पता नहीं क्यों, नीलम इस बार कुछ हिचकिचा गई। जब कुछ देर तक उसने कुछ नहीं किया, तो संध्या ने खुद ही उसका हाथ पकड़ कर खुद ही अपने स्तन पर रख दिया। स्वतः प्रेरणा से उसने धीरे धीरे से चार पांच बार उसके स्तन को दबाया, और फिर अपना मुँह आगे बढ़ा कर उसका एक निप्पल मुंह में लेकर चूसने लगी। मैंने भी संध्या का दूसरा स्तन भोगना आरम्भ कर दिया। उधर संध्या का हाथ मेरे पाजामे के ऊपर से मेरे लिंग पर फिरने लगा – वो तो पहले से ही पूरी तरह से उन्नत था।
कमरे में अभी भी कुछ संभ्रम था - इतना तो तय है की मुझे यह सब कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन अब मुझे और हमको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। इतना तो तय था की संध्या को नीलम के साथ अपनी निजता को बांटना बहुत अच्छा लग रहा था। संध्या के स्तन इस तरह से अनावृत हो जाने से नीलम के मन में एक और चाहत जाग गई – वह बिस्तर से उठी और जा कर एक बत्ती जला आई। पूरी रौशनी से नहाये हुए संध्या के नग्न स्तनों को आज वह खूब करीब से देखना चाहती थी।
“दीदी, तुम कितनी सुन्दर हो!”
संध्या को अपने पेट में एक मीठी सी गुदगुदी जैसी महसूस हुई – यहाँ दो लोग, जिनको वो बहुत प्रेम करती है, और जो उसको बहुत प्रेम करते हैं, एक साथ बैठ कर उसके रूप का इस अन्तरंग तरह से आस्वादन कर रहे हैं। उसने बड़े प्रेम से एक एक हाथ से नीलम और मेरे गले में गलबाहें डालीं, और हमको अपने स्तनों की तरफ खींचा। नीलम उसके निप्पल को मुँह में भर कर चूसने लग गई; मैंने पहले उसके निप्पल के चहुँओर पहले तो मन भर कर चाटा, और फिर इत्मीनान से उसको चूसना आरम्भ किया। कुछ ही मिनटों के स्तनपान के बाद, संध्या का शरीर अचानक ही एक कमानी के जैसे हो गया और वह बिस्तर पर निढाल हो कर गिर गई और हांफने लगी..
“दीदी, क्या हुआ?” नीलम ने चिंता और सहानुभूति से पूछा।
संध्या कुछ बोली नहीं, बस हाँफते हाँफते मुस्कुराई। मुझे मालूम था की क्या हुआ.. इसलिए मैंने मैदान नहीं छोड़ा। मेरा हाथ उसकी कमर को टटोल रहा था। अगले पांच सेकंड में मेरी उंगलियाँ उसकी योनि रस से गीली हो चली चड्ढी के ऊपर से उसकी योनि का मर्दन कर रही थीं। मेरी इस हरकत से उसकी योनि से और ज्यादा रस निकलने लगा।
नीलम को सेक्स का कोई बहुत ज्ञान तो था नहीं – उसको संभवतः बस उतना ही पता था जितना की उसने हमको करते हुए देखा था। और कोई कितनी देर तक सिर्फ स्तनपान कर सकता है? कुछ देर में नीलम थक गई (या बोर हो गई) और संध्या से अलग हो गई। इतनी देर में मेरा लिंग भी अपने निर्धारित कार्य के लिए तैयार हो चला था – नीलम से यह बात छुपी नहीं।
“जीजू, अब आप दीदी के साथ ‘सेक्स’ करिए न?”
किसी के सामने निर्वस्त्र वैसे भी आसान नहीं होता। और यहाँ पर स्थिति थोड़ा भिन्न थी – यहाँ पर एक जिज्ञासु लड़की मुझे अपनी पत्नी के साथ उसके सामने सेक्स करने को कह रही थी। खैर, संध्या को लगभग नग्न देख कर मेरी खुद की अभिज्ञता कुछ कम हो गई थी – लिहाज़ा, मैंने भी अपने कपड़े उतारे, और साथ ही साथ यह आलोकन भी किया की हम तीनों में सिर्फ नीलम ही है जिसने सारे कपड़े पहन रखे हैं।
“नीलू, यह तो बहुत बेढंगा लगता है की हम दोनों के कपड़े उतर रहे हैं, और तुमने सब कुछ पहना हुआ है। तुम भी तो उतारो!”
“जीजू... ये भी क्या पहना है मैंने! सब कुछ तो दिख रहा है!”
मैंने आगे कोई जिद नहीं करी। लेकिन जो कुछ नीलम ने आगे किया, उसको देख कर हम दोनों ही मुस्कुरा उठे। उसने जल्दी से अपनी नाईटी उतार फेंकी और अपने जन्मदिन वाले सूट (अर्थात पूर्णतः नग्न) में हमारे सामने बिस्तर पर बैठ गई। आज पहली बार नीलम का वयस्क रूप मैंने और संध्या ने देखा था। नीलम की छाती पर अब संतरे के आकार के दो स्तन बिलकुल तन कर खड़े हो गए थे, और उसके शरीर पर बहुत ही शोभन लग रहे थे। उसके निप्पल गहरे भूरे रंग के थे, और उनके बगल हलके भूरे रंग का कोई डेढ़ इंच व्यास का areola विकसित हो गया था।
“अब करिए..?” नीलम कितनी उतावली हो रही थी हमको सेक्स करते देखने के लिए!
मेरे मन में द्वंद्व छिड़ गया - क्या यह ठीक होगा? कहीं इसके दिमाग पर बुरा असर न पड़े! बुरा असर क्यों होगा? आखिर यह शिक्षा तो सभी को चाहिए ही न! ऐसी कोई छोटी भी तो नहीं है! जल्दी ही इसकी शादी भी इसके परिवार वाले ढूँढने लग जायेंगे! उसके पहले इसको सेक्स के बारे में मालूम हो जाय तो अच्छा है।
अब कहानी आगे बढ़ने से पहले एक सवाल का जवाब आप ही लोग दीजिए : अगर कोई सुन्दर सी लड़की अगर इस तरह अन्तरंग तरीके से आपके सामने निर्वस्त्र हो जाय, तो उसका कुछ तो आदर होना चाहिए की नहीं? मैंने आगे बढ़ कर उसके दोनों चूचुकों पर एक एक चुम्बन ले लिया। नीलम सिहर उठी। मुझे मालूम था की संध्या नीचे लेटी हुई है.. लेकिन नीलम को कुछ तो यादगार व्यक्तिगत अनुभव होना ही चाहिए! मैंने नीलम की कमर पकड़ कर अपनी तरफ खींचा, और फिर इत्मीनान से उसके स्तनों को बारी बारी से अपने मुंह में भर कर चूसने लगा। कमरे में नीलम की हाय तौबा गूंजने लगी। उसको नज़रंदाज़ कर के मैं साथ ही साथ उसके दोनों नितम्बों को मसल भी रहा था।
“जीजू... बस्स्स्स! आह! म्म्मेरे साथ.. न्न्न्हीं.. दी..दी.. के साथ..” वो उन्माद में न जाने क्या क्या बड़बड़ा रही थी। लेकिन मैंने बिना रुके तबियत से उसके स्तनों को कोई दस मिनट तक चूमा और चूसा। उत्तेजनावश उसके स्तन इस समय साइज़ में कोई बड़े लग रहे थे, और और दोनों चूचक वैसे तन कर खड़े हो गए जैसे रबर-वाली पेंसिल के रबर! एकदम सावधान! खैर अंततः मैंने नीलम को छोड़ा – वो बुरी तरह से हांफ रही थी। दोनों निप्पल इस कदर चूसे जाने से लाल हो गए थे, और उसके शरीर पर, ख़ास तौर पर स्तनों, पेट और नितम्बों पर लाल निशान पड़ गए थे।
“हैप्पी बर्थडे!” मैंने मुस्कुराते हुए बस इतना ही कहा। नीलम उत्तर में शर्मा गई।
“ह्म्म्म... तो जीजा और साली आपस में ही बर्थडे बर्थडे खेले ले रहे हैं? अपनी दीदी को ट्रीट नहीं दोगी?” संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा।
“ट्रीट?”
संध्या भी लगता है अपने स्तन पिए जाने का हिसाब बराबर करना चाहती थी। वह उठ कर अपना हाथ नीलम के स्तनों पर रख कर उनको धीरे धीरे सहलाने लगी। नीलम के स्तन छोटे छोटे तो थे, लेकिन संध्या के स्तनों जैसे प्यारे से थे। नीलम की सिसकियाँ निकल पड़ीं। संध्या को अभी ठीक से आईडिया नहीं था – उसने नीलम के एक निप्पल को जोश में आकर कुछ ज्यादा ही जोर से मसल दिया।
नीलम: “सीईईई... क्या कर रही हो दीदी! आराम से करो न! जीजू ने वैसे ही मेरी जान निकाल दी है।”
संध्या यह इशारा पा कर अब खुल कर नीलम के स्तनों से खेलने लग गई। कुछ तो मेरे सिखाई विद्या, और कुछ उसकी खुद की जिज्ञासा... कभी नीलम के प्रोत्साहन से संध्या भी स्तन-रस-पान करने लगी। नीलम के चूचुक को प्यार से रगड़ने के बाद उसके स्तनों को चूसना शुरू कर दिया, तो वो एकदम गरम हो गई थी। मैं क्या करता? मैंने संध्या के पेट और नाभि के आस पास चूमना और चाटना शुरू कर दिया। कमरे में नग्न पड़े तीन जिस्म अब सुलग उठे थे। कुछ ही पलों के बाद नीलम अपने जीवन की प्रथम रति-निष्पत्ति का अनुभव कर के गहरी गहरी साँसे भरने लगी। उसकी योनि के स्राव से निकलती नमकीन सी खुशबू हम दोनों ने महसूस करी। नीलम इन सबसे बेखबर, अपनी आँखें बंद किये मानो जैसे सपनो की दुनिया में खोई हुई थी - उसकी साँसे तेजी से चल रही थीं, और होंठ कांप रहे थे। वो अभी अभी अनुभव किये नए आनंद के सागर के तल तक गोते लगा रही थी।
“वैरी हैप्पी बर्थडे नीलू!” कहते हुए संध्या ने नीलम को होंठों पर चूम लिया, और आगे कहा, “... कैसा लगा?”
“आअह्ह्ह्ह दीदी! एकदम अनोखा!” नीलम ने गहरी सांस भरी। “... अब आप लोग करो न प्लीज!”
हम लोग तो तैयार थे – बस दर्शक (नीलम) के रेडी होने की बात जोह रहे थे। संध्या के हरी झंडी दिखाते ही मैंने उसको छेड़ना शुरू कर दिया। गर्भधारण करने से स्त्रियों के शरीर में कई सारे परिवर्तन होने लगते हैं। उनमें से एक है - एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन रसायनों के स्तर में वृद्धि! ये दोनों रसायन स्त्रियों के शरीर को कुछ इस तरह से बदल देते हैं की उनमें गर्भावस्था के दौरान कामेच्छा काफी बढ़ जाती है। इनके कारण गर्भाशय में रक्त का प्रवाह और प्राकृतिक चिकनाई बढ़ जाती है, और स्तनों और निपल्स में संवेदनशीलता भी बढ़ जाती है। कहना गलत न होगा, की बहुत सी स्त्रियाँ (जिनका स्वास्थ्य इत्यादि ठीक हो) गर्भधारण के उपरान्त यौन संसर्ग का और अधिक आनंद उठाती हैं! लिहाजा, संध्या जो पहले से ही रति का अवतार है, अब और भी कामुक हो गई थी।
संध्या : “उफ़.. आप क्या कर रहे हैं?”
मैं : “अरे भई! मौके का सही फायदा उठा रहा हूँ। तुम्हारी बहन के लिए अच्छा सा गिफ्ट ला रहा हूँ...”
कहते हुए मैंने संध्या को टांगों से खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया, और उसके स्तन दबाने लगा। संध्या ने अपनी आंखें बंद कर रखी थी। वैसे भी उसके स्तन उत्तेजनावश पहले ही सख्त हो चुके थे।
संध्या बोली, “हाय! क्या करते हो? आराम से! आपका हाथ बहुत कड़क पड़ता है! ‘ये’ बहुत सेंसिटिव हो गए हैं अब! पहले ही तुम दोनों ने चूस चूस कर इनका हाल बुरा कर दिया है.. अब बस...”
मैंने कहा, “अरे! लेकिन ये सब नहीं करूंगा तो नीलम क्या सीखेगी?” कह कर मैं फिर उसके स्तनों का मर्दन करने लगा।
संध्या बोली, “प्लीज़ जानू ! दर्द होता है! अब आप सीधा मेन काम करिए.. मैं पूरी तरह से तैयार हूँ..”
तैयार तो थी! मैंने संध्या को अपनी बाँहो में भर लिया, और उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। कुछ देर तक ऐसे ही उसके पूरे शरीर को चूमा। अब संध्या पूरी तरह से तैयार थी। उसके लिए ये फोरप्ले कुछ ज्यादा ही हो गया था।
मैं उसके पेट पर हाथ फिराते हुए उसकी चड्ढी के अन्दर ले गया। उसकी योनि उत्तेजनावश जैसे पाव रोटी की तरह सूजी हुई थी। मैंने चड्ढी के अन्दर से उसकी योनि को सहलाने लगा। संध्या ने अपनी आंखें बंद कर लीं। कुछ देर ऐसे ही छेड़खानी करने के बाद मैंने उसकी चड्ढी भी उतार दी और अपनी तर्जनी और अंगूठे की मदद से उसकी योनि के होंठों को खोलने और बन्द करने लगा, और साथ ही साथ उसके भगशिश्न को भी छेड़ने लगा। संध्या के मुँह से कामुक कराहें निकलने लगी, और वो मस्त होकर मेरे लिंग को अपने हाथ में पकड़ कर दबाने और सहलाने लगी।
“बोलो संध्या रानी! चुदने का मन हो रहा है या नहीं?”
“छी! जानू.. आप बहुत गंदे हो!”
“अरे बोल न! ऐसे क्यों शर्मा रही है? बोल न... चुदने का मन हो रहा है?” संध्या समझ गई की बिना ‘डर्टी-टॉक’ किये मैं कुछ नहीं करूंगा.. इसलिए उसने पीछा छुडाने के लिए कहा,
“हाँ जानू.. बहुत मन हो रहा है।“
अब आप लोग ही सोचिए – एक लड़की पूरी तरह से नंगी दो लोगों के सामने भोगे जाने हेतु पड़ी हुई है, लेकिन फिर भी माकूल या मुनासिब व्यवहार नहीं छोड़ रही है! भारतीय लड़कियाँ वाकई कमाल होती हैं। मुझे मालूम था की इससे अधिक वो और कुछ नहीं कहेगी। मैंने संध्या को सावधानी पूर्वक बिस्तर पर वापस लिटाया और अपने लिंग को उसकी योनि की दरार पर कई बार फिरा कर गीला कर लिया। उसकी योनि से कामरस मानों बह रहा था। जब वो अच्छी तरह से गीला हो गया, तब मैंने अपने लिंग को पकड़ कर उसकी योनि के भीतर धीरे से ठेल दिया। मेरे लिंग का सुपाड़ा उसकी योनि में भीतर तक घुस गया – इतनी चिकनाई थी अन्दर। संध्या के मुँह से आह निकल पड़ी।
आगे हम एक दूसरे को चूमते हुए वही पुरानी आदि-कालीन क्रिया करने लगे। पहले धीरे धीरे और फिर बाद में तेजी से मैं अपने लिंग को संध्या की योनि के अन्दर-बाहर करने लगा। कुछ देर बाद संध्या ने अपनी टांगें ऊपर की तरफ मोड़ ली और मेरी कमर के दोनों तरफ लपेट ली। अब मेरा लिंग संध्या की योनि में तेजी से अन्दर-बाहर हो रहा था – इस गति में आयाम कम, लेकिन आवृत्ति बहुत ही अधिक थी। मैं अब तेज-तेज धक्के मार रहा था। काम का नशा अब हमारे सर चढ़ गया था। संध्या भी आनंद लेते हुए मेरे हर धक्के का स्वाद ले रही थी।
संध्या ने मेरे नितम्बों को अपने हाथों में थाम रखा था और उनको पकड़े हुए ही वो भी नीचे से मेरे धक्कों के साथ-साथ अपने नितम्ब की ताल दे रही थी। योनि सुरंग में पहले से ही काम-रस की बाढ़ आई हुई थी, और इतने मर्दन के बाद अब मेरा लिंग बिना रुके हुए आराम से अन्दर बाहर फिसल रहा था। इस सम्भोग का आनंद संध्या महसूस करके, और नीलम अवलोकन करके ले रहे थे। इस नए परिवेश में मैंने भी संध्या को किसी पागल की भांति भोग रहा था।
मैंने पूछा, “जानेमन, अच्छा लग रहा है?”
संध्या बोली, “हमेशा ही लगता है! आपका लंड इतना तगड़ा है, और आपके चुदाई का तरीका इतना शानदार! बहुत अच्छा लग रहा है। बस आप तेज-तेज करते रहो।”
गन्दी बात! वाह! उसके मुंह से यह बात सुन कर मैंने अपनी रफ्तार और बढ़ा दी। मैं वाकई उसको ‘चोदने’ लग गया। मेरा लिंग सटासट उसकी योनि में तेजी से अन्दर बाहर हो रहा था। संध्या मस्ती में ‘आअह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह’ करती रही। कोई पांच मिनट चले इस घमासान के बीच अचानक ही संध्या ने मुझे कस कर अपनी बाँहो में भर लिया। मैं समझ गया की इसका काम तो हो गया। और अगले ही पल उसने एक जोर से आह भरी और आखिरी बार अपने नितम्ब को मेरे लिंग पर ठेला, और फिर बिस्तर पर अपने पैर पसार कर ढेर हो गई। मैंने भी जल्दी जल्दी धक्के लगाए और आखिरी क्षण में लिंग को उसकी योनि से बाहर निकाल कर उसके पेट पर अपनी वीर्य की कई सारी धाराएँ छोड़ दीं।
फिर मैं गहरी साँसे भरता हुआ संध्या के बगल लेट गया और कुछ देर तक सांसों को संयत करता रहा। संध्या भी मेरे बगल अपनी आँखें बंद करके लेटी हुई थी। इस पूरे वाकए को नीलम खामोशी से (और विस्मय के साथ भी) देखती रही। मैंने उसकी तरफ मुखातिब हो कर कहा,
“नीलू, ज़रा क्लोसेट से मेरी एक रूमाल निकाल कर देना तो!”
वो तो जैसे किसी सम्मोहन से जागी। फिर मेरी अलमारी से उसने एक रूमाल निकाल कर मुझे सौंप दिया। मैंने रूमाल से संध्या के पेट पर गिरा वीर्य और अपना लिंग साफ़ किया और उठ कर बाथरूम के अन्दर फेंक दिया। वापस आकर मैं फिर से उसकी बगल में लेट गया, और उसके स्तनों पर हाथ फेरने लगा।
संध्या : “हो गई तुम्हारे मन की?” यह प्रश्न नीलम के लिए था।
नीलम ने कुछ नहीं कहा।
“बोल न? गिफ्ट कैसा लगा?”
“दीदी! मैं नहीं करूंगी यह सब कभी भी..” नीलम ने रुआंसी आवाज़ में कहा, “... बाप रे! मैं तो मर जाऊंगी!”
“नीलू बेटा!” मैंने कहा, “जब तुम्हारे हस्बैंड का लंड तुम्हारे अन्दर जाएगा न, तब तुम यह कहना भूल जाओगी!”
कह कर मैंने संध्या को अपनी बाँहो में भर लिया, और कुछ देर तक ऐसे ही नीलम को समझाते रहे। फिर संध्या ने कहा, “मैं तो थक गई हूँ... चलो अब सो जाते हैं!” और कह कर अगले कुछ ही पलों में वो सो गई। नीलम भी संध्या के बगल चुपचाप पड़ी रही। मैं कब सोया कुछ याद नहीं।