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Romance कायाकल्प [Completed]

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tuba javed

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very good story.

maine is website pe account sirf aap ki is kahani ke liye hi banaya hai. Aap se request hai ke aapko jub bhi time mile yaha bhi update date rahe.

or jo log aapki story ko kahi or copy-paste kar rahe hai, unke bare me jayada tension na le. wo sirf aapke likhe hua words chura sakte hai aapka talent nahi
 

Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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very good story.

maine is website pe account sirf aap ki is kahani ke liye hi banaya hai. Aap se request hai ke aapko jub bhi time mile yaha bhi update date rahe.

or jo log aapki story ko kahi or copy-paste kar rahe hai, unke bare me jayada tension na le. wo sirf aapke likhe hua words chura sakte hai aapka talent nahi


सही कहा। शब्द चुराए जा सकते हैं। शब्दों में जान डालने का हुनर चुराया नहीं जा सकता।

आशु
 
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********************

सोमवार सवेरे ही रूद्र की कार दुर्घटना की खबर आई।

मुझ पर तो मानो वज्रपात हुआ। खबर सुनते ही मुझे चक्कर आ गया, और मैं जहाँ खड़ी थी, वही गिर गई।

“रूद्र प्रताप सिंह को जानती हैं?” फ़ोन के उस तरफ से दो टूक सवाल किया गया।

“...जी हाँ!”

“आप?”

“जी मैं उनकी.. रिलेटिव हूँ” मैंने हिचकिचाते ही कहा, “... क्यों?”

“ओके.. उनका एक्सीडेंट हुआ है मैडम...” उधर से उत्तर सुन कर मेरा मन जोर जोर से धड़कने लगा। सोचने लगी की कहीं रूद्र को कुछ हो तो नहीं गया...।

“आप प्लीज ठीक ठीक बताइए...”

"... आप जल्दी से अपोलो हॉस्पिटल आ जाइए..” उधर फिर से दो टूक आवाज़ आई।

“आप बताएँगे तो?”

“कहा न...”

“हाँ... वो मेरे रिलेटिव हैं..। सब ठीक तो है।“ मैंने घबराते हुए पूछा।

“खबर ठीक नहीं है।“

“...क्या मतलब...?”

“वैसे हम उनका ऑपरेशन कर रहे हैं.. लेकिन...”

“लेकिन क्या...?”

“बचने की कोई उम्मीद नहीं है। खून बहुत निकल चुका है.. और.. और देर भी काफी हो गई है..।“

इतना सुनना था की मैं बेहोश होकर वही फ़र्श पर ढेर हो गई। सहेलियों ने मेरे चेहरे पर पानी के छींटे दे देकर मुझे होश में लाया। और, थोड़ा होश आने पर मेरे साथ हॉस्पिटल पहुंचे। करने को वहाँ क्या था? बस, अनगिनत कागजों पर दस्तखत करने थे। वैसे भी इंश्योरेंस रूद्र के इलाज का पूरा खर्चा उठा ही रहा था। उनके ऑफिस से कई सारे लोग आ कर मिल चुके हैं.. कोई आश्वासन देता, कोई हिम्मत बढ़ाता, कोई सलाह देता, तो कोई मदद!

लेकिन मुझे कुछ समझ नहीं आता, कुछ सुनाई नहीं देता, कुछ दिखाई नहीं देता। बार बार आँखों के सामने कुछ ही दिनों पहले हुए आतंक के चित्र खिंच जाते। मैं वापस वैसे परिस्थितियां झेलने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी। इतने बड़े संसार में ऐसे नितांत अकेली रहना...!! बस मन में एक ख़याल रहता की भगवान्, इनको ठीक कर दो.. जल्दी! न अन्न का दाना खाया जाता, न ही जल की एक बूँद पी जाती! लेकिन जीने के लिए करना पड़ता है.. जैसे तैसे अन्न जल को अपने उदर के अन्दर धकेल कर वापस ICU के सामने बैठ जाती, की न जाने कब इनको होश आ जाए!

‘बचना मुश्किल है..’

‘खून बहुत बह चुका..’

‘बहुत देर से हॉस्पिटल लाये जा पाए..’

‘दुआ करो की बच जाएँ..’

‘अगले बहत्तर घंटे में कुछ सुधार हो तो कुछ गुंजाईश है..’

‘कमाल है.. बस होश आ जाय..’

‘जैसा सोचा था, उतना बुरा नहीं है..’

‘बच जायेंगे अब..’

‘बस, जल्दी से होश आ जाय..’

एक.. दो.. तीन.. ऐसे कर के पूरे अट्ठारह दिन बीत गए! न जाने इस प्रकार के कितने बयान सुने! डॉक्टर भी क्या करे! वो कोई भगवान् या अन्तर्यामी थोड़े ही होते हैं.. और फिर अंततः..

“.. यहाँ नर्सें कह रही हैं की वो आपको वापस ले आईं.. जैसे सावित्री ले आईं थीं सत्यवान को! हो सकता हो की यह सच भी हो!”

सुन कर मेरी आँखों से आंसू ढलक गए! ऐसे क्यों कह रहे हैं डॉक्टर? मैं इनकी पत्नी हूँ नहीं.. लेकिन... लेकिन... ओह!

“आप भले मेरी बात को मज़ाक मानिए, लेकिन मैंने यह सब कहना अपना फ़र्ज़ समझा.. आगे इनका खूब ख़याल रखिएगा.. यू शुडन्ट भी अलाइव!”

“डॉक्टर.. एक मिनट..” मैंने कहा, “मैं इनकी पत्नी नहीं.. साली हूँ....”

“ओह! आई ऍम सॉरी! मुझे लगा की आप इनकी बीवी हैं.. ऐसी चिंता, ऐसी सेवा तो आज कल बीवियां भी नहीं करतीं।”

“इट इस ओके!”

“नीलू?” उन्होंने पुकारा! उनकी आँखों में आंसू थे।

“जी?” मेरे दिल ने राहत की सांस ली.. मैंने उनका हाथ पकड़ लिया।

“थैंक यू!”

दिल के सारे बाँध टूट गए.. मैं उनके हाथ को अपने दोनों हाथों में थाम कर अपने आंसुओं से भिगोने लगी।

‘हे भगवान्! आपका लाख लाख शुक्र है!’

***********************
बेहतरीन कहानी
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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very good story.

maine is website pe account sirf aap ki is kahani ke liye hi banaya hai. Aap se request hai ke aapko jub bhi time mile yaha bhi update date rahe.

or jo log aapki story ko kahi or copy-paste kar rahe hai, unke bare me jayada tension na le. wo sirf aapke likhe hua words chura sakte hai aapka talent nahi
Thank you so much brother!
This means a lot to me... I have written other stories as well. Please read and enjoy those as well 😊
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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सही कहा। शब्द चुराए जा सकते हैं। शब्दों में जान डालने का हुनर चुराया नहीं जा सकता।

आशु
बेहतरीन कहानी

धन्यवाद दोस्तों 😊❤️
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अगले सप्ताह मुझे अस्पताल से छुट्टी मिल गई। हादसे की गंभीरता के विपरीत, मेरे शरीर में टूटी हुई हड्डियों की संख्या काफी कम थी – बस हाथ, पैर और पसलियों में कुछ टूट फूट हुई थी। इस दुर्घटना ने मानसिक और भावनात्मक तौर पर कितनी चोट पहुंचाई थी, वो तो समय के साथ ही मालूम होना था। लेकिन, हाल फिलहाल, सभी का (और मेरा भी) उद्देश्य मुझे वापस अपनी पहले वाली शारीरिक दशा तक लाना था। अस्पताल में पड़े रहने से कोई लाभ नहीं था – वहाँ जितना स्वास्थ्य लाभ उठाना था, वो तो हो गया था। इसलिए अब घर में ही रहने का आदेश हुआ था। एक बड़ी समस्या यह थी की मेरी देखभाल कौन करेगा – ऐसी ऐसी जगहों पर हड्डियाँ टूटी थीं, की मैं खुद से तो अपनी देखभाल तो क्या, ठीक से उठ या चल फिर नहीं सकता था। नीलम ने तुरंत ही मेरी देखभाल करने के लिए आग्रह किया, लेकिन मैंने ही मना कर दिया। उसकी पढाई लिखाई का हर्जा कर के मुझे कोई ख़ुशी नहीं मिलने वाली थी। और वैसे भी मुझे एक ऐसी नर्स चाहिए थी तो मेरे साथ अगर सारे चौबीस घंटे नहीं तो उसके ज्यादातर समय तक तो रहे ही।

खैर, मेरे डिस्चार्ज के ठीक एक दिन पहले एक ऐसी नर्स मिल गई, और जैसे ही वो मिली, मुझे डिस्चार्ज होने का सुख भी मिल गया (अस्पताल की गंध से मुझे उबकाई आती है... तो मात्र वहाँ से छुटकारा पाने के ख़याल से ही सुख होने लगता)। घर पहुँचने के लगभग साथ साथ ही एक नर्स ने दरवाजे पर दस्तखत दी। उसके साथ कुछ देर नीलम ने वार्तालाप किया, और फिर वो मेरे कमरे में अन्दर आई। मैंने देखा की वो बिलकुल साफ़-सुथरी बेदाग़ सफ़ेद पोशाक पहने एक लड़की थी – उसकी आँखों में हल्का सा काजल लगा हुआ था, और उसने अपने बाल पोनीटेल जैसे बाँधा हुआ था। नर्स शब्द सोच कर लगता है की कोई प्रौढ़ उम्र की एक कन्टाली महिला होगी..

लेकिन यह सबसे पहले तो एक लड़की थी.. बस कोई चौबीस-पच्चीस साल की.. और.. और उसका चेहरा एकदम खिला खिला सा था। मुस्कुराता हुआ। उतनी ही मुस्कुराती हुई और चमकदार आँखें!

“हेल्लो मिस्टर सिंह!” उसने प्रफुल्ल आवाज़ में कहा, “हाउ आर यू फीलिंग टुडे?”

और मेरे उत्तर देने से पहले, “ओह.. बाई दि वे.. आई ऍम योर नर्स, फरहत!”

“हेल्लो फरहत! थैंक यू फॉर अक्सेप्टिंग टू टेक केयर ऑफ़ मी!”

अगले कुछ देर तक उसने मुझे और नीलम को अपना अपॉइंटमेंट लैटर पढाया, मेरी दवाइयों और उनको लेने की समय सारिणी, व्यायाम और अन्य आवश्यकताओं के बारे में विस्तार से बताया। ज्यादातर बातें तो ठीक थी, लेकिन जब उसने यह भी बताया की उसकी ड्यूटी में रोज़ मेरे कपड़े बदलना, नहलाना और बाथरूम में मदद करना भी शामिल रहेगा, तो मुझे कुछ घबराहट और कोफ़्त सी महसूस हुई।

एक तो वो एक लड़की थी, और ऊपर से मुसलमान। अब यह बताने की कोई आवश्यकता नहीं की मुस्लिम समुदाय कितना दकियानूसी होता है, ख़ासतौर पर अपनी महिलाओं को लेकर। उन पर इतनी सारी बंदिशें होती हैं की गिनना मुश्किल है।

“फरहत, टेल मी अबाउट योर फॅमिली!” मैंने कहा। इतनी देर तक अंग्रेजी में ही बातें हो रही थीं.. मुझे लगा की औपचारिक रहना ठीक है..

“मैं, और मेरे अब्बू.. बस, हम दो ही जने हैं!”

“अरे वाह! आपको तो हिन्दी बोलनी भी आती है? और.. आपके बोलने से लग रहा है की आप उत्तर भारत की हैं..?”

“आपको कैसे पता? दरअसल, मेरे अब्बू लखनऊ से हैं! वो यहाँ बैंगलोर में कोई पैंतीस साल पहले आये थे.. काम के लिए। वो रिटायर हो गए हैं.. शॉप-फ्लोर पर एक एक्सीडेंट में उनका हाथ कट गया था। तब से वो रिटायर हो गए हैं। घर चलाने और उनकी दवाइयों के खर्च के लिए पेंशन पूरा नहीं पड़ता न.. इसलिए मैं भी काम करती हूँ।“

बिना कहे ही उसको जैसे मेरी मन की बात समझ में आ गई। इतना तो मुझे समझ में आ गया की इस लड़की से आराम से बात चीत की जा सकती है। यह एहसास अपने आप में बहुत सुखद था.. इतने दिन गहरे मानसिक अवसाद में गुजारने, और फिर एक प्राणघातक दुर्घटना झेलने के बाद मुझमें वापस जीवन जीने की इच्छा प्रबल हो गई थी।

खैर, फरहत को कुछ और कुरेदने पर उसने बताया की वैसे तो नर्स बनने, या फिर किसी तरह का करियर बनाने की उसने कभी सोची ही नहीं थी। निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार से सम्बद्ध होने के कारण उसकी नियति उसको मालूम थी। जैसे तैसे तो उसने इंटरमीडिएट की परीक्षा बायोलॉजी साइंस से पास करी। बायोलॉजी लेने पर भी घर में बहुत हाय-तौबा मची।

‘आर्ट्स या होम साइंस क्यों नहीं लेती?’ कह कह कर नाक में दम कर दिया। लेकिन आज पीछे देख कर लगता है की अच्छा किया! अपने अब्बू के एक्सीडेंट के बाद उसने जनरल नर्सिंग और मिडवाइफरी का कोर्स किया। जब तक कोर्स ख़तम हुआ तब तक उसकी अम्मी चल बसी, और घर की माली हालत बहुत खराब हो गई। अच्छी बात यह रही की उसकी इस हॉस्पिटल में नर्सिंग का कार्य मिल गया, जिससे कुछ सहारा हो सका। यदि सब कुछ ठीक रहता तो पढाई लिखाई नहीं, वो किसी के बच्चे जन कर उनको पाल रही होती।

मैंने पूछा की वो और आगे नहीं पढना चाहती, तो उसने बताया की बिलकुल पढना चाहती है.. लेकिन बीएससी नर्सिंग का कोर्स दो साल का है.. और इस समय वो अपने काम से मुक्त नहीं हो सकती।

उसने यह भी बताया की घर ही नहीं, जान पहचान में भी सभी ने कितना बवाल मचाया। उसका नर्सिंग की पढाई करना जैसे सभी का ठेका हो गया। ‘गैर मर्दों को छुएगी!’ यह सभी के जीवन का मानो सबसे बड़ा मुद्दा बन गया। लेकिन वो कहते हैं न.. जब ज़रुरत होती है, तो हर बात छोटी हो जाती है। कुछ दिनों बाद सभी लोग चुप हो गए.. भारत की नर्स आज कल गल्फ और यूरोप में काफी डिमांड में हैं.. इसलिए पहले हाय तौबा मचाने वाले, अब उसके करियर में सिक्कों की खनक सुन कर रिश्तेदारी जोड़ने के लालच में चुप हो गए।

“और यह इतनी अच्छी इंग्लिश कैसे बोलती हो?” मैंने पूछा।

“जब इतनी कठिन ट्रेनिंग होती है, तो लगता है की क्यों न फिर इस मौके का पूरा फायदा उठाया जाय। लैब ट्रेनिंग, लाइब्रेरी, और हेल्थ सेंटर्स.. वहाँ अनगिनत घंटे बिताने के बाद बचे हुए समय में मैं डिस्कवरी और न्यूज़ चैनल देखती, और अंग्रेजी पढ़ती। बिना अंग्रेजी के आगे कैसे बढ़ा जा सकता है?”

उसने एक बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर दिया। इसी बीच नीलम भी कमरे में आ गई।

“दैट इस ग्रेट, फ़रहत! आपसे बात करके मुझे लग रहा है की अब मेरा केयर ठीक से होगा, एंड दैट आई ऍम इन सेफ हैंड्स!”

मेरी इस बात पर वो ख़ुशी से मुस्कुराई। हम तीनों कुछ देर तक इधर उधर की बातें करते रहे। फरहत ने मुझे आराम करने को कहा, लेकिन मैंने यह कह कर मना कर दिया की पिछले न जाने कितने महीनो से किसी से ढंग से बात नहीं किया – न घर के बाहर, और न ही घर के अन्दर! इसलिए, आज रोको मत.. अगर थक गया, तो मैंने खुद ही चुप हो कर सो जाऊँगा। मेरी इस दलील पर दोनों ही लड़कियाँ चुप हो गई, और हमने कुछ और देर तक बात चीत जारी रखी।

मुझे इस बात का अनुमान था की मेरे एक्सीडेंट के कारण नीलम की पढाई का काफी नुक्सान हो गया था, इसलिए मैंने उससे आग्रह किया की वो अब बेफिक्र हो कर अपने कोर्स को जल्दी जल्दी पूरा करने पर ध्यान लगाए। वैसे भी घर में खाना पकाने के लिए हमारी काम-वाली ने स्वीकार कर लिया था। मजे की बात यह है की अभी मेरा जीवन पूरी तरह से स्त्रियों के भरोसे पर टिका हुआ था।

“अच्छा.. मैं आप से एक बात पूछूं?” मैंने फरहत से कहा।

“हाँ, पूछिए न?”

“आपके नाम का मतलब क्या है?”

“ओह! हा हा.. फरहत शायद अरबी या फ़ारसी शब्द है.. और इसका मतलब है.. उम्म्म.. सुशील, सभ्य, हैप्पीनेस, आनंद, मेजेस्टी.. एक्चुअली बहुत सारे मीनिंग्स हैं.. लेकिन लड़कियों के लिए यूज़ होने से इसका मतलब हैप्पीनेस होना चाहिए..”

“वैरी नाईस!” कह कर मैं कुछ और देर तक चुप हो गया।

और फिर बिस्तर से उठने की कोशिश करने लगा।

“आपको उठना है?”

“हाँ.. एक्चुअली, टॉयलेट जाना है..”

“ओके” कह कर फरहत मेरी उठने में मदद करने लगी।

कोई दो तीन मिनट कोशिश करने के बाद, जिससे मुझे कम से कम तकलीफ़ हो, फरहीन मुझे सहारा दे कर टॉयलेट तक पहुँचाया। इतना तो तय था की बिना उसके सहारे के मैं यह सब मामूली काम भी नहीं कर सकता था, लेकिन ऐसे ही किसी अनजान लड़की (जो की उम्र में मुझसे काफी छोटी हो) के सामने निर्वस्त्र कैसे हुआ जा सकता है? एक वयस्क पुरुष के लिए इससे ज्यादा लाचारी और लज्जा का विषय और क्या हो सकता था?

“फरहत.. आप.. अब मैं देख लूँगा..” मैंने हिचकिचाते हुए कहा।

“नाउ वेट अ मिनट! आई थिंक वी नीड टू टॉक एंड सॉर्ट आउट समथिंग। मैं आपकी नर्स हूँ, तो सबसे पहला रूल यह है की आपको मेरे सामने शर्माने की कोई ज़रुरत नहीं है। आपके हाथ और पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ है, और रिब्स पर भी चोटें हैं.. अगर आप पूरी तरह से ठीक होते तो मेरी ज़रुरत ही नहीं थी.. है न?”

“हाँ.. वो सब तो ठीक है लेकिन..”

“लेकिन वेकिन कुछ नहीं। आप अगर इस बात से शर्मा रहे हैं तो यह सोचिये की मैं आपको स्पंज बाथ, टॉयलेट, ड्रेसिंग भी करूंगी.. तो प्लीज.. ओफेन्देड मत फील कीजिए! ओके?

“ओह गॉड! कहना आसान है..”

“आई नो! बट वी विल ट्राई.. ओके? नाउ, लेट में हेल्प यू विद योर पजामा..”

कह कर उसने मुझे सहारा दिए हुए ही मेरे पजामे का नाड़ा ढीला कर दिया और मेरे पजामे को धीरे से नीचे सरका दिया। कोई और समय होता (मतलब अगर संध्या होती) तो अब तक मेरा लिंग अपने पूर्ण उत्थान पर पहुँच कर छलांगे लगाने लगता, लेकिन इस समय शर्म, संकोच और नर्वसनेस होने के कारण मेरा लिंग एक छोटे से छुहारे के आकार का ही रहा। मैंने फरहत की तरफ देखने की हिम्मत नहीं की, लेकिन मुझे पूरी तरह से यकीन था की वो अवश्य ही उसी तरफ देख रही होगी, और उसके आकार पर मन ही मन हंस रही होगी..

खैर, जब मेरा पजामा यथोचित दूरी तक सरक गया, तो उसने मुझे सहारा दे कर कमोड पर बैठाया। मैंने कुछ देर तक कोशिश करी, लेकिन फरहत की उपस्थिति में मेरे लिए मूत्र करना संभव ही नहीं हो रहा था।

“कर लीजिये न..”

“थोड़ी प्राइवेसी मिल जाय... मुझसे हो नहीं पा रहा है ...”

“ओह सॉरी..!” कह कर वो बाथरूम से बाहर निकल गई।

उसके जाते ही मन में कुछ शांति हुई - मैंने अपने जघन क्षेत्र की मांस-पेशियों को ढीला करने की कोशिश की और तत्क्षण ही मैंने मूत्र को बाहर निकलता महसूस किया। जब मैंने मूत्र कर लिया तो मैंने कुछ देर रुक कर आवाज़ लगाई,

“..फरहत?”

“जी.. आई..”

अन्दर आकर उसने सबसे पहले बाथरूम में नज़र दौड़ाई। एक तरफ उसको वेट-टिश्यु मिल गए। उसने उसमें से एक टिश्यु निकाल कर आधा फाड़ा, और मेरी तरफ मुखातिब हुई। उसने मुझे सहारा दे कर उठाया, और फिर मेरे लिंग को पकड़ कर उसके शिश्नाग्रच्छ्द को धीरे से पीछे की तरफ सरकाया उसको तीन-चार बार झटका दिया, जिससे मूत्र की बची हुई कुछ बूँदें निकल गई। फिर उसने वेट-टिश्यु की मदद से लिंग के सुपाड़े को ठीक से पोंछ दिया। इसके बाद हम दोनों वापस अपने कमरे में आ गए।

कमरे में आकर लेटने के कुछ देर तक हमने कोई बात नहीं करी। इसी बीच कामवाली आ गई। फरहत ने उसको विशेष निर्देश दिए की घर और खासतौर पर मेरे कमरे की सफाई कैसे करी जाय, और यह भी की खाना कैसे बनाया जाय। यह निर्देश देते समय उसका अंदाज़ धौंस देने वाला नहीं था.. बल्कि यह साफ़ दिख रहा था की वो मेरी और कामवाली की मदद ही करना चाहती थी। सच में.. पहले ही दिन में फरहत का व्यक्तित्व, उसके बात करने का अंदाज़ और उसकी मुस्कान मेरे दिल-ओ-दिमाग पर छा गई।

रात में खाने के बाद तक फरहत घर पर ही थी, और संभव है की देर रात अपने घर गई हो। रात में मेरे आँख एक बार खुली थी, लेकिन मैंने उसको वहाँ नहीं देखा। सवेरे जब आँख खुली तो उसको अपने बगल बैठा पाया।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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“गुड मोर्निंग!”

मैंने उसकी आँखों में देखा। वही मुस्कुराती हुई आँखें, खिला हुआ चेहरा! मैं भी मुस्कुरा उठा। बगल में नीलम भी खड़ी हुई थी.. मैंने साइड टेबल पर रखी घडी पर नज़र डाली तो देखा की सवेरे के छः बजे थे!

“गुड मोर्निंग! आप रात में घर चली गईं थीं?”

“जी..”

“अरे! इतने रात में क्यों? सेफ नहीं रहता!”

“आई नो.. लेकिन अब्बू को बताया नहीं था..”

“उनकी देखभाल कौन करता है?”

“वो कर लेते हैं.. और खाना पीना हमारे पड़ोसी पका देते हैं.. इसलिए दिक्कत नहीं होती।“

“फरहत.. ऐसे तो अगर आप रात में घर जायेंगे तो ठीक नहीं रहेगा.. आप दिन में जाइए.. लेकिन सेफ रहना ज़रूरी है..”

“हम्म..”

“इससे मुझे एक आईडिया आ रहा है.. आप अपना सामान ले कर यही क्यों नहीं आ जातीं? हमारा स्टोर-रूम एक हाफ रूम जैसा है, और खाली पड़ा हुआ है। खाने पीने की सारी व्यवस्था यहीं हो जायेगी! और नीलम भी पढाई लिखाई कर रही है.. वो कम से कम फ्री हो जायेगी।”

“आप ऐसे क्यों कहते हैं जैसे मुझे आपकी इस हालत से कोई मुश्किल है? मैं भी आपकी सेवा करना चाहती हूँ..”

“अरे नीलू.. तुम नाराज़ मत हो! तुम्हारे कारण ही तो मैं बच सका हूँ.. लेकिन तुम जानती हो न की मुझे ज्यादा ख़ुशी तब मिलेगी, जब तुम अपनी पढाई पर ज्यादा ध्यान लगाओगी! है न? और मेरा क्या? मैं तो यहाँ चौबीसों घंटे पड़ा रहूँगा! हा हा!”

“आप जल्दी से ठीक हो जाओ.. फरहत और मैं, दोनों ही आपको जल्दी से ठीक कर देंगे.. है न फरहत?”

“बिलकुल.. चलिए, मैं आपको मोर्निंग एक्टिविटीज के लिए रेडी करती हूँ..”

“मैं भी आपकी मदद करती हूँ..” नीलम ने कहा।

“नहीं नीलू.. प्लीज.. मैंने तुम्हारे सामने वो सब नहीं कर पाऊँगा.. प्लीज ट्राई टू अंडरस्टैंड!”

“जी.. ठीक है..” नीलम ने अनमने ढंग से कहा, और कमरे से बाहर निकल गई।

फिर फरहत ने मुझे सहारा दे कर बाथरूम पहुँचाया। कल इतनी बार उसके सामने नंगा होना पड़ा था, की आज मुझे बहुत कम शर्म आ रही थी। खैर, इस स्थिति को मन ही मन ज़ब्त कर के मैंने अपनी नित्य क्रिया करी, और वापस बिस्तर पर आ लेटा। फरहत ने मेरी साफ़ सफाई कर के मुझे बिस्तर पर लिटाया। तब तक नीलम चाय और सैंडविच बना कर ले आई, जिसको हम तीनों ने साथ मिल कर खाया। उसका कॉलेज सवेरे जल्दी शुरू हो जाता था, इसलिए उसने जल्दी ही हमसे विदा ली।

इस बीच में हमारी कामवाली आ गई, और खाना पकाने के कार्य में जुट गई।

“रूद्र, चलिए, आपको स्पंज बाथ दे देती हूँ?”

“स्पंज बाथ?”

“हाँ.. नहायेंगे नहीं तो एक तो आपको बेड-सोर हो जाएगा, और ऊपर से बदबू आने लगेगी..” कह कर उसने अपने नाक सिकोड़ी..

“अरे.. मैं तो बस ये कह रहा था की मैं खुद ही..”

“ओह गॉड! नॉट अगेन! हमने कल ही तो इस बारे में बात करी है.. आप बिलकुल सब कुछ करियेगा, लेकिन पूरी तरह से ठीक होने के बाद.. ओके?”

फिर इधर उधर देख कर, “मैं अभी आती हूँ..”

कह कर फरहत कमरे से बाहर निकल गई.. ज़रूर रसोई में गई होगी। क्योंकि जब वो वापस आई तो उसके हाथ में एक मुलायम तौलिया, एक साफ़ चद्दर और गुनगुने पानी से भरी एक बाल्टी थी। कामवाली एक और बाल्टी में में ठंडा पानी ले आई थी। उसके जाने के बाद फरहत ने कमरे का दरवाज़ा थोड़ा बंद कर दिया और फिर मेरे कपड़े उतारने की प्रक्रिया करने लगी। मैं बुरी तरह से नर्वस था, लेकिन मैंने देखा की मेरी शर्ट उतारते समय फरहत के होंठों पर एक बहुत ही मंद मुस्कान थी, और उसकी आँखों में एक प्रसंशा भरी चमक। अगले पांच मिनट बाद, जब मैं पूरी तरह से निर्वस्त्र हो गया, तब उसकी बेहद मंद मुस्कान अब कुछ ज्यादा ही दिख रही थी।

“फरहत.. यू आर नॉट हेल्पिंग! आई ऍम नर्वस आलरेडी!!”

“ओह आई ऍम सॉरी! लेकिन आप नर्वस क्यों हैं?”

“अरे.. इस हालत में आपके सामने..”

“यू हैव अ नाईस मस्कुलर बॉडी! नर्वस तो.. मुझे होना चाहिए!” कह कर फरहत जोर से मुस्कुराई।

खैर, मैंने बात को आगे न खींचने का निर्णय लिया, और फरहत को उसका काम करने की छूट दे दी। वो तौलिये को भिगो कर मेरे पूरे शरीर को रगड़-रगड़ कर साफ करने लगी। गर्दन, सीना, पेट और बाहें साफ़ होने के बाद उसने मुझे धीरे से करवट बदलवाई, और पीठ, कमर, पुट्ठों और जांघों को उतने ही सावधानी से स्पंज बाथ देने लगी। मैं अचानक ही उछल गया – वो मेरी रीढ़ पर बारी-बारी से गर्म और ठंडा स्पंज करने लगी थी। उसने मुझे बताया की ऐसा करने से दिल और साँस के केन्द्र उत्तेजित हो जाते हैं, यह कई तरह के रोगों के निवारण करने में मदद करता है। एक बार फिर से उसने मेरी करवट बदल कर मुझे पीठ के बल लिटाया, और एक अलग छोटे तौलिये से मेरा चेहरा और सर पोंछकर सुखाने लगी।

साधारणतः, मेरा मेरी उत्तेजना पर अच्छा नियंत्रण रहता है। लेकिन एक अरसे से किसी भी तरह की यौन क्रिया न करने के कारण, मेरा लिंग बेकाबू सा हो गया। जैसे उसमें खुद ही सोचने समझने की की शक्ति आ गई हो। ऐसा हो ही नहीं सकता की उसको मेरा उत्तेजित लिंग न दिख रहा हो, लेकिन वो बिलकुल प्रोफेशनल तरीके से मेरी सफाई कर रही थी। फरहत मगन हो कर जब मेरी सफाई कर रही थी, तब मैं उसके ही शरीर का जायजा ले रहा था – उसका कद कोई साढ़े पांच फ़ीट रहा होगा। चेहरा मोहरा तो साधारण ही था, लेकिन उसकी मुस्कान और जीवंत आँखें उसको सुन्दर बना देती थीं। उसकी यूनिफार्म तो आरामदायक थी, लेकिन फिर भी उसके स्तन और उनका आकार समझ में आ रहा था। उसने निप्पल भी खड़े हो कर यूनिफार्म के कपड़े को सामने से कुछ कुछ उभार रहे थे। उसने ज़रूर ही एक हल्का सा मेक-अप किया हुआ था.. कुल मिला कर वो सुन्दर लग रही थी।

इतने अरसे के बाद एक स्त्री का इस तरह का अन्तरंग सान्निध्य पा कर अब मेरा लिंग अपने पूरे तनाव पर पहुँच गया।

“अच्छा है ‘ये’ इस तरह से खड़ा हुआ है... सफाई करने में आसानी रहेगी!”

वो मुझे सुना रही थी, या खुद से बात कर रही थी?

उसने मेरा लिंग अपने हाथ में पकड़ा और उसकी सफाई करने लगी। उसके छूते ही मुझे एक झटका सा लगा.. वैसे यह झटका मुझे ही नहीं, उसको भी लगा। जब मेरा लिंग पूरी तरह से जीवंत होता है, तो उसका आकार, उसका घनत्व और उसकी दृढ़ता कभी कभी मुझे भी आश्चर्यचकित कर देती है। मुझे यह तो नहीं मालूम, की फरहत ने ऐसा लिंग... या फिर कोई भी लिंग कभी भी अपने हाथ में पकड़ा है या नहीं, लेकिन इतना तो तय है की उस पर असर बखूबी हो रहा था।

अभी तक इतने आत्म-विश्वास के साथ मेरी सफाई करने के बाद, उसकी भी घबराहट दिखाई देने लगी। उसने धीरे धीरे, मानो डरते हुए, मेरे लिंग को गीले तौलिये से साफ़ करना शुरू किया। मानो न मानो, मुझे उसका यह बदला हुआ रूप अब बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे अपने लिंग, और उसके बल में बहुत भरोसा था, और मुझे लगता था की उसमें एक जादुई शक्ति है। जो भी लड़कियाँ मेरे जीवन में आईं, वो उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं। फरहत के हाथों का स्पर्श बड़ा ही आनंददायक साबित हो रहा था। लेकिन कुछ होता, उससे पहले ही मेरे लिंग और अण्डकोषों की सफाई हो गई, और फरहत जल्दी से तौलिया और बाल्टी उठा कर कमरे से बाहर हो गई।

आने से पहले उसने मुझे खुद को संयत करने का समुचित समय दिया। कुछ देर की निष्क्रियता के बाद ताना हुआ लिंग वापस शिथिल हो गया। फरहत कुछ देर बाद वापस कमरे में आई.. वो हमेशा की तरह मुस्कुरा नहीं रही थी.. लग रहा था की जैसे कुछ तनाव में हो। लेकिन मुझसे जैसे ही उसकी आँखें मिलीं, उसकी मुस्कान वापस आ गई।

उसने मुझे सहारा दे कर उठाया, और एक आरामदायक कुर्सी पर बैठाया और चद्दर बदला। फिर मुझे वापस लिटा कर, एक नए चद्दर से ढक कर, मेरे और अपने लिए नाश्ता ले आई, और हम दोनों नाश्ता करते हुए वापस बातें करने लगे।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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उसने मुझे उस दिन के बारे में बताया, जब उसको बतौर नर्स पहली नौकरी मिली थी। बंधी हुई तनख्वाह और अब्बू की मदद करने के ख़याल से ही रोमांच हो गया था उसको। कितनी खुश थी वह नौकरी पा कर! पहली बार नौकरी के लिए वो सफ़ेद यूनिफार्म पहनना, और फिर आइने के सामने खड़े होकर खुद को निहारना.. उसको आज भी याद है!

जहाँ उसको काम मिला था, वो एक नर्सिंग होम था। वहाँ पहले से काम करने वाली नर्स ने उसे धीरे-धीरे काम समझाना और सिखाना शुरू कर दिया। शुरू शुरू में वो मरीजों को इंजेक्शन देती थी, उनके चार्ट देख कर दवाई देती, आपरेशन के समय रोगियों को सम्हालती थी। वो ऑपरेशन होने पर शरीर से निकला कचरा और लोथड़े उठा कर फेंकने का भी काम करती। कई बार उस कचरे में साबूत बच्चा भी होता। सोचिए.. एक पूरा साबूत बच्चा! शुरू शुरू में इस काम में उबकाई आती, जी मचलाता और वापस काम पर आने का मन नहीं करता। लेकिन, धीरे धीरे वह इसकी आदी हो गई। अब वो सब बर्दाश्त कर लेती थी।

लेकिन उससे यह बात छुपी नहीं की यह और ऐसे कई नर्सिंग होम इस शहर का गटर थीं.. किस धड़ल्ले से यहाँ अवैध गर्भपात किया जाता है। जानते सभी हैं, लेकिन कोई कुछ कहता नहीं। नर्सिंग होम में काम करने वाले सारे कर्मचारी गूंगे और अंधे बन कर रहते हैं। फरहत ने भी ऐसे ही कुछ ही महीनों में कम बोलना सीख लिया... चुप रहना सीख लिया... और चेहरे को सपाट बनाना सीख लिया था। जल्दी ही उसका मन उकता गया और उसने वह नौकरी छोड़ दी, और रोगियों के साथ रह कर उनकी देखभाल करने का काम करने लगी।

यह सब बताने के बाद उसने मेरे बारे में पूछा। मैंने उत्तर में अपने काम के बारे में उसको बताया।

उसने फिर कुछ व्यक्तिगत सवाल पूछे..

“आपकी और मैडम की लव मैरिज हुई थी न?” उसने दीवार पर टंगी संध्या की तस्वीर सीखते हुए कहा।

“हाँ.. मैंने उसको उत्तराँचल में देखा था पहली बार... लव ऐट फर्स्ट साईट!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा..

“आप उनसे बहुत प्यार करते हैं..”

संध्या के बारे में याद आते ही उदासी छाने लगी।

“आप उदास हैं...” उसने कहा।

जब मैंने काफी देर तक कुछ नहीं कहा तो,

“आई ऍम सॉरी..”

“नहीं फरहत! डोंट से सॉरी! लेकिन.. संध्या के जाने के बाद बहुत अकेला हो गया। न कुछ करने का मन होता, न ही जीने का.. जब एक्सीडेंट हो रहा था, तो लगा की अब इस दुःख से छुट्टी मिल जायेगी.. लेकिन.. लगता है की और जीना लिखा है किस्मत में!”

“अरे! आप ऐसे कैसे बोल रहे हैं? ज़रा सोचिये, जन्नत से मैडम आपको इस हालत में देखेंगी, तो क्या उनको अच्छा लगेगा? वो तो आपके लिए बस ख़ुशियाँ ही चाहती रही होंगी.. आपको ऐसे दुःख में देख कर उनको भी तो बहुत दुःख होगा न?”

“लेकिन फिर भी.. उसकी बहुत याद आती है..”

“याद तो आनी ही चाहिए! लेकिन उनको याद करके उदास मत होइए.. बल्कि खुश होइए.. साथ बिताये हुए ख़ुशी के मौके याद करिए.. और.. आप ऐसे ही उदास मत होइए। मैं हूँ न? मैं आपकी अच्छी दोस्त बन सकती हूँ! आप मुझसे दोस्ती करेंगे?”

“फरहत! आप पहले ही मेरी दोस्त बन चुकी हैं!” मैं मुस्कुराया।



बस.. ऐसे ही मेरे सुधार की गाडी आगे चल निकली। अस्पताल में तो समय बीतता ही नहीं था.. लेकिन यहाँ पर फरहत मेरे साथ मेरी छाया की तरह बनी रहती। लगता ही नहीं था की वो नर्स है.. बल्कि लगता की वो.. की वो.. मेरी पत्नी है! मेरी हर ज़रूरत को मुझसे भी पहले महसूस कर पूरा करने की कोशिश करती, हर लिहाज से मेरा पूरा ख़याल रखती।

दोपहर बाद नीलम कॉलेज से आती, और वो भी मेरे साथ ही रहती। मेरा जीवन वापस प्रेम से लबालब होने लगा। दोपहर बाद ही लगभग हर दिन कोई न कोई आ ही जाता - कभी नीचे मेडिकल स्टोर से कोई आ जाता, कभी कोई परिचित, कभी कोई ऑफिस से... तो कभी कोई पड़ोसी! अब तो जैसे आदत हो गई.. दोपहर बाद आने वालों की प्रतीक्षा करना! लेकिन यह तो है की अब तक मुझे संसार और यहाँ के लोगों के बारे में जितनी भी गलतफहमियां थीं, वो सब ख़तम हो गईं। मैं समझ गया की दुनिया कठोर नहीं, बल्कि संवेदनशील है। मेरे एक्सीडेंट के बारे में जिसने भी सुना, वो सुनकर परेशान हो गया। भागा भागा चला आया देखने!

ऐसा कोई दिन नहीं गया जब संध्या की याद न आई हो... उसकी याद आती तो मैं आँखें मूँद कर अतीत के संसार की यात्रा कर आता, उसके बारे में सोच कर आँसू भी ढुलका लेता, और भविष्य की चिंता में भी डूब जाता। कभी दर्द, तो कभी पीड़ा-भरी याद में जब मैं अचानक ही चिल्ला उठता, तो फरहत एक झटके से किसी फ़रिश्ते की तरह मुझे सम्हाल लेती।

कभी कभी उसकी बाते मुझे बोर भी करतीं। लेकिन उससे बात करना दिन का सबसे सुखद अनुभव होता था। वो रोज़ मुझसे बात करती, मुझे दवा देती, नहलाती, साफ़-सफाई करती, कभी कभार मुझे उपन्यास पढ़ कर सुनाती, तो कभी अखबार! वो मेरी फिजियोथेरेपी भी करती। ये सिलसिला चलता रहा। और उसी के साथ मेरी सेहत भी वापस आने लगी। हाथों और पैरों की हड्डियाँ जुड़ गईं, और उनमें ताकत वापस आने लगी। मैं अब खुद से चल फिर सकता था, और कई सारे छोटे मोटे काम कर सकता था.. लेकिन फरहत की आदत मुझे कुछ ऐसी लग गई थी की मैं उसको मना नहीं कर पाता था। मेरी हालत में सुधार के बारे में उसको भी मालूम था, लेकिन वो भी कभी ऐसे नहीं दिखाती थी की उसको मुझे नहलाने इत्यादि में कोई झिझक नहीं महसूस होती थी।

एक दिन सवेरे वो मुझको स्पंज बाथ दे रही थी। वो हाँलाकि मेरे घर में ही रहती थी, लेकिन फिर भी पूरी इमानदारी से वो अपनी यूनिफार्म पहन कर ही मेरी देखभाल करती थी। लेकिन, आज जब वो नहा कर बाथरूम से बाहर आई, तो उसने आरामदायक, कैसुअल कपड़े पहने हुए थे। उसको टी-शर्ट और होसरी पजामा पहने देख कर मुझे अचम्भा हुआ, और अच्छा भी लगा।

“फरहत, तुम कितनी अच्छी लग रही हो आज!”

वो मुस्कुराई।

“जी.. वो.. मैं.. दो जोड़ी यूनिफार्म है.. और दोनों ही धोने में डाली हुई है..”

“आई ऍम नॉट कम्प्लैनिंग.. मैं तो कहता हूँ की तुम ऐसे ही रहा करो..”

हाँलाकि ये कोई सेक्सी कपड़े नहीं थी, लेकिन फिर भी बिना किसी बंधन के (उसने ब्रा नहीं पहनी हुई थी) उसके स्तन उसकी हर हरकत पर जिस प्रकार से हिल रहे थे, और जिस तरह से उसके पजामे ने उसके नितम्बो को उभार रखा था, उससे मेरे लिंग का स्तम्भन जल्दी कम नहीं होने वाला था। हर रोज़ की तरह जब वो कमरे से बाहर जाने को हुई, तो मैंने लपक कर उसका हाथ पकड़ लिया।
 

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“मेरे पास रहो..” न जाने कैसे मेरे मुँह से यह तीन शब्द निकल गए। निश्चित है, मेरी आँखों में वासना के डोरे फरहत को साफ़ दिख रहे होंगे!

फरहत कुछ नर्वस दिख रही थी। उसके होंठ कांप से रहे थे, और होंठों के ऊपर पसीने की एक पतली सी परत साफ़ दिख रही थी। मैं भी नर्वस था.. स्पंज-बाथ के बाद नग्नावस्था में लेटा हुआ था। न जाने क्या होने वाला था आज..!

“रूद्र..?”

मैंने कुछ नहीं कहा, बस उसका हाथ पकड़े हुए ही उसको पहले तो बिस्तर पर बैठाया.. और उसका हाथ तब तक अपनी तरह खींचता रहा जब तक वो मेरे बराबर ही बिस्तर पर लेट नहीं गई। जिस तरह से वो निर्विरोध यह सब कर रही थी, उससे तो तय था की आज हम दोनों का मिलन होना ही था।

“हम दोनों दोस्त हैं न?” वो पूछ रही थी, की बता रही थी? कुछ समझ नहीं आया.. लेकिन यह तो तय था की वो नर्वस बहुत थी।

“यस.. सो ट्रस्ट मी! ओके?” मैंने कहा।

उसके लेटते ही मैंने उसके होंठों पर एक चुम्बन रसीद कर दिया। उसके होंठ बहुत ही नरम थे। बहुत दिनों बाद किसी लड़की के होंठ चूमने को मिला! इसलिए मैंने चुम्बन जारी रखा और कुछ देर में मैंने उसके होंठ चूसने शुरू कर दिए। मैं उसके एक एक होंठ को अपने होंठों के बीच में दबा कर उनको जीभ से दुलारता। फरहत चुम्बन करने में अनाड़ी थी। मुझे समझ में आ गया की यह सब उसके साथ पहली बार हो रहा है (मतलब, हर बात में अनाड़ी थी)। मैंने जब अपनी जीभ उसके मुंह में डालने की कोशिश करी, तो कुछ हिचक के बाद उसने अपना मुंह खोल दिया। अब हमारी जीभें एक दूसरे के मुँह में थीं। इतने दिनों बाद ऐसा चुम्बन करने में मुझे बहुत आनंद आ रहा था।

चूमते हुए ही मेरा हाथ उसके सर और उसके बालों में फिरने लगा.. एकदम कोमल, मुलायम बाल!

“तुम्हारे बाल बहुत सुन्दर हैं.. एकदम सेक्सी!” इस शब्द का प्रयोग उसके सामने मैंने एक तो पहली बार किया और दूसरा, जान-बूझ कर किया। मैं चाहता था की हमारी आपस में हिचक दूर हो जाय। लेकिन फरहत नर्वस ही रही..

“हाँ.. सिर्फ बाल ही हैं..” शायद वो आगे ‘सेक्सी’ कहना चाहती थी, लेकिन हिचक रही थी।

उसको चूमते हुए मेरा हाथ उसके एक स्तन पर आ गया। जैसा मैंने बताया था, उसने ब्रा नहीं पहनी थी और उत्तेजना के मारे उसके निप्पल खड़े हुए थे। उसने झट से अपने हाथ से मेरे हाथ को पकड़ लिया। लेकिन उसके पकड़ने से मैं रुक नहीं सकता था, लिहाजा, मैंने उसका स्तन दबाना शुरू किया। कुछ ही देर में उसकी पकड़ कमज़ोर हो गई और वो आहें भरने लगी। मैंने चुम्बन लेना जारी रखा, और साथ ही साथ उसकी टी-शर्ट को ऊपर उठाने लगा।

“नहीं.. प्लीज.. मुझे नंगी मत करिए!”

“देखते हैं न.. की तुम्हारा और क्या क्या सेक्सी है!”

“और कुछ भी सेक्सी नहीं है.. मैंने आपको बताया न!” फरहत विरोध नहीं कर रही थी.. मुझे ऐसा लग रहा था की यह एक सामान्य सा वार्तालाप है।

“फरहत.. आज हम दोनों रुक नहीं पाएँगे.. न तुम, और न ही मैं! ... लेकिन अगर तुम वाकई नहीं चाहती हो, तो हम ये नहीं करेंगे..”

कह कर मैं कुछ देर के लिए रुक गया, और उसकी किसी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगा। जब उसने कुछ विरोध नहीं किया और बिस्तर से उठने की कोई कोशिश नहीं करी, तो मैंने उसकी टी-शर्ट उसके शरीर से अलग कर दी। सामने का दृश्य देख कर आनंद आ गया – छत्तीस इंच के भरे पूरे गोल स्तन! लाल-भूरे रंग के छोटे छोटे निप्पल, और उसी रंग की areola!

कहने की आवश्यकता नहीं की मैंने उसके स्तनों को दबाते हुए चूसना आरम्भ कर दिया। फरहत भी अभी खुल कर आनंद लेने लगी। आदमी की अजीब हालत होती है – किसी भी उम्र का हो, अगर उसके सामने किसी लड़की या स्त्री का स्तन हो, तो उनको बिना पिए रह नहीं सकता।

‘ओह भगवान्! कितने दिन हो गए!’

मैं किसी भूखे बच्चे की तरह फरहत से लिपट कर उसका स्तन पी रहा था, और उनसे खेल रहा था। फरहत आँखें बंद किये हुए इस अनोखे अनुभव का मज़ा ले रही थी। उसकी भी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी – जो की उसकी भारी होती सांसों से परिलक्षित हो रहा था। वो खुद भी मेरे सर को अपने स्तन से सटा कर रखे हुए थी। उसने मेरे शरीर को सहलाना आरम्भ किया, और ऐसे सहलाते हुए उसका हाथ मेरे लिंग पर पहुंचा! साफ़ सफाई करते समय वो बिलकुल भी संकोच नहीं करती थी, लेकिन इस समय उसने अपना हाथ तुरंत हटा लिया।

“क्या हुआ?”

“य्य्य्ये बहुत बड़ा है।“

एक बार मैंने एक चुटकुला सुना था, जिसमे दुनिया के सबसे बड़े झूठों में एक यह बताया गया था की जब औरत किसी मर्द को कहे की तुम्हारा पुरुषांग बहुत बड़ा है।

अक्सर यह दलील दी जाती है की जब योनि में से पूरा बच्चा निकल आता है, तो फिर लिंग का साइज़ क्या चीज़ है? उसका उत्तर यह है की जब स्त्री प्रजनन करने वाली होती है, तो होर्मोन्स के प्रभाव से उसके शरीर में (ख़ास तौर पर जघन क्षेत्रों में) अभूतपूर्व लचीलापन आ जाता है.. यह क्रिया सामान्य अवस्था में नहीं होती है.. इसलिए अगर लिंग बड़ा है, और स्त्री ऐसा कहे, तो यह बात सुननी चाहिए, और आराम से काम करना चाहिए।

“आर यू ओके, फरहत?”

“पता नहीं..” फिर कुछ देर रुक कर, “.. मुझे डर लग रहा है, रूद्र! अभी जो हो रहा है, मैं उसके लिए बिलकुल भी रेडी नहीं थी... समझ नहीं आ रहा है की मैं क्या करूँ..!”

“तुमको कुछ भी करने से डर लग रहा है?” मैंने पूछा। फरहत वाकई डरी हुई लग रही थी।

“व्व्व्वो.. मैं.. आई.. आई ऍम स्टिल अ वर्जिन!”

“व्ही डोंट नीड टू डू एनीथिंग, इफ़ यू डोंट वांट टू, स्वीटी!” मैंने फरहत को स्वान्त्वाना देते हुए कहा, “व्ही कैन जस्ट बी विद ईच अदर!”

मेरी बात से फरहत कुछ तो शांत हुई.. लेकिन फिर उसकी आँखें मेरे पूरी तरह से सूजे हुए लिंग पर पड़ी।

“लेकिन... लेकिन.. आप क्या ‘करना’ नहीं चाहते?”

मैंने फरहत को अपनी बाहों में लेते हुए शांत स्वर में कहा, “बिलकुल करना चाहता हूँ.. लेकिन सिर्फ तभी, जब तुम भी चाहती हो। तुमने कभी सेक्स नहीं किया.. इसलिए अब यह तो मेरी जिम्मेदारी है की तुमको उसका पूरा आनंद मिले.. और उसके लिए सबसे पहले तुम्हारी रज़ामंदी चाहिए.. है न?”

मेरी इस बात पर फरहत मुझसे और चिपक सी गई, और उसने मेरे सीने पर अपना हाथ रख दिया। मैं इस समय उसके दिल की धड़कन सुन सकता था। फिर उसने एक गहरी सी सांस भरी और सर हिला कर हामी भरी।

“क्या हुआ फरहत?”

“रज़ामंदी है..”

“हंय?”

“आपने कहा न, की रज़ामंदी चाहिए? तो.. रज़ामंदी है!”

“पक्का फरहत? क्योंकि एक समय के बाद मैं भी खुद को रोक नहीं पाऊँगा!”

“पक्का.. बस, थोड़ा सम्हाल कर करिएगा.. सुना है की बहुत दर्द होता है!”

“फरहत, डरो मत! मैं तुमको दर्द नहीं होने दूंगा... बस, कोशिश कर के मजे करो! चलो, अभी जूनियर से कुछ जान पहचान बढ़ाओ..” मैंने मुस्कुराते हुए उसको हौसला दिया।

उसने हिचकते हुए मेरे लिंग को अपनी हथेली में पकड़ा और ऊपर नीचे करने लगी, उधर मैंने भी उसके पजामे के ऊपर से ही उसकी योनि को धीरे धीरे सहलाना शुरू किया। ऐसा अनुभव उसको पहली बार हो रहा था, इसलिए कुछ ही देर में फरहत बेकाबू हो गई। लेकिन मैंने उसकी योनि का मर्दन जारी रखा। उसका रस निकलने लग गया था, क्योंकि पजामे के सामने का हिस्सा गीला और चिपचिपा हो गया था। फिर कोई दस मिनट बाद मैंने अपना हाथ उसके पजामे के अन्दर डाल कर उसकी योनि की टोह लेनी आरम्भ करी। फरहत कामुक आनंद के शिखर पर पहुँच गई थी।

कुछ ही क्षणों में मैंने अपनी उंगली ज़ोर-ज़ोर से उसकी योनि पर रगड़ना शुरू किया, और वहाँ का गीलापन, और गर्मी अपनी उंगली पर महसूस किया। वो इस समय अपनी पीठ के बल बिस्तर पर निढाल लेट गई थी और साथ ही साथ अपनी टाँगें भी कुछ खोल दी थीं, जिससे मेरे हाथ को अधिक जगह मिल सके। मैंने अपनी तर्जनी उंगली को उसकी योनि में घुसाने लगा। एक पल तो फरहत ने अपनी साँसें रोक ली, लेकिन उंगली पूरी अन्दर घुस जाने के बाद उसने राहत में सांस छोड़ी। उसकी योनि संध्या की योनि के जैसे की कसी हुई थी! उतनी ही तंग! लेकिन आश्चर्य की बात है की वो कोमल भी बहुत थी! और, वहाँ पर काफी बाल भी थे.. आनंद आने वाला है!

कुछ देर तक उंगली को उसकी योनि के अन्दर बाहर करने के बाद फरहत दोबारा अपने चरम पर पहुँच गई। उसकी कामुक आहें निकलने लगीं। जब तक उसने आहें भरीं, तब तक मैंने उंगली से मैथुन जारी रखा, लेकिन जब वो अंततः शांत हुई, तो मैंने उंगली निकाल ली और सुस्ताने लगा।

“आप रुक क्यों गये?” उसने पूछा।

“अब तो मेन एक्ट का टाइम है.. तुम रेडी हो?”

“बाप रे! अभी ख़तम नहीं हुआ? मैं तो थक गई.. ओह्ह...”

“अभी कहाँ ख़तम? अभी तो हमें ‘कनेक्ट’ होना है.. तभी तो पूरा होगा..”

कह कर मैंने अपने लिंग की ओर इशारा किया, और उसका पजामा नीचे सरका कर उसके शरीर से मुक्त कर दिया। अब हम दोनों ही पूरी तरह नग्न मेरे बिस्तर पर थे। मैंने वापस उसके दोनों स्तनों को अपने हाथों में लेकर उसको मसलने लगा। वो पुनः वासना के सागर में गोते लगाने लगी। मैंने उसके कन्धों को चूमना शुरू कर दिया और वहाँ से होते हुए उसके कान को चूमा और उसकी लोलकी को चूसने लगा।

“फरहत, क्या तुम्हे अच्छा नही लग रहा?”

उसने सिर्फ सर हिला कर हामी भरी।

मैंने उसके हाथ में अपना लिंग दिया। कमाल की बात है फरहत के मज़बूत, नर्स वाले हाथ इस समय मेरे लिंग पर काफी मुलायम और नाज़ुक महसूस हो रहे थे। उधर मैंने उसके शरीर को चूमना और चाटना जारी रखा। मैं चूमते हुए उसकी गर्दन से होते हुए उसके पेट, और फिर वहाँ से उसकी योनि को चूमने और चाटने लगा। मैं जीभ की नोक से उसकी योनि के भीतर भी चूम रहा था। अभी कुछ ही समय पहले रिसा हुआ योनि-रस काफी स्वादिष्ट था। अब मैं भी रुकने की हालत में नहीं था, लेकिन फिर भी मैंने जैसे तैसे खुद पर काबू रखते हुए उसकी योनि चाटता रहा। कुछ देर बाद वो तीसरी बार स्खलित हो गई। उसकी योनि का रंग उत्तेजना से गुलाबी हो गया था।

खैर, अंततः मैंने अपना लिंग उसकी टाँगों के बीच योनि के द्वार पर टिकाया, और धीरे धीरे अंदर डालने लगा। उसकी योनि काफी कसी हुई थी। फरहत गहरी गहरी साँसे भरते हुए मेरे लिंग को ग्रहण करना आरम्भ किया। खैर मैंने धीरे धीरे लिंग की पूरी लम्बाई उसकी योनि में डाल दी, और धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। न तो मेरे पैरों में इतनी ताकत ही, और न ही हाथों में, की वो मेरे शरीर का बोझ ठीक से उठा सके और धक्के भी लगाने में मदद कर सके.. लेकिन जब इच्छाएं बलवती हो जाती हैं तो फिर किस बात का बस चलता है मानुस पर? वैसे भी, कामोत्तेजना इतनी देर से थी की गिने चुने धक्को में ही मेरा काम हो जाना था। दिमाग में बस यही बात चल रही थी की कितनी जल्दी और कैसे अपना वीर्य फरहत के अन्दर स्खलित कर दूं। यह एक निहायत ही मतलबी सोच थी, लेकिन क्या करता? उस समय शरीर पर मेरा अपना बस लगभग नहीं के बराबर ही था। फरहत अगर मदद न करती, तो कुछ भी नहीं कर पाता.. उसी ने खुद-ब-खुद अपनी टाँगे इतनी खोल दी थीं जिससे मेरी गतिविधि आसान इसे हो जाय। मुझे नहीं मालूम की उसको अपने जीवन के पहले सम्भोग से क्या आशाएं थीं, लेकिन जब मैंने उसको देखा तो उसकी आँखें बंद थीं और उसके चेहरे के भाव ने लग रहा था की उसको भी सम्भोग का आनंद आ रहा था।

मन में तो यह इच्छा हुई की बहुत देर तक किया जाय, लेकिन अपने शरीर से मैं खुद ही लाचार हो गया। कुछ ही धक्कों बाद मुझे महसूस हुआ की मैं स्खलित होने वाला हूँ। इसलिए मैंने तुरंत ही अपने लिंग को बाहर निकाल लिया। फरहत चौंकी।

“क्या हुआ?”

“नहीं.. कहीं तुम्हारे अन्दर ही एजाकुलेट (वीर्यपात) न कर दूं इसलिए बाहर निकाल लिया.. कहीं तुम प्रेग्नेंट हो गई तो?”

मेरी इस बात पर फरहत मुस्कुराई, और मुझे चूमते हुए बोली,

“आपको पता है, की आपकी इसी बात पर तो मैं आपसे ‘करने’ के लिए तैयार हुई। मुझे हमेशा से मालूम था की आप मेरा किसी भी तरीके से नुकसान नहीं होने देंगे.. लेकिन मुझे इस बात की कोई चिंता नहीं है। मैं एक नर्स हूँ... एंड, आई नो हाऊ टू कीप सेफ! नाउ प्लीज, गो बैक इन..”

“आर यू श्योर, स्वीटी?”

“यस हनी! आई वांट योर सीमन इनसाइड मी! प्लीज डू इट!”

मैं उसकी बात से थोड़ा भावुक हो गया, उसको कुछ देर प्यार से देखा, और वापस उसकी योनि की फाँकों को अपनी उँगलियों की सहायता से अलग कर के अपना लिंग अन्दर डाल दिया। इस घर्षण से फरहत की पुनः आहें निकल गईं। अब बस चंद धक्कों की ही बात थी.. मेरे भीतर का महीनो से संचित (वैसे ऐसा होता नहीं.. समय समय पर शरीर खुद ही वीर्य को बाहर निकाल देता है, और इस क्रिया को नाईट फाल भी कहते हैं) वीर्य बह निकला और फरहत की कोख में समां गया।

मैं वीर्य छोड़ने, और फरहत वीर्य को ग्रहण करने के एहसास से आंदोलित हो गए.. हम दोनों ही आनंद में आहें भरने लगे। उत्तेजना के शिखर पर पहुँचने का मुझ पर एक और भी असर हुआ.. स्खलित होते ही मेरे हाथ पांव कांप गए.. और मेरा भार सम्हाल नहीं पाए। ऐसे और क्या होना था? मैंने भदभदा कर फरहत के ऊपर ही गिर पड़ा, जैसे तैसे सम्हालते हुए भी मेरा लगभग आधा भार उस बेचारी पर गिर गया! संभव है की उत्तेजना के उन क्षणों में रक्त संचार और रक्त दाब इतना होता हो की उसको कुछ पता न चला हो, लेकिन मेरी बेइज्जती हो गई!

“गाट यू.. गाट यू...” उसने मुझे सम्हालते हुए कहा। वाकई उसने मुझे सम्हाल लिया था.. उसकी बाहें मेरे पीठ पर लिपटी हुई थीं, और उसकी टाँगे मेरे नितम्बों पर।

“सॉरी” मैं बस इतना की कह पाया!

“सॉरी? किस बात का? आपने आज मुझे वो ख़ुशी दी है जिसके बारे में मैं ठीक से सोच भी नहीं सकती थी! सो, थैंक यू! आज आपने मुझे कम्पलीट कर दिया! आई ऍम सो हैप्पी!”

“तुमको दर्द तो नहीं हुआ!”

“हुआ.. लेकिन.. हम्म.. शुरू शुरू में मैं यह नहीं करना चाहती थी.. लेकिन फिर अचानक ही मुझे ऐसा लगा की मुझे यह करना ही है! और यह एकसास आते ही दर्द गायब हो गया!”

मैंने उसके माथे पर एक दो बार चूमा और कहा, “आर यू श्योर.. आई मीन, आर यू ओके विद आवर न्यू रिलेशनशिप?”

फरहत मुस्कुराई, “आई ऍम! आपको जब मन करे, मुझे बताइयेगा! और मुझे लगता है की मुझे भी इसकी (मेरे लिंग की तरफ इशारा करते हुए) बहुत ज़रुरत पड़ने वाली है! ही ही ही!”
 

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कुछ लिख लेता हूँ
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नीलम का परिप्रेक्ष्य

फरहत के अथक प्रयासों का फल अब दिखने लग गया था। समय समय पर दवाइयाँ वगैरह देना, रूद्र की पूरी देखभाल करना, उनको व्यायाम करवाना और उनकी फिजियोथेरेपी करना। इन सब के कारण रूद्र की अवस्था अब काफी अच्छी हो गई थी। मैंने एक और बात देखी - बहुत दिनों से देख रही हूँ की रूद्र और फरहत की नजदीकियां बढ़ती जा रही हैं। रूद्र स्पष्ट रूप से पहले से काफी खुश दिखाई देते हैं। उत्तराखंड त्रासदी के बाद से पहली बार उनको इतना खुश देखा है। मुझे ख़ुशी है की उनके स्वास्थ्य में काफी सुधार है, और यह भी लग रहा है की वो भावनात्मक और मानसिक अवसाद से अब काफी उबर चुके हैं।

उनके स्वास्थ्य में कई सारे सकारात्मक सुधार भी हैं.. रुद्र चल फिर पाते हैं... आज कल घर से ही अपने ऑफीस का काम भी कर लेते हैं... वैसे डॉक्टर ने उनको कुछ भी करने से माना किया है, लेकिन वो जिस तरह के व्यक्ति हैं... खाली नही बैठ सकते इसलिए एक तरह से अच्छी बात है की वो अपने काम में मशगूल रहते हैं. सवेरे उठने के बाद वो कुछ देर टहलते भी हैं।

लेकिन दुःख इस बात का है की मैं उनके इस सुधार का कारण नहीं बन पाई हूँ।

यह सब कुछ फरहत के कारण है – उसके आने से वाकई घर की स्थिति में बहुत सारे सकारात्मक सुधार आये हैं। वो आई तो रूद्र की नर्स बन कर थी, लेकिन कुछ ही दिनों में उनकी देखभाल के साथ ही साथ मेरी भी देखभाल करती थी – मेरे खाने पीने, सोने, स्वास्थ्य, और पढाई लिखाई में रूद्र के बराबर ही रूचि लेती थी और यह भी सुनिश्चित करती थी की सब कुछ सुचारू रूप से हो। घर के संचालन में फरहत को अपार दक्षता प्राप्त थी। फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जैसे ही घर में घूम घूम कर, ढूंढ ढूंढ कर काम करती! मुझे भी कभी कभी लगता था की जैसे मेरी दीदी या माँ ही फरहत के रूप में वापस आ गए हैं! सच में! बहुत बार तो फरहत को दीदी या मम्मी कह कर बुलाने का मन होता! मेरे मन से यह बात कि वो नर्स है, कब की चली गई थी!


ये सब अच्छी बातें थीं.. लेकिन मुझे एक बात ज़रूर खटकती थी। और वो यह, की मेरा पत्ता साफ़ हो रहा था.. जवानी में मैंने सिर्फ एक ही पुरुष की चाह करी थी, और वो है रूद्र! लेकिन अब वो ही मेरी पहुँच से दूर होते जा रहे थे। मुझे शक ही नहीं, यकीन भी था की फरहत और रूद्र में एक प्रेम-सम्बन्ध बन गया है। वो अलग बात है की मेरे घर में रहने पर ऐसा कुछ होता नहीं दिखता था... संभवतः वो दोनों सतर्क रहते थे। फरहत हमारे घर पर ही रहती थी (अभी वो सप्ताह में एक दिन अपने घर जाने लग गई थी), और अब इतने दिनों के बाद हमारे परिवार का ही अभिन्न हिस्सा बन गई थी।

एक रोज़, सप्ताहांत में, मैं सवेरे सवेरे उठी – उस रोज़ कुछ जल्दी ही उठ गई थी। आज के दिन फरहत अपने घर जाती थी। मैंने सोचा की क्यों न आज काम-वाली बाई के बजाय मैं ही नाश्ता और चाय बना दूं और सब लोग साथ मिल कर आलस्य भरे सप्ताहांत का आरम्भ करें। मैं अपने कमरे से बाहर निकल कर दालान में आई ही थी, की मुझे रूद्र के कमरे से दबी दबी, फुसफुसाती हुई आवाजें सुनाई दी। हल्की हलकी सिसकियों, दबी दबी हंसी और खिलखिलाहट, और चुम्बन लेने की आवाजें।

प्रत्यक्ष को भला कैसा प्रमाण? मैं समझ गई की इस समय अन्दर क्या चल रहा है। लेकिन फिर भी मन मान नहीं रहा था – हृदय में एक कचोट सी हुई।जो काम मैं खुद रूद्र के साथ करना चाह रही थी, वही काम कोई और उनके साथ कर रही थी। दुःख भी हुआ, और उत्सुकता भी! उत्सुकता यह जानने और देखने की की ये दोनों क्या कर रहे हैं!

मैं दबे पांव चलते हुए रूद्र के कमरे तक पहुंची, और दरवाज़े पर अपने कान सटा दिए।

“उम्म्म्मम्म.. ये गलत है..” ये फरहत थी।

“कुछ भी गलत नहीं..”

“गलत तो है.. आह... शादीशुदा न होते हुए भी यह सब.. ओह्ह्ह्ह.. धीरेएएए..!” फरहत ठुनकते हुए कह रही थी।

“जानेमन... मेरे लंड का तुम्हारी चूत से मिलन हो गया...शादी में इससे और ज्यादा क्या होता है?”

“छिः! कैसे कैसे बोल रहे हो! गन्दी गन्दी बातें! आअऊऊऊ! आप न, बड़े ‘वो’ हो.. अभी, जब आपके हाथ पांव ठीक से नहीं चल रहे हैं, तब मेरी ऐसी हालत करते हैं.. जब सब ठीक हो जाएगा तो...”

“अच्छाआआआ... तो ये नर्स मेरे ठीक होने के बाद भी मुझे नर्स करना चाहती है?”

फरहत को शायद रूद्र के शरारत भरे प्रश्नोत्तर का भान नहीं था।

“हाँ... क्यों? ठीक होने के बाद मुझसे कन्नी काट लोगे क्या?” फरहत ने शिकायत भरे लहजे में कहा।

“अरे! बिलकुल नहीं!”

“आऊऊऊऊऊ..” यह फरहत थी।

“कम.. लेट मी नर्स यू.. उम्म्म!”

“आऊऊऊऊऊ... आराम से! ही ही ही!!”

दोनों की बातचीत की मैं सिर्फ कल्पना ही कर सकती थी... मेरे दिमाग में एक चित्र खिंच गया की रूद्र ने फरहत के एक निप्पल को अपने मुंह में भर लिया होगा। अद्भुत और आनंददायक होता होगा न, ऐसे सम्भोग करना? अपनी प्रेयसी की स्तनों को चूसते हुए अपने लिंग को उसकी योनि में लगातार ठोंकते रहना। है न? लेकिन मुझे पता नहीं कैसा लगा... अजीब सा... रोमांच, गुस्सा, उत्सुकता... ऐसे न जाने कितने मिले जुले भाव!

मुझसे रहा नहीं जा रहा था... मैं वाकई देखना चाहती थी की अन्दर क्या चल रहा है – सिर्फ सुन कर उत्सुकता कम नहीं, बल्कि बढ़ने लगती है। मैंने की-होल से अन्दर देखने की कोशिश करी – छेद था तो, लेकिन कुछ ऐसा था की अन्दर बिस्तर का कोई हिस्सा नहीं दिख रहा था। तभी मुझे ख़याल आया की ड्राई बालकनी से मास्टर बाथरूम के रास्ते अन्दर का नज़ारा देखा जा सकता है। मैं भागी भागी उसी तरफ गई... उम्मीद के विपरीत मुझे सीधा तो कुछ नहीं दिखाई दिया, लेकिन बाथरूम के अन्दर लगे आदमकद आईने से बेडरूम के खुले दरवाज़े के अन्दर का दृश्य साफ़ नज़र आ रहा था।

फरहत रूद्र की सवारी करते हुए सम्भोग कर रही थी। उसके नितम्ब के बार बार ऊपर नीचे आने जाने पर रूद्र का लिंग दिखाई देता था – फरहत की योनि रस से सराबोर वह लिंग कमरे की लाइट और बाहर की रौशनी से बढ़िया चमक रहा था। फरहत रूद्र के ऊपर झुकी हुई थी, जिससे रूद्र उसके स्तन पी सकें। हो भी वही रहा था – रूद्र के मुंह में उसका एक निप्पल था, और दूसरे स्तन पर उनका हाथ! मैं वही खड़े खड़े रूद्र और फरहत के संगम का अनोखा दृश्य देख रही थी।

“जानू.. जानू.. बस.. ब्ब्ब्बस्स्स.. आह! दर्द होने लगा अब... अब छोड़ अआह्ह्ह.. दो!”

‘जानू? वाह! तो बात यहाँ तक पहुँच गई है? नीलू... तू क्या कर रही है??’

“क्या छोड़ दूं?” रूद्र ने फरहत का निप्पल छोड़ कर कहा (बेचारी का निप्पल वाकई लाल हो गया था), “चूसना, मसलना या फिर चोदना?”।

रूद्र को ऐसी भाषा में बात करते हुए सुन कर मुझे बुरा सा लगा – उनके मुंह से ऐसी भाषा वाकई शोभा नहीं देती है।

“चूसना और मसलना.. तीसरा वाला तो मैं ही कर रही हूँ.. आप तो आराम से लेटे हो!”

“ठीक है फिर.. चलो, यह शुभ काम अब मै ही करता हूँ.. अब खुश?”

कह कर रूद्र बिस्तर से उठने लगे, और साथ ही साथ फरहत को लिटाने लगे।उसके लेट जाने के बाद, रूद्र अब फरहत के होंठो को बड़े अन्तरंग तरीके से चूमने लगे। फरहत भी बढ़ चढ़ कर उनका साथ देने लगी। ऐसे ही चूमते हुए रूद्र ने अपनी एक उंगली फरहत की योनि में डाली, और उसे अन्दर बाहर करने लगे। फरहत की सिसकारियाँ मुझे साफ़ सुनाई दे रही थीं। वह आह ओह करते हुए, रूद्र के बालों को नोंच रही थी। रूद्र ने अब अपनी उंगली उसकी योनि से निकाल के उसके मुंह में डाल दी। वो मज़े ले कर अपनी ही योनि का रस चाटने लगी।

रूद्र और फरहत, दोनों ही समागम के लिए तड़प रहे थे। रूद्र ने फरहत की टांगो को खोला और अपना शिश्नाग्र उसकी योनि के खुले हुए मुख पर रख दिया। उनका लिंग कितना मोटा था! सच में! यह लिंग अगर मेरी योनि में जाएगा, तो अपार कष्ट तो होना ही है! लेकिन फरहत की योनि की अब तक इतनी कुटाई हो चुकी थी की रूद्र के एक ही झटके में उनके लिंग का आधा हिस्सा उसके अन्दर चला गया। फरहत के चेहरे पर मात्र हल्का सा कष्ट का भाव आया, और उसने रूद्र का लिंग अपनी योनि में सही तरह से ले लिया। रूद्र नीचे झुक कर उसके स्तनों पर भोग लगाने लगे और साथ ही साथ नीचे की तारफ अपनी कमर को एक झटका और दे कर के अपने लिंग को उसके अन्दर पूरी तरह प्रविष्ट कर दिया। फरहत ने अपने हाथ उनकी कमर के गिर्द लपेट कर अपनी तरफ और खींचने लगी। रूद्र पूरे जोशो खरोश के साथ सम्भोग करने लगे... उधर फरहत भी नीचे से अपनी कमर को उछाल कर उनका साथ दे रही थी।

मैं और अधिक नही देख सकती थी... भले ही सम्मुख दृश्य इतना रोचक और कामुक हो.. यह उन दोनो के बीच का अपना और बहुत ही अंतरंग संसर्ग संबंध था, और मैं ऐसे चोरी छिपे देख कर इस बात का अनादर नही कर सकती थी.. मैं जल्दी से अपने कमरे में वापस चली आई और बिस्तर पर लेट गई और सोने का नाटक करने लगी। जब फरहत और रुद्र फ़ुर्सत पाकर कमरे से बाहर निकलेंगे, तब उनको किसी प्रकार की लज्जाजनक स्थिति का सामना नही करना पड़ेगा।
 
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