इसे यदि ले नहीं जाएंगे तो फिर रखेंगे किधर मैंने झुंझलाकर उस पुजारी से कहा। इस बार भी पुजारी ने नम्र स्वभाव में हाथ से दूसरी तरफ इशारे करते हुए जवाब दिया, "सामने लॉकर है। आप वहाँ समान जमा करके, टोकन लेकर जा सकते हैं।"
दिनेश सबसे बेल्ट, मोबाइल, बटुए को इकट्ठे करने के बाद, लॉकर की तरफ जमा करने के लिए चला गया। वह थोड़ी देर में ही हमारे सामने था और अपने साथ एक गाइड को लेकर आया था।
हमलोग गुफा के अंदर प्रवेश करने लगे। गुफा प्रवेश करते ही शुरुआत में पत्थर से निर्मित एक सीढ़ी थी, जो नीचे लगभग 50 मीटर तक थी। नीचे उतरते ही समतल जगह थी। नीचे आते ही गाइड हमलोगों के सामने आ गया और बोलने लगा.
मेरा नाम विनीत चौधरी है। मैं यहाँ से थोड़ी दूर पर ही लोहाघाट नामक गांव से हूँ। मैं आपको इस गुफा से जुड़ी सारी आवश्यक जानकारी दूँगा।"
“पाताल भुवनेश्वर मंदिर, पिथौरागढ़ जनपद उत्तराखंड राज्य का प्रमुख पर्यटक केन्द्र है। यह गुफा प्रवेश द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 फुट गहरी है। पाताल भुवनेश्वर देवदार के घने जंगलों के बीच अनेक भूमिगत गुफाओं का संग्रह है। यह संपूर्ण परिसर 2007 से भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा अपने कब्जे में लिया गया है।"
जिसे "हिन्दू धर्म के अनुसार, यहाँ तैंतीस कोटि के देवता विद्यमान हैं, कुछ लोग, तैंतीस कोटि को तैंतीस करोड़ भी समझने की भूल कर देते हैं। मैं यह साफ-साफ बताना चाहूँगा कि तैंतीस कोटि का अभिप्राय तैंतीस करोड़ नहीं, तैंतीस प्रकार के देवी देवता से है। पौराणिक कथा और लोकगीतों में इस भूमिगत गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव और तैंतीस कोटि के देवता विद्यमान हैं।"
"हाँ चूने के पत्थरों से कई तरह की आकृतियां बनी हुई है। इस गुफा में बिजली की व्यवस्था भी है। पानी के प्रवाह से बनी यह गुफा केवल एक गुफा नहीं है, बल्कि गुफाओं की एक श्रृंखला है।"
पुराणों के मुताबिक, पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहाँ एकसाथ चारों धाम के दर्शन होते हों। यह पवित्र व रहस्यमयी गुफा, अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए हैं।"
पुराणों में लिखा है कि त्रेता युग में सबसे पहले इस गुफा की खोज राजा ऋतूपूर्ण ने की थी, जो त्रेता युग में अयोध्या पर शासन करते थे। द्वापर युग में पांडवों ने यहाँ शिवजी भगवान के साथ चौपड़ खेला था और कलियुग में जगत गुरु शंकराचार्य का 722 ई. के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ, तब उन्होंने यह तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया। इसके बाद जाकर कही चंद राजाओं ने इस गुफा को खोजा।"
“स्कंद पुराण के मानस खंड में वर्णित किया गया है कि आदि शंकराचार्य ने 1191 ई. में इस गुफा का पुनः दौरा किया था। यही पाताल भुवनेश्वर में आधुनिक तीर्थ इतिहास की शुरुआत हुई थी।"
“आज के समय में पाताल भुवनेश्वर गुफा, सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। देश विदेश से कई सैलानी इस गुफा के दर्शन करने के लिए आते रहते है।"
"इसके साथ ही यह एक शिवलिंग है, जो लगातार ऊपर की ओर बढ़ रहा है। कहा जाता है कि जब यह शिवलिंग गुफा की छत को छू लेगा, तब कलियुग का अंत हो जाएगा और यह दुनिया खत्म हो जाएगी। यह माना जाता है कि यह गुफा कैलाश पर्वत पर जाकर खुलती है। यह भी माना जाता है कि युद्ध के बाद पांडवों ने अंतिम यात्रा से पहले इसी गुफा में तप किया था।"