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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–57





रूही:- बॉस 11:00 बजने वाले है। हम शेड्यूल से देरी से चल रहे है।


आर्यमणि:- हां चलो निकलते है यहां से। ओजल, इवान और अलबेली तुम तीनों यहां से जंगली कुत्तों को दूर जंगल में ले जाओ और सबको खत्म करके हमसे मीटिंग प्वाइंट पर मिलो।


"ठीक है बॉस" कहते हुए तीनों, कुत्तों को लेकर जंगल के ओर चल दिये। आर्यमणि अपने बैग खोला, सिल्वर की 2 हथकड़ी सरदार के हाथ और पाऊं में लगा दिया और मुंह पर टेप मारकर उस किले से निकालने लगा। किले से निकलने से पहले उसने माउंटेन एश साफ कर दिया ताकि ये लोग अपनी जगह घूम सके और सरदार को लेकर शिकारियों के पास आ गये।


सभी शिकारी वहीं बंधे हुए थे। आर्यमणि ने सबको बेहोश किया। रूही ने सभी शिकारियों को वुल्फबेन का इंजेक्शन लगा दी और आर्यमणि अपना क्ला उनके भी गर्दन के पीछे लगाकर उनकी याद से ट्विन कि तस्वीर को मिटाने लगा।…..


"क्या हुआ इतने आश्चर्य में क्यों पड़ गए।".. रूही आर्यमणि का चेहरा देखकर पूछने लगी।


याद मिटाने के दौरान 2 शिकारियों को आर्यमणि बड़े आश्चर्य से देख रहा था। उसकी ऐसी प्रतिक्रिया पर रूही पूछने लगी। "कुछ नहीं" कहते हुए आर्यमणि ने उनके जख्म को हील कर दिया और सरदार को लेकर मीटिंग प्वाइंट पर चल दिया। जाने से पहले आर्यमणि ने रूही को, सभी शिकारियों को कहीं दूर छोड़कर मीटिंग पॉइंट पर पहुंचने बोला। मीटिंग पॉइंट यानी नागपुर–जबलपुर के नेशनल हाईवे की सड़क के पास का जंगल, जहां इनकी गाड़ी पहले से खड़ी थी। सबकुछ अपने शेड्यूल से चल रहा था। सरदार खान को पैक कर के वैन में लोड किया जा चुका था। लेकिन तभी वहां की हवा में विछोभ जैसे पैदा हो गया हो। विचित्र सी आंधी, जो चारों दिशाओं से बह रही थी और आर्यमणि जहां खड़ा था, वहां के 10 मीटर के दायरे में टकराकर विस्फोट पैदा कर रही थी।


धूल, मिट्टी और तरह–तरह के कण के साथ लड़की के बड़े–बड़े टुकड़े उड़ रहे थे। एक इंच, २ इंच के लकड़ी के टुकड़े किसी गोली की भांति शरीर में घुस रहे थे। आर्यमणि खतरा तो भांप रहा था, लेकिन एक साथ इतने खतरे थे कि किस–किस से बचे। पूरा शरीर ही लहू–लुहान हो गया था। आशानिय पीड़ा ऐसी थी की ब्लड पैक १० किलोमीटर की दूरी से पहचान चुके थे। आर्यमणि के पास हवा में विछोभ था, तो इधर पैक के दिल में विछोभ पैदा हो रहा था।


सभी पागलों की तरह अपने मुखिया के ओर भागे। तभी सभी के कानो में आर्यमणि की आवाज गूंजने लगी... "एक किलोमीटर के आस पास भी मत आना। अभी इनके तिलिस्मी हमले से मैं खुद जिंदा बचने की सोच रहा, तुम सब आये तो तुम्हे बचाने में कोई नही बचेगा। दिल की आग शांत करने का मौका मिलेगा। मेरे बुलावे का इंतजार करो।"


आर्यमणि ने उन्हें रुकने का आदेश तो दे दिया। रूही समझ भी गयि। लेकिन तीन टीन वुल्फ को कौन समझाए जो आर्यमणि के मना करने के बाद भी रुके ही नही। रूही 1 किलोमीटर के दायरे के बाहर किसी ऊंचे स्थान पर पहुंची और वहां से मीटिंग पॉइंट को देखने लगी। वहां कुछ भी साफ नजर नही आ रहा था। हां बस उसे 4 पॉइंट दिख रहे थे जहां रेत में लिपटे किसी इंसान के खड़े होने जैसा प्रतीत हो रहा था, जिसके पूरे शरीर से धूल निकल रहा हो। इसी बीच तीनों टीन वुल्फ लगभग उनके करीब पहुंच रहे थे। तीनों ही काफी तेजी से बवंडर की दिशा में ही बढ़ रहे थे।


रूही:– बॉस आप सुन सकते हो क्या? तीनों टीन वुल्फ कुछ ही सेकंड में आपके नजदीक होंगे।


आर्यमणि, किसी तरह अपनी टूटती आवाज में... "तुम 1 किलोमीटर के दायरे से बाहर ही रहो।"


रूही, का कलेजा कांप गया.… "बॉस आप ठीक तो है न"


आर्यमणि:– अपना मुंह बंद करो और मुझे ध्यान लगाने दो.…


वक्त बहुत कम था। आर्यमणि न केवल घायल था बल्कि शरीर के अंग–अंग में इतने लड़की घुस चुके थे कि वह खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। वक्त था नही और शायद आर्यमणि आने वाले खतरे को भांप चुका था। फिर तो तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंजी। हवा यूं तो आवाज को गोल–गोल घूमाकर ऊपर के ओर उड़ाने के इरादे से थी, लेकिन उस तिलिस्मी बवंडर में इतना दम कहां था जो आर्यमणि की तेज दहाड़ को रोक सके। कलेजा थम जाये ऐसी दहाड़। आम इंसान सुनकर जिसके दिल की धड़कन रुक जाये ऐसी दहाड़। दहाड़ इतनी भयावह थी की बीच में विस्फोट करते दायरे से ही पूरी जगह बना चुकी थी।


गोल घूम रहे बवंडर के बीच से जैसे हवा का तेज बवंडर निकला हो। आर्यमणि की दहाड़ जैसे पूरे बवंडर को ही दिशा दे रही थी। २ किनारे पर खड़े शिकारी उस आंधी में बह गये। तीनों टीन वुल्फ और रूही जहां थे वहीं बैठ गये। उसके अगले ही पल जैसे जमीन से जड़ों के रेशे निकलने लगे थे और देखते ही देखते पूरा वुल्फ पैक उस जड़ के बड़े से गोल आवरण के बीच सुरक्षित थे। आर्यमणि ने ऐसा चमत्कार दिखाया था, जिसे देखकर सभी शिकारी बस शांत होकर कुछ पल के लिये आर्यमणि को ही देखने लगे।


पहली बार वह किसी के सामने अपने भव्य स्वरूप में आया था। पहली बार शिकारियों ने उसे पूर्ण वुल्फ के रूप में देखा था। लेकिन उन्हें तनिक भी अंदाजा नहीं था कि आर्यमणि किस तरह का वुल्फ था। आर्यमणि शेप शिफ्ट करने के साथ ही पहले तो अपनी दहाड़ से चौंका दिया उसके बाद जैसे ही अपने पंजे को भूमि में घुसाया, ठीक वैसे ही भूमि में हलचल हुयि, जिसका नतीजा तीनों टीन वुल्फ और रूही के पास देखने मिल रहा था। जड़ों के रेशे उन चारों को अपने आवरण के अंदर बड़ी तेजी से ढक रही थे।


प्रकृति की सेवा का नतीजा था। लागातार पेड़–पौधों को हिल करते हुये आर्यमणि अपने अंदर इतनी क्षमता उत्पन्न कर चुका था कि उसके पंजे भूमि में घुसते ही अंदर से जड़ों के रेशे तक को उगा कर अपनी दिमाग की शक्ति से उसे आकार दे सकता था। वुल्फ के शक्तियों की पहेली में एक ऐसी शक्ति जिसे सबसे पहले दुनिया की सबसे महान अल्फा हिलर फेहरिन (रूही की मां) ने अपने अंदर विकसित किया था। यह उन शिकारियों के साथ–साथ पूरे वुल्फ पैक के लिये भी अचंभित करने वाला कारनामा था।


लेकिन शिकारी तो यहां शिकार करने आये थे। पहले तो आर्यमणि को उलझाकर उसके पैक को नजदीक बुलाना था। फिर उसके बाद पहले आर्यमणि के पैक को खत्म करना था ताकि गुस्से में आर्यमणि का दिमाग ही काम करना बंद कर दे। उसके बाद बड़े ही आराम से मजे लेते हुये आर्यमणि को मारना था। किंतु उन्होंने थोड़ा कम आंका। बहरहाल आर्यमणि जो भी करिश्में दिखा रहा था शिकारियों को उसे सीखना में कोई रुचि नहीं थी। उनका शिकार तो इतनी बुरी तरह ऐसा घायल था की खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। ऊपर से अभी एक जगह बैठकर अपना ध्यान केंद्रित किये था। भला इस से अच्छा मौका भी कोई हो सकता था क्या?


२ केंद्र से अब भी हवा का बहाव काफी तेज था। सामने के 2 केंद्र को तो आर्यमणि अपनी दहाड़ से उड़ा चुका था, लेकिन पीछे से २ शिकारी भी अपने अद्भुत कौशल का परिचय दे रहे थे। शिकारियों के आपसी नजरों का तालमेल हुआ और अगले ही पीछे से हवा के बहाव से कई सारे तेज, नुकीले, पूरी धातु के बने भाले निकलने लगे। एक तो लगातार बहते रक्त ने आर्यमणि को पूर्ण रूप से धीमा कर दिया था ऊपर से पंजा भूमि के अंदर था। आर्यमणि जबतक अपना हाथ निकालकर आने वाले खतरे से पूरा बचता तब तक पीछे से शरीर को चिड़ते हुये ३ भला आगे निकल आया।


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आर्यमणि के प्राण ही जैसे निकल गये हो। आर्यमणि लगभग मरा सा जमीन पर गिरा। जड़ों के बीच में फसे टीन वुल्फ और रूही छटपटा कर रह गये। आर्यमणि के मूर्छित होकर गिरने के साथ ही वो लोग भी जमीन पर आ चुके थे। 8 शिकारी, जिन्हे सीक्रेट बॉडी ने भेजा था। जिन्हे ये लोग अपने थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी भी कहते है। दिख तो इंसानों की तरह ही रहे थे लेकिन इनकी क्षमता इन्हे सैतन से कम दर्जा नहीं देती। वायु नियंत्रण करना। वायु के बवंडर के बीच से नुकीले भाले और तीर का निकलना, जो सीधा सामने वाले के प्राण ही ले ले।


8 शिकारी, चेहरे पर विजयी मुस्कान लिये अपने शिकार की स्थिति को जानने के लिये आगे बढ़े।…. कुछ दूर बढ़े ही थे कि पीछे से आवाज आयि.… "क्यों बे खजूर, मेरा दोस्त मरा या नही, सुनिश्चित करने जा रहा।"


आठों एक साथ मुड़े। पीछे संन्यासी शिवम और निशांत खड़ा था। उन सभी शिकारियों में से एक ने बोला... "हम तो केवल वुल्फ पैक को मारने आये थे। लेकिन क्या करे पीछे कोई सबूत भी तो नहीं छोड़ सकते। दोनो को मार दो।"…


जैसे ही मारने के आदेश हुये, 4 शिकारी बिलकुल हवा मे लहराते हुये चार दिशाओं में पहुंच गये। इधर सन्यासी शिवम और निशांत दोनो सामने खड़े दुश्मन का पूर्ण अवलोकन भी कर रहे थे, साथ ही साथ आर्यमणि का हैरतंगेज कारनामा भी देख रहे थे, कि कैसे उसने मिट्टी में अपने क्ला को डाला और उसे जड़ों ने जकड़ना शुरू कर दिया। इधर सभी शिकारी अपना पूर्ण ध्यान इन्ही दोनो पर केंद्रित किये थे। चार कोनो से घेरने के बाद जैसे ही शिकारियों ने अपने दोनो हाथ फैलाये, शिवम टेलीपैथी के जरिए निशांत को वायु विघ्न के मंत्र पढ़ने के लिये कहने लगा। दोनो ने एक साथ वायु विघ्न के मंत्र पढ़े, लेकिन उन सभी शिकारियों पर मंत्रों का कोई प्रभाव ही नही पड़ा।


निशांत और संन्यासी शिवम दोनो ही आने वाले खतरे को भांप चुके थे इसलिए सबसे पहले तो पूर्ण सुरक्षा का मंत्र खुद पर ही पढ़ा। खुद को पूरी तरह से सुरक्षित किये ही थे की तभी उन दोनो के ऊपर वायु का विस्फोट सा होने लगा। उनके सुरक्षा घेरे के बाहर हो रहे हवा के विस्फोट को दोनो अपनी आखों से देख रहे थे। हवा के साथ आते लकड़ी के टुकड़े भी उनकी आंखों के सामने थे। निशांत हैरानी से अपनी आंखें बड़ी किये.… "क्या भ्रमित अंगूठी यहां काम आती।"


संन्यासी शिवम:– अभी तुम जिस हवा से भ्रम पैदा कर रहे हो, जब वही हवा हमला करने लगे तब कहना मुश्किल होगा। सुरक्षा मंत्र खोल कर जांच लो।


संन्यासी शिवम की बात मानकर निशांत ने अपनी एक उंगली बाहर की और एक सेकंड पूरा होने से पहले उसकी उंगली लहूलुहान थी.… "जान बच गयि सीनियर। क्या इसी हवा के हमले से आर्यमणि को घायल किये होंगे।"


संन्यासी शिवम:– हमारे लिये इन हमलों से ज्यादा जरूरी इस बात का मूल्यांकन करना है कि हमारे मंत्र इनपर बेअसर क्यों हुये?


निशांत:– किसी एक को पकड़कर आचार्य जी के पास ले चलते है।


संन्यासी शिवम:– हम तो लड़ नही सकते। अब उम्मीद सिर्फ आर्यमणि से ही है। उसके बाद ही आगे का कुछ सोच सकते है।


"ये क्या हो रहा है"…. निशांत हड़बड़ाते हुये पूछा... "भ्रमित अंगूठी के भरोसे मत रहना। हो सकता है हमारे मंत्र इनपर बेअसर है तो ये लोग सुरक्षा मंत्र के अंदर भी हमला कर सकते है।"….. निशांत जबतक "कैसे" पूछा तब तक दोनो ही हवा में खींचते हुये २ शिकारियों के निकट पहुंच चुके थे और अगले ही पल दोनो को तेज–तेज २ मुक्के पर गये। दोनो का जबड़ा हिल गया।


निशांत, हवा में ही गुलाटी खाते.… "सालों ने जबड़ा तोड़ दिया लेकिन एक बात का सुकून है खुद पर मंत्र पढ़ो तो उनके मार का असर कम हो जाता है।"…


संन्यासी शिवम:– हां सही आकलन। बाहुबल में भी ये लोग कमजोर नही। हाथियों जितनी ताकत रखते है।


सुरक्षा मंत्र के घेरे में बंद दोनो पर हवा की मार का असर तो नही हो रहा था इसलिए शिकारियों ने भी उन्हें मारने का निंजा तकनीक तुरंत ही विकसित कर लिया था। दोनो को अपने पास खींचते और जबरदस्त मुक्का जड़ देते। दोनो जैसे कोई पंचिंग बॉल बन गये थे। हवा में ही ये दोनो शिकारी के पास खींचे चले जाते और वहां से मुक्का खाकर हवा में ही लहराते हुये दूसरे शिकारी के पास। हर मुक्का पड़ने से पहले खुद के ऊपर ही मंत्र पढ़ लेते लेकिन फिर भी मुक्के का जोड़ इतना था की असर साफ दिख रहा था। दोनो की ही हालत खराब हो चुकी थी। यदि कुछ देर और ऐसा ही चलता रहा फिर तो निशांत और संन्यासी शिवम दोनो मंत्र जपने की हालत में नहीं होते।


इसके पूर्व जैसे ही निशांत और संन्यासी शिवम यहां पहुंचे, शिकारियों का पूरा ध्यान दोनो पर ही रहा। इधर जड़ों का बड़ा सा आवरण बनाकर आर्यमणि किसी तरह खड़ा हुआ। एक तो शरीर से पहले ही खून बह रहा था उसके ऊपर भला किसी जहर में लिप्त था, जो अंदर घुसते ही प्राण बाहर लाने को आतुर था।


आर्यमणि एक हाथ को सीने पर रखकर पूरे बदन की पीड़ा और जहर अपने नब्ज में खींचने लगा वहीं दूसरे हाथ से भला निकलने की कोशिश करने लगा। शुरवात के कुछ मिनट में इतनी हिम्मत नही थी कि शरीर से भला खींचकर निकाल सके। लेकिन जैसे–जैसे दर्द और जहर खींचता जा रहा था हिम्मत वापस से आने लगी।अपने चिल्लाने के दायरे को केवल आवरण तक ही रखा और दर्द भरी चीख के बीच पहला भाला को निकाला।


पहला भाला निकालने के साथ ही आर्यमणि के आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया हो। लगभग बेहोश होने ही वाला था, लेकिन किसी तरह हिम्मत जुटाया और भाला निकलने के बदले जड़ों के रेशों पर हाथ डाला। जड़ों के रेशे, सबसे पहले शरीर में घुसे दोनो भाला के सिरे से लिपट गये। उसके बाद शरीर के अंदर सुई जितने पतले आकार के लाखों रेशे घुस चुके थे। आर्यमणि दूसरे हाथ से लगातार अपने दर्द और जहर को खींचते हुये, पहला ध्यान अपने एक पाऊं पर लगाया और पाऊं के अंदर घुसे लकड़ी के छोटे से छोटे कण को निकाल लिया। एक पाऊं से लड़की के टुकड़े जैसे ही निकले पल भर में वह पाऊं हिल हो गया।


आर्यमणि अपने अंदर थोड़ी राहत महसूस किया। बड़े ही आराम से एक के बाद एक बदन के अलग–अलग हिस्सों से सभी लकड़ी के टुकड़े निकाल चुका था। सबसे आखरी में उसने एक–एक करके दोनो भाले भी निकाल लिये और थोड़ी देर तक खुद को हिल करता रहा। कुछ ही देर में आर्यमणि पूर्ण रूप से हिल होकर पूर्ण ऊर्जा और पूर्ण क्षमता अपने शरीर में समेट चुका था। पूरी क्षमता को अपने अंदर पुर्नस्थापित करने के बाद आर्यमणि ने अपने ऊपर से जड़ों के रेशों को हटाया। सभी 8 शिकारी घेरा बनाकर निशांत और संन्यासी शिवम पर अब भी अपने मुक्के से हमला कर रहे थे। दोनो के शरीर के अंदर हो रहे दर्द और उखड़ती श्वास को आर्यमणि मेहसूस कर सकता था।


खुद पर हुये हमले से तो आर्यमणि मात्र चौंका था। अपने पैक को मुसीबत में फसे देख आर्यमणि का मन बेचैन हो गया और अपने दुश्मन की ताकत को पहचानकर उसे हराने के बारे में सोचना छोड़कर, पहले अपने पैक को सुरक्षित किया। लेकिन निशांत की उखड़ी श्वास ने जैसे आर्यमणि को पागल बना दिया हो.… केवल शरीर के ऊपर आग नजर नही आ रहा था, वरना आर्यमणि के गुस्से की आग पूरे शरीर से ही बह रही थी।


फिर तो आर्यमणि की दिल दहला देने वाली तेज दहाड़ जिसे पूरे नागपुर में ही नही बल्कि 30–40 किलोमीटर दायरे में सबने सुना। और जिसने भी सुना उन्हे बस किसी भयानक घटना के होने की आशंका हुयि। उस दहाड़ में इतना गुस्सा था कि आर्यमणि का पूरा पैक भी अपने मुखिया के दहाड़ के पीछे इतना तेज दहाड़ लगाया की जड़ों का आवरण मात्र आवाज से उड़ गया।


शिकारियों का ध्यान टूटा, लेकिन इस बार वह आर्यमणि को छल नही पाये। किसी बड़े से टेनिस कोर्ट की तरह सजावट थी। जिसके बाहरी लाइन के 8 पॉइंट पर सभी शिकारी निश्चित दूरी पर खड़े उस कोर्ट को घेरे थे और बीच में फंसा था निशांत और संन्यासी शिवम। इसके पूर्व इसी बनावट को 4 शिकारी घेरे थे जिसमें आर्यमणि फसा था और बाकी के 4 शिकारी बाहर से बैठकर उसकी ताकत का पूर्ण अवलोकन कर रहे थे। लेकिन इस बार खेल में थोड़ा सा बदलाव था। शिकारी चार दिशाओं में फैले तो थे लेकिन आर्यमणि उनके दायरे के बाहर था। अब तो जो भी हवाई हमला होता वह तो सामने से ही होता।


गुस्सा ऐसा हावी की गाल के नशों का भी उभार देखा जा सकता था। हृदय इतनी तेज गति से धड़क रही थी कि मानो कोई ट्रेन चल रही हो। श्वास खींचकर आर्यमणि अपने अंदर भरा और पूरी क्षमता से दौड़ लगाया। हवा को चिड़ते, किनारे से धूल उड़ाते दौड़ा। सभी शिकारी भी अपना ध्यान आर्यमणि पर केंद्रित करते पूरा बवंडर को ही उसके ऊपर छोड़ दिया। इस बार बवंडर में न सिर्फ लकड़ी के टुकड़े थे बल्कि कई हजार भाले, कई हजार किलोमीटर की रफ्तार से बढ़े। लेकिन शिकारियों का सबसे बड़ा हथियार शायद अब किसी काम का न रहा।


जैसे सिशे पर पड़ी धूल को फूंकते वक्त उड़ाते है, आर्यमणि भी ठीक वैसे ही बीच से पूरे बवंडर को उड़ा रहा था। जैसे सीसे पर फूंकते समय अपने गर्दन को थोड़ा दाएं और बाएं घूमाने से धूल भी दोनो ओर बंटने लगती है, ठीक उसी प्रकार आर्यमणि भी अपनी तेज फूंक के साथ गर्दन को मात्र दिशा दे रहा था और बवंडर के साथ–साथ सभी हथियार भी दाएं और बाएं तीतर बितर हो रहा था। बवंडर के उस पार क्या हो रहा था यह किसी भी शिकारी को पता नही था, वह बस अपने हाथ के इशारे से बवंडर उठा रहे थे।


छणिक समय का तो मामला था। आर्यमणि दहाड़ कर दौड़ लगाया और शिकारियों ने अपने हाथ से बवंडर उठाकर आर्यमणि पर हमला किया। उसके अगले ही पल मानो बिजली सी रफ्तार किसी एक शिकारी के पास पहुंची। आर्यमणि उसके नजदीक पहुंचते ही अपना दोनो हाथ के क्ला उसके गर्दन में घुसाया और खींचकर उसके गर्दन को धर से अलग करके बवंडर के बीच फेंक दिया।


बेवकूफ शिकारी अब भी उसी दिशा में बवंडर उठा रहे थे जहां से आर्यमणि ने दौड़ लगाया और जब दूसरे शिकारी का गर्दन हवा में था, तब उन्हे पता चला की उनका बवंडर कहीं और ही उठ रहा है, और आर्यमणि तो उसके बनाये लाइन पर दौड़ रहा था। जब तक वो लोग अपना स्थान बदल कर आर्यमणि को घेरते उस से पहले ही आर्यमणि अपने पीछे जा रहे १ शिकारी पर लपका। जवाब में उस शिकारी ने भी अपना तेज हुनर दिखाते हुये अपने दाएं और बाएं कंधे के ऊपर से बुलेट की स्पीड में २ भाला चला दिया। आर्यमणि और उस शिकारी के बीच कोई ज्यादा दूरी थी नही। हमले का पूर्वानुमान होते ही आर्यमणि एक कदम आगे बढ़कर उस शिकारी के गले ही लग गया और अगले ही पल उसकी पूरी रीढ़ की हड्डी ही आर्यमणि के हाथ में थी और उसका पार्थिव शरीर जमीन पर।


दरअसल जितनी तेजी उस शिकारी ने अपने कंधे से २ भाला निकालने में दिखाई थी। आर्यमणि उस से भी ज्यादा तेजी से उसके गले लगने के साथ ही अपने दोनो पंजे के क्ला को उसकी पीठ में घुसकर चमरे को पूरा फाड़ दिया और रीढ़ की हड्डी को उतनी ही बेरहमी के साथ खींचकर निकाल दिया। अपने साथी का भयानक मौत देखकर दूसरा शिकारी जो आर्यमणि के पीछे जा रहा था वह अपने साथियों के पास लौट आया। सीक्रेट बॉडी के 5 थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी अब ठीक आर्यमणि के सामने थे और अंधाधुन उसपर हमले कर रहे थे।


"आज तुम्हे मेरे हाथों से स्वयं काल भी नही बचा सकता। समझ क्या रखा था, मेरे दोस्त की जान इतनी सस्ती है जो लेने की कोशिश कर रहे थे। तुम हरामजदे... दोबारा किसी को दिखोगे नही"…. आर्यमणि गुस्से में लबरेज होकर अपनी ताकतवर फूंक के साथ आगे बढ़ा। बवंडर का असर कारगर करने के लिये वो लोग भी इशारों में रणनीति बना चुके थे। आर्यमणि जैसे ही नजदीक पहुंचा ठीक उसी वक्त 4 शिकारी ने आर्यमणि को छोटे घेरे में कैद कर लिया। हवा का बवंडर उठाया। बवंडर विस्फोट की तरह फूटे भी और साथ में भाले भी चले लेकिन उन मूर्खों को आर्यमणि की गति का अंदाजा नहीं था।


जितने समय में उनलोगो ने अपना जौहर दिखाया उस से पहले ही आर्यमणि उनके घेरे से बाहर था और एक शिकारी के ठीक पीछे पहुंचकर अपने दोनो पंजे के बीच उसका सर रखकर जैसे किसी मच्छर को जोर से मारते हैं, ठीक वैसे ही सर को बीच में डालकर अपनी हथेली से जोडदार ताली बजा दिया। नतीजा भी ठीक वैसा ही था जैसा मच्छर के साथ होता है। आर्यमणि के दोनो हथेली के बीच केवल खून रिस रहा था, बाकी सर भी कभी था ऐसा कोई सबूत आर्यमणि की हथेली में नही मिला।


साक्षात काल ही जैसे सामने खड़ा हो। आर्यमणि बिलजी की तरह दौड़कर एक और शिकार पास पहुंचा। उसे पकड़ा और इस बार उस शिकारी के पेट में अपने दोनो पंजे घुसाकर उसका पेट बीच से चीड़ दिया। मौत से पहले का दर्द सुनकर ही बाकी के ३ शिकारी भय से थर–थर कांपने लगे। तीनों में इतनी हिम्मत नही बची की अलग रह कर हमला करे। और जब साथ में आये फिर तो आर्यमणि ने एक बार फिर उन्हे दर्द और हैवानियत से सामना करवा दिया। तेजी के साथ वह तीनों के पास पहुंचा और २ के सर के बाल को मुट्ठी में दबोचकर इस बेरहमी से दोनो का सर एक दूसरे से टकरा दिया की विस्फोट के साथ उसके सर के अंदर का लोथरा, चिथरे बनकर हवा में फैल गया। कुछ चिथरे तो निशांत और संन्यासी शिवम के ऊपर भी पड़े।


अब मैदान में इकलौता शिकारी बचा था। आर्यमणि उसे भी मार ही चुका होता लेकिन बीच में निशांत आ गया और उसे जिंदा छोड़ने के लिये कह दिया। आर्यमणि निशांत की बात मानकर उसे छोड़ दिया और संन्यासी शिवम की अर्जी पर उसे जड़ों की रेशों में पैक करके गिफ्ट भी कर दिया। आर्यमणि जैसे ही फुर्सत हुआ, बेचैनी के साथ निशांत का हाथ थाम लिया। आर्यमणि जैसे एक साथ उसका दर्द पूरा खींच लेना चाहता हो। लेकिन तभी निशांत अपना हाथ झटकते.… "नही दोस्त, यही सब चीजें तो मुझे मजबूत बनाएगी। मुझे अपनी क्षमता से हिल होने दो"….


आर्यमणि, निशांत की बात पर मुस्कुराते.… "चल ठीक है। शादी का क्या माहोल था।"


निशांत:– मैं जब निकला तब तक तो सबका खाना पीना चल रहा था। ये ले अपनी अनंत कीर्ति की किताब। जैसा तूने कहा था।


आर्यमणि:– मुझे लगा मात्र इस किताब के कारण कहीं तुमलोग पोर्टल न करो।


संन्यासी शिवम:– किताब के प्रति तुम्हारी रुचि अतुलनीय है। यदि तुम्हे कुछ खास लगी ये किताब, फिर तो वाकई में कुछ खास ही होगी। इसलिए जैसे ही हमे निशांत ने बताया हम तैयार हो गये।


आर्यमणि:– किताब लाने में कोई दिक्कत तो नही हुई।


निशांत:– बिलकुल भी नहीं। हम पोर्टल के जरिए सीधा कमरे में पहुंचे और किताब उठाकर सीधा तुम्हारे पास। लेकिन यहां तो अलग ही खेल चल रहा था। कौन थे ये लोग और कहां से आये थे?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नहीं। मेरा खुद पहली बार सामना हुआ है। वैसे तुम दोनो ने भी यहां सही वक्त पर एंट्री मारी है। वरना मेरे लिए मुश्किल हो जाता।


संन्यासी शिवम:– हम नही भी आते तो भी तुम प्रकृति की गोद में लपेटे जा चुके होते। उल्टा हम दोनो फंस गये थे।


निशांत:– अब कौन किसकी जान बचाया उसका क्रेडिट देना बंद करते है। अंत भला तो सब भला। वैसे क्या हैवानियत दिखाई तूने। मैने तो कई मौकों पर अपनी आंखें बंद कर ली।


अलबेली:– हां लेकिन हमने चटकारा मार कर मजा लिया।


आर्यमणि, निशांत से बात करने में इतना मशगूल हुआ कि उसे पैक के बारे में याद ही नहीं रहा। जैसे ही अलबेली की आवाज आयि, आर्यमणि थोड़ा अफसोस जाहिर करते.… "माफ करना निशांत की हालत देखकर तुम लोगों का ख्याल नही आया। तुम लोग ठीक तो हो न"


रूही:– बॉस आपने जो किया उसपर हम रास्ते में बहस करेंगे, फिलहाल अपनी ये वैन बुरी तरह डैमेज हो गयि है। इस से कहीं नहीं जा सकते।


आर्यमणि:– ठीक है तुम सभी सरदार खान के किले के पास वाला बैकअप वैन ले आओ। जब तक मैं इन दोनो से थोड़ी और चर्चा कर लेता हूं।


रूही:– ठीक है बॉस... वैसे एक बात तो मनना होगा, आपने क्या कमाल का चिड़ा है। फैन हो गई आपकी...


संन्यासी शिवम:– हां लेकिन आर्यमणि ने अपनी शक्ति का सही उपयोग किया, वरना इनका हवाई हमला वाकई खतरनाक था।


निशांत:– खतरनाक... ऐसा खतरनाक की भ्रमित अंगूठी के पूरे भ्रम हो ही उलझा दिया।


आर्यमणि:– क्या बात कर रहा है।


निशांत:– हां सही कह रहा हूं। मुझ पर तो हवा का ही हमला हो गया भाई... अब जिस चीज से भ्रमित अंगूठी भ्रम पैदा करती हो, उसी को कोई हथियार बना, ले फिर क्या कर सकते है?


आर्यमणि:– मुझे क्या पता... तू ही बता क्या कर सकते हैं?


निशांत:– मैं बताता हूं ना, क्या कर सकते है... मुझे अभी तरह–तरह के भ्रमित मंत्र पर सिद्धि हासिल करना होगा। वैसे तूने भी तो हवा को कंट्रोल किया था?


आर्यमणि:– नही... मैंने हवा को नियंत्रण नही किया बल्कि अपने अंदर की दहाड़ वाली ऊर्जा को हवा में बदलकर बस उल्टा प्रयोग किया था.…


संन्यासी शिवम:– फिर तो प्रयोग काफी सफल रहा। इस बिंदु पर यदि ढंग से अभ्यास करो तो अपने अंदर की और कई सारी ऊर्जा को उपयोग में ला सकते हो...




आर्यमणि:– हां आपने सही कहा। वैसे लंबी–लंबी श्वास लेना मैने उसी पुस्तक के योगा से सीखा है, जो आपने दी थी। मुझे लगता है अब हमे चलना चाहिए...


निशांत, आर्यमणि के गले लगते.… "हां बिलकुल आर्य। अपना ख्याल रखना और नए सफर के शुरवात की शुभकामनाएं।


आर्यमणि:– और तुम्हे भी अपने नए सफर की सुभकामना... पूरा सिद्धि हासिल करके ही हिमालय की चोटी से नीचे आना..


दोनो दोस्त मुस्कुराकर एक दूसरे से विदा लिये। संन्यासी शिवम ने पोर्टल खोल दिया और दोनो वहां से गायब। उन दोनो के जाते ही आर्यमणि, अपने पैक के पास पहुंचा। वो लोग दूसरी वैन लाकर सरदार खान को उसमे शिफ्ट कर चुके थे। आर्यमणि के आते ही सबको पहले चलने के लिये कहा, और बाकी के सवाल जवाब रास्ते में होते रहते। पांचों एक बड़ी वैन मे सवार होकर नागपुर– जबलपुर के रास्ते पर थे।
हाँ यह हुई ना बात
भाई आर्य अपनी पुरी शक्ति के साथ लड़ा और अपने शत्रुओं को धुल चटा दिआ, भाई बहुत मज़ा आ गया
वैसे दो प्रश्न हैं
आशा है अगले अपडेट में उत्तर मिल जाएगा
अगर अपनी क्लॉ से आर्य शिकारियों की याद मिटा रहा था
तो पैसों की ट्रेंजेक्सन लिंक क्या शिकारियों को याद नहीं दिला देगी
दुसरा प्रश्न
अंतिम सुपर स्पेशल शिकारी को निशांत जिवित क्यूँ छोड़ा
 

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भाग:–१





जंगल का इलाका। कोहरा इतना गहरा की दिन को भी सांझ में बदल दे। दिन के वक़्त का माहौल भी इतना शांत की एक छोटी सी आहट भयभीत कर दे। यदि दिल कमजोर हो तो इन जंगली इलाकों से अकेले ना गुजरे।


हिमालय की ऊंचाई पर बसा एक शहर गंगटोक, जहां प्रकृति सौंदर्य के साथ-साथ वहां के विभिन्न इलाकों में भय के ऐसे मंजर भी होते है, जिसके देखने मात्र से प्राण हलख में आ जाए। दूर तक फैले जंगलों में कोहरा घना ऐसे मानो कोई अनहोनी होने का संकेत दे रहा हो।



2 पक्के दोस्त, आर्यमणि और निशांत रोज के तरह जंगल के रास्ते से लौट रहे थे। दोनो साथ-साथ चल रहे थे इसलिए एक दूसरे को देख भी पा रहे थे, अन्यथा कुछ मीटर की दूरी होती तो पहचान पाना भी मुश्किल होता। रोज की तरह बातें करते हुए घने जंगल से गुजर रहे थे।


"कथाएं, लोक कथाएं और परीकथाएं। कितने सच कितने झूट किसे पता। पहले प्रकृति आयी, फिर जीवन का सृजन हुआ। फिर ज्ञान हुआ और अंत में विज्ञान आया। प्रकृति रहस्य है तो विज्ञान उसकी कुंजी, और जिन रहस्यों को विज्ञान सुलझा नहीं पता उसे चमत्कार कहते हैं।"

"ऑक्सीजन और कार्बन डाय ऑक्साइड के खोज से पहले भी ये दोनो गैस यहां के वातावरण में उपलब्ध थे। किसी वैज्ञानिक ने इन रहस्यों को ढूंढा और हम ऑक्सीजन और कार्बन डाय ऑक्साइड के बारे में जानते है। कोई ना भी पता लगता तो भी हम शवांस द्वारा ऑक्सीजन ही लेते और यही कहते भगवान ने ऐसा ही बनाया है। सो जिन चीजों का अस्तित्व विज्ञान में नहीं है, इसका मतलब यह नहीं कि वो चीजें ना हो।"..


"सही है आर्य। जैसे कि नेगेटिव सेक्स अट्रैक्शन। हाय क्लास में आज अंजलि को देखा था। ऐसा लग रहा था साइज 32 हो गए है। साला उसके ऊपर कौन हाथ साफ कर रहा पता नहीं, लेकिन साइज बराबर बढ़ रहे है। और जितनी बढ़ रही है, वो दिन प्रतिदिन उतनी ही सेक्सी हुई जा रही है।"…


दोनो दोस्त बात करते हुए जंगल से गुजर रहे थे, तभी पुलिस रेडियो से आती आवाज ने उन्हे चौकाया…. "ऑल टीम अलर्ट, कंचनजंगा जाने वाले रास्ते से एक सैलानी गायब हो गई है। सभी फोर्स वहां के जंगल में छानबीन करें। रिपीट, एक सैलानी गायब है, तुरंत पूरी फोर्स जंगल में छानबीन करे।"… पुलिस कंट्रोल रूम से एक सूचना जारी किया जा रहा था।


निशांत, गंगटोक अस्सिटेंट कमिश्नर राकेश नाईक का बेटा था। अक्सर वो अपने साथ पुलिस की एक वाकी रखता था। वाकी पर अलर्ट जारी होते ही….


निशांत:— आर्य, हम तो 15 मिनट से इन्हीं रास्तों पर है, तुमने कोई हलचल देखी क्या?"..


आर्यमणि, अपनी साइकिल में ब्रेक लगाते… "हो सकता है पश्चिम में गए हो, लोपचे के इलाके में, और वहीं से गायब हो गए हो।"


निशांत:- हां लेकिन उस ओर जाना तो प्रतिबंधित है, फिर ये सैलानी क्यों गए?


आर्यमणि और निशांत दोनो एक दूसरे का चेहरा देखे, और तेजी से साइकिल को पश्चिम के ओर ले गए। दोनो 2 अलग-अलग रास्ते से उस सैलानी को ढूंढने लगे और 1 किलोमीटर की रेंज वाली वाकी से दोनो एक दूसरे से कनेक्ट थे। दोनो लोपचे के इलाके में प्रवेश करते ही अपने साइकिल किनारे लगाकर पैदल रस्तो की छानबीन करने लगे।


"रूट 3 पर किसी लड़की का स्काफ है आर्य"…. निशांत रास्ते में पड़ी एक स्काफ़ उठाकर देखते हुए आर्य को सूचना दिया और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। तभी निशांत को अपने आसपास कुछ आहट सुनाई दी। एक जानी पहचानी आहट और निशांत अपनी जगह खड़ा हो गया। वाकी के दूसरे ओर से आर्यमणि भी वो आहट सुन सकता था। आर्यमणि निशांत को आगाह करते.…. "निशांत, बिल्कुल हिलना मत। मै इन्हे डायवर्ट करता हूं।"…


निशांत बिलकुल शांत खड़ा आहटो के ओर देख रहा था। घने जंगल के इस हिस्से के खतरनाक शिकारी, लोमड़ी, गस्त लगाती निशांत के ओर बढ़ रही थी, शायद उसे भी अपने शिकार की गंध लग गई थी। तभी उन शांत फिजाओं में लोमड़ी कि आवाज़ गूंजने लगी। यह आवाज कहीं दूर से आ रही थी जो आर्यमणि ने निकाली थी। निशांत खुद से 5 फिट आगे लोमड़ियों के झुंड को वापस मुड़ते देख पा रहा था।


जैसे ही आर्यमणि ने लोमड़ी की आवाज निकाली पूरे झुंड के कान उसी दिशा में खड़े हो गए, और देखते ही देखते सभी लोमड़ियां आवाज की दिशा में दौड़ लगा दी।… जैसे ही लोमड़ियां हटी, आर्यमणि वाकी के दूसरे ओर से चिल्लाया.…. "निशांत, तेजी से लोपचे के खंडहर काॅटेज के ओर भागो... अभी।"


निशांत ने आंख मूंदकर दौड़ा। लोपचे के इलाके से होते हुए उसके खंडहर में पहुंचा। वहां पहुंचते ही वो बाहर के दरवाजे पर बैठ गया और वहीं अपनी श्वांस सामान्य करने लगा। तभी पीछे से कंधे पर हाथ परी और निशांत घबराकर पीछे मुड़ा…. "अरे यार मार ही डाला तूने। कितनी बार कहूं, जंगल में ऐसे पीछे से हाथ मत दिया कर।"


आर्यमणि ने उसे शांत रहने का इशारा करके सुनने के लिए कहा। कानो तक बहुत ही धीमी आवाज़ पहुंच रही थी, हवा मात्र चलने की आवाज।… दोनो दोस्तों के कानो तक किसी के मदद की पुकार पहुंच रही थी और इसी के साथ दोनो की फुर्ती भी देखने लायक थी... "रस्सी निकाल आर्य, आज इसकी किस्मत बुलंदियों पर है।"..


दोनो आवाज़ के ओर बढ़ते चले गए, जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे आवाज़ साफ होती जा रही थी।… "आर्य ये तो किसी लड़की की आवाज़ है, लगता है आज रात के मस्ती का इंतजाम हो गया।".. आर्यमणि, निशांत के सर पर एक हाथ मारते तेजी से आगे बढ़ गया। दोनो दोस्त जंगल के पश्चिमी छोड़ पर पहुंच गए थे, जिसके आगे गहरी खाई थी।


ऊंचाई पर बसा ये जंगल के छोड़ था, नीचे कई हजार फीट गहरी खाई बनाता था, और पुरे इलाके में केवल पेड़ ही पेड़। दोनो खाई के नजदीक पहुंचते ही अपना अपना बैग नीचे रखकर उसके अंदर से सामान निकालने लगे। इधर उस लड़की के लगातार चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी….. "सम बॉडी हेल्प, सम बॉडी हेल्प, हेल्प मी प्लीज।"…


निशांत:- आप का नाम क्या है मिस।


लड़की:- मिस नहीं मै मिसेज हूं, दिव्य अग्रवाल, प्लीज मेरी हेल्प करो।


निशांत, आर्यमणि के कान में धीमे से…. "ये तो अनुभवी है रे। मज़ा आएगा।"


आर्यमनी, बिना उसकी बातों पर ध्यान दिए हुए रस्सी के हुक को पेड़ से फसाने लगा। इधर जबतक निशांत ड्रोन कैमरा से दिव्य की वर्तमान परिस्थिति का जायजा लेने लगा। लगभग 12 फिट नीचे वो एक पेड़ की साखा पर बैठी हुई थी। निशांत ने फिर उसके आसपास का जायजा लिया।… "ओ ओ.… जल्दी कर आर्य, एक बड़ा शिकारी मैडम के ओर बढ़ रहा है।"..


आर्यमणि, निशांत की बात सुनकर मॉनिटर स्क्रीन को जैसे ही देखा, एक बड़ा अजगर दिव्या की ओर बढ़ रहा था। आर्यमणि रस्सी का दूसरा सिरा पकड़कर तुरंत ही खाई में उतरने के लिए आगे बढ़ गया। निशांत ड्रोन की सहायता से आर्यमणि को दिशा देते हुए दिव्या तक पहुंचा दिया। दिव्या यूं तो उस डाल पर सुरक्षित थी, लेकिन कितनी देर वहां और जीवित रहती ये तो उसे भी पता नहीं था।


किसी इंसान को अपने आसपास देखकर दिव्या के डर को भी थोड़ी राहत मिली। लेकिन अगले ही पल उसकी श्वांस फुल गई दम घुटने लगा, और मुंह ऐसे खुल गया मानो प्राण मुंह के रास्ते ही निकलने वाले हो। जबतक आर्यमणि दिव्या के पास पहुंचता, अजगर उसकी आखों के सामने ही दिव्या को कुंडली में जकड़ना शुरू कर चुका था। अजगर अपना फन दिव्या के चेहरे के ऊपर ले गया और एक ही बार में इतना बड़ा मुंह खोला, जिसमे दिव्या के सर से लेकर ऊपर का धर तक अजगर के मुंह में समा जाए।


आर्यमणि ने तुरंत उसके मुंह पर करंट गन (स्टन गन) फायर किया। लगभग 1200 वोल्ट का करंट उस अजगर के मुंह में गया और वो उसी क्षण बेहोश होकर दिव्या को अपने साथ लिए खाई में गिरने लगा। अर्यमानी तेजी दिखाते हुए वृक्ष के साख पर अपने पाऊं जमाया और दिव्या के कंधे को मजबूती से पकड़ा।


वाजनी अजगर दिव्या के साथ साथ आर्यमणि को भी नीचे ले जा रहा था। आर्यमणि तेजी के साथ नीचे जा रहा था। निशांत ने जैसे ही यह नजारा देखा ड्रोन को फिक्स किया और रस्सी के हुक को सेट करते हुए…. "आर्य, कुंडली खुलते ही बताना।"


आर्यमणि का कांधा पुरा खींचा जा रहा था, और तभी निशांत के कान में आवाज़ सुनाई दी… "अभी"… जैसे ही निशांत ने आवाज़ सुनी उसने हुक को लॉक किया। अजगर की कुंडली खुलते ही वो अजगर कई हजार फीट नीचे की खाई में था और आर्यमणि दिव्या का कांधा पकड़े झुल रहा था।


निशांत ने हुक को खींचकर दोनो को ऊपर किया। ऊपर आते ही आर्यमणि जमीन पर दोनो हाथ फैलाकर लेट गया और निशांत दिव्या के सीने को पुश करके उसकी धड़कन को सपोर्ट करने लगा।… "आर्य, शॉक के कारण श्वांस नहीं ले पा रही है।"..


आर्यमानी:- मुंह से हवा दो, मै सीने को पुश करता हूं।


निशांत ने मुंह से फूंककर हवा देना शुरू किया और आर्यमणि उसके सीने को पुश करके स्वांस बाहर छोड़ने में मदद करने लगा। चौंककर दिव्या उठकर बैठ गई और हैरानी से चारो ओर देखने लगी। निशांत उसके ओर थरमस बढ़ाते हुए… "ग्लूकोज पी लो एनर्जी मिलेगी।"..


दिव्या अब भी हैरानी से चारो ओर देख रही थी। उसकी धड़कने अब भी बढ़ी हुई थी। उसकी हालत को देखते हुए… "आर्य ये गहरे सदमे में है, इसे मेडिकल सपोर्ट चाहिए वरना कोलेप्स कर जाएगी।"


आर्यमणि:- हम्मम । मै कॉटेज के पास जाकर वायरलेस करता हूं, तुम इसे कुछ पिलाओ और शांत करने की कोशिश करो।


निशांत:- इसे सुला ही देते है आर्य, जितनी देर जागेगी उतना ही इसके लिए रिस्क हैं। सदमे से कहीं ब्रेन हम्मोरेज ना कर जाए।


आर्यमणि:- हम्मम। ठीक है तुम बेहोश करो मै वायरलेस भेजता हूं।


निशांत ने अपने बैग से क्लोरोफॉर्म निकाला और दिव्या के नाक से लगाकर उसे बेहोश कर दिया। कॉटेज के पास पहुंचकर आर्यमणि ने वायरलेस से संदेश भेज दिया, और वापस निशांत के पास आ गया।


निशांत:- आर्य ये मैडम तो बहुत ही सेक्सी है यार।


आर्यमणि:- मैंने शुहोत्र को देखा, लोपचे कॉटेज में। घर के पीछे किसी को दफनाया भी है शायद।


निशांत, चौंकते हुए… "शूहोत्र लोपचे, लेकिन वो यहां क्या कर रहा है। तू कन्फर्म कह रहा है ना, क्योंकि 6 साल से उसका परिवार का कोई भी गंगटोक नहीं आया है। और आते भी तो एम जी मार्केट में होते, यहां क्या लोमड़ी का शिकार करने आया है।"


"तुम दोनो को यहां आते डर नहीं लगता क्या?"… पुलिस के एक अधिकारी ने दोनो का ध्यान अपनी ओर खींचा।


निशांत:- अजगर का निवाला बन गई थी ये मैडम, बचा लिया हमने। आप सब अपना काम कीजिए हम जा रहे है। वैसे भी यहां हमारा 1 घंटा बर्बाद हो गया।


पुलिस की पूरी टीम पहुंचते ही आर्यमणि और निशांत वहां से निकल गए। रास्ते भर निशांत और आर्यमणि, सुहोत्र लोपचे और लोपचे का जला खंडहर के बारे में सोचते हुए ही घर पहुंचा। दिमाग में यही ख्याल चलता रहा की आखिर वहां दफनाया किसे है?


दोनो जबतक घर पहुंचते, दोनो के घर में उनके कारनामे की खबर पहुंच चुकी थी। सिविल लाइन सड़क पर बिल्कुल मध्य में डीएम आवास था जो कि आर्यमणि का घर था और उसके पापा केशव कुलकर्णी गंगटोक के डीएम। उसके ठीक बाजू में गंगटोक एसीपी राकेश नईक का आवास, जो की निशांत का घर था।
पहला भाग ही इतना रोचक कि किया ही कहना अजगर कुंडली में खूबसूरत (अनुभवी महिला ऐसा मैं नही निशांत कह रहा था 😁) लड़की दो बांका नौजवान कंचनजंगा की डरावनी पहाड़ी इलाका और सबसे खास बड़ा पुलिस के ठुल्ले खैर इन सैलानियों का क्या ही कहना कितना भी माना कर लो कि उधर नहीं जाना उधर जान को खतरा है फ़िर भी जायेंगे उधर ही और खुद के साथ बाकियों के लिए आफत खड़ी कर देंगे।
 

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भाग:–२



एसीपी और डीएम, दोनो ही अधिकारी लगभग 4 साल से यहां कार्यरत थे। इससे पहले दोनो एक साथ सिक्किम के अन्य इलाकों में भी थे। राकेश नाईक तब से केशव कुलकर्णी के पीछे था जब से वो एसपी था। 6 महीने के अंतर में दोनो का तबादला लगभग एक ही जगह पर हो जाता था। हां लेकिन एक बात जो जग जाहिर थी, कुलकर्णी जी की कभी भी नाईक के साथ नहीं बनी, जबकि उन दोनों को छोड़कर पूरे परिवार में बनती थी।


आर्यमणि और निशांत दोनो लगभग एक ही उम्र के थे और बचपन के साथी। ट्रांसफर और सुदूर इलाकों में जाने की वजह से दोनो दोस्तो के पढ़ाई पर थोड़ा असर तो पड़ा था, लेकिन घर के माहौल के कारण दोनो ही लड़के पढ़ाई में अच्छे थे। आर्यमणि जैसे ही साइकिल लगाकर अपने घर में घुसने लगा, उसकी मां जया कुलकर्णी दरवाजे पर ही उसका रास्ता रोके… "फिर आज जंगल के रास्ते वापस आए?"..


आर्यमणि, छोटी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते… "सही समय पर पहुंच गए इसलिए जान बच गई।"..


जया:- और मेरी जान अटक गई। कितनी बार बोली हूं कि मत ऐसे किया कर। पुलिस है, प्रशाशन है, इतने सारे लोग है, लेकिन तू है कि जबतक अपने पापा की डांट ना सुन ले, तबतक तेरा खाना नहीं पचता। मै तुझसे कुछ कह रही हूं आर्य। हद है जब कुछ कहो तो कमरे में जाकर पैक हो जाता है।


आर्यमणि अपनी मां की बात को सुनते-सुनते अपने कमरे में पहुंच गया था और आराम से दरवाजा लगा लिया। रात के वक़्त वो जैसे ही सबके साथ खाने के लिए बैठा…. "मै कल ही तुम्हे नागपुर भेज रहा हूं।".. केशव पहला निवाला लेते हुए आर्यमणि से कहा…


जया:- अभी तो 11th में गया है। हमने 12th के बाद इंजीनियरिंग के लिए प्लान किया था...


केशव:- नहीं अब वहीं पढ़ेगा। इंजिनियरिंग में एडमिशन हुआ तो ठीक, वरना नागपुर से डिग्री कंप्लीट करके अपनी आगे की जिंदगी देखेगा। और ये फाइनल है। सुना तुमने आर्य।


आर्यमणि:- 12th तक इंतजार कर लीजिए पापा, फिर नागपुर में ही एडमिशन लूंगा।


केशव:- क्यों अभी जाने में क्या हर्ज है?


आर्यमणि:- मै पहले 12th तो कर लूं...


केशव:- हां तो कल से तुम कार से जाओगे और कार से आओगे।


आर्यमणि:- पापा आप ओवर रिएक्ट कर रहे है। इस बारे में हम पहले भी बात कर चुके है।


आर्यमणि अपनी बात कहकर खाने लगा और केशव गुस्से में लगातार बोले जा रहा था। उसे शांत करवाने के चक्कर में बेचारी जया पति और बेटे के बीच में पिसती जा रही थी। आर्यमणि अपनी छोटी सी बात समाप्त कर आराम से खाकर अपने कमरे में चला गया।


रात के तकरीबन 12 बजे आर्यमणि के खिकड़ी पर दस्तक हुआ। आर्यमणि अपना पीछे का दरवाजा खोला और निशांत अंदर…. "यार उस वक़्त तूने सस्पेंस में ही छोड़ दिया। बता ना क्या तूने सच में वहां शूहोत्र को देखा।".. आर्यमणि ने हां में सर हिलाकर उसे जवाब दिया।


निशांत:- सुन, कल सीएम ने एक छोटी सी पार्टी रखी है। लगता है शूहोत्र लोपचे उसी उसी पार्टी के लिए आया हो। कुछ दिन पहले आकर अपना पैतृक घर देखने चला गया हो, जहां कभी उसका बचपन बीता था।


आर्यमणि:- नहीं, उसकी आखें अजीब थी। वहां ताज़ा खुदाई हुई थी। वो 6 साल बाद जर्मनी से यहां क्या करने आया होगा?


निशांत:- मैत्री को फोन क्यों नहीं लगा लेता?


आर्यमणि:- कुछ तो अजीब है निशांत, मैत्री 6 महीने से कोई मेल नहीं की। जबकि आखरी बार जब उससे बात हुई थी तब वो अपने इंडिया आने के बारे में बता रही थी। वो तो नहीं आयी लेकिन शूहोत्र आ गया। कल सब सीएम की पार्टी में जाएंगे ना?


निशांत:- तू कहीं जंगल जाने के बारे में तो नहीं सोच रहा।


आर्यमणि:- हां ..


निशांत:- वो सब तो ठीक है लेकिन मेरी पागल दीदी का क्या करेंगे, वो तो कल घर पर ही रहेगी। मेरा बाप तो आज ही मुझे कालापानी भेजने वाला था, मम्मी और क्लासेज ने बचा लिया। कल कहीं मेरी दीदी को भनक भी लगी और मेरे बाप से जाकर चुगली कर दी, फिर तो अपना यहां से टिकट कट जाएगा।


आर्यमणि:- मैं शाम 7 बजे निकल जाऊंगा। साथ आना हो तो मुझे जंगल के रास्ते पर 7 बजे मिल जाना। चित्रा को वैसे बेहोश भी कर सकते हो।


निशांत:- कल लगता है तूने सुली पर चढाने का इंतजाम कर दिया है। अच्छा सुन उस दिव्या मैडम से मेहनताना नहीं लिया यार। कल दिन मे उसके होटल से भी हो आते है।


आर्यमणि:- हम्मम !


निशांत:- मै जा रहा हूं, सुबह मिलता हूं।


निशांत और चित्रा 2 मिनट के छोटे बड़े, और दोनो ही एक दूसरे से झगड़ते रहते। बस इन दोनों के शांत रहने की कड़ी आर्यमणि था, क्योंकि आर्यमणि दोनो का ही खास दोस्त था। अगली सुबह चित्रा सीधा आर्यमणि से मिलने पहुंची। हॉल में उसे ना देखकर सीधा उसके कमरे में घुस गई। आर्यमणि अपने बिस्तर पर लेटा फिजिक्स की किताब को खोले हुए था। चित्रा गुस्से में तमतमाती... "कल के तुम्हारे कारनामे की वीडियो देखी, तुम्हे जारा भी अक्ल है कि नहीं।"..


आर्यमणि:- सॉरी चित्रा, जरा सी देरी होती तो उस लेडी की जान चली गई होती...


चित्रा:- दोनो क्यों जंगल से आते हो? घर के लोग इतना मना करते हैं फिर भी नहीं सुनते?


आर्यमणि:- तुम कल रात छिपकर हमारी बातें सुन रही थी?


चित्रा:- हां सुनी भी और शख्त हिदायत भी दे रही हूं... आज जंगल मत जाना। देखो आर्य, अगर आज तुमने वहां जाने की सोची भी तो मै तुमसे कभी बात नही करूंगी।


आर्यमणि:- ज्यादा स्ट्रेस ना लो। मैंने मन बना लिया है और मै जाऊंगा ही।


चित्रा:- पागलपन की हद है ये तो, आज पूर्णिमा है और तुम जानते हो आज की रात लोमड़ी कितनी आक्रमक होती है।


आर्यमणि:- हां मै जानता हूं और उसकी पूरी तैयारी मैंने कर रखी है। अब तुम जाओ यहां से और मुझे परेशान नहीं करो।


चित्रा:- ठीक है फिर ऐसी बात है तो मै तुम्हारे आज जंगल जाने की बात सबको बता ही देती हूं।


आर्यमणि:- ठीक है नहीं जाऊंगा। अब जाओ यहां से।


चित्रा:- मुझे भरोसा नहीं, खाओ मेरी कसम।


आर्यमणि:- आज शाम 7 बजे मै तुम्हारे पास रहूंगा। खुश.. अब जाओ यहां से।


चित्रा, बाहर निकलती… "मै इंतजार करूंगी तुम्हारा आर्य।"..


सुबह के लगभग 11 बजे। दिन की हल्की खिली धूप में दोनो दोस्त अपने साइकिल उठाए, शहर के सड़कों से होते हुए होटल पहुंच गए, जहां दिव्या अपने हसबैंड के साथ ट्रिप पर आयी थी। कमरे की बेल बजी और दरवाजा खुलते ही... दिव्या उन दोनों को देखकर पहचान गई… "तुम वही हो ना जिसने कल मेरी जान बचाई थी।"…. दिव्या दोनो को अंदर लेती हुई दरवाजा बंद कि और बैठने के लिए कहने लगी।


निशांत:- आप तो कल काफी सदमे में थी, इसलिए मजबूरी में मुझे आपको बेहोश करना पड़ा। अभी कैसी है आप?


दिव्या:- कैसी लग रही हूं?


निशांत, खुश होते हुए…. "बिल्कुल मस्त लग रही है।"


आर्यमणि:- कल जंगल के उस इलाके में आप क्या करने गई थी? और वहां तक पहुंची कैसे?


दिव्या:- "हमारा पूरा ग्रुप टूर गाइड के साथ कंचनजंगा के ओर जा रहे थे। तभी सड़क पर कई सारे जंगली जानवर आ गए। उन्हें देखकर ड्राइवर ने गाड़ी बंद कर दिया और हम सबको बिल्कुल ख़ामोश रहने के लिए कहा। इतने में ही एक जानवर धराम से कार के बोनट पर कूद गया और मेरी चींख निकल गई।"

"जैसे ही मै चिंखी जानवर हमारी गाड़ी पर हमला कर दिए। मै डर के मारे सड़क पर भागने के बदले उल्टा जंगल के अंदर ही भाग गई। जब मै जंगल में थोड़ी दूर अंदर गई तभी एक लोमड़ी आकर मुझ से टकरा गई, और मै नीचे जमीन में गिर गई।"

"मेरे तो प्राण हलख में आ गए। जब मै हिम्मत करके नजर उठाई तो दूर 2 जानवर लड़ रहे थे। कोहरे के करण साफ तो नहीं दिख रहा था, लेकिन हो ना हो मुझे कौन खाएगा उसकी लड़ाई जारी थी। मेरे पास अच्छा मौका था और मैंने दौर लगा दिया। दौड़ती गई दौड़ती गई, ये भी नहीं पता था कि कहां दौर रही हूं। इतने हरा भरा जंगल था कि मै तो सीधा खाई में ही आगे पाऊं बढ़ा दी। वो तो अच्छा हुए की एक टाहनी में मेरा कॉलर फस गया और मै किसी तरह पेड़ की निचली साखा पर जाकर बैठ गई।"


आर्यमणि:- हम्मम!


निशांत:- तुम्हारे पति और वो टूर गाइड कहां है।


दिव्या:- मेरे हबी का हाथ फ्रैक्चर हो गया और वो अभी हॉस्पिटल में ही है। एक हफ्ते में डिस्चार्ज मिलेगा। घर संदेश भेज दिया है, उनके डिस्चार्ज होते ही हम लौट जाएंगे। तुम दोनो को दिल से आभार। यदि तुम ना होते तो वो अजगर मुझे निगल चुका होता। देखो मै भी ना.. तुम दोनो बैठो मै तुम्हारे लिए कॉफी बुलवाती हूं। और हां प्लीज तुम दोनो मेरे हब्बी से जरूर मिलने चलना, तुम्हे देखकर वो खुश हो जाएंगे।


निशांत:- मैडम, रुकिए मै यहां कॉफी पीने नहीं आया हूं। बल्कि कल की मेहनत का भुगतान लेने आया हूं।


दिव्या:- मतलब मै समझी नहीं। क्या तुम कहना चाह रहे हो, जान बचाने के बदले तुम्हे पैसे चाहिए?...


निशांत:- नहीं पैसे नहीं अपनी मेहनत का भुगतान। देखिए मैडम आप इतना जो धन्यवाद कह रही है उस से अच्छा है मेरे लिए कुछ करके अपने एहसान उतार दीजिए और यहां के वादियों लुफ्त उठाइए।


दिव्या, निशांत को खा जाने वाली नज़रों से घूरती हुई…. "कहना क्या चाहते हो, साफ साफ कहो।"


आर्यमणि:- वो कहना चाहता है, उसने आपकी जान बचाई बदले में आप कपड़े उतारकर उसे मज़े करने दीजिए और एहसान का बदला चुका दीजिए।


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या निशांत को एक थप्पड़ लगाती हुई…. "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की। खुद को देखो, शक्ल पर मूंछ तक ठीक से नहीं आयि है और अपनी से बड़ी औरत के साथ ऐसा करने का ख्याल, छी... कौन सी गंदगी मे पले हो। मैं तो तुम्हें अच्छा लड़का समझती थी, लेकिन तुम दोनो तो कमिने निकले।"


आर्यमणि:- दुनिया में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता। हम आपके काम आए बदले में आपको हम अपना काम करने कह रहे हैं। आप नहीं कर सकती तो हंसकर माना कर दीजिए, हमे जज मत कीजिए।


दिव्या:- तुम दोनो पागल हो क्या? तुम समझ भी रहे हो तुम लोग क्या कह रहे हो? यदि मेरी जान नहीं बचाई होती तो अब तक धक्के मार कर बाहर निकाल चुकी होती।


आर्यमणि:- रुकिए !!! आराम से 2 मिनट जरा सही—गलत पर बात कर लेते है फिर हम चले जाएंगे। मुझे तुम में कोई इंट्रेस्ट नहीं इसलिए तुम मेरे सवालों का जवाब शांति से देना, तुम्हारी जान बचाने का मेंहतना।


दिव्या:- हम्मम। ठीक है..


आर्यमणि:- तुम्हारे जगह तुम्हारा पति होता और हमारी जगह कोई लड़की। और वो लड़की ये प्रस्ताव रखती तो क्या तुम्हारे पति का भी यही जवाब होता।


दिव्या, चिढ़कर… "पता नहीं।"..


आर्यमणि:- जिस पति के लिए तुम वफादार हो, यदि कल तुम मर जाती तो क्या वो दूसरी शादी नहीं करेगा या किसी दूसरी औरत के पास नहीं जायेगा?


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या कुछ सोच में पड़ गई। तभी उसने आखरी सवाल पूछ लिया… "क्या तुम्हे यकीन है, तुम्हारी गैर हाजरी में यदि तुम्हारे पति को यही ऑफर कोई लड़की देती, तो वो मना कर पाता?"..


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या ने कोई जवाब नहीं दिया। वो केवल अपने सोच में ही डूबी रही, इधर निशांत खड़ा होकर दिव्या को एक थप्पड़ मारते…

"थप्पड़ का बदला थप्पड़। कन्विंस करके हम किसी के साथ कुछ नहीं करते। ये हमारे वसूलों के खिलाफ है। बस तुमने हमे अच्छे और बुरे के तराजू में तौला इसलिए इतना आइना दिखाना पड़ा, वरना हंसकर केवल इतना कह देती सॉरी मुझेस नहीं हो पाएगा, मेरी अंतर आत्मा नहीं मानेगी। अपनी वफादारी खुद के लिए रखो, किसी दूसरे के लिए नहीं। बाय—बाय मैडम।"…


निशांत बाहर निकलते ही… "हमने कुछ ज्यादा तो नहीं सुना दिया आर्य।"..


आर्यमणि:- जाने भी दे शाम पर फोकस करते है।


शाम के लगभग 6 बजे सिविल लाइन से जैसे अधिकारियों का पूरा काफिला ही निकल रहा हो। उन लोगो के जाते ही आर्यमणि और निशांत भी अपनी तैयारियों में लग गए, साथ मे चित्रा पर भी नजर दिए हुए थे। 6.30 बजे के करीब आर्यमणि, चित्रा के कमरे में पहुंचा। चित्रा आराम से बिस्तर पर टेक लगाए अपना मोबाइल देख रही थी।


जैसे ही किसी के आने की आहट हुई, चित्रा मोबाइल के होम स्क्रीन बटन दबाई और हथेली को चेहरे पर फिरा कर अपने भाव छिपाने लगी…. "क्या मिलता है तुम्हे इरॉटिका पढ़कर, कितनी बार मना किया हूं।".. आर्यमणि भी चित्रा के हाव भाव समझते पूछने लगा...


चित्रा:- सॉरी वो घर पर कोई नहीं था तो.. मुझे ध्यान ही नहीं रहा तुम्हारा।


आर्यमणि:- हम्मम ! तुम्हारे चेहरे पर कुछ लगा है।


चित्रा:- कहां..


आर्यमणि:- लेफ्ट में थोड़ा ऊपर..


चित्रा:- कहां .. यहां..


"रुको मै ही साफ कर देता हूं।".. कहते हुए आर्यमणि ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बड़ी सफाई से क्लोरोफॉर्म सुंघाकर चित्रा को बेहोश कर दिया। उसे बेहोश करने के बाद आर्यमणि, निशांत के साथ निकला। दोनो साइकिल लेकर जंगल वाले रास्ते पर चल दिए।


कुछ दूर आगे चलने के बाद दोनो एक मालवाहक टेंपो के पास रुक गए, जहां उस टेंपो का मालिक पिंटो खड़ा था… "तुम दोनो छोकड़ा लोग आज क्यूं रिस्क ले रहा है मैन। पूर्णिमा की रात जंगल जाना खतरनाक है। हमने तुमको गाड़ी दिया यदि तुम्हारे फादर को खबर लगी तो वो मेरी जान निकाल लेंगे।"


निशांत अपनी साइकिल टेंपो में रखते हुए… "पिंटो रात को यहां से अपनी ट्रक ले जाना, हम वापस लौटने से पहले कॉल कर देंगे।"..


आर्यमणि टेंपो चलाने लगा, और निशांत पीछे जाकर खड़ा हो गया। जंगल के थोड़ा अंदर घुसते ही… "आर्य रोक यहां।"… टेंपो जैसे ही रुकी निशांत ने पेड़ की डाल से ताजा मांस का एक टुकड़ा बांध दिया। ना ज्यादा ऊपर ना ज्यादा नीचे। ऐसे ही करते हुए निशांत ने लगभग 50 टुकड़े जंगल के अलग-अलग इलाकों मे बांधने के बाद सीधा लोपचे के पुराने कॉटेज के पास पहुंचे।


टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।

शानदार भाग रहा। अपनी मेहनताना बदलने का, दोनो का तरीका गजब हैं पहले मदद करो फिर वो मांगो जिसे देने में आनाकानी करे और जब बात खुद पे आ अटके तो ज्ञान की पुड़िया बांट दो।

इतना मनाही के बाद भी दोनों जंगल में चले ही गए। देखते है आगे किया होता है
 

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भाग:–56






"ऐसे कैसे हम यहां से चले जाए शिकारी जी, ये तो हमारे शिकार है और हमारी रणनीति। आप लोग इस पूर्णिमा की शाम का आनंद उठाइये और प्रहरी समुदाय से कहियेगा, उनका काम अल्फा पैक ने कर दिया।".. रूही उस शिकारी के करीब आकर कहने लगी जो अपना हाथ अभी-अभी चाबुक पर रखा था।


रूही… आंहा, कोई हरकत नहीं शिकारी जी। आप के पीछे आपके 9 लोग है। वो क्या है ना हम अपना बदला खुद ले लेंगे।


जबतक वो शिकारी बात कर रहा था। ओजल, इवान और अलबेली ने अपनी दबे पाऊं वाली शिकारी गति दिखाते, उसके 9 लोगो के हाथ पाऊं बांध चुके थे।


शिकारी:- तुम माउंटेन एश की सीमा नहीं पार कर पाओगी।


रूही:- पार करना भी नहीं है। जैसे-जैसे चंद्रमा अपने उफान पर होगा, माउंटेन एश के सीमा में बंधे बेबस वेयरवोल्फ पूर्ण उत्तेजित हो जायेंगे। और ये पूर्णिमा उन्हें इतना आक्रोशित कर देगा कि ये लोग एक दूसरे को ही फाड़ डालेंगे।


शिकारी:- इस लड़की (अलबेली) को उस लड़के (इवान) के साथ क्यों बांध रखी हो?


रूही:- लड़की नही अलबेली। पूर्णिमा की रात से निपटने के लिये उसके पास अभी पूरा कंट्रोल नही है। चिंता मत करो अलबेली को लेथारिया वुलपिना का डोज देंगे, जरा चंदा मामा को अपने पूर्ण सबाब पर तो आने दो।


शिकारी:- तुम लोग कमाल के हो। नेक्स्ट लेवल वेयरवुल्फ..


रूही:- शिकारी जी हम भी आपकी तरह इंसान ही है। बस आप लोग ने ही हमे हमेशा जानवर की तरह ट्रीट किया है। मेरे बॉस आर्यमणि ने हमे सिखाया है कि हम इंसान है, इसलिए क्ला और फेंग से लड़ाई में विश्वास नहीं रखते। बाकी यदि क्ला और फेंग है तो एक्स्ट्रा फीचर है। बुरे वक़्त में इस्तमाल करेंगे।


शिकारी:- मुझे भी पैक ही कर दो, हम ड्रोन कैमरा से तुम्हारा कारनामा देखेंगे।


रूही:- वो भी कर देंगे शिकारी जी। पहले हमारा पेमेंट तो हो जाने दो। तुम्हे खोलकर ही रखा है अपने पेमेंट के लिये।


शिकारी:- कैसा पेमेंट?


रूही:- ओय 12 लैपी, ये 1000 ड्रोन, ऊपर से माउंटेन एश कितना कीमती मिला है। फिर ये हथियार जो हमारे पास है, उसे हम एक बार ही इस्तमाल करेंगे, उसके बाद तो जायेगा तुम्हारे हेडक्वार्टर ही। वैसे भी जनता के दान में दिये पैसे से तुम्हारा प्रहरी समुदाय अरबपति हैं। तुम्हारा काम मै कर रही हूं सो हमारा मेहनताना और इनकी कीमत, नाजायज मांग तो नहीं है।


शिकारी:- मेरा नाम बद्री मुले है। तुमसे अच्छा लगा मिलकर। बिल दो और पैसे लो।


रूही:- और माउंटेन एश के पैसे।


बद्री:- कितना किलो मंगवाई थी।


रूही:- 2 क्विंटल।


बद्री:- हम्मम ठीक है। पर यहां तो नेटवर्क नहीं, होता तो अभी ट्रांसफर कर देता पैसे।


रूही:- यहां जैमर का रेंज नहीं है। ये देख लो बिल्स। और रीमबर्स कर दो सर जी।


बद्री अपना अकाउंट खोलकर… "अकाउंट नंबर और डिटेल डालो अपना।"..


रूही ने उसमे अपना अकाउंट नंबर और डिटेल डाल दिया।… "आधा घंटा लगेगा, बेनिफिशरी एड होने दो।"


रूही:- कोई नहीं हमारे पास पुरा वक़्त है। बॉस अभी तो निकले भी नहीं है। रात के 11-12 से पहले तो वैसे भी काम खत्म नहीं होना है।


तभी कुछ देर बाद सरदार के इलाके से वुल्फ साउंड आने शुरू हो गये। यहां से अलबेली भी वुल्फ साउंड देती पागलों कि तरह करने लगी। वो अपना शेप शिफ्ट कर चुकी थी और चूंकि वो एक अल्फा थी, इसलिए धैर पटक, धोबी पछाड़ से भी ज्यादा खतरनाक अलबेली ने इवान को पटक दिया। दर्द से कर्रहाने की आवाज आने लगी। अलबेली अपने पंजे और दातों से इवान को फाड़ने के लिए आतुर थी। ओजल और इवान मिलकर किसी तरह उसे रोकने की कोशिश तो कर रहे थे, लेकिन वो उन जैसे 10 पर अकेली भारी थी। रूही ने डोज काउंट किया और हवा के रफ्तार से गयि, अलबेली के गर्दन में लेथारिया वुलपिना के 20ml के 2 इंजेक्शन लगाकर वापस बद्री के पास पहुंच गयि।


अगले 2 मिनट में अलबेली पूरी तरह शांत थी। वो अपना शेप शिफ्ट करती… "अरे ये क्या हो गया। रूही, क्यों इन्हे रोकने कही।"..


रूही, बद्रिं के भी हाथ पाऊं बांधते…. "अरे यहां हमारे प्रहरी भईया खड़े थे ना, बहुत शातिर होते है। अब रोना बंद करो और उनके दर्द को ठीक करो।"..


अलबेली पहले ओजल के पास पहुंची। उसके सारे दर्द को खींचकर पुरा हील की और बाद में इवान को।…. "अलबेली, कंट्रोल सीख ना रे बाबा, अकेले में हमे तो तू नरक लोक पहुंचा देगी।"..


इसी बीच बद्री मुंह पर बांधी पट्टी से... "उम्म उम्म" करने लगा।… रूही अलबेली को देखती... "बद्री जी के पट्टी खोल अलबेली, जारा बोलने दे इन्हे भी"… अलबेली उसका पट्टी खोलती… "तुम इतनी छोटी उम्र में अल्फा कैसे हो गयि।"


अलबेली:- बॉस जरा शादी में बिज़ी थे वरना ये दोनो भी अल्फा होते घोंचू।… (अलबेली अपने कमर के ऊपर का कपड़ा हटाती)… ये देख टैटू.. द अल्फा पैक।


बद्री:- हम्मम ! लेकिन तुम लोग ज्यादा देर तक यहां रहे तो वहां सरदार खान के किले में पुलिस पहुंच जायेगी।


रूही.… "अभी जादू देख… 10, 9, 8, 7, 6, 5, 4, 3, 2, 1, 0"… और चारो ओर आवाज़ गूंजने लगी… "मोरया रे बप्पा मोरया रे"….. "विनायक आला रे बद्री। आता कोण आम्हाला रोखेल। (अब कौन रोकेगा हमे)


रात 9 जैसे ही बजे… "चलो तैयार हो जाओ, एक्शन टाइम आला रे।"


खटाक, फटाक, सटाक.. मात्र 2 मिनट में ही चारो अपने बदन पर जगह-जगह भारी हथियार खोस चुके थे। हर किसी के पीठ पर एक बैग टंगा हुआ था।… "क्या हुआ तुम्हारा बॉस आने वाला है क्या।?..


रूही:- ध्यान से सुनो ये आहट.. आने वाला नहीं बल्कि आ चुका है।


रूही की बात समाप्त भी नहीं हुई थी कि उससे पहले ही आर्यमणि पहुंच चुका था।… "ओह दोस्ती बढायि जा रही है?"..


रूही:- सूट उप हो जाओ बॉस। वैसे पलक की दी हुई सूट मे भी कमाल लग रहे हो। ऐसे जाओगे तो हॉलीवुड का एक्शन होगा...


अपने पैक के साथ आर्यमणि तैयार हो चुका था। काफी तेजी के साथ सभी किले ओर बढ़े। किले के मुख्य मार्ग पर बिखरे माउंटेन ऐश को आर्यमणि बीच से साफ करते हुये बढ़ रहा था और बाकी सभी कतार बनाकर उसके पीछे चल रहे थे। किले में पहुंचते ही आर्यमणि तेजी के साथ वहां के हर घर में घुसा। वहां बंद हर वेयरवुल्फ को देखा। पूर्णिमा की रात अक्सर यह होता है। कई वुल्फ अपनी अक्रमाता बर्दास्त नहीं कर पाते इसलिए इनकी और वुल्फ खुद की सुरक्षा के लिये, उनका मुंह बांधकर जंजीरों में जकड़ देते हैं।


उस बस्ती के घरों में 40 बंधे वुल्फ और उसके साथ उसकी मां या पैक से कोई दिख गया। आर्यमणि के ठीक पीछे लाइन बनाये उसकी पूरी टीम। अलबेली और रूही हर किसी के गर्दन के पीछे अपने क्ला घुसाकर उसकी यादे लेती और जो भटका हुए लगते उन्हें मौत का तोहफा देकर आगे बढ़ जाते। हालांकि घर में बंधे वुल्फ और उनके साथ वाले लगभग 15 क्लीन थे। बाकी सभी वुल्फ अत्यंत ही निर्दयि और विकृत मानसिकता के थे। बढ़ते हुये सभी चौपाल पर पहुंचे। चौपाल के अंदर पागल बनाने वाला खतरनाक आवाजें आ रही थी। बीस्ट वुल्फ की शांत करने की दहाड़ पर सभी वुल्फ सहम से जाते लेकिन अगले ही पल फिर से वो सब आक्रोशित हो उठते। बीस्ट वुल्फ पर लगातार हमले हो रहे थे। इकलौता वहीं था जो शेप शिफ्ट नहीं कर पाया था और सभी वुल्फ के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ था।


आर्यमणि, चौपाल का दरवाजा खोलते… "रूही चौपाल पर ये लोग झुंड बनाकर किसे नोच रहे। झुंड को हल्का करो और बीच से जगह बनाओ। जारा सरदार खान से एक मुलाकात कर लिया जाय। लगता है बहुत दर्द में है।"..


सरदार खान का बेटा फने खान, अपने पिता की ताकत पाने के इरादे से तय वक्त से पहले ही उसे मॉडिफाइड कैनीन डिस्टेंपर वायरस खिला चुका था। जिसका नतीजा यह हुआ कि उसके नाक और मुंह से लगातार ब्लैक ब्लड बह रहा था और वो अपना शेप शिफ्ट नहीं कर पा रहा था।


"एक्शन टाइम बच्चो।"… चारो एक लाइन से खड़े हो गये और वोल्फवेन बुलेट फायर करने लगे। देखते ही देखते बीच से लाशें गिरना शुरू हो चुकी थी। वुल्फ के बीच भगदड़ मच गया। इसी बीच आर्यमणि अपने हाथ में वो एक फिट की सई वैपन लिये बीच से चलते हुये आगे बढ़ रहा था। आर्यमणि के पीछे वो चारो नहीं जा सकते थे क्योंकि उसने चौपाल के दरवाजे पर बिखरा माउंटेन ऐश साफ नहीं किया था। देखते ही देखते वुल्फ की भीड़ के बीच आर्यमणि कहीं गायब सा हो गया। इधर ये चारो गोली चला-चला कर आर्यमणि के ऊपर भिड़ का बोझ और लादे जा रहे थे।


तभी जैसे वहां विस्फोट हुआ हो और सभी वुल्फ तीतर बितर हो गये।… रूही सिटी बजाती हुई… "बॉस छा गये। अब क्या यहां स्लो मोशन पिक्चर बनाओगे, काम खत्म करो यार जल्दी।"


आर्यमणि:- हां सही सुझाव है।


आर्यमणि ने अपना शेप शिफ्ट किया, और सरदार खान की आखें फटी की फटी रह गई। आर्यमणि ने अपनी तेज दहाड़ लगायि और वहां मौजूद सभी जंगली कुत्ते के साथ-साथ सभी वुल्फ बिल्कुल शांत अपनी जगह पर बैठ गये। आर्यमणि तेजी से सबके पास से गुजरते हुये सबकी यादों में झांकता, वहां मौजूद हर किसी की याद में किसी न किसी को नोचते हुये ही उसने पाया। हर दोषी का सर वो धर से नीचे उतरता चला गया। तभी आर्यमणि के हाथ एक दोषी अल्फा लगा। उसे बालों से खींचकर आर्यमणि चौपाल के दरवाजे तक लाया और उसके दोनो हाथ और दोनो पाऊं तोड़ कर बिठा दिया।


वहां मौजूद 5 अल्फा में से 2 अल्फा अच्छे थे। आर्यमणि उन्हें जगाते… "जल्दी से अपने पैक और इनोसेंट वुल्फ को अलग करो। इतने में आर्यमणि की दहाड़ से शांत वुल्फ एक बार फिर तब आक्रामक हो गये जब सरदार खान ने वापस हमला की दहाड़ लगा दी। इसके प्रतिउत्तर में आर्यमणि ने फिर एक बार दहाड़ा और आकर सरदार खान के मुंह को बंद कर दिया। उन दो अल्फा ने अपना पूरा पैक अलग कर लिया और साथ में उन लोगो को भी, जो केवल पैक के वजह से सरदार खान के साथ थे। लगभग 30 वुल्फ को उसने अलग कर लिया जिसमें से 3 मरने के कगार पर थे और 12 अगले 5 मिनट में मरने वाले थे। आर्यमणि अपने तेज हाथो से उन 3 के अंदर की वोल्फबेन बुलेट निकाला और उनके दर्द को अपने अंदर खींचकर हील करने लगा। आर्यमणि ने माउंटेन एश की दीवार हटायि। वो चारो भी अंदर घुसे फिर शुरू हुआ मौत का तांडव। पहले तो 3 अल्फा में से 2 अल्फा ट्विंस के लिये छोड़ा गया और बचे 1 अल्फा की शक्तियों बांट दिया गया चारो में। 30 बीटा वूल्फ 2 अल्फा के साथ चुपचाप जाकर किनारे खड़े हो गये, जहां जंगली कुत्ते एक ओर से बैठे हुये थे। बाकी के वुल्फ को विल्फबेन बुलेट लगती जा रही थी। आर्यमणि आराम से आकर सरदार खान के पास बैठ गया…. "हम्मम ! तुम्हे पहले पहचान जाता तो ये गलती ना होती।"..


आर्यमणि:- सरदार तुम भुल रहे हो जबतक मैं अपनी पहचान जाहिर ना करूं, किसी के दिमाग में ये ख्याल भी नहीं आ सकता।


सरदार:- तो शक्ति कि भूख तुम्हे भी यहां खींच लाई।


आर्यमणि, उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर उसके दर्द को थोड़ा खींचने लगा। सरदार को काफी राहत महसूस होने लगी। ऐसा सुकून जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन जिस वायरस के दर्द का शिकार सरदार था, उस दर्द को आर्यमणि भी मेहसूस कर रहा था। आर्यमणि ने सरदार का हाथ छोड़ दिया और सरदार दोबारा दर्द से कर्राह गया।


आर्यमणि:– तुम्हारा बेटा फने नही दिख रहा...


सरदार:– ओह तो उस चूतिये को तूने सह दिया था। क्या किया उसने मेरे साथ?


आर्यमणि:– तुझे कुत्तों के अंदर पाया जाने वाला एक खतरनाक वायरस खिला दिया। जिसका नतीजा सामने है। वैसे तुझे मारने का फरमान तेरे आकाओं ने उसे दिया था। भारद्वाज एंड कंपनी... जानता तो होगा ही।


सरदार:– तू कुछ भी कहे और मैं मान लूं। वो अपेक्स सुपरनैचुरल है। समस्त प्राणियों में बिशेस और ताकतवर। उन्हे मुझे मारने के लिये इतने एक्सपेरिमेंट की जरूरत नहीं पड़ती। हां, लेकिन तू नौसिखिए, फने को इतना नही बताया की मेरे किसी इंसानी चमड़ी को भी भेदा नही जा सकता। मुझे मारने आया था उल्टा उसे और उसके साथियों को ही मौत की नींद सुला दिया।


आर्यमणि:- तू भ्रम में ही मरेगा सरदार। वैसे जानकर हैरानी हुई की तेरा ये आगे से 5 फिट निकले तोंद वाले भद्दा इंसानी शरीर को भी नही भेदा जा सकता। तुम्हारी जिंदगी तो नासूर हो गयि सरदार। मैंने तुम्हे छोड़ भी दिया तो ना तो तुम ढंग से जी सकते हो, ना मर सकते हो।


सरदार:- तो रुके क्यों हो, दे दो मौत मुझे और ले लो मेरी शक्तियां।


आर्यमणि:- इसी ताकत ने तेरा क्या हाल किया है? मुझे ताकत में कोई इंट्रेस्ट नहीं। पूछता हूं अपने पैक से, उन्हें ताकत की जरूरत है क्या? अरे चारो कितने स्लो हो, गोली मारने में कोई इतना वक़्त लगता है क्या?


चारो ने लगभग एक ही बात कही…. "हो गया बॉस"


आर्यमणि:- हमारे पैक के ट्विंस, अल्फा बने की नहीं। क्यों ओजल और इवान..


ट्विंस साथ में:- हां बन गये है लेकिन वो भी आपकी इक्छा थी सिर्फ इसीलिए...


आर्यमणि:- अच्छा सुनो सरदार खान की शक्ति तुम में से किसे चाहिए?


रूही:- हम तो टूर पर जा रहे, उसके पास बहुत पैसे और गोल्ड होंगे, वो ले लो।


अलबेली:- इसकी शक्ति मैंने ले ली तो मै भी इसकी तरह घिनौनी दिखने लगुंगी। मुझे नहीं चाहिए।


ओजल:- यहां से निकले क्या? इस गंदे माहौल को ही फील करना अजीब लग रहा है। ऐसा लग रहा है काले साये ने इस जगह को सदियों से घेर रखा है। खुशी ने यहां अपना मुंह मोड़ लिया है।


इवान:- हां ओजल सही कह रही है।


आर्यमणि:- तेरी शक्तियों में किसी को इंट्रेस्ट नहीं। खैर मै जारा उन सब की याद मिटा दू, जिन्हे मार नही सकता और मुझे प्योर अल्फा के रूप में देख चुके। रूही तुम सरदार के घर जाकर वो क्या पैसे और गोल्ड की बात कर रही थी, उसे ले आओ।


आर्यमणि जबतक उन 2 अल्फा और उसके साथ 30 वुल्फ के पास पहुंचा।… "तुम सब को 1 घंटे के लिए बेहोश करूंगा, मै नहीं चाहता कि कोई प्योर अल्फा का जिक्र भी करे। आज से तुम सब अपने पैक के साथ रहने के लिए स्वतंत्र हो।"


एक अल्फा नावेद…. "यहां रहे तो हमे भी सरदार की तरह बनने के लिए फोर्स किया जायेगा। कहीं भी अपने पैक के साथ रह लेंगे, लेकिन इस जगह पर नहीं।"


आर्यमणि:- तुम्हारी याद में तो ऐसी कोई जानकारी मुझे तब नहीं दिखी थी नावेद, कहना क्या चाहते हो?


नावेद:- एक वुल्फ के लिये उसका पैक ही उसका परिवार होता है। एक बीटा अपने अल्फा पर हमला तो कर सकता है, लेकिन एक अल्फा हमेशा अपने पैक के बीटा को संरक्षण देता है। यहां तो मैंने सरदार को अपने ही कोर पैक को खाते देखा है। ये बीस्ट अल्फा होने के साथ साथ बहुत ही घिनौना भी था। और शायद इसे ऐसा ही बनाया गया था। ऐसा मेरि समीक्षा कहती है।


दूसरा अल्फा असद… "नावेद ने सही कहा है। ये बात हम सबने मेहसूस की है। यहां लाकर हमारी आत्मा को तोड़ा जाता है। इंसानी रूप में रहते है लेकिन इंसानी पक्ष को मारने में कोई कसर नहीं छोड़ा इसने।"


आर्यमणि:- पहले एक छोटी सी बात बता दूं। आज के बाद नागपुर प्रहरी क्षेत्र में बहुत से बदलाव होगा। भूमि दीदी पूरी कमान अपने हाथ में लेने वाली है। यहां अब तुम दोनो ही हो। मै यह तो नहीं कहूंगा की तुम दोनो यहां बंध कर रहो, लेकिन तुम यहां नहीं होगे तो कोई ना कोई होगा। और वो जो कोई भी होगा उसे अब सरदार जैसा नहीं बनाया जायेगा। तुम अपने पैक के साथ यहां रहो। अगर हालात नहीं बदले तो यह जगह छोड़ देना। लेकिन मुझे नही लगता कि यहां से सरदार को गायब कर देने से सरदार को बनाने वाले लोग यहां फिर हिम्मत करेंगे सरदार जैसे किसी को वापस लाने की। और एक बात, तुम सब शापित नहीं हो, तुम्हारे रूप में ऊपरवाले ने कुछ अच्छा डाला है। खुद को जानवर प्रोजेक्ट करने से अच्छा है, खुद में विशेष होने जैसा मेहसूस करो।


"कुबेर का खजाना हाथ लग गया यहां तो बहुत सारे पैसे और प्रॉपर्टी के पेपर है। गोल्ड नहीं मिला लेकिन।".. रूही तीनों के साथ आते ही कहने लगी।


आर्यमणि ने पहले अपना काम खत्म किया। वहां सबको बेहोश करके, उसके गर्दन के पीछे अपना क्ला डालकर उनकी याद से केवल प्योर अल्फा, और ट्विन की याद मिटाने के बाद, आर्यमणि एक छोटा सा नोट छोड़ दिया….


"ये जगह और यहां के सारे लोग अब तुम दोनो के है। तुम दोनो अल्फा होने का फर्ज निभाओ। इन सब को कैसे अच्छी जिंदगी दे सकते हो उसके बारे में सोचना। तुम सब की हर समस्या भूमि दीदी और मेरी मां जया कुलकर्णी सुनेगी और हर संभव मदद करेगी। अब चलता हुं। ज़िन्दगी रही तो फिर मिलेंगे। अलविदा नावेद, अलविदा असद। और हां, रात के 2 बजे तक बहुत से मेहमान पहुंच जाएंगे, ये जगह साफ कर देना और उनसे बताना, हम यहां कैसे लड़े और सरदार खान को लेकर गये।"
Behtreen update
 

Tiger 786

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Jane dijiye pichle baton ko..maine aap ka patience dekha hai...mughe tajjub hota tha, aap sahi tarike se apni baat kyon nahi samgha pa rahe ho unhe. Wo koi uneducated person to the nahi. Politely sabhi ke saath treat kiya aapne.
Jo log abb yaha hai hi nahi, unke bare me sahi galat kya bolna ! Aur wo bhi uske liye jo kabhi humari best friend hua karti thi.
Jo bi ho par Naina ji ki kami to khalti hai Sanju Bhai.
 

Tiger 786

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भाग:–57





रूही:- बॉस 11:00 बजने वाले है। हम शेड्यूल से देरी से चल रहे है।


आर्यमणि:- हां चलो निकलते है यहां से। ओजल, इवान और अलबेली तुम तीनों यहां से जंगली कुत्तों को दूर जंगल में ले जाओ और सबको खत्म करके हमसे मीटिंग प्वाइंट पर मिलो।


"ठीक है बॉस" कहते हुए तीनों, कुत्तों को लेकर जंगल के ओर चल दिये। आर्यमणि अपने बैग खोला, सिल्वर की 2 हथकड़ी सरदार के हाथ और पाऊं में लगा दिया और मुंह पर टेप मारकर उस किले से निकालने लगा। किले से निकलने से पहले उसने माउंटेन एश साफ कर दिया ताकि ये लोग अपनी जगह घूम सके और सरदार को लेकर शिकारियों के पास आ गये।


सभी शिकारी वहीं बंधे हुए थे। आर्यमणि ने सबको बेहोश किया। रूही ने सभी शिकारियों को वुल्फबेन का इंजेक्शन लगा दी और आर्यमणि अपना क्ला उनके भी गर्दन के पीछे लगाकर उनकी याद से ट्विन कि तस्वीर को मिटाने लगा।…..


"क्या हुआ इतने आश्चर्य में क्यों पड़ गए।".. रूही आर्यमणि का चेहरा देखकर पूछने लगी।


याद मिटाने के दौरान 2 शिकारियों को आर्यमणि बड़े आश्चर्य से देख रहा था। उसकी ऐसी प्रतिक्रिया पर रूही पूछने लगी। "कुछ नहीं" कहते हुए आर्यमणि ने उनके जख्म को हील कर दिया और सरदार को लेकर मीटिंग प्वाइंट पर चल दिया। जाने से पहले आर्यमणि ने रूही को, सभी शिकारियों को कहीं दूर छोड़कर मीटिंग पॉइंट पर पहुंचने बोला। मीटिंग पॉइंट यानी नागपुर–जबलपुर के नेशनल हाईवे की सड़क के पास का जंगल, जहां इनकी गाड़ी पहले से खड़ी थी। सबकुछ अपने शेड्यूल से चल रहा था। सरदार खान को पैक कर के वैन में लोड किया जा चुका था। लेकिन तभी वहां की हवा में विछोभ जैसे पैदा हो गया हो। विचित्र सी आंधी, जो चारों दिशाओं से बह रही थी और आर्यमणि जहां खड़ा था, वहां के 10 मीटर के दायरे में टकराकर विस्फोट पैदा कर रही थी।


धूल, मिट्टी और तरह–तरह के कण के साथ लड़की के बड़े–बड़े टुकड़े उड़ रहे थे। एक इंच, २ इंच के लकड़ी के टुकड़े किसी गोली की भांति शरीर में घुस रहे थे। आर्यमणि खतरा तो भांप रहा था, लेकिन एक साथ इतने खतरे थे कि किस–किस से बचे। पूरा शरीर ही लहू–लुहान हो गया था। आशानिय पीड़ा ऐसी थी की ब्लड पैक १० किलोमीटर की दूरी से पहचान चुके थे। आर्यमणि के पास हवा में विछोभ था, तो इधर पैक के दिल में विछोभ पैदा हो रहा था।


सभी पागलों की तरह अपने मुखिया के ओर भागे। तभी सभी के कानो में आर्यमणि की आवाज गूंजने लगी... "एक किलोमीटर के आस पास भी मत आना। अभी इनके तिलिस्मी हमले से मैं खुद जिंदा बचने की सोच रहा, तुम सब आये तो तुम्हे बचाने में कोई नही बचेगा। दिल की आग शांत करने का मौका मिलेगा। मेरे बुलावे का इंतजार करो।"


आर्यमणि ने उन्हें रुकने का आदेश तो दे दिया। रूही समझ भी गयि। लेकिन तीन टीन वुल्फ को कौन समझाए जो आर्यमणि के मना करने के बाद भी रुके ही नही। रूही 1 किलोमीटर के दायरे के बाहर किसी ऊंचे स्थान पर पहुंची और वहां से मीटिंग पॉइंट को देखने लगी। वहां कुछ भी साफ नजर नही आ रहा था। हां बस उसे 4 पॉइंट दिख रहे थे जहां रेत में लिपटे किसी इंसान के खड़े होने जैसा प्रतीत हो रहा था, जिसके पूरे शरीर से धूल निकल रहा हो। इसी बीच तीनों टीन वुल्फ लगभग उनके करीब पहुंच रहे थे। तीनों ही काफी तेजी से बवंडर की दिशा में ही बढ़ रहे थे।


रूही:– बॉस आप सुन सकते हो क्या? तीनों टीन वुल्फ कुछ ही सेकंड में आपके नजदीक होंगे।


आर्यमणि, किसी तरह अपनी टूटती आवाज में... "तुम 1 किलोमीटर के दायरे से बाहर ही रहो।"


रूही, का कलेजा कांप गया.… "बॉस आप ठीक तो है न"


आर्यमणि:– अपना मुंह बंद करो और मुझे ध्यान लगाने दो.…


वक्त बहुत कम था। आर्यमणि न केवल घायल था बल्कि शरीर के अंग–अंग में इतने लड़की घुस चुके थे कि वह खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। वक्त था नही और शायद आर्यमणि आने वाले खतरे को भांप चुका था। फिर तो तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंजी। हवा यूं तो आवाज को गोल–गोल घूमाकर ऊपर के ओर उड़ाने के इरादे से थी, लेकिन उस तिलिस्मी बवंडर में इतना दम कहां था जो आर्यमणि की तेज दहाड़ को रोक सके। कलेजा थम जाये ऐसी दहाड़। आम इंसान सुनकर जिसके दिल की धड़कन रुक जाये ऐसी दहाड़। दहाड़ इतनी भयावह थी की बीच में विस्फोट करते दायरे से ही पूरी जगह बना चुकी थी।


गोल घूम रहे बवंडर के बीच से जैसे हवा का तेज बवंडर निकला हो। आर्यमणि की दहाड़ जैसे पूरे बवंडर को ही दिशा दे रही थी। २ किनारे पर खड़े शिकारी उस आंधी में बह गये। तीनों टीन वुल्फ और रूही जहां थे वहीं बैठ गये। उसके अगले ही पल जैसे जमीन से जड़ों के रेशे निकलने लगे थे और देखते ही देखते पूरा वुल्फ पैक उस जड़ के बड़े से गोल आवरण के बीच सुरक्षित थे। आर्यमणि ने ऐसा चमत्कार दिखाया था, जिसे देखकर सभी शिकारी बस शांत होकर कुछ पल के लिये आर्यमणि को ही देखने लगे।


पहली बार वह किसी के सामने अपने भव्य स्वरूप में आया था। पहली बार शिकारियों ने उसे पूर्ण वुल्फ के रूप में देखा था। लेकिन उन्हें तनिक भी अंदाजा नहीं था कि आर्यमणि किस तरह का वुल्फ था। आर्यमणि शेप शिफ्ट करने के साथ ही पहले तो अपनी दहाड़ से चौंका दिया उसके बाद जैसे ही अपने पंजे को भूमि में घुसाया, ठीक वैसे ही भूमि में हलचल हुयि, जिसका नतीजा तीनों टीन वुल्फ और रूही के पास देखने मिल रहा था। जड़ों के रेशे उन चारों को अपने आवरण के अंदर बड़ी तेजी से ढक रही थे।


प्रकृति की सेवा का नतीजा था। लागातार पेड़–पौधों को हिल करते हुये आर्यमणि अपने अंदर इतनी क्षमता उत्पन्न कर चुका था कि उसके पंजे भूमि में घुसते ही अंदर से जड़ों के रेशे तक को उगा कर अपनी दिमाग की शक्ति से उसे आकार दे सकता था। वुल्फ के शक्तियों की पहेली में एक ऐसी शक्ति जिसे सबसे पहले दुनिया की सबसे महान अल्फा हिलर फेहरिन (रूही की मां) ने अपने अंदर विकसित किया था। यह उन शिकारियों के साथ–साथ पूरे वुल्फ पैक के लिये भी अचंभित करने वाला कारनामा था।


लेकिन शिकारी तो यहां शिकार करने आये थे। पहले तो आर्यमणि को उलझाकर उसके पैक को नजदीक बुलाना था। फिर उसके बाद पहले आर्यमणि के पैक को खत्म करना था ताकि गुस्से में आर्यमणि का दिमाग ही काम करना बंद कर दे। उसके बाद बड़े ही आराम से मजे लेते हुये आर्यमणि को मारना था। किंतु उन्होंने थोड़ा कम आंका। बहरहाल आर्यमणि जो भी करिश्में दिखा रहा था शिकारियों को उसे सीखना में कोई रुचि नहीं थी। उनका शिकार तो इतनी बुरी तरह ऐसा घायल था की खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। ऊपर से अभी एक जगह बैठकर अपना ध्यान केंद्रित किये था। भला इस से अच्छा मौका भी कोई हो सकता था क्या?


२ केंद्र से अब भी हवा का बहाव काफी तेज था। सामने के 2 केंद्र को तो आर्यमणि अपनी दहाड़ से उड़ा चुका था, लेकिन पीछे से २ शिकारी भी अपने अद्भुत कौशल का परिचय दे रहे थे। शिकारियों के आपसी नजरों का तालमेल हुआ और अगले ही पीछे से हवा के बहाव से कई सारे तेज, नुकीले, पूरी धातु के बने भाले निकलने लगे। एक तो लगातार बहते रक्त ने आर्यमणि को पूर्ण रूप से धीमा कर दिया था ऊपर से पंजा भूमि के अंदर था। आर्यमणि जबतक अपना हाथ निकालकर आने वाले खतरे से पूरा बचता तब तक पीछे से शरीर को चिड़ते हुये ३ भला आगे निकल आया।


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आर्यमणि के प्राण ही जैसे निकल गये हो। आर्यमणि लगभग मरा सा जमीन पर गिरा। जड़ों के बीच में फसे टीन वुल्फ और रूही छटपटा कर रह गये। आर्यमणि के मूर्छित होकर गिरने के साथ ही वो लोग भी जमीन पर आ चुके थे। 8 शिकारी, जिन्हे सीक्रेट बॉडी ने भेजा था। जिन्हे ये लोग अपने थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी भी कहते है। दिख तो इंसानों की तरह ही रहे थे लेकिन इनकी क्षमता इन्हे सैतन से कम दर्जा नहीं देती। वायु नियंत्रण करना। वायु के बवंडर के बीच से नुकीले भाले और तीर का निकलना, जो सीधा सामने वाले के प्राण ही ले ले।


8 शिकारी, चेहरे पर विजयी मुस्कान लिये अपने शिकार की स्थिति को जानने के लिये आगे बढ़े।…. कुछ दूर बढ़े ही थे कि पीछे से आवाज आयि.… "क्यों बे खजूर, मेरा दोस्त मरा या नही, सुनिश्चित करने जा रहा।"


आठों एक साथ मुड़े। पीछे संन्यासी शिवम और निशांत खड़ा था। उन सभी शिकारियों में से एक ने बोला... "हम तो केवल वुल्फ पैक को मारने आये थे। लेकिन क्या करे पीछे कोई सबूत भी तो नहीं छोड़ सकते। दोनो को मार दो।"…


जैसे ही मारने के आदेश हुये, 4 शिकारी बिलकुल हवा मे लहराते हुये चार दिशाओं में पहुंच गये। इधर सन्यासी शिवम और निशांत दोनो सामने खड़े दुश्मन का पूर्ण अवलोकन भी कर रहे थे, साथ ही साथ आर्यमणि का हैरतंगेज कारनामा भी देख रहे थे, कि कैसे उसने मिट्टी में अपने क्ला को डाला और उसे जड़ों ने जकड़ना शुरू कर दिया। इधर सभी शिकारी अपना पूर्ण ध्यान इन्ही दोनो पर केंद्रित किये थे। चार कोनो से घेरने के बाद जैसे ही शिकारियों ने अपने दोनो हाथ फैलाये, शिवम टेलीपैथी के जरिए निशांत को वायु विघ्न के मंत्र पढ़ने के लिये कहने लगा। दोनो ने एक साथ वायु विघ्न के मंत्र पढ़े, लेकिन उन सभी शिकारियों पर मंत्रों का कोई प्रभाव ही नही पड़ा।


निशांत और संन्यासी शिवम दोनो ही आने वाले खतरे को भांप चुके थे इसलिए सबसे पहले तो पूर्ण सुरक्षा का मंत्र खुद पर ही पढ़ा। खुद को पूरी तरह से सुरक्षित किये ही थे की तभी उन दोनो के ऊपर वायु का विस्फोट सा होने लगा। उनके सुरक्षा घेरे के बाहर हो रहे हवा के विस्फोट को दोनो अपनी आखों से देख रहे थे। हवा के साथ आते लकड़ी के टुकड़े भी उनकी आंखों के सामने थे। निशांत हैरानी से अपनी आंखें बड़ी किये.… "क्या भ्रमित अंगूठी यहां काम आती।"


संन्यासी शिवम:– अभी तुम जिस हवा से भ्रम पैदा कर रहे हो, जब वही हवा हमला करने लगे तब कहना मुश्किल होगा। सुरक्षा मंत्र खोल कर जांच लो।


संन्यासी शिवम की बात मानकर निशांत ने अपनी एक उंगली बाहर की और एक सेकंड पूरा होने से पहले उसकी उंगली लहूलुहान थी.… "जान बच गयि सीनियर। क्या इसी हवा के हमले से आर्यमणि को घायल किये होंगे।"


संन्यासी शिवम:– हमारे लिये इन हमलों से ज्यादा जरूरी इस बात का मूल्यांकन करना है कि हमारे मंत्र इनपर बेअसर क्यों हुये?


निशांत:– किसी एक को पकड़कर आचार्य जी के पास ले चलते है।


संन्यासी शिवम:– हम तो लड़ नही सकते। अब उम्मीद सिर्फ आर्यमणि से ही है। उसके बाद ही आगे का कुछ सोच सकते है।


"ये क्या हो रहा है"…. निशांत हड़बड़ाते हुये पूछा... "भ्रमित अंगूठी के भरोसे मत रहना। हो सकता है हमारे मंत्र इनपर बेअसर है तो ये लोग सुरक्षा मंत्र के अंदर भी हमला कर सकते है।"….. निशांत जबतक "कैसे" पूछा तब तक दोनो ही हवा में खींचते हुये २ शिकारियों के निकट पहुंच चुके थे और अगले ही पल दोनो को तेज–तेज २ मुक्के पर गये। दोनो का जबड़ा हिल गया।


निशांत, हवा में ही गुलाटी खाते.… "सालों ने जबड़ा तोड़ दिया लेकिन एक बात का सुकून है खुद पर मंत्र पढ़ो तो उनके मार का असर कम हो जाता है।"…


संन्यासी शिवम:– हां सही आकलन। बाहुबल में भी ये लोग कमजोर नही। हाथियों जितनी ताकत रखते है।


सुरक्षा मंत्र के घेरे में बंद दोनो पर हवा की मार का असर तो नही हो रहा था इसलिए शिकारियों ने भी उन्हें मारने का निंजा तकनीक तुरंत ही विकसित कर लिया था। दोनो को अपने पास खींचते और जबरदस्त मुक्का जड़ देते। दोनो जैसे कोई पंचिंग बॉल बन गये थे। हवा में ही ये दोनो शिकारी के पास खींचे चले जाते और वहां से मुक्का खाकर हवा में ही लहराते हुये दूसरे शिकारी के पास। हर मुक्का पड़ने से पहले खुद के ऊपर ही मंत्र पढ़ लेते लेकिन फिर भी मुक्के का जोड़ इतना था की असर साफ दिख रहा था। दोनो की ही हालत खराब हो चुकी थी। यदि कुछ देर और ऐसा ही चलता रहा फिर तो निशांत और संन्यासी शिवम दोनो मंत्र जपने की हालत में नहीं होते।


इसके पूर्व जैसे ही निशांत और संन्यासी शिवम यहां पहुंचे, शिकारियों का पूरा ध्यान दोनो पर ही रहा। इधर जड़ों का बड़ा सा आवरण बनाकर आर्यमणि किसी तरह खड़ा हुआ। एक तो शरीर से पहले ही खून बह रहा था उसके ऊपर भला किसी जहर में लिप्त था, जो अंदर घुसते ही प्राण बाहर लाने को आतुर था।


आर्यमणि एक हाथ को सीने पर रखकर पूरे बदन की पीड़ा और जहर अपने नब्ज में खींचने लगा वहीं दूसरे हाथ से भला निकलने की कोशिश करने लगा। शुरवात के कुछ मिनट में इतनी हिम्मत नही थी कि शरीर से भला खींचकर निकाल सके। लेकिन जैसे–जैसे दर्द और जहर खींचता जा रहा था हिम्मत वापस से आने लगी।अपने चिल्लाने के दायरे को केवल आवरण तक ही रखा और दर्द भरी चीख के बीच पहला भाला को निकाला।


पहला भाला निकालने के साथ ही आर्यमणि के आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया हो। लगभग बेहोश होने ही वाला था, लेकिन किसी तरह हिम्मत जुटाया और भाला निकलने के बदले जड़ों के रेशों पर हाथ डाला। जड़ों के रेशे, सबसे पहले शरीर में घुसे दोनो भाला के सिरे से लिपट गये। उसके बाद शरीर के अंदर सुई जितने पतले आकार के लाखों रेशे घुस चुके थे। आर्यमणि दूसरे हाथ से लगातार अपने दर्द और जहर को खींचते हुये, पहला ध्यान अपने एक पाऊं पर लगाया और पाऊं के अंदर घुसे लकड़ी के छोटे से छोटे कण को निकाल लिया। एक पाऊं से लड़की के टुकड़े जैसे ही निकले पल भर में वह पाऊं हिल हो गया।


आर्यमणि अपने अंदर थोड़ी राहत महसूस किया। बड़े ही आराम से एक के बाद एक बदन के अलग–अलग हिस्सों से सभी लकड़ी के टुकड़े निकाल चुका था। सबसे आखरी में उसने एक–एक करके दोनो भाले भी निकाल लिये और थोड़ी देर तक खुद को हिल करता रहा। कुछ ही देर में आर्यमणि पूर्ण रूप से हिल होकर पूर्ण ऊर्जा और पूर्ण क्षमता अपने शरीर में समेट चुका था। पूरी क्षमता को अपने अंदर पुर्नस्थापित करने के बाद आर्यमणि ने अपने ऊपर से जड़ों के रेशों को हटाया। सभी 8 शिकारी घेरा बनाकर निशांत और संन्यासी शिवम पर अब भी अपने मुक्के से हमला कर रहे थे। दोनो के शरीर के अंदर हो रहे दर्द और उखड़ती श्वास को आर्यमणि मेहसूस कर सकता था।


खुद पर हुये हमले से तो आर्यमणि मात्र चौंका था। अपने पैक को मुसीबत में फसे देख आर्यमणि का मन बेचैन हो गया और अपने दुश्मन की ताकत को पहचानकर उसे हराने के बारे में सोचना छोड़कर, पहले अपने पैक को सुरक्षित किया। लेकिन निशांत की उखड़ी श्वास ने जैसे आर्यमणि को पागल बना दिया हो.… केवल शरीर के ऊपर आग नजर नही आ रहा था, वरना आर्यमणि के गुस्से की आग पूरे शरीर से ही बह रही थी।


फिर तो आर्यमणि की दिल दहला देने वाली तेज दहाड़ जिसे पूरे नागपुर में ही नही बल्कि 30–40 किलोमीटर दायरे में सबने सुना। और जिसने भी सुना उन्हे बस किसी भयानक घटना के होने की आशंका हुयि। उस दहाड़ में इतना गुस्सा था कि आर्यमणि का पूरा पैक भी अपने मुखिया के दहाड़ के पीछे इतना तेज दहाड़ लगाया की जड़ों का आवरण मात्र आवाज से उड़ गया।


शिकारियों का ध्यान टूटा, लेकिन इस बार वह आर्यमणि को छल नही पाये। किसी बड़े से टेनिस कोर्ट की तरह सजावट थी। जिसके बाहरी लाइन के 8 पॉइंट पर सभी शिकारी निश्चित दूरी पर खड़े उस कोर्ट को घेरे थे और बीच में फंसा था निशांत और संन्यासी शिवम। इसके पूर्व इसी बनावट को 4 शिकारी घेरे थे जिसमें आर्यमणि फसा था और बाकी के 4 शिकारी बाहर से बैठकर उसकी ताकत का पूर्ण अवलोकन कर रहे थे। लेकिन इस बार खेल में थोड़ा सा बदलाव था। शिकारी चार दिशाओं में फैले तो थे लेकिन आर्यमणि उनके दायरे के बाहर था। अब तो जो भी हवाई हमला होता वह तो सामने से ही होता।


गुस्सा ऐसा हावी की गाल के नशों का भी उभार देखा जा सकता था। हृदय इतनी तेज गति से धड़क रही थी कि मानो कोई ट्रेन चल रही हो। श्वास खींचकर आर्यमणि अपने अंदर भरा और पूरी क्षमता से दौड़ लगाया। हवा को चिड़ते, किनारे से धूल उड़ाते दौड़ा। सभी शिकारी भी अपना ध्यान आर्यमणि पर केंद्रित करते पूरा बवंडर को ही उसके ऊपर छोड़ दिया। इस बार बवंडर में न सिर्फ लकड़ी के टुकड़े थे बल्कि कई हजार भाले, कई हजार किलोमीटर की रफ्तार से बढ़े। लेकिन शिकारियों का सबसे बड़ा हथियार शायद अब किसी काम का न रहा।


जैसे सिशे पर पड़ी धूल को फूंकते वक्त उड़ाते है, आर्यमणि भी ठीक वैसे ही बीच से पूरे बवंडर को उड़ा रहा था। जैसे सीसे पर फूंकते समय अपने गर्दन को थोड़ा दाएं और बाएं घूमाने से धूल भी दोनो ओर बंटने लगती है, ठीक उसी प्रकार आर्यमणि भी अपनी तेज फूंक के साथ गर्दन को मात्र दिशा दे रहा था और बवंडर के साथ–साथ सभी हथियार भी दाएं और बाएं तीतर बितर हो रहा था। बवंडर के उस पार क्या हो रहा था यह किसी भी शिकारी को पता नही था, वह बस अपने हाथ के इशारे से बवंडर उठा रहे थे।


छणिक समय का तो मामला था। आर्यमणि दहाड़ कर दौड़ लगाया और शिकारियों ने अपने हाथ से बवंडर उठाकर आर्यमणि पर हमला किया। उसके अगले ही पल मानो बिजली सी रफ्तार किसी एक शिकारी के पास पहुंची। आर्यमणि उसके नजदीक पहुंचते ही अपना दोनो हाथ के क्ला उसके गर्दन में घुसाया और खींचकर उसके गर्दन को धर से अलग करके बवंडर के बीच फेंक दिया।


बेवकूफ शिकारी अब भी उसी दिशा में बवंडर उठा रहे थे जहां से आर्यमणि ने दौड़ लगाया और जब दूसरे शिकारी का गर्दन हवा में था, तब उन्हे पता चला की उनका बवंडर कहीं और ही उठ रहा है, और आर्यमणि तो उसके बनाये लाइन पर दौड़ रहा था। जब तक वो लोग अपना स्थान बदल कर आर्यमणि को घेरते उस से पहले ही आर्यमणि अपने पीछे जा रहे १ शिकारी पर लपका। जवाब में उस शिकारी ने भी अपना तेज हुनर दिखाते हुये अपने दाएं और बाएं कंधे के ऊपर से बुलेट की स्पीड में २ भाला चला दिया। आर्यमणि और उस शिकारी के बीच कोई ज्यादा दूरी थी नही। हमले का पूर्वानुमान होते ही आर्यमणि एक कदम आगे बढ़कर उस शिकारी के गले ही लग गया और अगले ही पल उसकी पूरी रीढ़ की हड्डी ही आर्यमणि के हाथ में थी और उसका पार्थिव शरीर जमीन पर।


दरअसल जितनी तेजी उस शिकारी ने अपने कंधे से २ भाला निकालने में दिखाई थी। आर्यमणि उस से भी ज्यादा तेजी से उसके गले लगने के साथ ही अपने दोनो पंजे के क्ला को उसकी पीठ में घुसकर चमरे को पूरा फाड़ दिया और रीढ़ की हड्डी को उतनी ही बेरहमी के साथ खींचकर निकाल दिया। अपने साथी का भयानक मौत देखकर दूसरा शिकारी जो आर्यमणि के पीछे जा रहा था वह अपने साथियों के पास लौट आया। सीक्रेट बॉडी के 5 थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी अब ठीक आर्यमणि के सामने थे और अंधाधुन उसपर हमले कर रहे थे।


"आज तुम्हे मेरे हाथों से स्वयं काल भी नही बचा सकता। समझ क्या रखा था, मेरे दोस्त की जान इतनी सस्ती है जो लेने की कोशिश कर रहे थे। तुम हरामजदे... दोबारा किसी को दिखोगे नही"…. आर्यमणि गुस्से में लबरेज होकर अपनी ताकतवर फूंक के साथ आगे बढ़ा। बवंडर का असर कारगर करने के लिये वो लोग भी इशारों में रणनीति बना चुके थे। आर्यमणि जैसे ही नजदीक पहुंचा ठीक उसी वक्त 4 शिकारी ने आर्यमणि को छोटे घेरे में कैद कर लिया। हवा का बवंडर उठाया। बवंडर विस्फोट की तरह फूटे भी और साथ में भाले भी चले लेकिन उन मूर्खों को आर्यमणि की गति का अंदाजा नहीं था।


जितने समय में उनलोगो ने अपना जौहर दिखाया उस से पहले ही आर्यमणि उनके घेरे से बाहर था और एक शिकारी के ठीक पीछे पहुंचकर अपने दोनो पंजे के बीच उसका सर रखकर जैसे किसी मच्छर को जोर से मारते हैं, ठीक वैसे ही सर को बीच में डालकर अपनी हथेली से जोडदार ताली बजा दिया। नतीजा भी ठीक वैसा ही था जैसा मच्छर के साथ होता है। आर्यमणि के दोनो हथेली के बीच केवल खून रिस रहा था, बाकी सर भी कभी था ऐसा कोई सबूत आर्यमणि की हथेली में नही मिला।


साक्षात काल ही जैसे सामने खड़ा हो। आर्यमणि बिलजी की तरह दौड़कर एक और शिकार पास पहुंचा। उसे पकड़ा और इस बार उस शिकारी के पेट में अपने दोनो पंजे घुसाकर उसका पेट बीच से चीड़ दिया। मौत से पहले का दर्द सुनकर ही बाकी के ३ शिकारी भय से थर–थर कांपने लगे। तीनों में इतनी हिम्मत नही बची की अलग रह कर हमला करे। और जब साथ में आये फिर तो आर्यमणि ने एक बार फिर उन्हे दर्द और हैवानियत से सामना करवा दिया। तेजी के साथ वह तीनों के पास पहुंचा और २ के सर के बाल को मुट्ठी में दबोचकर इस बेरहमी से दोनो का सर एक दूसरे से टकरा दिया की विस्फोट के साथ उसके सर के अंदर का लोथरा, चिथरे बनकर हवा में फैल गया। कुछ चिथरे तो निशांत और संन्यासी शिवम के ऊपर भी पड़े।


अब मैदान में इकलौता शिकारी बचा था। आर्यमणि उसे भी मार ही चुका होता लेकिन बीच में निशांत आ गया और उसे जिंदा छोड़ने के लिये कह दिया। आर्यमणि निशांत की बात मानकर उसे छोड़ दिया और संन्यासी शिवम की अर्जी पर उसे जड़ों की रेशों में पैक करके गिफ्ट भी कर दिया। आर्यमणि जैसे ही फुर्सत हुआ, बेचैनी के साथ निशांत का हाथ थाम लिया। आर्यमणि जैसे एक साथ उसका दर्द पूरा खींच लेना चाहता हो। लेकिन तभी निशांत अपना हाथ झटकते.… "नही दोस्त, यही सब चीजें तो मुझे मजबूत बनाएगी। मुझे अपनी क्षमता से हिल होने दो"….


आर्यमणि, निशांत की बात पर मुस्कुराते.… "चल ठीक है। शादी का क्या माहोल था।"


निशांत:– मैं जब निकला तब तक तो सबका खाना पीना चल रहा था। ये ले अपनी अनंत कीर्ति की किताब। जैसा तूने कहा था।


आर्यमणि:– मुझे लगा मात्र इस किताब के कारण कहीं तुमलोग पोर्टल न करो।


संन्यासी शिवम:– किताब के प्रति तुम्हारी रुचि अतुलनीय है। यदि तुम्हे कुछ खास लगी ये किताब, फिर तो वाकई में कुछ खास ही होगी। इसलिए जैसे ही हमे निशांत ने बताया हम तैयार हो गये।


आर्यमणि:– किताब लाने में कोई दिक्कत तो नही हुई।


निशांत:– बिलकुल भी नहीं। हम पोर्टल के जरिए सीधा कमरे में पहुंचे और किताब उठाकर सीधा तुम्हारे पास। लेकिन यहां तो अलग ही खेल चल रहा था। कौन थे ये लोग और कहां से आये थे?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नहीं। मेरा खुद पहली बार सामना हुआ है। वैसे तुम दोनो ने भी यहां सही वक्त पर एंट्री मारी है। वरना मेरे लिए मुश्किल हो जाता।


संन्यासी शिवम:– हम नही भी आते तो भी तुम प्रकृति की गोद में लपेटे जा चुके होते। उल्टा हम दोनो फंस गये थे।


निशांत:– अब कौन किसकी जान बचाया उसका क्रेडिट देना बंद करते है। अंत भला तो सब भला। वैसे क्या हैवानियत दिखाई तूने। मैने तो कई मौकों पर अपनी आंखें बंद कर ली।


अलबेली:– हां लेकिन हमने चटकारा मार कर मजा लिया।


आर्यमणि, निशांत से बात करने में इतना मशगूल हुआ कि उसे पैक के बारे में याद ही नहीं रहा। जैसे ही अलबेली की आवाज आयि, आर्यमणि थोड़ा अफसोस जाहिर करते.… "माफ करना निशांत की हालत देखकर तुम लोगों का ख्याल नही आया। तुम लोग ठीक तो हो न"


रूही:– बॉस आपने जो किया उसपर हम रास्ते में बहस करेंगे, फिलहाल अपनी ये वैन बुरी तरह डैमेज हो गयि है। इस से कहीं नहीं जा सकते।


आर्यमणि:– ठीक है तुम सभी सरदार खान के किले के पास वाला बैकअप वैन ले आओ। जब तक मैं इन दोनो से थोड़ी और चर्चा कर लेता हूं।


रूही:– ठीक है बॉस... वैसे एक बात तो मनना होगा, आपने क्या कमाल का चिड़ा है। फैन हो गई आपकी...


संन्यासी शिवम:– हां लेकिन आर्यमणि ने अपनी शक्ति का सही उपयोग किया, वरना इनका हवाई हमला वाकई खतरनाक था।


निशांत:– खतरनाक... ऐसा खतरनाक की भ्रमित अंगूठी के पूरे भ्रम हो ही उलझा दिया।


आर्यमणि:– क्या बात कर रहा है।


निशांत:– हां सही कह रहा हूं। मुझ पर तो हवा का ही हमला हो गया भाई... अब जिस चीज से भ्रमित अंगूठी भ्रम पैदा करती हो, उसी को कोई हथियार बना, ले फिर क्या कर सकते है?


आर्यमणि:– मुझे क्या पता... तू ही बता क्या कर सकते हैं?


निशांत:– मैं बताता हूं ना, क्या कर सकते है... मुझे अभी तरह–तरह के भ्रमित मंत्र पर सिद्धि हासिल करना होगा। वैसे तूने भी तो हवा को कंट्रोल किया था?


आर्यमणि:– नही... मैंने हवा को नियंत्रण नही किया बल्कि अपने अंदर की दहाड़ वाली ऊर्जा को हवा में बदलकर बस उल्टा प्रयोग किया था.…


संन्यासी शिवम:– फिर तो प्रयोग काफी सफल रहा। इस बिंदु पर यदि ढंग से अभ्यास करो तो अपने अंदर की और कई सारी ऊर्जा को उपयोग में ला सकते हो...




आर्यमणि:– हां आपने सही कहा। वैसे लंबी–लंबी श्वास लेना मैने उसी पुस्तक के योगा से सीखा है, जो आपने दी थी। मुझे लगता है अब हमे चलना चाहिए...


निशांत, आर्यमणि के गले लगते.… "हां बिलकुल आर्य। अपना ख्याल रखना और नए सफर के शुरवात की शुभकामनाएं।


आर्यमणि:– और तुम्हे भी अपने नए सफर की सुभकामना... पूरा सिद्धि हासिल करके ही हिमालय की चोटी से नीचे आना..


दोनो दोस्त मुस्कुराकर एक दूसरे से विदा लिये। संन्यासी शिवम ने पोर्टल खोल दिया और दोनो वहां से गायब। उन दोनो के जाते ही आर्यमणि, अपने पैक के पास पहुंचा। वो लोग दूसरी वैन लाकर सरदार खान को उसमे शिफ्ट कर चुके थे। आर्यमणि के आते ही सबको पहले चलने के लिये कहा, और बाकी के सवाल जवाब रास्ते में होते रहते। पांचों एक बड़ी वैन मे सवार होकर नागपुर– जबलपुर के रास्ते पर थे।
Ishk reload mai black hole mai aaryamani bi tha nischal or orja ke sath.
Lazwaab update
 
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कहां नैन मटका कर रहे हों भाई

अब जल्दी थ्रेड पर आ जाओं
अपनी कलम का जादू बिखेंर कर सबकी संतुष्टि कर दों नैन भाई

क्या पता कोई आपके कुंवारे होने की अफवाह फैला दें
ओर आपके थ्रेड पर लड़कियों की बाढ़ आ जाऐं 😄😄😄
 

Tiger 786

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कहां नैन मटका कर रहे हों भाई

अब जल्दी थ्रेड पर आ जाओं
अपनी कलम का जादू बिखेंर कर सबकी संतुष्टि कर दों नैन भाई

क्या पता कोई आपके कुंवारे होने की अफवाह फैला दें
ओर आपके थ्रेड पर लड़कियों की बाढ़ आ जाऐं 😄😄😄
Nain mataka karne ke din beete re bhai ab to pith pe beelan padega nainu bhai ko🤣🤣🤣🤣
 
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