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"गन्दा है पर धंधा है ये"
दोस्तों काफी लोगो को मुझ से शिकायत है की में काफी एब्नार्मल और गन्दा लिखती हु.तो पहले मै उन लोगो से कहना चाहती हु की में "Incest, Extreme, Hardcore, BDMS, Slave" कैटेगरी का प्रोन लिखती हु और उस मै थोड़ा थ्रील और हॉरर मिक्स करती हु.
ब्राज़ील जर्मनी रसिया और जापान जैसे देशों में यह स्टाइल काफी पॉपुलर है.
आप मेरी कहानियों को नॉनवेज प्रोन स्टोरी कह सकते हो, सो सॉफ्ट वैजिटेरियन प्रोन पसंद करने वाले लोगो से कहना चाहुगी मेरी स्टोरी न पड़े. सामान्यतः इंडिया मै लोग प्रोन को गन्दा या गंदगी बोलते है. में केबल इतना करती हु इस गंदगी को और गन्दा और गाढ़ा करके आप लोगो के सामने पेश करती हु.
सभी लेखकों का मार्गदर्शन,आशीर्वाद और सभी पाठको का समर्थन,प्यार,दुलार,विश्बास और गलतियों की क्षमा चाहुगी.
में जिंदगी की रह गुजर की एक तन्हा मुसाफिर-"सोफिया आलम नकवी" (सोफी)
"लखनऊ "मोहब्बतों का शहर" नवाबों का शहर"
"जो भी आया यहाँ दीवाना हो गया."
किसे ने क्या खूब कहा है.
कुछ तो मुहब्बत इस शहर में रहती है,यूं ही इसे नजाकत का शहर नहीं कहा जाता.
कुछ तो इज्जत बाशिन्दों के दिलों में रहती है,यूं ही इसे तहजीब का शहर नहीं कहा जाता.
है चांद छूने की ख्वाहिश, मगर अपने तरीके से,यूं ही इसे नवाबों का शहर नहीं कहा जाता.
"दीदार-ए-लखनऊ"
"जो भी यहाँ आया दीवाना हो गया"
कोई यहां की नफासत का कायल हो गया तो किसी को यहां के लजीज जायकों ने अपना दीवाना बना लिया.
मैंने लखनऊ को जितना देखा, उसमें पाया कि इस शहर को हमेशा कमतर आंका गया है. ये एक ऐसी जगह है, जहां कल्चरल और हैरिटेज के स्तर पर वैराइटी ही वैराइटी है लेकिन विदेशियों को छोड़िए, देश में ही लोगों को पता नहीं कि असल में लखनऊ क्या है. मैं भी यहां आने के पहले कुछ ऐसी ही धारणाएं लेकर आई थीं। मुझे लगता था कि अरे लखनऊ में क्या घूमना होगा. लेकिन यहां आकर जो देखा उससे दंग रह गई। यहां के हर गली, मुहल्ले, चौराहे का कहीं न कहीं ऐतिहासिक जुड़ाव हैं. हर थोड़ी दूर पर कहीं मेहराबें हैं तो कहीं आलीशान दरवाजें. आप घूम-घूम के थक जाएंगे लेकिन मॉन्यूमेंट्स कम नहीं पड़ेंगे. ऊपर से पुराने हेरिटेज के साथ नए टूरिज्म की राहें भी हैं. पुराने लखनऊ की तंग गलियां है तो जनेश्वर मिश्र पार्क का सुकून भी है.
दुनिया का सबसे लजीज खाना है यहां
जयपुर की तरह लखनऊ की विरासत तो शानदार है ही लेकिन यहां का लज्जतदार खाना चेरी ऑन द केक की तरह है. ऐसा खाना दुनिया में कहीं नहीं मिलता. अमीनाबाद और चौक जैसे इलाके कंजस्टेड जरूर हैं लेकिन यहां की गलियों से आती खुशबू के सामने थोड़ी तकलीफ भी मामूली लगती है. वहीं नए लखनऊ की सड़के भी लाजवाब है. लगता है कि आप किसी मेट्रो सिटी में ही हैं. अगर आपको फ्रेंच, ब्रिटिशर्स और मुगलकाल के इतिहास के बारे में शांत माहौल में जानना है और दुनिया का सबसे लजीज फूड खाना है तो आपको एक बार लखनऊ जाना ही चाहिए.
मैं लखनऊ को वन ऑफ द बेस्ट सिटी इन आर्किटेक्चर का दर्जा देती हूं. 1700 में बने मॉन्यूमेंट्स आज तक सुरक्षित और संरक्षित हैं, यह आसान बात नहीं. गजब का आर्किटेक्चर सेंस है मॉन्यूमेंट्स में. जमीन के नीचे का तहखाना है लेकिन नैचुरल लाइट पूरी तरह मिल रही है. इस दीवार पर कुछ कहिए और दूसरी दीवार पर उसे सुनिए. यह सब दूसरे शहरों की किसी इमारत में नहीं है. मुझे तो लगता है कि आर्किटेक्चर के स्टूडेंट्स को लखनऊ के मॉन्यूमेंट्स की स्टडी जरूरी करनी चाहि.।
मैं लखनऊ को एक शानदार लेकिन भुलाए गए शहर की परिभाषा दूगी. एक ऐसा शहर जिसे टूरिस्ट मैप में लाइमलाइट में होना चाहिए था लेकिन यह है काफी अंधेरे में. शहर के पास सब कुछ है. कई रोचक कालों का इतिहास, ग्रांड मॉन्यूमेंट्स, लजीज दस्तरख्वान और चिकन जैसा हैंडीक्राफ्ट लखनऊ खाने के मामले में अब तक का सबसे उम्दा शहर है. एक ही चीज की हर डिश में अलग स्वाद… बस यहीं चखने को मिला. मसलन मटन की यहां जितनी डिश खाईं, सबमें एक अलग स्वाद एक अलग महक. आई हैव फॉलेन इन लव विद लखनवी कुजीन.
लखनऊ शहर के जितने रंग मैंने पहले कहीं नहीं देखे. घरों की पुताई में तरह-तरह के रंग. लोगों की पोशाकों में भड़कीले रंग. खाने में नारंगी से लेकर हरे-पीले रंग. यहां तक कि पुरुषों के कपड़ों में भी हर रंग. यह इस शहर का मिजाज बताता है। ऐसे खुशमिजाज शहर को मेरा सेल्यूट.
अवधियाना कुजीन की ब्रैंडिंग हो स्वाद नहीं भूलेगा,चौक में 11 तरह के गोलगप्पेचौक में ही राजा की ठंडाई
अमीनाबाद का आम पापड़, मटर चाट और भेलपूरी,चौक में लड्डू सिंह की कचौड़ियां
दस्तरख्वान का गिलावटी कबाब और मटन,अमीनाबाद की कुल्फी,टुण्डे के कबाब.
'में लखनऊ पर फिदा हो गई '
.लखनऊ आकर मेरा दिमाग बदल गया। इमामबाड़ा और अवध के स्वाद ने मुझे दीवाना बना दिया रान मुसल्लम, रोहनी रोटी, बिरयानी और कबाब खाकर मेरे मुंह से यही निकला कि ऐसा खाना पहले कभी नहीं खाया.
कुछ लोग सोच रहे होंगे "में कहा और ये ख्याल कहाँ"
तो चलिए शहरे लखनऊ की "दुर्गति" करते है कहानी शुरू करते है.
दोस्तों काफी लोगो को मुझ से शिकायत है की में काफी एब्नार्मल और गन्दा लिखती हु.तो पहले मै उन लोगो से कहना चाहती हु की में "Incest, Extreme, Hardcore, BDMS, Slave" कैटेगरी का प्रोन लिखती हु और उस मै थोड़ा थ्रील और हॉरर मिक्स करती हु.
ब्राज़ील जर्मनी रसिया और जापान जैसे देशों में यह स्टाइल काफी पॉपुलर है.
आप मेरी कहानियों को नॉनवेज प्रोन स्टोरी कह सकते हो, सो सॉफ्ट वैजिटेरियन प्रोन पसंद करने वाले लोगो से कहना चाहुगी मेरी स्टोरी न पड़े. सामान्यतः इंडिया मै लोग प्रोन को गन्दा या गंदगी बोलते है. में केबल इतना करती हु इस गंदगी को और गन्दा और गाढ़ा करके आप लोगो के सामने पेश करती हु.
सभी लेखकों का मार्गदर्शन,आशीर्वाद और सभी पाठको का समर्थन,प्यार,दुलार,विश्बास और गलतियों की क्षमा चाहुगी.
में जिंदगी की रह गुजर की एक तन्हा मुसाफिर-"सोफिया आलम नकवी" (सोफी)
"लखनऊ "मोहब्बतों का शहर" नवाबों का शहर"
"जो भी आया यहाँ दीवाना हो गया."
किसे ने क्या खूब कहा है.
कुछ तो मुहब्बत इस शहर में रहती है,यूं ही इसे नजाकत का शहर नहीं कहा जाता.
कुछ तो इज्जत बाशिन्दों के दिलों में रहती है,यूं ही इसे तहजीब का शहर नहीं कहा जाता.
है चांद छूने की ख्वाहिश, मगर अपने तरीके से,यूं ही इसे नवाबों का शहर नहीं कहा जाता.
"दीदार-ए-लखनऊ"
"जो भी यहाँ आया दीवाना हो गया"
कोई यहां की नफासत का कायल हो गया तो किसी को यहां के लजीज जायकों ने अपना दीवाना बना लिया.
मैंने लखनऊ को जितना देखा, उसमें पाया कि इस शहर को हमेशा कमतर आंका गया है. ये एक ऐसी जगह है, जहां कल्चरल और हैरिटेज के स्तर पर वैराइटी ही वैराइटी है लेकिन विदेशियों को छोड़िए, देश में ही लोगों को पता नहीं कि असल में लखनऊ क्या है. मैं भी यहां आने के पहले कुछ ऐसी ही धारणाएं लेकर आई थीं। मुझे लगता था कि अरे लखनऊ में क्या घूमना होगा. लेकिन यहां आकर जो देखा उससे दंग रह गई। यहां के हर गली, मुहल्ले, चौराहे का कहीं न कहीं ऐतिहासिक जुड़ाव हैं. हर थोड़ी दूर पर कहीं मेहराबें हैं तो कहीं आलीशान दरवाजें. आप घूम-घूम के थक जाएंगे लेकिन मॉन्यूमेंट्स कम नहीं पड़ेंगे. ऊपर से पुराने हेरिटेज के साथ नए टूरिज्म की राहें भी हैं. पुराने लखनऊ की तंग गलियां है तो जनेश्वर मिश्र पार्क का सुकून भी है.
दुनिया का सबसे लजीज खाना है यहां
जयपुर की तरह लखनऊ की विरासत तो शानदार है ही लेकिन यहां का लज्जतदार खाना चेरी ऑन द केक की तरह है. ऐसा खाना दुनिया में कहीं नहीं मिलता. अमीनाबाद और चौक जैसे इलाके कंजस्टेड जरूर हैं लेकिन यहां की गलियों से आती खुशबू के सामने थोड़ी तकलीफ भी मामूली लगती है. वहीं नए लखनऊ की सड़के भी लाजवाब है. लगता है कि आप किसी मेट्रो सिटी में ही हैं. अगर आपको फ्रेंच, ब्रिटिशर्स और मुगलकाल के इतिहास के बारे में शांत माहौल में जानना है और दुनिया का सबसे लजीज फूड खाना है तो आपको एक बार लखनऊ जाना ही चाहिए.
मैं लखनऊ को वन ऑफ द बेस्ट सिटी इन आर्किटेक्चर का दर्जा देती हूं. 1700 में बने मॉन्यूमेंट्स आज तक सुरक्षित और संरक्षित हैं, यह आसान बात नहीं. गजब का आर्किटेक्चर सेंस है मॉन्यूमेंट्स में. जमीन के नीचे का तहखाना है लेकिन नैचुरल लाइट पूरी तरह मिल रही है. इस दीवार पर कुछ कहिए और दूसरी दीवार पर उसे सुनिए. यह सब दूसरे शहरों की किसी इमारत में नहीं है. मुझे तो लगता है कि आर्किटेक्चर के स्टूडेंट्स को लखनऊ के मॉन्यूमेंट्स की स्टडी जरूरी करनी चाहि.।
मैं लखनऊ को एक शानदार लेकिन भुलाए गए शहर की परिभाषा दूगी. एक ऐसा शहर जिसे टूरिस्ट मैप में लाइमलाइट में होना चाहिए था लेकिन यह है काफी अंधेरे में. शहर के पास सब कुछ है. कई रोचक कालों का इतिहास, ग्रांड मॉन्यूमेंट्स, लजीज दस्तरख्वान और चिकन जैसा हैंडीक्राफ्ट लखनऊ खाने के मामले में अब तक का सबसे उम्दा शहर है. एक ही चीज की हर डिश में अलग स्वाद… बस यहीं चखने को मिला. मसलन मटन की यहां जितनी डिश खाईं, सबमें एक अलग स्वाद एक अलग महक. आई हैव फॉलेन इन लव विद लखनवी कुजीन.
लखनऊ शहर के जितने रंग मैंने पहले कहीं नहीं देखे. घरों की पुताई में तरह-तरह के रंग. लोगों की पोशाकों में भड़कीले रंग. खाने में नारंगी से लेकर हरे-पीले रंग. यहां तक कि पुरुषों के कपड़ों में भी हर रंग. यह इस शहर का मिजाज बताता है। ऐसे खुशमिजाज शहर को मेरा सेल्यूट.
अवधियाना कुजीन की ब्रैंडिंग हो स्वाद नहीं भूलेगा,चौक में 11 तरह के गोलगप्पेचौक में ही राजा की ठंडाई
अमीनाबाद का आम पापड़, मटर चाट और भेलपूरी,चौक में लड्डू सिंह की कचौड़ियां
दस्तरख्वान का गिलावटी कबाब और मटन,अमीनाबाद की कुल्फी,टुण्डे के कबाब.
'में लखनऊ पर फिदा हो गई '
.लखनऊ आकर मेरा दिमाग बदल गया। इमामबाड़ा और अवध के स्वाद ने मुझे दीवाना बना दिया रान मुसल्लम, रोहनी रोटी, बिरयानी और कबाब खाकर मेरे मुंह से यही निकला कि ऐसा खाना पहले कभी नहीं खाया.
कुछ लोग सोच रहे होंगे "में कहा और ये ख्याल कहाँ"
तो चलिए शहरे लखनऊ की "दुर्गति" करते है कहानी शुरू करते है.
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