लाल जोड़े वाली दुल्हन
भूत, प्रेत, साया, डायन आदि पर आप चाहे विश्वास करते हों, या
नहीं करते हों लेकिन उनके अस्तित्व को आप पूरी तरह नकार भी नहीं
सकते हैं। यह एक ऐसा विषय है, जिस पर काफी बातचीत होती है।
लेकिन इसका सच केवल वही इंसान जानता है, जिनके साथ वह घटना घटित हो चुकी हो। अन्यथा बाकीयों के लिए बस यह मनोरंजन के लिए कहानी मात्र रह जाता है। मेरा नाम आशीष ममगाई हैं और में दिल्ली का रहने वाला हूँ। मैंने बचपन से ही अपने दादा से भूत और प्रेतों के बहुत किस्सों को सुनता आया था। मुझे बचपन से ही यह रोचक विषय लगता था और मैं इसके
बारे और अधिक से अधिक जानना चाहता था।
एक बार मेरा डिप्लोमा की द्वितीय वर्ष में सेमेस्टर ऑफ हुआ और 20 दिन के लिए कॉलेज बन्द हुआ। मैंने निश्चय किया कि चम्पावत में भाई के पास जाऊँ। मेरा बड़ा भाई चम्पावत में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर था।
मैंने घरवालों को किसी तरह वहाँ जाने के लिए राजी किया। उसके बाद कुछ जरूरी सामानों को एक छोटे से बैग में रखकर, सुबह 5 बजे की बस कश्मीरी गेट से पकड़ ली। बड़े भाई से बात हो गयी थी, उन्होंने बताया था कि शाम ठीक 4 बजे वह बस चम्पावत बस अड्डे पर पहुँच जाती है और वे वहीं मिलने वाले थे।
पहली बार दिल्ली से इतनी दूर जा रहा था मैं बहुत उत्साहित था क्योंकि मेरी इच्छा थी कि मैं भी एक दिन पहाड़ों की हसीन वादियों में घूम के आऊँ अक्सर टीवी और फिल्मों में देखा करता था कि पहाड़ों का मौसम बड़ा ही रूमानी होता है और यह जगह घूमने के लिए बहुत ही सुंदर होती है यह मेरा पहला अवसर भी था तो मैं इस मौके को अच्छी
तरह भुनाना चाहता था।
मैं बस में चाह कर भी नहीं सो पा रहा था क्योंकि मेरे मन में यह चल रहा था कि कहीं मुझे नींद लग गयी तो में अपने गंतव्य से आगे न निकल जाऊ।
मैं ठीक 4 बजे चम्पावत के बस अड्डे पर था। मैं जैसे ही बस से बाहर निकला, मुझे मेरे बड़े भाई जिनका नाम 'सुदर्शन ममगाई था, वे दिख गए। उनके साथ तीन लड़के और थे, शायद उनके दोस्त हों। उन्होंने मुझे देखा और मेरी तरफ बढ़ चले।
यात्रा में किसी तरह की तकलीफ तो नहीं हुई, बड़े भाई ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा।
"नहीं.. नहीं। किसी तरह की भी नहीं लेकिन मानना पड़ेगा, आपने जैसा कहा था कि यह बस ठीक 4 बजे यहाँ पहुँच जाएगी. ठीक वैसा ही हुआ।" मैंने उनके पाँव छूते हुए आशीर्वाद लेते हुए कहा।
अंशू, यह तो कोई भी बता देगा, क्योंकि इस बस का यहाँ अड्डे पर पहुँचने का वक्त ही 4 बजे का है।"
अंशू मेरे घर का नाम है, मेरे परिवार के सदस्य और मेरे करीबी मित्र या रिश्तेदार, इसी नाम से मुझे बुलाना पसंद करते थे। भइया के साथ जो तीन बन्दे आए हुए थे, उनमें से एक ने मेरे हाथ से बैग लिया।
भइया ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, "यहाँ से डेढ़ किलोमीटर पर
ही कमरा है, जहाँ हम लोग रहते हैं ये लोग मेरे साथ ही मेरे विभाग में
काम करते हैं।"