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Incest आशु की पदमा

Rajpoot MS

I love my family and friends ....
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Bahut bahut shukriya mere bhai ❤️❤️❤️❤️❤️
Shandar
इस कहानी के पहले अपडेट मे आपने जिस तरह से पदमा देवी और उनके हसबैंड बालचंद के बीच उनके एकलौते संतान अंशुल को लेकर नोक-झोंक दिखाया वह आउटस्टैंडिंग था ।
उनकी देहाती बोली , गांव का नेचुरल देहाती माहौल , हसबैंड वाइफ के बीच की खाई , पदमा का अपने पुत्र का ब्लाइंड सपोर्ट , अंशुल की खुबसूरती की वजह से किसी का बुरी नजर लगना और उसकी तबीयत खराब होना सबकुछ परफेक्ट और रियलिस्टिक लगा मुझे ।

नयना का किरदार अबतक का इस स्टोरी का सबसे बेहतरीन कैरेक्टर लगा । उसका अंशुल के प्रति दीवानगी , निश्छल प्रेम , बेवाक अंदाज , उसके आचार - विचार अत्यंत ही प्रशंसनीय थे ।

लेकिन यह अब तक क्लियर नही हुआ कैसे नयना और अंशुल के बीच इन्सेस्टियस रिलेशनशिप की नींव पड़ी ?
इनके दरम्यान हुए जिस्मानी संबंध को आपने बंद दरवाजे के पीछे दिखाया जो अन्य ऐसे कहानियों से बिल्कुल अलग था । लेकिन जो भी था वह रीडर्स के अन्तर्मन पर छाप छोड़ने लायक था ।

राइटिंग स्किल बहुत ही खूबसूरत है । संवाद लेखन भी बढ़िया लिखा है आपने । और गांव के परिवेश का वर्णन भी काफी सटीक किया हुआ है ।

इस स्टोरी मे काफी कुछ स्कोप है । यह विस्तृत इरोटिक स्टोरी बन सकती है जहां इन्सेस्ट , एडल्टरी , इमोशंस , फैमिली ड्रामा की काफी गुंजाइश है ।

आउटस्टैंडिंग अपडेट भाई ।
SANJU(VR)❤️❤️❤️❤️bhai bole to mast ho yar aap bahut hi shandanr tarike se kahani ke bare me jankari dete hi aap aap ka sujhav bahut aachcha lagta he mene bahut si kahaniyon par ap ko dekha he
🔝💞💞💞❤️
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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अध्याय 3
धन्नो काकी....


अगले दिन सुबह जब पदमा अपने कपडे और शर्म उतारकर अपने बेटे अंशुल की बाहों मे सोई हुई थी तभी अंशुल के फ़ोन की घंटी बजी जिसकी आवाज़ सुनकर दोनों की नींद खुली और अंशुल बिस्तर मे बजते हुए फ़ोन को तलाशने लगा जो चादर के नीचे कहीं दबा हुआ उसे मिला......
पदमा - किसका फ़ोन है?
अंशुल - काकोड़ी से है.....
पदमा - ला दे...
फ़ोन उठाते हुए - हेलो.... हां....कब? अब कैसी तबियत है? नहीं मैं अभी आ रही हूँ...तुम ख्याल रखो उनका..
अंशुल - क्या हुआ?
पदमा कपडे समेटकर बाथरूम जाते हुए - दीदी को फिर से दौरा आया है... अस्पताल मे भर्ती है..
अंशुल - मैं नीचे आपका इंतजार कर रहा हूँ....
पदमा - नहीं... मैं बस से चली जाउंगी.. तुम आराम करो...

पदमा जल्दी जल्दी मे नहाकर त्यार हो गई.. वहीं अंशुल काफ़ी देर से अपना मुँह हाथ धोकर बाहर बाइक पर बैठे पदमा का इंतजार कर रहा था...
अरे मैं बस से चली जाउंगी... कहा तू इतना दूर आए-जाएगा?
आप चुपचाप बैठो.. और ये बेग मुझे दे दो....
अंशुल अपनी माँ के हाथो मे से एक छोटा सा बेग लेकर अपने आगे रखते हुए बाइक स्टार्ट करता है और पदमा अंशुल के पीछे बैठ जाती है...
काकोड़ी यहां से 40 किलोमीटर की दुरी पर था रास्ता टूटी फूटी सडक से भरा था बस से ये रास्ता अढ़ाई घंटे मे तय होता था और बाइक से डेढ़ घंटे मे...

अंशुल अपनी माँ पदमा को मौसी गुंजन के पास अस्पताल ले आया था जहा नींद के इंजेक्शन से गुंजन सो रही थी और उसके आस पास कुछ लोग खड़े थे....
गुंजन विधवा हो चुकी थी एक लड़की के माँ बनने का सौभाग्य उसे प्राप्त हुआ था जिसकी शादी हो चुकी थी लेकिन दामाद लालची और घरजमाई दोनों था.. बड़े धनवान घर मे ब्याह हुआ था सो दौलत की कमी नहीं थी.. गुंजन की बेटी रूपा और जमाई सुरेंद्र वहीं अस्पताल मे थे... अंशुल को सुरेंद्र जरा भी पसंद नहीं था एक बार तो उसने सबके सामने सुरेंद्र को झाड़ दिया था बस बहुत हँसे थे सुरेंद्र पर... रूपा ने उसका बदला अंशुल के गाल पर तमाचा मारकर लिया था.. रूपा बुरी नहीं थी.. पर सबके सामने अपने पति की बेज्जती सह न सकी थी आखिर वो चाहे जैसा भी हो उसके साथ रूपा का भी तो आत्मसम्मान जुड़ा था.... रूपा ने अंशुल से माफ़ी भी मांगी थी मगर अंशुल ने उस दिन के बाद से रूपा से बात करना बंद कर दिया था...
अंशुल ने डॉक्टर से बात की तो डॉक्टर ने उसे गुंजन की हालत के बारे मे सब सच बता दिया और गुंजन का ख्याल रखने को कहा... अंशुल ने पदमा को डॉक्टर के कहे अनुसार गुंजन का पूरा ध्यान रखने की बात कही जिसे सुनकर पदमा ने कुछ दिन गुंजन के साथ ही रहने का फैसला किया....
अंशुल जब वापस जाने लगा तो रूपा ने अंशुल का हाथ पकड़ लिया और उसके गले से लग गई.. बेचारी रूपा कुछ कह ना सकी थी..
रूपा की आँखों से आंसू की धार बह निकली थी जिसने अंशुल के दिल को पिघला दिया था वो उस दिन के बाद आज रूपा को रोते से चुप करता हुआ उससे बोला..
दीदी रोओ मत....
डॉक्टर ने कहा मासी ठीक है...
वो कुछ दिनों मे पहले जैसी हो जायेगी....
बस उनका ख्याल रखना होगा...
आप प्लीज चुप हो जाओ...
आपको मेरी कसम, रोना बंद करो....

रूपा इतना जोर से अंशुल को पकड़ा था की अंशुल को अपनी पीठ मे रूपा के कंगन चुभ रहे थे... अंशुल ने जैसे तैसे रूपा को चुप करवाया और अस्पताल मे रखी बैंच पर बैठाते हुए उसके आंसू पोंछकर रूपा को किसी बच्चे की तरह समझाया की सब ठीक है और कुछ देर ऐसे ही उसके पास बैठा रहा जब तक रूपा उसके कंधे पर सर रखकर सो नहीं गई...
सुरेंद्र तो बस जैसे कोई औपचारिक तौर पर वहा था उसे किसी से कुछ लेना देना नहीं था वो फ़ोन मे कोई गेम खेल रहा था शायद टाइमपास कर रहा था...

अंशुल पदमा को वहा छोड़कर शाम को वापस घर आ चूका था आज ये घर उसे बिलकुल सुना लगा रहा था जहा उसके अलावा कोई नहीं था..
वो अपने कमरे मे जाकर अपनी किताबो मे खो गया और 5-6 दिन तक तो जैसे उसे किसी चीज का होश ही नहीं था.. वो फ़ोन पर पदमा से बात करता था जो उसे गुंजन के धीरे धीरे ठीक होने की खबर सुनाकर अपने दिल का हाल भी सुना देती थी.....
सातवे दिन की रात को अंशुल के दिल और लिंग दोनों को पदमा की याद बहुत ज्यादा परेशान करने लगी तो अंशुल बाथरूम की दिवार पर अपनी माँ की याद मे वीर्य के धार छोड़ आया था और अचेत होकर सो गया था.....

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धन्नो काकी

धन्नो के घर मे चन्दन के ब्याह की तेयारी जोर-शोर से चल रही थी घर पुराना मगर बड़ा था.. आगे दरवाजा और दरवाजे के दोनों तरफ दो कमरे... फिर आँगन और आँगन मे बाई तरफ रसोई... आँगन के बाद पीछे एक बड़ा सा कमरा और उस कमरे के पीछे थोड़ी सी जगह, जहा चूल्हे के लिए लकड़िया और बाकी चीज़े रखी थी......
सूट आ गया है..
चन्दन भईया से कह दो एक बार पहन के देख ले.. छोटा बड़ा करवा है तो टाइम से हो जाएगा....
और ढ़ोल-बाजे वाले को भी अच्छे से समझा दिया है.... हलवाई भी समय से आ जाएगा बाकी की सारी तयारी भी हो चुकी है....
अब कोई काम बाकी नहीं रहा काकी....
अंशुल ने धन्नो के घर के आँगन मे बिछी खाट पर बैठते हुए ये सब एक सांस मे धन्नो से कह गया था..
आज सुबह से वो चन्दन के ब्याह की तयारी मे लगा था और दिन के 3 बज गए थे खाने तक की फुर्सत नहीं मिली थी...

धन्नो अपनी पड़ोसन गुल्ली के साथ आंगन मे गेहूं छान रही थी जिसे सब गुल्ली ताई कहते थे..
धन्नो - अरे आशु... वो बाजार मे लल्लू सोनार के यहां बहु के लिए गहने बनवाये थे... वो ले आया?
अंशुल - मुझसे कब लाने के लिए कहा था काकी? वो चन्दन भईया लाने वाले थे?
धन्नो - चन्दन तो शहर चला गया.... कल आएगा...
अंशुल - भूल गया होगा काकी.. तुम ऐसा करो मुझे गहने की पर्ची दे दो मैं बाजार जाकर ले आऊंगा... बाइक पर ज्यादा समय नहीं लगेगा.....
धन्नो - तेरी मोटर तो चन्दन लेकर चला गया.. उसका दोस्त गोपाल भी साथ मे था... और पर्ची भी उसी के पास है... बिना पर्ची वो लल्लू चोर.. कहा तुझे गहने देगा.... और गहने भी आज ही लाने जरुरी है लल्ला.. कल तो टाइम ही नहीं मिलेगा... 2 दिन बाद तो बारात जानी है...
अंशुल - अब क्या करे काकी....
धन्नो - तू ठहर लल्ला.... मैं भी तेरे संग बाजार चलती हूँ....
अंशुल - पर टैम्पो या तूफ़ान से तो वापस आते आते अंधेरा हो जाएगा...
धन्नो - जाना तो पड़ेगा लल्ला.... गुल्ली ताई मैं आशु के साथ बाजार जाती हूँ तुम घर पर ही रुकना...

धन्नो अंशुल के साथ कस्बे के पुराने मोड़ पर बाजार जाने वाले साधन के इंतजार मे खड़ी थी उसके सामने से अभी अभी एक तूफ़ान जीब लोगों से खचाखच भरके वहा से रवाना हुई थी धन्नो और अंशुल दोनों ने देखा था कैसे लोग एक दूसरे के उपर गिर पड़ रहे थे औरतों का तो कहना ही क्या था.. कुछ बेचारी छोटी छोटी जगह मे मर्दो से चिपकी हुई बैठी थी तो कुछ अपने साथ आये मर्दो के साथ उनकी गोद मे बैठी थी.... मज़बूरी मे हर कोई इस बात को नज़र अंदाज़ कर रहा था की इस भीड़ मे कई महिलों और लड़की के निजी अंगों को कुछ मनचले अपने हाथो से छेड़ रहे थे... धन्नो तो पहले से इस तरह आने जाने की आदि थी लेकिन अंशुल को ये सब पसंद नहीं था.. 11 km दूर था बाजार इस कस्बे से और करीब एक घंटे का समय लगता था इस तरफ से एक तरफ के सफर मे....

धन्नो - लल्ला बस तो ना आने वाली शांझ तक इसी जाना पड़ेगा....
अंशुल - पर काकी इतनी भीड़ मे कैसे?
धन्नो - लल्ला अब जाना तो पड़ेगा.... और लोग भी तो जा रहे है...
इस बार धन्नो ने ज़िद करके जीभ के अंदर अंशुल को बैठा दिया और खुद उसके पास बैठ गई...
अरे आंटी जी जरा आगे उठ के बैठो अभी तो कई स्वारी आनी बाकी है... कंडक्टर ने धन्नो से कहा तो धन्नो जरा सी उठकर अंशुल की दायी जांघ पर खिसक कर बैठ गई.... अंशुल कुछ ना बोल सका था उसे ऐसे सफर करने की जरा भी आदत नहीं थी.. देखते ही देखते कुछ मिनटों मे खचाखच जीब भर गयी और कई लड़किया और महिलाये सीट पर बैठे आदमियों की गोद मे बैठे गई थी...
अंशुल को सब कुछ अजीब लगा रहा था पूरी तरह से पैक होकर जीभ चल पड़ी थी और साथ की छेड़खानी भी शुरु हो चुकी थी.... जीब के चलते ही सडक के एक खड्डे मे गाडी का टायर पड़ा तो सब उछल पड़े.. धन्नो पर उछल कर अब सीधे अंशुल की जांघ से उसकी गोद मे आ गिरी थी..
अंशुल तो जैसे शर्मा ही गया था.. धन्नो को अब थोड़ा आराम महसूस हो रहा था की वो अब ठीक से अंशुल की गोद मे बैठ गई थी और उसे इस बात से जरा भी फर्क नहीं पड़ रहा था.... गाडी कजच पांच साथ मिनट चली होगी की उबड़ खाबड़ रास्ते की हलचल और झटको से धन्नो अंशुल की गोद मे बार बार उछलने लगी थी जिससे अंशुल बहुत अनकन्फ्टेबल हो रहा था और उसका लिंग धन्नो काकी की उछलती हुई गद्देदार गांड का स्पर्श पाकर पेंट मे ही सख्त हो चला था जिसे अब धन्नो आसानी से महसूस कर रही थी...
धन्नो ने खुदको ढीला छोड़ दिया था जिससे उसकी पीठ अंशुल के सीने से चिपक गई थी और दोनों के गाल आपस मे रगड़ खा रहे थे..
धन्नो के पूरी तरह विकसित स्तन कच्चे रास्ते पर गाडी की चाल से ऊपर नीचे हिल रहे थे जिसे धन्नो ने अपनी गोद मे रखे छोटे से बेग और अपनी साडी के पल्लू की मदद से सबसे छुपा रखा मगर अंशुल की आँखों के सामने ये नज़ारा बिलकुल साफ साफ चल रहा था जिसे धन्नो जानती थी बार बार अपनी आँखों से अंशुल की आँखों की तरफ देख रही थी...
अंशुल बार बार धन्नो की आँखों से पकड़ा जाता और नज़र घुमा लेता.. धन्नो को अंशुल का इस तरह शर्मा अद्भुत सुख दे रहा था जिसे धन्नो ही सुना सकती थी धन्नो विधवा थी और बहुत सालो से उसे देह का सुख नहीं मिला था मगर आज अंशुल का चुबता लिंग और छुप छुप के उसके हिलते स्तन देखना उसे औरत होने का अहसास करवाने के साथ ही अकल्पनीय कामसुख के सागर मे डूबा रहा था....
घंटेभर इसी तरह दोनों ने एक दूसरे के साथ चिपके हुए सफर किया फिर जीब बाजार आकर्षित रुक गई...
धन्नो तो झट से अंशुल की गोद से नीचे उतर गई मगर अंशुल को अपनी पेंट सँभालने मे समय लगा गया था जिसे धन्नो ने बड़े मज़े लेते हुए देखा था....
जीब से उतरने के बाद दोनों ही एक दूसरे से बात करने से बच रहे थे और चुपचाप साथ साथ चल रहे थे.. सोनार ने गहने देते देते सांझ कर दी थी दोनों को अब बाजार मे ही शाम हो गई थी अंधेरा भी होने लगा था...
वापस कस्बे के लिए स्टैंड पर खड़े अंशुल और धन्नो के मन मे बस से जाने की ज़रा भी इच्छा नहीं थी वो उसी तरह जाना चाहते थे जैसे आये पर कौन अपने दिल की बात कहे?
बस आई तो अंशुल एक हाथ मे सामान का बेग पकडे दूसरे हाथ मे धन्नो काकी का हाथ पकड़ कर बस मे चढ़ गया.... दोनों के चेहरे उतरे हुए थे... वो दोनों ही बस से वापस जाना नहीं चाहते थे मगर जा रहे थे...
कंडक्टर - सिर्फ मीरपुर वाले ही चढ़ना.... सिर्फ मीरपुर वाले ही चढ़ना... सिर्फ मीरपुर...
किसी ने कहा - अरे ***** नहीं जायेगी क्या?
कंडक्टर - नहीं..... सिर्फ मीरपुर.....
अंशुल और धन्नो के दिल मे जैसे ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी थी...
दोनों वापस बस से नीचे उतर गए थे और पीछे खचाखच भरी जीभ की तरफ चले गए.....
आ जाओ बहन जी... पूरी खाली है.. कहते हुए जीब के ड्राइवर ने धन्नो को पीछे आखिर बची सीट पर बैठने के लिए कहा...
जीभ पहले से भरी हुई थी मगर थोड़ी सी जगह बाकी रह गई थी जिसमे एक शख्स सिकुड़कर बैठ सकता था...
बहनजी इससे खाली नहीं मिलेगी... आज की आखिर जीब है इसके बाद कोई साधन नहीं है...
इस बार अंशुल बिना कुछ कहे या पूछे उस जगह बैठ गया और उसके बाद धन्नो अंशुल की गोद मे आ बैठी और कंडक्टर ने जीब का दरवाजा पीछे से बंद कर दिया... अंधेरा हो चूका था उसपर जीब के चलने के बाद गाडी की लाइट भी बंद कर दी गई थी....
इस बार अंशुल ने शुरुआत मे ठीक से धन्नो को अपनी गोद मे बैठा लिया और अँधेरे का फ़ायदा भी उसे मिला था.. धन्नो ने वापस अपने को ढीला छोड़ दिया था जिससे उसकी पीठ वापस अंशुल के सीने से जा मिली थी और दोनों के गाल आपस मे टकरा रहे थे इस बार धन्नो के हिलते मादक स्तन केवल अंशुल ही देख सकता था और देख रहा था जिसपर धन्नो अब कुछ नहीं कर रही थी ना ही उसे देखकर शर्मिंदा कर रही थी....
कहते है बड़े बड़े साधु महात्मा का ध्यान और ईमान औरत के कारण भंग हुआ था तो अंशुल तो फिर भी एक साधारण नौजवान लड़का था जिसमे काम की पीपासा भरपूर थी तो वो कैसे इस आकर्षण से बच सकता था? 15-20 मिनट के सफर के बाद अंशुल को महसूस हुआ की उसने अपनी गोद मे बैठी धन्नो काकी के पल्लू के अंदर अपना हाथ डाला हुआ है और उसकी उंगलियां अपने आप धन्नो के स्तन पर अपना दबाब बना रही है जिसपर धन्नो की तरफ से उसे कोई आपत्ति महसूस नहीं हो रही थी थी....
कई दिनों से बिना सम्भोग के अंशुल का मन विचलित हो रहा था और ऊपर से आज धन्नो जैसी आकर्षक उभरो वाली महिला का उसके गोदमें होना उसकी काम इच्छा को और प्रबल बना दिया था...

अंशुल काम की वासना मे बहक गया और अपने दोनों हाथो को धन्नो की साडी के पल्लू के अन्दर डालकर अपने हाथो के दोनों पंजो से धन्नो के ऊपर नीचे हिलते हुए स्तनों को अपनी गिरफ्त मे लेकर एक बार जोर से मसल दिया...
धन्नो ने बिलकुल धीमी आवाज़ मे अंशुल के काम मे कहा - आशु आहिस्ता........
धन्नो के मुँह से सिर्फ ये दो लफ्ज सुनकर अंशुल का सारा डर छुमंतर हो गया और वो अपने हाथो से धन्नो के स्तन को महसूस करने लगा जिससे धन्नो को भी काम के सागर मे आना पड़ गया और अंशुल के साथ इस सफर का मज़ा लेना पड़ा.....
अंशुल ने अब तक धन्नो की गर्दन पर दर्जनों चुम्बन कर डाले थे और उसके हाथ धन्नो की छाती पर उभार के ऊपर निप्पल्स को छेड़ रहे थे...
धन्नो आज सालों बात जो सुख अनुभव कररही थी उसमे डूब चुकी थी उसने अंशुल की अब तक रोकना तो छोड़ कुछ बोला तक नहीं था....
काकी बेग थोड़ा आगे करो.... अंशुल ने कहा तो उसके इरादों से अनजान धन्नो ने उसके कहे अनुसार अपनी गोद मे रखा बेग थोड़ा आगे सरका लिया...
अंशुल अपना दाया हाथ धन्नो के स्तन से नीचे लाते हुए धन्नो की नाभि का रास्ता तय करके हलकी सी साडी ढीली करता हुआ उसकी बुर तक ले आया मानो धन्नो की बुर महसूस करना चाहता हो...

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अपनी बुर पर अंशुल का हाथ महसूस करके धन्नो पूरी तरह बहक चुकी थी उसने मादक निगाहो मे अंशुल की आँखों मे देखा तो जहाँ कुछ देर पहले शर्म थी वहा अब बेशर्मी झलक रही थी..
अंशुल की मुठी मे धन्नो की बालों से घिरी काली बुर थी जिसे अंशुल प्यार से सहला रहा था और अब बुर के मुहने पर अपनी मिडिल फिंगर रखकर अंदर डालने लगा था....
धन्नो तो जैसे जन्नत मे पहुंच गई थी इतनी भीड़ मे भी उसे वो सुख मिल रहा था जो उसे कभी बंद दरवाजे के भीतर नहीं मिल पाया था..
अपनी उंगलियां अंदर बाहर करते करते अंशुल ने धन्नो की बुर पूरी तरह गीली कर दी थी और कुछ देर बाद तो एक जोर की सुनामी अंशुल ने अपने हाथ पर महसूस की थी शायद धन्नो झड़ चुकी थी...
धन्नो को यक़ीन नहीं हो रहा था जो उसके साथ हुआ था वो सच था.... बचपन मे उसकी गोद मे खेलने वाला आशु आज उसे अपनी गोद मे खिला रहा था और इतना आंनद दे रहा था जितना उसे कभी नहीं मिला था.....
अंशुल को जब लगा की धन्नो झड़ चुकी है वो उसकी साडी से अपना हाथ साफ करता हुआ अपने आप को कण्ट्रोल करने लगा.. जैसे खुदको कुछ समझा रहा हो...

अब कुछ मिनटों का ही सफर बाकी थी रात भी हो चुकी थी... जब गाडी गाँव के मोड़ पर रुकी तो दोनों साथ मे नीचे उतर गया...अब धन्नो को लाज आ रही थी और वो अंशुल से नजर तक नहीं मिला पा रही थी... दोनों के कदम अपने आप घर की तरफ बढ़ गए.. दोनों बिना कुछ बोले धन्नो के घर तक आ गए अंशुल ने बिना कोई बात किये बेग धन्नो को दे दिया और अपने घर की तरफ चला गया....
धन्नो ने भी बेग लेकर घर का दरवाजा बंद कर लिया...

आधे घंटे बाद अंशुल को घर के दरवाजे पर दस्तक महसूस हुई तो अपने कमरे से निकलकर बाहर आ गया.. अंशुल इस वख्त 2-3 पेग शराब पी चूका था ओर हलके सुरूर मै था... दरवाजा खोलकर देखा... बाहर धन्नो हाथो मे खाने का बर्तन लिए खड़ी थी... जो अंशुल के दरवाजा खोलने पर बिना बोले अंदर आ गई थी.. अंशुल ने दरवाजा लगा दिया और धन्नो जब खाना रखकर वापस जाने लगी तो उसका हाथ पकड़ कर अपनी बाहों मे खींच लिया......

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करीब एक घंटे बाद अंशुल अपने घर की रसोई मे खड़ा हुआ था उसके हाथ मे धन्नो के बनाये खाने की एक कोर थी जिसे उसने अभी अभी अपने मुँह मे डाला था और अपनी उंगलियों को चाटते हुए खाने का स्वाद ले रहा था..... रात के नो बज चुके थे और अब तक क़स्बा पूरी तरह शांत हो चूका था शहर की चहल पहल से दूर इस कस्बे मे शाम होते होते लोग घर मे चले जाते थे और रात के नो - दस बजे यूँ लगता था जैसे आधी रात हो चुकी हो.......

अंशुल एक के बाद एक निवाला अपने मुँह मे डाल कर खा रहा था वहीं धन्नो अंशुल के आगे अपने घुटनो पर बैठी हुई थी.. कमर से ऊपर उसके बदन पर अब एक भी कपड़ा नहीं रह गया था उसके विशाल स्तन उसकी छाती पर आम की भाती लटक रहे थे मानो सामने वाले को चूसने का निमंत्रण दे रहे हो.. धन्नो के दोनों हाथों मे अंशुल का भीमाकार लिंग था जो अपनी पूरी औकात मे आकाश की ओर अपना मुँह करके अपनी ताकत का परिचय सामने बैठी धन्नो को दे रहा था.. अंशुल ने खाना ख़त्म किया ही था की धन्नो ने लिंग पर अपने होंठों की चुम्बनवर्षा प्रारभ कर दी ओर फिर अंशुल के साफ-सुथरे मोटे-लम्बे लिंग को अपने मुँह मे भरकर किसी भूखी-प्यासी कुतिया की तरह अपने मुखमैथुन से आनंदित करने लगी......

अंशुल की आँखों के सामने धन्नो का ये रूप दोनों के बीच कामुकता ओर मादकता भर रहा था.... 10-15 मिनट बाद ही अंशुल ने धन्नो के दिए मुखमैथुन से उत्तेजित होकर धन्नो के मुँह मै अपने गाड़े वीर्य की धार छोड़ दी जिसे धन्नो ने प्रसाद की तरह ग्रहण करते हुए अपने गले से तुरंत नीचे उतार लिया और अंशुल के चेहरे को देखकर मुस्कुराने लगी मानो अभी अभी उससे मिले प्रसाद के लिए धन्यवाद कह रही हो.......

अंशुल का रूम अंदर से बंद था और रात के ग्यारह बज चुके थे.... धन्नो के बदन पर अब एक भी कपड़ा नहीं रह गया था और अंशुल भी अपनी कुदरती अवस्था मै आ चूका था.. अंशुल की स्टडी टेबल पर धन्नो अपने दोनों हाथ आगे करके झुकी हुई थी और उसकी भारी भरकम चूचियाँ टेबल की चिकनी प्लाई पर आगे पीछे फिसल रही थी... अंशुल धन्नो के बिलकुल पीछे खड़ा हुआ अपने सीधे हाथ से धन्नो के लम्बे-काले बाल जिनमे कुछ कुछ जगह सफ़ेदी भी थी पकड रखा था और अपने उलटे हाथ से धन्नो की कमर पकडकर बार-बार अपने लिंग का हिला देने वाला प्रहार धन्नो की बुर पर कर रहा था जिससे धन्नो काम के अथाह सागर मै डूबी हुई सिस्कारिया ले रही थी जिससे पूरा माहौल कामाधिन हो चूका था.....

रात के साढ़े बारह बजते-बजते धन्नो ने अंशुल के लिंग पर से अपनी बुर कुटाई के बाद वीर्य से भरा कंडोम उतार लिया था और अभी अभी वापस झड़कर पहले की तरह अपने घुटनो पर आ गई थी और अंशुल के लिंग को अपने मुँह मै वापस भर लिया था.. अंशुल ने एक सिगरेट जला ली और कश लेते हुए कामुक निगाहों से धन्नो को देख रहा था की कैसे धन्नो पूरी मेहनत के साथ उसके लिंग को सुख देने मै लगी थी.. धन्नो मुखमैथुन के बीच बीच मै अपनी आँखे ऊपर करके बार बार अंशुल की आँखों मै देखकर मुस्कुरा रही थी और बदले मै अंशुल भी सिगरेट के कश लेता हुआ मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था....

अंशुन ने सिगरेट ख़त्म होने पर धन्नो का हाथ पकड़कर उसके मुँह से अपना लिंग निकाल लिया और उसे खड़ा करके दिवार से चिपका दिया जिसके बाद अपने एक हाथ से धन्नो की जांघ पकड़कर उसका पैर उठाते हुए अपने लिंग को उसकी बुर मै डालने लगा....
लल्ला..... गुब्बारा तो लगा ले....
मैं संभाल लूंगा काकी....
इतनी सी बात चित के बाद धन्नो की काली बुर पर अंशुल के लिंग की थाप से पूरा कमरा गुजने लगा.....

एक के बाद एक कई बार धन्नो झड़ चुकी थी लेकिन इस बार अंशुल का स्खलन नहीं हुआ था, रात के डेढ़ बज चुके थे और धन्नो अंशुल के बिस्तर पर लेटी हुई अब तक अंशुल से अपनी बुर कुटाई करवा रही थी और अंशुल धन्नो का कामुक चेहरा देखकर उसे भोग रहा था लेकिन उसके मन मै अब वो उत्तेजना नहीं आ रही थी..... उसे अब तक मालूम हो चूका था की धन्नो के प्रति उसका केवल आकर्षण ही था जो एक बार मै ख़त्म हो चूका था......

आह्ह.... लल्ला.... कब से कर रहा है....
निकलता क्यूँ नहीं है तेरा? अह्ह्ह्ह....
मेरी हालत ख़राब हो रही है....
हाय.... अब तो जलन भी होने लगी है.....
लल्ला... ला.... मुँह से ही निकाल देती हूँ तेरा.....

बस थोड़ी देर काकी.....
अभी निकाल दूंगा....
ये कहते हुए अंशुल ने अपनी आँखे धन्नो के चेहरे से हटा कर कमरे की दिवार पर लगी अपनी माँ पदमा देवी की बड़ी सी तस्वीर पर जमा ली....
अपनी माँ पदमा की तस्वीर देखते हुए अंशुल कामुकता और प्रेम से भर गया और जोर जोर से धन्नो की बुर कुटाई करने लेगा जिससे कुछ ही मिनटों मै अंशुल झड़ने की कगार पर आ गया... जब अंशुल झड़ने वाला था तो उसने अपना लिंग धन्नो की तहस नहस होकर बर्बाद हो चुकी बुर से निकाल कर सीधा धन्नो के मुँह मै दे दिया और अपना सारा वीर्य 8-10 धार मै प्रवाहित कर दिया जिसे धन्नो ने बड़ी सहजता से ग्रहण कर पी लिया....

सुबह के चार बज चुके थे अंशुल अपने बिस्तर पर दिवार से अपनी पीठ से लगाए दिवार का सहारा लेकर पैर फैलाये बैठा था और उसकी गोद मै धन्नो काकी अपनी बुर मै उसका लिंग लिए उसकी ओर मुँह किये बैठी उसे चुम रही थी दोनों ने अब तक कपडे नहीं पहने थे और ज्यादा बात भी नहीं की थी, सोने की कोशिश की थी मगर नींद दोनों की आँखों मै नहीं थी अंशुल सिगरेट के कश लगा रहा और धन्नो अंशुल को उसके बचपन के किस्से सुना कर बच्चों की जैसे हंस रही थी..
धन्नो ने रातभर अंशुल के होंठो को इतना चूमा था की उसके होंठ कुछ सूजे लग रहे थे.....
कुछ देर बाद फिर से अंशुल की गुजारिश पर धन्नो ख़ुशी से अपनी बुर देने को राज़ी हो गई तो इस बार भी अंशुल ने पदमा की तस्वीर देखते हुए अपनी आगे घोड़ी बनी धन्नो काकी को अपनी माँ पदमा सोचकर उसकी स्वारी की और पांच बजते बजते उसे अपने वीर्य का दान किया...

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तू तो बिलकुल घोड़ा हो गया है लल्ला....
पदमा से कहकर जल्दी ही तेरे लिए भी एक सुन्दर सी लड़की देखनी पड़ेगी जो तेरा ख्याल रख सके....
जल्दी ही तेरा भी ब्याह करना पड़ेगा....
अब छोड़ भी दे लल्ला... कोनसा इनमे दूध आता है जो तू बच्चों की तरस चूची चूस रहा है...
अब जाने दे वरना कोई देख लेगा तो फिर जवाब देते ना बनेगा दोनों से....
चल छोड़ मुझे..... प्यार से हँसते हुए धन्नो से अंशुल से कहा...
काकी एक बात पुछु सच सच बताओगी?
पूछ....
तुम चन्दन भईया ओर मुझमे ज्यादा प्यार किसे करती हो?
कोई माँ अपने बच्चों मै फर्क कर सकती है भला... जैसे मेरे लिए चन्दन है वैसे ही तू है... मैं तुम दोनों को जन्म नहीं दिया तो क्या हुआ? प्यार तो अपना मानकर किया है....
काकी हमारे बीच जो हुआ किसीको बताओगी तो नहीं?
अरे पागल हो गया है क्या लल्ला? तू भी किसी से इस बारे मै जिक्र ना करना.... अच्छा अब छोड़ मेरी चूची.... जाने दे....

धन्नो ओर अंशुल घर के बाहरी दरवाजे पर खड़े थे जो अंदर से बंद था सुबह साढ़े पांच होने वाले थे दोनों ने एक दूसरे को अभी चूमने शुरु ही किया था मानो दोनों एकदूसरे को गुड बाय किस दे रहे हो जब किस टूटी तो अंशुल ने कहा - काकी मैं जानता हूँ मैंने आपके साथ जो कुछ किया वो सही नहीं है पर मैं वासना में बहक चूका था.. मुझपर अपना कोई इख़्तियार नहीं था...
धन्नो - लल्ला.... छोड़ इन सब बातों को... गलती तो हम दोनों ने की है.... इसमें तेरे अकेले का कसूर कैसे हुआ भला? मुझे ही हमारी उम्र ओर रिश्ते का लिहाज़ करना चाहिए था... मगर तू चिंता मत कर.. मैं इस बारे में किसी से कोई बात नहीं करुँगी ओर ना ही तू करना.. मैं अब भी तेरी पहले वाली धन्नो काकी हूँ....
अंशुल की आंख में आंसू थे वो बोला - काकी.. आप बहुत अच्छी हो..
ये कहते हुए अंशुल ने एक बार फिरसे धन्नो को अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठ चूमकर बाहर का दरवाजा खोल दिया...
धन्नो अपने चेहरे पर मुस्कुहाट और दिल में नया अहसास और बदन में नई ऊर्जा लेकर इस भोर में अपने घर आ गई... आज उसकी आँखों में नींद नहीं थी और उसे अपनेआप में तरोंताज़गी महसूस हो रही थी पहले जहाँ वो कुछ थकी हुई सी महसूस करती थी वही अब उसे ऐसा कुछ महसूस नहीं हो रहा था...


समय अपने हिसाब से गुजरा और बारात जाने का दिन भी आ गया, धन्नो के घर में मेहमानों का ताँता लगा हुआ था.....
अरे आशु भईया... चन्दर भईया कहा है? फ़ोन भी बंद है उनका...
मुझे क्या पत्ता? भोर में खेत की ओर निकले थे तब से मैंने नहीं था....
वो हज़ाम कब से बैठा इंतजार कर है उसे अपनी दूकान भी जाना है उसे आप जाकर एक बार देख लो खेत में हो तो बुला लाना....
तू खुद क्यूँ नहीं चला जाता? यहां बस आराम करने आया है? हाथी कहीं का....
अरे हमारे पैर में मोच है आशु भईया.... वरना आप तो जानते हो हम कितने फुर्तीले है.. कहने से पहले काम कर देंते है...
हां हां.. देखी है तुम्हारी फुर्तीली.... चार कदम चलने में पैर जवाब दे जाते है....
जाकर बुला ला ना लल्ला... ये तो है ही कामचोर....
धन्नो ने अपने हाथो से गुड़ के 2-3 छोटे छोटे दाने अंशुल के मुँह में डालकर कहा...
हम कामचोर नहीं है काकी.... हमें कामचोर मत कहो.. कल हमने ही आँगन और छत पर तंबू बंधवाया था सुरपाल के लड़को से....
बता तो ऐसे रहा है जैसे तूने ही बाँधा हो....
तुम भी काकी किसके साथ बहस करने बैठ गई, इस ढ़ोल के बारे में तो सब जानते है..
ढ़ोल नहीं है हम.. हमारा नाम रमेश है रमेश... आशु भईया के पास तो मोटर है.. उन्हें खेत जाकर आने में कितना समय लगेगा? हम यहां और काम संभाल लेंगे है...
धन्नो और अंशुल 17-18 साल के उस भैंस की तरह मोटे देखने वाले लड़के रमेश की बात सुनकर एकदूसरे की तरफ देखते हुए हंसने लगे.. रमेश पड़ोस में ही रहने वाली सुरीली चाची का लड़का था जो एक नम्बर का आलसी और कामचोर था खाने और मुहजोरी करने के अलावा कोई ओर काम नहीं था रमेश को....
अंशुल अपनी बाइक लेकर चन्दन को बुलाने खेत की तरफ निकल गया और खेत के किनारे बाइक रोककर पक चुकी लहलाहती फसलो के बीच बनी पगदंडी से होता हुआ खेत के अंदर चला गया......

आज तो तेरा ब्याह हो जाएगा चन्दन....
दुल्हन आने के बाद भूल तो नहीं जाएगा मुझे?
कैसे भूल सकता हूँ? तुमने कितना ख्याल रखा है मेरा.. तुम नहीं होती तो मुझे कौन संभालता? ब्याह के बाद में मैं तुमसे मिलना नहीं छोड़ सकूंगा...
ये सब कहने की बात है मैंने सुना है तेरी दुल्हन रूपवाली है उसके आगे मेरी देह कहा याद रह जायेगी तुझे चन्दन....
ऐसी बात मत करो.... वादा करता हूँ ब्याह के बाद भी आपसे मिलने आऊंगा...
कभी कभार सही चन्दन.. अगर तुम आओगे तो मुझे आराम रहेगा........ (कोई आहट सुनकर) लगता है कोई आ रहा है.... अब हमें चलना चाहिए चन्दन तुम्हारा ब्याह है.... कोई इस तरफ तुम्हे ही ढूंढ़ने आया होगा...
हां सुबह आशु ने मुझे इस तरफ आते देखा था.... ठीक है... मैं पीछे से घर निकल जाता हूँ तुम बसंत के खेतो से जली जाओ....
ठीक है चन्दन...... कहते हुए उस चालिस पार कर चुकी देहाती महिला ने जिसका रूप अब तक उसके साथ था चन्दन को आखिरी चुम्बन देकर भेज दिया ओर खुद भी फसलो के बीच बनी इस छोटी सी जगह से निकल कर बाहर पड़ोस के खेत की तरफ चली गई जहा से गुजरते हुए आशु ने उसे देख लिया...

अरे चाची..... ओ सुरीली चाची.... चिल्लाते हुए आशु ने उस औरतों को पुकारा... एक दो बार तो सुरुली ने ध्यान नहीं दिया पर आशु जब करीब आकर जोर से बोला तो उसका ध्यान आशु की तरफ गया...

अरे लल्ला.... तू यहां क्या कर रहा है?
चन्दन भईया को ढूंढने आया था चाची.... और तुम मिल गई... चन्दन भईया को देखा तुमने?
नहीं लल्ला.... वो यहां कहा होगा? घर पर नहीं है? आज तो ब्याह है उसका....
हां चाची.... अच्छा... घर जा रही हो?
हां लल्ला....
चलो मैं छोड़ देता हूँ.... मैं भी वापस घर ही जा रहा हूँ....
मैं चली जाउंगी लल्ला.... तुम रहने दिओ...
अरे चाची कहा 2 कोस पैदल चलकर पैरों को दुख दोगी... आओ मैं छोड़ दूंगा...
ठीक है लल्ला.... चल....
कहते हुए सुरुली ने जैसे अंशुल के साथ कदम बढ़ाया उसका मुड़ गया...
हाय दइया..... आह्ह....
क्या हुआ चाची....
मेरा पैर....
अंशुल पैर देखकर - मोच आई लगता है चाची.... देखकर चलना भी भूल गयी हो तुम तो... लगता है उम्र हो गई है तुम्हारी.... इतना कहकर धीरे से हँसता हुआ अंशुल सुरीली के साथ मसखरी करता है..
लल्ला क्या मसखरी कर रहा है मेरे साथ.. ला हाथ दे..
सुरीली अंशुल का हाथ पकड़ कर खड़ी होती है मगर चलने में उसे बहुत दर्द हो रहा था....
बहुत दर्द हो रहा है लल्ला.... मैं तो मर ही गई आज....
आशु सुरीली का हाथ छोड़कर अपने दोनों हाथो से उसे अपनी गोद में उठा लेता है...
चिंता मत करो चाची मैं हूँ ना.....
अरे आशु.... छोड़.... लल्ला... कोई देख लेगा..... छोड़...
कोई नहीं है चाची तुम फालतू डरती हो... चलो सडक तक की बात है... कहता हुआ अंशुल सुरीली को गोद में लिए खेत की पगदंडियो से होता हुआ अपनी बाइक की तरफ चल देता है...
लल्ला..... तेरे हाथ में दर्द होगा...
कहा चाची? बच्चों सा वजन है तुमने... लगता है खाना नहीं खाती हो...

जिसके जीवन में सुनापन हो उसके जीवन में दो मीठे बोल बोलने वाले की कद्र भगवान से कहीं अधिक होने लगती है सुरीली के साथ भी वैसा ही था घर पर पति बब्बन का तो उसे कोई सहारा ही ना था और संतान भी उसके साथ कुछ पल बैठने की फुर्सत नहीं निकाल पाती थी आस पड़ोस में औरतों का अलग समूह था मुश्किल से धन्नो कुछ देर बात करती थी तो उसे चैन पड़ता था चन्दन और सुरीली का सम्बन्ध भी वहीं से जुड़ा था..... चन्दन ने दो मीठे बोल क्या सुरीली से कहे सुरीली ने तो उसे अपना मान लिया आज कुछ ऐसा ही आशु के लिए उसे लग रहा था.. आशु चन्दन से दो बरस छोटा है दिखने में कहीं अधिक सुन्दर साजिला और सम्पन है देह भी चन्दन से ज्यादा गठिली और मजबूत लगती है उसका आकर्षण मनमोहक था सुरीली जैसे नहीं उसके लिए अपने दिल के द्वार खोलती?

लल्ला..... तू घर से नज़र का टिका लगाकर के निकला कर.... कहीं किसी की नज़र लगी तो सब चौपट हो जाएगा....
चाची अब तुम भी मसखरी करने लगी...
अरे सच कह रही हूँ लल्ला.... कहीं तेरे इस चाँद से मुखड़े को मेरी ही ना लगा जाए...
अंशुल हसता हुआ- तुम तो मुझे ही छेड़ने लगी चाची... लगता है चाचा ठीक से ख्याल नहीं रखते...
चाचा ख्याल नहीं रखते तो तू कहे नहीं रख लेता अपनी चाची का ख्याल? बोल लल्ला....
मैं कहा ख्याल रख सकता हूँ चाची.... मैं तो बच्चा हूँ आपका... चलो पीछे बैठो.... जरा संभाल कर पैर में ना लगा जाए.....
अब तू दूध पीता बच्चा थोड़ी ही है लल्ला.... खैर छोड़... कभी अगर अपनी इस सुरीली चाची से मिलने का मन हो तो घर आ जाना.... कोई परहेज न रखूंगी लल्ला...
ठीक है चाची.... लो तुम्हारा घर भी आ गया... मैं धन्नो काकी के पास जाता हूँ देखता हूँ चन्दन भईया आये या नहीं...
वो तो घर पहुंच गया होगा लल्ला....
तुमको कैसे पत्ता चाची? तुम कोई ज्योतिषी हो...
अरे आज ब्याह है उसका....
चलो चाची....
सुरीली को छोड़कर अंशुल जब धन्नो के पास आया तो चन्दन अपनी हज़ामत बनवा रहा था और धन्नो आँगन मैं बैठकर गीत गा रही महिलों के साथ बैठकर चाय पी रही थी...
देखते ही देखते दोपहर ढल चुकी थी और बारात के जाने का वखत हो चूका था.....
अरे भाई गोपाल अब और कितना समय लगेगा बबलू को आने में?
पत्ता नहीं चन्दन.... वो साला है ही चुटिया आदमी... सुबह के लिए कहा था अब तक नहीं आया... कह रहा है रास्ते में है...
बबलू चन्दन का सूट फिटिंग करने के लिए लेकर गया था जिसे अब तक आ जाना चाहिए था लेकिन किन्ही कारणों से अब तक नहीं आया था...
गोपाल तुम ऐसा करो चन्दन भईया के साथ बारात लेकर निकालो... ज्यादा लेट करना ठीक नहीं रहेगा...
बबलू के आते ही मैं सामान लेकर आ जाऊंगा...
अंशुल ने कहा तो धन्नो और गोपाल ने अपनी हामी भरदी जिससे सभी बाराती एक पुरानी बस में कचरे की तरह भरके दूल्हे की कार के पीछे पीछे हुसेनीपुर की तरफ रवाना हो गए थे...

शाम का समय हो गया था और बबलू अब जाकर कहीं आया था....
अरे वनराकस.... कहा मर गया था.. पत्ता नहीं था आज बारात जानी है... तू दर्जी है भी या नहीं?
अरे काकी आज ज्यादा काम था और दूकान पर मैं अकेला इसलिए आते आते देर हो गई... वैसे भी कल सुबह विदाई में पहनने वाले है चन्दन भाई इस सूट को.... बारात गई?
वो तो कब की चली गई... तेरे लिए इंतेज़ार थोड़ी करती... ला दे...
धन्नो बबलू से सूट लेकर घर के अंदर चली जाती है जहा कुछ देर पहले मेला लगा हुआ था तो अब सनाटा पसरा हुआ था.... एक दो महिलये अभी भी रह गई थी...
गुल्ली ताई - धन्नो आ गया बबलू....
धन्नो - हां ताई.... अब आया है मुआ...
गुल्ली ताई - अरे तो जाके आशु को दे दे वो साथ ले जाएगा...
धन्नो - हां ताई बस वही कर रही थी पहले जरा ये आँगन साफ कर लू.. रात को गाँव की सारी महिलाओ का जमघट यही तो लगने वाला है...
गुल्ली ताई - अरे वो तो रात को लगेगा.... तू पहले आशु को सामान दे आ... वो तेरी राह देखता होगा.. मैं भी घर हो आती हूँ..
ठीक है ताई... कहती हुई धन्नो हाथ में सामान लिए अंशुल के घर चली जाती है और दरवाजा खुला था...

आशु आशु.... धन्नो ने अंदर आकर आंगन से आवाज़ दी तो अंशुल अपने कमरे से बोला- काकी ऊपर...
धन्नो अंशुल के कमरे की तरह बढ़ गई और रूम में आकर्षित सामान रखते हुए बोली - लल्ला ले.... इसे लेता हुआ जाना तू भी कहीं भूल ना जाना... कहते हुए धन्नो अंशुल के रूम से जाने लगी तो अंशुल ने धन्नो का हाथ हाथ पकड़ लिया....

छोड़ लल्ला.... तू भी क्या करता है? किसीने देख लिया तो क्या सोचेगा?
कोई नहीं आने वाला काकी.... फ़िक्र मत करो...
ठीक है लल्ला.. पर थोड़ा जल्दी.. तू बहुत समय लगता है....
ठीक है काकी.....

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अंशुल ने धन्नो को बिस्तर पर लिटा कर उसका घाघरा ऊपर सरका दिया और चड्डी उतार फ़ेंकी...
गुब्बारा लगा ले बब्बूआ.....
मैं संभाल लूंगा काकी.. तुम तो जानती हो... कहते हुए धन्नो की बुर में अपने लंड को घुसाकार उसे चोदना शुरू कर दिया...
आह्ह.... लल्ला.... आह्ह.... तनिक आराम से... आह्ह.... आह्ह....
अंशुल अब भी अपने नीचे लेटी धन्नो में अपनी माँ पदमा को तलाश रहा था और कामुकता से धन्नो के बदन को भोग रहा था.... इस बार उसे झड़ने में ज्यादा समय नहीं लगा और 15-20 की चुदाई के बाद धन्नो के मुँह में अपने वीर्य की धार छोड़ दी.... धन्नो के चेहरे पर एक शर्म थी जो अंशुल साफ देख पा रहा था धन्नो अपनी चड्डी पहन कर जाने लगी तो अंशुल बोल पड़ा - बाल मेरे लिए साफ किये है काकी...
धन्नो शर्माती हुई - हट... पागल कहीं का.... अब जा....






Behad garmagarm update he moms_bachha Bro,

Jism ki aag me jalne ke baad koi kaaki taai nahi dikhti

Sirf aur sirf aag bujhane ka sadhan dikhti he.......

Dhanno kaki ka to anshul ne badhiya se band bajaya aur ab to surili ne bhi open invitation de diya he.........

Keep rocking Bro
 
  • Love
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अध्याय 4
लाज़वन्ति का विश्वासघात


बंसी काका ओ बंसी काका....
बारात पुराने टीले तक पहुंच चुकी है रामखिलावन जी ने स्कूल का दरवाजा खुलवा दिया है रामु बता रहा था डेढ़ सो लोग शामिल है बारात मे, रामखिलावन जी आपको बुला रहे थे स्कूल पर बारात के स्वागत सत्कार के लिए.......
ठीक है मैं स्कूल जाता हूँ हरिया तू जरा यहां हलवाई का काम संभाल ले.... जैसे ही नाश्ता त्यार हो प्रमोद और मदन से कहकर सबका नाश्ता स्कूल मे भिजवा देना....
बंसी अपनी पसीने से भीगी हुई कमीज की आस्तीन चढ़ाते हुए हरिया से बोला.....
हरिया - पर काका.. बारात को सीधा यहां खेत मे ही ले आने के लिए कहा है रामखिलावन जी ने... स्कूल पर तो सिर्फ चन्दन बाबू और उसके साथ कुछ उनके मित्रो के ठहरने की व्यवस्था है....
बंसी - अच्छा अच्छा ठीक है.. जैसा वो कहता है कर.. मैं पहले घर हो आता हूँ... सुबह से सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिली है....
हरिया - हा काका... रास्ते मे काकी ने भी कहकर भेजा था आपको घर भेजनें के लिए.... पहले एक बार घर ही चले जाइये...
बंसी हरिया की बात सुनकर गमचे से अपना पसीना पोंछता हुआ खेत से घर की तरफ चल पड़ता है..

आज चन्दन और महिमा का ब्याह है हुसेनीपुर नाम के इस गाँव मे ब्याह की त्यारिया जोर शोर से चल रही है जिसे जो जिम्मेदारी मिली है वो उसे पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाने मे लगा हुआ है.....
बंसी महिमा के पीता है और हरिया बंसी के बड़े भाई का सबसे छोटा लड़का....
रामखिलावन बंसी के बड़े जमाई और महिमा की बड़ी बहन मैना के पति है स्वाभाव से स्वाभिमानी और मेहनती पेशे से अध्यापक, एक एक चीज का सही हिसाब रखना उन्हें अच्छे से आता है पिछले 3 दिन से ब्याह की सारी जिम्मेदारी अपने कंधो पर संभाली है रामखिलावन ने....
गाँव के सरकारी स्कूल मे चन्दन के ठहरने की बात हो या घर के पास खाली पड़े खेत मे तम्बू गाड़कर बरातियों की पेट पूजा का सवाल रामखिलावन ने ही गाँव के सरपंच प्रभाती लाल जी के साथ मिलकर सारी व्यवस्था की थी....

बारात के स्वागत सत्कार के बाद चन्दन और कुछ लोग स्कूल के कमरे मे बिछे गद्दे पर बैठा दिए गए थे उसके सामने गाँव के कुछ लोग बैठे थे पंखा इस गर्मी मे सबको राहत देने का काम कर रहा था.. बाकी बारात को खेत मे किसी भेड़ के झुड की भाति चरने के लिए छोड़ दिया गया था जहाँ ज़मीन पर पंगत लगी हुई थी और एक कोने मे कुछ लोग तम्बू के पीछे से खाने का सामान अंदर ला रहे थे.... बारतियों मे कुछ लोग अपनी हैसियत भूलकर आज बड़ी बड़ी बात कर रहे थे जिनकी चप्पलों मे भी छेड़ था जो आज शराब के नशे खुद को PM CM DM SDM इन सबका रिश्तेदार बता रहे थे और गिनगिन के कभी व्यवस्थाओ मे कमी निकाल रहे थे कभी खाने मे.......

बारात के आने की खबर से गाँव मे हर तरफ ख़ुशी का माहौल था महिमा दुल्हन के लिबास मे आज किसी अप्सरा से कम न लगती थी उसकी चमक के आगे उसके आसपास की सारी लड़किया फिकी नज़र आ रही थी केवल नयना ही थी जो बिना किसी साज श्रंगार के भी महिमा के तुल्य आज लग रही थी....
पर आज नयना का मन उदास था पहला उसकी सखी महिमा उसे छोड़कर जा रही थी वहीं दूसरा उसे पूरी बारात मे आशु कहीं नज़र नहीं आया था उसका उदास चेहरा इस ख़ुशी के माहौल मे दुख मिला रहा था जो किसी को स्वीकार कैसे हो सकता है? उसने अपनी आँखों से देखा था फिर मेघा को भी तो आशु को ढूंढने भेजा था बारात मे.. पर आशु कहीं नहीं था...

हरिया ने प्रमोद और मदन से कहकर नाश्ता स्कूल भिजवा दिया था जिसे रामखिलावन ने चन्दन के सामने रख दिया था आपस मे. लोगों के बीच मानोहर हो रही थी पुराने मज़ेदार प्रसंग निकलकर सामने आ रहे थे और जोरो के ठहाके लग रहे थे पूरा माहौल रमणिये था.....

स्कूल से चन्दन बाबू को दुल्हन के घर की देहलीज़ पर ले आया गया था गिनती के एक या दो लोग चन्दन के साथ बैठे थे वहीं अब तक लगभग सारी बारात खाना खा चुकी थी महिमा चन्दन को देखकर बहुत खुश थी और उसके दिल मे हिलोरे उठ रहे थे वहीं नयना के नयनों से आज आंसू बहने वाले थे जिसे उसने महिमा के सामने रोक रखा था तभी मेघा ने आकर नयना के कान मे कुछ कहा जिसे सुनकर नयना मेघा के साथ महिमा के कमरे से बाहर चली गई....

नयना खेत मे लगे टेंट के अंदर आई तो उसने देखा की अब मुश्किल से कुछ बाराती बैठे खाना खा रहे थे और और एक कोने मे अभिभी इसने सामने अंशुल खाने के लिए बैठा था.... साधारण जीन्स टीशर्ट मे भी वो बहुत आकर्षक और कमाल लगा रहा था, अंशुल को देखकर नयना के आंसू उसकी आँखों से उतर आये मगर इस बार उन्हें ख़ुशी के आंसू कहना सही होगा... नयना अपने आंसू पोंछकर अंशुल के सामने जा बैठी और उसकी आँखों मे देखने लगी...

पूरी बारात मे कहीं नहीं दिखे.....
कहा थे अबतक? मुझसे छुप रहे थे?
इतनी बुरी हूँ मैं की मेरी सूरत भी नहीं देखना चाहते?
पत्ता है कितनी बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी आपका?
अब उठिये यहां से.... मेरे साथ चलिए...

कहते हुए नयना ने अंशुल के सामने से परोसा गया खाना हटा दिया जिसे अभी अंशुल ने हाथ भी नहीं लगाया था और उसका हाथ पकड़ कर वहा से अपने साथ महिमा के घर की तरफ ले गयी जहा उसे नयना और महिमा की सखियों ने ठीक चन्दन के बगल मे बैठा दिया गया.....

अरे कहा गायब हो गया था आशु?
और फ़ोन कहा है तुम्हारा? कब से फ़ोन करवा रहा हूँ.
लग ही नहीं रहा.... सब ठीक है ना...

सब ठीक है भईया.... वो गाडी मे ज़रा आँख लग गई थी तो समय का पत्ता नहीं चला...
अंशुल ने चन्दन की बात का जवाब देते हुए कहा....

चन्दन और उसके साथ पीछे बैठे दोस्तो का गाँव की इन अल्हड़ भोली भाली लड़कियों से हंसी ठिठोली का दौर जारी था कभी एक तरफ से कोई कुछ कहता तो कभी दूसरी तरफ से कोई उसका जवाब देता.. मगर चन्दन के बगल मे बैठे अंशुल का मन कहीं खोया सा था उसे इन सब से कोई लेना देना नहीं था... महिमा और नयना की सखियों ने उससे हंसी मज़ाक़ करना भी चाहा था बदले मे अंशुल की ख़ामोशी ही उन्हें वापस मिली..

अरे हटो हटो.... पीछे हटो.. आगे जाने दो जरा...
अरे कोयल भाभी आप कहा इन लड़कियो के बीच बैठी ठिठोली कर रही है... अंजू जगह दो.... हटो....
चन्दन के सामने बैठी गाँव की लड़कियों को अगल बगल करती महिमा की माँ विद्या चन्दन के सामने आ गई और अपने पीछे आती एक लड़की के हाथो से थाली लेकर चन्दन के आगे रखते हुए बोली.....

माफ़ करना पाहून जी.... भोजन मे तनिक देरी हो गई.. और एक एक करके ब्याह मे बने पकवान चन्दन के सामने विद्या ने परोस दिए.... चन्दन के साथ मे उसको दोस्तों को भी भोजन परोसा गया लेकिन अंशुल की थाली खाली थी जिसे नयना ने अपने हाथो से अभी अभी अंशुल के सामने रखा था और उसी के सामने आ बैठी थी.. जिस मीठे स्वाभाव के साथ विद्या ने अपने जमाई चन्दन को खाना परोसा था उसी के साथ नयना ने भी अंशुल की थाली भोजन से सजाई थी..... इस माहौल मे सब अपना अपना आनंदरस खोज रहे थे और व्यस्त नज़र आ रहे थे....

क्या हुआ?
कहा खोये हो?
अपने हाथो से खा लोगे या हम खिलाये?
नयना ने जब ये बात अंशुल को कहीं तो चन्दन और उसके दोस्तों के साथ साथ नयना के साथ बैठी सभी सखियों जोर से ठहाके मारकर हँसने लगी.... बेचारे अंशुल का चेहरा शर्म से लाल हो चूका था जिसे देखकर नयना को उसकी हालत पर प्यार के साथ तरस दोनों एक साथ आ रहा था..

पाहून जी आपके दोस्त तो कुछ बोलते ही नहीं..
गूंगे है?
एक लड़की ने कहा तो सब वापस जोर से हसने लगे...
इस बार नयना भी मुस्कुराने लगी थी..

क्या हुआ आशु?
कहा खोये हो? अभी भी नींद आ रही है?
खाना ठंडा हो जाएगा.... चन्दन ने कहा....

चन्दन की बात सुनकर आशु ने सामने बैठकर पंखा झलती नयना को देखते हुए खाने की पहली कोर मुँह मे डाली और खाने लगा.... दोनों की नज़र बार बार एक दूसरे से टकरा रही थी और कई सवाल जो एक दूसरे के मन मे थे आपस मे पूछ रही थी और उनके जवाब भी उन्ही आँखों से दिए जा रहे थे.. नयना अपने सपनो के सागर मे फिर से एक बार खो चुकी थी अंशुल का चेहरा उसे उसके दिल की गहराइयों मे बसे प्रेम की अथाह सागर मे ले जा चूका था वहीं अंशुल खाना खाते हुए अपने मन मे चल रहे द्वन्द से लड़ रहा था मानो उसपर कोई ऊपर साया अपना काबू करना चाहता था जिसे उसकी आत्मा ने अब तक उसे छूने से भी रोका हुआ था....

खाने के बाद हाथ धोते हुए चन्दन ने हरिया के कहे अनुसार घर के पिछवाड़े साजे मंडप की और कदम बढ़ा दिए नहा शादी की रस्म पूरी होनी थी....

बंसी जी...
ये एक सो सातवा विवाह करवा रहे है हम....
दूर दूर तक कोई भी दूसरा पंडित हमसे ज्यादा विधि विधान के साथ कोई शुभ कार्य करवा ही नहीं सकता..
अजी इतनी उम्र ऐसे ही थोड़ी ले कर बैठे है....
सरपंच जी.....
आज तक जिसका भी विवाह करवाया है सब के सब ख़ुशी से अपना जीवन निर्वाह कर रहे है...
किसीके भी घर टूटने या कचहरी तक जाने की खबर नहीं सुनी....
आप तो अच्छे से जानते है.......
धोती कुर्ते मे बैठे एक अधेड़ उम्र के पंडित जी अपनी चुटिया को ऊँगली से घुमाते हुए बंसी और प्रभाती लाल से अपनी योग्यता का बखान कर रहे थे....

अरे आओ आओ पाहून जी....
यहां बिराजिये... पंडित जी ये है चन्दन बाबू..
हरिया... अपनी काकी से कह महिमा को भी भेजे....
चन्दन को आता देखकर बंशी ने कहा..

शादी की रस्म शुरु हो चुकी थी वही अंशुल सबकी नज़र बचाकर खेत की तरफ आ चूका था इस बार उसने नयना को भी छका दिया था.. खेत से अब तक पूरी बारात और गाँव के लोग खाना खाकर जा चुके थे और कुछ लोगों ने सुबह लगाए हुए तम्बू अब उखड़ कर एक तरफ कर दिए थे और वहा अब धीमी लाइट की रौशनी ही बची थी जहा चन्दन के साथ खाना खाने के बाद उसका एक दोस्त खड़ा हुआ सिगरेट के कश ले रहा था....

अंशुल के मन मे हलचल थी आज फिर से नयना ने उसके दिल को छुआ था उसे रह रह कर नयना का चेहरा दिखाई दे रहा था और उसकी बातें सुनाई.... अजीब मनोदशा के बीच अंशुल अब तक प्रभाती और उनकी धर्मपत्नी लाज़वन्ति से बचकर ही रहा था जैसे उसमे उनका सामना करने की हिम्मत ही ना हो.. इस बार नयना से भी नज़र बचाने मे कामयाब रहा था कहीं और जाने की जगह नहीं दिखी तो खेत मे आ गया था....

सिगरेट?
चन्दन के दोस्त गोपाल ने अंशुल की तरफ सिगरेट का पैकेट और लाइटर बढ़ाते हुए कहा..
अंशुल सिगरेट कभी कभार.. हफ्ते मे एकआदि बार ही पीता था मगर इस वक़्त उसने बिना कुछ कहे गोपाल के हाथ से वो सब ले लिया और वहीं खड़ा हुआ अपने ख्याल मे रहा...

मैं चन्दन के पास जा रहा हूँ...
जब तुम वापस आओ तो चुपके से मुझे वापस कर देना....

गोपाल ने अंशुल ये बात कहकर अपने कदम बढ़ा दिए.. अंशुल वहीं कहीं एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया काफी देर तक अपनी सोच मे खोया रहा, जहाँ खेत मे कुछ देर पहले मेला सा लगा हुआ था वहा आसपास अब इंसान का मानो निशान तक नहीं था.... अबतक नयना ने अंशुल पत्ता लगा लिया था और वो अकेली ही रात के इस वक़्त खेत की तरफ चली आई थी..
अंशुल ने बहुत देर तक बैठे बैठे जिस दौराहे पर वो था उसीके बारे मे सोच रहा था फिर आखिर मे एक सिगरेट पैकेट निकालकर जला ली और पहला ही कश लिया ही था की नयना पीछे से बोल पड़ी....

शराब का प्रबंध करू या है आपके पास?
अंशुल ने पीछे मुड़कर नयना को देखा तो हाथ से सिगरेट अपने आप नीचे गिर गई...
तुम अकेली इस वक़्त यहां क्या कर रही हो? अंशुल ने पूछा..

जहा आप हो.. वहा मैं क्या करूंगी? आपको लेने आई हूँ... सोना नहीं है? यहां शोर गुल मे तो आपको नींद आने से रही... उस दिन सासु माँ ने बताया था आपको सुकून से सोना पसंद है.. तो मैं आ गई आपको लेने... वैसे तो शादी से पहले दूल्हा अपने ससुराल मे नहीं आता मगर आप को पूरी छूट है.... आप जब चाहे आ जा सकते है... अब खड़े खड़े मेरी शकल क्या देख रहे है... चलिए....

क्या सासुमा? क्या ससुराल? क्या दूल्हा? आधी रात को कोई दौरा पड़ा है तुम्हे? उस दिन देखकर समझ आ गया था पागल हो मगर इतनी बड़ी पागल... आज समझ आया है.. तब से क्या कुछ भी बोले जा रही हो? एक बार की बात समझ नहीं आती तुमको? तेरा मेरा कुछ नहीं हो सकता.... मुझे ना तुममें कोई दिलचस्पी है ना तुम्हारे बाप की दौलत मे.... और तुमसे शादी भी नहीं करना चाहता.. अगहन तक इंतज़ार करने की तुम्हे कोई जरुरत नहीं है.... समझी..

हाय..... कैसे कोई नयना जैसी परी को इतनी दिल को दुःखाने वाली बात कह सकता था.. क्या आशु के दिल मे ज़रा भी रहम नहीं था नयना के लिए? कौन जाने? अंशुल की बात तो जैसे नयना के कानो तक पहुंच कर वापस लौट गई थी उस नादान लड़की पर अंशुल की इतनी कठोर बातों का कोई असर नहीं हुआ था वो वो बस टकटकी लगाए अंशुल के हिलते हुए होंठों को बड़े प्यार देख रही थी.. उसके दिल मे तो था की आगे बढ़ कर अंशुल के लबों को अपने लबों की कोमल और रसदार हाथकड़ी से गिरफ्तार कर ले मगर लोकलाज और उसकी मर्यादा ने उसे अब तक रोका हुआ था..

एक सिगरेट क्या नीचे गिर गई.... उसके लिए इतना गुस्सा? अच्छा पी लो अब कुछ नहीं कहती.... इतना कहकर नयना अंशुल के बिलकुल करीब आ गई और पत्थर पर पड़े सिगरेट के पैकेट और लाइटर को उठाकर अंशुल की हथेली पर रख दिया..

अंशुल ने उसे फेंकते हुए कहा - देख नयना.... मैं कोई मज़ाक़ नहीं कर रहा हूँ.. तू अच्छे से जानती है.. मुझे बक्श दे... तेरा मेरा कुछ नहीं हो सकता..

मुझे मेरी मन्नत पर पूरा भरोसा है....
देखना आप खुद अगहन की पूर्णिमा को मेरे साथ मेरा हाथ पकड़कर जीने मरने की कस्मे खाओगे.... और मुझे अपनी बनाओगे..
फिर देखना मैं कैसे आपकी बातों का गिन गिन के आपसे बदला लेती हूँ......

इस बार अंशुल ने आगे कुछ कहना जरुरी नहीं समझा और वहा से वापस आने के लिए चल दिया.. अंशुल के एक कदम पीछे अपनी ही बात करते करते नयना भी वापस आ रही थी.... नयना की सारी बातें अंशुल के मन मे उतर रही थी लेकिन पदमा के प्रेम मे उसे रोक रखा था अंशुल को नयना का रूप और स्वाभाव भा गया था लेकिन वो चाह कर भी उसे स्वीकार नहीं कर सकता था, बस ऊपरी तौर पर कड़वे बोल बोलकर नयना का दिल दुखाना चाहता था ताकि नयना उसे छोड़ कर किसी भले आदमी से ब्याह कर ले, मगर नयना भी पक्के इश्क़ आजमाइश को समझती थी और जानती थी इश्क़ सब्र और इम्तिहान दोनों मांगता है अपने प्यार को छोड़ देना उसके बस मे नहीं था.....

अब तक विवाह सम्पन हो चूका था.. पंडित जी और रामखिलावन के बीच पैसो को लेकर तीखी नौकजोख चल रही थी....
अरे पंडित जी.. जो रकम तय हुई थी वहीं तो लोगे ना.. ऐसे थोड़ी कुछ भी माँगने लगोगे.... अब जो बात बता रहे हो वो बात पहले बतानी चाहिए थी.. पंडितो की कमी थोड़े ही है हम दूसरा कर लेते..

अरे कौन है ये बीच का बांस? कब से कुछ भी बोले जा रहा है.... आस पास के अस्सी गाँव मे कितना आदर, सम्मान से बुलाते है लोग और मुँह मांगी राशि देते है.... कोई तुम्हारी तरह पंचायत नहीं करता..

पाहून जी... कितना शुभ काम हुआ है अभी वादविवाद करना ठीक नहीं.. जो मांगते है पंडित जी दे दीजिये ना.... महिमा की माँ विद्या ने कहा...
बंशी भी विद्या के साथ मे बोल पड़ा - पाहून जी.. अब छोड़िये अपना गुस्सा.... पंडित जी को विदा कीजिये...

रामखिलावन ना चाहते हुए भी पंडित जी की मांगी गई रकम उन्हें देकर विदा करता है और फिर नाक सिकोड़ता हुआ कहता है - शुभ अवसर है कोई कुछ बोलेगा नहीं यही सोच कर तो अपना मुँह फाड़ते है सबके सब.... चाहे हलवाई वाला हो या टेंट वाला.. चाहे किराने वाला हो या फेरे कराने वाला... शादी को कमाई का धंधा बना रखा है सबने...

रामखिलावन ये कहते बाहर निकलकर छत पर आ गया था जहा अंशुल नयना से किसी तरह हाथ पैर जोड़कर पीछा छुड़ाते हुए एक चार पाई पर लेट गया था.. बड़ी मुश्किल पीछा छोड़ा था नयना ने, और आखिर मे अंशुल से कहा भी था कि सुबह देखती हूँ बच्चू....






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आह्ह.... आह्ह.... आह्ह......
कोई आ जाएगा......
आह्ह.... जमाई जी..... छोड़िये..... आह्ह....

सवेरे सवेरे खेत के दूसरी तरफ स्कूल में जब महिमा की माँ विद्या रात को छोटे जमाई चन्दन का स्वागत करके वापस घर गई थी तब विद्या स्कूल में अपना कोई सामान भूल गयी थी... आज इतवार था स्कूल बंद था कोई भी नहीं दिखाई पड़ता था रामखिलावन सरपंच प्रभाती जी से ताला लेकर स्कूल बंद करने आया था वहीं विद्या उसे मिल गई थी......
रामखिलावन ने जिस गद्दे पर रात में चन्दन बैठा था उसी गद्दे पर विद्या को अपने नीचे लेटा लिया था और भोग रहा था.... दरवाजा बंद था और खिड़की भी बंद.... पिछली बार 3 महीने पहले जब वो यहां आया था तब उसका और विद्या का सम्बन्ध बना था....

क्यों चिंता करती हो विद्या...... इतनी सुबह कोई नहीं आएगा.... ठीक से मुँह खोलो.... हां.... आह्ह... तुम सच में कमाल हो विद्या.... ऐसे ही चुसो... हां...
आह्ह..... जमाई जी..... छोड़िये ना.... कोई देख लेगा...
कितने दिनों बाद आज मौका मिला है विद्या.... कैसे छोड़ दू? कोई नहीं आने वाला....
जमाई जी..... आह्ह......
सच कहु तो विद्या मैना से शादी मैंने तुम्हारे लिए ही की थी....
ई का कह रहे हो जमाई जी....
सच कह रहा हूँ विद्या..... ज़ब पहली बार देखा था मैं पागल हो गया था.... तुम्हारे इन दोनों मोटे मोटे कबूतरो ने मुझे पागल कर दिया था...
जमाई जी मुझे डर लग रहा है कोई आ जाएगा... आप फिर कभी कर लीजियेगा.... मैं कहा मना कर रही हूँ.....
फिर कभी क्यों सासु माँ? इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा.... तुम डरो मत.....
आह्ह जमाई जी.... आप तो बहुत बुरे हो.... आह्ह...
अपने जमाई को अपना बदन दिखाकर बिगाडो तुम और बुरे हम हुए.... वाह सासु जी वाह....
जरा जल्दी करो जमाई जी.... आह्ह... महिमा की विदाई है आज... बहुत काम पड़ा है घर में...

थप थप छप छप की आवाज और रामखिलावन और विद्या की बातों से हल्का सा शोर हो रहा था जिसे सुनकर विद्या डरी हुई थी मगर रामखिलावन ने जैसे तैसे करके विद्या को मनाकर उसके साथ कामसुख लूट ही लिया था और स्कूल से निकालते हुए उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी वहीं विद्या का चेहरा शर्म से लाल........

उठ जाओ बच्चू..... सोते ही रहोगे? कुम्भकरण हो?
नयना ने अंशुल को जगाते हुए कहा.....
तुम्हे सुबह भी चैन नहीं है? क्यों मेरा पीछा नहीं छोड़ती? अंशुल पास रखे पानी के बर्तन से मुँह धोता हुआ बोला...
नयना - पीछा छोड़ने के लिए थोड़ी पीछा किया है आपका.... अब तो मरकर ही पीछा छूटेगा.... याद है ना.... अगहन की पूर्णिमा को मेरे घर बारात न लाये तो क्या होगा?
अंशुल - हां तुम खुदखुशी कर लोगी.... बस.... मुझे तुम्हारी धमकियों से कोई मतलब नहीं है.... मेरी ना का मतलब ना है...
नयना - आपको फिर मेरी बातों से इतना फर्क क्यों पड़ रहा है? मर जाने दीजिये.... आपका क्या बिगड़ेगा?
अंशुल - मुझे क्यों फर्क पड़ेगा.... लेकिन आज सुबह सब गए कहा? यहां कोई भी नहीं दिख रहा... चन्दन कहा है?
नयना - सुबह? बारह बज रहे है.... शहजादे.... ये सुबह नहीं दोपहर होती है यहां.... सब द्वारे की तरफ है... विदाई होनी है महिमा की... आज से तीन माह बाद जैसी मेरी विदाई होगी और आप मुझे अपने साथ लेकर जाओगे.... नयना ने मुस्कुराते हुए कहा फिर रात को अंशुल का फ़ेंका हुआ सिगरेट का पैकेट और लाइटर उसे देती हुई बोली.... लो.. और गुस्सा थोड़ा कम किया करो..
अंशुल सिगरेट और लाइटर ले लेता है और छत से नीचे आ जाता है...
पीछे आती नयना ने कहा -चाय बना दूँ आपके लिए?
अंशुल - नहीं.... जरुरत नहीं....
नयना ने दुप्पटा नहीं ले रखा था उसके स्तन उसकी छाती पर तने हुए थे जिसपर अंशुल की नज़र चली गई....
नयना - क्या देख रहे हो मिस्टर? ऐसा वैसा कुछ सोचना भी मत बच्चू.... ब्याह से पहले कुछ नहीं करने देंगे आपको.. और ब्याह के बाद कुछ नहीं करोगे तो छोड़ेंगे नहीं... हाहा...
अंशुल - ब्याह होगा तब ना..... ये कहते हुए अंशुल जब बाहर की तरफ जाने लगा तो नयना ने अंशुल का हाथ खींच लिया और उसे अपनी तरफ करके अंशुल के अधरों पर अपने अधर ठिका दिये......

ये प्यार का पहला चुम्बन था जो नयना अंशुल को दे रही थी इस चुम्बन में सिर्फ दोनों के होंठो हो नहीं आँखे भी मिल गई थी दोनों चुम्बन के वक़्त एकदूसरे को देख रहे थे किसीने भी अपनी आँखे बंद नहीं की थी जैसे आँखों से कोई सवाल पूछ रहे हो.. अंशुल पर तो नयना ने जैसे कोई जादू कर दिया था वो चाह कर भी अपने होंठ अलग न कर सका और यूँही नयना को देखता हुआ खड़ा रहा.. नयना के गुलाब सुर्ख नरम होंठों का अहसास पाकर अंशुल मादकता और प्रेम के शिखर पर जा पंहुचा था जहाँ से नयना उसके साथ कुछ भी कर सकती थी.. उसके दिल में नयना के लिये जो प्रेम था वो और प्रगाड़ हो चला था... कुछ देर बाद जब नयना ने चुम्बन तोड़ा तो दोनों की साँसे तेज़ चल रही थी अंशुल किसी बूत की तरफ खड़ा हुआ बस नयना को ही देखे जा रहा था जैसे कोई मूरत हो.. नयना चुम्बन के बाद अंशुल के सीने से जा लिपटी जैसे उसे खोने का डर हो और अपनी बाहों में हमेशा के लिए क़ैद करना चाहती हो..

नयना ने अंशुल की बात का जवाब देते हुए कहा.. ब्याह तो होगा... और जरुर होगा आपके साथ.. आप देखना.... इस अगहन मेरे हाथो की मेहंदी आपके बिस्तर पर ही झड़ेगी..... मन तो कर रहा है अभी आपकी इज़्ज़त लूट लू मगर अगहन तक इंतजार करुँगी आपका.. और आपकी मर्ज़ी के साथ ही करूंगी सबकुछ....
अंशुल चाहता तो फिरसे नयना के अधरों को अपने अधरो पर सजाना था मगर पदमा का ख्याल उसे इसकी इज़ाज़त नहीं दे रहा था. नयना का भोलापन मासूमियत और आँखों में अपने लिए झलकते पागलपन को अंशुल समझ रहा था.. वो अपने ख्याल से बाहर आता हुआ बोला - ये ज़िद छोड़ दो नयना... मैं किसी और का हो चूका हूँ.... तुम्हारे साथ ब्याह नहीं कर सकता... मुझे माफ़ कर दो..
नयना के गंभीर चेहरे पर हंसी आ गई और वो हसते हुए बोली - ये सब मेरा दिल जलाने के लिए कह रहे हो ना? ताकि मैं आपका पीछा छोड़ दू? बच्चू इस जन्म तो ऐसा मुमकिन नहीं है.... मरने के बाद भी पीछा नहीं छोडूंगी......
बाहर से किसी के आने की आहट सुनकर नयना और अंशुल थोड़े सतर्क हो जाते है और थोड़ा दूर होकर यहां वहा देखने लगते है...
दीदी चलो ना... महिमा दी कब से आपको बुला रही है... ये मेघा थी गाँव की ही एक किशोर लड़की... जिसके साथ नयना अंशुल को देखकर मुस्कुराती हुई बाहर की तरफ चली गई...



विदाई में इतना देर कौन करता है भाई?
अरे यार क्या बताये पहले रस्मे में देरी हुई अब ये गाडी बिगड़ गई आस पास तो कोई है नहीं गाडी बनाने वाला अब लुटिया गाँव के नेनु को बुलाया अभी रास्ते में बताता है...
लोग आपस में बात कर रहे थे सुबह हो जाने वाली विदाई दिन के 1 बजे तक नहीं हुई थी.. विदाई में समय लगने वाला था...

अंशुल गाँव घूमता घूमता नहर के पास आ पंहुचा दिन सुहावना था, एक पेड़ के नीचे खड़े होकर अंशुल में पेड़ के तने पर अपनी पीठ टिका दी और नहर की तरफ देखने लगा.. नहर के उस पास एक सडक थी और सडक के पार घना जंगल... कहते है वहा से कभी कभी जंगली जानवर गाँव में घुस आते थे.. अंशुल बस प्रकर्ति की खूबसूरती निहार रहा था उसके मन से अब नयना के ख्याल उतर चुके थे और वो हक़ीक़त की ज़मीन पर था... उसने एक सिगरेट जला ली थी और कश लेते हुए नज़ारा अपनी आँखों में भर रहा था..

अंशुल खड़ा था की पीछे से किसी की आवाज़ आई - अरे आप यहा कब आये?
अंशुल ने पीछे मुड़कर देखा तो लाज़वन्ति खड़ी थी...


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लाल साडी देह पर सजाये सुन्दर चेहरे वाली लाज़वन्ति अपनी अंगकांति से जोबन की छलकियां बिखेर रही थी. उसके उभार उसकी छाती पर साफ देखे जा सकते थे जो चलने पर हलचल करते थे और साडी में उसकी कमर का दृश्य किसी को भी काम के अधीन करने के लिए पर्याप्त था... अंशुल ने सिगरेट फेंक दी...
जी... बस ऐसे ही घूमते हुए.... यहां आ गया था..
अंशुल ने बिना लाज़वन्ति की तरफ देखे कहा..
कैसे लगा आपको हमारा गाँव? लाज़वन्ति ने बाते करने की इच्छा से आगे पूछा तो अंशुल बोला - अच्छा है.. बहुत खूबसूरत है..
लाज़वन्ति अंशुल का जवाब सुनकर थोड़ा खुल गई और इस बार अंशुल को छेड़ने की नियत से पूछ बैठी...
लाज़वन्ति - इतना खूबसूरत लगा तो यहां के जमाईराजा बनने से क्यों इंकार कर दिया?
अंशुल लाज़वन्ति की बातों में लिपटा सवाल समझ गया था उसने इस बार लाज़वन्ति की तरफ मुँह करके कहा - आप नाराज़ है मुझसे?
लाज़वन्ति अंशुल के करीब आती हुई उसका हाथ पकड़ कर बोली...
लाज़वन्ति - हमारे नाराज़ होने से अगर आपको कोई फर्क पड़ता है तो हां... हम नाराज़ है आपसे?
लाज़वन्ति की बातों में मोह था और स्नेह भी.. जिसने अंशुल को बाँध लिया था, लाज़वन्ति ने मुस्कुराते हुए ऐसी बात कह दी थी जिसका अंशुल के पास कोई जवाब नहीं था.. अंशुल नज़र झुकता हुआ बोला..
अंशुल - मुझे माफ़ कर दीजिये....
लाज़वन्ति - माफ़ी तो आपको नयना से मागनी पड़ेगी जो दिन रात आपके नाम की रट लगाए रहती है... कहती है शादी आपके साथ ही करेगी.. वरना नहीं करेगी.. बहुत ज़िद्दी है..
अंशुल - मैं कई बार उसे समझा चूका हूँ पर वो मेरी बाते सुनने को त्यार नहीं..
लाज़वन्ति - हम्म... ये आप दोनों के बीच का मामला है.. इसमें मैं कुछ नहीं कर सकती..... वैसे इस मौसम में आपको गरमागरम चाय की इच्छा होगी... आप मेरे साथ चलिए.. यही पास में हमारा घर है आपको चाय पीलाती हूँ.....
अंशुल - नहीं शुक्रिया.... मुझे अभी चाय की तलब नहीं है...
लाज़वन्ति अंशुल का हाथ पकड़कर - चलिए ना... ऐसे शर्माने से काम नहीं चलेगा.... घर पर कोई नहीं है.. जिससे आपको परेशानी हो... चाय नहीं तो मेरे साथ एक सिगरेट पी लीजियेगा.... चलिए...
इस बार अंशुल लाज़वन्ति के साथ चल देता है..

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अंशुल लाज़वन्ति के पीछे पीछे चल देता है... लाज़वन्ति की मटकती गांड देखकर अंशुल अपने होश खाने लगता है और मदहोशी में कामुकता के पंजे में फँसता चला जाता है लाज़वन्ति की कमर और पीछे से दिखती उसकी जिस्मानी खूबसूरती अंशुल को समोहित करने में सफल होती है.. अंशुल किसी गुलाम की तरह लाज़वन्ति के पीछे पीछे उसके घर तक पहुंच जाता है.....

गाँव की सबसे बड़ा घर था सरपंच प्रभती लाल का जहाँ लाज़वन्ति अंशुल को ले आई थी.. घर में कोई नहीं था लाज़वान्ति घर के अंदर सोफे पर अंशुल को बैठाकर आँगन में चाय बनाने चली गई और थोड़ी देर बाद हाथ में चाय और पकोड़े की प्लेट लेकर अंशुल के सामने रख दी.... लाज़वन्ति अंशुल के बगल में बैठ गई थी..

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अंशुल चाय का कप उठाकर पिने लगा.. दोनों में अब तक और कोई बात न हुई थी.. मगर अब लाज़वन्ति ने अपने दामन पर से आँचल सरका लिया था जिससे अंशुल को ब्लाउज में उसके उभार साफ साफ दिख रहे थे.. जिसे लाज़वन्ति अच्छे से जानती थी फिर भी उसने उसे ठीक करने की जहमत नहीं उठाई... और उसी तरह अंशुल के पास बैठकर उसे देखती रही जैसे उसे अंशुल से कुछ कहना था.... बाहर बारिश की रिमझिम झड़ी लग चुकी थी...
चाय बहुत अच्छी है....
शुक्रिया.... पकोड़े भी खा कर देखो... बरसात में अच्छे लगेंगे...
आप भी मेरे साथ खाइये ना... अकेले खाना अच्छा नहीं लगता... अंशुल के कहने ओर लाज़वन्ति ने पकोड़े उठाकर खाने शुरू कर दिए और दोनों के बीच बात होनी फिर से शुरू हो गई.. कभी गाँव.. कभी महिमा की शादी.. कभी चन्दन के स्वाभाव तो कभी लाज़वन्ति और अंशुल की आपसी जिंदगी के बारे में बात होने लगी थी....
लाज़वन्ति और अंशुल आपस में काफी खुल चुके थे और अब खुलकर बाते करने लगे थे अंशुल के माँगने पर लाज़वन्ति वापस चाय बनाने चली गई थी और बारिश अपनी रफ़्तार पकड़ने लगी थी एक घंटे से ऊपर का समय हो चूका था दोनों को बाते करते..
अंशुल लाज़वन्ति की आँखों में उसकी प्यास देख रहा था उसे मालूम हो चूका था की लाज़वन्ति अब उसकी और पूरी आकर्षित हो चुकी है...

लाज़वन्ति जब इस बार चाय लाई तो चाय देते हुए उसका पल्लू नीचे गिर गया जिससे उसके कबूतर अंशुल के सामने लटक गए जो ब्लाउज के अंदर से अंशुल को चिढ़ा रहे थे.. लाज़वन्ति ऐसा अनजाने में हुआ था या जानबूझकर ये तो वो ही बता सकती है मगर इतना तय था की लाज़वन्ति अंशुल पर लट्टू हो चुकी थी और उसे हर तरह से खुश करना चाहती थी..
अंशुल ने अपना मुँह मोड़ लिया और लाज़वन्ति ने भी पल्लू ठीक कर लिया और बगल में बैठ गई..
सिगरेट है आपके पास?
आप सिगरेट पीती है?
क्यों सिर्फ आप मर्द ही पी सकते है? हम औरते नहीं?
नहीं नहीं... लीजिये....
लाज़वन्ति ने एक सिगरेट निकलकर जला ली और और एक कश लेकर सिगरेट अंशुल को देते हुए कहा - शादी से इंकार करके आपने अच्छा नहीं किया.. अपनी बाते कहते हुए लाज़वन्ति थोड़ा झुक गई थी जिससे उसके कबूतर अब अंशुल के सामने थे ओर लाज़वन्ति ने उन्हें छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया..

अंशुल ने लाज़वन्ति के हाथ से सिगरेट लेकर फेंक दी और लाज़वन्ति का हाथ पकड़कर उसे अपने ऊपर खिंच लिया.... इसके साथ ही दोनों के बीच सम्भोग आरम्भ हो गया....
बाहर होती बरसात ने माहौल को और भी कामुक बना दिया था और अंशुल लाज़वन्ति के बदन के आगे अपना काबू नहीं रख पाया जिससे दोनों काम की अग्नि में प्रेवश कर गए और अंशुल लाज़वन्ति को अपने ऊपर खींचकर उसके होंठों को अपने होंठों में भरकर चूमने लगा जैसे लाज़वन्ति के लबों का रस उसी के लिए हो.....
लाज़वन्ति ने अंशुल की इस हरकत का विरोध नहीं किया बल्कि खुद उसे पूरा पूरा सहयोग करने लगी अपने साथ कामक्रीड़ा करने में जैसे वो पहले से इसके लिए त्यार हो और जानती हो की अब आगे क्या होने वाला है......

प्रभाती लाल तो वैसे भी महीने में एक दो बार ही धीमे से लाज़वन्ति को अब वो सुख दे पाते थे जो जवानी में दिया करते थे लेकिन अब लाज़वन्ति उस सुख की तलाश में थी और अंशुल उसका शिकार बना था.. या कहना कठिन है की किसने किसका शिकार किया था फिर भी दोनों जिसे तरह से एक दूसरे को चुम रहे थे उससे लगता था की ये सब दोनों की प्रबल इच्छा से ही हो रहा है.....
कुछ देर इसी तरह अंशुल ने लाज़वन्ति के होंठों से अपना मुँह मीठा करने का बाद चुम्बन तोड़ दिया और उसकी आँखों में देखने लगा जहा काम की अपार इच्छा उसे दिखाई देने लगी. अंशुल ने अपनी पेंट की जीब खोल दी और उसमे से अपने लोडा बाहर निकाल लिया जिसे देखकर लाज़वन्ति की आँखे चमक उठी..... हाय दइया.... कितना मस्त लंड है.... ऐसा तो कभी नहीं देखा... अंशुल लाज़वन्ति के मन में चलते ख्याल उसकी आँखों से पढ़ सकता था अंशुल ने लाज़वन्ति के बाल पकड़ कर उसका चेहरा अपने लंड के करीब खींचा और लाज़वन्ति अंशुल के मन की बाते समझकर उसके लंड को मुँह में भरकर चूसने लगी.....


अंशुल नयना की माँ की लाज़वन्ति को अपना लंड चूसाते हुए बाहर होती बरसात देख रहा था और इस पल के आनंद में डूब रहा था.... लाज़वन्ति पुरे ध्यान और मज़े के साथ अंशुल का लोडा अपने मुँह में भरकर चूस रही थी जैसे उसे इसमें असीम आनंद की अनुभूति हो रही हो....
अंशुल ने एक सिगरेट जला ली और कश लेते हुए बाहर होती बारिश और अंदर होती लंड चुसाई का मज़ा लेने लगा वो लाज़वन्ति का सर बड़े प्यार से सहला रहा था मानो उसे लंड चूसने का आशीर्वाद दे रहा हो.... 42 साल की लाज़वन्ति दिखने में पदमा की भाति ही सुडोल अंगों वाली गोरी आकर्षक महिला था जो पीछे साल खरीशमाई तरीके से घर्भवती हुई थी लेकिन बच्चा पैदा होते ही ख़त्म हो गया था जिससे उसके स्तन में दूध उभर आया था.....
अंशुल पुरे मज़े के साथ सिगरेट के कश लेते हुए लाज़वन्ति की लंड चुसाई का सुख भोग रहा था तभी उसका फ़ोन बजा...
हेलो..
हेलो... आशु... कहा है तू? कब से तेरा वेट हो रहा है.. चलना नहीं है?
चन्दन भईया..... अरे मैं बाइक से आ जाऊंगा आप जाओ... मैं नहर के पास फंसा हुआ हूँ...
आशु... गोपाल बाइक लेकर पहले ही जा चूका है.. मैं किसी को भेजता हूँ नहर के पास....
नहीं भईया आप रहने दो... आप जाओ मैं बारिश ख़त्म होते ही बस से आ जाऊंगा... मेरी वजह से देर मत करो....
फ़ोन कट हो जाता है और अंशुल लाज़वन्ति का सर पकड़ कर उसके मुँह में अपने वीर्य की धार छोड़ देता है....

आह्ह.... उम्म्म्म..... उम्म्म्म..... लाज़वन्ति को अंशुल के वीर्य का सेवन करना ही पड़ता है और वो उसे पीकर अपना मुँह पोंछती है अंशुल लंड पर लगी लाज़वन्ति के होंठों की लिपस्टिक साफ करते हुए कहता है - एक कप चाय मिलेगी लाज़वन्ति?
लाज़वन्ति? मुझे नाम से बुलाया? और अब चाय चाहिए? लाज़वन्ति तो कब से उसे चुत देने को त्यार बैठी है और अंशुल उससे सर्फ़ चाय की मांग कर रहा है... अरे केसा लड़का है ये जो सम्भोग के बीच भी चाय पिने को मरा जा रहा है उसे क्या लाज़वन्ति की दशा समझने का दिमाग नहीं है? अंशुल के चाय माँगने लाज़वन्ति उखड़ा सा मुँह लेकर रसोई में आ गई और चाय बनाती हुई अपनी गीली चुत को सहलाकार बड़बड़ाने लगी.... कितना पागल लड़का है? मैं यहां सबसे कीमती चीज देने को त्यार बैठी हूँ और इसे चाय की पड़ी है.... इतना अच्छा मौसम है.. मुझसे तो रहा ही नहीं जाता... कैसे भी करके आज इससे काम निकलवाना ही है..... बिना मेरी आग बुझाये तो इसे नहीं जाने दूंगी.... चाय पिने के बाद क्या करेगा देखती हूँ.... लाज़वन्ति जब बुदबूदा रही थी तभी उसे अहसास हुआ की किसीने उसे पीछे से अपनी बाहों में भर रखा है.... उसने पीछे मुहकार देखा तो अंशुल खड़ा हुआ उसे अपनी बाहों में थामे था उसके बदन पर अब कपड़ा नहीं था जैसे उसने सारे कपडे पहले ही उतार दिए हो और अब वो एक एक करके लाज़वन्ति को भी निर्वास्त्र करने लगा था पहले उसकी साडी और फिर ब्लाउज फिर घाघरा एक एक करके अंशुल ने सही कपडे लाज़वन्ति की देह से उतार दिए.....
लाज़वन्ति शर्म से पानी पानी होकर अंशुल के सामने नज़र झुकाये खड़ी थी गैस पर चाय उफ़न रही थी और यहां अंशुल और लाज़वन्ति.....
अंशुल ने गैस बंद करके लाज़वन्ति को अपनी बाहों में उठा लिया और चूमते हुए लाज़वन्ति से बैडरूम का रास्ता पूछने लगा जिसपर लाज़वन्ति ने अपने हाथ के इशारे से उसे बेडरूम का रास्ता बता दिया.....

बिस्तर पर गिराकर अंशुल सबसे पहले लाज़वन्ति के मोटे मोटे स्तनों से खेलता हुआ उसका दूध पिने लगा और लाज़वान्ति भी उसे अपना दूध पिने में पूरा पूरा सहयोग करती हुई अंशुल के बाल सहला रही थी मानो वो अपने बच्चे को दूध पीला रही हो.... अंशुल लाज़वान्ति की छाती का दूध पूरी मस्ती से पी रहा था और बारी बारी उसके दोनों बोबे दबा दबाकर लाज़वन्ति को काम के अभिभूत कर रहा था....

कुछ देर के बाद अंशुल ने लाज़वन्ति को सीधा लेटा दिया और उसकी चुत को अपनी जीभ से छेड़ने लगा...
उफ्फ्फ हाय..... दइया..... ओह मोरी मईया.... आह्ह... सिस्कारिया लेते हुए लाज़वान्ति अंशुल के बुर चटाई का स्वाद लेने लगी और काम के सागर में गोते लगाने लगी उसे इस वक़्त वो सुख मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी ना होगा... लाज़वन्ति अंशुल का सर अपनी बुर पर दबा दबा कर चूसा रही थी मानो वो आज अंशुल से कहना चाहती हो की उसे इसमें बहुत मज़ा अ रहा है और वो नहीं चाहती की अंशुल रुके... आह्ह.... आशु..... आशु..... उफ्फ्फ.... बेटा.... आह... करते हुए लाज़वन्ति झड़ चुकी थी मगर अब भी काम के अधीन थी अंशुल ने अब उसकी चुत पर अपना लंड टिकाया तो पहले धक्के पर लंड फिसल गया.. लाज़वन्ति ने अंशुल का लंड अपने हाथ पकड़ कर अपनी बुर के मुहाने पर रखा और अंशुल से कहा - बेटा.... जरा आराम से.... बहुत बड़ा है तुम्हारा.... तनिक धीरे करना.....
मगर अंशुल ने उसकी बाते नहीं मानी और पहला धक्का ही इतना जोर से दिया की उसका लंड बच्चेदानी तक घुस गया और लाज़वन्ति की चिंख निकल गई... बरसात की आवाज ने उस चिंख को दबा लिया वरना उस चिंख से पुरे गाँव को पत्ता लगा जाता की सरपंच प्रभाती लाल की धर्मपत्नी लाज़वन्ति देवी की बुर में अभी अभी कोई मोटा लम्बा लंड घुसा है.... लाज़वन्ति की आँखों से आशु और चुत से खून की दो बून्द बाहर आ गई थी लाज़वान्ति के चेहरे से साफ लगा रह था की उसकी हालत पतली है लाज़वन्ति ने एक जोर का थप्पड़ अंशुल के गाल पर जड़ दिया और कहने लगी - इस तरह भी कोई लंड घुसाता है बुर में? तुमको बिलकुल तरस नहीं आता? पूरी फाड़ के रख दी.... एक तो इतना बड़ा लंड है ऊपर से एक ही बार में डाल दिया.... आह्ह..... कितना दर्द हो रहा है...
अंशुल ने बड़े प्यार से लाज़वन्ति के होंठों को चुम लिया जैसे कुछ हुआ ही ना हो और बोला - पहले बताना था ना तू कुंवारी है....
लाज़वन्ति अंशुल की बाते सुनकर शर्मा गई एक 21 साल का लड़का उसको कुंवारी कह रहा था और अभी उसका लंड उसकी चुत में था.... अंशुल ने धीरे धीरे चुदाई का आरम्भ किया और लाज़वान्ति को चोदने लगा... Ufff हर धक्के पर हिलता हुआ लाज़वन्ति का बदन माहौल में काम ही काम भरे जा रहा था....
इस उम्र में भी इतनी टाइट बुर लाज़वान्ति? सरपंच जी का खड़ा नहीं होता क्या?
बेशर्म नाम से तो मत बुला.... कितनी बड़ी हूँ तुझसे? आह्ह... सरपंच जी तो अब बूढ़े हो गए.... और कोई है ही नहीं ख्याल रखने वाला...
चिंता मत कर लाज़वान्ति... अब से में teri बुर का ख्याल रखूँगा....
दोनों के बीच बाते और चुदाई दोनों एक साथ हो रही थी जो बता रही थी की दोनों को एक दूसरे का साथ कितना पसंद है लाज़वन्ति के चेहरे में अंशुल पदमा तलाश रहा था जो कहीं हद तक उसे मिल भी गई थी.. लाज़वान्ति का स्वाभाव कुछ कुछ पदमा सा ही था और बदन भी उसी तरह आकर्षक....
दिन के तीन बज चुके थे और अब तक अशुल ने लाज़वन्ति की बुर में अपने वीर्य की वर्षा कर दी थी.... लाज़वन्ति ने अभी अभी घोड़ी कुतिया और छिपकली पोज़ में अंशुल का लंड लिया था और अपनी बुर की गर्मी शांत की थी....

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इधर बारिश के बिच महिमा की विदाई होने जा रही थी गाडी का काम पूरा हो चूका था नेनु ने गाडी बना दी थी चंदन और महिमा आस पास बैठे थे और सभी गाँव की औरत और लड़की उसके आस पास... बीच में महिला मुँह से गीत गाती और ढोलक बजती मस्ती से नाच रही थी.... उनमे से एक नयना भी थी... भोली-भाली नयना अपनी सखियों संग यहां नाच रही थी और वहा उसके पर उसकी माँ लाज़वन्ति उसके प्यार अंशुल के लंड पर नाच रही थी....

बिस्तर पर पीठ के बल लेते अंशुल के खड़े लंड पर लाज़वन्ति पूरी शिद्दत के साथ उछल रही थी उसकी जुल्फे हवाओ में किसी नागिन की सी लहरा रही थी और चुचे उभर नीचे हिलते हुए ऐसे लगा रहे थे जैसे कोई स्पज की गेंद हो.... अंशुल की आँखों में देखती हुई लाज़वन्ति अब बिलकुल नहीं शर्मा रही थी...

चार बजते बजते अंशुल ने एक बार फिर से लाज़वन्ति
की चुत अपने वीर्य के सलाब से भर दी थी और अब दोनों वापस अपने कपडे पहनकर सोफे पर आकर साथ में बैठ गए थे.... बारिश भी अब बूंदाबन्दी में तब्दील हो चली थी अंशुल ने लाज़वन्ति से जाने की इज़ाज़त मांगी तो लाज़वन्ति ने अंशुल के होंठों को अपने लबों की हिरासत में ले लिया और चूमने लगी जैसे वो अंशुल को नहीं जाने देना चाहती हो....

अब जाने दो..... वरना रात हो जायेगी...
कल चले जाना....
अच्छा? रातभर कहा रहूँगा?
यहां मेरे पास....
नयना पागल कर देगी मुझे....
नयना को मैं समझा दूंगी....
उसे तो कोई नहीं समझा सकता....
तुमने शादी से मना क्यों किया? नयना पसंद नहीं?
नहीं ऐसी बाते नहीं है.. मुझे अभी शादी नहीं करनी..
तो बाद में कर लेना.... बेचारी बहुत प्यार करती है..
मैं जानता हूँ लाज़वन्ति.... और अब मुझे लगता है तुम भी कहीं ना कहीं मुझसे प्यार करने लगी हो.. ये कहते हुए अंशुल ने लाज़वन्ति के बूब्स मसल दिए...
आह्ह.... तुम भी ना.... बेशर्म हो पुरे.... पहले मेरी बाते का जवाब दो.... करोगे नयना से ब्याह? सोच लो उसके साथ मैं भी तुम्हारा ख्याल रखूंगी.... कहते हुए लाज़वन्ति ने अंशुल के लंड को अपने हाथो से पकड़ लिया और अंशुल को देखने लगी....
लाज़वन्ति की इस हरकत पर अशुल के लंड में वापस तनाव आ गया और वो लाज़वन्ति को उठकर अंदर बिस्तर पर ले गया और उसकी साडी ऊपर करके फिर से उसे भोगने लगा....




महिमा की विदाई हो चुकी थी और वो चन्दन के साथ चली गई थी, वहीं नयना भी अब घर आ चुकी थी और उसे घर में लाज़वन्ति के रूम से आ रही आवाज सुनाई दी तो उसका सर चकरा गया... नयना सोचने लगी की उसके पीता प्रभाती लाला अब तक बंसी काका के यहां थे तो घर में उसकी माँ लाज़वन्ति के साथ कौन था? नयना ने दरवाजे के पास बनी खिड़की जो कुछ हद तक खुली हुई थी से अंदर झाँक कर देखा तो उसके पैरों तले ज़मीन हिल चुकी थी....
अपनी माँ और अंशुल को साथ में देखकर नयना के सर पर जैसे बिजली गिर चुकी थी.... लाज़वान्ति अपने घुटनो पर बैठकर भूखी कुतिया की तरह अंशुल के लंड और टट्टे चूस रही थी और अंशुल लाज़वन्ति के बाल पकड़ कर उसे लोडा चूसा था था... दोनों बदन पर कपडे का नामोनिशान नहीं था....
नयना बिना कुछ बोले आँखों में आशु लेकर अपने रूम में आ गई और रोने लगी, थोड़ी देर पहले जहाँ वो खुशी से झूम रही थी अब उसकी आँखों में आंसू थे और वो रोये जा रही थी. उसका दिल टूट चूका था...

अंशुल और लाज़वन्ति को नयना के घर लौट आने की कोई खबर नहीं थी और दोनों मज़े से सम्भोग का मज़ा लूट रहे थे लाज़वन्ति तो जैसे अंशुल की गुलाम बन चुकी थी वो अंशुल की हर बाते किसी गुलाम की तरह मान रही थी और उससे चुदवा रही थी उसकी सिस्कारिया नयना के कानो तक पहुंच रही थी जो नयना के दिल को और दुखा रही थी.. उसके साथ ऐसा कैसे हो गया? क्यों हो गया? क्या उसकी माँ लाज़वन्ति नहीं जानती थी उसके प्यार के बारे में? नहीं लाज़वन्ति तो सब जानती थी और उसे पत्ता था की अंशुल से नयना कितना प्यार करती है फिर भी लाज़वन्ति अंशुल के साथ? पर कैसे? क्या उसने सही सोचा था अंशुल के बारे में? क्या अंशुल वैसा था जैसा नयना ने सोचा था? हज़ार ख्याल और अपनी माँ की सिस्करीया नयना के कान से होती हुई दिल और दिमाग में ह्रदय विदारक बनकर गूंज रही थी...

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लाज़वन्ति कैसे अपनी ही बेटी के साथ इतना बड़ा धोखा कर सकती है? विश्वासघात कर सकती है? नयना के आँखों से बह रहे अविरल आंसू उसके मन से अंशुल के प्रति प्रेम को बहा कर ले जा रहे थे उसे अब अंशुल पर गुस्सा आ रहा था वो मन ही मन तय करने लगी थी की अब अंशुल का चेहरा तक नहीं देखेगी...

यहा अंशुल फिर से लाज़वन्ति की बुर को वीर्य से नहला चूका था अब उसने आखिर चुम्बन के साथ लाज़वान्ति से विदाई ले ली... आज लाज़वान्ति की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था.. उसे अपनी जिंदगी में पहली बार ऐसा सुख मिला था जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी वो खुद भी अब अंशुल के प्यार में पड़ चुकी थी शायद ये उसका आकर्षण था पर उसे भी अंशुल से लगाव हो चूका था और वो दिल ही दिल चाहने लगी थी की नयना की शादी अंशुल से ही हो उसके लिए अब वो पुरे जतन करेगी.... जाते हुए अंशुल से लाज़वन्ति ने कहा था.. जमाई जी... अब जल्दी बारात लेकर आना.... जिसपर अंशुल हँसने लगा था.. आज लाज़वन्ति को जवान लंड मिला था जिससे वो जमकर चुदी थी वहीं नयना ने रो रो कर तकिया गिला कर दिया था.. उस बेचारी ने कहा सोचा था की उसे इतना बड़ा धोखा मिलेगा वो भी अपनी माँ लाज़वन्ति से?





 

RK5022

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Likhne ka tareeka bahut hi badhiya hai, aur lazwanti ka sex dekhne ke baad ek baat to pakki hai kahani ka har kirdaar hawas se bhara hai, aur chhoti moti details is kahani ko bahut khoobsurat banati hai jaise cigerette wala part, ganw ka mahol aur barish ka mausham, shadi ka mahol, ye sab is kahani ko jabardast banati hai khasskar jab sex ke beech me insab ka varnan badhiya hota hai, brilliant story writing, waiting for more update
 
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