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Incest आशु की पदमा

insotter

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अध्याय 8
मुहर
(पदमा फलेशबैक, भाग -1)



आज भी नींद आ रही है?
तुम्हारे साथ तो मैंने शादी ही गलत कर ली..
तुम्हारे बाप ने उल्टा सीधा बोलकर मुझे फंसा लिया. इतना समय हो गया मैं तो जैसे जीना ही भूल गई हूँ.. अरे जब संभाल नहीं सकते थे तो शादी की ही क्यूँ तुमने?
रोज़ आकर मरियल बुड्ढे की तरह सो जाते हो..
पदमा ने आज बालचंद को अनाप शनाप ना जाने क्या क्या कह दिया था वो दो बच्चों की माँ थी लेकिन अब भी जवान और खूबसूरत थी शारीरिक संरचना मे उसका कोई सानी नहीं था जिसतरह के उभार और कटाव उसके बदन पर थे उसे पाना हर स्त्री की इच्छा होती थी मगर उसकी ये बदकिस्मती थी की बालचंद मे अब मर्दानगी का कोई रस नहीं बचा था बालचंद की शादी जब हुई थी वो तीस साल का था और आज उसकी उम्र पचास पार कर गई थी उसने अठरा साल की नवयौवना पदमा से ब्याह किया था लेकिन कुछ साल बाद ही बालचंद कामरस से विमुख हो गया था.. पदमा ने शादी के अगले साल ही जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था जिसका नामकरण बालचंद के पीता मूलचंद ने किया था लड़के का नाम अंशुल और लड़की का नाम आँचल रखा गया था आँचल का विवाह अभी सालभर पहले ही हुआ था और अंशुल अभी अपने कॉलेज के आखिरी साल के इम्तिहान दे रहा था..

आज पदमा की उम्र 39 थी और उसमे काम के प्रति आसक्ति पूरी तरह से भरी हुई थी और वो काम की उतेजना मे जल रही थी जिसे शांत करना बालचंद के बुते जे बाहर था....

पदमा का हाल बिलकुल वैसा था जैसे सवान मे अपने प्रियतम के विराह मे एक नव विवाहित दुल्हन का होता था बदन की आग और सेज का सुनापन उसे कचोट कचोट कर खा रहा था सारा दिन घर के कामो और अपने ख्यालों से अपनी हक़ीक़त को झूठलाते हुए पदमा अपनी ख्वाहिशे अपने मन मे दबा कर जी रही थी जैसे समाज मे महिलाओ को जीना पड़ता है उसे समाज के कायदे मानने पड़ते है उन नियमो के अनुसार आचरण करना पड़ता है उनमे ही सिमट कर रहना पड़ता है भले ही ऐसा करने से उनके भीतर कितना ही कुछ टूट क्यूँ ना जाए उनकी आत्मा कमजोर क्यूँ ना हो जाए मगर महिलाओ के लिए हमारे पुरुषप्रधान समाज ने उन बेड़ियों का निर्माण किया जिसमे अगर एक बार कोई महिला बंध जाए तो उसे पूरा जीवन उसी मे बंध कर निकाल देना पड़ता है उसके लिए अपनी ख़ुशी सुख दुख का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता.. ऐसा ही पदमा के साथ भी था.. उसका रूप यौवन माधुर्य बेजोड़ था लेकिन अब इन चीज़ो का उसके लिए कोई महत्त्व नहीं रह गया था जब तक आंचल थी तब तक पदमा उसके साथ बतियाती बात करती और उसका दिन गुजर जाता लेकिन जब से आंचल का ब्याह हुआ था वो बिलकुल अकेली पड़ चुकी थी आंचल के ब्याह के बाद तो जैसे उसकी जिंदगी मे कोई बात करने वाला या उसे समझने वाला कोई रह ही नहीं गया था...

आज होली का दिन था बालचंद अपने छोटे भाई ज्ञानचंद के साथ घर के आँगन मे शराबखोरी कर रहा था हर तरफ गुलाल बिखरा पड़ा था और इस कस्बे मे लोग इस त्यौहार को बड़ी ख़ुशी के साथ मना रहे थे ऐसा लगा रहा था जैसे आज धरती को रंगबिरंगे गुलाल से सजाया जा रहा था महिलाये अपना झुण्ड बनाकर अपने देवरो या रिश्तेदारों को रंग लगा रही थी और कपडे के कोड़े बनाकर उन्हें पिट रही थी वहीं कुछ आदमी भी टोलिया बनाकर अकेली रह जाने वाली भाभी या औरत को पकड़कर जमके रंग लगाने और चिढ़ाने का काम कर रहे थे.... पदमा के मन मे आज बहुत ज्यादा कामुकता भरी हुई थी वो अक्सर ऊँगली से अपनी प्यास बुझाती थी लेकिन आज उसे मौका नहीं मिल पाया था वो रसोई मे खाना बना रही थी.. दोपहर के बारह बजे थे और अब तक बालचंद शराब के नशे मे चूर होकर आँगन मे ही सोफे पर ढेर हो चूका था लेकिन ज्ञानचंद अभी सुरूर मे था वो रह रह कर आँखों से पदमा को भोग रहा था उसका अंदाजा पदमा को हो चूका था लेकिन कामुकता के वाशीभूत होकर पदमा ने ज्ञानचंद को ऐसा करने से नहीं रोका उलटे उसके आँखों से अपने रूप और जोबन का रस पिलाती रही.. आज पदमा को ज्ञानचंद का इस तरह उसे देखना सुख दे रहा था और उसे उसके जवान और खूबसूरत होने का अहसास करवा रहा था सालों से जो उसने महसूस नहीं किया था वो आज महसूस कर रही थी.... अगर बालचंद पदमा को सुखी रखता और उसकी शारीरिक जरुरत पूरी तरता तो अवश्य ही पदमा ज्ञानचंद की इस हरकत पर उसे टोकती या अपने कपडे सही करके ज्ञानचंद के द्वारा किया जा रहा पदमा के रूप का चक्षुचोदन बंद कर देती लेकिन आज उसे इसमें सुख मिल रहा था उसकी लालसा बढ़ रही थी पदमा पहले से ही कामुकता से भरी हुई थी उसपर से इस तरह ज्ञानचंद का उसे देखना बहुत अच्छा लगा रहा था.... ज्ञानचंद एक साधारण कदकाठी वाला, बालचंद की तरह ही आधा गंजा और पुराने तरह के कपडे पहनें वाला आदमी था उम्र पेतालिस के पार थी लेकिन काम वासना से भरा हुआ व्यक्तित्व था ज्ञानचंद का...

पदमा ने आज स्लीव लेस ब्लाउज पहना था जो किसी ब्रा की तरह ही देखने से लगता था और होली मे गंदे होने के डर से पुरानी साडी जो बार बार उसके कंधे से सर कर नीचे आ रही थी आज पदमा और दिनों के मुक़ाबले ज्यादा आकर्षक और कामुक लगा रही थी यही कारण था की ज्ञानचंद भी अपने आप को पदमा के रूप का शिकार होने से खुदको बचा नहीं पाया था.. ज्ञानचंद ने मौका पाकर पदमा से होली खेलने के नाम पर छेड़खानी शुरु कर दी थी जिसे कोई शरीफ औरतों कभी बर्दास्त नहीं करती लेकिन जो औरत काम के अधीन हो उसे शरीफ होने की उम्मीद की जानी व्यर्थ होती है.. ज्ञानचंद ने पदमा की नंगी चिकनी पतली कमर को इस तरह गुलाल से रंग दिया था जैसे जैसे छिंट के महीन सफ़ेद कपडे को रंगा जाता है.. ज्ञानचंद के हाथ कमर से होते हुए पदमा के कंधे तक पहुंच गए थे और रास्ते मे ज्ञानचंद के हाथो ने पदमा की छाती को गुलाल के रंग से रंगीन कर दिया था पदमा इतना सब होने के बाद भी आज अपने देवर ज्ञानचंद को नहीं रोक पाई थी और अब ज्ञानचंद का हाथ उसकी देह को जगह जगह से रंग रहा था जिसका पदमा पूरा मज़ा ले रही थी लेकिन उसकी आवाज़ उससे विपरीत बातें कहलवा रही थी...



उफ्फ्फ देवर जी छोड़िये.. आप क्या कर रहे है.... थोड़ी भी लाज नहीं आती है.... हम शोर मचा देंगे.. छोड़िये हमें...

मचा दीजिये भाभी शोर.... मैं जानता हूँ आप बहुत प्यासी है... भाभी भाईसाब तो शाम से पहले नहीं उठने वाले... यहां हमारे सिवा कोई नहीं है... ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता भाभी....

आह्ह.... आप क्या कर रहे है देवर जी.... हमारा ब्लाउज फट जायगा... छोड़िये हमें... जाने दीजिये...

क्यूँ नखरे कर रही हो भाभी... आज तो होली का त्यौहार है.... रंग के साथ आपको थोड़ा अंग भी लगा दूंगा तो क्या बिगड़ जाएगा.... वैसे भी आपका ये रूप बेकार ही जा रहा है... भाईसब को तो बिलकुल कदर नहीं है आपकी....

देवर जी आप अभी नशे मे हो.... आप मेरी कमर छोड़ दीजिये.... देखिये मैं आपके साथ ये सब नहीं कर सकती.... आप जाइये यहां से.... दरवाजा खुला है कोई आ गया तो मेरी शामत आ जायेगी....

अरे भाभी कोई नहीं आएगा अंदर.... सब बाहर होली खेलने मे मस्त है आप तो फालतू ही डर रही हो.... अब ये सब चिंता छोडो और मान जाओ.... मैं भाईसाब से अच्छा ख्याल रखूँगा आपका... आओ ना भाभी...

पदमा ऊपरी तौर पर जुबान से ज्ञानचंद का विरोध कर रही थी लेकिन उसने ज्ञानचंद को अभी तक खुदको छूने से नहीं रोका था ज्ञानचंद ने ऊपर से नीचे तक पदमा को छुआ था जिससे पदमा काफी उत्तेजित हो चुकी थी उसके बदन की आग और बढ़ चुकी थी उसकी योनि से जल प्रवाह तेज़ हो चूका था अब पदमा को किसी भी हाल मे उसका समाधान चाहिए था... ज्ञानचंद ने पदमा को आगे रसोई की पट्टी पर झुकाते हुए पीछे से उसकी साडी उठाकर झंघिया नीचे सरका दी जिससे पदमा की झांटो से घिरी हुई गुलाबी घुफा के दर्शन हो गए थे पदमा का दिल अब ज्ञानचंद का केला लेने को आतुर हो चूका था लेकिन जैसे ही ज्ञानचंद ने अपनी पेंट नीचे की तो पदमा उसके चार इंच के केले को देखकर फिर से दुख के सागर मे दूब गयी थी उसे अपनी गलती का पछतावा हो रहा था उसने आज व्यभिचार किया था लेकिन उसमे भी उसे शारीरिक सुख की अनुभूति नहीं हुई थी उसे खुद पर और ज्ञानचंद पर गुस्सा आ रहा था.. उसका तो ठीक से पदमा की योनि पर लिंग लगा भी नहीं था नशे मे ही ज्ञानचंद ने मुश्किल से चार झटके मारे थे की बस वो वहीं ढेर हो गया पदमा की आँखों से आंशू झलक रहे थे.......



अंशुल आज त्यौहार के मोके पर घर आया था लेकिन ये नज़ारा देखकर उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी उसने जो आज अपनी आँखों से देखा था वो अपने सामने मे भी नहीं सोच सकता था उसके दिल मे अपनी माँ और पापा के लिए बहुत सामान था लेकिन उसका सारा सामान आज उसकी आँखों से अंशु बनकर बह निकला था.. आँगन मे खड़ा होकर खिड़की के मुहाने से अंशुल ने अपनी माँ पदमा और चाचा ज्ञानचंद के इस कुकर्म को अपनी आँखों से देखा था उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करें? अगर वो उसी वक़्त कुछ करता तो समाज मे उसकी माँ पदमा का चरित्र शोषण होना लगभग तय था.. अंशुल के सामने जो हो रहा था उसमे पदमा की मोन सहमति थी जिसे अंशुल अच्छे से समझता था वरना जो औरत बालचंद पर दिनरात चिल्लाती थी और कभी काबू नहीं आती थी वो ज्ञानचंद जैसे साधारण काया वाले इंसान के काबू मे आ जाती ये नहीं माना जा सकता था.... जब ज्ञानचंद बिना पदमा की योनि मे प्रवेश किये ही झड़ गया तब अंशुल अपनी आँखों मे अंशु लिए वापस घर से बाहर निकल गया और वापस चला गया वहीं पदमा अपनी किस्मत को कोसती हुई बाथरूम मे चली गई और अब उंगलियों से ही अपनी ख़ुशी का मार्ग खोजने लगी.... पदमा को इस बात की जरा भी भनक नहीं लगी थी की उसके बेटे ने रसोई मे जो कुछ हुआ था पूरा नज़ारा आप ई आँखों से देखा था और अब वो पूरी तरफ पदमा की शारीरिक असंतुस्टी का राज़ जानता था.... पदमा जब बाथरूम से बाहर आई तब तक ज्ञानचंद घर से जा चूका था पदमा को अगर ज्ञानचंद अब मिलता तो वो न जाने क्या क्या उसे कह सुनाती और जलील करके घर से निकाल देती लेकिन ज्ञानचंद को कुछ ही पलो मे अपनी करनी का अहसास हो गया था और वो लड़खड़ाते हुए बाहर चला गया था.....



हारे रे किस्मत... पदमा सोच रही थी की उसने आज पहली बार व्यभिचार किया था और वो भी उसे देह का सुख नहीं दे पाया था उसने ऐसे कोनसे पाप किये है जो उसे ये सब देखना पड़ रहा है आखिर हर औरत अपने पति से शारीरिक सुख की कामना रखती है मगर जब उससे वो सुख नहीं मिलता तो वो कैसे अपना गुजारा करें यही सोचते हुए पदमा आज उदासी से आंशू बहती हुई बिस्तर के एक ओर लेटी हुई नींद के आने का इंतजार कर रही थी... वहीं दूसरी ओर अंशुल अब तक वापस बड़े शहर आ चूका था ओर अपने दोस्त मनसुख (मस्तु) के रूम पर रुक गया था उसे भी नींद का इंतज़ार था मगर नींद उसकी आँख से कोसो दूर थी अंशुल मे मन मे अजीब अजीब ख्याल ओर प्रशन उठ रहे थे जिसके जवाब उसके पास नहीं थे उसे समझ नहीं आ रहा था कैसे उसकी माँ पदमा इस तरह व्यभिचारिणी बन सकती है उसने आज जो देखा वो उसके लिए कतई बर्दाश करने वाली चीज नहीं थी मगर वो कर भी क्या सकता था अगर वो अपनी माँ को उस हाल मे पकड़ लेता ओर चाचा से लड़ाई करता तो उसकी माँ उससे ऐसा प्यार जैसा की वो करती आई है क्या आगे भी करती? क्या कभी पदमा वापस अंशुल से आँख मिला के बात कर पाती? क्या समाज मे पदमा की बदनाम नहीं होती? क्या उसका परिवार एक साथ रह पाता? अगर अंशुल उस वक़्त कुछ करता तो निश्चित ही उसके परिणाम बुरे या कहे बहुत बुरे हो सकते थे.... कब से ऐसा चल रहा होगा? क्या माँ ओर भी किसी के साथ? छी छी... मैं ये क्या सोच रहा हूँ? ये सब गलत है...



आज नींद नहीं आ रही क्या?

आशु ख्यालो मे गुम था की उसके दोस्त मस्तु ने उससे पूछा....

नहीं भाई... सर थोड़ा भारी हो रहा है...

टेबल के दूसरे दराज मे सर दर्द की दवा है एक गोली लेले ठीक हो जाएगा.. कहते हुए मस्तु पेशाब करने चला गया.....

अंशुल ने गोली ले ली और वापस लेट गया.. उसका फ़ोन भी स्विच ऑफ हो चूका था जिसे उसने अभी चार्ज करने के लिए लगाया था....

मस्तु बाथरूम से वापस आकर अंशुल के बगल मे लेट गया अंशुल से कहने लगा - भाई वो विशाल से बात की क्या तूने? उसका फ़ोन आया था शाम को.... कह रहा था तेरा फ़ोन बंद है...

अंशुल - नहीं वो चार्ज खत्म हो गया था तो फ़ोन चार्ज करने के वक़्त ही नहीं मिला.... अभी जस्ट चार्ज के लिए लगाया है... तू तेरा फ़ोन दे अभी बात कर लेता हूँ.... वो ट्रेडिंग के पैसे के बारे मे बात कर रहा होगा...

मस्तु लॉक खोलकर अपना फ़ोन देते हुए - ले भाई.... तुम्हारा भी सही है.. कोई पूरा दिन मेहनत करके भी कुछ नहीं कमाता और तुम दोनों बैठे बैठे पैसे छाप लेते हो...

अंशुल फ़ोन लेते हुए - कहा भाई.... ये तो हमारे कुछ तुक्के सही बैठ जाते है बस.. वरना तूने तो देखा ही लोगों को ऑनलाइन ट्रेडिंग मे बर्बाद होते हुए...

मस्तु तकिया लगाते हुए - ठीक है भाई... अच्छा मुझे नींद आ रही है तू लाइट बंद कर देना.... वरना कहीं मकान मालिक ने दिख लिया तो सुबह रोयेगा...

अंशुल मस्तु के फ़ोन से विशाल को फ़ोन करता है और उनके बीच बातें काफ़ी लम्बी चलती है जिसमे उसके बीच प्रॉफिट का हिसाब और नई ट्रेड की बातें

हो रही होती है अंशुल ने रूम की लाइट बंद कर दी थी और वापस मस्तु के पास बिस्तर पर आकर लेट गया था मस्तु की आँख लगा चुकी थी और अब करीब एक घंटे बाद अंशुल ने विशाल से बात करके फ़ोन काट दिया था लेकिन अब भी उसका मन नहीं लगा रहा था तो अंशुल ऐसे ही मस्तु का फ़ोन देखने लगता है जिसमे पहले वो मस्तु के फ़ोन मे कुछ देर कैंडी क्रश खेलता है फिर उसके फ़ोन मे व्हाट्सप्प और इंस्टा चलाने लगता है फिर कुछ देर बाद अंशुल मस्तु के फ़ोन की गैलरी मे पहुंच जाता है जहाँ ऐप लॉक लगा हुआ था एक दो बार रैंडम पासवर्ड डालकर अंशुल चेक करता तो गैलरी नहीं खुलती लेकिन अंशुल जब मस्तु की बर्थडेट डालकर गैलरी ओपन करता है तो गैलरी ओपन हो जाती है जहाँ मस्तु की बहुत सारी पिक्स होती है जिसमे वो कभी कॉलेज तो कभी किसी घूमने वाली जगह मे था कुछ मे दोस्तों के साथ अंशुल यूँही पीछे देखते हुए नीचे आता है तो एक फोल्डर उसे नज़र आता है जिसे ओपन करते ही उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती है..... उस फोल्डर मे मस्तु एक 45 साल के लगभग की औरत के साथ था और दोनों आपस मे बहुत नजदीक थे दोनों की बहुत सारी पिक्स और वीडियो थे जिसे अंशुल ने इयरफोन लगा कर भी देखा था... अंशुल की आंखे फटी की फटी रह गई थी वो इस औरत को जानता था और न जाने कितनी बार आशीर्वाद लेने के लिए उसके पैर भी छू चूका था.. अंशुल को आज ये दूसरा झटका मिला था और उसे अब इस पर भी भरोसा नहीं हो रहा था अंशुल ने अपना फ़ोन ऑन करके वो सारी पिक्चर्स और वीडियोस अपने फ़ोन मे ट्रांसफर कर ली और मस्तु का फ़ोन वापस जैसा था वैसा करके वही रख दिया.. अंशुल को अब नींद नहीं आने वाली थी उसके सर ओर आज दो बोम गिरे थे एक अपनी माँ पदमा के व्यभिचार का और दूसरा अपने दोस्त मस्तु के अवैध सम्भन्ध का...

रसुबह के पांच बज रहे थे और अंशुल रूम की लाइट ऑन करके बैठा हुआ था उसके सर मे बहुत सी बातें चल रही थी जो उसे सोने नहीं दे रही थी रातभर वो जागा था मस्तु की नींद भी खुल चुकी थी और वो अंशुल को इस तरह बैठा हुआ देखकर चौंक चूका था....



क्या हुआ आशु... सर दर्द ठीक नहीं हुआ? मस्तु ने पूछा तो अंशुल ने उसकी और देखते हुए उतर दिया - नहीं....

मस्तु नींद के बाद की ऊँगाई से जागते हुए आंखे मलकर बोला - रुक भाई मे चाय बना देता हूँ....

अंशुल बेरुखी से - रहने दे.... मन नहीं है चाय पिने का...

मस्तु अंशुल की बात सुनकर बाथरूम चला जाता है और अच्छी तरह मुँह हाथ धोकर वापस आ जाता है.. मस्तु इस बार अंशुल से बिना कुछ बोले चेयर पर बैठकर किताब उठकर पढ़ने लगता है शायद इतिहास की किताब होगी.... करीब डेढ़ घंटे बाद भी अंशु जब उसी तरह बैठा रहता है तो मस्तु इस बार उसे देखकर झाल्लाते हुए बोलता है - अरे भाई हुआ क्या है कुछ भोकेगा? या फिर रंडवि भाभी बनकर बैठा रहेगा? तुमको देखकर साला हमको भी डिप्रेशन हो रहा है अब....

अंशुल इस बार मस्तु से बोला - साले शर्म नहीं आती तुझे?

मस्तु - अबे किस बात की शर्म बे? कमरे का किराया और बाकी खर्चा पूरा तू देता है तो क्या हुआ? ****** बनुगा तो सूत समेत ले लेना.... इस बार प्रिलियम्स निकल गया है... मेंस और इंटरव्यू भी निकाल जाएगा देखना.... फिर जो चाहिए ले लेना....

अंशुल गुस्से से - भोस्डिके मैं सारी रात जागकर सुबह तुझसे किराये की बात करूंगा? तूने जो गुल खिलाये है मैं उसकी बात कर रहा हूँ.... साले तुझे जरा भी शर्म नहीं आई ये सब करते हुए वो भी........ छी....

मस्तु इस बार अंशुल की बात सुनकर थोड़ा घबराह जाता है लेकिन उसने तो अपने फ़ोन पर ऐपलॉक लगाया था तो फिर कैसे? नहीं नहीं... जरुर ये कोई और बात कर रहा होगा.. मस्तु ये सब सोचकर अंशुल से कहता है....

मस्तु - अबे पहेलियाँ ही बुझाता रहेगा या साफ साफ कुछ कहेगा भी? तुम्हारा ये रंडी रोना हमारे समझ के बाहर है.... हमने ऐसा क्या कर दिया जो तुम्हे रातभर नींद नहीं आई? कुछ बताएगा?

अंशुल गुस्से मे - अरे मादरचोद..... तू सब जानता है जनता है मैं क्या बात कर रहा हूँ.... महीने के आखिर मे 3-4 दिन तू अपनी अम्मा को इसिलए मधुबनी से बुलाता था ना.... और इस सबका खर्चा भी मुझिसे लेता था.... साले तुझसे बड़ा मादरचोद मैंने आज तक नहीं देखा.... थोड़ी तो शर्म करता हराम के जने...

मस्तु के कान मे जैसे ही अंशुल की बात गई वो उठकर सबसे पहले कमरे का दरवाजा बंद कर देता है और अंशुल के पैर पकड़ लेता है...

भाई.... भाई.... यार तुम्हारे पैर पकड़ते है... किसीसे कुछ मत कहना.. हमारी बहुत बदनामी होगी... किसीको मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे भाई प्लीज...

अंशुल - तुझसे ये उम्मीद नहीं थी.... साले तूने अपनी भोली भली माँ को ही अपनी हवस का शिकार बना लिया? बेचारी को क्या क्या सहना पड़ा होगा? तेरे जैसा बेटा होने से तो अच्छा होता बेचारी बाँझ ही रह जाती... तू वाक़ई मे बहुत गंदा इंसान है मस्तु.... मैं तुझे देखना भी नहीं चाहता है.... मैं जा रहा हूँ और आज के बाद तेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहता... तेरी माँ ने कितनी बार मुझे अपने हाथ का खाना खिलाया है प्यार से मेरा दुख सुख साझा किया है मैंने कितनी बार उसके पैर छुए है.... मैं अपनी माँ की तरह ही उसे सम्मान देता हूँ लेकिन तूने? तूने तो रिस्तो को तार तार ही कर दिया मस्तु....

मस्तु अंशुल के सामने हाथ जोड़ते हुए - भाई... प्लीज मुझे माफ़ कर दे.... मैं जानता हूँ ऐसी गलती माफ़ी के लायक नहीं है लेकिन इसमें सिर्फ मेरे अकेले की गलती है... अगर तू ऐसा सोचता है तो तू भी गलत है.... मेरी माँ भी मेरे साथ उतनी ही दोषी है जितना की मैं.... और इस रिश्ते की शुरुआत उसीने की थी....

अंशुल - खुदको बचाने के लिए कुछ भी मत बोल मस्तु.... मैं अच्छी तरह जानता हूँ आंटी को.... उनके जैसी सीधी सादी घरेलु औरतों कभी ऐसी हरकत खुदसे नहीं कर सकती.... जरुर तूने ही उन्ही फुसलाया होगा और इस सब मे खींचा होगा...

मस्तु - तुझे मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो ठीक है... मै अभी तुझे सबूत दे सकता हूँ.. तब तो तू मेरी बात पर विश्वास करेगा....

अंशुल - मैंने तेरे फ़ोन मे सब देख लिया है मस्तु... अब क्या सबूत बाकी है देने को?

मस्तु अंशुल को बैठाते हुए - भाई मैं झूठ नहीं बोल रहा..... उन्होंने ही मेरे साथ इस सब की शुरुआत की थी ताकि मेरा ध्यान पढ़ाई से ना भटके और मैं जल्दी से एक बड़ा अफसर बनकर घर संभाल सकूँ.... तू अगर यक़ीन नहीं होता तो रुक मैं अभी तुझे यक़ीन दिलाता हूँ.....

मस्तु अपना फ़ोन लेकर अपनी माँ चमेली को फ़ोन करता है.....

चमेली फ़ोन उठाकर - हेलो बेटा.... आज सुबह सुबह कैसे याद आ गई अपनी माँ की बुर की.... लंडवा मे ज्यादा खुजली चल रही है क्या? कहो तो मिटाने आये?

अंशुल चमेली की बात सुनकर मस्तु की तरफ हैरानी से देखने लगता है उसने अभी जो सुना उस पर उसे विश्वास कर पाना कठिन था लेकिन सत्य यही था जो उसने अभी सुना, अंशुल को अब मस्तु की बात पर यक़ीन हो चूका था.......

मस्तु - नहीं माँ.... वो हम सिर्फ इतना कह रहे थे की इस बार जब आप यहां आइयेगा तो आचार लाना ना भूलियेगा.... खाने की बहुत इच्छा होती है...

चमेली - चिंता मत कर बेटा... कुछ दिनों की बात है.... इस बार जब आउंगी तो अपनी बुर पर आचार लगाकर चटवाउंगी तुझे.... वैसे पढ़ाई तो सही चल रहा है ना तुम्हारी? अपना ध्यान कहीं भटकने मत देना बेटा.... अगर चाहिए तो अपनी माँ की चुत 8-10 बार एक्स्ट्रा चोद लेना लेकिन पढ़ाई मे पूरा ध्यान देना.... हमें अफसर की माँ बनना है.... ठीक है ना?

मस्तु - पढ़ाई ही कर रहे थे माँ....

चमेली - अच्छा.... तुम्हारा दोस्त आशु केसा है?

मस्तु - वो ठीक है माँ.. बाथरूम मे है....

चमेली - हम्म्म.... बहुत मासूम है बेचारा.... बाहर आये तो बात करवाना.....

मस्तु फ़ोन अंशुल की तरफ बढ़ाते हुए - लो आ गया बात कर लो..

अंशुल को जो हो रहा था कुछ समझ नहीं आ रहा था वो तो किसी गहरी सोच मे डूबा हुआ था जहाँ से मस्तु ने उसे निकालते हुए फ़ोन दे दिया था अंशुल इस वक़्त क्या बात करेगा और किस तरह बात करेगा ये बड़ा सवाल था लेकिन फिर भी अंशुल ने फ़ोन ले लिया और खुदको सँभालते हुए बोला....

अंशुल फ़ोन लेकर - नमस्ते आंटी....

चमेली - अरे खुश रहो बेटा.... ककैसे हो? अपनी आंटी की याद करते हो या नहीं?

अंशुल - बस आंटी अभी आपको ही याद कर रहा था.....

चमेली हसते हुए - कहा याद कर रहे थे? बाथरूम मे?

अंशुल - अरे आंटी आप भी ना.... अच्छा कब आ रही है आप? मस्तु बुला रहा था आपको....

चमेली - अभी कहा बेटा.... बहुत काम है यहां... और इस महीने मे अब छुटि भी नहीं मिलेगी वहा आने के लिए....

अंशुल - आप काम करती हो?

चमेली - अब बिना काम के कैसे पेट भरेगा बेटा? काम तो करना ही पड़ेगा....

अंशुल - आंटी आप पैसे की चिंता मत करो मैं अभी कुछ पैसे भिजवा देता हूँ आप बस जल्दी से यहां आ जाओ.... मुझे आपके हाथो का खाना खाना है...

चमेली - ठीक है बेटा.... मैं इस इतवार को ही आ जाउंगी.....

अंशुल फ़ोन मस्तु को दे देता है और टेबल पर रखी बोतल से पानी पिने लगता है...

मस्तु -अच्छा माँ अब फ़ोन रखते है....

चमेली - ठीक है बेटा.... फ़ोन कट हो जाता है...

मस्तु - भाई अब तो यक़ीन हो गया.. मैंने कहा था ना की मैं अकेला दोषी नहीं हूँ....

अंशुल उदासी से - भाई एक बात समझायेगा? आखिर औरत को चाहिए क्या होता है?

मस्तु - क्या हुआ भाई? ऐसे क्यूँ बात कर रहा है?



अंशुल मस्तु को अपने दिल की सारी उलझन बता देता है और ये भी बता देता है की कैसे उसने अपनी माँ पदमा देवी को अपने चाचा के साथ अधूरा व्यभिचार करते देखा था अंशुल के दिल की सारी बातें मस्तु सुन रहा था और समझ रहा था मस्तु उसी की उम्र का लड़के था लेकिन उसमे समझ अंशुल से ज्यादा थी उसे अंशुल की मनोदशा और उसके साथ होने घटने वाली व्यथा अच्छे से समझ आ रही थी और उसका समाधान भी दिखाई दे रहा था लेकिन ये समाधान क्या अंशुल को स्वीकार था? कहा नहीं जा सकता क्युकी जिसतरह से अंशुल ने मस्तु और चमेली के रिश्ते पर आपत्ति जताई थी वो कैसे मस्तु के समाधान पर सहमति जता सकता था... अंशुल की बातें सुन और समझकर मस्तु अंशुल को दिलासा दे रहा था और जल्दी ही उसकी परिस्थिति बदल जाने की बात कह रहा था...



मस्तु - भाई मैं तेरी परेशानी समझ सकता हूँ.... ये तो हर दूसरे घर की कहानी है.. आज कहीं भी देख लो महिलाओ को अगर काम सुख नहीं मिलता तो वो किसी ना किसी के जाल मे फंस ही जाती है.... तुम्हे क्या लगता है मेरी माँ बड़ी साफ सुथरी है? मुझसे पहले उसके कई आशिक थे.. उन्होंने अपनी जुबान से हमें अपना राज़ बताया है वो भी इसी बिस्तर पर....

लेकिन जब से मेरे साथ उसका रिस्ता बना है तब से उन्हें कहीं बाहर मुँह मारने की जरुरत नहीं पड़ी उसके सारे बाहरी रिश्ते ख़त्म हो गए.... भाई बुरा मत मानना मगर अगर तुम चाहते हो की तुम्हारा घर बाहरी लोगों से बचा रहे तो तुमको ही कुछ करना होगा....

अंशुल चुपचाप मस्तु की बात सुन रहा था और उसे उसकी बातें कुछ कुछ समझ भी आ रही थी जिससे वो चाहकर भी नहीं बच सकता था....

अंशुल - भाई मगर मैं अपनी ही माँ के साथ..... नहीं यार मैं सपने मे भी ऐसा कुछ नहीं सोच सकता.... मैं ऐसा कुछ करने से पहले मरना पसंद करूंगा....

मस्तु - मैं समझ सकता हूँ आशु.... तुम्हारे लिए ये आसान नहीं होगा... मगर अगर तुम्हे अपना घर बाहरी लोगों से बचाना है तो मेरी बात को एक बार फिर सोचना भाई.... क्युकी बाद मे पश्चिताप के सिवा और कुछ नहीं होगा..



अंशुल मुरझाई आवाज़ मे - नहीं मस्तु.... मैं ऐसा नहीं कर सकता... मैं अपनी माँ के साथ ऐसे रिश्ते मे नहीं बंध सकता जहाँ प्रेम के स्थान पर वासना भरी हो.. जहाँ शारीरिक सुख भोगने के लिए मानसिक सुख की बली चढ़ानी पड़े.... और वैसे भी इस बात की क्या गारंटी है मैं ये सब कर पाउँगा? मैंने आज तक जो भी किया है मैं उसमे नाकाम ही रहा हूँ.... फिर कैसे इस काम कर सकता हूँ....

मस्तु - भाई अपनेआप पर शक मत कर..... तुमने आज तक हर काम अधूरा छोड़ा है क्युकी उसमे तुम्हारा नहीं मन था.... मगर मैं जानता हूँ तुम इसे अच्छे से पूरा कर सकते हो.... जहाँ तक बात प्यार की है तो देखना इसके बाद तुम्हारे रिश्ते मे गहराइ और सोच मे पवित्रता आएगी.... तुम पहले की तुलना मे अधिक प्रेम करोगे अपनी माँ से..... और ये हम दावे के साथ कह सकते है... आशु हमने एक दो बार तुम्हे तुम्हारी प्रकर्तिक हालत मे देखा है और हम सर्त लगा सकते है की तुम किसी भी औरत को खुश रख सकते हो...

अंशुल - तुमने कब मुझे नंगा देख लिया?

मस्तु - भाई तुम्हे कितने बार बोले थे बाथरूम का दरवाजा लगा कर नहाना कर... अब नज़र पड़ ही जाती है...

अंशुल - तुम्हे सच मे लगता है मैं अपनी माँ को खुश रखता हूँ जैसे तुम आंटी को रखते हो?

मस्तु अपना लिंग निकालते हुए - भाई मेरा 7 इंच लम्बा और ढाई इंचाई मोटा है.... और मुझे लगता है की तुम्हरा मुझसे ज्यादा बड़ा है.... इसलिए तुम अपनी तो क्या मेरी माँ को भी खुश रख सकते हो... किसी भी लड़की को खुश रखा सकते हो...

अंशुल मस्तु का देखकर अपना भी निकाल लेता है और मस्तु उसे देखकर कहता है - कहा था ना भाई.... देखने लगता है 8-9 इंच से कम लम्बा नहीं होगा और 3 साढ़े 3 इंच से कम मोटा नहीं होगा....

अंशुल अपना वापस अंदर डाल लेता है...



अंशुल - पर भाई शुरुआत कैसे करूंगा? मेरी तो हिम्मत ही नहीं होगी कुछ करने की.... समझ नहीं आ रहा क्या कहूंगा माँ से? अगर उन्हें मेरी किसी बात का बुरा लगा गया तो? मुझे तो बहुत डर लग रहा है... कुछ समझ नहीं आ रहा मस्तु....

मस्तु - भाई... अभी से इतना डर? तू सबसे पहले तो दिल से डर निकाल दे... समझा? और जाते ही सब थोड़ी होगा.... भाई धीरे धीरे शुरुआत करनी होगी.... तुमने बताया तुम्हारी माँ पूरा दिन घर पर अकेली रहती तो अकेले बोर हो जाती होगी दिल नहीं लगता होगा.... तू उनसे बात करना शुरु कर किसी भी बारे मे... सारा दिन आगे पीछे घूम.... उनका ख्याल रख जैसे उनके अलावा तेरी लाइफ और कुछ है ही नहीं... फिर देखना सब अपने आप हो जाएगा.... पर एक बात याद रखना आशु.... कभी भी जल्दबाजी मत करना वरना सब बिगड़ जाएगा....

अंशुल - मुझसे हो पायेगा ये सब?

मस्तु - सब होगा..... हर औरत को पैसो से प्यार होता है तू थोड़ा बहुत उनपर खर्चा करेगा उन्हें सर सपाटा कराएगा तो सब होगा....

अंशुल अपना फ़ोन उठाते हुए - समझ गया मस्तु...... अच्छा पैसे भेज रहा हूँ तेरे **** पर.... आंटी को इस बार एक बढ़िया सी महँगी बनारसी साडी दिलवा देना मेरी तरफ से... और एक अच्छा सा मोटा मुलायम गद्दा भी खरीद लेना.... बेचारी चमेली आंटी इस पुराने ठोस बिस्तर पर रातभर परेशान हो जाती होंगी....

मस्तु - थेंक्स भाई.... देखना एक दिन तेरा सारा अहसान सूत समेत वापस करूंगा...

अंशुल - पहले ****** बन तो जा....

मस्तु - मैं तो बन जाऊंगा भाई तू भी कुछ सोच ले.... एक छोटी मोटी सरकारी जॉब की तयारी तू भी कर ले...

अंशुल हसते हुए - मुझसे कहा तयारी होगी भाई तू तो जानता है मैं पढ़ाई मे कितना तेज़ हूँ.....

मस्तु - भाई तेरा ****** सब्जेक्ट बहुत स्ट्रांग है ****** मे वेकन्सी निकली है फॉर्म लगा दे थोड़ी सी त्यारी करेगा तो निकाल लेगा... और एक बार पहला पेपर निकला तो असद भाई का बहुत स्ट्रांग जुगाड़ है ऊपर तक.... दूसरे पेपर मे पैसे देके सब हो जाएगा....

अंशुल - भाई जितनी तनख्वाह मिलेगी उतना मैं वैसे ही कुछ दिनों मे ट्रेडिंग से कमा लूंगा.... क्यूँ फालतू अपना सर खर्चा करू इन सब मे? वैसे भी कोनसे बड़े ओहदे की नोकरी होगी? ज्यादा से ज्यादा किसी अफसर की चाटने का काम मिलेगा....

मस्तु - तुमने ठीक से नहीं सुना भाई.... ये ****** वाली नौकरी है.. लोग तुम्हारे नीचे काम करेंगे.... तुम्हरे कहने पर काम करेंगे.... तुम्हारे पास अपने से नीचे के लोगों को ससपेंड करने की पावर होगी....

तुम्हारे नाम की मुहर लगेगी सरकारी कागज पर....



अंशुल मुहर शब्द सुनकर अपनी पुरानी याद के सागर मे डूब जाता है जहाँ उसे एक सरकारी दफ़्तर याद आता है जहा वो अपने बचपन मे अपनी माँ और पापा के साथ गया था..

हर तरफ फाइल्स के ढेर और मोटी तोंद लटकाए सरकारी कर्मी उसकी आँखों के सामने आज भी उसी तरह बैठे थे जैसे की बचपन मे उसने देखा था..

अपनी जमीन के एक छोटे से काम के सिलसिले मे दर्जनों बार अंशुल को कभी बालचंद तो कभी पदमा के साथ उस सरकारी दफ़्तर के चक्कर लगाने पड़े थे...

ना जाने कितनी ही बार अंशुल ने छोटे मोटे सरकारी नौकरो से अपने माँ बाप को खरी खोटी सुनते देखा था घुस नहीं दे पाने के कारण वो जमीन वापस न मिल सकती थी..

बालचंद खुद भी एक दफ़्तर मे सरकारी चपरासी था लेकिन उसकी पहुंच उसीके कद वाले लोगों तक थी दफ़्तर मे कोई उसे मुँह तक नहीं लगाता था तो बड़े बाबू से शिफारिश करना भी उसके बस की बात नहीं थी और वैसे भी ये काम किसी बाबू के कहने पर होने वाला नहीं था.... या तो बालचंद को मोटी घुस देनी पडती या किसी बड़े अधिकारी से सिफारिश लगवानी पडती जो दोनों ही उसके बुते के बाहर की चीज थी...



अंशुल को आज भी साफ साफ एक एक शब्द याद है जो उस वक़्त टेबल पर बैठे आदमी ने उसके माँ बाप से कहे थे....



अरे चलो चलो.... निकलो यहां से....

एक बार कह दिया ना तुम्हरा काम नहीं हो सकता....

एक बार का समझ नहीं आता है तुमको?

फिर कहे बार बार अपनी ये मनहूस शकल लेकर बेज्जती करवाने चले आते हो सुबह सुबह?

और कोई काम धंधा नहीं है तुम लोगों को?

चलो अब दफा हो जाओ यहां से....

दूसरा सरकारी आदमी आकर बैठते हुए बोला....

तुम तो ***** मे सरकारी चपरासी हो ना बालचंद? फिर भी तुम्हे सरकारी नियम कायदा समझना पड़ेगा?

अरे या तो हमारे साब के लिए बताई हुई भेंट का बंदोबस्त करो या किसी बड़े ओहदे के अफसर से सिफारिस लगवाओ जिसके पास सरकारी मुहर हो..... तभी तुम्हारा काम हो पायेगा....... समझें?



मुहर...... हां.... मुहर..... एक यही शब्द था जो अंशुल के दिल मे उस दिन घर कर गया था..

कितनी शर्मिंदा हुई थी उसकी माँ पादमा.... घर आने के बाद बेचारी ने जमीन छीन जाने के ग़म मे आंसू की नदिया बहा दी थी......

उस वक़्त अंशुल सिर्फ दस बरस का था उसे अपने सामने हो रही किसी भी चीज को उतनी गहराइ से समझने की अकल नहीं थी लेकिन उसे इतना समझ जरुर आ गया था की कोई बड़ा आदमी जिसके पास मुहर हो वो उसके माँ बाप का काम कर सकता था...



अंशुल ने उस दिन अपनी माँ पदमा को आंसू पोछते हुए कहा था....

रो मत माँ.....

मैं जब बड़ा हो जाऊंगा तो एक बड़ा अफसर बनुगा.. और मुहर वाली नोकरी करूँगा....

और फिर अपनी जमीन सरकार से वापस लेकर आपको दे दूंगा....

और उस गंदे आदमी को सबक भी सिखाऊंगा जिसने आपको रुलाया है.....

आप रोओ मत..... मैं बड़ा होकर सब ठीक कर दूंगा..



पदमा ने उस वक़्त छोटे से आँशु का चेहरा चूमते हुए उसे अपनी छाती से लगा लिया था और बहुत देर तक यूँही बैठी रही थी वो..



मगर वक़्त के साथ अंशुल के दिमाग से मुहर वाली नोकरी करने का ख्याल भी निकाल गया और पदमा के जहन से अंशुल की वो बातें जो उसने बचपने मे कही थी.....

मगर आज अंशुल के जहन मे वो सब फिर से ताज़ा हो व्यक्ति था....

अंशुल ने मस्तु से पूछा - अगर मैंने दोनों पेपर निकाल लिये तो क्या मुझे अपने जिले के ***** मे पोस्टिंग मिलेगी?

मस्तु हसते हुए - पैसे से क्या कुछ नहीं हो सकता अंशु.... यही तो हमारे सिस्टम की सबसे बड़ी खूबी और कमी है.....

अंशुल - **** पैसे और भेज रहा हूँ.... तू आज ही मेरा फॉर्म फीलअप कर दे.... और शाम को किताबें भी ले आना.... मैं घर जाकर दोनों काम एक साथ करुंगा.



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Xforum pr Advertisement bahut jyada aa rhe h yaar kisike pass solution h btana

Flashback on the way ab maza aayega nice update bro 👍❤️
 
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