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Incest मुझे प्यार करो,,,

sunoanuj

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रात को जो कुछ भी हुआ था उसे लेकर सुगंधा काफी उत्साहित थी क्योंकिउसे अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसका बेटा कुछ ज्यादा हिम्मत दिखाया था बस थोड़ा और हिम्मत दिखा देगा तो रात को ही काम बन जाता है इस बात को सोचकर होगा मन ही मन मुस्कुरा रही थी लेकिन अपने आप पर गुस्सा भी कर रही थी कि जब उसका बेटे ने इतनी हिम्मत दिखाई तो वह थोड़ी हिम्मत क्यों नहीं दिखा पाई उसे भी तो कुछ करना चाहिए थाआखिरकार वह भी तो एक औरत है उसकी भी तो चाहत है उसकी भी तो प्यास है जिस चीज की भुख उसके बेटे को है उसी चीज की भुख तो उसे भी है,,,, फिर क्यों नहीं आगे बढ़ पाई क्यों नहीं अपने बेटे का साथ दे पाई,,,, सुगंधा को अच्छी तरह से हिसाब सो रहा था कि उसका बेटा उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए उत्साहित हो चुका था,,,वह तो शायद उसकी नादानी थी उसे औरत के गुलाबी छेद के बारे में कुछ ज्यादा मालूम नहीं था वरना वह अपने लंड को उसके गुलाबी छेद में डाल देता,,,, इस बात को सोच कर वह पूरी तरह से मदहोश हुए जा रही थी,,, उसी को समझ में नहीं आ रहा था मंजिल उसे ज्यादा दूर नजर नहीं आ रही थी,,, पवित्र रिश्ता की मर्यादा में भी अब उसे वासना की सुनहरी कीरन नजर आ रही थी।





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उसे एहसास होने लगा था कि आप बहुत दिन ज्यादा दूर नहीं है जब उसके बेटे का लंड उसके गुलाबी छेद की गहराई नाप रहा होगा,,, रसोई घर मेंरोटी को तवे पर रखकर वह अपने बेटे के बारे में और रात को जो कुछ विवाह उसके बारे में सोच कर मदहोश रही थी गरम हो रही थी जिसका सीधा असर उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार पर पड़ रहा था। उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उसका बेटापूरे शिद्दत के साथ उसकी बुर में लंड डालने की कोशिश कर रहा था इसलिए तो उसकी दोनों जांघों के बीच से अंदर तक ठेलने की कोशिश कर रहा था,,,और उसकी रात की उस कोशिश को याद करके इस समय सुगंधा के चेहरे पर मुस्कान तैर रही थी उसके होठों पर मुस्कुराहट थी,,इस बात के लिए नहीं कि उसका बेटा असफल कोशिश कर रहा था वहीं से बात से मुस्कुरा रही थी कि उसके बेटे को औरतों के बारे में भी कुछ ज्यादा ज्ञान नहीं है उसे यह भी नहीं मालूम की मर्द अपने लंड को औरत के किस अंग में डालता है शायद इसीलिए वहां असफल हो गया था वरना जिस तरह की उसकी कोशिश थी वह जरूर कामयाब हो जाता अगर उसे संभोग के बारे में जरा सा भी ज्ञान होता तो,,, अपने बेटे की इस अज्ञानता पर सुगंधा को ज्यादा गुस्सा नहीं आ रहा था वह इस बात से ज्यादा खुश थी की अगर दोनों के बीच कुछ हुआ तो उसे सीखाने में ज्यादा मजा आएगा,,,,।






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सुगंधा तवे पर रोटी को चिमटी से पलट रही थी क्योंकि वह एकदम गरम हो चुकी थी और गर्म होकर फूल रही थी यह देखकर सुगंधा को एहसास होने लगा कि इसी तरह से हीऔरत की बुर का ध्यान होता है जब वह गर्म हो जाती है तो एकदम से कचोरी की तरह फूल जाती है उसमें से रस टपकने लगता है जिसे पीने के लिए दुनिया का हर एक मर्द तड़पता है ,,, सुगंधा अपने मन में सोच रही थी दुनिया के हर एक मर्द की तरह उसका बेटा भी औरत की बुर से मज़ा लेना चाहता होगा वह भी उसे चाटना चाहता होगा उसमें अपना लंड डालना चाहता होगा,,, बस थोड़ा डर अपनी मर्यादा और अज्ञानता की वजह से कुछ कर नहीं पा रहा है और जब कल रात कुछ करने की कोशिश किया तो औरत की बुर के भूगोल का ज्ञान न होने की वजह से कुछ कर नहीं पाया,,,, सुगंधा रोटी को तवे पर से उतारकर थाली में रखते हुए सोच रही थी कि अब उसे भी कुछ करना होगातृप्ति के गए 2 दिन गुजर चुके हैं लेकिन दोनों के बीच कुछ हो नहीं पाया है अगर इसी तरह से आंख मिचोली चलती रही तो तृप्ति भी घर पर आ जाएगी और फिर दोनों के बीच कुछ भी नहीं हो पाएगा,,, मां बेटे के बीच कुछ हो इसीलिए तो तृप्ति को गांव भेजी थी। अपने मन में यह सोचकर वह थोड़ा परेशान हो गई और अपने आप को ही दिलासा देते हुए बोली।





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नहीं नहीं ऐसा नहीं होने दूंगी सुनहरा मौका में अपने हाथ से जाने नहीं दूंगी तृप्ति को जिस वजह से उसकी नानी के मन भेजी हूं उस वजह को पूरा जरूर करूंगी वरना मेरे जैसी बेवकूफ औरतकोई भी नहीं होगी आखिरकार इतना कुछ होने के बावजूद भी वह अभी भी प्यासी की प्यासी है लेकिन अब ऐसा नहीं होगा अब मुझे ही कुछ करना होगा अपने आप को ऐसा दिलासा देकर वह फिर से खाना बनाने में लग गई,,,,।खाना बनाते समय वह बार-बार दरवाजे की तरफ देख रही थी लेकिन वह जानती थी कि इस समय अंकित घर पर नहीं था नहाने के बाद नाश्ता करके वह तुरंत बाहर निकल गया था,,, वैसे तोसुगंधा अपने बेटे को रोकना चाहती थी लेकिन वह रोक नहीं पाई थी रात को जो कुछ भी हुआ था उसकी खुमारी अभी भी उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी और वह अपने बेटे से नजर नहीं मिला पाती इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाई,,,।

दोपहर में खाना खाने के बादसुगंधा घर की सफाई में लग गई थी और बर्तन साफ कर रही थी,,,, साफ सफाई कर लेने के बाद वह अंकित के कमरे के पास आई और दरवाजा खोलकर देखी तो अंदर अंकित नहीं था वह सोच में पड़ गई कि अंकित गया कहां,,,, सुगंधा थोड़ा परेशान हो रही थीक्योंकि सुबह भी वह अपने बेटे से बात नहीं कर पाई थी और इस समय भी वह घर पर मौजूद नहीं था इसलिए वह घर के दरवाजे तक आई और बाहर की तरफ देखने लगी दोपहर का समय होने की वजह से सड़के सुनसान थी। इक्का दुक्का वहां नहीं सड़क पर आते जाते दिखाई दे रहा हैगर्मी इतनी थी की सुगंधा का खुद का मन घर से बाहर निकलने को नहीं हो रहा था इसलिए वह सोच रही थी कितनी गर्मी में उसका बेटा बाहर कहां चला गया,,,फिर अपने मन में सोचने लगी कि शायद रात वाली घटना को लेकर उसके मन में जरूर कुछ चल रहा है इसलिए वह उस नजर नहीं मिला पा रहा है,,, अगर सच में रात वाली घटना से उसका जमीर जाग गया तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा,,, इतना जो कुछ भी वह बेशर्मी दिखाई थी अपने बेटे के सामने सब बेकार हो जाएगा अपनी मंजिल तक पहुंचाने के लिए जिस तरह का रास्ता उसने चुना था जिस तरह से बेशर्मी को अपनाया था अपने अंदर एक रंडी पन को जगाया था वह सब कुछ बेकार हो जाएगा,,,,अपने मन में उठ रहे इस तरह के ख्याल से सुगंधा परेशान हो रही थी विचलित हो रही थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। फिर अपने आप से ही बोली नहीं नहीं ऐसा कुछ भी नहीं होगा,,,, और ऐसा वह अपने मन में सोचते हुए वह अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,,,।




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अपने कमरे पर पहुंचते ही दरवाजे पर खड़े होकर वह फिर से कुछ सोचने लगी और फिर धीरे से दरवाजा खोली जो कि सिर्फ बंद था उस पर सिटकनी नहीं लगी थी,,,और जैसे ही दरवाजा खुला सामने बिस्तर पर अंकित बैठा था उसे देखकर सुगंधा के चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी और वह राहत की सांस लेने लगी लेकिन अपनी मां को दरवाजे पर देखकर अंकित तुरंत असहज हो गया और बिस्तर के नीचे को छुपाने की कोशिश करने लगा यह देखकर सुगंधा बोली,,।


क्या हुआ अंकित क्या छुपा रहा है,,,( कमरे में प्रवेश करते हुए सुगंधा बोली,,,,अपनी मां को कमरे में प्रवेश करता हुआ देखकर अंकित थोड़ा घबरा गया था और घबराहट भरे स्वर में बोला)


ककककक,,, कुछ नहीं कुछ भी तो नहीं,,,,,

(तब तक सुगंध बिस्तर तक पहुंच चुकी थी और वह बिस्तर पर ;बिछे गद्दे को उठाकर देखने लगी तो उसके नीचे वही गंदी किताब थी जिस किताब ने दोनों को अपने मंजिल तक पहुंचने में मदद कर रहा था,,, उसे किताब को देखकर सुगंधा मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए अपने बेटे से बोली,,,)


ओहहहह तो यह बात है किताब पड़े बिना रहा नहीं जा रहा है क्यों ऐसा ही है ना,,,


नहीं नहीं मम्मी ऐसा कुछ भी नहीं है,,,






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तो ईसे छुपा क्यों रहा था,,,,(किताब के पन्ने को पलटते हुए सुगंधा बोली,,,,,,सुगंधा जिस तरह से अपने हाथ से किताब का पन्ना पलट रही थी यह देखकर अंकित की हिम्मत बढ़ने लगी थी और वह अपने मन में सोचने लगा था कि इतना कुछ तो दोनों के बीच हो रहा है इतनी ढेर सारी गंदी बातें इस किताब को लेकर हो चुकी है तो अब क्यों अपनी मां से घबरा रहा है शर्मा रहा है,,,,,,, इसलिए वह थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए बोला,,,)

नहीं ऐसा कुछ भी नहीं मम्मी वह तो किताब ऐसी है ना की,,,,, अब क्या बताऊं किताब ही ऐसी है कि तुम्हें दरवाजे पर देखकर मैं थोड़ा डर गया,,,,,


डरने की जरूरत नहीं हैतुझे अच्छी तरह से याद होना चाहिए कि मैं ही तुझे इस किताब को पढ़ने के लिए बोलीअगर ऐसा कुछ होता तो मैं तुझे यह किताब देती ही नहींऔर इस किताब को पढ़ने पर तुझे थप्पड़ लगा दी होती लेकिन मैं जानती हूं कि तू अब बड़ा हो चुका है समझदार हो चुका है,,,,, वैसे पढ़ क्या रहा था तू,,, मैं तो ठीक हूं की पूरी किताब ही गजब की कहानी से भरी हुई है,,,,(किताब के पन्ने को पालते हुए सुगंधा अपने होठों पर मादक मुस्कान बिखेरते हुए बोली अपनी मां को इस तरह से मुस्कुराता हुआ देखकर अंकित के भी हिम्मत बढ़ने लगी और वह बोला,,,)






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तुम सच कह रही हो मम्मी पूरी किताब ही गजब की है एक बार पढ़ने बैठो तो पूरी किताब पड़े बिना उठ नहीं सकते मैं तो उसे दिन वाली कहानी के बारे में सोच रहा था और वही देखना चाहता था कि आगे क्या होता है जैसा कि तुम बताएं की हालत को देखकर दोनों में जरूर कुछ हुआ होगा और दोनों के बीच कुछ होने की आशंका दोनों के हालात पर निर्भर रखती है,,,।

अच्छा तो तूने क्या पढ़ा उन दोनों के बीच आगे कुछ हुआ कि नहीं,,,,,।

बहुत कुछ हुआ मम्मी मेरा तो पढ़ कर ही हालत खराब हो गई है,,,,,।

क्यों ऐसा क्या लिखा हुआ है कि तेरी हालत खराब हो गई और वह भी सिर्फ पढ़करअगर देखा होता है या कुछ उसे कहानी का हिस्सा होता तो मैं समझ सकती थी पढ़कर ही तेरी हालत कैसे खराब होने लगी,,,। मुझे भी तो बता,,,(ऐसा कहते हुए उसे किताब को अंकित की तरफ आगे बढ़ाते हुए) ले उस दिन की कहानी से आगे पढ़ कर बता,,,,।

(अपनी मां की बात सुनकर अंकित का दिल जोरो से धड़कने लगा क्योंकि उसे भी एहसास होने लगा था कि उसकी मां भी उत्सुक थी की मां बेटे के बीच आगे क्या हुआ,,,, और यह कहानी वाली घटना उन दोनों के लिए ही कारगर साबित होने वाली थी ऐसा अंकित को एहसास होने लगा था,,,,इसलिए वह भी तुरंत अपनी मां के हाथ से उस किताब को ले लिया उसकी मां ठीक उसके सामने खड़ी थीऔर अंकित नीचे बिस्तर पर बैठा हुआ था और धीरे-धीरे पन्नों को पलट रहा था कुछ पन्नों के बाद रंगीन चित्र थे जिसमेंमर्द और औरत के संभोग के बहुत सारे चित्र थे जिसमें औरत की बुर और मर्द का लंड एकदम साफ दिखाई दे रहा था,,,अंकित उसे चित्र को बड़े गौर से देख रहा था देख क्या रहा था वह अपनी मां को चित्र को दिखा रहा था क्योंकि वह जानता था कि उसकी मां भी उस किताब की तरफ ही देख रही थी,,, उस गरमा गरम चित्र को देखकर अंकित का लंड पेंट के अंदर अकड़ रहा था,,,खड़ा तो वह पहले से ही था लेकिन इस समय अब उसकी हालत और ज्यादा खराब हो रही थीतो दो तीन-तीन सेकंड तक उसे दृश्य पर अपनी नजर डालकर और अपनी मां को दिखाकर वह पन्ने को पलट दे रहा था हर एक पन्ने पर एक अद्भुत दृश्य था जिसे देखकर कोई भी मर्द और औरत चुदवासे हो जाए।





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सुगंधा अपने बेटे की हरकत को देखकर मस्त हो रही थी वह भी उसी द्रशय को देख रही थी जिस दृश्य को उसका बेटा देख रहा था,,,, सुगंधा की बुर की पानी छोड़ रही थी क्योंकि चित्र था ही कुछ ऐसा मर्द बिस्तर पर पीठ के बल लेटा हुआ था और एक औरत जो कि एकदम गदराए बदन की थीवह उसे मर्द के ऊपर पूरी तरह से छाई हुई थी उसे मर्द का मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर में घुसा हुआ था और औरत अपनी चूची को अपने हाथ से पड़कर उसे मर्द के मुंह में डालें हुई थी और वह मर्द उसकी दोनों चूचियों को पकड़े हुए था उसे मर्दों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि औरत की हरकत से उसकी काम कला से वह पूरी तरह से मस्त हो चुका था। तभी अंकित पन्ने को पलट दिया और दूसरे दृश्य को देखने लगा यह दृश्य भी गजब का था,,, इसमें एक औरत खेत में काम करते हुए अपनी फ्रॉक को कमर तक उठाई हुई थी और झुक कर घास को काट रही थी और पीछे से एक आदमी उसकी चुदाई कर रहा था,,,इस नजारे को भी उसकी मां प्यासी नजर से देख रही थी और अपने मन में सोच रही थी की खास उसे औरत की जगह वह खुद होती है और पीछे खड़ा मर्द उसका बेटा होता तो कितना मजा आता।।






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अगले पन्ने को पलटते ही जो नजारा दिखाई दिया उसे देखकर सुगंधा की बुर मदन रस की बुंद नीचे टपका दी,,,, उस पन्ने पर चित्र छपा हुआ था जो बेहद मन मौत था और यह सुगंधा की भी ख्वाहिश थी,,,चित्र में एक मर्द बाथरूम के अंदर खड़ा था हो एक औरत अपने घुटनों के बल बैठकर उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर उसके लंबे मोटे लंड को अपने मुंह में जड़ तक लेकर उसे कस रही थीऔर उसकी मोटाई और लंबाई से साफ पता चल रहा था कि उस औरत के गले तक पहुंच चुका था उस मर्द के लंड को मुंह में लेने पर उसे थोड़ी बहुत तकलीफ हो रही थी लेकिन फिर भी इस तकलीफ के आगे जो आनंद उसे प्राप्त हो रहा था वह उसकी तकलीफ को पूरी तरह से कम कर दे रहा था। यही चाहतसुगंधा के मन में भी थी वह भी इसी तरह से अपने बेटे के मोटे-तगडे लंड को अपने मुंह में उसे चूसना चाहती थी,,, दो-तीन सेकंड के बाद अंकित पढ़ने को पलट दिया और अब कहानी शुरू हो गई थी अंकित कहानी को वहीं से शुरू करना चाहता था जहां से उस दिन खत्म किया था।वही पन्ना आंख के सामने आते ही अंकित अपनी मां की तरफ देखने लगा और अंकित को अपनी मां की आंखों में वासना का तूफान दिखाई दे रहा था जिसमे वह खुद डूबना चाहता थाकहानी को आगे पढ़ने से पहले वह अपनी मां की इजाजत लेना चाहता था इसलिए वह धीरे से बोला,,,।

आगे पढ़ु,,,,,?




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इसीलिए तो तुझे दी हूं,,,,,।

ठीक है,,,,,,, उस दिन अपने यहां तक पढे थे,,,,, अब आगे पढ़ कर बताता हूं,,,,(अंकित का इतना कहना था की सुगंधा पास में पड़ी कुर्सी को अपनी तरफ खींचकर उसे पर बैठ गई और ठीक अंकित के सामने बैठ गई थी वह अंकित के चेहरे के बदलते भाव को देखना चाहती थी,,)

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा थावैसे तो मैं यह नजारा देखना नहीं चाहता था अपने आप ही मेरी आंखों के सामने यह नजारा दिखाई दे गया था लेकिन आज पहली बार या नजारा देखकर मुझे लग रहा था कि मैं अब तक एक खूबसूरत दृश्य को नहीं देख पाया था लेकिन आज शायद मेरी किस्मत में यही लिखा था और आज मुझे वह देखने को मिल रहा है जिसके बारे में मैं कभी सपने में नहीं सोचा था,,,मां की गांड वाकई में कुछ ज्यादा ही पड़ी थी कई हुई साड़ी में अक्सर मैंने अपनी मां की गांड को देखा थालेकिन कभी मेरे मन में गलत भावना नहीं जगी थी लेकिन आज पहली बार मन को पेशाब करता हुआ देखकर मेरे मन में न जाने कैसे-कैसे भाव पैदा हो रहे थे और यह भावएक बेटे के मन में तो बिल्कुल भी नहीं पैदा हो सकते थे एक मर्द के मन में ही पैदा हो सकते थे और इस समय मुझे ऐसा ही लग रहा था कि मेरी आंखों के सामने जो औरत पेशाब कर रही है वह मेरी मां नहीं बस एक औरत है और मैं एक मर्द हूं हम दोनों को एक दूसरे की जरूरत है।





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मां की बुर लगातार सिटी की आवाज निकल रही थी और यह सिटी की आवाज किसी मधुर ध्वनि से बिल्कुल भी काम नहीं थी इस सिटी की आवाज सुनकर तो मेरा लंड एकदम से अपनी औकात में आ गया था,, अभी तक मां की नजर मेरे पर नहीं पड़ी थीवही तो ऐसा तक नहीं था कि बाहर दरवाजे पर खड़ा होकर में उन्हें पेशाब करता हुआ देख रहा हूं वरना अगर उन्हें एहसास हो गया होता तो वह कब सेमुझे जाने को कह देती और दरवाजा बंद कर देती और शायद गुस्सा भी करती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा था लेकिन मा को पेशाब करतेहुए देख कर मेरी हिम्मत पड़ रही थी बार-बार मेरा हाथ अपने आप ही पेंट के ऊपर से लंड को सहला दे रहा था। इस समय मुझे कुछ और नहीं सुझ रहा था। वैसे भी मैं निश्चिंत था क्योंकि घर में मेरे और मां के सिवा और कोई नहीं रहता थाइसलिए किसी के देखे जाने का या किसी के आ जाने का डर मुझे बिल्कुल भी नहीं था डर इस बात का था की मां मुझे देख लेगी तो क्या सोचेगी।(कहानी के एक-एक शब्दों को पढ़कर अंकित की हालत खराब हो रही थी वह अपनी मां की तरफ भी देख ले रहा था,, उसे साफ दिखाई दे रहा था कि,,कहानी को सुनकर उसकी मां की भी हालत खराब हो रही थी पाल-पाल उसके चेहरे का रंग बदल रहा था और उसकी सांसों की गति भी ऊपर नीचे हो रही थी यह देखकर अंकित को मजा आ रहा था और वह वापस कहानी आगे पढ़ते हुए बोला।)





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सच कहूं तो इस समय मन कर रहा था कि बाथरूम में घुस जाऊं और मां की चुदाई कर दुं,,,,, क्योंकि जहां तक मेरा मानना था बरसो हो गए थे मां की बुर में लंड नहीं गया था,,, क्योंकि हम दोनों अकेले ही रहते थे बरसों पहले ही पिताजी किसी और औरत के साथ शादी करके दूसरे शहर चले गए थेजहां तक मेरा मानना था की मां का किसी के साथ गलत संबंध बिल्कुल भी नहीं थाक्योंकि अगर होता तो इतने दिनों में भनक लग जाती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था और इतना पक्का था की मां की बुर में लंड ना जाने की वजह से उसे भी दूसरी औरतों की तरह पुरुषकी जरूरत पड़ती होगी लेकिन न जाने क्यों हुआ अपनी भावना को दबाए रह गई थी शायद उसके परवरिश के लिए,,, मुझे एहसास हो रहा था कि शायद मा को भी ईसी चीज की जरूरत है,,,,और अब मेरा करते तो बनता है कि मैं अपनी मां की जवानी की प्यास अपने लंड से बुझाऊं क्योंकि उसे भी अपनी शौक पूरा करने का पूरा हक है। और शायद मेरी वजह से ही मन अपनी ख्वाहिश को पूरा नहीं कर पा रही थी और अंदर ही अंदर घुट रही होगी,,,क्योंकि अगर मैं नहीं होता तो शायद वह दूसरी शादी कर ली होती और एक औरत की जिंदगी की रही होती यह सब मेरी वजह से ही हो रहा है,,,, आज तो मैं अपनी मां की जरूरत को पूरा करके रहूंगा,,,,,।






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अरे यह क्या मां तो पेशाब कर चुकी है अब जल्दी ही उठकर खड़ी हो जाएगी,,, नहीं नहीं मैं क्या देख रहा हूं मां तो अपनी बुर में उंगली डाल रही है,,ओहहहह इसका मतलब है कि मेरा सोचना बिल्कुल सही था मा को भी जरूरत है,,,, अब तो मेरा रास्ता एकदम साफ हो गया है आज तो मैं अपनी भी और अपनी मां की भी इच्छा पूरी कर दूंगा,,,,,,(ऐसा पढ़करअंकित अपनी मां की तरफ देखने लगा उसकी मां मुस्कुरा रही थी क्योंकिकहानी कुछ उसके जीवन जैसी ही थी जिसका एहसास अंकित को भी हो रहा था अंकित गहरी सांस लेते हुए कहानी को आगे पढ़ते हुए बोला )

मुझे रहा नहीं गया और मैं दरवाजे पर खड़ा होकर बोला,,,।

बस करो मम्मी बहुत तुमने उंगली से अपनी प्यास बुझाने की कोशिश कर ली अब मैं जानता हूं कि तुम्हें क्या चाहिए,,,,(मेरी बात सुनकर मा एकदम से चौंक गई और,,,घबरा कर तुरंत अपनी बुर में से उंगली को बाहर खींच ली और एकदम से खड़ी हो गई और अपनी साड़ी को नीचे गिरा दि और अपनी गांड को ढंक ली और घबराहट भरे स्वर में बोली,,,)





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तततततत,,, तू यहां क्या कर रहा है,,,?

देख रहा हूं कि मेरी मां कितना तड़प रही है लंड के लिए,,,(ऐसा कहते हुए मैं बाथरूम में प्रवेश करके और अपने पेंट की बटन को खोलने लगा यह देखकर मा से घबरा गई और बोली,,,)


यह तु क्या कर रहा है,,?

वही जिसकी तुम्हें जरूरत है,,,,(ऐसा कहते हुए मैंने तुरंत अपने कपड़े उतार कर बाथरूम के अंदर एकदम नंगा खड़ा हो गया मां की हालत खराब हो रही थी वह थोड़ा गुस्से में भी थी लेकिन मेरे मोटे तगड़े लंबे लंड को देखकर वह एकटक उसे देखते ही रह गई,,,,, और धीरे से बोली)

यह गलत है,,,।

गलत क्या है सही क्या है यह हम दोनों जानते हैं और इस समय क्या सही है यह तुम भी अच्छी तरह से जानती हो इसलिए बिल्कुल भी दिखावा मत करो मैं अपनी आंखों से देख चुका हूं तुम अपनी उंगली से अपनी प्यास बुझाती हो,,,,,(ऐसा कहते हुए मैं मां के एकदम करीब पहुंच गया और उनका हाथ पकड़ कर तुरंत अपने लंड पर रख दिया जो कि एकदम गरम और एकदम कड़क था,,,पहले तो मन घबरा कर उसे पर से अपना हाथ हटाने की कोशिश करने लगी लेकिन मैं तुरंत अपने हाथ में मां की हथेली पकड़ कर उसे पैर दबा दिया तो थोड़ी ही देर मेंमां के बदन में लंड की गर्मी पूरी तरह से छाने लगी और वह मदहोश होने लगी और उनकी मदहोशी उनकी आंखों में दिख रही थी और वह धीरे से बोली,,,)

किसी को पता चल गया तो,,,,।


चार दिवारी के अंदर हम दोनों के बीच क्या हो रहा है यह बाहर किसी को कैसे पता चलेगा,,,,,,(मेरी बातें सुनकर मन मदहोश हो रही थी और धीरे-धीरे मेरे लंड को मुठीयाना शुरू कर दी थी जो कि उनकी तरफ से इशारा था आगे बढ़ने का,,,,मुझे बिल्कुल भी रहा नहीं यार मैं तुरंत ब्लाउज का बटन खोलने लगा देखते-देखते में अपनी मां की चूचियों को ब्लाउज की कैद से आजाद कर चुका था,,,, उनकी बड़ी-बड़ी चूचियांऔर भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी मैं दोनों हाथों से उसे पकड़ कर जोर-जोर से दबा रहा था और मां मेरे लंड को आगे पीछे करके मजा ले रहे थे देखते-देखते वह खुद मेरा सर पकड़ कर अपनी चूची पर कर दी और मुझेदूध पीने का इशारा करने लगी मैं भी मन का इशारा पाकर टूट पड़ा और बारी-बारी से दोनों चुचियों का रेस पीने लगा,,,, हम दोनों के बीच हालात पूरी तरह से बिगड़ रहे थे ऐसा लग रहा था कि बरसों के बाद मां के हाथों में उसका पसंदीदा खिलौना आ गया था जिससे वह जी भर कर खेल रही थी,,,देखते ही देखते मैं अपने घुटनों के बल बैठ गई और तुरंत मेरे लंड को अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दी कि हम मेरे लिए बेहद अद्भुत और अविस्मरणीय था क्योंकि मैंने ऐसा कभी सोचा नहीं था,,,,, कुछ देर तक मां इसी तरह से मजा लेती रही और मुझे मजा देती रही इसके बादमां तुरंत उठकर खड़ी हो गई और अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर मुझे अपनी बुर चाटने के लिए बोली,,,, मैं कर भी जा सकता थामेरा तो यह सपना था मैं तुरंत अपने घुटनों के बल बैठ गया और अपनी मां का रस पीना शुरू कर दिया हम दोनों पागल हुए जा रहे थे बाथरुम के अंदर हम दोनों पूरी तरह से मां बेटे की जगह औरत और मर्द बन चुके थे,,,,।





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बाथरूम के अंदर ही मा पेट के बल लेट गई और अपने दोनों टांगें खोलकर मुझे बताने लगी कि आगे क्या करना हैयह मेरा पहला मौका था मां की बात मानते हुए मैं धीरे-धीरे अपने लंड को उसकी गुलाबी छेद में डालना शुरू कर दिया और उसके बाद अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया इतना मजा आ रहा था कि पूछो मत मां भी मस्त हो रही थी और उसके बाद है तो यह सिलसिला रोज का हो गया हम दोनों एक ही कमरे में कहीं बिस्तर पर पति-पत्नी की तरह सोने लगे,,,,,,

(इतना पढ़कर अंकित की हालत खराब हो गई थी अंकित गहरी सांस लेता हूं अपनी मां की तरफ देखने लगासुगंधा भी मदहोश हो चुकी थी उसके चेहरे पर भी उत्तेजना साफ झलक रही थी वह भी वासना भरी आंखों से अपने बेटे की तरफ देख रही थी)
बहुत ही शानदार और कामुक अपडेट ! अब थोड़ा इंतजार कम करते हुए दोनों को आगे बढ़ाओ मित्र !
 

sunoanuj

Well-Known Member
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अंकित कहानी पढ़ चुका था और कहानी पढ़ने के बाद जो भाव अंकित के चेहरे पर नजर आ रहे थे वही भाव उसकी मां के चेहरे पर नजर आ रहे थे दोनों कहानी को पढ़कर मंत्र मुग्ध हो चुके थेदोनों की आंखों में वासना का तूफान नजर आ रहा था दोनों एक दूसरे को एक तक देख रहे थे ऐसा लग रहा था कि जैसे दोनों के बीच अभी कुछ हो जाएगा कहानी की गर्माहट दोनों बदन को उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच चुकी थी,,, दोनों की सांसों की गति एक दूसरे की सांसों की गति से मानो जैसे आगे बढ़ने की शर्त लगाई हो दोनों की सांस बड़ी तेजी से चल नहीं रही थी बल्कि दौड़ रही थी। अंकित के हाथों में वह गंदी किताब थी जिसने मां बेटे दोनों को आपस में खुलने में काफी मदद किया था,,, अंकित को समझ में नहीं आ रहा था कि इस समय का क्या करें जिस तरह के दोनों के हालात थे अंकित के मन में हो रहा था किसी समय अपनी मां को अपनी बाहों में भर ले और उसके होठों पर उसके गालों पर चुंबनों की बौछार कर दें,,, लेकिन ऐसा करने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।





दोनों के बीच एकदम से खामोशी छा गई थी,,, सुगंधा के तन-बदन में आग लगी हुई थी सुगंधा अपने मन में यही सोच रही थी कि, जिस तरह से बाथरूम में घुस किया था काश उसका बेटा भी उसी तरह की हिम्मत दिखा कर उसे पलंग पर पटक कर चोद डाले तो मजा आ जाए,,,, यही सोच कर उसकी बुर पानी छोड़ रही थी उसका खुद का मन कर रहा था कि इस समय अपने बेटे को लेकर पलंग पर पसर जाए लेकिन यह भी उसके मन की केवल सोच थी जिसे अंजाम देने में उसे डर लग रहा था,,, दोनों के खामोशी के बीच अंकित की आवाज आई।

क्या सच में इन दोनों ने ऐसा ही किया होगा जैसा की किताब में लिखा हुआ है।

बिल्कुल किताब में सही लिखा हुआ है मैं कह रही थी ना दोनों के बीच जो भी होगा हालात को देखते हुए होगा,,

मेने कुछ समझा नहीं हालात को देखते हुए से मतलब,,,,(अंकित हैरान होते हुए अपनी मां से पूछा)

मैं तुझे कही थी नादोनों के बीच अगर आगे कुछ भी होता है तो हालात को देखते हुए होगा हालात का मतलब की दोनों के बीच घर के अंदर किस परिस्थिति से दोनों गुजर रहे हैं,,,।

अभी भी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है सीधी शादी भाषा में समझाओ।

देख मैं तुझे बताती हूं बरसों सेवह औरत अकेली थी और अपने बेटे के साथ ही घर में रहती थी,,,, इसका मतलब साफ करके वह बरसों से अपने पति के प्यार से दूर थी,,,, जिसके चलते उसके बेटे ने उसके हालात का फायदा उठाते हुए,,बाथरूम में घुस गया था क्योंकि वह अपनी मां को गंदी हरकत करते हुए देख लिया था और वह समझ गया था कि उसकी मां के मन में क्या चल रहा है,,,,।




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अच्छा तो वह पेशाब करते हुए हरकत कर रही थी अपनी उंगली से वही ना,,,,(अंकित भी याद करते हुए बोला)

हां वहीउसकी हरकत देखकर उसका बेटा समझ गया था कि उसकी मां को क्या चाहिए,,,,।

क्या चाहिए,,,?(जानबूझकर हैरान होने का नाटक करते हुए बोला)


इतना समझ में नहीं आता मर्द का साथ जो उसे सुख दे सके उसे खुशी दे सके जो एक पति देता है उसे सुख के लिए वह भी तड़प रही थी तभी तो बाथरूम के अंदर हरकत कर रही थी,,,।

ओहहह,,,, मतलब कि उसके बेटे को समझ में आ गया था इसलिए उसने इतना बड़ा कदम उठाया,,,।

हां इसीलिए उसने इतना बड़ा कदम उठाया और नतीजा सामने है,,,, शुरू शुरू में उसकी मां इंकार करती रही उसे यह सब गलत होने की दुहाई देती रहीं लेकिन अंदर से वह भी यही चाहती थी,,,, और फिर वह भी मान गई,,,,।

बाप रे मेरा तो माथा ठनक रहा है,,,, मां बेटे के बीच में भी यह रिश्ता संभव है पहली बार देख रहा हूं,,,,।

मैं भी तो पहली बार ही तेरे मुंह से सुन रही हूं कहानी की किताब को नहीं तो मुझे नहीं मालूम था की मां बेटे के बीच में भी ऐसे रिश्ते भी होते होंगे तब तो ऐसे ना जाने कितने घर होंगे और उनकी घर की चार दिवारी के अंदर इसी तरह के रिश्ते पनप रहे होंगे मां बेटे दोनों मजा ले रहे होंगे,,,।

तो क्या सच में यह हो सकता है,,,।

बिल्कुल हो सकता है मैं तुझसे कही थी ना की कहानी ऐसे ही नहीं लिखी जाती,,, सच्चाई छुपी होती है तभी उसे सच्चाई को कलम के जरिए किताब में लिखी जाती है,,,,,,,





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बाप रे गजब की कहानी थी,,,,और वैसे देखा जाए तो कहानी के हालात और हम दोनों के हालात एक जैसे ही हैं,,,,।

(अपने बेटे की यह बात सुनकर सुगंधा के तन-बदन में भेजने की लहर उठने लगी और वह मुस्कुराते हुए अपने बेटे की तरफ देखते हुए बोली,,,)

ओहहहह कहीं तेरा इरादा भी उन दोनों की तरह तो नहीं है,,,।


नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मैं तो सिर्फ बता रहा था कि वह भी वर्षों से अपने पति के बगैर रही थी और हम दोनों भी पापा के बिना बरसों से रह रहे हैं,,,।

हम दोनों नहीं, तृप्ति भी है,,,


हां वह तो है लेकिन इस समय तो केवल हम दोनों ही हैं,,(अंकित हिम्मत करके अपने मन की बात अपनी मां से बता रहा था वह चाहता था कि उन दोनों के बीच भी कहानी वाली घटना हो जाए)


तुझे क्या लगता है अंकित कि मैं भी उस औरत की तरह हूं क्या,,,, एकदम निर्लज्ज,,,,


नहीं नहीं मैं ऐसा तो नहीं कह रहा हूं,,,।





नहीं तेरे कहने का मतलब क्या है क्या मैं भी उसे औरत की तरह गंदी हरकत करती हूं कहीं ऐसा तो नहीं कहानी पढ़कर तो भी मुझ पर उस लड़के की तरह आजमाना चाहता हो।


यह कैसी बातें कर रही हो मम्मी मैंने ऐसा तो नहीं कहा,,,,।
( अंकित अच्छी तरह से समझ रहा था कि उसकी मां केवल दिखावा कर रही थी, नाटक कर रही थी अंदर से वह क्या चाहती है यह अंकित अच्छी तरह से भली-भांति जानता था,,,,)

चाहे जो भी हो लेकिन कहानी पढ़ने के बाद मुझे तेरा इरादा कुछ अच्छा नहीं लग रहा है,,,,।




चलो कोई बात नहीं,,(कुछ देर तक वहीं बैठे रहते हुए अपनी मां की बात सुनकर कुछ सोचने के बाद इतना के करवा तुरंत उस कीताब को लेकर खड़ा हो गया,,,लेकिन उसके खड़े होने के साथ-साथ उसका लंड भी पूरी तरह से खड़ा हो गया था इसका एहसास उसके पेट में बने तंबू को देखकर अच्छी तरह से समझ में आ रहा था और उसके पेट में बने तंबू पर सुगंधा की नजर पड़ चुकी थी,,,, सुगंधा तो देखते ही रह गई सुगंधा कुछ बात का एहसास हो रहा था की कहानी पढ़ने के बाद उसके बेटे की क्या हालत हो रही है जब उसकी खुद की हालत खराब हो चुकी थी तो उसके बेटे के बारे में क्या कहना,,,, बुर लगातार पानी पर पानी छोड़ रही थी,,,, जिससे उसकी चड्डी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। जिसके गीलेपन की वजह से वह अपने आप को असहज महसूस कर रही थी। और उसे अपनी चड्डी बदलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा था) मैं इस किताब को रख देता हूं और अब ईसे हाथ नहीं लगाऊंगा,,, क्योंकि मुझे लगता है कि,,,,,(अलमारी खोलकर उसमें किताब रखते हुए,,,, लेकिन वह अपनी बात खत्म कर पता है इससे पहले ही सुगंधा बोल पड़ी)






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क्या लगता है तुझे,,,?

मुझे लगता है कि,,,(धीरे से अलमारी बंद करके अलमारी का सहारा लेकर खड़े होकर बड़े आराम से)अगर इस किताब को पढ़ते रहे तो फिर हम दोनों के बीच भी कुछ हो जाएगा,,,,,

(इस बार अंकित की बात सुनकर सुगंधा कुछ बोल नहीं पाई क्योंकि सुगंधा को भी यही लग रहा था और वह खुद ऐसा चाहती थी लेकिन अपने बेटे से खुलकर बोलने में शर्म महसूस हो रही थी इस समय सुगंधा की नजर अपने बेटे के पेंट में बने तंबु पर थी और इस बात का एहसास अंकित को भी हो रहा थाअंकित भी यही चाहता था इसलिए अंकित अपने पेंट में बने तंबू को छुपाने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं कर रहा था वह एक तरह से अपनी मां को यह जताना चाहता था कि देखो तुम्हारी वजह से मेरे लंड की हालत क्या हो गई है,,,, और सुगंधा अपने मन मेंअपने बेटे के पेट बने तंबू को लेकर कल्पना कर रही थी कि पेट के अंदर उसके बेटे का लंड कितना भयानक लग रहा होगा उसकी लंबाई मोटाई जब पेंट के अंदर इतना गजब का दिखाईवदे रहा है तो पूरी तरह से नंगा हो जाने के बाद तो बिना चोदे ही यह उसकी बुर से पानी निकाल देगा। अपने बेटे के तंबू को देखते हुए वह गहरी सांस लेते हुए बोली,,,)






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वैसे तो तू सच कह रहा है,,,, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता,,, भले ही हम लोगों की परिस्थिति कहानी की तरह है लेकिन इन सबके बावजूद भी मेरी मर्यादा की डोरी तेरी कच्ची नहीं है कि जैसे हालात में टूट जाए मेरे माता-पिता ने मुझे जो संस्कार दिए हैं उस पर मैं हमेशा खरी उतरूंगी,,,,।

(अपनी मां के मुंह से अपनी मां का पिता के द्वारा दिए गए संस्कार की बात सुनते ही अंकित अपने मन में बोला तुम्हारे संस्कार और संस्कारी घर,,, और वाह रे तुम्हारी मांतुम्हारी मां के बारे में शायद तुम्हें पता नहीं है अगर मैं उसके बारे में बता दूं तो शायद तुम भी साड़ी उठाकर मेरे लंड पर अपनी बर रगड़ने लगोगी,,,, तुम्हें नहीं मालूम है कि तुम्हारी मां रात भर रंडी की तरह मुझसे चुदवा कर घर गई है,,,,लेकिन यह बात वह अपने मन में ही कह रहा था अपनी मां के सामने कहने में उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी,,,, अपनी मां की बात सुनने के बावजूद भी उसे उसकी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि वह जानता था कि जब उसकी मां की मांमर्यादा में इतनी कच्ची है कि अपने ही नाती के साथ है मजा कर सकती है तो फिर उसकी बेटी तो अभी भी पूरी तरह से जवानी से भरी हुई है वह भला कैसे अपने आप को संभाल कर रख पाएगी,,,,,)

मैं तो यही चाहता हूं कि हम दोनों के बीच ऐसा कुछ भी ना हो,,,, वरना अगर ऐसा कुछ हो गया तो हम दोनों के बीच मां बेटे का पवित्र रिश्ता ही नहीं रह जाएगा,,,।




हां तु सच कह रहा है,,,,।(ऐसा कहते हुए वह गहरी सांस लेने लगी और अपने मन में सोचने लगी कि यह क्या हो गया गंदी किताब की गंदी कहानी के माध्यम से वह अपना निशाना साधना चाहती थी,,, लेकिन बातो का रुख एकदम से दूसरी तरफ घूम गया था,,,, जिसका उसे पता नहीं चला था औरयह सब उसके ही कारण हुआ था इसलिए उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा थाऔर वह अपने आप से ही बोल रही थी की बड़ी सती सावित्री बनाने चली है संस्कार का चोला पहनने चली है,,, ले अब बन जा संस्कारी,,,, खुद से ही खुद की दुश्मन बनी हुई है इतना अच्छा खासा चल रहा थाऐसा नहीं की थोड़ी हिम्मत दिखा कर खेल को आगे बढ़ाने में मदद करें लेकिन खेल को एकदम से दूसरी तरफ घुमा दे जहां पर सिर्फ वही रोज की घीसी पिटी जिंदगी है संस्कारों की चादर है मर्यादा की दीवार है जहां से बाहर निकलना नामुमकिन है,,,,, सुगंधा को अपने आप पर गुस्सा आ रहा था,,, लेकिन अंकितजानता था कि उसकी मां बिल्कुल भी मर्यादा में नहीं रह पाएगी सिर्फ वह बातें कर रही है।

शाम हो चली थी सुगंधा आईने में अपने आप को देखकर बालों को संवार रही थी उसे बाजार जाना था,,, लेकिन इस समय उसके बदन में उत्साह नहीं था,,, क्योंकि अपने चरित्र को ऊंचा बात कर उसने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार दी थी लेकिन अब अपनी करनी को उसे ठीक करना था एक बार फिर से गाड़ी को पटरी पर चढ़ाना था,,,, इसलिए वह अपने बेटे को आवाज लगाने लगी।
ग़ज़ब गलतीं भी ख़ुद की और अब उसे ठीक करने के लिए कुछ और जुगाड़ करने की ज़रूरत है!

बहुत अच्छा लिख रहे हो !
 

rajeev13

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क्या बात है दोस्त तुम खुद कहानी लिख सकते हो
क्षमा चाहूंगा अगर आपको बुरा लगे तो लेकिन आपके इस तरह के कमेंट से मुझे बहुत निराशा होती है क्योंकि उन्होंने जो सुझाव दिया, उसके सुझाव के उत्तर में आपने सिर्फ ये लिख दिया की आप खुद कहानी लिख सकते है, ये तो कोई बात नहीं हुई ! आपको थोड़ा तर्क भी करना चाहिए था की ये कैसे हो सकता है, इन सुझावों को कैसे अपनी कहानी में उतार सकता हूँ तभी तो आप दोनों के वार्तालाप से और भी लोग अपने विचार रखते ! 😥

मेरे सुझावों जैसे माँ से शादी और बेटे के द्वारा उसके गर्भधारण पर भी आपने कभी खुल कर अपने विचार व्यक्त नहीं किये है आज तक !
 
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sunoanuj

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हालात पूरी तरह से बिगड़ जाते, यह जो सुनहरा मौका यह जो लाभदाई अवसर हाथ में लगा था वह पूरी तरह से हाथ से निकल जाता है इससे पहले सुगंधा हालात को संभाल लेना चाहती थीइसलिए वह बालों को संभालते हुए अपने बेटे को आवाज लग रही थी।











अंकित ओ अंकित कहां गया,,,,,(ऐसा कहते हुए वहां अपनी साड़ी के पल्लू को थोड़ा सा नीचे की तरफ कर ले रही थी ताकि उसके ब्लाउस से उसकी भारी भरकम चूचियों के बीच की पतली गहरी दरार आईने में उसके बेटे को साथ दिखाई दे सके और इस दौरान हो अपनी गांड का भी जायजा ले रही थी,,,,वह नजर पीछे घूम कर अपने पिछवाड़े को देख रही थी और अपनी साड़ी को कमर से थोड़ा सा और ज्यादा कर दे रही थी ताकि नितंबों के बीच की गहरी लकीरका जो भाग होता है वह साड़ी में अच्छी तरह से उपस कर उसके बेटे को नजर आ सके,,,, सुगंधा आज डोरी वाला ब्लाउज पहनी हुई थीऔर इस डोरी वाले ब्लाउज के चलते ही उसके मन में युक्ति सुझ रही थी और अपनी इस युक्ति को अंजाम देना चाहती थी,,,, अपने बेटे की तरफ से किसी भी प्रकार का जवाब न मिलने पर वह फिर से आवाज लगाते हुए बोली,,,।

अंकित,,, जरा इधर तो आना बेटा मेरी मदद कर दे,,,,,,
(अंकित अपने कमरे में ही थाऔर अपनी मां की बात सुनकर उसके चेहरे पर मुस्कान करने लगी क्योंकि अच्छी तरह से जानती थी कि जिस तरह से उसकी मां चरित्रवान होने का ढोंग कर रही थी ऐसा बिल्कुल भी नहीं था उसके बदन की गर्मी को उसके चेहरे के उत्तेजना को वह अच्छी तरह से भांप चुका था और उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि उसकी मां भी दूसरी औरतों की तरह ही है,,, जिस तरह से दूसरी औरतों चुदास से भर जाने के बाद किसी भी तरह का कदम उठाने से नहीं हिचकीचाती वही हरकत एक हाथ से गुजर जाने के बाद उसकी मां भी कर सकती है,,,और यह अंकित को अपनी मां की बहुत सी हरकतों से अंदाजा लग गया था बार-बार उसकी आंखों के सामने किसी भी तरह से किसी भी बहाने से अपने अंगों का प्रदर्शन करना बेझिझक उसके सामने पेशाब करने के लिए बैठ जाना गंदी किताब का उसके द्वारा पढवाना,,, अपने बदन पर साबुन लगवाना यह सब उसकी मां को दूसरी औरतों के चरित्र में ही ढाल रही थी बस वह ऊपर से सिर्फ दिखावा कर रही थी,,,

अपनी मां की पुकार सुनकर अंकित बिस्तर से नीचे उतर गया था और अपने मन में बोल रहा था चलकर देखें तो सही अब कौन सा नाटक शुरू होने वाला है,,,, अपने मन में ऐसा सोच कर वह अपने कमरे सेबाहर निकल गया और अपनी मां के कमरे पर पहुंच गया दरवाजे पर पहुंचते ही अंदर का नजारा देखा तो वह देखता ही रह गया पहले इस समय उसकी मां नग्न अवस्था में नहीं थी और ना ही अर्धनग्न अवस्था में थी वह संपूर्ण कपड़ों में थी लेकिन कपड़ों में भी उसके बदन से जवानी टपक रही थीकपड़ों में भी उसकी मां कयामत लग रही थी इस बात का एहसास उसे अच्छी तरह से हो रहा था इसलिए तो दरवाजे पर पहुंचते ही हुआ अपनी मां को देखा ही रह गया था और आईने में खुद सुगंधा अपने बेटे को देख रही थी और जिस तरह से वह दरवाजे पर खड़े होकर उसे घुर रहा था यह देखकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी और वह मंद मंद मुस्कुरा रही थी। अपने बेटे को दरवाजे पर खड़ा देखकर वह आईने में ही अपने बेटे की तरफ देखते हुए बोली,,,।

क्या हुआ रुक क्यों गया अंदर तो आ,,,।

क्या काम है मम्मी,,,(कमरे में प्रवेश करते हुए अंकित बोला,,,)

अरे देख नहीं रहा है मुझे ब्लाउज की डोरी बंध नहीं रही है,,,, जरा इसे बांध देना तो,,,।

(अपनी मां की बात सुनते ही अंकित अपने मन में बोल दो जमाने का जलवा दिखाना शुरू हो गया और कहती है कि मैं चरित्रवान हूं अगर इसी समय साड़ी उठाकर चोद दुं तो मुझे बिल्कुल भी नहीं रुकेगी खुद ही टांग उठा उठा कर लेगी लेकिन अभी संस्कारी होने का सिर्फ दिखावा कर रही है,,इतना कुछ हो गया है फिर भी अपने मुंह से बोल नहीं पा रही हैइसे अच्छी तो राहुल की मां है जो एक दो मुलाकात में ही मेरे लिए अपनी टांगें खोल दी और अपनी मलाई चटवा दी और अपनी पड़ोस वाली आंटी है जो मौका देखकर मेरे लिए टांग उठा दी और अपना गुलाबी छेद मेरे आगे कर दी,,,,, अपने मन में ऐसी बातें सोचकर वह गहरी सांस लेते हुए अपनी मां के करीब पहुंच गया और आईने में अपनी मां का खूबसूरत खिला हुआ चेहरा देखकर वह बोला,,,)

वाकई में मम्मी तुम बहुत खूबसूरत हो आईने में अपनी सूरत देखो ऐसा लग रहा है कि चांद का टुकड़ा आईने में दिखाई दे रहा है,,,,इस दौरान वह अपनी मां की नंगी चिकनी पीठ को अच्छी तरह से देख रहा था और मजे वाली बात यह थी कि अभी वह सारी नहीं पहनी थी,सिर्फ पेटीकोटा ब्लाउज में खड़ी थी और ब्लाउज भी डोरी वाला होने की वजह से पीछे से पूरी तरह से खुला हुआ था,,, जिससे उसकी नंगी चिकनी पीठ एकदम साफ दिखाई दे रही थी जिसे देखकर अंकित उत्तेजित हो रहा था सुगंधा इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि वह अपने बेटे के सामने किस अवस्था में खड़ी है लेकिन उसे अपने बेटे के सामने इस तरह से खड़े होने में अब किसी भी प्रकार का शर्म महसूस नहीं होता था क्योंकिकई बार तो अपने बेटे के सामने साड़ी उठाकर अपनी नंगी गांड दिखाते हुए पेशाब भी कर चुकी थी और खड़ी भी हो चुकी थी,,,, अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा बोला,,,)

अब चल रहने दे,,,, खामखां मक्खन लगाने को,,,, पैसे की जरूरत है तो बोल दे मैं ऐसे ही दे दूंगी लेकिन इस तरह से झूठ मत बोल,,,।


यह क्या कह रही हो मम्मी मैं तुम्हारी खूबसूरती के बारे में भला झूठ क्यों बोलूंगा और अगर मैं झूठ बोल भी रहा हूं तो तुम्हें तो आईने में सब कुछ साफ दिखाई दे रहा है ना देखो तो सही कितना खूबसूरत चेहरा है तुम्हारा ऐसा लगता है कि जैसे कोई फिल्म की हीरोइन खड़ी है,,,,(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा गदगद हुए जा रही थीऔरतों की सबसे बड़ी कमजोरी यही होती है कि अगर कोई मर्द उसके खूबसूरती की तारीफ करती है तो वह उस मर्द की तरफ आकर्षित होने लगती हैऔर इस समय तो उसका बेटा उसके खूबसूरती की तारीफ कर रही थी जिसकी तरफ वह पहले से ही आकर्षित थी इसलिए वह खुशी के मारे अपने गुलाबी छेद से आंसू बहा रही थी,,, फिर भी वह जानबूझ कर अपने बेटे की बात सुनकर बोली,,,)

चल रहने देदो जवान बच्चों की मां होने के बाद खूबसूरती कहां टिकती है बदन में,,,।

यही बात तो मैं भी सोच कर हैरान हूं कि तुम इस करने की इतनी खूबसूरत और आकर्षक हो की पूछो मत,,,(ठीक अपनी मां के पीछे खड़ा हुआ अपनी मां की नंगी चिकनी पीठ और उभरी हुई नितंबों की तरफ देखकरइस तरह की बातें कर रहा था और आईने में सुगंधा को भी साथ दिखाई दे रहा था कि उसके बेटे की नजर कहां है इसलिए तो उसके बदन में उत्तेजना के साथ-साथ कंपन का भी एहसास हो रहा था,,, गहरी सांस लेते हुए वह अपने बेटे की बात सुनकर बोली,,)

अच्छा चल रहने दे जल्दी से यह डोरी बांध हमें बाजार चलना है थोड़ी खरीदी करना है,,,,।

ओहह मैं तो भूल ही गया,,,(एकदम से वह अपनी मां के खुले हुए ब्लाउज की तरफ हाथ बढ़ाते हुए और उसकी डोरी को दोनों हाथ में पकडते हुए बोला,,, यह सुनकर उसकी मां मुस्कुराते हुए बोली)

अब तो तू भूल ही जाएगा आखिरकार बढ़ा जो हो गया है छोटी-छोटी बातें कहां ध्यान में आने वाली है तेरे,,,,,,,।

नहीं ऐसी बात बिल्कुल भी नहीं है,,,(ब्लाउज की रेशमी डोरी अपने दोनों हाथों में पकड़े हुए वह अपनी मां की नंगी चिकनी पीठ को देख रहा था जो कि एकदम मांसल और भरी हुई थी,,,इस समय उसका मन तो कर रहा था कि अपने प्यार से बातें को अपनी मां की चिकनी पीठ पर रखकर चुंबनों की बौछार कर दे लेकिन ऐसा वह कर नहीं सकता था कमर के नीचे का उभरा हुआ भाग उसकी उत्तेजना को परम शिखर पर ले जा रही थीआईने में बार-बार वह अपनी मां का खूबसूरत चेहरा देख ले रहा था जो कि इस समय पूरी तरह से उत्तेजना से भरा हुआ था,,, तभी उसके ध्यान में आया कि उसकी मां तो ब्रा पहनी नहीं थी,,, उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ और वह अपनी मां से बोला,,,)

मम्मी तुम तो ब्लाउज के अंदर कपड़ा नहीं पहनी हो,,,,

ब्रा ना,,,,

हां वही,,,

तेरा अभी ध्यान गया,,,,,।
(अपनी मां की यह बात सुनकर अंकित थोड़ा गनगना गया उसे समझ में आने लगा था कि उसकी मां किसी और उसका ध्यान दिलाना चाहती थी फिर भी अपनी मां की बात का जवाब देते हुए बोला,,,)

हां सच में मेरा ध्यान अभी गया लेकिन तुम ऐसा क्योंकि ब्लाउज के अंदर ब्रा क्यों नहीं पहनी तुम तो हमेशा पहनती हो,,,,


अच्छा तु सब जानता है मैं क्या पहनती हूं क्या नहीं पहनती हूं,,,।

इसमें जाने वाली कौन सी बात है इतना तो पता चलता ही है कि तुम क्या पहनी हो क्या नहीं पहनी हो,,,।

साड़ी के अंदर भी पता चल जाता है क्या पहनी हुं, क्या नहीं पहनी हुं ,,,,की पहनी भी हुं कि नहीं पहनी हुं,,,,।(आईने में अपने बेटे के चेहरे को देखकर मुस्कुराते हुए सुगंधा बोल रही थी,,, और अपनी मां की है बात सुनकर अंकित के तन बदन में आग लग रही थी,,,उसे इस बात की खुशी थी कि उसकी मां को फिर पहले सती सावित्री संस्कारी होनेका सिर्फ दिखावा कर रही थी इस समय उसके बातों का रुख फिर से मदहोशी में डूबने वाला ही था,,,)

नहीं नहींनीचे साड़ी के अंदर क्या पहनी हुई है तो नहीं पता चलता लेकिन ब्लाउज के अंदर पहनी हो कि नहीं पहनी हो यह जरूर पता चल जाता है।

कैसे,,,?

वह कहना कि पीछे से तुम्हारे ब्रा की पट्टी दिखाई देती है,,,।

ओहहहह,,,,, यह बात है,,,,। तब तो बहुत बुरा दिखता होगा,,,।

क्या बात कर रही हो मम्मी ब्लाउज में से जब ब्रा की पट्टी दिखाई देती है तो क्या खराब लगता है कितना अच्छा लगता है देखने वालों को,,,,(अंकित अपने मन की बात बता रहा था और यह हकीकत भी थाअपनी मां का ही नहीं हुआ किसी भी औरत के ब्लाउज में से झांकती हुई ब्रा की पट्टी देखता था तो उत्तेजित हो जाता था,,, अपने बेटे की यह बात सुनकर सुगंधा मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,, जानबूझकर अपने बेटे की बात पर थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली,,,)

तो तुझे यह सब देखने में मजा आता हैतुझे जरा भी फर्क नहीं पड़ता कि तेरी मां के ब्लाउज से उसकी ब्रा दिखाई दे रही है देखने वाले उसके बारे में क्या-क्या सोचते होंगे तुझे बता तो देना चाहिए,,,,।

लेकिन मुझे तो कभी खराब नहीं लगा मुझे तो अच्छा लगता था,,,,।

ऊंं,,,,, तू है ही ऐसा,,,, कुछ ना कुछ जरूर झांकता रहता है चल जल्दी से ब्लाउज की डोरी बांध दे,,, बाजार जाने के लिए देर हो रही है,,,,,।

ठीक है मम्मी,,,,(और इतना कहकर वह अपनी मां के ब्लाउज की डोरी को बांधने लगालेकिन जिस तरह की दोनों मां बेटे में वार्तालाप हो रही थी उसकी वजह से अंकित के पेंट में तंबू सा बन गया था और बार-बार उसकी नजर अपने तंबू के साथ-साथ अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड पर जा रही थी जो कि इस समय उसके पेंट में बने हुए तंबू से केवल चार अंगुल की ही दूरी पर थी,,,, अपने तंबू को अंकित किसी भी तरह से अपनी मां की गांड से सटा देना चाहता था,,,, लेकिन वह ऐसा सोच ही रहा था कि तभी सुगंधा खुद अपना एक कदम पीछे लेकर एकदम से अपने बेटे के पेंट में बने हुए तंबू को अपनी गांड से सटा दी,,,, अंकित की तो एकदम से हालत खराब हो गई अंकित के पेट में बना तंबू सुगंधा की गांड के बीचों बीच हल्का सा धंसा हुआ थाअंकित को पूरा यकीन था कि उसकी मां को उसकी चुभन का एहसास अच्छी तरह से हो रहा होगा लेकिन हैरान कर देने वाली बात यह थी कि उसकी मां अपने बेटे की हरकत से जरा सा भी हैरान परेशान नहीं हो रही थी,,, जिससे साफ पता चल रहा था कि उसकी मां भी यही चाहती है,,,,इसीलिए तो वह इस हरकत पर बिल्कुल भी ध्यान न देते हुए वह एकदम सहज बनने का नाटक करते हुए बोली।)

ब्लाउज की डोरी को कस के बांधना ऐसा ना हो कि बाजार में खुल जाए और फिर सब देखते ही रह जाए,,,,।


पहली बात तो ऐसा होगा नहीं और अगर होगा तो सच में देखने वाले की हालत खराब हो जाएगी और दूसरों को पता तो चलेगा कि तुम कितनी खूबसूरत हो,,,(अंकित भीअपनी मां की गांड के बीचों बीच अपने लंड को सटाए हुए बोला,,, पेंट में बना तंबु सहित उसका लंड उसकी मां की गांड में घुसने को तैयार था,,,, और अंकित था किअपने लंड को पीछे लेने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं कर रहा था क्योंकि इतने मात्र से ही उसे परम सुख का आनंद प्राप्त हो रहा था,,,, इसका एहसास सुगंधा को भी अच्छी तरह से हो रहा था,,,,उसे इस बात की खुशी थी कि उसके कहने की वजह से जो गाड़ी पटरी से नीचे उतर चुकी थी वह धीरे-धीरे फिर से पटरी पर चढ़ चुकी थी और अपने बेटे की बात सुनकर वह हंसते हुए बोली,,,)

अच्छा तो तेरे कहने का मतलब यह है कि मैं अपनी खूबसूरती सबको दिखाने के लिए अपने कपड़े उतार कर घूमुं,,।

उतारने के लिए कौन कह रहा है यह तो सिर्फ अचानक अगर कपड़ा खुल गया तो उसकी बात कर रहा हूं,,,।

नहीं नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए ठीक तरह से बांधना,,,,,।

ठीक है,,,( इतना कहने के साथ ही वह थोड़ा जोर से गिठान मार कर रेशमी डोरी को खींचा और उसके इस तरह से डोरी को खींचने की वजह से उसकी मां उससे और एकदम से सट गई और अंकित का लंड चौकी भले ही समय पेंट में था फिर भी वह थोड़ा सा और गांड के बीचो-बीच धंस गयाऔर बोला अपने बेटे की इस हरकत पर तो सुगंधा की सांस ही अटक गई,,,, क्योंकि उसे भी मजा आ रहा था,,,,, गिठान मारकर अंकित बोला,,,) इतना ठीक है ना,,,, अगर ज्यादा जोर से बांधुगा तो तुम्हारा दुखने लगेगा,,,,।

(अपने बेटे की यह बात सुनकर सुगंधा मन ही मन में मुस्कुरा रही थी क्योंकि वह जानती थी कि उसका बेटा किस बारे में बात कर रहा है,,,, इसलिए वह अपने बेटे की बात सुनकर बोली,,,)

बस इतना ठीक है वरना सच में दुखने लगेगा,,,,।

इसलिए तो कह रहा हूं,,,,,(इस समय भी अंकित के पेंट में बना तंबू सुगंधा की गांड के बीचों बीच घुसा हुआ थामां बेटे दोनों पानी पानी हो रहे थे सुगंधा की बुर पानी छोड़ रही थी और अंकित का लंड लार टपका रहा था,,, थोड़ी देर उसी तरह से खड़े रहने के बादसुगंधा धीरे से अपने बेटे से अलग हुई क्योंकि अपनी बेटी को देखकर सुगंधा को ऐसे लग रहा था कि वह उससे अलग होना नहीं चाहता,,,, और फिर,,, अपने बेटे से बोली,,,)


जा जाकर जल्दी से तैयार हो जा हमें बाजार जाना है,,,

ठीक है मम्मी इतना कहकर वह अपनी मां के कमरे से बाहर जाने लगा लेकिन ईस बीच उसके पेंट में बना हुआ तंबू एकदम साफ दिखाई दे रहा था जिस पर सुगंधा की नजर थी,,,,अंकित कमरे से बाहर जा चुका था और फिर सुगंधा आईने में अपने आप को देखते हुए मुस्कुरा रही थी और थोड़ी देर में तैयार हो गई थी,,,, अंकित भी तैयार होकर फिर से अपनी मां के कमरे में आ गया था इस बार अपने बेटे को करीब देखकर सुगंधा से अपने आप पर काबू नहीं हो सका और वह तुरंत अपने बेटे कोअपनी बाहों में भरकर उसके होठों पर चुंबन जल्दी अपनी मां की हरकत पर अंकित पूरी तरह से सन्न रह गया था उसे कुछ समझ में नहीं आया,,, सुगंधा अपने बेटे के होंठों पर अपने होंठ रखकर उसे चुंबन कर रही थी,,,,, यह बेहद मादकता भरा था,,, उत्तेजना से भरा हुआ,,,, अपनी मां की हरकत सेअंकित पूरी तरह से मदहोश हुआ जा रहा था उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी मां इस तरह से उसे चुंबन करेगी,,, अंकित भी अपने आप को संभाल नहीं पाया और वह भी जवाबी कार्यवाही में अपनी मां के लाल-लाल होठों को अपने मुंह में भरकर उसका रस चूसना शुरू कर दिया,,,,इस समय अंकित अपनी मां से भी तेज हो गया था वह तुरंत अपने दोनों हाथों को अपनी मां की पीठ पर ले आया और हल्के हल्के से सहलाते हुए देखते ही देखे कब उसके नितंबों पर उसकी हथेली पहुंच गई यह अंकित को भी पता नहीं चलाऔर वह अपनी मां की गांड को दोनों हाथों से पकड़ कर अपनी तरफ खींच कर दबाने लगा जिसकी वजह से उसके पेट में फिर से तंबू बन गया था और इस बार उसका तंबू उसकी मां की बुर पर सीधा ठोकर मार रहा था पेंट और साड़ी में होने के बावजूद भी एक दूसरे के अंग की गर्मी दोनों को अच्छी तरह से महसूस हो रही थी और सुगंधा तो अपने बेटे के तंबु की ठोकर को अपनी कोमल बुर पर महसूस करके पानी पानी हुई जा रही थी।

सुगंधा की भावनाएं भड़क रही थी साथ में उसका बेटा भी पागल होने को तैयार हो चुका था वह अपने मन में सोच रहा था कि काश उसकी मां अपनी साड़ी कमर तक उठा देती तो इसी समय उसकी चुदाई कर दिया होता और यही बात सुगंधा भी अपने मन में सोच रही थी कि बस थोड़ी सी हिम्मत दिखाने की जरूरत है फिर उसका बेटा हमेशा के लिए उसका हो जाएगा लेकिन अपनी मंजिल के इतने करीब पहुंचने के बाद भी मां बेटे में कोई भी इससे आगे अपना कदम नहीं बढ़ा रहा था,,,,लेकिन जो आनंद की अनुभूति इस समय मां बेटे को हो रही थी वह बेहद अद्भुत और अकल्पनीय थी रात को छत पर सोते समय जिस तरह की हरकत अंकित ने किया था उससे भी ज्यादा मादक मदहोशी और नशा का असर इस समय हो रहा था,,,, सुगंधा को अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसके बेटे का लंड कितना कठोर है,,,,सुगंधा अपने बेटे के लंड की कठोरता को अपने कोमल बुर की अंदरूनी दीवारों पर उसे रगड़ता हुआ महसूस करना चाहती थीवह चाहती थी कि उसका बेटा बेरहम होकर अपने मोटे तगड़े लंड को उसकी बुर में एक झटके से डाल दे,,,, ताकि बुर की हालत खराब हो जाए बहुत परेशान कर रही है उसे उसकी बुर इसका एहसास उसे अच्छी तरह से था,,,,,

कुछ देर तक इस प्रगाढ़ चुंबन के चलतेअंकित की हिम्मत थोड़ी बढ़ने लगी थी और वह दोनों हाथों में अपनी मां की साड़ी को पकड़ लिया था और थोड़ी हिम्मत दिखा कर उसे ऊपर उठने की कोशिश कर ही रहा था कि,,,, घड़ी में शाम के 5:00 बजने का अलार्म बजने लगा और उस अलार्म की आवाज के साथ ही सुगंधा एकदम से होश में आ गई क्योंकि वहां एकदम मदहोश हो चुकी थी उसकी आंखों में चार बोतलों का नशा छाने लगा था जवानी का नशा तो अलग से उसे बेकाबू किए हुए था,,, वह एकदम से अपने बेटे से अलग हुई और गहरी गहरी सांस लेने लगी,अंकित की हालत एकदम खराब हो गई थी ऐसा लग रहा था कि उसके हाथ से कोई उसका खूबसूरत खिलौना छीन लिया हो क्योंकि वह मौके की नजाकत को अच्छी तरह से समझ रहा था,,,, अच्छी तरह से जानता था कि इस समय हालात किस तरह के थेउसे पूरा विश्वास था कि अगर वह अपनी मां की साड़ी उठाकर उसकी बुर में अपना लंड डाल देता तो भी उसकी मां बिल्कुल भी इनकार नहीं कर पाती क्योंकि वह अपनी मां की बदन की गर्मी को पहचान किया था उसके अंदर उठ रहे वासना के तूफान को समझ गया था जिसे शांत करना बेहद जरूरी था लेकिन पल भर के लिए सारा मामला एकदम से शांत हो गया था, वह भी गहरी गहरी सांस ले रहा था,,,, और गहरी सांस लेते हुए वह अपनी मां से बोला,,,)

तुम इस तरह से चुंबन क्यों करने लगी,।

उसने तुझे बताई थी ना जब कोई बहुत अच्छा लगता है तो उसे इस तरह से चुंबन किया जाता है जैसा कि तूने मेरा किया आज तो भी मुझे बहुत अच्छा लग रहा था इसलिए चुंबन करने लगी तुझे अच्छा नहीं लगा क्या,,?

मुझे तो बहुत अच्छा लगा लेकिनतुम मुझे बार-बार अच्छी लगती हो हमेशा अच्छी लगती हो तो क्या मैं बार-बार तुम्हें चुंबन कर सकता हूं,,।

बिल्कुल जब जब तुझे मैं अच्छी लगु तब तब तु इसी तरह से चुंबन कर लिया कर मैं तुझे बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी,,,।

सच में मम्मी,,,।

हां रे बिलकुल इसमें कोई बड़ी बात थोड़ी है,,,।

ओहहहह मम्मी तुम कितनी अच्छी हो,,,,

अच्छा चल 5:00 बच गए हैं बाजार जाना है फिर आकर खाना भी बनाना है,,,,,।

चलो ठीक है मैं थैला ले लेता हूं,,,,


(थोड़ी ही देर में मां बेटे दोनों बाजार के लिए निकल गए थेदोनों बहुत खुश नजर आ रहे थे क्योंकि दोनों के बीच काफी कुछ हो चुका था तृप्ति के घर में न होने से दोनों को कितना समय और खुलापन मिल रहा था यह दोनों को और भी ज्यादा संतुष्टि का एहसास दिला रहा था,,,, अगर त्रप्ति घर पर मौजूद होती तो शायद इतनी जल्दी दोनों में खुलापन नहीं आ पाता इसलिए तो दोनों एकदम इत्मिनान से रह रहे थे अभी तृप्ति के गए तीन दिन ही भेज रहे थे इन तीन दिनों में मां बेटे दोनों काफी मंजिल को तय कर चुके थेलेकिन अभी तक मंजिल को प्राप्त नहीं कर पाए थे लेकिन उन दोनों को विश्वास था कि जल्द ही दोनों मंजिल प्राप्त कर लेंगे। दोनों एक दूसरे से बातें करते हुए फुटपाथ पर चलते चले जा रहे थे सूरज अभी डूबा नहीं था कुछ बच्चे फुटपाथ के बगल में क्रिकेट खेल रहे थे,,, सुगंधा बातों में मजबूर थी कि तभी एक रबर की गेंद बड़ी तेजी से आई और उसकी जांघ से टकरा गई,,,, इस वजह से सुगंधा एकदम से भौंचक्की रह गई पल भर के लिए तो उसे समझ में नहीं आया कि क्या हुआ,,,, लेकिन अंकित को समझ में आ गया था कि उसकी मां की जांघ से रबड़ की गेंद टकरा गई थी सुगंधासाफ तौर पर बज चुकी थी भले ही रबड़ की गेंद उसकी जान से टकरा गई थी लेकिन वह एकदम सामान्य था अगर रबड़ की गेम थोड़ी और ऊपर होती तो सीधे उसकी बुर पर वार करती तब उसे चोट लग सकती थी। लेकिन वह एकदम साफ बच चुकी थी।)

तुम्हें चोट तो नहीं लगी मम्मी,,,,(अंकित अभी हैरान होकर यह सवाल पूछी रहा था कि तभी एक छोटा बच्चा आया और रबड़ के गेंद को अपने हाथ में उठा लिया लेकिन सुगंधा से बोला,,)

सॉरी आंटी जानबूझकर नहीं बल्कि गलती से लग गई है,,,।

कोई बात नहीं बेटा,,,,,।

(और इतना कहकर वह लड़का चला गया वैसे तो सुगंधा के साथ-साथ उसके बेटे को भी बहुत गुस्सा आया था लेकिनवह लड़का उम्र में काफी छोटा था इसलिए कुछ बोला नहीं जा सका लेकिन फिर भी अंकित अपनी मां से बोला,,)

लगी तो नहीं है ना,,,।

नहीं लगी तो नहीं है,,,,।

(फिर इसके बाद दोनों बाजार में खरीदी करते रहें लेकिन इस बीच रबड़ के गेंद के लगने की वजह से सुगंधा का दिमाग बड़ी तेजी से दौड़ रहा था,,,, बेटे दोनों सब्जी और जरूरी सामान खरीद कर एक मेडिकल के सामने आकर खड़े हो गए सुगंधा का इस तरह से मेडिकल के पास खड़े होने से अंकित बोला,,)

जहां क्यों खड़ी हो गई मम्मी,,,,


जा जाकर एक मूव ले ले तो,,,,(अपने पर्स में से पैसे निकालते हुए)

मूव ,,,,,,,लेकिन किस लिए,,,,!(आश्चर्य जताते हुए अंकित बोला)

जहां गेंद लगी थी वहां थोड़ा-थोड़ा दर्द कर रहा है मुझे लग रहा है की दवा लगाना पड़ेगा,,,,।

ओहहहह ,,, लेकिन तब तो तुम कुछ नहीं बोली,,,।

उस समय लग ही नहीं रहा था कि दर्द करेगा अब जा जाकर जल्दी से ले ले,,,,(इतना कहते हुए सुगंधा अपने बेटे के हाथ में पैसा थमा दी और पैसे लेकर अंकित मेडिकल पर जाकर मुंह लेने लगा सुगंधा के मन में कुछ और ही चल रहा था वह मन ही मन में खुश हो रही थीथोड़ी देर में अंकित मुव लेकर आ गया और फिर दोनों घर के लिए निकल गए,,,, घर पर पहुंच कर सुगंधा अपने बेटे के सामने जानबूझकर हल्के हल्केलंगड़ा कर चल रही थी यह जताना चाहती थी कि उसे दर्द हो रहा है और अंकित अपनी मां की चाल देखकर थोड़ा परेशान हो रहा था,,,,वह बार-बार अपनी मां से पूछ भी रहा था लेकिन उसकी मां हर बार यही जवाब दे रही थी कि ठीक है कोई ज्यादा दिक्कत नहीं है,,,,,

खाना बनाकर तैयार हो चुका था और मां बेटे दोनों खाना खा चुके थे खाना खाने के बाद सुगंधा उसी तरह से सफाई में लग गई थी,,, अपनी मां की स्थिति को देखते हुए अंकित भी अपनी मां के काम में हाथ बता रहा था काम खत्म होने के बाद सुगंधा अपने कमरे में पहुंच चुकी थी,, और कमरे में अपने बेटे के आने का इंतजार कर रही थी क्योंकि वह अपनी युक्ति को अंजाम में बदलना चाहती थी और उस पल का उसे बेसब्री से इंतजार था,,,, थोड़ी ही देर मेंअंकित भी अपनी मां के कमरे में आ गया और इस तरह से बैठा हुआ देखकर वह बोला,,,)

क्या हुआ मम्मी यहां क्यों बैठी हो चलो छत पर,,,।

थोड़ी देर बाद चलूंगी जा जाकर थैले में से मुव लेकर आजा,,,,,


क्यों क्या हुआ ज्यादा तकलीफ है क्या,,,?

थोड़ा दर्द कर रहा है मालिश कर लूंगी तो आराम हो जाएगा,,,, जा जा कर लेकर आजा,,,।

रखी कहां हो,,,?

रसोई घर में है थैले के अंदर जिसमें सब्जी लेकर आई थी,,,,


ठीक है मैं अभी लेकर आता हूं,,,(इतना कहने के साथ ही अंकित अपनी मां के कमरे में से बाहर निकल गया और मौका देखकर सुगंधा नहीं मन में खुश होते हुए जल्दी से बिस्तर से नीचे उतरी और अपनी पैंटी उतार कर उसे बिस्तर के नीचे रख दी क्योंकि उसे लगने लगा था कि आज की रात निर्णायक रात है,,,, उन दोनों के बीच जो कुछ होना है आज की रात हे जाना चाहिए अगर आज की रात भी दोनों आगे नहीं बढ़ पाए तो समझ लो दोनों सबसे बड़े बेवकूफ है अपने मन में यही सोचते हुए वह अपने बेटे के आने का इंतजार करने लगी,,)
लगता है कुछ होने वाला है ! अगले अपडेट का इंतजार है !
 

liverpool244

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क्या बात है दोस्त तुम खुद कहानी लिख सकते हो
भाई मैने तो बस आपको सुझाव दिया है।आप कहानी बहुत अच्छा लिखते है बस अगर कुछ सुझाव आप दूसरों के अपने कहानी में अपना ले कहानी बहुत अच्छी हो जाएगी।।बाकी आगे आपकी मर्जी भाई
 

rajeev13

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भाई मैने तो बस आपको सुझाव दिया है।आप कहानी बहुत अच्छा लिखते है बस अगर कुछ सुझाव आप दूसरों के अपने कहानी में अपना ले कहानी बहुत अच्छी हो जाएगी।।बाकी आगे आपकी मर्जी भाई
इनका हर बार का ऐसा ही है ! :confused3: ये कहानी बेहतर से बेहतरीन हो सकती है लेकिन rohnny4545 भाई इन्हीं चीजों के इर्द-गिर्द घुमते रहते है बजाय नई चीजों को explore करने के...!
 

liverpool244

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इनका हर बार का ऐसा ही है ! :confused3: ये कहानी बेहतर से बेहतरीन हो सकती है लेकिन rohnny4545 भाई इन्हीं चीजों के इर्द-गिर्द घुमते रहते है बजाय नई चीजों को explore करने के...!
भाई ये कहानी बेस्ट होती प्लॉट भी बहुत अच्छा था पर अब क्या ही बोलूं लोगों को सुझाव भी दो तो बुरा लग जाता हैं
 
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