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Adultery गलत औरत (जेल में चुदाई सीरीज)

Kunal_0

Prison Fetish
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यह कहानी एक काल्पनिक कहानी है जिसका वास्तविक जीवन से कोई लेना-देना नही हैं। यदि किसी पात्र व किसी व्यक्ति के नाम मे समानता हो तो यह महज संयोग हो सकता हैं।
 
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कोर्ट का नोटिस

“ट्रिंग ट्रिंग…” दरवाजे पर किसी ने बेल बजाई।

‘पलक देख तो बेटा कौन हैं दरवाजे पे…’ - शुभांगी ने कहा।

पलक दौड़कर गई और दरवाजा खोला। सामने एक आदमी खड़ा था।

“जी बोलिए।” - पलक ने उससे कहा।

‘शुभांगी गुप्ता का घर यही है?’ - उसने पूछा।

“जी हाँ, यही घर हैं। आप कौन?” - पलक ने पूछा।

‘उनके नाम का नोटिस आया हैं।’’ - उस आदमी ने बताया।

“नोटिस? कैसा नोटिस?” - पलक ने फिर कहा।

‘पता नही मैडम। आप यहाँ साइन कर दीजिए।’

पलक ने कागज पे साइन किये और उससे नोटिस लेकर अंदर आ गई। इतने में शुभांगी ने उसे आवाज लगाई - “पलक…कौन था बेटा?”

‘कोई नोटिस आया हैं मम्मा आपके नाम का..’ - पलक ने जवाब दिया।

“मेरे नाम का? मेरे नाम का क्या नोटिस आ गया भई।”

‘रुको मैं देखती हूँ।’

पलक ने कवर खोला और नोटिस पढ़ने लगी। लेकिन यह क्या? नोटिस पढ़ते-पढ़ते वह बिल्कुल स्तब्ध रह गई और एकदम से घबरा गई।

“मम्मा…मम्मा जल्दी आओ…” - उसने शुभांगी को आवाज लगाई।

‘क्या हुआ बेटा? क्यूँ चिल्ला रही हैं?’ - शुभांगी ने पूछा।

“मम्मा ये नोटिस...”

‘नोटिस। क्या हैं उसमे? तू घबरा क्यूँ रही हैं बेटा?’

“मम्मा, कोर्ट का नोटिस हैं। इसमें लिखा हैं कि आपको किसी सुहासिनी माले के मर्डर केस में उम्रकैद की सजा हुई हैं और 3 दिनों के अंदर आपको दिल्ली जेल में सरेंडर करना हैं।”

‘क्या? जेल में सरेंडर करना हैं। क्या मजाक हैं बेटा।’

“मजाक नही हैं मम्मा। कोर्ट की सील भी लगी हैं इसपे।”

शुभांगी ने एक पल के लिए तो इस बात को मजाक समझा लेकिन अगले ही पल उसे एहसास हुआ कि वह नोटिस वाकई में असली हैं। उसकी हालत ऐसी थी मानो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई हो। चेहरे पर पसीना आने लगा और घबराहट के मारे हाथ-पाँव फूलने लगे। बेटी पलक ने आनन-फानन में अपने पापा मनीष को कॉल लगाया और सारी बात बताई।​

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मनीष जब घर पहुँचा तो देखा कि शुभांगी और पलक दोनो बेहद परेशान थी। शुभांगी को समझ ही नही आ रहा था कि आखिर उसे यह नोटिस क्यो मिला जबकि वह तो किसी सुहासिनी माले को जानती तक नही। वह तो कभी दिल्ली भी नही गई। खैर, जो भी हो लेकिन कोर्ट के नोटिस को अनदेखा तो कर नही सकते थे। मनीष ने तुरंत ही अपने दोस्त विनय को कॉल किया। उसे सारी बात बताई और उससे एक वकील का नंबर लिया। एक सीधे-सादे परिवार के लिए एकाएक इस तरह के हालात का सामना करना कोई आसान काम नही था। शुभांगी, जिसने कभी पुलिस स्टेशन में कदम तक नही रखा था, उसे मर्डर के आरोप में जेल में सरेंडर करने का नोटिस मिल चुका था।

शुभांगी 42 साल की एक सीधी-सादी घरेलू महिला थी। पति मनीष एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे जबकि वह खुद एक हाउसवाइफ थी। वैसे तो वे लोग मूल रूप से मध्यप्रदेश के रहने वाले थे लेकिन पति की नौकरी की वजह से कई सालों से छत्तीसगढ़ के भिलाई शहर में ही बस गए थे। उनके दो बच्चे थे। बेटी पलक और बेटा शिवांश। पलक कक्षा बारहवीं में थी जबकि शिवांश 9th में पढ़ता था। शुभांगी खुद भी काफी पढ़ी-लिखी थी। उसके पास बी.टेक. और एम.टेक. की डिग्रियाँ थी।

“शुभांगी, तुम टेंशन मत लो। कुछ नही होगा।” - मनीष ने उसे दिलासा देते हुए कहा।

‘मनीष, मुझे नही पता ये सब क्या हैं। मैं किसी सुहासिनी माले को नही जानती हूँ।” - शुभांगी ने कहा।

मनीष - “मैं जानता हूँ शुभांगी। तुम बिल्कुल टेंशन मत लो। मैं हूँ ना। वकील साहब आ रहे हैं थोड़ी देर मे। ओके…रिलैक्स…”

शुभांगी की आँखों मे आँसू थे और उसके चेहरे पर टेंशन की लकीरें साफ नजर आ रही थी। उसके बच्चो की परीक्षाएँ चल रही थी और चार दिन बाद उसकी बेटी का बोर्ड का पेपर होने वाला था।

“हे भगवान, ये किस मुसीबत में डाल दिया तूने…” वह मन ही मन सोचने लगी और भगवान से इस मुसीबत से बचाने की प्रार्थना करने लगी।

कुछ देर बाद वकील साहब भी उनके घर पहुँच गए। उनके साथ मनीष का दोस्त विनय भी मौजूद था। वकील ने नोटिस पढ़ा और फिर बातचीत शुरू हुई।

“शुभांगी जी, याद कीजिये, कभी किसी सुहासिनी नाम की औरत से मिली हो आप?” - वकील ने पूछा।

‘नही सर, बिल्कुल नही।’ - शुभांगी ने जवाब दिया।

“कभी आप पर कोई केस दर्ज हुआ हैं?”

तभी मनीष ने उसे बीच मे टोकते हुए कहा - ‘ये क्या पूछ रहे हैं सर आप। हम लोग शरीफ लोग हैं। केस तो क्या, कभी पुलिस स्टेशन तक नही गए।’

वकील - “देखिए, बुरा मत मानिए। ये कोर्ट का नोटिस हैं। अगर हम इसके खिलाफ अपील भी करते हैं तो उसमें काफी समय लगेगा लेकिन तब तक तो आपको जेल में ही रहना पड़ेगा।”

शुभांगी - ‘क्या? जेल? जेल में रहना पड़ेगा? आप पागल हो गए हैं क्या? मेरे बच्चो के exams चल रहे हैं और आप बोल रहे हैं कि मुझे जेल में रहना पड़ेगा…’

शुभांगी की घबराहट बढ़ने लगी और उसे कुछ समझ नही आ रहा था। वकील ने काफी देर तक उनसे बातचीत की और फिर नोटिस की कॉपी लेकर वहाँ से चला गया। उसने जाने से पहले मनीष को सुझाव दिया कि वह लोकल पुलिस स्टेशन में जाकर इस बारे में पता करे और हो सके तो दिल्ली जाकर भी इस बारे में जानकारी ले।

वकील के जाने के बाद मनीष ने बिल्कुल भी देर नही की और तुरंत ही शुभांगी और विनय के साथ पुलिस स्टेशन पहुँच गया। वहाँ जाकर जब उन्होंने इस बारे में पता किया तो उन लोगो को भी इस बारे में कोई जानकारी नही थी लेकिन वहाँ का एस.आई. शुभांगी को देखकर उस पर तंज कसने लगा और उसे जेल में सरेंडर करने की सलाह देने लगा।

“मैडम, आपको देखकर लगता ही नही कि आप मर्डर भी कर सकती हैं।”

शुभांगी - ‘सर, मैंने आपसे कहा ना कि मैंने कोई मर्डर नही किया हैं। आप बेकार की बाते मत कीजिये।’

इंस्पेक्टर - “अरे वाह! एक तो चोरी, ऊपर से सीना जोरी। लेकिन चलिए कोई बात नही। मैं आपकी टेंशन समझ सकता हूँ।”

मनीष - ‘सर, एक तो हम टेंशन में हैं और आप ऐसी बेकार की बाते कर रहे हैं।’

इंस्पेक्टर - “ए मिस्टर, मेरे से ऊँची आवाज में बात नही करने का। आपकी वाइफ ने मर्डर किया हैं या नही, इस बात से कोई फ़र्क नही पड़ता लेकिन कोर्ट ने सजा सुना दी मतलब जेल तो जाना ही पड़ेगा।”

शुभांगी - ‘ऐसा मत कहिए सर। मैं इनोसेंट हूँ। हम तो आपके पास मदद की उम्मीद लेकर आये थे।’

वह इंस्पेक्टर अब थोड़ा शांत हुआ और बोला - “मैडम, ऐसा नही होता हैं। ऐसे-कैसे कोर्ट आपको सजा सुना देगी और आपको पता नही नही होगा?”​

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शुभांगी - ‘हम सच कह रहे सर। हमें इस बारे में बिल्कुल भी नही पता हैं। आज अचानक नोटिस आया कि मुझे उम्रकैद की सजा हुई हैं और 3 दिनों के अंदर जेल में सरेंडर करना हैं। हमें कुछ समझ नही आया इसलिए हम यहाँ आ गए।’

इंस्पेक्टर - “हम्म। देखिए, कोर्ट का आर्डर हैं इसलिए सरेंडर तो आपको करना ही पड़ेगा। मेरी मानिए, आप सरेंडर कीजिये और साथ ही कोर्ट में अपील कीजिये। अगर आप सरेंडर नही करेगी तो आपके खिलाफ अरेस्ट वारंट तो निकलेगा ही लेकिन साथ ही आगे बेल मिलने में भी दिक्कते होगी।”

शुभांगी - ‘सर, मेरे जेल जाने की बात हो रही हैं। कोई हॉटल में जाने की नही जो आप इतनी आसानी से ये सब कह रहे हैं।’

इंस्पेक्टर - “मैं समझ सकता हूँ मैडम लेकिन जो भी होगा, कानून के हिसाब से ही होगा। आप अभी भले ही जेल से बाहर हो लेकिन सजा सुनाए जाते ही आप एक convicted prisoner बन चुकी हो। अब आप आजाद नही हो।”

मनीष ने देखा कि इंस्पेक्टर की बात सुनकर शुभांगी की आँखों मे आँसू आने लगे। उसने इंस्पेक्टर को थैंक यू कहा और शुभांगी को लेकर घर आ गया। सब टेंशन में थे। मनीष को कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करें। उसे पता था कि वह दिल्ली भी जाएगा तो उसे यही जवाब मिलेगा।

शुभांगी को तीन दिनो में जेल में सरेंडर करना था और इस बात को स्वीकार करना उसके लिए आसान नही था। उधर उसकी बेटी पलक भी बहुत टेंशन में थी और इस वजह से वह अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान नही दे पा रही थी। हालाँकि उन्होंने बेटे शिवांश को इस बारे में कुछ भी नही बताया था। शुभांगी अपने बच्चो से बेहद प्यार करती थी और अपनी बेटी को टेंशन में देखकर उसे बहुत बुरा लग रहा था।

“क्या हुआ बेटा, इतनी उदास क्यूँ हो? “ - शुभांगी ने पलक से कहा।

‘मम्मा, आपको सच मे जेल में रहना पड़ेगा क्या?’ - पलक ने पूछा।

“नही बेटा, तुम ऐसा क्यूँ सोच रही हो? पापा हैं ना। वो सब ठीक कर देंगे।”

शुभांगी को भी एहसास हो चुका था कि उसके पास सरेंडर करने के अलावा कोई और रास्ता नही हैं लेकिन वह इस बात को अपने बच्चो के सामने व्यक्त नही करना चाहती थी। उसने बड़ी हिम्मत से खुद को संभाला और ऐसा व्यवहार करने लगी, जैसे सब कुछ सामान्य हो। रात में भी वह जल्दी ही बिस्तर पर लेट गई। जेल जाने की बात सोच-सोचकर उसका मन विचलित था। मनीष भी परेशानी की वजह से ज्यादा बात नही कर रहा था। शुभांगी लेटे-लेटे इस कदर सोच में डूब गई थी कि उसे कब नींद लग गई, पता ही नही चला।

इसी तरह दो दिन गुजर गए। मनीष ने कुछ वकीलों से बात की लेकिन उन्हें कही से कोई राहत नही मिली। सभी ने एक ही बात कही कि शुभांगी को पहले सरेंडर करना होगा और उसके बाद ही कोर्ट में अपील की जा सकेगी। मनीष शुभांगी के लिए बेहद चिंतित था। उसके मन मे तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। जेल में ना जाने कैसे-कैसे लोग होंगे? वहाँ शुभांगी से कैसा बर्ताव करेंगे? क्या उसके साथ मारपीट भी होगी? इस तरह के अनेको सवाल उसकी चिंता बढ़ा रहे थे। आखिरकार शुभांगी पर कोई साधारण आरोप तो था नही। उस पर हत्या का आरोप था। शुभांगी जैसी सीधी-सादी, सभ्य और अच्छे परिवार की महिला के लिए जेल में रहना कोई बच्चो का खेल नही था। उसे तो इस बात का ज़रा भी अंदाजा नही था कि आखिर जेल की जिंदगी कैसी होती हैं और वहाँ क्या होता हैं। उसने तो जेल केवल फिल्मों और सीरियल्स में ही देखी थी।

खैर, सरेंडर करने का आखिरी दिन आ चुका था। शुभांगी के पास घर पर केवल एक ही रात बची थी और अगले दिन उसे जेल चले जाना था। घर मे सभी लोग दुखी थे और शुभांगी के जेल जाने की वजह से बेहद परेशान भी। शुभांगी के मम्मी-पापा और मायके वाले भी उसके घर पर मौजूद थे। भले ही सभी लोग परेशान थे लेकिन शुभांगी को इस बात का यकीन था कि वह जल्द ही जेल से बाहर आ जायेगी। उसने कुछ गलत नही किया था लेकिन ऐसा क्या हुआ कि बिना अपराध किये ही उसे हत्या जैसे संगीन आरोप में उम्रकैद की सजा सुना दी गई? इस बात का जवाब तो केवल कोर्ट में ही मिल सकता था लेकिन तब तक शुभांगी को एक सज़ायाफ्ता कैदी के तौर पर जेल में रहना था जरूरी था।

उसने एक रात पहले ही बैग में अपनी जरूरत की सारी चीजें पैक कर ली। वैसे तो वकील ने उसे पहले ही बता दिया था कि जेल में उसे किसी भी चीज की इजाजत नही होगी और उसे जेल की तरफ से दिए गए सामान के साथ ही एडजस्ट करना होगा लेकिन फिर भी उसने साड़ियाँ व अन्य सामान बैग में रख लिया। रात को पूरा परिवार एक साथ खाना खाने बैठा। सब लोग परेशान थे लेकिन आपस मे ऐसा बर्ताव कर रहे थे जैसे कुछ हुआ ही ना हो। हालाँकि उस वक़्त शुभांगी की मनोदशा को कोई नही समझ सकता था कि उस पर क्या बीत रही थी।

उसकी माँ ने उसे ढाँढस बँधाते हुए कहा - “बेटा, तू बिल्कुल चिंता मत कर। बस एक-दो दिन की बात हैं। फिर तू हमारे साथ घर पर होगी।”

शुभांगी कुछ बोल नही पाई और चुपचाप खाना खाने लगी। उसका खाना खाने का भी बिल्कुल मन नही कर रहा था इसलिए थोड़ा सा खाना खाकर वह अपने कमरे में चली गई। मनीष भी खाना खत्म करके कमरे में आ गया।

“मैं जानता हूँ शुभांगी कि तुम पर क्या बीत रही हैं, लेकिन मुझ पर भरोसा रखो। मैं तुम्हे ज्यादा दिनों तक जेल में नही रहने दूँगा।” - मनीष ने कहा।

‘मुझे अपनी चिंता नही हैं मनीष। कुछ दिन जेल की मुश्किलें तो मैं सह लूँगी लेकिन मुझे पलक और शिवांश की फिक्र हैं। दोनो मेरे बिना कैसे रहेंगे।’ - शुभांगी बोली।

मनीष - “तुम उन दोनों की बिल्कुल चिंता मत करो। यहाँ सब है ना।”

शुभांगी - ‘मनीष, एक बात पूछूँ?’

मनीष - “हाँ पूछो।”

शुभांगी - ‘जेल में मुझे मारेंगे-पीटेंगे तो नही ना।’

मनीष - “कैसी बात कर रही हो। तुम्हे क्यूँ मारेंगे। तुम कोई क्रिमिनल थोड़ी ना हो। बस गलती से तुम्हारा नाम आ गया हैं। 1-2 दिन की बात हैं, फिर सब क्लियर हो जायेगा।”

मनीष की बात सुनकर शुभांगी एकदम से उसके सीने से लिपट गई और बोली - “कभी सोचा नही था कि जिंदगी में कभी जेल का मुँह भी देखना पड़ेगा।”

मनीष - ‘चलो अब छोड़ो जेल की बाते। आज की रात को यादगार बनाते हैं। वैसे भी आज तुम कुछ ज्यादा ही खूबसूरती लग रही हो।’

मनीष के मुँह से अपनी तारीफ सुनकर शुभांगी शर्माने लगी और उसके सीने से लग गई। वह जैसे ही मनीष के सीने लगी, मनीष के अंदर एक अजीब सी कशिश जाग उठी। शुभांगी के स्तन उसके सीने से टकरा रहे थे और उनका तनाव मनीष के लंड में उत्तेजना पैदा करने लगा। मनीष ने अपने होंठ उसके होंठो पर चिपका दिए और उसे चूमने लगा। दोनो काफी देर तक एक-दूसरे को किस करते रहे और फिर मनीष ने साड़ी के ऊपर से ही शुभांगी के स्तनों को दबाना शुरू कर दिया।

शुभांगी के बड़े-बड़े और सुडौल स्तन बहुत ही मुलायम थे और मनीष को उन्हें दबाने में बहुत मजा आ रहा था। कुछ देर बाद उसने शुभांगी के सीने से साड़ी का पल्लू नीचे सरका दिया और अब उसका क्लीवेज साफ नजर आने लगा। उसके स्तन ब्लाउज में से बाहर निकलने के लिए फुदक रहे थे। मनीष ने उसकी साड़ी उतार दी और ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए। फिर उसने शुभांगी को दोनो हाथो से पकड़कर दीवार से सटाया और उसकी गाँड़ पर अपना लंड टच कराने लगा।

शुभांगी भी उसके लंड की छुअन को महसूस कर रही थी। धीरे से मनीष ने अपना एक हाथ उसके बूब्स पर रखा और उन्हें दबाने लगा। शुभांगी ने काले रंग की ब्रा पहनी हुई थी और कमाल की लग रही थी। मनीष अपने एक हाथ से उसके बूब्स दबा रहा था तो वही दूसरे हाथ से उसकी गाँड़ को मसलने लगा। अब शुभांगी भी पूरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी। उसने अपने चेहरे को मनीष की तरफ किया और उसका लोअर नीचे सरका दिया। मनीष का लंड बिल्कुल साँप की तरह तनकर खड़ा हुआ था और उसकी नीले रंग की चड्डी में से बाहर झाँकने की लगातार कोशिश कर रहा था।

शुभांगी एक अनुभवी महिला थी और उसे चुदाई का भरपूर अनुभव था। उसने मनीष की चड्डी नीचे सरकाई और उसके लंड को हाथ मे लेकर सहलाने लगी। मनीष भी पूरे जोश में आ चुका था। उसने शुभांगी को पकड़कर पलंग पर पटक दिया और खुद उसके ऊपर चढ़कर उसके बदन को चूमने लगा। वह ब्रा और पेटिकोट में पलंग पर पड़ी हुई थी। मनीष ने उसकी ब्रा का हुक खोलकर उसकी ब्रा उतार दी और उसे ऊपर से पूरा नंगा कर दिया। वह अपने दोनो हाथो से लगातार उसके स्तनों को दबाए जा रहा था। कुछ देर बाद शुभांगी ने अपना पेटिकोट और पेंटी भी उतार दी और बिस्तर पर पूरी नंगी हो गई। मनीष ने भी अपने सारे कपड़े उतारकर नीचे फेंक दिए और अब वह दोनो बिस्तर पर पूरे नंगे पड़े थे।

मनीष अब बिना देर किया उसकी चूत में अपना लंड डालने के लिए बेताब था। उसने शुभांगी को पैरो से पकड़कर अपनी ओर खींचा और उसकी टाँगों को फैलाकर अपने लंड को उसकी चूत पर छूआने लगा। शुभांगी भी मदहोश होती जा रही थी और उसकी चूत लंड के इंतजार में तड़पने लगी। मनीष ने तुरंत ही अपना लंड उसकी चूत में घुसा दिया और हल्का सा धक्का मारा। धक्का लगते ही शुभांगी को थोड़ा दर्द हुआ और उसके मुँह से चीख निकल गई।

धीरे-धीरे मनीष की स्पीड बढ़ने लगी। वह जोर लगाकर अपने लंड को शुभांगी की चूत में अंदर बाहर करने लगा। शुभांगी भी अब पूरी तरह वासना के सागर में डूब चुकी थी। मनीष के लंड के धक्के उसे चीखने के लिए मजबूर कर रहे थे और उसके मुँह से “आँह आँह” की चीखें निकलने लगी। थोड़ी देर बाद मनीष ने अपनी स्पीड और भी तेज कर दी और पूरी ताकत लगाकर शुभांगी को चोदने लगा।

“ओह आँह…उम्ममम…आँह…और तेज…आँह…मजा आ रहा हैं…”

शुभांगी की चीखें मनीष का जोश बढ़ाती जा रही थी। काफी देर तक वे लोग एक ही पोजीशन में सेक्स करते रहे और फिर उन्होंने अपनी पोजीशन चेंज की। मनीष अब बिस्तर पर लेट गया और शुभांगी उसके लंड के ऊपर इस तरह बैठ गई कि उसका लंड सीधे उसकी चूत में टच कर रहा था। अब जोर लगाने की बारी शुभांगी की थी। उसने अपनी चूत को लंड की दिशा में धकेलना शुरू कर दिया और लंड को चूत में अंदर बाहर करने लगी।

“उम्म…जोर से करो शुभांगी…wow…मजा आ रहा हैं…स्सस्स…”

मनीष पूरे जोश में था और उसे भी सेक्स का भरपूर आनंद आ रहा था। मनीष का मुँह शुभांगी के चेहरे की ओर था और जब वह उसके लंड पर बैठकर ऊपर-नीचे हो रही थी तो उसके गोरे-गोरे चिकने बूब्स लगातार हिलते जा रहे थे। मनीष को शुभांगी की चूत के अलावा उसके बूब्स बहुत पसंद थे और वह मौका मिलते ही उन्हें दबाने को आतुर रहता था। उस वक़्त भी उसने अपने दोनों हाथों से उसके बूब्स को दबाना शुरू कर दिया।

कुछ देर बाद शुभांगी मनीष के लंड से अलग हो गई और अपने आप को डॉग पोजीशन में एडजस्ट किया। मनीष तो एक सेकंड के लिए भी उसे चोदना बंद नही कर रहा था और शुभांगी के डॉग पोजीशन में होते ही उसने पीछे से उसकी गाँड़ मारनी शुरू कर दी। वह बिस्तर पर कुतिया बनी हुई थी और मनीष किसी कुत्ते की तरह लगातार उसे चोदे जा रहा था।

मनीष और शुभांगी दोनो चरम सीमा पर पहुँच चुके थे और उसी के साथ मनीष की शुभांगी को चोदने की स्पीड भी तेज हो गई। शुभांगी के मुँह से “आँह आँह” की तेज चीखे निकलने लगी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे मानो वह स्वर्ग की सैर कर रही हो। वह पूरी तरह मदहोश हो गई। उसकी आँखें चढ़ने लगी और बदन में चरम सुख का अनुभव होने लगा। इधर मनीष भी अपने चरम पर पहुँच चुका था और कुछ ही देर में उसे एहसास होने लगा कि वह झड़ने वाला हैं। उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी लेकिन कुछ देर बाद उसके शरीर ने जवाब दे दिया और वह झड़ गया।

“ओह शुभांगी, मजा आ गया आज तो।” - मनीष ने कहा।

‘हाँ, सच मे। आई लव यू मनीष। i will miss you a lot.’

“अरे फिक्र क्यूँ करती हो जान। बस कुछ दिन की बात हैं। फिर रोज मजे करेंगे।”

मनीष और शुभांगी के लिए वह रात यादगार थी। उस रात उन्होने भरपूर सेक्स किया और सेक्स के बाद दोनो पूर्ण नग्न अवस्था मे ही एक-दूसरे से लिपटकर सो गए।​
 
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सरेंडर करने का आखिरी दिन

सुबह हुई। सुबह 5 बजे अलार्म की आवाज से शुभांगी की नींद खुली। वह बिस्तर से उठी और अपने कपड़े पहनकर खिड़की के पास चली गई। खिड़की के बाहर से आती पक्षियों की मधुर आवाज उसके मन को प्रफुल्लित कर रही थी। कुछ पल के लिए वह भूल चुकी थी कि उसे आज जेल में सरेंडर करना हैं। वह तो बस प्रकृति के मधुर संगीत और उसकी सुंदरता में खो जाना चाहती थी।

“शुभांगी….”

“शुभांगी….”

मनीष ने उसे दो बार आवाज लगाई।

‘हाँ, तुमने कुछ कहा?’ - शुभांगी का एकदम से ध्यान टूटा।

मनीष - “कहाँ खोई हुई हो?”

शुभांगी - ‘कही नही। बस यूँ ही।’

मनीष - “जल्दी से जाकर नहा लो। टाइम हो रहा हैं।”

शुभांगी - ‘हाँ, बस जा रही।’

मनीष के कहते ही शुभांगी नहाने के लिए चली गई। इधर घर के सब लोग भी तैयार होने लगे। वे लोग शुभांगी और मनीष को एयरपोर्ट तक छोड़ने जाने वाले थे। उनकी फ्लाइट सुबह 10 बजे की थी लेकिन उन्हें लगभग दो घंटे पहले ही एयरपोर्ट पहुँचना था। सभी के तैयार होने के बाद उन लोगो ने ब्रेकफास्ट किया और सुबह 7 बजे एयरपोर्ट के लिए निकल पड़े। रास्ते भर सभी लोग बिल्कुल चुपचाप बैठे रहे। उनके चेहरों पर उदासी की झलक साफ दिखाई दे रही थी। लगभग आधे घंटे का सफर तय करके उनकी गाड़ी रायपुर एयरपोर्ट पहुँची। एयरपोर्ट पर पहुँचते ही मनीष ने गाड़ी से अपना सामान निकाला और शुभांगी बच्चो से बाते करने लगी।

“पलक, भाई का ध्यान रखना बेटा और अच्छे से exam देना।” - शुभांगी ने पलक से कहा।

‘मम्मा, आप जल्दी से घर आ जाओ। मुझे अच्छा नही लगेगा आपके बिना।’ - पलक ने कहा।

“बस 1-2 दिन की तो बात हैं बेटा। फिर सब ठीक हो जाएगा। शिवांश, बेटा दीदी को परेशान नही करना।”

इतना कहकर उसने अपने दोनों बच्चो को गले से लगा लिया। उसे रोना तो बहुत आ रहा था लेकिन उसने अपने आप को कंट्रोल किया। शुभांगी अपने माँ-बाप और भाई-भाभी से भी मिली और फिर उन्हें बाय कहकर मनीष के साथ एयरपोर्ट के अंदर चली गई। वह अंदर जाते हुए लगातार अपने परिवार को देखती रही। फ्लाइट में बैठने से पहले उनकी पूरी सुरक्षा जाँच की गई जिसमें काफी समय लग गया। सुबह 10 बजे उनकी फ्लाइट रायपुर से दिल्ली के लिए रवाना हुई और लगभग 11:45 बजे वे लोग दिल्ली पहुँच गए। उन्होंने एयरपोर्ट से ही एक टैक्सी ली और जेल के लिए निकल पड़े। एयरपोर्ट से जेल की दूरी बहुत ज्यादा नही थी और केवल 15 मिनट बाद ही उनकी टैक्सी जेल के मेन गेट के सामने खड़ी थी।


महिला कारागार, दिल्ली

अपनी आँखों के सामने जेल को देखकर शुभांगी की धड़कने एकदम से तेज होने लगी और वह परेशान हो उठी। उसका दिल अंदर जाने के लिए बिल्कुल राजी नही था लेकिन उसने अपनी भावनाओं को काबू में रखा। उन्होंने देखा कि जेल के मेन गेट के ऊपर एक साइन बोर्ड लगा हुआ था जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में केंद्रीय कारागार दिल्ली लिखा हुआ था। गेट पर दो बंदूकधारी मेल गार्ड तैनात थे। मनीष ने उन्हें कोर्ट का आर्डर दिखाया और इस बात से अवगत कराया कि शुभांगी जेल में सरेंडर करने के लिए आई हैं। उन गार्डो ने आर्डर की कॉपी देखकर तुरंत ही अंदर सूचित किया जिसके बाद अंदर से एक महिला सिपाही बाहर आई और गेट पर आकर पूछने लगी - “सरेंडर करने कौन आई हैं?”

‘जी मैं हूँ…’ - शुभांगी ने जवाब दिया।

“चल अंदर आ…” - उसने बड़ी ही बदतमीजी से कहा।

शुभांगी को उसका बात करने का तरीका बड़ा ही बेकार लगा लेकिन मनीष ने उसे चुप रहने का इशारा कर दिया। वे दोनों उस लेडी काँस्टेबल के पीछे-पीछे अंदर चल दिए। मनीष के हाथ मे शुभांगी के सामान का बैग था और ऐसा लग रहा था जैसे वह उसे जेल में नही बल्कि हॉस्टल में छोड़ने आया हो।

मेन गेट से अंदर जाने पर सबसे पहले एक बड़ा सा मैदान था जहाँ कुछ गाड़ियाँ खड़ी थी। इसके बाद एक और बड़ा सा लोहे का गेट लगा हुआ था जिससे अंदर जाने पर एक तरफ पुरुष कारागार तथा दूसरी तरफ महिला कारागार था। शुभांगी को लेने आई काँस्टेबल उसे और मनीष को महिला कारागार वाले गेट से अंदर लेकर गई। उन दोनों के लिए जेल का माहौल बहुत ही घुटन भरा था। हर तरफ ऊँची-ऊँची दीवारे थी, लोहे के बड़े-बड़े गेट थे और कैदियों की निगरानी में तैनात बन्दूकधारी पुलिसकर्मी। महिला कारागार के अंदर आते ही उन्हें कोई भी पुरुष पुलिसकर्मी नजर नही आ रहा था। वहाँ केवल महिला पुलिसकर्मी ही मौजूद थी। अंदर जाने के बाद वह काँस्टेबल उन्हें सीधे जेलर के ऑफिस में लेकर गई। हालाँकि उस वक़्त जेलर अपने पारिवारिक कार्य के लिए कुछ दिनों की छुट्टी पर थी इसलिए डिप्टी जेलर प्रतिभा ने शुभांगी की सरेंडर प्रक्रिया पूरी की।

ऑफिस में जाने के बाद मनीष ने उसे कोर्ट के ऑर्डर की कॉपी दिखाई और उसे शुभांगी के केस के बारे में सारी बाते बताने लगा। वह शुभांगी के लिए बेहद चिंतित था। उसने प्रतिभा से विनती की कि शुभांगी को जेल में ज्यादा परेशानी ना हो।

“मैडम, बस आपसे एक छोटी सी रिक्वेस्ट हैं।” - उसने कहा।

‘हाँ, बोलिये।’

“देखिए, हम लोग सीधे-सादे शरीफ लोग हैं और ये भी (शुभांगी को ओर देखते हुए) कभी ऐसे माहौल में रही नही हैं। बस दो-तीन दिनों की बात हैं मैडम। फिर मैं इन्हें यहाँ से ले जाऊँगा लेकिन तब तक इन्हें यहाँ कोई परेशानी तो नही होगी ना?” - मनीष ने उससे पूछा।

‘No no. Don't worry. बिल्कुल परेशानी नही होगी। आप चिंता मत कीजिये।’ - प्रतिभा ने जवाब दिया।

“Thank you so much madam.” - मनीष ने कहा।

वह मुस्कुराई और उसे बेफिक्र होकर घर जाने को कहा। उसका व्यवहार देखकर मनीष को थोड़ी राहत महसूस हुई और वह कुछ हद तक शुभांगी के लिए थोड़ा निश्चिन्त हुआ। उसने सारी फॉर्मेलिटीस पूरी की और वहाँ से जाने लगा। जाने से पहले उसने शुभांगी को गले लगाया और उसे हिम्मत देते हुए अपना ख्याल रखने को कहा। शुभांगी का दिल वहाँ पर रुकने के लिए बिल्कुल नही मान रह था लेकिन वह कुछ बोल नही पाई। मनीष भी नियमो की वजह से मजबूर था और उसे शुभांगी को अकेले छोड़कर जाना पड़ा।​

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मनीष जा चुका था लेकिन शुभांगी का मन इस बात पर यकीन ही नही कर पा रहा था कि अब वह बिल्कुल अकेली हैं और जेल के अंदर एक कैदी के तौर पर खड़ी हैं। मनीष के जाते ही वह पूरी तरह से जेल के अधीन हो गई। वह कुछ देर तक दरवाजे के बाहर ताकती रही और फिर जेलर से बोली -

“मैडम, क्या मैं थोड़ी देर के लिए बाहर जा सकती हूँ? बस अपने हसबैंड से मिलके वापस आ जाऊँगी।”

‘अपने बाप की शादी में आई हैं क्या साली…’

प्रतिभा का रवैया एकदम से बदल गया। उसकी आवाज में सख्ती थी और उसने एकाएक जिस गंदे तरीके से शुभांगी से बात की, वह बिल्कुल हैरान रह गई। अब तक उसे सब कुछ सामान्य लग रहा था लेकिन अब उसकी जिंदगी पूरी तरह करवट लेने वाली थी।

“मैडम ये कैसी भाषा मे बात कर रही हैं आप?” - शुभांगी ने गुस्से से कहा।

‘साली रंडी, तेरी इतनी हिम्मत कि मेरे से ऊँची आवाज में बात करेगी। ये जेल हैं। तेरे बाप का घर नही है जो इतनी जुबान चल रही है तेरी।’

शुभांगी अब थोड़ी शांत हुई और सभ्यतापूर्वक प्रतिभा से बोली - “देखिए मैडम, आप गलत समझ रही हैं। मैं कोई क्रिमिनल नही हूँ। कोई ना कोई गलती की वजह से मेरा नाम इस केस में आ गया है। मेरे हसबैंड कोर्ट में अपील करने वाले हैं। फिर सब क्लीयर हो जायेगा।’

जेलर - ‘तू क्रिमिनल हैं या नही, इससे मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता। यहाँ आने वाली सब मेरी नजर में क्रिमिनल ही हैं। उस गेट के अंदर जितनी भी औरते है ना, वो सब हमारे लिए इंसान नही हैं। सिर्फ भेड़-बकरियाँ हैं। और अब तू भी उनमे से एक हैं। समझी।’

इसके बाद उसने शुभांगी की कोई भी बात नही सुनी और वहाँ मौजूद काँस्टेबल से उसे चेकिंग रूम में ले जाने को कहा। जेलर के कहते ही काँस्टेबल ने उसका एक हाथ पकड़ा और उसे खींचकर चेकिंग रूम में लेकर गई। प्रतिभा भी उनके साथ चेकिंग रूम में आ गई।

“नाम बोल?” - पहली टेबल पर बैठी महिला सिपाही ने कहा।

‘शुभांगी गुप्ता..’ - शुभांगी ने जवाब दिया।

“पति का नाम?”

‘मनीष गुप्ता…’

“उमर कितनी हैं?”

‘जी, 44 साल…’

“कौन से क्राइम में आई हैं अंदर?”

‘मम्म मर्डर…’ - शुभांगी ने हिचकिचाते हुए जवाब दिया।

“मुँह में दही जमाके रखी हैं क्या? जोर से बोल..” - उस महिला सिपाही ने उस पर चिल्लाते हुए कहा।

शुभांगी को मजबूरन उसके सवालों का जवाब देना पड़ा। उस महिला सिपाही ने उससे इसी तरह के कुछ और सवाल पूछे और उसकी सारी जानकारी रजिस्टर में दर्ज कर उस पर शुभांगी के साईन करवाये। इसके बाद उसने उसे अगली टेबल पर भेज दिया।

अगली टेबल पर जाते ही वहाँ बैठी काँस्टेबल ने उसे सारे गहने उतारकर टेबल पर रखने को कहा जिसके बाद शुभांगी ने अपने सारे गहने उतारकर टेबल पर रख दिये। उसने अपनी चूड़ियाँ, मंगलसूत्र, कान के बूँदे, पायल और अँगूठी उतार दी और टेबल पर रख दी। पीछे से एक काँस्टेबल जेलर के ऑफिस से उसका बैग भी लेकर आ गई और उसे टेबल पर खाली करने लगी। जब उन लोगो ने उसका बैग खाली किया तो उसमें से साड़ियाँ, ब्लाउज, पेटिकोट, अंडरगारमेंट्स और कुछ फोटोज निकली। चूँकि वह एक सज़ायाफ्ता कैदी थी इसलिए उसे घर को कोई भी सामान या कपड़े इस्तेमाल करने की इजाजत नही थी। वह तो अपना मोबाइल भी बैग में रखने वाली थी लेकिन मनीष के कहने पर उसने अपना फोन उसे दे दिया।

“रेखा, लगता हैं इसने जेल को हॉटल समझ लिया हैं..” - प्रतिभा उसका मजाक उड़ाते हुए बोली।

‘हाँ मैडम जी। देखो तो, कितनी महँगी-महँगी साड़ियाँ लेकर आई हैं..’

“अरे माताजी, अब ये सब चीजें तेरे काम की नही हैं। भूल जा इन सब चीजों को।" - प्रतिभा ने उसकी ओर देखते हुए कहा।

शुभांगी कुछ न बोल पाई और शांत खड़ी रही। गहने जमा करने के बाद उसकी ऊँचाई तथा वजन की जाँच की गई और फिर उसे तलाशी के लिए पास खड़ी एक लेडी काँस्टेबल के पास भेज दिया गया।

“चल कपड़े उतार…” - काँस्टेबल ने सख्त लहजे में कहा।

कपड़े उतारने की बात सुनकर शुभांगी एक पल के लिए तो बिल्कुल स्तब्ध रह गई लेकिन उसके पास कोई और रास्ता नही था। उस कमरे का माहौल उसके लिए इतना डरावना था कि उसकी हिम्मत ही नही हुई कि वह अपने कपड़े उतारने के लिए मना कर पाती। वह नियमो को मानने के लिए बाध्य थी और उसे काँस्टेबल के सामने अपने कपड़े उतारने पड़े।

उसने सबसे पहले अपनी साड़ी उतारी। हल्के नीले रंग की साड़ी और नीले ब्लाउज में वह गजब की खूबसूरत लग रही थी। उसने जैसे ही अपनी साड़ी का पल्लू अपने सीने से नीचे सरकाया, उसके बड़े-बड़े स्तन उभरकर सामने आने लगे और उसका क्लीवेज दिखने लगा। औरतो की खूबसूरती होती ही कमाल की हैं। किसी भी पुरुष की नजर औरत के चेहरे के बाद सबसे पहले उसके स्तनों पर ही जाती हैं और अगर महिला के स्तन बड़े-बड़े और सुडौल आकार के हो तो पुरुष अपने आपको कंट्रोल नही कर पाता। उस वक़्त यदि वहाँ कोई पुरुष मौजूद होता तो शुभांगी को देखकर मुठ मारे बिना नही रह पाता।​

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शुभांगी ने अपनी साड़ी उतारकर नीचे जमीन पर रख दी और फिर एक-एक कर अपने सारे कपड़े उतारने लगी। उसने अपना ब्लाउज और पेटिकोट उतार दिया और सिर्फ ब्रा-पेंटी में अपनी जगह पर खड़ी हो गई। उसने अंदर गुलाबी रंग की ब्रा व पेंटी पहनी हुई थी और इतनी कमाल की लग रही थी जैसे कोई अप्सरा जमीन पर उतर आई हो। हालाँकि काँस्टेबल इतने में ही संतुष्ट नही थी। उसने उससे ब्रा व पेंटी भी उतारने को कहा और उसे पूरी तरह नग्न होने के लिए बाध्य किया। काँस्टेबल के कहने पर उसे अपनी ब्रा-पेंटी भी उतारनी पड़ी और अब वह किसी नवजात बच्चे की तरह पूर्ण नग्न अवस्था मे खड़ी हो गई।

आँह! क्या गजब का बदन था उसका। खूबसूरत चेहरा, गोरा शरीर, बड़े-बड़े सुडौल स्तन, उभरे हुए कूल्हे और चिकने-चिकने चूतड़। उसके बदन पर वसा का जमाव अधिक था जिसकी वजह से वह और भी ज्यादा सेक्सी लग रही थी। उसकी कमर बहुत ज्यादा पतली नही थी लेकिन फिर भी किसी पुरुष को मदहोश करने के लिए काफी थी। उसके कपड़े उतारते ही काँस्टेबल ने उसकी जाँच शुरू कर दी।

सबसे पहले उस काँस्टेबल ने उसके बालो पर हाथ फेरा और उन्हें बिखेर दिया। फिर उसके मुँह, कान और नाक को अच्छी तरह से चेक किया और फिर उसके स्तनों को अपने हाथों के सहारे ऊपर उठाकर उन्हें दबाने लगी। जैसे ही उसने शुभांगी स्तनों को दबाया, शुभांगी एकदम से असहज हो उठी और उसके हाथो को पकड़ लिया।

“मैडम, ये क्या कर रही है आप?” - शुभांगी बोली।

‘ऐ, क्या हैं। चुपचाप खड़ी रह।’ - काँस्टेबल उस पर चिढ़ते हुए बोली।

“आप ब्रेस्ट मत दबाइये प्लीज। मुझे अच्छा नही लग रहा..” - शुभांगी ने फिर कहा।

‘ये जेल हैं। तेरा घर नही हैं। यहाँ ऐसे ही चेकिंग होती हैं। अब ज्यादा नाटक मत कर और सीधी खड़ी रह।’ - काँस्टेबल ने जवाब दिया।

शुभांगी के पास आगे बोलने के लिए कुछ नही था और वह चुपचाप खड़ी हो गई। वह काँस्टेबल फिर से उसके स्तनों को दबाने लगी लेकिन इस बार शुभांगी कुछ नही बोल पाई। उसके बाद उसने शुभांगी को आगे झुककर तीन बार खाँसने को कहा। वह आगे की ओर झुकी और तीन बार खाँसने लगी और फिर शुरू हुआ जाँच प्रक्रिया का वह हिस्सा जो शुभांगी के लिए बेहद शर्मिंदगी भरा था।

काँस्टेबल ने उसे अपनी दोनो टाँगे फैलाकर दीवार पर हाथ टिकाने को कहा। शुभांगी ने अपना चेहरा दीवार की तरफ किया और अपनी दोनो टाँगों को फैलाकर दीवार पर हाथ टिकाकर खड़ी हो गई जिसके बाद उस काँस्टेबल ने उसकी गाँड़ और योनि के छेद में ऊँगली डालकर यह सुनिश्चित किया कि उसने अपने पास कुछ छुपाया तो नही हैं। शुभांगी के लिए वह क्षण बहुत ही शर्मनाक व मुश्किल भरा था। उसने अपनी आँखें बंद कर ली। उसकी आँखें नम हो चुकी थी और आँखों से आँसू बहने लगे। उसका दिल कर रहा था कि वहाँ से भाग जाए और फिर कभी वापस लौटकर ना आये। उसके चेहरे पर डर और शर्मिंदगी के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। उस काँस्टेबल ने जब उसकी योनि को छुआ तो उसे ऐसा लगा मानो जैसे एक पल में ही उसकी सारी इज्जत लूट ली गई हो।

खैर, शुभांगी की जाँच प्रक्रिया पूरी हुई। जाँच प्रक्रिया पूरी होने के बाद वहाँ मौजूद एक अन्य लेडी काँस्टेबल अंदर से एक कैमरा लेकर आई और शुभांगी को नग्न अवस्था मे ही दीवार के सामने खड़ा करवा दिया गया।

“ऐ, सीधी खड़ी हो और कैमरे में देख..” - उस काँस्टेबल ने कहा।

शुभांगी को अब कुछ अजीब लगने लगा था। उसे समझ नही आ रहा था कि उसकी नग्न तस्वीरे क्यो खिंची जा रही हैं। उसने थोड़ी हिम्मत की और उस काँस्टेबल से पूछा - “मैडम, मेरी ऐसी फोटोज क्यो ले रहे हो आप?”

‘ऐसी मतलब कैसी?” - काँस्टेबल ने हँसते हुए कहा।

“‘मतलब बिना कपड़ों के..” - शुभांगी ने जवाब दिया।

‘सिर्फ तेरी ही नही ले रहे हैं। सबकी लेते हैं। रूल हैं जेल का।’

शुभांगी को लगा कि शायद हो सकता हैं कैदियों की नग्न तस्वीरे लेने का कोई नियम हो लेकिन उसे यह बात बहुत देर तक खटकती रही। हालाँकि उस वक़्त उसे बहुत ज्यादा सोचने का मौका नही मिला और यह बात उसके दिमाग से बिल्कुल निकल गई। उसकी तस्वीरे खींचने के बाद उसे कुछ सामान व जेल के कपड़े दिए गए जिन्हें पहनने के बाद उसका मगशॉट (जेल के रिकॉर्ड के लिए तस्वीर) लिया गया और फिर उसे अंदर वार्ड की ओर ले जाया गया।

उसे दिए गए कपड़ो में तीन जोड़ी सफेद रंग की साड़ी (जिस पर नीले रंग का बॉर्डर था), सफेद ब्लाउज, सफेद पेटिकोट व सफेद रंग की ही ब्रा व पेंटी शामिल थी। इसके अतिरिक्त उसे कुछ सामान भी दिया गया जिसमें एक थाली, एक मग, एक बाल्टी, एक कंबल, चादर व एक टॉवेल शामिल था। शुभांगी भले ही किसी गलती की वजह से जेल पहुँची थी लेकिन अब वह एक सज़ायाफ्ता कैदी थी। वह अपने घर के कपड़े नही पहन सकती थी, घर का खाना नही खा सकती थी और ना ही अपनी मर्जी से कोई काम कर सकती थी। हालाँकि उसे पूरी उम्मीद थी कि उसे दो से तीन दिन ही जेल में रहना पड़ेगा और कोर्ट में उसके नाम की गलती का पता चलने के बाद वह अपने घर जा सकेगी।

उसे अंदर ले जाया गया। वह बीच मे थी और दो लेडी काँस्टेबल्स उसके इर्द-गिर्द चल रही थी। उसके बदन पर कैदियों वाले कपड़े थे और हाथो में जेल का सामान। डिप्टी जेलर प्रतिभा पहले ही जेलर को फोन पर शुभांगी के बारे में सूचित कर चुकी थी और जेलर ने उसे वार्ड नंबर 4 में डालने के लिए कहा। जेलर के कहे अनुसार दोनो काँस्टेबल्स उसे सीधे वार्ड 4 में लेकर गई।

शुभांगी के लिए पहली मुसीबत यही उसका इंतजार कर रही थी, जब उसका सामना वार्ड 4 की वार्डन शोभना से हुआ। ऊँची कद-काठी, मजबूत शरीर और सख्त मिजाज वाली शोभना पिछले छः सालो से जेल में वार्डन के पद पर पदस्थ थी। महिला जेल परिसर के 8 वार्डो की सभी वार्डनों में शोभना सबसे अधिक क्रूर और अनुशासन पसंद महिला थी। उसे यह बात बिल्कुल पसंद नही थी कि उसके वार्ड की कोई भी कैदी अनुशासनहीनता करे या नियमो का पालन ना करे।

"मैडम, ये नई कैदी हैं। जेलर मैडम ने इसे आपके वार्ड में डालने बोला हैं।" - काँस्टेबल ने शोभना से कहा।

शोभना ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और बोली - "नाम क्या हैं तेरा?"

'शुभांगी...' - शुभांगी ने कहा।

"कौन से केस में आई हैं?" - उसने काँस्टेबल से पूछा।

'मर्डर केस में आई है मैडम। उमरकैद है। खुद ही सरेंडर किया हैं।' - काँस्टेबल ने जवाब दिया।

"अच्छा। साली देखने मे तो बड़ी मासूम और अच्छे घर की लगती हैं। लगता नही कि मर्डर कर सकती है।"

तभी शुभांगी ने उसकी बात को बीच मे काटते हुए कहा - 'नही मैडम, आप जैसा समझ रही हैं, वैसा कुछ भी नही हैं। मैंने कोई मर्डर नही किया हैं।'

उसके बीच मे बोलने पर शोभना गुस्से से आग बबूला हो उठी और उस पर चिल्लाने लगी - "हरामजादी, मैंने बोलने को कहा तुझे? कहा बोलने को? जब तक बोलने को ना कहा जाये, तब तक जुबान से एक भी आवाज नही निकलनी चाहिये।"

शुभांगी बिल्कुल चुप हो गई। शोभना ने दोनो काँस्टेबल्स से शुभांगी को अंदर लेकर चलने को कहा जिसके बाद उन्होंने शुभांगी को पकड़ा और सेल की ओर लेकर बढ़ गई।

जेल की बनावट कुछ इस प्रकार की थी कि जेलर के ऑफिस से अंदर जाने पर वार्डो का एक अलग परिसर था जिसके गेट पर चौबीसों घंटे महिला सिपाही तैनात रहती थी। किसी भी कैदी को बिना अनुमति के इस परिसर के गेट से बाहर जाने की सख्त मनाही थी। गेट से अंदर जाने पर सबसे पहले एक बड़ा सा मैदान था जहाँ कैदियों की गिनती व प्रार्थना आदि की जाती थी। खाली वक़्त में कैदी औरते इसी मैदान में टहलती थी और उन्हें खाना भी यही दिया जाता था। इसी मैदान के बाद कैदियों को रखे जाने के लिए वार्ड बने हुए थे जिसमे प्रत्येक वार्ड में 15 सेल अथवा कोठरियाँ थी। वार्डो के पीछे की ओर कैदियों के नहाने की व्यवस्था थी जबकि काम के लिए कैदियों को बाहर ले जाया जाता था।

शुभांगी को वार्ड 4 की सेल नंबर 10 में ले जाया गया और अंदर बंद कर दिया गया। तीन तरफ से दीवारों से घिरी उस सेल में सामने की तरफ लोहे की सलाखें लगी हुई थी और उसी के बीच मे एक लोहे का दरवाजा था। ऊपर एक पंखा और एक बल्ब लगा हुआ था तथा एक तरफ पीने के पानी के लिए मटका रखा था। दूसरे कोने में ही शौचालय शीट लगी हुई थी जिसके आसपास छोटी सी दीवार थी। अंदर मनोरंजन के कोई साधन मौजूद नही थे और ना ही अन्य कैदियों की मौजूदगी थी। हालाँकि सेल में रखे कपड़े व सामान देखकर शुभांगी समझ गई थी उस सेल में और भी कैदी बंद हैं।

वार्डन शोभना ने उसे सेल में बंद कर दिया और ताला लगाकर वहाँ से बाहर चली आई। शुभांगी अब सेल में बिल्कुल अकेली थी। उसे बेहद अजीब लगने लगा था और घुटन सी महसूस हो रही थी। वह पहले कभी भी इस तरह एक बंद कमरे में नही रही थी। वह सलाखों से बाहर झाँकने की कोशिश करने लगी लेकिन उसे सामने की कुछ सेलो के अलावा कुछ भी दिखाई नही दे रहा था।​

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थक हारकर वह जमीन पर ही एक कोने में बैठ गई। जेल स्टॉफ का अपने प्रति बर्ताव देखकर उसे बहुत ही बुरा महसूस हो रहा था। वह कोई अपराधी नही थी और उसे यकीन था कि उसे जेल में ज्यादा दिन नही रहना पड़ेगा। उसे अपने परिवार की याद सताने लगी। बेटी पलक और बेटे शिवांश का चेहरा उसकी आँखों के सामने तैरने लगा। उसे चिंता होने लगी कि उसके जेल जाने की वजह से उसकी बेटी की परीक्षा खराब ना हो जाये।

सेल के अंदर करने को कुछ काम नही था और शुभांगी को कुछ ही देर में बोरियत महसूस होने लगी। वह सेल के अंदर ही यहाँ-वहाँ टहलने लगी। वहाँ समय काटना बिल्कुल भी आसान नही था और वह भी तब जब सेल में उसके अलावा एक भी कैदी मौजूद नही थी। उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करे। वह बाहर जाना चाहती थी लेकिन सेल में ताला लगा हुआ था। वह सलाखों के पास खड़ी हो गई और बाहर तैनात महिला सिपाही को आवाज देने लगी।

"मैडम, सुनिए। कोई हैं। प्लीज मेरी बात सुनिए।"

उसकी आवाज सुनकर बाहर खड़ी एक लेडी काँस्टेबल अंदर आई और उसे डाँटते हुए बोली - 'ऐ, क्या है रे? साली आये हुए एक घंटा भी नही हुआ और नाटक शुरू कर दी तूने।'

"मैडम, प्लीज मुझे बाहर निकालिये। मेरा दम घुट रहा हैं यहाँ पर। मैं पहले कभी भी ऐसे बंद कमरे में नही रही हूँ।" - उसने काँस्टेबल से विनती की।

'ये जेल हैं। तेरा घर नही हैं जो तेरे को अलग से कमरा देंगे। यहाँ सबको ऐसे ही रहना पड़ता हैं। मर्डर करते समय याद नही आया कि जेल में क्या नसीब होता है।' - काँस्टेबल्स बोली।

"मैडम, मैडम, प्लीज मैडम। मैं आपके पैर पड़ती हूँ। प्लीज थोड़ी देर के लिए ही बाहर जाने दीजिए।"

'अब ज्यादा चूं चपड़ की ना तो ये डंडा दिख रहा हैं। गाँड़ से डालूँगी और मुँह से निकालूँगी। समझी। चुपचाप पड़ी रह उधर।' - उसने शुभांगी पर चिल्लाते हुए कहा और वहाँ से बाहर चली गई।

शुभांगी के पास अब सेल में बंद रहने के अलावा कोई चारा नही था। वह चुपचाप एक कोने में बैठ गई और अपने परिवार को याद करने लगी। वह कभी सोने की कोशिश करती तो कभी चलने लगती। उसे लगने लगा था कि उसे सरेंडर नही करना चाहिए था और उसका सरेंडर करने का फैसला बिल्कुल गलत था। वह मन ही मन सोचने लगी कि जब उसने कोई गलत काम किया ही नही हैं तो वह अपने साथ ऐसा व्यवहार बिल्कुल भी deserve नही करती। जो भी हो लेकिन जेल में उसके अनुसार तो कुछ नही होने वाला था। आखिर वह एक कैदी ही तो थी। अन्य कैदियों की तरह एक बिल्कुल साधारण कैदी।​
 
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कैदी औरतो के काम से लौटने के बाद

शाम के 5 बजने को आये थे। सभी कैदी औरतें काम से वापस लौटने लगी थी। शुभांगी की सेल की कैदी औरते भी सेल में वापस आ गई।

"अरे ये कौन हैं? नई आई हैं क्या?" - उनमे से एक कैदी ने शुभांगी को देखते ही कहा।

'हाँ, आज ही आई हैं।' - पीछे खड़ी एक काँस्टेबल ने जवाब दिया।

"पर इसको यहाँ क्यूँ डाल दिया? एक तो वैसे ही जगह नही होती। ऊपर से नए कैदियों को भी यही डाल देते हैं।"

'हाँ तो तेरे लिए अलग से महल बनाऊँ क्या? दूसरे सेलो में 12-12, 15-15 भरी पड़ी हैं। शुक्र मनाओ तुम लोग सिर्फ छः ही हो।'

वह कैदी महिला आगे कुछ बोल नही पाई और सेल के अंदर चली आई। उन लोगो ने शुभांगी को देखा और उससे सवाल पूछने लगी।

"क्या नाम हैं तुम्हारा?" - उनमे से एक ने पूछा।

'शुभांगी..' - शुभांगी ने जवाब दिया।

"लगती नही हो क्रिमिनल। क्या किया है वैसे?"

'मैंने कुछ नही किया। वो तो बस कुछ गलतफहमी...' शुभांगी आगे कुछ बोल पाती, उससे पहले ही बाहर खड़ी काँस्टेबल उन लोगो पर चिल्लाने लगी और उन्हें खाने के लिए बाहर जाने को कहने लगी। शुभांगी को यह नही पता था कि जेल में शाम 5 बजे ही खाना दे दिया जाता हैं। जब अन्य औरते अपनी थाली लेकर बाहर जाने लगी तो उसने सेल की ही एक कैदी से पूछा -

"सब लोग कहाँ जा रहे है?"

'खाना खाने के लिए। खाने का टाइम हो गया हैं।' - उस कैदी ने बताया।

"अभी से। अभी टाइम क्या हो रहा हैं? यहाँ तो घड़ी तक नही हैं।" - शुभांगी ने फिर कहा।

'ये जेल हैं। यहाँ सब अपने समय पर ही होता हैं। और हाँ, यहाँ टाइम का पता घड़ी से नही, सायरन से चलता हैं। अब जल्दी चलो वरना खाना नही मिला तो रात भर भूखे ही रहना पड़ेगा।'​

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शुभांगी ने अपनी थाली उठाई और और उनके साथ बाहर निकल आई। बाहर आई तो देखा कि वहाँ पहले से ही कैदी औरतो की लंबी लाइने लगी हुई थी। जेल में आने के बाद यह पहली बार था जब उसने जेल की सभी कैदियों को एक साथ देखा। हालाँकि खाने की जद्दोजहद में उसका सारा ध्यान खाना लेने पर था और वह अपनी सेल की पाँचो कैदियों के साथ खाने की लाइन में लग गई। उसने खाना लिया और उन लोगो के साथ वापस सेल में आ गई।

"अभी खाने का मन नही हो तो खाना रख दो इधर।" - उनमे से एक कैदी ने कहा।

'हम्म...' शुभांगी ने खाना एक तरफ रख दिया और उन लोगो के साथ बैठ गई।

अब तक वह अपने साथ हो रहे व्यवहार से बहुत ज्यादा आहत थी लेकिन सेल की पाँचों कैदियों से मिलने के बाद उसे थोड़ा अच्छा महसूस हुआ। उनका व्यवहार उसके प्रति काफी अच्छा था और वे लोग आपस मे बाते करने लगी। कुछ देर बाद जेल में एक और सायरन बजा और सायरन के बजते ही सारी कैदी औरते अपनी-अपनी सेल के अंदर जाने लगी। शुभांगी ने देखा कि सभी औरते सेल के अंदर ही लाइनों में खड़ी हो गई थी। उसकी सेल की पाँचो कैदी भी सलाखों के पास खड़ी हो गई जिन्हें देखकर शुभांगी ने भी ऐसा ही किया।

इतने में ही बाहर से कुछ काँस्टेबल्स वार्ड के अंदर आई और कैदियों की गिनती करने लगी। उनके हाथों में रजिस्टर थे और रजिस्टर में कैदियों के नाम। शुभांगी की सेल के सामने आते ही उन्होंने उनके नाम लेने शुरू किए।

रागिनी जैन (46 वर्ष)

माधुरी बाहे (50 वर्ष)

पूर्णिमा केलकर (44 वर्ष)

संगीता जायसवाल (45 वर्ष)

मधु सुमेधकर (42 वर्ष)

शुभांगी गुप्ता (42 वर्ष)

जैसे-जैसे उनके नाम लिए जा रहे थे, वे लोग अपने हाथ ऊपर करती जा रही थी और जिस सेल की गिनती पूरी हो जाती, काँस्टेबल्स उस सेल में ताला लगाकर आगे बढ़ जाती। शुभांगी की सेल में भी ताला लगा दिया गया। शाम 6 बजे जेल की सभी सेलो में ताले जड़ दिए गए जिसके बाद किसी भी कैदी को सुबह तक सेल से बाहर निकलने की अनुमति नही थी। शुभांगी के लिए यह सब बिल्कुल आसान नही था। दिन में सेल के अंदर बंद रहते हुए उसकी हालत खराब हो गई थी और अब फिर से उसे सेल में बंद कर दिया गया था। वह बार-बार सेल से बाहर झाँकने की कोशिश करने लगी।

"आराम से बैठ जाओ शुभांगी।" - मधु ने कहा।

'अच्छा ये बताओ। किस जुर्म में सजा हुई है तुम्हे?' - पूर्णिमा ने उससे पूछा।

पूर्णिमा के पूछने पर शुभांगी ने उन लोगो को सारी बात बताई जिसे सुनकर वे पाँचो भी थोड़ा आश्चर्यचकित हो गई।

"बस एक-दो दिन की बात हैं। फिर मेरे हसबैंड मुझे यहाँ से ले जायेंगे।" - शुभांगी पूरे यकीन के साथ बोली।

'अच्छी बात हैं। जितना जल्दी हो सके यहाँ से निकल जाओ वरना यहाँ तो जिंदगी नर्क बन जाएगी।' - मधु ने फिर कहा।

"आप लोग कब तक हो यहाँ पर? मतलब कब रिलीज होंगे यहाँ से? - शुभांगी ने पूछा।

'हमारा तो जीना-मरना सब यही हैं। हम पाँचो उम्रकैद वाली है। जिंदगी भर यही सड़ना है हमें।'

उन लोगो ने शुभांगी को अपनी-अपनी कहानियाँ बतानी शुरू की जिन्हें सुनकर शुभांगी कुछ पल के लिए तो बिल्कुल स्तब्ध रह गई। उनकी कहानियों में दुख था और परिवार से अलग होने का कभी ना खत्म वाला दर्द। वे पाँचो अच्छे व सभ्य परिवारों से थी। रागिनी जैन जेल में आने से पहले एक स्त्री रोग विशेषज्ञ थी तो वही माधुरी बाहे एक हाउसवाइफ थी। पूर्णिमा केलकर ब्यूटी पार्लर चलाती थी जबकि संगीता जायसवाल एक प्राइवेट कॉलेज में प्रिंसिपल के पद पर काम करती थी। मधु सुमेधकर एक सरकारी टीचर थी। सयोंग यह था कि शुभांगी और उन पाँचो की उम्र 42 से 50 वर्ष के बीच की ही थी और वे सभी हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा काट रही थी। वे लोग दिखने में शुभांगी की तरह ही गोरी-चिट्टी व खूबसूरत थी तथा भरे-भूरे बदन की मालकिन थी। अच्छे परिवारों से होने की वजह से उनके बोलने में भी सभ्यता थी। हालाँकि जेल में काफी समय बिताने के बाद वे लोग जेल के तौर-तरीके और भाषा सीख चुकी थी लेकिन आपस मे वे सभी काफी अच्छे से रहती थी।

"चलो खाना खा लेते हैं। मुझे तो बहुत भूख लग रही हैं।" - संगीता ने कहा।

रात के 8 बज चुके थे और सभी को भूख भी लग रही थी। उन्होंने अपनी-अपनी थाली उठाई और साथ मे बैठकर खाना खाने लगी। शुभांगी के लिये नीचे बैठकर खाना खाना मुश्किल हो रहा था। उसे अपने घर में डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाने की आदत थी लेकिन जेल में उसे डाइनिंग टेबल तो मिल नही सकता था। मजबूरी में वह नीचे बैठकर ही खाना खाने लगी। उन लोगो ने काफी देर से खाने को सेल में रखा था इसलिए खाना पूरा ठंडा हो चुका था। शुभांगी को खाना देखकर ही उसे खाने की इच्छा नही हुई लेकिन भूख की वजह से उसे खाना खाना पड़ा।

"छी... कैसा खाना है ये। इसमे तो बिल्कुल भी स्वाद नही हैं।" - खाने का पहला निवाला खाते ही शुभांगी बोल पड़ी।

'जेल में तो ऐसा ही खाना मिलता हैं। खाना हैं तो खाओ वरना रात भर भूखे रहो।' - माधुरी ने उससे कहा।

शुभांगी ने देखा कि खाने की क़्वालिटी बहुत ही घटिया थी। चावल पूरी तरह पके नही थे, दाल में दाल कम और पानी ज्यादा था, रोटियाँ भी कच्ची व जली हुई थी और सब्जी ना जाने कौन से पत्तो की थी। उसने उन लोगो से पूछा कि वे लोग ऐसा बेकार खाना कैसे खा सकती हैं तो मधु ने उसकी चिंता दूर करते हुए कहा -

"टेंशन मत लो शुभांगी। ये पुराना राशन हैं। नया राशन आएगा तो अच्छा खाना मिलेगा। अभी जो भी हैं बस खा लो।"

शुभांगी बेचारी क्या करती। मजबूरी में उसे वही खाना खाना पड़ा। उन सभी ने अपना-अपना खाना खत्म किया और थालियों को धोकर एक जगह रख दिया। इसके बाद वे लोग बैठकर बाते करने लगी। शुभांगी को घर की याद सताने लगी थी और वह अपने बच्चो और परिवार को बहुत याद कर रही थी। उसके दिमाग मे कई सारी बाते चल रही थी और वह सोचने लगी कि इस वक़्त घर पर होती तो यह कर रही होती, वह कर रही होती। रात के लगभग 9:30 बज चुके थे लेकिन ज्यादातर औरते अब भी जाग रही थी। उसने देखा कि सामने वाली सेल में तीन कैदी औरतो को सेल की अन्य कैदियों द्वारा मारा-पीटा जा रहा था और वे लोग भी बिना विरोध किये चुपचाप मार खा रही थी। उनमे से दो औरते तो लगभग 40 साल से ज्यादा उम्र की रही होगी लेकिन एक लड़की 19-20 साल के आसपास की लग रही थी।

शुभांगी लगातार उन्हें देखती रही। अन्य कैदी औरतो ने उन तीनो को बेहद परेशान किया। उन लोगो ने उनसे ऊठक-बैठक लगवाई, उन्हें मुर्गा बनाया, घोड़ी बनवाकर एक-दूसरे के ऊपर बैठने के लिए मजबूर किया, एक पैर पर खड़ा करवाया और कई तरह की हरकतें करवाकर उन्हें तंग किया। हद तो तब हो गई जब उन तीनों औरतो को उनके कपड़े उतारने को कहा गया और पूरी तरह नंगा करवाया गया। इसके बाद उन्हें एक-दूसरे की गाँड़ में अपना मुँह घुसाना पड़ा और कुत्तों की तरह चार पैरो पर चलना पड़ा।​

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शुभांगी के लिए यह सब देखना बिल्कुल चौंका देने वाला था। उसे यह सब इतना गंदा लग रहा था कि उसे घिन्न आने लगी थी और वह झट से बोल पड़ी - "छी...ये सब क्या कर रहे हैं ये लोग?"

उसकी बात सुनकर मधु ने उससे कहा - 'यहाँ नए कैदियों के साथ ऐसा ही होता है। तुम बहुत लकी हो कि हमारी सेल में हो वरना किसी और सेल में होती तो अब तक तुम्हारी हालत भी खराब हो चुकी होती।'

शुभांगी - "जेलर मैडम या वार्डन कुछ कहती नही क्या इन्हें?"

मधु - 'वो लोग क्यों कुछ कहेगी। उन्हें तो कैदियों को तकलीफ देने में मजा आता हैं।'

तभी रागिनी ने कहा - "कल से तुम्हारी भी रैगिंग शुरू हो जाएगी शुभांगी। सीनियर लोग जैसा बोले, चुपचाप वैसा ही करना।"

शुभांगी - 'मेरी रैगिंग?

शुभांगी चिंतित हो उठी। वह मन ही मन सोचने लगी कि अगर उसके साथ यह सब हो तो वह चुप नही रहेगी। उसने रागिनी से कहा कि वह कोई अपराधी नही हैं और अपने साथ ऐसा बर्ताव बिल्कुल भी स्वीकार नही करेगी। हालाँकि रागिनी और सेल की बाकी सभी औरतो ने उसे समझाया कि जेल में रैगिंग और मारपीट जैसी चीजें आम बात हैं और यहाँ रहने वाली हर एक कैदी को इन चीजों का सामना करना ही पड़ता हैं। हालाँकि शुभांगी जैसी सभ्य और अच्छे परिवार की महिला के लिए यह सामान्य बात नही थी। उसके लिए यह गलत था लेकिन उसे बाहरी दुनिया और जेल के अंतर को समझना जरूरी था।

वे लोग काफी देर तक बाते करते रहे। अपने घर-परिवार की बातों और हँसी मजाक में कब रात के 10 बज गए, पता ही नही चला। अचानक सेल की लाइट बंद हुई तो शुभांगी को समय का एहसास हुआ। सेल के भीतर सोने के लिए बहुत ज्यादा सुविधा नही थी। कैदियों को जमीन पर ही पतली सी चादर बिछाकर सोना पड़ता था। आमतौर पर कोई भी व्यक्ति अपने घर मे सोने के लिए गद्दे का इस्तेमाल करता है लेकिन जेल में कैदियों को गद्दा मिलने की कल्पना भी नही की जा सकती थी।

शुभांगी और उसकी सेल की पाँचो कैदियों ने अपनी-अपनी चादर जमीन पर बिछाई और सोने की कोशिश करने लगी। सख्त जमीन पर पतली सी चादर बिछाकर सोना शुभांगी के लिए बिल्कुल भी आसान नही था। एक तो जेल की पोशाक में उसे बहुत ही अजीब सा महसूस हो रहा था और दूसरा नीचे जमीन पर सोना उसके लिए और भी ज्यादा मुश्किल था। बच्चो और परिवार की फिक्र में उसकी आँखों से नींद बिल्कुल गायब सी हो चुकी थी और काफी देर तक वह अपने बच्चो के बारे में सोचती रही।

उसकी सेल की पाँचों औरते सो चुकी थी लेकिन उसे अन्य सेलो से कुछ आवाजे आने लगी। रात के 10 बजने के बावजूद वहाँ पर थोड़ा-थोड़ा शोर हो रहा था। जानने की उत्सुकता में वह अपनी जगह से उठी और सलाखों से बाहर झाँकने की कोशिश करने लगी। वह सलाखों को पकड़कर खड़ी ही थी कि सामने वाली सेल की कैदी औरतो ने उसे देख लिया और उस पर गंदी-गंदी फब्तियाँ कसने लगी।

"ऐ, क्या करके आई हैं?" - उनमे से एक औरत ने कहा।

'मर्डर किया हैं या चोरी?'

"चल आजा हमारे पास। खूब मजा दूँगी तेरे को।"

'शर्माती क्यूँ हैं रे। इधर सब शरीफ बनके ही आती हैं पर कोई भी शरीफ होती नही हैं साली।' - वे लोग शुभांगी पर हँसने लगे।

शुभांगी को उनका ऐसा करना बिल्कुल भी अच्छा नही लगा और वह वापस अपनी चादर पर आकर लेट गई। वह और सेल की बाकी औरतें एक साथ एक ही लाइन में सोई हुई थी जिस वजह से शुभांगी थोड़ा असहज महसूस करने लगी। उसे इस तरह एक छोटे से कमरे में पाँच औरतो के साथ सोना बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था लेकिन वह मजबूर थी। सोने से पहले उसने टॉयलेट की और फिर वापस अपनी जगह पर आकर लेट गई। घर की याद में उसकी आँखों से आँसू बहने लगे थे और वह अपना चेहरा दीवार की तरफ कर रोने लगी। आखिरकार इसी उधेड़बुन्ध में कब उसकी आँख लग गई, पता ही नही चला और वह गहरी नींद में सो गई।​
 
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जेल का पहला दिन

"अरे उठ जाओ रे साली रंडियों। ये जेल हैं। तुम्हारे बाप का घर नही साली हराम की जनियो..."

सुबह के 5 बजते ही वार्डन व अन्य महिला सिपाही दनदनाती हुई वार्ड में घुसी और कैदियों पर चिल्लाने लगी। उनका कैदियों को जगाने का तरीका बेहद ही बुरा व असभ्यतापूर्ण था और जो कैदी उनके आने के बाद भी सोती रही, उन्हें उनके लातो व डंडो का स्वाद भी चखना पड़ा। शुभांगी को इतनी सुबह उठने की आदत नही थी और वह वार्डन के आने के बाद भी सोती रही। वार्डन शोभना ने उसकी सेल का ताला खोला और उसे पीठ पर एक जोर की लात मारी।​

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'चल उठ। अभी तक सो रही है कमीनी। रात में अपनी माँ चुदा रही थी क्या साली हरामजादी।' - शोभना ने उस पर चिल्लाते हुए कहा।

उसके चिल्लाते ही शुभांगी एकदम से हड़बड़ा कर उठी और खड़ी हो गई। शोभना उसके करीब आई और अपने डंडे को उसके चेहरे पर घुमाते हुए बोली -

"आज तेरा पहला दिन है इसलिए छोड़ दिया तुझे, लेकिन अगर कल से एक सेकंड भी देर से उठी तो तेरी हड्डियाँ तोड़ कर रख दूँगी। समझी।"

शुभांगी कुछ बोल नही पाई और चुपचाप हाँ में अपना सर हिलाकर शांत खड़ी रही जिसके बाद शोभना वहाँ से बाहर चली गई। उसके जाते ही शुभांगी और सेल की बाकी औरतो ने अपना बिस्तर फोल्ड किया और नित्यक्रिया के लिए बाहर चली आई।

बाहर आते ही शुभांगी ने देखा कि वहाँ शौचालय के लिए औरतो की भारी भीड़ लगी हुई थी। वह अपनी सेल की उन पाँचो कैदियों के साथ-साथ ही मौजूद रही और उन्ही के साथ एक लाइन में खड़ी हो गई। काफी देर इंतजार करने के बाद आखिर उसका नंबर आया। शौचालय की बदबू शौचालय से बाहर तक आ रही थी और शुभांगी को बहुत ही गंदा महसूस हो रहा था। हालाँकि उसके पास कोई और रास्ता नही था इसलिए मजबूरन उसे उसी शौचालय में जाना पड़ा।
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शौच के बाद उसने ब्रश किया और फिर सुबह 6 बजे सभी कैदियों को गिनती व प्रार्थना के लिए मैदान में खड़े करवाया गया। शुभांगी भी अपने वार्ड की लाइन में जाकर खड़ी हो गई। ‘इतनी शक्ति हमे देना दाता’ गीत के साथ प्रार्थना की शुरुआत हुई जिसके बाद सभी कैदियों की गिनती की गई। जेल में कैदियों की पहचान के लिए उनके नाम से ज्यादा उनके कैदी नंबर का महत्व होता हैं। शुभांगी को भी जेल में एक कैदी नंबर दिया गया था और उसका कैदी नंबर 1523 था। गिनती होने के बाद सुबह 6:30 बजे सभी कैदियों को चाय दी गई और फिर 7 बजे से सारे कैदियों को रोजाना के काम पर लगा दिया गया। इन कामो में झाड़ू लगाना, खाना बनाना, पानी भरना आदि काम शामिल थे। वार्डन ने शुभांगी को बाहर मैदान में झाड़ू लगाने का काम दिया। लगभग दो घंटे के बाद सुबह 9 बजे जेल में एक और सायरन बजा जो नहाने के समय का इशारा था। सायरन के बजते ही सभी कैदी औरते अपनी-अपनी सेल में जाने लगी और अपना टॉवेल तथा ब्रा व पेंटी लेकर बाहर आ गई। शुभांगी भी अपनी सेल की पाँचो कैदियों के साथ अपनी सेल में गई और अपने कपड़े व बाल्टी लेकर नहाने के लिए चली आई।

जेल में कैदियों के नहाने के लिए एक बड़ा सा बाथ एरिया था जहाँ सैकड़ो औरते एक साथ नहा सकती थी। यह एरिया पूरी तरह से ओपन था और कैदी औरतो को खुले में ही नहाना पड़ता था। नहाने के लिए बीच मे एक बड़ा सा पानी का टाका (पानी जमा करने के लिए सीमेंट से बनाया गया टैंक) बना हुआ था जहाँ से कैदियों को खुद पानी निकालकर नहाना पड़ता था। इसके अतिरिक्त जेल में एक और बड़ा बाथ एरिया था जिसका इस्तेमाल आमतौर पर बरसात के मौसम में किया जाता था। यह एरिया ओपन नही था और किसी बड़े से बाथरूम की तरह था। इसमे ऊपर की ओर शॉवर लगे हुए थे और इसमें भी बहुत सारी औरते एक साथ नहा सकती थी।​

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शुभांगी के लिए वहाँ का माहौल बहुत ही अजीब व अलग था। कैदी औरते नहाने के लिए एक ही जगह पर इकट्ठा हो रही थी। उनमें से किसी ने कपड़े पहन रखे थे तो कोई पूरी तरह नग्न थी। उन सैकड़ों औरतो के बीच मे नहाने में वह बहुत ही असहज महसूस कर रही थी लेकिन वह मजबूर थी। उसने अपने कपड़े उतारे और नहाने के लिए बैठ गई। शुभांगी ने देखा कि कई कैदी औरते तो पूरी तरह से नग्न अवस्था मे ही नहा रही थी यानि उन्होंने अपनी पैंटी तक उतार दी थी। नहाते वक्त कई औरते आपस मे ऊपरी सेक्स भी कर रही थी तो कुछ सीनियर कैदी अपनी जूनियरों से अपने शरीर का मैल साफ करवा रही थी।

शुभांगी को यह सब बहुत ही बेकार लग रहा था और उसे बहुत शर्म आ रही थी। उसने अपने पेटीकोट को अपने सीने तक चढ़ा लिया और अपने स्तनों को ढक लिया। उसकी सेल की पाँचो औरते भी उसी के पास नहा रही थी। उन लोगो ने सिर्फ पैंटी पहन रखी थी जबकि मधु और रागिनी तो पूरी तरह नग्न थी। शुभांगी अपने ऊपर पानी डालने ही वाली थी कि तभी पास खड़ी लेडी काँस्टेबल ने उस पर चिल्लाते हुए कहा -

“ऐ, पेटीकोट हटा। साली अपने सीने को तो ऐसा छुपा रही है जैसे किसी और के पास तो है ही नही। हटा चुपचाप।”

शुभांगी मन मारकर रह गई और कुछ बोल नही पाई। मधु ने उसे समझाते हुए कहा - ‘जल्दी से पेटीकोट नीचे कर लो शुभांगी। ये बहुत कमीनी औरत हैं। बहुत मारेगी।’

शुभांगी ने डर के मारे अपना पेटीकोट उतार दिया और नग्न हो गई। फिर मधु से धीरे से बोली - “मुझे ऐसे सबके सामने नहाना अच्छा नही लगता…”

‘अरे यहाँ पर सब औरते ही तो हैं। शर्माने की क्या बात हैं। धीरे-धीरे आदत हो जाएगी।’ - मधु ने कहा।

शुभांगी क्या ही कहती। मन ही मन सोचने लगी कि सही बात हैं। आखिर यहाँ सब औरते ही तो हैं। औरतो से क्या शर्म करना। उसने नहाना शुरू किया। पानी बेहद ठंडा था। उसने जैसे ही अपने ऊपर पानी डाला, वह ठंड के मारे काँप उठी और उसके शरीर में सिहरन उठने लगी।

“इतना ठंडा पानी…” - वह तुरंत ही बोल पड़ी।

‘यहाँ ठंडा पानी ही मिलता हैं।’ - रागिनी ने कहा।

“हाँ पर ये तो कुछ ज्यादा ही ठंडा हैं।”

‘ये जेल हैं शुभांगी मैडम। यहाँ बाहर की तरह कुछ नही मिलता।’

शुभांगी चुप हो गई और नहाना शुरू किया। उसका गोरा बदन पानी से पूरी तरह भीग चुका था। उसके दोनों स्तन ब्रा के बगैर बेहद सुडौल और बड़े-बड़े नजर आ रहे थे। वह एक हाथ से अपने ऊपर पानी डालती जाती और दूसरे हाथ से बदन पर साबुन लगाती जाती। उसके चिकने और मुलायम बदन पर साबुन किसी मक्खन की तरह फिसल रही थी। उसने अपने गले से लेकर पैर तक पूरे शरीर पर साबुन मल दी और अपने हाथों से रगड़ने लगी। वैसे तो उसे अपनी वजाइना और कूल्हों पर भी साबुन लगानी थी लेकिन सैकड़ो औरतो के बीच मे उसे ऐसा करने में बहुत ही संकोच हो रहा था। उसने देखा कि सारी औरते और लड़कियाँ बिना किसी झिझक के अपनी वजाइना और कूल्हों पर साबुन लगा रही थी और जिन कैदियों ने पैंटी पहन रखी थी, वे लोग भी पैंटी में हाथ डालकर साबुन मल रही थी। हालाँकि उसने ऐसा नही किया।

उसके पास चेहरा धोने के लिए फेशवॉश नही था और ना ही बालों के लिए शैम्पू था। मजबूरन उसे अपने चेहरे पर भी साबुन लगानी पड़ी। नहाने के बाद उसने अपने बदन को टॉवेल से पोछा और उसे कमर पर लपेटकर अपनी पैंटी उतारी। उसने अपनी उतारी हुई ब्रा-पैंटी धोई और और जेल की तरफ से दी गई सफेद ब्रा और पैंटी पहनी। फिर अपनी सेल की पाँचो कैदियों के साथ वापस अपनी सेल में आ गई। उन लोगो ने अपनी-अपनी साड़ियाँ पहनी और कंघी करने लगी। जेल में कैदियों को मेकअप, क्रीम, नेल पेंट या इस तरह की किसी भी चीज की अनुमति नही थी। प्रत्येक कैदी को साधारण फेश पाउडर, कंघी और नारियल का तेल दिया गया था। हालाँकि शुभांगी ने ना तो चेहरे पर पाउडर लगाया और ना ही बालों पर तेल लगाया। वह अपने चेहरे और बालों को खराब नही करना चाहती थी।

नहाने के बाद कई औरते अपने कपड़े धोने में लग गई लेकिन शुभांगी और उसकी सेल की पाँचो कैदी अपनी सेल में ही बैठी रही। सुबह 11 बजे खाने का सायरन बजने के बाद वे लोग सेल से बाहर निकले और खाना खाया। उसके बाद दोपहर 12 बजे सभी सज़ायाफ्ता कैदियों को काम पर लगा दिया गया जबकि सारे अंडरट्रायल कैदियों को शाम तक वार्ड परिसर के भीतर ही रहने की इजाजत थी। चूँकि शुभांगी को सजा हो चुकी थी इसलिए उसे भी काम करना अनिवार्य था।

जेल में कैदी औरतो से कई तरह के काम करवाये जाते थे जिसमे अगरबत्ती बनाने जैसे हल्के कामो से लेकर पत्थर तोड़ने और लकड़ी छिलने जैसे भारी काम भी शामिल थे। इनके अलावा गार्डनिंग, जेल की साफ-सफाई, खेतो में फसल लगाना, जुताई करना और फसल काटना, मिट्टी के बर्तन बनाना, जेलर व अन्य जेल अधिकारियों के घर की साफ-सफाई और देखरेख आदि काम भी कैदियों से ही करवाये जाते थे। जेल में यदि किसी तरह का निर्माण कार्य किया जाना हो तो उसमें भी मजदूरों का सारा काम कैदी औरतो से ही करवाया जाता था।

शुभांगी को पहले दिन लकड़ी की वर्कशॉप में लकड़ी छिलने का काम दिया गया। इस काम मे एक टेबल के ऊपर लकड़ी को रखकर उसे छिलना होता था। इसमे कैदी को बैठने की इजाजत नही होती थी और उसे खड़े-खड़े ही पूरा काम समाप्त करना पड़ता था। यह काम सुनने में जितना आसान लग रहा हैं, उतना था नही। खासकर शुभांगी जैसी महिला के लिए, जिसने ऐसे काम पहले कभी नही किये थे।​

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खैर, शुभांगी अब एक सज़ायाफ्ता कैदी के रूप में जेल में थी। उसे कोई रियायत मिलने का सवाल ही नही था। उसे भी अन्य औरतो की तरह दिया गया काम करना करना ही पड़ा। हालाँकि उसके लिए साढ़े चार घंटे तक लगातार काम करना कोई आसान बात नही थी। उसके हाथ दर्द करने लगे थे और पैरों में खड़े होने की ताकत नही बची थी लेकिन उनकी निगरानी में तैनात महिला सिपाही उन लोगो पर लगातार चिल्लाये जा रही थी और जो औरते काम मे ढिलाई बरत रही थी, उन्हें हल्की-फुल्की मार भी खानी पड़ी।

वैसे तो काम करने का समय शाम के 5 बजे तक का था लेकिन साढ़े चार बजे ही वहाँ मौजूद महिला सिपाहियों ने कैदियों को काम से लौटने के आदेश दे दिए। हालाँकि जेल में रोज इसी समय तक कैदियों से काम करवाया जाता था ताकि 5 बजे से पहले वे लोग खाने के लिए आ सके। काम से लौटकर शुभांगी वापस अपनी सेल में आ गई और हाथ-मुँह धोकर फ्रेश हुई। वह बेहद थक चुकी थी और उसे जोर की भूख लग रही थी। 5 बजे खाने का सायरन बजते ही उसने अपनी थाली उठाई और खाना लेने बाहर चली आई लेकिन बाहर भी खाने के लिए औरतो की लंबी-लंबी लाइने लगी हुई थी। उसे अन्य कैदियों की तरह ही लाइन में लगना पड़ा। खाना लेने के बाद वह वापस अपनी सेल में आई और खाना खाने लगी। उसे इतनी ज्यादा भूख लगी थी कि आज जेल का बेस्वाद खाना भी उसे स्वादिष्ट लग रहा था। खाने के बाद रोज की तरह कुछ महिला पुलिसकर्मी वार्ड में आई और कैदियों की गिनती करने लगी जिसके बाद शाम 6 बजे सभी सेलो में ताले लगा दिए गए।

शुभांगी को जेल में आये हुए दो दिन बीत चुके थे लेकिन मनीष अब तक उससे मिलने नही आया था। उसे समझ नही आ रहा था कि मनीष से किस तरह संपर्क करे। उसके पास ना तो फोन था और ना ही उसे घर पर बात करने की अनुमति थी। अपने पति व बच्चो से बात करने और उनसे मिलने की तड़प उसे बेचैन कर रही थी। दो दिन तो उसने इसी उम्मीद में जैसे-तैसे निकाल लिए थे कि मनीष उसे जेल से लेकर जाएगा लेकिन जब दो दिनों तक उससे कोई मिलने नही आया तो वह चिंतित होने लगी। इधर जेलर भी छुट्टी से वापस लौट आई थी। शुभांगी के लिए पहले दो दिन तो बहुत ज्यादा मुश्किलों भरे नही रहे थे लेकिन जेलर के आने से उसके लिए मुसीबते बढ़ने वाली थी।​
 
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