बुच्ची
और सूरजु के सामने बार बार बुच्ची की तस्वीर, सिर्फ आज की नहीं पिछले सालों की भी, लड़कियां सच में जल्दी जवान होती है और गाँव की तो और, साल दो साल पहले राखी में,
यही आयी थी, अपने छोटे छोटे चूजे, बस आना ही शुरू हुए थे, उभार के उन्हें चिढ़ाते हुए पूछ रही थी,
" भैया, मिठाई खानी है, ऐसे नहीं मिलेगी, एक बार मुंह खोल के मांगना पड़ेगा, "
उनकी निगाह उन्ही कच्चे टिकोरों पर चिपकी थी, ललचा तो वो भी रहे थे,
लेकिन उस समय लंगोट की पाबंदी, गुरु जी का हुकुम, अखाड़े का अनुशासन, और ये बात बुच्ची को भी मालूम थी इसलिए और ललचाती थी, और अब तो उससे भी बहुत बड़े हो गए थे, देख के किसी का भी फनफना जाए, और अब तो लंगोट की पाबंदी भी नहीं,
ललचा तो वो अब भी रहे थे लेकिन बस अभी थी थोड़ा बहुत, कुछ लाज, कुछ सीधे होने की इमेज, लेकिन अब और नहीं,
कैसे सबेरे सबेरे जब इमरतिया भौजी ने बुच्ची की फ्राक उठा दी, उस की गुलबिया, कैसे रसीली पनियाई, मीठी मीठी लग रही थी, ताज़ी जलेबी फेल,
लेकिन बुच्ची ने ढंकने की छिपाने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि टुकुर टुकुर उन्हें देख रही थी, मुस्करा रही थी, वही लजा के आँख नीचे कर लिए, और आज रात में जब खाना ले के आयी, तो वो और इमरतिया भौजी, सोच के सूरजु का फनफना रहा था,
" हे छिनार, अरे हमरे देवर की गोद में बैठ के अपने हाथ से खिलाओ, ऐसे ननद नहीं हो "
इमरतिया ने न सिर्फ बोला बल्कि धक्का देके उसे सुरजू की गोद में, और भौजी वो भी इमरतिया जैसी हो, साथ ही साथ उसने सुरजू की गोद से वो तौलिया खींच दिया और ननद की स्कर्ट उठा दी,
तबतक घिस्सा मार के, बुच्ची अपने भैया की गोद में बैठ चुकी थी और इमरतिया की बात का जवाब सीधे सुरजू को देते मुस्करा के आँख नचा के बोली,
" हे भैया, अपने हाथ से खिलाऊंगी, और तोहें अब आपन हाथ इस्तेमाल ये बहिनिया के रहते इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है "
" और क्या बहिनिया तोर ठीक कह रही है लेकिन कल की लौंडिया, गिर पड़ेगी, कस के अपने हाथ से पकड़ लो इसे " इमरतिया ने मुस्करा के सुरजू को ललकारा, बुच्ची के आने के पहले ही दस बार वो समझा चुकी थी, अब लजाना छोड़े, बुच्ची के साथ खुल के मजा ले, वो कच्ची उम्र की लौंडिया खुल के बोलती है, मजे लेती है सुरजू पीछे रहा जाता है।
सुरजू ने हाथ कमर पे लगाया लेकिन इमरतिया ने पकड़ के सीधे गोल गोल चूँचियों पे ," एकदम बुरबक हो का, अरे बिधना इतना बड़ा बड़ा गोल गोल लड़की की देह में बनाये हैं पकड़ने के लिए और तू " और ये करने के पहले बुच्ची का टॉप भी उठा दिया,
अब सुरजू के दोनों हाथ बुच्ची के बस जस्ट आ रहे उभारो पे, एकदम रुई के फाहे जैसे, उसे लग रहा था किसी ने दोनों हाथो में हवा मिहाई आ गयी हो, वो बस हिम्मत कर के छू रहा था और नीचे अब बुच्ची के खुले छोटे छोटे चूतड़ों से रगड़ के उसका खूंटा एकदम करवट ले रहा था और ऊपर से बुच्ची और डबल मीनिंग डायलॉग बोल के
" भैया पूरा खोल न मुंह, अरे जैसा हमार भौजी लोग बड़ा बड़ा खोलती हैं, क्यों भौजी " इमरतिया को चिढ़ाती बुच्ची बोली
और जिस तरह से बुच्ची सूरजु की गोद में बैठी थी सूरजु का खुला खूंटा एकदम बुच्ची की बिल पे सटा चिपका, और उस बदमाश ें खुद अपने हाथ से सीधे भैया के मस्ताए लंड को पकड़ लिया और अपनी बिल के ऊपर सुपाड़ा पागल हो रहा था, उस दर्जा नौ वाली टीनेजर की कच्ची कसी फांको पे रगड़ रहा था, धक्के मार रहा था।
सूरजु यही सोच रहे थे, थोड़ा सा हिम्मत किये होते, खूंटे पे भौजी इतना तेल लगाए थीं, जरा सा धक्का मारे होते कम से कम सुपाड़ा फंस जाता, उस कच्ची चूत का कुछ तो रस मिल जाता, और वो एकदम मना नहीं करती, वही चूक गए,
लेकिन कल अगर अकेले आयी या इमरतिया भौजी भी साथ में रही तो बीना पेले छोड़ेगा नहीं
अब एक बार लंड ने बुर का मजा ले लिया, शेर आदमखोर हो गया और चुनिया और बुच्ची की मस्ती देख के सूरजु की और हालत खराब थी
बुच्ची की खुली बुर, पे चुनिया मजे से अपनी हथेली रगड़ रही थी, फिर कउनो भरौटी वाली भौजी उसको ललकारी तो अपनी बुरिया बुच्ची के बुर पे रगड़ते, कुछ बुच्ची के कान में बोली तो बुच्ची जोर से हंस के जवाब दी,
" हमरे भैया तोहरी गांड क भाड़ बना देंगे, और बिना मारे छोड़ेंगे नहीं, "
चुनिया ने कुछ हंस के बुच्ची को चिढ़ाया तो बुच्ची बोली,
" हमार भैया हैं, चाहे अगवाड़ा लें, चाहे पिछवाड़ा लें, तोहार झांट काहे सुलगत बा, अरे इतना मन कर रहा है तो चल यार बचपन की सहेली हो. तोहें भी दिलवा दूंगी,... भैया संग मजा "
और रामपुर वाली भौजी भी कितनी मस्त लग रही थीं,
बुच्ची के पीछे वो भी पड़ी थीं, लेकिन सूरजु तो रामपुर वाली क पिछवाड़ा देख रहे थे और याद कर रहे थे की मुन्ना बहू एक दिन उन्हें चिढ़ा रही थी, 'देवर जिस औरत क पिछवाड़ा जितना चौड़ा, समझो उतनी बड़ी लंड खोर और झट से चुदवाने के लिए तैयार हो जायेगी, '
और रामपुर वाली तो मजाक में सबसे आगे
और छोटी मामी भी जिस तरह माई के साथ मजे ले रही थीं, और वो न जाने कब से सूरजु के पीछे पड़ी थीं, मजाक में तो रामपुर वाली का भी नंबर डका देती थीं, बिना गाली के बात नहीं करती थीं, चाहे जो हो, आते ही सूरजु से पूछा, " अभी तक किसी को पेले हो की नहीं, अरे अब तो लंगोट क कसम ख़तम हो गयी, अखाड़े से निकल आये हो "
फिर पहले लोवर के ऊपर से सहलाया, फिर जब तक सूरजु सम्हले, उनका हाथ रोके, छोटी मामी ने लोवर में हाथ डाल के दबोच लिया और सांप को मुठियाते छेड़ी, " वाकई बड़ा हो गया है, अब इसको जल्दी से बिल में घुसेड़ दे, '
और फिर हलके से उनके कान में फुसफुसा के बोलीं,
" तेरी बरात जाने के पहले, मेरी बिल तो इसे निचोड़ ही लेगी, "
और जब भी उन्हें देखतीं तो आँचल तो सरक ही जाता, अंगूठे और ऊँगली से चुदाई का निशान बना के चिढ़ातीं,
" बोल, अभी हुआ की नहीं, अरे जल्दी से खाता खोल, वरना मैं ही नंबर लगा दूंगी, कब तक ऐसे लटकाये घूमोगे, पेलने, ठेलने की चीज है, धकेल दो, मौका देख के नहीं तो मैं खुद चढ़ के"
और आज तो छोटी मामी ने हद कर दी, माई को जब भी गरियाती, उसी का नाम ले के, " अरे चोदवाय लो, अइसन मोट बहुत दिन से नहीं घोंटी होंगी, और हम तो छोड़ेंगे नहीं, बिना चढ़े "
सूरजु का बड़े जोर से सोच सोच के फनफना रहा था, एकदम खड़ा टनटनाया, इमरतिया भौजी ने सही कहा था,
"कउनो औरत, लौंडिया को देखों तो बस ये सोच, स्साले, की केतना मस्त माल है, पेलने में चूँची दबाने में केतना मजा आएगा, न उमर न रिश्ता,.... खाली चूत"
और ऊपर से बुच्चिया जिस तरह से खुल के अपनी चूत उसके खूंटे पे रगड़ी थी, खाना खिलाते समय, अब जब भी मौक़ा मिलेगा, बिना पेले छोड़ेंगे नहीं स्साली को।
सूरजु का मन कर रहा था अपने खूंटे को छू लें, पकड़ ले, लेकिन इमरतिया भौजी ने मना किया था,
" खबरदार, जो छुआ, अरे घर में बहन भौजाई है, तोहार महतारी, मामी, बुआ चाची है, "
लेकिन तभी कुछ आहट हुयी और उन्होंने चादर तान ली,
दरवाजा जरा सा खुला, फिर बंद हो गया।
मंजू भाभी थीं,
जब तक गाना बजाना चला, मरद तो आस पास नहीं फटक सकते थे, गाने की भनक भी नहीं, तो सीढ़ी का दरवाजा भी बंद था और उसमे ताला लगा था, चाभी मुन्ना बहु के पास, लेकिन दूल्हे को तो उसी कमरे में रहना था तो मंजू भाभी और मुन्ना बहु ने मिल के उसे भी बाहर से न सिर्फ बंद कर दिया, बल्कि दूल्हे के कमरे में बाहर से छह इंच का मोटा लाहौरी ताला लगा दिया, और चाभी मंजू भाभी ने अपने आँचल में बांध ली।
तो बस मंजू भाभी वही ताला खोल रही थीं, और उनसे नहीं रहा गया तो दरवाजा खोल के झाँक लिया, देवर सो रहा है या जाग रहा है
गाढ़ी नींद में चादर ताने सूरजु सो रहे थे, लेकिन, मंजू भाभी मुस्करायी, ' वो ' जाग रहा था, बित्ते भर से भी ज्यादा चादर तनी थी, एकदम खड़ी
मन तो उनका किया, कमरे में घुस के, चादर हटा के कम से कम मुंह में ले के एक बार चुभला लें, चूस ले, इमरतिया सही कहती थी,छिनार ने पक्का घोंटा होगा, बित्ते से भी बड़ा है और ज्यादा बड़ा है,
लेकिन छत पर अभी भी दूल्हे की माई थी, भरौटी वाकई कुछ औरतों से गले मिल रही थीं, मजाक कर रही थीं और समझा रही थी, '
अरे लड़कियों को तो जरूर, अरे बियाह शादी में तो कुल गुन ढंग देखती सीखती हैं, और कल हल्दी है, तो हल्दी में भी पक्का "
मुन्ना बहू, बुच्ची को ले कर कोहबर में अभी गयी थी और रामपुर वाली शीला के साथ, इमरतिया तो दूल्हे के माई के ही साथ थी
मंजू भाभी भी कोहबर में चली गयी और पीछे पीछे इमरतिया भी और कोहबर का दरवाजा भी रात भर के लिए बंद हो गया।
सूरजु क माई, अब छत पर अकेले बची थीं, कोहबर का दरवाजा भी अंदर से बंद हो गया था, और किसी तरह साड़ी लपेटे झपटे, और मुस्करा रही थीं,
' ये रामपुर वाली भी, असल छिनार है, लेकिन है मजेदार, पेटकोट का नाड़ा उनका ऐसा तोडा की पेटीकोट पहन भी नहीं सकती थीं वो, ब्लाउज तो खैर, कांति बूआ और छोटी मामी ने दो हिस्से में बराबर बराबर उनका बाँट लिया था, तो बस साड़ी लपेटे, और नीचे वो दोनों, इन्तजार भी कर रही होंगी, शादी बियाह का घर तो जमीन पे बिस्तर, और बड़ी बड़ी रजाई, एक कमरे में लड़कियां सब, और एक कमरे में औरतें, और एक एक रजाई में घुसूर मुसुर के तीन तीन चार चार, और उनकी रजाई में तो पहले ही कांती बूआ और छोटी मामी ने हक जमा लिया था, एक ओर भौजाई, एक ओर ननद और रात भर, बदमाशी दोनों की,
सूरजु क कोठरिया का दरवाजा, थोड़ा सा खुला था, और सूरजु की माई ने हलके से झाँका, " देखूं ओढ़े हैं ठीक से की नहीं "
और जो देखा उन्होंने तो मुंह खुला का खुला रह गया, और सीना गज भर का, बल्कि ३६ नंबर वाला ४० नंबर का हो गया, किस महतारी का नहीं हो जाता देख कर,
गरम चादर, थोड़ी सरक गयी थी और जबरदंग मूसलचंद एकदम बाहर,
और सोते में ये हाल था, तो जगने पे तो, इमरतिया सही कहती थी, बित्ते से भी बहुत बड़ा, और सुपाड़ा एकदम खुला, लाल टमाटर, खूब मोटा,
उनकी भौजाइयां और ननदें तो ठीक, बहुये भी और सबसे आगे रामपुर वाली,
" मटकोर में बड़की बगिया में दूल्हे के खूंटे पे दूल्हे की माई को चढ़ाया जाएगा,"
कुछ सोच के वो मुस्करायी,
सूरजु क बाबू, उनका भी तो, जबरदस्त था, आठ दस गाँव में, नाम था, सूरजु अस सोझ नहीं थे, कउनो कुँवार लड़की, औरत, और जो एक बार उनके नीचे आ जाती थी, तीन दिन टांग फैला के चलती थी और चौथे दिन खुद आ जाती थी, लेकिन उन्हें फरक नहीं पड़ता था, बंधे तो थे उन्ही के आँचल से, शाम को तो घर आते ही थे और फिर उनका नंबर लगता था, कुचल के रख देते थे
लेकिन उनके लड़के के आगे कुछ नहीं था, अगर उनका बित्ते भर का रहा होगा तो सूरजु का तो सोते में भी डेढ़ बित्ते का खड़ा है
लेकिन सूरजु क माई सोच में पड़ गयी, नयकी का कौन हाल होगा, उनको तो उनकी माई, सूरजु की नानी खूब समझा के भेजी थीं, अपने से जाँघे फैला लेना, देह ढील रखना, पलंग कस के पकड़ लेना, ज्यादा चीखना मत, बाहर ननदें कान पारे बैठी रहती हैं, और तेल वेळ लगा के,
लेकिन नयकी क माई, उनकी समधन तो गजब, बेटी बिहाने जा रही हैं लेकिन बस एक रट, " हमार बेटी पढ़ी लिखी है, सबकी तरह नहीं, पढ़ाई में मन लगता है उसका" अरे कौन समझाये उनको पढ़ाई के लिए नहीं चुदाई के लिए आ रही है, और रोज चोदी जायेगी, दोनों जून बिना नागा
लेकिन उनके दिमाग में रामपुर वाली का ख्याल आया, देवर देवरानी का ख्याल भौजी नहीं करेंगी तो कौन करेगा, वो और मुन्ना बहू मिल के,… नहीं तो मंजू भी
नयकी की बुरिया में कम से कम पाव भर ( २५० ग्राम ) कडुआ तेल, एक बार में नहीं तो दो तीन बार में, ….नखड़ा पेलेगी तो थोड़ा समझाय बुझाय के थोड़ी जबरदस्ती, ,,,कुछ तो चिकनाई रहेगी. और उनके साथ भी तो यही हुआ था, सगी जेठानी तो कोई थी नहीं, यही अहिराने और भरौटी की, यही मुन्ना बहू क सास, केतना सरसों क तेल,
और एक बार फिर उन्होंने अपने मुन्ना के मुन्ना को देखा और सोचा और इमरतिया तो परछाई की तरह साथ रहेगी तो वो तो बिना कहे अपना पेसल तेल दो चार बार लगा के चमका के, देवर को भेजेगी, लेकिन नयकी क बिलिया भी खूब चपाचप होनी चाहिए, सूरजु के बाबू तो बियाहे के पहले ही एकदम खिलाड़ी थे, लेकिन उनका बेटवा तो एकदम सोझ, लजाधुर, खाली अखाड़ा के दांव पेंच वाला, और दंगल जीत के आये तो कुल इनाम माई के गोड़े में, दस पांच गाँव नहीं चार पांच जिले में नाम है उनके बेटवा का, लेकिन अब तो, खैर इमरतिया तो थोड़ बहुत सिखाय पढ़े देगी , असल में खूब खायी, चुदी चुदाई औरतें ही मरदो को दांव पेंच अच्छे से सीखा पाती हैं, वो भी एक दो नहीं चार पांच, लेकिन कुँवारी भी, एकदम कच्ची कोरी भी, अरे एक बार सील तोड़े रहेगा, खून खच्चर देखे रहेगा तो घबड़ायेगा नहीं, तो नई दुल्हिन खूब नखड़ा करती है, भौजाई कुल सिखाई के भेजी रहती हैं, और ये तो ऐसे ही दस बार बोलेगी की मैं तो पढ़ाई वाली हूँ, और फिर एक से नहीं, बुच्चिया तो ठीक लेकिन कम से कम दो तीन और कच्ची कोरी, भरौटी में है एक दो, बुच्ची से भी कच्ची, कम उमर वाली लेकिन देह में करेर, मुन्ना बहू को बोलती हूँ, वो ये सब काम में तेज है, कल हल्दी में ले आएगी,
और उन्होंने मुन्ना बहू को आवाज लगाई, " हे मुन्ना बहू, नंदों क मजा बाद में लेना, मैं नीचे जा रही हूँ, सीढ़ी का दरवाजा बंद कर लो "
और वो सीढ़ी से उतर कर अपनी ननद ( कांती बूआ ) और भौजाई ( छोटी मामी ) का मजा लेने चल दी।
बुच्चिया तो ठीक लेकिन कम से कम दो तीन और कच्ची कोरी, भरौटी में है एक दो, बुच्ची से भी कच्ची, कम उमर वाली लेकिन देह में करेर, मुन्ना बहू को बोलती हूँ, वो ये सब काम में तेज है, कल हल्दी में ले आएगी,
Pathan tola se bhi koi kacchi kali bulwaiye ..
Koi dudhwali ka bhi intejam karwaiye.
Dudh ka maza milega tab hi nayeki bahuriya jaldi biyayegi ..nahi to buchi ka sab kara dhara reh jaiga.