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Thriller एक सफेदपोश की....मौत!

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,769
117,244
354
भाग 21
Bahut hi behtareen kahani thi anand bhai aur bahut hi khubsurat aapki lekhni thi. Really outstanding,,,,:superb:
Main Sanju bhaiya se puri tarah sahmat hu ki kahani ko thoda jaldi samaapt kar diya aapne. Kuch cheezo par thoda aur detail me batane ki zarurat thi lekin khair jo bhi hai wo bhi apne aap me ek lajawaab hai,,,:perfect:
Riya par hi sabse zyada shak tha kyoki motive of murder usi ke paas tha, halaaki aapne is tareeke se likha ki kayi logo ko suspect ke roop me dekhne lage the hum log. Jaise ki raja...uske paas bhi apne bade bhai ko maarne ka motive tha. Khair jorawar ka charitra yakeenan behad hi ghranit tha aur uske charitra ko aur bhi zyada ghranit banane wali rajni hi thi jisne kamsin ladkiyo ko uski hawas ka shikaar banane ka beeda sa utha rakha tha. Riya ne jorawar ke sath sath apni maa ko bhi maar kar bilkul bhi galat nahi kiya,,,,:smoking:

Outstanding story bhai, ummid karta hu aage bhi aisi behtareen story aapke dwara padhne ko milti rahengi,,,,:hug:
 

Lovely Anand

Love is life
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159
Bahut hi behtareen kahani thi anand bhai aur bahut hi khubsurat aapki lekhni thi. Really outstanding,,,,:superb:
Main Sanju bhaiya se puri tarah sahmat hu ki kahani ko thoda jaldi samaapt kar diya aapne. Kuch cheezo par thoda aur detail me batane ki zarurat thi lekin khair jo bhi hai wo bhi apne aap me ek lajawaab hai,,,:perfect:
Riya par hi sabse zyada shak tha kyoki motive of murder usi ke paas tha, halaaki aapne is tareeke se likha ki kayi logo ko suspect ke roop me dekhne lage the hum log. Jaise ki raja...uske paas bhi apne bade bhai ko maarne ka motive tha. Khair jorawar ka charitra yakeenan behad hi ghranit tha aur uske charitra ko aur bhi zyada ghranit banane wali rajni hi thi jisne kamsin ladkiyo ko uski hawas ka shikaar banane ka beeda sa utha rakha tha. Riya ne jorawar ke sath sath apni maa ko bhi maar kar bilkul bhi galat nahi kiya,,,,:smoking:

Outstanding story bhai, ummid karta hu aage bhi aisi behtareen story aapke dwara padhne ko milti rahengi,,,,:hug:
Thanks kash aap jaise pathak aur hote ?
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,769
117,244
354
Thanks kash aap jaise pathak aur hote ?
Aur bhi aayenge bhai. Bas aap likhte jaao, Bina kisi swaarth aur ummid ke. Thriller kahaniyo ko log kam hi padhte hain lekin jo padhte hain unka sath zarur milta rahega,,,:hug:
 

Dostumamrullah

New Member
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29
13
प्रिय पाठकों,
मुझे नही पता कि मर्डर मिस्ट्री की कहानियां इस फोरम पर पढ़ी जाती है या नहीं।
कुछ पाठको की प्रतिक्रियाएं देखकर कभी कभी लगता है कि बिना सेक्स के प्रदर्शन के भी कहानी लिखी और पढ़ी जा सकती है।

इस मर्डर मिस्ट्री में आपको सब मिलेगा सेक्स को छोड़कर। यदि कहीं पर आवश्यक हुआ भी तो U/A फिल्मों की तरह।
आप सब का साथ और समर्थन इस कहानी को लिखने और आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करेगा...

आपके सुझावों की प्रतीक्षा में..

अपडेट 1
सलेमपुर शहर की लाल कोठी लगभग 300 साल पुरानी थी परंतु उसकी चमक आज भी कायम थी। वह ताजमहल जैसी खूबसूरत तो नहीं थी परंतु उसकी खूबसूरती आज भी लोगों को लुभाती थी।

आजादी के पश्चात पुरातत्व विभाग वालों ने इस कोठी का अधिग्रहण करने का भरपूर प्रयास किया था परंतु जोरावर सिंह के पूर्वजों ने अपने प्रभाव और रसूख का इस्तेमाल कर उसे शासकीय संपत्ति होने से बचा लिया था।

आज लाल कोठी के सामने भीड़ भाड़ लगी हुई थी। आज ही विधानसभा के उपचुनाव का परिणाम आया था। जोरावर सिंह सलेमपुर के विधायक चुन लिए गए थे। लाल कोठी के सामने शुभचिंतकों का रेला लगा हुआ था।

लाल कोठी की आलीशान बालकनी में जोरावर सिंह अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी रजनी और पुत्री रिया के साथ शुभचिंतकों के समक्ष आ चुके थे। उन का छोटा भाई राजा और उसकी पत्नी रश्मि भी इस जश्न में उनका साथ दे रहे थे।

जोरावर सिंह को देखते ही

"जोरावर सिंह …..जिंदाबाद"

"जोरावर सिंह...अमर रहे" की आवाज गूंजने लगी सभी के मन में हर्ष व्याप्त था।

जोरावर सिंह ने अपने दोनों हाथ उठाएं और समर्थकों को शांत होने का इशारा किया तथा अपनी बुलंद आवाज में समर्थकों को संबोधित करते हुए बोले

"आज की यह विजय मेरी नहीं आप सब की विजय है। आप सबके सहयोग और विश्वास ने यह जीत दिलाई है। मैं आप सब का तहे दिल से आभारी हूं और अपने परिवार का भी जिन्होंने हर घड़ी मेरा साथ दिया।

जोरावर सिंह ने अपनी पत्नी रजनी और पुत्री रिया को अपने करीब बुला लिया। रजनी तो पूरी तरह जोरावर सिंह से सटकर खड़ी थी परंतु रिया ने जोरावर सिंह से उचित दूरी बना रखी थी। राजा और रश्मि भी उनके करीब आ चुके थे। परंतु राजा के चेहरे पर वह खुशी नहीं थी जो एक छोटे भाई के चेहरे पर होनी चाहिए थी।

लाल कोठी के अंदर एक काली स्कॉर्पियो कार प्रवेश कर रही थी गाड़ी के पोर्च में पहुंचने के बाद टायरों के चीखने की आवाज हुई और आगे बैठे बॉडीगार्ड ने उतर कर पीछे का दरवाजा खोला एक खूबसूरत नौजवान जो लगभग 6 फीट लंबा और बेहद आकर्षक कद काठी का था उतर कर तेज कदमों से लाल कोठी में प्रवेश कर रहा था। कुछ ही देर में वह बालकनी आ गया और जोरावर सिंह के चरण छूये।

"आओ बेटा जयंत मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था" जोरावर सिंह ने अपने पुत्र जयंत को अपने आलिंगन में ले लिया और उसकी पीठ सहलाने लगे।

जयंत की आंखें रिया से टकरायीं। रिया ने अपनी आंखें झुका ली और वह अपने नाखून कुरेदते हुए अपने पैरों की उंगलियों को देखने लगी।

जयंत ने राजा और रश्मि के भी पैर छुए परंतु उसने रजनी के न तो पैर छुए ना उससे कोई बात की।

कोठी के सामने पार्क में समर्थकों के खाने पीने और रास रंग की व्यवस्था की गई थी.

जोरावर सिंह ने सभी समर्थकों को रात्रि 8:00 बजे दावत में शामिल होने का न्योता दिया। प्रशंसक अभी भी जोरावर सिंह... जिंदाबाद जोरावर सिंह...अमर रहे के नारे लगा रहे थे।

जब तक खाने का वक्त हो तब तक मैं आप सभी को पात्रों से परिचय करा दूं।

जोरावर सिंह एक मजबूत कद काठी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी पुरुष थे। उम्र लगभग 45 वर्ष, उनके बाप दादा ने इतनी जमीन छोड़ी थी जिससे उनके आने वाली कई पुश्तें एक आलीशान जिंदगी व्यतीत कर सकती थीं। जोरावर सिंह की लाल कोठी में ऐसो आराम की हर वह व्यस्त मौजूद थी जो जोरावर सिंह जानते थे जब जब वह किसी बड़े शहर जाते हैं वहां देखी हुई हर नयी चीज कुछ दिनों में उनके हवेली की शोभा बढ़ा रही होती।

जयंत एक 20 वर्षीय युवा था जो जोरावर सिंह की पहली पत्नी शशि कला का पुत्र था। जयंत सलेमपुर से कुछ दूर सीतापुर में अपनी मां शशिकला के पुश्तैनी मकान में रहता था। शशि कला अपने माता पिता की अकेली संतान थी और इस समय पैर में लकवा मारने की वजह से व्हील चेयर पर आ चुकी थी। शशि कला के माता-पिता भी एक रहीस खानदान से थे जिन्होंने शशि कला के लिए एक सुंदर और आलीशान घर तथा ढेर सारी जमीन जायदाद और चार राइस मिल छोड़ गए थे।

अभी 2 वर्ष पहले ही शशि कला और जोरावर सिंह के बीच किसी बात को लेकर अनबन हुई थी तब से शशि कला अपने गांव सीतापुर आ गई थी और उसके साथ-साथ जयंत भी आ गया था। जयंत को जोरावर सिंह से कोई गिला शिकवा नहीं था परंतु वह अपनी मां को अकेला न छोड़ सका और उनके साथ रहने सीतापुर आ गया था। जोरावर सिंह से अलग होने के कुछ दिनों बाद ही शशि कला को लकवा मार गया था।

जयंत के बार बार पूछने पर भी शशि कला ने जोरावर सिंह से अलग होने का कारण जयंत को नहीं बताया था।

जोरावर सिंह जी की नई पत्नी रजनी एक बेहद सुंदर महिला थी जो अभी कुछ दिनों में ही 40 वर्ष की होने वाली थी भगवान ने उसमें इतनी सुंदरता को कूट कर भरी थी जितनी शायद खजुराहो की मूर्तियों में भी ना हो। अपने कद काठी को संतुलित रखते हुए रजनी ने अपनी उम्र 5-6 वर्ष और कम कर ली थी. रजनी की पुत्री रिया रजनी के समान ही सुंदर थी भगवान ने रजनी और उसकी पुत्री को एक ही सांचे में डाला था. रजनी गुलाब का खिला हुआ फूल थी और गुलाब की खिलती हुयी कली।

जोरावर सिंह का भाई राजा 40 वर्ष का खूबसूरत कद काठी का व्यक्ति था जो स्वभाव से ही थोड़ा क्रूर था यह क्रूरता उसके कार्य के लिए उपयुक्त भी थी। पुश्तैनी जमीन की देखरेख करना और उससे होने वाली आय को देखना तक ना उसने अपने जिम्मे ले रखा था जोरावर सिंह का ज्यादा ध्यान समाज और राजनीति में रहता था जबकि राजा अपने दादा परदादाओं की जमीन और धन में लगातार इजाफा किए जा रहा था।

राजा और जोरावर सिंह मैं कोई तकरार नथी राजा को सिर्फ इस बात का अफसोस रहता था कि इतनी मेहनत और धन उपार्जन करने के बाद भी जोरावर सिंह का कद राजा की तुलना में ज्यादा था।


रिया जब से अपनी मां रजनी के साथ लाल कोठी में आई थी वह तब से ही दुखी रहती थी उसे यहां की शान शौकत रास ना आती थी वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से सीधा इस आलीशान कोठी में आ गई थी वह हमेशा सहमी हुई रहती।


शेष अगले भाग में।
आपकी लेखनी में वो ताकत है। Be it a mystery or erotic....keep it up... waiting for another genre from you
 

Lib am

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कुछ पाठको की प्रतिक्रियाएं देखकर कभी कभी लगता है कि बिना सेक्स के प्रदर्शन के भी कहानी लिखी और पढ़ी जा सकती है।

इस मर्डर मिस्ट्री में आपको सब मिलेगा सेक्स को छोड़कर। यदि कहीं पर आवश्यक हुआ भी तो U/A फिल्मों की तरह।
आप सब का साथ और समर्थन इस कहानी को लिखने और आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करेगा...

आपके सुझावों की प्रतीक्षा में..

अपडेट 1
सलेमपुर शहर की लाल कोठी लगभग 300 साल पुरानी थी परंतु उसकी चमक आज भी कायम थी। वह ताजमहल जैसी खूबसूरत तो नहीं थी परंतु उसकी खूबसूरती आज भी लोगों को लुभाती थी।

आजादी के पश्चात पुरातत्व विभाग वालों ने इस कोठी का अधिग्रहण करने का भरपूर प्रयास किया था परंतु जोरावर सिंह के पूर्वजों ने अपने प्रभाव और रसूख का इस्तेमाल कर उसे शासकीय संपत्ति होने से बचा लिया था।

आज लाल कोठी के सामने भीड़ भाड़ लगी हुई थी। आज ही विधानसभा के उपचुनाव का परिणाम आया था। जोरावर सिंह सलेमपुर के विधायक चुन लिए गए थे। लाल कोठी के सामने शुभचिंतकों का रेला लगा हुआ था।

लाल कोठी की आलीशान बालकनी में जोरावर सिंह अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी रजनी और पुत्री रिया के साथ शुभचिंतकों के समक्ष आ चुके थे। उन का छोटा भाई राजा और उसकी पत्नी रश्मि भी इस जश्न में उनका साथ दे रहे थे।

जोरावर सिंह को देखते ही

"जोरावर सिंह …..जिंदाबाद"

"जोरावर सिंह...अमर रहे" की आवाज गूंजने लगी सभी के मन में हर्ष व्याप्त था।

जोरावर सिंह ने अपने दोनों हाथ उठाएं और समर्थकों को शांत होने का इशारा किया तथा अपनी बुलंद आवाज में समर्थकों को संबोधित करते हुए बोले

"आज की यह विजय मेरी नहीं आप सब की विजय है। आप सबके सहयोग और विश्वास ने यह जीत दिलाई है। मैं आप सब का तहे दिल से आभारी हूं और अपने परिवार का भी जिन्होंने हर घड़ी मेरा साथ दिया।

जोरावर सिंह ने अपनी पत्नी रजनी और पुत्री रिया को अपने करीब बुला लिया। रजनी तो पूरी तरह जोरावर सिंह से सटकर खड़ी थी परंतु रिया ने जोरावर सिंह से उचित दूरी बना रखी थी। राजा और रश्मि भी उनके करीब आ चुके थे। परंतु राजा के चेहरे पर वह खुशी नहीं थी जो एक छोटे भाई के चेहरे पर होनी चाहिए थी।

लाल कोठी के अंदर एक काली स्कॉर्पियो कार प्रवेश कर रही थी गाड़ी के पोर्च में पहुंचने के बाद टायरों के चीखने की आवाज हुई और आगे बैठे बॉडीगार्ड ने उतर कर पीछे का दरवाजा खोला एक खूबसूरत नौजवान जो लगभग 6 फीट लंबा और बेहद आकर्षक कद काठी का था उतर कर तेज कदमों से लाल कोठी में प्रवेश कर रहा था। कुछ ही देर में वह बालकनी आ गया और जोरावर सिंह के चरण छूये।

"आओ बेटा जयंत मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था" जोरावर सिंह ने अपने पुत्र जयंत को अपने आलिंगन में ले लिया और उसकी पीठ सहलाने लगे।

जयंत की आंखें रिया से टकरायीं। रिया ने अपनी आंखें झुका ली और वह अपने नाखून कुरेदते हुए अपने पैरों की उंगलियों को देखने लगी।

जयंत ने राजा और रश्मि के भी पैर छुए परंतु उसने रजनी के न तो पैर छुए ना उससे कोई बात की।

कोठी के सामने पार्क में समर्थकों के खाने पीने और रास रंग की व्यवस्था की गई थी.

जोरावर सिंह ने सभी समर्थकों को रात्रि 8:00 बजे दावत में शामिल होने का न्योता दिया। प्रशंसक अभी भी जोरावर सिंह... जिंदाबाद जोरावर सिंह...अमर रहे के नारे लगा रहे थे।

जब तक खाने का वक्त हो तब तक मैं आप सभी को पात्रों से परिचय करा दूं।

जोरावर सिंह एक मजबूत कद काठी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी पुरुष थे। उम्र लगभग 45 वर्ष, उनके बाप दादा ने इतनी जमीन छोड़ी थी जिससे उनके आने वाली कई पुश्तें एक आलीशान जिंदगी व्यतीत कर सकती थीं। जोरावर सिंह की लाल कोठी में ऐसो आराम की हर वह व्यस्त मौजूद थी जो जोरावर सिंह जानते थे जब जब वह किसी बड़े शहर जाते हैं वहां देखी हुई हर नयी चीज कुछ दिनों में उनके हवेली की शोभा बढ़ा रही होती।

जयंत एक 20 वर्षीय युवा था जो जोरावर सिंह की पहली पत्नी शशि कला का पुत्र था। जयंत सलेमपुर से कुछ दूर सीतापुर में अपनी मां शशिकला के पुश्तैनी मकान में रहता था। शशि कला अपने माता पिता की अकेली संतान थी और इस समय पैर में लकवा मारने की वजह से व्हील चेयर पर आ चुकी थी। शशि कला के माता-पिता भी एक रहीस खानदान से थे जिन्होंने शशि कला के लिए एक सुंदर और आलीशान घर तथा ढेर सारी जमीन जायदाद और चार राइस मिल छोड़ गए थे।

अभी 2 वर्ष पहले ही शशि कला और जोरावर सिंह के बीच किसी बात को लेकर अनबन हुई थी तब से शशि कला अपने गांव सीतापुर आ गई थी और उसके साथ-साथ जयंत भी आ गया था। जयंत को जोरावर सिंह से कोई गिला शिकवा नहीं था परंतु वह अपनी मां को अकेला न छोड़ सका और उनके साथ रहने सीतापुर आ गया था। जोरावर सिंह से अलग होने के कुछ दिनों बाद ही शशि कला को लकवा मार गया था।

जयंत के बार बार पूछने पर भी शशि कला ने जोरावर सिंह से अलग होने का कारण जयंत को नहीं बताया था।

जोरावर सिंह जी की नई पत्नी रजनी एक बेहद सुंदर महिला थी जो अभी कुछ दिनों में ही 40 वर्ष की होने वाली थी भगवान ने उसमें इतनी सुंदरता को कूट कर भरी थी जितनी शायद खजुराहो की मूर्तियों में भी ना हो। अपने कद काठी को संतुलित रखते हुए रजनी ने अपनी उम्र 5-6 वर्ष और कम कर ली थी. रजनी की पुत्री रिया रजनी के समान ही सुंदर थी भगवान ने रजनी और उसकी पुत्री को एक ही सांचे में डाला था. रजनी गुलाब का खिला हुआ फूल थी और गुलाब की खिलती हुयी कली।

जोरावर सिंह का भाई राजा 40 वर्ष का खूबसूरत कद काठी का व्यक्ति था जो स्वभाव से ही थोड़ा क्रूर था यह क्रूरता उसके कार्य के लिए उपयुक्त भी थी। पुश्तैनी जमीन की देखरेख करना और उससे होने वाली आय को देखना तक ना उसने अपने जिम्मे ले रखा था जोरावर सिंह का ज्यादा ध्यान समाज और राजनीति में रहता था जबकि राजा अपने दादा परदादाओं की जमीन और धन में लगातार इजाफा किए जा रहा था।

राजा और जोरावर सिंह मैं कोई तकरार नथी राजा को सिर्फ इस बात का अफसोस रहता था कि इतनी मेहनत और धन उपार्जन करने के बाद भी जोरावर सिंह का कद राजा की तुलना में ज्यादा था।


रिया जब से अपनी मां रजनी के साथ लाल कोठी में आई थी वह तब से ही दुखी रहती थी उसे यहां की शान शौकत रास ना आती थी वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से सीधा इस आलीशान कोठी में आ गई थी वह हमेशा सहमी हुई रहती।


शेष अगले भाग में।
रोचक शुरुआत। पहले ही अपडेट से राजसी खानदानों वाले मतभेदों और ईर्ष्या की झलक नजर आ रही है।
 

Lib am

Well-Known Member
3,257
11,277
143
अपडेट 2
लाल कोठी का निर्माण उन्हीं पत्थरों से हुआ था जिन पत्थरों से लाल किला बनाया गया है समय के साथ कोठी के अंदर की खूबसूरती बदलती गई और आज कोठी के अंदर का फर्श इटालियन मार्बल से सुशोभित हो रहा था। कोठी के अंदर सभी कमरे आधुनिक साज-सज्जा से सुशोभित परंतु कमरे के पलंग जो पूरी तरह राजशाही थे वह अब भी घर की खूबसूरती बढ़ा रहे थे।

कोठी यह दोनों मंजिलों पर आठ - आठ कमरे थे ऊपर की मंजिल पर जोरावर सिंह अपनी नई नवेली पत्नी रजनी और उसकी पुत्री रिया के साथ रहते थे इसी मंजिल के दूसरे भाग पर उनका भाई राजा अपनी पत्नी रश्मि तथा दो छोटे बच्चों के साथ रहता था।

लाल कोठी के आगे और पीछे की जमीन को खूबसूरत पार्क की शक्ल दी गई थी आगे का पार्क सामान्यतः जोरावर सिंह और उनके भाई राजा अपने बिजनेस से संबंधित लोगों के साथ उठने बैठने में प्रयोग करते थे तथा वहां पर अक्सर सामाजिक पार्टियां आयोजित हुआ करती थी आज का उत्सव भी उसी पार्क में होना था।

पीछे का पार्क सामान्यतः घर की महिलाओं और बच्चों द्वारा प्रयोग किया जाता था वह आगे के पार्क से ज्यादा खूबसूरत था। यही वह जगह थी रजनी की पुत्री रिया अपना ज्यादातर समय व्यतीत किया करती थी उसे लाल कोठी में रहना कमल रास आता था।

कोठी के निचले हिस्से पर कुछ कमरे घर में लगातार रहने और काम करने वाले नौकरों के लिए सुरक्षित था। इस लाल कोठी में रहने वाले जोरावर सिंह के तीन मुख्य मातहत थे।

पठान मुख्य सुरक्षाकर्मी था और वह जोरावर सिंह का विश्वासपात्र था हम उम्र होने के साथ-साथ वह जोरावर सिंह के वफादार था वह जोरावर सिंह के एक इशारे पर मरने मारने को तैयार रहता था उसने जोरावर सिंह के इशारे पर कई कत्ल किए थे।

रहीम उनका ड्राइवर था जो लगभग 35 वर्ष का हट्टा कट्टा युवक था जरूरत पड़ने पर पठान की तरह अस्त्र-शस्त्र चला लेता था और जोरावर सिंह को सुरक्षा कवच दिया रहता था।

रजिया और उसकी मां घर की मुख्य कुक थीं। रजिया 25 वर्षीय बेहद खूबसूरत युवती थी जो इसी घर में अपनी मां के साथ पली-बढ़ी थी और अब धीरे-धीरे अपनी मां की जगह ले रही थी।

यह एक संयोग ही था की जोरावर सिंह के परिवार के सभी पुरुषों की कद काठी आकर्षक थी और उनके घर की महिलाएं तथा नौकर भी बेहद आकर्षक और खूबसूरत थे सिर्फ वस्त्रों का अंतर हटा दिया जाए तो यह पहचानना मुश्किल होता की कौन जोरावर सिंह के परिवार का व्यक्ति है और कौन उनका मातहत।

रात गहरा रही थी बाहर वाले पार्क में खाने पीने की व्यवस्था की गई थी रास रंग के लिए नर्तकों की विशेष टोली बुलाई गई थी जिनके लिए स्टेज सजा दिया गया था दरअसल जोरावर सिंह को अपनी जीत का पूरा भरोसा था और उन्होंने इस उत्सव की तैयारी पहले से कर रखी थी परंतु वह चुनाव परिणाम आने से पहले इन तैयारियों का प्रदर्शन किसी के सामने नहीं करना चाहते थे आखिर चुनाव परिणाम कभी-कभी अप्रत्याशित भी होते हैं यह बात जोरावरसिंह भली-भांति जानते थे।

आगंतुकों का आना शुरू हो गया था धीरे ही धीरे जोरावर सिंह के पार्क में लगभग 300 व्यक्ति उपस्थित हो चुके थे गेट पर सिक्योरिटी अपना काम मुस्तैदी से कर रही परंतु जीत का अपना नशा होता वह जोरावर सिंह पर भी था और उनके सुरक्षाकर्मियों पर भी आयोजन के लिए कई अपरिचित व्यक्तियों का आना जाना भी लगा हुआ था।

आज इस आयोजन के लिए जोरावर सिंह ने कुछ विशेष सिक्योरिटी गार्ड्स बुलाए थे जिनमें से कुछ तो पुलिस वाले थे और कुछ उनकी रियल स्टेट की सुरक्षा में लगे सिक्योरिटी गार्ड थे।

पार्टी अपने रंग पर आ रही नर्तकीओ की टोली ने समा बांध दिया था। गालों पर लाली और मस्कारा लगाएं हुए अर्धनग्न स्थिति में युवतियां थिरक रही थी तथा चोली में कैद हुए यू उनके वक्ष स्थल कामुक पुरुषों के तन बदन में हलचल पैदा कर थे। शराब ने इस पल को और उत्तेजक बना दिया था। मंच के पीछे एक बेहद सुंदर और कमसिन किशोरी तनाव में बैठी हुई थी वह भी नर्तकी की वेशभूषा में थी परंतु वह स्टेज पर नहीं आ रही थी उसके चेहरे पर तनाव था।

धीरे-धीरे रात के 11:00 बज चुके थे अधिकतर मेहमान वापस जा चुके थे लगभग 20 - 25 ठरकी किस्म के व्यक्ति अभी भी नृत्य का आनंद ले रहे थे। जोरावर सिंह ने भी सबसे विदा ली और अपनी लाल कोठी में प्रवेश कर गए। पार्टी का समापन हो चला था। कुछ देर बाद स्टेज के पीछे बैठी हुई सुंदर किशोरी, लाल कोठी के पीछे वाले भाग्य में पठान के पीछे पीछे पहनी हुई जा रही थी।

रिया अपनी खिड़की पर खड़ी चांद को निहार रही थी उसने इन 17 सालों में कई उतार-चढ़ाव देखे थे वह व्यथित थी उसके मन में अजीब ख्याल आ रहे तभी उसने पठान और उस लड़की को पीछे के दरवाजे से लाल कोठी में अंदर आते हुए देखा उसकी आंखें डर से कांप उठी उसकी सांसे तेज हो गई। वह अपनी कोठरी के मुख्य दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई उसने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ पठान उस लड़की को लेकर जोरावर सिंह के कमरे की तरफ जा रहा था रिया ने अपनी आंखों से वह दृश्य देखा लड़की के चेहरे पर डर कायम था।

रिया का दिल तेजी से धड़क रहा था। उसकी छठी इंद्री किसी अनिष्ट की तरफ इशारा कर रही थी पठान वापस आ रहा था उसके कदमों की टॉप घोड़े की टॉप जैसी लग रही थी।

पठान लाल कोठी के पीछे वाली भाग में पड़ी बेंच पर बैठ गया। हरिया वापस अपनी खिड़की पर आकर पठान को देख रही थी वह उस लड़की के बारे में सोच कर चिंतित हो रही थी।

लगभग 15 मिनट बाद रिया के कानों में जोरावर सिंह की आवाज आई पठान ऊपर आओ।

जी मालिक अभी आया।

हीरा और कालू को भी बुला लो

रिया को जोरावर सिंह दिखाई नहीं पड़ रहे थे परंतु उनमें और पठान के बीच में इशारों में कुछ बातें हो रही थी जो रिया को समझ ना आयीं।

कुछ देर बाद पठान वापस जोरावर सिंह के कमरे की तरफ आया रिया एक बार फिर अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ी होकर पठान को जोरावर के कमरे में जाते हुए देख रही थी।

रिया अपने कमरे में बेचैनी से घूम रही थी वह बेहद डरी हुई थी। तभी उसमें अपनी खिड़की के नीचे कुछ हलचल होती महसूस कि वह भागकर खिड़की पर आई वह किशोर लड़की कालू के कंधे पर थी। कालू 6 फीट 5 इंच का एक मजबूत आदमी था जो देखने में हलवाई की तरह लगता था परंतु उसका रंग उसके नाम से पूरी तरह मेल खाता था। कालू के सफेद कुर्ते पर जगह-जगह रक्त के निशान थे। रिया बेहद घबरा गई उसे लगा जैसे उस लड़की को मार दिया गया था। उसने अपने हाथों से अपने मुंह को दबाकर अपनी चीख रोक ली।उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें आ गई।

कालू उस लड़की को लेकर पार्क में बने चबूतरे की तरफ जा रहा था जिस पर एक बेहद खूबसूरत मूर्ति लगी हुई थी। पठान भी अब नीचे आ चुका था उसके हाथ में एक चादर थी वह हीरा को लेकर कालू के पीछे पीछे चबूतरे की तरफ जा रहा था।

चबूतरे पर पहुंचकर पठान ने अपनी मजबूत भुजाओं से उस मूर्ति को उठा लिया हीरा ने तुरंत ही मूर्ति के नीचे बड़े लाल पत्थर को पूरी ताकत लगाकर हटाया। कालू ने उस लड़की को अपने कंधे से उतारा उसने अपने दोनों पर उस खाली जगह के दोनों तरफ किए और उस लड़की को नीचे करता गया रिया आश्चर्य में डूबी हुई वह दृश्य देख रही लड़की के पैर उस अनजान गड्ढे में जा रहे थे कुछ ही देर में लड़की की कमर उसका सीना और उसका चेहरा उस अनजान गड्ढे में विलुप्त होता चला गया अचानक उसने कालू के हाथों को ऊपर उठते हुए देखा लड़की उस अनजान गुफा में विलुप्त हो चुकी थी हीरा और कालू ने मिलकर उस पत्थर को वापस अपनी जगह पर किया और पठान ने वह खूबसूरत मूर्ति उसी जगह पर लगा दी। देखते ही देखते वह किशोरी गायब हो गई थी। रिया यह दृश्य देखकर बेहद परेशान हो गई। वह डर से कांप रही थी।

कोठी के सामने वाले भाग में अभी भी पटाखों की आवाज सुनाई पड़ रही थी कुछ उत्साही समर्थक इस उत्सव का आनंद अब भी ले रहे थे।

डरी हुई रिया ने अपनी मां रजनी को फोन किया वह थोड़ी ही देर में रिया के कमरे में आ गई उसने अपनी मां रजनी से अब से कुछ देर पहले हुई घटना के बारे में बताना चाहा परंतु रजनी ने कहा...

" बेटा तुम अपने काम से काम रखा करो यह बड़े लोग की हवेली है तुम्हें इन मामलों में अपनी टांग नहीं फसांनी चाहिए"

रजनी ने रिया के चेहरे पर डर देखा था उसने जाते हुए कहा..

" बेटा हिम्मत रखो डरो मत आराम से सो जाओ कोई बात हो तो आकर मुझे जगा लेना मैं कमरे का दरवाजा बंद नहीं करूंगी"

रजनी जोरावर सिंह के एक कमरे की तरफ बढ़ गई। रिया इस अप्रत्याशित घटना के बारे में सोच सोच कर दुखी हो रही थी और अपने बिस्तर पर लेटे हुए इस लाल कोठी में आने के दिन को याद कर रही थी।

रजिया अपनी मां के साथ सोने जा रही आज भी दोनों मां बेटी एक ही बिस्तर पर सोया करते थे रजिया की शादी को लेकर उसकी मां चिंतित थी आखिर कब तक वह यहां जोरावर सिंह के परिवार की सेवा करती रहेगी। रजिया भी अपने आंखों में सुनहरे सपने लिए सोने का प्रयास कर रही थी तभी

ठांय… ठांय……….. आईईईईई …. ठांय…

की आवाज सुनाई दी।

आवाज लाल कोठी के अंदर से ही आए रजिया और उसकी मां उठकर कोठी के ऊपर वाली मंजिल की तरफ भागे। वह दोनों गोली की आवाज की दिशा में लगभग दौड़ते रहे यह आवाज जोरावर

सिंह के कमरे से आई थी जोरावर सिंह के कमरे से पहुंचने के ठीक पहले रिया अपने कमरे से निकलकर बाहर आ गई और लगभग रजिया से टकरा गई।

"माफ कीजिएगा दीदी. मालिक के कमरे से गोली की आवाज आई है"

हां मैंने भी सुना और वह तीनों भागते हुए जोरावर सिंह के कमरे में प्रवेश कर गए।

राजसी पलंग पर पूर्ण नग्न अवस्था में जोरावर सिंह और उनकी पत्नी रजनी बिस्तर पर लेटी हुई थी।

जोरावर सिंह का पैर बिस्तर से बाहर लटका हुआ था। उनके शरीर पर पड़ी चादर जिसने उनके गुप्तांगों को ढक रखा था पूरी तरह खून से लथपथ थी एक गोली उनके कान के पास मारी गई थी जिससे वह हुआ रक्त उनके चेहरे और गले पर लगा हुआ था।

रजनी तो पूरी तरह नंगी थी उसके शरीर पर कोई कपड़ा ना था। रिया तो वह दृश्य देख कर बेहोश हो गई और कटे हुए पेड़ की भांति जमीन पर गिर पड़ी। रजिया ने भागकर चादर खींचकर रजनी के गुप्तांगों को ढकने की कोशिश की।

राजा की पत्नी रश्मि अब तक आ चुकी थी वह रिया के माथे को अपनी गोद में लेकर उसे होश में लाने का प्रयास कर रही थी….

लाल कोठी के गेट पर खड़े पुलिस वाले भी अब तक अंदर आ चुके उनमें से एक ने फोन लगाया..

"सर विधायक जी का मर्डर हो गया है आप जल्दी आइए"


शेष अगले भाग में।
ये कहानी तो तेजी से आगे बढ़ते हुए रोमांच होती जा रही है जोरावर तो मर गया पर क्या रजनी भी मर गई है? क्या इसमें शशिकला का कोई हाथ है या फिर जोरावर के पाप कर्मों का फल
 

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कुछ ही देर में जोरावर सिंह का भाई राजा कमरे में आ चुका था उसने शराब पी हुई थी तथा उसके दाहिने गाल पर चोट का निशान था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी मजबूत चीज से टकराने की वजह से वह लाल हो गया था तथा कुछ फूल भी गया था।

अंदर का दृश्य देखकर राजा की आंखें आश्चर्य से फट गई शराब की खुमारी एक पल में काफूर हो गई। उसने अपने गाउन की जेब टटोली पर वह मोबाइल अपने कमरे में ही छोड़ आया था उसने रजिया से कहा

" जा मेरा मोबाइल ले आ"

रजिया भागती हुई राजा के कमरे की तरफ चली गई। इधर राजा जोरावर सिंह को छूकर यह तसल्ली करना चाह रहा था कि अभी उनमें कहीं जान बाकी तो नहीं है परंतु वहां खड़े पुलिस वाले ने उसे रोकने की कोशिश की।

"राजा भैया वहां मत जाइए विधायक साहब अब नहीं रहे"

राजा ने उसकी बात न मानी और वह जोरावर सिंह का हाथ पकड़कर उसकी नब्ज नापने की कोशिश करने लगा तथा जैसे ही उसे नब्ज शांत होने का एहसास हुआ वह एक बार फिर फूट-फूट कर रोने लगा और उनके हाथों को चूमने लगा। वही पुलिस वाला एक बार फिर राजा को पकड़ कर उन्हें जोरावर सिंह से दूर कर रहा था अब तक रजिया फोन लेकर आ चुकी थी।

राजा ने फोन लिया उसकी उंगलियां तेजी से उसके मोबाइल की कांटेक्ट लिस्ट को तलाशने लगीं।.

"भूरेलाल...तुरंत लाल कोठी पर आ जा सारे थानों को फोन कर पूरे शहर की नाकेबंदी करा. वो मादरचोद यहां से भागना नहीं चाहिए अभी वह ज्यादा दूर नहीं गया होगा।"

"राजा भैया हुआ क्या?" भूरे लाल की आवाज

"किसी ने जोरावर भैया का खून कर दिया है"

रिया अब अपनी आंखें खोल चुकी थी रश्मि उसे सांत्वना दे रही थी राजा की गरजती आवाज से वह डर से कांप रही थी। अनिष्ट हो चुका था वह अपनी सांसें रोके सामने चल रहे दृश्य देख रही थी। उसी समय जोरावर सिंह के कमरे में लगी घड़ी में दो बार मधुर आवाज में टन टन की आवाज देकर रात के 2:00 बजने की सूचना दे दी.

उघर लाल कोठी के मुख्य द्वार पर अब सिर्फ एक पुलिस वाला बचा था बाकी के दो पुलिस वाले लाल कोठी के अंदर आ गए थे तभी एक व्यक्ति लाल कोठी के मेन गेट से बाहर जाने का प्रयास कर रहा था। उसने सफेद रंग का कुर्ता पायजामा पहना हुआ था तथा चेहरे पर अंगोछा बंधे हुए था।

जैसे ही वह विकेट गेट ( मुख्य द्वार के अंदर एक छोटा दरवाजा जो सामान्यतः आने जाने के लिए प्रयोग किया जाता है) को खोलकर बाहर आया..

गेट पर खड़े पुलिस वाले ने कहा…

"अभी इस कोठी से बाहर कोई नहीं जा सकता अंदर मर्डर हुआ है साहब को आने दीजिए तब बाहर जाइएगा"

उस व्यक्ति ने पुलिस वाले को धक्का दिया और तेजी से भाग निकला इस अप्रत्याशित हमले से वह पुलिस वाला जमीन पर नीचे गिर पड़ा था जब तक की वह उठकर उसका पीछा करता वह व्यक्ति अंधेरे में विलीन हो गया। पुलिस वाले ने कोठी के अंदर गए अपने साथियों को इस बात की सूचना दी परंतु अब देर हो चुकी थी। कुछ ही देर में पुलिस की कई गाड़ियां सायरन बजाती हुई लाल कोठी के मुख्य द्वार पर आ चुकी। पुलिस की बड़ी वैन में 30 - 40 सिपाही आकर लाल कोठी को घेर चुके थे।

लाल कोठी के सामने वाले पार्क में अब भी 20 - 25 आदमी थे जो सहमे हुए खड़े थे उनमें से कुछ अपना टेंट का सामान समेट रहे थे पुलिस वालों के आते ही वह सावधान मुद्रा में खड़े हो गए।

पुलिस इंस्पेक्टर खान ने गरजती आवाज में कहा

"कोई आदमी कोठी से बाहर नहीं जाएगा तुम सब लोग लाइन लगाकर इधर खड़े हो जाओ जब तक मैं ना कहूं कोई यहां से हिलेगा भी नहीं।"

पठान नीचे ही खड़ा था वह इस्पेक्टर खान को लेकर जोरावर सिंह के कमरे की तरफ जाने लगा रास्ते में इस्पेक्टर खान ने पूछा

"तुम लोगों के रहते किस मादरचोद की हिम्मत हुई?"

"साहब हम लोग तो गेट पर ही थे पिछले 2 घंटे में कोई बाहर का आदमी अंदर नहीं गया"

"तो क्या कातिल पहले से ही घर में घुस कर बैठा था"

पठान जब तक कुछ सोच पाता तब तक जोरावर सिंह का कमरा आ गया था। खान ने कहा

"प्लीज आप लोग सब कमरे से बाहर चाहिए यह क्राइम सीन है यहां पर किसी का रहना उचित नहीं।"

रश्मि रिया को लेकर उसके कमरे में आ गई जो कि जोरावर सिंह के कमरे के ठीक बगल में था। रजिया और उसकी मां भी उनके पीछे पीछे रिया के कमरे में आ गई। कालू और हीरा अभी भी नीचे ही खड़े थे।

खान के साथ आए 5- 6 पुलिस वालों ने कमरे का बारीकी से मुआयना करना शुरू कर दिया.

थोड़ी ही देर में डीएसपी भूरेलाल भी कमरे में आ चुका था उसने आते ही कमान संभाल ली. उसके साथ आए फोटोग्राफर ने घटनास्थल की हर एंगल से तस्वीरें लेना शुरू कर दी. .

जोरावर सिंह को 2 गोलियां मारी गई थीं एक कान के नीचे और दूसरा गुदाद्वार और प्राइवेट पार्ट के बीच में। जोरावर सिंह के दाहिनी भुजा पर खंजर या चाकू की खरोच के निशान थे। कान के पास मारी गई गोली के कारण रक्त स्राव हुआ था जिससे उनका चेहरा रक्त से सन गया था।

वहीं दूसरी तरफ रजनी को गोली ठीक हृदय के ऊपर लगी थी।

जोरावर सिंह की रिवाल्वर राजसी पलंग के साथ लगे साइड टेबल पर रखी हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे उसे जानबूझकर उस जगह पर रखा गया हो तीनों गोलियां उसी रिवाल्वर से चलाई गई थी। बिस्तर पर कई बाल भी मिले थे जिनकी लंबाई अलग अलग थी बिस्तर पर कुछ चमकीले गोल गोल तश्तरी नुमा सितारे थे ऐसा प्रतीत होता था जैसे किसी सस्ते लहंगे को सजाने के लिए उनका प्रयोग किया गया था। इंस्पेक्टर खान ने उस सितारे को उठाकर ध्यान से देखा तथा अपने मन में कहानियां गढ़ने लगा।

अचानक इंस्पेक्टर का ध्यान खिड़की पर गया खिड़की की चौखट पर भी रक्त के निशान थे यह खिड़की बेहद बड़ी थी जिस पर कोई ग्रिल नहीं थी खिड़की के पल्ले बाहर की तरफ खुलते थे खिड़की के कब्जों पर भी रक्त के निशान थे खिड़की की चौखट पर रस्सी के रगड़ के निशान थे।

सुबह के 7:00 बज चुके थे सूर्योदय हो चुका था। सूरज की किरण खिड़की से कमरे में प्रवेश कर रही थी तथा जोरावर सिंह के रक्तरंजित चेहरे को रोशन कर रही थी। लाल कोठी का चमकता सितारा अंधेरे में विलीन हो चुका था।

भूरेलाल और इंस्पेक्टर खान ने मिलकर सारे सबूत इकट्ठा किए और दोनों ही मृत शरीरों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।

अपनी मां रजनी को घर से जाते हुए देख कर रिया फफक कर रो पड़ी उस किशोरी का अब इस घर में कोई नहीं था। उसे जोरावर सिंह से कोई विशेष लगाव नहीं था। वैसे भी जोरावर सिंह ज्यादातर अपने कार्यों में व्यस्त रहते थे। परंतु उसकी मां रजनी तो आखिर मां थी वह निश्चय ही रिया की उम्मीदों पर खरी ना उतरती परंतु फिर भी इस दुनिया में यदि रिया का कोई सहारा था तो वह उसकी मां रजनी ही थी।

जब तक दोनों लाशों एंबुलेंस में रखा जाता जयंत अपनी स्कॉर्पियो से लाल कोठी में प्रवेश कर चुका था। अपने पिता से लिपट कर रोने लगा उसे शायद जोरावर सिंह के अनैतिक कार्यों की सूचना न थी।

एंबुलेंस अपनी नीली लाइट चमकाती हुई तथा साय…...सांय….. की आवाज आती हुई लाल कोठी से बाहर हो रही थी. घर का मुखिया और उसकी नई नवेली पत्नी इस भौतिक साम्राज्य को छोड़कर स्वर्ग या नरक की यात्रा पर निकल पड़े थे। घर के सदस्य पिछले चार-पांच घंटों से जगह-जगह थक गए थे। और स्वाभाविक रूप से परेशान हो गए थे।

भूरे लाल ने घर के सभी नौकर क्या करूं तथा टेंट हाउस के 20 25 आदमियों को ( जो रात में टेंट हटाने का कार्य कर रहे थे) एक लाइन से खड़ा कर दिया और सभी से पूछताछ शुरू कर दी।

गेट पर खड़े पुलिस वाले ने जिसने एक अनजान व्यक्ति को विकेट गेट से बाहर निकलते और उसे धक्का देकर गिराने के बाद भागते हुए देखा था वह अपना मुंह नहीं खोल रहा था वह शायद अपनी गलती को छुपाना चाहता था। पर घटनाओं की कई आंखें होती है टेंट हाउस के एक आदमी ने वह दृश्य देखा था।

भूरेलाल के पूछते ही वह बोल पड़ा।

"साहब एक आदमी गेट वाले पुलिस भैया को धक्का देकर बाहर भागा था जब तक पुलिस भैया उसे पकड़ पाते वह निकल चुका था।"

भूरेलाल ने उस पुलिस वाले को बुलाया और जोर का चाटा मारा.

" साहब माफ कर दीजिए उसने मुझे अचानक धक्का दे दिया था मैं उसे नहीं पकड़ पाया"

"हुलिया बता उसका"

"साहब लंबाई इसके जैसी रही होगी उसने टेंट हाउस के एक आदमी की तरफ इशारा किया जो उस अनजान व्यक्ति की कद काठी से मिलता-जुलता था। साहब उसका चेहरा गोरा था तथा उसने चेहरे पर गमछा लपेटा हुआ था।"

"क्या पहना था उसने"

"पजामा और कुर्ता सफेद रंग का लग रहा था जैसे कोई छूटभैया नेता हो"

पठान उस पुलिस वाले द्वारा बताए जा रहे हुलिए को ध्यान से सुन रहा था अचानक उसे मनोहर की याद आयी।

मनोहर रजनी का साथी था जो अक्सर रजनी से मिलने आया करता था रजनी उसे मनोहर भैया कहकर पुकारती परंतु वह जोरावर सिंह को नापसंद था परंतु रजनी के कहने पर वह उसे कुछ बोलता नहीं था।

इस उत्सव में भी वह निश्चय ही रजनी के कहने पर ही आया था।

पठान ने उस पुलिस वाले से पूछा क्या उस आदमी की तोंद निकली हुई थी।

"हां निकली थी लगभग इतनी ही" उस पुलिस वाले ने स्वयं अपनी तोंद पर हाथ फिराते हुए बोला..

डीएसपी भूरेलाल और इंस्पेक्टर खान ने कई सारे फोन किए और मनोहर का हुलिया बताते हुए उसे पकड़ने के लिए जाल फैलाना शुरू कर दिया। मनोहर के घर पर दबिश देने की तैयारी होने लगी।

उधर जयंत लाल कोठी में अपने कमरे में बैठा इस घटनाक्रम के बारे में सोच रहा था। आखिर वह कौन व्यक्ति था जिसने यह जघन्य कृत्य किया होगा ? उसके पिता के कई दुश्मन थे परंतु इस तरह आकर कत्ल करना इतना आसान न था? वह अपनी उधेड़बुन में खोया हुआ था तभी कमरे में रिया आ गई उसका चेहरा रोते-रोते सूज गया था. जयंत ने उठकर रिया को अपने आलिंगन में ले लिया वह उसके माथे को चूमते हुए उसकी पीठ सहलाने लगा। जयंत और रिया के बीच यह आलिंगन उनके बीच के सामाजिक रिश्ते (भाई बहन) के आलिंगन से कुछ ज्यादा था।

शेष अगले भाग में…..
बहुत ही रोचक मर्डर मिस्ट्री है, पात्र अभी पूरे खुले नही है और पात्रों के चरित्र भी बहुत कुछ उलझा हुआ और संदेहास्पद है। कुछ बहुत ही जघन्य कारण रहा है इस हत्याकांड का। जर, जोरू या जमीन शायद इन्ही में से कोई कारण रहा होगा।
 

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मनोहर ने लाल कोठी से निकलते समय पुलिस वाले को धक्का दे दिया था जिसका उसे अब अफसोस हो रहा था। परंतु यह क्रिया उसकी झुंझलाहट की वजह से हुई थी। बीती रात एक तो उस पर शराब की खुमारी छाई हुई थी और रजनी के आश्वासन के बावजूद पैसों का प्रबंध ना हो पाया था था।

वह कोठी से निकलकर वह सीधा बस स्टैंड आकर अपने गांव जाने के लिए बस का इंतजार करने लगा। बस स्टैंड की बेंच पर लेटे-लेटे उसे नींद आ गई। सुबह सुबह पिछवाड़े पर पुलिस का डंडा पढ़ते ही उसकी नींद खुल गई।

इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता 3-4 पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और उसे घसीटते हुए पुलिस जीप के पीछे बैठाया और उसे लेकर थाने की तरफ बढ़ चले।

मनोहर ने उन पुलिस वालों को सब कुछ बताने की कोशिश की परंतु जैसे उन्होंने अपने कान बंद कर रखे थे उन्हें इस बात से कोई सरोकार न था की मनोहर द्वारा बताई जा रही बातों का कोई औचित्य था भी या नहीं वह बेचारे मामूली पुलिस वाले थे।

जिस जीप में मनोहर को पुलिस स्टेशन ले जाया जा रहा था उसके पीछे एक और गाड़ी उनका पीछा कर रही थी जिसमें इंस्पेक्टर खान और पठान बैठे हुए थे। पठान की ही शिनाख्त पर मनोहर को धर दबोचा गया था।

पुलिस स्टेशन में मनोहर के साथ वही व्यवहार हुआ जिस की कल्पना पाठक कर सकते हैं।

हवलदार रतन सिंह नया नया भर्ती हुआ था उसकी बीवी शादी के पश्चात कुछ ही दिनों बाद उसे छोड़ कर भाग गई थी रतन सिंह के दिलों दिमाग पर नफरत छाई हुई थी। वह मनोहर की कोई बात सुनने को तैयार न था और अपने डंडे से लगातार उसके पैरों और जांघों पर प्रहार किए जा रहा था। मनोहर दर्द से तड़प रहा था और साहब साहब चिल्ला रहा था।

अंततः इंस्पेक्टर खान के आने के बाद मनोहर को राहत मिली। मनोहर ने इंस्पेक्टर खान को उस रात की कहानी अपनी जुबान में सुना दी।

साहब मैं और रजनी कई वर्षों से सीतापुर के प्राथमिक स्कूल में एक साथ कार्य किया करते थे। रजनी उस स्कूल में प्राध्यापिका थी और मैं क्लर्क। हम दोनों एक दूसरे के दोस्त थे और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे के काम भी आते थे।

रजनी के लाल कोठी में आने के पश्चात भी कभी-कभी मैं उससे मिलने आ जाया करता था। परंतु जोरावर साहब को हमारा मिलना पसंद ना था। वह रजनी से बार-बार कहा करते अब तुम लाल कोठी की रानी हो तुम्हारा आम आदमियों से मिलना उचित नहीं है।

परंतु रजनी ने मेरी दोस्ती का हमेशा आदर किया था। इसलिए मैं कभी-कभी उससे मिलने लाल कोठी चला जाया करता था। कभी वहां के सिक्योरिटी गार्ड्स को पटाकर और कभी चोरी छुपे इसकी जानकारी रजनी को नहीं थी।

उस दिन मुझे पैसों की सख्त आवश्यकता थी मैंने अपना दर्द रजनी को बताया था उसने मुझे लाल कोठी आकर पैसे ले जाने को कहा था। मुझे पहुंचने में थोड़ा देर हो गई तभी जोरावर साहब के चुनाव का परिणाम आ गया और लाल कोठी उनके समर्थकों से भर गई मैं डर गया और लाल कोठी के पार्क में छुप गया।

रास रंग का माहौल शुरू होते ही मैं भी उस पार्टी का आनंद लेने लगा। पठान को छोड़कर मुझे और कोई सिक्योरिटी गार्ड नहीं जानता था। मैं पठान से दूरी बनाए रखते हुए उत्सव और लजीज खाने का आनंद ले रहा था। वैसे भी सीतापुर जाने वाली आखरी बस निकल चुकी थी मुझे सुबह तक इंतजार करना ही था इसीलिए मैं लाल कोठी में रुका रहा।

रजनी ने मुझे एस एम एस कर रात 01:00 बजे खिड़की के नीचे से पैसों का पैकेट ले जाने के लिए कहा था।

मनोहर ने अपना नोकिया 1100 फोन का मैसेज बॉक्स खोल कर इस्पेक्टर खान को दिखाया जिस पर रजनी का मैसेज था

"OK 1.00 O clock, same place."

मैं खिड़की के पास वाले सिक्योरिटी गार्ड के हटने का इंतजार कर रहा था जिससे मैं खिड़की के नीचे जाकर रजनी द्वारा फेंका गया पैसों का पैकेट उठा लू। तभी गोलियों की आवाज सुनाई दी मैं घबरा गया मुझे लगा उस समय यदि मैंने भागने की कोशिश की तो निश्चय ही पकड़ा जाऊंगा मैं चुपचाप आकर वापस पार्क में छुप गया.

जब मुख्य गेट पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड आप लोगों के साथ-साथ अंदर चले गए और सिर्फ एक पुलिस वाला बच गया तो मैंने हिम्मत जुटाई और विकेट गेट खोल कर बाहर जाने लगा उस पुलिस वाले ने मुझे रोकने की कोशिश की परंतु मैंने उसे धक्का देकर वहां से भाग निकला.

इंस्पेक्टर खान को मनोहर की कहानी पर पूरा यकीन ना हुआ उसने बाहर आकर पठान से मनोहर के बारे में जानना चाहा मनोहर द्वारा बताई गई कई बातें पठान द्वारा बताई गई बातों से मेल खाती थीं।

सुबह के 10:00 बज चुके थे. पुलिस थाने पर मीडिया का जमावड़ा लग चुका था। भूरेलाल भी अब तक थाने पर आ चुके थे मनोहर के पकड़े जाने से वह बेहद प्रसन्न थे उन्होंने इंस्पेक्टर खान से मशवरा किए बिना मीडिया को बयान जारी कर दिया..

देखिए हमने अभी एक संदिग्ध को पकड़ा है जो उस लाल कोठी में बिन बुलाए मेहमान की तरफ पहुंचा था और वारदात के समय वह लाल कोठी में उपस्थित था। उसने चकमा देकर वहां से भागने की कोशिश की परंतु हमारी सक्षम टीम ने उसे बस स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया है अभी पूछताछ जारी है।

मीडिया कर्मियों का शोर लगातार हो रहा था। एक सुंदर सी कटीली पत्रकार ने कर्कश आवाज में पूछा "जोरावर सिंह को मारने का क्या मकसद था?"

भूरेलाल को अभी उस आदमी के बारे में कुछ ज्यादा पता न था। उसने उस लड़की को कोई जवाब न दिया और पीछे मुड़ कर वापस थाने की तरफ आ गया।

मनोहर थाने की एक कोठरी में पड़ा कराह रहा था। उस हवलदार रतन सिंह ने उसकी कुटाई कुछ ज्यादा ही कर दी थी। आज रजनी से उसके संबंधों की वजह से उसे यह दिन देखना पड़ा था। मनोहर पिछले 18 वर्षों से रजनी को जानता था।

मनोहर जिस प्राथमिक स्कूल में क्लर्क का काम करता था रजनी उसी स्कूल के प्रधानाध्यापक शशीकांत की नई नवेली पत्नी थी। शशीकांत एक शांत स्वभाव के 32 वर्षीय युवक थे जो 20 वर्षीय अद्भुत सुंदरी रजनी को ब्याह कर ले आए थे। रजनी की सुंदरता अप्रतिम थी वह जितनी सुंदर थी उतनी ही चंचल थी। उसे जीवन से बड़ी उम्मीदें थीं। वह बंधनों में नहीं बंधना चाहती थी। रजनी के विवाह के उपरांत भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और कुछ ही दिनों में B.Ed की परीक्षा पास कर ली। यह एक संयोग ही था और शशिकांत जी के संबंधों का प्रभाव की रजनी भी उसी स्कूल में प्राध्यापिका बन गई।

मनोहर उस समय रजनी का हम उम्र था वह दोनों एक दोस्त की तरह ढेर सारी बातें करते उन दोनों में दोस्ती बढ़ती गई मनोहर दिन पर दिन उसके करीब आता गया। कजरी की महत्वाकांक्षा सिर्फ पद और प्रतिष्ठा को लेकर नहीं थी वह जीवन में हर सुख का अतिरेक चाहती थी। रजनी की इन्हीं विचारों ने एक दिन उसे और मनोहर को एक ही बिस्तर पर ला दिया रजनी की खूबसूरती को भोगने की मनोहर की हैसियत न थी परंतु उसने रजनी का दास बनकर उसे कामकला के हर सुख दिए जो शशिकांत जैसे सभ्य पुरुष के बस का कतई न था।

रजनी हमेशा से अपना प्रभुत्व बनाए रखती थी पढ़ी-लिखी होने के कारण और प्रधानाध्यापक की पत्नी होने के कारण स्कूल में उसका प्रभाव और दबदबा रहता था। धीरे-धीरे उसका दखल उस गांव की राजनीति में भी होने लगा। अपनी सुंदरता और दमदार व्यक्तित्व की वजह से कुछ ही वर्षों में वह न सिर्फ सीतापुर बल्कि आसपास के कई गांवों में प्रसिद्ध हो गए उसकी सुंदरता उसका सबसे बड़ा हथियार थी।

भूरेलाल और इंस्पेक्टर खान मनोहर के बयान पर चर्चा कर रहे थे तभी एक पुलिस वाला पोस्टमार्टम की रिपोर्ट लेकर कमरे में दाखिल हुआ भूरे लाल ने वह रिपोर्ट अपने हाथ में ले ली और भौचक्का होकर बोला

"अरे जोरावर सिंह को किसी ने चाकू भी मारा था तुमने देखा था क्या?"

" सर, डॉक्टर शर्मा अब ज्यादा दिन नौकरी नहीं कर पाएगा दिनभर टुन्न रहता है जोरावर सिंह को दो दो गोलियां लगी थी उस साले को चाकू कहां दिखाई पड़ गया?"

भूरेलाल ने फिर कहा

"नहीं उसने गर्दन पर दो दो जगह चाकू से खरोच के निशान देखे हैं और तो और वह चाकू जहर से बुझा हुआ था। जोरावर सिंह के शरीर से विश्व के अंश मिले हैं किसी ने उसे जहर लगे हुए चाकू से वार करके मारने की कोशिश की थी और असफल रहने पर उसकी ही बंदूक से उस पर वार कर दिया"

"अरे सर आप क्या बात कर रहे हैं? किसकी इतनी हिम्मत है कि वो चाकू लेकर वह जोरावर सिंह के कमरे में जाए और उस पर वार करें और तो और उस पर असफल रहने के बाद वह जोरावर से उसकी बंदूक मांगकर उसका ही कत्ल कर दे। यह हास्यास्पद व्याख्या है। जोरावर सिंह कोई कमजोर व्यक्ति नहीं था वह चाकू से हमला करने वाले व्यक्ति को आसानी से दबोच लेता और उसे वही खत्म कर देता।"

"इस रिपोर्ट में एक बात और भी लिखी है की जोरावर सिंह के शरीर में पाए जाने वाले विष के कारण शरीर में रक्त का संचार असामान्य रूप से बढ़ जाता है और कुछ मिनटों के बाद वह व्यक्ति अचेत हो जाता है और उचित उपचार न मिलने की दशा में वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है"

"इसका मतलब कि उस जिसके कारण ही जोरावर सिंह ने रजनी के साथ मरने से पहले रंगरेलियां मनाई और फिर गोली खा कर मर गया. पर यह गोली चलाई किसने?"

इंस्पेक्टर खान मैं अपने मातहत को बुलाया और पूछा फॉरेंसिक वाले अपनी रिपोर्ट कब तक देंगे साहब 2 दिन बाद।

उधर हवेली में जोरावर सिंह की पहली पत्नी और जयंत की मां शशि कला भी अपनी व्हीलचेयर में आ चुकी थी। जोरावर सिंह और रजनी का मृत शरीर लेकर उनका भाई राजा और पुत्र जयंत थोड़ी ही देर में लाल कोठी पहुंचने वाले थे।

जोरावर सिंह के समर्थकों का हुजूम लाल कोठी के बाहर इकट्ठा था परंतु कोठी के परिसर में चुनिंदा व्यक्तियों को ही आने दिया गया था।

रिया राजा की पत्नी रश्मि के कमरे में मुरझाई जी बैठी हुई थी। वह पूरी तरह लावारिस हो गई थी। रश्मि और जयंत ही इस धरती पर ऐसे दो व्यक्ति थे जो उस से हमदर्दी रखते थे। लाल कोठी में आने के पश्चात उसके किशोर दोस्तों ने भी उससे मिलना बंद कर दिया था ।

सच पूछिए तो उन्होंने रिया को नहीं छोड़ा था अपितु रिया को मजबूरन उन्हें छोड़ना पड़ा था। सामाजिक कद और हैसियत का यह अंतर इतना बड़ा था जिसे न रिया पाट पाई और न हीं उसके दोस्त।

एंबुलेंस की सायं...सांय … करती आवाज लाल कोठी की खामोशी को चीरते हुए बेहद करीब आ चुकी थी रिया अपनी मां रजनी को देखने के लिए नीचे आने लगी रश्मि भी इसे सहारा देते हुए साथ साथ चल रही थी।

एक प्रभावशाली और दमदार व्यक्तित्व का व्यक्ति जमीन पर पड़ा हुआ था। एक महत्वाकांक्षी युवती निर्वस्त्र सफेद कपड़ों में लिपटी हुई उसके बगल में लेटी हुई अर्श से फर्श तक का सफर उन दोनों महत्वाकांक्षी लोगों ने चंद घंटों में देख लिया था।..

राजा के फोन की घंटी बजी होम मिनिस्टर द्वारिका राय का फोन था…

राजा भैया हमें माफ कीजिएगा इस केस का इंचार्ज अब बीएसपी भूरेलाल नहीं रहेंगे मुख्यमंत्री ने दखल देकर एसीपी राघवन को इस केस का इंचार्ज बना दिया है….

तभी दो पुलिस की गाड़ियां लाल कोठी के अंदर दाखिल जो राजधानी से आई प्रतीत होती एक हैंडसम युवक आंखों पर काला चश्मा लगाए जीप से उतर रहा था वह कोई 30 वर्ष का हीरो जैसे दिखने वाला व्यक्ति था…

उसके साथ आए पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और वह सधे हुए कदमों से दोनों लाशों के पास आ गया।


शेष अगले भाग में
कहानी बहुत ही उलझती जा रही है। हर कोई संदेह के घेरे में है मगर हत्याकांड का मकसद अभी भी सामने नहीं आया है। घटनाक्रम बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे है। देखते है आगे क्या होता है। अति सुंदर लेखन
 

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एसीपी राघवन ने परिवार के सदस्यों को लाशों से दूर जाकर खड़े रहने के लिए कहा। राजा अभी भी राघवन के इर्द-गिर्द ही घूम रहा था उसने कहा…

"आपको अलग से बोलना पड़ेगा जाकर वहां खड़े रहिए."

राजा को राघवन का यह अंदाज पसंद नहीं आया उसके चेहरे पर क्रोध स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था वह अपने क्रोध को काबू में नहीं रख पाया और गुर्राते हुए बोला…

"ओए मिस्टर तमीज से बात कीजिए"

राघवन ने संजीदा भाव से अपने मातहत "अधिकारी को कहा इन्हें थाने ले चलो वहीं पर तमीज सीखी और सिखाई जाएगी"

कुछ अधिकारी और पुलिस वाले राजा की तरफ बढ़ने लगे। पठान एसीपी राघवन के सामने नतमस्तक हो गया उसने कहा

"सर माफ कर दीजिए"

वह राजा को लेकर वहां से दूर हट गया.

एसीपी राघवन और राजा की आंखें चार हुई परंतु नजर राजा की ही नीचे हुई हुई एसीपी राघवन एक कड़क अधिकारी की तरह अपनी गरिमा बनाए हुए था।

दोनों लाशों का मुआयना करने के बाद एसीपी राघवन ने तुरंत ही खरोच का वह निशान देख लिया जो जोरावर सिंह जी की गर्दन पर लगा था। उसे स्वयं इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि जब हत्यारे को जोरावर सिंह को गोली मारनी ही थी तो उस छोटे चाकू या खंजर से गर्दन पर वार करने की क्या जरूरत थी।

उसने स्पेक्टर खान से पूछा

"पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई है?"

"हां सर आफिस में है"

"ओके"

दोनों लाशों को वापस सफेद चादर से ढक दिया गया. एसीपी राघवन एक बार फिर राजा के पास आया जो अपनी पत्नी रश्मि तथा रजनी की पुत्री रिया के ठीक बगल में खड़ा था। थोड़ी ही दूरी पर व्हीलचेयर में शशि कला और उसका पुत्र जयंत भी था।

उसने जयंत की तरफ देखते हुए पूछा

"आप मृतक के पुत्र हैं ना? उस रात आप कहां थे।"

जयंत को महसूस हुआ जैसे वह उससे पूछताछ कर रहा हो। जयंत वैसे तो एक हंसमुख युवा था परंतु वह जोरावर सिंह का खून था जिसने आज तक झुकना नहीं सीखा था उसने राघवन को पलट कर बढ़ी तल्खी से जवाब दिया..

"अपने घर पर"

"लाल कोठी में?"

"नहीं "

"सीतापुर में"

एसीपी राघवन ने जयंत के चेहरे पर एक अजब किस्म के भाव देख लिए उसे यह पूछताछ अच्छी नहीं लग रही थी। राघवन कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। उसने अपने मातहत अधिकारियों को निर्देश दिए और रश्मि की तरफ मुखातिब होकर बोला

"आप सब ने उस रात जो भी देखा, जो भी सुना उसकी सारी जानकारी इन्हें दे दे। ध्यान रहे आप जो बातें इन्हें बताएंगे उसमें आगे जाकर बदलाव संभव नही होगा। इसलिए आप लोगों को जो भी पता हो सच सच बता दीजिए।

यह बात ध्यान रहे कि यह कत्ल लाल कोठी में हुआ है और मृतक के रिवाल्वर से ही हुआ है। इसमें घर का भी कोई सदस्य शामिल हो सकता है। हां एक बात और, आप में से कोई बिना अनुमति के शहर छोड़कर नहीं जाएगा।

राजा के चेहरे पर भी गुस्सा था परंतु वह एसीपी राघवन से टकराना नहीं चाहता था वैसे भी आज लाल कोठी पर ग्रहण लगा हुआ था।

एसीपी राघवन अपनी टीम के साथ जोरावर सिंह के कमरे में आ गया और घटनास्थल को देखकर घटनाक्रम को समझने का प्रयास करने लगा। उसने कमरे का बारीकी से मुआयना किया और अपने मोबाइल से कई सारे फोटोग्राफ्स भी लिए।

कुछ देर बाद लाल कोठी से सारे पुलिस वाले वापस जा चुके थे सिर्फ गेट पर 4-6 पुलिसवाले तैनात थे जो बाहर से आने वाले और कोठी से बाहर जाने वालों पर नजर गड़ाए हुए थे.

जोरावर सिंह और रजनी के अंतिम संस्कार की तैयारियां होने लगीं।

रिया अपनी मां को एक बार फिर सुहागन के कपड़े में देखकर भावुक हो गई। रजनी सच में बेहद सुंदर थी परंतु आज उसके चमकदार चेहरे से रौनक गायब थी। जो शरीर अब से कुछ घंटों पहले तक एक रानी के शरीर की भांति चमक रहा था वह अब मिट्टी के ढेर की तरह आभाहीन जमीन पर पड़ा था। उस पर किए जा रहे श्रृंगार अब कोई मायने नहीं रखते थे फिर फिर भी सामाजिक विधि विधान से अंतिम संस्कार की तैयारियां हो रही थी।

रजनी ने अपनी मां के पैर छुए और पुष्प अर्पित किये तथा चुपचाप एक कोने में जाकर बैठ गई वह सुबक रही थी। जयंत उसके ठीक बगल में आकर बैठा और उसे सांत्वना देने का प्रयास कर रहा था। इन दोनों ने ही अपने अपने मां-बाप को खोया था यह अलग बात थी कि न तो जयंत को रजनी से कोई सरोकार था न हीं रिया को जोरावर सिंह से।

जोरावर सिंह के पार्थिव शरीर को देखने के लिए शहर से भी भीड़ उमड़ रही थी। पुलिस व्यवस्था एक बार फिर चाक चौबंद हो गई शाम के 4:00 बज चुके थे। पार्थिव शरीर को कंधे पर लिए जयंत, राजा और दो करीबी समर्थक श्मशान घाट के लिए निकल पड़े और उनके पीछे समर्थकों का बड़ा हुजूम चल पड़ा।

लाल कोठी लाली नदी के तट पर बनी थी इस नदी में पानी ज्यादा तो न था परंतु सलेमपुर के निवासियों के लिए वह गंगा नदी से कम न थी लाली नदी का जल न सिर्फ सिंचाई के काम आता अभी वह गरीब तबके के लोगों की प्यास भी बुझाता था।

उसी नदी के तट पर जोरावर सिंह का अंतिम संस्कार होना था। दोपहर में ही एक साफ सुथरी जगह जगह देख कर जोरावर सिंह के अंतिम संस्कार की तैयारी कर दी थी।

समर्थकों के हुजूम और झुके हुए गमगीन चेहरों के बीच चिता सजाई गई और जोरावर सिंह और उनकी पत्नी रजनी पंचतत्व में विलीन हो गए। जयंत के चेहरे पर अपने पिता के जाने का गहरा दुख दिखाई पड़ रहा था।

जोरावर सिंह और रजनी का अंत हो चुका था परंतु वह अपने पीछे कई रहस्य छोड़ गए थे जिन्हें सुलझाने का दायित्व एसीपी राघवन पर था। पठान, कालू और हीरा उस अनजान लड़की और न जाने कितनी हत्याओं में शामिल थे परंतु वह जोरावर सिंह के वफादार थे उन्होंने जोरावर सिंह के लिए न जाने कितनी हत्याएं की थी परंतु कभी उनका मुंह न खुला था और न हीं कभी किसी ने खुलवाने की कोशिश की थी। जोरावर सिंह की छत्रछाया में उन पर हाथ डालने की ताकत न पुलिस में थी न हीं विरोधियों में।

उधर एसीपी राघवन के लिए एसपी ऑफिस में विशेष कक्ष तैयार करा दिया गया था। मूर्ति जो राघवन का खास आदमी था वह जोरावर सिंह का मोबाइल अनलॉक करा कर एसीपी राघवन के कमरे में आ चुका था।

जोरावर सिंह का मोबाइल का मोबाइल खंगाला जाने लगा परंतु रात 10:00 बजे के बाद कोई कॉल नहीं आया हां, व्हाट्सएप और मैसेज पर बधाइयां देने का तांता लगा हुआ था।

जोरावर सिंह के मोबाइल में कुछ भी आपत्तिजनक ना मिला जिससे राघवन कोई सुराग ढूंढ पाता। फिर भी उसने मूर्ति से उन सभी व्यक्तियों के डिटेल निकालने को कहा जिन्होंने आज जोरावर सिंह को कॉल किया था। मूर्ति ने जोरावर का फोन अपने हाथों में ले लिया और रजनी का फोन राघवन के हाथों में दिया।

राघवन रजनी के फोन में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहा था उसने मूर्ति से कहा तुम ही चेक कर लो कुछ इंपॉर्टेंट हो तो बताना मैं जरा उस मनोहर से मिल कर आता हूं।

इधर लाल कोठी में मातम पसरा हुआ था उधर सीतापुर के पास रामपुर गांव में सरयू सिंह के यहां दोपहर में ही शराब का दौर चल रहा था। सरयू सिंह के चेहरे पर एक अजीब किस्म की खामोशी थी परंतु उनके साथी बिना किसी गम के शराब के जाम छलकाए जा रहे थे।

सरयू सिंह भी जमीदार परिवार से थे परंतु उनके पुरखों ने अपनी अय्याशी में अपनी ढेर सारी जमीन बेच दी थी और सरयू सिंह के खाते में अब ज्यादा कुछ नहीं बचा था परंतु फिर भी सलेमपुर जिले में वह दूसरे धनाढ्य व्यक्तियों में गिने जाते थे।

कई वर्षों पहले सरयू सिंह का परिवार जोरावर सिंह के परिवार से कहीं बढ़कर था परंतु समय ने सरयू सिंह का पलड़ा झुका दिया था और जोरावर सिंह सलेमपुर के बादशाह बन चुके थे। सरयू सिंह 50 वर्ष की आयु में आज भी अपना शारीरिक सौष्ठव बनाए हुए थे तथा देखने में एक पहलवान जैसे प्रतीत होते थे थे बड़ी-बड़ी मूछें और चेहरे पर ठाकुरों वाला रौब उन्हें विरासत में मिला था।

"सरयू भैया अब काहे उदास हैं दो-चार महीना में आप ही सलेमपुर के राजा होंगे" सरयू सिंह के साथ बैठे एक आदमी ने कहा।

सरयू सिंह मैं अपना मौन तोड़ा और बोला

"पता करो यह काम किसने किया है जो भी हुआ वह ठीक नहीं हुआ है। कलुआ आज दिन भर से दिखाई नहीं दिया उसको ढूंढ कर बोलो मुझसे मिले"

"वह तो कल शाम को सलेमपुर गया था हमको लगता है तब से ही नहीं लौटा है"

" साला कहीं वही तो नहीं मार दिया है पागल किस्म का आदमी है" साथ बैठे एक और व्यक्ति ने करना

" पगला जैसे से बात मत कर" सरयू सिंह ने उसे डांटा।

सरयू सिंह जोरावर सिंह के प्रतिद्वंद्वी थे उनका कद जोरावर सिंह की तुलना में छोटा था परंतु वह अकेले ऐसे व्यक्ति थे जो जोरावर सिंह के साम्राज्य पर बराबर उंगलियां उठाते तथा अपना वजूद कायम रखते हुए उनके प्रतिरोध में अपना स्वर मुखर करते।

जोरावर सिंह से दुखी व्यक्ति स्वतः ही उनके साथ आ जाते। जोरावर ने उनके साथ कभी कोई बुरा नहीं किया था परंतु जोरावर के कद की अहमियत सरयू सिंह को पता थी।

सरयू सिंह स्वयं भी अपने से कमजोर लोगों पर अपना खौफ जमाने की कोशिश करते थे और काफी हद तक कामयाब भी होते थे परंतु जोरावर सिंह की बराबरी करना उनके बस में न था। उनका मातहत कलुआ पठान जैसा ही था परंतु वह सरयू सिंह की छाया न था। कभी-कभी वह उनको छोड़कर कुछ दिनों के लिए अपने रास रंग में रम जाया करता था।

राघवन का साथी मूर्ति रजनी का मोबाइल खंगाल रहा था उसकी आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी रजनी का मोबाइल पोर्न फिल्मों से भरा हुआ था। ज्यादातर फिल्म की नायिका कमसिन लड़कियां थी और पुरुष लगभग अधेड़ किस्म का। ऐसा प्रतीत होता था जैसे कुछ विशेष प्रकार की फिल्में ही उसने अपने मोबाइल में संजो कर रखी थीं।

तभी एक सिस्टम फोल्डर के अंदर एक ऐसी वीडियो क्लिप मिली जिसे देखकर मूर्ति खुशी से उछल पड़ा। उस क्लिप में जोरावर सिंह एक एक बेहद कम उम्र की लड़की के साथ संभोग रत थे। लड़की पूरी तरह रजामंद नहीं थी ऐसा लग रहा था जैसे किसी मजबूरी बस उसे जोरावर सिंह के पास आना पड़ा था। उसने तुरंत ही अपने मोबाइल से राघवन को फोन लगाया परंतु राघवन ने उसका फोन नहीं उठाया शायद वह कहीं व्यस्त था.

उस शाम रजनी में भी कई लोगों से फोन पर बात की पर मूर्ति ने एक कदम आगे बढ़ कर उनके भी डिटेल निकालने शुरू कर दीये।

रजनी और मनोहर के बीच s.m.s. पर हुई वार्तालाप भी रजनी के मोबाइल में कैद थी और आखरी मैसेज भी वहीं था जैसा मनोहर ने बताया था.

"Ok 1:00 o clock same place."

एसीपी राघवन मनोहर के पास आ चुका था…

मनोहर एक बार फिर खौफजदा था। उसने अपनी कहानी एक बार फिर राघवन को सुना दी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसे अब यह कहानी रट गई हो।

राघवन ने कहा

"यह बता जोरावर और रजनी की मुलाकात कैसे हुई"

मनोहर अपने मन में उस मुलाकात को याद कर रहा था।


शेष अगले भाग में।
अब acp के आने से कहानी के पेंच ढीले होने शुरू होंगे। सरयू सिंह भी संदेहास्पद चरित्र लग रहा है। एक संभावना ये भी हो सकती है कि रजनी की वजह से दोनो की हत्या हुई हो। देखते है आगे क्या होता है।
 

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भाग 21
रेल की पटरियों पर हो रहे कंपन बाहर तक सुनाई देने लगे। जयंत और रिया की ट्रेन आ चुकी थी। राजा भैया का परिवार दोनों प्रेमी युगल को छोड़ने स्टेशन पर आ गया। कुछ ही देर में ट्रेन चल पड़ी जैसे-जैसे ट्रेन सलेमपुर का रेलवे प्लेटफार्म छोड़ रही थी राजा के चेहरे पर मुस्कुराहट बढ़ती जा रही थी उधर ट्रेन के अंदर रिया और जयंत एक दूसरे के आलिंगन में थे और अपने परिवार वालों को याद कर रहे थे जिसने पठान भी था।

एसीपी राघवन पठान को लेकर वापस लौट रहा था उसके चेहरे पर सुकून था उसने सलेमपुर का यह पेचीदा केस आखिरकार सुलझा लिया था।

अब आगे..

सलेमपुर स्टेशन छोड़ चुकी ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ चुकी थी। ट्रेन के एसी कंपार्टमेंट में बैठे हुए जयंत और रिया एक दूसरे को देख रहे थे।

जयंत ने रिया से पूछा…

"अब तो बता दो राघवन ने क्या पूछा था.."

"अब बीती बातें भूल जाओ... ऊपर वाले ने हमारी बहुत मदद की है और अब हम सलेमपुर से बाहर जा रहे हैं. राघवन जी भी एक अच्छे व्यक्ति हैं। अंत भला तो सब भला।"

जयंत रिया की बातों से संतुष्ट न था उसके चेहरे पर अभी भी असमंजस के भाव थे। रिया ने उसे खुश करते हुए कहा…

"लगता है अपने कंपार्टमेंट में बाकी बची दोनों बर्थ खाली हैं।" इतना कहते हुए रिया अपनी सीट से उठकर जयंत के बगल में बैठ चुकी थी। जयंत रिया के करीब आने से खुश हो गया था उसने रिया के कोमल गालों को अपनी हथेलियों से लाया और उसके होंठ स्वतः ही उसके होठों से सट गए। एकांत ने उन्हें अपने दिमाग में चल रही उथल-पुथल को दरकिनार कर और करीब आने का मौका दे दिया था।

उधर राजा और रश्मि लाल कोठी पहुंच चुके थे। शशि कला उनका इंतजार कर रही थी।

राजा ने शशि कला की व्हीलचेयर पकड़ी और उसे खाने की टेबल तक लाते हुए बोला..

"जयंत और रिया बेहद खुश थे। भगवान का लाख-लाख शुक्र है दोनों बच्चों की मनोकामना पूर्ण हो गई"

शशि कला ने राजा के हाथों को अपनी दोनों हथेलियों के बीच दबाते हुए कहा

"राजा तुमने इस परिवार को एक बड़े खतरे से बचा लिया है... उनको (जोरावर) को तो जाना ही था जिस घृणित कृत्य की आदत उन्हें लग गयी थी वह एक न एक दिन उन्हें गहरी मुसीबत में अवश्य डालती और अंततः हुआ भी वही।

"भाभी छोड़िए जाने दीजिए बीती बातें। आज खुशी का दिन है हमारे जयंत और रिया अपनी जिंदगी एक साथ व्यतीत करने के लिए इंग्लैंड जा रहे हैं भगवान उन्हें हमेशा खुश रखे।"

"राजा पठान को जरूर बचा लेना"

"आप निश्चिंत रहिए मैं पठान को कुछ नहीं होने दूंगा"

अगली सुबह राघवन का असिस्टेंट मूर्ति उसके ऑफिस में आया

"सर मुझे एक बात कहनी है… " मूर्ति ने जोरावर सिंह के केस की फाइल राघवन की टेबल पर रखते हुए बोला।

"हाँ हां मूर्ति बताओ क्या बात है?"

"सर हो ना हो यह कत्ल रिया ने ही किया है।"

"राघवन चौक गया और अपने हाथ में जल रही सिगरेट को डस्टबिन में फेंकते हुए बोला यह बात तुम कैसे कह सकते हो…?"

"सर आपको याद है जब हम लोग रिया के रूम से मिले दस्ताने पर बारूद की गंध को सूखने के पश्चात रिया से प्रश्न किया था तो उसने क्या उत्तर दिया था"

राघवन की पल के कुछ फलों के लिए बंद हुई ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो अपनी याददाश्त को खंगाल कर मूर्ति के इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने की कोशिश कर रहा था

"हां हां उसने बताया था कि जोरावर की जीत की खुशी में उसने वह बंदूक चलाई थी।"

"दरअसल वह तीनों गोलियां रिया ने ही चलाई थी परंतु हवा में नहीं यह तीनों गोलियां जोरावर और रजनी पर चलाई गई थी जिससे उनकी हत्या हुई थी"

"राघवन आश्चर्य से मूर्ति को देख रहा था"।

"पर क्यों"

"हो ना हो जोरावर रिया को भी अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता था रिया के बाथरूम में कैमरा लगा कर उसकी अर्धनग्न तस्वीरें भी जोरावर नहीं खींची थी जोरावर सिंह के बगीचे के पीछे वाले कमरे से भी रिया के बाल मिले थे और उस कमरे से मिले बालों के सैम्पल में रिया की और उस पहले लड़की के सैंपल थे जिसकी मृत्यु जोरावर की मृत्यु से कई दिनों पहले हुई थी।"

मूर्ति एक साथ अर्जित किया गया सारा ज्ञान विहार चुका था। राघवन अब भी चुप था मूर्ति ने दोबारा बोलना शुरू किया

"हो सकता है रिया को उस लड़की को उस कमरे में बंधक बनाए जाने की बात रिया को पता चल गई हो और वह उससे मिलने उस कमरे में गई हो जब जोरावर को यह बात पता चली होगी तो निश्चित ही वह रिया को डरा धमका कर अपनी साजिश का हिस्सा बनाना चाहता होगा। हो सकता है जोरावर ने रिया पर भी हाथ डालने की कोशिश की हो और शायद इन्हीं सब वजहों से रिया नहीं उसका कत्ल कर दिया हो।"

राघवन बेहद संजीदगी से उसकी बातें सुन रहा था। मूर्ति ने अपनी सारी खोजबीन और उसका निचोड़ राघवन के सामने रख दिया था। राघवन ने कुछ देर सोचा और अपनी आंखें बंद कर छत की तरफ देखने लगा उसने मूर्ति से कहा..

"मूर्ति तुमने थोड़ी देर कर दी रिया और जयंत अब विदेश निकलने की तैयारी में होंगे वह दोनों कल रात ही यहां से दिल्ली जा चुके हैं।"

"सर मैंने आपको पहले भी इशारा किया था"

"मूर्ति , लाल कोठी का यह केस एक हाई प्रोफाइल केस था बिना ठोस सबूत दे हम इसे ज्यादा दिनों तक नहीं खींच सकते थे"

राघवन ने मूर्ति के प्रश्नों पर विराम लगा दिया था। मूर्ति के जाने के बाद वह अपनी खिड़की से बाहर खुले आसमान को देख रहा था इसी विशाल आसमान पर रिया और जयंत का प्लेन उन दोनों को अपने ख्वाबों की दुनिया में ले जा रहा था।

लाल कोठी में लगी जोरावर सिंह की तस्वीरें हटाई जा रही थीं। सिर्फ और सिर्फ वह हाल जहां जोरावर सिंह अपने समर्थकों से मिलते थे उस कमरे को छोड़कर लाल कोठी से उनका नामोनिशान हट चुका था। शशि कला ने भी अपने कमरे की सभी तस्वीरों को हटा दिया था जिसमें जोरावर सिंह किसी न किसी रूप में उपस्थित थे।

उधर जयंत और रिया का प्लेन रनवे पर दौड़ रहा था जैसे-जैसे प्लेन रफ्तार पकड़ रहा था रिया का मन शांत हो रहा था जैसे ही प्लेन ने अपने देश की जमीन छोड़ी रिया के चेहरे पर खुशी दौड़ गई। जयंत ने उसकी तरफ देखा और बोला

"अब तुम आजाद हो। अब हमें कोई खतरा नहीं है"

"परंतु पठान चाचा अभी अंदर है वह बाहर तो आ जाएंगे ना? रिया सच में पठान को लेकर चिंतित दिखाई पड़ रही थी"

तुम निश्चिंत रहो वह आजाद होते ही हम से मिलने आएंगे।

एयरपोर्ट फॉर्मेलिटी तथा इमीग्रेशन में हुई देरी के कारण रिया पूरी तरह थक चुकी थी हवाई जहाज की बिजनेस क्लास की आरामदायक सीट पर लेटी हुई रिया झपकियां लेने लगी।

उसे वह दिन याद आ रहा था जब उसने किसी पुरुष स्पर्श में छुपे गलत इरादे से महसूस किया था। उसके 13 वें जन्मदिन पर जोरावर ने उसे पहली बार अपनी बाहों में भर कर ऊपर उठा लिया था वहां उपस्थित सभी लोगों को यह पिता पुत्री का प्यार दिखाई दे रहा होगा पर रिया उस स्पर्श को आज तक नहीं भूलती वह जोरावर के हथेलियों को अपनी नितंबों पर घूमता हुआ महसूस कर रही थी उसे एक अजीब सा एहसास हो रहा था।

इस घटना के पश्चात रिया ने जोरावर से सुरक्षित दूरी बना ली थी पर गुड़ को आप कितना भी बचा कर रखिए चीटियां आ ही जाती है यही हाल रिया का था। रजनी जैसी सुंदर तथा काम कला में दक्ष महिला का संसर्ग पाकर भी जोरावर का मन नहीं भरा वह रिया के और करीब आना चाहता था। जैसे-जैसे दिया किशोरावस्था की उफान पर पहुंचती गई उसकी सुंदरता में और निखार आता गया उसका कसा हुआ कमनीय शरीर जोरावर को उसकी तरफ आकर्षित करता गया परंतु रिया ने उससे दूरी बनाकर रखी।

जोरावर इस दौरान रजनी के और करीब आता गया और रिया के ना चाहने के बावजूद रजनी और जोरावर के बीच नजदीकियां बढ़ती गई। रिया अपने मन की बात रजनी को चाह कर भी नहीं बता पाती उसने एक दो बार अपनी बातें बताने की कोशिश की पर रजनी ने उसे नजरअंदाज कर दिया। रजनी को यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि जोरावर जैसा एक सामाजिक प्रतिष्ठा वाला व्यक्ति एक अल्पवय किशोरी के साथ ऐसा कुछ कर सकता है और वह भी उसकी ही पुत्री के साथ।

इसी दौरान जयंत और रिया करीब आते गई दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ता गया रिया ने मन ही मन कई बार सोचा कि वह जोरावर के प्रति अपने विचारों को जयंत से साझा करें परंतु उसके मन में अंजाना डर उसे अपनी भावनाएं व्यक्त करने से रोक लेता था।

समय के साथ जोरावर रजनी को ब्याह कर घर ले आया परंतु उसके दिमाग में अब भी रिया घूम रही थी जो अब किशोरावस्था की दहलीज लांघ कर युवा अवस्था में प्रवेश कर रही थी।

लाल कोठी में आने के पश्चात रजनी जोरावर की कामुक दुनिया से परिचित हो चुकी थी उसने न सिर्फ जोरावर की कामुकता को नए आयाम पर पहुंचा दिया अपितु कामुक लड़कियों को घर में लाकर उसकी वासना को चरम पर पहुंचा दिया। कमसिन लड़कियों से सेक्स करने की इच्छा को पूरा करने में भी रजनी ने ही उसकी मदद की और धीरे-धीरे जोरावर की कामुकता उसके चरित्र पर हावी होती गयी।

घर में आने के पश्चात रिया न चाहते हुए भी उसके करीब हो गयी। जोरावर का स्पर्श उसे हमेशा से डरावना लगता परंतु अपने मन की बातें कह पाना बेहद कठिन था। रजनी उसकी मां होने के बावजूद उसके मन का मर्म नहीं समझ पाती थी और जयंत उससे यह बात साझा करने से रिया को अब भी डर लगता था।

पिछले महीने मोनी जब इस लाल कोठी में आई थी जोरावर के कमरे से उसके प्रथम संभोग की चीख और उसके पश्चात कमरे से आ रही सिसकियों को रिया ने अपने कानों से सुना था उसे जोरावर से घृणा हो गयी।

अगले दिन उसने अपने मन की सारी बात पूरी संजीदगी से अपनी मां रजनी से साझा कर दी। रजनी रिया की बातों को पूरी तरह समझ चुकी थी परंतु न जाने उसे इस लाल कोठी से कौन सा लगाव हो गया था उसने रिया की बात को सुना तो जरूर पर स्वयं को लाचार बता कर उसे भी चुप रहने के लिए प्रेरित किया उसने इतना वचन अवश्य दिया कि जोरावर उसके साथ कुछ भी नहीं करेंगे।

रजनी ने अपने तरीके से जोरावर से बात की परंतु जोरावर के मन को पढ़ पाना रजनी के बस में भी न था। वह रिया पर पूरी तरह आसक्त था और उसे हर हाल में भोगना चाहता था।

मोनी के प्रथम संभोग के बाद उसे लाल कोठी के बगीचे के पीछे वाले कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था।

उस कमरे का प्रयोग पहले राजा भैया का मातहत रघु किया करता था जहां कभी कभी वह अपने दोस्तों के साथ शराब और मुर्गा पार्टी का आनंद लिया करता था। उस शराब की बोतल पर रघु की उंगलियों के निशान शायद उसी दौरान छूटे हुए थे।

मोनी को उस कमरे में बंद कर जोरावर ने उसे अपनी कामुक गतिविधियों का अड्डा बना लिया था।

लाल कोठी में मोनी के साथ संभोग करते समय मोनी का चीखना चिल्लाना लाल कोठी की अस्मिता पर प्रश्नचिन्ह लगा सकता था जोरावर ने शायद इसीलिए अपने कर्मों के लिए वह पीछे का कमरा चुन लिया था। रिया यह बात बखूबी जानती थी। उसे हम उम्र मोनी से हमदर्दी हो चली थी वह सबकी नजरें बचाकर उसके पास जाती उससे बातें करती और उसे सांत्वना देने की कोशिश करती।

आखिर एक दिन जोरावर को यह बात पता चल गई उसने रिया को मोनी के सामने अपनी बाहों में भर लिया और उसके स्तनों पर हाथ फेरने की कोशिश की रिया ने स्थिति की गंभीरता को समझ कर जोरावर से माफी मांगी और भागती हुई लाल कोठी के अंदर आ गई रजनी घर पर नहीं थी रिया बेचैन हो गई उसने अपने मन की व्यथा को बेहद संजीदगी और सधे हुए शब्दों में जयंत को बताने की कोशिश की जयंत ने उसे सुना समझा परंतु उसकी बात पर पूरी तरह यकीन नहीं कर पाया उसके पिता का यह नया रूप उसके लिए बेहद अविश्वसनीय था।

जोरावर रिया के बाथरूम में कैमरा लगा कर उसकी नग्न तस्वीरें खींच अपनी कामुकता को और बढ़ा रहा था रजनी द्वारा लगाई गई आग अब उसके ही घर को जलाने वाली थी। यदि इलेक्शन का दौर न चल रहा होता तो शायद जोरावर अब तक रिया को अपनी वासना का शिकार बना चुका होता परंतु इलेक्शन के दौरान इस तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था एक बार उसने रिया को अपनी बाहों में लेते हुए बोला जिस दिन में सलेमपुर का विधायक बनूंगा उसी दिन तुम्हारी नथ उतारूंगा।

रिया बेहद डर गई थी।

जोरावर सिंह के कत्ल की रात जब रजनी रिया के कमरे में आई थी तब.. रिया ने अपनी बात रजनी को एक बार फिर बतानी चाहिए थी परंतु हर बार की तरह रजनी उसे नजरअंदाज कर अपने कमरे में चली गई हालांकि उसने रिया से कहा था कि वह अपने कमरे का दरवाजा खुला रखेगी शायद रजनी ने पुत्री के डर को महसूस कर यह बात कही थी।

कभी कुछ देर बाद रिया ने जोरावर के कमरे में सोनी को जाते हुए देखा उसके दिमाग में एक बार फिर वही तस्वीर घूम गयी जब पहली बार मोनी की चीखें उसे सुनाई पड़ी थी।

कुछ ही देर बाद सोनी के मृत शरीर को जोरावर के कमरे से निकलते देख कर रिया अपना आपा खो बैठी।

रिया ने मन ही मन फैसला कर लिया।

वह जोरावर के कमरे में गई जो भरपूर संभोग करने के पश्चात बिस्तर पर बेसुध लेटा हुआ था। रिया ने अपना दस्ताना पहन रखा था हिंदी फिल्म ने उसे इतना ज्ञानी अवश्य बना दिया। उसने जोरावर की रिवाल्वर निकाली और पहली गोली उसके कनपटी पर दाग दी जब तक जोरावर कुछ समझ पाता उसने दूसरी गोली उसके अंडकोष के ठीक नीचे दाग दी। रिया की नफरत अपने उफान पर थी। बगल में सो रही रजनी गोलियों की आवाज से उठ चुकी थी और वह चीखती हुई रिया की तरफ बढ़ी । रिया के मन में न जाने क्या आया उसने अगली गोली रजनी पर चला दी आखिर सोनी और मोनी दोनों की हत्या में कहीं ना कहीं रजनी भी जिम्मेदार थी उसे रजनी में अपनी मां से ज्यादा एक घृणित स्त्री दिखाई पड़ रही थी।

कुछ ही देर में परिवार के सारे सदस्य उपस्थित हो गए रिया ने अपना जुर्म कबूल कर लिया परंतु राजा ने किसी को कुछ भी बोलने से रोक लिया।

इसके पश्चात जोरावर सिंह के कत्ल की जांच राजा भैया के निर्देशों पर चलने लगी। राजा भैया ने अपनी जानकारी, प्रभाव तथा डीएसपी भूरेलाल के सहयोग से सबूतों से छेड़छाड़ की।

पठान को जब पता चला कि सोनी और मोनी उसकी ही पुत्रियां थी उसे पहली बार जोरावर से नफरत हुई वह रिया के प्रति कृतज्ञ हो क्या रिया में उसे अपनी पुत्री दिखाई पड़ने लगी उसने सहर्ष रिया रिया द्वारा किए गए कत्ल का इल्जाम अपने सर ले लिया और केस की दशा दिशा पलट गई।

दो-तीन वर्षों पश्चात पठान जेल से छूट गया जोरावर सिंह का केस खत्म हो गया था पठान के छूटने की खुशी में जयंत और रिया इंग्लैंड से वापस सलेमपुर आए हुए थे।

लाल कोठी के हॉल में पठान को देखकर रिया भाव विभोर हो गई और पठान से लिपट गई यह आलिंगन पिता पुत्री के आलिंगन जैसा ही था एकदम निश्चल और पावन।

लाल कोठी ने पठान को जोरावर की जगह अपना लिया था। जयंत और रिया के लिए पठान अब पिता की जगह ले चुका था।

समाप्त।




प्रिय पाठको मुझे पता है कहानी का यह आखिरी अपडेट मैं और लंबा कर सकता था परंतु मैंने इस कहानी को यहीं पर समाप्त करने की सोची है रिया के अनुभव और उसके जीवन में घटी घटनाओं को मैं कहानी के बीच में ही दर्शा सकता था जो इस फोरम पर मैंने नहीं किया है परंतु अपनी इस मूल कहानी में मैं उन अंशों को और विस्तार से लिखकर उचित जगह पर डाल रहा हूं।


फिलहाल यह कहानी समाप्त हो चुकी है जिन पाठकों ने भी इस कहानी को पढ़कर अपना जुड़ाव दिखाया है उन सभी को मैं तहे दिल से धन्यवाद देता हूं।

आपका दिन शुभ हो



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बहुत ही शानदार, जानदार और रोमांचक कहानी थी मजा आ गया इससे पढ़ कर। आगे भी अगर आप ऐसी ही मर्डर मिस्ट्री लिखनेंगे तो मजा आ जायेगा।
 
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