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Romance कायाकल्प [Completed]

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mashish

BHARAT
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नीलम का परिप्रेक्ष्य

जीजू बिस्तर के सिरहाने पर एक तकिया के सहारे पीठ टिकाये हुए एक किताब पढ़ रहे थे। दूसरी तरफ दीदी अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने एक स्टूल पर बैठ कर अपने बालों में कंघी कर रही थी।

‘दीदी के स्तन कितने बड़े हो गए हैं पिछली बार से!’ मैंने सोचा। बालों में कंघी करते समय कभी कभी वो बालों के सिरे पर उलझ जाती, और उसको सुलझाने के चक्कर में दीदी को ज्यादा झटके लगाने पड़ते.. और हर झटके पर उसके स्तन कैसे झूल जाते! हाँ! उसके स्तनों को निश्चित रूप से पिछली बार से कहीं ज्यादा बड़े लग रहे थे। उसके पेट पर उभार होने के कारण थोड़ा मोटा लग रहा था, और उसके कूल्हे कुछ और व्यापक हो गए थे। कुल-मिला कर दीदी अभी और भी खूबसूरत लग रही थी। मैं मन्त्र मुग्ध हो कर उसे देख रही थी। अचानक मैंने देखा की दीदी ने आईने से मुझे देखते हुए देख लिया... प्रतिक्रिया में उसके होंठों पर वही परिचित मीठी मुस्कान आ गई।

“आ गई? चल.. अभी सो जाते हैं.. जानू.. बस.. अब पढ़ने का बहाना करना बंद करो! हे हे हे!” दीदी ने जीजू को छेड़ा।

यह बिस्तर हमारे घर में सभी पलंगों से बड़ा था। इस पर तीन लोग तो बहुत ही आराम से लेट सकते थे। जीजू ने कुछ तो कहा, अभी याद नहीं है, और बिस्तर के एक किनारे पर लेट गए, बीच में दीदी चित हो कर लेटी, और मैं दूसरे किनारे पर! मैं दीदी से कुछ दूरी पर लेटी हुई थी, लेकिन दीदी ने मुझे खींच कर अपने बिलकुल बगल में लिटा लिया। कमरे में बढ़िया आरामदायक ठंडक थी (वातानुकूलन चल रहा था), इसलिए हमने ऊपर से चद्दर ओढ़ी हुई थी। कमरे की बत्तियों की स्विच जीजू की तरफ थी, जो उन्होंने हमारे लेटते ही बुझा दी।


मेरा परिप्रेक्ष्य

मैंने अपने बाईं तरफ करवट लेकर संध्या को अपनी बाँह के घेरे में ले कर चुम्बन लिया और ‘गुड नाईट’ कहा – लेकिन मैंने अपना हाथ उसके स्तन ही रहने दिया। संध्या को मेरी किसी हरकत से अब आश्चर्य नहीं होता था, और वो मुझे अपनी मनमानी करने देती थी। उसको मालूम था की उसके हर विरोध का कोई न कोई काट मेरे पास अवश्य होगा। लेकिन नीलम की अनवरत चलने वाली बातें हमें सोने नहीं दे रही थीं।

बैंगलोर कैसा है? लोग कैसे हैं? यहाँ ये कैसे करते हो, वो कैसे करते हो..? कॉलेज कैसा होता है? बाद में पता चला की वह पूरी यात्रा के दौरान सोती रही थी.. इसीलिए इतनी ऊर्जा थी! अब चूंकि मेरे दिमाग में शैतान का वास है, इसलिए मैंने सोचा की क्यों न कुछ मज़ा किया जाय।

नीलम के प्रश्नों का उत्तर देते हुए मैंने संध्या के दाएँ स्तन को धीरे धीरे दबाना शुरू कर दिया (मैं संध्या के दाहिनी तरफ था)। मेरी इस हरकत से संध्या हतप्रभ हो गई और मूक विरोध दर्शाते हुए उसने अपने दाहिने हाथ से मेरे हाथ को जोर से पकड़ लिया। लेकिन मुझे रोकने के लिए उतना बल अपर्याप्त था, इसलिए कुछ देर कोशिश करने के बाद, उसने हथियार डाल दिए। नीलम ने करवट ले कर संध्या के बाएँ हाथ पर अपना हाथ रखा हुआ था, इसलिए संध्या वह हाथ नहीं हटाना चाहती थी। अब मेरा हाथ निर्विघ्न हो कर अपनी मनमानी कर सकता था। कुछ देर कपड़े के ऊपर से ही उसका स्तन-मर्दन करने के बाद मैंने उसकी कीमोनो का सबसे ऊपर वाला बटन खोल दिया। संध्या को लज्जा तो आ रही थी, लेकिन इस परिस्थिति में रोमांच भी भरा हुआ था। इसलिए उसने इस क्रिया की धारा के साथ बहना उचित समझा।

जब उसने कोई हील हुज्जत नहीं दिखाई, मैंने नीचे वाला बटन भी खोल कर सामने बंधा फीता भी ढीला कर दिया। कीमोनो वैसे भी साटन के कपड़े का था – बिना किसी बंधन के, उसके कीमोनो के दोनों पट अपने आप खुल गए। नीलम को वैसे तो देर सबेर मालूम पड़ ही जाता की उसकी दीदी के शरीर का ऊपरी हिस्सा निर्वस्त्र हो चला है, लेकिन जब उसने अपने हाथ पर संध्या की नाईटी का कपड़ा महसूस किया तो उसको उत्सुकता हुई। उसने बिना किसी प्रकार की विशेष प्रतिक्रिया दिखाते हुए अपनी बाईं हथेली से संध्या के बाएँ स्तन को ढक लिया।

संध्या इस अलग सी छुवन को महसूस कर चिहुँक गई,

'अरे! नीलम का हाथ मेरे स्तन पर!'

संध्या आश्चर्यचकित थी, लेकिन वह यह भी समझ रही थी की नीलम उसके स्तन को सिर्फ ढके हुए थी, और कुछ भी नहीं। साथ ही साथ वह अपने जीजू से बातें भी कर रही थी – और उधर उसके जीजू का हाथ संध्या के दाहिने स्तन का मर्दन कर रहा था। लेकिन चाहे कुछ भी हो – अगर किसी स्त्री को इतने अन्तरंग तरीके से छुआ जाय, तो उसकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक ही है। संध्या ने अनायास अपने स्तन को आगे की ओर ठेल दिया, जिसके कारण उसके स्तन का पर्याप्त हिस्सा मेरे और नीलम दोनों के ही हाथ में आ गया। संभव है की संध्या की इस हरकत से नीलम को किसी प्रकार की स्वतः-प्रेरणा मिली हो – उसने भी संध्या के स्तन को धीरे-धीरे दबाना और मसलना शुरू कर दिया। संध्या के चूचक शीघ्र ही उत्तेजित हो कर उर्ध्व हो गए।

इस समय हम तीनों का मन कहीं और था। हम तीनों ही कुछ देर के लिए चुप हो गए। यह चुप्पी नीलम ने तोड़ी –

“जीजू – दीदी! मैं आपसे कुछ माँगूं तो देंगे?”

“हाँ हाँ! बोलो न?” मैंने कहा।

“उस दिन आप दोनों लोग बुग्यल पर जो कर रहे थे, मेरे सामने करेंगे?”

‘बुग्याल पर? .. ओह गॉड! ये तो सेक्स की बात कर रही है!’

संध्या: “क्या? पागल हो गई है?”

मैं: “एक मिनट! नीलम, हम लोग बुग्यल पर सेक्स कर रहे थे। सेक्स किसी को दिखाने के लिए नहीं किया जाता। बल्कि इसलिए किया जाता है, क्योंकि दो लोग - जो प्यार करते हैं – उनको एक दूसरे से और इंटिमेसी, मेरा मतलब है की ऐसा कुछ मिले जो वो और किसी के साथ शेयर नहीं करते। जब तुम्हारी शादी हो जायेगी, तो तुम भी अपने हस्बैंड के साथ खूब सेक्स करना।“

नीलम: “तो फिर आपने मेरे यहाँ रहने के बावजूद दीदी का ब्लाउज क्यों खोला?”

मेरा हाथ उसकी यह बात सुन कर झट से संध्या के बाएँ स्तन पर चला गया, जिस पर नीलम का हाथ पहले से ही उपस्थित था।

मैं: “व्व्वो.. मैं... तुम्हारी दीदी का दूध पीता हूँ न, इसलिए!”

मैंने बात को सम्हालने के लिए बेवकूफी भरी बात कही।

संध्या: “धत्त बेशर्म! कुछ भी कहते रहते हो!”

नीलम: “क्या जीजू.. आप तो इतने बड़े हो गए हैं.. फिर भी दूध पीते हैं?”

मैं: “अरे! तो क्या हो गया? तेरी दीदी के दुद्धू देखे हैं न तुमने? कितने मुलायम हैं! हैं न?”

नीलम: “हाँ.. हैं तो!”

मैं: “तो.. बिना इनको पिए मन मानता ही नहीं.. और फिर दूध तो पौष्टिक होता है!”

नीलम: “लेकिन दीदी को तो अभी दूध तो आता ही नहीं..”

मैं: “अरे भई! नहीं आता तो आ जायेगा! पहले से ही प्रैक्टिस कर लेनी चाहिए न!”

संध्या: “तुम कितने बेशर्म हो! देख न नीलू, तुम ही बताओ अब मैं क्या करूँ? अगर न पिलाऊँ, तो तुम्हारे जीजू ऐसे ही उधम मचाने लगते हैं। वैसे तुझे पता है की वो ऐसे क्यों करते हैं?

नीलम: “बताओ..”

संध्या: “अरे तुम्हारे जीजू अपनी माँ जी का दूध भी काफी बड़े होने तक पीते रहे। उन्होंने बहुत प्रयास किया, लेकिन ये जनाब! मजाल है जो ये अपनी मां की छाती छोड़ दें!”

नीलम: “तब?”

संध्या: “तब क्या? माँ ने थक हार कर ने अपने निप्पल्स पर मिर्ची या नीम वगैरह रगड़ लिया। और जब भी ये जनाब दूध पीने की जिद करते तो तीखा लगने के कारण धीरे धीरे खुद ही माँ का दूध पीना छोड़ते गए।“

नीलम: “लेकिन अभी क्यों करते हैं?”

संध्या: “आदतें ऐसे थोड़े ही जाती हैं!”

मैं: “अरे यार! कम से कम तुम तो मिर्ची का लेप मत लगाने लगना।“

मेरी इस बात पर संध्या और नीलम खिलखिला कर हंस पड़ीं!

संध्या: “नहीं मेरे जानू.. मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी! आप मन भर कर पीजिये! मेरा सब कुछ आपका ही है..”

मैं: “सुना नीलू..” कहते हुए मैंने संध्या के एक निप्पल को थोड़ा जोर से दबाया, जिससे उसकी सिसकी निकल गई। नीलम को वैसे तो मालूम ही है की उसके दीदी जीजू कहीं भी अपने प्यार का इजहार करने में शर्म महसूस नहीं करते... फिर जगह चाहे कोई भी हो!

नीलम (हमारी छेड़खानी को अनसुना और अनदेखा करते हुए): “जीजू दीदी.. मैं आप दोनों को खूब प्यार करती हूँ। उस दिन जब मैंने आप दोनों को.... सेक्स... (यह शब्द बोलते हुए वह थोडा सा हिचकिचा गई) करते हुए दूर से देखा था। मैं बस इतना कह रही हूँ की आज मुझे आप पास से कर के दिखा दो! यह मेरे लिए सबसे बड़ा गिफ्ट होगा।”

संध्या: “लेकिन नीलू, तेरे सामने करते हुए मुझे शरम आएगी।“ हम सभी जानते थे की यह पूरी तरह सच नहीं है।

नीलम: “प्लीज!”

संध्या: “लेकिन तू अभी बहुत छोटी है, इन सब बातों को समझने के लिए!”

नीलम: “मैं कोई छोटी वोटी नहीं हूँ! और तुम भी मुझसे बहुत बड़ी नहीं हो। मैं अभी उतनी बड़ी हूँ, जिस उम्र में तुमने जीजू से शादी कर ली थी! और जीजू, अगर आप दीदी के बजाय मुझे पसंद करते तो?”

मैं (मन में): ‘हे भगवान्! छोटी उम्र का विमोह!’

मैं (प्रक्तक्ष्य): “अगर मैं तुमको पसंद करता तो मैं इंतज़ार करता – तुम्हारे बड़े होने का!”

नीलम: “जीजू! मैं बड़ी हूँ... और... और... मैं सिर्फ देखना चाहती हूँ – करना नहीं। आप दोनों लोग उस दिन बहुत सुन्दर लग रहे थे। प्लीज़, एक बार फिर से कर लो!”

मैं: “जानती हो, अगर किसी को मालूम पड़ा, तो मैं और तुम्हारी दीदी, हम दोनों ही जेल के अन्दर होंगे!”

नीलम: “जेल के अन्दर क्यों होंगे? मैं अब बड़ी हो गई हूँ... वैसे भी, मैं किसी को क्यों कहूँगी? अगर आप लोग यह करेंगे तो मेरे लिए। किसी और के लिए थोड़े ही!“

मैं: “अब कैसे समझाऊँ तुझे!”

मैं (संध्या से): “आप क्या कहती हैं जानू?”

संध्या (शर्माते हुए): “आप मुझसे क्यों पूछ रहे हैं? बिना कपड़ो के तो मैं पड़ी हूँ!”

ऐसे खुलेपन से सेक्स की दावत! मेरा मन तो बन गया! वैसे भी, नींद तो कोसों दूर है.. मैं रजामंदी से मुस्कुराया।

नीलम (संध्या से): “दीदी, तुम मुझे एक बात करने दोगी?”

संध्या: “क्या?”

नीलम ने संध्या के ऊपर से चद्दर हटाते हुए उसके निप्पल को अपने मुँह में भर कर चूसना आरम्भ कर दिया। नीलम के मुँह की छुवन और कमरे की ठंडक ने संध्या के शरीर में एक बिलकुल अनूठा एहसास उभार दिया। उसके दोनों निप्पल लगभग तुरंत ही इस प्रकार कड़े हो गए मानो की वो रक्त संचार की प्रबलता से चटक जायेंगे! उसकी योनि में नमी भी एक भयावह अनुपात में बढ़ गई। अपने ही पति के सामने उसके शरीर का इस प्रकार से अन्तरंग अतिक्रमण होना, संध्या के इस एहसास का एक कारण हो सकता है। संध्या वाकई यह यकीन ही नहीं कर पा रही थी की वह अपनी ही बहन के कारण इस कदर कामोत्तेजित हो रही थी। उसकी आँखें बंद थी। कामोद्दीपन से अभिभूत संध्या, नीलम को रोकने में असमर्थ थी – इसलिए वह उसको स्तनपान करने से रोक नहीं पाई।

लेकिन जिस तरह से अप्रत्याशित रूप से नीलम ने यह हरकत आरम्भ करी थी, उसी अप्रत्याशित तरीके से उसने रोक भी दी। नीलम ने संध्या को देखते हुए कहा,

“आई ऍम सॉरी, दीदी! पता नहीं मेरे सर में न जाने क्या घुस गया! सॉरी? माफ़ कर दो मुझे!”

संध्या की चेतना कुछ कुछ वापस आई, और वह उठ कर बैठ गई। इस नए अनुभव से वह अभी भी अभिप्लुत थी। संध्या और नीलम दोनों ही काफी करीब थीं – लेकिन इस प्रकार की अंतरंगता तो उनके बीच कभी नहीं आई। संध्या को यह अनुभव अच्छा लगा – अपने स्तानाग्रों का चूषण, और इस क्रिया के दौरान दोनों बहनों के बीच की निकटता। संध्या ने आगे बढ़ कर नीलम को अपने गले लगा लिया – उसने भी नीलम के कठोर हो चले निप्पल को अपने सीने पर महसूस किया ...

‘ये लड़की कब बड़ी हो गई!’

संध्या: “नीलू!”

नीलम (झिझकते हुए): “हाँ?”

संध्या: “प्लीज़, सॉरी मत कहो!”

नीलम: “नहीं दीदी! तुम मुझे इतना प्यार करती हो न... एक दम माँ जैसी! इसलिए इन्हें पीने का मन हुआ..। सॉरी दीदी!“

“तू माँ का दुद्धू अभी भी पीती है? उनको भी मिर्ची वाला आईडिया दूं क्या?” संध्या ने नीलम को छेड़ा।

नीलम (शरमाते हुए): “नहीं पागल... धत्त! ...लेकिन जीजू भी तो तुम्हारा दूध पीते हैं, और तुम माँ बनने वाली हो न, इसलिए मेरा मन किया। ... लेकिन इनमे तो दूध नहीं है.. प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो!”

संध्या: “हम्म.. नीलू... अब बस! सॉरी शब्द दोबारा मत बोलना मुझसे! ठीक है?”

नीलम ने सर हिला के हामी भरी।

संध्या: “गुड! अब ले... जी भर के पी ले..”

नीलम: “क्या... मतलब?”

संध्या: “अरे पागल! ये बता, क्या तुमको इसे पीना अच्छा लगा?”

नीलम ने नज़र उठा कर संध्या की तरफ देखा और कहा, “हाँ दीदी, बहुत अच्छा लगा!”

संध्या: “फिर तो! लो, अब आराम से इसे दबा कर देखो और बेफिक्र होकर पियो! मुझे भी अच्छा लगेगा!” संध्या ने अपने निप्पल की तरफ इशारा किया।

“क्या सचमुच? मुझे लगा की तुमको अच्छा नहीं लगा! ..और... मुझे लगा की तुम मुझसे गुस्सा हो!”

“पगली, मैं तुमसे कभी भी गुस्सा नहीं हो सकती!” कहते हुए संध्या ने अपना कीमोनो पूरी तरह से उतार दिया, और मेरी तरह मुखातिब हो कर बोली, “ये दूसरा वाला आपके लिए है...”
very nice update
 

mashish

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पता नहीं क्यों, नीलम इस बार कुछ हिचकिचा गई। जब कुछ देर तक उसने कुछ नहीं किया, तो संध्या ने खुद ही उसका हाथ पकड़ कर खुद ही अपने स्तन पर रख दिया। स्वतः प्रेरणा से उसने धीरे धीरे से चार पांच बार उसके स्तन को दबाया, और फिर अपना मुँह आगे बढ़ा कर उसका एक निप्पल मुंह में लेकर चूसने लगी। मैंने भी संध्या का दूसरा स्तन भोगना आरम्भ कर दिया। उधर संध्या का हाथ मेरे पाजामे के ऊपर से मेरे लिंग पर फिरने लगा – वो तो पहले से ही पूरी तरह से उन्नत था।

कमरे में अभी भी कुछ संभ्रम था - इतना तो तय है की मुझे यह सब कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन अब मुझे और हमको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। इतना तो तय था की संध्या को नीलम के साथ अपनी निजता को बांटना बहुत अच्छा लग रहा था। संध्या के स्तन इस तरह से अनावृत हो जाने से नीलम के मन में एक और चाहत जाग गई – वह बिस्तर से उठी और जा कर एक बत्ती जला आई। पूरी रौशनी से नहाये हुए संध्या के नग्न स्तनों को आज वह खूब करीब से देखना चाहती थी।

“दीदी, तुम कितनी सुन्दर हो!”

संध्या को अपने पेट में एक मीठी सी गुदगुदी जैसी महसूस हुई – यहाँ दो लोग, जिनको वो बहुत प्रेम करती है, और जो उसको बहुत प्रेम करते हैं, एक साथ बैठ कर उसके रूप का इस अन्तरंग तरह से आस्वादन कर रहे हैं। उसने बड़े प्रेम से एक एक हाथ से नीलम और मेरे गले में गलबाहें डालीं, और हमको अपने स्तनों की तरफ खींचा। नीलम उसके निप्पल को मुँह में भर कर चूसने लग गई; मैंने पहले उसके निप्पल के चहुँओर पहले तो मन भर कर चाटा, और फिर इत्मीनान से उसको चूसना आरम्भ किया। कुछ ही मिनटों के स्तनपान के बाद, संध्या का शरीर अचानक ही एक कमानी के जैसे हो गया और वह बिस्तर पर निढाल हो कर गिर गई और हांफने लगी..

“दीदी, क्या हुआ?” नीलम ने चिंता और सहानुभूति से पूछा।

संध्या कुछ बोली नहीं, बस हाँफते हाँफते मुस्कुराई। मुझे मालूम था की क्या हुआ.. इसलिए मैंने मैदान नहीं छोड़ा। मेरा हाथ उसकी कमर को टटोल रहा था। अगले पांच सेकंड में मेरी उंगलियाँ उसकी योनि रस से गीली हो चली चड्ढी के ऊपर से उसकी योनि का मर्दन कर रही थीं। मेरी इस हरकत से उसकी योनि से और ज्यादा रस निकलने लगा।

नीलम को सेक्स का कोई बहुत ज्ञान तो था नहीं – उसको संभवतः बस उतना ही पता था जितना की उसने हमको करते हुए देखा था। और कोई कितनी देर तक सिर्फ स्तनपान कर सकता है? कुछ देर में नीलम थक गई (या बोर हो गई) और संध्या से अलग हो गई। इतनी देर में मेरा लिंग भी अपने निर्धारित कार्य के लिए तैयार हो चला था – नीलम से यह बात छुपी नहीं।

“जीजू, अब आप दीदी के साथ ‘सेक्स’ करिए न?”

किसी के सामने निर्वस्त्र वैसे भी आसान नहीं होता। और यहाँ पर स्थिति थोड़ा भिन्न थी – यहाँ पर एक जिज्ञासु लड़की मुझे अपनी पत्नी के साथ उसके सामने सेक्स करने को कह रही थी। खैर, संध्या को लगभग नग्न देख कर मेरी खुद की अभिज्ञता कुछ कम हो गई थी – लिहाज़ा, मैंने भी अपने कपड़े उतारे, और साथ ही साथ यह आलोकन भी किया की हम तीनों में सिर्फ नीलम ही है जिसने सारे कपड़े पहन रखे हैं।

“नीलू, यह तो बहुत बेढंगा लगता है की हम दोनों के कपड़े उतर रहे हैं, और तुमने सब कुछ पहना हुआ है। तुम भी तो उतारो!”

“जीजू... ये भी क्या पहना है मैंने! सब कुछ तो दिख रहा है!”

मैंने आगे कोई जिद नहीं करी। लेकिन जो कुछ नीलम ने आगे किया, उसको देख कर हम दोनों ही मुस्कुरा उठे। उसने जल्दी से अपनी नाईटी उतार फेंकी और अपने जन्मदिन वाले सूट (अर्थात पूर्णतः नग्न) में हमारे सामने बिस्तर पर बैठ गई। आज पहली बार नीलम का वयस्क रूप मैंने और संध्या ने देखा था। नीलम की छाती पर अब संतरे के आकार के दो स्तन बिलकुल तन कर खड़े हो गए थे, और उसके शरीर पर बहुत ही शोभन लग रहे थे। उसके निप्पल गहरे भूरे रंग के थे, और उनके बगल हलके भूरे रंग का कोई डेढ़ इंच व्यास का areola विकसित हो गया था।

“अब करिए..?” नीलम कितनी उतावली हो रही थी हमको सेक्स करते देखने के लिए!

मेरे मन में द्वंद्व छिड़ गया - क्या यह ठीक होगा? कहीं इसके दिमाग पर बुरा असर न पड़े! बुरा असर क्यों होगा? आखिर यह शिक्षा तो सभी को चाहिए ही न! ऐसी कोई छोटी भी तो नहीं है! जल्दी ही इसकी शादी भी इसके परिवार वाले ढूँढने लग जायेंगे! उसके पहले इसको सेक्स के बारे में मालूम हो जाय तो अच्छा है।

अब कहानी आगे बढ़ने से पहले एक सवाल का जवाब आप ही लोग दीजिए : अगर कोई सुन्दर सी लड़की अगर इस तरह अन्तरंग तरीके से आपके सामने निर्वस्त्र हो जाय, तो उसका कुछ तो आदर होना चाहिए की नहीं? मैंने आगे बढ़ कर उसके दोनों चूचुकों पर एक एक चुम्बन ले लिया। नीलम सिहर उठी। मुझे मालूम था की संध्या नीचे लेटी हुई है.. लेकिन नीलम को कुछ तो यादगार व्यक्तिगत अनुभव होना ही चाहिए! मैंने नीलम की कमर पकड़ कर अपनी तरफ खींचा, और फिर इत्मीनान से उसके स्तनों को बारी बारी से अपने मुंह में भर कर चूसने लगा। कमरे में नीलम की हाय तौबा गूंजने लगी। उसको नज़रंदाज़ कर के मैं साथ ही साथ उसके दोनों नितम्बों को मसल भी रहा था।

“जीजू... बस्स्स्स! आह! म्म्मेरे साथ.. न्न्न्हीं.. दी..दी.. के साथ..” वो उन्माद में न जाने क्या क्या बड़बड़ा रही थी। लेकिन मैंने बिना रुके तबियत से उसके स्तनों को कोई दस मिनट तक चूमा और चूसा। उत्तेजनावश उसके स्तन इस समय साइज़ में कोई बड़े लग रहे थे, और और दोनों चूचक वैसे तन कर खड़े हो गए जैसे रबर-वाली पेंसिल के रबर! एकदम सावधान! खैर अंततः मैंने नीलम को छोड़ा – वो बुरी तरह से हांफ रही थी। दोनों निप्पल इस कदर चूसे जाने से लाल हो गए थे, और उसके शरीर पर, ख़ास तौर पर स्तनों, पेट और नितम्बों पर लाल निशान पड़ गए थे।

“हैप्पी बर्थडे!” मैंने मुस्कुराते हुए बस इतना ही कहा। नीलम उत्तर में शर्मा गई।

“ह्म्म्म... तो जीजा और साली आपस में ही बर्थडे बर्थडे खेले ले रहे हैं? अपनी दीदी को ट्रीट नहीं दोगी?” संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा।

“ट्रीट?”

संध्या भी लगता है अपने स्तन पिए जाने का हिसाब बराबर करना चाहती थी। वह उठ कर अपना हाथ नीलम के स्तनों पर रख कर उनको धीरे धीरे सहलाने लगी। नीलम के स्तन छोटे छोटे तो थे, लेकिन संध्या के स्तनों जैसे प्यारे से थे। नीलम की सिसकियाँ निकल पड़ीं। संध्या को अभी ठीक से आईडिया नहीं था – उसने नीलम के एक निप्पल को जोश में आकर कुछ ज्यादा ही जोर से मसल दिया।

नीलम: “सीईईई... क्या कर रही हो दीदी! आराम से करो न! जीजू ने वैसे ही मेरी जान निकाल दी है।”

संध्या यह इशारा पा कर अब खुल कर नीलम के स्तनों से खेलने लग गई। कुछ तो मेरे सिखाई विद्या, और कुछ उसकी खुद की जिज्ञासा... कभी नीलम के प्रोत्साहन से संध्या भी स्तन-रस-पान करने लगी। नीलम के चूचुक को प्यार से रगड़ने के बाद उसके स्तनों को चूसना शुरू कर दिया, तो वो एकदम गरम हो गई थी। मैं क्या करता? मैंने संध्या के पेट और नाभि के आस पास चूमना और चाटना शुरू कर दिया। कमरे में नग्न पड़े तीन जिस्म अब सुलग उठे थे। कुछ ही पलों के बाद नीलम अपने जीवन की प्रथम रति-निष्पत्ति का अनुभव कर के गहरी गहरी साँसे भरने लगी। उसकी योनि के स्राव से निकलती नमकीन सी खुशबू हम दोनों ने महसूस करी। नीलम इन सबसे बेखबर, अपनी आँखें बंद किये मानो जैसे सपनो की दुनिया में खोई हुई थी - उसकी साँसे तेजी से चल रही थीं, और होंठ कांप रहे थे। वो अभी अभी अनुभव किये नए आनंद के सागर के तल तक गोते लगा रही थी।

“वैरी हैप्पी बर्थडे नीलू!” कहते हुए संध्या ने नीलम को होंठों पर चूम लिया, और आगे कहा, “... कैसा लगा?”

“आअह्ह्ह्ह दीदी! एकदम अनोखा!” नीलम ने गहरी सांस भरी। “... अब आप लोग करो न प्लीज!”

हम लोग तो तैयार थे – बस दर्शक (नीलम) के रेडी होने की बात जोह रहे थे। संध्या के हरी झंडी दिखाते ही मैंने उसको छेड़ना शुरू कर दिया। गर्भधारण करने से स्त्रियों के शरीर में कई सारे परिवर्तन होने लगते हैं। उनमें से एक है - एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन रसायनों के स्तर में वृद्धि! ये दोनों रसायन स्त्रियों के शरीर को कुछ इस तरह से बदल देते हैं की उनमें गर्भावस्था के दौरान कामेच्छा काफी बढ़ जाती है। इनके कारण गर्भाशय में रक्त का प्रवाह और प्राकृतिक चिकनाई बढ़ जाती है, और स्तनों और निपल्स में संवेदनशीलता भी बढ़ जाती है। कहना गलत न होगा, की बहुत सी स्त्रियाँ (जिनका स्वास्थ्य इत्यादि ठीक हो) गर्भधारण के उपरान्त यौन संसर्ग का और अधिक आनंद उठाती हैं! लिहाजा, संध्या जो पहले से ही रति का अवतार है, अब और भी कामुक हो गई थी।

संध्या : “उफ़.. आप क्या कर रहे हैं?”

मैं : “अरे भई! मौके का सही फायदा उठा रहा हूँ। तुम्हारी बहन के लिए अच्छा सा गिफ्ट ला रहा हूँ...”

कहते हुए मैंने संध्या को टांगों से खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया, और उसके स्तन दबाने लगा। संध्या ने अपनी आंखें बंद कर रखी थी। वैसे भी उसके स्तन उत्तेजनावश पहले ही सख्त हो चुके थे।

संध्या बोली, “हाय! क्या करते हो? आराम से! आपका हाथ बहुत कड़क पड़ता है! ‘ये’ बहुत सेंसिटिव हो गए हैं अब! पहले ही तुम दोनों ने चूस चूस कर इनका हाल बुरा कर दिया है.. अब बस...”

मैंने कहा, “अरे! लेकिन ये सब नहीं करूंगा तो नीलम क्या सीखेगी?” कह कर मैं फिर उसके स्तनों का मर्दन करने लगा।

संध्या बोली, “प्लीज़ जानू ! दर्द होता है! अब आप सीधा मेन काम करिए.. मैं पूरी तरह से तैयार हूँ..”

तैयार तो थी! मैंने संध्या को अपनी बाँहो में भर लिया, और उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। कुछ देर तक ऐसे ही उसके पूरे शरीर को चूमा। अब संध्या पूरी तरह से तैयार थी। उसके लिए ये फोरप्ले कुछ ज्यादा ही हो गया था।

मैं उसके पेट पर हाथ फिराते हुए उसकी चड्ढी के अन्दर ले गया। उसकी योनि उत्तेजनावश जैसे पाव रोटी की तरह सूजी हुई थी। मैंने चड्ढी के अन्दर से उसकी योनि को सहलाने लगा। संध्या ने अपनी आंखें बंद कर लीं। कुछ देर ऐसे ही छेड़खानी करने के बाद मैंने उसकी चड्ढी भी उतार दी और अपनी तर्जनी और अंगूठे की मदद से उसकी योनि के होंठों को खोलने और बन्द करने लगा, और साथ ही साथ उसके भगशिश्न को भी छेड़ने लगा। संध्या के मुँह से कामुक कराहें निकलने लगी, और वो मस्त होकर मेरे लिंग को अपने हाथ में पकड़ कर दबाने और सहलाने लगी।

“बोलो संध्या रानी! चुदने का मन हो रहा है या नहीं?”

“छी! जानू.. आप बहुत गंदे हो!”

“अरे बोल न! ऐसे क्यों शर्मा रही है? बोल न... चुदने का मन हो रहा है?” संध्या समझ गई की बिना ‘डर्टी-टॉक’ किये मैं कुछ नहीं करूंगा.. इसलिए उसने पीछा छुडाने के लिए कहा,

“हाँ जानू.. बहुत मन हो रहा है।“

अब आप लोग ही सोचिए – एक लड़की पूरी तरह से नंगी दो लोगों के सामने भोगे जाने हेतु पड़ी हुई है, लेकिन फिर भी माकूल या मुनासिब व्यवहार नहीं छोड़ रही है! भारतीय लड़कियाँ वाकई कमाल होती हैं। मुझे मालूम था की इससे अधिक वो और कुछ नहीं कहेगी। मैंने संध्या को सावधानी पूर्वक बिस्तर पर वापस लिटाया और अपने लिंग को उसकी योनि की दरार पर कई बार फिरा कर गीला कर लिया। उसकी योनि से कामरस मानों बह रहा था। जब वो अच्छी तरह से गीला हो गया, तब मैंने अपने लिंग को पकड़ कर उसकी योनि के भीतर धीरे से ठेल दिया। मेरे लिंग का सुपाड़ा उसकी योनि में भीतर तक घुस गया – इतनी चिकनाई थी अन्दर। संध्या के मुँह से आह निकल पड़ी।

आगे हम एक दूसरे को चूमते हुए वही पुरानी आदि-कालीन क्रिया करने लगे। पहले धीरे धीरे और फिर बाद में तेजी से मैं अपने लिंग को संध्या की योनि के अन्दर-बाहर करने लगा। कुछ देर बाद संध्या ने अपनी टांगें ऊपर की तरफ मोड़ ली और मेरी कमर के दोनों तरफ लपेट ली। अब मेरा लिंग संध्या की योनि में तेजी से अन्दर-बाहर हो रहा था – इस गति में आयाम कम, लेकिन आवृत्ति बहुत ही अधिक थी। मैं अब तेज-तेज धक्के मार रहा था। काम का नशा अब हमारे सर चढ़ गया था। संध्या भी आनंद लेते हुए मेरे हर धक्के का स्वाद ले रही थी।

संध्या ने मेरे नितम्बों को अपने हाथों में थाम रखा था और उनको पकड़े हुए ही वो भी नीचे से मेरे धक्कों के साथ-साथ अपने नितम्ब की ताल दे रही थी। योनि सुरंग में पहले से ही काम-रस की बाढ़ आई हुई थी, और इतने मर्दन के बाद अब मेरा लिंग बिना रुके हुए आराम से अन्दर बाहर फिसल रहा था। इस सम्भोग का आनंद संध्या महसूस करके, और नीलम अवलोकन करके ले रहे थे। इस नए परिवेश में मैंने भी संध्या को किसी पागल की भांति भोग रहा था।

मैंने पूछा, “जानेमन, अच्छा लग रहा है?”

संध्या बोली, “हमेशा ही लगता है! आपका लंड इतना तगड़ा है, और आपके चुदाई का तरीका इतना शानदार! बहुत अच्छा लग रहा है। बस आप तेज-तेज करते रहो।”

गन्दी बात! वाह! उसके मुंह से यह बात सुन कर मैंने अपनी रफ्तार और बढ़ा दी। मैं वाकई उसको ‘चोदने’ लग गया। मेरा लिंग सटासट उसकी योनि में तेजी से अन्दर बाहर हो रहा था। संध्या मस्ती में ‘आअह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह’ करती रही। कोई पांच मिनट चले इस घमासान के बीच अचानक ही संध्या ने मुझे कस कर अपनी बाँहो में भर लिया। मैं समझ गया की इसका काम तो हो गया। और अगले ही पल उसने एक जोर से आह भरी और आखिरी बार अपने नितम्ब को मेरे लिंग पर ठेला, और फिर बिस्तर पर अपने पैर पसार कर ढेर हो गई। मैंने भी जल्दी जल्दी धक्के लगाए और आखिरी क्षण में लिंग को उसकी योनि से बाहर निकाल कर उसके पेट पर अपनी वीर्य की कई सारी धाराएँ छोड़ दीं।

फिर मैं गहरी साँसे भरता हुआ संध्या के बगल लेट गया और कुछ देर तक सांसों को संयत करता रहा। संध्या भी मेरे बगल अपनी आँखें बंद करके लेटी हुई थी। इस पूरे वाकए को नीलम खामोशी से (और विस्मय के साथ भी) देखती रही। मैंने उसकी तरफ मुखातिब हो कर कहा,

“नीलू, ज़रा क्लोसेट से मेरी एक रूमाल निकाल कर देना तो!”

वो तो जैसे किसी सम्मोहन से जागी। फिर मेरी अलमारी से उसने एक रूमाल निकाल कर मुझे सौंप दिया। मैंने रूमाल से संध्या के पेट पर गिरा वीर्य और अपना लिंग साफ़ किया और उठ कर बाथरूम के अन्दर फेंक दिया। वापस आकर मैं फिर से उसकी बगल में लेट गया, और उसके स्तनों पर हाथ फेरने लगा।

संध्या : “हो गई तुम्हारे मन की?” यह प्रश्न नीलम के लिए था।

नीलम ने कुछ नहीं कहा।

“बोल न? गिफ्ट कैसा लगा?”

“दीदी! मैं नहीं करूंगी यह सब कभी भी..” नीलम ने रुआंसी आवाज़ में कहा, “... बाप रे! मैं तो मर जाऊंगी!”

“नीलू बेटा!” मैंने कहा, “जब तुम्हारे हस्बैंड का लंड तुम्हारे अन्दर जाएगा न, तब तुम यह कहना भूल जाओगी!”

कह कर मैंने संध्या को अपनी बाँहो में भर लिया, और कुछ देर तक ऐसे ही नीलम को समझाते रहे। फिर संध्या ने कहा, “मैं तो थक गई हूँ... चलो अब सो जाते हैं!” और कह कर अगले कुछ ही पलों में वो सो गई। नीलम भी संध्या के बगल चुपचाप पड़ी रही। मैं कब सोया कुछ याद नहीं।
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अगली सुबह नाश्ते पर ससुर जी ने मुझसे कहा की उनके परिवार की भगवान केदारनाथ धाम में बड़ी अगाध श्रद्धा है। और हर शुभ-कार्य अथवा पर्व-प्रयोजन में वो सभी वहाँ जाते रहते हैं। उनका पूरा परिवार कई पीढ़ियों से शुभ प्रयोजनों में यह यात्रा करता रहा है। उनके अनुसार, अब चूंकि संध्या गर्भवती है, तो यदि संभव हो, तो हम सभी एक बार केदारनाथ जी के दर्शन कर आएँ? इस बात पर सबसे पहले तो मुझे राहत की सांस आई – कल रात की धमाचौकड़ी इन लोगो ने कैसे नहीं सुनी, वही एक अचरज की बात है। अच्छा है.. सवेरे सवेरे धर्म कर्म की बाते हो रही थीं।

“जी पिताजी, एक बार हम संध्या की डॉक्टर से बात कर लेते हैं। अगर उनकी सलाह हुई, तो ज़रूर चलेंगे। अभी जाना है क्या? मेरा मतलब, कोई मुहूर्त जैसा कुछ है?”

“नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है बेटा। जब आप लोगों को सही लगे, आ जाइए। भगवान् के दर्शनों के लिए कैसा मुहूर्त! बस हम सभी एक बार सपरिवार केदारनाथ जी के दर्शन कर लें.. हमारी बहुत दिनों से बड़ी इच्छा है।“

“जी, बिलकुल! मैं अभी कुछ ही देर में डॉक्टर को पूछता हूँ..”

खाने पीने के बाद कोई दस बजे मैंने डॉक्टर को फ़ोन लगाया। उन्होंने कहा की अगले महीने संध्या यात्रा कर सकती है। तब तक उसका पाँचवाँ महीना शुरू हो जाएगा, और वह सुरक्षित समय है। बस समुचित सावधानी रखी जाय। मैं उन रास्तों पर गया हुआ हूँ पहले भी, और मुझे मालूम है की कुछ स्थानों को छोड़ दिया जाय, तो वहाँ की सड़कें अच्छी हालत में हैं। इसलिए कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। वहाँ ऊपर जा कर पालकी इत्यादि की व्यवस्था तो हो ही जाती है... अतः डरने या घबराने वाली कोई बात नहीं थी।

दो दिन और बैंगलोर में रहने के बाद मेरे सास ससुर दोनों वापस उत्तराँचल को लौट गए। मैंने बहुत कहा की यही रुक जाएँ, लेकिन उनको वहाँ कई कार्य निबटाने थे, इसलिए हमारी बहुत मनुहार के बाद भी उनको जाना पड़ा। खैर, उनके जाते ही मैंने सबसे पहले देहरादून का हवाई टिकट हम तीनों के लिए बुक कर लिया। इस एक महीने में हमने बहुत सारे काम यहाँ पर भी निबटाए – सबसे पहले नीलम के दाखिले के लिए उसके संभावित कॉलेज के प्रिंसिपल से मिले, और उन्होंने भरोसा दिलाया की उसको दाखिला मिल जाएगा अगर बारहवीं में अंक अच्छे आयेंगे! उन्होंने काफी समय निकाल कर उसकी काउंसलिंग भी करी – वो क्या करना चाहती है, क्या पढना चाहती है, कौन से कोर्स वहाँ पढाए जा रहे हैं इत्यादि! मुझे भी काम के सिलसिले में दो हफ्ते घर से बाहर जाना पड़ा, और इस बीच दोनों लड़कियों ने ढेर सारी खरीददारी भी कर ली.. जैसे जैसे संध्या के शरीर में वृद्धि हो रही थी, उसको नए कपड़ो की आवश्यकता हो रही थी; नीलम को भी नए परिवेश के हिसाब से परिधान खरीदने की ज़रुरत थी। खैर, अच्छा ही है.. इसी बहाने उसको नई जगह को देखने और समझने का मौका मिल रहा था।

दोनों ही लड़कियों से रोज़ बात होती थी.. एक बार संध्या ने कहा की जिस तरह से उसका शरीर बढ़ रहा है, उसको लगता है की नए कपड़े लेने से बेहतर है की वो नंगी ही रहे। इस पर मैंने सहमति जताई, और कहा की यह ख़याल बहुत उम्दा है। संध्या ने कहा की ख़याल तो उम्दा है, लेकिन आज कल उसकी बहन रोज़ ही उससे चिपकी सी रहती है.. ऐसा नहीं है की संध्या को नीलम का संग बुरा लगता है। बस यह की एक वयस्क लड़की के लिए ऐसा व्यवहार थोड़ा अजीब है। मेरे पूछने पर उसने बताया की नीलम अक्सर उसके स्तनों और शरीर के अन्य हिस्सों को छूती टटोलती रहती है। कहती है की उसको संध्या बहुत सुन्दर लगती है, और उससे रहा नहीं जाता बिना उसको छुए। संध्या ने ही बताया की,

एक दिन नीलम ने संध्या को कहा, “दीदी, तुम्हारा बच्चा कितना लकी है न! हमें तो बस गिलास से ही...”

“क्या मतलब?” संध्या समझ तो रही थी.. फिर भी पूछा।

“मेरा मतलब दीदी, हर किसी को तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की का ... पीने .. को.. नहीं मिलता है न!”

गर्भावस्था के दौरान लड़कियाँ स्वयं को फूली हुई महसूस करती हैं, इसलिए उनकी तारीफ़ इत्यादि करने से उनको ख़ुशी मिलती है। संध्या भी अपनी तारीफ़ सुन कर मुस्कुराई।

“दीदी, मैं तुमको चूम लूँ?”

“क्या नीलू! तू भी! तू अपने लिए एक लड़का ढूंढ ले.. तेरे भाव स्पष्ट नहीं लग रहे हैं मुझे.. हा हा हा!”

“तो ढूंढ दो न तुम ही.. जीजू जैसा कोई! तब तक यही भाव रहेंगे मेरे..”

कहते हुए नीलम ने अपना चेहरा संध्या के चेहरे के पास लाया। संध्या की आँखें नीलम के होंठो पर लगी हुई थीं। संध्या ने कभी नहीं सोचा था की उसके साथ ऐसा भी कुछ होगा। क्या उसकी ही अपनी, छोटी बहन उसकी तरफ यौन आकर्षण रखती है! ऐसा नहीं है की उसको बुरा लग रहा हो... शादी के बाद के कई अनुभवों के बाद उसकी खुद की अनगिनत वर्जनाएँ समाप्त हो गई थीं, लेकिन फिर भी, यह सब कुछ बहुत ही अलग था.. अनोखा! अनोखा, और बहुत ही रोचक। नीलम ने झुक कर अपने होंठ संध्या के होंठो से सटा दिए...

“ओह! कितने सॉफ्ट हैं!” एक छोटा सा चुम्बन ले कर उसने कहा।

नीलम संध्या के होंठों पर बहुत ही हलके हलके कई सारे चुम्बन दे रही थी। दे रही थी, या ले रही थी? जो भी है! जब उसने देखा की संध्या उसकी इस हरकत का कोई बुरा नहीं मान रही है, और साथ ही साथ उसकी इस हरकत के प्रतिउत्तर में वो खुद भी वापस चुम्बन दे रही है, तो उसने कुछ नया करने का सोचा। उसने चुम्बन में कुछ तेज़ी और जोश लाई, और साथ ही संध्या को अपने आलिंगन में बांध लिया। कुछ तो हुआ दोनों के बीच – दोनों लड़कियाँ अब पूरी तन्मयता के साथ एक दूसरे का चुम्बन ले रही थीं। संध्या ने भी अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए नीलम के दोनों गाल अपने हाथों से थोड़ा दबा दिए, जिसके कारण नीलम का मुँह खुल गया। और इसी क्षण संध्या ने अपनी जीभ नीलम के मुँह के अन्दर डाल कर चूसना शुरू कर दिया।

उधर, नीलम संध्या की शर्ट के ऊपर से उसके स्तनों को बारी बारी छूने लगी। संध्या के लिए यह कोई नई बात तो नहीं थी, लेकिन फिर भी सुने आँख खोल कर देखा - नीलम तो अपनी आँखें बंद किये इस काम में पूरी तरह मगन थी। एक सहज प्रतिक्रिया में संध्या ने पुनः अपने स्तन को आगे की ओर ठेल दिया, जिसके कारण उसके स्तन नीलम के हाथ में आ गए। नीलम ने तुरंत ही खुश होकर उसके स्तन को मसलना चालू कर दिया।

चुम्बन की प्रबलता अब तीव्र हो चली थी और दोनों लड़कियों की साँसे भी। नीलम के दोनों हाथ अब संध्या के शर्ट के अन्दर जा कर उसके स्तनों का मर्दन कर रहे थे। संध्या के निप्पल गर्भावस्था की संवेदनशीलता के कारण उसके मर्दन से असहज महसूस कर रहे थे। लेकिन वो नीलम का मन रखना चाहती थी।

संध्या ने नीलम को अपने से कुछ दूर किया, और फिर अपनी शर्ट के बटन खोल कर उसके पट खोल दिए। वो शर्ट को उतार पाती, उससे पहले ही नीलम वापस उससे जा चिपकी और उसको पुनः चूमने लग गई। संध्या के स्वतंत्र स्तनों को वो बारी बारी से अपने मुंह में भर कर चूसना आरम्भ कर दिया। पहले के मर्दन के कारण उसके निप्पल पहले ही कड़े हो गए थे, और अब इस चूषण के बाद वो और भी कड़े हो गए।

“मैं भी लकी हूँ! ... उह्म्म्म उह्म्म्म (चूसते हुए) ओह दीदी..! आप प्लीज मुझको भी इनसे दूध पिलाना! आह! इतने सुन्दर हैं!” इतना कह कर वह पुनः चूसने में लग गई।

“हा हा! ये लो... अब एक और दावेदार आ गई! गाँव बसा नहीं, और लुटेरे आ गए!”

नीलम ने उसकी बात को जैसे अनसुना कर दिया। उसके हाथ संध्या के सारे शरीर पर चलने फिरने लगे। कभी वो उसके स्तन दबाती, तो कभी उसके नितम्ब, तो कभी उसकी पीठ! आगे वो उसकी स्कर्ट को नीचे की तरफ सरकाने लगी।

“अरे! ये क्या कर रही है? मुझे पूरा नंगा करने का मूड है क्या?” संध्या ने मुस्कुराते हुए पूछा।

"हाँ! मैं तुमको पूरा नंगा भी देखूँगी, और आपके साथ वह सब करूंगी जो जीजू करते हैं।“ कहते हुए नीलम संध्या की स्कर्ट और चड्ढी दोनों एक साथ ही नीचे सरकाने लगी।

“नहीं नीलू.. ऐसे मत कर.. बस, इनको पीने की इजाज़त है.. ये तेरे जीजू के लिए है!”

संध्या नीलम के सामने नग्न पड़ी हुई थी, और अपने शरीर का कोई हिस्सा छुपाने का यत्न नहीं कर रही थी। कदाचित, वह यह चाहती थी की नीलम उसकी सुन्दरता के रसभरे दृश्य से सराबोर हो जाए। लेकिन, नीलम को बस इतनी ही अनुमति थी। उसने एकदम आसक्त हो कर अपनी तर्जनी को संध्या की सूजी हुई योनि की दरार पर फिराया और फिर बहुत ही अनिच्छा से अपना हाथ वापस खींच लिया। संध्या मुस्कुराई।

नीलम ने वापस आकर संध्या के स्तनों पर अपना मोर्चा सम्हाला, और पुनः उनको चूसना शुरू कर दिया।

कुछ देर चूसने के बाद,

“अरे दीदी! ये क्या..?”

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संध्या की बात सुन कर मुझे बहुत रोचक लगा! और मैं खुद भी काफी उत्तेजित हो गया!! बात तो सही है.. संध्या है ही इतनी सुन्दर! और अब जब वो माँ बनने वाली है, तो उसकी सुन्दरता और भी निखर आई है! ज्यादातर स्त्रियाँ गर्भ-धारण करने के बाद अतिपक्व दिखने लगती है, और उनके शरीर पर गर्भ का बोझ दिखने लगता है। कहने का मतलब, वे स्थूल, थकी हुई और निस्तेज हो जाती है। लेकिन, कुछ स्त्रियाँ ऐसी होती है, जो पुष्प की तरह खिल जाती हैं.. उनके चेहरे पर उनके अन्दर पनप रहे जीवन का तेज दिखने लगता है। संध्या इस दूसरी श्रेणी में थी। उसका चेहरा जीवन की आशा से दीप्तिमान होता जा रहा था, और उसका छरहरा शरीर स्थूल तो हो रहा था, परंतु साथ ही साथ अत्यंत आकर्षक भी होता जा रहा था। पहले ही वो रति का स्वरुप लगती थी, अब तो ऐसा लगता है की उसमें कम से कम सौ रतियों का वास हो! कोई भी ऐसी स्त्री को आकर्षक पायेगा ही! इसके लिए नीलम से मुझे कोई भी गिला-शिकवा नहीं था।

वापस आने के एक दिन पहले संध्या ने मुझे फ़ोन पर कहा की वापस आने पर मेरे लिए एक सरप्राइज है! मेरे लाख पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया की क्या! खैर, बता देती तो कैसा सरप्राइज! घर आने पर मेरा स्वागत एक बेहद झीने नाईटी पहने हुए संध्या ने एक गर्म कामुक फ्रेंच चुम्बन के साथ किया। दरवाज़े को भी ठीक से बंद नहीं पर पाया मैं। स्पष्ट था की इतने दिनों में संध्या की यौनरुचि कई गुना बढ़ गई थी। मुझे भी इस तराशी हुई सुंदरी को नंगा देखने की तीव्र इच्छा हो रही थी, इसलिए तुरत-फुरत मैंने उसकी नाईटी उतार फेंकी। मेरी नज़रों के सामने भरे हुए स्तन और उनके सामने सुशोभित स्थूल चूचक, जैसे किसी पूर्वज्ञान के कारण खड़े हुए, उपस्थित थे। मैंने आँख उठाई, तो मेरी आँखें संध्या की आँखों से मिलीं। उसकी आँखों में एक संतुष्ट चमक थी – उसको मालूम है की मैं उसके स्तनों की सुन्दरता का दीवाना हूँ। फिर भी वो एक शिकायत भरे लहजे में कहती है,

“बहुत बड़े हो गए न?” और कहते हुए अपने स्तनों के नीचे हथेलियाँ लगा कर उठाती है। उसके इस हरकत में किसी भी प्रकार की लज्जा नहीं है.. वस्तुतः, मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझे अपने स्तनों का चढ़ावा दे रही हो। ऐसे चढ़ावे का भोग तो मैं कभी भी, और कहीं भी लगा सकता हूँ।

मैंने ‘न’ में सर हिलाया, “आई लव देम... आई लव यू!”

“तुम पागल हो..” कह कर संध्या खिलखिलाते हुए हंसी.. और फिर उसने आगे जो किया उसने मेरे दिमाग और शरीर के सारे तार झनझना दिए। उसने अपने स्तनों को हलके से दबा दिया, और ऐसा करने से दोनों चूचकों में हलके पीले से रंग के दूध की बूँदें निकल आईं। ज़रा सोचिये, उसके प्यारे प्यारे रसभरे स्तनों में से अमृत उतर रहा था, और मैं उसको पीने जा रहा था! यह मेरा दावा है की धरती के प्रत्येक पुरुष के मन की फंतासी होगी की वो अपनी प्रेमिका या पत्नी के स्तनों से दूध पिए! कम से कम मेरी तो थी! और आज यह स्वप्न पूरा होने वाला था। इस दृश्य को देखते ही मेरा लिंग अपने पूरे तनाव पर खड़ा हो गया।

“मेला बच्चा भूखा है?” संध्या ने मुझे प्यार से छेड़ा।

मैं मंत्रमुग्ध सा इस दृश्य को देख रहा था.. लिहाजा, मैं सिर्फ सर हिला कर हामी भर पाया।

“अले मेला बेटू... इत्ती देर शे उसे कुछ खाने को नहीं मिला... है न? मेला दूधू पिएगा..?”

संध्या ने दुलराते हुए मुझसे पूछा। मेरे फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाने पर संध्या वहीँ सोफे पर बैठ गई, और उसने मुझे अपनी गोदी में आने का इशारा किया। मैंने उसकी गोदी में सावधानीपूर्वक व्यवस्थित हो जाने के बाद उसके होंठों को कोमलता से चूम लिया और उसके होंठों के अन्दर से होते हुए अपनी जीभ से उसकी जीभ चाट ली।

संध्या फिर से खिलखिलाई, और बोली, “नीचे और भी टेस्टी चीज़ है...”

और यह कहते हुए उसने मेरे सर को अपने स्तनों की तरफ निर्देशित किया। मैंने उसके निप्पल और areola का पूरा हिस्सा मुँह में भर लिया और जोर से चूसा। कोई पांच छः बार कोशिश करने के बाद मुझे अपने मुंह में एक स्वादरहित द्रव रिसता हुआ महसूस हुआ। और इसी के साथ ही मुझे संध्या के मुंह से संतुष्टि भरी आह भी सुनाई दी।

“आह्ह्ह मेरे राजा! ऐसे ही चूसते रहो.. आह.. बहुत अच्छा लग रहा है..।“

संध्या मेरे चूषण से प्रसन्न तो थी – उसकी विभिन्न प्रकार की आहें और उम्म्म आह्ह्ह.. इत्यादि इसका सबसे बड़ा प्रमाण थीं। कुछ देर में द्रव/दूध निकलना बंद हो गय, लेकिन फिर भी मैंने उसके बाद भी एक दो मिनट तक उसके उस स्तन को चूसा। उसके बाद आई दूसरे स्तन की बारी.. मुझे अनुभव तो हो ही गया था.. या यह कह लीजिये की शेर को खून... (ओह! माफ करियेगा), दूध का स्वाद पता चल गया था।

इधर मैं उसका दूध पी रहा था, और उधर संध्या मेरी पैंट की ज़िप के अन्दर से मेरे तने हुए लिंग के साथ खिलवाड़ कर रही थी। मैंने यह महसूस किया की जब वो मेरे लिंग को दबाती है, तो मेरा चूषण और बढ़ जाता है। खैर, यह खेल कब तक चलता.. अंततः उसके दोनों स्तनों में दूध समाप्त हो गया, तो मैं उसके पेट पर चुम्बन लेकर सोफे से ज़मीन पर उतर आया।

“कैसा लगा सरप्राइज?”

“बहुत ही बड़ा सरप्राइज था! मज़ा आ गया..”

“कब से बचा के रखा था.. आपका मन भरा?”

“मन कैसे भरेगा इससे मेरी जान! इतना न्यूट्रीशियश, इतना मजेदार! मैंने तो रोज़ पियूँगा!”

ऐसी बातें करते हुए शरीर पर जो प्रभाव होना होता है, वो होने लगा।

“अले ले ले! ये क्या.. मेले बेटू का छुन्नू तो ल्ल्ल्लंड बन गया है.. कितना बड़ा वाला ल्ल्ल्लंड..” उसने मुझे चिढ़ाया।

“मम्मी है ही इतनी सेक्सी!”

“ह्म्म्म? मम्मी इसको जल्दी से वापस छुन्नू बना दे? ठीक है न?”

“ख़याल बहुत ही उम्दा है!”

“मेला बेटू अपनी मम्मी की चुदाई करना चाहता है?” आज संध्या को क्या हो गया है! अगर ऐसे ही होता रहा तो उसकी बातें सुन कर ही मैं स्खलित हो जाऊंगा!

“हां.. मम्मी की ज़ोरदार चुदाई करनी है..”

“स्स्स्सीईई! गन्दा बच्चा! अपनी मम्मी को चोदेगा!”

मैं ज़मीन पर लेट गया और जल्दी से अपने लिंग को ज़िप के अन्दर से आज़ाद कर दिया।

“मेरे लंड को अन्दर ले लो और अपनी दोनों टाँगें मेरी दोनों ओर करके बैठ जाओ! आज मम्मी मेरी घुड़सवारी करेगी!”

“इस तरह?”

वह मेरी गोद पर चढ़ते ही पूछती है। वह अपनी दोनों टाँगें मेरी दोनों ओर करके बैठ गई है, लेकिन अभी भी ज़मीन पर अपने घुटनों के बल टिकी हुई है। उसके चूतड़ मेरी जांघों पर टिके हुए थे, और मेरा लिंग अभी भी बाहर था। मैंने अपने दोनों हाथों से उसके नितम्ब थाम लिए।

“इतना बड़ा लंड!”

संध्या पर मानो आज किसी भूत का साया पड़ गया था। ऐसे खुलेपन से उसने गन्दी-बातें कभी नहीं करीं थी। उसने मेरे लिंग को पकड़ कर अपने योनि के चीरे पर से ऊपर-नीचे कई बार फिराया। उसकी योनि में से तेजी से स्राव हो रहा था। फिर उसने धीरे से मेरे लिंग के सुपाड़े को अपने चीरे में लगाया और धीरे धीरे उस पर बैठने लगी। उसका योनि द्वार तुरंत खुल गया, और मेरा लिंग अपनी नियत जगह में आराम से जाने लगा – जैसे गरम चाकू, मक्खन के अन्दर जाता है। आधा लिंग अन्दर जाने तक वह नीचे की तरफ बैठती है, और साथ में हाँफते हुए यह भी कहती जाती है की “यह बहुत बड़ा है”। कहने के लिए शिकायत है, लेकिन उसकी मुस्कान से पता चलता है की वह खुद अपने झूठ से आनंदित है। फिर वह मेरे लिंग पर ऊपर और नीचे होना शुरू कर देती है।

एक मिनट भी नहीं हुआ होता है की मैं अपना वीर्य छोड़ देता हूँ। हैं! यह क्या!! एक मिनट भी नही! मुझे थोड़ी लज्जा आई.. इतने वर्षों के सम्भोग क्रीड़ा में मैंने कभी भी इतनी जल्दी मैदान नहीं छोड़ा! आज क्या हुआ! फिर मैंने अपने लिंग पर संध्या के खुद के सम्भोग निष्पत्ति का स्पंदन महसूस किया।

‘अरे! ये भी आ गई क्या!’

हम दोनों ने कुछ देर तक अपनी साँसे संयत करीं, और फिर संध्या ने ही कहा, “बेटू मेरा... अपनी माँ को ऐसे आसानी से छोड़ देगा, क्या?” न जाने क्यों उसके इस तरह चिढ़ाने से या फिर यह कह लीजिये की इस स्वांग से मैं जल्दी ही फिर से उत्तेजित हो गया।

“ऐसे सस्ते में जाने देगा? हम्म्म? ऐसे चोदो न, जैसे अपनी बीवी को चोदते हो... हर रोज़..” मेरा लिंग वापस अपने पूर्ण तनाव पर आ गया। और पूर्ण तनाव आते ही,

“जानू...”

‘हैं! इसकी तो भाषा ही बदल गई..!’

“आज एक नया आसान ट्राई करते हैं? कुछ ही दिनों में मेरा पेट फूल कर बहुत बड़ा हो जाएगा। लेकिन, मुझे आपना लिंग अपने अन्दर हमेशा चाहिए... मगर, आपको ठीक लगे तो ही!”

“जानू मेरी! मैं तो बस जो तुम चाहती हो, मुझे बताओ, और मैं वैसे ही कोशिश करूंगा। अगर तुमको अच्छा लगता है तो मैं किसी भी आसन में तुमको चोदने को तैयार हूँ।“

तब संध्या ने मुझे श्वान-सम्भोग आसन (दरअसल इसको कामसूत्र में ‘धेनुका’ कहा जाता है, लेकिन सामान्य भाषा में डॉगी स्टाइल कहते हैं) लगाने का निर्देश दिया। वो स्वयं अपने हाथों और सर को सोफे पर टिका कर और अपने नितम्बों को बाहर की तरफ निकाल कर घुटने के बल लेट/बैठ गई। जब मैं उसके पीछे जा कर अपना स्थान व्यवस्थित कर रहा था तो उसने बस इतना ही कहा, “जानू, आप सही छेद में ही करना..”

कहने सुनने में हास्यास्पद बात लगती है, लेकिन यह एक गंभीर चेतावनी थी। भगवान् के दिए दोनों छेद इतने करीब होते हैं, की इस आसन में अगर ध्यान नहीं दिया तो एक दर्दनाक और शर्मनाक गलती होने के पूरे आसार होते हैं। वैसे भी संध्या को मैं आज तक गुदा-मैथुन के लिए मना नहीं पाया था।

मैंने अपने लिंग को संध्या की योनि से रिसते रस (जो संध्या के और मेरे रसों का मिश्रण था) से अच्छी तरह भिगोया और उसके पीछे से योनि द्वार पर टिकाया। संध्या ने अपनी उँगलियों से अपनी योनि की दरार को कुछ फैलाया, जिससे मुझे उचित छेद खोजने में कोई कोई परेशानी न हो। अन्दर इतनी ज्यादा चिकनाई थी की ज़रा सी हरकत से मैं अन्दर तक समां गया।

संध्या ने एक कामुक किलकारी भरी, “उईई माँ! आप तो पूरा अन्दर तक घुस गए! आह्ह्ह!”

इस कथन में किसी भी तरह की शिकायत, या दर्द जैसा कुछ नहीं था, इसलिए मैंने इसको सम्भोग आरम्भ करने की अनुमति के रूप में लिया, और उसकी सूजी हुई योनि की कुटाई आरंभ कर दी। संध्या ने मेरे लिंग के घर्षण के साथ ही अपना आनंद भरा विलाप करना आरम्भ कर दिया। उधर मैंने पीछे से ही उसके स्तनों को दबाना, मसलना चालू कर दिया, और आराम से धक्के लगाने लगा। पीछे से सम्भोग करने से नितम्बों की पूरी संरचना स्पष्ट दिखाई देती है.. कमाल की बात यह है की इतने सारे आसन और पोजीशन ट्राई करने के बाद भी यह वाला बचा रह गया! संध्या के नितम्ब! मैंने उंगली से उसकी गुदा को छुआ और फिर उसके छेद पर अपनी अंगुली फिराने लगा। कुछ प्रतिक्रिया न देखने पर मैंने धीरे से अपनी उंगली अंदर डाली। संध्या चिहुंक गई, “ओउईई! म्म्मत क्क़करो..”

मैं रुक गया और कुछ और जोर से धक्के लगाने लगा। पहले स्खलन के बाद मेरा स्टैमिना काफी बढ़ गया था। इस नए काम युद्ध को करते हुए कोई दस-बारह मिनट के ऊपर तो हो ही गए होंगे। और अब मुझे भी लग रहा था की मंजिल निकट ही है। इस बीच में संध्या एक बार निवृत्त हो चुकी थी। मैं अब ज़ोर का धक्का लगाने लगा – संध्या भी अपनी तरफ से अपने नितम्ब आगे पीछे कर रही थी। कुछ ही देर में मेरे अन्दर का लावा फ़ूट पड़ा। स्खलन के उन्माद में मैंने अपनी कमर को कस कर संध्या के नितम्बो से पूरी तरह चिपका लिया।

सम्भोग का नशा उतरा तो याद आया की नीलम भी घर पर होगी! लेकिन संध्या ने बताया की वो अभी बाहर गई हुई है किसी काम से। मैंने राहत की साँस ली – कमाल है! सोचा भी नहीं की घर में हमारे अलावा एक और प्राणी रहता है। आगे से सजग रहना होगा।
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यात्रा वाले दिन :


संध्या : “जानू, आप भी साथ आते तो मज़ा आता।“

नीलम : “हाँ जीजू! आप भी न.. मौके पर धोखा देते हैं!”

मैं : “मौके पर धोखा! हा हा हा!”

नीलम : “और क्या! अब बताइए.. ये सारा लगेज हम दो बेचारी लड़कियों को खुद ही ढोना पड़ेगा..”

मैं : “अच्छा जी.. तो मैं तुम दोनों का कुली हूँ?”

नीलम : “नहीं नहीं.. आप तो मेरी दीदी के ‘जाआआनू’ हैं.. (नीलम ने मुझे चिढ़ाया) और मेरे प्याआआरे जीजू! लेकिन.. सामान उठाने वाला भी तो कोई चाहिए! ही ही ही!!!”

मैं : “देख रही हो जानेमन.. इस लड़की को सामान उठाने वाला चाहिए.. लगता है की इसके लिए लड़का ढूंढना शुरू कर देना चाहिए..”

नीलम : “धत्त जीजू! आपके होते हुए मुझे कोई और क्यों चाहिए?”

उफ्फ्फ़! इस लड़की से जीतना मुश्किल है!

मैं (नीलम की बात को नज़रंदाज़ करते हुए): “क्या बताऊँ जानू.. मेरा भी तो कितना मन है आपके साथ आने का! लेकिन यह मीटिंग्स! ये तो अच्छा है की मेरा काम दिल्ली में है.. बस, काम जल्दी से निबटा कर तुरंत आ जाऊँगा। बस यही तीन चार दिन की ही तो बात है... आप लोग एक दो दिन एक्स्ट्रा रह लेना वहाँ.. या एक दो दिन बाद चली जाना। मैं वहीँ सबको मिलूंगा! ओके?“

संध्या मुस्कुराई, और फिर मेरे पास आ कर दबी आवाज़ में बोली, “वो तो ठीक है.. लेकिन, ये दूध कौन पिएगा?”

नीलम : “हाँ हाँ.. सुनाई दे रहा है मुझे!” नीलम अँधेरे में तीर मार रही थी।

मैं : “क्या सुन रही है तू?”

नीलम : “आप दोनों मेरे खिलाफ कोई साजिश कर रहे हैं..”

संध्या : “तेरे कॉलेज में कहूँगी की रोज़ तेरे कान उमेठें जाएँ.. सारी चबड़ चबड़ निकल जायेगी!”

नीलम : “ठीक है! ठीक है! कर लो आप दोनों पर्सनल बातें! मैं क्यूँ कबाब में हड्डी बनूँ?” कहते हुए नीलम कमरे से बाहर निकल गई।

मैं (मुस्कुराते हुए) : “इसको सम्हाल कर रखिएगा... मैं इत्मीनान से पियूँगा, जब आपसे मिलूंगा!”

संध्या (खिलवाड़ करते हुए), “गन्दा बच्चा...!” और फिर अचानक गंभीर हो कर, “... जानू.. आपके बिना मेरा मन कहीं नहीं लगता! आप रहते हैं तो ज़िन्दगी में मज़ा रहता है!”

मैं : “क्या जानू.. बस तीन चार ही दिनों की तो बात है! मैं आ जाऊँगा! .. और फिर, मुझे ये डेयरी भी तो खाली करनी है! न्यूट्रीशन!! हेह हेह!”

संध्या : “मेरा तो बस यही मन रहता है की इनमें लबालब दूध भरा रहे.. जिससे मैं आपको जब मन करे, दूध पिला सकूं!”

केदारनाथ की चढ़ाई काफी कठिन है। करीब सात हज़ार फुट की चढ़ाई चढ़ कर केदारनाथ मन्दिर तक पहुंचते हैं। केदारनाथ जाने की प्रबल इच्छा क्यों थी इसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मुझे वैसे तो किसी तीर्थ पर जाने में कोई ख़ास रुचि नहीं है। लेकिन, इन लोगो की आस्था, और उनके परिवार की एक प्रकार की परम्परा के कारण मैंने कोई विरोध नहीं किया। वैसे भी संध्या की डॉक्टर ने बताया था की इस यात्रा में कोई दिक्कत नहीं है, अगर बस कुछ ख़ास सावधानियाँ बरती जाएँ! मैंने यह सख्त निर्देश दिए थे, की संध्या को चढ़ाई चढ़ने न दिया जाय – पालकी कर ली जाय, जिससे आसानी रहेगी। यह भी निर्देश दिया की संध्या लगातार मुझसे बात करती रहे, जिससे मुझे वहाँ की परिस्थिति का मालूम होता रहे। इस पर संध्या ने कहा की वो दिन में पांच छः बार मुझसे फ़ोन पर बात ज़रूर करेगी।

दोनों लड़कियों को मैंने बैंगलोर विमानपत्तन तक छोड़ा, और वापस काम पर चला गया। दो दिन बाद मुझे दिल्ली के लिए निकलना था, और वहाँ चार ज़रूरी मीटिंग्स कर के देहरादून, और वहाँ से केदारनाथ की यात्रा करनी थी। संध्या, नीलम के जाने के बाद घर खाली खाली सा लगने लगा तो मेरा ज्यादातर समय ऑफिस में ही बीत रहा था। संध्या मुझे हर समय फ़ोन या एस ऍम एस पर अपनी जानकारी देती रहती। दिल्ली में मीटिंग्स वगैरह करते हुए मुझे संध्या ने बताया की केदार घाटी में काफी बारिश हो रही है। मैंने उसको सावधानी बरतने को कहा, और जल्दी मिलने का वायदा करके फोन काट दिया। देहरादून के लिए अगले दिन सवेरे की फ्लाइट थी।
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mashish

BHARAT
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रात में सोने से पहले मैंने संध्या का नंबर लगाने की कोशिश करी – कई बार कोशिश किया, लेकिन नम्बर नहीं मिला। फिर उसके पापा और होटल का भी नंबर लगाया.. कहीं भी फ़ोन नहीं लग रहा था। निराश हो कर मैं सोने चला गया – रात भर ठीक से नींद नहीं आई। अजीब अजीब सपने आते रहे, और सवेरे उठने के बाद बुरे बुरे ख़याल आते रहे। उठते ही मैंने फिर से फ़ोन लगाने की कोशिश करी, लेकिन अभी भी फ़ोन नहीं लग रहा था।

ऐसे ही बुरे मूड में मैं दिल्ली विमानपत्तन पहुंचा और वहाँ जा कर मालूम हुआ की केदारनाथ में भीषण बाढ़ आई हुई है। मेरे पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन ही खिसक गई – पेट में जैसे गाँठ पड़ गई! मन अज्ञात आशंकाओं से घिर गया।

मन में अनजाने डर, और ह्रदय में ढेर सारी प्रार्थनाएँ लिए पूरी यात्रा बीती। लेकिन देहरादून विमानपत्तन पर पहुँचते ही सारे के सारे डर हकीकत में बदल गए। वहाँ मैंने टैक्सी करने की कोशिश करी, तो लोगों ने बताया की केदारनाथ में किसी भी ड्राईवर से उनका संपर्क नहीं हो पा रहा है। पूछने पर उसने आगे जाने से मना कर दिया, यह कह कर की ले तो जा सकता है, लेकिन सड़क की क्या हाल है, और बारिश में न जाने क्या क्या हो सकता है कुछ नहीं मालूम! आज का दिन यूँ ही निकल गया – एक एक मिनट.. एक एक पल ऐसा लग रहा है जैसे की एक एक सदी बीत रही हो! बॉस का भी दिन में कई बार कॉल आ चूका – वो संध्या के बारे में पूछते हैं! मैं क्या जवाब दूं! एक बार तो मेरी आंखों में आंसू छलक पड़े! मेरी चुप्पी और खामोश रुदन उन्होंने शायद सुन लिया हो! फ़ोन पर मुझे धाड़स बंधाते हुए उन्होंने कहा की उम्मीद मत छोड़ना, और मेरी हर तरह से मदद करने का आश्वासन किया। मुझे इतना तो मालूम पड़ गया की उन्होंने उत्तराखंड आपदा कंट्रोल रूम और अधिकारियों से संपर्क करने की हर संभव कोशिश की है।

एक दिन।

दो दिन।

तीन दिन।

चार दिन।

हर एक दिन गुजरने के बाद मुझे मेरे परिवार के लौटने की आशा भी धूमिल होती नजर आ रही थी। एक एक पल इंतजार की करना मुश्किल होता जा रहा था। न तो भोजन का कोई कौर गले के अन्दर जा पाता, और न ही हलक से पानी की एक बूँद! न जाने उन लोगों ने कुछ खाया पिया होगा या नहीं, बस यही सोच कर कुछ खाने पीने की हिम्मत भी नहीं पड़ रही थी।

ज्यादातर टैक्सी वाले अब मुझे पहचानने लग गए। मुझे देखते ही वह कहते हैं, “साहब, ऊपर के इलाकों में सड़कें ख़त्म हो चुकी हैं... और गाँव के गाँव साफ़ हो गए हैं। हमारे किसी भी साथी की कोई खोज खबर नहीं है। अब तो बस भगवान्, और सेना का ही सहारा है। आप बस प्रार्थना करिए की आपका परिवार सही सलामत आपको मिल जाय।“

रात में होटल वाले ने जबरदस्ती एक रोटी मुझे खिला दी। दिन भर आपदा कार्यालय के चक्कर लगाता, फ़ोन की घंटी बजने का इत्नाजार करता, और समाचार में मृतकों की बढ़ती हुई संख्या देख कर मन ही मन मनाता की मेरा कोई अपना न हो! इतनी बेबसी मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं महसूस करी। इतनी बेबसी, और इतनी खुदगर्जी!

इस आपदा में हुई और हो रही जान-माल की क्षति का आंकड़ा विकराल रूप से बढ़ता ही जा रहा है! मन में बस अब एक ही ख़याल आता है की अब बस! अब ये गिनती ख़त्म करो भगवान्! इतने दिन हो गए, और किसी से कोई संपर्क ही नहीं हो पाया है!

'काश! ये लोग ठीक हों! ओह संध्या! प्लीज प्लीज! काश! तुम ज़िंदा हो..!'

छठा दिन :

राहत और बचाव कार्य बाधित हो रहा है, क्योंकि घाटी में फिर से तेज बारिश हो रही है, और धुंध छाई हुई है। सेना के हेलिकॉप्टर उड़ान ही नहीं भर पा रहे हैं! खबर आई थी की एक हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया! बचने गए वीर युवक, खुद ही पहाड़ों की भेंट चढ़ गए! एक अफसर से बात हुई, उन्होंने मुझे साफगोई से कह दिया,

“साहब, यह तो एक तरह से 'रेस अगेन्स्ट टाइम' है... मौसम खराब है, हर तरह के जोखिम हैं और अब तो महामारी का खतरा भी पैदा हो गया है... लोग अब बीमारी और भूख–प्यास से मर रहे हैं! कितनी मौतें हुईं, कितने लापता हुए और कितने लोग सुरक्षित निकाले गए - इस पर अब कोई भी बात बेमानी लग रही है, क्योंकि यहाँ कोई समन्वय नज़र नहीं आ रहा है, और न ही कोई एक सूची है। सच्चाई यह भी है कि खुद प्रशासन का कितना नुकसान हुआ है, इसका अंदाजा ठीक-ठीक अभी उन्हें भी नहीं है। इसके शिकार हुए लोगों का पता लगाना ही अपने आप में एक बड़ी चुनौती बन गई है। हज़ारों की तादाद में लोग मदद की आस लगाए बैठे हैं। आप भी उम्मीद न छोडिए.. कुछ भी हो सकता है!”

सातवाँ दिन :

अब तो कोई उम्मीद ही नहीं बची है.. बस यंत्रवत रोज़ रोज़ राहत शिविर के दफ्तर पहुँच जाता हूँ। वहाँ लोगों से कई बार प्रार्थना भी करी है की मुझे भी सेवा का अवसर दें.. लेकिन वहाँ किसी के पास समय नहीं है। कई सारे लोग बचाए भी जा चुके हैं, लेकिन इन लोगों का कोई नामोनिशान ही नहीं है!

‘अरे! फ़ोन बज रहा है..’

कोई अनजाना नंबर था। स्थानीय! दिल धाड़ धाड़ कर के धड़कने लगा।

“हेल्लो?” मैंने बहुत उम्मीद से बोला।

“जीजू..?” यह तो नीलम की आवाज़ थी।

“नीलम?”

“जीजू... हू हू हू..” वो बेचारी रोने लगी!

‘हे भगवान्!’

“नीलू.. तुम ठीक तो हो न?”

“जीजू.. प्लीज आप मुझे ले चलो.. हू हू हू..” रोते हुए उसकी हिचकियाँ बांध गईं।

“हाँ नीलू.. बताओ कहाँ हो? बाकी लोग कैसे हैं?”

उत्तर में नीलम सिर्फ रोती रही।

“साहब, आप फलां फलां जगह पहुँच जाइए.. एक्सट्रैक्शन वही हो रहा है..”

“जी हाँ.. जी.. ठीक है.. मैं आ रहा हूँ..”

“ओह भगवान्! तेरा लाख लाख शुक्र है!”
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Superb update
Su
Superb update superb story
nice update
very nice update
lovely update
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आशीष भाई, बहुत बहुत धन्यवाद! आज पढ़ने के लिए बहुत कुछ था आपके लिए ! :)
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Very good update.

jaan ke acha laga ki rudra ab dhere dhere theek ho gaya.

ek important baat ye hai ke aap bahoot hi ache tarike se kahani ko aage badhate hai. koi jor jubardasti nai hoti or aapke is kahani me sara dhayan bhi sirf sex ke aas - pass nahi rehta. aap har chij ko dhayan se explain karte hai.


verry good. Keep it up.

जावेद भाई - बहुत बहुत धन्यवाद!
यहाँ तो सेक्स लिखना पड़ता है। नहीं तो कोई पढ़ेगा ही नहीं।
अगर लोग open हों, तो पूरी सामाजिक कहानी ही लिखूँ।
अन्य कहानियाँ भी पढ़े और आनंद लें!
 
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avsji

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Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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जावेद भाई - बहुत बहुत धन्यवाद!
यहाँ तो सेक्स लिखना पड़ता है। नहीं तो कोई पढ़ेगा ही नहीं।
अगर लोग open हों, तो पूरी सामाजिक कहानी ही लिखूँ।
अन्य कहानियाँ भी पढ़े और आनंद लें!

भाई हम जैसों के लिए, भावनात्मक कहानियां लिखते रहिए। सेक्स का तड़का ना हो, हमें तो चलेगा।

संयोग से सुहाग का ही उदाहरण है।

अंत में इतना ही _ लगे रहो बहादुरों।

आशु
 
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