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Romance कायाकल्प [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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प्रिय avsji , यार एक बात बताओ। तुम्हारी सारी कहानियों में सुहागरात का जिक्र है लेकिन हर घटना अपने में अलग है।

इतनी रोचकता और शब्दों की कलाकारी कहां से लाते हो?

क्या अंजली की संगति का असर है ?

😁😆😆😁

शानदार अपडेट।
आशु

आशु भाई - अलग अलग सुहागरात का अनुभव भी तो अलग अलग ही होगा।
लेकिन हाँ - बात आपने सही कही। मेरी हर कहानी में सुहागरात का वर्णन तो है :D

और रही शब्दों की बात, तो उसमे कलात्मकता तो थोड़ा सोचने से निकल ही आती है।
भाषाएँ तो वैसे भी जादूगरी ही तो हैं :)
 

mashish

BHARAT
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खैर, अंततः मैं ‘हमारे’ कमरे में दाखिल हुआ। हमारा कमरा भानु, नीलम की दो अन्य सहेलियों – अनन्या और ऋतु, और श्रीमति देवरामनी के निर्देशन में सजाया गया था। कमरा क्या, एक तरह का पुष्प कुटीर लग रहा था! हर तरफ बस फूल ही फूल! दरवाज़ा खुलते ही पुष्पों की प्राकृतिक महक से मन हल्का हो गया। मन में जो सब अपराध बोध सा हो रहा था, अब जाता रहा। फर्श पर फूल, दीवारों पर फूल, बिस्तर पर फूल, खिडकियों पर फूल! पुष्पों की ऐसी बर्बादी देख कर मुझे थोड़ा निराशा तो हुई, लेकिन अच्छा भी लगा। गुलाब, गेंदे, रजनीगंधा, रात रानी और चंपा के पुष्प! मादक सुगंध! बिस्तर के बगल रखी नाईट टेबल पर पानी की बोतल और मिठाई का डब्बा रखा हुआ था। बिस्तर पर नीलम बैठी हुई थी, और अपनी सहेलियों के साथ गुप चुप बातें कर रही थीं!

मुझे देखते ही भानु चहकते हुए बोली, “जीजू मेरे, आइये आइये! आपका खज़ाना आपके इंतज़ार में कब से व्याकुल है!”

फिर मेरे एकदम पास आ कर मेरे कान में फुसफुसाते हुए बोली, “ज़रा सम्हाल के चोदियेगा! बेचारी की चूत एकदम कोरी है!”

भानु को ऐसे नंगेपन औए बेशर्मी से बात करते देख कर मुझे हल्का सा गुस्सा आया। कैसी कैसी लड़कियों से दोस्ती है नीलम की?

“तुझे इतनी फिकर है तो आ, पहले तुझे ही निबटा दूं?”

लेकिन मुझे उसकी बेशर्मी का ज्ञान नहीं था। मेरी बात सुनते ही वो तपाक से बोली, “आय हाय जीजा जी, आपकी बीवी बिस्तर पर बैठी है, और आप उसकी सहेली की मारना चाहते हैं! वैरी बैड!! पहले उसकी सील तो खोल दीजिए... जब आप बाहर निकलेंगे, तो मैं भी ‘खोल’ कर रखूंगी! ही ही ही!”

भानु की गन्दी बातों से मूड ऑफ हो गया!

“कैसी बेहया लड़की है तू?”

“जीजू! आपकी साली हूँ! हमारे रिश्ते में छेड़खानी करने का बनता है न?” मेरी डांट के डर से उसका चहकना कुछ कम तो हुआ। मुझे भी लगा की आज के दिन किसी को डांटना नहीं चाहिए।

“सॉरी!” मैं बस इतना ही कह पाया।

“सॉरी से काम नहीं चलेगा! नीलम की हम सब रखवाली हैं.. रोकड़ा निकालिए, रोकड़ा... तब अन्दर जाने को मिलेगा! ऐसा थोड़े ही है की कोर्ट में शादी कर लोगे, तो हमको हमारी नेग नहीं मिलेगी! क्यों लड़कियों?”

अन्दर से सभी लड़कियों ने एक स्वर में भानु की इस बात का समर्थन किया। मैंने कुछ देर तक उन सबको छेड़ा और विरोध किया – लेकिन फिर उन तीनो को हज़ार हज़ार रुपए पकड़ाए और,

“चल .. दफा हो!” कह कर मैंने उनको कमरे से बाहर निकाल दिया।

"हाँ हाँ! जाइए जाइए.. अपने कबाब को खाइए.. हमारी क्या वैल्यू!!" कह कर वो ठुनकते हुए बाहर चली गई। बाकी दोनों भी उसके पीछे पीछे मुस्कुराते हुए हो ली। मैं कुछ करता, उसके पहले ही मेरे पीछे उन दोनों में से किसी ने दरवाज़ा बंद कर लिया। मैं धीरे धीरे चलते हुआ जब बिस्तर के निकट, नीलम के पास पहुंचा, तो उसने बिस्तर से उठ कर मेरे पैर छूने की कोशिश करी। मैंने उसको कंधे से पकड़ कर रोक लिया,

“नीलू, हम दोनों पति पत्नी हैं – मतलब दोनों बराबर हैं!”

“लेकिन आप तो मुझसे बड़े हैं न...”

“शादी में दोनों बराबर होते हैं!”

“लेकिन आप तो..”

“अगर तुम मुझसे बड़ी होती, तो क्या मुझे भी तुम्हारे पैर छूने पड़ते?”

उसने तुरंत न में सर हिलाया।

“इसी लिए कह रहा हूँ, कि हम दोनों बराबर हैं! तुम्हारी जगह मेरे दिल में है! आओ इधर..”

कह कर मैंने उसको अपने गले से लगा लिया। उसको इस तरह से गले से लगाने से मुझे पहली बार उसके स्तनों का आभास हुआ – कैसे ठोस गोलार्द्ध! अचानक ही मन की इच्छाएँ जागृत हो गईं!

मैंने उसको वापस बिस्तर पर बैठाया, और उसके पास ही बैठ गया।

“देखने दो मेरी छोटी सी दुल्हनिया को!”

मेरी बात पर नीलम मुस्कुराई।

सचमुच नीलम बेहद सुन्दर लग रही थी। साधारण सा मेकअप किया गया था – लेकिन उसका परिणाम जबरदस्त था! उसकी सुन्दर लाल रंग की, बूते लगी लहंगा चोली, माथे पर बेंदी, नाक में नथ, कानो में मैचिंग बालियाँ, और गले में स्वर्ण-माला! माथे पर छोटी सी लाल रंग की बिंदी, और होंठों पर उसी रंग की लाली! कुल मिला कर एक बहुत की सुन्दर कन्या! उसके कजरारे बड़े बड़े नयन! और मुस्कुराता हुआ चेहरा.. जैसा मैंने पहले भी कहा है, भारतीय दुल्हनें, साक्षात रति का रूप होती हैं! न जाने कैसे मुझे ऐसी दो दो रतियों का साथ मिला! ऐसी लड़की पर तो स्वयं कामदेव का भी दिल आ जाय!!

उसका एक हाथ देख कर मैंने कहा,

“अरे वाह! ये मेहंदी तो बहुत सुन्दर रची है...”

“आपको अच्छी लगी?”

“बहुत!” कह कर मैंने कुछ देर ध्यान से उसकी मेहंदी की डिज़ाइन देखी... जैसे की अक्सर होता है, दुल्हनो की मेहंदी में पति का नाम भी लिखते हैं.. कुछ देर की मशक्कत के बाद मुझे अपना नाम लिखा हुआ दिख गया!

“अरे वाह! यहाँ तो मेरा नाम भी लिखा हुआ है!”

नीलम हौले से मुस्कुराई।

“और भी कहीं लगवाई है मेहंदी?”

“हाँ! पांव पर भी..” कह कर उसने अपना पांव आगे बढ़ाया। पांव और आधी टांग पर मेहंदी सजी हुई थी। कुछ देर वहां की डिज़ाइन का निरीक्षण करने के बाद मुझे लगा कि अब चांस लेना चाहिए।

“यहाँ नहीं लगवाया?” मैंने उसके स्तनों की तरफ इशारा किया। पति पत्नी के बीच तो ऐसे न जाने कितने ही अनगिनत छेड़खानियाँ होती हैं, लेकिन मुझे ऐसे बोलते हुए कुछ अप्राकृतिक सा लगा।

मेरी बात पर नीलम बुरी तरह शर्मा गई, और न में सर हिलाया।

“ऐसे कैसे मान लूं? आओ.. देखूं तो ज़रा..” कह कर मैंने उसके सर से चुनरी अलग कर दी। चोली के कोमल कपडे से ढके उसके युवा स्तनों का आकार दिखने लगा।

“यह ब्लाउज का कपड़ा बहुत कोमल है.. लेकिन, यहाँ (उसके स्तनों की तरफ इशारा करते हुए) से अधिक यह यहाँ (बिस्तर के किनारे की तरफ इशारा करते हुए) ज्यादा अच्छा लगेगा!”

वो शर्म से मुस्कुराई।

“आपको एक बात मालूम है?” उसने अचानक ही कहा।

“क्या?”

“ब्लाउज उतारने से पहले, बीवी को कुछ पहनाना भी होता है?”

अरे हाँ! वो मुँह-दिखाई की रस्में! कैसे भूल गया! मुझे तो एक्सपीरियंस भी है!

“ओह हाँ! याद आया.. एक मिनट!”

कह कर मैं उठा, और अलमारी की तरफ जा कर, सेफ के अन्दर से एक जड़ाऊ हीरों का हार निकाला। यह हार ऐसा बना हुआ था जैसे की दो मोर पक्षी अपनी गर्दनों से आपस में छू रहे थे, और उनके पंख विपरीत दिशा में दूर तक फैले हुए थे। मोर के ही रंग की मीनाकारी की गई थी। यह मैंने स्पेशल आर्डर दे कर नीलम के लिए बनवाया था। मेरे हिसाब से एक नायाब उपहार था। उम्मीद थी, की उसको यह ज़रूर पसंद आएगा।

मैं मुस्कुराते हुए नीलम के पास आया, और उसके सामने एकदम नाटकीय तरीके से वो हार प्रस्तुत किया,

“टेन टेना!”

उसको देख कर नीलम की आँखें विस्मय से फ़ैल गईं।

“ये क्या है?? बाप रे!”

“ये है.. आपको पहनाने के लिए.. पहना दूं?”

“ल्ल्लेकिन.. मेरा ये मतलब नहीं था...”

“मतलब? मैं समझा नहीं..”

“आपने अभी तक सिन्दूर नहीं डाला! और मंगलसूत्र...” उसकी आँखें कुछ नम सी हो गईं।

हे देव! ये तो गुनाहे अज़ीम हो गया मुझसे! एकदम से मेरी भी बोलती बंद हो गई। मैंने जल्दी से इधर उधर देखा – सिन्दूर दान तो बगल टेबल पर दिख गया। मैंने उसको उठाया। वो सौ ग्राम का डब्बा कितना भारी प्रतीत हो रहा था उस समय, मैं यह बयां नहीं कर सकता। कोर्ट में एक दूसरे को वरमाला पहनाना, और यहाँ पर उसकी मांग में सिन्दूर डालना – दो बिलकुल भिन्न बातें थीं। नीलम की मांग को भरते समय मुझे अचानक ही नई जिम्मेदारी का भान होने लगा। ऐसा नहीं की कोर्ट की शादी का कोई कम मायने है.. लेकिन सिन्दूर जैसी परम्पराएँ बहुत गंभीर होती हैं। मैंने देखा की नीलम के होंठ भावनाओं के आवेश में कांप रहे थे।

“मंगल...” उसने इशारा कर के टेबल की दराज खोलने को कहा। बात पूरी नहीं निकली। लेकिन मैं समझ गया।

मैंने दराज खिसकाई तो उसमें छोटे छोटे काले मोतियों से सजा सोने का मंगलसूत्र दिखा। सच कहूं, यह मेरे लाये गए हार से कहीं अधिक सुन्दर था। सरल, सादी चीज़ों का अपना अलग ही आकर्षण होता है। मेरे खुद के हाथ अब तक हलके से कांपने लग गए थे। मैंने नीलम को मंगलसूत्र भी पहना दिया – हाँ, अब हो गई वो पूरी तरह से मेरी पत्नी!

“अब आपको जो मन करे, उतार लीजिए!” उसने आँखें नीची किये हुआ कहा।

मुझे यकीन नहीं हुआ जब उसने ऐसा कहा।

“सच में?”

अब वो बेचारी क्या कहती? मैं भी क्या ही करता? ऐसी सुन्दर, अप्सरा जैसी पत्नी अगर मिल जाय, तो कोई कैसे खुद पर काबू रखे? इतना तो समझ आ रहा था कि उसकी चोली पीछे से खुलेगी। लेकिन मैं अपना नाटक कुछ देर और करना चाहता था। और मैंने बटन ढूँढने के बहाने उसकी चोली के सामने की तरफ कुछ देर तक पकड़म पकड़ाई करी। वैसे, नीलम को इस प्रकार से छेड़ने में मुझे अभी भी सहजता नहीं आई!! फरहत के साथ तो आराम से हो गया था.... फिर अभी क्यों..?
superb update
 
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mashish

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उधर, नीलम की हालत देख कर लग रहा था की उसका इतने में ही दम निकल जाएगा। उसने न जाने कैसे कहा,

“प प प्प्पीछे से...”

हाँ! पीछे से ही डोरी खुलनी थी। चोली की डोर पीछे से चोलने के दो तरीके हैं – या तो लड़की की पीठ को अपने सामने कर दो, या फिर लड़की के सामने से चिपका कर! मैंने दूसरा रास्ता ठीक समझा, और नीलम से चिपक कर उसकी चोली की डोर खोलने का उपक्रम शुरू किया। दो गांठें खोलने में कितना ही समय लगता है? झट-पट नीलम की पीठ नंगी हो गई। लेकिन मैंने आगे जो किया, उससे नीलम भी आश्चर्यचकित हो गई होगी – मैं पहले ही उससे चिपका हुआ था, और फिर उसी अवस्था में मैंने नीलम को जोर से अपने सीने से लगाया। ऐसा करते ही अचानक ही मेरे अन्दर प्रेम की भावना बलवती हो गई – मैंने कहा प्रेम की, न की भोग की! मैंने नीलम को दिल से धन्यवाद किया – हर काम के लिए, जो उसने मेरे लिए किया था।

मैंने उससे यह भी कहा कि यह सब मेरे लिए बहुत नया था। न केवल वो मुझसे काफी छोटी थी, बल्कि मेरे मन में उसकी जो तस्वीर थी, वो अभी भी एक छोटी लड़की के जैसे ही थी। नीलम संभवतः कुछ प्रतिवाद करना चाहती थी, लेकिन जब मैंने कहा कि अगर वो मुझे कुछ समय दे, और कुछ धैर्य से काम ले तो वो संयत हो गई – कुछ निराश सी, लेकिन संयत। मुझे साफ़ लग रहा था की वो कुछ निराश तो है। इसलिए मैंने उससे कहा,

“नीलू, प्लीज तुम बुरा मत मानो! न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है जैसे संध्या अभी यहाँ दरवाज़े पर आ खड़ी होगी। न जाने क्यों ऐसा लग रहा है जैसे हम दोनों उसकी पीठ पीछे चोरी कर रहे हैं..”

नीलम को मेरी बात और मेरी चिंता का सबब समझ में आ गया। उसने कहा,

“आपको ऐसा क्यों लग रहा है? ... मेरी तरफ देखिए... मुझे भी आज दिन में कोर्ट में ऐसे ही लग रहा था .. जैसे माँ, पापा और दीदी हमको वहां ऊपर से देख रहे हों! लेकिन, मुझे ऐसे नहीं लगा की वो हमारी शादी पर बुरा मानेंगे! हम दोनों ने एक दूसरे से शादी करी है। चोरी नहीं! दीदी के जाने के बाद आपने जो दुःख झेले हैं, वो मुझसे छुपे हैं क्या? मुझे यकीन है, की दीदी का, और माँ पापा का आशीर्वाद हमको ज़रूर मिलेगा!”

कह कर उसने मुझे जोर से अपने गले से लगा लिया।

कुछ देर मुझसे ऐसे ही चिपके रहने के बाद, मुझे पकडे हुए ही उसने कहा,

“आप मुझे किस नहीं करेंगे?”

ओह भगवान! क्यों नहीं! मैंने नीलम की नथ उतारी, और फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रखे - नीलम के होंठ बहुत ही नरम थे, और सच मानिए, गुलाब के फूल की तरह ही महक रहे थे। मैंने उसके होंठों पर एक एक एक एक कर के कई सारे चुम्बन जड़ दिए, और फिर उनको चूसना भी शुरू किया। कुछ ही देर में उसके होंठों की लाली, मेरे होंठों पर भी लग गई। नीलम तो बिलकुल अनाड़ी थी, लेकिन अपनी तरफ से कोशिश कर रही थी। उसके चुम्बन पर मुझे बहुत आनंद आ रहा था। कुछ ही देर में हमारा चुम्बन, एक आत्म-चुम्बन (या फ्रेंच किस कह लीजिए) में तब्दील हो गया – हमारी जिह्वाएं आपस में मल्ल-युद्ध लड़ने लगीं। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था – और मूड भी बनने लगा था।

मैंने चोली के ऊपर से ही अपने हाथ को उसके सीने पर फिराया, और फिर उसके एक स्तन को पकड़ कर दबाने लगा। उसका चूचक पहले से ही मुस्तैद खड़ा हुआ था। याद रहे, मैंने नीलम की चोली उतारी नहीं थी, बस, उसकी पीछे की दोनों डोरियाँ खोल दी थीं – इससे चोली के सामने के कप ढीले हो गए थे। एक तरह से नीलम के स्तन अब स्वतंत्र हो गए थे।

मैंने कुछ देर के लिए नीलम को चूमना छोड़ा, और कहा,

“बिल्वस्तनी, कोमलिता, सुशीला, सुगंध युक्ता ललिता च गौरी...
ना श्लेषिता येन च कण्ठदेशे, वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम्।“

कुछ क्षणों तक नीलम ने मुझे कौतूहल भरी दृष्टि से देखा – उसको कुछ समझ नहीं आया।

उसने कहा, “अब इसका मतलब भी बता दीजिए?”

“हा हा! देवलोक की अप्सरा रम्भा के बारे में तो सुना ही होगा?”

नीलम ने मुस्कुराते हुए हर हिलाया।

“तो रम्भा, और शुकदेव, महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे.. एक बार की बात है... दोनों के बीच एक लम्भी चौड़ी बहस होने लगी की किसके जीवन का तरीका श्रेष्ठ है। दोनों ही अपने तरीके को श्रेष्ठ, और दूसरे के जीवन को व्यर्थ बता रहे थे! रम्भा, क्योंकि अप्सरा है, इसलिए कहती है की भोग के बगैर जीवन व्यर्थ है! शुकदेव कहते हैं कि योग और वैराग्य बिना जीवन व्यर्थ है! एक वैरागी क्या जाने नारी के सान्निध्य का बल? वो काफी देर तक कुतर्क तो करते हैं, लेकिन रम्भा के तर्क कहीं भारी पड़ते हैं। वो कहती है, की नारी के सहयोग के बिना कुछ भी संभव नहीं है! समस्त तपों का आधार स्वयं नारी ही है। विवाद का हल तो कुछ निकला नहीं, लेकिन अंत में शुकदेव नारी को पत्नी के रूप में रखने की अनुमति दे देते हैं!”

“इंटरेस्टिंग! .. लेकिन उसका – जो आपने कहा – का मतलब क्या था?”

“हां! वो तो बताना ही भूल गया – रम्भा कहती है की बेल के फलों के समान कठोर स्तनों वाली, लेकिन अत्यंत कोमल शरीर वाली, सुशील स्वभाव वाली, महकते केशों वाली, और जिसको देखने से लालच आ जाय – ऐसी सुन्दर स्त्री का जिसने आलिंगन नहीं किया, उसका जीवन तो बिलकुल बेकार है!”

नीलम शर्माते हुए मुस्कुराई,

“तो..? आपका जीवन बेकार है, या...”

“ये तो इन बेलों की कठोरता पर डिपेंड करता है.. है न?” मैंने आँख मारते हुए कहा, “जाँचा जाए?”

उसने कोई उत्तर नहीं दिया, तो मैंने चोली के ऊपर से ही उसके दोनों स्तनों को थाम लिया। नीलम की स्वतः प्रतिक्रिया पीछे हटने की थी, लेकिन उसने स्वयं को रोका। लेकिन, आज पहली बार मेरे हाथों के स्पर्श को अपने स्तनों पर महसूस करके उसको भी अच्छा लग रहा था। मैंने मन ही मन उसके और संध्या के स्तनों की तुलना करी – नीलम के स्तन संध्या के स्तनों से बस कुछ ही बड़े थे। छूने से समझ आया कि वाकई दोनों एकदम गोल और ठोस थे! मन तो उसके स्तनों की बनावट, तापमान और छुवन को अपने हाथों में महसूस करने का था, इसलिए कपड़े के ऊपर से मज़ा कम आ रहा था।

“नीलू, ये तो बढ़िया साइज़ के हो गए हैं!”

“आपको पसंद आये?” उसने धीमे से, शर्माते हुए पूछा।

“बहुत ज्यादा! अब खोल के दिखा दो न?”

“मैंने आपको कब रोका? मेरा सब कुछ आपका है..”

उसका इशारा पा कर मैंने उसकी चोली के सिरे को दोनों कंधे से पकड़ कर सामने की तरफ खींचा – स्तन तुरंत स्वतंत्र हो गए! जैसा सोचा था, ये दोनों वो उससे भी कई कई गुना सुन्दर निकले! बिलकुल युवा, गोल और ठोस स्तन – गुरुत्व के प्रभाव से पूरी तरह अछूते! गोरे गोरे चिकने गोलार्द्ध।

आपने कभी लाल गुड़हल की कली देखी है? खिले से कोई दो घंटा पहले वो कली एक इंच के आस पास लम्बी होती है, और बेलनाकार होती है। इसी समय कली के बीच में से योनि-छत्र (पुष्प का मादा भाग) निकल रहा होता है। ठीक इसी प्रकार के चूचक थे मेरी नीलू के! उत्तेजनावश कोई पौना इंच तक लम्बे हो गए थे। उनका रंग लाल-भूरा था – संध्या के समान ही! अरेओला और चूचक के रंग में कोई ख़ास फर्क नहीं था। अरेओला पर छोटे छोटे दाने जैसे उठे हुए थे – ठीक वैसे ही जैसे गुड़हल के फूल का योनि-छत्र!

“ओह गॉड!” मेरे मुँह से बेसाख्ता निकल गया, “कहाँ छुपा कर रखा था तुमने इनको अभी तक?”

मेरी बात पर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं! उसके होंठो पर एक मद्धिम मुस्कान थी। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने दोनों ही स्तनों पर बारी बारी से (बिना हाथ लगाए) कई सारे चुम्बन जड़ने शुरू कर दिए। कोई दो तीन मिनट तक उसको ऐसे ही छेड़ता रहा। लेकिन मैं कब तक यह करता? मजबूर हो कर मैंने एक निप्पल को अपने मुँह में भर लिया, और तन्मय हो कर चूसने लगा। उसको मन भर कर चूसा, चुभलाया, काटा, और चबाया! मेरी हरकतों पर नीलम उह और सी सी जैसी आवाजें निकालने लगी। फिर मैंने दूसरे के साथ भी यही किया।

इसी समय मेरे साथ वो हुआ, जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं करी थी – मेरे लिंग से वीर्य निकल पड़ा! मुझे घोर आश्चर्य हुआ! ऐसा कैसे हो गया? मैं तो खुद को लम्बी रेस का घोड़ा मानता था, जो कभी रुकता ही नहीं था! खैर, वीर्य निकलने पर भी लिंग का कड़ापन कम नहीं हुआ – यह अच्छी बात थी। न जाने नीलम का क्या हाल होगा?

स्तनों को छोड़ कर मैंने कुछ देर तक उसके पेट और नाभि को चूमा और जीभ की नोक से चाटा। साथ ही साथ मैंने उसके लहँगे का नाड़ा भी चुपके से खोल दिया।

“नीलू रानी!” मैंने कामुक और फटी हुई आवाज़ में कहा, “अब अपने पति को अपना दिव्य रूप दिखाने का समय हो गया है!”

मेरी इस बात पर वो अचानक ही गंभीर हो गई – यह वह समय था, जिसकी वो अभी तक बस कल्पना ही कर रही थी। उसने अपने होंठों पर बेचैनी से जीभ फिराई और फिर अपने लहँगे को कमर पर पकड़े हुए बिस्तर से नीचे उतर गई। कैसी नासमझ है ये लड़की? ‘दिव्य रूप’ दिखाने को बोला था न! फिर भी लहँगा पकडे हुए है! लगता है ये चीर हरण भी मुझे ही करना पड़ेगा!

कुछ भी हो, मैंने जल्दबाज़ी बिलकुल भी नहीं करी। उससे भला क्या लाभ? बीवी तो अपनी ही है – कहीं भागी थोड़े ही जा रही है!! मैंने उसकी कमर को पकड़ कर अपने नजदीक बुलाया, और उसके अर्धनग्न शरीर का अपनी आँखों से आस्वादन करने लगा। नीलम ने देख की मैं क्या कर रहा हूँ – इस पर वो शरमा कर नीचे की तरह देखने लगी। मैंने कुछ देर खेलने और छेड़ने की सोची। उसका जूड़ा बंधा हुआ था – सामान्य सा था – कोई बहुत जटिल बंदोबस्त नहीं था। मैंने उसमे से गजरा निकाला, और उसके बालों को खोल कर बिखेर दिया। अब उसकी मूरत देखते बन रही थी – एक अत्यंत सुन्दर, अप्सरा जैसी कमसिन लड़की, अपना लहँगा पकडे मेरे सामने अर्धनग्न खड़ी हुई थी – उसकी साँसे तेजी से चल रही थीं, और उनके साथ ही उसके उन्नत स्तन ऊपर नीचे हो रहे थे, बाल खुल कर आवारा हो रहे थे... शरीर का रंग ऐसा जैसे किसी ने संगमरमर में मूंगे का रंग मिला दिया हो! जैसे दूध में केसर मिल गया हो!

वह एक अतिसुन्दर प्रतिमा जैसी लग रही थी। और मुझे ऐसे लुभा रही थी, की जैसे मुझे बुला रही हो!

अब मुझे खुद पर वाकई संयम नहीं रहा। मैं उसको कमर से पकड़ कर धीरे धीरे अपनी तरफ खींचा, और उसके दोनों हाथों को उसके लहँगे से हटाने का प्रयास करने लगा। उसके हाथ ठन्डे हो गए थे। यह सब होना तो आज की रात अवश्यम्भावी था – यह उसको भी मालूम था, और मुझे भी! लेकिन इस संज्ञान में भी सब कुछ नया था। मैं तो खेला खाया दुरुस्त हूँ, फिर भी सब कुछ नया सा लग रहा था। एकदम से उसका हाथ अपने लहँगे के सिरे से हट गया। मुझे उम्मीद थी कि गुरुत्वाकर्षण स्वयं ही उसको नीचे सरका देगा – लेकिन हो सकता है की उसका नाड़ा पूरी तरह से ढीला नहीं हुआ था, या यह की लहंगा उसकी कमर के बल पर अटक गया हो!

मैंने खुद ही लहँगे को नीचे खिसकाना शुरू किया – लेकिन ऐसे नहीं की नीलम तुरंत नंगी हो जाए। मैं उसको अभी कुछ देर और छेड़ना चाहता था। मैंने लहँगे को थामे हुए ही नीलम को घुमा कर उसकी पीठ को अपने सामने कर दिया। उसकी पीठ भी उसके शरीर के बाकी हिस्से के समान ही सुन्दर, और निर्दोष थी! नितम्बों के ऊपर मेरु के दोनों तरफ छोटे छोटे डिंपल थे, जिनको अंग्रेजी में डिंपल ऑफ़ वीनस कहते हैं। और नीचे की तरफ उसके गोरे, चिकने नितम्बों का ऊपरी हिस्सा और उनके बीच की अँधेरी दरार दिख रही थी।

मैंने धीरे से उसके नितम्बों पर चूम लिया, और अपनी जीभ को उसकी दरार पर फिराया। मजा आया और रोमांच भी! नीलम सच में एक जवान कली थी, और उस पर अभी जवानी का पूरा रंग चढ़ना बाकी था। लेकिन फिर भी उसके शरीर में रस भरा हुआ था – जैसे फूलों में सार भरा हुआ होता है! वैसा ही! उस रस का मद मुझ पर चढ़ गया था – मेरे हाथ से उसका लहँगा छूट गया।

नीलम ने नीचे भी कुछ नहीं पहना हुआ था – कोई अधोवस्त्र नहीं! सच में! क्यों झंझट करना? एकदम से उसके सुडौल, विकसित, गोर गोर गोल नितम्ब मेरी आँखों के सामने प्रस्तुत हो गए। सच में मुझसे रहा नहीं गया! मैंने अपने पूरे मुँह और चेहरे का प्रयोग करते हुए उसके नितम्बों का भोग लगाना आरम्भ कर दिया! उनका चुम्बन, चूषण और लेहन करते समय कब वो घूम कर मेरी तरफ हो गई, उसका ध्यान नहीं रहा। लेकिन जब मांसल गुम्बजों के बजाय मेरे सामने दो मीठे मालपुए आ गए तब समझ आया की नीलम अब मेरी तरफ मुखातिब है।
नीलम की योनि के दोनों होंठ फूले हुए थे – जैसा मैंने पहले भी कहा, मीठे मीठे मालपुओं के समान (जो ऊपर नीचे रखे हुए थे)! उन होंठों पर कोई बाल नहीं था – एकदम चिकनी। और उनमें से रस तो जैसे बाँध छोड़ कर निकल रहा था। सच में, अब तो बस एक ही काम बाकी था। मैं भी उस काम में अब देर नहीं लगाना चाहता था।

मैंने नीलम की योनि के दोनों फूले हुए पटों के बीच एक जोरदार चुम्बन जड़ा, और उसको चूमने लग गया। कुछ देर चूमने के बाद मैंने उसके पटों को उँगलियों की मदद से कुछ फैलाया, और जीभ डाल कर चूसने लगा। मीठा रस! सच में! जैसे किसी ने उसकी योनि रस में हल्का सा शहद मिला दिया हो!

“कठोर पीनस्तन भारनम्रा सुमध्यमा चंचल खंजनाक्षी,
हेमन्तकाले रमिता न येन, वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम्..”

नीलम अभी मुझसे इस श्लोक का अर्थ पूछने की हालत में नहीं थी, इसलिए मैंने खुद ही बताना शुरू कर दिया,

“हेमंत ऋतु में, ठोस और भरे हुए स्तनों के भार से झुकी हुई, पतली कमर वाली, चंचल और धारदार चाकू जैसी नैनों वाली स्त्री से जिस किसी पुरुष ने संभोग नहीं किया, उसका जीवन व्यर्थ ही चला गया..”

“त..तो करिए न...”
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mashish

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मैं मुस्कुराया। मैंने नीलम को बिस्तर पर लिटाया। सिर्फ आभूषण, चूड़ियाँ, पायल इत्यादि पहने हुए वो बहुत प्यारी लग रही थी। कोई भी स्त्री लगेगी! सच में। मेरी बात का यकीन न हो, तो अपनी पत्नियों या प्रेमिकाओं को पूर्णतया नग्न होने को कहिए, लेकिन वो अपने गहने इत्यादि पहने रहें! फिर बताइयेगा!

जब वो लेट गई, तब मैंने अपने कपड़े भी उतारने शुरू किए – एक मिनट के अंदर ही मैं भी तैयार था। नीलम एक टक मेरे लिंग को ताक रही थी।

“नीलू रानी, सिर्फ देखो ही नहीं, इसको छू भी सकती हो! इसके साथ खेल भी सकती हो! अब से यह तुम्हारा है.. और सिर्फ तुम्हारी ही सेवा करेगा!” मैंने उसको छेड़ा, “.. लाओ अपना हाथ.. इसे महसूस करो..”

कह कर मैंने उसके हाथ में अपना लिंग पकड़ा दिया। रक्तचाप के कारण लिंग पूरी तरह से तना हुआ था, और तप रहा था। वो तो जैस जड़ हो गई – बस लिंग को हाथ में पकडे हुए हतप्रभ सी देख रही थी। मैंने उसके हाथ को अपने लिंग पर पीछे की तरफ सरकाया। ऐसा करने से उसकी चमड़ी पीछे की तरफ खिंच गई, और लाल गुलाबी सुपाड़ा भी उसको दिखने लगा। जो वीर्य निकला हुआ था, उसका कुछ शेष अभी भी बूंदों के रूप में बाहर निकल रहा था।

“कुछ बोलो भी...”

“अभी.. तो... बस...”

“हाँ हाँ.. बोलो न?”

“बस.. सेवा कीजिए..” उसने शरमाते हुए कहा।

“जो आज्ञा देवी!” कह कर मैंने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए। नीलम मुस्कुरा दी। पति-पत्नी में सबसे पहला महत्वपूर्ण कार्य है उन दोनों का संयोग! दोनों का मिलन! अब हम दोनों के मन की यही इच्छा थी।

मैंने उसको बिस्तर से उठाया, आयर अपनी गोद में ले कर बिस्तर पर बैठ गया। नीलम मेरी गोद में ही अपनी टाँगे दोनों तरफ लिए बैठी हुई थी। रक्त-चाप के कारण मेरा लिंग बार बार झटके लेता, और उसकी योनि का चुम्बन लेता! मैंने उसको अपनी बाहों में ले कर एक गहरा सा चुम्बन लिया। नीलम कामुकता की सीमा पर खड़ी हुई थी। उसके रस भरे, और महकते हुए होंठों का स्वाद स्वयं को भुला देने वाला था। नीलम भी मुझसे पूरी तरह से लिपट गई थी – उसके दहकते स्तन मेरे सीने पर चुभ रहे थे।

अब हम दोनों ही अपने काबू में नहीं थे। ऐसे आलिंगन में बंधे हुए हम दोनों को एक दूसरे के शरीर का पूरी तरह से संज्ञान हो रहा था। हम दोनों ही अब तैयार थे। मैंने नीलम की गर्दन पर चुम्बन लिया – जैसे ही मैंने उसकी गर्दन पर जीभ फिराई, वो तड़पने लगी। स्त्री का शरीर पूरी तरह से काम से भरा हुआ होता है। कहीं भी छू लो, कहीं भी चूम लो.. लगभग एक जैसा ही परिणाम आता है। कुछ देर उसकी ग्रीवा चूमने के बाद मैंने जैसे ही उसकी कानों की लोलकी को अपने मुँह में लिया, वह अपने काबू में नहीं रही। उसका हाथ अनायास ही मेरे लिंग पर आ गया, और उसे सहलाने लगा।

इतना इशारा काफी था। हम दोनों ही कुछ देर में पागलों की तरह एक दूसरे के शरीर के अंगों को सहला, छू और मसल रहे थे। मैंने पुनः अपनी जीभ उसके एक स्तन के चूचक पर फिराया – नीलम अब निर्लज्ज हो कर जोरों से सीत्कार करने लगी। अगर बाहर कोई जाग रहा होगा, तो उसको नीलम की कामोत्तेजक आवाजें सुनाई दे रही होंगी! वैसे इससे क्या फर्क पड़ता है? अगर यह सब आज नहीं, तो कब होगा? उसने मेरा लिंग पकड़ लिया, और उसको सहलाने लगी।

मैं भी एक चंचल बच्चे की भांति कभी तो उसका बाएँ स्तन का भोग लगाता, तो कभी दाएँ स्तन का! हम सब पुरुष, और काफी सारी स्त्रियाँ भी, इस बात से सहमत होंगे की एक युवा स्त्री के स्तन, इस पूरे संसार के सबसे स्वादिष्ट, सबसे मीठे फल होते हैं! भले ही आम को फलों का राजा माने, लेकिन एक स्त्री के उन्नत आमों के सामने उनका स्वाद फीका ही है! मैं पुनः नीलम के स्तन रुपी आमों का रसास्वादन करने लगा। इतने में नीलम पुनः स्खलित हो गई। मुझे समझ आया की उसके साथ क्या हो रहा है – ऐसे में मैं उसको अपनी गोद में ही लिए चूमता रहा, जब तक वो अपने काम के ज्वार से नीचे नहीं उतर गई। कुछ देर सुस्ताने के बाद मैंने उसको वापस नीचे, बिस्तर पर लिटाया। नीलम की साँसे अभी भी गहरी गहरी चल रही थीं। मैं उसको लिटा कर नीचे की तरफ खिसक आया।

मैंने उसकी टाँगे कुछ फैलाईं जिससे उसकी योनि का अभिगम कुछ आसान हो सके। उसकी योनि तो अब तक न जाने कितना सारा रस निकाल चुकी थी – वहां का गीलापन साफ़ दिख रहा था। इसके बाद मैं उसकी मालपुए के सामान मीठी, रसीली और मुलायम योनि का रसास्वादन करने लगा। मैंने अपनी जीभ उसकी नर्म गर्म योनि में प्रवेश कराया – नीलम किसी जानवर की तरह भर्राती गुर्राती हुई कराह निकालने लगी। मैंने अपनी जीभ को उसमें जल्दी जल्दी अंदर बाहर कर के उसके आगे आने वाले प्रोग्राम के बारे में अवगत कराया। नीलम तो आज जैसे वासना रुपी परमाणु बम के भण्डार पर बैठी हुई थी – एक के बाद एक चरमोत्कर्ष प्राप्त कर रही थी। कुछ ही देर में अनवरत जिह्वा-मैथुन के बाद, नीलम पुनः कांपते, कराहते आहें भरने लगी। मुझे अपने मुँह में पुनः गर्म द्रव का अनुभव हुआ। मैं समझ गया कि नीलम फिर से स्खलित हो गई है।

उसको मैंने कुछ देर आराम करने दिया। मुझे खुद पर भी नियंत्रण नहीं था। इतना देर भला कब तक चलता? मेरे अन्दर का लावा भी ब्नाहर निकलने को उद्धत था। मैं अंततः उसके ऊपर आ गया। मैंने लिंग को उसकी योनि मुझ पर टिकाया और एक धक्के से उसकी योनि में प्रवेश करा दिया। नीलम की कोरी, कुँवारी योनि बहुत छोटी भी थी। धक्के के कारण मेरा करीब दो इंच लिंग उसकी योनि में प्रवेश कर गया – लेकिन उधर उसकी चीख निकल पड़ी। गलती यह हुई की मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ नहीं रखे। अब तक तो सभी को मालूम हो गया होगा, की नीलम अब लड़की नहीं रही!

मैंने उसको दो तीन चुम्बन दिए, और उसके गालों को सहलाते हुए बोला, “शाबाश नीलू! बस.. अब हो गया! वेलकम टू वुमनहुड! बस.. कुछ ही देर में सब ठीक हो जाएगा! ओके हनी? अभी मज़ा आने लगेगा! बाकी अन्दर जाने दो! डोंट रेसिस्ट! अब और तकलीफ़ नहीं होगी। ठीक है?”

नीलम ने सर हिला कर जवाब दिया।

मैंने आगे कहा, “अगर दर्द हो, तो बता देना! ओके हनी?”

उसने फिर से सर हिलाया। मैंने हल्का सा बाहर निकाल कर पुनः अन्दर की तरफ धक्का लगाया – उसको पुनः दर्द हुआ, लेकिन उसने किसी तरह से दर्द को ज़ब्त कर लिया। इस धक्के का परिणाम यह हुआ की अब बस एक डेढ़ इंच ही बाहर निकला हुआ था। मैंने नीचे की तरफ देखा, और फिर वापस नीलम को बोला,

“देख नीलू... सब अन्दर हो गया.. देख न?”

नीलम ने बड़ी कठिनाई से नीचे भौंचक्क रह गई।

“ब्ब्ब्बाप रे! अआआपने इसकी शकल बिगाड़ दी! उफ़...” मैंने लिंग को बाहर खींचा।

बात तो सही थी – उसकी छोटी सी योनि में मेरा मोटा सा लिंग ऐसे ही लग रहा था! उसकी योनि का वाह्य हिस्सा इतना खिंच गया था, की वो अभी एक पतले छल्ले के समान लग रहा था। इसमें भला क्या आनंद आएगा किसी को? बेचारी को कितना दर्द हो रहा होगा!!

“दर्द होता है? निकाल दूं बाहर?” मैंने पूछा।

मैंने पूछ तो लिया, लेकिन मन ही मन सोच रहा था की बाहर निकालने को न बोले।

“न..नहीं! दर्द नहीं है.. पहले आप कर...” बोलते बोलते वो रुक गई – अब यह शर्म थी, या उसकी वासना, या फिर थकान! अभी कहना मुश्किल है। वो अपने होंठ भींच कर, मुँह मोड़ कर होने वाले हमले के लिए तैयार थी।

“पहले आप “क्या” कर...? बोलो न?”

“अहह.. प्लीज छेडिये नहीं..”

“अरे! मुझसे क्या शरमाना? बोलो न?”

नीलम ने सर हिला के ‘न’ कहा।

“बोल दोगी, तो जोश आएगा मुझे! और फिर हम दोनों को ही मज़ा आएगा.. बोल न!”

“बोल न क्या करूँ?”

“ओह्हो!” फिर धीरे से, “सेक्स..”

“अबे हिन्दी वाला बोलो!” मैंने आगे छेड़ा।

“चुदा..ई”

“वैरी नाईस.. ये लो” कह कर मैंने धीरे धीरे धक्के लगाना शुरू किया। नीलम भी संध्या के ही समान छोटे काठी की लड़की थी – जब मेरा लिंग पूरी तरह से उसके अन्दर घुस गया, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने उसके पूरे योनि मार्ग का नाप ले लिया हो! एक बात और थी –नीलम, संध्या के मुकाबले कुछ अधिक साहसी और अभिव्यंजक थी। मैं जब धक्के लगा रहा था, तब वो स्वयं भी नीचे से धक्के लगा रही थी। सेक्स का मज़ा तो तभी है, जब दोनों साथी उसका आनंद एक साथ उठाएँ, नहीं तो बस वह इवाली बात है की एक का मज़ा और दूसरे की सज़ा!

मैं उसकी मखमली योनि का आनंद उठाने के साथ साथ उसके स्तनों को कस कर दबा और निचोड़ भी रहा था। कोई और समय होता, तो उसकी चीख पुकार और रोना धोना मच जाता.. लेकिन सम्भोग के समय शरीर का रक्त चाप और दाब इतना बढ़ जाता है की इस प्रकार की हरकतें दर्द देने के बजाय दरअसल उत्प्रेरक का कार्य करती हैं। नीलम भी इस प्रकार के मर्दन से उन्माद में तड़पने लगी और मस्त होकर अपने नितम्बों को और जोर शोर से ऊपर की तरफ ठेलने लगी। उसे अपनी पहले ही सम्भोग में पूर्ण आनंद मिल रहा था। और अचानक ही वो एक बार पुनः स्खलित हो गई। कमाल है! इतनी बार! मेरा अब भी नहीं हुआ था। जबकि मैं खुद भी अपने दूसरे स्खलन के कगार पर खड़ा हुआ था। संभवतः, नीलम ही बहुत जल्दी जल्दी स्खलित हो रही थी। खैर, मैंने धक्के लगाना जारी रखा। नीलम के आखिरी स्खलन के कोई दो तीन मिनट के बाद अंत में मेरा भी स्खलन हो गया।

पहले तो मैंने सोचा की बाहर निकाल देता हूँ... फिर लगा, की पहला वाला तो नीलम के अन्दर ही जाना चाहिए। ऐसा सोचते ही वीर्य एक विस्फोट के समान मेरे लिंग से बाहर निकल गया। पिछले कुछ दिनों से संचय हुआ सारा रस नीलम के गर्भ में समां गया। बहुत ही थका देने वाला सम्भोग किया था हमने! क्रिया समाप्त होते ही हम दोनों ही एक दूसरे की बाहों में थक कर यूँ ही पड़े रहे (दरअसल मैं उसके ऊपर ही पड़ा हुआ था, और मेरा लिंग अभी भी उसी के अन्दर था)। हाँलाकि मैं कुछ देर तक नीलम के शरीर के विभिन्न हिस्सों को सहलाता रहा, और चूमता रहा। हम दोनों की ही वासना अब धीरे धीरे शांत होने लगी थी। मेरा लिंग भी सिकुड़ कर स्वयं ही उसकी योनि से बाहर आ गया।

हम दोनों ही अब बिस्तर पर अगल बगल सट कर लेट गए। नीलम को भी अब शान्ति मिली होगी। उसने एक अंगड़ाई ली – अंगडाई में उसके रूप रंग की रौनक देखते बनती थी! उसने मुझे स्वयं को ऐसे आसक्त हो कर देखते हुए देखा तो मुस्कुरा दी। करवट लेकर मेरी पीठ सहलाने लगी। मैंने भी मुस्कुरा कर उसके होंठों पर एक चुम्बन लिया और कहा,

“नीलू, मज़ा आया?”

उसने उत्तर में मुस्कुरा दिया।

“तुमको दर्द तो नहीं हुआ न?”

पहले तो उसने ‘न’ में सर हिलाया और फिर कहा, “हुआ.. लेकिन आपने सब भुला दिया। अभी हल्का हल्का मीठा मीठा दर्द है!”

उसने जिस अदा से यह बात कही, उससे मेरा लिंग पुनः कड़क हो गया।

“एक और राउंड हो जाए?” कह कर मैंने उसके एक स्तन को हल्का सा दबाया।

“बाप रे! आप फिर से रेडी?”

“और क्या? तुमको भली भांति चुदी हुई महिला जो बनाना है..”

“उफ्फ्फ़! ऐसी बात है तो फिर मैं भी चुदने को तैयार हूँ... आप शुरू कीजिए...”

कहते हुए उसने शरमा के अपने चेहरे को अपनी हथेली से ढँक लिया। अब बार बार क्या वर्णन किया जाय? हमारी सुहागरात की दूसरी चुदाई कोई आधा घंटा और चली। नीलम इतनी देर में तीन बार और स्खलित हुई। अगर वो हर बार ऐसे ही द्रव निकालती रही, तो उसको तो डी-हाइड्रेशन का खतरा हो जाएगा! खैर, जब हम दोनों भली भांति थक गए, तो निकट रखी बोतल से पानी पिया। उसके बाद एक दूसरे से लिपट कर सो गये।

नव विवाहित होना अपने आप में ही एक मादकता भरा अनुभव होता है। शरीर में एक भिन्न प्रकार की थकावट, ऊर्जा और इच्छा का अद्भुत सम्मिश्रण होता है। और इस भावना का सबसे अधिक जोर नव विवाहित युगल की पहली रात को होता है। ऐसा नहीं है की बाद में नहीं होता, लेकिन एक दूसरे के शरीर को देखने, महसूस करने और जानने की तीव्र इच्छा, एक दूसरे के स्पर्श का मादक अनुभव, और पहले पहले संसर्ग का अनुभव – विवाह के बाद की पहली रात को सचमुच अनोखा बना देती हैं।
lovely update
 
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Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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आशु भाई - अलग अलग सुहागरात का अनुभव भी तो अलग अलग ही होगा।
लेकिन हाँ - बात आपने सही कही। मेरी हर कहानी में सुहागरात का वर्णन तो है :D

और रही शब्दों की बात, तो उसमे कलात्मकता तो थोड़ा सोचने से निकल ही आती है।
भाषाएँ तो वैसे भी जादूगरी ही तो हैं :)

लगे रहो बहादुरों।

आशु
 
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बहुत ही शानदार अपडेट है । आखिरकार रुद्र ओर नीलू ने पिछली ज़िंदगी को भुलाकर आगे बढ़ने का फैसला कर ही लिया
 
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tuba javed

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bahoot hi badiya update tha

agar rudar or nilu ki dosto ke bich hui khich tan ko thora or lunba karte to or bhi maja aata. lakin iska matlab ye nahi hai ki aapne kahani ko fast forward kar diya.

aapne bahoot hi acha likha hai. agle update ke intejar me.....
 
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