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Thriller एक सफेदपोश की....मौत!

Napster

Well-Known Member
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एक और नया रहस्य सामने आया है
रिया ने एसीपी राघवन के सामने कौनसी सच्चाई बयान कर दी
ये शशिकला का रोल भी बडा रहस्यमयी लग रहा है
पठाण ने ऐसा क्या किया है की सब उसको नमन कर रहे है
बहुत ही रोमांचकारी और रहस्यमयी अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

komaalrani

Well-Known Member
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अनपुटडाउनेबल और पेज टरनर ऐसी संज्ञा इसी प्रकार की कहानियों को दी जाती है, लेकिन संस्पेस, रोमांच और मर्डर मिस्ट्री के साथ साथ जिस तरह आप मानव मन के अलग अलग पहलुँओं को छू रहें हैं , उनके अंतर्दवंद को उजागर कर हैं , पढ़नेवालों की कल्पना को ऐड लगा रहे हैं , वह इस कहानी को हर बार एक नयी ऊंचाई तक ले जाता है,

कहानी जैसे जैसे अपने मुकाम तक जा रही है वो और उलझती जा रही है, अद्भुत लेखन।
 

Napster

Well-Known Member
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अपडेट की प्रतिक्षा है
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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भाग 20
Bahut hi rochak update tha Anand bhai,,,,:claps:
Is update ke baad suspense aur bhi badh gaya hai. Aakhir riya ne raghwan ko aisi kaun si baate bataayi jiske baad uske dil ko to sukoon mil gaya lekin ham pathako ke zahen me kautuhal paidal ho gaya hai?? Riya aur jayant naye jeewan ke safar par nikal chuke hain to zaahir hai ki raghwan ne unhe clean chit de di hai. Udhar raghwan ne raja bhaiya ki jis tarah se tareef ki aur usse kshama maangi usse bhi yahi lagta hai ki wo bekasoor hai. DCP ko giraftaar kar liya gaya ye achha kiya raghwan ne. Ab sawaal ye hai ki is sabka asli karta dharta kaun hai aur riya ne raghwan ko kaun sa sach bataya hai??? :smoking:
 

Pardhan

Ak 47
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प्रिय पाठकों,
मुझे नही पता कि मर्डर मिस्ट्री की कहानियां इस फोरम पर पढ़ी जाती है या नहीं।
कुछ पाठको की प्रतिक्रियाएं देखकर कभी कभी लगता है कि बिना सेक्स के प्रदर्शन के भी कहानी लिखी और पढ़ी जा सकती है।

इस मर्डर मिस्ट्री में आपको सब मिलेगा सेक्स को छोड़कर। यदि कहीं पर आवश्यक हुआ भी तो U/A फिल्मों की तरह।
आप सब का साथ और समर्थन इस कहानी को लिखने और आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करेगा...

आपके सुझावों की प्रतीक्षा में..

अपडेट 1
सलेमपुर शहर की लाल कोठी लगभग 300 साल पुरानी थी परंतु उसकी चमक आज भी कायम थी। वह ताजमहल जैसी खूबसूरत तो नहीं थी परंतु उसकी खूबसूरती आज भी लोगों को लुभाती थी।

आजादी के पश्चात पुरातत्व विभाग वालों ने इस कोठी का अधिग्रहण करने का भरपूर प्रयास किया था परंतु जोरावर सिंह के पूर्वजों ने अपने प्रभाव और रसूख का इस्तेमाल कर उसे शासकीय संपत्ति होने से बचा लिया था।

आज लाल कोठी के सामने भीड़ भाड़ लगी हुई थी। आज ही विधानसभा के उपचुनाव का परिणाम आया था। जोरावर सिंह सलेमपुर के विधायक चुन लिए गए थे। लाल कोठी के सामने शुभचिंतकों का रेला लगा हुआ था।

लाल कोठी की आलीशान बालकनी में जोरावर सिंह अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी रजनी और पुत्री रिया के साथ शुभचिंतकों के समक्ष आ चुके थे। उन का छोटा भाई राजा और उसकी पत्नी रश्मि भी इस जश्न में उनका साथ दे रहे थे।

जोरावर सिंह को देखते ही

"जोरावर सिंह …..जिंदाबाद"

"जोरावर सिंह...अमर रहे" की आवाज गूंजने लगी सभी के मन में हर्ष व्याप्त था।

जोरावर सिंह ने अपने दोनों हाथ उठाएं और समर्थकों को शांत होने का इशारा किया तथा अपनी बुलंद आवाज में समर्थकों को संबोधित करते हुए बोले

"आज की यह विजय मेरी नहीं आप सब की विजय है। आप सबके सहयोग और विश्वास ने यह जीत दिलाई है। मैं आप सब का तहे दिल से आभारी हूं और अपने परिवार का भी जिन्होंने हर घड़ी मेरा साथ दिया।

जोरावर सिंह ने अपनी पत्नी रजनी और पुत्री रिया को अपने करीब बुला लिया। रजनी तो पूरी तरह जोरावर सिंह से सटकर खड़ी थी परंतु रिया ने जोरावर सिंह से उचित दूरी बना रखी थी। राजा और रश्मि भी उनके करीब आ चुके थे। परंतु राजा के चेहरे पर वह खुशी नहीं थी जो एक छोटे भाई के चेहरे पर होनी चाहिए थी।

लाल कोठी के अंदर एक काली स्कॉर्पियो कार प्रवेश कर रही थी गाड़ी के पोर्च में पहुंचने के बाद टायरों के चीखने की आवाज हुई और आगे बैठे बॉडीगार्ड ने उतर कर पीछे का दरवाजा खोला एक खूबसूरत नौजवान जो लगभग 6 फीट लंबा और बेहद आकर्षक कद काठी का था उतर कर तेज कदमों से लाल कोठी में प्रवेश कर रहा था। कुछ ही देर में वह बालकनी आ गया और जोरावर सिंह के चरण छूये।

"आओ बेटा जयंत मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था" जोरावर सिंह ने अपने पुत्र जयंत को अपने आलिंगन में ले लिया और उसकी पीठ सहलाने लगे।

जयंत की आंखें रिया से टकरायीं। रिया ने अपनी आंखें झुका ली और वह अपने नाखून कुरेदते हुए अपने पैरों की उंगलियों को देखने लगी।

जयंत ने राजा और रश्मि के भी पैर छुए परंतु उसने रजनी के न तो पैर छुए ना उससे कोई बात की।

कोठी के सामने पार्क में समर्थकों के खाने पीने और रास रंग की व्यवस्था की गई थी.

जोरावर सिंह ने सभी समर्थकों को रात्रि 8:00 बजे दावत में शामिल होने का न्योता दिया। प्रशंसक अभी भी जोरावर सिंह... जिंदाबाद जोरावर सिंह...अमर रहे के नारे लगा रहे थे।

जब तक खाने का वक्त हो तब तक मैं आप सभी को पात्रों से परिचय करा दूं।

जोरावर सिंह एक मजबूत कद काठी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी पुरुष थे। उम्र लगभग 45 वर्ष, उनके बाप दादा ने इतनी जमीन छोड़ी थी जिससे उनके आने वाली कई पुश्तें एक आलीशान जिंदगी व्यतीत कर सकती थीं। जोरावर सिंह की लाल कोठी में ऐसो आराम की हर वह व्यस्त मौजूद थी जो जोरावर सिंह जानते थे जब जब वह किसी बड़े शहर जाते हैं वहां देखी हुई हर नयी चीज कुछ दिनों में उनके हवेली की शोभा बढ़ा रही होती।

जयंत एक 20 वर्षीय युवा था जो जोरावर सिंह की पहली पत्नी शशि कला का पुत्र था। जयंत सलेमपुर से कुछ दूर सीतापुर में अपनी मां शशिकला के पुश्तैनी मकान में रहता था। शशि कला अपने माता पिता की अकेली संतान थी और इस समय पैर में लकवा मारने की वजह से व्हील चेयर पर आ चुकी थी। शशि कला के माता-पिता भी एक रहीस खानदान से थे जिन्होंने शशि कला के लिए एक सुंदर और आलीशान घर तथा ढेर सारी जमीन जायदाद और चार राइस मिल छोड़ गए थे।

अभी 2 वर्ष पहले ही शशि कला और जोरावर सिंह के बीच किसी बात को लेकर अनबन हुई थी तब से शशि कला अपने गांव सीतापुर आ गई थी और उसके साथ-साथ जयंत भी आ गया था। जयंत को जोरावर सिंह से कोई गिला शिकवा नहीं था परंतु वह अपनी मां को अकेला न छोड़ सका और उनके साथ रहने सीतापुर आ गया था। जोरावर सिंह से अलग होने के कुछ दिनों बाद ही शशि कला को लकवा मार गया था।

जयंत के बार बार पूछने पर भी शशि कला ने जोरावर सिंह से अलग होने का कारण जयंत को नहीं बताया था।

जोरावर सिंह जी की नई पत्नी रजनी एक बेहद सुंदर महिला थी जो अभी कुछ दिनों में ही 40 वर्ष की होने वाली थी भगवान ने उसमें इतनी सुंदरता को कूट कर भरी थी जितनी शायद खजुराहो की मूर्तियों में भी ना हो। अपने कद काठी को संतुलित रखते हुए रजनी ने अपनी उम्र 5-6 वर्ष और कम कर ली थी. रजनी की पुत्री रिया रजनी के समान ही सुंदर थी भगवान ने रजनी और उसकी पुत्री को एक ही सांचे में डाला था. रजनी गुलाब का खिला हुआ फूल थी और गुलाब की खिलती हुयी कली।

जोरावर सिंह का भाई राजा 40 वर्ष का खूबसूरत कद काठी का व्यक्ति था जो स्वभाव से ही थोड़ा क्रूर था यह क्रूरता उसके कार्य के लिए उपयुक्त भी थी। पुश्तैनी जमीन की देखरेख करना और उससे होने वाली आय को देखना तक ना उसने अपने जिम्मे ले रखा था जोरावर सिंह का ज्यादा ध्यान समाज और राजनीति में रहता था जबकि राजा अपने दादा परदादाओं की जमीन और धन में लगातार इजाफा किए जा रहा था।

राजा और जोरावर सिंह मैं कोई तकरार नथी राजा को सिर्फ इस बात का अफसोस रहता था कि इतनी मेहनत और धन उपार्जन करने के बाद भी जोरावर सिंह का कद राजा की तुलना में ज्यादा था।


रिया जब से अपनी मां रजनी के साथ लाल कोठी में आई थी वह तब से ही दुखी रहती थी उसे यहां की शान शौकत रास ना आती थी वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से सीधा इस आलीशान कोठी में आ गई थी वह हमेशा सहमी हुई रहती।


शेष अगले भाग में।
GREAT story next update
 

Lovely Anand

Love is life
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भाग 21
रेल की पटरियों पर हो रहे कंपन बाहर तक सुनाई देने लगे। जयंत और रिया की ट्रेन आ चुकी थी। राजा भैया का परिवार दोनों प्रेमी युगल को छोड़ने स्टेशन पर आ गया। कुछ ही देर में ट्रेन चल पड़ी जैसे-जैसे ट्रेन सलेमपुर का रेलवे प्लेटफार्म छोड़ रही थी राजा के चेहरे पर मुस्कुराहट बढ़ती जा रही थी उधर ट्रेन के अंदर रिया और जयंत एक दूसरे के आलिंगन में थे और अपने परिवार वालों को याद कर रहे थे जिसने पठान भी था।

एसीपी राघवन पठान को लेकर वापस लौट रहा था उसके चेहरे पर सुकून था उसने सलेमपुर का यह पेचीदा केस आखिरकार सुलझा लिया था।

अब आगे..

सलेमपुर स्टेशन छोड़ चुकी ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ चुकी थी। ट्रेन के एसी कंपार्टमेंट में बैठे हुए जयंत और रिया एक दूसरे को देख रहे थे।

जयंत ने रिया से पूछा…

"अब तो बता दो राघवन ने क्या पूछा था.."

"अब बीती बातें भूल जाओ... ऊपर वाले ने हमारी बहुत मदद की है और अब हम सलेमपुर से बाहर जा रहे हैं. राघवन जी भी एक अच्छे व्यक्ति हैं। अंत भला तो सब भला।"

जयंत रिया की बातों से संतुष्ट न था उसके चेहरे पर अभी भी असमंजस के भाव थे। रिया ने उसे खुश करते हुए कहा…

"लगता है अपने कंपार्टमेंट में बाकी बची दोनों बर्थ खाली हैं।" इतना कहते हुए रिया अपनी सीट से उठकर जयंत के बगल में बैठ चुकी थी। जयंत रिया के करीब आने से खुश हो गया था उसने रिया के कोमल गालों को अपनी हथेलियों से लाया और उसके होंठ स्वतः ही उसके होठों से सट गए। एकांत ने उन्हें अपने दिमाग में चल रही उथल-पुथल को दरकिनार कर और करीब आने का मौका दे दिया था।

उधर राजा और रश्मि लाल कोठी पहुंच चुके थे। शशि कला उनका इंतजार कर रही थी।

राजा ने शशि कला की व्हीलचेयर पकड़ी और उसे खाने की टेबल तक लाते हुए बोला..

"जयंत और रिया बेहद खुश थे। भगवान का लाख-लाख शुक्र है दोनों बच्चों की मनोकामना पूर्ण हो गई"

शशि कला ने राजा के हाथों को अपनी दोनों हथेलियों के बीच दबाते हुए कहा

"राजा तुमने इस परिवार को एक बड़े खतरे से बचा लिया है... उनको (जोरावर) को तो जाना ही था जिस घृणित कृत्य की आदत उन्हें लग गयी थी वह एक न एक दिन उन्हें गहरी मुसीबत में अवश्य डालती और अंततः हुआ भी वही।

"भाभी छोड़िए जाने दीजिए बीती बातें। आज खुशी का दिन है हमारे जयंत और रिया अपनी जिंदगी एक साथ व्यतीत करने के लिए इंग्लैंड जा रहे हैं भगवान उन्हें हमेशा खुश रखे।"

"राजा पठान को जरूर बचा लेना"

"आप निश्चिंत रहिए मैं पठान को कुछ नहीं होने दूंगा"

अगली सुबह राघवन का असिस्टेंट मूर्ति उसके ऑफिस में आया

"सर मुझे एक बात कहनी है… " मूर्ति ने जोरावर सिंह के केस की फाइल राघवन की टेबल पर रखते हुए बोला।

"हाँ हां मूर्ति बताओ क्या बात है?"

"सर हो ना हो यह कत्ल रिया ने ही किया है।"

"राघवन चौक गया और अपने हाथ में जल रही सिगरेट को डस्टबिन में फेंकते हुए बोला यह बात तुम कैसे कह सकते हो…?"

"सर आपको याद है जब हम लोग रिया के रूम से मिले दस्ताने पर बारूद की गंध को सूखने के पश्चात रिया से प्रश्न किया था तो उसने क्या उत्तर दिया था"

राघवन की पल के कुछ फलों के लिए बंद हुई ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो अपनी याददाश्त को खंगाल कर मूर्ति के इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने की कोशिश कर रहा था

"हां हां उसने बताया था कि जोरावर की जीत की खुशी में उसने वह बंदूक चलाई थी।"

"दरअसल वह तीनों गोलियां रिया ने ही चलाई थी परंतु हवा में नहीं यह तीनों गोलियां जोरावर और रजनी पर चलाई गई थी जिससे उनकी हत्या हुई थी"

"राघवन आश्चर्य से मूर्ति को देख रहा था"।

"पर क्यों"

"हो ना हो जोरावर रिया को भी अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता था रिया के बाथरूम में कैमरा लगा कर उसकी अर्धनग्न तस्वीरें भी जोरावर नहीं खींची थी जोरावर सिंह के बगीचे के पीछे वाले कमरे से भी रिया के बाल मिले थे और उस कमरे से मिले बालों के सैम्पल में रिया की और उस पहले लड़की के सैंपल थे जिसकी मृत्यु जोरावर की मृत्यु से कई दिनों पहले हुई थी।"

मूर्ति एक साथ अर्जित किया गया सारा ज्ञान विहार चुका था। राघवन अब भी चुप था मूर्ति ने दोबारा बोलना शुरू किया

"हो सकता है रिया को उस लड़की को उस कमरे में बंधक बनाए जाने की बात रिया को पता चल गई हो और वह उससे मिलने उस कमरे में गई हो जब जोरावर को यह बात पता चली होगी तो निश्चित ही वह रिया को डरा धमका कर अपनी साजिश का हिस्सा बनाना चाहता होगा। हो सकता है जोरावर ने रिया पर भी हाथ डालने की कोशिश की हो और शायद इन्हीं सब वजहों से रिया नहीं उसका कत्ल कर दिया हो।"

राघवन बेहद संजीदगी से उसकी बातें सुन रहा था। मूर्ति ने अपनी सारी खोजबीन और उसका निचोड़ राघवन के सामने रख दिया था। राघवन ने कुछ देर सोचा और अपनी आंखें बंद कर छत की तरफ देखने लगा उसने मूर्ति से कहा..

"मूर्ति तुमने थोड़ी देर कर दी रिया और जयंत अब विदेश निकलने की तैयारी में होंगे वह दोनों कल रात ही यहां से दिल्ली जा चुके हैं।"

"सर मैंने आपको पहले भी इशारा किया था"

"मूर्ति , लाल कोठी का यह केस एक हाई प्रोफाइल केस था बिना ठोस सबूत दे हम इसे ज्यादा दिनों तक नहीं खींच सकते थे"

राघवन ने मूर्ति के प्रश्नों पर विराम लगा दिया था। मूर्ति के जाने के बाद वह अपनी खिड़की से बाहर खुले आसमान को देख रहा था इसी विशाल आसमान पर रिया और जयंत का प्लेन उन दोनों को अपने ख्वाबों की दुनिया में ले जा रहा था।

लाल कोठी में लगी जोरावर सिंह की तस्वीरें हटाई जा रही थीं। सिर्फ और सिर्फ वह हाल जहां जोरावर सिंह अपने समर्थकों से मिलते थे उस कमरे को छोड़कर लाल कोठी से उनका नामोनिशान हट चुका था। शशि कला ने भी अपने कमरे की सभी तस्वीरों को हटा दिया था जिसमें जोरावर सिंह किसी न किसी रूप में उपस्थित थे।

उधर जयंत और रिया का प्लेन रनवे पर दौड़ रहा था जैसे-जैसे प्लेन रफ्तार पकड़ रहा था रिया का मन शांत हो रहा था जैसे ही प्लेन ने अपने देश की जमीन छोड़ी रिया के चेहरे पर खुशी दौड़ गई। जयंत ने उसकी तरफ देखा और बोला

"अब तुम आजाद हो। अब हमें कोई खतरा नहीं है"

"परंतु पठान चाचा अभी अंदर है वह बाहर तो आ जाएंगे ना? रिया सच में पठान को लेकर चिंतित दिखाई पड़ रही थी"

तुम निश्चिंत रहो वह आजाद होते ही हम से मिलने आएंगे।

एयरपोर्ट फॉर्मेलिटी तथा इमीग्रेशन में हुई देरी के कारण रिया पूरी तरह थक चुकी थी हवाई जहाज की बिजनेस क्लास की आरामदायक सीट पर लेटी हुई रिया झपकियां लेने लगी।

उसे वह दिन याद आ रहा था जब उसने किसी पुरुष स्पर्श में छुपे गलत इरादे से महसूस किया था। उसके 13 वें जन्मदिन पर जोरावर ने उसे पहली बार अपनी बाहों में भर कर ऊपर उठा लिया था वहां उपस्थित सभी लोगों को यह पिता पुत्री का प्यार दिखाई दे रहा होगा पर रिया उस स्पर्श को आज तक नहीं भूलती वह जोरावर के हथेलियों को अपनी नितंबों पर घूमता हुआ महसूस कर रही थी उसे एक अजीब सा एहसास हो रहा था।

इस घटना के पश्चात रिया ने जोरावर से सुरक्षित दूरी बना ली थी पर गुड़ को आप कितना भी बचा कर रखिए चीटियां आ ही जाती है यही हाल रिया का था। रजनी जैसी सुंदर तथा काम कला में दक्ष महिला का संसर्ग पाकर भी जोरावर का मन नहीं भरा वह रिया के और करीब आना चाहता था। जैसे-जैसे दिया किशोरावस्था की उफान पर पहुंचती गई उसकी सुंदरता में और निखार आता गया उसका कसा हुआ कमनीय शरीर जोरावर को उसकी तरफ आकर्षित करता गया परंतु रिया ने उससे दूरी बनाकर रखी।

जोरावर इस दौरान रजनी के और करीब आता गया और रिया के ना चाहने के बावजूद रजनी और जोरावर के बीच नजदीकियां बढ़ती गई। रिया अपने मन की बात रजनी को चाह कर भी नहीं बता पाती उसने एक दो बार अपनी बातें बताने की कोशिश की पर रजनी ने उसे नजरअंदाज कर दिया। रजनी को यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि जोरावर जैसा एक सामाजिक प्रतिष्ठा वाला व्यक्ति एक अल्पवय किशोरी के साथ ऐसा कुछ कर सकता है और वह भी उसकी ही पुत्री के साथ।

इसी दौरान जयंत और रिया करीब आते गई दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ता गया रिया ने मन ही मन कई बार सोचा कि वह जोरावर के प्रति अपने विचारों को जयंत से साझा करें परंतु उसके मन में अंजाना डर उसे अपनी भावनाएं व्यक्त करने से रोक लेता था।

समय के साथ जोरावर रजनी को ब्याह कर घर ले आया परंतु उसके दिमाग में अब भी रिया घूम रही थी जो अब किशोरावस्था की दहलीज लांघ कर युवा अवस्था में प्रवेश कर रही थी।

लाल कोठी में आने के पश्चात रजनी जोरावर की कामुक दुनिया से परिचित हो चुकी थी उसने न सिर्फ जोरावर की कामुकता को नए आयाम पर पहुंचा दिया अपितु कामुक लड़कियों को घर में लाकर उसकी वासना को चरम पर पहुंचा दिया। कमसिन लड़कियों से सेक्स करने की इच्छा को पूरा करने में भी रजनी ने ही उसकी मदद की और धीरे-धीरे जोरावर की कामुकता उसके चरित्र पर हावी होती गयी।

घर में आने के पश्चात रिया न चाहते हुए भी उसके करीब हो गयी। जोरावर का स्पर्श उसे हमेशा से डरावना लगता परंतु अपने मन की बातें कह पाना बेहद कठिन था। रजनी उसकी मां होने के बावजूद उसके मन का मर्म नहीं समझ पाती थी और जयंत उससे यह बात साझा करने से रिया को अब भी डर लगता था।

पिछले महीने मोनी जब इस लाल कोठी में आई थी जोरावर के कमरे से उसके प्रथम संभोग की चीख और उसके पश्चात कमरे से आ रही सिसकियों को रिया ने अपने कानों से सुना था उसे जोरावर से घृणा हो गयी।

अगले दिन उसने अपने मन की सारी बात पूरी संजीदगी से अपनी मां रजनी से साझा कर दी। रजनी रिया की बातों को पूरी तरह समझ चुकी थी परंतु न जाने उसे इस लाल कोठी से कौन सा लगाव हो गया था उसने रिया की बात को सुना तो जरूर पर स्वयं को लाचार बता कर उसे भी चुप रहने के लिए प्रेरित किया उसने इतना वचन अवश्य दिया कि जोरावर उसके साथ कुछ भी नहीं करेंगे।

रजनी ने अपने तरीके से जोरावर से बात की परंतु जोरावर के मन को पढ़ पाना रजनी के बस में भी न था। वह रिया पर पूरी तरह आसक्त था और उसे हर हाल में भोगना चाहता था।

मोनी के प्रथम संभोग के बाद उसे लाल कोठी के बगीचे के पीछे वाले कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था।

उस कमरे का प्रयोग पहले राजा भैया का मातहत रघु किया करता था जहां कभी कभी वह अपने दोस्तों के साथ शराब और मुर्गा पार्टी का आनंद लिया करता था। उस शराब की बोतल पर रघु की उंगलियों के निशान शायद उसी दौरान छूटे हुए थे।

मोनी को उस कमरे में बंद कर जोरावर ने उसे अपनी कामुक गतिविधियों का अड्डा बना लिया था।

लाल कोठी में मोनी के साथ संभोग करते समय मोनी का चीखना चिल्लाना लाल कोठी की अस्मिता पर प्रश्नचिन्ह लगा सकता था जोरावर ने शायद इसीलिए अपने कर्मों के लिए वह पीछे का कमरा चुन लिया था। रिया यह बात बखूबी जानती थी। उसे हम उम्र मोनी से हमदर्दी हो चली थी वह सबकी नजरें बचाकर उसके पास जाती उससे बातें करती और उसे सांत्वना देने की कोशिश करती।

आखिर एक दिन जोरावर को यह बात पता चल गई उसने रिया को मोनी के सामने अपनी बाहों में भर लिया और उसके स्तनों पर हाथ फेरने की कोशिश की रिया ने स्थिति की गंभीरता को समझ कर जोरावर से माफी मांगी और भागती हुई लाल कोठी के अंदर आ गई रजनी घर पर नहीं थी रिया बेचैन हो गई उसने अपने मन की व्यथा को बेहद संजीदगी और सधे हुए शब्दों में जयंत को बताने की कोशिश की जयंत ने उसे सुना समझा परंतु उसकी बात पर पूरी तरह यकीन नहीं कर पाया उसके पिता का यह नया रूप उसके लिए बेहद अविश्वसनीय था।

जोरावर रिया के बाथरूम में कैमरा लगा कर उसकी नग्न तस्वीरें खींच अपनी कामुकता को और बढ़ा रहा था रजनी द्वारा लगाई गई आग अब उसके ही घर को जलाने वाली थी। यदि इलेक्शन का दौर न चल रहा होता तो शायद जोरावर अब तक रिया को अपनी वासना का शिकार बना चुका होता परंतु इलेक्शन के दौरान इस तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था एक बार उसने रिया को अपनी बाहों में लेते हुए बोला जिस दिन में सलेमपुर का विधायक बनूंगा उसी दिन तुम्हारी नथ उतारूंगा।

रिया बेहद डर गई थी।

जोरावर सिंह के कत्ल की रात जब रजनी रिया के कमरे में आई थी तब.. रिया ने अपनी बात रजनी को एक बार फिर बतानी चाहिए थी परंतु हर बार की तरह रजनी उसे नजरअंदाज कर अपने कमरे में चली गई हालांकि उसने रिया से कहा था कि वह अपने कमरे का दरवाजा खुला रखेगी शायद रजनी ने पुत्री के डर को महसूस कर यह बात कही थी।

कभी कुछ देर बाद रिया ने जोरावर के कमरे में सोनी को जाते हुए देखा उसके दिमाग में एक बार फिर वही तस्वीर घूम गयी जब पहली बार मोनी की चीखें उसे सुनाई पड़ी थी।

कुछ ही देर बाद सोनी के मृत शरीर को जोरावर के कमरे से निकलते देख कर रिया अपना आपा खो बैठी।

रिया ने मन ही मन फैसला कर लिया।

वह जोरावर के कमरे में गई जो भरपूर संभोग करने के पश्चात बिस्तर पर बेसुध लेटा हुआ था। रिया ने अपना दस्ताना पहन रखा था हिंदी फिल्म ने उसे इतना ज्ञानी अवश्य बना दिया। उसने जोरावर की रिवाल्वर निकाली और पहली गोली उसके कनपटी पर दाग दी जब तक जोरावर कुछ समझ पाता उसने दूसरी गोली उसके अंडकोष के ठीक नीचे दाग दी। रिया की नफरत अपने उफान पर थी। बगल में सो रही रजनी गोलियों की आवाज से उठ चुकी थी और वह चीखती हुई रिया की तरफ बढ़ी । रिया के मन में न जाने क्या आया उसने अगली गोली रजनी पर चला दी आखिर सोनी और मोनी दोनों की हत्या में कहीं ना कहीं रजनी भी जिम्मेदार थी उसे रजनी में अपनी मां से ज्यादा एक घृणित स्त्री दिखाई पड़ रही थी।

कुछ ही देर में परिवार के सारे सदस्य उपस्थित हो गए रिया ने अपना जुर्म कबूल कर लिया परंतु राजा ने किसी को कुछ भी बोलने से रोक लिया।

इसके पश्चात जोरावर सिंह के कत्ल की जांच राजा भैया के निर्देशों पर चलने लगी। राजा भैया ने अपनी जानकारी, प्रभाव तथा डीएसपी भूरेलाल के सहयोग से सबूतों से छेड़छाड़ की।

पठान को जब पता चला कि सोनी और मोनी उसकी ही पुत्रियां थी उसे पहली बार जोरावर से नफरत हुई वह रिया के प्रति कृतज्ञ हो क्या रिया में उसे अपनी पुत्री दिखाई पड़ने लगी उसने सहर्ष रिया रिया द्वारा किए गए कत्ल का इल्जाम अपने सर ले लिया और केस की दशा दिशा पलट गई।

दो-तीन वर्षों पश्चात पठान जेल से छूट गया जोरावर सिंह का केस खत्म हो गया था पठान के छूटने की खुशी में जयंत और रिया इंग्लैंड से वापस सलेमपुर आए हुए थे।

लाल कोठी के हॉल में पठान को देखकर रिया भाव विभोर हो गई और पठान से लिपट गई यह आलिंगन पिता पुत्री के आलिंगन जैसा ही था एकदम निश्चल और पावन।

लाल कोठी ने पठान को जोरावर की जगह अपना लिया था। जयंत और रिया के लिए पठान अब पिता की जगह ले चुका था।

समाप्त।




प्रिय पाठको मुझे पता है कहानी का यह आखिरी अपडेट मैं और लंबा कर सकता था परंतु मैंने इस कहानी को यहीं पर समाप्त करने की सोची है रिया के अनुभव और उसके जीवन में घटी घटनाओं को मैं कहानी के बीच में ही दर्शा सकता था जो इस फोरम पर मैंने नहीं किया है परंतु अपनी इस मूल कहानी में मैं उन अंशों को और विस्तार से लिखकर उचित जगह पर डाल रहा हूं।


फिलहाल यह कहानी समाप्त हो चुकी है जिन पाठकों ने भी इस कहानी को पढ़कर अपना जुड़ाव दिखाया है उन सभी को मैं तहे दिल से धन्यवाद देता हूं।

आपका दिन शुभ हो



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