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मेरा नाम वली अहमद है। मैं 35 साल का हूं और पिछले 6 सालों से मैं अपने बीबी बच्चो समेत ब्रसेल्स, बेल्जियम में रह रहा हूं। हमारे मशारें में, वतन छोड़ बाहर बसने पर अक्सर यह इतिमाद किया जाता है की यह बंदा पाकिस्तान में सही मौका और मौहौल न मिलने से वहां से भाग बाहर बस गया है लेकिन मेरे साथ ऐसा कोई फसाना नही है। मेरी वजह कुछ और है और उसका जिक्र भी मैने कभी किसी से किया नही है। मेरी वजह मेरी अम्मी का इंतकाल था और आज, उस वजह का जिक्र कर अपने दिल का बोझ उतार रहा हूं।
मेरी जिंदगी में अम्मी कैसे ऐसा मुकाम बन गई की उनके इंतकाल के बाद मेरा पाकिस्तान में मन न लगा उसके पीछे एक दास्तां है। यह दास्तां एक वाक्ये से शुरू हुई और यह वाक्या तब का है जब मैं अपने घर, गांव गुल्ज़ारवाला से दूर शहर डेरा ग़ाज़ी खान में रहकर पढ़ाई कर रहा था। मैं जब ग्रेजुएशन करने घर से यहां डेरा गाज़ी खान आया था तब मुझे शहर की हवा नही लगी थी। मैं तब जिस्मानी रिश्तों और जिन्सी अमल ऐसा कुछ नही जानता था। मुझ पर शहर में दोस्तो की सोहबत का कुछ ऐसा असर पड़ा की इन सब चीजों को लेकर आदत पड़ गयी थी। कुछ दिन तक कुछ नया न मिले तो जहनी तबियत परेशान हो जाती थी। हकीकतन आज तक मैने औरत की फुद्दी सिर्फ एक दो बार दोस्तों द्वारा छुप छुप कर लाये गए ब्लू फिल्म में ही देखी थी लेकिन मन बहुत करता था। मुझे हकीकत में फुद्दी को छूने और चोदने की बड़ी हसरत थी मगर इसके लिए जोखम लेने की हिम्मत अभी तक नही आई थी। इस सब का यह असर जरूर था कि हलाला और चुदाई की किताबें पढ़कर घर की औरतों को लेकर नज़र बदल गयी थी।
कभी कभी मैं जब इसको लेकर बहुत पुर जोश हो जाता तो मुट्ठ मार लेता था पर फौरन ही अपने को कसूरवार महसूस करने लगता था। बड़ी जलालत महसूस होती थी लेकिन दिमाग था की नही मानता ही नहीं था। मैं सोचने लगता था कि अगर घर में ही मिल जाए तो कितना लुक्फ आ जाए, पर ये नामुमकिन था। मेरे लिए बस ये तलब सिर्फ खयालों में ही थी और उस तलब को मुतमइन करने के लिए लौड़े को मुट्ठ मारना ही सहारा था।
साल में दो बार मैं घर जाता था, एक गर्मियों की छुट्टी में दूसरा सर्दियों मे। मेरे घर में सिर्फ अम्मी और दादा जान दादी थे, अब्बू दुबई में रहते थे। अब्बू साल में एक बार बस एक महीने के लिए आते थे और मेरी अम्मी खेती बारी, घर और दादा दादी को संभालती थी। मेरी अम्मी अपने नाम "अंजुमन" की तरह प्यारी तो थी ही साथ ही वो साथ सबका ख्याल रखने वाली भी थी। खेतों में काम करके भी उनके गोरे रंग पे ज्यादा कोई फर्क नही पड़ा था। वो बहुत ज्यादा सुंदर तो नही थी पर किसी से कम भी नही थी, शरीर भरा हुआ था, लगभग सारा दिन काम करने से जिस्म में कोई ज्यादा चर्बी भी नही चढ़ी थी। मैंने उनके जिस्म को कभी हसरत की नज़र से नही देखा था इसलिए उनके जिस्म की बनावट का माप का कोई अंदाजा नही था।
इस बार सर्दियों में जब घर आया तो मुझे आदतन चुदाई के किस्सों का रिसाला या किताब पढ़ने का मन हुआ लेकिन जल्दबाजी में उन्हे मैं खरीदकर लाना भूल गया था। जो घर में मेरे बक्से में पड़ी थी वो सब पढ़ी हुई थी। अब यहां गांव में मिले कहाँ, किसके पास जाऊं, कहाँ मिलेगी? डरते डरते एक दो पुरानी किताब की दुकानों पर पता किया तो उन्होंने मुझे अजीब नज़रों से देखा तो फिर मेरी हिम्मत ही नही हुई। गांव की दुकानें थी, यही कहीं आते जाते से किसी दुकानदार ने अगर गाँव के किसी आदमी से जिक्र कर दिया तो शर्मिंदा होना पड़ेगा, इसलिए मैंने कुछ दिन मन मारकर बिता दिए पर मन बहुत बेचैन हो उठा था।
एक दिन अम्मी ने मुझसे कहा कि कच्चे मकान में पीछे वाले कमरे के ऊपर बने कोठे पर पुरानी मटकी में गुड़ का राब भरके रखा है, जरा उसको उतार दे।
मैंने सीढ़ी लगाई और कोठे पर चढ़ गया, वहां अंधेरा था, बस एक छोटे से झरोखे से हल्की रोशनी आ रही थी। में टार्च लेकर आया था, टॉर्च जला कर देखा तो मटकी में भरा हुआ राब दिख गया, पर साथ में मुझे वहां बहुत सी पुरानी किताबों का गट्ठर भी दिखाई दिया। मैंने वो राब की मटकी, सीढ़ी पर थोड़ा नीचे उतरकर, नीचे खड़ी अम्मी को पकड़ाया और बोला- अम्मी यहां कोठे पर किताबें कैसी पड़ी हैं?
अम्मी- वो तो बहुत पुरानी है हमारे जमाने की, इधर उधर फेंकी रहती थी तो मैंने बहुत पहले सारी इकट्ठी करके यहीं रख दी थी, तेरे कुछ काम की हैं तो देख ले।
ये कहकर अम्मी चली गयी तो मैं फिर कोठे पर चढ़कर, अंधेरे में रखी वो किताबों का गट्ठर को लेकर छोटे से झरोखे के पास बैठ गया। उसमे कई तरह की पुरानी कॉपियां और किताबें थी, पुराने जमाने की शेरो शायरी और घर हकीमी, घरेलू नुस्खे, मैं सारी किताबों को उलट पुलट कर देखता जा रहा था कि अचानक मेरे हाँथ में जो किताब आयी उसके कवर पेज पर लिखा था - "जिंसी ज़िंदगी इस्लाम और जदीद साइंस", ये देखकर मेरी आँखें चमक गयी, मैं इसके बारे में जानता था। यह "कोकशास्त्र" का उर्दू में तर्जुमा था जिसमें चुदाई के बारे में बताया गया होता है। मैं यह सोचकर बदहवास हो गया कि ये पुरानी किताब है तो मतलब जरूर ये मेरे अम्मी अब्बू की शादी के वक्त की होगी। जरूर अब्बू ने खरीदी होगी, शायद अम्मी को ये याद नही रहा होगा कि इस गट्ठर में ऐसी किताब भी है इसीलिए उन्होंने मुझे किताबों का पुराना गठ्ठर देख लेने को बोल दिया था।
जैसे ही मैंने उस किताब के बीच के कुछ पन्नों को खोला तो मैं हैरान हो गया। मैंने किताब को झरोखे के और नजदीक ले जाकर ध्यान से देखा तो वो गंदी कहानियों की किताब थी जिस पर बाद में कवर अलग से चिपकाया गया था। मेरी बांछे खिल गयी, मैं मारे खुशी के उछल पड़ा। मैंने उस गट्ठर को इधर उधर एक बार फिर से खगाला और फिर सारी किताबों को जस की तस बांधकर, दुबारा उनको कोने में रख दिया। सिवाय उस गंदी कहानियों की किताब को जिसे मैंने अपनी कमीज के नीचे छुपा लिया था और फिर मैं कोठे से नीचे उतर आया।
उस वक्त दोपहर के 2 बज रहे थे, दोपहर में अक्सर मैं घर के बाहर दालान में सोया करता था जिसमे जानवरो के लिए भूसा रखा हुआ था। मुझसे सब्र नही हो रहा था, दोपहर में दादा दादी खाना खा के पेड़ के नीचे सो रहे थे, मैं दालान में गया और खाट बिछा कर वो गंदी किताब पढ़ने लगा। मैं, जिस तरफ भूसा था उस तरफ पैर किया हुए था और किताब लेटकर, इस तरह पढ़ रहा था कि मेरा चेहरा किताब से ढका हुआ था। मैं किताब पढ़ने में खो गया और ताव के मारे मेरा लंड दोनों जाँघों के बीच तन कर खड़ा हो गया था। मैंने दो कहानियां पढ़ ली थी जैसे ही तीसरी कहानी को पढ़ने के लिए पेज पलटा तो कहानी का नाम देखकर मेरे बदन में अज़ीब सा जोश ए खरोश भर गया। यह कहानी मर्जी से मां बेटे के बीच बने, जिस्मी तालुकात की बुनियाद पर थी। मैंने आज तक जो भी कहानियां पढ़ी थी वो इधर उधर , आस पास के दूर के रिश्तों पर थी, पर ये कहानी सगे मां बेटे के बीच की थी, कहानी की शुरवात करते ही मेरा जर्रा जर्रा कांपने लगा। मैंने उसे अभी एक चौथाई ही पढ़ा था कि खट से दरवाजा खुला और अम्मी एक हाँथ में बड़ी सी बोरी लेकर भूसा भरने के लिए दालान में आ गई। मुझे इस बात का बिल्कुल भी इल्म नही था कि अम्मी वहां, इस वक्त आ जायेगी।
जैसे ही अम्मी दालान में दाखिल हुई मैंने किताब थोड़ा नीचे करके एक सरसरी निगाह से उनको देखा और फिर दुबारा, उनको अनदेखी कर, कहानी में डूब गया। मुझे इत्मीनान था कि अम्मी को क्या पता चलेगा की मैं क्या पढ़ रहा हूं और मेरे ख्याल में ये बिलकुल भी नहीं आया की कहानी जिस किताब से पढ़ रहा हूं उस पर "जिंसी ज़िंदगी इस्लाम और जदीद साइंस" लिखा हुआ हैं। सिर्फ लिखा हुआ ही नहीं था बल्कि उसके साथ फीका पड़ चुके, नंगे बूतों की चुदाई की तस्वीर भी उसपर छपी हुई है।
मैं किताब में घुसा, कहानी पढ़ने में दुबारा मस्त हो गया। अपनी सगी अम्मी की मौजूदगी में, मां बेटे के बीच जिस्मानी तालुकात की चाहत कि बातें पढ़कर, मैं बहुत हेज़न ज़ादा हो गया था, पर मेरी हिम्मत नही हो रही थी कि मैं अम्मी की तरफ देखूं। मैने एक बार चुपके से, किनारे से अम्मी को देखा, तो वो झुककर बोरी में भूसा भर रही थी। उनके भारी भरकम चूतड़ मेरी ओर थे। अम्मी को पहली बार आज इस नज़र से देखकर, मुझे बड़ी शर्म आई लेकिन उनको लेकर मेरे लौड़े में जो जोश भर गया था वो बेमिसाल था। मैं शर्मिंदगी को छुपाते हुए फिर किताब में देखने लगा। अभी कुछ ही वक्त बीता था कि एकाएक अम्मी की तेज आवाज सुनकर मैं चौंक पड़ा।
अम्मी- ये क्या है तेरे हाँथ में? क्या पढ़ रहा है तू?
मैं सकपका गया और किताब को तकिए के नीचे छिपाते हुए कहा- कुछ नही, कुछ भी तो नही, ऐसे ही बस एक किताब है।
अम्मी- कैसी किताब दिखा मुझे, कहाँ मिली तुझे?
अम्मी ने इस तरह पूछा जैसे अम्मी को किताब जानी पहचानी सी लगी, वो शायद ये इत्मीनान करना चाहती थी कि कहीं ये उनके जमाने की उनकी वो किताब तो नही? मैं शर्म से पानी पानी हुआ जा रहा था, मुझे यह शुभा हो रहा था की शायद अम्मी को ये अंदाजा हो गया है कि वो गंदी किताब है।
मुझे बुत बना देख, अम्मी मेरे पास आई और तकिए के नीचे से वो किताब निकाल ली। उन्होंने जैसे ही किताब को देखा वो चौंकी और उनका शर्म से चेहरा लाल हो गया। अम्मी के चेहरे पर आए एकाएक शर्म के वजूद को देखकर मैं समझ गया कि वो किताब पहचान चुकी हैं। उन्होंने एकदम से किताब मेरे सीने पर पटकी और हल्की सी शर्मिंदगी भरी मुस्कान लिए, अपना दुपट्टा दांतो मे दबाए, भूसे की बोरी उठाकर दालान से बाहर निकल गयी। अल्लाह का बड़ा शुक्र रहा कि उनकी नज़र मेरे लंड से बने तंबू पर नही पड़ी। मेरे तो जैसे काटो तो खून नही, मैं ये सोच कर डरा हुआ था कि अम्मी मुझे डाटेंगी। उसके बरत, उनका मुझे डांटने के बजाय उल्टा शर्मा कर चले जाना एक तो ये बता रहा था कि अब वो ये समझ चुकी थी कि मैं अब बड़ा हो चुका हूं। दूसरा वो ये समझ चुकी थीं कि ये किताब उनके जमाने की है और वो मुझे कहाँ से मिली होगी। मुझे लगता है अम्मी शायद इस बात पर भी शर्म ये लाल हो गयी थी कि उनके बेटे को अंदाजा हो गया है की अपने वक्त में वो भी यह सब पढ़ती थी। अम्मी का डांटने की जगह शर्मा कर निकल जाने ने मेरे अंदर एक अजीब सी सनसनाहट पैदा कर दी। मुझे डांटने का ख्याल अम्मी को नही आया इस ख्याल ने मुझे हिम्मत से लबरेज कर दिया।
में बहुत देर दालान में ही बैठा रहा और काफी देर बाद, किताब को तकिए के नीचे छुपाकर घर मे अंदर गया। वहां अम्मी काम कर रही थी। अम्मी ने मुझे आया देख अपना काम करते हुए, शर्म से मंद मंद मुस्कुराने लगी थी। कुछ देर बाद उन्होंने मुझसे बोला- कहाँ मिली तुझे वो किताब?
मैं- कोठे पर किताबों के गट्ठर में।
अम्मी ने फिर थोड़ा गुस्से लेकिन शर्माते हुए कहा- ऐसी किताबें पढ़ता है तू?
मैं- नही अम्मी, वो बस देखा तो मन किया। अब क्या कहे, आप जानती हैं क्या उसके बारे में?
अम्मी ने शर्माते हुए झूठ बोला- नही
मैं- तो आप ऐसे क्यों पूछ रही हो?
अम्मी- इतना तो किताब के फोटो को देखकर पता चल ही गया कि वो गंदी किताब है। ऐसी किताब नही पढ़ते।
मैं- उसमे कहानियां है अम्मी।
अम्मी और शर्मा गयी - फाड़ के फेंक दे उसको, गंदी कहानियां होती हैं वो।
मैंने हिम्मत करके- आपको कैसे पता? ये किताब देखने में बहुत पुरानी लगती है, कब की है अम्मी?
अम्मी चुप हो गयी- बोला न फाड़ के फेंक दे उसको, नही तो तेरे अब्बू को बता दूंगी।
मैं- और अगर फाड़ के फेंक दी तो नही बताओगी न
अम्मी - नही
अम्मी मुझे देखकर हल्का सा मुस्कुरा दी और न जाने क्यों वो मेरी तरफ देखने लगी, मुझे भी न जाने कैसे हिम्मत आ गयी मैं भी उनको देखने लगा, दोनों की सांसें कुछ तेज चलने लगी, अम्मी मुझसे कुछ दूरी पर खड़ी थी।
मैंने फिर धीरे से बोला- अब्बू को नही बताओगी न?
अम्मी ने धीरे से न में सर हिलाते हुए कहा और शरमा कर कमरे में चली गयी।
अम्मी का इस तरह मुझे भरी नजरों से देखना मुझे कुछ इशारा कर रहा था। न जाने ये क्या हो रहा था, मेरा मन खुशी के मारे झूम उठ रहा था। अम्मी के चेहरे पर शर्म की लाली ये बता रही थी कि उनके मन में बहुत कुछ करवटें ले रहा है। उन्होंने मुझे जिस तरह देखा और आंखे नही मिलाई, उससे मैं बड़ा हैरान था। मुझे आजतक उन्होंने कभी ऐसे नही देखा था और न ही मैंने उन्हें।
मैं खड़ा खड़ा कुछ देर सोचता रहा फिर घर के बाहर आ गया। एक तरफ जहां मैं डर रहा था कि अम्मी गुस्सा करेंगी, न जाने क्या क्या सोचेंगी लेकिन ये क्या हुआ? मेरा दिल तो ये सोचकर जोरो से धड़क उठा कि लगता है की अल्लाह ताला ने मेरी सुन ली! फिर भी मैं अभी पूरी तरह इत्मीनान में नही था। हो सकता है की मां बेटे की कहानी पढ़ कर मेरा दिमाग चल गया हो और यह मेरा सिर्फ ख्याल हो? अम्मी की हया में डूबी मुस्कराहट को देख कर, मेरा उस किताब से मन हट गया। जब ज़िंदगी में इस तरह का कोई वाक्या गुजर जाता है तो किसी चीज़ में कहां मन लगता है?
उसके बाद से मैं छुप छुप कर अम्मी को घूरने लगा। जब वो इधर उधर दरवाजे पर काम करती रहती या घर में भी जब काम करती रहती तो मैं उन्हें किनारे से घूरता या कभी उनकी ओर टकटकी बांधे देखता रहता। मेरा उनकी घूरना, अम्मी से नजरंदाज नहीं था। वो भी मुझको उनको देखता हुआ देखकर, कुछ देर मेरी आँखों में घुस कुछ तलाश करती। अम्मी मेरे अंदर के इरादों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी, वो कभी अकबका के सामने से हट जाती और कभी शरमा कर, मुस्कुरा कर चली जाती।
कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा फिर एक दिन की बात है की मैं बरामदे में बैठा था तभी अम्मी आ गई और मेरे पास में बैठ कर, थाली में मटर छिलने लगी। मुझे बैठा देखा अम्मी, मुझसे ग्रेजुएशन के बाद आगे क्या करना है पूछने लगी और मैं उन्हें अपने ख्वाबों के बारे में बता रहा था कि मेरी सामने बाग में नज़र चली गयी। वहां देखा की कुछ लोग एक भैंस को लेकर आये और उसे पेड़ से बांध दिया। बाग में क्या चल रहा है इसका अम्मी को कोई गुमान नही था, वो तो बस मटर छीलती जारही थी और मुझसे बाते किए जारही थी। मैं भी हां हूं का जवाब देता जा रहा था लेकिन उनकी नज़र बचा कर सामने देखे जा रहा था। मैं बाग में शुरू होने वाले काम को भांप गया था। वहां भैंस की एक भैसे से हरी कराई जा रही थी। अब क्योंकि मेरे दिलों दिमाग में सिर्फ चोदन चुदान घुसा था इसलिए मेरा लंड मेरे पैंट में फूलने लगा।
भैंस को पेड़ से बांधने के बाद दो लोग कुछ दूर खड़े हो गए और थोड़ी देर में ही बगल वाले घर से एक भैंसा भागता हुआ आया। उसने करीब दो बित्ता लम्बा लाल रंग का लंड बाहर निकल रखा था जिसको देखकर मेरे लंड ने भी हुंकार मार दी। अम्मी ने अभी तक उस तरफ नही देखा था और मैं इधर गरम हो रहा था, बार बार उनसे नजरे बचा के उधर ही देख रहा था। वो भैंसा, भैंस की बूर को सूंघने लगा। भैंस थोड़ी चिहुंकी फिर मूतने लगी। भैंसे का लन्ड अब करीब 2 इंच और बाहर आ गया था। मैं नज़र बचा कर उस तरफ ही देख रहा था कि तभी अम्मी ने गौर किया कि मैं बार बार एक ही तरफ क्यों देख रहा हूँ । यह देख उन्होंने ऐसे मौके पर उस तरफ देखा, जिस वक्त भैंसा करीब 3 बित्ता लंड बाहर निकाल चुका था। उसका लाल लाल लंड, बदन में अलग ही झुरझुरी पैदा कर रहा था। अम्मी ने यह देखते ही एकदम से मेरी तरफ देखा तो मैं सकपकाया हुआ उन्हें ही देख रहा था। जैसे ही हमारी आंखे मिली, एकाएक अम्मी का चेहरा शर्म से लाल हो गया और वो "धत्त" कहते हुए घर के अंदर भाग गई। मेरी तो हालत खराब होगई, सांसें धौकनी की तरह चलने लगी थी।
मैंने हिम्मत करके उन्हें एक बार पुकारा भी पर वो नही आई। उधर बाग में एक दो बार नाकाम होने के बाद भैंसा अब भैंस के ऊपर चढ़ चुका था। दो चार धक्के उसने भैंस की बूर में मारे फिर नीचे उतर गया। मैं ये सब देखकर और गर्म हो गया। भैंसे ने फिर कोशिश की और एक दो बार फिर भैंस की बूर में तेजी से अपना लाल लाल लंड डालकर धक्के मारे। मुझसे जब रहा नही गया तो मैं जल्दी से उठा और एक नज़र बाहर दादा दादी पर डाल कर, घर में चला गया। मेरी जिदारी बढ़ रही थी। मैंने पाया अम्मी पीछे वाली कोठरी में बड़े से बक्से के पास खड़ी थी। मुझे ऐसा कुछ शुबह हुआ कि जैसे अम्मी वहां मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। मैं एक लम्हा उन्हें देखता रहा और वो मुझे देखती रहीं। हम दोनों की ही सांसें तेज चलने रही थी और कुछ देर ऐसे ही बुत बने हम दोनों खड़े रहे। अम्मी को मैं गौर से देख रहा था और मुझे यह पुर जोर इत्मीनान हो चुका था कि उनकी आंखों में बुलावा है लेकिन खून के रिश्ते की दीवार अब भी बीच में खड़ी थी। मैं जैसे ही आगे बढ़ा तो वो मेरी तरफ पीठ करके अपना मुँह अपने हांथों में छुपाते हुए "न" बोलते हुए पलट गई। मगर मुझे अब सब्र कहाँ था, मैंने उन्हें पीछे से बाहों में भर लिया। आज पहली बार एक औरत का गुदाज जिस्म मेरे जिस्म से सटा था और वो भी मेरी ही अपनी सगी अम्मी का! मेरा दिल इतनी जोर जोर से सीने में धड़क रहा था कि लगा की वो उछलकर बाहर ही आ जायेगा। जो मेरा हाल था वही हाल अम्मी का भी था, उनकी तेज चल रही सांसें मैं बखूबी महसूस कर रहा था।
मैं अम्मी को पीछे से बाहों में लिए हुआ था, वो न अपने आप को मुझसे छुड़ा रही थी और न ही मुझे आगे बढ़ने को कोई दावत दे रही थी। मेरे को तो बड़ी अजीब सी बदहवासी हो रही थी। मेरी बाहों में गिरफ्त अम्मी के गुदाज जिस्म ने मुझे जिन्सी तमन्ना से लबरेज कर दिया था। मेरा लंड तनकर उनकी गुदाज चूतड़ों की दरार में घाघरे के ऊपर से ही ठोकर मारने लगा जिसे वो अच्छे से महसूस कर रही थी। उनके मुंह से न चाहते हुए भी हल्की सी आह निकल गई, और वो बोली- या अल्लाह! ये गुनाह है, मत कर वली, कोई आ जायेगा।
मैं- आह्ह्ह अम्मी, बस एक बार!
मैंने बस इतना ही बोला और उनको और मजबूती से पकड़कर, उन्हे अपनी बाहों में भरते हुए, उन्हे महसूस कराने के लिए, अपने लंड को जानबूझकर उनके भारभराए चूतड़ों में तेजी से दबा दिया। मेरे लंड की इस ठसक से उनकी हल्की सी सिसकी निकल गयी। मैंने जैसे ही उनकी ब्लॉउज में कैद नंगी पीठ को चूमा, मैं जिन्सी की दूसरी ही दुनियां में पहुंच गया। मैं इतना जज़्बाती कभी नही हुआ, जितना आज अपनी अम्मी के साथ लिपटने से हो रहा था। मैंने धीरे धीरे उनकी पीठ और गले पर उन्हे कई जगह चूमा और हर बार वो अपना चेहरा अपने हांथों में छुपाए सिसक जा रही थी। मैं इतना तो समझ ही रहा था कि वो भी यह सब करना चाहती थी, यदि ऐसा न होता तो वो अभी तक मेरे गाल पे थप्पड़ मारकर, मुझे अच्छे से पीट चुकी होती। इसके बावजूद वो न तो मुझे अपने से हटा रही थी और न ही मुझे अच्छे से आगे बढ़ने दे रही थी।
मुझे इतने ही ने इतना पुर शेवत कर दिया था कि अब मुझसे रहा नही गया और मैंने पूरा जोर लगा कर उनको सीधा करके अपनी बाहों में भर लिया। उन्होंने अब भी अपना चेहरा अपने हांथों से मुंदा हुआ था, जिसकी वजह से उनकी मोटी गुदाज छातियाँ मेरे सीने से सट नही पा रही थी। मैंने उनको धकिया कर बक्से से सटा दिया और बेशर्म होकर घाघरे के ऊपर से ही उनकी बूर पर अपने टंटनाते हुए लंड से चार पाँच धक्के मारे तो वो तेजी से सिसकिया दी। मैं अब अपने होश ओ हवस खो रहा था। मैने बिना कोई परवाह किए अपना हाँथ नीचे अम्मी की बूर को छूने के लिए ले गया तो उन्होंने लपक से मेरा हाँथ पकड़ कर उसे झटक दिया। अपनी इस रुसवाई से बेखबर जब मैंने अपने होंठ, उनके होंठ पर रखने चाहे तो उन्होंने एक हाँथ से अपने होंठ ढक लिए और मेरी आँखों में देखने लगी। मैं चाहता तो जबरदस्ती कर सकता था, पर उनकी आंखे बयां कर रही थी की उनके साथ जबरदस्ती और जल्दबाजी करना दोनो ही गलत होगा। मैं अपनी अम्मी की हसरतों और तसादुम को खौफजदा नही करना चाहता था, इसलिए मैं उनकी आंखों में बड़ी हसरतों से देखने लगा।
मेरा लंड अभी भी तमतमाया हुआ उनकी बूर पर घाघरे के ऊपर ही धरा हुआ था। मैं उनको और वो मुझे कुछ देर ऐसे ही देखते रहे, फिर अम्मी उखड़ती भारी आवाज में धीरे से बोली- ये गुनाह है वली।
मैं- मैं यह सब नही जानता अम्मी, मुझे आप चाहिए।
अम्मी- छोड़ दे नही तो तेरे अब्बू को बता दूंगी।
मैं- आपकी यही ख्वाइश है? तो बता देना अब्बू को, पर एक बार, बस एक बार इख्तिलात की इजाजत दे दे, प्यार करने दो अम्मी।
ऐसा कहते हुए मैंने अपने लंड को उनकी बूर पर फिर ऊपर से दबाया तो वो फिर सिसक उठी।
अम्मी- नामुराद लड़के! कोई आ जायेगा! जा यहां से अभी, नही तो सच में मैं तेरे दादा को बुला के तेरी करतूत बता दूंगी।
अम्मी चुप हो गयी और फिर मुझे देखने लगी। मैंने नीचे अपने हाँथ को उनके हाँथ से छुड़ाया और अब उनके हाँथ को पकड़कर अपने तने हुए लंड पर जैसे ही रखा तो उन्होंने झट से अपना हाँथ हटा लिया।
मैं- एक बार अम्मी, बस एक बार।
मेरे इस तरह इस्तदा करने पर वो मेरी आँखों में देखने लगी। उनकी आंखों में कश्मकश के बादल छट रहे थे, मुझे उनमें हसरतों के उफनते गुबार साफ दिख रहे थे। मैंने जुर्रत करके दुबारा उनके हाँथ को पकड़ा और उसे अपने खड़े हुए मोटे लंड पर रखने के लिए ले गया। मैंने जैसे ही अम्मी के हाथ को अपने लंड पर रखा, उन्होंने मेरे सीने में अपना सर छुपाते हुए मेरे लंड को कस के पकड़ लिया। मेरे सीने में धसी अम्मी कांप रही थी लेकिन उनका हाथ मेरे लंड को सहला रहा था। अम्मी मेरे लंड को थोड़ा सहलाने के बाद उसको आगे पीछे करके मुठियाने लगी तो मस्ती में मेरी आंखें बंद हो गयी। मुझे यकीन नही हो रहा था कि आज मेरी सगी अम्मी, मेरे लंड से खेल रही हैं। जब थोड़ी देर में अम्मी ने लंड को मुट्ठ मरना बंद कर दिया तो मेरी आंखे खुल गई। मैंने देखा, वो मुझे ही देख रही थी और हम दोनों की उखड़ी उखड़ी सांसें चल रही थी। मुझे आंखे खोल देख, अम्मी ने मेरे लंड को फिर आहिस्ते से सहलाया और बोली- वाली अब जा, कोई आ जायेगा।
मैंने उनकी बात मानते उन्हें छोड़ दिया और थोड़ा पीछे हटा तो मेरा लंड पैंट में बुरी तरह तना हुआ था, जिसको देखकर अम्मी के चेहरे पर मुस्कराहट आगई और उन्होंने दांतो मे दुपट्टे दबा, चेहरा ढक लिया। मैं उनका शर्माना देख, जैसे ही दुबारा उनके करीब जाने लगा तो अम्मी बोली- जा न, अब क्या है?
मैं- एक बार
अम्मी- एक बार क्या?
मैंने अम्मी की बूर की तरफ इशारा करके कहा- एक बार छूने दो न अम्मी।
अम्मी- बड़ा गुस्ताख है तू! अभी नही, अभी जा यहां से।
मैं अम्मी की बात सुन पीछे हट गया और उनके इसरार को तस्लीम करते हुए बाहर निकल गया। मेरे मन मे हजारों पटाखे फूट रहे थे, मुझे बस अब अम्मी के इशारे का इंतज़ार था लेकिन यह इशारा कब तक मिलेगा, यह भी कोई वाजे न था। ऐसे में, इशारे की तलाश में कई दिन बीत गए और मुझे यह लगने लगा था अम्मी जानबूझ कर मुझसे दूर बना रखी है। अम्मी मुझे देख कर मुस्कुरा तो देती थी लेकिन मेरे पास से गुजरने या अकेले में रहने से बचती भी थी। मेरे लिए अम्मी के यह नए अंदाज बिल्कुल भी समझ के बाहर थे। अम्मी ने जमाना देखा हुआ था, उन्हे इसका इल्म था की मैने वह किताब फाड़ी नही होगी बल्कि पूरी पढ़ ली होगी। अम्मी यह बात भी अच्छी तरह जानती थी की उसी में तीसरी कहानी माँ बेटे पर है।
जैसा पहले बताया की उन दिनों सर्दियां थी इसलिए मैं भूसा रखने वाले दालान में ही सोता था। अंधेरे रात की तन्हाई में मुझे अम्मी के साथ गुजरे वे पल बेहद तकलीफ देते थे। अम्मी के साथ हुए उस वाक्यें को बीते अब सात दिन बीत चुके थे और गुजरते दिन के साथ अम्मी के साथ अगले राब्ते की उम्मीद भी कम हो रही थी। मुझे लगने लगा था कि मेरी जो ख्वाइश है वो अम्मी की अब नही रही है। अम्मी की एक हफ्ते की बेरुखी से मैं नाउम्मीद हो चला था और सर्दी भरी उस रात में दालान में बेधड़क सो रहा था। रात गांव में कोहरा भी हो जा रहा था। मैं कोहरे भरी उस चांदनी रात में दालान में भूसे के बगल में खटिया पर बनियान और चढ्ढी पहने ऊपर से तहमद लपेटे, रजाई ओढ़े सो रहा था।
अचानक दालान का दरवाजा हल्के से खटखटाने की आवाज हुई जिससे मेरी नींद खुल गई। शायद दरवाजा दो तीन बार पहले भी खटखटाया गया था, मैं रजाई से निकला और दरवाजे पर जाकर अंदर से बोला- कौन?
अम्मी ने धीरे से कहा- मैं…..दरवाजा खोल
मैंने झट से दरवाजा खोला तो सामने अम्मी शॉल ओढ़े खड़ी थी वो झट से अंदर आ गयी और दालान का दरवाजा अंदर से बंद करके मेरी ओर मुड़ी और अंधेरे में मेरी आँखों में देखने लगी। मुझे भरोसा ही नही हो रहा था कि मेरी अम्मी इस अंधेरी रात, चुपके से मेरे सामने खड़ी है। मैने जल्दी से दिया जलाने की कोशिश की तो अम्मी ने धीरे से कहा- दिया मत जला वली बाहर रोशनी जाएगी खिड़की से।
मैं दिया जलाना छोड़कर उनकी तरफ पलटा तो वो मुझे अपना शॉल उढ़ाते हुए मुझसे लिपट गयी। मुझे काटो तो खून नही, मैंने उन्हें और उन्होंने मुझे बाहों में भर लिया। ऐसा मंजर वाकई हो गुजरेगा यह मैने कभी ख्वाब में भी नही सोचा था। हम दोनों की साँसे धौकनी की तरह तेज तेज चलने लगी, अम्मी का गुदाज बदन को अपनी बाहों में महसूस कर मेरी आशनाई इंतहा पर पहुंच गई थी। मैने जैसे ही उन्हें चूमने के लिए उनके चेहरे को अपनी हथेली में थामा, वो धीरे से बोली- किसी को कभी खबर न चले वली?
मैंने भी धीरे से कहा- कभी नही अम्मी, आप फिकरमंद न हो, आप को आते, किसी ने देखा तो नही?
अम्मी ने फिर धीरे से कहा- नही, तेरे दादा दादी ओसारे में सो रहे हैं।
उस लम्हे ठंड न जाने कहाँ गायब हो गयी थी, मैंने अम्मी को कस के अपने से चिपका लिया। मैंने आज फिर उनके मुंह से सिसकी सुनी तो मेरा लंड तहमद में फुंकार मारकर खड़ा हो गया। वो सिसकारी लेकर मुझसे लिपट गयी, मैं उन्हें चूमने लगा, उनकी सांसे तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी। एक अजीबों गरीब सी सनसनी हम मां बेटे के जिस्मों में हो रही थी। दोनों की गरम गरम सांसें एक दूसरे के चेहरे पर टकरा रही थी। मैने, अम्मी के गालों को चूमने के बाद जैसे ही उनके होंठों पर अपने होंठ रखे मेरा पूरा जिस्म कांप गया। आज मुझे पहली बार महसूस हुआ की किसी औरत के होंठों को चूमने पर कैसा लगता है और यह तो मेरी अम्मी के होंठ थे! मैं उनके होंठों को चूमने लगा और वो मेरा साथ देने लगी। होंठों को चूमते चूमते जब मैंने अपना हाँथ उनके गदराए चूतड़ों पर रखा तो उनके बदन में अजीब सी थिरकन हो उठी। अपनी ही अम्मी के चूतड़ छूकर भी मुझे यकीन नही हो रहा था, मैंने जैसे ही उनकी गांड को दबाया वो सिसक कर मुझसे कस के चिपट गयी। मैंने उन्हें बाहों में उठाया और अंधेरे में ही बिस्तर पर लिटाया और "ओह अम्मी" कहते हुए उनके ऊपर चढ़ गया। मैने ऊपर से रजाई ओढ़ ली थी। अम्मी ने "धीरे से बोल" कहते हुए मुझे अपने आगोश में भर लिया। रजाई के अंदर हम दोनों एक दूसरे से लिपट गए। मेरा लंड लोहे की तरह तनकर जैसे ही उनकी बूर के ऊपर चुभा वो मुझसे शर्मा कर लिपटती चली गयी। मैं उनके गालों, गर्दन, कान, माथा, नाक, आंख, ठोढ़ी पर ताबड़तोड़ चुम्बनों की बरसात करने लगा और अम्मी मेरे इस इजहार ए मोहब्बत में भीगी धीरे धीरे कसमसाते हुए सिसकने लगी।
मैने जैसे ही दुबारा उनके होंठों पर अपने होंठ रखे तो उन्होंने मेरे बालों को सहलाते हुए मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया। मैने चूमते चूमते अपनी जीभ जैसे ही उनके होंठों से छुवाई उनके होंठ अपने आप खुलते चले गए और जैसे ही मेरी जीभ उनके मुंह में डली, हम दोनों सिरह उठे। मैंने महसूस किया कि वो जब मेरी जीभ को चूसने लगी थी तो उनकी बूर इस तपिश में कांपने लग थी। कभी वो मेरी जीभ को चूसती तो कभी मैं उनकी जीभ से खेलने लगता, एकएक मेरा हाँथ उनकी चूची पर गया तो वो फिर सिसक उठी। मुझसे जब रहा नही गया तो मैं उनके ब्लॉउज के बटन खोलने लगा। अंधेरे में
कुछ दिख तो नही रहा था लेकिन जब किसी तरह से ब्लॉउज के बटन खोल दिए तो अम्मी ने खुद ही उसे निकाल कर बगल में रख दिया। अब वो खाली ब्रा में थी, मेरा दिल तो उनकी 38 साइज की जिन्सी हवास में तनी हुई दोनों चूचीयों को महसूस करके ही बदहवास हो चला था। मैने जल्दी से ब्रा को ऊपर उठाया तो उनकी मोटी मोटी चूचीयाँ उछलकर बाहर आ गयी, जिनपर मैंने अंधेरे में मुँह लगाकर उन्हें काफी देर तक महसूस किया। मेरे होठों और गालों की तपिश से अम्मी तैश में आगाईं और सिसकते हुए अपनी चूंचियों पर दबाने लगी।
मैं तो आज रात सातवें आसमान में था, सोचा न था कि अल्लाह मुझपे इतनी महेरबान होंगे। मैं जब अपनी अम्मी की चूंचियों को मुंह मे भरकर पीने और दबाने लगा तो वो न चाहते हुए भी सिसकारे लेने लगी। वो अपने दांतों को होंठों से काटने लगी और उनके चूचक हवस में तनकर किसी काले अंगूर की तरह हो चुके थे। उनकी दोनों चूचीयाँ फूलकर किसी गुब्बारे की तरह हो चुकी थी। एकएक मैंने अपना हाँथ उनकी ढोढ़ी पर रखा तो वो समझ गयी कि अब मैं किस तरफ बढ़ रहा हूँ। मैंने जैसे ही अपना हाँथ उनके घाघरे की गांठ पर रखा और हल्का सा अंदर सरकाया तो उन्होंने मेरा हाँथ शर्माते हुए पकड़ लिया, मैंने धीरे से बोला- एक बार दिखा दो अम्मी।
वो थोड़ी देर चुप रहीं तो मैं फिर घिघियाता हुआ बोला- दिखा दो न अम्मी, मैंने कभी देखा नही है।
अम्मी धीरे से बोली- मुझे शर्म आती है।
मैं- बस एक बार जल्दी से।
कुछ देर वो खामोश रही तो मैं समझ गया कि ये खामोशी उनकी रजामंदी है। मैं चुपचाप उठा और दिया लेकर आ गया, अब तक अम्मी ने पूरी रजाई अपने मुंह पर डाल ली थी। मैंने दिया जलाया और पैर के पास जाके रजाई को हटाकर, उनके साये को ऊपर सरका दिया। मेरा ऐसा करने पर अम्मी ने धीरे धीरे अपने पैर एक दूसरे पर चढ़ाकर अपनी प्यासी बूर को शर्मिंदगी से बचाने की कोशिश करने लगी। मैने उनके घाघरे को कमर तक उठा दिया और उनकी गोरी गोरी सुडौल जांघें देखकर तो मेरी साँसे ही अटक गई। मैंने आज पहली बार अपनी ही अम्मी को इस तरह देख रहा था। कुछ देर उन्हें ऐसे ही बेसुध देखने के बाद मैंने उनके पैर अलग किये, तो उनका बदन सिरह उठा। आज एक सगा बेटा अपनी सगी अम्मी की बूर देखने जा रहा था। उनका बुरा हाल था, रजाई मुँह पर डाले वो इतनी तेज तेज साँसे लिए जा रही थी की रजाई हिल रही थी।
मैंने दिये की रोशनी में मैने देखा कि उनकी प्यासी बूर का आकार बखूबी उनके साए के ऊपर से ही दिख रहा था और उस जगह पर साया काफी गीली भी हो गया था। मैंने साए के ऊपर से ही बूर पर अपना मुंह रख दिया और बूर को अपने मुंह में भर लिया। जैसे ही मेरा मुँह उनकी बूर पर लगा, अम्मी थोड़ा जोर से कराह पड़ी और उनकी जांघें खुद ब खुद ही हल्का सा खुल गयी। मैं वैसे ही कुछ देर बूर से आती मदहोश कर देने वाली महक को सूंघता रहा। कभी साए के ऊपर से बूर को चाटता तो कभी जाँघों को सहलाता और चूमता और उसके साथ अम्मी भी सिसके जा रही थी। कुछ ही देर बाद उन्होंने खुद ही मेरे दोनों हांथों को पकड़कर जब अपनी कमर पर साए की गांठ पर रखा तो मैं अपनी अम्मी की मंशा समझ गया "कि वो अब बर्दाश्त नही कर पा रही है और खुद ही सब उतारने का इशारा उन्होंने मुझे दे दिया है"।
मैं खुशी से झूम उठा। मैंने जल्दी से साए की गांठ खोल उसे नीचे सरका दिया और जब मेरी नज़र अपनी अम्मी की बूर पर पड़ी तो मैं उसे देखता ही रह गया। जिंदगी में आज पहली बार मैं रूबरू हो बूर देख रहा था और वह भी अपनी ही अम्मी की। क्या बूर थी उनकी, हल्के हल्के बाल थे बूर पर, गोरी गोरी जाँघों के बीच उभरी हुई फूली फूली फांकों वाली बूर जिसकी दोनों फांकों के बीच हल्का हल्का चिपचिपा रस बह रहा था। दोनों फांकों के बीच, तना हुआ तीता देखकर मैं तो पागल सा ही हो गया और बिना देरी किये बूर पर झुक कर होंठ लगा दिए। अम्मी में मुंह से जोर की सिसकारी निकल पड़ी और मैं बूर को बेताहाशा चाटने लगा। कभी नीचे से ऊपर तो कभी ऊपर से नीचे, कभी तीता को जीभ से छेड़ता तो कभी बूर की छेद पर जीभ चलाता। अम्मी जोश खरोश में सिसकने लगी और कुछ ही देर बाद उनके हाँथ खुद ही मेरे बालों पर घूमने लगे। वो बड़े प्यार से मेरे सर को सहलाने लगी, मेरे सर को अपनी बूर पर दबाने लगी और छटपटाहट में उन्होंने अपने सर से रजाई हटा दी थी।
तभी उन्होंने कुछ ऐसा किया कि मुझे यकीन नही हुआ कि वो मुझे ऐसे बूर परोसेंगी। उन्होंने कुछ देर बाद खुद ही लजाते हुए तसवर से लबरेज अपने एक हाथ से अपनी बूर की दोनों फांकों को फैलाकर बूर का गुलाबी गुलाबी छेद दिखाया। मानो वो जीभ से उसे अच्छे से चाटने का इशारा कर रही हों। उनकी इस अदा पर, मारे जोश के मेरा लंड फटा ही जा रहा था। मैंने झट से बूर के छेद में अपनी जीभ नुकीली करके डाल दी तो उनका बदन गनगना गया। उनके चूतड़ हल्का सा थिरक गए। एक तेज सनसनाहट के साथ उन्होंने दूसरे हाँथ से मेरे सर को अपनी बूर पर दबा दिया औऱ मैं अपनी जीभ को हल्का हल्का उनकी बूर में अंदर बाहर करने लगा। वो लगातार सिसके जा रही थी, मुझसे अब रहा नही जा रहा था तभी एकाएक उन्होंने मेरे सर को पकड़कर मुझे अपने ऊपर खींचा तो मैं रजाई अच्छे से ओढ़ता हुआ अपनी अम्मी के ऊपर चढ़ गया। वो मेरी आँखों में देखकर मुस्कुराई, मैं भी मुस्कुराया फिर वो लजा गयी। इस उठापटक में मेरी तहमद कब की खुल चुकी थी और मैं बस बनियान और चढ्ढी में था। मेरा लंड लोहे की तरह तना हुआ था, अब वो नीचे से बिल्कुल नंगी थी, वो ऊपर से भी नंगी थी बस उनका घाघरा कमर पर था, मैं सिर्फ चड्डी और बनियान में था।
दिया अभी जल ही रहा था, वो मुझसे नज़रें मिला कर लजा गईं। उन्होंने जल्दी से एक हाँथ से दिया बुझा दिया, और मेरी बनियान को पकड़कर उतारने लगी तो मैंने झट से ही उसे उतार फेंका और रजाई ओढ़कर हम दोनों रस्से की तरह एक दूसरे से लिपट गए। मैं उनकी मोटी मोटी चूचीयाँ और तने हुए चुचक अपने नंगे बदन पर महसूस कर मदहोश होता जा रहा था। कितनी नरम और गुदाज थी उनकी चूचीयाँ! मैंने कुछ देर उन्हे चूमा और जब चढ्ढी के अंदर से ही अपने खड़े लंड से उनकी नंगी बूर पर हल्का हल्का धक्के मारे तो वो और लजा गयी। अब दालान में बिल्कुल अंधेरा था, मैंने धीरे से उनका हाँथ पकड़ा और अपनी चढ्ढी के अंदर ले गया वो समझ गयी। उन्होंने शर्माते हुए खुद ही मेरे लोहे के समान कठोर हो चुके 7 इंच के लंड को जैसे ही पकड़ा, उनके मुँह से हल्का सा सिसकी के साथ निकला "अल्लाह! इतना बड़ा!" मैंने बोला- सिर्फ मेरी अम्मी के लिए।
वो मुझसे कस के लिपट गयी और फिर मेरे कान में बोली- कभी किसी को खबर न लगे, तेरे अब्बू को पता लगा तो गज़ब हो जाएगा।
मैं- आपको मेरे ऊपर यकीन है न अम्मी।
अम्मी- बहुत, अपने से भी ज्यादा।
मैंने उनके होंठों को चूम लिया तो उन्होंने मेरा साथ दिया। मेरे कठोर लंड को सहलाते हुए वो सिसकने लगी और मेरी चढ्ढी को पकड़कर हल्का सा नीचे करते हुए उसे उतारने का इशारा किया। मैंने झट से चढ्ढी उतार फेंकी और अब मैं रजाई के अंदर बिल्कुल नंगा था। उन्होंने सिसकते हुए अपनी दोनों टांगें हल्का सा मोड़कर फैला दिया, जैसे ही मेरा दहाड़ता हुआ लंड उनकी दहकती हुई बूर से टकराया वो बेखुदी में सिसक उठी। मेरा लंड उनकी बूर पर जहां तहां टकराने लगा और दोनों की ही सिसकी निकल जा रही थी। मैंने अपने लंड को उनकी रसीली बूर की फांकों के बीच रगड़ना शुरू कर दिया। मुझसे रहा नही जा रहा था और उनसे भी नही, बार बार लंड बुर से टकराने से वो बहुत भड़क चुकी थी। मैंने एक हाँथ से अपने लंड को पकड़ा, उनकी चमड़ी खोली और जैसे ही उनकी रिसती हुई बूर के छेद पर रखा उन्होंने मेरे कान में धीरे से बोला- धीरे धीरे वाली, बहुत दिनों बाद,बहुत बड़ा है ये!
मैं- अब्बू से भी?
उन्होंने लजाकर मेरी पीठ पर चिकोटी काटते हुए बोला- हाँ…..बेशर्म
मैंने उन्हें चूम लिया और बूर की छेद पर रखकर हल्का सा दबाया तो लंड फिसलकर ऊपर को सरक गया, मारे बदमस्ती के थरथरा सा रहा था। वही हाल अम्मी का भी था। जल्दी से जल्दी वो मेरा लंड अपनी बूर की गहराई में लेना चाह रही थी और मैं भी उनकी बूर में जड़ तक लंड उतारना चाह रहा था। पर आज मेरे लिए जिंदगी में ये पहली बार था, मारे बदहवासी के मैं कांप सा रहा था।
अपनी ही अम्मी को चोदना का सोचकर ही मैं मतवाला हो जाता था लेकिन आज की रात तो मैं ये हूबहू कर रहा था। एक दो बार लंड ऊपर की ओर सरक जाने के बाद अम्मी ने अपने दोनों पैर मेरी कमर पर लपेट लिए और एक हाँथ नीचे ले जाकर मेरे तड़पते लंड को पकड़कर एक बार अच्छे से सहलाया और फिर अपनी बूर की छेद पर रखकर उसको सही रास्ता दिखाते हुए दूसरे हाँथ से मेरी गाँड़ को हल्का सा दबाकर लंड घुसाने का इशारा किया तो मैंने एक तेज धक्का मारा। लन्ड इस बार गच्च से आधा बूर में चला गया, वो कराहते हुए बोली- "धीरे धीरे" अब लंड बूर में घुस चुका था। उन्होंने हाँथ वहां से हटाकर सिसकते हुए मुझे आगोश में भर लिया, मैं कुछ देर ऐसे ही आधा लंड बूर में घुसाए उनपर चढ़ा रहा, आज पहली बार पता लग रहा था कि वाकई में हर मर्द को बूर चोदने की हसरत क्यों तड़पाती रहती है, क्यों इस बूर के लिए वो मरता है।
क्या जन्नत का अहसास कराती है ये बूर, कितनी नरम थी अम्मी की बूर अंदर से और बिल्कुल किसी भट्टी की तरह बदहाली में धधक रही थी। कुछ पल तो मैं कहीं खो सा गया। अम्मी मेरी पीठ को सहलाती रही, फिर मैंने एक तेज धक्का और मारा और इस बार मेरा लंड पूरा जड़ तक अम्मी की बूर में समा गया। वो एक तीखे दर्द से कराह उठी, मुझे खुद अहसाह हो रहा था कि मेरा लंड उनकी बूर को चीरता हुआ उनके बच्चेदानी से जा टकराया था। वो मुझसे बुरी तरह लिपटी हुई थी और आंखे बंद किये तेज तेज कराह रही थी। अब रुकना कौन चाह रहा था, मैंने रजाई अच्छे से ओढ़ी और उन्होंने कराहते हुए अपने को मेरे नीचे अच्छे से पसरी और फिर मैंने धीरे धीरे लंड को अंदर बाहर करते हुए अम्मी को चोदना शुरू कर दिया। वो मस्ती में सिसकते कराहते हुए मुझसे लिपटती चली गयी, इतना मजा आएगा ये कभी ख्वाब में भी नही सोचा था। जितना कुछ कभी सोचा था उससे कहीं ज्यादा मजा आ रहा था।
दालान में पूरा अंधेरा था, धीरे धीरे मैं उन्हें तेज तेज चोदने लगा और मेरे धक्कों ने पूरा रफ्तार पकड़ लिया, खटिया चर्रर्रर्रर चर्रर्रर्रर करने लगी, न चाहते हुए भी दोनों के मुंह से बदकार सिसकारियां निकलने ही लगी थी। मैंने दोनों हाँथ नीचे ले जाकर अपनी अम्मी के मोटे मोटे चूतड़ों को थामकर हल्का सा ऊपर उठाया और कस कस के पूरा लंड उनकी रसीली बूर में पेलने लगा। वो तेज तेज सिसकते हुए अब नीचे से शर्मो हया छोड़ अपनी चौड़ी गाँड़ हल्का हल्का ऊपर को उछाल उछाल कर अपने सगे बेटे से चुदवाने लगी। हम दोनों आलम ए मस्ती में दोनों मां बेटे डूब गए। तेज तेज धक्के मारने के साथ साथ मैं उनके गालों और होंठों को चूमने लगा और वो मदहोशी में मेरा साथ देने लगी। मैं उनकी तेज धक्कों के साथ हिलती हुई चूचीयों को कस कस के दबाने लगा, वो और भी सिसकने लगी।
रात के घनघोर अंधेरे में मेरा लंड अपनी ही अम्मी की बूर में घपाघप अंदर बाहर हो रहा था। कुछ ही देर में जब बूर बहुत ज्यादा पनिया गयी तो रजाई के अंदर चुदायी की फच्च फच्च आवाज़ें गूंजने लगी। उनकी नंगी जाँघों से मेरी नंगी जांघे थप्प थप्प टकराकर जो आवाज पैदा कर रही थी उससे हम दोनों और वहशी हो जा रहे थे। जिस्मानी रिश्तों का यह खेल आज अंधेरे में मैं और अम्मी खेलेंगे ये कभी सोचा न था। इतना मजा आएगा आज की रात ये कभी सोचा न था। करीब पंद्रह मिनिट की लगातार चुदायी के बाद अम्मी ने बस धीरे से मेरे कान में बड़ी मुश्किल से भरी आवाज में कहा "रुकना मत….और तेज तेज" मैं ये सुनकर और गचा गच उनकी बूर चोदने लगा। वो तेजी से आहें भरते हुए कराहने लगी, लगातार बदहवास सिसकारियां लेते हुए वो छटपटाने लगी। कभी मुझसे कस के लिपट जाती कभी मेरी पीठ पर चिकोटी काट लेती तो कभी मेरी नंगी पीठ पर अपने नाखून गड़ा देती। एकएक उनका बदन थरथराया और मैंने साफ महसूस किया कि उनकी बूर के अंदर मानो कोई जलजला सा आगया हो और उस के साथ वो कस के मुझसे लिपटते हुए
तेजी से कराहकर "आआआआआहहहह हाय अल्लाहआआआ वाली!!! " कहते हुए फारिग होने लगी। उनकी बूर में इतनी तेज तेज सिकुड़न होने लगी कि मुझसे भी बर्दाश्त नही हुआ और मैं भी "ओह अम्मीईई" कहते हुए झड़ने लगा। एक तेज माल की गाढ़ी धार मेरे लंड से निकलकर उनके बच्चेदानी पर गिरने लगी। मेरे अंदर इतना उफान था कि करीब दो मिनट तक मेरा लंड झटक झटक कर माल अम्मी की बूर में उगलता रहा। यही हाल अम्मी की बूर का भी था। करीब इतनी ही देर तक उनकी बूर भी कांपते हुये झड़ती रही। वो मुझे कस के अपनी आगोश में भरकर काफी देर तक झड़ते हुए चूमती रही। इतना सकूं शायद उन्हें पहले कभी नही मिला था, उन्होंने धीरे से मेरे कान में कहा- "आज मैंने पा लिया अपने बेटे को, कितनी नाजो नामत है"
मैं- फिर भी आपने आने में एक हफ्ता लगा दिया अम्मी, मैं कब से आपका इंतजार कर रहा था रोज़, मैं यही जन्नत आपको देना चाहता था, मैंने भी आज अपनी अम्मी को पा लिया है और ये सब हुआ है उस पुरानी किताब की वजह से।
वो ये सुनकर हल्का सा मुस्कुरा पड़ी और बोली-नही वाली, देर इसलिए हुई क्योंकि मेरी माहवारी आ रखी थी, इसलिए मैंने तुझे इंतज़ार करवाया, इतंज़ार का फल मुक़दस होता है न।
मैं- हाँ अम्मी सच है
अम्मी- क्या वो किताब तूने फाड़ दी है।
मैं- नही अम्मी, फाड़ा नही है।
वो फिर मुस्कुराई और बोली- उसे फाड़ना मत, उसी ने हमे मिलाया है।
मैंने उन्हें "हाँ बिल्कुल" बोलते हुए कई बार चूमा, और बगल में लेटते हुए उन्हें अपने ऊपर चढ़ा लिया इस उलट पलट में मेरा लंड पक्क से उनकी बूर से निकल गया तो अम्मी ने साये से अपनी बूर और मेरे लंड को अच्छे से पोछा और एक बार फिर हम एक दूसरे के आगोश में समाते चले गए।
उस रात मैंने अम्मी को तीन बार चोदा और फिर वो सुबह में दालान से निकल गयी। रात में वो अब रोज़ मेरे पास नज़र बचा के आने और हम जी भरकर चुदायी करते थे। इतना ही नही दिन में भी हम छुप छुप कर चुदायी कर ले थे। मेरी अम्मी अब सच में मेरी हो चुकी थी, आखिर मेरा जिस्म उनके जिस्म का ही तो एक टुकड़ा था, अब कोई रुसवाई नही थी बस था तो सिर्फ प्यार ही प्यार।
उस सर्द रात को जो सिलसिला शुरू हुआ वह अगले 10 सालों तक चलता रहा। मेरे लिए मेरी अम्मी ही मोहब्बत थी मेरी जन्नत थी। जब मैं यूनाइटेड बैंक लिमिटेड में अफसर बन गया तो अम्मी मुझ पर अपनी दूर की बाजी की लड़की से निकाह करने का जबर करने लगी। लेकिन मैं बिल्कुल भी अम्मी को छोड़ना नही चाहता था। तब अम्मी ने मुझे वादा किया की मेरे उनके रिश्ते इस नए रिश्ते से बेजार नही होंगे। मैं जब चाहूं अपनी अम्मी को चोद सकता हूं। उनके वादे के बाद मैने अम्मी की पसंद से निकाह कर लिया और मेरी शादीशुदा जिंदगी में मेरी बीबी बाहर ले आई। मैं अपनी बीबी से खुश था लेकिन फिर भी मैं बीच बीच में गांव जा कर अपनी अम्मी की आगोश में राते बिताता रहा। दिन या रात जब भी मौका मिलता, अम्मी खुद ही मौका देती या फिर मैं उन्हें बेमौके चोद देता था।
लेकिन एक दिन, मेरी दुनिया ही बदल गई। मैं कराची में अपने बैंक की ब्रांच में काम कर रहा था की खबर आई की अम्मी को दिल का दौरा पड़ा और उनका इंतकाल हो गया है। मेरा दिल इस तरह टूटा की अगले 6 महीनो में ही पाकिस्तान में बैंक की नौकरी छोड़, एक विदेशी फाइनेंस कंपनी में नौकरी करने ब्रसेल्स आगया और वहीं पर अपने परिवार को बुला लिया।
आज 6 साल हो गए है अम्मी को गए हुए लेकिन आज भी वो मेरे ज़हन में समाई हुई है।
मेरी जिंदगी में अम्मी कैसे ऐसा मुकाम बन गई की उनके इंतकाल के बाद मेरा पाकिस्तान में मन न लगा उसके पीछे एक दास्तां है। यह दास्तां एक वाक्ये से शुरू हुई और यह वाक्या तब का है जब मैं अपने घर, गांव गुल्ज़ारवाला से दूर शहर डेरा ग़ाज़ी खान में रहकर पढ़ाई कर रहा था। मैं जब ग्रेजुएशन करने घर से यहां डेरा गाज़ी खान आया था तब मुझे शहर की हवा नही लगी थी। मैं तब जिस्मानी रिश्तों और जिन्सी अमल ऐसा कुछ नही जानता था। मुझ पर शहर में दोस्तो की सोहबत का कुछ ऐसा असर पड़ा की इन सब चीजों को लेकर आदत पड़ गयी थी। कुछ दिन तक कुछ नया न मिले तो जहनी तबियत परेशान हो जाती थी। हकीकतन आज तक मैने औरत की फुद्दी सिर्फ एक दो बार दोस्तों द्वारा छुप छुप कर लाये गए ब्लू फिल्म में ही देखी थी लेकिन मन बहुत करता था। मुझे हकीकत में फुद्दी को छूने और चोदने की बड़ी हसरत थी मगर इसके लिए जोखम लेने की हिम्मत अभी तक नही आई थी। इस सब का यह असर जरूर था कि हलाला और चुदाई की किताबें पढ़कर घर की औरतों को लेकर नज़र बदल गयी थी।
कभी कभी मैं जब इसको लेकर बहुत पुर जोश हो जाता तो मुट्ठ मार लेता था पर फौरन ही अपने को कसूरवार महसूस करने लगता था। बड़ी जलालत महसूस होती थी लेकिन दिमाग था की नही मानता ही नहीं था। मैं सोचने लगता था कि अगर घर में ही मिल जाए तो कितना लुक्फ आ जाए, पर ये नामुमकिन था। मेरे लिए बस ये तलब सिर्फ खयालों में ही थी और उस तलब को मुतमइन करने के लिए लौड़े को मुट्ठ मारना ही सहारा था।
साल में दो बार मैं घर जाता था, एक गर्मियों की छुट्टी में दूसरा सर्दियों मे। मेरे घर में सिर्फ अम्मी और दादा जान दादी थे, अब्बू दुबई में रहते थे। अब्बू साल में एक बार बस एक महीने के लिए आते थे और मेरी अम्मी खेती बारी, घर और दादा दादी को संभालती थी। मेरी अम्मी अपने नाम "अंजुमन" की तरह प्यारी तो थी ही साथ ही वो साथ सबका ख्याल रखने वाली भी थी। खेतों में काम करके भी उनके गोरे रंग पे ज्यादा कोई फर्क नही पड़ा था। वो बहुत ज्यादा सुंदर तो नही थी पर किसी से कम भी नही थी, शरीर भरा हुआ था, लगभग सारा दिन काम करने से जिस्म में कोई ज्यादा चर्बी भी नही चढ़ी थी। मैंने उनके जिस्म को कभी हसरत की नज़र से नही देखा था इसलिए उनके जिस्म की बनावट का माप का कोई अंदाजा नही था।
इस बार सर्दियों में जब घर आया तो मुझे आदतन चुदाई के किस्सों का रिसाला या किताब पढ़ने का मन हुआ लेकिन जल्दबाजी में उन्हे मैं खरीदकर लाना भूल गया था। जो घर में मेरे बक्से में पड़ी थी वो सब पढ़ी हुई थी। अब यहां गांव में मिले कहाँ, किसके पास जाऊं, कहाँ मिलेगी? डरते डरते एक दो पुरानी किताब की दुकानों पर पता किया तो उन्होंने मुझे अजीब नज़रों से देखा तो फिर मेरी हिम्मत ही नही हुई। गांव की दुकानें थी, यही कहीं आते जाते से किसी दुकानदार ने अगर गाँव के किसी आदमी से जिक्र कर दिया तो शर्मिंदा होना पड़ेगा, इसलिए मैंने कुछ दिन मन मारकर बिता दिए पर मन बहुत बेचैन हो उठा था।
एक दिन अम्मी ने मुझसे कहा कि कच्चे मकान में पीछे वाले कमरे के ऊपर बने कोठे पर पुरानी मटकी में गुड़ का राब भरके रखा है, जरा उसको उतार दे।
मैंने सीढ़ी लगाई और कोठे पर चढ़ गया, वहां अंधेरा था, बस एक छोटे से झरोखे से हल्की रोशनी आ रही थी। में टार्च लेकर आया था, टॉर्च जला कर देखा तो मटकी में भरा हुआ राब दिख गया, पर साथ में मुझे वहां बहुत सी पुरानी किताबों का गट्ठर भी दिखाई दिया। मैंने वो राब की मटकी, सीढ़ी पर थोड़ा नीचे उतरकर, नीचे खड़ी अम्मी को पकड़ाया और बोला- अम्मी यहां कोठे पर किताबें कैसी पड़ी हैं?
अम्मी- वो तो बहुत पुरानी है हमारे जमाने की, इधर उधर फेंकी रहती थी तो मैंने बहुत पहले सारी इकट्ठी करके यहीं रख दी थी, तेरे कुछ काम की हैं तो देख ले।
ये कहकर अम्मी चली गयी तो मैं फिर कोठे पर चढ़कर, अंधेरे में रखी वो किताबों का गट्ठर को लेकर छोटे से झरोखे के पास बैठ गया। उसमे कई तरह की पुरानी कॉपियां और किताबें थी, पुराने जमाने की शेरो शायरी और घर हकीमी, घरेलू नुस्खे, मैं सारी किताबों को उलट पुलट कर देखता जा रहा था कि अचानक मेरे हाँथ में जो किताब आयी उसके कवर पेज पर लिखा था - "जिंसी ज़िंदगी इस्लाम और जदीद साइंस", ये देखकर मेरी आँखें चमक गयी, मैं इसके बारे में जानता था। यह "कोकशास्त्र" का उर्दू में तर्जुमा था जिसमें चुदाई के बारे में बताया गया होता है। मैं यह सोचकर बदहवास हो गया कि ये पुरानी किताब है तो मतलब जरूर ये मेरे अम्मी अब्बू की शादी के वक्त की होगी। जरूर अब्बू ने खरीदी होगी, शायद अम्मी को ये याद नही रहा होगा कि इस गट्ठर में ऐसी किताब भी है इसीलिए उन्होंने मुझे किताबों का पुराना गठ्ठर देख लेने को बोल दिया था।
जैसे ही मैंने उस किताब के बीच के कुछ पन्नों को खोला तो मैं हैरान हो गया। मैंने किताब को झरोखे के और नजदीक ले जाकर ध्यान से देखा तो वो गंदी कहानियों की किताब थी जिस पर बाद में कवर अलग से चिपकाया गया था। मेरी बांछे खिल गयी, मैं मारे खुशी के उछल पड़ा। मैंने उस गट्ठर को इधर उधर एक बार फिर से खगाला और फिर सारी किताबों को जस की तस बांधकर, दुबारा उनको कोने में रख दिया। सिवाय उस गंदी कहानियों की किताब को जिसे मैंने अपनी कमीज के नीचे छुपा लिया था और फिर मैं कोठे से नीचे उतर आया।
उस वक्त दोपहर के 2 बज रहे थे, दोपहर में अक्सर मैं घर के बाहर दालान में सोया करता था जिसमे जानवरो के लिए भूसा रखा हुआ था। मुझसे सब्र नही हो रहा था, दोपहर में दादा दादी खाना खा के पेड़ के नीचे सो रहे थे, मैं दालान में गया और खाट बिछा कर वो गंदी किताब पढ़ने लगा। मैं, जिस तरफ भूसा था उस तरफ पैर किया हुए था और किताब लेटकर, इस तरह पढ़ रहा था कि मेरा चेहरा किताब से ढका हुआ था। मैं किताब पढ़ने में खो गया और ताव के मारे मेरा लंड दोनों जाँघों के बीच तन कर खड़ा हो गया था। मैंने दो कहानियां पढ़ ली थी जैसे ही तीसरी कहानी को पढ़ने के लिए पेज पलटा तो कहानी का नाम देखकर मेरे बदन में अज़ीब सा जोश ए खरोश भर गया। यह कहानी मर्जी से मां बेटे के बीच बने, जिस्मी तालुकात की बुनियाद पर थी। मैंने आज तक जो भी कहानियां पढ़ी थी वो इधर उधर , आस पास के दूर के रिश्तों पर थी, पर ये कहानी सगे मां बेटे के बीच की थी, कहानी की शुरवात करते ही मेरा जर्रा जर्रा कांपने लगा। मैंने उसे अभी एक चौथाई ही पढ़ा था कि खट से दरवाजा खुला और अम्मी एक हाँथ में बड़ी सी बोरी लेकर भूसा भरने के लिए दालान में आ गई। मुझे इस बात का बिल्कुल भी इल्म नही था कि अम्मी वहां, इस वक्त आ जायेगी।
जैसे ही अम्मी दालान में दाखिल हुई मैंने किताब थोड़ा नीचे करके एक सरसरी निगाह से उनको देखा और फिर दुबारा, उनको अनदेखी कर, कहानी में डूब गया। मुझे इत्मीनान था कि अम्मी को क्या पता चलेगा की मैं क्या पढ़ रहा हूं और मेरे ख्याल में ये बिलकुल भी नहीं आया की कहानी जिस किताब से पढ़ रहा हूं उस पर "जिंसी ज़िंदगी इस्लाम और जदीद साइंस" लिखा हुआ हैं। सिर्फ लिखा हुआ ही नहीं था बल्कि उसके साथ फीका पड़ चुके, नंगे बूतों की चुदाई की तस्वीर भी उसपर छपी हुई है।
मैं किताब में घुसा, कहानी पढ़ने में दुबारा मस्त हो गया। अपनी सगी अम्मी की मौजूदगी में, मां बेटे के बीच जिस्मानी तालुकात की चाहत कि बातें पढ़कर, मैं बहुत हेज़न ज़ादा हो गया था, पर मेरी हिम्मत नही हो रही थी कि मैं अम्मी की तरफ देखूं। मैने एक बार चुपके से, किनारे से अम्मी को देखा, तो वो झुककर बोरी में भूसा भर रही थी। उनके भारी भरकम चूतड़ मेरी ओर थे। अम्मी को पहली बार आज इस नज़र से देखकर, मुझे बड़ी शर्म आई लेकिन उनको लेकर मेरे लौड़े में जो जोश भर गया था वो बेमिसाल था। मैं शर्मिंदगी को छुपाते हुए फिर किताब में देखने लगा। अभी कुछ ही वक्त बीता था कि एकाएक अम्मी की तेज आवाज सुनकर मैं चौंक पड़ा।
अम्मी- ये क्या है तेरे हाँथ में? क्या पढ़ रहा है तू?
मैं सकपका गया और किताब को तकिए के नीचे छिपाते हुए कहा- कुछ नही, कुछ भी तो नही, ऐसे ही बस एक किताब है।
अम्मी- कैसी किताब दिखा मुझे, कहाँ मिली तुझे?
अम्मी ने इस तरह पूछा जैसे अम्मी को किताब जानी पहचानी सी लगी, वो शायद ये इत्मीनान करना चाहती थी कि कहीं ये उनके जमाने की उनकी वो किताब तो नही? मैं शर्म से पानी पानी हुआ जा रहा था, मुझे यह शुभा हो रहा था की शायद अम्मी को ये अंदाजा हो गया है कि वो गंदी किताब है।
मुझे बुत बना देख, अम्मी मेरे पास आई और तकिए के नीचे से वो किताब निकाल ली। उन्होंने जैसे ही किताब को देखा वो चौंकी और उनका शर्म से चेहरा लाल हो गया। अम्मी के चेहरे पर आए एकाएक शर्म के वजूद को देखकर मैं समझ गया कि वो किताब पहचान चुकी हैं। उन्होंने एकदम से किताब मेरे सीने पर पटकी और हल्की सी शर्मिंदगी भरी मुस्कान लिए, अपना दुपट्टा दांतो मे दबाए, भूसे की बोरी उठाकर दालान से बाहर निकल गयी। अल्लाह का बड़ा शुक्र रहा कि उनकी नज़र मेरे लंड से बने तंबू पर नही पड़ी। मेरे तो जैसे काटो तो खून नही, मैं ये सोच कर डरा हुआ था कि अम्मी मुझे डाटेंगी। उसके बरत, उनका मुझे डांटने के बजाय उल्टा शर्मा कर चले जाना एक तो ये बता रहा था कि अब वो ये समझ चुकी थी कि मैं अब बड़ा हो चुका हूं। दूसरा वो ये समझ चुकी थीं कि ये किताब उनके जमाने की है और वो मुझे कहाँ से मिली होगी। मुझे लगता है अम्मी शायद इस बात पर भी शर्म ये लाल हो गयी थी कि उनके बेटे को अंदाजा हो गया है की अपने वक्त में वो भी यह सब पढ़ती थी। अम्मी का डांटने की जगह शर्मा कर निकल जाने ने मेरे अंदर एक अजीब सी सनसनाहट पैदा कर दी। मुझे डांटने का ख्याल अम्मी को नही आया इस ख्याल ने मुझे हिम्मत से लबरेज कर दिया।
में बहुत देर दालान में ही बैठा रहा और काफी देर बाद, किताब को तकिए के नीचे छुपाकर घर मे अंदर गया। वहां अम्मी काम कर रही थी। अम्मी ने मुझे आया देख अपना काम करते हुए, शर्म से मंद मंद मुस्कुराने लगी थी। कुछ देर बाद उन्होंने मुझसे बोला- कहाँ मिली तुझे वो किताब?
मैं- कोठे पर किताबों के गट्ठर में।
अम्मी ने फिर थोड़ा गुस्से लेकिन शर्माते हुए कहा- ऐसी किताबें पढ़ता है तू?
मैं- नही अम्मी, वो बस देखा तो मन किया। अब क्या कहे, आप जानती हैं क्या उसके बारे में?
अम्मी ने शर्माते हुए झूठ बोला- नही
मैं- तो आप ऐसे क्यों पूछ रही हो?
अम्मी- इतना तो किताब के फोटो को देखकर पता चल ही गया कि वो गंदी किताब है। ऐसी किताब नही पढ़ते।
मैं- उसमे कहानियां है अम्मी।
अम्मी और शर्मा गयी - फाड़ के फेंक दे उसको, गंदी कहानियां होती हैं वो।
मैंने हिम्मत करके- आपको कैसे पता? ये किताब देखने में बहुत पुरानी लगती है, कब की है अम्मी?
अम्मी चुप हो गयी- बोला न फाड़ के फेंक दे उसको, नही तो तेरे अब्बू को बता दूंगी।
मैं- और अगर फाड़ के फेंक दी तो नही बताओगी न
अम्मी - नही
अम्मी मुझे देखकर हल्का सा मुस्कुरा दी और न जाने क्यों वो मेरी तरफ देखने लगी, मुझे भी न जाने कैसे हिम्मत आ गयी मैं भी उनको देखने लगा, दोनों की सांसें कुछ तेज चलने लगी, अम्मी मुझसे कुछ दूरी पर खड़ी थी।
मैंने फिर धीरे से बोला- अब्बू को नही बताओगी न?
अम्मी ने धीरे से न में सर हिलाते हुए कहा और शरमा कर कमरे में चली गयी।
अम्मी का इस तरह मुझे भरी नजरों से देखना मुझे कुछ इशारा कर रहा था। न जाने ये क्या हो रहा था, मेरा मन खुशी के मारे झूम उठ रहा था। अम्मी के चेहरे पर शर्म की लाली ये बता रही थी कि उनके मन में बहुत कुछ करवटें ले रहा है। उन्होंने मुझे जिस तरह देखा और आंखे नही मिलाई, उससे मैं बड़ा हैरान था। मुझे आजतक उन्होंने कभी ऐसे नही देखा था और न ही मैंने उन्हें।
मैं खड़ा खड़ा कुछ देर सोचता रहा फिर घर के बाहर आ गया। एक तरफ जहां मैं डर रहा था कि अम्मी गुस्सा करेंगी, न जाने क्या क्या सोचेंगी लेकिन ये क्या हुआ? मेरा दिल तो ये सोचकर जोरो से धड़क उठा कि लगता है की अल्लाह ताला ने मेरी सुन ली! फिर भी मैं अभी पूरी तरह इत्मीनान में नही था। हो सकता है की मां बेटे की कहानी पढ़ कर मेरा दिमाग चल गया हो और यह मेरा सिर्फ ख्याल हो? अम्मी की हया में डूबी मुस्कराहट को देख कर, मेरा उस किताब से मन हट गया। जब ज़िंदगी में इस तरह का कोई वाक्या गुजर जाता है तो किसी चीज़ में कहां मन लगता है?
उसके बाद से मैं छुप छुप कर अम्मी को घूरने लगा। जब वो इधर उधर दरवाजे पर काम करती रहती या घर में भी जब काम करती रहती तो मैं उन्हें किनारे से घूरता या कभी उनकी ओर टकटकी बांधे देखता रहता। मेरा उनकी घूरना, अम्मी से नजरंदाज नहीं था। वो भी मुझको उनको देखता हुआ देखकर, कुछ देर मेरी आँखों में घुस कुछ तलाश करती। अम्मी मेरे अंदर के इरादों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी, वो कभी अकबका के सामने से हट जाती और कभी शरमा कर, मुस्कुरा कर चली जाती।
कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा फिर एक दिन की बात है की मैं बरामदे में बैठा था तभी अम्मी आ गई और मेरे पास में बैठ कर, थाली में मटर छिलने लगी। मुझे बैठा देखा अम्मी, मुझसे ग्रेजुएशन के बाद आगे क्या करना है पूछने लगी और मैं उन्हें अपने ख्वाबों के बारे में बता रहा था कि मेरी सामने बाग में नज़र चली गयी। वहां देखा की कुछ लोग एक भैंस को लेकर आये और उसे पेड़ से बांध दिया। बाग में क्या चल रहा है इसका अम्मी को कोई गुमान नही था, वो तो बस मटर छीलती जारही थी और मुझसे बाते किए जारही थी। मैं भी हां हूं का जवाब देता जा रहा था लेकिन उनकी नज़र बचा कर सामने देखे जा रहा था। मैं बाग में शुरू होने वाले काम को भांप गया था। वहां भैंस की एक भैसे से हरी कराई जा रही थी। अब क्योंकि मेरे दिलों दिमाग में सिर्फ चोदन चुदान घुसा था इसलिए मेरा लंड मेरे पैंट में फूलने लगा।
भैंस को पेड़ से बांधने के बाद दो लोग कुछ दूर खड़े हो गए और थोड़ी देर में ही बगल वाले घर से एक भैंसा भागता हुआ आया। उसने करीब दो बित्ता लम्बा लाल रंग का लंड बाहर निकल रखा था जिसको देखकर मेरे लंड ने भी हुंकार मार दी। अम्मी ने अभी तक उस तरफ नही देखा था और मैं इधर गरम हो रहा था, बार बार उनसे नजरे बचा के उधर ही देख रहा था। वो भैंसा, भैंस की बूर को सूंघने लगा। भैंस थोड़ी चिहुंकी फिर मूतने लगी। भैंसे का लन्ड अब करीब 2 इंच और बाहर आ गया था। मैं नज़र बचा कर उस तरफ ही देख रहा था कि तभी अम्मी ने गौर किया कि मैं बार बार एक ही तरफ क्यों देख रहा हूँ । यह देख उन्होंने ऐसे मौके पर उस तरफ देखा, जिस वक्त भैंसा करीब 3 बित्ता लंड बाहर निकाल चुका था। उसका लाल लाल लंड, बदन में अलग ही झुरझुरी पैदा कर रहा था। अम्मी ने यह देखते ही एकदम से मेरी तरफ देखा तो मैं सकपकाया हुआ उन्हें ही देख रहा था। जैसे ही हमारी आंखे मिली, एकाएक अम्मी का चेहरा शर्म से लाल हो गया और वो "धत्त" कहते हुए घर के अंदर भाग गई। मेरी तो हालत खराब होगई, सांसें धौकनी की तरह चलने लगी थी।
मैंने हिम्मत करके उन्हें एक बार पुकारा भी पर वो नही आई। उधर बाग में एक दो बार नाकाम होने के बाद भैंसा अब भैंस के ऊपर चढ़ चुका था। दो चार धक्के उसने भैंस की बूर में मारे फिर नीचे उतर गया। मैं ये सब देखकर और गर्म हो गया। भैंसे ने फिर कोशिश की और एक दो बार फिर भैंस की बूर में तेजी से अपना लाल लाल लंड डालकर धक्के मारे। मुझसे जब रहा नही गया तो मैं जल्दी से उठा और एक नज़र बाहर दादा दादी पर डाल कर, घर में चला गया। मेरी जिदारी बढ़ रही थी। मैंने पाया अम्मी पीछे वाली कोठरी में बड़े से बक्से के पास खड़ी थी। मुझे ऐसा कुछ शुबह हुआ कि जैसे अम्मी वहां मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। मैं एक लम्हा उन्हें देखता रहा और वो मुझे देखती रहीं। हम दोनों की ही सांसें तेज चलने रही थी और कुछ देर ऐसे ही बुत बने हम दोनों खड़े रहे। अम्मी को मैं गौर से देख रहा था और मुझे यह पुर जोर इत्मीनान हो चुका था कि उनकी आंखों में बुलावा है लेकिन खून के रिश्ते की दीवार अब भी बीच में खड़ी थी। मैं जैसे ही आगे बढ़ा तो वो मेरी तरफ पीठ करके अपना मुँह अपने हांथों में छुपाते हुए "न" बोलते हुए पलट गई। मगर मुझे अब सब्र कहाँ था, मैंने उन्हें पीछे से बाहों में भर लिया। आज पहली बार एक औरत का गुदाज जिस्म मेरे जिस्म से सटा था और वो भी मेरी ही अपनी सगी अम्मी का! मेरा दिल इतनी जोर जोर से सीने में धड़क रहा था कि लगा की वो उछलकर बाहर ही आ जायेगा। जो मेरा हाल था वही हाल अम्मी का भी था, उनकी तेज चल रही सांसें मैं बखूबी महसूस कर रहा था।
मैं अम्मी को पीछे से बाहों में लिए हुआ था, वो न अपने आप को मुझसे छुड़ा रही थी और न ही मुझे आगे बढ़ने को कोई दावत दे रही थी। मेरे को तो बड़ी अजीब सी बदहवासी हो रही थी। मेरी बाहों में गिरफ्त अम्मी के गुदाज जिस्म ने मुझे जिन्सी तमन्ना से लबरेज कर दिया था। मेरा लंड तनकर उनकी गुदाज चूतड़ों की दरार में घाघरे के ऊपर से ही ठोकर मारने लगा जिसे वो अच्छे से महसूस कर रही थी। उनके मुंह से न चाहते हुए भी हल्की सी आह निकल गई, और वो बोली- या अल्लाह! ये गुनाह है, मत कर वली, कोई आ जायेगा।
मैं- आह्ह्ह अम्मी, बस एक बार!
मैंने बस इतना ही बोला और उनको और मजबूती से पकड़कर, उन्हे अपनी बाहों में भरते हुए, उन्हे महसूस कराने के लिए, अपने लंड को जानबूझकर उनके भारभराए चूतड़ों में तेजी से दबा दिया। मेरे लंड की इस ठसक से उनकी हल्की सी सिसकी निकल गयी। मैंने जैसे ही उनकी ब्लॉउज में कैद नंगी पीठ को चूमा, मैं जिन्सी की दूसरी ही दुनियां में पहुंच गया। मैं इतना जज़्बाती कभी नही हुआ, जितना आज अपनी अम्मी के साथ लिपटने से हो रहा था। मैंने धीरे धीरे उनकी पीठ और गले पर उन्हे कई जगह चूमा और हर बार वो अपना चेहरा अपने हांथों में छुपाए सिसक जा रही थी। मैं इतना तो समझ ही रहा था कि वो भी यह सब करना चाहती थी, यदि ऐसा न होता तो वो अभी तक मेरे गाल पे थप्पड़ मारकर, मुझे अच्छे से पीट चुकी होती। इसके बावजूद वो न तो मुझे अपने से हटा रही थी और न ही मुझे अच्छे से आगे बढ़ने दे रही थी।
मुझे इतने ही ने इतना पुर शेवत कर दिया था कि अब मुझसे रहा नही गया और मैंने पूरा जोर लगा कर उनको सीधा करके अपनी बाहों में भर लिया। उन्होंने अब भी अपना चेहरा अपने हांथों से मुंदा हुआ था, जिसकी वजह से उनकी मोटी गुदाज छातियाँ मेरे सीने से सट नही पा रही थी। मैंने उनको धकिया कर बक्से से सटा दिया और बेशर्म होकर घाघरे के ऊपर से ही उनकी बूर पर अपने टंटनाते हुए लंड से चार पाँच धक्के मारे तो वो तेजी से सिसकिया दी। मैं अब अपने होश ओ हवस खो रहा था। मैने बिना कोई परवाह किए अपना हाँथ नीचे अम्मी की बूर को छूने के लिए ले गया तो उन्होंने लपक से मेरा हाँथ पकड़ कर उसे झटक दिया। अपनी इस रुसवाई से बेखबर जब मैंने अपने होंठ, उनके होंठ पर रखने चाहे तो उन्होंने एक हाँथ से अपने होंठ ढक लिए और मेरी आँखों में देखने लगी। मैं चाहता तो जबरदस्ती कर सकता था, पर उनकी आंखे बयां कर रही थी की उनके साथ जबरदस्ती और जल्दबाजी करना दोनो ही गलत होगा। मैं अपनी अम्मी की हसरतों और तसादुम को खौफजदा नही करना चाहता था, इसलिए मैं उनकी आंखों में बड़ी हसरतों से देखने लगा।
मेरा लंड अभी भी तमतमाया हुआ उनकी बूर पर घाघरे के ऊपर ही धरा हुआ था। मैं उनको और वो मुझे कुछ देर ऐसे ही देखते रहे, फिर अम्मी उखड़ती भारी आवाज में धीरे से बोली- ये गुनाह है वली।
मैं- मैं यह सब नही जानता अम्मी, मुझे आप चाहिए।
अम्मी- छोड़ दे नही तो तेरे अब्बू को बता दूंगी।
मैं- आपकी यही ख्वाइश है? तो बता देना अब्बू को, पर एक बार, बस एक बार इख्तिलात की इजाजत दे दे, प्यार करने दो अम्मी।
ऐसा कहते हुए मैंने अपने लंड को उनकी बूर पर फिर ऊपर से दबाया तो वो फिर सिसक उठी।
अम्मी- नामुराद लड़के! कोई आ जायेगा! जा यहां से अभी, नही तो सच में मैं तेरे दादा को बुला के तेरी करतूत बता दूंगी।
अम्मी चुप हो गयी और फिर मुझे देखने लगी। मैंने नीचे अपने हाँथ को उनके हाँथ से छुड़ाया और अब उनके हाँथ को पकड़कर अपने तने हुए लंड पर जैसे ही रखा तो उन्होंने झट से अपना हाँथ हटा लिया।
मैं- एक बार अम्मी, बस एक बार।
मेरे इस तरह इस्तदा करने पर वो मेरी आँखों में देखने लगी। उनकी आंखों में कश्मकश के बादल छट रहे थे, मुझे उनमें हसरतों के उफनते गुबार साफ दिख रहे थे। मैंने जुर्रत करके दुबारा उनके हाँथ को पकड़ा और उसे अपने खड़े हुए मोटे लंड पर रखने के लिए ले गया। मैंने जैसे ही अम्मी के हाथ को अपने लंड पर रखा, उन्होंने मेरे सीने में अपना सर छुपाते हुए मेरे लंड को कस के पकड़ लिया। मेरे सीने में धसी अम्मी कांप रही थी लेकिन उनका हाथ मेरे लंड को सहला रहा था। अम्मी मेरे लंड को थोड़ा सहलाने के बाद उसको आगे पीछे करके मुठियाने लगी तो मस्ती में मेरी आंखें बंद हो गयी। मुझे यकीन नही हो रहा था कि आज मेरी सगी अम्मी, मेरे लंड से खेल रही हैं। जब थोड़ी देर में अम्मी ने लंड को मुट्ठ मरना बंद कर दिया तो मेरी आंखे खुल गई। मैंने देखा, वो मुझे ही देख रही थी और हम दोनों की उखड़ी उखड़ी सांसें चल रही थी। मुझे आंखे खोल देख, अम्मी ने मेरे लंड को फिर आहिस्ते से सहलाया और बोली- वाली अब जा, कोई आ जायेगा।
मैंने उनकी बात मानते उन्हें छोड़ दिया और थोड़ा पीछे हटा तो मेरा लंड पैंट में बुरी तरह तना हुआ था, जिसको देखकर अम्मी के चेहरे पर मुस्कराहट आगई और उन्होंने दांतो मे दुपट्टे दबा, चेहरा ढक लिया। मैं उनका शर्माना देख, जैसे ही दुबारा उनके करीब जाने लगा तो अम्मी बोली- जा न, अब क्या है?
मैं- एक बार
अम्मी- एक बार क्या?
मैंने अम्मी की बूर की तरफ इशारा करके कहा- एक बार छूने दो न अम्मी।
अम्मी- बड़ा गुस्ताख है तू! अभी नही, अभी जा यहां से।
मैं अम्मी की बात सुन पीछे हट गया और उनके इसरार को तस्लीम करते हुए बाहर निकल गया। मेरे मन मे हजारों पटाखे फूट रहे थे, मुझे बस अब अम्मी के इशारे का इंतज़ार था लेकिन यह इशारा कब तक मिलेगा, यह भी कोई वाजे न था। ऐसे में, इशारे की तलाश में कई दिन बीत गए और मुझे यह लगने लगा था अम्मी जानबूझ कर मुझसे दूर बना रखी है। अम्मी मुझे देख कर मुस्कुरा तो देती थी लेकिन मेरे पास से गुजरने या अकेले में रहने से बचती भी थी। मेरे लिए अम्मी के यह नए अंदाज बिल्कुल भी समझ के बाहर थे। अम्मी ने जमाना देखा हुआ था, उन्हे इसका इल्म था की मैने वह किताब फाड़ी नही होगी बल्कि पूरी पढ़ ली होगी। अम्मी यह बात भी अच्छी तरह जानती थी की उसी में तीसरी कहानी माँ बेटे पर है।
जैसा पहले बताया की उन दिनों सर्दियां थी इसलिए मैं भूसा रखने वाले दालान में ही सोता था। अंधेरे रात की तन्हाई में मुझे अम्मी के साथ गुजरे वे पल बेहद तकलीफ देते थे। अम्मी के साथ हुए उस वाक्यें को बीते अब सात दिन बीत चुके थे और गुजरते दिन के साथ अम्मी के साथ अगले राब्ते की उम्मीद भी कम हो रही थी। मुझे लगने लगा था कि मेरी जो ख्वाइश है वो अम्मी की अब नही रही है। अम्मी की एक हफ्ते की बेरुखी से मैं नाउम्मीद हो चला था और सर्दी भरी उस रात में दालान में बेधड़क सो रहा था। रात गांव में कोहरा भी हो जा रहा था। मैं कोहरे भरी उस चांदनी रात में दालान में भूसे के बगल में खटिया पर बनियान और चढ्ढी पहने ऊपर से तहमद लपेटे, रजाई ओढ़े सो रहा था।
अचानक दालान का दरवाजा हल्के से खटखटाने की आवाज हुई जिससे मेरी नींद खुल गई। शायद दरवाजा दो तीन बार पहले भी खटखटाया गया था, मैं रजाई से निकला और दरवाजे पर जाकर अंदर से बोला- कौन?
अम्मी ने धीरे से कहा- मैं…..दरवाजा खोल
मैंने झट से दरवाजा खोला तो सामने अम्मी शॉल ओढ़े खड़ी थी वो झट से अंदर आ गयी और दालान का दरवाजा अंदर से बंद करके मेरी ओर मुड़ी और अंधेरे में मेरी आँखों में देखने लगी। मुझे भरोसा ही नही हो रहा था कि मेरी अम्मी इस अंधेरी रात, चुपके से मेरे सामने खड़ी है। मैने जल्दी से दिया जलाने की कोशिश की तो अम्मी ने धीरे से कहा- दिया मत जला वली बाहर रोशनी जाएगी खिड़की से।
मैं दिया जलाना छोड़कर उनकी तरफ पलटा तो वो मुझे अपना शॉल उढ़ाते हुए मुझसे लिपट गयी। मुझे काटो तो खून नही, मैंने उन्हें और उन्होंने मुझे बाहों में भर लिया। ऐसा मंजर वाकई हो गुजरेगा यह मैने कभी ख्वाब में भी नही सोचा था। हम दोनों की साँसे धौकनी की तरह तेज तेज चलने लगी, अम्मी का गुदाज बदन को अपनी बाहों में महसूस कर मेरी आशनाई इंतहा पर पहुंच गई थी। मैने जैसे ही उन्हें चूमने के लिए उनके चेहरे को अपनी हथेली में थामा, वो धीरे से बोली- किसी को कभी खबर न चले वली?
मैंने भी धीरे से कहा- कभी नही अम्मी, आप फिकरमंद न हो, आप को आते, किसी ने देखा तो नही?
अम्मी ने फिर धीरे से कहा- नही, तेरे दादा दादी ओसारे में सो रहे हैं।
उस लम्हे ठंड न जाने कहाँ गायब हो गयी थी, मैंने अम्मी को कस के अपने से चिपका लिया। मैंने आज फिर उनके मुंह से सिसकी सुनी तो मेरा लंड तहमद में फुंकार मारकर खड़ा हो गया। वो सिसकारी लेकर मुझसे लिपट गयी, मैं उन्हें चूमने लगा, उनकी सांसे तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी। एक अजीबों गरीब सी सनसनी हम मां बेटे के जिस्मों में हो रही थी। दोनों की गरम गरम सांसें एक दूसरे के चेहरे पर टकरा रही थी। मैने, अम्मी के गालों को चूमने के बाद जैसे ही उनके होंठों पर अपने होंठ रखे मेरा पूरा जिस्म कांप गया। आज मुझे पहली बार महसूस हुआ की किसी औरत के होंठों को चूमने पर कैसा लगता है और यह तो मेरी अम्मी के होंठ थे! मैं उनके होंठों को चूमने लगा और वो मेरा साथ देने लगी। होंठों को चूमते चूमते जब मैंने अपना हाँथ उनके गदराए चूतड़ों पर रखा तो उनके बदन में अजीब सी थिरकन हो उठी। अपनी ही अम्मी के चूतड़ छूकर भी मुझे यकीन नही हो रहा था, मैंने जैसे ही उनकी गांड को दबाया वो सिसक कर मुझसे कस के चिपट गयी। मैंने उन्हें बाहों में उठाया और अंधेरे में ही बिस्तर पर लिटाया और "ओह अम्मी" कहते हुए उनके ऊपर चढ़ गया। मैने ऊपर से रजाई ओढ़ ली थी। अम्मी ने "धीरे से बोल" कहते हुए मुझे अपने आगोश में भर लिया। रजाई के अंदर हम दोनों एक दूसरे से लिपट गए। मेरा लंड लोहे की तरह तनकर जैसे ही उनकी बूर के ऊपर चुभा वो मुझसे शर्मा कर लिपटती चली गयी। मैं उनके गालों, गर्दन, कान, माथा, नाक, आंख, ठोढ़ी पर ताबड़तोड़ चुम्बनों की बरसात करने लगा और अम्मी मेरे इस इजहार ए मोहब्बत में भीगी धीरे धीरे कसमसाते हुए सिसकने लगी।
मैने जैसे ही दुबारा उनके होंठों पर अपने होंठ रखे तो उन्होंने मेरे बालों को सहलाते हुए मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया। मैने चूमते चूमते अपनी जीभ जैसे ही उनके होंठों से छुवाई उनके होंठ अपने आप खुलते चले गए और जैसे ही मेरी जीभ उनके मुंह में डली, हम दोनों सिरह उठे। मैंने महसूस किया कि वो जब मेरी जीभ को चूसने लगी थी तो उनकी बूर इस तपिश में कांपने लग थी। कभी वो मेरी जीभ को चूसती तो कभी मैं उनकी जीभ से खेलने लगता, एकएक मेरा हाँथ उनकी चूची पर गया तो वो फिर सिसक उठी। मुझसे जब रहा नही गया तो मैं उनके ब्लॉउज के बटन खोलने लगा। अंधेरे में
कुछ दिख तो नही रहा था लेकिन जब किसी तरह से ब्लॉउज के बटन खोल दिए तो अम्मी ने खुद ही उसे निकाल कर बगल में रख दिया। अब वो खाली ब्रा में थी, मेरा दिल तो उनकी 38 साइज की जिन्सी हवास में तनी हुई दोनों चूचीयों को महसूस करके ही बदहवास हो चला था। मैने जल्दी से ब्रा को ऊपर उठाया तो उनकी मोटी मोटी चूचीयाँ उछलकर बाहर आ गयी, जिनपर मैंने अंधेरे में मुँह लगाकर उन्हें काफी देर तक महसूस किया। मेरे होठों और गालों की तपिश से अम्मी तैश में आगाईं और सिसकते हुए अपनी चूंचियों पर दबाने लगी।
मैं तो आज रात सातवें आसमान में था, सोचा न था कि अल्लाह मुझपे इतनी महेरबान होंगे। मैं जब अपनी अम्मी की चूंचियों को मुंह मे भरकर पीने और दबाने लगा तो वो न चाहते हुए भी सिसकारे लेने लगी। वो अपने दांतों को होंठों से काटने लगी और उनके चूचक हवस में तनकर किसी काले अंगूर की तरह हो चुके थे। उनकी दोनों चूचीयाँ फूलकर किसी गुब्बारे की तरह हो चुकी थी। एकएक मैंने अपना हाँथ उनकी ढोढ़ी पर रखा तो वो समझ गयी कि अब मैं किस तरफ बढ़ रहा हूँ। मैंने जैसे ही अपना हाँथ उनके घाघरे की गांठ पर रखा और हल्का सा अंदर सरकाया तो उन्होंने मेरा हाँथ शर्माते हुए पकड़ लिया, मैंने धीरे से बोला- एक बार दिखा दो अम्मी।
वो थोड़ी देर चुप रहीं तो मैं फिर घिघियाता हुआ बोला- दिखा दो न अम्मी, मैंने कभी देखा नही है।
अम्मी धीरे से बोली- मुझे शर्म आती है।
मैं- बस एक बार जल्दी से।
कुछ देर वो खामोश रही तो मैं समझ गया कि ये खामोशी उनकी रजामंदी है। मैं चुपचाप उठा और दिया लेकर आ गया, अब तक अम्मी ने पूरी रजाई अपने मुंह पर डाल ली थी। मैंने दिया जलाया और पैर के पास जाके रजाई को हटाकर, उनके साये को ऊपर सरका दिया। मेरा ऐसा करने पर अम्मी ने धीरे धीरे अपने पैर एक दूसरे पर चढ़ाकर अपनी प्यासी बूर को शर्मिंदगी से बचाने की कोशिश करने लगी। मैने उनके घाघरे को कमर तक उठा दिया और उनकी गोरी गोरी सुडौल जांघें देखकर तो मेरी साँसे ही अटक गई। मैंने आज पहली बार अपनी ही अम्मी को इस तरह देख रहा था। कुछ देर उन्हें ऐसे ही बेसुध देखने के बाद मैंने उनके पैर अलग किये, तो उनका बदन सिरह उठा। आज एक सगा बेटा अपनी सगी अम्मी की बूर देखने जा रहा था। उनका बुरा हाल था, रजाई मुँह पर डाले वो इतनी तेज तेज साँसे लिए जा रही थी की रजाई हिल रही थी।
मैंने दिये की रोशनी में मैने देखा कि उनकी प्यासी बूर का आकार बखूबी उनके साए के ऊपर से ही दिख रहा था और उस जगह पर साया काफी गीली भी हो गया था। मैंने साए के ऊपर से ही बूर पर अपना मुंह रख दिया और बूर को अपने मुंह में भर लिया। जैसे ही मेरा मुँह उनकी बूर पर लगा, अम्मी थोड़ा जोर से कराह पड़ी और उनकी जांघें खुद ब खुद ही हल्का सा खुल गयी। मैं वैसे ही कुछ देर बूर से आती मदहोश कर देने वाली महक को सूंघता रहा। कभी साए के ऊपर से बूर को चाटता तो कभी जाँघों को सहलाता और चूमता और उसके साथ अम्मी भी सिसके जा रही थी। कुछ ही देर बाद उन्होंने खुद ही मेरे दोनों हांथों को पकड़कर जब अपनी कमर पर साए की गांठ पर रखा तो मैं अपनी अम्मी की मंशा समझ गया "कि वो अब बर्दाश्त नही कर पा रही है और खुद ही सब उतारने का इशारा उन्होंने मुझे दे दिया है"।
मैं खुशी से झूम उठा। मैंने जल्दी से साए की गांठ खोल उसे नीचे सरका दिया और जब मेरी नज़र अपनी अम्मी की बूर पर पड़ी तो मैं उसे देखता ही रह गया। जिंदगी में आज पहली बार मैं रूबरू हो बूर देख रहा था और वह भी अपनी ही अम्मी की। क्या बूर थी उनकी, हल्के हल्के बाल थे बूर पर, गोरी गोरी जाँघों के बीच उभरी हुई फूली फूली फांकों वाली बूर जिसकी दोनों फांकों के बीच हल्का हल्का चिपचिपा रस बह रहा था। दोनों फांकों के बीच, तना हुआ तीता देखकर मैं तो पागल सा ही हो गया और बिना देरी किये बूर पर झुक कर होंठ लगा दिए। अम्मी में मुंह से जोर की सिसकारी निकल पड़ी और मैं बूर को बेताहाशा चाटने लगा। कभी नीचे से ऊपर तो कभी ऊपर से नीचे, कभी तीता को जीभ से छेड़ता तो कभी बूर की छेद पर जीभ चलाता। अम्मी जोश खरोश में सिसकने लगी और कुछ ही देर बाद उनके हाँथ खुद ही मेरे बालों पर घूमने लगे। वो बड़े प्यार से मेरे सर को सहलाने लगी, मेरे सर को अपनी बूर पर दबाने लगी और छटपटाहट में उन्होंने अपने सर से रजाई हटा दी थी।
तभी उन्होंने कुछ ऐसा किया कि मुझे यकीन नही हुआ कि वो मुझे ऐसे बूर परोसेंगी। उन्होंने कुछ देर बाद खुद ही लजाते हुए तसवर से लबरेज अपने एक हाथ से अपनी बूर की दोनों फांकों को फैलाकर बूर का गुलाबी गुलाबी छेद दिखाया। मानो वो जीभ से उसे अच्छे से चाटने का इशारा कर रही हों। उनकी इस अदा पर, मारे जोश के मेरा लंड फटा ही जा रहा था। मैंने झट से बूर के छेद में अपनी जीभ नुकीली करके डाल दी तो उनका बदन गनगना गया। उनके चूतड़ हल्का सा थिरक गए। एक तेज सनसनाहट के साथ उन्होंने दूसरे हाँथ से मेरे सर को अपनी बूर पर दबा दिया औऱ मैं अपनी जीभ को हल्का हल्का उनकी बूर में अंदर बाहर करने लगा। वो लगातार सिसके जा रही थी, मुझसे अब रहा नही जा रहा था तभी एकाएक उन्होंने मेरे सर को पकड़कर मुझे अपने ऊपर खींचा तो मैं रजाई अच्छे से ओढ़ता हुआ अपनी अम्मी के ऊपर चढ़ गया। वो मेरी आँखों में देखकर मुस्कुराई, मैं भी मुस्कुराया फिर वो लजा गयी। इस उठापटक में मेरी तहमद कब की खुल चुकी थी और मैं बस बनियान और चढ्ढी में था। मेरा लंड लोहे की तरह तना हुआ था, अब वो नीचे से बिल्कुल नंगी थी, वो ऊपर से भी नंगी थी बस उनका घाघरा कमर पर था, मैं सिर्फ चड्डी और बनियान में था।
दिया अभी जल ही रहा था, वो मुझसे नज़रें मिला कर लजा गईं। उन्होंने जल्दी से एक हाँथ से दिया बुझा दिया, और मेरी बनियान को पकड़कर उतारने लगी तो मैंने झट से ही उसे उतार फेंका और रजाई ओढ़कर हम दोनों रस्से की तरह एक दूसरे से लिपट गए। मैं उनकी मोटी मोटी चूचीयाँ और तने हुए चुचक अपने नंगे बदन पर महसूस कर मदहोश होता जा रहा था। कितनी नरम और गुदाज थी उनकी चूचीयाँ! मैंने कुछ देर उन्हे चूमा और जब चढ्ढी के अंदर से ही अपने खड़े लंड से उनकी नंगी बूर पर हल्का हल्का धक्के मारे तो वो और लजा गयी। अब दालान में बिल्कुल अंधेरा था, मैंने धीरे से उनका हाँथ पकड़ा और अपनी चढ्ढी के अंदर ले गया वो समझ गयी। उन्होंने शर्माते हुए खुद ही मेरे लोहे के समान कठोर हो चुके 7 इंच के लंड को जैसे ही पकड़ा, उनके मुँह से हल्का सा सिसकी के साथ निकला "अल्लाह! इतना बड़ा!" मैंने बोला- सिर्फ मेरी अम्मी के लिए।
वो मुझसे कस के लिपट गयी और फिर मेरे कान में बोली- कभी किसी को खबर न लगे, तेरे अब्बू को पता लगा तो गज़ब हो जाएगा।
मैं- आपको मेरे ऊपर यकीन है न अम्मी।
अम्मी- बहुत, अपने से भी ज्यादा।
मैंने उनके होंठों को चूम लिया तो उन्होंने मेरा साथ दिया। मेरे कठोर लंड को सहलाते हुए वो सिसकने लगी और मेरी चढ्ढी को पकड़कर हल्का सा नीचे करते हुए उसे उतारने का इशारा किया। मैंने झट से चढ्ढी उतार फेंकी और अब मैं रजाई के अंदर बिल्कुल नंगा था। उन्होंने सिसकते हुए अपनी दोनों टांगें हल्का सा मोड़कर फैला दिया, जैसे ही मेरा दहाड़ता हुआ लंड उनकी दहकती हुई बूर से टकराया वो बेखुदी में सिसक उठी। मेरा लंड उनकी बूर पर जहां तहां टकराने लगा और दोनों की ही सिसकी निकल जा रही थी। मैंने अपने लंड को उनकी रसीली बूर की फांकों के बीच रगड़ना शुरू कर दिया। मुझसे रहा नही जा रहा था और उनसे भी नही, बार बार लंड बुर से टकराने से वो बहुत भड़क चुकी थी। मैंने एक हाँथ से अपने लंड को पकड़ा, उनकी चमड़ी खोली और जैसे ही उनकी रिसती हुई बूर के छेद पर रखा उन्होंने मेरे कान में धीरे से बोला- धीरे धीरे वाली, बहुत दिनों बाद,बहुत बड़ा है ये!
मैं- अब्बू से भी?
उन्होंने लजाकर मेरी पीठ पर चिकोटी काटते हुए बोला- हाँ…..बेशर्म
मैंने उन्हें चूम लिया और बूर की छेद पर रखकर हल्का सा दबाया तो लंड फिसलकर ऊपर को सरक गया, मारे बदमस्ती के थरथरा सा रहा था। वही हाल अम्मी का भी था। जल्दी से जल्दी वो मेरा लंड अपनी बूर की गहराई में लेना चाह रही थी और मैं भी उनकी बूर में जड़ तक लंड उतारना चाह रहा था। पर आज मेरे लिए जिंदगी में ये पहली बार था, मारे बदहवासी के मैं कांप सा रहा था।
अपनी ही अम्मी को चोदना का सोचकर ही मैं मतवाला हो जाता था लेकिन आज की रात तो मैं ये हूबहू कर रहा था। एक दो बार लंड ऊपर की ओर सरक जाने के बाद अम्मी ने अपने दोनों पैर मेरी कमर पर लपेट लिए और एक हाँथ नीचे ले जाकर मेरे तड़पते लंड को पकड़कर एक बार अच्छे से सहलाया और फिर अपनी बूर की छेद पर रखकर उसको सही रास्ता दिखाते हुए दूसरे हाँथ से मेरी गाँड़ को हल्का सा दबाकर लंड घुसाने का इशारा किया तो मैंने एक तेज धक्का मारा। लन्ड इस बार गच्च से आधा बूर में चला गया, वो कराहते हुए बोली- "धीरे धीरे" अब लंड बूर में घुस चुका था। उन्होंने हाँथ वहां से हटाकर सिसकते हुए मुझे आगोश में भर लिया, मैं कुछ देर ऐसे ही आधा लंड बूर में घुसाए उनपर चढ़ा रहा, आज पहली बार पता लग रहा था कि वाकई में हर मर्द को बूर चोदने की हसरत क्यों तड़पाती रहती है, क्यों इस बूर के लिए वो मरता है।
क्या जन्नत का अहसास कराती है ये बूर, कितनी नरम थी अम्मी की बूर अंदर से और बिल्कुल किसी भट्टी की तरह बदहाली में धधक रही थी। कुछ पल तो मैं कहीं खो सा गया। अम्मी मेरी पीठ को सहलाती रही, फिर मैंने एक तेज धक्का और मारा और इस बार मेरा लंड पूरा जड़ तक अम्मी की बूर में समा गया। वो एक तीखे दर्द से कराह उठी, मुझे खुद अहसाह हो रहा था कि मेरा लंड उनकी बूर को चीरता हुआ उनके बच्चेदानी से जा टकराया था। वो मुझसे बुरी तरह लिपटी हुई थी और आंखे बंद किये तेज तेज कराह रही थी। अब रुकना कौन चाह रहा था, मैंने रजाई अच्छे से ओढ़ी और उन्होंने कराहते हुए अपने को मेरे नीचे अच्छे से पसरी और फिर मैंने धीरे धीरे लंड को अंदर बाहर करते हुए अम्मी को चोदना शुरू कर दिया। वो मस्ती में सिसकते कराहते हुए मुझसे लिपटती चली गयी, इतना मजा आएगा ये कभी ख्वाब में भी नही सोचा था। जितना कुछ कभी सोचा था उससे कहीं ज्यादा मजा आ रहा था।
दालान में पूरा अंधेरा था, धीरे धीरे मैं उन्हें तेज तेज चोदने लगा और मेरे धक्कों ने पूरा रफ्तार पकड़ लिया, खटिया चर्रर्रर्रर चर्रर्रर्रर करने लगी, न चाहते हुए भी दोनों के मुंह से बदकार सिसकारियां निकलने ही लगी थी। मैंने दोनों हाँथ नीचे ले जाकर अपनी अम्मी के मोटे मोटे चूतड़ों को थामकर हल्का सा ऊपर उठाया और कस कस के पूरा लंड उनकी रसीली बूर में पेलने लगा। वो तेज तेज सिसकते हुए अब नीचे से शर्मो हया छोड़ अपनी चौड़ी गाँड़ हल्का हल्का ऊपर को उछाल उछाल कर अपने सगे बेटे से चुदवाने लगी। हम दोनों आलम ए मस्ती में दोनों मां बेटे डूब गए। तेज तेज धक्के मारने के साथ साथ मैं उनके गालों और होंठों को चूमने लगा और वो मदहोशी में मेरा साथ देने लगी। मैं उनकी तेज धक्कों के साथ हिलती हुई चूचीयों को कस कस के दबाने लगा, वो और भी सिसकने लगी।
रात के घनघोर अंधेरे में मेरा लंड अपनी ही अम्मी की बूर में घपाघप अंदर बाहर हो रहा था। कुछ ही देर में जब बूर बहुत ज्यादा पनिया गयी तो रजाई के अंदर चुदायी की फच्च फच्च आवाज़ें गूंजने लगी। उनकी नंगी जाँघों से मेरी नंगी जांघे थप्प थप्प टकराकर जो आवाज पैदा कर रही थी उससे हम दोनों और वहशी हो जा रहे थे। जिस्मानी रिश्तों का यह खेल आज अंधेरे में मैं और अम्मी खेलेंगे ये कभी सोचा न था। इतना मजा आएगा आज की रात ये कभी सोचा न था। करीब पंद्रह मिनिट की लगातार चुदायी के बाद अम्मी ने बस धीरे से मेरे कान में बड़ी मुश्किल से भरी आवाज में कहा "रुकना मत….और तेज तेज" मैं ये सुनकर और गचा गच उनकी बूर चोदने लगा। वो तेजी से आहें भरते हुए कराहने लगी, लगातार बदहवास सिसकारियां लेते हुए वो छटपटाने लगी। कभी मुझसे कस के लिपट जाती कभी मेरी पीठ पर चिकोटी काट लेती तो कभी मेरी नंगी पीठ पर अपने नाखून गड़ा देती। एकएक उनका बदन थरथराया और मैंने साफ महसूस किया कि उनकी बूर के अंदर मानो कोई जलजला सा आगया हो और उस के साथ वो कस के मुझसे लिपटते हुए
तेजी से कराहकर "आआआआआहहहह हाय अल्लाहआआआ वाली!!! " कहते हुए फारिग होने लगी। उनकी बूर में इतनी तेज तेज सिकुड़न होने लगी कि मुझसे भी बर्दाश्त नही हुआ और मैं भी "ओह अम्मीईई" कहते हुए झड़ने लगा। एक तेज माल की गाढ़ी धार मेरे लंड से निकलकर उनके बच्चेदानी पर गिरने लगी। मेरे अंदर इतना उफान था कि करीब दो मिनट तक मेरा लंड झटक झटक कर माल अम्मी की बूर में उगलता रहा। यही हाल अम्मी की बूर का भी था। करीब इतनी ही देर तक उनकी बूर भी कांपते हुये झड़ती रही। वो मुझे कस के अपनी आगोश में भरकर काफी देर तक झड़ते हुए चूमती रही। इतना सकूं शायद उन्हें पहले कभी नही मिला था, उन्होंने धीरे से मेरे कान में कहा- "आज मैंने पा लिया अपने बेटे को, कितनी नाजो नामत है"
मैं- फिर भी आपने आने में एक हफ्ता लगा दिया अम्मी, मैं कब से आपका इंतजार कर रहा था रोज़, मैं यही जन्नत आपको देना चाहता था, मैंने भी आज अपनी अम्मी को पा लिया है और ये सब हुआ है उस पुरानी किताब की वजह से।
वो ये सुनकर हल्का सा मुस्कुरा पड़ी और बोली-नही वाली, देर इसलिए हुई क्योंकि मेरी माहवारी आ रखी थी, इसलिए मैंने तुझे इंतज़ार करवाया, इतंज़ार का फल मुक़दस होता है न।
मैं- हाँ अम्मी सच है
अम्मी- क्या वो किताब तूने फाड़ दी है।
मैं- नही अम्मी, फाड़ा नही है।
वो फिर मुस्कुराई और बोली- उसे फाड़ना मत, उसी ने हमे मिलाया है।
मैंने उन्हें "हाँ बिल्कुल" बोलते हुए कई बार चूमा, और बगल में लेटते हुए उन्हें अपने ऊपर चढ़ा लिया इस उलट पलट में मेरा लंड पक्क से उनकी बूर से निकल गया तो अम्मी ने साये से अपनी बूर और मेरे लंड को अच्छे से पोछा और एक बार फिर हम एक दूसरे के आगोश में समाते चले गए।
उस रात मैंने अम्मी को तीन बार चोदा और फिर वो सुबह में दालान से निकल गयी। रात में वो अब रोज़ मेरे पास नज़र बचा के आने और हम जी भरकर चुदायी करते थे। इतना ही नही दिन में भी हम छुप छुप कर चुदायी कर ले थे। मेरी अम्मी अब सच में मेरी हो चुकी थी, आखिर मेरा जिस्म उनके जिस्म का ही तो एक टुकड़ा था, अब कोई रुसवाई नही थी बस था तो सिर्फ प्यार ही प्यार।
उस सर्द रात को जो सिलसिला शुरू हुआ वह अगले 10 सालों तक चलता रहा। मेरे लिए मेरी अम्मी ही मोहब्बत थी मेरी जन्नत थी। जब मैं यूनाइटेड बैंक लिमिटेड में अफसर बन गया तो अम्मी मुझ पर अपनी दूर की बाजी की लड़की से निकाह करने का जबर करने लगी। लेकिन मैं बिल्कुल भी अम्मी को छोड़ना नही चाहता था। तब अम्मी ने मुझे वादा किया की मेरे उनके रिश्ते इस नए रिश्ते से बेजार नही होंगे। मैं जब चाहूं अपनी अम्मी को चोद सकता हूं। उनके वादे के बाद मैने अम्मी की पसंद से निकाह कर लिया और मेरी शादीशुदा जिंदगी में मेरी बीबी बाहर ले आई। मैं अपनी बीबी से खुश था लेकिन फिर भी मैं बीच बीच में गांव जा कर अपनी अम्मी की आगोश में राते बिताता रहा। दिन या रात जब भी मौका मिलता, अम्मी खुद ही मौका देती या फिर मैं उन्हें बेमौके चोद देता था।
लेकिन एक दिन, मेरी दुनिया ही बदल गई। मैं कराची में अपने बैंक की ब्रांच में काम कर रहा था की खबर आई की अम्मी को दिल का दौरा पड़ा और उनका इंतकाल हो गया है। मेरा दिल इस तरह टूटा की अगले 6 महीनो में ही पाकिस्तान में बैंक की नौकरी छोड़, एक विदेशी फाइनेंस कंपनी में नौकरी करने ब्रसेल्स आगया और वहीं पर अपने परिवार को बुला लिया।
आज 6 साल हो गए है अम्मी को गए हुए लेकिन आज भी वो मेरे ज़हन में समाई हुई है।