हालात पूरी तरह से बिगड़ जाते, यह जो सुनहरा मौका यह जो लाभदाई अवसर हाथ में लगा था वह पूरी तरह से हाथ से निकल जाता है इससे पहले सुगंधा हालात को संभाल लेना चाहती थीइसलिए वह बालों को संभालते हुए अपने बेटे को आवाज लग रही थी।
अंकित ओ अंकित कहां गया,,,,,(ऐसा कहते हुए वहां अपनी साड़ी के पल्लू को थोड़ा सा नीचे की तरफ कर ले रही थी ताकि उसके ब्लाउस से उसकी भारी भरकम चूचियों के बीच की पतली गहरी दरार आईने में उसके बेटे को साथ दिखाई दे सके और इस दौरान हो अपनी गांड का भी जायजा ले रही थी,,,,वह नजर पीछे घूम कर अपने पिछवाड़े को देख रही थी और अपनी साड़ी को कमर से थोड़ा सा और ज्यादा कर दे रही थी ताकि नितंबों के बीच की गहरी लकीरका जो भाग होता है वह साड़ी में अच्छी तरह से उपस कर उसके बेटे को नजर आ सके,,,, सुगंधा आज डोरी वाला ब्लाउज पहनी हुई थीऔर इस डोरी वाले ब्लाउज के चलते ही उसके मन में युक्ति सुझ रही थी और अपनी इस युक्ति को अंजाम देना चाहती थी,,,, अपने बेटे की तरफ से किसी भी प्रकार का जवाब न मिलने पर वह फिर से आवाज लगाते हुए बोली,,,।
अंकित,,, जरा इधर तो आना बेटा मेरी मदद कर दे,,,,,,
(अंकित अपने कमरे में ही थाऔर अपनी मां की बात सुनकर उसके चेहरे पर मुस्कान करने लगी क्योंकि अच्छी तरह से जानती थी कि जिस तरह से उसकी मां चरित्रवान होने का ढोंग कर रही थी ऐसा बिल्कुल भी नहीं था उसके बदन की गर्मी को उसके चेहरे के उत्तेजना को वह अच्छी तरह से भांप चुका था और उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि उसकी मां भी दूसरी औरतों की तरह ही है,,, जिस तरह से दूसरी औरतों चुदास से भर जाने के बाद किसी भी तरह का कदम उठाने से नहीं हिचकीचाती वही हरकत एक हाथ से गुजर जाने के बाद उसकी मां भी कर सकती है,,,और यह अंकित को अपनी मां की बहुत सी हरकतों से अंदाजा लग गया था बार-बार उसकी आंखों के सामने किसी भी तरह से किसी भी बहाने से अपने अंगों का प्रदर्शन करना बेझिझक उसके सामने पेशाब करने के लिए बैठ जाना गंदी किताब का उसके द्वारा पढवाना,,, अपने बदन पर साबुन लगवाना यह सब उसकी मां को दूसरी औरतों के चरित्र में ही ढाल रही थी बस वह ऊपर से सिर्फ दिखावा कर रही थी,,,
अपनी मां की पुकार सुनकर अंकित बिस्तर से नीचे उतर गया था और अपने मन में बोल रहा था चलकर देखें तो सही अब कौन सा नाटक शुरू होने वाला है,,,, अपने मन में ऐसा सोच कर वह अपने कमरे सेबाहर निकल गया और अपनी मां के कमरे पर पहुंच गया दरवाजे पर पहुंचते ही अंदर का नजारा देखा तो वह देखता ही रह गया पहले इस समय उसकी मां नग्न अवस्था में नहीं थी और ना ही अर्धनग्न अवस्था में थी वह संपूर्ण कपड़ों में थी लेकिन कपड़ों में भी उसके बदन से जवानी टपक रही थीकपड़ों में भी उसकी मां कयामत लग रही थी इस बात का एहसास उसे अच्छी तरह से हो रहा था इसलिए तो दरवाजे पर पहुंचते ही हुआ अपनी मां को देखा ही रह गया था और आईने में खुद सुगंधा अपने बेटे को देख रही थी और जिस तरह से वह दरवाजे पर खड़े होकर उसे घुर रहा था यह देखकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी और वह मंद मंद मुस्कुरा रही थी। अपने बेटे को दरवाजे पर खड़ा देखकर वह आईने में ही अपने बेटे की तरफ देखते हुए बोली,,,।
क्या हुआ रुक क्यों गया अंदर तो आ,,,।
क्या काम है मम्मी,,,(कमरे में प्रवेश करते हुए अंकित बोला,,,)
अरे देख नहीं रहा है मुझे ब्लाउज की डोरी बंध नहीं रही है,,,, जरा इसे बांध देना तो,,,।
(अपनी मां की बात सुनते ही अंकित अपने मन में बोल दो जमाने का जलवा दिखाना शुरू हो गया और कहती है कि मैं चरित्रवान हूं अगर इसी समय साड़ी उठाकर चोद दुं तो मुझे बिल्कुल भी नहीं रुकेगी खुद ही टांग उठा उठा कर लेगी लेकिन अभी संस्कारी होने का सिर्फ दिखावा कर रही है,,इतना कुछ हो गया है फिर भी अपने मुंह से बोल नहीं पा रही हैइसे अच्छी तो राहुल की मां है जो एक दो मुलाकात में ही मेरे लिए अपनी टांगें खोल दी और अपनी मलाई चटवा दी और अपनी पड़ोस वाली आंटी है जो मौका देखकर मेरे लिए टांग उठा दी और अपना गुलाबी छेद मेरे आगे कर दी,,,,, अपने मन में ऐसी बातें सोचकर वह गहरी सांस लेते हुए अपनी मां के करीब पहुंच गया और आईने में अपनी मां का खूबसूरत खिला हुआ चेहरा देखकर वह बोला,,,)
वाकई में मम्मी तुम बहुत खूबसूरत हो आईने में अपनी सूरत देखो ऐसा लग रहा है कि चांद का टुकड़ा आईने में दिखाई दे रहा है,,,,इस दौरान वह अपनी मां की नंगी चिकनी पीठ को अच्छी तरह से देख रहा था और मजे वाली बात यह थी कि अभी वह सारी नहीं पहनी थी,सिर्फ पेटीकोटा ब्लाउज में खड़ी थी और ब्लाउज भी डोरी वाला होने की वजह से पीछे से पूरी तरह से खुला हुआ था,,, जिससे उसकी नंगी चिकनी पीठ एकदम साफ दिखाई दे रही थी जिसे देखकर अंकित उत्तेजित हो रहा था सुगंधा इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि वह अपने बेटे के सामने किस अवस्था में खड़ी है लेकिन उसे अपने बेटे के सामने इस तरह से खड़े होने में अब किसी भी प्रकार का शर्म महसूस नहीं होता था क्योंकिकई बार तो अपने बेटे के सामने साड़ी उठाकर अपनी नंगी गांड दिखाते हुए पेशाब भी कर चुकी थी और खड़ी भी हो चुकी थी,,,, अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा बोला,,,)
अब चल रहने दे,,,, खामखां मक्खन लगाने को,,,, पैसे की जरूरत है तो बोल दे मैं ऐसे ही दे दूंगी लेकिन इस तरह से झूठ मत बोल,,,।
यह क्या कह रही हो मम्मी मैं तुम्हारी खूबसूरती के बारे में भला झूठ क्यों बोलूंगा और अगर मैं झूठ बोल भी रहा हूं तो तुम्हें तो आईने में सब कुछ साफ दिखाई दे रहा है ना देखो तो सही कितना खूबसूरत चेहरा है तुम्हारा ऐसा लगता है कि जैसे कोई फिल्म की हीरोइन खड़ी है,,,,(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा गदगद हुए जा रही थीऔरतों की सबसे बड़ी कमजोरी यही होती है कि अगर कोई मर्द उसके खूबसूरती की तारीफ करती है तो वह उस मर्द की तरफ आकर्षित होने लगती हैऔर इस समय तो उसका बेटा उसके खूबसूरती की तारीफ कर रही थी जिसकी तरफ वह पहले से ही आकर्षित थी इसलिए वह खुशी के मारे अपने गुलाबी छेद से आंसू बहा रही थी,,, फिर भी वह जानबूझ कर अपने बेटे की बात सुनकर बोली,,,)
चल रहने देदो जवान बच्चों की मां होने के बाद खूबसूरती कहां टिकती है बदन में,,,।
यही बात तो मैं भी सोच कर हैरान हूं कि तुम इस करने की इतनी खूबसूरत और आकर्षक हो की पूछो मत,,,(ठीक अपनी मां के पीछे खड़ा हुआ अपनी मां की नंगी चिकनी पीठ और उभरी हुई नितंबों की तरफ देखकरइस तरह की बातें कर रहा था और आईने में सुगंधा को भी साथ दिखाई दे रहा था कि उसके बेटे की नजर कहां है इसलिए तो उसके बदन में उत्तेजना के साथ-साथ कंपन का भी एहसास हो रहा था,,, गहरी सांस लेते हुए वह अपने बेटे की बात सुनकर बोली,,)
अच्छा चल रहने दे जल्दी से यह डोरी बांध हमें बाजार चलना है थोड़ी खरीदी करना है,,,,।
ओहह मैं तो भूल ही गया,,,(एकदम से वह अपनी मां के खुले हुए ब्लाउज की तरफ हाथ बढ़ाते हुए और उसकी डोरी को दोनों हाथ में पकडते हुए बोला,,, यह सुनकर उसकी मां मुस्कुराते हुए बोली)
अब तो तू भूल ही जाएगा आखिरकार बढ़ा जो हो गया है छोटी-छोटी बातें कहां ध्यान में आने वाली है तेरे,,,,,,,।
नहीं ऐसी बात बिल्कुल भी नहीं है,,,(ब्लाउज की रेशमी डोरी अपने दोनों हाथों में पकड़े हुए वह अपनी मां की नंगी चिकनी पीठ को देख रहा था जो कि एकदम मांसल और भरी हुई थी,,,इस समय उसका मन तो कर रहा था कि अपने प्यार से बातें को अपनी मां की चिकनी पीठ पर रखकर चुंबनों की बौछार कर दे लेकिन ऐसा वह कर नहीं सकता था कमर के नीचे का उभरा हुआ भाग उसकी उत्तेजना को परम शिखर पर ले जा रही थीआईने में बार-बार वह अपनी मां का खूबसूरत चेहरा देख ले रहा था जो कि इस समय पूरी तरह से उत्तेजना से भरा हुआ था,,, तभी उसके ध्यान में आया कि उसकी मां तो ब्रा पहनी नहीं थी,,, उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ और वह अपनी मां से बोला,,,)
मम्मी तुम तो ब्लाउज के अंदर कपड़ा नहीं पहनी हो,,,,
ब्रा ना,,,,
हां वही,,,
तेरा अभी ध्यान गया,,,,,।
(अपनी मां की यह बात सुनकर अंकित थोड़ा गनगना गया उसे समझ में आने लगा था कि उसकी मां किसी और उसका ध्यान दिलाना चाहती थी फिर भी अपनी मां की बात का जवाब देते हुए बोला,,,)
हां सच में मेरा ध्यान अभी गया लेकिन तुम ऐसा क्योंकि ब्लाउज के अंदर ब्रा क्यों नहीं पहनी तुम तो हमेशा पहनती हो,,,,
अच्छा तु सब जानता है मैं क्या पहनती हूं क्या नहीं पहनती हूं,,,।
इसमें जाने वाली कौन सी बात है इतना तो पता चलता ही है कि तुम क्या पहनी हो क्या नहीं पहनी हो,,,।
साड़ी के अंदर भी पता चल जाता है क्या पहनी हुं, क्या नहीं पहनी हुं ,,,,की पहनी भी हुं कि नहीं पहनी हुं,,,,।(आईने में अपने बेटे के चेहरे को देखकर मुस्कुराते हुए सुगंधा बोल रही थी,,, और अपनी मां की है बात सुनकर अंकित के तन बदन में आग लग रही थी,,,उसे इस बात की खुशी थी कि उसकी मां को फिर पहले सती सावित्री संस्कारी होनेका सिर्फ दिखावा कर रही थी इस समय उसके बातों का रुख फिर से मदहोशी में डूबने वाला ही था,,,)
नहीं नहींनीचे साड़ी के अंदर क्या पहनी हुई है तो नहीं पता चलता लेकिन ब्लाउज के अंदर पहनी हो कि नहीं पहनी हो यह जरूर पता चल जाता है।
कैसे,,,?
वह कहना कि पीछे से तुम्हारे ब्रा की पट्टी दिखाई देती है,,,।
ओहहहह,,,,, यह बात है,,,,। तब तो बहुत बुरा दिखता होगा,,,।
क्या बात कर रही हो मम्मी ब्लाउज में से जब ब्रा की पट्टी दिखाई देती है तो क्या खराब लगता है कितना अच्छा लगता है देखने वालों को,,,,(अंकित अपने मन की बात बता रहा था और यह हकीकत भी थाअपनी मां का ही नहीं हुआ किसी भी औरत के ब्लाउज में से झांकती हुई ब्रा की पट्टी देखता था तो उत्तेजित हो जाता था,,, अपने बेटे की यह बात सुनकर सुगंधा मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,, जानबूझकर अपने बेटे की बात पर थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली,,,)
तो तुझे यह सब देखने में मजा आता हैतुझे जरा भी फर्क नहीं पड़ता कि तेरी मां के ब्लाउज से उसकी ब्रा दिखाई दे रही है देखने वाले उसके बारे में क्या-क्या सोचते होंगे तुझे बता तो देना चाहिए,,,,।
लेकिन मुझे तो कभी खराब नहीं लगा मुझे तो अच्छा लगता था,,,,।
ऊंं,,,,, तू है ही ऐसा,,,, कुछ ना कुछ जरूर झांकता रहता है चल जल्दी से ब्लाउज की डोरी बांध दे,,, बाजार जाने के लिए देर हो रही है,,,,,।
ठीक है मम्मी,,,,(और इतना कहकर वह अपनी मां के ब्लाउज की डोरी को बांधने लगालेकिन जिस तरह की दोनों मां बेटे में वार्तालाप हो रही थी उसकी वजह से अंकित के पेंट में तंबू सा बन गया था और बार-बार उसकी नजर अपने तंबू के साथ-साथ अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड पर जा रही थी जो कि इस समय उसके पेंट में बने हुए तंबू से केवल चार अंगुल की ही दूरी पर थी,,,, अपने तंबू को अंकित किसी भी तरह से अपनी मां की गांड से सटा देना चाहता था,,,, लेकिन वह ऐसा सोच ही रहा था कि तभी सुगंधा खुद अपना एक कदम पीछे लेकर एकदम से अपने बेटे के पेंट में बने हुए तंबू को अपनी गांड से सटा दी,,,, अंकित की तो एकदम से हालत खराब हो गई अंकित के पेट में बना तंबू सुगंधा की गांड के बीचों बीच हल्का सा धंसा हुआ थाअंकित को पूरा यकीन था कि उसकी मां को उसकी चुभन का एहसास अच्छी तरह से हो रहा होगा लेकिन हैरान कर देने वाली बात यह थी कि उसकी मां अपने बेटे की हरकत से जरा सा भी हैरान परेशान नहीं हो रही थी,,, जिससे साफ पता चल रहा था कि उसकी मां भी यही चाहती है,,,,इसीलिए तो वह इस हरकत पर बिल्कुल भी ध्यान न देते हुए वह एकदम सहज बनने का नाटक करते हुए बोली।)
ब्लाउज की डोरी को कस के बांधना ऐसा ना हो कि बाजार में खुल जाए और फिर सब देखते ही रह जाए,,,,।
पहली बात तो ऐसा होगा नहीं और अगर होगा तो सच में देखने वाले की हालत खराब हो जाएगी और दूसरों को पता तो चलेगा कि तुम कितनी खूबसूरत हो,,,(अंकित भीअपनी मां की गांड के बीचों बीच अपने लंड को सटाए हुए बोला,,, पेंट में बना तंबु सहित उसका लंड उसकी मां की गांड में घुसने को तैयार था,,,, और अंकित था किअपने लंड को पीछे लेने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं कर रहा था क्योंकि इतने मात्र से ही उसे परम सुख का आनंद प्राप्त हो रहा था,,,, इसका एहसास सुगंधा को भी अच्छी तरह से हो रहा था,,,,उसे इस बात की खुशी थी कि उसके कहने की वजह से जो गाड़ी पटरी से नीचे उतर चुकी थी वह धीरे-धीरे फिर से पटरी पर चढ़ चुकी थी और अपने बेटे की बात सुनकर वह हंसते हुए बोली,,,)
अच्छा तो तेरे कहने का मतलब यह है कि मैं अपनी खूबसूरती सबको दिखाने के लिए अपने कपड़े उतार कर घूमुं,,।
उतारने के लिए कौन कह रहा है यह तो सिर्फ अचानक अगर कपड़ा खुल गया तो उसकी बात कर रहा हूं,,,।
नहीं नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए ठीक तरह से बांधना,,,,,।
ठीक है,,,( इतना कहने के साथ ही वह थोड़ा जोर से गिठान मार कर रेशमी डोरी को खींचा और उसके इस तरह से डोरी को खींचने की वजह से उसकी मां उससे और एकदम से सट गई और अंकित का लंड चौकी भले ही समय पेंट में था फिर भी वह थोड़ा सा और गांड के बीचो-बीच धंस गयाऔर बोला अपने बेटे की इस हरकत पर तो सुगंधा की सांस ही अटक गई,,,, क्योंकि उसे भी मजा आ रहा था,,,,, गिठान मारकर अंकित बोला,,,) इतना ठीक है ना,,,, अगर ज्यादा जोर से बांधुगा तो तुम्हारा दुखने लगेगा,,,,।
(अपने बेटे की यह बात सुनकर सुगंधा मन ही मन में मुस्कुरा रही थी क्योंकि वह जानती थी कि उसका बेटा किस बारे में बात कर रहा है,,,, इसलिए वह अपने बेटे की बात सुनकर बोली,,,)
बस इतना ठीक है वरना सच में दुखने लगेगा,,,,।
इसलिए तो कह रहा हूं,,,,,(इस समय भी अंकित के पेंट में बना तंबू सुगंधा की गांड के बीचों बीच घुसा हुआ थामां बेटे दोनों पानी पानी हो रहे थे सुगंधा की बुर पानी छोड़ रही थी और अंकित का लंड लार टपका रहा था,,, थोड़ी देर उसी तरह से खड़े रहने के बादसुगंधा धीरे से अपने बेटे से अलग हुई क्योंकि अपनी बेटी को देखकर सुगंधा को ऐसे लग रहा था कि वह उससे अलग होना नहीं चाहता,,,, और फिर,,, अपने बेटे से बोली,,,)
जा जाकर जल्दी से तैयार हो जा हमें बाजार जाना है,,,
ठीक है मम्मी इतना कहकर वह अपनी मां के कमरे से बाहर जाने लगा लेकिन ईस बीच उसके पेंट में बना हुआ तंबू एकदम साफ दिखाई दे रहा था जिस पर सुगंधा की नजर थी,,,,अंकित कमरे से बाहर जा चुका था और फिर सुगंधा आईने में अपने आप को देखते हुए मुस्कुरा रही थी और थोड़ी देर में तैयार हो गई थी,,,, अंकित भी तैयार होकर फिर से अपनी मां के कमरे में आ गया था इस बार अपने बेटे को करीब देखकर सुगंधा से अपने आप पर काबू नहीं हो सका और वह तुरंत अपने बेटे कोअपनी बाहों में भरकर उसके होठों पर चुंबन जल्दी अपनी मां की हरकत पर अंकित पूरी तरह से सन्न रह गया था उसे कुछ समझ में नहीं आया,,, सुगंधा अपने बेटे के होंठों पर अपने होंठ रखकर उसे चुंबन कर रही थी,,,,, यह बेहद मादकता भरा था,,, उत्तेजना से भरा हुआ,,,, अपनी मां की हरकत सेअंकित पूरी तरह से मदहोश हुआ जा रहा था उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी मां इस तरह से उसे चुंबन करेगी,,, अंकित भी अपने आप को संभाल नहीं पाया और वह भी जवाबी कार्यवाही में अपनी मां के लाल-लाल होठों को अपने मुंह में भरकर उसका रस चूसना शुरू कर दिया,,,,इस समय अंकित अपनी मां से भी तेज हो गया था वह तुरंत अपने दोनों हाथों को अपनी मां की पीठ पर ले आया और हल्के हल्के से सहलाते हुए देखते ही देखे कब उसके नितंबों पर उसकी हथेली पहुंच गई यह अंकित को भी पता नहीं चलाऔर वह अपनी मां की गांड को दोनों हाथों से पकड़ कर अपनी तरफ खींच कर दबाने लगा जिसकी वजह से उसके पेट में फिर से तंबू बन गया था और इस बार उसका तंबू उसकी मां की बुर पर सीधा ठोकर मार रहा था पेंट और साड़ी में होने के बावजूद भी एक दूसरे के अंग की गर्मी दोनों को अच्छी तरह से महसूस हो रही थी और सुगंधा तो अपने बेटे के तंबु की ठोकर को अपनी कोमल बुर पर महसूस करके पानी पानी हुई जा रही थी।
सुगंधा की भावनाएं भड़क रही थी साथ में उसका बेटा भी पागल होने को तैयार हो चुका था वह अपने मन में सोच रहा था कि काश उसकी मां अपनी साड़ी कमर तक उठा देती तो इसी समय उसकी चुदाई कर दिया होता और यही बात सुगंधा भी अपने मन में सोच रही थी कि बस थोड़ी सी हिम्मत दिखाने की जरूरत है फिर उसका बेटा हमेशा के लिए उसका हो जाएगा लेकिन अपनी मंजिल के इतने करीब पहुंचने के बाद भी मां बेटे में कोई भी इससे आगे अपना कदम नहीं बढ़ा रहा था,,,,लेकिन जो आनंद की अनुभूति इस समय मां बेटे को हो रही थी वह बेहद अद्भुत और अकल्पनीय थी रात को छत पर सोते समय जिस तरह की हरकत अंकित ने किया था उससे भी ज्यादा मादक मदहोशी और नशा का असर इस समय हो रहा था,,,, सुगंधा को अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसके बेटे का लंड कितना कठोर है,,,,सुगंधा अपने बेटे के लंड की कठोरता को अपने कोमल बुर की अंदरूनी दीवारों पर उसे रगड़ता हुआ महसूस करना चाहती थीवह चाहती थी कि उसका बेटा बेरहम होकर अपने मोटे तगड़े लंड को उसकी बुर में एक झटके से डाल दे,,,, ताकि बुर की हालत खराब हो जाए बहुत परेशान कर रही है उसे उसकी बुर इसका एहसास उसे अच्छी तरह से था,,,,,
कुछ देर तक इस प्रगाढ़ चुंबन के चलतेअंकित की हिम्मत थोड़ी बढ़ने लगी थी और वह दोनों हाथों में अपनी मां की साड़ी को पकड़ लिया था और थोड़ी हिम्मत दिखा कर उसे ऊपर उठने की कोशिश कर ही रहा था कि,,,, घड़ी में शाम के 5:00 बजने का अलार्म बजने लगा और उस अलार्म की आवाज के साथ ही सुगंधा एकदम से होश में आ गई क्योंकि वहां एकदम मदहोश हो चुकी थी उसकी आंखों में चार बोतलों का नशा छाने लगा था जवानी का नशा तो अलग से उसे बेकाबू किए हुए था,,, वह एकदम से अपने बेटे से अलग हुई और गहरी गहरी सांस लेने लगी,अंकित की हालत एकदम खराब हो गई थी ऐसा लग रहा था कि उसके हाथ से कोई उसका खूबसूरत खिलौना छीन लिया हो क्योंकि वह मौके की नजाकत को अच्छी तरह से समझ रहा था,,,, अच्छी तरह से जानता था कि इस समय हालात किस तरह के थेउसे पूरा विश्वास था कि अगर वह अपनी मां की साड़ी उठाकर उसकी बुर में अपना लंड डाल देता तो भी उसकी मां बिल्कुल भी इनकार नहीं कर पाती क्योंकि वह अपनी मां की बदन की गर्मी को पहचान किया था उसके अंदर उठ रहे वासना के तूफान को समझ गया था जिसे शांत करना बेहद जरूरी था लेकिन पल भर के लिए सारा मामला एकदम से शांत हो गया था, वह भी गहरी गहरी सांस ले रहा था,,,, और गहरी सांस लेते हुए वह अपनी मां से बोला,,,)
तुम इस तरह से चुंबन क्यों करने लगी,।
उसने तुझे बताई थी ना जब कोई बहुत अच्छा लगता है तो उसे इस तरह से चुंबन किया जाता है जैसा कि तूने मेरा किया आज तो भी मुझे बहुत अच्छा लग रहा था इसलिए चुंबन करने लगी तुझे अच्छा नहीं लगा क्या,,?
मुझे तो बहुत अच्छा लगा लेकिनतुम मुझे बार-बार अच्छी लगती हो हमेशा अच्छी लगती हो तो क्या मैं बार-बार तुम्हें चुंबन कर सकता हूं,,।
बिल्कुल जब जब तुझे मैं अच्छी लगु तब तब तु इसी तरह से चुंबन कर लिया कर मैं तुझे बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी,,,।
सच में मम्मी,,,।
हां रे बिलकुल इसमें कोई बड़ी बात थोड़ी है,,,।
ओहहहह मम्मी तुम कितनी अच्छी हो,,,,
अच्छा चल 5:00 बच गए हैं बाजार जाना है फिर आकर खाना भी बनाना है,,,,,।
चलो ठीक है मैं थैला ले लेता हूं,,,,
(थोड़ी ही देर में मां बेटे दोनों बाजार के लिए निकल गए थेदोनों बहुत खुश नजर आ रहे थे क्योंकि दोनों के बीच काफी कुछ हो चुका था तृप्ति के घर में न होने से दोनों को कितना समय और खुलापन मिल रहा था यह दोनों को और भी ज्यादा संतुष्टि का एहसास दिला रहा था,,,, अगर त्रप्ति घर पर मौजूद होती तो शायद इतनी जल्दी दोनों में खुलापन नहीं आ पाता इसलिए तो दोनों एकदम इत्मिनान से रह रहे थे अभी तृप्ति के गए तीन दिन ही भेज रहे थे इन तीन दिनों में मां बेटे दोनों काफी मंजिल को तय कर चुके थेलेकिन अभी तक मंजिल को प्राप्त नहीं कर पाए थे लेकिन उन दोनों को विश्वास था कि जल्द ही दोनों मंजिल प्राप्त कर लेंगे। दोनों एक दूसरे से बातें करते हुए फुटपाथ पर चलते चले जा रहे थे सूरज अभी डूबा नहीं था कुछ बच्चे फुटपाथ के बगल में क्रिकेट खेल रहे थे,,, सुगंधा बातों में मजबूर थी कि तभी एक रबर की गेंद बड़ी तेजी से आई और उसकी जांघ से टकरा गई,,,, इस वजह से सुगंधा एकदम से भौंचक्की रह गई पल भर के लिए तो उसे समझ में नहीं आया कि क्या हुआ,,,, लेकिन अंकित को समझ में आ गया था कि उसकी मां की जांघ से रबड़ की गेंद टकरा गई थी सुगंधासाफ तौर पर बज चुकी थी भले ही रबड़ की गेंद उसकी जान से टकरा गई थी लेकिन वह एकदम सामान्य था अगर रबड़ की गेम थोड़ी और ऊपर होती तो सीधे उसकी बुर पर वार करती तब उसे चोट लग सकती थी। लेकिन वह एकदम साफ बच चुकी थी।)
तुम्हें चोट तो नहीं लगी मम्मी,,,,(अंकित अभी हैरान होकर यह सवाल पूछी रहा था कि तभी एक छोटा बच्चा आया और रबड़ के गेंद को अपने हाथ में उठा लिया लेकिन सुगंधा से बोला,,)
सॉरी आंटी जानबूझकर नहीं बल्कि गलती से लग गई है,,,।
कोई बात नहीं बेटा,,,,,।
(और इतना कहकर वह लड़का चला गया वैसे तो सुगंधा के साथ-साथ उसके बेटे को भी बहुत गुस्सा आया था लेकिनवह लड़का उम्र में काफी छोटा था इसलिए कुछ बोला नहीं जा सका लेकिन फिर भी अंकित अपनी मां से बोला,,)
लगी तो नहीं है ना,,,।
नहीं लगी तो नहीं है,,,,।
(फिर इसके बाद दोनों बाजार में खरीदी करते रहें लेकिन इस बीच रबड़ के गेंद के लगने की वजह से सुगंधा का दिमाग बड़ी तेजी से दौड़ रहा था,,,, बेटे दोनों सब्जी और जरूरी सामान खरीद कर एक मेडिकल के सामने आकर खड़े हो गए सुगंधा का इस तरह से मेडिकल के पास खड़े होने से अंकित बोला,,)
जहां क्यों खड़ी हो गई मम्मी,,,,
जा जाकर एक मूव ले ले तो,,,,(अपने पर्स में से पैसे निकालते हुए)
मूव ,,,,,,,लेकिन किस लिए,,,,!(आश्चर्य जताते हुए अंकित बोला)
जहां गेंद लगी थी वहां थोड़ा-थोड़ा दर्द कर रहा है मुझे लग रहा है की दवा लगाना पड़ेगा,,,,।
ओहहहह ,,, लेकिन तब तो तुम कुछ नहीं बोली,,,।
उस समय लग ही नहीं रहा था कि दर्द करेगा अब जा जाकर जल्दी से ले ले,,,,(इतना कहते हुए सुगंधा अपने बेटे के हाथ में पैसा थमा दी और पैसे लेकर अंकित मेडिकल पर जाकर मुंह लेने लगा सुगंधा के मन में कुछ और ही चल रहा था वह मन ही मन में खुश हो रही थीथोड़ी देर में अंकित मुव लेकर आ गया और फिर दोनों घर के लिए निकल गए,,,, घर पर पहुंच कर सुगंधा अपने बेटे के सामने जानबूझकर हल्के हल्केलंगड़ा कर चल रही थी यह जताना चाहती थी कि उसे दर्द हो रहा है और अंकित अपनी मां की चाल देखकर थोड़ा परेशान हो रहा था,,,,वह बार-बार अपनी मां से पूछ भी रहा था लेकिन उसकी मां हर बार यही जवाब दे रही थी कि ठीक है कोई ज्यादा दिक्कत नहीं है,,,,,
खाना बनाकर तैयार हो चुका था और मां बेटे दोनों खाना खा चुके थे खाना खाने के बाद सुगंधा उसी तरह से सफाई में लग गई थी,,, अपनी मां की स्थिति को देखते हुए अंकित भी अपनी मां के काम में हाथ बता रहा था काम खत्म होने के बाद सुगंधा अपने कमरे में पहुंच चुकी थी,, और कमरे में अपने बेटे के आने का इंतजार कर रही थी क्योंकि वह अपनी युक्ति को अंजाम में बदलना चाहती थी और उस पल का उसे बेसब्री से इंतजार था,,,, थोड़ी ही देर मेंअंकित भी अपनी मां के कमरे में आ गया और इस तरह से बैठा हुआ देखकर वह बोला,,,)
क्या हुआ मम्मी यहां क्यों बैठी हो चलो छत पर,,,।
थोड़ी देर बाद चलूंगी जा जाकर थैले में से मुव लेकर आजा,,,,,
क्यों क्या हुआ ज्यादा तकलीफ है क्या,,,?
थोड़ा दर्द कर रहा है मालिश कर लूंगी तो आराम हो जाएगा,,,, जा जा कर लेकर आजा,,,।
रखी कहां हो,,,?
रसोई घर में है थैले के अंदर जिसमें सब्जी लेकर आई थी,,,,
ठीक है मैं अभी लेकर आता हूं,,,(इतना कहने के साथ ही अंकित अपनी मां के कमरे में से बाहर निकल गया और मौका देखकर सुगंधा नहीं मन में खुश होते हुए जल्दी से बिस्तर से नीचे उतरी और अपनी पैंटी उतार कर उसे बिस्तर के नीचे रख दी क्योंकि उसे लगने लगा था कि आज की रात निर्णायक रात है,,,, उन दोनों के बीच जो कुछ होना है आज की रात हे जाना चाहिए अगर आज की रात भी दोनों आगे नहीं बढ़ पाए तो समझ लो दोनों सबसे बड़े बेवकूफ है अपने मन में यही सोचते हुए वह अपने बेटे के आने का इंतजार करने लगी,,)