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Horror खौफ कदमों की आहट ( New Chapter )

स्टोरी बोरिंग है


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kamdev99008

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Yaar naam kese change hoga id ko jaldi approved karane ke liye ladki ka naam rakh diya tha 😜😜 ab ladko ke message aa rahe hai 😀😀 pareshan ho gaya id to jaldi approved ho gayi lekin naam musibat ban jayega aage jaker kamdev99008 help pls Addicted
मोडस को बोलकर अपनी 🆔 बदलवा लो अपनी प्रोफाइल पर जाकर रिपोर्ट करो... और नई 🆔 जो आपको चाहिए वो भी बता दो
 

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
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मोडस को बोलकर अपनी 🆔 बदलवा लो अपनी प्रोफाइल पर जाकर रिपोर्ट करो... और नई 🆔 जो आपको चाहिए वो भी बता दो
वापिस से नई id बनानी पड़ेगी क्या
 
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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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वापिस से नई id बनानी पड़ेगी क्या
नहीं नाम बदल जायेगा...
बाकी सब पोस्ट, थ्रेड लाइक सब वही रहेगा
 

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
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आज इतवार का दिन था इसलिए मेरे लिए यह फायदे का सौदा हुआ और यह जीप आज हमारे लिए उपलब्ध थी। भइया के साथ आगे वाली सीट पर बैठ गया और उनके बाकी सारे दोस्त पीछे बैठ गए।

चम्पावत से पाताल भुवनेश्वर, जो उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट नामक जगह पर स्थित था। यह चम्पावत से 106 की.मी. की दूरी पर था हमारे साथ नीचे नदी भी ताल से ताल मिलाए मंजिल की तरफ बढ़ रही थी। मैंने इस नदी का नाम पूछा तो ड्राइवर ने बताया कि इस नदी का नाम काली नदी है, जो नेपाल से आ रही है।

लगभग डेढ़ बजे हमलोग गंगोलीहाट के पास पहुँच गए। ड्राइवर जीप को सड़क के किनारे खड़ी करने लगा और में, भइया के साथ सामने दुकान की तरफ बढ़ चला।

पाताल भुवनेश्वर जाने के लिए किधर से जाना होगा, मेरे भाई ने सड़क के किनारे बनी एक दुकान वाले से पूछा।

दुकान वाले ने कोई भी जवाब नहीं दिया। मुझे बड़ा अजीब लगा।

तभी आस पास कहीं से एक व्यक्ति ने शायद हमारी बात सुन ली थी. वह बोला, "बाबूजी! यह जरा ऊंचा सुनता है। बचपन में पटाखे फोड़ रहा था और आग लगने के बाद फिसल कर वहीं पास में ही गिर पड़ा। पटाखे की तेज आवाज से अपने सुनने की शक्ति को गया बैठा है ऐसा कीजिए कि आप सामने मुख्य सड़क से बायीं ओर एक पतली पगडंडी जा रही है न, वहाँ से सीधे चले जाइएगा। थोड़ी दूर चलने पर एक बड़ा सा गेट बना होगा। बस उस गेट से अंदर जाने पर थोड़ी ही दूरी पर आपको वह जगह मिल जाएगा।"

मैंने दुकान वाले कि घटना पर अफसोस जताया और हाथ जोड़कर उनसे विदा होते हुए उस जगह की तरफ बढ़ चला यह पगडंडियां बहुत कम चौड़ी थी लेकिन सीमेंट से निर्मित होने की वजह से मजबूती से यहाँ के मौसम का सामना करने के लिए सक्षम थी।

बुरांस के पेड़ पर लाल रंग के फूल शोभायमान थे, तो कहीं-कहीं देवदार और चीड़ के पेड़ भी अपनी मौजूदगी से ठंड का एहसास करवा रहे थे।

चारों तरफ बिल्कुल सन्नाटा पसरा हुआ था। लोग भी बहुत कम ही दिख रहे थे। थोड़ी दूर चलने पर ही हमें वह गेट मिला, जिसके ऊपर लिखा हुआ था, पाताल भुवनेश्वर में आपका स्वागत है।"

हम वहाँ से चहलकदमी करते हुए, उस जगह पहुँच चुके थे। वहाँ एक गुफा थी, जो अंदर की तरफ जाती थी। उस गुफा के बाहर ही एक पुजारी बैठा था, जिसने हमें अंदर जाने से रोक दिया। "हमें अंदर जाने से क्यों रोक रहे हो, दिनेश ने पुजारी पर प्रश्नों की झड़ी लगा दी।

यह सुनकर पुजारी विनम्र स्वभाव में बोला, “आप सभी को इस पवित्र गुफा में चमड़े के समान से निर्मित वस्तुएं जैसे पर्स, बेल्ट आदि ले जाने की मनाही है और मोबाइल कैमरा ले जाने पर भी प्रतिबंध है।"
 

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
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इसे यदि ले नहीं जाएंगे तो फिर रखेंगे किधर मैंने झुंझलाकर उस पुजारी से कहा। इस बार भी पुजारी ने नम्र स्वभाव में हाथ से दूसरी तरफ इशारे करते हुए जवाब दिया, "सामने लॉकर है। आप वहाँ समान जमा करके, टोकन लेकर जा सकते हैं।"

दिनेश सबसे बेल्ट, मोबाइल, बटुए को इकट्ठे करने के बाद, लॉकर की तरफ जमा करने के लिए चला गया। वह थोड़ी देर में ही हमारे सामने था और अपने साथ एक गाइड को लेकर आया था।

हमलोग गुफा के अंदर प्रवेश करने लगे। गुफा प्रवेश करते ही शुरुआत में पत्थर से निर्मित एक सीढ़ी थी, जो नीचे लगभग 50 मीटर तक थी। नीचे उतरते ही समतल जगह थी। नीचे आते ही गाइड हमलोगों के सामने आ गया और बोलने लगा.

मेरा नाम विनीत चौधरी है। मैं यहाँ से थोड़ी दूर पर ही लोहाघाट नामक गांव से हूँ। मैं आपको इस गुफा से जुड़ी सारी आवश्यक जानकारी दूँगा।"

“पाताल भुवनेश्वर मंदिर, पिथौरागढ़ जनपद उत्तराखंड राज्य का प्रमुख पर्यटक केन्द्र है। यह गुफा प्रवेश द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 फुट गहरी है। पाताल भुवनेश्वर देवदार के घने जंगलों के बीच अनेक भूमिगत गुफाओं का संग्रह है। यह संपूर्ण परिसर 2007 से भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा अपने कब्जे में लिया गया है।"

जिसे "हिन्दू धर्म के अनुसार, यहाँ तैंतीस कोटि के देवता विद्यमान हैं, कुछ लोग, तैंतीस कोटि को तैंतीस करोड़ भी समझने की भूल कर देते हैं। मैं यह साफ-साफ बताना चाहूँगा कि तैंतीस कोटि का अभिप्राय तैंतीस करोड़ नहीं, तैंतीस प्रकार के देवी देवता से है। पौराणिक कथा और लोकगीतों में इस भूमिगत गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव और तैंतीस कोटि के देवता विद्यमान हैं।"

"हाँ चूने के पत्थरों से कई तरह की आकृतियां बनी हुई है। इस गुफा में बिजली की व्यवस्था भी है। पानी के प्रवाह से बनी यह गुफा केवल एक गुफा नहीं है, बल्कि गुफाओं की एक श्रृंखला है।"

पुराणों के मुताबिक, पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहाँ एकसाथ चारों धाम के दर्शन होते हों। यह पवित्र व रहस्यमयी गुफा, अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए हैं।"

पुराणों में लिखा है कि त्रेता युग में सबसे पहले इस गुफा की खोज राजा ऋतूपूर्ण ने की थी, जो त्रेता युग में अयोध्या पर शासन करते थे। द्वापर युग में पांडवों ने यहाँ शिवजी भगवान के साथ चौपड़ खेला था और कलियुग में जगत गुरु शंकराचार्य का 722 ई. के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ, तब उन्होंने यह तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया। इसके बाद जाकर कही चंद राजाओं ने इस गुफा को खोजा।"

“स्कंद पुराण के मानस खंड में वर्णित किया गया है कि आदि शंकराचार्य ने 1191 ई. में इस गुफा का पुनः दौरा किया था। यही पाताल भुवनेश्वर में आधुनिक तीर्थ इतिहास की शुरुआत हुई थी।"

“आज के समय में पाताल भुवनेश्वर गुफा, सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। देश विदेश से कई सैलानी इस गुफा के दर्शन करने के लिए आते रहते है।"

"इसके साथ ही यह एक शिवलिंग है, जो लगातार ऊपर की ओर बढ़ रहा है। कहा जाता है कि जब यह शिवलिंग गुफा की छत को छू लेगा, तब कलियुग का अंत हो जाएगा और यह दुनिया खत्म हो जाएगी। यह माना जाता है कि यह गुफा कैलाश पर्वत पर जाकर खुलती है। यह भी माना जाता है कि युद्ध के बाद पांडवों ने अंतिम यात्रा से पहले इसी गुफा में तप किया था।"
 
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Rajit singh
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"क्या बात करते हो! मैं उस शिवलिंग को अवश्य देखना चाहूँगा ।

1 क्या आप भी इस ज़माने के होते हुए, इन बातों पर विश्वास करते हैं, 90% |

मैंने गाइड की बात को बीच में ही काटते हुए कहा । M • मैं जानता हूँ शुरू में विश्वास करना इतना आसान नहीं होगा। आप यहाँ चारों तरफ अपनी नजरें दौड़ा कर देख सकते हो, यहाँ सब अपने आप निर्मित है। कहीं भी किसी तरह का कोई जोड़ मौजूद नहीं है। मैं

अभी आपको उस अद्भुत शिवलिंग के दर्शन भी करवाऊंगा।", गाईड ने मेरी बातों का धीरज से जवाब दिया।

*मैं इससे जुड़ी और भी बातें जानना चाहता हूँ। कृपया आप बताते रहिए।”, मैंने मुस्कुराकर गाइड की तरफ देखते हुए कहा और गाइड फिर हमें वहाँ की और जानकारी देने लग गया।

"हिंदू धर्म में भगवान गणेशजी को प्रथम पूज्य माना गया है। गणेशजी के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक

बार भगवान शिव ने क्रोध में गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था। बाद में माता पार्वती जी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था। लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया, माना जाता है कि वह मस्तक भगवान शिवजी ने पाताल भुवनेश्वर गुफा में रखा है।

“पाताल भुवनेश्वर की गुफा में भगवान गणेश के सिर कटे शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान है।

इस ब्रह्मकमल से पानी भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई। देती है। मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल, भगवान शिव ने ही यहाँ स्थापित किया था।"

यह बताते बताते वह गाइड हमें थोड़ा आगे की तरफ ले गया। गुफा संकरी होने की वजह से हमलोग झुककर आगे बढ़ रहे थे। लगभग पंद्रह फुट की दूरी चलने पर हमें एक जगह पर उसने रोक दिया।

वह ऊपर की तरफ इशारा करते हुए बोला, “ये देखिए, यह ब्रह्मकमल का रूप है, ध्यान से देखने पर आपको एहसास होगा कि उस ब्रह्मकमल से पानी की बूंदें टपक रहीं हैं, जो सीधे नीचे बने शिवलिंग पर पड़ती है।"

मुझे अपनी आँखों पर विश्वास करना मुश्किल लग रहा था क्योंकि वाकई वह ब्रह्मकमल जैसा दिखने वाला पुष्प, गुफा के ऊपरी भाग में ही बना हुआ था, जो कि पत्थर का होने के बावजूद भी एक पुष्प की आकृति का दिख रहा था। उसे देख कर साफ लग रहा था कि यह मानव निर्मित नहीं है क्योंकि उसमें किसी भी तरह का जोड़ नहीं था। वास्तव में उसी पत्थर रूपी ब्रह्मकमल से पानी की बूंदें रह-रह कर नीचे शिवलिंग पर जल से अभिषेक कर रही थी। यह बिल्कुल सटीक शिवलिंग के बिल्कुल मध्य में पड़ रही थी।
 
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Rajit singh
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मुझे अपनी आँखों पर विश्वास करना मुश्किल लग रहा था क्योंकि वाकई वह ब्रह्मकमल जैसा दिखने वाला पुष्प, गुफा के ऊपरी भाग में ही बना हुआ था, जो कि पत्थर का होने के बावजूद भी एक पुष्प की आकृति का दिख रहा था। उसे देख कर साफ लग रहा था कि यह मानव निर्मित नहीं है क्योंकि उसमें किसी भी तरह का जोड़ नहीं था। वास्तव में उसी पत्थर रूपी ब्रह्मकमल से पानी की बूंदें रह रह कर नीचे शिवलिंग पर जल से अभिषेक कर रही थी। यह बिल्कुल सटीक शिवलिंग के बिल्कुल मध्य में पड़ रही थी।

यह देखिए, यही वह पत्थर है जिसका जिक्र मैंने थोड़ी देर पहले आप लोगों से किया था। इन गुफाओं में चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं। लेकिन यह वाला पत्थर, जिसे कलियुग का प्रतीक माना जाता है. यह साल दर साल धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। माना यह जाता है कि जिस दिन यह कलियुग का प्रतीक पत्थर दीवार से टकराजायेगा, उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा।" उस जगह सच में एक पत्थर दिख रहा था, जो कि नीचे धरातल से ऊपर की तरफ बढ़ता हुआ प्रतीक हो रहा था। उस देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था की यह धीरे-धीरे वाकई बढ़ रहा होगा।

इस जगह मन को अजीब सा सुकून महसूस हो रहा था मानो मन में कोई इच्छा ही नहीं रही हो दिल को यह पल बहुत ही भा रहे थे।

मैं इन विचारों में खोया ही हुआ था कि फिर से गाइड ने अपने ज्ञान के पिटारे को खोलना शुरू किया।

"इस गुफा के अंदर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं, जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरुड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई है। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुँह से गर्भ में प्रवेश कर, पूंछ तक पहुँच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

यह कहते हुए उसने अपने हाथ से इशारा करते हुए, एक विचित्र गुफा की तरफ इशारा किया, जो कि हल्की सी ऊपर चढ़ने पर दिखाई दे रही थी। सही में इस गुफा का दूसरा छोर तो था, जिसका मार्ग कहीं न कहीं जा जरूर रहा है।

उस गुफा के तरफ रुख न करते हुए वापिस उसी जगह आ गए और गाइड ने सामने की तरफ इशारा करते हुए कहा, “ये देखिए, यह शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नजर आ रही है। मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है।"

गुफाओं के अन्दर बढ़ते हुए, गुफा की छत से गाय के एक थन की आकृति नजर आती है यह आकृति कामधेनु गाय का स्तन है कहा जाता था कि देवताओं के समय में इस स्तन में से दुग्ध धारा बहती थी। कलियुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है। "

उसके ऐसा कहते ही मेरी नजरें उस ओर गयीं। यह सारा नजारा वास्तव में मेरी सारी अफवाहों को सच करता हुआ प्रतीक हो रहा था।
 
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ranipyaarkidiwani

Rajit singh
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इस जगह की पौराणिक कहानियां, इस गुफा में मौजूद साक्ष्य की वजह से अब मुझे वास्तविकता का एहसास करवा रहीं थीं

इस जगह को देखने के बाद, कोई भी व्यक्ति विश्वास कर सकता था। इस बात को मैं दावा के साथ कह सकता हूँ कि बिना इस जगह को प्रत्यक्ष रूप से देखे, यहाँ किसी भी कहानी पर विश्वास करना असंभव था।

हमलोगों ने उस जगह का सूक्ष्म निरीक्षण किया और गाइड ने भीहमारा बखूबी साथ दिया। घड़ी में वक़्त 4 बजे का हो चला था। हमलोग

वहाँ से वापसी के लिए चल पड़े। करीब ढाई घंटे में हमलोग लोहाघाट पहुँचे और वहीं रात्रि का खाना खाने का निश्चय किया। होटल में वहाँ सभी ने भरपूर खाने का मजा लिया और तकरीबन साढ़े आठ बजे तक हमलोग चम्पावत पहुँच गए। लोहाघाट से चम्पावत मात्र 13 कि.मी. की ही दूरी पर था।

कमरे में आते ही सभी बिस्तर पर ढेर हो गए। मैं और भइया बीच वाले कमरे में सो गए। वहाँ एक डबल बेड लगा हुआ था। खिड़की से ताजी हवा आ रही थी। बिस्तर पर पड़ते ही नींद के आगोश में समा गए।

अचानक रात को छन्न छन्न... पायल की आवाज से मेरी नींद टूटी। मैं आँख बंद किए ही बिस्तर पर इस आवाज को महसूस कर रहा था। ध्यान देने से पता लगा कि धीरे-धीरे यह आवाज तेज होती जा रही थी, जिसका यही प्रतीक था कि पायल पहने कोई समीप ही आ रही है।

यह आवाज सुनते ही मेरे पूरे शरीर में जैसे करंट सा दौड़ गया। मैंने अपनी एक आँख को खोल कर अपने हाथों की तरफ देखा तो मेरा रोम- रोम खड़ा हो चुका था। मैंने हिम्मत की और चौंककर अपनी जगह उठकर बैठ गया कि तभी वह पायल की आवाज अचानक आनी बन्द हो गयी।

मैंने पास ही मेज पर रखे बोतल से पानी पिया और वापिस अपने बिस्तर में घुस गया और चादर तान ली। मेरे चादर तानते ही वह पायल की छन्न छन्न आवाज फिर से आनी शुरू हो गयी। अब तो इस आवाज ने मेरी नींद कोसो दूर भगा दी थी। मैं फिर से अपनी जगह पर उठ खड़ा हुआ लेकिन इस बार आवाज आनी बन्द नहीं हुई। मैंने सोचा कि बगल में

लेटे भाई को उठाऊं। यह सोचकर जैसे ही मैंने हाथ भाई की तरफ बढ़ाए

कि तभी वह आवाज आनी बन्द हो गयी।

मैं थोड़ी देर वहीं मूरत बना बैठा रहा। ऐसा नहीं था कि आवाज आनी बन्द हो गयी। वह आवाज थोड़ी-थोड़ी देर में 4 से 5 सेकंड्स के लिए आती फिर 3-4 मिनट के बाद फिर से छन्न... छन्न...! जैसे कोई औरत भारी पायल जिसमें घुंघरू की मात्रा ज्यादा हो, वह पहन कर चली आ रही हो।

अब मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। एक वक्त तो डर मुझ पर इतना हावी हुआ कि ऐसा लगा कि दिल छाती से निकलकर मेरे मुंह में आ जाएगा। मेरे तो बिल्कुल ही समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ । मैंने सोचा कि क्यों न मैं खुद दरवाजे को खोल कर देख लूँ कि यह आवाज कैसे आ रही है। कहीं किसी की शरारत तो नहीं।

मैं अपनी जगह से उठा और सबसे पहले अंदर वाले कमरे की तरफ गया। वहाँ बाकी के तीनों लोग तो घोड़े बेच कर सो रहे थे। मैंने फिर बाहर का रुख किया और दरवाजे को खोलकर बाहर जाने का दृढ़ निश्चय किया।

मैंने फटाक से दरवाजे की कुंडी को खोलते ही झटके के साथ ही
दरवाजा खोल दिया और बाहर आ गया। मैं दरवाजे को खोलकर जैसे ही
बाहर निकला बाहर फिर से छन्न... छन्न
छन्न...!
 
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