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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Ajju Landwalia

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Lovely Anand Bhai,

Aage ke updates kab se likhna shuru karenge aap????
 

Jeet3

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अधूरी कहानी अधूरा भाग १२६

सुगना ने जिस संजीदगी से सोनू से प्रश्न पूछा था उसका सच उत्तर दे पाना कठिन था आखिर सोनू किस मुंह से कहता है कि वह अपनी बड़ी बहन की बुर देखना चाह रहा है।

सोनू को कोई उत्तर न सूझ रहा था आखिरकार वह अपने हाथ जोड़कर घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया..उसका चेहरा सुगना की नाभि की सीध में आ गया…और सीना सुगना के नंगे घुटनों से टकराने लगा।

सोनू अपनी आंख बंद किए हुए था… सुगना से सोनू की अवस्था देखी न गई उसने अपने हाथ अपनी जांघों के बीच से हटाए और सोनू सर को नीचे झुकाते हुए अपनी नंगी जांघों पर रख लिया…सोनू का सर सुगना के वस्ति प्रदेश से टकरा रहा था और सोनू की नाक सुगना के दोनो जांघो के मध्य बुर से कुछ दूरी पर उसकी मादक और तीक्ष्ण खुशबू सूंघ रही थी.. सोनू की गर्म सांसे सुगना की जांघों के बीच के बीच हल्की हल्की गर्मी पैदा कर रही थी। सुगना सोनू के सर को सहलाते हुए बोली…


"ए सोनू ते बियाह कर ले…"


अब आगे..

सोनू चुप रहा अपनी बड़ी बहन के मुंह से यह बात वह कई बार सुन चुका था

"सोनू यदि ते ब्याह ना करबे लोग दस सवाल पूछी.."

"काहे सवाल करी.. ? सरयू चाचा भी त ब्याह नईखे कईलन "

"ओह टाइम के बात और रहे ते नौकरी करत बाड़े आतना पढल लिखल बाड़े…आतना सुंदर देह बा बियाह ना करबे तो लोग तोरा के नामर्द बोली ई हमारा अच्छा ना लागी"

सोनू सुगना की बात समझ ना पाया उसने मासूमियत से पूछा

"का बोली हमरा के..?"

"नपुंसक भी कह सकेला.. लोग के जबान दस हांथ के होला केहू कुछ भी कह सकेला"

" नपुंसक? " सोनू मुस्कुराने लगा

"दीदी तू ही बताव का हम नपुंसक हई?" सोनू ने सुगना की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा जैसे कल की गई मेहनत का पारितोषिक मांग रहा हो..

सुगना ने उसके गालों पर मीठी चपत लगाई और एक बार फिर उसका सर अपनी जांघों के बीच रखकर बोली..

"सोनू बाबू ई बात हम जानत बानी और लाली जानत बिया लेकिन ब्याह ना कर ब त लोग शक करी"

"दीदी चाहे तो कुछ भी कह अब तोहरा के छोड़ के हमारा केहू ना चाही…अब हमार सब कुछ तू ही बाड़ू"

"अरे वाह हमरा भीरी अइला त हमार हो गईला और लाली के भीरी जयबा तब…?"

सोनू निरुत्तर हो गया लाली उसकी प्रथम प्रेमिका थी और सुगना की तरह शुरुवात में उसने भी बड़ी बहन की भूमिका बखूबी निभाई थी… और फिर एक प्रेमिका का भी प्यार दिया था..सोनू को लाली की उस सामान्य सी चुदी चुदाई बुर ने भी इतना सुख दिया था जिसे भुलाना कठिन था…

जिस तरह भूख लगने पर गांव की गर्म रोटी भी उतनी ही मजेदार लगती है जितनी शहर का बटर नॉन…

सुगना बटर नॉन थी…और लाली गर्म रोटी..

"लाली भी हमरा अच्छा लागेली पर आपन आपन होला तू हमर सपना हाऊ "

"त का हमारा से बियाह करबा?" सुगना ने जिस तरह से प्रश्न पूछा था उसका उत्तर हा में देना कठिन था।

सोनू का मूड खराब हो गया… वह चुप हो गया परंतु उसके तेजस्वी चेहरे पर उदासी छा गई…

सुगना ने आगे झुक कर उसके माथे को चूमा और बोली…

"ई दुनिया यदि फिर से चालू होखित त हम तहरे से बियाह कर लेती पर अभी संभव नईखे…"

सोनू भी हकीकत जानता था सुगना उससे बेहद प्यार करती है यह बात वह समझ चुका था परंतु जो सम्मान सुगना के परिवार ने समाज में प्राप्त किया हुआ था उसे वह यूही बिखेर देना नहीं चाहती थी।

"त दीदी ब्याह के बाद छोड़ द…हम बियाह ना करब… हमरा कुछ ना चाहि हमरा तू मिल गईलू पूरा दुनिया मिल गईल " सोनू ने बेहद प्यार से सुगना की नंगी जांघो पर अपनी नाक रगड़ी और जांघों के बीच चूमने की कोशिश की परंतु सुगना की जांघें सटी हुई थीं बुर तक होठों का पहुंचना नामुमकिन था।

सुगना ने अपनी जांघों को थोड़ा सा खोला और सोनू के नथुने एक बार फिर सुगना की बुर की मादक खुशबू से भर गए सोनू मदहोश होने लगा तभी सुगना ने कहा

" रुक जो जब तोरा केहू से ब्याह नईखे करे के त लाली से कर ले"

"का कहत बाडू ? लाली दीदी हमरा से चार-पांच साल बड़ हई और बाल बच्चा वाला भी बाड़ी सब लोग का कहीं? " सुगना क्या चाहती थी सोनू समझ ना पाया।

" मंच पर त बड़ा-बड़ा भाषण देत रहला। लाली के साल दू साल से अपन बीवी बनावले बड़ा कि ना? दिन भर तोहार इंतजार करेले बनावेले खिलावेले और गोदी में सुतावेले …. अब एकरा से ज्यादा केहू के मेहरारू का दीही?"

सोनू को सुगना की बात समझ आ रही थी। लाली से विवाह कर वह समाज के प्रश्नों को समाप्त कर सकता था और लाली को पत्नी बनाकर सुगना के करीब और करीब रह सकता था। यदि कभी सुगना और उसके संबंध लाली जान भी जाती तो भी कोई बवाल नहीं होना था। आखिर पहली बार लाली ने ही उसे सुगना के समीप जाने की सलाह दी थी….

"दीदी आज तक तू ही रास्ता देखवले बाड़ू.. तू जो कहबू हम करब बस हम एक ही बात तोहरा से बार-बार कहब हमरा के अपना से दूर मत करीह… हमार सब कुछ तोहरा से जुडल बा…." इतना कहकर सोनू ने अपनी होंठ और नाक सुगना की जांघों के बीच रगड़ने की कोशिश की और उसकी बुर से आ रही भीनी भीनी खुशबू अपने नथुनों में भरने की कोशिश की। सोनू की हरकत से सुगना सिहर उठी और बेहद प्यार से सोनू को सहलाते हुए बोली..

" जितना तू प्यार हमरा से करेल उतना ही हम भी… तू लाली के से ब्याह करले बाकी …..हम त तहार हइये हई

"लाली दीदी मनीहें?"

"काहे ना मन मनिहें उनकर त दिन लौट आई…बेचारी कतना सज धज के रहत रहे…पहिले"

सोनू के जेहन में लाली की तस्वीरें घूमने गई कितनी खूबसूरत लगती थी लाली कि जब वह नई नई शादी करके अपने मायके आई थी सोनू और लाली के संबंध उसी दौरान भाई-बहन की मर्यादा पारकर हंसी ठिठोली एक दूसरे को छेड़ने के अंदाज में आ चुके थे…

रंग-बिरंगे वस्त्र स्त्रियों की खूबसूरती को दोगुना कर देते हैं …अपने मन में सुहागन और सजी धजी लाली को याद कर उसका लंड तन गया जैसे वह स्वयं लाली को अपनाने के लिए तैयार हो। मन ही मन सोनू ने सुगना की बात मानने का निर्णय कर लिया पर संदेह अब भी था। उसने पूछा

"और घर परिवार के लोग?"

"ऊ सब हमरा पर छोड़ दे" सुगना ने पूरी गंभीरता से सोनू के बाल सहलाते हुए कहा..

सुगना को गंभीर देख सोनू ने माहौल सहज करने की सोची और मुस्कुराते हुए पूछा…

"अच्छा दीदी ई बताव दहेज में का मिली…?"

सोनू की बात सुन सुगना भी मुस्कुरा उठी …और उसने अपनी दोनों जांघें खोल दीं…और उसकी करिश्माई बुर अपने होंठ खोले सोनू का इंतजार कर रही थी।

सुगना अपना उत्तर दे चुकी थी और सोनू को जो दहेज में प्राप्त हो रहा था इस वक्त वही उसके जीवन में सर्वस्व था…जिसे देखने चूमने पूचकारने और गचागच चोदने के लिए सोनू न जाने कब से बेचैन था.. वो करिश्माई बुर उसकी आंखो के ठीक सामने थी…


सोनू का चेहरा उसकी बुर् के समीप आ गया था। सोनू से रहा न गया उसके होंठ सुगना की बुर की तरफ बढ़ने लगे। सुनना यह जान रही थी कि यदि उसने सोनू को न रोका तो उसके होंठ उसकी बुर तक पहुंच जाएंगे…. हे भगवान! सुनना पिघल रही थी… वह सोनू के सर को पकड़कर बाहर की तरफ धकेला चाहती थी..उसने अभी स्नान भी न किया था…अपने भाई को गंदी बुर चूसने के लिए देना….सुगना ने अपनी जांघें बंद करने की सोची… परंतु उसके अंदर की वासना ने उसे रोक लिया..

सुगना की बुर के होंठ सोनू की नाक से टकरा गए और सुगना मदहोश होने लगी.... अपने पैर उसने घुटनों से मोड़ दिए और उसे ऊंचा करने लगी.. तभी न जाने कब सोनू के सर ने सुगना के वस्ति प्रदेश पर दबाव बनाया और सुगना बिस्तर पर पीठ के बल आ गई दोनों जांगे हवा में आ चुकी थी। और सोनू का चेहरा उसकी जांघों के बीच।

सोनू के होठों में जैसे ही सुगना की बुर के होठों को चूमा सुगना तड़प उठी….

" ए सोनू मत कर अभी साफ नईखे " सुगना को बखूबी याद था की उसकी बुर से लार टपक रही थी ….

परंतु सोनू कहां मानने वाला था उसे यकीन न था कि वह अपनी बहु प्रतीक्षित और रसभरी बुर को इतनी जल्दी अपने होठों से छू पायेगा।


उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह साफ थी या ….नहीं उसे अपनी बहन का हर अंग प्यारा था उसकी बुर …. आह .. उससे देखने और चूमने को तो सोनू न जाने कब से तड़प रहा था।

सोनू ने अपनी जीभ सुगना की बुर् के होठों पर फिरा दी और सुगना की प्रेम रस से भरी हुई चाशनी सोनू के लबों पर आ गई… सुगना तड़प कर रह गई… उसने सोनू के सर को एक बार फिर धकेलने की कोशिश की परंतु सोनू के मुंह में रस लग चुका था उसकी जीभ और गहराई से उस चासनी को निकालने का प्रयास करने लगी। जब सोनू ने सुगना की बुर देखने के लिए अपना चेहरा हटाने की कोशिश की सोनू और सुगना के होठों के बीच प्रेम रस से 3 तार की चाशनी बन गई सोनू मदहोश हो गया….

बुर को देखने से ज्यादा सोनू ने उसे चूमने को प्राथमिकता दी और एक बार फिर उसने अपने होंठ अपनी बड़ी बहन की बुर से सटा दिए।


सुगना अपने छोटे भाई द्वारा की जा रही इस हरकत से शर्मसार भी थी और बेहद उत्तेजित भी…उसने अपने पैर उठाकर सोनू के कंधे पर रख दिए और अपनी एड़ी से सोनू की पीट हल्के हल्के वार करने लगी। जैसे-जैसे सोनू अपनी जीभ और होठों से उसकी बुर की गहराइयों में उत्तेजना भरता सुगना अपने पैर उसकी पीठ पर पटकती….

"ए सोनू बस अब ही गइल छोड़ दे.."

"अरे वाह दहेज काहे छोड़ दीं "

सोनू ने सर उठा कर सुगना की तरफ देखा जो खुद भी अपना सर ऊपर किए सोनू को अपनी जांघों के बीच देख रही थी।

नजरें मिलते ही सुगना शर्मा गई….

भाई बहन की अठखेलियां ज्यादा देर न चली। सोनू और सुगना के जननांग एक दूसरे से मिलकर धमाचौकड़ी मचाने लगे.. उनका खेल निराला था …

वैसे भी यह खेल इंसानों का सबसे प्रिय खेल है बशर्ते खेल खेलने वाले दोनों खेल खेलना जानते हो और विधाता ने उन्हें खुबसूरत और दमदार अंगों से नवाजा हो।

अगले दो तीन दिनों तक भाई बहन के बीच शर्मो हया घटती रही। सुगना चाह कर भी सोनू को खुलने से रोक ना पा रही थी वह उसके साथ अंतरंग पलों का आनंद लेना चाह रही थी पर वैचारिक नग्नता से दूर रहना चाहती थी परंतु सोनू हर बार पहले से ज्यादा कामुक होता और उसे चोदने से पहले और चोदते समय ढेरों बातें करना चाहता …सुगना को भी इन बातों से बेहद उत्तेजना होती और वह चाह कर भी सोनू को रोक ना पाती।

सुख के पल जल्दी बीत जाते हैं और सोनू और सुगना का मिलन भी अब खत्म होने वाला था लखनऊ जाकर डॉक्टर से चेकअप कराना अनिवार्य हो गया था डॉक्टर की नसीहत जिस प्रकार दोनों भाई बहन ने पालन की थी उसने दोनों को पूरी तरह सामान्य कर दिया था।

सुगना और सोनू की जोड़ी देखने लायक थी जितने खूबसूरत माता-पिता उतनी ही खूबसूरत दोनों बच्चे ..

काश विधाता इस समय को यहीं पर रोक लेते …. पर यह संभव न था।

पर उनकी बनाई नियति ने सुगना की इस कथा पर अल्पविराम लगाने की ठान ली…

सुगना और सोनू को एक दूसरे की बाहों में तृप्त होते देख नियति उन्हें और छेड़ना नहीं चाह रही थी….


मध्यांतर

साथियों मैं समय के आभाव के कारण यह कहानी अस्थायी रूप से बंद कर रहा हूं …. अपने फुर्सत के पलों में मैं इस कहानी को और आगे लिखता रहूंगा परंतु आप सबको और इंतजार नहीं कराऊंगा जब कहानी के अगले कई हिस्से पूरे हो जाएंगे तभी मैं वापस इस कहानी पर अपडेट पोस्ट करूंगा तब तक के लिए अलविदा।

आप सबका साथ आनंददायक रहा.....दिल से धन्यवाद.....
 

Jeet3

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अग्रिम शुभकामनाएं,,बहुत अच्छा था अबतक का सफर
 

Mishra8055

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अधूरी कहानी अधूरा भाग १२६

सुगना ने जिस संजीदगी से सोनू से प्रश्न पूछा था उसका सच उत्तर दे पाना कठिन था आखिर सोनू किस मुंह से कहता है कि वह अपनी बड़ी बहन की बुर देखना चाह रहा है।

सोनू को कोई उत्तर न सूझ रहा था आखिरकार वह अपने हाथ जोड़कर घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया..उसका चेहरा सुगना की नाभि की सीध में आ गया…और सीना सुगना के नंगे घुटनों से टकराने लगा।

सोनू अपनी आंख बंद किए हुए था… सुगना से सोनू की अवस्था देखी न गई उसने अपने हाथ अपनी जांघों के बीच से हटाए और सोनू सर को नीचे झुकाते हुए अपनी नंगी जांघों पर रख लिया…सोनू का सर सुगना के वस्ति प्रदेश से टकरा रहा था और सोनू की नाक सुगना के दोनो जांघो के मध्य बुर से कुछ दूरी पर उसकी मादक और तीक्ष्ण खुशबू सूंघ रही थी.. सोनू की गर्म सांसे सुगना की जांघों के बीच के बीच हल्की हल्की गर्मी पैदा कर रही थी। सुगना सोनू के सर को सहलाते हुए बोली…


"ए सोनू ते बियाह कर ले…"


अब आगे..

सोनू चुप रहा अपनी बड़ी बहन के मुंह से यह बात वह कई बार सुन चुका था

"सोनू यदि ते ब्याह ना करबे लोग दस सवाल पूछी.."

"काहे सवाल करी.. ? सरयू चाचा भी त ब्याह नईखे कईलन "

"ओह टाइम के बात और रहे ते नौकरी करत बाड़े आतना पढल लिखल बाड़े…आतना सुंदर देह बा बियाह ना करबे तो लोग तोरा के नामर्द बोली ई हमारा अच्छा ना लागी"

सोनू सुगना की बात समझ ना पाया उसने मासूमियत से पूछा

"का बोली हमरा के..?"

"नपुंसक भी कह सकेला.. लोग के जबान दस हांथ के होला केहू कुछ भी कह सकेला"

" नपुंसक? " सोनू मुस्कुराने लगा

"दीदी तू ही बताव का हम नपुंसक हई?" सोनू ने सुगना की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा जैसे कल की गई मेहनत का पारितोषिक मांग रहा हो..

सुगना ने उसके गालों पर मीठी चपत लगाई और एक बार फिर उसका सर अपनी जांघों के बीच रखकर बोली..

"सोनू बाबू ई बात हम जानत बानी और लाली जानत बिया लेकिन ब्याह ना कर ब त लोग शक करी"

"दीदी चाहे तो कुछ भी कह अब तोहरा के छोड़ के हमारा केहू ना चाही…अब हमार सब कुछ तू ही बाड़ू"

"अरे वाह हमरा भीरी अइला त हमार हो गईला और लाली के भीरी जयबा तब…?"

सोनू निरुत्तर हो गया लाली उसकी प्रथम प्रेमिका थी और सुगना की तरह शुरुवात में उसने भी बड़ी बहन की भूमिका बखूबी निभाई थी… और फिर एक प्रेमिका का भी प्यार दिया था..सोनू को लाली की उस सामान्य सी चुदी चुदाई बुर ने भी इतना सुख दिया था जिसे भुलाना कठिन था…

जिस तरह भूख लगने पर गांव की गर्म रोटी भी उतनी ही मजेदार लगती है जितनी शहर का बटर नॉन…

सुगना बटर नॉन थी…और लाली गर्म रोटी..

"लाली भी हमरा अच्छा लागेली पर आपन आपन होला तू हमर सपना हाऊ "

"त का हमारा से बियाह करबा?" सुगना ने जिस तरह से प्रश्न पूछा था उसका उत्तर हा में देना कठिन था।

सोनू का मूड खराब हो गया… वह चुप हो गया परंतु उसके तेजस्वी चेहरे पर उदासी छा गई…

सुगना ने आगे झुक कर उसके माथे को चूमा और बोली…

"ई दुनिया यदि फिर से चालू होखित त हम तहरे से बियाह कर लेती पर अभी संभव नईखे…"

सोनू भी हकीकत जानता था सुगना उससे बेहद प्यार करती है यह बात वह समझ चुका था परंतु जो सम्मान सुगना के परिवार ने समाज में प्राप्त किया हुआ था उसे वह यूही बिखेर देना नहीं चाहती थी।

"त दीदी ब्याह के बाद छोड़ द…हम बियाह ना करब… हमरा कुछ ना चाहि हमरा तू मिल गईलू पूरा दुनिया मिल गईल " सोनू ने बेहद प्यार से सुगना की नंगी जांघो पर अपनी नाक रगड़ी और जांघों के बीच चूमने की कोशिश की परंतु सुगना की जांघें सटी हुई थीं बुर तक होठों का पहुंचना नामुमकिन था।

सुगना ने अपनी जांघों को थोड़ा सा खोला और सोनू के नथुने एक बार फिर सुगना की बुर की मादक खुशबू से भर गए सोनू मदहोश होने लगा तभी सुगना ने कहा

" रुक जो जब तोरा केहू से ब्याह नईखे करे के त लाली से कर ले"

"का कहत बाडू ? लाली दीदी हमरा से चार-पांच साल बड़ हई और बाल बच्चा वाला भी बाड़ी सब लोग का कहीं? " सुगना क्या चाहती थी सोनू समझ ना पाया।

" मंच पर त बड़ा-बड़ा भाषण देत रहला। लाली के साल दू साल से अपन बीवी बनावले बड़ा कि ना? दिन भर तोहार इंतजार करेले बनावेले खिलावेले और गोदी में सुतावेले …. अब एकरा से ज्यादा केहू के मेहरारू का दीही?"

सोनू को सुगना की बात समझ आ रही थी। लाली से विवाह कर वह समाज के प्रश्नों को समाप्त कर सकता था और लाली को पत्नी बनाकर सुगना के करीब और करीब रह सकता था। यदि कभी सुगना और उसके संबंध लाली जान भी जाती तो भी कोई बवाल नहीं होना था। आखिर पहली बार लाली ने ही उसे सुगना के समीप जाने की सलाह दी थी….

"दीदी आज तक तू ही रास्ता देखवले बाड़ू.. तू जो कहबू हम करब बस हम एक ही बात तोहरा से बार-बार कहब हमरा के अपना से दूर मत करीह… हमार सब कुछ तोहरा से जुडल बा…." इतना कहकर सोनू ने अपनी होंठ और नाक सुगना की जांघों के बीच रगड़ने की कोशिश की और उसकी बुर से आ रही भीनी भीनी खुशबू अपने नथुनों में भरने की कोशिश की। सोनू की हरकत से सुगना सिहर उठी और बेहद प्यार से सोनू को सहलाते हुए बोली..

" जितना तू प्यार हमरा से करेल उतना ही हम भी… तू लाली के से ब्याह करले बाकी …..हम त तहार हइये हई

"लाली दीदी मनीहें?"

"काहे ना मन मनिहें उनकर त दिन लौट आई…बेचारी कतना सज धज के रहत रहे…पहिले"

सोनू के जेहन में लाली की तस्वीरें घूमने गई कितनी खूबसूरत लगती थी लाली कि जब वह नई नई शादी करके अपने मायके आई थी सोनू और लाली के संबंध उसी दौरान भाई-बहन की मर्यादा पारकर हंसी ठिठोली एक दूसरे को छेड़ने के अंदाज में आ चुके थे…

रंग-बिरंगे वस्त्र स्त्रियों की खूबसूरती को दोगुना कर देते हैं …अपने मन में सुहागन और सजी धजी लाली को याद कर उसका लंड तन गया जैसे वह स्वयं लाली को अपनाने के लिए तैयार हो। मन ही मन सोनू ने सुगना की बात मानने का निर्णय कर लिया पर संदेह अब भी था। उसने पूछा

"और घर परिवार के लोग?"

"ऊ सब हमरा पर छोड़ दे" सुगना ने पूरी गंभीरता से सोनू के बाल सहलाते हुए कहा..

सुगना को गंभीर देख सोनू ने माहौल सहज करने की सोची और मुस्कुराते हुए पूछा…

"अच्छा दीदी ई बताव दहेज में का मिली…?"

सोनू की बात सुन सुगना भी मुस्कुरा उठी …और उसने अपनी दोनों जांघें खोल दीं…और उसकी करिश्माई बुर अपने होंठ खोले सोनू का इंतजार कर रही थी।

सुगना अपना उत्तर दे चुकी थी और सोनू को जो दहेज में प्राप्त हो रहा था इस वक्त वही उसके जीवन में सर्वस्व था…जिसे देखने चूमने पूचकारने और गचागच चोदने के लिए सोनू न जाने कब से बेचैन था.. वो करिश्माई बुर उसकी आंखो के ठीक सामने थी…


सोनू का चेहरा उसकी बुर् के समीप आ गया था। सोनू से रहा न गया उसके होंठ सुगना की बुर की तरफ बढ़ने लगे। सुनना यह जान रही थी कि यदि उसने सोनू को न रोका तो उसके होंठ उसकी बुर तक पहुंच जाएंगे…. हे भगवान! सुनना पिघल रही थी… वह सोनू के सर को पकड़कर बाहर की तरफ धकेला चाहती थी..उसने अभी स्नान भी न किया था…अपने भाई को गंदी बुर चूसने के लिए देना….सुगना ने अपनी जांघें बंद करने की सोची… परंतु उसके अंदर की वासना ने उसे रोक लिया..

सुगना की बुर के होंठ सोनू की नाक से टकरा गए और सुगना मदहोश होने लगी.... अपने पैर उसने घुटनों से मोड़ दिए और उसे ऊंचा करने लगी.. तभी न जाने कब सोनू के सर ने सुगना के वस्ति प्रदेश पर दबाव बनाया और सुगना बिस्तर पर पीठ के बल आ गई दोनों जांगे हवा में आ चुकी थी। और सोनू का चेहरा उसकी जांघों के बीच।

सोनू के होठों में जैसे ही सुगना की बुर के होठों को चूमा सुगना तड़प उठी….

" ए सोनू मत कर अभी साफ नईखे " सुगना को बखूबी याद था की उसकी बुर से लार टपक रही थी ….

परंतु सोनू कहां मानने वाला था उसे यकीन न था कि वह अपनी बहु प्रतीक्षित और रसभरी बुर को इतनी जल्दी अपने होठों से छू पायेगा।


उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह साफ थी या ….नहीं उसे अपनी बहन का हर अंग प्यारा था उसकी बुर …. आह .. उससे देखने और चूमने को तो सोनू न जाने कब से तड़प रहा था।

सोनू ने अपनी जीभ सुगना की बुर् के होठों पर फिरा दी और सुगना की प्रेम रस से भरी हुई चाशनी सोनू के लबों पर आ गई… सुगना तड़प कर रह गई… उसने सोनू के सर को एक बार फिर धकेलने की कोशिश की परंतु सोनू के मुंह में रस लग चुका था उसकी जीभ और गहराई से उस चासनी को निकालने का प्रयास करने लगी। जब सोनू ने सुगना की बुर देखने के लिए अपना चेहरा हटाने की कोशिश की सोनू और सुगना के होठों के बीच प्रेम रस से 3 तार की चाशनी बन गई सोनू मदहोश हो गया….

बुर को देखने से ज्यादा सोनू ने उसे चूमने को प्राथमिकता दी और एक बार फिर उसने अपने होंठ अपनी बड़ी बहन की बुर से सटा दिए।


सुगना अपने छोटे भाई द्वारा की जा रही इस हरकत से शर्मसार भी थी और बेहद उत्तेजित भी…उसने अपने पैर उठाकर सोनू के कंधे पर रख दिए और अपनी एड़ी से सोनू की पीट हल्के हल्के वार करने लगी। जैसे-जैसे सोनू अपनी जीभ और होठों से उसकी बुर की गहराइयों में उत्तेजना भरता सुगना अपने पैर उसकी पीठ पर पटकती….

"ए सोनू बस अब ही गइल छोड़ दे.."

"अरे वाह दहेज काहे छोड़ दीं "

सोनू ने सर उठा कर सुगना की तरफ देखा जो खुद भी अपना सर ऊपर किए सोनू को अपनी जांघों के बीच देख रही थी।

नजरें मिलते ही सुगना शर्मा गई….

भाई बहन की अठखेलियां ज्यादा देर न चली। सोनू और सुगना के जननांग एक दूसरे से मिलकर धमाचौकड़ी मचाने लगे.. उनका खेल निराला था …

वैसे भी यह खेल इंसानों का सबसे प्रिय खेल है बशर्ते खेल खेलने वाले दोनों खेल खेलना जानते हो और विधाता ने उन्हें खुबसूरत और दमदार अंगों से नवाजा हो।

अगले दो तीन दिनों तक भाई बहन के बीच शर्मो हया घटती रही। सुगना चाह कर भी सोनू को खुलने से रोक ना पा रही थी वह उसके साथ अंतरंग पलों का आनंद लेना चाह रही थी पर वैचारिक नग्नता से दूर रहना चाहती थी परंतु सोनू हर बार पहले से ज्यादा कामुक होता और उसे चोदने से पहले और चोदते समय ढेरों बातें करना चाहता …सुगना को भी इन बातों से बेहद उत्तेजना होती और वह चाह कर भी सोनू को रोक ना पाती।

सुख के पल जल्दी बीत जाते हैं और सोनू और सुगना का मिलन भी अब खत्म होने वाला था लखनऊ जाकर डॉक्टर से चेकअप कराना अनिवार्य हो गया था डॉक्टर की नसीहत जिस प्रकार दोनों भाई बहन ने पालन की थी उसने दोनों को पूरी तरह सामान्य कर दिया था।

सुगना और सोनू की जोड़ी देखने लायक थी जितने खूबसूरत माता-पिता उतनी ही खूबसूरत दोनों बच्चे ..

काश विधाता इस समय को यहीं पर रोक लेते …. पर यह संभव न था।

पर उनकी बनाई नियति ने सुगना की इस कथा पर अल्पविराम लगाने की ठान ली…

सुगना और सोनू को एक दूसरे की बाहों में तृप्त होते देख नियति उन्हें और छेड़ना नहीं चाह रही थी….


मध्यांतर

साथियों मैं समय के आभाव के कारण यह कहानी अस्थायी रूप से बंद कर रहा हूं …. अपने फुर्सत के पलों में मैं इस कहानी को और आगे लिखता रहूंगा परंतु आप सबको और इंतजार नहीं कराऊंगा जब कहानी के अगले कई हिस्से पूरे हो जाएंगे तभी मैं वापस इस कहानी पर अपडेट पोस्ट करूंगा तब तक के लिए अलविदा।

आप सबका साथ आनंददायक रहा.....दिल से धन्यवाद.....
 

Mishra8055

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Bhaut khub लवली भाई आप पूरी तन्मयता के साथ कहानी को लिख ले हमे इंतजार रहेगा ,आपकी लेखनी का गजब जादू है जिसमे हम सभी डूब जाते है .......
 

Mishra8055

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Bhaut khub लवली भाई आप पूरी तन्मयता के साथ कहानी को लिख ले हमे इंतजार रहेगा ,आपकी लेखनी का गजब जादू है जिसमे हम सभी डूब जाते है .......
अभी तक का सफर बहुत अच्छा रहा आगे भी रहेगा हम इंतजार करेगे .......
 

Saku12344

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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
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भाग 126 (मध्यांतर)
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