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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Raj0410

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भाग 117

उधर कोई और रास्ता न देख सुगना ने फैसला कर लिया कि वह लाज शर्म छोड़कर…सोनू से खुलकर बात करेगी और डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत को स्पष्ट रूप से सोनू को बता देगी.


सुगना अपनी बात सोनू तक स्पष्ट रूप से पहुंचाने के लिए अपने शब्दों को सजोने लगी …निश्चित ही अपने छोटे भाई को डॉक्टर द्वारा दी गई उस नसीहत को समझाना कठिन था

अब आगे..

लाली और सोनू के जाने के बाद सुगना खुद को असहाय महसूस कर रही थी। नियति ने उसे न जाने किस परीक्षा में डाल दिया था उसका अचूक अस्त्र लाली रणक्षेत्र से बाहर हो चुकी थी।


सोनू के पुरुषत्व को जीवित रखने के लिए सुगना नए-नए उपाय सोच रही थी। सोनू द्वारा स्वयं हस्तमैथुन कर अपने पुरुषत्व को जगाए रखना ही एकमात्र विकल्प नजर आ रहा था।

मुसीबत में इंसान तार्किक हुए बिना कई संभावनाएं तलाश लेता है परंतु हकीकत की कसौटी पर वह संभावनाएं औंधे मुंह गिर पड़ती हैं। अपने ही भाई को अब से कुछ दिनों पहले हस्तमैथुन के लिए पहले रोकना और अब उसे समझा कर उसी बात के राजी करना सुगना को विचित्र लग रहा था।

यद्यपि हस्तमैथुन वीर्य स्खलन करने में सक्षम तो था परंतु डॉक्टर ने दूसरे विकल्प के रूप में बताया था पहला विकल्प अब भी स्पष्ट था संभोग और संभोग हस्तमैथुन का विकल्प तब के लिए था जब सुगना संभोग के लायक कुदरती रूप से न रहती। शायद उस डॉक्टर ने वह क्रीम इसीलिए दी थी।

कई बार कुछ कार्य बेहद आसान होते हैं और अचानक ही एक कड़ी के टूट जाने से वह दुरूह हो जाते है। लाली और सोनू का मिलन सबसे सटीक उपाय था पर अब वह हाथ से निकल चुका था। अचानक सुगना को रहीम और फातिमा की कहानी याद आई और उसकी आंखों में चमक आ गई सुगना ने फटाफट कपड़े बदले और अपने दोनों बच्चों को पड़ोस में कुछ देर के लिए छोड़ कर बाजार की तरफ निकल गई। वैसे भी अब सूरज समझदार हो चुका था और अपनी बहन मधु का ख्याल रख लेता था।


जब जब सुगना सूरज और मधु को साथ देखती उसे भविष्य के दृश्य दिखाई देने लगते विद्यानंद द्वारा कही गई बातें उसके जेहन में गूंजने लगती सूरज कैसे अपनी छोटी बहन के साथ संभोग करेगा ?

सुगना न जाने क्यों यह बात भूल रही थी कि वह स्वयं उसी दहलीज पर खड़ी थी सोनू भी तो उसका अपना भाई था।

सुगना का रिक्शा एक राजसी वैद्य की कुटिया के पास रुका। अंदर वैद्य की जगह उनकी पत्नी उनका कार्यभार सम्हालती थी। कजरी से पूर्व परिचित होने के कारण वह सुगना के भी करीब हो चुकी थीं। सुगना अंदर प्रवेश कर गई। कुछ देर तक वार्तालाप करने की पश्चात वापसी में सुगना के चेहरे पर संतोष स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था शायद अंदर उसे जो शिक्षा और ज्ञान मिला था उससे सुगना संतुष्ट थी।

शाम के 4:00 बज चुके थे सुगना सोनू का इंतजार कर रही थी पर परंतु सोनू के आने में विलंब हो रहा था। सुगना सोनू से बात करने का मसौदा तैयार कर चुकी थी और न जाने कितनी बार उन शब्दों को अपने मन में दोहरा चुकी थी।


हर इंतजार का अंत होता है और सुगना का इंतजार भी खत्म हुआ सोनू की गाड़ी की आवाज बाहर सुनाई दी और सुगना झट से खिड़की पर आ गई। सोनू गाड़ी से उतर कर अंदर आ रहा था चेहरे पर थकावट स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही। बात सच थी आज का दिन सोनू का भागते दौड़ते बीत गया था। योजनाएं सिर्फ सुगना की चकनाचूर न हुई थी सोनू भी आशंकाओं से घिरा हुआ था। सलेमपुर में हुई घटना ने सब कुछ तितर-बितर कर दिया था।

सोनू अपना चेहरा अपने अंगौछे से पोछता हुआ अंदर आया।

"कईसन बाड़े लोग हरिया चाचा और चाची? ज्यादा चोट तो नाइखे लागल ?" सुगना ने स्वाभाविक प्रश्न किया। हरिया चाचा उसके पड़ोसी थे और सरयू सिंह के परम मित्र भी सुगना के सलेमपुर प्रवास के दिनों में उन दोनों ने सुगना का बखूबी ख्याल रखा था। कमरे के अंदर सरयू सिंह के उस दिव्य रूप और रिश्ते को छोड़ दिया जाए तो सरयू सिंह और हरिया दोनों पिता तुल्य ही थे।

"ठीक बाड़े लोग तीन-चार दिन में घाव सूख जाई ज्यादा चोट नईखे लागल चाची के ही पैर में प्लास्टर लागल बा उहे दिक्कत के बात बा? लाली दीदी त बुझाता ओहीजे रहीहैं " सोनू ने स्पष्ट तौर पर सुगना के मन में चल रही सारी संभावनाओं पर विराम लगा दिया।

सोनू स्वयं सुगना के मन की बात जानना चाहता था क्या सुगना उसके साथ जौनपुर जाएगी?

अपनी अधीरता सोनू रोक ना पाया शायद इसीलिए उसने सारी बातें स्पष्ट रूप से सुगना को बता दीं…वह बिना प्रश्न पूछे ही अपना उत्तर चाह रहा था।

सुगना सोच में डूब गई…

सुगना को मौन देख सोनू ने कहा..

" हमरा के जल्दी से चाय पिला द हमरा वापिस जौनपुर जाए के बा"

सुगना ने सोनू की बात का कोई उत्तर न दिया परंतु रसोईघर में जाते-जाते उसने सोनू और दिशा निर्देश दे दिया जाकर पहले मुंह हाथ धो ला। दिन भर के थाकल बाड़.. अ पहले चाय पी ल फिर बतियावाल जाए"


सुगना पूरी तरह तैयार थी। वैद्य जी की पत्नी से मिलने के बाद सुगना के पास कई विकल्प थे। जिसके तरकस में कई तीर आ चुके हों उसमें आत्मविश्वास आना स्वाभाविक।

सुगना रसोई घर में और सोनू गुसल खाने में अपने अपने कार्यों में लग गए पर दिमाग एक ही दिशा में कार्य कर रहा था।

आखिरकार सुगना चाय लेकर सोनू के समक्ष उपस्थित थी। सुगना आपने चेहरे पर उभर रहे भाव को यथासंभव नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी और अपनी नजरें झुकाए हुए थी। उसने सोनू के हाथ में चाय की प्याली दी और बोला

"आज ही जाएल जरूरी बा का?"

हां दीदी बहुत छुट्टी हो गईल बा अब और छुट्टी ना मिली…वैसे भी साल बीते में 1 सप्ताह ही बा।


सुगना ने फिर कहा

"1 सप्ताह बाद फिर लखनऊ भी जाए के बा चेकअप करावे मालूम बानू"

"हां याद बा… नया साल में चलल जाई"

"सोनू एक बात कही?" सुगना लाख प्रयास करने के बाद भी अपनी प्रश्न में छुपी हुई संजीदगी रोक ना पाए और सोनू सतर्क हो गया..

"हां बोल ना दीदी"

"डॉक्टर कहत रहे….." सुगना की सारी तैयारी एक पल में स्वाहा हो गई और उसकी जुबान लड़खड़ा गई

सोनू ने आतुरता से सुगना के मुंह में जबान डालते हुए बोला

"का कहत रहे दीदी?"


सुगना ने फिर हिम्मत जुटाई और बोली

" ते जवन नसबंदी करोले ल बाड़े ओकरे बारे में कहत रहे…"

"का कहत रहे?" सोनू ने सुगना को उत्साहित किया

"सुगना शर्म से गड़ी जा रही थी.. अपने कोमल पैरों से मजबूत फर्श को कुरेदनी की कोशिश की और अपनी हांथ की उंगलियों को एक दूसरे में उलझा लिया शारीरिक क्रियाएं दिमाग में चल रही उलझन का संकेत देती हैं सुगना परेशान हो गई थी। उसने बेहद धीमे स्वर में कहा ..

"डॉक्टर कहते रहे की… नसबंदी के सात दिन बाद एक हफ्ता तक ज्यादा से ज्यादा वीर्य स्खलन करना चाहिए… जिससे ऊ अंग आगे भी काम करता रहे चाहे इसके लिए हस्तमैथुन ही क्यों ना करना पड़े "

सुगना ने डॉक्टर की नसीहत को तोड़मरोड़ कर सोनू को सुना दिया था…हिंदी भाषा का अधिकाधिक प्रयोग कर सुगना ने सोनू को डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत सुनाने की कोशिश की थी…. परंतु परंतु संभोग की बात वह छुपा ले गई थी आखिर जो संभव न था उसके जिक्र का कोई औचित्य भी न था।

अपनी बहन के मुख से हिंदी के वाक्य सुनकर सोनू भी आश्चर्यचकित था और मन ही मन मुस्कुरा रहा था उसने सुगना के शर्माते हुए चेहरे को पढ़ने की कोशिश की परंतु सुगना नजरे ना मिला रही थी.

"का दीदी अभी तीन-चार दिन पहले तक तो उल्टा कहत रहलू और अब उल्टा बोला तारु "

"जरूरी बार एही से बोला तानी"

"दीदी हमरा से ई सब ना होई वैसे भी हमार ई सब से मन हट गईल बा अब हमार जीवन के लक्ष्य बदल गईल बा"

सुगना को एक पल के लिए भ्रम हुआ जैसे सोनू सच कह रहा है परंतु सुगना यह बात भली-भांति जानती थी कि सोनू लाली को चोदने के लिए आतुर था बड़ी मुश्किल से उसने उसे लाली से 1 हफ्ते तक दूर रखा था अचानक वासना से विरक्ति निश्चित ही यकीन योग्य बात न थी।

सुगना कुछ और कहना चाहती थी तभी सूरज कमरे में आ गया और सोनू के पास में आते हुए बोला

"मामा लाली मौसी जौनपुर नईखे जात त हमनी के ले चला… हमरो स्कूल के छुट्टी हो गईल बा"

सोनू ने सूरज के गाल पर पप्पी ली और अपने मन में उठ रही खुशी की तरंगों को नियंत्रित करते हुए बोला.. "हमरा से का बोलत बाड़ा अपना मां से बोला हम तो चाहते बानी"

सूरज सोनू के पास से उठकर सुगना के पास में आ गया और उसके गालों और होठों को चूमते हुए बोला "मां चल ना " सोनू सुगना के चेहरे पर बदल रहे भाव को पढ़ रहा था। और उसने एक बार फिर सुगना से बेहद प्यार से कहा ..

" चल ना दीदी अब तो घर में केहू नईखे …दू चार दिन रह के नया घर देख लिहे ओहिजे से लखनऊ भी चल जाएके "

सुगना ने न जाने क्या सोचा पर उसने अपनी हामी भर दी और उठ कर अपने कमरे में आ गई। थोड़ी ही देर में सुगना अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ जौनपुर जाने के लिए तैयार थी। सुगना का पहला तीर खाली गया था पर उसके तरकश में अब भी तीर बाकी थे।

सोनू की सरकारी गाड़ी सड़क पर तेजी से दौड़ रही थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू की अधीरता उसका ड्राइवर भी समझ रहा था सुगना खिड़की का शीशा खोलें बाहर देख रही थी। चेहरा एकदम शांत पर मन में हिलोरे उठ रही थी जो सुगना ने सोचा था उसे अंजाम में लाने की सोच कर उसका तन बदन सिहर रहा था।

आखिरकार सुगना सोनू के नए बंगले पर खड़ी थी सोनू के मातहत फटाफट सुगना और सोनू का सामान गाड़ी से निकालकर अंदर लाने लगे और सोनू पहली बार अपनी बड़ी बहन सुगना तो अपने नए आशियाने में अंदर ला रहा था खूबसूरत सजा हुआ घर वह भी अपना….. सुगना घर की खूबसूरती देखकर प्रसन्न हो गई थी उसने हॉल में कुछ कदम बढ़ाए उसका ध्यान बगल के कमरे पर गया..

"अरे ई पलंगवा काहे खरीदले"


सोनू के घर में स्वयं द्वारा पसंद किए गए पलंग को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी। उस दिन बनारस में एक ही पलंग खरीदने की बात हुई थी और वह था लाली की पसंद का। सुगना ने पीछे मुड़कर सोनू को देखा और प्रश्न किया

"लाली ई पलंग देखित त का सोचित?"


सोनू पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था। वह सुगना के पास आया और उसका हांथ पकड़ कर दूसरे कमरे में ले गया…जहां लाली की पसंद का पलंग लगा था। सुगना सोनू की समझदारी पर खुश हो गई।

दोनों ही कमरे सोनू ने बेहद खूबसूरती के साथ सजाए थे और जितना भी वह अपनी बहनों को समझ पाया था उसने दीवारों पर रंगरोगन और बिस्तर की चादर का रंग भी उनके पसंद के अनुसार ही रखा था… सुगना अभिभूत थी। सोनू के प्रति उसके दिल में प्यार और इज्जत बढ़ गई।

सोनू के अर्दली और मातहतों ने सुगना का सामान सुगना के पलंग पर लाकर रख दिया और थोड़ी ही देर में सुगना अपने कमरे में सहज होने लगी। सूरज और मधु नए पलंग पर खेलने लगे।

रसोई घर की हालत देखकर सुगना ने सोनू से कहा…

"खाली रसोई घर के हालत खराब बा बाकी तो घर तू चमका ले ले बाड़ा"

"दीदी ई त हम तोहरा और लाली दीदी के खातिर छोड़ देले रहनी.. अब काल आराम से सरिया लिहा"

" तब आज खाना कैसे बनी"

"आज खाना बाहर से आई… ड्राइवर चल गईल बा ले आवे"

सुगना ने सोनू से पूछा

"और सूरज मधु खातिर दूध?"

" मंगा देले बानी.. और तोहरा खातिर भी तू भी त पसंद करेलू "

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे इस बात की खुशी थी कि उसका छोटा भाई उसकी हर पसंद नापसंद से अब भी बखूबी वाकिफ था।

धीरे-धीरे सभी घर में सहज हो गए खाना आ चुका था सूरज और मधु तो पहले से ही चॉकलेट और न जाने क्या-क्या अनाप-शनाप खाकर मस्त हो गए थे। सुगना ने सूरज और मधु को गिलास से दूध पिलाया। मधु भी अब काफी समय से सुगना की चूचियां पीना छोड़ चुकी थी शायद अब न तो उसे इसकी आवश्यकता थी और नहीं सुगना की चूचियां और दूध उत्सर्जन कर रही थीं। अब जो उनका उपयोग था उसका इंतजार कोई और कर रहा था।

अब तक सोनू स्नान ध्यान कर तैयार हो चुका था सफेद धोती और नई नई सैंडो बनियान पहने सोनू का गठीला बदन देखने लायक था बदन से चिपकी हुई बनियान उसे और खूबसूरत आकार दे रही थी पुष्ट और चौड़ा मांसल सीना और उस पर उभरी मांसल नसें ट्यूबलाइट के दूधिया प्रकाश में चमक रही थीं…

सूरज के अनुरोध पर सोनू सुगना के बिस्तर पर आकर दोनों के साथ खेलना लगा। सूरज और मधु धीरे-धीरे अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर पर लेटे सोनू से कहानियां सुनने लगे।

जब तक दोनो नींद में जाते सुगना सोनू के लिए खाना लेकर आ चुकी थी।

सोनू ने जिद कर सुगना के लिए भी प्लेट मंगवा ली सुगना कहती रही कि मैं स्नान करने के बाद आराम से खा लूंगी परंतु सोनू न माना। आखिरकार सोनू और सुगना साथ साथ भोजन करने लगे बार-बार सुगना की निगाहें सोनू के गठीले बदन पर जाती और सुगना सोनू के मर्दाना शरीर को देखकर मोहित हो जाती काश यदि सोनू उसका भाई ना होता तो निश्चित ही वह उसके सपनों का राजकुमार होता परंतु मन का सोचा कहां होता है हकीकत और कल्पना का अंतर है सुगना भली भांति जानती थी ।

सुगना ने मन बना लिया था कि वह सोनू के पुरुषत्व को निश्चित ही यूं ही खत्म नहीं होने देगी आखिर देर सबेर यदि सोनू विवाह के लिए राजी होता है तो अपनी अर्धांगिनी को वंश तो नहीं परंतु स्त्री सुख अवश्य दे पाएगा।

सोनू का कलेजा भी सीने में कुछ ज्यादा ही तेज धड़क रहा था जैसे-जैसे रात्रि की बेला नजदीक आ रही थी सोनू अधीर हो रहा था क्या होने वाला था? सुगना दीदी आखिर क्या करने वाली थी उसे इस बात का तो यकीन था कि आज की रात व्यर्थ न जाएगी पर कोई सुगना के व्यवहार में इसकी झलक दिखाई नहीं पड़ रही थी।

सुगना खाने की झूठी प्लेट लेकर वापस रसोई घर की तरफ से आ रही थी और उसके मादक नितंब सोनू की नजरों के साथ थिरक रहे थे।

सोनू अपने मन में सुगना के साथ बिताए कामुक पलों को याद करने लगा सुगना का नंगा बदन उसकी आंखों में घूमने लगा वासना चरम पर थी जैसे-जैसे सुगना का नशा दिमाग पर चढ़ता गया लंड उत्तेजना से भरता चला गया उधर सुगना के हाथ कांप रहे थे गर्म दूध गिलास में निकाल कर उसने अपने ब्लाउज में हाथ डालकर एक लाल पुड़िया निकाली… .और पुड़िया में रखा एक चुटकी सफेद पाउडर दूध की गिलास में मिला दिया….

उसने हाथ जोड़कर अपने इष्ट देव को याद किया और वैद्य जी की पत्नी को धन्यवाद दिया तथा अपनी पलकें बंद कर ली…शायद सुगना किए जाने वाले कृत्य की अग्रिम माफी मांग रही थी..

हाथ में गिलास का दूध लिए सुगना सोनू के बिस्तर पर आ चुकी थी…

"ले सोनू दूध पी ले "

"तू भी दूध पी ल" सोनू अपनी तरफ से सुगना का पूरा ख्याल रखना चाहता था।

सुगना ने बड़ी बहन के अधिकार को प्रयोग करते हुए सोनू से कहा

"अब चुपचाप दूध पी ला तोहरा कहना पर बिना नहाए ले खा लेनी अब दूध ना पियब…हम नहा के पी लेब "


सोनू ने दूध का गिलास पकड़ लिया। सुगना सूरज और मधु के ऊपर रजाई डालने लगी। वह बार-बार कनखियों से सोनू को देख रही थी मन में आशंका उठ रही थी कि कहीं सोनू को दूध का स्वाद अलग ना लगे और हुआ भी वही जैसे ही सोनू ने दूध का पहला घूंट लिया उसकी स्वाद इंद्रियों ने स्वाद में बदलाव महसूस किया परंतु इस बदलाव का कारण सोनू की कल्पना शक्ति से परे था। सोनू यह बात सोच भी नहीं सकता था कि उसकी बहन सुगना ने उस दूध में कुछ तत्व मिलाए थे।

सोनू ने फिर भी सुगना से कहा

"ओहिजा गांव में बढ़िया दूध मिलत रहे आज के दूध तो बिल्कुल अलग लागत बा.."

सुगना हड़बड़ा गई दूध का स्वाद निश्चित ही कुछ बदल गया होगा परंतु सुगना ने सोनू की बात को ज्यादा अहमियत न देते हुए कहा…

"हां अलग-अलग जगह के दूध में अंतर होला वैसे देखे में तो ठीक लागत रहे"

सोनू धीरे-धीरे दूध के घूंट पीता रहा और जब सुगना संतुष्ट हो गई की सोनू पूरा दूध खत्म कर लेगा वह नहाने के लिए गुसलखाने में प्रवेश कर गई।

सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था बाथरूम में नग्न शरीर पर गर्म पानी डालते हुए सुगना सोच रही थी क्या वह जो करने जा रही थी वह उचित था..

आइए सुगना को स्थिर चित्त होने के लिए कुछ समय देते हैं और आपको लिए चलते हैं सलेमपुर के उसी घर में जहां पर इस कहानी की शुरुआत हुई थी। सुगना के आगमन से अब तक घर में कई बदलाव आ चुके थे पर मूल ढांचा अब भी वहीं था परंतु समृद्धि का असर घर पर दिखाई दे रहा था सरयू सिंह की कोठरी भी अब बिजली के प्रकाश से जगमगाने लगी थी।

बनारस से वापस आने के बाद उनकी उम्मीदें टूट चुकी थी पर सोनी को याद करना अब भी बदस्तूर जारी था। हस्तमैथुन के समय सोनी अब भी याद आती थी परंतु ग्लानि भाव के साथ। आखिरकार सरयू सिंह ने अपनी वासना को नया रूप दिया और बाजार से जाकर टीवी खरीद लाए टीवी में कई नायिकाएं नायिकाएं और उनके प्रणय दृश्य सरयू सिंह को लुभाने लगे और धीरे-धीरे स्वयं को उन नायिकाओं के साथ कल्पना कर सरयू सिंह की रातें एक बार फिर रंगीन होने लगी।

हकीकत और टीवी का अंतर स्पष्ट था जब जब उनके मन में सोनी का गदराया बदन घूमता उत्तेजना नया रूप ले लेती परंतु वह भी यह बात जान चुके थे कि सोनी अब हाथ से निकल चुकी है।


मन में दबी हुई आस लिए सरयू सिंह धीरे-धीरे अपना समय व्यतीत कर रहे थे परंतु उन्होंने सोनी के लिए जो मन्नतें मांगी थी नियति ने उनकी इच्छा का मान रखने की सोच ली थी।

तभी कजरी उनकी कोठरी में आई और सरयू सिंह ने अपनी धोती से अपने खड़े लंड को ढक लिया..

टीवी पर चल रहे दृश्यों को कजरी ने सरयू सिंह की मनो स्थिति समझ ली और कहा…

"जाने ई कुल से राऊर ध्यान कब हटी"

सरयू सिंह ने कजरी को छेड़ते हुए कहा

" अब तू ता पूछा हूं ना आवेलू "

"अब हमरा से ई कुल ना होई आपके भी इस सब छोड़ देवें के चाही अतना उम्र में के ई कुल करेला?"

"काहे ना करेला ? काहे जब ले जान बा आदमी सांस लेला की ना.?." सरयू सिंह ने उल्टा प्रश्न पूछ कर अपनी बात रखने की कोशिश की.

"तब अपना पतोहिया सुगना के काहे छोड़ देनी…जैसे तीन चार साल खेत जोतले रहनी… आगे भी…जोतत रहतीं ओकरो जीवन त अभियो उदासे बा"

सरयू सिंह निरुत्तर हो गए। अपनी पुत्री सुगना के साथ जो पाप उन्होंने किया था वह उसे भली-भांति समझते थे। पर अब वह और उस बारे में नहीं सोचना चाहते थे और ना ही बात करना। सुगना उनकी दुखती रग थी जिसके बारे में कामुक बातें करने पर सरयू सिंह शांत पड़ जाते थे।

सरयू सिंह को को चुप देखकर कजरी ने उन्हें और परेशान करना उचित न समझा। यह बात कजरी भी जानती थी कि अब सुगना और सरयू सिंह के बीच कोई भी कामुक रिश्ता नहीं बचा है पर इसकी वजह क्या थी यह ज्ञान उसे न था।

कजरी आई थी कुछ और बात कहने और सरयू सिंह की दशा दिशा देखकर बातें कुछ और होने लगी थी कजरी ने मूल बात पर आते हुए कहा

"गुड़ के लड्डू बनावले बानी …छोटकी डॉक्टरनी सीतापुर आईल बिया जाके दे आईं बहुत पसंद करेले"

"के ?" सरयू सिंह छोटी डॉक्टरनी को समझ ना पाए

"अरे सब के दुलरवी सोनी"

सरयू सिंह के जेहन में सोनी का चेहरा घूम गया उन्होंने सहर्ष सीतापुर जाने की सहमति दे दी मन में उमंगे हिलोरे मार रही थी सोनी के करीब जाने की बात सुनकर मन एक बार फिर ख्वाब बुनने लगा था परंतु हकीकत सरयू सिंह भी जानते थे पर उम्मीदों का क्या?

उधर जौनपुर में सुगना अपना स्नान पूरा कर चुकी थी और सुगना द्वारा दिया गया दूध पीकर सोनू बिस्तर पर लेटे लेटे सो गया था शायद यह निद्रा कुछ अलग थी सुगना द्वारा दूध में मिलाया गया वह विशेष रसायन अपना असर दिखा चुका था सुगना सोनू के मासूम चेहरे को देख रही थी और कसा हुआ सोनू का बदन बिस्तर पर निढाल पड़ा हुआ था..

सुगना अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए आगे बढ़ रही थी.. पैर कंपकपा रहे थे यह ठंड की वजह से था या सुगना के मन में चल रहे भंवर से कहना कठिन था..

परीक्षा की घड़ी आ चुकी थी…

शेष अगले भाग में….
लगता है नियति सोनू और सरयू सिंह के साथ है । पर सोनी खुद सरयू के पास चल के जाए तो थी हो ।
 
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Raj0410

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भाग 118

उधर जौनपुर में सुगना अपना स्नान पूरा कर चुकी थी और सुगना द्वारा दिया गया दूध पीकर सोनू बिस्तर पर लेटे लेटे सो गया था शायद यह निद्रा कुछ अलग थी सुगना द्वारा दूध में मिलाया गया वह विशेष रसायन अपना असर दिखा चुका था सुगना सोनू के मासूम चेहरे को देख रही थी और कसा हुआ सोनू का बदन बिस्तर पर निढाल पड़ा हुआ था..

सुगना अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए आगे बढ़ रही थी.. पैर कंपकपा रहे थे यह ठंड की वजह से था या सुगना के मन में चल रहे भंवर से कहना कठिन था..

परीक्षा की घड़ी आ चुकी थी…

अब आगे

बेहद खूबसूरत नाइटी पहने सुगना धीरे-धीरे पलंग की तरह बढ़ रही थी। लाख पोछने के बावजूद शरीर पर चिपकी पानी की बूंदे नाइटी को जगह जगह से गीला कर चुकी थीं। सुगना ने बिस्तर पर रखा हुआ अपना शाल ओढ़ा और धीरे धीरे सोनू के करीब आकर बिस्तर पर बैठ गई।


सुगना ने धीमे स्वर में पुकारा

" ए सोनू…." परंतु सोनू ने कोई प्रतिक्रिया ना दी। सोनू पूरी नींद में था पर सुगना स्वयं विरोधाभास में थी। वह सोनू को जगाना कतई नहीं चाहती थी परंतु उसकी निद्रा की गंभीरता की जांच अवश्य करना चाहती थी।

सुगना ने उसे अपने हाथों को छूकर उसने चेतना में लाने की कोशिश की परंतु वैद्य जी की पत्नी द्वारा दी गई दवा कारगर थी सोनू अवचेतन अवस्था में जा चुका था। आखिरकार सुगना ने अपनी आंखें बंद की अपने इष्ट को याद किया और फिर अपने छोटे भाई सोनू के उस प्रतिबंधित क्षेत्र पर हाथ लगा दिया जो बड़ी बहन के लिए सर्वथा वर्जित था। धोती को फैलाते ही सोनू का मजबूत लंड अंडरवियर के पीछे से दिखाई पड़ने लगा।


सुगना के हाथ कांप रहे थे। उसने अपनी सांसो को अपने सीने में रोककर रखा और बाएं हाथ की उंगली से अंडर वियर की इलास्टिक पकड़कर नीचे कर दी।

सोनू का खूबसूरत लंड जो अभी सुसुप्त अवस्था में था छोटी मधु के हाथ जैसा कोमल था वह सुगना की निगाहों के सामने आ गया अपने छोटे भाई का लंड अपनी आंखों के सामने देखकर सुगना ने अपनी पलकें झुकाना चाहा परंतु सुगना की आंखों ने उस खूबसूरत दृश्य से अपनी नजरें हटाने से मना कर दिया। सुगना एक टक उस खूबसूरत लंड को देखती रह गई जो ठीक अपने मालिक की तरह नींद में सोया हुआ था।

सुगना सोनू के जननांगों के पास कोई भी बाल न देखकर हैरान थी। तो क्या सोनू ने आजकल में ही इन बालों की सफाई की थी? क्या सोनू स्वयं इसका इंतजार कर रहा था? या फिर फिर सोनू ने इसे अपनी आदत में शामिल कर लिया था?

सुगना एक पल के लिए घबरा गई पर फिर उसने हिम्मत जुटाई और अपने दाएं हाथ से पकड़ कर उस खूबसूरत लंड को बाहर निकाल लिया। अंडर वियर की इलास्टिक ने सोनू के अंडकोषों का सहारा ले लिया और लंड को ढकने की कोशिश त्याग दी।


आगे क्या करना था सुगना को पता था। यह सुगना के लिए भी आश्चर्य का विषय था की दवा से लगभग अपनी चेतना खोने के वावजूद भी सोनू के अधोभाग में उत्तेजना अब भी कायम थी जो सुगना के हाथ लगाते ही सोनू का लंड धीरे धीरे तनता चला गया।

नियति मुस्कुरा रही थी। काश सोनू अपनी बहन का यह प्यार देख पाता जिसने उसकी मर्दानगी को बचाए रखने के लिए अपनी विचारों और आदर्शों को ताक पर रखकर आखिरकार उसका लंड अपने हाथ में ले लिया था। जैसे-जैसे सुगना सोनू के लंड को सहलाती गई वह कोबरा की तरह अपना फन उठाने लगा। अपनी मेहनत को रंग लाते देख सुगना और भी तन्मयता से अपने कार्य में लग गई।

सोनू का पूरी तरह तना हुआ लंड देख सुगना मंत्रमुग्ध हो गई। युवा लंड की ताजगी और खूबसूरती देखने लायक थी। ऐसा न था कि सुगना ने यह पहली बार देखा था इसके पहले भी वह हैंडपंप पर और लाली की नंगी बुर में आगे पीछे होते सोनू का लंड देख चुकी थी परंतु आज अपनी नंगी आंखों से अपने अपने छोटे भाई सोनू के लंड को अपने हाथों में लिए उसे जी भरकर निहार रही थी।

जैसे ही सुगना ने लंड के अग्रभाग की चमड़ी को नीचे किया सोनू का फूला हुआ लाल सुपाड़ा अनावृत हो गया। सोनू के खूबसूरत लंड ने सुगना को सरयू सिंह को याद करने पर विवश कर दिया। वह उन दोनों की तुलना करने लगी और अंततः सोनू विजई रहा। सुगना के सहलाए जाने से लंड अपना आकार और बढ़ा रहा था पर अंडकोष सिकुड़ रहे थे और सुगना सोनू के लंड को हौले हौले स्खलन के लिए तैयार कर रही थी।


स्खलन आवश्यक था परंतु सुगना सोनू के लंड से कोई जोर जबरदस्ती नहीं करना चाहती थी। उसे डॉक्टर की हिदायत याद थी कि सोनू को अधिक से अधिक संभोग करना था। सुनना यह पाप करने को तो राजी ना थी परंतु अपने भाई को स्खलित करना उसकी अनिवार्य प्राथमिकता थी। सुगना धीरे धीरे लंड को सहलाती पर बिना किसी स्नेहक के उसके हाथ सोनू के लंड पर घूमने में कठिनाई महसूस कर रहे थे। सोनू के सुपाड़े से रिस रही लार ही एकमात्र सहारा थी।

अचानक सुगना को अपनी जांघों के बीच कुछ गीलापन महसूस हुआ निश्चित थी यह उत्तेजना का परिणाम था सुगना ने अपनी बुर को थपकियां देकर शांत रहने को कहा परंतु बुर ने प्रतिउत्तर में सुगना की उंगलियों को चिपचिपा कर दिया। जैसे ही सुगना को अपनी उंगलियों पर चिपचिपा पन महसूस हुआ उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और उंगलियां स्वतः सोनू के लंड पर चली गईं।

सुगना के हाथ बड़ी खूबसूरती से सोनू के लंड पर फिसलने लगे। जब एक बार यह प्रयोग सफल रहा तो सुगना आगे बढ़ गई। जब जब चिपचिपापन कम महसूस होता वह अपनी बुर से सोनू के लिए उड़ेला प्यार अपनी उंगलियों पर ले आती और सोनू के लंड को प्यार से सहलाने लगती।

कभी कभी सुगना को लगता की वह अपनी उंगलियों का दबाव बढ़ाकर सोनू को शीघ्र स्खलित कर दे पर सोनू के आपरेशन की बात याद कर उसकी उंगलियां अपना दबाव घटा देती। वह कतई अपने अवचेतन भाई के उस अंग को गलती से भी चोट नहीं पहुंचाना चाहती थी…जिसे उसके कारण ही आपरेशन जैसी यातना झेलनी पड़ी हो…पर जिस प्यार और आत्मीयता की दरकार सोनू के लंड को थी वह सुगना की जांघों के बीच लार टपकाए स्वयं इंतजार कर रही थी पर उसकी मालकिन सुगना अब भी तैयार न थी।


सुगना का प्यार अपने चरम पर था बस रूप अलग था।

प्यार का यह खेल ज्यादा देर न चल पाया। जैसे ही सुगना ने सोनू के लंड के पिछले भाग को अपने अंगूठे से हल्के हल्के कुरेदा सोनू के अंडकोशों में जबरदस्त संकुचन हुआ और सोनू ने लंड ने सुगना के हथेलियों से बाहर आने की कोशिश की पर सुगना ने उसे घेर लिया और एक बार फिर उसके सुपाड़े को हौले से मसल दिया… आखिरकार वीर्य धारा फूट पड़ी…

जब तक सुगना संभलती वीर्य की धार ने छत की ऊंचाई नापने की कोशिश की…और सुगना का नहाना व्यर्थ हो गया। सोनू के वीर्य की 2 - 3 लंबी धार उसके बदन पर आकर गिरी। कुछ बूंदों को नाइटी ने आड़े आकर सुगना के बदन से मिलने से रोक लिया पर कुछ सुगना के बदन को चूमने में कामयाब हो गईं। सोनू के वीर्य की वो भाग्यशाली बूंदे उसकी बहन के गर्दन से होते हुए उसकी चूचियों तक जाने लगीं।


सुगना ने अपने हाथों से उन बहती बूंदों का मार्ग अवरुद्ध किया जो सरयू सिंह के वीर्य की तरह उसकी चुचियों को चूमना चाहती थीं…सुगना मुस्कुराने लगी। अवचेतन सोनू के वीर्य की इस शरारत ने सुगना के चेहरे पर मुस्कान ला दी थी। उसने बड़े प्यार से सोनू लंड को एक मीठी सी चपत लगाई…

नितांत एकांत, जागृत वासना और सोनू के प्रति प्यार ने सुगना के मन के किसी कोने में उस प्यारे और प्रेम युद्ध में हार चुके लंड को चूमने की इच्छा जाग्रत कर दी जिसे सुगना ने छल से हरा दिया था। पर सोनू उसका भाई था…अपने भाई का लंड चूमना….?


सुगना के मन में वासना और आदर्शों के बीच द्वंद्व शुरू हो गया। आज सुगना का प्रयोग सफल रहा था वो सोनू को स्खलित करने में कामयाब हो गई थी। अपने सफलता की खुशी में उसे स्वयं द्वारा किया गया क्रियाकलाप स्वाभाविक तौर पर स्वीकार्य लग रहा था।

सुगना ने अपनी वासना पर विजय पाई और सोनू के लंड को वापस अंडरवियर में कैद कर दिया।

सुगना खुश थी वह उसकी धोती ठीक कर दूसरी पलंग के दूसरी तरफ जाकर मधु के बगल में लेट गई। सुगना ने मन ही मन वैद्य जी की पत्नी का शुक्रिया अदा किया और अपने इष्ट से क्षमा मांगकर सोने की कोशिश करने लगी। उसकी निगोड़ी बुर अब भी मुंह बाये सुगना का ध्यान खींच रही थी परंतु सुगना अपना कर्तव्य निर्वहन कर संतुष्ट थी… नियति चीख चीख कर सुगना को उसकी अद्भुत बुर को जीवंत रखने के लिए उसे हस्तमैथुन को उकसा रही थी परंतु उसका यह प्रयास असफल हो रहा था और…. नियति का सबसे वीर सिपाही सोनू अभी गहरी निद्रा में सोया हुआ था….

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उधर सलेमपुर में सरयू सिंह की आंखों से नींद गायब थी। बनारस से वापस आने के बाद उनके सोनी के करीब आने की संभावनाओं पर विराम लग गया था। सरयू सिंह की वासना को कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ रहा था वह भटक रही थी।

आखिरकार वह वास्तविकता से कल्पना की दुनिया में खोते चले गए और अपनी कल्पना को यथासंभव मूर्त रूप देने के लिए वह बाजार से जाकर टीवी खरीद लाए।


रात को अपने एकांत में टीवी चला कर खूबसूरत हीरोइनों को निहारना और उनके तराशे हुए बदन की कल्पना कर अपनी वासना को जागृत करना। वह अधनंगी हीरोइनों को निहारते और अपने मजबूत और खूबसूरत लंड को हाथों में पकड़ कर बड़े प्यार से सहलाते और बॉलीवुड की तात्कालिक खूबसूरत कन्याओं को अपने दिमाग में रखते हुए लंड को मसल मसल कर स्खलित कर लेते। आज भी वह जीनत अमान को देखते हुए अपने लंड को सहला रहे थे तभी कजरी दूध लेकर अंदर आ गई।

सरयू सिंह ने झटपट अपने खड़े लंड को धोती के अंदर किया पर उस मजबूत लंड को छुपा ना असंभव था। कजरी ने सरयू सिंह की हरकत ताड़ ली और बोली

" ई उमर में भी ई कुल करें में मन लागत बा?"

"काहे मरद और घोड़ा कभी बूढ़ा होला का" सरयू सिंह ने अपनी मर्दानगी का दंभ भरते हुए कहा..

"काहे भुला गईनी का बनारस में का भईल रहे?"

सरयू सिंह को बनारस की वह सुबह याद आ गई जब रेडिएंट होटल में मनोरमा के कमरे में अपनी प्यारी सुगना को चोदते और विकृत वासना के आधीन होकर दूसरे कसे हुए दूसरे छेद का उद्घाटन कर अपनी कोमल बहु सुगना को गचागच चोदते रूप देते हुए अपनी हृदय गति पर काबू न कर पाए और बेहोश हो गए थे।


यद्यपि यह बात वह सब से छुपा ले गए थे पर कजरी और सुगना बेहद अंतरंग थे। सुगना ने सारी बातें कजरी से साझा कर ली थी।

सुगना का ध्यान आते ही सरयू सिंह चुप हो गए।

कजरी ने अपनी बात पर एक बार फिर जोर देते हुए कहा

" अब ई सब छोड़ दीं और पूजा पाठ में मन लगाई "

"हमरा खातिर ई भी एगो पूजा ह….तोहार पुजाई एहि से भईल रहे भुला गईलू … कितना खुश रहत रहलु ऐही घोड़ा के सवारी करके और अब इकरा के अकेले छोड़ देले बाडु"। सरयू सिंह ने अपने तने हुए लंड को कजरी को दिखाते हुए कहा।

कजरी ने अपनी पलके झुका ली उसे बखूबी पता था कि उसके और उसकी बहु सुगना के जीवन में खुशियां भरने वाला यही खूबसूरत लंड था फिर भी उसने बात बदलते हुए कहा …

"काल तनी सीतापुर चल जईती …छोटकी डॉक्टरनी आईल बिया। हम गुड़ के लड्डू बनावले बानी ओकरा के दे अईती बहुत पसंद करेले।

सोनी का नाम आते ही सरयू सिंह चैतन्य हो गए। अपनी खुशी को काबू में करते हुए सरयू सिंह ने कहा ठीक बा चल जाएब…कजरी दूध रखकर चली गई….और एक बार फिर सरयू सिंह सोनी को याद करने लगे…


सोनी सरयू सिंह के दिमाग में घूमने लगी। सोनी के बारे में सोचते ही उनकी सारी इंद्रियां जाग उठती। सोनी की खूबसूरत और कोमल त्वचा को अपनी हथेलियों से छूने की कल्पना मात्र से तन बदन सिहर जाता। जैसे-जैसे उनके दिमाग में सोनी की मादक काया घूमती गई सरयू सिंह की बेचैनी बढ़ती गई।

कजरी के आने से जो कार्य अधूरा छूटा था आज फिर सोनी अनजाने में ही उसे अंजाम पर पहुंचाने में लग गई। हथेलियां अपने कार्य में लग गई और सरयू सिंह के लंड का मान मर्दन करने लगीं।

उधर सोनू स्खलित हो चुका था इधर सरयू सिंह भी स्खलित होने को तैयार थे।

पदमा की युवा पुत्रियां सुगना सोनी और मोनी रूप लावण्य से भरी काया में मादकता लिए आने वाले प्रेमसमर में लिए तैयार हो रही थीं।

अगली सुबह सरयू सिंह ने नया धोती कुर्ता निकाला नए-नए लक्स साबुन से पूरे बदन को साफ किया इत्र लगाया और उसकी भीनी भीनी खुशबू संजोए तैयार होकर कजरी द्वारा दिया लड्डू अपने झोले में रख सीतापुर की तरफ निकल पड़े….

सलेमपुर से सीतापुर का सफर न जाने सरयू सिंह ने कितनी बार तय किया था परंतु जो सफर उन्होंने कुंवारी सुगना के साथ किया था वह अभी भी उन्हें गुदगुदा जाता था। सुगना उनकी अपनी पुत्री है यह जानने के बाद आए वैचारिक परिवर्तन के बावजूद जैसे ही वह बरगद का पेड़ उन्हें दिखाई पड़ता उनका तन बदन सिहर उठता कैसे बारिश के सुहाने मौसम में उन्होंने अपनी प्यारी सुगना को अपनी गोद में बैठाया था और धीरे धीरे उसकी गोरी और कुंवारी जांघो के बीच अपना लंड रगड़ते हुए स्खलित हो गए थे।

वासना के झोंके ने उनके लंड में फिर तनाव भर दिया…सरयू सिंह ने सुगना को छोड़ सोनी को ध्यान में लाया और उनके कदमों की जांच स्वतः ही तेज होती गई और कुछ ही मिनटों बाद सरयू सिंह पदमा के दरवाजे पर आ पहुंचे…


घर के बाहर दालान के सामने एक सुंदरी अपने घागरे को घुटने तक लपेटे ऊकड़ू बैठी हुई थी उसके हाथ गोबर से सने हुए थे। वह गोबर और भूसा को आपस में मिलाकर आटे जैसे गूथ रही थी और उसके बड़े बड़े गोल लड्डू बनाकर अपने पंजे पर लेती और उसे आगे बढ़कर दीवाल पर तेजी पटक कर चिपका देती उंगलियों के निशान उस गोबर की रोटी नुमा आकृति पर स्पष्ट स्पष्ट दिखाई पड़ने लगते …

सरयू सिंह मंत्र मुक्त होकर उस खूबसूरत तरुणी को देख रहे थे। घुटनों से नीचे उसका बेहद खूबसूरत और गोरा पैर चमक रहा था। बाकी सारा शरीर घाघरा और चोली से ढका हुआ था। चोली और छाघरे के बीच से उसकी दूधिया कमर की झलक कभी-कभी दिखाई पड़ जाती। घाघरे में कैद जांघें और भरे भरे नितंब देख सरयू सिंह का लंड हरकत में आ गया।


सरयू सिंह का लंड सुंदर युवती देखते ही अपने अस्तित्व का एहसास सरयू सिंह को करा जाता था। सरयू सिंह ने अपनी लंगोट पर हाथ फेर कर उसे शांत रहने का निर्देश दिया यद्यपि उन्हें यह बात पता थी कि इन मामलों में वह उनका दिशा निर्देश कभी भी नहीं मानता था। सरजू सिंह मंत्रमुग्ध होकर तरुणी को देखे जा रहे थे…

अचानक दरवाजे पर किसी कुत्ते के भौंकने की आवाज आई. उस सुंदरी ने दरवाजे की तरफ देखा और सरयू सिंह की आंख उससे तरूणी से जा मिली..


सरयू सिंह को यकीन नहीं ना हुआ कि वह गोबर पाथ रही लड़की छोटी डॉक्टरनी सोनी थी.. शहर की पढ़ी लिखी और आधुनिक वेशभूषा में रहने वाली सोनी आज पारंपरिक वेशभूषा में अपनी मां का हाथ बटा रही थी।

सरयू सिंह बेहद प्रसन्न हो गए और अपने कदम बढ़ाते हुए सोनी के पास आने लगे। सोनी में भी गोबर पाथने का कार्य छोड़ दिया और बाल्टी में रखे गंदे हो चुके पानी से अपने हाथ साफ किए और उठकर खड़ी हो गई।

चेहरे और गर्दन पर पसीने की बूंदें उसे और खूबसूरत बना रही थी गालों पर लटकती लट …आह….सरयू सिंह सोनी की खूबसूरती में खो गए पर यह नयनाभिराम दृश्य कुछ पलों के लिए ही था। सोनी आगे बढ़ी और उसने सरयू सिंह के चरण छुए और अगले ही पल भागती हुई घर के अंदर प्रवेश कर गई…. पर इन कुछ ही पलों में सरयू सिंह ने सोनी के घाघरे में छुपे उन गोल नितंबों को हिलते हुए देख लिया और उनका लंगोट एक बार फिर छोटा पड़ने लगा…

"मां सरयू चाचा आईल बाडे "

पदमा रसोई में खाना बना रही थी वह उठकर बाहर आई …

पदमा के सर पर पड़े आंचल ने उसके गाल ढक रखे थे। सरयू सिंह पदमा को देख रहे थे। उनके मन में हमेशा से एक अलग किस्म का प्यार था। सुगना उनकी ममेरी बहन थी पर उस कामुक मिलन ने उन्हे और करीब ला दिया था। यह जानने के बाद की सुगना अद्भुत प्यार से जन्मी है यह प्यार और भी बढ़ गया था।

सरयू सिंह कुछ पलों के लिए खो से गए। पद्मा ने दीवाल का सहारा लेकर खड़ी की गई चारपाई को नीचे बिछाया और सरयू सिंह से बैठने के लिए कहा अब तक सोनी अंदर से बतासे और लोटे में पानी लेकर आ गई थी। बताशा देते समय सोनी की चोली थोड़ा ढीली हुई और विकास की जी तोड़ मेहनत से उन्नत हुई चूचियां ने सरयू सिंह का ध्यान खींचने में कामयाबी हासिल कर ली। जैसे ही सोनी ने सरयू सिंह की निगाहों को अपने बदन में छेद करते हुए महसूस किया उसने झटपट अपनी चोली ठीक की… जिसे पास खड़ी पद्मा ने भी देख लिया।

सरयू सिंह ने अपनी निगाहों पर नियंत्रण किया और सोनी के हाथ से बतासा लेकर "खबर खबर" की आवाज के साथ खाने लगे और लोटे से गटागट पानी पीने लगे…

सरयू सिंह ने अपने झोले से कजरी द्वारा बनाया लड्डू बाहर निकाला और सोनी को देते हुए बोले

"कजरी तोहरा खातिर भेजले बाडी"। उन पीले सुनहरे लड्डुओं को देखकर सोनी खुश हो गई और सोनी ने उसमें से लड्डू निकाल कर तुरंत ही खाने के लिए अपना खूबसूरत मुंह खोल दिया..सोनी के चमकते दांत और गोल होठों को देखकर सरयू सिंह फिर वासना में खो गए लड्डू की जगह उन्हें अपने लंड का सुपाड़ा सोनी के मुंह में जाता हुआ महसूस हुआ।


न जाने सरयू सिंह को क्या हो गया था? मादक सोनी को इस ग्रामीण वेशभूषा और उसकी अल्हड़ता देखकर वह सुधबुध को बैठे थे। पद्मा ने सरयू सिंह को सोनी की तरफ देखते पकड़ लिया था उसे अभी यह तो एहसास न था कि सरयू सिंह के मन में सोनी के प्रति वासना जाग चुकी है परंतु इतना तो वह भली-भांति जानती थी कि युवा और अल्हड़ लड़कियों को दूसरों से सुरक्षित दूरी बनाए रखनी चाहिए चाहे वह कितना भी करीबी क्यों ना हो। उसने सोनी को डाटा ..

"अरे एहीजे लड्डू खाए लगले जो भीतर बैठ के आराम से खो और चाचा जी खातिर चाय बना ले आऊ"

सरयू सिंह और पदमा इधर उधर की बातें करने लगे धीरे-धीरे जैसे गांव वालों को खबर लगी की पटवारी साहब सीतापुर आए हैं पदमा के घर के सामने लोगों का हुजूम लगने लगा। सोनी को पता था चाय की मात्रा सिर्फ सरयू सिंह के लिए नहीं गांव के और सम्मानित लोगों के लिए भी बनानी थी। कुछ ही देर में पदमा का सुना पड़ा घर गुलजार हो गया था।




उधर जौनपुर में ….बीती रात सुगना ने जो सफलता प्राप्त की थी उसकी संतुष्ट सुगना के चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। सूर्य की कोमल किरणों ने जैसे ही सुगना की पलकों को छुआ सुगना अपनी नींद से बाहर आई और मुस्कुराते हुए अगड़ाई ली। करवट लेकर वह बगल में लेटे हुए सोनू को देख कर मुस्कुरा उठी। बीती रात उसने जो किया था एक बार वह सारे दृश्य उसकी आंखों के सामने घूम गए और नजरें सोनू के अधोभाग भाग पर चली गई जहां सोनू का लंड अभी अपनी उपस्थिति महसूस करा रहा था।

सुगना धीरे धीरे बिस्तर से उठी और मुस्कुराते हुए गुसल खाने में प्रवेश कर गई। नित्यकर्म के पश्चात वह गुनगुनाते हुए रसोई में गई वह हाथों में चाय की प्याली लिए एक बार फिर कमरे में उपस्थित थी।

शायद सोनू अपनी नींद पूरी कर चुका था या सुगना के कदमों की आहट कुछ ज्यादा ही तेज थी सोनू की पलकें खुली और अपनी अप्सरा को अपने आंखों के सामने चाय का प्याला लिए देखकर सोनू खुश हो गया। रात में सुगना द्वारा दी गई उस दवा का असर भी अब शायद खत्म हो गया था।


वह बिस्तर पर उठकर बैठ गया उसे यह एहसास न था की बीती रात क्या हुआ है परंतु सुगना को संतुष्ट और खुश देख कर उसे शक हुआ..

"दीदी का बात का बड़ा खुश लागत बाडू?"

"कुछ ना तोर जौनपुर की हवा ठीक लागत बा"

कई बार सामने वाले की मन की बातें आप समझ नहीं पाते… वही हाल सोनू का था। सुगना ने यह बात बस यूं ही कह दी थी वैसे भी अपनी खुशी का राज बताना उचित न था।

सोनू को मूत्र विसर्जन की इच्छा हुई और वह चाय का प्याला बिस्तर पर रख गुसल खाने की तरफ बढ़ गया। अंदर जैसे ही उसने छोटे सोनू को बाहर निकाला रात की बात सोनू को समझ में आ गई सुपाड़े के अंदर लिपटा हुआ सोनू का वीर्य से सना चिपचिपा सुपाड़ा यह बार-बार एहसास दिला रहा था की कल रात कुछ न कुछ हुआ है। सोनू को यह समझते देर न लगी कि उसका वीर्य स्खलन हुआ है…पर कैसे? सोनू ने अपने अंडरवियर को ध्यान से देखा…वीर्य स्खलन के अंश वहां मौजूद ना थे। सोनू ने एक बार फिर सुपाड़े पर लगे चिपचिपे वीर्य को अपनी उंगलियों पर लिया और अपने नाक के पास लाया…सोनू को यकीन हो गया कि उसका वीर्य स्खलन हुआ नहीं था अपितु कराया गया था….तो क्या सुगना दीदी….?

शेष अगले भाग में
सर ज़रूरत तो सुगना को भी है उसका क्या होगा
 
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Raj0410

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भाग 119


सोनू को मूत्र विसर्जन की इच्छा हुई और वह चाय का प्याला बिस्तर पर रख गुसल खाने की तरफ बढ़ गया। अंदर जैसे ही उसने छोटे सोनू को बाहर निकाला रात की बात सोनू को समझ में आ गई सुपाड़े के अंदर लिपटा हुआ सोनू का वीर्य से सना चिपचिपा सुपाड़ा यह बार-बार एहसास दिला रहा था की कल रात कुछ न कुछ हुआ है। सोनू को यह समझते देर न लगी कि उसका वीर्य स्खलन हुआ है…पर कैसे? सोनू ने अपने अंडरवियर को ध्यान से देखा…वीर्य स्खलन के अंश वहां मौजूद ना थे। सोनू ने एक बार फिर सुपाड़े पर लगे चिपचिपे वीर्य को अपनी उंगलियों पर लिया और अपने नाक के पास लाया…सोनू को यकीन हो गया कि उसका वीर्य स्खलन हुआ नहीं था अपितु कराया गया था….तो क्या सुगना दीदी….?

अब आगे…

सोनू ने अपने दिमाग पर जोर देने की कोशिश की परंतु दूध पीने के बाद का कोई भी दृश्य उसे याद न था उसे यह बात अवश्य ध्यान आ रही थी कि दूध का स्वाद कुछ अलग था।

अचानक उसे रहीम और फातिमा की किताब का वाकया ध्यान आ गया जिसमें फातिमा ने अपने छोटे भाई को दूध में मिलाकर कोई नशीला द्रव्य दिया था..और सोनू के होंठो पर मुस्कुराहट दौड़ गई। उसके जी में आया कि वह अपनी सुगना दीदी को जाकर चूम ले…पर भाई बहन के बीच नियति ने तय किया था वो घटित होना इतना आसान न था।

सोनू वापस बिस्तर पर आया और खुद को सामान्य दिखाते हुए सुगना के साथ चाय पीने लगा। सोनू को सामान्य देख सुगना भी सहज हो गई। कल रात हुई घटना सुगना और सोनू दोनों के लिए सुखद रही सुगना ने अपना कार्य पूरा कर लिया और सोनू अपनी बहन के और करीब आ गया।

आज शनिवार का दिन था सोनू की ऑफिस की छुट्टियां थी। रसोईघर का बिखरा हुआ सामान सोनू और सुगना का ध्यान खींच रहा था। कुछ ही देर बाद सुगना रसोई घर को सजाने में लग गई शायद यही एकमात्र कार्य सोनू ने अपनी बहनों के लिए छोड़ा था।

सुगना ने सोनू को निराश ना किया वह तन मन से रसोई घर को सजाने लगी। धीरे धीरे रसोईघर अपनी रंगत में आता गया…सुगना बीती रात के बारे में सोचते सोचते रसोई घर का सामान व्यवस्थित कर रही थी। उसके जेहन में वैद्य जी की पत्नी की बातें घूम रही थी …. उत्तेजना और स्खलन कुछ पलों का खेल नहीं स्त्री और पुरुष दिन भर में कई बार वासना के आगोश में आते हैं और पुरुषों में उसी दौरान वीर्य का निर्माण होता है। जितना अधिक वीर्य निर्माण उतना शीघ्र स्खलन।

सुगना ने पूरी तरह यह बात आत्मसात कर ली थी। उसने ठान लिया था कि वह सोनू के वीर्य निर्माण में अपनी भी भूमिका अदा करेगी। उसे पता था सोनू की विचारधारा उसके प्रति बदल चुकी थी.. और वर्तमान में सोनू की उत्तेजना का प्रमुख केंद्र व स्वयं थी.

सुगना रसोईघर को व्यवस्थित करने में लगी थी। शरीर पर पड़ी पतली नाइटी सुगना की मादकता को और बढ़ा रही थी अंदर पहने अंग वस्त्र चूचियों को तो कैद में कर चुके थे परंतु सुगना के गदराए नितंब छोटी पेंटी के बस में न थे। वह बार-बार सोनू का ध्यान खींच रहे थे …जो हॉल में बार-बार आकर अपनी बड़ी बहन के युवा और अतृप्त बदन को निहार रहा था…

जब सुगना उसे अपनी तरफ देखते पकड़ लेती सोनू की नजरें झुक जाती और वह बिना कुछ बोले वापस कमरे में जाकर सूरज और मधु के साथ खेलने लगता…सुगना जान चुकी थी कि सोनू की उत्तेजना से दोनों का ही फायदा था सुगना को मेहनत कम करनी पड़ती और वीर्य उत्पादन तथा स्खलन आसान हो जाता जो सोनू के पुरुषत्व को बचाए रखने के लिए आवश्यक था।

कुछ सामान अभी ऊपर के खाने में सजाए जाने थे सुगना का हाथ पहुंचना मुश्किल था दरअसल ऊंचाई ज्यादा होने की वजह से सुगना ही क्या सोनू का भी हाथ पहुंचना कठिन होता।

सुगना ने आवाज लगाई

" ए सोनू…."

सोनू सूरज और मधु के साथ खेलने में व्यस्त था।

अपनी बहन सुगना की आवाज सुनकर सोनू अगले ही पल रसोईघर में आ गया।

सोनू में सारी जुगत लगाई परंतु ऊपर के खाने में सामान रखने में नाकाम रहा.. आखिरकार सुगना ने कहा

"ले हमरा के पकड़ के उठाऊ हम रख देत बानी"

सुगना ने यह बात कह तो दी परंतु उसे आगे होने वाले घटनाक्रम का अंदाजा न था। सोनू ने सुगना को पीछे से आकर कमर से पकड़ लिया और उसे ऊपर उठाने लगा सुगना आगे की तरफ गिरने लगी उसने बड़ी मुश्किल से दीवाल का सहारा लिया और बोली

" उतार उतार ऐसे त हम गिर जाएब"


सोनू को अपनी गलती का एहसास हुआ वह सुगना के सामने की तरफ आया और उसने अपनी मजबूत बाहें पीछे की और सुगना के नितम्बो के ठीक नीचे उसकी जांघों को अपनी भुजाओं में कसते हुए सुगना को ऊपर उठा दिया।

मर्द सोनू की मजबूत भुजाओं में युवा सुगना को देखकर नियति स्वयं मचल उठी… सोनू का चेहरा सुगना की नाभि से छू रहा था और सुगना के मादक बदन की खुशबू सोनू के नथुनो में नशा भर रही थी थी इस खुशबू में निश्चित ही सुगना की अद्भुत योनि और उससे रिस रहे प्रेमरस की खुशबू भी शामिल थी। सोनू को न जाने कितने खजाने एक साथ मिल गए थे उसकी बांहों को सुगना के कोमल नितंबों का स्पर्श मिल रहा था और उंगलियां जांघों की कोमलता महसूस कर रही थी। सुगना के पंजे सोनू के लंड के बिल्कुल करीब थे सोनू घबरा रहा था कहीं उसकी उत्तेजना का अंदाज सुगना दीदी न कर लें और यह सुखद क्षण जल्द ही समाप्त हो जाए।

सुगना सोनू की मनोदशा से अनजान रसोई घर का जरूरी सामान ऊपरी खाने में सजाने लगी। कुछ ही पलों में आवश्यक सामान ऊपर व्यवस्थित कर दिया गया और जब कार्य खत्म हुआ तो सुगना को अपनी अवस्था का ध्यान आया सोनू की गर्म सांसे अपनी नाभि पर महसूस कर सुगना की वासना जाग उठी वह यह बात भूल गई कि उसे बाहों में उठाने वाला व्यक्ति सरयू सिंह नहीं अपितु उसका छोटा भाई सोनू है…सुगना कुछ देर तक उस आनंद में खो गई और सोनू की गर्म सांसो को अपने बदन पर फैलते हुए महसूस करने लगी उसके हाथ ऊपर रखे सामानों को यूं ही आगे पीछे कर व्यवस्थित कर रहे थे परंतु शरीर की सारी चेतना वासना पर केंद्रित हो गई थी..


सुगना ने अंदाज कर लिया कि उसका पैर सोनू की जांघों के ठीक बीच में है उसने जानबूझकर अपने पैर के पंजों से सोनू के लंड को छूने की कोशिश की और सोनू के लंड को पूरी तरह तना हुआ पाकर मन ही मन मुस्कुराने लगी…

अपने तने हुए लंड पर सुगना के पंजों का स्पर्श पाकर सोनू शर्मसार हो गया उसने झल्लाते हुए कहा

"अरे दीदी अब उतर हाथ दुख गईल"

"ठीक बा अब उतार दे काम हो गएल" और सोनू ने धीरे-धीरे अपनी भुजाओं का कसाव कम करना शुरू किया और सुगना ऊपर से नीचे धीरे-धीरे सोनू के बदन से सटती हुई नीचे आने लगी। सोनू की हथेलियों ने सुगना के नितंबों को बेहद करीब से महसूस किया और सोनू की वासना तड़प कर रह गई …लंड उस मखमली स्पर्श के लिए तड़प कर रह गया।

ऊपर सुगना की मदमस्त चूचियां सोनू के चेहरे के बेहद करीब से लगभग सटती हुई नीचे आ रही थी और फिर सुगना का खूबसूरत और कोमल चेहरा। एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना को इसी अवस्था में पकड़ ले और उसके खूबसूरत होठों को कसकर चूम ले पर सुगना ….उसकी बड़ी बहन थी और को सोनू सोच रहा था वो अभी संभव न था।.


सुगना यह बात भली-भांति जान चुकी थी की कुछ मिनटो में जो स्पर्श सुख सोनू ने लिया था उसका असर सुगना ने अपने पैर के पंजों महसूस कर लिया था। उसने कोई प्रतिक्रिया न दी और बेहद प्यार से बोली…

"देख इतना सुंदर तोर रसोईघर बना देनी ठीक लागत बा नू….."

सोनू को अब मौका मिल गया उसने सुगना को अपने आलिंगन में भर लिया और बेहद प्यार से बोला

" जवन भी चीज में हमरा दीदी के हाथ लग जाला ऊ चीज सुंदर हो जाला"

"जाकी रही भावना जैसी " सुगना एक बार फिर कल सोनू के लंड के बारे में सोचने लगी जो उसके हाथों का स्पर्श पाते ही खिलकर खड़ा हो गया था।"

सोनू के आलिंगन में खुद को महसूस कर सुगना सहम गई बात आगे बढ़ती इससे पहले सुगना ने सोनू के सीने पर हल्का धक्का दिया और बोली

"चल हट तोर काम हो गईल अब ढेर मक्खन मत लगाव"

सोनू कमरे से बाहर जा चुका था। अचानक सुगना ने अपनी जांघों के बीच कुछ गीलापन महसूस किया जो स्वाभाविक था सोनू जैसे मर्द की बाहों में आने के बाद कोई भी तरुणी अपने कामांगो का ध्यान अवश्य करती और निश्चित ही उसके कामांग सोनू से मिलने को आतुर हो उठते।

सुगना की बुर धीरे-धीरे बेचैन हो रही थी आखिर डॉक्टर की नसीहत उसके लिए भी थी सुगना को भी अपनी बुर को जीवंत रखने के लिए जमकर संभोग करना था परंतु सुगना का भविष्य गर्त में था सुगना के जीवन में आए दोनों मर्द सरयू सिंह और रतन अब बीते दिनों की बात हो चुके थे और उसके सामने जो खड़ा था वह हर रूप में उसके योग्य होने के बावजूद रिश्तों के आड़े आ रहा था।

कमरे में सुगना के पलंग पर सूरज और मधु दोनों सोनू के साथ खेल रहे थे। आत्मीयता इतनी कि यदि उन्हें कोई इस तरह खेलते देखता तो निश्चित यही समझता कि सोनू उन दोनों खूबसूरत बच्चों का पिता है यह बात भी अर्धसत्य थी मधु सोनू और लाली के मिलन से जन्मी थी। अचानक सूरज ने कहा

"मामा लखनऊ वाली कलेक्टर मैडम के यहां कतना बढ़िया झूला रहे तू काहे ना खरीदला ? "

बालमन सहज पर सजग होता है। वह भी अपनी आवश्यकता की चीजों का निरीक्षण करता रहता है और मन ही मन उनकी इच्छा अपने दिल में करता रहता है। सूरज को भी शायद मनोरमा मैडम के घर में रखा हुआ पिंकी का वह झूला बेहद पसंद आया था जिसमें लेटी हुई पिंकी चैन की नींद ले रही थी। सूरज के मन में भी तब से वह झूला घर पर गया था और उसने अपनी बात अपने मामा सोनू से खुलकर कह थी।


जब एक बार बात निकल गई तो फिर सोनू को रोकना कठिन था। सोनू बाजार गया और कुछ ही देर बाद मनोरमा जैसा तो न सही परंतु शायद उससे भी खूबसूरत बच्चों का झूला घर में हाजिर था।

झूला छोटी मधु के लिए था पर आकार में बड़ा हो पाने के कारण सूरज भी उसमे आराम से आ सकता था उसकी उम्र ही क्या थी।

सोनू ने सूरज और मधु दोनों को ही पालने में डाल दिया और बेहद प्यार से ही आने लगा सूरज छोटी मधु को बड़े प्यार से खिला रहा था और उसके पेट पर गुदगुदी कर रहा था अब तक कमरे में सुगना आ चुकी थी अपने दोनों बच्चों को झूले में हंसता खेलता देख उसका हृदय गदगद हो गया था और बिस्तर पर बैठा सोंनू उसे और भी प्यारा लग रहा था पलंग अपने प्रेमी जोड़ों के लिए पलक पावडे बिछाए तैयार था।

उधर सीतापुर में दोपहर हो चुकी थी पदमा सरयू सिंह को भोजन करा रही थी…और बगल में बैठकर बातें कर रही थी सोनी बीच-बीच में आकर घटा बढ़ा सामान पहुंचा रही थी। जब जब सोनी करीब आती सरयू सिंह की पीठ में तनाव आ जाता और वह संभल कर बैठ जाते और उसके जाते ही फिर सहज हो जाते हैं युवा किशोरियों और तरुणियों को देखकर सरयू सिंह का यह व्यवहार अनूठा था। चुदने योग्य युवतियों को देख सरयू सिंह का गठीला बदन युवा अवस्था में लौट आता सीना चौड़ा हो जाता और बाहर झांकता हुआ पेट तुरंत ही रीड की हड्डी से जा चिपकता। यह कार्य उतने ही स्वाभाविक तरीके से होता जैसे पलकों का झपकना।

सरयू सिंह की हरकतों और उनके हावभाव से पदमा ने यह भाप लिया की सरयू सिंह निश्चित ही सोनी की उपस्थिति में कुछ असहज महसूस कर रहे हैं और इतना तो पदमा को भली-भांति पता था कि कोई पुरुष यदि स्त्री की उपस्थिति में थोड़ा भी असहज महसूस करें तो यह मान लेना चाहिए कि उन दोनों के बीच जो संबंध हैं वह उन्हें स्वीकार्य नहीं और उन संबंधों में कुछ बदलाव होने की आशंका है पदमा सरयू सिंह की नस नस से वाकिफ थी ऐसा न था की सरयू सिंह किसी युवती पर डोरे डालते थे और उससे अपनी वासना में खींचने की कोशिश करते परंतु वह यह बात भली-भांति जानती थी सरयू सिंह का व्यक्तित्व और उनका मर्दाना शरीर तरुणियों को स्वतः उनकी तरफ आकर्षित करता था।

शायद यही वजह थी कि सरयू सिंह की निगाहों से असहज महसूस करने वाली सोनी रह-रहकर उनके करीब आ रही थी।

खाना खत्म होने के बाद पद्मा ने सरयू सिंह से कहा

"बनारस जाके शादी के दिन बार के बारे में बतिया लेब सोनी कहत रहली की विकास के पढ़ाई दो-तीन महीना में खत्म हो जाए और वह बनारस वापस आ जईहैं"

सरयू सिंह को एक पल के लिए लगा जैसे उनका दिवास्वप्न तोड़ दिया गया था। जिस सोनी को अपनी ख्वाबों में सजाए और उसके खूबसूरत अंगों की परिकल्पना करते हुए सरयू सिंह भोजन कर रहे थे वह भोजन के खात्मे के साथ ही खत्म हो चुका था उन्होंने अपने हाथ धोते हुए कहा

"ठीक बा…"

सरयू सिंह ने थोड़ा विश्राम किया और फिर वापस सलेमपुर के लिए निकल पड़े आज सुबह छोटी डॉक्टरनी का जो रूप उन्होंने देखा था उसने सोनी के प्रति उनके विचारों में परिवर्तन लाया था शहरों में आधुनिक वेशभूषा में घूमने और रहने वाली सोनी आज सुबह गांव के पारंपरिक वेशभूषा में जिस तरह अपनी मां का हाथ बटा रही थी वह सराहनीय था। सोनी को लेकर सरयू सिंह के विचार बदल रहे थे परंतु अभी दिल्ली दूर थी सोनी को अपनी गोद में लेकर मनभर चोदने की इच्छा को हकीकत का जामा पहना पाना कठिन था।

बोली उधर जौनपुर में सुगना के अनुरोध पर सोनू दोनों बच्चों को लेकर मंदिर गया और सुगना ने अपने आराध्य से अपने परिवार की खुशियां मांगी परंतु सोनू ने जो मांगा वह पाठक भली-भांति समझ सकते हैं । इस समय सुगना सोनू के चेतन और अवचेतन मन दोनों पर राज कर रही थी उसे सुगना के अलावा न कुछ दिखाई दे रहा ना था और न कुछ सूझ रहा था। सुगना के बदन के बारे में सोचते सोचते सोनू के विचार एक तूफान की तरह अपने केंद्र में एकत्रित होते और उसका अंत सुगना की मखमली बुर पर खत्म होता..

धीरे-धीरे दिन भर का तनाव खत्म होने का वक्त आया सुगना ने अपने बच्चों और सोनू के लिए खाना बनाया.. सोनू की पसंद के पकवान बनाते समय सुगना सोनू के बचपन से लेकर युवा होने तक सारी बातें याद कर रही थी जबसे सोनू युवा हुआ था और लाली के करीब आया था सुगना के विचारों में सोनू का बालपन न जाने कब अपना रूप बदल चुका था लाली को चोदते हुए देखने के बाद सुगना ने पहली बार सोनू से नजरें मिलाने में शर्म महसूस की और फिर जैसे-जैसे वासना सोनू और सुनना को अपने आगोश में लेती गई दोनों के बीच भाई-बहन की मासूमियत तार-तार होती गई और सुगना ने अपनी जांघों के बीच सोनू के लिए उत्तेजना महसूस करना शुरू कर दिया….

सुगना ने बीती रात जो प्रयोग किया था आज भी उसे हूबहू दोहराने के लिए बिसात बिछा ली उस मासूम को क्या पता था कि वह जिस सोनू पर जिस हथियार का प्रयोग करने जा रही थी उसने उसकी रणनीति बना रखी थी।

सोनू और सुगना ने साथ में भोजन किया बच्चों ने भी दिनभर की खेलकूद के पश्चात मनपसंद भोजन कर नए-नए पालने में आकर झूला झूलने लगे सूरज ने भी जिद कर उसी झूले में अपने लिए जगह तलाश ली।


सोनू सूरज और मधु को पालने में एक दूसरे के साथ प्यार करते और खेलते देखकर मन ही मन सोच रहा था क्या बालपन का यह प्यार भविष्य में कोई और रूप ले सकता है सुगना और उसके बीच कुछ ऐसी ही घटनाएं बालपन में हुई होंगी और उसकी सुगना दीदी ने उसका ऐसे ही ख्याल रखा होगा परंतु आज…

वासना के आधीन सोनू उस रिश्ते की पवित्रता को नजरअंदाज कर सिर्फ और सिर्फ सुगना की चूचियों और बुर पर अपना ध्यान लगाए हुए था। मन के किसी कोने में सुगना की अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति करना वह अपना दायित्व समझ रहा था। बीती रात उसकी बहन ने जो उसके पुरुषत्व को बचाने के लिए किया था आज उसका ऋण चुकाने का वक्त था ….

सोनू बाथरूम में मुत्रत्याग के लिए गया और मूत्र त्याग के दौरान शावर की लंबी रोड पर टंगी सुगना की ब्रा और पेंटी को देखकर मदहोश होने लगा। लंड से मूत्रधार बहती रही और लंड में लहू एकत्रित होता गया। उसने सुगना के अंतर्वस्त्र को चूमा पुचकारा और फिर वापस उसी जगह रख दिया। अंतर्वस्त्रों ने सोनू की कल्पना को आज फिर एक नया रूप दे दिया।

अचानक सोनू के दिमाग में कुछ विचार आए और उसने सुगना की ब्रा और पेंटी को शावर की रॉड के ठीक किनारे लटका दिया जिससे उसका अधिकतर भार एक तरफ झूल गया…. उस पर से उसने सुगना की नाइटी डाल दी जिससे ब्रा और पेंटी नीचे गिरने से तात्कालिक रूप से बच गई। पर यदि सुगना अपनी नाइटी को हटाकर ब्रा और पैंटी को पकड़ने की कोशिश करती तो निश्चित ही असावधानी के कारण ब्रा और पेंटिं नीचे गिरकर बाल्टी में गिरती या फर्श के पानी भीग जाती।

सोनू न जाने अपने मन में क्या-क्या सोच रहा था और उसी अनुसार अपने मन में योजनाएं बना रहा था। उधर सोनू के लंड ने अब तक अपना आकार ले लिया था अपनी बड़ी बहन की ब्रा और पेंटी को चूमने तथा पूचकारने का असर नीचे दिखाई पड़ रहा था सोनू ने अपने लंड को अपने हाथों में ले और उसे मसल मसल कर वीर्य त्याग करने लगा था। सोनू अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा था।

कुछ ही देर में सोनू ने अपना वीर्य स्खलन पूरा किया और वापस आकर बिस्तर पर उसी तरह लेट गया। सफेद धोती में अपना लंड छुपाए और सफेद गंजी में सोनू का बदन एक बार फिर चमक रहा था।

उधर रसोई में सुगना ने दूध तैयार किया वैद्य जी की पत्नी द्वारा दी गई दवाई मिलाई और दूध लेकर सोनू की तरफ आने लगी।पर कल की तरह आज सुगना के हाथ में दो गिलास न थे। शायद दिन भर में दूध की खपत कुछ ज्यादा हो गई थी और रात्रि के लिए दूध एक ही गिलास बचा था।

बिस्तर पर लेटे सोनू की धड़कन तेज थी लंड स्खलित होकर आराम कर रहा था। आज सोनू ने जानबूझकर अपना अंडरवियर नहीं पहना था परंतु सतर्क होने के कारण धोती का आवरण भी उसे ढकने में कामयाब हो रहा था। सुगना को अपने करीब आते देख कर उसने स्वयं को व्यवस्थित किया और पालथी मारकर पलंग पर बैठ गया धोती को अपने जननांगों के पास समेट कर उसने अपने आराम कर रहे लंड को पूरी तरह ढक लिया।

"आज दिन भर ढेर काम हो गईल ने दूध पीकर सूत जो…." सुगना ने स्वयं को यथासंभव सामान्य दिखाते हुए कहा।

"अरे एक ही गिलास दूध ले आईल बाड़ू तू ना पियाबु"

"नाना हम पी ले ले बानी" सुगना ने झूठ बोलने की कोशिश की पर इस झूठ में सिर्फ और सिर्फ त्याग था।

"अइसन हो ना सकेला हमार कसम खा"

सोनू की झूठी कसम खा पाना सुगना के लिए संभव न था वह बात बदलते हुए बोली

"अरे पी ले हम ढेर खाना खा ले ले बानी"

परंतु सोनू ना माना उसने आगे झुक कर सुगना की कलाइयां पकड़ ली और उसे खींचकर अपने बगल में बैठा लिया

"पहले तू थोड़ा दूध पी ला तब हम पियेब " सोनू ने अधिकार जमाते हुए कहा।

सुगना को पता था सोनू अपनी जिद नहीं छोड़ेगा पर यदि उसने दूध पिया तो……. सुगना का हलक सूखने लगा

"का सोचे लगलू? थोड़ा सा पी ला…"

सुगना को कोई उत्तर न सूझ रहा था आखिरकार उसने हार मान ली और बोली

" बस दो घूंट और ना.."

सोनू ने गिलास अपने हाथ में लेकर अपने अंगूठे से गिलास पर निशान बनाया और बोला

"इतना पी जा ना ता हम दूध ना पिएब"

सुगना जानती थी यदि उसने दूध पीने में आनाकानी की और ज्यादा जिद की तो सोनू को शक हो सकता था । और यदि सोनू ने दूध न पिया तो आज उसका वीर्य स्खलन असंभव हो जाता। उसने सोनू की संतुष्टि के लिए मजबूरी बस दूध के कुछ घूंट अपने हलक के नीचे उतार लिए।


उसे पता था कि वह स्वयं अब उस दवा के प्रकोप में आ सकती है परम उसे विश्वास था कि वह दूध की कुछ मात्रा लेने के बावजूद भी वह अपनी चेतना बरकरार रख सकती है। सुगना ने दूध के कुछ घूंट पिए और गिलास सोनू को हाथ में देते हुए बोली

"अब पी जा बदमाशी मत कर हम जा तानी नहाए…"

सोनू दूध पीने के मूड में बिल्कुल भी नहीं था परंतु सुगना वहां से हिलने को तैयार ना थी। जब तक सोनू के गले की मांसपेशियों ने दूध हलक में उतरने का दृश्य सुगना की आंखों के समक्ष न लाया सुगना वहां से न हटी। परंतु जैसे ही सुगना ने बाथरूम की तरफ अपने कदम बढ़ाए सोनू ने दूध पीना रोक लिया और सुगना के बाथरूम में जाते ही वह दूध रसोई घर में जाकर बेसिन में गिरा आया।

भाई-बहन के इस मीठे प्यार ने दोनों के हलक में उस दिव्य दूध की चंद घूटें उतार दी थी…

दोनों भाई बहन कभी अपने सर को झटकते कभी अपनी आंखों को बड़ा कर दवा के असर को कम करने की कोशिश करते….


सुगना निर्वस्त्र होकर स्नान करने लगी उसके दिमाग में एक बार फिर सोनू का लंड घूमने लगा जिसे अब से कुछ देर बाद उसे हाथों में लेकर सहलाते हुए स्खलित करना था। जांघों के बीच हो रही बेचैनी को सुगना ने रोकने की कोशिश न कि आखिर बुर से बह रही लार ने कल रात सुगना की मदद ही की थी..
अपने उत्तेजक ख्यालों में खोई सुगना ने अपना स्नान पूरा किया तौलिए से अपने भीगे बदन को पोछा और अपने अंतर्वस्त्र पहनने के लिए शावर की रॉड पर टंगी अपनी नाइटी को हटाया….

जब तक सुगना अपने अंतर्वस्त्र पकड़ पाती वह नाइटी के हटते ही वह रॉड से नीचे गिर गए। सुगना ने उन्हें पकड़ने की कोशिश अवश्य की परंतु सोनू की चाल कामयाब हो गई थी। सुगना की ब्रा और पेंटी नीचे रखी बाल्टी में जा गिरे थे और भीग गए। वो अब पहनने लायक न थे। सुगना कुछ समय के लिए परेशान हो गई पर कोई उपाय न था। आखिर का उसने हिम्मत जुटाई और बिना अंतर्वस्त्र पहले ही नाइटी पहन कर बाहर आ गई…

वैसे भी उसके अनुसार उसका भाई सोनू अवचेतन अवस्था में होगा नाइटी के अंदर अंतर्वस्त्र है या नहीं इससे किसी को फर्क नहीं पड़ना था। परंतु सुगना शायद यह बात नहीं जानती थी कि उसका छोटा भाई सोनू उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा और जब वह उसकी भरी-भरी चुचियों और जांघों के बीच से झांक रहे अमृत कलश को अपनी निगाहों से देखेगा वह कैसे खुद पर काबू रख पाएगा…

सुगना को अपनी तरफ आते देख सोनू ने सुगना की चूचीयों को बंद पलकों के बीच से झांक कर देखा और चुचियों की थिरकन से उसने अपनी योजना की सफलता का आकलन कर लिया।


सुगना एक बार फिर सोनू के बगल में बैठ चुकी थी। और अपने दाहिने हाथ से सोनू की धोती को अलग कर रही थी नियति मुस्कुरा रही थी…सुगना जागृत सोनू का लंड अपने हाथों से पकड़ने जा रही थी..

दवा की खुमारी ने सोनू और सुगना दोनों को सहज कर दिया था।

पाप घटित होने जा रहा था….

शेष अगले भाग में….
भई वाह। आज हो जाने दीजिए दोनों के बीच
 
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Raj0410

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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
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यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
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सर 120 बहुत सुंदर लगा पर जब सुगना को पता चलेगा वो सरयू सिंह की पुत्री है तो क्या होगा
 
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dijju

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भाग 123

अब तक आपने पढ़ा …

हे भगवान क्या आज की रात यूं ही व्यर्थ जाएगी? काश कि सोनू उस पल को पीछे ले जाकर उसे घटने से रोक पाता। सुगना की चाल निश्चित ही कुछ धीमी पड़ी थी वह धीरे-धीरे अपने कदम आगे बढ़ा रही थी और सोनू का दिल बैठता जा रहा था

"दीदी दुखाता का?"

" ना ना थोड़ा सा लागल बा…. कुछ देर में ठीक हो जाई" ऐसा कहकर सुगना ने सोनू को सांत्वना दी। धीरे-धीरे दोनों भाई बहन वापस सोनू के बंगले पर आ गए और जिस रात्रि इंतजार सोनू कर रहा था वह कुछ ही पल दूर थी। दोनों बच्चे अब ऊंघने लगे थे और सोनू बच्चों का पालना ठीक कर रहा था…. और सुगना बच्चों को दूध पिलाने की तैयारी कर रही थी..


आंखों में प्यास और मन में आस लिए सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना का इंतजार कर रहा था….

अब आगे….

बच्चों के सोते ही सोनू के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। सुगना पिछली रात की भांति एक बार फिर सोनू के लिए दूध तैयार कर रही थी परंतु आज वैध जी की पत्नी द्वारा दी गई दवा का कोई औचित्य न था। दवा अपना कार्य कर चुकी थी।

सुगना ने दूध गर्म किया और दो गिलास में दूध लेकर सोनू के समीप आ गई। अभी तक सोनू स्नान करके बिस्तर पर आ चुका था सुगना के आते ही सतर्क मुद्रा में बैठ गया और बोला.. और बेहद प्यार से सुगना से बोला

"दीदी मेला में जवन चोट लागल रहे ऊ कईसन बा?"


सुगना में अपने हाथों से कमर के उस हिस्से को टटोलते हुए कहा

"ऐसे त नईखे बुझात पर छुआला पर थोड़ा-थोड़ा दुखाता एक-दो दिन में ठीक हो जाए"

"दीदी ऊपर तनी गर्म तेल लगा के मालिश कर ल आराम मिल जाए"

"इतना टिटिम्मा के करी…. दूध पी के सूत जो तुहूं थक गाइल होखवे जो अब सूत जो"

"सूत जो?" सुगना के उत्तर से सोनू के चेहरे पर निराशा आई…. तो क्या आज का रात व्यर्थ जाएगी? सोनू के मन में आशंका ने जन्म लिया और वह कुछ पल के लिए शांत हो गया….

सोनू अभी दूध पी रहा था कि सुगना ने अपना दूध खत्म कर लिया और हमेशा की तरह बाथरूम में नहाने चली गई।

बाथरूम में अंदर जाने के बाद सुगना के नथुनों ने एक जानी पहचानी सुगंध महसूस की यह सुगंध उसे बेहद पसंद थी। बेसिन के पास रखी उस इत्र की शीशी को सुगना बखूबी पहचानती थी। यह इत्र की शीशी उसे रतन लाकर देता था। अपनी इस पसंद का जिक्र उसने लाली के समक्ष भी किया था जो शायद सोनू के संज्ञान में भी आ चुका था।


दरअसल सोनू ने जब गांव में सुगना की उस विशेष पूजा ( जिसके पश्चात् सुगना और रतन को संभोग करना था) के दौरान अपनी बहन सुगना के चरण स्पर्श करते समय उसके घागरे से वह भीनी भीनी खुशबू महसूस की थी तब से वह भी उस खुशबू का दीवाना हो गया था और उस इत्र का नाम लाली की मदद से जान गया था। और आज उसने उस मेले से वह जानी पहचानी इत्र की बोतल खरीद ली थी।

सुगना ने अपने वस्त्र उतारने शुरू किए तभी उसका ध्यान शावर पर रखें अपने वस्त्रों पर गया जहां से उसके वस्त्र गायब थे सिर्फ एक बड़ा सा सफेद तोलिया टंगा हुआ था।

सुगना सोच में पड़ गई… एक पल के लिए उसे भ्रम हुआ कि शायद उसने अपने वस्त्र वहां रखे ही न थे परंतु कुछ ही देर में उसे सोनू की शरारत समझ में आ गई तो क्या सोनू उसे इसी टॉवल में लिपटे हुए बाहर आते देखना चाह रहा था?

सुगना मन ही मन मुस्कुरा रही थी सचमुच छोटा सोनू अब शैतान हो चुका था सुगना ने अपने वस्त्र उतारे और धीरे-धीरे उसी अवस्था में आ गई जिस अवस्था में उसने जन्म लिया था।

आईने में खुद को देखती हुई सुगना स्नान करने लगी जैसे-जैसे उसकी हथेलियों ने उसके बदन पर घूमना शुरू किया सुगना के शरीर में वासना जागृत होने लगी हथेलियों ने जब सुगना की जांघों के बीच साबुन के बुलबुले को पहुंचाया सुगना की उंगलियां बरबस ही बुर होठों को सहलाने लगी…

सुगना ने महसूस किया कि उसके तन मन पर सोनू के प्यार का रंग चढ़ चुका था। अचानक उसके जेहन में एक बार फिर वही प्रश्न उठा।

क्या कल जो सोनू ने कहा था उस पर यकीन किया जा सकता है? यद्यपि सोनू ने सुगना के सर पर हाथ रखकर जो कसम खाई थी उसने कल रात खुमारी में डूबी सुगना की सारी आशंकाओं पर विराम लगा दिया था परंतु आज सुगना जागृत और चैतन्य अवस्था में थी।

"दीदी हमनी के एक बाप के संतान ना हई जा" सोनू का यह वाक्य सुगना के जेहन में गूंजने लगा।


सुगना को सोनू के जन्म का समय और दिन बखूबी याद था उस दिन वह सुबह से ही अपनी मां पदमा के करुण क्रंदन सुन रही थी। आसपास की महिलाओं से घिरी हुई उसकी मां न जाने किस दर्द से तड़प रही थी। और कुछ ही देर बाद कुछ ही देर बाद घर में खुशियों का माहौल हो गया था वह दिन अबोध सुगना के लिए बेहद अहम था हर दुख के बाद सुख की घड़ी आती है सुगना ने उस दिन यह बात सीख ली थी।

सुगना को खुद पर ही शक हो गया तो क्या वह स्वयं अपनी मां पदमा की संतान नहीं है…. उसकी धर्मपरायण मां पदमा व्यभिचारी होगी ऐसा सोचना सुगना के लिए पाप था। पदमा सुगना के लिए आदर्श थी।

सुगना को लगने लगा जैसे उसने स्वयं किसी अन्य दंपत्ति के यहां जन्म लिया था और उन्होंने उसके पालन पोषण के लिए उसे पदमा को सौंप दिया गया था।

सुगना के दिल में पदमा के लिए इज्जत और भी बढ़ गई वह अपनी मां पदमा को देवी स्वरूप देखने लगी जिसने उसे सौतेला या पराया होने का रंच मात्र भी एहसास ना होने दिया था।

मनुष्य की सोच उसकी इच्छाओं के अधीन होती है सुगना अपनी वासना में सिक्के का एक पहलू देख रही थी जिसमें सोनू उसे अपना सगा भाई नहीं दिखाई पड़ रहा था। अब तक सोनू के संग बिताए गए 21 - 22 साल का प्यार कुछ महीनों में ही नया रूप ले चुका था और कल रात हुई पूर्णाहुति में सुगना और सोनू के रिश्ते में एक अलग अध्याय लिख दिया था.

बीती रात के उत्तेजक पलों ने सुगना की जांघों के बीच हलचल बढ़ा दी सुगना से रहा न गया उसने अपनी जांघों के बीच छलके प्रेम रस को साफ करने की कोशिश की परंतु जितना ही वह उसे साफ करती सोनू के प्रेम का अविरल दरिया छलक छलक कर बुर् के होठों से बाहर आता।


सुगना को लगने लगा जैसे वह स्खलित हो जाएगी। उसने अपनी बुर के अद्भुत कंपनो को अपने छोटे भाई के लिए बचा लिया।

उसने स्नान पूर्ण किया अपने छोटे भाई सोनू द्वारा लाया गया इत्र अपने हाथों में लेकर अपने बदन पर हाथ फेरने लगी। सोनू के प्यार की भीनी भीनी खुशबू से सुगना का तन बदन और अंतर्मन खिल उठा।

उधर सोनू बेसब्री से सुगना का इंतजार कर रहा था सुगना भी मिलन चाहती थी पर बीती रात की भांति स्वयं आगे बढ़कर यह कार्य नहीं कर सकती थी। उसे पता था कि उसका भाई सोनू उसके करीब आने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा..

अपना स्नान पूरा कर सुगना ने बाथरूम का दरवाजा थोड़ा सा खोला और बोली ..

"ए सोनू ….."

सोनू को एक पल के लिए लगा जैसे उसकी सुगना दीदी उसे अंदर बुला रही है एक ही पल में ही सोनू उठ कर बाथरूम के पास आ गया..

"का दीदी"

"हमार कपड़ा कहां हटा देले बाड़े ? सुगना ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए बोला और दरवाजे की दरार को बंद कर दिया।

सोनू मायूस हो गया…

"दे तानी दीदी "

" ओहिज़े बिस्तर पर रख द"

सोनू ने बाथरूम से उठाए हुए सुगना के कपड़े बिस्तर पर रख दिए।

"ते बाहर दूसरा कमरा में जो हम कपड़ा बदल लेब तब आईहे " सुगना ने एक बार फिर आवाज लगाई..


सुगना ने जो कहा उसने सोनू के अरमानों पर पानी फेर दिया। कहां तो उसके दिमाग में सफेद तौलिया लपेटे उसकी बहन की अर्धनग्न तस्वीर घूम रही थी पर सुगना का यह व्यवहार सोनू को रास न आ रहा था।

अपनी बहन सुगना की बात टाल पाना सोनू के लिए कठिन था। वह मायूसी से उठकर सुगना के कमरे से बाहर जाने लगा और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। सुगना बाथरूम के दरवाजे की दरार से सोनू के उदास चेहरे को देख रही थी और मन ही मन उसके भावों को पढ़ मुस्कुरा रही थी।

नियति बड़ी बहन को अपने छोटे भाई को छेड़ते देख रही थी। सुगना को यह छेड़छाड़ महंगी पड़ेगी इसका अंदाजा न था।

स्त्रियों की छेड़छाड़ पुरुषों की उत्तेजना को बढ़ा देती हैं और संभोग के दौरान पुरुषों का आवेग दोगुना हो जाता है। जिन स्त्रियों को पुरुषों के आवेग का आनंद आता है वो अक्सर छेड़छाड़ कर अपने पुरुष साथी में जोश भरती रहती है और उसकी वासना का भरपूर आनंद लेती हैं ।

सुगना बाहर आई। उसने सोनू को जितना निराश किया था उतना ही खुश करने की ठान ली। उसने अपनी अटैची में से निकाल कर सोनू द्वारा गिफ्ट किया हुआ एक सुंदर घाघरा और चोली पहन लिया जो सोनू को बेहद पसंद था। यह घाघरा और चोली बेहद ही खूबसूरत था परंतु उस में कहीं भी जड़ी बूटी का काम न था हाथ की कढ़ाई से रेशम के कपड़े पर की गई सजावट से लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत बन गया था। वह कतई रात में पहन कर सोने योग्य न था परंतु उसे पहनकर सोया अवश्य जा सकता था। सुगना को भी पता था ये वस्त्र ज्यादा देर उसका साथ न देंगे। पर अपने भाई सोनू को खुश करना उसकी प्राथमिकता बन चुकी थी।


सुगना वह यह बात भली-भांति जानती थी कि लहंगा और चोली में उसकी मादकता कई गुना बढ़ जाती है कमर और पेट के कटाव खुलकर दिखाई पड़ते हैं और चूचियां और भी खूबसूरत हो जाती हैं।

ऐसी ही लहंगा चोली में सुगना ने न जाने कितने अनजान मर्दो के लंड में उत्तेजना भरी थी परंतु आज सुगना अपने छोटे भाई पर ही कहर ढाने का मन बना चुकी थी।

अपनी कटीली कमर पर घागरे का नाडा बांधते हुए उसने सोनू को आवाज दी…

"सोनू बाबू भीतर आ जा"

सुगना की आवाज की मिठास ने सोनू के अवसाद को कुछ हद तक खत्म कर दिया।

सोनू ने कमरे का दरवाजा खोला और हाथ में एक कटोरी लिए कमरे के अंदर आ गया अपनी बड़ी बहन सुगना को देखकर उसका मुंह खुला रह गया । कमरे में सुगना ने दो मोमबत्तियां जला दी थी…और कमरे में लगी कृत्रिम ट्यूब लाइट को बंद कर दिया था। मोमबत्ती की पीली रोशनी में सुगना का चेहरा कुंदन की भांति दमक रहा था। कमरे में इत्र की खुशबू बिखरी हुई थी और स्वयं सुगना की मादक सुगंध मन मोह लेने वाली थी। सुगना की कामुक काया रति की भांति उसे आमंत्रित कर रही थी।

"अरे तैयार काहे हो गईल बाड़ू…. कहा के तैयारी बा …"

"इतना रात में के कहा जाई "

"तब तब काहे इतना तैयार भईल बाड़ू"

सुखना क्या जवाब देती कि वह क्यों तैयार हुई है। सुगना के पास कोई उत्तर न था और जब उत्तर ना हो तो प्रश्न के उत्तर में प्रश्न पूछना ही एकमात्र विकल्प था जिसमे सुगना माहिर थी।


"हाथ में कटोरी काहे ले ले बाड़ा"

"तोहरे खातिर गर्म तेल ले आईल बानी अपना चोटवा पर लगा ला"

सोनू अब तक सुगना के करीब आ चुका था। सुगना ने सोनू द्वारा लाए गए गर्म तेल में अपनी उंगलियां डूबायीं और अचानक ही उसने अपना हाथ बाहर खींच लिया

"बाप रे कितना गर्म बा लगाता हाथ जल गईल"

सुगना अपने हाथों को बार-बार झटक कर अपनी पीड़ा को कम करने का प्रयास करने लगी। सोनू ने स्वयं भी कटोरी में रखे तेल पर अपनी उंगलियां डाली तेल गर्म तो जरूर था पर इतना भी नहीं उससे हाथ जल जाए परंतु सुगना कोमल थी। सोनू ने सुगना की त्वरित प्रतिक्रिया पर यकीन कर लिया और सुगना की हथेलियों को अपने हाथ में लेकर फूंक फूंक कर उसके दर्द को कम करने का प्रयास करने लगा। सुगना सोनू के चेहरे को देख रही थी और उसके मन में सोनू के लिए प्यार उमड़ रहा था।

अचानक ही सुगना खिलखिला कर हंसने लगी..

सोनू सुगना के चेहरे को भौचक होकर देख रहा था उससे समझ ही नहीं आ रहा था कि सुगना क्या कर रही है।


सुगना ने अपने उंगलियों में लगा तेल सोनू के मजबूत सीने को घेरी हुई सफेद बनियान पर पोछ दिया और बोली…

"अरे बाबू जलल नईखे…"

सोनू एक बार फिर सुगना के मजाक से थोड़ा दुखी हुआ था परंतु सुगना की खिलखिलाहट ने उसके सारे अवसाद मिटा दिए और उसकी उम्मीदों और कल्पनाओं को एक नई दिशा दे दी। सोनू भी थोड़ा वाचाल हुआ

"दीदी अब तू बदमाशी मत कर….. चल पेट के बल लेट जा हम तेल लगा देत बानी"

सोनू ने जो कहा था उसके आगे के घटनाक्रम को सुगना ने एक ही पल में अपने दिमाग में सोच लिया। किसी जवान मर्द द्वारा किसी युवती को कमर पर तेल लगाना आगे किस रूप में परिणित हो सकता था इसका अंदाज सुगना को बखूबी था। सूरज के जन्म के बाद सरयू सिंह ने जब-जब सुगना के शरीर की मालिश की थी अंत सुखद रहा था और चूचियों का अंतिम मसाज सरयू सिंह के वीर्य से ही हुआ था। सुगना की सांसे गति पकड़ने लगी। वह सोनू को मना भी नहीं करना चाहती थी परंतु अचानक..इस तरह…

इससे पहले कि सुगना कुछ कहती सोनू ने तकिया व्यवस्थित कर सुगना को कंधे से पकड़कर उसे बिस्तर पर लिटाने लगा…

"अच्छा रूक रूक लेटत बानी" सुगना ने मन में उमड़ रही भावनाओं पर काबू पाते हुए कहा…आखिरकार सुगना बिस्तर पर पेट के बल लेट चुकी थी।

अपने शरीर के अगले भाग को अपनी कोहनी से सहारा देते हुए सुगना ने अपनी चुचियों को सपाट होने से बचा लिया था। सुगना का पेट बिस्तर से सटा हुआ था और नितंब उभर कर सोनू को आकर्षित कर रहे थे।

घागरे के अंदर सुगना की मांसल और पुष्ट जांघें अपने आकार का प्रदर्शन कर रही थी। केले के तने जैसी खूबसूरत और चिकनी जांघें सुगना के लहंगे के पीछे छुपी हुई सोनू को ललचा रही थीं।

सुगना ने अपने पैरों को घुटने से मोड़ कर ऊपर किया हुआ था और उसके पैर नग्न होकर सोनू को उसकी चमकती दमकती गोरी त्वचा का एहसास करा रहे थे ।

पैरों में बंधी हुई पायल नीचे फिसल कर सुगना की पिंडलियों पर फंसी हुई थी और पैर के पंजों और एड़ी में लगा हुआ आलता सुगना के गोरे गोरे पैरों को और खूबसूरत बना रहा था।

सोनू एक टक अपनी बहन की खूबसूरती को देखे जा रहा था। घागरे के ऊपर और चोली के नीचे पीठ का वह भाग सबसे ज्यादा मादक था। पेट से कमर तक आते समय जो कमर का कटाव था वह अत्यंत मादक था सोनू उसे अपने दोनों हाथों से पकड़ने को मचल गया।


यही वह कटाव था जिसे वह अपने दोनों हाथों से पकड़ लाली को डॉगी स्टाइल चोदा करता था। लाली की जगह उसी अवस्था में अपनी बड़ी बहन सुगना की कल्पना कर सोनू का लंड उछलने लगा .. अचानक सुगना ने कहा

"कहां देखत बाड़े आपन आंख बंद कर …और जल्दी लगाव .. तोर तेल ठंडा हो जाए…" सोनू ने सचमुच अपनी आंखें बंद कर ली… अपने हाथों पर तेल लिया और सुगना की कमर के ठीक ऊपर अपनी बहन की गोरी और चिकनी कमर पर अपनी उंगलियां फिराने लगा…उसका ध्यान बार-बार सुगना की कमर पर बंधे उस नाडे की गांठ पर जा रहा था जिसने सुगना के घाघरे को सहारा दिया हुआ था.. घागरे की सुनहरी रस्सी के आखिरी छोर पर दो खूबसूरत कपड़े के फूल लगे हुए थे जो बरबस ही सोनू का ध्यान खींच रहे थे..

सोनू की मजबूत उंगलियों को अपनी कमर पर महसूस कर सुगना के शरीर में एक करंट सा दौड़ गया जिस स्थान पर सोनू ने सुगना को छुआ था वह घागरे से दो-तीन इंच ऊपर था । सोनू हल्के हल्के हाथों से सुगना की मालिश करने लगा परंतु उसकी उंगली का पिछला भाग बार-बार सुगना के घाघरे से टकरा जाता…

"हमरा कपड़ा में तेल मत लगाईहे ..देख के तेल लगाऊ" सुगना ने अपनी गर्दन घुमा कर सोनू को कनखियों से देखते हुए बोली..

सोनू को मौका मिल गया उसने अपनी बहन के आदेश मैं छुपी सारगर्भित बात "देख के तेल लगाव" समझ ली और अपनी आंखे एक बार फिर खोल लीं। उसने बिना कुछ कहे सुगना के घागरे की के नाडे के अंत में लगे फूल को पकड़ा और उसे होले से खींच दिया.. सुगना के घाघरे की गांठ खुल गई….

सुगना ने अपना चेहरा तकिए में गड़ा लिया और अपने हृदय की धड़कन को काबू में करने की कोशिश करने लगी। उधर सुगना से कोई प्रतिरोध ना पाकर सोनू बाग बाग हो गया उसने अपनी हथेलियों में थोड़ा और तेल लिया और सुगना की कमर पर लगाने लगा धीरे-धीरे सोनू की उंगलियों का दायरा बढ़ता गया।


अपना कसाव त्याग चुका घागरा धीरे-धीरे नीचे आ रहा था। शायद अब वह सुगना के नितंबों को आवरण देने में नाकामयाब हो रहा था और सुगना के भाई सोनू के इशारे पर वह सुगना की खूबसूरत को धीरे-धीरे और उजागर कर रहा था।

नितंबों के बीच की घाटी की झलक सोनू को दिखाई पढ़ गई। उसने एक पल के लिए अपनी उंगलियां उसी जगह रोक ली…. और नितंबों के बीच गहरी घाटी को अंदाजने लगा….

अचानक सोनू ने कुछ सोचा और कटोरी से अपनी अंजुली में तेल लिया और उसे अपने दोनों हाथ पर मल लिया।


अब तक तो सोनू की उंगलियां ही सुगना की कमर पर तेल लगा रही थी परंतु अब सोनू ने अपने दोनों हाथों से सुगना की कमर पर मालिश करनी शुरू कर दी कमर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक उसकी हथेलियां घूमने लगी सोनू अपने दबाव को नियंत्रित कर सुगना को भरपूर सुख देने की कोशिश कर रहा था और निश्चित ही सुगना सोनू के स्पर्श और प्यार भरी मालिश का आनंद उठा रहीं थी।

सोनू की हथेलियों ने अपना मार्ग बदला और अब एक हथेली सुगना की पीठ से कमर की तरफ आ रही थी दूसरी सुगना के नितम्बो की तरफ से कमर की ओर..

हर बार जब दोनों हथेलियां कमर से हटकर पीठ और नितंबों की तरफ जातीं और सुगना का घाघरा और नीचे खिसक जाता एवं नितंबों का कुछ और भाग उजागर हो जाता। सोनू को उसकी मेहनत का फल मिल रहा था।


सुगना के चांद रूपी नितंब घागरे के ग्रहण से धीरे-धीरे बाहर आ रहे थे।

सोनू की हथेलियों के दबाव से नितंब हल्के हल्के हिल रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे किसी फूले हुए गुब्बारे पर सोनू अपने हाथ फेर रहा हो…

कुछ ही देर में घाघरा नितंबों के नीचे तक आ चुका था उसे और नीचे करना संभव न था। सुगना के नितंब पूर्णमासी की चांद की तरह दमक रहे थे। घाघरे का आगे का हिस्सा सुगना के पेट से दबा हुआ था । हल्के हल्के हाथों से सोनू ने अपनी बहन के दोनों नितंबों को तो अनावृत कर लिया था परंतु जांघों के जोड़ तक पहुंचते-पहुंचते घागरा वापस अपना प्रतिरोध दिखाने लगा था।

ऐसा लग रहा था जैसे वह सोनू की हथेलियों को एक आक्रांता की भांति देख रहा था और अब अपनी मालकिन की सबसे ख़ूबसूरत बुर को अनावृत होने से बचाना चाह रहा था।


उधर सुगना की सांसे तेज चल रही थी और चेहरा खून के प्रवाह और उत्तेजना दोनों के योगदान से पूरी तरह लाल हो चुका था। उसके कमर और नितंबों पर सोनू जिस प्रकार से मालिश कर रहा था वह उसे बेहद आरामदायक लग रहा था…सुगना सोच रही थी..कितनी समानता थी सरयू सिंह और सोनू में…

दोनों की मालिश का अंदाज एक जैसा ही था सुगना को यह मालिश बेहद पसंद आती थी। जब वह छोटी थी उसकी मां पदमा भी ऐसे ही मालिश किया करती थी.. एक हथेली पीठ से और दूसरी जांघों से मालिश करते हुए कमर की तरफ आतीं और नितंबों के ठीक ऊपर दोनो हथेलियां मिल जाती। नितंब थिरक उठते…

सुगना का मन मचल गया उसने अपनी नग्नता के एहसास को दरकिनार कर अपना पेट बिस्तर से थोड़ा सा ऊपर उठा लिया। सोनू और सुगना एक दूसरे की भावनाओं को बखूबी समझते थे जैसे ही सुगना ने अपना पेट उठाया सोनू ने घाघरा और नीचे खींच लिया एक ही झटके में सुगना का घागरा उसकी जांघों तक आ चुका था जब घागरे की मालकिन ने ही उसका साथ छोड़ दिया वह क्यों कर अपना प्रतिरोध दिखाता।

सोनू ने अपनी अवस्था बदली और अब उसकी हथेलियां सुगना की जांघों से होती हुई कमर की तरफ आने लगी और दूसरी पीठ से होती नितंबों की तरफ।

सुगना की दाहिनी हथेली तो जैसे स्वर्ग में घूम रही थी। सुगना की पुष्ट जांघों पर फिसलते हुए जब वह नितंबों से टकराती सोनू आनंद दोगुना हो जाता। उतर सुगना अपनी बुर सिकोड़ लेती। मन ही मन घबराती कहीं सोनू की उंगलियां इधर-उधर भटक गईं तो?


सोनू कभी दाहिने नितंब को मसलता हुआ ऊपर आता कभी बाए नितंब को। और कभी-कभी तो दोनों नितंबों को अपनी हथेलियों से छूता हुआ उस गहरी घाटी का मुआयना करता…

सुगना के खूबसूरत नितंबों की कल्पना सोनू ने न जाने कितनी मर्तबा की थी और आज वह अनावृत रूप में सोनू के समक्ष उपस्थित थे। सोनू उनके अद्भुत स्पर्श सुख में खोया हुआ था। वह नितंबों के बीच उस गहरी घाटी के और अंदर उतरना चाहता था। धीरे-धीरे उसकी उंगलियां सुगना के नितंबों के बीच उतरने लगी। सोनू के लिए यह संभव न था कि वह अपनी बड़ी-बड़ी हथेलियों से सुगना के नितंबों को पूरी तरह पकड़ पाता परंतु उसकी कोशिश में सोनू की उंगलियां सुगना की प्रतिबंधित छेद की तरफ पहुंचने लगी…

सुगना ने एहसास कर लिया की उसके भाई की उंगलियां कभी भी प्रतिबंधित क्षेत्र से छू सकती हैं सुगना ने बोला…

" सोनू बाबू अब हो गइल छोड़ द…"

कुछ निर्देश अस्पष्ट होते है.. सुगना की आवाज मालिश रोकने का निर्देश दे रही थी परंतु उसकी आवाज में जो कशिश थी और जो सुख था वह सोनू को अपनी बहन को और सुख देने के लिए प्रेरित कर रहा था।

"दीदी अब थोड़ा सा ही तेल बाचल बा ..दे पैरवा पर लगा देत बानी.."

सुगना ने सोनू को अपना मौन समर्थन दे दिया और अब बारी थी सुगना के घाघरे को पूरी तरह बाहर आने की। सोनू ने सुगना की घाघरे को पकड़कर बाहर आने का इशारा किया और सुगना ने अपने घुटने बारी-बारी से ऊपर उठा लिए…

और सुगना का घाघरा आखिरकार बाहर आ गया अपनी मल्लिका को अर्द्ध नग्न देखकर सोनू बाग बाग हो गया ….

सोनू सुगना के किले के गर्भ गृह के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था और उसने अपना सर सुगना के पैरों की तरफ झुका कर जांघों के बीच झांकने की कोशिश की..

सुगना की रानी होंठो पर प्रेमरस लिए सोनू का इंतजार कर रही थी…..

यद्यपि अभी भी सुगना की चूचियां चोली में कैद थी परंतु सोनू को पता था वह सुगना की रानी उसका इंतजार कर रही है और सुगना के सारे प्रहरी एक एक कर उसका साथ छोड़ रहे थे…

शेष अगले भाग में…
Kahani aisi bhi hoti hai pta nahi tha, superb Lovely bhai. Mastram bhi itna erotic nahi tha.
 
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Sanju@

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भाग 123

अब तक आपने पढ़ा …

हे भगवान क्या आज की रात यूं ही व्यर्थ जाएगी? काश कि सोनू उस पल को पीछे ले जाकर उसे घटने से रोक पाता। सुगना की चाल निश्चित ही कुछ धीमी पड़ी थी वह धीरे-धीरे अपने कदम आगे बढ़ा रही थी और सोनू का दिल बैठता जा रहा था

"दीदी दुखाता का?"

" ना ना थोड़ा सा लागल बा…. कुछ देर में ठीक हो जाई" ऐसा कहकर सुगना ने सोनू को सांत्वना दी। धीरे-धीरे दोनों भाई बहन वापस सोनू के बंगले पर आ गए और जिस रात्रि इंतजार सोनू कर रहा था वह कुछ ही पल दूर थी। दोनों बच्चे अब ऊंघने लगे थे और सोनू बच्चों का पालना ठीक कर रहा था…. और सुगना बच्चों को दूध पिलाने की तैयारी कर रही थी..


आंखों में प्यास और मन में आस लिए सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना का इंतजार कर रहा था….

अब आगे….

बच्चों के सोते ही सोनू के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। सुगना पिछली रात की भांति एक बार फिर सोनू के लिए दूध तैयार कर रही थी परंतु आज वैध जी की पत्नी द्वारा दी गई दवा का कोई औचित्य न था। दवा अपना कार्य कर चुकी थी।

सुगना ने दूध गर्म किया और दो गिलास में दूध लेकर सोनू के समीप आ गई। अभी तक सोनू स्नान करके बिस्तर पर आ चुका था सुगना के आते ही सतर्क मुद्रा में बैठ गया और बोला.. और बेहद प्यार से सुगना से बोला

"दीदी मेला में जवन चोट लागल रहे ऊ कईसन बा?"


सुगना में अपने हाथों से कमर के उस हिस्से को टटोलते हुए कहा

"ऐसे त नईखे बुझात पर छुआला पर थोड़ा-थोड़ा दुखाता एक-दो दिन में ठीक हो जाए"

"दीदी ऊपर तनी गर्म तेल लगा के मालिश कर ल आराम मिल जाए"

"इतना टिटिम्मा के करी…. दूध पी के सूत जो तुहूं थक गाइल होखवे जो अब सूत जो"

"सूत जो?" सुगना के उत्तर से सोनू के चेहरे पर निराशा आई…. तो क्या आज का रात व्यर्थ जाएगी? सोनू के मन में आशंका ने जन्म लिया और वह कुछ पल के लिए शांत हो गया….

सोनू अभी दूध पी रहा था कि सुगना ने अपना दूध खत्म कर लिया और हमेशा की तरह बाथरूम में नहाने चली गई।

बाथरूम में अंदर जाने के बाद सुगना के नथुनों ने एक जानी पहचानी सुगंध महसूस की यह सुगंध उसे बेहद पसंद थी। बेसिन के पास रखी उस इत्र की शीशी को सुगना बखूबी पहचानती थी। यह इत्र की शीशी उसे रतन लाकर देता था। अपनी इस पसंद का जिक्र उसने लाली के समक्ष भी किया था जो शायद सोनू के संज्ञान में भी आ चुका था।


दरअसल सोनू ने जब गांव में सुगना की उस विशेष पूजा ( जिसके पश्चात् सुगना और रतन को संभोग करना था) के दौरान अपनी बहन सुगना के चरण स्पर्श करते समय उसके घागरे से वह भीनी भीनी खुशबू महसूस की थी तब से वह भी उस खुशबू का दीवाना हो गया था और उस इत्र का नाम लाली की मदद से जान गया था। और आज उसने उस मेले से वह जानी पहचानी इत्र की बोतल खरीद ली थी।

सुगना ने अपने वस्त्र उतारने शुरू किए तभी उसका ध्यान शावर पर रखें अपने वस्त्रों पर गया जहां से उसके वस्त्र गायब थे सिर्फ एक बड़ा सा सफेद तोलिया टंगा हुआ था।

सुगना सोच में पड़ गई… एक पल के लिए उसे भ्रम हुआ कि शायद उसने अपने वस्त्र वहां रखे ही न थे परंतु कुछ ही देर में उसे सोनू की शरारत समझ में आ गई तो क्या सोनू उसे इसी टॉवल में लिपटे हुए बाहर आते देखना चाह रहा था?

सुगना मन ही मन मुस्कुरा रही थी सचमुच छोटा सोनू अब शैतान हो चुका था सुगना ने अपने वस्त्र उतारे और धीरे-धीरे उसी अवस्था में आ गई जिस अवस्था में उसने जन्म लिया था।

आईने में खुद को देखती हुई सुगना स्नान करने लगी जैसे-जैसे उसकी हथेलियों ने उसके बदन पर घूमना शुरू किया सुगना के शरीर में वासना जागृत होने लगी हथेलियों ने जब सुगना की जांघों के बीच साबुन के बुलबुले को पहुंचाया सुगना की उंगलियां बरबस ही बुर होठों को सहलाने लगी…

सुगना ने महसूस किया कि उसके तन मन पर सोनू के प्यार का रंग चढ़ चुका था। अचानक उसके जेहन में एक बार फिर वही प्रश्न उठा।

क्या कल जो सोनू ने कहा था उस पर यकीन किया जा सकता है? यद्यपि सोनू ने सुगना के सर पर हाथ रखकर जो कसम खाई थी उसने कल रात खुमारी में डूबी सुगना की सारी आशंकाओं पर विराम लगा दिया था परंतु आज सुगना जागृत और चैतन्य अवस्था में थी।

"दीदी हमनी के एक बाप के संतान ना हई जा" सोनू का यह वाक्य सुगना के जेहन में गूंजने लगा।


सुगना को सोनू के जन्म का समय और दिन बखूबी याद था उस दिन वह सुबह से ही अपनी मां पदमा के करुण क्रंदन सुन रही थी। आसपास की महिलाओं से घिरी हुई उसकी मां न जाने किस दर्द से तड़प रही थी। और कुछ ही देर बाद कुछ ही देर बाद घर में खुशियों का माहौल हो गया था वह दिन अबोध सुगना के लिए बेहद अहम था हर दुख के बाद सुख की घड़ी आती है सुगना ने उस दिन यह बात सीख ली थी।

सुगना को खुद पर ही शक हो गया तो क्या वह स्वयं अपनी मां पदमा की संतान नहीं है…. उसकी धर्मपरायण मां पदमा व्यभिचारी होगी ऐसा सोचना सुगना के लिए पाप था। पदमा सुगना के लिए आदर्श थी।

सुगना को लगने लगा जैसे उसने स्वयं किसी अन्य दंपत्ति के यहां जन्म लिया था और उन्होंने उसके पालन पोषण के लिए उसे पदमा को सौंप दिया गया था।

सुगना के दिल में पदमा के लिए इज्जत और भी बढ़ गई वह अपनी मां पदमा को देवी स्वरूप देखने लगी जिसने उसे सौतेला या पराया होने का रंच मात्र भी एहसास ना होने दिया था।

मनुष्य की सोच उसकी इच्छाओं के अधीन होती है सुगना अपनी वासना में सिक्के का एक पहलू देख रही थी जिसमें सोनू उसे अपना सगा भाई नहीं दिखाई पड़ रहा था। अब तक सोनू के संग बिताए गए 21 - 22 साल का प्यार कुछ महीनों में ही नया रूप ले चुका था और कल रात हुई पूर्णाहुति में सुगना और सोनू के रिश्ते में एक अलग अध्याय लिख दिया था.

बीती रात के उत्तेजक पलों ने सुगना की जांघों के बीच हलचल बढ़ा दी सुगना से रहा न गया उसने अपनी जांघों के बीच छलके प्रेम रस को साफ करने की कोशिश की परंतु जितना ही वह उसे साफ करती सोनू के प्रेम का अविरल दरिया छलक छलक कर बुर् के होठों से बाहर आता।


सुगना को लगने लगा जैसे वह स्खलित हो जाएगी। उसने अपनी बुर के अद्भुत कंपनो को अपने छोटे भाई के लिए बचा लिया।

उसने स्नान पूर्ण किया अपने छोटे भाई सोनू द्वारा लाया गया इत्र अपने हाथों में लेकर अपने बदन पर हाथ फेरने लगी। सोनू के प्यार की भीनी भीनी खुशबू से सुगना का तन बदन और अंतर्मन खिल उठा।

उधर सोनू बेसब्री से सुगना का इंतजार कर रहा था सुगना भी मिलन चाहती थी पर बीती रात की भांति स्वयं आगे बढ़कर यह कार्य नहीं कर सकती थी। उसे पता था कि उसका भाई सोनू उसके करीब आने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा..

अपना स्नान पूरा कर सुगना ने बाथरूम का दरवाजा थोड़ा सा खोला और बोली ..

"ए सोनू ….."

सोनू को एक पल के लिए लगा जैसे उसकी सुगना दीदी उसे अंदर बुला रही है एक ही पल में ही सोनू उठ कर बाथरूम के पास आ गया..

"का दीदी"

"हमार कपड़ा कहां हटा देले बाड़े ? सुगना ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए बोला और दरवाजे की दरार को बंद कर दिया।

सोनू मायूस हो गया…

"दे तानी दीदी "

" ओहिज़े बिस्तर पर रख द"

सोनू ने बाथरूम से उठाए हुए सुगना के कपड़े बिस्तर पर रख दिए।

"ते बाहर दूसरा कमरा में जो हम कपड़ा बदल लेब तब आईहे " सुगना ने एक बार फिर आवाज लगाई..


सुगना ने जो कहा उसने सोनू के अरमानों पर पानी फेर दिया। कहां तो उसके दिमाग में सफेद तौलिया लपेटे उसकी बहन की अर्धनग्न तस्वीर घूम रही थी पर सुगना का यह व्यवहार सोनू को रास न आ रहा था।

अपनी बहन सुगना की बात टाल पाना सोनू के लिए कठिन था। वह मायूसी से उठकर सुगना के कमरे से बाहर जाने लगा और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। सुगना बाथरूम के दरवाजे की दरार से सोनू के उदास चेहरे को देख रही थी और मन ही मन उसके भावों को पढ़ मुस्कुरा रही थी।

नियति बड़ी बहन को अपने छोटे भाई को छेड़ते देख रही थी। सुगना को यह छेड़छाड़ महंगी पड़ेगी इसका अंदाजा न था।

स्त्रियों की छेड़छाड़ पुरुषों की उत्तेजना को बढ़ा देती हैं और संभोग के दौरान पुरुषों का आवेग दोगुना हो जाता है। जिन स्त्रियों को पुरुषों के आवेग का आनंद आता है वो अक्सर छेड़छाड़ कर अपने पुरुष साथी में जोश भरती रहती है और उसकी वासना का भरपूर आनंद लेती हैं ।

सुगना बाहर आई। उसने सोनू को जितना निराश किया था उतना ही खुश करने की ठान ली। उसने अपनी अटैची में से निकाल कर सोनू द्वारा गिफ्ट किया हुआ एक सुंदर घाघरा और चोली पहन लिया जो सोनू को बेहद पसंद था। यह घाघरा और चोली बेहद ही खूबसूरत था परंतु उस में कहीं भी जड़ी बूटी का काम न था हाथ की कढ़ाई से रेशम के कपड़े पर की गई सजावट से लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत बन गया था। वह कतई रात में पहन कर सोने योग्य न था परंतु उसे पहनकर सोया अवश्य जा सकता था। सुगना को भी पता था ये वस्त्र ज्यादा देर उसका साथ न देंगे। पर अपने भाई सोनू को खुश करना उसकी प्राथमिकता बन चुकी थी।


सुगना वह यह बात भली-भांति जानती थी कि लहंगा और चोली में उसकी मादकता कई गुना बढ़ जाती है कमर और पेट के कटाव खुलकर दिखाई पड़ते हैं और चूचियां और भी खूबसूरत हो जाती हैं।

ऐसी ही लहंगा चोली में सुगना ने न जाने कितने अनजान मर्दो के लंड में उत्तेजना भरी थी परंतु आज सुगना अपने छोटे भाई पर ही कहर ढाने का मन बना चुकी थी।

अपनी कटीली कमर पर घागरे का नाडा बांधते हुए उसने सोनू को आवाज दी…

"सोनू बाबू भीतर आ जा"

सुगना की आवाज की मिठास ने सोनू के अवसाद को कुछ हद तक खत्म कर दिया।

सोनू ने कमरे का दरवाजा खोला और हाथ में एक कटोरी लिए कमरे के अंदर आ गया अपनी बड़ी बहन सुगना को देखकर उसका मुंह खुला रह गया । कमरे में सुगना ने दो मोमबत्तियां जला दी थी…और कमरे में लगी कृत्रिम ट्यूब लाइट को बंद कर दिया था। मोमबत्ती की पीली रोशनी में सुगना का चेहरा कुंदन की भांति दमक रहा था। कमरे में इत्र की खुशबू बिखरी हुई थी और स्वयं सुगना की मादक सुगंध मन मोह लेने वाली थी। सुगना की कामुक काया रति की भांति उसे आमंत्रित कर रही थी।

"अरे तैयार काहे हो गईल बाड़ू…. कहा के तैयारी बा …"

"इतना रात में के कहा जाई "

"तब तब काहे इतना तैयार भईल बाड़ू"

सुखना क्या जवाब देती कि वह क्यों तैयार हुई है। सुगना के पास कोई उत्तर न था और जब उत्तर ना हो तो प्रश्न के उत्तर में प्रश्न पूछना ही एकमात्र विकल्प था जिसमे सुगना माहिर थी।


"हाथ में कटोरी काहे ले ले बाड़ा"

"तोहरे खातिर गर्म तेल ले आईल बानी अपना चोटवा पर लगा ला"

सोनू अब तक सुगना के करीब आ चुका था। सुगना ने सोनू द्वारा लाए गए गर्म तेल में अपनी उंगलियां डूबायीं और अचानक ही उसने अपना हाथ बाहर खींच लिया

"बाप रे कितना गर्म बा लगाता हाथ जल गईल"

सुगना अपने हाथों को बार-बार झटक कर अपनी पीड़ा को कम करने का प्रयास करने लगी। सोनू ने स्वयं भी कटोरी में रखे तेल पर अपनी उंगलियां डाली तेल गर्म तो जरूर था पर इतना भी नहीं उससे हाथ जल जाए परंतु सुगना कोमल थी। सोनू ने सुगना की त्वरित प्रतिक्रिया पर यकीन कर लिया और सुगना की हथेलियों को अपने हाथ में लेकर फूंक फूंक कर उसके दर्द को कम करने का प्रयास करने लगा। सुगना सोनू के चेहरे को देख रही थी और उसके मन में सोनू के लिए प्यार उमड़ रहा था।

अचानक ही सुगना खिलखिला कर हंसने लगी..

सोनू सुगना के चेहरे को भौचक होकर देख रहा था उससे समझ ही नहीं आ रहा था कि सुगना क्या कर रही है।


सुगना ने अपने उंगलियों में लगा तेल सोनू के मजबूत सीने को घेरी हुई सफेद बनियान पर पोछ दिया और बोली…

"अरे बाबू जलल नईखे…"

सोनू एक बार फिर सुगना के मजाक से थोड़ा दुखी हुआ था परंतु सुगना की खिलखिलाहट ने उसके सारे अवसाद मिटा दिए और उसकी उम्मीदों और कल्पनाओं को एक नई दिशा दे दी। सोनू भी थोड़ा वाचाल हुआ

"दीदी अब तू बदमाशी मत कर….. चल पेट के बल लेट जा हम तेल लगा देत बानी"

सोनू ने जो कहा था उसके आगे के घटनाक्रम को सुगना ने एक ही पल में अपने दिमाग में सोच लिया। किसी जवान मर्द द्वारा किसी युवती को कमर पर तेल लगाना आगे किस रूप में परिणित हो सकता था इसका अंदाज सुगना को बखूबी था। सूरज के जन्म के बाद सरयू सिंह ने जब-जब सुगना के शरीर की मालिश की थी अंत सुखद रहा था और चूचियों का अंतिम मसाज सरयू सिंह के वीर्य से ही हुआ था। सुगना की सांसे गति पकड़ने लगी। वह सोनू को मना भी नहीं करना चाहती थी परंतु अचानक..इस तरह…

इससे पहले कि सुगना कुछ कहती सोनू ने तकिया व्यवस्थित कर सुगना को कंधे से पकड़कर उसे बिस्तर पर लिटाने लगा…

"अच्छा रूक रूक लेटत बानी" सुगना ने मन में उमड़ रही भावनाओं पर काबू पाते हुए कहा…आखिरकार सुगना बिस्तर पर पेट के बल लेट चुकी थी।

अपने शरीर के अगले भाग को अपनी कोहनी से सहारा देते हुए सुगना ने अपनी चुचियों को सपाट होने से बचा लिया था। सुगना का पेट बिस्तर से सटा हुआ था और नितंब उभर कर सोनू को आकर्षित कर रहे थे।

घागरे के अंदर सुगना की मांसल और पुष्ट जांघें अपने आकार का प्रदर्शन कर रही थी। केले के तने जैसी खूबसूरत और चिकनी जांघें सुगना के लहंगे के पीछे छुपी हुई सोनू को ललचा रही थीं।

सुगना ने अपने पैरों को घुटने से मोड़ कर ऊपर किया हुआ था और उसके पैर नग्न होकर सोनू को उसकी चमकती दमकती गोरी त्वचा का एहसास करा रहे थे ।

पैरों में बंधी हुई पायल नीचे फिसल कर सुगना की पिंडलियों पर फंसी हुई थी और पैर के पंजों और एड़ी में लगा हुआ आलता सुगना के गोरे गोरे पैरों को और खूबसूरत बना रहा था।

सोनू एक टक अपनी बहन की खूबसूरती को देखे जा रहा था। घागरे के ऊपर और चोली के नीचे पीठ का वह भाग सबसे ज्यादा मादक था। पेट से कमर तक आते समय जो कमर का कटाव था वह अत्यंत मादक था सोनू उसे अपने दोनों हाथों से पकड़ने को मचल गया।


यही वह कटाव था जिसे वह अपने दोनों हाथों से पकड़ लाली को डॉगी स्टाइल चोदा करता था। लाली की जगह उसी अवस्था में अपनी बड़ी बहन सुगना की कल्पना कर सोनू का लंड उछलने लगा .. अचानक सुगना ने कहा

"कहां देखत बाड़े आपन आंख बंद कर …और जल्दी लगाव .. तोर तेल ठंडा हो जाए…" सोनू ने सचमुच अपनी आंखें बंद कर ली… अपने हाथों पर तेल लिया और सुगना की कमर के ठीक ऊपर अपनी बहन की गोरी और चिकनी कमर पर अपनी उंगलियां फिराने लगा…उसका ध्यान बार-बार सुगना की कमर पर बंधे उस नाडे की गांठ पर जा रहा था जिसने सुगना के घाघरे को सहारा दिया हुआ था.. घागरे की सुनहरी रस्सी के आखिरी छोर पर दो खूबसूरत कपड़े के फूल लगे हुए थे जो बरबस ही सोनू का ध्यान खींच रहे थे..

सोनू की मजबूत उंगलियों को अपनी कमर पर महसूस कर सुगना के शरीर में एक करंट सा दौड़ गया जिस स्थान पर सोनू ने सुगना को छुआ था वह घागरे से दो-तीन इंच ऊपर था । सोनू हल्के हल्के हाथों से सुगना की मालिश करने लगा परंतु उसकी उंगली का पिछला भाग बार-बार सुगना के घाघरे से टकरा जाता…

"हमरा कपड़ा में तेल मत लगाईहे ..देख के तेल लगाऊ" सुगना ने अपनी गर्दन घुमा कर सोनू को कनखियों से देखते हुए बोली..

सोनू को मौका मिल गया उसने अपनी बहन के आदेश मैं छुपी सारगर्भित बात "देख के तेल लगाव" समझ ली और अपनी आंखे एक बार फिर खोल लीं। उसने बिना कुछ कहे सुगना के घागरे की के नाडे के अंत में लगे फूल को पकड़ा और उसे होले से खींच दिया.. सुगना के घाघरे की गांठ खुल गई….

सुगना ने अपना चेहरा तकिए में गड़ा लिया और अपने हृदय की धड़कन को काबू में करने की कोशिश करने लगी। उधर सुगना से कोई प्रतिरोध ना पाकर सोनू बाग बाग हो गया उसने अपनी हथेलियों में थोड़ा और तेल लिया और सुगना की कमर पर लगाने लगा धीरे-धीरे सोनू की उंगलियों का दायरा बढ़ता गया।


अपना कसाव त्याग चुका घागरा धीरे-धीरे नीचे आ रहा था। शायद अब वह सुगना के नितंबों को आवरण देने में नाकामयाब हो रहा था और सुगना के भाई सोनू के इशारे पर वह सुगना की खूबसूरत को धीरे-धीरे और उजागर कर रहा था।

नितंबों के बीच की घाटी की झलक सोनू को दिखाई पढ़ गई। उसने एक पल के लिए अपनी उंगलियां उसी जगह रोक ली…. और नितंबों के बीच गहरी घाटी को अंदाजने लगा….

अचानक सोनू ने कुछ सोचा और कटोरी से अपनी अंजुली में तेल लिया और उसे अपने दोनों हाथ पर मल लिया।


अब तक तो सोनू की उंगलियां ही सुगना की कमर पर तेल लगा रही थी परंतु अब सोनू ने अपने दोनों हाथों से सुगना की कमर पर मालिश करनी शुरू कर दी कमर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक उसकी हथेलियां घूमने लगी सोनू अपने दबाव को नियंत्रित कर सुगना को भरपूर सुख देने की कोशिश कर रहा था और निश्चित ही सुगना सोनू के स्पर्श और प्यार भरी मालिश का आनंद उठा रहीं थी।

सोनू की हथेलियों ने अपना मार्ग बदला और अब एक हथेली सुगना की पीठ से कमर की तरफ आ रही थी दूसरी सुगना के नितम्बो की तरफ से कमर की ओर..

हर बार जब दोनों हथेलियां कमर से हटकर पीठ और नितंबों की तरफ जातीं और सुगना का घाघरा और नीचे खिसक जाता एवं नितंबों का कुछ और भाग उजागर हो जाता। सोनू को उसकी मेहनत का फल मिल रहा था।


सुगना के चांद रूपी नितंब घागरे के ग्रहण से धीरे-धीरे बाहर आ रहे थे।

सोनू की हथेलियों के दबाव से नितंब हल्के हल्के हिल रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे किसी फूले हुए गुब्बारे पर सोनू अपने हाथ फेर रहा हो…

कुछ ही देर में घाघरा नितंबों के नीचे तक आ चुका था उसे और नीचे करना संभव न था। सुगना के नितंब पूर्णमासी की चांद की तरह दमक रहे थे। घाघरे का आगे का हिस्सा सुगना के पेट से दबा हुआ था । हल्के हल्के हाथों से सोनू ने अपनी बहन के दोनों नितंबों को तो अनावृत कर लिया था परंतु जांघों के जोड़ तक पहुंचते-पहुंचते घागरा वापस अपना प्रतिरोध दिखाने लगा था।

ऐसा लग रहा था जैसे वह सोनू की हथेलियों को एक आक्रांता की भांति देख रहा था और अब अपनी मालकिन की सबसे ख़ूबसूरत बुर को अनावृत होने से बचाना चाह रहा था।


उधर सुगना की सांसे तेज चल रही थी और चेहरा खून के प्रवाह और उत्तेजना दोनों के योगदान से पूरी तरह लाल हो चुका था। उसके कमर और नितंबों पर सोनू जिस प्रकार से मालिश कर रहा था वह उसे बेहद आरामदायक लग रहा था…सुगना सोच रही थी..कितनी समानता थी सरयू सिंह और सोनू में…

दोनों की मालिश का अंदाज एक जैसा ही था सुगना को यह मालिश बेहद पसंद आती थी। जब वह छोटी थी उसकी मां पदमा भी ऐसे ही मालिश किया करती थी.. एक हथेली पीठ से और दूसरी जांघों से मालिश करते हुए कमर की तरफ आतीं और नितंबों के ठीक ऊपर दोनो हथेलियां मिल जाती। नितंब थिरक उठते…

सुगना का मन मचल गया उसने अपनी नग्नता के एहसास को दरकिनार कर अपना पेट बिस्तर से थोड़ा सा ऊपर उठा लिया। सोनू और सुगना एक दूसरे की भावनाओं को बखूबी समझते थे जैसे ही सुगना ने अपना पेट उठाया सोनू ने घाघरा और नीचे खींच लिया एक ही झटके में सुगना का घागरा उसकी जांघों तक आ चुका था जब घागरे की मालकिन ने ही उसका साथ छोड़ दिया वह क्यों कर अपना प्रतिरोध दिखाता।

सोनू ने अपनी अवस्था बदली और अब उसकी हथेलियां सुगना की जांघों से होती हुई कमर की तरफ आने लगी और दूसरी पीठ से होती नितंबों की तरफ।

सुगना की दाहिनी हथेली तो जैसे स्वर्ग में घूम रही थी। सुगना की पुष्ट जांघों पर फिसलते हुए जब वह नितंबों से टकराती सोनू आनंद दोगुना हो जाता। उतर सुगना अपनी बुर सिकोड़ लेती। मन ही मन घबराती कहीं सोनू की उंगलियां इधर-उधर भटक गईं तो?


सोनू कभी दाहिने नितंब को मसलता हुआ ऊपर आता कभी बाए नितंब को। और कभी-कभी तो दोनों नितंबों को अपनी हथेलियों से छूता हुआ उस गहरी घाटी का मुआयना करता…

सुगना के खूबसूरत नितंबों की कल्पना सोनू ने न जाने कितनी मर्तबा की थी और आज वह अनावृत रूप में सोनू के समक्ष उपस्थित थे। सोनू उनके अद्भुत स्पर्श सुख में खोया हुआ था। वह नितंबों के बीच उस गहरी घाटी के और अंदर उतरना चाहता था। धीरे-धीरे उसकी उंगलियां सुगना के नितंबों के बीच उतरने लगी। सोनू के लिए यह संभव न था कि वह अपनी बड़ी-बड़ी हथेलियों से सुगना के नितंबों को पूरी तरह पकड़ पाता परंतु उसकी कोशिश में सोनू की उंगलियां सुगना की प्रतिबंधित छेद की तरफ पहुंचने लगी…

सुगना ने एहसास कर लिया की उसके भाई की उंगलियां कभी भी प्रतिबंधित क्षेत्र से छू सकती हैं सुगना ने बोला…

" सोनू बाबू अब हो गइल छोड़ द…"

कुछ निर्देश अस्पष्ट होते है.. सुगना की आवाज मालिश रोकने का निर्देश दे रही थी परंतु उसकी आवाज में जो कशिश थी और जो सुख था वह सोनू को अपनी बहन को और सुख देने के लिए प्रेरित कर रहा था।

"दीदी अब थोड़ा सा ही तेल बाचल बा ..दे पैरवा पर लगा देत बानी.."

सुगना ने सोनू को अपना मौन समर्थन दे दिया और अब बारी थी सुगना के घाघरे को पूरी तरह बाहर आने की। सोनू ने सुगना की घाघरे को पकड़कर बाहर आने का इशारा किया और सुगना ने अपने घुटने बारी-बारी से ऊपर उठा लिए…

और सुगना का घाघरा आखिरकार बाहर आ गया अपनी मल्लिका को अर्द्ध नग्न देखकर सोनू बाग बाग हो गया ….

सोनू सुगना के किले के गर्भ गृह के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था और उसने अपना सर सुगना के पैरों की तरफ झुका कर जांघों के बीच झांकने की कोशिश की..

सुगना की रानी होंठो पर प्रेमरस लिए सोनू का इंतजार कर रही थी…..

यद्यपि अभी भी सुगना की चूचियां चोली में कैद थी परंतु सोनू को पता था वह सुगना की रानी उसका इंतजार कर रही है और सुगना के सारे प्रहरी एक एक कर उसका साथ छोड़ रहे थे…

शेष अगले भाग में…
बहुत ही सुन्दर लाजवाब और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है
सुगना को चोट लगना सोनू के द्वारा तेल की मालिश करना फिर से एक बार मिलन की ओर बढ़ रहे हैं दोनो के बीच जिझक और शर्म शायद इस मिलन के बाद मिट जाते और आगे की जिन्दगी का खुल कर मजा ले
 
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