• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy अंधेरे का बोझ : क्षीण शरीर और काला साया

अगर आपकी आत्मा किसी और के शरीर में घुस जाए तो क्या होगा?

  • अच्छा होगा

  • बुरा होगा

  • कुछ फरक नहीं पड़ेगा


Results are only viewable after voting.

Anatole

⏳CLOCKWORK HEART 💙
Prime
109
615
94
#१.नरक या भूलोक?

एक हाथ में बंदूक और एक हाथ में बम लिए आरव खड़ा था। गोलियों की आवाज नीचे गूंज रही थी। बारूद की गंध आ रही थी। एक लंबी सांस लेते हुए, अपने साथ छिपे जवानों की तरफ आरव ने देखा।

उसे आखिरी बार विमल ने निराशाजनक नजरों से कहा, "आज नहीं, किसी और दिन?"

आरव ने जोश के साथ "वो दिन आज ही है।" उसकी आवाज में विश्वास था। तभी सीढ़ियों से आवाज आई, और आरव बिना वक्त गंवाए नीचे उतरने लगा। दो गोलियों की आवाज सुनते ही विमल आरव के पीछे आया, दीवार पर खून के छिटे थे और दो लाशें नीचे गिरी हुई थीं।

उसी दिन सुबह...

"मेरे शोना को भूख लगी?" अपने पति की तरफ नीली-भूरी आंखों से घूरते हुए विद्या ने कहा. आरव ने मासूमियत में अपना सिर 'हां' में हिलाया।

"आप क्या सिर हिला रहे हैं? मैं मेरे सोना से कह रही हूं।" तिरछा मुंह करते हुए उसने अपना हाथ पेट पर रख दिया।

आरव का मुंह खुला...

विद्या आंखे दूसरी तरफ करते हुए: "अगर भूख लगी है तो खा लीजिए, आपसे कोई पूछने नहीं वाला।"

आरव मुस्कुराते हुए: "मेरा दिल जब तक नहीं मानेगा, तब तक मैं कैसे खा सकता हूं।" विद्या ने कहने वाली थी, 'मैं किसी का दिल नहीं,' लेकिन उसने नहीं कहा और ऊपर एक बार देखके मुंह तिरछा कर लिया।

"अच्छा, अभी के लिए बाय, ये मनाने का खेल वापस आने पर जारी रखेंगे।"

आरव ने फिर विद्या के गालों को चूमा और "I love you, वेदु।" इतना कहने पर जब जवाब नहीं आया तो चेहरा थोड़ा नीचे गिर गया। और थोड़ा निराश होकर वह से चला गया। विद्या उसके जाने पर थोड़ी मुस्कुराई।

उन्हें इन सब में मजा आता था, आरव उस पर जान छिड़कता। 6 फीट का आदमी और सरहद पर लड़ने वाले फौजी की तरह मजबूत शरीर के साथ ही गुस्सा होने के बावजूद वो विद्या के सामने एक बिल्ली की तरह रहता। वो दोनों एक-दूसरे को पाकर खुश थे।

-------------

पुलिस स्टेशन, सोनावला...

"तो कैसी है विद्या की तबियत, गुस्सा ठंडा हुआ कि नहीं?" आरव को थाने आते ही पहला सवाल उसके सीनियर विमल ने पूछा।

आरव मुस्कुराते हुए: "अभी तो कुछ नहीं हुआ। बाकी हमारी मैडम मान गई।"

विमल: "हां, परमिशन मिली है, और कल रात डीएम मैडम से ब्लूप्रिंट भी ले लिया है।"

आरव: "कितने आदमी होंगे सर वहां?"

विमल: "कमिश्नर साहब को उनके इंटरनल सोर्स से 34 बताया गया है।"

आरव: "कमाल है, वो सब इस मिशन के लिए मान गए, खास कर डीएम मैडम।"

विमल: "ऊपर से प्रेशर है उन पर शायद, मिस्टर सालुंखे जैसी हस्ती को बंदी जो बनाया है शेरा ने।"

आरव: "हां, अब पुलिस अमीर और गुंडों की रखैल जो हैं।"

विमल: "लेकिन तुम निराश मत हो, एक दिन इस पूरी गंदगी को हम साफ जरूर करेंगे। तुम्हारे जैसे अफसर के साथ काम कर मुझे भी मजा आता है।"

आरव, विमल की बात पर मुस्कुराया।

विमल (ब्लूप्रिंट पर उंगली रखते हुए): "ये रास्ते से हम जाएंगे, कम से कम कैजुअल्टी के साथ मिस्टर सालुंखे को बचाएंगे।"

आरव ने मुंह बनाते हुए: "हां, उसे तो लाना ही पड़ेगा।"

विमल (आंखें बड़ी करते हुए): "तुमने शायद सुना नहीं, कम से कम, ये मत भूलो हम पुलिस अफसर हैं, हममें और उनमें फर्क है।"

आरव (चेहरा ढीला होते हुए): "यस सर।"

आरव का गुस्सा विमल की तरफ नहीं, उन गुंडों की तरफ था। सभी तैयारी के साथ आरव और विमल एक बड़ी सी इमारत के ऊपर आ गए। उसके करीब एक बड़ी सी सफेद इमारत थी। अंदर से किसी कॉलेज की तरह थी। कुछ गुंडों को ठिकाने लगाकर वो नीचे जाने लगे। आरव कुछ ठीक नहीं लग रहा था। कुछ तो गड़बड़ जरूर थी। वो सीढ़ियों से निचली मंजिल पर जाने लगे। शेरा गोदाम में था।
*पॉप*

*थड*

*थड*

आरव के साथियों की लाशें गिरने लगीं, एकदम से जैसे 100 बंदूकें किसी ने चला दी हों। पीछे मुड़ने तक एक गोली आरव की पीठ पर लग गई। जल्द से जल्द जितने बचे सिपाही थे वो सीढ़ियों के भीतर छिप गए। बाकी आसपास के कमरों में छुपे हुए थे। सभी लोग डर चुके थे, उन सभी को अब सिर्फ मौत दिख रही थी। इस तरह अचानक से हमला होने पर आरव भी थोड़ा डर गया था।

विमल: "ये कैसे हो सकता है, इतने लोग कैसे? ऐसे तो हम बचे 20 अफसर भी मर जाएंगे।"

आरव (दांत भींचते हुए): "सर, आप अभी भी समझ नहीं पाए, हमें फंसाया गया है। और अब नीचे हमारे साथी भी फंसे हुए हैं।"

विमल गुस्से से: "शिट शिट शिट।"

दोनों फ्रस्टेटेड और गुस्से में थे। नीचे शेरा के 35 नहीं बल्कि 100 से भी ज्यादा आदमी थे और वो भी हथियारों के साथ। विमल बस भगवान से दुआ मांग रहा था कि ये दिन उसका आखिरी न हो।

विमल अपना सिर पछतावे से हिलाते हुए: "अब हमें किसी तरह यहां से निकलना होगा।इतने पुलिस के साथ हम कुछ नहीं कर पाएंगे।"

आरव: "नहीं सर हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे। अगर अभी भागे तो आगे हमें ऐसा मौका कभी नहीं मिलेगा, वो भी इतने सारे हरामखोर एक साथ।"

विमल: "तुम पागल हो गए हो क्या? उनमें से आधे भी हम नहीं मार सकते।"

विमल आरव की काबिलियत जानता था, लेकिन परिस्थिति इतनी आसान नहीं थी। आरव ने उसकी एक ना सुनी पूरी जोश और गुस्से के साथ बंदूक में गोलियां भरने लगा।

एक हाथ में बंदूक और एक हाथ में बम लिए आरव खड़ा था। गोलियों की आवाज नीचे गूंज रही थी। बारूद की गंध आ रही थी। एक लंबी सांस लेते हुए, अपने साथ छिपे जवानों की तरफ आरव ने देखा।

उसे आखिरी बार विमल ने निराशाजनक नजरों से कहा, "आज नहीं, किसी और दिन?"

आरव ने जोश के साथ "वो दिन आज ही है।" उसकी आवाज में विश्वास था। तभी सीढ़ियों से आवाज आई, और आरव बिना वक्त गंवाए नीचे उतरने लगा। दो गोलियों की आवाज सुनते ही विमल आरव के पीछे आया, दीवार पर खून के छिटे थे और दो लाशें नीचे गिरी हुई थीं।

बंदूक की आवाज नीचे से बढ़ गई। विमल अपनी सांसों को काबू कर बचे अफसरों के साथ उतरने लगा तभी नीचे धमाका हुआ। इस पर आरवने पीछे विमल की तरफ देखा। जैसे बता रहा हो ये बम उसने फेंका था।

फिर जो विमल ने देखा वो कभी भूल नहीं सकेगा वो एक को मार पाता तब तक 10 लाशें नीचे गिरी हुई थीं। आरव को न तो खून से कोई घिनौना पन नजर आ रहा था और न ही किसी चीज की फिक्र थी। ये कोई लढाई नहीं कोहराम था। सीर क्षणों में फट रहे थे। जैसे उन साधारण इंसानों के बीच आरव एक दैत्य था। आरव की बंदूक जब एक वक्त खाली हुई और सामने से कोई आया तो नीचे पड़ी लाश को एक हाथ से उठाकर किसी ढाल की तरह इस्तेमाल करने लगा और अपनी बंदूक भरने लगा।

कुछ ही मिनटों में लाशों का ढेर वहां पर बन गया। इस वक्त सभी लोग खून से लथपथ थे, आरव, सभी से तेज होने के बावजुड़ फिर भी उसे ही गोलियां लगी थीं। उसकी जगह कोई और होता तो मारा गया होता। सभी की आंखे फटी हुई थी। वो सब बचे हुए लोग एक साथ नीचे जाने लगे।

कुछ ही पल में सभी गोदाम जैसी जगह पहुंच गए। उस अंधेरे में उन्हें झरने की आवाज आने लगी।

उसी के साथ एक आवाज उनके कानों में पड़ी। "आइए, आइए, लगता है स्वागत में बहुत कमी पड़ गई आपके, 'विमल साहब' ।"

विमल अपनी बंदूक आगे कर इधर-उधर देखते हुए: "शेरा खुद को कानून के हवाले कर दे। तेरा जिंदा बचना अब हमारे हाथों में है।"

तभी वहां पर रोशनी हुई। उस गोदाम के बीचो-बीच एक बड़ा सा गड्ढा था। जहां से पानी के झरने जैसी आवाज आ रही थी।

गोदाम और पूरी इमारत ब्लूप्रिंट में उन्होंने देखी थी उससे बेहद अलग थी, इसलिए आरव ने आंखें बड़ी करके विमल की तरफ देखा। विमल समझ गया कि उनके साथ कोई बड़ा खेल हुआ था। उसका भी चेहरा इस बात से चिंता में चला गया।

उसी के सामने शेरा मिस्टर सालुंखे के पीछे खड़ा था और बंदूक सालुंखे पर तानी हुई थी।

शेरा: "अब क्या राय है विमल साहब आपकी?"

उसका इतना कहना था कि आरव ने बंदूक सीधे मिस्टर सालुंखे के ऊपर तानी, एक वक्त के लिए सालुंखे के साथ शेरा की भी सांसें रुक गईं।

"लगता है, इन जनाब को मरने का बहुत शौक है।"

*धाड़*

आरव ने अपना पूरा शरीर विमल की ओर झोंक दिया और गोली शेरा पर चला दी। शेरा के सर पर गोली लगते ही पानी में गिर गया और उसकी गोली आरव के सीने से जा लगी।

आरव की धड़कने एकदम से धीमी होने लगी, उसे अपना पूरा जीवन उल्टा दिखायी देने लगा, उसके सामने सबसे पहले तस्वीर अपनी पत्नी की आई जो कि गर्भ से थी, बाद में उसकी मां और उसके पिता की।

उसकी धड़कन अब बंद हो गई थी। विमल रोने लगा उसने अपना सबसे करीबी दोस्त जो खोया था।

............

कुछ महीनों बाद।

आरव का नजरिया.....

"मरीज को होश आ रहा है, जाओ डॉक्टर साहब को बुलाओ।" ये आवाज मेरे कानों में पड़ी। कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। मैंने हलके से आंखें खोली सामने एक औरत खड़ी जो कि शायद नर्स थी। आंखें पूरी खोल पाता तब तक मेरी फिर से आंखें बंद हो गई।

एक औरत की आवाज बहुत बार आती रही, वो मेरे पास आकर बहुत बार रोई।

धीरे-धीरे अब आसपास का शोर मुझे सुनाई देने लगा। शरीर बेहद हल्का महसूस कर रहा था। दवाइयों की महक आने लगी। तभी मैंने हलके से आंखे खोली।

"शुभम, अब कैसा महसूस कर रहे हो।" सामने खड़ी नर्स ने पूछा। मैं कुछ नहीं बोला, कितने दिनों से अस्पताल में था ये भी नहीं जानता था।

"ठीक है, आपका परिवार बाहर है उनसे मिल लीजिए।" ये बात सुन मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई।

तभी दरवाजे से एक औरत आई।
"बेटा, मुझे लगा था, मैं तुम्हे हमेशा केलिए खो दूंगी।" इतना कहते हुए वो औरत रोने लगी।
मैं पहचान नहीं पाया कि ये कौन है? और मेरे लिए इतना क्यों रही है। कही इस औरत को गलत फ़ैमी तो नहीं हुई कि मैं इसका बेटा हु। बहुत से सवाल मेरे मन थे और कुछ अजीब सा महसूस होने लगा। जैसे उसे औरत शायद में जानता हु। लेकिम उस औरत को टोकने की हिम्मत मुझमें नहीं थी। फिर वो मेरी तरफ उत्सुकता से देख रही थी कि मैं कुछ बोलूं।

मैने पूछा: "विद्या कहा है।"

उसने बारीक आंखों से देखकर कहा :" कौन विद्या बेटा, तू किसकी बात कर रहा है, शायद तू श्वेता की तो बात नहीं कर रहा। तेरी बहन आ रही है, पिताजी भी आयेंगे जल्दी।"

मैं कुछ भी समझ नहीं पाया: "मेरी बहन, मेरे पिता ये क्या बाते कर रही है? आप है कौन?।"

मेरी बात सुनते ही उन्होंने भौवें ऊपर की : "बेटा कैसी बाते कर रहा है तू।"

मैने अपना सर भींच चिल्लाते हुए कहा: "मैं कैसी बाते बाते कर रहा हु मतलब, आप पागलों जैसी बाते कर रही है, विद्या कहा है?, उसे बुलाइए।"

वो औरत एकदम से रोते हुए बाहर की और भाग गई। क्या हो रहा था, मैं समझ नहीं पाया। इसीलिए बैठने की कोशिश करने लगा।
फिर मुझे अजीब सा एहसास हुआ। पूरा शरीर बेहद हल्का महसूस हो रहा था। जब नीचे की और नजर डाली, मैं दुबला हो चुका था, लेकिन सबसे अजीब बात ये थी कि मेरा शरीर पहले से ज्यादा गोरा था।मैंने डर के मारे झटके से उठने की कोशिश की।

"शुभम तुम ये क्या कर रहे हो,अभी तुम पूरी तरह ठीक नहीं हुए हो।" नर्स तेजी से अंदर आने लगी और मुझे संभालते हुए पलंग पर बैठाने की कोशिश करने लगी।

तभी मुझे ध्यान आया, 'शुभम' ये नाम क्यों अपनासा लग रहा है। मुझे अजीब सी बात महसूस हुई, वो औरत तो शुभम की मां है, मैं उसे जानता हु।लेकिन कैसे? ये क्या हो रहा है, कही मैं नरक में तो नहीं हु। मेरे दिमाग में अभी कुछ यादें आने लगी थी। ये मेरी यादें नहीं शुभम की थी। फिर मेरा ध्यान एक स्टील की टेबल पर गया उसमें देखा तो दिमाग एकदम से फटने लगा।ये!!
मेरे सामने अंधेरा छा गया।


"बेटा तुम्हारा नाम बताओगे?" डॉ. ने पूछा।

मैंने हार मानते हुए : "शुभम।"

इतना कहने पर शुभम की मां ने खुशी की सांस ली। जिसका नाम शायद सुचित्रा था। ये मुझे कैसे पता, मत पूछो। पास ही मैं शुभम की बहन श्वेता खड़ी थी, वो शुभम से एक साल बड़ी थी, वो खुश नजर नहीं आ रही थी। शायद
शुभम से उसकी जमती नहीं थी। यादे बहुत धुंधली थी, जैसे किसी सपने की तरह मैं समझ पा रहा था कि वो मेरी नहीं है। और शायद मुझे शुभम के बारे में पता भी नहीं था, ऐसा लग रहा था लेकिन डॉ.जैसे सवाल पूछते गए मुझे वो उत्तर धुंधले तरीके से याद आने लगे।

डॉ. को यकीन हो गया कि मेरी यादाश्त ठीक है, और इतना कहकर सुचित्रा को बाहर बुलाया।
बाहर क्या बताया मुझे नहीं पता लेकिन इन सब से पागल होने लगा, मुझे मेरी मां और विद्या की चिंता होने लगी, विमल शेरा उन सब का क्या हुआ? कही इन सब में उनका तो कुछ लेना देना नहीं। मैं बहुत सोचने लगा, विमल पर शक करने जैसा तो कुछ नहीं था लेकिन मरनेसे पहले उसे ही देखा था। उसे जरूर इस सब के बारे में पता होगा। कही मैं जिंदा तो नहीं और शुभम मेरी शरीर में तो नहीं, ये सब सवाल आते ही मैंने सामने देखा, श्वेता जो शुभम से शायद 2 साल बड़ी थी।

मैने कहा : " श्वेता, अपना फोन देना प्लीज।"

श्वेता ने उठ दबाते हुए कहा:" दीदी, और फोन की क्या जरूरत पड़ गई ऐसी।"

मैं सर खुजाते हुए : सॉरी दीदी, थोड़ा जरूरी काम है।

इतना कहकर फोन उससे खींच लिया।वो कुछ बोल पाती तब तक मैने मेरा नाम सर्च किया, आरव जंगले, तभी मुझे मराठी न्यूज आर्टिकल दिखा जिसमें बताया गया कि आरव जंगले जाने माने उद्योगपति को बचाते हुए शाहिद हो चुके है, जिनकी एक गर्भवती पत्नी है। आर्टिकल 6 महीने पुराना था।

तभी मुझे अहसास हुआ, इसका मतलब कि शायद मेरा बच्चा अब बिना पिता के जन्म लेगा और जब उसे सबसे ज्यादा मेरी जरूरत थी मैं नहीं हु।

ये सोचते ही आंसुओं से आंखे गीली हों गई। और खुदको रोने से रोक नहीं
पाया। तभी मेरे हाथ से श्वेता ने फोन खींच लिया।

"तुम रो क्यों रहे हो? और क्या पढ़ रहे थे।"

मैने कुछ नहीं कहा, अब मेरे आंसू रुक नहीं रहे थे, लेकिन खुदको शांत कराने लगा।

........

तो इसका मतलब आपने शुरुवात पढ़ ली है। अगर समझने में मुश्किल हुई हो, तो फिक्र मत करो धीरे धीरे सब समझ आएगा। देवनागरी हिंदी में मेरा पहला प्रयोग है, और इस जॉनर में भी, अगला भाग जल्द ही आयेगा, बने रहिए।
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
9,431
36,760
219
#१.नरक या भूलोक?

एक हाथ में बंदूक और एक हाथ में बम लिए आरव खड़ा था। गोलियों की आवाज नीचे गूंज रही थी। बारूद की गंध आ रही थी। एक लंबी सांस लेते हुए, अपने साथ छिपे जवानों की तरफ आरव ने देखा।

उसे आखिरी बार विमल ने निराशाजनक नजरों से कहा, "आज नहीं, किसी और दिन?"

आरव ने जोश के साथ "वो दिन आज ही है।" उसकी आवाज में विश्वास था। तभी सीढ़ियों से आवाज आई, और आरव बिना वक्त गंवाए नीचे उतरने लगा। दो गोलियों की आवाज सुनते ही विमल आरव के पीछे आया, दीवार पर खून के छिटे थे और दो लाशें नीचे गिरी हुई थीं।

उसी दिन सुबह...

"मेरे शोना को भूख लगी?" अपने पति की तरफ नीली-भूरी आंखों से घूरते हुए विद्या ने कहा. आरव ने मासूमियत में अपना सिर 'हां' में हिलाया।

"आप क्या सिर हिला रहे हैं? मैं मेरे सोना से कह रही हूं।" तिरछा मुंह करते हुए उसने अपना हाथ पेट पर रख दिया।

आरव का मुंह खुला...

विद्या आंखे दूसरी तरफ करते हुए: "अगर भूख लगी है तो खा लीजिए, आपसे कोई पूछने नहीं वाला।"

आरव मुस्कुराते हुए: "मेरा दिल जब तक नहीं मानेगा, तब तक मैं कैसे खा सकता हूं।" विद्या ने कहने वाली थी, 'मैं किसी का दिल नहीं,' लेकिन उसने नहीं कहा और ऊपर एक बार देखके मुंह तिरछा कर लिया।

"अच्छा, अभी के लिए बाय, ये मनाने का खेल वापस आने पर जारी रखेंगे।"

आरव ने फिर विद्या के गालों को चूमा और "I love you, वेदु।" इतना कहने पर जब जवाब नहीं आया तो चेहरा थोड़ा नीचे गिर गया। और थोड़ा निराश होकर वह से चला गया। विद्या उसके जाने पर थोड़ी मुस्कुराई।

उन्हें इन सब में मजा आता था, आरव उस पर जान छिड़कता। 6 फीट का आदमी और सरहद पर लड़ने वाले फौजी की तरह मजबूत शरीर के साथ ही गुस्सा होने के बावजूद वो विद्या के सामने एक बिल्ली की तरह रहता। वो दोनों एक-दूसरे को पाकर खुश थे।

-------------

पुलिस स्टेशन, सोनावला...

"तो कैसी है विद्या की तबियत, गुस्सा ठंडा हुआ कि नहीं?" आरव को थाने आते ही पहला सवाल उसके सीनियर विमल ने पूछा।

आरव मुस्कुराते हुए: "अभी तो कुछ नहीं हुआ। बाकी हमारी मैडम मान गई।"

विमल: "हां, परमिशन मिली है, और कल रात डीएम मैडम से ब्लूप्रिंट भी ले लिया है।"

आरव: "कितने आदमी होंगे सर वहां?"

विमल: "कमिश्नर साहब को उनके इंटरनल सोर्स से 34 बताया गया है।"

आरव: "कमाल है, वो सब इस मिशन के लिए मान गए, खास कर डीएम मैडम।"

विमल: "ऊपर से प्रेशर है उन पर शायद, मिस्टर सालुंखे जैसी हस्ती को बंदी जो बनाया है शेरा ने।"

आरव: "हां, अब पुलिस अमीर और गुंडों की रखैल जो हैं।"

विमल: "लेकिन तुम निराश मत हो, एक दिन इस पूरी गंदगी को हम साफ जरूर करेंगे। तुम्हारे जैसे अफसर के साथ काम कर मुझे भी मजा आता है।"

आरव, विमल की बात पर मुस्कुराया।

विमल (ब्लूप्रिंट पर उंगली रखते हुए): "ये रास्ते से हम जाएंगे, कम से कम कैजुअल्टी के साथ मिस्टर सालुंखे को बचाएंगे।"

आरव ने मुंह बनाते हुए: "हां, उसे तो लाना ही पड़ेगा।"

विमल (आंखें बड़ी करते हुए): "तुमने शायद सुना नहीं, कम से कम, ये मत भूलो हम पुलिस अफसर हैं, हममें और उनमें फर्क है।"

आरव (चेहरा ढीला होते हुए): "यस सर।"

आरव का गुस्सा विमल की तरफ नहीं, उन गुंडों की तरफ था। सभी तैयारी के साथ आरव और विमल एक बड़ी सी इमारत के ऊपर आ गए। उसके करीब एक बड़ी सी सफेद इमारत थी। अंदर से किसी कॉलेज की तरह थी। कुछ गुंडों को ठिकाने लगाकर वो नीचे जाने लगे। आरव कुछ ठीक नहीं लग रहा था। कुछ तो गड़बड़ जरूर थी। वो सीढ़ियों से निचली मंजिल पर जाने लगे। शेरा गोदाम में था।
*पॉप*

*थड*

*थड*

आरव के साथियों की लाशें गिरने लगीं, एकदम से जैसे 100 बंदूकें किसी ने चला दी हों। पीछे मुड़ने तक एक गोली आरव की पीठ पर लग गई। जल्द से जल्द जितने बचे सिपाही थे वो सीढ़ियों के भीतर छिप गए। बाकी आसपास के कमरों में छुपे हुए थे। सभी लोग डर चुके थे, उन सभी को अब सिर्फ मौत दिख रही थी। इस तरह अचानक से हमला होने पर आरव भी थोड़ा डर गया था।

विमल: "ये कैसे हो सकता है, इतने लोग कैसे? ऐसे तो हम बचे 20 अफसर भी मर जाएंगे।"

आरव (दांत भींचते हुए): "सर, आप अभी भी समझ नहीं पाए, हमें फंसाया गया है। और अब नीचे हमारे साथी भी फंसे हुए हैं।"

विमल गुस्से से: "शिट शिट शिट।"

दोनों फ्रस्टेटेड और गुस्से में थे। नीचे शेरा के 35 नहीं बल्कि 100 से भी ज्यादा आदमी थे और वो भी हथियारों के साथ। विमल बस भगवान से दुआ मांग रहा था कि ये दिन उसका आखिरी न हो।

विमल अपना सिर पछतावे से हिलाते हुए: "अब हमें किसी तरह यहां से निकलना होगा।इतने पुलिस के साथ हम कुछ नहीं कर पाएंगे।"

आरव: "नहीं सर हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे। अगर अभी भागे तो आगे हमें ऐसा मौका कभी नहीं मिलेगा, वो भी इतने सारे हरामखोर एक साथ।"

विमल: "तुम पागल हो गए हो क्या? उनमें से आधे भी हम नहीं मार सकते।"

विमल आरव की काबिलियत जानता था, लेकिन परिस्थिति इतनी आसान नहीं थी। आरव ने उसकी एक ना सुनी पूरी जोश और गुस्से के साथ बंदूक में गोलियां भरने लगा।

एक हाथ में बंदूक और एक हाथ में बम लिए आरव खड़ा था। गोलियों की आवाज नीचे गूंज रही थी। बारूद की गंध आ रही थी। एक लंबी सांस लेते हुए, अपने साथ छिपे जवानों की तरफ आरव ने देखा।

उसे आखिरी बार विमल ने निराशाजनक नजरों से कहा, "आज नहीं, किसी और दिन?"

आरव ने जोश के साथ "वो दिन आज ही है।" उसकी आवाज में विश्वास था। तभी सीढ़ियों से आवाज आई, और आरव बिना वक्त गंवाए नीचे उतरने लगा। दो गोलियों की आवाज सुनते ही विमल आरव के पीछे आया, दीवार पर खून के छिटे थे और दो लाशें नीचे गिरी हुई थीं।

बंदूक की आवाज नीचे से बढ़ गई। विमल अपनी सांसों को काबू कर बचे अफसरों के साथ उतरने लगा तभी नीचे धमाका हुआ। इस पर आरवने पीछे विमल की तरफ देखा। जैसे बता रहा हो ये बम उसने फेंका था।

फिर जो विमल ने देखा वो कभी भूल नहीं सकेगा वो एक को मार पाता तब तक 10 लाशें नीचे गिरी हुई थीं। आरव को न तो खून से कोई घिनौना पन नजर आ रहा था और न ही किसी चीज की फिक्र थी। ये कोई लढाई नहीं कोहराम था। सीर क्षणों में फट रहे थे। जैसे उन साधारण इंसानों के बीच आरव एक दैत्य था। आरव की बंदूक जब एक वक्त खाली हुई और सामने से कोई आया तो नीचे पड़ी लाश को एक हाथ से उठाकर किसी ढाल की तरह इस्तेमाल करने लगा और अपनी बंदूक भरने लगा।

कुछ ही मिनटों में लाशों का ढेर वहां पर बन गया। इस वक्त सभी लोग खून से लथपथ थे, आरव, सभी से तेज होने के बावजुड़ फिर भी उसे ही गोलियां लगी थीं। उसकी जगह कोई और होता तो मारा गया होता। सभी की आंखे फटी हुई थी। वो सब बचे हुए लोग एक साथ नीचे जाने लगे।

कुछ ही पल में सभी गोदाम जैसी जगह पहुंच गए। उस अंधेरे में उन्हें झरने की आवाज आने लगी।

उसी के साथ एक आवाज उनके कानों में पड़ी। "आइए, आइए, लगता है स्वागत में बहुत कमी पड़ गई आपके, 'विमल साहब' ।"

विमल अपनी बंदूक आगे कर इधर-उधर देखते हुए: "शेरा खुद को कानून के हवाले कर दे। तेरा जिंदा बचना अब हमारे हाथों में है।"

तभी वहां पर रोशनी हुई। उस गोदाम के बीचो-बीच एक बड़ा सा गड्ढा था। जहां से पानी के झरने जैसी आवाज आ रही थी।

गोदाम और पूरी इमारत ब्लूप्रिंट में उन्होंने देखी थी उससे बेहद अलग थी, इसलिए आरव ने आंखें बड़ी करके विमल की तरफ देखा। विमल समझ गया कि उनके साथ कोई बड़ा खेल हुआ था। उसका भी चेहरा इस बात से चिंता में चला गया।

उसी के सामने शेरा मिस्टर सालुंखे के पीछे खड़ा था और बंदूक सालुंखे पर तानी हुई थी।

शेरा: "अब क्या राय है विमल साहब आपकी?"

उसका इतना कहना था कि आरव ने बंदूक सीधे मिस्टर सालुंखे के ऊपर तानी, एक वक्त के लिए सालुंखे के साथ शेरा की भी सांसें रुक गईं।

"लगता है, इन जनाब को मरने का बहुत शौक है।"

*धाड़*

आरव ने अपना पूरा शरीर विमल की ओर झोंक दिया और गोली शेरा पर चला दी। शेरा के सर पर गोली लगते ही पानी में गिर गया और उसकी गोली आरव के सीने से जा लगी।

आरव की धड़कने एकदम से धीमी होने लगी, उसे अपना पूरा जीवन उल्टा दिखायी देने लगा, उसके सामने सबसे पहले तस्वीर अपनी पत्नी की आई जो कि गर्भ से थी, बाद में उसकी मां और उसके पिता की।

उसकी धड़कन अब बंद हो गई थी। विमल रोने लगा उसने अपना सबसे करीबी दोस्त जो खोया था।

............

कुछ महीनों बाद।

आरव का नजरिया.....

"मरीज को होश आ रहा है, जाओ डॉक्टर साहब को बुलाओ।" ये आवाज मेरे कानों में पड़ी। कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। मैंने हलके से आंखें खोली सामने एक औरत खड़ी जो कि शायद नर्स थी। आंखें पूरी खोल पाता तब तक मेरी फिर से आंखें बंद हो गई।

एक औरत की आवाज बहुत बार आती रही, वो मेरे पास आकर बहुत बार रोई।

धीरे-धीरे अब आसपास का शोर मुझे सुनाई देने लगा। शरीर बेहद हल्का महसूस कर रहा था। दवाइयों की महक आने लगी। तभी मैंने हलके से आंखे खोली।

"शुभम, अब कैसा महसूस कर रहे हो।" सामने खड़ी नर्स ने पूछा। मैं कुछ नहीं बोला, कितने दिनों से अस्पताल में था ये भी नहीं जानता था।

"ठीक है, आपका परिवार बाहर है उनसे मिल लीजिए।" ये बात सुन मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई।

तभी दरवाजे से एक औरत आई।
"बेटा, मुझे लगा था, मैं तुम्हे हमेशा केलिए खो दूंगी।" इतना कहते हुए वो औरत रोने लगी।
मैं पहचान नहीं पाया कि ये कौन है? और मेरे लिए इतना क्यों रही है। कही इस औरत को गलत फ़ैमी तो नहीं हुई कि मैं इसका बेटा हु। बहुत से सवाल मेरे मन थे और कुछ अजीब सा महसूस होने लगा। जैसे उसे औरत शायद में जानता हु। लेकिम उस औरत को टोकने की हिम्मत मुझमें नहीं थी। फिर वो मेरी तरफ उत्सुकता से देख रही थी कि मैं कुछ बोलूं।

मैने पूछा: "विद्या कहा है।"

उसने बारीक आंखों से देखकर कहा :" कौन विद्या बेटा, तू किसकी बात कर रहा है, शायद तू श्वेता की तो बात नहीं कर रहा। तेरी बहन आ रही है, पिताजी भी आयेंगे जल्दी।"

मैं कुछ भी समझ नहीं पाया: "मेरी बहन, मेरे पिता ये क्या बाते कर रही है? आप है कौन?।"

मेरी बात सुनते ही उन्होंने भौवें ऊपर की : "बेटा कैसी बाते कर रहा है तू।"


मैने अपना सर भींच चिल्लाते हुए कहा: "मैं कैसी बाते बाते कर रहा हु मतलब, आप पागलों जैसी बाते कर रही है, विद्या कहा है?, उसे बुलाइए।"

वो औरत एकदम से रोते हुए बाहर की और भाग गई। क्या हो रहा था, मैं समझ नहीं पाया। इसीलिए बैठने की कोशिश करने लगा।
फिर मुझे अजीब सा एहसास हुआ। पूरा शरीर बेहद हल्का महसूस हो रहा था। जब नीचे की और नजर डाली, मैं दुबला हो चुका था, लेकिन सबसे अजीब बात ये थी कि मेरा शरीर पहले से ज्यादा गोरा था।मैंने डर के मारे झटके से उठने की कोशिश की।

"शुभम तुम ये क्या कर रहे हो,अभी तुम पूरी तरह ठीक नहीं हुए हो।" नर्स तेजी से अंदर आने लगी और मुझे संभालते हुए पलंग पर बैठाने की कोशिश करने लगी।

तभी मुझे ध्यान आया, 'शुभम' ये नाम क्यों अपनासा लग रहा है। मुझे अजीब सी बात महसूस हुई, वो औरत तो शुभम की मां है, मैं उसे जानता हु।लेकिन कैसे? ये क्या हो रहा है, कही मैं नरक में तो नहीं हु। मेरे दिमाग में अभी कुछ यादें आने लगी थी। ये मेरी यादें नहीं शुभम की थी। फिर मेरा ध्यान एक स्टील की टेबल पर गया उसमें देखा तो दिमाग एकदम से फटने लगा।ये!!
मेरे सामने अंधेरा छा गया।


"बेटा तुम्हारा नाम बताओगे?" डॉ. ने पूछा।

मैंने हार मानते हुए : "शुभम।"

इतना कहने पर शुभम की मां ने खुशी की सांस ली। जिसका नाम शायद सुचित्रा था। ये मुझे कैसे पता, मत पूछो। पास ही मैं शुभम की बहन श्वेता खड़ी थी, वो शुभम से एक साल बड़ी थी, वो खुश नजर नहीं आ रही थी। शायद
शुभम से उसकी जमती नहीं थी। यादे बहुत धुंधली थी, जैसे किसी सपने की तरह मैं समझ पा रहा था कि वो मेरी नहीं है। और शायद मुझे शुभम के बारे में पता भी नहीं था, ऐसा लग रहा था लेकिन डॉ.जैसे सवाल पूछते गए मुझे वो उत्तर धुंधले तरीके से याद आने लगे।

डॉ. को यकीन हो गया कि मेरी यादाश्त ठीक है, और इतना कहकर सुचित्रा को बाहर बुलाया।
बाहर क्या बताया मुझे नहीं पता लेकिन इन सब से पागल होने लगा, मुझे मेरी मां और विद्या की चिंता होने लगी, विमल शेरा उन सब का क्या हुआ? कही इन सब में उनका तो कुछ लेना देना नहीं। मैं बहुत सोचने लगा, विमल पर शक करने जैसा तो कुछ नहीं था लेकिन मरनेसे पहले उसे ही देखा था। उसे जरूर इस सब के बारे में पता होगा। कही मैं जिंदा तो नहीं और शुभम मेरी शरीर में तो नहीं, ये सब सवाल आते ही मैंने सामने देखा, श्वेता जो शुभम से शायद 2 साल बड़ी थी।

मैने कहा : " श्वेता, अपना फोन देना प्लीज।"

श्वेता ने उठ दबाते हुए कहा:" दीदी, और फोन की क्या जरूरत पड़ गई ऐसी।"

मैं सर खुजाते हुए : सॉरी दीदी, थोड़ा जरूरी काम है।

इतना कहकर फोन उससे खींच लिया।वो कुछ बोल पाती तब तक मैने मेरा नाम सर्च किया, आरव जंगले, तभी मुझे मराठी न्यूज आर्टिकल दिखा जिसमें बताया गया कि आरव जंगले जाने माने उद्योगपति को बचाते हुए शाहिद हो चुके है, जिनकी एक गर्भवती पत्नी है। आर्टिकल 6 महीने पुराना था।

तभी मुझे अहसास हुआ, इसका मतलब कि शायद मेरा बच्चा अब बिना पिता के जन्म लेगा और जब उसे सबसे ज्यादा मेरी जरूरत थी मैं नहीं हु।

ये सोचते ही आंसुओं से आंखे गीली हों गई। और खुदको रोने से रोक नहीं
पाया। तभी मेरे हाथ से श्वेता ने फोन खींच लिया।

"तुम रो क्यों रहे हो? और क्या पढ़ रहे थे।"

मैने कुछ नहीं कहा, अब मेरे आंसू रुक नहीं रहे थे, लेकिन खुदको शांत कराने लगा।

........

तो इसका मतलब आपने शुरुवात पढ़ ली है। अगर समझने में मुश्किल हुई हो, तो फिक्र मत करो धीरे धीरे सब समझ आएगा। देवनागरी हिंदी में मेरा पहला प्रयोग है, और इस जॉनर में भी, अगला भाग जल्द ही आयेगा, बने रहिए।
बहुत बढ़िया
एक अलग तरह की कहानी

:congrats:

अब अगले अपडेट का इन्तज़ार रहेगा
 

Anatole

⏳CLOCKWORK HEART 💙
Prime
109
615
94
बहुत बढ़िया
एक अलग तरह की कहानी

:congrats:

अब अगले अपडेट का इन्तज़ार रहेगा
धन्यवाद भाई,
अगली अपडेट कल -परसो तक देने की कोशिश करूंगा।
 
Last edited:
  • Love
Reactions: kamdev99008

king1969

Well-Known Member
3,458
4,760
143
Congratulations on your new thread
 
  • Love
Reactions: Anatole

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
42,589
110,407
304
#१.नरक या भूलोक?

एक हाथ में बंदूक और एक हाथ में बम लिए आरव खड़ा था। गोलियों की आवाज नीचे गूंज रही थी। बारूद की गंध आ रही थी। एक लंबी सांस लेते हुए, अपने साथ छिपे जवानों की तरफ आरव ने देखा।

उसे आखिरी बार विमल ने निराशाजनक नजरों से कहा, "आज नहीं, किसी और दिन?"

आरव ने जोश के साथ "वो दिन आज ही है।" उसकी आवाज में विश्वास था। तभी सीढ़ियों से आवाज आई, और आरव बिना वक्त गंवाए नीचे उतरने लगा। दो गोलियों की आवाज सुनते ही विमल आरव के पीछे आया, दीवार पर खून के छिटे थे और दो लाशें नीचे गिरी हुई थीं।

उसी दिन सुबह...

"मेरे शोना को भूख लगी?" अपने पति की तरफ नीली-भूरी आंखों से घूरते हुए विद्या ने कहा. आरव ने मासूमियत में अपना सिर 'हां' में हिलाया।

"आप क्या सिर हिला रहे हैं? मैं मेरे सोना से कह रही हूं।" तिरछा मुंह करते हुए उसने अपना हाथ पेट पर रख दिया।

आरव का मुंह खुला...

विद्या आंखे दूसरी तरफ करते हुए: "अगर भूख लगी है तो खा लीजिए, आपसे कोई पूछने नहीं वाला।"

आरव मुस्कुराते हुए: "मेरा दिल जब तक नहीं मानेगा, तब तक मैं कैसे खा सकता हूं।" विद्या ने कहने वाली थी, 'मैं किसी का दिल नहीं,' लेकिन उसने नहीं कहा और ऊपर एक बार देखके मुंह तिरछा कर लिया।

"अच्छा, अभी के लिए बाय, ये मनाने का खेल वापस आने पर जारी रखेंगे।"

आरव ने फिर विद्या के गालों को चूमा और "I love you, वेदु।" इतना कहने पर जब जवाब नहीं आया तो चेहरा थोड़ा नीचे गिर गया। और थोड़ा निराश होकर वह से चला गया। विद्या उसके जाने पर थोड़ी मुस्कुराई।

उन्हें इन सब में मजा आता था, आरव उस पर जान छिड़कता। 6 फीट का आदमी और सरहद पर लड़ने वाले फौजी की तरह मजबूत शरीर के साथ ही गुस्सा होने के बावजूद वो विद्या के सामने एक बिल्ली की तरह रहता। वो दोनों एक-दूसरे को पाकर खुश थे।

-------------

पुलिस स्टेशन, सोनावला...

"तो कैसी है विद्या की तबियत, गुस्सा ठंडा हुआ कि नहीं?" आरव को थाने आते ही पहला सवाल उसके सीनियर विमल ने पूछा।

आरव मुस्कुराते हुए: "अभी तो कुछ नहीं हुआ। बाकी हमारी मैडम मान गई।"

विमल: "हां, परमिशन मिली है, और कल रात डीएम मैडम से ब्लूप्रिंट भी ले लिया है।"

आरव: "कितने आदमी होंगे सर वहां?"

विमल: "कमिश्नर साहब को उनके इंटरनल सोर्स से 34 बताया गया है।"

आरव: "कमाल है, वो सब इस मिशन के लिए मान गए, खास कर डीएम मैडम।"

विमल: "ऊपर से प्रेशर है उन पर शायद, मिस्टर सालुंखे जैसी हस्ती को बंदी जो बनाया है शेरा ने।"

आरव: "हां, अब पुलिस अमीर और गुंडों की रखैल जो हैं।"

विमल: "लेकिन तुम निराश मत हो, एक दिन इस पूरी गंदगी को हम साफ जरूर करेंगे। तुम्हारे जैसे अफसर के साथ काम कर मुझे भी मजा आता है।"

आरव, विमल की बात पर मुस्कुराया।

विमल (ब्लूप्रिंट पर उंगली रखते हुए): "ये रास्ते से हम जाएंगे, कम से कम कैजुअल्टी के साथ मिस्टर सालुंखे को बचाएंगे।"

आरव ने मुंह बनाते हुए: "हां, उसे तो लाना ही पड़ेगा।"

विमल (आंखें बड़ी करते हुए): "तुमने शायद सुना नहीं, कम से कम, ये मत भूलो हम पुलिस अफसर हैं, हममें और उनमें फर्क है।"

आरव (चेहरा ढीला होते हुए): "यस सर।"

आरव का गुस्सा विमल की तरफ नहीं, उन गुंडों की तरफ था। सभी तैयारी के साथ आरव और विमल एक बड़ी सी इमारत के ऊपर आ गए। उसके करीब एक बड़ी सी सफेद इमारत थी। अंदर से किसी कॉलेज की तरह थी। कुछ गुंडों को ठिकाने लगाकर वो नीचे जाने लगे। आरव कुछ ठीक नहीं लग रहा था। कुछ तो गड़बड़ जरूर थी। वो सीढ़ियों से निचली मंजिल पर जाने लगे। शेरा गोदाम में था।
*पॉप*

*थड*

*थड*

आरव के साथियों की लाशें गिरने लगीं, एकदम से जैसे 100 बंदूकें किसी ने चला दी हों। पीछे मुड़ने तक एक गोली आरव की पीठ पर लग गई। जल्द से जल्द जितने बचे सिपाही थे वो सीढ़ियों के भीतर छिप गए। बाकी आसपास के कमरों में छुपे हुए थे। सभी लोग डर चुके थे, उन सभी को अब सिर्फ मौत दिख रही थी। इस तरह अचानक से हमला होने पर आरव भी थोड़ा डर गया था।

विमल: "ये कैसे हो सकता है, इतने लोग कैसे? ऐसे तो हम बचे 20 अफसर भी मर जाएंगे।"

आरव (दांत भींचते हुए): "सर, आप अभी भी समझ नहीं पाए, हमें फंसाया गया है। और अब नीचे हमारे साथी भी फंसे हुए हैं।"

विमल गुस्से से: "शिट शिट शिट।"

दोनों फ्रस्टेटेड और गुस्से में थे। नीचे शेरा के 35 नहीं बल्कि 100 से भी ज्यादा आदमी थे और वो भी हथियारों के साथ। विमल बस भगवान से दुआ मांग रहा था कि ये दिन उसका आखिरी न हो।

विमल अपना सिर पछतावे से हिलाते हुए: "अब हमें किसी तरह यहां से निकलना होगा।इतने पुलिस के साथ हम कुछ नहीं कर पाएंगे।"

आरव: "नहीं सर हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे। अगर अभी भागे तो आगे हमें ऐसा मौका कभी नहीं मिलेगा, वो भी इतने सारे हरामखोर एक साथ।"

विमल: "तुम पागल हो गए हो क्या? उनमें से आधे भी हम नहीं मार सकते।"

विमल आरव की काबिलियत जानता था, लेकिन परिस्थिति इतनी आसान नहीं थी। आरव ने उसकी एक ना सुनी पूरी जोश और गुस्से के साथ बंदूक में गोलियां भरने लगा।

एक हाथ में बंदूक और एक हाथ में बम लिए आरव खड़ा था। गोलियों की आवाज नीचे गूंज रही थी। बारूद की गंध आ रही थी। एक लंबी सांस लेते हुए, अपने साथ छिपे जवानों की तरफ आरव ने देखा।

उसे आखिरी बार विमल ने निराशाजनक नजरों से कहा, "आज नहीं, किसी और दिन?"

आरव ने जोश के साथ "वो दिन आज ही है।" उसकी आवाज में विश्वास था। तभी सीढ़ियों से आवाज आई, और आरव बिना वक्त गंवाए नीचे उतरने लगा। दो गोलियों की आवाज सुनते ही विमल आरव के पीछे आया, दीवार पर खून के छिटे थे और दो लाशें नीचे गिरी हुई थीं।

बंदूक की आवाज नीचे से बढ़ गई। विमल अपनी सांसों को काबू कर बचे अफसरों के साथ उतरने लगा तभी नीचे धमाका हुआ। इस पर आरवने पीछे विमल की तरफ देखा। जैसे बता रहा हो ये बम उसने फेंका था।

फिर जो विमल ने देखा वो कभी भूल नहीं सकेगा वो एक को मार पाता तब तक 10 लाशें नीचे गिरी हुई थीं। आरव को न तो खून से कोई घिनौना पन नजर आ रहा था और न ही किसी चीज की फिक्र थी। ये कोई लढाई नहीं कोहराम था। सीर क्षणों में फट रहे थे। जैसे उन साधारण इंसानों के बीच आरव एक दैत्य था। आरव की बंदूक जब एक वक्त खाली हुई और सामने से कोई आया तो नीचे पड़ी लाश को एक हाथ से उठाकर किसी ढाल की तरह इस्तेमाल करने लगा और अपनी बंदूक भरने लगा।

कुछ ही मिनटों में लाशों का ढेर वहां पर बन गया। इस वक्त सभी लोग खून से लथपथ थे, आरव, सभी से तेज होने के बावजुड़ फिर भी उसे ही गोलियां लगी थीं। उसकी जगह कोई और होता तो मारा गया होता। सभी की आंखे फटी हुई थी। वो सब बचे हुए लोग एक साथ नीचे जाने लगे।

कुछ ही पल में सभी गोदाम जैसी जगह पहुंच गए। उस अंधेरे में उन्हें झरने की आवाज आने लगी।

उसी के साथ एक आवाज उनके कानों में पड़ी। "आइए, आइए, लगता है स्वागत में बहुत कमी पड़ गई आपके, 'विमल साहब' ।"

विमल अपनी बंदूक आगे कर इधर-उधर देखते हुए: "शेरा खुद को कानून के हवाले कर दे। तेरा जिंदा बचना अब हमारे हाथों में है।"

तभी वहां पर रोशनी हुई। उस गोदाम के बीचो-बीच एक बड़ा सा गड्ढा था। जहां से पानी के झरने जैसी आवाज आ रही थी।

गोदाम और पूरी इमारत ब्लूप्रिंट में उन्होंने देखी थी उससे बेहद अलग थी, इसलिए आरव ने आंखें बड़ी करके विमल की तरफ देखा। विमल समझ गया कि उनके साथ कोई बड़ा खेल हुआ था। उसका भी चेहरा इस बात से चिंता में चला गया।

उसी के सामने शेरा मिस्टर सालुंखे के पीछे खड़ा था और बंदूक सालुंखे पर तानी हुई थी।

शेरा: "अब क्या राय है विमल साहब आपकी?"

उसका इतना कहना था कि आरव ने बंदूक सीधे मिस्टर सालुंखे के ऊपर तानी, एक वक्त के लिए सालुंखे के साथ शेरा की भी सांसें रुक गईं।

"लगता है, इन जनाब को मरने का बहुत शौक है।"

*धाड़*

आरव ने अपना पूरा शरीर विमल की ओर झोंक दिया और गोली शेरा पर चला दी। शेरा के सर पर गोली लगते ही पानी में गिर गया और उसकी गोली आरव के सीने से जा लगी।

आरव की धड़कने एकदम से धीमी होने लगी, उसे अपना पूरा जीवन उल्टा दिखायी देने लगा, उसके सामने सबसे पहले तस्वीर अपनी पत्नी की आई जो कि गर्भ से थी, बाद में उसकी मां और उसके पिता की।

उसकी धड़कन अब बंद हो गई थी। विमल रोने लगा उसने अपना सबसे करीबी दोस्त जो खोया था।

............

कुछ महीनों बाद।

आरव का नजरिया.....

"मरीज को होश आ रहा है, जाओ डॉक्टर साहब को बुलाओ।" ये आवाज मेरे कानों में पड़ी। कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। मैंने हलके से आंखें खोली सामने एक औरत खड़ी जो कि शायद नर्स थी। आंखें पूरी खोल पाता तब तक मेरी फिर से आंखें बंद हो गई।

एक औरत की आवाज बहुत बार आती रही, वो मेरे पास आकर बहुत बार रोई।

धीरे-धीरे अब आसपास का शोर मुझे सुनाई देने लगा। शरीर बेहद हल्का महसूस कर रहा था। दवाइयों की महक आने लगी। तभी मैंने हलके से आंखे खोली।

"शुभम, अब कैसा महसूस कर रहे हो।" सामने खड़ी नर्स ने पूछा। मैं कुछ नहीं बोला, कितने दिनों से अस्पताल में था ये भी नहीं जानता था।

"ठीक है, आपका परिवार बाहर है उनसे मिल लीजिए।" ये बात सुन मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई।

तभी दरवाजे से एक औरत आई।
"बेटा, मुझे लगा था, मैं तुम्हे हमेशा केलिए खो दूंगी।" इतना कहते हुए वो औरत रोने लगी।
मैं पहचान नहीं पाया कि ये कौन है? और मेरे लिए इतना क्यों रही है। कही इस औरत को गलत फ़ैमी तो नहीं हुई कि मैं इसका बेटा हु। बहुत से सवाल मेरे मन थे और कुछ अजीब सा महसूस होने लगा। जैसे उसे औरत शायद में जानता हु। लेकिम उस औरत को टोकने की हिम्मत मुझमें नहीं थी। फिर वो मेरी तरफ उत्सुकता से देख रही थी कि मैं कुछ बोलूं।

मैने पूछा: "विद्या कहा है।"

उसने बारीक आंखों से देखकर कहा :" कौन विद्या बेटा, तू किसकी बात कर रहा है, शायद तू श्वेता की तो बात नहीं कर रहा। तेरी बहन आ रही है, पिताजी भी आयेंगे जल्दी।"

मैं कुछ भी समझ नहीं पाया: "मेरी बहन, मेरे पिता ये क्या बाते कर रही है? आप है कौन?।"

मेरी बात सुनते ही उन्होंने भौवें ऊपर की : "बेटा कैसी बाते कर रहा है तू।"


मैने अपना सर भींच चिल्लाते हुए कहा: "मैं कैसी बाते बाते कर रहा हु मतलब, आप पागलों जैसी बाते कर रही है, विद्या कहा है?, उसे बुलाइए।"

वो औरत एकदम से रोते हुए बाहर की और भाग गई। क्या हो रहा था, मैं समझ नहीं पाया। इसीलिए बैठने की कोशिश करने लगा।
फिर मुझे अजीब सा एहसास हुआ। पूरा शरीर बेहद हल्का महसूस हो रहा था। जब नीचे की और नजर डाली, मैं दुबला हो चुका था, लेकिन सबसे अजीब बात ये थी कि मेरा शरीर पहले से ज्यादा गोरा था।मैंने डर के मारे झटके से उठने की कोशिश की।

"शुभम तुम ये क्या कर रहे हो,अभी तुम पूरी तरह ठीक नहीं हुए हो।" नर्स तेजी से अंदर आने लगी और मुझे संभालते हुए पलंग पर बैठाने की कोशिश करने लगी।

तभी मुझे ध्यान आया, 'शुभम' ये नाम क्यों अपनासा लग रहा है। मुझे अजीब सी बात महसूस हुई, वो औरत तो शुभम की मां है, मैं उसे जानता हु।लेकिन कैसे? ये क्या हो रहा है, कही मैं नरक में तो नहीं हु। मेरे दिमाग में अभी कुछ यादें आने लगी थी। ये मेरी यादें नहीं शुभम की थी। फिर मेरा ध्यान एक स्टील की टेबल पर गया उसमें देखा तो दिमाग एकदम से फटने लगा।ये!!
मेरे सामने अंधेरा छा गया।


"बेटा तुम्हारा नाम बताओगे?" डॉ. ने पूछा।

मैंने हार मानते हुए : "शुभम।"

इतना कहने पर शुभम की मां ने खुशी की सांस ली। जिसका नाम शायद सुचित्रा था। ये मुझे कैसे पता, मत पूछो। पास ही मैं शुभम की बहन श्वेता खड़ी थी, वो शुभम से एक साल बड़ी थी, वो खुश नजर नहीं आ रही थी। शायद
शुभम से उसकी जमती नहीं थी। यादे बहुत धुंधली थी, जैसे किसी सपने की तरह मैं समझ पा रहा था कि वो मेरी नहीं है। और शायद मुझे शुभम के बारे में पता भी नहीं था, ऐसा लग रहा था लेकिन डॉ.जैसे सवाल पूछते गए मुझे वो उत्तर धुंधले तरीके से याद आने लगे।

डॉ. को यकीन हो गया कि मेरी यादाश्त ठीक है, और इतना कहकर सुचित्रा को बाहर बुलाया।
बाहर क्या बताया मुझे नहीं पता लेकिन इन सब से पागल होने लगा, मुझे मेरी मां और विद्या की चिंता होने लगी, विमल शेरा उन सब का क्या हुआ? कही इन सब में उनका तो कुछ लेना देना नहीं। मैं बहुत सोचने लगा, विमल पर शक करने जैसा तो कुछ नहीं था लेकिन मरनेसे पहले उसे ही देखा था। उसे जरूर इस सब के बारे में पता होगा। कही मैं जिंदा तो नहीं और शुभम मेरी शरीर में तो नहीं, ये सब सवाल आते ही मैंने सामने देखा, श्वेता जो शुभम से शायद 2 साल बड़ी थी।

मैने कहा : " श्वेता, अपना फोन देना प्लीज।"

श्वेता ने उठ दबाते हुए कहा:" दीदी, और फोन की क्या जरूरत पड़ गई ऐसी।"

मैं सर खुजाते हुए : सॉरी दीदी, थोड़ा जरूरी काम है।

इतना कहकर फोन उससे खींच लिया।वो कुछ बोल पाती तब तक मैने मेरा नाम सर्च किया, आरव जंगले, तभी मुझे मराठी न्यूज आर्टिकल दिखा जिसमें बताया गया कि आरव जंगले जाने माने उद्योगपति को बचाते हुए शाहिद हो चुके है, जिनकी एक गर्भवती पत्नी है। आर्टिकल 6 महीने पुराना था।

तभी मुझे अहसास हुआ, इसका मतलब कि शायद मेरा बच्चा अब बिना पिता के जन्म लेगा और जब उसे सबसे ज्यादा मेरी जरूरत थी मैं नहीं हु।

ये सोचते ही आंसुओं से आंखे गीली हों गई। और खुदको रोने से रोक नहीं
पाया। तभी मेरे हाथ से श्वेता ने फोन खींच लिया।

"तुम रो क्यों रहे हो? और क्या पढ़ रहे थे।"

मैने कुछ नहीं कहा, अब मेरे आंसू रुक नहीं रहे थे, लेकिन खुदको शांत कराने लगा।

........

तो इसका मतलब आपने शुरुवात पढ़ ली है। अगर समझने में मुश्किल हुई हो, तो फिक्र मत करो धीरे धीरे सब समझ आएगा। देवनागरी हिंदी में मेरा पहला प्रयोग है, और इस जॉनर में भी, अगला भाग जल्द ही आयेगा, बने रहिए।
Shaandar jabardast Romanchak Update 👌
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
19,061
39,124
259
ये कॉन्सेप्ट बहुत चल रहा है आजकल, लेकिन उसमें दूसरी दुनिया में ही पहुंचा देते हैं। आपने उसी कॉन्सेप्ट में बहुत ही अलग करने की हिम्मत की :applause:

और देवनागरी में लिखने के लिए बहुत धन्यवाद।
 
Top