Ashish Vidyarthi
Mentalist
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Mahendra singh par sandeh gehra rha hअध्याय - 157
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"होने को तो कुछ भी हो सकता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन हमें यकीन है कि वो ऐसी गिरी हुई हरकत करने का नहीं सोच सकते। बाकी जिसकी किस्मत में जो लिखा है वो तो हो के ही रहेगा।"
थोड़ी देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद सुगंधा देवी उठ कर कमरे से बाहर चली गईं। इधर दादा ठाकुर पलंग पर अधलेटी अवस्था में बैठे ख़ामोशी से जाने क्या सोचने लगे थे।
अब आगे....
वक्त हमेशा की तरह अपनी रफ़्तार से चलता रहा। दिन इसी तरह गुज़रने लगे। दो दिन बाद पिता जी चंदनपुर गए और वहां पर वो ख़ास तौर पर रागिनी भाभी से मिले। हालाकि वीरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को बता दिया था लेकिन इसके बावजूद पिता जी जब चंदनपुर गए तो वो खुद भी भाभी से मिले। हर कोई हैरान था और ये सोच कर खुश भी था कि इतने बड़े इंसान होने के बाद भी वो ग़लत होने पर किसी के सामने झुकने पर झिझक नहीं करते हैं और ना ही माफ़ी मांगने में शर्म महसूस करते हैं।
रागिनी भाभी के लिए वो पल बहुत ही अद्भुत और बहुत ही ज़्यादा संवेदनशील बन गया था जब पिता जी उनके सामने अपनी बात कहते हुए उनसे माफ़ी मांग रहे थे। भाभी ये सब सहन न कर सकीं थी और ये सोच कर रो पड़ीं थी कि उसके ससुर उससे माफ़ी मांगने इतनी दूर उसके पास आए थे। इतना तो वो पहले से ही जानतीं थी कि उनके सास ससुर कितने अच्छे थे और कितने महान थे लेकिन अपनी बहू की खुशियों का ख़याल वो इस हद तक भी करेंगे इसका आभास आज हुआ था उन्हें। ऐसी महान शख्सियत को अपने से माफ़ी मांगते देख वो अंदर तक हिल गईं थी और साथ ही बुरी तरह तड़प उठीं थी। उनकी छोटी बहन कामिनी उनके साथ ही थी इस लिए उन्होंने उससे कहलवाया कि वो ऐसा न करें। उसकी नज़र में उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया है, बल्कि ये उनका सौभाग्य है कि उन्हें उनके जैसे पिता ससुर के रूप में मिले हैं जो उनकी खुशियों का इतना ख़याल रखते हैं।
बहरहाल, इस सबके बाद वहां पर ये चर्चा शुरू हुई कि जल्द ही विवाह करने के लिए पुरोहित जी से शुभ मुहूर्त की लग्न बनवाई जाए और फिर ये विवाह संपन्न किया जाए। सारा दिन पिता जी वहीं पर रुके रहे और इसी संबंध में बातें करते रहे उसके बाद वो शाम को वापस रुद्रपुर आ गए।
हवेली में उन्होंने मां को सब कुछ बताया और फिर जल्दी ही पुरोहित जी से मिलने की बात कही। मां इस सबसे बहुत खुश थीं। हवेली में एक बार फिर से खुशियों की झलक दिखने लगी थी। हर किसी के चेहरे पर एक अलग ही चमक दिखने लगी थी।
मुझे भी मां से सब कुछ पता चल चुका था। मैं समझ चुका था कि अब भाभी के साथ मेरा विवाह होना बिल्कुल तय हो चुका है। इस बात के एहसास से मेरे अंदर एक अलग ही एहसास जागने लगे थे। मैं अब भाभी को एक पत्नी की नज़र से सोचने लगा था। ये अलग बात है कि उनको पत्नी के रूप में सोचने से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होता था। मैं सोचने पर मज़बूर हो जाता था कि उस समय क्या होगा जब भाभी को मैं विवाह के पश्चात अपनी पत्नी बना कर हवेली ले आऊंगा? आख़िर कैसे मैं एक पति के रूप में उनसे इस रिश्ते को आगे बढ़ा पाऊंगा? क्या भाभी मेरी पत्नी बनने के बाद मेरे साथ जीवन का सफ़र सहजता से आगे बढ़ा सकेंगी? क्या मैं पूर्ण रूप से उनके साथ वो सब कर पाऊंगा जो एक पति पत्नी के बीच होता है और जिससे एक नई पीढ़ी का जन्म होता है?
ये सारे सवाल ऐसे थे जिनके सोचने से बड़ी अजीब सी अनुभूति होने लगी थी। सीने में मौजूद दिल की धड़कनें घबराहट के चलते एकाएक धाड़ धाड़ कर के बजने लगतीं थी।
वहीं दूसरी तरफ, मैं रूपा के बारे में भी सोचने लगता था लेकिन उसके बारे में मुझे इस तरह की असहजता अथवा इस तरह की घबराहट नहीं महसूस होती थी क्योंकि उसके साथ मैं वो सब पहले भी कई बार कर चुका था जो विवाह के बाद पति पत्नी के बीच होता है। लेकिन हां अब उसके प्रति मेरे दिल में प्रेम ज़रूर पैदा हो चुका था जिसके चलते अब मैं उसे एक अलग ही नज़र से देखने लगा था। उसके प्रति भी मेरे दिल में वैसा ही आदर सम्मान था जैसा भाभी के प्रति था।
ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। विद्यालय और अस्पताल का निर्माण कार्य अब लगभग अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया था। रूपचंद्र कुछ दिनों से कम ही आता था क्योंकि उसके घर में विवाह की तैयारियां जोरों से चल रहीं थी। अतः यहां की देख रेख अब मैं ही कर रहा था। पिता जी भी अपनी तरफ से गौरी शंकर की यथोचित सहायता कर रहे थे।
आख़िर वो दिन आ ही गया जब रूपचंद्र के घर बरात आई और मणि शंकर की बेटियों का विवाह हुआ। इस विवाह में हवेली से पिता जी मुंशी किशोरी लाल के साथ तो गए ही किंतु साथ में मां, मेनका चाची, निर्मला काकी, कुसुम और कजरी भी गईं। थोड़े समय के लिए मैं भी गया लेकिन फिर मैं वापस आ गया था।
साहूकार मणि शंकर की बेटियों का बहुत ही विधिवत तरीके से विवाह संपन्न हुआ। नात रिश्तेदार तो भारी संख्या में थे ही किंतु आस पास के गांवों के उसके जानने वाले भी थे। महेंद्र सिंह और अर्जुन सिंह भी आए हुए थे। सुबह दोनों बेटियों की विदाई हुई। बेटियों ने अपने करुण रुदन से सबकी आंखें छलका दी थी। बहरहाल विवाह संपन्न हुआ और धीरे धीरे सब लोग अपने अपने घरों को लौट गए।
एक दिन महेंद्र सिंह हवेली में आए और पिता जी से बोले कि वो मेनका चाची से रिश्ते की बात करने आए हैं। इत्तेफ़ाक से मैं भी उस वक्त बैठक में ही था। मुझे महेंद्र सिंह से रिश्ते की बात सुन कर थोड़ी हैरानी हुई। उधर पिता जी ने मुझसे कहा कि मैं अंदर जा कर मेनका चाची को बैठक में ले कर आऊं। उनके हुकुम पर मैंने ऐसा ही किया। मेनका चाची को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर बात क्या है?
चाची जब बैठक में आईं तो उन्होंने सिर पर घूंघट कर लिया था। बैठक में पिता जी और किशोरी लाल के साथ महेंद्र सिंह को बैठा देख उनके चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए।
"हमारे मित्र महेंद्र सिंह जी तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं बहू।" पिता जी ने मेनका चाची से मुखातिब हो कर सामान्य भाव से कहा____"हम चाहते हैं कि तुम इत्मीनान से इनकी बातें सुन लो। उसके बाद तुम्हें जो ठीक लगे जवाब दे देना।"
मेनका चाची पिता जी की ये बात सुन कर मुख से तो कुछ न बोलीं लेकिन कुछ पलों तक उन्हें देखने के बाद महेंद्र सिंह की तरफ देखने लगीं। महेंद्र सिंह समझ गए कि वो उन्हें इस लिए देखने लगीं हैं क्योंकि वो जानना चाहती हैं कि वो उनसे क्या कहना चाहते हैं?
"वैसे तो हमने ठाकुर साहब से अपनी बात कह दी थी।" महेंद्र सिंह ने जैसे भूमिका बनाते हुए कहा____"लेकिन ठाकुर साहब का कहना था कि इस बारे में हम आपसे भी बात करें। इस लिए आज हम आपसे ही बात करने आए हैं।"
महेंद्र सिंह की इस बात से चाची चुप ही रहीं। उनके चेहरे पर उत्सुकता के भाव नुमायां हो रहे थे। उधर महेंद्र सिंह कुछ पलों तक शांत रहे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो अपनी बात कहने के लिए खुद को अच्छे से तैयार कर रहे हों।
"असल में हम आपके पास एक प्रस्ताव ले कर आए हैं।" फिर उन्होंने चाची की तरफ देखते हुए कहा____"हम अपने बेटे राघवेंद्र के लिए आपसे आपकी बेटी कुसुम का हाथ मांगने आए हैं। हमारी दिली ख़्वाईश है कि हम ठाकुर साहब से अपनी मित्रता को रिश्तेदारी के अटूट एवं हसीन बंधन में बदल लें। क्या आपको हमारा ये प्रस्ताव स्वीकार है मझली ठकुराईन?"
मेनका चाची तो चौंकी ही लेकिन मैं भी हैरानी से महेंद्र सिंह की तरफ देखने लगा था। उधर पिता जी चुपचाप अपने सिंहासन पर बैठे थे। बैठक में एकदम से सन्नाटा सा छा गया था।
"आप चुप क्यों हैं ठकुराईन?" चाची को कुछ न बोलते देख महेंद्र सिंह ने व्याकुलता से कहा____"हम आपसे जवाब की उम्मीद किए बैठे हैं। एक बात और, आपको इस बारे में किसी भी तरह का संकोच करने की ज़रूरत नहीं है। यकीन मानिए हमें आपके द्वारा हमारे प्रस्ताव को ठुकरा देने पर बिल्कुल भी बुरा नहीं लगेगा।"
"मैं चुप इस लिए हूं क्योंकि मैं ये सोच कर चकित हूं कि इस बारे में आपने मुझसे बात करना क्यों ज़रूरी समझा?" मेनका चाची कहने साथ ही पिता जी से मुखातिब हुईं____"जेठ जी, क्या अभी भी आपने मुझे माफ़ नहीं किया है? क्या सच में आपने मुझे पराया समझ लिया है और इस लिए आप मेरे और मेरी बेटी के बारे में खुद कोई फ़ैसला नहीं करना चाहते हैं?"
"तुम ग़लत समझ रही हो बहू।" पिता जी ने कहा____"हमने किसी को भी पराया नहीं समझा है बल्कि अभी भी हम सबको अपना ही समझते हैं। रही बात किसी का फ़ैसला करने की तो बात ये है कि हम नहीं चाहते कि हमारे किसी फ़ैसले से बाद में किसी को कोई आपत्ति हो जाए अथवा कोई नाखुश हो जाए। कुसुम तुम्हारी बेटी है इस लिए उसके जीवन का फ़ैसला करने का हक़ सिर्फ तुम्हें है। अगर हमारा भाई जगताप ज़िंदा होता तो शायद हमें इस बारे में कोई फ़ैसला करने में संकोच नहीं होता।"
मेनका चाची कुछ देर तक पिता जी को देखती रहीं। घूंघट किए होने से नज़र तो नहीं आ रहा था लेकिन ये समझा जा सकता था कि पिता जी की बातों से उन्हें तकलीफ़ हुई थी।
"ठीक है, अगर आप इसी तरह से सज़ा देना चाहते हैं तो मुझे भी आपकी सज़ा मंजूर है जेठ जी।" कहने के साथ ही चाची महेंद्र सिंह से बोलीं____"आप इस बारे में मुझसे जवाब सुनने चाहते हैं ना तो सुनिए, मैं आपके इस प्रस्ताव को ना ही स्वीकार करती हूं और ना ही ठुकराती हूं। अगर आप सच में अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलना चाहते हैं तो इस बारे में जेठ जी से ही बात कीजिए। मुझे कुछ नहीं कहना अब।"
कहने के साथ ही मेनका चाची पलटीं और बिना किसी की कोई बात सुने बैठक से चलीं गई। हम सब भौचक्के से बैठे रह गए। किसी को समझ ही नहीं आया कि ये क्या था?
"माफ़ करना मित्र।" ख़ामोशी को चीरते हुए पिता जी ने कहा____"आपको ऐसी अजीब स्थिति में फंस जाना पड़ा।"
"हम समझ सकते हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"सच कहें तो हमें मझली ठकुराईन से इसी तरह के जवाब की उम्मीद थी। उनकी बातों से स्पष्ट हो चुका है कि वो क्या चाहती हैं। यानि वो चाहती हैं कि इस बारे में आप ही फ़ैसला करें।"
"हमारी स्थिति से आप अच्छी तरह वाक़िफ हैं मित्र।" पिता जी ने कहा____"समझ ही सकते हैं कि इस बारे में कोई भी फ़ैसला करना हमारे लिए कितना मुश्किल है।"
"बिल्कुल समझते हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"लेकिन ये भी समझते हैं कि आपको किसी न किसी नतीजे पर तो पहुंचना ही पड़ेगा। हम इस वक्त आपको किसी परेशानी में डालना उचित नहीं समझते हैं इस लिए आप थोड़ा समय लीजिए और सोचिए कि वास्तव में आपको क्या करना चाहिए? हम फिर किसी दिन आपसे मुलाक़ात करने आ जाएंगे। अच्छा अब हमें जाने की इजाज़त दीजिए।"
पिता जी ने भारी मन सिर हिलाया और उठ कर खड़े हो गए। महेंद्र सिंह कुछ ही देर में अपनी जीप में बैठ कर चले गए। इधर मैंने महसूस किया कि मामला थोड़ा गंभीर और संजीदा सा हो गया है। मैं इस बात से भी थोड़ा हैरान था कि महेंद्र सिंह के सामने चाची ने ऐसी बातें क्यों की? क्या उन्हें इस बात का बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि उनकी ऐसी बातों से महेंद्र सिंह के मन में क्या संदेश गया होगा?
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अंदर मेनका चाची मां के पास बैठी सिसक रहीं थी। मां को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते मेनका चाची यूं अचानक से सिसकने लगीं हैं। इतना तो वो भी जानती थीं कि मैं उन्हें ले कर बैठक में गया था लेकिन बैठक में क्या हुआ ये उन्हें पता नहीं था।
"अब कुछ बताओगी भी कि हुआ क्या है?" मां ने चाची से पूछा____"तुम तो वैभव के साथ बैठक में गई थी ना?"
"मैं तो समझी थी कि आपने और जेठ जी ने मुझे माफ़ कर दिया है।" मेनका चाची ने दुखी भाव से कहा____"लेकिन सच तो यही है कि आप दोनों ने मुझे अभी भी माफ़ नहीं किया है।"
"ये क्या कह रही हो तुम?" मां के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे____"भला ऐसा कैसे कह सकती हो तुम कि हमने तुम्हें माफ़ नहीं किया है?"
"अगर आप दोनों ने सच में मुझे माफ़ कर दिया होता।" चाची ने कहा____"तो आज जेठ जी मुझसे ऐसी बातें नहीं कहते। वो मुझे और मेरी बेटी को पराया समझने लगे हैं दीदी।"
"तुम होश में तो हो?" मां हैरत से आंखें फैला कर जैसे चीख ही पड़ीं____"ये कैसी ऊटपटांग बातें कर रही हो तुम? तुम्हारे जेठ जी ने भला ऐसा क्या कह दिया है तुमसे जिससे तुम ऐसा समझ रही हो?"
"आपको पता है बैठक में मुझे किस लिए बुलाया गया था?" चाची ने पूर्व की भांति ही दुखी लहजे में कहा____"असल में वहां पर महेंद्र सिंह जी बैठे हुए थे जो अपने बेटे का विवाह प्रस्ताव ले कर आए थे। शायद उन्होंने पहले जेठ जी से इस बारे में बता की थी लेकिन जेठ जी ने ये कह दिया रहा होगा कि वो इस बारे में कोई फ़ैसला नहीं करेंगे बल्कि मैं करूंगी। यानि उनके कहने का मतलब ये है कि वो मेरी बेटी के बारे में कोई फ़ैसला नहीं कर सकते।"
"हां तो इसमें क्या हो गया?" मां ने कहा____"कुसुम तुम्हारी बेटी है तो उसके बारे में कोई भी फ़ैसला करने का हक़ सबसे पहले तुम्हारा ही है। क्या तुम सिर्फ इतनी सी बात पर ये समझ बैठी हो कि हमने तुम्हें माफ़ नहीं किया है?"
"आज से पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ न दीदी कि जेठ जी ने किसी के बारे में कोई फ़ैसला खुद से न किया रहा हो।" मेनका चाची ने कहा____"फिर अब क्यों वो मेरी बेटी का फ़ैसला खुद नहीं कर सकते? क्यों उन्होंने ये कहा कि कुसुम मेरी बेटी है तो उसके बारे में मुझे ही फ़ैसला करना होगा? अभी तक तो मुझसे ज़्यादा आप दोनों ही मेरे बच्चों को अपना समझते रहे हैं, फिर अब क्यों ये ज़ाहिर कर रहे हैं कि आप दोनों का उन पर कोई हक़ नहीं है?"
"तुम बेवजह ये सब सोच कर खुद को हल्कान कर रही हो मेनका।" मां ने कहा____"हमने ना पहले तुम में से किसी को ग़ैर समझा था और ना ही अब समझते हैं। रही बात कुसुम के बारे में निर्णय लेने की तो ये सच है कि तुम उसकी मां हो इस लिए तुमसे पूछना और तुम्हारी राय लेना हर तरह से उचित है। अगर तुम्हारे जेठ जी ऐसा कुछ कह भी दिए हैं तो तुम्हें इस बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए।"
मां की बात सुन कर मेनका चाची नम आंखों से अपलक उन्हें देखती रहीं। उनके चेहरे पर पीड़ा के भाव थे। रोने से उनकी आंखें हल्का सुर्ख हो गईं थी।
"देखो मेनका सच हमेशा सच ही होता है।" मां ने फिर से कहा____"उसे किसी भी तरह से झुठलाया नहीं जा सकता। माना कि हम तुम्हारे बच्चों को हमेशा तुमसे कहीं ज़्यादा प्यार और स्नेह देते आए हैं लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं हो जाएगा कि वो तुम्हारे नहीं बल्कि असल में हमारे बच्चे कहलाएंगे। तुमने उन्हें जन्म दिया है तो वो हर सूरत में तुम्हारे बच्चे ही कहलाएंगे। भविष्य में कभी भी अगर उनके बारे में कोई बात आएगी तो सबसे पहले तुमसे भी तुम्हारी राय अथवा इच्छा पूछी जाएगी, क्योंकि मां होने के नाते ये तुम्हारा हक़ भी है और हर तरह से जायज़ भी है। इस लिए तुम बेवजह ये सब सोच कर खुद को दुखी मत करो।"
"हे भगवान!" मेनका चाची को एकदम से जैसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ____"इसका मतलब मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई है। मैंने अपनी नासमझी में जेठ जी पर आरोप लगा दिया और ना जाने क्या कुछ कह दिया। कितनी बुरी हूं मैं, मैंने अपने देवता समान जेठ जी को फिर से दुख पहुंचा दिया।"
"शांत हो जाओ।" मां ने उन्हें सम्हालते हुए कहा____"तुमने अंजाने में भूल की है इस लिए मैं तुम्हें दोषी नहीं मानती।"
"नहीं दीदी।" मेनका चाची ने झट से उठ कर कहा____"मुझसे ग़लती हुई है और मैं अभी जा कर जेठ जी से अपनी ग़लती की माफ़ी मांगूंगी।"
इससे पहले कि मां कुछ कहतीं मेनका चाची पलट कर तेज़ी से बाहर बैठक की तरफ बढ़ चलीं। कुछ ही देर में वो बैठक में दाख़िल हुईं। मैं पिता जी और किशोरी लाल अभी भी वहीं सोचो में गुम बैठे हुए थे। चाची को फिर से आया देख हम सबकी तंद्रा टूटी।
"मुझे माफ़ कर दीजिए जेठ जी।" उधर चाची ने घुटनों के बल बैठ कर पिता जी से कहा____"मैंने आपकी बातों को ग़लत समझ लिया था। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ था जैसे आपने मुझे अभी तक माफ़ नहीं किया है और मेरे साथ साथ मेरे बच्चों को भी पराया समझ लिया है। कृपया मेरी नासमझी और मेरी भूल के लिए माफ़ कर दीजिए मुझे।"
"कोई बात नहीं बहू।" पिता जी ने थोड़ी गंभीरता से कहा____"हम समझ सकते हैं कि तुमसे अंजाने में ये ग़लती हुई है। ख़ैर हम तो सिर्फ यही चाहते थे कि अपनी बेटी के संबंध में तुम्हें जो सही लगे उस बारे में अपनी राय हमारे सामने ज़ाहिर कर दो।"
"मेरी राय आपकी राय से जुदा नहीं हो सकती जेठ जी।" मेनका चाची ने कहा____"कुसुम को मुझसे ज़्यादा आपने अपनी बेटी माना है इस लिए उसके बारे में आप जो भी फ़ैसला लेंगे मुझे वो स्वीकार ही होगा।"
"ठीक है।" पिता जी ने कहा____"अगर तुम्हें महेंद्र सिंह जी का ये विवाह प्रस्ताव स्वीकार है तो हम उन्हें इस बारे में बता देंगे। ख़ैर अब तुम जाओ।"
मेनका चाची वापस चली गईं। इधर मैं काफी देर से इस संबंध के बारे में सोचे जा रहा था। मुझे पहली बार एहसास हुआ था कि मेरी लाडली बहन सच में अब बड़ी हो गई है, तभी तो उसके विवाह के संबंध में इस तरह की बातें होने लगीं हैं।
महेंद्र सिंह के बेटे राघवेंद्र सिंह को मैं अच्छी तरह जानता था। अपने माता पिता की वो भले ही इकलौती औलाद था लेकिन उसके माता पिता ने लाड़ प्यार दे कर बिगाड़ा नहीं था। महेंद्र सिंह वैसे भी थोड़ा सख़्त मिज़ाज इंसान हैं। ज्ञानेंद्र सिंह भी अपने बड़े भाई की तरह ही सख़्त मिज़ाज हैं। ज़ाहिर हैं ऐसे में राघवेंद्र का ग़लत रास्ते में जाना संभव ही नहीं था। कई बार मेरी उससे भेंट हुई थी और मैंने यही अनुभव किया था कि वो एक अच्छा लड़का है। कुसुम का उसके साथ अगर विवाह होगा तो यकीनन ये अच्छा ही होगा। वैसे भी महेंद्र सिंह का खानदान आज के समय में काफी संपन्न है और बड़े बड़े लोगों के बीच उनका उठना बैठना भी है।
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रागिनी आज कल थोड़ा खुश नज़र आने लगी थी। इसके पहले जहां वो उदास और गंभीर रहा करती थी वहीं अब उसका चेहरा खिला खिला रहने लगा था। उसके चेहरे की चमक देख घर का हर सदस्य भी खुश था और साथ ही ये समझ चुका था कि अब वो अपने देवर को यानि वैभव को एक पति के रिश्ते से सोचने लगी है।
रागिनी की भाभी वंदना अपनी ननद को यूं खुश देख खुद भी खुश थी और अब कुछ ज़्यादा ही उसे छेड़ने लगी थी। अपनी भाभी के द्वारा इस तरह से छेड़े जाने से रागिनी शर्म से पानी पानी हो जाती थी। उसका ऐसा हाल तब भी नहीं हुआ करता था जब उसका अभिनव से पहली बार विवाह होना था। उसके इस तरह अत्यधिक शर्माने की वजह शायद ये हो सकती थी कि अब जिसके साथ उसका विवाह हो रहा था वो अब से पहले उसका देवर था और अब पति बनने वाला था। दो तरह के रिश्तों का एहसास उसे कुछ ज़्यादा ही शर्माने पर मज़बूर कर देता था।
दूसरी तरफ उसकी छोटी बहन कामिनी भी अपनी बड़ी बहन के लिए खुश थी। आज कल उसके मन में बहुत कुछ चलने लगा था। उसमें अजब सा परिवर्तन आ गया था। पहले वो जब भी वैभव के बारे में सोचती थी तो उसके मन में वैभव के प्रति गुस्सा और नफ़रत जैसे भाव उभर आते थे लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया था। वैभव का इस तरह से बदल जाना उसे हैरान तो करता ही था किंतु वो इस बात से खुश भी थी कि अब वो एक अच्छा इंसान बन गया है। इस वजह से वो उसकी बड़ी बहन से एक सभ्य इंसानों की तरह बर्ताव करेगा और उसकी खुशियों का ख़याल भी रखेगा। एक समय था जब उसके घर वाले उसका विवाह वैभव से करने की चर्चा किया करते थे। जब उसे इस बात का पता चला था तो उसने अपनी मां से स्पष्ट शब्दों में बोल दिया था कि वो वैभव जैसे चरित्रहीन लड़के से किसी कीमत पर विवाह नहीं करेगी। उसकी इस बात से फिर कभी उसके घर वालों ने वैभव के साथ उसका विवाह करने का ज़िक्र नहीं किया था। बहरहाल समय गुज़रा और अब वो उसी वैभव के बदले स्वभाव से खुश और संतुष्ट सी हो गई थी। यही वजह थी कि दोनों बार जब वैभव उसके घर आया था तो उसने खुद जा कर वैभव से बातें की थी। वो खुद परखना चाहती थी कि क्या वैभव सच में एक अच्छा इंसान बन गया है?
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Or ye bhi lg rha h ki menka chachi syd sach me uska mohra ban skti hain
aage aap jano
Baki gaurishankar ka sujhav badhiya h isme unka nishchal prem dikhai deta hai
Khair jald hi teeno parivaro me khushiyon ki shehnaaiyan bajne ki aasha hai
Dekhte h kya hota h
Pratiksha agle bhag ki