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Adultery ककोल्ड शादीशुदा पत्नी की चुदाई: सीखी प्रणय की नई परिभाषा

Gentlemanleo

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भाग 2

अगली शाम को करीब 7 बजे आशुतोष मेरे आफिस में आ गया और साथ में उसके श्वेता थी। मैंने तपाक से आगे बढ़ कर आशुतोष से हाथ मिलाया और श्वेता को मैंने नजरअंदाज कर दिया। आशुतोष ने मेरा श्वेता से परिचय कराया तो मैंने उसे हेलो कह दिया। तभी आशुतोष ने श्वेता से बोला, "श्वेता मेरी नोटबुक कार की बैक सीट पर ही रह गयी है, प्लीज उसे ले आओ।"

यह सुनकर श्वेता तुरंत ही नोटबुक लेने चली गयी। उसके जाने के बाद मैंने आशुतोष से पूछा," सर, आपका वो समान नहीं आया?"

इस पर आशुतोष ने चौकते हुए कहा,"अरे यही तो है जिसे तुमने अभी देखा!"

यही है वो सर का माल ! इस एहसास से मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई। मुझे लगा कि मेरे दिल की धड़कन रुक गई।

मैं पिछली शाम की ही बातें सोचने लगा जब आशुतोष ने कहा था कि "नहीं यार बीपी, असल में वो बहुत ही सेक्सी है, पता नहीं वो कब देगी। कार में उसके गालों को हल्का से चुम चुका हूँ और 3/4 बार उसकी चुंचियों को अपनी कोहनी से दबा चुका हूँ। मैं जब अपनी कोहनी जो उसकी चुंचियों पर लगाई तो वह सिकुड़ी नही, उसने अपनी चुंची दबने दी। मैं इसी को ग्रीन सिग्नल मान रहा हूँ।"

मैं उसी सोंच में डूबा था कि तभी आशुतोष ने कहा, "आज प्रोग्राम बना के आया हूँ के यहाँ से जाते हुए मैं, रास्ते में पक्का कुछ न कुछ करूंगा।" इतने में केबिन का दरवाज़ा खुल गया और श्वेता नोटबुक ले कर अंदर आगई। उससे आशुतोष ने कहा," तुम बाहर अपना स्लॉट देख लो मैं ब्रह्मप्रकाश जी के साथ कुछ ज़रूरी काम कर लेता हूँ।"

श्वेता के बाहर निकलते ही आशुतोष ने कहा,"क्यों भाई कहा खो गए ? कैसी लगी, हमारी पसन्द ?"

अब मैं आशुतोष को क्या बताता की उसकी पसंद देख कर मेरी फट के फ्लावर हो गई है और पैर जमीन पर संभल भी नही रहे है।

मैंने अपने मन के भाव दबाते हुए कहा, "हाँ हाँ बहुत अच्छी है बिलकुल मस्त।"

"आज हम एक स्टेप और बढ़ गए।"

"क्या ?"

"हेडऑफिस से ले कर यहाँ तक मैंने उसका हाथ अपनी पेंट के ऊपर से ही अपने लन्ड पे रखवाया और कमाल तो ये हुआ कि इसने एक बार भी नहीं हटाया और मेरी पेंट के ऊपर से ही मेरे लन्ड को सहलाती रही "

मैं यह सुन कर सुन्न रह गया! वो उस श्वेता के बारे में कह रहा था जो मेरी 8 साल से धर्मपत्नी है!

क्या श्वेता यह सब मेरे लिए ज़बरदस्ती सह रही है? या इस कॉन्ट्रैक्ट को हांसिल करने के लिए, मैंने उसे कमजोर होने के लिए धकेल दिया है? क्या मैने अपनी पत्नी को भवनात्मक रूप से यह सब करने को बाध्य किया है? क्या इस सब का कारण मैं हूँ?

या फिर यह सिर्फ आशुतोष की एक फैंटेसी है जो मुझे सुना कर अपनी चुदास को तृप्त कर रहा है?

तभी आशुतोष ने मेरा ध्यान को तोडते हुए कहा, "आज तो पक्का इसकी चुदाई करूँगा चाहे होटल ही बुक कराने का रिस्क लेना पड़े।"

मैंने घबड़ा कर कहा," अरे! और ये घर पर क्या बताएगी?"

"जो मर्ज़ी वो बहाना बनाये लेकिन बीपी सच कह रहा हूँ, वो पूरी तरह तैयार है देने को। मैं ही देर कर रहा हूँ, कोई जगह भी तो नहीं है।"

उस समय मुझे आशुतोष से जलन और श्वेता पर गुस्सा दोनों ही आ रहा था लेकिन उससे ज्यादा मुझे बौखलाहट, यह सब सुनकर अपने लन्ड के कड़ा होने पर हो रही थी।

तभी आशुतोष ने कहा,"यार बीपी कर सको तो तुम ही कोई जगह का इंतज़ाम कर दो।"

यह सुनकर अनायास ही मेरे मुंह से निकल पड़ा,"ऐसा है कि मेरे पास तो ये ऑफिस है और ये रात 8:30 के बाद बंद हो जाता है, फिर खाली रहता है।"

मेरे मुंह से यह सब निकल तो गया लेकिन खुद ही भयातुर हो गया। हे भगवान ये मैंने क्या दिया! मैं खुद ही आशुतोष को अपनी पत्नी श्वेता को चोदने के लिए अपनी ही जगह दे रहा था! मैं इससे पहले कि संभल पाता, आशुतोष ने कहा, "ये हुई न बात! बस 8 :30 का बाद, आज ही!"

मैं आशुतोष की बात को मन ही मन खारिज करने लगा, उसके कहने से क्या होता है? जब श्वेता चुदाई के लिए मानेगी तभी तो होगा! मैं अंदर से अपने को आश्वस्त कर रहा था की यदि एक पल के लिए यह मैं मान भी लूं की श्वेता चुदने के लिए तैयार है तो वह यह कभी भी नहीं चाहेगी कि मुझे इस बारे में पता लगे और इसलिए अगर, वो यहाँ चुदने के लिए तैयार होती है तो इसका मतलब की वो जानती है कि मेरे और आशुतोष के बीच में क्या बात हुई है।

लेकिन ऐसा नहीं हो सकता!

तभी मेरे मन में एक बात आई और मैं आशुतोष से अभी आया कहकर, बाहर आगया। मैंने निकल कर श्वेता को मोबाइल पर कॉल किया और कहा, "मै आशुतोष को ये बताना भूल गया हूँ कि मुझे आज रात को एक पार्टी में जाना है और पार्टी एक फार्म हॉउस में है।"

श्वेता ने कहा, "तो अब क्या करना है?"

मैंने कहा," वैसे तो मैं रमेश(ऑफिस असिस्टेंट जो सबसे बाद में जाता है) को कह दूंगा कि वो ध्यान रखे, लेकिन क्या आशुतोष को इस तरह छोड़ के जाना ठीक होगा?"

श्वेता ने कहा ,"तुम आशुतोष को कह दो कि कोई इमरजेंसी है और जल्दी से घर जा कर तैयार हो जाओ और पार्टी में चले जाओ। मैं बाद में घर आ जाउंगी। मां, दोनो बच्चो को देख ही लेंगी और फिर मैं यहां आफिस में तो रहूंगी ही। चिंता कि कोई बात नहीं है।"

एक क्षण के लिए मुझे लगा जैसे श्वेता की चूत के होठों में शायद आशुतोष को सोच कर पानी आ रहा है। फिर मुझे में अपराध भाव आगये कि मैं ये क्या सब बकवास सोच रहा हूँ।

खैर वापिस ऑफिस में आ कर मैंने आशुतोष से कहा कि मुझे कोई इमरजेंसी आगई है और मुझे अभी जाना पड़ेगा।
आशुतोष ने तुरंत कहा, "बीपी क्या रात को यहाँ पर कोई और भी रहता है?"

"कोई नहीं बस रमेश है, जो सबसे बाद में लॉक लगा कर जाता है।"

"तुम रमेश को कह दो कि आज लॉक मैं लगा कर चाबी उसके घर दे जाऊंगा।"

मैंने पूछा, "पक्का आज ही करोगे और अगर उसके पति को पता चल गया तो?"

"यार वो कोई बहाना बना देगी, आफिस में देर सबेर तो होती रहती है और फिर कौन सा हमने पूरी रात बितानी है? 1 घंटे में फ्री हो जायेंगे हम दोनों।"

मैंने सोचा कि मैं यह सब क्या कर रहा हूँ? मैं आशुतोष को टरकाने की जगह, उसकी बात मानता जारहा हूँ? श्वेता को झंझोड़ के उसकी हरकतों के लिए गुस्सा करने की जगह उससे मिमिया रहा हूँ? क्या मैं यह सब इसलिए कर रहा हूँ ताकि मैं सब कुछ देख सकूं? क्या मैं आशुतोष को श्वेता को चोदते देखना चाहता हूँ?

तभी मैंने न चाहते हुए भी इण्टरकॉम पर रमेश को बुलाया और कहा, "आशुतोष सर को आफिस कि सारी चाबियाँ दे दो और सुबह इनके घर से ले लेना। अभी उन्हें 1-2 घंटे अपने निगम के कुछ डेटा फीड करवाने है।"

मेरी बात सुन कर रमेश ने चाभियां आशुतोष को दे दी और फिर मैं उसको आशुतोष को गुड नाईट कह कर, ऑफिस से बाहर आ गया।

जिस बिल्डिंग में मेरा आफिस है उसके साथ वाली बिल्डिंग नयी बन रही थी। मैं कार में बैठा और घुमा फिरा कर कार उस बिल्डिंग के पीछे ले आया। वहां अँधेरा और गन्दगी पड़ी हुई थी। वहां पर कुछ और गाड़िया भी खड़ी थी। मैंने उन्ही के बीच अपनी कार को पार्क कर दिया। मैं कार से जल्दी से उतर कर, साथ वाली बन रही बिल्डिंग में पिछले के हिस्से से अन्दर घुस गया और सीढ़ियों से चढ़ कर टॉप फ्लोर पर पहुँच गया। मैं 5th फ्लोर पर था और साथ वाली बिल्डिंग के 2nd फ्लोर पर मेरा आफिस था। मैं जल्दी से छत के रास्ते होता हुआ अपनी बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पे आ गया और नीचे देखते हुए इंतज़ार करने लगा की कब सभी लोग आफिस से बाहर जाते है। धीरे धीरे सभी लोग बाहर आने लगे और आखिर में रमेश निकला और वह चला गया।

अब मेरी मेरी पत्नी श्वेता और आशुतोष सर अकेले मेरे आफिस में थे। मैं तेजी से भाग कर 2nd फ्लोर पर आया और कॉरिडोर से होता हुआ बिल्डिंग की पीछे वाले हिस्से में चला गया। वहां पर लकड़ी का दरवाज़ा सिर्फ चिटकनी के साथ बंद था, जिसे खोल कर मैं अन्दर घुस गया और अन्दर से चिटकनी लगा दी। ये हमारे आफिस की पेंट्री थी। पेंट्री में पूरा अँधेरा था। वहां थोड़ी सी रोशनी बस दरवाज़े के नीचे से आ रही थी। वहां की गिलास विंडो पर काले रंग का चार्ट चिपका हुआ था, जो की पुराना और थोडा सा फट गया था। मैंने थोडा सा उसे और फाड़ दिया जिससे मुझे मेरे आफिस का हाल जहां सीखने वाले कंप्यूटर लगे हुए थे और सामने मेरा केबिन पूरा दिखाई देने लगा था!

मैंने देखा आशुतोष और श्वेता दोनो ही मेरे केबिन में ही बैठे हुये, कंप्यूटर पर कुछ कर रहे थे। तभी देखा आशुतोष ने श्वेता से कुछ कहा और वो उठ कर बाहर आई और मुख्य दरवाजे को अंदर से लॉक कर दिया। ये लॉक अंदर और बाहर दोनो से ही खुलता और बंद होता था और उसकी एक चाभी मेरी जेब में भी थी। मैं उस वक्त चाहता तो अपनी पत्नी का भांडा फोड़ कर सकता था, पर न जाने क्यों मैं यह नही कर पाया। मेरे दिल ओ दिमाग मे आगे क्या होता है जानने और देखने का भूत समा गया था। पता नहीं क्यों मैं श्वेता को किसी दूसरे मर्द से चुदने की तसल्ली चाहता था वह भी उस आदमी से जिसने मेरे सामने ही मेरी पत्नी के बारे में बहुत कुछ बताया था और जिसे श्वेता ने मुझसे छुपाया था। शायद मैं इस बात की संतुष्टि चाहता था की क्या श्वेता यह सब मुझे काम दिलवाने कि लिए कर रही है?

जब मेरी पत्नी श्वेता ने मुख्यद्वार को अंदर से बंद किया तो जहां मुझे पीड़ा हो रही थी वही पर उत्सुक्ता भी बढ़ रही थी कि अब आगे क्या? मैंने देखा कि वो जब वापस सीधे मेरे केबिन वापिस आई तो आशुतोष ने उठ कर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठो को चूसने लगा। जब आशुतोष ने अपने होंठो ने श्वेता के होंठो पर रक्खा तो मेरा शरीर झनझना गया। वे दोनो मुझ से बहुत दूरी पर नही थे, मुझे केबिन में जल रही रोशनी में सब साफ साफ दिख रहा था। मैं यह साफ़ दिख रहा था कि जिस व्यग्रता से आशुतोष उसको होंठो को चूम और चूस रहा है उतनी ही आकुलता श्वेता भी चुम रही है। श्वेता मेरी धर्मपत्नी, पूरा साथ दे रही थी।

अब मुझे अपने एक प्रश्न का उत्तर मिल गया था कि जो भी हो रहा है वह, श्वेता की सहमति से हो रहा है। मुझे पता नही क्यों इस एहसास से की श्वेता आज आशुतोष के साथ जो चिपटी पड़ी है उसमें उसके साथ कोई जबरदस्ती नही है और मेरा इसमें कोई दोष नही है, कही अंदर मुझे शांत कर गया। मैं ग्लानि से तो मुक्त हो गया था लेकिन मन मे आक्रोश पनप रहा था। श्वेता पिछले 15 दिनों से आशुतोष की तरफ से की जारही हरकतों का प्रतिकार करने या मुझसे शिकायत करने की जगह वो स्वयं, आशुतोष की कोशिशों को बढ़ावा दे रही थी। मुझ से इतना बड़ा विश्वासघात!

मैं अपने आक्रोश में उबला श्वेता पर प्रतिघात और इन दोनों को आफिस के सामने बेइज्जत करने की सोचने लगा था कि सामने देखा कि अब आशुतोष ने अपने दोनो हाथों को श्वेता के नितंबो पर रक्खे हुए है और वो उसे दबाने में लगा हुआ है। इधर श्वेता भी अपने होंठ आशुतोष के होंठों से चिपकाए हुए उससे लिपटी हुई थी। वो अपने नितंबो पर आशुतोष के हाथों का सुख ले रही थी। तभी आशुतोष ने नितंबो की दरार में कुछ हलचल की तो श्वेता उचक गई। अब मैने देखा कि आशुतोष धीरे धीरे, अपने हाथों से श्वेता की साड़ी उठाने लगा है।

उसकी साड़ी जब उठ कर उसके टखनों तक आगई तो उसकी नंगी टांगे देख कर मेरे लन्ड में कुछ होने लगा। एक अजीब सी उत्तेजना मेरे लन्ड को कसमसा रही थी। तभी देखा श्वेता ने आशुतोष को कुछ कहा और वो उसकी बाहों अलग हो गयी। उसने स्विच बोर्ड के पास जा कर लाइट बंद कर दी और मेरे केबिन में अँधेरा हो गया।

अंधेरा होते ही मैं मन ही मन श्वेता से लाइट बंद करने पर गुस्सा करने लगा। अब जब बात आगे बढ़नी थी और मुझे देखना था तब यह अंधेरा मेरे लिए बड़ी बेइंसाफी थी। यह मुझे, श्वेता का मुझसे विश्वासघात किये जाने से बड़ी बेइंसाफी लग रही थी। फिर मैंने अपने मन को यह कह कर संतावना दी की शायद वो शर्मा रही है और इसलिए उसने लाइट बंद कर दी है। वे दोनों मुझे, मेन हॉल की जल रही लाइट, जो केबिन में भी हल्की से आरही थी, उसमे थोड़े थोड़े दिखाई दे रहे थे। लेकिन फिर मुझे यह देख बड़ा आश्चर्य हुआ कि वे दोनों मेरे केबिन से निकल कर, हॉल में आ गए और अब मुझे उस दोनों कि बातें सुनाई देने लगी।
आशुतोष ने पूछा ''क्या हुआ, वहां क्यों नहीं?"

श्वेता ने कहा," केबिन की खिड़की से केबिन की लाइट की रोशनी बाहर से दिखती है। उससे लगेगा की अभी आफिस खुला है, लोग है और यही सोच कोई आ न जाये। इसलिए इस हॉल में ज्यादा ठीक रहेगा'।'

"लेकिन यहाँ कैसे? सोफा तो बीपी के केबिन में ही है।''

"अरे जब करना होगा तो देखा जाएगा, वहां लाइट ज्यादा ज़रूरी है क्या?"

श्वेता के इतना कहते ही आशुतोष ने उसको फिर से अपने बाहों में जकड लिया और उसे चूमने लगा। अब वो भी आशुतोष को बेतहाशा चूमने लगी और केबिन वाली श्वेता से अलग, अब वो बड़ी स्वछंद हो रक्खी थी। एक दुसरे को चूसते चाटते हुए ही आशुतोष ने श्वेता के ब्लाउज के हुक खोलने शुरू कर दिया और थोडा सा पीछे हट कर, वो सामने से उसके खुले ब्लाउज को देखने लगा।

"क्या देख रहे हो?"

"देख रहा हूँ कि तुम कितनी सेक्सी हो। अपने बूब्स को देखो, किस खूबसूरती से इस सेक्सी ब्रा में कैद हैं."


"तो फिर कैद को खोल के अपना कैदी ले लो!"

यह सुन कर आशुतोष अपने दोनों हाथ श्वेता के पीछे ले गया और ब्रा के हुक खोलने लग गया। ब्रा के हुक खुलते ही श्वेता के बूब्स छलक के बाहर आगये। अब आषुतोष उससे अलग होकर, श्वेता की भरी हुई नग्न होती चुंचियों कर देखने लगा।

"अब क्या हुआ?"

"तुम्हे देख रहा हूँ, क्या लाजवाब लग रही हो। थोडा सा साड़ी का पल्लू हटाओ।"

श्वेता के पल्लू हटाते ही आशुतोष के साथ साथ मैं भी अपनी पत्नी की सुंदरता को निहारने लगा। उसके ब्लाउज के हुक खुले थे और उसमें से हुक खुली ब्रा झांक रही थी। ब्रा हुक खुल जाने के कारण श्वेता की चूचियों को, मुश्किल से ढक पा रही थी। उसके निप्पलस, अभी भी ब्रा के पीछे ही छुपे थे लेकिन उसकी चुंचियीं की गोलाइयाँ और सांचे में ढली बनावट, साफ़ नज़र आ रही थी।

"कार में तो बड़े उतावले होते हो इनको पकड़ने के लिए?और अब खोल के भी छोड़ दिया?"

"श्वेता क्या तुम्हें कभी किसी ने बताया है की तुम कितनी सेक्सी हो?"

"क्या मतलब ?"

"इधर आओ।"

आशुतोष के कहने पर, श्वेता उसके पास गयी तो आशुतोष ने श्वेता की साड़ी के नीचे फिर से हाथ डाल दिया और कुछ किया जिससे श्वेता, मुस्कराते हुए हंसने लगी और उसने कहा, "अरे रुको तो!"

यह सब देख कर मेरे खुद की सांसे भारी चलने लगी थी और मेरा लन्ड मेरे अंडरवियर में फूल कर बेरहम हो रहा था। मैने पैंट के ऊपर से ही अपने लन्ड को सहला रहा था कि आशुतोष ने श्वेता की साड़ी और पेटीकोट को साथ साथ ऊपर उठाना शुरू कर दिया। उसकी साड़ी-पेटीकोट जब उसके घुटनों तक पहुंची तो मैंने देखा की श्वेता की गुलाबी रंग की पेंटी, उसके घुटनों में फंसी हुई थी। मुझे अब समझ आया कि आशुतोष ने जो श्वेता की साड़ी के अंदर हाथ डाला था, वह पैंटी उतारने के लिए ही डाला था। अब आशुतोष अपने एक हाथ से श्वेता की चुंचियों को रगड़ रहा था और उसका दूसरा हाथ साडी के अन्दर था।

अब क्योंकि श्वेता की पैंटी उसके घुटनों के आसपास थी इसलिए मुझे पता चल गया था की अब आशुतोष की उंगलिया मेरी पत्नी की चूत से खेल रही थी।

तभी श्वेता ने एक हलकी सी आह भरी और अपनी आँखे बंद कर ली।

आशुतोष ने श्वेता को देखते हुए पूछा, "क्या हुआ? मज़ा आया?"

श्वेता ने हाँ में सर हिला दिया और अपनी बाहों में आशुतोष की गर्दन को लपेट लिया।

फिर श्वेता थोड़ी जोर से हिली और बोली, "प्लीज़ दो उँगलियाँ नहीं, एक से ही कर लो।"

आशुतोष मेरी पत्नी की चूत में उंगली डाल रहा था।

तभी आशुतोष ने वहां पड़ी एक रिवॉल्विंग कुर्सी पर श्वेता को बिठाया और कहा,"श्वेता तुम्हारे हस्बैंड बड़े भाग्यशाली हैं, अगर मैं तुम्हारा पति होता तो दिन रात तुम्हारी साड़ी के अंदर ही घुसा रहता।"

श्वेता अब एक कामुक औरत की तरह इतराते हुए बोली, "तुम्हें क्या पता मेरी साड़ी में क्या है?"

"मेरी इन उँगलियों ने देख लिया है की क्या है और वो ये बता रही हैं कि साड़ी में जो छेद है वो उँगलियों से खेलने कि नहीं है।"

"तो फिर किस चीज़ से खेलने की है?"

आशुतोष ने अपनी जीभ निकली और कहा,"इस से।"

और यह कह कर आशुतोष, श्वेता की पैंटी निकालने लगा।

आशुतोष ने श्वेता को थोडा सा कुर्सी पर गिराया ताकि उसके नितंब थोड़े से बाहर निकल आयें और उसने श्वेता की साड़ी को ऊपर उठा दिया। अब श्वेता की गोरी गोरी पिंडलियाँ और जांघे, आशुतोष को तो क्या, मुझे भी साफ़ साफ़ दिख रही थी। आशुतोष ने श्वेता की जांघो को थोडा सा खोला और अब उसकी चूत, जिस पर छोटे छोटे बाल थे, नज़र आने लगी थी। मैं अपनी श्वेता की खूबसूरत चूत आंख फाडे हुए, पैंट्री के अंधियारे से देख रहा था। इसी चूत की सील मैने 8 वर्ष पहले तोड़ी थी, इसी चूत से मेरे दो बच्चे निकले थे, इसी चूत को कल ही रात घोड़ी बना चोदा था! यह सोंच मेरा दिमाग और लन्ड दोनी भन्नाने लगेथे। मैं सर्विस विंडो के फ़टे पोस्टर के किनारे से, अपनी पत्नी को शालीन पतिव्रता धर्मपत्नी से कामुक छिनार स्त्री बनते हुए देखने के लिए कसके चिपक गया।

तभी आशुतोष ने एक लम्बी सांस भरी और कहा, "ओह गॉड! श्वेता तुम्हारी चूत इतनी सुंदर! क्या फूली हुई है!"

"आशुतोष! मुझे शर्म आ रही है, प्लीज़ ऐसे मत बोलो!"

"श्वेता! सच कह रहा हूँ, इतनी सुंदर चूत मैंने आज तक नहीं देखी।"

यह कहते हुए आशुतोष मेरी पत्नी श्वेता की जांघो के बीच झुक गया। उसने श्वेता की चूत की दरार में अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी और जैसे ही उसकी जीभ, चूत पर ऊपर नीचे हुई, श्वेता के मुंह से एक छोटी सी सिसकी निकल गई। अब आशुतोष ने अपनी जीभ पूरी बाहर निकाली और श्वेता की चूत पर सबसे नीचे रख, पूरी जीभ से श्वेता की चूत को चाटता हुए, धीर धीर ऊपर ले जाने लगा।

"आआ...ह्ह्ह्हह्ह.....आआ .....शऊऊ ........तोत .......ओह्ह्ह .....मर जा....उंगी......मैं.....अह्ह्

ह.......उह्ह्ह बस....बस आशुतोष!!"

इतना कहते ही श्वेता ने आशुतोष के सर के बाल पकड़ लिए और उसका सारा शरीर अकड़ने लगा. और बोली,"आश्शूऊ ......!!!!....ओह्ह्ह गौड़ड़ड़ !......ऑउच..........अह्ह्ह.... आई म.... कम्मिंग!! ....आशुतोष!

मैं जान गया था कि यह मेरी श्वेता का पहला ओर्गास्म था। ओर्गास्म श्वेता को हुआ था लेकिन लन्ड मेरा बेहाल था। मैं उस पैंट के ऊपर से दबा के तसल्ली दे रहा था।

श्वेता 1 मिनट तक, रिवॉल्विंग कुर्सी पर पसरे हुए लम्बी लम्बी साँसे लेती रही।

"अरे श्वेता तुम तो पहले चखने में ही निकल गयी!इतनी जल्दी!"

श्वेता, वैसे ही पड़े पड़े, अधखुली आंखों से देखते हुए, मुस्कराने लगी और कहा,"प्लीज़ डू इट अगेन!"

इतना सुनते ही आशुतोष, श्वेता की चूत पर पिल पड़ा और उसने श्वेता की चूत को जीभ से चाटने की रेल सी चला दी। आशुतोष मेरी पत्नी श्वेता की चूत को अच्छी तरह से चाट रहा था। मुझे उससे जलन हो रही थी। मैं जानता था कि श्वेता को अपनी चूत चटवाना अब पसन्द है। शुरू में श्वेता जो अपनी चूत चटवाने के लिए मनाना पड़ता था, बड़ी मुश्किल से तैयार किया था और मैंने घण्टों इसी चूत को चाट कर उसे चटोरी बना दिया था।

आज उसी चूत को आशुतोष चाट रहा है। मेरी चूत मेरी अमानत, आज आशुतोष, एक पराये आदमी की जीभ के सामने फैली पड़ी है। यही देखते और सोचते हुए मै कब अपनी पैंट की जीप खोल कर अंडरवियर के उपर से अपने कड़कड़ाते लन्ड को दबाने लगा, पता ही नही चला।

भाग 3

अब जब ध्यान अंदर की तरफ लगाया तो देखा श्वेता अपनी जांघो को और फैला चुकी है और आशुतोष मेरी पत्नी की चूत के अंदर, जीभ घुसेड़ रहा था। उसकी जीभ, श्वेता की चूत के अंदर हलचल मचा रही थी और उसकी आहें तेज़ होने लगी थी। फिर आशुतोष ने अपना मुंह थोडा सा ऊपर किया और अपने हाथो की दोनों उँगलियों से श्वेता की चूत की दोनो फलको को फैला कर, अपनी पूरी जीभ अन्दर डाल कर, उसकी चूत की अंदरूनी दीवारों को चाटने लगा।

तभी श्वेता ने कहा," लिक माय क्लिट प्लीज़!"

आशुतोष ने उसकी तरफ देख कर कहा,"अभी चाटता हूँ श्वेता, तुम देखती जाओ आज कैसे तुम्हारी हर तमन्ना को पूरी करूँगा।" और यह कह कर आशुतोष, श्वेता कि चूत की क्लिट को अपनी जीभ के कोने से चाटना शुरू कर दिया।

" अह्ह्ह्ह.....हाँ ..........धीरे! थोडा धीरे आशूऊ........आउच ........अह्ह्ह...... अहह्म्म्म.....ओह माय गॉड! ये क्या कर रहे हो!"

अब आशुतोष ने श्वेता की क्लिट को अपने होंठो के बीच में पकड़ लिया था और उसे चूसने लगा।

"बस करो आशुतोष! मर जाउंगी मैं ......ऊह्ह्ह्ह .......फिर से होने वाली हूँ मैं .......आःह्ह... .....आ रही हूँ मैं फिर से.......थोडा और......यहीं पर....बस यही पर..और करो .....आआआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!"

और इसी के साथ मेरी श्वेता एक बार फिर से झड़ने लगी थी। उसका शरीर थोड़ी देर के लिए अकड़ गया और फिर निढाल हो कर कुर्सी पर ही पसर गई। उसकी हालत देख कर आशुतोष एक विजेता की मुस्कान के साथ उठा और कहा, "क्या हुआ श्वेता? अभी से थक गई?"

श्वेता ने एक थकी हुई मुस्कान के साथ कहा, "अगर मैं कहूँ कि थक गयी हूँ तो क्या मुझे छोड़ दोगे?"

"अच्छा बाबा ठीक है, थोड़ी देर आराम कर लो।"

इस पर वो भूखी शेरनी की तरह सीधे हुई और बोली, "जी नहीं, अब तो एक बार ही आराम होगा।"

और उसने उँगली से आशुतोष को अपने पास आने का इशारा किया।

जैसे ही आशुतोष, उसके बायीं तरफ आया, श्वेता ऊपर मुंह करके आशुतोष की तरफ देखने लगी लेकिन उसके हाथ आशुतोष की पैंट पर थे। वो उसे खोल रही थी। श्वेता ने बेल्ट और पैंट के हुक खोलने के बाद आशुतोष की पैंट को नीचे खींच दी। अब आशुतोष अपनी सफ़ेद रंग के अंडरवियर में खड़ा हुआ था।

आशुतोष ने पूछा,"क्या देख रही हो?"

"अभी तो कुछ नहीं दिखा?"

" क्या देखना चाहती हो?"

श्वेता ने कुछ नहीं बोला और उंगली से उसके अंडरवियर के उभरे हुए हिस्से की तरफ अपनी आँखों से इशारा किया।

"कौन रोक रहा है? देख लो।"

श्वेता ने मुस्कराते हुए मुंह नीचे कर लिया और बोली, "मुझे शर्म आ रही है।"

इस पर आशुतोष ने कहा ,"जब ..."फिर से होने वाली हूँ मैं .......आःह्ह......आ रही हूँ मैं फिर से.......थोडा और......यहीं पे...बस यही पर..और करो" कह रही थी तब शर्म नहीं आ रही थी क्या? मेरा लौड़ा देखने में शर्म आ रही है अब !"

"हाय राम कितने गंदे हो आप! कैसे कैसे बोलते हो।"

"अरे अगर लौडे को लौडा नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?"

" अच्छा अब चुप भी करो।"

"तो फिर निकालो इसे बाहर नहीं तो फिर से कहता हूँ लौ..".

इतना कहता ही श्वेता ने आशुतोष के अंडरवियर को धीरे से नीचे कर दिया।

अंडरवीयर नीचे आते ही आशुतोष का कड़ा सा लंड बाहर आ गया। उसके लन्ड का सुपाड़ा मशरूम जैसा चिकना और मोटा था। उसका लन्ड देखते हुए मुझे अपने लन्ड का ख्याल आगया। क्या मेरा लन्ड बेकार है? आशुतोष को मुझसे बड़ा और मोटा है? मैं एक अजीब से हीनता में गिरफ्त हो रहा था। मैंने अपनी पैंट खोल डाली और अपने अंडरवियर में छटपटा रहे लन्ड को निकाल लिया। वो भनभनाता हुआ निकल आया और मैने उसे अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया। मैं मन ही मन अपने और आशुतोष के लन्ड को तौलने लगा। क्या श्वेता आशुतोष के लन्ड से चुदने के बाद मेरे लन्ड का तिरस्कार तो नही करेगी? लेकिन अगले ही क्षण मैने यह विचार दिमाग से निकाल फेका क्योंकि मेरा 7 इंच का लन्ड, थोड़ा घुमावदार टेढ़ा जरूर है लेकिन आशुतोष के लन्ड से किसी मायने में कम नही था।

मेरा लन्ड मेरी मुट्ठी में था लेकिन आंखे अंदर हॉल में हो रही रासलीला की तरफ लगी हुई थी। मैने देखा श्वेता, आशुतोष के लन्ड को अपने हाथों में लिए हिला रही थी और फिर एक दम से वह झुक गई और उसने आशुतोष के लन्ड के सुपाड़े को चूम लिया।

श्वेता को जब आशुतोष के लन्ड को चूमते देखा तो मेरे दिल मे एक टीस सी उठ गई। श्वेता को लन्ड चूसना कभी भी पसंद नही था। शुरू में तो मेरा लन्ड हाथ मे लेकर मुट्ठ मारने में भी आनाकानी करती थी। मैने लगातार 3 वर्षो की मेहनत के बाद उसे अपने लन्ड को मुंह मे लेकर चूसना सिखाया था। आज भी जब भी मेरे लन्ड को चूस कर मुझे झाड़वाती है तो एहसान लादती है। लेकिन आज, पहली ही बार मे, बिना आशुतोष के मनाए उसने अपने होंठ उसके सुपाड़े पर रख दिये थे।

उधर आशुतोष ने श्वेता से कहा,"एक बात पूछूं?"

श्वेता ने लन्ड पकडे ही आशुतोष की और देखा और कहा, "हाँ पूछो।"

"तुम्हारे पति से मेरा बड़ा है?"

श्वेता ने कहा ,"नहीं, मेरे पति से बड़ा नहीं है, बस इसका मशरूम शेप और गोरापन ज्यादा है।"

श्वेता की यह बात सुन मैं इतना खुश हुआ कि मैं खुद ही अपने लन्ड को हिलाने लगा।

श्वेता, आशुतोष के लन्ड को हिला ही रही थी की एक दम से उसने अपनी जीभ निकाली और आशुतोष के लंड को लम्बाई में जीभ से चाटने लगी और फिर मुंह खोल कर, उसका पूरा सुपाड़ा अंदर ले कर चूसने लगी।

यह देख कर एक बार फिर मेरे दिल मे टीस उठी, मेरी श्वेता बड़ी मुश्किल से मेरे लंड को चूसती थी और यहां वो किसी दूसरे आदमी के लन्ड को मुंह में डाल कर चूस रही थी।

श्वेता, आज आशुतोष के लन्ड को ऐसे चूस रही थी जैसे वो बरसो से चूसती आयी हो!

आशुतोष बड़बड़ाने लगा, "फ़क यू श्वेता! ओह्ह माय गॉड! क्या लौड़ा चूसती हो!"

यह सुनकर श्वेता कस कस के आशुतोष का लन्ड चुसने लगीं। तभी आशुतोष बोला," बस! अब और नहीं!"

श्वेता ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा और पूछा, "क्या हुआ?"

आशुतोष ने बिना जवाब दिए, श्वेता को उठाया और उसे कुर्सी पर बिठा दिया और फिर कहा, "फैलाओ अपनी टाँगे।"

इस पर श्वेता ने कहा,"अरे रुको! यहाँ नहीं, कंडोम नहीं है। प्लीज़, बिना कंडोम के नहीं!"

आशुतोष, श्वेता के मुंह के पास आया और होंठो से होंठ मिला कर बोला, "श्वेता आई वान्ना फ़क यु राइट नाउ! मुझे तुमको अपने नंगे लौड़े से ही चोदना है! मेरा लौड़ा तुम्हरी चूत को पूरा महसूस करना चाहता है!"

श्वेता मिमयाती हुई बोली, "लेकिन बिना कंडोम के? ये मेरे सेफ डेज भी नहीं हैं,प्लीज़ आशुतोष आज मान जाओ!"

आशुतोष इस पर बोला," श्वेता सिर्फ एक बार कह दो तुम्हारा मन नहीं है तो मैं कुछ नहीं करूँगा"

इस पर श्वेता ने आंखे नीचे कर ली और बोली, "मन तो बहुत है आशुतोष लेकिन आज होगा यह कोई तय नही था। बिना कंडोम के खतरा है, कहीं कुछ गडबड न हो जाये।"

आशुतोष ने कहा , "श्वेता परेशान न हो, तुम्हारे अंदर नहीं गिरूंगा, यह पक्का जेंटलमैन प्रॉमिस है।"

यह कह कर उसने श्वेता के होंठो को चूमा और उससे अलग होने लगा।
,
आशुतोष पूरी तरह से उसपर से उठ पता तभी श्वेता ने आशुतोष का लन्ड (जो अब थोडा शिथिल हो चूका था) पकड़ा और धीरे से कहा "अरे बाबा ! मैं कह रही हूँ आज तो कर लो पर फिर कभी कंडोम के बिना मत करना।"

यह सुन कर जहां आशुतोष मुस्करा पड़ा वही मेरा दिल बैठ गया। क्या सुन रहा हूँ, श्वेता, आशुतोष से आगे भी उससे चुदवाने का वचन दे रही है! आज पहली बार मे हीं कंडोम भूल भाल कर, मेरी अमानत वाली चूत में, दूसरे आदमी का खालिस लन्ड लेने को तैयार बैठी है! लेकिन यह क्या, वहां आशुतोष का लन्ड, इनकार पर ढीला हो गया था और यहां मेरा लन्ड, श्वेता की नंगी चुदाई देखने की आशा में ही घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा था! मुझको यह समझ आरहा था कि कुछ न कुछ मेरे अंदर गड़बड़ है, कुछ अलग है। एक तरफ मेरी आंखों के सामने, मेरी पत्नी श्वेता स्वेच्छा से एक पर पुरुष से चुदने जारही थी और दूसरी तरफ मैं अपनी पत्नी की बेवफाई और पर पुरूष से चुदाई को लेकर कामोत्तेजित हो रहा था और अपने लन्ड को मुट्ठ मार रहा था।

तभी मैने अपने लन्ड से अपना ध्यान हटाया और अंदर देखने लगा। वहां देखा, आशुतोष ने अपना ठीला लन्ड एक बार फिर से श्वेता के मुंह में दे दिया है और वो उसे चूस चूस कर फिर से खड़ा कर रही है।

थोड़ी देर के बाद ही आशुतोष ने अपना लन्ड श्वेता के मुंह निकाल लिया और फिर उसकी जांघो को फैला कर, उसकी चूत को ताबड़तोड़ चूमने लगा। श्वेता इन चुम्बनों से सिहरा गई थी और जब उसने हाथ आशुतोष के सर पर रक्ख कर अपनी चूत की तरफ दबाया तो आशुतोष ऊपर उठ आया।


आशुतोष ने अब श्वेता की फैली जांघो के बीच अपने लिए जगह बनाई और अपना लन्ड श्वेता की चूत पर रखने लगा। तभी श्वेता ने आशुतोष के लन्ड को पकड़ा और खुद ही उसे अपनी चूत पर टिका दिया। आज क्या मेरी जलालत का दिन था! जिस चूत का कौमौर्य मैने भंग किया था, जो मेरी है, जिस चूत को चोदने का सिर्फ मेरे पास धर्मसम्मत अधिकार था, वही चूत, अब वो, मेरे ही ऑफिस में, मेरे ही सामने किसी पर पुरुष से चुदवाने के लिए तैयार थी। मेरे लिए यह क्या सब कुछ कम था की यह सब देख कर मेरा लन्ड उत्तेजना में, घोड़े पर सवार फुफकार रहा था।



तभी आशुतोष की आवाज कानो पर पड़ी, वो "ओह्ह्ह! श्वेता मेरी जान!" कहते हुए अपना लन्ड धीरे धीरे श्वेता की चूत में घुसेड़ रहा था।

श्वेता, "अह्ह्ह्ह्म्म्म्म ......आह.....धी..रे ... धी....रे .... अहह ..... आउच .....धीरे!" कहती रही और उधर आशुतोष ने धीरे धीरे अपना पूरा लन्ड मेरी पत्नी श्वेता की चूत में पूरा घुसा दिया।

अपना पूरा लन्ड डाल कर, आशुतोष ने पूछ, "कैसा लग रहा है?"

श्वेता ने जवाब में, "प्लीज़ अभी धक्के मत शुरू करना!" कहते हुए आशुतोष को कस के पकड़ लिया और अपनी आँखे बंद कर ली। फिर लड़खड़ाती तेज़ आवाज़ में कहा, "अभी बाहर मत निकलना! मैं अह्हह्ह.....फिर से......ओह्ह्ह्ह्ह्ह....हे भगवान.......आः.. अह्ह्म्म......ओह्ह गॉड ...आई आम गॉन! फिर हो गया!"

इसी के साथ श्वेता एक बार फिर से झड गयी। यह देख कर मैं तेजी से अपने लन्ड को चलाने लगा, मेरे लन्ड से निकले मदन रस से मेरी हथेली चिपचिपा रही थी। मेरे अंदर कामोत्तेजना का ज्वार आया हुआ था क्योंकि मुझे मालूम था कि श्वेता बहुत उत्तेजित होती है तो कई बार झड़ जाती है।
मैं इधर अंधेरे में अपने लन्ड को मुट्ठ मार रहा था तो उधर आशुतोष ने श्वेता की चुदाई शुरू कर दी थी। जैसे ही आशुतोष का लन्ड धक्का मारने के लिए श्वेता की चूत से बाहर निकलता तो मुझे उसका लन्ड श्वेता की चूत के गीलेपन से चमकता हुआ दिखाई देता। शुरू में आराम से धक्के मारने के बाद अब आशुतोष तेजी से श्वेता को चोदने लगा जिससे श्वेता हिली जारही थी।

श्वेता ने इस पर कराहते हुए कहा, "अहह..थो..डा ...धीरे....अह्ह्ह..ओह्ह्ह...प्लीज़ थोड़ा रुक के!"


"क्यों? मज़ा नहीं आ रहा क्या? धीरे धीर करूँगा तो सुबह तक नहीं निकलूंगा!"

"मजा तो बहुत मज़ा आ रहा है! मन करता है चुदते चुदते मर ही जाऊं!"

"श्वेता डार्लिंग अब हुई हो मस्त! निकल गयी न सारी शर्म!"

इधर मुझे अपने कानो पर विश्वास नहीं हो रहा था की कहे जारही है श्वेता! "चुदते चुदते मर जाऊं"!

फिर एकाएक आशुतोष ने अपना लन्ड श्वेता की चूत से बारह निकाल लिया और कहा, "तुम कुर्सी से हट जाओ।"

श्वेता कुर्सी से उठी और पूछा,"क्या हुआ?"

उस कुर्सी पर आशुतोष खुद बैठ गया और श्वेता से बोला, "बैठो अब अपने प्यारे लौड़े पर!"

"बेशरम! क्या बोल रहे हो"

आशुतोष ने अपने लन्ड को पकड़ कर बोला "क्यों ये तुम्हारा नहीं है?अच्छा नहीं लगता ये?"

श्वेता उसकी बात सुन मुस्कराने लगी और बोली "बहुत गंदे और बेशर्म हो।"

यह कहते हुए श्वेता, आशुतोष से फिर गयी और अपने नितंब, उसकी तरफ कर दिए। फिर उसने झुकते हुए, अपनी दोनों फैली जांघों के बीच से अपना हाथ डाल कर, आशुतोष का लन्ड पकड़ लिया और अपनी चूत के चौखट पर लगा दिया। आशुतोष के लन्ड के सुपाड़े ने जैसे ही श्वेता की चूत को छुआ, श्वेता, आशुतोष के लन्ड पर बैठने लगी। देखते ही देखते मेरी श्वेता की पनियाई चूत में एक बार फिर से आशुतोष का पूरा लन्ड अपने अंदर कर लिया।

अब आशुतोष ने श्वेता की उदोनों चूंचियों को अपने हाथों में पकड़ रक्खा था और वो उन्हें दबाए जारहा था। अभी थोड़ी देर ही चुदाई चली होगी की श्वेता ने ऊपर नीचे होना बंद कर दिया और वो आशुतोष के लौड़े पर बैठ कर लंबी लंबी साँसे लेने लगी।

"फिर झड गयी?"

"नहीं, अबकी बार थक गयी हूँ।"

"ओके, फिर उठो।"

इसी के साथ श्वेता, आशुतोष प्रशांत के लौड़े पर से उठ गयी और वो खुद भी उठ गया।

अब आशुतोष ने कहा, "श्वेता अब तुम अपने सारे कपडे उतार कर, नंगी हो जाओ।"

श्वेता ने चिहुंक के कहा, "हाय राम बेशरम! और कितनी होऊं? सब कुछ तो देख लिया मेरा और क्या बाकी है अब?"
 
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ककोल्ड शादीशुदा पत्नी की चुदाई: सीखी प्रणय की नई परिभाषा भाग 1

आज से करीब 20 वर्ष पूर्व मेरा जब सविंगर्स की दुनिया (अल्टरनेटिव लाइफ स्टाइल) से परिचय हुआ तब मुझे इसका बिल्कुल भी आभास नही था कि जीवन मे रोज, सामान्य से लगने वा मिलने वाले लोग इस कदर इस जीवन शैली को अपना चुके है। भारत के मध्यमवर्ग में स्विनगिंग 2000 में ही अपनी छाप छोड़ने लगी थी। मेरा भी प्रदार्पण थ्रीसम के आमंत्रण से हुआ था और मैंने बड़े डरते डरते, हिचकते हुये अपने आगे कदम बढ़ाए थे। यह आमंत्रण मेरे पिछले 25 वर्ष से रहे मित्र की तरफ से था तो रिश्तों में बदलाव व उसके परिणामो के प्रति भी मैं बहुत सशंकित था। मैंने अपने मित्र के कई बार के आग्रहों को जब अंत मे स्वीकार किया तब भी मेरे लिए यह पहेली ही थी क्यों, मेरा मित्र अपनी पत्नी, जिन्हें मैं भाभी कहता था, उसे मेरी बाहों में देखना चाहता है? खैर, इस घटना को इंग्लिश में पहले भी कह चुका हूँ उसके हिंदी अनुवाद को बाद में डालूंगा, लेकिन आज ककोल्ड़िंग के बारे में लिख रहा हूँ।

मुझे आशा है कि ककोल्ड़िंग के बारे में लोग जानते ही होंगे और जो नही जानते है, उनके लिए इतना ही समझना पर्याप्त है कि जब कोई पुरुष अपनी पत्नी या प्रेमिका को दूसरे पुरुष से सहवास करते हुए देखने या फिर वो सहवास करा कर उसके पास आई है और उससे वह कामोत्तेजित होता है तो उस पुरुष को कक और उस पर पुरुष से हुए पूरे सहवास के घटनाक्रम को ककोल्ड़िंग कहते है। मेरी अपनी यौन यात्रा में ऐसे ही एक ककोल्ड शादीशुदा पति पत्नी से मुलाकात हुई थी, जो मेरे जीवन का पहला कक था। इससे पहले मैं जिनसे भी मिला था उसमे पति न सिर्फ साथ रहते थे बल्कि खुद भी पत्नी के साथ सहवास में सक्रिय भूमिका निभाते थे लेकिन यहां पर पति या तो सिर्फ बैठा देखता हुआ मुट्ठ मारता और मेरे झड़ने के बाद वो अपनी पत्नी के साथ सहवास करता था या फिर, जब उसकी पत्नी मेरे साथ होती थी तो फोन पर पूरे सहवास की आवाजे सुनता रहता था।

एक बार मैं और उसकी पत्नी दिल्ली गए तो वो एक दिन बाद पहुंचा। वो जिस वक्त होटल में हमारे कमरे में पहुंचा, उस वक्त प्रभात का सहवास कर, हम दोनों नग्न ही पड़े थे। उसने अंदर आते ही अपनी नग्न पत्नी को बाहों में लेकर चूम लिया। मैं उन दोनों को वही छोड़ कर बाथरूम चला गया। मैं करीब 20/25 मिनिट के बाद फ्रेश हो कर बाहर आया तो वो अपनी पत्नी पर लेटा हुआ हांफ रहा था। मेरे बाथरूम जाने के बाद उसने अपनी पत्नी के साथ सहवास में जुट गया था। मैंने कमरे में आकर चाय का आर्डर दिया और उसकी पत्नी बाथरूम चली गई। मै अपने सिर्फ बॉक्सर में था और वो नंगा ही चादर में लिपटा बिस्तर पर लेटा रहा था। थोड़ी देर में चाय आगई तो चाय पीते हुए मैंने उससे पूछा कि वो खुद क्यों नही साथ देता है? थ्रीसम में और आनंद आएगा। तो उसने यह कह कर मना कर दिया कि उसको किसी के साथ मे अपनी पत्नी के साथ सहवास करने की कोई विशेष इच्छा नही होती। उसे अपनी पत्नी को दूसरे के साथ आनंद लेते हुए देखने से कामोत्तेजना होती है और जब वो दूसरे परपुरुष के साथ सहवास कर के आती है तब उसे उसके साथ सहवास करने की प्रबल उत्कंठा होती है। मैने उससे कहा की मुझे यह जानने की बड़ी उत्सुकता है कि सब पहली बार कब उसे अनुभूति हुई कि वो विशेष है और पत्नी के पर पुरुष से संसर्ग से उसको कामसंतुष्टि प्राप्त होती है। वो पहले कुछ सोचता रहा और फिर बोला, चलिए शाम को जब रिलैक्स करेंगे तब आपको पूरी बात बताऊंगा।

उस शाम को जब हम तीनों कमरे में शराब पी रहे थे तब वो अपनी पत्नी को चूमते हुए स्वतः अपनी बात बताने लगा की कैसे उसे यह अनुभूति हुई कि वह एक कक है।

अब आगे की कहानी उसके ही शब्दो मे प्रस्तुत है।


प्रशांत भाई यह बात 3 वर्ष पहले की अब मैं 35 वर्ष का था और मेरी पत्नी श्वेता 32 की थी। मेरी उस समय छोटी सी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी थी जिसके अंतर्गत मैं कम्प्यूटर के सॉफ्टवेयर का काम और एक कंप्यूटर ट्रेनिंग सेंटर चलता था। मेरी पत्नी श्वेता उस वक्त उत्तरप्रदेश सरकार के एक निगम के हेड आफिस में सिस्टम अफसर थी। मैं अक्सर अपने आफिस जाते समय श्वेता को उसके निगम के गेट पर छोड़ देता था।

एक दिन श्वेता ने मुझे बताया कि उसका निगम अपने विभिन्न ऑफिसों में कार्यरत कर्मचारियों के लिए कंप्यूटर में एडवांस कोर्स सिखाने के लिए निविदा निकाल रही है। उसने मुझे निविदा की शर्तें भी बताई जो मेरी कंपनी पूरी करती थी। मैंने श्वेता से कहा की मेरी कंपनी निविदा की सारी शर्ते पूरी करती है और अगर यह काम मिल गया तो मेरी कंपनी को बूस्ट मिल जाएगा और इसी के साथ और सरकारी उपक्रमो में घुसने का रास्ता मिल जाएगा। मेरी बात सुनकर श्वेता ने कहा की वो पता करती है कि कैसे इस काम को हाथ मे लिया जासकता है। अगले दिन जब शाम को श्वेता आई तो उसने बताया कि सारा मामला उसके सीनियर, आशुतोष त्रिपाठी के हाथ है जो हेडक्वार्टर में सिस्टम मैनेजर के पद पर, अभी हाल में जॉइन किया है। उसके साथ उसने यह भी बताया कि आज आशुतोष ने उससे कंप्यूटर एडवांस कोर्स वाले मामले में असिस्ट करने के लिए भी कहा है। श्वेता ने जो कुछ मुझे बताया उससे मैं काफी उत्साहित हो गया था। मुझे वह काम मिलने की संभावना बलवंती लगने लगी थी।

रात को जब हम लोग सोने लगे तो श्वेता ने कहा कि कल से मुझे आफिस के गेट के अंदर मत छोड़ना ताकि आशुतोष त्रिपाठी, मुझे, श्वेता के पति के रूप में न जान सके। उसे यह भी पता न चले कि श्वेता का पति कम्प्यूटर का काम करता है और निगम में काम लेना चाहता है। मुझे श्वेता का सतर्कता बरतना समझ आ रहा था क्योंकि यदि निविदा खुलने या काम मिलने से पहले मेरा परिचय उसके पति के रूप में होगया तो आशुतोष त्रिपाठी की दृष्टि में श्वेता की भूमिका संदिग्ध और उसके कैरियर पर दाग भी लगने की संभावना थी। उस दिन के बाद से मैं श्वेता को उसके आफिस से दूर ही उतारने लग गया और निविदा भी पूरी तरह भर के जमा करा दी।

मेरे निविदा भरने के करीब 10 दिन बाद श्वेता का अपने आफिस से मेरे पास फोन किया और कहा, 'काम बनने की उम्मीद, बाकी बात शाम को होगी'। उसके फोन आने पर मेरी ख़ुशी की कोई सीमा नही रही क्योंकि इस काम को मिलने से मेरी कंपनी का कद बढ़ना निश्चित था।

उस दिन देर शाम को जब श्वेता मुझसे मिलने मेरे आफिस सीधे आई तो आफिस का शिष्टाचार छोड़ कर हम दोनों खुशी के मारे गले से लग गए। श्वेता ने बताया कि कम्प्यूटर के एडवांस कोर्स के लिए निविदाओं पर, आशुतोष सर से उसकी बात हुई है और मेरी कंपनी के आफर पर वह पोस्टिव था। श्वेता ने फिर सुझाव दिया कि मैं आशुतोष के साथ जान पहचान बढाऊँ और उससे अंतरंग हूँ ताकि इस काम के साथ अन्य भविष्य के कम्प्यूटर सम्बंधी मामलों में भी घुस सकूं। मैंने श्वेता को आश्वस्त किया कि मैं आशुतोष से मिलूंगा और उसे खोलूंगा। इसके बाद जब रात की हम लोग बिस्तर पर आए तो श्वेता ने मुझे फिर से सावधान किया कि मैं आशुतोष के साथ खुलने पर, इसका जरूर ध्यान रक्खूं की उसे यह बिल्कुल शक न हो कि मैं श्वेता का पति हूँ। उस रात मन बड़ा प्रसन्न था और श्वेता भी बड़ी उत्साहित थी। वो खुद ही मेरे ऊपर आकर लेट गई और फिर हम दोनों ने मस्त हो कर चुदाई की।

मैं अगले ही दिन जाकर आशुतोष से मिला तो वो कुछ देर में ही सहज हो कर बाते करने लगा। आशुतोष 37/38 साल का 5' 8" लंबा अच्छे व्यक्तित्व का व्यक्ति था। उससे बात कर के ही पता चल गया कि वो भले ही सिस्टम मैनेजर के पद पर है लेकिन खुद उसे ज्यादा नही मालूम है। एमसीए का डिप्लोमा किया है और पक्का किसी सिफारिश पर निगम में इस पद पर पहुंचा है। मैंने उससे निविदा पर अंतिम निर्णय की कोई बात नही की बल्कि अन्य संभावनाओं पर बात की। थोड़ी देर बाद मैं जब उठा तो मैंने आशुतोष से डिनर के आमंत्रित किया तो उसने फौरन ही हां कर दी जिससे मुझे शुभ संकेत मिलने लगे थे।

उस शाम हम लोग एक बार में बैठे जहां पहले शराब पी और फिर खाना खाने एक अच्छे से रेस्टुरेंट में गए। वहां आशुतोष मुझसे खुल गया और मेरी कंपनी को काम देने की हां कर दी। मुझे उसकी हां पर बड़ा आश्चर्य हुआ था क्योंकि उसने उसको घुस देने की आफर को अस्वीकार कर दी थी। मैं हां होने के बाद भी आशंकित था लेकिन आशुतोष बात का पक्का निकला। एक सप्ताह के अंदर ही मुझे वह काम अवार्ड हो गया और हैडक्वाटर के कर्मचारियों का मेरे सेंटर पर आकर एडवांस कोर्स करने का शेड्यूल भी बन गया।


काम मिलने के 10 दिन बाद से ही निगम के कर्मचारी, जिसमे अधिकारी भी थे वे शाम को आफिस ऑवर के बाद 1 घण्टे के लिए कंप्यूटर के एडवांस कोर्स सीखने के लिए आने लगे। मेरी बीच बीच में आशुतोष से भी बात होती रहती थी और शाम को कभी कभी बार मे बैठ जाते थे। एक दिन मैं बिल के सबंध में निगम के हेडऑफिस में आशुतोष से मिलने गया तो उसने मुझ से कहा, "बीपी (ब्रह्मप्रकाश, मेरे नाम के शार्ट फॉर्म से ही मुझे लोग बुलाते है) आफिस के बड़े अधिकारी इतने गधे है कि मेरे लिए भी ट्रेनिंग लेना, आवश्यक कर दिया है। ऐसा करो की मेरे लिए शाम को 7 साढ़े 7 सात बजे का कोई टाइम फिक्स कर लो और साथ में कोई अच्छा सा इंस्ट्रक्टर भी साथ रहे तो मैं ट्रेनिंग क्या करूँगा, कुछ प्रोग्रामिंग पर हाथ साफ कर लूंगा।"

यह सुन कर मैंने तुरंत कहा, "सर, आप आज शाम को आजाइये, सब व्यवस्था हो जाएगी।"

उसी शाम को 7:30 बजे के करीब आशुतोष मेरे आफिस आगये और सीधे मेरे केबिन में आगए। हम दोनों वहां बैठ कर बातें करने लगे तो आशुतोष ने पूछा," बीपी किसी अच्छे इंस्ट्रक्टर को बोल दिया है?"

इस पर मैंने कहा," इसकी आपको कोई ज़रूरत नहीं है सर। आपको न क्लास अटेंड करने की आवश्यकता है और न ही इंस्ट्रक्टर की, मैं तो आपको यहीं अपने ऑफिस में ही, आपकी सारी जिज्ञासा शांत और प्रोग्रामिंग अपने डेस्कटॉप पर समझा दूंगा।"

आशुतोष उसके बाद नियमित रूप से मेरे आफिस आने लगे और काम के साथ, हम और भी खुल के बात करने लगे। एक दिन शनिवार था, उस दिन आशुतोष ने मुझसे कहा, "आज दिन भर आफिस में पक गया और फिर यहां आकर वही सब करना पड़ रहा है। मेरा मूड तो ड्रिंक का हो रहा है। बीपी तुम फ्री हो तो चल कर दो दो पैग मारे जाए।"

मैंने खुश होकर कहा, "सर चलिए आप आज मेरे साथ डिनर भी कीजिये।"

मेरे प्रस्ताव पर आशुतोष ने तुरंत हां कह दी और हम लोग एक बार रेस्टुरेंट में खाने पीने चले गए।

वहां जहां हम लोग बैठे थे वहां का मौहोल बड़ा शानदार था। धीमी रोशनी और बैकग्राउंड में माध्यम स्वर में पियानो बज रहा था। वहां ड्रिंक पीते हुए हम लोगो ने इधर उधर की बातें करना शुरू कर दी। तभी बातों के बीच आशुतोष ने कहा, "यार बीपी, तुम तो सारा दिन फ्रेश रहते होगे। सारे दिन तुम्हारे यहां कितनी सुंदर सुंदर लड़कियां सीखने या सिखाने आती रहती हैं।"

मैं उसकी बात पर जोर से हंस पड़ा और कहा, "और मैं यह सोचता रहता हूँ कि आपकी बड़ी मौज है, आपके हैडक्वाटर में एक से एक लोग भरे पड़े है।"

उसने हँसते हुए कहा," हाँ यह तो है और आज कल तो सब तुम्हारे यहां हाजरी लगा रही हैं।"

इस बात पर हम दोनों हंस पड़े। फिर कुछ रुक कर, आशुतोष ने कहा, "बीपी! हमारे आफिस का नंबर 1 को तो अभी तुमने देखा नहीं है।"

मैंने पूछा, "कब दर्शन करा रहे है सर?"

इस पर उसने कहा, "अरे जी भर के देख लेना तुम भी बीपी, मैं तो उसका दीवाना हूँ। एक बार, उसकी तुम्हें अगर मिल जाये बीपी, तो सच कहता हूँ, तुम्हारी लाइफ बन जाएगी।"

मैंने कहा, " सर, आप तो बड़े छुपे रुस्तम निकले! मतलब सर, आप पेल चुके उसको!"

"नही भाई बीपी, बस पूरी कोशिश में लगा हूँ। पिछले दो हफ़्तों में ही ज्यादा इंटिमेसी हुई है, बस कार में जो थोड़ी बहुत कोशिश हो सकती है, वही की है।"

मैंने कहा: "क्या क्या किया? कुछ हमको तो बताइए सर! अब बता भी दीजिए की क्या क्या किया और कौन है वो माल?"

आशुतोष ने हँसते हुए कहा, "नहीं यार बीपी, असल में वो बहुत ही सेक्सी है, पता नहीं वो कब देगी। कार में उसके गालों को हल्का से चूम चुका हूँ और 3/4 बार उसकी चुंचियों को अपनी कोहनी से दबा चुका हूँ। मैं जब अपनी कोहनी जो उसकी चुंचियों पर लगाई तो वह सिकुड़ी नही, उसने अपनी चुंची दबने दी। मैं इसी को ग्रीन सिग्नल मान रहा हूँ, लेकिन दिक्कत भी है। एक तो वो भी शाम को ही फ्री होती है, दूसरे हम कार में होते हैं और तीसरे वो भी शादीशुदा है और मैं भी। इसलिए खुल के बाहर भी नही मिल सकते, आफिस और दुनिया की नज़रों से बचना भी हैं। बीपी भाई, दरअसल बात ये है की कार में बकट सीट के कारण ज्यादा सटने की जगह नही होती है, नहीं तो उसको कब का खुल के रगड़ चुका होता।"

"अरे सर मिलवाओ तो कभी उसको, आप तो सब कुछ हो, अपने साथ ही ले आया करो ट्रेनिंग के लिए।"

मेरी बात पर आशुतोष हस पड़ा और उससे मिलवाने को राजी हो गया।
 

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ककोल्ड शादीशुदा पत्नी की चुदाई: सीखी प्रणय की नई परिभाषा भाग 1

आज से करीब 20 वर्ष पूर्व मेरा जब सविंगर्स की दुनिया (अल्टरनेटिव लाइफ स्टाइल) से परिचय हुआ तब मुझे इसका बिल्कुल भी आभास नही था कि जीवन मे रोज, सामान्य से लगने वा मिलने वाले लोग इस कदर इस जीवन शैली को अपना चुके है। भारत के मध्यमवर्ग में स्विनगिंग 2000 में ही अपनी छाप छोड़ने लगी थी। मेरा भी प्रदार्पण थ्रीसम के आमंत्रण से हुआ था और मैंने बड़े डरते डरते, हिचकते हुये अपने आगे कदम बढ़ाए थे। यह आमंत्रण मेरे पिछले 25 वर्ष से रहे मित्र की तरफ से था तो रिश्तों में बदलाव व उसके परिणामो के प्रति भी मैं बहुत सशंकित था। मैंने अपने मित्र के कई बार के आग्रहों को जब अंत मे स्वीकार किया तब भी मेरे लिए यह पहेली ही थी क्यों, मेरा मित्र अपनी पत्नी, जिन्हें मैं भाभी कहता था, उसे मेरी बाहों में देखना चाहता है? खैर, इस घटना को इंग्लिश में पहले भी कह चुका हूँ उसके हिंदी अनुवाद को बाद में डालूंगा, लेकिन आज ककोल्ड़िंग के बारे में लिख रहा हूँ।

मुझे आशा है कि ककोल्ड़िंग के बारे में लोग जानते ही होंगे और जो नही जानते है, उनके लिए इतना ही समझना पर्याप्त है कि जब कोई पुरुष अपनी पत्नी या प्रेमिका को दूसरे पुरुष से सहवास करते हुए देखने या फिर वो सहवास करा कर उसके पास आई है और उससे वह कामोत्तेजित होता है तो उस पुरुष को कक और उस पर पुरुष से हुए पूरे सहवास के घटनाक्रम को ककोल्ड़िंग कहते है। मेरी अपनी यौन यात्रा में ऐसे ही एक ककोल्ड शादीशुदा पति पत्नी से मुलाकात हुई थी, जो मेरे जीवन का पहला कक था। इससे पहले मैं जिनसे भी मिला था उसमे पति न सिर्फ साथ रहते थे बल्कि खुद भी पत्नी के साथ सहवास में सक्रिय भूमिका निभाते थे लेकिन यहां पर पति या तो सिर्फ बैठा देखता हुआ मुट्ठ मारता और मेरे झड़ने के बाद वो अपनी पत्नी के साथ सहवास करता था या फिर, जब उसकी पत्नी मेरे साथ होती थी तो फोन पर पूरे सहवास की आवाजे सुनता रहता था।

एक बार मैं और उसकी पत्नी दिल्ली गए तो वो एक दिन बाद पहुंचा। वो जिस वक्त होटल में हमारे कमरे में पहुंचा, उस वक्त प्रभात का सहवास कर, हम दोनों नग्न ही पड़े थे। उसने अंदर आते ही अपनी नग्न पत्नी को बाहों में लेकर चूम लिया। मैं उन दोनों को वही छोड़ कर बाथरूम चला गया। मैं करीब 20/25 मिनिट के बाद फ्रेश हो कर बाहर आया तो वो अपनी पत्नी पर लेटा हुआ हांफ रहा था। मेरे बाथरूम जाने के बाद उसने अपनी पत्नी के साथ सहवास में जुट गया था। मैंने कमरे में आकर चाय का आर्डर दिया और उसकी पत्नी बाथरूम चली गई। मै अपने सिर्फ बॉक्सर में था और वो नंगा ही चादर में लिपटा बिस्तर पर लेटा रहा था। थोड़ी देर में चाय आगई तो चाय पीते हुए मैंने उससे पूछा कि वो खुद क्यों नही साथ देता है? थ्रीसम में और आनंद आएगा। तो उसने यह कह कर मना कर दिया कि उसको किसी के साथ मे अपनी पत्नी के साथ सहवास करने की कोई विशेष इच्छा नही होती। उसे अपनी पत्नी को दूसरे के साथ आनंद लेते हुए देखने से कामोत्तेजना होती है और जब वो दूसरे परपुरुष के साथ सहवास कर के आती है तब उसे उसके साथ सहवास करने की प्रबल उत्कंठा होती है। मैने उससे कहा की मुझे यह जानने की बड़ी उत्सुकता है कि सब पहली बार कब उसे अनुभूति हुई कि वो विशेष है और पत्नी के पर पुरुष से संसर्ग से उसको कामसंतुष्टि प्राप्त होती है। वो पहले कुछ सोचता रहा और फिर बोला, चलिए शाम को जब रिलैक्स करेंगे तब आपको पूरी बात बताऊंगा।

उस शाम को जब हम तीनों कमरे में शराब पी रहे थे तब वो अपनी पत्नी को चूमते हुए स्वतः अपनी बात बताने लगा की कैसे उसे यह अनुभूति हुई कि वह एक कक है।

अब आगे की कहानी उसके ही शब्दो मे प्रस्तुत है।


प्रशांत भाई यह बात 3 वर्ष पहले की अब मैं 35 वर्ष का था और मेरी पत्नी श्वेता 32 की थी। मेरी उस समय छोटी सी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी थी जिसके अंतर्गत मैं कम्प्यूटर के सॉफ्टवेयर का काम और एक कंप्यूटर ट्रेनिंग सेंटर चलता था। मेरी पत्नी श्वेता उस वक्त उत्तरप्रदेश सरकार के एक निगम के हेड आफिस में सिस्टम अफसर थी। मैं अक्सर अपने आफिस जाते समय श्वेता को उसके निगम के गेट पर छोड़ देता था।

एक दिन श्वेता ने मुझे बताया कि उसका निगम अपने विभिन्न ऑफिसों में कार्यरत कर्मचारियों के लिए कंप्यूटर में एडवांस कोर्स सिखाने के लिए निविदा निकाल रही है। उसने मुझे निविदा की शर्तें भी बताई जो मेरी कंपनी पूरी करती थी। मैंने श्वेता से कहा की मेरी कंपनी निविदा की सारी शर्ते पूरी करती है और अगर यह काम मिल गया तो मेरी कंपनी को बूस्ट मिल जाएगा और इसी के साथ और सरकारी उपक्रमो में घुसने का रास्ता मिल जाएगा। मेरी बात सुनकर श्वेता ने कहा की वो पता करती है कि कैसे इस काम को हाथ मे लिया जासकता है। अगले दिन जब शाम को श्वेता आई तो उसने बताया कि सारा मामला उसके सीनियर, आशुतोष त्रिपाठी के हाथ है जो हेडक्वार्टर में सिस्टम मैनेजर के पद पर, अभी हाल में जॉइन किया है। उसके साथ उसने यह भी बताया कि आज आशुतोष ने उससे कंप्यूटर एडवांस कोर्स वाले मामले में असिस्ट करने के लिए भी कहा है। श्वेता ने जो कुछ मुझे बताया उससे मैं काफी उत्साहित हो गया था। मुझे वह काम मिलने की संभावना बलवंती लगने लगी थी।

रात को जब हम लोग सोने लगे तो श्वेता ने कहा कि कल से मुझे आफिस के गेट के अंदर मत छोड़ना ताकि आशुतोष त्रिपाठी, मुझे, श्वेता के पति के रूप में न जान सके। उसे यह भी पता न चले कि श्वेता का पति कम्प्यूटर का काम करता है और निगम में काम लेना चाहता है। मुझे श्वेता का सतर्कता बरतना समझ आ रहा था क्योंकि यदि निविदा खुलने या काम मिलने से पहले मेरा परिचय उसके पति के रूप में होगया तो आशुतोष त्रिपाठी की दृष्टि में श्वेता की भूमिका संदिग्ध और उसके कैरियर पर दाग भी लगने की संभावना थी। उस दिन के बाद से मैं श्वेता को उसके आफिस से दूर ही उतारने लग गया और निविदा भी पूरी तरह भर के जमा करा दी।

मेरे निविदा भरने के करीब 10 दिन बाद श्वेता का अपने आफिस से मेरे पास फोन किया और कहा, 'काम बनने की उम्मीद, बाकी बात शाम को होगी'। उसके फोन आने पर मेरी ख़ुशी की कोई सीमा नही रही क्योंकि इस काम को मिलने से मेरी कंपनी का कद बढ़ना निश्चित था।

उस दिन देर शाम को जब श्वेता मुझसे मिलने मेरे आफिस सीधे आई तो आफिस का शिष्टाचार छोड़ कर हम दोनों खुशी के मारे गले से लग गए। श्वेता ने बताया कि कम्प्यूटर के एडवांस कोर्स के लिए निविदाओं पर, आशुतोष सर से उसकी बात हुई है और मेरी कंपनी के आफर पर वह पोस्टिव था। श्वेता ने फिर सुझाव दिया कि मैं आशुतोष के साथ जान पहचान बढाऊँ और उससे अंतरंग हूँ ताकि इस काम के साथ अन्य भविष्य के कम्प्यूटर सम्बंधी मामलों में भी घुस सकूं। मैंने श्वेता को आश्वस्त किया कि मैं आशुतोष से मिलूंगा और उसे खोलूंगा। इसके बाद जब रात की हम लोग बिस्तर पर आए तो श्वेता ने मुझे फिर से सावधान किया कि मैं आशुतोष के साथ खुलने पर, इसका जरूर ध्यान रक्खूं की उसे यह बिल्कुल शक न हो कि मैं श्वेता का पति हूँ। उस रात मन बड़ा प्रसन्न था और श्वेता भी बड़ी उत्साहित थी। वो खुद ही मेरे ऊपर आकर लेट गई और फिर हम दोनों ने मस्त हो कर चुदाई की।

मैं अगले ही दिन जाकर आशुतोष से मिला तो वो कुछ देर में ही सहज हो कर बाते करने लगा। आशुतोष 37/38 साल का 5' 8" लंबा अच्छे व्यक्तित्व का व्यक्ति था। उससे बात कर के ही पता चल गया कि वो भले ही सिस्टम मैनेजर के पद पर है लेकिन खुद उसे ज्यादा नही मालूम है। एमसीए का डिप्लोमा किया है और पक्का किसी सिफारिश पर निगम में इस पद पर पहुंचा है। मैंने उससे निविदा पर अंतिम निर्णय की कोई बात नही की बल्कि अन्य संभावनाओं पर बात की। थोड़ी देर बाद मैं जब उठा तो मैंने आशुतोष से डिनर के आमंत्रित किया तो उसने फौरन ही हां कर दी जिससे मुझे शुभ संकेत मिलने लगे थे।

उस शाम हम लोग एक बार में बैठे जहां पहले शराब पी और फिर खाना खाने एक अच्छे से रेस्टुरेंट में गए। वहां आशुतोष मुझसे खुल गया और मेरी कंपनी को काम देने की हां कर दी। मुझे उसकी हां पर बड़ा आश्चर्य हुआ था क्योंकि उसने उसको घुस देने की आफर को अस्वीकार कर दी थी। मैं हां होने के बाद भी आशंकित था लेकिन आशुतोष बात का पक्का निकला। एक सप्ताह के अंदर ही मुझे वह काम अवार्ड हो गया और हैडक्वाटर के कर्मचारियों का मेरे सेंटर पर आकर एडवांस कोर्स करने का शेड्यूल भी बन गया।


काम मिलने के 10 दिन बाद से ही निगम के कर्मचारी, जिसमे अधिकारी भी थे वे शाम को आफिस ऑवर के बाद 1 घण्टे के लिए कंप्यूटर के एडवांस कोर्स सीखने के लिए आने लगे। मेरी बीच बीच में आशुतोष से भी बात होती रहती थी और शाम को कभी कभी बार मे बैठ जाते थे। एक दिन मैं बिल के सबंध में निगम के हेडऑफिस में आशुतोष से मिलने गया तो उसने मुझ से कहा, "बीपी (ब्रह्मप्रकाश, मेरे नाम के शार्ट फॉर्म से ही मुझे लोग बुलाते है) आफिस के बड़े अधिकारी इतने गधे है कि मेरे लिए भी ट्रेनिंग लेना, आवश्यक कर दिया है। ऐसा करो की मेरे लिए शाम को 7 साढ़े 7 सात बजे का कोई टाइम फिक्स कर लो और साथ में कोई अच्छा सा इंस्ट्रक्टर भी साथ रहे तो मैं ट्रेनिंग क्या करूँगा, कुछ प्रोग्रामिंग पर हाथ साफ कर लूंगा।"

यह सुन कर मैंने तुरंत कहा, "सर, आप आज शाम को आजाइये, सब व्यवस्था हो जाएगी।"

उसी शाम को 7:30 बजे के करीब आशुतोष मेरे आफिस आगये और सीधे मेरे केबिन में आगए। हम दोनों वहां बैठ कर बातें करने लगे तो आशुतोष ने पूछा," बीपी किसी अच्छे इंस्ट्रक्टर को बोल दिया है?"

इस पर मैंने कहा," इसकी आपको कोई ज़रूरत नहीं है सर। आपको न क्लास अटेंड करने की आवश्यकता है और न ही इंस्ट्रक्टर की, मैं तो आपको यहीं अपने ऑफिस में ही, आपकी सारी जिज्ञासा शांत और प्रोग्रामिंग अपने डेस्कटॉप पर समझा दूंगा।"

आशुतोष उसके बाद नियमित रूप से मेरे आफिस आने लगे और काम के साथ, हम और भी खुल के बात करने लगे। एक दिन शनिवार था, उस दिन आशुतोष ने मुझसे कहा, "आज दिन भर आफिस में पक गया और फिर यहां आकर वही सब करना पड़ रहा है। मेरा मूड तो ड्रिंक का हो रहा है। बीपी तुम फ्री हो तो चल कर दो दो पैग मारे जाए।"

मैंने खुश होकर कहा, "सर चलिए आप आज मेरे साथ डिनर भी कीजिये।"

मेरे प्रस्ताव पर आशुतोष ने तुरंत हां कह दी और हम लोग एक बार रेस्टुरेंट में खाने पीने चले गए।

वहां जहां हम लोग बैठे थे वहां का मौहोल बड़ा शानदार था। धीमी रोशनी और बैकग्राउंड में माध्यम स्वर में पियानो बज रहा था। वहां ड्रिंक पीते हुए हम लोगो ने इधर उधर की बातें करना शुरू कर दी। तभी बातों के बीच आशुतोष ने कहा, "यार बीपी, तुम तो सारा दिन फ्रेश रहते होगे। सारे दिन तुम्हारे यहां कितनी सुंदर सुंदर लड़कियां सीखने या सिखाने आती रहती हैं।"

मैं उसकी बात पर जोर से हंस पड़ा और कहा, "और मैं यह सोचता रहता हूँ कि आपकी बड़ी मौज है, आपके हैडक्वाटर में एक से एक लोग भरे पड़े है।"

उसने हँसते हुए कहा," हाँ यह तो है और आज कल तो सब तुम्हारे यहां हाजरी लगा रही हैं।"

इस बात पर हम दोनों हंस पड़े। फिर कुछ रुक कर, आशुतोष ने कहा, "बीपी! हमारे आफिस का नंबर 1 को तो अभी तुमने देखा नहीं है।"

मैंने पूछा, "कब दर्शन करा रहे है सर?"

इस पर उसने कहा, "अरे जी भर के देख लेना तुम भी बीपी, मैं तो उसका दीवाना हूँ। एक बार, उसकी तुम्हें अगर मिल जाये बीपी, तो सच कहता हूँ, तुम्हारी लाइफ बन जाएगी।"

मैंने कहा, " सर, आप तो बड़े छुपे रुस्तम निकले! मतलब सर, आप पेल चुके उसको!"

"नही भाई बीपी, बस पूरी कोशिश में लगा हूँ। पिछले दो हफ़्तों में ही ज्यादा इंटिमेसी हुई है, बस कार में जो थोड़ी बहुत कोशिश हो सकती है, वही की है।"

मैंने कहा: "क्या क्या किया? कुछ हमको तो बताइए सर! अब बता भी दीजिए की क्या क्या किया और कौन है वो माल?"

आशुतोष ने हँसते हुए कहा, "नहीं यार बीपी, असल में वो बहुत ही सेक्सी है, पता नहीं वो कब देगी। कार में उसके गालों को हल्का से चूम चुका हूँ और 3/4 बार उसकी चुंचियों को अपनी कोहनी से दबा चुका हूँ। मैं जब अपनी कोहनी जो उसकी चुंचियों पर लगाई तो वह सिकुड़ी नही, उसने अपनी चुंची दबने दी। मैं इसी को ग्रीन सिग्नल मान रहा हूँ, लेकिन दिक्कत भी है। एक तो वो भी शाम को ही फ्री होती है, दूसरे हम कार में होते हैं और तीसरे वो भी शादीशुदा है और मैं भी। इसलिए खुल के बाहर भी नही मिल सकते, आफिस और दुनिया की नज़रों से बचना भी हैं। बीपी भाई, दरअसल बात ये है की कार में बकट सीट के कारण ज्यादा सटने की जगह नही होती है, नहीं तो उसको कब का खुल के रगड़ चुका होता।"

"अरे सर मिलवाओ तो कभी उसको, आप तो सब कुछ हो, अपने साथ ही ले आया करो ट्रेनिंग के लिए।"

मेरी बात पर आशुतोष हस पड़ा और उससे मिलवाने को राजी हो गया।
भाग 2

अगली शाम को करीब 7 बजे आशुतोष मेरे आफिस में आ गया और साथ में उसके श्वेता थी। मैंने तपाक से आगे बढ़ कर आशुतोष से हाथ मिलाया और श्वेता को मैंने नजरअंदाज कर दिया। आशुतोष ने मेरा श्वेता से परिचय कराया तो मैंने उसे हेलो कह दिया। तभी आशुतोष ने श्वेता से बोला, "श्वेता मेरी नोटबुक कार की बैक सीट पर ही रह गयी है, प्लीज उसे ले आओ।"

यह सुनकर श्वेता तुरंत ही नोटबुक लेने चली गयी। उसके जाने के बाद मैंने आशुतोष से पूछा," सर, आपका वो समान नहीं आया?"

इस पर आशुतोष ने चौकते हुए कहा,"अरे यही तो है जिसे तुमने अभी देखा!"

यही है वो सर का माल ! इस एहसास से मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई। मुझे लगा कि मेरे दिल की धड़कन रुक गई।

मैं पिछली शाम की ही बातें सोचने लगा जब आशुतोष ने कहा था कि "नहीं यार बीपी, असल में वो बहुत ही सेक्सी है, पता नहीं वो कब देगी। कार में उसके गालों को हल्का से चुम चुका हूँ और 3/4 बार उसकी चुंचियों को अपनी कोहनी से दबा चुका हूँ। मैं जब अपनी कोहनी जो उसकी चुंचियों पर लगाई तो वह सिकुड़ी नही, उसने अपनी चुंची दबने दी। मैं इसी को ग्रीन सिग्नल मान रहा हूँ।"

मैं उसी सोंच में डूबा था कि तभी आशुतोष ने कहा, "आज प्रोग्राम बना के आया हूँ के यहाँ से जाते हुए मैं, रास्ते में पक्का कुछ न कुछ करूंगा।" इतने में केबिन का दरवाज़ा खुल गया और श्वेता नोटबुक ले कर अंदर आगई। उससे आशुतोष ने कहा," तुम बाहर अपना स्लॉट देख लो मैं ब्रह्मप्रकाश जी के साथ कुछ ज़रूरी काम कर लेता हूँ।"

श्वेता के बाहर निकलते ही आशुतोष ने कहा,"क्यों भाई कहा खो गए ? कैसी लगी, हमारी पसन्द ?"

अब मैं आशुतोष को क्या बताता की उसकी पसंद देख कर मेरी फट के फ्लावर हो गई है और पैर जमीन पर संभल भी नही रहे है।

मैंने अपने मन के भाव दबाते हुए कहा, "हाँ हाँ बहुत अच्छी है बिलकुल मस्त।"

"आज हम एक स्टेप और बढ़ गए।"

"क्या ?"

"हेडऑफिस से ले कर यहाँ तक मैंने उसका हाथ अपनी पेंट के ऊपर से ही अपने लन्ड पे रखवाया और कमाल तो ये हुआ कि इसने एक बार भी नहीं हटाया और मेरी पेंट के ऊपर से ही मेरे लन्ड को सहलाती रही "

मैं यह सुन कर सुन्न रह गया! वो उस श्वेता के बारे में कह रहा था जो मेरी 8 साल से धर्मपत्नी है!

क्या श्वेता यह सब मेरे लिए ज़बरदस्ती सह रही है? या इस कॉन्ट्रैक्ट को हांसिल करने के लिए, मैंने उसे कमजोर होने के लिए धकेल दिया है? क्या मैने अपनी पत्नी को भवनात्मक रूप से यह सब करने को बाध्य किया है? क्या इस सब का कारण मैं हूँ?

या फिर यह सिर्फ आशुतोष की एक फैंटेसी है जो मुझे सुना कर अपनी चुदास को तृप्त कर रहा है?

तभी आशुतोष ने मेरा ध्यान को तोडते हुए कहा, "आज तो पक्का इसकी चुदाई करूँगा चाहे होटल ही बुक कराने का रिस्क लेना पड़े।"

मैंने घबड़ा कर कहा," अरे! और ये घर पर क्या बताएगी?"

"जो मर्ज़ी वो बहाना बनाये लेकिन बीपी सच कह रहा हूँ, वो पूरी तरह तैयार है देने को। मैं ही देर कर रहा हूँ, कोई जगह भी तो नहीं है।"

उस समय मुझे आशुतोष से जलन और श्वेता पर गुस्सा दोनों ही आ रहा था लेकिन उससे ज्यादा मुझे बौखलाहट, यह सब सुनकर अपने लन्ड के कड़ा होने पर हो रही थी।

तभी आशुतोष ने कहा,"यार बीपी कर सको तो तुम ही कोई जगह का इंतज़ाम कर दो।"

यह सुनकर अनायास ही मेरे मुंह से निकल पड़ा,"ऐसा है कि मेरे पास तो ये ऑफिस है और ये रात 8:30 के बाद बंद हो जाता है, फिर खाली रहता है।"

मेरे मुंह से यह सब निकल तो गया लेकिन खुद ही भयातुर हो गया। हे भगवान ये मैंने क्या दिया! मैं खुद ही आशुतोष को अपनी पत्नी श्वेता को चोदने के लिए अपनी ही जगह दे रहा था! मैं इससे पहले कि संभल पाता, आशुतोष ने कहा, "ये हुई न बात! बस 8 :30 का बाद, आज ही!"

मैं आशुतोष की बात को मन ही मन खारिज करने लगा, उसके कहने से क्या होता है? जब श्वेता चुदाई के लिए मानेगी तभी तो होगा! मैं अंदर से अपने को आश्वस्त कर रहा था की यदि एक पल के लिए यह मैं मान भी लूं की श्वेता चुदने के लिए तैयार है तो वह यह कभी भी नहीं चाहेगी कि मुझे इस बारे में पता लगे और इसलिए अगर, वो यहाँ चुदने के लिए तैयार होती है तो इसका मतलब की वो जानती है कि मेरे और आशुतोष के बीच में क्या बात हुई है।

लेकिन ऐसा नहीं हो सकता!

तभी मेरे मन में एक बात आई और मैं आशुतोष से अभी आया कहकर, बाहर आगया। मैंने निकल कर श्वेता को मोबाइल पर कॉल किया और कहा, "मै आशुतोष को ये बताना भूल गया हूँ कि मुझे आज रात को एक पार्टी में जाना है और पार्टी एक फार्म हॉउस में है।"

श्वेता ने कहा, "तो अब क्या करना है?"

मैंने कहा," वैसे तो मैं रमेश(ऑफिस असिस्टेंट जो सबसे बाद में जाता है) को कह दूंगा कि वो ध्यान रखे, लेकिन क्या आशुतोष को इस तरह छोड़ के जाना ठीक होगा?"

श्वेता ने कहा ,"तुम आशुतोष को कह दो कि कोई इमरजेंसी है और जल्दी से घर जा कर तैयार हो जाओ और पार्टी में चले जाओ। मैं बाद में घर आ जाउंगी। मां, दोनो बच्चो को देख ही लेंगी और फिर मैं यहां आफिस में तो रहूंगी ही। चिंता कि कोई बात नहीं है।"

एक क्षण के लिए मुझे लगा जैसे श्वेता की चूत के होठों में शायद आशुतोष को सोच कर पानी आ रहा है। फिर मुझे में अपराध भाव आगये कि मैं ये क्या सब बकवास सोच रहा हूँ।

खैर वापिस ऑफिस में आ कर मैंने आशुतोष से कहा कि मुझे कोई इमरजेंसी आगई है और मुझे अभी जाना पड़ेगा।
आशुतोष ने तुरंत कहा, "बीपी क्या रात को यहाँ पर कोई और भी रहता है?"

"कोई नहीं बस रमेश है, जो सबसे बाद में लॉक लगा कर जाता है।"

"तुम रमेश को कह दो कि आज लॉक मैं लगा कर चाबी उसके घर दे जाऊंगा।"

मैंने पूछा, "पक्का आज ही करोगे और अगर उसके पति को पता चल गया तो?"

"यार वो कोई बहाना बना देगी, आफिस में देर सबेर तो होती रहती है और फिर कौन सा हमने पूरी रात बितानी है? 1 घंटे में फ्री हो जायेंगे हम दोनों।"

मैंने सोचा कि मैं यह सब क्या कर रहा हूँ? मैं आशुतोष को टरकाने की जगह, उसकी बात मानता जारहा हूँ? श्वेता को झंझोड़ के उसकी हरकतों के लिए गुस्सा करने की जगह उससे मिमिया रहा हूँ? क्या मैं यह सब इसलिए कर रहा हूँ ताकि मैं सब कुछ देख सकूं? क्या मैं आशुतोष को श्वेता को चोदते देखना चाहता हूँ?

तभी मैंने न चाहते हुए भी इण्टरकॉम पर रमेश को बुलाया और कहा, "आशुतोष सर को आफिस कि सारी चाबियाँ दे दो और सुबह इनके घर से ले लेना। अभी उन्हें 1-2 घंटे अपने निगम के कुछ डेटा फीड करवाने है।"

मेरी बात सुन कर रमेश ने चाभियां आशुतोष को दे दी और फिर मैं उसको आशुतोष को गुड नाईट कह कर, ऑफिस से बाहर आ गया।

जिस बिल्डिंग में मेरा आफिस है उसके साथ वाली बिल्डिंग नयी बन रही थी। मैं कार में बैठा और घुमा फिरा कर कार उस बिल्डिंग के पीछे ले आया। वहां अँधेरा और गन्दगी पड़ी हुई थी। वहां पर कुछ और गाड़िया भी खड़ी थी। मैंने उन्ही के बीच अपनी कार को पार्क कर दिया। मैं कार से जल्दी से उतर कर, साथ वाली बन रही बिल्डिंग में पिछले के हिस्से से अन्दर घुस गया और सीढ़ियों से चढ़ कर टॉप फ्लोर पर पहुँच गया। मैं 5th फ्लोर पर था और साथ वाली बिल्डिंग के 2nd फ्लोर पर मेरा आफिस था। मैं जल्दी से छत के रास्ते होता हुआ अपनी बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पे आ गया और नीचे देखते हुए इंतज़ार करने लगा की कब सभी लोग आफिस से बाहर जाते है। धीरे धीरे सभी लोग बाहर आने लगे और आखिर में रमेश निकला और वह चला गया।

अब मेरी मेरी पत्नी श्वेता और आशुतोष सर अकेले मेरे आफिस में थे। मैं तेजी से भाग कर 2nd फ्लोर पर आया और कॉरिडोर से होता हुआ बिल्डिंग की पीछे वाले हिस्से में चला गया। वहां पर लकड़ी का दरवाज़ा सिर्फ चिटकनी के साथ बंद था, जिसे खोल कर मैं अन्दर घुस गया और अन्दर से चिटकनी लगा दी। ये हमारे आफिस की पेंट्री थी। पेंट्री में पूरा अँधेरा था। वहां थोड़ी सी रोशनी बस दरवाज़े के नीचे से आ रही थी। वहां की गिलास विंडो पर काले रंग का चार्ट चिपका हुआ था, जो की पुराना और थोडा सा फट गया था। मैंने थोडा सा उसे और फाड़ दिया जिससे मुझे मेरे आफिस का हाल जहां सीखने वाले कंप्यूटर लगे हुए थे और सामने मेरा केबिन पूरा दिखाई देने लगा था!

मैंने देखा आशुतोष और श्वेता दोनो ही मेरे केबिन में ही बैठे हुये, कंप्यूटर पर कुछ कर रहे थे। तभी देखा आशुतोष ने श्वेता से कुछ कहा और वो उठ कर बाहर आई और मुख्य दरवाजे को अंदर से लॉक कर दिया। ये लॉक अंदर और बाहर दोनो से ही खुलता और बंद होता था और उसकी एक चाभी मेरी जेब में भी थी। मैं उस वक्त चाहता तो अपनी पत्नी का भांडा फोड़ कर सकता था, पर न जाने क्यों मैं यह नही कर पाया। मेरे दिल ओ दिमाग मे आगे क्या होता है जानने और देखने का भूत समा गया था। पता नहीं क्यों मैं श्वेता को किसी दूसरे मर्द से चुदने की तसल्ली चाहता था वह भी उस आदमी से जिसने मेरे सामने ही मेरी पत्नी के बारे में बहुत कुछ बताया था और जिसे श्वेता ने मुझसे छुपाया था। शायद मैं इस बात की संतुष्टि चाहता था की क्या श्वेता यह सब मुझे काम दिलवाने कि लिए कर रही है?

जब मेरी पत्नी श्वेता ने मुख्यद्वार को अंदर से बंद किया तो जहां मुझे पीड़ा हो रही थी वही पर उत्सुक्ता भी बढ़ रही थी कि अब आगे क्या? मैंने देखा कि वो जब वापस सीधे मेरे केबिन वापिस आई तो आशुतोष ने उठ कर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठो को चूसने लगा। जब आशुतोष ने अपने होंठो ने श्वेता के होंठो पर रक्खा तो मेरा शरीर झनझना गया। वे दोनो मुझ से बहुत दूरी पर नही थे, मुझे केबिन में जल रही रोशनी में सब साफ साफ दिख रहा था। मैं यह साफ़ दिख रहा था कि जिस व्यग्रता से आशुतोष उसको होंठो को चूम और चूस रहा है उतनी ही आकुलता श्वेता भी चुम रही है। श्वेता मेरी धर्मपत्नी, पूरा साथ दे रही थी।

अब मुझे अपने एक प्रश्न का उत्तर मिल गया था कि जो भी हो रहा है वह, श्वेता की सहमति से हो रहा है। मुझे पता नही क्यों इस एहसास से की श्वेता आज आशुतोष के साथ जो चिपटी पड़ी है उसमें उसके साथ कोई जबरदस्ती नही है और मेरा इसमें कोई दोष नही है, कही अंदर मुझे शांत कर गया। मैं ग्लानि से तो मुक्त हो गया था लेकिन मन मे आक्रोश पनप रहा था। श्वेता पिछले 15 दिनों से आशुतोष की तरफ से की जारही हरकतों का प्रतिकार करने या मुझसे शिकायत करने की जगह वो स्वयं, आशुतोष की कोशिशों को बढ़ावा दे रही थी। मुझ से इतना बड़ा विश्वासघात!

मैं अपने आक्रोश में उबला श्वेता पर प्रतिघात और इन दोनों को आफिस के सामने बेइज्जत करने की सोचने लगा था कि सामने देखा कि अब आशुतोष ने अपने दोनो हाथों को श्वेता के नितंबो पर रक्खे हुए है और वो उसे दबाने में लगा हुआ है। इधर श्वेता भी अपने होंठ आशुतोष के होंठों से चिपकाए हुए उससे लिपटी हुई थी। वो अपने नितंबो पर आशुतोष के हाथों का सुख ले रही थी। तभी आशुतोष ने नितंबो की दरार में कुछ हलचल की तो श्वेता उचक गई। अब मैने देखा कि आशुतोष धीरे धीरे, अपने हाथों से श्वेता की साड़ी उठाने लगा है।

उसकी साड़ी जब उठ कर उसके टखनों तक आगई तो उसकी नंगी टांगे देख कर मेरे लन्ड में कुछ होने लगा। एक अजीब सी उत्तेजना मेरे लन्ड को कसमसा रही थी। तभी देखा श्वेता ने आशुतोष को कुछ कहा और वो उसकी बाहों अलग हो गयी। उसने स्विच बोर्ड के पास जा कर लाइट बंद कर दी और मेरे केबिन में अँधेरा हो गया।

अंधेरा होते ही मैं मन ही मन श्वेता से लाइट बंद करने पर गुस्सा करने लगा। अब जब बात आगे बढ़नी थी और मुझे देखना था तब यह अंधेरा मेरे लिए बड़ी बेइंसाफी थी। यह मुझे, श्वेता का मुझसे विश्वासघात किये जाने से बड़ी बेइंसाफी लग रही थी। फिर मैंने अपने मन को यह कह कर संतावना दी की शायद वो शर्मा रही है और इसलिए उसने लाइट बंद कर दी है। वे दोनों मुझे, मेन हॉल की जल रही लाइट, जो केबिन में भी हल्की से आरही थी, उसमे थोड़े थोड़े दिखाई दे रहे थे। लेकिन फिर मुझे यह देख बड़ा आश्चर्य हुआ कि वे दोनों मेरे केबिन से निकल कर, हॉल में आ गए और अब मुझे उस दोनों कि बातें सुनाई देने लगी।
आशुतोष ने पूछा ''क्या हुआ, वहां क्यों नहीं?"

श्वेता ने कहा," केबिन की खिड़की से केबिन की लाइट की रोशनी बाहर से दिखती है। उससे लगेगा की अभी आफिस खुला है, लोग है और यही सोच कोई आ न जाये। इसलिए इस हॉल में ज्यादा ठीक रहेगा'।'

"लेकिन यहाँ कैसे? सोफा तो बीपी के केबिन में ही है।''

"अरे जब करना होगा तो देखा जाएगा, वहां लाइट ज्यादा ज़रूरी है क्या?"

श्वेता के इतना कहते ही आशुतोष ने उसको फिर से अपने बाहों में जकड लिया और उसे चूमने लगा। अब वो भी आशुतोष को बेतहाशा चूमने लगी और केबिन वाली श्वेता से अलग, अब वो बड़ी स्वछंद हो रक्खी थी। एक दुसरे को चूसते चाटते हुए ही आशुतोष ने श्वेता के ब्लाउज के हुक खोलने शुरू कर दिया और थोडा सा पीछे हट कर, वो सामने से उसके खुले ब्लाउज को देखने लगा।

"क्या देख रहे हो?"

"देख रहा हूँ कि तुम कितनी सेक्सी हो। अपने बूब्स को देखो, किस खूबसूरती से इस सेक्सी ब्रा में कैद हैं."


"तो फिर कैद को खोल के अपना कैदी ले लो!"

यह सुन कर आशुतोष अपने दोनों हाथ श्वेता के पीछे ले गया और ब्रा के हुक खोलने लग गया। ब्रा के हुक खुलते ही श्वेता के बूब्स छलक के बाहर आगये। अब आषुतोष उससे अलग होकर, श्वेता की भरी हुई नग्न होती चुंचियों कर देखने लगा।

"अब क्या हुआ?"

"तुम्हे देख रहा हूँ, क्या लाजवाब लग रही हो। थोडा सा साड़ी का पल्लू हटाओ।"

श्वेता के पल्लू हटाते ही आशुतोष के साथ साथ मैं भी अपनी पत्नी की सुंदरता को निहारने लगा। उसके ब्लाउज के हुक खुले थे और उसमें से हुक खुली ब्रा झांक रही थी। ब्रा हुक खुल जाने के कारण श्वेता की चूचियों को, मुश्किल से ढक पा रही थी। उसके निप्पलस, अभी भी ब्रा के पीछे ही छुपे थे लेकिन उसकी चुंचियीं की गोलाइयाँ और सांचे में ढली बनावट, साफ़ नज़र आ रही थी।

"कार में तो बड़े उतावले होते हो इनको पकड़ने के लिए?और अब खोल के भी छोड़ दिया?"

"श्वेता क्या तुम्हें कभी किसी ने बताया है की तुम कितनी सेक्सी हो?"

"क्या मतलब ?"

"इधर आओ।"

आशुतोष के कहने पर, श्वेता उसके पास गयी तो आशुतोष ने श्वेता की साड़ी के नीचे फिर से हाथ डाल दिया और कुछ किया जिससे श्वेता, मुस्कराते हुए हंसने लगी और उसने कहा, "अरे रुको तो!"

यह सब देख कर मेरे खुद की सांसे भारी चलने लगी थी और मेरा लन्ड मेरे अंडरवियर में फूल कर बेरहम हो रहा था। मैने पैंट के ऊपर से ही अपने लन्ड को सहला रहा था कि आशुतोष ने श्वेता की साड़ी और पेटीकोट को साथ साथ ऊपर उठाना शुरू कर दिया। उसकी साड़ी-पेटीकोट जब उसके घुटनों तक पहुंची तो मैंने देखा की श्वेता की गुलाबी रंग की पेंटी, उसके घुटनों में फंसी हुई थी। मुझे अब समझ आया कि आशुतोष ने जो श्वेता की साड़ी के अंदर हाथ डाला था, वह पैंटी उतारने के लिए ही डाला था। अब आशुतोष अपने एक हाथ से श्वेता की चुंचियों को रगड़ रहा था और उसका दूसरा हाथ साडी के अन्दर था।

अब क्योंकि श्वेता की पैंटी उसके घुटनों के आसपास थी इसलिए मुझे पता चल गया था की अब आशुतोष की उंगलिया मेरी पत्नी की चूत से खेल रही थी।

तभी श्वेता ने एक हलकी सी आह भरी और अपनी आँखे बंद कर ली।

आशुतोष ने श्वेता को देखते हुए पूछा, "क्या हुआ? मज़ा आया?"

श्वेता ने हाँ में सर हिला दिया और अपनी बाहों में आशुतोष की गर्दन को लपेट लिया।

फिर श्वेता थोड़ी जोर से हिली और बोली, "प्लीज़ दो उँगलियाँ नहीं, एक से ही कर लो।"

आशुतोष मेरी पत्नी की चूत में उंगली डाल रहा था।

तभी आशुतोष ने वहां पड़ी एक रिवॉल्विंग कुर्सी पर श्वेता को बिठाया और कहा,"श्वेता तुम्हारे हस्बैंड बड़े भाग्यशाली हैं, अगर मैं तुम्हारा पति होता तो दिन रात तुम्हारी साड़ी के अंदर ही घुसा रहता।"

श्वेता अब एक कामुक औरत की तरह इतराते हुए बोली, "तुम्हें क्या पता मेरी साड़ी में क्या है?"

"मेरी इन उँगलियों ने देख लिया है की क्या है और वो ये बता रही हैं कि साड़ी में जो छेद है वो उँगलियों से खेलने कि नहीं है।"

"तो फिर किस चीज़ से खेलने की है?"

आशुतोष ने अपनी जीभ निकली और कहा,"इस से।"

और यह कह कर आशुतोष, श्वेता की पैंटी निकालने लगा।

आशुतोष ने श्वेता को थोडा सा कुर्सी पर गिराया ताकि उसके नितंब थोड़े से बाहर निकल आयें और उसने श्वेता की साड़ी को ऊपर उठा दिया। अब श्वेता की गोरी गोरी पिंडलियाँ और जांघे, आशुतोष को तो क्या, मुझे भी साफ़ साफ़ दिख रही थी। आशुतोष ने श्वेता की जांघो को थोडा सा खोला और अब उसकी चूत, जिस पर छोटे छोटे बाल थे, नज़र आने लगी थी। मैं अपनी श्वेता की खूबसूरत चूत आंख फाडे हुए, पैंट्री के अंधियारे से देख रहा था। इसी चूत की सील मैने 8 वर्ष पहले तोड़ी थी, इसी चूत से मेरे दो बच्चे निकले थे, इसी चूत को कल ही रात घोड़ी बना चोदा था! यह सोंच मेरा दिमाग और लन्ड दोनी भन्नाने लगेथे। मैं सर्विस विंडो के फ़टे पोस्टर के किनारे से, अपनी पत्नी को शालीन पतिव्रता धर्मपत्नी से कामुक छिनार स्त्री बनते हुए देखने के लिए कसके चिपक गया।

तभी आशुतोष ने एक लम्बी सांस भरी और कहा, "ओह गॉड! श्वेता तुम्हारी चूत इतनी सुंदर! क्या फूली हुई है!"

"आशुतोष! मुझे शर्म आ रही है, प्लीज़ ऐसे मत बोलो!"

"श्वेता! सच कह रहा हूँ, इतनी सुंदर चूत मैंने आज तक नहीं देखी।"

यह कहते हुए आशुतोष मेरी पत्नी श्वेता की जांघो के बीच झुक गया। उसने श्वेता की चूत की दरार में अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी और जैसे ही उसकी जीभ, चूत पर ऊपर नीचे हुई, श्वेता के मुंह से एक छोटी सी सिसकी निकल गई। अब आशुतोष ने अपनी जीभ पूरी बाहर निकाली और श्वेता की चूत पर सबसे नीचे रख, पूरी जीभ से श्वेता की चूत को चाटता हुए, धीर धीर ऊपर ले जाने लगा।

"आआ...ह्ह्ह्हह्ह.....आआ .....शऊऊ ........तोत .......ओह्ह्ह .....मर जा....उंगी......मैं.....अह्ह्

ह.......उह्ह्ह बस....बस आशुतोष!!"

इतना कहते ही श्वेता ने आशुतोष के सर के बाल पकड़ लिए और उसका सारा शरीर अकड़ने लगा. और बोली,"आश्शूऊ ......!!!!....ओह्ह्ह गौड़ड़ड़ !......ऑउच..........अह्ह्ह.... आई म.... कम्मिंग!! ....आशुतोष!

मैं जान गया था कि यह मेरी श्वेता का पहला ओर्गास्म था। ओर्गास्म श्वेता को हुआ था लेकिन लन्ड मेरा बेहाल था। मैं उस पैंट के ऊपर से दबा के तसल्ली दे रहा था।

श्वेता 1 मिनट तक, रिवॉल्विंग कुर्सी पर पसरे हुए लम्बी लम्बी साँसे लेती रही।

"अरे श्वेता तुम तो पहले चखने में ही निकल गयी!इतनी जल्दी!"

श्वेता, वैसे ही पड़े पड़े, अधखुली आंखों से देखते हुए, मुस्कराने लगी और कहा,"प्लीज़ डू इट अगेन!"

इतना सुनते ही आशुतोष, श्वेता की चूत पर पिल पड़ा और उसने श्वेता की चूत को जीभ से चाटने की रेल सी चला दी। आशुतोष मेरी पत्नी श्वेता की चूत को अच्छी तरह से चाट रहा था। मुझे उससे जलन हो रही थी। मैं जानता था कि श्वेता को अपनी चूत चटवाना अब पसन्द है। शुरू में श्वेता जो अपनी चूत चटवाने के लिए मनाना पड़ता था, बड़ी मुश्किल से तैयार किया था और मैंने घण्टों इसी चूत को चाट कर उसे चटोरी बना दिया था।

आज उसी चूत को आशुतोष चाट रहा है। मेरी चूत मेरी अमानत, आज आशुतोष, एक पराये आदमी की जीभ के सामने फैली पड़ी है। यही देखते और सोचते हुए मै कब अपनी पैंट की जीप खोल कर अंडरवियर के उपर से अपने कड़कड़ाते लन्ड को दबाने लगा, पता ही नही चला।
 
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भाग 3
भाग 3

अब जब ध्यान अंदर की तरफ लगाया तो देखा श्वेता अपनी जांघो को और फैला चुकी है और आशुतोष मेरी पत्नी की चूत के अंदर, जीभ घुसेड़ रहा था। उसकी जीभ, श्वेता की चूत के अंदर हलचल मचा रही थी और उसकी आहें तेज़ होने लगी थी। फिर आशुतोष ने अपना मुंह थोडा सा ऊपर किया और अपने हाथो की दोनों उँगलियों से श्वेता की चूत की दोनो फलको को फैला कर, अपनी पूरी जीभ अन्दर डाल कर, उसकी चूत की अंदरूनी दीवारों को चाटने लगा।

तभी श्वेता ने कहा," लिक माय क्लिट प्लीज़!"

आशुतोष ने उसकी तरफ देख कर कहा,"अभी चाटता हूँ श्वेता, तुम देखती जाओ आज कैसे तुम्हारी हर तमन्ना को पूरी करूँगा।" और यह कह कर आशुतोष, श्वेता कि चूत की क्लिट को अपनी जीभ के कोने से चाटना शुरू कर दिया।

" अह्ह्ह्ह.....हाँ ..........धीरे! थोडा धीरे आशूऊ........आउच ........अह्ह्ह...... अहह्म्म्म.....ओह माय गॉड! ये क्या कर रहे हो!"

अब आशुतोष ने श्वेता की क्लिट को अपने होंठो के बीच में पकड़ लिया था और उसे चूसने लगा।

"बस करो आशुतोष! मर जाउंगी मैं ......ऊह्ह्ह्ह .......फिर से होने वाली हूँ मैं .......आःह्ह... .....आ रही हूँ मैं फिर से.......थोडा और......यहीं पर....बस यही पर..और करो .....आआआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!"

और इसी के साथ मेरी श्वेता एक बार फिर से झड़ने लगी थी। उसका शरीर थोड़ी देर के लिए अकड़ गया और फिर निढाल हो कर कुर्सी पर ही पसर गई। उसकी हालत देख कर आशुतोष एक विजेता की मुस्कान के साथ उठा और कहा, "क्या हुआ श्वेता? अभी से थक गई?"

श्वेता ने एक थकी हुई मुस्कान के साथ कहा, "अगर मैं कहूँ कि थक गयी हूँ तो क्या मुझे छोड़ दोगे?"

"अच्छा बाबा ठीक है, थोड़ी देर आराम कर लो।"

इस पर वो भूखी शेरनी की तरह सीधे हुई और बोली, "जी नहीं, अब तो एक बार ही आराम होगा।"

और उसने उँगली से आशुतोष को अपने पास आने का इशारा किया।

जैसे ही आशुतोष, उसके बायीं तरफ आया, श्वेता ऊपर मुंह करके आशुतोष की तरफ देखने लगी लेकिन उसके हाथ आशुतोष की पैंट पर थे। वो उसे खोल रही थी। श्वेता ने बेल्ट और पैंट के हुक खोलने के बाद आशुतोष की पैंट को नीचे खींच दी। अब आशुतोष अपनी सफ़ेद रंग के अंडरवियर में खड़ा हुआ था।

आशुतोष ने पूछा,"क्या देख रही हो?"

"अभी तो कुछ नहीं दिखा?"

" क्या देखना चाहती हो?"

श्वेता ने कुछ नहीं बोला और उंगली से उसके अंडरवियर के उभरे हुए हिस्से की तरफ अपनी आँखों से इशारा किया।

"कौन रोक रहा है? देख लो।"

श्वेता ने मुस्कराते हुए मुंह नीचे कर लिया और बोली, "मुझे शर्म आ रही है।"

इस पर आशुतोष ने कहा ,"जब ..."फिर से होने वाली हूँ मैं .......आःह्ह......आ रही हूँ मैं फिर से.......थोडा और......यहीं पे...बस यही पर..और करो" कह रही थी तब शर्म नहीं आ रही थी क्या? मेरा लौड़ा देखने में शर्म आ रही है अब !"

"हाय राम कितने गंदे हो आप! कैसे कैसे बोलते हो।"

"अरे अगर लौडे को लौडा नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?"

" अच्छा अब चुप भी करो।"

"तो फिर निकालो इसे बाहर नहीं तो फिर से कहता हूँ लौ..".

इतना कहता ही श्वेता ने आशुतोष के अंडरवियर को धीरे से नीचे कर दिया।

अंडरवीयर नीचे आते ही आशुतोष का कड़ा सा लंड बाहर आ गया। उसके लन्ड का सुपाड़ा मशरूम जैसा चिकना और मोटा था। उसका लन्ड देखते हुए मुझे अपने लन्ड का ख्याल आगया। क्या मेरा लन्ड बेकार है? आशुतोष को मुझसे बड़ा और मोटा है? मैं एक अजीब से हीनता में गिरफ्त हो रहा था। मैंने अपनी पैंट खोल डाली और अपने अंडरवियर में छटपटा रहे लन्ड को निकाल लिया। वो भनभनाता हुआ निकल आया और मैने उसे अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया। मैं मन ही मन अपने और आशुतोष के लन्ड को तौलने लगा। क्या श्वेता आशुतोष के लन्ड से चुदने के बाद मेरे लन्ड का तिरस्कार तो नही करेगी? लेकिन अगले ही क्षण मैने यह विचार दिमाग से निकाल फेका क्योंकि मेरा 7 इंच का लन्ड, थोड़ा घुमावदार टेढ़ा जरूर है लेकिन आशुतोष के लन्ड से किसी मायने में कम नही था।

मेरा लन्ड मेरी मुट्ठी में था लेकिन आंखे अंदर हॉल में हो रही रासलीला की तरफ लगी हुई थी। मैने देखा श्वेता, आशुतोष के लन्ड को अपने हाथों में लिए हिला रही थी और फिर एक दम से वह झुक गई और उसने आशुतोष के लन्ड के सुपाड़े को चूम लिया।

श्वेता को जब आशुतोष के लन्ड को चूमते देखा तो मेरे दिल मे एक टीस सी उठ गई। श्वेता को लन्ड चूसना कभी भी पसंद नही था। शुरू में तो मेरा लन्ड हाथ मे लेकर मुट्ठ मारने में भी आनाकानी करती थी। मैने लगातार 3 वर्षो की मेहनत के बाद उसे अपने लन्ड को मुंह मे लेकर चूसना सिखाया था। आज भी जब भी मेरे लन्ड को चूस कर मुझे झाड़वाती है तो एहसान लादती है। लेकिन आज, पहली ही बार मे, बिना आशुतोष के मनाए उसने अपने होंठ उसके सुपाड़े पर रख दिये थे।

उधर आशुतोष ने श्वेता से कहा,"एक बात पूछूं?"

श्वेता ने लन्ड पकडे ही आशुतोष की और देखा और कहा, "हाँ पूछो।"

"तुम्हारे पति से मेरा बड़ा है?"

श्वेता ने कहा ,"नहीं, मेरे पति से बड़ा नहीं है, बस इसका मशरूम शेप और गोरापन ज्यादा है।"

श्वेता की यह बात सुन मैं इतना खुश हुआ कि मैं खुद ही अपने लन्ड को हिलाने लगा।

श्वेता, आशुतोष के लन्ड को हिला ही रही थी की एक दम से उसने अपनी जीभ निकाली और आशुतोष के लंड को लम्बाई में जीभ से चाटने लगी और फिर मुंह खोल कर, उसका पूरा सुपाड़ा अंदर ले कर चूसने लगी।

यह देख कर एक बार फिर मेरे दिल मे टीस उठी, मेरी श्वेता बड़ी मुश्किल से मेरे लंड को चूसती थी और यहां वो किसी दूसरे आदमी के लन्ड को मुंह में डाल कर चूस रही थी।

श्वेता, आज आशुतोष के लन्ड को ऐसे चूस रही थी जैसे वो बरसो से चूसती आयी हो!

आशुतोष बड़बड़ाने लगा, "फ़क यू श्वेता! ओह्ह माय गॉड! क्या लौड़ा चूसती हो!"

यह सुनकर श्वेता कस कस के आशुतोष का लन्ड चुसने लगीं। तभी आशुतोष बोला," बस! अब और नहीं!"

श्वेता ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा और पूछा, "क्या हुआ?"

आशुतोष ने बिना जवाब दिए, श्वेता को उठाया और उसे कुर्सी पर बिठा दिया और फिर कहा, "फैलाओ अपनी टाँगे।"

इस पर श्वेता ने कहा,"अरे रुको! यहाँ नहीं, कंडोम नहीं है। प्लीज़, बिना कंडोम के नहीं!"

आशुतोष, श्वेता के मुंह के पास आया और होंठो से होंठ मिला कर बोला, "श्वेता आई वान्ना फ़क यु राइट नाउ! मुझे तुमको अपने नंगे लौड़े से ही चोदना है! मेरा लौड़ा तुम्हरी चूत को पूरा महसूस करना चाहता है!"

श्वेता मिमयाती हुई बोली, "लेकिन बिना कंडोम के? ये मेरे सेफ डेज भी नहीं हैं,प्लीज़ आशुतोष आज मान जाओ!"

आशुतोष इस पर बोला," श्वेता सिर्फ एक बार कह दो तुम्हारा मन नहीं है तो मैं कुछ नहीं करूँगा"

इस पर श्वेता ने आंखे नीचे कर ली और बोली, "मन तो बहुत है आशुतोष लेकिन आज होगा यह कोई तय नही था। बिना कंडोम के खतरा है, कहीं कुछ गडबड न हो जाये।"

आशुतोष ने कहा , "श्वेता परेशान न हो, तुम्हारे अंदर नहीं गिरूंगा, यह पक्का जेंटलमैन प्रॉमिस है।"

यह कह कर उसने श्वेता के होंठो को चूमा और उससे अलग होने लगा।
,
आशुतोष पूरी तरह से उसपर से उठ पता तभी श्वेता ने आशुतोष का लन्ड (जो अब थोडा शिथिल हो चूका था) पकड़ा और धीरे से कहा "अरे बाबा ! मैं कह रही हूँ आज तो कर लो पर फिर कभी कंडोम के बिना मत करना।"

यह सुन कर जहां आशुतोष मुस्करा पड़ा वही मेरा दिल बैठ गया। क्या सुन रहा हूँ, श्वेता, आशुतोष से आगे भी उससे चुदवाने का वचन दे रही है! आज पहली बार मे हीं कंडोम भूल भाल कर, मेरी अमानत वाली चूत में, दूसरे आदमी का खालिस लन्ड लेने को तैयार बैठी है! लेकिन यह क्या, वहां आशुतोष का लन्ड, इनकार पर ढीला हो गया था और यहां मेरा लन्ड, श्वेता की नंगी चुदाई देखने की आशा में ही घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा था! मुझको यह समझ आरहा था कि कुछ न कुछ मेरे अंदर गड़बड़ है, कुछ अलग है। एक तरफ मेरी आंखों के सामने, मेरी पत्नी श्वेता स्वेच्छा से एक पर पुरुष से चुदने जारही थी और दूसरी तरफ मैं अपनी पत्नी की बेवफाई और पर पुरूष से चुदाई को लेकर कामोत्तेजित हो रहा था और अपने लन्ड को मुट्ठ मार रहा था।

तभी मैने अपने लन्ड से अपना ध्यान हटाया और अंदर देखने लगा। वहां देखा, आशुतोष ने अपना ठीला लन्ड एक बार फिर से श्वेता के मुंह में दे दिया है और वो उसे चूस चूस कर फिर से खड़ा कर रही है।

थोड़ी देर के बाद ही आशुतोष ने अपना लन्ड श्वेता के मुंह निकाल लिया और फिर उसकी जांघो को फैला कर, उसकी चूत को ताबड़तोड़ चूमने लगा। श्वेता इन चुम्बनों से सिहरा गई थी और जब उसने हाथ आशुतोष के सर पर रक्ख कर अपनी चूत की तरफ दबाया तो आशुतोष ऊपर उठ आया।


आशुतोष ने अब श्वेता की फैली जांघो के बीच अपने लिए जगह बनाई और अपना लन्ड श्वेता की चूत पर रखने लगा। तभी श्वेता ने आशुतोष के लन्ड को पकड़ा और खुद ही उसे अपनी चूत पर टिका दिया। आज क्या मेरी जलालत का दिन था! जिस चूत का कौमौर्य मैने भंग किया था, जो मेरी है, जिस चूत को चोदने का सिर्फ मेरे पास धर्मसम्मत अधिकार था, वही चूत, अब वो, मेरे ही ऑफिस में, मेरे ही सामने किसी पर पुरुष से चुदवाने के लिए तैयार थी। मेरे लिए यह क्या सब कुछ कम था की यह सब देख कर मेरा लन्ड उत्तेजना में, घोड़े पर सवार फुफकार रहा था।



तभी आशुतोष की आवाज कानो पर पड़ी, वो "ओह्ह्ह! श्वेता मेरी जान!" कहते हुए अपना लन्ड धीरे धीरे श्वेता की चूत में घुसेड़ रहा था।

श्वेता, "अह्ह्ह्ह्म्म्म्म ......आह.....धी..रे ... धी....रे .... अहह ..... आउच .....धीरे!" कहती रही और उधर आशुतोष ने धीरे धीरे अपना पूरा लन्ड मेरी पत्नी श्वेता की चूत में पूरा घुसा दिया।

अपना पूरा लन्ड डाल कर, आशुतोष ने पूछ, "कैसा लग रहा है?"

श्वेता ने जवाब में, "प्लीज़ अभी धक्के मत शुरू करना!" कहते हुए आशुतोष को कस के पकड़ लिया और अपनी आँखे बंद कर ली। फिर लड़खड़ाती तेज़ आवाज़ में कहा, "अभी बाहर मत निकलना! मैं अह्हह्ह.....फिर से......ओह्ह्ह्ह्ह्ह....हे भगवान.......आः.. अह्ह्म्म......ओह्ह गॉड ...आई आम गॉन! फिर हो गया!"

इसी के साथ श्वेता एक बार फिर से झड गयी। यह देख कर मैं तेजी से अपने लन्ड को चलाने लगा, मेरे लन्ड से निकले मदन रस से मेरी हथेली चिपचिपा रही थी। मेरे अंदर कामोत्तेजना का ज्वार आया हुआ था क्योंकि मुझे मालूम था कि श्वेता बहुत उत्तेजित होती है तो कई बार झड़ जाती है।
मैं इधर अंधेरे में अपने लन्ड को मुट्ठ मार रहा था तो उधर आशुतोष ने श्वेता की चुदाई शुरू कर दी थी। जैसे ही आशुतोष का लन्ड धक्का मारने के लिए श्वेता की चूत से बाहर निकलता तो मुझे उसका लन्ड श्वेता की चूत के गीलेपन से चमकता हुआ दिखाई देता। शुरू में आराम से धक्के मारने के बाद अब आशुतोष तेजी से श्वेता को चोदने लगा जिससे श्वेता हिली जारही थी।

श्वेता ने इस पर कराहते हुए कहा, "अहह..थो..डा ...धीरे....अह्ह्ह..ओह्ह्ह...प्लीज़ थोड़ा रुक के!"


"क्यों? मज़ा नहीं आ रहा क्या? धीरे धीर करूँगा तो सुबह तक नहीं निकलूंगा!"

"मजा तो बहुत मज़ा आ रहा है! मन करता है चुदते चुदते मर ही जाऊं!"

"श्वेता डार्लिंग अब हुई हो मस्त! निकल गयी न सारी शर्म!"

इधर मुझे अपने कानो पर विश्वास नहीं हो रहा था की कहे जारही है श्वेता! "चुदते चुदते मर जाऊं"!

फिर एकाएक आशुतोष ने अपना लन्ड श्वेता की चूत से बारह निकाल लिया और कहा, "तुम कुर्सी से हट जाओ।"

श्वेता कुर्सी से उठी और पूछा,"क्या हुआ?"

उस कुर्सी पर आशुतोष खुद बैठ गया और श्वेता से बोला, "बैठो अब अपने प्यारे लौड़े पर!"

"बेशरम! क्या बोल रहे हो"

आशुतोष ने अपने लन्ड को पकड़ कर बोला "क्यों ये तुम्हारा नहीं है?अच्छा नहीं लगता ये?"

श्वेता उसकी बात सुन मुस्कराने लगी और बोली "बहुत गंदे और बेशर्म हो।"

यह कहते हुए श्वेता, आशुतोष से फिर गयी और अपने नितंब, उसकी तरफ कर दिए। फिर उसने झुकते हुए, अपनी दोनों फैली जांघों के बीच से अपना हाथ डाल कर, आशुतोष का लन्ड पकड़ लिया और अपनी चूत के चौखट पर लगा दिया। आशुतोष के लन्ड के सुपाड़े ने जैसे ही श्वेता की चूत को छुआ, श्वेता, आशुतोष के लन्ड पर बैठने लगी। देखते ही देखते मेरी श्वेता की पनियाई चूत में एक बार फिर से आशुतोष का पूरा लन्ड अपने अंदर कर लिया।

अब आशुतोष ने श्वेता की उदोनों चूंचियों को अपने हाथों में पकड़ रक्खा था और वो उन्हें दबाए जारहा था। अभी थोड़ी देर ही चुदाई चली होगी की श्वेता ने ऊपर नीचे होना बंद कर दिया और वो आशुतोष के लौड़े पर बैठ कर लंबी लंबी साँसे लेने लगी।

"फिर झड गयी?"

"नहीं, अबकी बार थक गयी हूँ।"

"ओके, फिर उठो।"

इसी के साथ श्वेता, आशुतोष प्रशांत के लौड़े पर से उठ गयी और वो खुद भी उठ गया।

अब आशुतोष ने कहा, "श्वेता अब तुम अपने सारे कपडे उतार कर, नंगी हो जाओ।"

श्वेता ने चिहुंक के कहा, "हाय राम बेशरम! और कितनी होऊं? सब कुछ तो देख लिया मेरा और क्या बाकी है अब?"
भाग 4

"बस श्वेता अब यही बाकी रह गया है, यह हो जाये तो बस झड़ना बाकी रह जायेगा।"

इसके बाद दोनों ने ही अपने बाकी बचे कपडे निकलने शुरू कर दिए और दोनी पूर्णतः नंगे हो गए।

आशुतोष ने श्वेता से कहा, "तुम इस मेज़ पर दोनों हाथ टिका कर, पैर फैला कर खड़ी हो जाओ, अब मैं पीछे से डालूंगा।"

यह सुनकर श्वेता मेज के ऊपर अपने दोनों हाथ टिका कर खड़ी हो गयी। अब श्वेता की कमर और गद्देदार नितंब मेरी ओर हो गए थे। अब श्वेता के पीछे आशुतोष आया और उसने अपना लन्ड, श्वेता की चूत पर लगाकर , एक ही झटके में, उसे श्वेता की चूत में उतार दिया।

जैसे ही आशुतोष का लन्ड उसकी चूत में घुसा, श्वेता के मुंह से, "आह्ह्ह.......हर बार...जान निकल देते हो!" निकल गया।

श्वेता की बात सुनके आशुतोष उत्तेजित होगया और वो श्वेता की कमर को पकड़ कर धक्के मारने लगा। वो तीन चार बार धीमे फिर एक जोर से धक्का मारता, जिससे श्वेता के साथ मेज भी हिल जाती थी। मैं पीछे खड़ा सब देख रहा था, आशुतोष का लन्ड श्वेता की चूत को ठानसे हुआ था। तभी आशुतोष की कमर तेज़ी से चलने लगी और वो तेज़ी से श्वेता की चुदाई करने लगा।

श्वेता अब बराबर बड़बड़ाने लगी थी, "आआह्ह्ह्ह....रुकना मत.........ह्ह्ह ह्ह्ह्ह........हाय......उफ़.... .म्म्म..मम..मम्म्म.....जा ...आह्ह्ह....आ रहा....आआऔऊउच!"

श्वेता ने अब कस के मेज़ को पकड़ कर उस पर झुक गई थी। तभी आशुतोष ने श्वेता की कमर छोड़, उसके नितंबो को पकड लिया और कहा, "श्वेता! रुकी रहना अब बस मैं होने वाला हूँ!"

"ओह्ह........ह्ह्ह... ...अंदर नहीं बस....जहाँ मर्ज़ी कर दो.......मै भी...... जाने वाली हूँ!"

यह कह कर श्वेता एक बार फिर से झड़ने लगी। श्वेता के झड़ते ही मुझे एक बार लगा की मैं भी झड़ जाऊंगा लेकिन किसी तरह मैने अपने को रोका और अपने लन्ड से हाथ हटा लिया।

श्वेता जे झड़ने के बाद आशुतोष ने अपना लन्ड निकाल कर श्वेता के नितंबो के दरार पर रख दिया। मुझे कुछ दिखाई तो नही दिया लेकिन जिस तरह से आशुतोष अपना लन्ड उसकी नितंबो पर झटक रहा था उससे अंदाज़ लग गया था कि आशुतोष ने बाहर आकर, श्वेता के नितंबो पर झडा है।

आशुतोष झड़ता हुआ, श्वेता के ऊपर ही हांफते हुए लेट गया था। थोड़ी देर बाद, जब उससे दबी श्वेता कसमसाई तो आशुतोष उसके पीछे से हट गया। उसके हटाते हुए मुझे श्वेता के गीले नितंब दिखे जिस पर, आशुतोष का गाढ़ा वीर्य फैला हुआ था। उसने अपने गीले नितंब को छुआ तो उसकी उंगलियों में आशुतोष का वीर्य लग गया। श्वेता ने यह देख आशुतोष से कहा,"प्लीज़ मेरी पैंटी दे दो।"

आशुतोष ने अपने लंड को सहलाते हुए जमीन में पड़ी श्वेता की पैंटी को उठाया और उसे सूंघ कर, हँसते हुए श्वेता को दे दी। श्वेता ने अपनी गुलाबी पैंटी से नितंब साफ किये और फिर अपनी चूत, जांघें और टाँगे साफ़ की। उसके बाद वो अपनी पैंटी को मेज़ पे रख के अपने कपडे पहनने लगी।
आशुतोष ने कहा, " तुमने तो साफ़ कर लिया, ,मेरा क्या होगा?"

श्वेता बोली, "तुम भी मेरी ही पैंटी से साफ़ कर लो। "और कह कर हँसने लगी।

आशुतोष ने श्वेता को कन्धों से पकड़ा और उसे कुर्सी पर बिठा दिया। ऐसा करने पर श्वेता बोली, " यह क्या कर रहे हो?"

आशुतोष ने अपना लंड श्वेता की ओर किया और कहा, " इसे चूसो और लंड को साफ़ करो।"

श्वेता ने सर हिला कर मन किया लेकिन आशुतोष ने ज़बरदस्ती श्वेता के होंठों पर अपना ढीला लंड लगा दिया और कहा, "श्वेता प्लीज़, ले लो।" और ये कह कर श्वेता के मुंह में ज़बरदस्ती अपना लन्ड ठूंसने लगा।

श्वेता ने अनमने ढंग से थोड़ी देर उसको चूसा और फिर छोड़ दिया। उसके बाद वो सीधी खड़ी हो गई और ज़बरदस्ती आशुतोष के होंठो के साथ होंठ मिला कर उसे चूमने लगी। आशुतोष थोड़ा अकबकाया लेकिन तब तक श्वेता ने सारा लन्ड और चूत का पानी जो उसने आशुतोष के लंड से मुंह मे लिया था उसे आशुतोष ही मुंह में दे दिया। आशुतोष ने सड़ा सा मुंह बनाया तो श्वेता हंसते हुए उससे अलग हो गई।

श्वेता की हंसी सुन कर मैं अपने लंड को हिलाते हिलाते वही पर झड़ गया। मैं झडता जारहा था और मुट्ठ मारे जारहा था। मुझे उस वक्त कोई होश नही था। मैं चैतन्य तभी हुआ जब मैंने आफिस के मुख्य दरवाजे के खुलने की आवाज़ कानो पर पड़ी। मैने झांक कर देखा तो श्वेता बाहर निकल चुकी थी और आशुतोष निकल रहा था। यह देख मैं तुरंत भाग कर नीचे आया और गाड़ी दौड़ाता हुआ घर पहुंच गया।

तो प्रशांत, यह है मेरे कक होने के एहसास की कहानी।

जब बीपी की बात खत्म हुई तब तक श्वेता, बीपी का लन्ड उसके लोअर से बाहर निकाल कर उसे सहलाने लगी थी। मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कराने लगा तो बीपी ने श्वेता को मेरी तरफ इशारा किया और वो नाइटी पहने हुए मेरे पास आगई और होंठ में होंठ डाल कर चुसने लगी। मैं समझ गया था कि बीपी की आत्मकथा सुन कर बीपी और श्वेता दोनो ही उत्तेजित हो गए है और दिल्ली की आखरी रात को यादगार बनाने की शुरुवात हो रही है। लेकिन मेरा मन अभी भी बीपी की कहानी में अटका हुआ था। मुझे और आगे जानने की उत्सुकता हो रही थी। आखिर उस रात के बाद क्या हुआ? बीपी और श्वेता कब एक दूसरे से खुले? मैने श्वेता की नाइटी को थोड़ा कंधे के नीचे खिसका दिया ताकि उसके स्तन अधखुले हो जाये और मै उनसे खेल सकूं ताकि बीपी उत्तेजित हो कर और खुले।

मैने श्वेता के कंधे पर अपनी बायीं बाह डाल दी और उसके वक्षस्थल को सहलाते हुए बीपी से पूछा, "बीपी आखिर उस रात के बाद क्या हुआ? कब तुम शिल्पा से खुले?"

बीपी मेरी तरफ देख कर मुस्कराने लगा और बोला, "अब सब मुझसे ही सुनना है क्या? आगे की कहानी तो श्वेता भी जानती है, अब उसी से पूछो।"

मैने श्वेता की तरफ देखा और उसके वक्षस्थल को दबाते हुए पूछा, "क्यों? क्या कह रहा है बीपी? बताओ न!"

मेरी बात सुनकर श्वेता थोड़ा शर्मायी और फिर बोली, "लगता है आज रात तुम भले ही मुझे ज्यादा परेशान न करो लेकिन पुरानी यादें ताज़ा करके बीपी जरूर मेरा भुर्ता निकाल देंगे।"

इसी के साथ उसने अपनी दूसरी ड्रिंक बनाई और बीपी के पास जाकर उसके लन्ड को पकड़ कर बिस्तर पर ले आई और फिर मुझे हाथ से इशारा कर के, अपने बगल में आने को कहा। मैं उसके बगल में जाकर जब तक बेड पर बैठा तब तक बीपी ने उसकी नाइटी खोल दी थी और वो ऊपर से पूरी नग्न हो गई थी। श्वेता ने एक झटके में आधा ड्रिंक खत्म किया और एक हाथ मे बीपी का लन्ड और दूसरा हाथ मेरे बॉक्सर में घुसेड़ कर मेरे लन्ड को पकड़ लिया। वो दोनो का लन्ड हिलाते हुए बोली, "ऐसा है कि उस रात मैं आशुतोष के साथ बहक गई थी। वो मुझसे फिस्कली फ़्लर्ट कुछ दिनों से कर रहा था और मैं उससे काम निकालने के चक्कर मे रोक भी नही रही थी। जब यह सब शुरू हुआ था तब मैं सोचती की इसको जब खत्म करना चाहूंगी मैं कर दूंगी, आशुतोष की औकात नही की वो मुझ से जबरदस्ती कर सके।"

मैने उसके गालों का चुम्बन लेते हुए पूछा, "फिर गाड़ी का रूट कैसे बदल गया?"

फिर उसके बाद, बहुत कम शब्दों में उसने आगे की जो कहानी बताई जो अब उसके शब्दो मे।

शादी के 8 साल और दो बच्चों के बाद हमारी शादी और सेक्स लाइफ दोनो ही अच्छी थी। शादी से पहले मैं स्त्री पुरुष के संबंधों के बारे में जानती जरूर थी लेकिन उसका असल सुख लेना, मुझे बीपी ने ही बताया और सिखाया था। हमारी सेक्स लाइफ में पोर्न, पैंटहाउस जैसी मैगज़ीन हिस्सा थी। बीपी, रोलप्ले के लिए उकसाते रहते थे लेकिन मेरे मन मे कभी किसी पर पुरुष का नाम लेकर सेक्स करना भाता नही था। मैं बीपी का मन रखने के लिए वह भी वह जब ये पीछे पड़ जाते थे तो झूठ मुठ का किरदार पैदा कर लेती लेकिन सोचती नही थी।

अब इस मानसिक हालत में कम्प्यूटर एडवांस कोर्स की बात निकली थी और आशुतोष नया नया आया था जिसके हाथ मे सब कुछ था। बीपी बता ही चुके है कि वो एक स्मार्ट और सभ्य आदमी था। उसको लेकर मुझे कोई आकर्षण नही था लेकिन एक दिन कार से जाते वक्त, आशुतोष की कोहनी से मेरे ब्रेस्ट दब गए तो मैं झन्ना उठी। पहले गुस्सा आया लेकिन फिर उसे इग्नोर कर दिया क्योंकि मुझे मालूम था कि यह अंजाने में हुआ था। लेकिन दो दिन बाद फिर हुआ और वह आशुतोष ने जान कर किया था। मैंने उस दिन भी कुछ नही कहा और अपना चेहरा सपाट रक्खा। लेकिन उस घटना से एक बात हुई कि जब रात को सोने से पहले नहाने गई तो बेसाख्ता मेरे हाथ ब्रेस्ट के उस भाग पर चले गए जहां, आशुतोष ने कोहनी दबाई थी। बिल्कुल अलग सी फीलिंग हुई, पता नही क्यों, मुझे अपनी चूत में फड़कन सी महसूस हुई। मैं इस अनुभव से घबड़ा उठी और जल्दी से नहा कर सोने के लिए बिस्तर पर चली गई।

मैं समझती हूँ कि तब तक सारे हालात मेरे कंट्रोल में थे और कही नही बहक रही थी। लेकिन अगली रात जिस दिन मुझे पता चल गया था की काम बीपी को मिलने की पूरी संभावना है, उस रात हम दोनों खुशी में इतने मस्त हुये की खुल के सेक्स किया। उसी रात बीपी ने रोल प्ले के लिए कहा तो मैंने कोई न नुकुर नही की। वो अपने ऑफिस की एक 40 साल की इंस्ट्रक्टर को चोदने की रोल प्ले कर रहे थे और मै उस रोल को निभा रही थी। लेकिन पता नही कैसे, जब बीपी ने मेरे ब्रेस्ट के उस भाग को चाटा जहां आशुतोष की कोहनी लगी थी, मैं वापस श्वेता बन गई और आशुतोष मेरे ख्याल में आगया। उस रात जबरदस्त सेक्स हुआ और मैं बहुत बार झड़ी।

बस वही से मेरा दिमाग घूम गया। उसके बाद आशुतोष ने कोहनी मारी तो मैं बस उसका अंदर से मजा लेती थी। फिर एक दिन जब आफिस में थोड़ी देर हो गई थी तो मुझे घर छोड़ते वक्त, अंधियारे का फायदा उठाते हुए आशुतोष ने मेरे ब्रैस्ट को कस के मसल दिया और फिर घबड़ा के जल्दी से कार से भाग गया। एक बात और प्रशांत, बीपी ने जो बात बताई है वो वही बताई है जो आशुतोष ने उसे बताया था लेकिन उसने पूरा सच बीपी को नही बताया था। उसने मेरी चुंचिया मसली थी और उसके बाद भी जब एकांत मिला वो उन्हें छेड़ता और हम दोनों लिपट के होंठो को चूमते थे।

एक तरफ़ यह हो रहा था और दूसरी ओर बीपी को बहुत खुश देखती तो अपने पर बड़ा शोभ और ग्लानि होती थी। रोज घर जाते वक्त सोचती थी कि नही, अब नही। आगे बढ़ावा नही देना है लेकिन वासना एक ऐसी चीज़ है कि वो आपको बिना पंख के उड़ा देती है। सब कुछ होने के बाद भी मुझे अपने पर विश्वास था कि इस मस्ती में, आगे नही बढ़ना है। मैं उसके साथ नही सोऊंगी।"

मैने तब उसे टोकते हुए कहा, "श्वेता, यार आगे का बताओ, उसके बाद जो हुआ वह तो बीपी ही बता चुके है।"

इस पर श्वेता ने झिडकते हुए मुझ से कहा, "वाह क्या बात है! खुद कई दिनों से यह सब मुझ से पूछ रहे हो और मेरे अंदर क्या चल रहा था और क्यों आशुतोष से चुद गई, उससे तुम्हे कोई मतलब ही नही?"

उसका आक्रोशित चेहरा देखा तब समझ गया कि जिस यौन मानवीय स्वभाव और सम्बन्धो की सूक्षमता को समझने और जानने के प्रयास में बीपी और श्वेता को कुरेद रहा था, वह मेरी ही आकुलता की शिकार हो रही है। मैने तुरन्त बात को सम्भालने की उससे कहा, "सॉरी श्वेता मेरे टोकने का यह मतलब नही है। अब क्योंकि बीपी ने कहानी को ऐसी जगह छोड़ा था कि मैं खुद ही आगे की बात जानने के चक्कर मे मुख्य धारा, जो मानसिक होती हूं, उससे किनारा करने लगा था। प्लीज कंटिन्यू।"

श्वेता की रुष्टता देखते हुए, बीपी ने बात संभाली और उसे चूमते हुए कहा, "श्वेता महारानी, क्यों प्रशांत को तरसा रही हो, जो कहना है और जैसे कहना है, कहो।"

श्वेता थोड़ी देर चुप रही लेकिन जब बीपी उसके पैर के अंगूठे को चुसने लगी तो उसने अपना गुस्सा थूक दिया और ड्रिंक का एक लंबा से सिप लेते हुए उसने बात आगे बढ़ाई।

अब बीपी ही मना रहे है तो बात बतानी पड़ेगी। आशुतोष के साथ बीपी के आफिस में रात को चुदने के बाद क्या हुआ उससे पहले के दिन में क्या हुआ, वह बड़ा महत्वपूर्ण था। जैसा कि आशुतोष ने बीपी को बताया था की आफिस आते वक्त उसने मेरा हाथ अपने लन्ड पर, पैंट के ऊपर रखवाया था वो बात सही थी और उसी ने मेरा दिमाग खराब कर दिया था। ऐसा नही है कि उसी दिन मैंने उसके लन्ड को पहली बार महसूस किया था, उससे पहले जब भी दो तीन बार, आशुतोष ने मुझे बाहों में जकड़ा था, मुझे उसके फुले हुए लन्ड का एहसास होता था। लेकिन उस दिन आशुतोष बहुत गर्म और बोल्ड था। आफिस से निकलते ही उसने मेरा हाथ पकड़ लिया था और उसे सहलाते हुए उसने मेरी हथेली अपने पैंट पर, लन्ड के ऊपर रख दी थी। उसका लन्ड बड़ा फुला हुआ था और मेरी हथेली उससे संमोहित हो गई थी। उसको मसहूस करते हुए, मेरा एक मन हथेली हटाने को कहता था लेकिन मेरे अंदर की औरत उसको तेजी से सहलाने लगती थी।

उस शाम आफिस में जब बीपी ने कहा कि उसे जाना पड़ेगा और आशुतोष थोड़ी देर रुक कर जाएगा तब मैं आशुतोष के साथ खाली हो रहे आफिस में, बैगर बीपी के रुकने से असहज हो गई थी। मैं चाह कर भी बीपी से नही बोल पाई की मुझे भी घर ले चलो, मुझे मत अकेला छोड़ो। मुझे ठीक नही लग रहा है। लेकिन मुझे तो यही पता था कि बीपी को तो कुछ नही पता है इसलिए कुछ कह भी नही सकती है। प्रशांत, जब तक आफिस हेल्पर रमेश नही गया तब तक मुझे विश्वास नही था कि मैं आशुतोष से चुदने जा रही हूँ। बस, एक बार हम दोनो अकेले हुए और आशुतोष ने कैबिन में मुझे बाहों में लेकर मेरे होंठो को चूमा मैं पिघल गई। वासना में सराबोर हो गई। उस वक्त यही समझ आया कि किसी को कुछ पता नही चलेगा और बात एक रात की, एक अनुभव से ज्यादा कुछ नही होगा। यह मेरा प्राइवेट सीक्रेट रहेगा और आगे से फिर आशुतोष के साथ अकेले रहने से बचूंगी। मैं बीपी को फिर धोखा नही दूंगी।

इसके बाद जो हुआ वह तो तुमने बीपी से आंखों देखा हाल सुन ही लिया है और अब उसके बाद कैसे यहां तक बात पहुंची वो बताती हूँ।

मैं और आशुतोष जब आफिस से निकले तब तक करीब रात के 9:30 बज गया था। उस वक्त तो वहां से निकलने की सिवा कोई बात दिमाग मे नही थी। आशुतोष की गाड़ी में बैठते वक्त मेरे दिमाग में जल्दी से जल्दी घर पहुंचने की फिक्र थी और अंतरात्मा भी बीपी से किये विश्वासघात भी धिक्कार रही थी। कार में आशुतोष ने मुझे बाहों में लेकर चूमने की कोशिश की तो मैं सहज नही हो सकी और आशुतोष को रोक दिया। वो जबरदस्ती कोई रोमांटिक बात करना चाहता था लेकिन मेरे चेहरे पर गंभीरता को देखते हुए उसने आगे कुछ नही किया और सीधे मुझे घर के पास, कोने पर, जहां हमेशा छोड़ता था, छोड़ दिया। आशुतोष ने मुझे गुड नाईट कहते हुए आई लाइव यु बोला लेकिन मैंने पलट के कोई जवाब नही दिया और तेजी से अगला एक फर्लांग पार किया और घर पहुंच कर कॉल बेल दबा दी। मुझे मालूम था बीपी अभी पार्टी में होंगे और बच्चे भी मां जी के कमरे में सो गए होंगे। सिर्फ मां से आमना सामना होगा तो मां से कोई दिक्कत नही थी।

मेरे बेल दबाते ही दरवाजा खुल गया और खुलते ही मेरा दिल धक से बैठ गया। दरवाजा बीपी ने खोला था, वो घर पर ही थे। बीपी को देख कर मेरे चेहरे से हवाइंया उड़ गई। मैं इससे पहले की कुछ कह पाती बीपी ने कहा, "आगई? आशुतोष ने बड़ी देर लगा दी? उसका सारा काम हो गया?"

मैने हकलाते हुए कहा, "अरे तुम घर पर? पार्टी नही गए? फिर मुझे क्यों छोड़ा?"

बीपी ने बड़े शांत स्वर में कहा, "अरे जब घर आकर तैयार हुआ तो एड्रेस के लिए कार्ड देखा तो पार्टी आज की जगह कल है। बस फिर यही सोच कर की तुम आफिस संभाल ही लोगी तो आलस कर गया।"

यही कहते हुए उसने दरवाजा लॉक किया और हम बैडरूम आगये। मेरा मन बहुत विचलित था और मेरे अंदर से घबड़ाहट भी हो रही थी। मैने अपना आफिस का बैग पटका और मां और बच्चों को देखने उनके कमरे चली गई। वहां से लौटी तो बीपी बिस्तर में बैठे हुये थे। मुझे देख कर बोले, "श्वेता जाकर पहले नहा लो, दिन भर काम करके तुम्हारे कपड़े सब सिकुड़ मुचुड़ गए है और चेहरे से भी काफी थकी लग रही हो। नहा लो, मैं खाना गरम कर देता हूँ।"

बीपी ने जब कपड़ों और बदरंग होते चेहरे को लेकर यह सब कहा तो मैं अंदर से कही टूट गई। मैं अपनी नाइटी लेकर तेजी से बाथरूम में घुस गई और लॉक कर दिया। मैने अपने चेहरे को शीशे में देखा तो देख नही सकी और रोने लगी। मुझे बहुत तेज़ रुआई आरही थी। मैने नल खोल दिया और जी भर के रोई। मुझे अपने पर घृणा और बीपी को धोखा देने की हीनता में में डूब चुकी थी। मैने अपने पूरे शरीर मे, खास तौर से अपनी चूत को बार बार साफ किया। मुझे अपने से घिन्न आरही थी। मैं आशुतोष का कोई निशान अपने शरीर पर बचे हुए नही रखना चाहती थी।

नहा कर बाहर आई तो डाइनिंग रूम में बीपी ने खाना लगा रक्खा था और वो मेरा इंतज़ार कर रहे थे। मैं चुप चाप टेबल पर बैठ गई लेकिन खाने का बिल्कुल भी मन नही था। तभी बीपी मेरी कुर्सी के पीछे आये और मेरे सर को चूमते हुए बोले, "श्वेता क्या बात है? तुम बहुत चुप हो, क्या बात है?"

बीपी का इतना कहना था कि मेरे आंखों में आंसू आगये। बीपी मुझे रोता देख चौक गए और बोले, "श्वेता क्या बात है? कोई बड़ी बात हुई क्या? बोलो, मैं तो हूँ तुम्हारे साथ।"

मैं बस बीपी से लिपट गई और बीपी मुझे थपथपाते रहे। मैं वहां बैठ नही सकी और बीपी मुझे बेड रूम ले आये। मेरी समझ नही आरहा था कि मेरे इस रोने धोने को लेकर बीपी को क्या सफाई दूं। कोई बहाना भी दिमाग मे समझ नही आरहा था। इतने में बीपी ने मुझे बाहों में ले लिया और मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिये। मेरा मन भन्नागया। अभी कुछ घण्टों पहले अपने होंठो को आशुतोष से चुसवा कर आई थी और बीपी उसी जगह! अंदर से मैं चीत्कार कर रही थी, नही! ये होंठ झूठे हो गए है, बीपी के लायक नही रहे है। मैने जब कोई प्रतिक्रिया नही दी तो बीपी ने कमरे की लाइट ऑफ कर के नाईट बल्ब जला दी और लेट गए। लेकिन मेरी आँखों मे नींद कहाँ थी, मैं तो अपने ही द्वंद्व और विश्वासघात की हीनता में डूबी जारही थी।

थोड़ी देर बाद, बीपी ने लेटे लेटे ही कहा, "श्वेता, आई लव यू।"

बीपी ने जिस दर्द के साथ मुझे आई लव यू कहा था उससे मैं हिल गई। रात के सन्नाटे में, नाईट बल्ब की रोशनी मैं बीपी को देखने लगी। वो जगे थे, छत की तरफ देख रहे थे। मुझे उस अंधेरे में भी बीपी की आंखों में दर्द दिख रहा था, शायद उसकी वजह यह थी कि मैं खुद बीपी के विश्वास की हत्या के अपराध से बोझिल थी। मैने बीपी से कहा, "सुनो, आइंदा मुझे आशुतोष के साथ अकेले मत छोड़ना।"

मेरी बात सुन कर बीपी मेरी तरफ पलट गए और बोले, "क्यों क्या उसने कुछ कहां? बत्तमीजी की उसने?"

बीपी की बात सुन कर मैं उससे लिपट गई और जोर जोर से रोने लगी। बीपी भी घबड़ा के मुझे बाहों में लिए उठ के बैठ गए। वो मुझसे कारण पूछने लगे। मैं सिर्फ इतना ही कह पाई, "मै तुमसे प्यार करती हूँ, इसका तुम्हे यकीन है?"

बीपी ने मेरा चेहरा अपने हाथों में ले लिया और मेरी आँखें माथा और होंठ चूमते हुये बोले, "मैं जानता हूँ कि तुम मुझे बहुत प्यार करती हो और मुझे इसके लिए तुम्हारे या किसी और के सर्टिफिकेट की जरूरत नही है।"

बीपी की आवाज़ में बड़ी शिद्दत थी। वो एक हाथ से मेरी पीठ सहला रहे थे तो दूसरे हाथ से मेरी चुंचियों को नाइटी के ऊपर से सहला रहे थे। बीपी जो कर रहे थे उससे मुझे कोई उत्तेजना नही हो रही थी और न ही बीपी भी कोई मेरे साथ छेड़खानी कर रहे थे। ये उनका मेरे प्रति प्यार दिखाने का तरीका था। तभी मेरे अंदर जैसे कुछ टूट गया और बीपी के गले लगते हुए बोली, "बत्तमीजी आशुतोष ने नही, यदि मैने की हो तो?"

बीपी मेरी बात सुनकर जड़वत हो गए और फिर बोले, "मेरी श्वेता ने कुछ भी किया होगा वो मेरे ही हिस्से है। मुझे विश्वास है कि तुम कुछ भी मेरे पीठ पीछे नही करोगी।"
 

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भाग 4

बीपी की बात सुनकर मैं धरधर कांपने लगी और बीपी को कस के गले लगा लिया। मैने फिर कांपती आवाज में कहा, "माफ कर दो मुझे बीपी, आज तुम्हारी पत्नी श्वेता, आशुतोष की रंडी बन आई है।"

यह कहते हुये मैं हिचकिया लेते हुए रोने लगी। बीपी ने मेरी बात पर न मुझे अपने से परे किया, न कुछ पूंछा, न गुस्सा किया, बस और कस के मुझे अपने से चिपटा लिया और खुद रोने लगे। बीपी के रोने ने मुझे और तोड़ दिया और एक विछिप्त की तरह बड़बड़ाते हुए, उन्हें वह सब कुछ बता डाला जो मेरे और आशुतोष के बीच इतने दिनों में हुआ था। बीपी मुझे गले लगाए सब सुनते रहे और मुझे पुचकारते रहे। जब मेरी बात खत्म हो गई तो बीपी ने मुझे अपने सामने किया और मुझे अपनी आंसू भरी आंखों से घूरने लगे। फिर ठहरते हए बोले, "श्वेता, तुमने कोई पाप नही किया है। जो किया था वो आज इसी वक्त खत्म हो चुका है।"

मैं तो बीपी की बात सुन कर सन्न रह गई। बीपी ने फिर बोला, "यह मनुष्य स्वभाव और जीवन दोनो में कितनी गहराई है, किसी को कुछ नही पता। जो कल का सत्य है वो आज असत्य है। जो कल गलत था वो आज सही हो जाता है। हां मुझे कष्ट हुआ और बहुत हुआ, जब तुमने मुझसे छुप कर आशुतोष के साथ सम्बंध बढ़ाये और मेरे आफिस में खुद ही आशुतोष को तुम्हे चोदने का पूरा मौका दिया।"

बीपी की बात सुन कर मुझे तो जैसे करंट लग गया था। मैंने बीपी को यह नही बताया था कि आशुतोष ने मुझे कहाँ पर चोदा है, मैने यह भी नही बताया था कि मैने खुद उससे अपनी वासना में चुदवाया है।

मैने अपनी डबडबाती आंखों से बीपी की नज़रों को पढ़ना चाहा लेकिन कुछ कह न सकी। बीपी मेरे गालों को सहलाते हुए बोले, "श्वेता, मुझे तुम्हारा आशुतोष से चुदने से ज्यादा, मेरी पीठ पीछे आशुतोष से कार में चुंचियाँ दबवाना, उसका लन्ड पकड़ना और फिर आशुतोष के लन्ड को खुद ही मुंह मे लेकर लॉलीपॉप की तरह चूसना ज्यादा दर्द दे गया था। क्या आशुतोष ने तुम्हे मुझसे ज्यादा बढ़िया तरीके से चोदा था? क्या उसका लन्ड मुझसे बेहतर था?"

मैं तो बीपी की बाते सुन कर लगभग बेहोश ही हो गई थी। बीपी इस तरह से चुदाई के समय की बाते बता रहा था जैसे उसने सब देखा हुआ हो! मेरे दिमाग मे कौंधा की कही बीपी ने आफिस के अंदर सिक्योरिटी कैमरे तो नही लगाए है, जो इतना सब बता रहे है?

मैंने बीपी के हाथ पकड़ लिए और उससे पूछा, "यह सब क्या कह रहे हो? क्या कैमरा लगाया हुआ है? तुम्हे कैसे सब मालूम? प्लीज् मेरा कलेजा फटा जारहा है। आज की रात सच की रात है। मैने अपना सच सब बता दिया, तुम जो सज़ा देना चाहों वो मुझे स्वीकार होगा, लेकिन भगवान के लिए मुझे अंधेरे में मत रक्खो।"

मेरी बात सुन कर बीपी ने मेरे होंठो पर होंठ रख दिये और उसे चुसने लगे। मेरी समझ नही आरहा था कि एक तरफ मेरी चुदाई के बारे में बीपी को इतना सब कुछ पता है और दूसरी ओर वो मुझे अपमानित करने और उल्हना देने की जगह मुझे चूमे जा रहा है। मै बीपी को हटाना चाहती थी लेकिन बीपी को और दर्द नही देना चाहती थी। मैं इसी में खुश थी कि बीपी ने इतनी बड़ी बात, जो मेरी शादी तक तोड़ सकती थी, उसको लेकर मुझे मॉफ कर दिया है।

मैं श्वेता की बातें सुनने में इतना तल्लीन हो गया था कि मुझे इस बात का ध्यान भी नही रहा कि बीपी सामने से उठ कर, श्वेता के पास आकर पलँग पर बैठ गया है। मेरा ध्यान तो तब गया जब उसने श्वेता को मेरे सामने नँगा करना शुरू कर दिया था। उसने नाइटी नीचे खींच दी थी और उसकी सुडौल चुंचियाँ बाहर निकल आयी थी जिन्हें बीपी सहला रहा था।

मैं उसकी ओर मुस्कराया तो श्वेता ने बीपी को चूमते हुये उसके खड़े हो रहे लन्ड को सहलाने लगी। मैंने इस मन मोहक दृश्य को देख कर, श्वेता से बोला," बस? आगे क्या हुआ?"

श्वेता मेरे पूछने पर, कुछ देर ठहरी फिर बीपी को देखते हुए, अपनी पूरी नाइटी उतार कर फेंक दी और नंगी मेरे ऊपर, पीठ कर के बैठ गई। श्वेता जब मेरी गोद मे शराब का गिलास लिए, नग्न बैठी तो बीपी की आंखों में चमक आगई। मैं उसकी आंख देख रहा था। उसकी आंख में जहां वासना भरी हुई थी वही पर, श्वेता को लेकर प्यार भी उमड़ आया था। मैंने श्वेता की गर्दन पर होंठ रख दिया और उसे चूमते हुए फिर बोला, "नही मन है बताने का तो रहने दो श्वेता।"

इसके जवाब में श्वेता ने अपना हाथ नीचे डाल कर, मेरे बॉक्सर से लन्ड को निकाल कर पकड़ लिया और उसे हिलाते हुए बोली, "अब बचा ही क्या है प्रशांत, बताने को? बीपी मुझे चूमते चूमते मेरी चुंचियों को मीसने लगे और फिर वो सारी बाते बताई जो अभी बीपी ने तुम्हे बताया था। बीपी ने जब यह सब बताया कि कैसे जाने अंजाने में आशुतोष ने बीपी को मेरे और उसके बीच की अंतरंग बाते बताई और कैसे मुझे चोदने के लिए उसे आफिस दिया था तो मैं यह सब सुन कर जड़ होगई। लेकिन उससे ज्यादा धक्का तो तब लगा जब बीपी ने बताया कि उन्होने मेरी पूरी चुदाई देखी थी और वह सब सुना और देखा था जो मैंने आशुतोष से कहा या किया था। बीपी ने मुझे यह सब बताते हुए, बेड पर ही नँगा भी कर दिया था और मैं सुन्न हुई उसे करने दे रही थी। फिर जब बीपी ने मुझे शर्माते हुये यह बताया कि मुझे आशुतोष से चुदते देख कर वो बड़े कामोत्तेजित हो गए थे और देखते हुये मुट्ठ मारी थी तो यह सुनकर मैं तो हक्कीबक्की रह गई थी।"

फिर अपने पैर से बीपी के लन्ड को सहलाते हुए बोली, " मैं इन्हें जब अविश्वास से देखने लगी तो इन्होने मेरे हाथ को पकड़ के अपने लौड़े पर रखवा दिया। इनका लौड़ा छूते ही मैं चौक गई क्योंकि बीपी का इतना कड़ा और तन्नाया लौड़ा कई बरसो बाद देखा था। इनके लौड़े को देख कर मुझे विश्वास हो गया कि वाकई बीपी को मेरा चुदना भा गया था।"

फिर मैंने देखा बीपी ने श्वेता को कोई इशारा किया और वो खड़ी हो गई। उसने मेरा बॉक्सर खींच कर उतार दिया और फिर मेरे अब तक खड़े हो चुके लन्ड को मुंह मे ले लिया। मैं समझ गया था कि बीपी की कामोत्तेजना बढ़ने लगी है इसी लिए श्वेता ने बीच मे बात छोड़ दी है। श्वेता ने 2 मिनिट ही मेरा लन्ड चूसा था कि बीपी ने एक कंडोम श्वेता की ओर बढ़ा दिया। श्वेता ने ऊपर आंख उठा कर मेरी तरफ शरारत से देखा और फिर मेरे लन्ड को अपने मुंह से निकाल कर, खुद ही उस पर कॉन्डोम चढ़ा दिया। मैं बीपी की तरह, यह सब देख और महसूस कर खुद भी बुरी तरह कामोत्तेजित हो रहा था। श्वेता ने अब मेरे लन्ड को पकड़ा और मेरी गोदी में, मेरी तरफ पीठ करके बैठ गई। फिर उसने अपने को थोड़ा ऊपर किया और मेरे लन्ड को अपनी चूत के द्वार पर रख दिया। मैं हल्का सा उपर उचका और मेरा लन्ड उसकी चूत के अंदर घुसने लगा। मैंने वही बैठे बैठे 4/5 बार ऊपर धक्के दिए, जिससे श्वेता ने अपनी जगह बना ली और मेरा लन्ड उसकी चूत में पूरा घुस गया। मैं लन्ड वैसे ही डाले हुए, श्वेता की चुंचियों और निपल्स को सहलाने लगा। श्वेता, मेरी उंगलियों से उसकी निपल्स की रगडें जाने पर, मस्तिया गई और अपनी पीठ मेरी छाती पर रगड़ते हुए, मेरे लन्ड को अपनी चूत में अंदर किये हुए अपनी कमर घूमते होए बोली, "बीपी कुछ याद आया, ये देख कर?"

बीपी जिसकी आंखों में वासना खुमारी ले रही थी बोला, "सब याद है, तुमको पहली बार चुदते ऐसे ही देखा था। तुम ऐसे ही आफिस की रिवॉल्विंग चेयर पर आशुतोष के लन्ड पर चढ़ी हुई थी।"

यह सुन कर, श्वेता के मुंह से एक आह से निकली और वो खुद ही मेरे लन्ड पर ऊपर नीचे हो कर, मुझे चोदने लगी। मैंने थोड़ी देर सब ऐसा करने दिया फिर अपना हाथ आगे डाल कर, उसकी चूत पर रख दिया। फिर अपनी उंगली से उसकी क्लिट को छेड़ते हुए खुद भी ऊपर धक्का देने लगा। मेरा लन्ड पूरा जड़ तक उसकी चूत में घुसता था। श्वेता अपनी क्लिट पर मेरी उंगलियों के प्रहार और मेरे लन्ड की उसकी चूत के अंदर तक पहुंच से काममय हो कर, "आह्हा.... सीसीसी..…... ममममम" की वासना में डूबी आवाजे निकालने लगी थी। मैने उसके कान को होंठो में दबा लिया और चूसता हुआ बोला, "श्वेता, फिर अगली बार आशुतोष के साथ कैसे चुदी?"

मेरी बात सुनकर एक बार तो श्वेता शांत हो गई, उसने कुछ करना ही बंद कर दिया। मैं समझ गया कि मेरे प्रश्न ने इतने अच्छे चुदाई के वातावरण में रंग में भंग कर दिया है। मैने श्वेता की चूत को सहलाते हुए बोला, "सॉरी, भाड़ में जाये आशुतोष, अब कोई बात नही होगी बस तुम, हम और बीपी पूरी रात एन्जॉय करेंगे।"

मेरी बात सुन कर, श्वेता ने अपना मुंह पीछे किया और मुझे चूमने लगी। हम दोनों के होंठ एक दूसरे को चबाने में लग गए और मैं उसकी चुंचियों को दबाते हुए उसके निपल्स को उंगलियों के बीच लेकर रगड़ने लगा। मेरा ऐसा करने से श्वेता एक बार फिर मूड में आगई। फिर वो मेरे ऊपर से उठ गई और मेरा लन्ड उसकी चूत से बाहर निकल गया। मैं समझा कि वो थक गई है, अब बेड पर चोदते है लेकिन श्वेता का ख्याल कुछ और ही था। वो उठी और फिर मेरी तरफ मुंह कर के मेरे ऊपर बैठ गई और मेरे लन्ड पकड़ कर अपनी चूत में डाल दिया। श्वेता की चूत गीली हो चुकी थी और मेरा लन्ड उसकी चूत के गीलेपन में फिसलता हुआ उसकी चूत में एक झटके में पूरा घुस गया। श्वेता ने अब खुद ही अपनी चुंची मेरे सामने कर दी और वी अपने निपल्स को मेरे होंठो पर रगड़ने लगी। मैने अब उसकी कमर को कस के पकड़ा और नीचे से ऊपर उसकी चूत में धीरे धीरे धक्के मारने लगा। श्वेता भी अब मेरा साथ देने लगी और मेरे लन्ड पर "आह...आह...हो... हो" कहते हुए कूदने लगी। अब मेरे हथेलियों पर उसके गद्देदार नितम्ब थे जिन्हें मैं कभी सहलाता, कभी उन पर थप्पड़ मारता। मेरे हथेली के हर थाप पर चटाक की आवाज निकलती और श्वेता कस के मेरे लन्ड पर कूदते हुए "सिसीईई" सिसियाती हुई जोर से मुझे जकड़ते हुए कूदने लगती थी। तभी उसने मुझे कस के पकड़ लिया और मेरे गाल पर "उम्ममम्म्म" कहते हुए दांत गडा दिए। मैं दर्द से बिलबिला जरूर गया लेकिन कामोत्तेजना में कस कस के उसे चोदने लगा। फिर मुझे अपनी पीठ पर उसके नाखून गढ़ते महसूस हुए और उसकी टांगे अकड़ गई थी। इसी के साथ, "आआएहहह.... उईईईईईई....पररर......आन्त....अफ़्फ़" कहते हुए श्वेता मुझसे बुरी तरह चिपट कर निढाल हो गई।

मैं श्वेता को गले लगाए ही सोफे से उठ गया, मेरा लन्ड उसकी चूत में ही था और मेरे पोते और उसकी जाँघे उसके झड़ने से गीले हो चुके थे। मैने उसे बिस्तर पर, बीपी के बगल में गिरा दिया। बीपी कामवासना के नशे में डूबी हुई आंखों से हमे देख रहा था और अपना लन्ड हाथ मे लिए सहला रहा था। मैंने बीपी को देखा और अपने लन्ड को श्वेता की चूत से बाहर निकाल लिया। फिर बीपी की तरफ देखते हुए श्वेता की चूत पर अपने लन्ड से थपथपाया और फिर एक झटके में उसकी चूत में घुसेड़ दिया। मेरे लन्ड के घुसेड़ते ही श्वेता के मुंह से "आईईई" की आवाज निकली और उधर बीपी भी "ईईईईईआहह" की आवाज निकालते हुए अपने लन्ड को तेजी से हिलाने लगा।

मैं, श्वेता की हालत देख कर, आहिस्ते आहिस्ते उसे चोद ने लगा था। 9/10 धक्के के बाद ही श्वेता ने कहा, "प्लीज डू इट फ़ास्ट प्रशांत! कसके चोदो, बीपी बेकरार हो रहे है।" श्वेता की बात सुनते ही मैं श्वेता को कस के चोदने लगा। मेरा लन्ड पूरी ताकत से उसकी चूत में जा रहा था। शुरू में श्वेता वैसे ही निढाल पड़ी रही और मेरे हर धक्के पर "आह! ओह!" की आवाज निकालती थी। फिर यकायक उसने अपने पैर उठा लिए और मेरी कमर को कस के जकड़ लिया। अब वो मेरे हर धक्के पर नीचे से उछल कर मेरे लन्ड को अंदर तक ले रही थी। उस वक्त हम दोनों खरगोशों की तरह चुदाई कर रहे थे। बिस्तर की चद्दर किधर जारही है तकिया कहाँ फिक रही है और शरीर कहाँ नुच रहा है, होश ही नही था। मुझे लगातार उसे करीब 6/7 मिनिट कस कस के चोदे हुआ होगा कि श्वेता मेरी गर्दन को जकड़ने लगी और लगातार "आईईई....उफ़्फ़फ़.....उफ़्फ़फ़....हायय... रुक.....नाअअअअअअअ.... नहीहीही!" बड़बड़ाने लगी। मैं भी अब ज्यादा देर ठहरने की हालत में नही था। मैने श्वेता के कान में कहा, " श्वेतआआ.... आई कांट होल्ड! निकलने वाला है!"

इसी के साथ मैने 2/3 धक्के कस के श्वेता की चूत ने मारा और उसकी चूत में भकभला के झड़ने लगा। मैं झड़ता जारहा था और धक्के भी मारता जारहा था। श्वेता भी अपनी चूत में मेरे गर्मा गर्म वीर्य से सिचती हुई कस कस के अपने नितंबो को उछाल कर मुझे चोदने लगी। अब उसकी मेरे कंडोम में भरे वीर्य से भरी चूत से फच्च फच्च की आवाज आने लगी। मेरे लन्ड का तनाव कम होने लगा था लेकिन फिर भी मैं उसे और वो मुझे जकड़े, रगड़े जा रहा थे। इससे पहले की मेरा लन्ड लुंज पुंज होकर अपने आप उसकी चूत से बाहर आजाता, श्वेता ने मुझे कस के पकड़ा और "आआआआ....... इशशशश.....एआईईईई ..... गईईईई!" कहते हुए झड़ गई। मैं निढाल हो, श्वेता पर ही गिर गया और वो मुझे बार बार चूमने लगी। जब मेरे कुछ देर बाद होश हवास वापस आये तो देखा बीपी बगल बेड पर अपने झड़े लन्ड को हाथ में लिए है। उसके वीर्य से उसकी हथेली और जांघ सने हुए थे। उसने मुझे देखा और मुस्करा दिया। मैं उसे देख थोड़ा झेंपा और फिर श्वेता के ऊपर से उठ कर श्वेता के बगल में ही लेट गया।

हम तीनों ही, चुदाई से निचुड़े हुए निढाल हो गए थे। हम तीनों ही चिपचिपाते वीर्य में सने हुए थे। मैने जब बगल की टेबल में रक्खे टिश्यू पेपर के बॉक्स से, श्वेता की चूत और अपने लन्ड को साफ करने के लिए, टिशू पेपर निकाला तो इससे पहले की मैं कुछ करूं, बीपी ने उसे मेरे हाथ से ले लिया। मैने उसकी तरफ प्रश्नवाचक नजरो से देखा तो उसने मुस्कराते हुए कहा, "श्वेता का ये काम मैं करूँगा।"

मुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ लेकिन उससे ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब श्वेता ने लरजते हुए,"आजा मेरा बाबू।" कहा और बीपी के झुके मुंह को अपनी चूत पर लगा दिया। श्वेता की चूत उसके मुंह से छूते ही बीपी में एक नई जान आगई। वो अपना मुंह अपनी नाक श्वेता की चूत पर "मममममम" कहते हुए रगड़ने लगा और अपनी जीभ निकाल कर श्वेता की चूत अंदर बाहर चाटने लगा। उसने बड़ी तन्मयता से श्वेता की पूरी चूत और जांघ चाट चाट कर साफ कर दी। मैं यह जानता जरूर था की पर पुरुष से चुदने के बाद कुछ विशेष कक पुरुष, वही ही, अपनी पत्नी की चूत साफ करते है। उन्हें अपनी पत्नी की चूत में दूसरे पुरूष के लन्ड और उसके वीर्य की महक और स्वाद बड़ा सन्तुष्ट करता है। लेकिन मेरे लिए यह जीवन मे प्रत्यक्ष देखने का पहला अनुभव था।

मैं जब यह सब आंखे फाड़े देख रहा था तो श्वेता बड़े प्यार से बीपी का सर सहलाते हुए अपनी चूत उससे साफ करवा रही थी। तभी उसकी नज़र मुझसे मिल गई तो वो शर्माते हुये मुस्करा दी। मैंने श्वेता के माथे को चूमा और बोला, "श्वेता यू रियली लव बीपी एंड ही लव्स यू टू।"

मेरी बात सुन कर बीपी ने श्वेता की चूत साफ करके अपना सर उठा कर मेरी तरफ देखा और बोला, 'आई एम ग्लैड यू अंडरस्टैंड इट।"

मैं बीपी की बात सुन कर थोड़ी देर वही बैठा रहा और फिर उठ कर बाथरूम जाने लगा तो श्वेता ने बीपी से कहा, "प्रशांत अभी साफ नही हुआ है बीपी डार्लिंग।"

यह सुनते ही बीपी ने बिना हिचक के मेरा कंडोम उतरा लन्ड हाथ मे ले लिया। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि मै रोक भी नही पाया। बीपी मेरा लन्ड पकड़े मेरी तरफ देखने लगा और मैं असमंजस्य में बारीबारी से बीपी और श्वेता की तरफ देखने लगा। मैने बीपी से कहा, "बीपी मुझे बी का अनुभव है इसलिए तुम्हारा मेरा पकड़ना बुरा नही लगा लेकिन तुमसे साफ करवा कर मुझे कोई सुख नही मिलेगा।"

बीपी कुछ कह पाता उससे पहले ही श्वेता बोली, "प्रशांत, बीपी बाइसेक्सुअल नही है। बस, एक सनक है, उसे वो सब महसूस करना है जिससे मैं खुश हूं। बीपी को मालूम है कि तुम्हारे साथ, भले अकेले में ही चुदी हूँ लेकिन खुश होती हूँ। आई फील कम्फ़र्टेबल एंड सेफ।"
 

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भाग 4

बीपी की बात सुनकर मैं धरधर कांपने लगी और बीपी को कस के गले लगा लिया। मैने फिर कांपती आवाज में कहा, "माफ कर दो मुझे बीपी, आज तुम्हारी पत्नी श्वेता, आशुतोष की रंडी बन आई है।"

यह कहते हुये मैं हिचकिया लेते हुए रोने लगी। बीपी ने मेरी बात पर न मुझे अपने से परे किया, न कुछ पूंछा, न गुस्सा किया, बस और कस के मुझे अपने से चिपटा लिया और खुद रोने लगे। बीपी के रोने ने मुझे और तोड़ दिया और एक विछिप्त की तरह बड़बड़ाते हुए, उन्हें वह सब कुछ बता डाला जो मेरे और आशुतोष के बीच इतने दिनों में हुआ था। बीपी मुझे गले लगाए सब सुनते रहे और मुझे पुचकारते रहे। जब मेरी बात खत्म हो गई तो बीपी ने मुझे अपने सामने किया और मुझे अपनी आंसू भरी आंखों से घूरने लगे। फिर ठहरते हए बोले, "श्वेता, तुमने कोई पाप नही किया है। जो किया था वो आज इसी वक्त खत्म हो चुका है।"

मैं तो बीपी की बात सुन कर सन्न रह गई। बीपी ने फिर बोला, "यह मनुष्य स्वभाव और जीवन दोनो में कितनी गहराई है, किसी को कुछ नही पता। जो कल का सत्य है वो आज असत्य है। जो कल गलत था वो आज सही हो जाता है। हां मुझे कष्ट हुआ और बहुत हुआ, जब तुमने मुझसे छुप कर आशुतोष के साथ सम्बंध बढ़ाये और मेरे आफिस में खुद ही आशुतोष को तुम्हे चोदने का पूरा मौका दिया।"

बीपी की बात सुन कर मुझे तो जैसे करंट लग गया था। मैंने बीपी को यह नही बताया था कि आशुतोष ने मुझे कहाँ पर चोदा है, मैने यह भी नही बताया था कि मैने खुद उससे अपनी वासना में चुदवाया है।

मैने अपनी डबडबाती आंखों से बीपी की नज़रों को पढ़ना चाहा लेकिन कुछ कह न सकी। बीपी मेरे गालों को सहलाते हुए बोले, "श्वेता, मुझे तुम्हारा आशुतोष से चुदने से ज्यादा, मेरी पीठ पीछे आशुतोष से कार में चुंचियाँ दबवाना, उसका लन्ड पकड़ना और फिर आशुतोष के लन्ड को खुद ही मुंह मे लेकर लॉलीपॉप की तरह चूसना ज्यादा दर्द दे गया था। क्या आशुतोष ने तुम्हे मुझसे ज्यादा बढ़िया तरीके से चोदा था? क्या उसका लन्ड मुझसे बेहतर था?"

मैं तो बीपी की बाते सुन कर लगभग बेहोश ही हो गई थी। बीपी इस तरह से चुदाई के समय की बाते बता रहा था जैसे उसने सब देखा हुआ हो! मेरे दिमाग मे कौंधा की कही बीपी ने आफिस के अंदर सिक्योरिटी कैमरे तो नही लगाए है, जो इतना सब बता रहे है?

मैंने बीपी के हाथ पकड़ लिए और उससे पूछा, "यह सब क्या कह रहे हो? क्या कैमरा लगाया हुआ है? तुम्हे कैसे सब मालूम? प्लीज् मेरा कलेजा फटा जारहा है। आज की रात सच की रात है। मैने अपना सच सब बता दिया, तुम जो सज़ा देना चाहों वो मुझे स्वीकार होगा, लेकिन भगवान के लिए मुझे अंधेरे में मत रक्खो।"

मेरी बात सुन कर बीपी ने मेरे होंठो पर होंठ रख दिये और उसे चुसने लगे। मेरी समझ नही आरहा था कि एक तरफ मेरी चुदाई के बारे में बीपी को इतना सब कुछ पता है और दूसरी ओर वो मुझे अपमानित करने और उल्हना देने की जगह मुझे चूमे जा रहा है। मै बीपी को हटाना चाहती थी लेकिन बीपी को और दर्द नही देना चाहती थी। मैं इसी में खुश थी कि बीपी ने इतनी बड़ी बात, जो मेरी शादी तक तोड़ सकती थी, उसको लेकर मुझे मॉफ कर दिया है।

मैं श्वेता की बातें सुनने में इतना तल्लीन हो गया था कि मुझे इस बात का ध्यान भी नही रहा कि बीपी सामने से उठ कर, श्वेता के पास आकर पलँग पर बैठ गया है। मेरा ध्यान तो तब गया जब उसने श्वेता को मेरे सामने नँगा करना शुरू कर दिया था। उसने नाइटी नीचे खींच दी थी और उसकी सुडौल चुंचियाँ बाहर निकल आयी थी जिन्हें बीपी सहला रहा था।

मैं उसकी ओर मुस्कराया तो श्वेता ने बीपी को चूमते हुये उसके खड़े हो रहे लन्ड को सहलाने लगी। मैंने इस मन मोहक दृश्य को देख कर, श्वेता से बोला," बस? आगे क्या हुआ?"

श्वेता मेरे पूछने पर, कुछ देर ठहरी फिर बीपी को देखते हुए, अपनी पूरी नाइटी उतार कर फेंक दी और नंगी मेरे ऊपर, पीठ कर के बैठ गई। श्वेता जब मेरी गोद मे शराब का गिलास लिए, नग्न बैठी तो बीपी की आंखों में चमक आगई। मैं उसकी आंख देख रहा था। उसकी आंख में जहां वासना भरी हुई थी वही पर, श्वेता को लेकर प्यार भी उमड़ आया था। मैंने श्वेता की गर्दन पर होंठ रख दिया और उसे चूमते हुए फिर बोला, "नही मन है बताने का तो रहने दो श्वेता।"

इसके जवाब में श्वेता ने अपना हाथ नीचे डाल कर, मेरे बॉक्सर से लन्ड को निकाल कर पकड़ लिया और उसे हिलाते हुए बोली, "अब बचा ही क्या है प्रशांत, बताने को? बीपी मुझे चूमते चूमते मेरी चुंचियों को मीसने लगे और फिर वो सारी बाते बताई जो अभी बीपी ने तुम्हे बताया था। बीपी ने जब यह सब बताया कि कैसे जाने अंजाने में आशुतोष ने बीपी को मेरे और उसके बीच की अंतरंग बाते बताई और कैसे मुझे चोदने के लिए उसे आफिस दिया था तो मैं यह सब सुन कर जड़ होगई। लेकिन उससे ज्यादा धक्का तो तब लगा जब बीपी ने बताया कि उन्होने मेरी पूरी चुदाई देखी थी और वह सब सुना और देखा था जो मैंने आशुतोष से कहा या किया था। बीपी ने मुझे यह सब बताते हुए, बेड पर ही नँगा भी कर दिया था और मैं सुन्न हुई उसे करने दे रही थी। फिर जब बीपी ने मुझे शर्माते हुये यह बताया कि मुझे आशुतोष से चुदते देख कर वो बड़े कामोत्तेजित हो गए थे और देखते हुये मुट्ठ मारी थी तो यह सुनकर मैं तो हक्कीबक्की रह गई थी।"

फिर अपने पैर से बीपी के लन्ड को सहलाते हुए बोली, " मैं इन्हें जब अविश्वास से देखने लगी तो इन्होने मेरे हाथ को पकड़ के अपने लौड़े पर रखवा दिया। इनका लौड़ा छूते ही मैं चौक गई क्योंकि बीपी का इतना कड़ा और तन्नाया लौड़ा कई बरसो बाद देखा था। इनके लौड़े को देख कर मुझे विश्वास हो गया कि वाकई बीपी को मेरा चुदना भा गया था।"

फिर मैंने देखा बीपी ने श्वेता को कोई इशारा किया और वो खड़ी हो गई। उसने मेरा बॉक्सर खींच कर उतार दिया और फिर मेरे अब तक खड़े हो चुके लन्ड को मुंह मे ले लिया। मैं समझ गया था कि बीपी की कामोत्तेजना बढ़ने लगी है इसी लिए श्वेता ने बीच मे बात छोड़ दी है। श्वेता ने 2 मिनिट ही मेरा लन्ड चूसा था कि बीपी ने एक कंडोम श्वेता की ओर बढ़ा दिया। श्वेता ने ऊपर आंख उठा कर मेरी तरफ शरारत से देखा और फिर मेरे लन्ड को अपने मुंह से निकाल कर, खुद ही उस पर कॉन्डोम चढ़ा दिया। मैं बीपी की तरह, यह सब देख और महसूस कर खुद भी बुरी तरह कामोत्तेजित हो रहा था। श्वेता ने अब मेरे लन्ड को पकड़ा और मेरी गोदी में, मेरी तरफ पीठ करके बैठ गई। फिर उसने अपने को थोड़ा ऊपर किया और मेरे लन्ड को अपनी चूत के द्वार पर रख दिया। मैं हल्का सा उपर उचका और मेरा लन्ड उसकी चूत के अंदर घुसने लगा। मैंने वही बैठे बैठे 4/5 बार ऊपर धक्के दिए, जिससे श्वेता ने अपनी जगह बना ली और मेरा लन्ड उसकी चूत में पूरा घुस गया। मैं लन्ड वैसे ही डाले हुए, श्वेता की चुंचियों और निपल्स को सहलाने लगा। श्वेता, मेरी उंगलियों से उसकी निपल्स की रगडें जाने पर, मस्तिया गई और अपनी पीठ मेरी छाती पर रगड़ते हुए, मेरे लन्ड को अपनी चूत में अंदर किये हुए अपनी कमर घूमते होए बोली, "बीपी कुछ याद आया, ये देख कर?"

बीपी जिसकी आंखों में वासना खुमारी ले रही थी बोला, "सब याद है, तुमको पहली बार चुदते ऐसे ही देखा था। तुम ऐसे ही आफिस की रिवॉल्विंग चेयर पर आशुतोष के लन्ड पर चढ़ी हुई थी।"

यह सुन कर, श्वेता के मुंह से एक आह से निकली और वो खुद ही मेरे लन्ड पर ऊपर नीचे हो कर, मुझे चोदने लगी। मैंने थोड़ी देर सब ऐसा करने दिया फिर अपना हाथ आगे डाल कर, उसकी चूत पर रख दिया। फिर अपनी उंगली से उसकी क्लिट को छेड़ते हुए खुद भी ऊपर धक्का देने लगा। मेरा लन्ड पूरा जड़ तक उसकी चूत में घुसता था। श्वेता अपनी क्लिट पर मेरी उंगलियों के प्रहार और मेरे लन्ड की उसकी चूत के अंदर तक पहुंच से काममय हो कर, "आह्हा.... सीसीसी..…... ममममम" की वासना में डूबी आवाजे निकालने लगी थी। मैने उसके कान को होंठो में दबा लिया और चूसता हुआ बोला, "श्वेता, फिर अगली बार आशुतोष के साथ कैसे चुदी?"

मेरी बात सुनकर एक बार तो श्वेता शांत हो गई, उसने कुछ करना ही बंद कर दिया। मैं समझ गया कि मेरे प्रश्न ने इतने अच्छे चुदाई के वातावरण में रंग में भंग कर दिया है। मैने श्वेता की चूत को सहलाते हुए बोला, "सॉरी, भाड़ में जाये आशुतोष, अब कोई बात नही होगी बस तुम, हम और बीपी पूरी रात एन्जॉय करेंगे।"

मेरी बात सुन कर, श्वेता ने अपना मुंह पीछे किया और मुझे चूमने लगी। हम दोनों के होंठ एक दूसरे को चबाने में लग गए और मैं उसकी चुंचियों को दबाते हुए उसके निपल्स को उंगलियों के बीच लेकर रगड़ने लगा। मेरा ऐसा करने से श्वेता एक बार फिर मूड में आगई। फिर वो मेरे ऊपर से उठ गई और मेरा लन्ड उसकी चूत से बाहर निकल गया। मैं समझा कि वो थक गई है, अब बेड पर चोदते है लेकिन श्वेता का ख्याल कुछ और ही था। वो उठी और फिर मेरी तरफ मुंह कर के मेरे ऊपर बैठ गई और मेरे लन्ड पकड़ कर अपनी चूत में डाल दिया। श्वेता की चूत गीली हो चुकी थी और मेरा लन्ड उसकी चूत के गीलेपन में फिसलता हुआ उसकी चूत में एक झटके में पूरा घुस गया। श्वेता ने अब खुद ही अपनी चुंची मेरे सामने कर दी और वी अपने निपल्स को मेरे होंठो पर रगड़ने लगी। मैने अब उसकी कमर को कस के पकड़ा और नीचे से ऊपर उसकी चूत में धीरे धीरे धक्के मारने लगा। श्वेता भी अब मेरा साथ देने लगी और मेरे लन्ड पर "आह...आह...हो... हो" कहते हुए कूदने लगी। अब मेरे हथेलियों पर उसके गद्देदार नितम्ब थे जिन्हें मैं कभी सहलाता, कभी उन पर थप्पड़ मारता। मेरे हथेली के हर थाप पर चटाक की आवाज निकलती और श्वेता कस के मेरे लन्ड पर कूदते हुए "सिसीईई" सिसियाती हुई जोर से मुझे जकड़ते हुए कूदने लगती थी। तभी उसने मुझे कस के पकड़ लिया और मेरे गाल पर "उम्ममम्म्म" कहते हुए दांत गडा दिए। मैं दर्द से बिलबिला जरूर गया लेकिन कामोत्तेजना में कस कस के उसे चोदने लगा। फिर मुझे अपनी पीठ पर उसके नाखून गढ़ते महसूस हुए और उसकी टांगे अकड़ गई थी। इसी के साथ, "आआएहहह.... उईईईईईई....पररर......आन्त....अफ़्फ़" कहते हुए श्वेता मुझसे बुरी तरह चिपट कर निढाल हो गई।

मैं श्वेता को गले लगाए ही सोफे से उठ गया, मेरा लन्ड उसकी चूत में ही था और मेरे पोते और उसकी जाँघे उसके झड़ने से गीले हो चुके थे। मैने उसे बिस्तर पर, बीपी के बगल में गिरा दिया। बीपी कामवासना के नशे में डूबी हुई आंखों से हमे देख रहा था और अपना लन्ड हाथ मे लिए सहला रहा था। मैंने बीपी को देखा और अपने लन्ड को श्वेता की चूत से बाहर निकाल लिया। फिर बीपी की तरफ देखते हुए श्वेता की चूत पर अपने लन्ड से थपथपाया और फिर एक झटके में उसकी चूत में घुसेड़ दिया। मेरे लन्ड के घुसेड़ते ही श्वेता के मुंह से "आईईई" की आवाज निकली और उधर बीपी भी "ईईईईईआहह" की आवाज निकालते हुए अपने लन्ड को तेजी से हिलाने लगा।

मैं, श्वेता की हालत देख कर, आहिस्ते आहिस्ते उसे चोद ने लगा था। 9/10 धक्के के बाद ही श्वेता ने कहा, "प्लीज डू इट फ़ास्ट प्रशांत! कसके चोदो, बीपी बेकरार हो रहे है।" श्वेता की बात सुनते ही मैं श्वेता को कस के चोदने लगा। मेरा लन्ड पूरी ताकत से उसकी चूत में जा रहा था। शुरू में श्वेता वैसे ही निढाल पड़ी रही और मेरे हर धक्के पर "आह! ओह!" की आवाज निकालती थी। फिर यकायक उसने अपने पैर उठा लिए और मेरी कमर को कस के जकड़ लिया। अब वो मेरे हर धक्के पर नीचे से उछल कर मेरे लन्ड को अंदर तक ले रही थी। उस वक्त हम दोनों खरगोशों की तरह चुदाई कर रहे थे। बिस्तर की चद्दर किधर जारही है तकिया कहाँ फिक रही है और शरीर कहाँ नुच रहा है, होश ही नही था। मुझे लगातार उसे करीब 6/7 मिनिट कस कस के चोदे हुआ होगा कि श्वेता मेरी गर्दन को जकड़ने लगी और लगातार "आईईई....उफ़्फ़फ़.....उफ़्फ़फ़....हायय... रुक.....नाअअअअअअअ.... नहीहीही!" बड़बड़ाने लगी। मैं भी अब ज्यादा देर ठहरने की हालत में नही था। मैने श्वेता के कान में कहा, " श्वेतआआ.... आई कांट होल्ड! निकलने वाला है!"

इसी के साथ मैने 2/3 धक्के कस के श्वेता की चूत ने मारा और उसकी चूत में भकभला के झड़ने लगा। मैं झड़ता जारहा था और धक्के भी मारता जारहा था। श्वेता भी अपनी चूत में मेरे गर्मा गर्म वीर्य से सिचती हुई कस कस के अपने नितंबो को उछाल कर मुझे चोदने लगी। अब उसकी मेरे कंडोम में भरे वीर्य से भरी चूत से फच्च फच्च की आवाज आने लगी। मेरे लन्ड का तनाव कम होने लगा था लेकिन फिर भी मैं उसे और वो मुझे जकड़े, रगड़े जा रहा थे। इससे पहले की मेरा लन्ड लुंज पुंज होकर अपने आप उसकी चूत से बाहर आजाता, श्वेता ने मुझे कस के पकड़ा और "आआआआ....... इशशशश.....एआईईईई ..... गईईईई!" कहते हुए झड़ गई। मैं निढाल हो, श्वेता पर ही गिर गया और वो मुझे बार बार चूमने लगी। जब मेरे कुछ देर बाद होश हवास वापस आये तो देखा बीपी बगल बेड पर अपने झड़े लन्ड को हाथ में लिए है। उसके वीर्य से उसकी हथेली और जांघ सने हुए थे। उसने मुझे देखा और मुस्करा दिया। मैं उसे देख थोड़ा झेंपा और फिर श्वेता के ऊपर से उठ कर श्वेता के बगल में ही लेट गया।

हम तीनों ही, चुदाई से निचुड़े हुए निढाल हो गए थे। हम तीनों ही चिपचिपाते वीर्य में सने हुए थे। मैने जब बगल की टेबल में रक्खे टिश्यू पेपर के बॉक्स से, श्वेता की चूत और अपने लन्ड को साफ करने के लिए, टिशू पेपर निकाला तो इससे पहले की मैं कुछ करूं, बीपी ने उसे मेरे हाथ से ले लिया। मैने उसकी तरफ प्रश्नवाचक नजरो से देखा तो उसने मुस्कराते हुए कहा, "श्वेता का ये काम मैं करूँगा।"

मुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ लेकिन उससे ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब श्वेता ने लरजते हुए,"आजा मेरा बाबू।" कहा और बीपी के झुके मुंह को अपनी चूत पर लगा दिया। श्वेता की चूत उसके मुंह से छूते ही बीपी में एक नई जान आगई। वो अपना मुंह अपनी नाक श्वेता की चूत पर "मममममम" कहते हुए रगड़ने लगा और अपनी जीभ निकाल कर श्वेता की चूत अंदर बाहर चाटने लगा। उसने बड़ी तन्मयता से श्वेता की पूरी चूत और जांघ चाट चाट कर साफ कर दी। मैं यह जानता जरूर था की पर पुरुष से चुदने के बाद कुछ विशेष कक पुरुष, वही ही, अपनी पत्नी की चूत साफ करते है। उन्हें अपनी पत्नी की चूत में दूसरे पुरूष के लन्ड और उसके वीर्य की महक और स्वाद बड़ा सन्तुष्ट करता है। लेकिन मेरे लिए यह जीवन मे प्रत्यक्ष देखने का पहला अनुभव था।

मैं जब यह सब आंखे फाड़े देख रहा था तो श्वेता बड़े प्यार से बीपी का सर सहलाते हुए अपनी चूत उससे साफ करवा रही थी। तभी उसकी नज़र मुझसे मिल गई तो वो शर्माते हुये मुस्करा दी। मैंने श्वेता के माथे को चूमा और बोला, "श्वेता यू रियली लव बीपी एंड ही लव्स यू टू।"

मेरी बात सुन कर बीपी ने श्वेता की चूत साफ करके अपना सर उठा कर मेरी तरफ देखा और बोला, 'आई एम ग्लैड यू अंडरस्टैंड इट।"

मैं बीपी की बात सुन कर थोड़ी देर वही बैठा रहा और फिर उठ कर बाथरूम जाने लगा तो श्वेता ने बीपी से कहा, "प्रशांत अभी साफ नही हुआ है बीपी डार्लिंग।"

यह सुनते ही बीपी ने बिना हिचक के मेरा कंडोम उतरा लन्ड हाथ मे ले लिया। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि मै रोक भी नही पाया। बीपी मेरा लन्ड पकड़े मेरी तरफ देखने लगा और मैं असमंजस्य में बारीबारी से बीपी और श्वेता की तरफ देखने लगा। मैने बीपी से कहा, "बीपी मुझे बी का अनुभव है इसलिए तुम्हारा मेरा पकड़ना बुरा नही लगा लेकिन तुमसे साफ करवा कर मुझे कोई सुख नही मिलेगा।"

बीपी कुछ कह पाता उससे पहले ही श्वेता बोली, "प्रशांत, बीपी बाइसेक्सुअल नही है। बस, एक सनक है, उसे वो सब महसूस करना है जिससे मैं खुश हूं। बीपी को मालूम है कि तुम्हारे साथ, भले अकेले में ही चुदी हूँ लेकिन खुश होती हूँ। आई फील कम्फ़र्टेबल एंड सेफ।"

भाग 5

तब तक, बीपी मेरे पोतों को चाटने लगा और मुझे अजीब सा महसूस होने लगा। मैने बीपी की ओर नीचे देखा और फिर श्वेता की ओर। वो बड़े ध्यान से बीपी को देख रही थी। उसने जब मुझे घूरते देखा तो हंसते हुये बोली, "मैं अब तक 12 लोगो से मिली हूँ और हर बार का अनुभव ऐसा नही रहा, जहां मैं बहुत खुश हुई हूँ। सिर्फ सेक्स होना और कई बार झड़ जाना ही सब कुछ नही है। बीपी के बढ़ावे पर और इनकी इच्छा से मैने चुदाई का खूब सुख लिया है। मैं पर परुष से चुदी जरूर हूँ लेकिन जहां मेरा अनुभव अच्छा नही रहा या जिसने बीपी का सम्मान नही किया वहां मैने पलट के नही देखा, भले ही बीपी ने कभी मना नही किया हो। तुम तीसरे हो जिसके साथ अच्छा लगता है।"

तभी बीपी ने मेरा लन्ड अपने मुंह मे ले लिया और चुसने लगा। मुझे झुरझुरी दौड़ गई और मेरे चेहरे से पता चल रहा था कि बीपी के मेरा लन्ड चुसने में मुझे आनंद आरहा है। यह देख कर श्वेता मेरे पास आगई और मुझे चुम्बन देते हुए बोली, "तुम अच्छे आदमी हो, अच्छे लगते हो। तुम जिस तरह से बीपी से मिलते थे और बात करते थे उससे मुझे और बीपी को पता चल गया था कि मै तुम्हारे साथ आराम से बाहर जासकती हूँ। इसीलिए बीपी ने मुझे दिल्ली पहले आने दिया और खुद भी आये।"

बीपी के चुसने से मेरे लन्ड में फिर से तनाव आने लगा था और मैं बीपी का मुख चोदन नही करना चाहता था। मैंने बड़े एतिहायत से बीपी के मुंह से लन्ड निकाल दिया और उसे थैंक्स कहा। इस पर बीपी हंसने लगा और "मेंशन नॉट।" कहते हुए सबके लिए ड्रिंक्स बनाने लगा। उसके बाद मैं, श्वेता और बीपी बारीबारी बाथरूम से फ्रेश हो कर वापस आये और अपने अपने गिलास पकड़ लिए। बीपी और मैने बाथ रोब पहन लिए और श्वेता ने एक लंबी सी लूस टी शर्ट डाल ली। बीपी सोफे पर बैठ गया और मैं श्वेता के साथ बिस्तर पर आगया।

अभी एक दो चुस्की ही ली थी की श्वेता ने मुझसे कहा, "प्रशांत तुमने आशुतोष के बारे में पूछा था कि आगे मैं उससे कब चुदी लेकिन मैंने कोई जवाब नही दिया था। अब जब, तुम मेरे और बीपी के बारे में इतना कुछ जान गए हो तो कुछ और भी जान लो। ताकि फिर कुछ पूछने और जानने को न रह जाए।"

मैने श्वेता को रोकते हुये कहा, "रहने दो, अब कोई मतलब नही है। मुझे कुछ नही अब जानना। आई लव एंड एन्जॉय यू पीपल, बाकी बात से कोई मतलब नही है।"


श्वेता ने तब बड़ी दृढ़ आवाज में कहा, "नही प्रशांत अधूरी बात, कोई बात नही होती है। अब क्योंकि बीपी ने सब बता ही दिया है तो आगे पूरी बात जानना जरूरी है।"

मैने श्वेता की तरफ देखा और फिर बीपी की तरफ, उसने आंख से मुझे इशारा की बात सुन लूँ। शायद श्वेता दूसरे पैग में, इस कामुक वातावरण में खुल के हो रही बातों से सरूर में आगई थी, इसलिए मैंने मुस्कराते हुते श्वेता से कहा, "ठीक है, बताओ।"

श्वेता ने एक लंबा सा घूंट लिया और फिर बोली, "प्रशांत तुम आशुतोष के बारे में जानना चाहते हो न, तो सुनो उस रात बीपी से जब सब खुल के बात हो गई तो उस रात बीपी ने मुझे 2 बार, जबरदस्त चोदा। मैं उनकी चुदाई और उनके आवेग को महसूस कर शॉक में थी। जब बीपी मुझे चोद रहे थे तो आशुतोष की ही बात कर रहे थे। वो आफिस में कैसे मुझे चोद रहा था उसी से कामोत्तेजित होंकर मुझे चोद रहे थे। मैं खुद बीपी के साथ बही जारही थी। जब हम दोनों थक गए और रात 3 बजे सोने लगे तो बीपी ने मुझे गले लगा कर चूमते हुए कहा, "अगली बार जब भी आशुतोष से चुदना तो बता कर चुदना। मैं प्रॉमिस करता हूँ कि तुम नही चाहोगी तो मैं तुम्हारी चुदाई छुप कर नही देखूंगा।"

बीपी की बात सुन के मैं चौंक गई, मैने बिस्तर से उठते हुए कहा, "तुमसे किसने कहा कि मैं आशुतोष के साथ फिर सोऊंगी?"

इस पर बीपी ने कहा, "तुम्हे जब आशुतोष चोद रहा था तब तुम्ही ने तो फिर से चुदने की बात कही थी? तुमको आशुतोष पसंद है तो मैं क्यों रोकूंगा?"

मैने बीपी के होंठो पर उंगली रख कर उन्हें चुप करा दिया और कहा, "बीपी, आशुतोष क्या किसी और को भी भूल जाओ। एक बार गलती होगई तो होगई, दूसरी बार नही। मैं आशुतोष को पास भी फटकने नही दूंगी। बीपी तुम्हे मालूम है कि आशुतोष को मैने अपना शरीर देने के लिए चुना था और मुझे बेहद शर्मिंदगी है कि मैंने गलत आदमी चुना था।"

मेरी बात सुन कर बीपी आंख फाडे मुझे देखने लगे और कहा, "श्वेता क्या कह ही हो! पुरानी बात भूल जाओ मैं अब आशुतोष के साथ तुम्हारे हुए शारीरिक सम्बन्ध को लेकर सहज हो गया हूँ। तुम कोई गिल्ट मत पालो। मेरी जान श्वेता आई लव यू।"

मैंने फिर बीपी से कहा, "तुम मुझे सुन नही रहे हो, बीपी। मैने वासना में बह कर अपने पति के पीठ पीछे एक दूसरे पुरष से चुदवाया है, वह गलत बात है लेकिन अलग बात है। मैने चुदवाने के लिए गलत आदमी चुना, वो बिल्कुल ही गलत बात है। आशुतोष गलत आदमी है। मैने वासना के अधीन अपना शरीर उसे सौपाने का निर्णय लिया था तो साथ मे अपना विश्वास और निजिता भी सौपी थी। जिस आदमी ने पहली बार सोने से पहले ही किसी दूसरे को बता दिया उससे क्या आगे की उम्मीद रखते हो? यह तो मेरा भाग्य अच्छा था कि वो आदमी तुम थे और यदि कोई और होता तो? मै तो आफिस में छिनार के रूप में मशहूर हो जाती और न जाने कौन कौन मुझे चोदने की बात करता?"

फिर मैंने बीपी का चेहरा हाथ मे लेते हुए कहा, "बीपी तुम बहुत प्यार करते हो मुझे, इसी लिए इस सबसे बच गई। मै नही चाहती कि आशुतोष को आगे भी कभी पता चले की मैं तुम्हारी पत्नी हूँ और तुमने ही मुझे चोदने के लिए आशुतोष को बढ़ावा दिया और जगह दी। मैं रंडी नही हूँ और न तुम मेरे दलाल जिसने काम पाने के लिए बीबी पेश की है। आशुतोष तो यही सोचेगा और मैं यह बर्दाश्त नही कर सकती।"

तभी बीपी बोल उठा, "श्वेता ने जब मुझसे यह सब कहा तो मैं सन्नाटे में आगया, मैने यह सब सोचा ही नही था।"

श्वेता ने फिर कहा, " मैने बीपी से कहा जो हुआ वह हादसा था, उन्हें मेरा पर पुरुष से चुदना अच्छा लगा वह भी हादसा ही था। मैं आपकी आगे से सब बात मानूँगी लेकिन आज मैं जो कह रही हूँ उसे मान लो प्लीज। मैं कल आफिस में जाकर इस्तीफा दे दूंगी, मेरी मेडिकल जो बची है वो ग्रेस पीरियड में ले लुंगी। आगे से मैं घर मे बैठ कर तुम्हारे आफिस का बैकहैंड काम संभाल लुंगी और कुछ ही समय मे आशुतोष इतिहास बन जायेगा। भगवान ने चाहा हम लोग कुछ महीनों की तकलीफ के बाद फिर से सब ठीक हो जाएंगे।"

श्वेता यह कह कर चुप हो गई और बीपी के पास जाकर उसे गले लगा लिया। मैं भले ही वासनात्मक वातावरण में था लेकिन श्वेता की बाते और उसका बीपी के पास जाकर गले लगाना मुझे भावनात्मक रूप से हिला गया था। मैं आज अपने सामने, प्रेम की परिभाषा को एक अलग कलेवर में देख रहा था। बीपी ने उसे गले लगा कर चूमा और मेरी तरफ देखते हुए बोला, "प्रशांत भाई, उस रात श्वेता ने यह कहा तो मैं रो पड़ा। मुझे श्वेता पर इतना प्रेम उमड़ा जितना मैने जीवन मे कभी नही अनुभव किया था। मैने उसे इसी तरह गले लगा लिया और कहा कि जो वो कह रही है, वैसा ही होगा। अगली सुबह मेरे मोबाइल पर आशुतोष का गुड मॉर्निंग मेसेज के साथ थैंक्स आया, जिसे मैंने श्वेता को नही बताया ताकि कहीं दुखी न हो जाये। श्वेता ने उसी दिन जाकर इस्तीफा दे दिया और आशुतोष शॉकड रह गया। उसने श्वेता से काफी बात करने की और कारण जानने की कोशिश की लेकिन श्वेता ने कोई उससे बात नही कही। उस शाम जब वो घर लौटने को थी और आशुतोष ने कार में लिफ्ट देने को कही तो श्वेता ने आशुतोष को बताया कि उसके पति को कल रात की बेवफाई पता चल गई है लेकिन किसके साथ हुई है वह उसने अभी नही बताया है। यह सुनकर तो आशुतोष के पसीने आगये और आगे कभी मिलने का प्रयास नही किया। हां, यह अलग बात है कि उसने मुझसे 2 दिन बाद यह बात बताई और जानने की कोशिश की कि कहीं बात आफिस से लीक तो नही हुई। मैने उससे सहाभूति दिखाई और सलाह दी कि कोई ऐसी हरकत न करे जिससे श्वेता के पति को आशुतोष का नाम पता लग जाये।"

यह कहते हुए बीपी और श्वेता दोनो हंसने लगें और एक दूसरे के गले लगते हुए चूमने लगे। बीपी श्वेता को चूमते हुते फिर बोला, "आशुतोष बहुत डिस्टर्ब हो गया था, वह दूसरी जगह नौकरी ढूंढने लगा था। फिर मैंने ही उसकी नौकरी कनाडा में एक रेफरेंस से लगवाई और वो निकल गया, लखनऊ से और हमारी ज़िंदगी से।"


मैं भी बीपी की बात पर हंसने लगा। मैने श्वेता से कहा, "आशुतोष से तो पिंड छूट गया लेकिन फिर इस लाइफ स्टाइल में कैसे आना हुआ, श्वेता?"

श्वेता ने मुंह चिढ़ाते हुए, बीपी के कान खींचते हुए कहा, "ये इनकी कारिस्तानी है। मैने भावना में बह कर उस रात इनकी हर बात मानने की कसम खा ली थी बस उसी ने मेरा पिंड नही छोड़ा।"

फिर मुस्कराते हुए बोली, "जब एक बार स्वछंद चुदाई का स्वाद लग जाता है वह भी पति का पूरा साथ हो तो, न न न करते हुए भी कदम आगे बढ़ जाते है। हम पहले तो काम मे व्यस्त हो गए और जब 8/9 महीने बाद हम लोग रिलैक्स हुए तो रात को बीपी चोदते समय उसी को लेकर बात करते थे। नेट में भी इस सब के बारे में, बीपी की कामोत्तेजना के बारे में जाना और पढा। फिर एडल्ट फ्रेंड्स फाइंडर एक स्विनगिंग साइट जॉइन कर ली। वही पहले शादी शुदा जोड़े से बात और फिर मुलाकात हुई। उस जोड़े की पत्नी बड़ी हैरान और परेशान रही क्योंकि बीपी ने उसके साथ कुछ किया नही। वो तो इन पर चढ़ भी गई लेकिन इतना पत्नी भक्त थे कि मुझे चुदता देखते रहे लेकिन कुछ किया नही। वो कपल पुराने सविंगर्स थे, वो बीपी को समझ गए, उन्हीने किसी दूसरे एक पुरुष को रिकमेंड किया और उससे तीन महीने बाद मिले। ऐसे ही एक दूसरे की व्यक्तिगत सिफारिश पर नए लोगो से मिलना होता रहा। प्रशांत तुम को भी तो झांसी वाले कपल ने हमारा नम्बर दिया था।"

श्वेता बोले जारही थी और मैं देख रहा था कि बीपी उत्तेजित हो रहा है और श्वेता की टी शर्ट ऊपर उठाएं उसकी चुंचिया चूस रहा है। मैं यह सब देख मुस्करा उठा और बेड से उठ खड़ा हुआ। मैने बीपी से कहा, "बीपी तुमसे एक रिक्वेस्ट करूँ?"

बीपी ने जवाब दिया, "बोलिये क्या कहना है?"

मैने कहा, "बीपी, तुमसे श्वेता के साथ थ्रीसम के लिए साथ देने को कहूँ तो मानोगे?"

उसने सर हिला कर मना कर दिया।

मैने उससे फिर कहा, "ठीक कोई बात नही। लेकिन मैं अब तुम्हारे अनुभव को अनुभव करना चाहता हूँ?"

उसने चौंक के पूछा, "क्या मतलब?"

"मेरा मतलब है कि मैं सोफे में बैठा रहूंगा और यदि श्वेता को आपत्ति नही है तो मैं तुम प्रेम में विहल पति पत्नी को चुदाई करता हुआ देखना चाहता हूँ। मेरा यह वादा है कि मैं सिर्फ देखूंगा, बिस्तर पर भी नही आऊंगा।"

मेरी बात पर बीपी भौचक्का रह गया और बोलने लगा, "अरे इसका क्या मतलब? ये कैसे?"

इस पर श्वेता ने बीपी के चेहरे को पकड़ा और उसको बोला, "बीपी, मेक लव टू मी। तुम मुझे उसी रात की तरह खूब चोदो। प्रशांत, अपना है, उसके सामने मुझे उजाड़ डालो।"

यह कहते हुए श्वेता बीपी पर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी और बीपी उसके आगे समर्पण कर गया। श्वेता ही उसे बिस्तर पर ले गई और दोनों प्रेमी पति पत्नी नग्न हो कर एक दूसरे में गूथ गए। मैं वहां शराब का गिलास लिए सामने बेड पर एक अद्भुत प्रणय संग्राम देख रहा था जो मुझे एक अलग ही अनुभूति दे रही थी।

दिल्ली की वो रात, न भूलने वाली रात थी। हम तीनों सुबह के 3 बजे तक कामुकता के मेले में खेलते रहे। अगली सुबह 7 बजे की वापसी की फ्लाइट थी, उससे वापस आगये। मेरा श्वेता बीपी के साथ कई वर्षों का साथ रहा लेकिन आज से 9 वर्ष पूर्व वे लखनऊ से शिफ्ट हो गए। मुझे उनसे मिलने आने का निमंत्रण हमेशा ही रहा लेकिन बढ़ती उम्र और जीवन की बदलती परिस्थियों ने फिर उनके पास जाने का अवसर नही दिया।

यह संस्मरण लिखते लिखते मुझे इस प्रेमी पति पत्नी श्वेता और बीपी बहुत याद आरहे है। अपने जीवन के उतरार्थ में मिले मित्रो के साथ बिताए ये स्वर्णिम दिन मेरी धरोहर है, जिससे आप लोगो का परिचय करा रहा हूँ।
 

Rekha rani

Well-Known Member
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ये शानदार कहानी मैने किसी दूसरे साइट पर पढ़ी थी, पत्नी की बेवफाई की उसमे सिर्फ पति अपनी पत्नी की चुदायी देखता है और कहानी खत्म कर दी जाती है, उस समय से उत्सुकता थी कि आगे जाकर पति ने क्या किया होगा क्या घर जाकर पत्नी से पूछा या अपने मन मे ही सब छुपा कर रख लिया क्या पत्नी दुबारा चुदी होगी, इन सब सवालो का यहा आपकी इस कहानी में सब सवालो के जवाब बहूत ही सुंदर दिया है
 
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