मैंने उन्हें बेहद धीमी आवाज में कहा, "मेरी बातों का आप लोग 1 अकीरा नहीं करोगे। लेकिन कल हम दोनों ने एक अटकती आत्मा को देखा, जो कि एक दुल्हन के लिबास में थी । " “क्या बच्चों जैसी बातें कर रहे हो। यह सब मन का वहम होता है।
भूत-वूत कुछ नहीं होते। तुम पढ़े-लिखे होकर, जाहिलों जैसी बात कैसे कर सकते हो ? मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी। कभी-कभी आँखों का धोखा भी होता है, जिसे हम सच्चाई मान बैठते हैं। "
“बिल्कुल सही कहा भइया आपने कि कभी-कभी आँखों का धोखा हो सकता है लेकिन मैं पिछले 2-3 रातों से उस अदृश्य शक्ति का एहसास कर रहा था।" मैंने इस बार एक सांस में ही यह सब कह दिया।
भइया बोले, “क्या कहा? पिछले 2-3 दिनों से तुमने आत्मा की मौजूदगी का एहसास किया?"
इस बार बारी राजेश की थी, वह इतना सुनते ही तपाक से बोल पड़ा, "ये बिल्कुल सच कह रहा है। पहले मैंने भी इसकी बातों पर विश्वास नहीं किया लेकिन जब कल साक्षात मैंने उस लाल जोड़े वाली दुल्हन की आत्मा को देखा तो......
"लाल जोड़े वाली दुल्हन ! कहाँ देखा तुमने उसे?”, दिनेश ने उससे सवाल किया।
"याद है, मैं परसो रात को लगभग 2 बजे के करीब इस घर के पीछे मिला था। मैं उस वक़्त एक पायल की आवाज का पीछा कर रहा था ।
वह लगातार इधर से उधर तो कभी उधर से इधर जा रही थी, जिसकी वजह से मेरी नींद में खलल आ गयी थी। मैंने उसी वक़्त निश्चय कर लिया था कि मैं अब देख कर रहूंगा कि वह बला आखिर है क्या? लेकिन जैसे ही मैं उसके करीब पहुँचने वाला था, आप ऐन वक्त पर न जाने कहाँ से ढूंढ़ते हुए, उस तरफ आ गए। मेरे उसतक पहुँचने से पहले ही आप मुझे अंदर लेकर चले गए।"
“हाँ, मैं ले तो गया था। लेकिन मैंने रात को अपने पास न पाकर, तुम्हें खोजने निकल पड़ा था। मैं जैसे ही बाहर आया, तुम्हें घर के पिछवाड़े में जाते हुए देखा तो मैं भी तुम्हारे पीछे हो चला था।"
भइया की इन बातों से मेरी बातों को बल मिल गया था। शायद वे आज मुझे ठीक से समझने को तैयार थे।
मैंने मौके का फायदा उठाते हुए कहा, "याद है, कल सुबह भी आपलोगों ने मेरा उस छोटे से बच्चे से डर जाने को मजाक में ले लिया था।"
"मगर वास्तविकता पर आप में से किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। बात दरअसल यह थी कि इस बच्चे के साथ बिस्तर के नीचे वही लाल जोड़े वाली दुल्हन थी, जो उस बच्चे से खेलने का प्रयास कर रही थी । "
“चलो, मान लिया कि तुम्हारी बातों में सच्चाई है लेकिन तुम इतने दावे के साथ कैसे कह सकते हो कि वह लाल जोड़े वाली दुल्हन वहाँ उसके साथ थी? क्योंकि हमलोगों ने तो वहाँ उस बच्चे डुग्गू के सिवा किसी को नहीं देखा था।”, भइया मेरी बातों में अब रुचि ले चुके थे. वे अब बहुत गौर से मेरी बातों को सुन रहे थे।
“देखा तो मैंने भी नहीं था उस औरत को वहाँ लेकिन मैंने ध्यान से देखा तो यह पता लगा कि उस बच्चे को रह-रह कर कोई गुदगुदी कर हँसाने का प्रयास कर रहा था। जब उसे गुदगुदी होती, वह अपने हाथों किसी को रोकने का प्रयास कर रहा था, जैसे उसके सामने कोई वास्तव में हो।", मैंने उन्हें एक ही सांस में यह सारी बात कह दी, जैसे मुझे यह कंठस्थ याद हो ।
मेरी बातों को सुनने के बाद दिनेश बोला, “लेकिन तुम्हें कैसे पता कि वह जो भी बन्दा या बंदी, डुग्गू के साथ थी, वह लाल जोड़े वाली कोई दल्हन ही थी।"