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Fantasy "आदमखोर"

Ammienida

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तैयार हो जाओ, आदमखोर से मिलने के लिए....... :lotpot:
काम शुरू कर रहा हूं आज से..... देखो कहां तक पहुंचा पाता हूं इस आदमखोर को......
पहली बार सेक्स से शुरूआत करने वाला हूं.... पता नहीं क्या कांड करूंगा.. :lotpot:
बता देना कैसे चाहिए... English में या Hinglish में ...... उसी के हिसाब से आगे बढूंगा..
 
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हिंदी में लिखो
 

Ammienida

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अध्याय - 1​

लेकिन आज हम उस हिस्से में क्यों जा रहे हैं, पहले तो हमेशा से ही मुझको वहां पर जाने से रोका गया है।

(मेरे और शायद मेरे साथ चले रहे मेरे साथी के दिमाग में भी ये ही सवाल उठ रहे हो, जिनका जवाब न तो उसके पास था और न ही मेरे पास। खैर अब हम उस हिस्से के करीब पहुंच चुके थे।)

हम दोनों ने ही एक-दूसरे की आंखों में देखा, कुछ सवाल थे हमारी आंखों में जिन्हें हम चाह कर भी एक-दूसरे से नहीं पूछ पा रहे थे। हमारे अब तक के सफर में हमारी ज्यादा बातचीत नहीं हुई, हमने करनी भी चाही तो हम कर नहीं पाए।

हां, हम दोनों ही एक-दूसरे से अनजान है, लेकिन बीते कुछ समय से हम लोग साथ थे और जहां पर हम लोगों को लाया गया है, उसकी राह भी एक है। लेकिन मंजिल... हमारी मंजिल क्या है और हमें यहां पर क्यों लाया गया है, ये हम दोनों ही जानना चाहते है।

हम दोनों ने ही एक-दूसरे की आंखों में देखा और चल पड़े अपनी अनजानी मंजिल को खोजने। कुछ दूर जाने पर मैंने पीछे मुड़ कर देखा, लेकिन अब मुझे मेरे पीछे कोई नहीं दिखा। मैं इस वक्त जहां पर खड़ा था, वहां पर मुझे कोई दूसरा आदमी दिखाई नहीं दे रहा था। यहां पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर दो-तीन मंजिलों के मकान ही नज़र आ रहे थे। कुछ सोचते हुए, अपने ख्यालों में गुम में आगे बढ़ रहा हूं, लेकिन कहां.. और किस चीज़ के लिए...

अभी में चल ही रहा था कि मुझे एक मकान में कुछ हिलता हुआ महसूस हुआ। कौन है वहां पर.... सोचने से अच्छा है, वहां पर चल कर ही देखा जाएं... एक तीन मंजिला इमारत के सामने खड़ा होकर... अगल-बगल देखते हुए मैं आगे बढ़ा और उस इमारत के दरवाजे पर जाकर उसको छुआ। कमाल है... दरवाजा भी खुला हुआ है... एक साधारण सा घर बीच में छोटा सा आंगन और ...... फिर किसी के होने का अहसास...

इधर-उधर नज़र घुमाते हुए मैं पहली मंजिल की ओर चल पड़ा, बिल्कुल नीचे की तरह ऊपर भी कमरे बने हुए थे, लेकिन एक कमरे का दरवाजा खुला हुआ था, मैं उस ओर ही चल पड़ा। एक सोफा, एक लकड़ी की आलमारी एक पलंग उसके बगल में रखा हुआ एक छोटा-सा स्टूल। शायद कमरे के साथ लगे बाथरूम में कोई था, क्योंकि वहां से पानी के गिरने की आवाज आ रही थी।

बैठ जाओ... वहीं से किसी की आवाज आई। अचानक आवाज सुनकर में थोड़ा चौंक गया और उस बाथरूम की ओर जाते हुए मेरे कदम वहीं रूक गए। मैं पीछे हुआ और सोफे पर बैठ गया।

कुछ देर बाद दरवाजा खुला और दरवाजों से वो बाहर आई। सपाट चेहरा... कोई भी भाव नहीं... खुले बाल। कपड़ों के नाम पर छोटी-सी टी-शर्ट और घुटने से ऊपर कमर से नीचे बंधा हुआ कपड़ा। पतला शरीर लेकिन खूबसूरत चेहरा।

कुछ पलों तक मैं उसे देखता रहा, लेकिन फिर मैंने अपनी नज़रों को उसके चेहरे से हटा लिया। जो उसकी उभरी हुई गोलाईयों से होते हुए उसकी गहरी नाभी पर पहुंच चुकी थी।

देखना चाहो... तो देख सकते हो... छूकर भी देख सकते हो।

क्या... अपनी आंखों को बड़ी करते हुए मैंने कहा।

जवाब सुनकर वो मुस्कुराई और मेरी ओर आने लगी। अब उसकी कमर मेरी आंखों के सामने थी और कोशिश करने के बाद भी मैं अपनी नज़र वहां से नहीं हटा पा रहा था।

कभी-कभी न चाहते हुए भी कुछ बाते हो जाती है, उसने कहा। और चेहरे पर मुस्कान लिए मेरी गोद में बैठ गई। ऐसे अचानक मेरी गोद में बैठने से मैं थोड़ा पीछे हुआ और मेरा सिर पीछे दीवार से टकरा गया।

वो जोर से हंसी और बोली।

पहले कोई लड़की गोद में नहीं बैठी क्या, जो इस तरह से हड़बड़ा रहे हो।

अब अपनी उम्र से लगभग आधी उम्र की लड़की जब अचानक से ऐसा बर्ताव करेगी, तो शायद मेरे जैसा आदमी कुछ ऐसा ही करेगा। (मैंने मन में सोचा।)

मैं थोड़ा संभला और उसकी ओर देखा, अब उसका ओर मेरा चेहरा एक-दूसरे के करीब था। मैंने धीरे से अपने हाथों को उसकी कमर पर रखा... लेकिन इतना ठंडा शरीर... शायद ... बाथरूम से नहा कर ही निकली हो...

कभी-कभी हमारा दिमाग कुछ बातों को नज़रअंदाज़ कर देता है, जो कि हमारे दिमागी स्थिति के असंतुलित होने पर होता है। और इस वक्त तो मेरा दिमाग वैसे भी असंतुलन कि हदों को पार कर चुका था।

उसने अपना चेहरा मेरी ओर बढ़ाया और हम दोनों के ही होंठ जुड़ गए, उसके जिस्म पर मेरी पकड़ और भी ज्यादा मजबूत हो गई। कमर से होते हुए कब मेरा एक हाथ उसके नितंबो और दूसरा उसके उभारों तक पहुंच गया, न मुझको पता चला.. और न शायद उसे..... शायद..।

हम दोनों की आंखों में खुमारी के लाल डोरे उतर चुके थे... अब न तो मैं रूक सकता था ... और न ही रूकना चाहता था.... धीरे-धीरे हमारे सारे कपड़े सोफे के नीचे पड़े हुए थे... उसे बाहों में उठाए उसके होंठों को कुचलता हुआ, मैं पलंग तक पहुंचा और अब मैं उसके ऊपर था... हाथ अपनी रफ्तार से उसके जिस्म के हर हिस्से पर घूम रहे थे और होठ अपना काम कर रहे थे।

अब वक्त था आखिरी बाजी का... मैं थोड़ा-सा उठा, जगह पर पहुंचा और एक धक्का दिया... दोबारा दिया... वो थोड़ी-सी मचली और उसका एक हाथ मेरे सीने पर आया और उसने मुझे धक्का दिया।

मैं पलंग से थोड़ा दूर हो गया... और खड़ा होकर उसे देखता रहा... और दोबारा उसकी ओर बढ़ा।

लेकिन उसके ऊपर दोबारा आने से पहले उसने मुझे रोक दिया।

क्या हुआ... मैंने पूछा।

ये सब ... इतना जल्दी ठीक नहीं...।

क्यों....

वक्त के साथ सब हो जाएगा, इंतजार करो।

लेकिन मैं दोबारा, उसकी तरफ बढ़ा.... इस बार फिर उसने मुझे पीछे ढकेला, लेकिन काफी जोर से।

मैं सहम गया... और उसकी ओर देखता रहा.... कमाल है..... अभी तो खुद ही सब कुछ करने को तैयार थी.... अब इसे क्या हो गया...

अब जाओ.... थोड़ी देर बाद वो बोली। और दोबारा से अपने कपड़ों को उठाकर बाथरूम की ओर जाने लगी।

लेकिन मैं कहां जाऊ।

नीचे। इतना कहकर वो बाथरूम में चली गई।

मैं जहां पर गिरा था वहीं पर बैठा कुछ देर तक सोचता रहा, फिर उठ कर नीचे की ओर चल दिया।
 
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कुछ भी समझ मे नही आया, अधूरा अपडेट
 
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Ammienida

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Kal deta hu update... aaj poora likh nhi paaya
 
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sunoanuj

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Pahla update or suspense shuru …
 

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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Kuch bhi samaj me nahi aaya bhai
 

Ammienida

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अध्याय - 2

मैं नीचे आकर इधर-उधर देखने लगा, जब पहले में यहां पर आया था तो सभी दरवाजे बंद थे, लेकिन अब नीचे एक कमरे का दरवाजा खुला हुआ था। मैं उसी कमरे की तरफ चला गया।

शाम का वक्त हो चुका था और सर्दियों के चलते अंधेरा भी होने लगा था। ये कमरा ऊपरी कमरे से काफी अलग था। इसमें एक पलंग और दीवारों की एक तरफ किताबों की रैक लगी हुई थी, जिसमें काफी किताबे थी। कुछ सोच कर मैं उन्हीं किताबों की ओर चला गया। किताबों पर जम चुकी धूल ये बताने के लिए काफी थी कि यहां पर एक लंबे अरसे से कोई नहीं आया था और किताबों की हालत भी उनके काफी पुरानी होने की गवाही दे रही थी।

लेकिन जैसे ही मैंने किताबों को छूने के लिए हाथ आगे बढ़ाया मेरी नज़र दाई तरह रखी एक किताब पर गई। अब करने के लिए तो कुछ था नहीं, तो इसी से वक्त काट लेते है, सोचता हुआ उसे वहां से निकाल कर मैं पलंग पर आ गया। किताब के कवर पेज पर न तो इसका नाम था, न ही कोई चित्र। ये भी सही है, अंजानी जगह पर किताबों के भी क्या नाम हुआ करते होंगे। मैं हंसा और किताब को खोला।

किताब के पहले पन्ने पर जो पहला अक्षर मैंने देखा, उसे देखते ही मैं थोड़ा-सा चौंक गया, जिस पर लिखा था "गजेन्द्र"........

मेरा ही नाम, अब इसे अजीब कहूं या दिलचस्प। खैर आगे पढते है।

(यहां से ये किताब शुरू हो रही है, जो गजेन्द्र पढ़ रहा है।)

गजेन्द्र तुम्हें ये सब रोकना होगा, अब हम ये सब नहीं होने दे सकते हैं। ये सब जो हो रहा है, इससे तो एक दिन सभी लोग खत्म हो जाएंगे। फिर क्या होगा। गजेन्द्र के सामने खड़ा आदमी बोला।

उस आदमी की तरफ देखते हुए........

मैंने भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ हो जाएगा, मुझे क्या मालूम था कि जिसके बारे में आज तक हमने किस्से-कहानियों में सुना था। उन्हें अस्तित्व में लाने की वजह में खुद बनूंगा।

गजेन्द्र भूलों मत कि तुम भी उन्हीं में से एक हो और तुम्हीं वो पहले आदमी थे, जिसकी वजह से वो दरिंदे आज हम लोगों के सामने है। शुरूआत में जाकर ही किसी को खत्म करने के बारे में पता चल सकता है।

लेकिन अब क्या हो सकता है.... अब उनको रोक पाना नामुमकिन है।

हमें कुछ तो करना ही होगा, मुझसे जितना भी हो सकेगा मैं करने की कोशिश करूंगा। लेकिन इसका अंत तुम्हीं को करना होगा।

मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा है कि कहां से शुरू करूं।

अब वो लड़की कहां है, जिसकी मुलाकात तुमसे 20 सालों पहले हुई थी। लीना...... यहीं नाम बताया था न तुमने उस लड़की का। अब कहां है वो।

अब मुझे उसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम। 5 सालों पहले ही वो अचानक गायब हो गई और उसके बाद लीना का कुछ पता नहीं चला। मैंने लीना को ढ़ूढ़ने की काफी कोशिश की लेकिन वो मुझे दोबारा नहीं मिलीं।

लेकिन अब वक्त आ गया है लीना के बारे में पता करने का कि वो कहां गई। लीना और तुम्हारे संबंधों से ही कबीर और सान्वी पैदा हुए। 18 सालों तक तो वो साधारण बच्चों की ही तरह थे। लेकिन अब जो वो है और जो कर रहे है, उससे तो सभी लोग खत्म होकर उनके जैसे ही हो जाएंगे, तुम और मैं भी उन्हीं के तरह होंगे एक दिन। क्या लीना और तुम्हारे बीच कभी ऐसी कोई बात नहीं हुई, जब उसने तुमसे ऐसा कोई जिक्र किया हो... कोई ऐसी घटना जब तुम्हें ऐसा महसूस हुआ हो कि वो आम लोगों की तरह नहीं है।

नहीं... जितना वक्त हमने साथ गुजारा, उसमें मुझे कभी भी ऐसा नहीं लगा। वो भी एक आम मां की तरह अपने बच्चों और पति का ध्यान रखती थी। लेकिन उस रात जब मैं घर लौटा तो पूरा घर खाली पड़ा था और .....

(कुछ सालों पहले उस रात...)

मैं रोजाना की तरह ठीक वक्त पर अपने घर पहुंचा था, लेकिन आज हमेशा कि तरह दरवाजे पर लीना नहीं थी। बीते 15 सालों में हमेशा वो इस वक्त पर मुझे दरवाजे पर ही खड़ी मिलती थी। जिसकी मुझे भी आदत हो गई थी। लेकिन आज वो वहां पर नहीं थी।

शायद किसी काम में लगी होगी, सोचता हुआ मैं घर के अंदर पहुंचा। पूरा ड्राइंग रूम खाली पड़ा था।

लीना.... कबीन .. कहां हो सब लोग। सान्वी..... लेकिन कोई आवाज नहीं। अजीब है, कहां गए सब लोग। लीना...

अपने सामान को पास की मेज पर रखता हुआ मैं बेडरूम की ओर गया और जब मैं दरवाजे को खोल कर अंदर दाखिल हुआ, मैं पूरी तरह से घबरा हुआ... कमरे में चारों तरफ खून-ही-खून बिखरा हुआ था.... बेड, फर्श और दीवारे सभी खून से सनी हुई थी..... घबरा कर ... बेडरूम के दरवाजे को बंद करते हुए, मैं बच्चों के कमरे की ओर दौड़ा।

कबीर... सान्वी.. दरवाजा खोलो, मैं हूं डेड। कोई आवाज नहीं। आवाज न पाकर मैं दरवाजे को जोर-जोर से पीटने लगा। लेकिन कोई आवाज नहीं आई। मैं भाग कर घर के बाहर पहुंचा और बच्चों के कमरे की खिड़की की तरफ गया। बंद पड़ी खिड़की को किसी तरह अंदर देखा तो दोनों बच्चे बेहोश पड़े थे।

वर्तमान में..........

उस दिन जब तुम और मैं बच्चों को लेकर अस्पताल पहुंचे तो उन्हें पूरे दो दिनों के बाद होश आया था। उनसे जब लीना के बारे में पूछा तो उन्हें भी लीन के बारे में कुछ याद नहीं था। लेकिन धीरे-धीरे उन दोनों का बर्ताव बदलता चला गया और उन्होंने लोगों से मिलना भी बंद कर दिया।

तुमसे भी वो दोनों धीरे-धीरे दूर होते चले गए और अब शायद वो सभी लोगों से अलग हो चुके है। अब वो आदमखोर हो चुके है, जो एक-एक करके दूसरे लोगों को भी अपने जैसा बनाते जा रहे है।

हमें इसको रोकने का कोई तरीका खोजना ही होगा गजेन्द्र। और इसकी शुरूआत हमें लीना से ही करनी होगी।

क्रमश: .........
 
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