Thanks so much, aapke comment ekdm satik aur ras se bhare hote hain aur har story pe meri regular. Jab mujhe laga raha tha ab ye story shaayad band kar denhi chahiye, comment nahi aa rahe usi smaya aap ke comments aaye, koyi bhi thanks kam hongeChadh gai nanadiya apne bhaiyya par.
Bahoot bahoot thanks abhaarUffff kya mast update. Dialogs are superb.

main kuch comments ka wait kar rahi thi bas sunday ya monday next partSuper super Komalji. Waiting for next episode of Maa beta.
और खास कर भाई बहन के सोचों को शब्दों के माध्यम से पृष्ठों पर उतारना..
और उनके बात चीत के बीच हाजिरजवाबी को दिखाना..
जैसे सचमुच वो संवाद आँखों के सामने जीवंत हो उठे...
ये काफी दुष्कर कार्य है...
और कोमल रानी हर बार सफलतापूर्वक उन दृश्यों को कामयाबी से उकेर देती हैं...
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एकदम सही कहा आपने, और वो यादें वो मन के किसी कोने में छुपे चलचित्र, कभी कभी बाहर निकल कर अकेलेपन में एक फैंटेसी को जागृत करते हैं, नए सपने देते हैं, उत्तेजना देते हैं और कई बार कहानियों में जगह पाते हैं।ब्रा के अलावा ..
कई बार महिलाओं के सोने.. नहाने.. खाने व घर के अन्य क्रियाओं को करते हुए..
जाने अंजाने कुछ दृश्य जो अपनी छाप छोड़ जाते हैं..
वो भी कम उत्तेजक नहीं होते...
लेकिन किसी से कहना-सुनना इस विषय में दूभर है...
क्योंकि सामाजिक मान्यता जो नहीं...
वर्चुअल वर्ल्ड में कुछ ऐसे हीं दबे छिपे किस्से...
पढ़ने सुनने को मिल जाते हैं...
नॉस्टाल्जिया के साथ यही कष्ट है जब उसकी मुलाकात कठोर सत्य से होती है तो अक्सर उस पथरीले धरातल पर सब चूर चूर हो जाता है , जैसे किसी दोस्त से दसो साल न मिले हों, स्कूल के दिनों की याद हो और जब मिले तो सब कुछ बदल गया हो, वक्त की मार ने उसे चंचल और प्रगल्भ से उदास और अंतर्मुखी बना दिया हो, चेहरा मोहरा और फिर लगाता है शायद आगे न मिले और उन पुरानी यादों के सहारे जीएं तो ज्यादा अच्छा है।अब तो गाँव जाने पर उजाड़ सा लगने लग जाता है...
कहाँ वो पहले चहल पहल...
शादी-ब्याह पर लोगों का मिलना जुलना... साथ साथ रीति रिवाजों के कार्य निपटाना...
और अब तो लोग गाँव छोड़ कर शहरों और कस्बों का रुख करने लगे हैं...
तो धीरे-धीरे लोग इन्हें बिसराए जा रहे हैं...
लेकिन आपका प्रयास सार्थक रहा...
ठीक तो है, यही तो मौका होता है, भाभियों के लिए, और उस समय उम्र नहीं सिर्फ रिश्ता देखा जाता है। दूल्हे से ज्यादा हल्दी बाकी लोगो को लग जाती है, लेकिन ड्रेस कोड वाली शादियों में ये सब होता भी है तो बस रस्म अदायगी, और इवेंट मैनेजमेंट पर जोर ज्यादा रहता है। लेकिन यही छेड़खानी ही तो शादी का असली सुख है, फिर कहाँ कौन मिलता है।अभी कुछ समय पहले मड़वा गाड़ते समय ..
पाँच विवाहित पुरुषों द्वारा किए गए रस्मों में कोई ड्रेस कोड नहीं...
और भौजाइयां तो जैसे गिन गिन कर बदला ले रही थीं...
बनियान फाड़ के हल्दी पोत रही थी....
एकदम सही कहा आपने , और रीता शब्द का प्रयोग भी, क्योंकि कहानी में मीता भाभी , रीता भाभी के जरिये ही जुड़ींडॉक्टर मीता का प्यार..
अपनी ननदों पर रीता...
जोरू का गुलाम भाग २२८ -गुड्डी की रगड़ाई
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https://exforum.live/threads/जोरू-का-गुलाम-उर्फ़-जे-के-जी.12614/page-1332
नॉस्टाल्जिया के साथ यही कष्ट है जब उसकी मुलाकात कठोर सत्य से होती है तो अक्सर उस पथरीले धरातल पर सब चूर चूर हो जाता है , जैसे किसी दोस्त से दसो साल न मिले हों, स्कूल के दिनों की याद हो और जब मिले तो सब कुछ बदल गया हो, वक्त की मार ने उसे चंचल और प्रगल्भ से उदास और अंतर्मुखी बना दिया हो, चेहरा मोहरा और फिर लगाता है शायद आगे न मिले और उन पुरानी यादों के सहारे जीएं तो ज्यादा अच्छा है।
हेराक्लाइटस की एक उक्ति है की आप किसी नदी में दुबारा पाँव नहीं डाल सकते।
क्योंकि अगले पल न वो नदी वो नदी रहती है, न आप, आप।