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Romance काला इश्क़! (Completed)

Nevil singh

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रात के एक बजे थे और मुझे झपकी लगी थी की ऋतू मेरे कमरे में आई और और झुक कर मेरे होठों को चूसने लगी| मैंने तुरंत आँख खोली और जब नजरें ऋतू पर पड़ीं तो मैं निश्चिंत हो गया और उसके होठों को चूसने लगा| दरअसल मैं दरवाजा बंद करना भूल गया था, इसलिए ऋतू चुप-चाप अंदर आ गई थी| इधर आग दोनों के जिस्म में भड़क चुकी थी पर कुछ भी करना खतरे से खाली नहीं था! मैंने ऋतू को रोका और उठ बैठा; "जान! मेरा भी बहुत मन है पर यहाँ घर पर कुछ भी करना ठीक नहीं है! कल कॉलेज की छुट्टी कर ले और फिर वो पूरा दिन हम दोनों एक साथ होंगे!" ये सुन कर ऋतू का मुंह फीका पड़ गया और वो मुड़ कर जाने लगी| अब मुझसे उसका ये उदास चेहरा देखा नहीं गया, मैं पलंग से उतरा और ऋतू का हाथ पकड़ कर खींच कर उसे छत पर ले गया| छत की पैरापेट वाल थोड़ी ऊँची थी, करीब 4 फुट की होगी, मैं वहाँ नीचे बैठ गया और ऋतू को भी अपने पास बिठा लिया| हम दोनों कुछ इस तरह बैठे थे की अगर कोई ऊपर चढ़ कर आता तो हमें साफ़ दिखाई दे जाता पर वो हमें नहीं देख पाता| उससे हमें इतना समय तो मिल जाता की हम एक दूसरे से अलग हो कर बैठ जाएँ| हाँ वो इंसान जब छत पर आ जाता तो ये सवाल जर्रूर आता की तुम दोनों छत पर अकेले क्या कर रहे हो? ये वो एक सवाल था जिसका हमारे पास कोई जवाब नहीं होता, पर जब प्यार किया है तो रिस्क तो लेना ही पड़ता है| सवाल के जवाब में झूठ बोलने के अलावा कोई और चारा नहीं था हमारे पास| खेर नीचे बैठा था और अपनी दोनों टांगें 'V' के अकार में खोल रखी थी| मैंने ऋतू को ठीक बीच में बैठने को कहा, ऋतू बैठ गई और अपना सर मेरे सीने से टिका दिया| हम दोनों ही आसमान में देख रहे थे| चांदनी रात में टीम-टिमाते तारे देखने का मजा ही कुछ और था, ऊपर से चारों तरफ सन्नाटा और हलकी-हलकी हवा ने समा बाँध रखा था|


ऋतू: जानू! आपको पता है आज क्या हुआ?

मैं: क्या हुआ? (मैंने ऋतू के गाल को चूमते हुए कहा)

ऋतू: ससस... मेरी सहेलियाँ कह रही थी की मैं मोटी हो गई हूँ? मेरी Ass, मेरी Breast और मेरे Lips मोटे हो गए हैं, और ये सब आपकी वजह से हुआ है?

मैं: शिकायत कर रही हो या कॉम्पलिमेंट दे रही हो?

ऋतू: कॉम्पलिमेंट

मैं: I feel you're ready to be a mother!

ऋतू: सच? तो कब बंद करूँ वो प्रेगनेंसी वाली गोली लेना? (उसने मजाक में कहा|)

मैं: पागल! (मैंने ऋतू के दूसरे को गाल को चूमते हुए कहा|)

ऋतू: ससस... सच्ची जानू! आपने मेरे बदन को तराशने में बड़ी मेहनत की है!

मैं: हम्म्म... (मैं ऋतू की जुल्फों की महक सूंघते हुए बोला|)

अब ऋतू ने अपने दाहिने हाथ को मेरी जाँघ पर रख उसे सहलाने लगी जिसका सीधा असर मेरे लंड महराज पर हुआ| उन्हें फूल कर खड़ा होने में सेकंड नहीं लगा और वो ऋतू की कमर पर अपनी दस्तक देने लगे| ऋतू मेरी तरफ घूमी और प्यासी नजरों से मुझे देखने लगी, पर वहाँ कुछ भी कर पाना बहुत बड़ा रिस्क था! पर प्यास तो लगी थी, और उसे बुझाना तो था ही! मैंने ऋतू को ऐसे ही बैठे रहने को कहा और मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी पजामी के नाड़े को खोलना शुरू कर दिया| नाडा खोल कर मैंने अपना दाहिना हाथ अंदर डाला तो पाया की ऋतू ने पैंटी नहीं पहनी, मतलब वो पहले से ही तैयारी कर के बैठी थी! मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली को ऋतू की बुर में सरकाया तो पाया की वो तो पहले से ही गीली है| "मेरी जान को प्यार चाहिए?" मैंने पुछा तो ऋतू ने सीसियाते हुए 'हाँ' कहा| मैंने अपनी ऊँगली से ऋतू की बुर की फांकों को सहलाना शुरू कर दिया और ऋतू ने अपने आप को मेरी छाती से दबाना शुरू कर दिया| मैंने अपनी तीनों उँगलियों से ऋतू की बुर की फाँकों को धीरे-धीरे मनसलना शरू कर दिया, और ऋतू का कसमसाना शुरू हो गया| मैंने अपनी दो उँगलियाँ उसके बुर में डाली और उन्हें ऋतू की बुर में गोल-गोल घुमाने लगा| अब ऋतू ने अपनी कमर को मेरे लंड पर और दबाना शुरू कर दिया| "जानू...ससस....!!!! आपको नहीं पता ये नौ दिन मैंने कैसे तड़प-तड़प के निकाले हैं!" मुझे ऋतू की प्यास का अंदाज हो चला था तो मैंने अपनी दोनों उँगलियाँ उसकी बुर में तेजी से अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी| "उम्ममम ...ससस... और कितना ...स..ससस...तड़पाओगे?" ऋतू ने धीमी आवाज में सिसकते हुए कहा| "जान! प्लीज आज रात इसी से काम चला लो कल शहर पहुँच कर कपडे फाड़ के सेक्स करेंगे!" मैंने अब भी ऋतू की बुर में अपनी ऊँगली अंदर-बाहर किये जा रहा था, ऋतू की आँखें बंद हो चलीं थी और उसके दोनों हाथ मेरी जाँघ पर थे| "ससस...जानू!! ....ससस...पिछले कुछ दिनों से में डरी हुई थी...स्स्स्साहह... मुझे लगा ....मेरे जिस्म का जादू आप पर से उतर गया!" ऋतू के मुँह से अनायास शब्दों ने मेरा ध्यान खींचा, अब मुझे जानना था की ऋतू किस जादू की बात कर रही है इसलिए मैंने और तेजी से उसकी बुर की चुदाई अपनी उँगलियों से शुरू कर दी!| ऋतू इस आनंद से फिसल कर आगे की ओर जाने लगी तो मैंने अपने बाएँ हाथ को उसके पेट पर रखा और उसे आगे फिसलने नहीं दिया| "ममममममम.... उस सससस....हरामजादी .....ने मुझे एक बात सिखाई थी.... की अपने बंदे को अपने काबू में रखना है तो उसे अपनी चूत से बाँध कर रख! आअह..सससस...." अब मुझे सब कुछ समझ आने लगा था! ऋतू का अचानक से सेक्स में इतना 'निपुण' हो जाना सिर्फ उसकी insecurity को छुपाने के लिए एक पर्दा था| मैं उसे छोड़ कर किसी और के पास ना जाऊँ इसलिए ऋतू इस तरह मुझसे चिपकी रहती थी| मैंने उसे इतनी बार भरोसा दिलाया, कसमें खाईं पर उसे क्यों यक़ीन नहीं होता की मैं बस उसका हूँ| उसका ये possessive होना अब सारी हदें पार कर रहा है, अगर इसने अपनी जलन और insecurity के चलते किसी के सामने कुछ बक दिया तो? वो दिन हम दोनों का अंत होगा! पर आखिर कारन क्या है की ऋतू इस कदर insecure है? मैंने ऐसा क्या कर दिया की उसे ये insecurity होती है? Wait a minute ..... ये मुझसे प्यार भी करती है या फिर ये सिर्फ इसकी सेक्स की भूख है?!! मैं यही सब सोच रहा था और अपनी उँगलियों को ऋतू की बुर में तेजी से अंदर-बाहर किये जा रहा था| अब ऋतू छूटने वाली थी और उसने अपने नाखून मेरी जाँघ में गाड़ दिए थे जिससे मैं अपने ख्यालों से बाहर आया और अगले ही पल ऋतू झड़ गई और निढाल हो कर मेरी छाती पर सर रखे हुए लेटी रही|


ये तो साफ़ था की मैं चाहे कुछ भी कह लूँ या भले ही अपना दिल निकाल कर ऋतू के सामने रख दूँ ये मानने वाली नहीं है| अगर इससे प्यार न करता तो अब तक इसे छोड़ देता पर साला अब करूँ क्या ये नहीं पता! ऊपर से मैं भी चूतिया हो चला था जो ऋतू के चक्कर में एक से बढ़कर एक चूतियापे करने लगा था? क्या जर्रूरत थी तुझे बहनचोद यहाँ छत पर खुले में ये सब करने की? पर अगर ये ना करता तो मुझे ये सब कैसे पता चलता? तुझे जरा भी डर नहीं लगा की तू इस तरह ऋतू को अपने लंड से चिपटाये पड़ा है? भूल गया वो खेत के बीचों बीच पेड़ की डाल पर लटक रहे भाभी और उनके प्रेमी की अस्थियाँ? वहीँ जा कर मरना है तुझे? और ये क्या तूने ऋतू को अपने सर पर चढ़ा रखा है? बहनचोद उसकी हर एक ख्वाइश पागलों की तरह पूरी करता है और बदले में उसे ही तेरे ऊपर विश्वास नहीं! ये कैसा प्यार है?


ऋतू की सांसें दुरुस्त होने तक मेरा ही दिमाग मेरे दिल को गरिया रहा था| "जानू! क्या सोच रहे हो?" ऋतू ने मुझे झिंझोड़ा तो मैं अपने 'मन की अदालत' से बाहर आया| मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपनी टांगें मोड़ कर ऋतू के इर्द-गिर्द से हटाईं और उठ खड़ा हुआ| ऋतू फटाफट कड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया; "क्या हुआ? कहाँ जा रहे हो?" मैं अब भी कोई जवाब नहीं दिया और उसके हाथों की गिरफ्त से अपना हाथ छुड़ाया और आंगन में आ गया| ऋतू छत पर से नीचे झाँकने लगी और फिर उसे मैं बाथरूम में जाता हुआ नजर आया| ऋतू छत पर कड़ी नीचे देखती रही और इंतजार करने लगी की मैं बाथरूम से कब निकलूँगा| मैंने निकल कर ऊपर देखा तो वो अब भी वहीँ खड़ी थी और मेरे ऊपर आने का इंतजार कर रही थी| मैं अगर उस समय ऊपर जाता तो वो मुझसे पूछती की मेरे उखड़ जाने का कारन क्या है और तब मेरा कुछ भी कहना बवाल खड़ा कर देता, ऐसा बवाल जिसे सुन आज काण्ड होना तय था| इसलिए में आंगन में पड़ी चारपाई पर ही लेट गया पर ऋतू अपनी जगह से टस से मस ना हुई और टकटकी बांधे मुझे देखती रही| मैंने अपनी आँखें बंद की और सोने की कोशिश करने लगा, जो बात मेरे दिम्माग में चल रही थी वो ये थी की मुझे अपने दिल पर काबू रखना होगा वरना ऋतू मुझे कहीं फिर से अपनी जिस्म के जरिये पिघला ना ले| पिछले नौ दिनों से जो हम दोनों के बीच जिस्मानी दूरियाँ आई थी उससे कुछ तो काम आसान होगया था पर आज उस कर्म वाले काण्ड ने फिर से उस दबी हुई आग को हवा दे दी थी| शायद इस तरह उससे दूरियाँ बनाने से ऋतू को कुछ अक्ल आये, अब क्योंकि उसकी हर ख़ुशी पूरी करने के चक्कर में मैं अपनी और नहीं लगवाना चाहता था| शादी के बाद चाहे वो मुझसे जो करवा ले पर उससे पहले तो हम दोनों को maturity दिखानी होगी| पर दिमाग जानता था की कुछ होने वाला नहीं है...काण्ड तो होना ही है! इधर ऋतू की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो नीचे आ कर मुझसे पूछ सके की मैं क्यों उसके साथ ऐसा बर्ताव कर रहा हूँ? वो पैरापिट वाल पर अपनी कोहनियाँ टिकाये मुझे बस देखती रही! वो पूरी रात मैं बस करवटें बदलता रहा और बार-बार ऋतू को खुद को देखते हुए notice करता रहा| सुबह हुई तो ताई जी उठ के आंगन में आईं; "अरे मुन्ना? तू यहाँ क्या कर रहा है?" उन्होंने पुछा| उन्हें देखते ही ऋतू नीचे आ गई; "ताई जी..वो रात को पेट ख़राब हो गया था इसलिए मैं नीचे ही लेट गया|" मैंने झूठ बोला| ताई जी मेरे पास बैठ गईं और ऋतू बाथरूम में नहाने घुस गई और फ्रेश हो कर चाय बनाने लगी| मैं भी उठा और नहा धो के तैयार हो गया और अब तो घर वाले सब बरी-बारी नाहा के नाश्ते के लिए तैयार बैठे थे| "मानु, चन्दर तुम लोगों के साथ जायेगा|" ताऊ जी ने कहा और मैंने बस 'जी' कहा| पर ये सुनते ही ऋतू को बहुत गुस्सा आया, वो सोच रही थी की वो शहर जा कर मुझसे कल रात के उखड़ेपन का कारन पूछेगी पर चन्दर भैया के साथ जाने से उसके प्लान पर पानी फिर गया था| पर मुझे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था, नाश्ता कर के हम तीनों निकले और बस स्टैंड तक पैदल चल दिए| ऋतू पीछे थी और आगे-आगे मैं और चन्दर भैया थे| वो अपनी बातें किये जा रहे थे और मैं बस हाँ-हुनकुर ही कर रहा था| बस आई और हम तीनों चढ़ गए, ऋतू तो एक अम्मा के साथ बैठ गई| हम दोनों खड़े रहे और कुछ देर बाद हमें सीट मिल गई| मुझे नींद आ रही थी तो मैं खिड़की से सर लगा कर सो गया पर ऋतू के मन में उथल-पुथल मची थी| बस स्टैंड पहुँच कर चन्दर को तहसीलदार के जाना था और उसे वहाँ का कुछ पता नहीं था तो हमने एक ऑटो किया और उसमें बैठ गए| सबसे पहले ऋतू हुई, फिर मैं और आखरी में चन्दर घुसा| मैं ऋतू की तरफ ना देखकर सामने देख रहा था, अब ऋतू मुझसे बात करने को मृ जा रही थी पर अपने बाप के डर के मारे कुछ कह नहीं पा रही थी| ऋतू ने चुपके से मेरा दाहिना हाथ पकड़ लिया पर मैंने किसी तरह हाथ छुड़ा लिया और चन्दर से बात करने लगा| पहले ऋतू का कॉलेज आया और उसे वहाँ उतारने लगे तो लगा जैसे वो जाना ही ना चाहती हो! "जा ना?" मैंने कहा तो ऋतू सर झुकाये कॉलेज के गेट की तरफ चली गई और हमारा ऑटो तहसीलदार के ऑफिस की तरफ चल दिया| चन्दर भैया को वहाँ छोड़ कर मैं घर आ गया और मेल देखने लगा की शायद कोई जॉब ओपनिंग आई हो| एक मेल आई थी तो मैं वहाँ इंटरव्यू के लिए चल दिया| शाम को 4 बजे घर पहुँचा और आ कर ऐसे ही लेट गया| ठीक 5 बजे दरवाजे पर दस्तक हुई और मैंने जब दरवाजा खोला तो सामने ऋतू खड़ी थी|
bemishaal update hai bhai
 
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Nevil singh

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ऋतू बिना कुछ कहे अंदर आई और दरवाजा उसने लात मार कर मेरी आँखों में देखते हुए बंद किया| फिर अगले ही पल उसकी आँखें छल-छला गईं और उसने मेरी कमीज का कालर पकड़ लिया और मुझे पीछे धकेलने लगी| "क्या कर दिया मैंने जो आप मुझसे इस तरह उखड़े हुए हो? कल रात से ना कुछ बोल रहे हो न कुछ बात कर रहे हो? ऐसा क्या कर दिया मैंने? कम से कम मुझे मेरा गुनाह तो बताओ? आपके अलावा मेरा है कौन और आप हो की मुझसे इस तरह पेश आ रहे हो?" ऋतू एक साँस में रोते-रोते बोल गई पर उसका मुझे पीछे धकेलना अब भी जारी था| मैंने पहले खुद को पीछे जाने से रोका और फिर झटके से उसके हाथों से अपना कालर छुड़ाया और बोला; "गलती पूछ रही है अपनी? तूने मुझे समझ क्या रखा है? तुझे क्या लगता है की तू मुझे अपने जिस्म की गर्मी से पिघला लेगी? तुझे इतना समझाया, इतनी कसमें खाईं की मैं तुझसे प्यार करता हूँ और सिर्फ तेरा हूँ पर तेरी ये fucking insecurity खत्म होने का नाम ही नहीं लेती? इसी लिए जयपुर से आने के बाद मुझसे इतना चिपक रही थी ना? मैं तो साला तेरे चक्कर में पागल हो गया था, तुझे गाँव छोड़ के उल्लू की तरह जागता रहता था| तेरे जिस्म ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था, वो तो शुक्र है की मैंने व्रत रखे और खुद पर काबू पाया वरना मैं भी तेरी तरह हरकतें करता! क्या-क्या नहीं किया मैंने तेरे प्यार में और तुझे ये सब मज़ाक लग रहा है? तुझे मनाने के लिए क्या-क्या नहीं किया मैंने? इतना जोखिम उठा कर कल पहले तुझे खेतों में ले गया और फिर पहले तेरे कमरे में आना और वो रात को छत पर बैठना? पर तुझे तो बस अपने जिस्म की आग बुझानी है मुझसे! एक दिन अगर तुझे मैं ना छुओं तो तेरे बदन में आग लग जाती है! तुझे पता भी है की तू अपनी इस जलन के मारे कब क्या बोल देती है की तुझे खुद नहीं पता होता| क्या जर्रूरत थी तुझे आंटी जी से कहने की कि मेरी जॉब चली गई? अगर मैं बात नहीं पलटता तू तो वहाँ सब कुछ बक देती!


काम्य को तू जानती है ना, वो मुँहफ़ट है पर दिल की साफ़ है| वो जानबूझ कर मुझसे मज़ाक करती है और ये सुन कर तुझे किस बात का गुस्सा आता है? भाभी को भी तू अच्छे से जानती है ना? उसके मन में क्या-क्या है वो सब जानती है तू और तूने ही मुझे उनके बारे में आगाह किया था पर आज तक मैंने कभी उनकी तरफ आँख उठा के नहीं देखा| जब मैं बिमारी में गाँव गया था तो उसने क्या-क्या नहीं किया मुझे उकसाने के लिए| पर तेरे प्यार की वजह से मैं नहीं बहका, इससे ज्यादा तुझे और क्या चाहिए?


देख मैं तुझे आज एक बात आखरी बार बोल देता हूँ, आज के बाद अगर मुझे ये तेरी insecurity दिखाई दी तो this will be the end of our relationship!” मेरी बातें सुन ऋतू फफक के रोने लगी और अपने घुटनों के बल बैठ गई और हाथ जोड़ कर मिन्नत करते हुए बोली; "मुझे माफ़ कर दो! प्लीज ....मेरा आपके अलावा और कोई नहीं! ये सच है की मैं insecure हूँ आपको ले कर पर ये भी सच है की मैं आपसे सच्चा प्यार करती हूँ| मैंने आपसे प्यार सेक्स के लिए नहीं किया, बल्कि इसलिए किया क्योंकि इस दुनिया में सिर्फ एक आप हो जो मुझसे प्यार करते हो|"

"तो तुझे ये बात समझ में क्यों नहीं आती की मैं सिर्फ तुझसे प्यार करता हूँ? मैंने आज तक तेरे सामने कभी किसी से flirt नहीं किया तो ये काहे बात की insecurity है?! तुझे ऐसा क्यों लगता है की तुझ में कुछ कमी है? मैं तुझे छोड़ कर किसके पास जाऊँगा? बोल???"

"मुझे नहीं पता...बस डर लगता है की कोई आपको मुझसे छीन लेगा!" ऋतू ने अपने दोनों हाथों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया|

"कोई और नहीं....तू खुद ही मुझे अपने से दूर कर देगी|" मैंने खुद को उसकी गिरफ्त से आजाद करते हुए कहा|

"नहीं ...प्लीज ऐसा मत कहिये!"

"तुझे पता है मैं कितनी परेशानियों से जूझ रहा हूँ? कितनी जिम्मेदारियाँ मेरे सर पर हैं? जॉब नहीं है, सेविंग्स नहीं हैं और दो साल बाद हमें भाग कर शादी करनी है! क्या-क्या मैनेज करूँ मैं? मैंने तुझसे आजतक कुछ माँगा है? नहीं ना? फिर? "

"एक लास्ट चांस दे दो! I promise ... अब ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी! I promise ...!!!" ऋतू ने अपने आँसू पोछे और सुबकते हुए कहा| पर में जानता था की इसके मन की ये सोच कभी नहीं जा सकती| पर सिवाए कोशिश करने के मैं कुछ कर भी नहीं सकता था, प्यार जो करता था उस डफर से! मैं उसके सामन घुटनों पर बैठा और अपने बाएं हाथ से उसके बाल पकडे और उन्हें जोर से खींचा की ऋतू की गर्दन ऊपर को तन गई और उसकी नजरें ठीक मेरे चेहरे पर थीं;

"मैं बस तेरा हूँ...समझी?" ऋतू ने सुन कर हाँ में सर हिलाया पर मैं उससे 'हाँ' सुनने की उम्मीद कर रहा था, उसके कुछ न बोलने और सिर्फ सर हिलाने से मुझे गुस्सा आया और मैंने उसके बाएँ गाल पर एक चपत लगाईं और अपना सवाल दुबारा पुछा; "मैंने कुछ पुछा तुझसे? मैं सिर्फ तेरा हूँ.... बोल हाँ?" तब जा कर ऋतू के मुँह से हाँ निकला|

"तू सिर्फ मेरी है!" मैंने कहा|

"ह...हाँ!" ऋतू ने डर के मारे कहा|

"मैं किस्से प्यार करता हूँ?" मैंने ऋतू के गाल पर एक चपत लगाते हुए पुछा|

"म....मु...मुझसे!"

"तू किससे प्यार करती है?"

"आपसे!"

"और हम दोनों के बीच में कभी कोई नहीं आ सकता!" ऋतू ने ये सुन कर हाँ में गर्दन हिलाई पर मुझे ये जवाब नहीं सुनना था तो मैंने फिर से उसके गाल पर एक चपत लगाईं और तब जा कर ऋतू को समझ आया की मैं क्या सुनना चाहता हूँ|

"ह...हम दोनों के बीच...कोई नहीं आ सकता!" ऋतू ने घबराते हुए कहा|

ऋतू की आँखें रोने से लाल हो चुकी थीं और अब मुझे उस पर तरस आने लगा था, इसलिए मैंने उसके बाल छोड़ दिए और अपनी दोनों बाहें खोल दी| ऋतु घुटनों के बल ही मेरे सीने से लिपट गई और फिर से रोने लगी| मैंने ऋतू के बालों में हाथ फेरना शुरू किया ताकि उसका रोना काबू में आये; "बस ...बस... हो गया! और नहीं रोना!" ये सुन ऋतू ने धीरे-धीरे खुद पर काबू किया और रोना बंद किया| मैंने उसे अपने सीने से अलग किया और उसके आँसू पोछे फिर मैं खड़ा हुआ और उसे भी सहारा दे कर खड़ा किया| "जाके मुँह धो के आ फिर मैं तुझे हॉस्टल छोड़ देता हूँ|" ऋतू मुँह-धू कर आई और फिर से मेरे गले लग गई; "आपने मुझे माफ़ कर दिया ना?" मैंने उसके जवाब में बस हाँ कहा और फिर उसे खुद से दूर किया और दरवाजा खोल कर बाहर उसके आने का इंतजार करने लगा| ऋतू बेमन से बाहर आई और शायद उसके मन में अब भी यही ख़याल चल रहा था की मैंने उसे माफ़ नहीं किया है| मैंने पहले उसे उसका फ़ोन वापस किया और फिर नीचे से ऑटो कर उसे हॉस्टल छोड़ा| घर पहुँचा ही था की मेरा फ़ोन बज उठा, ये किसी और का नहीं बल्कि ऋतू का ही था| उसने मोहिनी के फ़ोन से मुझे कॉल किया था, ये सोच कर की मैं शायद उसका कॉल न उठाऊँ| मैंने कॉल उठाया" जानू! आपकी एक मदद चाहिए!"

"हाँ बोल|" मैंने सोचा कहीं कोई गंभीर बात तो नहीं? पर अगर ऐसा कुछ होता तो वो उस वक़्त क्यों नहीं बोली जब वो यहाँ थी? "वो कॉलेज के असाइनमेंट्स में एक प्रोजेक्ट मिला था| बाकी साब तो हो गया बस एक वही प्रोजेक्ट बचा है|तो कल आप मेरा प्रोजेक्ट शुरू कर व दोगे?" मैं समझ गया की ये कॉल बस उसका ये चेक करना था की मैंने उसे माफ़ किया है या नहीं? "कल शाम 5 बजे मुझे राम होटल पर मिल|" अभी बात हो ही रही थी की मुझे पीछे से मोहिनी की आवाज आई; "रितिका तेरी बात हो जाए तो मुझे फ़ोन दियो|" ऋतू ने बड़े प्यार से कहा; "मेरी बात हो गई दीदी!" और उसने फ़ोन मोहिनी को दे दिया| "मानु जी! मैं तो आपको अपना दोस्त समझती थी और अपने ही मुझे पराया कर दिया?"

"अरे! मैंने क्या कर दिया?" मैंने चौंकते हुए कहा|

"आप ने अपनी जॉब के बारे में क्यों नहीं बताया?" मोहिनी ने सवाल दागा|

"अरे...वो...याद नहीं रहा?" मैंने बहाना मारा|

"क्या याद नहीं रहा? वो तो माँ ने मुझे बताया तब जाके मुझे पता चला| मैं देखती हूँ कुछ अगर होता है तो आपको बताती हूँ|"

"थैंक यू" मैंने कहा| बस इसके बाद उसने मुझसे कहा की मैं उसे अपना रिज्यूमे भेज दूँ और वो एक बार अपनी कंपनी में बात कर लेगी| रात को बिना कुछ खाये-पीये ही लेट गया, आज जो मैं कहा और किया वो मुझे सही तो लग रहा था पर शायद मेरा ऋतू के साथ किया व्यवहार मुझे ठीक नहीं लग रहा था| मेरा उस पर गुस्सा निकालना ठीक नहीं था....शायद! खेर अगली सुबह उठा पर आज मुझे कहीं भी नहीं जाना था तो मैं घर के काम निपटाने लगा, झाड़ू-पोछा कर के घर बिलकुल चकाचक साफ़ किया फिर खाना खाया और फिर से सो गया| शाम को पाँच बजे मैं राम होटल पहुँचा तो देखा की ऋतू वहां पहले से ही खड़ी है| हम दोनों पहले की ही तरह मिले और फिर उसने मुझे प्रोजेक्ट के बारे में बताया और हम दोनों उसी में लग गए| घण्टे भर तक हम उसी पर डिसकस करते रहे और थोड़ा हंसी मजाक भी हुआ जैसे पहले होता था| आगे कुछ दिनों तक इसी तरह चलता रहा, हमारा प्यार भरा रिश्ता वापस से पटरी पर आ गया था पर ऋतू अब मुझे नार्मल लग रही थी, मतलब अब उसका वो possessiveness और insecure होना कम हो गया था| मुझे नहीं पता की सच में वो खुद को काबू कर रही थी या फिर नाटक, मैंने यही सोच कर संतोष कर लिया की कम से कम अब वो पहले की तरह तो behave नहीं कर रही|


करवाचौथ से दो दिन पहले की बात थी और ऋतू मुझे कुछ याद दिलाना चाहती थी, पर झिझक रही थी की कहीं मैं उस पर बरस न पडूँ| मैंने फ़ोन निकाला और घर फ़ोन किया; "नमस्ते पिताजी! एक बात पूछनी थी, दरअसल ऑफिस में काम थोड़ा ज्यादा है और बॉस ज्यादा छुट्टी नहीं देगा| तो अगर मैं करवाचौथ की बजाये दिवाली पर छुट्टी ले कर आ जाऊँ तो ठीक रहेगा?" मैंने जान बूझ कर बात बनाते हुए कहा, कारन साफ़ था की कहीं कोई यहाँ ऋतू को लेने ना टपक पड़े| "तूने वैसे भी करवाचौथ पर आ कर क्या करना था? शादी तो तूने की नहीं! पर दिवाली पर अगर यहाँ नहीं आया तो देख लिओ!" पिताजी ने मुझे सुनाते हुए कहा| "जी जर्रूर! दिवाली तो अपने परिवार के साथ ही मनाऊँगा!" बस इतना कह कर मैंने फ़ोन रखा| ऋतू जो ये बातें सुन रही थी सब समझ गई और उसका चेहरा ख़ुशी से जगमगा उठा| "कल सुबह मैं लेने आऊँगा, तैयार रहना!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और ये सुनके ऋतू इतना चिहुँकि की मुझे गले लगना चाहा, पर फिर खुद ही रूक गई क्योंकि हम बाहर पार्क में बैठे थे| मैंने मन ही मन सोचा की शायद ऋतू को अक्ल आ गई है!


अगली सुबह मैं जल्दी उठा और अपनी बुलेट रानी की अच्छे से धुलाई की, आयल चेक किया और फिर नाहा-धो कर ऋतू को लेने चल दिया| ऋतू पहले से ही अपना बैग टाँगे गेट पर खड़ी थी| मेरी बाइक ठीक हॉस्टल के सामने रुकी और वो मुस्कुराती हुई आ कर पीछे बैठ गई| मैंने बाइक सीधा हाईवे की तरफ मोड़ दी और ऋतू हैरानी से देखने लगी; "हम घर नहीं जा रहे?" उसने पीछे बैठे हुए पुछा| तो मैंने ना में गर्दन हिलाई और इधर ऋतू का मुँह फीका पड़ गया, उसे लगा की हम गाँव जा रहे हैं| एक घंटे बाद मैंने हाईवे से गाडी स्टेट हाईवे 13 पर गाडी मोदी तो ऋतू फिर हैरान हो गई की हम जा कहाँ रहे हैं? आखिर आधे घंटे बाद जब बाइक रुकी तो हम एक शानदार साडी की दूकान के सामने खड़े थे| ऋतू बाइक से उत्तरी और सब समझ गई और मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी; "जानू! आप.... थैंक यू!" वो कुछ कहने वाली थी पर फिर रूक गई| मैंने बाइक पार्क की और हम दूकान में घुसे और वहाँ आज बहुत भीड़भाड़ थी| ये दूकान मेरे कॉलेज के दोस्त की थी और मैं यहाँ से कई बार ताई जी और माँ के लिए साडी ले गया था| मुझे देखते ही अंशुल (मेरा दोस्त) काउंटर छोड़ कर आया और हम दोनों गले मिले| "अरे भाभी जी! आइये-आइये!" उसने ऋतू से हँसते हुए कहा| "यार अभी शादी नहीं हुई है, होने वाली है!" मैंने कहा| "तभी मैं सोचूँ की तूने शादी कर ली और मुझे बुलाया भी नहीं!" ये सुन कर हम तीनों हँसने लगे, अंशुल ने अपने एक लड़के को आवाज दी: "भाई और भाभी को साड़ियाँ दिखा और रेट स्पेशल वाले लगाना|"

"यार एक हेल्प और कर दे, स्टिचिंग कल तक करवा दे यार जो एक्स्ट्रा लगेगा मैं दे दूँगा!" मैंने कहा और वो ये सुन कर मुस्कुरा दिया|

"हुस्ना भाभी के पास माप दिलवा दिओ और बोलिओ अंशुल भैया के भाई हैं|" मैंने उसे थैंक्स कहा, फिर वो वापस कॅश काउंटर पर बैठ गया और हम दोनों को वो लड़का साड़ियाँ दिखाने लगा| आज पहलीबार था की ऋतू अपने लिए साडी ले रही थी और बार-बार मुझसे पूछ रही थी की ये ठीक है? आखिर मैंने उसके लिए साडी पसंद की और फिर हम माप देने के लिए उस लड़के के साथ चल दिए| हुस्ना आपा बड़ी खुश मिज़ाज थीं और उन्होंने बड़ी बारीकी से माप लिया और ब्लाउज के कट के बारे में भी ऋतू को अच्छे से समझाया| जब मैंने पैसे पूछे तो उन्होंने 2,000/- बोले जिसे सुनते ही ऋतू मेरी तरफ देखने लगी| पैसे ज्यादा थे पर साडी भी तो कल मिल रही थी| मैंने जेब से पैसे निकाल के उन्हें दिए और कल 12 बजे का टाइम फिक्स हुआ! हम वापस दूकान आये और कॅश काउंटर पर अंशुल ने जबरदस्ती हमें बिठा लिया और चाय मँगा दी| मैंने जब उससे पैसे पूछे तो उसने 2,500/- कहा, जब की साडी पर 3,500/- लिखा था| वो हमेशा जी मुझे होलसेल रेट दिया करता था, पर ऋतू के लिए तो ये भी बहुत था वो फिर से मेरी तरफ देखने लगी| मैंने पेमेंट कर दी और हम बाहर आ गए; "जानू! आपने इतने पैसे क्यों खर्च किये?" ऋतू ने पुछा तो मैंने उसके दोनों गाल उमेठते हुए कहा; "क्योंकि ये मेरी जान का पहला करवाचौथ है! इसे स्पेशल तो होना ही है?" ऋतू की आँखें भर आईं थी, मैंने उसके आँसू पोछे और हम घर के लिए निकल पड़े| घर के पास ही बाजार था वहाँ मुझे मेहँदी लगाने वाली औरतें दिखीं तो मैंने ऋतू को मेहँदी लगवाने को कहा| मेहँदी लगवाने के नाम से ही वो खुश हो गई और फिर उसने अपने पसंद की मेहँदी लगवाई और मुझे दिखाने लगी| आखिर हम घर आ गए और अब भूख बड़ी जोर से लगी थी| इस सब में मैं कुछ खाने को लेना ही भूल गया, मैंने कहा की मैं खाना ले कर आता हूँ तो ऋतू मना करने लगी; "मेरा मन आज मैगी खाने का है|" ऋतू बोली और मैं समझ गया की वो क्यों मना कर रही है, मैं और पैसे खर्चा न करूँ इसलिए| मैंने मैगी बनाई और ऋतू को अपने हाथ से खिलाया क्योंकि उसके तो हाथों में मेहँदी लगी थी|

खाना खाने के बाद मैंने लैपटॉप पर एक पिक्चर लगा दी, ऋतू ने कहा की हम नीचे फर्श पर बैठें| मैं नीचे बैठा और अपनी दोनों टांगें V के अकार में खोलीं और ऋतू मुझसे सट कर बीच में बैठ गई| लैपटॉप सेंटर टेबल पर रखा था, ऋतू ने अपना सर मेरी छाती पर रख दिया, अपने दोनों हाथ मेरी टांगों पर खोल कर रखे और सामने मुँह कर के पिक्चर देखने लगी| पिक्चर देखते-देखते ऋतू को नींद का झोंका आने लगा और उसकी गर्दन इधर-उधर गिरने लगी, मैंने अपने दोनों हाथों को ऋतू की गर्दन के इर्द-गिर्द से घुमाते हुए उसके होठों के सामने लॉक कर दिया| ऋतू ने मेरे हाथ को चूमा और फिर मेरी दाहिने बाजू का सहारा लेते हुए सो गई| शाम होने को आई थी और अब चाय बनाने का समय था, पर ऋतू नेबड़ी मासूमियत से अपने हाथ मुझे दिखाते हुए तुतला कर कहा: "जानू! मेरे हाथों में तो मेहँदी लगी है! आप ही बना दो ना!" उसके इस बचपने पर ही तो मैं फ़िदा था! मैंने मुस्कुराते हुए चाय बनाई और अब बारी थी उसे चाय पिलाने की| हम दोनों फिर से वैसे ही बैठ गए और मैंने फूँक मार के उसे चाय पिलाई| सात बज गए पर ऋतू जानबूझ कर अब भी अपने हाथ नहीं धो रही थी, उसे मुझसे काम कराने में मजा आ रहा था| जब मैंने उससे पुछा की रात में क्या बनाऊँ तब वो हँसने लगी और बाथरूम में जा कर हाथ धोये और नहा कर आ गई| "आप हटिये, मैं बनाती हूँ!" पर मेरी नजरें उसके हाथों पर थीं जिन पर मेहँदी फ़ब रही थी| मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ा और उन्हें चूम लिया| ऋतू शर्मा गई और फिर ऋतू ने भिंडी की सब्जी और उर्द दाल बनाई| खाना तैयार हुआ और हम दोनों बैठ गए खाने, पर इस बार खाना ऋतू ने मुझे खिलाया| पेट भर के खाना खाया और अब बारी थी सोने की पर ऋतू बस अपने मेहँदी वाले हाथ देखने में मग्न थी| "क्या देख रही है?" मैंने मुस्कुराते हुए पुछा| उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने पास बिठा लिया, फिर अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट कर मेरे कंधे पर सर रखते हुए बोली; "आज मैं बहुत खुश हूँ! आपने बिना मेरे मांगे मेरी हर इच्छा पूरी कर दी! मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की मुझे आज का दिन देखना नसीब होगा! साडी खरीदना... मेहंदी लगवाना...ये सब मेरे लिए लिए एक सपने जैसा है| थैंक यू! Thank you for making this day so memorable!" मैंने ऋतू के सर को चूमा और हम दोनों लेट गए, पर आज कमरे का वातावरण बहुत शांत था| पहले ऋतू लेटते ही जैसे अपना आपा खो देती थी और मुझसे चिपक कर चूमना शुरू कर देती थी| पर आज वो बस मुझसे कस कर लिपटी रही और सो गई| मैं इस उम्मीद में की ऋतू कोई पहल करेगी कुछ देर जागता रहा पर जब मुझे लगा वो सो चुकी है तो मैं भी चैन से सो गया|


अगली सुबह ऋतू पहले ही जाग चुकी थी और बाथरूम में नहा रही थी| मैं उठा और खिड़की से पीठ टिका कर हाथ बंधे ऋतू के बाहर निकलने का इंतजार करने लगा| 10 मिनट बाद ऋतू निकली, टॉवल अपने स्तनों के ऊपर लपेटे हुए और उसके गीले बाल जिन से अब भी पानी की बूँदें टपक रही थी| साबुन और शैम्पू की खुशबू पूरे कमरे में भर गई थी और मैं बस ऋतू को देखे जा रहा था| मुझे खुद को देखते हुए ऋतू थोड़ा शर्मा गई और शर्म से उसके गाल लाल हो गए| "क्या देख रहे हो आप?" उसने नजरें झुकाते हुए पुछा| "यार या तो शायद मैंने कभी गौर नहीं किया या फिर वाक़ई में आज तुम्हें पहली बार इस तरह देख रहा हूँ! मन कर रहा है की तुम्हें अपनी बाहों में कस लूँ और चूम लूँ!" मैंने कहा तो ऋतू हँसने लगी; "रात भर का सब्र कर लो, उसके बाद तो मैं आपकी ही हूँ!" "हाय! रात भर का सब्र कैसे होगा!" मैंने कहाँ और ऋतू की तरफ बढ़ने लगा, पर मैंने उसे छुआ नहीं बल्कि बाथरूम में घुस गया| ऋतू उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अपनी बाहों में भर लूँगा पर जब मैं उसकी बगल से गुजर गया तो वो थोड़ा हैरान हुई| जब मैं नहा कर निकला तो ऋतू अपने बाल सूखा रही थी, मैं बाहर आया और ऋतू से बोला; "जल्दी से तैयार हो जाओ!"

"क्यों? अब कहाँ जाना है?" ऋतू ने रुकते हुए पुछा|

"पार्लर" ये सुन के ऋतू आँखें फाड़े मुझे देखने लगी!

"पर ...वहाँ...." आगे उसे समज ही नहीं आया की क्या बोलना है|

"अरे बाबा! आज के दिन औरतें पार्लर जाती हैं और पता नहीं क्या-क्या करवाती हैं, तो तुम्हें भी तो करवाना होगा न?!" ऋतू ने तो जैसे सोचा ही नहीं था की उसे ऐसा भी करना होगा|
"पर ...मुझे तो पता नहीं...वहाँ क्या..." ऋतू ने दरी हुई आवाज में कहा क्योंकि वो आजतक कभी पार्लर नहीं गई थी| हमारे गाँव में तो कोई पार्लर था नहीं जो उसे ये सब पता होता|

"जान! वहाँ कोई एक्सपेरिमेंट नहीं होता जो तू घबरा रही है! जो सजने का काम तू घर पर करती है वही वो लोग करेंगे|" अब पता तो मुझे भी ज्यादा नहीं था तो क्या कहता|

"तो मैं यहीं पर तैयार हो जाऊँगी, वहाँ जा कर पैसे फूँकने की क्या जर्रूरत है?"
मैंने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा| "अच्छा? कहाँ है तेरे मेक-अप का सामान? ये एक नेल पोलिश....और ये एक फेसवाश....ओह वेट ये...ये फेस क्रीम...बस?! फाउंडेशन कहाँ है? और...वो क्या बोलते हैं उसे...मस्कारा कहाँ है?" ये एक दो नाम ऐसे थे जो मैंने कहीं सुने थे तो मैंने उन्हीं को दोहरा दिया| ये सुन कर तो ऋतू भी सोच में पड़ गई क्योंकि उसके पास कोई सामान था ही नहीं, वो मुझे सिंपल ही बहुत अच्छी लगती थी पर आज तो उसका पहला करवाचौथ था तो सजना-सवर्ना तो बनता था|

"पर वहाँ जा कर मैं बोलूं क्या? की मुझे क्या करवाना है? मुझे तो नाम तक नहीं पता की वो क्या-क्या करते हैं|" ऋतू ने पलंग पर बैठते हुए कहा|

'वहाँ जा कर पूछना की Pythagoras थ्योरम क्या होती है?" मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा|

"वो तो मुझे आती है, a2 + b2 = c2“ ये कहते हुए ऋतू हँसने लगी|
"तू ऐसे नहीं मानेगी ना? रुक अभी बताता हूँ तुझे मैं|" इतना कह कर मैं ऋतू को पकड़ने को उसके पीछे भागा और हम दोनों पूरे घर में भागने लगे| मैं चाहता तो ऋतू को एक झटके में पकड़ सकता था पर उसके साथ ये खेल खलेने में मजा आ रहा था| वो कभी पलंग पर चढ़ जाती तो कभी दूसरे कोने में जा कर मुझे dodge करने की कोशिश करती| आखिर मैंने उस का हाथ पकड़ लिया और उसे बिस्तर पर बिठा दिया और उसके सामने मैं अपने घुटनों पर बैठ गया; "देख...पार्लर जा और वहाँ जा कर manicure, pedicure, bleaching, facial, threading वगैरह-वगेरा करवा| फिर भी कुछ समझ ना आये तो अपना दिमाग इस्तेमाल कर और जो भी तुझे वहाँ पर all - in one पैक मिले उसे करवा ले| वहाँ जो भी आंटी या दीदी होंगी उनसे पूछ लिओ और ये जो तेरे फ़ोन में गूगल बाबा हैं इनमें सर्च कर ले| अब मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ प्लीज चली जा!" मैंने ऋतू के आगे हाथ जोड़े और वो ये देख कर खिलखिलाकर हँस पड़ी| "ठीक है जी! पर पार्लर तक तो छोड़ दो, मुझे थोड़े पता है यहाँ पार्लर कहाँ है|" ऋतू ने हार मानते हुए कहा|

"इतने दिनों से या आती है तुझे ये नहीं पता की पार्लर कहाँ है?" मैंने ऋतू को प्यार से डाँटा|

"आपके लिए चाय बना देती हूँ फिर चलते हैं|" ऋतू ने कहा पर मेरा प्लान तो उसके साथ व्रत रखने का था|

"बिलकुल नहीं! मेरी बीवी भूखी-प्यासी बैठी है और मैं खाना खाऊँ?" मेरे मुँह से बीवी सुनते ही ऋतू का चेहरे ख़ुशी से दमकने लगा|

"आप प्लीज फास्टिंग मत करो! ये फ़ास्ट तो औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए करती हैं, ना की आदमी!"

"यार ये क्या बात हुई? मैं इतनी लम्बी उम्र ले कर क्या करूँगा अगर तुम ही साथ न हुई तो? बैलेंस बना कर रखना चाहिए ना?" मेरे तर्क के आगे उसका तर्क बेकार साबित हुआ पर फिर भी ऋतू ने बड़ी कोशिश की पर मैं नहीं माना और मैं भी ये व्रत करने लगा| ऋतू को पार्लर छोड़ा और मैं उसकी साडी लेने चल दिया|


हुस्ना आपा का शुक्रिया किया की उन्होंने इतने कम समय में काम पूरा किया और फिर वापस निकल ही रहा था की अंशुल मिल गया| उससे कुछ बातें हुई और मुझे वापस आने में देर हो गई| दोपहर के 3 बजे थे और ऋतू का फ़ोन बज उठा| "जान! मैं बाहर ही खड़ा हूँ|" ये सुनकर ही ऋतू ने फ़ोन काट दिया और जब वो बाहर निकली तो मैं उसे बस देखता ही रह गया| उसके चेहरे की दमक 1000 गुना बढ़ गई थी, होठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक देख मन बावरा होने लगा था| आज पहलीबार उसने eyeliner लगाया था जिससे उसकी आँखें और भी कातिलाना हो गई थी| उसकी भवें चाक़ू की धार जैसी पतली थीं और मैं तो हाथ बाँधे बस उसे देखता रहा| ऋतू शर्म से लाल हो चुकी थी और ये लालिमा उसके चेहरे पर चार-चाँद लगा रही थी| "जल्दी से घर चलिए!" ऋतू ने नजरें झुकाये हुए ही कहा|

"ना ...पहले मुझे I love you कहो और एक kiss दो!" मैंने ऋतू के सामने शर्त रखी|

"प्लीज ...चलो न...घर जा कर सब कुछ कर लेना...पर अभी तो चलो! मुझे बहुत शर्म आ रही है!"

"ना...मेरी गाडी बिना I love you और 'Kissi' के स्टार्ट नहीं होगी|" माने अपनी बुलेट रानी पर हाथ रखते हुए कहा|

"सब हमें ही देख रहे हैं!" ऋतू ने खुसफुसाते हुए कहा|

"तो? यहाँ तुम्हें जानने वाला कोई नहीं है| Kissi चाहिए मुझे!" मैंने अपने दाएँ गाल पर ऊँगली से इशारा करते हुए कहा| ऋतू जानती थी की मैं मानने वाला नहीं हूँ इसलिए हार मानते हुए उसने थोड़ा उचकते हुए मेरे गाल को जल्दी से चूम लिया और शर्म के मारे मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा लिया| "अच्छा बस! इतनी मेहनत लगी है इस चाँद से चेहरे को निखारने में, इसे खराब ना कर|" मैंने ऋतू को खुद से अलग किया| हम वापस बाइक से घर पहुँचे और बाइक से उतरते ही ऋतू भाग कर घर में घुस गई| मैं बस हँस के रह गया, बाइक खड़ी कर मैं ऊपर आया तो ऋतू शीशे में खुद को निहार रही थी उसे खुद यक़ीन नहीं हो रहा था की वो इतनी सुंदर है| "1,200/- लग गए! पर सच में जानू मैंने कभी सोचा नहीं था की मैं इतनी सूंदर हूँ!" ऋतू ने कहा| "अब तो मुझे insecurity होने लगी है!" मैंने हँसते हुए कहा और ऋतू भी ये सुन कर खिलखिलाकर हँसने लगी| मैंने ऋतू को उसकी साडी दी और तैयार होने को कहा क्योंकि हमें मंदिर जाना था जहाँ की कथा होनी थी| इधर मैं भी तैयार होने लगा, पर जब ऋतू पूरी तरह से तैयार हो कर आई तो मेरे चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी|


दो मिनट तक जब मैं कुछ नहीं बोला तो ऋतू ने ही मेरा ध्यान भंग किया; "जानू???" उसके बुलाते ही मेरे मुँह से ये शेर निकला;

"उस हसीन चेहरे की क्या बात है

हर दिल अज़ीज़, कुछ ऐसी उसमें बात है

है कुछ ऐसी कशिश उस चेहरे में

के एक झलक के लिए सारी दुनिया बर्बाद है|"


ये सुनते ही ऋतू को उसकी खूबसूरती का एहसास हुआ और शर्म से उसके गाल फिर लाल हो गए| पर आज मेरा मेरे ही दिल पर काबू नहीं था आज तो उसने बगावत कर दी थी;


"जब चलती है गुलशन में बहार आती है

बातों में जादू और मुस्कराहट बेमिसाल है

उसके अंग अंग की खुश्बू मेरे दिल को लुभाती है

यारो यही लड़की मेरे सपनो की रानी है|"


एक शेर तो जैसे आज उसके हुस्न के लिए काफी नहीं था|


"नज़र जब तुमसे मिलती है मैं खुद को भूल जाता हूँ

बस इक धड़कन धड़कती है मैं खुद को भूल जाता हूँ

मगर जब भी मैं तुमसे मिलता हूँ मैं खुद को भूल जाता हूँ|"


आज तो वो शायर बाहर आ रहा था जो आशिक़ी की हर हद को फाँद सकता था|


"तेरे हुस्न का दीवाना तो हर कोई होगा लेकिन मेरे जैसी दीवानगी हर किसी में नहीं होगी।"

मेरी एक के बाद एक शायरी सुन ऋतू का शर्म के मारे बुरा हाल था, उसके गाल और कान पूरे लाल हो गए थे| वो बस नजरें झुकाये सब सुन रही थी और अपने आप को मेरी बाहों में बहक जाने से रोक रही थी| वो कुछ सोचती हुई मेरे नजदीक आई और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "हमे कहाँ मालूम था की ख़ूबसूरती क्या होती है? आज आपने हमारी तारीफ कर हमें हसीन बना दिया|" उसके इस शेर पर मेरा मन किया की उसके हसीन लबों को चूम लूँ पर फिर खुद पर काबू पाया| "पहली बार के लिए शेर अच्छा था!" मैंने ऋतू के शेर की तारीफ करते हुए कहा| मैंने ऋतू का दाहिना हाथ पकड़ा और टेबल पर से चूड़ियाँ उठा कर उसे पहनाने लगा, साइज थोड़ा बड़ा था पर चूँकि imitation जेवेलरी थी तो वो फिर भी अच्छी लग रही थी| "ये तो मैं लेना भूल ही गई थी!" ऋतू ने कहा पर मैंने तो इस दिन की प्लानिंग पहले से ही कर रखी थी| बस एक चीज बची थी वो था सिन्दूर! मैंने आते समय वो भी ले लिया था, डिब्बी से एक चुटकी सिन्दूर निकाल के मैंने ऋतू की मांग में भरा तो ऋतू ने अपनी आँखें बंद कर लीन और आसूँ के एक बूँद निकल कर नीचे जा गिरी| "Hey??? क्या हुआ मेरी जान?" ऋतू ने खुद को रोने से रोका और फिर बोली; "आज से मैं आपकी permanent wife बन चुकी हूँ!" उसने थोड़ा माहौल हल्का करने के लिए कहा| पर मैं उसका मतलब समझ गया था, उसका मतलब था की आज से हम दोनों का प्यार पुख्ता रूप ले चूका है और अब हम पति-पत्नी बन चुके हैं| "No...there's something missing!" मेरे मुँह से ये सुन ऋतू सोच में पड़ गई, पर जब मैंने जेब से उसके लिए लिया हुआ मंगलसूत्र निकाला तो वो सब समझ गई| "ये तो नया है! वो पुराना कहाँ गया?" ऋतू ने पुछा| "जान वो तो नकली था! ये असली वाला है|" ये सुन कर ऋतू चौंक गई और अपने होठों पर हाथ रखते हुए बोली; "ये सोने का है? पर पैसे?" मैं जवाब देने से पहले ही ऋतू के पीछे आया और उसे अपने हाथों से मंगलसूत्र पहनाते हुए कहा; "मेरी जान से तो महँगा नहीं हो सकता ना?" ऋतू ये सुन कर चुप हो गई और आगे कुछ नहीं बोली, वो जानती थी की आगे अगर कुछ बोली तो मैं नाराज हो जाऊँगा| वो फिर से मुस्कुराने लगी; "Technically now we're husband and wife!!!" ये सुन कर ऋतू बहुत-बहुत खुश हुई और हम दोनों का कतई मन नहीं था की ये समां कभी खत्म हो पर पूजा के लिए तो जाना ही था!


ख़ुशी-ख़ुशी ऋतू ने पूजा का सारा सामान एक बड़ी थाली में इकठ्ठा किया और हम घर से निकले| किसी संस्था ने एक मंदिर के बाहर बहुत बड़ा पंडाल लगाया था और वहीँ पर पूजा होनी थी| हम दोनों भी वहाँ पहुँच गए, वहीँ पर हमें रिंकी भाभी मिलीं जिससे ऋतू को एक कंपनी मिल गई| पूरे विधि-विधान से पूजा और कथा हुई और रात 8 बजे हम घर लौटे| अब एक दिक्कत थी, वो ये की चंद्र उदय होने के समय बिल्डिंग की सभी औरतें और आदमी वहाँ इकठ्ठा होने वाले थे और ऐसे में हम दोनों का वहाँ जाना शायद किसी न किसी को खलता| मैं अभी ये सोच ही रहा था की रिंकी भाभी ने दरवाजा खटखटाया; "अरे रितिका तू यहाँ क्या कर रही है, चल जल्दी से ऊपर|" अब ऋतू तो कब से ऊपर जाना चाहती थी पर मैंने ही उसे मना कर दिया था; "भाभी वो... अभी वहाँ सब होंगे तो.... हम दोनों को देख कर कहीं कुछ ऐसा वैसा बोल दिया तो मुझे गुस्सा आ जायेगा!" मैंने अपनी चिंता जताई|

"कोई कुछ नहीं कहेगा, मैं बोल दूँगी ये मेरी बहन है और तुम तो मेरे छोटे देवर जैसे हो| पापा भी ऊपर ही हैं कोई कुछ बोला तो जानते हो ना पापा कैसे बरस पड़ते हैं?" भाभी की बात सुन कर मन को चैन आया की सुभाष अंकल तो सब जानते ही हैं की हम दोनों की शादी होने वाली है| इसलिए हम तीनों ऊपर आ गए और यहाँ तो लोगों का ताँता लगा हुआ है| एक-एक कर सब हम दोनों से मिले, इधर ऋतू ने जा कर सुभाष अंकल जी के पेअर छुए और उनका आशीर्वाद लिया| काफी लोगों से तो मैं आज पहली बार मिल रहा था इसका कारन था की मेरे पास कभी किसी से घुलने-मिलने का समय ही नहीं होता था| ऋतू के कॉलेज से पहले भी मैं घर पर बहुत कम ही रहता था, अकेले रहने से तो बाहर घूमना अच्छा था इसलिए मैं अक्सर फ्री टाइम में खाने-पीने निकल जाता और रात को आ कर सो जाया करता था| आज जब सब से मिला तो सब यही कह रहे थे की एक ही बिल्डिंग में रह कर कभी मिले नहीं| इधर ऋतू भाभी के साथ बाकी सब से मिलने में व्यस्त थी, भाभी सब को यही कह रही थी की हम दोनों की शादी होने वाली है और ये ऋतू का पहला करवाचौथ है| सब हैरान थे की भला ये क्या बात हुई की शादी के पहले ही करवाचौथ तो भाभी ही बीच-बचाव करते हुए बोली; "जब दिल मिल गए हैं तो ये रस्में निभानी ही चाहिए|"


खेर आखिर कर चाँद निकल ही आया और सब आदमी अपनी-अपनी बीवियों के पास जा कर खड़े हो गए| आज पहलीबार था की हम दोनों यूँ सबके सामने प्रेमी नहीं बल्कि पति-पत्नी बन के विधि-विधान से पूजा कर रहे हैं| शर्म से ऋतू पूरी लाल हो चुकी थी और इधर थोड़ी-थोड़ी शर्म मुझे भी आने लगी थी| ऋतू ने जल रहे दीपक को छन्नी में रख के पहले चाँद को देखा और फिर मुझे देखने लगी| उस छन्नी से मुझे देखते ही उसकी आँखें बड़ी होगी ऐसा लगा जैसे वो मुझे अपनी ही आँखों में बसा लेना चाहती हो| उस एक पल के लिए हम दोनों बस एक दूसरे को देखे जा रहे थे, बाकी वहाँ कौन क्या कर रहा है उससे हमें कोई सरोकार नहीं था| आखिर भाभी ने हँसते हुए ही हम दोनों की तन्द्रा भंग की; "ओ मैडम! देखती रहोगी की आगे पूजा भी करोगी?" तब जा कर हम दोनों का ध्यान भंग हुआ, मैं तो मुस्कुरा रहा था और ऋतू शर्म से लाल हो गई! भाभी के बताये हुए तरीके से उसने पूजा की और अंत में मेरे पाँव छुए| अब ये पहली बार था की ऋतू मेरे पाँव छू रही थी और मुझे समझ नहीं आया की मैं उसे क्या आशीर्वाद दूँ? मैंने बस अपना हाथ उसके सर पर रख दिया और दिल ही दिल में कामना करने लगा की मैं उसे एक अच्छा और सुखद जीवन दूँ| बाकी सब लोग अपनी पत्नियों को पानी पिला रहे थे तो मैंने भी पानी का गिलास उठा कर ऋतू को पानी पिलाया और उसके बाद उसने भी मुझे पानी पिलाया| अब ये देख कर भाभी फिर से दोनों की टांग खींचने आ गई; "अच्छा जी!!! मानु ने भी व्रत रखा था? वाह भाई वाह!" जिस किसी ने भी ये सुना वो हँसने लगा, सुभाष अंकल बोले; "बेटा यूँ ही हँसते-खेलते रहो और जल्दी से शादी कर लो|"

"बस अंकल जी 2 साल और फिर तो शादी ...!!!" मैंने भी हँसते हुए कहा| ऋतू का शर्माना जारी था.... सारे लोग एक-एक कर नीचे आ गए|
jordaar update hai bhai
dil chhu lene waali panktiya thi mitr
bahtreen karva chouth vart
 
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Nevil singh

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नीचे आ कर मैंने सबसे पहले ऋतू के लिए दूध बनाया, ये पहलीबार था की उसने ऐसा व्रत रखा हो और मुझ उसके स्वास्थ्य की बहुत चिंता थी| ऋतू ने बहुत मना किया की इसकी कोई जर्रूरत नहीं पर मैंने फिर भी उसे जबरदस्ती दूध पिला दिया| "आप भी पियो न, व्रत तो आपने भी रखा था ना?" ऋतू ने कहा| "जान! मैं अभी अगर दूध पी लूँगा तो खाना नहीं खाऊँगा, इसलिए मेरी चिंता मत कर| अब ये बता की खाना क्या खाओगी?" मैंने खाना आर्डर करने के इरादे से कहा पर ऋतू एक दम से उठ कड़ी हुई; "कोई आर्डर-वॉर्डर करने की जर्रूरत नहीं है, मैं बनाऊँगी खाना!" ऋतू ने लाजवाब खाना बनाया और फिर हमेशा की तरह हमने एक दूसरे को अपने हाथों से खिलाया| अब बारी थी सोने की और ऋतू को सुबह से देख कर ही मेरा मन मचल रहा था| कुछ यही हाल ऋतू का भी था जो कब से मेरी बाहों में सिमट जाना चाहती थी|

ऋतू अपनी साडी उतारने लगी, उसका ध्यान मेरी तरफ नहीं था पर मेरी आँखें तो उसके बदन से चिपकी हुई थीं| ऋतू ने साडी उतारी और उसे फोल्ड करने लगी, पेटीकोट और ब्लाउज में आज वो खर ढा रही थी| मुझसे रुका न गया तो मैं उठा और जा कर उसके पीछे उससे सट कर खड़ा हो गया| मेरे जिस्म का एहसास पाते ही ऋतू सिंहर गई और उसके हाथ साडी फोल्ड करते हुए रूक गए| मैंने अपन दोनों हाथों से ऋतू की कमर को थामा और उसकी गर्दन को चूमा और फिर जैसे मुझे कुछ याद आया और मैं ऋतू को छोड़ कर किचन में गया| इधर ऋतू हैरान-परेशान से खड़ी अपने सवालों का जवाब ढूँढने लगी, की आखिर क्यों मैं उसे ऐसे छोड़ कर किचन में चला गया| मैं जब किचन से लौटा तो मेरे हाथ में एक पानी का गिलास था और ऋतू की आँखों में सवाल| "आज दवाई नहीं ली ना?" मैंने ऋतू को उसकी प्रेगनेंसी वाली दवाई की याद दिलाई और उसने फटाफट अपने बैग से दवाई निकाली और पानी के साथ खा ली| अब और कोई भी काम नहीं बचा था, ऋतू ने साडी आधी ही फोल्ड की थी और जब वो उसे दुबारा फोल्ड करने को झुकी तो मैंने उसका हाथ पकड़ के झटके से अपनी तरफ खींचा| ऋतू सीधा मेरे सीने से आ लगी और अपन असर मेरे सीने में छुपा लिया| अब तो मेरे लिए सब्र कर पाना मुश्किल था, मैंने ऋतू को गोद में उठाया और उसे पलंग पर लिटा दिया| ऋतू ने भी फटाफट अपना ब्लाउज खोलना शुरू किया और इधर मैंने उसके पेटीकोट का नाडा खोल दिया| ब्लाउज ऋतू ने निकाला तो उसका पेटीकोट मैंने निकाल कर कुर्सी पर रख दिया| अब ऋतू सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी और मैं अभी भी पूरे कपड़ों में था, मैंने एक-एक कर सारे कपडे निकाल कर कुर्सी पर रखे| ऋतू उठ के बैठी और अपनी ब्रा का हुक खोल उसे निकाल दिया, अभी मैं ये कपडे कुर्सी पर रख ही रहा था की ऋतू ने मेरे कच्छे के ऊपर से मेरे लंड को चूम लिया और अपनी दोनों हाथों की उँगलियों को मेरे कच्छे की इलास्टिक में फँसा कर नीचे सरका दिया| आगे का काम मैंने खुद ही किया और कच्छा निकाल कर कुर्सी पर रख दिया|

"क्या बात है जानू! आज तो सारे कपडे आप कुर्सी पर रख रहे हो?"

"कल मेरी जान को उठा के ना रखने पड़े इसलिए कुर्सी पर रख रहा हूँ|" ये कहते हुए मैं ऋतू की बगल में लेट गया| ऋतू ने एकदम से मेरी तरफ करवट ली और मेरे होठों को Kiss करने लगी| "आज पार्लर के बाहर आप बहुत naughty हो गये थे?" ऋतू ने मेरे ऊपर वाले होंठ को चूमते हुए कहा| "पहले तुम naughty हो जाए करती थी अब मैं हो जाता हूँ!" मैंने जवाब दिया और ऋतू को अपनी बुर मेरे मुँह पर रख कर बैठने को कहा| ऋतू बैठी तो सही पर उसका मुँह मेरे लंड की तरफ था और इससे पहले की मैं उसकी बुर को अपनी जीभ से छु पाता वो आगे को झुक गई और तब मुझे एहसास हुआ की ऋतू ने अब भी पैंटी पहनी हुई थी| हम दोनों इतना बेसब्र हो गए थे की ऋतू की पैंटी उतारने के बारे में भूल गए थे| मेरा मन आज उसकी बुर का स्वाद चखने का था, ऐसा लग रहा था जैसे एक अरसा हुआ उसकी बुर का स्वाद चखे! मैंने ऋतू को सीधा बैठने को कहा, तो वो अपनी बुर मेरे मुँह पर टिका कर बैठ गई|

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फिर मैंने उसे अपनी पैंटी को उसके बुर के छेद के ऊपर से हटाने को कहा ताकि मैं उसे अच्छे से चाट सकूँ| ऋतू ने अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से अपनी पैंटी को इस कदर साइड किया की मुझे ऋतू के बुर के द्वार साफ़ नजर आये| मैंने अपनी जीब निकाल कर ऋतू की बुर को चाटना शुरू किया, "ससससस...आह...सस्म्ममं मममम मममम" की आवाज मेरे कमरे में गूँजने लगी| मस्ती आकर ऋतू ने अपनी बुर को मेरे मुँह पर आगे-पीछे रगड़ना शुरू कर दिया| उसके ऐसा करने से मेरे होठों और उसकी बुर की पंखड़ियों में घर्षण पैदा होता और ऋतू सिस्याने लगती! अगले पांच मिनट तक ऋतू अपनी बुर को इसी तरह अपनी बुर को मेरे मुँह पर घिसती रही पर अब भी एक अड़चन थी|

ऋतू अब भी अपनी पैंटी पकड़ के बैठी थी जिससे उसे वो स्पीड हासिल नहीं हो रही थी जो वो चाहती थी, ऋतू उठी और गुस्से से अपनी पैंटी निकाल फेंकी और दुबारा मेरे मुँह पर बैठ गई| इस बार आसन दूसरा ग्रहण किया, इस बार वो मेरी तरफ मुँह कर के बैठी, उसका दायाँ हाथ मेरे मस्तक पर था और बाएं हाथ को उसने मेरे पेट पर रख कर सहारा लिया ताकि वो गिर ना जाए|

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मैंने अपनी जीभ निकल के ऋतू की बुर के अंदर प्रवेश कराई की ऋतू की सिसकारी निकल पड़ी और उसने अपनी कमर को पहले की तरह आगे-पीछे चलाना शुरू कर दिया| ऐसा लग रहा था जैसे मेरी जीभ मेरे लंड का काम कर रही है और ऋतू की बुर छोड़ रही है| ऋतू की नजर मेरे चेहरे पर टिकी थी और वो ये देख रही थी की मुझे इसमें कितना मज़ा आ रहा है| दस मिनट तक ऋतू बिना रुके लय बद्ध तरीके से अपनी कमर को मेरे होठों पर आगे-पीछे करती रही और मैं उसकी बुर को किसी आइस-क्रीम की तरह चाटता रहा| "ससाह...ममः...मममममम...अअअअअअअअ ...!!!" कर के ऋतू ने पानी छोड़ा जो बहता हुआ मेरे मुँह में भर गया|

ऋतू मेरे ऊपर से लुढ़क कर लेट गई, इधर मेरा लंड पूरी तैयारी में खड़ा था और इंतजार कर रहा था की उसका नंबर कब आएगा? ऋतू कुछ तक गई थी इसलिए वो अपनी साँसों को काबू कर रही थी पर उसकी नजर मेरे लंड पर थी| मैंने अपने लंड को पकड़ा और उसे हिला कर उसे उसके दर्द का एहसास दिलाया| थोड़ा प्यार तो उस बिचारे को भी चाहिए था.....

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ऋतू को भी मेरे लंड पर तरस आ गया, या ये कहे की उसके मुँह में पानी आ गया| वो उठ के बैठी मेरे लंड को अपने मुट्ठी में पकड़ के उसका अच्छे से दीदार करने लगी| उसके हाथ लगते ही प्री-कम की एक बूँद लंड के छेद से बाहर आई, ऋतू ने लंड की चमड़ी पकड़ के उसे एक बार ऊपर-नीचे किया तो उस प्री-कम की बूँद ने पूरे लंड को गीला कर दिया|

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ऋतू ने अपने गर्म-गर्म साँस का भभका मेरे लंड पर मारा तो उसमें खून का प्रवाह तेज हो गया| ऋतू ने आधा लंड अपने मुँह भरा और अपने मुँह को मेरे लंड पर ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया| धीरे-धीरे ऋतू मेरे लंड को जितना हो सके उतना अपने मुँह में और अंदर लेती जा रही थी| फिर कुछ पलों के लिए ऋतू ने जोश में आ कर मेरा पूरा लंड अपने गले तक उतार लिया और कुछ सेकण्ड्स के लिए रूक गई| जब उसे लगा की उसकी सांस रूक रही है तो उसने पूरा लंड अपने मुँह से निकाला| मेरा पूरा लंड उसके थूक से सन गया था और चमकने लगा था| पर उसका मन अभी भरा नहीं था, ऋतू ने अपने हाथ से चमड़ी को आगे-पीछे किया और फिर अपनी जीभ से पूरे लंड को जड़ से ले कर छोर तक चाटने लगी| अगले पल उसने वो किया जिसकी उम्मीद मैंने कभी नहीं की थी, उसने झुक कर मेरे टट्टों (अंडकोष) को अपने मुँह में भर के चूसा! मैं आँखें फाड़े उसे देखने लगा और ऋतू बस मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा दी| ऋतू ने फिर से मेरे लंड को अपने मुँह में लिया और अपने मुँह को फिर से ऊपर-नीचे करते हुए लंड चूसने लगी| आज तो मुझे बहुत मजा आ रहा था और लग रहा था की मैं छूट जाऊँगा इसलिए मैंने ऋतू को रोका और लिटा दिया, उसकी टांगों को चौड़ा कर मैं बीच में आ गया| लंड को उसकी बुर पर सेट किया और एक झटका मार के अंदर ठेल दिया| चूँकि मेरा लंड पहले से ही ऋतू के थूक और लार से भीगा हुआ था इसलिए मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी| एक धक्का और आधे से ज्यादा लंड अंदर पहुँच गया!

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ऋतू की बुर अंदर से बहुत गीली हो चुकी थी और वो मेरा पूरा लंड खाना चाहती थी| इसलिए अगले धक्के से पूरा लंड अंदर चला गया "आह! ममममम ममममममममम ...ससस..!!!" अंदर की गर्माहट पा कर लंड प्रफुल्लित हो उठा और मैंने अब अपने लंड को जड़ तक अंदर पेलना शुरू कर दिया| जब लंड अंदर पूरा पहुँचता तो ऋतू की बुर अंदर से टाइट हो जाती और लंड बाहर निकालते ही उसकी बुर अंदर से ढीली हो जाती| अगले पाँच मिनट तक मैं इसी तरह ऋतू की बुर चुदाई करता रहा| ऋतू की आँखों में मुझे कभी न खत्म होने वाली प्यास नजर आ रही थी इसलिए मैं उस पर झुका और उसके होठों को Kiss किया, मैंने वापस खड़ा होना चाहा पर ऋतू ने अपने अपनी एक बाँह को मेरे गले में डाल दिया और मुझे अपने ऊपर ही झुकाये रखा|


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मैं उसके ऊपर झुके हुए ही अपनी कमर को चलाता रहा और ऋतू की बुर से पूछ-पूछ की आवाज आती रही| "स्सम्म्म हहहह ...मामामा..आह!" कहते हुए ऋतू उन्माद से भरने लगी! उसकी बुर में घर्षण बढ़ चूका था और वो किसी भी वक़्त छूट सकती थी पर मुझे अभी और समय चाहिए था, इतने दिनों से जो प्यासा था! मैं रूका और ऋतू को पलट के उसे घुटनों के बल आगे को झुका दिया| ऋतू के घुटने मुड़ के उसकी छाती से दबे हुए थे, मैंने पीछे से ऋतू के कूल्हों को पकड़ के उसके बुर के सुराख को उजागर किया और अपना लंड अंदर पेल दिया!


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हमला इतना तीव्र था की ऋतू दर्द से तड़प उठी; "अअअअअअअहहहहहहहह !!!" चिल्लाते हुए उसने बिस्तर की चादर को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया| मेरा पूरा लंड ऋतू की बुर में उतर चूका था इसलिए मैंने बिना रुके धक्के मारने शुरू कर दिए| हर धक्के से ऋतू का जिस्म कांपने लगा था और आनंद और दर्द के मिले जुले एहसास ने उसे छूटने के कगार पर पहुँचा दिया| मैं भी स्खलित होने के बहुत नजदीक था इसलिए मेरे धक्कों की गति और बढ़ गई थी! अगले कुछ पलों में पहले मैं और फिर ऋतू एक साथ स्खलित हुए और एक दूसरे से अलग हो कर पस्त हो गए| सांसें दुरुस्त हुई तो मैंने ऋतू को देखा, उसके चेहरे पर संतुष्टि की ख़ुशी दिखी| "कभी-कभी जान निकाल देते हो आप!" ऋतू ने प्यार भरी शिक़ायत की तो जवाब मैंने अपने दोनों कान पकडे और उसे सॉरी कहा| "पर मज़ा भी तभी आता है!" ऋतू ने शर्माते हुए कहा| मैंने उठ के ऋतू को अपने ऊपर खींच लिया और उसके गालों को चूमा और हम दोनों ऐसे ही सो गए|








behtreen kabaddi match tie ho gaya
rangili update hai bhai
 
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Nevil singh

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अगली सुबह हुई तो हम अब भी उसी तरह लेटे हुए थे| ऋतू की आँख खुली और उसने मेरी गर्दन को चूमा तब मेरी आँख खुली| मैंने ऋतू के सर को चूमा और तब ऋतू उठ के बाथरूम में घुस गई| मैं भी अंगड़ाई लेता हुआ उठा और अपना फ़ोन देखा तो उसमें एक मेल आई थी| मुझे एक इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था, मेरे पास बस दो घंटों का समय था इसलिए जैसे ही ऋतू बाथरूम से निकली मैं तुरंत बाथरूम में घुस गया| 10 मिनट में नहा कर बाहर आया, ऋतू मेरी टी-शर्ट पहने हुए चाय बना रही थी| "जान! प्लीज जल्दी से कपडे पहनो, I've an interview to catch!" ये सुनते ही ऋतू ने फटाफट चाय बनाई और मेरे लिए टोस्ट भी बना दिए| मैंने कपडे पहने और खड़े-खड़े ही नाश्ता किया और दोनों साथ निकले, ऋतू को मैंने हॉस्टल छोड़ा; "Best of luck!!!" ऋतू ने कहा और मैंने मुस्कुरा कर थैंक यू कहा| फिर मैं इंटरव्यू के लिए पहुँच गया, वहाँ गिनती के लोग थे और जब मेरा नंबर आया तो उन्होंने मेरा रिज्यूमे देखा और फाइनली मैं सेलेक्ट हो गया! आज जितनी ख़ुशी मुझे पहले कभी नहीं हुई थी! मैंने तुरंत ऋतू को कॉल किया और उसे कॉलेज के बाहर बुलाया, वो भी मेरी आवाज से मेरी ख़ुशी समझ चुकी थी| मैं ख़ुशी से इतना बावरा हो गया था की मुझे कोई होश नहीं था| जैसे ही ऋतू कॉलेज के गेट से बाहर आई मैंने उसे गोद में उठा लिया और गोल-गोल घूमने लगा| "I'm so happy!" कहते हुए मैंने ऋतू को नीचे उतारा, कॉलेज का गार्ड मुझे ऐसा करते हुए देख रहा था| जब मेरा ध्यान उस पर गया तो मैंने ऋतू का हाथ पकड़ा और उसे खींच कर पार्क की तरफ भागा| ऋतू भी मेरे साथ ऐसे भाग रही थी जैसे मैं उसे literally घर से भगा कर ले जा रहा हूँ| आस-पास जो भी कोई था वो हम दोनों को इस तरह भागते हुए देख रहा था| आखिर हम पार्क पहुँचे और वहाँ बेंच पर बैठ कर अपनी साँसों को काबू करने लगे|


"I ..... got the job!" मैंने उखड़ी-उखड़ी साँसों को काबू में करते हुए कहा| इतना सुनना था की ऋतू मेरी तरफ मुड़ी और कस कर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया| "40K per month, Saturday is half day!"

"Thank God!" ऋतू ने भगवान् को शुक्रिया करते हुए कहा|

"हाँ बस एक दिक्कत है, हेड ऑफिस उन्नाओ में है| तो हफ्ते में एक दिन up-down करना पड़ेगा|" मैंने कहा|

"कोई बात नहीं!" एक-आध दिन सब्र कर लेंगे!" ऋतू ने मुस्कुराते हुए कहा|

"जान! सब कुछ सेट हो गया है अब! 40K ... उफ्फ्फ!! मुझे तो यक़ीन नहीं हो रहा!”
"तो चलो एक बार हिसाब कर लेते हैं की आपके क्या-क्या expenses हैं?" ऋतू ने बैग से कॉपी पेन निकालते हुए कहा| ये हरकत बचकानी थी पर मैं तो पहले से ही सब हिसाब किये बैठा था| मैंने अपना फ़ोन निकला और ऋतू को एक मैसेज भेजा जिसमें सारा हिसाब पहले से ही लिखा था| जब ऋतू ने वो पढ़ा तो वो हैरानी से मुझे देखने लगी:

1. घर का किराया: 8,500/- (इस महीने से बढ़ रहा है|)

2. राशन (मैक्सिमम): 3,000/-

3. बाइक की मेंटेनेंस: 3,000/- जिसमें 1,000/- reimburse होगा|

4. अतिरीक्त खर्चा: 4,000/- (provision for any unexpected expense)

हर महीने बचत: (कम से कम) 22,500/- इस हिसाब से 31 महीने (ऋतू के थर्ड ईयर के पेपर देने तक) के हुए 6,97,500/-


ऋतू ने जब 6 लाख की फिगर देखि तो उसकी आँखें छलक आईं; "जान ये फिगर और भी बढ़ेगी क्योंकि ये जो मैंने अतिरिक्त खर्चा रखा है ये भी कभी न कभी बचेगा! तो कम से कम ये मान कर चलो की हमारे पास 7 लाख होंगे! इतने पैसों से हम नई जिंदगी आराम से शुरू कर सकते हैं| अगर मैंने इन पैसों की FD करा दी तो ब्याज और भी मिलेगा!” उस समय मेरे दिमाग में जो अकाउंटेंट वाला दिमाग था वो बोलने लगा था और साड़ी प्लानिंग कर के बैठा था| ऋतू रोती हुई मुझसे लिपट गई; "जानू! मुझसे in 31 महीनों का सब्र नहीं होता!"

"जान! मैं हूँ ना तेरे साथ, ये 31 महीने मैं अपने प्यार से भर दूँगा!" मैंने ऋतू के सर को चूमते हुए कहा|

"जोइनिंग कब से है?" ऋतू ने पुछा|

"नेक्स्ट मंथ से! शुरू में तुम्हें थोड़ी दिक्कत होगी, क्योंकि काम समझने में थोड़ा टाइम लगेगा|"

"कोई बात नहीं! कम से कम आधा सैटरडे और पूरा संडे तो होगा हमारे पास!" ऋतू ने मुस्कुराते हुए कहा|

अब ये ख़ुशी सेलिब्रेट करनी तो बनती थी, इसलिए हम दोनों पिक्चर देखने गए और पिक्चर के बाद मैंने खुद हॉस्टल आंटी जी को फ़ोन कर दिया ये बोल कर की ऋतू मेरे साथ है और मैं उसे डिनर के बाद छोड़ दूँगा| हमने अच्छे से डिनर किया और फिर मैंने एक मिठाई का डिब्बा लिया और ऋतू को हॉस्टल छोड़ने चल दिया| वहाँ पहुँच के आंटी जी के पाँव छुए और उनका मुँह मीठा कराया की मेरी जॉब लग गई है| तभी मोहिनी भी आ गई और वो भी खुश हुई की मेरी नौकरी लग गई है और पूरा का पूरा मिठाई का डिब्बा ले कर खाने लगी| खेर इसी तरह दिन गुजरने लगे और दिवाली का दिन भी जल्द ही आ गया| मैं ऋतू को हॉस्टल से लेकर सीधा अंशुल की दूकान पर पहुँचा और माँ, ताई जी और भाभी के लिए साड़ियां खरीदी| एक साडी मैंने ऋतू के लिए भी खरीदी पर किसी तरह नजर बचा कर ताकि वो देख न ले, ताऊ जी, पिताजी और चन्दर के लिए सूट का कपडा लिया| वैसे तो मैं चन्दर और भाभी केलिए कुछ लेना नहीं चाहता था पर मजबूरी थी वरना सब कहते की इनके लिए क्यों कुछ नहीं लाया| ख़ुशी-ख़ुशी हम दोनों घर पहुँचे तो देखा घर का रंग-रोगन कराया जा चूका था| ऋतू तो सीधा घर घुस गई और मेंबीके कड़ी कर पिताजी से मिला और उनके पाँव हाथ लगाए| फिर उन्हें और ताऊ जी को ले कर मैं आँगन में आ गया और चारपाई पर बिठा दिया| "ऋतू, दरवाजा बंद कर दे!" मैंने ऋतू से कहा और फिर सभी को आवाज दे कर मैंने आंगन में बिठा दिया, एक-एक कर सब को उनके तौह्फे दिए तो सभी खुश हुए, सबसे ज्यादा अगर कोई खुश हुआ तो वो थी ऋतू जब मैंने उसे सबके सामने साडी दी| घर में उसने आज तक कभी साडी नहीं पहनी थी पर ये बात हमेशा की तरह भाभी को खटकी; "इसे साडी पहनना भी आता है?" उन्होंने कहा तो मुझे बड़ी मिर्ची लगी और मैंने उन्हें सुनाते हुए कहा; "आप कौन सा माँ के पेट से सीख कर आये थे? इसी दुनिया में सीखा ना? आप चिंता ना करो ऋतू आपको तंग नहीं करेगी की उसे साडी पहना दो, ताई जी हैं और माँ हैं वो सीखा देंगी|" अब ये बात भाभी को चुभी पर ताई जी ने बीच में पद कर बात आगे बढ़ने नहीं दी वरना ताऊजी से डाँट पड़ती! "ये बता की तुम दोनों ने कुछ खाया भी था?" ताई जी पुछा| मैंने बीएस ना में गर्दन हिलाई तो ताई जी ने खुद देसी घी के परांठे बनाये और मैंने डट के खाये!


चूँकि आज धनतेरस थी तो शाम को खरीदारी करने जाना था, हर साल पिताजी और ताऊ जी जाय करते थे पर इस बार मैं बोला; "ताऊ जी सारे चलें?" अब ये सुन कर वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगे| अब बाजार घर के इतने नजदीक तो नहीं था की सारे एक साथ पैदल चले जाएँ| बाइक से ही मुझे आधा घंटा लगता था, जब कोई कुछ नहीं बोला तो मुझे ही रास्ता सुझाना था| "चन्दर भैया आपका वो दोस्त है ना ...क्या नाम है...अशोक! उसे बुला लो ना?" ये सुनते ही वो मुस्कुरा दिए और फ़ोन निकाल कर उसे आने को कहा| अशोक का भाई मेरा दोस्त था और शादी-ब्याह में वो अपने ट्रेक्टर-ट्राली बारातियों के लाने-लेजाने के लिए किराये पर देते थे| "तू ज्यादा होशियार नहीं हो गया?" पिताजी ने प्यार से मेरे कान पकड़ते हुए कहा| ताऊ जी हँस दिए और उन्होंने सब को तैयार होने का आदेश दे दिया| सब तैयार हुए पर अब भी एक दिक्कत थी, वो ये की ट्रेक्टर चलाएगा कौन? चन्दर को तो आता नहीं था, इसलिए मैंने ही पहल की| जब स्कूल में पढता था तब कभी-कभी मस्ती किया करता था और हम दो-चार दोस्त मिल कर अशोक भैया का ट्रेक्टर खेतों में घुमाया करते थे| "तुझे ट्रेक्टर चलाना आता है?" ताऊ जी ने पुछा| मैंने हाँ में गर्दन हिलाई; "अरे तो पहले क्यों नहीं बताया? हम बेकार में ही दूसरों को इसके पैसे देते थे, इतने में तो नया ट्रेक्टर आ जाता|" ताऊ जी बोले| "पर मानु भैया घर पर होंगे तब तो?" पीछे से भाभी की आवाज आई अब मन तो किया की उन्हें कुछ सुना दूँ पर चुप रहा ये सोच कर की आज त्यौहार का दिन है क्यों खामखा सब का मूड ख़राब करूँ|


मैं ड्राइविंग सीट पर बैठा था और मेरे दाहिने हाथ पर ताऊ जी बैठ थे, बाईं तरफ पिताजी बैठ थे और बाकी सब एक-एक कर पीछे ट्राली में बैठ गए| इतने दिनों बाद ट्रेक्टर चला रहा था तो शुरू में बहुत धीरे-धीरे चलाया, फिर जैसे ही मैं रोड पकड़ा तो जो भगाया की एक बार को तो ताऊ जी बोल ही पड़े; "बेटा! धीरे!" तब जाके मैंने स्पीड कम की और हम सही सलामत बाजार पहुँच गए! बाजार में पिताजी के जान पहचान की एक दूकान थी और मैंने वहीँ ट्रेक्टर रोका और एक-एक कर सब उतरने लगे| सबसे आखरी में ऋतू रह गई थी और मुझे आज कुछ ज्यादा ही रोमांस चढ़ रहा था| जब वो उतरने लगी तो मैंने जानबूझ कर उसे कमर से पकड़ लिया और नीचे उतारा| हालाँकि इसकी कोई जर्रूरत नहीं थी पर आशिक़ी आज कुछ ज्यादा ही सवार थी, भाभी ने मुझे ऐसे करते हुए देखा तो बोली; "हाय! कभी मुझे भी उतार दो ऐसे!" ये सुनते ही ऋतू को मुँह फीका पड़ गया| "आप बहुत मोटे हो!!! आपको उठाने जाऊँगा तो मेरी कमर अकड़ जाएगी!" ये सुन कर माँ और ताई जी हँसने लगे और बेचारी भाभी शर्म से नीचे देखने लगी| पिताजी, चन्दर और ताऊ जी तो आगे चल दिए और इधर माँ, ताई जी, भाभी और ऋतू को साड़ियों का माप देना था, तो उनके साथ रहने की जिम्मेदारी मुझे दे दी गई| पिताजी एंड पार्टी तो अपने जान पहचान वाले दूकान दारों से मिलने लगे तो मैंने सोचा की हम सारे कुछ खा-पी लेते हैं| पर पहले माप देना था, सब एक-एक कर अपना माप लिखवा रहे थे और मैं बाहर खड़ा था और अरुण-सिद्धार्थ के मैसेज पढ़ रहा था|

माप दे कर सबसे पहले ताई जी आईं और उन्होंने पुछा की ताऊ जी कहाँ हैं तो मैंने कह दिया वो तो आगे चले गए सब से मिलने| "तो बेटा उन्हें फ़ोन कर|" ताई जी ने कहा| "छोडो ना ताई जी, चलो चल के कुछ खाते हैं|" तै जी मुस्कुरा दी और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं; "बाकियों को आने दे, फिर चलते हैं|" इतने में माँ आ गई और ताई जी ने हँसते उन्हें कहा; "तेरा लड़का समझदार होगया है| इसके लिए समझदार बहु लानी होगी|" मैं ये सुन कर हँस पड़ा, क्योंकि मैं जानता था की मेरी पसंद थोड़ी नसमझ है! पीछे से भाभी और ऋतू भी आ गए| फिर हम एक जगह बैठ के चाट खाने लगे, तभी चन्दर भैया हमें ढूँढ़ते हुए आ गए और हमें मज़े से चाट खाते हुए देख बोले; "वहाँ पिताजी आप सब को ढूँढ रहे हैं और आप सारे यहाँ बैठे चाट खा रहे हो?"

"अरे भूख लगी है तो कुछ खाये नहीं?!" ताई जी चन्दर को डाँटते हुए कहा| इतने में हम सबका खाना हो गया और हम सारे के सारे उठ के चल दिए, ताऊ जी ने जब पुछा तो ताई जी ने कह दिया की भूख लगी थी तो कुछ खा रहे थे| ताऊ जी ने फिर कुछ नहीं कहा और हमने खरीदारी की| पर इस बार ताई जी बहुत ज्यादा ही खुश थीं इसलिए वो माँ, भाभी और ऋतू को ले कर एक सुनार की दूकान में घुस गईं| ये हमारी खानदानी जान पहचान की दूकान थी तो सारा परिवार अंदर जा कर बैठ गया| हम सब की बड़ी आव-भगत हुई और मालिक ने खुद सब औरतों को जेवर दिखाए| ऋतू बेचारी चुप-चाप पीछे बैठी थी, इस डर से की कहीं कोई उसे डाँट ना दे| पर डाँट तो उसे फिर भी पड़ी, प्यार भरी डाँट! "रितिका! तू वहाँ पीछे क्या कर रही है? यहाँ तेरे लिए ही आये हैं और तू है की पीछे बैठी है? चल जल्दी आ और बता कौनसी अच्छी है तेरे लिए?" ये सुन कर ऋतू का सीना गर्व से चौड़ा हो गया| वो उठ के आगे आई और बोली; "दादी ... आप ही बताइये...मुझे तो कुछ पता नहीं!" ताई जी ने उसे माँ और अपने बीच बिठाया और उसे समझाते हुए बालियाँ पहनने को कहा| उसने एक-एक कर सब पहनी पर वो अब भी confuse थी तो मुझे उसकी मदद करनी थी... पर कैसे? मैं इधर-उधर देखने लगा फिर सामने नजर शीशे पर पड़ी| ऋतू की नजर अब भी सामने आईने पर नहीं थी बल्कि वो ताई जी और माँ की बात सुनने में व्यस्त थी, मैं बीएस इंतजार करने लगा की ऋतू उस आईने में देखे ताकि मैं उसे बता सकूँ की कौन सी बाली बढिये है| आखिर में उसने देख ही लिया, उसके दोनों हाथों में एक-एक डिज़ाइन था| मैंने उसे आँख के इशारे से बाएँ वाले को try करने को कहा, पर वो मुझे इतना नहीं जचा तो मैंने गर्दन के इशारे से दूसरे try करने को कहा| ये वाला मुझे बहुत पसंद आया तो मैंने हाँ में गर्दन हिला कर अपनी स्वीकृति दी! माँ ने मुझे ऋतू की मदद करते हुए देख लिया और बोल पड़ीं; "क्या बात है? तेरी पसंद बड़ी अच्छी है इन चीजों में?" माँ ने मजाक करते हुए कहा पर पता नहीं कैसे मेरे मुँह से निकला; "माँ कल को शादी होगी तो बीवी को इन सब चीजों में मदद करनी पड़ेगी ना? इसलिए अभी से प्रैक्टिस कर रहा हूँ!" ये सुनते ही सारे लोग जो भी वहाँ थे सब हँस पड़े| ऋतू के गाल भी शर्म से लाल हो गए थे क्योंकि वो समझ गई थी की ये बात मैंने उसी के लिए कही है| हँसते-खेलते हम घर लौटे और रात को खाने के बाद ताऊ जी, चन्दर और पिताजी सोने चले गए| मैं अब भी आंगन में बैठा था, ताई जी और सभी औरतें खाना खा रहीं थीं| थकावट हो रही थी सो मैं अपने कमरे में आ कर सो गया, रात को ऋतू ने मेरा दरवाजा खटखटाया पर मैं बहुत गहरी नींद में था इसलिए मुझे पता नहीं चला| अगली सुबह जब मैंने ऋतू से Good morning कहा तो वो मुँह फूला कर रसोई में चली गई| मैं सोचता रह गया की अब मैंने क्या कर दिया? जब वो चाय देने आई तो बोली; "मुझे कल रात को आपसे कितनी बातें करनी थी, पर आपको तो सोना है!" ये सुन कर मेरे मुँह से 'oops' निकला! पर आगे कुछ कहने से पहले ही वो चली गई, इधर पिताजी आये और मुझे अपने साथ चलने को कहा| मैंने अपनी बुलेट उठाई और पिताजी के साथ निकल पड़ा, दिन भर पिताजी ने जाने किस-किस को मिठाई देनी थी? कितनों के यहाँ बैठ के चाय पि शाम को घर आते-आते पेट में गैस भर गई! घर आते ही मैं पिताजी से बोला: "कान पकड़ता हूँ पिताजी! आज के बाद मैं आपके साथ दिवाली पर किसी के घर नहीं जाऊँगा!" ये सुन कर सारे हँस पड़े| "क्यों?" पिताजी ने अनजान बनते हुए पुछा; "इतनी चाय...इतनी चाय! मैंने ऑफिस में कभी इतनी चाय नहीं पि जितनी आपके जानने वालों ने पिला दी! मुझे तो चाय से नफरत हो गई|" तभी ऋतू जान बूझ कर एक कप में पानी ले कर आई और मुझे ऐसा लगा जैसे उसमें चाय हो, मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा; "ले जा इस कप को मेरे सामने से नहीं तो आज बहुत मारूँगा तुझे!" ये सुन कर ऋतू और सभी लोग खिल-खिला कर हँस पड़े! रात को खाना खाने की बिलकुल इच्छा नहीं थी, इसलिए मैं ऊपर छत पर चूरन खा रहा था|

सब के खाना खाने तक मुझे नींद आ गई और मैं छत पर ही पैरापेट वॉल से टेक लगा कर सो गया| ऋतू ने आ कर मुझे जगाया तब मेरी नींद खुली, मैंने अंगड़ाई लेते हुए उसे देखा; "आप यहाँ क्यों सो रहे हो?" उसने पुछा|

"कल बिना बात किये सो गया था ना, इसलिए मैं यहाँ तेरा इंतजार कर रहा था| पता नहीं कब नींद आ गई! अब बता क्या बात करनी थी?"

"कल बात करेंगे, अभी आप सो जाओ|" ऋतू ने कहा तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपने सामने आलथी-पालथी मार के बैठने को कहा|

"कल दिवाली है और कल टाइम नहीं मिलेगा, बोल अब!" मैंने कहा|

"कल.... मेरे पास शब्द नहीं....दादी ने मेरे लिए पहली बार बालियाँ खरीदी ....सब आपकी वजह से!!!" ऋतू का गला भर आया था इसलिए उसने बस टूटे-फूटे शब्द कहे|

"अरे पागल! मैंने कुछ नहीं किया! देर से ही सही ये खुशियाँ तुझे मिलनी थी और तुझे तो खुश होना चाहिए ना की रोना चाहिए!" मैंने उठ के ऋतू के आँसू पोछे|

"नहीं.... इस घर में एक बस आप हो जो मुझे इतना प्यार करते हो, हर बात पर मेरा बचाव करते हो| आपके इसी बर्ताव के कारन दादी का और बाकी सब का दिल मेरे लिए पसीजा है| आप अगर नहीं होते तो कोई मेरे बारे में कभी नहीं सोचता, पहले सब यही चाहते थे की मेरी शादी हो जाए और मैं इस घर से निकल जाऊँ पर आपके प्यार के कारन अब सब मुझे इस घर का हिस्सा समझने लगे हैं|" ऋतू ने अब रोना शुरू कर दिया था|

"अच्छा मेरी माँ! अब बस चुप हो जा!" मैंने ऋतू को अपने सीने से चिपका लिया तब जा कर उसका रोना बंद हुआ|

"तू ना...जितना हँसती नहीं उससे ज्यादा तो रोती है| Global water crisis solve करना है क्या तूने?" मैंने मजाक में कहा तो ऋतू की हँसी निकल गई| इस तरह हँसते हुए मैंने उसे उसके कमरे के बाहर छोड़ा और मैं अपने कमरे में घुस गया| सुबह हुई और मैं जल्दी उठ गया, एक तो भूख लगी थी और दूसरा आज सुबह काम थोड़े ज्यादा बचे थे| सारा काम निपटा के आते-आते दोपहर हो गई और फिर सब ने एक साथ खाना खाया और रात की पूजा के लिए तैयारियाँ शुरू हो गई| वही लालची पंडित आया और हम सब पूजा के लिए बैठ गए| सबसे आगे माँ-पिताजी और ताई जी-ताऊ जी थे, उनके पीछे चन्दर भैया-भाभी और उनकी बगल में मैं और ऋतू बैठे थे| पूजा सम्पन्न हुई और पंडित अपनी दक्षिणा ले कर चला गया, इधर मैंने और ऋतू ने पूरी छत मोमबत्तियों से सजा दी और सारा घर जगमग होगया| नीचे आ कर सब ने खाना खाया और फिर सब छत पर आ गए और आतिशबाजी देखने लगे| मैं नीचे से सब के लिए फूलझड़ी और अनार ले आया, फूलझड़ियां मैंने ऋतू, माँ, ताई जी और भाभी को जला कर दी तथा अनार जलाने का काम चन्दर और मैं कर रहे थे| "मानु भैया अगर बम ले आते तो और मजा आता|" चन्दर ने कहा तो ताऊ जी ने मना कर दिया; "बिलकुल नहीं! वो बहुत आवाज करते हैं, यही काफी है!" चन्दर भैया अपना मुँह झुका कर अनार जलाने लगे| रात के नौ बजे थे और सब थके हुए थे इसलिए जल्दी ही सो गए| रात ब्रह बजे मैं उठा क्योंकि मुझे िठाइ खानी थी, तो मैं दबे पाँव नीचे आया और मिठाई का डिब्बा खोल कर मिठाई खाने ही जा रहा था की ऋतू आ गई| दोनों हाथ कमर पर रखे वो प्यार भरे गुस्से से मुझे देखती रही| मुझे उसे ऐसा देख कर कॉलेज की टीचर की याद आ गई और हँस पड़ा| "टीचर जी! सॉरी!" मैंने कान पकड़ते हुए कहा तो ऋतू मुस्कुराती हुई मेरे पास आई और मिठाई के डिब्बे से मिठाई निकाल कर खाने लगी| अब तो हम दोनों मुस्कुरा रहे थे और मिठाई खा रहे थे, दोनों ने मिल कर आधा डिब्बा साफ़ कर दिया और फिर पानी पी कर दोनों ऊपर आ गए| मैंने झट से ऋतू का हाथ पकड़ा और उसे अपने कमरे में खींच लिया| दरवाजे के साथ वाली दिवार से उसे सटा कर खड़ा किया और उसके गुलाबी होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा| ऋतू ने तुरंत अपने हाथ मेरी पीठ पर फिराने शुरू कर दिए| मेरा मन तो उसके निचले होंठ को पीने पर टिका था इधर ऋतू का जिस्म जलने लगा था, उसका हाथ अब मेरे लंड पर आ गया और वो उसे दबाने लगी| अब उस समय सेक्स करना बहुत बड़ा रिस्क था इसलिए मैं रुक गया; "जान! ये नहीं प्लीज! शहर जा कर!" ऋतू का दिल टूट गया और उसने अपना हाथ मेरे लैंड के ऊपर से हटा लिया| मैं मजबूर था इसलिए मैंने उसे बस "प्लीज!!!" कहा तो शायद वो समझ गई और धीमे से मुस्कुराई! अब आगे अगर मैं उसे kiss करता तो फिर वही आग सुलग जाती इसलिए मैं रूक गया और उसे good night कहा| मैं समझ गया था की ऋतू को बुरा लगा है पर उसने अगले ही पल पलट कर पंजों पर खड़े होते हुए मेरे होठों को चूम लिया और खिल-खिलाती हुई अपने कमरे में भाग गई, मैं भी खड़ा-खड़ा कुछ पल मुस्कुराता रहा और फिर सो गया|
surmayi update hai bhai kaatil si angdaai
 
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अगली सुबह मैं उठा और जैसे ही नीचे आया की ऋतू ने मुझे चिढ़ाना शुरू कर दिया| "दादी जी...आपको पता है, रात को एक चोर आया था और देखो आधी मिठाई साफ़ कर दी!" ये सुन कर सारे लोग हँसने लगे और मैं भी मुस्कुराता हुआ चारपाई पर बैठ गया| "ताई जी, चोर अकेला नहीं था! एक चोरनी भी थी उसके साथ!" ये सुन के तो सब ने ठहाका मार के हँसना शुरू कर दिया| "तुम दोनों की बचपन की आदत गई नहीं?" माँ ने मेरे कान पकड़ते हुए कहा| "ये दोनों जब छोटे थे तब ऐसे ही रात को रसोई में घुस जाते थे और मिठाई चुरा कर खाते थे!" माँ ने कहा| तभी भाभी बोली; "अरे! तो घर में चोरी कौन करता है? मांग कर खा लेते?" ये बात सब को बुरी लगी क्योंकि वहां तो बीएस मजाक चल रहा था, ताई जी को गुस्सा आया और वो भाभी को झिड़कते हुए बोलीं; "भक! ज्यादा बकवास की ना तो मारब एक कंटाप!"

"चुप कर जा हरामजादी!" चन्दर भैया ने भी उन्हें झिड़क दिया और भाभी मुँह फूला कर चली गईं! पता नहीं क्यों पर भाभी से इस परिवार की ख़ुशी देखि नहीं जाती थी और मुझसे तो उनका 36 का आंकड़ा था! पर फिर वो क्यों मुझे अपने जिस्म की नुमाइश किया करती थीं? ये ऐसा सवाल था जिसका जवाब जानने में मुझे कटाई रूचि नहीं थी, इसलिए मैं बस इस सवाल से बचता रहता था|

शाम को मंदिर में पूजा थी सो सब वहाँ चले गए, मुझे तो रास्ते में संकेत मिल गया तो मैं उससे बात करने में लग गया| उससे मिल कर मैं मंदिर पहुँचा पर वहाँ तो बहुत भीड़ थी, इसलिए मैं बाहर ही खड़ा रहा| रात को खाने के बाद मैं छत पर थल रहा था की ऋतू मिठाई का डिब्बा ले कर आ गई और मुझे डिब्बा खोल कर देते हुए गंभीर हो गई| "क्या हुआ?" मैंने पुछा तो वो सर झुकाये हुए बोली; "कल भाई-दूज है, घर में सब कह रहे थे की चूँकि मेरा कोई भाई नहीं इसलिए कल आपको तिलक...." इतना कहते हुए वो रुक गई! अब ये सुन कर तो मैं सन्न रह गया! मैं अपना सर पकड़ के खड़ा ऋतू को देखता रहा की शायद वो आगे कुछ और बोले पर वो सर झुकाये खामोश खड़ी रही| मैं नीचे जा कर भी कुछ नहीं कह सकता था वरना सब उसका 'सही' मतलब निकालते! 'सही' मेरे अनुसार होता, उनके अनुसार तो ये 'गलत' ही होता! मैं बिना ऋतू को कुछ कहे नीचे आ गया और फिर घर से बाहर निकल गया| कुछ देर बाद मैं घर आया तो माँ ने पुछा की कहाँ गया था, तो मैंने झूठ बोल दिया की ऐसे ही टहलने गया था| कुछ देर बाद मुझे संकेत का फ़ोन आया और मैं उससे जूठ-मूठ की बात करने लगा| मैंने घर में सब को ऐसे दिखाया जैसे की मेरा ऑफिस से कॉल आया हो और मैं झूठ-मूठ की बात करते हुए कल सुबह ही निकलने का प्लान बनाने लगा| बात खत्म हुई तो मुझे कैसे भी ये बात घर में सब को बतानी थी पर ये भी ध्यान रखना था की कहीं भाई-दूज के चक्कर में फँस जाऊँ| "पिताजी कल कुछ ऑफिस के काम से मुझे बरेली निकलना होगा|" मैं झूठ बोला|

"कुछ दिन के लिए आता है और उसमें भी ये तेरे ऑफिस वाले तेरा पीछा नहीं छोड़ते!" पिताजी ने थोड़ा डाँटते हुए कहा|

"दरअसल पिताजी प्रमोशन का सवाल है, इसलिए जा रहा हूँ| कल सुबह जल्दी निकल जाऊँगा और रात तक लौट आऊँगा|" इतना कह कर मैं अपने कमरे में भाग लिया ताकि कहीं वो ये ना कह दें की सुबह तिलक लगवा के निकलिओ! कमरे में आते ही मैंने दरवाजा बंद किया और औंधे मुँह बिस्तर पर लेट गया| मुझे कैसे भी कर के खुद को इस भाई-दूज के दिन से बचाना था| सुबह मैं 3 बजे उठ गया, अभी तक ऋतू नहीं उठी थी| मैं फटाफट नहाया और तैयार हो कर नीचे आ गया| सुबह के चार बजे थे और अभी सिर्फ ताई जी जगी थीं, मुझे तैयार देख कर वो समझ गईं और चाय बनाने जाने लगी तो मैंने उन्हें मना कर दिया, इस डर से की कहीं ऋतू जाग गई तो फिर फँस जाऊँगा| घर से तो निकल लिया पर अब समय भी तो काटना था, इसलिए में सीधा मंदिर चला गया और वहाँ जा कर बैठ गया| 5 घंटे बाद मुझे संकेत का फ़ोन आया और उसने मुझे बजार से पिक करने बुलाया, मैं बुलेट रानी के संग बाजार पहुँचा और संकेत को पिक किया| सकते को दरसल कुछ काम से लखनऊ जाना था तो मैंने उसे ये झूठ बोल दिया की पिताजी कुछ काम से मुझे रिश्तेदारों के भेज रहे हैं, अब मैं वहाँ गया तो फिर वही शादी का रोना होगा| ये था तो बकवास बहाना पर संकेत को जरा भी शक नहीं हुआ| पूरा दिन उसके साथ ऐसे ही घुमते-फिरते बीता बीएस फायदा ये हुआ की मुझे खेती-बाड़ी के काम के बारे में कुछ सीखने को मिल गया की बीज कहाँ से लेते हैं, यूरिया कौन सा अच्छा होता है और मंडी कहाँ है, आदि| शाम हुई तो संकेत ने कहा की चल दारु पीते हैं, पर मैं तो वचन बद्ध था! तो मैंने उसे ये बोल कर टाल दिया की मैं त्योहारों में दारु नहीं पीता! पर उसे तो पीनी थी, वो भंड हो के पीने लगा और रात 11 बजे तक पीता रहा| पीने के बाद उसे याद आई उसके जुगाड़ की! तो उसने मुझे उसकी गर्लफ्रेंड के घर ले चलने को कहा| ये कोई लड़की नहीं बल्कि एक विधवा भाभी थी जो उसी के रिश्ते में थी| नैन-नक्श से तो बड़ी कातिल थी और उसकी जवानी उबाले मार रही थी| जब बाइक उसके घर रुकी तो वो बाहर आई और हम दोनों को देख कर जैसे खुश हो गई| उसे लगा की आज तो उसे दो-दो लंड मिलने वाले हैं, पर भैया हम तो पहले से ही ऋतू के हो चुके थे! मैंने जैसे-तैसे संकेत को उतारा और अंदर ले गया, बिस्तर पर छोड़ कर मैं पलट के बाहर आने लगा तो भाभी बोली; "आपका नाम मानु है ना? संकेत ने आपके बारे में बहुत बताया है|" अब मैं उनसे बात करने के मूड में कतई नहीं था इसलिए मैं बिना कुछ कहे साइड से निकलने लगा; "रुक जाओ ना आज रात!" भाभी ने बड़ी अदा से कहा पर मैंने अपना भोला सा चेहरा बनाया और कहा: "भाभी घर जाना है, सब राह देख रहे होंगे|"

"अरे तो कौन सा तुम्हारी लुगाई है जिसके पास जाने को उतावले हो रहे हो? तनिक रूक जाओ आज रात, कुछ बात करेंगे!" भाभी इठलाते हुए बोलीं|

"अरे दो प्रेमियों के बीच मेरा क्या काम? खामखा कबाब में 'हड्डा' लगूँगा|"

"अरे काहे के प्रेमी! ई सार बस साडी उठात है और चढ़ी जात है!" भाभी ने संकेत पर गुस्सा निकालते हुए कहा|

"अब जउन बोओ है, सो काटो! इतना कह कर मैंने बाइक स्टार्ट की और घर के लिए निकल पड़ा| मेरे घर पहुँचते-पहुँचते 1 बज गया था, सब सो चुके थे एक बस मेरी प्यारी जान थी जो जाग रही थी| रात के सन्नाटे में बुलेट की आवाज सुन उसने दरवाजा खोला| मैं अंदर आया तो उसने उदास मुखड़े से पुछा: "आपने खाना खाया?" तो मैंने हाँ कहा, फिर इस डर से की कहीं कोई जाग ना जाये मैं चुपचाप ऊपर आ गया और अपने कपडे उतारने लगा| तभी ऋतू ऊपर आ गई और मेरे लिए दूध ले आई, ये दूध वो मेरी परीक्षा लेने के लिए लाइ थी! दरअसल मेरे कपड़ों से दारु की महक आ रही थी और ऋतू को मुझसे ये सीधा पूछने में डर लग रहा था| मैं समझ गया की क्या माजरा है इसलिए मैंने दूध का गिलास उठाया और ऋतू को दिखते हुए गटागट पी गया| ऋतू को तसल्ली हो गई की मैंने शराब नहीं पि है| "जानू!.... एक बात कहूँ? आप नाराज तो नहीं होंगे?" ऋतू ने सर झुकाये हुए कहा| माने बस हाँ में सर हिलाया और ऋतू को अपनी अनुमति दी| "मैं कल ....आपसे मजाक किया था .....की भाई-दूज के लिए ....." ऋतू इतना बोल कर चुप हो गई| ये सुन कर मुझे बहुत हँसी आई! पर अब मेरी बारी थी ऋतू से मजाक करने की| मैंने गुस्से से ऋतू को देखा, पर उसकी गर्दन झुकी हुई थी तो वो मेरा गुस्से से तमतमाता हुआ चेहरा देख नहीं पाई| मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर की और तब उसकी नजर मेरी गुस्से से लाल आँखों पर पड़ी; "तू पागल है क्या? तेरी वजह से में दिनभर मारा-मारा फिरता रहा! तुझे मजाक करने के लिए यही टॉपिक मिला था?" मैंने गुस्से से दबी हुई आवाज में दाँत पीसते हुए कहा| ऋतू बेचारी शं गई और लघभग रोने ही वाली थी की मैंने हँसते हुए अपनी छाती से चिका लिया और उसके सर को सहलाते हुए कहा; "जान! मैं मजाक कर रहा था! आप मुझसे मज़ाक कर सकते हो तो मैं नहीं कर सकता?" ये सुन कर ऋतू को इत्मीनान हुआ की अभी मैं सिर्फ मज़ाक कर रहा था| "जानू! आप न बड़े खराब हो! मेरी तो जान ही निकाल दी थी आपने? दो मिनट आप और ये ड्रामा करते ना तो सच्ची में मैं रोने लगती!" ऋतू ने थोड़ा सिसकते हुए कहा| मैंने ऋतू के सर को चूमा और उसे जा कर सोने को कहा|

अगली सुबह हमें शहर वापस जाना था तो दोनों समय से उठ गए और नाहा-धो के नाश्ता कर के निकल लिए| कुछ दूर जाते ही ऋतू ने अपना बैठने का पोज़ बदल लिया और मुझसे कस कर चिपक गई| दोनों ही के मन में तरंगें उठ रहीं थी, क्योंकि शहर पहुँचते ही दोनों एक दूसरे में खो जाना चाहते थे| मैंने बाइक ढाबे के पास स्लो की तो ऋतू बोली; "प्लीज मत रुको! सीधा घर चलते हैं!" उसकी बात सुन के उसकी बेसब्री साफ़ जाहिर हो रही थी| मन तो मेरा भी उसे पाने को व्याकुल था, इसलिए मैंने बाइक फिर से हाईवे पर दौड़ा दी! घर पहुँच कर मैं बाइक कड़ी कर रहा था और ऋतू फटाफट ऊपर भागी, दरअसल उसे बाथरूम जाना था! मैं ऊपर पहुँचा तो ऋतू बाथरूम से निकल रही थी, मैंने दरवाजा बंद किया और हाथ धो ने के लिए बाथरूम जाने लगा| "कहाँ जा रहे हो?" ऋतू ने पुछा और मेरा हाथ पकड़ के मुझे बिस्तर पर खींच लिया| "जान! हाथ-मुँह तो धो लूँ?" मैंने कहा पर ऋतू के बदन की आग भड़कने लगी थी| "क्या करना है हाथ-मुँह धो के? बाद में अच्छे से नहा लेना, अभी तो आप मेरे पास रहो! बहुत तड़पाया है आपने!"

मैं ने ऋतू को पलट कर अपने नीचे किया और उसके ऊपर आ कर उसके थर-थर्राते होटों को देखा| मैंने नीचे झुक कर उन्हें चूमना शुरू किया और ऋतू ने मेरा पूरा सहयोग दिया|

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हम दोनों अभी होठों से एक दूसरे के दिल की आग को भड़का रहे थे की ऋतू का फ़ोन बड़ी जोर से बज उठा| ऋतू को तो जैसे उस फ़ोन की कोई परवाह ही नहीं थी पर मेरे लिए उस फ़ोन की रिंगटोन बड़ी कष्टदाई थी! मैं ऋतू के ऊपर से उठ गया और ऋतू का फ़ोन उठा के उसे दिया| "क्या जानू? बजने देना था न?" ऋतू ने नाराज होते हुए कहा| "यार मुझसे ये शोर बर्दाश्त नहीं होता! इसे जल्दी से निपटा तब तक मैं हाथ-मुँह धो लेता हूँ|" मैं इतना कह कर बाथरूम में घुस गया और इधर गुस्से में कॉल करने वाली पर बिगड़ गई! "तुझे ये नंबर दिया किसने? उस कुटिया की तो.....!!! हाँ ...ठीक है....बोला ना आ रही हूँ! तू फ़ोन रख!" मैं बाहर आया तो देखा ऋतू गुस्से में तमतमा रही है| "क्या हुआ?" मैंने पुछा तो ऋतू गुस्से में बोली; "उस हरामज़ादी ने मेरा नंबर सब लड़कियों को बाँट दिया! ऊपर से प्रोफेसर ने आज असाइनमेंट्स सबमिट करने की लास्ट डेट कर दी है! नहीं जमा करने पर पेनल्टी लगा रहे है!"

"पर तेरे तो सारे असाइनमेंट्स पूरे हैं? फिर क्यों गुस्सा हो रही है?"

"पर मुझे आज का दिन आपके साथ बिताना करना था! कल से आपका ऑफिस है, फिर हम कब मिलेंगे?" मैंने अपनी बाहें खोलीं और ऋतू एक दम से मेरे गले लग गई, मैंने उसके सर को चूमते हुए कहा; "जान! मैं चाँद पर नहीं जा रहा की तुम से मिलने आ न सकूँ?! शुरू-शुरू थोड़ी दिक्कत होगी, पर तुम जानती हो ना मैंने तुम्हें कभी नाराज नहीं करता? फिर क्यों चिंता करती हो?"


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हम दोनों ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे कुछ देर खड़े रहे और फिर मैंने ऋतू को उसके हॉस्टल ड्राप किया| "आप प्लीज कहीं जाना मत, मैं अपने असाइनमेंट्स ले कर आती हूँ|" ये कह कर ऋतू हॉस्टल में भगति हुई घुसी और फिर अपना बैग ले कर आ गई| फिर मैंने उसे उसके कॉलेज छोड़ा और मैं अपने घर वापस आ गया| चूँकि अगले दिन ऑफिस था तो मैंने अपने कपडे वगैरह सब प्रेस कर के तैयार किये, बैग धो कर रेडी किया, थोड़ी बहुत घर की साफ़-सफाई की और दोपहर और रात का खाना बना लिया| शाम 4 बजे मैं ऋतू से मिलने निकल पड़ा, ठीक 5 बजे मैं उसके कॉलेज के गेट के सामने खड़ा था| तभी वहाँ रोहित आ गया और आ कर मेरे पास खड़ा हो गया| उसे देखते ही मुझे याद आ गया की साले ने जो काम्या से चुगली की थी!

मैं: तूने काम्या से क्या कहा था मेरे बारे में?

रोहित: क...क्या बोल रहे हो आप?

मैं: क्या बोल रहा था तू की मेरा किसी मैडम के साथ अफेयर चल रहा है और मेरे कारन उनका डाइवोर्स हो गया?

रोहित: न....नहीं तो!

मैं: अगर बोला है तो कबूल करने का गूदा भी रख! (मैंने आवाज ऊँची करते हुए कहा|)

रोहित: ब्रो...वो मैंने तो बस...

मैं: अबे तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे बारे में ऐसी बात करने की? तूने मुझसे पुछा भी था की ये बात सच है या नहीं? लौंडा है तो जनानियों जैसी हरकत न कर! कहने को मैं भी कह सकता हूँ जो तेरी गर्लफ्रेंड ने जयपुर में रायता फैलाया था! (मैंने गुस्से से ऋतू के एक दम नजदीक जाते हुए कहा|)

रोहित: तेरा बहुत ज्यादा हो रहा है अब?

रोहित ने अपनी अकड़ दिखाते हुए कहा और ये सुन कर मेरा पारा और भी चढ़ गया| मैंने उसका कालर पकड़ लिया|

मैं: अपनी ये गर्मी मुझे मत दिखा, जा कर अपनी गर्लफ्रेंड को दिखा जिसकी आग तू बूझा नहीं पाता और वो इधर-उधर मुँह मारना चाहती है| उस दिन जयपुर में उसने ऋतू से कहा था की वो एक रात मेरे साथ गुजारना चाहती है, तभी तो ऋतू गुस्से में निकल पड़ी थी|

रोहित: य...ये झूठ है!

तभी पीछे से ऋतू आ गई;

ऋतू: ये सच है! तेरे साथ तो वो बस पैसों के लिए घूमती है| पैसों के बिना तो वो तेरे जैसों को घास ना डाले!

ऋतू ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मैंने थोड़ा धक्का देते हुए उसका कालर छोड़ा|

मैं: आज के बाद दुबारा हम दोनों के बारे में कुछ बकवास की ना तो तेरे लिए अच्छा नहीं होगा!

इतना कह कर मैंने बुलेट को जोर से किक मारी और उसे बिना बोले ही चेतावनी दी! फिर हम दोनों अपनी पसंदीदा जगह पर आ गए और चाय पीने लगे| पता नहीं क्यों पर ऋतू को खुद पर गर्व महसूस हो रहा था और वो मंद-मंद मुस्कुरा रही थी| जब मैंने कारन पुछा तो वो बोली; "आज जब मैंने आपके कंधे पर हाथ रखा तो आपने उसे छोड़ दिया| आज मुझे पहली बार लगा जैसे मैं आपको कण्ट्रोल कर सकती हूँ!" ये सुन कर मैं मुस्कुरा दिया, क्योंकि मैंने रोहित को इसलिए छोड़ा था क्योंकि मैं वहाँ कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहता था| पर मैं चुप रहा ये सोच के की ऋतू को इस खुशफैमी में रहने दिया जाए! अगले दिन मैं समय से उठा और तैयार हो कर दस मिनट पहले ही ऑफिस पहुँच गया| सबसे मेरा इंट्रो हुआ और यहाँ का स्टाफ मेरी उम्र वाला था, कोई भी शादीशुदा आदमी या लड़की मुझे यहाँ नहीं दिखाई दी| एकाउंट्स में मेरे साथ एक लड़का और था, पहले दिन तो काम समझते-समझते निकल गया| लंच टाइम में ऋतू का फ़ोन आया और मैं उससे बात करते हुए बाहर आ गया| शाम को मिलना मुश्किल था पर मैंने उसे कहा की मैं हॉस्टल आऊँगा उसे पढ़ाने के बहाने, तो ऋतू खुश हो गई| शाम को साढ़े पाँच मैं निकला और ऋतू के हॉस्टल पहुँचा| आंटी जी के पाँव हाथ लगाए और फिर ऋतू अपनी किताब ले कर आ गई और मैं उसे पढ़ाने लगा, वो पढ़ाना कम और अपनी आँखें ठंडी करना ज्यादा था| फिर मैं घर लौटा और खाना खा कर सो गया|
khubsurat update bhai
 
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ये पूरा हफ्ता मेरा और ऋतू का मिलना कुछ कम हो गया, ऑफिस से मुझे दो बार बरैली जाना पड़ा और डेढ़ घंटे की ये ड्राइव वो भी एक तरफ की बड़ी कष्टदाई होती थी| अब रोजो-रोज ऋतू से मिलने हॉस्टल भी नहीं जा सकता था, इसलिए अब हमारे लिए बस वीडियो कॉल ही एक सहारा था| एक दूसरे को बस वीडियो कॉल में ही देख लिया करते और दिल को सुकून मिल जाता| सैटरडे आया तो ऋतू उम्मीद करने लगी थी की आज मैं हाफ डे में आऊँगा पर ये क्या उस दिन बॉस ने मुझे फिर बरैली जाने को कहा| मेरा बॉस खड़ूस तो था पर इज्जत से बात करता था, उसका दिया हर काम मैं निपटा देता था तो वो मुझसे खुश था| जब मैंने ऋतू से कहा की मैं आज नहीं आ पाऊँगा तो वो उदास हो गई पर मैंने उसे संडे का प्लान पक्का करने को कहा, तब जा कर ऋतू मानी| उस रात जब मैं घर पहुँचा तो ऋतू ने कॉल किया: "कल पक्का है ना? कहीं आप फिर से तो कंपनी के काम से कहीं नहीं जा रहे ना?"

"जान! कल बस मैं और तुम! कोई काम नहीं, कोई ऑफिस नहीं!" मेरी बात सुन कर ऋतू को इत्मीनान हुआ उसके आगे बात हो पाती उससे पहले ही किसी ने उसे बाथरूम के बाहर से पुकारा इसलिए ऋतू फ़ोन काट कर चली गई| मैंने भी खाना खाया और जल्दी सो गया, सुबह उठा और ब्रश किया, चूँकि ठंड शुरू हो चुकी थी इसलिए मन नहीं किया की नहाऊँ! ठीक नौ बजे ऋतू ने दरवाजा खटखटाया, ये दस्तक सुनते ही दिल में मौजें उठने लगी| माने दरवाजा खोला, ऋतू का हाथ पकड़ के उसे अंदर खींचा और दरवाजा जोर से बंद कर दिया| ऋतू को दरवाजे से ही सटा कर खड़ा किया और उसके होठों पर ताबड़तोड़ चूमना-चूसना शुरू कर दिया| ऋतू भी कामुक हो गई और उसने भी मेरी Kiss का जवाब अपनी Kiss से देना शुरू कर दिया| दो मिनट बाद ही हम दोनों का वहाँ खड़े रहना दूभर हो गया और मैं ऋतू को खींच कर बिस्तर पर ले आया| उसे धक्का देने से पहले उसके सारे कपडे उतारे, बस उसकी ब्रा और पेंटी ही बची थी| फिर उसे धक्का दे कर बिस्तर पर गिराया और मैं उसके जिस्म पर टूट पड़ा| उसके सारे नंगे जिस्म को मैंने चूमना शुरू कर दिया और इधर ऋतू का सीसियाना शुरू हो गया| मेरे हर बार उसके जिस्म को होंठों से छूने भर से उसकी; "सससस" निकल जाती| टांगों से होता हुआ मैं उसके पेट और फिर उसके स्तनों के बीच की घाटी पर पहुँचा तो ऋतू ने अपने दोनों हाथों से मेरे गालों को पकड़ा और अपने होठों के ऊपर खींच लिया| हम फिर से बेतहाशा एक दूसरे को चूमने लगे, एक दूसरे के होठों को चूसने लगे| हमारी जीभ एक दूसरे से लड़ाई करने लगी थीं, और नीचे मेरे लंड ने ऋतू की बुर के ऊपर चुभना शुरू करा दिया था|

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ऋतू ने अपने दोनों हाथों को मेरे सीने पर रख कर मुझे अपने ऊपर से बगल में धकेल दिया, वो उठ के बैठी और मेरे कच्छे को निकाल कर फेंक दिया| फिर आलथी-पालथी मार के मेरे लंड के पास बैठ गई और अपने दाहिने हाथ से उसने लंड की चमड़ी को नीचे किया, प्री-कम से गीला मेरा सुपाड़ा ऋतू की आँखों के सामने चमचमाने लगा| पर आज उसके मन में कुछ और था, ऋतू ने मेरे लंड को चूसा नहीं बल्कि आज तो वो उसके साथ खेलने के मूड में थी| उसने अपने दोनों हाथों की उँगलियों से मेरे लंड को पकड़ा और सिर्फ लंड के सुपाड़ी को अपने मुँह में ले कर उसे चूसने लगी| मुझे ऐसा लगा मानो वो मेरे सुपाडे को टॉफ़ी समझ रही हो! उसका ऐसा करने से मेरी सिसकारियां कमरे में गूंजने लगी; "सससससस....आह!!!" मेरी सिकारियाँ सुन ऋतू को जैसे और मजा आने लगा और ऋतू ने अपने जीभ से मेरे सुपाडे की नोक को कुरेदना शुरू कर दिया| अब तो मेरा मजा दुगना हो गया था और मैं स्वतः ही अपनी कमर नीचे से उचकाने लगा ताकि मेरा लंड पूरा का पूरा ऋतू के मुँह में चला जाए|

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पर ना जी ना! ऋतू तो सोच कर आई थी की वो आज मुझे ऐसा कतई नहीं करने देगी| पर लंड को तो गर्मी चाहिए थी, ऋतू के मुँह से ना सही तो उसकी बुर से ही सही! मैंने ऋतू के मुँह से अपना लंड छुड़ाया और उसे लेटने को कहा|

ऋतू मेरी जगह लेट गई और मैं उसकी टांगों के बीच आ गया, अब मैंने सोचा जितना ऋतू ने मुझे तड़पाया है उतना उसे भी तो तड़पाया जाए! इसलिए मैंने ऋतू की टांगें चौड़ी कीं और लंड को उसकी बुर पर मिनट भर रगड़ने लगा| ऋतू बेचारी सोच रही थी की अब ये अंदर जायेगा...अब अंदर जायेगा...पर मैं बस रगड़-रगड़ के उसके मजे ले रहा था| “ऊँह..उन्हह ..उम्!!!" ऋतू प्यार भरे गुस्से बोली और मैं उठ कर बिस्तर से नीचे आ गया| ऋतू एक दम से अवाक मुँह फाड़े मुझे देखती रही और सोचने लगी की मैं क्यों नाराज हो गया? पर अगले ही पल मैंने उसे पकड़ के खींचा और बिस्तर से उठा के उसे कुर्सी पर बिठा दिया| फिर मुस्कुराते हुए उसकी टांगें चौड़ी कीं और अपना लंड उसके बुर में ठेल दिया|


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ऋतू की बुर इतनी पनियाई हुई थी की एक ही धक्के में पूरा लंड अंदर पहुँच गया, पर ऋतू चूँकि इस धक्के के लिए मेंटली प्रेपरेड़ नहीं थी तो उसकी 'आह!' निकल गई| शुरू-शुरू में मैंने पूरे धक्के मारे, जिससे मेरा लंड पूरा का पूरा उसकी बुर में उत्तर जाता और फिर पूरा बाहर आता| पर शायद इतने दिन से हमने सेक्स नहीं किया था तो ऋतू को इसकी आदत नहीं रही थी इसलिए वो कुछ ज्यादा ही कराह रही थी| जबकि मेरा मानना ये था की अब तक तो ऋतू की बुर को मेरे लंड का आदि हो जाना चाहिए था! पर मैं फिर भी लगा रहा और करीब 5 मिनट बाद ही ऋतू ने पानी छोड़ दिया, अब मेरा लंड अंदर अच्छे से विचरण कर सकता था और मैंने जोर-जोर से धक्के मारने शरू किये, पूरी कुर्सी मेरे धक्कों से हिलने लगी थी और ऋतू अपने दूसरे चरम-आनंद पर खुसंह गई थी! अगले धक्के के साथ हम दोनों साथ ही फारिग हुए और अपना साड़ी पानी उसकी बुर में भर कर मैं पलंग पर बैठ गया| कुर्सी पर टांगें चौड़ी कर के बैठी ऋतू की बुर से हम दोनों का रस टप-टप कर गिरने लगा और ऋतू इससे बेखबर अपनी साँसों पर काबू पाने लगी|


कुछ देर बाद मैं उठा और बाथरूम में फ्रेश होने लगा, इधर ऋतू ने चाय-नाश्ता बनाना शुरू कर दिया था| मेरे नहा के आते-आते ऋतू ने नाश्ता तैयार कर दिया था और फिर हमने बैठ के एक साथ नाश्ता किया| नाश्ते के बाद ऋतू ने बर्तन सिंक में रखे और मुझे खींच कर बिस्तर पर बिठा लिया; "जानू! मैं है ना....वो...मुझे है न....कुछ...मेकअप का समान खरीदना था...जैसे वो...मस्कारा ...ऑय लाइनर...काजल...और वो..एक टैंक टॉप (शर्माते हुए)....और...एक जीन्स....एक स्लीवलेस वाला टॉप...!!" ऋतू ने अपनी ये फरमाइश किसी बच्चे की तरह की|

"मेले जान को मॉडर्न दिखना है?!" मैंने तुतलाते हुए ऋतू से पुछा तो जवाब में ऋतू ने शर्म से गर्दन हाँ में हिला दी| "अच्छा...तो अभी ना...मेरे पास न...ज्यादा पैसे नहीं हैं! नेक्स्ट मंथ सैलरी आएगी ना ...तब आप ले लेना...ओके?" मेने भी ऋतू की तरह बच्चा बनते हुए सब कहा, ये सब सुन कर ऋतू मुस्कुराने लगी और फिर मेरे गले लग गई| "तो जानू! हम फ़ोन पर प्रोडक्ट्स देखें?" ऋतू ने पुछा तो मैंने फटाफट अपना फ़ोन निकाला और हम अमेज़न पर उसकी पसंद के प्रोडक्ट्स देखने लगे और सब के सब कार्ट में add कर दिए| अगले महीने सैलरी आते ही मैं वो आर्डर करने वाला था| हम दोनों ऐसी ही कुछ और प्रोडक्ट्स देख रहे थे की ऋतू का फ़ोन बज उठा और जो नाम और नंबर स्क्रीन पर फ़्लैश हो रहा था उसे देख वो तमतमा गई; "क्या है? मना किया था न की मुझे कॉल मत करिओ, फिर क्यों कॉल किया तूने?.... मैंने क्या किया? सब तेरी करनी है!.... बहुत खुजली थी ना तुझे? अब भुगत!!! ....अच्छा? क्यों न कहूँ? तू क्यों मरी जा रही है उसके लिए, तेरे लिए बंदे फंसाना कोई मुश्किल काम है?! पहले उसके साथ सोइ थी अब किसी और के साथ सो जा!!!" इतना कह कर ऋतू ने फ़ोन काट दिया| अब मुझे थोड़ा-थोड़ा तो समझ आ गया था की ये कौन है और क्या बात आ रही है, तो मैंने इस बात का ना कुरेदना ही ठीक समझा|

पर ऋतू को ये बात कहनी थी; "काम्या का फ़ोन था! कह रही थी की तूने क्यों रोहित को सब बोल दिया? उस कामिनी को दर्द हो रहा है की अच्छा ख़ासा बकरा उसके हाथ से निकल गया| हरामजादी!"

"बस मैडम! आपके मुँह से गालियाँ अच्छी नहीं लगती!" मैंने ऋतू को टोका!

"सॉरी जी! पर उसका नाम सुनते ही मुझे अभूत गुस्सा आता है!"

"अच्छा छोड़ उसे, और सुन मुझे इस coming week में रोज बरैली जाना है इसलिए अब नेक्स्ट मुलाक़ात संडे को ही होगी!" मैंने कहा|

"Hawwwwwwww !!!! फिर .....???" ऋतू एक दम से उदास हो गई|

"जान! थोड़ा टाइम दो मुझे ताकि ये नई जॉब संभाल सकूँ!" मैंने ऋतू के गाल को सहलाते हुए कहा|

"हम्म!" ऋतू ने मुस्कुराते हुए कहा|

उस दिन के बाद पूरे एक महीने तक हमारा मिलना बस संडे तक के लिए सीमित हो गया| हम फ़ोन पर रोज बात किया करते, और रात में सोने से पहले ऋतू मुझसे बाथरूम में छुपकर वीडियो कॉल पर बात करती| फिर जब हम संडे को मिलते तो पूरे हफ्ते की कसर निकाल देते| हम एक दूसरे को बेतहाशा चूमते और प्यार करते मानो जैसे जन्मों के प्यासे हों! आखिर सैलरी वाला दिन आ गया और मैं उस दिन अपनी सैलरी अकाउंट में देख कर बहुत खुश हुआ| मैंने बिना ऋतू को बताये उसके सेलेक्ट किये हुए सारे सामान का आर्डर दे दिया और संडे को उसकी डिलीवरी भी होनी थी| ऋतू इस सब से अनजान थी और जब वो संडे को आई तो प्यासी हो कर मुझ पर टूट पड़ी पर मैं जानता था की आज हमें एक दूसरे को प्यार करने का समय नहीं मिलेगा| इसलिए मैंने उसे रोकते हुए कहा; "जान! आज नहीं!" ये सुन कर ऋतू परेशान हो गई और बोली; "क्यों क्या हुआ? आपकी तबियत तो ठीक है ना?"

"मैं ठीक हूँ जान! बस आज कोई आने वाला है|" मैंने बात बनाते हुए कहा|

"कौन आ रहा है? और आपने क्यों बुलाया उसे? एक तो दिन मिलता है उस दिन भी आपके दोस्त हमें अकेला नहीं छोड़ते?" ऋतू ने नाराज होते हुए कहा| ठीक उसी वक़्त दरवाजे पर दस्तक हुई और ऋतू का गुस्सा आसमान छूने लगा, मैंने उसे दरवाजा खोलने को कहा तो ऋतू ने गुस्से से दरवाजा खोला" सामने डिलीवरी बॉय खड़ा था और उसने कहा; "रितिका जी का आर्डर है!" ये सुनते ही ऋतू का गुस्सा काफूर हो गया और उसने हँसते हुए डिलीवरी ली और दरवाजा बंद कर के मेरे पास आ गई और गले लग गई| "थैंक यू जानू!!!" कहते हुए ऋतू ने पंजों पर खड़े होते हुए मेरे होठों को चूम लिया| एक-एक कर तीन लोग और आये....फाइनली ऋतू का सारा सामान आ गया| अब ऋतू उन सबको पहन कर मुझे दिखाने को आतुर हो गई|


सबसे पहले उसने टी-शर्ट और जीन्स पहनी, आज लाइफ में पहलीबार वो जीन्स पहन रही थी| जीन्स बहुत टाइट थी जिसके कारन उसका पिछवाड़ा बहुत ज्यादा उभर कर दिख रहा था| उसे देखते ही मेरे मुँह से निकला; "दंगे करवाएँगी क्या आप?"


ये सुन कर जब ऋतू का ध्यान अपनी उभरी हुई गांड पर गया तो वो बुरी तरह शर्मा गई! "इसे return कर दो!" ऋतू ने शर्माते हुए कहा और मैंने भी उसकी बात मान ली क्योंकि ये जीन्स उसके लिए कुछ ज्यादा ही कामुक थी! बाकी बचे हुए टॉप्स उसने एक-एक कर पहने और मुझे दिखाने लगी|


वो सब अच्छे थे पर जो उसने स्लीवलेस पहना तो मेरी आँखें उस पर गड़ गईं| ऋतू ने आज पहली बार स्लीवलेस पहना था और मैं उसे बस देखे ही जा रहा था| "आपको ये वाली पसंद आई ना?" उसने पुछा और मैंने हाँ में गर्दन हिलाते हुए मुस्कुरा दिया|


मुझे ये जान कर ख़ुशी हुई की ऋतू अब अपनी खूबसूरती को पहचानने लगी है पर एक अजीब सा एहसास भी दिल में होने लगा था, वो ये की मेरी गाँव की भोली-भाली ऋतू जिसे मैं बहुत प्यार किया करता था वो अब शहरी रंग में रंगने लगी है! चलो अच्छा है.... जमाने के साथ बदलना ही चाहिए! ये सोच कर मैंने इत्मीनान कर लिया....
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दिन बीतते गए और क्रिसमस का दिन आया, पर ऑफिस की छुट्टी तो थी नहीं और ना ही मैं छुट्टी ले सकता था| हरसाल मैं आज के दिन चर्च जाया करता था और वहाँ mass अटेंड किया करता था| वापसी में वहाँ से केक खरीद लेता और फिर घर आ जाता था| अब अकेला इंसान था तो टाइम पास हो जाता था और इसी बहाने गॉड जी से भी मन ही मन कुछ बातें कर लिया करता था| पर इस बार मेरे पास Pray करने का कारन था, मैं ऑफिस से सीधा ऋतू के पास हॉस्टल पहुँचा| आज आंटी जी घर पर ही थीं, मैंने उनसे ऋतू को थोड़ी देर ले जाने को कहा तो उन्होंने पुछा की कहाँ जा रहे हो? तो मैंने उन्हें सच बता दिया; "वो आंटी जी दरअसल मैं हरसाल क्रिसमस पर चर्च जाता हूँ, सोचा इस बार ऋतू को भी ले जाऊँ?" ये सुन कर आंटी अचरज करने लगीं; "चर्च? पर क्यों?" उनका इशारे मेरे धर्म से था; "आंटी जी मैं सब धर्मों को मानता हूँ| भगवान् तो एक ही हैं ना?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो आंटी जी ने हाँ में सर हिला दिया| उन्होंने ऋतू को आवाज दी और ऋतू मुझे देखते ही खिल गई| "चल जल्दी से तैयार हो जा, चर्च जाना है!" मैंने कहा तो ऋतू तुरंत तैयार होने चली गई| "मैं आधे-पौने घंटे में ऋतू को छोड़ जाऊँगा|" मैंने आंटी जी से कहा| "कोई बात नहीं बेटा! तेरे साथ जा रही है इसलिए जाने दे रही हूँ!" आंटी जी ने मुस्कुराते हुए कहा| ऋतू तुरंत तैयार हो कर आ गई और हम दोनों चर्च की तरफ चल दिए| जब मैंने बाइक चर्च के पास रोकी और उसे उतरने को कहा तो ऋतू भी अचरज से मुझे देखने लगी| "मुझे तो लगा की आपने ये झूठ सिर्फ इसलिए बोलै ताकि हम बाहर मिल सकें? पर आप तो सच में चर्च ले आये!"

"तुम्हें पता नहीं है पर कॉलेज के दिनों से मैं साल में एक बार आज ही के दिन यहाँ आता हूँ| याद है तेरा वो दसवीं का रिजल्ट वाला काण्ड? तेरा रिजल्ट आने से पहले ही मैं जानता था की कोई तुझे आगे पढ़ने नहीं देंगे, तब यहीं मैंने तेरे लिए Pray किया था की तुझे आगे अच्छे से पढ़ने को मिले और देख दुआ क़बूल भी हुई| आज के दिन तुझे साथ इसलिए लाया हूँ ताकि आज तू भी गॉड को शुक्रिया अदा कर दे|"

ऋतू का चेहरा ख़ुशी से दमकने लगा, उसने अपने दुपट्टे से अपना सर ढका जैसे की वहाँ सब लड़कियों और औरतों ने ढक रखा था और हम चर्च में घुसे| ऋतू को कुछ नहीं पता था की वहाँ कैसे पूजा की जाती थी, इसलिए अंदर जाने से पहले ही वो चर्च के बाहर अपनी चप्पल उतारने लगी| पर मैंने उसे मना किया और हम दोनों ही अंदर घुसे, अब ऋतू को बस मुझे देख रही थी| हम दोनों वहाँ सबसे पीछे वाली लाइन में सब के साथ बैठ गए| आगे की तरफ था स्टैंड था जहाँ लोग अपने घुटने मोड़ कर टिका कर pray करते थे| ऋतू मुझे देखते हुए वैसे ही करने लगी, पता नहीं कैसे पर उस दिन वहाँ उस तरह बैठे हुए Pray करते हुए मेरी आँख से आँसू बह निकले| ऋतू ये देख रही थी पर वो उस समय खामोश रही, Pray कर के हम दोनों बाहर आये और मैंने वहाँ से Candles खरीदीं और बाहर Mother Mary के पास जलाने लगा, ऋतू ने भी ठीक वैसे ही किया| जब हम बाहर आये तो वहाँ से मैंने cake खरीदा और ऋतू को खाने को दिया|

आज पहलीबार ऋतू ने ऐसा केक खाया था और उसे ये बहुत टेस्टी भी लगा था| "एक और करना था तुझे यहाँ लाने का, वो ये की तुझे आज तक पता नहीं होगा की क्रिसमस पर होता क्या है? पर आज तुझे एटलीस्ट आईडिया होगया की आज के दिन की relevance क्या है?"

"आज तक मैंने क्रिसमस ट्री मैंने सिर्फ किताब में देखा था पर आज पता चला की वो कितना सुंदर होता है! चर्च को किस तरह सजाया जाता है और वो जो वहाँ बच्चों ने जीसस क्राइस्ट के बचपन को दिखने के लिए खिलौने सजाया था उसे देख कर मुझे मेरे बचपन की याद आ गई जब मैं गुड़ियों के साथ खेलती थी|"

"चलो अब तुझे हॉस्टल छोड़ दूँ|" ये कहते हुए मैंने जैसे ही बाइक स्टार्ट की तो ऋतू बोली: "थोड़ी देर और रुकते हैं ना?"

"यार मैंने आंटी जी को बोला था की मैं आधे-पौने घंटे में आ जाऊँगा, ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं| कहीं आंटी जी कुछ सोचने लगीं तो?
"आपके बारे में उनके मुँह से सिर्फ तारीफ ही निकलती है| इतने महीनों में मैंने बस ये ही सुना है की मानु बेटा ऐसा है मानु बेटा वैसा है, ईमानदार है, मेहनती है और पता नहीं क्या-क्या! कई बार तो लगता है की वो आपको दमाद बनाने के चक्कर में हैं| पर मोहिनी दीदी का शायद कोई चक्कर चल रहा है, तभी तो वो हर बार अपनी शादी की बात टाल जातीं हैं| कुछ दिन पहले तो वो शराब पी कर आईं थीं, मैंने दरवाजा खोला और वो चुप-चाप अपने कमरे में जा कर सो गईं|"

"उसे आंटी जी से प्रॉब्लम है, आंटी जी उस पर रोक-टोक लगतीं हैं और इसे तो अपनी लाइफ एन्जॉय करनी है|"

हम दोनों ऐसे ही बात करते हुए हॉस्टल पहुंचे और मैं अंदर आ गया और आंटी जी को केक दिया| हैरानी की बात ये थी की जहाँ वो कुछ देर पहले कह रहीं थीं की मैं क्यों क्रिसमस पर चर्च जा रहा हूँ वहीँ अब बड़े चाव से केक खा रही थीं| तभी मोहिनी भी आ गई; "अरे मानु जी आप?! और केक!!!!! वाओ!!! ये आप ही लाये होंगे.... माँ तो...." वो आगे आंटी जी के डर से कुछ नहीं बोली और केक खाने लगी|

"मानु जी एक बात सच-सच बताना, आप मुझ से ही रोज-रोज मिलने के लिए बहाना कर के आते हो ना?" मोहिनी बोली| उस समय आंटी जी किचन में थी और हम तीनों बैठक में बैठे केक खा रहे थे| उसके ये कहते ही मुझे खाँसी आ गई और ऋतू को शायद गुस्सा आने लगा था|

ऋतू भाग कर गई और मेरे लिए पानी ले आई| एक घूँट पानी पीने के बाद मैं बोला; "यार क्या कुछ भी बोल देते हो आप? इसने (ऋतू ने) अगर घर में बता दिया ना तो गाँव वाले भला ले कर यहाँ आ जायेंगे| बतया था न आपको हमारे गाँव में प्यार करना पाप है!" ये सुन कर मोहिनी चुप हो गई| तभी आंटी जी खाना परोस कर ले आईं और बिना खाये उन्होंने जाने नहीं दिया| चलो इसी बहाने घर जा कर खाना बनाने से तो छुट्टी मिली! कुछ दिन और बीते और 29 दिसंबर आ गया, ऑफिस वाले लड़कों ने पार्टी का प्लान बनाया और मुझे भी उसमें शामिल होना था| सब लड़के अपनी-अपनी बीवियों या गर्लफ्रेंड के साथ आने वाले थे तो जाहिर था की मैं भी ऋतू के ले जाने वाला था| इसी बहाने ऋतू को आज पता चल जाता की New year की पार्टी में क्या होता है?!

मैंने ऋतू को सारा प्लान समझा दिया, 30 दिसंबर की शाम को मैं ऋतू के कॉलेज पहुँचा और उसे वहाँ से पिक कर के घर ले आया| उस दिन सुभाष अंकल के घर जन्मदिन की पार्टी थी तो मैं और ऋतू उसमें शरीक हो गए, पार्टी के बाद हम घर आये और एक दुसरे पर टूट पड़े|

दरवाजा बंद होते ही ऋतू मेरी गोद में चढ़ गई और उसका निशाना मेरे होंठ थे| मैंने भी ऋतू के कूल्हों को कस कर पकड़ लिया और खुद से चिपका लिया| मैं उसके होठों को चूसते हुए पलंग पर आया और उसे अपनी गोद से उतार कर बिस्तर पर पटक दिया| मैंने फटाफट अपने कपडे निकाल फेंके और ऋतू ने भी लेटे-लेटे अपने कपडे उतार दिए| मैं उस पर चढ़ने लगा तो ऋतू ने अपने हाथ के इशारे से मुझे रोक दिया| वो उठ कर बिस्तर पर खड़ी हुई, अपने थूक से चुपड़ी उँगलियाँ अपनी बुर पर मलने लगी| फिर अगले ही पल वो मेरी गोद में चढ़ गई| मैंने बाएँ हाथ को उसके कूल्हे के नीचे ले जा कर उसे सपोर्ट दिया और दाएँ हाथ से अपने लंड को पकड़ के उसकी बुर से सटा दिया| मेरे झटका मारने से पहले ही ऋतू ने अपनी बुर मेरे लंड पर दबानी शुरू कर दी| कुछ ही सेकंड में लंड पूरा का पूरा ऋतू की बुर में समा गया पर मुझसे नीचे से झटके लगाना मुश्किल हो रहा था| मैं बिस्तर की तरफ पीठ कर के खड़ा हो गया, जिससे ऋतू को अपने पंजे टिकाने का सहारा मिल गया| ऋतू ने अपने पंजों को गद्दे से टिकाया और अपनी बाहों को मेरे गर्दन से लपेटे उसने अपनी बुर उछालनी शुरू की| अब मेरा लंड बड़े आराम से सटा-सट अंदर बाहर होने लगा| हम दोनों ही लय से लय मिलाते हुए अपनी कमर आगे-पीछे हिला रहे थे| ऋतू की बुर पनियाती चली गई और मेरा लंड अंदर बड़े आराम से फिसलने लगा था| “आईईईईईईई ....आहनननननन...धीरे....जानू....!!!!” ऋतू कराही|


RituHardFuck.gif
मेरी गति इस कदर तेज थी की ऋतू के लिए सहन कर पाना मुश्किल हो गया था, वो ज्यादा देर टिक न पाई और झड़ने लगी; “सससस...आह!...मााााााााााा ...हम्म्म.....नननन” पर मैं अभी और देर तक उसे भोगना चाहता था| मैंने उसे अपनी गोद से उतारा और उसे पलट दिया| मैं उसके पीछे आ कर खड़ा हो गया, ऋतू को आगे की तरफ झुकाया जिससे उसकी बुर उभर कर पीछे आ गई| मैंने पहले तो दोनों हाथों को ऋतू के love handles पर जमा दिया और फिर अपना लंड पीछे से ऋतू की बुर में पेल दिया और तेजी से झटके मारने लगा| मेरी गति इतनी तेज थी की हर झटके से ऋतू का बुरा जिस्म बुरी तरह हिलने लगा था, उसके स्तन तेजी से झूलने लगे थे|


ऋतू से ये सब बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था क्योंकि उसके झड़ने के बाद मैंने उसे जरा सा समय भी नहीं दिया था की वो अपनी सांसें तक दुरुस्त कर ले| ऋतू अब मेरी पकड़ से छूटने के लिए कुलबुलाने लगी थी| "ससस...जााााााााााााााााााााआनननन नननननननुउउउऊऊऊऊऊऊऊऊऊ..... प्लीज...ईइइइइइ ...रुक्खक्क....!!!" इससे आगे उससे बोला ही नहीं गया! अपने आखरी झटके के साथ मैंने अपना वीर्य ऋतू की बुर में भर दिया और लंड बाहर खींच कर मैं पीछे कुर्सी पर फैल गया| ऋतू भी औंधे मुँह बिस्तर पर गिर गई और अपनी साँसों पर काबू करने लगी| दोनों ही पिछले कुछ दिनों से बहुत प्यासे थे तो ये तूफ़ान आना तो तय था, पर इस तूफ़ान के शांत होने के बाद जब मैं उठा तो ऋतू ने कराहते हुए कहा; "आह! हहहहमममम... जानू! मेरी कमर!!!!" तब मुझे एहसास हुआ की ऋतू की कमर में मोच आ चुकी है| मैंने किसी तरह से ऋतू को सीधा कर के उसे बिठाया; "सॉरी...सॉरी....सॉरी....सॉरी यार ...." मैंने कान पकड़ते हुए ऋतू से कहा, पर वो मुस्कुराते हुए बोली; "जान निकाल दी थी आपने मेरी! पर.......... मजा बहुत आया!!!!" ये कहते हुए ऋतू की हँसी निकल गई| मैंने तुरंत पानी गर्म करने को रखा और ऋतू की पीठ पर लगाने के लिए Iodex निकाली| ऋतू को बाथरूम जाना था तो उसे बड़ी मुश्किल से मैंने सहारा दे कर खड़ा किया और उसे बाथरूम ले गया| सहारा दे कर मैंने ऋतू को कमोड पर बिठाया, पिशाब की पहली धार के साथ मेरा और ऋतू का माल बाहर आया और फिर ऋतू की बुर हलकी हुई| मैंने पानी से खुद उसकी बुर को धीरे-धीरे साफ़ किया, पर ऋतू की बुर को छूते ही ऋतू ने सिसीकी ली; "स्स्स्सस्साः!!!" ऋतू मुस्कुराती हुई मुझे अपनी आँखों से इशारे करने लगी की उसे अब अंदर जाना है|

मैंने उसे इस बार गोद में उठाया पर बहुत संभाल कर! मैंने ऋतू को बहुत आहिस्ते से बिस्तर पर लिटाया और उसे पेट के बल लेटने को कहा| फिर मैंने उसकी कमर पर Iodex लगाई और गर्म पानी की बोतल रख कर उसे सेंक देने लगा| कमरे में ब्लोअर चल रहा था जिससे कमरे गर्म था| मैं ऋतू की बगल में लेट गया और हम दोनों के ऊपर रजाई डाल ली| ऋतू ने औंधे लेटे हुए ही मेरी तरफ गर्दन घुमा ली, माने भी ऋतू की तरफ करवट ले ली; "So सॉरी जान!" ऋतू ने प्यार से अपने निचले होंठ को दांतों तले दबाते हुए कहा; "इस कमर दर्द को छोड़ दो तो मजा बहुत आया!"

"तू सच में पागल है!" मैंने ऋतू के गाल को चूमा और हम दोनों सो गए|
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अगली सुबह मैं जल्दी उठ गया क्योंकि मुझे ऑफिस जाना था| मैं उठ कर तैयार होने लगा तो ऋतू आँख मलते-मलते उठी: "आप कहाँ जा रहे हो?"

"ऑफिस और कहाँ?"

"आह! पर आज तो 31st है? आज तो छुट्टी होती है?" ऋतू ने सम्भल कर बैठते हुए कहा|

"जान आज कोई सरकारी छुट्टी नहीं है? ये सब छोडो और ये बताओ की तुम्हारा कमर का दर्द कैसा है?"

"पहले से ठीक है.... मैं चाय बना देती हूँ|" ऋतू उठी पर चाय तो पहले से ही तैयार थी, बस उसे कप में छानना था| ऋतू ने चाय छनि और मुझे कप दे कर फ्रेश होने चली गई| मैं कपडे पहनने लगा तो उसने नाश्ता बनाना शुरू कर दिया| "अरे छोडो ये नाश्ता!" मैंने कहा|

"रोज आप बिना खाये ऑफिस जाते हो?" ऋतू ने हैरानी से पुछा|

"हाँ! कभी-कभी कुछ बना लेता हूँ|"

"तभी इतने कमजोर हो रहे हो! आप बैठो मैं नाश्ता बनाती हूँ|" ये कह कर ऋतू बेसन घोलना शुरू किया| पर मैं कहाँ चैन लेने वाला था, मैंने ऋतू को पीछे से जा कर पकड़ लिया और अपनी ठुड्डी को में ऋतू की गर्दन पर रखे हुए उसके गाल को चूम रहा था| ऋतू ने फटाफट ब्रेड पकोड़े बनाये और मैंने ऐसे ही खड़े-खड़े उसे भी खिलाये और खुद भी खाये| नाश्ता क्र के चलने को हुआ तो ऋतू बोली; "आप कुछ भूल नहीं रहे?" मैंने फटाफट अपना रुमाल, पर्स और मोबाइल चेक किया पर वो मुझे प्यार भरे गुस्से से घूरने लगी| "ओह! सॉरी!" मैंने ऋतू को अपने आगोश में लिए और उसके होंठों को चूम लिया| ऋतू ने तुरंत अपने हाथों को मेरी गर्दन पर लॉक कर दिया और मेरे होठों को चूसने लगी| मेरा उस वक़्त बहुत मन था की मैं उसे गोद में उठा लूँ और बिस्तर पर लिटा कर खूब प्यार करूँ, पर जानता था की उसकी कमर का दर्द उसे और परेशान करेगा| दो मिनट तक इस प्यार भरे चुंबन के बाद तो जैसे मन ही नहीं था की कहीं जाऊँ की तभी फ़ोन बज उठा| मेरा colleague मेरा बस स्टैंड पर इंतजार कर रहा था, जैसे मैंने जाने के लिए मुदा की ऋतू ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली; "जानू! वो....मुझे कुछ पैसे चाहिए थे!" मैंने फ़ौरन बटुए में हाथ डाला और ऋतू की तरफ देखते हुए पुछा; "कितने?" ऋतू झट से बोली; "1,000/-" और मैंने उसे 2,000/- दे दिए और फटाफट निकल गया|


ऑफिस पहुँच कर मैंने ऋतू को कॉल किया और उसे volini spray लगा कर गर्म पानी का सेक करने को कहा वर्ण हम रात को पार्टी में नहीं जा पाते| वो दिन कैसे बीता कुछ पता ही नहीं चला, शाम को जब निकलने का समय हुआ तो सारे लड़के बाहर इकठ्ठा हो गए| सर ने सब का जमावड़ा देखा तो वो भी वहीँ आ गए और पूछने लगे की हम सब यहाँ खड़े क्या कर रहे हैं| हम सब में जो सबसे ज्यादा 'चटक चूतिया' था वो बोला; "सर वो रात को हम सारे पार्टी कर रहे थे तो उसी की बात हो रही थी की कहाँ जाना है?" अब हमारे सर ठहरे चटोरे तो वो कहने लगे की ब्रेक पॉइंट ढाबा चलते हैं| अब सब उस चूतिये को मन ही मन गाली देने लगे, कहाँ तो सब सोच रहे थे की पब जायेंगे मस्ती करेंगे और कहाँ सर ने ढाबे जाने का सुझाव दे दिया| "सर BBQ Nation चलते हैं, पैर हेड 1,500/- आएगा और अनलिमिटेड खाना मिलेगा|” मैंने कहा| अब सब का मन फीका हो गया क्योंकि वो सब दारु पीना चाहते थे और सब मेरी ही तरफ देख रहे थे| मैंने आँख मारते हुए हाँ में गर्दन हिलाई तो वो समझ गए अब उसी चटक चूतिये की ड्यूटी लगाईं गई की वो हम सब के लिए टेबल बुक करेगा| सब के दबाव में आ कर उसने हाँ कर दी और ऑफिस से सीधा वहीँ चला गया और बाकी सब अपने-अपने घर चल दिए| मैं अभी आधे रस्ते पहुँचा था की ऋतू का फ़ोन आ गया, वो पूछने लगी की मैं कबतक आ रहा हूँ? मैंने उसे कहा की मैं अभी रास्ते में हूँ तो उसने कॉल काट दिया| मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और बाइक स्टार्ट कर फिर से चल पड़ा| जैसे ही मैं घर पहुँचा और दरवाजा खटखटाने लगा की दरवाजा अपने आप खुल गया, मैं धीरे से अंदर आया और सोचा शायद की कहीं ऋतू दरवाजा बंद करना तो नहीं भूल गई?! पर जब नजर सामने खिड़की पर पड़ी तो मैं अपनी आँख झपकना ही भूल गया|


अब मुझे समझ आ गया की ऋतू ने वो पैसे क्यों मांगे थे? ऋतू इठला कर चलते हुए मेरे पास आई और बोली; "क्या देख रहे हो जानू?!" मेरे मुंह से बस; "WOW!!!" निकला और ऋतू मुस्कुराने लगी| "ये मैंने उसी दिन आर्डर किया था जब आपने मुझे बताया था की 31st को पार्टी में जाना है| आज अगर मुझे देख कर आपके सारे colleagues आपसे जलने ना लगें तो कहना?" मैं हैरानी से ऋतू की बात सुनता रहा, कहाँ तो ये लड़की इतनी शर्मीली थी और कहाँ ये आज इस कदर मॉडर्न हो गई है? मुझे ऋतू वाक़ई में सूंदर लग रही थी पर मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी की वो इस कदर के कपड़े भी पहन सकती है| मैं अपने ख्यालों में गुम था की ऋतू ने मुझे वो शादी वाला ब्लैज़र और शर्ट उठा के दी; "और ये आप पहनोगे? मेरे hubby को देख आज उन सारी लड़कियों की जलनी चाहिए|" अब मरते न क्या करते मुझे वो पहनना ही पड़ा क्योंकि अगर मैं प्लैन कपडे पहनता तो सब कहते हूर के संग लंगूर! मैं जानता था की कल ऑफिस में मेरी बहुत खिचाई होगी! पर ऋतू ये भूल गई थी की ये दिसंबर का महीना है और बाहर ठंड है, उसने इस ड्रेस के चलते कोई गाउन तो आर्डर किया नहीं था! "मैडम जी! बहार की ठंडी हवा में ये पहन के जाओगी तो 'कुक्कड़' बन जाओगी!" ये सुन कर ऋतू सोच में पड़ गई| मैंने फ़ोन निकाला और कैब बुक करी और अपना ब्लैज़र उसे उतार के दिया| "पर ये इसके साथ कैसे चलेगा?" ऋतू ने मायूस होते हुए कहा| "अरे बुद्धू! ये बस कैब आने तक अपने कन्धों पर रख ले और वहाँ पहुँच कर मुझे दे दिओ, वापसी में फिर ऐसे ही करेंगे|" ये सुन कर उसका चेहरा फिर से खिल गया|


आखिर कैब आई और हम BBQ Nation पहुँचे और जैसा की होना चाहिए था सब ऋतू को देख कर ताड़ने लगे| सब के सब मुझे आँखों से इशारे कर के पूछने लगे की ये कौन है? "My girlfriend ऋतू!" ये कहते हुए मैंने उसका इंट्रो एक-एक कर सबसे कराया| तभी पीछे से सर और मैडम आये और उन्होंने भी ऋतू से Hi-Hello की! वहाँ पर कोई बड़ा फॅमिली टेबल नहीं था बल्कि चार लोगों के लिए बैठने वाले छोटे बूथ थे| मैंने फटाफट ऋतू का हाथ पकड़ा और खाली बूथ में बैठ गया, सब ने फटफट बूथ पकडे और सर के साथ उसी चटक चूतिये को अपनी बंदी के साथ बैठना पड़ा| सारे लौंडे अपनी-अपनी बंदियों को साथ बैठ गए, मेरे सामने वही लड़का बैठा जो मेरे साथ एकाउंट्स में था| उस हरामी की नजर ऋतू पर उसकी बंदी की नजर मुझ पर थी| मेरा बायाँ हाथ और ऋतू का दायाँ हाथ टेबल के नीचे था और हम एक दूसरे के हाथ को सहला रहे थे| खाने के लिए जब वेटर आया तो उसने हम से पुछा की हम Veg या Non-Veg लेंगे? हमने तीन Non-Veg और एक Veg का आर्डर दिया| फिर दूसरा बंदा एक मिनी तंदूर ले कर आया और हमारे सामने टेबल के बीचों बीच बने छेड़ में फिट कर दिया| ये ऋतू के लिए फर्स्ट टाइम था और वो हैरानी से देख रही थी| फिर एक-एक कर 'सीकें' लगनी शुरू हो गईं फिर मैं और वो लड़का बारी-बारी से उन सीकों को रोल करते और उस पर चटनी लगाने लगे| मैंने वहाँ रखे झंडे को ऊँचा कर दिया; "ये क्यों किया?" ऋतू ने पुछा| "अब जबतक हम इस झंडे को नीचे नहीं करते ये लोग तंदूरी आइटम serve करते रहेंगे|" ये सुन कर मेरे सामने बैठी लड़की बोली; "मतलब हम अनलिमिटेड खा सकते हैं?"

"हाँ जी! पर इसी से पेट न भर लीजियेगा, वहाँ main कोर्स का बुफे लगा है और वो भी अनलिमिटेड है|" ये सुन कर वो लड़की और ऋतू एक को देखने लगे और उनके चेहरे से वही लड़कियों ख़ुशी झलकने लगी| ये वही ख़ुशी है जो लड़कियों को फ्री के खाने को देख कर होती है| वेटर फिर से आया और ड्रिंक्स के लिए पूछने लगा पर मैंने मना कर दिया| उन दोनों ने बहुत फाॅर्स किया पर मैं और ऋतू अड़े रहे की हम नहीं पीयेंगे| शायद ऋतू जान गई थी की मेरा खींचाव नशे की तरफ कुछ ज्यादा है! मैं अपनी लिमिट जानता था पर पिछले कुछ महीनों में ये दारु मेरी आदत बनने लगी थी| वैसे भी 31st को ड्रिंक्स बहुत ज्यादा ही महंगी थीं तो ना पीना ही economical था! खेर अच्छे से दबा कर खाना पीना हुआ और समय हुआ विदा लेने का तो सब को Happy New Year कह कर हम दोनों कैब कर के घर लौट आये| रात के ग्यारह बजे थे और हम अपने कपडे बदल रहे थे| ऋतू ने हमेशा की तरह मेरी टी-शर्ट पहनी और नीचे उसने सिर्फ अपनी पैंटी पहन राखी थी, मैं पजामा और टी-शर्ट पहन कर रजाई में घुस गया| फिर मुझे याद आया की ऋतू को दवाई लगा देता हूँ तो मैं वापस उठा और ऋतू की कमर पर Iodex लगा दिया| ऋतू सेधी लेटी थी पीठ के बल, और मैं उसकी तरफ करवट ले कर लेटा था| ऋतू ने मेरा बायाँ हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और वो छत की तरफ देखते हुए कुछ सोच रही थी|

"क्या हुआ? क्या सोच रही है?" मैंने ऋतू से पुछा|

"गाँव में रहते हुए ना तो कभी मुझे ये पता था की क्रिसमस क्या होता है और ना ही की 31st दिसंबर की पार्टी क्या होती है! आप की वजह से मैं यहाँ आई और ये सब देखने को मिला, एक नई जिंदगी जीने का मौका मिला| वरना अब तक तो मेरी शादी हो गई होती और मैं वहां तिल-तिल मर रही होती!"

"बस! नए साल का आगाज इस तरह रोते हुए नहीं करना!" ये कहते हुए मैंने ऋतू के गाल को चूम लिया| ऋतू मेरी तरफ पलटने लगी तो उसकी कमर का दर्द उसे परेशान करने लगा, मैं उठ कर पानी गर्म करना चाहता था पर ऋतू ने मुझे रोक दिया और मेरा सर अपने सीने पर रख कर मेरे बालों में उँगलियाँ फेरने लगी| मैं ऋतू के दिल की बेकाबू धड़कनें सुन पा रहा था और उसके मन में उठ रहे प्यार को महसूस कर पा रहा था| "कल सुबह पहले डॉक्टर के चलेंगे फिर मैं तुम्हें कॉलेज छोड़ दूँगा और वहाँ से मैं ऑफिस निकल जाऊँगा|" मैंने कहा और ऋतू ने बस 'हम्म्म' कहा| घडी ने टिक-टिक कर रात के बारह बजाये और मैं उठ कर बैठा, पर ऋतू की आँखें बंद थी| मैंने झुक कर ऋतू के होठों को बड़ा लम्बा kiss किया और कहा; "Happy New Year मेरी जान!" ऋतू ने अपने दोनों हाथ मेरी गर्दन के पीछे ले जाकर लॉक कर दिया और मुस्कुराते हुए बोली; "Happy New Year जानू! I Love You!!!" पर उसे मेरा जवाब सुनने की जर्रूरत नहीं थी, उसने मुझे अपने ऊपर झुका लिया और मेरे होठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी|

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हम इसी तरह एक दूसरे को चूमते हुए सो गए| सुबह उठ कर मैंने ऋतू के माथे को चूमा और उसे नए साल की नई सुबह की मुबारकबाद दी| ऋतू अब भी लेटी हुई थी, मैंने उठ कर सबसे पहले उसके लिए bed tea बनाई और फिर उसे प्यार से जगाया| ऋतू आँखें मलते हुए उठी और उसने जब मेरे हाथ में चाय का कप देखा तो मुस्कुराने लगी| "मुझे लगा था की ये सब आप शादी के बाद करोगे!" ऋतू ने कहा| "अरे हम तो साल के पहले दिन से ही आपके गुलाम हो गए!" मैंने हँसते हुए कहा| "इस गुलाम को तो मैं अपने दिल में बसा कर रखूँगी!" ऋतू ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा| ऋतू उठ कर फ्रेश होने चली गई और मैं उसके लिए ऑमलेट बनाने लगा| ऋतू ऑमलेट की खुशबु सूंघ कर फटाफट बाहर आ गई और कुर्सी पर बैठ गई| मैंने उसे गर्म-गर्म ऑमलेट परोस कर दिया और उसके सर को चूम कर मैं बाथरूम फ्रेश होने चला गया| तैयार हो कर, खा-पी कर हम दोनों निकले| मैंने बाहर से ऑटो किया और पहले ऋतू को एक डॉक्टर के पास ले गया| डॉक्टर ने बताया की कोई गंभीर बात नहीं है, मोच ही है पर चूँकि सर्दी है इसलिए ज्यादा दर्द कर रही है| उसने एक पैन किलर दी और गर्म पानी की सिकाई करने को कहा| फिर ऋतू को मैंने उसके कॉलेज छोड़ा और मैं ऑफिस निकल गया| ऑफिस मैं पहले ही कॉल कर के बता चूका था की में थोड़ा लेट होजाऊंगा इसलिए बॉस ने कुछ नहीं कहा|


समय बीतने लगा और मार्च आ गया... कुछ दिन बाद कॉलेज का एनुअल डे था! ऋतू को जैसे ही ये पता चला उसने मुझे तुरंत फ़ोन किया; "जानू! नेक्स्ट वीक हमारा एनुअल डे है!" मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा; "हमारा एनुअल डे?" ये सुन कर रितु की भी हँसी निकल गई; "मेरा मतलब...कॉलेज का एनुअल डे! तो नेक्स्ट वीक आप छुट्टी ले लेना|" अब चूँकि मैंने अभी तक एक भी छुट्टी नहीं ली थी तो मुझे पता था की बॉस छुट्टी दे देंगे, उसी दिन मैंने शाम को सर से बात की तो उन्होंने हाँ कह दिया| इधर ऋतू ने अपने लिए और मेरे लिए ड्रेस सेलेक्ट करना शुरू कर दिया और मुझे मैसेज करना शुरू कर दिया| ऑफिस में हर कुछ मिनट मेरा फ़ोन बजता रहता और सब कहते की 'क्या बात है? गर्लफ्रेंड बड़ी बेचैन हो रही है|' ऋतू ने अपनी ड्रेस फाइनल करने से पहले मेरे कपडे फाइनल कर दिए और मुझे बता कर आर्डर भी कर दिए| उसने अपना आर्डर अपने फ़ोन से किया ताकि मुझे पता न चल जाए की उसने क्या आर्डर किया है, हाँ डिलीवरी एड्रेस मेरा घर ही था| संडे को उसका आर्डर डिलीवर हुआ पर मेरे वाले में और टाइम लगना था| ऋतू ने मुझे अपने कपडे दिखाए भी नहीं और शाम को अपने साथ हॉस्टल ले गई|

आखिर एनुअल डे का दिन आ ही गया, मैं रेडी हो कर ऋतू के हॉस्टल पहुँचा क्योंकि मुझे उसे वहीँ से पिक करना था| ऋतू जब मेरे सामने आई तो मैं हाथ बाँधे प्यार से उसे देखने लगा|

उसकी वो लट जो उसके चेहरे पर आ गई थी, वो उसकी साडी.... हाय मन करने लगा की ऋतू को अभी मंदिर ले जाऊँ और उससे अभी शादी कर लूँ| इधर ऋतू की नजर मुझ पर जम गई थी और मुँह खोले मुझे देखते हुए नजदीक आई|


“यार अभी मेरे साथ भागना है?" मैंने ऋतू से पुछा तो उसने एक दम से अपनी मुंडी हाँ में हिलाई, उसका ये उतावलापन देख मैं हँसने लगा| "आज तो आप मुझे जहाँ कहो वहाँ चलने को तैयार हूँ?" ऋतू ने इतराते हुए कहा| ऋतू को पीछे बिठा कर आज मनो ऐसा लग रहा था की एक नव-विवाहित जोड़ा किसी शादी में जा रहा हो| जैसे ही हम कॉलेज के नजदीक पहुँचे तो हमें loud music की आवाज आने लगी| बाइक पार्क कर के हम दोनों अंदर आये तो मेरी नजर सबसे पहले सोमू भैया पर पड़ी| सबसे पहले उनसे जा कर गले लगे और HI-Hello हुई! उन्हीं के पास मेरे साथ के सभी दोस्त मिले और तब मुझे ध्यान आया की यहाँ तो मोहिनी भी आई होगी! मैं मन ही मन तैयारी करने लगा की उससे क्या कहूँगा? ऋतू को समझ नहीं आया की मैं अचानक से इतना गंभीर क्यों हो गया| फिर वही हुआ जिसका मुझे डर था, मोहिनी जो की हम दोनों से पहले ही आ चुकी थी वो अंशुल के मुँह से मेरे और ऋतू के बारे में सब सुन चुकी थी, हमारी ही तरफ चल कर आ रही थी|

ऋतू अब भी समझ नहीं पाई थी की भला मैं क्यों परेशान हूँ?!
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Nevil singh

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आज पहलीबार मैं किसी शक़्स के चेहरे को नहीं पढ़ पा रहा था! शायद ये घबराहट थी या फिर ऋतू को खो देने का डर! मोहिनी मेरे सामने आकर खड़ी हुई और कुछ बोलने को हुई पर उसे एहसास हुआ की हमारे इर्द-गिर्द बहुत से लोग हैं इसलिए उसने मेरा और ऋतू का हाथ पकड़ा और हमें एक कोने में ले आई| अभी उसने कुछ कहा नहीं था और इधर मेरा दिल कह रहा था की आज रात ही मैं ऋतू भगा कर ले जाऊँगा|

"मानु जी! ये सच है की आप रितिका से प्यार करते हो?" मोहिनी की बात सुन ऋतू घबरा गई और जल्दीबाजी में बीच-बचाव करने को कूद पड़ी|

"हाँ दीदी...ये...ये तो सब जानते हैं!"

"मैं उस प्यार की बात नहीं कर रही?" मोहिनी ने गंभीर होते हुए कहा| मोहिनी का ये रूप देख ऋतू का सर झुक गया तो मैंने एक गहरी साँस ली और पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा; "हाँ! बहुत प्यार करता हूँ मैं ऋतू से?"

"ये जानते हुए की आपका उससे रिश्ता क्या है?" मोहिनी की आँखों मुझे अब एक चिंगारी नजर आने लगी थी|

"खून के रिश्ते से बड़ा प्यार का रिश्ता होता है!" मैंने कहा|

"और आगे क्या करोगे?" मोहिनी ने पुछा|

"शादी और क्या?!" मैंने सरलता से जवाब दिया|

"Really? भाग कर? क्योंकि यहाँ तो ये सुनने के बाद आप दोनों को कोई जिन्दा नहीं छोड़ेगे|" मोहिनी ने ताना मारते हुए कहा|

"हम दोनों यहाँ से दूर अपनी नई जिंदगी बसायेंगे|" ऋतू ने भी आत्मविश्वास दिखते हुए कहा|

"रहोगे तो इसी दुनिया में ना? भूल गए आपने ही बताया था की आपके गाँव वाले प्रेमियों को जिन्दा जला देते हैं!" मोहिनी ने ऋतू को डाँटते हुए कहा|

"सब याद है, वो ऋतू की ही माँ थी जिन्हें खेत के बीचों बीच जिन्दा जला दिया गया था|" मैंने मोहिनी की आँखों में देखते हुए कहा| अब ये सुन कर तो मोहिनी के होश ही उड़ गए!

"क्या? और फिर भी आप?" मोहिनी ने हैरान होते हुए कहा|

"प्यार होना था, हो गया कोई इसे माने चाहे ना माने हम तो इस प्यार पर विश्वास करते हैं ना?! जानता हूँ ये लड़ाई बहुत लम्बी है और शायद भागते-भागते जमीन भी कम पड़े पर हम अलग होने से रहे! ज्यादा से ज्यादा हमें मार ही देंगे ना? इससे ज्यादा तो कुछ नहीं कर सकते?"

"आपको ये इतना आसान लग रहा है? दिमाग-विभाग है या इसके (ऋतू के) प्यार में पड़ कर सब खो दिया आपने? तुझमें (ऋतू में) अक्ल नहीं है क्या? क्यों अपनी अच्छी खासी जिंदगी ख़राब करना चाहते हो? क्या अच्छा लगता है तुम्हें एक दूसरे में? सेक्स करो खत्म करो! ये शादी-वादी का क्या चक्कर है?!" मोहिनी की ये बात मुझे बहुत बुरी लगी, ऐसा लगा मानो उसने मेरे प्यार को गाली दी हो| मैंने उसकी कलाई पकड़ी और उसे गुस्से से दिवार के सहारे खड़ा करते हुए उसकी आँखों में आँखें डालते हुए कहा; "तुझे क्या लगता है की मैं इसके जिस्म का भूखा हूँ? या फिर ये सिर्फ मेरे साथ सेक्स करना चाहती है और इसलिए हम शादी कर रहे हैं? शादी हम इसलिए नहीं कर रहे ताकि दिन रात बस सेक्स कर सकें, शादी हम इसलिए कर रहे हैं ताकि ताउम्र हम एक दूसरे के साथ गुजार सकें| अपना परिवार बसा सकें, जहाँ हमें एक साथ देख कर कोई हमारे रिश्ते को नहीं प्यार की तारीफ करे| अगर सेक्स ही करना होता तो ये प्यार नहीं वासना होती! हमारे अंदर वासना कतई नहीं, सिर्फ एक दूसरे के लिए प्यार है|

हम दोनों एक घर में पैदा हुए क्या ये मेरी गलती है? या फिर ये मेरी भतीजी बन कर पैदा हुई ये इसकी गलती है? हम अपनी मर्जी से अपने माँ-बाप नहीं चुनते और अगर चुन सकते तो कभी एक परिवार में पैदा नहीं होते| I don't give a fuck what this society thinks of this relationship, what matters to me is what she thinks of this relationship and she’s bloody danm proud of it. Throughout her childhood she has suffered a lot, you have no idea what it feels to be the unwanted child in a family. जब ये अपना दर्द भरा बचपन काट रही थी तब तो किसी ने आ कर इसके दिल पर मरहम नहीं लगाया ना? अगर मेरे प्यार से इसके जख्मों को आराम मिलता है तो दुनिया को कोई हक़ नहीं की वो हमें अलग करे| मेरा प्यार सच्चा है और तुझे कोई हक़ नहीं की मेरे प्यार को गाली दे!” मेरी बातें सुन कर मोहिनी हैरान थी और जब वो बोली तो बातें बहुत हद्द तक साफ़ हो गईं| “I’m sorry! मेरा वो उदेश्य नहीं था.....मैं बस जानना चाहती थी की आप कितना प्यार करते हो ऋतू को| I’m happy for you guys!” मोहिनी ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर ऋतू का हाथ पकड़ कर उसे अपने गले लगा लिया| ऋतू रउवाँसी हो गई थी और उसे ये चिंता सता रही थी की अगर ये राज मोहिनी ने खोल दिया तो क्या होगा? पर उसकी चिंता का निवारण मोहिनी ने खुद ही कर दिया; "रितिका रो मत! Your secret is safe with me. पर हाँ शादी में जर्रूर बुलाना!” मोहिनी ने हँसते हुए कहा| ऋतू की आँख से आँसू की एक धार बह निकली थी, मोहिनी ने खुद उसके आँसू पोछे और उसे वाशरूम जाने को कहा| ऋतू के जाने के बाद मोहिनी बोली; "वैसे मैंने आज एक बहुत बड़ा सबक सीखा है! अगर किसी से प्यार करो तो उसे बता देना चाहिए, ज्यादा इंतजार करने से वो शक़्स आपसे बहुत दूर चला जाता है!" वो इतना कह कर जाने लगी, मुझे ऐसा लगा जैसे उसके अंदर कोई दर्द छुपा है और वो उसे छुपा रही है| मैंने उसका हाथ थामा और उसे अपनी तरफ घुमाया तो पाया की उसकी आँखें नम हैं! मुझे उससे पूछना नहीं पड़ा की उसकी बात का मतलब क्या है क्योंकि उसके आँसू सब ब्यान कर रहे थे| पर मोहिनी अपने मन में कुछ रखना नहीं चाहती थी इसलिए बोल पड़ी; "कॉलेज के लास्ट ईयर मुझे आपसे प्यार हुआ पर कहने की हिम्मत नहीं पड़ी| फिर हमारा साथ छूट गया और शायद मैं भी आपको भूल गई थी, फिर उस दिन आपने मेरे दिल में दुबारा एंट्री ली और क्या एंट्री ली! वो सोया हुआ प्यार फिर जाग गया पर फिर हिम्मत नहीं हुई आपसे कहने की और जब कहना चाहा तो आपने ये बोल कर डरा दिया की आपके गाँव में डॉम प्यार करने वालों को मार दिया जाता है| जैसे-तैसे खुद को संभाल लिया ये सोच कर क्या पता की आगे चल कर हालात सुध जाएं और तब मैं आपसे अपने प्यार का इजहार करूँ! पर सच्ची मैंने बहुत देर कर दी!!!"

"प्यार तो फर्स्ट ईयर से मैं तुम्हें करता था पर लगता था की तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड होगा ही| फिर जब टूशन पढ़ाने आया तो पता चला की तुम तो वेल्ली हो पर कुछ कह पाता उससे पहले ही मुझे मेरे ही घर की ये बात पता लगी और फिर रही सही हिम्मत भी टूट गई! फिर ऋतू से प्यार हुआ और मैंने ये रिस्क लेने की सोची!" मैंने मोहिनी को सब सच बता दिया|

"तो ये सब आपके गाँव वालों की वजह से हुआ! कोई बात नहीं ....शायद मेरे नसीब में प्यार था ही नहीं!" मोहिनी ने नकली हँसी हँसते हुए कहा| मेरे आगे कुछ कहने से पहले ही ऋतू आ गई और ठीक उसी समय स्टेज पर से सोमू भैया ने मेरे नाम की अनाउंसमेंट की और मुझे स्टेज पर बुलाया| हम तीनों स्टेज की तरफ चल दिए; "भाई आज तक हमारे वो गुमनाम शायर जिन्होंने आजतक हमारे कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर टोपर की शोभा बधाई है उनसे दरख्वास्त करूँगा की वो कुछ लाइन आपको सुनायें| मैं स्टेज पर चढ़ा और सोमू के कान के पास जा कर बोलै; "कहाँ फँसा दिया भैया आपने!" मैंने ये ध्यान नहीं दिया की उनके हाथ में जो माइक है वो ऑन है| जब सब ने मेरी ये बात सुनी तो सब लोग हँसने लगे|

"दोस्तों एक शायर की चंद लाइन्स याद आती हैं.....


कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं कहीं आसमान नहीं मिलता

तमाम शहर में ऐसा नहीं खुलूस न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता


कहाँ चराग़ जलाएं कहाँ गुलाब रखें
छतें तो मिलती हैं लेकिन माकन नहीं मिलता


ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
ज़बान मिली है मगर हम-ज़बान नहीं मिलता


चराग़ जलते ही बिनाई बुझने लगती है
खुद अपने घर में ही घर का निशान नहीं मिलता "


ये लाइन्स सिर्फ और सिर्फ मोहिनी के लिए थीं ताकि उसे उसकी कही बात का जवाब मिल जाये| तालियों की गड़गड़ाहट और सीटियों से सब ने अपनी ख़ुशी जाहिर की| मैं स्टेज से उतरा और अब मेरा मन शांत था और कोई डर नहीं था पर शायद ऋतू को अब भी घबराहट थी| मैं उसके और मोहिनी के पास पहुंचा और तभी मोहिनी हम दोनों को छोड़ कर अपनी किसी दोस्त के पास चली गई| "वो किसी से कुछ नहीं कहेगी! मुँह-फ़ट है पर चुगली करना उसकी आदत नहीं|" मैंने कहा और फिर ऋतू को सारी बात बता दी| वो सब सुन कर उसे इत्मीनान हुआ और वो मुस्कुरा दी| कुछ देर में गाने फिर से बजने लगे, हम दोनों एक चाट वाले स्टाल के पास खड़े थे की तभी वहाँ राहुल नाम का एक लड़का आया| ये ऋतू की क्लास में कुछ महीने पहले ही ट्रांसफर ले कर आया था| साल के बीचों बीच आया है मतलब जर्रूर कोई नामी बाप की औलाद होगा| पहनावा उसका बिलकुल अमीरों जैसा पर वो रोहित की तरह चूतिया नहीं था| स्टाइलिश था और जब से हम आये थे उसकी नजर ऋतू पर ही टिकी थी| राहुल ने आते ही ऋतू से पुछा; "Shall we dance?" पर ऋतू ने एक दम से जवाब दिया; "नहीं!" वो हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा और इससे पहले की कुछ बोलता ऋतू ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे डांस फ्लोर पर ले आई|

"क्या हुआ?" मैंने पुछा|

"I Hate that guy! ये उसी मंत्री का बेटा है जो उस दिन हमारे घर पर आया था|" ऋतू ने चिढ़ते हुए कहा| अब पहले से ही उसका मूड थोड़ा ऑफ था और मैं उसे और ख़राब नहीं करना चाहता था| मैंने ऋतू को उसकी कमर से पकड़ा और अपने जिस्म से सटा कर थिरकने लगा|

"जानू! अगर दीदी (मोहिनी) ने आपसे पहले इजहार किया होता तो?" ऋतू ने पुछा| अब मैं उससे इस बारे में बात नहीं करना चाहता था, शायद ऋतू खुद समझ गई; "तो आज आप उनके साथ होते .... और मैं अपनी किस्मत को कोस रही थी!" मैंने ऋतू के सर को चूमा और कहा; "जान! हमारी किस्मत में एक होना लिखा था, इसलिए आज हम यहाँ हैं|" ऋतू को मेरी बात से इत्मीनान हुआ और अब वो फिर से मुस्कुराने लगी| उस दिन मुझे इस बात का एहसास हुआ की मेरे अंदर इस जमाने से लड़ने की कितनी शक्ति है और ऋतू भी जान गई की मैं उससे कितना प्यार करता हूँ| प्रोग्राम खत्म हुआ तो मैं और ऋतू बाहर आये और अभी मैं बाइक को किक कर ने वाला था की ऋतू के कुछ दोस्त आये और मुझे Hi बोल कर उससे कुछ बात करने लगे| उनकी बात होने तक मैंने बाइक घुमा ली थी, फिर ऋतू को हॉस्टल छोड़ कर मैं अपने घर आ गया|

समय का चक्का घूमने लगा और ऋतू के exams आ गए, मुझे कहने की जर्रूरत नहीं की उसने फर्स्ट ईयर में टॉप किया| घर वाले उसकी इस उपलब्धि से बहुत खुश थे और रिजल्ट ले कर हम घर पहुँचे तो उसे इस बार बहुत प्यार मिला| परिवार के प्यार की खुशियाँ देर से ही सही पर उसे अब मिलने लगीं थीं|

रिजल्ट की ख़ुशी मना कर मैं और ऋतू शहर वापस जा रहे थे की रास्ते में मेरी बाइक ख़राब हो गई| बाइक को धक्का लगाते-लगाते हम एक मैकेनिक तक पहुँचे और मैं वहाँ उससे बाइक बनवाने लगा की ऋतू बोर हो रही थी और ऐसे ही चलते-चलते कुछ आगे चली गई| वहाँ उसने एक झोपडी देखि जहाँ एक बच्चा धुल में खेल रहा था| उसके पास ही उसकी माँ बैठी थी जो सर झुका कर कुछ सोच रही थी| उसका ध्यान जरा भी अपने बच्चे पर नहीं था, उसका पति कहीं मजदूरी करने गया था, चूल्हा ठंडा था और शायद उन बेचारों के पास खाने को भी कुछ नहीं था| ऋतू वहीँ कड़ी उस बच्चे और उसकी माँ को देख रही थी, माँ की उम्र ऋतू से कुछ 1-2 साल ही ज्यादा थी और बच्चा करीब 1 साल का होगा| बाइक ठीक होने के बाद मैं ऋतू को ढूँढता हुआ आया तो मैंने देखा की ऋतू वहाँ उस बच्चे की माँ से बात कर रही है| मुझे वहाँ खड़ा देख उसने मुझसे पैसे मांगे और उस औरत को देने लगी| कुछ न-नुकुर के बाद उसने पैसे ले लिए उसके बाद जब ऋतू मेरे पास चल के आई तो उसकी आँखें नम थी| वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे कुछ दूर लाई और आ कर मेरे गले लग गई| आज पहली बार उसने गरीबी देखि थी, गाँव में उसका घर से निकलना कम होता था और जो गरीबी उसने गाँव में देखि थी वो थी मिटटी के घर और हमारे खेतों में काम करने वाले मजदूर!! ऋतू के लिए तो जिसका घर मिटटी का है या जो दूसरों के खेतों में काम करता है वही गरीब और जिसका घर पक्का बना है या जो अपने खेतों में दूसरों से काम करवाता है वो अमीर| शहर आ कर उसने जब लोगों को भीख मांगते हुए देखा तो उसने सोचा की शायद ये गरीबी होती है पर जब उसे पता चला की इनमें से ज्यादातर एक 'रैकेट' का हिस्सा हैं तो उसके मन के विचार बदलने लगे| भला कोई काम न कर के जानबूझ कर भीक मांगे तो वो काहे का गरीब? पर आज जब उसने उस औरत से उसकी कहानी सुनी तो उसे एहसास हुआ की गरीबी क्या होती हैं!

उसका नाम फुलवा है, वो एक बंजारन है| उसे एक दूसरे कबीले के लड़के से प्यार हुआ और जब उसने ये बात अपने घर में बताई तो उन्होंने उसे और उस लड़के को कबीले से निकाल दिया| तब से दोनों दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, इसी बीच उसका ये बेटा पैदा हुआ और अब इन दोनों की जिंदगी तबह हो गई| उसका पति काम के तलाश में रोज निकलता है और शाम को खाली हाथ लौटता है| क्या प्यार करने वालों के साथ ऐसा ही होता है? क्यों ये लोग उन्हें चैन से जीने नहीं देते? और हमारा क्या होगा? अगर हमारे साथ ऐसा हुआ तो?" ऋतू ने रोते-रोते पुछा|

"हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा! मैंने सब कुछ प्लान कर रखा है| मैं ये जॉब क्यों कर रहा हूँ? इसीलिए ना की जब हम घर से भागें तो हम एक नई जिंदगी शुरू कर सकें| हाँ मैं मानता हूँ की ये इतना आसान नहीं होगा पर failure is not an option for us! We've to fight till the last breath and we will succeed! तुझे बस मुझ पर विश्वास रखना है|" मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा| उस टाइम तो ऋतू ने मेरी बात मान ली पर अब उसके मन में ये चिंता पैदा हो चुकी थी|
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