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Adultery जब तक है जान

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#२३

काले पत्थरों का वो दो कमरों का मकान जिसे एक नजर में कोई देख नही पाए. चारो तरफ पेड़ पौधों से घिरा वो मकान जंगल के उस हिस्से में था जहाँ पर बरसो में ही किसी के पैर पड़ते होंगे और मैं अपने सामने उस खामोश मकान को देख रहा था जो बेताब था अपनी कहानी मुझे बताने को . अचानक ही मेरी धड़कने बढ़ सी गयी थी , जंगल की ख़ामोशी मेरे कलेजे में उतरने की कोशिश करने लगी थी. पर किसे परवाह थी, ये उम्र ही ऐसी थी . नयी जवानी थी बेताबिया थी .

करीब चार फूट ऊंची दिवार कूदकर मैं दरवाजे के पास पहुंचा, दरवाजे पर कोई भी ताला नहीं था , मैंने कुण्डी खोली ,कमरे में धुल सी जम आई थी पर फिर भी साफ़ सा ही था . चूँकि अँधेरा सा था अन्दर तो मैंने बिना किसी हिचक के खूँटी पर टंगी लालटेन रोशन कर ली, मेरे सिवा वहां पर कोई था भी तो नहीं. कमरे में एक चारपाई थी जिस पर कोई बिस्तर नहीं था एक अलमारी थी जिसकी कुण्डी मैंने खोली तो लगा की कुण्डी नहीं किस्मत का ताला ही खोल लिया हो . अलमारी ऊपर से निचे तक पैसो से भरी थी .

लोग दस बीस के लिए तरसते थे पर अलमारी में सौ,पांचसौ के नोटों की गड्डी ही गड्डी थी. लोगो को कहते ही सुना था की गांड फट गयी पर मतलब आज समझा था की गांड कैसे फटती है . जंगल के अनजाने हिस्से में सुनसान मकान में पैसो से भरी अलमारी . किसी ने सोचा भी नहीं होगा और इतने पैसे बिना की सुरक्षा के . दिमाग की नसे साली फूल गयी . कांपते हाथो से से मैंने एक सौ की गड्डी को उठाया, कमरे में हलकी सी सीलन की बदबू थी पर नोटों की खुसबू जैसे ही नाक के रस्ते मन में उतरी, दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. मैंने दो गड्डी जेब में रख ली. दुसरे कमरे में कुछ नहीं था कुछ पुराने बर्तन थे जो ऐसे ही पड़े थे , एक कुल्हाड़ी थी . मैंने सावधानी से कुण्डी लगाई . कुछ समय लिया मन में नक्शा समझा इस जगह का और फिर वहां से निकल लिया.

अँधेरा घिरने लगा था , पर मुझे घर नहीं जाना था एक बार फिर मैं उस जगह पहुँच गया जहाँ पर जाना ही था मुझे, उसी झोपडी के सामने मैं , मेरी नजर उस पर उसकी नजर मुझ पर पड़ी मैंने उसकी आँखों की त्योरियो को बढ़ते देखा .

“तुम यहाँ, ” कहा

मैं- इधर से गुजर रहा था

“जब झूठ बोलना नहीं आता तो बोलना नहीं चाहिए ”उसने कहा

मैं मुस्कुरा दिया.

“तुमसे मिलने ही आया हूँ ,वैसे भी एक चाय उधार है तुम पर ” मैने कहा

“फिर तो आज तुम्हे निराशा नहीं होगी , मैं बनाने ही वाली थी चाय चलो एक से भले दो ” उसने कहा और मुझे बैठने को कहा.

सीले मौसम में चटक चटक जलती लकडियो की आंच को देखने का भी अपना ही सुख है, पतीली में हौले हौले खौलती चाय का उबाल , ठोड़ी सी तेज चीनी की खुसबू इस से जायदा और क्या ही कहे, उस पहली चुस्की ने मुझे करार सा ही तो दे दिया.

“हौले हौले पियो वर्ना जीभ जल जाएगी ” उसने कहा

मैं- मुझे गरमा गर्म चाय की ही आदत है . वैसे तुम्हे डर नहीं लगता इस बियाबान में रहते हुए

वो- जंगल से जायदा जानवर आजकल इंसानी बस्तियों में पाए जाते है

जब उसने ये कहा तो मेरे अक्स में पिताजी की तस्वीर आई .

“तुम करती क्या हो ” मैंने पुछा

वो- तक़दीर देखती हूँ

मुझे हंसी आ गयी उसकी बात सुनकर

मैं- ऐसा कुछ नहीं होता

वो - तो मत मानो

मैं- अच्छा, ठीक है मेरी तक़दीर बताओ

उसने मेरा हाथ अपने हाथ में थामा और देखते हुए कुछ बुदबुदाने लगी और फिर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया

मैं- बताओ भी अब

वो- मैं मजाक कर रही थी , ऐसा कुछ नहीं होता.

मुझे लगा की शायद वो कुछ छिपा रही है . मैंने चाय की अंतिम चुस्की ली और कप को रख दिया. उसके माथे पर उलझन सी थी .

मैं- क्या हुआ

वो- कुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं .ये मन भी न कभी कभी . बारिश फिर से होने वाली है , लकडिया अन्दर रख लेती हूँ

मैं- मदद करू तुम्हारी

वो- नहीं

वो काम करती रही मैं निहारता रहा उसे. उसके साथ होने पर अलग सा सकून महसूस किया मैंने. उसकी ख़ामोशी बातो से ज्यादा अच्छी थी . वापिस आया तो पाया की गाँव में बिजली नहीं थी , ना किसी ने खाने का पुछा न मैंने खाया. बरसात गिरने लगी थी मैंने खिड़की का पल्ला ढाल दिया और बिस्तर पर लेट गया.चादर के अन्दर मैं और बुआ हमेशा की तरह ही लेटे हुए थे नींद नहीं थी आँखों में बुआ की सांसो को महसूस करते हुए मैंने बुआ की छातियो पर अपने हाथ रखा और धीरे धीरे बुआ की चूची को सहलाने लगा. य जानते हुए भी की वो जागी हो सकती है इस बार मैंने पहल अपनी तरफ से की थी .


“सी ईईइ ” बुआ ने हलकी सी सिसकारी भरी, जोश जोश में चूची थोडा जोर से दबाई गयी मुझसे. बुआ लिपट गयी मुझसे और हमारे होंठ एक दुसरे के होंठो से मिल गए. बुआ की जीभ मेरी जीभ से रगड़ खाई तो बदन में ऐसा करंट दौड़ा की लाज छोड़ कर मैंने अपने दोनों हाथ बुआ के नितम्बो पर कस दिए , जीवन में पहली बार ये अवसर आया था जब मैं नारी के हुस्न को ऐसे सहला रहा था , उस किताब की तमाम कहानिया मेरे मन में चलने लगी थी . मेरे लिंग की तनाव को बुआ अवस्य ही अपनी जांघो के बीच महसूस कर रही होगी बहुत देर तक हम दोनों एक दुसरे को चुमते रहे पर इस से पहले की हम और आगे बढ़ पाते निचे से आई आवाज ने हमारे होश उड़ा दिए......................
 
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