इस सफल बिजनस की बागडोर किसी और को सोपने का मन बनाया था...

“सो माइ डिअर स्टाफ, प्लीज वेलकम योर न्यू बॉस” उन्होंने मुसकुराते हुए कहा

और इसी के साथ हॉल मे तालियों की गूंज उठने लगी और गेट से हॉल मे एक हैन्डसम नौजवान की एंट्री हुई, अपने नए बॉस को देख जहा एक ओर सारा स्टाफ खुश था उत्साहित था वही अक्षिता शॉक थी, वो अपनी जगह पर जम गई थी।

‘नहीं ये नहीं हो सकता’

‘ये वो नहीं है, ये हो ही नहीं सकता ये झूठ है’ अक्षिता ने अपने आप से कहा तभी

“स्टाफ प्लीज वेलकम मिस्टर एकांश रघुवंशी, आपके नए बॉस, और मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है के हमारी कंपनी रघुवंशी ग्रुप के साथ लिगली और कंप्लीटली मर्ज हो चुकी है और अब इस कंपनी की बागडोर मिस्टर एकांश संभालेंगे”

‘ये वही है और अब ये मेरा बॉस है’ अक्षिता ने मन मे कहा,

इस बात पर कैसे रीऐक्ट करे अक्षिता को समझ ही नहीं आ रहा था वो बस शॉक होकर अपनी जगह पर जम गई थी वही दूसरी ओर स्वरा अपने नए बॉस को देख बहुत खुश थी खास तौर पर इतने हैन्डसम बॉस को देख कर और उसकी इस खुशी को देख रोहन इरिटैट हो रहा था,

उनका पुराना बॉस एकांश को अपने सारे स्टाफ से मिला रहा था और अक्षिता उसे दूर से देख रही, वो बहुत बदल चुका था ये वो नहीं था जिसे वो कभी जानती थी उसे देख कर ऐसा लगता था मानो उसे हसना आता ही ना हो, उसे देखते हुए अक्षिता की आँखों मे पानी जमने लगा था, आज वो उसे पूरे पूरे 1.5 साल बाद देख रही थी, उसने उसे बहुत ज्यादा मिस किया था उसकी स्माइल उसका उसे छेड़ना, गले लगाना, सब कुछ उसने मिस किया था लेकिन इन सब का अब कोई मतलब नहीं था।

एकांश एक एक कर सभी स्टाफ से मिल रहा था..

‘ये लोग तो यही आ रहे है? क्या करू? क्या करू? क्या ये जानता है मैं यहा काम करती हु? हे भगवान मैं कैसे फेस करूंगी उसे? क्या वो मुझे पहचानेगा? एक काम करती हु पलट कर भाग जाती हु मिलूँगी ही नहीं, हा ये सही रहेगा’ अक्षिता अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा रही थी और अभी उससे ना मिलना ही अक्षिता ने सही समझा लेकिन ऐसा ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाला था वो अब उसका बॉस था और कभी न कभी तो दोनों को आमने सामने आना ही था

अक्षिता पसीने से भीगी हुई थी मानो उसे कोई पैनिक अटैक आया हो और ऐसे मे वो उससे नहीं मिल सकती थी, उसे फेस करने के लिए अक्षिता को पहले अपने आपको तयार करना था मेंटली प्रीपेर करना था और ऐसे मे अक्षिता को सबसे अच्छा आइडीया वहा से भागने का ही लगा उसने लंबी सास ली और बगैर किसी की नजर मे आए वहा से निकलने के बारे मे सोचा और वो धीरे धीरे पीछे सरक कर वहा से निकलने ही वाली थी के तभी...

“अक्षिता”

अपने पुराने बॉस की आवाज सुन वो रुकी और उसने पीछे पलट कर देखा तो पाया के उसका पुराना बॉस नए बॉस के साथ उसे ही देख रहा था, उसको अपनी ओर देखता पा कर अक्षिता की सास अटक रही थी लेकिन एकांश का चेहरा एकदम नूट्रल था उसे कुछ फरक नहीं पड रहा था

‘लगता है इसने मुझे पहचाना नहीं’ अक्षिता ने मन मे सोचा तभी

“कहा जा रही हो, यहा आओ” अक्षिता के पुराने बॉस ने उसे बुलाया एक एम्प्लोयी के तौर पर उसे अक्षिता का काम बहुत पसंद था उसने स्माइल के साथ अक्षिता से कहा और अक्षिता ने एक लंबी सास ली और नीचे देखते हुए उनकी ओर बढ़ी

“मिस्टर रघुवंशी मीट मिस अक्षिता पांडे, ये हमारे एचआर डिपार्ट्मन्ट मे काम करती है” बॉस ने अक्षिता का इन्ट्रो कराया और इस पूरे टाइम अखिता बस गर्दन झुकाए नीचे देख रही थी जब तक के

“नाइस तो मीट यू मिस पांडे” उसके शांत ठंडी आवाज मे अक्षिता से कहा और अक्षिता ने सर उठा कर उसे देखा उसकी आँखों मे आँसू जमने लगे थे दिमाग मे जंग छिड़ी थी उसकी आवाज बता रही थी वो उसे भुला नहीं था लेकिन चेहरे पर ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था

“नाइस टु मीट यू टू, मिस्टर रघुवंशी” अक्षिता ने कहा

“बाकी लोगों से मिल ले?” एकांश ने कहा और वो बाकी लोगों की ओर बढ़ गया

कुछ समय बाद

“अक्षु क्या हुआ था सुबह?” लंच करते हुए स्वरा ने अक्षिता से पूछा

“कब?” लेकिन अक्षिता को कुछ समझ नहीं आया तब स्वरा ने रोहन को देखा

“अक्षिता हमने सबने देखा था वो” रोहन ने कहा

“तुम लोग किस बारे मे बात कर रहे हो बताओगे?” अक्षिता ने अब थोड़ा जोर से पूछा, उसने अपने की लिए कॉफी ली हुई थी सुबह से हो रही घटनाओ से उसका सर फटा जा रहा था और ये कॉफी उसे शायद थोड़ा आराम दे दे

“पहली बात तो जब हमारा नया बॉस आया उसे देखते ही तुम्हारा चेहरा ऐसा हो गया था जैसे तुमने कोई भूत देख लिया हो” स्वरा ने कहा जिससे अब अक्षिता थोड़ा टेंशन मे थी

“दूसरी बात, तुम हॉल से भागने की कोशिश कर रही थी बताओगी ऐसा क्यू?” रोहन ने अगला सवाल दागा

“और तीसरी और सबसे इम्पॉर्टन्ट बात नए बॉस ने सबको ग्रीट किया सबसे हाथ मिलाया लेकिन तुमसे नहीं ऐसा क्यू?” स्वरा

“ये जाकर उससे पूछो” अक्षिता ने अपना पल्ला झाड दिया

“ये कोई जवाब नहीं हुआ, अक्षु तुम ठीक हो न?” स्वरा ने उससे पूछा

“हा बाबा मैं ठीक हु कुछ नहीं हुआ है, अब सर मत दुखाओ यार” इसी के साथ अक्षिता ने उन दोनों को चुप करा दिया लेकिन उसके दिमाग मे एक जंग छिड़ी हुई थी कई सारी बाते घूम रही थी पता नहीं आने वाला समय उसके जीवन मे क्या लाने वाला था, फिलहाल तो उसके दिमाग मे सबसे ऊपर एक ही बात थी के जल्दी से घर जाकर दवा लेकर सो जाए जो होगा देखा जाएगा....

क्रमश:

किसी लो बजट फिल्म में अगर कलाकार अपनी कार्य कौशलता का प्रमाण न दे तो फिल्म की स्थिति डामाडोल रहती हैं लेकिन यहां राइटर साहब ने अपने कौशलता का प्रमाण प्रसिद्धि अनुरूप ही दिया हैं। हां शुरुवात में कुछ वक्त के लिए लय टूटा लेकिन उसके बाद कथा बिल्कुल पटरी पे था। किंतु किसी कथा के कथांश को पढ़के क्षणिक समय में त्रुटियां बता देना आसान होता हैं किंतु एक लेखक को उसी कथांश की घटनाओं और संवादों को शब्दों में ढाल पाना बहुत ज्यादा सरल नहीं होता क्योंकि एक ही वक्त में बहुत सारे विचार कथांश को लेकर दिमाग़ में चलता रहता हैं इसलिए वाक्यांश की वर्तनी में त्रुटियां सामान्य बात हैं।

अब कथांश पे आते हैं। सारांश के बाद कथा का पहला कथांश डेढ़ साल बाद शुरू हुआ और दृश्य एक दफ़्तर का था जहां पुराना उच्चाधिकारी जाने से पहले नूतन आए अधिकारी की परिचय करवा रहे थे। यहां परिचय एक व्यक्ति के लिए सामान्य नहीं था। थोड़ा भय, असहज, मन में उथल-पुथल और सबसे दयनीय स्थिति में, उसकी आँखें थीं। जिसमें अंभू तैर रहे थे अब ये तो होना ही था। एक सख्श जो उसके जीवन का हिस्सा रहा हो। उसके साथ बिताए पल स्मृति की कपट खोले बार बार झलकी दिखाए तब मन में आई ज्वार-भांटा अक्षर आंखों में दिखाई दे जाता हैं।
 
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