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Romance कायाकल्प [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,039
22,451
159
कुछ देर के बाद (कोई पंद्रह मिनट के बाद) मुझे उनके कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। मैं दम साध कर लेटी रही – जैसे अभी भी सो रही हूँ। मुझे वाकई बुखार सा हो गया था। ऐसे ही नाटक करते करते न जाने कब आँख लग गई, मुझे कुछ याद नहीं है। लेकिन मेरी नींद तब खुली जब मैंने अपने गाल और माथे पर किसी के छूने का एहसास हुआ।

मैने आँखें खोलीं... सामने फरहत बैठी हुई थी...! वो मेरे गाल को प्यार से सहला रही थी।

"फरहत! आप?"

"श्श्ह्हह्ह्ह... अभी तबियत कैसी है?"

“तबियत?”

“हाँ.. बुखार से तप रहा था तुम्हारा शरीर! मैंने कोई दवाई नहीं दी, लेकिन सोचा कि पहले तुमको जगा लूं। कैसा लग रहा है अभी?”

“तप रहा था? मेरा शरीर?” फिर अचानक याद आया कि वो तो मेरे शरीर की कामाग्नि की तपन थी। मैंने सोचा की आज फरहत से इस बारे में बात कर ही ली जाय।

“ओह!” मैने कहा, “वो कुछ भी नहीं है... रूद्र कहाँ हैं?”

“वो तो बाथरूम में हैं! क्यों?”

“वो इसलिए, कि मुझे आपसे एक बात करनी थी!”

“क्या बात है? बताओ?”

मैं हिचकी, “फरहत, क्या आप और रूद्र... मतलब, क्या आप दोनों शादी करना चाहते हैं?”

“ऐसे क्यों पूछ रही हो, नीलम?” फरहत ने सतर्क होते हुए पूछा।

“मैंने आज आप दोनों को... सेक्स करते हुए...”

“हाय अल्लाह!” कहते हुए फरहत ने अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढँक लिया।

“बताइए न?”

“करना तो चाहती हूँ... लेकिन तुम भी तो..”

“मैं भी तो क्या?”

“तुम भी तो उनसे शादी करना चाहती हो.. है न?”

“ये आप कैसे कह रही हैं?” मैंने प्रतिरोध किया।

“नीलम, मैं भी औरत हूँ, और तुम भी! और औरत ही दूसरे औरत के मन की बात समझ सकती है! हमको कुछ कहने सुनने की ज़रुरत होती है क्या?”

मैं चुप ही रही। फरहत भी कुछ देर चुप रही, और फिर आगे बोली,

“रूद्र हैं ही ऐसे मर्द! क्यों न कोई लड़की उनको चाहने लगे? मर्द नहीं, सोना हैं सोना! मैं तो उनकी लौंडी (गुलाम) बन गई हूँ!”

मैंने कुछ हिम्मत करी।

“आप मेरी इस बात का बुरा मत मानना, लेकिन पूछना ज़रूरी है। आप उनसे उनकी दौलत के लिए शादी करना चाहती हैं?”

फरहत मुस्कुराई,

“हा हा! नहीं.. मैंने तुम्हारी बात का कोई बुरा नहीं माना। मुझे मालूम है कि रूद्र ने अपनी सब जायदाद आपके नाम कर दी है। उन्होंने बताया है मुझको। नहीं... दौलत के लिए नहीं! मेरी नर्स की नौकरी में ज्यादा तो नहीं, लेकिन कम कमाई भी नहीं होती। आराम से चल जाता है। नहीं... उन्होंने जिस तरह से मुझे औरत होने का एहसास दिलाया है, मुझे जिस तरह से मान सम्मान दिया है, उसके लिए! ... कौन सी औरत नहीं करेगी उनके जैसे मर्द से मोहब्बत? रूद्र न केवल जिस्म से ही एक भरपूर मर्द हैं, बल्कि दिल से भी हैं।"

“लेकिन.. आप तो मुसलमान हैं?”

“हाँ! लेकिन, एक मुसलमान होने से पहले एक इंसान भी तो हूँ!”

“नहीं नहीं! मेरा वो मतलब नहीं था।“

“हा हा! हाँ भाई... मालूम है तुम्हारा वो मतलब नहीं था! हाँ.. मुसलमान हूँ.. अब्बू कुछ न कुछ नाटक कर सकते हैं!”

फिर कुछ रुक कर, “तुम्हे तो कोई दिक्कत नहीं? ... मेरा मतलब...”

मेरी उदासी मेरे चेहरे पर साफ़ दिखने लगी।

“नीलू, अगर तुम उनसे प्यार करती हो, तो तुमको उन्हें बताना चाहिए!”

“अगर का कोई सवाल ही नहीं है फरहत...”

“इसीलिए तो ये समझा रही हूँ तुमको! ऐसे मन में छुपा कर रखने से तो उनको मालूम नहीं होगा न? किसी को ख्वाब थोड़े न आ रहे हैं! और सच कहती हूँ.. अगर वो भी तुमको पसंद करते हैं, तो मुझे बहुत ख़ुशी मिलेगी.. और भी ख़ुशी मिलेगी अगर तुम दोनों मिल जाओ। दुःख तो बहुत होगा.. झूठ नहीं कह सकती... ऐसा शानदार मर्द हाथ से चला जायेगा, तो किसी को भी अफ़सोस होगा! लेकिन, मुझे ख़ुशी भी मिलेगी। सच कहती हूँ!“

“फरहत.. आप इतनी अच्छी हैं, मुझे भी लगता है कि उनको आपसे शादी करनी चाहिए!”

“नीलम, ऐसे मत कहो! मैं तो बहुत बाद में आई... लेकिन मुझे मालूम है कि तुमने उनकी सेवा में दिन रात एक कर दिया था। इस लिहाज़ से तुम्हे पहला हक़ है, उनसे प्यार जताने का। लेकिन रूद्र को नहीं मालूम कि तुम उनसे प्यार करती हो! मुझे भी काफी कुछ हो जाने के बाद मालूम पड़ा.. नहीं तो मैं कैसे भी उनसे इतना न घुल-मिल जाती।“

फरहत कुछ देर के लिए चुप हो गई – कमरे की निस्तब्धता में दोनों लडकियाँ जैसे अभी अभी हुई बातों की वज़न का माप कर रही थीं। चुप्पी वापस फरहत ने ही तोड़ी –

“नीलू प्यारी, मेरी तो बस यही सलाह है कि तुम उनको बताओ। उनको बताओ की तुम उन्हें प्यार करती हो! बाकी तो सब अल्लाह का रहम!”

फरहत की ऐसी बात सुन कर मुझे बहुत राहत हुई – एक अरसे के बाद किसी से इस तरह बात करी। इस कारण मन का दुःख आँखों के रास्ते, आंसूं बन कर बाहर निकल आये। फरहत ने मुझे अपने गले से लगा लिया। और मुझे दिलासा देने लगी। कुछ देर के बाद वो ही बोली,

“क्यों न हम एक काम करें?”

मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि डाली,

“आज घर जाना कैंसिल कर देती हूँ! और... तुमको फुल-बॉडी मसाज देती हूँ! एक तो तुमको खूब अच्छा महसूस होगा, और दूसरा, कभी न कभी रूद्र तुम्हारे कमरे के सामने से गुजरेंगे! तुम्हारा नंगा बदन देख कर कुछ तो समझ आएगा न उस बुद्धू को?”

“धत्त फरहत! आप भी न!”

“अरे! इतना कमसिन जिस्म है! कभी दिखाओ तो उन्हें!”

“क्या!? आप भी न !”

“अरे! आप भी न का क्या मतलब है? पता है, जब उन्होंने जब मेरी छातियाँ पहली बार नंगी करीं, तो कैसी आहें भरी थीं! मर्द के सामने अपनी छातियाँ परोस दो, बस! उसकी तो तुरंत लार टपकने लगेगी! और इस बेचारे को तो कितना दिन भी हो गया था!”

“छिः! कितनी गन्दी हो तुम!” मेरी आँखों के सामने सवेरे के दृश्य घूम गए।

“गन्दी नहीं! खैर, मर्द की ही क्या बात करें! हम औरतों की भी तो ऐसी ही हालत हो जाती है! इन चूचों पर मर्द की जीभ पड़ जाय बस! हा हा!”

“धत्त...”

“अरे! धत्त क्या! बेटा, अगर रूद्र मान गए, तो तेरा ऐसा बाजा बजेगा न, कि तुझे ऐसा लगेगा की सात जन्नतों की सैर करके आई हो! बाप रे! थका देते हैं वो तो! ... और, उनका औज़ार भी तो कितना तगड़ा...”

मैंने आगे कुछ भी सुनने से पहले अपने कान हाथों से बंद कर लिए, और अपनी आँखें भी मींच लीं!

फरहत बातों में तो माहिर थी। उससे भी अधिक उसमें स्नेह था। जो सारी बातें अभी फरहत ने कही थी, वो सारी बातें मेरे लिए भी उतनी ही सच थीं। अगर रूद्र फरहत से शादी कर लें, तो मुझे भी बहुत ख़ुशी मिलेगी – दुःख होगा, लेकिन वाकई, ख़ुशी भी बहुत मिलेगी। एक बार तो मन हुआ कि क्यों न फरहत भी हमारे साथ ही रहे। शादी किसी की भी हो, लेकिन साथ तो हम तीनों ही रह सकते हैं! लेकिन इस प्लान में एक अड़चन यह थी की फरहत की शादी में दिक्कत आएगी...

हैं! कमाल है! मैं पहले से ही सोच रही हूँ कि रूद्र मुझे ही पसंद करेंगे, और मुझ ही से शादी करना चाहेंगे! मज़े की बात है, की मैंने अभी तक उनको अपने मन की बात भी नहीं बताई!
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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फरहत के उकसाने पर मैंने मालिश के लिए हामी भर दी। मुझे बहुत शर्म आ रही थी और मन में एक उलझन सी भी बन रही थी। कुछ दिनों पहले ही भानु के सामने मैं नंगी हो गई थी, और उसके साथ न जाने क्या क्या कर डाला था, और आज फरहत है! क्या मैं ठीक हूँ? कहीं मैं लेस्बियन तो नहीं? सुना तो है कि स्त्रियाँ आसानी से समलैंगिक सम्बन्ध बना लेती हैं। लेकिन जो मैं रूद्र की तरफ आकर्षित होती हूँ, वो क्या है? और.. और... आज भी मैं फरहत को सिर्फ इसी कारण से यह सब करने दे रही हूँ, क्योंकि उसने मुझे रूद्र के सामने प्रदर्शन का लालच दिया है। शायद मैं ठीक हूँ!

फरहत कुछ देर के लिए कमरे से बाहर गई हुई थी – मालिश के लिए तेल लाने। रूद्र दीदी की अक्सर ही मालिश करते थे – ख़ास तौर पर सप्ताहांत में। मालिश के साथ साथ दीदी के साथ जम कर सम्भोग भी करते थे। दीदी भले ही थक कर चूर हो जाती थी, लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव, रहस्य भरी मंद मंद मुस्कान मुझसे छिपी नहीं रहती थी। वाकई, रूद्र इस कार्य में बहुत कुशल थे। मुझे बगल के कमरे से रूद्र और फरहत की दबी हुई आवाजें सुनाई दे रही थीं। न जाने क्या कह रही होगी ये उनसे! खैर, कोई पांच मिनट के बाद फरहत वापस कमरे में आई। जब उसने मुझे अपने पूरे कपड़ों में देखा तो उसने मुझे कपडे उतारने को कहा। मैं शरम के कारण दोहरी हो रही थी और मेरा चेहरा लाल सा हो गया था।

फरहत मुझे ऐसे देख कर मेरे पास आई, और मेरे दोनों हाथों को पकड़ कर बहुत ही धीमे स्वर में बोली,

“नीलू, मुझसे शरमाओ मत! मैं तुम्हारी दोस्त हूँ! और, तुमने मुझे आज नंगा देखा है... और वो सब करते देखा है, जो नहीं देखना चाहिए! इसलिए, अब इतना तो बनता है न?”

फरहत की बात तो सही थी। मैंने अपने सूखे गले को थूक की एक घूँट से तर किया, और अपने कपडे उतार दिए। अन्दर कुछ पहना हुआ था नहीं, इसलिए मैं तुरंत ही पूर्ण नग्न हो गई। मुझे इस हालत में देख कर फरहत भी एक बार हतप्रभ हो गई।

“क्या बात है नीलू! सचमुच तुम बहुत सुन्दर हो – न केवल तुम्हारी सूरत, बल्कि ये (मेरे स्तनों की तरफ इशारा करते हुए) तेरी छातियाँ भी! और ये (फिर मेरी योनि की तरफ), तेरी चूत भी! जब चूत की फांके ऐसे दिखती हैं, तो क्या सुन्दर लगती हैं!”

बिकिनी वैक्स द्वारा बाल निकालने के बाद मेरी योनि पर बालों के हलके हल्के रोयें ही उगे हुए थे। ऐसे में मेरे योनि के दोनों होंठ स्पष्ट दिख रहे थे।

“मन करता है की इनको चूम लूं!”

कह कर उसने वाकई मेरी योनि के होंठों को चूम लिया।

“ईईश्श्श्ष! फरहत, मैंने इसे धोया नहीं था!” उसके इस काम से मुझे हलकी सी घिन आ गई।

“धोया नहीं था? ह्म्म्म.. इसीलिए इतनी नमकीन थी!”

उसकी ऐसी बातों से मेरी शर्म और हिचकिचाहट कम तो नहीं होने वाली थी। इसलिए मैं बिस्तर पर मुँह छुपा कर लेट गई। और फरहत ने हँसते हुए मेरी पीठ पर तेल डाल कर मालिश करना शुरू किया। हलके हाथों से धीरे धीरे मालिश होना – मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। कुछ ही देर में मेरे मुँह से सुख भरी आवाजें निकलने लगीं। कोई दस मिनट के बाद उसने मेरे पैरों मालिश शुरू करी। मालिश करते हुए उसके हाथ धीरे धीरे ऊपर की तरफ आ रहे थे – यह मुझे मालूम हो रहा था। ऐसा नहीं है की वो मुझसे छुपा कर कुछ भी कर रही हो।

खैर, जाँघों की मालिश करते हुए जब तब उसके हाथ मेरे नितम्बों के बीच में छू जाते थे। वैसे भी कुछ देर पहली की घटनाओं के कारण मैं वैसे ही गर्म हो गई थी – अब तक मेरी योनि से रस भी रिसने लगा था। मेरी सिसकारियाँ अभी भी निकल रही थीं, लेकिन अब मुझे ही नहीं मालूम था की वो मालिश की संतुष्टि के कारण थी, या फिर कामुक!

अचानक ही फरहत ने मेरे हाथों की मालिश शुरू कर दी। एक तरह से मुझे राहत ही हुई। लेकिन जब दो मिनट बाद वो वापस मेरे पुट्ठों को मसलने लगी, तो मैं समझ गई की बाहों की मालिश तो महज़ एक खाना पूरी थी। मेरे नितम्बों की मालिश वो ऐसे कर रही थी, जैसे आटा गूंथ रही हो। बीच बीच में रह रह कर वो दोनों पुट्ठों पर अपनी मुट्ठी से प्रहार भी करती। इस कारण से मीठा मीठा दर्द उभर कर निकल रहा था। मैं मीठी पीड़ा, आनंद, सुख और काम – इन न जाने कितने मिले जुले भावों के सागर में गोते लगाने लगी। अचानक ही फरहत की आवाज़ सुन कर मेरिन तन्द्रा भंग हुई,

“गुड़िया रानी, अब सामने की बारी!” कह कर उसने मुझे पीठ के बल लेटने को कहा।

मुझे सिहरन सी होने लगी। फरहत ने मेरे सामने की तरफ मालिश शुरू कर दी थी। पहले तो उसने मेरी गर्दन और कंधे की मालिश करी, और फिर दोनों स्तनों पर काफी तेल लगा कर कुछ ज्यादा ही जोर शोर से मालिश करने लगी। कहने की आवश्यकता नहीं कि मेरी उत्तेजना अब काफी बढ़ गई थी। फरहत के हाथों की हरकतों के साथ साथ मेरी सिसकारियाँ भी बढती जा रही थीं।

लेकिन, फरहत का मन भरा नहीं था – उसका खेल जारी रहा। कुछ देर तबियत से मेरे स्तनों की मालिश करने के बाद वो मेरे चूचकों के साथ भी खिलवाड़ करने लगी। वो कभी उनको अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच पकड़ कर मसलती, तो कभी उनको बाहर की तरफ हल्के से खींचती । उसने ऐसा न जाने कितनी बार किया – लेकिन मेरी हालत खराब हो गई। मेरी आहें और भी भारी और तेज हो गई। हार कर मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसको रोक दिया। तब कहीं जा कर उसके मेरे स्तनों का पीछा छोड़ा।

अगली बारी पेट की थी। मैंने राहत की सांस ली। कोई पांच मिनट के बाद उसने आखिरकार मेरी योनि की मालिश आरम्भ कर दी। डर के मारे मैंने अपने दोनों पैर एकदम सटा लिए थे, जिससे वो योनि से खिलवाड़ न कर सके। लेकिन उसकी उंगली रह रह कर जाँघों की बीच की दरार में लुका छिपी खेल रही थी। रूद्र के साथ रह रह कर फरहत को कुछ तरीके तो आ ही गए थे। उसकी इन हरकतों से मैं फिर से उत्तेजित हो गई, और मेरे पैर खुद ब खुद खुलते चले गए। फरहत को मेरी योनि साफ़ साफ़ दिखने लगी।

“कितने पतले पतले होंठ हैं...” फरहत अपनी ही दुनिया में थी और इस समय मेरे योनि के होंठों को हलके से मसलते हुए कहा, “गुलाबी गुलाबी! सच में! गुलाब की कली जैसी!”

मुझे योनि से काम-रस बहता हुआ महसूस हुआ! उस स्थान पर गीला गीला और ठंडा ठंडा लग रहा था।

“मज़ा आ रहा है न नीलू?” उसने धीरे धीरे से मेरे भगनासे सहलाते हुए पूछा।

मैं क्या ही कहती? मेरी फिर से आहें निकलने लगीं, और मैं अपना सिर इधर-उधर कर के छटपटाने लगी। फरहत को मेरी हालत तो साफ़ पता चल ही रही होगी! उसने अगले कोई दो मिनट तक अनवरत उस हिस्से को कुछ तेज़ गति से रगड़ा। देखते ही देखते मैं मस्त आहें भरते हुए चरमोत्कर्ष पर पहुँचते हुए स्खलित हो गई।

जब मैंने वासना की मस्ती में चूर आँखें खोलीं, तो फरहत ने कहा,

“मज़ा आया?”

मैं मुस्कुरा दी।

“तुम जन्नत की हूर हो, नीलू!”

उसने कुछ देर मेरे एक स्तन को सहलाया और फिर कहा,

“तुम हिम्मत कर के उनको अपने दिल की बात बता दो! तुमको भी खुश रहने का पूरा हक़ है!”

फिर उसने मेरे माथे को चूमते हुए कहा, “हमेशा खुश रहो!”

फरहत की हरकतों से मेरे शरीर में आग लग गई। वो मुझे उकसाने का प्रयास कर रही थी, जिसमे वो शत प्रतिशत सफल रही। उसके कहने के बाद मैंने मन में ठान लिया कि मैं रूद्र से अपने प्रेम का इज़हार करूंगी।

मैंने इंतज़ार किया जब रूद्र नहा धो कर बाहर निकलेंगे, तब मैं उनसे बात करूंगी। कमरे की आहात से पता चल गया कि वो कुछ ही देर में बाहर आ जायेंगे... उसके पहले मैं ही कमरे में चली गई।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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“आप कैसे हैं?”

“एकदम बढ़िया, नीलू!”

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा किया, जो तुम मुझसे बात करने चली आयीं। मुद्दत हो गई, तुमसे आराम से बात किया हुए।“

“हाँ! मैं भी चाहती थी की हम फॉर्मल जैसी बाते न करें!”

मेरी इस बात ने ज़रूर उनके दिल को कहीं न कहीं कचोट दिया होगा। फॉर्मल बाते ही तो होती हैं हमारे बीच! उनका सुन्दर चेहरा उतर गया.. वो कुछ कह न पाए! मैंने बात सम्हालने की कोशिश करी,

“म्म्मेरा वो मतलब नहीं था..”

“नहीं नीलू! तुम सही ही तो कह रही हो! मेरी हरकतों के लिए मेरे पास कोई बहाना नहीं है.. हो सके तो माफ़ कर दो!”

“नहीं नहीं.. आप माफ़ी क्यों कह रहे हैं! मैंने आपको उलाहने देने के लिए यह नहीं कहा!”

“मुझे मालूम है नीलू! तुम्ही तो हो, जो मेरा इतना ख़याल रखती है!”

उन्होंने मुस्कुराने की कोशिश करी! मुस्कुराते हुए ये कितने सुन्दर लगते हैं!!

“और भी रखूंगी.. अगर आप ऐसे ही हँसते मुस्कुराते रहें!”

“हा हा! हाँ! .. अच्छा चलो, बताओ.. कॉलेज कैसा चल रहा है?”

“बढ़िया!”

“दोस्त बनाए वहां?”

“हाँ! बहुत से हैं!”

“मुझे तो बस भानु का ही पता है!”

“उसके अलावा भी कई हैं...”

“लड़के भी?”

“हाँ!”

“ह्म्म्म... गुड! कोई ख़ास?”

“नहीं! उनमें कौन ख़ास हो सकता है!”

“अरे क्यों?”

“अच्छा.. आप मेरी नहीं अपनी बताइए! आपकी कोई गर्ल फ्रेंड है?”

“मेरी गर्ल फ्रेंड? हा हा!”

“सच सच बताइयेगा?”

“हम्म.. नीलू, कोई और होता तो झूठ बोल देता.. लेकिन तुमसे झूठ नहीं कह सकता! फरहत अच्छी लगती है मुझे!”

“हाँ! फरहत तो है भी अच्छी!”

“तुमको अच्छी लगती है?”

“हाँ! उसके आने से आप कितना खुश रहने लगे हैं!”

“अरे! ऐसे क्यों कह रही हो? तुम्हारे साथ क्या मैं गुस्सा था?”

मैं चुप रही। रूद्र भी कुछ देर सोच में पड़ गए,

“हाँ... शायद था! तुमने मेरी लाइफ, और पर्सनालिटी का सबसे खराब भाग झेला है!”

“नहीं! मैं कोई शिकायत नहीं कर रही हूँ! मैं तो बस इसी बात से खुश हूँ की वो पुराने वाले रूद्र वापस आ रहे हैं!”

“हः! पुराना वाला रूद्र तो तुम्हारी दीदी के साथ ही चला गया, नीलू।“ रूद्र की आँखों से खामोश आंसूं निकलने लगे, ”वो तो मेरी आत्मा थी। अब तो बस मेरा ढाँचा ही बच रहा है!”

“हाँ! दीदी तो सबसे अच्छी थी!” मेरा दिल बैठ गया ‘थी’ कहते हुए!

“सच में... उसके बिना सब फीका फीका लगता है..”

“फरहत के रहते हुए भी?”

“नीलू, फरहत मुझे अच्छी ज़रूर लगती है, लेकिन वो मेरी गर्ल फ्रेंड नहीं है! हम लोग सेक्स करते हैं, लेकिन अभी तक दिल के सम्बन्ध नहीं बन पाए हैं! और... मुझे लगता भी नहीं की ऐसा कुछ होगा!”

“ऐसा क्या हुआ फरहत के साथ?”

“नहीं.. बात सिर्फ फरहत की नहीं है... मुझे नहीं लगता कि किसी भी लड़की के साथ मुझे अब संध्या जैसा लग सकेगा!”

यही समय था!

“संध्या की परछाईं के साथ भी नहीं?”

मेरी आवाज़ में एक तरह की ठंडक सी आ गई थी..

रूद्र एकदम से ठिठक गए,

“मतलब?”

मेरा गला सूख गया,

“आप.. मुझसे शादी करेंगे?” बहुत धीमी आवाज़ निकली।

“नीलू! ये तुम क्या कह रही हो?”

“रूद्र! मैं आपसे प्यार करती हूँ! और आपसे शादी करना चाहती हूँ! मैं चाहती हूँ की मैं आपके सारे दुःख बाँट सकूं, और आपको सब प्रकार के सुख दे सकूं!”

“नीलू!.. नीलू.. लेकिन तुम मुझसे .. मुझसे कितनी तो छोटी हो!”

“चौदह साल! तो क्या हुआ?”

रूद्र वाकई हक्के बक्के हो गए थे।

“लल्ल.. लेकिन.. मेरी.. ओह भगवान्!”

“रूद्र! मेरी तरफ देखिए... मुझे मालूम है, कि आपने मुझे उस नज़र से कभी नहीं देखा, लेकिन मैंने पहली ही नज़र से आपसे हमेशा प्रेम ही किया है.. हाँ – यह सच है की उस प्रेम के रूप बदलते चले गए। अगर दीदी न होती, तो मैं आपसे ही शादी करती। उनके बाद, मैंने इतने दिनों तक अपने मन में यह बात रखी हुई है.. लेकिन, अब और नहीं होगा। मैंने मन ही मन आपको अपना पति माना हुआ है! बाकी सब आपके हाथ में है!”

कह कर मैं कमरे से बाहर निकल गई। ह्रदय का बोझ काफी हल्का हो गया।
 

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कुछ लिख लेता हूँ
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159
मेरा मन अत्यंत अशांत था – कहने सुनने में तो आज का दिन भी पहले के दिनों के ही समान था, लेकिन मन में न जाने कितने विचार आ और जा रहे थे। नीलम की विवाह प्रस्तावना मेरे लिए अत्यंत अप्रत्याशित थी। अचानक ही जीवन ने एक नया ही मोड़ ले लिया। एक तो ये ‘अचानक’ जैसे की मेरे पीछे ही पड़ गया है – कभी तो इससे मुझे लाभ हुआ, और कभी भारी हानि भी उठानी पड़ी – संध्या से मिलना एक अचानक और अप्रत्याशित घटना थी... जीवन के उन कुछ सालों में मैं इतना खुश था, जितना कभी नहीं। फिर वो अचानक ही चल दी! फिर अचानक ही मेरा एक्सीडेंट हो गया... अचानक ही फरहत के साथ सम्बन्ध बने.. और आज, अचानक ही नीलम ने यह प्रश्न दाग दिया!

कैसी कमाल की बात है न? हम दोनों इतने सालों से साथ में हैं, लेकिन मुझे कभी इस बात का भान भी नहीं हुआ की नीलम मुझको ले कर ऐसे सोचती है। खैर, भान भी कैसे होता? मैं तो अपने ही ग़म में इतना घुला हुआ था की आस पास का ध्यान भी कहाँ था? लेकिन अब जब यह बात खुल कर सामने आ ही गई है तो इस पर विचार करना ही पड़ रहा है – क्या नीलम के साथ मेरा होना ठीक रहेगा? मैं उससे चौदह साल बड़ा हूँ... चौदह साल!

उसने बोला था की “तो क्या हुआ?”

एक तरह से देखो तो वाकई, तो क्या हुआ? संध्या मुझसे बारह साल छोटी थी....। लेकिन इन दो बातों में क्या समानता है? संध्या से मुझे प्रेम हुआ था। जब प्रेम होता है, तो उम्र, जाति, बिरादरी, धर्म इत्यादि का कोई स्थान नहीं होता – बस पुरुष और नारी का! (और कुछ लोगों में पुरुष पुरुष और नारी नारी का!) इस लिहाज से देखा जाय तो या कोई बड़ी अनहोनी नहीं थी। नीलम को भी मुझसे प्रेम हुआ था। अब मेरे सामने एक ही प्रश्न है, और वो यह कि क्या मुझे भी उससे प्रेम है? मतलब, प्रेम तो है.. लेकिन वो प्रेम, जिसकी परिणति विवाह हो?

लेकिन नीलम मेरे लिए विवाह प्रस्ताव लाई थी। इस नाते यह सब तो सोचना ही पड़ता है न! अभी तो वह नयी नयी जवान हुई है। जवान शरीर की अपनी मांगे होती हैं। मेरी हालत तो अभी पूरी तरह से ठीक तो है नहीं। फिर मन में विचार आता है की यह सब एक बहाना है। फरहत को मैंने इसी हालत में इस प्रकार संतुष्ट किया है की वो मेरी मुरीद बन गई है! फरहत को क्या कहूं? उसको कैसा लगेगा? वो भी कितनी अच्छी लड़की है! उसका दिल टूट जाएगा! सच कहूं तो मेरे पास कुछ ख़ास विकल्प नहीं हैं... जो हैं वो वास्तव में सबसे अच्छे हैं। या तो नीलम से विवाह करूँ, या फिर फरहत से! किसी भी एक विकल्प को चुनने से दूसरे का दिल तो अवश्य टूटेगा। यह सोचना मेरे लिए कष्टप्रद है। जो भी होगा, इन दोनों को ही सुनने का पूरा हक़ है।

कहीं किसी को कहते हुए सुना है – प्रेम कहीं से भी, किसी से भी और किसी भी रूप में आये या मिले, तो उसको लपक कर ले लेना चाहिए। और मुझे तो बैठे बैठे जैसे झोली में डाल कर या थाली में परोस कर प्रेम मिल रहा था। कुछ तो अच्छा किया होगा मैंने अपने जीवन में – पहले संध्या, फिर फरहत और अब नीलम! नहीं नहीं – क्रम में कुछ गड़बड़ है – नीलम फरहत के पहले से है। खैर, क्रम का क्या है? वृत्त में भला क्या कोई आदि या अंत होता है? ठीक वैसे ही, प्रेम में भी क्या आदि या अंत?

मेरे लिए यह भी सोचने वाली बात थी कि मैं प्रेम के खातिर विवाह करना चाहता था, या इसलिए कि मेरा बिस्तर गरम रहे? फरहत से मुझे शारीरिक संतुष्टि तो बहुत मिल रही है... यह उसी की देन है कि आज मैं अपने हाथ पांव का ठीक से इस्तेमाल कर पा रहा हूँ। उसका बहुत उपकार है मुझ पर। लेकिन, क्या मैं उससे शादी कर सकता हूँ? उसके धर्म से मुझे कोई लेना देना नहीं है.. लेकिन, मन में यह बात तो अटकी हुई है की मैं उससे प्यार तो नहीं करता। वो मुझे अच्छी लगती है, मेरी सबसे ख़ास दोस्त भी है, लेकिन मुझे उससे प्रेम नहीं है! मेरा मतलब, ‘उस’ प्रकार का।

दूसरी तरफ नीलम है, जो मुझे चाहती है – आज अगर जीवित हूँ, तो सब उसी की दुआओं, प्रार्थनाओं और प्रेम के कारण ही है। लोगो ने मुझे कहा था की कैसे उसने देवी सावित्री के समान ही मेरे प्राण, मानो यमराज से वापस मांग लिए! कभी कभी सोचता हूँ कि उसके मन और ह्रदय पर क्या बीत रही होगी उस समय? क्या उसने भी देवी सावित्री के ही समान यमराज से सौ पुत्रों का वरदान माँगा था? क्या क्या सोच रहा हूँ मैं? मैं दिन में अपने कमरे में ही रहा। बाहर जाने जैसी हिम्मत नहीं हुई – अगर नीलम से आँखें मिल गईं तो? क्या कहूँगा मैं उससे?

नीलम से आँखें मिलाने के लिए मुझे कमरे से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं थी। वो खुद ही आ गई – एक मंद मुस्कान लिए!

‘ओह भगवान! कितनी प्यारी है ये लड़की!’

“आपको यूँ कमरे के अन्दर बैठे रहने की कोई ज़रुरत नहीं! आइए, लंच कर लेते हैं?”

कह कर उसने बिना मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किये, मेरे हाथ पकड़ कर मुझे बिस्तर से उठाने लगी। मैं भी एक अच्छे बच्चे की तरह उठ गया, और न जाने कितने दिनों के बाद डाइनिंग टेबल पर उसके साथ बैठ कर खाना खाया। कभी कभी छोटी छोटी बातें भी कितनी सुन्दर लगती हैं! दिमाग में संध्या के साथ वाले सुख भरे दिनों का दृश्य घूम गया। होनी कितनी प्रबल है! उसको कौन टाल सकता है?


*****************


अगली सुबह जब फरहत घर आई, तो नीलम को वहां उपस्थित देख कर थोड़ा अचरज में आ गई .. फिर उसको तुरंत समझ में आ गया।

“फरहत! आओ! आज हम सभी साथ में नाश्ता करेंगे?” उसको बताने से ज्यादा, मैं पूछ रहा था।

उसको लग गया की अब फैसले की घड़ी है, तो उसने भी कोई न नुकुर न करते हुए हमारे साथ होने में भलाई समझी। लेकिन, मैं कुछ कहता, उससे पहले ही फरहत ने नीलम से पूछा,

“नीलू, तुमने इनको बता दिया?”

नीलम शरमाते हुए मुस्कुराई, और साथ ही उसने हाँ में सर हिलाया।

“ओह नीलू!” कहते हुए उसने नीलम को अपने गले से लगा लिया!

“आई ऍम सो हैप्पी फॉर यू!”

“थैंक यू, फरहत!” नीलम बस इतना ही कह सकी।

“रूद्र,” फरहत ने मेरी तरफ मुखातिब होते हुए कहा, “आपको कुछ कहने की ज़रुरत नहीं है.. बस इतना बता दीजिए, कि आप नीलम से शादी करेंगे?”

अचानक ही मेरा लम्बा चौड़ा भाषण देने का प्लान चौपट हो गया! मेरी बोलती कुछ क्षणों के लिए बंद हो गई।

“अरे कुछ बोलिए भी!”

“फरहत...”

“हाँ, या ना?”

“ह्ह्हान!” मेरे मुँह से बेसाख्ता निकल गया।

फरहत मुस्कुरा दी.. उसकी आँखों से आंसू भी निकल आये! भरे हुए गले से उसने मुझे बधाई दी ...

“वैरी गुड चॉइस! सच में! अगर तुम नीलू से शादी न करते, तो मुझसे बुरा कोई न होता! हूहूहू..” वो रोने लगी, “कम, गिव मी अ हग!”

नीलम तुरंत ही फरहत से लिपट कर रोने लगी! मैं भी संकोच करते हुए उससे लिपट गया।

“मेरे सामने नंगा होने में शर्म नहीं आती, लेकिन मुझे हग करने में शर्म आती है? कम... हग मी प्रोपरली..” फरहत ने रोते हुए हिचकियों के बीच में मुझे झाड़ लगाई।

अब तक मेरे भी आँसू निकलने लगे। हम तीनो न जाने कितनी देर तक यूँ ही आपस में लिपट कर रोते रहे, फिर अलग हो कर हमने साथ में नाश्ता किया।

नाश्ते के बाद नीलम ने फरहत का हाथ थाम कर उससे कहा,

“फरहत, चाहे कुछ भी हो, ये घर आपका भी है!”

फरहत ने बीच में कुछ कहना चाह तो नीलम ने कहा,

“मुझे बोल लेने दीजिए, प्लीज! मेरे लिए आपका दर्जा मेरी दीदी के जैसा है! इस घर में आपकी इज्ज़त उन्ही के जैसे होगी। मेरी एक विनती है आपसे – आप यहीं पर रहिए!”

फरहत फिर से रोने लगी, “न बाबा! तुम दोनों जब साथ में आहें भरोगे, तो मेरा क्या होगा?” बेचारी, इस बुरी हालत में भी वो मज़ाक करने से नहीं चूक रही थी।

नीलम ने कहा, “तो फिर ठीक है! हम दोनों तब तक शादी नहीं करेंगे, जब तक आपके आहें भरने का परमानेंट इंतजाम न कर दें! क्यों ठीक है न?”

ये आखिरी वाला वाक्य मेरे लिए था!

“क्या मतलब?” मुझे वाकई नहीं समझ आया।

“आप दीदी के लिए कोई अच्छा सा लड़का ढूंढिए न! जब तक इनकी शादी नहीं होगी, मैं भी नहीं करूंगी!” नीलम ने फैसला सुनाया।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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ऐसा नाटकीय दिन शायद ही किसी के जीवन में हुआ हो!

अब अच्छा सा लड़का यूँ ही तो नही मिलता है! देखना पड़ता है, परखना पड़ता है, लड़के की पृष्ठभूमि की जांच करनी होती है, फिर दोनों एक दूसरे को पसंद भी करने चाहिए! अगर प्रेम के अंकुर निकल पड़ें, तो और भी अच्छा!

इसको एक अद्भुत संयोग ही मानिए कि कोई दो महीने बाद, मेरी मुलाकात मेरे अभियांत्रिकी की पढाई के दिनों के एक मित्र से हुई। उसका नाम अमर है। वो मुझसे मिलने मेरे घर आया था – मैं अभी भी ऑफिस नहीं जा रहा था, और घर से ही काम करता था। वो एक महीने के लिए भारत आया हुआ था – वैसे अभी लक्समबर्ग में रहता था, और वहीं पर उसने अपना बिजनेस जमा लिया था। उसको मेरी दुर्घटनाओं के बारे में मालूम पड़ा तो मिलने चला आया – वैसे उसका घर दिल्ली में था। उसने अभी तक विवाह नहीं किया था।

मिलने आया तो उसकी हम सभी से मुलाक़ात हुई। मुझे तुरंत ही समझ आ गया की उसको फरहत में दिलचस्पी है। मैंने उसको पूछा की वो कहाँ ठहरा हुआ है, तो उसने होटल का नाम बताया। मैंने जिद से वहां की बुकिंग कैंसिल कर दी, और हज़ारों कसमें दे कर उसको यहीं मेरे घर पर रहने को कहा। इससे एक लाभ यह था की मेरे पुराने मित्र से मैं देर तक बातें कर पाऊँगा, और दूसरा यह की फरहत और अमर को एक दूसरे से बातें करने का भी अवसर मिलेगा।

हमारी बातों में मैंने जान बूझ कर फरहत का कई बार ज़िक्र किया, जिससे वो उसके बारे में और प्रश्न पूछे, और उसके बारे में ठीक से जान जाय। बाकी सब तो प्रभु की इच्छा! एक और बात थी – वो मैंने किसी को नहीं बताई थी, और वो यह, की अमर का लिंग मेरे लिंग से बड़ा था। लम्बाई में भी, और मोटाई में भी। मुझे कैसे मालूम? अरे दोस्तों, बी टेक का हाल अब न ही पूछिए! भाई को एक बार दारू पीने का शौक चर्राया था। न जाने कितनी ही बार मद में लड़खड़ाते हुए अमर को मैंने टॉयलेट में ले जा कर मुताया था। पैन्ट्स में से उसका लंड बाहर निकालने पर कई बार खड़ा हुआ भी रहता था। ऐसे में मुताने के लिए.... अब छोडिये भी न!

अगर इन दोनों की शादी हो जाय, तो वाकई, फरहत की आहें भरने का परमानेंट इंतजाम हो जाए! और सबसे बड़ी बात यह, की अमर एक बहुत अच्छा लड़का, मेरा मतलब आदमी, भी है। वो इस समय अपने करियर और जीवन के उस मुकाम पर है, जहाँ पर उसको एक साथी की आवश्यकता थी। उसके वापस दिल्ली जाने के दो दिनों बाद जब फरहत के लिए उसका फोन आया, तो मुझे जैसे मन मांगी मुराद मिल गई! उसके एक सप्ताह के बाद, फरहत ने शादी के लिए उससे हाँ कर दी! भले ही उन दोनों को एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ न मालूम हो, लेकिन मुझे यकीन था की लड़की वाकई, बहुत खुश रहेगी! और अमर भी!

अमर और फरहत की शादी जैसे आंधी तूफ़ान की तरह हुई!

दोनों ने कोर्ट में जा कर शादी करी थी – फरहत के अब्बू ने फ़िज़ूल की न नुकुर तो करी, लेकिन अमर के लायक न होने का कोई कारण न ढूंढ सके। अब बस हिन्दू मुसलमान के फर्क के कारण ऐसी शादी तो कोई नहीं छोड़ सकता है न? लिहाजा, दोनों की शादी आराम से हो गई। वैसे भी अमर दिखावे के सख्त खिलाफ है – इसलिए शादी में नीलम, मैं, फरहत के अब्बू, और पांच और मित्रों के अतिरिक्त और कोई नहीं आमंत्रित था। शादी दिल्ली में हुई, और वहीँ पर रजिस्टर भी। वैसे तो काफी सारा प्रपंच करना पड़ता है कोर्ट की शादी में, लेकिन उसने कुछ दे दिला कर हफ्ते भर में ही दिन निकलवा लिया। किसी को उनकी शादी पर भला क्या आपत्ति हो सकती थी।

हम सभी ने बहुत मज़े किये। शादी के बाद, एक पांच सितारा होटल में खाना पीना हुआ, नृत्य भी – हम चारों ने एक दूसरे के साथ डांस भी किया। नीलम भी पूरा समय अमर को जीजू जीजू कह कर छेड़ती रही। फिर हम सबने विदा ली, और उनको अकेला छोड़ दिया।
 

Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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प्रिय avsji भाई मजा आ गया। शब्दों की कलाकारी का जबरदस्त नमूना ये वाली अपडेट है। बार बार पढ़ने के बाद भी, स्वाद काम नहीं हो रहा।

फिर एक बार

ज्यों गूंगो मीठे फल को रस अंतर्मन ही भावे।

अंत में इतना ही _ लगे रहो बहादुरों।

आशु
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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प्रिय avsji भाई मजा आ गया। शब्दों की कलाकारी का जबरदस्त नमूना ये वाली अपडेट है। बार बार पढ़ने के बाद भी, स्वाद काम नहीं हो रहा।

फिर एक बार

ज्यों गूंगो मीठे फल को रस अंतर्मन ही भावे।

अंत में इतना ही _ लगे रहो बहादुरों।

आशु

धन्यवाद भाई!
 
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tuba javed

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Very good update.

jaan ke acha laga ki rudra ab dhere dhere theek ho gaya.

ek important baat ye hai ke aap bahoot hi ache tarike se kahani ko aage badhate hai. koi jor jubardasti nai hoti or aapke is kahani me sara dhayan bhi sirf sex ke aas - pass nahi rehta. aap har chij ko dhayan se explain karte hai.



verry good. Keep it up.
 
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mashish

BHARAT
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नीलम इस घटना के एक सप्ताह बाद बैंगलोर आई। अकेले नहीं आई थी, साथ में मेरे सास और ससुर भी थे। एक बड़ी ही लम्बी चौड़ी रेल यात्रा करी थी उन लोगों ने! नीलम के लिए तो एकदम अनोखा अनुभव था! खैर, गनीमत यह थी की उनकी ट्रेन सवेरे ही आ गई, और छुट्टी के दिन आई, इसलिए उनको वहाँ से आगे कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा! रेलवे स्टेशन पर मैं ही गया था सभी को रिसीव करने... संध्या घर पर ही रह कर नाश्ता बनाने का काम कर रही थी।

घर आने पर हम लोग ठीक से मिले। अब चूंकि वो दोनों पहली बार अपनी बेटी के ससुराल (या की घर कह लीजिए) आये थे, इसलिए उन्होंने अपने साथ कोई न कोई भेंट लाना ज़रूरी समझा। न जाने कैसी परम्परा या पद्धति निभा रहे थे... भई, जो परम्पराएँ धन का अपव्यय करें, उनको न ही निभाया जाए, उसी में हमारी भलाई है। वो संध्या के लिए कुछ जेवर और मेरे लिए रुपए और कपड़ों की भेंट लाये थे। घर की माली हालत तो मुझे मालूम ही थी, इसलिए मैं खूब बिगड़ा, और उनसे आइन्दा फिजूलखर्ची न करने की कसमें दिलवायीं। इतने दिनों बाद मिले, और बिना वजह की बात पर बहस हो गई। खैर! ससुर जी ने कहा की इस बार फसल अच्छी हुई है, और कमाई भी.. इसलिए देन व्यवहार तो करने का बनता है.. और वैसे भी उनका जो कुछ भी है, वो दोनों बेटियों के लिए ही तो है! अपने साथ थोड़े न ले जायेंगे! रुढ़िवादी लोग और उनकी सोच!

नीलम अब एक अत्यंत खूबसूरत तरुणी के रूप में विकसित हो गई थी.. इतने दिनों के बाद देख भी तो रहा हूँ उसको! वो मुझे मुस्कुराते हुए देख रही थी।

मैंने आगे बढ़कर उसकी एक हथेली को अपने हाथ में ले लिया, “अरे वाह! कितनी सुन्दर लग रही है मेरी गुड़िया... तुम तो खूब प्यारी हो गई हो..!” कह कर मैंने उसको अपने गले से लगा लिया। नीलम शरमाते हुए मेरे सीने में अपना मुँह छुपाए दुबक गई। लेकिन मैंने उसको छेड़ना बंद नहीं किया,

“मैं तुम्हारे गालों का सेब खा लूँ?”

“नहीईई.. ही ही ही..” कह कर हँसते हुए वो मेरे आलिंगन से बाहर निकलने के लिए कसमसाने लगी..

“अरे! क्यों भई, मुझे पप्पी नहीं दोगी?”

नीलम शर्म से लाल हो गई, और बोली, “जीजू, अब मैं बड़ी हो गई हूँ।“

“हंय? बड़ी हो गई हो? कब? और कहाँ से? मुझे तो नहीं दिखा!” साफ़ झूठ!

दिख तो सब रहा था, लेकिन फिर भी, मैंने उसको छेड़ा! लेकिन मेरे लिए नीलम अभी भी बच्ची ही थी।

“उम्म्म... मुझे नहीं पता। लेकिन मम्मी मुझे अब फ्रॉक पहनने नहीं देती... कहती है की तू बड़ी हो गई है...”

“मम्मी ऐसा कहती है? चलो, उनके साथ झगड़ा करते हैं! ... लेकिन उससे पहले...” कहते हुए मैंने उसकी ठुड्डी को ऊपर उठाते हुए उसके दोनों गालों पर एक-एक पप्पी ले ही ली। शर्म से उसके गाल और लाल हो गए और वो मुझसे छूट कर भाग खड़ी हुई।

संध्या इस समय सबके आकर्षण का केंद्र थी, इसलिए मैंने कुछ काम के बहाने वहाँ से छुट्टी ली, और बाहर निकल गया। सारे काम निबटाते और वापस आते आते दोपहर हो गई.. और कोई डेढ़ बज गए! सासु माँ के आने का एक लाभ होता है (मेरे सभी विवाहित मित्र इस बात से सहमत होंगे) – और वह है समय पर स्वादिष्ट भोजन! वापस आया तो देखा की सभी मेरा ही इंतज़ार कर रहे हैं। खैर, मैंने जल्दी जल्दी नहाया, और फिर स्वादिष्ट गढ़वाली व्यंजनों का भोग लगाया। और फिर सुखभरी नींद सो गए।

शाम को चाय पर मैंने नीलम से उसके संभावित रिजल्ट के बारे में पूछा। उसको पूरी उम्मीद थी की अच्छा रिजल्ट आएगा। मैंने ससुर जी और नीलम से विधिवत नीलम की आगे की पढाई के बारे में चर्चा करी। स्कूल और एक्साम की बातें करते करते मुझे अपना बचपन और उससे जुडी बातें याद आने लगीं। पढाई वाला समय तो जैसे तैसे ही बीतता था, लेकिन परीक्षा के दिनों में अलग ही प्रकार की मस्ती होती थी। दिन भर क्लास में बैठने के झंझट से पूरी तरह मुक्ति और एक्साम के बाद पूरा दिन मस्ती और खेल कूद! मजे की बात यह की न तो टीचर की फटकार पड़ती और न ही माँ की डांट! बेटा एक्साम दे कर जो आया है! पूरा दिन स्कूल में रहना भी नहीं पड़ता। और बच्चे तो एक्साम से बहुत डरते, लेकिन मैं साल भर परीक्षा के समय का ही इंतज़ार करता था – सोचिये न, पूरे साल में यही वो समय होता था जब भारी-भरकम बस्ते के बोझ से छुटकारा मिलता था। एक्साम के लिए मैं एक पोलीबैग में writing pad, पेंसिल, कलम, रबर, इत्यादि लेकर लेकर पहुँच जाता। उसके पहले नाश्ते में माँ मुझे सब्जी-परांठे और फिर दही-चीनी खिलाती ताकि मेरे साल भर के पाप धुल जायें, और मुझ पर माँ सरस्वती की कृपा हो! पुरानी यादें ताज़ा हो गईं!

खैर, जैसा की मैंने पहले लिखा है, मैंने नीलम और ससुर जी को यहाँ की पढाई की गुणवत्ता, और इस कारण, सीखने और करियर बनाने के अनेक अवसरों के बारे में समझाया। उनको यह भी समझाया की आज कल तो अनगिनत राहें हैं, जिन पर चल कर बढ़िया करियर बनाया जा सकता है। बातें तो उनको समझ आईं, लेकिन वो काफी देर तक परम्परा और लोग क्या कहेंगे (अगर लड़की अपनी दीदी जीजा के यहाँ रहेगी तो..) का राग आलापते रहे।

मैंने और संध्या ने समझाया की लोगों के कहने से क्या फर्क पड़ता है? अच्छा पढ़ लिख लेगी, तो अपने पैरों पर खाड़ी हो सकेगी.. और फिर, शादी ढूँढने में भी तो कितनी आसानी हो जायेगी! हमारे इस तर्क से वो अंततः चुप हो गए। नीलम को भी मैंने काफी सारा ज्ञान दिया, जो यहाँ सब कुछ लिखना ज़रूरी नहीं है.. लेकिन अंततः यह तय हो गया की नीलम अपनी आगे की पढाई यहीं हमारे साथ रह कर करेगी। सासु माँ ने बीच में एक टिप्पणी दी की दोनों बच्चे उनसे दूर हो जाएँगे.. जिस पर मैंने कहा की आपकी तो दोनों ही बेटियाँ है.. कभी न कभी तो उन्हें आपसे दूर जाना ही है.. और यह तो नीलम के भले के लिए हैं.. और अगर उनको इतना ही दुःख है, तो क्यों न वो दोनों भी हमारे साथ ही रहें? (मेरी नज़र में इस बात में कोई बुराई नहीं थी) लेकिन उन्होंने मेरी इस बात बार तौबा कर ली और बात वहीँ ख़तम हो गई।

शाम को हमने पड़ोसियों से भी मुलाकात करी – देवरामनी दम्पत्ति नीलम को देख कर इतने खुश हुए की बस उसको गोद लेने की ही कसर रह गई थी! नीलम वाकई गुड़िया जैसी थी!

मेरे सास ससुर बस तीन दिन ही यहाँ रहने वाले थे, इसलिए मैंने रात को बाहर जा कर खाने का प्रोग्राम बनाया – जिससे किसी को काम न करना पड़े और ज्यादा समय बात चीत करने में व्यतीत हो। नीलम ख़ास तौर पर उत्साहित थी – उसको देख कर मुझे संध्या की याद हो आती, जब वो पहली बार बैंगलोर आई थी। सब कुछ नया नया, सम्मोहक! जो लोग यहाँ रहते हैं उनको समझ आता है की बिना वजह का नाटक है शहर में रहना! अगर रोजगार और व्यवसाय के साधन हों, तो छोटी जगह ही ठीक है.. कम प्रदूषण, कम लोग, और ज्यादा संसाधन! जीवन जीने की गुणवत्ता तो ऐसे ही माहौल में होती है। एक और बात मालूम हुई की अगले दिन नीलम का जन्मदिन भी था! बहुत बढ़िया! (मुझे बिना बताये हुए संध्या ने नीलम के जन्मदिन के लिए प्लानिंग पहले ही कर रखी थी)।

खैर, खा पीकर हम लोग देर रात घर वापस आये। मेरे सास ससुर यात्रा से काफी थक भी गए थे, और उनको इतनी देर तक जागने का ख़ास अनुभव भी नहीं था। इसलिए हमने उनको दूसरा वाला कमरा सोने के लिए दे दिया और नीलम को हमारे साथ ही सोने को कह दिया। उन्होंने ज्यादा हील हुज्जत नहीं करी (क्योंकि हम तीनों पहले भी एक साथ सो चुके हैं) और सो गए।

“भई, आज तो मैं बीच में सोऊँगा!” मैंने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करते हुए कहा।

“वह क्यूँ भला??” संध्या ने पूछा!

“अरे यार! इतनी सुन्दर दो-दो लड़कियों के साथ सोने का मौका बार बार थोड़े न मिलता है!”

“अच्छा जी! साली आई, तो साहब का दिल डोल गया?”

“अरे मैं क्या चीज़ हूँ! ऐसी सुंदरियों को देख कर तो ऋषियों का मन भी डोल जाएगा! हा हा!”

“नहीं बाबा! दीदी, तुम ही बीच में लेटो! नहीं तो जीजू मेरे सेब खायेंगे!” नीलम ने भोलेपन से कहा।

मैं और संध्या दो पल एकदम से चुप हो गए, और फिर एक दूसरे की तरफ देख कर ठहाके मार कर हंसने लगे (नीलम का मतलब गालों के सेब से था.. और हमने कुछ और ही सोच लिया)।

“मेरी प्यारी बहना! तू निरी बुद्धू है!”

कहते हुए संध्या ने नीलम के दोनों गालों को अपने हाथों में लिया और उसके होंठों पर एक चुम्बन दे दिया।

“आई लव यू!”

“आई लव यू टू, दीदी!” कह कर नीलम संध्या से लिपट गई।

“हम्म.. भारत मिलाप संपन्न हो गया हो तो अब सोने का उपक्रम करें?”

“कोई चिढ़ गया है लगता है...” संध्या ने मेरी खिंचाई करी।

“हाँ दीदी! जलने की गंध भी आ रही है... ही ही!”

“और नहीं तो क्या! अच्छा खासा बीच में सोने वाला था! मेरा पत्ता साफ़ कर दिया!”

“हा हा!”

“हा हा!”

“अच्छा... चल नीलू, सोने की तैयारी करते हैं। तू चेंज करने के कपड़े लाई है?”

“हैं? नहीं!”

“कोई बात नहीं.. मैं तुमको नाईटी देती हूँ.. वो पहन कर सो जाना। ओके?” कह कर संध्या ने अलमारी से ढूंढ कर एक नाईटी निकाली – मैंने पहचानी, वो हमारे हनीमून के दौरान की थी! अभी तक सम्हाल कर रखी है इसने!

नीलम ने उसको देखा – उसकी आँखें शर्म से चौड़ी हो गईं, “दीदी, मैं इसको कैसे पहनूंगी? इसमें तो सब दिखता है!”

“अरे रात में तुमको कौन देख रहा है.. अभी पहन लो, कल हम तुमको शौपिंग करने ले चलेंगे! ठीक है?”

“ठीक है..” नीलम ने अनिश्चय से कहा, और नाईटी लेकर बाथरूम में घुस गई। इसी बीच संध्या ने अपने कपड़े उतार कर एक कीमोनो स्टाइल की नाईटी पहन ली (यह सामने से खुलती है, और उसमें गिन कर सिर्फ दो बटन थे। और सपोर्ट के लिए बीच में एक फीता लगा हुआ था, जिसको सामने बाँधा जा सकता था – ठीक नहाने वाले रोब जैसा), और मैंने भी संध्या से ही मिलता जुलता रोब पहना हुआ था (बस, नीलम के कारण अंडरवियर अभी भी पहना हुआ था, जिसको मैं रात में बत्तियां बुझने पर उतार देने के मूड में था)। खैर, कोई पांच मिनट बाद नीलम वापस कमरे के अन्दर आई।
nice update
 
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