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कुछ देर के बाद (कोई पंद्रह मिनट के बाद) मुझे उनके कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। मैं दम साध कर लेटी रही – जैसे अभी भी सो रही हूँ। मुझे वाकई बुखार सा हो गया था। ऐसे ही नाटक करते करते न जाने कब आँख लग गई, मुझे कुछ याद नहीं है। लेकिन मेरी नींद तब खुली जब मैंने अपने गाल और माथे पर किसी के छूने का एहसास हुआ।
मैने आँखें खोलीं... सामने फरहत बैठी हुई थी...! वो मेरे गाल को प्यार से सहला रही थी।
"फरहत! आप?"
"श्श्ह्हह्ह्ह... अभी तबियत कैसी है?"
“तबियत?”
“हाँ.. बुखार से तप रहा था तुम्हारा शरीर! मैंने कोई दवाई नहीं दी, लेकिन सोचा कि पहले तुमको जगा लूं। कैसा लग रहा है अभी?”
“तप रहा था? मेरा शरीर?” फिर अचानक याद आया कि वो तो मेरे शरीर की कामाग्नि की तपन थी। मैंने सोचा की आज फरहत से इस बारे में बात कर ही ली जाय।
“ओह!” मैने कहा, “वो कुछ भी नहीं है... रूद्र कहाँ हैं?”
“वो तो बाथरूम में हैं! क्यों?”
“वो इसलिए, कि मुझे आपसे एक बात करनी थी!”
“क्या बात है? बताओ?”
मैं हिचकी, “फरहत, क्या आप और रूद्र... मतलब, क्या आप दोनों शादी करना चाहते हैं?”
“ऐसे क्यों पूछ रही हो, नीलम?” फरहत ने सतर्क होते हुए पूछा।
“मैंने आज आप दोनों को... सेक्स करते हुए...”
“हाय अल्लाह!” कहते हुए फरहत ने अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढँक लिया।
“बताइए न?”
“करना तो चाहती हूँ... लेकिन तुम भी तो..”
“मैं भी तो क्या?”
“तुम भी तो उनसे शादी करना चाहती हो.. है न?”
“ये आप कैसे कह रही हैं?” मैंने प्रतिरोध किया।
“नीलम, मैं भी औरत हूँ, और तुम भी! और औरत ही दूसरे औरत के मन की बात समझ सकती है! हमको कुछ कहने सुनने की ज़रुरत होती है क्या?”
मैं चुप ही रही। फरहत भी कुछ देर चुप रही, और फिर आगे बोली,
“रूद्र हैं ही ऐसे मर्द! क्यों न कोई लड़की उनको चाहने लगे? मर्द नहीं, सोना हैं सोना! मैं तो उनकी लौंडी (गुलाम) बन गई हूँ!”
मैंने कुछ हिम्मत करी।
“आप मेरी इस बात का बुरा मत मानना, लेकिन पूछना ज़रूरी है। आप उनसे उनकी दौलत के लिए शादी करना चाहती हैं?”
फरहत मुस्कुराई,
“हा हा! नहीं.. मैंने तुम्हारी बात का कोई बुरा नहीं माना। मुझे मालूम है कि रूद्र ने अपनी सब जायदाद आपके नाम कर दी है। उन्होंने बताया है मुझको। नहीं... दौलत के लिए नहीं! मेरी नर्स की नौकरी में ज्यादा तो नहीं, लेकिन कम कमाई भी नहीं होती। आराम से चल जाता है। नहीं... उन्होंने जिस तरह से मुझे औरत होने का एहसास दिलाया है, मुझे जिस तरह से मान सम्मान दिया है, उसके लिए! ... कौन सी औरत नहीं करेगी उनके जैसे मर्द से मोहब्बत? रूद्र न केवल जिस्म से ही एक भरपूर मर्द हैं, बल्कि दिल से भी हैं।"
“लेकिन.. आप तो मुसलमान हैं?”
“हाँ! लेकिन, एक मुसलमान होने से पहले एक इंसान भी तो हूँ!”
“नहीं नहीं! मेरा वो मतलब नहीं था।“
“हा हा! हाँ भाई... मालूम है तुम्हारा वो मतलब नहीं था! हाँ.. मुसलमान हूँ.. अब्बू कुछ न कुछ नाटक कर सकते हैं!”
फिर कुछ रुक कर, “तुम्हे तो कोई दिक्कत नहीं? ... मेरा मतलब...”
मेरी उदासी मेरे चेहरे पर साफ़ दिखने लगी।
“नीलू, अगर तुम उनसे प्यार करती हो, तो तुमको उन्हें बताना चाहिए!”
“अगर का कोई सवाल ही नहीं है फरहत...”
“इसीलिए तो ये समझा रही हूँ तुमको! ऐसे मन में छुपा कर रखने से तो उनको मालूम नहीं होगा न? किसी को ख्वाब थोड़े न आ रहे हैं! और सच कहती हूँ.. अगर वो भी तुमको पसंद करते हैं, तो मुझे बहुत ख़ुशी मिलेगी.. और भी ख़ुशी मिलेगी अगर तुम दोनों मिल जाओ। दुःख तो बहुत होगा.. झूठ नहीं कह सकती... ऐसा शानदार मर्द हाथ से चला जायेगा, तो किसी को भी अफ़सोस होगा! लेकिन, मुझे ख़ुशी भी मिलेगी। सच कहती हूँ!“
“फरहत.. आप इतनी अच्छी हैं, मुझे भी लगता है कि उनको आपसे शादी करनी चाहिए!”
“नीलम, ऐसे मत कहो! मैं तो बहुत बाद में आई... लेकिन मुझे मालूम है कि तुमने उनकी सेवा में दिन रात एक कर दिया था। इस लिहाज़ से तुम्हे पहला हक़ है, उनसे प्यार जताने का। लेकिन रूद्र को नहीं मालूम कि तुम उनसे प्यार करती हो! मुझे भी काफी कुछ हो जाने के बाद मालूम पड़ा.. नहीं तो मैं कैसे भी उनसे इतना न घुल-मिल जाती।“
फरहत कुछ देर के लिए चुप हो गई – कमरे की निस्तब्धता में दोनों लडकियाँ जैसे अभी अभी हुई बातों की वज़न का माप कर रही थीं। चुप्पी वापस फरहत ने ही तोड़ी –
“नीलू प्यारी, मेरी तो बस यही सलाह है कि तुम उनको बताओ। उनको बताओ की तुम उन्हें प्यार करती हो! बाकी तो सब अल्लाह का रहम!”
फरहत की ऐसी बात सुन कर मुझे बहुत राहत हुई – एक अरसे के बाद किसी से इस तरह बात करी। इस कारण मन का दुःख आँखों के रास्ते, आंसूं बन कर बाहर निकल आये। फरहत ने मुझे अपने गले से लगा लिया। और मुझे दिलासा देने लगी। कुछ देर के बाद वो ही बोली,
“क्यों न हम एक काम करें?”
मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि डाली,
“आज घर जाना कैंसिल कर देती हूँ! और... तुमको फुल-बॉडी मसाज देती हूँ! एक तो तुमको खूब अच्छा महसूस होगा, और दूसरा, कभी न कभी रूद्र तुम्हारे कमरे के सामने से गुजरेंगे! तुम्हारा नंगा बदन देख कर कुछ तो समझ आएगा न उस बुद्धू को?”
“धत्त फरहत! आप भी न!”
“अरे! इतना कमसिन जिस्म है! कभी दिखाओ तो उन्हें!”
“क्या!? आप भी न !”
“अरे! आप भी न का क्या मतलब है? पता है, जब उन्होंने जब मेरी छातियाँ पहली बार नंगी करीं, तो कैसी आहें भरी थीं! मर्द के सामने अपनी छातियाँ परोस दो, बस! उसकी तो तुरंत लार टपकने लगेगी! और इस बेचारे को तो कितना दिन भी हो गया था!”
“छिः! कितनी गन्दी हो तुम!” मेरी आँखों के सामने सवेरे के दृश्य घूम गए।
“गन्दी नहीं! खैर, मर्द की ही क्या बात करें! हम औरतों की भी तो ऐसी ही हालत हो जाती है! इन चूचों पर मर्द की जीभ पड़ जाय बस! हा हा!”
“धत्त...”
“अरे! धत्त क्या! बेटा, अगर रूद्र मान गए, तो तेरा ऐसा बाजा बजेगा न, कि तुझे ऐसा लगेगा की सात जन्नतों की सैर करके आई हो! बाप रे! थका देते हैं वो तो! ... और, उनका औज़ार भी तो कितना तगड़ा...”
मैंने आगे कुछ भी सुनने से पहले अपने कान हाथों से बंद कर लिए, और अपनी आँखें भी मींच लीं!
फरहत बातों में तो माहिर थी। उससे भी अधिक उसमें स्नेह था। जो सारी बातें अभी फरहत ने कही थी, वो सारी बातें मेरे लिए भी उतनी ही सच थीं। अगर रूद्र फरहत से शादी कर लें, तो मुझे भी बहुत ख़ुशी मिलेगी – दुःख होगा, लेकिन वाकई, ख़ुशी भी बहुत मिलेगी। एक बार तो मन हुआ कि क्यों न फरहत भी हमारे साथ ही रहे। शादी किसी की भी हो, लेकिन साथ तो हम तीनों ही रह सकते हैं! लेकिन इस प्लान में एक अड़चन यह थी की फरहत की शादी में दिक्कत आएगी...
हैं! कमाल है! मैं पहले से ही सोच रही हूँ कि रूद्र मुझे ही पसंद करेंगे, और मुझ ही से शादी करना चाहेंगे! मज़े की बात है, की मैंने अभी तक उनको अपने मन की बात भी नहीं बताई!
मैने आँखें खोलीं... सामने फरहत बैठी हुई थी...! वो मेरे गाल को प्यार से सहला रही थी।
"फरहत! आप?"
"श्श्ह्हह्ह्ह... अभी तबियत कैसी है?"
“तबियत?”
“हाँ.. बुखार से तप रहा था तुम्हारा शरीर! मैंने कोई दवाई नहीं दी, लेकिन सोचा कि पहले तुमको जगा लूं। कैसा लग रहा है अभी?”
“तप रहा था? मेरा शरीर?” फिर अचानक याद आया कि वो तो मेरे शरीर की कामाग्नि की तपन थी। मैंने सोचा की आज फरहत से इस बारे में बात कर ही ली जाय।
“ओह!” मैने कहा, “वो कुछ भी नहीं है... रूद्र कहाँ हैं?”
“वो तो बाथरूम में हैं! क्यों?”
“वो इसलिए, कि मुझे आपसे एक बात करनी थी!”
“क्या बात है? बताओ?”
मैं हिचकी, “फरहत, क्या आप और रूद्र... मतलब, क्या आप दोनों शादी करना चाहते हैं?”
“ऐसे क्यों पूछ रही हो, नीलम?” फरहत ने सतर्क होते हुए पूछा।
“मैंने आज आप दोनों को... सेक्स करते हुए...”
“हाय अल्लाह!” कहते हुए फरहत ने अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढँक लिया।
“बताइए न?”
“करना तो चाहती हूँ... लेकिन तुम भी तो..”
“मैं भी तो क्या?”
“तुम भी तो उनसे शादी करना चाहती हो.. है न?”
“ये आप कैसे कह रही हैं?” मैंने प्रतिरोध किया।
“नीलम, मैं भी औरत हूँ, और तुम भी! और औरत ही दूसरे औरत के मन की बात समझ सकती है! हमको कुछ कहने सुनने की ज़रुरत होती है क्या?”
मैं चुप ही रही। फरहत भी कुछ देर चुप रही, और फिर आगे बोली,
“रूद्र हैं ही ऐसे मर्द! क्यों न कोई लड़की उनको चाहने लगे? मर्द नहीं, सोना हैं सोना! मैं तो उनकी लौंडी (गुलाम) बन गई हूँ!”
मैंने कुछ हिम्मत करी।
“आप मेरी इस बात का बुरा मत मानना, लेकिन पूछना ज़रूरी है। आप उनसे उनकी दौलत के लिए शादी करना चाहती हैं?”
फरहत मुस्कुराई,
“हा हा! नहीं.. मैंने तुम्हारी बात का कोई बुरा नहीं माना। मुझे मालूम है कि रूद्र ने अपनी सब जायदाद आपके नाम कर दी है। उन्होंने बताया है मुझको। नहीं... दौलत के लिए नहीं! मेरी नर्स की नौकरी में ज्यादा तो नहीं, लेकिन कम कमाई भी नहीं होती। आराम से चल जाता है। नहीं... उन्होंने जिस तरह से मुझे औरत होने का एहसास दिलाया है, मुझे जिस तरह से मान सम्मान दिया है, उसके लिए! ... कौन सी औरत नहीं करेगी उनके जैसे मर्द से मोहब्बत? रूद्र न केवल जिस्म से ही एक भरपूर मर्द हैं, बल्कि दिल से भी हैं।"
“लेकिन.. आप तो मुसलमान हैं?”
“हाँ! लेकिन, एक मुसलमान होने से पहले एक इंसान भी तो हूँ!”
“नहीं नहीं! मेरा वो मतलब नहीं था।“
“हा हा! हाँ भाई... मालूम है तुम्हारा वो मतलब नहीं था! हाँ.. मुसलमान हूँ.. अब्बू कुछ न कुछ नाटक कर सकते हैं!”
फिर कुछ रुक कर, “तुम्हे तो कोई दिक्कत नहीं? ... मेरा मतलब...”
मेरी उदासी मेरे चेहरे पर साफ़ दिखने लगी।
“नीलू, अगर तुम उनसे प्यार करती हो, तो तुमको उन्हें बताना चाहिए!”
“अगर का कोई सवाल ही नहीं है फरहत...”
“इसीलिए तो ये समझा रही हूँ तुमको! ऐसे मन में छुपा कर रखने से तो उनको मालूम नहीं होगा न? किसी को ख्वाब थोड़े न आ रहे हैं! और सच कहती हूँ.. अगर वो भी तुमको पसंद करते हैं, तो मुझे बहुत ख़ुशी मिलेगी.. और भी ख़ुशी मिलेगी अगर तुम दोनों मिल जाओ। दुःख तो बहुत होगा.. झूठ नहीं कह सकती... ऐसा शानदार मर्द हाथ से चला जायेगा, तो किसी को भी अफ़सोस होगा! लेकिन, मुझे ख़ुशी भी मिलेगी। सच कहती हूँ!“
“फरहत.. आप इतनी अच्छी हैं, मुझे भी लगता है कि उनको आपसे शादी करनी चाहिए!”
“नीलम, ऐसे मत कहो! मैं तो बहुत बाद में आई... लेकिन मुझे मालूम है कि तुमने उनकी सेवा में दिन रात एक कर दिया था। इस लिहाज़ से तुम्हे पहला हक़ है, उनसे प्यार जताने का। लेकिन रूद्र को नहीं मालूम कि तुम उनसे प्यार करती हो! मुझे भी काफी कुछ हो जाने के बाद मालूम पड़ा.. नहीं तो मैं कैसे भी उनसे इतना न घुल-मिल जाती।“
फरहत कुछ देर के लिए चुप हो गई – कमरे की निस्तब्धता में दोनों लडकियाँ जैसे अभी अभी हुई बातों की वज़न का माप कर रही थीं। चुप्पी वापस फरहत ने ही तोड़ी –
“नीलू प्यारी, मेरी तो बस यही सलाह है कि तुम उनको बताओ। उनको बताओ की तुम उन्हें प्यार करती हो! बाकी तो सब अल्लाह का रहम!”
फरहत की ऐसी बात सुन कर मुझे बहुत राहत हुई – एक अरसे के बाद किसी से इस तरह बात करी। इस कारण मन का दुःख आँखों के रास्ते, आंसूं बन कर बाहर निकल आये। फरहत ने मुझे अपने गले से लगा लिया। और मुझे दिलासा देने लगी। कुछ देर के बाद वो ही बोली,
“क्यों न हम एक काम करें?”
मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि डाली,
“आज घर जाना कैंसिल कर देती हूँ! और... तुमको फुल-बॉडी मसाज देती हूँ! एक तो तुमको खूब अच्छा महसूस होगा, और दूसरा, कभी न कभी रूद्र तुम्हारे कमरे के सामने से गुजरेंगे! तुम्हारा नंगा बदन देख कर कुछ तो समझ आएगा न उस बुद्धू को?”
“धत्त फरहत! आप भी न!”
“अरे! इतना कमसिन जिस्म है! कभी दिखाओ तो उन्हें!”
“क्या!? आप भी न !”
“अरे! आप भी न का क्या मतलब है? पता है, जब उन्होंने जब मेरी छातियाँ पहली बार नंगी करीं, तो कैसी आहें भरी थीं! मर्द के सामने अपनी छातियाँ परोस दो, बस! उसकी तो तुरंत लार टपकने लगेगी! और इस बेचारे को तो कितना दिन भी हो गया था!”
“छिः! कितनी गन्दी हो तुम!” मेरी आँखों के सामने सवेरे के दृश्य घूम गए।
“गन्दी नहीं! खैर, मर्द की ही क्या बात करें! हम औरतों की भी तो ऐसी ही हालत हो जाती है! इन चूचों पर मर्द की जीभ पड़ जाय बस! हा हा!”
“धत्त...”
“अरे! धत्त क्या! बेटा, अगर रूद्र मान गए, तो तेरा ऐसा बाजा बजेगा न, कि तुझे ऐसा लगेगा की सात जन्नतों की सैर करके आई हो! बाप रे! थका देते हैं वो तो! ... और, उनका औज़ार भी तो कितना तगड़ा...”
मैंने आगे कुछ भी सुनने से पहले अपने कान हाथों से बंद कर लिए, और अपनी आँखें भी मींच लीं!
फरहत बातों में तो माहिर थी। उससे भी अधिक उसमें स्नेह था। जो सारी बातें अभी फरहत ने कही थी, वो सारी बातें मेरे लिए भी उतनी ही सच थीं। अगर रूद्र फरहत से शादी कर लें, तो मुझे भी बहुत ख़ुशी मिलेगी – दुःख होगा, लेकिन वाकई, ख़ुशी भी बहुत मिलेगी। एक बार तो मन हुआ कि क्यों न फरहत भी हमारे साथ ही रहे। शादी किसी की भी हो, लेकिन साथ तो हम तीनों ही रह सकते हैं! लेकिन इस प्लान में एक अड़चन यह थी की फरहत की शादी में दिक्कत आएगी...
हैं! कमाल है! मैं पहले से ही सोच रही हूँ कि रूद्र मुझे ही पसंद करेंगे, और मुझ ही से शादी करना चाहेंगे! मज़े की बात है, की मैंने अभी तक उनको अपने मन की बात भी नहीं बताई!