अध्याय - 1
लेकिन आज हम उस हिस्से में क्यों जा रहे हैं, पहले तो हमेशा से ही मुझको वहां पर जाने से रोका गया है।
(मेरे और शायद मेरे साथ चले रहे मेरे साथी के दिमाग में भी ये ही सवाल उठ रहे हो, जिनका जवाब न तो उसके पास था और न ही मेरे पास। खैर अब हम उस हिस्से के करीब पहुंच चुके थे।)
हम दोनों ने ही एक-दूसरे की आंखों में देखा, कुछ सवाल थे हमारी आंखों में जिन्हें हम चाह कर भी एक-दूसरे से नहीं पूछ पा रहे थे। हमारे अब तक के सफर में हमारी ज्यादा बातचीत नहीं हुई, हमने करनी भी चाही तो हम कर नहीं पाए।
हां, हम दोनों ही एक-दूसरे से अनजान है, लेकिन बीते कुछ समय से हम लोग साथ थे और जहां पर हम लोगों को लाया गया है, उसकी राह भी एक है। लेकिन मंजिल... हमारी मंजिल क्या है और हमें यहां पर क्यों लाया गया है, ये हम दोनों ही जानना चाहते है।
हम दोनों ने ही एक-दूसरे की आंखों में देखा और चल पड़े अपनी अनजानी मंजिल को खोजने। कुछ दूर जाने पर मैंने पीछे मुड़ कर देखा, लेकिन अब मुझे मेरे पीछे कोई नहीं दिखा। मैं इस वक्त जहां पर खड़ा था, वहां पर मुझे कोई दूसरा आदमी दिखाई नहीं दे रहा था। यहां पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर दो-तीन मंजिलों के मकान ही नज़र आ रहे थे। कुछ सोचते हुए, अपने ख्यालों में गुम में आगे बढ़ रहा हूं, लेकिन कहां.. और किस चीज़ के लिए...
अभी में चल ही रहा था कि मुझे एक मकान में कुछ हिलता हुआ महसूस हुआ। कौन है वहां पर.... सोचने से अच्छा है, वहां पर चल कर ही देखा जाएं... एक तीन मंजिला इमारत के सामने खड़ा होकर... अगल-बगल देखते हुए मैं आगे बढ़ा और उस इमारत के दरवाजे पर जाकर उसको छुआ। कमाल है... दरवाजा भी खुला हुआ है... एक साधारण सा घर बीच में छोटा सा आंगन और ...... फिर किसी के होने का अहसास...
इधर-उधर नज़र घुमाते हुए मैं पहली मंजिल की ओर चल पड़ा, बिल्कुल नीचे की तरह ऊपर भी कमरे बने हुए थे, लेकिन एक कमरे का दरवाजा खुला हुआ था, मैं उस ओर ही चल पड़ा। एक सोफा, एक लकड़ी की आलमारी एक पलंग उसके बगल में रखा हुआ एक छोटा-सा स्टूल। शायद कमरे के साथ लगे बाथरूम में कोई था, क्योंकि वहां से पानी के गिरने की आवाज आ रही थी।
बैठ जाओ... वहीं से किसी की आवाज आई। अचानक आवाज सुनकर में थोड़ा चौंक गया और उस बाथरूम की ओर जाते हुए मेरे कदम वहीं रूक गए। मैं पीछे हुआ और सोफे पर बैठ गया।
कुछ देर बाद दरवाजा खुला और दरवाजों से वो बाहर आई। सपाट चेहरा... कोई भी भाव नहीं... खुले बाल। कपड़ों के नाम पर छोटी-सी टी-शर्ट और घुटने से ऊपर कमर से नीचे बंधा हुआ कपड़ा। पतला शरीर लेकिन खूबसूरत चेहरा।
कुछ पलों तक मैं उसे देखता रहा, लेकिन फिर मैंने अपनी नज़रों को उसके चेहरे से हटा लिया। जो उसकी उभरी हुई गोलाईयों से होते हुए उसकी गहरी नाभी पर पहुंच चुकी थी।
देखना चाहो... तो देख सकते हो... छूकर भी देख सकते हो।
क्या... अपनी आंखों को बड़ी करते हुए मैंने कहा।
जवाब सुनकर वो मुस्कुराई और मेरी ओर आने लगी। अब उसकी कमर मेरी आंखों के सामने थी और कोशिश करने के बाद भी मैं अपनी नज़र वहां से नहीं हटा पा रहा था।
कभी-कभी न चाहते हुए भी कुछ बाते हो जाती है, उसने कहा। और चेहरे पर मुस्कान लिए मेरी गोद में बैठ गई। ऐसे अचानक मेरी गोद में बैठने से मैं थोड़ा पीछे हुआ और मेरा सिर पीछे दीवार से टकरा गया।
वो जोर से हंसी और बोली।
पहले कोई लड़की गोद में नहीं बैठी क्या, जो इस तरह से हड़बड़ा रहे हो।
अब अपनी उम्र से लगभग आधी उम्र की लड़की जब अचानक से ऐसा बर्ताव करेगी, तो शायद मेरे जैसा आदमी कुछ ऐसा ही करेगा। (मैंने मन में सोचा।)
मैं थोड़ा संभला और उसकी ओर देखा, अब उसका ओर मेरा चेहरा एक-दूसरे के करीब था। मैंने धीरे से अपने हाथों को उसकी कमर पर रखा... लेकिन इतना ठंडा शरीर... शायद ... बाथरूम से नहा कर ही निकली हो...
कभी-कभी हमारा दिमाग कुछ बातों को नज़रअंदाज़ कर देता है, जो कि हमारे दिमागी स्थिति के असंतुलित होने पर होता है। और इस वक्त तो मेरा दिमाग वैसे भी असंतुलन कि हदों को पार कर चुका था।
उसने अपना चेहरा मेरी ओर बढ़ाया और हम दोनों के ही होंठ जुड़ गए, उसके जिस्म पर मेरी पकड़ और भी ज्यादा मजबूत हो गई। कमर से होते हुए कब मेरा एक हाथ उसके नितंबो और दूसरा उसके उभारों तक पहुंच गया, न मुझको पता चला.. और न शायद उसे..... शायद..।
हम दोनों की आंखों में खुमारी के लाल डोरे उतर चुके थे... अब न तो मैं रूक सकता था ... और न ही रूकना चाहता था.... धीरे-धीरे हमारे सारे कपड़े सोफे के नीचे पड़े हुए थे... उसे बाहों में उठाए उसके होंठों को कुचलता हुआ, मैं पलंग तक पहुंचा और अब मैं उसके ऊपर था... हाथ अपनी रफ्तार से उसके जिस्म के हर हिस्से पर घूम रहे थे और होठ अपना काम कर रहे थे।
अब वक्त था आखिरी बाजी का... मैं थोड़ा-सा उठा, जगह पर पहुंचा और एक धक्का दिया... दोबारा दिया... वो थोड़ी-सी मचली और उसका एक हाथ मेरे सीने पर आया और उसने मुझे धक्का दिया।
मैं पलंग से थोड़ा दूर हो गया... और खड़ा होकर उसे देखता रहा... और दोबारा उसकी ओर बढ़ा।
लेकिन उसके ऊपर दोबारा आने से पहले उसने मुझे रोक दिया।
क्या हुआ... मैंने पूछा।
ये सब ... इतना जल्दी ठीक नहीं...।
क्यों....
वक्त के साथ सब हो जाएगा, इंतजार करो।
लेकिन मैं दोबारा, उसकी तरफ बढ़ा.... इस बार फिर उसने मुझे पीछे ढकेला, लेकिन काफी जोर से।
मैं सहम गया... और उसकी ओर देखता रहा.... कमाल है..... अभी तो खुद ही सब कुछ करने को तैयार थी.... अब इसे क्या हो गया...
अब जाओ.... थोड़ी देर बाद वो बोली। और दोबारा से अपने कपड़ों को उठाकर बाथरूम की ओर जाने लगी।
लेकिन मैं कहां जाऊ।
नीचे। इतना कहकर वो बाथरूम में चली गई।
मैं जहां पर गिरा था वहीं पर बैठा कुछ देर तक सोचता रहा, फिर उठ कर नीचे की ओर चल दिया।