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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

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सच में। समय निकाल कर, मूड बना कर, आपकी कहानी पढ़ने का मज़ा ही अलग होता हैं।
वैसे तो सब नियति के हाथों में हैं।
जब जब जो जो होता हैं, तब तब सो सो होता हैं।
धन्यवाद जी यू ही चंद लाइने लिखकर अपने सुझाव और प्रतिक्रिया देते रहे
 

Lovely Anand

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[/QUOTE]
आपका स्वागत है

अगला अपडेट कल शाम तक आ जाएगा...
 

Lovely Anand

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भाग 55

अब तक आपने पढा...

कल व्रत करने के पश्चात आज सुगना ने अपनी सहेली लाली और सोनू के प्रेम और सहयोग से बनी रोटियां कुछ ज्यादा ही खा ली थी भोजन ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। सुगना जम्हाई भरने लगी। दिमाग में चल रहा द्वंद्व भी कुछ हद तक शांत हो गया था।

सुगना लाली के बिस्तर पर लेट गई और छोटे सूरज ने करीब आकर उसकी चूचियां बाहर निकाल ली और दुग्ध पान करने लगा सुगना धीरे धीरे सुखद नींद की आगोश में चली गई परंतु उसका अवचेतन मन अब भी जागृत था।


अब आगे…..

धान की लहराती फसलों के बीच बनी कुटिया में खड़ी सुगना धरती पर बिछी हरियाली को देख रही थी जहां तक उसकी नजर आती धान के कोमल पौधे धरती पर मखमली घास की तरह दिखाई पड़ रहे थे। खेतों में एड़ी भर पानी लगा हुआ था। इन्हीं खेतों मे वह सोनू तथा अपनी छोटी बहनों सोनी और मोनी के साथ खेला करती थी। सुगना अपने बचपन की खूबसूरत यादों में खोई हुई थी परंतु उसके मन में विद्यानंद की बात गूंज रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसके दिमाग की शांति में ड्रम बजा कर कोई खलल डाल रहा हो। सुगना के मस्तिष्क में जितनी शांति और सुंदरता थी, मन में उतना ही उद्वेग और अस्थिरता.

विद्यानंद की आवाज उसके दिमाग में और भी तीव्र होती गई तुम्हें गर्भधारण करना ही होगा अन्यथा अपने पुत्र के साथ संभोग कर तुम्हें उसे मुक्ति दिलानी होगी यह आवाज अब सुगना को डराने लगी थी। जैसे-जैसे वह आवाज तीव्र होती गई सुगना की आंखों के सामने दृश्य बदलते गए वह मुड़ी और कुटिया की चारपाई पर एक युगल को देख आश्चर्यचकित हो गयी.

चारपाई पर लेटा हुआ युवक पूरी तरह नग्न था। सुगना को उस पुरुष की कद काठी जानी पहचानी लग रही थी परंतु चेहरे पर अंधेरा कायम था वह अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर उस व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी परंतु वह चाह कर भी उसे पहचान न सकी।

चारपाई पर बैठी हुई युवती का चेहरा भी अंधेरे में डूबा हुआ था परंतु उसकी कद काठी से सुगना ने उसे पहचान लिया और बोली..

"लाली... ये कौन है"

लाली ने न कोई उत्तर न दिया न उसकी तरफ देखा। वह उस युवक के लण्ड से खेल रही थी। वह चर्म दंड बेहद आकर्षक और लुभावना था। जैसे-जैसे अपनी उंगलियों और हथेलियों से उसे सहलाती वह अपना आकार बढ़ा रहा था और कुछ ही देर में वह पूरी तरह तन कर खड़ा हो गया।

उस गेहूंये रंग के या चर्म दंड पर उस स्त्री की गोरी उंगलियां बेहद खूबसूरत लग रही थी। उस स्त्री ने लंड की चमड़ी को नीचे खींचकर सुपाड़े को अनावृत करने का प्रयास कर रही थी। बेहद सुंदर और सुडोल था उस लण्ड का सुपाड़ा। लण्ड की चमड़ी पूरी तरह उस सुपाड़े को अपने आगोश में ली हुई थी। उस स्त्री को सुपारी को अनावृत करने में अपनी उंगलियों का दबाव लगाना पड़ रहा था। लण्ड का सुपाड़ा किसी नववधू के चेहरे की तरह अनावृत हो रहा था।

सुगना एक स्त्री को पुरुष का हस्तमैथुन करते देख शर्मा रही थी परंतु ध्यान मग्न होकर वह दृश्य देख रही थी उसका सारा आकर्षण अब उस लण्ड और उस पर घूमती उस स्त्री की उंगलियों पर केंद्रित था। लण्ड का सुपाड़ा पूरी तरह अनावृत होते ही सुगना उसकी खूबसूरती मैं खो गई। उस पुरुष का तना हुआ लण्ड जितना सुदृढ़ और मजबूत प्रतीत हो रहा था उतना ही कोमल उसका सुपाड़ा था। सुगना की उंगलियां फड़फड़ाने लगी वह उस लिंग को अपने हाथों से छूना चाहती थी और उसकी मजबूती और कोमलता दोनों को एक साथ महसूस करना चाहती थी।

सुगना की आंखें अब भी उस पुरुष को पहचानने की कोशिश कर रही थी। जैसे-जैसे उस स्त्री की उंगलियां लण्ड पर घूमती गई उस युवक के शरीर में ऐठन सी होने लगी। वह कभी अपने पैर फैलाता कभी पैर की उंगलियों को तान लेता कभी सिकोड़ता।

उस स्त्री की उंगलियों के जादू में उस युवक की तड़प बढ़ा दी थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उस युवक की जान उस लण्ड में केंद्रित हो गई थी।

सुगना यह दृश्य देखकर पानी पानी हो गई उस पर उसकी उत्तेजना हावी हो चली थी। सुगना की बुर पनिया गई थी जैसे-जैसे वह युवक इस स्खलन के करीब पहुंच रहा था सुगना के मन में चल रही उत्तेजना अपने चरम पर पहुंच रही थी।

तभी उसे आवाज सुनाई दी

"ए सुगना आ जा" उस स्त्री की आवाज गूंजती हुई प्रतीत हुई एक पल के लिए सुगना को वह आवाज लाली की लगी।

सुगना यंत्रवत उस स्त्री के बेहद करीब पहुंच गई।

उस स्त्री ने अपने दूसरे हाँथ से सुगना के घागरे को ऊपर करने की कोशिश की। सुगना ने उसके इशारे को समझा और अपने दोनों हथेलियों से घागरे को अपनी कमर तक खींच लिया। सुगना की जाँघे और उसके जोड़ पर बना घोंसला नग्न हो गया। छोटे छोटे बालों के झुरमुट से झांकती हुई उसके बुर की दोनों फांके खुली हुयी थी तथा उस पर छलक आया रस नीचे आने गिरने के लिए बूंद का रूप ले चुका था।

लाली ने हथेली से सुगना के बुर् के होठों को छू कर न सिर्फ उस बूंद को अपनी हथेलियों का सहारा दिया अपितु होठों पर छलका मदन रस चुरा लिया । उस स्त्री की कोमल उंगलियों का स्पर्श अपने सबसे कोमल अंग पर पाकर सुगना सिहर उठी उसने अपनी जांघें सिकोड़ी और कमर को थोड़ा पीछे कर लिया परंतु कुछ न बोली नहीं ।

अपने होठों को अपने ही दातों में दबाए सुगाना यह दृश्य मंत्रमुग्ध होकर देख रही थी। स्त्री ने सुगना के प्रेम रस से भीगी हुई उंगलियां वापस उस युवक के लण्ड पर सटा दी सुगना के प्रेम रस ने स्नेहक का कार्य किया और उसी युवक का लण्ड इस चिकने दृव्य से चमकने लगा। स्त्री की उंगलियां अब बेहद आसानी से उस मजबूत लण्ड पर फिसलने लगीं उत्तेजना चरम पर थी।

जब जब उस स्त्री की हथेलियां लण्ड के सुपारे पर पहुंचती वह युवक उत्तेजना से सिहर उठता स्त्री अपने अंगूठे से सुपारे के निचले भाग को जैसे ही सहलाती युवक फड़फड़ाने लगता ... उसके मुंह से आह... की मधुर आवाज सुनाई पड़ती वह कभी अपने मजबूत हाथों से उस स्त्री के हाथों को पकड़ने की कोशिश करता कभी हटा लेता।

स्त्री बीच-बीच में सुगना की बुर से प्रेम रस चुराती और उस युवक ने लण्ड पर मल कर उसे उत्तेजित करती रहती। जब बुर् के होठों से प्रेम रस खत्म हुआ तो उसकी उंगलियां सुगना की बुर की गहराइयों में उतरकर प्रेम रस खींचने का प्रयास करने लगीं।

अपने बुर पर हथेलियों और उंगलियों के स्पर्श से सुगना स्वयं भी स्खलन के करीब पहुंच रही थी। यह दृश्य जितना मनोरम था उतना ही उस स्त्री का स्पर्श भी। वह युवक स्त्री की उंगलियों के खेल को ज्यादा देर तक न झेल पाया और लण्ड ने वीर्य की धार छेड़ दी।

वीर्य की पहली धार उछल कर ऊपर की तरफ गई और सुगना की आंखों को के सामने से होते हुए वापस उस युवक की जांघों पर ही गिर पड़ी। अब तक वह स्त्री सचेत हो चुकी थी और उसमें उस युवक के वीर्य पर अपनी हथेलियों का आवरण लगा दिया था। उस स्त्री की दोनों हथेलियां वीर्य से पूरी तरह सन गयी थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने मक्खन में हाथ डाल दिया हो। वह सुगना की तरफ मुड़ी और उसकी बुर में अपनी उंगलियां बारी-बारी से डालने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह उस वीर्य को सुनना की बुर में भरना चाह रही थी। सुगना अपनी जाघें फैलाएं उस अद्भुत निषेचन क्रिया को महसूस कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी।

तभी उसे युवक की आवाज सुनायी दी..

"लाली दीदी आपके हाथों में भी जादू है"

सोनू की आवाज सुन सुगना बेहद घबरा गयी उसने अपना लहंगा नीचे किया और उस कुटिया से भागती हुई खेतों की तरफ दौड़ पड़ी वह भागे जा रही थी उसे लग रहा था जैसे सोनू उसका पीछा कर रहा है वह किसी भी हालत में उसके समक्ष नहीं आना चाहती थी मर्यादा की जो दीवार उन दोनों के बीच थी उस दीवार की पवित्रता वह कतई भंग नहीं करना चाहती सुगना भागी जा रही थी।

अचानक सामने से आ रहे व्यक्ति ने सुगना को रोका और अपने आगोश में ले लिया सुगना उस बलिष्ठ अधेड़ के सीने से सट गई और बोली "बाबूजी…."

सुगना की नींद खुल चुकी थी उसने अगल-बगल देखा सूरज बगल में सो रहा था सुगना की दोनों चूचियां अभी भी अनाव्रत थी. सुगना अपने स्वप्न से जाग चुकी थी और मुस्कुरा रही थी।

सुगना की आवाज सुनकर लाली कमरे में आ गई और बोली

"का भईल सुगना"

सुगना ने कोई उत्तर न दिया परंतु उठकर अपनी चुचियों को ब्लाउज में कैद करते हुए बोली…

" तोरा बिस्तर पर हमेशा उल्टा सीधा सपना आवेला"

लाली उल्टा सीधा का मतलब बखूबी समझती थी उसने मुस्कुराते हुए कहां

"क्या जाने इसी बिस्तर पर तेरा सपना पूरा हो"

सुगना को अपनी जांघों के बीच चिपचिपा पन महसूस हो रहा था अपने ही स्वप्न से वह पूरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी वह उठकर बाथरूम में चली गई।

उसके अंतर्मन में हलचल थी पर वह अपने स्वप्न और हकीकत के अंतर को समझ रही थी।

अपने उधेड़बुन में खोई हुई सुगना ने अपनी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर किया और खुद को तनाव मुक्त करने के लिए जमीन पर मूत्र विसर्जन के लिए बैठ गई जैसे ही मूत्र की धार ने होठों पर रिसा आये मदन रस को खुद में समाहित करते हुए गुसलखाने के फर्श गिरी

बाहर दरवाजे पर खट खट..की आवाज हुई.

सुगना संभल गई उसने अपने मूत्र की धार को नियंत्रित करने की कोशिश की ताकि वह उससे उत्पन्न हो रही सुर्र …….की आवाज को धीमा कर सकें परंतु वह नाकामयाब रही। राजेश घर में आ चुका था…

बाथरूम से आ रही वह मधुर आवाज उसके भी कानों तक पडी..

बाथरूम में कौन है…?

राजेश ने कौतूहल बस धीमी आवाज में पूछा…

आपको कैसे पता कि बाथरूम में कोई है ? लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए कहा

राजेश ने लाली को खींच कर अपने सीने से सटा लिया और उसके कोमल उभारों को सहलाते हुए उसके कान में बोला…

"बहुत बदमाशी सूझ रही है"

जब तक राजेश लाली को अपने आलिंगन से अलग करता सुगना बाथरूम से बाहर आ चुकी थी।

सुगना आगे बढ़ी और राजेश के चरण छुए।

राजेश का ध्यान बरबस ही सुगना के भरे हुए नितंबों पर चला गया वह एक पल के लिए मंत्र मुक्त होकर उसे देखता रहा उसे यह ध्यान भी नहीं आया की उसकी साली उसके आशीर्वाद की प्रतीक्षा में है..

जीजा जी आशीर्वाद तो दीजिए सुगना ने झुकी अवस्था में ही कहा।

"अरे खूब खुश रही भगवान आपकी सारी मनोकामना पूरी करें"

सुगना मन ही मन सोच रही थी काश जीजा जी कोई सिद्ध पुरुष होते और उनके इस आशीर्वाद से ही वह गर्भवती हो जाती क्या कलयुग में किसी भी मनुष्य के पास जैसी दिव्य शक्तियां नहीं न थीं जैसी महाभारत काल में सिद्ध महापुरुषों के पास थीं।

सुगना के मन में ढेरों प्रसन्न थे बनारस महोत्सव का समय तेजी से बीत रहा था गर्भधारण का तनाव सुगना पर हावी हो रहा था परंतु अब भी गर्भधारण अभी उसके लिए एक दुरूह कार्य था उसके बाबूजी उसे मझधार में छोड़ कर अकेला चले गए थे। एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह कोई उपाय कर अपने बाबूजी के पास सलेमपुर चली जाए और वहां अपने बाबू जी के साथ एकांत में रात्रि प्रवास में जी भरकर सहवास करें और नियति द्वारा निर्धारित गर्भधारण कर सूरज की मुक्ति दायिनी का सृजन करें।

सुगना की सोच और हकीकत में अंतर था वाहन विहीन व्यक्ति के लिए थोड़ी दूरी भी दुरूह हो जाती है सुगना के लिए सलेमपुर पहुंचना बनारस से दिल्ली पहुंचने जैसा था और दिल्ली अभी दूर थी।

सुगना अपने ख्यालों में खोई हुई थी राजेश सुगना के खयालों में। लाली रसोई से पानी लेकर आई और राजेश को देते हुए बोली..

"लीजिए यह मीठा खाकर पानी पीजिए यह मिठाई ( सुगना की तरफ इशारा करते हुए) अभी खाने को नहीं मिलेगी"

राजेश और सुगना दोनों हंसने लगे सुगना लाली के पीछे आकर लाली की पीठ पर अपनी हथेलियों से मीठे प्रहार करने लगी।

राजेश जब स्नान करने गुसल खाने में घुसा तो लाली ने सुगना से कहा…

"बड़ा भाग से तोरा जीजा जी आ गए. कह तो उनके जोरन से तेरे पेट में दही जमा दूं"

(जोरन दही का एक छोटा भाग होता है जो दूध से दही जमाने के लिए दूध में डाला जाता है)

सुगना ने कुछ कहा तो नहीं परंतु मुस्कुरा कर अपनी दुविधा पूर्ण सहमति दे दी।

जैसे ही राजेश आराम करने के लिए अंदर गया लाली सुगना को रसोई में छोड़कर कमरे में आ गई। राजेश के वीर्य दोहन और सुगना के गर्भधारण के इस अनोखे तरीके को अंजाम देने के लिए लाली अपनी तैयारियां पूरी कर चुकी थी... लाली ने अंदर का दरवाजा सटा दिया था...

सुगना रसोई में बर्तन सजाते अपने कल के व्रत के बारे में सोच रही थी कहीं उससे व्रत में कोई गलती तो नहीं हो गई? उसके बाबूजी अचानक उसे छोड़कर क्यों चले गए? आज का दिन वह अपने बाबू जी से जी भर चुद कर गर्भधारण कर सकती थी। क्या भगवान उससे रुष्ट हो गए थे?

उसका दिल बैठा जा रहा था ऐसा लग रहा था जैसे उसके जीवन में कोई पुरुष बचा ही न था। अपने कामुक ख्यालों में कभी-कभी वह राजेश के साथ अंतरंग जरूर हुई थी परंतु हकीकत में राजेश और उसके बीच अब भी मर्यादा की लकीर कायम थी हालांकि यह लकीर अब बेहद महीन हो चुकी थी। राजेश तो सुगना को अपनी बाहों में लेने के लिए मचल रहा था सिर्फ और सिर्फ सुगना को ही अपनी रजामंदी देनी थी परंतु वह अभी भगवान से सरयू सिंह के वापस आने की प्रार्थना कर रही। लाली राजेश का वीर्य दोहन करने अंदर जा चुकी थी और कुछ ही देर में उसे अंदर जाना था।

क्या वह अपने गर्भ में राजेश का वीर्य लेकर गर्भधारण करेगी क्या यह उचित होगा? क्या भगवान ने उसके व्रत के फलस्वरूप ही राजेश को यहां भेजा है…

परिस्थितियां तेजी से बदल रही थी और सुगना के मनोभाव भी। सुगना ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था और वह लाली के खाँसने का इंतजार कर रही थी जिसे सुनकर उसे कमरे के अंदर प्रवेश करना था।

###################################

उधर सोनी रिक्शे में विकास के साथ बैठी हुई बनारस महोत्सव की तरफ जा रही थी उसे बार-बार अपनी उंगलियों में लगा हुआ चिपचिपा द्रव्य याद आ रहा था आखिर वह क्या था? जितना ही वह उसके बारे में सोचती उसके विचार में घृणा उत्पन्न होती उस किशोरी उस किशोरी ने तो आज तक कभी वीर्य को न देखा था और न हीं छुआ था। परंतु आज उसे अपने ही भाई के वीर्य को अपनी उंगलियों से अकस्मात ही छू लिया था। उस करिश्माई द्रव्य से सोनी कतई अनजान थी। जिस द्रव्य को सोनी अपनी अज्ञानता वश घृणा की निगाह से देख रही द्रव्य के अंश को सुगना अपने गर्भ में लेने के लिए सुगना तड़प रही थी।

उसने सोनू से पूछा

"भैया आप लाली दीदी के यहां हमेशा आते जाते हो?"

"क्यों तुझे क्यों जानना है?"

"ऐसी ही" सोनू ने उत्तर न दिया और अनमने मन से दूसरी तरफ देखने लगा उसे लगा जैसे लाली के घर आना जाना असामान्य था किसे सोनी ने अपने संज्ञान में ले लिया था।

"लगता है आजकल वर्जिश खूब हो रही है" सोनी ने सोनू की मजबूत भुजाओं को छूते हुए बोला

सोनू का ध्यान सोनी की तरफ गया उसके मुंह से अपनी तारीफ सुनकर सोनू खुश हो गया था।

सोनू ने रिक्शा रुकवाया और पास की दुकान से जाकर कुल्फी ले आया सोनी खुश हो गयी और कुल्फी खाने लगी। सोनी के गोल गोल होठों में कुल्फी देखकर सोनू के दिमाग में लाली घूमने लगी। वह देख तो सोनी की तरफ रहा था परंतु उसके दिमाग में लाली का भरा पूरा बदन घूमने लगा। कुल्फी चूसती हुई सोनी उसे लण्ड चूसती लाली दिखने लगी। अपनी ही छोटी बहन के प्रति उसके मन में बेहद अजीब ख्याल आने लगे।

उसका ध्यान सोनी के मासूम चेहरे से हटकर उसके शरीर पर चला गया जैसे जैसे वह सोनी को देखता गया उसे उसके उभारो का अंदाजा होता गया। सोनी अपनी अल्हड़ यौवन को भूलकर कुल्फी का आनंद ले रही थी। उसे क्या पता था की सोनु की नजरें आज पहली बार उसके शरीर का नाप ले रही थी।

"भैया आप भी अपनी कुल्फी खाइए पिघल रही है"

सोनी की बात सुनकर सोनु शर्मा गया एक पल के लिए उसे लगा जैसे सोनी ने उसके मनोभाव को पढ़ लिया है उसने अपना ध्यान हटाया और दोनों रिक्शा में बैठकर विद्यानंद के पंडाल की तरफ चल पड़े। अपनी मुंह बोली बहन लाली को चोद कर सोनू के दिमाग में बहन जैसे पावन रिश्ते के प्रति संवेदनशीलता कम हो रही थी।

सोनू ने सोनी को पंडाल तक छोड़ा और अपनी मां पदमा तथा कजरी से मिला। पद्मा ने सोनू को सदा खुश रहने और अच्छी नौकरी का आशीर्वाद दिया और अपने पिछले दिन के व्रत से अर्जित किए सारे पुण्य को अपने पुत्र पर उड़ेल दिया। पदमा को क्या पता था कि उसका पुत्र इस समय जीवन के सबसे अद्भुत सुख के रंग में रंगा हुआ अपनी मुंहबोली बहन लाली के जाँघों के बीच बहती दरिया में गोते लगा रहा है।

सोनू का मन पांडाल में नहीं लग रहा था उसे रह-रहकर लाली याद आ रही थी। हालांकि घर में उसकी बड़ी बहन सुगना भी मौजूद थी परंतु फिर भी वह लाली के मोहपाश से अपने आप को न रोक पाया और वापस लाली के घर जाने के लिए निकल पड़ा….

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उधर कजरी का व्रत सफल हो चुका था। कजरी ने जो मांगा था उसे शीघ्र मिलने वाला था।

मुंबई में रह रहा उसका पुत्र रतन बीती शाम बबीता से अपना पीछा छुड़ाकर गांव वापस आने के लिए तैयार था। उसने अपनी सारी जमा पूंजी इकट्ठा की और अपनी बड़ी पुत्री मिंकी को लेकर आज सुबह सुबह ट्रेन का इंतजार कर रहा था।

रतन के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सुगना घूम रही थी उसने कुछ दिनों पहले सूरज के लिए जो खिलौने और सुगना के लिए जो खत लिखा था उसका जवाब नहीं आया था, आता भी कैसे? रतन का पार्सल सलेमपुर के डाकखाने में एक कोने में पड़ा सरयू सिंह के परिवार के सदस्यों के आने का इंतजार कर रहा था।

रतन में मन ही मन फैसला कर लिया था कि वह सुगना के करीब आने और उसे मनाने की भरपूर कोशिश करेंगा यदि वह नहीं भी मानती है तब भी वह उससे एक तरफा प्यार करता रहेगा और उसे पत्नी होने का पूरा हक देगा। शारीरिक न सही परंतु स्त्री को जो पुरुष से संरक्षण प्राप्त होना चाहिए वह उसमें पूरी तरह खरा उतरेगा।

अपने चार-पांच सालों में सुगना के प्रति दिखाई बेरुखी को मिटा कर अपनी गलतियों का प्रायश्चित करना चाहता था। जैसे-जैसे उसका प्रेम सुनना के प्रति बढ़ रहा था नियति प्रसन्न हो रही थी। वह इस कहानी में उसकी भूमिका तलाश में लगी हुई थी।

रेलवे स्टेशन चूरमुरा खाते हुए। मिंकी ने पूछा

"पापा वहां पर कौन-कौन है. नई मम्मी मुझे परेशान तो नहीं करेगी. मम्मी कह रही थी कि नयी मम्मी तुझे बहुत मारेगी तू मत जा"

"बेटा तेरी नई मम्मी तुझे बहुत प्यार करेगी. वह बहुत अच्छी है... वहां गांव पर तेरे बाबा है दादी हैं और ढेर सारे लोग हैं. तुझे सब ढेर सारा प्यार करेंगे और एक छोटा भाई भी है सूरज तू उसे देख कर खुश हो जाएगी वह बहुत प्यारा है"

मिंकी खुश हो गई. उसे छोटे बच्चे बेहद प्यारे थे और यह बात उसे और भी अच्छी लग रही थी उसका कोई भाई होगा. मिंकी अपनी नई जिंदगी को सोच सोच कर खुश भी थी और आशान्वित भी। सूरज के चमत्कारी अंगूठी अंगूठे का एक और शिकार सलेमपुर पहुंचने वाला था नियति को अपनी कथा का एक और पात्र मिल रहा था और सुगना को उसका पति।

परंतु क्या सुगना रतन को अपना आएगी? क्या उसका गर्भधारण उसके पति द्वारा ही संपन्न होगा? क्या सुगना और रतन का मिलन अकस्मात ही हो जाएगा? सुगना जैसी संवेदनशील और मर्यादित युवती क्या अचानक ही रतन की बाहों में जाकर आनन-फानन में संभोग कर लेगी?

नियति सुगना के गर्भधारण का रास्ता बनाने में लगी हुई थी परंतु सुगना के भाग्य में जो लिखा वह टाला नहीं जा सकता था। सुगना था यह गर्भधारण उसे विद्यानंद के श्राप से मुक्ति दिला पाएगा इसकी संभावना उतनी ही थी जितनी गर्भधारण से पुत्र या पुत्री होने की। सुगना के भविष्य को भी सुगना के गर्भ के लिंग के तय होने का का इंतजार था।

###################################

परंतु लाली के घर में सुगना का इंतजार खत्म हो चुका था। लाली के खांसने की आवाज सुनकर सुगना का दिल तेजी से धड़कने लगा उसकी चूचियां और काम इंद्रियां सतर्क हो गई। आज पहली बार वह लाली के हाथों राजेश का वीर्य स्खलन देखने जा रही थी। देखने ही क्या उसे उस वीर्य को अपने गर्भ में आत्मसात भी करना था। सुगना का दिल और जिस्म एक दूसरे से सामंजस्य बैठा पाने में नाकाम थे। वह बदहवास सी अधूरे मन से गर्भधारण की आस लिए लाली के कमरे में प्रवेश कर गई...

शेष अगले भाग में...
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
2,201
6,987
159
भाग 55

अब तक आपने पढा...

कल व्रत करने के पश्चात आज सुगना ने अपनी सहेली लाली और सोनू के प्रेम और सहयोग से बनी रोटियां कुछ ज्यादा ही खा ली थी भोजन ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। सुगना जम्हाई भरने लगी। दिमाग में चल रहा द्वंद्व भी कुछ हद तक शांत हो गया था।

सुगना लाली के बिस्तर पर लेट गई और छोटे सूरज ने करीब आकर उसकी चूचियां बाहर निकाल ली और दुग्ध पान करने लगा सुगना धीरे धीरे सुखद नींद की आगोश में चली गई परंतु उसका अवचेतन मन अब भी जागृत था।


अब आगे…..

धान की लहराती फसलों के बीच बनी कुटिया में खड़ी सुगना धरती पर बिछी हरियाली को देख रही थी जहां तक उसकी नजर आती धान के कोमल पौधे धरती पर मखमली घास की तरह दिखाई पड़ रहे थे। खेतों में एड़ी भर पानी लगा हुआ था। इन्हीं खेतों मे वह सोनू तथा अपनी छोटी बहनों सोनी और मोनी के साथ खेला करती थी। सुगना अपने बचपन की खूबसूरत यादों में खोई हुई थी परंतु उसके मन में विद्यानंद की बात गूंज रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसके दिमाग की शांति में ड्रम बजा कर कोई खलल डाल रहा हो। सुगना के मस्तिष्क में जितनी शांति और सुंदरता थी, मन में उतना ही उद्वेग और अस्थिरता.

विद्यानंद की आवाज उसके दिमाग में और भी तीव्र होती गई तुम्हें गर्भधारण करना ही होगा अन्यथा अपने पुत्र के साथ संभोग कर तुम्हें उसे मुक्ति दिलानी होगी यह आवाज अब सुगना को डराने लगी थी। जैसे-जैसे वह आवाज तीव्र होती गई सुगना की आंखों के सामने दृश्य बदलते गए वह मुड़ी और कुटिया की चारपाई पर एक युगल को देख आश्चर्यचकित हो गयी.

चारपाई पर लेटा हुआ युवक पूरी तरह नग्न था। सुगना को उस पुरुष की कद काठी जानी पहचानी लग रही थी परंतु चेहरे पर अंधेरा कायम था वह अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर उस व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी परंतु वह चाह कर भी उसे पहचान न सकी।

चारपाई पर बैठी हुई युवती का चेहरा भी अंधेरे में डूबा हुआ था परंतु उसकी कद काठी से सुगना ने उसे पहचान लिया और बोली..

"लाली... ये कौन है"

लाली ने न कोई उत्तर न दिया न उसकी तरफ देखा। वह उस युवक के लण्ड से खेल रही थी। वह चर्म दंड बेहद आकर्षक और लुभावना था। जैसे-जैसे अपनी उंगलियों और हथेलियों से उसे सहलाती वह अपना आकार बढ़ा रहा था और कुछ ही देर में वह पूरी तरह तन कर खड़ा हो गया।

उस गेहूंये रंग के या चर्म दंड पर उस स्त्री की गोरी उंगलियां बेहद खूबसूरत लग रही थी। उस स्त्री ने लंड की चमड़ी को नीचे खींचकर सुपाड़े को अनावृत करने का प्रयास कर रही थी। बेहद सुंदर और सुडोल था उस लण्ड का सुपाड़ा। लण्ड की चमड़ी पूरी तरह उस सुपाड़े को अपने आगोश में ली हुई थी। उस स्त्री को सुपारी को अनावृत करने में अपनी उंगलियों का दबाव लगाना पड़ रहा था। लण्ड का सुपाड़ा किसी नववधू के चेहरे की तरह अनावृत हो रहा था।

सुगना एक स्त्री को पुरुष का हस्तमैथुन करते देख शर्मा रही थी परंतु ध्यान मग्न होकर वह दृश्य देख रही थी उसका सारा आकर्षण अब उस लण्ड और उस पर घूमती उस स्त्री की उंगलियों पर केंद्रित था। लण्ड का सुपाड़ा पूरी तरह अनावृत होते ही सुगना उसकी खूबसूरती मैं खो गई। उस पुरुष का तना हुआ लण्ड जितना सुदृढ़ और मजबूत प्रतीत हो रहा था उतना ही कोमल उसका सुपाड़ा था। सुगना की उंगलियां फड़फड़ाने लगी वह उस लिंग को अपने हाथों से छूना चाहती थी और उसकी मजबूती और कोमलता दोनों को एक साथ महसूस करना चाहती थी।

सुगना की आंखें अब भी उस पुरुष को पहचानने की कोशिश कर रही थी। जैसे-जैसे उस स्त्री की उंगलियां लण्ड पर घूमती गई उस युवक के शरीर में ऐठन सी होने लगी। वह कभी अपने पैर फैलाता कभी पैर की उंगलियों को तान लेता कभी सिकोड़ता।

उस स्त्री की उंगलियों के जादू में उस युवक की तड़प बढ़ा दी थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उस युवक की जान उस लण्ड में केंद्रित हो गई थी।

सुगना यह दृश्य देखकर पानी पानी हो गई उस पर उसकी उत्तेजना हावी हो चली थी। सुगना की बुर पनिया गई थी जैसे-जैसे वह युवक इस स्खलन के करीब पहुंच रहा था सुगना के मन में चल रही उत्तेजना अपने चरम पर पहुंच रही थी।

तभी उसे आवाज सुनाई दी

"ए सुगना आ जा" उस स्त्री की आवाज गूंजती हुई प्रतीत हुई एक पल के लिए सुगना को वह आवाज लाली की लगी।

सुगना यंत्रवत उस स्त्री के बेहद करीब पहुंच गई।

उस स्त्री ने अपने दूसरे हाँथ से सुगना के घागरे को ऊपर करने की कोशिश की। सुगना ने उसके इशारे को समझा और अपने दोनों हथेलियों से घागरे को अपनी कमर तक खींच लिया। सुगना की जाँघे और उसके जोड़ पर बना घोंसला नग्न हो गया। छोटे छोटे बालों के झुरमुट से झांकती हुई उसके बुर की दोनों फांके खुली हुयी थी तथा उस पर छलक आया रस नीचे आने गिरने के लिए बूंद का रूप ले चुका था।

लाली ने हथेली से सुगना के बुर् के होठों को छू कर न सिर्फ उस बूंद को अपनी हथेलियों का सहारा दिया अपितु होठों पर छलका मदन रस चुरा लिया । उस स्त्री की कोमल उंगलियों का स्पर्श अपने सबसे कोमल अंग पर पाकर सुगना सिहर उठी उसने अपनी जांघें सिकोड़ी और कमर को थोड़ा पीछे कर लिया परंतु कुछ न बोली नहीं ।

अपने होठों को अपने ही दातों में दबाए सुगाना यह दृश्य मंत्रमुग्ध होकर देख रही थी। स्त्री ने सुगना के प्रेम रस से भीगी हुई उंगलियां वापस उस युवक के लण्ड पर सटा दी सुगना के प्रेम रस ने स्नेहक का कार्य किया और उसी युवक का लण्ड इस चिकने दृव्य से चमकने लगा। स्त्री की उंगलियां अब बेहद आसानी से उस मजबूत लण्ड पर फिसलने लगीं उत्तेजना चरम पर थी।

जब जब उस स्त्री की हथेलियां लण्ड के सुपारे पर पहुंचती वह युवक उत्तेजना से सिहर उठता स्त्री अपने अंगूठे से सुपारे के निचले भाग को जैसे ही सहलाती युवक फड़फड़ाने लगता ... उसके मुंह से आह... की मधुर आवाज सुनाई पड़ती वह कभी अपने मजबूत हाथों से उस स्त्री के हाथों को पकड़ने की कोशिश करता कभी हटा लेता।

स्त्री बीच-बीच में सुगना की बुर से प्रेम रस चुराती और उस युवक ने लण्ड पर मल कर उसे उत्तेजित करती रहती। जब बुर् के होठों से प्रेम रस खत्म हुआ तो उसकी उंगलियां सुगना की बुर की गहराइयों में उतरकर प्रेम रस खींचने का प्रयास करने लगीं।

अपने बुर पर हथेलियों और उंगलियों के स्पर्श से सुगना स्वयं भी स्खलन के करीब पहुंच रही थी। यह दृश्य जितना मनोरम था उतना ही उस स्त्री का स्पर्श भी। वह युवक स्त्री की उंगलियों के खेल को ज्यादा देर तक न झेल पाया और लण्ड ने वीर्य की धार छेड़ दी।

वीर्य की पहली धार उछल कर ऊपर की तरफ गई और सुगना की आंखों को के सामने से होते हुए वापस उस युवक की जांघों पर ही गिर पड़ी। अब तक वह स्त्री सचेत हो चुकी थी और उसमें उस युवक के वीर्य पर अपनी हथेलियों का आवरण लगा दिया था। उस स्त्री की दोनों हथेलियां वीर्य से पूरी तरह सन गयी थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने मक्खन में हाथ डाल दिया हो। वह सुगना की तरफ मुड़ी और उसकी बुर में अपनी उंगलियां बारी-बारी से डालने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह उस वीर्य को सुनना की बुर में भरना चाह रही थी। सुगना अपनी जाघें फैलाएं उस अद्भुत निषेचन क्रिया को महसूस कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी।

तभी उसे युवक की आवाज सुनायी दी..

"लाली दीदी आपके हाथों में भी जादू है"

सोनू की आवाज सुन सुगना बेहद घबरा गयी उसने अपना लहंगा नीचे किया और उस कुटिया से भागती हुई खेतों की तरफ दौड़ पड़ी वह भागे जा रही थी उसे लग रहा था जैसे सोनू उसका पीछा कर रहा है वह किसी भी हालत में उसके समक्ष नहीं आना चाहती थी मर्यादा की जो दीवार उन दोनों के बीच थी उस दीवार की पवित्रता वह कतई भंग नहीं करना चाहती सुगना भागी जा रही थी।

अचानक सामने से आ रहे व्यक्ति ने सुगना को रोका और अपने आगोश में ले लिया सुगना उस बलिष्ठ अधेड़ के सीने से सट गई और बोली "बाबूजी…."

सुगना की नींद खुल चुकी थी उसने अगल-बगल देखा सूरज बगल में सो रहा था सुगना की दोनों चूचियां अभी भी अनाव्रत थी. सुगना अपने स्वप्न से जाग चुकी थी और मुस्कुरा रही थी।

सुगना की आवाज सुनकर लाली कमरे में आ गई और बोली

"का भईल सुगना"

सुगना ने कोई उत्तर न दिया परंतु उठकर अपनी चुचियों को ब्लाउज में कैद करते हुए बोली…

" तोरा बिस्तर पर हमेशा उल्टा सीधा सपना आवेला"

लाली उल्टा सीधा का मतलब बखूबी समझती थी उसने मुस्कुराते हुए कहां

"क्या जाने इसी बिस्तर पर तेरा सपना पूरा हो"

सुगना को अपनी जांघों के बीच चिपचिपा पन महसूस हो रहा था अपने ही स्वप्न से वह पूरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी वह उठकर बाथरूम में चली गई।

उसके अंतर्मन में हलचल थी पर वह अपने स्वप्न और हकीकत के अंतर को समझ रही थी।

अपने उधेड़बुन में खोई हुई सुगना ने अपनी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर किया और खुद को तनाव मुक्त करने के लिए जमीन पर मूत्र विसर्जन के लिए बैठ गई जैसे ही मूत्र की धार ने होठों पर रिसा आये मदन रस को खुद में समाहित करते हुए गुसलखाने के फर्श गिरी

बाहर दरवाजे पर खट खट..की आवाज हुई.

सुगना संभल गई उसने अपने मूत्र की धार को नियंत्रित करने की कोशिश की ताकि वह उससे उत्पन्न हो रही सुर्र …….की आवाज को धीमा कर सकें परंतु वह नाकामयाब रही। राजेश घर में आ चुका था…

बाथरूम से आ रही वह मधुर आवाज उसके भी कानों तक पडी..

बाथरूम में कौन है…?

राजेश ने कौतूहल बस धीमी आवाज में पूछा…

आपको कैसे पता कि बाथरूम में कोई है ? लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए कहा

राजेश ने लाली को खींच कर अपने सीने से सटा लिया और उसके कोमल उभारों को सहलाते हुए उसके कान में बोला…

"बहुत बदमाशी सूझ रही है"

जब तक राजेश लाली को अपने आलिंगन से अलग करता सुगना बाथरूम से बाहर आ चुकी थी।

सुगना आगे बढ़ी और राजेश के चरण छुए।

राजेश का ध्यान बरबस ही सुगना के भरे हुए नितंबों पर चला गया वह एक पल के लिए मंत्र मुक्त होकर उसे देखता रहा उसे यह ध्यान भी नहीं आया की उसकी साली उसके आशीर्वाद की प्रतीक्षा में है..

जीजा जी आशीर्वाद तो दीजिए सुगना ने झुकी अवस्था में ही कहा।

"अरे खूब खुश रही भगवान आपकी सारी मनोकामना पूरी करें"

सुगना मन ही मन सोच रही थी काश जीजा जी कोई सिद्ध पुरुष होते और उनके इस आशीर्वाद से ही वह गर्भवती हो जाती क्या कलयुग में किसी भी मनुष्य के पास जैसी दिव्य शक्तियां नहीं न थीं जैसी महाभारत काल में सिद्ध महापुरुषों के पास थीं।

सुगना के मन में ढेरों प्रसन्न थे बनारस महोत्सव का समय तेजी से बीत रहा था गर्भधारण का तनाव सुगना पर हावी हो रहा था परंतु अब भी गर्भधारण अभी उसके लिए एक दुरूह कार्य था उसके बाबूजी उसे मझधार में छोड़ कर अकेला चले गए थे। एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह कोई उपाय कर अपने बाबूजी के पास सलेमपुर चली जाए और वहां अपने बाबू जी के साथ एकांत में रात्रि प्रवास में जी भरकर सहवास करें और नियति द्वारा निर्धारित गर्भधारण कर सूरज की मुक्ति दायिनी का सृजन करें।

सुगना की सोच और हकीकत में अंतर था वाहन विहीन व्यक्ति के लिए थोड़ी दूरी भी दुरूह हो जाती है सुगना के लिए सलेमपुर पहुंचना बनारस से दिल्ली पहुंचने जैसा था और दिल्ली अभी दूर थी।

सुगना अपने ख्यालों में खोई हुई थी राजेश सुगना के खयालों में। लाली रसोई से पानी लेकर आई और राजेश को देते हुए बोली..

"लीजिए यह मीठा खाकर पानी पीजिए यह मिठाई ( सुगना की तरफ इशारा करते हुए) अभी खाने को नहीं मिलेगी"

राजेश और सुगना दोनों हंसने लगे सुगना लाली के पीछे आकर लाली की पीठ पर अपनी हथेलियों से मीठे प्रहार करने लगी।

राजेश जब स्नान करने गुसल खाने में घुसा तो लाली ने सुगना से कहा…

"बड़ा भाग से तोरा जीजा जी आ गए. कह तो उनके जोरन से तेरे पेट में दही जमा दूं"

(जोरन दही का एक छोटा भाग होता है जो दूध से दही जमाने के लिए दूध में डाला जाता है)

सुगना ने कुछ कहा तो नहीं परंतु मुस्कुरा कर अपनी दुविधा पूर्ण सहमति दे दी।

जैसे ही राजेश आराम करने के लिए अंदर गया लाली सुगना को रसोई में छोड़कर कमरे में आ गई। राजेश के वीर्य दोहन और सुगना के गर्भधारण के इस अनोखे तरीके को अंजाम देने के लिए लाली अपनी तैयारियां पूरी कर चुकी थी... लाली ने अंदर का दरवाजा सटा दिया था...

सुगना रसोई में बर्तन सजाते अपने कल के व्रत के बारे में सोच रही थी कहीं उससे व्रत में कोई गलती तो नहीं हो गई? उसके बाबूजी अचानक उसे छोड़कर क्यों चले गए? आज का दिन वह अपने बाबू जी से जी भर चुद कर गर्भधारण कर सकती थी। क्या भगवान उससे रुष्ट हो गए थे?

उसका दिल बैठा जा रहा था ऐसा लग रहा था जैसे उसके जीवन में कोई पुरुष बचा ही न था। अपने कामुक ख्यालों में कभी-कभी वह राजेश के साथ अंतरंग जरूर हुई थी परंतु हकीकत में राजेश और उसके बीच अब भी मर्यादा की लकीर कायम थी हालांकि यह लकीर अब बेहद महीन हो चुकी थी। राजेश तो सुगना को अपनी बाहों में लेने के लिए मचल रहा था सिर्फ और सिर्फ सुगना को ही अपनी रजामंदी देनी थी परंतु वह अभी भगवान से सरयू सिंह के वापस आने की प्रार्थना कर रही। लाली राजेश का वीर्य दोहन करने अंदर जा चुकी थी और कुछ ही देर में उसे अंदर जाना था।

क्या वह अपने गर्भ में राजेश का वीर्य लेकर गर्भधारण करेगी क्या यह उचित होगा? क्या भगवान ने उसके व्रत के फलस्वरूप ही राजेश को यहां भेजा है…

परिस्थितियां तेजी से बदल रही थी और सुगना के मनोभाव भी। सुगना ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था और वह लाली के खाँसने का इंतजार कर रही थी जिसे सुनकर उसे कमरे के अंदर प्रवेश करना था।

###################################

उधर सोनी रिक्शे में विकास के साथ बैठी हुई बनारस महोत्सव की तरफ जा रही थी उसे बार-बार अपनी उंगलियों में लगा हुआ चिपचिपा द्रव्य याद आ रहा था आखिर वह क्या था? जितना ही वह उसके बारे में सोचती उसके विचार में घृणा उत्पन्न होती उस किशोरी उस किशोरी ने तो आज तक कभी वीर्य को न देखा था और न हीं छुआ था। परंतु आज उसे अपने ही भाई के वीर्य को अपनी उंगलियों से अकस्मात ही छू लिया था। उस करिश्माई द्रव्य से सोनी कतई अनजान थी। जिस द्रव्य को सोनी अपनी अज्ञानता वश घृणा की निगाह से देख रही द्रव्य के अंश को सुगना अपने गर्भ में लेने के लिए सुगना तड़प रही थी।

उसने सोनू से पूछा

"भैया आप लाली दीदी के यहां हमेशा आते जाते हो?"

"क्यों तुझे क्यों जानना है?"

"ऐसी ही" सोनू ने उत्तर न दिया और अनमने मन से दूसरी तरफ देखने लगा उसे लगा जैसे लाली के घर आना जाना असामान्य था किसे सोनी ने अपने संज्ञान में ले लिया था।

"लगता है आजकल वर्जिश खूब हो रही है" सोनी ने सोनू की मजबूत भुजाओं को छूते हुए बोला

सोनू का ध्यान सोनी की तरफ गया उसके मुंह से अपनी तारीफ सुनकर सोनू खुश हो गया था।

सोनू ने रिक्शा रुकवाया और पास की दुकान से जाकर कुल्फी ले आया सोनी खुश हो गयी और कुल्फी खाने लगी। सोनी के गोल गोल होठों में कुल्फी देखकर सोनू के दिमाग में लाली घूमने लगी। वह देख तो सोनी की तरफ रहा था परंतु उसके दिमाग में लाली का भरा पूरा बदन घूमने लगा। कुल्फी चूसती हुई सोनी उसे लण्ड चूसती लाली दिखने लगी। अपनी ही छोटी बहन के प्रति उसके मन में बेहद अजीब ख्याल आने लगे।

उसका ध्यान सोनी के मासूम चेहरे से हटकर उसके शरीर पर चला गया जैसे जैसे वह सोनी को देखता गया उसे उसके उभारो का अंदाजा होता गया। सोनी अपनी अल्हड़ यौवन को भूलकर कुल्फी का आनंद ले रही थी। उसे क्या पता था की सोनु की नजरें आज पहली बार उसके शरीर का नाप ले रही थी।

"भैया आप भी अपनी कुल्फी खाइए पिघल रही है"

सोनी की बात सुनकर सोनु शर्मा गया एक पल के लिए उसे लगा जैसे सोनी ने उसके मनोभाव को पढ़ लिया है उसने अपना ध्यान हटाया और दोनों रिक्शा में बैठकर विद्यानंद के पंडाल की तरफ चल पड़े। अपनी मुंह बोली बहन लाली को चोद कर सोनू के दिमाग में बहन जैसे पावन रिश्ते के प्रति संवेदनशीलता कम हो रही थी।

सोनू ने सोनी को पंडाल तक छोड़ा और अपनी मां पदमा तथा कजरी से मिला। पद्मा ने सोनू को सदा खुश रहने और अच्छी नौकरी का आशीर्वाद दिया और अपने पिछले दिन के व्रत से अर्जित किए सारे पुण्य को अपने पुत्र पर उड़ेल दिया। पदमा को क्या पता था कि उसका पुत्र इस समय जीवन के सबसे अद्भुत सुख के रंग में रंगा हुआ अपनी मुंहबोली बहन लाली के जाँघों के बीच बहती दरिया में गोते लगा रहा है।

सोनू का मन पांडाल में नहीं लग रहा था उसे रह-रहकर लाली याद आ रही थी। हालांकि घर में उसकी बड़ी बहन सुगना भी मौजूद थी परंतु फिर भी वह लाली के मोहपाश से अपने आप को न रोक पाया और वापस लाली के घर जाने के लिए निकल पड़ा….

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उधर कजरी का व्रत सफल हो चुका था। कजरी ने जो मांगा था उसे शीघ्र मिलने वाला था।

मुंबई में रह रहा उसका पुत्र रतन बीती शाम बबीता से अपना पीछा छुड़ाकर गांव वापस आने के लिए तैयार था। उसने अपनी सारी जमा पूंजी इकट्ठा की और अपनी बड़ी पुत्री मिंकी को लेकर आज सुबह सुबह ट्रेन का इंतजार कर रहा था।

रतन के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सुगना घूम रही थी उसने कुछ दिनों पहले सूरज के लिए जो खिलौने और सुगना के लिए जो खत लिखा था उसका जवाब नहीं आया था, आता भी कैसे? रतन का पार्सल सलेमपुर के डाकखाने में एक कोने में पड़ा सरयू सिंह के परिवार के सदस्यों के आने का इंतजार कर रहा था।

रतन में मन ही मन फैसला कर लिया था कि वह सुगना के करीब आने और उसे मनाने की भरपूर कोशिश करेंगा यदि वह नहीं भी मानती है तब भी वह उससे एक तरफा प्यार करता रहेगा और उसे पत्नी होने का पूरा हक देगा। शारीरिक न सही परंतु स्त्री को जो पुरुष से संरक्षण प्राप्त होना चाहिए वह उसमें पूरी तरह खरा उतरेगा।

अपने चार-पांच सालों में सुगना के प्रति दिखाई बेरुखी को मिटा कर अपनी गलतियों का प्रायश्चित करना चाहता था। जैसे-जैसे उसका प्रेम सुनना के प्रति बढ़ रहा था नियति प्रसन्न हो रही थी। वह इस कहानी में उसकी भूमिका तलाश में लगी हुई थी।

रेलवे स्टेशन चूरमुरा खाते हुए। मिंकी ने पूछा

"पापा वहां पर कौन-कौन है. नई मम्मी मुझे परेशान तो नहीं करेगी. मम्मी कह रही थी कि नयी मम्मी तुझे बहुत मारेगी तू मत जा"

"बेटा तेरी नई मम्मी तुझे बहुत प्यार करेगी. वह बहुत अच्छी है... वहां गांव पर तेरे बाबा है दादी हैं और ढेर सारे लोग हैं. तुझे सब ढेर सारा प्यार करेंगे और एक छोटा भाई भी है सूरज तू उसे देख कर खुश हो जाएगी वह बहुत प्यारा है"

मिंकी खुश हो गई. उसे छोटे बच्चे बेहद प्यारे थे और यह बात उसे और भी अच्छी लग रही थी उसका कोई भाई होगा. मिंकी अपनी नई जिंदगी को सोच सोच कर खुश भी थी और आशान्वित भी। सूरज के चमत्कारी अंगूठी अंगूठे का एक और शिकार सलेमपुर पहुंचने वाला था नियति को अपनी कथा का एक और पात्र मिल रहा था और सुगना को उसका पति।

परंतु क्या सुगना रतन को अपना आएगी? क्या उसका गर्भधारण उसके पति द्वारा ही संपन्न होगा? क्या सुगना और रतन का मिलन अकस्मात ही हो जाएगा? सुगना जैसी संवेदनशील और मर्यादित युवती क्या अचानक ही रतन की बाहों में जाकर आनन-फानन में संभोग कर लेगी?

नियति सुगना के गर्भधारण का रास्ता बनाने में लगी हुई थी परंतु सुगना के भाग्य में जो लिखा वह टाला नहीं जा सकता था। सुगना था यह गर्भधारण उसे विद्यानंद के श्राप से मुक्ति दिला पाएगा इसकी संभावना उतनी ही थी जितनी गर्भधारण से पुत्र या पुत्री होने की। सुगना के भविष्य को भी सुगना के गर्भ के लिंग के तय होने का का इंतजार था।

###################################

परंतु लाली के घर में सुगना का इंतजार खत्म हो चुका था। लाली के खांसने की आवाज सुनकर सुगना का दिल तेजी से धड़कने लगा उसकी चूचियां और काम इंद्रियां सतर्क हो गई। आज पहली बार वह लाली के हाथों राजेश का वीर्य स्खलन देखने जा रही थी। देखने ही क्या उसे उस वीर्य को अपने गर्भ में आत्मसात भी करना था। सुगना का दिल और जिस्म एक दूसरे से सामंजस्य बैठा पाने में नाकाम थे। वह बदहवास सी अधूरे मन से गर्भधारण की आस लिए लाली के कमरे में प्रवेश कर गई...

शेष अगले भाग में...
Bhai pata nahi kyu sahi kahu to mughe bilkul bhi achha nahi lag raha ki sugna jaisa. Charactor Rajesh ke sath sex kare abhi tak kitna hua hasi mazak ek alag baat h magar please use Rajesh ke sath sex na karao nahi to fir sugna ka charactor charitrahin lagne lagega aisa lagega jaise wo bachhe ke liye kisi se bhi chud jayegi....


Bhale sonu se chudwa do ....

Ya phir Ratan se par


Rajesh se nahi..... Baaki aapki marji...

Saara khel to aapka h
 

Ramiz Raza

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बहुत ही शानदार अपडेट इसी तरह कंटिन्यू अपडेट देते रहें आपका धन्यवाद
 
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Rekha rani

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Nice update, aaj phir update ek kashamakash me samapt hua, ab agle update ka besabri ka intajaar rhega aur rhega intazaar is story me incest sex padhne ka joki abhi tak to hota dikh nhi rha hai, ye sachayi hai pata nhi kyo sugna aur Rajesh ka nam aate hi man me ajib si uthalputhal mach jati hai, bilkul achha nhi lagta ki sugnaa Rajesh se sex kre, lekin kya kr sakte hai niyati aur writter sahab kya chahte hai dekhte hai
 

Lovely Anand

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Bhai pata nahi kyu sahi kahu to mughe bilkul bhi achha nahi lag raha ki sugna jaisa. Charactor Rajesh ke sath sex kare abhi tak kitna hua hasi mazak ek alag baat h magar please use Rajesh ke sath sex na karao nahi to fir sugna ka charactor charitrahin lagne lagega aisa lagega jaise wo bachhe ke liye kisi se bhi chud jayegi....


Bhale sonu se chudwa do ....

Ya phir Ratan se par


Rajesh se nahi..... Baaki aapki marji...

Saara khel to aapka h
कहानी की मांग के अनुसार सुगना को किसी अन्य पुरुष के वीर्य से गर्भवती होना है इसका कारण मैं अभी नहीं बता सकता..

राजेश अभी कतार में सबसे आगे प्रतीत हो रहा है परंतु यदि पाठक नहीं चाहते तो मैं कहानी के उस भाग को विस्तार से न लिखकर एक छोटी घटना में तब्दील कर दूंगा और सुगना का चरित्र बेदाग रह जाएगा।

कृपया अपना सुझाव पोल में अपना ऑप्शन चुनकर देने का कष्ट करें।
 

Rockstar_Rocky

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आनंद भाई,

अबतक मैं आपका एक गोपनीय श्रोता बन कर रहा हूँ, उसका कारन ये है की मुझे कहानी शुरू से लेकर आखरी तक एक ही बार में पढ़ना पसंद है| सब्र थोड़ा कम है मुझ में!
अभी तक की सारी update मैंने पढ़ ली हैं, आपकी कहानी में जो गाँव की भाषा लिखी जाती है उसे पढ़ने में बहुत रस आता है, आपसे अनुरोध है की आप ज्यादा से ज्यादा उसी भाषा का प्रयोग करें| साथ ही गाँव की स्त्रियाँ जो गाने गुन-गुनाती हैं, यदि उनके बारे में लिखें तो मज़ा दुगना हो जायेगा| आपसे एक और अनुरोध है की update देने में देर कर मेरा मज़ा न खराब करियेगा! 🙏

P.S. आपके create किये poll में मैंने अपना योगदान दे दिया है|
 

Lovely Anand

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आनंद भाई,

अबतक मैं आपका एक गोपनीय श्रोता बन कर रहा हूँ, उसका कारन ये है की मुझे कहानी शुरू से लेकर आखरी तक एक ही बार में पढ़ना पसंद है| सब्र थोड़ा कम है मुझ में!
अभी तक की सारी update मैंने पढ़ ली हैं, आपकी कहानी में जो गाँव की भाषा लिखी जाती है उसे पढ़ने में बहुत रस आता है, आपसे अनुरोध है की आप ज्यादा से ज्यादा उसी भाषा का प्रयोग करें| साथ ही गाँव की स्त्रियाँ जो गाने गुन-गुनाती हैं, यदि उनके बारे में लिखें तो मज़ा दुगना हो जायेगा| आपसे एक और अनुरोध है की update देने में देर कर मेरा मज़ा न खराब करियेगा! 🙏

P.S. आपके create किये poll में मैंने अपना योगदान दे दिया है|
आपका स्वागत है मैंने अब तक इस कहानी के अपडेट सप्ताह में दो बार या कम से कम सप्ताह में एक बार तो अवश्य दिया है अवैतनिक जनसेवा में इससे ज्यादा अपेक्षा करना बेमानी होगी। आप की सलाह को मैं ध्यान में रखूंगा दरअसल वॉइस टाइपिंग में गांव की भाषा गूगल नहीं पकड़ता इसलिए तमाम जगह करेक्शन करने पड़ते हैं इसी से बचने के लिए मैंने ग्रामीण भाषा का प्रयोग कुछ कम कर दिया है।
गोपनीय श्रोता बनकर आप निश्चित ही मेरे साथ अन्याय कर रहे हैं यदि आपने अब तक की कहानी पढ़ ली है तो अपनी प्रतिक्रियाएं देते रहें।
 
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