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ये कहानी शुरू होती है कोलकाता के मिस्टर सुनील गुलाटी के परिवार से जिसमे खुद सुनील, उसकी पत्नी स्वाति गुलाटी और उसका छोटा भाई विवेक गुलाटी रहता है।
सुनील के माता पिता एक सड़क हादसे में गुज़र चुके है। तब से विवेक को उन्होंने ही ने सगा बेटा मानकर पाला पोसा है। विवेक भी भाई भाभी की पूरी इज़्ज़त करता है और उनको माता पिता के समान ही समझता है।
उनका “गुलाटी गारमेंट्स” के नाम से बहुत बड़े बड़े शेहरो में कपड़ा जाता है। अब विवेक की पढ़ाई पूरी हो चुकी है और अपने भाई के आफ़ीस का काम सम्भालने लगा है। जबके सुनील बाहर का काम काज सम्भालता है। एक दिन उनके आफिस में एक लड़की आरती काम मांगने आती है। आफिस में विवेक बॉस है।
आरती – मे आई कमीनग सर ?
विवेक – (किसी फ़ाइल में उलझे हुए ही)– यस कमिन् ।
(आरती आकर सामने खड़ी हो जाती है पर विवेक का ध्यान अब भी फ़ाइल में है)
आरती आते ही नमस्ते बुलाती है और विवेक बिन उसकी तरफ देखे नमस्ते कबूल भी कर लेता है।
विवेक – हांजी कहिये क्या काम है आपको ?
आरती – सर मैं आरती चौहान फ्रॉम न्यू डेल्ही और मुझे पता चला है के आपके आफिस में एक क्लर्क की सीट खाली पड़ी है। उसी सिलसिले में ही आपसे मिलने आई हूँ।
अब विवेक का ध्यान उसकी तरफ गया तो उसे देखता ही रह गया, क्या गज़ब की खुबसुरत बला थी। गुलाबी कमीज़ सलवार, खुले बाल, 5 फ़ीट लंबाई, दूध जेसी गोरी चमड़ी, चेहरे पे चशमा, कलाई पे A अक्षर का ब्रेसलेट डाले खड़ी थी।
अब फ़ाइल को साइड पे रखते हुए विवेक ने उसे बैठने जो कहा।
और रिंग बजाकर पियन् को पानी लेकर आने का बोला।
आरती – थैंक यू सर।
विवेक – हांजी क्या नाम है आपका ?
आरती – जी आरती चौहान ।
विवेक – क्या क्वालिफिकेशन है आपकी ?
आरती – जी एम् फिल किया है और कम्प्यूटर का हार्डवेयर डिज़ाइनिंग का 3 साल का कोर्स भी किया है यह लीजिये मेरा बायोडाटा (अपनी फ़ाइल पकडाते हुए)
विवेक – (लगभग सारी फ़ाइल देखते हुए)
गुड़, देखो आरती हमे क्लर्क की तो जरूरत है लेकिन सिर्फ लोकल वाले को ही पहल देते है। आप रोज़ाना अप डाउन कैसे करोगे देल्ही से कोलकत्ता?
अभी हमारा इस शहर में काम भी नया है आपको फ्लैट की सुविधा भी नही दे सकते। आप हमारी सभी शर्तों को पूरा करते हो सिर्फ लोकल वाली छोड़कर।
देखलो आगे आपकी मर्ज़ी है।
आरती – सर उसकी चिंता आप न करो, वो मेरी सरदर्दी है। वेसे भी कई महीनो से इसी शहर में रह रही हूँ। आपको जो परीक्षा लेनी है लेलो पर मुझे यह जॉब बहुत जरूरी चाहिये।
विवेक – हम्मम… ठीक है तो आओ मेरे साथ आपको आपका कॅबिन दिखा दू और वही आपकी परीक्षा भी हो जायेगी।
दोनो दफ्तर के साथ वाले हॉल में से होते हुए एक कॅबिन में पहुंचते है
विवेक – यह है आपका कॅबिन
आज से आपको यही काम करना है। उस से पहले आपको कुछ फाइल्स और कम्प्यूटर फाइल्स के बारे में आपके सीनियर मैडम मीनाक्षी आपको सारी जानकारी दे देंगे।
विवेक (मीनाक्षी मैडम से) — मैडम ये हमारी नयी स्टाफ मेंबर मिस आरती चौहान है । आज से यह आपके अंडर काम करेगी। इनको सारा काम काज समझा दो।
मीनाक्षी – ठीक है सर ।
अब मिनाक्षी और आरती अपने काम काज में लग गए।
(फेर बाद में आरती विवेक के कॅबिन में जब गयी तो)
विवेक – देखो आरती एक हफ्ता आप ट्रेनिंग पे हो इसका आपको कुछ नही मिलेगा। बल्कि आपमें जो भी काबलियत या कमी हुई वो सामने आ जायेगी।
आरती – ठीक है सर जी। मुझे मंजूर है।
एक महीने बाद ही आरती अपनी काबलियत और हसमुख स्वभाव के बलबूते सारे आफिस स्टाफ की चहेती बन गयी ओर सारा काम अपने कन्धों पे उठा लिया। जिस दिन से गुलाटी गारमेंट्स में आरती आई है कामकाज भी बहुत फ्लाफूला है। 6 महीने बाद ही बॉस ने खुश होकर उसकी प्रमोशन कर दी।
एक दिन दफ्तर की छूटी के बाद आरती घर जा ही रही थी। अभी वो बस स्टैंड तक ही गयी थी के अचानक बहुत तेज़ बारिश होने लगी, मौसम खराब की वजह से कोई बस या आटो भी नही आ रहा था। इधर रात भी हो रही थी और बारिश भी अपने पूरे शबाब पे बरस रही थी। इतने में विवेक अपनी गाडी से घर जा रहा था के उसे आरती बस स्टैंड पे खड़ी दिखी। आरती के पास आकर उसने गाड़ी को रोका ओर पूछा, ”कब से यहाँ खड़े हो। आओ तुम्हे घर तक छोड़ दूंगा'” !
आरती – धन्यवाद सर, आप क्यो परेशानी उठाते हो। मैं चली जाउगी बस बारिश रुकने ही वाली है।
विवेक – देखो आरती बारिश का क्या भरोसा कब रुके और ऊपर से रात भी हो रही है कोई साधन भी नही मिलेगा। कब घर पहुँचोगे कब खाना पानी खाओगे कब सुबह तैयार होकर दफ्तर आओगे। सो आपके लिए यही बेहतर है आप मेरे साथ आ जाओ। वैसे भी गाड़ी खाली ही है। आपकी कम्पनी भी मिल जायेगी और घर तक का सफर भी बाते करते निकल जायेगा।
आरती को उसकी बात में दम लगा और खिड़की खोल कर आगे वाली सीट पे बैठ गयी।
अभी थोड़ी दूर ही गए होंगे के उनकी कार रस्ते में बन्द हो गयी। अब दोनों एक दूसरे का मुह देखने लगे। इतने में विवेक कार से निचे उतरा और बोर्नट उठाकर उसकी जांच करने लगा। करीब आधे घण्टे की मेहनत के बाद कार स्टार्ट तो हो गयी पर विवेक बुरी तरह से भीग गया। ऊपर से ठंडी हवा चलने से उसका बुरा हाल हो रहा था। रास्ते में आरती का घर आ गया उसको वहाँ उतारा, जब आगे जाने लगा गाड़ी फेर खराब हो गयी।
आरती – सर इफ यु डोंट माइंड । एक बात बोलू ?
विवेक – हांजी कहिये ?
आरती – सर रात बहुत हो चुकी है। आप यहाँ मेरे घर रुक जाइये। वेसे भी मैं अकेली रहती हूँ। आपकी गाड़ी तो खराब है क्या पता कब घर पुहंचाये आपको। सो बेहतर यही है एक रात मेरे घर रुक जाइये। सुबह चले जाना। तब तक बारिश भी रुक जायेगी और गाड़ी रिपेयर करने वाले भी अपनी गैरज़ो में आ जायेंगे।
विवेक – देखो आरती मैं तुम पर बोझ नही बनना चाहता। भैया भाबी मेरी फ़िक्र कर रहे होंगे। मेने उन्हें फोन पे बताया भी नही है गाड़ी खराब होने का। सो मुझे जाना पड़ेगा।
आरती – वैसे बोस आप हो सर। पर इस वक़्त एक दोस्त के नाते बोल रही हूँ। एक रात रुकने में आपको क्या दिक्कत है। मुझे भी चिंता रहेगे के घर शायद आप पहुंचे या नही ।
(आरती ने अपनापन जताते हुए कहा)
आखिर विवेक मान गया और गाड़ी को दोनों ने धक्का लगाकर गेट के अंदर करके लॉक करके अंदर चले गए।
अब वो दोनों भीग गएे और उनके कपड़े शरीर से चिपक गए थे। जिसकी वजह से उनका शरीर बाहर से ही साफ साफ दिखने लगा था। दोनों ने यह बात नोट करली थी और हल्की सी स्माइल के साथ दोनों एक दूसरे को चिड़ा रहे थे।
पहले आरती भाग कर बाथरूम में गयी और अपने कपड़े बदल कर बाहर आ गयी फेर एक तौलिया विवेक को देते हुए बोला,” सर जी आप भी भीगे कपड़े उतार दो वरना आपको सर्दी लग जायेगी। इस वक़्त जेंट्स के कपड़े तो नही है यहाँ आप यह मेरा पयज़ामा और शर्ट पहन लो और आपके कपड़े मशीन में डालकर धो देती हूँ। जो सुबह तक सुख जायेंगे।
तब तक मैं चाय का प्रबंध करती हूँ।
विवेक ने भी कपड़े बदल लिए और घर पे फोन करके कह दिया के एक दोस्त के घर कार खराब होने की वजह ऐ रुक गया है। दोनों एक सोफे पे बैठ कर चाय का आनंद ले रहे थे। फेर दोनों ने साथ में खाना खाया और अब दिक्कत थी सोने की क्योंके आरती के पास एक ही बेड था और सोने वाले दो जने।
विवेक – ऐसा करो आरती मैं सोफे पे सो जाता हूं। आप अपने बैड पे सो जाना।
आरती – नही सर जी आप छोटे से सोफे पे कैसे सो पाओगे?
विवेक – सोना तो पडेगा ही न और कोई रास्ता भी नही है।
आरती – रास्ता तो है पर अगर आप बुरा न मानो तो ।
विवर्क – हद है यर मेने बुरा क्यू मानना आप बोलो बस ?
आरती – सर जी, एक ही बिस्तर पर सो जाते है मेरी टांगो की तरफ आपका सर होगा और आपकी टांगो की तरफ मेरा सर। एक ही रात की तो बात है सुबह फेर रोज़ाना की तरह हम अपने अपने बिस्तर पे सोयेंगे।
विवेक कुछ देर सीचने के बाद चलो ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।
आरती ने बिस्तर बिछाया पहले तो बैठकर बाते करते रहे। आज दोनों की एक बिस्तर पे पहली इकठी रात थी। जो शादी बाद ही होनी चाहिए थी। विवेक ने अपने बारे में बताना शुरू किया के कैसे उसके बड़े भाई ने माँ बाप के बाद उसको पाला पोसा है और आज इस मुकाम तक पहुंचा हूँ।
जब आरती से उसका पिछोकड जानना चाहा तो बोली,” क्या करोगे सर जी मेरा अतीत जानकर, एक बदकिस्मत लड़की हूँ। जिसे पहले उसके प्रेमी जिसको अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती थी उसने धोखे में रखा, साथ जीने मरने की कस्मे खाकर भी अकेला छोड़कर पता नही किधर चला गया।
आज तक न उसका फ़ोन न कोई चिठ्ठी वगैरा मिली है। फेर जब मेरी शादी हुई तो उनसे मेरा दिल नही मिला, क्योंकि उनका किसी और स्त्री के साथ चक्कर था।अकेले ज़िस्म मिलने से क्या होगा? जब दिल ही ना मिले।
एक साल के भीतर ही मेरा उनसे तलाक़ हो गया। घर वालो ने दुबारा शादी करने का सोचा पर मेरा दिल नही माना और मेने नौकरी करने की ठान ली। इस लिए आपके पास उस दिन नौकरी के लिये आई थी।
विवेक – क्या अब आपको उनकी याद नही आती ?
आरती – कैसी बात करते हो साब जी। याद तो मरे इंसानो की भी आती है, वो तो फेर भी ज़िंदा है। कई बार दिल तो मचल जाता है जब किसी नए जोड़े को एक साथ खुश माहौल में देखती हूँ। मन भर भी आता है पर किया भी क्या जाये। इस बात का कोई हल भी नही है।
विवेक – आरती एक बात पूछू यदि बुरा नही मानोगे तो??
आरती – हांजी एक क्यों दस पूछो और आपका बुरा क्यों मानना।
विवेक – मुझसे शादी करोगे ?
विवेक की बात सुनकर आरती सुन सी हो गई। उसे लगा शयद कोई सपना देख रही हूँ। उसने दुबारा पूछा क्या बोला आपने सर।
विवेक – मेने कहा मुझसे शादी करोगे? मेरे दफ्तर के लोगो में तो हरमन प्यारे हो ही आप। अब घर के भी बन जाओ न, वेसे भी मुझे एक न एक दिन शादी तो करनी ही है आपसे ही न करलु। एक तो 24 घण्टे आँखों के सामने रहोगे। दूजा आप करीब एक साल से मेरे साथ काम भी कर रहे हो।
आपसे अच्छी जान पहचान भी बन गयी है। क्या पता मेरे लिए पसन्द की लड़की केसी होगी ? यदि आपकी तरह मेरा भी उनसे दिल न मिला तो मेरा क्या होगा ?
आरती – (आंसू पोंछते हुए ) — सर मेने इतना लम्बा कभी सोचा नही था, बस आपसे मिलना था तो ज़िन्दगी सवरनी थी।
आपका पहले ही बहुत बड़ा एहसान है मुझपे तो जो अपने दफ्तर में नौकरी दे दी, एक और अहसान कैसे चुकाउंगी आपका ?
विवेक – सो सिंपल मेरी आफिस वर्कर से, मेरे घर की और दिल की रानी बनकर।
कुछ समय एक दूसरे को देखने लगे जैसे एक दूसरे की दिल के हाल समझने की कोसिस कर रहे हों फिर अचानक दोनों एक दूसरे को गले लगाकर बेतहाशा चूमने लगे। आरती के तो आंसू ही नही रुक रहे थे। भगवान ने इतनी जल्दी उसकी सुनली, जो उसकी उजाड़ हुई ज़िन्दगी में फिर से हरियाली पनप आई।
बातो बातो में पता नही चला कब 12 बज गए। अब विवेक ने शरारती स्माइल से मूड में कहा क्यों अब भी मेरी तरफ टांगे करके सोओगी ।
आरती – नही जानू जी अब आपकी छाती पे सर रख कर, आपको बाँहो में भरकर चैन की नींद सोउंगी। पर क्या भैया भाभी हमारी शादी के लिए राज़ी हो पाएंगे?
(आरती ने शंका जताते हुए पूछा)
विवेक – उसकी चिंता तुम न करो, उनको पटाना मेरा काम है। मेरी ख़ुशी में ही उनकी ख़ुशी है। सो किसी भी तरह की टेंसन न लो आप बस खुश रहो आज से ज़िन्दगी जो बदल गयी है हम दोनों की।
दोनों फेर एक दूसरे को लिपट कर चूमने चाटने लगे। एक तो सर्दी की रात ऊपर से दो गर्म जवानिया एक ही बिस्तर पे इकठी आपस में सटी हुई। आअह्हह्हह सोचकर ही मज़ा आ जाता है।
विवेक ने आरती को बेड पे लिटाया और खुद ऊपर आकर उसके कोमल होंठो का रसपान करने लगा। आरती भी उसके हर चूम्बन का जवाब दे रही थी। दोनों की आँखे बन्द बस एक दूजे में खोये हुए थे। विवेक अब आरती के कपड़े निकालने लगा। जब आरती बिलकुल नंगी हो गयी तो बोली,”ये तो न इंसाफी है जी, मुझे नंगा करके खुद कपड़ो में रहो आप।
ठहर जाओ आप और विवेक पे झपटी और उसके भी एक एक कपड़े को निकाल दिया। दोनों हस हस के इस खेल का आनद ले रहे थे।
विवेक ने आरती को दुबारा लेटने को बोला तो आरती लेट गयी अब फेर विवेक उसके ऊपर आ गया और होंठो का रसपान करने लगा।
आरती भी अब मज़ा लेने लगी और अपनी बाँहो का हार विवेक के गले में डालकर मस्ती में झूमने लगी।
विवेक अब निचे की और बढता आ रहा था। आरती के सफेद मम्मो पे जैसे ही विवेक के तपते होंठो का स्पर्श हुआ। उसके बदन में मानो बिजलिया दौड़ने लगी। करीब एक साल बाद किसी मर्द ने उसके शरीर को चूमाँ था।
आरती की आँखे बन्द और उसके मुंह से आअह्हह्हह्ह!! सीईईईईई!!! की मिलीजुली कामुक आवाज़े आना शुरु हो गयी थी।
विवेक भी मस्ती में आकर अब उसके बदन को मसलने लगा और उसके सफेद बदन को हल्का हल्का काट कर दांतो के निशान बनाने लगा।
अब और निचे की तरफ आकर उसकी चूत को देखने लगा। चाहे उसके तलाक़ को एक साल के ऊपर हो गया था पर उसने अपने शरीर को फिट बनाके रखा था। उसकी चूत बिलकुल साफ़ जैसे आज ही शेव की गयी हो। विवेक ने आरती की टाँगो में आकर उसकी चूत को जैसे ही चूमा। आरती की आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह निकल गयी। वो विवेक के बालो को अपने हाथो से सहलाने लगी।
अब विवेक तिरछी जीभ करके चूत को चाटने लगा। आरती आँखे बन्द करके मज़े में जैसे हवा में उड़ने लगी और आई लव यु सो मच विवेक, आई लव यु आअह्हह्हह्हह…!!! सीईईईईईइ…!!! की आवाज़ में मौन करने लगी।
करीब 10 मिनट उसकी चूत चाटने के बाद विवेक ने महसूस किया उसके सर पे आरती के हाथो की पकड़ मज़बूत हो रही है और उसका सर उसकी जांघो में भींचा जा रहा है और फेर एक लम्बी आह्ह्ह्ह्ह्ह से उसका सर पकड़ कर चूत पे दबाये रखा।
तलाक के बाद उसका पहला रजस्खलन था । जो के बहुत मज़ेदार साबित हुआ। करीब 3 मिनट तक इसी अवस्था में लेटी रही और झड़ने का मज़ा लेती थी। इधर विवेक भी उसका चूत रस चाट चाट कर उसकी चूत साफ कर रहा था।
थोड़ी देर बाद विवेक ने उसे उठने का कहा और खुद लेट गया अब खेलने की बारी आरती की थी। वो भी विवेक के होंठो को चूमते हुए निचे की और आ रही थी। इधर विवेक आँखे बन्द करके उन पलो को दिल से महसूस कर रहा था के उसे पता ही न चला कब आरती के हाथ में उसका 7 इंच लम्बा 2 इंच मोटा गर्मागर्म लण्ड आ गया। जो के कब से खड़ा होकर किसी सांप की तरह ज़हर उगलने को तयार था।
आरती ने तपते होंठ जब उसके सुपारे पे लगाये तो विवेक की आह्ह्ह्ह्ह्ह निकल गयी। जिस से आरती की हसी निकल गयी और दुबारा फेर अपने काम पे लग गयी। वो कभी आन्ड को होंठो से चुस्ती तो कभी सुपारे को हल्का हल्का काटती। विवेक ने बहुत सी लडकिया पेली थी पर आरती जैसा मज़ा किसी से नही आया।
करीब 10 मिनट की चुसाई के बाद विवेक बोला,” आरती हट जाओ मैं झड़ने वाला हूँ पर आरती न मानी और उसका चेहरा और खुले बाल सब विवेक के वीर्य से सन् गए। आरती ने भी चाट चाट कर उसका लण्ड साफ किया और सुकड़ चुके लण्ड को दुबारा चाटने लगी। करीब 5 मिनट बाद फेर घोडा अगली रेस के लिए तैयार हो गया इस बार आरती ने थोडा लण्ड पे थूक लगाकर उसपे अपनी चूत सेट करके बैठ गयी।
करीब एक साल से चुदी न होने की वजह से उसकी चूत थोड़ी टाइट हो चुकी थी। इधर विवेक ने महसूस किया उसका लण्ड किसी तंग मुह वाली पाइप पे से होता हुआ गर्मी में जल रहा है। जब थोडा लण्ड चूत में घुस गया तो ऊपर बैठ कर गांड हिलाने लगी। जिस से विवेक का लण्ड अंदर बाहर होने लगा।
अब दोनों एक दूसरे को लिपटे चुदाई के महासागर में गोते लगा रहे थे। आरती के सफेद मम्मे निचे हिट लगने से हिल रहे थे। विवेक कभी उन्हें मुह में लेता कभी उसके होंटो तो चूमता।
करीब 20 मिनट की इस चुदाई के बाद दोनों इकठे झड़ गए। अब संतुस्ती दोनों से चेहरे पे साफ साफ नज़र आ रही थी और खुश भी लग रहे थे। दोनों इसी हाल पे ही लेटे रहे और पता नही चला कब सवेर हो गयी। करीब 5 बजे उनकी आँख नींद से खुली। विवेक ने इशारे से पूछा,” क्यों क्या इरादा है?
आरती ने इशारे में ही बोला हो जाये एक और रेस।
दोनों फेर एक नई रेस में भाग लेने लगे। आधे घण्टे तक यह रेस चली और फेर दोनो उठकर साथ ही नहाये और चाय पी। बाहर मौसम कुछ ठीक हो गया था। विवेक ने कार को स्टार्ट करने की कोशिश की पर न चली। फेर उसने एक मित्र जो के रिपेयर का काम जानता था उसे फोन करके बुलाया। जो के थोड़े टाइम में ही कार को ठीक कर गया। बाद में आरती से विदा लेकर विवेक अपने घर चला गया।
घर जाकर भाई भाभी से आरती के बारे में बात की, उसकी ख़ुशी के लिए घर वाले भी मान गए और अगले महीने दोनों की शादी हो गयी।
अब उनकी हर रात रंगीन होती है।
समाप्त
सुनील के माता पिता एक सड़क हादसे में गुज़र चुके है। तब से विवेक को उन्होंने ही ने सगा बेटा मानकर पाला पोसा है। विवेक भी भाई भाभी की पूरी इज़्ज़त करता है और उनको माता पिता के समान ही समझता है।
उनका “गुलाटी गारमेंट्स” के नाम से बहुत बड़े बड़े शेहरो में कपड़ा जाता है। अब विवेक की पढ़ाई पूरी हो चुकी है और अपने भाई के आफ़ीस का काम सम्भालने लगा है। जबके सुनील बाहर का काम काज सम्भालता है। एक दिन उनके आफिस में एक लड़की आरती काम मांगने आती है। आफिस में विवेक बॉस है।
आरती – मे आई कमीनग सर ?
विवेक – (किसी फ़ाइल में उलझे हुए ही)– यस कमिन् ।
(आरती आकर सामने खड़ी हो जाती है पर विवेक का ध्यान अब भी फ़ाइल में है)
आरती आते ही नमस्ते बुलाती है और विवेक बिन उसकी तरफ देखे नमस्ते कबूल भी कर लेता है।
विवेक – हांजी कहिये क्या काम है आपको ?
आरती – सर मैं आरती चौहान फ्रॉम न्यू डेल्ही और मुझे पता चला है के आपके आफिस में एक क्लर्क की सीट खाली पड़ी है। उसी सिलसिले में ही आपसे मिलने आई हूँ।
अब विवेक का ध्यान उसकी तरफ गया तो उसे देखता ही रह गया, क्या गज़ब की खुबसुरत बला थी। गुलाबी कमीज़ सलवार, खुले बाल, 5 फ़ीट लंबाई, दूध जेसी गोरी चमड़ी, चेहरे पे चशमा, कलाई पे A अक्षर का ब्रेसलेट डाले खड़ी थी।
अब फ़ाइल को साइड पे रखते हुए विवेक ने उसे बैठने जो कहा।
और रिंग बजाकर पियन् को पानी लेकर आने का बोला।
आरती – थैंक यू सर।
विवेक – हांजी क्या नाम है आपका ?
आरती – जी आरती चौहान ।
विवेक – क्या क्वालिफिकेशन है आपकी ?
आरती – जी एम् फिल किया है और कम्प्यूटर का हार्डवेयर डिज़ाइनिंग का 3 साल का कोर्स भी किया है यह लीजिये मेरा बायोडाटा (अपनी फ़ाइल पकडाते हुए)
विवेक – (लगभग सारी फ़ाइल देखते हुए)
गुड़, देखो आरती हमे क्लर्क की तो जरूरत है लेकिन सिर्फ लोकल वाले को ही पहल देते है। आप रोज़ाना अप डाउन कैसे करोगे देल्ही से कोलकत्ता?
अभी हमारा इस शहर में काम भी नया है आपको फ्लैट की सुविधा भी नही दे सकते। आप हमारी सभी शर्तों को पूरा करते हो सिर्फ लोकल वाली छोड़कर।
देखलो आगे आपकी मर्ज़ी है।
आरती – सर उसकी चिंता आप न करो, वो मेरी सरदर्दी है। वेसे भी कई महीनो से इसी शहर में रह रही हूँ। आपको जो परीक्षा लेनी है लेलो पर मुझे यह जॉब बहुत जरूरी चाहिये।
विवेक – हम्मम… ठीक है तो आओ मेरे साथ आपको आपका कॅबिन दिखा दू और वही आपकी परीक्षा भी हो जायेगी।
दोनो दफ्तर के साथ वाले हॉल में से होते हुए एक कॅबिन में पहुंचते है
विवेक – यह है आपका कॅबिन
आज से आपको यही काम करना है। उस से पहले आपको कुछ फाइल्स और कम्प्यूटर फाइल्स के बारे में आपके सीनियर मैडम मीनाक्षी आपको सारी जानकारी दे देंगे।
विवेक (मीनाक्षी मैडम से) — मैडम ये हमारी नयी स्टाफ मेंबर मिस आरती चौहान है । आज से यह आपके अंडर काम करेगी। इनको सारा काम काज समझा दो।
मीनाक्षी – ठीक है सर ।
अब मिनाक्षी और आरती अपने काम काज में लग गए।
(फेर बाद में आरती विवेक के कॅबिन में जब गयी तो)
विवेक – देखो आरती एक हफ्ता आप ट्रेनिंग पे हो इसका आपको कुछ नही मिलेगा। बल्कि आपमें जो भी काबलियत या कमी हुई वो सामने आ जायेगी।
आरती – ठीक है सर जी। मुझे मंजूर है।
एक महीने बाद ही आरती अपनी काबलियत और हसमुख स्वभाव के बलबूते सारे आफिस स्टाफ की चहेती बन गयी ओर सारा काम अपने कन्धों पे उठा लिया। जिस दिन से गुलाटी गारमेंट्स में आरती आई है कामकाज भी बहुत फ्लाफूला है। 6 महीने बाद ही बॉस ने खुश होकर उसकी प्रमोशन कर दी।
एक दिन दफ्तर की छूटी के बाद आरती घर जा ही रही थी। अभी वो बस स्टैंड तक ही गयी थी के अचानक बहुत तेज़ बारिश होने लगी, मौसम खराब की वजह से कोई बस या आटो भी नही आ रहा था। इधर रात भी हो रही थी और बारिश भी अपने पूरे शबाब पे बरस रही थी। इतने में विवेक अपनी गाडी से घर जा रहा था के उसे आरती बस स्टैंड पे खड़ी दिखी। आरती के पास आकर उसने गाड़ी को रोका ओर पूछा, ”कब से यहाँ खड़े हो। आओ तुम्हे घर तक छोड़ दूंगा'” !
आरती – धन्यवाद सर, आप क्यो परेशानी उठाते हो। मैं चली जाउगी बस बारिश रुकने ही वाली है।
विवेक – देखो आरती बारिश का क्या भरोसा कब रुके और ऊपर से रात भी हो रही है कोई साधन भी नही मिलेगा। कब घर पहुँचोगे कब खाना पानी खाओगे कब सुबह तैयार होकर दफ्तर आओगे। सो आपके लिए यही बेहतर है आप मेरे साथ आ जाओ। वैसे भी गाड़ी खाली ही है। आपकी कम्पनी भी मिल जायेगी और घर तक का सफर भी बाते करते निकल जायेगा।
आरती को उसकी बात में दम लगा और खिड़की खोल कर आगे वाली सीट पे बैठ गयी।
अभी थोड़ी दूर ही गए होंगे के उनकी कार रस्ते में बन्द हो गयी। अब दोनों एक दूसरे का मुह देखने लगे। इतने में विवेक कार से निचे उतरा और बोर्नट उठाकर उसकी जांच करने लगा। करीब आधे घण्टे की मेहनत के बाद कार स्टार्ट तो हो गयी पर विवेक बुरी तरह से भीग गया। ऊपर से ठंडी हवा चलने से उसका बुरा हाल हो रहा था। रास्ते में आरती का घर आ गया उसको वहाँ उतारा, जब आगे जाने लगा गाड़ी फेर खराब हो गयी।
आरती – सर इफ यु डोंट माइंड । एक बात बोलू ?
विवेक – हांजी कहिये ?
आरती – सर रात बहुत हो चुकी है। आप यहाँ मेरे घर रुक जाइये। वेसे भी मैं अकेली रहती हूँ। आपकी गाड़ी तो खराब है क्या पता कब घर पुहंचाये आपको। सो बेहतर यही है एक रात मेरे घर रुक जाइये। सुबह चले जाना। तब तक बारिश भी रुक जायेगी और गाड़ी रिपेयर करने वाले भी अपनी गैरज़ो में आ जायेंगे।
विवेक – देखो आरती मैं तुम पर बोझ नही बनना चाहता। भैया भाबी मेरी फ़िक्र कर रहे होंगे। मेने उन्हें फोन पे बताया भी नही है गाड़ी खराब होने का। सो मुझे जाना पड़ेगा।
आरती – वैसे बोस आप हो सर। पर इस वक़्त एक दोस्त के नाते बोल रही हूँ। एक रात रुकने में आपको क्या दिक्कत है। मुझे भी चिंता रहेगे के घर शायद आप पहुंचे या नही ।
(आरती ने अपनापन जताते हुए कहा)
आखिर विवेक मान गया और गाड़ी को दोनों ने धक्का लगाकर गेट के अंदर करके लॉक करके अंदर चले गए।
अब वो दोनों भीग गएे और उनके कपड़े शरीर से चिपक गए थे। जिसकी वजह से उनका शरीर बाहर से ही साफ साफ दिखने लगा था। दोनों ने यह बात नोट करली थी और हल्की सी स्माइल के साथ दोनों एक दूसरे को चिड़ा रहे थे।
पहले आरती भाग कर बाथरूम में गयी और अपने कपड़े बदल कर बाहर आ गयी फेर एक तौलिया विवेक को देते हुए बोला,” सर जी आप भी भीगे कपड़े उतार दो वरना आपको सर्दी लग जायेगी। इस वक़्त जेंट्स के कपड़े तो नही है यहाँ आप यह मेरा पयज़ामा और शर्ट पहन लो और आपके कपड़े मशीन में डालकर धो देती हूँ। जो सुबह तक सुख जायेंगे।
तब तक मैं चाय का प्रबंध करती हूँ।
विवेक ने भी कपड़े बदल लिए और घर पे फोन करके कह दिया के एक दोस्त के घर कार खराब होने की वजह ऐ रुक गया है। दोनों एक सोफे पे बैठ कर चाय का आनंद ले रहे थे। फेर दोनों ने साथ में खाना खाया और अब दिक्कत थी सोने की क्योंके आरती के पास एक ही बेड था और सोने वाले दो जने।
विवेक – ऐसा करो आरती मैं सोफे पे सो जाता हूं। आप अपने बैड पे सो जाना।
आरती – नही सर जी आप छोटे से सोफे पे कैसे सो पाओगे?
विवेक – सोना तो पडेगा ही न और कोई रास्ता भी नही है।
आरती – रास्ता तो है पर अगर आप बुरा न मानो तो ।
विवर्क – हद है यर मेने बुरा क्यू मानना आप बोलो बस ?
आरती – सर जी, एक ही बिस्तर पर सो जाते है मेरी टांगो की तरफ आपका सर होगा और आपकी टांगो की तरफ मेरा सर। एक ही रात की तो बात है सुबह फेर रोज़ाना की तरह हम अपने अपने बिस्तर पे सोयेंगे।
विवेक कुछ देर सीचने के बाद चलो ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।
आरती ने बिस्तर बिछाया पहले तो बैठकर बाते करते रहे। आज दोनों की एक बिस्तर पे पहली इकठी रात थी। जो शादी बाद ही होनी चाहिए थी। विवेक ने अपने बारे में बताना शुरू किया के कैसे उसके बड़े भाई ने माँ बाप के बाद उसको पाला पोसा है और आज इस मुकाम तक पहुंचा हूँ।
जब आरती से उसका पिछोकड जानना चाहा तो बोली,” क्या करोगे सर जी मेरा अतीत जानकर, एक बदकिस्मत लड़की हूँ। जिसे पहले उसके प्रेमी जिसको अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती थी उसने धोखे में रखा, साथ जीने मरने की कस्मे खाकर भी अकेला छोड़कर पता नही किधर चला गया।
आज तक न उसका फ़ोन न कोई चिठ्ठी वगैरा मिली है। फेर जब मेरी शादी हुई तो उनसे मेरा दिल नही मिला, क्योंकि उनका किसी और स्त्री के साथ चक्कर था।अकेले ज़िस्म मिलने से क्या होगा? जब दिल ही ना मिले।
एक साल के भीतर ही मेरा उनसे तलाक़ हो गया। घर वालो ने दुबारा शादी करने का सोचा पर मेरा दिल नही माना और मेने नौकरी करने की ठान ली। इस लिए आपके पास उस दिन नौकरी के लिये आई थी।
विवेक – क्या अब आपको उनकी याद नही आती ?
आरती – कैसी बात करते हो साब जी। याद तो मरे इंसानो की भी आती है, वो तो फेर भी ज़िंदा है। कई बार दिल तो मचल जाता है जब किसी नए जोड़े को एक साथ खुश माहौल में देखती हूँ। मन भर भी आता है पर किया भी क्या जाये। इस बात का कोई हल भी नही है।
विवेक – आरती एक बात पूछू यदि बुरा नही मानोगे तो??
आरती – हांजी एक क्यों दस पूछो और आपका बुरा क्यों मानना।
विवेक – मुझसे शादी करोगे ?
विवेक की बात सुनकर आरती सुन सी हो गई। उसे लगा शयद कोई सपना देख रही हूँ। उसने दुबारा पूछा क्या बोला आपने सर।
विवेक – मेने कहा मुझसे शादी करोगे? मेरे दफ्तर के लोगो में तो हरमन प्यारे हो ही आप। अब घर के भी बन जाओ न, वेसे भी मुझे एक न एक दिन शादी तो करनी ही है आपसे ही न करलु। एक तो 24 घण्टे आँखों के सामने रहोगे। दूजा आप करीब एक साल से मेरे साथ काम भी कर रहे हो।
आपसे अच्छी जान पहचान भी बन गयी है। क्या पता मेरे लिए पसन्द की लड़की केसी होगी ? यदि आपकी तरह मेरा भी उनसे दिल न मिला तो मेरा क्या होगा ?
आरती – (आंसू पोंछते हुए ) — सर मेने इतना लम्बा कभी सोचा नही था, बस आपसे मिलना था तो ज़िन्दगी सवरनी थी।
आपका पहले ही बहुत बड़ा एहसान है मुझपे तो जो अपने दफ्तर में नौकरी दे दी, एक और अहसान कैसे चुकाउंगी आपका ?
विवेक – सो सिंपल मेरी आफिस वर्कर से, मेरे घर की और दिल की रानी बनकर।
कुछ समय एक दूसरे को देखने लगे जैसे एक दूसरे की दिल के हाल समझने की कोसिस कर रहे हों फिर अचानक दोनों एक दूसरे को गले लगाकर बेतहाशा चूमने लगे। आरती के तो आंसू ही नही रुक रहे थे। भगवान ने इतनी जल्दी उसकी सुनली, जो उसकी उजाड़ हुई ज़िन्दगी में फिर से हरियाली पनप आई।
बातो बातो में पता नही चला कब 12 बज गए। अब विवेक ने शरारती स्माइल से मूड में कहा क्यों अब भी मेरी तरफ टांगे करके सोओगी ।
आरती – नही जानू जी अब आपकी छाती पे सर रख कर, आपको बाँहो में भरकर चैन की नींद सोउंगी। पर क्या भैया भाभी हमारी शादी के लिए राज़ी हो पाएंगे?
(आरती ने शंका जताते हुए पूछा)
विवेक – उसकी चिंता तुम न करो, उनको पटाना मेरा काम है। मेरी ख़ुशी में ही उनकी ख़ुशी है। सो किसी भी तरह की टेंसन न लो आप बस खुश रहो आज से ज़िन्दगी जो बदल गयी है हम दोनों की।
दोनों फेर एक दूसरे को लिपट कर चूमने चाटने लगे। एक तो सर्दी की रात ऊपर से दो गर्म जवानिया एक ही बिस्तर पे इकठी आपस में सटी हुई। आअह्हह्हह सोचकर ही मज़ा आ जाता है।
विवेक ने आरती को बेड पे लिटाया और खुद ऊपर आकर उसके कोमल होंठो का रसपान करने लगा। आरती भी उसके हर चूम्बन का जवाब दे रही थी। दोनों की आँखे बन्द बस एक दूजे में खोये हुए थे। विवेक अब आरती के कपड़े निकालने लगा। जब आरती बिलकुल नंगी हो गयी तो बोली,”ये तो न इंसाफी है जी, मुझे नंगा करके खुद कपड़ो में रहो आप।
ठहर जाओ आप और विवेक पे झपटी और उसके भी एक एक कपड़े को निकाल दिया। दोनों हस हस के इस खेल का आनद ले रहे थे।
विवेक ने आरती को दुबारा लेटने को बोला तो आरती लेट गयी अब फेर विवेक उसके ऊपर आ गया और होंठो का रसपान करने लगा।
आरती भी अब मज़ा लेने लगी और अपनी बाँहो का हार विवेक के गले में डालकर मस्ती में झूमने लगी।
विवेक अब निचे की और बढता आ रहा था। आरती के सफेद मम्मो पे जैसे ही विवेक के तपते होंठो का स्पर्श हुआ। उसके बदन में मानो बिजलिया दौड़ने लगी। करीब एक साल बाद किसी मर्द ने उसके शरीर को चूमाँ था।
आरती की आँखे बन्द और उसके मुंह से आअह्हह्हह्ह!! सीईईईईई!!! की मिलीजुली कामुक आवाज़े आना शुरु हो गयी थी।
विवेक भी मस्ती में आकर अब उसके बदन को मसलने लगा और उसके सफेद बदन को हल्का हल्का काट कर दांतो के निशान बनाने लगा।
अब और निचे की तरफ आकर उसकी चूत को देखने लगा। चाहे उसके तलाक़ को एक साल के ऊपर हो गया था पर उसने अपने शरीर को फिट बनाके रखा था। उसकी चूत बिलकुल साफ़ जैसे आज ही शेव की गयी हो। विवेक ने आरती की टाँगो में आकर उसकी चूत को जैसे ही चूमा। आरती की आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह निकल गयी। वो विवेक के बालो को अपने हाथो से सहलाने लगी।
अब विवेक तिरछी जीभ करके चूत को चाटने लगा। आरती आँखे बन्द करके मज़े में जैसे हवा में उड़ने लगी और आई लव यु सो मच विवेक, आई लव यु आअह्हह्हह्हह…!!! सीईईईईईइ…!!! की आवाज़ में मौन करने लगी।
करीब 10 मिनट उसकी चूत चाटने के बाद विवेक ने महसूस किया उसके सर पे आरती के हाथो की पकड़ मज़बूत हो रही है और उसका सर उसकी जांघो में भींचा जा रहा है और फेर एक लम्बी आह्ह्ह्ह्ह्ह से उसका सर पकड़ कर चूत पे दबाये रखा।
तलाक के बाद उसका पहला रजस्खलन था । जो के बहुत मज़ेदार साबित हुआ। करीब 3 मिनट तक इसी अवस्था में लेटी रही और झड़ने का मज़ा लेती थी। इधर विवेक भी उसका चूत रस चाट चाट कर उसकी चूत साफ कर रहा था।
थोड़ी देर बाद विवेक ने उसे उठने का कहा और खुद लेट गया अब खेलने की बारी आरती की थी। वो भी विवेक के होंठो को चूमते हुए निचे की और आ रही थी। इधर विवेक आँखे बन्द करके उन पलो को दिल से महसूस कर रहा था के उसे पता ही न चला कब आरती के हाथ में उसका 7 इंच लम्बा 2 इंच मोटा गर्मागर्म लण्ड आ गया। जो के कब से खड़ा होकर किसी सांप की तरह ज़हर उगलने को तयार था।
आरती ने तपते होंठ जब उसके सुपारे पे लगाये तो विवेक की आह्ह्ह्ह्ह्ह निकल गयी। जिस से आरती की हसी निकल गयी और दुबारा फेर अपने काम पे लग गयी। वो कभी आन्ड को होंठो से चुस्ती तो कभी सुपारे को हल्का हल्का काटती। विवेक ने बहुत सी लडकिया पेली थी पर आरती जैसा मज़ा किसी से नही आया।
करीब 10 मिनट की चुसाई के बाद विवेक बोला,” आरती हट जाओ मैं झड़ने वाला हूँ पर आरती न मानी और उसका चेहरा और खुले बाल सब विवेक के वीर्य से सन् गए। आरती ने भी चाट चाट कर उसका लण्ड साफ किया और सुकड़ चुके लण्ड को दुबारा चाटने लगी। करीब 5 मिनट बाद फेर घोडा अगली रेस के लिए तैयार हो गया इस बार आरती ने थोडा लण्ड पे थूक लगाकर उसपे अपनी चूत सेट करके बैठ गयी।
करीब एक साल से चुदी न होने की वजह से उसकी चूत थोड़ी टाइट हो चुकी थी। इधर विवेक ने महसूस किया उसका लण्ड किसी तंग मुह वाली पाइप पे से होता हुआ गर्मी में जल रहा है। जब थोडा लण्ड चूत में घुस गया तो ऊपर बैठ कर गांड हिलाने लगी। जिस से विवेक का लण्ड अंदर बाहर होने लगा।
अब दोनों एक दूसरे को लिपटे चुदाई के महासागर में गोते लगा रहे थे। आरती के सफेद मम्मे निचे हिट लगने से हिल रहे थे। विवेक कभी उन्हें मुह में लेता कभी उसके होंटो तो चूमता।
करीब 20 मिनट की इस चुदाई के बाद दोनों इकठे झड़ गए। अब संतुस्ती दोनों से चेहरे पे साफ साफ नज़र आ रही थी और खुश भी लग रहे थे। दोनों इसी हाल पे ही लेटे रहे और पता नही चला कब सवेर हो गयी। करीब 5 बजे उनकी आँख नींद से खुली। विवेक ने इशारे से पूछा,” क्यों क्या इरादा है?
आरती ने इशारे में ही बोला हो जाये एक और रेस।
दोनों फेर एक नई रेस में भाग लेने लगे। आधे घण्टे तक यह रेस चली और फेर दोनो उठकर साथ ही नहाये और चाय पी। बाहर मौसम कुछ ठीक हो गया था। विवेक ने कार को स्टार्ट करने की कोशिश की पर न चली। फेर उसने एक मित्र जो के रिपेयर का काम जानता था उसे फोन करके बुलाया। जो के थोड़े टाइम में ही कार को ठीक कर गया। बाद में आरती से विदा लेकर विवेक अपने घर चला गया।
घर जाकर भाई भाभी से आरती के बारे में बात की, उसकी ख़ुशी के लिए घर वाले भी मान गए और अगले महीने दोनों की शादी हो गयी।
अब उनकी हर रात रंगीन होती है।
समाप्त