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Incest शक या अधूरा सच( incest+adultery)

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Rekha rani

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होश आने पर जब हमे अहसास हुआ कि जवानी के जज़्बात में बह कर हम दोनों कितनी दूर निकल चुके हैं। जो एक भाई के लिए भाई बहन के रिश्ते से ग़लत हैं। तो वह शर्मिंदगी की आलम में मुझे सॉरी कहता हुआ मुझे वापस सीढ़ियों पर ठीक से चढ़ने की नसीहत देकर अपने कमरे में चला गया।


अब तो हमारे लिए एक दूसरे से आँख मिलाना भी मुस्किल हो गया।


मै अपने इस गुनाह से इतनी शर्मिंदा हुई कि सीढ़िया चढ़ते चढ़ते ही मैं फूट-फूट कर रोने लगी।


अध्याय -- 13 -----


सीढ़ियों से ऊपर की ओर भागती हुई रोती जा रही थी। ना ही होश था ना ही आँसू रुक रहे थे। छत से होते हुए बाथरूम में जा पहुँची। बाथरूम में दाखिल होते ही अपने पीछे दरवाजे को कस कर बंद कर लिया और दरवाज़े के सहारे नीचे बैठ गई। आँखों से आँसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे।


अचानक तेज़ आवाज़ होने से उसी छत पर बने बाथरूम के पास हड़बड़ी में अंजू आई।


"रेखा..." बाथरूम से बाहर खड़ी अंजू ने अब मुझे पुकारा।


लेकिन मेरा तो रो रो के बुरा हाल था।


"रेखा, बताओ मुझे क्या हुआ? तुम रो क्यूं रही हो?" अंजू अब नज़दीक बढ़ने लगी थी।


"वोह....वोह अंजू...वोही..." मैने किसी तरह बोलने की कोशिश की पर डर से कांप रही थी।


"कौन है? तुम किसकी बात कर रही हो?" अंजू अब मेरी हालत देख कर घबराने लगी थी। पर उसने जल्दी आ कर मुझे सीने से लगा लिया और माथे पर स्नेह से चूम लिया।


"रिलैक्स, तुम उठो यहां से पहले। मुझे पूरी बात बताओ। अंजू ने मुझे छत की मुंडेर पर बैठाते हुए पूछा।


"अंजू.... वो सुनील जिससे मेरी...." मै बोलते बोलते रुक गई ।


"सुनील ही था......तो क्या हुआ?" मुझ को झटका लगा था। और अंजू को देख कर ऐसा लग रहा था मानो वो यह बात पहले से जानती हो।


सुनील ने भी बहुत बार छूआ है मुझे। अब मैं किसी के दिमाग में क्या चल रहा है इसकी गारंटी तो नहीं ले सकती। हो सकता है कि यह भूल वश हुआ हो और ये भी हो सकता है कि उन्होने कामुकतावश उत्तेजित होकर ऐसा किया हो। तो क्या हो गया ? आखिर है तो भाई ही...!!


हां अगर अक्सर ही वो ऐसा करने की कोशिश करेगा तो भले वो मेरा ही भाई क्यो ना तो मैं उसे डांट कर समझा सकती हूं कि ये गलत है और उसे ऐसा नहीं करना चाहिये। और सुनील हमारा भाई है, रिश्ते हमें अपनी मर्जी से नही मिलते, वो भगवान की मर्जी से मिलते है, हमें भी उन रिश्तों को निभाना आना चाहिए, !!


कल्पना कर के सोच और बता मुझे
वैसे तो अभी मेरा मां बनना तो दूर शादी तक नहीं हुई है लेकिन मान लेते हैं कि भविष्य में जब मेरा बेटा जवां होने पर कभी कामुक भावनाओं से ग्रस्त हो मुझे यौन रूप से छू भी लेता है तो ऐसी बड़ी बात ना हो जायेगी तब भी उसकी मै मां ही रहूंगी।


कब से मै यही तो कहने की कोशिश कर रही हू। एक सामान्य ढंग के भारतीय परिवारों में कभी भी इन छोटी मोटी चीजों की लोग इतनी परवाह नहीं करते और हमें भी इन्हे इतना तूल देने की जरूरत नहीं लगती जब तक कि ऐसी चीजे बार बार ना दोहराई जांय। रेखा तुम भी अब दोहरा जीवन जीना बंद करो..... जो अंदर से हो वैसे ही बाहर से बनो... मेरी तरह बोल्ड, बिंदास, तब ही जिंदगी के मजे ले पाओगी..... वैसे भी हमारे पास आजादी का अब एक साल बचा एक हफ़्ता बाद स्कूल खुल जायेंगे... 12 वी खतम फिर शादी..... मैने अक्सर मम्मी को कहते सुना है, 12 वी के बाद दोनों बेटियों की शादी एक साथ करनी होगी....!!


अब इस बात को इस रात की तरह भूल जा..... चल अब नीचे...

इस बात को एक हफ़्ता गुज़र गया और इस दौरान मेंने अपने भाई से किसी क़िस्म का राबता अथवा मौखिक संपर्क (अहसास का रिश्ता) ना रखा। मेरी किस्मत में पता नहीं क्या क्या लिखा था? खैर , एक दो दिन में ही मेने महसूस किया कि मैं नयी उमंग से मुखातिब हो रही थी.

"जुलाई अगस्त (सावन) के मस्त महीने हमेशा से ही प्यार, मोहब्बत, (सेक्स) के बारे में अपने कामुक प्रभाव के लिए प्रसिद्ध रहे हैं क्योंकि गर्मी ख़त्म हो रही होती हैl सर्दी भी शुरु नहीं हुई होती है और कुदरत भी इस समय अपने रंग बदल रही होती हैl पेड़ो पर हरे भरे नए पत्ते आ रहे होते हैं और तरह तरह के रंग बिरंगे फूल चारो तरफ खिले होते हैं जिन्हे देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है। "

हमारे स्कूल भी खुल गये थे....

""सरकारी स्कूलों की प्रसिद्ध कहानी... क्लास नई, किताबें पुरानी""

गवर्मेंट गर्ल्स हायर सैकेंडरी स्कूल हिसार..... हमारी जिंदगी के अनुभव और स्कूल की मस्तियों के किस्से बिना ये कहानी अधूरी सी लगेगी.........!!


(शिक्षा सत्र शुरू होते ही सड़क छाप मजनुओं का जमावड़ा गर्ल्स स्कूलों के बाहर लगने लगता है।)


मै, अंजू और अर्चना स्कूल आते जाते हमारे कदम सड़क पर होते किंतु आंखें दो मछलियों की तरह बेताबी से इधर-उधर घूमतीं और मोहल्ले भर के लड़कों को आमंत्रित करतीं. गली नुक्कड़ गुमटी सड़क पर चलने वाले कच्ची उम्र के अच्छे और कम अच्छे लड़कों के दिल हमें देख कर धड़कने लगते.


मेरा और अर्चना के घर का फ़ासला दस मिनट से ज़्यादा नहीं था. हम तीनों पक्की सहेलियां, अक्सर साथ आना जाना, स्कूल के बाद भी एक बार ज़रूर मुलाकात होती. कभी शाम को मै, अर्चना के घर तो कभी अर्चना, मेरे घर.. ........!!
अर्चना के घर में सबको मेरी मुखरता भाती. मुंह खोलती तो मेरी उन्मुक्त बातें पुरवाई के झोंके-सी माहौल को तरोताज़ा कर देतीं. देखती तो बांकी चितवन सबके मन का ताला खोल देती. अर्चना अपनी अंतरग सखी यानि कि मै (रेखा) की हरकतों और उसके लिए आहें भरने वाले लड़कों की फ़ौज से वाक़िफ़ थी पर मजाल जो कभी किसी से इस बात का खुलासा किया हो.


हालांकि अर्चना को मेरी छिछोरी हरकतें कतई पसंद न थी, हम तीनों के मिजाज़ और परवरिश और पारिवारिक पृष्ठभूमि में भी रात दिन का अंतर था, किंतु वह उम्र अनहद प्यार और दोस्ती निभाने की होती है सो अर्चना ने शिद्दत से अपनी दोस्ती निभाई.


कभी कभी स्कूल से आते जाते हमउम्र लड़कों से मै मिलने भी लगी थी, ऐसे में अर्चना अक्सर आगे बढ़ जाती. बहरहाल आज की तरह वो डेटिंग का जमाना नहीं था, छिटपुट आंख-मिचौली, जिसे बुज़ुर्गों की भाषा में कहो तो नैन मटक्का, चिट्ठियों का लेनदेन, एक-दूजे को देख लेनेभर की हसरत और ना देख पाने पर आहें भरना… बस इतने में ही बाली उमर की कहानियां बन जाती थी. बॉयफ्रेंड बन जाना तो ""चरित्रहीनता का सर्टिफ़िकेट"" था.


हमारी उफनती जवानी को देखकर हमारे इर्द-गिर्द कितने ही दीवाने भंवरों की तरह डोलते, कोई गली के नुक्कड़ तो कोई पान की गुमटी पर..; कोई दुकान पर बैठा सेल्समेन तो कोई सीटी बजाता सेहज़ादा . पड़ोस के स्कूलों के छात्र भी रिंग मास्टर टाइप अपने किसी दोस्त की अगुवाई में टोली बनाकर स्कूल से लौटती लड़कियों का पीछा करते. मधुमक्खियों-सी लड़कियां भी हंसती खिलखिलाती मस्ती करती आगे-आगे चलतीं, जिनमें "" रेखा रानी "" मधुमक्खी की भूमिका में होती.

अर्चना इस ख़ुराफ़ात का हिस्सा कम ही बनती, क्योंकि वह अपनी सायकिल से घर लौटती. उसे सहेलियों के साथ मटरगश्ती करते हुए घर आने की इजाज़त नहीं थी. लड़कपन की मासूम और मादक फैंटेशियो में मुझे और अंजू को ख़ूब मज़ा आता. सब हम पर लट्टू हैं, हमें तरजीह देते हैं, यह बात मन को गुदगुदाती. भले ही उसमें ज़्यादातर सड़क छाप मजनू होते, पर हमारे लिए यह टाइम पास बड़ा सम्मोहक था.

हमारे जीवन में यूं भी मनोरंजन और आनंद के विकल्प कम थे. पढ़ने लिखने में हम औसत छात्रा थी. परिवार निम्न मध्यमवर्गीय था. पिता की इकलौती कमाई में हम भाई बहन पल रहे थे. जैसे-तैसे पढ़ाई चल रही थी. मां को चूल्हे-चौके से फ़ुर्सत कहां कि अपनी बेटियों के चाल-चलन पर निगाह रखे. बहरहाल, अपनी चाल ढाल और लक्षणों के कारण अंजू के साथ साथ मेरी भी शालीनता खोती जा रही थी, कहें तो ज़माने की निगाहों में बदनाम होती जा रही थी. शायद अब हम पर चालू लड़की का ठप्पा लग गया था.

मुझे आज भी याद है, अगस्त की पांचवी तारीख थी, स्कूल के गलियारे पे तो जैसे हर कोई जल्दी में ही था | हाथ में किताबे और बैग्स लिए बस हर कोई कही ना कही जाना ही चाहता था | बहुत से कमरे और हर एक कमरे कोई ना कोई क्लास चल ही रही थी | चमचमाती हुई कुर्सिया , पूरी तरह से साफ़ सुथरा फर्श , जगह जगह पे डस्टबिन , हम ने एक कमरे में एंट्री की और पीछे पीछे सब घुस गए |

कमरे की छत पर लटका पुराना पंखा अपनी स्पीड से कमरे को ठंडा रक्खे हुए था , चेयर्स और डेस्क उस कमरे को एक क्लास का लुक दे रहे थे | कमरे की दिवार के बराबर ब्लैकबोर्ड बना हुआ था जिसपे चाक से कुछ लिखा भी हुआ था | मैने ध्यान से पढ़ने की कोशिश की " अपना.. साइज बताइये ! " मुझ को कुछ समझ नहीं आया की उसका क्या मतलब हैं |

"रेखा तू यहां आ मेरे पास बैठ " अर्चना ने मुझ को अपने बगल वाले सीट पे बैठा लिया ""अंजू के पीरियड चल रहे थे जिसकी वजह से वो दो तीन से स्कूल नही आ रही थी |"" सबसे आगे जो लड़किया बैठी थी ज्यादातर आँखों में चश्मे लगे हुए थे | देखने से ही पढ़ने वाली लग रही थी | धीरे धीरे बात करने की आवाज पुरे क्लास में गूँज रही थी | इतने में क्लास में एक औरत ने एंट्री की, सारे स्टूडेंट्स एक साथ खड़े हो गए |

ब्लू कलर की साड़ी और उसपे स्लीवलेस ब्लाउज, पूरी तरह से बदन से चिपका हुआ था | लग रहा था जैसे की ये कपडे खासकर उसके लिए ही बनाये गए हो | सुडौल जिस्म , भारी स्तन , ना बहुत ज्यादा पतली और ना ही बहुत ज्यादा मोटी कमर , साड़ी इतनी लोअर पोजीशन में थी की नाभि और उसके निचे पांच अंगुल की जगह साफ़ साफ़ नजर आ रही थी | बाल अच्छी तरह से सीधे किये हुए गर्दन के दायीं तरफ रक्खे हुए थे | औरत ने अपने हाथ से एक कागज मेज पे रक्खा और ब्लैकबोर्ड पे लिखे हुए शब्दों को पढ़ने लगी | पीठ क्लास की तरफ होने की वजह से बैकलेस ब्लाउज , पीठ को अच्छी तरह से दिखा रहा था | मुझ को पता ही नहीं चल रहा था की आखिर ब्लाउज बदन पे टिका कैसे हैं |


"गुड मॉर्निंग मैंम ! " एक स्वर में सबने विश किया |

मै भी सबके साथ ही खड़ी हो गयी और विश किया | उस औरत के चेहरे पर एक अलग ही तेज़ चमक रहा था |

"अर्चना ये कौन हैं ? " मैने बैठते हुए उससे पुछा |

"ये है शीतल जैन , हमारे स्कूल की बायोलॉजी की नई संविदा टीचर , बहुत ही इंटेलीजेंट और साथ ही साथ हसमुख भी बहुत हैं सबसे हसी मजाक करती हैं , इसलिए तो इनकी क्लास में इतनी हाई अटेंडेंस रहती हैं " अर्चना ने बताया !

शीतल जैन की मौजूदगी ने ही क्लास में टेंशन एक लेवल ऊपर कर दिया था |

"किसने लिखा ये ब्लैकबोर्ड पर ? " शीतल ने अपनी गहरी और गंभीर आवाज में क्लास से पूछा | क्लास में पूरी तरह से ख़ामोशी पसरी हुई थी | मैने एक बार फिर से ब्लैकबोर्ड पर लिखे हुए शब्दों को पढ़ा |

"अपना साइज बताइये ! " भला किस साइज की बात हो रही है और यहाँ ब्लैकबोर्ड पे लिखने की क्या जरुरत हैं उसे ? शीतल ने कुछ देर सोचा और फिर चाक से उस लाइन के निचे कुछ लिखने लगी |

"तुम्हारी कल्पना से बाहर !! " शीतल ने जवाब लिखने के बाद क्लास की तरफ देखा।

सवाल हमेशा मुँह पे करना चाहिए , इस तरह छुपकर लिखोगी तो जवाब भी ऐसे ही मिलेगा , सामने से पूछती तो शायद असली साइज बता भी देती !! " शीतल ने अपने होंठो पर स्माइल लाते हुए कहा |
क्लास में हंसी का एक ठहाका गूंजा |
हाहा हाहा हाहा

""बारहवी की क्लास बायोलॉजी विषय हमेशा से किशोर किशोरियों उम्र के लड़के ही नहीं लड़कियों में भी एक सेक्स संबधी उत्सुकता भरा हुआ विषय रहा है, किताब के अंदर के चैप्टर विचार के साथ साथ जिस्म के अंदर होने वाले बदलाव से भरे प्रश्न करते रहते है....... ""

बॉयोलॉजी का एक पेज नंबर बताने के बाद शीतल ने उस टॉपिक पर बोलना शुरू किया
टॉपिक था मेंसुरेशन साइकिल - प्रोसेस एंड एक्टिविटी |

"लड़कियों की माहवारी इंडिया में एक अनछुआ विषय हैं | लोग इस बारे में बात करने से कतराते हैं और इस एक शर्मनाक बॉडी प्रोसेस की तरह ट्रीट किया जाता हैं जबकि बाहर के देशो में इसे अच्छी तरह से एक्सप्लेन किया जाता हैं जब किसी लड़की को पीरियड्स आना स्टार्ट होते हैं !"

शीतल ने ध्यान से पूरे क्लास की तरफ देखा
हाँ अर्चना क्या सवाल हैं तुम्हारा ? " क्लास में एक हाथ ऊपर देख कर शीतल ने पूछा |

"मैंम वो कहते हैं की पीरियड्स स्टार्ट होने के बाद ही लड़की के साथ सेक्स करने पर वो माँ बन सकती हैं क्या ये बात सही हैं ? " अर्चना वापस अपनी सीट पे बैठ गयी |

"बिलकुल सही अर्चना !! जब लड़की के पीरियड्स स्टार्ट होते हैं और उसका गर्भाशय में अंडे का फर्टिलाइजेशन होता हैं तभी वो किसी लड़के के वीर्य का इंतज़ार करती हैं , जैसे बारिश के बाद खेत की मिटटी बहुत ही जयादा उपजाऊ हो जाती हैं और बीज के डाले जाने का इन्तजार करती हैं वैसे ही एक लड़की माहवारी के पहले ही बीज के आने का इंतज़ार करती हैं और अगर उसे निचित टाइम तक लड़के का बीज नहीं मिलता हैं तो उसके गर्भाशय से वो अंडा ब्लीडिंग के द्वारा बाहर निकल जाता हैं | " शीतल ने अर्चना के क्वेश्चन का जवाब दिया |

"हाँ रेखा पूछो !" अबकी बार मैने अपना हाथ उठाया ।

"तो इसका मतलब की अगर किसी लड़की का पीरियड्स अभी नहीं हो रहा हो तो वो किसी भी लड़के से कितना भी सेक्स करे मेरा मतलब शारीरिक सम्बन्ध बनाये , लड़की के गर्भवती होने का कोई डर नहीं होता ? "

मेरा प्रश्न सुनकर क्लास में मौजूद हर कोई हसने लगा | शीतल भी अपनी हंसी नहीं रोक पायी | शीतल को हसते हुए देख कर सारे और भी तेजी से हसने लगे |
हाहा हाहा हाहा हाहा

"हाँ रेखा , ये बिलकुल सही हैं , अगर किसी लड़की का अगर मेंसुरेशन साइकिल स्टार्ट नहीं हुआ हैं और उसकी योनि में वीर्य घुस भी जाता हैं तो वह प्रजनन करने के लिए कही कोई अंडा ही नहीं होगा और वीर्य के शुक्राणु को पहुंचने के लिए कोई जगह ही नहीं मिलेगी | और अगर तुम लोगो की जनरेशन की नयी भाषा में समझाए तो मतलब एक लड़की अपनी पीरियड्स स्टार्ट होने से पहले चाहे जितना या चाहे जितने लड़को से चुदाई करवाएं वो प्रेग्नेंट नहीं होगी " शीतल ने अपनी होंठो की हंसी छुपाते हुए मेरे प्रश्न का उत्तर दिया |

क्लास की लड़किया हाथ से मुँह को छिपाकर हंस रही थी | हर कोई शीतल के इस हलके फुल्के माहौल में पढ़ाई का आनंद ले रहा था सिवाय मुझको छोड़कर |

शीतल के शब्दों के इस्तेमाल को सुनकर मै दंग हो गयी थी | भला एक टीचर कैसे इस तरह से अपने छात्राओ के सामने बोल सकती हैं | "चुदाई" शब्द तो मैने अब तक सिर्फ अंजू दीदी से ही सुना था वो भी आपस में खुशूर फुसुर करते हुए लेकिन यहाँ तो गुरु और शिष्य के बीच ही इस शब्द का इस्तेमाल हो रहा हैं और इतने गंदे शब्द का इस्तेमाल करने के बाद भी जिस तरह से शीतल और क्लास के बच्चे बिलकुल "कूल" दिख रहे थे उससे लग रहा था की ये पहली बार नहीं है |

मेरे चेहरे से उलझन धीरे धीरे हटती जा रही थी और अपनी नयी संविदा टीचर शीतल जैन के चेहरे पर भी इक चुप छिनाल की झलक नजर आती जा रही थी।

स्कूल की छुट्टी हो गयी और हम अपने घरों की ओर चल दिये... स्कूल के बाहर मेरा भाई सुनील अपनी मोटर साइकल पर गुमसुम बैठा हुआ था, और मेरा इंतजार कर रहा था।

उसे देख कर मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई. मुझ में अपने भाई का सामना करने की हिम्मत ना थी।

में खामोशी से अपनी नज़रें झुकाए हुए आई और आ कर भाई के पीछे उस की मोटर साइकल पर बैठ गईl

ज्यों ही भाई ने मुझे अपने पीछे बैठा हुआ महसूस किया उस ने भी मुझे देखे बगैर अपनी मोटर साइकल को स्टार्ट करने के लिए किक लगाई और मुझे ले कर घर चला आया।

रास्ते भर हम दोनों में कोई बात ना हुई और थोड़ी देर में हम अपने घर के दरवाज़े पर पहुँच गये।


ज्यों ही भाई ने घर के बाहर मोटर साइकल रोकी तो में उतर कर घर के दरवाजे खोलने लगी। तो शायद उस वक़्त तक भाई की नज़र मेरी चूड़ियों से खाली हाथों पर पड़ चुकी थी।

"रेखा तुम ने चूड़ियाँ क्यों नहीं पहनी" ???सुनील ने मेरे खाली हाथो की तरफ़ देखते हुए पूछा।

"वो असल में जो चूड़ियाँ मेंने पहनी थीं। वह उस रात धक्के की वज़ह से मेरी कलाई में ही टूट गईं थी तो फिर इस ख़्याल से कि अगले हफ्ते राखी (रक्षाबंधन) है, जब मम्मी के साथ बाजार जाऊंगी तब नई खरीद लूंगी। मेंने बिना उस की तरफ़ देखे उस को जवाब दिया।

"अच्छा रेखा तुम चलो में थोड़ी देर में वापिस आता हूँ" यह कहते हुए सुनील मुझे दरवाज़े पर ही छोड़ कर अपनी मोटर साइकल पर कही चला गया।

में अंदर आई तो देखा कि मम्मी काफ़ी खुश होने की वज़ह से किचिन में गाना गुनगुनाते हुयी गुलाब जामुन तल रहीं थी।

में अपने कमरे में आ कर बैठ गईl

रास्ते में सुनील भैया के साथ पेश आने वाले वाकये की वज़ह से मेरी साँसे अभी तक सम्भल नहीं पाईं थीं।

कुछ ही देर बाद मुझे मोटर साइकल की आवाज़ सुन कर अंदाज़ा हो गया कि भाई घर वापिस आ चुका है।

शाम हो चुकी थी मम्मी और अंजू दुकान पर थी इसलिए में अभी खाना खाने की सोच ही रही थी कि सुनील मेरे कमरे में दाखिल हुआ।

उस के हाथ में एक प्लास्टिक का शॉपिंग बॅग था। जो उस ने मेरे करीब आ कर बेड पर रख दिया और ख़ुद भी मेरे साथ मेरे बिस्तर पर आन बैठा।

अब मुझे भाई के साथ इस तरह एक ही बिस्तर पर बैठने से शरम के साथ-साथ एक उलझन भी होने लगी और इस वज़ह से में भाई के साथ आँख से आँख नहीं मिला पा रही थी।

कमरे में एक पूर सरार खामोशी थी और ऐसा लग रहा था कि वक़्त जैसे थम-सा गया हो।

जब भाई ने देखा कि में अपने पहलू में रखे हुए शॉपिंग बॅग की तरह ना तो नज़र उठा कर देख रही हूँ और ना ही उस के बारे में कुछ पूछ रही हूँ।

तो थोड़ी देर बाद भाई ने वह मेरे पास से वह बैग उठाया और वह ही चूड़ियाँ जो कि उस रात मेरी कलाई में टूट गयी थी।वो बैग से निकाल कर मेरी गोद में रख दीं और बोला" रेखा में तेरी चूड़ियाँ दुबारा ले आया हूँ"

मेंने उस की बात सुन कर अपनी नज़रें उठा और पहले अपनी गोद में रखी हुई चूड़ियों की तरफ़ और फिर भाई की तरफ़ देखा और बोली "रहने देते तुम ने क्यों तकलीफ़ की"

"तकलीफ़ की क्या बात है रेखा, तुझ को यह ही चूड़ियाँ पसंद थीं सो में ले आया" भाई ने मेरी बात का जवाब दिया।

भाई की बात और लहजे से यह अहसास हो रहा था।कि वह उस रात वाली बात को नज़र अंदाज़ कर के एक अच्छे भाई की तरह मेरा ख़्याल रख रहा है। अपने भाई का यह रवईया देख कर मेरी हालत भी नॉर्मल होने लगी ।

"अच्छा देर काफ़ी हो चुकी है इसलिए तुम दुकान पर जाओ मै सुबह चूड़ीयाँ मम्मी से पहन लूँगी।" मेंने भाई की लाई हुई चूड़ियों को बेड की साइड टेबल पर रखते हुए कहा।

"ला मै तेरे हाथों में चूड़ीयाँ पहना देता हूँ"" । इससे पहले कि में उस को रोक पाती। सुनील ने एक दम मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और टेबल पर पड़ी चूड़ीयाँ को मेरे हाथ में पहनाने लगा।

मुझे ज्यों ही अपनी इस बदलती हुई हालत का अहसास हुआ । तो मेंने भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कॉसिश की।

"रहने दो भाई में सुबह मम्मी से चूड़ीयाँ पहन लूँगी"

""जिस तरह शादी के कुछ टाइम बाद एक हज़्बेंड को अपनी वाइफ के जिस्म के नसीबो फर्ज़ (उतार चढ़ाव) का अंदाज़ा हो जाता है।""

बिल्कुल इसी तरह अपनी बेहन को उस रात के बाद से सुनील को भी ब खूबी अंदाज़ा हो चुका था। कि रेखा के जिस्म के वह कौन से तार हैं जिन को छेड़ने पर उस का बदन गरम होने लगता है।
 

Ek number

Well-Known Member
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होश आने पर जब हमे अहसास हुआ कि जवानी के जज़्बात में बह कर हम दोनों कितनी दूर निकल चुके हैं। जो एक भाई के लिए भाई बहन के रिश्ते से ग़लत हैं। तो वह शर्मिंदगी की आलम में मुझे सॉरी कहता हुआ मुझे वापस सीढ़ियों पर ठीक से चढ़ने की नसीहत देकर अपने कमरे में चला गया।


अब तो हमारे लिए एक दूसरे से आँख मिलाना भी मुस्किल हो गया।


मै अपने इस गुनाह से इतनी शर्मिंदा हुई कि सीढ़िया चढ़ते चढ़ते ही मैं फूट-फूट कर रोने लगी।


अध्याय -- 13 -----


सीढ़ियों से ऊपर की ओर भागती हुई रोती जा रही थी। ना ही होश था ना ही आँसू रुक रहे थे। छत से होते हुए बाथरूम में जा पहुँची। बाथरूम में दाखिल होते ही अपने पीछे दरवाजे को कस कर बंद कर लिया और दरवाज़े के सहारे नीचे बैठ गई। आँखों से आँसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे।


अचानक तेज़ आवाज़ होने से उसी छत पर बने बाथरूम के पास हड़बड़ी में अंजू आई।


"रेखा..." बाथरूम से बाहर खड़ी अंजू ने अब मुझे पुकारा।


लेकिन मेरा तो रो रो के बुरा हाल था।


"रेखा, बताओ मुझे क्या हुआ? तुम रो क्यूं रही हो?" अंजू अब नज़दीक बढ़ने लगी थी।


"वोह....वोह अंजू...वोही..." मैने किसी तरह बोलने की कोशिश की पर डर से कांप रही थी।


"कौन है? तुम किसकी बात कर रही हो?" अंजू अब मेरी हालत देख कर घबराने लगी थी। पर उसने जल्दी आ कर मुझे सीने से लगा लिया और माथे पर स्नेह से चूम लिया।


"रिलैक्स, तुम उठो यहां से पहले। मुझे पूरी बात बताओ। अंजू ने मुझे छत की मुंडेर पर बैठाते हुए पूछा।


"अंजू.... वो सुनील जिससे मेरी...." मै बोलते बोलते रुक गई ।


"सुनील ही था......तो क्या हुआ?" मुझ को झटका लगा था। और अंजू को देख कर ऐसा लग रहा था मानो वो यह बात पहले से जानती हो।


सुनील ने भी बहुत बार छूआ है मुझे। अब मैं किसी के दिमाग में क्या चल रहा है इसकी गारंटी तो नहीं ले सकती। हो सकता है कि यह भूल वश हुआ हो और ये भी हो सकता है कि उन्होने कामुकतावश उत्तेजित होकर ऐसा किया हो। तो क्या हो गया ? आखिर है तो भाई ही...!!


हां अगर अक्सर ही वो ऐसा करने की कोशिश करेगा तो भले वो मेरा ही भाई क्यो ना तो मैं उसे डांट कर समझा सकती हूं कि ये गलत है और उसे ऐसा नहीं करना चाहिये। और सुनील हमारा भाई है, रिश्ते हमें अपनी मर्जी से नही मिलते, वो भगवान की मर्जी से मिलते है, हमें भी उन रिश्तों को निभाना आना चाहिए, !!


कल्पना कर के सोच और बता मुझे
वैसे तो अभी मेरा मां बनना तो दूर शादी तक नहीं हुई है लेकिन मान लेते हैं कि भविष्य में जब मेरा बेटा जवां होने पर कभी कामुक भावनाओं से ग्रस्त हो मुझे यौन रूप से छू भी लेता है तो ऐसी बड़ी बात ना हो जायेगी तब भी उसकी मै मां ही रहूंगी।


कब से मै यही तो कहने की कोशिश कर रही हू। एक सामान्य ढंग के भारतीय परिवारों में कभी भी इन छोटी मोटी चीजों की लोग इतनी परवाह नहीं करते और हमें भी इन्हे इतना तूल देने की जरूरत नहीं लगती जब तक कि ऐसी चीजे बार बार ना दोहराई जांय। रेखा तुम भी अब दोहरा जीवन जीना बंद करो..... जो अंदर से हो वैसे ही बाहर से बनो... मेरी तरह बोल्ड, बिंदास, तब ही जिंदगी के मजे ले पाओगी..... वैसे भी हमारे पास आजादी का अब एक साल बचा एक हफ़्ता बाद स्कूल खुल जायेंगे... 12 वी खतम फिर शादी..... मैने अक्सर मम्मी को कहते सुना है, 12 वी के बाद दोनों बेटियों की शादी एक साथ करनी होगी....!!


अब इस बात को इस रात की तरह भूल जा..... चल अब नीचे...

इस बात को एक हफ़्ता गुज़र गया और इस दौरान मेंने अपने भाई से किसी क़िस्म का राबता अथवा मौखिक संपर्क (अहसास का रिश्ता) ना रखा। मेरी किस्मत में पता नहीं क्या क्या लिखा था? खैर , एक दो दिन में ही मेने महसूस किया कि मैं नयी उमंग से मुखातिब हो रही थी.

"जुलाई अगस्त (सावन) के मस्त महीने हमेशा से ही प्यार, मोहब्बत, (सेक्स) के बारे में अपने कामुक प्रभाव के लिए प्रसिद्ध रहे हैं क्योंकि गर्मी ख़त्म हो रही होती हैl सर्दी भी शुरु नहीं हुई होती है और कुदरत भी इस समय अपने रंग बदल रही होती हैl पेड़ो पर हरे भरे नए पत्ते आ रहे होते हैं और तरह तरह के रंग बिरंगे फूल चारो तरफ खिले होते हैं जिन्हे देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है। "

हमारे स्कूल भी खुल गये थे....

""सरकारी स्कूलों की प्रसिद्ध कहानी... क्लास नई, किताबें पुरानी""

गवर्मेंट गर्ल्स हायर सैकेंडरी स्कूल हिसार..... हमारी जिंदगी के अनुभव और स्कूल की मस्तियों के किस्से बिना ये कहानी अधूरी सी लगेगी.........!!


(शिक्षा सत्र शुरू होते ही सड़क छाप मजनुओं का जमावड़ा गर्ल्स स्कूलों के बाहर लगने लगता है।)


मै, अंजू और अर्चना स्कूल आते जाते हमारे कदम सड़क पर होते किंतु आंखें दो मछलियों की तरह बेताबी से इधर-उधर घूमतीं और मोहल्ले भर के लड़कों को आमंत्रित करतीं. गली नुक्कड़ गुमटी सड़क पर चलने वाले कच्ची उम्र के अच्छे और कम अच्छे लड़कों के दिल हमें देख कर धड़कने लगते.


मेरा और अर्चना के घर का फ़ासला दस मिनट से ज़्यादा नहीं था. हम तीनों पक्की सहेलियां, अक्सर साथ आना जाना, स्कूल के बाद भी एक बार ज़रूर मुलाकात होती. कभी शाम को मै, अर्चना के घर तो कभी अर्चना, मेरे घर.. ........!!
अर्चना के घर में सबको मेरी मुखरता भाती. मुंह खोलती तो मेरी उन्मुक्त बातें पुरवाई के झोंके-सी माहौल को तरोताज़ा कर देतीं. देखती तो बांकी चितवन सबके मन का ताला खोल देती. अर्चना अपनी अंतरग सखी यानि कि मै (रेखा) की हरकतों और उसके लिए आहें भरने वाले लड़कों की फ़ौज से वाक़िफ़ थी पर मजाल जो कभी किसी से इस बात का खुलासा किया हो.


हालांकि अर्चना को मेरी छिछोरी हरकतें कतई पसंद न थी, हम तीनों के मिजाज़ और परवरिश और पारिवारिक पृष्ठभूमि में भी रात दिन का अंतर था, किंतु वह उम्र अनहद प्यार और दोस्ती निभाने की होती है सो अर्चना ने शिद्दत से अपनी दोस्ती निभाई.


कभी कभी स्कूल से आते जाते हमउम्र लड़कों से मै मिलने भी लगी थी, ऐसे में अर्चना अक्सर आगे बढ़ जाती. बहरहाल आज की तरह वो डेटिंग का जमाना नहीं था, छिटपुट आंख-मिचौली, जिसे बुज़ुर्गों की भाषा में कहो तो नैन मटक्का, चिट्ठियों का लेनदेन, एक-दूजे को देख लेनेभर की हसरत और ना देख पाने पर आहें भरना… बस इतने में ही बाली उमर की कहानियां बन जाती थी. बॉयफ्रेंड बन जाना तो ""चरित्रहीनता का सर्टिफ़िकेट"" था.


हमारी उफनती जवानी को देखकर हमारे इर्द-गिर्द कितने ही दीवाने भंवरों की तरह डोलते, कोई गली के नुक्कड़ तो कोई पान की गुमटी पर..; कोई दुकान पर बैठा सेल्समेन तो कोई सीटी बजाता सेहज़ादा . पड़ोस के स्कूलों के छात्र भी रिंग मास्टर टाइप अपने किसी दोस्त की अगुवाई में टोली बनाकर स्कूल से लौटती लड़कियों का पीछा करते. मधुमक्खियों-सी लड़कियां भी हंसती खिलखिलाती मस्ती करती आगे-आगे चलतीं, जिनमें "" रेखा रानी "" मधुमक्खी की भूमिका में होती.

अर्चना इस ख़ुराफ़ात का हिस्सा कम ही बनती, क्योंकि वह अपनी सायकिल से घर लौटती. उसे सहेलियों के साथ मटरगश्ती करते हुए घर आने की इजाज़त नहीं थी. लड़कपन की मासूम और मादक फैंटेशियो में मुझे और अंजू को ख़ूब मज़ा आता. सब हम पर लट्टू हैं, हमें तरजीह देते हैं, यह बात मन को गुदगुदाती. भले ही उसमें ज़्यादातर सड़क छाप मजनू होते, पर हमारे लिए यह टाइम पास बड़ा सम्मोहक था.

हमारे जीवन में यूं भी मनोरंजन और आनंद के विकल्प कम थे. पढ़ने लिखने में हम औसत छात्रा थी. परिवार निम्न मध्यमवर्गीय था. पिता की इकलौती कमाई में हम भाई बहन पल रहे थे. जैसे-तैसे पढ़ाई चल रही थी. मां को चूल्हे-चौके से फ़ुर्सत कहां कि अपनी बेटियों के चाल-चलन पर निगाह रखे. बहरहाल, अपनी चाल ढाल और लक्षणों के कारण अंजू के साथ साथ मेरी भी शालीनता खोती जा रही थी, कहें तो ज़माने की निगाहों में बदनाम होती जा रही थी. शायद अब हम पर चालू लड़की का ठप्पा लग गया था.

मुझे आज भी याद है, अगस्त की पांचवी तारीख थी, स्कूल के गलियारे पे तो जैसे हर कोई जल्दी में ही था | हाथ में किताबे और बैग्स लिए बस हर कोई कही ना कही जाना ही चाहता था | बहुत से कमरे और हर एक कमरे कोई ना कोई क्लास चल ही रही थी | चमचमाती हुई कुर्सिया , पूरी तरह से साफ़ सुथरा फर्श , जगह जगह पे डस्टबिन , हम ने एक कमरे में एंट्री की और पीछे पीछे सब घुस गए |

कमरे की छत पर लटका पुराना पंखा अपनी स्पीड से कमरे को ठंडा रक्खे हुए था , चेयर्स और डेस्क उस कमरे को एक क्लास का लुक दे रहे थे | कमरे की दिवार के बराबर ब्लैकबोर्ड बना हुआ था जिसपे चाक से कुछ लिखा भी हुआ था | मैने ध्यान से पढ़ने की कोशिश की " अपना.. साइज बताइये ! " मुझ को कुछ समझ नहीं आया की उसका क्या मतलब हैं |

"रेखा तू यहां आ मेरे पास बैठ " अर्चना ने मुझ को अपने बगल वाले सीट पे बैठा लिया ""अंजू के पीरियड चल रहे थे जिसकी वजह से वो दो तीन से स्कूल नही आ रही थी |"" सबसे आगे जो लड़किया बैठी थी ज्यादातर आँखों में चश्मे लगे हुए थे | देखने से ही पढ़ने वाली लग रही थी | धीरे धीरे बात करने की आवाज पुरे क्लास में गूँज रही थी | इतने में क्लास में एक औरत ने एंट्री की, सारे स्टूडेंट्स एक साथ खड़े हो गए |

ब्लू कलर की साड़ी और उसपे स्लीवलेस ब्लाउज, पूरी तरह से बदन से चिपका हुआ था | लग रहा था जैसे की ये कपडे खासकर उसके लिए ही बनाये गए हो | सुडौल जिस्म , भारी स्तन , ना बहुत ज्यादा पतली और ना ही बहुत ज्यादा मोटी कमर , साड़ी इतनी लोअर पोजीशन में थी की नाभि और उसके निचे पांच अंगुल की जगह साफ़ साफ़ नजर आ रही थी | बाल अच्छी तरह से सीधे किये हुए गर्दन के दायीं तरफ रक्खे हुए थे | औरत ने अपने हाथ से एक कागज मेज पे रक्खा और ब्लैकबोर्ड पे लिखे हुए शब्दों को पढ़ने लगी | पीठ क्लास की तरफ होने की वजह से बैकलेस ब्लाउज , पीठ को अच्छी तरह से दिखा रहा था | मुझ को पता ही नहीं चल रहा था की आखिर ब्लाउज बदन पे टिका कैसे हैं |


"गुड मॉर्निंग मैंम ! " एक स्वर में सबने विश किया |

मै भी सबके साथ ही खड़ी हो गयी और विश किया | उस औरत के चेहरे पर एक अलग ही तेज़ चमक रहा था |

"अर्चना ये कौन हैं ? " मैने बैठते हुए उससे पुछा |

"ये है शीतल जैन , हमारे स्कूल की बायोलॉजी की नई संविदा टीचर , बहुत ही इंटेलीजेंट और साथ ही साथ हसमुख भी बहुत हैं सबसे हसी मजाक करती हैं , इसलिए तो इनकी क्लास में इतनी हाई अटेंडेंस रहती हैं " अर्चना ने बताया !

शीतल जैन की मौजूदगी ने ही क्लास में टेंशन एक लेवल ऊपर कर दिया था |

"किसने लिखा ये ब्लैकबोर्ड पर ? " शीतल ने अपनी गहरी और गंभीर आवाज में क्लास से पूछा | क्लास में पूरी तरह से ख़ामोशी पसरी हुई थी | मैने एक बार फिर से ब्लैकबोर्ड पर लिखे हुए शब्दों को पढ़ा |

"अपना साइज बताइये ! " भला किस साइज की बात हो रही है और यहाँ ब्लैकबोर्ड पे लिखने की क्या जरुरत हैं उसे ? शीतल ने कुछ देर सोचा और फिर चाक से उस लाइन के निचे कुछ लिखने लगी |

"तुम्हारी कल्पना से बाहर !! " शीतल ने जवाब लिखने के बाद क्लास की तरफ देखा।

सवाल हमेशा मुँह पे करना चाहिए , इस तरह छुपकर लिखोगी तो जवाब भी ऐसे ही मिलेगा , सामने से पूछती तो शायद असली साइज बता भी देती !! " शीतल ने अपने होंठो पर स्माइल लाते हुए कहा |
क्लास में हंसी का एक ठहाका गूंजा |
हाहा हाहा हाहा

""बारहवी की क्लास बायोलॉजी विषय हमेशा से किशोर किशोरियों उम्र के लड़के ही नहीं लड़कियों में भी एक सेक्स संबधी उत्सुकता भरा हुआ विषय रहा है, किताब के अंदर के चैप्टर विचार के साथ साथ जिस्म के अंदर होने वाले बदलाव से भरे प्रश्न करते रहते है....... ""

बॉयोलॉजी का एक पेज नंबर बताने के बाद शीतल ने उस टॉपिक पर बोलना शुरू किया
टॉपिक था मेंसुरेशन साइकिल - प्रोसेस एंड एक्टिविटी |

"लड़कियों की माहवारी इंडिया में एक अनछुआ विषय हैं | लोग इस बारे में बात करने से कतराते हैं और इस एक शर्मनाक बॉडी प्रोसेस की तरह ट्रीट किया जाता हैं जबकि बाहर के देशो में इसे अच्छी तरह से एक्सप्लेन किया जाता हैं जब किसी लड़की को पीरियड्स आना स्टार्ट होते हैं !"

शीतल ने ध्यान से पूरे क्लास की तरफ देखा
हाँ अर्चना क्या सवाल हैं तुम्हारा ? " क्लास में एक हाथ ऊपर देख कर शीतल ने पूछा |

"मैंम वो कहते हैं की पीरियड्स स्टार्ट होने के बाद ही लड़की के साथ सेक्स करने पर वो माँ बन सकती हैं क्या ये बात सही हैं ? " अर्चना वापस अपनी सीट पे बैठ गयी |

"बिलकुल सही अर्चना !! जब लड़की के पीरियड्स स्टार्ट होते हैं और उसका गर्भाशय में अंडे का फर्टिलाइजेशन होता हैं तभी वो किसी लड़के के वीर्य का इंतज़ार करती हैं , जैसे बारिश के बाद खेत की मिटटी बहुत ही जयादा उपजाऊ हो जाती हैं और बीज के डाले जाने का इन्तजार करती हैं वैसे ही एक लड़की माहवारी के पहले ही बीज के आने का इंतज़ार करती हैं और अगर उसे निचित टाइम तक लड़के का बीज नहीं मिलता हैं तो उसके गर्भाशय से वो अंडा ब्लीडिंग के द्वारा बाहर निकल जाता हैं | " शीतल ने अर्चना के क्वेश्चन का जवाब दिया |

"हाँ रेखा पूछो !" अबकी बार मैने अपना हाथ उठाया ।

"तो इसका मतलब की अगर किसी लड़की का पीरियड्स अभी नहीं हो रहा हो तो वो किसी भी लड़के से कितना भी सेक्स करे मेरा मतलब शारीरिक सम्बन्ध बनाये , लड़की के गर्भवती होने का कोई डर नहीं होता ? "

मेरा प्रश्न सुनकर क्लास में मौजूद हर कोई हसने लगा | शीतल भी अपनी हंसी नहीं रोक पायी | शीतल को हसते हुए देख कर सारे और भी तेजी से हसने लगे |
हाहा हाहा हाहा हाहा

"हाँ रेखा , ये बिलकुल सही हैं , अगर किसी लड़की का अगर मेंसुरेशन साइकिल स्टार्ट नहीं हुआ हैं और उसकी योनि में वीर्य घुस भी जाता हैं तो वह प्रजनन करने के लिए कही कोई अंडा ही नहीं होगा और वीर्य के शुक्राणु को पहुंचने के लिए कोई जगह ही नहीं मिलेगी | और अगर तुम लोगो की जनरेशन की नयी भाषा में समझाए तो मतलब एक लड़की अपनी पीरियड्स स्टार्ट होने से पहले चाहे जितना या चाहे जितने लड़को से चुदाई करवाएं वो प्रेग्नेंट नहीं होगी " शीतल ने अपनी होंठो की हंसी छुपाते हुए मेरे प्रश्न का उत्तर दिया |

क्लास की लड़किया हाथ से मुँह को छिपाकर हंस रही थी | हर कोई शीतल के इस हलके फुल्के माहौल में पढ़ाई का आनंद ले रहा था सिवाय मुझको छोड़कर |

शीतल के शब्दों के इस्तेमाल को सुनकर मै दंग हो गयी थी | भला एक टीचर कैसे इस तरह से अपने छात्राओ के सामने बोल सकती हैं | "चुदाई" शब्द तो मैने अब तक सिर्फ अंजू दीदी से ही सुना था वो भी आपस में खुशूर फुसुर करते हुए लेकिन यहाँ तो गुरु और शिष्य के बीच ही इस शब्द का इस्तेमाल हो रहा हैं और इतने गंदे शब्द का इस्तेमाल करने के बाद भी जिस तरह से शीतल और क्लास के बच्चे बिलकुल "कूल" दिख रहे थे उससे लग रहा था की ये पहली बार नहीं है |

मेरे चेहरे से उलझन धीरे धीरे हटती जा रही थी और अपनी नयी संविदा टीचर शीतल जैन के चेहरे पर भी इक चुप छिनाल की झलक नजर आती जा रही थी।

स्कूल की छुट्टी हो गयी और हम अपने घरों की ओर चल दिये... स्कूल के बाहर मेरा भाई सुनील अपनी मोटर साइकल पर गुमसुम बैठा हुआ था, और मेरा इंतजार कर रहा था।

उसे देख कर मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई. मुझ में अपने भाई का सामना करने की हिम्मत ना थी।

में खामोशी से अपनी नज़रें झुकाए हुए आई और आ कर भाई के पीछे उस की मोटर साइकल पर बैठ गईl

ज्यों ही भाई ने मुझे अपने पीछे बैठा हुआ महसूस किया उस ने भी मुझे देखे बगैर अपनी मोटर साइकल को स्टार्ट करने के लिए किक लगाई और मुझे ले कर घर चला आया।

रास्ते भर हम दोनों में कोई बात ना हुई और थोड़ी देर में हम अपने घर के दरवाज़े पर पहुँच गये।


ज्यों ही भाई ने घर के बाहर मोटर साइकल रोकी तो में उतर कर घर के दरवाजे खोलने लगी। तो शायद उस वक़्त तक भाई की नज़र मेरी चूड़ियों से खाली हाथों पर पड़ चुकी थी।

"रेखा तुम ने चूड़ियाँ क्यों नहीं पहनी" ???सुनील ने मेरे खाली हाथो की तरफ़ देखते हुए पूछा।

"वो असल में जो चूड़ियाँ मेंने पहनी थीं। वह उस रात धक्के की वज़ह से मेरी कलाई में ही टूट गईं थी तो फिर इस ख़्याल से कि अगले हफ्ते राखी (रक्षाबंधन) है, जब मम्मी के साथ बाजार जाऊंगी तब नई खरीद लूंगी। मेंने बिना उस की तरफ़ देखे उस को जवाब दिया।

"अच्छा रेखा तुम चलो में थोड़ी देर में वापिस आता हूँ" यह कहते हुए सुनील मुझे दरवाज़े पर ही छोड़ कर अपनी मोटर साइकल पर कही चला गया।

में अंदर आई तो देखा कि मम्मी काफ़ी खुश होने की वज़ह से किचिन में गाना गुनगुनाते हुयी गुलाब जामुन तल रहीं थी।

में अपने कमरे में आ कर बैठ गईl

रास्ते में सुनील भैया के साथ पेश आने वाले वाकये की वज़ह से मेरी साँसे अभी तक सम्भल नहीं पाईं थीं।

कुछ ही देर बाद मुझे मोटर साइकल की आवाज़ सुन कर अंदाज़ा हो गया कि भाई घर वापिस आ चुका है।

शाम हो चुकी थी मम्मी और अंजू दुकान पर थी इसलिए में अभी खाना खाने की सोच ही रही थी कि सुनील मेरे कमरे में दाखिल हुआ।

उस के हाथ में एक प्लास्टिक का शॉपिंग बॅग था। जो उस ने मेरे करीब आ कर बेड पर रख दिया और ख़ुद भी मेरे साथ मेरे बिस्तर पर आन बैठा।

अब मुझे भाई के साथ इस तरह एक ही बिस्तर पर बैठने से शरम के साथ-साथ एक उलझन भी होने लगी और इस वज़ह से में भाई के साथ आँख से आँख नहीं मिला पा रही थी।

कमरे में एक पूर सरार खामोशी थी और ऐसा लग रहा था कि वक़्त जैसे थम-सा गया हो।

जब भाई ने देखा कि में अपने पहलू में रखे हुए शॉपिंग बॅग की तरह ना तो नज़र उठा कर देख रही हूँ और ना ही उस के बारे में कुछ पूछ रही हूँ।

तो थोड़ी देर बाद भाई ने वह मेरे पास से वह बैग उठाया और वह ही चूड़ियाँ जो कि उस रात मेरी कलाई में टूट गयी थी।वो बैग से निकाल कर मेरी गोद में रख दीं और बोला" रेखा में तेरी चूड़ियाँ दुबारा ले आया हूँ"

मेंने उस की बात सुन कर अपनी नज़रें उठा और पहले अपनी गोद में रखी हुई चूड़ियों की तरफ़ और फिर भाई की तरफ़ देखा और बोली "रहने देते तुम ने क्यों तकलीफ़ की"

"तकलीफ़ की क्या बात है रेखा, तुझ को यह ही चूड़ियाँ पसंद थीं सो में ले आया" भाई ने मेरी बात का जवाब दिया।

भाई की बात और लहजे से यह अहसास हो रहा था।कि वह उस रात वाली बात को नज़र अंदाज़ कर के एक अच्छे भाई की तरह मेरा ख़्याल रख रहा है। अपने भाई का यह रवईया देख कर मेरी हालत भी नॉर्मल होने लगी ।

"अच्छा देर काफ़ी हो चुकी है इसलिए तुम दुकान पर जाओ मै सुबह चूड़ीयाँ मम्मी से पहन लूँगी।" मेंने भाई की लाई हुई चूड़ियों को बेड की साइड टेबल पर रखते हुए कहा।

"ला मै तेरे हाथों में चूड़ीयाँ पहना देता हूँ"" । इससे पहले कि में उस को रोक पाती। सुनील ने एक दम मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और टेबल पर पड़ी चूड़ीयाँ को मेरे हाथ में पहनाने लगा।

मुझे ज्यों ही अपनी इस बदलती हुई हालत का अहसास हुआ । तो मेंने भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कॉसिश की।

"रहने दो भाई में सुबह मम्मी से चूड़ीयाँ पहन लूँगी"

""जिस तरह शादी के कुछ टाइम बाद एक हज़्बेंड को अपनी वाइफ के जिस्म के नसीबो फर्ज़ (उतार चढ़ाव) का अंदाज़ा हो जाता है।""

बिल्कुल इसी तरह अपनी बेहन को उस रात के बाद से सुनील को भी ब खूबी अंदाज़ा हो चुका था। कि रेखा के जिस्म के वह कौन से तार हैं जिन को छेड़ने पर उस का बदन गरम होने लगता है।
Nice update
 

Sanju@

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सुनील भी एक टक देख रहा था, वो भी मुझको खुद को देखता हुआ देखकर कुछ देर मेरी आँखों में देखकर मेरे अंदर की मंशा को पढ़ने की कोशिश करता हुआ शरमा रहा था, मै भी मुस्कुरा रही थी।

अचानक से तेज गाड़ियों के हॉर्न की आवाज के साथ साथ एक आवाज आई....
बेहण चोद.......... बीच सड़क से हटकर लोंडियाबाजी कर ले.........???????

अध्याय -- 12 -----

सुनील भैया गाली की आवाज सुनकर एक दिवस्वपन से टूटे और बीच रास्ते से हटकर दुकान में घुस गये......

मै भी छत से नीचे आ गई। कमरे में जाकर लेट गयी, मै शायद समझ नहीं पा रही थी. थोड़ी देर मै यों ही बेचैन सी लेटी रही. मेरा मन अशांत था. न जाने क्यों इस शांतनीरव माहौल में , मै अपनी जिंदगी की अंधेरी गलियों में गुम होती जा रही थी. कुछ ऐसी ही तो थी मेरी जिंदगी, अथाह अंधकार लिए दिग्भ्रमित सी, जहां मेरे बारे में सोचने वाला कोई नहीं था. आत्मसाक्षात्कार भी अकसर कितना भयावह होता है? इंसान जिन बातों को याद नहीं करना चाहता, वे रहरह कर उस के अंतर्मन में जबरदस्ती उपस्थिति दर्ज कराने से नहीं चूकतीं.

जिंदगी की कमियां, अधूरापन अकसर बहुत तकलीफ देते हैं. मै इन से भागती आई थी लेकिन कुछ चीजें मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थीं. मै अपना ध्यान बरबस उन से हटा कर सच्चाई की तरफ मोड़ने लगी. सच बात यह है कि यह जवानी बड़ी ज़ालिम चीज़ है। मै अपनी जवानी की प्यास को अपने अंदर ही अंदर कंट्रोल करने की कोशिश करती फिर रही हू।

योनि से बहे द्रव्य से मेरी पैंटी गीली हो चुकी थी, और जिसके निशां मेरी पारदर्शी सलवार पर दिख रहे थे, मैने जल्दी से अपनी पैंटी और सलवार बदलकर अपना पुराना घाघरा (लेहन्गा) पहन लिया.....


मुझे ना लेटे चैन था ना करवटें बदलते हुए..... रह....रह कर थोड़ी देर पहले की घटना याद आ रही थी।
मेरी योनि में भी हल्की हल्की सी मीठी मीठी दर्द भरी खुजली हो रही थी, मानो जैसे योनि में कुछ कीडा रेंग रहा हो......
कुच्छ देर के बाद मैं टाँगें मोड़ के उकड़ू हो कर बैठ गयी और अपना सिर घुटनों पर टिका के उसी बारे में सोचने लगी. लहँगे के नीचे के हिस्से को मैने अपनी मूडी हुई टाँगों में फसाया हुआ था और सामने के हिस्से को घुटनों तक ऊपर खींच रखा था. अब अगर ल़हेंगे का नीचे का या पिच्छला हिस्सा मेरी मूडी हुई टाँगों से निकल कर नीचे गिर जाता तो ल़हेंगे के अंडर से मूडी हुई टाँगों के बीच से मेरी पैंटी किसी को भी बड़ी आसानी से नज़र आ जाती.....!

काफ़ी देर उकड़ू की तरह बैठे हुए मुझे नींद सी आने लगी मैने अपने घुटनों पे सिर रख कर आँख बंद करते हुए टाँगो को थोड़ा सा adjust किया जिससे टाँगों के बीच फँसा हुआ लहँगे का निचला हिस्सा नीचे गिर गया. मैने ज़्यादा ही छोटी पॅंटी पहन रखी थी जो बड़ी मुश्किल से मेरी चूत को ढके हुए थी. मेरी लंबी घनी झांटें पॅंटी के दोनो ओर से बाहर निकली हुई थी. इस उकडू बैठक मुद्रा की झलक मैं कपाट में लगे शीशे में देखकर आनादित हो रही थी..... मुझे भली भाँति पता था कि इस वक़्त मेरी चूत के घने बॉल पॅंटी के दोनो ओर से झाँक रहे थे. पॅंटी बड़ी मुश्किल से मेरी फूली हुई चूत के उभार को ढके हुए थी.

इतने में सुनील भैया आ गये और सामने का नज़ारा देख कर गेट पर बुत बनकर खड़े हो गये. उसकी आँखें मेरी टाँगों के बीच में जमी हुई थी. इतने में मैने मुंडी उठा कर पूछा. .. ? भैया कुच्छ चाहिए?” सुनील एकदम से हरबड़ा गया. उसका चेहरा उत्तेजना से लाल था. “ कुच्छ नहीं , दुकान पर सेल्स मेन् आया है, और उसको पेमेंट करने के लिए कपाट में से रुपए निकालने आया था, .....

कपाट के सामने सुनील खड़ा हुआ था. मैं बिस्तर पर उसके सामने लेट गयी, अपनी टांग के ऊपर टाँगें रख लीं,. अगर मैं लहंगा थोड़ा भी ऊपर करती तो वो मेरी टाँगों के बीच झाँक सकता था. मैं नोट बुक पढ़ने का बहाना करने लगी. सुनील पूरी कोशिश कर रहा था कि किसी तरह मेरी टाँगों के बीच की झलक मिल जाय. वो तो बेचारा मेरी पॅंटी की झलक पाने की आशा कर रहा था.

उसे क्या मालूम कि आज तो उसे शॉक लगने वाला था. मैं भी उसे खूब उतावला करती रही. थोड़ा सा लहंगा ऊपर खींच लेती, लेकिन सिर्फ़ इतना ही की सुनील को कुच्छ दिखने की आशा हो जाए पर दिखाई कुच्छ ना दे. फिर थोरी देर में टाँग खुजलाने के बहाने लहंगा थोड़ा और ऊपर कर लेती जिससे सुनील को मेरी गोरी गोरी टाँगें नज़र आ जाती पर असली चीज़ नहीं. मेरा इरादा नेक नही था।


उधर सुनील भैया का उतावलापन साफ नज़र आ रहा था. मुझ से ना रहा गया. बेचारे पे बहुत तरस आ रहा था. मैने बेड से टाँगें सीधी करने के लिए इस प्रकार से चौड़ी करते हुए उठाई कि गोरी जांघों के बीच में सुनील को मेरी झांटो से भरी हुई पैंटी के एक सेकेंड के लिए दर्शन हो गये. अब तो सुनील की हालत और भी खराब थी. बेचारा मेरी आँख बचा कर एक सेकेंड की झलक पा कर ही बेहाल था.


शायद सुनील ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की की झांटो से भरी हुई पैंटी देख रहा था. गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच में लंबी काली झांटो से भरी हुई पैंटी के अंडर से झँकती हुई मेरी डबल रोटी के समान फूली चूत को देख कर अच्छों अच्छों का ईमान डोल सकता था. सुनील की तो जैसे आँखे बाहर गिरने वाली थी. अचानक मैने सिर घुटनों से ऊपर उठाया और पूछा,


“ अरे भैया तुझे इतना पसीना क्यों आ रहा है ? तू ठीक तो है?” पसीना आने का कारण तो मुझे अच्छी तरह मालूम था. ऐसा ही पसीना मुझे भी उस दिन आया था जिस दिन मैने "अरुण" का मोटा लॉडा देखा था.


“ अच्छा चल खाना खा लेते हैं.” मै सुनील को कमरे में अकेला छोड़ मम्मी के पास किचिन में चली गई......


थोड़ी देर के बाद में जब मैने उसे रसोई में देखा तो मुझे उसकी उपस्थिती में बेचैनी सी महसूस होने लगी. मुझे थोड़ा अपराध बोध भी महसूस हो रहा था के मैं उसकी अंतर्मन की दूबिधा को जान गयी थी और उसे इस बात की कोई जानकारी नही थी. उस अपराधबोध ने सुनील भैया के लिए मेरी सोच को थोड़ा बदल दिया था. उसके प्रति मेरे नज़रिए में भी तब्दीली ला दी थी. मैं शायद इसे सही ढंग से बता तो नही सकती मगर मेरे अंदर कुछ अहसास जनम लेने लग थे... ...


खाना खा पी कर हम सब अपने अपने बिस्तर पर लेट गये..... चिठ्ठिया लिखने की इछाये खतम होने लगी थी, या यो कहे मरने सी लगी थी.... अब तो मेरे पास सिर्फ यादों की सुखद कल्पनाएं थीं, मुहब्बत थी और मुझे चाहने वाला कोई कल्पनाओ में राजकुमार, जो मुझ पर जान छिड़कता और मुझसे अटूट प्यार करता.. ...?????


दिन तो घर के काम काज में गुज़र जाता मगर रात को अपने बिस्तर पर लेटती तो अपना बिस्तर ही मुझे काटने को दौड़ता। बिस्तर पर सवार मम्मी तेज गति से खराटे भर रही थी। अंजू, और मै मौन व निस्तब्ध थे. मैने लंबी सांस छोड़ते हुए मम्मी और अंजू पर दोबारा नजर डाली. मुझे नही पता वो सो रही थी या फिर सोने का बहाना कर रही थी.


रात गहरा चुकी थी. मैने समय देखा तो रात के 12 बज रहे थे. मैने सोने का प्रयास किया, लेकिन मेरा मनमस्तिष्क तो जीवनमंथन की प्रक्रिया से मुक्त होने को तैयार ही नहीं था.


रात के वक्त अचानक ऐसा लगा कि कोई दानवाकार व्यक्ति मेरे कमरे में है। ठीक मेरे बिस्तर के करीब। नाईट बल्ब ठीक उसके पीछे था, अत: वह एक काले साये की तरह दिख रहा था। मेरी आंखें खुल गयीं थीं और आंखें फाड़े नाईट बल्ब की मद्धिम रोशनी में उसका चेहरा पहचानने की कोशिश कर रही थी किंंतु साफ साफ देख पाने में असमर्थ थी। वह आहिस्ते आहिस्ते मेरे करीब आया और मेरे कपड़ो को धीरे धीरे ऊपर उठाने लगा। मैं विरोध करना चाह रही थी किंतु हिलने डुलने में असमर्थ थी। ऐसा लग रहा था मानो मुझे लकवा मार गया हो। पूरा शरीर मानो निश्प्राण हो गया हो। मेरी जुबान तालू से चिपक गई थी। धीरे धीरे मेरे कपड़े मेरे शरीर से अलग हो गये। अब मैं सिर्फ पैंटी और ब्रा में थी। कुछ पलों तक वह व्यक्ति मेरे अर्धनग्न शरीर को घूरता रहा फिर वह मेरी ब्रा को खोलने लगा। मैं नि:शक्त, बेबसी के साथ अपने ऊपर होने वाले इस कृत्य को सिर्फ देखती रही।

मेरी ब्रा को खोलने के बाद वह बुत बना कुछ पलों तक मेरे उन्नत उरोजों की खूबसूरती निहारता रहा। मेरी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं। उसने अपने विशाल खुरदुरे पंजों से पहले मेरे उरोजों का स्पर्श किया, फिर हौले से दबाया। उफ्फ्फ, भयमिश्रित उत्तेजना का वह आहसास अवर्णनीय था। उसका हाथ मेरे उरोजों से होते हुए मेरे पेट, फिर नाभि और, और…ओह्ह्ह्ह मेरी योनि की तरफ जाने लगा। हाय राम, यह मेरे साथ क्या हो रहा था। मैं इतनी बेबस क्यों हो गई थी। चाह कर भी विरोध क्यों नहीं कर पा रही थी। अब तक मेरे अंदर भी धीरे धीरे वासना का कीड़ा कुलबुलाने लगा था। वह व्यक्ति पहले मेरी पैंटी के ऊपर से ही मेरी योनि को सहलाने लगा। मैं थरथरा उठी। मेरा जिस्म वासना की अग्नि में झुलसने लगा। मेरी योनि पानी छोड़ने लगी थी। मेरी हालत उस व्यक्ति से छुपी हुई नहीं थी। वह मेरे बिस्तर पर आ कर ठीक मेरे बगल में लेट गया, पैंटी को उतारने के लिए जब वह पैंटी नीचे खींचने लगा और इस क्रम में उसका चेहरा ठीक नाईट बल्ब की ओर हुआ, तभी मैं इतने करीब से उस व्यक्ति की सूरत देख पाई, ओह्ह्ह्ह भगवान, इतना वीभत्स चेेेहरा! कोयले की तरह काला रंग, भिंची भिंची सुर्ख आंखें, बिखरे बेतरतीब खिचड़ी बाल, किसी जंगली भेड़िये की तरह शक्ल, बड़े बड़े कान बाल से भरे हुए, बेहद पतले होंठ, जबड़े बाहर की ओर उभरे हुए, नाक के स्थान पर सिर्फ दो नसिका छिद्र दिखलाई पड़ रहे थे। सुर्ख आंखों में भूखे भेड़िए सी चमक थी। मैं घबरा कर चीख पड़ी,


“नहींईंईंईंईंईंईं” और तभी मेरी आंखें खुल गयीं। हे भगवान, तो यह एक दु:स्वप्न था। मैं पसीने से नहा गयी थी। मैं कांपते हुए बिस्तर से किसी प्रकार उठी और अपने सूखे हलक को तर करने पानी पीने के लिए लड़खड़ाते कदमों से ज्यों ही दरवाजा खोली, सामने सुनील खड़ा था, जो शायद मेरी तरह ही पानी पीने आया होगा। वह एक टी शर्ट और बरमूड़ा पहने हुए था।


उफ्फ्फ भगवान, वह भयावह वीभत्स चेहरा अब भी मेरे जेहन में समाया हुआ था। भयाक्रांत, पसीने से लतपत, थरथर कांपती, बेख्याली में मैं सामने खड़े सुनील से लिपट गई। सुनील मुझे अपनी बांहों में समेट कर बोला, “रेखडी, क्या हुआ? इतनी डरी हुई क्यों हो?” इतना सुनकर मेरी ज़ुबान जैसे लड़ खड़ाने लगी और वह रुक गई. सॉफ पता चल रहा था कि शरम के मारे मेरी ज़ुबान मेरा साथ नहीं दे रही थी। मैने अपने भाई सुनील की तरफ़ देखा।तो उसको मैने अपनी तरफ़ ही देखते पाया।


उससे नज़रें मिलते ही अचानक जैसे मुझे होश आया, मैने अपने माथे पर आते हुए पसीने को हाथ से साफ़ किया और अपने मुँह में आते हुए थूक को निगल कर अपनी बात अहिस्ता से स्टार्ट की। “कककुच्छ नननहींईंईंई” हकलाते हुए मैं बोली और उसकी बांहों से निकलने की कोशिश करने लगी, लेकिन उसने मुझे और सख्ती से जकड़ लिया, “छोड़ो मुझे, मुझे कुछ नहीं हुआ, मैं सिर्फ एक बुरा सपना देख कर डर गई थी” मैं हकबका कर खुद को बमुश्किल संभालते हुए बोली।

“देख रेखा, तुम अब भी डरी हुई हो। मैं तुम्हें ऐसी हालत में यूहि नहीं छोड़ सकता, जबतक तुम नॉर्मल नहीं हो जाती।” कहते हुए मुझे बांहों का सहारा दिए हुए मेरे साथ मेरे किचिन में दाखिल होने लगा। “जाओ तुम आराम से स्टूल पर बैठ जाओ, मैं तेरे लिए पानी ले कर आता हूं” कहता हुआ मुझे किचिन में रखे स्टूल पर बिठा दिया और पानी लाने चला गया। उसकी बांहों में मैं राहत और सुरक्षा अवश्य महसूस कर रही थी किंतु मेरे अंदर का बांध भी दरकने लगा था। मैं उसके नर गंध से कामांध होती जा रही थी। वह ग्लास में पानी लाकर अपनी बांहों का सहारा देकर मुझे पानी पिलाने का उपक्रम करने लगा।

पानी पीने के बाद में स्वाभिक है, पेशाब का आना, मै उससे बोली मै बाथरूम होकर आती हू....... और छत की ओर जाती सीढ़ियों पर उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कदम बढ़ाने लगी.......

ये एक ऐसा संयोग था अपने भाई के साथ जिसके बारे में मैं आपको बताने जा रही हूँ . ये तभी होता है जब सितारे किसी बहुत खास मौके पर किसी खास दिशा में लाइन बद्ध हों. मेरे ख़याल से इसे और किसी तरीके से परभाषित नही किया जा सकता. सच ही कहते है।

"" सावधानी हटी दुर्घटना घटी ""

ऐसा ही हुआ सीढ़ियों से मेरा एक पैर स्लिप होकर फिसल पड़ा और मेरे बिल्कुल पीछे खड़े मेरे भाई का बदन पीछे से मेरे जिस्म के साथ चिपकता चला गया।

ज़ोर दार झटका लगने से मेरा हाथ सामने सीढ़ियों की रेलिंग से टकराया। जिस की वज़ह से मेने जो चूड़ियाँ ( कंगन) पहनी थी वह एक दम से टूट गईं। और मेरी एक उंगली भी ज़ख़्मी हो गई और उस में से खून निकलने लगा।

भाई ने गिरते हुए मुझ को संभालने की कोशिश की। जिस की वज़ह से उस का एक हाथ मेरे दाएँ कंधे पर पड़ा जब कि उस का बाया हाथ मजबूती से मेरी बाईं छाती पर आन पड़ा।

चूँकि गर्मी की वज़ह से मेंने कॉटन के पतले शलवार कुर्ती पहने हुए थी।

यह शायद मेरे पतले शलवार कमीज़ की मेहरबानी थी। कि भाई का यूँ मेरे साथ चिपटने से ज़िन्दगी में पहली बार मेरे भाई का मर्दाना हिस्सा (लंड) बगैर किसी रुकावट के मुझे अपने जिस्म के पिछले हिस्से (गान्ड) में चुभता हुआ महसूस हुआ।और उस का सख़्त और गरम औज़ार (लंड) मुझे अपनी मौजूदगी का अहसास दिला गया।


शायद सुनील भैया को भी अहसास हुआ होगा कि इस धक्के की वज़ह से अंजाने में उस के हाथ और जिस्म मेरे जिस्म के उन हिस्सो से टकरा गये हैं।

यह पिछले पंद्रह दिनों में यह दूसरा मोका था। जब किसी मर्द ने मेरे जिस्म के नापाक हिस्सो को इस तरह छुआ था और वह मर्द कोई गैर नहीं बल्कि मेरा अपना सगा भाई था।

यूँ तो मेरे भाई का मुझ से यूँ टकराने का अहसास एक इतफाक था। लेकिन इस एक लम्हे ने भाई के जिस्म में क्या तब्दीली पेदा की मुझे उस का उस वक़्त तो अंदाज़ा ना हुआ। मगर भाई के मुझे इस तरह छूने से मेरे तन बदन में भाई की इस हरकत का अंदर तक असर हुआ और मेरे जवान जिस्म के सोए हुए अरमान जाग उठे।

मुझे अपने बदन में एक सर्द-सी आग लगती हुई महसूस हुई और मुझे यूँ लगा कि मेरे जिस्म के निचले हिस्से में से कोई चीज़ निकल कर मेरी सलवार को गीला कर गई है।

इस से पहले कि में उस को रोक पाती। सुनील ने एक दम मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और मेरे हाथों से टूटी हुई चूड़ीयाँ (कंगन) को मेरे हाथ से हटाने लगा। सुनील का यह रवईया देख कर मेरी हालत भी नॉर्मल होने लगी और मेरे दिल में भी अपने भाई के लिए एक बेहन वाला प्यार उमड़ आया।

"अच्छा रात काफ़ी हो चुकी है इसलिए तुम जा कर सो जाओ " मै उससे मुस्कराते हुए बोली.......

अपने नरम नाज़ुक हाथ अपने भाई के मज़बूत हाथों में महसूस कर के मेरी वह साँसे जो अभी कुछ देर पहले ही ब मुश्किल संभली थी वह दुबारा तेज होने लगीं।

मुझे ज्यों ही अपनी इस बदलती हुई हालत का अहसास हुआ । तो मेंने भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कॉसिश की।

"रहने दो भाई में सुबह मम्मी से नयी चूड़ीयाँ चढ़वा लूँगी" यह कहते हुए में ने ज्यों ही भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की।

सुनील ने जब मेरी उंगली से खून निकलता देखा तो वह एक दम घबडा गया और उस ने खून को रोकने के लिए एकाएक मेरी उंगली को अपने मुँह में डाला और मेरी उंगली से बहते हुए खून को चूसना शुरू कर दिया।

मेरे भाई की इस हरकत ने मेरी जवानी के उन जज़्बात को जिन्हे मैने अपने अरुण के जाने के बाद बहुत सबर और मुस्किल से सुलाया था। उन को एक दम से भड़का दिया और मेरे सबर का पैमाना छलकने लगा।

सर से ले कर पैर तक मेरे जिस्म में एक करंट का दौड़ गया और में कोशिश के बाजूद अपने आप को रोक ना पाईl

मुझे अपने भाई के मुँह और होंठो की गर्मी ने बेचैन कर दिया और इस बेचैनी के मारे मेरी सांसो में एक हल चल मची और मेरे मुँह से एक "सिसकी" -सी निकल गई l

बे शक मेरा भाई कुँवारा है और उस की अभी शादी नहीं हुई थी। मगर इस के बावजूद वह शायद एक माहिर खिलाड़ी था। जो यह जानता था कि जब किसी लड़की के मुँह से इस क़िस्म की सिसकारी निकलती है तो उस का क्या मतलब होता है।


इसीलिए मेरे मुँह से सिसकारी निकलने की देर थी। कि मेरे भाई सुनील ने मेरी आँखों में बहुत ग़ौर से झाँका और इस से पहले के में कुछ समझती। मेरे भाई ने एक दम मुझे अपनी बाहों में भर लिया।

भाई की इस हरकत से में अपना होश खो बैठी और दीवाल से सट गईl

मेरे यूँ दीवाल से सटते ही सुनील मेरे जिस्म के उपर आया और उस के होंठ मेरे होंठो पर आ कर जम गये।

साथ ही साथ उस का एक हाथ मेरी शलवार के ऊपर से मेरी टाँगो के दरमियाँ आया और मेरे जिस्म के निचले हिस्से को अपने काबू में कर लिया।

मेंने अपनी भाई को अपने आप से जुदा करने की कोशिश की।मगर वह मुझ से ज़्यादा ज़ोर जबर था।

मेरे जिस्म की सुलगती हुई आग को मेरे भाई के हाथ और जिस्म ने भड़का तो दिया ही था। अब उस आग को शोले की शकल देने में अगर कोई कसर रह गई थी। तो वह मेरे भाई के प्यासे होंठो और उस के मेरे जिस्म के निचले हिस्से को मसल्ने वाले हाथ ने पूरी कर दी थी।

में बहन होने के साथ आख़िर थी तो एक जवान प्यासी लड़की।

और जब रात की खामोशी में मेरे अपने घर में मेरे अपने ही भाई ने मेरे जिस्म के नाज़ुक हिस्सो के तार छेड़ दिए. तो फिर मेरे ना चाहने के बावजूद मेरा जिस्म मेरा हाथ से निकलता चला गया।

मुझे होश उस वक़्त आया। जब मेरा भाई अपनी हवस की दास्तान मेरे जिस्म के अंदर लिखने के लिए पसीने से शरा बोर मेरे पहलू में पड़ा गहरी साँसे ले रहा था।

होश आने पर जब हमे अहसास हुआ कि जवानी के जज़्बात में बह कर हम दोनों कितनी दूर निकल चुके हैं। जो एक भाई के लिए भाई बहन के रिश्ते से ग़लत हैं। तो वह शर्मिंदगी की आलम में मुझे सॉरी कहता हुआ मुझे वापस सीढ़ियों पर ठीक से चढ़ने की नसीहत देकर अपने कमरे में चला गया।

अब तो हमारे लिए एक दूसरे से आँख मिलाना भी मुस्किल हो गया।

मै अपने इस गुनाह से इतनी शर्मिंदा हुई कि सीढ़िया चढ़ते चढ़ते ही मैं फूट-फूट कर रोने लगी।
Amazing update
आपने बहुत ही शानदार तरीके से लिखा है आपकी शैली अद्भुत है
 
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manu@84

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होश आने पर जब हमे अहसास हुआ कि जवानी के जज़्बात में बह कर हम दोनों कितनी दूर निकल चुके हैं। जो एक भाई के लिए भाई बहन के रिश्ते से ग़लत हैं। तो वह शर्मिंदगी की आलम में मुझे सॉरी कहता हुआ मुझे वापस सीढ़ियों पर ठीक से चढ़ने की नसीहत देकर अपने कमरे में चला गया।


अब तो हमारे लिए एक दूसरे से आँख मिलाना भी मुस्किल हो गया।


मै अपने इस गुनाह से इतनी शर्मिंदा हुई कि सीढ़िया चढ़ते चढ़ते ही मैं फूट-फूट कर रोने लगी।


अध्याय -- 13 -----


सीढ़ियों से ऊपर की ओर भागती हुई रोती जा रही थी। ना ही होश था ना ही आँसू रुक रहे थे। छत से होते हुए बाथरूम में जा पहुँची। बाथरूम में दाखिल होते ही अपने पीछे दरवाजे को कस कर बंद कर लिया और दरवाज़े के सहारे नीचे बैठ गई। आँखों से आँसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे।


अचानक तेज़ आवाज़ होने से उसी छत पर बने बाथरूम के पास हड़बड़ी में अंजू आई।


"रेखा..." बाथरूम से बाहर खड़ी अंजू ने अब मुझे पुकारा।


लेकिन मेरा तो रो रो के बुरा हाल था।


"रेखा, बताओ मुझे क्या हुआ? तुम रो क्यूं रही हो?" अंजू अब नज़दीक बढ़ने लगी थी।


"वोह....वोह अंजू...वोही..." मैने किसी तरह बोलने की कोशिश की पर डर से कांप रही थी।


"कौन है? तुम किसकी बात कर रही हो?" अंजू अब मेरी हालत देख कर घबराने लगी थी। पर उसने जल्दी आ कर मुझे सीने से लगा लिया और माथे पर स्नेह से चूम लिया।


"रिलैक्स, तुम उठो यहां से पहले। मुझे पूरी बात बताओ। अंजू ने मुझे छत की मुंडेर पर बैठाते हुए पूछा।


"अंजू.... वो सुनील जिससे मेरी...." मै बोलते बोलते रुक गई ।


"सुनील ही था......तो क्या हुआ?" मुझ को झटका लगा था। और अंजू को देख कर ऐसा लग रहा था मानो वो यह बात पहले से जानती हो।


सुनील ने भी बहुत बार छूआ है मुझे। अब मैं किसी के दिमाग में क्या चल रहा है इसकी गारंटी तो नहीं ले सकती। हो सकता है कि यह भूल वश हुआ हो और ये भी हो सकता है कि उन्होने कामुकतावश उत्तेजित होकर ऐसा किया हो। तो क्या हो गया ? आखिर है तो भाई ही...!!


हां अगर अक्सर ही वो ऐसा करने की कोशिश करेगा तो भले वो मेरा ही भाई क्यो ना तो मैं उसे डांट कर समझा सकती हूं कि ये गलत है और उसे ऐसा नहीं करना चाहिये। और सुनील हमारा भाई है, रिश्ते हमें अपनी मर्जी से नही मिलते, वो भगवान की मर्जी से मिलते है, हमें भी उन रिश्तों को निभाना आना चाहिए, !!


कल्पना कर के सोच और बता मुझे
वैसे तो अभी मेरा मां बनना तो दूर शादी तक नहीं हुई है लेकिन मान लेते हैं कि भविष्य में जब मेरा बेटा जवां होने पर कभी कामुक भावनाओं से ग्रस्त हो मुझे यौन रूप से छू भी लेता है तो ऐसी बड़ी बात ना हो जायेगी तब भी उसकी मै मां ही रहूंगी।


कब से मै यही तो कहने की कोशिश कर रही हू। एक सामान्य ढंग के भारतीय परिवारों में कभी भी इन छोटी मोटी चीजों की लोग इतनी परवाह नहीं करते और हमें भी इन्हे इतना तूल देने की जरूरत नहीं लगती जब तक कि ऐसी चीजे बार बार ना दोहराई जांय। रेखा तुम भी अब दोहरा जीवन जीना बंद करो..... जो अंदर से हो वैसे ही बाहर से बनो... मेरी तरह बोल्ड, बिंदास, तब ही जिंदगी के मजे ले पाओगी..... वैसे भी हमारे पास आजादी का अब एक साल बचा एक हफ़्ता बाद स्कूल खुल जायेंगे... 12 वी खतम फिर शादी..... मैने अक्सर मम्मी को कहते सुना है, 12 वी के बाद दोनों बेटियों की शादी एक साथ करनी होगी....!!


अब इस बात को इस रात की तरह भूल जा..... चल अब नीचे...

इस बात को एक हफ़्ता गुज़र गया और इस दौरान मेंने अपने भाई से किसी क़िस्म का राबता अथवा मौखिक संपर्क (अहसास का रिश्ता) ना रखा। मेरी किस्मत में पता नहीं क्या क्या लिखा था? खैर , एक दो दिन में ही मेने महसूस किया कि मैं नयी उमंग से मुखातिब हो रही थी.

"जुलाई अगस्त (सावन) के मस्त महीने हमेशा से ही प्यार, मोहब्बत, (सेक्स) के बारे में अपने कामुक प्रभाव के लिए प्रसिद्ध रहे हैं क्योंकि गर्मी ख़त्म हो रही होती हैl सर्दी भी शुरु नहीं हुई होती है और कुदरत भी इस समय अपने रंग बदल रही होती हैl पेड़ो पर हरे भरे नए पत्ते आ रहे होते हैं और तरह तरह के रंग बिरंगे फूल चारो तरफ खिले होते हैं जिन्हे देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है। "

हमारे स्कूल भी खुल गये थे....

""सरकारी स्कूलों की प्रसिद्ध कहानी... क्लास नई, किताबें पुरानी""

गवर्मेंट गर्ल्स हायर सैकेंडरी स्कूल हिसार..... हमारी जिंदगी के अनुभव और स्कूल की मस्तियों के किस्से बिना ये कहानी अधूरी सी लगेगी.........!!


(शिक्षा सत्र शुरू होते ही सड़क छाप मजनुओं का जमावड़ा गर्ल्स स्कूलों के बाहर लगने लगता है।)


मै, अंजू और अर्चना स्कूल आते जाते हमारे कदम सड़क पर होते किंतु आंखें दो मछलियों की तरह बेताबी से इधर-उधर घूमतीं और मोहल्ले भर के लड़कों को आमंत्रित करतीं. गली नुक्कड़ गुमटी सड़क पर चलने वाले कच्ची उम्र के अच्छे और कम अच्छे लड़कों के दिल हमें देख कर धड़कने लगते.


मेरा और अर्चना के घर का फ़ासला दस मिनट से ज़्यादा नहीं था. हम तीनों पक्की सहेलियां, अक्सर साथ आना जाना, स्कूल के बाद भी एक बार ज़रूर मुलाकात होती. कभी शाम को मै, अर्चना के घर तो कभी अर्चना, मेरे घर.. ........!!
अर्चना के घर में सबको मेरी मुखरता भाती. मुंह खोलती तो मेरी उन्मुक्त बातें पुरवाई के झोंके-सी माहौल को तरोताज़ा कर देतीं. देखती तो बांकी चितवन सबके मन का ताला खोल देती. अर्चना अपनी अंतरग सखी यानि कि मै (रेखा) की हरकतों और उसके लिए आहें भरने वाले लड़कों की फ़ौज से वाक़िफ़ थी पर मजाल जो कभी किसी से इस बात का खुलासा किया हो.


हालांकि अर्चना को मेरी छिछोरी हरकतें कतई पसंद न थी, हम तीनों के मिजाज़ और परवरिश और पारिवारिक पृष्ठभूमि में भी रात दिन का अंतर था, किंतु वह उम्र अनहद प्यार और दोस्ती निभाने की होती है सो अर्चना ने शिद्दत से अपनी दोस्ती निभाई.


कभी कभी स्कूल से आते जाते हमउम्र लड़कों से मै मिलने भी लगी थी, ऐसे में अर्चना अक्सर आगे बढ़ जाती. बहरहाल आज की तरह वो डेटिंग का जमाना नहीं था, छिटपुट आंख-मिचौली, जिसे बुज़ुर्गों की भाषा में कहो तो नैन मटक्का, चिट्ठियों का लेनदेन, एक-दूजे को देख लेनेभर की हसरत और ना देख पाने पर आहें भरना… बस इतने में ही बाली उमर की कहानियां बन जाती थी. बॉयफ्रेंड बन जाना तो ""चरित्रहीनता का सर्टिफ़िकेट"" था.


हमारी उफनती जवानी को देखकर हमारे इर्द-गिर्द कितने ही दीवाने भंवरों की तरह डोलते, कोई गली के नुक्कड़ तो कोई पान की गुमटी पर..; कोई दुकान पर बैठा सेल्समेन तो कोई सीटी बजाता सेहज़ादा . पड़ोस के स्कूलों के छात्र भी रिंग मास्टर टाइप अपने किसी दोस्त की अगुवाई में टोली बनाकर स्कूल से लौटती लड़कियों का पीछा करते. मधुमक्खियों-सी लड़कियां भी हंसती खिलखिलाती मस्ती करती आगे-आगे चलतीं, जिनमें "" रेखा रानी "" मधुमक्खी की भूमिका में होती.

अर्चना इस ख़ुराफ़ात का हिस्सा कम ही बनती, क्योंकि वह अपनी सायकिल से घर लौटती. उसे सहेलियों के साथ मटरगश्ती करते हुए घर आने की इजाज़त नहीं थी. लड़कपन की मासूम और मादक फैंटेशियो में मुझे और अंजू को ख़ूब मज़ा आता. सब हम पर लट्टू हैं, हमें तरजीह देते हैं, यह बात मन को गुदगुदाती. भले ही उसमें ज़्यादातर सड़क छाप मजनू होते, पर हमारे लिए यह टाइम पास बड़ा सम्मोहक था.

हमारे जीवन में यूं भी मनोरंजन और आनंद के विकल्प कम थे. पढ़ने लिखने में हम औसत छात्रा थी. परिवार निम्न मध्यमवर्गीय था. पिता की इकलौती कमाई में हम भाई बहन पल रहे थे. जैसे-तैसे पढ़ाई चल रही थी. मां को चूल्हे-चौके से फ़ुर्सत कहां कि अपनी बेटियों के चाल-चलन पर निगाह रखे. बहरहाल, अपनी चाल ढाल और लक्षणों के कारण अंजू के साथ साथ मेरी भी शालीनता खोती जा रही थी, कहें तो ज़माने की निगाहों में बदनाम होती जा रही थी. शायद अब हम पर चालू लड़की का ठप्पा लग गया था.

मुझे आज भी याद है, अगस्त की पांचवी तारीख थी, स्कूल के गलियारे पे तो जैसे हर कोई जल्दी में ही था | हाथ में किताबे और बैग्स लिए बस हर कोई कही ना कही जाना ही चाहता था | बहुत से कमरे और हर एक कमरे कोई ना कोई क्लास चल ही रही थी | चमचमाती हुई कुर्सिया , पूरी तरह से साफ़ सुथरा फर्श , जगह जगह पे डस्टबिन , हम ने एक कमरे में एंट्री की और पीछे पीछे सब घुस गए |

कमरे की छत पर लटका पुराना पंखा अपनी स्पीड से कमरे को ठंडा रक्खे हुए था , चेयर्स और डेस्क उस कमरे को एक क्लास का लुक दे रहे थे | कमरे की दिवार के बराबर ब्लैकबोर्ड बना हुआ था जिसपे चाक से कुछ लिखा भी हुआ था | मैने ध्यान से पढ़ने की कोशिश की " अपना.. साइज बताइये ! " मुझ को कुछ समझ नहीं आया की उसका क्या मतलब हैं |

"रेखा तू यहां आ मेरे पास बैठ " अर्चना ने मुझ को अपने बगल वाले सीट पे बैठा लिया ""अंजू के पीरियड चल रहे थे जिसकी वजह से वो दो तीन से स्कूल नही आ रही थी |"" सबसे आगे जो लड़किया बैठी थी ज्यादातर आँखों में चश्मे लगे हुए थे | देखने से ही पढ़ने वाली लग रही थी | धीरे धीरे बात करने की आवाज पुरे क्लास में गूँज रही थी | इतने में क्लास में एक औरत ने एंट्री की, सारे स्टूडेंट्स एक साथ खड़े हो गए |

ब्लू कलर की साड़ी और उसपे स्लीवलेस ब्लाउज, पूरी तरह से बदन से चिपका हुआ था | लग रहा था जैसे की ये कपडे खासकर उसके लिए ही बनाये गए हो | सुडौल जिस्म , भारी स्तन , ना बहुत ज्यादा पतली और ना ही बहुत ज्यादा मोटी कमर , साड़ी इतनी लोअर पोजीशन में थी की नाभि और उसके निचे पांच अंगुल की जगह साफ़ साफ़ नजर आ रही थी | बाल अच्छी तरह से सीधे किये हुए गर्दन के दायीं तरफ रक्खे हुए थे | औरत ने अपने हाथ से एक कागज मेज पे रक्खा और ब्लैकबोर्ड पे लिखे हुए शब्दों को पढ़ने लगी | पीठ क्लास की तरफ होने की वजह से बैकलेस ब्लाउज , पीठ को अच्छी तरह से दिखा रहा था | मुझ को पता ही नहीं चल रहा था की आखिर ब्लाउज बदन पे टिका कैसे हैं |


"गुड मॉर्निंग मैंम ! " एक स्वर में सबने विश किया |

मै भी सबके साथ ही खड़ी हो गयी और विश किया | उस औरत के चेहरे पर एक अलग ही तेज़ चमक रहा था |

"अर्चना ये कौन हैं ? " मैने बैठते हुए उससे पुछा |

"ये है शीतल जैन , हमारे स्कूल की बायोलॉजी की नई संविदा टीचर , बहुत ही इंटेलीजेंट और साथ ही साथ हसमुख भी बहुत हैं सबसे हसी मजाक करती हैं , इसलिए तो इनकी क्लास में इतनी हाई अटेंडेंस रहती हैं " अर्चना ने बताया !

शीतल जैन की मौजूदगी ने ही क्लास में टेंशन एक लेवल ऊपर कर दिया था |

"किसने लिखा ये ब्लैकबोर्ड पर ? " शीतल ने अपनी गहरी और गंभीर आवाज में क्लास से पूछा | क्लास में पूरी तरह से ख़ामोशी पसरी हुई थी | मैने एक बार फिर से ब्लैकबोर्ड पर लिखे हुए शब्दों को पढ़ा |

"अपना साइज बताइये ! " भला किस साइज की बात हो रही है और यहाँ ब्लैकबोर्ड पे लिखने की क्या जरुरत हैं उसे ? शीतल ने कुछ देर सोचा और फिर चाक से उस लाइन के निचे कुछ लिखने लगी |

"तुम्हारी कल्पना से बाहर !! " शीतल ने जवाब लिखने के बाद क्लास की तरफ देखा।

सवाल हमेशा मुँह पे करना चाहिए , इस तरह छुपकर लिखोगी तो जवाब भी ऐसे ही मिलेगा , सामने से पूछती तो शायद असली साइज बता भी देती !! " शीतल ने अपने होंठो पर स्माइल लाते हुए कहा |
क्लास में हंसी का एक ठहाका गूंजा |
हाहा हाहा हाहा

""बारहवी की क्लास बायोलॉजी विषय हमेशा से किशोर किशोरियों उम्र के लड़के ही नहीं लड़कियों में भी एक सेक्स संबधी उत्सुकता भरा हुआ विषय रहा है, किताब के अंदर के चैप्टर विचार के साथ साथ जिस्म के अंदर होने वाले बदलाव से भरे प्रश्न करते रहते है....... ""

बॉयोलॉजी का एक पेज नंबर बताने के बाद शीतल ने उस टॉपिक पर बोलना शुरू किया
टॉपिक था मेंसुरेशन साइकिल - प्रोसेस एंड एक्टिविटी |

"लड़कियों की माहवारी इंडिया में एक अनछुआ विषय हैं | लोग इस बारे में बात करने से कतराते हैं और इस एक शर्मनाक बॉडी प्रोसेस की तरह ट्रीट किया जाता हैं जबकि बाहर के देशो में इसे अच्छी तरह से एक्सप्लेन किया जाता हैं जब किसी लड़की को पीरियड्स आना स्टार्ट होते हैं !"

शीतल ने ध्यान से पूरे क्लास की तरफ देखा
हाँ अर्चना क्या सवाल हैं तुम्हारा ? " क्लास में एक हाथ ऊपर देख कर शीतल ने पूछा |

"मैंम वो कहते हैं की पीरियड्स स्टार्ट होने के बाद ही लड़की के साथ सेक्स करने पर वो माँ बन सकती हैं क्या ये बात सही हैं ? " अर्चना वापस अपनी सीट पे बैठ गयी |

"बिलकुल सही अर्चना !! जब लड़की के पीरियड्स स्टार्ट होते हैं और उसका गर्भाशय में अंडे का फर्टिलाइजेशन होता हैं तभी वो किसी लड़के के वीर्य का इंतज़ार करती हैं , जैसे बारिश के बाद खेत की मिटटी बहुत ही जयादा उपजाऊ हो जाती हैं और बीज के डाले जाने का इन्तजार करती हैं वैसे ही एक लड़की माहवारी के पहले ही बीज के आने का इंतज़ार करती हैं और अगर उसे निचित टाइम तक लड़के का बीज नहीं मिलता हैं तो उसके गर्भाशय से वो अंडा ब्लीडिंग के द्वारा बाहर निकल जाता हैं | " शीतल ने अर्चना के क्वेश्चन का जवाब दिया |

"हाँ रेखा पूछो !" अबकी बार मैने अपना हाथ उठाया ।

"तो इसका मतलब की अगर किसी लड़की का पीरियड्स अभी नहीं हो रहा हो तो वो किसी भी लड़के से कितना भी सेक्स करे मेरा मतलब शारीरिक सम्बन्ध बनाये , लड़की के गर्भवती होने का कोई डर नहीं होता ? "

मेरा प्रश्न सुनकर क्लास में मौजूद हर कोई हसने लगा | शीतल भी अपनी हंसी नहीं रोक पायी | शीतल को हसते हुए देख कर सारे और भी तेजी से हसने लगे |
हाहा हाहा हाहा हाहा

"हाँ रेखा , ये बिलकुल सही हैं , अगर किसी लड़की का अगर मेंसुरेशन साइकिल स्टार्ट नहीं हुआ हैं और उसकी योनि में वीर्य घुस भी जाता हैं तो वह प्रजनन करने के लिए कही कोई अंडा ही नहीं होगा और वीर्य के शुक्राणु को पहुंचने के लिए कोई जगह ही नहीं मिलेगी | और अगर तुम लोगो की जनरेशन की नयी भाषा में समझाए तो मतलब एक लड़की अपनी पीरियड्स स्टार्ट होने से पहले चाहे जितना या चाहे जितने लड़को से चुदाई करवाएं वो प्रेग्नेंट नहीं होगी " शीतल ने अपनी होंठो की हंसी छुपाते हुए मेरे प्रश्न का उत्तर दिया |

क्लास की लड़किया हाथ से मुँह को छिपाकर हंस रही थी | हर कोई शीतल के इस हलके फुल्के माहौल में पढ़ाई का आनंद ले रहा था सिवाय मुझको छोड़कर |

शीतल के शब्दों के इस्तेमाल को सुनकर मै दंग हो गयी थी | भला एक टीचर कैसे इस तरह से अपने छात्राओ के सामने बोल सकती हैं | "चुदाई" शब्द तो मैने अब तक सिर्फ अंजू दीदी से ही सुना था वो भी आपस में खुशूर फुसुर करते हुए लेकिन यहाँ तो गुरु और शिष्य के बीच ही इस शब्द का इस्तेमाल हो रहा हैं और इतने गंदे शब्द का इस्तेमाल करने के बाद भी जिस तरह से शीतल और क्लास के बच्चे बिलकुल "कूल" दिख रहे थे उससे लग रहा था की ये पहली बार नहीं है |

मेरे चेहरे से उलझन धीरे धीरे हटती जा रही थी और अपनी नयी संविदा टीचर शीतल जैन के चेहरे पर भी इक चुप छिनाल की झलक नजर आती जा रही थी।

स्कूल की छुट्टी हो गयी और हम अपने घरों की ओर चल दिये... स्कूल के बाहर मेरा भाई सुनील अपनी मोटर साइकल पर गुमसुम बैठा हुआ था, और मेरा इंतजार कर रहा था।

उसे देख कर मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई. मुझ में अपने भाई का सामना करने की हिम्मत ना थी।

में खामोशी से अपनी नज़रें झुकाए हुए आई और आ कर भाई के पीछे उस की मोटर साइकल पर बैठ गईl

ज्यों ही भाई ने मुझे अपने पीछे बैठा हुआ महसूस किया उस ने भी मुझे देखे बगैर अपनी मोटर साइकल को स्टार्ट करने के लिए किक लगाई और मुझे ले कर घर चला आया।

रास्ते भर हम दोनों में कोई बात ना हुई और थोड़ी देर में हम अपने घर के दरवाज़े पर पहुँच गये।


ज्यों ही भाई ने घर के बाहर मोटर साइकल रोकी तो में उतर कर घर के दरवाजे खोलने लगी। तो शायद उस वक़्त तक भाई की नज़र मेरी चूड़ियों से खाली हाथों पर पड़ चुकी थी।

"रेखा तुम ने चूड़ियाँ क्यों नहीं पहनी" ???सुनील ने मेरे खाली हाथो की तरफ़ देखते हुए पूछा।

"वो असल में जो चूड़ियाँ मेंने पहनी थीं। वह उस रात धक्के की वज़ह से मेरी कलाई में ही टूट गईं थी तो फिर इस ख़्याल से कि अगले हफ्ते राखी (रक्षाबंधन) है, जब मम्मी के साथ बाजार जाऊंगी तब नई खरीद लूंगी। मेंने बिना उस की तरफ़ देखे उस को जवाब दिया।

"अच्छा रेखा तुम चलो में थोड़ी देर में वापिस आता हूँ" यह कहते हुए सुनील मुझे दरवाज़े पर ही छोड़ कर अपनी मोटर साइकल पर कही चला गया।

में अंदर आई तो देखा कि मम्मी काफ़ी खुश होने की वज़ह से किचिन में गाना गुनगुनाते हुयी गुलाब जामुन तल रहीं थी।

में अपने कमरे में आ कर बैठ गईl

रास्ते में सुनील भैया के साथ पेश आने वाले वाकये की वज़ह से मेरी साँसे अभी तक सम्भल नहीं पाईं थीं।

कुछ ही देर बाद मुझे मोटर साइकल की आवाज़ सुन कर अंदाज़ा हो गया कि भाई घर वापिस आ चुका है।

शाम हो चुकी थी मम्मी और अंजू दुकान पर थी इसलिए में अभी खाना खाने की सोच ही रही थी कि सुनील मेरे कमरे में दाखिल हुआ।

उस के हाथ में एक प्लास्टिक का शॉपिंग बॅग था। जो उस ने मेरे करीब आ कर बेड पर रख दिया और ख़ुद भी मेरे साथ मेरे बिस्तर पर आन बैठा।

अब मुझे भाई के साथ इस तरह एक ही बिस्तर पर बैठने से शरम के साथ-साथ एक उलझन भी होने लगी और इस वज़ह से में भाई के साथ आँख से आँख नहीं मिला पा रही थी।

कमरे में एक पूर सरार खामोशी थी और ऐसा लग रहा था कि वक़्त जैसे थम-सा गया हो।

जब भाई ने देखा कि में अपने पहलू में रखे हुए शॉपिंग बॅग की तरह ना तो नज़र उठा कर देख रही हूँ और ना ही उस के बारे में कुछ पूछ रही हूँ।

तो थोड़ी देर बाद भाई ने वह मेरे पास से वह बैग उठाया और वह ही चूड़ियाँ जो कि उस रात मेरी कलाई में टूट गयी थी।वो बैग से निकाल कर मेरी गोद में रख दीं और बोला" रेखा में तेरी चूड़ियाँ दुबारा ले आया हूँ"

मेंने उस की बात सुन कर अपनी नज़रें उठा और पहले अपनी गोद में रखी हुई चूड़ियों की तरफ़ और फिर भाई की तरफ़ देखा और बोली "रहने देते तुम ने क्यों तकलीफ़ की"

"तकलीफ़ की क्या बात है रेखा, तुझ को यह ही चूड़ियाँ पसंद थीं सो में ले आया" भाई ने मेरी बात का जवाब दिया।

भाई की बात और लहजे से यह अहसास हो रहा था।कि वह उस रात वाली बात को नज़र अंदाज़ कर के एक अच्छे भाई की तरह मेरा ख़्याल रख रहा है। अपने भाई का यह रवईया देख कर मेरी हालत भी नॉर्मल होने लगी ।

"अच्छा देर काफ़ी हो चुकी है इसलिए तुम दुकान पर जाओ मै सुबह चूड़ीयाँ मम्मी से पहन लूँगी।" मेंने भाई की लाई हुई चूड़ियों को बेड की साइड टेबल पर रखते हुए कहा।

"ला मै तेरे हाथों में चूड़ीयाँ पहना देता हूँ"" । इससे पहले कि में उस को रोक पाती। सुनील ने एक दम मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और टेबल पर पड़ी चूड़ीयाँ को मेरे हाथ में पहनाने लगा।

मुझे ज्यों ही अपनी इस बदलती हुई हालत का अहसास हुआ । तो मेंने भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कॉसिश की।

"रहने दो भाई में सुबह मम्मी से चूड़ीयाँ पहन लूँगी"

""जिस तरह शादी के कुछ टाइम बाद एक हज़्बेंड को अपनी वाइफ के जिस्म के नसीबो फर्ज़ (उतार चढ़ाव) का अंदाज़ा हो जाता है।""

बिल्कुल इसी तरह अपनी बेहन को उस रात के बाद से सुनील को भी ब खूबी अंदाज़ा हो चुका था। कि रेखा के जिस्म के वह कौन से तार हैं जिन को छेड़ने पर उस का बदन गरम होने लगता है।

माफी चाहूंगा

आपकी कहानी में अब मुझे चुदाई कम लिखाई ज्यादा दिख रही है.....

कृपया ध्यान दें......
 
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