Update 2
शुभांगी 42 साल की एक सीधी-सादी घरेलू महिला थी। पति मनीष एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे जबकि वह खुद एक हाउसवाइफ थी। वैसे तो वे लोग मूल रूप से मध्यप्रदेश के रहने वाले थे लेकिन पति की नौकरी की वजह से कई सालों से छत्तीसगढ़ के भिलाई शहर में ही बस गए थे। उनके दो बच्चे थे। बेटी पलक और बेटा शिवांश। पलक कक्षा बारहवीं में थी जबकि शिवांश 9th में पढ़ता था। शुभांगी खुद भी काफी पढ़ी-लिखी थी। उसके पास बी.टेक. और एम.टेक. की डिग्रियाँ थी।
“शुभांगी, तुम टेंशन मत लो। कुछ नही होगा।” - मनीष ने उसे दिलासा देते हुए कहा।
‘मनीष, मुझे नही पता ये सब क्या हैं। मैं किसी सुहासिनी माले को नही जानती हूँ।” - शुभांगी ने कहा।
मनीष - “मैं जानता हूँ शुभांगी। तुम बिल्कुल टेंशन मत लो। मैं हूँ ना। वकील साहब आ रहे हैं थोड़ी देर मे। ओके…रिलैक्स…”
शुभांगी की आँखों मे आँसू थे और उसके चेहरे पर टेंशन की लकीरें साफ नजर आ रही थी। उसके बच्चो की परीक्षाएँ चल रही थी और चार दिन बाद उसकी बेटी का बोर्ड का पेपर होने वाला था।
“हे भगवान, ये किस मुसीबत में डाल दिया तूने…” वह मन ही मन सोचने लगी और भगवान से इस मुसीबत से बचाने की प्रार्थना करने लगी।
कुछ देर बाद वकील साहब भी उनके घर पहुँच गए। उनके साथ मनीष का दोस्त विनय भी मौजूद था। वकील ने नोटिस पढ़ा और फिर बातचीत शुरू हुई।
“शुभांगी जी, याद कीजिये, कभी किसी सुहासिनी नाम की औरत से मिली हो आप?” - वकील ने पूछा।
‘नही सर, बिल्कुल नही।’ - शुभांगी ने जवाब दिया।
“कभी आप पर कोई केस दर्ज हुआ हैं?”
तभी मनीष ने उसे बीच मे टोकते हुए कहा - ‘ये क्या पूछ रहे हैं सर आप। हम लोग शरीफ लोग हैं। केस तो क्या, कभी पुलिस स्टेशन तक नही गए।’
वकील - “देखिए, बुरा मत मानिए। ये कोर्ट का नोटिस हैं। अगर हम इसके खिलाफ अपील भी करते हैं तो उसमें काफी समय लगेगा लेकिन तब तक तो आपको जेल में ही रहना पड़ेगा।”
शुभांगी - ‘क्या? जेल? जेल में रहना पड़ेगा? आप पागल हो गए हैं क्या? मेरे बच्चो के exams चल रहे हैं और आप बोल रहे हैं कि मुझे जेल में रहना पड़ेगा…’
शुभांगी की घबराहट बढ़ने लगी और उसे कुछ समझ नही आ रहा था। वकील ने काफी देर तक उनसे बातचीत की और फिर नोटिस की कॉपी लेकर वहाँ से चला गया। उसने जाने से पहले मनीष को सुझाव दिया कि वह लोकल पुलिस स्टेशन में जाकर इस बारे में पता करे और हो सके तो दिल्ली जाकर भी इस बारे में जानकारी ले।
वकील के जाने के बाद मनीष ने बिल्कुल भी देर नही की और तुरंत ही शुभांगी और विनय के साथ पुलिस स्टेशन पहुँच गया। वहाँ जाकर जब उन्होंने इस बारे में पता किया तो उन लोगो को भी इस बारे में कोई जानकारी नही थी लेकिन वहाँ का एस.आई. शुभांगी को देखकर उस पर तंज कसने लगा और उसे जेल में सरेंडर करने की सलाह देने लगा।
“मैडम, आपको देखकर लगता ही नही कि आप मर्डर भी कर सकती हैं।”
शुभांगी - ‘सर, मैंने आपसे कहा ना कि मैंने कोई मर्डर नही किया हैं। आप बेकार की बाते मत कीजिये।’
इंस्पेक्टर - “अरे वाह! एक तो चोरी, ऊपर से सीना जोरी। लेकिन चलिए कोई बात नही। मैं आपकी टेंशन समझ सकता हूँ।”
मनीष - ‘सर, एक तो हम टेंशन में हैं और आप ऐसी बेकार की बाते कर रहे हैं।’
इंस्पेक्टर - “ए मिस्टर, मेरे से ऊँची आवाज में बात नही करने का। आपकी वाइफ ने मर्डर किया हैं या नही, इस बात से कोई फ़र्क नही पड़ता लेकिन कोर्ट ने सजा सुना दी मतलब जेल तो जाना ही पड़ेगा।”
शुभांगी - ‘ऐसा मत कहिए सर। मैं इनोसेंट हूँ। हम तो आपके पास मदद की उम्मीद लेकर आये थे।’
वह इंस्पेक्टर अब थोड़ा शांत हुआ और बोला - “मैडम, ऐसा नही होता हैं। ऐसे-कैसे कोर्ट आपको सजा सुना देगी और आपको पता नही नही होगा?”
शुभांगी - ‘हम सच कह रहे सर। हमें इस बारे में बिल्कुल भी नही पता हैं। आज अचानक नोटिस आया कि मुझे उम्रकैद की सजा हुई हैं और 3 दिनों के अंदर जेल में सरेंडर करना हैं। हमें कुछ समझ नही आया इसलिए हम यहाँ आ गए।’
इंस्पेक्टर - “हम्म। देखिए, कोर्ट का आर्डर हैं इसलिए सरेंडर तो आपको करना ही पड़ेगा। मेरी मानिए, आप सरेंडर कीजिये और साथ ही कोर्ट में अपील कीजिये। अगर आप सरेंडर नही करेगी तो आपके खिलाफ अरेस्ट वारंट तो निकलेगा ही लेकिन साथ ही आगे बेल मिलने में भी दिक्कते होगी।”
शुभांगी - ‘सर, मेरे जेल जाने की बात हो रही हैं। कोई हॉटल में जाने की नही जो आप इतनी आसानी से ये सब कह रहे हैं।’
इंस्पेक्टर - “मैं समझ सकता हूँ मैडम लेकिन जो भी होगा, कानून के हिसाब से ही होगा। आप अभी भले ही जेल से बाहर हो लेकिन सजा सुनाए जाते ही आप एक convicted prisoner बन चुकी हो। अब आप आजाद नही हो।”
मनीष ने देखा कि इंस्पेक्टर की बात सुनकर शुभांगी की आँखों मे आँसू आने लगे। उसने इंस्पेक्टर को थैंक यू कहा और शुभांगी को लेकर घर आ गया। सब टेंशन में थे। मनीष को कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करें। उसे पता था कि वह दिल्ली भी जाएगा तो उसे यही जवाब मिलेगा।
शुभांगी को तीन दिनो में जेल में सरेंडर करना था और इस बात को स्वीकार करना उसके लिए आसान नही था। उधर उसकी बेटी पलक भी बहुत टेंशन में थी और इस वजह से वह अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान नही दे पा रही थी। हालाँकि उन्होंने बेटे शिवांश को इस बारे में कुछ भी नही बताया था। शुभांगी अपने बच्चो से बेहद प्यार करती थी और अपनी बेटी को टेंशन में देखकर उसे बहुत बुरा लग रहा था।
“क्या हुआ बेटा, इतनी उदास क्यूँ हो? “ - शुभांगी ने पलक से कहा।
‘मम्मा, आपको सच मे जेल में रहना पड़ेगा क्या?’ - पलक ने पूछा।
“नही बेटा, तुम ऐसा क्यूँ सोच रही हो? पापा हैं ना। वो सब ठीक कर देंगे।”
शुभांगी को भी एहसास हो चुका था कि उसके पास सरेंडर करने के अलावा कोई और रास्ता नही हैं लेकिन वह इस बात को अपने बच्चो के सामने व्यक्त नही करना चाहती थी। उसने बड़ी हिम्मत से खुद को संभाला और ऐसा व्यवहार करने लगी, जैसे सब कुछ सामान्य हो। रात में भी वह जल्दी ही बिस्तर पर लेट गई। जेल जाने की बात सोच-सोचकर उसका मन विचलित था। मनीष भी परेशानी की वजह से ज्यादा बात नही कर रहा था। शुभांगी लेटे-लेटे इस कदर सोच में डूब गई थी कि उसे कब नींद लग गई, पता ही नही चला।
इसी तरह दो दिन गुजर गए। मनीष ने कुछ वकीलों से बात की लेकिन उन्हें कही से कोई राहत नही मिली। सभी ने एक ही बात कही कि शुभांगी को पहले सरेंडर करना होगा और उसके बाद ही कोर्ट में अपील की जा सकेगी। मनीष शुभांगी के लिए बेहद चिंतित था। उसके मन मे तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। जेल में ना जाने कैसे-कैसे लोग होंगे? वहाँ शुभांगी से कैसा बर्ताव करेंगे? क्या उसके साथ मारपीट भी होगी? इस तरह के अनेको सवाल उसकी चिंता बढ़ा रहे थे। आखिरकार शुभांगी पर कोई साधारण आरोप तो था नही। उस पर हत्या का आरोप था। शुभांगी जैसी सीधी-सादी, सभ्य और अच्छे परिवार की महिला के लिए जेल में रहना कोई बच्चो का खेल नही था। उसे तो इस बात का ज़रा भी अंदाजा नही था कि आखिर जेल की जिंदगी कैसी होती हैं और वहाँ क्या होता हैं। उसने तो जेल केवल फिल्मों और सीरियल्स में ही देखी थी।
खैर, सरेंडर करने का आखिरी दिन आ चुका था। शुभांगी के पास घर पर केवल एक ही रात बची थी और अगले दिन उसे जेल चले जाना था। घर मे सभी लोग दुखी थे और शुभांगी के जेल जाने की वजह से बेहद परेशान भी। शुभांगी के मम्मी-पापा और मायके वाले भी उसके घर पर मौजूद थे। भले ही सभी लोग परेशान थे लेकिन शुभांगी को इस बात का यकीन था कि वह जल्द ही जेल से बाहर आ जायेगी। उसने कुछ गलत नही किया था लेकिन ऐसा क्या हुआ कि बिना अपराध किये ही उसे हत्या जैसे संगीन आरोप में उम्रकैद की सजा सुना दी गई? इस बात का जवाब तो केवल कोर्ट में ही मिल सकता था लेकिन तब तक शुभांगी को एक सज़ायाफ्ता कैदी के तौर पर जेल में रहना था जरूरी था।