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मेरा नाम पिंकी चौधरी है, मेरे पापा का नाम सुरेन्द्र चौधरी और मम्मी का नाम पुष्पा चौधरी है। हमारी फैमिली काफी रॉयल फैमिली है। हमारे घर में किसी चीज की कमी नहीं है सिवाये प्यार के! लेकिन जब मैं छोटी थी, तब हमारे घर में भी प्यार बसता था।
पर जैसे जैसे मैं बड़ी होती गयी, मेरे घर से प्यार और शांति भी ग़ायब होने लगी।
मैंने पहली बार मम्मी पापा को आपस में लड़ते हुए देखा, मैं अपने रूम में पढ़ाई कर रही थी जब मम्मी की आवाज़ सुनाई दी, मैं अपने रूम से निकल कर मम्मी पापा के रूम तक गयी और खिड़की के पास खड़ी होकर देखने लगी।
मम्मी खूब गुस्से में लग रही थी जबकि पापा डरे सहमे एक ओर खड़े दिखाई दिए। वो किस बात पर लड रहे थे, यह तो मैं नहीं जान पायी लेकिन इतना जान गयी थी कि मम्मी किसी बात पर पापा से ग़ुस्सा हैं!
मुझे पहली बार अपने घर का माहौल बहुत ख़राब लगा। मैं वापस अपने रूम में आ गयी। और मम्मी पापा के बारे में सोचने लगी.
उसके बाद तो रोज़ ही घर में मम्मी पापा के झगड़े होने लगे, मम्मी पापा की रोज़ रोज़ की लड़ाई से मैं बहुत अकेली हो गयी, पहले रोज़ मैं मम्मी पापा के साथ बैठकर बात करती थी, अपनी फरमाईश रखती थी, लेकिन अब मैं उनसे दूर दूर रहने लगी, किसी चीज की फरमाईश करना तो बहुत दूर अब तो मैं मम्मी पापा के पास जाते हुए भी डरती थी।
मम्मी भी रोज़ रोज़ की लड़ाई से बहुत अपसेट रहने लगी, अपसेट में रहने की वजह से मम्मी ने मेरा फिकर करना छोड़ दिया, पहले मम्मी रोज़ मुझे स्कूल के लिए तैयार करती, अपने हाथों से नहलाती, मेरा नाश्ता बना कर देती, लेकिन अब वो सब कुछ बंद हो चुका था, मैं खुद ही नहाती, खुद ही तैयार होती और स्कूल जाती।
इसी तरह से मेरे बचपन के 5 साल और बीत गये, अब मैं 18 साल की हो चुकी थी। इन 5 सालों में घर की हालत पहले से ज़्यादा बिगड़ चुकी थी, मम्मी पापा अब अलग अलग सोने लगे थे, अक्सर जब मैं रात को बाथरूम जाने के लिए उठती तो पापा को हॉल में सोफ़े पर सोये हुए देखती, मैं इतना जान गयी थी की मम्मी पापा को पसंद नहीं करती इसलिये पापा सोफ़े पर सोते हैं।
अब मैं 18 साल की हो चुकी थी लेकिन मैं दूसरी लड़कियों की तरह नहीं थी, मेरी उम्र की लड़कियाँ अक्सर औरत मर्द के रिश्ते को समझने लगती हैं, लंड, चूत और चुदाई के बारे में भी जान जाती हैं लेकिन मैं इन चीजों से अन्जान थी, मैं तो यह भी नहीं जानती थी की मेरी कमर के नीचे और जांघों के बीच के जिस हिस्से से मैं रोज़ मूतती हूँ उसे क्या कहते हैं.
मैं बिल्कुल कोरी थी… मेरा मानसिक स्तर किसी छोटे बच्चे जितना ही था, क्यूंकि मम्मी पापा ने मुझे 8 साल से जैसे अकेली छोड़ दिया था और मेरा कोई दोस्त सहेली भी नहीं थी, मैं स्कूल में भी हमेशा अकेली रहती, किसी से कोई दोस्ती नहीं, कोई मेलजोल नहीं, मैं किसी से दोस्ती करने में डर महसूस करती थी।
अब मैं अकेली रहने की आदि हो चुकी थी। यही कारण है कि मेरा मानसिक विकास नहीं हो पाया। बस एक चीज जो मैं अपने आप में परिवर्तन महसूस कर रही थी वो थी कि मेरी छाती, मेरे बूब्स टेनिस के बॉल के साइज की हो गयी थी, मैं अक्सर उन्हें छू कर देखती और सोचती कि ये मेरी छाती पर क्या उठ रहा है, कहीं मुझे कोई बीमारी तो नहीं हो गयी है? कई बार मेरे मन में आया कि मैं मम्मी पापा को बताऊँ लेकिन मैं उनसे नहीं कह पायी।
पर जैसे जैसे मैं बड़ी होती गयी, मेरे घर से प्यार और शांति भी ग़ायब होने लगी।
मैंने पहली बार मम्मी पापा को आपस में लड़ते हुए देखा, मैं अपने रूम में पढ़ाई कर रही थी जब मम्मी की आवाज़ सुनाई दी, मैं अपने रूम से निकल कर मम्मी पापा के रूम तक गयी और खिड़की के पास खड़ी होकर देखने लगी।
मम्मी खूब गुस्से में लग रही थी जबकि पापा डरे सहमे एक ओर खड़े दिखाई दिए। वो किस बात पर लड रहे थे, यह तो मैं नहीं जान पायी लेकिन इतना जान गयी थी कि मम्मी किसी बात पर पापा से ग़ुस्सा हैं!
मुझे पहली बार अपने घर का माहौल बहुत ख़राब लगा। मैं वापस अपने रूम में आ गयी। और मम्मी पापा के बारे में सोचने लगी.
उसके बाद तो रोज़ ही घर में मम्मी पापा के झगड़े होने लगे, मम्मी पापा की रोज़ रोज़ की लड़ाई से मैं बहुत अकेली हो गयी, पहले रोज़ मैं मम्मी पापा के साथ बैठकर बात करती थी, अपनी फरमाईश रखती थी, लेकिन अब मैं उनसे दूर दूर रहने लगी, किसी चीज की फरमाईश करना तो बहुत दूर अब तो मैं मम्मी पापा के पास जाते हुए भी डरती थी।
मम्मी भी रोज़ रोज़ की लड़ाई से बहुत अपसेट रहने लगी, अपसेट में रहने की वजह से मम्मी ने मेरा फिकर करना छोड़ दिया, पहले मम्मी रोज़ मुझे स्कूल के लिए तैयार करती, अपने हाथों से नहलाती, मेरा नाश्ता बना कर देती, लेकिन अब वो सब कुछ बंद हो चुका था, मैं खुद ही नहाती, खुद ही तैयार होती और स्कूल जाती।
इसी तरह से मेरे बचपन के 5 साल और बीत गये, अब मैं 18 साल की हो चुकी थी। इन 5 सालों में घर की हालत पहले से ज़्यादा बिगड़ चुकी थी, मम्मी पापा अब अलग अलग सोने लगे थे, अक्सर जब मैं रात को बाथरूम जाने के लिए उठती तो पापा को हॉल में सोफ़े पर सोये हुए देखती, मैं इतना जान गयी थी की मम्मी पापा को पसंद नहीं करती इसलिये पापा सोफ़े पर सोते हैं।
अब मैं 18 साल की हो चुकी थी लेकिन मैं दूसरी लड़कियों की तरह नहीं थी, मेरी उम्र की लड़कियाँ अक्सर औरत मर्द के रिश्ते को समझने लगती हैं, लंड, चूत और चुदाई के बारे में भी जान जाती हैं लेकिन मैं इन चीजों से अन्जान थी, मैं तो यह भी नहीं जानती थी की मेरी कमर के नीचे और जांघों के बीच के जिस हिस्से से मैं रोज़ मूतती हूँ उसे क्या कहते हैं.
मैं बिल्कुल कोरी थी… मेरा मानसिक स्तर किसी छोटे बच्चे जितना ही था, क्यूंकि मम्मी पापा ने मुझे 8 साल से जैसे अकेली छोड़ दिया था और मेरा कोई दोस्त सहेली भी नहीं थी, मैं स्कूल में भी हमेशा अकेली रहती, किसी से कोई दोस्ती नहीं, कोई मेलजोल नहीं, मैं किसी से दोस्ती करने में डर महसूस करती थी।
अब मैं अकेली रहने की आदि हो चुकी थी। यही कारण है कि मेरा मानसिक विकास नहीं हो पाया। बस एक चीज जो मैं अपने आप में परिवर्तन महसूस कर रही थी वो थी कि मेरी छाती, मेरे बूब्स टेनिस के बॉल के साइज की हो गयी थी, मैं अक्सर उन्हें छू कर देखती और सोचती कि ये मेरी छाती पर क्या उठ रहा है, कहीं मुझे कोई बीमारी तो नहीं हो गयी है? कई बार मेरे मन में आया कि मैं मम्मी पापा को बताऊँ लेकिन मैं उनसे नहीं कह पायी।