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भाग 2
अगली शाम को करीब 7 बजे आशुतोष मेरे आफिस में आ गया और साथ में उसके श्वेता थी। मैंने तपाक से आगे बढ़ कर आशुतोष से हाथ मिलाया और श्वेता को मैंने नजरअंदाज कर दिया। आशुतोष ने मेरा श्वेता से परिचय कराया तो मैंने उसे हेलो कह दिया। तभी आशुतोष ने श्वेता से बोला, "श्वेता मेरी नोटबुक कार की बैक सीट पर ही रह गयी है, प्लीज उसे ले आओ।"
यह सुनकर श्वेता तुरंत ही नोटबुक लेने चली गयी। उसके जाने के बाद मैंने आशुतोष से पूछा," सर, आपका वो समान नहीं आया?"
इस पर आशुतोष ने चौकते हुए कहा,"अरे यही तो है जिसे तुमने अभी देखा!"
यही है वो सर का माल ! इस एहसास से मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई। मुझे लगा कि मेरे दिल की धड़कन रुक गई।
मैं पिछली शाम की ही बातें सोचने लगा जब आशुतोष ने कहा था कि "नहीं यार बीपी, असल में वो बहुत ही सेक्सी है, पता नहीं वो कब देगी। कार में उसके गालों को हल्का से चुम चुका हूँ और 3/4 बार उसकी चुंचियों को अपनी कोहनी से दबा चुका हूँ। मैं जब अपनी कोहनी जो उसकी चुंचियों पर लगाई तो वह सिकुड़ी नही, उसने अपनी चुंची दबने दी। मैं इसी को ग्रीन सिग्नल मान रहा हूँ।"
मैं उसी सोंच में डूबा था कि तभी आशुतोष ने कहा, "आज प्रोग्राम बना के आया हूँ के यहाँ से जाते हुए मैं, रास्ते में पक्का कुछ न कुछ करूंगा।" इतने में केबिन का दरवाज़ा खुल गया और श्वेता नोटबुक ले कर अंदर आगई। उससे आशुतोष ने कहा," तुम बाहर अपना स्लॉट देख लो मैं ब्रह्मप्रकाश जी के साथ कुछ ज़रूरी काम कर लेता हूँ।"
श्वेता के बाहर निकलते ही आशुतोष ने कहा,"क्यों भाई कहा खो गए ? कैसी लगी, हमारी पसन्द ?"
अब मैं आशुतोष को क्या बताता की उसकी पसंद देख कर मेरी फट के फ्लावर हो गई है और पैर जमीन पर संभल भी नही रहे है।
मैंने अपने मन के भाव दबाते हुए कहा, "हाँ हाँ बहुत अच्छी है बिलकुल मस्त।"
"आज हम एक स्टेप और बढ़ गए।"
"क्या ?"
"हेडऑफिस से ले कर यहाँ तक मैंने उसका हाथ अपनी पेंट के ऊपर से ही अपने लन्ड पे रखवाया और कमाल तो ये हुआ कि इसने एक बार भी नहीं हटाया और मेरी पेंट के ऊपर से ही मेरे लन्ड को सहलाती रही "
मैं यह सुन कर सुन्न रह गया! वो उस श्वेता के बारे में कह रहा था जो मेरी 8 साल से धर्मपत्नी है!
क्या श्वेता यह सब मेरे लिए ज़बरदस्ती सह रही है? या इस कॉन्ट्रैक्ट को हांसिल करने के लिए, मैंने उसे कमजोर होने के लिए धकेल दिया है? क्या मैने अपनी पत्नी को भवनात्मक रूप से यह सब करने को बाध्य किया है? क्या इस सब का कारण मैं हूँ?
या फिर यह सिर्फ आशुतोष की एक फैंटेसी है जो मुझे सुना कर अपनी चुदास को तृप्त कर रहा है?
तभी आशुतोष ने मेरा ध्यान को तोडते हुए कहा, "आज तो पक्का इसकी चुदाई करूँगा चाहे होटल ही बुक कराने का रिस्क लेना पड़े।"
मैंने घबड़ा कर कहा," अरे! और ये घर पर क्या बताएगी?"
"जो मर्ज़ी वो बहाना बनाये लेकिन बीपी सच कह रहा हूँ, वो पूरी तरह तैयार है देने को। मैं ही देर कर रहा हूँ, कोई जगह भी तो नहीं है।"
उस समय मुझे आशुतोष से जलन और श्वेता पर गुस्सा दोनों ही आ रहा था लेकिन उससे ज्यादा मुझे बौखलाहट, यह सब सुनकर अपने लन्ड के कड़ा होने पर हो रही थी।
तभी आशुतोष ने कहा,"यार बीपी कर सको तो तुम ही कोई जगह का इंतज़ाम कर दो।"
यह सुनकर अनायास ही मेरे मुंह से निकल पड़ा,"ऐसा है कि मेरे पास तो ये ऑफिस है और ये रात 8:30 के बाद बंद हो जाता है, फिर खाली रहता है।"
मेरे मुंह से यह सब निकल तो गया लेकिन खुद ही भयातुर हो गया। हे भगवान ये मैंने क्या दिया! मैं खुद ही आशुतोष को अपनी पत्नी श्वेता को चोदने के लिए अपनी ही जगह दे रहा था! मैं इससे पहले कि संभल पाता, आशुतोष ने कहा, "ये हुई न बात! बस 8 :30 का बाद, आज ही!"
मैं आशुतोष की बात को मन ही मन खारिज करने लगा, उसके कहने से क्या होता है? जब श्वेता चुदाई के लिए मानेगी तभी तो होगा! मैं अंदर से अपने को आश्वस्त कर रहा था की यदि एक पल के लिए यह मैं मान भी लूं की श्वेता चुदने के लिए तैयार है तो वह यह कभी भी नहीं चाहेगी कि मुझे इस बारे में पता लगे और इसलिए अगर, वो यहाँ चुदने के लिए तैयार होती है तो इसका मतलब की वो जानती है कि मेरे और आशुतोष के बीच में क्या बात हुई है।
लेकिन ऐसा नहीं हो सकता!
तभी मेरे मन में एक बात आई और मैं आशुतोष से अभी आया कहकर, बाहर आगया। मैंने निकल कर श्वेता को मोबाइल पर कॉल किया और कहा, "मै आशुतोष को ये बताना भूल गया हूँ कि मुझे आज रात को एक पार्टी में जाना है और पार्टी एक फार्म हॉउस में है।"
श्वेता ने कहा, "तो अब क्या करना है?"
मैंने कहा," वैसे तो मैं रमेश(ऑफिस असिस्टेंट जो सबसे बाद में जाता है) को कह दूंगा कि वो ध्यान रखे, लेकिन क्या आशुतोष को इस तरह छोड़ के जाना ठीक होगा?"
श्वेता ने कहा ,"तुम आशुतोष को कह दो कि कोई इमरजेंसी है और जल्दी से घर जा कर तैयार हो जाओ और पार्टी में चले जाओ। मैं बाद में घर आ जाउंगी। मां, दोनो बच्चो को देख ही लेंगी और फिर मैं यहां आफिस में तो रहूंगी ही। चिंता कि कोई बात नहीं है।"
एक क्षण के लिए मुझे लगा जैसे श्वेता की चूत के होठों में शायद आशुतोष को सोच कर पानी आ रहा है। फिर मुझे में अपराध भाव आगये कि मैं ये क्या सब बकवास सोच रहा हूँ।
खैर वापिस ऑफिस में आ कर मैंने आशुतोष से कहा कि मुझे कोई इमरजेंसी आगई है और मुझे अभी जाना पड़ेगा।
आशुतोष ने तुरंत कहा, "बीपी क्या रात को यहाँ पर कोई और भी रहता है?"
"कोई नहीं बस रमेश है, जो सबसे बाद में लॉक लगा कर जाता है।"
"तुम रमेश को कह दो कि आज लॉक मैं लगा कर चाबी उसके घर दे जाऊंगा।"
मैंने पूछा, "पक्का आज ही करोगे और अगर उसके पति को पता चल गया तो?"
"यार वो कोई बहाना बना देगी, आफिस में देर सबेर तो होती रहती है और फिर कौन सा हमने पूरी रात बितानी है? 1 घंटे में फ्री हो जायेंगे हम दोनों।"
मैंने सोचा कि मैं यह सब क्या कर रहा हूँ? मैं आशुतोष को टरकाने की जगह, उसकी बात मानता जारहा हूँ? श्वेता को झंझोड़ के उसकी हरकतों के लिए गुस्सा करने की जगह उससे मिमिया रहा हूँ? क्या मैं यह सब इसलिए कर रहा हूँ ताकि मैं सब कुछ देख सकूं? क्या मैं आशुतोष को श्वेता को चोदते देखना चाहता हूँ?
तभी मैंने न चाहते हुए भी इण्टरकॉम पर रमेश को बुलाया और कहा, "आशुतोष सर को आफिस कि सारी चाबियाँ दे दो और सुबह इनके घर से ले लेना। अभी उन्हें 1-2 घंटे अपने निगम के कुछ डेटा फीड करवाने है।"
मेरी बात सुन कर रमेश ने चाभियां आशुतोष को दे दी और फिर मैं उसको आशुतोष को गुड नाईट कह कर, ऑफिस से बाहर आ गया।
जिस बिल्डिंग में मेरा आफिस है उसके साथ वाली बिल्डिंग नयी बन रही थी। मैं कार में बैठा और घुमा फिरा कर कार उस बिल्डिंग के पीछे ले आया। वहां अँधेरा और गन्दगी पड़ी हुई थी। वहां पर कुछ और गाड़िया भी खड़ी थी। मैंने उन्ही के बीच अपनी कार को पार्क कर दिया। मैं कार से जल्दी से उतर कर, साथ वाली बन रही बिल्डिंग में पिछले के हिस्से से अन्दर घुस गया और सीढ़ियों से चढ़ कर टॉप फ्लोर पर पहुँच गया। मैं 5th फ्लोर पर था और साथ वाली बिल्डिंग के 2nd फ्लोर पर मेरा आफिस था। मैं जल्दी से छत के रास्ते होता हुआ अपनी बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पे आ गया और नीचे देखते हुए इंतज़ार करने लगा की कब सभी लोग आफिस से बाहर जाते है। धीरे धीरे सभी लोग बाहर आने लगे और आखिर में रमेश निकला और वह चला गया।
अब मेरी मेरी पत्नी श्वेता और आशुतोष सर अकेले मेरे आफिस में थे। मैं तेजी से भाग कर 2nd फ्लोर पर आया और कॉरिडोर से होता हुआ बिल्डिंग की पीछे वाले हिस्से में चला गया। वहां पर लकड़ी का दरवाज़ा सिर्फ चिटकनी के साथ बंद था, जिसे खोल कर मैं अन्दर घुस गया और अन्दर से चिटकनी लगा दी। ये हमारे आफिस की पेंट्री थी। पेंट्री में पूरा अँधेरा था। वहां थोड़ी सी रोशनी बस दरवाज़े के नीचे से आ रही थी। वहां की गिलास विंडो पर काले रंग का चार्ट चिपका हुआ था, जो की पुराना और थोडा सा फट गया था। मैंने थोडा सा उसे और फाड़ दिया जिससे मुझे मेरे आफिस का हाल जहां सीखने वाले कंप्यूटर लगे हुए थे और सामने मेरा केबिन पूरा दिखाई देने लगा था!
मैंने देखा आशुतोष और श्वेता दोनो ही मेरे केबिन में ही बैठे हुये, कंप्यूटर पर कुछ कर रहे थे। तभी देखा आशुतोष ने श्वेता से कुछ कहा और वो उठ कर बाहर आई और मुख्य दरवाजे को अंदर से लॉक कर दिया। ये लॉक अंदर और बाहर दोनो से ही खुलता और बंद होता था और उसकी एक चाभी मेरी जेब में भी थी। मैं उस वक्त चाहता तो अपनी पत्नी का भांडा फोड़ कर सकता था, पर न जाने क्यों मैं यह नही कर पाया। मेरे दिल ओ दिमाग मे आगे क्या होता है जानने और देखने का भूत समा गया था। पता नहीं क्यों मैं श्वेता को किसी दूसरे मर्द से चुदने की तसल्ली चाहता था वह भी उस आदमी से जिसने मेरे सामने ही मेरी पत्नी के बारे में बहुत कुछ बताया था और जिसे श्वेता ने मुझसे छुपाया था। शायद मैं इस बात की संतुष्टि चाहता था की क्या श्वेता यह सब मुझे काम दिलवाने कि लिए कर रही है?
जब मेरी पत्नी श्वेता ने मुख्यद्वार को अंदर से बंद किया तो जहां मुझे पीड़ा हो रही थी वही पर उत्सुक्ता भी बढ़ रही थी कि अब आगे क्या? मैंने देखा कि वो जब वापस सीधे मेरे केबिन वापिस आई तो आशुतोष ने उठ कर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठो को चूसने लगा। जब आशुतोष ने अपने होंठो ने श्वेता के होंठो पर रक्खा तो मेरा शरीर झनझना गया। वे दोनो मुझ से बहुत दूरी पर नही थे, मुझे केबिन में जल रही रोशनी में सब साफ साफ दिख रहा था। मैं यह साफ़ दिख रहा था कि जिस व्यग्रता से आशुतोष उसको होंठो को चूम और चूस रहा है उतनी ही आकुलता श्वेता भी चुम रही है। श्वेता मेरी धर्मपत्नी, पूरा साथ दे रही थी।
अब मुझे अपने एक प्रश्न का उत्तर मिल गया था कि जो भी हो रहा है वह, श्वेता की सहमति से हो रहा है। मुझे पता नही क्यों इस एहसास से की श्वेता आज आशुतोष के साथ जो चिपटी पड़ी है उसमें उसके साथ कोई जबरदस्ती नही है और मेरा इसमें कोई दोष नही है, कही अंदर मुझे शांत कर गया। मैं ग्लानि से तो मुक्त हो गया था लेकिन मन मे आक्रोश पनप रहा था। श्वेता पिछले 15 दिनों से आशुतोष की तरफ से की जारही हरकतों का प्रतिकार करने या मुझसे शिकायत करने की जगह वो स्वयं, आशुतोष की कोशिशों को बढ़ावा दे रही थी। मुझ से इतना बड़ा विश्वासघात!
मैं अपने आक्रोश में उबला श्वेता पर प्रतिघात और इन दोनों को आफिस के सामने बेइज्जत करने की सोचने लगा था कि सामने देखा कि अब आशुतोष ने अपने दोनो हाथों को श्वेता के नितंबो पर रक्खे हुए है और वो उसे दबाने में लगा हुआ है। इधर श्वेता भी अपने होंठ आशुतोष के होंठों से चिपकाए हुए उससे लिपटी हुई थी। वो अपने नितंबो पर आशुतोष के हाथों का सुख ले रही थी। तभी आशुतोष ने नितंबो की दरार में कुछ हलचल की तो श्वेता उचक गई। अब मैने देखा कि आशुतोष धीरे धीरे, अपने हाथों से श्वेता की साड़ी उठाने लगा है।
उसकी साड़ी जब उठ कर उसके टखनों तक आगई तो उसकी नंगी टांगे देख कर मेरे लन्ड में कुछ होने लगा। एक अजीब सी उत्तेजना मेरे लन्ड को कसमसा रही थी। तभी देखा श्वेता ने आशुतोष को कुछ कहा और वो उसकी बाहों अलग हो गयी। उसने स्विच बोर्ड के पास जा कर लाइट बंद कर दी और मेरे केबिन में अँधेरा हो गया।
अंधेरा होते ही मैं मन ही मन श्वेता से लाइट बंद करने पर गुस्सा करने लगा। अब जब बात आगे बढ़नी थी और मुझे देखना था तब यह अंधेरा मेरे लिए बड़ी बेइंसाफी थी। यह मुझे, श्वेता का मुझसे विश्वासघात किये जाने से बड़ी बेइंसाफी लग रही थी। फिर मैंने अपने मन को यह कह कर संतावना दी की शायद वो शर्मा रही है और इसलिए उसने लाइट बंद कर दी है। वे दोनों मुझे, मेन हॉल की जल रही लाइट, जो केबिन में भी हल्की से आरही थी, उसमे थोड़े थोड़े दिखाई दे रहे थे। लेकिन फिर मुझे यह देख बड़ा आश्चर्य हुआ कि वे दोनों मेरे केबिन से निकल कर, हॉल में आ गए और अब मुझे उस दोनों कि बातें सुनाई देने लगी।
आशुतोष ने पूछा ''क्या हुआ, वहां क्यों नहीं?"
श्वेता ने कहा," केबिन की खिड़की से केबिन की लाइट की रोशनी बाहर से दिखती है। उससे लगेगा की अभी आफिस खुला है, लोग है और यही सोच कोई आ न जाये। इसलिए इस हॉल में ज्यादा ठीक रहेगा'।'
"लेकिन यहाँ कैसे? सोफा तो बीपी के केबिन में ही है।''
"अरे जब करना होगा तो देखा जाएगा, वहां लाइट ज्यादा ज़रूरी है क्या?"
श्वेता के इतना कहते ही आशुतोष ने उसको फिर से अपने बाहों में जकड लिया और उसे चूमने लगा। अब वो भी आशुतोष को बेतहाशा चूमने लगी और केबिन वाली श्वेता से अलग, अब वो बड़ी स्वछंद हो रक्खी थी। एक दुसरे को चूसते चाटते हुए ही आशुतोष ने श्वेता के ब्लाउज के हुक खोलने शुरू कर दिया और थोडा सा पीछे हट कर, वो सामने से उसके खुले ब्लाउज को देखने लगा।
"क्या देख रहे हो?"
"देख रहा हूँ कि तुम कितनी सेक्सी हो। अपने बूब्स को देखो, किस खूबसूरती से इस सेक्सी ब्रा में कैद हैं."
"तो फिर कैद को खोल के अपना कैदी ले लो!"
यह सुन कर आशुतोष अपने दोनों हाथ श्वेता के पीछे ले गया और ब्रा के हुक खोलने लग गया। ब्रा के हुक खुलते ही श्वेता के बूब्स छलक के बाहर आगये। अब आषुतोष उससे अलग होकर, श्वेता की भरी हुई नग्न होती चुंचियों कर देखने लगा।
"अब क्या हुआ?"
"तुम्हे देख रहा हूँ, क्या लाजवाब लग रही हो। थोडा सा साड़ी का पल्लू हटाओ।"
श्वेता के पल्लू हटाते ही आशुतोष के साथ साथ मैं भी अपनी पत्नी की सुंदरता को निहारने लगा। उसके ब्लाउज के हुक खुले थे और उसमें से हुक खुली ब्रा झांक रही थी। ब्रा हुक खुल जाने के कारण श्वेता की चूचियों को, मुश्किल से ढक पा रही थी। उसके निप्पलस, अभी भी ब्रा के पीछे ही छुपे थे लेकिन उसकी चुंचियीं की गोलाइयाँ और सांचे में ढली बनावट, साफ़ नज़र आ रही थी।
"कार में तो बड़े उतावले होते हो इनको पकड़ने के लिए?और अब खोल के भी छोड़ दिया?"
"श्वेता क्या तुम्हें कभी किसी ने बताया है की तुम कितनी सेक्सी हो?"
"क्या मतलब ?"
"इधर आओ।"
आशुतोष के कहने पर, श्वेता उसके पास गयी तो आशुतोष ने श्वेता की साड़ी के नीचे फिर से हाथ डाल दिया और कुछ किया जिससे श्वेता, मुस्कराते हुए हंसने लगी और उसने कहा, "अरे रुको तो!"
यह सब देख कर मेरे खुद की सांसे भारी चलने लगी थी और मेरा लन्ड मेरे अंडरवियर में फूल कर बेरहम हो रहा था। मैने पैंट के ऊपर से ही अपने लन्ड को सहला रहा था कि आशुतोष ने श्वेता की साड़ी और पेटीकोट को साथ साथ ऊपर उठाना शुरू कर दिया। उसकी साड़ी-पेटीकोट जब उसके घुटनों तक पहुंची तो मैंने देखा की श्वेता की गुलाबी रंग की पेंटी, उसके घुटनों में फंसी हुई थी। मुझे अब समझ आया कि आशुतोष ने जो श्वेता की साड़ी के अंदर हाथ डाला था, वह पैंटी उतारने के लिए ही डाला था। अब आशुतोष अपने एक हाथ से श्वेता की चुंचियों को रगड़ रहा था और उसका दूसरा हाथ साडी के अन्दर था।
अब क्योंकि श्वेता की पैंटी उसके घुटनों के आसपास थी इसलिए मुझे पता चल गया था की अब आशुतोष की उंगलिया मेरी पत्नी की चूत से खेल रही थी।
तभी श्वेता ने एक हलकी सी आह भरी और अपनी आँखे बंद कर ली।
आशुतोष ने श्वेता को देखते हुए पूछा, "क्या हुआ? मज़ा आया?"
श्वेता ने हाँ में सर हिला दिया और अपनी बाहों में आशुतोष की गर्दन को लपेट लिया।
फिर श्वेता थोड़ी जोर से हिली और बोली, "प्लीज़ दो उँगलियाँ नहीं, एक से ही कर लो।"
आशुतोष मेरी पत्नी की चूत में उंगली डाल रहा था।
तभी आशुतोष ने वहां पड़ी एक रिवॉल्विंग कुर्सी पर श्वेता को बिठाया और कहा,"श्वेता तुम्हारे हस्बैंड बड़े भाग्यशाली हैं, अगर मैं तुम्हारा पति होता तो दिन रात तुम्हारी साड़ी के अंदर ही घुसा रहता।"
श्वेता अब एक कामुक औरत की तरह इतराते हुए बोली, "तुम्हें क्या पता मेरी साड़ी में क्या है?"
"मेरी इन उँगलियों ने देख लिया है की क्या है और वो ये बता रही हैं कि साड़ी में जो छेद है वो उँगलियों से खेलने कि नहीं है।"
"तो फिर किस चीज़ से खेलने की है?"
आशुतोष ने अपनी जीभ निकली और कहा,"इस से।"
और यह कह कर आशुतोष, श्वेता की पैंटी निकालने लगा।
आशुतोष ने श्वेता को थोडा सा कुर्सी पर गिराया ताकि उसके नितंब थोड़े से बाहर निकल आयें और उसने श्वेता की साड़ी को ऊपर उठा दिया। अब श्वेता की गोरी गोरी पिंडलियाँ और जांघे, आशुतोष को तो क्या, मुझे भी साफ़ साफ़ दिख रही थी। आशुतोष ने श्वेता की जांघो को थोडा सा खोला और अब उसकी चूत, जिस पर छोटे छोटे बाल थे, नज़र आने लगी थी। मैं अपनी श्वेता की खूबसूरत चूत आंख फाडे हुए, पैंट्री के अंधियारे से देख रहा था। इसी चूत की सील मैने 8 वर्ष पहले तोड़ी थी, इसी चूत से मेरे दो बच्चे निकले थे, इसी चूत को कल ही रात घोड़ी बना चोदा था! यह सोंच मेरा दिमाग और लन्ड दोनी भन्नाने लगेथे। मैं सर्विस विंडो के फ़टे पोस्टर के किनारे से, अपनी पत्नी को शालीन पतिव्रता धर्मपत्नी से कामुक छिनार स्त्री बनते हुए देखने के लिए कसके चिपक गया।
तभी आशुतोष ने एक लम्बी सांस भरी और कहा, "ओह गॉड! श्वेता तुम्हारी चूत इतनी सुंदर! क्या फूली हुई है!"
"आशुतोष! मुझे शर्म आ रही है, प्लीज़ ऐसे मत बोलो!"
"श्वेता! सच कह रहा हूँ, इतनी सुंदर चूत मैंने आज तक नहीं देखी।"
यह कहते हुए आशुतोष मेरी पत्नी श्वेता की जांघो के बीच झुक गया। उसने श्वेता की चूत की दरार में अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी और जैसे ही उसकी जीभ, चूत पर ऊपर नीचे हुई, श्वेता के मुंह से एक छोटी सी सिसकी निकल गई। अब आशुतोष ने अपनी जीभ पूरी बाहर निकाली और श्वेता की चूत पर सबसे नीचे रख, पूरी जीभ से श्वेता की चूत को चाटता हुए, धीर धीर ऊपर ले जाने लगा।
"आआ...ह्ह्ह्हह्ह.....आआ .....शऊऊ ........तोत .......ओह्ह्ह .....मर जा....उंगी......मैं.....अह्ह्
ह.......उह्ह्ह बस....बस आशुतोष!!"
इतना कहते ही श्वेता ने आशुतोष के सर के बाल पकड़ लिए और उसका सारा शरीर अकड़ने लगा. और बोली,"आश्शूऊ ......!!!!....ओह्ह्ह गौड़ड़ड़ !......ऑउच..........अह्ह्ह.... आई म.... कम्मिंग!! ....आशुतोष!
मैं जान गया था कि यह मेरी श्वेता का पहला ओर्गास्म था। ओर्गास्म श्वेता को हुआ था लेकिन लन्ड मेरा बेहाल था। मैं उस पैंट के ऊपर से दबा के तसल्ली दे रहा था।
श्वेता 1 मिनट तक, रिवॉल्विंग कुर्सी पर पसरे हुए लम्बी लम्बी साँसे लेती रही।
"अरे श्वेता तुम तो पहले चखने में ही निकल गयी!इतनी जल्दी!"
श्वेता, वैसे ही पड़े पड़े, अधखुली आंखों से देखते हुए, मुस्कराने लगी और कहा,"प्लीज़ डू इट अगेन!"
इतना सुनते ही आशुतोष, श्वेता की चूत पर पिल पड़ा और उसने श्वेता की चूत को जीभ से चाटने की रेल सी चला दी। आशुतोष मेरी पत्नी श्वेता की चूत को अच्छी तरह से चाट रहा था। मुझे उससे जलन हो रही थी। मैं जानता था कि श्वेता को अपनी चूत चटवाना अब पसन्द है। शुरू में श्वेता जो अपनी चूत चटवाने के लिए मनाना पड़ता था, बड़ी मुश्किल से तैयार किया था और मैंने घण्टों इसी चूत को चाट कर उसे चटोरी बना दिया था।
आज उसी चूत को आशुतोष चाट रहा है। मेरी चूत मेरी अमानत, आज आशुतोष, एक पराये आदमी की जीभ के सामने फैली पड़ी है। यही देखते और सोचते हुए मै कब अपनी पैंट की जीप खोल कर अंडरवियर के उपर से अपने कड़कड़ाते लन्ड को दबाने लगा, पता ही नही चला।
भाग 3
अब जब ध्यान अंदर की तरफ लगाया तो देखा श्वेता अपनी जांघो को और फैला चुकी है और आशुतोष मेरी पत्नी की चूत के अंदर, जीभ घुसेड़ रहा था। उसकी जीभ, श्वेता की चूत के अंदर हलचल मचा रही थी और उसकी आहें तेज़ होने लगी थी। फिर आशुतोष ने अपना मुंह थोडा सा ऊपर किया और अपने हाथो की दोनों उँगलियों से श्वेता की चूत की दोनो फलको को फैला कर, अपनी पूरी जीभ अन्दर डाल कर, उसकी चूत की अंदरूनी दीवारों को चाटने लगा।
तभी श्वेता ने कहा," लिक माय क्लिट प्लीज़!"
आशुतोष ने उसकी तरफ देख कर कहा,"अभी चाटता हूँ श्वेता, तुम देखती जाओ आज कैसे तुम्हारी हर तमन्ना को पूरी करूँगा।" और यह कह कर आशुतोष, श्वेता कि चूत की क्लिट को अपनी जीभ के कोने से चाटना शुरू कर दिया।
" अह्ह्ह्ह.....हाँ ..........धीरे! थोडा धीरे आशूऊ........आउच ........अह्ह्ह...... अहह्म्म्म.....ओह माय गॉड! ये क्या कर रहे हो!"
अब आशुतोष ने श्वेता की क्लिट को अपने होंठो के बीच में पकड़ लिया था और उसे चूसने लगा।
"बस करो आशुतोष! मर जाउंगी मैं ......ऊह्ह्ह्ह .......फिर से होने वाली हूँ मैं .......आःह्ह... .....आ रही हूँ मैं फिर से.......थोडा और......यहीं पर....बस यही पर..और करो .....आआआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!"
और इसी के साथ मेरी श्वेता एक बार फिर से झड़ने लगी थी। उसका शरीर थोड़ी देर के लिए अकड़ गया और फिर निढाल हो कर कुर्सी पर ही पसर गई। उसकी हालत देख कर आशुतोष एक विजेता की मुस्कान के साथ उठा और कहा, "क्या हुआ श्वेता? अभी से थक गई?"
श्वेता ने एक थकी हुई मुस्कान के साथ कहा, "अगर मैं कहूँ कि थक गयी हूँ तो क्या मुझे छोड़ दोगे?"
"अच्छा बाबा ठीक है, थोड़ी देर आराम कर लो।"
इस पर वो भूखी शेरनी की तरह सीधे हुई और बोली, "जी नहीं, अब तो एक बार ही आराम होगा।"
और उसने उँगली से आशुतोष को अपने पास आने का इशारा किया।
जैसे ही आशुतोष, उसके बायीं तरफ आया, श्वेता ऊपर मुंह करके आशुतोष की तरफ देखने लगी लेकिन उसके हाथ आशुतोष की पैंट पर थे। वो उसे खोल रही थी। श्वेता ने बेल्ट और पैंट के हुक खोलने के बाद आशुतोष की पैंट को नीचे खींच दी। अब आशुतोष अपनी सफ़ेद रंग के अंडरवियर में खड़ा हुआ था।
आशुतोष ने पूछा,"क्या देख रही हो?"
"अभी तो कुछ नहीं दिखा?"
" क्या देखना चाहती हो?"
श्वेता ने कुछ नहीं बोला और उंगली से उसके अंडरवियर के उभरे हुए हिस्से की तरफ अपनी आँखों से इशारा किया।
"कौन रोक रहा है? देख लो।"
श्वेता ने मुस्कराते हुए मुंह नीचे कर लिया और बोली, "मुझे शर्म आ रही है।"
इस पर आशुतोष ने कहा ,"जब ..."फिर से होने वाली हूँ मैं .......आःह्ह......आ रही हूँ मैं फिर से.......थोडा और......यहीं पे...बस यही पर..और करो" कह रही थी तब शर्म नहीं आ रही थी क्या? मेरा लौड़ा देखने में शर्म आ रही है अब !"
"हाय राम कितने गंदे हो आप! कैसे कैसे बोलते हो।"
"अरे अगर लौडे को लौडा नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?"
" अच्छा अब चुप भी करो।"
"तो फिर निकालो इसे बाहर नहीं तो फिर से कहता हूँ लौ..".
इतना कहता ही श्वेता ने आशुतोष के अंडरवियर को धीरे से नीचे कर दिया।
अंडरवीयर नीचे आते ही आशुतोष का कड़ा सा लंड बाहर आ गया। उसके लन्ड का सुपाड़ा मशरूम जैसा चिकना और मोटा था। उसका लन्ड देखते हुए मुझे अपने लन्ड का ख्याल आगया। क्या मेरा लन्ड बेकार है? आशुतोष को मुझसे बड़ा और मोटा है? मैं एक अजीब से हीनता में गिरफ्त हो रहा था। मैंने अपनी पैंट खोल डाली और अपने अंडरवियर में छटपटा रहे लन्ड को निकाल लिया। वो भनभनाता हुआ निकल आया और मैने उसे अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया। मैं मन ही मन अपने और आशुतोष के लन्ड को तौलने लगा। क्या श्वेता आशुतोष के लन्ड से चुदने के बाद मेरे लन्ड का तिरस्कार तो नही करेगी? लेकिन अगले ही क्षण मैने यह विचार दिमाग से निकाल फेका क्योंकि मेरा 7 इंच का लन्ड, थोड़ा घुमावदार टेढ़ा जरूर है लेकिन आशुतोष के लन्ड से किसी मायने में कम नही था।
मेरा लन्ड मेरी मुट्ठी में था लेकिन आंखे अंदर हॉल में हो रही रासलीला की तरफ लगी हुई थी। मैने देखा श्वेता, आशुतोष के लन्ड को अपने हाथों में लिए हिला रही थी और फिर एक दम से वह झुक गई और उसने आशुतोष के लन्ड के सुपाड़े को चूम लिया।
श्वेता को जब आशुतोष के लन्ड को चूमते देखा तो मेरे दिल मे एक टीस सी उठ गई। श्वेता को लन्ड चूसना कभी भी पसंद नही था। शुरू में तो मेरा लन्ड हाथ मे लेकर मुट्ठ मारने में भी आनाकानी करती थी। मैने लगातार 3 वर्षो की मेहनत के बाद उसे अपने लन्ड को मुंह मे लेकर चूसना सिखाया था। आज भी जब भी मेरे लन्ड को चूस कर मुझे झाड़वाती है तो एहसान लादती है। लेकिन आज, पहली ही बार मे, बिना आशुतोष के मनाए उसने अपने होंठ उसके सुपाड़े पर रख दिये थे।
उधर आशुतोष ने श्वेता से कहा,"एक बात पूछूं?"
श्वेता ने लन्ड पकडे ही आशुतोष की और देखा और कहा, "हाँ पूछो।"
"तुम्हारे पति से मेरा बड़ा है?"
श्वेता ने कहा ,"नहीं, मेरे पति से बड़ा नहीं है, बस इसका मशरूम शेप और गोरापन ज्यादा है।"
श्वेता की यह बात सुन मैं इतना खुश हुआ कि मैं खुद ही अपने लन्ड को हिलाने लगा।
श्वेता, आशुतोष के लन्ड को हिला ही रही थी की एक दम से उसने अपनी जीभ निकाली और आशुतोष के लंड को लम्बाई में जीभ से चाटने लगी और फिर मुंह खोल कर, उसका पूरा सुपाड़ा अंदर ले कर चूसने लगी।
यह देख कर एक बार फिर मेरे दिल मे टीस उठी, मेरी श्वेता बड़ी मुश्किल से मेरे लंड को चूसती थी और यहां वो किसी दूसरे आदमी के लन्ड को मुंह में डाल कर चूस रही थी।
श्वेता, आज आशुतोष के लन्ड को ऐसे चूस रही थी जैसे वो बरसो से चूसती आयी हो!
आशुतोष बड़बड़ाने लगा, "फ़क यू श्वेता! ओह्ह माय गॉड! क्या लौड़ा चूसती हो!"
यह सुनकर श्वेता कस कस के आशुतोष का लन्ड चुसने लगीं। तभी आशुतोष बोला," बस! अब और नहीं!"
श्वेता ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा और पूछा, "क्या हुआ?"
आशुतोष ने बिना जवाब दिए, श्वेता को उठाया और उसे कुर्सी पर बिठा दिया और फिर कहा, "फैलाओ अपनी टाँगे।"
इस पर श्वेता ने कहा,"अरे रुको! यहाँ नहीं, कंडोम नहीं है। प्लीज़, बिना कंडोम के नहीं!"
आशुतोष, श्वेता के मुंह के पास आया और होंठो से होंठ मिला कर बोला, "श्वेता आई वान्ना फ़क यु राइट नाउ! मुझे तुमको अपने नंगे लौड़े से ही चोदना है! मेरा लौड़ा तुम्हरी चूत को पूरा महसूस करना चाहता है!"
श्वेता मिमयाती हुई बोली, "लेकिन बिना कंडोम के? ये मेरे सेफ डेज भी नहीं हैं,प्लीज़ आशुतोष आज मान जाओ!"
आशुतोष इस पर बोला," श्वेता सिर्फ एक बार कह दो तुम्हारा मन नहीं है तो मैं कुछ नहीं करूँगा"
इस पर श्वेता ने आंखे नीचे कर ली और बोली, "मन तो बहुत है आशुतोष लेकिन आज होगा यह कोई तय नही था। बिना कंडोम के खतरा है, कहीं कुछ गडबड न हो जाये।"
आशुतोष ने कहा , "श्वेता परेशान न हो, तुम्हारे अंदर नहीं गिरूंगा, यह पक्का जेंटलमैन प्रॉमिस है।"
यह कह कर उसने श्वेता के होंठो को चूमा और उससे अलग होने लगा।
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आशुतोष पूरी तरह से उसपर से उठ पता तभी श्वेता ने आशुतोष का लन्ड (जो अब थोडा शिथिल हो चूका था) पकड़ा और धीरे से कहा "अरे बाबा ! मैं कह रही हूँ आज तो कर लो पर फिर कभी कंडोम के बिना मत करना।"
यह सुन कर जहां आशुतोष मुस्करा पड़ा वही मेरा दिल बैठ गया। क्या सुन रहा हूँ, श्वेता, आशुतोष से आगे भी उससे चुदवाने का वचन दे रही है! आज पहली बार मे हीं कंडोम भूल भाल कर, मेरी अमानत वाली चूत में, दूसरे आदमी का खालिस लन्ड लेने को तैयार बैठी है! लेकिन यह क्या, वहां आशुतोष का लन्ड, इनकार पर ढीला हो गया था और यहां मेरा लन्ड, श्वेता की नंगी चुदाई देखने की आशा में ही घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा था! मुझको यह समझ आरहा था कि कुछ न कुछ मेरे अंदर गड़बड़ है, कुछ अलग है। एक तरफ मेरी आंखों के सामने, मेरी पत्नी श्वेता स्वेच्छा से एक पर पुरुष से चुदने जारही थी और दूसरी तरफ मैं अपनी पत्नी की बेवफाई और पर पुरूष से चुदाई को लेकर कामोत्तेजित हो रहा था और अपने लन्ड को मुट्ठ मार रहा था।
तभी मैने अपने लन्ड से अपना ध्यान हटाया और अंदर देखने लगा। वहां देखा, आशुतोष ने अपना ठीला लन्ड एक बार फिर से श्वेता के मुंह में दे दिया है और वो उसे चूस चूस कर फिर से खड़ा कर रही है।
थोड़ी देर के बाद ही आशुतोष ने अपना लन्ड श्वेता के मुंह निकाल लिया और फिर उसकी जांघो को फैला कर, उसकी चूत को ताबड़तोड़ चूमने लगा। श्वेता इन चुम्बनों से सिहरा गई थी और जब उसने हाथ आशुतोष के सर पर रक्ख कर अपनी चूत की तरफ दबाया तो आशुतोष ऊपर उठ आया।
आशुतोष ने अब श्वेता की फैली जांघो के बीच अपने लिए जगह बनाई और अपना लन्ड श्वेता की चूत पर रखने लगा। तभी श्वेता ने आशुतोष के लन्ड को पकड़ा और खुद ही उसे अपनी चूत पर टिका दिया। आज क्या मेरी जलालत का दिन था! जिस चूत का कौमौर्य मैने भंग किया था, जो मेरी है, जिस चूत को चोदने का सिर्फ मेरे पास धर्मसम्मत अधिकार था, वही चूत, अब वो, मेरे ही ऑफिस में, मेरे ही सामने किसी पर पुरुष से चुदवाने के लिए तैयार थी। मेरे लिए यह क्या सब कुछ कम था की यह सब देख कर मेरा लन्ड उत्तेजना में, घोड़े पर सवार फुफकार रहा था।
तभी आशुतोष की आवाज कानो पर पड़ी, वो "ओह्ह्ह! श्वेता मेरी जान!" कहते हुए अपना लन्ड धीरे धीरे श्वेता की चूत में घुसेड़ रहा था।
श्वेता, "अह्ह्ह्ह्म्म्म्म ......आह.....धी..रे ... धी....रे .... अहह ..... आउच .....धीरे!" कहती रही और उधर आशुतोष ने धीरे धीरे अपना पूरा लन्ड मेरी पत्नी श्वेता की चूत में पूरा घुसा दिया।
अपना पूरा लन्ड डाल कर, आशुतोष ने पूछ, "कैसा लग रहा है?"
श्वेता ने जवाब में, "प्लीज़ अभी धक्के मत शुरू करना!" कहते हुए आशुतोष को कस के पकड़ लिया और अपनी आँखे बंद कर ली। फिर लड़खड़ाती तेज़ आवाज़ में कहा, "अभी बाहर मत निकलना! मैं अह्हह्ह.....फिर से......ओह्ह्ह्ह्ह्ह....हे भगवान.......आः.. अह्ह्म्म......ओह्ह गॉड ...आई आम गॉन! फिर हो गया!"
इसी के साथ श्वेता एक बार फिर से झड गयी। यह देख कर मैं तेजी से अपने लन्ड को चलाने लगा, मेरे लन्ड से निकले मदन रस से मेरी हथेली चिपचिपा रही थी। मेरे अंदर कामोत्तेजना का ज्वार आया हुआ था क्योंकि मुझे मालूम था कि श्वेता बहुत उत्तेजित होती है तो कई बार झड़ जाती है।
मैं इधर अंधेरे में अपने लन्ड को मुट्ठ मार रहा था तो उधर आशुतोष ने श्वेता की चुदाई शुरू कर दी थी। जैसे ही आशुतोष का लन्ड धक्का मारने के लिए श्वेता की चूत से बाहर निकलता तो मुझे उसका लन्ड श्वेता की चूत के गीलेपन से चमकता हुआ दिखाई देता। शुरू में आराम से धक्के मारने के बाद अब आशुतोष तेजी से श्वेता को चोदने लगा जिससे श्वेता हिली जारही थी।
श्वेता ने इस पर कराहते हुए कहा, "अहह..थो..डा ...धीरे....अह्ह्ह..ओह्ह्ह...प्लीज़ थोड़ा रुक के!"
"क्यों? मज़ा नहीं आ रहा क्या? धीरे धीर करूँगा तो सुबह तक नहीं निकलूंगा!"
"मजा तो बहुत मज़ा आ रहा है! मन करता है चुदते चुदते मर ही जाऊं!"
"श्वेता डार्लिंग अब हुई हो मस्त! निकल गयी न सारी शर्म!"
इधर मुझे अपने कानो पर विश्वास नहीं हो रहा था की कहे जारही है श्वेता! "चुदते चुदते मर जाऊं"!
फिर एकाएक आशुतोष ने अपना लन्ड श्वेता की चूत से बारह निकाल लिया और कहा, "तुम कुर्सी से हट जाओ।"
श्वेता कुर्सी से उठी और पूछा,"क्या हुआ?"
उस कुर्सी पर आशुतोष खुद बैठ गया और श्वेता से बोला, "बैठो अब अपने प्यारे लौड़े पर!"
"बेशरम! क्या बोल रहे हो"
आशुतोष ने अपने लन्ड को पकड़ कर बोला "क्यों ये तुम्हारा नहीं है?अच्छा नहीं लगता ये?"
श्वेता उसकी बात सुन मुस्कराने लगी और बोली "बहुत गंदे और बेशर्म हो।"
यह कहते हुए श्वेता, आशुतोष से फिर गयी और अपने नितंब, उसकी तरफ कर दिए। फिर उसने झुकते हुए, अपनी दोनों फैली जांघों के बीच से अपना हाथ डाल कर, आशुतोष का लन्ड पकड़ लिया और अपनी चूत के चौखट पर लगा दिया। आशुतोष के लन्ड के सुपाड़े ने जैसे ही श्वेता की चूत को छुआ, श्वेता, आशुतोष के लन्ड पर बैठने लगी। देखते ही देखते मेरी श्वेता की पनियाई चूत में एक बार फिर से आशुतोष का पूरा लन्ड अपने अंदर कर लिया।
अब आशुतोष ने श्वेता की उदोनों चूंचियों को अपने हाथों में पकड़ रक्खा था और वो उन्हें दबाए जारहा था। अभी थोड़ी देर ही चुदाई चली होगी की श्वेता ने ऊपर नीचे होना बंद कर दिया और वो आशुतोष के लौड़े पर बैठ कर लंबी लंबी साँसे लेने लगी।
"फिर झड गयी?"
"नहीं, अबकी बार थक गयी हूँ।"
"ओके, फिर उठो।"
इसी के साथ श्वेता, आशुतोष प्रशांत के लौड़े पर से उठ गयी और वो खुद भी उठ गया।
अब आशुतोष ने कहा, "श्वेता अब तुम अपने सारे कपडे उतार कर, नंगी हो जाओ।"
श्वेता ने चिहुंक के कहा, "हाय राम बेशरम! और कितनी होऊं? सब कुछ तो देख लिया मेरा और क्या बाकी है अब?"
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