#55
मीता- तेरे मन में जो है वो कह दे फिर ,
मैं- मेरे सीने पर हाथ रख कर कह , मुझसे झूठ नहीं बोलेगी तू
मीता - तेरे सर की कसम, तेरे मेरे रिश्ते की कसम जो तुझसे झूठ बोलू
मैं- तेरा हवेली से क्या रिश्ता है
मीता- बस इतनी सी बात के लिए परेशां है तू, अधूरी हसरतो का और मन की उमंगो का रिश्ता है मेरा हवेली से. बिखरती रेत और उमड़ते बादल सा रिश्ता है मेरा हवेली से. जितना तुझे ये तेरे खेत प्यारे है , उतनी ही प्यारी मुझे हवेली है . मेरा घर है वो हवेली.
मैं-तो दद्दा ठाकुर की पोती, तू मुझे ये बता तो सकती थी न .
मीता- काश दद्दा ठाकुर ने हक़ दिया होता पोती बनने का .
मैं- ऐसा क्यों कहा
मीता- क्योंकि इस दुनिया में सिर्फ तेरी ही कहानी में दुःख नही है, आँखे खोल कर देख ये दुनिया ही दुखी फिरती है, उस हवेली के दरवाजे बरसों पहले बंद हो गए थे मेरे लिए. दद्दा ठाकुर नहीं चाहते थे की उनके कुल में कोई लड़की रहे, मुझे हवेली से बाहर फिंकवा दिया गया. दद्दा को बस ये जानकारी है की बरसो पहले मुझे मरवा दिया गया .
मैं- तेरी तस्वीर का वहां होना ही बताता है की दद्दा को जानकारी है तेरे वजूद की .
मीता- असंभव , अगर ऐसा होता तो मैं यहाँ खड़ी नहीं होती.
मैं- क्या करू कुछ समझ नही आ रहा है
मीता- मैं समझती हूँ तेरे हालात
मैं- नहीं, तू नहीं समझती. मेरी आँखों के सामने वो मंजर आ रहा है जब हम सब उन रास्तो पर खड़े होंगे जहाँ से मंजिल किधर जाएगी कौन जाने. तू पृथ्वी की बहन है , तू लाख इंकार कर पर एक दिन आएगा जब तुझे उसमे और मुझमे से एक का चुनाव करना होगा. इस हकीकत से न तू मुह मोड़ पायेगी न मैं.
मीता- मनीष, मैं जानती थी तू अर्जुन सिंह का बेटा है, मैं ये भी जानती थी की एक दिन तू मेरे सामने अपने सवाल लेकर खड़ा होगा. मैं ये भी जानती थी की तेरी दोस्ती पल पल मेरा इम्तिहान लेगी पर फिर भी मैंने तुझसे दोस्ती की , तुझे हाँ कहाँ. वो दो चार मुलाकाते मुझे भुलाये नहीं भूली, मुझे अहसास करवा गयी की जैसे बरसो से तू मेरा साथी हो. और फिर तेरी मेरी जिन्दगी एक जैसी ही तो है, तू भी धक्के खा रहा मैं भी . ये जो लम्हे हमने साथ जिए है, मुझे अब बताने की जरुरत नहीं की उस दोराहे पर मैं किसे चुनुंगी. रोटी बनाने जा रही हूँ , भूख लगे तो आ जाना
मीता के जाने के बाद मैं भी पानी से निकला और कपडे बदल कर उसके पास चला गया. चूल्हे की आंच में उसके चेहरे की रौनक क्या खूब लगती थी .
“क्या देख रहा है ” पूछा उसने
मैं- कही चूम न लू तुझे.
मीता- अच्छा जी
मैं- तेरा दिल नहीं करता क्या
मीता- दिल का क्या है ,दिल तो न जाने क्या चाहेगा, अब हर हसरत कहाँ पूरी होती है .
मैं- तू मेरी कौन सी हसरत है
मीता- मैं तेरी हसरत नहीं , तेरी तक़दीर बनना पसंद करुँगी.
मैं- वो तो तू अभी भी है
मीता- अभी तो नहीं हूँ पर एक न एक दिन जरुर
खाना खाने के बाद हम दोनों एक दुसरे के बगल में लेट गए. मीता ने मेरी बांह पर अपना सर रखा और बोली- क्या सोच रहा है .
मैं- न जाने मेरे पिता कहाँ पर होंगे.
मीता- मुझे विश्वास है वो तुझे जल्दी ही मिल जायेंगे.
मैं- मेरा विश्वास कमजोर हो रहा है अब . वो फ़ौज में नहीं गए तो गए कहाँ , सोलह साल थोडा समय नहीं होता कहाँ बिताया होगा उन्होंने ये समय , आखिर क्या वजह थी जो अपने परिवार को छोड़ गए वो .
मीता- कुछ तो वजह जरुर रही होगी.
हम बाते कर ही रहे थे की एकदम से मौसम बदलने लगा.
मीता- लगता है आंधी आएगी.
मैं- आने दे
आसमान में बादल सितारों को ढकने लगे थे, हवा की रफ़्तार बढ़ने लगी थी, हमारे आस पास के पेड़ झूलने लगे थे, हवा सन सनाते हुए दौड़ रही थी .
मीता- बिस्तर अन्दर कमरे में बिछा ले.
मैं- रहने दे, बारिश हुई तो देखेंगे वैसे भी धुल नहीं है ठंडी हवा अच्छी लग रही है .
मीता- कभी कभी सोचती हूँ मैं सबके सितारे पढने वाली, मेरे भाग्य में क्या है
मैं- काश मैं तुझे बता सकता , तू नहीं जानती मुझे किस हद ता तेरी फ़िक्र है
मीता- पर किसलिए
मैं- जब्बर तुझे ढूंढ रहा है और मैं जानता हूँ उसकी तलाश बस दिलेर सिंह के कातिल की ही नहीं है , उसका प्रयोजन कुछ और है .
मीता- मुझे परवाह नहीं उसकी
मैं- पर मुझे तेरी है,
मीता- क्या तुझे सच में लगता है वो मुझ पर हाथ डाल पायेगा.
मैं- मुझसे दुश्मनी के लिए वो किसी भी हद तक जायेगा ये जानता हूँ मैं ,
हम दोनों उस आंधी भरी रात में एक दुसरे से लिपटे हुए इस जहाँ से दूर अपनी बाते कर रहे थे की तभी कुछ ऐसा हुआ जिससे मेरे कानो की चूले हिल गयी. न जाने कैसी अजीब सी आवाज थी ये .
मीता- कुछ सुना तूने क्या था ये ..
“अजीब सी आवाज ” मैंने बिस्तर से उठ कर अपने कान मसलते हुए कहा .
मीता भी उठ खड़ी हुई.
“क्या कही कोई शिकार कर रहा है ” मीता ने पूछा
मैं-क्या मालूम
आंधी के चक्रवात ने वो आवाज बहुत जोरो से गूँज रही थी , मैंने मीता का हाथ पकड़ा और हम लोग उस तरफ चल दिए जहाँ से आवाज आ रही थी ,
मीता- कहाँ जा रहे है हम
मैं -शिवाले पर
मीता- पर क्यों
मैं- तू चल तो सही .
अचानक ही मुझे याद आ गया था की ये आवाज मैंने कहाँ पर सुनी थी , जब संध्या चाची ने अपनी जिस्म का मांस उस जमीन पर फेंका था तो भी हु ब हु ये ही आवाज सुनी थी मैंने. तेज हवाओ से टकराते हुए मैं और मीता शिवाले पर पहुँच गए और जब हमने वहां जाकर देखा तो कसम से खुद की आँखों ने जैसे धोखा दे दिया हो . शिवाला जाग्रत हो गया था . दूर दूर तक दिए झिलमिला रहे थे हैरत ये थी की उस तेज आंधी में भी .
ये शिवाला वैसा बिलकुल नहीं था जैसा की हम उसे देखते आये थे , ये ऐसे सजा था जैसे की कोई उत्सव हो.
मीता-असंभव
मैं- संभव हो गया है , जो कुछ है तेरी आँखों के सामने ही है
मीता- यही तो असंभव है मनीष
मीता ने मेरा हाथ पकड़ा और लगभग दौड़ते हुए मुझे ले चली
मैं- कहा
मीता- आ तो सही .
मीता और मैं दौड़ते हुए उस स्थान पर पहुंचे जहाँ पर मैंने चाची को देखा था पर आज इस तूफानी रात में वहां पर चाची नहीं बल्कि कोई और था , जिसके वहां होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी . .................... वो सात और वो एक ........ हाथो में रक्तरंजित तलवारे ,,,, आँखों में कुछ कर जाने का जूनून और बदन से टपकता रक्त .............. ये रात बड़ी भारी होने वाली थी ............