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Horror खौफ कदमों की आहट ( New Chapter )

स्टोरी बोरिंग है


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ranipyaarkidiwani

Rajit singh
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लाल जोड़े वाली दुल्हन

भूत, प्रेत, साया, डायन आदि पर आप चाहे विश्वास करते हों, या

नहीं करते हों लेकिन उनके अस्तित्व को आप पूरी तरह नकार भी नहीं

सकते हैं। यह एक ऐसा विषय है, जिस पर काफी बातचीत होती है।

लेकिन इसका सच केवल वही इंसान जानता है, जिनके साथ वह घटना घटित हो चुकी हो। अन्यथा बाकीयों के लिए बस यह मनोरंजन के लिए कहानी मात्र रह जाता है। मेरा नाम आशीष ममगाई हैं और में दिल्ली का रहने वाला हूँ। मैंने बचपन से ही अपने दादा से भूत और प्रेतों के बहुत किस्सों को सुनता आया था। मुझे बचपन से ही यह रोचक विषय लगता था और मैं इसके

बारे और अधिक से अधिक जानना चाहता था।

एक बार मेरा डिप्लोमा की द्वितीय वर्ष में सेमेस्टर ऑफ हुआ और 20 दिन के लिए कॉलेज बन्द हुआ। मैंने निश्चय किया कि चम्पावत में भाई के पास जाऊँ। मेरा बड़ा भाई चम्पावत में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर था।

मैंने घरवालों को किसी तरह वहाँ जाने के लिए राजी किया। उसके बाद कुछ जरूरी सामानों को एक छोटे से बैग में रखकर, सुबह 5 बजे की बस कश्मीरी गेट से पकड़ ली। बड़े भाई से बात हो गयी थी, उन्होंने बताया था कि शाम ठीक 4 बजे वह बस चम्पावत बस अड्डे पर पहुँच जाती है और वे वहीं मिलने वाले थे।

पहली बार दिल्ली से इतनी दूर जा रहा था मैं बहुत उत्साहित था क्योंकि मेरी इच्छा थी कि मैं भी एक दिन पहाड़ों की हसीन वादियों में घूम के आऊँ अक्सर टीवी और फिल्मों में देखा करता था कि पहाड़ों का मौसम बड़ा ही रूमानी होता है और यह जगह घूमने के लिए बहुत ही सुंदर होती है यह मेरा पहला अवसर भी था तो मैं इस मौके को अच्छी

तरह भुनाना चाहता था।

मैं बस में चाह कर भी नहीं सो पा रहा था क्योंकि मेरे मन में यह चल रहा था कि कहीं मुझे नींद लग गयी तो में अपने गंतव्य से आगे न निकल जाऊ।

मैं ठीक 4 बजे चम्पावत के बस अड्डे पर था। मैं जैसे ही बस से बाहर निकला, मुझे मेरे बड़े भाई जिनका नाम 'सुदर्शन ममगाई था, वे दिख गए। उनके साथ तीन लड़के और थे, शायद उनके दोस्त हों। उन्होंने मुझे देखा और मेरी तरफ बढ़ चले।

यात्रा में किसी तरह की तकलीफ तो नहीं हुई, बड़े भाई ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा।

"नहीं.. नहीं। किसी तरह की भी नहीं लेकिन मानना पड़ेगा, आपने जैसा कहा था कि यह बस ठीक 4 बजे यहाँ पहुँच जाएगी. ठीक वैसा ही हुआ।" मैंने उनके पाँव छूते हुए आशीर्वाद लेते हुए कहा।

अंशू, यह तो कोई भी बता देगा, क्योंकि इस बस का यहाँ अड्डे पर पहुँचने का वक्त ही 4 बजे का है।"

अंशू मेरे घर का नाम है, मेरे परिवार के सदस्य और मेरे करीबी मित्र या रिश्तेदार, इसी नाम से मुझे बुलाना पसंद करते थे। भइया के साथ जो तीन बन्दे आए हुए थे, उनमें से एक ने मेरे हाथ से बैग लिया।

भइया ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, "यहाँ से डेढ़ किलोमीटर पर

ही कमरा है, जहाँ हम लोग रहते हैं ये लोग मेरे साथ ही मेरे विभाग में

काम करते हैं।"
 

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
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भइया ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, “यहाँ से डेढ़ किलोमीटर पर

ही कमरा है, जहाँ हम लोग रहते हैं। ये लोग मेरे साथ ही मेरे विभाग में काम करते हैं।" भइया ने यह कहते हुए सबसे बारी-बारी परिचय करवाया। उन्होंने बताया कि दिनेश, राजेश और सुरेश उनके नाम हैं। बातों का सिलसिला

जो शुरू हुआ, वह कमरे तक पहुँचने पर ही खत्म हुआ।

"ऐसा करो, बैग अंदर वाले कमरे में रख दो और जल्दी से हाथ पांव

धोकर फ्रेश हो जाओ। तब तक चाय बन जाएगी।", उन्होंने आदेश देते हुए मुझे इशारे से अंदर जाने को कहा। मैं अपना बैग लेकर अंदर की तरफ चल पड़ा। यहाँ कमरे अजीब थे। मतलब रेल के डब्बे की तरह लंबाई में लंबे थे, लेकिन चौड़ाई में कम थे। तीनों कमरे एक लाइन में पड़ते थे, जिनसे बाहर निकलने का मात्र एक ही रास्ता था। तीनों कमरों में खिड़कियां बड़ी-बड़ी थी। मैंने अंदर वाले कमरे में जाकर बैग रख दिया।

रात के 8 बज रहे थे। चारों ओर धुप्प अंधेरा पसरा हुआ था। झींगुर की आवाजें बहुत तेज सुनाई पड़ रही थी। मैंने भाई से टॉयलेट जाने को पूछा तो उसने बताया कि यहाँ पहाड़ों में कम जगह होने की वजह से, इस
तरह एक ही दिशा में लम्बवत घर बनाते हैं। यहाँ हर किसी के घर में

टॉयलेट, घर के बाहर ही बना होता है। उन्होंने मुझे टॉर्च देकर बता दिया कि मुझे कहाँ जाना है। मैंने जैसे ही टॉयलेट का दरवाजा खोला, मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

टॉयलेट के अंदर एक जोड़ी चमकीली आँखें दिखी, जो कि मेरी तरफ ही
लगातार घूरे जा रही थी। मैं इससे पहले की टॉर्च जलाकर, हालात का मुआयना करता, वह चीज़ अपनी जगह से मेरी तरफ झपटी ।

मैं डरकर पीछे हटा और धरती पर नीचे जा गिरा। मैंने फटाक से टॉर्च जला दिया। जब टॉर्च की प्रकाश डाली तो देखा कि वह एक काली बिल्ली थी, जो बाहर ठंड होने की वजह से, वहाँ न जाने कब से दुबकी पड़ी थी। मेरे इस कदर अचानक दरवाजा खोलने से वह भी सहम गई थी और उछल कर बाहर की तरफ भाग पड़ी।

मैंने मन ही मन कहा कि अब अगर रात में भी टॉयलेट लगा तो सुबह ही आऊंगा। भला बार-बार रात को कौन बाहर आएगा। मैं जैसे ही टॉयलेट करके अंदर आया तो देखता हूँ कि पहले वाले कमरे का माहौल रंगीन हो चला था। मेरा भाई सुदर्शन और साथ के तीनों दोस्त बैठकर वहाँ शराब का आनंद ले रहे थे।

“आओ! आओ !! बैठो अंशू । कल रविवार का दिन है इसलिए शनिवार की रात अपनी होती है।”, मुझे अंदर आता देख दिनेश ने कहा

और बोलते-बोलते एक सांस में पूरा गिलास गले से नीचे उतार लिया।

"नहीं! मैं यह सब नहीं लेता। मुझे यह सब पसंद नहीं।", मैंने हिचकते हुए उस से मुखातिब होते हुए कहा ।

“अरे! मत पीना लेकिन हमारे साथ बैठकर कोल्ड ड्रिंक तो पी सकते हो।”, राजेश ने यह बात कहते हुए मुझे वहाँ सबके साथ बैठने की। जिद करने लगा।

“अरे नहीं! तू थक गया होगा। जा, अंदर आराम कर ले। फिर कल। नई जगह घूमने भी चलना है।" मेरे बड़े भाई ने बीच बचाव करते हुए कहा

मैं उनकी बात को सुनकर अंदर ही आ गया। अंतिम वाले कमरे में तीन बिस्तर एक साथ चिपका कर लगे हुए थे। अंतिम वाले बिस्तर के साथ ही खिड़की थी। मैं वहीं खिड़की के पास वाले बिस्तर पर सो गया।
 

Shetan

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भइया ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, “यहाँ से डेढ़ किलोमीटर पर

ही कमरा है, जहाँ हम लोग रहते हैं। ये लोग मेरे साथ ही मेरे विभाग में काम करते हैं।" भइया ने यह कहते हुए सबसे बारी-बारी परिचय करवाया। उन्होंने बताया कि दिनेश, राजेश और सुरेश उनके नाम हैं। बातों का सिलसिला

जो शुरू हुआ, वह कमरे तक पहुँचने पर ही खत्म हुआ।

"ऐसा करो, बैग अंदर वाले कमरे में रख दो और जल्दी से हाथ पांव

धोकर फ्रेश हो जाओ। तब तक चाय बन जाएगी।", उन्होंने आदेश देते हुए मुझे इशारे से अंदर जाने को कहा। मैं अपना बैग लेकर अंदर की तरफ चल पड़ा। यहाँ कमरे अजीब थे। मतलब रेल के डब्बे की तरह लंबाई में लंबे थे, लेकिन चौड़ाई में कम थे। तीनों कमरे एक लाइन में पड़ते थे, जिनसे बाहर निकलने का मात्र एक ही रास्ता था। तीनों कमरों में खिड़कियां बड़ी-बड़ी थी। मैंने अंदर वाले कमरे में जाकर बैग रख दिया।

रात के 8 बज रहे थे। चारों ओर धुप्प अंधेरा पसरा हुआ था। झींगुर की आवाजें बहुत तेज सुनाई पड़ रही थी। मैंने भाई से टॉयलेट जाने को पूछा तो उसने बताया कि यहाँ पहाड़ों में कम जगह होने की वजह से, इस
तरह एक ही दिशा में लम्बवत घर बनाते हैं। यहाँ हर किसी के घर में

टॉयलेट, घर के बाहर ही बना होता है। उन्होंने मुझे टॉर्च देकर बता दिया कि मुझे कहाँ जाना है। मैंने जैसे ही टॉयलेट का दरवाजा खोला, मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

टॉयलेट के अंदर एक जोड़ी चमकीली आँखें दिखी, जो कि मेरी तरफ ही
लगातार घूरे जा रही थी। मैं इससे पहले की टॉर्च जलाकर, हालात का मुआयना करता, वह चीज़ अपनी जगह से मेरी तरफ झपटी ।

मैं डरकर पीछे हटा और धरती पर नीचे जा गिरा। मैंने फटाक से टॉर्च जला दिया। जब टॉर्च की प्रकाश डाली तो देखा कि वह एक काली बिल्ली थी, जो बाहर ठंड होने की वजह से, वहाँ न जाने कब से दुबकी पड़ी थी। मेरे इस कदर अचानक दरवाजा खोलने से वह भी सहम गई थी और उछल कर बाहर की तरफ भाग पड़ी।

मैंने मन ही मन कहा कि अब अगर रात में भी टॉयलेट लगा तो सुबह ही आऊंगा। भला बार-बार रात को कौन बाहर आएगा। मैं जैसे ही टॉयलेट करके अंदर आया तो देखता हूँ कि पहले वाले कमरे का माहौल रंगीन हो चला था। मेरा भाई सुदर्शन और साथ के तीनों दोस्त बैठकर वहाँ शराब का आनंद ले रहे थे।

“आओ! आओ !! बैठो अंशू । कल रविवार का दिन है इसलिए शनिवार की रात अपनी होती है।”, मुझे अंदर आता देख दिनेश ने कहा

और बोलते-बोलते एक सांस में पूरा गिलास गले से नीचे उतार लिया।

"नहीं! मैं यह सब नहीं लेता। मुझे यह सब पसंद नहीं।", मैंने हिचकते हुए उस से मुखातिब होते हुए कहा ।

“अरे! मत पीना लेकिन हमारे साथ बैठकर कोल्ड ड्रिंक तो पी सकते हो।”, राजेश ने यह बात कहते हुए मुझे वहाँ सबके साथ बैठने की। जिद करने लगा।

“अरे नहीं! तू थक गया होगा। जा, अंदर आराम कर ले। फिर कल। नई जगह घूमने भी चलना है।" मेरे बड़े भाई ने बीच बचाव करते हुए कहा

मैं उनकी बात को सुनकर अंदर ही आ गया। अंतिम वाले कमरे में तीन बिस्तर एक साथ चिपका कर लगे हुए थे। अंतिम वाले बिस्तर के साथ ही खिड़की थी। मैं वहीं खिड़की के पास वाले बिस्तर पर सो गया।
Superb jabardast. Dar peda karne me to kamyab hue. Ab story me kuchh rangin pal bhi add karo. Story shandar he 🙌🏻👌👍

Rani pyar ki deewani tum redars ke pyar ki hakdar ho.
 
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ranipyaarkidiwani

Rajit singh
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Sorry but its simple horror not romantic
Yaar naam kese change hoga id ko jaldi approved karane ke liye ladki ka naam rakh diya tha 😜😜 ab ladko ke message aa rahe hai 😀😀 pareshan ho gaya id to jaldi approved ho gayi lekin naam musibat ban jayega aage jaker kamdev99008 help pls Addicted
 
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Shetan

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बिस्तर पर पड़ते ही मुझे नींद आ गयी। शायद मुझे पर इतनी लंबी यात्रा की थकान हावी थी। रात को किसी वक्त मुझे ऐसा लगा कि जैसे किसी चीज़ के जलने की बदबू रही है। मानो जैसे किसी जानवर की जलने की गंध हो। जब यह दुर्गंध बर्दाश्त के बाहर हो गयी तो मैं अपनी जगह से उठ कर बैठ गया।

मैंने देखा कि बाकी के चारों उसी जगह बराबर में सो रहे हैं।

घड़ी पर नजर पड़ी तो देखा कि ठीक डेढ़ बजे रहे थे। मैं उठकर रसोईघर से पानी पी कर आया। वहाँ से आते ही मुझे अब वह गंध नहीं आ रही थी। मैंने सोचा कि चलो, अब नींद तो ठीक से आएगी कम से कम ।

मैं फिर बिस्तर पर गहरी नींद में सो गया।

"कितना सोएगा? उठ जा अब और जल्दी से चाय खत्म करके तैयार हो जा। अगले एक घंटे में हमलोग पाताल भुवनेश्वर जा रहे हैं।", यह भाई की आवाज थी। वे मुझे उठाते हुए आगे के प्रोग्राम का संक्षिप्त विवरण दे रहे थे।

“इतनी जल्दी उठ गए क्या? एक तो रात को उस बदबू ने सोने नहीं दिया और ऊपर से सुबह भी जल्दी हो गयी।" मैंने अंगड़ाइयां लेते हुए भाई को कहा।

"क...क... क्या? बदबू ! कैसी बदबू?”, मेरे भाई ने हिचकते हुए पूछा!

"भइया, रात को ऐसा लग रहा था, जैसे कि किसी जानवर की जलने की गंध हो। उस दुर्गंध ने पूरी रात सोने नहीं दिया। ”, मैंने मुँह बनाते हुए कहा, जैसे वह बदबू के आने के वही जिम्मेदार हों

“त... त... तुमको भी वो गंध...!...

दिनेश कुछ बोलने वाला ही था कि भइया ने उनकी बातों को बीच में ही काटते हुए कहा, "अरे! यहाँ स्थानीय पहाड़ी लोग, बकरे या मुर्गे की बलि देते हैं और उसके बाद प्रसाद के रूप में उसे घर ले जाते हैं। बकरे या मुर्गे की चमड़ी उतारें बिना, पहले उसको हल्का सा जलाते हुए भुनने की कोशिश करते हैं। उसके जलने से ही अजीब सी गंध आती है और ये वही बदबू होगी।"

“हाँ! सही कहा आपने। मुझे कुछ ऐसी ही बदबू लगी थी। मानना पड़ेगा लोगों का जवाब नहीं, अच्छे स्वाद के लिए कितने जतन करते हैं।" मैं यह कहकर हँसने लगा और मेरी हँसी में वे भी शामिल हो गए।

"अच्छा, चलो जल्दी से नहाकर आओ। हमलोगों को 10 बजे एक पौराणिक जगह घूमने चलना है।", यह कहकर वे बाहर की तरफ चले गए।

भइया के साथ सारे दोस्त बाहर धूप में खड़े होकर, मेरा इंतज़ार कर रहे थे। बाहर निकलने पर जब धूप मेरे जिस्म पर पड़ी तो मानो जैसे रोम-रोम में बिजली सी कौंध गयी। शरीर में एक असीमित ऊर्जा का एहसास हुआ। उस धूप को छोड़कर कहीं जाने का मन नहीं हो रहा था, लग रहा था कि कुछ पल और रुक कर इसका लुत्फ लिया जाए।

“चलना है या बस यहीं खड़े-खड़े धूप ही सेंकते रहना है। चलो, हमलोगों को देर हो रही है। यहाँ सूर्यास्त जल्दी हो जाता है।", भइया मेरे धूप का आनंद लेने में खलल डालते हुए कहा था।

मैं उनके साथ नीचे सड़क पर आ गया। नीचे सड़क के किनारे एक सफेद रंग की जीप खड़ी थी। उस जीप के आगे की तरफ भारत सरकार' लाल गाढ़े रंग में लिखा हुआ था। भइया वाप्कोस लिमिटेड, जो कि एक मिनी रत्न कंपनी थी, उसमें इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के पद पर पिछले 3 साल से कार्यरत थे। उन्हें उस जिले में स्थानीय जगह या किसी गाँव में विज़िट पर जाने के लिए. यह सरकारी गाड़ी मिली हुई थी।
 
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