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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

ak143

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#167.

समुद्री हमला:
(17.01.02, गुरुवार, 08:00, वॉशिंगटन डी.सी., अमेरिका)

धरा और मयूर को गये हुए आज 4 दिन बीत गये थे।

वीनस पिछले 4 दिन से वेगा के घर पर ही रह रही थी, उसे अब अपने भाई लुफासा का भी डर नहीं था, वह अब खुलकर अपनी जिंदगी जीना चाहती थी, भले ही बाद में अंजाम कुछ भी हो।

इस समय सुबह के 8 बज रहे थे। वेगा और वीनस दोनों ही बेडरुम में सो रहे थे कि तभी ‘खट्-खट्’
की हल्की आवाज ने वीनस की नींद खोल दी।

वीनस ने अपने बगल में सो रहे वेगा को देखा और फिर उसके माथे को चूम लिया।

तभी वीनस को फिर वही खट्-खट् की आवाज सुनाई दी। अब वीनस ने अपनी नजरें आवाज की दिशा में घुमाई। वह आवाज बेडरुम की खिड़की से आ रही थी।

वीनस अपने बेड से उठी और पर्दे को हटा कर बंद पड़ी खिड़की की ओर देखने लगी।

तभी उसे खिड़की से बाहर एक नन्हीं चिड़िया, खिड़की के शीशे पर अपनी चोंच मारती हुई दिखाई दी। वह खट्-खट् की आवाज उसी वजह से हो रही थी।

वीनस को वह रंग-बिरंगी नन्हीं चिड़िया बहुत अच्छी लगी, इसलिये उसने खिड़की के शीशे को खोल दिया।

जैसे ही वीनस ने खिड़की का शीशा हटाया, वह चिड़िया कमरे में आ गई और चीं-चीं कर पूरे कमरे में चक्कर लगाने लगी।

यह देख वीनस मुस्कुरा कर चिड़िया की ओर चल दी- “अरे नन्हीं चिड़िया ये तुम्हारा घर नहीं है। यहां कहां से आ गई?”

पर वह चिड़िया अभी भी खुली खिड़की से बाहर जाने का नाम नहीं ले रही थी।

अब वीनस को वह चिड़िया थोड़ी परेशान दिखाई दी।

उसे परेशान देख वीनस ने उस चिड़िया की आवाज में ही उससे पूछा- “क्या हुआ नन्हीं चिड़िया? तुम कुछ परेशान दिख रही हो?”

अब चिड़िया हैरानी से वीनस की ओर देखने लगी, शायद उसने कभी किसी इंसान को अपनी आवाज में बोलते नहीं देखा था।

पर वह वीनस से कुछ कहने की जगह डरकर एक पर्दे के पीछे छिप गई।

अब वीनस को शक होने लगा कि कहीं यह लुफासा तो नहीं? जो कि चिड़िया का रुप धरकर यहां आ गया हो।

इसलिये वीनस धीरे-धीरे पर्दे के पीछे बैठी, उस चिड़िया की ओर बढ़ने लगी।

चिड़िया को बाहर निकालने के चक्कर में, वीनस ने खिड़की को अभी बंद नहीं किया था। तभी खिड़की से अनगिनत चिड़िया और कौए कमरे में घुसने लगे।

यह देख वीनस घबरा गई, वह उस चिड़िया को छोड़ जल्दी से खिड़की के बंद करने के पीछे भागी।

कमरे में चारो ओर चिड़ियों और कौओं का शोर गूंजने लगा। इस शोर को सुनकर वेगा भी घबरा कर उठ गया। उठते ही वेगा की नजर कमरे में घूम रहे, दर्जनों पक्षियों पर पड़ी।

उन पक्षियों को देखकर वह चिल्लाने लगा- “मैंने पहले ही कहा था कि लुफासा खाली नहीं बैठेगा, लो वह आ गया अपने सब दोस्तों को लेकर, मुझसे बदला लेने।”

तभी वेगा की नजर वीनस पर पड़ी, जो कि लगातार खिड़की खोले बाहर की ओर देख रही थी।

वेगा को वीनस का इस प्रकार खिड़की पर खड़े होना, थोड़ा आश्चर्यजनक सा लगा, इसलिये वह तुरंत बिस्तर से कूदकर वीनस के पास आ गया।

वेगा की नजर उस ओर गई, जिधर वीनस देख रही थी, इसी के साथ वेगा आश्चर्य से भर गया।

पूरे वॉशिंगटन डी.सी. की सड़कें, मरे हुए पक्षियों से भरी हुई थी।

कुछ पक्षी तड़प रहे थे, तो कुछ मर चुके थे। पर अभी भी आसमान से पक्षियों का गिरना रुका नहीं था।

“ये सब क्या हो रहा है? ये पक्षी कैसे मर रहें हैं?” वेगा ने वीनस से सवाल कर दिया। कुछ देर के लिये वेगा अपने कमरे में घूम रहे पक्षियों को भूल गया।

“मुझे भी नहीं पता, पर जो कुछ भी हो रहा है, वह ठीक नहीं लग रहा।” वीनस ने कहा- “पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कि जैसे कुछ बहुत बुरा होने वाला है?”

अब आसमान से पक्षियों का गिरना बंद हो गया था, जिसका साफ मतलब था कि या तो आसमान में पक्षी ही खत्म हो गये थे या फिर वह अंजानी मुसीबत चली गई थी।

अब वीनस का ध्यान कमरे के अंदर के पक्षियों पर गया। कमरे के अंदर के सारे पक्षी अब उड़ना छोड़, इधर-उधर कमरे में ही छिप गये थे।

यह देख वीनस की नजर एक कबूतर पर गई, जो कि एक टेबल के पीछे छिपा था। वह दूसरों से उम्र में कुछ बड़ा दिख रहा था और थोड़ा सा बेहतर भी महसूस हो रहा था।

वीनस ने कबूतर को देखते हुए उसकी जुबान में कहा- “मुझसे डरो नहीं, मैं तुम्हारी दोस्त हूं, मुझे बताओ कि बाहर क्या हुआ था?”

वीनस को अपनी भाषा में बोलता देख कबूतर टेबल की ओट से बाहर आ गया।

“तुम हमारी भाषा कैसे बोल लेती हो?” कबूतर ने पूछा।

“क्यों कि मैं तुम्हारी दोस्त हूं, इसलिये तुम्हारी भाषा समझ सकती हूं। तुम मुझे बताओ कि बाहर क्या हुआ था?”

“मैं बाहर आसमान में अपनी रोटी लेकर उड़ रहा था कि तभी एक दूसरे कबूतर ने मेरी रोटी छीनने की कोशिश की, मैं अपनी रोटी बचा कर भागा कि तभी पता नहीं मेरे पीछे वाले कबूतर ने कौन सा जादू किया, कि आसमान में मेरे साथ उड़ रहे सभी पक्षियों का दम घुटने लगा और हम नीचे गिरने लगे। वह कोई बहुत बड़ा जादूगर कबूतर था।” उस समझदार कबूतर ने अपनी समझदारी का परिचय देते हुए कहा।

कोई और समय होता, तो वीनस को उस कबूतर की समझदारी पर बहुत तेज हंसी आती, पर यह समय कुछ और था, इसलिये वीनस उस कबूतर को छोड़ दूसरे पक्षियों की ओर देखने लगी।

तभी एक छोटा सा कौआ कमरे की ओट से निकलकर बाहर आ गया और वीनस को देखते हुए बोला- “यह कबूतर तो मूर्ख है, मैं आपको बताता हूं कि क्या हुआ?” मैं उस समय एक ऊंची सी छत पर बैठा था कि तभी एक विचित्र सा जीव आसमान में उड़ता हुआ आया। उसके हाथ में कोई यंत्र था, उसने आसमान में चारो ओर उस यंत्र से कुछ फैला दिया। उसने जो भी चीज आसमान में फैलाई थी, वह दिखाई नहीं दे रही थी, पर उस अदृश्य चीज ने सबको मारा है, मैं भी अगर इस कमरे में नहीं आता, तो मै भी मारा जाता।”

“उसके बाद वह जीव किधर गया?” वीनस ने कौए से पूछा।

“मैंने उसे आखिर में समुद्र की ओर जाते हुए देखा था।” कौए ने कहा।

“बहुत अच्छे, तुम इन सबसे ज्यादा समझदार हो।” वीनस ने उस कौए की तारीफ करते हुए कहा।
कौआ अपनी तारीफ सुनकर खुश हो गया।

“क्या कहा इन पक्षियों ने? क्या इनमें से किसी को पता है कि यह परेशानी कैसे उत्पन्न हुई?” वेगा ने वीनस से पूछा।

वीनस ने कौए की सारी बातें वेगा को बता दीं। पर इससे पहले कि वेगा कुछ और पूछ पाता कि तभी बाहर से शोर की आवाज सुनाई दी।

शोर सुनकर वेगा और वीनस दोनों ही भाग कर खिड़की के पास पहुंच गये।

वह लोग जो कुछ देर पहले अपने घरों से निकलकर पक्षियों की फोटो खींच रहे थे, अब वह चीखकर भाग रहे थे।

कुछ ही देर में वेगा और वीनस को उनके चीखने का कारण पता चल गया, उन लोगों के पीछे समुद्र के कुछ विचित्र जीव दौड़ रहे थे।

“अरे, यह जीव कैसे हैं?” वीनस ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा- “वेगा जरा इन्हें ध्यान से देखो, इनमें से कुछ शार्क जैसे लग रहे हैं और कुछ दूसरी बड़ी और छोटी मछलियों के जैसे। पर यह समुद्री जीव विकृत
होकर पानी से बाहर कैसे आ गये? और ये पानी के बाहर साँस कैसे ले रहे हैं? कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है ...पर हमें सभी लोगों को इन जीवों से बचाना होगा।”

“पर कैसे वीनस, हममें से अगर किसी ने भी बाहर जाकर, अपनी शक्तियों से सब लोगों को बचाने की कोशिश की, तो सभी हमें पहचान लेंगे और फिर बाद में हमें सबके सवालों के जवाब देने पड़ेंगे, जो कि हम नहीं दे सकते।” वेगा ने अपनी लाचारी प्रकट करते हुए कहा।

“हम इतनी शक्तियां होते हुए भी ऐसे घर में बैठे नहीं रह सकते वेगा।” यह कहकर वीनस ने अलमारी से कैंची निकाली और एक पर्दे को काट जल्दी से उसमें आँखों के देखने भर की जगह काट कर निकाल दी
और ऐसा करके 2 मास्क तैयार कर दिये।

वीनस ने एक मास्क अपने चेहरे पर कसकर बांधा और दूसरा मास्क वेगा के चेहरे पर। अब उन दोनों के चेहरे छिप गये थे, बस आँख की जगह 2 छेद दिखाई दे रहे थे।

यह करके दोनों अपने घर से निकलकर बाहर की ओर आ गये।

इस समय चारो ओर शोर-शराबा होने की वजह से किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया। वेगा ने बाहर निकलते समय अपनी जोडियाक वॉच पहनना नहीं भूला था।

बाहर निकलते ही वीनस को एक बड़ी सी मछली, एक 1xxx2 वर्षीय ब..च्चे के पीछे भागती दिखाई दी।
वीनस ने उछलते हुए अपने पास रखा एक ड्रम उस मछली की ओर फेंक दिया।

मछली का सारा ध्यान इस समय ब..च्चे की ओर था। इसलिये वह ड्रम का वार झेल नहीं पायी और लड़खड़ा गयी।

इतनी देर में वीनस ने उस बच्चे को पकड़ अपनी ओर खींच लिया।

उधर वेगा ने अपनी जोडियाक वॉच पर सिंह राशि को सेट कर दिया। ऐसा करते ही वेगा के सामने, एक विचित्र जीव प्रकट हो गया, जिसका सिर शेर का और शरीर किसी ताकतवर इंसान की तरह था।

उस सिंहमानव ने एक सुनहरी धातु का कवच अपने सीने पर पहन रखा था। अचानक उसके हाथ के नाखून बहुत लंबे और स्टील की तरह पैने दिखने लगे।

अब उस सिंहमानव ने अपने हाथों से सामने से आ रही मछलियों को चीरना-फाड़ना शुरु कर दिया।
एक नजर में वह नर…सिंह का अवतार दिखाई दे रहा था।

“अरे वाह, अब तो मुझे कुछ करने की जरुरत ही नहीं है, यह सिंहमानव ही अकेले सबको निपटा देगा।” वेगा खुश होते हुए एक स्थान पर बैठ गया।

तभी उसकी नजर वीनस पर पड़ी, जो कि जमीन से कुछ ना कुछ उठा कर, उन जीवों पर फेंक रही थी और उनसे बचने की कोशिश भी कर रही थी।

यह देख वेगा सटपटा गया और उठकर वीनस की ओर भागा।

“तुम इधर क्यों आ गये? उधर जाकर बैठकर आराम करो, मैं अकेले ही इनसे निपट लूंगी।” वीनस की बात सुन वेगा समझ गया कि वीनस ने उसे बैठे देख लिया था।

“वो ये तुम्हारा बनाया मास्क मेरी आँखों पर आ गया था, उसी को बैठकर एडजेस्ट कर रहा था।” वेगा ने सफाई देते हुए कहा।

“चल झूठे, शर्म नहीं आती झूठ बोलते।” वीनस ने अपने हाथ में पकड़ी कैंची को एक ऑक्टोपस की आँखों में मारते हुए कहा।

“अरे बाप रे, तुम अभी तक आँख मारती थी, अब आँख फोड़ने भी लगी।” वेगा अभी भी आराम से खड़ा होकर शरारतें कर रहा था।

तभी ऑक्टोपस ने अपने एक हाथ से वीनस की गर्दन पकड़ ली। वीनस की साँसें अब घुटने लगीं। कैंची भी उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गई।

यह देख वेगा ने पास पड़े पानी के पाइप से पानी की फुहार, ऑक्टोपस के चेहरे पर मारने लगा।

“अरे बेवकूफ, तुम उसकी ओर हो या मेरी ओर।” वीनस ने अपना गला छुड़ाते हुए कहा- “वह पानी का ही जीव है और तुम उस पर पानी मार रहे हो ।”

वेगा को अपनी गलती का अहसास हो गया, पर तब तक वह ऑक्टोपस आकार में और बड़ा हो गया।

तभी सिंहमानव बाकी जीवों को अपने पंजो से नोचता हुआ उधर आ गया, उसने बिना उस ऑक्टोपस को मौका दिये, उसका पूरा पेट अपने पंजे से फाड़ दिया।

यह देख वीनस डरकर वेगा की ओर आ गई। सिंहमानव अब बाकियों का काल बनकर आगे बढ़ गया।

तभी अचानक पता नहीं कहां से सैकड़ों समुद्री जीवों ने सिंहमानव पर हमला कर दिया।

एकसाथ इतने जीवों से लड़ना सिंहमानव के बस की भी बात नहीं थी, अब वह सभी जीव मिलकर सिंहमानव को काटने लगे।

यह देख वेगा ने अपनी घड़ी के वॉलपेपर को बदलकर ‘सिंह’ से ‘धनु’ कर लिया।

अब वह सिंहमानव अपनी जगह से गायब हो गया और उसकी जगह एक अश्वमानव दिखाई देने लगा।

अश्वमानव के हाथ में तीर और धनुष था। अश्वमानव ने बिना किसी को मौका दिये दूर से ही सबको तीरों से
बेधना शुरु कर दिया।

अश्वमानव के तीर चलाने के गति इतनी अधिक थी, कि कोई जलीय जंतु उसके पास ही नहीं आ पा रहा था।

वह एक साथ अपने धनुष पर 5 तीर चढ़ाकर सबको मार रहा था। सबसे विशेष बात थी कि उसके तरकश से तीर खत्म ही नहीं हो रहे थे।

वेगा और वीनस अब मात्र दर्शक बने उस अश्वमानव को युद्ध करते देख रहे थे।

“क्या ये जलीय जीव तुम्हारा कहना नहीं मान रहे थे?” वेगा ने वीनस से पूछा।

“नहीं, इनका मस्तिष्क इनके बस में नहीं है और ऐसी स्थिति में यह मेरा कहना नहीं मान सकते।” वीनस ने कहा।

तभी पता नहीं कहां से एक ईल मछली आकर वेगा के गले से लिपट गई। यह देख वीनस ने अश्वमानव की ओर देखा, अश्वमानव अभी भी सभी से युद्ध कर रहा था।

वीनस समझ गई कि एक पल की भी देरी वेगा के लि ये घातक हो सकती है, पर परेशानी ये थी कि वीनस उस ईल को अपने हाथों से नहीं छुड़ा सकती थी।

तभी वीनस की नजर सामने एक शेड पर बैठे बाज की ओर गई। बाज को देखते ही वीनस के मुंह से एक विचित्र सी आवाज उभरी।

उस आवाज को सुन बाज तेजी से उस ओर आया और वेगा के गले में फंसी ईल को एक झटके से ले हवा में उड़ गया।

यह देख वीनस ने भागकर वेगा को थामा। गला घुटने की वजह से वेगा की आँखों के आगे अंधेरा छा गया था। पर साँस आते ही वेगा ठीक हो गया।

“मैं भी सोच रही थी कि उस ईल के मुंह पर पानी मार दूं, पर आसपास कहीं पानी था ही नहीं, इसलिये बाज के द्वारा उस ईल को पास के तालाब तक भिजवा दिया है।” वीनस ने मुस्कुराते हुए कहा।

वेगा ने घूरकर वीनस की ओर देखा पर कुछ कहा नहीं। उधर तब तक अश्वमानव ने सभी जलीय जीवों का सफाया कर दिया था।

“सारे जीव खत्म हो गये हैं, पर अब अपने घर कैसे चलें? आसपास के सारे लोग खिड़की से हमें ही देख रहे हैं।” वीनस ने दबी आवाज में कहा।

“तो फिर अभी घर की जगह कहीं और चलो, कुछ देर बाद हम वापस आ जायेंगे।“

यह कह वेगा ने अश्वमानव को गायब किया और चुपचाप अपने घर की विपरीत दिशा में वीनस के साथ दौड़ पड़ा।

आज इन दोनों का एक सुपरहीरो की तरह पहला युद्ध था, लेकिन इस पहले युद्ध ने ही इन्हें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था।


जारी रहेगा______✍️
Superb 🔥🔥
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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#167.

समुद्री हमला:
(17.01.02, गुरुवार, 08:00, वॉशिंगटन डी.सी., अमेरिका)

धरा और मयूर को गये हुए आज 4 दिन बीत गये थे।

वीनस पिछले 4 दिन से वेगा के घर पर ही रह रही थी, उसे अब अपने भाई लुफासा का भी डर नहीं था, वह अब खुलकर अपनी जिंदगी जीना चाहती थी, भले ही बाद में अंजाम कुछ भी हो।

इस समय सुबह के 8 बज रहे थे। वेगा और वीनस दोनों ही बेडरुम में सो रहे थे कि तभी ‘खट्-खट्’
की हल्की आवाज ने वीनस की नींद खोल दी।

वीनस ने अपने बगल में सो रहे वेगा को देखा और फिर उसके माथे को चूम लिया।

तभी वीनस को फिर वही खट्-खट् की आवाज सुनाई दी। अब वीनस ने अपनी नजरें आवाज की दिशा में घुमाई। वह आवाज बेडरुम की खिड़की से आ रही थी।

वीनस अपने बेड से उठी और पर्दे को हटा कर बंद पड़ी खिड़की की ओर देखने लगी।

तभी उसे खिड़की से बाहर एक नन्हीं चिड़िया, खिड़की के शीशे पर अपनी चोंच मारती हुई दिखाई दी। वह खट्-खट् की आवाज उसी वजह से हो रही थी।

वीनस को वह रंग-बिरंगी नन्हीं चिड़िया बहुत अच्छी लगी, इसलिये उसने खिड़की के शीशे को खोल दिया।

जैसे ही वीनस ने खिड़की का शीशा हटाया, वह चिड़िया कमरे में आ गई और चीं-चीं कर पूरे कमरे में चक्कर लगाने लगी।

यह देख वीनस मुस्कुरा कर चिड़िया की ओर चल दी- “अरे नन्हीं चिड़िया ये तुम्हारा घर नहीं है। यहां कहां से आ गई?”

पर वह चिड़िया अभी भी खुली खिड़की से बाहर जाने का नाम नहीं ले रही थी।

अब वीनस को वह चिड़िया थोड़ी परेशान दिखाई दी।

उसे परेशान देख वीनस ने उस चिड़िया की आवाज में ही उससे पूछा- “क्या हुआ नन्हीं चिड़िया? तुम कुछ परेशान दिख रही हो?”

अब चिड़िया हैरानी से वीनस की ओर देखने लगी, शायद उसने कभी किसी इंसान को अपनी आवाज में बोलते नहीं देखा था।

पर वह वीनस से कुछ कहने की जगह डरकर एक पर्दे के पीछे छिप गई।

अब वीनस को शक होने लगा कि कहीं यह लुफासा तो नहीं? जो कि चिड़िया का रुप धरकर यहां आ गया हो।

इसलिये वीनस धीरे-धीरे पर्दे के पीछे बैठी, उस चिड़िया की ओर बढ़ने लगी।

चिड़िया को बाहर निकालने के चक्कर में, वीनस ने खिड़की को अभी बंद नहीं किया था। तभी खिड़की से अनगिनत चिड़िया और कौए कमरे में घुसने लगे।

यह देख वीनस घबरा गई, वह उस चिड़िया को छोड़ जल्दी से खिड़की के बंद करने के पीछे भागी।

कमरे में चारो ओर चिड़ियों और कौओं का शोर गूंजने लगा। इस शोर को सुनकर वेगा भी घबरा कर उठ गया। उठते ही वेगा की नजर कमरे में घूम रहे, दर्जनों पक्षियों पर पड़ी।

उन पक्षियों को देखकर वह चिल्लाने लगा- “मैंने पहले ही कहा था कि लुफासा खाली नहीं बैठेगा, लो वह आ गया अपने सब दोस्तों को लेकर, मुझसे बदला लेने।”

तभी वेगा की नजर वीनस पर पड़ी, जो कि लगातार खिड़की खोले बाहर की ओर देख रही थी।

वेगा को वीनस का इस प्रकार खिड़की पर खड़े होना, थोड़ा आश्चर्यजनक सा लगा, इसलिये वह तुरंत बिस्तर से कूदकर वीनस के पास आ गया।

वेगा की नजर उस ओर गई, जिधर वीनस देख रही थी, इसी के साथ वेगा आश्चर्य से भर गया।

पूरे वॉशिंगटन डी.सी. की सड़कें, मरे हुए पक्षियों से भरी हुई थी।

कुछ पक्षी तड़प रहे थे, तो कुछ मर चुके थे। पर अभी भी आसमान से पक्षियों का गिरना रुका नहीं था।

“ये सब क्या हो रहा है? ये पक्षी कैसे मर रहें हैं?” वेगा ने वीनस से सवाल कर दिया। कुछ देर के लिये वेगा अपने कमरे में घूम रहे पक्षियों को भूल गया।

“मुझे भी नहीं पता, पर जो कुछ भी हो रहा है, वह ठीक नहीं लग रहा।” वीनस ने कहा- “पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कि जैसे कुछ बहुत बुरा होने वाला है?”

अब आसमान से पक्षियों का गिरना बंद हो गया था, जिसका साफ मतलब था कि या तो आसमान में पक्षी ही खत्म हो गये थे या फिर वह अंजानी मुसीबत चली गई थी।

अब वीनस का ध्यान कमरे के अंदर के पक्षियों पर गया। कमरे के अंदर के सारे पक्षी अब उड़ना छोड़, इधर-उधर कमरे में ही छिप गये थे।

यह देख वीनस की नजर एक कबूतर पर गई, जो कि एक टेबल के पीछे छिपा था। वह दूसरों से उम्र में कुछ बड़ा दिख रहा था और थोड़ा सा बेहतर भी महसूस हो रहा था।

वीनस ने कबूतर को देखते हुए उसकी जुबान में कहा- “मुझसे डरो नहीं, मैं तुम्हारी दोस्त हूं, मुझे बताओ कि बाहर क्या हुआ था?”

वीनस को अपनी भाषा में बोलता देख कबूतर टेबल की ओट से बाहर आ गया।

“तुम हमारी भाषा कैसे बोल लेती हो?” कबूतर ने पूछा।

“क्यों कि मैं तुम्हारी दोस्त हूं, इसलिये तुम्हारी भाषा समझ सकती हूं। तुम मुझे बताओ कि बाहर क्या हुआ था?”

“मैं बाहर आसमान में अपनी रोटी लेकर उड़ रहा था कि तभी एक दूसरे कबूतर ने मेरी रोटी छीनने की कोशिश की, मैं अपनी रोटी बचा कर भागा कि तभी पता नहीं मेरे पीछे वाले कबूतर ने कौन सा जादू किया, कि आसमान में मेरे साथ उड़ रहे सभी पक्षियों का दम घुटने लगा और हम नीचे गिरने लगे। वह कोई बहुत बड़ा जादूगर कबूतर था।” उस समझदार कबूतर ने अपनी समझदारी का परिचय देते हुए कहा।

कोई और समय होता, तो वीनस को उस कबूतर की समझदारी पर बहुत तेज हंसी आती, पर यह समय कुछ और था, इसलिये वीनस उस कबूतर को छोड़ दूसरे पक्षियों की ओर देखने लगी।

तभी एक छोटा सा कौआ कमरे की ओट से निकलकर बाहर आ गया और वीनस को देखते हुए बोला- “यह कबूतर तो मूर्ख है, मैं आपको बताता हूं कि क्या हुआ?” मैं उस समय एक ऊंची सी छत पर बैठा था कि तभी एक विचित्र सा जीव आसमान में उड़ता हुआ आया। उसके हाथ में कोई यंत्र था, उसने आसमान में चारो ओर उस यंत्र से कुछ फैला दिया। उसने जो भी चीज आसमान में फैलाई थी, वह दिखाई नहीं दे रही थी, पर उस अदृश्य चीज ने सबको मारा है, मैं भी अगर इस कमरे में नहीं आता, तो मै भी मारा जाता।”

“उसके बाद वह जीव किधर गया?” वीनस ने कौए से पूछा।

“मैंने उसे आखिर में समुद्र की ओर जाते हुए देखा था।” कौए ने कहा।

“बहुत अच्छे, तुम इन सबसे ज्यादा समझदार हो।” वीनस ने उस कौए की तारीफ करते हुए कहा।
कौआ अपनी तारीफ सुनकर खुश हो गया।

“क्या कहा इन पक्षियों ने? क्या इनमें से किसी को पता है कि यह परेशानी कैसे उत्पन्न हुई?” वेगा ने वीनस से पूछा।

वीनस ने कौए की सारी बातें वेगा को बता दीं। पर इससे पहले कि वेगा कुछ और पूछ पाता कि तभी बाहर से शोर की आवाज सुनाई दी।

शोर सुनकर वेगा और वीनस दोनों ही भाग कर खिड़की के पास पहुंच गये।

वह लोग जो कुछ देर पहले अपने घरों से निकलकर पक्षियों की फोटो खींच रहे थे, अब वह चीखकर भाग रहे थे।

कुछ ही देर में वेगा और वीनस को उनके चीखने का कारण पता चल गया, उन लोगों के पीछे समुद्र के कुछ विचित्र जीव दौड़ रहे थे।

“अरे, यह जीव कैसे हैं?” वीनस ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा- “वेगा जरा इन्हें ध्यान से देखो, इनमें से कुछ शार्क जैसे लग रहे हैं और कुछ दूसरी बड़ी और छोटी मछलियों के जैसे। पर यह समुद्री जीव विकृत
होकर पानी से बाहर कैसे आ गये? और ये पानी के बाहर साँस कैसे ले रहे हैं? कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है ...पर हमें सभी लोगों को इन जीवों से बचाना होगा।”

“पर कैसे वीनस, हममें से अगर किसी ने भी बाहर जाकर, अपनी शक्तियों से सब लोगों को बचाने की कोशिश की, तो सभी हमें पहचान लेंगे और फिर बाद में हमें सबके सवालों के जवाब देने पड़ेंगे, जो कि हम नहीं दे सकते।” वेगा ने अपनी लाचारी प्रकट करते हुए कहा।

“हम इतनी शक्तियां होते हुए भी ऐसे घर में बैठे नहीं रह सकते वेगा।” यह कहकर वीनस ने अलमारी से कैंची निकाली और एक पर्दे को काट जल्दी से उसमें आँखों के देखने भर की जगह काट कर निकाल दी
और ऐसा करके 2 मास्क तैयार कर दिये।

वीनस ने एक मास्क अपने चेहरे पर कसकर बांधा और दूसरा मास्क वेगा के चेहरे पर। अब उन दोनों के चेहरे छिप गये थे, बस आँख की जगह 2 छेद दिखाई दे रहे थे।

यह करके दोनों अपने घर से निकलकर बाहर की ओर आ गये।

इस समय चारो ओर शोर-शराबा होने की वजह से किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया। वेगा ने बाहर निकलते समय अपनी जोडियाक वॉच पहनना नहीं भूला था।

बाहर निकलते ही वीनस को एक बड़ी सी मछली, एक 1xxx2 वर्षीय ब..च्चे के पीछे भागती दिखाई दी।
वीनस ने उछलते हुए अपने पास रखा एक ड्रम उस मछली की ओर फेंक दिया।

मछली का सारा ध्यान इस समय ब..च्चे की ओर था। इसलिये वह ड्रम का वार झेल नहीं पायी और लड़खड़ा गयी।

इतनी देर में वीनस ने उस बच्चे को पकड़ अपनी ओर खींच लिया।

उधर वेगा ने अपनी जोडियाक वॉच पर सिंह राशि को सेट कर दिया। ऐसा करते ही वेगा के सामने, एक विचित्र जीव प्रकट हो गया, जिसका सिर शेर का और शरीर किसी ताकतवर इंसान की तरह था।

उस सिंहमानव ने एक सुनहरी धातु का कवच अपने सीने पर पहन रखा था। अचानक उसके हाथ के नाखून बहुत लंबे और स्टील की तरह पैने दिखने लगे।

अब उस सिंहमानव ने अपने हाथों से सामने से आ रही मछलियों को चीरना-फाड़ना शुरु कर दिया।
एक नजर में वह नर…सिंह का अवतार दिखाई दे रहा था।

“अरे वाह, अब तो मुझे कुछ करने की जरुरत ही नहीं है, यह सिंहमानव ही अकेले सबको निपटा देगा।” वेगा खुश होते हुए एक स्थान पर बैठ गया।

तभी उसकी नजर वीनस पर पड़ी, जो कि जमीन से कुछ ना कुछ उठा कर, उन जीवों पर फेंक रही थी और उनसे बचने की कोशिश भी कर रही थी।

यह देख वेगा सटपटा गया और उठकर वीनस की ओर भागा।

“तुम इधर क्यों आ गये? उधर जाकर बैठकर आराम करो, मैं अकेले ही इनसे निपट लूंगी।” वीनस की बात सुन वेगा समझ गया कि वीनस ने उसे बैठे देख लिया था।

“वो ये तुम्हारा बनाया मास्क मेरी आँखों पर आ गया था, उसी को बैठकर एडजेस्ट कर रहा था।” वेगा ने सफाई देते हुए कहा।

“चल झूठे, शर्म नहीं आती झूठ बोलते।” वीनस ने अपने हाथ में पकड़ी कैंची को एक ऑक्टोपस की आँखों में मारते हुए कहा।

“अरे बाप रे, तुम अभी तक आँख मारती थी, अब आँख फोड़ने भी लगी।” वेगा अभी भी आराम से खड़ा होकर शरारतें कर रहा था।

तभी ऑक्टोपस ने अपने एक हाथ से वीनस की गर्दन पकड़ ली। वीनस की साँसें अब घुटने लगीं। कैंची भी उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गई।

यह देख वेगा ने पास पड़े पानी के पाइप से पानी की फुहार, ऑक्टोपस के चेहरे पर मारने लगा।

“अरे बेवकूफ, तुम उसकी ओर हो या मेरी ओर।” वीनस ने अपना गला छुड़ाते हुए कहा- “वह पानी का ही जीव है और तुम उस पर पानी मार रहे हो ।”

वेगा को अपनी गलती का अहसास हो गया, पर तब तक वह ऑक्टोपस आकार में और बड़ा हो गया।

तभी सिंहमानव बाकी जीवों को अपने पंजो से नोचता हुआ उधर आ गया, उसने बिना उस ऑक्टोपस को मौका दिये, उसका पूरा पेट अपने पंजे से फाड़ दिया।

यह देख वीनस डरकर वेगा की ओर आ गई। सिंहमानव अब बाकियों का काल बनकर आगे बढ़ गया।

तभी अचानक पता नहीं कहां से सैकड़ों समुद्री जीवों ने सिंहमानव पर हमला कर दिया।

एकसाथ इतने जीवों से लड़ना सिंहमानव के बस की भी बात नहीं थी, अब वह सभी जीव मिलकर सिंहमानव को काटने लगे।

यह देख वेगा ने अपनी घड़ी के वॉलपेपर को बदलकर ‘सिंह’ से ‘धनु’ कर लिया।

अब वह सिंहमानव अपनी जगह से गायब हो गया और उसकी जगह एक अश्वमानव दिखाई देने लगा।

अश्वमानव के हाथ में तीर और धनुष था। अश्वमानव ने बिना किसी को मौका दिये दूर से ही सबको तीरों से
बेधना शुरु कर दिया।

अश्वमानव के तीर चलाने के गति इतनी अधिक थी, कि कोई जलीय जंतु उसके पास ही नहीं आ पा रहा था।

वह एक साथ अपने धनुष पर 5 तीर चढ़ाकर सबको मार रहा था। सबसे विशेष बात थी कि उसके तरकश से तीर खत्म ही नहीं हो रहे थे।

वेगा और वीनस अब मात्र दर्शक बने उस अश्वमानव को युद्ध करते देख रहे थे।

“क्या ये जलीय जीव तुम्हारा कहना नहीं मान रहे थे?” वेगा ने वीनस से पूछा।

“नहीं, इनका मस्तिष्क इनके बस में नहीं है और ऐसी स्थिति में यह मेरा कहना नहीं मान सकते।” वीनस ने कहा।

तभी पता नहीं कहां से एक ईल मछली आकर वेगा के गले से लिपट गई। यह देख वीनस ने अश्वमानव की ओर देखा, अश्वमानव अभी भी सभी से युद्ध कर रहा था।

वीनस समझ गई कि एक पल की भी देरी वेगा के लि ये घातक हो सकती है, पर परेशानी ये थी कि वीनस उस ईल को अपने हाथों से नहीं छुड़ा सकती थी।

तभी वीनस की नजर सामने एक शेड पर बैठे बाज की ओर गई। बाज को देखते ही वीनस के मुंह से एक विचित्र सी आवाज उभरी।

उस आवाज को सुन बाज तेजी से उस ओर आया और वेगा के गले में फंसी ईल को एक झटके से ले हवा में उड़ गया।

यह देख वीनस ने भागकर वेगा को थामा। गला घुटने की वजह से वेगा की आँखों के आगे अंधेरा छा गया था। पर साँस आते ही वेगा ठीक हो गया।

“मैं भी सोच रही थी कि उस ईल के मुंह पर पानी मार दूं, पर आसपास कहीं पानी था ही नहीं, इसलिये बाज के द्वारा उस ईल को पास के तालाब तक भिजवा दिया है।” वीनस ने मुस्कुराते हुए कहा।

वेगा ने घूरकर वीनस की ओर देखा पर कुछ कहा नहीं। उधर तब तक अश्वमानव ने सभी जलीय जीवों का सफाया कर दिया था।

“सारे जीव खत्म हो गये हैं, पर अब अपने घर कैसे चलें? आसपास के सारे लोग खिड़की से हमें ही देख रहे हैं।” वीनस ने दबी आवाज में कहा।

“तो फिर अभी घर की जगह कहीं और चलो, कुछ देर बाद हम वापस आ जायेंगे।“

यह कह वेगा ने अश्वमानव को गायब किया और चुपचाप अपने घर की विपरीत दिशा में वीनस के साथ दौड़ पड़ा।

आज इन दोनों का एक सुपरहीरो की तरह पहला युद्ध था, लेकिन इस पहले युद्ध ने ही इन्हें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था।


जारी रहेगा______✍️

Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

Ho na ho ye sab lufasa ka hi kiya dhara he...........

Vega aur Venus ne bahut bahaduri se is musibat ka samna kiya..........

Apne sath sath aas pass ke logo ki bhi jaan bachayi he in dono ne.........

Zodiak watch ka bahut hi badhiya istemal kiya vega ne............

Keep rocking Bro
 

Sushil@10

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समुद्री हमला:
(17.01.02, गुरुवार, 08:00, वॉशिंगटन डी.सी., अमेरिका)

धरा और मयूर को गये हुए आज 4 दिन बीत गये थे।

वीनस पिछले 4 दिन से वेगा के घर पर ही रह रही थी, उसे अब अपने भाई लुफासा का भी डर नहीं था, वह अब खुलकर अपनी जिंदगी जीना चाहती थी, भले ही बाद में अंजाम कुछ भी हो।

इस समय सुबह के 8 बज रहे थे। वेगा और वीनस दोनों ही बेडरुम में सो रहे थे कि तभी ‘खट्-खट्’
की हल्की आवाज ने वीनस की नींद खोल दी।

वीनस ने अपने बगल में सो रहे वेगा को देखा और फिर उसके माथे को चूम लिया।

तभी वीनस को फिर वही खट्-खट् की आवाज सुनाई दी। अब वीनस ने अपनी नजरें आवाज की दिशा में घुमाई। वह आवाज बेडरुम की खिड़की से आ रही थी।

वीनस अपने बेड से उठी और पर्दे को हटा कर बंद पड़ी खिड़की की ओर देखने लगी।

तभी उसे खिड़की से बाहर एक नन्हीं चिड़िया, खिड़की के शीशे पर अपनी चोंच मारती हुई दिखाई दी। वह खट्-खट् की आवाज उसी वजह से हो रही थी।

वीनस को वह रंग-बिरंगी नन्हीं चिड़िया बहुत अच्छी लगी, इसलिये उसने खिड़की के शीशे को खोल दिया।

जैसे ही वीनस ने खिड़की का शीशा हटाया, वह चिड़िया कमरे में आ गई और चीं-चीं कर पूरे कमरे में चक्कर लगाने लगी।

यह देख वीनस मुस्कुरा कर चिड़िया की ओर चल दी- “अरे नन्हीं चिड़िया ये तुम्हारा घर नहीं है। यहां कहां से आ गई?”

पर वह चिड़िया अभी भी खुली खिड़की से बाहर जाने का नाम नहीं ले रही थी।

अब वीनस को वह चिड़िया थोड़ी परेशान दिखाई दी।

उसे परेशान देख वीनस ने उस चिड़िया की आवाज में ही उससे पूछा- “क्या हुआ नन्हीं चिड़िया? तुम कुछ परेशान दिख रही हो?”

अब चिड़िया हैरानी से वीनस की ओर देखने लगी, शायद उसने कभी किसी इंसान को अपनी आवाज में बोलते नहीं देखा था।

पर वह वीनस से कुछ कहने की जगह डरकर एक पर्दे के पीछे छिप गई।

अब वीनस को शक होने लगा कि कहीं यह लुफासा तो नहीं? जो कि चिड़िया का रुप धरकर यहां आ गया हो।

इसलिये वीनस धीरे-धीरे पर्दे के पीछे बैठी, उस चिड़िया की ओर बढ़ने लगी।

चिड़िया को बाहर निकालने के चक्कर में, वीनस ने खिड़की को अभी बंद नहीं किया था। तभी खिड़की से अनगिनत चिड़िया और कौए कमरे में घुसने लगे।

यह देख वीनस घबरा गई, वह उस चिड़िया को छोड़ जल्दी से खिड़की के बंद करने के पीछे भागी।

कमरे में चारो ओर चिड़ियों और कौओं का शोर गूंजने लगा। इस शोर को सुनकर वेगा भी घबरा कर उठ गया। उठते ही वेगा की नजर कमरे में घूम रहे, दर्जनों पक्षियों पर पड़ी।

उन पक्षियों को देखकर वह चिल्लाने लगा- “मैंने पहले ही कहा था कि लुफासा खाली नहीं बैठेगा, लो वह आ गया अपने सब दोस्तों को लेकर, मुझसे बदला लेने।”

तभी वेगा की नजर वीनस पर पड़ी, जो कि लगातार खिड़की खोले बाहर की ओर देख रही थी।

वेगा को वीनस का इस प्रकार खिड़की पर खड़े होना, थोड़ा आश्चर्यजनक सा लगा, इसलिये वह तुरंत बिस्तर से कूदकर वीनस के पास आ गया।

वेगा की नजर उस ओर गई, जिधर वीनस देख रही थी, इसी के साथ वेगा आश्चर्य से भर गया।

पूरे वॉशिंगटन डी.सी. की सड़कें, मरे हुए पक्षियों से भरी हुई थी।

कुछ पक्षी तड़प रहे थे, तो कुछ मर चुके थे। पर अभी भी आसमान से पक्षियों का गिरना रुका नहीं था।

“ये सब क्या हो रहा है? ये पक्षी कैसे मर रहें हैं?” वेगा ने वीनस से सवाल कर दिया। कुछ देर के लिये वेगा अपने कमरे में घूम रहे पक्षियों को भूल गया।

“मुझे भी नहीं पता, पर जो कुछ भी हो रहा है, वह ठीक नहीं लग रहा।” वीनस ने कहा- “पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कि जैसे कुछ बहुत बुरा होने वाला है?”

अब आसमान से पक्षियों का गिरना बंद हो गया था, जिसका साफ मतलब था कि या तो आसमान में पक्षी ही खत्म हो गये थे या फिर वह अंजानी मुसीबत चली गई थी।

अब वीनस का ध्यान कमरे के अंदर के पक्षियों पर गया। कमरे के अंदर के सारे पक्षी अब उड़ना छोड़, इधर-उधर कमरे में ही छिप गये थे।

यह देख वीनस की नजर एक कबूतर पर गई, जो कि एक टेबल के पीछे छिपा था। वह दूसरों से उम्र में कुछ बड़ा दिख रहा था और थोड़ा सा बेहतर भी महसूस हो रहा था।

वीनस ने कबूतर को देखते हुए उसकी जुबान में कहा- “मुझसे डरो नहीं, मैं तुम्हारी दोस्त हूं, मुझे बताओ कि बाहर क्या हुआ था?”

वीनस को अपनी भाषा में बोलता देख कबूतर टेबल की ओट से बाहर आ गया।

“तुम हमारी भाषा कैसे बोल लेती हो?” कबूतर ने पूछा।

“क्यों कि मैं तुम्हारी दोस्त हूं, इसलिये तुम्हारी भाषा समझ सकती हूं। तुम मुझे बताओ कि बाहर क्या हुआ था?”

“मैं बाहर आसमान में अपनी रोटी लेकर उड़ रहा था कि तभी एक दूसरे कबूतर ने मेरी रोटी छीनने की कोशिश की, मैं अपनी रोटी बचा कर भागा कि तभी पता नहीं मेरे पीछे वाले कबूतर ने कौन सा जादू किया, कि आसमान में मेरे साथ उड़ रहे सभी पक्षियों का दम घुटने लगा और हम नीचे गिरने लगे। वह कोई बहुत बड़ा जादूगर कबूतर था।” उस समझदार कबूतर ने अपनी समझदारी का परिचय देते हुए कहा।

कोई और समय होता, तो वीनस को उस कबूतर की समझदारी पर बहुत तेज हंसी आती, पर यह समय कुछ और था, इसलिये वीनस उस कबूतर को छोड़ दूसरे पक्षियों की ओर देखने लगी।

तभी एक छोटा सा कौआ कमरे की ओट से निकलकर बाहर आ गया और वीनस को देखते हुए बोला- “यह कबूतर तो मूर्ख है, मैं आपको बताता हूं कि क्या हुआ?” मैं उस समय एक ऊंची सी छत पर बैठा था कि तभी एक विचित्र सा जीव आसमान में उड़ता हुआ आया। उसके हाथ में कोई यंत्र था, उसने आसमान में चारो ओर उस यंत्र से कुछ फैला दिया। उसने जो भी चीज आसमान में फैलाई थी, वह दिखाई नहीं दे रही थी, पर उस अदृश्य चीज ने सबको मारा है, मैं भी अगर इस कमरे में नहीं आता, तो मै भी मारा जाता।”

“उसके बाद वह जीव किधर गया?” वीनस ने कौए से पूछा।

“मैंने उसे आखिर में समुद्र की ओर जाते हुए देखा था।” कौए ने कहा।

“बहुत अच्छे, तुम इन सबसे ज्यादा समझदार हो।” वीनस ने उस कौए की तारीफ करते हुए कहा।
कौआ अपनी तारीफ सुनकर खुश हो गया।

“क्या कहा इन पक्षियों ने? क्या इनमें से किसी को पता है कि यह परेशानी कैसे उत्पन्न हुई?” वेगा ने वीनस से पूछा।

वीनस ने कौए की सारी बातें वेगा को बता दीं। पर इससे पहले कि वेगा कुछ और पूछ पाता कि तभी बाहर से शोर की आवाज सुनाई दी।

शोर सुनकर वेगा और वीनस दोनों ही भाग कर खिड़की के पास पहुंच गये।

वह लोग जो कुछ देर पहले अपने घरों से निकलकर पक्षियों की फोटो खींच रहे थे, अब वह चीखकर भाग रहे थे।

कुछ ही देर में वेगा और वीनस को उनके चीखने का कारण पता चल गया, उन लोगों के पीछे समुद्र के कुछ विचित्र जीव दौड़ रहे थे।

“अरे, यह जीव कैसे हैं?” वीनस ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा- “वेगा जरा इन्हें ध्यान से देखो, इनमें से कुछ शार्क जैसे लग रहे हैं और कुछ दूसरी बड़ी और छोटी मछलियों के जैसे। पर यह समुद्री जीव विकृत
होकर पानी से बाहर कैसे आ गये? और ये पानी के बाहर साँस कैसे ले रहे हैं? कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है ...पर हमें सभी लोगों को इन जीवों से बचाना होगा।”

“पर कैसे वीनस, हममें से अगर किसी ने भी बाहर जाकर, अपनी शक्तियों से सब लोगों को बचाने की कोशिश की, तो सभी हमें पहचान लेंगे और फिर बाद में हमें सबके सवालों के जवाब देने पड़ेंगे, जो कि हम नहीं दे सकते।” वेगा ने अपनी लाचारी प्रकट करते हुए कहा।

“हम इतनी शक्तियां होते हुए भी ऐसे घर में बैठे नहीं रह सकते वेगा।” यह कहकर वीनस ने अलमारी से कैंची निकाली और एक पर्दे को काट जल्दी से उसमें आँखों के देखने भर की जगह काट कर निकाल दी
और ऐसा करके 2 मास्क तैयार कर दिये।

वीनस ने एक मास्क अपने चेहरे पर कसकर बांधा और दूसरा मास्क वेगा के चेहरे पर। अब उन दोनों के चेहरे छिप गये थे, बस आँख की जगह 2 छेद दिखाई दे रहे थे।

यह करके दोनों अपने घर से निकलकर बाहर की ओर आ गये।

इस समय चारो ओर शोर-शराबा होने की वजह से किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया। वेगा ने बाहर निकलते समय अपनी जोडियाक वॉच पहनना नहीं भूला था।

बाहर निकलते ही वीनस को एक बड़ी सी मछली, एक 1xxx2 वर्षीय ब..च्चे के पीछे भागती दिखाई दी।
वीनस ने उछलते हुए अपने पास रखा एक ड्रम उस मछली की ओर फेंक दिया।

मछली का सारा ध्यान इस समय ब..च्चे की ओर था। इसलिये वह ड्रम का वार झेल नहीं पायी और लड़खड़ा गयी।

इतनी देर में वीनस ने उस बच्चे को पकड़ अपनी ओर खींच लिया।

उधर वेगा ने अपनी जोडियाक वॉच पर सिंह राशि को सेट कर दिया। ऐसा करते ही वेगा के सामने, एक विचित्र जीव प्रकट हो गया, जिसका सिर शेर का और शरीर किसी ताकतवर इंसान की तरह था।

उस सिंहमानव ने एक सुनहरी धातु का कवच अपने सीने पर पहन रखा था। अचानक उसके हाथ के नाखून बहुत लंबे और स्टील की तरह पैने दिखने लगे।

अब उस सिंहमानव ने अपने हाथों से सामने से आ रही मछलियों को चीरना-फाड़ना शुरु कर दिया।
एक नजर में वह नर…सिंह का अवतार दिखाई दे रहा था।

“अरे वाह, अब तो मुझे कुछ करने की जरुरत ही नहीं है, यह सिंहमानव ही अकेले सबको निपटा देगा।” वेगा खुश होते हुए एक स्थान पर बैठ गया।

तभी उसकी नजर वीनस पर पड़ी, जो कि जमीन से कुछ ना कुछ उठा कर, उन जीवों पर फेंक रही थी और उनसे बचने की कोशिश भी कर रही थी।

यह देख वेगा सटपटा गया और उठकर वीनस की ओर भागा।

“तुम इधर क्यों आ गये? उधर जाकर बैठकर आराम करो, मैं अकेले ही इनसे निपट लूंगी।” वीनस की बात सुन वेगा समझ गया कि वीनस ने उसे बैठे देख लिया था।

“वो ये तुम्हारा बनाया मास्क मेरी आँखों पर आ गया था, उसी को बैठकर एडजेस्ट कर रहा था।” वेगा ने सफाई देते हुए कहा।

“चल झूठे, शर्म नहीं आती झूठ बोलते।” वीनस ने अपने हाथ में पकड़ी कैंची को एक ऑक्टोपस की आँखों में मारते हुए कहा।

“अरे बाप रे, तुम अभी तक आँख मारती थी, अब आँख फोड़ने भी लगी।” वेगा अभी भी आराम से खड़ा होकर शरारतें कर रहा था।

तभी ऑक्टोपस ने अपने एक हाथ से वीनस की गर्दन पकड़ ली। वीनस की साँसें अब घुटने लगीं। कैंची भी उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गई।

यह देख वेगा ने पास पड़े पानी के पाइप से पानी की फुहार, ऑक्टोपस के चेहरे पर मारने लगा।

“अरे बेवकूफ, तुम उसकी ओर हो या मेरी ओर।” वीनस ने अपना गला छुड़ाते हुए कहा- “वह पानी का ही जीव है और तुम उस पर पानी मार रहे हो ।”

वेगा को अपनी गलती का अहसास हो गया, पर तब तक वह ऑक्टोपस आकार में और बड़ा हो गया।

तभी सिंहमानव बाकी जीवों को अपने पंजो से नोचता हुआ उधर आ गया, उसने बिना उस ऑक्टोपस को मौका दिये, उसका पूरा पेट अपने पंजे से फाड़ दिया।

यह देख वीनस डरकर वेगा की ओर आ गई। सिंहमानव अब बाकियों का काल बनकर आगे बढ़ गया।

तभी अचानक पता नहीं कहां से सैकड़ों समुद्री जीवों ने सिंहमानव पर हमला कर दिया।

एकसाथ इतने जीवों से लड़ना सिंहमानव के बस की भी बात नहीं थी, अब वह सभी जीव मिलकर सिंहमानव को काटने लगे।

यह देख वेगा ने अपनी घड़ी के वॉलपेपर को बदलकर ‘सिंह’ से ‘धनु’ कर लिया।

अब वह सिंहमानव अपनी जगह से गायब हो गया और उसकी जगह एक अश्वमानव दिखाई देने लगा।

अश्वमानव के हाथ में तीर और धनुष था। अश्वमानव ने बिना किसी को मौका दिये दूर से ही सबको तीरों से
बेधना शुरु कर दिया।

अश्वमानव के तीर चलाने के गति इतनी अधिक थी, कि कोई जलीय जंतु उसके पास ही नहीं आ पा रहा था।

वह एक साथ अपने धनुष पर 5 तीर चढ़ाकर सबको मार रहा था। सबसे विशेष बात थी कि उसके तरकश से तीर खत्म ही नहीं हो रहे थे।

वेगा और वीनस अब मात्र दर्शक बने उस अश्वमानव को युद्ध करते देख रहे थे।

“क्या ये जलीय जीव तुम्हारा कहना नहीं मान रहे थे?” वेगा ने वीनस से पूछा।

“नहीं, इनका मस्तिष्क इनके बस में नहीं है और ऐसी स्थिति में यह मेरा कहना नहीं मान सकते।” वीनस ने कहा।

तभी पता नहीं कहां से एक ईल मछली आकर वेगा के गले से लिपट गई। यह देख वीनस ने अश्वमानव की ओर देखा, अश्वमानव अभी भी सभी से युद्ध कर रहा था।

वीनस समझ गई कि एक पल की भी देरी वेगा के लि ये घातक हो सकती है, पर परेशानी ये थी कि वीनस उस ईल को अपने हाथों से नहीं छुड़ा सकती थी।

तभी वीनस की नजर सामने एक शेड पर बैठे बाज की ओर गई। बाज को देखते ही वीनस के मुंह से एक विचित्र सी आवाज उभरी।

उस आवाज को सुन बाज तेजी से उस ओर आया और वेगा के गले में फंसी ईल को एक झटके से ले हवा में उड़ गया।

यह देख वीनस ने भागकर वेगा को थामा। गला घुटने की वजह से वेगा की आँखों के आगे अंधेरा छा गया था। पर साँस आते ही वेगा ठीक हो गया।

“मैं भी सोच रही थी कि उस ईल के मुंह पर पानी मार दूं, पर आसपास कहीं पानी था ही नहीं, इसलिये बाज के द्वारा उस ईल को पास के तालाब तक भिजवा दिया है।” वीनस ने मुस्कुराते हुए कहा।

वेगा ने घूरकर वीनस की ओर देखा पर कुछ कहा नहीं। उधर तब तक अश्वमानव ने सभी जलीय जीवों का सफाया कर दिया था।

“सारे जीव खत्म हो गये हैं, पर अब अपने घर कैसे चलें? आसपास के सारे लोग खिड़की से हमें ही देख रहे हैं।” वीनस ने दबी आवाज में कहा।

“तो फिर अभी घर की जगह कहीं और चलो, कुछ देर बाद हम वापस आ जायेंगे।“

यह कह वेगा ने अश्वमानव को गायब किया और चुपचाप अपने घर की विपरीत दिशा में वीनस के साथ दौड़ पड़ा।

आज इन दोनों का एक सुपरहीरो की तरह पहला युद्ध था, लेकिन इस पहले युद्ध ने ही इन्हें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था।


जारी रहेगा______✍️
Shandaar update and nice story
 

dhparikh

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#167.

समुद्री हमला:
(17.01.02, गुरुवार, 08:00, वॉशिंगटन डी.सी., अमेरिका)

धरा और मयूर को गये हुए आज 4 दिन बीत गये थे।

वीनस पिछले 4 दिन से वेगा के घर पर ही रह रही थी, उसे अब अपने भाई लुफासा का भी डर नहीं था, वह अब खुलकर अपनी जिंदगी जीना चाहती थी, भले ही बाद में अंजाम कुछ भी हो।

इस समय सुबह के 8 बज रहे थे। वेगा और वीनस दोनों ही बेडरुम में सो रहे थे कि तभी ‘खट्-खट्’
की हल्की आवाज ने वीनस की नींद खोल दी।

वीनस ने अपने बगल में सो रहे वेगा को देखा और फिर उसके माथे को चूम लिया।

तभी वीनस को फिर वही खट्-खट् की आवाज सुनाई दी। अब वीनस ने अपनी नजरें आवाज की दिशा में घुमाई। वह आवाज बेडरुम की खिड़की से आ रही थी।

वीनस अपने बेड से उठी और पर्दे को हटा कर बंद पड़ी खिड़की की ओर देखने लगी।

तभी उसे खिड़की से बाहर एक नन्हीं चिड़िया, खिड़की के शीशे पर अपनी चोंच मारती हुई दिखाई दी। वह खट्-खट् की आवाज उसी वजह से हो रही थी।

वीनस को वह रंग-बिरंगी नन्हीं चिड़िया बहुत अच्छी लगी, इसलिये उसने खिड़की के शीशे को खोल दिया।

जैसे ही वीनस ने खिड़की का शीशा हटाया, वह चिड़िया कमरे में आ गई और चीं-चीं कर पूरे कमरे में चक्कर लगाने लगी।

यह देख वीनस मुस्कुरा कर चिड़िया की ओर चल दी- “अरे नन्हीं चिड़िया ये तुम्हारा घर नहीं है। यहां कहां से आ गई?”

पर वह चिड़िया अभी भी खुली खिड़की से बाहर जाने का नाम नहीं ले रही थी।

अब वीनस को वह चिड़िया थोड़ी परेशान दिखाई दी।

उसे परेशान देख वीनस ने उस चिड़िया की आवाज में ही उससे पूछा- “क्या हुआ नन्हीं चिड़िया? तुम कुछ परेशान दिख रही हो?”

अब चिड़िया हैरानी से वीनस की ओर देखने लगी, शायद उसने कभी किसी इंसान को अपनी आवाज में बोलते नहीं देखा था।

पर वह वीनस से कुछ कहने की जगह डरकर एक पर्दे के पीछे छिप गई।

अब वीनस को शक होने लगा कि कहीं यह लुफासा तो नहीं? जो कि चिड़िया का रुप धरकर यहां आ गया हो।

इसलिये वीनस धीरे-धीरे पर्दे के पीछे बैठी, उस चिड़िया की ओर बढ़ने लगी।

चिड़िया को बाहर निकालने के चक्कर में, वीनस ने खिड़की को अभी बंद नहीं किया था। तभी खिड़की से अनगिनत चिड़िया और कौए कमरे में घुसने लगे।

यह देख वीनस घबरा गई, वह उस चिड़िया को छोड़ जल्दी से खिड़की के बंद करने के पीछे भागी।

कमरे में चारो ओर चिड़ियों और कौओं का शोर गूंजने लगा। इस शोर को सुनकर वेगा भी घबरा कर उठ गया। उठते ही वेगा की नजर कमरे में घूम रहे, दर्जनों पक्षियों पर पड़ी।

उन पक्षियों को देखकर वह चिल्लाने लगा- “मैंने पहले ही कहा था कि लुफासा खाली नहीं बैठेगा, लो वह आ गया अपने सब दोस्तों को लेकर, मुझसे बदला लेने।”

तभी वेगा की नजर वीनस पर पड़ी, जो कि लगातार खिड़की खोले बाहर की ओर देख रही थी।

वेगा को वीनस का इस प्रकार खिड़की पर खड़े होना, थोड़ा आश्चर्यजनक सा लगा, इसलिये वह तुरंत बिस्तर से कूदकर वीनस के पास आ गया।

वेगा की नजर उस ओर गई, जिधर वीनस देख रही थी, इसी के साथ वेगा आश्चर्य से भर गया।

पूरे वॉशिंगटन डी.सी. की सड़कें, मरे हुए पक्षियों से भरी हुई थी।

कुछ पक्षी तड़प रहे थे, तो कुछ मर चुके थे। पर अभी भी आसमान से पक्षियों का गिरना रुका नहीं था।

“ये सब क्या हो रहा है? ये पक्षी कैसे मर रहें हैं?” वेगा ने वीनस से सवाल कर दिया। कुछ देर के लिये वेगा अपने कमरे में घूम रहे पक्षियों को भूल गया।

“मुझे भी नहीं पता, पर जो कुछ भी हो रहा है, वह ठीक नहीं लग रहा।” वीनस ने कहा- “पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कि जैसे कुछ बहुत बुरा होने वाला है?”

अब आसमान से पक्षियों का गिरना बंद हो गया था, जिसका साफ मतलब था कि या तो आसमान में पक्षी ही खत्म हो गये थे या फिर वह अंजानी मुसीबत चली गई थी।

अब वीनस का ध्यान कमरे के अंदर के पक्षियों पर गया। कमरे के अंदर के सारे पक्षी अब उड़ना छोड़, इधर-उधर कमरे में ही छिप गये थे।

यह देख वीनस की नजर एक कबूतर पर गई, जो कि एक टेबल के पीछे छिपा था। वह दूसरों से उम्र में कुछ बड़ा दिख रहा था और थोड़ा सा बेहतर भी महसूस हो रहा था।

वीनस ने कबूतर को देखते हुए उसकी जुबान में कहा- “मुझसे डरो नहीं, मैं तुम्हारी दोस्त हूं, मुझे बताओ कि बाहर क्या हुआ था?”

वीनस को अपनी भाषा में बोलता देख कबूतर टेबल की ओट से बाहर आ गया।

“तुम हमारी भाषा कैसे बोल लेती हो?” कबूतर ने पूछा।

“क्यों कि मैं तुम्हारी दोस्त हूं, इसलिये तुम्हारी भाषा समझ सकती हूं। तुम मुझे बताओ कि बाहर क्या हुआ था?”

“मैं बाहर आसमान में अपनी रोटी लेकर उड़ रहा था कि तभी एक दूसरे कबूतर ने मेरी रोटी छीनने की कोशिश की, मैं अपनी रोटी बचा कर भागा कि तभी पता नहीं मेरे पीछे वाले कबूतर ने कौन सा जादू किया, कि आसमान में मेरे साथ उड़ रहे सभी पक्षियों का दम घुटने लगा और हम नीचे गिरने लगे। वह कोई बहुत बड़ा जादूगर कबूतर था।” उस समझदार कबूतर ने अपनी समझदारी का परिचय देते हुए कहा।

कोई और समय होता, तो वीनस को उस कबूतर की समझदारी पर बहुत तेज हंसी आती, पर यह समय कुछ और था, इसलिये वीनस उस कबूतर को छोड़ दूसरे पक्षियों की ओर देखने लगी।

तभी एक छोटा सा कौआ कमरे की ओट से निकलकर बाहर आ गया और वीनस को देखते हुए बोला- “यह कबूतर तो मूर्ख है, मैं आपको बताता हूं कि क्या हुआ?” मैं उस समय एक ऊंची सी छत पर बैठा था कि तभी एक विचित्र सा जीव आसमान में उड़ता हुआ आया। उसके हाथ में कोई यंत्र था, उसने आसमान में चारो ओर उस यंत्र से कुछ फैला दिया। उसने जो भी चीज आसमान में फैलाई थी, वह दिखाई नहीं दे रही थी, पर उस अदृश्य चीज ने सबको मारा है, मैं भी अगर इस कमरे में नहीं आता, तो मै भी मारा जाता।”

“उसके बाद वह जीव किधर गया?” वीनस ने कौए से पूछा।

“मैंने उसे आखिर में समुद्र की ओर जाते हुए देखा था।” कौए ने कहा।

“बहुत अच्छे, तुम इन सबसे ज्यादा समझदार हो।” वीनस ने उस कौए की तारीफ करते हुए कहा।
कौआ अपनी तारीफ सुनकर खुश हो गया।

“क्या कहा इन पक्षियों ने? क्या इनमें से किसी को पता है कि यह परेशानी कैसे उत्पन्न हुई?” वेगा ने वीनस से पूछा।

वीनस ने कौए की सारी बातें वेगा को बता दीं। पर इससे पहले कि वेगा कुछ और पूछ पाता कि तभी बाहर से शोर की आवाज सुनाई दी।

शोर सुनकर वेगा और वीनस दोनों ही भाग कर खिड़की के पास पहुंच गये।

वह लोग जो कुछ देर पहले अपने घरों से निकलकर पक्षियों की फोटो खींच रहे थे, अब वह चीखकर भाग रहे थे।

कुछ ही देर में वेगा और वीनस को उनके चीखने का कारण पता चल गया, उन लोगों के पीछे समुद्र के कुछ विचित्र जीव दौड़ रहे थे।

“अरे, यह जीव कैसे हैं?” वीनस ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा- “वेगा जरा इन्हें ध्यान से देखो, इनमें से कुछ शार्क जैसे लग रहे हैं और कुछ दूसरी बड़ी और छोटी मछलियों के जैसे। पर यह समुद्री जीव विकृत
होकर पानी से बाहर कैसे आ गये? और ये पानी के बाहर साँस कैसे ले रहे हैं? कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है ...पर हमें सभी लोगों को इन जीवों से बचाना होगा।”

“पर कैसे वीनस, हममें से अगर किसी ने भी बाहर जाकर, अपनी शक्तियों से सब लोगों को बचाने की कोशिश की, तो सभी हमें पहचान लेंगे और फिर बाद में हमें सबके सवालों के जवाब देने पड़ेंगे, जो कि हम नहीं दे सकते।” वेगा ने अपनी लाचारी प्रकट करते हुए कहा।

“हम इतनी शक्तियां होते हुए भी ऐसे घर में बैठे नहीं रह सकते वेगा।” यह कहकर वीनस ने अलमारी से कैंची निकाली और एक पर्दे को काट जल्दी से उसमें आँखों के देखने भर की जगह काट कर निकाल दी
और ऐसा करके 2 मास्क तैयार कर दिये।

वीनस ने एक मास्क अपने चेहरे पर कसकर बांधा और दूसरा मास्क वेगा के चेहरे पर। अब उन दोनों के चेहरे छिप गये थे, बस आँख की जगह 2 छेद दिखाई दे रहे थे।

यह करके दोनों अपने घर से निकलकर बाहर की ओर आ गये।

इस समय चारो ओर शोर-शराबा होने की वजह से किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया। वेगा ने बाहर निकलते समय अपनी जोडियाक वॉच पहनना नहीं भूला था।

बाहर निकलते ही वीनस को एक बड़ी सी मछली, एक 1xxx2 वर्षीय ब..च्चे के पीछे भागती दिखाई दी।
वीनस ने उछलते हुए अपने पास रखा एक ड्रम उस मछली की ओर फेंक दिया।

मछली का सारा ध्यान इस समय ब..च्चे की ओर था। इसलिये वह ड्रम का वार झेल नहीं पायी और लड़खड़ा गयी।

इतनी देर में वीनस ने उस बच्चे को पकड़ अपनी ओर खींच लिया।

उधर वेगा ने अपनी जोडियाक वॉच पर सिंह राशि को सेट कर दिया। ऐसा करते ही वेगा के सामने, एक विचित्र जीव प्रकट हो गया, जिसका सिर शेर का और शरीर किसी ताकतवर इंसान की तरह था।

उस सिंहमानव ने एक सुनहरी धातु का कवच अपने सीने पर पहन रखा था। अचानक उसके हाथ के नाखून बहुत लंबे और स्टील की तरह पैने दिखने लगे।

अब उस सिंहमानव ने अपने हाथों से सामने से आ रही मछलियों को चीरना-फाड़ना शुरु कर दिया।
एक नजर में वह नर…सिंह का अवतार दिखाई दे रहा था।

“अरे वाह, अब तो मुझे कुछ करने की जरुरत ही नहीं है, यह सिंहमानव ही अकेले सबको निपटा देगा।” वेगा खुश होते हुए एक स्थान पर बैठ गया।

तभी उसकी नजर वीनस पर पड़ी, जो कि जमीन से कुछ ना कुछ उठा कर, उन जीवों पर फेंक रही थी और उनसे बचने की कोशिश भी कर रही थी।

यह देख वेगा सटपटा गया और उठकर वीनस की ओर भागा।

“तुम इधर क्यों आ गये? उधर जाकर बैठकर आराम करो, मैं अकेले ही इनसे निपट लूंगी।” वीनस की बात सुन वेगा समझ गया कि वीनस ने उसे बैठे देख लिया था।

“वो ये तुम्हारा बनाया मास्क मेरी आँखों पर आ गया था, उसी को बैठकर एडजेस्ट कर रहा था।” वेगा ने सफाई देते हुए कहा।

“चल झूठे, शर्म नहीं आती झूठ बोलते।” वीनस ने अपने हाथ में पकड़ी कैंची को एक ऑक्टोपस की आँखों में मारते हुए कहा।

“अरे बाप रे, तुम अभी तक आँख मारती थी, अब आँख फोड़ने भी लगी।” वेगा अभी भी आराम से खड़ा होकर शरारतें कर रहा था।

तभी ऑक्टोपस ने अपने एक हाथ से वीनस की गर्दन पकड़ ली। वीनस की साँसें अब घुटने लगीं। कैंची भी उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गई।

यह देख वेगा ने पास पड़े पानी के पाइप से पानी की फुहार, ऑक्टोपस के चेहरे पर मारने लगा।

“अरे बेवकूफ, तुम उसकी ओर हो या मेरी ओर।” वीनस ने अपना गला छुड़ाते हुए कहा- “वह पानी का ही जीव है और तुम उस पर पानी मार रहे हो ।”

वेगा को अपनी गलती का अहसास हो गया, पर तब तक वह ऑक्टोपस आकार में और बड़ा हो गया।

तभी सिंहमानव बाकी जीवों को अपने पंजो से नोचता हुआ उधर आ गया, उसने बिना उस ऑक्टोपस को मौका दिये, उसका पूरा पेट अपने पंजे से फाड़ दिया।

यह देख वीनस डरकर वेगा की ओर आ गई। सिंहमानव अब बाकियों का काल बनकर आगे बढ़ गया।

तभी अचानक पता नहीं कहां से सैकड़ों समुद्री जीवों ने सिंहमानव पर हमला कर दिया।

एकसाथ इतने जीवों से लड़ना सिंहमानव के बस की भी बात नहीं थी, अब वह सभी जीव मिलकर सिंहमानव को काटने लगे।

यह देख वेगा ने अपनी घड़ी के वॉलपेपर को बदलकर ‘सिंह’ से ‘धनु’ कर लिया।

अब वह सिंहमानव अपनी जगह से गायब हो गया और उसकी जगह एक अश्वमानव दिखाई देने लगा।

अश्वमानव के हाथ में तीर और धनुष था। अश्वमानव ने बिना किसी को मौका दिये दूर से ही सबको तीरों से
बेधना शुरु कर दिया।

अश्वमानव के तीर चलाने के गति इतनी अधिक थी, कि कोई जलीय जंतु उसके पास ही नहीं आ पा रहा था।

वह एक साथ अपने धनुष पर 5 तीर चढ़ाकर सबको मार रहा था। सबसे विशेष बात थी कि उसके तरकश से तीर खत्म ही नहीं हो रहे थे।

वेगा और वीनस अब मात्र दर्शक बने उस अश्वमानव को युद्ध करते देख रहे थे।

“क्या ये जलीय जीव तुम्हारा कहना नहीं मान रहे थे?” वेगा ने वीनस से पूछा।

“नहीं, इनका मस्तिष्क इनके बस में नहीं है और ऐसी स्थिति में यह मेरा कहना नहीं मान सकते।” वीनस ने कहा।

तभी पता नहीं कहां से एक ईल मछली आकर वेगा के गले से लिपट गई। यह देख वीनस ने अश्वमानव की ओर देखा, अश्वमानव अभी भी सभी से युद्ध कर रहा था।

वीनस समझ गई कि एक पल की भी देरी वेगा के लि ये घातक हो सकती है, पर परेशानी ये थी कि वीनस उस ईल को अपने हाथों से नहीं छुड़ा सकती थी।

तभी वीनस की नजर सामने एक शेड पर बैठे बाज की ओर गई। बाज को देखते ही वीनस के मुंह से एक विचित्र सी आवाज उभरी।

उस आवाज को सुन बाज तेजी से उस ओर आया और वेगा के गले में फंसी ईल को एक झटके से ले हवा में उड़ गया।

यह देख वीनस ने भागकर वेगा को थामा। गला घुटने की वजह से वेगा की आँखों के आगे अंधेरा छा गया था। पर साँस आते ही वेगा ठीक हो गया।

“मैं भी सोच रही थी कि उस ईल के मुंह पर पानी मार दूं, पर आसपास कहीं पानी था ही नहीं, इसलिये बाज के द्वारा उस ईल को पास के तालाब तक भिजवा दिया है।” वीनस ने मुस्कुराते हुए कहा।

वेगा ने घूरकर वीनस की ओर देखा पर कुछ कहा नहीं। उधर तब तक अश्वमानव ने सभी जलीय जीवों का सफाया कर दिया था।

“सारे जीव खत्म हो गये हैं, पर अब अपने घर कैसे चलें? आसपास के सारे लोग खिड़की से हमें ही देख रहे हैं।” वीनस ने दबी आवाज में कहा।

“तो फिर अभी घर की जगह कहीं और चलो, कुछ देर बाद हम वापस आ जायेंगे।“

यह कह वेगा ने अश्वमानव को गायब किया और चुपचाप अपने घर की विपरीत दिशा में वीनस के साथ दौड़ पड़ा।

आज इन दोनों का एक सुपरहीरो की तरह पहला युद्ध था, लेकिन इस पहले युद्ध ने ही इन्हें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था।


जारी रहेगा______✍️
Nice update.....
 

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#159.

चैपटर-6
चींटीयों का संसार-
1
(तिलिस्मा 3.11)

सुयश सहित सभी तिलिस्मा के द्वार संख्या 3.1 में पहुंच गये, पर वहां का नजारा देख सभी के हाथ पैर कांप गये।

वह एक बहुत बड़ा खोखले पहाड़ का हिस्सा था, जिसमें चींटीयों का एक अद्भुत संसार बहुत दूर तक फैला हुआ था।

“बाप रे बाप! ये तो चींटीयों की दुनिया लग रही है।” ऐलेक्स ने आश्चर्य से भरकर, चारों ओर नजरें दौड़ाते हुए कहा- ”पर भलाई यही है कि यहां सभी कुछ अभी तक निष्क्रिय है।”

“यहां पर बहुत सी अनोखी चीजें हैं, इसलिये बिना समझे कोई भी, कुछ भी नहीं छुएगा।” सुयश ने कहा- “पहले सारी चीजों को ध्यान से देखना जरुरी है, तभी हम सही दिमाग लगा कर सही चीजों का चयन कर पायेंगे।”

सुयश की बात सुन सभी ने सहमति से सिर हिलाया। अब सभी घूमकर पहले सारी चीजें देखने लगे।

सबसे पहले सबकी निगाह, पहाड़ के बीचो बीच स्थित एक 15 फुट ऊंची चींटी की मूर्ति पर गई।

वह चींटी लाल रंग की थी। ओर उसके पंख भी थे। उसके एक हाथ में एक बड़ा सा सुनहरा भाला और दूसरे हाथ में एक छोटा सा लकड़ी का यंत्र था।

वह लकड़ी का यंत्र किसी रिमोट की भांति प्रतीत हो रहा था।

उस लकड़ी के यंत्र पर एक छोटा सा हैण्डिल लगा था, जो किसी जॉयस्टिक की भांति प्रतीत हो रहा था।

उस लकड़ी के यंत्र पर 1 नारंगी रंग का बटन लगा था। (जॉयस्टिक एक प्रकार का हैंडल होता है, जिसे किसी भी दिशा में घुमाकर, गेम को नियंत्रित किया जाता है) उस लकड़ी के यंत्र पर एक छोटी सी काँच की स्क्रीन भी लगी थी।

“यह कोई योद्धा चींटी लग रही है?” तौफीक ने कहा- “पर इस मायाजाल से बचने के लिये, हममें से किसी के पास चींटीयों की जानकारी होना बहुत जरुरी है।”

“मुझे चींटीयों की सारी जानकारी है तौफीक अंकल” शैफाली ने कहा- “मुझे तो लगता है कि कैश्वर ने हम सभी के लिये इन दरवाजों का निर्माण किया है। जिस प्रकार पहला द्वार जेनिथ दीदी की विशेषताओं को
देखकर बनाया गया था, ठीक उसी प्रकार यह द्वार मेरी विशेषताओं को देखकर बन या गया है।

"क्यों कि मुझे चींटीयों के बारे में लगभग सभी कुछ पता है। जैसे कि यह रानी चींटी है। यह दूसरी सभी चींटीयों में सबसे बड़ी होती है। यही चींटीयों की इस कॉलोनी का प्रतिनिधित्व करती है। अंडे सिर्फ रानी चींटी ही देती है और यह एक अविश्वसनीय योद्धा होती है, रानी चींटी अपने मरने तक युद्ध करती है और इसके मरने के कुछ दिनों के बाद इसकी कॉलोनी भी खत्म हो जाती है।”

“पर इसके हाथ में यह रिमोट कैसा है?” क्रिस्टी ने पूछा।

“शायद इस रिमोट के माध्यम से यह बाकी की चींटीयों को नियंत्रित करती हो?” जेनिथ ने कहा।

“चलो आगे देखते हैं कि और क्या है, फिर आगे के बारे में सोचेंगे।” सुयश यह कहकर आगे बढ़ गया।

आगे इन्हें 3 बड़े आयताकार कंटेनर रखे दिखाई दिये, जिनका आकार लगभग 20 फुट के आसपास था।

पहले कंटेनर में कोई दरवाजा नहीं था, वह पूरी तरह से बंद था। यह देख सभी दूसरे कंटेनर की ओर बढ़ गये।

दूसरे कंटेनर का दरवाजा खोलने पर उसमें बहुत सी लाल और नीली गेंद रखी हुई दिखाई दीं।

लाल गेंदें थोड़ी चिपचिपी थीं और नीली गेंद से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी।

तीसरे कंटेनर में बहुत सी नारंगी रंग की चीटींयां भरीं थीं। सभी चींटीयों का आकार 4 से 5 फुट के बीच था।

सभी चींटीयां निष्क्रिय थीं। उनमें कोई गति नहीं थी। लग रहा था कि जैसे वह सभी सो रही हों।

“यह सभी नारंगी रंग की चींटीयां ‘रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयां’ हैं। यह श्रृमिक चींटीयां होती हैं।” शैफाली ने फिर सबको बताते हुए कहा- “इनका कार्य सभी चींटीयों का काम आसान करना होता है।“

सभी को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे सभी लोग कोई म्यूजियम देखने आये हैं और शैफाली उस म्यूजियम की गाइड हो।

बहरहाल अभी म्यूजियम खत्म नहीं हुआ था, इसलिये सभी फिर से शैफाली के साथ आगे बढ़ गये।

आगे एक 20 फुट ऊंचा दरवाजा बना था, जिस पर 4 ‘की-होल’ बने थे।

“मुझे लगता है कि यह दरवाजा ही इस मायाजाल से बाहर निकलने का रास्ता है और इस पर बने यह 4 की-होल बताते हैं कि यहां पर कहीं ना कहीं 4 चाबियां छिपी हुई हैं। हमें उन चाबियों को प्राप्त कर, इस द्वार के द्वारा बाहर निकलना होगा।” सुयश ने कहा।

सभी को सुयश का तर्क सही लगा।

“यानि कि हमारा पहला कार्य उन 4 चाबियों को ढूंढना है।” जेनिथ ने कहा।

अब सभी की नजर आगे की ओर गई। आगे सभी को एक 25 फुट चौड़ी नदी दिखाई दी, जिसके दूसरी ओर एक 20 फुट ऊंची चाबी की मूर्ति बनी थी।

उस चाबी की मूर्ति के बगल में, एक 10 फुट ऊंची लाल रंग की चींटी घूम रही थी।

“1 चाबी तो नदी के उस पार दिख रही है, पर उसकी रक्षा कोई चींटी कर रही है।” सुयश ने कहा।

“पर कैप्टेन, वह तो चाबी की 20 फुट ऊंची मूर्ति है, वह थोड़ी ना लगेगी इस दरवाजे में।” क्रिस्टी ने कहा।

“वह मूर्ति ऐसे ही तो नहीं बनायी गयी होगी, अगर वह दरवाजे में लगने वाली चाबी नहीं है, तो भी मैं दावे के कह सकता हूं कि एक चाबी वहीं है, नहीं तो वह चींटी वहां किस चीज की रक्षा कर रही है?” सुयश ने
अपने दाहिने हाथ का मुक्का बना कर, बांये हाथ के पंजे पर मारते हुए कहा।

“कैप्टेन अंकल सही कह रहे हैं।” शैफाली ने सुयश की बात पर अपनी सहमति जताते हुए कहा- “पर अब तो नदी पार करने के बाद ही पता चलेगा कि वहां पर कोई चाबी है कि नहीं?...पर शायद आप लोग नदी के उस पार मौजूद चींटी की गति को नहीं देख रहे, वह ‘ब्लैक गार्डन चींटी’ है, जो काफी ज्यादा फुर्तीली होती है। अगर हममें से को ई उस पार पहुंच भी गया, तो उस चींटी से नहीं बच पायेगा।”

“मैं उससे बच सकती हूं।” क्रिस्टी ने कहा- “पर उसे मारे बिना चाबी को नहीं ढूंढा जा सकता और उस चींटी को मारने के लिये मेरे पास कोई हथियार नहीं है।”

“हथियार है।” तौफीक ने कहा- “रानी चींटी के हाथ में मौजूद भाले से उस चींटी को मारा जा सकता है। पर पता नहीं भाले को छूते ही कहीं रा नी चींटी ना जिंदा हो जाये?”

“यह रिस्क तो लेना ही पड़ेगा।” सुयश ने कहा और चलते हुए रानी चींटी के पास पहुंच गया।

सुयश ने हाथ आगे बढ़ा कर रानी चींटी का भाला पकड़ लिया।

सभी पूरी तरह से किसी भी नयी घटना के लिये सावधान थे।

सुयश ने एक झटके से रानी चींटी के हाथ से वह भाला खींच लिया, पर किसी प्रकार की कोई घटना नहीं घटी। यह देख सबने राहत की साँस ली।

सुयश ने वह भाला क्रिस्टी को पकड़ा दिया। क्रिस्टी हाथ में भाला ले नदी की ओर बढ़ गयी, पर क्रिस्टी ने जैसे ही नदी के पानी की ओर, अपने कदम को बढाया, वह हैरान हो गई।

“कैप्टेन, मैं नदी के उस पार नहीं जा पा रही, इस नदी पर कोई अदृश्य दीवार है।” क्रिस्टी ने सुयश को देखते हुए कहा।

क्रिस्टी की बात सुन सभी ने एक-एक कर उस नदी के दूसरी ओर जाने की कोशिश की, पर सब व्यर्थ। अदृश्य दीवार के कारण उस पार जाना संभव नहीं था।

“अब तो 2 ही बातें हो सकती हैं।” जेनिथ ने कहा- “या तो इस अदृश्य दीवार को हटाने के लिये यहां पर कुछ होगा? या फिर नदी पार की चाबी प्राप्त करने का कोई और तरीका होगा?”

“हमें एक बार फिर यहां की सारी चीजों पर ध्यान देना होगा।” सुयश ने कहा।

“नहीं रुक जाइये कैप्टेन अंकल।” तभी शैफाली ने सुयश को रोक दिया।

सुयश प्रश्न भरी नजरों से शैफाली को देखने लगा, पर शैफाली ने सुयश को कोई जवाब नहीं दिया, वह तेजी से कुछ सोच रही थी।

सुयश समझ गया कि शैफाली कुछ सोच रही है, इसलिये वह शांत होकर शैफाली के अगले शब्दों का इंतजार करने लगा।

कुछ देर सोचने के बाद शैफाली बोल उठी- “कैप्टेन अंकल, अगर हमने रानी चींटी का भाला निकाला और कुछ भी नहीं हुआ, तो इससे ये बात तो साबित हो गयी कि रानी चींटी के हाथ में पकड़ा रिमोट जैसा यंत्र भी हमारे लिये ही बना है। अब बात यह है कि हम उस रिमोट से क्या कर सकते हैं? तो अगर वह रिमोट है और हम इस समय चींटीयों के संसार में खड़े हैं, तो जरुर हम उससे चींटीयों को ही नियंत्रित कर सकते होंगे?....अब आते हैं तीसरे कंटेनर में मौजूद उन निष्क्रिय चींटीयों पर....उनमें से नारंगी रंग वाली ‘रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयां’ दुनिया में सिर्फ अमेजन के जंगलों में ही पायी जाती है।

"उस चींटी की खास बात उनकी एकता है। वह चींटींयां नदी को पार करने के लिये आपस में जुड़कर एक शक्तिशाली बेड़ा बनाती हैं, जिससे होकर सभी चींटींयां आसानी से नदी पार कर जाती हैं। तो मुझे लग रहा है कि हमें नदी के उस पार जाने के लिये उन्हीं चींटीयों से नदी पर एक पुल बनवाना होगा।”

शैफाली की बात सुन सभी की आँखें चमक उठीं।

ऐलेक्स ने सुयश से इजाजत ले रानी चींटी के हाथ से वह रिमोट निकाल लिया।

“चूंकि तीसरे कंटेनर में भी नारंगी चींटीयां हैं और इस रिमोट पर भी नारंगी रंग का बटन है, इसलिये मुझे लगता है कि यह रिमोट उन्हीं रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयों को नियंत्रित करने के लिये बनाया गया है।” ऐलेक्स ने कहा- “क्या मैं इसका नारंगी बटन दबाऊं कैप्टेन?”

ऐलेक्स की बात सुन सुयश ने इजाजत दे दी।

ऐलेक्स ने नारंगी रंग के बटन को दबाया, पर बटन दबाने से रेनफॉरेस्ट फायर चींटीयों पर कोई असर नहीं हुआ। यह देख ऐलेक्स, शैफाली की ओर देखने लगा।

“मुझे लगता है कि इस रिमोट से उन चींटीयों को नियंत्रित करने से पहले उन चींटीयों को सक्रिय करना जरुरी है।” शैफाली ने कहा और फिर सोच में पड़ गयी।

कुछ सोचने के बाद शैफाली फिर बोल उठी- “कैप्टेन अंकल हो ना हो अब दूसरे कंटेनर में रखी उन लाल और नीली गेंद का भी कहीं प्रयोग अवश्य होगा? तौफीक अंकल आप जरा उस कंटेनर से दोनों रंग की एक-एक गेंद बाहर ले आइये।”

शैफाली की बात सुनकर, तौफीक दूसरे कंटेनर से, दोनों रंग की एक-एक गेंद उठा लाया और शैफाली के हवाले कर दिया।

शैफाली ने पहले दोनों गेंद को ध्यान से देखा और फिर उसमें से निकलती खुशबू को सूंघने लगी।

कुछ देर के बाद शैफाली बोल उठी- “मुझे इस नीली गेंद से कुछ खाने जैसी खुशबू आ रही है....मुझे लगता है कि यह अवश्य ही चींटीयों का खाना है।....कैप्टेन अंकल एक बार हमें इस नीली गेंद को रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयों के पास रखकर देखना चाहिये, शायद इसको खाने के लिये वह सक्रिय हो जायें?”

सुयश ने शैफाली के हाथ से उस नीली गेंद को लिया और दूसरे कंटेनर में मौजूद एक रेन फॉरेस्ट फायर चींटी के सामने रख दिया।

शैफाली का सोचना बिल्कुल सही था।

नीली गेंद के सामने रखते ही वह रेन फॉरेस्ट फायर चींटी सजीव होकर उसे खाने लगी और इसी के साथ रिमोट का नारंगी रंग का बटन जलने लगा।

“कैप्टेन इस रिमोट का नारंगी बटन ऑन हो गया।” ऐलेक्स ने खुशी से चीखते हुए कहा।

यह सुनकर सुयश के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी।

अब सुयश ने तौफीक की ओर इशारा किया। सुयश का इशारा पाकर तौफीक भी सुयश के साथ दूसरे कंटेनर में घुस गया और अपने हाथों से नीली गेंदें निकालकर जेनिथ और क्रिस्टी को पकड़ाने लगा।

जेनिथ और क्रिस्टी ने उन नीली गेंदों को, सभी रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयों को खिला दिया।

अब सभी रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयां सक्रिय हो गईं।

ऐलेक्स ने रिमोट पर मौजूद हैण्डिल को इधर-उधर घुमाकर देखा।

अब ऐलेक्स हैण्डिल को जिस दिशा में घुमा रहा था, सभी रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयां उस दिशा की ओर जा रहीं थीं और ऐलेक्स को वह सभी चींटीयां रिमोट पर मौजूद स्क्रीन पर नजर आ रहीं थीं।

यह देख ऐलेक्स सभी रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयों को नदी के पास ले गया और फिर उसने नारंगी बटन को दबा दिया।

नारंगी बटन को दबाते ही, सभी चींटीयों ने नदी पर पुल बनाना शुरु कर दिया।

पुल बनते देख सभी खुश हो गये। आखिरकार शैफाली ने अपने दिमाग का लोहा एक बार फिर सबको मनवा दिया था।

कुछ ही देर में रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयों ने नदी पर पुल बना दिया। यह देख क्रिस्टी ने भाले को अपने हाथों में पकड़ा और धीरे से उस पुल पर चढ़ गयी।

क्रिस्टी ने सबसे पहले पुल पर थोड़ा उछलकर उसकी मजबूती का जायजा लिया और फिर सधे कदमों से नदी के दूसरी ओर चल दी।

क्रिस्टी को नदी के उस पार आता देख, ब्लैक गार्डन चींटी और तेज-तेज चाबी की मूर्ति के आस-पास चक्कर लगाने लगी।

क्रिस्टी की नजरें भी सावधानी वश, ब्लैक गार्डन चींटी की ही ओर थी।

क्रिस्टी ने जैसे ही अपने कदम नदी के उस पार रखे, ब्लैक गार्डन चींटी ने उस पर हमला कर दिया, पर क्रिस्टी सावधान थी, उसने उछलकर
स्वयं को बचाया और फिर ब्लैक गार्डन चींटी से कुछ दूर चली गई।

क्रिस्टी ब्लैक गार्डन चींटी पर हमला करने से पहले उसकी गति को ध्यान से देख रही थी।

ब्लैक गार्डन चींटी ने फिर से पलटकर क्रिस्टी पर हमला किया, क्रिस्टी ने फिर से स्वयं को बचाया, पर इस पर बार क्रिस्टी ने अपने भाले से ब्लैक गार्डन चींटी के शरीर पर एक जख्म बना दिया।

ब्लैक गार्डन चींटी दर्द से बिलबिला उठी, वह पलटकर और तेजी से क्रिस्टी पर हमलावर हो गई, पर वह क्रिस्टी थी, जिसने रेत मानव को भी मौका नहीं दिया था, फिर इस ब्लैक गार्डन चींटी की बिसात ही क्या थी।

कुछ ही देर के बाद क्रिस्टी ने चींटी को मार गिराया।

ऐलेक्स ने ब्लैक गार्डन चींटी को मरते देख नदी के इस पार से ही, जोर की सीटी बजाकर क्रिस्टी का उत्साह बढ़ाया।

क्रिस्टी ने मुस्कुरा कर ऐलेक्स को एक बार देखा और फिर उस चाबी की मूर्ति के पास असली चाबी ढूंढने लगी।

कुछ ही देर में क्रिस्टी के तेज आँखों ने असली चाबी को उस मूर्ति के पीछे की ओर चिपके देख लिया।

क्रिस्टी ने उस चाबी को निकालकर खुशी से सबकी ओर हवा में लहराया। क्रिस्टी के हाथ में चाबी देख सभी खुश हो गये।

क्रिस्टी वह चाबी लेकर नदी के इस पार वापस आ गयी।

क्रिस्टी के इस पार आते ही सभी रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयां अपने आप गायब हो गईं और इसी के साथ रिमोट पर मौजूद नारंगी बटन भी गायब हो गया।

“लगता है रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयों का काम अब खत्म हो गया था, इसलिये वह सभी गायब हो गईं।” सुयश ने कहा।

क्रिस्टी ने आगे बढ़कर दरवाजे में पहली चाबी लगाकर घुमा दिया, वातावरण में एक जोर की गड़गड़ाहट उभरी, पर वह द्वार नहीं खुला।

“अब हमें दूसरी चाबी ढूंढनी पड़ेगी।” सुयश ने कहा- “वह भी यहीं कहीं होनी चाहिये?” तभी ऐलेक्स की आवाज ने सभी का ध्यान, उसकी ओर आकृष्ट कर दिया।

“कैप्टेन अब इस रिमोट पर अपने आप नीले रंग का एक बटन नजर आने लगा है।” ऐलेक्स ने तेज आवाज में कहा।

“इसका मतलब अब कहीं दूसरी चींटीयां भी हैं और हमें इस रिमोट के द्वारा उन चींटीयों को भी नियंत्रित करना होगा।” शैफाली ने कहा।

शैफाली की बात सुन सभी अपने चारो ओर देखने लगे।

“कैप्टेन, तीसरे कंटेनर में अब नीली चींटीयां नजर आ रही हैं।” तौफीक की आवाज सुन सभी एक बार फिर उस तीसरे कंटेनर के पास आ गये।

“ये ‘लीफ कटर चींटीयां’ हैं, इनकी विशेषता पानी के अंदर ज्यादा सक्रिय होना है।” शैफाली ने उन नीली चींटीयों को देखते हुए कहा।

“कहीं दूसरी चाबी नदी के अंदर तो नहीं?” जेनिथ ने सबका ध्यान नदी की ओर किया।

“शायद जेनिथ सही कह रही है, क्यों कि हम पानी के अंदर नहीं जा सकते, इसलिये दूसरी चाबी अवश्य ही पानी के अंदर ही है।” शैफाली ने कहा- “मुझे लगता है कि इन लीफ कटर चींटीयों को भी वही नीली गेंदे
खिलाकर सक्रिय करना होगा।”

सभी ने तुरंत नीली गेंदें खिलाकर लीफ कटर चींटीयों को भी सक्रिय कर दिया।

उन चींटीयों के सक्रिय होते ही ऐलेक्स के हाथ में मौजूद रिमोट का नीला बटन भी ऑन हो गया और उस पर लगी स्क्रीन पर सभी लीफ कटर चींटीयां दिखाई देने लगीं।

इसके आगे का काम ऐलेक्स को पता था, वह सभी लीफ कटर चींटीयों को नियंत्रित कर पानी के अंदर लेकर चला गया।

ऐलेक्स को पानी के अंदर का दृश्य स्क्रीन पर नजर आ रहा था।

तभी ऐलेक्स को पानी के अंदर दूसरी चाबी दिखाई दी, परंतु उस चाबी की रक्षा भी एक बड़ी सी लाल रंग की चींटी कर रही थी, जिसने लीफ कटर चींटीयों पर हमला कर, उन्हें मारना शुरु कर दिया।

यह देख ऐलेक्स ने बाकी बची लीफ कटर चींटीयों को वहां से हटा लिया।

“पानी के अंदर मौजूद चींटी ‘आस्ट्रेलियन बुलडॉग चींटी’ है, वह लीफ कटर चींटीयों को आसानी से मार सकती है।” शैफाली ने रिमोट की स्क्रीन में देखते हुए कहा- “अब मुसीबत हो गयी। क्यों कि हममें से कोई भी पानी के अंदर जा नहीं सकता और लीफ कटर चींटीयां उस आस्ट्रेलियन बुलडॉग चींटी को मार नहीं सकतीं। अब क्या किया जाये?”

यह सुनकर सभी के चेहरे मुर्झा गये।

सुयश ने सभी के मुर्झाये चेहरे को देख उनमें जोश भरते हुए कहा- “दोस्तों हमें हार नहीं माननी चाहिये, अगर यह मुश्किल हमारे सामने है, तो इसका हल भी यहीं पर मौजूद होगा। हमें सिर्फ शांत भाव से उस उपाय को ढूंढने की जरुरत है और मुझे लगता है कि यह उपाय शैफाली हम सभी से ज्यादा बेहतर तरीके से ढूंढ सकती है।”

सुयश के शब्द सुन शैफाली में एक नयी ऊर्जा का संचार हो गया और वह शांत भाव से फिर से सारी चीजों के बारे में सोचने लगी।



जारी रहेगा______✍️
Waah bhai waah, kya baat hai, rain fire forest cheeti, black garden cheentiya, kya kya hota hai, sala hum to bas ek do ka naam hi jaante they, aapne to gyaan ka bhandaar bhar diya :bow:
Jab se is kahani me aaye nain, dimaak ke pech hil gaye hain, master piece hai ye story, jitni tareef ki jaye kam hai :bow::bow::bow: awesome update 🙏🏼
 

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#160.

स्वप्नतरु:
(18 वर्ष पहले........जनवरी 1977, सामरा राज्य की पर्वत श्रृंखला)

“युगाका और वेगा ! आज तुम दोनों को, सामरा राज्य की परंपरा के हिसाब से, पूरा दिन महावृक्ष के पास ही व्यतीत करना होगा।” कलाट ने वेगा और युगाका को देखते हुए कहा- “बच्चों, ये ध्यान रखना कि इस परंपरा की शुरुआत हमारे पूर्वजों ने की थी, इसीलिये हम आज भी इसे निभा रहे हैं, पर आज का यह दिन तुम्हारे पूरे भविष्य का निर्धारण करेगा। इसलिये आज के इस दिन का सदुपयोग करना और महावृक्ष से जो कुछ भी सीखने को मिले, उसे मन लगा कर सीखना।”

“क्या बाबा, आप भी हमें पूरे दिन के लिये एक वृक्ष के पास छोड़कर जा रहे हैं।” युगाका ने मुंह बनाते हुए कहा- “यहां पर तो कुछ भी खेलने को नहीं है...अब हम क्या इस वृक्ष की पत्तियों के साथ खेलेंगे?”

“ऐसा नहीं कहते भाई, वृक्ष को बुरा लगेगा।” वेगा ने विशाल महावृक्ष को देखते हुए कहा।

“हाऽऽ हाऽऽ हाऽऽ! अरे बुद्धू, कहीं वृक्ष को भी बुरा लगता है।” युगाका ने वेगा पर हंसते हुए कहा- “तुम्हें तो बिल्कुल भी समझ नहीं है।”

कलाट ने मुस्कुराकर वेगा की ओर देखा और फिर महावृक्ष को प्रणाम कर उस स्थान से चला गया।

“बाबा तो गये, अब तू बता मेरे साथ खेलेगा कि नहीं?” युगाका ने वेगा को पकड़ते हुए कहा।

“पर भाई, हम तो यहां पर महावृक्ष से कुछ सीखने आये हैं, खेलने थोड़ी ना।” वेगा ने मासूमियत से जवाब दिया।

“सोच ले, अगर तू मेरे सा थ नहीं खेलेगा, तो मैं तुझे पीटूंगा और देख ले आज तो यहां तुझे कोई बचाने वाला भी नहीं है?” युगाका ने वेगा को डराते हुए कहा।

युगाका की बात सुन नन्हा वेगा सच में बहुत डर गया- “हां...हां खेलूंगा, पर यहां पर खेलने की कोई वस्तु तो है ही नहीं? फिर हम यहां कौन सा खेल खेलेंगे?” वेगा ने कहा।

“हम यहां पर लुका-छिपी खेलेंगे। उसके लिये हमें किसी चीज की जरुरत नहीं है और छिपने के लिये तो यहां पर बहुत से स्थान हैं।” युगाका ने वेगा को चारो ओर का क्षेत्र दिखाते हुए कहा।

“ठीक है भाई, पर पहली बार मैं छिपूंगा।” वेगा ने अपनी भोली जुबान से कहा।

“ठीक है, तो मैं 100 तक गिनती गिन कर आता हूं, तब तक तुम छिप जाओ, पर ध्यान रखना, यहां से दूर मत जाना।” युगाका ने अपने छोटे भाई के प्रति चिंता जताते हुए कहा।

युगाका की बात सुन वेगा ने हां में अपना सिर हिला दिया। युगाका अब कुछ दूरी पर जाकर, अपना मुंह घुमा जोर-जोर से गिनती गिनने लगा, इधर वेगा की निगाह चारो ओर छिपने की जगह ढूंढने लगी।

तभी वेगा को महावृक्ष के तने में एक बड़ी सी कोटर दिखाई दी, वह जल्दी-जल्दी उस कोटर में घुस गया।

“यह कोटर अभी तो यहां पर नहीं थी, यह इतनी जल्दी कैसे उत्पन्न हो गई?” वेगा ने अपने मन में कहा- “पर जो भी हो भाई, मुझे यहां आसानी से ढूंढ नहीं पायेंगे।”

तभी वेगा के देखते ही देखते उस कोटर का मुंह अपने आप बंद हो गया।

यह देख नन्हा वेगा घबरा गया। अब कोटर में धुप्प अंधेरा छा गया था।

तभी वेगा को एक बड़ा सा जुगनू कोटर के अंदर उड़ता हुआ दिखाई दिया। उत्सुकतावश वेगा उस टिमटिमाते जुगनू के पीछे-पीछे चल दिया।

उधीरे-धीरे वृक्ष का आकार अंदर से बड़ा होता जा रहा था।

तभी वेगा को वृक्ष के अंदर कुछ और जुगनू उड़ते हुए दिखाई दिये। उन सभी जुगनुओं से निकल रही रोशनी से, वह पूरा वृक्ष रोशन हो गया था।

उसी समय वेगा को वहां एक छोटा सा घोड़ों का रथ दिखाई दिया, जिस पर एक सैंटाक्लॉस की तरह का बूढ़ा बैठा था।

“मेरा नाम टोबो है बच्चे। क्या तुम मेरे साथ घूमने चलोगे?” टोबो ने कहा।

वेगा, टोबो की बातें सुनकर एक पल के लिये यह भी भूल गया कि उस वृक्ष में यह विचित्र दुनिया आयी कहां से?

“आप मुझे कहां घुमाओगे?” वेगा ने टोबो से पूछा।

“अरे यह महा वृक्ष की दुनिया बहुत बड़ी है। मैं तुम्हें इसमें सितारों के पास ले जा सकता हूं, मैं तुम्हें इसमें बोलने वाली नदी दिखा सकता हूं, सतरगा घोड़ा, जलपरी...किताबों की दुनिया....बहुत कुछ है इसमें
दिखाने को। तुम बताओ बच्चे, तुम क्या देखना चाहते हो इसमें?” टोबो ने नन्हें बच्चे को सपने दिखाते हुए कहा।

“क्या बताया आपने किताबों की दुनिया?...हां मुझे किताबों की दुनिया देखना है।” वेगा ने कहा।

इतनी सारी चीजों में वेगा ने उस चीज का चयन किया, जिसका चयन किसी भी बच्चे के लिये असंभव था।

“तो फिर ठीक है बच्चे, आओ मेरी घोड़ा गाड़ी में बैठ जाओ, मैं तुम्हें दिखाता हूं, इस ब्रह्मांड की सबसे बड़ी किताबों की दुनिया।” टोबो यह कहकर घोड़ा गाड़ी से उतरा और सहारा देकर वेगा को घोड़ा गाड़ी में बैठा दिया।

घोड़ा गाड़ी में एक नर्म सी सीट लगी थी, वेगा उसी पर आराम से बैठ गया।

वेगा को बैठते देख टोबो ने घोड़ा गाड़ी को आगे बढ़ा दिया।

“तुम्हारा नाम क्या है बच्चे?” टोबो ने वेगा से पूछा।

“मेरा नाम वेगा है।” वेगा ने चारो ओर के दृश्यों को देखते हुए कहा।

“वेगा.....वेगा का मतलब तेज होता है। तो फिर हम इतना धीमा क्यों जा रहे हैं?” यह कहकर टोबो ने घोड़ा गाड़ी की गति और बढ़ा दी।

घोड़ा गाड़ी अब किसी जंगल से होकर गुजर रही थी। घोड़ा गाड़ी की तेज गति के कारण वेगा को ठण्डी हवा के झोंके अपने चेहरे पर महसूस हो रहे थे।

वेगा जंगल में घूम रहे अनेक जीवों को ध्यान से देख रहा था।

कुछ देर के बाद वेगा को सामने समुद्र दिखाई दिया, यह देख वेगा ने चिल्ला कर कहा- “टोबो, सामने समुद्र है, घोड़ा गाड़ी को रोक लो।”

“चिंता मत करो वेगा, यह समुद्र हमारी घोड़ा गाड़ी को नहीं रोक सकता।“ यह कहते हुए टोबो ने घोड़ा गाड़ी को समुद्र के अंदर घुसा दिया।

समुद्र के अंदर पहुंचते ही घोड़ा गाड़ी का वह भाग जिसमें वेगा बैठा था, उसके चारो ओर, एक काँच की एक पारदर्शी दीवार बन गई।

वेगा उस पारदर्शी दीवार से पानी में घूम रही मछलियों को तैरते हुए देख रहा था, यह सब उसके लिये एक सपने की तरह से था।

तभी 4 डॉल्फिन मछलियां घोड़ा गाड़ी के साथ-साथ तैरने लगीं। बहुत ही अभूतपूर्व दृश्य था।

कुछ देर बाद घोड़ा गाड़ी समुद्र से बाहर आ गई। जिस जगह पर घोड़ा गाड़ी समुद्र से बाहर आयी थी, उस जगह पर जमीन पर एक बड़ा सा इंद्रधनुष बना था।

समुद्र के बाहर आते ही घोड़ा गाड़ी की काँच की दीवार स्वतः गायब हो गई।

घोड़ा गाड़ी अब उस इंद्रधनुष पर चढ़ गई।

वेगा ने देखा कि बहुत सी परियां इंद्रधनुध के रंगों को पेंट-ब्रश की कूची से रंग रहीं थीं।

परियों ने वेगा को देखकर इस प्रकार अपना हाथ हिलाया, जैसे कि वह उसे पहले से जानती हों।

कुछ देर बाद घोड़ा गाड़ी इंद्रधनुष से उतरकर, एक बहुत ही खूबसूरत शहर में प्रविष्ठ हो गई।

यह शहर पुराने जमाने के किसी बड़े शहर सा प्रतीत हो रहा था।

घोड़ा गाड़ी अब साधारण तरीके से सड़क पर चल रही थी। सड़क पर चारो ओर बहुत से आदमी घूम रहे थे।

चारो ओर फुटपाथ पर दुकानें सजी थीं और घूमते हुए लोग उन दुकानों से खरीदारी कर रहे थे।

कुछ देर ऐसे ही सड़कों पर घूमने के बाद टोबो ने घोड़ा गाड़ी को एक बड़ी से भवन के बाहर रोक लिया।

उस भवन पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था- “किताब घर”

टोबो ने को चवान की जगह से उतरकर, वेगा को पिछली सीट से उतारा- “वेगा, यह है किताबों की दुनिया ...तुम यहां अंदर जा सकते हो। याद रखना किताब को पढ़ने के बाद, तुम सीधे बाहर आ जाना, मैं बाहर ही तुम्हारा इंतजार करुंगा।”

“ठीक है टोबो।” यह कहकर वेगा किताब घर के द्वार की ओर चल दिया।

वेगा को देख दरबान ने किताब घर के विशाल द्वार को खोल दिया। वेगा उस खुले द्वार से अंदर प्रविष्ठ हो गया।

अंदर पहुंचते ही वेगा की आँखें फटी की फटी रह गई।

अंदर से किताब घर बहुत बड़ा था। वहां चारो ओर किताबें ही किताबें दिखाई दे रहीं थीं।

तभी एक लाइब्रेरियन वेगा के सामने आकर खड़ा हो गया- “मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं छोटे मास्टर?”

पर लाइब्रेरियन पर नजर पड़ते ही वेगा हैरान हो गया, उस लाइब्रेरियन की शक्ल हूबहू टोबो से मिल रही थी।

“आप तो टोबो हो।” वेगा ने मुस्कुराते हुए कहा।

“नहीं , मैं टोबो नहीं हूं, बस मेरी शक्ल टोबो से मिलती है।” लाइब्रेरियन ने कहा।

“क्या आप दोनों जुड़वा भाई हो?” वेगा ने भोलेपन से पूछा।

“नहीं, ना तो हम जुड़वां है और ना ही एक दूसरे को जानते हैं....छोटे मास्टर...लगता है कि आप पहली बार ‘स्वप्नतरु’ की दुनिया में आये हैं?” लाइब्रेरियन ने कहा।

“ये स्वप्नतरु क्या है?” वेगा की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी।

“स्वप्न का अर्थ होता है सपने और तरु का अर्थ होता है वृक्ष। अर्थात महावृक्ष हमें जो सपने दिखाता है, उस सपनों की दुनिया को स्वप्नतरु कहतें हैं।” लाइब्रेरियन ने वेगा को समझाते हुए कहा।

“तो क्या महावृक्ष मुझे सपना दिखा रहे हैं?” वेगा के दिमाग में सवालों का पिटारा था, जो कि खुलता ही जा रहा था।

“नहीं, यह सपना नहीं है, पर महावृक्ष ने इस दुनिया को अपनी शक्ति से स्वप्न का आकार दिया है, इस दुनिया पर समय का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। महावृक्ष का कहना है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, इसलिये सीखते वक्त, समय का रुक जाना ही बेहतर है।”

लाइब्रेरियन ने कहा- “पर यह सब तुम अभी नहीं समझोगे वेगा। अभी तुम बहुत छोटे हो। धीरे-धीरे तुम सारी चीजों को समझ जाओगे।”

लाइब्रेरियन के शब्द वेगा की समझ में नहीं आ रहे थे। इसलिये वेगा ने विषय को बदलते हुए पूछा- “यहां पर कौन-कौन सी किताबें हैं?”

“हां, यह हुई ना काम वाली बात। आओ मैं तुम्हें दिखाता हूं कि यहां पर क्या-क्या है?” यह कह लाइब्रेरियन एक दिशा की ओर चल दिया।

वेगा लाइब्रेरियन के पीछे-पीछे चल दिया।

लाइब्रेरियन वेगा को लेकर एक अजीब सी कुर्सी के पास पहुंचा, उस कुर्सी पर एक धातु का हेलमेट रखा था और उस हेलमेट से निकले कुछ तार कुर्सी के सामने मौजूद एक स्क्रीन के साथ जुड़े हुए थे।

लाइब्रेरियन ने वेगा को उस कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।

वेगा के उस कुर्सी पर बैठते ही लाइब्रेरियन ने वेगा को हेलमेट पहना दिया।

अब वेगा के सामने वाली स्क्रीन पर कुछ अजीब सी सुनहरी लाइनें दिखाई देने लगीं।

कुछ देर के बाद स्क्रीन से एक बीप की आवाज आई और स्क्रीन पर अंग्रजी भाषा का ‘K’ लिखकर आने लगा।

यह देख लाइब्रेरियन ने वेगा के सिर से हेलमेट निकाल लिया और फिर उसे ले एक दूसरी दिशा की ओर चल दिया।

अब वेगा से रहा ना गया, वह चलते-चलते बोल उठा- “पहले तो आप मुझे अपना नाम बताएं, क्यों कि मैं समझ नहीं पा रहा कि आपको किस नाम से संबोधित करुं?”

“वाह! जो प्रश्न सबसे पहले पूछना चाहिये था, वो इतनी देर बाद पूछ रहे हो....चलो कोई बात नहीं, फिर भी मैं बता देता हूं....मेरा नाम ऑस्कर है।” ऑस्कर ने कहा।

“मिस्टर ऑस्कर मेरा नाम वेगा है... और मैं आपसे बताना चाहता हूं कि आपने भी अभी तक मेरा नाम नहीं पूछा था, तो गलती सिर्फ अकेले मेरी नहीं हुई। और हां मिस्टर ऑस्कर, पहले मुझे ये बताइये कि आपने मेरे सिर पर हेलमेट क्यों लगाया? स्क्रीन पर आने वाले उस ‘K’ अक्षर का क्या मतलब था? और अब आप मुझे लेकर कहां जा रहे हैं?”

“तुम जितना छोटे दिखते हो, उतना छोटे हो नहीं, छोटे मास्टर।” ऑस्कर ने मुस्कुराते हुए कहा- “अच्छा चलो, तुम्हें बताता हूं...इस किताब-घर को ‘A’ से ‘Z’ तक अलग-अलग भागों में विभक्त किया गया है, जो कि यहां आने वाले लोगों की समझने और सीखने की शक्ति पर निर्भर करता है। हम उस हेलमेट के द्वारा आने वाले लोगों के, सीखने की क्षमता की जांच करते हैं और फिर वह हेलमेट हमें उस व्यक्ति को जिस विभाग में ले जाने की इजाजत देता है, हम उसे वहां ले जाते हैं। उसके बाद वहां वो जो सीखना चाहे, वो सीख सकता है।”

“अच्छा तो मेरे दिमाग का ग्रेड उस मशीन ने ‘K’ बताया है और अब आप मुझे ‘K’ सेक्शन की किताब पढ़ाने के लिये ले जा रहे हैं।” वेगा ने कहा।

“आप बिल्कुल सही समझे छोटे मास्टर।” यह कहकर ऑस्कर ने एक कमरे का द्वार खोला, जो कि अंदर से बहुत विशालकाय था, पर वहां एक भी किताब मौजूद नहीं थीं, वह कमरा पूरी तरह से खाली था।

वेगा उस कमरे को हैरानी से देखने लगा।

तभी ऑस्कर ने कमरे में मौजूद एक बटन को प्रेस कर दिया, उस बटन को प्रेस करते ही हवा में किताबों का एक समूह नजर आने लगा, जो कि हवा में पूरे कमरे में नाच रहा था।

“अब आप इनमें से कोई भी किताब सेलेक्ट कर सकते हैं छोटे मास्टर।” ऑस्कर ने वेगा से कहा।

वेगा अब उन किताबों के समूह को घूम-घूम कर देखने लगा, तभी वेगा की निगाह एक किताब पर पड़ी, जिस पर 2 आँखें बनीं हुईं थीं।

उस किताब का नाम था- ‘सम्मोहनास्त्र’। वेगा ने उस किताब को हवा से निकाल लिया।

वेगा के उस किताब को निकालते ही बाकी सारी किताबें गायब हो गईं।

“अच्छी पसंद है आपकी ।” ऑस्कर ने वेगा की तारीफ करते हुए कहा।

वेगा ने अब किताब को खोलने की चेष्टा की, पर वह किताब को खोल नहीं पाया- “मिस्टर ऑस्कर, यह किताब खुल क्यों नहीं रही है?”

“क्यों कि अभी तक आपने इस किताब का मूल्य नहीं चुकाया है। इसीलिये यह किताब खुल नहीं रही है।” ऑस्कर ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा।

“मूल्य?....पर मेरे पास तो इस समय इसका मूल्य चुकाने के लिये धन है ही नहीं।” वेगा ने अफसोस प्रकट करते हुए कहा- “पर आप कहोगे तो मैं बाबा से कह कर, आपको बहुत सारा धन दिला दूंगा।”

“इस पुस्तक की कीमत धन नहीं है छोटे मास्टर..स्वप्नतरु में धन का क्या काम? इस किताब की कीमत एक वचन है...कोई भी वचन जो तुम मुझे देना चाहो?” ऑस्कर के चेहरे पर यह कहते हुए मुस्कान बिखर गई।

“वचन!...बहुत अजीब सी कीमत है इस किताब की।” वेगा ने सोचते हुए कहा- “अच्छा ठीक है....मैं आपको वचन देता हूं कि मैं कभी भविष्य में, इस किताब से सीखने वाली कला का राज, किसी को नहीं बताऊंगा।”

“बहुत अच्छे....मैं यह वचन स्वीकार करता हूं।” ऑस्कर ने खुश होते हुए कहा- “अब तुम इस किताब को पढ़ सकते हो....पर ये ध्यान रहे वेगा कि जिस दिन तुम इस वचन को तोड़ोगे, तुम इस किताब सहित, इस स्वप्नतरु की सभी स्मृतियों को भूल जाओगे।” यह कहकर ऑस्कर उस कमरे से बाहर निकल गया।

अब वेगा ने उस किताब का पहला पन्ना खोल दिया, पहले पन्ने पर सफेद दाढ़ी वाले जादूगर सरीखे, एक बूढे़ का चित्र बना था, जिसके हाथ में एक जादू की छड़ी थी।

जैसे ही वेगा ने उस चित्र को छुआ, वह बूढ़ा उस चित्र से निकलकर बाहर आ गया।

“हां वेगा, क्या तुम सम्मोहन को सीखने के लिये तैयार हो ?” बूढ़े ने कहा।

“आप कौन हो और मेरा नाम कैसे जानते हो?” वेगा ने उस बूढ़े से पूछा।

“मैं ही तो हूं महावृक्ष।” बूढ़े ने कहा- “तुम मेरे ही स्वप्नतरु में तो मौजूद हो। चलो अब देर मत करो और किताब को छोड़कर मेरे सामने आ जाओ।”

वेगा महावृक्ष का यह रुप देखकर हैरान हो गया, पर वह उनका आदेश मान उनके सामने पहुंच गया।

“देखो वेगा, सम्मोहन के द्वारा हम किसी भी व्यक्ति के मन की बात को जान सकते हैं और उससे कोई भी कार्य करा सकते हैं। सम्मोहन को 3 तरह से किया जा सकता है....आँखों के द्वारा, आवाज के माध्यम से और किसी को छूकर।

"यह हमारी विद्या पर निर्भर करता है कि हम किसी व्यक्ति को कितनी देर तक सम्मोहित कर सकते हैं। सम्मोहन के दौरान उस व्यक्ति के मस्तिष्क का नियंत्रण, तुम्हारे हाथ में आ जायेगा, तुम उसके मस्तिष्क में झांककर, कोई भी बीती घटना को देख सकते हो, उसके विचारों को पढ़ सकते हो, यहां तक कि उसकी स्मृतियों में बदलाव भी कर सकते हो। जब सम्मोहन समाप्त होगा, तो उसे यह नहीं पता चलेगा कि कोई उसके मस्तिष्क में था, उसे वह नये विचार स्वयं के प्रतीत होंगे। तो क्या अब तुम तैयार हो सम्मोहन को सीखने के लिये?”

“क्या यह सम्मोहन सिर्फ मनुष्यों पर किया जा सकता है?” वेगा ने पूछा।

“हां, शुरु में यह प्रयोग तुम सिर्फ मनुष्यों पर ही कर सकते हो...पर धीरे-धीरे तुम्हारी शक्तियां बढ़ती जायेंगी और फिर एक दिन तुम किसी भी जीवित प्राणी को सम्मोहित कर सकोगे।” महावृक्ष ने कहा।

“ठीक है, अब मैं तैयार हूं, सम्मोहन सीखने के लिये।”

वेगा के यह कहते ही महावृक्ष ने वेगा को सम्मोहन विद्या सिखाना शुरु कर दिया।

वेगा को पूर्ण सम्मोहन सीखने में, स्वप्नतरु के समय के हिसाब से 3 दिन का समय लगा।

आखिरकार वेगा पूरी तरह से सम्मोहन में पारंगत हो गया।

“अब तुम पूरी तरह से सम्मोहन की तीनो विधाओं में पारंगत हो चुके हो वेगा।” महावृक्ष ने कहा- “अब तुम इस दुनिया से, वापस अपनी दुनिया में लौट जाओ।”

“जो आज्ञा महावृक्ष।” यह कहकर वेगा, किताब घर से बाहर निकलकर टोबो के पास आ गया।

“मुझे ज्यादा देर तो नहीं हुई मिस्टर टोबो?” वेगा ने टोबो से कहा।

“नहीं-नहीं... यह तो काफी कम समय था।” टोबो ने कहा- “चलिये मैं आपको वापस ले चलता हूं।” यह कहकर टोबो ने वेगा को फिर से घोड़ा गाड़ी पर बैठाया और वापस उसी रास्ते पर चल दिया, जिधर से आया था।

कुछ ही देर में टोबो ने वेगा को उसी जुगनू वाले स्थान पर छोड़ दिया।

“अब यहां से तुम्हें स्वयं वापस जाना होगा वेगा।” यह कहकर टोबो ने विदाई के अंदाज में वेगा को हाथ हिलाया और घोड़ा गाड़ी लेकर एक दिशा की ओर चला गया।

वेगा जुगनुओं की रोशनी में वापस महावृक्ष की उसी कोटर के पास पहुंच गया, जहां से उसने यह यात्रा शुरु की थी।

कोटर का द्वार इस समय खुला हुआ था, वेगा ने डरते-डरते बाहर अपने कदम निकाले।

उसे लग रहा था कि बाहर बाबा और युगाका उसे 3 दिन से ढूंढ रहे होंगे।

पर जैसे ही वेगा बाहर निकला, उसे युगाका ने पकड़ लिया- “अरे बुद्धू, तू तो अभी तक छिप ही नहीं पाया, मैंने तो अपनी गिनती पूरी भी कर ली।....चल रहने दे...तेरे बस का यह खेल भी नहीं है। चल कुछ और खेलते हैं।” यह कह युगाका, वेगा का हाथ पकड़ उसे एक दिशा की ओर लेकर चल दिया।

पर वेगा इस समय स्वप्नतरु के समयजाल में उलझा था क्यों कि स्वप्नतरु का 3 दिन बाहर के 3 मिनट से भी कम था।

बहरहाल जो भी हो वेगा अपने इस नये ज्ञान से खुश था।

युगाका, वेगा को महावृक्ष की छांव में लाकर, दौड़-दौड़ कर पकड़ने वाला खेल खेलने लगा।

धीरे-धीरे वेगा को भी इस खेल में मजा आने लगा।

तभी दौड़ते समय एका एक युगाका का पैर एक छोटे से वृक्ष से उलझ गया, जिसकी वजह से युगाका लड़खड़ा कर गिर गया।

तेज से गिरने की वजह से युगाका के एक हाथ की कोहनी छिल गई और उससे खून बहने लगा।

यह देख युगाका गुस्से से उठा और उसने 2 पत्थरों की मदद से आग जलाकर, उस पेड़ को आग लगा दी।

“मुझे गिरायेगा...अब देख तू कैसे जलेगा।” युगाका गुस्से में चिल्ला रहा था।

थोड़ी देर सुलगने के बाद अब वह छोटा पेड़ धू-धू कर जलने लगा।

“यह आपने क्या किया भाई? आपको तो थोड़ी सी ही चोट लगी थी, पर आपने तो पूरा पेड़ ही जला दिया...उस पेड़ ने आपको जानबूझकर थोड़ी ना गिराया था, वह अपने स्थान पर लगा था, आपने ही उसे देखा नहीं.....ये आपने सही नहीं किया भाई।” वेगा अपने भाई के इस कृत्य से बहुत नाराज हो गया।

पर युगाका अभी भी हंसते हुए उस पेड़ को देख रहा था।

तभी महावृक्ष की शाखाएं अपने आप हिलनें लगीं और इसी के साथ युगाका के मुंह से चीख निकल गई।

“आह बचाओ वेगा, मेरा शरीर जल रहा है।” युगाका ने दर्द भरी आवाज में वेगा को पुकारा।

वेगा, युगाका को चीखते देख घबरा गया। उसने बहुत ध्यान से युगाका के शरीर को देखा।

युगाका के शरीर पर आग कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, पर जलने के निशान युगाका के शरीर पर स्पष्ट दिख रहे थे।

“यह कैसा चमत्कार है? युगाका का शरीर अपने आप कैसे जल रहा है?” वेगा मन ही मन बड़बड़ाया।

तभी वेगा की नजर उस जलते हुए पेड़ पर पड़ी, इसके बाद वेगा को महावृक्ष की शाखाएं हिलती हुईं दिखाई दीं।

एक पल में वेगा को समझ में आ गया कि युगाका को यह सजा महावृक्ष ने दी है।

“भाई...महावृक्ष से क्षमा मांग लो, वो तुम्हें ठीक कर देंगे। उन्होंने ही तुम्हें इस पेड़ को आग लगाने की सजा दी है।” वेगा ने चीखते हुए युगाका से कहा।

वेगा की बात सुन युगाका चीखते हुए महावृक्ष के पास आकर बैठ गया।

युगाका ने महावृक्ष के सामने अपने हाथ जोड़े और गिड़गिड़ाकर कहा - “मुझे क्षमा कर दीजिये महावृक्ष, मुझसे अंजाने में ही गलती हो गई ....मेरे शरीर की जलन को खत्म करिये महावृक्ष, नहीं तो मैं इस जलन से मर जाऊंगा।”

तभी वातावरण में महावृक्ष की आवाज गूंजी- “युगाका, तुम्हें सबसे पहले ये समझना होगा कि वृक्षों में भी जान होती है, वह भी तुम्हारी तरह महसूस करते हैं...उन्हें भी दर्द होता है। क्या तुम्हें पता है? कि अगर वृक्ष पृथ्वी पर ना होते, तो पृथ्वी पर जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी।

"आज भी आकाशगंगा में जितने ग्रह उजाड़ पड़े हैं या जहां पर जीवन नहीं है, वह सभी वृक्षों के कारण है। ब्रह्मांड के हर जीव को जीने के लिये वृक्ष की जरुरत होती है। पृथ्वी का सारा ऑक्सीजन वृक्षों के कारण ही है, इसलिये जब तुमने उस छोटे से वृक्ष को जलाया तो मैंने सिर्फ उस वृक्ष की ऊर्जा को तुम्हारे शरीर के साथ जोड़ दिया, अब जितना दर्द उसे वृक्ष को होगा, उतना ही दर्द तुम स्वयं के शरीर पर भी महसूस करोगे।”

यह सुनकर युगाका ने तुरंत वहां रखी पानी से भरी एक मटकी का सारा पानी उस पेड़ पर डाल दिया।

ऐसा करते ही उस पेड़ पर लगी आग बुझ गई और इसी के साथ युगाका के शरीर की जलन भी खत्म हो गई।
युगाका अब महावृक्ष के कहे शब्दों का सार समझ गया था।

वह एक बार फिर महावृक्ष के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया- “हे महावृक्ष मैं आपके कथनों को भली-भांति समझ गया। अब मैं कभी भी वृक्षों को हानि नहीं पहुंचाऊंगा, बल्कि आज और अभी से ही मैं सभी वृक्षों को, अपने दोस्त के समान समझूंगा और उनकी सुरक्षा करुंगा। मैं ये आपको वचन देता हूं।”

“बहुत अच्छे युगाका, अच्छा हुआ कि तुमने स्वयं मेरे कथन का अभिप्राय समझ लिया। मैं आज से तुम्हें वृक्षशक्ति प्रदान करता हूं.... इस वृक्षशक्ति के माध्यम से तुम सभी वृक्षों के दर्द को समझ सकोगे, उनसे बातें कर सकोगे और उन्हें एक दोस्त की भांति महसूस कर सकोगे। पर अपने वचन का ध्यान रखना, अगर तुमने अपना वचन तोड़ा तो यह वृक्ष शक्ति भी तुम्हारे पास से चली जायेगी।”

इसी के साथ महावृक्ष के शरीर से हल्के हरे रंग की किरणें निकलीं और युगाका के शरीर में समा गईं।

युगाका अब महावृक्ष के सामने से उठा और उस नन्हें पेड़ के पास पहुंच गया।

युगाका ने उस नन्हें पेड़ को उठाया और अपने हाथ से जमीन में एक गड्ढा कर, उस पेड़ की जड़ों को गड्ढे में डालकर उसे फिर से रोपित कर दिया। इसके बाद युगाका ने मटकी में बचे हुए जरा से पानी को उस पेड़ की जड़ में डाल दिया।

अब वह पेड़ और युगाका दोनों ही बेहतर महसूस कर रहे थे।

इसी के साथ युगाका के शरीर पर जलने के निशान भी गायब हो गये।

युगाका ने पेड़ को धीरे से सहलाया और उठकर खड़ा हो गया।

तभी कलाट वहां पहुंच गया- “चलो बच्चों, तुम्हारा समय अब पूरा हो गया। उम्मीद करता हूं कि तुमने महावृक्ष से कुछ अच्छा अवश्य सीखा होगा।”

“मैंने तो बहुत कुछ सीखा, पर यह वेगा बस दिन भर खेलता रहा, इसने कुछ नहीं सीखा बाबा।” युगाका ने कलाट से वेगा की शिकायत करते हुए कहा।

“कोई बात नहीं युगाका, कभी-कभी किसी-किसी की सीखी चीजें दिखाई नहीं देतीं, वह बस जिंदगी में सही समय पर काम आतीं हैं।”

कलाट के शब्दों का गूढ़ अर्थ था, जिसे युगाका तो नहीं समझ पाया, पर उन शब्दों को वेगा ने महसूस कर लिया था।

अब कलाट ने महावृक्ष को प्रणाम किया और दोनों बच्चों को वहां से लेकर महल की ओर चल दिया।

“बाबा, क्या आप भी अपने बचपन में ऐसे ही महावृक्ष के पास सीखने आये थे?” वेगा ने चलते-चलते कलाट से पूछा।

“हां बेटा, ये महावृक्ष हमारी सभी शक्तियों के स्रोत हैं। हम सभी ने इनसे कुछ ना कुछ सीखा है।” कलाट ने कहा।

“बाबा, आपने बचपन में इनसे क्या सीखा था?” वेगा ने कलाट से पूछा।

“उम्मीद करता हूं कि तुम वचन की कीमत आज समझ गये होगे।” यह कहकर कलाट ने घोड़ों का रथ आगे बढ़ा दिया।

पर कलाट की यह बात वेगा को स्वप्नतरु की याद दिला दी, उसने जाते हुए एक बार पलटकर महावृक्ष को देखा और फिर सम्मोहनास्त्र की यादों में खो गया।


जारी रहेगा_______✍️
To ye thi vega aur yugaka ki saktiyan, aur unki shaktiyon ka rahasya 🤔
Swapn taru yani ki maha variks ki duniya sach me adhbhud thi :applause::applause::applause:maja aa gaya padh kar, soch raha hu ki kaise kaise soch lete ho aap?:bow: mind blowing update again 👌🏻👌🏻
 

dil_he_dil_main

Royal 🤴
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1,003
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#162.

बर्फ का गोला:
(16.01.02, बुधवार, 10:40, सनकिंग जहाज, अटलांटिक महासागर)

सनकिंग वही जहाज था, जिस पर सुनहरी ढाल लेकर विल्मर यात्रा कर रहा था।

आकृति को सुर्वया के माध्यम से विल्मर की पूरी जानकारी मिल गई थी, इसलिये वह मकोटा के दिये नीलदंड की मदद से छिपकर सनकिंग पर आ गई थी।

आकृति चाहती तो तुरंत ही विल्मर के कमरे में घुसकर सुनहरी ढाल प्राप्त कर सकती थी, पर वह इतनी गलतियां कर चुकी थी, कि अब अपना कदम फूंक-फूक कर उठा रही थी।

आकृति को नहीं मालूम था कि विल्मर के पास यह सुनहरी ढाल आयी कहां से? क्यों कि सुर्वया बर्फ के नीचे, पानी के अंदर और हवा में रह रहे किसी भी जीव को नहीं ढूंढ सकती थी, इसलिये सुर्वया ने शलाका को विल्मर को सुनहरी ढाल देते हुए नहीं देखा था।

आकृति ने जहाज पर प्रवेश करते ही, एक अकेली लड़की क्राउली को नीलदंड की मदद से पक्षी बनाकर समुद्र में उड़ा दिया और उसी के कपड़े धारण कर वह जहाज में घूमने लगी।

यह जहाज बहुत बड़ा नहीं था, इसलिये आकृति को विल्मर को ढूंढने में ज्यादा मुश्किल नहीं आयी।

इस समय आकृति जहाज के रेस्टोरेंट में बैठी कॉफी का घूंट भर रही थी। विल्मर उससे कुछ दूरी पर एक दूसरी टेबल पर बैठा था।

आखिरकार आकृति अपनी टेबल से उठी और टहलती हुई विल्मर के पास जा पहुंची।

“क्या मैं यहां बैठ सकती हूं?” आकृति ने विल्मर की ओर देखते हुए पूछा।

विल्मर अपने सामने इतनी खूबसूरत लड़की को देख खुश होते हुए बोला - “हां-हां क्यों नहीं....।”

आकृति विल्मर के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई।

“मैं बहुत देर से आपके सामने बैठी आपको देख रही थी, मुझे आपका चेहरा कुछ जाना-पहचाना लगा, इसीलिये मैं आपसे पूछने चली आई। क्या हम पहले कहीं मिल चुके हैं?” आकृति ने विल्मर की आँखों में
झांकते हुए कहा।

विल्मर ने आकृति को ध्यान से देखा और ना में सिर हिला दिया।

अगर शलाका ने विल्मर की स्मृतियां ना छीनी होतीं, तो विल्मर ने शलाका जैसे चेहरे वाली आकृति को, तुरंत पहचान लेना था, पर अभी उसे
आकृति का चेहरा बिल्कुल ही अंजान लगा।

“ओह सॉरी, फिर तो मैं चलती हूं।”
यह कहकर आकृति कुर्सी से उठने लगी।

तभी विल्मर ने उसे रोकते हुए कहा- “इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैं आपको नहीं जानता। अरे जान पहचान बनाने के लिये किसी को
पहले से जानना जरुरी थोड़ी ना है .....वैसे मेरा नाम विल्मर है।”

यह कहकर विल्मर ने अपना हाथ आकृति की ओर बढ़ा दिया, पर आकृति को विल्मर से हाथ मिलाने में कोई रुचि नहीं थी, इसलिये वह पहले के समान ही बैठी रही।

आकृति को हाथ ना मिलाते देख विल्मर ने अचकचाकर अपना हाथ पीछे कर लिया।

“मेरा नाम क्राउली है, मैं एक आर्कियोलॉजिस्ट हूं। मैं पुरानी से पुरानी चीज को देखकर, कार्बन डेटिंग के द्वारा किसी भी वस्तु का काल और उसकी कीमत का निर्धारण करती हूं।” आकृति ने अपना दाँव फेंकते हुए कहा।

आकृति की बात सुन विल्मर खुश हो गया, उसे ऐसे ही किसी इंसान की तो तलाश थी, जो कि उसकी सुनहरी ढाल का मूल्यांकन कर सके।

“ओह, आप तो बहुत अच्छा काम करती हैं मिस क्राउली।” विल्मर ने आकृति की ओर देखते हुए कहा- “सॉरी मैं बात करने में आपसे पूछना भूल गया। आप कुछ लेंगी क्या?”

“नहीं-नहीं, मैंने अभी कॉफी पी है और मुझे अभी किसी चीज की जरुरत नहीं है...और वैसे भी मेरे मतलब की चीज इस जहाज पर कहां? मेरा मतलब है कि मेरी रुचि तो सिर्फ एंटीक चीजों में ही होती है।...एक्चुली मैं अपने काम को इस समय बहुत मिस कर रहीं हूं।” आकृति ने फिर से विल्मर को फंसाते हुए कहा।

“मेरे पास आपके काम की एक चीज है....क्या आप उसे देखना चाहेंगी?” विल्मर ने आकृति से पूछा।

“वाह! इससे अच्छा क्या हो सकता है। मैं जरुर देखना चाहूंगी।” आकृति खुश होते हुए अपनी सीट से खड़ी हो गई।

आकृति को तुरंत कुर्सी से खड़ा होता देख, विल्मर ने एक बार टेबल पर पड़े अपने आधे खाये हुए खाने को देखा और फिर वह उठकर वाश बेसिन की ओर बढ़ गया।

कुछ ही देर में विल्मर आकृति को लेकर अपने केबिन में पहुंच गया।

आकृति ने विल्मर के कमरे पर नजर मारी, पर उसे वह सुनहरी ढाल कहीं नजर नहीं आयी? आकृति कमरे में पड़ी एक सोफे पर बैठ गई।

तभी विल्मर ने दीवार पर लगी एक रंगीन पेंटिंग उतार ली, जो कि गोल आकार में थी और उभरी हुई थी।

आकृति ध्यान से उस पेटिंग को देखने लगी, तभी उसके आकार को देख आकृति को झटका लगा, यह वही सुनहरी ढाल थी, जिसे कि विल्मर ने चालाकी दिखाते हुए रंगों से पेंट कर दिया था।

विल्मर ने वह ढाल आकृति को पकड़ा दी।

“यह तो एक साधारण पेंटिंग है, जिसे शायद किसी ने अभी हाल में ही पेंट किया है, यह कोई एंटीक चीज नहीं है।” आकृति ने विल्मर को देखते हुए कहा।

तभी विल्मर ने आकृति के हाथ से वह ढाल ले, उस पर एक जगह कोई स्प्रे मार दिया, अब उस स्प्रे के नीचे से चमचमाती हुई सुनहरी ढाल नजर आने लगी थी।

“अब जरा देखिये।” विल्मर ने यह कहते हुए दोबारा से सुनहरी ढाल आकृति के हाथों में पकड़ा दी।

“यह तो काफी पौराणिक ढाल लग रही है, इसकी कीमत करोड़ों डॉलर है....पर इससे तुम्हें कोई फायदा नहीं होने वाला।” आकृति ने कहा।

“क्यों? क्या मैं इसे एंटीक मार्केट में बेच नहीं सकता?” विल्मर ने सोचने वाले अंदाज में पूछा।

“नहीं....क्यों कि यह तुम्हारे पास रहेगा नहीं।” यह कहते ही आकृति के हाथ में नीलदंड नजर आने लगा और इससे पहले कि विल्मर कुछ समझ पाता, नीलदंड से निकली किरणों ने, विल्मर को एक सीगल
(समुद्री पक्षी) में बदल दिया। इसी के साथ आकृति ने दरवाजा खोलकर सीगल को बाहर उड़ा दिया।

अब आकृति ने ढाल को अपने हाथ में उठाया और नीलदंड को सामने की ओर जोर से नचाया, पर नीलदंड उसी समय हवा में गायब हो गया।

“यह क्या नीलदंड कहां गया?” आकृति ने घबरा कर दोबारा हाथ हिलाया, पर नीलदंड उसके हाथ में वापस नहीं आया।

अब आकृति पूरी तरह से घबरा गई- “ये क्या हुआ? क्या मकोटा ने अपना नीलदंड वापस ले लिया? क्या ...क्या वह मेरे बारे में सबकुछ जान गया?...पर अगर नीलदंड चला गया तो मैं यहां से वापस अराका पर
कैसे जाऊंगी?....मेरे पास तो अभी इतनी शक्तियां भी नहीं है...अब मैं क्या करुं?

"इस ढाल की तलवार भी सीनोर राज्य में ही है, उसके बिना मैं दे...राज इंद्र से वरदान भी नहीं मांग सकती। और रोजर, मेलाइट और
सुर्वया का क्या होगा? चलो सुर्वया तो जादुई दर्पण में बंद है, उसे कुछ नहीं होगा, पर रोजर और मेलाइट का क्या?....रोजर तो मर भी जाये, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता...पर अगर मेलाइट को कुछ हो गया, तो मैं कभी भी शलाका के चेहरे से मुक्ति नहीं पा पाऊंगी।....और .... और ग्रीक देवता तो मुझे मार ही डालेंगे।

“मुझे कुछ भी करके और शक्तियां इकठ्ठा करके वापस अराका पर जाना ही होगा...क्यों कि अब देवराज का वरदान ही मुझे मेरे पुत्र के पास पहुंचा सकता है।...पर...पर पहले मुझे यहां से निकलना होगा। वैसे यह जहाज 7 से 8 घंटों के बाद न्यूयार्क पहुंच जायेगा। मुझे वहां पहुंचकर अपनी बची हुई शक्तियों के साथ, कुछ और ही प्लान करना होगा।” यह सोच आकृति सुनहरी ढाल लेकर चुपचाप उस कमरे से निकल, क्राउली के कमरे की ओर बढ़ गई।

क्राउली के कमरे में पहुंच जैसे ही आकृति ने सुनहरी ढाल को बिस्तर पर रखा , तभी उसे बाहर से आती किसी शोर की आवाज सुनाई दी।

धड़कते दिल से आकृति केबिन के बाहर आ गई और उस ओर चल दी, जिधर से शोर की आवाज आ रही थी।

शोर की आवाजें डेक की ओर से आ रहीं थीं। आकृति ने पास जाकर देखा, तो उसे जहाज के डेक पर 1 मीटर व्यास का एक बर्फ का गोला पड़ा दिखाई दिया।

उस गोले के पास एक छोटा सा जाल पड़ा था, जिसे देख कोई भी समझ सकता था कि इस बर्फ के गोले को, इसी जाल के द्वारा समुद्र से निकाला गया है।

बहुत से व्यक्ति उस गोले के चारो ओर खड़े उसे देख रहे थे।

तभी उनमें से एक व्यक्ति बोला - “इस बर्फ के गोले में कोई इंसान है?” यह सुनकर सभी उस गोले के अंदर झांककर देखने लगे।

आकृति की नजर भी उस बर्फ के गोले के अंदर की ओर गई, सच में उस गोले में एक मानव शरीर था, पर उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही आकृति हैरान हो गई क्यों कि वह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि विक्रम था।

विक्रम....वारुणि का सबसे करीबी।

“यह विक्रम इस बर्फ के गोले में कैसे आ गया?” आकृति यह देख समझ गई कि विक्रम अभी भी जिंदा हो सकता है।

अतः वह सभी को देखकर चिल्लाई- “बर्फ को तोड़ो, यह मेरा दोस्त है और यह अभी भी साँस ले रहा है।”

आकृति की बात सुन वहां खड़े व्यक्तियों का एक समूह उस बर्फ को तोड़ने लगा।

बर्फ को तोड़ने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी क्यों कि बर्फ की ऊपरी पर्त पहले से ही कमजोर थी, शायद यह बर्फ का गोला काफी समय से नमकीन समुद्री पानी में पड़ा हुआ था।

बर्फ टूटने के बाद विक्रम का शरीर बर्फ से बाहर आ गया। यह देख जहाज का एक डॉक्टर विक्रम का चेकअप करने लगा।

सभी उत्सुकता भरी निगाहों से उस डॉक्टर को देख रहे थे।

“यह व्यक्ति पूरी तरह से ठीक है, बस बर्फ में काफी देर तक दबे रहने से, इसके शरीर का तापमान गिर गया है, पर मुझे लगता है कि आधे से 1 घंटे के बीच यह होश में आ जायेगा।” डॉक्टर ने आकृति की ओर देखते हुए कहा- “आप इन्हें अपने कमरे में रख सकती हैं...अगर कोई परेशानी हो तो मुझे बता दीजियेगा। पर सच कहूं तो इनका इस प्रकार बर्फ में दबे रहने के बाद बचना किसी चमत्कार से कम नहीं।” यह कहकर डॉक्टर चला गया।

आकृति ने कुछ लोगों की मदद ले विक्रम को क्राउली के कमरे में रख लिया।

जब सभी कमरे से चले गये, तो आकृति फिर से अपनी सोच में गुम हो गई।

लगभग 45 मिनट के बाद विक्रम ने कराह कर अपनी आँखें खोलीं।

आँखें खोलने के बाद विक्रम ने तुरंत ही अपना सिर पकड़ लिया।

यह देख आकृति भागकर विक्रम के पास आ गई- “क्या हुआ विक्रम? तुम ठीक तो हो ना ?”

“कौन हो आप?” विक्रम ने आश्चर्य से आकृति को देखते हुए पूछा।

“तुम्हें क्या हो गया विक्रम? तुम मुझे पहचान क्यों नहीं पा रहे हो?” आकृति के चेहरे पर उलझन के भाव आ गये।

“मैं...मैं कौन हूं? तुम मुझे विक्रम क्यों बुला रही हो ? मेरा नाम तो.... मेरा नाम?....मेरा नाम मुझे याद क्यों नहीं आ रहा?” विक्रम के चेहरे पर उलझन के भाव साफ नजर आ रहे थे।

“लगता है चोट लगने के कारण विक्रम की स्मृति चली गई है।” आकृति ने मन में सोचा- “इस समय मेरे पास ज्यादा शक्तियां नहीं हैं.... अगर मैं विक्रम को कोई झूठी कहानी सुना दूं, तो मैं विक्रम की शक्तियों का इस्तेमाल स्वयं के लिये कर सकती हूं...और अगर कभी विक्रम की स्मृति वापस भी आ गई, तो वह शलाका का दुश्मन बन जायेगा....वाह क्या उपाय आया है मस्तिष्क में।

“पर...पर अगर बीच में कभी वारुणी ने विक्रम से, मानसिक तरंगों के द्वारा सम्पर्क करने की कोशिश की तो वह सबकुछ जान जायेगा
....सबसे पहले इसे अपनी नीली अंगूठी पहना देती हूं, इससे वारुणि कभी मानसिक तरंगों के द्वारा विक्रम से सम्पर्क स्थापित नहीं कर पायेगी, वैसे भी इस अंगूठी का इस्तेमाल, मैं पहले भी कई बार आर्यन को शलाका से बचाने के लिये कर चुकी हूं और इस अंगूठी का रहस्य भी किसी को नहीं पता।”

“आप मुझे विक्रम पुकार रहीं हैं।” विक्रम ने कहा- “मेरा नाम विक्रम है क्या?...पर मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा है?”

“मेरा नाम वारुणि है, तुम मेरे पति विक्रम हो, हम दोनों भारत में रहते हैं। तुम्हारे पास वायु की शक्तियां हैं, इन शक्तियों से तुम पृथ्वी की रक्षा करते हो। पर कुछ दिन पहले एक शक्तिशाली दुश्मन से लड़ते समय
तुम्हारे सिर पर चोट आ गई, जिससे तुम्हारी स्मृतियां चलीं गईं हैं। डॉक्टर ने तुम्हें कुछ दिन आराम करने को बोला है, इसलिये हम इस जहाज से न्यूयार्क घूमने जा रहे हैं। मेरे पिता ने मुझे एक अभिमंत्रित अंगूठी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर तुम अगले 10 दिनों तक इस अंगूठी को बिना उतारे अपनी उंगली में पहने रहोगे, तो तुम्हारी स्मृतियां वापस आ जायेंगी।” आकृति ने कम समय में अच्छी खासी कहानी गढ़ दी।

यह कहकर आकृति ने अपने हाथ में पहनी नीली अंगूठी को विक्रम की ओर बढ़ा दिया।

आकृति की बात सुनकर विक्रम सोच में पड़ गया।

उसे सोच में पड़ा देख आकृति पुनः बोल उठी- “तुम्हें डॉक्टर ने ज्यादा सोचने को मना किया है।” अभी आकृति ने यह कहा ही था कि तभी उसके केबिन की घंटी बज उठी।

आकृति ने अंदर से ही तेज आवाज में पूछा- “कौन?”

“मैं जहाज का केबिन क्रू हूं, मुझे जहाज के डॉक्टर ने उस नौजवान की तबियत जानने के लिये भेजा है।” बाहर से एक आवाज उभरी।

“विक्रम की तबियत अब बिल्कुल ठीक है, उन्हें अब डॉक्टर की जरुरत नहीं है। मेरी तरफ से डॉक्टर को धन्यवाद कह देना।” आकृति ने बिना दरवाजा खोले ही तेज आवाज में कहा।

आकृति की बात सुन आगन्तुक चला गया, पर उसका इस प्रकार आना आकृति के लिये लाभकारी रहा।

अब विक्रम के चेहरे से चिंता के भाव हटते दिखाई दे रहे थे।

“अब तुम आराम से सो जाओ विक्रम, जब न्यूयार्क आयेगा, तो मैं तुम्हें उठा दूंगी।” आकृति ने कहा और विक्रम को सहारा देकर बिस्तर पर लिटा दिया।

विक्रम ने आकृति की दी हुई अंगूठी अपने दाहिने हाथ की सबसे छोटी उंगली में पहन ली थी।

जारी रहेगा______✍️
Ye lo, betichod aakruti ne to sara system hi fail kar diya bechare vilmer ka, bc na ghar ka raha na ghaat ka, na to daulat haath lagi, na hi dhaal, dhaal ko aakriti le udi 😁 udhar Vikram ki jaan bach gayi, lekin ab is Akriti ne usko dhar liya? Aakhir aap karwana kya chahte ho gjruji ye to bata do?:pray:
Again dimaak hila diya aapne, mind blowing update bhai ji 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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lovely update. vega aur venus ne sabko bacha liya samudri jeevo ke hamle se .fight karte huye bhi dono ka ek dusre ki taang khichna majedar tha .par ye jeev kiske control me the jo pani ke bina bhi jeevit reh sakte the .
Iska pata samay aane pe hi chalega dost, lekin ye kuch hat kar hai 😆 Thank you very much for your valuable review and superb support bhai :thanks:
 

Raj_sharma

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Bahut hi achha update raha brother, kya inn sab ke pichhe wahi sab hain jo Mayur aur Dhara ko le gaye hain??? Dekhte hain kya Vega apni bahan Dhara ko bacha payega???
Abhi kuch kah nahi sakte bhai, lekin kuch hat kar hona chahiye. Thank you very much for your valuable review and superb support bhai :thanks:
 
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