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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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andyking302

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भाग:–61








मीनाक्षी:- परिवार की बात ना करो मनीषा, क्योंकि पारिवारिक दृष्टिकोण से तो मै भी उन सबके साथ सामिल हुयि। आर्यमणि को तो मै भी बहुत चाहती हूं। हमे अफ़सोस होता है, जब नेक्स्ट जेनरेशन आता है। क्योंकि कुछ अच्छे दिल के लोगो को हम सामिल नहीं कर सकते। थोड़ा दर्द भी होता है जब वो मरते है या अपना राज बचाने के लिये उन्हें मारना पड़ता है।(बिलकुल किसी दैत्य वाली हंसी के साथ)… लेकिन क्या करे हमारे जीने का जायका भी वही है।


उज्जवल:- हां सही कह रही है मीनाक्षी, लेकिन मनीषा की बात सच भी तो हो सकती है। आर्यमणि ने अपने 3 दोस्तों को पूरा आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट का हिस्सेदार बनाया। चित्रा और माधव 2 ऐसे नाम थे जिन्होंने काबुल किया की उन्हे आर्यमणि ने हिस्सेदार बनाया था, यदि ये संपत्ति प्रहरी की है तो हम वापस कर देंगे। जबकि वहीं आर्यमणि के जिगरी दोस्त का कहना था कि "फैक्ट्री का वो कानूनन मालिक है और किसी की दखलंदाजी बर्दास्त नही। आप जो अपना काम कर रहे है उसे कीजिये और मुझे अपना काम करने दीजिये।"


जयदेव:– हम्मम!!! ठीक है आग लगा दो उसके प्रोजेक्ट में। जहां–जहां से अप्रूवल मिलना है, हर जगह रोड़ा डाल दो और साथ में अपने लीगल डिपार्टमेंट को एक फर्जीवाड़ा का केस भी कहो करने। अक्षरा निशांत रिश्ते तुम्हारा भांजा लगता है, जैसा की आर्यमणि मीनाक्षी का था। इसलिए निशांत तुम्हारी जिम्मेदारी। यदि जरा भी भनक लगे की निशांत को प्रहरी में दिखने वाले आम करप्शन से ऊपर का कोई शक है, इस बार कोई रहम नहीं। आर्यमणि और उस माल गायब करने वालों को ढूंढने गयी टीम ने क्या इनफार्मेशन दी, वो बताओ कोई?


तेजस:- "हॉलीवुड फिल्में कुछ ज्यादा देखते है दोनो पक्ष। नागपुर–जबलपुर हाईवे पर 2 स्पोर्ट्स कार में 3 लोग निकले थे। लेकिन जंगल में पाये पाऊं के निशान और भागने के मिले सबूत से वो 5 लोग थे, जिनमें से 2 को कोई नहीं जानता। जबलपुर से एक चार्टर प्लेन 5 लोगो को लेकर दिल्ली निकली, एक चार्टर प्लेन बंगलौर, और एक चार्टर प्लेन मुंबई। ऐसे करके 7 जगहों के लिये चार्टर प्लेन उड़ान भरी थी। इन सभी जगहों के एयरपोर्ट से डायरेक्ट इंटरनेशनल फ्लाइट जाती है। हमने वहां के बुकिंग चेक करवाई। यहां से कन्फ्यूजन शुरू हो गया। सभी एयरपोर्ट पर कल से लेकर आज तक 5 लोगों के 4 ग्रुप सीसी टीवी से अपनी पहचान छिपाकर, 4 अलग-अलग देश गये। किसी भी जगह से आर्य, रूही या अलबेली के नाम का पासपोर्ट इस्तमाल नही हुआ।"

"वहीं जिसने अपना सामान चोरी किया उसकी सूचना तो पहले से ही थी। और जैसा तुमने आशंका जताया था जयदेव वही हुआ। सिवनी से जितने भी वैन निकले थे सब में फर्जी बुकिंग थी, लेकिन एक बड़ा सा लोड ट्रक के टायर के निशान वोल्वो के आस–पास से मिले थे, जो बालाघाट के रास्ते गोंदिया पहुंची। यहां तो और भी कमाल हो गया था। ट्रक चोरी की थी और उसका ड्राइवर.. ये सबसे ज्यादा इंट्रेस्टिंग पार्ट है। उस ड्राइवर को ट्रक पहुंचाने के 10 हजार रूपये मिले थे। ट्रक में एक भी समान नही। कोई चास्मादित गवाह नही और ना ही वहां पर कोई सीसी टीवी फुटेज थी, जिस से यह पता चले की उस ट्रक से कुछ अनलोड भी किया गया था।"


जयदेव:– इसी ट्रक पर अपना सारा माल था। सब लोग इस ट्रक के पीछे पड़ जाओ। पूरी तहकीकात करो अपना खोया माल मिल जायेगा। तेजस तुम नित्या और उसकी टीम को आर्यमणि के पीछे लगाओ। हमें अपने समान के साथ उनकी जान भी चाहिए जो हमारा कीमती सामान ले जाने की जुर्रत कर बैठे।


तेजस:- हम्मम ! ठीक है।


उज्जवल:– सेकंड लाइन सुपीरियर टीम का 1 शिकारी आर्यमणि के पैक पर भारी पड़ेगा यहां तो पूरी टीम के साथ नित्या को पीछे भेज दिया है, तो अब चिंता की बात ही नहीं। यदि नित्या आर्यमणि को नहीं भी मार पाती है तो भी किताब तो ले ही आयेगी। सरदार खान मारा गया सो अब नागपुर में रहने का भी कोई मतलब नहीं निकलता। भूमि और उसके उत्तराधिकारी को बधाई संदेश देते चलो।"


जयदेव:- पूर्णिमा की रात के एक्शन के कारण आम प्रहरी तो आर्यमणि के फैन हो गये है। प्रहरी की आम मीटिंग में आर्यमणि को क्लीन चिट के साथ धन्यवाद संदेश भी देते जाओ। अब से हाई टेबल सीक्रेट प्रहरी मुख्यालय मुंबई होगा। मीनाक्षी और अक्षरा की जिमेमदरी है यहां से सारी काम कि चीजों को मुंबई पहुंचाना।


मीनाक्षी:- हम्मम ! हो जायेगा। सभा समाप्त करते है। …


3 दिन बाद सतपुड़ा के घने जंगलों में तेजस ने जमीन पर एक कतरा अपने खून का गिराया और "हिश्श्श्ष्ष्ष्ष्शश" की गहरी आवाज़ अपने मुंह से निकाला। अचानक ही वहां के हवा का मिजाज बदलना शुरू हो गया और जबतक तेजस कुछ भांप पता उसके गले पर चाकू लग चुका था।


तेजस के कान के पास लहराती सी आवाज गूंजी…. "हमारी याद कैसे तुम्हे यहां तक खींच लायी।"..


तेजस उसका हाथ पकड़कर प्यार से किनारे करते, सामने खड़ी औरत को ऊपर से लेकर नीचे तक देखते हुए…. "आज भी उतनी ही मादक अदाएं है।"..


बाल रूखे, चेहरा झुलसा हुआ, और बदन के कपड़े मैले। शरीर के ऊपर की हड्डियां तक गिनती की जा सकती थी… "लगता है मेरी सजा माफ़ कर दी गयी है।"


तेजस:- हां तुम्हारी सजा माफ हो चुकी है । एक लड़का है आर्यमणि वो अनंत कीर्ति के पुस्तक को लेकर भाग गया है। उसके पीछे जाना है।


नित्या एक मज़ेदार अंगड़ाई लेती… "आह जंगल से बाहर निकलने का वक़्त आ गया है, चले"…


तेजस:- हां बिल्कुल…


प्रहरी की आम मीटिंग से ठीक पहले सेकंड लाइन सुपीरियर शिकारी टीम के 5 शिकारी के साथ नित्या अपने खोज पर जा चुकी थी। नित्या भी सुकेश, उज्जवल और देवगिरी की तरह ही एक सीक्रेट प्रहरी थी जो अपने पिछली गलती की सजा भुगत रही थी। एक लंबा अरसा हो गया था उसे सतपुड़ा के घने जंगलों में विचरते हुए। जितना दूर जंगल का इलाका, वही उसकी सीमा। मन ही मन वो आर्यमणि को धन्यवाद कह रही थी, जिसके किये ने उसे जंगल के जेल से बाहर निकालकर आज़ाद कर दिया था।


प्रहरी की आम मीटिंग में इस बार भी आर्यमणि का नाम गूंजता रहा। शहर को बड़े संकट से निकालने के लिये उसे धन्यवाद कहा गया साथ में उससे हुई छोटी सी नादानी, अंनत कीर्ति की पुस्तक को साथ ले जाना, उसका कहीं ना कहीं दोषी पलक को बताया गया।


पलक की मनसा साफ तो थी लेकिन उससे गलती हुई जिसकी सजा ये थी कि वो नाशिक प्रहरी इकाई में अस्थाई सदस्य की भूमिका निभाएगी और वहीं से प्रहरी के आगे का अपना सफर शुरू करेगी। इसी के साथ पलक के इल्ज़ाम सही थे जो हसने उच्च सभा में लगाए थे। 22 में से 20 उच्च प्रहरी दोषी पाये गये और सरदार खान जैसे बीस्ट अल्फा को खत्म किया जा चुका था।


नागपुर इकाई मजबूत थी और हमेशा ये अच्छे प्रहरी को सामने लेकर आयी है। इसलिए नागपुर की स्थायी सदस्य नम्रता को नागपुर इकाई का मुखिया घोषित किया जाता है। मीटिंग समाप्त होने तक राजदीप ने कई बड़े अनाउंसेंट कर दिये, उसी के साथ सबको ये भी बताते चला कि उसका ट्रांसफर अब नागपुर से मुंबई हो चुका है, इसलिए उसे नागपुर छोड़ना होगा।…


नागपुर में बीस्ट अल्फा ना होने से क्या-क्या बदलाव आ रहे थे, भूमि इसी बात की समीक्षा में लगी हुई थी। हाई टेबल प्रहरी जिनका मुख्यालय पहले नागपुर था और उन्हें कहीं और जाने की ज़रूरत नही थी, उनके लिये महीने में अब 2–3 बार बाहर जाना आम बात हो गयी थी। भूमि अपने ससुराल में बैठकर आराम से सभी गतिविधियों पर नजर बनायी हुई थी। हालांकि सुकेश, मीनाक्षी और जयदेव बातों के दौरान भूमि अथवा जया से आर्यमणि के विषय में जानने के लिये इच्छुक दिखते लेकिन इन्हें भी आर्यमणि के विषय में पता हो तब ना कुछ बताये।


इधर अचानक ही अपनी मासी का प्यारा निशांत के लिये काफी बढ़ गया था। वह निशांत को बिठाकर एक ही बात पूछा करती थी, "उसे आर्म्स एंड एम्यूनेशन" प्रोजेक्ट से क्या लालच है? क्यों वह प्रहरी से दुश्मनी लेने के लिये तैयार है? क्या इसके पीछे की वजह आर्यमणि है, जो जाने से पहले कुछ बताकर गया था?"


निशांत को अक्षरा की बातें जैसे समझ में ही नही आती थी। हर बार वह अक्षरा को एक ही जवाब देता... "उन्हे बिजनेस और प्रोजेक्ट की कोई समझ ही नही। और जिन मामलों को वो समझती नही, उसके लिये क्यों इतनी खोज–पूछ कर रही।"


पलक के लिये विरहा के दिन आ गये थे। जिस कमरे में उसने अपना पहला संभोग किया। जिस कॉलेज में वो आर्यमणि से मिलती थी। जिस शॉपिंग मॉल में वो आर्यमणि के साथ शॉपिंग के लिये जाया करती थी। जिस कार के अंदर उसने आर्यमणि के साथ काम–लीला में लिप्त हुई। पलक को हर उस जगह से नफरत सी हो गयी थी, जहां भी आर्यमणि की याद बसी थी। आर्यमणि के जाने के 10 दिन के अंदर ही पलक भी नागपुर शहर छोड़ चुकी थी और नाशिक पहुंच गयी, जहां उसकी ट्रेनिंग शुरू होती। नाशिक में प्रहरी के सीक्रेट बॉडी का अपना एक बड़ा सा ट्रेनिंग सेंटर था जो किसी के जानकारी में नही था।


चित्रा एक आम सी लड़की जो रोज ही अपने कॉलेज के कैंटीन में अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ बैठती और खाली टेबल को देखकर मायूस सी हो जाती। माधव यूं तो चित्रा को उसके गुमसुम पलों से उबारने की कोशिश करता लेकिन फिर भी चित्रा के नजरों के सामने खाली कुर्सी खटक जाती जो कभी दोस्तों से भरी होती थी।


एक–एक दिन करके वक्त काफी तेजी से गुजर रहा था। नित्या को काम पर लगा तो दिया गया था, लेकिन इस गरीब दुख्यारी का क्या दोष जिसे कोई यह नहीं बता पा रहा था कि आर्यमणि को ढूंढना कहां से शुरू करे। पूरा सीक्रेट बॉडी ही उसके ऊपर राशन पानी लेकर चढ़ा रहता और एक ही बात कहते.… "तुम्हे आजाद ही इसलिए किया गया है ताकि तुम पता लगा सको। यदि अब पता लगाने वाले गुण तुमसे दूर हो चुके है, फिर तो तुम्हे हम वापस जंगल भेज देते है।"… बेचारी नित्या के लिये काटो तो खून न निकले वाली परिस्थिति थी। हां एक तेजस ही था, जो नित्या पर किसी और चीज से चढ़ा रहता था। बस यही इकलौता सुकून और सुख वह जंगल से निकलने के बाद भोग रही थी।


एक ओर आर्यमणि तो दूसरी ओर वो समान चोर, दोनो मिल न रहे थे, ऊपर से सीक्रेट बॉडी प्रहरी की मुसीबत समाप्त नही हो रही थी। आर्म्स & एम्यूनेशन प्रोजेक्ट में ऐड़ी चोटी का जोड़ लगा दिये। निशांत की कंपनी "अस्त्र लिमिटेड" को कोर्ट का नोटिस मिला, जहां बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच में सुनवाई होनी थी। "अस्त्र लिमिटेड" पर पैसे की धोकेधरी पर इल्ज़ाम लगा था। "अस्त्र लिमिटेड" के ओर से निशांत अपने वकील के साथ कोर्ट में हाजिर हुआ और जो ही उसने सामने वाले वकील की धज्जियां उड़ाया।


पैसों के जिस धोकाधरी का आरोप "अस्त्र लिमिटेड" पर लगा था, उसके बचाव में निशांत के वकील ने वह एग्रीमेंट कोर्ट को पेश कर दिया, जिसमे साफ लिखा था कि.…. "आर्यमणि के आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट देश के सशक्तिकरण वाला प्रोजेक्ट है। बिना किसी भी आर्थिक लाभ के अपना सारा पैसा "अस्त्र लिमिटेड" के प्रोजेक्ट में लगाते है। "अस्त्र लिमिटेड" कंपनी जब कर्ज लिये पैसे के 10 गुणी बड़ी हो जाये तो फिर वो 10 चरण में पैसे की वापसी प्रक्रिया पूरी कर सकते है। और यदि प्रोजेक्ट कहीं असफल रहता है, तब उस परिस्थिति में सारा नुकसान हमारा होगा।"


विपक्ष के वकील ने उस पूरे एग्रीमेंट को ही फर्जी घोषित कर दिया। निशांत के वकील ने जिस एग्रीमेंट को पेश किया था, उस एग्रीमेंट को महाराष्ट्र के सरकारी विभाग द्वारा पूरा लेखा–जोखा ही बदल दिया गया था। विपक्ष के वकील सुनिश्चित थे, इसलिए निशांत से उसके डॉक्यूमेंट की विश्वसनीयता साबित करने के लिये कहा गया। देवगिरी पाठक, महाराष्ट्र का डेप्युटी सीएम... पूरा सरकारी विभाग ही पूर्ण रूप से मैनेज किया था, सिवाय एक छोटी सी भूल के, जिसके ओर शायद ध्यान न गया।


पैसों के लेखा जोखा में देवगिरी की कंपनी ने जो हिसाब दिखाया था उसमे "अस्त्र लिमिटेड" को दिये पैसे का जिक्र था। इसके अलावा देवगिरी की कंपनी के 40% के मेजर हिस्सेदार आर्यमणि द्वारा दिया गया ऑफिशियल लेटर जिसमे "अस्त्र लिमिटेड" को कब और कितने पैसे किस उद्देश्य से दिये उसकी पूरी डिटेल थी। लेन–देन का यह रिकॉर्ड बैंक से लेकर आईटी डिपार्मेंट तक में जमा करवायि गयी थी।


प्रहरी के ओर से केस लड़ने गया नामी वकील खुद को हारते देख, तबियत खराब का बहाना करके दूसरा डेट लेने की सोच रहा था। नागपुर की बेंच शायद राजी भी हो गयी होती लेकिन तभी निशांत के वकील ने सुप्रीम कोर्ट का एक दस्तावेज पेश किया.… "अस्त्र लिमिटेड के प्रोजेक्ट को बंद करवाने के लिये महाराष्ट्र के कई सरकारी और गैर–सरकारी विभाग ने सेंट्रल को कई सारे दस्तावेज भेजे और तुरंत प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों को हिरासत में लेने की मांग कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के फाइनल वर्डिक्ट में यह साफ लिखा था कि एक अच्छे प्रोजेक्ट को सभी अप्रूवल के बाद बंद करवाने की पूरी साजिश रची गयी थी। कोर्ट सभी अर्जी को गलत मानते हुये सभी याचिकाकर्ता की निष्पक्ष जांच करे।"


उस दस्तावेज को पेश करने के बाद निशांत के वकील ने जज से साफ कह दिया की पहले भी कंपनी के ऊपर महाराष्ट्र सरकार के कुछ विभागो की साजिश साफ उजागर हुई है। आज भी जब मामला हमारे पक्ष में है तब अचानक से विपक्ष के वकील की तबीयत खराब हो गयी है। मुझे डर है कि अगली तारीख के आने से पहले सबूतों के साथ छेड़–छाड़ होने की पूरी आशंका है, इसलिए अब यह केस नागपुर ज्यूरिडिक्शन के बाहर बहस किया जाना चाहिए। यदि हमारी अर्जी आपको मंजूर नहीं फिर हम फैसले का बिना इंतजार किये सुप्रीम कोर्ट जायेंगे।


निशांत के वकील को सुनने के बाद तो नागपुर बेंच ने जैसे विपक्ष के वकील को झटका दे दिया है और उसके तबियत खराब होने की परिस्थिति में किसी दूसरे वकील को तुरंत प्रतिनिधित्व के लिये भेजने बोल दिया। प्रहरी को काटो तो खून न निकले। देश के जितने बड़े वकील को उन लोगों ने केस के लिये बुलाया था, निशांत का वकील तो उसका भी गुरु निकला। दिल्ली के इस नामी वकील को निशांत ने नही बल्कि संन्यासी शिवम द्वारा नियुक्त किया गया था।


निशांत ने महज महीने दिन में ही आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट से पार पा लिया था। निशांत अपनी इस जीत के बाद प्रोजेक्ट का सारा काम चित्रा और माधव को सौंपकर कुछ महीनों के लिये वर्ल्ड टूर पर निकल गया। हालांकि वह हिमालय जा रहा था लेकिन दिखाने के लिये उसका पासपोर्ट यूरोप के विभिन्न देशों में भ्रमण कर रहा था। वहीं चित्रा और माधव प्रोजेक्ट के काम के कारण और भी ज्यादा करीब आ गये। हां इस बीच प्रोजेक्ट का काम करते हुये पहली बार चित्रा को माधव का पूरा नाम पता चला था, "अनके माधव सिंह"।


चित्रा, माधव को चिढाती हुयि उसके पहले नाम को लेकर छेड़ती रही। हालांकि माधव कहता रह गया "अनके" का अर्थ "कृपा" होता है। अर्थ तो अच्छा ही था लेकिन चित्रा इसे छिपाने के पीछे का कारण जानना चाहती थी। अंत में चित्रा जब नही मानी तब माधव को बताना ही पड़ा की "अनके" उसकी मां का नाम है और उसके बाबूजी ने उसके नाम के पहले उसकी मां का नाम जोड़ दिया, ताकि कभी वो अपनी मां से अलग ना मेहसूस करे।


इस बात को जानने के बाद तो जैसे चित्रा का गुस्सा अपने चरम पर। आखिर जब इतने प्यार से उसके बाबूजी ने उसका नाम रखा, फिर अभी से अपनी मां का नाम अलग कर दिया। जबकि अनके सुनने में ऐसा भी नही लगता की किसी स्त्री का नाम हो। बहस का दौर चला जहां माधव भी सही था। क्या बताता वो लोगों को, उसका नाम "अनके माधव सिंह" है और उसकी मां का नाम "अनके सिंह"। चित्रा भी अड़ी थी…. "मां का नाम कौन पूछता है? परिचय में भी कोई मां का नाम पूछने पर ही बताता है? ऐसे में जब लोग जानते की मां का नाम पहले आया है तो कितना इंस्पायरिंग होता।"


बहस का दौड़ चलता रहा और कुछ दिन के झगड़े के बाद दोनो ही मध्यस्ता पर पहुंचे जहां माधव अपने पिताजी की भावना का सम्मान रखते खुद का परिचय सबसे एंकी के रूप में करेगा और पूरा नाम "अनके माधव" बतायेगा, न की केवल माधव। खैर दोनो के विचार और आपस का प्यार भी अनूठा ही था। जैसे हर प्रेमी अपने प्रियसी की बात मानकर "कुत्ता और कमिना" नाम तक को प्यार से स्वीकार कर लेते है। ठीक वैसे ही अपना नया नाम माधव ने भी स्वीकार किया था और अब बड़े गर्व से खुद का परिचय एंकी के रूप में करवाता था।


सीक्रेट बॉडी प्रहरी में आग लगाने के बाद सबकी जिंदगी जैसे चुस्त, दुरुस्त और तंदुरुस्त हो गयी थी। जया और भूमि दुनियादारी को छोड़कर दिन भर आने वाले बच्चे में ही लगी रहती। नम्रता के पास नागपुर प्रहरी की कमान आते ही ठीक वैसा हो रहा था जैसा भूमि चाहती थी। बिलकुल साफ और सच्चे प्रहरी। फिर तो पूरे नागपुर में नम्रता ने ऐसा दबदबा बनाया की प्रहरी के दूसरे इकाई के शिकारी नागपुर आने से पहले १०० बार सोचते... "नागपुर गया तो कहीं बिजली मेरे ऊपर न गिर जाये। हर बईमान प्रहरी नागपुर से साफ कतराने लगा हो जैसे।


नागपुर की घटना को पूरा 45 दिन हो चुके थे। प्रहरी आर्यमणि और संग्रहालय चोर को ढूंढने में ऐड़ी चोटी का जोड़ लगा दिये लेकिन नतीजा कुछ नही निकला। एशिया, यूरोप, से लेकर अमेरिका तक सभी जगह आर्यमणि और संग्रहालय के सामानों की तलाश जारी थी। लोकल पुलिस से लेकर गुंडे तक तलाश रहे थे। हर किसी के पास आर्यमणि, रूही और अलबेली की तस्वीर थी। इसके अलावा संग्रहालय से निकले कुछ अजीब सामानों की तस्वीर भी वितरित की जा चुकी थी। और इन्हे ढूंढकर पकड़ने वालों की इनामी राशि 1 मिलियन यूएसडी थी। सभी पागलों की तरह तलाश कर रहे थे।


लोग इन्हें जमीन पर तलाश कर रहे थे और आर्यमणि.… वह तो गहरे नीले समुद्र के बीच अपने सर पर हाथ रखे उस दिन को झक रहा था जब वह नागपुर से सबको लेकर निकला.…
लाजवाब भाई update bhai jann superree duperrere update

Kya pagal kr ke rakha hey arya ne sabko
 

andyking302

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भाग:–62





लोग आर्यमणि को जमीन पर तलाश कर रहे थे और आर्यमणि.… वह तो गहरे नीले समुद्र के बीच अपने सर पर हाथ रखे उस दिन को झक रहा था जब वह नागपुर से सबको लेकर निकला.…


विशाखापत्तनम से कार्गो शिप रवाना हुआ। तकरीबन 16 दिन का पहला सफर जो विशाखापत्तनम से शुरू होकर तंजानिया देश के किसी पोर्ट पर रुकती। सफर शुरू हो गया और सभी अपने विदेश यात्रा पर निकल चुके थे। पहला सफर लगभग शोक में डूबा सफर ही रहा। सबने सरदार खान की याद देखी थी, और उस याद ने जैसे अंदर के गम को कुरेद दिया था। 3 भाई–बहन, ओजल, इवान और रूही, तीनों ने अपनी मां को देखा था। एक ट्रू अल्फा हिलर फेहरीन जिसे एक दिन में इतने दर्द दिये जाते की उसकी खुद की हीलिंग क्षमता जवाब दे जाती। मजबूर इस कदर रहती की अपने हाथों से खुद को हिल करना पड़ता था। और जो कहानी फेहरीन की थी, वही कहानी अलबेली की मां नवेली की भी थी। बस फर्क सिर्फ इतना था की नवेली खुद को हील नही कर सकती लेकिन दर्द कितना भी रोने को मजबूर क्यों न करे उसके चेहरे की मुस्कान कभी गयी नही।


चारो ही शोक में डूबे रहे। रह–रह कर आंसू छलक आते। प्रहरी के सम्पूर्ण समुदाय पर ही ऐसा आक्रोश था कि यदि अभी कोई प्रहरी से सामने आ जाता तो उसे चिड़कर एक ही सवाल पूछते.… "उस वक्त कहां थे जब एक वेयरवोल्फ को नरक में पटक दिया गया और उसके बाद कोई सुध लेने नही पहुंचे।"


आर्यमणि अपने पैक की भावना समझ रहा था लेकिन वह भी उन्हें कुछ दिन शोक में डूबा छोड़ दिया। आर्यमणि इस दौरान सुकेश के घर से लूटे उन 400 पुस्तक को देखने लगा। 350 तो ऐसे किताब थे जिस पर कोई नाम ही नही था और अंदर किसी महान सिद्ध पुरुष की जीवनी। एक सिद्ध पुरुष का जीवन कैसा था। उन्होंने किस प्रकार की सिद्धियां हासिल की थी। उनकी सिद्धियों से कैसे निपटा जाये। और सबसे आखरी में था चौकाने वाला रहस्य, कैसे उस सिद्ध पुरुष को बल और छल से मारा गया था।


एक किताब को तो उसने पूरा पढ़ लिया। फिर उसके बाद हर किताब के सीधा आखरी उस अध्याय को ही पलटता जहां सिद्ध पुरुष के मारने की कहानी लिखी गयी थी। आर्यमणि एक बार उन सभी पुस्तकों की झलकियों को देखने के बाद सभी पुस्तक को जलाना ही ठीक समझा। उसने 350 पुस्तक को जलाकर उसकी राख को समुद्र में बिखेर दिया। 350 पुस्तक के आखरी अध्याय को पढ़ने में आर्यमणि को भी 16 दिन लग गये। कार्गो शिप बंदरगाह पर लग रही थी और आर्यमणि अपने पैक को लेकर तंजानिया की जमीन पर कदम रखा।


5 वैन में उनका सामान लोड था और पांचों ओपन जीप में तंजानिया के प्राकृतिक वादियों को निहारते हुये चल दिये.… सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान को देखते हुये ये लोग तंजानिया की राजधानी डोडोमा पहुंचते। डोडोम से फिर सभी लोग नाइजीरिया के लिये उड़ान भरते। जीप पर भी शोक का माहोल छाया हुआ था।….. "क्या तुम्हे पता है, ये जो अपेक्स सुपरनैचुरल का जो नाम सुना है, वह कौन है?"..


रूही:– हां जानती हूं ना, एक प्रहरी ही होगा। अब रैंक बड़ा हो या छोटा कहलाएंगे प्रहरी ही।


आर्यमणि:– हां लेकिन क्या तुम्हे पता है इन लोगों के पास सोध की ऐसी किताब थी, जिसमे किसी अलौकिक साधु के मारने का पूर्ण विवरण लिखा हुआ था।


आर्यमणि की बात सुनकर किसी ने कोई प्रतिक्रिया ही नही दिया, बल्कि इधर–उधर देखने लगे। आर्यमणि को कुछ समझ में ही नही आ रहा था कि इनको शोक से उबारा जाये। चारो में से कोई भी आर्यमणि की किसी भी बात में कोई रुचि ही नही दिखा रहे थे। गुमसुम और खामोशी वाला सफर आगे बढ़ता रहा और 2 दिन के बाद पूरा अल्फा पैक सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान पहुंच चुके थे। 18 दिनो में पहली बार ये लोग थोड़े खुले थे। उधान और वहां के जानवर को देख अपने आखों से ये पूरा नजारा समेट रहे थे। बड़े से घास के मैदान में जहां तक नजर जा रहा था, कई प्रकार के जानवर अपने झुंड में चर रहे थे।


काफी रोमांचक दृश्य था। चारो दौड़कर नजदीक पहुंचे। और करीब से यह पूरा दृश्य अनुभव करना चाहते थे किंतु चारो जैसे–जैसे करीब जा रहे थे, जानवरों में भगदड़ मचने लगी थी। सभी जानवर डरे हुये थे और उन्हें किसी शिकारी के अपने ओर बढ़ने की बु आ रही थी। आर्यमणि दूर बैठा जानवरो की भावना को पढ़ सकता था। छोटा सा ध्वनि विछोभ उसने पैदा किया और देखते ही देखते सभी जानवर अपनी जगह खड़े हो गये। जानवरों को शांत देख चारो खुश हो गये और उनके करीब पहुंचकर उन्हें छूने की कोशिश करने लगे। लेकिन वन विभाग के लोगों ने जानवरों के पास जाने से मना कर दिया।



चारो का मन छोटा हो गया। अपने पैक को एक बार फिर मायूस देखकर आर्यमणि खुद आगे आया और सबके मना करने के बावजूद भी झुंड के एक जंगली बैल के पेट पर हाथ रख दिया। उसके पेट पर हाथ रखने के साथ ही वह बैल अपना सर उठाकर बड़ी व्याकुलता से अपना सर दाएं–बाएं हिलाया और फिर सुकून भरी श्वांस खींचते वह आर्यमणि को अपने सर से स्पर्श कर रहा था। झुंड का वह बैल काफी पीड़ा में था और पीड़ा दूर होते ही धन्यवाद स्वरूप वह बैल अपने सर को आर्यमणि के बदन पर घिसने लगा।


फिर तो अल्फा पैक भी कहां पीछे रहने वाले थे। वो सब भी खतरनाक बैल की झुंड में घुसकर कहीं गायब हो गये। वन विभाग वाले चिल्लाते रह गये लेकिन सुनता कौन है। चारो ने भी किसी बेजुबान के दर्द को हरने का सुख अनुभव किया। यूं तो किसी का दर्द लेना चारो के लिये आसान नहीं था, किंतु चारो अपनी मां के अंजाम को देखकर पिछले कुछ दिनों से इतने दर्द में थे कि उन्होंने बेजुबान के दर्द को पूरा अपने अंदर समाते उसके खुशी के भाव को अपने जहन में उतार रहे थे।


फिर तो यहां वहां फुदक कर जितना हो सकता था जानवरों का दर्द ले रहे थे। इसी क्रम में अलबेली पहुंच गयी जेब्रा के झुंड के पास। जेब्रा यूं तो दिखने में काफी खूबसूरत और लुभावना लगता है, लेकिन ये उतने ही आक्रमक भी होते है। अपने झुंड में किसी गैर को देखना पसंद नही करते। अलबेली, जेब्रा की खूबसूरती पर मोहित होकर उसके पास तो पहुंच गयी, लेकिन जैसे ही उसके बदन पर हाथ रखी, जेब्रा ने दुलत्ती मार उसका नाक ही तोड़ दिया। अलबेली के नाक से रसभरी चुने लगा, जिसे साफ करके वह हिल हुई।


हिल होने के बाद उसके मन में आयी शैतानी और जेब्रा को हील करने के बाद किस प्रकार की नई खुशी अलबेली ने अर्जित किया, उसका विस्तृत विवरण वह अपने बाकी के पैक के साथ साझा करने लगी। रूही, इवान और ओजल तीनों ही जेब्रा के झुंड में घुस गये और कुछ देर बाद अपना नाक पकड़े बाहर आये। झुंड के बाहर जब निकले तब अलबेली बाहर खड़ी हंस रही थी। फिर तो जो ही उन तीनो ने पहले अलबेली को दौड़ाया। आगे अलबेली, पीछे से तीनो और कुछ दूर भागे होंगे की तभी उनके पीछे बैल का बड़ा सा झुंड दौड़ने लगा। अब तो चारो बाप–बाप चिल्लाते बैल के आगे दौड़ रहे थे।


चारो अपने बीते वक्त के गमों से उबरकर उस पूरे जंगल में चहलकदमी करने लगे। उनकी हंसी आपस की नोक झोंक और गुस्से में एक दूसरे को मारकर फुटबॉल बना देना, आम सा हो गया। उनका ये खिला स्वभाव देखकर आर्यमणि भी काफी खुश था। यूं तो आर्यमणि बस एक रात रुकने के इरादे से आया था, लेकिन उसने तय किया की अगले एक हफ्ते तक सभी तंजानिया में ही रहने वाले हैं।


जंगल के मध्य में ही इन लोगों का कैंप लगा। एक बड़े से टेंट में चारो के सोने की व्यवस्था की गयी और दूसरे टेंट में आर्यमणि, बचे हुये 50 पुस्तक के साथ था। आर्यमणि ने एक पुस्तक अपने हाथ में लिया जिसके ऊपर नाम लिखा था। आर्यमणि खुद से कहते... "जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) भाग–1। कमाल है इसपर किताब का नाम लिखा है। देखे अंदर क्या है।"


आर्यमणि ने पहला भाग उठाया। सबसे पहले पन्ने पर ही लिखा था पृथ्वी। अंदर के पन्ने उसने पलटे और बड़े ध्यान से पढ़ने लगा। हालांकि कुछ भी ऐसा नया नही था जो आर्यमणि पढ़ रह हो, लेकिन जिस हिसाब से उसमे लिखा गया था, वह काफी रोचक था। पहली बार वह ऐसी पुस्तक देख रहा था जिसमे मानव शरीर को विज्ञान के आधार पर नही, बल्कि शरीर के मजबूत और कमजोर अंगों के हिसाब से लिखा गया था। थोड़ा सा मानव इतिहास, थोड़ा सा भागोलिक दृष्टिकोण और पृथ्वी के किस पारिस्थितिकी तंत्र में कैसी जलवायु है और वहां कौन से शक्तिशाली जीव रहते हैं, उनका संछिप्त उल्लेख था।


आर्यमणि जैसे–जैसे पन्ने पलट रहा था फिर वह संछिप्त उल्लेख, विस्तृत विवरण में लिखा हुआ मिला। मध्यरात्रि हो रही थी और आर्यमणि बड़े ही ध्यान से उस पुस्तक को पढ़ रहा था। मानव शरीर के संरचना को यहां जिस प्रकार से उल्लेखित किया गया था, वैसा वर्णन तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मेडिकल बुक में न मिले। आर्यमणि पढ़ने के क्रम में कहीं खो सा गया था। आर्यमणि किताब में खोया था तभी टेंट की पूरी छत आर्यमणि के ऊपर गिर गयी और उसके ऊपर से जैसे कोई आदमी भी आर्यमणि के ऊपर गिरा हो।


आर्यमणि अपने क्ला से टेंट को फाड़कर बाहर आया और इवान के शर्ट को अपने मुट्ठी में दबोचकर एक हाथ से ऊपर हवा में उठाते.… "मेरे टेंट के ऊपर कूदने की हिम्मत कैसे किये?"


इवान:– बॉस मुझे अलबेली हवा में ऊपर उछालकर फेंकी और मैं सीधा आपके टेंट के ऊपर लैंड हुआ। जरा नजर पास में घूमाकर देखो, हमारे टेंट का छत भी उड़ा हुआ है...


आर्यमणि, इवान को नीचे उतारते.… "अलबेली ये सब क्या है?"


अलबेली:– इस छछुंदर को इधर दो बॉस ऐसा मारूंगी की हिल न हो पायेगा।


आर्यमणि:– यहां तुम लोगों के बीच क्या चल रहा है?


अलबेली:– बॉस मैं सोई थी और इसने मेरी नींद का फायदा उठाकर चुम्मा ले लिया।


आर्यमणि आंखों में खून उतारते इवान का गला दबोचकर उसे हवा में उठाते.… "बाप वाला संस्कार तो अंदर जोर नही मारने लगा इवान"…


इवान:– बॉस गला छोड़ दो। ये पागल हो गयी है आप तो होश में आ जाओ...


आर्यमणि कुछ सोचकर उसे नीचे उतारते... "हां क्या कहना है तुम्हे?"


इवान:– बॉस मुझे भी अभी ही पता चला की मैने इसे चूमा। मैं तो ओजल के पास लेटा था। और जब मैं हवा में आया तब भी वहीं सोया हुआ था।


अलबेली चिल्लाती हुई इवान को मारने पर तूल गयी…."साले झूठे, बॉस के सामने झूठ बोलता है।"


इवान:– नही मैं सच कह रहा...


आर्यमणि:– दोनो चुप... रूही ये सब करस्तानी तुम्हारी है न...


रूही:– बिलकुल नहीं बॉस... मैं तो सोयी हुई थी।


आर्यमणि:– रात के इस प्रहर मुझे पागल बनाने की कोशिश न करो, वरना मैं पूछूंगा नही बल्कि गर्दन में क्ला घुसाकर पता लगा लूंगा। अब जल्दी बताओ ये किसकी साजिश है...


रूही:– ओजल की... उसी ने कहा था रात बहुत बोरिंग हो रही है...


आर्यमणि:– अब दोनो मिलकर रात को एक्साइटिंग बनाओ और जल्दी से दोनो टेंट को ठीक करो वरना दोनो को मैं उल्टा लटका दूंगा...


दोनो छोटा सा मुंह बनाते... "बॉस हम जैसे कोमल और कमसिन"…. इतना ही तो दोनो ने एक श्रृंक में बोला था और अगले ही पल आर्यमणि की घूरती नजरों से सामना हो गया।... "दोनो चुप चाप जाकर जितना कहा है करो"...


दोनो लग गयी काम पर। आधे घंटे में दोनो टेंट तैयार थे। इस बार तीन लड़कियां एक टेंट में और इवान के साथ आर्यमणि अपने टेंट में आ गया। आर्यमणि वापस से किताब को पलटा और इवान नींद की गहराइयों में था। कुछ देर तक तो सब कुछ सामान्य ही था लेकिन उसके बाद तो ऐसा लगा जैसे आर्यमणि के टेंट में कोई मोटर इंजन चल रहा हो, इतना तेज इवान के खर्राटों की आवाज थी। बेचारा आर्यमणि खून के घूंट पीकर रह गया।


अगले दिन फिर से ये लोग सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान के आगे का सफर तय करने लगे। घास के मैदानी हिस्से से ये लोग जंगल के इलाके में पहुंच चुके थे। लगभग दिन ढलने को था, इसलिए इन लोगों ने अपना टेंट जंगल के कुछ अंदर घुसते ही लगा लिया। इस बार आर्यमणि ने ३ टेंट लगवाया। एक में खुद दूसरे में इवान और तीसरे में सभी लड़कियां। आज शाम से ही आर्यमणि पुस्तक को लेकर बैठा। पुस्तक की मोटाई के हिसाब से तो 1000 पन्नो से ज्यादा का पुस्तक नही होना चाहिए थी। पूरे पुस्तक की मोटाई लगभग 6 इंच की रही होगी लेकिन उसके अंदर १० हजार से ज्यादा पन्ने थे।


आम तौर पर पन्ने की मोटाई जितनी होती है, उतनी मोटाई में इस पुस्तक के १० पन्ने आ जाये। और इतने साफ और चमकदार पन्ने की देखने से लग रहा था कुछ अलग ही मैटेरियल से इन पन्नो को तैयार किया गया था। खैर आर्यमणि के पढ़ने की गति भी उतनी ही तेज थी। 6–7 घंटे में वह आधे किताब का पूर्ण अध्यन कर चुका था। बचा किताब भी खत्म हो ही जाता लेकिन मध्य रात्रि के पूर्व ही टीन वुल्फ कि आपस में झड़प हो गयी। अलबेली और इवान एक टीम में वहीं रूही और ओजल विपक्ष में। सभी एक दूसरे ना तो मारने में हिचक रहे थे और न ही फुटबॉल बनाकर हवा में उड़ाने से पीछे हट रहे थे।


आज की रात तो एक नही बल्कि 2 लोग आर्यमणि की छत पर लैंड कर रहे थे। बीच बचाव करते और सबका झगड़ा सुलझाने में आर्यमणि को २ घंटे लग गये। उसके बाद किताब पढ़ने की रुचि ही खत्म हो गयी। हां केवल एक वक्त था जब सुबह आर्यमणि, संन्यासी शिवम के किताब के एक अध्याय का अभ्यास कर रहा होता, तब उस 4 घंटे के समय अंतराल में कोई भी आर्यमणि को परेशान नही करता। यहां तक की चारो वहां ऐसे फैले होते की जंगली जानवर तक के आवाज को आर्यमणि के कानो तक नही पंहुचने देते।
Bohot hi badiya update bhai jann superree duperrere

Badiya siar karware ho bhai jangal ki maja agya
Ab books mey se padke aryw ko ohh super pehri ko harwne ne ki tarkib mil jaye to badiya hey sab pari ko harane ke tor tarike to mja hi ayega
 

andyking302

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भाग:–63






सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान के घूमने का सफर अगले दिन भी जारी रहा। जैसे–जैसे ये सब अपने गमों से उबर रहे थे, एक दूसरे से उतना ही लड़ भी रहे थे। टीम हमेशा बदलते रहता। झगड़े किसी भी वक्त किसी भी बात के लिये शुरू हो जाता और उनके बीच–बचाव में आर्यमणि का सर दर्द करने लगता। आर्यमणि अब पुस्तकों को किनारे ही कर चुका था, केवल सुबह के पुस्तक को छोड़कर। अब उसका ध्यान उन 8–10 बक्सों के ऊपर था, जो सुकेश के घर से चोरी हुये थे। आर्यमणि को समझ में आ चुका था, जब तक इन्हे काम नही दोगे तब तक कोई शांत नहीं बैठने वाला। यही सोचकर आज की रात आर्यमणि ने उन बक्सों को खोलने का फैसला किया।


रात के १० बज रहे होंगे। हर कोई आर्यमणि के टेंट में ही था। सब लोग ध्यान लगाकर बक्से को देख रहे थे। इसी बीच एक छोटी सी ठुसकी अलबेली को लग गयी। अलबेली, इवान को जोर से धकेलती... "तुझे धक्का मारने का बड़ा शौक चढ़ा है।"


अलबेली ने जो धक्का मरा उस से इवान तो धक्का खाया ही लपेटे में ओजल भी आ गयी। ओजल, इवान को किनारे करती अलबेली के बिलकुल सामने खड़ी हो गयी और उसे भी एक जोरदार धक्का दे दी। लो अब धक्का मुक्की का खेल आर्यमणि के आंखों के सामने ही शुरू हो गया। नौबत यहां तक आ गयी की आर्यमणि जब बीच–बचाव करने इनके बीच पहुंचा, तभी चारो ने एक साथ ऐसे हाथ झटका की आज आर्यमणि अपना टेंट का छप्पर फाड़कर पड़ोस के टेंट की छत पर लैंड किया। फिर तो आर्यमणि भी आज रात इन चारो को आड़े हाथ लेते भीड़ गया। कभी चारो हवा में होते तो कभी आर्यमणि।


माहोल थोड़ा मस्ती मजाक भरा हो गया और चारो की हटखेली में आर्यमणि भी सामिल हो गया। इस प्रकार की हटखेलि से आर्यमणि को अंदर से अच्छा महसूस हो रहा था, लेकिन वो कहते है न... अति सर्वत्र वर्जायते... वही यहां हो गया। अपने बॉस को हटखेली में सामिल होते देखे चारो और भी ज्यादा उद्वंड हो गये। आर्यमणि के लिये तो जैसे सिर दर्द ही बढ़ गया हो। कितना भी गुस्सा कर लो अथवा चिल्ला लो... कुछ घंटे ये चारो शांत हो जाते लेकिन उसके बाद फिरसे इनकी झड़प शुरू। इतने ढीठ थे कि आर्यमणि को हर वक्त पानी पिलाये रहते थे।


7 दिन बाद सभी लोग तंजानिया के लोकल पासपोर्ट लिये, डोडोमा अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर थे, जहां से ये लोग नाइजीरिया के लिये उड़ान भरे। कनेक्टिंग फ्लाइट के जरिये ये लोग सीधा नाइजीरिया के लागोस शहर में उतरे और अगले २ दिन तक इस शहर में पूरे अल्फा पैक की धमाचोकरी जारी थी। एक तो पहले से इन लोगों के पास सुकेश के घर का माल था, ऊपर से इन लोगों ने 6 बड़े ट्राली बैग का लगेज बढ़ा दिया। 2 दिन बाद सभी पोर्ट ऑफ लागोस (अपापा), नाइजीरिया से पोर्ट ऑफ वेराक्रूज, मैक्सिको के लिये अपने कार्गो शिप में थे।


लगभग 30 दिन बाद ये लोग मैक्सिको में होते। आर्यमणि आराम से अपने कमरे में बचे हुये 50 किताब के साथ बैठा था। पढ़ने बैठने से पहले आर्यमणि सबको ट्रेनिंग का टास्क समझकर बैठा था। कार्गो शिप का पहला दिन काफी शांत था। आर्यमणि को शक सा हो गया, कहीं फिर से चारो शोक में तो नही डूब गये। २ बार उठकर जांच करने भी गया लेकिन सभी वुल्फ ट्रेनिंग में मशगूल थे। अगले 4 दिन तक इतना शांत माहोल रहा की आर्यमणि ने जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) के 3 भाग का पूरा अध्यन कर चुका था। यह पुस्तक श्रृंखला अपने भाग के समाप्ति के बाद और भी रोचक होते जा रही थी। क्योंकि जहां पहले 2 भाग में पृथ्वी था, वहीं तीसरा भाग में प्रिटी जैसे किसी अन्य ग्रह के जीवन के विषय में लिखा था।


आर्यमणि आगे और जानने के लिये उत्साहित हो गया। अब तो वह पूरे दिन में मात्र ३ घंटे ही सोता और बाकी समय किताब में ही डूबा रहता। अगले 4 दिन में वह 3 और भाग खत्म करके चौथे पुस्तक को खोल चुका था। वह जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) भाग–7 को पढ़ना शुरू कर चुका था। नागपुर से निकले कुल 35 दिन हो चुके थे। भाग 7 के मध्य में आर्यमणि होगा, जब पहली बार टीन वुल्फ ने दरवाजा खटखटाया। आर्यमणि बाहर आया तब पता चला मामला गंभीर था। 2 घंटा लग गया आर्यमणि को इनका मामला सुलझाते हुये।


इनका मामला सुलझाकर आर्यमणि कुछ घंटे का अध्यन आगे बढ़ाया ही था कि फिर से दरवाजे पर दस्तक होने लगी। इस बार उत्साह में दस्तक हुई थी। इन लोगों ने अपने हाथ के पोषण से कमरे में ही एक फूल के पौधे को 7 फिट बड़ा कर दिया था। यह कारनामा देखने के बाद तो आर्यमणि भी हैरान था। वो भी इनकी खुशियों में सामिल हो गया और खुद भी हाथ लगाकर पेड़ को और बड़ा करने की कोशिश करने लगा। आर्यमणि के चेहरे पर तब चमक आ गयी जब उसके हाथ लगाने के कुछ देर बाद पूरे पेड़ में फूल खिल उठे। यह नजारा देख खुशी से पूरा वुल्फ पैक ही झूमने लगा।


खैर २ घंटे के बाद एक बार फिर आर्यमणि अपने अध्यन मे लिन हो गया। किंतु कुछ देर बाद ही वापस से दरवाजे पर दस्तक। आर्यमणि चिढ़ते हुये पहुंचा और सब पर जोर–जोर से चिल्लाने लगा। पूरा वुल्फ पैक सकते में आने के बदले उसकी चिढ़ पर हंस रहे थे। मामला क्या था और क्यों दरवाजा पीट रहे थे, यह जाने बिना ही वह वापस अपने कमरे में आ गया। 8 दिन पूर्ण शांति के बाद तो जैसे अशांति ने डेरा डाल दिया हो। हर आधे घंटे पर दरवाजा खटखटाने लगता। अगले 1 दिन में आर्यमणि इतना परेशान हो गया की अपने माथे पर हाथ रख कर उस पल को झकने लगा, जब वह इन चारो को लेकर नागपुर से निकला था।


आर्यमणि:– क्या चाहते हो, मैं शांति से न जीयूं?


रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या हुआ बॉस, किसने परेशान किया है आपको? आप खाली नाम बोलो, काम हम तमाम कर देंगे।


आर्यमणि अपने दोनो हाथ जोड़ते.… "परेशान करने वालों में से एक तुम भी हो रूही, जाओ अपना काम तमाम कर लो"…


रूही:– क्या बात कर रहे हो बॉस। मैं मर गयी तो फिर आप गहरे सदमे में चले जाओगे। मरने के बाद तो मुझे तृप्ति भी नही मिलेगी... अल्फा पैक के अलावा किसने परेशान किया?


आर्यमणि:– ये तुम लोग जान बूझ कर मुझे परेशान कर रहे हो ना..


अलबेली:– क्या बात है बॉस बहुत जल्दी समझ गये।


इवान:– सुबह 4 घंटे ध्यान और योग कम था जो अब प्रहरी के किताब में घुस गये।


ओजल:– हमे पसंद नही की आप पूरा दिन किताब से चिपके रहो। हम टीम मेंबर ने मिलकर फैसला लिया है...


आर्यमणि:– हां मैं सुन रहा हूं, आगे बोलो..


रूही:– आगे क्या... आज से किताब पढ़ने के लिये बस 4 घंटे ही मिलेंगे। 8 घंटे तुम 2 तरह के किताब को पढ़ो। 8 घंटे हमारे साथ और 8 घंटे सोना है। सोना मतलब अलग अपने कमरे में नही बल्कि हम सब साथ में बड़े से हॉल में सोयेंगे। और यही फाइनल है...


आर्यमणि:– कोई दूसरा विकल्प नहीं। 8 घंटे मैं यदि अपने कमरे में सो जाऊं तो...


अलबेली:– भैया बिलकुल नहीं। आप वहां जागते रहते हो और इधर हम सब को भी नींद नहीं आती। रोज 2–3 घंटे की नींद से आंखें सूज गयी है।


आर्यमणि:– मेरे जागने से तुम लोगों के नींद न आने का क्या संबंध है...


रूही:– हमारा मुखिया जाग रहा हो और हम सो जाये ऐसा हो नही सकता।


आर्यमणि के पास कोई विकल्प नहीं था सिवाय उनकी बात मानने के। आर्यमणि को अपने पैक की बात माननी ही पड़ी। एक वुल्फ पैक खुशहाली में चला। खट्टे मीठे नोक–झोंक और मस्ती–मजाक का साथ। हर किसी का अपना ही अंदाज था और सभी एक दूसरे से घुलते–मिलते चले।


नाइजीरिया से निकले 15 दिन हो चुके थे। मैक्सिको पहुंचने के लिये लगभग 15 दिन का सफर और बाकी था। पूरा अल्फा पैक अपने बड़े से हॉल में और हॉल के बीचों–बीच सुकेश के घर से चोरी किये हुये बक्से एक लाइन से लगे थे। हर बॉक्स पर उसकी संख्या लिखी थी और वुल्फ पैक चिट्ठी निकालकर पहला बॉक्स खुलने का इंतजार कर रहे थे। चिट्ठी ऊपर हवा में और आर्यमणि ने पहला चिट्ठी उठाया.… सभी एक साथ... "जल्दी से बताओ बॉस, किस बक्से का नंबर निकला"…. "तुम लोग तैयार हो जाओ छठे नंबर का पहला बक्सा खुलेगा"….


4 फिट चौड़ा, 10 फिट लंबा और 4 फिट ऊंचा 10 बक्से। छठे नंबर वाला बक्से को खोला गया। बक्सा जैसा ही खुला सबकी आंखें चमक गयी। अंदर 10ग्राम के सोने के सिक्के। आर्यमणि ने उस पूरे बक्से को ही पलट दिया.… "सब लोग जल्दी से इन सिक्कों की गिनती करो।"


आधे घंटे में पूरी गिनती समाप्त करते.… "बॉस 50 हजार सोने की सिक्के है।"


आर्यमणि:– हम्मम!!! यानी 500 किलो सोना एक बॉक्स में। जल्दी से बाकी के 9 बॉक्स खोलो...


पूरे अल्फा पैक ने तुरंत सारे बक्से को खोल दिया। सब में उतना ही सोना भरा था। वहां बिखरे सोने के भंडार को देखकर सभी की आंखें फटी रह गयी... "इतना सोना। जब इसे क्रेन से उठाकर लोड किया जा रहा था, तब मुझे लगा बॉस क्या ये लोहा–टीना के भंगार का वजन ढो रहे। साला इसमें तो कुबेर का खजाना छिपा था।"


आर्यमणि:– कुछ तो गड़बड़ है। ये ज्यादा से ज्यादा १००० करोड़ का सोना होगा। लेकिन १००० करोड़ को कोई अपने संग्रहालय में क्यों रखेगा। वो भी वहां, जहां अनंत कीर्ति और जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र जैसी किताबे रखी हो। किसी जादूगर का दंश रखा हो। फिर ये लोग इतना वजनी और जगह घेरने वाले बक्से को क्यों उस जगह रखवाएंगे?


रूही:– हमे क्या करना हैं बॉस... १००० करोड़ .. इतना ज्यादा रूपया... मैं तो देखकर पागल हो जाऊंगी...


आर्यमणि बक्से को बड़े ध्यान से देख रहा था। आर्यमणि ने एक बक्से को पलट दिया और उल्टे बक्से को बड़े ध्यान से देखने लगा। कुछ भी संदिग्ध न मिल पाने की परिस्थिति में आर्यमणि ने एक हथौड़ा मंगवाया और पूरे बक्से के पार्ट–पार्ट को खोल दिया। हल्के और मजबूत धातु के 2 परत को जोड़कर हर शीट को तैयार किया गया था जिसकी मोटाई लगभग 4 इंच थी। शायद वजन सहने के हिसाब से शीट को बनाया गया था।


आर्यमणि हर शीट को बड़े ध्यान से देख रहा था। तभी उसे पता नही क्या सूझा और अपने क्ला से हर शीट को कुरेदने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे मेटल के ऊपर कोई नुकीली चीज से घिस रहा हो। हर शीट से मेटल के घिसने की आवाज आ रही थी जो काफी अप्रिय आवाज थी। लेकिन जिस शीट का इस्तमाल नीचे बेस के लिये किया गया था, उस शीट को जब आर्यमणि घिस रहा था, तब बीच का 3X3 फिट का भाग से खरोंच की आवाज निकालना बंद हो गया। उतने बड़े भाग पर जैसे बक्से में इस्तमाल हुये मेटल का रंग चढ़ाया गया था। बीच का हिस्सा जैसे ही आर्यमणि ने खरोचा, तब पता चला की वहां फोम इस्तमाल हुआ है। 2 सेंटीमीटर के फोम को जैसे ही निकला गया उसके नीचे 2.5 फिट लंबा, 2 फिट चौड़ा और 2.5 इंच की मोटाई वाला एक छोटा सा बॉक्स निकला।


जो मेटल पूरे बक्से को बनाने में इस्तमाल हुआ था, उस से कहीं ज्यादा मजबूत मेटल इस छोटे से बॉक्स में इस्तमाल किया गया था। 1mm की थिकनेस वाला यह मेटल हथौड़े के मार से भी नही टूटा। आर्यमणि ने सबसे पहले बाकी के 9 बक्से से वह छोटे बॉक्स को निकाल लिया। आर्यमणि के दिमाग में कहीं न कहीं यह भी घूम रहा था कि जिस छोटे से बॉक्स को बचाने के लिये इतना बड़ा जाल रचा गया है, हो सकता है बक्से के खुलते ही सुकेश एंड कंपनी को कोई सिग्नल मिल जाये।


जिस बक्से में 2500 किलो सोना रखा गया हो ताकि चुराने वाले को लगे की सुकेश भारद्वाज ने अपने संग्रहालय में खजाना रखा था। फिर ऐसा तो हो नही सकता की सुकेश ने उस बक्से को ढूंढने का कोई उपाय का इंतजाम न कर रखा हो। जरूर इस बक्से के खुलते ही सुकेश को जरूर चला होगा। आर्यमणि अपनी इस सोच पर इसलिए भी भरोसा कर रहा था, क्योंकि ऐसा पहले भी हुआ था। जबतक आर्यमणि ने सुकेश का संग्रहालय नही खोला था, तब तक तो सब ठीक था लेकिन जैसे ही संग्रहालय का दरवाजा खुला, सुकेश के साथ–साथ हर किसी तक सूचना पहुंच चुकी थी।


दूसरा समांतर सोच यह भी था कि जिस छोटे से बक्से से ध्यान भटकाने के लिये सुकेश 2500 किलो सोना डाल सकता है, उस छिपे बॉक्स में आखिर ऐसा क्या होगा? इन दो सोच के साथ 2 समस्या भी दिमाग में चल रही थी। छोटा सा बॉक्स जो निकला था वह मात्र आयताकार ढांचा था, जिसे खोलने के लिये उसके ऊपर कुछ भी ऐसा हुक या बटन नही लगा था। एक छोटे बॉक्स के ऊपर तो हथौड़ा मारकर भी देख लिया लेकिन वह पिचका तक नही, टूटना तो दूर की बात थी। पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?
शानदार जबरदस्त लाजवाब update bhai jann superree duperrere update fabulous

Itna sona ke bat hey bhaya kaha se leke aya hey

Aur un bakso mey kya hi mil sakta hey arya ko ab dekhna padega
 

Death Kiñg

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आर्यमणि अपने पूरे अल्फा पैक के साथ विदेश यात्रा पर निकल चुका है। भारत से निकलकर, तंजानिया और नाइजीरिया से होते हुए, अल्फा पैक, मैक्सिको की तरफ बढ़ रहा है। भारत से निकले हुए इन सबको लगभग 35 दिन हो चुके हैं और इस अंतराल के दौरान अल्फा पैक के मध्य मौजूद लगाव की विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई हमें। रूही, ओजल और इवान, तीनों ही अल्फा हीलर फेहरीन की संतान हैं, ये चौंकाने वाला खुलासा था। इससे काफी हद तक स्पष्ट होता है की सीक्रेट बॉडी की वो “फर्स्ट लाइन” अथवा “अपेक्स सुपरनैचुरल” किस दर्जे के नीच हैं। साथ ही वो अराजकता भी सामने आई जो शिकारियों और वरवॉल्फ्स द्वारा समाज में फैलाई जा चुकी है।

रूही के साथ हुआ सामूहिक दुष्कर्म, जिसका कारण उसका अपना बाप था, अलबेली के साथ हुई दुष्कर्म की कोशिश, अलबेली की मां नवेली की दास्तां, ओजल और इवान की कहानी, और सबसे प्रमुख, फेहरीन जैसी सशक्त हीलर के साथ हुई दरिंदगी... काफी है बताने के लिए की क्यों सीक्रेट बॉडी केवल और केवल एक दर्दनाक मृत्यु के ही काबिल है। मीनाक्षी ने पिछले किसी अध्याय में कहा था कि वो आर्यमणि को बहुत चाहती है, परंतु उसे मारने से मिलने वाली जो खुशी होगी, उससे ही उनके जीवन का असल ज़ायका है! इसके बाद कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं, जरुरत है तो बस, आर्यमणि द्वारा इन सभी को इनका कर्मफल देने की!

ओजल, इवान, रूही और अलबेली, सभी का दुख समान है। मां की मृत्यु और ऐसा पिता, जिसे पिता कहने में भी शर्म आए, और ऊपर से अपनी छोटी सी ज़िंदगी में जो कुछ सहा है इन चारों ने.. ऐसे में इन चारों का एक – दूसरे के साथ और आर्यमणि के साथ भी, लगाव और जुड़ाव देखकर प्रसन्नता हुई। आपसी नोंक – झोंक और खींचतान केवल एक जरिया ही दिखाई पड़ती है उस गमों के चक्रवात से निकलने का। सही मायनों में, ये चारों किसी भी स्थिति में जान फूंकने की काबिलियत रखते हैं। रूही का किरदार काफी बढ़िया लगा मुझे, वो इन तीनों के साथ खुद भी अटखेलियों और नादानी में शामिल रहती है, परंतु आवश्यकता अनुसार वो अपने धीर – गंभीर स्वरूप को भी प्रकाशित करना जानती है।

खैर, अभी के लिए तो इस अल्फा पैक में सब कुशल – मंगल ही है। जहां, आर्यमणि, सन्यासी शिवम् द्वारा दी गई, योगासन व ध्यान की पुस्तक का पूर्ण उपयोग कर रहा है, वहीं सुकेश के घर से मिला किताबों का पुलिंदा भी वो लगभग कंटस्थ कर ही चुका है। वो बेनामी 350 किताबें, जिनमें सिद्ध पुरुषों को मारने का साधन दर्शाया गया था, उन्हें पढ़कर, राख में तब्दील कर चुका है वो। सही ही है, अपने पीछे कोई सुराग छोड़ना अथवा अपने साथ अनावश्यक भार ले जाना मूर्खता ही कहलाती है। परंतु, इनमें से खास थी वो पुस्तकें जिनपर नाम लिखा गया था। उन पचास पुस्तकों में से एक विशिष्ट श्रृंखला है “जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र”, जिसके कुल सात भाग आर्यमणि पढ़ चुका है। देखते हैं कुल कितने भाग हैं इस श्रृंखला के!

ज्ञान जितना भी हो, कम ही होता है, इसी की झलक दिखी इन दोनों भागों में। अपने जीवन के जर्मनी नामक कांड से काफी कुछ सीखने के पश्चात, आर्यमणि ने नागपुर में भी काफी ज्ञान प्राप्त किया, वर्धराज ने तो उसे काफी कुछ सिखाया होगा ही, और उसके बाद अब ये सभी किताबें। अपनी इस विदेश यात्रा या अज्ञातवास के दौरान अपने ज्ञान के कोष का काफी विस्तार कर सकता है आर्यमणि, और इसमें कोई संदेह नहीं की हर एक पुस्तक उसके भविष्य में कुछ न कुछ योगदान तो देगी ही। हालांकि, ये किताबें ये भी दर्शाती हैं की उस सीक्रेट बॉडी, जिनकी मिल्कियत थीं ये सभी चीजें, उनके पास कितना ज्ञान और जानकारी होगी, और अनुभव तो है ही, चालबाज़ी और षड्यंत्र का!

इस सबके बीच इन सभी का सेरेंगती राष्ट्रीय उद्यान में वन्य जीवों का दर्द अपने अंदर सोखना और उन्हें हील करना भी हृदय – स्पर्शी था। हम देख ही चुके हैं की आर्यमणि ने बचपन में वृक्षों का जो दर्द बांटा था, उसके कारण आज वो जड़ों से क्या कुछ नहीं कर सकता। इन सभी के द्वारा किए जाने वाले हर कर्म का प्रतिफल तो मिलना ही है, तो जितने भी अच्छे कार्य ये कर सकें, उतना बढ़िया... अभी के लिए अल्फा पैक के समक्ष उन बक्सों के रूप में एक पहेली है, जिसे सुलझाना काफी मुश्किल प्रतीत हो रहा है। आर्यमणि की शंका व्यर्थ ही नहीं है, पूरी संभावना है की उन बक्सों के कारण, सुकेश और उसके साथियों को अल्फा पैक का ठिकाना पता चल जाए।

परंतु सोचने लायक बात है की ऐसा क्या होगा उन बक्सों में जिसे 250 किलो स्वर्ण की छाया में छुपाया गया था। स्पष्ट है की कोई अमूल्य वस्तु ही होगी, अन्यथा एक हज़ार करोड़ का वो छलावा वहां नहीं होता। देखते हैं की आर्यमणि क्या निर्णय लेता है, उन बक्सों को खोलेगा अथवा नहीं, खोलेगा तो क्या तरकीब लगाएगा वो! बेशक, काफी रोमांच पनपता नज़र आ रहा है आने वाले भागों में।

दोनों ही भाग बहुत ही खूबसूरत थे, चारों अल्फा का आपसी और आर्यमणि के प्रति लगाव बहुत ही बढ़िया तरीके से दर्शाया आपने। इस प्रकार के अपडेट्स अक्सर ही बेहद ही आकर्षक लगते हैं।

प्रतीक्षा रहेगी अगली कड़ी की...
 
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2500 किली सोना लेकर जहाज पर चढ़े कैसे ? पोर्ट अधिकारी और कस्टम डिपार्टमेन्ट वालो ने छानबीन नही की थी क्या ?
सुकेस भारद्वाज साहब इन स्वर्ण भंडार के साथ साथ एक ऐसे खास चीज पर भी कब्जा किए हुए थे जो शायद इन स्वर्ण मुद्राकोष से भी ज्यादा महत्वपूर्ण था। उसकी हिफाजत का इंतजाम स्वर्ण मुद्रा से भी काफी चौकस किया गया था। क्या हो सकता है ये ! कहीं युरेनियम या कोई घातक वायरस तो नही ?

चारो वेयरवोल्फ जिन्हने कभी खुशियों के एक लम्हा तक का दर्शन नही किया था , उन्हे हंसते मुस्कराते शरारत करते देख बहुत ही अच्छा लगा। उनकी उम्र भी तो शरारत करने की ही थी । आर्य ने न सिर्फ उन्हे नया जीवन दिया बल्कि उनके जीवन मे खुशियों का सौगात भी ला खड़ा किया। उनका यह खुबसूरत भ्रमण यादगार स्मृति बन कर आजीवन उनके मस्तिष्क मे सुरक्षित रहेगा।

साढ़े तीन-चार सौ मोटी मोटी किताबे पढ़ना और वह भी चंद दिनो मे एक आम इंसान के लिए असम्भव ही है। वैसे यह बात आर्य पर लागु नही होता है। वो खास है।
एक संन्यासी के उत्थान और पतन की कहानी उन बुक्स के कई कहानियों मे एक खास कहानी थी।
शायद कुछ प्रहरी ने उन सिद्ध पुरुष के साथ विश्वासघात किया हो और उनकी शक्तियाँ चुरा कर स्पेशल बन गए हों ! वो प्रहरी जो वर्तमान मे खुद को सर्वश्रेष्ठ एवं सर्व शक्तिमान मान बैठे हों !
वो अद्भुत बक्सा और वो मोटी मोटी किताबें जरूर उन प्रहरियों के लिए वाटर लू साबित हो सकता है।

बहुत खुबसूरत अपडेट नैन भाई।
Outstanding & Amazing & brilliant.
 
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