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Thriller कातिल रात

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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ओरिजिनल वन

लेट्स रिव्यू स्टार्ट
स्टोरी अपने अर्ली प्रोग्रेस पर चल रही है, अभी ज़्यादा अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता कि क्या चल रहा है, कौन विलेन है, किसकी रोमेश से क्या दुश्मनी है, कौन रोमेश को फँसाना चाहता है, और अनामिका के पीछे कौन मास्टरमाइंड है।
Kya kya soch daala :ecs:
अब बात करते हैं रागिनी की
भैया जी हीरोइन को ज़बरदस्ती लेकर आए, चुंबले अंदाज़ वाली नटखट मशूका! इस बार रोमेश की ये मशूका धोखा न दे यही प्रार्थना है, वरना इस बार अगर ऐसा कुछ हुआ तो मेरा लड़कियों पर से विश्वास उठ जाएगा।
Thoda entertainment to hona hi chahiye, varna tum log padhoge thodi :D
वैसे वो पिस्तौल लेकर भागी, वो भी अगर बाद में मशूका बन जाए तो बुरा नहीं।
No chance, waise wo us layak hai bhi nahi :shhhh:
यहाँ सीनियर महेश्वरी शायद रोमेश के जान-पहचान वाले हैं, जिन्होंने शायद रोमेश के साथ पहले काम किया हो।
Apun ko nahi pata, ye to romesh jaane :dazed:
साथ ही ये पुलिसिया देव प्रीय मुझे शक में डाल रहा है इसमें और रोमेश में आगे कुछ विवाद होगा, जहाँ तक मुझे लगता है।
Ho bhi sakta hai, ab ye to samay hi batayega, Thank you so much for your wonderful review and amazing support mitra :hug:
 

jaanvi sen

Antifragile Momelody~
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#01

बारिश: (रात 8 बजे!)

इस बार दिल्ली की सर्दियों में बारिश अपना अलग ही स्यापा कर रही थी।
कहने वाले तो कहने लगे थे कि, दिल्ली भी बारिश के मामले में अब मुम्बई बनती जा रही है।

एक तो जनवरी के पहले सप्ताह की कड़ाके की सर्दी और उस पर ये बारिश का कहर।

मैं उसी सर्दी की मार से बचने के लिए इस वक़्त अपने फ्लैट में अपने बेड पर और अपनी ही रजाई में लिपट कर अपनी सर्दी को दूर भगाने का प्रयास कर रहा था।

अब आप भी सोच रहे होंगे की ये कौन अहमक इंसान है,जो बेवजह दिल्ली के मौसम का आँखों देख़ा हाल सुना रहा है। :D

वैसे तो अभी तक आपने अपने इस सेवक को पहचान ही लिया होगा , लेकिन फिर भी मैं आपको बता दूं कि मैं “रोमेश!” दिल्ली में एक छोटा मोटा जासूसी का धंधा करता हूँ…न न मैं कोई राॅ का एजेंट नही हूँ,मैं तो एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ, जो सिर्फ कत्ल के केस में ही अपनी टांग घुसाता है। :yo:

जासूसी के बाकी धंधो मसलन, शक धोखा, पीछा, तलाक जैसे सड़क छाप धंधों से मैं दूर ही रहता हूँ।

बन्दे को बचपन से ही जासूसी उपन्यास पढ़ने का शौक इस कदर था, की जिस उम्र में मुझें स्कूल की किताबें पढ़नी चाहिए थी,उस उम्र में मैं दिन रात जासूसी किस्से कहानिया पढ़ा करता था।:dazed:

इसी वजह से अपुन का मन भी सिर्फ जासूसी में ही अपना मुकाम बनाने का करने लगा था।

वैसे तो आपका ये सेवक जासूसी में दिल्ली से लेकर मेरठ आगरा ,मुम्बई और राजस्थान तक अपने झंडे गाड़ चुका था ,और आज किसी परिचय का मोहताज नही था , लेकिन मेरी एक नकचढ़ी सेक्रेटरी है,जिसका नाम रागिनी है, वो बन्दे की इस काबलियत की जरा भी कदर नही करती है,:beee: उसकी नजर में अपन आज भी घर की मुर्गी दाल बराबर है, लेकिन उसकी महिमा का बखान मैं बाद में करूँगा, इस वक़्त आपके इस जिल्ले-इलाही के फ्लैट को कोई बुरी तरह से पीट रहा था।

दरवाजा इतनी बेतरतीबी से पीटा जा रहा था कि, मानो कोई दरवाजा तोड़कर अंदर घुसना चाहता हो, मैं हड़बड़ाकर अपनी रजाई में से निकला और दराज में से अपनी पिस्टल निकालकर अपने बरमूडा में फँसाई और तेज कदमो दरवाजे की ओर बढ़ा और दरवाजे के पास जाकर ठिठक गया।

"कौन है,क्यो दरवाजा तोड़ने पर आमादा हो "मैंने बन्द दरवाजे के पीछे से ही बोला।

"दरवाजा खोलो ! मैं बहुत बड़ी मुसिबत में हूँ" ये किसी लड़की की घबराई हुई आवाज थी।

अब एक तो लड़की और ऊपर से मुसीबतजदा, और ऊपर से गुहार भी उस इंसान से लगा रही थी,जो मुसीबतजदा लड़कियों का सबसे बड़ा खैरख्वाह था,:smarty: तो अब दरवाजा खोलना तो बनता था, सो मैंने दरवाजा खोला और फोरन से पेश्तर खोला।

दरवाजा खोलते ही मुझे यू लगा मानो कोई आंधी तूफान कमरे में घुस आया हो, वो लडकी डेढ़ सौ किलोमीटर की रफ्तार से कमरे में घुसी और सीधा मेरे बेड पर बैठ गई।

मै किंककर्तव्यमूढ़ सा बस उस
लड़की की ओर देखता रहा, उस मोहतरमा में एक बार भी मुझ से अंदर आने के लिए पूछना गवांरा नही समझा था।

"दरवाजा बंद करो न, ऐसे क्या देख रहे हो, कभी कोई लडकी नही देखी क्या" उस लड़की की आवाज जैसे ही मेरे कानो में पड़ी, मैंने हड़बड़ा कर दरवाजे को बन्द कर दिया।

दरवाजा बंद करते ही मेरी नजर उस लड़की पर पहली बार पूरी नजर पड़ी थी। लड़की उची लंबे कद
की बेइंतेहा खूबसूरत थी।

उसके कटीले नैन नक्श पर उसका मक्खन में सिंदूर मिला रंग तो कयामत ही ढा रहा था।

उसे ध्यान से देखते ही मेरे दिल की घण्टिया किसी मंदिर के घड़ियाल की तरह से बजने लगी थी।:love2:

पता नही साला ये अपनी उम्र का तकाजा था या अभी तक कुंवारा रहने का नतीजा था कि,आजकल अपुन को हर लड़की खूबसूरत लगती थी। :loveeyed2:

मुझे इस तरह से कुत्ते की तरह से अपनी तरफ घूरते हुए देखकर वो लड़की अब बेचैनी से अपना पहलू बदलने लगी थी।:D

"हो गया हो तो, अब इधर भी आ जाओ" उस लड़की को शायद ऐसी कुत्ती निग़ाहों का अच्छा खासा तजुर्बा था।

होता भी क्यो नही, जो जलवा उसकी खूबसूरती का था, उसके मद्देनजर तो जिसने भी डाली होगी मेरे जैसी कुत्ति नजर ही डाली होगी।

लेकिन आपके इस सेवक ने लड़की के बोलते ही अपनी इस छिछोरी हरकत पर ब्रेक लगाई,और चहलकदमी करता हुआ उसके सामने आकर खड़ा हो गया।

एक तो साला सर्दी का मौसम, ऊपर से कड़कड़ाती बरसात, और अब ये कहर बरपाती मेरे ही बेड पर बैठी हुई मोहतरमा, मेरी जगह कोई और होता तो अभी तक इस खूबसूरत बला के साथ पूरी रात की योजना अपने ख्यालों में बना चुका होता, लेकिन अपनी नजर भले ही कितनी भी कुत्ती हो, दिल शीशे की तरह से साफ है।:declare:

"कौन हो तुम, और इतनी बरसात में मेरे पास क्यो आई हो" मै अब उसकी सुंदरता के खुमार से कुछ कुछ निकलते हुए बोला।

"मेरी जान खतरे में है,मुझे कोई मारना चाहता है" उस लड़की की आवाज में फिर से घबराहट का पुट आ चुका था।

"लेकिन आपको मेरे बारे में किसने बताया कि मैं मुसीबतजदा हसीनाओं की मदद आधी रात को भी सिर के बल चल कर करता हूँ" मैं अब अपनी जासूस वाली फोम में आता जा रहा था।

"मैं आपको नही जानती, मेरे पीछे तो कुछ लोग लगे हुए थे, मैं तो उनसे बचने के लिए आपके फ्लैट का दरवाजा पीटने लगी थी" उन मोहतरमा ने जो बोला था, वो मेरे लिए अनपेक्षित था ।

ऐसे कोई जबकि सर्दियो के दिनों में आठ बजते ही आधी रात का आलम लगने लगता है, क्यो किसी अंजान के घर मे ऐसे घुसेगा और न सिर्फ घुसेगा बल्कि आकर आराम से आकर बेड पर भी बैठ जाएगा।

"आप हो कौन, और कौन लोग है जो आपकीं जान लेना चाहते है" मैंने एक स्वभाविक सवाल किया।

"मेरा नाम अनामिका है, मै यही आपके इलाके के सेक्टर ग्यारह में रहती हूँ, मैं इधर किसी काम से आई थी, लेकिन जब मैं घर वापिस जा रही थी, तो मैंने देखा कि चार लोग मेरा पीछा कर रहे थे, मैं उन्हें देख कर घबरा गई और भागने लगी, तभी आपके फ्लैट पर नजर पड़ी, आपकी लाइट भी जली हुई थी, तो आपके फ्लैट का दरवाजा पीटने लगी" अनामिका ने बोला।

"उन लोगो को आपने पहले भी कभी अपने पीछे आते हुए देखा है, या आज ही देखा था" मै अब उससे सवाल जवाब करने के मूड में आ गया था।

"उन लोगो को तो मैंने आज ही देखा था, लेकिन मुझे कई दिनों से लग रहा है कि कोई मेरा पीछा कर रहा है" अनामिका ने रहस्यमय तरीके से बोला।

"ऐसा लगने का कोई कारण भी तो होना चाहिए, क्या आपको किसी से अपनी जान का खतरा है" मैंने उसके जवाब में से ही सवाल ढूंढा।

"खतरा तो मेरी जान को बहुत है, मुझे नही पता कि मौत किस पल मेरा शिकार कर ले" अनामिका की आवाज से ही ये बोलते हुए उसका डर झलक रहा था।

"कौन लेना चाहता है तुम्हारी जान" मैंने फिर से उसी सवाल को घुमा फिरा कर पूछा।

"धीरज!पूरा नाम उसका धीरज खत्री है" अनामिका ने मुझे उस बन्दे का नाम बताया।

"आप धीरज को कैसे जानती है" मेरा ये पूछना स्वभाविक था।

"किसी समय वो मेरा बॉयफ्रेंड था, लेकिन जल्दी ही मुझे ये एहसास ही गया कि मैंने गलत आदमी से प्यार कर लिया है, उसके बाद मैंने उससे अपने रिलेशन ख़त्म कर लिये, और दूसरी जगह शादी कर ली, उसके बाद से वो बन्दा मेरी जान का दुश्मन बना हुआ है" अनामिका ने पूरी बात बताई।

"देखिए मैं एक डिटेक्टिव हूँ… मेरा पाला हर रोज ऐसे लोगो से ही पड़ता है, आप मेरा ये कार्ड रख लीजिए, और कल मेरे आफिस आकर मुझे सभी कुछ डिटेल में बताइये, हो सकता है, इसके बाद आपका बॉयफ्रेंड फिर कभी आपको परेशान न करे" मैंने उसको विश्वास दिलवाने वाले शब्दो मे बोला।

"अगर आपने सच मे मेरा उस आदमी से पीछा छुड़ा दिया तो, आपको आपके वजन के बराबर नोट से तोल दूँगी" अनामिका ने उत्साहित स्वर में बोला।

"लेकिन मैडम इतना बता दीजिए कि वो नोट दस के होंगे या दो हजार के होंगे" मैंने उसकी बात का झोल पकड़ते हुए बोला।:D

मेरी बात सुनकर वो नाजनीन न केवल मुस्कराई बल्कि खिलखिलाकर हँस भी पड़ी।

"आप बहुत हाजिर जवाब हो रोमेश साहब" अनामिका ने मेरा नाम मेरे विजिटिंग कार्ड पर पढ़ते हुए बोला।

"चलिये अब मैं आपको आपके घर छोड़ देता हूँ, वैसे भी रात अब गहरी होती जा रही है" मैंने अनामिका की तरफ देख कर बोला।

"काफी शरीफ आदमी मालूम पड़ते हो रोमेश साहब, वरना मौसम तो आशिकाना है" उस जालिम ने एकाएक ऐसी बात बोलकर मेरे दिल के तारों को झंकृत कर दिया।

"इस मौसम की वजह से ही तो बोल रहा हूँ, आपके कपडे गीले हो चुके है, घर आपका पास में ही है, मैं अपको घर छोड़ देता हूँ, ताकि आप इन गीले कपड़ो से छुटकारा पा सको" मैंने अनामिका की बात को एक नया मोड़ दिया।

"लेकिन मैं अभी घर नही जाना चाहती हूँ, मेरे पति भी आज घर पर नही है, और मुझे ऐसे हालात में डर भी बहुत लगेगा"

अनामिका अब सीधे सीधे मेरे गले पड़ रही थी। जबकि मेरी छटी इंद्री मुझे बार बार सचेत कर रही थी।

मुझे न जाने क्यो ये लडकी खुद को जो बता रही थी,वो नही लग रही थी।

लेकिन इस बार उसने जो बहाना बनाया था, उसने मुझे कुछ बोलने लायक नही छोड़ा था।

"लेकिन देवी जी, ये बन्दा यहां अकेला रहता है, कल को किसी को पता चलेगा तो आपकी बदनामी नही होगी" मैने वो बात बोली, जो आजकल के जमाने मे अपनी अहमियत खो चुकी थी।

मेरी इस बात को अनामिका की हँसी ने सही भी साबित कर दिया था।

"किस जमाने मे जी रहे हो रोमेश बाबू, आजकल किसके पास इतनी फुर्सत है कि कोई मेरी रातों का हिसाब रखें कि मैं अपनी रात कहाँ किसके साथ बिताकर आ रही हूँ.. यार अब ये फालतू की बाते बन्द करो, और अगर एक कप कॉफी पिला सकते हो तो पिला दो" अनामिका मेरे गले पड़ने में कामयाब हो चुकी थी।

मैं मरता क्या न करता के अंदाज में अपने किचन की ओर चल दिया।

कॉफी की जरूरत तो मुझे भी थी। इसलिए मैंने कॉफी के लिये कोई आना कानी नही की।

मैंने अपने बरमूडा से अपनी पिस्टस्ल को निकाल कर दराज में डाला और कॉफी बनाने के वास्ते किचन की ओर चल दिया।

मै कोई दस मिनट के बाद काफी बनाकर जब बैडरूम में पहुंचा तो अनामिका वहां नही थी।

मैंने इधर उधर नजर दौड़ाई, लेकिन वो कहीं नजर नही आई। मैंने बाथरूम की तरफ देखा, उसका दरवाजा भी बाहर से ही लॉक था।

मैने दरवाजे पर नजर डाली, दरवाजा इस वक़्त हल्का सा खुला हुआ था। मुझे तत्काल इस बात का ध्यान हो आया कि दरवाजा मैंने अनामिका के घर मे घुसते ही बन्द कर दिया था।

अब दरवाजा खुला होने का मतलब था कि चिड़िया फुर्र हो चुकी थी।

मैंने दोनो कॉफी के कप टेबल पर रखे, और अपने बेड पर धम्म से बैठ गया।

मेरी समझ मे नही आ रहा था की मेरे फ्लैट में आने का उसका मकसद क्या था, और वो जिस तरह से एकाएक गायब हुई है, उसके पीछे उसका उद्देश्य क्या था।

अचानक ही मेरे दिमाग मे एक बिजली सी कौंधी और मै अपनी जगह से उछल कर खड़ा हो गया।

मैंने तत्काल कमरे में अपनी नजर घुमाई। घर की सभी चीजें अपने स्थान पर यथावत थी।

फिर मैंने दराजो को खंगालना शुरू किया। दराज में नजर पड़ते ही मेरे होश फाख्ता हो चुके थे।

आपके इस सेवक की पिस्टल दराज से गायब थी।


जारी रहेगा________✍️
Congratulations for new Stroy :congrats:
 

Raj_sharma

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#03

सुबह होते ही मेरे फ्लैट की बेल किसी जहांगीरी घँटे की मानिंद बजने लगी थी।

एक तो वैसे ही रात को देर से सोया था, उस पर से इतनी सर्दी में सुबह सुबह रजाई में से निकलने का सितम।

मैंने एक नजर अपनी दीवार घड़ी पर डाली, अभी सुबह के सात ही बजे थे, रागिनी ने तो नौ बजे आने के लिए बोला था, इस वक़्त इतनी सुबह कौन आया होगा, ये सोचते हुए मैं मन ही मन आने वाले को गली नुमा उपमा से नवाजता हुआ दरवाजे की ओर बढ़ गया।

दरवाजा खोलते ही मुझे सुबह सुबह उस मनहूस पुलिसिये देवप्रिय की शक्ल नजर आई।

मैंने कोतुहल से उसकी तरफ देखा। इतनी सुबह उसके आने का अभिप्राय मेरी समझ से बाहर था।

उसने एक कुटिल मुस्कान से मेरी तरफ देखा।

"चलो ! तुम्हे मेरे साथ चलना होगा, माहेश्वरी साहब भी तुम्हारा बहुत बेसब्री से इंतजार कर रहे है" देवप्रिय की वो मुस्कान बोलते हुए भी उसके चेहरे से लुप्त नही हुई थी।

"क्यो ऐसा क्या हो गया, जो इतनी सुबह सुबह पुलिस को इस नाचीज़ की याद आ गई" मैंने प्रत्यक्ष में देवप्रिय से पूछा।

"पुलिस को एक लड़की की लाश मिली है, और लड़की को गोली मारी गई है, तुम्हे उस लड़की की शिनाख्त करनी है कि क्या ये वही लड़की है, जो बकौल तुम्हारे, तुम्हारी पिस्टल चुराकर भागी थी" देवप्रिय ने इस बार गंभीर स्वर में बोला था।

"ओह्ह लाश कहाँ पर मिली है" मैंने पूछा।

"अब सारे सवालों के जवाब यही पर खड़े हुए चाहिये क्या? साथ चलिये! सब पता चल जाएगा" देवप्रिय फिर से अपनी रात वाली पुलिसिया अकड़ पर उतर आया था।

"कपडे बदलने का मौका तो दीजिये, दो मिनट इंतजार कीजिये आप" ये बोलकर मैं वापिस अंदर की तरफ मुड़ गया।

इस बार देवप्रिय ने कोई प्रतिवाद नही किया, और वही खड़े रहकर मेरे बाहर आने का इंतजार करने लगा।

उसका ये इंतजार कोई दस मिनट चला। इन दस मिनट में मैंने अपने कपङे बदले, आधा अधूरा फ्रेश हुआ और बाहर निकल कर अपने फ्लैट का ताला लगाया।

उसके बाद सुबह सुबह एक लाश की शिनाख्त करने जैसे मनहूस काम के लिये उस मनहूस इंसान के साथ रवाना हो गया।

अनजानी लाश-3

मैं एसआई देवप्रिय के साथ जिस जगह पर पहुंचा था, वो जगह सेक्टर 16 की एक पुलिया थी जो ईएसआई अस्पताल से थोड़ा सा आगे जाकर सेक्टर 16 को उस रोड से जोड़ती थी।

"बड़ी जल्दी आपकी जरूरत पड़ गयी रोमेश बाबू" थाना इंचार्ज इंस्पेक्टर देवेंद्र माहेश्वरी ने मुझ पर नजर पड़ते ही बोला।

"कानून को जब भी इस बन्दे की दरकार होती है, बन्दा तो उसी वक़्त हाजिर हो जाता है" मैंने हल्की सी मुस्कान के साथ माहेश्वरी साहब को बोला।

"मेरे साथ आइए, और देखकर बताइये की कल रात को आपके घर मे घुसकर आपके पिस्टल को चुराने वाली यही लड़की थी क्या" माहेश्वरी साहब ने मेरी ओर देखकर बोला।

मैं धड़कते दिल के साथ उन झाड़ियों की तरफ बढ़ा, जिन झाड़ियों में उस लड़की की लाश पड़ी हई थी।

मैंने एक सरसरी नजर उस लड़की पर डाली और एक राहत की सांस ली।

"ये वो लड़की नही है जनाब" मैंने माहेश्वरी साहब की ओर देखकर घोषणा की।

"ध्यान से देखो, हो सकता है नींद की वजह से तुम्हारी आंखे अभी पूरी तरह से न खुली हो" माहेश्वरी साहब ने हल्के से विनोद भरे स्वर में बोला।

"जिस आदमी के दरवाजे को सुबह सुबह पुलिस खटखटाये, उस आदमी की नीदं खुलती नही है जनाब, बल्कि उड़ जाती है" मैंने माहेश्वरी साहब की बात का जवाब उन्ही के अंदाज में दिया।

"लेकिन जनाब मृतका के शरीर मे जो गोली का घाव नजर आ रहा है, वो बिल्कुल उसी पिस्टल से निकली गोली का हो सकता है, जिसकी गुमशुदगी की रपट रोमेश साहब ने कल रात को ही लिखवाई है" देवप्रिय ने मेरी ओर अपनी शक्की निग़ाहों को डालते हुए बोला।

".32 बोर की पिस्टल क्या पूरे हिंदुस्तान में सिर्फ एक ही शख्स के पास हो सकती है क्या, और बिना पिस्टल की बरामदगी के तुम ये कैसे साबित करोगे की मृतका को लगी गोली उसी पिस्टल से निकली है" मैने उस लड़की के सीने में लगी गोली के घाव को देखते हुए बोला।

"यही बात तो हमारी शक की सुई तुम्हारी और घुमा रही है रोमेश बाबू, आपने इस लड़की को मारने के लिये अपने जासूसी दिमाग का बखूबी इस्तेमाल किया है, पहले अपने पिस्टल के गुम होने की झूठी रिपोर्ट लिखवाई, और फिर उसी पिस्टल से इस लड़की को मारकर अब मासूम बनने का दिखावा कर रहे हो" देवप्रिय एक तरीके से मुझें क़ातिल साबित करने की पूरी थ्योरी बना चुका था।

"मैं खामख्वाह क्यो किसी लड़की को क्यो मारूंगा, मैं तो इस लड़की को जानता भी नही, मैं तो इस लड़की को पहली बार देख भी रहा हूँ तो इस मुर्दा हालत में" मैने देवप्रिय की बात का तुरन्त प्रतिवाद किया।

"तुम इस लड़की को जानते हो या नही, या इससे पहले इसे कभी देखा है या नहीं, ये सब अब हमारी जांच का विषय है रोमेश बाबू" देवप्रिय अब अपने पुलिसिया हथकंडों पर उतर आया था।

"फिर जांच करके पहले साबित कीजिये, साबित कीजिये कि मैं इस लडक़ी को जानता हूँ, साबित कीजिये कि इसको मारने के पीछे मेरा क्या उद्देशय रहा होगा, उसके बाद आप मुझे फांसी पर लटका देना, अगर मुझे इस लड़की को मारना ही होता तो क्या मैं इतना बेवकूफ था, की जिस हथियार से इसे मारूंगा, उसी की गुम होने की रिपोर्ट लिखवाकर पहले से ही खुद को पुलिस की नजर में ले आऊं, आप बताइये, अगर मैं रात को आपके पास रिपोर्ट लिखवाने न आया होता तो क्या आप सुबह सुबह मेरे घर पर आ सकते थे, क्या
आपको सपना आना था कि मैं इस लड़कीं को मारकर यहां डालकर अपने घर पर जाकर सो गया हूँ" मैं एक ही सांस में उस पुलिसिये की खबर लेता चला गया।

उसके पास इस वक़्त मेरी एक भी बात का जवाब नही था। उसने आहत नजरो से अपने साहब की तरफ देखा।

"रोमेश की बात में दम है देवप्रिय, पहले हमें इस लड़की के बारे में जानना चाहिए कि ये लड़की है कौन, यहां इसकों मारकर कौन डाल गया है" माहेश्वरी ने मेरा बचाव करते हुए कहा।

"लेकिन जनाब शक तो इस आदमी पर भी बनता ही है, इसे ऐसे ही कैसे जाने दे सकते है" देवप्रिय ने बुझे हुए स्वर में बोला।

"हम रोमेश को कभी भी पूछताछ के लिए तलब कर सकते है, इन पर इतना भरोसा तो हम कर ही सकते है कि ये पुलिसिया पूछताछ से बचने के लिये कही गायब नही होंगे" माहेश्वरी साहब देवप्रिय से ज्यादा मेरे बारे में ज्यादा जानते थे।

"आप इस बात से निश्चिन्त रहिये सर! इस केस को सुलझाने के लिए मैं साये की तरह से आपके साथ रहूंगा, मेरे गायब होने की बात तो भूल ही जाइये, इलाके के बीसी को सिर्फ हफ्ते में एक बार थाने में हाजिरी देने के लिए बोला जाता हैं, मैं रोज आपके दरबार मे हाजिरी लगाऊंगा" मैने माहेश्वरी साहब की ओर देखकर बोला।

"ठीक है अब तो, ये रोज तुम्हारी नजरो के सामने रहेंगे, जिस दिन भी इस केस में इसके खिलाफ कुछ भी मिले, उसी दिन इसे पकड़कर लॉकअप में डाल देना" ये बोलकर माहेश्वरी साहब अभी देवप्रिय की तरफ देख ही रहे थें, की फोरेंसिक की टीम, फ़ोटोग्राफर और एम्बुलेंस तीनो एक साथ वहां अपनी आमद दर्ज करवा चुके थे।

देवप्रिय मेरी और तीरछी निग़ाहों से घूरता हुआ, आगे की जरूरी कार्यवाही के लिये फोरेंसिक टीम की ओर बढ़ गया।

मैं वही माहेश्वरी साहब के साथ एक कोने में जाकर खड़ा हो गया था।

"वैसे एक बात सच सच बोलो, वाकई ये लड़की वो नही है, जो कल रात को तुम्हारे घर मे घुसी थी" माहेश्वरी साहब ने ये पूछकर ये सिद्ध कर दिया था कि पुलिस वाला आख़िरकार पुलिसवाला ही होता है, उसकी वर्दी पर चाहे कितने सितारे टंगे हो।

"वो लड़की इससे कई हजार गुना सुंदर थी, और जब वो मेरे घर मे घुसी थी तब वो बुरी तरह से भीगी हुई थी, उसके भीगे हुए कपडो से मेरे बेड की वो जगह अभी तक गीली होगी, जहां पर आकर वो लड़की बैठी थी, जबकि ये लड़की तो किसी भी एंगल से नही लग रही है कि ये रात को बरसात में बुरी तरह से भीगी होगी" मैंने एक नई थ्योरी से भी माहेश्वरी साहब को अवगत करवाया।

"तुम अपनी जगह सही हो रोमेश, लेकिन मेरा एक मशविरा है, जितनी जल्दी हो सके अपनी पिस्टल को बरामद कर लो, नही तो आने वाले समय मे कोई भी नई मुसीबत तुम्हारे सामने खड़ी हो सकती है, मैं हर बार अपने मातहत की बात को काटकर उसे नजरअंदाज नही कर सकता हूँ, अगर ये सब कर रहा हूँ तो, सिर्फ इसलिए, क्यो कि मै तुम्हारे ट्रैक को अच्छी तरह से जानता हूँ" माहेश्वरी साहब ने मुझे मेरा हितेषी बनकर अपनी सलाह से नवाजा था।

फोरेंसिक वालो के विदा होते ही मैं भी वहां से अपने फ़्लैट पर आ गया।

अभी दरवाजा खोलकर अंदर घुसा ही था कि रागिनी ने भी मेरे पीछे ही फ्लैट में प्रवेश किया।

"कहीं बाहर से आ रहे हो क्या" रागिनी ने अपना बैग टेबल पर रखते हुए बोला।

"सुबह सुबह एक लाश की शिनाख्त करके आ रहा हूँ, अब इस इलाके में जितने भी मर्डर होंगे, पुलिस सोचेगी की वो मेरी ही पिस्टल से हुए है, इसलिये अब जब तक मेरी पिस्टल नही मिल जाती, मुझे ऐसे ही परेशान करेगे" मैने तपे हुए स्वर में रागिनी को बोला।

"ये तो है, इसलिए पिस्टल को हमे जल्द से जल्द ढूंढना पड़ेगा" रागिनी भी चिंतित स्वर में बोली।

"लेकिन सवाल तो यही है कि कैसे ढूंढे" मैने रागिनी की ओर देखकर बोला।

"यहां आसपास कोई सीसी टीवी कैमरा लगा हुआ है क्या, क्या पता वो लड़की किसी कैमरे की पकड़ में आई हो" रागिनी ने सही दिशा में सोचा था।

"मैंने कभी ध्यान नही दिया है, लेकीन कैमरे आसपास लगे हुए तो जरूर होंगे" मैने रागिनी की बात से सहमती जताई।

"चलो फिर सबसे पहले उन कैमरों को ही ढूंढते है, फिर उनके मालिकों से उनकी फुटेज दिखाने की गुजारिश करते है" रागिनी ने अपनी जगह से उठते हुए बोला।

"अरे पहले कुछ खा पी तो लेने दो, सुबह सात बजे से भूखा प्यासा गया हुआ था" मैंने रागिनी को बोला।

"मैं लाई हूँ ब्रेकफास्ट घर से, तुम इतने फ्रेश हो जाओ, मैं तब तक काफी बनाती हूँ" रागिनी पहले से ही समझदारी वाला काम करके आई थी।

मैंने एक मुस्कराहट भरी नजर रागिनी पर डाली, और बाथरूम में घुस गया।


जारी रहेगा_____✍️
 
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