• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Horror खौफ कदमों की आहट ( New Chapter )

स्टोरी बोरिंग है


  • Total voters
    2
Status
Not open for further replies.

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
406
794
94
भाई जी, यहां 2 तरह के रीडर्स हैं

पहले, जिनको बस सेक्स चाहिए, दूसरे जिनकी अच्छा कंटेंट।

अब पहले वाले 90% है और दूसरे वाले बस 10।

अगर कहानी अच्छी हुई तो ये 10 एकदम लॉयल होकर पढ़ेंगे, अब डिसीजन आपको लेना है।
Bhai me bhi 1st vala hi reader hu but usme agar hadd se jyada hi ghused diya jaye bina faltu to story bakwas lagne lagti hai point to point aaye to maja aaye na
 

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
406
794
94
इस बार आवाज बिल्कुल मेरे सामने से आती हुई महसूस हुई। मानो कोई नई नवेली दुल्हन इस तरफ चली आ रही हो। लेकिन मुझे ताज्जुब हुआ कि यह आवाज केवल सुनाई दे रही थी लेकिन दिख कुछ भी नहीं रहा था। भला यह कैसे संभव हो सकता था।

मैंने उस आवाज का पीछा किया और घर के जैसे ही पीछे आया, आवाज अचानक से बन्द हो गयी। मैं जैसे ही मुड़ने को हुआ तो मुझे एहसास हुआ कि किसी ने पीछे से मेरा कंधा पकड़ा हुआ है। मेरे माथे से बहता पसीना अब कान के रास्ते होता हुआ गर्दन से नीचे की तरफ बहते हुए झुरझुरी पैदा कर रहा था। मैं जड़ मूरत बन कर वहीं खड़ा रहा, मेरे अंदर पलटकर देखने का साहस नहीं हुआ।

"अंशू... अंशू... तुम यहाँ इतनी रात गए क्या कर रहे हो?"

यह आवाज जानी पहचानी सी लग रही थी। मैं मन ही मन बजरंग बली को याद करते हुए पीछे की तरफ पलटा मेरे पीछे पलटने के बाद आँखें खोली तो अवाक से रह गया।

“तू यहाँ इतनी रात को. वो भी घर के पीछे की तरफ, इस जगह पर क्या कर रहा है?", मेरा भाई वहाँ खड़ा था और आश्चर्य से मुझे ताड़ते हुए

पूछ रहा था। "मुझे काफी देर से पायल की आवाज आ रही थी, मैं उसी आवाज को सुनते हुए...!"

“तूने ठेका लेकर रखा हुआ है क्या हर चीज का? इतनी रात को

बाहर अकेले और बिना पूछे मत जाया करो। यहाँ जंगली जानवर भी होते हैं।" यह कहते हुए मेरा हाथ पकड़ कर कमरे के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर दिया और सो गए। मैं बिस्तर पर लेटा तो था लेकिन नींद कोसो दूर थी। मेरे जेहन में

कई सवाल घर कर गए थे। आखिर कौन थी वह औरत ? इतनी रात को कहाँ भटक रही थी। क्या वह कोई दुल्हन थी या बस मेरा वहम । नहीं.... नहीं! वहम नहीं थी, क्योंकि यह जगती आँखों से देखा था मैंने और उस आवाज को मैंने काफी करीब से महसूस किया था। यह सोचते-सोचते कब सूर्योदय हो गया, इसका एहसास ही नहीं

हुआ। मुझे किस वक़्त नींद आयी, इसका एहसास मुझे आँख खुलते ही

घड़ी पर नजर पड़ने से हुई। घड़ी में ठीक 10 बज रहे थे।

"ओह! मैं इतनी देर तक सोता रह गया। यहाँ वक़्त का बिल्कुल ही पता नहीं लगता।”, यह बड़बड़ाते हुए मैं अपनी जगह से उठा ।

यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि इतनी देर तक सोने वालों मैं अकेला नहीं था। सभी घोड़े बेचकर सोने में लगे हुए थे। उनमें से खर्राटों की आवाज तो साफ-साफ सुनाई पड़ रही थी। मैं कमरे के बाहर आया तो देखा कि राजेश बाहर कुर्सी पर बैठा हुआ था और धूप का आनंद ले रहा था। कुछ के

मुझे अपनी तरफ आता देख वह बोला, “शुभ प्रभात अंशू, तो उठ गए जनाब!"

"क्या बात! आज ऑफिस नहीं जाना क्या? सभी अभी तक सो रहे हैं?", मैंने उससे जानना चाहा कि आखिर सभी अभी तक क्यों निश्चित सोए हुए है
 

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
406
794
94
"आज बकरीद की छुट्टी है। हमलोगों को छुट्टियों के दिन देर तक 1 ओडे की आदत है। मुझे सुबह उठने की आदत है इसलिए मैं नहा धोकर इस पर 24% धूप सेंक रहा हूँ। इसका मजा लेना भी एक सुखद ऐहसास होता है।"", यह कहकर वह मुस्कुराने लगा और मेरी तरफ कुर्सी खिसकाते हुए बैठने को कहा।

मैंने थोड़ी देर वहीं बैठकर इधर-उधर की बातें की, फिर मैं वहाँ से उठकर फ्रेश होने चला गया। नहाकर मैं अंदर वाले कमरे में आकर कपड़े पहनने के लिए गया। अंदर आते ही मुझे ठंड का एहसास हुआ जबकि घड़ी में दिन के साढ़े ग्यारह का वक्त हो चला था। धूप भी आज खिली हुई थी। मैंने सोचा कि शायद नहाकर अचानक कमरे में आने से ऐसा हुआ हो।

अगले पल ही मुझे एहसास हुआ कि कमरे में मेरे सिवा किसी के बुदबुदाने की आवाज आ रही है। मैंने आईने से अपना ध्यान हटाते हुए कंघी को आहिस्ता से ऊपर रैक में रखते हुए ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगा। ध्यान से सुनने से पता लगा कि वह फुसफुसाहट तो उस

कमरे में बिस्तर के नीचे से ही आ रही है। "क... क... कौन है वहाँ ?”, मैंने सहमते हुए तेज आवाज में कहा।

मेरा ऐसा कहते ही वह आवाज आनी बिल्कुल बन्द हो गयी। मैंने सोचा शायद वह आवाज बाहर से आ रही होगी। फिर मैं कंघी से बाल संवारने में लग गया। मुश्किल से अभी कुछ पल ही हुए होंगे कि मुझे किसी छोटे बच्चे की हँसने की आवाज आई। वह आवाज उसी बिस्तर के नीचे से ही आ रही थी।

मैंने इस बार हिम्मत कर अपना रुख बिस्तर की ओर किया। मैंने झुककर देखा तो अगले ही पल पछाड़ खाकर गिर पड़ा। पलंग के नीचे एक छोटा सा बच्चा कोने में बैठा हुआ था और ना जाने किस से बातें कर रहा था। बात करने के दौरान वह कभी यूँ हँसता जैसे किसी ने उसे गुदगुदी की हो। वह बीच-बीच में खुद को उस गुदगुदी से बचाने का प्रयास भी कर रहा था। मैं वहीं जमीन पर लेटे-लेटे यह सब नज़ारा देख रहा था। मेरी

समझ में नहीं आ रहा था कि वह बच्चा कौन है और यहाँ पलंग के नीचे

कहाँ से आ गया। यदि वह आ भी गया तो वह वहाँ किसके साथ खेल रहा है, जो उसे तो दिख रहा लेकिन मुझे नहीं एक पल मुझे लगा कि यह वहम है लेकिन दुबारा जब मैंने अपनी आँखों को भिंचकर देखा तो वही दृश्य था ।

खेलते-खेलते उस बच्चे की नजर मेरी तरफ गयी और मुझे बहुत गुस्से से देखने लगा, जैसे मैंने उसके किसी कार्य में विघ्न डाल दिया हो । उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। लगभग वह दो से ढाई साल का लग रहा था लेकिन इतने छोटे बच्चे को आखिर इतना खतरनाक गुस्सा कैसे आ सकता है।

इससे पहले कि मैं कुछ और समझ पाता, उस बच्चे ने अपनी दाहिनी हाथ को उठाते हुए मुट्ठी को बंद करने जैसी हरकत की और ऐसा करने के बाद उसने अपनी दोनों आँखों को बंद करते हुए, बायीं तरफ एकदम झटके के साथ खोपड़ी को लटका दिया, जैसे किसी को फांसी दी हो ।

मैं हड़बड़ाकर उस जगह से उठकर, चीखते हुए बाहर की तरफ भाग खड़ा हुआ।, “भ... भभूत भूत! बचाओ मुझे।"

बाहर मैं एक टेबल से टकरा गया, जिस पर कैरम बोर्ड रखा हुआ था, वह जमीन पर गिर गया। भइया बाहर अपने दोस्तों के साथ कैरम खेल रहे थे। मेरे इस तरह तेज दौड़कर भागने की वजह से मैं टकरा गया था। मुझे और उनके एक दोस्त को बहुत तेज चोट लगी थी।

“अरे! पागल है क्या? क्या हुआ? कहाँ है भूत?", सभी ने एक साथ प्रश्नों की झड़ी लगा दी। मैंने कमरे के तरफ इशारा करते हुए कहा,
 

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
406
794
94
मैंने कमरे के तरफ इशारा करते हुए कहा, “वो... वो आखिरी वाले कमरे में पलंग के नीचे घुसा हुआ है मेरे इतना कहते ही सभी अंदर की तरफ भाग खड़े हुए। सभी अंदर गए और सब अपना पेट पकड़ते हुए हँसते हुए बाहर आए । अचानक इस व्यवहार से मुझे बड़ा अजीब लगा। मुझे लगा कि यह। सब इन्हीं में से किसी एक का खेल है। मुझे बहुत तेज गुस्सा आ रहा था।

तभी एक ने अपनी हँसी को बड़ी मुश्किल से रोकते हुए कहा, “भाई! छोटे भूत को लेते आओ।"

उसका इतना कहते ही सभी और हँसने लगे। मेरी उलझने और बढ़ती जा रही थी। तभी मैंने देखा कि दिनेश उस बच्चे को गोदी में उठाता हुआ बाहर लाया और बोला, “यह कोई भूत-बूत नहीं है। इस बच्चे का नाम डुग्गू हैं, जो पड़ोस में ही भाभी का बच्चा है। यह अक्सर खेलते- खेलते हमारे कमरे में घुस जाता है।"

उनके ऐसा कहते ही मेरी जान में जान आयी। मैं भी उन लोगों के साथ झूठी हँसी में शामिल हो गया। जब स्थिति सामान्य हो गयी, तब मेरे मन यह प्रश्न उठा कि अगर वह बच्चा अनजाने में पलंग के नीचे आ गया था तो फिर वह इस तरह गुस्से से लाल कैसे हो गया था? फिर वह हाथ को बढ़ाते हुए अजीब सी हरकत करना छोटे बच्चे की बस की बात नहीं थी । आखिर वह बुदबुदा भी तो रहा था कुछ, जैसे किसी से सच में बात

कर रहा हो। इतना ही नहीं, उसे गुदगुदी भी तो हो रही थी। मेरा दिल यह विश्वास करने को तैयार नहीं था कि यह कोई सामान्य घटना थी। मुझे ये सब किसी को बताना भी व्यर्थ लग रहा था क्योंकि इस बात का विश्वास तो दूर की बात, किसी ने सुननी भी नहीं थीं। पायल वाली घटना भी तो घटित हुई थी। हो ना हो कोई तो बात है, जो किसी अनहोनी की तरफ इशारा कर रही है। इन्हीं खयालों में खोये-खोये, न जाने कब शाम हो गयी, इसका आभास ही नहीं हुआ।

हमलोग खाना खाने के बाद सोने चले गए। मेरा बड़ा भाई और दिनेश बाहर वाले कमरे में सो गए। मैं, राजेश और सुरेश के साथ अंदर वाले कमरे में सो गया। आज मुझे नींद नहीं लग रही थी। मैं आज इस पायल की आवाज और उस अजीब सी जले हुए दुर्गंध का फिर से एहसास करने का इंतज़ार कर रहा था। मैं मोबाइल में साउथ इंडियन मूवी देखने में लग गया, राजेश भी साथ मूवी देखने लगा।

लगभग आधी मूवी देखने के बाद मेरी नजर राजेश पर गयी, वह सो चुका था। मोबाइल के प्रकाश से मेरी आँखों में चुभन का एहसास हुआ। मैंने मोबाइल को साइड में रखकर सोने का निश्चय किया।

जैसे ही मैंने मोबाइल को साइड में रखा, मुझे खिड़की बाहर किसी में के जाने का एहसास हुआ। उस शख्स ने लाल रंग के कपड़े पहने थे, बस इतना ही देख पाया था। थोड़ी देर में ही छन्न... छन्न... पायल की आवाज फिर से आनी शुरु हो गयी। मैंने लेटे-लेटे खिड़की से बाहर की तरफ नजर घुमाई तो खिड़की से चाँद की रोशनी अंदर आ रही थी। मैंने इस

बार हिम्मत करके पास में लेटे राजेश को उठाया। वह काफी गहरी नींद में था।

मैंने जब अपने दोनों हाथों से बलपूर्वक हिलाकर उठाया तो वह बोला, "क्या हुआ? क्यों उठा रहे हो इतनी रात को ?" अपनी आँखों को मलते हुए उसने यह बात कही।
 
  • Like
Reactions: Riky007 and Shetan

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
406
794
94
अपनी आँखों को मलते हुए उसने यह बात कही। मैंने उसे बाहर खिड़की के तरफ इशारे किया बरीही या उसकी नजर मेरे माथे पर पसीने के बूंदों पर पड़ी तो वह चौक कर बोला, "क्या बात है? कोई बुरा सपना देख लिया क्या? ऐसी ठंड में तुम्हारे माथे पर पसीना क्यों छलक रहा है? व... वो... औरत बाहर घूम रही है। आज मैंने उसको देख !"

"कौन औरत! तुम किस औरत की बात कर रहे हो?" राजेश ने। चौंकते हुए मुझसे पूछा।

"आज जब तुमलोग सुबह मेरी बातों पर हँस रहे थे, तो मैंने पूरी बात नहीं बताई। मुझे लगा कि क्या पता तुमलोग मेरी बातों पर विश्वास नहीं करोगे।"

"कौन सी बात? आखिर तुम कहना क्या चाह रहे? मेरी तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा।" “सुबह जब मैं उस छोटे से बच्चे, जिसका नाम डुग्गू था, उसे देखकर
यूँ ही नहीं भयभीत हुआ था। वह बचा बेड के नीचे किसी से बात कर रहा था।"

"बात करते-करते मुझे महसूस हुआ, वहाँ कोई न कोई औरत थी, जो रह-रह कर उसे गुदगुदी कर के हँसाने का प्रयास कर रही थी। उसने हँसते हँसते अचानक मेरी देखा और हाथ उठा कर मुट्ठी बन्द करने की कोशिश की, जैसे वह मेरे गले को दबाना चाहता हो उस वक्त उसकी आँखें सुर्ख लाल थी एक साधारण 3 साल का बचा, इस तरह नहीं कर सकता। मुझे तो लगता है, उसके साथ वही औरत थी जिसे मैंने अभी थोड़ी देर पहले खिड़की से बाहर उस तरफ जाते हुए देखा हैं।

मेरी बात अब शायद राजेश के कुछ पन्ने पड़ रही थी वह ध्यान से मेरी हर बात को सुन रहा था। इतना सुनते ही वह बोल पड़ा, "तुम्हें यह बात सुबह बतानी चाहिए थी। खैर छोड़ो! लेकिन तुमने बाहर किस औरत को देखाए"

बस थोड़ी देर... थोड़ी देर रुक जाओ, तुम्हें खुद पता चल जाएगा।" यह कहकर मैंने उसे खिड़की की तरफ नजर टिकाए रखने को। कहा। लेकिन उसने मेरी बातों की ओर ध्यान न देते हुए, प्रश्न कर डाला, स... तुम इतने दावे के साथ कैसे कह सकते हो कि वह औरत वही है, जिसे तुमने खिड़की 'बाहर देखा था। चलो मान भी लिया कि यह वही औरत है तो तुम दावे के साथ कैसे कह सकते हो कि वह फिर....."

छन्न... छत्र... छन....

इस आवाज के साथ ही उसकी बात बीच में ही अधूरी रह गयी। उसे शायद काफी हद तक जवाब मिल गया था और बाकी बचे सवालों का जवाब उसे बहुत जल्द मिलने वाला था।

मेरी वह आवाज सुन कर धिग्धी बंध गयी थी राजेश अभी भी वास्तविक और आभासी तथ्यों के बीच उलझा पड़ा था उसे अभी मेरी बातों पर पूर्णतया विश्वास नहीं हो रहा था।

मेरे अंदर साहस नहीं था कि में उस दृश्य को दुबारा देख सकूं। मैंने फट से चादर तान ली और मुंह ढककर सोने का नाटक करने लग गया।

थोड़ी देर में पायल की आवाज आनी बन्द हो गयी। उसने मुझे हिलाकर उठाने का प्रयास किया लेकिन मैंने बिना कोई हलचल किए, लेटे रहने में ही गनीमत समझी।

मुश्किल से दो मिनट भी नहीं हुए थे कि उस पायल की आवाज फिर से आने लगी। अब ऐसा लग रहा था कि मानो वह आवाज बिल्कुल ही हमारे करीब से ही आ रही हो उसने मुझे जोर से चिकोटी काटी और मैं अपने बाजू को मलता हुआ उठ बैठा।
 

Shetan

Well-Known Member
14,266
37,850
259
अपनी आँखों को मलते हुए उसने यह बात कही। मैंने उसे बाहर खिड़की के तरफ इशारे किया बरीही या उसकी नजर मेरे माथे पर पसीने के बूंदों पर पड़ी तो वह चौक कर बोला, "क्या बात है? कोई बुरा सपना देख लिया क्या? ऐसी ठंड में तुम्हारे माथे पर पसीना क्यों छलक रहा है? व... वो... औरत बाहर घूम रही है। आज मैंने उसको देख !"

"कौन औरत! तुम किस औरत की बात कर रहे हो?" राजेश ने। चौंकते हुए मुझसे पूछा।

"आज जब तुमलोग सुबह मेरी बातों पर हँस रहे थे, तो मैंने पूरी बात नहीं बताई। मुझे लगा कि क्या पता तुमलोग मेरी बातों पर विश्वास नहीं करोगे।"

"कौन सी बात? आखिर तुम कहना क्या चाह रहे? मेरी तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा।" “सुबह जब मैं उस छोटे से बच्चे, जिसका नाम डुग्गू था, उसे देखकर
यूँ ही नहीं भयभीत हुआ था। वह बचा बेड के नीचे किसी से बात कर रहा था।"

"बात करते-करते मुझे महसूस हुआ, वहाँ कोई न कोई औरत थी, जो रह-रह कर उसे गुदगुदी कर के हँसाने का प्रयास कर रही थी। उसने हँसते हँसते अचानक मेरी देखा और हाथ उठा कर मुट्ठी बन्द करने की कोशिश की, जैसे वह मेरे गले को दबाना चाहता हो उस वक्त उसकी आँखें सुर्ख लाल थी एक साधारण 3 साल का बचा, इस तरह नहीं कर सकता। मुझे तो लगता है, उसके साथ वही औरत थी जिसे मैंने अभी थोड़ी देर पहले खिड़की से बाहर उस तरफ जाते हुए देखा हैं।

मेरी बात अब शायद राजेश के कुछ पन्ने पड़ रही थी वह ध्यान से मेरी हर बात को सुन रहा था। इतना सुनते ही वह बोल पड़ा, "तुम्हें यह बात सुबह बतानी चाहिए थी। खैर छोड़ो! लेकिन तुमने बाहर किस औरत को देखाए"

बस थोड़ी देर... थोड़ी देर रुक जाओ, तुम्हें खुद पता चल जाएगा।" यह कहकर मैंने उसे खिड़की की तरफ नजर टिकाए रखने को। कहा। लेकिन उसने मेरी बातों की ओर ध्यान न देते हुए, प्रश्न कर डाला, स... तुम इतने दावे के साथ कैसे कह सकते हो कि वह औरत वही है, जिसे तुमने खिड़की 'बाहर देखा था। चलो मान भी लिया कि यह वही औरत है तो तुम दावे के साथ कैसे कह सकते हो कि वह फिर....."

छन्न... छत्र... छन....

इस आवाज के साथ ही उसकी बात बीच में ही अधूरी रह गयी। उसे शायद काफी हद तक जवाब मिल गया था और बाकी बचे सवालों का जवाब उसे बहुत जल्द मिलने वाला था।

मेरी वह आवाज सुन कर धिग्धी बंध गयी थी राजेश अभी भी वास्तविक और आभासी तथ्यों के बीच उलझा पड़ा था उसे अभी मेरी बातों पर पूर्णतया विश्वास नहीं हो रहा था।

मेरे अंदर साहस नहीं था कि में उस दृश्य को दुबारा देख सकूं। मैंने फट से चादर तान ली और मुंह ढककर सोने का नाटक करने लग गया।

थोड़ी देर में पायल की आवाज आनी बन्द हो गयी। उसने मुझे हिलाकर उठाने का प्रयास किया लेकिन मैंने बिना कोई हलचल किए, लेटे रहने में ही गनीमत समझी।

मुश्किल से दो मिनट भी नहीं हुए थे कि उस पायल की आवाज फिर से आने लगी। अब ऐसा लग रहा था कि मानो वह आवाज बिल्कुल ही हमारे करीब से ही आ रही हो उसने मुझे जोर से चिकोटी काटी और मैं अपने बाजू को मलता हुआ उठ बैठा।
Superb 👏🏻👍👌
 
  • Like
Reactions: ranipyaarkidiwani

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
406
794
94
जैसे ही मैं उठकर बैठा, तो मैंने देखा कि उसकी नजरें उस पायल 1 की आवाज का पीछा कर रहीं थी और वह खिड़की की की की टकटकी लगाकर देखे जा रहा था। अब उस पायल को छन्न... छन्न... आवाज का जैसे-जैसे करीब आने का पता लग रहा था, उसी तरह एक मदहोश करने वाली खुशबू भी तेज होती चली जा रही थी।
अचानक खिड़की के तरफ देखकर हम दोनों एक साथ चीख पड़े, “न... नहीं! बचाओ!”, इतना कहते ही हम दोनों वहाँ बैठे-बैठे बेहोश हो गए।

जब आँख खुली तो देखा कि मेरे आस-पास भइया और उनके बाकी के साथी मौजूद थे। मेरे बगल में राजेश लेटा हुआ था, शायद उसे अभी तक होश नहीं आया था।

“क्या हुआ था तुम्हें रात को ? तुम लोगों को ऐसा क्या हुआ कि चीख मारकर बेहोश हो गए थे? राजेश को तो अभी भी होश नहीं आया है। बताओ, आखिर क्या हुआ था?"

मेरे होश में आते ही सभी ने सवालों की झड़ी लगानी शुरू कर दिया था। मैंने घड़ी में वक्त देखा तो सुबह के करीब आठ बजकर बीस मिनट हो रहे थे। क ... कुछ भी तो नहीं। ऐसा कुछ भी नहीं देखा।”, मैंने सहमे हुए
मन से जवाब देने की कोशिश की। "यदि ऐसा कुछ भी नहीं था तो रात के 2 बजे चीखने के बाद बेहोश क्यों हुए मैंने सोचा कि क्या पता इन लोगों को मेरी बातों पर विश्वास होगा कि नहीं।

ये लोग कहीं फिर से मेरा मजाक न बना दें। राजेश को तो मैं सबूत कल रात ही दे चुका था लेकिन इन लोगों को मैं विश्वास में नहीं ला सकता था।

मैं अभी यही सब सोच रहा था कि राजेश के शरीर में कुछ हलचल हुई, वह उठकर बैठ गया था। उसकी आँखें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह पिछले कुछ दिनों से सोया ही नहीं था, या कोई भयानक सपना देख कर अचानक उठ गया हो। उसने उठते ही मेरी तरफ देखा और मुझे देखते ही उसकी आँखें आश्चर्य से फैलती ही चली गई। उसे मेरी मौजूदगी से ज्यादा अपने होश में आने पर ज्यादा ताज्जुब था।

दिनेश ने राजेश के जिस्म को पकड़कर उसके कमर के पीछे तकिए को लगाकर बैठाने का प्रयास किया। उसको छूते ही उसने अपने हाथों को पीछे कर लिया,
राजेश के ललाट पर हाथ रखते हुए बोला, “इसका जिस्म तो आग की भट्टी की तरह तप रहा है, शायद इसे बुखार है।"

सुरेश दौड़कर रसोईघर की तरफ गया और कटोरे में ठंडा पानी लाकर रुमाल से ललाट पर रखने लगा। वहाँ मौजूद सभी हमें अचरज भरी निगाहों से देख रहे थे। दोपहर तक राजेश का बुखार भी कुछ कम हो चला था।

भइया और उनके बाकी के दोस्तों ने पूछा, “बताओ! आखिर कल रात तुम ऐसे क्यों चीखे ? ऐसा क्या हुआ जिसके कारण तुम दोनों ही भयभीत हो गए?"
 
  • Like
  • Wow
Reactions: Riky007 and Shetan

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
406
794
94
मैंने उन्हें बेहद धीमी आवाज में कहा, "मेरी बातों का आप लोग 1 अकीरा नहीं करोगे। लेकिन कल हम दोनों ने एक अटकती आत्मा को देखा, जो कि एक दुल्हन के लिबास में थी । " “क्या बच्चों जैसी बातें कर रहे हो। यह सब मन का वहम होता है।

भूत-वूत कुछ नहीं होते। तुम पढ़े-लिखे होकर, जाहिलों जैसी बात कैसे कर सकते हो ? मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी। कभी-कभी आँखों का धोखा भी होता है, जिसे हम सच्चाई मान बैठते हैं। "

“बिल्कुल सही कहा भइया आपने कि कभी-कभी आँखों का धोखा हो सकता है लेकिन मैं पिछले 2-3 रातों से उस अदृश्य शक्ति का एहसास कर रहा था।" मैंने इस बार एक सांस में ही यह सब कह दिया।

भइया बोले, “क्या कहा? पिछले 2-3 दिनों से तुमने आत्मा की मौजूदगी का एहसास किया?"

इस बार बारी राजेश की थी, वह इतना सुनते ही तपाक से बोल पड़ा, "ये बिल्कुल सच कह रहा है। पहले मैंने भी इसकी बातों पर विश्वास नहीं किया लेकिन जब कल साक्षात मैंने उस लाल जोड़े वाली दुल्हन की आत्मा को देखा तो......

"लाल जोड़े वाली दुल्हन ! कहाँ देखा तुमने उसे?”, दिनेश ने उससे सवाल किया।

"याद है, मैं परसो रात को लगभग 2 बजे के करीब इस घर के पीछे मिला था। मैं उस वक़्त एक पायल की आवाज का पीछा कर रहा था ।

वह लगातार इधर से उधर तो कभी उधर से इधर जा रही थी, जिसकी वजह से मेरी नींद में खलल आ गयी थी। मैंने उसी वक़्त निश्चय कर लिया था कि मैं अब देख कर रहूंगा कि वह बला आखिर है क्या? लेकिन जैसे ही मैं उसके करीब पहुँचने वाला था, आप ऐन वक्त पर न जाने कहाँ से ढूंढ़ते हुए, उस तरफ आ गए। मेरे उसतक पहुँचने से पहले ही आप मुझे अंदर लेकर चले गए।"

“हाँ, मैं ले तो गया था। लेकिन मैंने रात को अपने पास न पाकर, तुम्हें खोजने निकल पड़ा था। मैं जैसे ही बाहर आया, तुम्हें घर के पिछवाड़े में जाते हुए देखा तो मैं भी तुम्हारे पीछे हो चला था।"

भइया की इन बातों से मेरी बातों को बल मिल गया था। शायद वे आज मुझे ठीक से समझने को तैयार थे।

मैंने मौके का फायदा उठाते हुए कहा, "याद है, कल सुबह भी आपलोगों ने मेरा उस छोटे से बच्चे से डर जाने को मजाक में ले लिया था।"

"मगर वास्तविकता पर आप में से किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। बात दरअसल यह थी कि इस बच्चे के साथ बिस्तर के नीचे वही लाल जोड़े वाली दुल्हन थी, जो उस बच्चे से खेलने का प्रयास कर रही थी । "

“चलो, मान लिया कि तुम्हारी बातों में सच्चाई है लेकिन तुम इतने दावे के साथ कैसे कह सकते हो कि वह लाल जोड़े वाली दुल्हन वहाँ उसके साथ थी? क्योंकि हमलोगों ने तो वहाँ उस बच्चे डुग्गू के सिवा किसी को नहीं देखा था।”, भइया मेरी बातों में अब रुचि ले चुके थे. वे अब बहुत गौर से मेरी बातों को सुन रहे थे।

“देखा तो मैंने भी नहीं था उस औरत को वहाँ लेकिन मैंने ध्यान से देखा तो यह पता लगा कि उस बच्चे को रह-रह कर कोई गुदगुदी कर हँसाने का प्रयास कर रहा था। जब उसे गुदगुदी होती, वह अपने हाथों किसी को रोकने का प्रयास कर रहा था, जैसे उसके सामने कोई वास्तव में हो।", मैंने उन्हें एक ही सांस में यह सारी बात कह दी, जैसे मुझे यह कंठस्थ याद हो ।

मेरी बातों को सुनने के बाद दिनेश बोला, “लेकिन तुम्हें कैसे पता कि वह जो भी बन्दा या बंदी, डुग्गू के साथ थी, वह लाल जोड़े वाली कोई दल्हन ही थी।"
 
Status
Not open for further replies.
Top