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Horror कामातुर चुड़ैल! (Completed)

Darkk Soul

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अपडेट १५#

अब तक आपने पढ़ा -

अगले 15 दिनो तक यही दिनचर्या रहती है, और अमावस्या के अगले दिन कुलगुरु राजा रानी के साथ वापस लौट जाते हैं।

कुछ दिन बाद रानी की तबियत कुछ खराब होती है, और वैध उनको देख कर खुशखबरी सुना देता है, कि रानी मां बनने वाली हैं....

अब आगे -



ये सुन कर पूरे महल में हर्ष के लहर दौड़ उठती है, राजा फौरन अपने मंत्री सुजान और सेनापति विक्रम को बुला कर मंत्राणा करते है, जहां पता चलता है कि वो दोनों भी पिता बनने वाले हैं। तीनों मित्र एक साथ इस सुख को प्राप्त करने वाले थे ये बात जा कर पूरे राज्य में खुशियां मनाई जाने लगी।

नियत समय पर रानी ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया साथ ही साथ सुजान सिंह के घर भी एक कन्या और विक्रम के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। पूरा राज्य उत्सव में डूब गया आखिर इतने वर्षों के बाद उनके राज्य में ये खुशियां आई थी।

तीनों बच्चों का नामकरण संस्कार एक साथ किया गया जिसमे कुलगुरु और भैंरवी भी आए थे। कुलगुरु ने राजा की पुत्री का नाम युविका, मंत्री की पुत्री का नाम सुनैना और सेनापति के पुत्र का नाम कुमारसंभव रखा।

तीनों बच्चों का लालन पोषण एक साथ होने लगा और तीनों भी आपस में घुल मिल कर रहते थे। समय आने पर तीनो को कुलगुरु के आश्रम में शिक्षा के लिए भेजा गया। जहां तीनो एक साथ रह कर ग्रहण करने लगे।

भैंरवी जो वहीं आश्रम के पास में ही रहती थी उसे युविका से कुछ ज्यादा ही प्रेम था, क्योंकि उसकी तंत्र साधना से ही युविका का जन्म संभव हुआ था, और वही परस्पर लगाव युविका का भी भैंरवी के प्रति था। युविका बहुत ही चंचल और जिद्दी होने के साथ साथ जिज्ञासु भी बहुत थी, वो कई बार भैंरवी को साधना करते देखती थी और धीरे धीरे उसकी भी रुचि तंत्र में जगने लगी। उसके कहने पर भैंरवी ने युविका को कुछ जानकारी दी, जिसके बल बूते युविका खुद भी तंत्र साधना करने लगी।

समय बीतता गया और तीनों युवावस्था की दहलीज पर पहुंचे, मन में कई भावनाएं उमड़ने लगी। कुमार और सुनैना एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए, और वहीं युविका कुमार के एकतरफा प्यार में पड़ गई। हालांकि अभी ये बात तीनों ने एक दूसरे को नही बताई थी, इसीलिए तीनों की दोस्ती वैसी ही रही, और उनका शिक्षण कार्य भी जारी रहा।

धीरे धीरे उनमें शारीरिक परिवर्तन भी आने लगा, और वो अपने शरीर की जरूरतों को समझने की कोशिश करने लगे। एक ओर जहां कुमार और सुनैना ने इस परिवर्तन को आराम से ग्रहण कर लिया, वहीं युविका इसे सही से समझ भी नही पा रही थी, और उसमे कामुक भावनाओं का उन्माद कुछ ज्यादा ही रहने लगा, शायद ये विधाता की मर्जी के विरुद्ध जाने का नतीजा था। धीरे धीरे युविका न सिर्फ अपने शरीर को समझने लगी, उसे अब लड़कों के शरीर में भी रुचि जगने लगी, इसका शायद एक ये भी कारण था कि, उसने कई बार महल में काम करने वाले को बीच इन संबंधों को बनते हुए भी चोरी छुपे देखा था। उसके मन में काम के प्रति जिज्ञासा दिन पर दिन और बढ़ने लगी, लेकिन उसके सारे सपने बस कुमार को ले कर ही थे, और वो इस बात से अनजान की कुमार और सुनैना के बीच प्रेम और गहरा होता जा रहा है।

ऐसे ही एक बार होली के समय की बात है जब युविका अपने प्रेम का इजहार करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो गई, और उसने होलिका की रात को इसके लिए चुना, उसने सोचा कि होलिका दहन के बाद जब कुमार अपने घर की ओर जाने लगेगा तब रास्ते में ही वो कुमार से अपनी दिल की बात कहेगी।

राजा सुरेंद्र होलिका दहन का कार्यक्रम अपने महल के प्रांगण में करते थे, ताकि अगली सुबह सारी प्रजा महल से ही रंग खेलने का कार्यक्रम शुरू कर सके। तो इस बार भी वैसा ही आयोजन किया गया, लेकिन इसकी सारी जिम्मेवारी युवाओं को दी गई थी, और युविका, कुमार और सुनैना भी इसका हिस्सा थे। इसी क्रम में होलिका की सुबह को ये तीनो और कुछ और लोग जंगल से लकड़ियां लाने गए हुए थे। वहां सब लोग अलग अलग लकड़ी चीन रहे थे, युविका थोड़ा किनारे हो गई, और बाद में सबको ढूंढते हुए उसे एक तरफ से कुछ आवाजें सुनाई दी, जैसे कोई 2 लोग आपस में धीरे धीरे बात कर रहे हों। उसके मन तो पहले से ही काम क्रीड़ा देखने का कौतूहल रहता था, इसीलिए वो आवाज का पीछा करते हुए उस जगह पर पहुंची और छुप कर देखने लगी की क्या हो रहा है।

पेड़ों के झुरमुट के बीच उसे कुमार और सुनैना दिखाई दिए जो हाथो में हाथ डाल कर एक दूसरे में खोए हुए थे। तभी कुमार ने आगे बढ़ कर सुनैना के माथे को चूम लिया, फिर आंखों को और फिर वो उसके होठों की ओर बढ़ा तो सुनैना ने अपने होठों पर हाथ रख कर उसे रोका और कहा, "ये सब अभी नही, समझो।"

इतना सुनते ही कुमार रुका गया और मासूम सा चेहरा बना कर सुनैना को देखने लगा, जिसे देख सुनैना ने उसको गले से लगा लिया और खुद उसके गालों पर एक चुम्बन अंकित कर दिया।

सुनैना: अब खुश? अच्छा ये बताओ आपने चाचा जी से हमारे बारे में बात की?

कुमार: बस आज रुक जाओ, कल होली के शुभ अवर पर ही ये शुभ बात करूंगा।

सुनैना: कुमार, अब देर मत करो, अब मुझसे भी बर्दास्त नही हो रहा, अब मैं बस तुम्हारी ही होना चाहती हूं। इस बात को अब और मत टालो, कल जरूर से बात कर लेना इस बारे में।

कुमार: तुम चिंता क्यों करती हो नैनू, वैसे भी सब तुमको पसंद करते हैं, कोई मना नहीं करेगा इस बात के लिए। चलो अब चलते हैं, सब हमको ढूंढ रहे होंगे।

और वो दोनो वहां से निकल जाते हैं।


युविका को ये सुन कर झटका लगता है की जिस कुमार को वो बचपन से चाहती आ रही है, वो सुनैना से प्यार करता है। उसका मन उदास हो जाता है ये सब जान कर, मगर उसका जिद्दी चित्त उसे चैन नहीं लेने देता, और वो कुछ सोच कर एक कुटिल मुस्कान के साथ सबके पास चली जाती है.....

Nice. Really Nice.
बस, मन बेचैन रहेगा की आखिर युविका को कौन सा उपाय सूझा? कुछ बिगाड़ने वाला उपाय ही सोची होगी कमीनी... और हमारे Riky007 भाईसाहब न जाने कब अगला अपडेट दें.
कुमार: तुम चिंता क्यों करती हो नैनू,

नैनू??!!

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Riky007

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बस, मन बेचैन रहेगा की आखिर युविका को कौन सा उपाय सूझा? कुछ बिगाड़ने वाला उपाय ही सोची होगी कमीनी... और हमारे Riky007 भाईसाहब न जाने कब अगला अपडेट दें.


नैनू??!!

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नैन लिख रहा था, u extra पड़ गया :laughing:
 

sunoanuj

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Ek number

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अगले 15 दिनो तक यही दिनचर्या रहती है, और अमावस्या के अगले दिन कुलगुरु राजा रानी के साथ वापस लौट जाते हैं।

कुछ दिन बाद रानी की तबियत कुछ खराब होती है, और वैध उनको देख कर खुशखबरी सुना देता है, कि रानी मां बनने वाली हैं....

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ये सुन कर पूरे महल में हर्ष के लहर दौड़ उठती है, राजा फौरन अपने मंत्री सुजान और सेनापति विक्रम को बुला कर मंत्राणा करते है, जहां पता चलता है कि वो दोनों भी पिता बनने वाले हैं। तीनों मित्र एक साथ इस सुख को प्राप्त करने वाले थे ये बात जा कर पूरे राज्य में खुशियां मनाई जाने लगी।

नियत समय पर रानी ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया साथ ही साथ सुजान सिंह के घर भी एक कन्या और विक्रम के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। पूरा राज्य उत्सव में डूब गया आखिर इतने वर्षों के बाद उनके राज्य में ये खुशियां आई थी।

तीनों बच्चों का नामकरण संस्कार एक साथ किया गया जिसमे कुलगुरु और भैंरवी भी आए थे। कुलगुरु ने राजा की पुत्री का नाम युविका, मंत्री की पुत्री का नाम सुनैना और सेनापति के पुत्र का नाम कुमारसंभव रखा।

तीनों बच्चों का लालन पोषण एक साथ होने लगा और तीनों भी आपस में घुल मिल कर रहते थे। समय आने पर तीनो को कुलगुरु के आश्रम में शिक्षा के लिए भेजा गया। जहां तीनो एक साथ रह कर ग्रहण करने लगे।

भैंरवी जो वहीं आश्रम के पास में ही रहती थी उसे युविका से कुछ ज्यादा ही प्रेम था, क्योंकि उसकी तंत्र साधना से ही युविका का जन्म संभव हुआ था, और वही परस्पर लगाव युविका का भी भैंरवी के प्रति था। युविका बहुत ही चंचल और जिद्दी होने के साथ साथ जिज्ञासु भी बहुत थी, वो कई बार भैंरवी को साधना करते देखती थी और धीरे धीरे उसकी भी रुचि तंत्र में जगने लगी। उसके कहने पर भैंरवी ने युविका को कुछ जानकारी दी, जिसके बल बूते युविका खुद भी तंत्र साधना करने लगी।

समय बीतता गया और तीनों युवावस्था की दहलीज पर पहुंचे, मन में कई भावनाएं उमड़ने लगी। कुमार और सुनैना एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए, और वहीं युविका कुमार के एकतरफा प्यार में पड़ गई। हालांकि अभी ये बात तीनों ने एक दूसरे को नही बताई थी, इसीलिए तीनों की दोस्ती वैसी ही रही, और उनका शिक्षण कार्य भी जारी रहा।

धीरे धीरे उनमें शारीरिक परिवर्तन भी आने लगा, और वो अपने शरीर की जरूरतों को समझने की कोशिश करने लगे। एक ओर जहां कुमार और सुनैना ने इस परिवर्तन को आराम से ग्रहण कर लिया, वहीं युविका इसे सही से समझ भी नही पा रही थी, और उसमे कामुक भावनाओं का उन्माद कुछ ज्यादा ही रहने लगा, शायद ये विधाता की मर्जी के विरुद्ध जाने का नतीजा था। धीरे धीरे युविका न सिर्फ अपने शरीर को समझने लगी, उसे अब लड़कों के शरीर में भी रुचि जगने लगी, इसका शायद एक ये भी कारण था कि, उसने कई बार महल में काम करने वाले को बीच इन संबंधों को बनते हुए भी चोरी छुपे देखा था। उसके मन में काम के प्रति जिज्ञासा दिन पर दिन और बढ़ने लगी, लेकिन उसके सारे सपने बस कुमार को ले कर ही थे, और वो इस बात से अनजान की कुमार और सुनैना के बीच प्रेम और गहरा होता जा रहा है।

ऐसे ही एक बार होली के समय की बात है जब युविका अपने प्रेम का इजहार करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो गई, और उसने होलिका की रात को इसके लिए चुना, उसने सोचा कि होलिका दहन के बाद जब कुमार अपने घर की ओर जाने लगेगा तब रास्ते में ही वो कुमार से अपनी दिल की बात कहेगी।

राजा सुरेंद्र होलिका दहन का कार्यक्रम अपने महल के प्रांगण में करते थे, ताकि अगली सुबह सारी प्रजा महल से ही रंग खेलने का कार्यक्रम शुरू कर सके। तो इस बार भी वैसा ही आयोजन किया गया, लेकिन इसकी सारी जिम्मेवारी युवाओं को दी गई थी, और युविका, कुमार और सुनैना भी इसका हिस्सा थे। इसी क्रम में होलिका की सुबह को ये तीनो और कुछ और लोग जंगल से लकड़ियां लाने गए हुए थे। वहां सब लोग अलग अलग लकड़ी चीन रहे थे, युविका थोड़ा किनारे हो गई, और बाद में सबको ढूंढते हुए उसे एक तरफ से कुछ आवाजें सुनाई दी, जैसे कोई 2 लोग आपस में धीरे धीरे बात कर रहे हों। उसके मन तो पहले से ही काम क्रीड़ा देखने का कौतूहल रहता था, इसीलिए वो आवाज का पीछा करते हुए उस जगह पर पहुंची और छुप कर देखने लगी की क्या हो रहा है।

पेड़ों के झुरमुट के बीच उसे कुमार और सुनैना दिखाई दिए जो हाथो में हाथ डाल कर एक दूसरे में खोए हुए थे। तभी कुमार ने आगे बढ़ कर सुनैना के माथे को चूम लिया, फिर आंखों को और फिर वो उसके होठों की ओर बढ़ा तो सुनैना ने अपने होठों पर हाथ रख कर उसे रोका और कहा, "ये सब अभी नही, समझो।"

इतना सुनते ही कुमार रुका गया और मासूम सा चेहरा बना कर सुनैना को देखने लगा, जिसे देख सुनैना ने उसको गले से लगा लिया और खुद उसके गालों पर एक चुम्बन अंकित कर दिया।

सुनैना: अब खुश? अच्छा ये बताओ आपने चाचा जी से हमारे बारे में बात की?

कुमार: बस आज रुक जाओ, कल होली के शुभ अवर पर ही ये शुभ बात करूंगा।

सुनैना: कुमार, अब देर मत करो, अब मुझसे भी बर्दास्त नही हो रहा, अब मैं बस तुम्हारी ही होना चाहती हूं। इस बात को अब और मत टालो, कल जरूर से बात कर लेना इस बारे में।

कुमार: तुम चिंता क्यों करती हो नैनू, वैसे भी सब तुमको पसंद करते हैं, कोई मना नहीं करेगा इस बात के लिए। चलो अब चलते हैं, सब हमको ढूंढ रहे होंगे।

और वो दोनो वहां से निकल जाते हैं।


युविका को ये सुन कर झटका लगता है की जिस कुमार को वो बचपन से चाहती आ रही है, वो सुनैना से प्यार करता है। उसका मन उदास हो जाता है ये सब जान कर, मगर उसका जिद्दी चित्त उसे चैन नहीं लेने देता, और वो कुछ सोच कर एक कुटिल मुस्कान के साथ सबके पास चली जाती है.....
Nice update
 
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