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★ INDEX ★
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♡ Family Introduction ♡ |
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Last edited:
♡ Family Introduction ♡ |
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Thanks rekha ji , waise aapne padh liya kya itna jaldiAwesome update
Ramesh ke jurm kabool karne mein bhi koi trick lagta hai. Adbhut update studded with deep secret.# 24.
एक सप्ताह बीत चुका था। विजय बैचैनी से चहलकदमी कर रहा था। एक सप्ताह की मोहलत मांगी थी उसने और आज मोहलत का अन्तिम दिन था। वह सोच रहा था कि यह सब क्या-से-क्या हो गया? अब उसे त्यागपत्र देना होगा, उसकी पुलिसिया जिन्दगी का आज आखिरी दिन था। उसने गहरी सांस ली और त्यागपत्र लिखने बैठ गया। अभी उसने लिखना शुरू ही किया था।
"ठहरो।"
अचानक उसे किसी की आवाज सुनाई दी।आवाज जानी -पहचानी थी। विजय ने सिर उठा कर देखा, तो देखते ही चौंक पड़ा। जो शख्स उसके सामने खड़ा था, हालांकि उसके चेहरे पर दाढ़ी मूंछ थी, परन्तु विजय उसे देखते ही पहचान गया था, वह रोमेश था।
"तुम !"
उसका हाथ रिवॉल्वर की तरफ सरक गया।
"इसकी जरूरत नहीं।"
रोमेश ने दाढ़ी मूंछ नोचते हुए कहा :
"जब मैं यहाँ तक आ ही गया हूँ, तो भागने के लिए तो नहीं आया होऊंगा। अपने आपको कानून के हवाले ही करने आया हूँ। तुम तो यार मेरे मामले में इतने सीरियस हो गये कि नौकरी ही दांव पर लगाने को तैयार हो गये। मुझे तुम्हारे लिये ही आना पड़ा यहाँ। चलो अब अपना कर्तव्य पूरा करो। लॉकअप मेरा इन्तजार कर रहा है।"
"रोमेश तुम, क्या यह सचमच तुम ही हो ?"
"मेरे दोस्त ज्यादा सोचो मत, बस अपना फर्ज अदा करो।" रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये,
"दोनों कलाइयां सामने हैं, जिस पर चाहे हथकड़ी डाल सकते हो। या दोनों पर भी डालना चाहते हो, तब भी हाजिर हूँ। अच्छा लगेगा।" विजय उठा और फिर उसने रोमेश को हथकड़ी पहना दी।
''मुझे तुम पर नाज है पुलिस ऑफिसर और हमेशा नाज रहेगा। तुम चाहते तो यह केस छोड़ सकते थे, लेकिन कानून की रक्षा करना कोई तुमसे सीखे।"
उधर थाने में जब पता चला कि रोमेश गिरफ्तार हो गया है, तो वहाँ भी हड़कम्प मच गया। वायरलेस टेलीफोन खटकने लगे। मीडिया में एक नई हलचल मच गई। रोमेश को पहले तो लॉकरूम में बन्द किया गया, फिर जब रोमेश को देखने के लिए भीड़ जमा होने लगी, तो उसे पुलिस को सेन्ट्रल कस्टडी में ट्रांसफर करना पड़ा। सेन्ट्रल कस्टडी में वरिष्ठ अधिकारियों के सामने रोमेश से पूछताछ शुरू हो गई।
"तुमने जे.एन. का कत्ल किया ?"
"हाँ , किया।"
"क्यों किया ?"
"मेरी उससे जाति दुश्मनी थी, उसकी वजह से मेरा घर तबाह हो गया। मेरी बीवी मुझे छोड़ कर चली गई। मेरे हरे-भरे संसार में आग लगाई थी उसने। उसके इशारे पर काम करने वाले गुर्गों को भी मैं नहीं छोड़ने वाला। मेरा बस चलता, तो उन्हें भी ठिकाने लगा देता। लेकिन मैं समझता हूँ कि मोहरों की इतनी औकात नहीं होती। मोहरे चलाने वाला असली होता है, मैंने मोहरों को छोड़कर इसीलिये जे. एन. को कत्ल किया।"
"तुम्हारे इस प्लान में और कौन-कौन शामिल था ?"
"कोई भी नहीं। मैं अकेला था। मैंने उससे फोन पर ही डेट तय कर ली थी, मुझे दस जनवरी को हर हाल में उसका कत्ल करना था।"
"तुम राजधानी से 9 तारीख को दिल्ली गये थे।"
"जी हाँ और दिल्ली से फ्लाइट पकड़कर मुम्बई आ गया था। मैं शाम को 9 बजे मुम्बई पहुंच गया था, फिर मैंने बाकी काम भी कर डाला। मैं जानता था कि जे.एन. हर शनिवार को माया के फ्लैट पर रात बिताता है, इसलिये मैंने उसी जगह जाल फैलाया था। मैंने माया को फर्जी फोन करके वहाँ से हटाया और फ्लैट में दाखिल हो गया, उसके बाद माया को भी बंधक बनाया और जे.एन. को मार डाला।" रोमेश बेधड़क हो कर यह सब बता रहा था।
"क्या तुम अदालत में भी यही बयान दोगे ?"
"ऑफकोर्स।"
"मिस्टर रोमेश सक्सेना, तुम एक वकील हो। तुमने अपने बचाव के लिए अवश्य ही कोई तैयारी की होगी।"
"इससे क्या फर्क पड़ता है, आप देखिये। चाकू की मूठ पर मेरी उंगलियों के ही निशान होंगे। बियर की एक बोतल और गिलास पर भी मिलेंगे निशान। आपके पास इतने ठोस गवाह हैं, फिर आप मेरी तरफ से क्यों परेशान हैं ?"
पुलिस ने अपनी तरफ से मुकदमे में कोई कोताही नहीं बरती, मुकदमे के चार मुख्य गवाह थे चंदू, राजा, कासिम, माया देवी। इसके अलावा और भी गवाह थे। अखबारों ने अगले दिन समाचार छाप दिया।
रोमेश को जब अदालत में पेश किया गया, तो भारी भीड़ उसे देखने आई थी। अदालत ने रोमेश को रिमाण्ड पर जेल भेज दिया। रोमेश ने अपनी जमानत के लिए कोई दरख्वास्त नहीं दी। पत्रकार उससे अनेक तरह के सवाल करते रहे, वह हर किसी का उत्तर हँसकर संतुलित ढंग से देता रहा। हर एक को उसने यही बताया कि कत्ल उसी ने किया है।
"क्या आपको सजा होगी ?" एक ने पूछा।
''क्यों ?"
"एक गूढ़ प्रश्न है, जाहिर है कि इस मुकदमे में आप पैरवी खुद करेंगे और आपका रिकार्ड है कि आप कोई मुकदमा हारे ही नहीं।"
"वक्त बतायेगा।"
इतना कहकर रोमेश ने प्रश्न टाल दिया। वैशाली दूर खड़ी इस तमाशे को देख रही थी। बहुत से वकील रोमेश का केस लड़ना चाहते थे, उसकी जमानत करवाना चाहते थे। परन्तु रोमेश ने इन्कार कर दिया।
रोमेश को जेल भेज दिया गया। रोमेश की तरफ से जेल में एक ही कौशिश की गई कि मुकदमे का प्रस्ताव जल्द से जल्द रखा जाये। उसकी यह कौशिश सफल हो गई, केवल दो माह के थोड़े से समय में केस ट्रायल पर आ गया और अदालत की तारीख लग गई।
पुलिस ने केस की पूरी तैयारी कर ली थी। यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मुकदमा था, एक संगीन अपराध का सनसनीखेज मुकदमा। चुनौती और कत्ल का मुकदमा, जिस पर न सिर्फ कानून के दिग्गजों की निगाह ठहरी हुई थी बल्कि शहर की हर गली में यही चर्चा थी।
"क्राइम नम्बर 343, मुलजिम रोमेश सक्सेना को तुरंत अदालत में हाजिर किया जाये।"
जज ने आदेश दिया और कुछ ही देर बाद पुलिस कस्टडी में रोमेश को अदालत में पेश किया गया। उसे कटघरे में खड़ा कर दिया गया। अदालत खचाखच भरी थी।
"क्राइम नम्बर 343 मुलजिम रोमेश सक्सेना, भारतीय दण्ड विधान की धारा जेरे दफा 302 के तहत मुकदमे की कार्यवा ही प्रारम्भ करने की इजाजत दी जाती है।"
न्यायाधीश की इस घोषणा के बाद मुकदमे की कार्यवाही प्रारम्भ हो गई। राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी, वह सबूत पक्ष की तरफ से अपनी सीट छोड़कर उठ खड़ा हआ। लोगों की दृष्टि राजदान की तरफ मुड़ गई।
"योर ऑनर, यह एक ऐसा मुकदमा है, जो शायद कानून के इतिहास में पहले कभी नहीं लड़ा गया होगा। एक ऐसा संगीन मुकदमा, कोल्ड ब्लडेड मर्डर, इस अदालत में पेश है जिसका मुलजिम एक जाना माना वकील है।
ऐसा वकील जिसकी ईमानदारी, आदर्शो, न्यायप्रियता का डंका पिछले एक दशक से बजता रहा है।
“जिसके बारे में कहा जाता था कि वह अपराधियों के केस ही नहीं लड़ता था, वकालत का पेशा करने वाले ऐसे शख्स ने देश के एक गणमान्य, समाज के प्रतिष्ठित शख्स का बेरहमी से कत्ल कर डाला। कत्ल भी ऐसा योर ऑनर कि मरने वाले को फोन पर टॉर्चर किया जाता रहा, खुलेआम, सरेआम कत्ल, जिसके एक नहीं हजारों लोग गवाह हैं। मेरी अदालत से दरख्वास्त है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना को जेरे दफा 302 के तहत जितनी भी बड़ी सजा हो सके, दी जाये और वह सजा केवल मृत्यु होनी चाहिये। कानून की रक्षा करने वाला अगर कत्ल करता है, तो इससे बड़ा अपराध कोई हो ही नहीं सकता ।"
कुछ रुककर राजदान, रोमेश की तरफ पलटा !
"दस जनवरी की रात साढ़े दस बजे इस शख्स ने जनार्दन नागा रेड्डी की बेरहमी से हत्या कर दी । दैट्स ऑल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना, क्या आप अपने जुर्म का इकबाल करते हैं ?" अदालत ने पूछा।
रोमेश के सामने गीता रखी गई। "आप जो कहिये, इस पर हाथ रखकर कहिये।"
"जी, मुझे मालूम है।" रोमेश ने गीता पर हाथ रखकर कसम खाई। कसम खाने के बाद रोमेश ने खचाखच भरी अदालत को देखा, एक-एक चेहरे से उसकी दृष्टि गुजरती चली गई।
इंस्पेक्टर विजय, वैशाली, सीनियर-जूनियर वकील, पत्रकार, कुछ सियासी लोग, अदालत में उस समय सन्नाटा छा गया था।
"योर ऑनर!"
रोमेश जज की तरफ मुखातिब हुआ,
"मैं रोमेश सक्सेना अपने जुर्म का इकबाल करता हूँ, क्यों कि यही हकीकत भी है कि जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल मैंने ही किया है। सारा शहर इस बात को जानता है, मैं अपना अपराध कबूल करता हूँ और इस पक्ष को कतई स्पष्ट नहीं करना चाहता कि यह कत्ल मैंने क्यों किया है। दैट्स आल योर ऑनर।"
अदालत में फुसफुसा हट शरू हो गई, किसी को यकीन नहीं था कि रोमेश अपना जुर्म स्वीकार कर लेगा। लोगों का अनुमान था कि रोमेश यह मुकदमा स्वयं लड़ेगा और अपने दौर का यह मुकदमा जबरदस्त होगा।
"फिर भी योर ऑनर।" राजदान उठ खड़ा हुआ,
"अदालत के बहुत से मुकदमों में मेरी मुलजिम से बहस होती रही है। एक बार इन्होंने एक इकबाली मुलजिम का केस लड़ा था और कानून की धाराओं का उल्लेख करते हुए अदालत को बताया कि जब तक पुलिस किसी इकबाली मुलजिम पर जुर्म साबित नहीं कर देती, तब तक उसे सजा नहीं दी जा सकती।
हो सकता है कि मेरे काबिल दोस्त बाद में उसी धारा का सहारा लेकर अदालत की कार्यवाही में कोई अड़चन डाल दें।"
जारी रहेगा.....……![]()
Hanji padh liya hai mujhse pahle to devil padh chuke the main to unka review dekh kr aayi huThanks rekha ji , waise aapne padh liya kya itna jaldi![]()
Nice update....# 24.
एक सप्ताह बीत चुका था। विजय बैचैनी से चहलकदमी कर रहा था। एक सप्ताह की मोहलत मांगी थी उसने और आज मोहलत का अन्तिम दिन था। वह सोच रहा था कि यह सब क्या-से-क्या हो गया? अब उसे त्यागपत्र देना होगा, उसकी पुलिसिया जिन्दगी का आज आखिरी दिन था। उसने गहरी सांस ली और त्यागपत्र लिखने बैठ गया। अभी उसने लिखना शुरू ही किया था।
"ठहरो।"
अचानक उसे किसी की आवाज सुनाई दी।आवाज जानी -पहचानी थी। विजय ने सिर उठा कर देखा, तो देखते ही चौंक पड़ा। जो शख्स उसके सामने खड़ा था, हालांकि उसके चेहरे पर दाढ़ी मूंछ थी, परन्तु विजय उसे देखते ही पहचान गया था, वह रोमेश था।
"तुम !"
उसका हाथ रिवॉल्वर की तरफ सरक गया।
"इसकी जरूरत नहीं।"
रोमेश ने दाढ़ी मूंछ नोचते हुए कहा :
"जब मैं यहाँ तक आ ही गया हूँ, तो भागने के लिए तो नहीं आया होऊंगा। अपने आपको कानून के हवाले ही करने आया हूँ। तुम तो यार मेरे मामले में इतने सीरियस हो गये कि नौकरी ही दांव पर लगाने को तैयार हो गये। मुझे तुम्हारे लिये ही आना पड़ा यहाँ। चलो अब अपना कर्तव्य पूरा करो। लॉकअप मेरा इन्तजार कर रहा है।"
"रोमेश तुम, क्या यह सचमच तुम ही हो ?"
"मेरे दोस्त ज्यादा सोचो मत, बस अपना फर्ज अदा करो।" रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये,
"दोनों कलाइयां सामने हैं, जिस पर चाहे हथकड़ी डाल सकते हो। या दोनों पर भी डालना चाहते हो, तब भी हाजिर हूँ। अच्छा लगेगा।" विजय उठा और फिर उसने रोमेश को हथकड़ी पहना दी।
''मुझे तुम पर नाज है पुलिस ऑफिसर और हमेशा नाज रहेगा। तुम चाहते तो यह केस छोड़ सकते थे, लेकिन कानून की रक्षा करना कोई तुमसे सीखे।"
उधर थाने में जब पता चला कि रोमेश गिरफ्तार हो गया है, तो वहाँ भी हड़कम्प मच गया। वायरलेस टेलीफोन खटकने लगे। मीडिया में एक नई हलचल मच गई। रोमेश को पहले तो लॉकरूम में बन्द किया गया, फिर जब रोमेश को देखने के लिए भीड़ जमा होने लगी, तो उसे पुलिस को सेन्ट्रल कस्टडी में ट्रांसफर करना पड़ा। सेन्ट्रल कस्टडी में वरिष्ठ अधिकारियों के सामने रोमेश से पूछताछ शुरू हो गई।
"तुमने जे.एन. का कत्ल किया ?"
"हाँ , किया।"
"क्यों किया ?"
"मेरी उससे जाति दुश्मनी थी, उसकी वजह से मेरा घर तबाह हो गया। मेरी बीवी मुझे छोड़ कर चली गई। मेरे हरे-भरे संसार में आग लगाई थी उसने। उसके इशारे पर काम करने वाले गुर्गों को भी मैं नहीं छोड़ने वाला। मेरा बस चलता, तो उन्हें भी ठिकाने लगा देता। लेकिन मैं समझता हूँ कि मोहरों की इतनी औकात नहीं होती। मोहरे चलाने वाला असली होता है, मैंने मोहरों को छोड़कर इसीलिये जे. एन. को कत्ल किया।"
"तुम्हारे इस प्लान में और कौन-कौन शामिल था ?"
"कोई भी नहीं। मैं अकेला था। मैंने उससे फोन पर ही डेट तय कर ली थी, मुझे दस जनवरी को हर हाल में उसका कत्ल करना था।"
"तुम राजधानी से 9 तारीख को दिल्ली गये थे।"
"जी हाँ और दिल्ली से फ्लाइट पकड़कर मुम्बई आ गया था। मैं शाम को 9 बजे मुम्बई पहुंच गया था, फिर मैंने बाकी काम भी कर डाला। मैं जानता था कि जे.एन. हर शनिवार को माया के फ्लैट पर रात बिताता है, इसलिये मैंने उसी जगह जाल फैलाया था। मैंने माया को फर्जी फोन करके वहाँ से हटाया और फ्लैट में दाखिल हो गया, उसके बाद माया को भी बंधक बनाया और जे.एन. को मार डाला।" रोमेश बेधड़क हो कर यह सब बता रहा था।
"क्या तुम अदालत में भी यही बयान दोगे ?"
"ऑफकोर्स।"
"मिस्टर रोमेश सक्सेना, तुम एक वकील हो। तुमने अपने बचाव के लिए अवश्य ही कोई तैयारी की होगी।"
"इससे क्या फर्क पड़ता है, आप देखिये। चाकू की मूठ पर मेरी उंगलियों के ही निशान होंगे। बियर की एक बोतल और गिलास पर भी मिलेंगे निशान। आपके पास इतने ठोस गवाह हैं, फिर आप मेरी तरफ से क्यों परेशान हैं ?"
पुलिस ने अपनी तरफ से मुकदमे में कोई कोताही नहीं बरती, मुकदमे के चार मुख्य गवाह थे चंदू, राजा, कासिम, माया देवी। इसके अलावा और भी गवाह थे। अखबारों ने अगले दिन समाचार छाप दिया।
रोमेश को जब अदालत में पेश किया गया, तो भारी भीड़ उसे देखने आई थी। अदालत ने रोमेश को रिमाण्ड पर जेल भेज दिया। रोमेश ने अपनी जमानत के लिए कोई दरख्वास्त नहीं दी। पत्रकार उससे अनेक तरह के सवाल करते रहे, वह हर किसी का उत्तर हँसकर संतुलित ढंग से देता रहा। हर एक को उसने यही बताया कि कत्ल उसी ने किया है।
"क्या आपको सजा होगी ?" एक ने पूछा।
''क्यों ?"
"एक गूढ़ प्रश्न है, जाहिर है कि इस मुकदमे में आप पैरवी खुद करेंगे और आपका रिकार्ड है कि आप कोई मुकदमा हारे ही नहीं।"
"वक्त बतायेगा।"
इतना कहकर रोमेश ने प्रश्न टाल दिया। वैशाली दूर खड़ी इस तमाशे को देख रही थी। बहुत से वकील रोमेश का केस लड़ना चाहते थे, उसकी जमानत करवाना चाहते थे। परन्तु रोमेश ने इन्कार कर दिया।
रोमेश को जेल भेज दिया गया। रोमेश की तरफ से जेल में एक ही कौशिश की गई कि मुकदमे का प्रस्ताव जल्द से जल्द रखा जाये। उसकी यह कौशिश सफल हो गई, केवल दो माह के थोड़े से समय में केस ट्रायल पर आ गया और अदालत की तारीख लग गई।
पुलिस ने केस की पूरी तैयारी कर ली थी। यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मुकदमा था, एक संगीन अपराध का सनसनीखेज मुकदमा। चुनौती और कत्ल का मुकदमा, जिस पर न सिर्फ कानून के दिग्गजों की निगाह ठहरी हुई थी बल्कि शहर की हर गली में यही चर्चा थी।
"क्राइम नम्बर 343, मुलजिम रोमेश सक्सेना को तुरंत अदालत में हाजिर किया जाये।"
जज ने आदेश दिया और कुछ ही देर बाद पुलिस कस्टडी में रोमेश को अदालत में पेश किया गया। उसे कटघरे में खड़ा कर दिया गया। अदालत खचाखच भरी थी।
"क्राइम नम्बर 343 मुलजिम रोमेश सक्सेना, भारतीय दण्ड विधान की धारा जेरे दफा 302 के तहत मुकदमे की कार्यवा ही प्रारम्भ करने की इजाजत दी जाती है।"
न्यायाधीश की इस घोषणा के बाद मुकदमे की कार्यवाही प्रारम्भ हो गई। राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी, वह सबूत पक्ष की तरफ से अपनी सीट छोड़कर उठ खड़ा हआ। लोगों की दृष्टि राजदान की तरफ मुड़ गई।
"योर ऑनर, यह एक ऐसा मुकदमा है, जो शायद कानून के इतिहास में पहले कभी नहीं लड़ा गया होगा। एक ऐसा संगीन मुकदमा, कोल्ड ब्लडेड मर्डर, इस अदालत में पेश है जिसका मुलजिम एक जाना माना वकील है।
ऐसा वकील जिसकी ईमानदारी, आदर्शो, न्यायप्रियता का डंका पिछले एक दशक से बजता रहा है।
“जिसके बारे में कहा जाता था कि वह अपराधियों के केस ही नहीं लड़ता था, वकालत का पेशा करने वाले ऐसे शख्स ने देश के एक गणमान्य, समाज के प्रतिष्ठित शख्स का बेरहमी से कत्ल कर डाला। कत्ल भी ऐसा योर ऑनर कि मरने वाले को फोन पर टॉर्चर किया जाता रहा, खुलेआम, सरेआम कत्ल, जिसके एक नहीं हजारों लोग गवाह हैं। मेरी अदालत से दरख्वास्त है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना को जेरे दफा 302 के तहत जितनी भी बड़ी सजा हो सके, दी जाये और वह सजा केवल मृत्यु होनी चाहिये। कानून की रक्षा करने वाला अगर कत्ल करता है, तो इससे बड़ा अपराध कोई हो ही नहीं सकता ।"
कुछ रुककर राजदान, रोमेश की तरफ पलटा !
"दस जनवरी की रात साढ़े दस बजे इस शख्स ने जनार्दन नागा रेड्डी की बेरहमी से हत्या कर दी । दैट्स ऑल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना, क्या आप अपने जुर्म का इकबाल करते हैं ?" अदालत ने पूछा।
रोमेश के सामने गीता रखी गई। "आप जो कहिये, इस पर हाथ रखकर कहिये।"
"जी, मुझे मालूम है।" रोमेश ने गीता पर हाथ रखकर कसम खाई। कसम खाने के बाद रोमेश ने खचाखच भरी अदालत को देखा, एक-एक चेहरे से उसकी दृष्टि गुजरती चली गई।
इंस्पेक्टर विजय, वैशाली, सीनियर-जूनियर वकील, पत्रकार, कुछ सियासी लोग, अदालत में उस समय सन्नाटा छा गया था।
"योर ऑनर!"
रोमेश जज की तरफ मुखातिब हुआ,
"मैं रोमेश सक्सेना अपने जुर्म का इकबाल करता हूँ, क्यों कि यही हकीकत भी है कि जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल मैंने ही किया है। सारा शहर इस बात को जानता है, मैं अपना अपराध कबूल करता हूँ और इस पक्ष को कतई स्पष्ट नहीं करना चाहता कि यह कत्ल मैंने क्यों किया है। दैट्स आल योर ऑनर।"
अदालत में फुसफुसा हट शरू हो गई, किसी को यकीन नहीं था कि रोमेश अपना जुर्म स्वीकार कर लेगा। लोगों का अनुमान था कि रोमेश यह मुकदमा स्वयं लड़ेगा और अपने दौर का यह मुकदमा जबरदस्त होगा।
"फिर भी योर ऑनर।" राजदान उठ खड़ा हुआ,
"अदालत के बहुत से मुकदमों में मेरी मुलजिम से बहस होती रही है। एक बार इन्होंने एक इकबाली मुलजिम का केस लड़ा था और कानून की धाराओं का उल्लेख करते हुए अदालत को बताया कि जब तक पुलिस किसी इकबाली मुलजिम पर जुर्म साबित नहीं कर देती, तब तक उसे सजा नहीं दी जा सकती।
हो सकता है कि मेरे काबिल दोस्त बाद में उसी धारा का सहारा लेकर अदालत की कार्यवाही में कोई अड़चन डाल दें।"
जारी रहेगा.....……![]()
Thank you very much for your valuable review and support, dear the one and only, the super sexy: RajizexyRamesh ke jurm kabool karne mein bhi koi trick lagta hai. Adbhut update studded with deep secret.
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Thanks brother for your valuable reviewShandar jabardast faddu update![]()
Thanks brotherNice update....
Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....# 24.
एक सप्ताह बीत चुका था। विजय बैचैनी से चहलकदमी कर रहा था। एक सप्ताह की मोहलत मांगी थी उसने और आज मोहलत का अन्तिम दिन था। वह सोच रहा था कि यह सब क्या-से-क्या हो गया? अब उसे त्यागपत्र देना होगा, उसकी पुलिसिया जिन्दगी का आज आखिरी दिन था। उसने गहरी सांस ली और त्यागपत्र लिखने बैठ गया। अभी उसने लिखना शुरू ही किया था।
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अचानक उसे किसी की आवाज सुनाई दी।आवाज जानी -पहचानी थी। विजय ने सिर उठा कर देखा, तो देखते ही चौंक पड़ा। जो शख्स उसके सामने खड़ा था, हालांकि उसके चेहरे पर दाढ़ी मूंछ थी, परन्तु विजय उसे देखते ही पहचान गया था, वह रोमेश था।
"तुम !"
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"जब मैं यहाँ तक आ ही गया हूँ, तो भागने के लिए तो नहीं आया होऊंगा। अपने आपको कानून के हवाले ही करने आया हूँ। तुम तो यार मेरे मामले में इतने सीरियस हो गये कि नौकरी ही दांव पर लगाने को तैयार हो गये। मुझे तुम्हारे लिये ही आना पड़ा यहाँ। चलो अब अपना कर्तव्य पूरा करो। लॉकअप मेरा इन्तजार कर रहा है।"
"रोमेश तुम, क्या यह सचमच तुम ही हो ?"
"मेरे दोस्त ज्यादा सोचो मत, बस अपना फर्ज अदा करो।" रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये,
"दोनों कलाइयां सामने हैं, जिस पर चाहे हथकड़ी डाल सकते हो। या दोनों पर भी डालना चाहते हो, तब भी हाजिर हूँ। अच्छा लगेगा।" विजय उठा और फिर उसने रोमेश को हथकड़ी पहना दी।
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उधर थाने में जब पता चला कि रोमेश गिरफ्तार हो गया है, तो वहाँ भी हड़कम्प मच गया। वायरलेस टेलीफोन खटकने लगे। मीडिया में एक नई हलचल मच गई। रोमेश को पहले तो लॉकरूम में बन्द किया गया, फिर जब रोमेश को देखने के लिए भीड़ जमा होने लगी, तो उसे पुलिस को सेन्ट्रल कस्टडी में ट्रांसफर करना पड़ा। सेन्ट्रल कस्टडी में वरिष्ठ अधिकारियों के सामने रोमेश से पूछताछ शुरू हो गई।
"तुमने जे.एन. का कत्ल किया ?"
"हाँ , किया।"
"क्यों किया ?"
"मेरी उससे जाति दुश्मनी थी, उसकी वजह से मेरा घर तबाह हो गया। मेरी बीवी मुझे छोड़ कर चली गई। मेरे हरे-भरे संसार में आग लगाई थी उसने। उसके इशारे पर काम करने वाले गुर्गों को भी मैं नहीं छोड़ने वाला। मेरा बस चलता, तो उन्हें भी ठिकाने लगा देता। लेकिन मैं समझता हूँ कि मोहरों की इतनी औकात नहीं होती। मोहरे चलाने वाला असली होता है, मैंने मोहरों को छोड़कर इसीलिये जे. एन. को कत्ल किया।"
"तुम्हारे इस प्लान में और कौन-कौन शामिल था ?"
"कोई भी नहीं। मैं अकेला था। मैंने उससे फोन पर ही डेट तय कर ली थी, मुझे दस जनवरी को हर हाल में उसका कत्ल करना था।"
"तुम राजधानी से 9 तारीख को दिल्ली गये थे।"
"जी हाँ और दिल्ली से फ्लाइट पकड़कर मुम्बई आ गया था। मैं शाम को 9 बजे मुम्बई पहुंच गया था, फिर मैंने बाकी काम भी कर डाला। मैं जानता था कि जे.एन. हर शनिवार को माया के फ्लैट पर रात बिताता है, इसलिये मैंने उसी जगह जाल फैलाया था। मैंने माया को फर्जी फोन करके वहाँ से हटाया और फ्लैट में दाखिल हो गया, उसके बाद माया को भी बंधक बनाया और जे.एन. को मार डाला।" रोमेश बेधड़क हो कर यह सब बता रहा था।
"क्या तुम अदालत में भी यही बयान दोगे ?"
"ऑफकोर्स।"
"मिस्टर रोमेश सक्सेना, तुम एक वकील हो। तुमने अपने बचाव के लिए अवश्य ही कोई तैयारी की होगी।"
"इससे क्या फर्क पड़ता है, आप देखिये। चाकू की मूठ पर मेरी उंगलियों के ही निशान होंगे। बियर की एक बोतल और गिलास पर भी मिलेंगे निशान। आपके पास इतने ठोस गवाह हैं, फिर आप मेरी तरफ से क्यों परेशान हैं ?"
पुलिस ने अपनी तरफ से मुकदमे में कोई कोताही नहीं बरती, मुकदमे के चार मुख्य गवाह थे चंदू, राजा, कासिम, माया देवी। इसके अलावा और भी गवाह थे। अखबारों ने अगले दिन समाचार छाप दिया।
रोमेश को जब अदालत में पेश किया गया, तो भारी भीड़ उसे देखने आई थी। अदालत ने रोमेश को रिमाण्ड पर जेल भेज दिया। रोमेश ने अपनी जमानत के लिए कोई दरख्वास्त नहीं दी। पत्रकार उससे अनेक तरह के सवाल करते रहे, वह हर किसी का उत्तर हँसकर संतुलित ढंग से देता रहा। हर एक को उसने यही बताया कि कत्ल उसी ने किया है।
"क्या आपको सजा होगी ?" एक ने पूछा।
''क्यों ?"
"एक गूढ़ प्रश्न है, जाहिर है कि इस मुकदमे में आप पैरवी खुद करेंगे और आपका रिकार्ड है कि आप कोई मुकदमा हारे ही नहीं।"
"वक्त बतायेगा।"
इतना कहकर रोमेश ने प्रश्न टाल दिया। वैशाली दूर खड़ी इस तमाशे को देख रही थी। बहुत से वकील रोमेश का केस लड़ना चाहते थे, उसकी जमानत करवाना चाहते थे। परन्तु रोमेश ने इन्कार कर दिया।
रोमेश को जेल भेज दिया गया। रोमेश की तरफ से जेल में एक ही कौशिश की गई कि मुकदमे का प्रस्ताव जल्द से जल्द रखा जाये। उसकी यह कौशिश सफल हो गई, केवल दो माह के थोड़े से समय में केस ट्रायल पर आ गया और अदालत की तारीख लग गई।
पुलिस ने केस की पूरी तैयारी कर ली थी। यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मुकदमा था, एक संगीन अपराध का सनसनीखेज मुकदमा। चुनौती और कत्ल का मुकदमा, जिस पर न सिर्फ कानून के दिग्गजों की निगाह ठहरी हुई थी बल्कि शहर की हर गली में यही चर्चा थी।
"क्राइम नम्बर 343, मुलजिम रोमेश सक्सेना को तुरंत अदालत में हाजिर किया जाये।"
जज ने आदेश दिया और कुछ ही देर बाद पुलिस कस्टडी में रोमेश को अदालत में पेश किया गया। उसे कटघरे में खड़ा कर दिया गया। अदालत खचाखच भरी थी।
"क्राइम नम्बर 343 मुलजिम रोमेश सक्सेना, भारतीय दण्ड विधान की धारा जेरे दफा 302 के तहत मुकदमे की कार्यवा ही प्रारम्भ करने की इजाजत दी जाती है।"
न्यायाधीश की इस घोषणा के बाद मुकदमे की कार्यवाही प्रारम्भ हो गई। राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी, वह सबूत पक्ष की तरफ से अपनी सीट छोड़कर उठ खड़ा हआ। लोगों की दृष्टि राजदान की तरफ मुड़ गई।
"योर ऑनर, यह एक ऐसा मुकदमा है, जो शायद कानून के इतिहास में पहले कभी नहीं लड़ा गया होगा। एक ऐसा संगीन मुकदमा, कोल्ड ब्लडेड मर्डर, इस अदालत में पेश है जिसका मुलजिम एक जाना माना वकील है।
ऐसा वकील जिसकी ईमानदारी, आदर्शो, न्यायप्रियता का डंका पिछले एक दशक से बजता रहा है।
“जिसके बारे में कहा जाता था कि वह अपराधियों के केस ही नहीं लड़ता था, वकालत का पेशा करने वाले ऐसे शख्स ने देश के एक गणमान्य, समाज के प्रतिष्ठित शख्स का बेरहमी से कत्ल कर डाला। कत्ल भी ऐसा योर ऑनर कि मरने वाले को फोन पर टॉर्चर किया जाता रहा, खुलेआम, सरेआम कत्ल, जिसके एक नहीं हजारों लोग गवाह हैं। मेरी अदालत से दरख्वास्त है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना को जेरे दफा 302 के तहत जितनी भी बड़ी सजा हो सके, दी जाये और वह सजा केवल मृत्यु होनी चाहिये। कानून की रक्षा करने वाला अगर कत्ल करता है, तो इससे बड़ा अपराध कोई हो ही नहीं सकता ।"
कुछ रुककर राजदान, रोमेश की तरफ पलटा !
"दस जनवरी की रात साढ़े दस बजे इस शख्स ने जनार्दन नागा रेड्डी की बेरहमी से हत्या कर दी । दैट्स ऑल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना, क्या आप अपने जुर्म का इकबाल करते हैं ?" अदालत ने पूछा।
रोमेश के सामने गीता रखी गई। "आप जो कहिये, इस पर हाथ रखकर कहिये।"
"जी, मुझे मालूम है।" रोमेश ने गीता पर हाथ रखकर कसम खाई। कसम खाने के बाद रोमेश ने खचाखच भरी अदालत को देखा, एक-एक चेहरे से उसकी दृष्टि गुजरती चली गई।
इंस्पेक्टर विजय, वैशाली, सीनियर-जूनियर वकील, पत्रकार, कुछ सियासी लोग, अदालत में उस समय सन्नाटा छा गया था।
"योर ऑनर!"
रोमेश जज की तरफ मुखातिब हुआ,
"मैं रोमेश सक्सेना अपने जुर्म का इकबाल करता हूँ, क्यों कि यही हकीकत भी है कि जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल मैंने ही किया है। सारा शहर इस बात को जानता है, मैं अपना अपराध कबूल करता हूँ और इस पक्ष को कतई स्पष्ट नहीं करना चाहता कि यह कत्ल मैंने क्यों किया है। दैट्स आल योर ऑनर।"
अदालत में फुसफुसा हट शरू हो गई, किसी को यकीन नहीं था कि रोमेश अपना जुर्म स्वीकार कर लेगा। लोगों का अनुमान था कि रोमेश यह मुकदमा स्वयं लड़ेगा और अपने दौर का यह मुकदमा जबरदस्त होगा।
"फिर भी योर ऑनर।" राजदान उठ खड़ा हुआ,
"अदालत के बहुत से मुकदमों में मेरी मुलजिम से बहस होती रही है। एक बार इन्होंने एक इकबाली मुलजिम का केस लड़ा था और कानून की धाराओं का उल्लेख करते हुए अदालत को बताया कि जब तक पुलिस किसी इकबाली मुलजिम पर जुर्म साबित नहीं कर देती, तब तक उसे सजा नहीं दी जा सकती।
हो सकता है कि मेरे काबिल दोस्त बाद में उसी धारा का सहारा लेकर अदालत की कार्यवाही में कोई अड़चन डाल दें।"
जारी रहेगा.....……![]()