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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

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What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

Ashish Vidyarthi

Mentalist
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अध्याय - 157
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


"होने को तो कुछ भी हो सकता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन हमें यकीन है कि वो ऐसी गिरी हुई हरकत करने का नहीं सोच सकते। बाकी जिसकी किस्मत में जो लिखा है वो तो हो के ही रहेगा।"

थोड़ी देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद सुगंधा देवी उठ कर कमरे से बाहर चली गईं। इधर दादा ठाकुर पलंग पर अधलेटी अवस्था में बैठे ख़ामोशी से जाने क्या सोचने लगे थे।



अब आगे....


वक्त हमेशा की तरह अपनी रफ़्तार से चलता रहा। दिन इसी तरह गुज़रने लगे। दो दिन बाद पिता जी चंदनपुर गए और वहां पर वो ख़ास तौर पर रागिनी भाभी से मिले। हालाकि वीरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को बता दिया था लेकिन इसके बावजूद पिता जी जब चंदनपुर गए तो वो खुद भी भाभी से मिले। हर कोई हैरान था और ये सोच कर खुश भी था कि इतने बड़े इंसान होने के बाद भी वो ग़लत होने पर किसी के सामने झुकने पर झिझक नहीं करते हैं और ना ही माफ़ी मांगने में शर्म महसूस करते हैं।

रागिनी भाभी के लिए वो पल बहुत ही अद्भुत और बहुत ही ज़्यादा संवेदनशील बन गया था जब पिता जी उनके सामने अपनी बात कहते हुए उनसे माफ़ी मांग रहे थे। भाभी ये सब सहन न कर सकीं थी और ये सोच कर रो पड़ीं थी कि उसके ससुर उससे माफ़ी मांगने इतनी दूर उसके पास आए थे। इतना तो वो पहले से ही जानतीं थी कि उनके सास ससुर कितने अच्छे थे और कितने महान थे लेकिन अपनी बहू की खुशियों का ख़याल वो इस हद तक भी करेंगे इसका आभास आज हुआ था उन्हें। ऐसी महान शख्सियत को अपने से माफ़ी मांगते देख वो अंदर तक हिल गईं थी और साथ ही बुरी तरह तड़प उठीं थी। उनकी छोटी बहन कामिनी उनके साथ ही थी इस लिए उन्होंने उससे कहलवाया कि वो ऐसा न करें। उसकी नज़र में उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया है, बल्कि ये उनका सौभाग्य है कि उन्हें उनके जैसे पिता ससुर के रूप में मिले हैं जो उनकी खुशियों का इतना ख़याल रखते हैं।

बहरहाल, इस सबके बाद वहां पर ये चर्चा शुरू हुई कि जल्द ही विवाह करने के लिए पुरोहित जी से शुभ मुहूर्त की लग्न बनवाई जाए और फिर ये विवाह संपन्न किया जाए। सारा दिन पिता जी वहीं पर रुके रहे और इसी संबंध में बातें करते रहे उसके बाद वो शाम को वापस रुद्रपुर आ गए।

हवेली में उन्होंने मां को सब कुछ बताया और फिर जल्दी ही पुरोहित जी से मिलने की बात कही। मां इस सबसे बहुत खुश थीं। हवेली में एक बार फिर से खुशियों की झलक दिखने लगी थी। हर किसी के चेहरे पर एक अलग ही चमक दिखने लगी थी।

मुझे भी मां से सब कुछ पता चल चुका था। मैं समझ चुका था कि अब भाभी के साथ मेरा विवाह होना बिल्कुल तय हो चुका है। इस बात के एहसास से मेरे अंदर एक अलग ही एहसास जागने लगे थे। मैं अब भाभी को एक पत्नी की नज़र से सोचने लगा था। ये अलग बात है कि उनको पत्नी के रूप में सोचने से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होता था। मैं सोचने पर मज़बूर हो जाता था कि उस समय क्या होगा जब भाभी को मैं विवाह के पश्चात अपनी पत्नी बना कर हवेली ले आऊंगा? आख़िर कैसे मैं एक पति के रूप में उनसे इस रिश्ते को आगे बढ़ा पाऊंगा? क्या भाभी मेरी पत्नी बनने के बाद मेरे साथ जीवन का सफ़र सहजता से आगे बढ़ा सकेंगी? क्या मैं पूर्ण रूप से उनके साथ वो सब कर पाऊंगा जो एक पति पत्नी के बीच होता है और जिससे एक नई पीढ़ी का जन्म होता है?

ये सारे सवाल ऐसे थे जिनके सोचने से बड़ी अजीब सी अनुभूति होने लगी थी। सीने में मौजूद दिल की धड़कनें घबराहट के चलते एकाएक धाड़ धाड़ कर के बजने लगतीं थी।

वहीं दूसरी तरफ, मैं रूपा के बारे में भी सोचने लगता था लेकिन उसके बारे में मुझे इस तरह की असहजता अथवा इस तरह की घबराहट नहीं महसूस होती थी क्योंकि उसके साथ मैं वो सब पहले भी कई बार कर चुका था जो विवाह के बाद पति पत्नी के बीच होता है। लेकिन हां अब उसके प्रति मेरे दिल में प्रेम ज़रूर पैदा हो चुका था जिसके चलते अब मैं उसे एक अलग ही नज़र से देखने लगा था। उसके प्रति भी मेरे दिल में वैसा ही आदर सम्मान था जैसा भाभी के प्रति था।

ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। विद्यालय और अस्पताल का निर्माण कार्य अब लगभग अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया था। रूपचंद्र कुछ दिनों से कम ही आता था क्योंकि उसके घर में विवाह की तैयारियां जोरों से चल रहीं थी। अतः यहां की देख रेख अब मैं ही कर रहा था। पिता जी भी अपनी तरफ से गौरी शंकर की यथोचित सहायता कर रहे थे।

आख़िर वो दिन आ ही गया जब रूपचंद्र के घर बरात आई और मणि शंकर की बेटियों का विवाह हुआ। इस विवाह में हवेली से पिता जी मुंशी किशोरी लाल के साथ तो गए ही किंतु साथ में मां, मेनका चाची, निर्मला काकी, कुसुम और कजरी भी गईं। थोड़े समय के लिए मैं भी गया लेकिन फिर मैं वापस आ गया था।

साहूकार मणि शंकर की बेटियों का बहुत ही विधिवत तरीके से विवाह संपन्न हुआ। नात रिश्तेदार तो भारी संख्या में थे ही किंतु आस पास के गांवों के उसके जानने वाले भी थे। महेंद्र सिंह और अर्जुन सिंह भी आए हुए थे। सुबह दोनों बेटियों की विदाई हुई। बेटियों ने अपने करुण रुदन से सबकी आंखें छलका दी थी। बहरहाल विवाह संपन्न हुआ और धीरे धीरे सब लोग अपने अपने घरों को लौट गए।

एक दिन महेंद्र सिंह हवेली में आए और पिता जी से बोले कि वो मेनका चाची से रिश्ते की बात करने आए हैं। इत्तेफ़ाक से मैं भी उस वक्त बैठक में ही था। मुझे महेंद्र सिंह से रिश्ते की बात सुन कर थोड़ी हैरानी हुई। उधर पिता जी ने मुझसे कहा कि मैं अंदर जा कर मेनका चाची को बैठक में ले कर आऊं। उनके हुकुम पर मैंने ऐसा ही किया। मेनका चाची को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर बात क्या है?

चाची जब बैठक में आईं तो उन्होंने सिर पर घूंघट कर लिया था। बैठक में पिता जी और किशोरी लाल के साथ महेंद्र सिंह को बैठा देख उनके चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए।

"हमारे मित्र महेंद्र सिंह जी तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं बहू।" पिता जी ने मेनका चाची से मुखातिब हो कर सामान्य भाव से कहा____"हम चाहते हैं कि तुम इत्मीनान से इनकी बातें सुन लो। उसके बाद तुम्हें जो ठीक लगे जवाब दे देना।"

मेनका चाची पिता जी की ये बात सुन कर मुख से तो कुछ न बोलीं लेकिन कुछ पलों तक उन्हें देखने के बाद महेंद्र सिंह की तरफ देखने लगीं। महेंद्र सिंह समझ गए कि वो उन्हें इस लिए देखने लगीं हैं क्योंकि वो जानना चाहती हैं कि वो उनसे क्या कहना चाहते हैं?

"वैसे तो हमने ठाकुर साहब से अपनी बात कह दी थी।" महेंद्र सिंह ने जैसे भूमिका बनाते हुए कहा____"लेकिन ठाकुर साहब का कहना था कि इस बारे में हम आपसे भी बात करें। इस लिए आज हम आपसे ही बात करने आए हैं।"

महेंद्र सिंह की इस बात से चाची चुप ही रहीं। उनके चेहरे पर उत्सुकता के भाव नुमायां हो रहे थे। उधर महेंद्र सिंह कुछ पलों तक शांत रहे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो अपनी बात कहने के लिए खुद को अच्छे से तैयार कर रहे हों।

"असल में हम आपके पास एक प्रस्ताव ले कर आए हैं।" फिर उन्होंने चाची की तरफ देखते हुए कहा____"हम अपने बेटे राघवेंद्र के लिए आपसे आपकी बेटी कुसुम का हाथ मांगने आए हैं। हमारी दिली ख़्वाईश है कि हम ठाकुर साहब से अपनी मित्रता को रिश्तेदारी के अटूट एवं हसीन बंधन में बदल लें। क्या आपको हमारा ये प्रस्ताव स्वीकार है मझली ठकुराईन?"

मेनका चाची तो चौंकी ही लेकिन मैं भी हैरानी से महेंद्र सिंह की तरफ देखने लगा था। उधर पिता जी चुपचाप अपने सिंहासन पर बैठे थे। बैठक में एकदम से सन्नाटा सा छा गया था।

"आप चुप क्यों हैं ठकुराईन?" चाची को कुछ न बोलते देख महेंद्र सिंह ने व्याकुलता से कहा____"हम आपसे जवाब की उम्मीद किए बैठे हैं। एक बात और, आपको इस बारे में किसी भी तरह का संकोच करने की ज़रूरत नहीं है। यकीन मानिए हमें आपके द्वारा हमारे प्रस्ताव को ठुकरा देने पर बिल्कुल भी बुरा नहीं लगेगा।"

"मैं चुप इस लिए हूं क्योंकि मैं ये सोच कर चकित हूं कि इस बारे में आपने मुझसे बात करना क्यों ज़रूरी समझा?" मेनका चाची कहने साथ ही पिता जी से मुखातिब हुईं____"जेठ जी, क्या अभी भी आपने मुझे माफ़ नहीं किया है? क्या सच में आपने मुझे पराया समझ लिया है और इस लिए आप मेरे और मेरी बेटी के बारे में खुद कोई फ़ैसला नहीं करना चाहते हैं?"

"तुम ग़लत समझ रही हो बहू।" पिता जी ने कहा____"हमने किसी को भी पराया नहीं समझा है बल्कि अभी भी हम सबको अपना ही समझते हैं। रही बात किसी का फ़ैसला करने की तो बात ये है कि हम नहीं चाहते कि हमारे किसी फ़ैसले से बाद में किसी को कोई आपत्ति हो जाए अथवा कोई नाखुश हो जाए। कुसुम तुम्हारी बेटी है इस लिए उसके जीवन का फ़ैसला करने का हक़ सिर्फ तुम्हें है। अगर हमारा भाई जगताप ज़िंदा होता तो शायद हमें इस बारे में कोई फ़ैसला करने में संकोच नहीं होता।"

मेनका चाची कुछ देर तक पिता जी को देखती रहीं। घूंघट किए होने से नज़र तो नहीं आ रहा था लेकिन ये समझा जा सकता था कि पिता जी की बातों से उन्हें तकलीफ़ हुई थी।

"ठीक है, अगर आप इसी तरह से सज़ा देना चाहते हैं तो मुझे भी आपकी सज़ा मंजूर है जेठ जी।" कहने के साथ ही चाची महेंद्र सिंह से बोलीं____"आप इस बारे में मुझसे जवाब सुनने चाहते हैं ना तो सुनिए, मैं आपके इस प्रस्ताव को ना ही स्वीकार करती हूं और ना ही ठुकराती हूं। अगर आप सच में अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलना चाहते हैं तो इस बारे में जेठ जी से ही बात कीजिए। मुझे कुछ नहीं कहना अब।"

कहने के साथ ही मेनका चाची पलटीं और बिना किसी की कोई बात सुने बैठक से चलीं गई। हम सब भौचक्के से बैठे रह गए। किसी को समझ ही नहीं आया कि ये क्या था?

"माफ़ करना मित्र।" ख़ामोशी को चीरते हुए पिता जी ने कहा____"आपको ऐसी अजीब स्थिति में फंस जाना पड़ा।"

"हम समझ सकते हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"सच कहें तो हमें मझली ठकुराईन से इसी तरह के जवाब की उम्मीद थी। उनकी बातों से स्पष्ट हो चुका है कि वो क्या चाहती हैं। यानि वो चाहती हैं कि इस बारे में आप ही फ़ैसला करें।"

"हमारी स्थिति से आप अच्छी तरह वाक़िफ हैं मित्र।" पिता जी ने कहा____"समझ ही सकते हैं कि इस बारे में कोई भी फ़ैसला करना हमारे लिए कितना मुश्किल है।"

"बिल्कुल समझते हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"लेकिन ये भी समझते हैं कि आपको किसी न किसी नतीजे पर तो पहुंचना ही पड़ेगा। हम इस वक्त आपको किसी परेशानी में डालना उचित नहीं समझते हैं इस लिए आप थोड़ा समय लीजिए और सोचिए कि वास्तव में आपको क्या करना चाहिए? हम फिर किसी दिन आपसे मुलाक़ात करने आ जाएंगे। अच्छा अब हमें जाने की इजाज़त दीजिए।"

पिता जी ने भारी मन सिर हिलाया और उठ कर खड़े हो गए। महेंद्र सिंह कुछ ही देर में अपनी जीप में बैठ कर चले गए। इधर मैंने महसूस किया कि मामला थोड़ा गंभीर और संजीदा सा हो गया है। मैं इस बात से भी थोड़ा हैरान था कि महेंद्र सिंह के सामने चाची ने ऐसी बातें क्यों की? क्या उन्हें इस बात का बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि उनकी ऐसी बातों से महेंद्र सिंह के मन में क्या संदेश गया होगा?

✮✮✮✮

अंदर मेनका चाची मां के पास बैठी सिसक रहीं थी। मां को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते मेनका चाची यूं अचानक से सिसकने लगीं हैं। इतना तो वो भी जानती थीं कि मैं उन्हें ले कर बैठक में गया था लेकिन बैठक में क्या हुआ ये उन्हें पता नहीं था।

"अब कुछ बताओगी भी कि हुआ क्या है?" मां ने चाची से पूछा____"तुम तो वैभव के साथ बैठक में ग‌ई थी ना?"

"मैं तो समझी थी कि आपने और जेठ जी ने मुझे माफ़ कर दिया है।" मेनका चाची ने दुखी भाव से कहा____"लेकिन सच तो यही है कि आप दोनों ने मुझे अभी भी माफ़ नहीं किया है।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" मां के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे____"भला ऐसा कैसे कह सकती हो तुम कि हमने तुम्हें माफ़ नहीं किया है?"

"अगर आप दोनों ने सच में मुझे माफ़ कर दिया होता।" चाची ने कहा____"तो आज जेठ जी मुझसे ऐसी बातें नहीं कहते। वो मुझे और मेरी बेटी को पराया समझने लगे हैं दीदी।"

"तुम होश में तो हो?" मां हैरत से आंखें फैला कर जैसे चीख ही पड़ीं____"ये कैसी ऊटपटांग बातें कर रही हो तुम? तुम्हारे जेठ जी ने भला ऐसा क्या कह दिया है तुमसे जिससे तुम ऐसा समझ रही हो?"

"आपको पता है बैठक में मुझे किस लिए बुलाया गया था?" चाची ने पूर्व की भांति ही दुखी लहजे में कहा____"असल में वहां पर महेंद्र सिंह जी बैठे हुए थे जो अपने बेटे का विवाह प्रस्ताव ले कर आए थे। शायद उन्होंने पहले जेठ जी से इस बारे में बता की थी लेकिन जेठ जी ने ये कह दिया रहा होगा कि वो इस बारे में कोई फ़ैसला नहीं करेंगे बल्कि मैं करूंगी। यानि उनके कहने का मतलब ये है कि वो मेरी बेटी के बारे में कोई फ़ैसला नहीं कर सकते।"

"हां तो इसमें क्या हो गया?" मां ने कहा____"कुसुम तुम्हारी बेटी है तो उसके बारे में कोई भी फ़ैसला करने का हक़ सबसे पहले तुम्हारा ही है। क्या तुम सिर्फ इतनी सी बात पर ये समझ बैठी हो कि हमने तुम्हें माफ़ नहीं किया है?"

"आज से पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ न दीदी कि जेठ जी ने किसी के बारे में कोई फ़ैसला खुद से न किया रहा हो।" मेनका चाची ने कहा____"फिर अब क्यों वो मेरी बेटी का फ़ैसला खुद नहीं कर सकते? क्यों उन्होंने ये कहा कि कुसुम मेरी बेटी है तो उसके बारे में मुझे ही फ़ैसला करना होगा? अभी तक तो मुझसे ज़्यादा आप दोनों ही मेरे बच्चों को अपना समझते रहे हैं, फिर अब क्यों ये ज़ाहिर कर रहे हैं कि आप दोनों का उन पर कोई हक़ नहीं है?"

"तुम बेवजह ये सब सोच कर खुद को हल्कान कर रही हो मेनका।" मां ने कहा____"हमने ना पहले तुम में से किसी को ग़ैर समझा था और ना ही अब समझते हैं। रही बात कुसुम के बारे में निर्णय लेने की तो ये सच है कि तुम उसकी मां हो इस लिए तुमसे पूछना और तुम्हारी राय लेना हर तरह से उचित है। अगर तुम्हारे जेठ जी ऐसा कुछ कह भी दिए हैं तो तुम्हें इस बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए।"

मां की बात सुन कर मेनका चाची नम आंखों से अपलक उन्हें देखती रहीं। उनके चेहरे पर पीड़ा के भाव थे। रोने से उनकी आंखें हल्का सुर्ख हो गईं थी।

"देखो मेनका सच हमेशा सच ही होता है।" मां ने फिर से कहा____"उसे किसी भी तरह से झुठलाया नहीं जा सकता। माना कि हम तुम्हारे बच्चों को हमेशा तुमसे कहीं ज़्यादा प्यार और स्नेह देते आए हैं लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं हो जाएगा कि वो तुम्हारे नहीं बल्कि असल में हमारे बच्चे कहलाएंगे। तुमने उन्हें जन्म दिया है तो वो हर सूरत में तुम्हारे बच्चे ही कहलाएंगे। भविष्य में कभी भी अगर उनके बारे में कोई बात आएगी तो सबसे पहले तुमसे भी तुम्हारी राय अथवा इच्छा पूछी जाएगी, क्योंकि मां होने के नाते ये तुम्हारा हक़ भी है और हर तरह से जायज़ भी है। इस लिए तुम बेवजह ये सब सोच कर खुद को दुखी मत करो।"

"हे भगवान!" मेनका चाची को एकदम से जैसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ____"इसका मतलब मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई है। मैंने अपनी नासमझी में जेठ जी पर आरोप लगा दिया और ना जाने क्या कुछ कह दिया। कितनी बुरी हूं मैं, मैंने अपने देवता समान जेठ जी को फिर से दुख पहुंचा दिया।"

"शांत हो जाओ।" मां ने उन्हें सम्हालते हुए कहा____"तुमने अंजाने में भूल की है इस लिए मैं तुम्हें दोषी नहीं मानती।"

"नहीं दीदी।" मेनका चाची ने झट से उठ कर कहा____"मुझसे ग़लती हुई है और मैं अभी जा कर जेठ जी से अपनी ग़लती की माफ़ी मांगूंगी।"

इससे पहले कि मां कुछ कहतीं मेनका चाची पलट कर तेज़ी से बाहर बैठक की तरफ बढ़ चलीं। कुछ ही देर में वो बैठक में दाख़िल हुईं। मैं पिता जी और किशोरी लाल अभी भी वहीं सोचो में गुम बैठे हुए थे। चाची को फिर से आया देख हम सबकी तंद्रा टूटी।

"मुझे माफ़ कर दीजिए जेठ जी।" उधर चाची ने घुटनों के बल बैठ कर पिता जी से कहा____"मैंने आपकी बातों को ग़लत समझ लिया था। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ था जैसे आपने मुझे अभी तक माफ़ नहीं किया है और मेरे साथ साथ मेरे बच्चों को भी पराया समझ लिया है। कृपया मेरी नासमझी और मेरी भूल के लिए माफ़ कर दीजिए मुझे।"

"कोई बात नहीं बहू।" पिता जी ने थोड़ी गंभीरता से कहा____"हम समझ सकते हैं कि तुमसे अंजाने में ये ग़लती हुई है। ख़ैर हम तो सिर्फ यही चाहते थे कि अपनी बेटी के संबंध में तुम्हें जो सही लगे उस बारे में अपनी राय हमारे सामने ज़ाहिर कर दो।"

"मेरी राय आपकी राय से जुदा नहीं हो सकती जेठ जी।" मेनका चाची ने कहा____"कुसुम को मुझसे ज़्यादा आपने अपनी बेटी माना है इस लिए उसके बारे में आप जो भी फ़ैसला लेंगे मुझे वो स्वीकार ही होगा।"

"ठीक है।" पिता जी ने कहा____"अगर तुम्हें महेंद्र सिंह जी का ये विवाह प्रस्ताव स्वीकार है तो हम उन्हें इस बारे में बता देंगे। ख़ैर अब तुम जाओ।"

मेनका चाची वापस चली गईं। इधर मैं काफी देर से इस संबंध के बारे में सोचे जा रहा था। मुझे पहली बार एहसास हुआ था कि मेरी लाडली बहन सच में अब बड़ी हो गई है, तभी तो उसके विवाह के संबंध में इस तरह की बातें होने लगीं हैं।

महेंद्र सिंह के बेटे राघवेंद्र सिंह को मैं अच्छी तरह जानता था। अपने माता पिता की वो भले ही इकलौती औलाद था लेकिन उसके माता पिता ने लाड़ प्यार दे कर बिगाड़ा नहीं था। महेंद्र सिंह वैसे भी थोड़ा सख़्त मिज़ाज इंसान हैं। ज्ञानेंद्र सिंह भी अपने बड़े भाई की तरह ही सख़्त मिज़ाज हैं। ज़ाहिर हैं ऐसे में राघवेंद्र का ग़लत रास्ते में जाना संभव ही नहीं था। कई बार मेरी उससे भेंट हुई थी और मैंने यही अनुभव किया था कि वो एक अच्छा लड़का है। कुसुम का उसके साथ अगर विवाह होगा तो यकीनन ये अच्छा ही होगा। वैसे भी महेंद्र सिंह का खानदान आज के समय में काफी संपन्न है और बड़े बड़े लोगों के बीच उनका उठना बैठना भी है।

✮✮✮✮

रागिनी आज कल थोड़ा खुश नज़र आने लगी थी। इसके पहले जहां वो उदास और गंभीर रहा करती थी वहीं अब उसका चेहरा खिला खिला रहने लगा था। उसके चेहरे की चमक देख घर का हर सदस्य भी खुश था और साथ ही ये समझ चुका था कि अब वो अपने देवर को यानि वैभव को एक पति के रिश्ते से सोचने लगी है।

रागिनी की भाभी वंदना अपनी ननद को यूं खुश देख खुद भी खुश थी और अब कुछ ज़्यादा ही उसे छेड़ने लगी थी। अपनी भाभी के द्वारा इस तरह से छेड़े जाने से रागिनी शर्म से पानी पानी हो जाती थी। उसका ऐसा हाल तब भी नहीं हुआ करता था जब उसका अभिनव से पहली बार विवाह होना था। उसके इस तरह अत्यधिक शर्माने की वजह शायद ये हो सकती थी कि अब जिसके साथ उसका विवाह हो रहा था वो अब से पहले उसका देवर था और अब पति बनने वाला था। दो तरह के रिश्तों का एहसास उसे कुछ ज़्यादा ही शर्माने पर मज़बूर कर देता था।

दूसरी तरफ उसकी छोटी बहन कामिनी भी अपनी बड़ी बहन के लिए खुश थी। आज कल उसके मन में बहुत कुछ चलने लगा था। उसमें अजब सा परिवर्तन आ गया था। पहले वो जब भी वैभव के बारे में सोचती थी तो उसके मन में वैभव के प्रति गुस्सा और नफ़रत जैसे भाव उभर आते थे लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया था। वैभव का इस तरह से बदल जाना उसे हैरान तो करता ही था किंतु वो इस बात से खुश भी थी कि अब वो एक अच्छा इंसान बन गया है। इस वजह से वो उसकी बड़ी बहन से एक सभ्य इंसानों की तरह बर्ताव करेगा और उसकी खुशियों का ख़याल भी रखेगा। एक समय था जब उसके घर वाले उसका विवाह वैभव से करने की चर्चा किया करते थे। जब उसे इस बात का पता चला था तो उसने अपनी मां से स्पष्ट शब्दों में बोल दिया था कि वो वैभव जैसे चरित्रहीन लड़के से किसी कीमत पर विवाह नहीं करेगी। उसकी इस बात से फिर कभी उसके घर वालों ने वैभव के साथ उसका विवाह करने का ज़िक्र नहीं किया था। बहरहाल समय गुज़रा और अब वो उसी वैभव के बदले स्वभाव से खुश और संतुष्ट सी हो गई थी। यही वजह थी कि दोनों बार जब वैभव उसके घर आया था तो उसने खुद जा कर वैभव से बातें की थी। वो खुद परखना चाहती थी कि क्या वैभव सच में एक अच्छा इंसान बन गया है?




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Mahendra singh par sandeh gehra rha h
Or ye bhi lg rha h ki menka chachi syd sach me uska mohra ban skti hain
aage aap jano

Baki gaurishankar ka sujhav badhiya h isme unka nishchal prem dikhai deta hai

Khair jald hi teeno parivaro me khushiyon ki shehnaaiyan bajne ki aasha hai

Dekhte h kya hota h


Pratiksha agle bhag ki
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बढ़िया खुशनुमा अपडेट।

दादा ठाकुर ने रागिनी से मिल कर एक बार फिर से अपना विशाल हृदय दिखाया, और उसी तरह सुगंधा देवी ने मेनका को न सिर्फ समझा कर, बल्कि वास्तविकता बता कर उसके मन की गांठ भी निकाल दी।

और अब वो शुभ घड़ी भी आने का ऐलान हो गया जिसकी प्रतीक्षा में सब लोग हस्तक्रिया कर रहे हैं इधर, और सबसे मजेदार बात ये है कि लोग रूपा की नही बल्कि रागिनी की सुहागरात का इंतजार ज्यादा कर रहे हैं 😂😂

खैर शालिनी तो रागिनी को थ्रीसम के ख्वाब दिखा रही है। मेरे खयाल से सुहागरात ही थ्रीसम करवा दो शुभम भाई।
 

S M H R

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"होने को तो कुछ भी हो सकता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन हमें यकीन है कि वो ऐसी गिरी हुई हरकत करने का नहीं सोच सकते। बाकी जिसकी किस्मत में जो लिखा है वो तो हो के ही रहेगा।"

थोड़ी देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद सुगंधा देवी उठ कर कमरे से बाहर चली गईं। इधर दादा ठाकुर पलंग पर अधलेटी अवस्था में बैठे ख़ामोशी से जाने क्या सोचने लगे थे।



अब आगे....


वक्त हमेशा की तरह अपनी रफ़्तार से चलता रहा। दिन इसी तरह गुज़रने लगे। दो दिन बाद पिता जी चंदनपुर गए और वहां पर वो ख़ास तौर पर रागिनी भाभी से मिले। हालाकि वीरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को बता दिया था लेकिन इसके बावजूद पिता जी जब चंदनपुर गए तो वो खुद भी भाभी से मिले। हर कोई हैरान था और ये सोच कर खुश भी था कि इतने बड़े इंसान होने के बाद भी वो ग़लत होने पर किसी के सामने झुकने पर झिझक नहीं करते हैं और ना ही माफ़ी मांगने में शर्म महसूस करते हैं।

रागिनी भाभी के लिए वो पल बहुत ही अद्भुत और बहुत ही ज़्यादा संवेदनशील बन गया था जब पिता जी उनके सामने अपनी बात कहते हुए उनसे माफ़ी मांग रहे थे। भाभी ये सब सहन न कर सकीं थी और ये सोच कर रो पड़ीं थी कि उसके ससुर उससे माफ़ी मांगने इतनी दूर उसके पास आए थे। इतना तो वो पहले से ही जानतीं थी कि उनके सास ससुर कितने अच्छे थे और कितने महान थे लेकिन अपनी बहू की खुशियों का ख़याल वो इस हद तक भी करेंगे इसका आभास आज हुआ था उन्हें। ऐसी महान शख्सियत को अपने से माफ़ी मांगते देख वो अंदर तक हिल गईं थी और साथ ही बुरी तरह तड़प उठीं थी। उनकी छोटी बहन कामिनी उनके साथ ही थी इस लिए उन्होंने उससे कहलवाया कि वो ऐसा न करें। उसकी नज़र में उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया है, बल्कि ये उनका सौभाग्य है कि उन्हें उनके जैसे पिता ससुर के रूप में मिले हैं जो उनकी खुशियों का इतना ख़याल रखते हैं।

बहरहाल, इस सबके बाद वहां पर ये चर्चा शुरू हुई कि जल्द ही विवाह करने के लिए पुरोहित जी से शुभ मुहूर्त की लग्न बनवाई जाए और फिर ये विवाह संपन्न किया जाए। सारा दिन पिता जी वहीं पर रुके रहे और इसी संबंध में बातें करते रहे उसके बाद वो शाम को वापस रुद्रपुर आ गए।

हवेली में उन्होंने मां को सब कुछ बताया और फिर जल्दी ही पुरोहित जी से मिलने की बात कही। मां इस सबसे बहुत खुश थीं। हवेली में एक बार फिर से खुशियों की झलक दिखने लगी थी। हर किसी के चेहरे पर एक अलग ही चमक दिखने लगी थी।

मुझे भी मां से सब कुछ पता चल चुका था। मैं समझ चुका था कि अब भाभी के साथ मेरा विवाह होना बिल्कुल तय हो चुका है। इस बात के एहसास से मेरे अंदर एक अलग ही एहसास जागने लगे थे। मैं अब भाभी को एक पत्नी की नज़र से सोचने लगा था। ये अलग बात है कि उनको पत्नी के रूप में सोचने से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होता था। मैं सोचने पर मज़बूर हो जाता था कि उस समय क्या होगा जब भाभी को मैं विवाह के पश्चात अपनी पत्नी बना कर हवेली ले आऊंगा? आख़िर कैसे मैं एक पति के रूप में उनसे इस रिश्ते को आगे बढ़ा पाऊंगा? क्या भाभी मेरी पत्नी बनने के बाद मेरे साथ जीवन का सफ़र सहजता से आगे बढ़ा सकेंगी? क्या मैं पूर्ण रूप से उनके साथ वो सब कर पाऊंगा जो एक पति पत्नी के बीच होता है और जिससे एक नई पीढ़ी का जन्म होता है?

ये सारे सवाल ऐसे थे जिनके सोचने से बड़ी अजीब सी अनुभूति होने लगी थी। सीने में मौजूद दिल की धड़कनें घबराहट के चलते एकाएक धाड़ धाड़ कर के बजने लगतीं थी।

वहीं दूसरी तरफ, मैं रूपा के बारे में भी सोचने लगता था लेकिन उसके बारे में मुझे इस तरह की असहजता अथवा इस तरह की घबराहट नहीं महसूस होती थी क्योंकि उसके साथ मैं वो सब पहले भी कई बार कर चुका था जो विवाह के बाद पति पत्नी के बीच होता है। लेकिन हां अब उसके प्रति मेरे दिल में प्रेम ज़रूर पैदा हो चुका था जिसके चलते अब मैं उसे एक अलग ही नज़र से देखने लगा था। उसके प्रति भी मेरे दिल में वैसा ही आदर सम्मान था जैसा भाभी के प्रति था।

ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। विद्यालय और अस्पताल का निर्माण कार्य अब लगभग अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया था। रूपचंद्र कुछ दिनों से कम ही आता था क्योंकि उसके घर में विवाह की तैयारियां जोरों से चल रहीं थी। अतः यहां की देख रेख अब मैं ही कर रहा था। पिता जी भी अपनी तरफ से गौरी शंकर की यथोचित सहायता कर रहे थे।

आख़िर वो दिन आ ही गया जब रूपचंद्र के घर बरात आई और मणि शंकर की बेटियों का विवाह हुआ। इस विवाह में हवेली से पिता जी मुंशी किशोरी लाल के साथ तो गए ही किंतु साथ में मां, मेनका चाची, निर्मला काकी, कुसुम और कजरी भी गईं। थोड़े समय के लिए मैं भी गया लेकिन फिर मैं वापस आ गया था।

साहूकार मणि शंकर की बेटियों का बहुत ही विधिवत तरीके से विवाह संपन्न हुआ। नात रिश्तेदार तो भारी संख्या में थे ही किंतु आस पास के गांवों के उसके जानने वाले भी थे। महेंद्र सिंह और अर्जुन सिंह भी आए हुए थे। सुबह दोनों बेटियों की विदाई हुई। बेटियों ने अपने करुण रुदन से सबकी आंखें छलका दी थी। बहरहाल विवाह संपन्न हुआ और धीरे धीरे सब लोग अपने अपने घरों को लौट गए।

एक दिन महेंद्र सिंह हवेली में आए और पिता जी से बोले कि वो मेनका चाची से रिश्ते की बात करने आए हैं। इत्तेफ़ाक से मैं भी उस वक्त बैठक में ही था। मुझे महेंद्र सिंह से रिश्ते की बात सुन कर थोड़ी हैरानी हुई। उधर पिता जी ने मुझसे कहा कि मैं अंदर जा कर मेनका चाची को बैठक में ले कर आऊं। उनके हुकुम पर मैंने ऐसा ही किया। मेनका चाची को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर बात क्या है?

चाची जब बैठक में आईं तो उन्होंने सिर पर घूंघट कर लिया था। बैठक में पिता जी और किशोरी लाल के साथ महेंद्र सिंह को बैठा देख उनके चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए।

"हमारे मित्र महेंद्र सिंह जी तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं बहू।" पिता जी ने मेनका चाची से मुखातिब हो कर सामान्य भाव से कहा____"हम चाहते हैं कि तुम इत्मीनान से इनकी बातें सुन लो। उसके बाद तुम्हें जो ठीक लगे जवाब दे देना।"

मेनका चाची पिता जी की ये बात सुन कर मुख से तो कुछ न बोलीं लेकिन कुछ पलों तक उन्हें देखने के बाद महेंद्र सिंह की तरफ देखने लगीं। महेंद्र सिंह समझ गए कि वो उन्हें इस लिए देखने लगीं हैं क्योंकि वो जानना चाहती हैं कि वो उनसे क्या कहना चाहते हैं?

"वैसे तो हमने ठाकुर साहब से अपनी बात कह दी थी।" महेंद्र सिंह ने जैसे भूमिका बनाते हुए कहा____"लेकिन ठाकुर साहब का कहना था कि इस बारे में हम आपसे भी बात करें। इस लिए आज हम आपसे ही बात करने आए हैं।"

महेंद्र सिंह की इस बात से चाची चुप ही रहीं। उनके चेहरे पर उत्सुकता के भाव नुमायां हो रहे थे। उधर महेंद्र सिंह कुछ पलों तक शांत रहे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो अपनी बात कहने के लिए खुद को अच्छे से तैयार कर रहे हों।

"असल में हम आपके पास एक प्रस्ताव ले कर आए हैं।" फिर उन्होंने चाची की तरफ देखते हुए कहा____"हम अपने बेटे राघवेंद्र के लिए आपसे आपकी बेटी कुसुम का हाथ मांगने आए हैं। हमारी दिली ख़्वाईश है कि हम ठाकुर साहब से अपनी मित्रता को रिश्तेदारी के अटूट एवं हसीन बंधन में बदल लें। क्या आपको हमारा ये प्रस्ताव स्वीकार है मझली ठकुराईन?"

मेनका चाची तो चौंकी ही लेकिन मैं भी हैरानी से महेंद्र सिंह की तरफ देखने लगा था। उधर पिता जी चुपचाप अपने सिंहासन पर बैठे थे। बैठक में एकदम से सन्नाटा सा छा गया था।

"आप चुप क्यों हैं ठकुराईन?" चाची को कुछ न बोलते देख महेंद्र सिंह ने व्याकुलता से कहा____"हम आपसे जवाब की उम्मीद किए बैठे हैं। एक बात और, आपको इस बारे में किसी भी तरह का संकोच करने की ज़रूरत नहीं है। यकीन मानिए हमें आपके द्वारा हमारे प्रस्ताव को ठुकरा देने पर बिल्कुल भी बुरा नहीं लगेगा।"

"मैं चुप इस लिए हूं क्योंकि मैं ये सोच कर चकित हूं कि इस बारे में आपने मुझसे बात करना क्यों ज़रूरी समझा?" मेनका चाची कहने साथ ही पिता जी से मुखातिब हुईं____"जेठ जी, क्या अभी भी आपने मुझे माफ़ नहीं किया है? क्या सच में आपने मुझे पराया समझ लिया है और इस लिए आप मेरे और मेरी बेटी के बारे में खुद कोई फ़ैसला नहीं करना चाहते हैं?"

"तुम ग़लत समझ रही हो बहू।" पिता जी ने कहा____"हमने किसी को भी पराया नहीं समझा है बल्कि अभी भी हम सबको अपना ही समझते हैं। रही बात किसी का फ़ैसला करने की तो बात ये है कि हम नहीं चाहते कि हमारे किसी फ़ैसले से बाद में किसी को कोई आपत्ति हो जाए अथवा कोई नाखुश हो जाए। कुसुम तुम्हारी बेटी है इस लिए उसके जीवन का फ़ैसला करने का हक़ सिर्फ तुम्हें है। अगर हमारा भाई जगताप ज़िंदा होता तो शायद हमें इस बारे में कोई फ़ैसला करने में संकोच नहीं होता।"

मेनका चाची कुछ देर तक पिता जी को देखती रहीं। घूंघट किए होने से नज़र तो नहीं आ रहा था लेकिन ये समझा जा सकता था कि पिता जी की बातों से उन्हें तकलीफ़ हुई थी।

"ठीक है, अगर आप इसी तरह से सज़ा देना चाहते हैं तो मुझे भी आपकी सज़ा मंजूर है जेठ जी।" कहने के साथ ही चाची महेंद्र सिंह से बोलीं____"आप इस बारे में मुझसे जवाब सुनने चाहते हैं ना तो सुनिए, मैं आपके इस प्रस्ताव को ना ही स्वीकार करती हूं और ना ही ठुकराती हूं। अगर आप सच में अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलना चाहते हैं तो इस बारे में जेठ जी से ही बात कीजिए। मुझे कुछ नहीं कहना अब।"

कहने के साथ ही मेनका चाची पलटीं और बिना किसी की कोई बात सुने बैठक से चलीं गई। हम सब भौचक्के से बैठे रह गए। किसी को समझ ही नहीं आया कि ये क्या था?

"माफ़ करना मित्र।" ख़ामोशी को चीरते हुए पिता जी ने कहा____"आपको ऐसी अजीब स्थिति में फंस जाना पड़ा।"

"हम समझ सकते हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"सच कहें तो हमें मझली ठकुराईन से इसी तरह के जवाब की उम्मीद थी। उनकी बातों से स्पष्ट हो चुका है कि वो क्या चाहती हैं। यानि वो चाहती हैं कि इस बारे में आप ही फ़ैसला करें।"

"हमारी स्थिति से आप अच्छी तरह वाक़िफ हैं मित्र।" पिता जी ने कहा____"समझ ही सकते हैं कि इस बारे में कोई भी फ़ैसला करना हमारे लिए कितना मुश्किल है।"

"बिल्कुल समझते हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"लेकिन ये भी समझते हैं कि आपको किसी न किसी नतीजे पर तो पहुंचना ही पड़ेगा। हम इस वक्त आपको किसी परेशानी में डालना उचित नहीं समझते हैं इस लिए आप थोड़ा समय लीजिए और सोचिए कि वास्तव में आपको क्या करना चाहिए? हम फिर किसी दिन आपसे मुलाक़ात करने आ जाएंगे। अच्छा अब हमें जाने की इजाज़त दीजिए।"

पिता जी ने भारी मन सिर हिलाया और उठ कर खड़े हो गए। महेंद्र सिंह कुछ ही देर में अपनी जीप में बैठ कर चले गए। इधर मैंने महसूस किया कि मामला थोड़ा गंभीर और संजीदा सा हो गया है। मैं इस बात से भी थोड़ा हैरान था कि महेंद्र सिंह के सामने चाची ने ऐसी बातें क्यों की? क्या उन्हें इस बात का बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि उनकी ऐसी बातों से महेंद्र सिंह के मन में क्या संदेश गया होगा?

✮✮✮✮

अंदर मेनका चाची मां के पास बैठी सिसक रहीं थी। मां को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते मेनका चाची यूं अचानक से सिसकने लगीं हैं। इतना तो वो भी जानती थीं कि मैं उन्हें ले कर बैठक में गया था लेकिन बैठक में क्या हुआ ये उन्हें पता नहीं था।

"अब कुछ बताओगी भी कि हुआ क्या है?" मां ने चाची से पूछा____"तुम तो वैभव के साथ बैठक में ग‌ई थी ना?"

"मैं तो समझी थी कि आपने और जेठ जी ने मुझे माफ़ कर दिया है।" मेनका चाची ने दुखी भाव से कहा____"लेकिन सच तो यही है कि आप दोनों ने मुझे अभी भी माफ़ नहीं किया है।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" मां के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे____"भला ऐसा कैसे कह सकती हो तुम कि हमने तुम्हें माफ़ नहीं किया है?"

"अगर आप दोनों ने सच में मुझे माफ़ कर दिया होता।" चाची ने कहा____"तो आज जेठ जी मुझसे ऐसी बातें नहीं कहते। वो मुझे और मेरी बेटी को पराया समझने लगे हैं दीदी।"

"तुम होश में तो हो?" मां हैरत से आंखें फैला कर जैसे चीख ही पड़ीं____"ये कैसी ऊटपटांग बातें कर रही हो तुम? तुम्हारे जेठ जी ने भला ऐसा क्या कह दिया है तुमसे जिससे तुम ऐसा समझ रही हो?"

"आपको पता है बैठक में मुझे किस लिए बुलाया गया था?" चाची ने पूर्व की भांति ही दुखी लहजे में कहा____"असल में वहां पर महेंद्र सिंह जी बैठे हुए थे जो अपने बेटे का विवाह प्रस्ताव ले कर आए थे। शायद उन्होंने पहले जेठ जी से इस बारे में बता की थी लेकिन जेठ जी ने ये कह दिया रहा होगा कि वो इस बारे में कोई फ़ैसला नहीं करेंगे बल्कि मैं करूंगी। यानि उनके कहने का मतलब ये है कि वो मेरी बेटी के बारे में कोई फ़ैसला नहीं कर सकते।"

"हां तो इसमें क्या हो गया?" मां ने कहा____"कुसुम तुम्हारी बेटी है तो उसके बारे में कोई भी फ़ैसला करने का हक़ सबसे पहले तुम्हारा ही है। क्या तुम सिर्फ इतनी सी बात पर ये समझ बैठी हो कि हमने तुम्हें माफ़ नहीं किया है?"

"आज से पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ न दीदी कि जेठ जी ने किसी के बारे में कोई फ़ैसला खुद से न किया रहा हो।" मेनका चाची ने कहा____"फिर अब क्यों वो मेरी बेटी का फ़ैसला खुद नहीं कर सकते? क्यों उन्होंने ये कहा कि कुसुम मेरी बेटी है तो उसके बारे में मुझे ही फ़ैसला करना होगा? अभी तक तो मुझसे ज़्यादा आप दोनों ही मेरे बच्चों को अपना समझते रहे हैं, फिर अब क्यों ये ज़ाहिर कर रहे हैं कि आप दोनों का उन पर कोई हक़ नहीं है?"

"तुम बेवजह ये सब सोच कर खुद को हल्कान कर रही हो मेनका।" मां ने कहा____"हमने ना पहले तुम में से किसी को ग़ैर समझा था और ना ही अब समझते हैं। रही बात कुसुम के बारे में निर्णय लेने की तो ये सच है कि तुम उसकी मां हो इस लिए तुमसे पूछना और तुम्हारी राय लेना हर तरह से उचित है। अगर तुम्हारे जेठ जी ऐसा कुछ कह भी दिए हैं तो तुम्हें इस बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए।"

मां की बात सुन कर मेनका चाची नम आंखों से अपलक उन्हें देखती रहीं। उनके चेहरे पर पीड़ा के भाव थे। रोने से उनकी आंखें हल्का सुर्ख हो गईं थी।

"देखो मेनका सच हमेशा सच ही होता है।" मां ने फिर से कहा____"उसे किसी भी तरह से झुठलाया नहीं जा सकता। माना कि हम तुम्हारे बच्चों को हमेशा तुमसे कहीं ज़्यादा प्यार और स्नेह देते आए हैं लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं हो जाएगा कि वो तुम्हारे नहीं बल्कि असल में हमारे बच्चे कहलाएंगे। तुमने उन्हें जन्म दिया है तो वो हर सूरत में तुम्हारे बच्चे ही कहलाएंगे। भविष्य में कभी भी अगर उनके बारे में कोई बात आएगी तो सबसे पहले तुमसे भी तुम्हारी राय अथवा इच्छा पूछी जाएगी, क्योंकि मां होने के नाते ये तुम्हारा हक़ भी है और हर तरह से जायज़ भी है। इस लिए तुम बेवजह ये सब सोच कर खुद को दुखी मत करो।"

"हे भगवान!" मेनका चाची को एकदम से जैसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ____"इसका मतलब मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई है। मैंने अपनी नासमझी में जेठ जी पर आरोप लगा दिया और ना जाने क्या कुछ कह दिया। कितनी बुरी हूं मैं, मैंने अपने देवता समान जेठ जी को फिर से दुख पहुंचा दिया।"

"शांत हो जाओ।" मां ने उन्हें सम्हालते हुए कहा____"तुमने अंजाने में भूल की है इस लिए मैं तुम्हें दोषी नहीं मानती।"

"नहीं दीदी।" मेनका चाची ने झट से उठ कर कहा____"मुझसे ग़लती हुई है और मैं अभी जा कर जेठ जी से अपनी ग़लती की माफ़ी मांगूंगी।"

इससे पहले कि मां कुछ कहतीं मेनका चाची पलट कर तेज़ी से बाहर बैठक की तरफ बढ़ चलीं। कुछ ही देर में वो बैठक में दाख़िल हुईं। मैं पिता जी और किशोरी लाल अभी भी वहीं सोचो में गुम बैठे हुए थे। चाची को फिर से आया देख हम सबकी तंद्रा टूटी।

"मुझे माफ़ कर दीजिए जेठ जी।" उधर चाची ने घुटनों के बल बैठ कर पिता जी से कहा____"मैंने आपकी बातों को ग़लत समझ लिया था। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ था जैसे आपने मुझे अभी तक माफ़ नहीं किया है और मेरे साथ साथ मेरे बच्चों को भी पराया समझ लिया है। कृपया मेरी नासमझी और मेरी भूल के लिए माफ़ कर दीजिए मुझे।"

"कोई बात नहीं बहू।" पिता जी ने थोड़ी गंभीरता से कहा____"हम समझ सकते हैं कि तुमसे अंजाने में ये ग़लती हुई है। ख़ैर हम तो सिर्फ यही चाहते थे कि अपनी बेटी के संबंध में तुम्हें जो सही लगे उस बारे में अपनी राय हमारे सामने ज़ाहिर कर दो।"

"मेरी राय आपकी राय से जुदा नहीं हो सकती जेठ जी।" मेनका चाची ने कहा____"कुसुम को मुझसे ज़्यादा आपने अपनी बेटी माना है इस लिए उसके बारे में आप जो भी फ़ैसला लेंगे मुझे वो स्वीकार ही होगा।"

"ठीक है।" पिता जी ने कहा____"अगर तुम्हें महेंद्र सिंह जी का ये विवाह प्रस्ताव स्वीकार है तो हम उन्हें इस बारे में बता देंगे। ख़ैर अब तुम जाओ।"

मेनका चाची वापस चली गईं। इधर मैं काफी देर से इस संबंध के बारे में सोचे जा रहा था। मुझे पहली बार एहसास हुआ था कि मेरी लाडली बहन सच में अब बड़ी हो गई है, तभी तो उसके विवाह के संबंध में इस तरह की बातें होने लगीं हैं।

महेंद्र सिंह के बेटे राघवेंद्र सिंह को मैं अच्छी तरह जानता था। अपने माता पिता की वो भले ही इकलौती औलाद था लेकिन उसके माता पिता ने लाड़ प्यार दे कर बिगाड़ा नहीं था। महेंद्र सिंह वैसे भी थोड़ा सख़्त मिज़ाज इंसान हैं। ज्ञानेंद्र सिंह भी अपने बड़े भाई की तरह ही सख़्त मिज़ाज हैं। ज़ाहिर हैं ऐसे में राघवेंद्र का ग़लत रास्ते में जाना संभव ही नहीं था। कई बार मेरी उससे भेंट हुई थी और मैंने यही अनुभव किया था कि वो एक अच्छा लड़का है। कुसुम का उसके साथ अगर विवाह होगा तो यकीनन ये अच्छा ही होगा। वैसे भी महेंद्र सिंह का खानदान आज के समय में काफी संपन्न है और बड़े बड़े लोगों के बीच उनका उठना बैठना भी है।

✮✮✮✮

रागिनी आज कल थोड़ा खुश नज़र आने लगी थी। इसके पहले जहां वो उदास और गंभीर रहा करती थी वहीं अब उसका चेहरा खिला खिला रहने लगा था। उसके चेहरे की चमक देख घर का हर सदस्य भी खुश था और साथ ही ये समझ चुका था कि अब वो अपने देवर को यानि वैभव को एक पति के रिश्ते से सोचने लगी है।

रागिनी की भाभी वंदना अपनी ननद को यूं खुश देख खुद भी खुश थी और अब कुछ ज़्यादा ही उसे छेड़ने लगी थी। अपनी भाभी के द्वारा इस तरह से छेड़े जाने से रागिनी शर्म से पानी पानी हो जाती थी। उसका ऐसा हाल तब भी नहीं हुआ करता था जब उसका अभिनव से पहली बार विवाह होना था। उसके इस तरह अत्यधिक शर्माने की वजह शायद ये हो सकती थी कि अब जिसके साथ उसका विवाह हो रहा था वो अब से पहले उसका देवर था और अब पति बनने वाला था। दो तरह के रिश्तों का एहसास उसे कुछ ज़्यादा ही शर्माने पर मज़बूर कर देता था।

दूसरी तरफ उसकी छोटी बहन कामिनी भी अपनी बड़ी बहन के लिए खुश थी। आज कल उसके मन में बहुत कुछ चलने लगा था। उसमें अजब सा परिवर्तन आ गया था। पहले वो जब भी वैभव के बारे में सोचती थी तो उसके मन में वैभव के प्रति गुस्सा और नफ़रत जैसे भाव उभर आते थे लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया था। वैभव का इस तरह से बदल जाना उसे हैरान तो करता ही था किंतु वो इस बात से खुश भी थी कि अब वो एक अच्छा इंसान बन गया है। इस वजह से वो उसकी बड़ी बहन से एक सभ्य इंसानों की तरह बर्ताव करेगा और उसकी खुशियों का ख़याल भी रखेगा। एक समय था जब उसके घर वाले उसका विवाह वैभव से करने की चर्चा किया करते थे। जब उसे इस बात का पता चला था तो उसने अपनी मां से स्पष्ट शब्दों में बोल दिया था कि वो वैभव जैसे चरित्रहीन लड़के से किसी कीमत पर विवाह नहीं करेगी। उसकी इस बात से फिर कभी उसके घर वालों ने वैभव के साथ उसका विवाह करने का ज़िक्र नहीं किया था। बहरहाल समय गुज़रा और अब वो उसी वैभव के बदले स्वभाव से खुश और संतुष्ट सी हो गई थी। यही वजह थी कि दोनों बार जब वैभव उसके घर आया था तो उसने खुद जा कर वैभव से बातें की थी। वो खुद परखना चाहती थी कि क्या वैभव सच में एक अच्छा इंसान बन गया है?



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S M H R

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दोपहर का वक्त था।
हवेली की बैठक में पिता जी तो बैठे ही थे किंतु उनके साथ किशोरी लाल, गौरी शंकर, रूपचंद्र और वीरेंद्र सिंह भी बैठे हुए थे। वीरेंद्र सिंह को पिता जी ने संदेशा भिजवा कर बुलाया था।

"हमने आप सबको यहां पर इस लिए बुलवाया है ताकि हम सब एक दूसरे के समक्ष अपनी अपनी बात रखें और उस पर विचार कर सकें।" पिता जी ने थोड़े गंभीर भाव से कहा_____"अब जबकि हमारी बहू भी वैभव से विवाह करने को राज़ी हो गई है तो हम चाहते हैं कि जल्द से जल्द ये विवाह संबंध भी हो जाए।" कहने के साथ ही पिता जी गौरी शंकर से मुखातिब हुए____"हम तुमसे जानना चाहते हैं गौरी शंकर कि इस बारे में तुम्हारा क्या कहना है? हमारा मतलब है कि वैभव की बरात सबसे पहले तुम्हारे घर में आए या फिर चंदनपुर जाए? हमारे लिए तुम्हारी भतीजी भी उतनी ही अहमियत रखती है जितना कि हमारी बहू रागिनी। हम ये कभी नहीं भूल सकते हैं कि तुम्हारी भतीजी के बदौलत ही हमारे बेटे को नया जीवन मिला है। हम ये भी नहीं भूल सकते कि तुम्हारी भतीजी ने अपने प्रेम के द्वारा वैभव को किस हद तक सम्हाला है। इस लिए तुम जैसा चाहोगे हम वैसा ही करेंगे।"

"आपने मेरी भतीजी के विषय में इतनी बड़ी बात कह दी यही बड़ी बात है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से कहा____"यकीन मानिए आपकी इन बातों से मुझे अंदर से बेहद खुशी महसूस हो रही है। मुझे भी इस बात का एहसास है कि मेरी भतीजी की वजह से ही आज मैं और मेरा पूरा परिवार आपकी नज़र में दया के पात्र बने हैं वरना हम भी समझते हैं कि जो कुछ हमने आपके साथ किया था उसके चलते हमारा पतन हो जाना निश्चित ही था।"

"जो गुज़र गया उसके बारे में अब कुछ भी मत कहो गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"हम उस सबको कभी याद नहीं करना चाहते। अब तो सिर्फ यही चाहते हैं कि आगे जो भी हो अच्छा ही हो। ख़ैर इस वक्त हम तुमसे यही जानना चाहते हैं कि तुम क्या चाहते हो? क्या तुम ये चाहते हो कि वैभव की बरात सबसे पहले तुम्हारे द्वार पर आए या फिर चंदनपुर जाए?"

"आपको इस बारे में मुझसे कुछ भी पूछने की ज़रूरत नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"आप अपने मन से जैसा भी करेंगे हम उसी से खुश और संतुष्ट हो जाएंगे।"

"नहीं गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"इस बारे में तुम्हें बिल्कुल भी संकोच करने की अथवा कुछ भी सोचने की ज़रूरत नहीं है। तुम जैसा चाहोगे हम वैसा ही करेंगे और ये हम सच्चे दिल से कह रहे हैं।"

"अगर आप मेरे मुख से ही सुनना चाहते हैं तो ठीक है।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"ये सच है कि हर मां बाप की तरह मेरी भी तमन्ना यही थी कि वैभव की बरात सबसे पहले मेरे ही द्वार पर आए। वैभव का जब अनुराधा के साथ ब्याह होने की बात पता चली थी तो मुझे या मेरे परिवार को उसके साथ वैभव का ब्याह होने में कोई आपत्ति नहीं थी किंतु हां इच्छा यही थी कि वैभव की बरात सबसे पहले मेरी ही चौखट पर आए। यही इच्छा रागिनी बहू के साथ वैभव का विवाह होने पर भी हुई थी लेकिन मैं ये भी समझता हूं कि ऐसा उचित नहीं होगा। रागिनी बहू पहले भी आपकी बहू थीं और अब भी होने वाली बहू ही हैं। वो उमर में भी मेरी भतीजी से बड़ी हैं। ऐसे में अगर उनका विवाह मेरी भतीजी के बाद होगा तो ये हर तरह से अनुचित लगेगा। इस लिए मेरा कहना यही है कि आप वैभव की बरात ले कर सबसे पहले चंदनपुर ही जाएं और रागिनी बिटिया के साथ वैभव का विवाह कर के उन्हें यहां ले आएं। उसके कुछ समय बाद आप वैभव की बरात ले कर हमारे घर आ जाइएगा।"

"इस बारे में तुम्हारा क्या कहना है वीरेंद्र सिंह?" पिता जी ने वीरेंद्र सिंह की तरफ देखते हुए पूछा।

"आप सब मुझसे बड़े हैं और उचित अनुचित के बारे में भी मुझसे ज़्यादा जानते हैं।" वीरेंद्र सिंह ने शालीनता से कहा____"इस लिए मैं इस बारे में आप लोगों के सामने कुछ भी कहना उचित नहीं समझता हूं। बस इतना ही कहूंगा कि आप सबका जो भी फ़ैसला होगा वो मुझे तहे दिल से मंज़ूर होगा।"

"मेरा तो यही कहना है ठाकुर साहब कि इस बारे में आपको अब कुछ भी सोचने की ज़रूरत नहीं है।" गौरी शंकर ने कहा____"मैं आपसे कह चुका हूं कि आप सबसे पहले चंदनपुर ही वैभव की बरात ले कर जाइए। सबसे पहले रागिनी बिटिया का विवाह होना ही हर तरह से उचित है।"

"किशोरी लाल जी।" पिता जी ने मुंशी किशोरी लाल की तरफ देखा____"आपका क्या कहना है इस बारे में?"

"मैं गौरी शंकर जी की बातों से पूरी तरह सहमत हूं ठाकुर साहब।" किशोरी लाल ने कहा____"इन्होंने ये बात बिल्कुल उचित कही है कि रागिनी बहू का विवाह सबसे पहले होना चाहिए। उमर में बड़ी होने के चलते अगर उनका विवाह रूपा बिटिया के बाद होगा तो उचित नहीं लगेगा। छोटी बड़ी हो जाएंगी और बड़ी छोटी हो जाएंगी। लोगों को जब इस बारे में पता चलेगा तो वो भी ऐसी ही बातें करेंगे। इस लिए मैं गौरी शंकर जी की बातों से सहमत हूं।"

"ठीक है।" पिता जी ने एक लंबी सांस लेने के बाद कहा____"अगर आप सबका यही विचार है तो फिर ऐसा ही करते हैं। पुरोहित जी से मिल कर जल्द ही हम दोनों बहुओं के विवाह की लग्न बनवाएंगे। हम चाहते हैं कि इस हवेली में जल्द से जल्द हमारी दोनों बहुएं आ जाएं जिससे इस हवेली में और हमारे परिवार में फिर से रौनक आ जाए।"

कुछ देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद सभा समाप्त हो गई। गौरी शंकर और रूपचंद्र चले गए, जबकि वीरेंद्र सिंह बैठक में ही बैठे रहे। वीरेंद्र सिंह को जल्द ही जाना था इस लिए पिता जी के कहने पर उसने थोड़ी देर आराम किया और फिर खुशी मन से चले गए।

✮✮✮✮

गौरी शंकर और रूपचंद्र ने अपने घर पहुंच कर सबको ये बताया कि हवेली में दादा ठाकुर से क्या बातें हुईं हैं। सबके चेहरों पर खुशी के भाव उभर आए। किसी को भी इस बात से आपत्ति नहीं हुई कि वैभव की बरात सबसे पहले उनके यहां न आ कर चंदनपुर जाएगी। शायद सबको लगता था कि सबसे पहले रागिनी का ही वैभव के साथ विवाह होना चाहिए। जल्दी ही ये ख़बर रूपा के कानों तक पहुंच गई जिसके चलते उसके चेहरे पर भी खुशी के भाव उभर आए। उसकी दोनों भाभियां उसे छेड़ने लगीं जिससे वो शर्माने लगी। फूलवती की वो दोनों बेटियां भी अपनी ससुराल से आ गईं थी जिनका कुछ समय पहले विवाह हुआ था। वो दोनों भी रूपा को छेड़ने में लग गईं थी।

घर में एकदम से ही ख़ुशी का माहौल छा गया था। रूपा को उसकी भाभियों ने और उसकी बहनों ने बताया कि वैभव का विवाह सबसे पहले उसकी भाभी रागिनी से होगा, उसके बाद उससे। रूपा को पहले से ही इस बात का अंदेशा था और वो खुद भी चाहती थी कि पहले उसकी रागिनी दीदी ही वैभव की पत्नी बनें।

बहरहाल, जल्द ही विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं। एक बार फिर से सब अपने अपने काम पर लग गए। घर के सबसे बड़े बुजुर्ग यानि चंद्रमणि को बताया गया कि आख़िर वो दिन जल्द ही आने वाला है जब उनके घर की बेटी दादा ठाकुर की बहू बन कर हवेली जाएगी। चंद्रमणि इस बात से बेहद खुश हुए। उन्होंने गौरी शंकर और बाकी सबसे यही कहा कि सब कुछ अच्छे से करना। हर बात का ख़याल रखना, किसी भी तरह की ग़लती न हो।

"कैसी है मेरी प्यारी बहन?" रूपा के कमरे में दाख़िल होते ही रूपचंद्र ने अपनी बहन से बड़े प्यार से पूछा____"तुझे किसी ने खुशी वाली ख़बर दी कि नहीं?"

रूपचंद्र की इस बात से रूपा शर्माते हुए मुस्कुरा उठी। रूपचंद्र समझ गया कि उसे पता चल चुका है। वो चल कर उसके पास आया और पलंग के किनारे पर बैठ गया।

"वैसे एक बात कहूं।" फिर उसने रूपा की तरफ देखते हुए कहा____"विवाह तेरा होने वाला है और इसकी खुशी सबसे ज़्यादा मुझे हो रही है। मुझे इस बात की खुशी हो रही है कि मेरी बहन की तपस्या पूरी होने वाली है। मेरी बहन ने इस संबंध के चलते जितना कुछ सहा है आख़िर अब उसका पूरी तरह से अंत हो जाएगा और उसकी जगह उसे ढेर सारी खुशियां मिल जाएंगी।"

रूपा को समझ ना आया कि क्या कहे? बड़े भाई के सामने उसे शर्म आ रही थी। हालाकि उसकी बातों से उसके ज़हन में वो सारी बातें भी ताज़ा हो गईं थी जो उसने अब तक सहा था। उस सबके याद आते ही उसके चेहरे पर कुछ पलों के लिए गंभीरता के भाव उभर आए थे।

"मैं अक्सर ये बात बड़ी गहराई से सोचा करता हूं कि ये जो कुछ भी हुआ है उसके पीछे आख़िर असल वजह क्या थी?" रूपचंद्र ने थोड़े गंभीर भाव से कहा____"क्या इसकी वजह सिर्फ ये थी कि अंततः ऐसा समय आ जाए जब हम सबके दिलो दिमाग़ में दादा ठाकुर और उनके परिवार वालों के प्रति सचमुच का मान सम्मान और प्रेम भाव पैदा हो जाए? क्या इसकी वजह ये थी कि अंततः तेरे प्रेम के चलते दोनों ही परिवारों का कायाकल्प हो जाए? क्या इसकी वजह सिर्फ ये थी कि अंततः प्रेम की ही वजह से वैभव का इस तरह से हृदय परिवर्तन हो जाए और वो एक अच्छा इंसान बन जाए? और क्या इसकी वजह ये भी थी कि अंततः मैं अपनी बहन को समझने लगूं और फिर मैं भी सबके बारे में सच्चे दिल से अच्छा ही सोचने लगूं? अगर वाकई में यही वजह थी तो इस सबके बीच उन्हें क्यों इस दुनिया से गुज़र जाना पड़ा जो हमारे अपने थे? इस सबके बीच उन्हें क्यों गुज़र जाना पड़ा जो निर्दोष थे? मैं अक्सर ये सोचता हूं रूपा लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं सूझता। ख़ैर जाने दे, खुशी के इस मौके पर बीती बातों को याद कर के खुद को क्यों दुखी करना।"

"मैं ये सब तो नहीं जानती भैया।" रूपा ने थोड़ी झिझक के साथ कहा____"लेकिन बड़े बुजुर्गों से सुना है कि एक नया अध्याय तभी शुरू होता है जब उसके पहले का अध्याय समाप्त हो जाता है। जैसे प्रलय के बाद नए सिरे से सृष्टि का निर्माण होता है, ये भी शायद वैसा ही है।"

"हां शायद ऐसा ही होगा।" रूपचंद्र ने सिर हिला कर कहा____"ख़ैर छोड़ इन बातों को। अगर ये सच में नए सिरे से एक नया अध्याय शुरू करने जैसा ही है तो मैं खुशी से इस नए अध्याय का हिस्सा बनना चाहता हूं। अब से मेरी यही कोशिश रहेगी कि अपने जीवन में जो भी करूं अच्छा ही करूं। बाकी ऊपर वाले की इच्छा। अच्छा अब तू आराम कर, मैं चलता हूं।"

कहने के साथ ही रूपचंद्र उठा और कमरे से बाहर चला गया। उसके जान के बाद रूपा पलंग पर लेट गई और जाने किन ख़यालों में खो गई।

✮✮✮✮

दूसरे दिन पिता जी पुरोहित जी से मिले। उनके साथ गौरी शंकर भी था। पिता जी ने पुरोहित जी को विवाह की लग्न देखने की गुज़ारिश की तो वो अपने काम पर लग गए। वो अपने पत्रे में काफी देर तक देखते रहे। उसके बाद उन्होंने बताया कि आज से पंद्रह दिन बाद का दिन विवाह के लिए शुभ है। पिता जी ने उनसे पूछा कि और कौन सा दिन शुभ है तो पुरोहित जी ने पत्रे में देखने के बाद बताया कि उसके बाद बीसवां दिन शुभ है। पिता जी ने उन दोनों दिनों की लग्न बनाने को कह दिया।

कुछ समय बाद जब लग्न बन गई तो पिता जी और गौरी शंकर पुरोहित जी से इजाज़त ले कर वापस आ गए। पिता जी ने गौरी शंकर से कहा कि आज से बीसवें दिन वो बरात ले कर उसके घर आएंगे इस लिए वो विवाह की तैयारियां शुरू कर दें। गौरी शंकर ने खुशी से सिर हिलाया और अपने घर चला गया।

इधर हवेली में पिता जी ने सबको बता दिया कि लग्न बन गई है इस लिए विवाह की तैयारियां शुरू कर दी जाएं। मां के पूछने पर उन्होंने बताया कि आज से पंद्रहवें दिन यहां से बरात प्रस्थान करेगी चंदनपुर के लिए। मां ने कहा कि ऐसे शुभ अवसर पर मेनका चाची के दोनों बेटों को भी यहां होना चाहिए इस लिए उनको भी समय से पहले बुला लिया जाए।

समय क्योंकि ज़्यादा नहीं था इस लिए फ़ौरन ही सब लोग काम पर लग गए। पिता जी ने अपने एक मुलाजिम के हाथों लग्न की एक चिट्ठी चंदनपुर भी भिजवा दी। उसके बाद शुरू हुआ नात रिश्तेदारों को और अपने घनिष्ट मित्रों को निमंत्रण देने का कार्य।

मैं निर्माण कार्य वाली जगह पर था। रूपचंद्र ने आ कर बताया कि विवाह की लग्न बन गई है इस लिए अब मुझे हवेली पर ही रहना चाहिए और अपनी सेहत का ख़याल रखना चाहिए। उसकी ये बात सुन कर मेरे दिल की धड़कनें एकदम से बढ़ गईं। मन में एकाएक जाने कैसे कैसे ख़याल आने लगे जो मुझे रोमांचित भी कर रहे थे और थोड़ा अधीर भी कर रहे थे। रूपचंद्र के ज़ोर देने पर मुझे हवेली लौटना ही पड़ा। सच में वो मेरा पक्का साला बन गया था।

✮✮✮✮

"अरे वाह! विवाह की लग्न बन गई है और पंद्रहवें दिन तेरा विवाह हो जाएगा?" शालिनी ने मुस्कुराते हुए रागिनी को छेड़ा____"यानि मेरी प्यारी रागिनी अब जल्द से जल्द दुल्हन बन कर वैभव जीजा जी के पास पहुंच जाएगी और....और फिर रात को सुहागरात भी मनाएगी।"

"धत्त, कुछ भी बोलती है।" रागिनी बुरी तरह शर्मा गई____"शर्म नहीं आती तुझे ऐसा बोलने में?"

"लो अब इसमें शर्म कैसी भला?" शालिनी ने आंखें नचाते हुए कहा____"विवाह के बाद सुहागरात तो होती ही है और तेरे नसीब में तो दो दो बार सुहागरात का सुख लिखा है। हाय! कैसी हसीन रात होगी वो जब जीजा जी मेरी नाज़ुक सी सहेली के नाज़ुक से बदन पर से एक एक कर के कपड़े उतारेंगे और फिर उसके पूरे बदन को चूमेंगे, सहलाएंगे और फिर ज़ोर से मसलेंगे भी। उफ्फ! कितना मज़ा आएगा ना रागिनी?"

"हे भगवान! शालिनी चुप कर ना।" रागिनी उसकी बातें सुन कर शर्म से पानी पानी हो गई____"कैसे बेशर्म हो कर ये सब बोले जा रही है तू?"

"अरे! तो क्या हो गया मेरी लाडो?" शालिनी ने एकदम से उसके दोनों हाथ पकड़ लिए, फिर बोली_____"तू मेरी सहेली है। तुझसे मैं कुछ भी बोल सकती हूं और तू भी इतना शर्मा मत। तू भी मेरे साथ इन सब बातों का लुत्फ़ उठा।"

"मुझे कोई लुत्फ़ नहीं उठाना।" रागिनी ने उसको घूरते हुए कहा____"मैं तेरी तरह बेशर्म नहीं हूं।"

"बेशर्म तो तुझे बनना ही पड़ेगा अब।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"जब सुहागरात को जीजा जी तेरे बदन से सारे कपड़े निकाल कर तुझे पूरा नंगा कर देंगे तब क्या करेगी तू? जब वो तुझे हौले हौले प्यार करेंगे तब क्या करेगी तू? मुझे यकीन है तब तू शर्म नहीं करेगी बल्कि जीजा जी के साथ पूरी बेशर्मी से मज़ा करेगी।"

"सच में बहुत बेशर्म हो गई है तू।" रागिनी के समूचे जिस्म में झुरझुरी दौड़ गई, बुरी तरह लजाते हुए बोली____"देख अब इस बारे में कुछ मत बोलना। मैं सुन नहीं सकती, मुझे बहुत शर्म आती है। पता नहीं क्या हो गया है तुझे? शादी से पहले तो तू इतनी बेशर्म नहीं थी।"

"शादी के बाद ही तो इंसान में बदलाव आता है रागिनी।" शालिनी ने कहा____"मैं हैरान हूं कि तू शादी के बाद भी नहीं बदली क्यों? नई नवेली कुंवारी दुल्हन की तरह आज भी शर्माती है।"

"हां मैं शर्माती हूं क्योंकि मुझे शर्म आती है।" रागिनी ने कहा____"मैं तेरी तरह हर बात खुल कर नहीं बोल सकती।"

"अच्छा ये तो बता कि अब तो तू वैभव जीजा जी को पति की नज़र से ही सोचने लगी है ना?" शालिनी ने गौर से उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"या अभी भी उनको देवर ही समझती है?"

"पहले वाला रिश्ता इतना जल्दी कैसे भूल जाऊंगी भला?" रागिनी ने थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"जब भी उनके बारे में सोचती हूं तो सबसे पहले यही ख़याल आता है कि वो मेरे देवर थे? तू शायद अंदाज़ा भी नहीं लगा सकती कि इस ख़याल के आते ही मेरा समूचा बदन कैसे कांप उठता है? शायद ही कोई ऐसा होगा जो इस रिश्ते के बारे में अब तक मुझसे ज़्यादा सोच चुका होगा? जब तक आंखें खुली रहती हैं तब तक मन में ख़यालों का तूफ़ान चलता रहता है। मैं अब तक हर उस बात की कल्पना कर चुकी हूं जो इस रिश्ते के बाद मेरे जीवन में होने वाला है।"

"हां मैं समझ सकती हूं यार।" शालिनी ने कहा____"मैं समझ सकती हूं कि तूने इस बारे में अब तक क्या क्या नहीं सोचा होगा। सच में तेरे लिए इस रिश्ते को स्वीकार करना बिल्कुल भी आसान नहीं रहा होगा। ख़ैर जाने दे, अब तो सब ठीक हो गया है ना तो अब सिर्फ ये सोच कि तुझे अपनी आने वाली ज़िंदगी को कैसे खुशहाल बनाना है? मैं तुझे यही सलाह दूंगी कि विवाह के बाद ऐसी बातें बिल्कुल भी मत सोचना जिससे कि तेरे जीवन में और तेरी खुशियों में उसका असर पड़े। नियति ने तुझे नए सिरे से जीवन जीने का अवसर दिया है तो तू इसको उसी हिसाब से और उसी सोच के साथ जी। तेरे होने वाले पति तेरी खुशियों के लिए अगर कुछ भी कर सकते हैं तो तेरी भी यही कोशिश होनी चाहिए कि तू भी उन्हें कभी निराश न करे और हर क़दम पर उनका साथ दे।"

"हम्म्म्म।" रागिनी ने कहा____"सोचा तो यही है बाकी देखती हूं क्या होता है?"

"अच्छा ये बता कि तू अपनी होने वाली सौतन के बारे में क्या सोचती है?" शालिनी ने जैसे उत्सुकता से पूछा____"तेरे मुख से ही सुना था कि वो वैभव जी को बहुत प्रेम करती है और जिस समय वैभव जी अनुराधा नाम की लड़की की वजह से सदमे में चले गए थे तो उसने ही उन्हें उस हाल से बाहर निकाला था।"

"मैं उससे मिल चुकी हूं।" रागिनी ने अधीरता से कहा_____"उसके बारे में उन्होंने सब कुछ बताया था मुझे। सच में वो बहुत अच्छी लड़की है। उसका हृदय बहुत विशाल है। उसके जैसी अद्भुत लड़की शायद ही इस दुनिया में कहीं होगी। जब उसे अनुराधा के बारे में पता चला था तो उसने उसको भी अपना बना लिया था। अनुराधा की मौत के बाद उसने उन्हें तो सम्हाला ही लेकिन उनके साथ साथ अनुराधा की मां और उसके भाई को भी सम्हाला। बेटी बन कर अनुराधा की कमी दूर की उसने। उसके बाद जब उनके साथ मेरा विवाह होने की बात चली तो उसने मुझे भी अनुराधा की तरह अपना मान लिया। उसे इस बात से कोई आपत्ति नहीं हुई कि एक बार फिर से उसे समझौता करना पड़ेगा और अपने प्रेमी को मुझसे साझा करना पड़ेगा। उस पगली ने तो यहां तक कह दिया कि वो मुझे अपनी बड़ी दीदी मान कर मुझसे वैसा ही प्यार करेगी जैसा वो उनसे करती है। अब तुम ही बताओ शालिनी ऐसी नेकदिल लड़की के बारे में मैं कुछ उल्टा सीधा कैसे सोच सकती हूं? पहले भी कभी नहीं सोचा तो अब सोचने का सवाल ही नहीं है। ये तो नियति ने इस तरह का खेल रचा वरना सच कहती हूं उनके जीवन में सिर्फ और सिर्फ उस अद्भुत लड़की रूपा का ही हक़ है। ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूं कि मेरे हिस्से का प्यार भी उसे मिले। उसने बहुत कुछ सहा है इस लिए मैं चाहती हूं कि अब उसे कुछ भी न सहना पड़े बल्कि उसकी ज़िंदगी का हर पल खुशियों से ही भरा रहे।"

"ज़रूर ऐसा ही होगा रागिनी।" शालिनी ने रागिनी के दोनों कन्धों को पकड़ कर कहा____"तेरी बातें सुन कर मुझे यकीन हो गया है कि उस नेकदिल लड़की के जीवन में ऐसा ही होगा। तू भी उसको कभी सौतन मत समझना, बल्कि अपनी छोटी बहन समझना और उसका हमेशा ख़याल रखना।"

"वो तो मैं रखूंगी ही।" रागिनी ने कहा____"पहले भी यही सोचा था मैंने और अब भी यही सोचती हूं।"

"अच्छी बात है।" शालिनी ने कहा____"मुझे तो अब ये सब सोच कर एक अलग ही तरह की अनुभूति होती है यार। वैसे कमाल की बात है ना कि जीजा जी की किस्मत कितनी अच्छी है। मेरा मतलब है कि विवाह के बाद दो दो बीवियां उनके कमरे में पलंग पर उनके दोनों तरफ होंगी और वो दोनों को एक साथ प्यार करेंगे। हाय! कितना मज़ेदार होगा ना वो मंज़र?"

"ज़्यादा बकवास की तो गला दबा दूंगी तेरा।" रागिनी उसकी बात सुन कर फिर से शर्मा गई बोली____"जब देखो ऐसी ही बातें सोचती रहती है। चल अब जा यहां से, मुझे तुझसे अब कोई बात नहीं करना।"

"अरे! गुस्सा क्यों करती है मेरी लाडो?" शालिनी ने हल्के से हंसते हुए कहा____"मैं तो वही कह रही हूं जो भविष्य में होने वाला है।"

"तुझे बड़ा पता है भविष्य के बारे में।" रागिनी ने उसे घूर कर देखा____"तेरी जानकारी के लिए बता दूं कि ऐसा कुछ नहीं होगा। अब चुपचाप यहां से जा। मुझे भाभी के साथ काम करना है, तेरी तरह फ़ालतू की बातें करने का समय नहीं है मेरे पास।"

"आय हाय! समय नहीं है तेरे पास।" शालिनी ने आंखें फैलाई____"ज़्यादा बातें न कर मेरे सामने। मुझे पता है कि आज कल तू खाली बैठी जीजा जी के हसीन ख़यालों में ही खोई रहती है, बात करती है।"

उसकी बात सुन कर रागिनी झूठा गुस्सा दिखाते हुए उसे मारने के लिए दौड़ी तो शालिनी हंसते हुए भाग ली। उसके जाने के बाद रागिनी भी मंद मंद मुस्कुराते हुए घर के अंदर चली गई।




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Dono saheliyon k bich nok jhok achi lagi
 

Umakant007

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TheBlackBlood भाई, बहुत शानदार अपडेट्स... बाहर बहुत ही मन्द मन्द शीतल बसंती बयार चल रही है और सभी पात्रों और सभी पाठकों के मन में कुछ ही समय में शुरू होने वाले रती-काम महोत्सव कि अग्नि कि तपिश बढ़ती जा रही है।

प्रेम और प्रेम कि अगन ... अब रागिनी, रुपा और अब कुसुम के मन में न सिर्फ गमक रही है वरन् उनकी सखियों, भाभीयों के प्रयास से धधकने लगी है।

परन्तु अभी पुरुष पात्र अभी इससे अछूते हैं, TheBlackBlood भाई, वैभव ने रुपचंद को अपनी छोटी भाभी से पुनर्विवाह के लिए कहा है तो लगे हाथों उसका भी कल्याण हो ऐसा निवेदन है।

मेरे एक परम मित्र iloveall की कलम से उद्धृत कुछ पंक्तियां इस अवसर पर उचित लगती हैं... आप सभी रसास्वादन करें:-

जीवन की भूलभुलैया में कुछ ऐसे लम्हे आते हैं, जिनको हम कितना ही चाहें फिर भी न कभी भूल पाते हैं।।

जब मानिनि का मन लाखों मिन्नत मन्नत नहीं मानता है, तब कभी कभी कोई बिरला रख जान हथेली ठानता है।।

कमसिन कातिल कामिनीयां भी होती
कुर्बान कुर्बानी पर, न्यौछावर कर देती वह सब कुछ ऐसी विरल जवानी पर।

राहों में मिले चलते चलते हमराही हमारे आज हैं वह,
जिनको ना कभी देखा भी था देखो हम-बिस्तर आज हैं वह।।
 
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Umakant007

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होली के पूर्व ही होली का एक जोगीरा वैभव और रागिनी के पुनर्विवाह {प्रेम विवाह} के उपलक्ष्य में:-

बनवा बीच कोयलिया बोले, पपीहा नदी के तीर
अँगना में भोजइया डोले, जैसे झलके नीर

जोगीरा सा रा रा रा रा।
जोगीरा सा रा रा रा रा...
 
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avsji

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TheBlackBlood भाई,

मेनका ने फिर से गड़बड़ कर दी।

जिस तरह से सालों साल इन दोनों मियाँ-बीवी ने कलुषता और विष, अपने ही भाई-भाभी-भतीजों के लिए पाली हुई थी, और जिसके चलते इतने लोग खेत रहे... लेकिन ये चाहती हैं कि पल भर में वो सब भुला दिया जाए! क्यों? क्योंकि गलती से इनकी असलियत सभी के सामने आ गई!
(ध्यान रहे - इन्होने किसी को बताया नहीं। प्रायश्चित का प्रश्न ही नहीं है। गलती से, रंगी हाथों पकड़ीं गईं, तब जा कर सब कबूला)

ये तो बढ़िया बात हुई न? चित मैं जीता, पट तू हारा। कमाल का एंटाइटलमेंट है ये तो!

ठाकुर महेंद्र सिंह ने भी सोचा होगा कि कहाँ रिश्ता जोड़ने चले हैं। ऐसे में कुसुम के भविष्य पर खतरा हो सकता है। वो तो महेंद्र ठाकुर सुलझे हुए व्यक्ति लगे, नहीं तो...

उधर रागिनी के मन में राग - रंग के तार छिड़ गए हैं (क्यों न हो? छेड़ने के लिए भाभी और सखी भी तो हैं ही)!
वैसे मुझको TheBlackBlood भाई से कोई उम्मीद नहीं है - अंतरंग दृश्यों का प्रदर्शन --- इनके बस की बात नहीं है! 😂 😂 😂 😂

और लगता है कहानी का अंत निकट है। इधर वर-मालाओं का आदान प्रदान हुआ, और उधर कहानी का द एन्ड!
 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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अंततः रागिनी अपने दुखो से पूर्णरूप से बाहर आ रही है, मनुष्य का एक निर्णय किस प्रकार जीवन में प्रभाव डालता है ये दादा ठाकुर के निर्णय से समझा जा सकता है। finally वैभव महाराज भी अपने भाभी के हसीन सपनों में डूब गए है।

मेनका का यूं नाराज हो जाना समझा जा सकता है क्योंकि उसके मन में इस बात का डर बैठ गया है की उसके जेठ और जेठानी उसे पराया न कर दे, अपने पति के जाने के बाद वो उन्ही के आसरे है। पीछे जो उसके पति ने गलतियां की थी उसकी आत्मग्लानि भी है उसे।
लेकिन अच्छा था की वो समय रहते समझ गई की दादा ठाकुर का वो आशय नही था जो वो समझ बैठी थी।

महेंद्र सिंह ने रिश्ता के लिए पूछ ही लिया पर मुझे लगता है उनकी नियत साफ है। जैसा कि वैभव ने बताया की already वो काफी संपन्न है और बड़े लोगो के बीच उठना बैठना है। ऐसे में दादा ठाकुर से संबंधी बनने पर उनके इज्जत में बढ़ोत्तरी ही होगी, उनके साथ गलत कर अपने दामन पर दाग लगने से बचेंगे लेकिन दादा ठाकुर ने सही कहा की अंत में होगा वही जो सबकी किस्मत में लिखा है।
शालिनी ने तो शब्दों से ही रागिनी को निर्वस्त्र कर दिया जो की आमतौर पर महिलाओं के बीच common है पर रागिनी जैसी लड़की के लिए अजीब था। देखते है की शब्द क्रियाओं में बदलेंगे या भाईसाहब सुखा सुखा ही खत्म कर देंगे।

अपडेट के लिए धन्यवाद, अगले अपडेट की प्रतीक्षा में ❣️
 

Kuresa Begam

Member
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अध्याय - 157
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"होने को तो कुछ भी हो सकता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन हमें यकीन है कि वो ऐसी गिरी हुई हरकत करने का नहीं सोच सकते। बाकी जिसकी किस्मत में जो लिखा है वो तो हो के ही रहेगा।"

थोड़ी देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद सुगंधा देवी उठ कर कमरे से बाहर चली गईं। इधर दादा ठाकुर पलंग पर अधलेटी अवस्था में बैठे ख़ामोशी से जाने क्या सोचने लगे थे।



अब आगे....


वक्त हमेशा की तरह अपनी रफ़्तार से चलता रहा। दिन इसी तरह गुज़रने लगे। दो दिन बाद पिता जी चंदनपुर गए और वहां पर वो ख़ास तौर पर रागिनी भाभी से मिले। हालाकि वीरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को बता दिया था लेकिन इसके बावजूद पिता जी जब चंदनपुर गए तो वो खुद भी भाभी से मिले। हर कोई हैरान था और ये सोच कर खुश भी था कि इतने बड़े इंसान होने के बाद भी वो ग़लत होने पर किसी के सामने झुकने पर झिझक नहीं करते हैं और ना ही माफ़ी मांगने में शर्म महसूस करते हैं।

रागिनी भाभी के लिए वो पल बहुत ही अद्भुत और बहुत ही ज़्यादा संवेदनशील बन गया था जब पिता जी उनके सामने अपनी बात कहते हुए उनसे माफ़ी मांग रहे थे। भाभी ये सब सहन न कर सकीं थी और ये सोच कर रो पड़ीं थी कि उसके ससुर उससे माफ़ी मांगने इतनी दूर उसके पास आए थे। इतना तो वो पहले से ही जानतीं थी कि उनके सास ससुर कितने अच्छे थे और कितने महान थे लेकिन अपनी बहू की खुशियों का ख़याल वो इस हद तक भी करेंगे इसका आभास आज हुआ था उन्हें। ऐसी महान शख्सियत को अपने से माफ़ी मांगते देख वो अंदर तक हिल गईं थी और साथ ही बुरी तरह तड़प उठीं थी। उनकी छोटी बहन कामिनी उनके साथ ही थी इस लिए उन्होंने उससे कहलवाया कि वो ऐसा न करें। उसकी नज़र में उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया है, बल्कि ये उनका सौभाग्य है कि उन्हें उनके जैसे पिता ससुर के रूप में मिले हैं जो उनकी खुशियों का इतना ख़याल रखते हैं।

बहरहाल, इस सबके बाद वहां पर ये चर्चा शुरू हुई कि जल्द ही विवाह करने के लिए पुरोहित जी से शुभ मुहूर्त की लग्न बनवाई जाए और फिर ये विवाह संपन्न किया जाए। सारा दिन पिता जी वहीं पर रुके रहे और इसी संबंध में बातें करते रहे उसके बाद वो शाम को वापस रुद्रपुर आ गए।

हवेली में उन्होंने मां को सब कुछ बताया और फिर जल्दी ही पुरोहित जी से मिलने की बात कही। मां इस सबसे बहुत खुश थीं। हवेली में एक बार फिर से खुशियों की झलक दिखने लगी थी। हर किसी के चेहरे पर एक अलग ही चमक दिखने लगी थी।

मुझे भी मां से सब कुछ पता चल चुका था। मैं समझ चुका था कि अब भाभी के साथ मेरा विवाह होना बिल्कुल तय हो चुका है। इस बात के एहसास से मेरे अंदर एक अलग ही एहसास जागने लगे थे। मैं अब भाभी को एक पत्नी की नज़र से सोचने लगा था। ये अलग बात है कि उनको पत्नी के रूप में सोचने से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होता था। मैं सोचने पर मज़बूर हो जाता था कि उस समय क्या होगा जब भाभी को मैं विवाह के पश्चात अपनी पत्नी बना कर हवेली ले आऊंगा? आख़िर कैसे मैं एक पति के रूप में उनसे इस रिश्ते को आगे बढ़ा पाऊंगा? क्या भाभी मेरी पत्नी बनने के बाद मेरे साथ जीवन का सफ़र सहजता से आगे बढ़ा सकेंगी? क्या मैं पूर्ण रूप से उनके साथ वो सब कर पाऊंगा जो एक पति पत्नी के बीच होता है और जिससे एक नई पीढ़ी का जन्म होता है?

ये सारे सवाल ऐसे थे जिनके सोचने से बड़ी अजीब सी अनुभूति होने लगी थी। सीने में मौजूद दिल की धड़कनें घबराहट के चलते एकाएक धाड़ धाड़ कर के बजने लगतीं थी।

वहीं दूसरी तरफ, मैं रूपा के बारे में भी सोचने लगता था लेकिन उसके बारे में मुझे इस तरह की असहजता अथवा इस तरह की घबराहट नहीं महसूस होती थी क्योंकि उसके साथ मैं वो सब पहले भी कई बार कर चुका था जो विवाह के बाद पति पत्नी के बीच होता है। लेकिन हां अब उसके प्रति मेरे दिल में प्रेम ज़रूर पैदा हो चुका था जिसके चलते अब मैं उसे एक अलग ही नज़र से देखने लगा था। उसके प्रति भी मेरे दिल में वैसा ही आदर सम्मान था जैसा भाभी के प्रति था।

ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। विद्यालय और अस्पताल का निर्माण कार्य अब लगभग अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया था। रूपचंद्र कुछ दिनों से कम ही आता था क्योंकि उसके घर में विवाह की तैयारियां जोरों से चल रहीं थी। अतः यहां की देख रेख अब मैं ही कर रहा था। पिता जी भी अपनी तरफ से गौरी शंकर की यथोचित सहायता कर रहे थे।

आख़िर वो दिन आ ही गया जब रूपचंद्र के घर बरात आई और मणि शंकर की बेटियों का विवाह हुआ। इस विवाह में हवेली से पिता जी मुंशी किशोरी लाल के साथ तो गए ही किंतु साथ में मां, मेनका चाची, निर्मला काकी, कुसुम और कजरी भी गईं। थोड़े समय के लिए मैं भी गया लेकिन फिर मैं वापस आ गया था।

साहूकार मणि शंकर की बेटियों का बहुत ही विधिवत तरीके से विवाह संपन्न हुआ। नात रिश्तेदार तो भारी संख्या में थे ही किंतु आस पास के गांवों के उसके जानने वाले भी थे। महेंद्र सिंह और अर्जुन सिंह भी आए हुए थे। सुबह दोनों बेटियों की विदाई हुई। बेटियों ने अपने करुण रुदन से सबकी आंखें छलका दी थी। बहरहाल विवाह संपन्न हुआ और धीरे धीरे सब लोग अपने अपने घरों को लौट गए।

एक दिन महेंद्र सिंह हवेली में आए और पिता जी से बोले कि वो मेनका चाची से रिश्ते की बात करने आए हैं। इत्तेफ़ाक से मैं भी उस वक्त बैठक में ही था। मुझे महेंद्र सिंह से रिश्ते की बात सुन कर थोड़ी हैरानी हुई। उधर पिता जी ने मुझसे कहा कि मैं अंदर जा कर मेनका चाची को बैठक में ले कर आऊं। उनके हुकुम पर मैंने ऐसा ही किया। मेनका चाची को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर बात क्या है?

चाची जब बैठक में आईं तो उन्होंने सिर पर घूंघट कर लिया था। बैठक में पिता जी और किशोरी लाल के साथ महेंद्र सिंह को बैठा देख उनके चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए।

"हमारे मित्र महेंद्र सिंह जी तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं बहू।" पिता जी ने मेनका चाची से मुखातिब हो कर सामान्य भाव से कहा____"हम चाहते हैं कि तुम इत्मीनान से इनकी बातें सुन लो। उसके बाद तुम्हें जो ठीक लगे जवाब दे देना।"

मेनका चाची पिता जी की ये बात सुन कर मुख से तो कुछ न बोलीं लेकिन कुछ पलों तक उन्हें देखने के बाद महेंद्र सिंह की तरफ देखने लगीं। महेंद्र सिंह समझ गए कि वो उन्हें इस लिए देखने लगीं हैं क्योंकि वो जानना चाहती हैं कि वो उनसे क्या कहना चाहते हैं?

"वैसे तो हमने ठाकुर साहब से अपनी बात कह दी थी।" महेंद्र सिंह ने जैसे भूमिका बनाते हुए कहा____"लेकिन ठाकुर साहब का कहना था कि इस बारे में हम आपसे भी बात करें। इस लिए आज हम आपसे ही बात करने आए हैं।"

महेंद्र सिंह की इस बात से चाची चुप ही रहीं। उनके चेहरे पर उत्सुकता के भाव नुमायां हो रहे थे। उधर महेंद्र सिंह कुछ पलों तक शांत रहे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो अपनी बात कहने के लिए खुद को अच्छे से तैयार कर रहे हों।

"असल में हम आपके पास एक प्रस्ताव ले कर आए हैं।" फिर उन्होंने चाची की तरफ देखते हुए कहा____"हम अपने बेटे राघवेंद्र के लिए आपसे आपकी बेटी कुसुम का हाथ मांगने आए हैं। हमारी दिली ख़्वाईश है कि हम ठाकुर साहब से अपनी मित्रता को रिश्तेदारी के अटूट एवं हसीन बंधन में बदल लें। क्या आपको हमारा ये प्रस्ताव स्वीकार है मझली ठकुराईन?"

मेनका चाची तो चौंकी ही लेकिन मैं भी हैरानी से महेंद्र सिंह की तरफ देखने लगा था। उधर पिता जी चुपचाप अपने सिंहासन पर बैठे थे। बैठक में एकदम से सन्नाटा सा छा गया था।

"आप चुप क्यों हैं ठकुराईन?" चाची को कुछ न बोलते देख महेंद्र सिंह ने व्याकुलता से कहा____"हम आपसे जवाब की उम्मीद किए बैठे हैं। एक बात और, आपको इस बारे में किसी भी तरह का संकोच करने की ज़रूरत नहीं है। यकीन मानिए हमें आपके द्वारा हमारे प्रस्ताव को ठुकरा देने पर बिल्कुल भी बुरा नहीं लगेगा।"

"मैं चुप इस लिए हूं क्योंकि मैं ये सोच कर चकित हूं कि इस बारे में आपने मुझसे बात करना क्यों ज़रूरी समझा?" मेनका चाची कहने साथ ही पिता जी से मुखातिब हुईं____"जेठ जी, क्या अभी भी आपने मुझे माफ़ नहीं किया है? क्या सच में आपने मुझे पराया समझ लिया है और इस लिए आप मेरे और मेरी बेटी के बारे में खुद कोई फ़ैसला नहीं करना चाहते हैं?"

"तुम ग़लत समझ रही हो बहू।" पिता जी ने कहा____"हमने किसी को भी पराया नहीं समझा है बल्कि अभी भी हम सबको अपना ही समझते हैं। रही बात किसी का फ़ैसला करने की तो बात ये है कि हम नहीं चाहते कि हमारे किसी फ़ैसले से बाद में किसी को कोई आपत्ति हो जाए अथवा कोई नाखुश हो जाए। कुसुम तुम्हारी बेटी है इस लिए उसके जीवन का फ़ैसला करने का हक़ सिर्फ तुम्हें है। अगर हमारा भाई जगताप ज़िंदा होता तो शायद हमें इस बारे में कोई फ़ैसला करने में संकोच नहीं होता।"

मेनका चाची कुछ देर तक पिता जी को देखती रहीं। घूंघट किए होने से नज़र तो नहीं आ रहा था लेकिन ये समझा जा सकता था कि पिता जी की बातों से उन्हें तकलीफ़ हुई थी।

"ठीक है, अगर आप इसी तरह से सज़ा देना चाहते हैं तो मुझे भी आपकी सज़ा मंजूर है जेठ जी।" कहने के साथ ही चाची महेंद्र सिंह से बोलीं____"आप इस बारे में मुझसे जवाब सुनने चाहते हैं ना तो सुनिए, मैं आपके इस प्रस्ताव को ना ही स्वीकार करती हूं और ना ही ठुकराती हूं। अगर आप सच में अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलना चाहते हैं तो इस बारे में जेठ जी से ही बात कीजिए। मुझे कुछ नहीं कहना अब।"

कहने के साथ ही मेनका चाची पलटीं और बिना किसी की कोई बात सुने बैठक से चलीं गई। हम सब भौचक्के से बैठे रह गए। किसी को समझ ही नहीं आया कि ये क्या था?

"माफ़ करना मित्र।" ख़ामोशी को चीरते हुए पिता जी ने कहा____"आपको ऐसी अजीब स्थिति में फंस जाना पड़ा।"

"हम समझ सकते हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"सच कहें तो हमें मझली ठकुराईन से इसी तरह के जवाब की उम्मीद थी। उनकी बातों से स्पष्ट हो चुका है कि वो क्या चाहती हैं। यानि वो चाहती हैं कि इस बारे में आप ही फ़ैसला करें।"

"हमारी स्थिति से आप अच्छी तरह वाक़िफ हैं मित्र।" पिता जी ने कहा____"समझ ही सकते हैं कि इस बारे में कोई भी फ़ैसला करना हमारे लिए कितना मुश्किल है।"

"बिल्कुल समझते हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"लेकिन ये भी समझते हैं कि आपको किसी न किसी नतीजे पर तो पहुंचना ही पड़ेगा। हम इस वक्त आपको किसी परेशानी में डालना उचित नहीं समझते हैं इस लिए आप थोड़ा समय लीजिए और सोचिए कि वास्तव में आपको क्या करना चाहिए? हम फिर किसी दिन आपसे मुलाक़ात करने आ जाएंगे। अच्छा अब हमें जाने की इजाज़त दीजिए।"

पिता जी ने भारी मन सिर हिलाया और उठ कर खड़े हो गए। महेंद्र सिंह कुछ ही देर में अपनी जीप में बैठ कर चले गए। इधर मैंने महसूस किया कि मामला थोड़ा गंभीर और संजीदा सा हो गया है। मैं इस बात से भी थोड़ा हैरान था कि महेंद्र सिंह के सामने चाची ने ऐसी बातें क्यों की? क्या उन्हें इस बात का बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि उनकी ऐसी बातों से महेंद्र सिंह के मन में क्या संदेश गया होगा?

✮✮✮✮

अंदर मेनका चाची मां के पास बैठी सिसक रहीं थी। मां को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते मेनका चाची यूं अचानक से सिसकने लगीं हैं। इतना तो वो भी जानती थीं कि मैं उन्हें ले कर बैठक में गया था लेकिन बैठक में क्या हुआ ये उन्हें पता नहीं था।

"अब कुछ बताओगी भी कि हुआ क्या है?" मां ने चाची से पूछा____"तुम तो वैभव के साथ बैठक में ग‌ई थी ना?"

"मैं तो समझी थी कि आपने और जेठ जी ने मुझे माफ़ कर दिया है।" मेनका चाची ने दुखी भाव से कहा____"लेकिन सच तो यही है कि आप दोनों ने मुझे अभी भी माफ़ नहीं किया है।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" मां के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे____"भला ऐसा कैसे कह सकती हो तुम कि हमने तुम्हें माफ़ नहीं किया है?"

"अगर आप दोनों ने सच में मुझे माफ़ कर दिया होता।" चाची ने कहा____"तो आज जेठ जी मुझसे ऐसी बातें नहीं कहते। वो मुझे और मेरी बेटी को पराया समझने लगे हैं दीदी।"

"तुम होश में तो हो?" मां हैरत से आंखें फैला कर जैसे चीख ही पड़ीं____"ये कैसी ऊटपटांग बातें कर रही हो तुम? तुम्हारे जेठ जी ने भला ऐसा क्या कह दिया है तुमसे जिससे तुम ऐसा समझ रही हो?"

"आपको पता है बैठक में मुझे किस लिए बुलाया गया था?" चाची ने पूर्व की भांति ही दुखी लहजे में कहा____"असल में वहां पर महेंद्र सिंह जी बैठे हुए थे जो अपने बेटे का विवाह प्रस्ताव ले कर आए थे। शायद उन्होंने पहले जेठ जी से इस बारे में बता की थी लेकिन जेठ जी ने ये कह दिया रहा होगा कि वो इस बारे में कोई फ़ैसला नहीं करेंगे बल्कि मैं करूंगी। यानि उनके कहने का मतलब ये है कि वो मेरी बेटी के बारे में कोई फ़ैसला नहीं कर सकते।"

"हां तो इसमें क्या हो गया?" मां ने कहा____"कुसुम तुम्हारी बेटी है तो उसके बारे में कोई भी फ़ैसला करने का हक़ सबसे पहले तुम्हारा ही है। क्या तुम सिर्फ इतनी सी बात पर ये समझ बैठी हो कि हमने तुम्हें माफ़ नहीं किया है?"

"आज से पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ न दीदी कि जेठ जी ने किसी के बारे में कोई फ़ैसला खुद से न किया रहा हो।" मेनका चाची ने कहा____"फिर अब क्यों वो मेरी बेटी का फ़ैसला खुद नहीं कर सकते? क्यों उन्होंने ये कहा कि कुसुम मेरी बेटी है तो उसके बारे में मुझे ही फ़ैसला करना होगा? अभी तक तो मुझसे ज़्यादा आप दोनों ही मेरे बच्चों को अपना समझते रहे हैं, फिर अब क्यों ये ज़ाहिर कर रहे हैं कि आप दोनों का उन पर कोई हक़ नहीं है?"

"तुम बेवजह ये सब सोच कर खुद को हल्कान कर रही हो मेनका।" मां ने कहा____"हमने ना पहले तुम में से किसी को ग़ैर समझा था और ना ही अब समझते हैं। रही बात कुसुम के बारे में निर्णय लेने की तो ये सच है कि तुम उसकी मां हो इस लिए तुमसे पूछना और तुम्हारी राय लेना हर तरह से उचित है। अगर तुम्हारे जेठ जी ऐसा कुछ कह भी दिए हैं तो तुम्हें इस बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए।"

मां की बात सुन कर मेनका चाची नम आंखों से अपलक उन्हें देखती रहीं। उनके चेहरे पर पीड़ा के भाव थे। रोने से उनकी आंखें हल्का सुर्ख हो गईं थी।

"देखो मेनका सच हमेशा सच ही होता है।" मां ने फिर से कहा____"उसे किसी भी तरह से झुठलाया नहीं जा सकता। माना कि हम तुम्हारे बच्चों को हमेशा तुमसे कहीं ज़्यादा प्यार और स्नेह देते आए हैं लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं हो जाएगा कि वो तुम्हारे नहीं बल्कि असल में हमारे बच्चे कहलाएंगे। तुमने उन्हें जन्म दिया है तो वो हर सूरत में तुम्हारे बच्चे ही कहलाएंगे। भविष्य में कभी भी अगर उनके बारे में कोई बात आएगी तो सबसे पहले तुमसे भी तुम्हारी राय अथवा इच्छा पूछी जाएगी, क्योंकि मां होने के नाते ये तुम्हारा हक़ भी है और हर तरह से जायज़ भी है। इस लिए तुम बेवजह ये सब सोच कर खुद को दुखी मत करो।"

"हे भगवान!" मेनका चाची को एकदम से जैसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ____"इसका मतलब मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई है। मैंने अपनी नासमझी में जेठ जी पर आरोप लगा दिया और ना जाने क्या कुछ कह दिया। कितनी बुरी हूं मैं, मैंने अपने देवता समान जेठ जी को फिर से दुख पहुंचा दिया।"

"शांत हो जाओ।" मां ने उन्हें सम्हालते हुए कहा____"तुमने अंजाने में भूल की है इस लिए मैं तुम्हें दोषी नहीं मानती।"

"नहीं दीदी।" मेनका चाची ने झट से उठ कर कहा____"मुझसे ग़लती हुई है और मैं अभी जा कर जेठ जी से अपनी ग़लती की माफ़ी मांगूंगी।"

इससे पहले कि मां कुछ कहतीं मेनका चाची पलट कर तेज़ी से बाहर बैठक की तरफ बढ़ चलीं। कुछ ही देर में वो बैठक में दाख़िल हुईं। मैं पिता जी और किशोरी लाल अभी भी वहीं सोचो में गुम बैठे हुए थे। चाची को फिर से आया देख हम सबकी तंद्रा टूटी।

"मुझे माफ़ कर दीजिए जेठ जी।" उधर चाची ने घुटनों के बल बैठ कर पिता जी से कहा____"मैंने आपकी बातों को ग़लत समझ लिया था। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ था जैसे आपने मुझे अभी तक माफ़ नहीं किया है और मेरे साथ साथ मेरे बच्चों को भी पराया समझ लिया है। कृपया मेरी नासमझी और मेरी भूल के लिए माफ़ कर दीजिए मुझे।"

"कोई बात नहीं बहू।" पिता जी ने थोड़ी गंभीरता से कहा____"हम समझ सकते हैं कि तुमसे अंजाने में ये ग़लती हुई है। ख़ैर हम तो सिर्फ यही चाहते थे कि अपनी बेटी के संबंध में तुम्हें जो सही लगे उस बारे में अपनी राय हमारे सामने ज़ाहिर कर दो।"

"मेरी राय आपकी राय से जुदा नहीं हो सकती जेठ जी।" मेनका चाची ने कहा____"कुसुम को मुझसे ज़्यादा आपने अपनी बेटी माना है इस लिए उसके बारे में आप जो भी फ़ैसला लेंगे मुझे वो स्वीकार ही होगा।"

"ठीक है।" पिता जी ने कहा____"अगर तुम्हें महेंद्र सिंह जी का ये विवाह प्रस्ताव स्वीकार है तो हम उन्हें इस बारे में बता देंगे। ख़ैर अब तुम जाओ।"

मेनका चाची वापस चली गईं। इधर मैं काफी देर से इस संबंध के बारे में सोचे जा रहा था। मुझे पहली बार एहसास हुआ था कि मेरी लाडली बहन सच में अब बड़ी हो गई है, तभी तो उसके विवाह के संबंध में इस तरह की बातें होने लगीं हैं।

महेंद्र सिंह के बेटे राघवेंद्र सिंह को मैं अच्छी तरह जानता था। अपने माता पिता की वो भले ही इकलौती औलाद था लेकिन उसके माता पिता ने लाड़ प्यार दे कर बिगाड़ा नहीं था। महेंद्र सिंह वैसे भी थोड़ा सख़्त मिज़ाज इंसान हैं। ज्ञानेंद्र सिंह भी अपने बड़े भाई की तरह ही सख़्त मिज़ाज हैं। ज़ाहिर हैं ऐसे में राघवेंद्र का ग़लत रास्ते में जाना संभव ही नहीं था। कई बार मेरी उससे भेंट हुई थी और मैंने यही अनुभव किया था कि वो एक अच्छा लड़का है। कुसुम का उसके साथ अगर विवाह होगा तो यकीनन ये अच्छा ही होगा। वैसे भी महेंद्र सिंह का खानदान आज के समय में काफी संपन्न है और बड़े बड़े लोगों के बीच उनका उठना बैठना भी है।

✮✮✮✮

रागिनी आज कल थोड़ा खुश नज़र आने लगी थी। इसके पहले जहां वो उदास और गंभीर रहा करती थी वहीं अब उसका चेहरा खिला खिला रहने लगा था। उसके चेहरे की चमक देख घर का हर सदस्य भी खुश था और साथ ही ये समझ चुका था कि अब वो अपने देवर को यानि वैभव को एक पति के रिश्ते से सोचने लगी है।

रागिनी की भाभी वंदना अपनी ननद को यूं खुश देख खुद भी खुश थी और अब कुछ ज़्यादा ही उसे छेड़ने लगी थी। अपनी भाभी के द्वारा इस तरह से छेड़े जाने से रागिनी शर्म से पानी पानी हो जाती थी। उसका ऐसा हाल तब भी नहीं हुआ करता था जब उसका अभिनव से पहली बार विवाह होना था। उसके इस तरह अत्यधिक शर्माने की वजह शायद ये हो सकती थी कि अब जिसके साथ उसका विवाह हो रहा था वो अब से पहले उसका देवर था और अब पति बनने वाला था। दो तरह के रिश्तों का एहसास उसे कुछ ज़्यादा ही शर्माने पर मज़बूर कर देता था।

दूसरी तरफ उसकी छोटी बहन कामिनी भी अपनी बड़ी बहन के लिए खुश थी। आज कल उसके मन में बहुत कुछ चलने लगा था। उसमें अजब सा परिवर्तन आ गया था। पहले वो जब भी वैभव के बारे में सोचती थी तो उसके मन में वैभव के प्रति गुस्सा और नफ़रत जैसे भाव उभर आते थे लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया था। वैभव का इस तरह से बदल जाना उसे हैरान तो करता ही था किंतु वो इस बात से खुश भी थी कि अब वो एक अच्छा इंसान बन गया है। इस वजह से वो उसकी बड़ी बहन से एक सभ्य इंसानों की तरह बर्ताव करेगा और उसकी खुशियों का ख़याल भी रखेगा। एक समय था जब उसके घर वाले उसका विवाह वैभव से करने की चर्चा किया करते थे। जब उसे इस बात का पता चला था तो उसने अपनी मां से स्पष्ट शब्दों में बोल दिया था कि वो वैभव जैसे चरित्रहीन लड़के से किसी कीमत पर विवाह नहीं करेगी। उसकी इस बात से फिर कभी उसके घर वालों ने वैभव के साथ उसका विवाह करने का ज़िक्र नहीं किया था। बहरहाल समय गुज़रा और अब वो उसी वैभव के बदले स्वभाव से खुश और संतुष्ट सी हो गई थी। यही वजह थी कि दोनों बार जब वैभव उसके घर आया था तो उसने खुद जा कर वैभव से बातें की थी। वो खुद परखना चाहती थी कि क्या वैभव सच में एक अच्छा इंसान बन गया है?




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Kuresa Begam

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अध्याय - 158
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दोपहर का वक्त था।
हवेली की बैठक में पिता जी तो बैठे ही थे किंतु उनके साथ किशोरी लाल, गौरी शंकर, रूपचंद्र और वीरेंद्र सिंह भी बैठे हुए थे। वीरेंद्र सिंह को पिता जी ने संदेशा भिजवा कर बुलाया था।

"हमने आप सबको यहां पर इस लिए बुलवाया है ताकि हम सब एक दूसरे के समक्ष अपनी अपनी बात रखें और उस पर विचार कर सकें।" पिता जी ने थोड़े गंभीर भाव से कहा_____"अब जबकि हमारी बहू भी वैभव से विवाह करने को राज़ी हो गई है तो हम चाहते हैं कि जल्द से जल्द ये विवाह संबंध भी हो जाए।" कहने के साथ ही पिता जी गौरी शंकर से मुखातिब हुए____"हम तुमसे जानना चाहते हैं गौरी शंकर कि इस बारे में तुम्हारा क्या कहना है? हमारा मतलब है कि वैभव की बरात सबसे पहले तुम्हारे घर में आए या फिर चंदनपुर जाए? हमारे लिए तुम्हारी भतीजी भी उतनी ही अहमियत रखती है जितना कि हमारी बहू रागिनी। हम ये कभी नहीं भूल सकते हैं कि तुम्हारी भतीजी के बदौलत ही हमारे बेटे को नया जीवन मिला है। हम ये भी नहीं भूल सकते कि तुम्हारी भतीजी ने अपने प्रेम के द्वारा वैभव को किस हद तक सम्हाला है। इस लिए तुम जैसा चाहोगे हम वैसा ही करेंगे।"

"आपने मेरी भतीजी के विषय में इतनी बड़ी बात कह दी यही बड़ी बात है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से कहा____"यकीन मानिए आपकी इन बातों से मुझे अंदर से बेहद खुशी महसूस हो रही है। मुझे भी इस बात का एहसास है कि मेरी भतीजी की वजह से ही आज मैं और मेरा पूरा परिवार आपकी नज़र में दया के पात्र बने हैं वरना हम भी समझते हैं कि जो कुछ हमने आपके साथ किया था उसके चलते हमारा पतन हो जाना निश्चित ही था।"

"जो गुज़र गया उसके बारे में अब कुछ भी मत कहो गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"हम उस सबको कभी याद नहीं करना चाहते। अब तो सिर्फ यही चाहते हैं कि आगे जो भी हो अच्छा ही हो। ख़ैर इस वक्त हम तुमसे यही जानना चाहते हैं कि तुम क्या चाहते हो? क्या तुम ये चाहते हो कि वैभव की बरात सबसे पहले तुम्हारे द्वार पर आए या फिर चंदनपुर जाए?"

"आपको इस बारे में मुझसे कुछ भी पूछने की ज़रूरत नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"आप अपने मन से जैसा भी करेंगे हम उसी से खुश और संतुष्ट हो जाएंगे।"

"नहीं गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"इस बारे में तुम्हें बिल्कुल भी संकोच करने की अथवा कुछ भी सोचने की ज़रूरत नहीं है। तुम जैसा चाहोगे हम वैसा ही करेंगे और ये हम सच्चे दिल से कह रहे हैं।"

"अगर आप मेरे मुख से ही सुनना चाहते हैं तो ठीक है।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"ये सच है कि हर मां बाप की तरह मेरी भी तमन्ना यही थी कि वैभव की बरात सबसे पहले मेरे ही द्वार पर आए। वैभव का जब अनुराधा के साथ ब्याह होने की बात पता चली थी तो मुझे या मेरे परिवार को उसके साथ वैभव का ब्याह होने में कोई आपत्ति नहीं थी किंतु हां इच्छा यही थी कि वैभव की बरात सबसे पहले मेरी ही चौखट पर आए। यही इच्छा रागिनी बहू के साथ वैभव का विवाह होने पर भी हुई थी लेकिन मैं ये भी समझता हूं कि ऐसा उचित नहीं होगा। रागिनी बहू पहले भी आपकी बहू थीं और अब भी होने वाली बहू ही हैं। वो उमर में भी मेरी भतीजी से बड़ी हैं। ऐसे में अगर उनका विवाह मेरी भतीजी के बाद होगा तो ये हर तरह से अनुचित लगेगा। इस लिए मेरा कहना यही है कि आप वैभव की बरात ले कर सबसे पहले चंदनपुर ही जाएं और रागिनी बिटिया के साथ वैभव का विवाह कर के उन्हें यहां ले आएं। उसके कुछ समय बाद आप वैभव की बरात ले कर हमारे घर आ जाइएगा।"

"इस बारे में तुम्हारा क्या कहना है वीरेंद्र सिंह?" पिता जी ने वीरेंद्र सिंह की तरफ देखते हुए पूछा।

"आप सब मुझसे बड़े हैं और उचित अनुचित के बारे में भी मुझसे ज़्यादा जानते हैं।" वीरेंद्र सिंह ने शालीनता से कहा____"इस लिए मैं इस बारे में आप लोगों के सामने कुछ भी कहना उचित नहीं समझता हूं। बस इतना ही कहूंगा कि आप सबका जो भी फ़ैसला होगा वो मुझे तहे दिल से मंज़ूर होगा।"

"मेरा तो यही कहना है ठाकुर साहब कि इस बारे में आपको अब कुछ भी सोचने की ज़रूरत नहीं है।" गौरी शंकर ने कहा____"मैं आपसे कह चुका हूं कि आप सबसे पहले चंदनपुर ही वैभव की बरात ले कर जाइए। सबसे पहले रागिनी बिटिया का विवाह होना ही हर तरह से उचित है।"

"किशोरी लाल जी।" पिता जी ने मुंशी किशोरी लाल की तरफ देखा____"आपका क्या कहना है इस बारे में?"

"मैं गौरी शंकर जी की बातों से पूरी तरह सहमत हूं ठाकुर साहब।" किशोरी लाल ने कहा____"इन्होंने ये बात बिल्कुल उचित कही है कि रागिनी बहू का विवाह सबसे पहले होना चाहिए। उमर में बड़ी होने के चलते अगर उनका विवाह रूपा बिटिया के बाद होगा तो उचित नहीं लगेगा। छोटी बड़ी हो जाएंगी और बड़ी छोटी हो जाएंगी। लोगों को जब इस बारे में पता चलेगा तो वो भी ऐसी ही बातें करेंगे। इस लिए मैं गौरी शंकर जी की बातों से सहमत हूं।"

"ठीक है।" पिता जी ने एक लंबी सांस लेने के बाद कहा____"अगर आप सबका यही विचार है तो फिर ऐसा ही करते हैं। पुरोहित जी से मिल कर जल्द ही हम दोनों बहुओं के विवाह की लग्न बनवाएंगे। हम चाहते हैं कि इस हवेली में जल्द से जल्द हमारी दोनों बहुएं आ जाएं जिससे इस हवेली में और हमारे परिवार में फिर से रौनक आ जाए।"

कुछ देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद सभा समाप्त हो गई। गौरी शंकर और रूपचंद्र चले गए, जबकि वीरेंद्र सिंह बैठक में ही बैठे रहे। वीरेंद्र सिंह को जल्द ही जाना था इस लिए पिता जी के कहने पर उसने थोड़ी देर आराम किया और फिर खुशी मन से चले गए।

✮✮✮✮

गौरी शंकर और रूपचंद्र ने अपने घर पहुंच कर सबको ये बताया कि हवेली में दादा ठाकुर से क्या बातें हुईं हैं। सबके चेहरों पर खुशी के भाव उभर आए। किसी को भी इस बात से आपत्ति नहीं हुई कि वैभव की बरात सबसे पहले उनके यहां न आ कर चंदनपुर जाएगी। शायद सबको लगता था कि सबसे पहले रागिनी का ही वैभव के साथ विवाह होना चाहिए। जल्दी ही ये ख़बर रूपा के कानों तक पहुंच गई जिसके चलते उसके चेहरे पर भी खुशी के भाव उभर आए। उसकी दोनों भाभियां उसे छेड़ने लगीं जिससे वो शर्माने लगी। फूलवती की वो दोनों बेटियां भी अपनी ससुराल से आ गईं थी जिनका कुछ समय पहले विवाह हुआ था। वो दोनों भी रूपा को छेड़ने में लग गईं थी।

घर में एकदम से ही ख़ुशी का माहौल छा गया था। रूपा को उसकी भाभियों ने और उसकी बहनों ने बताया कि वैभव का विवाह सबसे पहले उसकी भाभी रागिनी से होगा, उसके बाद उससे। रूपा को पहले से ही इस बात का अंदेशा था और वो खुद भी चाहती थी कि पहले उसकी रागिनी दीदी ही वैभव की पत्नी बनें।

बहरहाल, जल्द ही विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं। एक बार फिर से सब अपने अपने काम पर लग गए। घर के सबसे बड़े बुजुर्ग यानि चंद्रमणि को बताया गया कि आख़िर वो दिन जल्द ही आने वाला है जब उनके घर की बेटी दादा ठाकुर की बहू बन कर हवेली जाएगी। चंद्रमणि इस बात से बेहद खुश हुए। उन्होंने गौरी शंकर और बाकी सबसे यही कहा कि सब कुछ अच्छे से करना। हर बात का ख़याल रखना, किसी भी तरह की ग़लती न हो।

"कैसी है मेरी प्यारी बहन?" रूपा के कमरे में दाख़िल होते ही रूपचंद्र ने अपनी बहन से बड़े प्यार से पूछा____"तुझे किसी ने खुशी वाली ख़बर दी कि नहीं?"

रूपचंद्र की इस बात से रूपा शर्माते हुए मुस्कुरा उठी। रूपचंद्र समझ गया कि उसे पता चल चुका है। वो चल कर उसके पास आया और पलंग के किनारे पर बैठ गया।

"वैसे एक बात कहूं।" फिर उसने रूपा की तरफ देखते हुए कहा____"विवाह तेरा होने वाला है और इसकी खुशी सबसे ज़्यादा मुझे हो रही है। मुझे इस बात की खुशी हो रही है कि मेरी बहन की तपस्या पूरी होने वाली है। मेरी बहन ने इस संबंध के चलते जितना कुछ सहा है आख़िर अब उसका पूरी तरह से अंत हो जाएगा और उसकी जगह उसे ढेर सारी खुशियां मिल जाएंगी।"

रूपा को समझ ना आया कि क्या कहे? बड़े भाई के सामने उसे शर्म आ रही थी। हालाकि उसकी बातों से उसके ज़हन में वो सारी बातें भी ताज़ा हो गईं थी जो उसने अब तक सहा था। उस सबके याद आते ही उसके चेहरे पर कुछ पलों के लिए गंभीरता के भाव उभर आए थे।

"मैं अक्सर ये बात बड़ी गहराई से सोचा करता हूं कि ये जो कुछ भी हुआ है उसके पीछे आख़िर असल वजह क्या थी?" रूपचंद्र ने थोड़े गंभीर भाव से कहा____"क्या इसकी वजह सिर्फ ये थी कि अंततः ऐसा समय आ जाए जब हम सबके दिलो दिमाग़ में दादा ठाकुर और उनके परिवार वालों के प्रति सचमुच का मान सम्मान और प्रेम भाव पैदा हो जाए? क्या इसकी वजह ये थी कि अंततः तेरे प्रेम के चलते दोनों ही परिवारों का कायाकल्प हो जाए? क्या इसकी वजह सिर्फ ये थी कि अंततः प्रेम की ही वजह से वैभव का इस तरह से हृदय परिवर्तन हो जाए और वो एक अच्छा इंसान बन जाए? और क्या इसकी वजह ये भी थी कि अंततः मैं अपनी बहन को समझने लगूं और फिर मैं भी सबके बारे में सच्चे दिल से अच्छा ही सोचने लगूं? अगर वाकई में यही वजह थी तो इस सबके बीच उन्हें क्यों इस दुनिया से गुज़र जाना पड़ा जो हमारे अपने थे? इस सबके बीच उन्हें क्यों गुज़र जाना पड़ा जो निर्दोष थे? मैं अक्सर ये सोचता हूं रूपा लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं सूझता। ख़ैर जाने दे, खुशी के इस मौके पर बीती बातों को याद कर के खुद को क्यों दुखी करना।"

"मैं ये सब तो नहीं जानती भैया।" रूपा ने थोड़ी झिझक के साथ कहा____"लेकिन बड़े बुजुर्गों से सुना है कि एक नया अध्याय तभी शुरू होता है जब उसके पहले का अध्याय समाप्त हो जाता है। जैसे प्रलय के बाद नए सिरे से सृष्टि का निर्माण होता है, ये भी शायद वैसा ही है।"

"हां शायद ऐसा ही होगा।" रूपचंद्र ने सिर हिला कर कहा____"ख़ैर छोड़ इन बातों को। अगर ये सच में नए सिरे से एक नया अध्याय शुरू करने जैसा ही है तो मैं खुशी से इस नए अध्याय का हिस्सा बनना चाहता हूं। अब से मेरी यही कोशिश रहेगी कि अपने जीवन में जो भी करूं अच्छा ही करूं। बाकी ऊपर वाले की इच्छा। अच्छा अब तू आराम कर, मैं चलता हूं।"

कहने के साथ ही रूपचंद्र उठा और कमरे से बाहर चला गया। उसके जान के बाद रूपा पलंग पर लेट गई और जाने किन ख़यालों में खो गई।

✮✮✮✮

दूसरे दिन पिता जी पुरोहित जी से मिले। उनके साथ गौरी शंकर भी था। पिता जी ने पुरोहित जी को विवाह की लग्न देखने की गुज़ारिश की तो वो अपने काम पर लग गए। वो अपने पत्रे में काफी देर तक देखते रहे। उसके बाद उन्होंने बताया कि आज से पंद्रह दिन बाद का दिन विवाह के लिए शुभ है। पिता जी ने उनसे पूछा कि और कौन सा दिन शुभ है तो पुरोहित जी ने पत्रे में देखने के बाद बताया कि उसके बाद बीसवां दिन शुभ है। पिता जी ने उन दोनों दिनों की लग्न बनाने को कह दिया।

कुछ समय बाद जब लग्न बन गई तो पिता जी और गौरी शंकर पुरोहित जी से इजाज़त ले कर वापस आ गए। पिता जी ने गौरी शंकर से कहा कि आज से बीसवें दिन वो बरात ले कर उसके घर आएंगे इस लिए वो विवाह की तैयारियां शुरू कर दें। गौरी शंकर ने खुशी से सिर हिलाया और अपने घर चला गया।

इधर हवेली में पिता जी ने सबको बता दिया कि लग्न बन गई है इस लिए विवाह की तैयारियां शुरू कर दी जाएं। मां के पूछने पर उन्होंने बताया कि आज से पंद्रहवें दिन यहां से बरात प्रस्थान करेगी चंदनपुर के लिए। मां ने कहा कि ऐसे शुभ अवसर पर मेनका चाची के दोनों बेटों को भी यहां होना चाहिए इस लिए उनको भी समय से पहले बुला लिया जाए।

समय क्योंकि ज़्यादा नहीं था इस लिए फ़ौरन ही सब लोग काम पर लग गए। पिता जी ने अपने एक मुलाजिम के हाथों लग्न की एक चिट्ठी चंदनपुर भी भिजवा दी। उसके बाद शुरू हुआ नात रिश्तेदारों को और अपने घनिष्ट मित्रों को निमंत्रण देने का कार्य।

मैं निर्माण कार्य वाली जगह पर था। रूपचंद्र ने आ कर बताया कि विवाह की लग्न बन गई है इस लिए अब मुझे हवेली पर ही रहना चाहिए और अपनी सेहत का ख़याल रखना चाहिए। उसकी ये बात सुन कर मेरे दिल की धड़कनें एकदम से बढ़ गईं। मन में एकाएक जाने कैसे कैसे ख़याल आने लगे जो मुझे रोमांचित भी कर रहे थे और थोड़ा अधीर भी कर रहे थे। रूपचंद्र के ज़ोर देने पर मुझे हवेली लौटना ही पड़ा। सच में वो मेरा पक्का साला बन गया था।

✮✮✮✮

"अरे वाह! विवाह की लग्न बन गई है और पंद्रहवें दिन तेरा विवाह हो जाएगा?" शालिनी ने मुस्कुराते हुए रागिनी को छेड़ा____"यानि मेरी प्यारी रागिनी अब जल्द से जल्द दुल्हन बन कर वैभव जीजा जी के पास पहुंच जाएगी और....और फिर रात को सुहागरात भी मनाएगी।"

"धत्त, कुछ भी बोलती है।" रागिनी बुरी तरह शर्मा गई____"शर्म नहीं आती तुझे ऐसा बोलने में?"

"लो अब इसमें शर्म कैसी भला?" शालिनी ने आंखें नचाते हुए कहा____"विवाह के बाद सुहागरात तो होती ही है और तेरे नसीब में तो दो दो बार सुहागरात का सुख लिखा है। हाय! कैसी हसीन रात होगी वो जब जीजा जी मेरी नाज़ुक सी सहेली के नाज़ुक से बदन पर से एक एक कर के कपड़े उतारेंगे और फिर उसके पूरे बदन को चूमेंगे, सहलाएंगे और फिर ज़ोर से मसलेंगे भी। उफ्फ! कितना मज़ा आएगा ना रागिनी?"

"हे भगवान! शालिनी चुप कर ना।" रागिनी उसकी बातें सुन कर शर्म से पानी पानी हो गई____"कैसे बेशर्म हो कर ये सब बोले जा रही है तू?"

"अरे! तो क्या हो गया मेरी लाडो?" शालिनी ने एकदम से उसके दोनों हाथ पकड़ लिए, फिर बोली_____"तू मेरी सहेली है। तुझसे मैं कुछ भी बोल सकती हूं और तू भी इतना शर्मा मत। तू भी मेरे साथ इन सब बातों का लुत्फ़ उठा।"

"मुझे कोई लुत्फ़ नहीं उठाना।" रागिनी ने उसको घूरते हुए कहा____"मैं तेरी तरह बेशर्म नहीं हूं।"

"बेशर्म तो तुझे बनना ही पड़ेगा अब।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"जब सुहागरात को जीजा जी तेरे बदन से सारे कपड़े निकाल कर तुझे पूरा नंगा कर देंगे तब क्या करेगी तू? जब वो तुझे हौले हौले प्यार करेंगे तब क्या करेगी तू? मुझे यकीन है तब तू शर्म नहीं करेगी बल्कि जीजा जी के साथ पूरी बेशर्मी से मज़ा करेगी।"

"सच में बहुत बेशर्म हो गई है तू।" रागिनी के समूचे जिस्म में झुरझुरी दौड़ गई, बुरी तरह लजाते हुए बोली____"देख अब इस बारे में कुछ मत बोलना। मैं सुन नहीं सकती, मुझे बहुत शर्म आती है। पता नहीं क्या हो गया है तुझे? शादी से पहले तो तू इतनी बेशर्म नहीं थी।"

"शादी के बाद ही तो इंसान में बदलाव आता है रागिनी।" शालिनी ने कहा____"मैं हैरान हूं कि तू शादी के बाद भी नहीं बदली क्यों? नई नवेली कुंवारी दुल्हन की तरह आज भी शर्माती है।"

"हां मैं शर्माती हूं क्योंकि मुझे शर्म आती है।" रागिनी ने कहा____"मैं तेरी तरह हर बात खुल कर नहीं बोल सकती।"

"अच्छा ये तो बता कि अब तो तू वैभव जीजा जी को पति की नज़र से ही सोचने लगी है ना?" शालिनी ने गौर से उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"या अभी भी उनको देवर ही समझती है?"

"पहले वाला रिश्ता इतना जल्दी कैसे भूल जाऊंगी भला?" रागिनी ने थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"जब भी उनके बारे में सोचती हूं तो सबसे पहले यही ख़याल आता है कि वो मेरे देवर थे? तू शायद अंदाज़ा भी नहीं लगा सकती कि इस ख़याल के आते ही मेरा समूचा बदन कैसे कांप उठता है? शायद ही कोई ऐसा होगा जो इस रिश्ते के बारे में अब तक मुझसे ज़्यादा सोच चुका होगा? जब तक आंखें खुली रहती हैं तब तक मन में ख़यालों का तूफ़ान चलता रहता है। मैं अब तक हर उस बात की कल्पना कर चुकी हूं जो इस रिश्ते के बाद मेरे जीवन में होने वाला है।"

"हां मैं समझ सकती हूं यार।" शालिनी ने कहा____"मैं समझ सकती हूं कि तूने इस बारे में अब तक क्या क्या नहीं सोचा होगा। सच में तेरे लिए इस रिश्ते को स्वीकार करना बिल्कुल भी आसान नहीं रहा होगा। ख़ैर जाने दे, अब तो सब ठीक हो गया है ना तो अब सिर्फ ये सोच कि तुझे अपनी आने वाली ज़िंदगी को कैसे खुशहाल बनाना है? मैं तुझे यही सलाह दूंगी कि विवाह के बाद ऐसी बातें बिल्कुल भी मत सोचना जिससे कि तेरे जीवन में और तेरी खुशियों में उसका असर पड़े। नियति ने तुझे नए सिरे से जीवन जीने का अवसर दिया है तो तू इसको उसी हिसाब से और उसी सोच के साथ जी। तेरे होने वाले पति तेरी खुशियों के लिए अगर कुछ भी कर सकते हैं तो तेरी भी यही कोशिश होनी चाहिए कि तू भी उन्हें कभी निराश न करे और हर क़दम पर उनका साथ दे।"

"हम्म्म्म।" रागिनी ने कहा____"सोचा तो यही है बाकी देखती हूं क्या होता है?"

"अच्छा ये बता कि तू अपनी होने वाली सौतन के बारे में क्या सोचती है?" शालिनी ने जैसे उत्सुकता से पूछा____"तेरे मुख से ही सुना था कि वो वैभव जी को बहुत प्रेम करती है और जिस समय वैभव जी अनुराधा नाम की लड़की की वजह से सदमे में चले गए थे तो उसने ही उन्हें उस हाल से बाहर निकाला था।"

"मैं उससे मिल चुकी हूं।" रागिनी ने अधीरता से कहा_____"उसके बारे में उन्होंने सब कुछ बताया था मुझे। सच में वो बहुत अच्छी लड़की है। उसका हृदय बहुत विशाल है। उसके जैसी अद्भुत लड़की शायद ही इस दुनिया में कहीं होगी। जब उसे अनुराधा के बारे में पता चला था तो उसने उसको भी अपना बना लिया था। अनुराधा की मौत के बाद उसने उन्हें तो सम्हाला ही लेकिन उनके साथ साथ अनुराधा की मां और उसके भाई को भी सम्हाला। बेटी बन कर अनुराधा की कमी दूर की उसने। उसके बाद जब उनके साथ मेरा विवाह होने की बात चली तो उसने मुझे भी अनुराधा की तरह अपना मान लिया। उसे इस बात से कोई आपत्ति नहीं हुई कि एक बार फिर से उसे समझौता करना पड़ेगा और अपने प्रेमी को मुझसे साझा करना पड़ेगा। उस पगली ने तो यहां तक कह दिया कि वो मुझे अपनी बड़ी दीदी मान कर मुझसे वैसा ही प्यार करेगी जैसा वो उनसे करती है। अब तुम ही बताओ शालिनी ऐसी नेकदिल लड़की के बारे में मैं कुछ उल्टा सीधा कैसे सोच सकती हूं? पहले भी कभी नहीं सोचा तो अब सोचने का सवाल ही नहीं है। ये तो नियति ने इस तरह का खेल रचा वरना सच कहती हूं उनके जीवन में सिर्फ और सिर्फ उस अद्भुत लड़की रूपा का ही हक़ है। ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूं कि मेरे हिस्से का प्यार भी उसे मिले। उसने बहुत कुछ सहा है इस लिए मैं चाहती हूं कि अब उसे कुछ भी न सहना पड़े बल्कि उसकी ज़िंदगी का हर पल खुशियों से ही भरा रहे।"

"ज़रूर ऐसा ही होगा रागिनी।" शालिनी ने रागिनी के दोनों कन्धों को पकड़ कर कहा____"तेरी बातें सुन कर मुझे यकीन हो गया है कि उस नेकदिल लड़की के जीवन में ऐसा ही होगा। तू भी उसको कभी सौतन मत समझना, बल्कि अपनी छोटी बहन समझना और उसका हमेशा ख़याल रखना।"

"वो तो मैं रखूंगी ही।" रागिनी ने कहा____"पहले भी यही सोचा था मैंने और अब भी यही सोचती हूं।"

"अच्छी बात है।" शालिनी ने कहा____"मुझे तो अब ये सब सोच कर एक अलग ही तरह की अनुभूति होती है यार। वैसे कमाल की बात है ना कि जीजा जी की किस्मत कितनी अच्छी है। मेरा मतलब है कि विवाह के बाद दो दो बीवियां उनके कमरे में पलंग पर उनके दोनों तरफ होंगी और वो दोनों को एक साथ प्यार करेंगे। हाय! कितना मज़ेदार होगा ना वो मंज़र?"

"ज़्यादा बकवास की तो गला दबा दूंगी तेरा।" रागिनी उसकी बात सुन कर फिर से शर्मा गई बोली____"जब देखो ऐसी ही बातें सोचती रहती है। चल अब जा यहां से, मुझे तुझसे अब कोई बात नहीं करना।"

"अरे! गुस्सा क्यों करती है मेरी लाडो?" शालिनी ने हल्के से हंसते हुए कहा____"मैं तो वही कह रही हूं जो भविष्य में होने वाला है।"

"तुझे बड़ा पता है भविष्य के बारे में।" रागिनी ने उसे घूर कर देखा____"तेरी जानकारी के लिए बता दूं कि ऐसा कुछ नहीं होगा। अब चुपचाप यहां से जा। मुझे भाभी के साथ काम करना है, तेरी तरह फ़ालतू की बातें करने का समय नहीं है मेरे पास।"

"आय हाय! समय नहीं है तेरे पास।" शालिनी ने आंखें फैलाई____"ज़्यादा बातें न कर मेरे सामने। मुझे पता है कि आज कल तू खाली बैठी जीजा जी के हसीन ख़यालों में ही खोई रहती है, बात करती है।"

उसकी बात सुन कर रागिनी झूठा गुस्सा दिखाते हुए उसे मारने के लिए दौड़ी तो शालिनी हंसते हुए भाग ली। उसके जाने के बाद रागिनी भी मंद मंद मुस्कुराते हुए घर के अंदर चली गई।




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