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Incest गुंडे(incest)

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vbhurke

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प्रिय वाचक वर्ग प्रस्तूत है एक नई कहाणी । यह कहाणी पूर्ण तरह से काल्पनिक है । कृपया वास्तविक तर्क दूर रखे । वाचक

वर्ग से विनंती है । ईस कहाणी के अपडेटस मिलने मे विलंब हो सकती है ।
 

vbhurke

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Update-1

विजय २४ साल का युवक था| पर मोहल्ले के युवकों से अधिक बलिष्ठ और क्रूर था| बचपन से ही बेबाक उसका स्वभाव था और जवानी मे मोहल्ले के आवारा दोस्तो से बनी उसकी गैंग थी जीसका वो लीडर था । तबसे सारे ईलाके मे “विजयभाई” के नाम से वह मशहूर था,बंदूक की नोक पे रईस लोगों से पैसे एंठना यही ईनका रोज का काम था पर विजय सारे काम अपने साथीयों से करवाता था ।

विजय कोई अनपढ अंगुठा छाप युवक नही था ईंजीनियर की डीग्री होने के बावजूद वो गुंडई करता था उसके लिए उसके हालात जिम्मेदार थे | पर विजय पे हालात भारी पड गये और विजय नाचाहते हूए भी नशे का शिकार बनता गया गुंडागद्री मे डुबता चला गया अब यही उसकी जिन्दगी थी । गलत संगत मे गलत आदते लगने मे देर नही लगती सारे दोस्त हफ्ते मे कई बार रात मे पास के होटल शराब के नशे मे डूबे रहते रातभर अपनी रखेल या रंडीयो को चुदाते रहते हर-रात नई लडकी होती थी । विजय उसकी रखेल के नंगे बदन को शराब और सिगरेट का नशा करते हुए चुदाई मे वह सुख मानता था|

महीने बीतते गये गैंग बिखरती गई हरकोई काम करके अपना गुजारा करने लगा अब उन्होने गुंडागद्री कम करदी पर छोडी नही थी उसदीन शनिवार था विजय का खास यार समिर बहोत दीनो बाद विजयसे मिला दोनो छत पर सिगरेट के कस लगाते हुए बाते कर रहे थे ।

समिर- भाई आज तो “सैटरडे नाईट” है भाई आज आप एश करोगे लगता है ।

विजय- अबे हा बे शनिवार कब आ जाता है पता भी नही चलता । तुभी तो बहोत दीन बाद आया है आज ईंगलिस वाली पीयेंगे दोनो सात बजे आजाना छत पे ।

समिर ने जवाब नही दीया सिगरेट ओढते हुए आसमान की तरफ देखते हूए हल्के से मुस्कुराया

विजय- क्यू बे क्या पूछ रहा हूं, सून रहा है ।

समिर- हां भाई, मैने छोडदी भाई अब मै नही पीता

विजय- लवडे, कीसको पट्टी पढा रहा है बे कही कीसी कुतीया को जा रहा होगा चोदने छुपाता क्यों है ।

समिर- नही भाई जैसा आप सोच रहे हो वैसा नही है मां कसम मैने छोड दी बस अब सीगरेट फुंकता हूं । वैसे भी बापू की असपताल मे तबीयत खराब है ईसलिए मां को शाम को अस्पताल ले जाना है ।

विजय- यार पता ही नही चल रहा है कही सूरज उल्टी साईड से तो निकलना शूरू नही हूआ है , साली मेरी गैंग के पंटर लोग अच्छे बच्चे बन घुम रहे है । और मै यहा नशे मे धुत सड रहा हूं ।

तभी समिर को फोन आता है और वो निकल पडता है ।

विजय को तो विश्वास नही हो रहा था रंडी बाज समिर ईतना कैसे बदल गया ।

विजय कुछ देर बाद वहा से निकल पडता है मौहल्ले बाहर रोड पर अपने पुरानी टोली से गप्पे लडाने लगा और रोड पे अपनी नजरे जवान लडीयों से लेकर आंटीयो के बदन पे हवस भरी निगाहो से देखता रहा । विजय की पसंद जवान कच्ची लडकीयां थी । उसके नजर मे कोई भर गई तो वो उसका रस चखे बीना नही रहता था । पर पिछले कुछ महीनो से उसका इस सबसे मन उब गया था क्यूं की उसकी प्यास मिटाने वाली उसकी रखेल एक लडके से प्यार करके दुसरे शहर चल बसी थी । पहली बार विजय कई महीनो से औरत चोदे बीना रह रहा था उस वजह से बहोत चिडचिड करने लगा था ।

रात के ग्याराह बज रहे थे विजय खाना खाने के बाद छत पर हवा खाने आ गया जेब से उसने सिगरेट निकाली और लाईटर से जलाकर फुंकने लगा । काले घने आसमान मे विजय पुराने मजे भरे दीन याद कीये सीगरेट के कस लगा रहा था । यादों के बादल सिगरेट के धुए की तरह घने हो रहे थे । साल बीतते गये और विजय के टोली के उसके यार पेड के पत्तो की तरह बीछड कर अलग होने लगे ।

कुछ नौकरी करके गुजारा करने लगे तो कुछ अपनी गृहस्ती की शुरूवात तक कर चुके थे । एक समिर ही था जो आजतक विजय के साथ था । आधे घंटे बाद उसकी नजर समिर के घर की छोटी खिडकी पर पडी जो समिर शायद बंद करना भूल गया था जैसा उसे समिर ने बताया था वो उसकी मां को लेकर अस्पताल जाने वाला था जाहीर है घर मे कोई न होने का उसे अंदाजा था । समिर का बाप भी बडा पीय्यकड बेवडा था साला जब तक पी-पी कर अस्पताल भरती ना हो जाए शराब की बोतल नही छोडता था ।

कुछ देर बाद समिर के घर से ट्यूब लाईट जलती हूई विजय को उस छोटी खिडकी से दीखाई दी । विजय को लगा शायद समिर घर लौट आया हो उसने अपना फोन जेब से निकाला और समिर को फोन करने लगा उसका फोन स्वीचऑफ बताने लगा । विजय की नजर खिडकी मे झांकने लगी समिर ने टीवी चालू कीया और सीडी प्लेयर मे कोई सीडी डालके खटीये पर लेट गया । जैसा विजयने सोचा था नंगी औरते टीवी पर आने लगी । समिर खटीया पर लेट कर टीवी पर ब्लू फील्म देख रहा था और लूंगी मे हाथ डाले अपने लंड को सहला रहा था विजय ये देख कर मुस्कुराया और झत से निचे उतरने के लिए पलटा तभी......
 

vbhurke

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Update-2

तभी कमरे मे उसकी मां कविता सफेद रंग की शिफोन की चमकती मेक्सी मे चलती आई और टीवी के पास वाले आईने मे अपने बाल को लगाया किल्प निकाल कर खूले बालो मे कंघी करने लगी । कविता चाची कीसी नशिली औरत से कम नही थी कीसी भी शराबी को शराब से भी जादा नशा देने वाला उसका बदन साडी मे ही देख हवस जाग उठती गदराया बदन सीने पर मोटी- मोटी चुचिंया, बडे गोल चुत्तड, लाल पतले रसिले होट । विजय को बडा धक्का लगा समिर अभी भी अपनी मां के सामने ब्लू फील्म देख रहा है और उसकी मां उसपर कुछ भी नही कह रही है मतलब जरूर कुछ बात है । कविता चाची अभी भी खडी-खडी बाल सवार रही थी और फीर वो भी टीवी पे ब्लू फील्म देखने लगी । समिर ने कविता को देख सीटी मारी कविता ने मुडकर देखा समिर और कविता एक दुसरे को इशारे मे कुछ कहने लगे समिर ने कविता को अपने तने लंड की ओर इशारा कीया । कविता सीर झुकाए आईने की ओर मुडी आंखो मे काजल लगाने लगी । सीना तानकर समिर खटीये से उठ खडा हुआ समिर ने अपनी लूंगी खोली उसका काला लंबा सांप फनफना रहा था उसने उसे हाथ मे पकड कर दो बाल उसकी चमडी उपर निचे की और कविता चाची के ओर बढने लगा । ये सब देख कर विजय दंग रह गया सोच ही नही पा रहा था विजय से उमर मे छोटा समिर विजय से एक कदम आगे निकल पडा साले ने अपनी हवस की आग मे अपनी मां को भी नही छोडा । समिर नंगा कविता चाची की पिछे जाकर खडा हुआ और उसने कविता की चुचिंया दबानी शूरू की कविता चाची आंखे बंद कीये दातों से अपने होंट काट रही थी समिर अपना लौडा चाची के भारी गुदाज चुत्तड के दरार पर घिसने लगा फीर उसने कविता की मेक्सी उठाई और निकाल कर फेंक दी । समिर की मां अंदर पूरी नंगी थी मतलब इन दोनो का ये प्रोग्राम रोज होता होगा । कविता की मोटी चुंचिंया डोल रही थी मोटे चुत्तड देख विजय की आंखे फटी की फटी रह गई पहली बार रोज साडी मे कैद रहने वाली कविता चाची के मस्त गदराये बदन को आज पहली बार विजय नंगा देख रहा था । उसे पता नही था बडी उर्म की औरते ईतनी नशिली लगती है फीर नंगी कवीता को खटीया की और ले गया चलते वक्त कविता के मोटे चुत्तड थिरकने लगे समिर ने अपनी मां को अपनी गोदी मे बीठाया और उसकी मां के चुचींयों से खेलने लगा । समिर की मां छोटी बच्ची की तरह नंगी समिर की गोद मे बैठी थी । समिर ने खटीये पर रखा मोगरे का गजरा कविता के बालों मे पहनाया । समिर उसकी मां की मोटी-मोटी टरबूज जैसी छातियों को मसल रहा था और एक हाथ से कविता की चूत दबा रहा था । कविता भी समिर का तना हुआ काला सांप जैसा मस्त लण्ड पकड कर मुठ मार रही थी । विजय ने आजतक मां बेटे के चुदाई के बारे मे सिर्फ सूना था आज वो सामने देख रहा था । समिर ने कविता चाची के होट चुसने शूरू कीये और बाते करना शूरू की पर समिर को कुछ सुनाई नही दे रहा था सिर्फ दोनो के चेहरे की मुस्कान दीख रही थी । समिर ने अपनी मां की जबान मुंह मे लेकर चुसने लगा । फीर उसने कविता को खटीया पे लिटाया और उसकी चुत चाटने लगा १० मिनट चुत चाटने के बाद कविता ने लाईट बुझाने का ईशारा कीया समिर मना करने लगा पर फीर वो मान गया और उसने उठ कर लाईट बुझादी फीर क्या सारा मजा कीडकीडा हो गया सारा लाईव शो बीच मे ही बंद हो गया उदास विजय निचे कमरे मे आया और सो गया ।

दुसरे दीन शाम के ८बजे थे कमरे की छत पे विजय सिगरेट के धुवे मे कल रात के पल याद कर रहा था उसने समिर को फोन लगाया और छत पे आने को कहा । कुछ देर बाद समिर छत पे आया ।

समिर- भाई कोई अरजेंट काम था ।

विजय- क्यू बे अरजेंट काम होने पर ही तेरे को बुलाउंगा क्या, आ बैठ कुछ बात करनी है तेरे से परसनल बताईंगा ना ।

समिर- क्या भाई अपनका सब परसनल आपका हीच तो है ।

विजय- एक बात बता मां को अस्पताल मे लेके गया था ना बापू की हालत अब कैसी है ।

समिर- अब क्या बताउ भाई, बापू ने पी पी के अपनी अंतडीया जला दी है तो डाक्टर ईलाज कर रहा हैई, अब देखेंगे आगेका सबकुछ ।

विजय- सही है , इतना पीपी के तो अतडीया सडने हीच वाली है । वो छोड बाकी रातभर निंद नही आई होगी ना तुम दोनो को कल रात ।

समिर- हां भाई मां तो रातभर रो रही थी । अपून ने फीर उसको समझाया और थोडा उसकी सेवा की फीर वो शांत हुई ।

समिर गालो ही गालो मे हसने लगा ।

विजय- हां बात तो सही है, और थक तो तु बहोत हो गया होगा नई । रातभर रोती चिखती मां को शांत करते-करते ।

समिर- क्या भाई, मां की सेवा मे कैसी थकावट, वो तो अपन की रीसपोनसबीलीटी है ना भाय ।

विजय- मतलब की तेरेको मजा आया सही ना ।

समिर- क क्या भाई अपन समझा नई आप क्या बोल रये हो ।
 
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vbhurke

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Update - 3

विजय- अबे मादरचोद कबसे तू मेरेको पट्टी पढा रेला है तेरे को क्या लगा मई अलिबाग से आयेला है ।

समिर- भाई आप क्या बोल रहई हो अपून को लवडा कुझ समझ नई आ रहा है ।

विजय- चुतिये, कल रात बारा बजे तेरे मां के साथ तू क्या कांड कर रहा था वो मै पूछ रहा हू तेरे से ।

समिर- ममम मतलब भाई ।

विजय- बोसडीके कल रात तू तेरी नंगी मां को गोद लेकर क्या कर रहा था । मेरे को कल रात हीच पता चल गया की तूम लोग क्या कर रहे हो पर अब तूहीच खूद के मूह से बता ।

समिर पेट पकड कर जोर-जोर से हसने लगा, अपनी हसी रोकते हूए वो बोलने लगा

समिर- भाई आप को पता चल गया हम दोनो की मस्ती के बारे में भाई सही सोच रहे हो कल हम लोग चुदाई कर रेले थे । और भाई हर शनिवार को हम दोनो मजे करते हैई वो भी जबरदस्त, रातभर उसको हमच-हमच के चोदता हूं । वैसे भाई आपको कैसी लगी पूरी गदराई आयटम है ना ।

विजय- लवडे तूने तेरी मां को भी अपनी हवस का शिकार बनाया, मुझे पता ही था ईतना बडा चोदू बीना चुदाई के कैसा रह पाएगा पर भडवे तूने अपनी मां को तक नही छोडा ।

समिर- भाई आप उसको सावीत्री समझ रेले हो आपको पता नई वो कीतनी बडी चिनाल है । भाई ईसकी शूरूवात अपन ने नई उसने हीच की थी । मेरा बाप पिके दीनभर टूननन रहता है ये आपको बताने की जरूरत नही है । रोज मां रात को पागल की तरह तकीया बाहो मे लेकर मसलती मैने अपने आंखो से देखा है । बादमे वो मेरे उपर लाईन मारने लगी बार-बार अपन के शादी के बारे मे बाते करती । फीर तो हद ही हो गई मै सोया हुआ होता तो मेरे बाजू आके बैठ जाती और अपन को उठाने के बहाने पेंट मे खडे बंबू पे हाथ घुमाती । एक दीन तो मेरे सामने साडी गांड तक उठाकर गांड खुजाने लगी और निक्कर निचे करके मुतने बैठ गई । आहहहह मां कसम क्या नजारा था भाय याद करके लंड अभीसे कडक हो गया । ईतना ईशारा ना समझ ने को अपून कोई हीजडा है क्या मेरे को पता चल गया चिनाल के चुत मे बहोत खुजली हो रही है फीर एक रात मैने हीम्मत करके उसको हाथ पकड के बिस्तर पर खिंचा और बाहों मे लेकर जोर-जोर से उसकी गांड मसलना शूरू कीया साली, चिनाल मजे ले रही थी तब अपन समझा आज रात इसकी सुहागरात मनने वाली है । रातभर उसकी मस्त चुदाई की अपन ने और भाई आपको क्या बताउ तब से लेके आज तक हम दोनो हर शनिवार रात हम हनिमून मनाते है भाई ।

विजय- क्या बात कर रहा है बे ईतनी पोहचेली आईटम है तेरी मां साली एरीये मे तो सबको पतिव्रता बनी दीखाती घुमती है, बाकी माल तो मस्त है तेरी मां पर तेरे बाप को कोई खबर नही है ना इसके बारे मे ।

समिर- उसको रोज दारू ईतना लाके देता था के वो पिकर वही टून होके सो जाता था एकबार तो मां को बाप के सामने ही मैने चुमना और चुदाई करना शूरू कीया था भाई आपकी नजर ना लगताये जवान लौडीयो पर ही घुमती रहती है । जरा इन उमरवाली रंडीयो का पाणी चखके देखो लौंडीया भूल जाओगे और बदन तो आहहह मुलायम गद्दे जैसा ।

विजय- अबे तेरी मां की चुत कैसी है

समिर- चूत तो चूत है भाय बस फरक इतना के जवान चुत के होंट रहते है ना भाय वैसे मां के होट नही है मां की चुत मे बाप का लंड घुसेला है ना तो मां की चुत के होट दो पंख मतलब लटकती चमडी के पंख है जो मां के लाल छेद को बंद रखते है मेरी उंगलिया डालने पर वो साईड होते है । पर मां का छेद भाय इतना मुलायम के क्या बताऊ एक शनिवार छोडकर अपन उसकी गांड भी मारता है आपने अपन की मां की गांड नही देखी कैसे बडी हो चुकी है कुछ महीनो से वो मेरी हीच मेहनत का नतिजा है । क्या भाई आप भी सून कर क्या करोगे आज रात आपके लिए लाईव चुदाई शो रखता हूं ना, मन करे उतना देख लेना ।

विजय- जाने दे यार फीर कभी , महीनो से कोई चुत नही मारी है देखूंगा तो फीर मन करने लगेगा । क्यू बे तेरे बाप ने कभी तूम लोगो को नही देखा क्या ।

समिर- भाई बाप का क्या है उसे मै काम से घर लौटने पर दारू लाके देता था दो तीन पेग लगाने के बाद वो मस्त टून हो जाता था मां टीवी पे सास बहू के सिरीयल देखती रहती तो मै तो बापू के सामने हीच मां को चुमना शूरू करता था कई बार हम दोनो ने उसके सामने हीच चुदाई की है, उसको सब पता है हमदोनो के बारे मे । भाई ये अपन दोनो के बीच की बात है । और हां भाय ईतनी ही चुत की भुक लगी है तो चाहे तो आप शनिवार को दोपहर घर आजाना अपन मां को समझा देगा, उसको क्या है उसे बस चुत मे बंबू चाहीये । फीर वो चाहे पती का हो बेटे का हो या बेटे के दोस्त का उसको फरक नही पडता ।

विजय- हा हा हा क्या बात बोली है बे, बडी चिनाल है साली ,पर फीर कभी मुड करेगा तो बताउंगा । तबतक तूही उसको पेलता रह ।

समिर- ओके भाय अपन निकलता है रात बहोत हो चुकी है कल काम पे भी तो जाना है ।
 

vbhurke

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Update-4

और समिर वहा से निकल पडता है । पर समिर की सारी बाते उसके दीमाग मे गुंज रही थी उसे कुछ घंटो पहले जो उसने सबकुछ सूना था उसपे विश्वास नही हो रहा था । कुछ देर बाद विजय समिर के घर की तरफ से गुजरता है तो समिर के घर का दरवाजा खुला ही था सामने समिर की मां कविता घर के अंदर सब्जी काट रही थी विजय को देखकर वो आवाज लगाती है ।

कविता- अरे ओ विजय बेटा यहां तो आओ ।

विजय- हां चाची आया

कविता- अरे बेटा अंदर आओ बैठो बडे दीनो बाद दीखे हो

कविता सब्जी काटती विजय से बाते कर रही थी हमेशा की तरह वो बडे खुले गले वाले मेक्सी मे थी उसके मोटे चुंचे गरमी के वजह से पसिना पसिना हो चुके थे और लाईट की सफेद रोशनी मे चमक रहे थे और बीच की दरार मे सोने का मंगलसूत्र घुसा हुआ था विजय को तो कल रात के बाद सामने बैठी कविता पूरी नंगी दीख रही थी वो दो हाथ जमिन पर टीकाए झुकते हुए कविता खडी होने लगी तो उसके दो मोटे-मोटे पपीते मेक्सी मे छुलने लगे । ये नजारा देखते ही टेबल पर बैठे विजय की पेंट मे तंबू बन गया वो खडी होकर मुड गई तो उसकी फैली हुई मोटी गांड पर उसकी नजर पडी गोल-मटोल गांड की दरार मे मेक्सी घुसी हुई थी उसे समिर की मेहनत नजर आई । कविता के चलने पर गांड थीरकने लगी ये सब देखकर विजय का लंड सलामी देने लगा वो मन-ही मन सोचने लगा...यार ये समिर चोदता होगा ईतनी बढीया रांड को साले के तो मजे है ।

कविता- ये लो बेटा पाणी पीलो...

खयालो मे खोये हुए विजय को पाणी सुनकर झटका लगा ।

विजय- ह..ह.. पाणी कककोनसा पाणी

कविता गालों ही गालों मे हसी

कविता- मटके का पाणी बेटा...

कविता पाणी लेकर आई और ग्लास विजय को देने लगी विजय ने कविता का हाथ दो मिनट के लिए थाम लिया कविता विजय के पेंट का तंबू देखकर छुटमुठ का शरमाई पर कुछ नही बोली और फीर विजय ने हाथ छोड दीया ।

कविता- वैसे बेटा मां कैसी है

विजय- बहोत अच्छी

कविता- मुझे तो बहोत उदास लगती है । परसो मीली थी कह रही थी विजय सुनता नही कुछ समझाओ उसे , देखो समिर तो मेरी हर बात मानता है ।

विजय- अरे चाची आप प्यार भी तो बहोत करती हो समिर से ।

कविता- वो तो है बेटा, समिर भी तो मुझसे बेहद प्यार करता है । समिर जैसे तुभी तो करना तेरी मां से प्यार, माना कर उसकी हर बात फीर देख वो तुझसे कीतना प्यार करेगी, आखिर तेरे बापू के गुजरने के बाद तू ही तो है उसे प्यार करने वाला वो तुझे रोकेगी नही, कौन मां को उसका समझ रहा है की नही मेरी बात ।

विजय- हां चाची ऐसी बात है तो पूरा मन लगाकर मां से प्यार करूंगा और उसकी हर बात मानूंगा ।

फीर थोडी इधर उधर की बाते करने के बाद विजय निकलने लगता है ।

कविता- बेटा एसे ही आया कर बैठने, कीसी चिज की जरूरत हो तो बता देना मुझे आखिर तूभी तो समिर की तरह मेरा बेटा है, तुझे भी मै समिर की तरह प्यार करूंगी ।

फीर विजय मुस्कुराता है और घर की ओर निकल पडता है । घर आने पर उसकी मां सरीता पे उसकी नजर पडती है । सरीता की उर्म ३७ की हो चुकी थी सरीता मोहल्ले मे बडी गदराई औरत थी सरीता के घर मे दुध और घी से बने चिजे बहोत खाई जाती थी शायद ईसी वजह से वो भी गदरा गई थी पूरी गोरी-गोरी दुधीया बदन की मालकीन पर बडी चुदासी औरत विजय का बापू ५ साल गुजरने तक रोज तबीयत से उसको रगडता था पर पिछले कुछ साल से वो बडी उदास रहती मोहल्ले मे सारे मर्द उसे चोदने के लिए अपने लंड खडे रखते थे आजतक कई मर्द उसकी प्यास बुझा दीये होते पर विजय का दबदबा ही एसा था की विजय को देखते ही उनकी हवा निकल जाती थी इस वजह से सरीता को अपनी अगन दबाकर रखनी पडती । वो कई बार विजय को रीझाने के लिए अपना पल्लू विजय के सामने गीरा देती विजय की नज़र अक्सर उसकी बड़ी बड़ी छातियों पर पड़ जाती थी, कम से कम 40 इंच की थी विजय भी बेशरम सा उसकी चुचिंया देख कर उसके सामने अपना लंड मसलता था । सरीता की कमर भी मोटी थी और जाँघें भी । सरीता नहाते समय पेटीकोट चुचिंयो पे चढाकर उसके सामने से जाती थी ।
 
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vbhurke

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update-5a

विजय कच्ची लौंडीयो की चुत चोदकर खुष था इसलिए घर की पुरानी शराब चखने का उसका मन नही था पर कुछ महीनो से उसकी रखेल की शादी के बाद वो उदास हो गया था वो उसे बडा चाहता था

और वही सबकुछ भुलाने के लिए विजय भी कुछ अटपटा सा करना चाहता था बस उसके करने की देर थी ।

सरीता- आ गया बेटे? चल खाना लगवा देती हूं ।

सरीता ने दरवाजा लगा दीया और खाना परोसने लगी विजय कुछ नही बोला वो झूट मुट का गुस्सा सरीता को दीखाने लगा विजयने टी-शर्ट निकालदी और हाफ पेंट पे खाना खाने बैठ गया सरीता विजय के कसरती बदन को बडे गौर से घुरने लगी और चुत को साडी के उपरसे खुजाते हुए एक हाथ मे थाली ले कर विजय के सामने बैठ गई और पता नही गलती से या जानबुझकर उसका पल्लू गीर जाता है और सरीता वैसी ही बैठी रहती है विजय खाना खाते-खाते उसकी गोरी मोटी चुचिंया देखता है और होटो पे से जबान फीराता है और निचे नजर घुमाते-घुमाते उसकी गहरी नाभी पर नजर गढाता है । सरीता मन ही मन खुष होती है खाना खाने तक विजय उससे कुछ नही बोला फीर २ घंटे बाद वो बिस्तर बिछाकर टीवी देख रहा था सरीता सारे बर्तन धो कर बाथरूम मे मुतने बैठ गई सी-सी-सी करती सरीता की मुत धार की सीटी की आवाज विजय के कानो पर पड रही थी विजय मस्त होकर सरीता की चुत की तस्वीर आखो के

सामने बनाने लगा और लंड मसलने लगा तबतक सरीता साडी के उपर से ही अपनी गीली चुत पोछते हुए बिस्तर पर आगई विजय सरीता के जांघो के बीच घुसी साडी देख रहा था सरीता विजय की नजरे पढ रही थी वो रोज की तरह सोने से पहले पास के टेबल से अपनी पान की पुडीया खोलती है और पान मुंह मे भर लेती है और उंगलीया चाटती हुई पान चबाना शुरू करती है ।

विजय की नजरे सरीता की नजरो से मिलती है । उसे विजय की आंखो मे गुस्सा नजर आता है और वो मादक आवाज मे कहती है ।

सरीता- क्या हुआ बेटा कबसे देख रही हूं बोलता क्यू नही मुझसे ।

विजय पान चबाने से लाल हो रहे सरीता के होटो के देख रहा था उसका मन कर रहा था अभी सरीता के होट चुसले और उसके होटों का लाल शरबती रस चुसले ।

सरीता- अरे एसे क्या देख रहा है बता ना कोई गलती हो गई क्या मुझसे ।

 
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vbhurke

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Update-5b

विजय ना जाने क्यू गुस्से मे कुछ ना बोले सो गया ।

दुसरे दीन सुबह विजय आंखे पोछते हूए निंद से जागा सरला नहा रही थी । विजय की नजरे बाथरूम की ओर कुछ मजेदार दीन की शुरूवात लायक टटोलने की कोशीश कर रही थी । और जब सरीता बाथरूम से पेटीकोट और चोली मे बाहर आई तो विजय की आंखे सरीता के रसिले बदन को हवस मिटाने की मशीन के नजर से देखने लगी । विजय मन ही मन कहने लगा....”साललला आजज अपन को समझ आ रेला है समिर लौडा क्यू उसकी मां को चोदता है, साली ये घर की कुतिया पे अपन ने कबी बुरी नजर डाली हीच नई, पुरा तय्यार माल है ये तो, मन तो कर रेला है अबीच ईस रंडी को बीस्तर पे खिंच के नंगा करके चोदू, आहहहहहा क्या चुचि क्या गांड उममममह मजा आ गया” सरीता तो हर रोज नहाने के बाद पेटीकोट चोली मे बाहर आती थी पर आज विजय के लिए घर की ये औरत कीसी मादक परी से कम नही लग रही थी । सरीता के ब्लाउज का उपर वाला हुक खुला था जिससे सरीता की मोटी मोटी चुचिंया आधी बाहर दीख रही थी उसने बडी ताकद से हुक लगाया बेचारी सरीता की नरम चुचिंया बेरहमी से चोली मे कसी थी मानो कह रही हो कोई हमे इस पिंजरे से आझाद करो हम कबूतरों को खुली हवा मे फडफडाने दो । और फीर आईने के सामने आ कर सरीता ने अपना पिछवाडा विजय की ओर घुमाया सरीता के गोल-गोल चुत्तरो मे पेटीकोट फसा था । सरीता की मोटी गांड गीली होने से पेटीकोट को चिपक गई थी । सरीता अपने बाल सुखाने लगी सरीता की मोटी-मोटी चुचींयो जो सरीता बाल पोछते समय हील रही थी । विजय पेंट मे तन कर खडे लंड का सुपडा सहलाते अपनी मां की रसभरी जवानी का रसपान कर रहा था ।

सरीता ये सब आईने से देख रही थी विजय की सरीता के अधनंगे बदन को घुरती नजरे सरीता पहचान ती थी वो जानती थी उसके जवान बेटे को औरत के जीस्म की जरूरत है पर वो कर भी क्या सकती थी । विजय की शराब की लत ने उसे पुरा बरबाद कर दीया था, विजय के पास ना कोई नौकरी थी जिससे सरीता विजय की आगे की जिन्दगी पटरी पे ला सके । सरीता ने ठान ली वो विजय की बुरी आदतें मिटायेगी । और शायद उस सुबह वो शुरूवात कहां से करनी है वो समझ चुकी थी।

दोपहर हुई सरीता ने खाना लगाया विजय सरीता से बिल्कुल बात नही कर रहा था

सरीता- विजय बेटा ले गरम गरम खाना खा ले

विजय ने चुपचाप थाली लेकर खाना खाने लगा

 

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Update-1

विजय २४ साल का युवक था| पर मोहल्ले के युवकों से अधिक बलिष्ठ और क्रूर था| बचपन से ही बेबाक उसका स्वभाव था और जवानी मे मोहल्ले के आवारा दोस्तो से बनी उसकी गैंग थी जीसका वो लीडर था । तबसे सारे ईलाके मे “विजयभाई” के नाम से वह मशहूर था,बंदूक की नोक पे रईस लोगों से पैसे एंठना यही ईनका रोज का काम था पर विजय सारे काम अपने साथीयों से करवाता था ।

विजय कोई अनपढ अंगुठा छाप युवक नही था ईंजीनियर की डीग्री होने के बावजूद वो गुंडई करता था उसके लिए उसके हालात जिम्मेदार थे | पर विजय पे हालात भारी पड गये और विजय नाचाहते हूए भी नशे का शिकार बनता गया गुंडागद्री मे डुबता चला गया अब यही उसकी जिन्दगी थी । गलत संगत मे गलत आदते लगने मे देर नही लगती सारे दोस्त हफ्ते मे कई बार रात मे पास के होटल शराब के नशे मे डूबे रहते रातभर अपनी रखेल या रंडीयो को चुदाते रहते हर-रात नई लडकी होती थी । विजय उसकी रखेल के नंगे बदन को शराब और सिगरेट का नशा करते हुए चुदाई मे वह सुख मानता था|

महीने बीतते गये गैंग बिखरती गई हरकोई काम करके अपना गुजारा करने लगा अब उन्होने गुंडागद्री कम करदी पर छोडी नही थी उसदीन शनिवार था विजय का खास यार समिर बहोत दीनो बाद विजयसे मिला दोनो छत पर सिगरेट के कस लगाते हुए बाते कर रहे थे ।

समिर- भाई आज तो “सैटरडे नाईट” है भाई आज आप एश करोगे लगता है ।

विजय- अबे हा बे शनिवार कब आ जाता है पता भी नही चलता । तुभी तो बहोत दीन बाद आया है आज ईंगलिस वाली पीयेंगे दोनो सात बजे आजाना छत पे ।

समिर ने जवाब नही दीया सिगरेट ओढते हुए आसमान की तरफ देखते हूए हल्के से मुस्कुराया

विजय- क्यू बे क्या पूछ रहा हूं, सून रहा है ।

समिर- हां भाई, मैने छोडदी भाई अब मै नही पीता

विजय- लवडे, कीसको पट्टी पढा रहा है बे कही कीसी कुतीया को जा रहा होगा चोदने छुपाता क्यों है ।

समिर- नही भाई जैसा आप सोच रहे हो वैसा नही है मां कसम मैने छोड दी बस अब सीगरेट फुंकता हूं । वैसे भी बापू की असपताल मे तबीयत खराब है ईसलिए मां को शाम को अस्पताल ले जाना है ।

विजय- यार पता ही नही चल रहा है कही सूरज उल्टी साईड से तो निकलना शूरू नही हूआ है , साली मेरी गैंग के पंटर लोग अच्छे बच्चे बन घुम रहे है । और मै यहा नशे मे धुत सड रहा हूं ।

तभी समिर को फोन आता है और वो निकल पडता है ।

विजय को तो विश्वास नही हो रहा था रंडी बाज समिर ईतना कैसे बदल गया ।

विजय कुछ देर बाद वहा से निकल पडता है मौहल्ले बाहर रोड पर अपने पुरानी टोली से गप्पे लडाने लगा और रोड पे अपनी नजरे जवान लडीयों से लेकर आंटीयो के बदन पे हवस भरी निगाहो से देखता रहा । विजय की पसंद जवान कच्ची लडकीयां थी । उसके नजर मे कोई भर गई तो वो उसका रस चखे बीना नही रहता था । पर पिछले कुछ महीनो से उसका इस सबसे मन उब गया था क्यूं की उसकी प्यास मिटाने वाली उसकी रखेल एक लडके से प्यार करके दुसरे शहर चल बसी थी । पहली बार विजय कई महीनो से औरत चोदे बीना रह रहा था उस वजह से बहोत चिडचिड करने लगा था ।

रात के ग्याराह बज रहे थे विजय खाना खाने के बाद छत पर हवा खाने आ गया जेब से उसने सिगरेट निकाली और लाईटर से जलाकर फुंकने लगा । काले घने आसमान मे विजय पुराने मजे भरे दीन याद कीये सीगरेट के कस लगा रहा था । यादों के बादल सिगरेट के धुए की तरह घने हो रहे थे । साल बीतते गये और विजय के टोली के उसके यार पेड के पत्तो की तरह बीछड कर अलग होने लगे ।

कुछ नौकरी करके गुजारा करने लगे तो कुछ अपनी गृहस्ती की शुरूवात तक कर चुके थे । एक समिर ही था जो आजतक विजय के साथ था । आधे घंटे बाद उसकी नजर समिर के घर की छोटी खिडकी पर पडी जो समिर शायद बंद करना भूल गया था जैसा उसे समिर ने बताया था वो उसकी मां को लेकर अस्पताल जाने वाला था जाहीर है घर मे कोई न होने का उसे अंदाजा था । समिर का बाप भी बडा पीय्यकड बेवडा था साला जब तक पी-पी कर अस्पताल भरती ना हो जाए शराब की बोतल नही छोडता था ।


कुछ देर बाद समिर के घर से ट्यूब लाईट जलती हूई विजय को उस छोटी खिडकी से दीखाई दी । विजय को लगा शायद समिर घर लौट आया हो उसने अपना फोन जेब से निकाला और समिर को फोन करने लगा उसका फोन स्वीचऑफ बताने लगा । विजय की नजर खिडकी मे झांकने लगी समिर ने टीवी चालू कीया और सीडी प्लेयर मे कोई सीडी डालके खटीये पर लेट गया । जैसा विजयने सोचा था नंगी औरते टीवी पर आने लगी । समिर खटीया पर लेट कर टीवी पर ब्लू फील्म देख रहा था और लूंगी मे हाथ डाले अपने लंड को सहला रहा था विजय ये देख कर मुस्कुराया और झत से निचे उतरने के लिए पलटा तभी......
Nice start.
 
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Update - 3

विजय- अबे मादरचोद कबसे तू मेरेको पट्टी पढा रेला है तेरे को क्या लगा मई अलिबाग से आयेला है ।

समिर- भाई आप क्या बोल रहई हो अपून को लवडा कुझ समझ नई आ रहा है ।

विजय- चुतिये, कल रात बारा बजे तेरे मां के साथ तू क्या कांड कर रहा था वो मै पूछ रहा हू तेरे से ।

समिर- ममम मतलब भाई ।

विजय- बोसडीके कल रात तू तेरी नंगी मां को गोद लेकर क्या कर रहा था । मेरे को कल रात हीच पता चल गया की तूम लोग क्या कर रहे हो पर अब तूहीच खूद के मूह से बता ।

समिर पेट पकड कर जोर-जोर से हसने लगा, अपनी हसी रोकते हूए वो बोलने लगा

समिर- भाई आप को पता चल गया हम दोनो की मस्ती के बारे में भाई सही सोच रहे हो कल हम लोग चुदाई कर रेले थे । और भाई हर शनिवार को हम दोनो मजे करते हैई वो भी जबरदस्त, रातभर उसको हमच-हमच के चोदता हूं । वैसे भाई आपको कैसी लगी पूरी गदराई आयटम है ना ।

विजय- लवडे तूने तेरी मां को भी अपनी हवस का शिकार बनाया, मुझे पता ही था ईतना बडा चोदू बीना चुदाई के कैसा रह पाएगा पर भडवे तूने अपनी मां को तक नही छोडा ।

समिर- भाई आप उसको सावीत्री समझ रेले हो आपको पता नई वो कीतनी बडी चिनाल है । भाई ईसकी शूरूवात अपन ने नई उसने हीच की थी । मेरा बाप पिके दीनभर टूननन रहता है ये आपको बताने की जरूरत नही है । रोज मां रात को पागल की तरह तकीया बाहो मे लेकर मसलती मैने अपने आंखो से देखा है । बादमे वो मेरे उपर लाईन मारने लगी बार-बार अपन के शादी के बारे मे बाते करती । फीर तो हद ही हो गई मै सोया हुआ होता तो मेरे बाजू आके बैठ जाती और अपन को उठाने के बहाने पेंट मे खडे बंबू पे हाथ घुमाती । एक दीन तो मेरे सामने साडी गांड तक उठाकर गांड खुजाने लगी और निक्कर निचे करके मुतने बैठ गई । आहहहह मां कसम क्या नजारा था भाय याद करके लंड अभीसे कडक हो गया । ईतना ईशारा ना समझ ने को अपून कोई हीजडा है क्या मेरे को पता चल गया चिनाल के चुत मे बहोत खुजली हो रही है फीर एक रात मैने हीम्मत करके उसको हाथ पकड के बिस्तर पर खिंचा और बाहों मे लेकर जोर-जोर से उसकी गांड मसलना शूरू कीया साली, चिनाल मजे ले रही थी तब अपन समझा आज रात इसकी सुहागरात मनने वाली है । रातभर उसकी मस्त चुदाई की अपन ने और भाई आपको क्या बताउ तब से लेके आज तक हम दोनो हर शनिवार रात हम हनिमून मनाते है भाई ।

विजय- क्या बात कर रहा है बे ईतनी पोहचेली आईटम है तेरी मां साली एरीये मे तो सबको पतिव्रता बनी दीखाती घुमती है, बाकी माल तो मस्त है तेरी मां पर तेरे बाप को कोई खबर नही है ना इसके बारे मे ।

समिर- उसको रोज दारू ईतना लाके देता था के वो पिकर वही टून होके सो जाता था एकबार तो मां को बाप के सामने ही मैने चुमना और चुदाई करना शूरू कीया था भाई आपकी नजर ना लगताये जवान लौडीयो पर ही घुमती रहती है । जरा इन उमरवाली रंडीयो का पाणी चखके देखो लौंडीया भूल जाओगे और बदन तो आहहह मुलायम गद्दे जैसा ।

विजय- अबे तेरी मां की चुत कैसी है

समिर- चूत तो चूत है भाय बस फरक इतना के जवान चुत के होंट रहते है ना भाय वैसे मां के होट नही है मां की चुत मे बाप का लंड घुसेला है ना तो मां की चुत के होट दो पंख मतलब लटकती चमडी के पंख है जो मां के लाल छेद को बंद रखते है मेरी उंगलिया डालने पर वो साईड होते है । पर मां का छेद भाय इतना मुलायम के क्या बताऊ एक शनिवार छोडकर अपन उसकी गांड भी मारता है आपने अपन की मां की गांड नही देखी कैसे बडी हो चुकी है कुछ महीनो से वो मेरी हीच मेहनत का नतिजा है । क्या भाई आप भी सून कर क्या करोगे आज रात आपके लिए लाईव चुदाई शो रखता हूं ना, मन करे उतना देख लेना ।

विजय- जाने दे यार फीर कभी , महीनो से कोई चुत नही मारी है देखूंगा तो फीर मन करने लगेगा । क्यू बे तेरे बाप ने कभी तूम लोगो को नही देखा क्या ।

समिर- भाई बाप का क्या है उसे मै काम से घर लौटने पर दारू लाके देता था दो तीन पेग लगाने के बाद वो मस्त टून हो जाता था मां टीवी पे सास बहू के सिरीयल देखती रहती तो मै तो बापू के सामने हीच मां को चुमना शूरू करता था कई बार हम दोनो ने उसके सामने हीच चुदाई की है, उसको सब पता है हमदोनो के बारे मे । भाई ये अपन दोनो के बीच की बात है । और हां भाय ईतनी ही चुत की भुक लगी है तो चाहे तो आप शनिवार को दोपहर घर आजाना अपन मां को समझा देगा, उसको क्या है उसे बस चुत मे बंबू चाहीये । फीर वो चाहे पती का हो बेटे का हो या बेटे के दोस्त का उसको फरक नही पडता ।

विजय- हा हा हा क्या बात बोली है बे, बडी चिनाल है साली ,पर फीर कभी मुड करेगा तो बताउंगा । तबतक तूही उसको पेलता रह ।


समिर- ओके भाय अपन निकलता है रात बहोत हो चुकी है कल काम पे भी तो जाना है ।
nice update.
 
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विजय ना जाने क्यू गुस्से मे कुछ ना बोले सो गया ।

दुसरे दीन सुबह विजय आंखे पोछते हूए निंद से जागा सरला नहा रही थी । विजय की नजरे बाथरूम की ओर कुछ मजेदार दीन की शुरूवात लायक टटोलने की कोशीश कर रही थी । और जब सरीता बाथरूम से पेटीकोट और चोली मे बाहर आई तो विजय की आंखे सरीता के रसिले बदन को हवस मिटाने की मशीन के नजर से देखने लगी । विजय मन ही मन कहने लगा....”साललला आजज अपन को समझ आ रेला है समिर लौडा क्यू उसकी मां को चोदता है, साली ये घर की कुतिया पे अपन ने कबी बुरी नजर डाली हीच नई, पुरा तय्यार माल है ये तो, मन तो कर रेला है अबीच ईस रंडी को बीस्तर पे खिंच के नंगा करके चोदू, आहहहहहा क्या चुचि क्या गांड उममममह मजा आ गया” सरीता तो हर रोज नहाने के बाद पेटीकोट चोली मे बाहर आती थी पर आज विजय के लिए घर की ये औरत कीसी मादक परी से कम नही लग रही थी । सरीता के ब्लाउज का उपर वाला हुक खुला था जिससे सरीता की मोटी मोटी चुचिंया आधी बाहर दीख रही थी उसने बडी ताकद से हुक लगाया बेचारी सरीता की नरम चुचिंया बेरहमी से चोली मे कसी थी मानो कह रही हो कोई हमे इस पिंजरे से आझाद करो हम कबूतरों को खुली हवा मे फडफडाने दो । और फीर आईने के सामने आ कर सरीता ने अपना पिछवाडा विजय की ओर घुमाया सरीता के गोल-गोल चुत्तरो मे पेटीकोट फसा था । सरीता की मोटी गांड गीली होने से पेटीकोट को चिपक गई थी । सरीता अपने बाल सुखाने लगी सरीता की मोटी-मोटी चुचींयो जो सरीता बाल पोछते समय हील रही थी । विजय पेंट मे तन कर खडे लंड का सुपडा सहलाते अपनी मां की रसभरी जवानी का रसपान कर रहा था ।

सरीता ये सब आईने से देख रही थी विजय की सरीता के अधनंगे बदन को घुरती नजरे सरीता पहचान ती थी वो जानती थी उसके जवान बेटे को औरत के जीस्म की जरूरत है पर वो कर भी क्या सकती थी । विजय की शराब की लत ने उसे पुरा बरबाद कर दीया था, विजय के पास ना कोई नौकरी थी जिससे सरीता विजय की आगे की जिन्दगी पटरी पे ला सके । सरीता ने ठान ली वो विजय की बुरी आदतें मिटायेगी । और शायद उस सुबह वो शुरूवात कहां से करनी है वो समझ चुकी थी।

दोपहर हुई सरीता ने खाना लगाया विजय सरीता से बिल्कुल बात नही कर रहा था

सरीता- विजय बेटा ले गरम गरम खाना खा ले

विजय ने चुपचाप थाली लेकर खाना खाने लगा
Maa ready hai vijay ke neeche aane ko.
 
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