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Adultery गलत औरत (जेल में चुदाई सीरीज)

Prison_Fetish

Kabir Singh
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यह एक काल्पनिक रचना है जिसका वास्तविक जीवन से कोई लेना-देना नही हैं। नाम, पात्र, व्यवसाय, स्थान और घटनाएं या तो लेखक की कल्पना की उपज हैं या काल्पनिक तरीके से इस्तेमाल की गई हैं। वास्तविक व्यक्तियों, जीवित या मृत या वास्तविक घटनाओं से कोई भी समानता पूरी तरह से संयोग है। इसमें इस्तेमाल की गई सभी फोटोज इंटरनेट से ली गई हैं।
 
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Kabir Singh
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Update 1

(कोर्ट का नोटिस)


“ट्रिंग ट्रिंग…” दरवाजे पर किसी ने बेल बजाई।

‘श्रुति देख तो कौन हैं दरवाजे पे…’ - शुभांगी ने कहा।

"श्रुति दौड़कर गई और दरवाजा खोला। सामने एक आदमी खड़ा था।

“जी बोलिए।” - श्रुति ने उससे कहा।

‘शुभांगी गुप्ता का घर यही है?’

“जी हाँ, यही घर हैं। आप कौन?”

‘उनके नाम का नोटिस आया हैं।’’ - उस आदमी ने बताया।

“नोटिस? कैसा नोटिस?” - श्रुति ने फिर कहा।

‘पता नही मैडम। आप यहाँ साइन कर दीजिए।’

श्रुति ने कागज पे साइन किये और उससे नोटिस लेकर अंदर आ गई। इतने में शुभांगी ने उसे आवाज लगाई - “कौन था श्रुति?”

‘कोई नोटिस आया हैं दी आपके नाम का..’ - श्रुति ने जवाब दिया।

“मेरे नाम का? मेरे नाम का क्या नोटिस आ गया भई।”

‘रुको मैं देखती हूँ।’

श्रुति ने कवर खोला और नोटिस पढ़ने लगी। लेकिन यह क्या? नोटिस पढ़ते-पढ़ते वह बिल्कुल स्तब्ध रह गई और एकदम से घबरा गई।

“दी...दी जल्दी आओ…” - उसने शुभांगी को आवाज लगाई।

‘क्या हुआ तुझे? क्यूँ चिल्ला रही हैं?’ - शुभांगी ने पूछा।

“दी ये नोटिस...”

‘नोटिस। क्या हैं उसमे? तू घबरा क्यूँ रही हैं श्रुति?’

“दी, कोर्ट का नोटिस हैं। इसमें लिखा हैं कि आपको किसी सुहासिनी माले के मर्डर केस में उम्रकैद की सजा हुई हैं और 3 दिनों के अंदर आपको दिल्ली जेल में सरेंडर करना हैं।”

‘क्या? जेल में सरेंडर करना हैं। क्या मजाक हैं।’

“मजाक नही हैं दी। कोर्ट की सील भी लगी हैं इसपे।”

शुभांगी ने एक पल के लिए तो इस बात को मजाक समझा लेकिन अगले ही पल उसे एहसास हुआ कि वह नोटिस वाकई में असली हैं। उसकी हालत ऐसी थी मानो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई हो। चेहरे पर पसीना आने लगा और घबराहट के मारे हाथ-पाँव फूलने लगे। बहन श्रुति ने आनन-फानन में अपने जीजाजी मनीष को कॉल लगाया और सारी बात बताई।

मनीष जब घर पहुँचा तो देखा कि शुभांगी और श्रुति दोनो बेहद परेशान थी। शुभांगी को समझ ही नही आ रहा था कि आखिर उसे यह नोटिस क्यो मिला जबकि वह तो किसी सुहासिनी माले को जानती तक नही। वह तो कभी दिल्ली भी नही गई। खैर, जो भी हो लेकिन कोर्ट के नोटिस को अनदेखा तो कर नही सकते थे। मनीष ने तुरंत ही अपने दोस्त विनय को कॉल किया। उसे सारी बात बताई और उससे एक वकील का नंबर लिया। एक सीधे-सादे परिवार के लिए एकाएक इस तरह के हालात का सामना करना कोई आसान काम नही था। शुभांगी, जिसने कभी पुलिस स्टेशन में कदम तक नही रखा था, उसे मर्डर के आरोप में जेल में सरेंडर करने का नोटिस मिलना कोई मजाक की बात नही थी।​
 
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Kabir Singh
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Update 2

शुभांगी 38 साल की एक सीधी-सादी घरेलू महिला थी। पति मनीष एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे जबकि वह खुद एक हाउसवाइफ थी। वैसे तो वे लोग मूल रूप से मध्यप्रदेश के रहने वाले थे लेकिन पति की नौकरी की वजह से कई सालों से छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर में ही बस गए थे। उनके दो बच्चे थे। बेटी पलक और बेटा शिवांश। पलक कक्षा पाँचवी में थी जबकि शिवांश तीसरी कक्षा में पढ़ता था। शुभांगी खुद भी काफी पढ़ी-लिखी थी। उसके पास बी.टेक. और एम.टेक. की डिग्रियाँ थी।​

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“शुभांगी, तुम टेंशन मत लो। कुछ नही होगा।” - मनीष ने उसे दिलासा देते हुए कहा।

शुभांगी - ‘मनीष, मुझे नही पता ये सब क्या हैं। मैं किसी सुहासिनी माले को नही जानती हूँ।”

मनीष - “मैं जानता हूँ शुभांगी। तुम बिल्कुल टेंशन मत लो। मैं हूँ ना। वकील साहब आ रहे हैं थोड़ी देर मे। ओके, रिलैक्स।”

शुभांगी की आँखों मे आँसू थे और उसके चेहरे पर टेंशन की लकीरें साफ नजर आ रही थी। उसके बच्चो की परीक्षाएँ चल रही थी और चार दिन बाद उसकी बेटी का पेपर होने वाला था। “हे भगवान, ये किस मुसीबत में डाल दिया तूने…” वह मन ही मन सोचने लगी और भगवान से इस मुसीबत से बचाने की प्रार्थना करने लगी। कुछ देर बाद वकील साहब भी उनके घर पहुँच गए। उनके साथ मनीष का दोस्त विनय भी मौजूद था। वकील ने नोटिस पढ़ा और फिर बातचीत शुरू हुई।

“शुभांगी जी, याद कीजिये, कभी किसी सुहासिनी नाम की औरत से मिली हो आप?” - वकील ने पूछा।

‘नही सर, बिल्कुल नही।’ - शुभांगी ने जवाब दिया।

“कभी आप पर कोई केस दर्ज हुआ हैं?”

तभी मनीष ने उसे बीच मे टोकते हुए कहा - ‘ये क्या पूछ रहे हैं सर आप। हम लोग शरीफ लोग हैं। केस तो क्या, कभी पुलिस स्टेशन तक नही गए।’

वकील - “देखिए, बुरा मत मानिए। ये कोर्ट का नोटिस हैं। अगर हम इसके खिलाफ अपील भी करते हैं तो उसमें काफी समय लगेगा लेकिन तब तक तो इन्हें जेल में सरेंडर करना ही पड़ेगा।"

शुभांगी - ‘क्या? सरेंडर करना पड़ेगा? आप पागल हो गए हैं क्या? मेरे बच्चो के एग्जाम चल रहे हैं और आप बोल रहे हैं कि मुझे सरेंडर करना पड़ेगा।'

शुभांगी की घबराहट बढ़ने लगी और उसे कुछ समझ नही आ रहा था। वकील ने काफी देर तक उनसे बातचीत की और फिर नोटिस की कॉपी लेकर वहाँ से चला गया। उसने जाने से पहले मनीष को सुझाव दिया कि वह लोकल पुलिस स्टेशन में जाकर इस बारे में पता करे और हो सके तो दिल्ली जाकर भी इस बारे में जानकारी ले।

वकील के जाने के बाद मनीष ने बिल्कुल भी देर नही की और तुरंत ही शुभांगी और विनय के साथ पुलिस स्टेशन पहुँच गया। वहाँ जाकर जब उन्होंने इस बारे में पता किया तो उन लोगो को भी इस बारे में कोई जानकारी नही थी लेकिन वहाँ का एस.आई. शुभांगी को देखकर उस पर तंज कसने लगा और उसे जेल में सरेंडर करने की सलाह देने लगा।​

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“मैडम, आपको देखकर लगता ही नही कि आप मर्डर भी कर सकती हैं।”

शुभांगी - ‘सर, मैंने आपसे कहा ना कि मैंने कोई मर्डर नही किया हैं। आप बेकार की बाते मत कीजिये।’

इंस्पेक्टर - “अरे वाह! एक तो चोरी, ऊपर से सीना जोरी। लेकिन चलिए कोई बात नही। मैं आपकी टेंशन समझ सकता हूँ।”

मनीष - ‘सर, एक तो हम टेंशन में हैं और आप ऐसी बेकार की बाते कर रहे हैं।’

इंस्पेक्टर - “ए मिस्टर, मेरे से ऊँची आवाज में बात नही करने का। आपकी वाइफ ने मर्डर किया हैं या नही, इस बात से कोई फ़र्क नही पड़ता लेकिन कोर्ट ने सजा सुना दी मतलब जेल तो जाना ही पड़ेगा।”

शुभांगी - ‘ऐसा मत कहिए सर। मैं इनोसेंट हूँ। हम तो आपके पास मदद की उम्मीद लेकर आये है।’

वह इंस्पेक्टर अब थोड़ा शांत हुआ और बोला - “मैडम, ऐसा नही होता हैं। ऐसे-कैसे कोर्ट आपको सजा सुना देगी और आपको अपने क्राइम का पता ही नही है?”

शुभांगी - ‘हम सच कह रहे सर। हमें इस बारे में बिल्कुल भी आइडिया नही हैं। आज अचानक नोटिस आया कि मुझे उम्रकैद की सजा हुई हैं और 3 दिनों के अंदर जेल में सरेंडर करना हैं। हमें कुछ समझ नही आया इसलिए हम यहाँ आ गए।’

इंस्पेक्टर - “हम्म। देखिए, कोर्ट का आर्डर हैं इसलिए सरेंडर तो आपको करना ही पड़ेगा। मेरी मानिए, आप सरेंडर कीजिये और साथ ही कोर्ट में अपील कीजिये। अगर आप सरेंडर नही करेगी तो आपके खिलाफ अरेस्ट वारंट तो निकलेगा ही लेकिन साथ ही आगे बेल मिलने में भी आपको दिक्कते होगी।”

शुभांगी - ‘सर, मेरे जेल जाने की बात हो रही हैं। कोई हॉटल में जाने की नही जो आप इतनी आसानी से ये सब कह रहे हैं।’

इंस्पेक्टर - “मैं समझ सकता हूँ मैडम लेकिन जो भी होगा, कानून के हिसाब से ही होगा। आप अभी भले ही जेल से बाहर हो लेकिन सजा सुनाए जाते ही आप एक convicted prisoner बन चुकी हो। अब आप आजाद नही हो।”

मनीष ने देखा कि इंस्पेक्टर की बात सुनकर शुभांगी की आँखों मे आँसू आने लगे। उसने इंस्पेक्टर को थैंक यू कहा और शुभांगी को लेकर घर आ गया। सब टेंशन में थे। मनीष को कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करें। उसे पता था कि वह दिल्ली भी जाएगा तो उसे यही जवाब मिलेगा।​

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शुभांगी को तीन दिनो में जेल में सरेंडर करना था और इस बात को स्वीकार करना उसके लिए आसान नही था। उधर उसके परिवार वाले भी इस बात से काफी परेशान और चिंतित थे। हालाँकि उन्होंने इस बारे में अपने बच्चो को कुछ नही बताया था। शुभांगी अपने बच्चो से बेहद प्यार करती थी और उन्हें छोड़कर जेल नही जाना चाहती थी।

शुभांगी को इस बात का एहसास हो चुका था कि उसके पास सरेंडर करने के अलावा कोई और रास्ता नही हैं लेकिन वह इस बात को अपने बच्चो के सामने व्यक्त नही करना चाहती थी। उसने बड़ी हिम्मत से खुद को संभाला और ऐसा व्यवहार करने लगी, जैसे सब कुछ सामान्य हो। रात में भी वह जल्दी ही बिस्तर पर लेट गई। जेल जाने की बात सोच-सोचकर उसका मन विचलित था और मनीष भी परेशानी की वजह से ज्यादा बात नही कर रहा था। शुभांगी लेटे-लेटे इस कदर सोच में डूब गई थी कि उसे कब नींद लग गई, पता ही नही चला।

इसी तरह दो दिन गुजर गए। मनीष ने कुछ वकीलों से बात की लेकिन उन्हें कही से कोई राहत नही मिली। सभी ने एक ही बात कही कि शुभांगी को पहले सरेंडर करना होगा और उसके बाद ही कोर्ट में अपील की जा सकेगी। मनीष शुभांगी के लिए बेहद चिंतित था। उसके मन मे तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। जेल में ना जाने कैसे-कैसे लोग होंगे? वहाँ शुभांगी से कैसा बर्ताव करेंगे? क्या उसके साथ मारपीट भी होगी? इस तरह के अनेको सवाल उसकी चिंता बढ़ा रहे थे। आखिरकार शुभांगी पर कोई साधारण आरोप तो था नही। उस पर हत्या का आरोप था। शुभांगी जैसी सीधी-सादी, सभ्य और अच्छे परिवार की महिला के लिए जेल में रहना कोई बच्चो का खेल नही था। उसे तो इस बात का ज़रा भी अंदाजा नही था कि आखिर जेल की जिंदगी कैसी होती हैं और वहाँ क्या होता हैं। उसने तो जेल केवल फिल्मों और सीरियल्स में ही देखी थी।​

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खैर, सरेंडर करने का आखिरी दिन आ चुका था। शुभांगी के पास घर पर केवल एक ही रात बची थी और अगले दिन उसे जेल चले जाना था। घर मे सभी लोग दुखी थे और शुभांगी के जेल जाने की वजह से बेहद परेशान भी। शुभांगी के मम्मी-पापा और मायके वाले भी उसके घर पर मौजूद थे। भले ही सभी लोग परेशान थे लेकिन शुभांगी को इस बात का यकीन था कि वह जल्द ही जेल से बाहर आ जायेगी। उसने कुछ गलत नही किया था लेकिन ऐसा क्या हुआ कि बिना अपराध किये ही उसे हत्या जैसे संगीन आरोप में उम्रकैद की सजा सुना दी गई? इस बात का जवाब तो केवल कोर्ट में ही मिल सकता था लेकिन तब तक शुभांगी को एक सज़ायाफ्ता कैदी के तौर पर जेल में रहना अनिवार्य था।​
 
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Premkumar65

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Update 2

शुभांगी 42 साल की एक सीधी-सादी घरेलू महिला थी। पति मनीष एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे जबकि वह खुद एक हाउसवाइफ थी। वैसे तो वे लोग मूल रूप से मध्यप्रदेश के रहने वाले थे लेकिन पति की नौकरी की वजह से कई सालों से छत्तीसगढ़ के भिलाई शहर में ही बस गए थे। उनके दो बच्चे थे। बेटी पलक और बेटा शिवांश। पलक कक्षा बारहवीं में थी जबकि शिवांश 9th में पढ़ता था। शुभांगी खुद भी काफी पढ़ी-लिखी थी। उसके पास बी.टेक. और एम.टेक. की डिग्रियाँ थी।

“शुभांगी, तुम टेंशन मत लो। कुछ नही होगा।” - मनीष ने उसे दिलासा देते हुए कहा।

‘मनीष, मुझे नही पता ये सब क्या हैं। मैं किसी सुहासिनी माले को नही जानती हूँ।” - शुभांगी ने कहा।

मनीष - “मैं जानता हूँ शुभांगी। तुम बिल्कुल टेंशन मत लो। मैं हूँ ना। वकील साहब आ रहे हैं थोड़ी देर मे। ओके…रिलैक्स…”

शुभांगी की आँखों मे आँसू थे और उसके चेहरे पर टेंशन की लकीरें साफ नजर आ रही थी। उसके बच्चो की परीक्षाएँ चल रही थी और चार दिन बाद उसकी बेटी का बोर्ड का पेपर होने वाला था।

“हे भगवान, ये किस मुसीबत में डाल दिया तूने…” वह मन ही मन सोचने लगी और भगवान से इस मुसीबत से बचाने की प्रार्थना करने लगी।

कुछ देर बाद वकील साहब भी उनके घर पहुँच गए। उनके साथ मनीष का दोस्त विनय भी मौजूद था। वकील ने नोटिस पढ़ा और फिर बातचीत शुरू हुई।

“शुभांगी जी, याद कीजिये, कभी किसी सुहासिनी नाम की औरत से मिली हो आप?” - वकील ने पूछा।

‘नही सर, बिल्कुल नही।’ - शुभांगी ने जवाब दिया।

“कभी आप पर कोई केस दर्ज हुआ हैं?”

तभी मनीष ने उसे बीच मे टोकते हुए कहा - ‘ये क्या पूछ रहे हैं सर आप। हम लोग शरीफ लोग हैं। केस तो क्या, कभी पुलिस स्टेशन तक नही गए।’

वकील - “देखिए, बुरा मत मानिए। ये कोर्ट का नोटिस हैं। अगर हम इसके खिलाफ अपील भी करते हैं तो उसमें काफी समय लगेगा लेकिन तब तक तो आपको जेल में ही रहना पड़ेगा।”

शुभांगी - ‘क्या? जेल? जेल में रहना पड़ेगा? आप पागल हो गए हैं क्या? मेरे बच्चो के exams चल रहे हैं और आप बोल रहे हैं कि मुझे जेल में रहना पड़ेगा…’

शुभांगी की घबराहट बढ़ने लगी और उसे कुछ समझ नही आ रहा था। वकील ने काफी देर तक उनसे बातचीत की और फिर नोटिस की कॉपी लेकर वहाँ से चला गया। उसने जाने से पहले मनीष को सुझाव दिया कि वह लोकल पुलिस स्टेशन में जाकर इस बारे में पता करे और हो सके तो दिल्ली जाकर भी इस बारे में जानकारी ले।

वकील के जाने के बाद मनीष ने बिल्कुल भी देर नही की और तुरंत ही शुभांगी और विनय के साथ पुलिस स्टेशन पहुँच गया। वहाँ जाकर जब उन्होंने इस बारे में पता किया तो उन लोगो को भी इस बारे में कोई जानकारी नही थी लेकिन वहाँ का एस.आई. शुभांगी को देखकर उस पर तंज कसने लगा और उसे जेल में सरेंडर करने की सलाह देने लगा।

“मैडम, आपको देखकर लगता ही नही कि आप मर्डर भी कर सकती हैं।”

शुभांगी - ‘सर, मैंने आपसे कहा ना कि मैंने कोई मर्डर नही किया हैं। आप बेकार की बाते मत कीजिये।’

इंस्पेक्टर - “अरे वाह! एक तो चोरी, ऊपर से सीना जोरी। लेकिन चलिए कोई बात नही। मैं आपकी टेंशन समझ सकता हूँ।”

मनीष - ‘सर, एक तो हम टेंशन में हैं और आप ऐसी बेकार की बाते कर रहे हैं।’

इंस्पेक्टर - “ए मिस्टर, मेरे से ऊँची आवाज में बात नही करने का। आपकी वाइफ ने मर्डर किया हैं या नही, इस बात से कोई फ़र्क नही पड़ता लेकिन कोर्ट ने सजा सुना दी मतलब जेल तो जाना ही पड़ेगा।”

शुभांगी - ‘ऐसा मत कहिए सर। मैं इनोसेंट हूँ। हम तो आपके पास मदद की उम्मीद लेकर आये थे।’

वह इंस्पेक्टर अब थोड़ा शांत हुआ और बोला - “मैडम, ऐसा नही होता हैं। ऐसे-कैसे कोर्ट आपको सजा सुना देगी और आपको पता नही नही होगा?”

शुभांगी - ‘हम सच कह रहे सर। हमें इस बारे में बिल्कुल भी नही पता हैं। आज अचानक नोटिस आया कि मुझे उम्रकैद की सजा हुई हैं और 3 दिनों के अंदर जेल में सरेंडर करना हैं। हमें कुछ समझ नही आया इसलिए हम यहाँ आ गए।’

इंस्पेक्टर - “हम्म। देखिए, कोर्ट का आर्डर हैं इसलिए सरेंडर तो आपको करना ही पड़ेगा। मेरी मानिए, आप सरेंडर कीजिये और साथ ही कोर्ट में अपील कीजिये। अगर आप सरेंडर नही करेगी तो आपके खिलाफ अरेस्ट वारंट तो निकलेगा ही लेकिन साथ ही आगे बेल मिलने में भी दिक्कते होगी।”

शुभांगी - ‘सर, मेरे जेल जाने की बात हो रही हैं। कोई हॉटल में जाने की नही जो आप इतनी आसानी से ये सब कह रहे हैं।’

इंस्पेक्टर - “मैं समझ सकता हूँ मैडम लेकिन जो भी होगा, कानून के हिसाब से ही होगा। आप अभी भले ही जेल से बाहर हो लेकिन सजा सुनाए जाते ही आप एक convicted prisoner बन चुकी हो। अब आप आजाद नही हो।”

मनीष ने देखा कि इंस्पेक्टर की बात सुनकर शुभांगी की आँखों मे आँसू आने लगे। उसने इंस्पेक्टर को थैंक यू कहा और शुभांगी को लेकर घर आ गया। सब टेंशन में थे। मनीष को कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करें। उसे पता था कि वह दिल्ली भी जाएगा तो उसे यही जवाब मिलेगा।

शुभांगी को तीन दिनो में जेल में सरेंडर करना था और इस बात को स्वीकार करना उसके लिए आसान नही था। उधर उसकी बेटी पलक भी बहुत टेंशन में थी और इस वजह से वह अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान नही दे पा रही थी। हालाँकि उन्होंने बेटे शिवांश को इस बारे में कुछ भी नही बताया था। शुभांगी अपने बच्चो से बेहद प्यार करती थी और अपनी बेटी को टेंशन में देखकर उसे बहुत बुरा लग रहा था।

“क्या हुआ बेटा, इतनी उदास क्यूँ हो? “ - शुभांगी ने पलक से कहा।

‘मम्मा, आपको सच मे जेल में रहना पड़ेगा क्या?’ - पलक ने पूछा।

“नही बेटा, तुम ऐसा क्यूँ सोच रही हो? पापा हैं ना। वो सब ठीक कर देंगे।”

शुभांगी को भी एहसास हो चुका था कि उसके पास सरेंडर करने के अलावा कोई और रास्ता नही हैं लेकिन वह इस बात को अपने बच्चो के सामने व्यक्त नही करना चाहती थी। उसने बड़ी हिम्मत से खुद को संभाला और ऐसा व्यवहार करने लगी, जैसे सब कुछ सामान्य हो। रात में भी वह जल्दी ही बिस्तर पर लेट गई। जेल जाने की बात सोच-सोचकर उसका मन विचलित था। मनीष भी परेशानी की वजह से ज्यादा बात नही कर रहा था। शुभांगी लेटे-लेटे इस कदर सोच में डूब गई थी कि उसे कब नींद लग गई, पता ही नही चला।

इसी तरह दो दिन गुजर गए। मनीष ने कुछ वकीलों से बात की लेकिन उन्हें कही से कोई राहत नही मिली। सभी ने एक ही बात कही कि शुभांगी को पहले सरेंडर करना होगा और उसके बाद ही कोर्ट में अपील की जा सकेगी। मनीष शुभांगी के लिए बेहद चिंतित था। उसके मन मे तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। जेल में ना जाने कैसे-कैसे लोग होंगे? वहाँ शुभांगी से कैसा बर्ताव करेंगे? क्या उसके साथ मारपीट भी होगी? इस तरह के अनेको सवाल उसकी चिंता बढ़ा रहे थे। आखिरकार शुभांगी पर कोई साधारण आरोप तो था नही। उस पर हत्या का आरोप था। शुभांगी जैसी सीधी-सादी, सभ्य और अच्छे परिवार की महिला के लिए जेल में रहना कोई बच्चो का खेल नही था। उसे तो इस बात का ज़रा भी अंदाजा नही था कि आखिर जेल की जिंदगी कैसी होती हैं और वहाँ क्या होता हैं। उसने तो जेल केवल फिल्मों और सीरियल्स में ही देखी थी।

खैर, सरेंडर करने का आखिरी दिन आ चुका था। शुभांगी के पास घर पर केवल एक ही रात बची थी और अगले दिन उसे जेल चले जाना था। घर मे सभी लोग दुखी थे और शुभांगी के जेल जाने की वजह से बेहद परेशान भी। शुभांगी के मम्मी-पापा और मायके वाले भी उसके घर पर मौजूद थे। भले ही सभी लोग परेशान थे लेकिन शुभांगी को इस बात का यकीन था कि वह जल्द ही जेल से बाहर आ जायेगी। उसने कुछ गलत नही किया था लेकिन ऐसा क्या हुआ कि बिना अपराध किये ही उसे हत्या जैसे संगीन आरोप में उम्रकैद की सजा सुना दी गई? इस बात का जवाब तो केवल कोर्ट में ही मिल सकता था लेकिन तब तक शुभांगी को एक सज़ायाफ्ता कैदी के तौर पर जेल में रहना था जरूरी था।​
Good start.
 

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Kabir Singh
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Update 3

शुभांगी ने एक रात पहले ही बैग में अपनी जरूरत की सारी चीजें पैक कर ली। वैसे तो वकील ने उसे पहले ही बता दिया था कि जेल में उसे किसी भी चीज की इजाजत नही होगी और उसे जेल की तरफ से दिए गए सामान के साथ ही एडजस्ट करना होगा लेकिन फिर भी उसने साड़ियाँ व अन्य सामान बैग में रख लिए।

रात को पूरा परिवार एक साथ खाना खाने बैठा। सब लोग परेशान थे लेकिन आपस मे ऐसा बर्ताव कर रहे थे जैसे कुछ हुआ ही ना हो। हालाँकि उस वक़्त शुभांगी की मनोदशा को कोई नही समझ सकता था कि उस पर क्या बीत रही थी। तभी उसकी माँ ने उसे ढाँढस बँधाते हुए कहा -

“बेटा, तू बिल्कुल चिंता मत कर। बस एक-दो दिन की बात हैं। फिर तू हमारे साथ घर पर होगी।”​

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शुभांगी कुछ बोल नही पाई और चुपचाप खाना खाने लगी। उसका खाना खाने का भी बिल्कुल मन नही कर रहा था इसलिए थोड़ा सा खाना खाकर वह अपने कमरे में चली गई। मनीष भी खाना खत्म करके कमरे में आ गया। कमरे में जाते ही वह शुभांगी के पास बैठा और बोला -

“मैं जानता हूँ शुभांगी कि तुम पर क्या बीत रही हैं, लेकिन मुझ पर भरोसा रखो। मैं तुम्हे ज्यादा दिनों तक जेल में नही रहने दूँगा।”

‘मुझे अपनी चिंता नही हैं मनीष। कुछ दिन जेल की मुश्किलें तो मैं सह लूँगी लेकिन मुझे पलक और शिवांश की फिक्र हैं। दोनो मेरे बिना कैसे रहेंगे।’ - शुभांगी ने जवाब दिया।

मनीष - “तुम उन दोनों की बिल्कुल चिंता मत करो। यहाँ सब है ना। बेफिक्र रहो।”

शुभांगी - ‘मनीष, एक बात पूछूँ?’

मनीष - “हाँ पूछो।”

शुभांगी - ‘जेल में मुझे मारेंगे-पीटेंगे तो नही ना।’

मनीष - “कैसी बात कर रही हो यार। तुम्हे क्यूँ मारेंगे। तुम कोई क्रिमिनल थोड़ी ना हो। बस गलती से तुम्हारा नाम आ गया हैं। एक-दो दिन की बात हैं। फिर सब क्लियर हो जायेगा।”

मनीष की बात सुनकर शुभांगी एकदम से उसके सीने से लिपट गई और बोली - “कभी सोचा नही था कि जिंदगी में कभी जेल का मुँह भी देखना पड़ेगा।”

मनीष - ‘चलो अब छोड़ो जेल की बाते। आज की रात को यादगार बनाते हैं। वैसे भी आज तुम कुछ ज्यादा ही खूबसूरती लग रही हो।’

मनीष के मुँह से अपनी तारीफ सुनकर शुभांगी शर्माने लगी और उसके सीने से लिपट गई। वह जैसे ही मनीष के सीने लगी, मनीष के अंदर एक अजीब सी कशिश जाग उठी। शुभांगी के स्तन उसके सीने से टकरा रहे थे और उनका तनाव मनीष के लंड में उत्तेजना पैदा करने लगा। मनीष ने अपने होंठ उसके होंठो पर चिपका दिए और उसे चूमने लगा। दोनो काफी देर तक एक-दूसरे को किस करते रहे और फिर मनीष ने साड़ी के ऊपर से ही शुभांगी के स्तनों को दबाना शुरू कर दिया।​

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शुभांगी के बड़े-बड़े और सुडौल स्तन बहुत ही मुलायम थे और मनीष को उन्हें दबाने में बहुत मजा आ रहा था। कुछ देर बाद उसने शुभांगी के सीने से साड़ी का पल्लू नीचे सरका दिया और अब उसका क्लीवेज साफ नजर आने लगा। उसके स्तन ब्लाउज में से बाहर निकलने के लिए फुदक रहे थे। मनीष ने उसकी साड़ी उतार दी और ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए। फिर उसने शुभांगी को दोनो हाथो से पकड़कर दीवार से सटाया और उसकी गाँड़ पर अपना लंड टच कराने लगा।

शुभांगी भी उसके लंड की छुअन को महसूस कर रही थी। धीरे से मनीष ने अपना एक हाथ उसके बूब्स पर रखा और उन्हें दबाने लगा। शुभांगी ने काले रंग की ब्रा पहनी हुई थी और कमाल की लग रही थी। मनीष अपने एक हाथ से उसके बूब्स दबा रहा था तो वही दूसरे हाथ से उसकी गाँड़ को मसलने लगा। अब शुभांगी भी पूरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी। उसने अपने चेहरे को मनीष की तरफ किया और उसका लोअर नीचे सरका दिया। मनीष का लंड बिल्कुल साँप की तरह तनकर खड़ा हुआ था और उसकी नीले रंग की चड्डी में से बाहर झाँकने की लगातार कोशिश कर रहा था।

शुभांगी एक अनुभवी महिला थी और उसे चुदाई का भरपूर अनुभव था। उसने मनीष की चड्डी नीचे सरकाई और उसके लंड को हाथ मे लेकर सहलाने लगी। मनीष भी पूरे जोश में आ चुका था। उसने शुभांगी को पकड़कर पलंग पर पटक दिया और खुद उसके ऊपर चढ़कर उसके बदन को चूमने लगा। वह ब्रा और पेटिकोट में पलंग पर पड़ी हुई थी। मनीष ने उसकी ब्रा का हुक खोलकर उसकी ब्रा उतार दी और उसे ऊपर से पूरा नंगा कर दिया। वह अपने दोनो हाथो से लगातार उसके स्तनों को दबाए जा रहा था। कुछ देर बाद शुभांगी ने अपना पेटिकोट और पेंटी भी उतार दी और बिस्तर पर पूरी नंगी हो गई। मनीष ने भी अपने सारे कपड़े उतारकर नीचे फेंक दिए और अब वह दोनो बिस्तर पर पूरे नंगे पड़े थे।

मनीष अब बिना देर किया उसकी चूत में अपना लंड डालने के लिए बेताब था। उसने शुभांगी को पैरो से पकड़कर अपनी ओर खींचा और उसकी टाँगों को फैलाकर अपने लंड को उसकी चूत पर छूआने लगा। शुभांगी भी मदहोश होती जा रही थी और उसकी चूत लंड के इंतजार में तड़पने लगी। मनीष ने तुरंत ही अपना लंड उसकी चूत में घुसा दिया और हल्का सा धक्का मारा। धक्का लगते ही शुभांगी को थोड़ा दर्द हुआ और उसके मुँह से चीख निकल गई।​

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धीरे-धीरे मनीष की स्पीड बढ़ने लगी। वह जोर लगाकर अपने लंड को शुभांगी की चूत में अंदर बाहर करने लगा। शुभांगी भी अब पूरी तरह वासना के सागर में डूब चुकी थी। मनीष के लंड के धक्के उसे चीखने के लिए मजबूर कर रहे थे और उसके मुँह से “आँह आँह” की चीखें निकलने लगी। थोड़ी देर बाद मनीष ने अपनी स्पीड और भी तेज कर दी और पूरी ताकत लगाकर शुभांगी को चोदने लगा।

“ओह आँह…उम्ममम…आँह…और तेज…आँह…मजा आ रहा हैं…”

शुभांगी की चीखें मनीष का जोश बढ़ाती जा रही थी। काफी देर तक वे लोग एक ही पोजीशन में सेक्स करते रहे और फिर उन्होंने अपनी पोजीशन चेंज की। मनीष अब बिस्तर पर लेट गया और शुभांगी उसके लंड के ऊपर इस तरह बैठ गई कि उसका लंड सीधे उसकी चूत में टच कर रहा था। अब जोर लगाने की बारी शुभांगी की थी। उसने अपनी चूत को लंड की दिशा में धकेलना शुरू कर दिया और लंड को चूत में अंदर बाहर करने लगी।

“उम्म…जोर से करो शुभांगी…wow…मजा आ रहा हैं…स्सस्स…”

मनीष पूरे जोश में था और उसे भी सेक्स का भरपूर आनंद आ रहा था। मनीष का मुँह शुभांगी के चेहरे की ओर था और जब वह उसके लंड पर बैठकर ऊपर-नीचे हो रही थी तो उसके गोरे-गोरे चिकने बूब्स लगातार हिलते जा रहे थे। मनीष को शुभांगी की चूत के अलावा उसके बूब्स बहुत पसंद थे और वह मौका मिलते ही उन्हें दबाने को आतुर रहता था। उस वक़्त भी उसने अपने दोनों हाथों से उसके बूब्स को दबाना शुरू कर दिया।

कुछ देर बाद शुभांगी मनीष के लंड से अलग हो गई और अपने आप को डॉग पोजीशन में एडजस्ट किया। मनीष तो एक सेकंड के लिए भी उसे चोदना बंद नही कर रहा था और शुभांगी के डॉग पोजीशन में होते ही उसने पीछे से उसकी गाँड़ मारनी शुरू कर दी। वह बिस्तर पर कुतिया बनी हुई थी और मनीष किसी कुत्ते की तरह लगातार उसे चोदे जा रहा था।​

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मनीष और शुभांगी दोनो चरम सीमा पर पहुँच चुके थे और उसी के साथ मनीष की शुभांगी को चोदने की स्पीड भी तेज हो गई। शुभांगी के मुँह से “आँह आँह” की तेज चीखे निकलने लगी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे मानो वह स्वर्ग की सैर कर रही हो। वह पूरी तरह मदहोश हो गई। उसकी आँखें चढ़ने लगी और बदन में चरम सुख का अनुभव होने लगा। इधर मनीष भी अपने चरम पर पहुँच चुका था और कुछ ही देर में उसे एहसास होने लगा कि वह झड़ने वाला हैं। उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी लेकिन कुछ देर बाद उसके शरीर ने जवाब दे दिया और वह झड़ गया।

“ओह शुभांगी, मजा आ गया आज तो।” - मनीष ने कहा।

‘हाँ, सच मे। आई लव यू मनीष। i will miss you a lot.’

“अरे फिक्र क्यूँ करती हो जान। बस कुछ दिन की बात हैं। फिर रोज मजे करेंगे।”

मनीष और शुभांगी के लिए वह रात यादगार थी। उस रात उन्होने भरपूर सेक्स किया और सेक्स के बाद दोनो पूर्ण नग्न अवस्था मे ही एक-दूसरे से लिपटकर सो गए।​
 
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Update 4

सुबह हुई। सुबह 5 बजे अलार्म की आवाज से शुभांगी की नींद खुली। वह बिस्तर से उठी और अपने कपड़े पहनकर खिड़की के पास चली गई। खिड़की के बाहर से आती पक्षियों की मधुर आवाज उसके मन को प्रफुल्लित कर रही थी। कुछ पल के लिए वह भूल चुकी थी कि उसे आज जेल में सरेंडर करना हैं। वह तो बस प्रकृति के मधुर संगीत और उसकी सुंदरता में खो जाना चाहती थी।

“शुभांगी….शुभांगी….” मनीष ने उसे दो बार आवाज लगाई।

‘हाँ, तुमने कुछ कहा?’ शुभांगी का एकदम से ध्यान टूटा।

मनीष - “कहाँ खोई हुई हो?”

शुभांगी - ‘कही नही। बस यूँ ही।’

मनीष - “जल्दी से जाकर नहा लो। टाइम हो रहा हैं।”

शुभांगी - ‘हाँ, बस जा रही।’

मनीष के कहते ही शुभांगी नहाने के लिए चली गई। इधर घर के सब लोग भी तैयार होने लगे। वे लोग शुभांगी और मनीष को एयरपोर्ट तक छोड़ने जाने वाले थे। उनकी फ्लाइट सुबह 10 बजे की थी लेकिन उन्हें लगभग दो घंटे पहले ही एयरपोर्ट पहुँचना था। सभी के तैयार होने के बाद उन लोगो ने ब्रेकफास्ट किया और सुबह 7 बजे एयरपोर्ट के लिए निकल पड़े। रास्ते भर सभी लोग बिल्कुल चुपचाप बैठे रहे। उनके चेहरों पर उदासी की झलक साफ दिखाई दे रही थी। लगभग आधे घंटे का सफर तय करके उनकी गाड़ी रायपुर एयरपोर्ट पहुँची। एयरपोर्ट पर पहुँचते ही मनीष ने गाड़ी से अपना सामान निकाला और शुभांगी बच्चो से बाते करने लगी।​

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“पलक, बेटा अच्छे से एग्जाम देना। ओके। मम्मा जल्दी ही घर आएगी।" - उसने पलक से कहा।

‘बट मम्मा, आप कहाँ जा रही हो। मैं भी आपके साथ आऊँगी' - पलक ने जिद की।

“मम्मा एक जरुरी काम से जा रही है बच्चा। तुम तो मेरी समझदार बेटी हो। बस एक-दो दिन में वापस आ जाऊँगी बेटा।" - शुभांगी ने उसे समझाया।

उसने अपने दोनों बच्चो को सीने से लगाया और प्यार से उन्हें चूमने लगी। उसे रोना तो बहुत आ रहा था लेकिन उसने अपने आप को काबू में रखा। शुभांगी अपने माँ-बाप और भाई-भाभी से भी मिली और फिर उन्हें अलविदा कहकर मनीष के साथ एयरपोर्ट के अंदर चली गई। वह अंदर जाते हुए लगातार अपने परिवार को देखती जा रही थी।

फ्लाइट में बैठने से पहले उनकी पूरी सुरक्षा जाँच की गई जिसमें काफी समय लगा। सुबह 10 बजे उनकी फ्लाइट रायपुर से दिल्ली के लिए रवाना हुई और लगभग 11:45 बजे वे लोग दिल्ली पहुँच गए। उन्होंने एयरपोर्ट से ही एक टैक्सी ली और जेल के लिए निकल पड़े। एयरपोर्ट से जेल की दूरी बहुत ज्यादा नही थी और केवल 15 मिनट बाद ही उनकी टैक्सी जेल के मेन गेट के सामने पहुँच गई।​
 
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Update 5

(महिला कारागार, दिल्ली)

अपनी आँखों के सामने जेल को देखकर शुभांगी की धड़कने एकदम से तेज होने लगी और वह परेशान हो उठी। उसका दिल अंदर जाने के लिए बिल्कुल राजी नही था लेकिन उसने अपनी भावनाओं को काबू में रखा। उन्होंने देखा कि जेल के मेन गेट के ऊपर एक साइन बोर्ड लगा हुआ था जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में केंद्रीय कारागार दिल्ली लिखा हुआ था। गेट पर दो बंदूकधारी मेल गार्ड तैनात थे। मनीष ने उन्हें कोर्ट का आर्डर दिखाया और इस बात से अवगत कराया कि शुभांगी जेल में सरेंडर करने के लिए आई हैं। उन गार्डो ने आर्डर की कॉपी देखकर तुरंत ही अंदर सूचित किया जिसके बाद अंदर से एक महिला सिपाही बाहर आई और गेट पर आकर पूछने लगी - “सरेंडर करने कौन आई हैं?”

‘जी मैं हूँ…’ - शुभांगी ने जवाब दिया।

“चल अंदर आ…” - उसने बड़ी ही बदतमीजी से कहा।

शुभांगी को उसका बात करने का तरीका बड़ा ही बेकार लगा लेकिन मनीष ने उसे चुप रहने का इशारा कर दिया। वे दोनों उस लेडी काँस्टेबल के पीछे-पीछे अंदर चल दिए। मनीष के हाथ मे शुभांगी के सामान का बैग था और ऐसा लग रहा था जैसे वह उसे जेल में नही बल्कि हॉस्टल में छोड़ने आया हो।​

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मेन गेट से अंदर जाने पर सबसे पहले एक बड़ा सा मैदान था जहाँ कुछ गाड़ियाँ खड़ी थी। इसके बाद एक और बड़ा सा लोहे का गेट लगा हुआ था जिससे अंदर जाने पर एक तरफ पुरुष कारागार तथा दूसरी तरफ महिला कारागार था। शुभांगी को लेने आई काँस्टेबल उसे और मनीष को महिला कारागार वाले गेट से अंदर लेकर गई। उन दोनों के लिए जेल का माहौल बहुत ही घुटन भरा था। हर तरफ ऊँची-ऊँची दीवारे थी, लोहे के बड़े-बड़े गेट थे और कैदियों की निगरानी में तैनात बन्दूकधारी पुलिसकर्मी। महिला कारागार के अंदर आते ही उन्हें कोई भी पुरुष पुलिसकर्मी नजर नही आ रहा था। वहाँ केवल महिला पुलिसकर्मी ही मौजूद थी। अंदर जाने के बाद वह काँस्टेबल उन्हें सीधे जेलर के ऑफिस में लेकर गई। हालाँकि उस वक़्त जेलर अपने पारिवारिक कार्य के लिए कुछ दिनों की छुट्टी पर थी इसलिए डिप्टी जेलर प्रतिभा ने शुभांगी की सरेंडर प्रक्रिया पूरी की।

ऑफिस में जाने के बाद मनीष ने उसे कोर्ट के ऑर्डर की कॉपी दिखाई और उसे शुभांगी के केस के बारे में सारी बाते बताने लगा। वह शुभांगी के लिए बेहद चिंतित था। उसने प्रतिभा से विनती की कि शुभांगी को जेल में ज्यादा परेशानी ना हो।

“मैडम, बस आपसे एक छोटी सी रिक्वेस्ट हैं।” - उसने कहा।

‘हाँ, बोलिये।’

“देखिए, हम लोग सीधे-सादे शरीफ लोग हैं और ये भी (शुभांगी को ओर देखते हुए) कभी ऐसे माहौल में रही नही हैं। बस दो-तीन दिनों की बात हैं मैडम। फिर मैं इन्हें यहाँ से ले जाऊँगा लेकिन तब तक इन्हें यहाँ कोई परेशानी तो नही होगी ना?” - मनीष ने उससे पूछा।

‘No no. Don't worry. बिल्कुल परेशानी नही होगी। आप चिंता मत कीजिये।’ - प्रतिभा ने जवाब दिया।

“Thank you so much madam.” - मनीष ने कहा।

वह मुस्कुराई और उसे बेफिक्र होकर घर जाने को कहा। उसका व्यवहार देखकर मनीष को थोड़ी राहत महसूस हुई और वह कुछ हद तक शुभांगी के लिए थोड़ा निश्चिन्त हुआ। उसने सारी फॉर्मेलिटीस पूरी की और वहाँ से जाने लगा। जाने से पहले उसने शुभांगी को गले लगाया और उसे हिम्मत देते हुए अपना ख्याल रखने को कहा। शुभांगी का दिल वहाँ पर रुकने के लिए बिल्कुल नही मान रह था लेकिन वह कुछ बोल नही पाई। मनीष भी नियमो की वजह से मजबूर था और उसे शुभांगी को अकेले छोड़कर जाना पड़ा।

मनीष जा चुका था लेकिन शुभांगी का मन इस बात पर यकीन ही नही कर पा रहा था कि अब वह बिल्कुल अकेली हैं और जेल के अंदर एक कैदी के तौर पर खड़ी हैं। मनीष के जाते ही वह पूरी तरह से जेल के अधीन हो गई। वह कुछ देर तक दरवाजे के बाहर ताकती रही और फिर जेलर से बोली -

“मैडम, क्या मैं थोड़ी देर के लिए बाहर जा सकती हूँ? बस अपने हसबैंड से मिलके वापस आ जाऊँगी।”

‘अपने बाप की शादी में आई हैं क्या?'​

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प्रतिभा का रवैया एकदम से बदल गया। उसकी आवाज में सख्ती थी और उसने एकाएक जिस गंदे तरीके से शुभांगी से बात की, वह बिल्कुल हैरान रह गई। अब तक उसे सब कुछ सामान्य लग रहा था लेकिन अब उसकी जिंदगी पूरी तरह करवट लेने वाली थी।

“मैडम ये कैसी भाषा मे बात कर रही हैं आप?” - शुभांगी ने गुस्से से कहा।

‘साली रंडी, तेरी इतनी हिम्मत कि मेरे से ऊँची आवाज में बात करेगी। ये जेल हैं। तेरे बाप का घर नही है जो इतनी जुबान चल रही है तेरी।’

शुभांगी अब थोड़ी शांत हुई और सभ्यतापूर्वक प्रतिभा से बोली - “देखिए मैडम, आप गलत समझ रही हैं। मैं कोई क्रिमिनल नही हूँ। कोई ना कोई गलती की वजह से मेरा नाम इस केस में आ गया है। मेरे हसबैंड कोर्ट में अपील करने वाले हैं। फिर सब क्लीयर हो जायेगा।’

प्रतिभा - ‘तू क्रिमिनल हैं या नही, इससे मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता। यहाँ आने वाली सब मेरी नजर में क्रिमिनल ही हैं। उस गेट के अंदर जितनी भी औरते है ना, वो सब हमारे लिए इंसान नही हैं। सिर्फ भेड़-बकरियाँ हैं। और अब तू भी उनमे से एक हैं। समझी।’

इसके बाद उसने शुभांगी की कोई भी बात नही सुनी और वहाँ मौजूद काँस्टेबल से उसे चेकिंग रूम में ले जाने को कहा। जेलर के कहते ही काँस्टेबल ने उसका एक हाथ पकड़ा और उसे खींचकर चेकिंग रूम में लेकर गई। प्रतिभा भी उनके साथ चेकिंग रूम में आ गई।​
 
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Update 6

(जाँच प्रक्रिया)

“नाम बोल?” - पहली टेबल पर बैठी महिला सिपाही ने पूछा।

‘शुभांगी गुप्ता..’ - शुभांगी ने जवाब दिया।

“पति का नाम?”

‘मनीष गुप्ता…’

“उमर कितनी हैं?”

‘जी, 38 साल…’

“कौन से क्राइम में आई हैं अंदर?”

‘मम्म मर्डर…’ - शुभांगी ने हिचकिचाते हुए जवाब दिया।

“मुँह में दही जमाके रखी हैं क्या? जोर से बोल..” - उस महिला सिपाही ने उस पर चिल्लाते हुए कहा।

शुभांगी को मजबूरन उसके सवालों का जवाब देना पड़ा। उस महिला सिपाही ने उससे इसी तरह के कुछ और सवाल पूछे और उसकी सारी जानकारियाँ रजिस्टर में दर्ज कर उस पर शुभांगी के साईन करवाये। इसके बाद उसे अगली टेबल पर भेज दिया गया।

अगली टेबल पर जाते ही वहाँ बैठी काँस्टेबल ने उसे सारे गहने उतारकर टेबल पर रखने को कहा जिसके बाद शुभांगी ने अपने सारे गहने उतारकर टेबल पर रख दिये। उसने अपनी चूड़ियाँ, मंगलसूत्र, कान के बूँदे, पायल और अँगूठी उतार दी और टेबल पर रख दी। पीछे से एक काँस्टेबल जेलर के ऑफिस से उसका बैग भी लेकर आ गई और उसे टेबल पर खाली करने लगी। जब उन लोगो ने उसका बैग खाली किया तो उसमें से साड़ियाँ, ब्लाउज, पेटिकोट, अंडरगारमेंट्स और कुछ फोटोज निकली। चूँकि वह एक सज़ायाफ्ता कैदी थी इसलिए उसे घर को कोई भी सामान या कपड़े इस्तेमाल करने की इजाजत नही थी। वह तो अपना मोबाइल भी बैग में रखने वाली थी लेकिन मनीष के कहने पर उसने अपना फोन उसे दे दिया।

“रेखा, लगता हैं इसने जेल को हॉटल समझ लिया हैं..” - प्रतिभा उसका मजाक उड़ाते हुए बोली।

‘हाँ मैडम जी। देखो तो, कितनी महँगी-महँगी साड़ियाँ लेकर आई हैं..’

“अरे माताजी, अब ये सब चीजें तेरे काम की नही हैं। भूल जा इन सब चीजों को।" - प्रतिभा ने उसकी ओर देखते हुए कहा।

शुभांगी कुछ न बोल पाई और शांत खड़ी रही। गहने जमा करने के बाद उसकी ऊँचाई तथा वजन की जाँच की गई और फिर उसे तलाशी के लिए पास खड़ी एक लेडी काँस्टेबल के पास भेज दिया गया।

“चल कपड़े उतार…” - उस काँस्टेबल ने सख्त लहजे में कहा।

'क्या?' - शुभांगी ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा।

"सुनाई नही दिया तेरे को। मैंने कहा कपड़े उतार।"

कपड़े उतारने की बात सुनकर शुभांगी एक पल के लिए तो बिल्कुल स्तब्ध रह गई लेकिन उसके पास कोई और रास्ता नही था। उस कमरे का माहौल उसके लिए इतना डरावना था कि उसकी हिम्मत ही नही हुई कि वह अपने कपड़े उतारने के लिए मना कर पाती। वह नियमो को मानने के लिए बाध्य थी और उसे काँस्टेबल के सामने अपने कपड़े उतारने पड़े।

उसने सबसे पहले अपनी साड़ी उतारी। हल्के नीले रंग की साड़ी और नीले ब्लाउज में वह गजब की खूबसूरत लग रही थी। उसने जैसे ही अपनी साड़ी का पल्लू अपने सीने से नीचे सरकाया, उसके बड़े-बड़े स्तन उभरकर सामने आने लगे और उसका क्लीवेज दिखने लगा। औरतो की खूबसूरती होती ही कमाल की हैं। किसी भी पुरुष की नजर औरत के चेहरे के बाद सबसे पहले उसके स्तनों पर ही जाती हैं और अगर महिला के स्तन बड़े-बड़े और सुडौल आकार के हो तो पुरुष अपने आपको कंट्रोल नही कर पाता। उस वक़्त यदि वहाँ कोई पुरुष मौजूद होता तो शुभांगी को देखकर मुठ मारे बिना नही रह पाता।

शुभांगी ने अपनी साड़ी उतारकर नीचे जमीन पर रख दी और फिर एक-एक कर अपने सारे कपड़े उतारने लगी। उसने अपना ब्लाउज और पेटिकोट उतार दिया और सिर्फ ब्रा-पेंटी में अपनी जगह पर खड़ी हो गई। उसने अंदर गुलाबी रंग की ब्रा व पेंटी पहनी हुई थी और इतनी कमाल की लग रही थी जैसे कोई अप्सरा जमीन पर उतर आई हो। हालाँकि काँस्टेबल इतने में ही संतुष्ट नही थी। उसने उससे ब्रा व पेंटी भी उतारने को कहा और उसे पूरी तरह नग्न होने के लिए बाध्य किया। काँस्टेबल के कहने पर उसे अपनी ब्रा-पेंटी भी उतारनी पड़ी और अब वह किसी नवजात बच्चे की तरह पूर्ण नग्न अवस्था मे खड़ी हो गई।

आँह! क्या गजब का बदन था उसका। खूबसूरत चेहरा, गोरा शरीर, बड़े-बड़े सुडौल स्तन, उभरे हुए कूल्हे और चिकने-चिकने चूतड़। उसके बदन पर वसा का जमाव अधिक था जिसकी वजह से वह और भी ज्यादा सेक्सी लग रही थी। उसकी कमर बहुत ज्यादा पतली नही थी लेकिन फिर भी किसी पुरुष को मदहोश करने के लिए काफी थी। उसके कपड़े उतारते ही काँस्टेबल ने उसकी जाँच शुरू कर दी।

सबसे पहले उस काँस्टेबल ने उसके बालो पर हाथ फेरा और उन्हें बिखेर दिया। फिर उसके मुँह, कान और नाक को अच्छी तरह से चेक किया और फिर उसके स्तनों को अपने हाथों के सहारे ऊपर उठाकर उन्हें दबाने लगी। जैसे ही उसने शुभांगी के स्तनों को दबाया, वह एकदम से असहज हो उठी और उसके हाथो को पकड़ लिया।

“मैडम, ये क्या कर रही है आप?” - शुभांगी बोली।

‘ऐ, क्या हैं। चुपचाप खड़ी रह।’ - काँस्टेबल उस पर चिढ़ते हुए बोली।

“आप ब्रेस्ट मत दबाइये प्लीज। मुझे अच्छा नही लग रहा..” - शुभांगी ने फिर कहा।

‘ये जेल हैं। तेरा घर नही हैं। यहाँ ऐसे ही चेकिंग होती हैं। अब ज्यादा नाटक मत कर और सीधी खड़ी रह।’ - काँस्टेबल ने जवाब दिया।

शुभांगी के पास आगे बोलने के लिए कुछ नही था और वह चुपचाप खड़ी हो गई। वह काँस्टेबल फिर से उसके स्तनों को दबाने लगी लेकिन इस बार शुभांगी कुछ नही बोल पाई। उसके बाद उसने शुभांगी को आगे झुककर तीन बार खाँसने को कहा। वह आगे की ओर झुकी और तीन बार खाँसने लगी और फिर शुरू हुआ जाँच प्रक्रिया का वह हिस्सा जो शुभांगी के लिए बेहद शर्मिंदगी भरा था।

काँस्टेबल ने उसे अपनी दोनो टाँगे फैलाकर दीवार पर हाथ टिकाने को कहा। शुभांगी ने अपना चेहरा दीवार की तरफ किया और अपनी दोनो टाँगों को फैलाकर दीवार पर हाथ टिकाकर खड़ी हो गई जिसके बाद उस काँस्टेबल ने उसकी गाँड़ और योनि के छेद में ऊँगली डालकर यह सुनिश्चित किया कि उसने अपने पास कुछ छुपाया तो नही हैं। शुभांगी के लिए वह क्षण बहुत ही शर्मनाक व मुश्किल भरा था। उसने अपनी आँखें बंद कर ली। उसकी आँखें नम हो चुकी थी और आँखों से आँसू बहने लगे। उसका दिल कर रहा था कि वहाँ से भाग जाए और फिर कभी वापस लौटकर ना आये। उसके चेहरे पर डर और शर्मिंदगी के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। उस काँस्टेबल ने जब उसकी योनि को छुआ तो उसे ऐसा लगा मानो जैसे एक पल में ही उसकी सारी इज्जत लूट ली गई हो।

खैर, शुभांगी की जाँच प्रक्रिया पूरी हुई। जाँच प्रक्रिया पूरी होने के बाद वहाँ मौजूद एक अन्य लेडी काँस्टेबल अंदर से एक कैमरा लेकर आई और शुभांगी को नग्न अवस्था मे ही दीवार के सामने खड़ा करवा दिया गया।

“ऐ, सीधी खड़ी हो और कैमरे में देख..” - उस काँस्टेबल ने कहा।

शुभांगी को अब कुछ अजीब लगने लगा था। उसे समझ नही आ रहा था कि उसकी नग्न तस्वीरे क्यो खिंची जा रही हैं। उसने थोड़ी हिम्मत की और उस काँस्टेबल से पूछा - “मैडम, मेरी ऐसी फोटोज क्यो ले रहे हो आप?”

‘ऐसी मतलब कैसी?” - काँस्टेबल ने हँसते हुए कहा।

“‘मतलब बिना कपड़ों के..” - शुभांगी ने जवाब दिया।

‘सिर्फ तेरी ही नही ले रहे हैं। सबकी लेते हैं। रूल हैं जेल का।’

शुभांगी को लगा कि शायद हो सकता हैं कैदियों की नग्न तस्वीरे लेने का कोई नियम हो लेकिन उसे यह बात बहुत देर तक खटकती रही। हालाँकि उस वक़्त उसे बहुत ज्यादा सोचने का मौका नही मिला और यह बात उसके दिमाग से बिल्कुल निकल गई। उसकी तस्वीरे खींचने के बाद उसे कुछ सामान व जेल के कपड़े दिए गए जिन्हें पहनने के बाद उसका मगशॉट (जेल के रिकॉर्ड के लिए तस्वीर) लिया गया और फिर उसे अंदर वार्ड की ओर ले जाया गया।

उसे दिए गए कपड़ो में तीन जोड़ी सफेद रंग की साड़ी (जिस पर नीले रंग का बॉर्डर था), सफेद ब्लाउज, सफेद पेटिकोट व सफेद रंग की ही ब्रा व पेंटी शामिल थी। इसके अतिरिक्त उसे कुछ सामान भी दिया गया जिसमें एक थाली, एक मग, एक बाल्टी, एक कंबल, चादर व एक टॉवेल शामिल था। शुभांगी भले ही किसी गलती की वजह से जेल पहुँची थी लेकिन अब वह एक सज़ायाफ्ता कैदी थी। वह अपने घर के कपड़े नही पहन सकती थी, घर का खाना नही खा सकती थी और ना ही अपनी मर्जी से कोई काम कर सकती थी। हालाँकि उसे पूरी उम्मीद थी कि उसे दो से तीन दिन ही जेल में रहना पड़ेगा और कोर्ट में उसके नाम की गलती का पता चलने के बाद वह अपने घर जा सकेगी।​
 
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Update 7

(शुभांगी की सेल)

उसे अंदर ले जाया गया। वह बीच मे थी और दो लेडी काँस्टेबल्स उसके इर्द-गिर्द चल रही थी। उसके बदन पर कैदियों वाले कपड़े थे और हाथो में जेल का सामान। डिप्टी जेलर प्रतिभा पहले ही जेलर को फोन पर शुभांगी के बारे में सूचित कर चुकी थी और जेलर ने उसे वार्ड नंबर 4 में डालने के लिए कहा। जेलर के कहे अनुसार दोनो काँस्टेबल्स उसे सीधे वार्ड 4 में लेकर गई।

शुभांगी के लिए पहली मुसीबत यही उसका इंतजार कर रही थी, जब उसका सामना वार्ड 4 की वार्डन उर्मिला से हुआ। दिखने में ही बेहद गुस्सैल और सख्त मिजाज वाली उर्मिला लगभग छः सालो से इसी जेल में वार्डन के पद पर पदस्थ थी। महिला जेल परिसर के 8 वार्डो की सभी वार्डनों में उर्मिला सबसे अधिक क्रूर और अनुशासन पसंद महिला थी। उसे यह बात बिल्कुल पसंद नही थी कि उसके वार्ड की कोई भी कैदी अनुशासनहीनता करे या नियमो का पालन ना करे।​

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"मैडम, ये नई कैदी हैं। प्रतिभा मैडम ने इसे आपके वार्ड में डालने बोला हैं।" - काँस्टेबल ने उर्मिला से कहा।

उर्मिला ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और बोली - "नाम क्या हैं तेरा?"

'शुभांगी...' - शुभांगी ने जवाब दिया।

"कौन से केस में आई हैं?" - उसने काँस्टेबल से पूछा।

'मर्डर केस में आई है मैडम। उमरकैद है। खुद ही सरेंडर किया हैं।' - काँस्टेबल ने जवाब दिया।

"अच्छा। साली देखने मे तो बड़ी मासूम और अच्छे घर की लगती हैं। लगता नही कि मर्डर कर सकती है।"

तभी शुभांगी ने उसकी बात को बीच मे काटते हुए कहा - 'नही मैडम, आप जैसा समझ रही हैं, वैसा कुछ भी नही हैं। मैंने कोई मर्डर नही किया हैं।'

उसके बीच मे बोलने पर शोभना गुस्से से आग बबूला हो उठी और उस पर चिल्लाने लगी - "हरामजादी, मैंने बोलने को कहा तुझे? कहा बोलने को? जब तक बोलने को ना कहा जाये, तब तक जुबान से एक भी आवाज नही निकलनी चाहिये।"

शुभांगी बिल्कुल चुप हो गई। शोभना ने दोनो काँस्टेबल्स से शुभांगी को अंदर लेकर चलने को कहा जिसके बाद उन्होंने शुभांगी को पकड़ा और सेल की ओर लेकर बढ़ गई।

जेल की बनावट कुछ इस प्रकार की थी कि जेलर के ऑफिस से अंदर जाने पर वार्डो का एक अलग परिसर था जिसके गेट पर चौबीसों घंटे महिला सिपाही तैनात रहती थी। किसी भी कैदी को बिना अनुमति के इस परिसर के गेट से बाहर जाने की सख्त मनाही थी। गेट से अंदर जाने पर सबसे पहले एक बड़ा सा मैदान था जहाँ कैदियों की गिनती व प्रार्थना आदि की जाती थी। खाली वक़्त में कैदी औरते इसी मैदान में टहलती थी और उन्हें खाना भी यही दिया जाता था। इसी मैदान के बाद कैदियों को रखे जाने के लिए वार्ड बने हुए थे जिसमे प्रत्येक वार्ड में 15 सेल अथवा कोठरियाँ थी। वार्डो के पीछे की ओर कैदियों के नहाने की व्यवस्था थी जबकि काम के लिए कैदियों को बाहर ले जाया जाता था।​

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शुभांगी को वार्ड नंबर 4 की सेल नंबर 10 में ले जाया गया। तीन तरफ से दीवारों से घिरी उस सेल में सामने की तरफ लोहे की सलाखें लगी हुई थी और उसी के बीच मे एक लोहे का दरवाजा था। ऊपर एक पंखा और एक बल्ब लगा हुआ था तथा एक तरफ पीने के पानी के लिए मटका रखा था। दूसरे कोने में ही शौचालय शीट लगी हुई थी जिसके आसपास छोटी सी दीवार थी। अंदर मनोरंजन के कोई साधन मौजूद नही थे और ना ही अन्य कैदियों की मौजूदगी थी। हालाँकि सेल में रखे कपड़े व सामान देखकर शुभांगी समझ गई थी उस सेल में और भी कैदी बंद हैं।

वार्डन उर्मिला ने उसे सेल में बंद कर दिया और ताला लगाकर वहाँ से बाहर चली आई। शुभांगी अब सेल में बिल्कुल अकेली थी। उसे बेहद अजीब लगने लगा था और घुटन सी महसूस हो रही थी। वह पहले कभी भी इस तरह एक बंद कमरे में नही रही थी। वह सलाखों से बाहर झाँकने की कोशिश करने लगी लेकिन उसे सामने की कुछ सेलो के अलावा कुछ भी दिखाई नही दे रहा था।

थक हारकर वह जमीन पर ही एक कोने में बैठ गई। जेल स्टॉफ का अपने प्रति बर्ताव देखकर उसे बहुत ही बुरा महसूस हो रहा था। वह कोई अपराधी नही थी और उसे यकीन था कि उसे जेल में ज्यादा दिन नही रहना पड़ेगा। उसे अपने परिवार की याद सताने लगी। बेटी पलक और बेटे शिवांश का चेहरा उसकी आँखों के सामने तैरने लगा। उसे चिंता होने लगी कि उसके जेल जाने की वजह से उसकी बेटी की परीक्षा खराब ना हो जाये।​

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सेल के अंदर करने को कुछ काम नही था और शुभांगी को कुछ ही देर में बोरियत महसूस होने लगी। वह सेल के अंदर ही यहाँ-वहाँ टहलने लगी। वहाँ समय काटना बिल्कुल भी आसान नही था और वह भी तब जब सेल में उसके अलावा एक भी कैदी मौजूद नही थी। उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करे। वह बाहर जाना चाहती थी लेकिन सेल में ताला लगा हुआ था। वह सलाखों के पास खड़ी हो गई और बाहर तैनात महिला सिपाही को आवाज देने लगी।

"मैडम, सुनिए। कोई हैं। प्लीज मेरी बात सुनिए।"

उसकी आवाज सुनकर बाहर खड़ी एक लेडी काँस्टेबल अंदर आई और उसे डाँटते हुए बोली - 'ऐ, क्या है रे? साली आये हुए एक घंटा भी नही हुआ और नाटक शुरू कर दिया तूने।'

"मैडम, प्लीज मुझे बाहर निकालिये। मेरा दम घुट रहा हैं यहाँ पर। मैं पहले कभी भी ऐसे बंद कमरे में नही रही हूँ।" - उसने काँस्टेबल से विनती की।

'ये जेल हैं। तेरा घर नही हैं जो तेरे को अलग से कमरा देंगे। यहाँ सबको ऐसे ही रहना पड़ता हैं। मर्डर करते समय याद नही आया कि जेल में क्या नसीब होता है।' - काँस्टेबल्स बोली।

"मैडम, मैडम, प्लीज मैडम। मैं आपके पैर पड़ती हूँ। प्लीज थोड़ी देर के लिए ही बाहर जाने दीजिए।"

'अब ज्यादा चूं चपड़ की ना तो ये डंडा दिख रहा हैं। गाँड़ से डालूँगी और मुँह से निकालूँगी। समझी। चुपचाप पड़ी रह उधर।' - उसने शुभांगी पर चिल्लाते हुए कहा और वहाँ से बाहर चली गई।​

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शुभांगी के पास अब सेल में बंद रहने के अलावा कोई चारा नही था। वह चुपचाप एक कोने में बैठ गई और अपने परिवार को याद करने लगी। वह कभी सोने की कोशिश करती तो कभी चलने लगती। उसे लगने लगा था कि उसे सरेंडर नही करना चाहिए था और उसका सरेंडर करने का फैसला बिल्कुल गलत था। वह मन ही मन सोचने लगी कि जब उसने कोई गलत काम किया ही नही हैं तो वह अपने साथ ऐसा व्यवहार बिल्कुल भी डिज़र्व नही करती। जो भी हो लेकिन जेल में उसके अनुसार तो कुछ नही होने वाला था। आखिर वह एक कैदी ही तो थी। अन्य कैदियों की तरह एक बिल्कुल साधारण कैदी।​
 
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Prison_Fetish

Kabir Singh
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शाम के 5 बजने को आये थे। सभी कैदी औरतें काम से वापस लौटने लगी थी। शुभांगी की सेल की कैदी औरते भी सेल में वापस आ गई।

"अरे ये कौन हैं? नई आई हैं क्या?" - उनमे से एक कैदी ने शुभांगी को देखते ही कहा।

'हाँ, आज ही आई है।' - पीछे खड़ी एक काँस्टेबल ने जवाब दिया।

"अबे क्या चिकनी है रे साली। (शुभांगी की ओर देखते हुए) ऐ, साड़ी उतार ना।" - उसने कहा।​

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शुभांगी कुछ बोल नही पाई और शांत खड़ी रही। वे लोग तीन औरते थी। दिखने में बेहद खतरनाक और बदसूरत। ऐसा लग रहा था जैसे वे तीनों आदतन अपराधी हो। उनके चेहरों से झलकती हैवानियत उनके अपराधी होने की संभावना को और भी ज्यादा पुख़्ता कर रही थी। सेल में आते ही उन्होंने शुभांगी को घेर लिया और उसे परेशान करने लगी। शुभांगी बेहद घबरा गई थी लेकिन उसकी मजबूरी थी कि उसे उन तीनों के साथ ही रहना था।

"ऐ नाम क्या है रे तेरा?" - उनमे से एक ने पूछा।

'श...शुभांगी...' - शुभांगी ने हिचकिचाते हुए जवाब दिया।

"क्या? शिल्पा शेट्टी।" 😂

शुभांगी क्या ही कहती। वे तीनों उसका मजाक उड़ाने लगी और उसके साथ छेड़खानी करने लगी। उनमे से एक औरत ने उसका हाथ पकड़ लिया और ऐसे सहलाने लगी जैसे उसने कभी किसी औरत का हाथ ही ना पकड़ा हो। हालाँकि ऐसा होना स्वाभाविक भी था। वे तीनों काली, भद्दी और बदसूरत औरते थी जबकि शुभांगी एक गोरी-चिट्टी और बेहद खूबसूरत महिला थी। चूँकि उस सेल में एक भी जूनियर कैदी नही थी और जब शुभांगी को उस सेल में बंद किया गया तो वे तीनों एक जूनियर कैदी पाकर बहुत खुश हुई। शुभांगी उनके लिए काम और मनोरंजन का नया साधन थी। उन तीनों के नाम कमला, रेश्मा व सुजाता थे।​

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वे लोग शुभांगी के बदन पर यहाँ-वहाँ हाथ मारने लगी। कभी उसके चेहरे पर हाथ लगाती तो कभी उसके कूल्हों पर। कभी उसकी साड़ी के ऊपर से ही उसके स्तनों को दबाती तो कभी उसकी कमर पर चिमटी काटती। शुभांगी को उनका ऐसा करना बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था लेकिन वह अपने बचाव में कुछ कर नही पाई। वह थोड़ी डरी हुई थी और उन तीनों द्वारा परेशान किये जाने से उसे चिढ़ भी होने लगी थी।

"देखिए प्लीज आप दूर रहिये मुझसे। मैं आप लोगो जैसी नही हूँ।" शुभांगी ने कहा।

उसने इतना कहा ही था कि वे तीनों ठहाके मारकर हँसने लगी। हालाँकि शुभांगी को समझ ही नही आया कि वे लोग आखिर क्यूँ हँस रही हैं। तभी उनमे से एक औरत ने उसके सर पर जोर से हाथ मारा और उसके हाथ को मरोड़ते हुए बोली - 'इधर सब एक जैसे होते है बहनचोद। अब तू भी हमारे जैसी ही है साली रांड।'

हाथ मरोड़े जाने से शुभांगी को दर्द होने लगा और वह उस औरत से हाथ छोड़ने की विनती करने लगी। शुभांगी को कुछ देर में ही एहसास होने लगा था कि जेल की जिंदगी कितनी बुरी और मुश्किल है और वह जल्द से जल्द अपने घर वापस जाना चाहती थी। उन तीनों औरतो द्वारा परेशान किये जाने की वजह से शुभांगी अपने आपको काबू में नही रख पाई और रोने लगी। जाहिर सी बात थी कि वह जेल में बिल्कुल अकेली थी और वहाँ उसका कोई अपना नही था। पहले दिन से ही उसके साथ जानवरो की तरह बर्ताव किया जाने लगा जबकि वह कोई अपराधी नही थी। वे तीनों औरते उसे घेरे खड़ी थी कि तभी बाहर मौजूद एक लेडी काँस्टेबल ने उन्हें आवाज लगाई और खाना लेने के लिए बाहर जाने को कहा। शाम के 5 बज चुके थे और खाने का समय हो चुका था। 5 बजते ही पूरी जेल में एक तेज सायरन की आवाज सुनाई दी जो खाने के समय होने का इशारा थी। सायरन के बजते ही सभी औरते अपनी-अपनी थाली लेकर बाहर जाने लगी। शुभांगी की सेल की तीनों औरते भी अपनी-अपनी थालियाँ लेकर बाहर चली गई।​

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"ओ महारानी। तुझे अलग से बोलना पड़ेगा क्या। थाली ले और बाहर जा।" - काँस्टेबल ने शुभांगी पर भी चिल्लाते हुए कहा।

चूँकि शुभांगी का जेल में पहला ही दिन था इसलिए उसे जेल के नियमो, रहन-सहन व दिनचर्या के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नही थी। उसे नही पता था कि जेल में रात का खाना शाम को 5 बजे ही दे दिया जाता है जो उसके लिए एक नया अनुभव था। मजबूरन उसे खाना लेने के लिए बाहर जाना पड़ा और वह अपनी थाली लेकर बाहर निकल आई।​
 
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