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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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Lakinder

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भाग 112

तभी दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई सोनू ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला…. बाहर दो बड़ी बड़ी कार खड़ी थीं …हाथों में सजी-धजी फलों और मिठाई की टोकरी लिए तीन चार व्यक्ति बाहर खड़े थे और उनके पीछे लाल रंग का चमकदार बैग लिए हांथ जोड़े दो संभ्रांत पुरुष..

उनकी वेशभूषा और फलों तथा मिठाइयों की की गई पैकिंग को देखकर यह अंदाज लगाया जा सकता था कि उनका सोनू के घर आने का क्या प्रयोजन था…

सोनू ने उन्हें अंदर आने के लिए निमंत्रित किया और अंदर आकर हाल में रखी कुर्सियों को व्यवस्थित कर उन्हें बैठाने लगा…

लग रहा था जैसे सुगना और सोनू के परिवार में कोई नया सदस्य आने वाला था…


अब आगे…

सभी आगंतुक अंदर हाल में आ चुके थे और उनके पीछे पीछे अपनी गोद में सूरज को लिए सरयू सिंह जो सूरज को बाहर घुमा कर वापस आ चुके थे। शारीरिक कद काठी में सरयू सिंह कईयों पर भारी थी। आगंतुक कपड़ों और चेहरे मोहरे से संभ्रांत जरूर सही परंतु व्यक्तित्व के मामले में निश्चित ही सरयू सिंह से कमतर थे।

पुरुषों की सुंदरता शारीरिक कद काठी और उनके गठीले शरीर के कारण ज्यादा होती है .. सरयू सिंह का तपा हुआ शरीर पुरुषत्व का अनूठा नमूना था।


सरयू सिंह को अंदर आते देख वह दोनों संभ्रांत पुरुष अभिवादन की मुद्रा में खड़े हो गए उन्होंने हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया….

सरयू सिंह के कुछ कहने से पहले ही सोनू बोल उठा

"चाचा …. यह मेरे दोस्त विकास के पिताजी हैं और यह विकास के चाचा जी"


इससे पहले की सोनू सरयू सिंह का परिचय देता विकास के पिता ने बेहद अदब के साथ कहा

"जहां तक मैं समझ रहा हूं आप सरयू सिंह जी हैं?" चेहरे पर मुस्कुराहट और आखों में प्रश्न लिए विकास के पिता ने कहा…सोनू ने विकास के पिता की बात में हां में हां मिलाई और बोला..


"आपने सही पहचाना यही हमारे पूज्य सरयू चाचा हैं " लग रहा था जैसे विकास ने सरयू सिंह के व्यक्तित्व के बारे में अपने घर परिवार को निश्चित ही बता दिया था..

अगल-बगल रखी मिठाई की टोकरी और फलों को देखकर सरयू सिंह बेचैन हो उठे.…इससे पहले कि वह कुछ सोच पाते विकास के पिता ने कहा

" हमें आपकी सोनी पसंद है यदि आपकी अनुमति हो तो हम सोनी को अपने घर की लक्ष्मी बनाने के लिए तैयार हैं"

सुगना और लाली हाल में हो रही बातें सुन रही थी सुगना की खुशी का ठिकाना ना रहा विकास निश्चित थी एक योग्य लड़का था। विवाहित स्त्रियों को पुरुषों की जिस अंदरूनी योग्यता की लालसा रहती है शायद विवाह के दौरान उन दिनों उसकी कोई अहमियत न थी। हष्ट पुष्ट युवकों को मर्दानगी से भरा स्वाभाविक रूप से मान लिया जाता था।

विकास सोनू का दोस्त था और सुगना और लाली दोनों ही सोनू का पुरुषत्व देख चुकी थी.. निश्चित ही विकास भी सोनू की तरह ही मर्दानगी से भरा होगा ऐसा लाली और सुगना ने सोचा। सोनी के भविष्य को लेकर सुगना प्रसन्न हो गई विकास में वैसे भी कोई कमी न थी और और जो थी शायद सोनी को पता न थी। जिसने भुसावल केला देखा ना हो उसे उसकी ताकत और मिठास का क्या अंदाजा होगा? विकास के पास जो था सोनी उसमें खुश थी …उसकी गुलाब की कली जैसी बुर के लिए वह छोटा लंड की उतना ही मजेदार था…पर बीती रात सरयू सिंह की धोती के उभार ने सोनी के मन में कुछ अजब भाव पैदा किए थे जो अभी अस्पष्ट थे.

सरयू सिंह अचानक आए इस प्रस्ताव से हड़बड़ा से गए उन्होंने सोनू की तरफ देखा ..आखिरकार सोनू भी अब इस परिवार का एक जिम्मेदार व्यक्ति था। सोनू ने अपनी पलके झुका कर सरयू सिंह को भरोसा दिलाया और विकास के पिता की तरफ मुखातिब हुआ और बोला ..

"चाचा जी को भी विकास पसंद है। हम सब को यह रिश्ता स्वीकार है…_

सभी मेहमानों के चेहरे पर मुस्कुराहट दौड़ गई और सब का साथ देने के लिए सरयू सिंह को भी अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लानी पड़ी। नियति सरयू सिंह की स्थिति को देख रही थी और उनके मन में चल रही वेदना को समझने का प्रयास कर रही थी। जिस बात को वह सुगना से साझा करना चाहते थे वह बात अब उस बात का औचित्य न था उन्होंने उसे अपने सीने में दफन करना ही उचित समझा।


सरयू सिंह को यह युग तेजी से बदलता हुआ दिखाई पड़ रहा था। उन्होंने आज तक लड़की वालों को लड़के वालों के घर रिश्ता लेकर जाते देखा था परंतु यह मामला उल्टा था।

बहरहाल लाली और सुगना ने आगंतुकों का भरपूर स्वागत किया ..और कुछ ही देर में तरह-तरह के पकवान बनाकर सबका दिल जीत लिया।

आवभगत की कला ग्रामीण समाज से जुड़े युवतियों में प्रचुर मात्रा में होती है शहरी लोग उस संस्कार को सीखने में पूरा जीवन भी बता दें तो भी शायद वह अपनत्व और प्यार अपने व्यवहार में ला पाना कठिन होगा।


अब तक इस रिश्ते की प्रमुख कड़ी सोनी को भी अपने घर में चल रहे घटनाक्रम की खबर लग चुकी थी। निश्चित ही उसे यह जानकारी देने वाला कोई और नहीं विकास स्वयं था। वह आज विकास के साथ सिनेमा हॉल न जाकर वापस अपने घर ही आ रही थी।

दोनों ने साथ में अंदर प्रवेश किया और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया। विकास और सोनी ने जब सरयू सिंह के चरण छुए सरयू सिंह बरबस ही अपने स्वभाव बस सोनी और विकास को खुश रखने का आशीर्वाद दिया उनकी निगाहें एक बार फिर सोनी के नितंबों पर गई पर परंतु अब परिस्थितियां बदल चुकी थी।


सोनी और विकास ने पहले जो भी किया हो पर इस वक्त वह उन्हें स्वीकार्य थे। सरयू सिंह की वासना परवान चढ़ने से पहले ही फना हो गई थी परंतु सोनी का क्या ? उसने सरयू सिंह का वह रूप देख लिया था जो शायद उसके कोमल मन पर असर कर चुका था।

भोजन के उपरांत सोनी और विकास के विवाह कार्यक्रम की रूपरेखा तय की जाने लगी सरयू सिंह ने विवाह स्थल के बारे में जानना चाहा उन्हें शादी में होने वाले खर्च का अंदाज लगाना था…

विकास के परिवार और उनके परिवार की हैसियत में कोई मेल न था। सरयू सिंह के मन में आए प्रश्न का विकास के पिता ने उत्तर दिया वह बोले…

"सोनी बेटी हमारे घर की लक्ष्मी है हमें आपकी बेटी चाहिए और कुछ नहीं । आपसे अनुरोध है की विवाह कार्यक्रम बनारस शहर में ही रखा जाए आपका घर भी तो बनारस में है यहां पर मेहमानों को अच्छी और माकूल व्यवस्थाएं प्रदान करना आसान होगा। वैसे आप चाहे तो हम बारात लेकर आपके गांव भी आ सकते हैं"

सरयू सिंह विकास की पिता की सहृदयता के कायल हो गए सच में वह सभ्रांत व्यक्ति थे न सिर्फ वेशभूषा और पहनावे अपितु उसके विचार भी उतने ही मृदुल और सराहनीय थे। सरयू सिंह ने अपने हाथ जोड़ लिए

विकास के पिता ने आगे कहा

" हां एक बात और विवाह के खर्चों को लेकर आप परेशान मत होईएगा सारा आयोजन विकास और उसके दोस्त मिलकर करेंगे सोनू भी तो विकास का दोस्त ही है। जो खर्चा आपसे हो पाएगा वह आप करिएगा जो हमसे हो पाएगा हम करेंगे। आखिर यह मिलन हम दो परिवारों का भी है।


सरयू सिंह विकास के पिता की बातों से प्रभावित हो भावनात्मक हो गए और उन्होंने उठ कर दिल से उनका अभिवादन किया। सरयू सिंह के सारे मलाल और आशंकाएं दूर हो चुकी थी।

विकास और सोनी का रिश्ता तय हो चुका था। आज घर में खुशियों का माहौल था। विकास ने लाली और सुगना के चरण छुए सुगना और लाली ने उसे जी भर कर आशीर्वाद दिया पर सुगना ने विकास को छेड़ दिया…

"अच्छा यह बात थी… तभी आप दीपावली के दिन सोनी के पीछे पीछे सलेमपुर तक पहुंच गए थे सोनी अपने घरवालों से भी ज्यादा प्यारी हो गई थी।"

इस मजाक का सुगना को हक भी था । उधर विकास कहीं और खोया हुआ था। जैसे ही विकास ने सुगना के चरण छुए उसे एक अजब सा एहसास हुआ वह आलता लगे हुए चमकते गोरे …पैर उस पर उंगलियों में चांदी की अंगूठी…पैर की त्वचा का वह मखमली स्पर्श…. विकास सतर्क हो गया… जैसे जैसे वह ऊपर उठता गया सुगना के मादक बदन की खुशबू उसके नथुनों ने भी महसूस की और आंखें घुटनों के ऊपर साड़ी में कैद सुगना की सुदृढ़ जांघें देखती हुई ऊपर उठने लगी। और जब आंखों का यह सफर सुगना की कटावतार कमर पर आया विकास ने अपनी आंखें बंद कर ली. उसके मन में वासना का अंकुर फूटा परंतु विकास की प्रवृत्ति ऐसी न थी…वह उठकर सीधा खड़ा हो गया।


न जाने सुगना किस मिट्टी की बनी थी हर व्यक्ति जो उसके करीब आता उसके मन में एक न एक बार उसकी खूबसूरती और उसका गदराया हुआ तन घूम जाता और सुगना उसके मन में वासना के तार छेड़ देती।

अचानक विकास के चाचा ने अपने भाई से मुखातिब होते हुए कहा…

"भाई साहब आप तो एक बात भूल ही गए…"

सरयू सिंह उनकी बात से आश्चर्य चकित होते हुए उन्हें देखने लगे..

उसने अपने बड़े भ्राता विकास के पिता के कान में कुछ कहा और फिर विकास के पिता मुस्कुराते हुए बोले

"अरे खुशी में मैं एक बात भूल ही गया…यदि आप सब की अनुमति हो तो कल दोनों बच्चों की रिंग सेरेमनी करा देते हैं। आप सब यहां बनारस में है ही और मेरे तो सारे रिश्तेदार बनारस में ही है। आप अपने रिश्तेदारों को कल बुला लीजिए दरअसल विकास को वापस विदेश जाना है इसलिए समय कम है।

"पर इतनी जल्दी इस सब की व्यवस्था?" सरयू सिंह ने अपना स्वाभाविक प्रश्न किया

"मैंने कहा ना आप परेशान मत होइए यह बनारस शहर है यहां व्यवस्था में समय नहीं लगता आप सिर्फ अपने रिश्तेदारों को एकत्रित करने की कोशिश कीजिए। रेडिएंट होटल हमारा अपना होटल है मंगनी का कार्यक्रम वहीं पर होगा"


रेडिएंट होटल का नाम सुनकर सरयू सिंह सन्न रह गए। यह वही होटल था जहां बनारस महोत्सव के आखिरी दिन उन्होंने अपनी प्यारी बहू सुगना की बुर को कसकर चोदने के बाद उसके दूसरे छेद का भी उद्घाटन किया था। और अपनी वासना को चरम पर ले जाकर स्खलित होने का प्रयास किया था… परंतु वह ऐसा न कर पाए थे और मूर्छित होकर गिर पड़े थे। सारे दृश्य उनके दिमाग में एक-एक करके घूमने लगे। वह सुगना को चोदते समय उसकी केलाइडोस्कोप की तरह फूलती और पिचकती छोटी सी गांड… उन्हे सदा आकर्षित करती थी। कैसे उन्होंने उस छोटी सी गांड में अपना मोटा मुसल बेरहमी से डाल दिया था…. एक एक दृश्य याद आ रहा था कैसे उनके मन में पहली बार सुगना के लिए क्रोध आया था। सुगना ने जो पिछली रात रतन के घर बिताई थी उसका क्रोध उन पर छाया था। सुगना कराह रही थी पर सरयू सिंह की उस अनोखी इच्छा और अनूठी वासना को शांत करने का प्रयास कर रही थी.. जैसे-जैसे वह दृश्य सरयू सिंह की आंखों के सामने घूमते गए उनका लंड अपनी ताकत को याद कर जागने लगा। अचानक विकास के चाचा ने कहा

"सरयू जी आप कहां खो गए..?"

सरयू सिंह अपने ख्यालों से बाहर आए और एक बार फिर अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए बोले..

"सब कुछ इतनी जल्दी में हो रहा है यकीन ही नहीं हो रहा"

विकास के चाचा ने फिर कहा


"अब जब दोनों बच्चे एक दूसरे को पसंद करते हैं तो हमें उनकी इच्छा का मान रखना ही पड़ेगा वैसे भी सोनी जैसी खूबसूरत और पढ़ी-लिखी लड़की को कौन अपने घर की बहू नहीं बनाना चाहेगा.."

विकास के पिता ने हाथ जोड़कर सरयू सिंह के घर परिवार वालों से इजाजत ली….

सरयू सिंह ने अपने झोले से 1001 रुपए निकालकर विकास के हाथ में शगुन के तौर पर दिया और अपने दोनों हाथ जोड़कर आगंतुकों को ससम्मान विदा किया वह मन ही मन कल की तैयारियों के बारे में सोचने लगे।

विकास अपने परिवार के साथ लौट रहा था। सोनी और उसकी आंखों में एक अजब सी चमक थी। दोनों एक दूसरे के साथ वैवाहिक जीवन जीना प्रारंभ कर चुके थे परंतु आज उसे सामाजिक मान्यता मिल गई थी। उन दोनों की खुशी का ठिकाना न था। सोनी सुगना के गले लगे गई और आज इस आलिंगन की प्रगाढ़ता चरम पर थी। सुगना की चूचियों ने सोनी की चूचियों का अंदाजा लिया और सुगना को यकीन हो गया की सोनी की चूचियां पुरुष हथेली का संसर्ग प्राप्त कर चुकी है।

खैर अब जो होना था हो चुका था। लाली भी सुगना और सोनी के करीब आ गई। तीनों बहने एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो गई।

आज किशोरी सोनी तरुणीयों में शामिल ही गई थी। लाली ने सोनी को छेड़ते हुए कहा

"अब रोज हमारा से एक घंटा ट्रेनिंग ले लीहा .. विकास जी के कब्जा में रखें में काम आई "

सुगना मुस्कुरा उठी और बोली "चला लोग सब तैयारी करल जाओ"

सुगना के चेहरे पर यह मुस्कुराहट कई दिनों बाद आई थी। सोनू सुगना के खुशहाल चेहरे को देखकर प्रसन्न हो गया। लाली के मजाक ने सुगना के चेहरे पर भी लालिमा ला दी थी। सोनू की बड़ी बहन और ख्वाबों खयालों की अप्सरा आज खुश थी और सोनू उसे खुश देखकर बागबाग था।


सरयू सिंह और सोनू कल की तैयारियों के लिए विचार विमर्श करने लगे। सरयू सिंह की स्थिति देखने लायक थी.. वह उसी सुकन्या के विवाह की तैयारियों में व्यस्त हो गए जिस चोदने का अरमान लिए वह पिछले कुछ दिनों से घूम रहे थे…और उसे अंजाम तक पहुंचाने की जुगत लगाते लगाते बनारस तक आ गए थे.

बहरहाल सरयू सिंह ने जो सोचा था और उनके मन में जो वासना आई थी उसका एक अंश सोनी स्वयं देख चुकी थी। धोती के पीछे छुपे उस दिव्यास्त्र का आभास सोनी ने कर लिया था। नियति किसी भी घटनाक्रम को व्यर्थ नहीं जाने देती… सोनी के मन में जो उत्सुकता आई थी उसने दिमाग के एक कोने में अपनी जगह बना ली थी। वह इस समय तो अपने ख्वाबों की दुनिया में खोई हुई थी परंतु आने वाले समय में उसकी उत्सुकता क्या रंग दिखाएगी यह तो भविष्य के गर्भ में दफन था…

हाल में अपने भूतपूर्व सरयू सिंह और वर्तमान प्रेमी सोनू के साथ बैठकर सुगना सोनी की रिंग सेरेमनी की तैयारियों पर विचार विमर्श कर रही थी।

रिश्तेदारों को लाने की बात पर सुगना ने अपना प्रस्ताव रखा

"बाबूजी सोनू के गाड़ी लेकर भेज दी.. मां के भी लेले आई है और जो अपन रिश्तेदार बड़े लोग उन लोग के भी लेले आई"


सरयू सिंह सुगना की बात पर कभी कोई प्रश्न ना उठाते थे उन्हें पता था इस परिवार के लिए सुगना का हर निर्णय परिवार की उन्नति के लिए था। उन्होंने सुगना की बात का समर्थन करते हुए कहा

"हां वहां सलेमपुर जाकर एक गाड़ी और कर लीह एक गाड़ी में अतना आदमी ना आई"

सोनू के गांव जाने की बात सुनकर लाली थोड़ा दुखी हो गई आज रात वह सोनू से जमकर चुदने वाली थी परंतु सुगना के इस प्रस्ताव ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। बहरहाल लाली के दुख से ज्यादा उसके मन में आज सोनी को लेकर खुशियां थी…

सुगना ने आज रात के लिए सोनू और लाली को दूर कर दिया था और खुश हो गई थी। सोनू को लाली से दूर रखना अनिवार्य था…और सुगना उसमें स्वाभाविक रूप से सफल हो गई थी।

सरयू सिंह, सुगना और लाली ने यहां बनारस की व्यवस्था संभाली.. सरयू सिंह रस्मो रिवाज के सारे सामान खरीदने के लिए लिस्ट बनाने लगे। सुगना और लाली …सबके लिए नए और माकूल कपड़े खरीदने चली गईं…सोनी के लिए वस्त्र खरीदने का जिम्मा विकास और उसकी मां ने स्वयं उठा रखा था। सोनी ने बच्चों को घर में संभालने की जिम्मेदारी ले ली।

"काश मोनी भी आज के दिन एहिजा रहीत!"


अचानक सोनी ने मोनी का नाम लेकर सब को मायूस कर दिया…

मोनी का खूबसूरत चेहरा सबकी निगाहों में घूम गया जो इस समय विद्यानंद के आश्रम में एक अनोखी परीक्षा से गुजर रही थी..

अपने कक्ष में अपने बिस्तर पर लेटी हुई मोनी बेसुध थी हाथ पैर जैसे उसके वश में न थे। तभी दो महिलाएं उसके कमरे में आई। उन्होंने मोनी के सर को हिला कर देखा निश्चित ही मोनी अचेतन थी।

"डॉक्टर चेक कर लीजिए…यह नहीं जागेगी" साथ आई महिला ने कहा। और डॉक्टर ने मोनी के अक्कू ढक रहा श्वेत उठाने लगी। आज नियति मोनी की पुष्ट जांघों को पहली बार देख रही थी जो सादगी की प्रतीक थीं। न पैरों में आलता न घुटनों पर कोई कालापन एकदम बेदाग…जितना मोनी का मन साफ था उतना ही तन। धीरे-धीरे श्वेत वस्त्र ऊपर उठता हुआ जांघों के जोड़ पर आ गया …और खूबसूरत सुनहरे बालों के बीच वह दिव्य त्रिकोण दिखाई पड़ने लगा जिसका मोनी के लिए अब तक कोई उपयोग न था।


जिस तरह किसी अबोध के लिए कोहिनूर का कोई मोल नहीं होता उसी प्रकार मोनी के लिए उसकी जांघों के बीच छुपा खजाने कि कोई विशेष अहमियत न थी।

डॉक्टर ने साथ आई महिला की मदद से मोनी की दोनों जांघें फैलाई और उस अनछुई कोमल बुर की दोनों फांकों को अपनी उंगलियों से ही अलग करने की कोशिश की …परंतु मोनी की बुर को फांके उंगलियों से छलक कर पुट …की धीमी ध्वनि के साथ फिर एक दूसरे के पास आ गई। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मोनी अपनी अवचेतन अवस्था में भी अपने भीतर छुपी गुलाब की कली को किसी और को नहीं दिखाना चाह रही थी।

डॉक्टर ने डॉक्टर ने एक बार फिर कोशिश की। छोटी सी गुलाब की कली की पंखुड़ियों को फैला कर न जाने वह क्या देखना चाह रही थी …जितना ही वह उसे अपनी उंगलियों से फैलाती गई उतनी ही गुलाबी लालिमा और मांसल बुर और उजागर होती।

परंतु एक हद के बाद अंदर देख पाना संभव न था..डॉक्टर ने साथ आई महिला से कहा

"पास"


साथ चल रही महिला ने अपने रजिस्टर में कुछ दर्ज किया और मुस्कुराते हुए बोली। मुझे पूरा विश्वास था कि यह निश्चित ही कुंवारी होगी चाल ढाल और रहन-सहन से यह बात स्पष्ट होती है कि जैसे इसे विपरीत लिंग में कोई आकर्षण नहीं है..

"देखना है कि क्या आगे भी ऐसा ही रहेगा…" डॉक्टर मुस्कुरा रही थी….

मोनी को वापस उसी प्रकार उसके श्वेत वस्त्रों से ढक दिया गया और डॉक्टर अपनी महिला साथी के साथ अगले कक्ष में प्रवेश कर गई…

इसी प्रकार अलग-अलग कक्षाओं में जाकर उस डॉक्टर सहयोगी ने कई नई युवतियों का कौमार्य परीक्षण किया तथा अपने रजिस्टर में दर्ज करती चली गई.


बाहर जीप में बैठा रतन डाक्टर का इंतजार कर रहा था। यह डाक्टर कोई और नहीं अपितु वह खूबसूरत अंग्रेजन माधवी थी जो दीपावली की रात रतन के बनाए खूबसूरत भवन की महिला विंग की देखरेख कर रही थी….।

रतन पास बैठी माधवी को बार-बार देख रहा था उसकी भरी-भरी चूचियां रतन का ध्यान बरबस ही खींच रही थीं। रतन का बलशाली लंड पजामे के भीतर तन रहा था। उसे दीपावली की वह खूबसूरत रात याद आने लगी …माधवी ने रतन कि निगाहों को पढ़ लिया वह इसके पहले भी आंखों में उसके प्रति उपजी वासना को देख चुकी थी।

"रतन जी आश्रम में ध्यान लगाइए मुझमें नहीं.."माधवी ने अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए कहा…रतन शरमा गया और उसने अपने तने लंड को एक तरफ किया और उसने जीप की रफ्तार बढ़ा दी…रतन माधवी को पाने के लिए तड़प रहा था। उसने अपने ही बनाए उस अनोखे कूपे में माधवी के कामुक बदन न सिर्फ जी भर कर देखा था अपितु उसके कोमल बदन को अपने कठोर हाथों से जी भर स्पर्श किया वह सुख अद्भुत था। रतन ने जो मेहनत माधवी के तराशे हुए बदन पर की थी उसने उसका असर भी देखा था…. माधवी की जांघों के बीच अमृत की बूंदें छलक आई थी….परंतु मिलन अधूरा था…

जीप तेज गति से विद्यालय में के आश्रम की तरह बढ़ रही थी।

यह महज संजोग था या नियति की चाल…उधर बनारस में रेडिएंट होटल के तीन कमरे सुगना और सरयू सिंह के परिवार के लिए सजाए जा रहे थे उनमें से एक वही कमरा था जिसमें सरयू सिंह ने बनारस महोत्सव के आखिरी दिन सुगना को जमकर चोदा था …. यह कमरा सुगना और उसके परिवार के लिए अहम होने वाला था…

शेष अगले
Sir ab hakikat me intezaar nhi ho rha h. Niyati kisi ka bhi milan karwaye.aur aap bhi please.
 

Vinita

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धाराप्रवाह शैली सरहनीय है, अदभुद लिखते हैं आप 🙏
 

Sanju@

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भाग १११

जैसे ही बच्चों की नींद लगी सुगना बिस्तर से उठी और एक बार फिर नित्य क्रिया के लिए गुसल खाने की तरफ गई परंतु वापस आने के बाद वह अपनी जगह पर जाने की बजाय सोनू की तरफ जाकर बिस्तर पर बैठने लगी। अपने प्रश्नों में उलझी हुई सुगना इस बार शॉल लेना भूल गई थी। भरी भरी चूचियां थिरक रही थीं और बरबस ही सोनू का ध्यान खींच रही थी।

सोनू ने तुरंत ही अपने पैर सिकोड़े और उठकर सिरहाने से पीठ टिकाकर बैठ गया। सुगना के चेहरे पर आई अधीरता सोनू देख चुका था उसे यह अंदाज हो गया की सुगना दीदी उससे ढेरों प्रश्न करने वाली थी। उसने अपनी हृदय गति पर नियंत्रण किया और बोला..


अब आगे….

"का बात बा दीदी?"

सुगना अपने मन में रह-रहकर घुमड़ रहे उस प्रश्न को न रोक पाई जिसने उसे पिछले कुछ घंटों से परेशान किया हुआ था..

"सोनू बताऊ ना ई काहे कईले हा" सुगना का प्रश्न वही व्यक्ति समझ सकता है जो इस प्रश्न का इंतजार कर रहा हो सोनू बखूबी जानता था कि सुगना क्या पूछ रही है।

सोनू को पता था यह प्रश्न अवश्य आएगा उसने अपना उत्तर सोच लिया था..वैसे भी अब सोनू के पास अस्पताल के कमरे की तरह अब पलके बंद करने का विकल्प न था। सुगना यद्यपि उसकी तरफ देख न रही थी उसकी पलके झुकी हुई थी परंतु प्रश्न स्पष्ट और सटीक था सोनू ने हिम्मत जुटाई और कहा..

"हमरा एक गलती से तोहरा इतना कष्ट भईल हमरा दंड मिले के चाही.."


सुगना सतर्क हो गई। सोनू के मन में क्या चल रहा था यह बात वह अवश्य जानना चाहती थी पर यह कभी नहीं चाहती थी कि सोनू खुलकर उससे नजदीकियां बढ़ाने के लिए अनुरोध करें। छी कितना घृणित संवाद होगा जब कोई छोटा भाई अपनी ही बहन से उसकी अंतरंगता की दरकार करे। सुगना ने बात को घुमाते हुए कहा

"सब तोहरा शादी के तैयारी करता और तू ई कर लेला"

सोनू चुप रहा और सुगना इंतजार करती रही कुछ पलों की शांति के पश्चात सुगना ने अपना चेहरा उठाया और सोनू के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुए कहा

"बोल ना चुप काहे बाड़े?"

सोनू से अब और बर्दाश्त न हुआ उसने अपने हाथ आगे बढ़ाएं और सुगना की हथेली को अपनी हथेलियों में लेकर सहलाने लगा और इस बार अपनी नजरें झुकाते हुए बोला

"दीदी हम शादी ना करब.".

सुगना सोनू के मुख से यह शब्द सुनकर अवाक रह गई। सोनू की इस बात ने उसके शक को यकीन में बदल दिया था… परंतु सोनू जो कह रहा था वह मानने योग्य बात न थी…प्रश्न उठना स्वाभाविक था सो उठा..

"तो का सारा जिंदगी अकेले बिताईबा .."

"हम अकेले कहां बानी …सूरज, मधु, राजू, रीमा, रघु, इतना सारा बच्चा लोग बा लाली दीदी बाड़ी तू बाडू …पूरा परिवार बा " सोनू ने अपनी उंगलियों पर मासूमियत से बच्चे गिनते हुए बड़ी बारीकी से सुगना का उत्तर दे दिया परंतु वह घर में एक बच्चे को भूल गया था जो रतन पुत्री मालती थी।

लाली के साथ अपना नाम सुनकर सुगना सिहर उठी… सुगना ने सोनू की हथेलियों के बीच से अपना हाथ खींचने की कोशिश की और बोला

"अइसन ना होला शादी सब केहू करेला वरना समाज में का मुंह दिखाइबा सब केहू सवाल पूछी का बताइबा"

" काहे सवाल पूछी? सरयू चाचा से के सवाल पूछा ता.?".

सुगना के एक प्रश्न के उत्तर में सोनू ने दो-दो प्रश्न छोड़ दिए थे। उसके प्रश्न पूछने की अंदाज उसके अब उग्र होने का संकेत दे रहा था..

वैसे भी सरयू सिंह का नाम लेकर सोनू ने सुगना को निरुत्तर कर दिया उसने अपने हाथ का तनाव हटा दिया और उसकी हथेली एक बार फिर सोनू की हथेलियों के बीच स्वाभाविक रूप से सोनू की गर्म हथेलियों का स्पर्श सुख ले रही थी…

"सोनू अकेले जिंदगी काटल बहुत मुश्किल होई पति पत्नी के साथ परिवार बसेला और वंश आगे बढ़ेला.."

सुगना यह बात कह तो गई थी परंतु जिस वंश की बात वह कर रही थी उसकी जड़ आज सोनू स्वयं कटवा आया था और वही इस वार्तालाप की मूल वजह थी।

मुख से निकली हुई बात वापस आना संभव न था। सोनू ने बात पकड़ ली और अपनी हथेलियों का दबाव सुगना की हथेली पर बढ़ाते हुए बोला

" अब ईहे बच्चा लोग और तू लोग हमार परिवार बा हमरा और कुछ ना चाही.."

सोनू ने अपनी दाहिनी हथेली सुगना की हथेली के ऊपर से हटाया और बच्चों को प्यार से सहलाने लगा परंतु उसने अपनी बाई हथेली से सुगना का हाथ पकड़े रखा..

सुगना भीतर ही भीतर पिघल रही थी। सोनू जो बात कह रहा था वह उसके ह्रदय में गहरे तक उतर रही थी… परंतु क्या सोनू जीवन भर वासना रस से भी मुक्त रहेगा…? सुगना के मन में बार-बार वही सवाल उठ रहे थे पर उसे पूछने की सुगना हिम्मत ना जुटा पा रही थी।

भाई बहन के संबंधों में वासना का कोई स्थान नहीं होता है… न बातों में… न विचारों में और नहीं कृत्यों में…परंतु सुगना और सोनू के बीच परिस्थितियां तेजी से बदल रही थी.

"ए सोनू तू फिर से सोच विचार करले इकरा बिना भी शादी हो सकेला … बच्चा के अलावा भी जीवन में शादी के जरूरत होला" सुगना ने अपनी बड़ी बहन होने की मर्यादा तोड़ कर सोनू से कहा।

सुगना लोक लाज में फंसी …..सोनू के विवाहित होने की वकालत कर रही थी पर परंतु जिसने अपना लक्ष्य निर्धारित कर रखा हो उसे डिगा पाना असंभव था।

सोनू ने वापस दृढ़ता से सुगना की हथेली को पूरे उत्साह से दबाते हुए कहा..

"दीदी हम निर्णय कर लेले बानी हम विवाह ना करब…"


सोनू हमेशा से दृढ़ इच्छाशक्ति का धनी था। वह अब धीरे-धीरे वह सुगना के प्रति आसक्त होता गया था और उसे पाना उसकी जिंदगी का मकसद बन चुका था। अविवाहित होने की प्रेरणा व सरयू सिंह से ले चुका था जो भरे पूरे सम्मान के साथ समाज में एक प्रतिष्ठित जीवन जी रहे थे।

शायद सोनू को उनकी कामवासना से भरी हुई जिंदगी के बारे में पता न था अन्यथा वह दोहरे उत्साह से उस जीवन शैली को सहर्ष अपना लिया होता।

नियति ने सोनू के मनोभाव पढ़ लिए थे और उसकी अच्छाइयों का फल देने की जुगत लगाने लगी।

आखिरकार सुगना और सोनू की बातचीत में ठहराव आया और सुगना ने बातचीत बंद करते हुए कहा

"सोनू जो सूत रह कल सवेरे जाएके भी बा"

"हां दीदी" इतना कहकर सोनू ने अपनी हथेलियों का दबाव सुगना की हथेली पर से हटा लिया और जिस तरह 15 अगस्त के दिन लोग कबूतर हथेली पर रखकर कबूतर उड़ाते हैं उसी प्रकार उसने सुगना को आजाद हो जाने दिया। सुगना अपना हाथ सूरज की हथेली पर से हटा रही थी उन चंद पलों में उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह किसी बेहद करीबी से अलग हो रही हो। सुगना उठी और बिस्तर के दूसरे किनारे पर आकर एक बार फिर लेट गई.. सुगना को उठकर बिस्तर के दूसरी तरफ जाते समय सुगना की ब्रा की कैद से आजाद भरी भरी चुचियों ने हिचकोले खाकर सोनू का ध्यान अपनी ओर खींच लिया .. और सोनू चंद पलों में ही उन खूबसूरत और मुलायम चूचियों के उस अद्भुत स्पर्शसुख में खो गया जो उसने सुगना के साथ अपने प्रथम संभोग के अंतिम क्षणों में अनुभव किया था…

…दिनभर की थकावट ने सुगना और सोनू को शीघ्र ही निद्रा देवी के आगोश में जाने को मजबूर कर दिया. सुगना ने अब सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया…नियति ने सुगना को ऐसी परिस्थिति में डाल दिया था जिससे निकलना या उसमें फसना अब सुगना के बस में न था..

रात गहरा चुकी थी। नियति नाइट लैंप पर बैठी खूबसूरत सुगना के चेहरे को निहार रही थी..और उसके आने वाले जीवन के ताने बाने बुन रही थी।

उधर बनारस में ….सुबह-सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से अपनी नींद खोलने वाले सरयू सिंह ऑटो वालों की चिल्लपों से जाग चुके थे। बनारस शहर तेजी से विकास कर रहा था। दो-तीन वर्षों में ही नई बसी सुगना की कॉलोनी तेजी से विकास कर चुकी थी और उसके घर के सामने से गुजरने वाले वाहनों की संख्या में इजाफा हो गया था।

सरयू सिंह नित्य कर्म से निवृत्त होकर इधर उधर घूम रहे थे सभी कमरों के दरवाजे बंद थे परंतु कुछ देर बाद सोनी का दरवाजा खुला जो उठ कर बाथरूम की तरफ जा रही थी सरयू सिंह वापस सुगना के कमरे में घुस गए और जैसे ही सोनी ने बाथरूम के अंदर प्रवेश किया वह एक बार फिर बाथरूम के दरवाजे के पास आ गए और चहल कदमी करने लगे। जैसे ही सोनी ने मूत्र विसर्जन शुरू किया सीटी की मधुर आवाज सरयू सिंह के कानों तक पहुंची और उनकी प्रतीक्षा खत्म हुई सरयू सिंह अपनी चहल कदमी रोककर उस मधुर स्वर में खो गए और उस स्रोत की खूबसूरती की मन ही मन कल्पना करने लगे।

तभी लाली भी कमरे से बाहर आ गई। और बेहद आदर से सरयू सिंह से बोली

"लागाता हमनी के उठे में देर हो गईल बा आप बैठी हम चाय बनाकर ले आवत बानी"

जब तक सोनी घर में रही… सरयू सिंह उसके अंग प्रत्यंग ओं को देखने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे थे। पर सोनी उनसे सुरक्षित दूरी बनाए हुए थी। सुगना का घर इतना बड़ा न था कि वह सरयू सिंह की निगाहों के सामने न पड़ती…सोनी बरबस ही सरयू सिंह की वीणा के तार छेड़ जाती विचारों के कंपन लंड को तरंगों से भर देते और उनका लंड उस तरुणी की योनि मर्दन की कल्पना कर उत्साहित हो तन जाता।

आखिरकार सोनी के कॉलेज जाने का वक्त हुआ और सोनी बलखाती हुई सरयू सिंह के सामने से निकल गई… सुगना को आने में अभी वक्त था एक बार सरयू सिंह के मन में आया कि वह दोबारा सोनी का पीछा करें परंतु…उन्होंने वह विचार त्याग दिया और बेसब्री से सुगना और सोनू का इंतजार करने लगे…

सोनू और सुगना एक बार फिर वापस बनारस लौट रहे थे कार की पिछली सीट पर दोनों दो किनारों पर बैठे थे पर सोच एक दूसरे के बारे में ही रहे थे।

महिला डॉक्टर ने जो नसीहत सुगना को दी थी वही नसीहत सोनू भी पढ़ चुका था। अगले 1 हफ्ते तक संभोग वर्जित था परंतु जननांगों को सक्रिय रखने के लिए अगले 8 दिन यथासंभव अधिकाधिक संभोग की वकालत की गई थी। जितना सुगना सोनू के बारे में सोच रही थी उसका छोटा भाई उससे कम न था वह भी सुगना के खूबसूरत जननांगों को यूं ही निष्क्रीय नहीं हो जाने देना चाह रहा था… परंतु सुगना बड़ी थी और ज्यादा जिम्मेदार थी। सोनू को पूरा यकीन था कि जिस सुगना दीदी ने पूरे परिवार को इस मुकाम तक लाया था वह उसकी धुरी की खशियो को यूं ही बर्बाद नहीं होने देंगी।

निश्चित ही एसडीएम बनने के बाद सोनू इस परिवार के लिए बेहद अहम था। दोनों भाई बहन एक दूसरे के जननांगों को जीवंत रखने के लिए तरह-तरह के उपाय लगा रहे थे। अपना-अपना होता है सुगना का ख्याल रखने वाला इस दुनिया में अब कोई न था। परंतु सुगना के लिए अभी भी रास्ते खुले हुए थे लाली उसके लिए वरदान थी रास्ते भर वह लाली के बारे में ही सोचती रही।

सुगना ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह बनारस पहुंचते ही सोनू को जौनपुर भेज देगी और 7 दिनों बाद सोनू को जबरदस्ती अपने घर बुला लेगी और उसे तथा लाली को भरपूर एकांत देगी… और यही नहीं उन दोनों के बीच लगातार संभोग होता रहे यह सुनिश्चित करेगी चाहे और उसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े.. यदि सोनू को लाली से संभोग हेतु उसे स्वयं भी उत्तेजित करना पड़ा तो भी वह पीछे नहीं हटेगी..


परंतु वह अभी सोनू को कैसे रोकेगी? यदि सोनू ने जौनपुर जाने में देर की तब? सोनू और लाली तो स्वत ही करीब आ जाते है .. यह तो दीपावली की वह काली रात थी जिसके पश्चात कई दिनों तक सोनू और लाली की अंतरंग मुलाकात न हुई थी पर अब सबकुछ सामान्य हो चला था।

सोनू अब भी मीठे सपनों में खोया हुआ था बीती रात उसने सुगना के चेहरे पर वह डर पढ़ लिया था जो डॉक्टर की नसीहत न मानने पर उत्पन्न होता उसे इतना तो विश्वास था की सुगना किसी न किसी प्रकार उसके वीर्य स्खलन का प्रबंध अवश्य करेगी परंतु क्या वह स्वयं अपने लिए डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत को मानेगी इस बात में संशय अवश्य था।

अचानक लगी ब्रेक ने सोनू को उसके ख्यालों से बाहर निकाल दिया सुगना भी जाग उठी सामने एक मोटरसाइकिल वाले ने दूसरे को टक्कर मार दी थी और दोनों निकल कर एक दूसरे को गालियां बक रहे थे सोनू ने जैसे ही शीशे का दरवाजा नीचे किया बाहर से आवाज सुनाई पड़ी…

"अरे बहन चोद…यहां क्या अपनी बहन चुदवाने आया है"

सोनू ने झटपट अपने खिड़की के शीशे को बंद करने की कोशिश की परंतु देर हो चुकी थी वह ध्वनि सुगना के कानों तक भी पहुंच चुकी बहन चोद शब्द सुगना के कानों में गूंज रहा था और सोनू के भी। समाज में घृणित नजरों से देखा जाने वाला यह शब्द सुगना और सोनू को हिला गया और सोनू के मन में उठ रही वासना कुछ पलों के लिए काफूर हो गई।

उस शब्द से सुगना भी आहत हो गई थी। जितना ही सुगना उस शब्द को भूलना चाहती उतना ही वह सुगना के सामने आता सुगना की आंखों के सामने उसके प्रथम मिलन के दृश्य घूमने लगे उसने जो प्रतिकार किया था वह भी उसे याद था और वह भी जब अंततः उसने अपनी वासना के अधीन होकरअपने पैरों से सोनू को अपनी जांघों के बीच अपनी तरफ खींचा था।नियति गवाह थी सोनू को बहन चोद बनाने में सुगना की भी अहम भूमिका थी।


जब तक सुगना अपने विचारों से बाहर आतीं सोनू की कार सुगना के दरवाजे पर खड़ी हो चुकी थी। दरवाजा खुलते ही सूरज तेजी से उतर कर घर के अंदर भागा और थोड़ी ही देर में सुगना के घर की खोई हुई चहल-पहल वापस आ गई ।

घर की रानी सुगना के घर में घुसते ही सब उसके इर्द-गिर्द इकट्ठा हो गए। सुगना अपने परिवार की रानी मक्खी थी और सब उसके इर्द-गिर्द झुंड बनाकर खड़े हो गए । सब उसका हाल-चाल पूछ रहे थे। और उसे इस हाल में लाने वाला गाड़ी से सामान निकाल निकाल कर सुगना के कमरे तक पहुंचा रहा था।

अंदर सरयू सिंह को देखकर सुगना घबरा गई। उसके मन में एक डर सा आ गया.. उसने अपने डर को काबू में कर सरयू सिंह के चरण छुए और सरयू सिंह ने उसे खुश रहने का आशीर्वाद देते हुए अपनी सीने से सटा लिया। आज पहली बार सुगना सरयू सिंह के आलिंगन में खुद को असहज महसूस कर रही थी.. शायद यह उसके मन में आ रही आत्मग्लानि की वजह से था।

"बेटा डॉक्टर के रिपोर्ट में सब ठीक निकलल बा नू? अब पेट दर्द कैसन बा?"


सरयू सिंह सचमुच सुगना से बेहद प्यार करते थे…पहले भी और अब भी दोनों ही रूप में सुगना उन्हें जान से ज्यादा प्यारी थी…..

सुगना ने कहा अब ठीक बा दवा खाई ले बानी रिपोर्ट भी नॉर्मल बा…

सुगना के आने के पश्चात सरयू सिंह अपना सामान लेकर दूसरे कमरे में आ गए और सुगना अपना कमरा ठीक करने लगी।

अलमारी में अपने कपड़ों को सहेज कर रखते हुए अचानक उसे वही रहीम और फातिमा की किताब दिखाई दी जिसे दो टुकड़ों में उसने स्वयं फाड़ कर फेका था और जिसे कुछ दिनों बाद सोनू ने वापस जोड़ दिया था। न जाने सुगना के मन में क्या आया उसने वह किताब निकाल ली.. और अनमने मन से आलमारी के अंदर ही सब की नजरों से छुपती उसके पन्ने पलटने लगी। दीपावली की उस काली रात के पहले सुगना वह किताब कई बार बढ़ चुकी थी और रहींम तथा फातिमा को ना जाने कितनी बार कोस चुकी थी…परंतु किताब को पढ़कर न जाने उसके शरीर में ना जाने क्या हो जाता. सुगना का तन बदन और दिमाग एक लय में काम न करते…. और सुगना की बुर उसे प्रतिरोध के बावजूद चिपचिपी हो जाती।

आज भी सुगना एक बार फिर रहीम और फातिमा की कहानी में खो गई… कैसे फातिमा ने रहीम को वासना के गर्त में खींच लाया था…. आज लखनऊ से वापस आते समय भी उसमें अपने दिमाग में कई बार किताब का जिक्र लाया था…

"दीदी हमार तोलिया तोहरा बैग में बा का? " सोनू की आवाज से सुनना सतर्क हुई और आनन-फानन में उस किताब को वही कपड़ों के भीतर छुपा दिया।किताब की कामुक भाषा में सुगना को बेचैन कर दिया। सुगना की वासना हिलोरे मार रही थी और सांसे गति पकड़ रही थी यदि वह किताब के पन्ने कुछ देर और पलट तो निश्चित ही जांघों के बीच छुपी इश्क की रानी का दर्द उसके होठों पर छलक आता…

सुगना ने झुक कर अपना बैग खोला और उसकी निगाहें सोनू का तोलिया ढूंढने लगी उधर सोनू की निगाहें सामने झुकी हुई सुगना के ब्लाउज में दूधिया कलशों को ढूंढने में लग गई…और जब सुगना ने तोलिया ढूंढ लिया उसकी नजरें ऊपर उठी और सोनू की चोरी पकड़ी गई सुगना ने अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और तोलिया देते हुए सोनू को बोली…

"तोहरा जौनपुर कब जाएके बा?"

आज पहली बार सुगना खुद सोनू से जाने के लिए पूछ रही थी। इसका कारण कुछ और नहीं सिर्फ सोनू को लाली से एक सप्ताह के लिए दूर रखना था सुगना जानती थी सोनू और लाली निश्चित ही करीब आएंगे और हो सकता है सोनू आवेश में आकर लाली के साथ संबंध बना बैठे…जो डॉक्टर के हिसाब से सर्वथा वर्जित था।

"कल सुबह जाएब" सोनू ने स्वाभाविक और अनुकूल उत्तर देकर सुगना को संतुष्ट कर दिया। सुगना खुश हो गई 1 दिन के लिए सोनू को लाली से अलग रखने की जुगत तो वह लगा ही सकती थी।

सरयू सिंह सुगना के साथ बात करने को बेताब थे परंतु उन्हें मौका नहीं मिला रहा था। वैसे भी सोनी और विकास का मुद्दा गंभीर था उसे वह उस बात को हल्के में जाया नहीं करना चाहते थे। समय काटने के लिए वह अपने पुत्र सूरज को लेकर बाहर घूमने चले गए । उन्हें बखूबी पता था कि सूरज उनका ही पुत्र है जिसे सुगना के गर्भ में पहुंचाने के लिए उन्होंने दो-तीन वर्ष तक सुगना का खेत खूब जोता था….

जैसे ही सुगना स्नानघर में नहाने घुसी सोनू ने घर का मुख्य दरवाजा बंद किया और कुछ देर इंतजार करने के बाद खाना बना रही लाली के पास पहुंच गया कुछ देर तो वह लाली से इधर उधर बातें करता रहा और थोड़ी ही देर बाद उसने लाली को अपने आलिंगन में भर लिया लाली को पीछे से अपनी बाहों में भरे सोनू की हथेलियां लाली की सूचियों की गोलाई नापने लगी लंड तन कर उसके नितंबों में धंसने लगा लाली को भी संभोग किए कई दिन बीत चुके थे सोनू का यह स्पर्श उसे अच्छा लग रहा था। लाली की वासना जागृत हो गई उसने एन केन प्रकारेण अपने हाथों को साफ किया और सीधे होकर सोनू को अपनी बाहों में भर लिया. सोनू और लाली के बीच चुम्मा चाटी प्रारंभ हो गई और सोनू लाली की नाइटी को ऊपर खींचने लगा …. तभी बाथरूम से निकलकर सुगना बाहर आ गई ….. और अपने कमरे में जाने लगी तभी उसकी नजर रसोई में पड़ गई जहां सोनू लाली की नाइटी को उसके नितंबों तक ऊपर कर चुका था…

लाली और सोनू को रोकना जरूरी था सुगना ने रसोई के दरवाजे पर पहुंचकर लाली को आवाज दी…

"लाली ..बाबूजी आईल बाड़े पहले खाना पीना खिला दे फिर सोनू से बतिया लीहे…"

लाली और सोनू के बीच जो हो रहा था वह सुगना अपनी खुली आंखों से देख चुकी थी… उसने सरयू सिंह का नाम लेकर उनके मिलन में खलल डाल दिया था…. पर सुगना मजबूर थी।

सोनू मुस्कुरा रहा था…. उसकी सोच कामयाब हो रही थी…. जैसा कि उसे उम्मीद थी की सुगना दीदी अगले एक सप्ताह तक उसे लाली के करीब नहीं आने देंगी शायद अपने इसी विश्वास को सुदृढ़ करने के लिए वह सुगना के बाथरूम से बाहर निकलने के ठीक पहले लाली के नजदीक आया था वह भी रसोई घर में ताकि सुगना का ध्यान बरबस ही उसकी तरफ आ जाए…

सोनू रसोई घर से बाहर आ गया और भीनी भीनी महक बिखेरती सुगना अपने कमरे में प्रवेश कर गई। लाली एक बार फिर मन मसोसकर आधा गूंथा हुआ आटा गुथने लगी…

तभी दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई सोनू ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला…. बाहर दो बड़ी बड़ी कार खड़ी थीं …हाथों में सजी-धजी फलों और मिठाई की टोकरी लिए तीन चार व्यक्ति बाहर खड़े थे और उनके पीछे लाल रंग का चमकदार बैग लिए हांथ जोड़े दो संभ्रांत पुरुष..

उनकी वेशभूषा और फलों तथा मिठाइयों की की गई पैकिंग को देखकर यह अंदाज लगाया जा सकता था कि उनका सोनू के घर आने का क्या प्रयोजन था…

सोनू ने उन्हें अंदर आने के लिए निमंत्रित किया और अंदर आकर हाल में रखी कुर्सियों को व्यवस्थित कर उन्हें बैठाने लगा…

लग रहा था जैसे सुगना और सोनू के परिवार में कोई नया सदस्य आने वाला था…

शेष अगले भाग में…

बहुत ही मनोरम और रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले धमाकेदार और रोमांचकारी अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी
 

Sanju@

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भाग १११

जैसे ही बच्चों की नींद लगी सुगना बिस्तर से उठी और एक बार फिर नित्य क्रिया के लिए गुसल खाने की तरफ गई परंतु वापस आने के बाद वह अपनी जगह पर जाने की बजाय सोनू की तरफ जाकर बिस्तर पर बैठने लगी। अपने प्रश्नों में उलझी हुई सुगना इस बार शॉल लेना भूल गई थी। भरी भरी चूचियां थिरक रही थीं और बरबस ही सोनू का ध्यान खींच रही थी।

सोनू ने तुरंत ही अपने पैर सिकोड़े और उठकर सिरहाने से पीठ टिकाकर बैठ गया। सुगना के चेहरे पर आई अधीरता सोनू देख चुका था उसे यह अंदाज हो गया की सुगना दीदी उससे ढेरों प्रश्न करने वाली थी। उसने अपनी हृदय गति पर नियंत्रण किया और बोला..


अब आगे….

"का बात बा दीदी?"

सुगना अपने मन में रह-रहकर घुमड़ रहे उस प्रश्न को न रोक पाई जिसने उसे पिछले कुछ घंटों से परेशान किया हुआ था..

"सोनू बताऊ ना ई काहे कईले हा" सुगना का प्रश्न वही व्यक्ति समझ सकता है जो इस प्रश्न का इंतजार कर रहा हो सोनू बखूबी जानता था कि सुगना क्या पूछ रही है।

सोनू को पता था यह प्रश्न अवश्य आएगा उसने अपना उत्तर सोच लिया था..वैसे भी अब सोनू के पास अस्पताल के कमरे की तरह अब पलके बंद करने का विकल्प न था। सुगना यद्यपि उसकी तरफ देख न रही थी उसकी पलके झुकी हुई थी परंतु प्रश्न स्पष्ट और सटीक था सोनू ने हिम्मत जुटाई और कहा..

"हमरा एक गलती से तोहरा इतना कष्ट भईल हमरा दंड मिले के चाही.."


सुगना सतर्क हो गई। सोनू के मन में क्या चल रहा था यह बात वह अवश्य जानना चाहती थी पर यह कभी नहीं चाहती थी कि सोनू खुलकर उससे नजदीकियां बढ़ाने के लिए अनुरोध करें। छी कितना घृणित संवाद होगा जब कोई छोटा भाई अपनी ही बहन से उसकी अंतरंगता की दरकार करे। सुगना ने बात को घुमाते हुए कहा

"सब तोहरा शादी के तैयारी करता और तू ई कर लेला"

सोनू चुप रहा और सुगना इंतजार करती रही कुछ पलों की शांति के पश्चात सुगना ने अपना चेहरा उठाया और सोनू के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुए कहा

"बोल ना चुप काहे बाड़े?"

सोनू से अब और बर्दाश्त न हुआ उसने अपने हाथ आगे बढ़ाएं और सुगना की हथेली को अपनी हथेलियों में लेकर सहलाने लगा और इस बार अपनी नजरें झुकाते हुए बोला

"दीदी हम शादी ना करब.".

सुगना सोनू के मुख से यह शब्द सुनकर अवाक रह गई। सोनू की इस बात ने उसके शक को यकीन में बदल दिया था… परंतु सोनू जो कह रहा था वह मानने योग्य बात न थी…प्रश्न उठना स्वाभाविक था सो उठा..

"तो का सारा जिंदगी अकेले बिताईबा .."

"हम अकेले कहां बानी …सूरज, मधु, राजू, रीमा, रघु, इतना सारा बच्चा लोग बा लाली दीदी बाड़ी तू बाडू …पूरा परिवार बा " सोनू ने अपनी उंगलियों पर मासूमियत से बच्चे गिनते हुए बड़ी बारीकी से सुगना का उत्तर दे दिया परंतु वह घर में एक बच्चे को भूल गया था जो रतन पुत्री मालती थी।

लाली के साथ अपना नाम सुनकर सुगना सिहर उठी… सुगना ने सोनू की हथेलियों के बीच से अपना हाथ खींचने की कोशिश की और बोला

"अइसन ना होला शादी सब केहू करेला वरना समाज में का मुंह दिखाइबा सब केहू सवाल पूछी का बताइबा"

" काहे सवाल पूछी? सरयू चाचा से के सवाल पूछा ता.?".

सुगना के एक प्रश्न के उत्तर में सोनू ने दो-दो प्रश्न छोड़ दिए थे। उसके प्रश्न पूछने की अंदाज उसके अब उग्र होने का संकेत दे रहा था..

वैसे भी सरयू सिंह का नाम लेकर सोनू ने सुगना को निरुत्तर कर दिया उसने अपने हाथ का तनाव हटा दिया और उसकी हथेली एक बार फिर सोनू की हथेलियों के बीच स्वाभाविक रूप से सोनू की गर्म हथेलियों का स्पर्श सुख ले रही थी…

"सोनू अकेले जिंदगी काटल बहुत मुश्किल होई पति पत्नी के साथ परिवार बसेला और वंश आगे बढ़ेला.."

सुगना यह बात कह तो गई थी परंतु जिस वंश की बात वह कर रही थी उसकी जड़ आज सोनू स्वयं कटवा आया था और वही इस वार्तालाप की मूल वजह थी।

मुख से निकली हुई बात वापस आना संभव न था। सोनू ने बात पकड़ ली और अपनी हथेलियों का दबाव सुगना की हथेली पर बढ़ाते हुए बोला

" अब ईहे बच्चा लोग और तू लोग हमार परिवार बा हमरा और कुछ ना चाही.."

सोनू ने अपनी दाहिनी हथेली सुगना की हथेली के ऊपर से हटाया और बच्चों को प्यार से सहलाने लगा परंतु उसने अपनी बाई हथेली से सुगना का हाथ पकड़े रखा..

सुगना भीतर ही भीतर पिघल रही थी। सोनू जो बात कह रहा था वह उसके ह्रदय में गहरे तक उतर रही थी… परंतु क्या सोनू जीवन भर वासना रस से भी मुक्त रहेगा…? सुगना के मन में बार-बार वही सवाल उठ रहे थे पर उसे पूछने की सुगना हिम्मत ना जुटा पा रही थी।

भाई बहन के संबंधों में वासना का कोई स्थान नहीं होता है… न बातों में… न विचारों में और नहीं कृत्यों में…परंतु सुगना और सोनू के बीच परिस्थितियां तेजी से बदल रही थी.

"ए सोनू तू फिर से सोच विचार करले इकरा बिना भी शादी हो सकेला … बच्चा के अलावा भी जीवन में शादी के जरूरत होला" सुगना ने अपनी बड़ी बहन होने की मर्यादा तोड़ कर सोनू से कहा।

सुगना लोक लाज में फंसी …..सोनू के विवाहित होने की वकालत कर रही थी पर परंतु जिसने अपना लक्ष्य निर्धारित कर रखा हो उसे डिगा पाना असंभव था।

सोनू ने वापस दृढ़ता से सुगना की हथेली को पूरे उत्साह से दबाते हुए कहा..

"दीदी हम निर्णय कर लेले बानी हम विवाह ना करब…"


सोनू हमेशा से दृढ़ इच्छाशक्ति का धनी था। वह अब धीरे-धीरे वह सुगना के प्रति आसक्त होता गया था और उसे पाना उसकी जिंदगी का मकसद बन चुका था। अविवाहित होने की प्रेरणा व सरयू सिंह से ले चुका था जो भरे पूरे सम्मान के साथ समाज में एक प्रतिष्ठित जीवन जी रहे थे।

शायद सोनू को उनकी कामवासना से भरी हुई जिंदगी के बारे में पता न था अन्यथा वह दोहरे उत्साह से उस जीवन शैली को सहर्ष अपना लिया होता।

नियति ने सोनू के मनोभाव पढ़ लिए थे और उसकी अच्छाइयों का फल देने की जुगत लगाने लगी।

आखिरकार सुगना और सोनू की बातचीत में ठहराव आया और सुगना ने बातचीत बंद करते हुए कहा

"सोनू जो सूत रह कल सवेरे जाएके भी बा"

"हां दीदी" इतना कहकर सोनू ने अपनी हथेलियों का दबाव सुगना की हथेली पर से हटा लिया और जिस तरह 15 अगस्त के दिन लोग कबूतर हथेली पर रखकर कबूतर उड़ाते हैं उसी प्रकार उसने सुगना को आजाद हो जाने दिया। सुगना अपना हाथ सूरज की हथेली पर से हटा रही थी उन चंद पलों में उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह किसी बेहद करीबी से अलग हो रही हो। सुगना उठी और बिस्तर के दूसरे किनारे पर आकर एक बार फिर लेट गई.. सुगना को उठकर बिस्तर के दूसरी तरफ जाते समय सुगना की ब्रा की कैद से आजाद भरी भरी चुचियों ने हिचकोले खाकर सोनू का ध्यान अपनी ओर खींच लिया .. और सोनू चंद पलों में ही उन खूबसूरत और मुलायम चूचियों के उस अद्भुत स्पर्शसुख में खो गया जो उसने सुगना के साथ अपने प्रथम संभोग के अंतिम क्षणों में अनुभव किया था…

…दिनभर की थकावट ने सुगना और सोनू को शीघ्र ही निद्रा देवी के आगोश में जाने को मजबूर कर दिया. सुगना ने अब सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया…नियति ने सुगना को ऐसी परिस्थिति में डाल दिया था जिससे निकलना या उसमें फसना अब सुगना के बस में न था..

रात गहरा चुकी थी। नियति नाइट लैंप पर बैठी खूबसूरत सुगना के चेहरे को निहार रही थी..और उसके आने वाले जीवन के ताने बाने बुन रही थी।

उधर बनारस में ….सुबह-सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से अपनी नींद खोलने वाले सरयू सिंह ऑटो वालों की चिल्लपों से जाग चुके थे। बनारस शहर तेजी से विकास कर रहा था। दो-तीन वर्षों में ही नई बसी सुगना की कॉलोनी तेजी से विकास कर चुकी थी और उसके घर के सामने से गुजरने वाले वाहनों की संख्या में इजाफा हो गया था।

सरयू सिंह नित्य कर्म से निवृत्त होकर इधर उधर घूम रहे थे सभी कमरों के दरवाजे बंद थे परंतु कुछ देर बाद सोनी का दरवाजा खुला जो उठ कर बाथरूम की तरफ जा रही थी सरयू सिंह वापस सुगना के कमरे में घुस गए और जैसे ही सोनी ने बाथरूम के अंदर प्रवेश किया वह एक बार फिर बाथरूम के दरवाजे के पास आ गए और चहल कदमी करने लगे। जैसे ही सोनी ने मूत्र विसर्जन शुरू किया सीटी की मधुर आवाज सरयू सिंह के कानों तक पहुंची और उनकी प्रतीक्षा खत्म हुई सरयू सिंह अपनी चहल कदमी रोककर उस मधुर स्वर में खो गए और उस स्रोत की खूबसूरती की मन ही मन कल्पना करने लगे।

तभी लाली भी कमरे से बाहर आ गई। और बेहद आदर से सरयू सिंह से बोली

"लागाता हमनी के उठे में देर हो गईल बा आप बैठी हम चाय बनाकर ले आवत बानी"

जब तक सोनी घर में रही… सरयू सिंह उसके अंग प्रत्यंग ओं को देखने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे थे। पर सोनी उनसे सुरक्षित दूरी बनाए हुए थी। सुगना का घर इतना बड़ा न था कि वह सरयू सिंह की निगाहों के सामने न पड़ती…सोनी बरबस ही सरयू सिंह की वीणा के तार छेड़ जाती विचारों के कंपन लंड को तरंगों से भर देते और उनका लंड उस तरुणी की योनि मर्दन की कल्पना कर उत्साहित हो तन जाता।

आखिरकार सोनी के कॉलेज जाने का वक्त हुआ और सोनी बलखाती हुई सरयू सिंह के सामने से निकल गई… सुगना को आने में अभी वक्त था एक बार सरयू सिंह के मन में आया कि वह दोबारा सोनी का पीछा करें परंतु…उन्होंने वह विचार त्याग दिया और बेसब्री से सुगना और सोनू का इंतजार करने लगे…

सोनू और सुगना एक बार फिर वापस बनारस लौट रहे थे कार की पिछली सीट पर दोनों दो किनारों पर बैठे थे पर सोच एक दूसरे के बारे में ही रहे थे।

महिला डॉक्टर ने जो नसीहत सुगना को दी थी वही नसीहत सोनू भी पढ़ चुका था। अगले 1 हफ्ते तक संभोग वर्जित था परंतु जननांगों को सक्रिय रखने के लिए अगले 8 दिन यथासंभव अधिकाधिक संभोग की वकालत की गई थी। जितना सुगना सोनू के बारे में सोच रही थी उसका छोटा भाई उससे कम न था वह भी सुगना के खूबसूरत जननांगों को यूं ही निष्क्रीय नहीं हो जाने देना चाह रहा था… परंतु सुगना बड़ी थी और ज्यादा जिम्मेदार थी। सोनू को पूरा यकीन था कि जिस सुगना दीदी ने पूरे परिवार को इस मुकाम तक लाया था वह उसकी धुरी की खशियो को यूं ही बर्बाद नहीं होने देंगी।

निश्चित ही एसडीएम बनने के बाद सोनू इस परिवार के लिए बेहद अहम था। दोनों भाई बहन एक दूसरे के जननांगों को जीवंत रखने के लिए तरह-तरह के उपाय लगा रहे थे। अपना-अपना होता है सुगना का ख्याल रखने वाला इस दुनिया में अब कोई न था। परंतु सुगना के लिए अभी भी रास्ते खुले हुए थे लाली उसके लिए वरदान थी रास्ते भर वह लाली के बारे में ही सोचती रही।

सुगना ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह बनारस पहुंचते ही सोनू को जौनपुर भेज देगी और 7 दिनों बाद सोनू को जबरदस्ती अपने घर बुला लेगी और उसे तथा लाली को भरपूर एकांत देगी… और यही नहीं उन दोनों के बीच लगातार संभोग होता रहे यह सुनिश्चित करेगी चाहे और उसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े.. यदि सोनू को लाली से संभोग हेतु उसे स्वयं भी उत्तेजित करना पड़ा तो भी वह पीछे नहीं हटेगी..


परंतु वह अभी सोनू को कैसे रोकेगी? यदि सोनू ने जौनपुर जाने में देर की तब? सोनू और लाली तो स्वत ही करीब आ जाते है .. यह तो दीपावली की वह काली रात थी जिसके पश्चात कई दिनों तक सोनू और लाली की अंतरंग मुलाकात न हुई थी पर अब सबकुछ सामान्य हो चला था।

सोनू अब भी मीठे सपनों में खोया हुआ था बीती रात उसने सुगना के चेहरे पर वह डर पढ़ लिया था जो डॉक्टर की नसीहत न मानने पर उत्पन्न होता उसे इतना तो विश्वास था की सुगना किसी न किसी प्रकार उसके वीर्य स्खलन का प्रबंध अवश्य करेगी परंतु क्या वह स्वयं अपने लिए डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत को मानेगी इस बात में संशय अवश्य था।

अचानक लगी ब्रेक ने सोनू को उसके ख्यालों से बाहर निकाल दिया सुगना भी जाग उठी सामने एक मोटरसाइकिल वाले ने दूसरे को टक्कर मार दी थी और दोनों निकल कर एक दूसरे को गालियां बक रहे थे सोनू ने जैसे ही शीशे का दरवाजा नीचे किया बाहर से आवाज सुनाई पड़ी…

"अरे बहन चोद…यहां क्या अपनी बहन चुदवाने आया है"

सोनू ने झटपट अपने खिड़की के शीशे को बंद करने की कोशिश की परंतु देर हो चुकी थी वह ध्वनि सुगना के कानों तक भी पहुंच चुकी बहन चोद शब्द सुगना के कानों में गूंज रहा था और सोनू के भी। समाज में घृणित नजरों से देखा जाने वाला यह शब्द सुगना और सोनू को हिला गया और सोनू के मन में उठ रही वासना कुछ पलों के लिए काफूर हो गई।

उस शब्द से सुगना भी आहत हो गई थी। जितना ही सुगना उस शब्द को भूलना चाहती उतना ही वह सुगना के सामने आता सुगना की आंखों के सामने उसके प्रथम मिलन के दृश्य घूमने लगे उसने जो प्रतिकार किया था वह भी उसे याद था और वह भी जब अंततः उसने अपनी वासना के अधीन होकरअपने पैरों से सोनू को अपनी जांघों के बीच अपनी तरफ खींचा था।नियति गवाह थी सोनू को बहन चोद बनाने में सुगना की भी अहम भूमिका थी।


जब तक सुगना अपने विचारों से बाहर आतीं सोनू की कार सुगना के दरवाजे पर खड़ी हो चुकी थी। दरवाजा खुलते ही सूरज तेजी से उतर कर घर के अंदर भागा और थोड़ी ही देर में सुगना के घर की खोई हुई चहल-पहल वापस आ गई ।

घर की रानी सुगना के घर में घुसते ही सब उसके इर्द-गिर्द इकट्ठा हो गए। सुगना अपने परिवार की रानी मक्खी थी और सब उसके इर्द-गिर्द झुंड बनाकर खड़े हो गए । सब उसका हाल-चाल पूछ रहे थे। और उसे इस हाल में लाने वाला गाड़ी से सामान निकाल निकाल कर सुगना के कमरे तक पहुंचा रहा था।

अंदर सरयू सिंह को देखकर सुगना घबरा गई। उसके मन में एक डर सा आ गया.. उसने अपने डर को काबू में कर सरयू सिंह के चरण छुए और सरयू सिंह ने उसे खुश रहने का आशीर्वाद देते हुए अपनी सीने से सटा लिया। आज पहली बार सुगना सरयू सिंह के आलिंगन में खुद को असहज महसूस कर रही थी.. शायद यह उसके मन में आ रही आत्मग्लानि की वजह से था।

"बेटा डॉक्टर के रिपोर्ट में सब ठीक निकलल बा नू? अब पेट दर्द कैसन बा?"


सरयू सिंह सचमुच सुगना से बेहद प्यार करते थे…पहले भी और अब भी दोनों ही रूप में सुगना उन्हें जान से ज्यादा प्यारी थी…..

सुगना ने कहा अब ठीक बा दवा खाई ले बानी रिपोर्ट भी नॉर्मल बा…

सुगना के आने के पश्चात सरयू सिंह अपना सामान लेकर दूसरे कमरे में आ गए और सुगना अपना कमरा ठीक करने लगी।

अलमारी में अपने कपड़ों को सहेज कर रखते हुए अचानक उसे वही रहीम और फातिमा की किताब दिखाई दी जिसे दो टुकड़ों में उसने स्वयं फाड़ कर फेका था और जिसे कुछ दिनों बाद सोनू ने वापस जोड़ दिया था। न जाने सुगना के मन में क्या आया उसने वह किताब निकाल ली.. और अनमने मन से आलमारी के अंदर ही सब की नजरों से छुपती उसके पन्ने पलटने लगी। दीपावली की उस काली रात के पहले सुगना वह किताब कई बार बढ़ चुकी थी और रहींम तथा फातिमा को ना जाने कितनी बार कोस चुकी थी…परंतु किताब को पढ़कर न जाने उसके शरीर में ना जाने क्या हो जाता. सुगना का तन बदन और दिमाग एक लय में काम न करते…. और सुगना की बुर उसे प्रतिरोध के बावजूद चिपचिपी हो जाती।

आज भी सुगना एक बार फिर रहीम और फातिमा की कहानी में खो गई… कैसे फातिमा ने रहीम को वासना के गर्त में खींच लाया था…. आज लखनऊ से वापस आते समय भी उसमें अपने दिमाग में कई बार किताब का जिक्र लाया था…

"दीदी हमार तोलिया तोहरा बैग में बा का? " सोनू की आवाज से सुनना सतर्क हुई और आनन-फानन में उस किताब को वही कपड़ों के भीतर छुपा दिया।किताब की कामुक भाषा में सुगना को बेचैन कर दिया। सुगना की वासना हिलोरे मार रही थी और सांसे गति पकड़ रही थी यदि वह किताब के पन्ने कुछ देर और पलट तो निश्चित ही जांघों के बीच छुपी इश्क की रानी का दर्द उसके होठों पर छलक आता…

सुगना ने झुक कर अपना बैग खोला और उसकी निगाहें सोनू का तोलिया ढूंढने लगी उधर सोनू की निगाहें सामने झुकी हुई सुगना के ब्लाउज में दूधिया कलशों को ढूंढने में लग गई…और जब सुगना ने तोलिया ढूंढ लिया उसकी नजरें ऊपर उठी और सोनू की चोरी पकड़ी गई सुगना ने अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और तोलिया देते हुए सोनू को बोली…

"तोहरा जौनपुर कब जाएके बा?"

आज पहली बार सुगना खुद सोनू से जाने के लिए पूछ रही थी। इसका कारण कुछ और नहीं सिर्फ सोनू को लाली से एक सप्ताह के लिए दूर रखना था सुगना जानती थी सोनू और लाली निश्चित ही करीब आएंगे और हो सकता है सोनू आवेश में आकर लाली के साथ संबंध बना बैठे…जो डॉक्टर के हिसाब से सर्वथा वर्जित था।

"कल सुबह जाएब" सोनू ने स्वाभाविक और अनुकूल उत्तर देकर सुगना को संतुष्ट कर दिया। सुगना खुश हो गई 1 दिन के लिए सोनू को लाली से अलग रखने की जुगत तो वह लगा ही सकती थी।

सरयू सिंह सुगना के साथ बात करने को बेताब थे परंतु उन्हें मौका नहीं मिला रहा था। वैसे भी सोनी और विकास का मुद्दा गंभीर था उसे वह उस बात को हल्के में जाया नहीं करना चाहते थे। समय काटने के लिए वह अपने पुत्र सूरज को लेकर बाहर घूमने चले गए । उन्हें बखूबी पता था कि सूरज उनका ही पुत्र है जिसे सुगना के गर्भ में पहुंचाने के लिए उन्होंने दो-तीन वर्ष तक सुगना का खेत खूब जोता था….

जैसे ही सुगना स्नानघर में नहाने घुसी सोनू ने घर का मुख्य दरवाजा बंद किया और कुछ देर इंतजार करने के बाद खाना बना रही लाली के पास पहुंच गया कुछ देर तो वह लाली से इधर उधर बातें करता रहा और थोड़ी ही देर बाद उसने लाली को अपने आलिंगन में भर लिया लाली को पीछे से अपनी बाहों में भरे सोनू की हथेलियां लाली की सूचियों की गोलाई नापने लगी लंड तन कर उसके नितंबों में धंसने लगा लाली को भी संभोग किए कई दिन बीत चुके थे सोनू का यह स्पर्श उसे अच्छा लग रहा था। लाली की वासना जागृत हो गई उसने एन केन प्रकारेण अपने हाथों को साफ किया और सीधे होकर सोनू को अपनी बाहों में भर लिया. सोनू और लाली के बीच चुम्मा चाटी प्रारंभ हो गई और सोनू लाली की नाइटी को ऊपर खींचने लगा …. तभी बाथरूम से निकलकर सुगना बाहर आ गई ….. और अपने कमरे में जाने लगी तभी उसकी नजर रसोई में पड़ गई जहां सोनू लाली की नाइटी को उसके नितंबों तक ऊपर कर चुका था…

लाली और सोनू को रोकना जरूरी था सुगना ने रसोई के दरवाजे पर पहुंचकर लाली को आवाज दी…

"लाली ..बाबूजी आईल बाड़े पहले खाना पीना खिला दे फिर सोनू से बतिया लीहे…"

लाली और सोनू के बीच जो हो रहा था वह सुगना अपनी खुली आंखों से देख चुकी थी… उसने सरयू सिंह का नाम लेकर उनके मिलन में खलल डाल दिया था…. पर सुगना मजबूर थी।

सोनू मुस्कुरा रहा था…. उसकी सोच कामयाब हो रही थी…. जैसा कि उसे उम्मीद थी की सुगना दीदी अगले एक सप्ताह तक उसे लाली के करीब नहीं आने देंगी शायद अपने इसी विश्वास को सुदृढ़ करने के लिए वह सुगना के बाथरूम से बाहर निकलने के ठीक पहले लाली के नजदीक आया था वह भी रसोई घर में ताकि सुगना का ध्यान बरबस ही उसकी तरफ आ जाए…

सोनू रसोई घर से बाहर आ गया और भीनी भीनी महक बिखेरती सुगना अपने कमरे में प्रवेश कर गई। लाली एक बार फिर मन मसोसकर आधा गूंथा हुआ आटा गुथने लगी…

तभी दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई सोनू ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला…. बाहर दो बड़ी बड़ी कार खड़ी थीं …हाथों में सजी-धजी फलों और मिठाई की टोकरी लिए तीन चार व्यक्ति बाहर खड़े थे और उनके पीछे लाल रंग का चमकदार बैग लिए हांथ जोड़े दो संभ्रांत पुरुष..

उनकी वेशभूषा और फलों तथा मिठाइयों की की गई पैकिंग को देखकर यह अंदाज लगाया जा सकता था कि उनका सोनू के घर आने का क्या प्रयोजन था…

सोनू ने उन्हें अंदर आने के लिए निमंत्रित किया और अंदर आकर हाल में रखी कुर्सियों को व्यवस्थित कर उन्हें बैठाने लगा…

लग रहा था जैसे सुगना और सोनू के परिवार में कोई नया सदस्य आने वाला था…


शेष अगले भाग में…
एक और बहुत ही सुंदर लाजवाब और अप्रतिम अपडेट है
सोनू का शादी न करने का फैसला करना सरयुसिंग का सोनी के अंग प्रत्यंगों को देखकर उत्तेजित होना । सुगना का भाई बहन की चुदाई वाली कहानी बार बार पढकर उत्तेजना महसुस करना । सोनू को एक सप्ताह संभोग से यानी लाली से दूर रखने के लिये उन पर ध्यान रखना किचन में लाली और सोनू के मिलन में सरयुसिंग का नाम लेकर खलल डालना और लाली का मन मसोस कर रह जाना बडा ही गजब का हैं
बडी बडी गाडी में दो व्यक्ती बडे तामझाम से पहुंचना लगता है कुछ आनंदायक प्रयोजान लगता है देखते हैं आगे क्या होता है
 

Lovely Anand

Love is life
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Bhai aap likhate to Accha ho par agar aap ke pas samay ho to Thora aur long update diya Karen. To aur achha lagega..
वही तो नहीं है मित्र परंतु जितना मिल रहा है उसमें लिख रहा हूं और आपकी उसका उसी प्रकार आनंद लेते रहें
Lovely Anand bhai ji aapki kahani itni jabardast hai ke saari kahani ek flow mein hi pad li jo updates missing thhe unko chod kar , kyunki last tak padne ki itni aag lagi ke socha missing update ki demand baad mein kar lenge your written skills is unmatched, so u request you kindly send updates 90,91 ,101,102,109 so i read missing puzzle of this beautiful picture
Jin updates ko आप कुछ घंटों में पड़ गए होंगे उन्हें लिखने में उतनी ही दिन लगे हैं परंतु आपने कहानी के पटल पर आकर लिखने वाले को प्रोत्साहन दिया है धन्यवाद
Kasam se kahani ho to aisi
Sala dil hi nhi bharta kabhi
धन्यवाद जी आपकी सराहना के लिए
एक और बहुत ही सुंदर लाजवाब और अप्रतिम अद्वितीय मनभावन अपडेट है भाई मजा आ गया
सुगना का सोनू के बिस्तर पर बैठ कर ये निर्णय क्यो लिया सोनू का शादी न करने का फैसला सरयुसिंग का सोनी के अंग प्रत्यंगों को देखकर उत्तेजित होना सुगना का भाई बहन की चुदाई वाली कहानी बार बार पढकर उत्तेजना महसुस करना सोनू को एक सप्ताह संभोग से यानी लाली से दूर रखने के लिये उन पर ध्यान रखना कीचन में लाली और सोनू के मिलन में सरयुसिंग का नाम लेकर खलल डालना और लाली का मन मसोस कर रह जाना बडा ही गजब हैं
बडी बडी गाडी में दो व्यक्ती बडे तामझाम से पहुंचना आगे आने वाले आनंददायी प्रयोजन का सुचक लगता है खैर देखते हैं आगे
हमेशा की तरह आप का सारांश बेहद सटीक है धन्यवाद
अद्भुत अपडेट लवली जी
पुनः सोनू और सुगना की मिलन की प्रतीक्षा हैं
जल्दी ही होगा ऐसा मुझे भी लगता है
A different turn in story... Must be a new relationship between sugna & Vikas / Soni & sarayu singh
जीवन संभावनाओं से भरा हुआ है उसे अपनी गति से चलने आनंद आएगा
Bahut hee shandar update bhai vivah smaroh ki suruwat ho gya hai.
धन्यवाद
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ये क्या हो गया सरयु जी का सपना सोनी को चुदाई करने का अधुरा रह गया| अब सोनी हि सरयु जी कि ईच्छा पुरि कर दे | अब तो विकास भी सगुना के करिब आ जायेगा उसकी खूबसूरती और उसका गदराया हुआ तन घूम जाता और सुगना उसके मन में वासना के तार छेड़ देती।
सरयू सिंह जी की मेहनत जाया नहीं जाएगी।
अपडेट क्रमांक १०९ कि प्रतिक्षा में, please
Sent
कहानी को आगे बढ़ाने के लिए बेहतरीन अपडेट
थैंक्स
Sir, Bahut hi badhiya, par ye sat aath din Gujar kayon nahi rahe...
Thanks
Shandar update 👌
Thanks
Nice.. update
Thanjs
Sir ab hakikat me intezaar nhi ho rha h. Niyati kisi ka bhi milan karwaye.aur aap bhi please.
Thanks
धाराप्रवाह शैली सरहनीय है, अदभुद लिखते हैं आप 🙏
थैंक्स
 

vedinician

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Badhiya update
 

Rekha rani

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Nice update, vikash aur soni ka rista ab pkka ho gya, unke chhupe vivah pr privar ki sahamati ki mohar lag gyi,
Saryu singh ke man ki aas man me hi rah gyi philahal, aane wale waqt me kya hona hai soni aur saryu me uska wait rhega,
Udhar moni ka doctor nirikshan kr rhi hai, ab aashram me ye kumari hone praman krke kya hone wala hai, udhar ratan aur madhavi me alag kuchh ghat rha hai,
Saryu singh ek bar phir radiant hotel pahuch gye, ab us room me kya nya hona hai niyti kya khel khelegi dekhna hoga,
 

Mishra8055

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प्रिय पाठको जैसा कि मैंने वादा किया था आज रात्रि 10:00 बजे तक उन सभी पाठकों को 101 वां एपिसोड डायरेक्ट मैसेज से भेज दिया जाएगा जिन्हें यह अपडेट नहीं मिलता है वह मुझे इसी कहानी के पटल पर मैसेज कर बता सकते वैसे मैं पूरी कोशिश करूंगा कि किसी का नाम न छूटे परंतु यदि छूट जाता है तो कृपया मुझे अवश्य बताएं..

एक बात और 102 वां एपिसोड भी इसी कहानी का दूसरा महत्वपूर्ण अपडेट है जिन पाठकों की प्रतिक्रिया 101 में अपडेट पर आ जाएगी उन्हें तुरंत ही दूसरा अपडेट (102 वा )कल सुबह भेज दिया जाएगा।
Abhi Tak nahi praapt hua hai 101 ka update
 
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