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Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#6

और इसी उत्तेजना में साइकिल का संतुलन बिगड़ गया और मैं चाची को लिए लिए ही कच्चे रस्ते पर गिर गया . बेशक रास्ता कच्चा था पर कंकड़ की रगड़ ने मेरी पिंडी को घायल कर दिया था . दूसरी तरफ चाची कराह रही थी .

“मुझे मालूम था तू यही करेगा ” चाची मुझे गालिया देते हुए कोसने लगी. बड़ी मुश्किल से मैं उठ पाया. मालूम हुआ की पेडल का नुकीला हिस्सा मांस में धंस गया था , ऊपर से चाची न जाने क्या क्या बक रही थी . पर तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने मेरा ध्यान चाची से हटा दिया .

ऐसा लगा की मेरी आँखों में रौशनी पड़ी हो, इस रात में इस सुनसान में ऐसा होना मुमकिन नहीं था क्योंकि अक्सर इसके लिए तेज धुप और किसी प्रवार्त्तित करने वाले साधन की जरुरत होती है , पर ये मेरा वहम नहीं था ,

क्योंकि मैंने दूर वो चमकती आभा फिर देखी जिसकी चमक मेरी आँखों में पड़ी थी और न जाने मुझे क्या हुआ चाची को वहीँ पर छोड़ कर मैं उस तरफ चल दिया. जैसे मुझे अब और किसी की कोई परवाह ही नहीं थी .

“अब कहाँ जा रहा है तू ” चाची चिल्लाई पर क्या ही फर्क पड़ना था . वो चीखती रही मुझे कोसती रही पर कोई क्या ही करे जब नसीब ने एक नया रास्ता तलाश लिया हो . धीरे धीरे जैसे ये जहाँ ही पीछे छूट गया हो , मैं चलते चलते जब वहां पहुंचा तो मैंने देखा की वो एक पुराना कुवा था . जिसे मैंने शायद ही कभी पहले देखा हो .

वो लड़की हाँ वही लड़की कुवे से पानी खींच रही थी .पास ही एक लालटेन मंदी लौ में जल रही थी . और मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आया , आप ही सोचिये गर्मियों की एक उमस भरी रात में एक बियाबान कुवे पर पानी खींचती एक लड़की को अचानक देख कर आप क्या सोचेंगे, पर शायद मैं ही वहां पर अचानक से पहुँच गया था .

“तुम यहाँ इस वक्त ” उसने पूछा मुझसे .

अब मैं क्या कहता उस से .

“आप भी तो है यहाँ है ” मैंने कहा

वो- मेरा होना न होना क्या फर्क पड़ता है

मैं- पर अब जब हम दोनों इस पल यहाँ है तो फर्क पड़ता है

“तुम्हारे पैर से तो खून बह रहा है , क्या हुआ कैसे लगी ये चोट तुम्हे ” एक ही साँस में उसने बहुत सवाल पूछ लिए.

मैं- कुछ नहीं ठीक हो जायेगा

वो- देखने दो जरा मुझे

उसने मुझे एक पत्थर पर बैठने को कहा और मेरे पैर को देखने लगी .

“कुछ गहरा चुभा है, जख्म अन्दर तक हुआ है , रुमाल है क्या तुम्हारे पास ” उसने कहा.

मैंने जेब से रुमाल उसे दिया उसने वो जख्म पर कस कर बाँधा और बोली- डॉक्टर को दिखा लेना इसे, लगता है टाँके आयेंगे.

मैं- दिखा लूँगा पर फिलहाल मैं ये जानना चाहता हूँ की इस बियाबान में इतनी रात आप क्या कर रही है , एक मटके पानी के लिए इतनी दूर आना, जबकि पानी तो रोज ही घर आता है .रात को ऐसे अकेले घूमना ठीक नहीं

वो- तुम लड़के हो तो इतनी रात को घूम सकते हो पर मैं नहीं घूम सकती क्योंकि मैं लड़की हूँ .

तुरंत ही मुझे मेरी गलती का अहसास हुआ

मैं- मेरा वो मतलब नहीं था

वो- जानती हूँ , आओ मेरे साथ .

उसने मटका उठाया और मेरे आगे चल पड़ी. उसकी पायल की आवाज अँधेरे में गूंजने लगी . जल्दी ही हम दोनों उस जगह पर खड़े थे जहाँ से न जाने मैं कितनी बार गुजरा था पर आज ये रात मुझे वो सिखाने वाली थी वो अहसास जगाने वाली थी जो आने वाले समय के मायने बदल देने वाली थी .

हम दोनों एक मूर्ति के सामने खड़े थे . लालटेन की रौशनी में मैंने देखा पत्थर पर लिखा था , “ सहीद हवालदार बलकार सिंह ”

“ये मेरा फौजी है , मेरे बाबा ” उसने गहरी सांस लेते हुए कहा .

“वो कुवा मेरे बाबा ने खोदा था , अक्सर जब भी मैं उदास होती हूँ मैं वहां से मटका भर लाती हूँ , ऐसा लगता है जैसे बाबा ने सर पर हाथ रख दिया हो बहुत छोटी थी मैं जब वो हमें छोड़ गए . बस अहसास है की उन चमकते तारो से आज भी वो मुझे देखते होंगे. ” उसकी आवाज भर्रा आई थी .

मैंने उसके हाथ को कस कर थाम लिया .मैंने देखा उसकी नाकाम कोशिश को जो वो अपने आंसू छुपाने की कर रही थी .

“बैठो मेरे पास ” मैंने उसके आंसू पोंछते हुए कहा और हम वही उस दहलीज पर बैठ गए.

“खुशकिस्मत हो आप , एक महान योद्धा की बेटी हो ” ,मैंने कहा

“बिन बाप की बेटी होना अपने आप में बदकिस्मती होता है ” उसने कहा

“आपकी इस तकलीफ को मैं कम तो नहीं कर सकता पर आपके दर्द को बाँट जरुर सकता हूँ , एक फौजी की बेटी है आप कमजोर तो हो नहीं सकती ” मैंने कहा

वो- फौजी की बेटी , शहीद की बेटी जमाना एक अरसे पहले भूल चूका है इन बातो को .

उसने फीकी मुस्कान से कहा.

मैं- ज़माने से क्या फर्क पड़ता है , आप तो नहीं भूली, वो आपके दिल में जिन्दा है और रहेंगे ,और इन दो चार मुलाकातों में मैं इतना तो जान चूका हूँ की एक दिन ऐसा भी आएगा जब ये ही जमाना कहेगा देखो ये है बलकार सिंह की बेटी .

“मैं वो ख्वाब हूँ जो किसी ने न देखा ” उसने कहा

मैं- आप वो किस्सा हो जिसे आने वाली पीढ़ी सुनेगी . मेरी ये बात याद रखना मैं नहीं जानता आपका और मेरा आज क्या रिश्ता है पर मैं आप से ये वादा करता हूँ आज के बाद आप कभी अकेली नहीं होंगी , किसी भी राह पर आप चलेंगी, किसी भी डगर पर आप लड़खड़ाई मैं कहीं भी रहू या न रहू आपको थाम लूँगा .

मैंने उसका हाथ थाम कर कहा.

लालटेन की रौशनी में उसके चेहरे पर उस लम्हे में जो मुस्कान आई थी , करोडो रूपये, हीरे जवाहरात भी उसका मोल नहीं कर सकते थे .

“रात बहुत हुई मैं आपको घर छोड़ देता हूँ ” मैंने कहा

उसने हाँ में गर्दन हिलाई और हम उसके घर की तरफ चल पड़े.

“बस यही , ” उसने गली के मुहाने पर कहा

मैं उसे छोड़कर मुड़ा ही था की पीछे से उसने कहा ,”मीता नाम है मेरा ”

“हम फिर कब मिलेंगे ” मैंने उस से पूछा

मीता- जल्दी ही


उस रात बड़ी अच्छी नींद आई मुझे पर मैं कहाँ जानता था आने वाली सुबह मेरे लिए क्या लेकर आई थी .
 

aalu

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Issi liye kehta hoon cycle ke dande pe bitha ke apna danda nahin khara karna chahiye, ho gayee, bichari chachi ka gand tod diya irrada kuchh aur se tha, lekin jo hona tha so ho gaya. Yeh lo gira ke bhaag diya, bechari chachi, saare arman dhare ke dhare rah gaye.

Rahashmayee baate, aneko mayne chhipaye hue, sochne pe majboor kar dete hain, jo hum soch rahe hain wahhe keh rahi hain ya phir koi aur matlab hain, aksar doosre matlab hi nikalte hain saral shabdo ke.

Saheed kee beti, logo ne ek jamane mein samman bhi diya, lekin aaj unhe bhula chuke hain aksar yahee hota hain. Papa ke ladli lagti hain, kya koi aur nahin hain ghar pe jo usse aise biyaban mein andheri raat mein bhatakne ko mana na kare, aur yeh gali tak hi chhor diya, bhai iss baar ghar sach mein dekh lio nahin toh jab wakt aayega, toh wahee gali tak ghumte rahega.

Kya naam hain meet, uske saath preet lag hi gayee, ab haath tham ke saaath rahne ka wayda toh kar aaya, dekhte hain nibha pata hain kee nahin.

Ab ghar jao chachi achhe se khatirdari karegi, nain matakka ke chakkar mein unhe wahee beech sarak pe chhor aaya hain.
 
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