“ज्ज्ज्जीईई .. म्म्ममुझे बहुत डर लग रहा है” बड़े जतन से वह सिर्फ इतना ही बोल पाई।
“आई कैन अंडरस्टैंड दैट डिअर। मैं आपको किसी भी ऐसी चीज़ को करने को नहीं कहूँगा, जिसके लिए आप रेडी नहीं हैं।”
संध्या ने समझते हुए बहुत धीरे से सर हिलाया। कुछ कहा नहीं।
मैंने उसकी लाल गोटेदार साड़ी का पल्लू उसकी छाती से हटा दिया। लाल रंग के ही ब्लाउज में कैद उसके युवा स्तन, उसकी तेज़ी से चलती साँसों के साथ ही ऊपर नीचे हो रहे थे। मेरा बहुत मन हुआ कि उसके कपड़े उसके शरीर से चीर कर अलग कर दूँ, लेकिन मेरे अन्दर उसके लिए प्यार और जिम्मेदारी के एहसास ने मुझे ऐसा करने से रोक लिया। लिहाज़ा, मेरी गति बहुत ही मंद थी। वैसे मेरे खुद के हाथ कांप रहे थे, लेकिन मैंने यह निश्चय किया था कि इस परम सुंदरी परी को आज तो मैं प्यार कर के रहूँगा।
मैंने उसकी साड़ी को उसकी कमर में बंधे पेटीकोट से जैसे तैसे अलग कर दिया और उसके शरीर से उतार कर नीचे फेंक दिया। इस समय वह सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में बैठी हुई थी। मेरी अगली स्वाभाविक पसंद (उतारने के लिए) उसका ब्लाउज थी। कितनी ही बार मैंने कल्पना कर कर के सोचा था कि मेरी जान के स्तन कैसे होंगे, और इस समय मुझे बहुत मन हो रहा था कि उसके स्तनों के दर्शन हो ही जाएँ। मैं कांपते हुए हाथ से उसके ब्लाउज के बटन धीरे-धीरे खोलने लगा। करीब तीन बटन खोलने के बाद मुझे एहसास हुआ कि उसने अन्दर ब्रा नहीं पहनी है।
“आप ब्रा नहीं पहनती?” मैंने बेशर्मी से पूछ ही लिया।
संध्या घबराहट और शर्म के मारे कुछ भी नहीं बोल पा रही थी। उसका चेहरा नीचे की तरफ झुका हुआ था, मानो वह उसके ब्लाउज के बटन खोलते मेरे हाथों को देख रही हो। उसकी तेज़ी से चलती साँसे और भी तेज़ होती जा रही थी। उसने उत्तर में सिर्फ न में सर हिलाया - और वह भी बहुत ही हलके से। खैर, यह तो मेरे लिए अच्छा था - मुझे एक कपड़ा कम उतारना पड़ता। मैंने उसकी ब्लाउज के बचे हुए दोनों बटन भी खोल दिए। उसकी त्वचा शर्म या उत्तेजना के कारण लाल होती जा रही थी। मैंने अंततः उसके ब्लाउज के दोनों पट अलग कर दिए, और मुझे उसके स्तनों के दर्शन हो गए।
संध्या के स्तन अभी भी छोटे थे - मध्यम आकार के सेब जैसे, और ठोस। उसकी त्वचा एकदम दोषरहित थी। उन पर गहरे भूरे रंग के अत्यंत आकर्षक स्तनाग्र (निप्पल्स) थे, जिनका आकार अभी छोटा लग रहा था। महिलाओं के स्तन बढ़ती उम्र, मोटापे, अक्षमता और गुरुत्व के मिले जुले कारणों से बड़े हो जाते हैं, और कई बार दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से नीचे लटक से जाते हैं। लेकिन संध्या इन सब प्रभावों से दूर, अभी अभी यौवन की दहलीज़ पर आई थी। लिहाज़ा, उसके स्तनों पर गुरुत्व का कोई प्रभाव नहीं था, और उसके स्तनाग्र भूमि के समानांतर ही सामने की ओर निकले हुए थे। संध्या के स्तन उसकी तेज़ी से चलती साँसों के साथ ही ऊपर नीचे हो रहे थे। यह सारा नज़ारा देख कर मुझे नशा सा आ गया - वाकई इन स्तनों को किसी भी ब्रा की आवश्यकता नहीं थी।
“संध्या ... यू आर सो प्रीटी! आप मेरे लिए दुनिया कि सबसे सुन्दर लड़की हैं!” यह सब कहना स्वयं में ही कितना उत्तेजनापूर्ण था - खास तौर पर तब, जब यह सारी बातें सच थी।
मुझसे अब और रहा नहीं जा रहा था। उसके जवान, ठोस स्तनों पर मैंने अपने मुंह से हमला कर दिया। मेरा सबसे पहला एहसास उसके स्तनों की महक का था - आड़ू जैसी महक! उसके चिकने चूचक पहले मुलायम थे, लेकिन मेरे चूसे और चुभलाए जाने से कड़े होते जा रहे थे। मेरे इस क्रियाकलाप का सकारात्मक असर संध्या पर भी पड़ रहा था, क्योंकि उसने उन्मादित हो कर अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकड़ लिया था। मैंने कुछ देर तक उसके स्तनों को ऐसे ही दुलार किया - लेकिन इतना होते होते संध्या और मेरा, दोनों का ही, गला एकदम शुष्क हो गया। मैंने रुक कर पास ही रखे गिलास से पानी पिया और संध्या को भी पिलाया। उसके बाद मैंने उसके ब्लाउज को उसके शरीर से अलग कर के ज़मीन पर फेंक दिया। ऐसा होते ही मेरी जान अपने में ही सिमट गई और अपने हाथो से अपनी नग्न अवस्था को छुपाने की कोशिश करने लगी। चूड़ियों और मेहंदी से भरे हाथों से ऐसा करते हुए वह और भी प्यारी लग रही थी। मैंने उसके हाथ हटाने की कोशिश नहीं की, लेकिन उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर उसके होंठों पर एक गहरा चुम्बन किया, और फिर सिलसिलेवार तरीके से चुम्बनों की बौछार कर दी।
शुरू में उसका शरीर, होंठ, चेहरा - सब कुछ - एकदम से कड़ा हो गया, शायद नर्वस होने से ... लेकिन चुम्बनों की संख्या बढ़ते रहने से वह भी धीरे-धीरे शांत होने लगी। उसने मेरी आँखों में देखा, और फिर आँखें बंद कर के चुम्बन में यथासंभव सहयोग देने लगी। उसके होंठ गर्म और मुलायम थे - एकदम शानदार! उसके मुख से मीठी सी महक आ रही थी। चुम्बन करते हुए मैं अपनी जीभ को उसके मुंह में डालने का प्रयास करने लगा। संभवतः उसको यह बात समझ में आ गई - उसने अपने होंठ ज़रा से खोल दिए। मैंने बहुत सावधानीपूर्वक अपनी जीभ उसके मुंह में प्रविष्ट कर दी। एक बात और हुई, उसने अपने हाथ अपने सीने से हटा कर, मुझे अपनी बाहों में भर लिया। संध्या के मुंह का स्वाद बहुत अच्छा था - हल्की सी मिठास लिए हुए। मैं बयान नहीं कर सकता कि यह अनुभव कितना बढ़िया था। यह एक कामुक चुम्बन था, जिसके उन्माद में अब हम दोनों ही बहे जा रहे थे। मेरे हाथ उसके चेहरे से हट कर उसकी कमर पर चले गए और वहां से धीरे धीरे उसके नितम्बों पर। मेरी उत्तेजना मुझे संध्या को अपनी तरफ भींचने को मजबूर कर रही थी। मैंने उसको अपनी तरफ खीच लिया - मुझे अपने सीने पर संध्या के स्तनों का एहसास होने लगा। इस तरह से संध्या को चूमना और भी सुखद लग रहा था।
खैर, ऐसे ही कुछ देर चूमने के बाद हम दोनों के मुंह अलग हुए। मैंने संध्या की कमर पर नज़र डाली - उसके पेटीकोट का नाड़ा ढूँढने के लिए। नाड़ा उसकी कमर से बाएं तरफ था, जिसको मैंने तुरंत ही खीच कर ढीला कर दिया। अब पेटीकोट उसके शरीर पर बस नाम-मात्र के लिए ही रह गया। उसकी स्थिति अब गया कि तब गया वाली हो गई थी। इसलिए मैंने उसको उतारने में ज़रा भी देर नहीं की। लेकिन मेरी इस जल्दबाजी में संध्या बिस्तर पर चित होकर गिर गई। पेटीकोट के उतरते ही उसने अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया - शायद अब उसको अपने स्तनों के प्रदर्शन पर उतना एतराज नहीं था, लेकिन ऐसी नग्न अवस्था में वह मुझे अपना चेहरा नहीं दिखाना चाहती थी। मेरी आशा के विपरीत, संध्या ने चड्ढी पहनी हुई थी। चड्ढी का रंग काला था। उसमें कुछ भी उल्लेखनीय नहीं था - बस रोज़मर्रा पहनी जाने वाली सामान्य सी चड्ढी थी। हाँ लेकिन एक बात है - वह चड्ढी नयी थी। सामने से देखने पर उसकी चड्ढी अंग्रेजी के "V" जैसी, कमर कि तरफ फैलाव लिए और वहां, जहाँ पर उसकी योनि थी, एक सौम्य उभार लिए हुए थी। संध्या के नितम्ब स्त्रियोचित फैलाव लिए हुए प्रतीत होते थे, लेकिन उसका कारण यह था कि उसकी कमर पतली थी। उसके शरीर का आकर वस्तुतः एक कमसिन, छरहरी और तरुण लड़की जैसा था।
मैंने और नीचे नज़र डाली। संध्या के दोनों पाँव भी मेहंदी से अलंकृत थे। दोनों ही टखनों में चांदी की पायलें थीं। उसके पैरों में मैंने ही बिछिया पहनाई थी। उसके दोनों पाँव के निचली परिधि लाल रंग (महावर) से रंगे हुए थे। मेरी दृष्टि वापस उसके योनि क्षेत्र पर चली गई। मेरा मन हुआ कि उसकी चड्ढी भी उतार दी जाए - मेरे लिंग का स्तम्भन और कसाव बढ़ता ही जा रहा था, और मैं अब संध्या के अंदर समाहित होने के लिए व्याकुल हुआ जा रहा था। लेकिन मुझे अभी कुछ और देर उसके साथ खेलने का मन हो रहा था। मैंने पलंग पर संध्या के काफी पास अपने घुटने पर बैठ कर, अपना कुर्ता उतार दिया। अब मैंने सिर्फ चूड़ीदार पजामा और उसके अन्दर स्लिम फिट चड्ढी पहनी हुई थी।
“संध्या ..?” मैंने उसको आवाज़ लगाई।
“जी?” बहुत देर बाद उसने अपना चेहरा ढके हुए ही बोला।
“आपको मेरा एक काम करना होगा ....” मेरे आगे कुछ न बोलने पर उसने अपने चेहरे से हाथ हटा कर मेरी तरफ देखा।
“जी ... बोलिए?” मेरे कसरती शरीर को देख कर उसको और भी लज्जा आ गई, लेकिन इस बार उसने छुपने का प्रयास नहीं किया।
“अपने हाथ मुझे दीजिए”
उसने थोड़ा सा हिचकिचाते हुए अपने हाथ आगे बढ़ाए, जिनको मैंने अपने हाथों में थाम लिया, और फिर अपने पजामे के कमर के सामने वाले हिस्से पर रख दिया।
“यह पजामा आपको उतारना पड़ेगा। आपके कपड़े उतार-उतार कर मैं तो थक गया।” मैंने मुस्कुराते हुए उससे कहा।
उसने पहले तो थोड़ा सा संकोच दिखाया, लेकिन फिर मेरी बात मान कर इस काम में लग गई। उसने बहुत सकुचाते हुए मेरे पजामे का नाड़ा ढीला कर दिया और मेरे पजामे को धीरे से सरका दिया। मेरी चड्ढी के अन्दर मेरा लिंग बुरी तरह कस जा रहा था, और अब मेरा मन था कि लिंग को मेरी चड्ढी के बंधन से अब मुक्त कर संध्या के नरम, गरम और आरामदायक गहराई में समाहित कर दिया जाए। मेरी चड्ढी के वस्त्र को बुरी तरह से धकेलते हुए मेरे लिंग को संध्या भी बड़े कौतूहल से देख रही थी।
“इसे भी..” मैंने उसको उकसाया। मेरा इशारा मेरी चड्ढी की तरफ था।
संध्या को फिर से घबराहट होने लग गई.. उसने न में सर हिलाया। यह देख कर मैंने उसके हाथ पकड़ कर जबरदस्ती अपनी चड्ढी कि इलास्टिक पर रख दिया और उसको नीचे कि तरफ खीच दिया। और इसके साथ ही मेरा अति-उत्तेजित लिंग मुक्त हो गया।
“बाप रे!” संध्या के मुंह से निकल ही गया, “इतना बड़ा!”
संध्या की दृष्टि मेरे कस के तने हुए लिंग पर जमी हुई थी।
जैसा कि मैंने पहले भी उल्लेख किया है, मेरा शरीर शरीर इकहरा और कसरती है। और उसमें से इतने गर्व से बाहर निकले हुए मेरा लिंग (गाढ़े भूरे रंग का एक मोटा स्तंभ, जिसकी लम्बाई सात इंच और मोटाई संध्या की कलाई से भी ज्यादा है) देखकर वह निश्चित रूप से घबरा गई थी। चड्ढी नीचे सरकाने कि क्रिया में मेरे लिंग का शिश्नग्रछ्छद स्वयं ही थोड़ा पीछे सरक गया और लिंग के आगे का गुलाबी चमकदार हिस्सा कुछ-कुछ दिखाई देने लगा। संध्या को मेरे लिंग को इस प्रकार देखते हुए देख कर मेरा शरीर कामाग्नि से तपने लग गया - संभवतः संध्या भी इसी तरह कि तपन खुद भी महसूस कर रही थी।
उसको अचानक ही अपनी कही हुई बात, अपनी स्थिति, और अपने साथ होने वाले क्रियाकलाप का ध्यान हो आया। उसने लज्जा से अपना मुंह तकिये में छुपा लिया। लेकिन उसका हाथ मुक्त था - मैंने उसको पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया। उसकी हथेली मेरे लिंग के गिर्द लिपट गई। घेरा पूरा बंद नहीं हुआ। मेरा संदेह सही था - संध्या का हाथ तप रहा था। उसके हाथ को पकडे-पकडे ही मैंने अपने लिंग को घेरे में ले लिया और ऐसे ही घेरे हुए अपने हाथ को तीन चार बार आगे पीछे किया, और अपना हाथ हटा लिया। संध्या अभी भी मेरे लिंग को पकड़े हुए थी, हाँलाकि वह आगे पीछे वाली क्रिया नहीं कर रही थी। मेरे लिंग की लम्बाई का कम से कम आधा हिस्सा उसके हाथ की पकड़ से बाहर निकला हुआ था। लेकिन इस तरह से सजे हुए कोमल हाथ से घिरा हुआ मेरा लिंग मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
“जी.... हमें शरम आती है” उसने अंततः तकिये से अपना चेहरा अलग करके कहा। उसकी आवाज़ पहले जैसी मीठी नहीं लगी - उसमे अब एक अलग ही तरह की कर्कशता थी - मैंने सोचा कि शायद वह खुद भी उत्तेजित हो रही है। लिहाजा मैंने इस तथ्य को नज़रअंदाज़ कर दिया।
“अपने पति से शर्म? ह्म्म्म ... चलिए, आपकी शर्म दूर कर देते हैं।” कहते हुए मैंने उसकी चड्ढी को नीचे सरका दी।
मेरी इस हरकत से संध्या शर्म से दोहरी होकर अपने में ही सिमट गई। कहाँ मैंने उसकी शरम मिटानी चाही थी, और कहाँ यह तो और भी अधिक शरमा गई। कोई दो पल बाद ही मुझे उसका शरीर थिरकता हुआ लगा - ठीक वैसे ही जैसे सुबकने या सिसकियाँ लेते समय होता है। मारे गए..... संभवतः मेरी हरकतों ने उसकी भावनाओं को किसी तरह से ठेस पहुंचा दी थी।