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इंस्पेक्टर श्रीकांत ने तीसरी मंज़िल की खुली हुई खिड़की को देखने के बाद नीचे पड़ी लाश पर दृष्टि डाली। आस पास काफी भीड़ जमा थी। पिछले एक घण्टे से वो वारदात की जांच कर रहा था। सुबह कॉल सेंटर के मालिक द्वारा उसे वारदात की सूचना मिली थी।
"ओके, मान लिया कि तुम लोगों ने इस आदमी को पहली बार ही देखा है।" फिर वो सामने खड़े लोगों से बोला───"मगर ये कन्फर्म हो चुका है कि ये आदमी उस खिड़की से ही नीचे गिरा है जहां पर तुम्हारा कॉल सेंटर है। सवाल है कि जब तुम लोगों ने इसे पहली बार ही देखा है तो ये कॉल सेंटर में पहुंचा कैसे और वहां क्या करने गया था?"
कॉल सेंटर वालों ने एक बार फिर से वही बताया जो वो पहले भी बता चुके थे। यानि उनमें से किसी को भी पता नहीं है कि मरने वाला कौन है और उनके कॉल सेंटर में कैसे पहुंचा था?
इंस्पेक्टर कुछ पलों तक उन्हें देखता रहा, फिर पुनः तीसरी मंज़िल की तरफ बढ़ चला। दो पुलिस वाले लाश के पास ही खड़े रहे जबकि कॉल सेंटर वाले उसके पीछे चल पड़े थे।
इंस्पेक्टर पहले भी कॉल सेंटर का मुआयना कर चुका था लेकिन दुबारा ये सोच कर आ गया था कि शायद ग़लती से कुछ छूट गया हो उससे। ख़ैर मुआयना करते हुए वो खिड़की के पास पहुंचा।
खिड़की के पल्लों पर उंगलियों के निशान वो पहले भी देख चुका था। खिड़की के अंदर की तरफ बिल्कुल पास में ही जूतों के निशान भी थे। ऐसा लगता था जैसे खिड़की से गिरने अथवा कूदने से पहले मरने वाला यहीं पर खड़ा था। इसके अलावा कुछ भी स्पष्ट रूप से नज़र नहीं आ रहा था। संभव था फिंगर प्रिंट्स वालों को कुछ मिल जाए। रूम में एक तरफ कुर्सियां और डेस्क पर कंप्यूटर्स रखे हुए थे।
"तुम लोगों के अनुसार खिड़की हमेशा की तरह अंदर से बंद थी?" इंस्पेक्टर ने पूछा───"और यहां की हर चीज़ अपनी जगह पर ठीक वैसी ही है जैसी तुम लोग कल रात छोड़ कर गए थे? यानि मरने वाले ने यहां की किसी भी वस्तु को हाथ तक नहीं लगाया?"
"उसने हाथ लगाया था या नहीं ये तो हम नहीं जानते सर।" वहां खड़े लोगों में से एक ने कहा───"लेकिन इतना देख चुके हैं कि यहां हर चीज़ अपनी जगह पर ही है।"
इंस्पेक्टर ये पहले भी देख चुका था। सच में ऐसा कुछ भी नहीं था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अगर सब ठीक ही है तो मरने वाला यहां आया किस लिए था? क्या खिड़की से कूद कर सिर्फ अपनी जान देने के लिए?
तभी फिंगर प्रिंट्स विभाग वाले आ गए। इंस्पेक्टर ने उन्हें कुछ ज़रूरी निर्देश दिए। फिर वो कॉल सेंटर वालों से मुखातिब हुआ।
"मृतक को देख कर साफ पता चलता है कि उसको मरे हुए क़रीब पांच या छह घंटे हो चुके हैं।" फिर उसने कहा───"इसका मतलब उसकी मौत रात के एक या डेढ़ बजे के क़रीब हुई। तुम लोगों के बयानानुसार कॉल सेंटर का ये रूम रात ग्यारह बजे बंद हो गया था तो फिर वो आदमी रूम में पहुंचा कैसे?"
"हम सच कह रहे हैं सर।" एक दूसरे व्यक्ति ने कहा───"जब सर ने लॉक लगाया था तब अंदर कोई नहीं था। उसके बाद हम सब यहां से नीचे चले गए थे। वो आदमी कब आया और कैसे रूम में पहुंचा इस बारे में हमें कुछ भी पता नहीं है। सुबह जब हमने यहां लाश पड़ी देखी तो घबरा गए, फिर सर ने थाने फ़ोन किया।"
"रूम की चाबी किसके पास होती है?"
"आनंद सर के पास।" एक लड़की ने बगल से खड़े आनंद की तरफ इशारा किया।
"ये सच है सर।" आनंद ने कहा।
"यहां की कोई दूसरी चाबी?
"नो सर।" आनंद बोला───"चाबी एक ही है और वो मेरे पास ही होती है।"
"कमाल है।" इंस्पेक्टर ने कहा───"इकलौती चाबी सिर्फ तुम्हारे पास थी। कोई नकली चाबी बरामद नहीं हुई तो क्या यहां का लॉक उसने जादू से खोला था?"
कोई कुछ ना बोला, जबकि श्रीकांत ने कहा───"मुझे तो ये लग रहा है प्यारे कि तुम उसे अच्छी तरह जानते थे। रात उसे ले कर तुम यहां वापस आए। यहां तुम दोनों में झगड़ा हुआ। गुस्से में आ कर तुमने उसे खिड़की से धकेल दिया। फिर सुबह थाने फोन कर के खुद को इनोसेंट दिखा दिया।"
"ऐसा नहीं है सर।" आनंद ने कहा───"सच यही है कि हम में से कोई भी उसे नहीं जानता।"
"रूम का लॉक चाबी से ही खोला गया था।" इंस्पेक्टर दरवाज़े की तरफ देखते हुए बोला───"पहले भी चेक किया था और अब भी चेक कर चुका हूं। की-होल में ऐसा कोई निशान नहीं है जिससे ये कहा जा सके कि किसी ने उसे ज़बरदस्ती खोलने की कोशिश की है। ज़ाहिर है लॉक उसकी असल चाबी से ही खोला गया है और तुम खुद क़बूल कर चुके हो कि चाबी तुम्हारे पास ही होती है।"
"मेरा यकीन कीजिए सर।" आनंद ने कहा───"सबके साथ जाने के बाद मैं वापस यहां आया ही नहीं।"
इंस्पेक्टर ये सब पहले भी पूछ चुका था। मरने वाले से अगर सच में उनमें से किसी का संबंध होता और रात यहां कोई झगड़ा हुआ होता तो हाथा पाई भी हुई होती। हाथा पाई में किसी को तो चोट लगती ही जबकि ऐसा कुछ नहीं था। मरने वाले की बॉडी में चोट का कोई निशान नहीं था और ना ही कॉल सेंटर वालों के। हैरानी की बात ये भी थी कि कोई सुसाइड नोट भी नहीं मिला था।
इंस्पेक्टर वापस नीचे आ गया। लाश औंधे मुंह पड़ी हुई थी। सिर फट गया था जिसके चलते ढेर सारा ख़ून ज़मीन पर फैला हुआ था। जिस्म की कई हड्डियां टूट गईं थी। इंस्पेक्टर बखूबी समझता था कि तीसरी मंज़िल से गिरने पर किसी भी इंसान की यही दशा होती। ख़ैर, पंचनामा करने के बाद उसने लाश को पोस्ट मार्टम के लिए भेज दिया और ख़ुद मरने वाले की जांच पड़ताल में लग गया।
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तीन दिन बाद।
इंस्पेक्टर श्रीकांत थाने में बैठा मरने वाले की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट देख रहा था। इन तीन दिनों में उसने काफी कुछ पता लगाया था। कॉल सेंटर में काम करने वालों से मरने वाले का कोई संबंध नहीं था। आनंद पर उसे शक था लेकिन उसका भी उससे कोई संबंध नहीं था।
रिपोर्ट में मौत को सुसाइड ही बताया गया था क्योंकि उसके मरने की कोई संदिग्ध वजह नहीं मिली थी। बॉडी में कहीं भी हाथा पाई से संबंधित चोट के निशान नहीं थे, ना ही किसी दूसरे व्यक्ति के कोई फिंगर प्रिंट्स मिले थे। अगर किसी ने उसे धक्का दिया होता तो खिड़की पर उसका जिस्म टकराता जिससे उसके जिस्म के किसी न किसी हिस्से पर खरोंच जैसे निशान बन जाते जोकि नहीं थे।
मृतक का नाम अभिनव बेनिवाल था। घर से सम्पन्न था। दिल्ली के जनकपुरी में उसका घर था। परिवार में उसकी विधवा मां और एक बहन है। बहन उम्र में उससे बड़ी एवं शादीशुदा है जबकि वो खुद तीस की उमर का अविवाहित था। अरुण नाम का एक दोस्त था जिससे कभी कभार ही उसका मिलना होता था।
इंस्पेक्टर थोड़ी देर पहले ही अभिनव के घर से दूसरी बार पूछताछ कर के आया था। वो जानना चाहता था कि मामला सुसाइड का ही है या सोच समच कर किए गए मर्डर का? उसने दोनों मां बेटी से पूछताछ की थी। बहन से तो कुछ ख़ास पता नहीं चला था लेकिन मां से ज़रूर उसे कुछ बातें पता चलीं थी। इस वक्त उसके ज़हन में उसकी मां की बातें ही गूंज रहीं थी।
"बाप के गुज़र जाने के बाद वो पूरी तरह आज़ाद हो गया था।।" अभिनव की मां ममता ने दुखी भाव से कहा───"कोई काम नहीं करता था, बस इधर उधर घूमता रहता था। क़रीब तीन महीने पहले अचानक से उसमें एक अजीब सा बदलाव देखा था।"
"कैसा बदलाव?"
"एकदम से उसका घूमना फिरना बंद हो गया था।" ममता ने कहा───"पहले तो थोड़ा बहुत बाहर निकलता भी था लेकिन फिर अपने कमरे में ही बंद रहने लगा था।"
"आपने उससे इसकी वजह नहीं पूछी थी?"
"पूछा था।" ममता ने कहा───"पहले तो टालता रहा, फिर जब मैंने गुस्सा किया तो बताया कि वो माया नाम की एक लड़की से प्रेम करने लगा है।"
"ओह! तो लड़की का मामला था।" इंस्पेक्टर ने कहा───"लेकिन इसके लिए उसे कमरे में बंद रहने की क्या ज़रूरत थी?"
"बड़ी ही अजीब कहानी थी उसकी।" ममता ने कहा───"और उससे भी अजीब थी वो लड़की। मेरे बेटे पर उसने जाने ऐसा क्या जादू कर दिया था कि वो बावला सा हो गया था। अपने कमरे में बंद हो कर उसे फ़ोन लगाता रहता मगर उसका फ़ोन कभी न लगता। चार पांच दिन में वो लड़की खुद ही रात को उसे फ़ोन करती थी तभी वो उससे बात कर पाता था। उसने बताया था कि अपनी बीमार मां का इलाज़ करवाने के लिए वो कॉल सेंटर में नौकरी करती है। मेरा बेटा उसके लिए बहुत संजीदा हो गया था। उसका हर दुख दूर करना चाहता था। यहां तक कि उसकी मां का इलाज़ भी करवा देने की बात कहता था लेकिन वो कलमुंही ना तो कभी उससे मिलने को राज़ी होती थी और ना ही कोई मदद के लिए। मेरा बेटा उससे शादी करने को कहता तो साफ इंकार कर देती थी। मुझे समझ नहीं आता था कि जब उसे मेरे बेटे की भावनाओं से कोई मतलब ही नहीं था तो वो उसे फ़ोन ही क्यों करती थी?"
"तो क्या वो कभी मिली नहीं आपके बेटे से?"
"ना, कभी नहीं।" ममता ने कहा───"अभी एक हफ़्ता पहले उसने फ़ोन किया था। मेरा बेटा तो उसका फ़ोन आने से बड़ा खुश हुआ था लेकिन फ़ोन पर माया का रोना बिलखना सुनते ही उसकी खुशी पल में ही ग़ायब हो गई थी।"
"ऐसा क्यों?" इंस्पेक्टर चौंका───"वो रो क्यों रही थी?"
"मेरे बेटे के पूछने पर उसने बताया कि उसकी मां उसे अकेला छोड़ के इस दुनिया से चली गई है।" ममता ने कहा───"उसी दिन उसने बताया था कि उसकी मां को असल में कैंसर था। फिर कहने लगी कि अब वो भी अपनी मां के बिना जीना नहीं चाहती है। मेरा बेटा उसकी ये बात सुन कर तड़प उठा था। उससे मिन्नतें करने लगा था कि वो ऐसा न करे। उसे बताए कि वो कहां है? वो आएगा और उसका हर दुख दूर कर देगा।"
"तो क्या फिर माया ने बताया कि वो कहां है?"
"हां, उस रात पहली बार उसने बताया था कि वो उसे कहां मिलेगी।" ममता ने कहा───"मेरा बेटा उस रात बड़ा ही खुश था। सुबह नौ बजे भागता हुआ उसके पास गया था। मैं भी ये सोच के ख़ुश हो गई थी कि आख़िर इतने समय बाद वो मेरे बेटे को मिल ही जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उस दिन मेरा बेटा अकेला ही वापस आया और मुझसे लिपट कर खूब रोया था।"
"इसका क्या मतलब हुआ?" इंस्पेक्टर ने पूछा───"क्या उस दिन माया मिली नहीं थी उसे।"
"हां।" ममता ने कहा───"मेरा बेटा उसकी बताई हुई जगह पर जब पहुंचा तो वो वहां पर नहीं थी। अपनी जो पहचान उसने बताई थी उस पहचान की कोई लड़की नहीं थी वहां। उसका कोई दूसरा फोन नंबर भी नहीं था मेरे बेटे के पास इस लिए वहीं पर तलाश करता रहा था उसे। डेढ़ दो घंटे की खोज में भी जब वो कहीं न मिली तो मेरा बेटा लुटा पिटा सा वापस आ गया था।"
"बड़े हैरत की बात है।" इंस्पेक्टर ने कहा───"क्या फिर दुबारा आपके बेटे की बात हुई थी उससे?"
"मेरी जानकारी में तो नहीं हुई थी।" ममता ने कहा───"लेकिन शायद कल हुई थी। तभी तो वो कल रात क़रीब साढ़े ग्यारह बजे यहां से चला गया था। मैंने पूछा तो बोला किसी काम से बाहर जा रहा हूं। मुझे नहीं पता था कि मेरा बेटा हमेशा के लिए मुझसे दूर जा रहा था।"
इतना कह अधेड़ उम्र की ममता फूट फूट कर रो पड़ी। ख़ैर, इंस्पेक्टर ने उससे अभिनव के कुछ फ़ोटो ग्राफ्स लिए और साथ ही उसका मोबाइल फ़ोन भी। अभिनव की लाश से सिर्फ उसका पर्स मिला था, जिसके अंदर मौजूद आधार कार्ड से ही उसकी पहचान हुई थी।
"सर!" हवलदार की आवाज़ सुन इंस्पेक्टर वर्तमान में आया───"ये अभिनव के फ़ोन की कॉल डिटेल्स हैं।"
इंस्पेक्टर कॉल डिटेल्स देखने लगा। उसमें सबसे ज़्यादा एक ही लैंड लाइन नंबर पर कॉल के आने जाने का विवरण था। पिछले तीन महीने में एक ही नंबर से अभिनव को ढेर सारे कॉल आए थे।
"इसमें जिस नंबर से अभिनव को उस रात कॉल किया गया था।" हवलदार ने कहा───"वो उसी कॉल सेंटर का है सर जहां की खिड़की से कूद कर उसने अपनी जान दी थी।"
"हां, और यही वो नंबर भी है जिस पर अभिनव ने बार बार कॉल किया था।" इंस्पेक्टर ने कहा───"ये अलग बात है कि उसका कॉल एक बार भी नहीं लगा।"
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"तुम तो कह रहे थे प्यारे कि तुममें से कोई भी मरने वाले को जानता ही नहीं है?" इंस्पेक्टर ने आनंद के साथ बाकी सबको भी घूरते हुए कहा───"जबकि सच ये है कि तुममें से कोई न कोई उसे अच्छी तरह जानता है।"
"ये आप क्या कह रहे हैं सर?"
"पुलिस से झूठ बोलने का अंजाम बहुत बुरा होता है।" इंस्पेक्टर ने सख़्त भाव से कहा───"अगर अपना भला चाहते हो तो सब कुछ सच सच बता दो वरना सच उगलवाने के बहुत से तरीके हैं मेरे पास।"
"हम आपसे कुछ भी नहीं छुपा रहे सर।" आनंद ने कहा───"हमारा यकीन कीजिए।"
"ख़ामोश।" इंस्पेक्टर ज़ोर से दहाड़ा───"तुम समझते हो कि मैं यूं ही भोंक रहा हूं? तुम्हें बता दूं कि जिस व्यक्ति की लाश मिली थी उस व्यक्ति को तुम्हारे इसी कॉल सेंटर से फ़ोन किया जाता था और फ़ोन करने वाली एक लड़की थी जिसका नाम माया है। अब तुम लोग सच सच बताओ कि तुममें से माया कौन है?"
इंस्पेक्टर की बातें सुन कर सबको मानों सांप सूंघ गया। डरे सहमें से सब एक दूसरे का चेहरा देखने लगे। फिर एकदम से सबकी निगाहें आनंद पर जा कर ठहर गईं।
"ये सब तुम्हारी तरफ देख रहे हैं मतलब तुम इस बारे में कुछ तो जानते हो।" श्रीकांत ने आनंद से कहा───"अगर ऐसा है तो एक पल की भी देरी किए बिना रेडियो की तरह बताना शुरू कर दो।"
"बात वो नहीं है सर जो आप समझ रहे हैं।" आनंद ने कहा───"असल में माया नाम की जिस लड़की की आप बात कर रहे हैं उसने दो साल पहले इसी खिड़की से कूद कर सुसाइड कर लिया था।"
"क्या??" इंस्पेक्टर बुरी तरह चौंका───"तुम्हारा मतलब है कि माया नाम की लड़की इस दुनिया में है ही नहीं?"
"यही सच है सर।" आनंद ने कहा───"ये कॉल सेंटर मेरे पापा का था। उस समय मैं स्टडी के लिए बाहर रहता था। उनके टाईम पर ही दो साल पहले माया ने सुसाइड किया था। पुलिस केस भी हुआ था लेकिन क्योंकि इसमें मेरे पापा का कोई फाल्ट नहीं था इस लिए केस रफ़ा दफा हो गया था। फिर तीन महीने बाद पापा का कार एक्सीडेंट हो गया। इलाज़ के दौरान ही उनकी मौत हो गई। उनके गुज़र जाने पर ये कॉल सेंटर बंद हो गया था। अभी आठ महीने पहले ही मैंने इसे खोला है। आस पास के लोगों से सुनता आया हूं कि आज भी माया की आत्मा यहां भटकती है। जब उस आदमी ने भी खिड़की से कूद कर जान दे दी तो मैं ये सोच के घबरा गया था कि कहीं ये सब सच में माया की आत्मा ने ही तो नहीं किया है? मैं नहीं चाहता था कि ये घटना आत्मा से जुड़ जाए और मेरा कॉल सेंटर बंद हो जाए। इसी लिए आपसे नहीं बताया था।"
"आत्मा वात्मा सब बकवास है।" इंस्पेक्टर ने कहा───"कॉल डिटेल्स के अनुसार उस रात सवा ग्यारह बजे तुम्हारे कॉल सेंटर से उस माया ने अभिनव को फोन किया था। तुम सबके अनुसार उस रात ग्यारह बजे यहां लॉक लग गया था। अब सवाल ये है कि जब तुम लोग यहां थे ही नहीं तो यहां के फोन से अभिनव को कॉल किसने और कैसे किया?"
"अगर ये सच है सर।" आनंद ने कहा───"तो फिर माया की आत्मा ने ही उस रात उसको कॉल किया होगा। वो एक आत्मा है तो उसके लिए किसी को यहां से कॉल करना भला कैसे मुश्किल होता?"
"आत्मा जैसी कोई चीज़ नहीं होती प्यारे।" श्रीकांत ने कहा───"मुझे पूरा यकीन है कि तुम में से ही कोई है जिसने माया बन कर अभिनव को कॉल किया था। दुश्मनी के चलते उसकी हत्या करने के लिए उसे यहां बुलाया और फिर धक्का दे कर खिड़की से नीचे गिरा दिया। अभी भी वक्त है, जिसने भी ये किया है वो सामने आ जाए वरना अच्छा नहीं होगा किसी के लिए।"
"ये तो ग़लत है सर।" विवेक नाम के लड़के ने कहा───"अगर आपको किसी पर शक है तो आप सिर्फ उसे ही पकड़िए ना।"
"वो तो मैं पकड़ूंगा ही।" कहने के साथ ही श्रीकांत आनंद से बोला───"और तुम ये बताओ कि कॉल सेंटर खोल रखा है लेकिन यहां एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं लगवा रखा, क्यों?"
"ज़रूरत ही नहीं महसूस की थी सर इस लिए नहीं लगवाया था।" आनंद ने कहा───"लेकिन अब लगता है कि काश! लगवाया होता। कम से कम आपको ये तो नज़र आ जाता कि उस रात हम में से कोई यहां आया था या नहीं।"
तभी रूम में हवलदार हांफता हुआ आया। उसे देखते ही श्रीकांत ने कहा───"तुम कहां ग़ायब थे?"
"माफ़ करना सर! वो मैं इस बिल्डिंग के सामने जो मोबाइल का शो रूम है वहां चला गया था।"
"वहां क्या करने गए थे?"
"शो रूम के बाहर मैंने सीसीटीवी कैमरा लगा देखा था सर।" उसने कहा───"मैं ये सोच के ख़ुश हो गया था कि कैमरे में ज़रूर उस रात की वीडियो फुटेज़ रिकार्ड हुई होगी। यही देखने वहां चला गया था लेकिन...।
"अटक क्यों गए?"
"वीडियो फुटेज़ के अनुसार ये लोग सच कह रहे हैं। मेरा मतलब है कि उस रात यहां से जाने के बाद इनमें से कोई भी वापस नहीं आया था। फुटेज़ में मैंने साफ देखा है कि अभिनव अकेला ही यहां आया और फिर खिड़की से नीचे गिरा।"
"ऐसा कैसे हो सकता है?" इंस्पेक्टर ने पूछा───"तुमने वीडियो फुटेज़ ठीक से तो देखी है ना?"
"एक बार नहीं बल्कि तीन तीन बार देखा है सर।"
"हैरत की बात है। अगर अभिनव अकेला ही यहां आया था तो वो रूम के अंदर कैसे दाख़िल हुआ होगा?"
"अब तो मानना ही पड़ेगा सर कि ये सब आत्मा ने ही किया है।" आनंद बोल पड़ा───"उसने यहां के फ़ोन से कॉल कर के अभिनव को यहां बुलाया। अपनी शक्ति से रूम का लॉक खोला। उसके बाद माया की आत्मा ने उसे खिड़की से कूद जाने को कहा होगा। वो डर के मारे माया की आत्मा का विरोध नहीं कर सका होगा?"
"मान लेते हैं प्यारे कि ये सब उसी ने किया होगा।" श्रीकांत ने कहा───"लेकिन सवाल ये है कि उसने अभिनव के साथ ही ऐसा क्यों किया? आख़िर अभिनव से क्या दुश्मनी थी उसकी? दूसरी बात, दो साल पहले ऐसा क्या हुआ था कि माया ने इस खिड़की से कूद कर सुसाइड कर लिया था?"
"इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता सर।" आनंद ने कहा───"पापा ने मुझे इस बारे में कुछ नहीं बताया था। हो सकता है कि पुलिस फ़ाइल में उसकी कोई जानकारी दर्ज़ हो।"
"अगर माया के सुसाइड का मामला सच है तो ज़रूर दर्ज़ होगी।" श्रीकांत ने कहा───"फिलहाल चलते हैं प्यारे। इस संबंध में अगर कुछ पता चला तो तुम्हें दुबारा कष्ट देने आएंगे।"
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एक हफ़्ते बाद।
इंस्पेक्टर श्रीकांत ने एक मकान की डोर बेल बजाई। क़रीब तीस बत्तीस की उमर वाली औरत ने दरवाज़ा खोला। जैसे ही उसकी नज़र श्रीकांत पर पड़ी तो वो बुरी तरह चौंकी। चेहरे का रंग भी उड़ गया।
"इ..इंस्पेक्टर साहब आप? यहां?" फिर उसने हकलाते हुए श्रीकांत से पूछा।
"क्यों? होश उड़ गए ना मुझे यहां देख कर?" श्रीकांत ने जानदार मुस्कान के साथ उससे कहा───"होता है, अक्सर ऐसा ही होता है मेरे साथ। मैं जब अचानक ही किसी जिन्न की तरह किसी के सामने प्रकट हो जाता हूं तो सामने वाले के ऐसे ही होश उड़ जाते हैं। ख़ैर, क्या मैं अंदर आ सकता हूं?"
सामने खड़ी औरत उसके इस अंदाज़ पर बौखला सी गई किंतु फिर जल्दी ही खुद को सम्हाल कर उसे अंदर आने को कहा।
"कौन आया है मीना?" अंदर कमरे से निकलते हुए एक व्यक्ति ने पूछा।
अभी वो आगे और भी कुछ कहने वाला था कि तभी उसकी नज़र इंस्पेक्टर पर पड़ गई। उसे देखते ही वो अपनी जगह पर मानों जाम सा हो गया।
"कैसे हो आनंद प्यारे?" श्रीकांत ने जैसे मज़ा लेते हुए कहा───"हमें यहां देख होश क्यों गुम हो गए हैं तुम्हारे?"
"स...सर आप यहां क..कैसे?" वो बुरी तरह हकलाया।
"कैसे क्या डियर?" श्रीकांत ने कहा───"हमने तो उस दिन ही तुमसे कहा था कि अगर कुछ पता चला तो तुम्हें दुबारा कष्ट देने आएंगे, सो आ गए।"
"क...क्या मतलब है आपका?" आनंद के माथे पर पसीना उभर आया।
"क्या अब भी नहीं समझे?" श्रीकांत सोफे पर बैठ गया───"अगर ऐसा है तो अव्वल दर्ज़े के लंपट हो प्यारे।" कहने के साथ ही वो औरत की तरफ घूमा───"आप ही इन्हें समझाइए कि हम यहां पर क्यों और कैसे पधार गए हैं?"
औरत, जिसका नाम मीना था उसने असहाय भाव से आनंद की तरफ देखते हुए कोई इशारा किया। इशारा समझते ही आनंद का चेहरा उतर गया।
"तो आपको पता चल गया?" फिर वो सोफे पर ढेर सा हो कर बोला───"लेकिन कैसे? हमसे तो कहीं कोई ग़लती ही हुई नहीं थी।"
"जो ख़ुद को ज़रूरत से ज़्यादा स्मार्ट समझते हैं उन्हें अक्सर ये ख़ुशफहमी रहती है कि उनसे कभी कोई ग़लती हो ही नहीं सकती।" श्रीकांत ने कहा───"जबकि उनकी सबसे बड़ी ग़लती इस ख़ुशफहमी में रहना ही होती है। ख़ैर, इतना तो मैं भी मानता हूं कि माया के किरदार का सहारा ले कर बड़ा अच्छा गेम खेला आप दोनों ने लेकिन ये खेल खेलते हुए उस सच को भूल गए जो जग ज़ाहिर है। यानि सच को कभी कोई छुपा नहीं सकता, जुर्म को कोई पचा नहीं सकता।"
"पर हमसे आख़िर क्या ग़लती हुई?" आनंद बोल पड़ा───"और आप सच तक कैसे पहुंच गए?"
"सच कहूं तो जिस तरह से तुमने अभिनव की हत्या को माया की आत्मा का किया धरा बता कर सुसाइड साबित करवा दिया था।" श्रीकांत ने कहा───"उससे उस समय मेरा दिमाग़ भी चकरा गया था। तुमने माया की आत्मा का ज़िक्र तब किया जब तुम समझ गए कि मुझे अभिनव और माया के फ़ोन कॉल्स का पता चल गया है। उस समय उसकी आत्मा का ज़िक्र करके तुम अपने जुर्म को छुपा भी देना चाहते थे और मुझे यकीन भी दिला देना चाहते थे कि ऐसा माया की आत्मा ने ही किया है। फिर मैंने माया की केस फ़ाइल चेक की। मैं ये देख कर चकित रह गया कि वास्तव में दो साल पहले माया नाम की लड़की ने तुम्हारे कॉल सेंटर की खिड़की से कूद कर आत्महत्या की थी। ज़ाहिर है ये सच जानने के बाद मुझे यकीन सा हो गया कि शायद माया ने ही आत्मा बन कर अभिनव की इस तरह से जान ली है। अजीब स्थिति हो गई थी। ख़ैर प्रमाण भले ही ऐसे मिले थे लेकिन मन नहीं मान रहा था कि ऐसा किसी आत्मा ने किया होगा।"
"फिर?"
"फिर क्या?" श्रीकांत ने कहा───"मैं भी इतना जल्दी आत्मा की थ्योरी को मानने वाला नहीं था, सो लग गया तहक़ीकात करने। बार बार तुम्हारा ख़याल आ रहा था तो मैंने तुम्हारा ही पीछा करना शुरू किया। मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि असल में खेल कुछ ऐसा हो सकता है। तुम्हारा पीछा किया तो चौथे दिन मुझे ये देख कर झटका लगा कि तुम्हारा संबंध इन मोहतरमा से है। मैं सोच सोच के परेशान हो गया कि अभिनव की शादी शुदा बहन का तुमसे क्या संबंध हो सकता है?"
"ओह! तो मीना को मेरे साथ देख लेने से आपके मन में शक पैदा हुआ?" आनंद को जैसे अब समझ आया।
"बिल्कुल।" श्रीकांत मुस्कुराया───"मेरी आंखों ने तुम्हारे साथ उसे देखा जिसकी मैं कल्पना ही नहीं कर सकता था। ख़ैर, जब मीना जी को तुम्हारे साथ देखा तो सोचने लगा कि आख़िर इनका संबंध तुमसे क्यों और कैसे हो सकता है? अपनी तरफ से पता करना शुरू किया तो जल्दी ही सच का पता चला। मीना जी असल में अपने पति से तलाक़ लेने वालीं थी और कहने की ज़रूरत नहीं कि पति से तलाक़ लेने के बाद वो तुम्हारे साथ अपनी नई लाइफ़ शुरू करने वालीं थी। ख़ैर ऐसा तो दुनिया में होता ही रहता है लेकिन मैंने सोचा कि इनकी लाइफ़ में तुम्हारा अस्तित्व कब क्यों और कैसे आया? मुझे यकीन हो चुका था कि मामला जितना सीधा नज़र आ रहा है उतना है नहीं।"
"इनका तो पता चल गया था, फिर मैंने सोचा कि तुम्हारी भी कुंडली चेक की जाए।" कुछ पल रुक कर इंस्पेक्टर ने फिर से कहना शुरू किया───"और जब चेक किया तो पता चला कि तुम्हारी स्थिति भी कुछ ख़ास नहीं है। अपने पिता की मौत के बाद तुमने किसी तरह अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर एक मामूली सी कंपनी में जॉब करने लगे। वहां से पैसे कमा कर आठ महीने पहले पिता का कॉल सेंटर फिर से खोल दिया मगर तुम सिर्फ इतने से ही ख़ुश नहीं थे। तुम्हें बहुत कुछ चाहिए था, पर बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ करना भी पड़ता है। इत्तेफ़ाक़ से पांच महीने पहले तुम्हारी मुलाक़ात मीना जी से हुई। इसे ऊपर वाले का चमत्कार कहें या कोई संयोग कि इनको भी तुम पहली ही नज़र में भा गए। हालाकि ये शादीशुदा थीं लेकिन पति से नाख़ुश थीं। इन्हें भी बहुत कुछ चाहिए था। ख़ैर जब तुम दोनों मिले तो जल्दी ही दोस्ती हो गई और फिर जल्दी ही वो दोस्ती लैला मजनूं के माफिक प्यार में बदल गई। तुम दोनों प्रेमी अपनी लाइफ़ के बारे में सोचने लगे। मीना जी तुम्हें अपने और अपने परिवार के बारे में बता चुकीं थी। जब तुम्हें पता चला कि इनका भाई अभी अनमैरिड है और बेकार ही फिरता है तो तुम्हारे दिमाग़ में एक प्लान आया। तुमने मीना जी को भी प्लान के बारे में बताया। मीना जी तैयार तो हुईं लेकिन डर भी रहीं थी कि कहीं हत्या जैसे जुर्म में पकड़ी न जाएं। ऐसे में सपने तो चूर चूर होते ही साथ में जेल भी जाना पड़ता। मीना जी का डर देख तुम्हारे हौंसले भी जवाब दे गए।"
"आप तो ऐसे बताए चले जा रहे हैं जैसे ये सब आपने अपनी आंखों से देखा है।" आनंद बोल पड़ा।
"टैलेंट प्यारे टैलेंट।" श्रीकांत मुस्कुराया───"तिल का ताड़ और राई का पहाड़ बना देने में हमें महारत हासिल है। ख़ैर आगे सुनो, तुम दोनों डर तो गए थे लेकिन अभिनव की सारी संपत्ति हड़प लेने का लालच कुछ ऐसा था कि उसको मारने का फिर से कोई उपाय सोचने लगे। तब तुम्हें अचानक से उस घटना की याद आई जो दो साल पहले तुम्हारे पिता के कॉल सेंटर में हुई थी। माया नाम की लड़की जिसने कॉल सेंटर की खिड़की से कूद कर आत्महत्या कर ली थी। उसकी केस फ़ाइल के अनुसार वो किसी लड़के से प्रेम करती थी। लड़के ने पहले तो उसे खूब लूटा और फिर जब मन भर गया तो छोड़ दिया। माया ये सब बर्दास्त न कर सकी और घोर पीड़ा के चलते आत्महत्या कर ली। तुमने उसी लड़की को आत्मा बनाने का सोचा और उसी के द्वारा अभिनव की जान लेने का प्लान बनाया। ये खेल शुरू करने से पहले तुमने उस लड़की की आत्मा को आस पास देखे जाने की अफ़वाह फैलाई। अपने स्टाफ वालों के कानों में भी इस बात की भनक डाली।"
"आप भूल रहे हैं कि अभिनव माया नाम की लड़की से फोन पर बात किया करता था।" आनंद ने कहा───"क्या आप बता सकते हैं कि ऐसा कैसे संभव था?"
"बिल्कुल बता सकते हैं प्यारे।" इंस्पेक्टर ने कहा───"ये सारा ड्रामा तुमने तीन महीने पहले क्रिएट किया था और उसी समय तुमने माया के किरदार के लिए एक ऐसी लड़की को चुना जो कोई और नहीं बल्कि मीना जी ही थीं।"
"ये आप कैसे कह सकते हैं कि वो मैं ही थी?"
"बहुत ही बचकाना सवाल है मीना जी।" श्रीकांत ने कहा───"जब मुझे आनंद के साथ आपके संबंधों का पता चला तो ज़ाहिर है उसी वक्त मुझे आप पर भी शक हो गया था। अपने शक की पुष्टि के लिए मैंने गुप्त रूप से दुबारा जांच शुरू की।"
"ओह!"
"माया की आत्मा वाली अफ़वाह आनंद ने कॉल सेंटर के आस पास के लोगों तक पहुंचाई थी।" श्रीकांत ने कहा───"जबकि आत्मा जैसी बातें ऐसी होती हैं जो एक ख़ौफ के रूप में दूर दूर तक के लोगों की जानकारी में भी होती हैं। मैंने जब जांच पड़ताल की तो कॉल सेंटर के आस पास के लोगों के अलावा बाकी कहीं भी किसी को इस बारे में पता नहीं था। ज़ाहिर है ऐसे में मेरे मन में शक पैदा हो ही जाना था। उसके बाद जब मुझे तुम दोनों के संबंध का पता चला तो मैं ये भी सोचने लगा कि मीना जी की भी इस खेल में भूमिका ज़रूर है। अपने स्टाफ में से किसी लड़की को तुम माया बना नहीं सकते थे क्योंकि इससे तुम्हें अपने भेद खुल जाने का डर रहता। मैं समझ गया कि माया के किरदार के लिए तुम्हारी नज़र में मीना जी से परफ़ेक्ट कोई हो ही नहीं सकता। मैंने गुप्त रूप से फिंगर प्रिंट्स विभाग के दो आदमियों को काम पर लगाया। उनका काम था बाथरूम, सीढ़ियां और छत के हर हिस्से से फिंगर प्रिंट्स लेना। इस बीच यहां आ कर मैं मीना जी के फिंगर प्रिंट्स भी ले गया। कुछ ही समय में मुझे फिंगर प्रिंट्स वाले उन आदमियों का कॉल आया। उन्होंने बताया कि मैंने उनको मीना जी के जो फिंगर प्रिंट्स दिए थे वो उनके द्वारा लिए गए फिंगर प्रिंट्स से मैच कर गए हैं। बस, साबित हो चुका था कि मीना जी इस खेल में पूरी तरह शामिल थीं। यानि ये भी साबित हो चुका था कि मीना जी ही असल में माया बनी हुईं थी और अपने ही भाई को रात में कॉल सेंटर के फोन से कॉल करतीं थी। वैसे ज़रा ये तो बताइए मीना जी कि माया बन कर अपने ही भाई को अपने प्रेम जाल में फंसाने का कैसे सोच लिया था आपने? क्या आपको ये ख़याल नहीं आया कि वो आपका अपना ही भाई है?"
"आया था।" मीना ने कहा───"लेकिन मैं सचमुच में उसकी प्रेमिका तो नहीं थी ना? मैं तो बस अपने एक ख़ास मक़सद के लिए ही उसे माया बन कर फंसा रही थी।"
"हां ये तो सही कहा आपने।" श्रीकांत ने कहा───"ख़ैर ये बताइए कि कॉल पर आप अपने भाई से ऐसी क्या बातें करती थीं जिसके चलते वो माया के प्रेम में इस हद तक बावला हो गया था?"
"अपने भाई को मैं अच्छी तरह जानती थी।" मीना ने कहा───"वो बहुत ही भावुक किस्म का था। कॉलेज लाइफ़ में वो एक लड़की के प्रेम में पड़ कर पागल सा हो गया था। संयोग देखिए कि उस लड़की का नाम भी माया था। उस समय मेरी शादी नहीं हुई थी तो मैंने ही सम्हाला था उसे। माया नाम की लड़की से हमेशा ही वो अट्रैक्ट होता था, ये अलग बात है कि वो उस नाम से नफ़रत भी उतनी ही करता था। जब मैं माया बनी और उसे कॉल किया तो मैंने उससे कॉल सेंटर के तौर तरीके में ही अपना नाम माया बता कर बात शुरू की। मैं जानती थी कि माया नाम सुनते ही उसको झटका लगेगा और वो कुछ देर के लिए सुन्न पड़ जाएगा। वही हुआ, उसके बाद जब मैंने मधुर स्वर में पुकारा तो उसे होश आया। होश में आते ही उसने नफ़रत से माया को यानि मुझे उल्टा सीधा बोलना शुरू कर दिया। मैं शांति से सुनती रही। जानती थी कि जब तक उसके अंदर का गुबार निकल नहीं जाएगा तब तक वो मेरी कोई बात नहीं सुनेगा। ऐसा ही हुआ, कुछ देर में जब वो शांत हुआ तो मैंने बड़े प्यार से कहा कि लगता है आपने मुझे कोई और ही समझ लिया है सर। मैं तो एक मामूली सी लड़की हूं जो कॉल सेंटर से बोल रही हूं। ये सुनते ही उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और मुझसे माफ़ियां मांगने लगा। उस पहले दिन मैंने उससे बड़ी ही सहानुभूति के साथ बातें की। उसे भी अच्छा लगा। मेरे थोड़ा सा ही ज़ोर देने पर वो अपनी पूर्व प्रेमिका के बारे में बताने लगा। कभी दुखी हो जाता तो कभी गुस्से से भर उठता। मैंने उसे समझाया कि माया नाम की हर लड़की वैसी नहीं होती जैसी वो समझते हैं। फिर प्लान के अनुसार मैंने भी उसको बताया कि मैं भी एक लड़के से बहुत प्यार करती थी। उससे शादी करना चाहती थी लेकिन वो मेरा सब कुछ लूट कर चला गया। अभिनव को इस बात से मेरे लिए बहुत बुरा लगा। पहले मैं उसको दिलासा दे रही थी अब वो मुझे देने लगा था। ख़ैर उस दिन इतनी ही बातें हुईं। आख़िर में उसने कहा कि मुझसे बात कर के उसे बहुत अच्छा लगा है। वो हर रोज़ मुझसे बात करने के लिए मेरा नंबर मांगने लगा तो मैंने कहा कि मैं ही उसे फ़ोन किया करूंगी।"
"तो इस तरह से आपने अपने ही भाई को फंसाना शुरू किया?" श्रीकांत ने कहा───"ख़ैर ये बताइए कि माया के रूप में आप उसकी हर बात से इंकार क्यों करतीं थी और उसे मेंटली टॉर्चर क्यों करतीं थी?
"माया के रूप में उसकी बात मान लेने का मतलब था अपना ही खेल बिगाड़ लेना।" मीना ने कहा───"मैंने उसे माया का दीवाना बनाया। उसको तड़पाया ताकि वो ऐसी हालत में पहुंच जाए कि माया बन कर मैं उससे जो भी करने को कहूं वो बिना सोचे समझे करने को उतारू हो जाए। आख़िर में यही तो हुआ। उस रात जब मैंने उसे कॉल सेंटर से फ़ोन किया तो वो बिना सोचे समझे मेरी बताई हुई जगह पर यानि कॉल सेंटर पहुंच गया था।"
"क्या हुआ था उस रात?"
"प्लान के अनुसार।" आनंद ने कहा───"जब सारा स्टाफ बाहर आ गया तब मैंने सबकी आंखों के सामने रूम को लॉक किया। हमेशा की तरह वो सब आपस में हंसी खुशी बातें करते हुए चल पड़े थे। मैंने सबकी नज़र बचा कर रूम की चाबी दरवाज़े के पास ही मैट के नीचे छुपा दी। उसके बाद मैं भी सबके साथ नीचे आ गया था।"
"इसके आगे का काम मेरा था।" मीना ने कहा───"मैं पहले ही बगल वाली बिल्डिंग के छत के रास्ते वहां पहुंच गई थी। जैसे ही ये लोग गए मैंने हमेशा की तरह मैट के नीचे से चाबी निकाली और रूम में चली गई। उसके बाद मैंने उसी फ़ोन से अभिनव को कॉल किया जिससे मैं अक्सर करती थी। कई दिनों बाद मैंने उसको कॉल किया था इस लिए वो बड़ा खुश हो गया था। पिछली बार मैं जान बूझ कर उसे नहीं मिली थी और वो आईएसबीटी में घंटों मुझे खोजता रहा था। कॉल रिसीव करते ही वो पूछता चला गया कि मैं कहां चली गई थी, मुझे उसने बहुत खोजा वगैरह वगैरह। मैंने उससे कहा कि मैं एक मुसीबत में फंस गई थी इस लिए उसको मिल नहीं पाई थी। मेरी बात सुन कर वो चिंतित हो उठा। बोला मैं अभी तुमसे मिलना चाहता हूं। इधर मैं भी उसे बुलाना ही चाहती थी। अतः उसे कॉल सेंटर का पता बताया और कहा कि वो अकेला ही आए क्योंकि मुझे ख़तरा है और किसी पर भी भरोसा नहीं है। उसने मुझे फ़िक्र न करने को कहा और बोला जल्दी ही पहुंचूंगा। बस, उसके बाद मैं उसके आने का इंतज़ार करने लगी।"
"बगल वाली बिल्डिंग की छत के रास्ते क्यों गईं थी आप?" श्रीकांत ने पूछा───"क्या सामने शो रूम के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की वजह से ऐसा किया था?
"हां, हमें पता था कि सामने शो रूम के बाहर कैमरा लगा हुआ है।" मीना ने कहा───"अगर मैं उस रास्ते से बिल्डिंग में जाती तो कैमरे में क़ैद हो जाती।"
"उसके बाद क्या हुआ?।" श्रीकांत ने पूछा───"इतना तो पक्का था कि आपको देखते ही अभिनव के होश उड़ जाने थे क्योंकि आप उसे माया नहीं बल्कि उसकी सगी बहन जो नज़र आतीं।"
"बिल्कुल।" मीना ने कहा───"और सच कहूं तो यही सोच कर मुझे टेंशन भी होने लगी थी लेकिन अब पीछे भी नहीं हट सकती थी। ख़ैर अपना चेहरा मैंने दुपट्टे से ढंक लिया था। रूम की लाइट पहले से ही बंद थी। वो दरवाज़ा खोल कर कमरे में आया। खिड़की के पास खड़ी मेरी धड़कनें ज़ोरों से चलने लगीं थी। उसने आते ही इधर उधर देखा और माया कह कर मुझे पुकारा। बहुत ही व्याकुल लग रहा था वो। तीन महीने में पहली बार उसको अपनी माया को देखने का मौका मिला था। ज़ाहिर है नॉर्मल हालत तो हो ही नहीं सकती थी उसकी। उसके पुकारने पर जब मैं न बोली तो वो और भी ज़्यादा व्याकुल, परेशान और चिंतित हो उठा और माया माया कह कर पुकारने लगा। तब मैंने धीरे से आवाज़ बदल कर कहा कि मैं यहीं हूं लेकिन उससे मिलने की हालत में नहीं हूं। जिनसे मुझे ख़तरा था वो मेरी अस्मत लूट कर यहां से चले गए हैं। मेरी ये बात सुन कर वो बुरी तरह तड़प उठा। फिर सहसा वो लाइट जलाने को कहने लगा तो मैंने फ़ौरन मना कर दिया। मैंने कहा अब ना तो मैं उसके देखने लायक हूं और ना ही उसके क़ाबिल हूं। उसको और भी तोड़ने के लिए ये भी कहा कि इस बार मैं हमेशा के लिए उसकी बन जाना चाहती थी पर मेरी बुरी किस्मत ने ऐसा होने नहीं दिया। मेरी ये बातें सुन कर वो दुखी हो के बोला कि मेरे साथ जो हुआ है उसका उसे बहुत दुख है लेकिन वो फिर भी मुझे अपनी बनाएगा। मुझसे शादी करेगा। मैं जानती थी कि ऐसा वो ज़रूर करेगा इस लिए मैंने अगला दांव फेंका।"
"कैसा दांव?"
"उसे आजमाना शुरू किया मैंने।" मीना ने कहा───"उससे कहा कि तुम ऐसा इस लिए कह रहे हो क्योंकि इस वक्त मुझे अंधेरे में ठीक से देख नहीं पा रहे हो। अगर उजाले में मेरी बुरी हालत देखोगे तो तुम्हारा प्यार छू मंतर हो जाएगा। तब तुम मुझसे घृणा करने लगोगे। मेरी बात सुनते ही वो तड़प कर बोला कि ऐसा वो कभी सोच ही नहीं सकता। मैंने कहा कि मुझे अब भरोसा नहीं है। मुझे तो मेरी किस्मत पर पहले भी भरोसा नहीं था और अब जब मैं इतनी बुरी हालत में हूं तो कैसे भरोसा कर लूं कि मेरी इस हालत को देख कर भी तुम मुझे अपना बना लोगे? मेरी ये बात सुन कर उसने तड़प कर पूछा कि कैसे भरोसा करोगी? तब मैंने कहा कि अगर सच में तुम मुझसे प्यार करते हो तो बताओ कि इस वक्त मेरे कहने पर तुम क्या कर सकते हो? उस पर मानों जुनून सवार हो चुका था इस लिए बिना सोचे समझे बोला कि मेरे कहने पर वो कुछ भी कर सकता है। यही तो चाहती थी मैं। कुछ पलों तक मैंने सोचने का नाटक किया और फिर उससे कहा कि मेरे कहने पर क्या तुम खिड़की से कूद सकते हो? अगर ऐसा करोगे तो मान लूंगी कि तुम सच में मुझे दिल से चाहते हो। उस वक्त मुझे लगा था कि कहीं मैंने उसको ऐसा बोल कर ग़लती तो नहीं कर दी है? हो सकता है कि एकदम से उसका विवेक जाग जाए और वो सोचने लगे कि मैं उसे ऐसा करने को कैसे कह सकती हूं? मगर मेरी उम्मीद के विपरीत अगले ही पल उसने कहा ठीक है। अगर मुझे उसके ऐसा करने पर ही भरोसा होगा तो वो खिड़की से ज़रूर कूदेगा।"
"यकीन मानिए इंस्पेक्टर।" मीना ने एक लंबी सांस ली───"सच में वो ऐसा ही करने चल पड़ा था। मैं सांसें रोके उसकी परछाईं को ही देख रही थी। वो खिड़की की तरफ बढ़ने लगा तो मैं वहां से दूर हट गई। बाहर चांद की धींमी रोशनी थी। वो खिड़की खोल कर उसमें चढ़ गया और अपने दोनों पैरों के बल बैठ गया। फिर अचानक से बोला क्या अभी भी मेरे प्यार पर भरोसा नहीं है? उसकी इस बात से मुझे एकाएक झटका सा लगा। उड़े हुए होश एकदम से ठिकाने पर आए। मैंने सोचा कि ऐसा वो इसी लिए कह रहा है क्योंकि कहीं न कहीं वो भी ये देखना चाहता है कि क्या मैं इसके बाद भी उसे कूद जाने को कहूंगी? यानि अगर मैं कहूंगी तो उस सूरत में शायद उसकी चेतना जागृत हो जाएगी। अभी तक तो उसने अपने प्रेम के हाथों मजबूर हो कर ही ये सब किया था लेकिन इसके आगे हो सकता है कि उसका विवेक जाग जाए। मुझे लगा अगर उसने ऐसा सोच लिया तो खेल बिगड़ जाएगा। अब मैं ये भी नहीं कह सकती थी कि हां कूद जाओ, लेकिन ये भी संभव था कि वो बिना मेरे कहे कूदे भी ना। अजीब दुविधा हो गई थी। अचानक ही मुझे ख़याल आया कि इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा मुझे। उधर जवाब की प्रतीक्षा में वो मुझे ही देखे जा रहा था। अंधेरे में उसको मैं परछाईं जैसे ही दिख रही थी। मैं दबे पांव उसके पास पहुंची। इससे पहले कि उसके मन में किसी भी तरह की बात आती मैंने झट से अपने दोनों हांथ बढ़ाए और उसे धक्का दे दिया। यकीनन उसे अपनी माया से ऐसी उम्मीद नहीं रही होगी लेकिन मैं माया थोड़े ना थी बल्कि मैं तो माया के रूप में उसकी वो बहन थी जो उसकी हत्या करने ही आई थी।"
"वाह! बहुत खूब।" इंस्पेक्टर बोल पड़ा───"आपके जैसी बहन से ही ऐसे कर्मकाण्ड की उम्मीद की जा सकती है। वैसे, उस वक्त क्या एक पल के लिए भी आपको ये ख़याल नहीं आया था कि जिसे आप धक्का देने वाली हैं वो आपका एक ऐसा भाई है जो किसी अंजान माया से इस हद तक प्रेम करता है कि उसके कहने पर खिड़की से कूद जाने को भी तैयार है? ख़ैर, अपने ही भाई की हत्या कर के उसकी संपत्ति को पाना चाहा आपने लेकिन क्या ये सच में मिल जाएगी आपको? हर्गिज़ नहीं, बल्कि मिलेगी तो सिर्फ सज़ा...कानूनन फांसी की या फिर उम्र क़ैद।"
इंस्पेक्टर की बात सुन कर जहां आनंद शोक सागर में डूब गया वहीं मीना फूट फूट कर रो पड़ी। श्रीकांत ने फ़ोन द्वारा लेडी पुलिस को बुलाया। थोड़ी ही देर में मीना और आनंद को गिरफ़्तार कर वो ले चले। पीछे ड्राइंग रूम में शायद कभी न ख़त्म होने वाला सन्नाटा छा गया।
इंस्पेक्टर श्रीकांत ने तीसरी मंज़िल की खुली हुई खिड़की को देखने के बाद नीचे पड़ी लाश पर दृष्टि डाली। आस पास काफी भीड़ जमा थी। पिछले एक घण्टे से वो वारदात की जांच कर रहा था। सुबह कॉल सेंटर के मालिक द्वारा उसे वारदात की सूचना मिली थी।
"ओके, मान लिया कि तुम लोगों ने इस आदमी को पहली बार ही देखा है।" फिर वो सामने खड़े लोगों से बोला───"मगर ये कन्फर्म हो चुका है कि ये आदमी उस खिड़की से ही नीचे गिरा है जहां पर तुम्हारा कॉल सेंटर है। सवाल है कि जब तुम लोगों ने इसे पहली बार ही देखा है तो ये कॉल सेंटर में पहुंचा कैसे और वहां क्या करने गया था?"
कॉल सेंटर वालों ने एक बार फिर से वही बताया जो वो पहले भी बता चुके थे। यानि उनमें से किसी को भी पता नहीं है कि मरने वाला कौन है और उनके कॉल सेंटर में कैसे पहुंचा था?
इंस्पेक्टर कुछ पलों तक उन्हें देखता रहा, फिर पुनः तीसरी मंज़िल की तरफ बढ़ चला। दो पुलिस वाले लाश के पास ही खड़े रहे जबकि कॉल सेंटर वाले उसके पीछे चल पड़े थे।
इंस्पेक्टर पहले भी कॉल सेंटर का मुआयना कर चुका था लेकिन दुबारा ये सोच कर आ गया था कि शायद ग़लती से कुछ छूट गया हो उससे। ख़ैर मुआयना करते हुए वो खिड़की के पास पहुंचा।
खिड़की के पल्लों पर उंगलियों के निशान वो पहले भी देख चुका था। खिड़की के अंदर की तरफ बिल्कुल पास में ही जूतों के निशान भी थे। ऐसा लगता था जैसे खिड़की से गिरने अथवा कूदने से पहले मरने वाला यहीं पर खड़ा था। इसके अलावा कुछ भी स्पष्ट रूप से नज़र नहीं आ रहा था। संभव था फिंगर प्रिंट्स वालों को कुछ मिल जाए। रूम में एक तरफ कुर्सियां और डेस्क पर कंप्यूटर्स रखे हुए थे।
"तुम लोगों के अनुसार खिड़की हमेशा की तरह अंदर से बंद थी?" इंस्पेक्टर ने पूछा───"और यहां की हर चीज़ अपनी जगह पर ठीक वैसी ही है जैसी तुम लोग कल रात छोड़ कर गए थे? यानि मरने वाले ने यहां की किसी भी वस्तु को हाथ तक नहीं लगाया?"
"उसने हाथ लगाया था या नहीं ये तो हम नहीं जानते सर।" वहां खड़े लोगों में से एक ने कहा───"लेकिन इतना देख चुके हैं कि यहां हर चीज़ अपनी जगह पर ही है।"
इंस्पेक्टर ये पहले भी देख चुका था। सच में ऐसा कुछ भी नहीं था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अगर सब ठीक ही है तो मरने वाला यहां आया किस लिए था? क्या खिड़की से कूद कर सिर्फ अपनी जान देने के लिए?
तभी फिंगर प्रिंट्स विभाग वाले आ गए। इंस्पेक्टर ने उन्हें कुछ ज़रूरी निर्देश दिए। फिर वो कॉल सेंटर वालों से मुखातिब हुआ।
"मृतक को देख कर साफ पता चलता है कि उसको मरे हुए क़रीब पांच या छह घंटे हो चुके हैं।" फिर उसने कहा───"इसका मतलब उसकी मौत रात के एक या डेढ़ बजे के क़रीब हुई। तुम लोगों के बयानानुसार कॉल सेंटर का ये रूम रात ग्यारह बजे बंद हो गया था तो फिर वो आदमी रूम में पहुंचा कैसे?"
"हम सच कह रहे हैं सर।" एक दूसरे व्यक्ति ने कहा───"जब सर ने लॉक लगाया था तब अंदर कोई नहीं था। उसके बाद हम सब यहां से नीचे चले गए थे। वो आदमी कब आया और कैसे रूम में पहुंचा इस बारे में हमें कुछ भी पता नहीं है। सुबह जब हमने यहां लाश पड़ी देखी तो घबरा गए, फिर सर ने थाने फ़ोन किया।"
"रूम की चाबी किसके पास होती है?"
"आनंद सर के पास।" एक लड़की ने बगल से खड़े आनंद की तरफ इशारा किया।
"ये सच है सर।" आनंद ने कहा।
"यहां की कोई दूसरी चाबी?
"नो सर।" आनंद बोला───"चाबी एक ही है और वो मेरे पास ही होती है।"
"कमाल है।" इंस्पेक्टर ने कहा───"इकलौती चाबी सिर्फ तुम्हारे पास थी। कोई नकली चाबी बरामद नहीं हुई तो क्या यहां का लॉक उसने जादू से खोला था?"
कोई कुछ ना बोला, जबकि श्रीकांत ने कहा───"मुझे तो ये लग रहा है प्यारे कि तुम उसे अच्छी तरह जानते थे। रात उसे ले कर तुम यहां वापस आए। यहां तुम दोनों में झगड़ा हुआ। गुस्से में आ कर तुमने उसे खिड़की से धकेल दिया। फिर सुबह थाने फोन कर के खुद को इनोसेंट दिखा दिया।"
"ऐसा नहीं है सर।" आनंद ने कहा───"सच यही है कि हम में से कोई भी उसे नहीं जानता।"
"रूम का लॉक चाबी से ही खोला गया था।" इंस्पेक्टर दरवाज़े की तरफ देखते हुए बोला───"पहले भी चेक किया था और अब भी चेक कर चुका हूं। की-होल में ऐसा कोई निशान नहीं है जिससे ये कहा जा सके कि किसी ने उसे ज़बरदस्ती खोलने की कोशिश की है। ज़ाहिर है लॉक उसकी असल चाबी से ही खोला गया है और तुम खुद क़बूल कर चुके हो कि चाबी तुम्हारे पास ही होती है।"
"मेरा यकीन कीजिए सर।" आनंद ने कहा───"सबके साथ जाने के बाद मैं वापस यहां आया ही नहीं।"
इंस्पेक्टर ये सब पहले भी पूछ चुका था। मरने वाले से अगर सच में उनमें से किसी का संबंध होता और रात यहां कोई झगड़ा हुआ होता तो हाथा पाई भी हुई होती। हाथा पाई में किसी को तो चोट लगती ही जबकि ऐसा कुछ नहीं था। मरने वाले की बॉडी में चोट का कोई निशान नहीं था और ना ही कॉल सेंटर वालों के। हैरानी की बात ये भी थी कि कोई सुसाइड नोट भी नहीं मिला था।
इंस्पेक्टर वापस नीचे आ गया। लाश औंधे मुंह पड़ी हुई थी। सिर फट गया था जिसके चलते ढेर सारा ख़ून ज़मीन पर फैला हुआ था। जिस्म की कई हड्डियां टूट गईं थी। इंस्पेक्टर बखूबी समझता था कि तीसरी मंज़िल से गिरने पर किसी भी इंसान की यही दशा होती। ख़ैर, पंचनामा करने के बाद उसने लाश को पोस्ट मार्टम के लिए भेज दिया और ख़ुद मरने वाले की जांच पड़ताल में लग गया।
✮✮✮✮
तीन दिन बाद।
इंस्पेक्टर श्रीकांत थाने में बैठा मरने वाले की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट देख रहा था। इन तीन दिनों में उसने काफी कुछ पता लगाया था। कॉल सेंटर में काम करने वालों से मरने वाले का कोई संबंध नहीं था। आनंद पर उसे शक था लेकिन उसका भी उससे कोई संबंध नहीं था।
रिपोर्ट में मौत को सुसाइड ही बताया गया था क्योंकि उसके मरने की कोई संदिग्ध वजह नहीं मिली थी। बॉडी में कहीं भी हाथा पाई से संबंधित चोट के निशान नहीं थे, ना ही किसी दूसरे व्यक्ति के कोई फिंगर प्रिंट्स मिले थे। अगर किसी ने उसे धक्का दिया होता तो खिड़की पर उसका जिस्म टकराता जिससे उसके जिस्म के किसी न किसी हिस्से पर खरोंच जैसे निशान बन जाते जोकि नहीं थे।
मृतक का नाम अभिनव बेनिवाल था। घर से सम्पन्न था। दिल्ली के जनकपुरी में उसका घर था। परिवार में उसकी विधवा मां और एक बहन है। बहन उम्र में उससे बड़ी एवं शादीशुदा है जबकि वो खुद तीस की उमर का अविवाहित था। अरुण नाम का एक दोस्त था जिससे कभी कभार ही उसका मिलना होता था।
इंस्पेक्टर थोड़ी देर पहले ही अभिनव के घर से दूसरी बार पूछताछ कर के आया था। वो जानना चाहता था कि मामला सुसाइड का ही है या सोच समच कर किए गए मर्डर का? उसने दोनों मां बेटी से पूछताछ की थी। बहन से तो कुछ ख़ास पता नहीं चला था लेकिन मां से ज़रूर उसे कुछ बातें पता चलीं थी। इस वक्त उसके ज़हन में उसकी मां की बातें ही गूंज रहीं थी।
"बाप के गुज़र जाने के बाद वो पूरी तरह आज़ाद हो गया था।।" अभिनव की मां ममता ने दुखी भाव से कहा───"कोई काम नहीं करता था, बस इधर उधर घूमता रहता था। क़रीब तीन महीने पहले अचानक से उसमें एक अजीब सा बदलाव देखा था।"
"कैसा बदलाव?"
"एकदम से उसका घूमना फिरना बंद हो गया था।" ममता ने कहा───"पहले तो थोड़ा बहुत बाहर निकलता भी था लेकिन फिर अपने कमरे में ही बंद रहने लगा था।"
"आपने उससे इसकी वजह नहीं पूछी थी?"
"पूछा था।" ममता ने कहा───"पहले तो टालता रहा, फिर जब मैंने गुस्सा किया तो बताया कि वो माया नाम की एक लड़की से प्रेम करने लगा है।"
"ओह! तो लड़की का मामला था।" इंस्पेक्टर ने कहा───"लेकिन इसके लिए उसे कमरे में बंद रहने की क्या ज़रूरत थी?"
"बड़ी ही अजीब कहानी थी उसकी।" ममता ने कहा───"और उससे भी अजीब थी वो लड़की। मेरे बेटे पर उसने जाने ऐसा क्या जादू कर दिया था कि वो बावला सा हो गया था। अपने कमरे में बंद हो कर उसे फ़ोन लगाता रहता मगर उसका फ़ोन कभी न लगता। चार पांच दिन में वो लड़की खुद ही रात को उसे फ़ोन करती थी तभी वो उससे बात कर पाता था। उसने बताया था कि अपनी बीमार मां का इलाज़ करवाने के लिए वो कॉल सेंटर में नौकरी करती है। मेरा बेटा उसके लिए बहुत संजीदा हो गया था। उसका हर दुख दूर करना चाहता था। यहां तक कि उसकी मां का इलाज़ भी करवा देने की बात कहता था लेकिन वो कलमुंही ना तो कभी उससे मिलने को राज़ी होती थी और ना ही कोई मदद के लिए। मेरा बेटा उससे शादी करने को कहता तो साफ इंकार कर देती थी। मुझे समझ नहीं आता था कि जब उसे मेरे बेटे की भावनाओं से कोई मतलब ही नहीं था तो वो उसे फ़ोन ही क्यों करती थी?"
"तो क्या वो कभी मिली नहीं आपके बेटे से?"
"ना, कभी नहीं।" ममता ने कहा───"अभी एक हफ़्ता पहले उसने फ़ोन किया था। मेरा बेटा तो उसका फ़ोन आने से बड़ा खुश हुआ था लेकिन फ़ोन पर माया का रोना बिलखना सुनते ही उसकी खुशी पल में ही ग़ायब हो गई थी।"
"ऐसा क्यों?" इंस्पेक्टर चौंका───"वो रो क्यों रही थी?"
"मेरे बेटे के पूछने पर उसने बताया कि उसकी मां उसे अकेला छोड़ के इस दुनिया से चली गई है।" ममता ने कहा───"उसी दिन उसने बताया था कि उसकी मां को असल में कैंसर था। फिर कहने लगी कि अब वो भी अपनी मां के बिना जीना नहीं चाहती है। मेरा बेटा उसकी ये बात सुन कर तड़प उठा था। उससे मिन्नतें करने लगा था कि वो ऐसा न करे। उसे बताए कि वो कहां है? वो आएगा और उसका हर दुख दूर कर देगा।"
"तो क्या फिर माया ने बताया कि वो कहां है?"
"हां, उस रात पहली बार उसने बताया था कि वो उसे कहां मिलेगी।" ममता ने कहा───"मेरा बेटा उस रात बड़ा ही खुश था। सुबह नौ बजे भागता हुआ उसके पास गया था। मैं भी ये सोच के ख़ुश हो गई थी कि आख़िर इतने समय बाद वो मेरे बेटे को मिल ही जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उस दिन मेरा बेटा अकेला ही वापस आया और मुझसे लिपट कर खूब रोया था।"
"इसका क्या मतलब हुआ?" इंस्पेक्टर ने पूछा───"क्या उस दिन माया मिली नहीं थी उसे।"
"हां।" ममता ने कहा───"मेरा बेटा उसकी बताई हुई जगह पर जब पहुंचा तो वो वहां पर नहीं थी। अपनी जो पहचान उसने बताई थी उस पहचान की कोई लड़की नहीं थी वहां। उसका कोई दूसरा फोन नंबर भी नहीं था मेरे बेटे के पास इस लिए वहीं पर तलाश करता रहा था उसे। डेढ़ दो घंटे की खोज में भी जब वो कहीं न मिली तो मेरा बेटा लुटा पिटा सा वापस आ गया था।"
"बड़े हैरत की बात है।" इंस्पेक्टर ने कहा───"क्या फिर दुबारा आपके बेटे की बात हुई थी उससे?"
"मेरी जानकारी में तो नहीं हुई थी।" ममता ने कहा───"लेकिन शायद कल हुई थी। तभी तो वो कल रात क़रीब साढ़े ग्यारह बजे यहां से चला गया था। मैंने पूछा तो बोला किसी काम से बाहर जा रहा हूं। मुझे नहीं पता था कि मेरा बेटा हमेशा के लिए मुझसे दूर जा रहा था।"
इतना कह अधेड़ उम्र की ममता फूट फूट कर रो पड़ी। ख़ैर, इंस्पेक्टर ने उससे अभिनव के कुछ फ़ोटो ग्राफ्स लिए और साथ ही उसका मोबाइल फ़ोन भी। अभिनव की लाश से सिर्फ उसका पर्स मिला था, जिसके अंदर मौजूद आधार कार्ड से ही उसकी पहचान हुई थी।
"सर!" हवलदार की आवाज़ सुन इंस्पेक्टर वर्तमान में आया───"ये अभिनव के फ़ोन की कॉल डिटेल्स हैं।"
इंस्पेक्टर कॉल डिटेल्स देखने लगा। उसमें सबसे ज़्यादा एक ही लैंड लाइन नंबर पर कॉल के आने जाने का विवरण था। पिछले तीन महीने में एक ही नंबर से अभिनव को ढेर सारे कॉल आए थे।
"इसमें जिस नंबर से अभिनव को उस रात कॉल किया गया था।" हवलदार ने कहा───"वो उसी कॉल सेंटर का है सर जहां की खिड़की से कूद कर उसने अपनी जान दी थी।"
"हां, और यही वो नंबर भी है जिस पर अभिनव ने बार बार कॉल किया था।" इंस्पेक्टर ने कहा───"ये अलग बात है कि उसका कॉल एक बार भी नहीं लगा।"
✮✮✮✮
"तुम तो कह रहे थे प्यारे कि तुममें से कोई भी मरने वाले को जानता ही नहीं है?" इंस्पेक्टर ने आनंद के साथ बाकी सबको भी घूरते हुए कहा───"जबकि सच ये है कि तुममें से कोई न कोई उसे अच्छी तरह जानता है।"
"ये आप क्या कह रहे हैं सर?"
"पुलिस से झूठ बोलने का अंजाम बहुत बुरा होता है।" इंस्पेक्टर ने सख़्त भाव से कहा───"अगर अपना भला चाहते हो तो सब कुछ सच सच बता दो वरना सच उगलवाने के बहुत से तरीके हैं मेरे पास।"
"हम आपसे कुछ भी नहीं छुपा रहे सर।" आनंद ने कहा───"हमारा यकीन कीजिए।"
"ख़ामोश।" इंस्पेक्टर ज़ोर से दहाड़ा───"तुम समझते हो कि मैं यूं ही भोंक रहा हूं? तुम्हें बता दूं कि जिस व्यक्ति की लाश मिली थी उस व्यक्ति को तुम्हारे इसी कॉल सेंटर से फ़ोन किया जाता था और फ़ोन करने वाली एक लड़की थी जिसका नाम माया है। अब तुम लोग सच सच बताओ कि तुममें से माया कौन है?"
इंस्पेक्टर की बातें सुन कर सबको मानों सांप सूंघ गया। डरे सहमें से सब एक दूसरे का चेहरा देखने लगे। फिर एकदम से सबकी निगाहें आनंद पर जा कर ठहर गईं।
"ये सब तुम्हारी तरफ देख रहे हैं मतलब तुम इस बारे में कुछ तो जानते हो।" श्रीकांत ने आनंद से कहा───"अगर ऐसा है तो एक पल की भी देरी किए बिना रेडियो की तरह बताना शुरू कर दो।"
"बात वो नहीं है सर जो आप समझ रहे हैं।" आनंद ने कहा───"असल में माया नाम की जिस लड़की की आप बात कर रहे हैं उसने दो साल पहले इसी खिड़की से कूद कर सुसाइड कर लिया था।"
"क्या??" इंस्पेक्टर बुरी तरह चौंका───"तुम्हारा मतलब है कि माया नाम की लड़की इस दुनिया में है ही नहीं?"
"यही सच है सर।" आनंद ने कहा───"ये कॉल सेंटर मेरे पापा का था। उस समय मैं स्टडी के लिए बाहर रहता था। उनके टाईम पर ही दो साल पहले माया ने सुसाइड किया था। पुलिस केस भी हुआ था लेकिन क्योंकि इसमें मेरे पापा का कोई फाल्ट नहीं था इस लिए केस रफ़ा दफा हो गया था। फिर तीन महीने बाद पापा का कार एक्सीडेंट हो गया। इलाज़ के दौरान ही उनकी मौत हो गई। उनके गुज़र जाने पर ये कॉल सेंटर बंद हो गया था। अभी आठ महीने पहले ही मैंने इसे खोला है। आस पास के लोगों से सुनता आया हूं कि आज भी माया की आत्मा यहां भटकती है। जब उस आदमी ने भी खिड़की से कूद कर जान दे दी तो मैं ये सोच के घबरा गया था कि कहीं ये सब सच में माया की आत्मा ने ही तो नहीं किया है? मैं नहीं चाहता था कि ये घटना आत्मा से जुड़ जाए और मेरा कॉल सेंटर बंद हो जाए। इसी लिए आपसे नहीं बताया था।"
"आत्मा वात्मा सब बकवास है।" इंस्पेक्टर ने कहा───"कॉल डिटेल्स के अनुसार उस रात सवा ग्यारह बजे तुम्हारे कॉल सेंटर से उस माया ने अभिनव को फोन किया था। तुम सबके अनुसार उस रात ग्यारह बजे यहां लॉक लग गया था। अब सवाल ये है कि जब तुम लोग यहां थे ही नहीं तो यहां के फोन से अभिनव को कॉल किसने और कैसे किया?"
"अगर ये सच है सर।" आनंद ने कहा───"तो फिर माया की आत्मा ने ही उस रात उसको कॉल किया होगा। वो एक आत्मा है तो उसके लिए किसी को यहां से कॉल करना भला कैसे मुश्किल होता?"
"आत्मा जैसी कोई चीज़ नहीं होती प्यारे।" श्रीकांत ने कहा───"मुझे पूरा यकीन है कि तुम में से ही कोई है जिसने माया बन कर अभिनव को कॉल किया था। दुश्मनी के चलते उसकी हत्या करने के लिए उसे यहां बुलाया और फिर धक्का दे कर खिड़की से नीचे गिरा दिया। अभी भी वक्त है, जिसने भी ये किया है वो सामने आ जाए वरना अच्छा नहीं होगा किसी के लिए।"
"ये तो ग़लत है सर।" विवेक नाम के लड़के ने कहा───"अगर आपको किसी पर शक है तो आप सिर्फ उसे ही पकड़िए ना।"
"वो तो मैं पकड़ूंगा ही।" कहने के साथ ही श्रीकांत आनंद से बोला───"और तुम ये बताओ कि कॉल सेंटर खोल रखा है लेकिन यहां एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं लगवा रखा, क्यों?"
"ज़रूरत ही नहीं महसूस की थी सर इस लिए नहीं लगवाया था।" आनंद ने कहा───"लेकिन अब लगता है कि काश! लगवाया होता। कम से कम आपको ये तो नज़र आ जाता कि उस रात हम में से कोई यहां आया था या नहीं।"
तभी रूम में हवलदार हांफता हुआ आया। उसे देखते ही श्रीकांत ने कहा───"तुम कहां ग़ायब थे?"
"माफ़ करना सर! वो मैं इस बिल्डिंग के सामने जो मोबाइल का शो रूम है वहां चला गया था।"
"वहां क्या करने गए थे?"
"शो रूम के बाहर मैंने सीसीटीवी कैमरा लगा देखा था सर।" उसने कहा───"मैं ये सोच के ख़ुश हो गया था कि कैमरे में ज़रूर उस रात की वीडियो फुटेज़ रिकार्ड हुई होगी। यही देखने वहां चला गया था लेकिन...।
"अटक क्यों गए?"
"वीडियो फुटेज़ के अनुसार ये लोग सच कह रहे हैं। मेरा मतलब है कि उस रात यहां से जाने के बाद इनमें से कोई भी वापस नहीं आया था। फुटेज़ में मैंने साफ देखा है कि अभिनव अकेला ही यहां आया और फिर खिड़की से नीचे गिरा।"
"ऐसा कैसे हो सकता है?" इंस्पेक्टर ने पूछा───"तुमने वीडियो फुटेज़ ठीक से तो देखी है ना?"
"एक बार नहीं बल्कि तीन तीन बार देखा है सर।"
"हैरत की बात है। अगर अभिनव अकेला ही यहां आया था तो वो रूम के अंदर कैसे दाख़िल हुआ होगा?"
"अब तो मानना ही पड़ेगा सर कि ये सब आत्मा ने ही किया है।" आनंद बोल पड़ा───"उसने यहां के फ़ोन से कॉल कर के अभिनव को यहां बुलाया। अपनी शक्ति से रूम का लॉक खोला। उसके बाद माया की आत्मा ने उसे खिड़की से कूद जाने को कहा होगा। वो डर के मारे माया की आत्मा का विरोध नहीं कर सका होगा?"
"मान लेते हैं प्यारे कि ये सब उसी ने किया होगा।" श्रीकांत ने कहा───"लेकिन सवाल ये है कि उसने अभिनव के साथ ही ऐसा क्यों किया? आख़िर अभिनव से क्या दुश्मनी थी उसकी? दूसरी बात, दो साल पहले ऐसा क्या हुआ था कि माया ने इस खिड़की से कूद कर सुसाइड कर लिया था?"
"इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता सर।" आनंद ने कहा───"पापा ने मुझे इस बारे में कुछ नहीं बताया था। हो सकता है कि पुलिस फ़ाइल में उसकी कोई जानकारी दर्ज़ हो।"
"अगर माया के सुसाइड का मामला सच है तो ज़रूर दर्ज़ होगी।" श्रीकांत ने कहा───"फिलहाल चलते हैं प्यारे। इस संबंध में अगर कुछ पता चला तो तुम्हें दुबारा कष्ट देने आएंगे।"
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एक हफ़्ते बाद।
इंस्पेक्टर श्रीकांत ने एक मकान की डोर बेल बजाई। क़रीब तीस बत्तीस की उमर वाली औरत ने दरवाज़ा खोला। जैसे ही उसकी नज़र श्रीकांत पर पड़ी तो वो बुरी तरह चौंकी। चेहरे का रंग भी उड़ गया।
"इ..इंस्पेक्टर साहब आप? यहां?" फिर उसने हकलाते हुए श्रीकांत से पूछा।
"क्यों? होश उड़ गए ना मुझे यहां देख कर?" श्रीकांत ने जानदार मुस्कान के साथ उससे कहा───"होता है, अक्सर ऐसा ही होता है मेरे साथ। मैं जब अचानक ही किसी जिन्न की तरह किसी के सामने प्रकट हो जाता हूं तो सामने वाले के ऐसे ही होश उड़ जाते हैं। ख़ैर, क्या मैं अंदर आ सकता हूं?"
सामने खड़ी औरत उसके इस अंदाज़ पर बौखला सी गई किंतु फिर जल्दी ही खुद को सम्हाल कर उसे अंदर आने को कहा।
"कौन आया है मीना?" अंदर कमरे से निकलते हुए एक व्यक्ति ने पूछा।
अभी वो आगे और भी कुछ कहने वाला था कि तभी उसकी नज़र इंस्पेक्टर पर पड़ गई। उसे देखते ही वो अपनी जगह पर मानों जाम सा हो गया।
"कैसे हो आनंद प्यारे?" श्रीकांत ने जैसे मज़ा लेते हुए कहा───"हमें यहां देख होश क्यों गुम हो गए हैं तुम्हारे?"
"स...सर आप यहां क..कैसे?" वो बुरी तरह हकलाया।
"कैसे क्या डियर?" श्रीकांत ने कहा───"हमने तो उस दिन ही तुमसे कहा था कि अगर कुछ पता चला तो तुम्हें दुबारा कष्ट देने आएंगे, सो आ गए।"
"क...क्या मतलब है आपका?" आनंद के माथे पर पसीना उभर आया।
"क्या अब भी नहीं समझे?" श्रीकांत सोफे पर बैठ गया───"अगर ऐसा है तो अव्वल दर्ज़े के लंपट हो प्यारे।" कहने के साथ ही वो औरत की तरफ घूमा───"आप ही इन्हें समझाइए कि हम यहां पर क्यों और कैसे पधार गए हैं?"
औरत, जिसका नाम मीना था उसने असहाय भाव से आनंद की तरफ देखते हुए कोई इशारा किया। इशारा समझते ही आनंद का चेहरा उतर गया।
"तो आपको पता चल गया?" फिर वो सोफे पर ढेर सा हो कर बोला───"लेकिन कैसे? हमसे तो कहीं कोई ग़लती ही हुई नहीं थी।"
"जो ख़ुद को ज़रूरत से ज़्यादा स्मार्ट समझते हैं उन्हें अक्सर ये ख़ुशफहमी रहती है कि उनसे कभी कोई ग़लती हो ही नहीं सकती।" श्रीकांत ने कहा───"जबकि उनकी सबसे बड़ी ग़लती इस ख़ुशफहमी में रहना ही होती है। ख़ैर, इतना तो मैं भी मानता हूं कि माया के किरदार का सहारा ले कर बड़ा अच्छा गेम खेला आप दोनों ने लेकिन ये खेल खेलते हुए उस सच को भूल गए जो जग ज़ाहिर है। यानि सच को कभी कोई छुपा नहीं सकता, जुर्म को कोई पचा नहीं सकता।"
"पर हमसे आख़िर क्या ग़लती हुई?" आनंद बोल पड़ा───"और आप सच तक कैसे पहुंच गए?"
"सच कहूं तो जिस तरह से तुमने अभिनव की हत्या को माया की आत्मा का किया धरा बता कर सुसाइड साबित करवा दिया था।" श्रीकांत ने कहा───"उससे उस समय मेरा दिमाग़ भी चकरा गया था। तुमने माया की आत्मा का ज़िक्र तब किया जब तुम समझ गए कि मुझे अभिनव और माया के फ़ोन कॉल्स का पता चल गया है। उस समय उसकी आत्मा का ज़िक्र करके तुम अपने जुर्म को छुपा भी देना चाहते थे और मुझे यकीन भी दिला देना चाहते थे कि ऐसा माया की आत्मा ने ही किया है। फिर मैंने माया की केस फ़ाइल चेक की। मैं ये देख कर चकित रह गया कि वास्तव में दो साल पहले माया नाम की लड़की ने तुम्हारे कॉल सेंटर की खिड़की से कूद कर आत्महत्या की थी। ज़ाहिर है ये सच जानने के बाद मुझे यकीन सा हो गया कि शायद माया ने ही आत्मा बन कर अभिनव की इस तरह से जान ली है। अजीब स्थिति हो गई थी। ख़ैर प्रमाण भले ही ऐसे मिले थे लेकिन मन नहीं मान रहा था कि ऐसा किसी आत्मा ने किया होगा।"
"फिर?"
"फिर क्या?" श्रीकांत ने कहा───"मैं भी इतना जल्दी आत्मा की थ्योरी को मानने वाला नहीं था, सो लग गया तहक़ीकात करने। बार बार तुम्हारा ख़याल आ रहा था तो मैंने तुम्हारा ही पीछा करना शुरू किया। मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि असल में खेल कुछ ऐसा हो सकता है। तुम्हारा पीछा किया तो चौथे दिन मुझे ये देख कर झटका लगा कि तुम्हारा संबंध इन मोहतरमा से है। मैं सोच सोच के परेशान हो गया कि अभिनव की शादी शुदा बहन का तुमसे क्या संबंध हो सकता है?"
"ओह! तो मीना को मेरे साथ देख लेने से आपके मन में शक पैदा हुआ?" आनंद को जैसे अब समझ आया।
"बिल्कुल।" श्रीकांत मुस्कुराया───"मेरी आंखों ने तुम्हारे साथ उसे देखा जिसकी मैं कल्पना ही नहीं कर सकता था। ख़ैर, जब मीना जी को तुम्हारे साथ देखा तो सोचने लगा कि आख़िर इनका संबंध तुमसे क्यों और कैसे हो सकता है? अपनी तरफ से पता करना शुरू किया तो जल्दी ही सच का पता चला। मीना जी असल में अपने पति से तलाक़ लेने वालीं थी और कहने की ज़रूरत नहीं कि पति से तलाक़ लेने के बाद वो तुम्हारे साथ अपनी नई लाइफ़ शुरू करने वालीं थी। ख़ैर ऐसा तो दुनिया में होता ही रहता है लेकिन मैंने सोचा कि इनकी लाइफ़ में तुम्हारा अस्तित्व कब क्यों और कैसे आया? मुझे यकीन हो चुका था कि मामला जितना सीधा नज़र आ रहा है उतना है नहीं।"
"इनका तो पता चल गया था, फिर मैंने सोचा कि तुम्हारी भी कुंडली चेक की जाए।" कुछ पल रुक कर इंस्पेक्टर ने फिर से कहना शुरू किया───"और जब चेक किया तो पता चला कि तुम्हारी स्थिति भी कुछ ख़ास नहीं है। अपने पिता की मौत के बाद तुमने किसी तरह अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर एक मामूली सी कंपनी में जॉब करने लगे। वहां से पैसे कमा कर आठ महीने पहले पिता का कॉल सेंटर फिर से खोल दिया मगर तुम सिर्फ इतने से ही ख़ुश नहीं थे। तुम्हें बहुत कुछ चाहिए था, पर बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ करना भी पड़ता है। इत्तेफ़ाक़ से पांच महीने पहले तुम्हारी मुलाक़ात मीना जी से हुई। इसे ऊपर वाले का चमत्कार कहें या कोई संयोग कि इनको भी तुम पहली ही नज़र में भा गए। हालाकि ये शादीशुदा थीं लेकिन पति से नाख़ुश थीं। इन्हें भी बहुत कुछ चाहिए था। ख़ैर जब तुम दोनों मिले तो जल्दी ही दोस्ती हो गई और फिर जल्दी ही वो दोस्ती लैला मजनूं के माफिक प्यार में बदल गई। तुम दोनों प्रेमी अपनी लाइफ़ के बारे में सोचने लगे। मीना जी तुम्हें अपने और अपने परिवार के बारे में बता चुकीं थी। जब तुम्हें पता चला कि इनका भाई अभी अनमैरिड है और बेकार ही फिरता है तो तुम्हारे दिमाग़ में एक प्लान आया। तुमने मीना जी को भी प्लान के बारे में बताया। मीना जी तैयार तो हुईं लेकिन डर भी रहीं थी कि कहीं हत्या जैसे जुर्म में पकड़ी न जाएं। ऐसे में सपने तो चूर चूर होते ही साथ में जेल भी जाना पड़ता। मीना जी का डर देख तुम्हारे हौंसले भी जवाब दे गए।"
"आप तो ऐसे बताए चले जा रहे हैं जैसे ये सब आपने अपनी आंखों से देखा है।" आनंद बोल पड़ा।
"टैलेंट प्यारे टैलेंट।" श्रीकांत मुस्कुराया───"तिल का ताड़ और राई का पहाड़ बना देने में हमें महारत हासिल है। ख़ैर आगे सुनो, तुम दोनों डर तो गए थे लेकिन अभिनव की सारी संपत्ति हड़प लेने का लालच कुछ ऐसा था कि उसको मारने का फिर से कोई उपाय सोचने लगे। तब तुम्हें अचानक से उस घटना की याद आई जो दो साल पहले तुम्हारे पिता के कॉल सेंटर में हुई थी। माया नाम की लड़की जिसने कॉल सेंटर की खिड़की से कूद कर आत्महत्या कर ली थी। उसकी केस फ़ाइल के अनुसार वो किसी लड़के से प्रेम करती थी। लड़के ने पहले तो उसे खूब लूटा और फिर जब मन भर गया तो छोड़ दिया। माया ये सब बर्दास्त न कर सकी और घोर पीड़ा के चलते आत्महत्या कर ली। तुमने उसी लड़की को आत्मा बनाने का सोचा और उसी के द्वारा अभिनव की जान लेने का प्लान बनाया। ये खेल शुरू करने से पहले तुमने उस लड़की की आत्मा को आस पास देखे जाने की अफ़वाह फैलाई। अपने स्टाफ वालों के कानों में भी इस बात की भनक डाली।"
"आप भूल रहे हैं कि अभिनव माया नाम की लड़की से फोन पर बात किया करता था।" आनंद ने कहा───"क्या आप बता सकते हैं कि ऐसा कैसे संभव था?"
"बिल्कुल बता सकते हैं प्यारे।" इंस्पेक्टर ने कहा───"ये सारा ड्रामा तुमने तीन महीने पहले क्रिएट किया था और उसी समय तुमने माया के किरदार के लिए एक ऐसी लड़की को चुना जो कोई और नहीं बल्कि मीना जी ही थीं।"
"ये आप कैसे कह सकते हैं कि वो मैं ही थी?"
"बहुत ही बचकाना सवाल है मीना जी।" श्रीकांत ने कहा───"जब मुझे आनंद के साथ आपके संबंधों का पता चला तो ज़ाहिर है उसी वक्त मुझे आप पर भी शक हो गया था। अपने शक की पुष्टि के लिए मैंने गुप्त रूप से दुबारा जांच शुरू की।"
"ओह!"
"माया की आत्मा वाली अफ़वाह आनंद ने कॉल सेंटर के आस पास के लोगों तक पहुंचाई थी।" श्रीकांत ने कहा───"जबकि आत्मा जैसी बातें ऐसी होती हैं जो एक ख़ौफ के रूप में दूर दूर तक के लोगों की जानकारी में भी होती हैं। मैंने जब जांच पड़ताल की तो कॉल सेंटर के आस पास के लोगों के अलावा बाकी कहीं भी किसी को इस बारे में पता नहीं था। ज़ाहिर है ऐसे में मेरे मन में शक पैदा हो ही जाना था। उसके बाद जब मुझे तुम दोनों के संबंध का पता चला तो मैं ये भी सोचने लगा कि मीना जी की भी इस खेल में भूमिका ज़रूर है। अपने स्टाफ में से किसी लड़की को तुम माया बना नहीं सकते थे क्योंकि इससे तुम्हें अपने भेद खुल जाने का डर रहता। मैं समझ गया कि माया के किरदार के लिए तुम्हारी नज़र में मीना जी से परफ़ेक्ट कोई हो ही नहीं सकता। मैंने गुप्त रूप से फिंगर प्रिंट्स विभाग के दो आदमियों को काम पर लगाया। उनका काम था बाथरूम, सीढ़ियां और छत के हर हिस्से से फिंगर प्रिंट्स लेना। इस बीच यहां आ कर मैं मीना जी के फिंगर प्रिंट्स भी ले गया। कुछ ही समय में मुझे फिंगर प्रिंट्स वाले उन आदमियों का कॉल आया। उन्होंने बताया कि मैंने उनको मीना जी के जो फिंगर प्रिंट्स दिए थे वो उनके द्वारा लिए गए फिंगर प्रिंट्स से मैच कर गए हैं। बस, साबित हो चुका था कि मीना जी इस खेल में पूरी तरह शामिल थीं। यानि ये भी साबित हो चुका था कि मीना जी ही असल में माया बनी हुईं थी और अपने ही भाई को रात में कॉल सेंटर के फोन से कॉल करतीं थी। वैसे ज़रा ये तो बताइए मीना जी कि माया बन कर अपने ही भाई को अपने प्रेम जाल में फंसाने का कैसे सोच लिया था आपने? क्या आपको ये ख़याल नहीं आया कि वो आपका अपना ही भाई है?"
"आया था।" मीना ने कहा───"लेकिन मैं सचमुच में उसकी प्रेमिका तो नहीं थी ना? मैं तो बस अपने एक ख़ास मक़सद के लिए ही उसे माया बन कर फंसा रही थी।"
"हां ये तो सही कहा आपने।" श्रीकांत ने कहा───"ख़ैर ये बताइए कि कॉल पर आप अपने भाई से ऐसी क्या बातें करती थीं जिसके चलते वो माया के प्रेम में इस हद तक बावला हो गया था?"
"अपने भाई को मैं अच्छी तरह जानती थी।" मीना ने कहा───"वो बहुत ही भावुक किस्म का था। कॉलेज लाइफ़ में वो एक लड़की के प्रेम में पड़ कर पागल सा हो गया था। संयोग देखिए कि उस लड़की का नाम भी माया था। उस समय मेरी शादी नहीं हुई थी तो मैंने ही सम्हाला था उसे। माया नाम की लड़की से हमेशा ही वो अट्रैक्ट होता था, ये अलग बात है कि वो उस नाम से नफ़रत भी उतनी ही करता था। जब मैं माया बनी और उसे कॉल किया तो मैंने उससे कॉल सेंटर के तौर तरीके में ही अपना नाम माया बता कर बात शुरू की। मैं जानती थी कि माया नाम सुनते ही उसको झटका लगेगा और वो कुछ देर के लिए सुन्न पड़ जाएगा। वही हुआ, उसके बाद जब मैंने मधुर स्वर में पुकारा तो उसे होश आया। होश में आते ही उसने नफ़रत से माया को यानि मुझे उल्टा सीधा बोलना शुरू कर दिया। मैं शांति से सुनती रही। जानती थी कि जब तक उसके अंदर का गुबार निकल नहीं जाएगा तब तक वो मेरी कोई बात नहीं सुनेगा। ऐसा ही हुआ, कुछ देर में जब वो शांत हुआ तो मैंने बड़े प्यार से कहा कि लगता है आपने मुझे कोई और ही समझ लिया है सर। मैं तो एक मामूली सी लड़की हूं जो कॉल सेंटर से बोल रही हूं। ये सुनते ही उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और मुझसे माफ़ियां मांगने लगा। उस पहले दिन मैंने उससे बड़ी ही सहानुभूति के साथ बातें की। उसे भी अच्छा लगा। मेरे थोड़ा सा ही ज़ोर देने पर वो अपनी पूर्व प्रेमिका के बारे में बताने लगा। कभी दुखी हो जाता तो कभी गुस्से से भर उठता। मैंने उसे समझाया कि माया नाम की हर लड़की वैसी नहीं होती जैसी वो समझते हैं। फिर प्लान के अनुसार मैंने भी उसको बताया कि मैं भी एक लड़के से बहुत प्यार करती थी। उससे शादी करना चाहती थी लेकिन वो मेरा सब कुछ लूट कर चला गया। अभिनव को इस बात से मेरे लिए बहुत बुरा लगा। पहले मैं उसको दिलासा दे रही थी अब वो मुझे देने लगा था। ख़ैर उस दिन इतनी ही बातें हुईं। आख़िर में उसने कहा कि मुझसे बात कर के उसे बहुत अच्छा लगा है। वो हर रोज़ मुझसे बात करने के लिए मेरा नंबर मांगने लगा तो मैंने कहा कि मैं ही उसे फ़ोन किया करूंगी।"
"तो इस तरह से आपने अपने ही भाई को फंसाना शुरू किया?" श्रीकांत ने कहा───"ख़ैर ये बताइए कि माया के रूप में आप उसकी हर बात से इंकार क्यों करतीं थी और उसे मेंटली टॉर्चर क्यों करतीं थी?
"माया के रूप में उसकी बात मान लेने का मतलब था अपना ही खेल बिगाड़ लेना।" मीना ने कहा───"मैंने उसे माया का दीवाना बनाया। उसको तड़पाया ताकि वो ऐसी हालत में पहुंच जाए कि माया बन कर मैं उससे जो भी करने को कहूं वो बिना सोचे समझे करने को उतारू हो जाए। आख़िर में यही तो हुआ। उस रात जब मैंने उसे कॉल सेंटर से फ़ोन किया तो वो बिना सोचे समझे मेरी बताई हुई जगह पर यानि कॉल सेंटर पहुंच गया था।"
"क्या हुआ था उस रात?"
"प्लान के अनुसार।" आनंद ने कहा───"जब सारा स्टाफ बाहर आ गया तब मैंने सबकी आंखों के सामने रूम को लॉक किया। हमेशा की तरह वो सब आपस में हंसी खुशी बातें करते हुए चल पड़े थे। मैंने सबकी नज़र बचा कर रूम की चाबी दरवाज़े के पास ही मैट के नीचे छुपा दी। उसके बाद मैं भी सबके साथ नीचे आ गया था।"
"इसके आगे का काम मेरा था।" मीना ने कहा───"मैं पहले ही बगल वाली बिल्डिंग के छत के रास्ते वहां पहुंच गई थी। जैसे ही ये लोग गए मैंने हमेशा की तरह मैट के नीचे से चाबी निकाली और रूम में चली गई। उसके बाद मैंने उसी फ़ोन से अभिनव को कॉल किया जिससे मैं अक्सर करती थी। कई दिनों बाद मैंने उसको कॉल किया था इस लिए वो बड़ा खुश हो गया था। पिछली बार मैं जान बूझ कर उसे नहीं मिली थी और वो आईएसबीटी में घंटों मुझे खोजता रहा था। कॉल रिसीव करते ही वो पूछता चला गया कि मैं कहां चली गई थी, मुझे उसने बहुत खोजा वगैरह वगैरह। मैंने उससे कहा कि मैं एक मुसीबत में फंस गई थी इस लिए उसको मिल नहीं पाई थी। मेरी बात सुन कर वो चिंतित हो उठा। बोला मैं अभी तुमसे मिलना चाहता हूं। इधर मैं भी उसे बुलाना ही चाहती थी। अतः उसे कॉल सेंटर का पता बताया और कहा कि वो अकेला ही आए क्योंकि मुझे ख़तरा है और किसी पर भी भरोसा नहीं है। उसने मुझे फ़िक्र न करने को कहा और बोला जल्दी ही पहुंचूंगा। बस, उसके बाद मैं उसके आने का इंतज़ार करने लगी।"
"बगल वाली बिल्डिंग की छत के रास्ते क्यों गईं थी आप?" श्रीकांत ने पूछा───"क्या सामने शो रूम के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की वजह से ऐसा किया था?
"हां, हमें पता था कि सामने शो रूम के बाहर कैमरा लगा हुआ है।" मीना ने कहा───"अगर मैं उस रास्ते से बिल्डिंग में जाती तो कैमरे में क़ैद हो जाती।"
"उसके बाद क्या हुआ?।" श्रीकांत ने पूछा───"इतना तो पक्का था कि आपको देखते ही अभिनव के होश उड़ जाने थे क्योंकि आप उसे माया नहीं बल्कि उसकी सगी बहन जो नज़र आतीं।"
"बिल्कुल।" मीना ने कहा───"और सच कहूं तो यही सोच कर मुझे टेंशन भी होने लगी थी लेकिन अब पीछे भी नहीं हट सकती थी। ख़ैर अपना चेहरा मैंने दुपट्टे से ढंक लिया था। रूम की लाइट पहले से ही बंद थी। वो दरवाज़ा खोल कर कमरे में आया। खिड़की के पास खड़ी मेरी धड़कनें ज़ोरों से चलने लगीं थी। उसने आते ही इधर उधर देखा और माया कह कर मुझे पुकारा। बहुत ही व्याकुल लग रहा था वो। तीन महीने में पहली बार उसको अपनी माया को देखने का मौका मिला था। ज़ाहिर है नॉर्मल हालत तो हो ही नहीं सकती थी उसकी। उसके पुकारने पर जब मैं न बोली तो वो और भी ज़्यादा व्याकुल, परेशान और चिंतित हो उठा और माया माया कह कर पुकारने लगा। तब मैंने धीरे से आवाज़ बदल कर कहा कि मैं यहीं हूं लेकिन उससे मिलने की हालत में नहीं हूं। जिनसे मुझे ख़तरा था वो मेरी अस्मत लूट कर यहां से चले गए हैं। मेरी ये बात सुन कर वो बुरी तरह तड़प उठा। फिर सहसा वो लाइट जलाने को कहने लगा तो मैंने फ़ौरन मना कर दिया। मैंने कहा अब ना तो मैं उसके देखने लायक हूं और ना ही उसके क़ाबिल हूं। उसको और भी तोड़ने के लिए ये भी कहा कि इस बार मैं हमेशा के लिए उसकी बन जाना चाहती थी पर मेरी बुरी किस्मत ने ऐसा होने नहीं दिया। मेरी ये बातें सुन कर वो दुखी हो के बोला कि मेरे साथ जो हुआ है उसका उसे बहुत दुख है लेकिन वो फिर भी मुझे अपनी बनाएगा। मुझसे शादी करेगा। मैं जानती थी कि ऐसा वो ज़रूर करेगा इस लिए मैंने अगला दांव फेंका।"
"कैसा दांव?"
"उसे आजमाना शुरू किया मैंने।" मीना ने कहा───"उससे कहा कि तुम ऐसा इस लिए कह रहे हो क्योंकि इस वक्त मुझे अंधेरे में ठीक से देख नहीं पा रहे हो। अगर उजाले में मेरी बुरी हालत देखोगे तो तुम्हारा प्यार छू मंतर हो जाएगा। तब तुम मुझसे घृणा करने लगोगे। मेरी बात सुनते ही वो तड़प कर बोला कि ऐसा वो कभी सोच ही नहीं सकता। मैंने कहा कि मुझे अब भरोसा नहीं है। मुझे तो मेरी किस्मत पर पहले भी भरोसा नहीं था और अब जब मैं इतनी बुरी हालत में हूं तो कैसे भरोसा कर लूं कि मेरी इस हालत को देख कर भी तुम मुझे अपना बना लोगे? मेरी ये बात सुन कर उसने तड़प कर पूछा कि कैसे भरोसा करोगी? तब मैंने कहा कि अगर सच में तुम मुझसे प्यार करते हो तो बताओ कि इस वक्त मेरे कहने पर तुम क्या कर सकते हो? उस पर मानों जुनून सवार हो चुका था इस लिए बिना सोचे समझे बोला कि मेरे कहने पर वो कुछ भी कर सकता है। यही तो चाहती थी मैं। कुछ पलों तक मैंने सोचने का नाटक किया और फिर उससे कहा कि मेरे कहने पर क्या तुम खिड़की से कूद सकते हो? अगर ऐसा करोगे तो मान लूंगी कि तुम सच में मुझे दिल से चाहते हो। उस वक्त मुझे लगा था कि कहीं मैंने उसको ऐसा बोल कर ग़लती तो नहीं कर दी है? हो सकता है कि एकदम से उसका विवेक जाग जाए और वो सोचने लगे कि मैं उसे ऐसा करने को कैसे कह सकती हूं? मगर मेरी उम्मीद के विपरीत अगले ही पल उसने कहा ठीक है। अगर मुझे उसके ऐसा करने पर ही भरोसा होगा तो वो खिड़की से ज़रूर कूदेगा।"
"यकीन मानिए इंस्पेक्टर।" मीना ने एक लंबी सांस ली───"सच में वो ऐसा ही करने चल पड़ा था। मैं सांसें रोके उसकी परछाईं को ही देख रही थी। वो खिड़की की तरफ बढ़ने लगा तो मैं वहां से दूर हट गई। बाहर चांद की धींमी रोशनी थी। वो खिड़की खोल कर उसमें चढ़ गया और अपने दोनों पैरों के बल बैठ गया। फिर अचानक से बोला क्या अभी भी मेरे प्यार पर भरोसा नहीं है? उसकी इस बात से मुझे एकाएक झटका सा लगा। उड़े हुए होश एकदम से ठिकाने पर आए। मैंने सोचा कि ऐसा वो इसी लिए कह रहा है क्योंकि कहीं न कहीं वो भी ये देखना चाहता है कि क्या मैं इसके बाद भी उसे कूद जाने को कहूंगी? यानि अगर मैं कहूंगी तो उस सूरत में शायद उसकी चेतना जागृत हो जाएगी। अभी तक तो उसने अपने प्रेम के हाथों मजबूर हो कर ही ये सब किया था लेकिन इसके आगे हो सकता है कि उसका विवेक जाग जाए। मुझे लगा अगर उसने ऐसा सोच लिया तो खेल बिगड़ जाएगा। अब मैं ये भी नहीं कह सकती थी कि हां कूद जाओ, लेकिन ये भी संभव था कि वो बिना मेरे कहे कूदे भी ना। अजीब दुविधा हो गई थी। अचानक ही मुझे ख़याल आया कि इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा मुझे। उधर जवाब की प्रतीक्षा में वो मुझे ही देखे जा रहा था। अंधेरे में उसको मैं परछाईं जैसे ही दिख रही थी। मैं दबे पांव उसके पास पहुंची। इससे पहले कि उसके मन में किसी भी तरह की बात आती मैंने झट से अपने दोनों हांथ बढ़ाए और उसे धक्का दे दिया। यकीनन उसे अपनी माया से ऐसी उम्मीद नहीं रही होगी लेकिन मैं माया थोड़े ना थी बल्कि मैं तो माया के रूप में उसकी वो बहन थी जो उसकी हत्या करने ही आई थी।"
"वाह! बहुत खूब।" इंस्पेक्टर बोल पड़ा───"आपके जैसी बहन से ही ऐसे कर्मकाण्ड की उम्मीद की जा सकती है। वैसे, उस वक्त क्या एक पल के लिए भी आपको ये ख़याल नहीं आया था कि जिसे आप धक्का देने वाली हैं वो आपका एक ऐसा भाई है जो किसी अंजान माया से इस हद तक प्रेम करता है कि उसके कहने पर खिड़की से कूद जाने को भी तैयार है? ख़ैर, अपने ही भाई की हत्या कर के उसकी संपत्ति को पाना चाहा आपने लेकिन क्या ये सच में मिल जाएगी आपको? हर्गिज़ नहीं, बल्कि मिलेगी तो सिर्फ सज़ा...कानूनन फांसी की या फिर उम्र क़ैद।"
इंस्पेक्टर की बात सुन कर जहां आनंद शोक सागर में डूब गया वहीं मीना फूट फूट कर रो पड़ी। श्रीकांत ने फ़ोन द्वारा लेडी पुलिस को बुलाया। थोड़ी ही देर में मीना और आनंद को गिरफ़्तार कर वो ले चले। पीछे ड्राइंग रूम में शायद कभी न ख़त्म होने वाला सन्नाटा छा गया।
ये कहानी बहोत ही आला दर्जे की है. पढ़ते वक्त किसी नवल पढ़ने जैसा एहसास होता है. आप इसी कहानी से जोड़ कर उन्ही किरदारों से आगे कहानी लिख सकते हो. चाहो तो कोई और कॉन्सेप्ट भी जोड़ सकते हो. आप के पास अमेज़िंग आइडियाज होते है. आप के पास बहेतरीन स्किल है.