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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

Sanju@

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#57

भोर से कुछ पहले मीता हमें छोड़ कर चली गयी. रहे गए मैं और रीना. पूरी रात बस एक मैं ही था जो एक पल भी नहीं सोया था ये सोचकर की आज की ये रात इतनी भयानक है तो आगे और न जाने क्या देखने को मिलेगा. कुछ देर बाद रीना भी उठ गयी .

रीना- मैं यहाँ कैसे

मैं- ये सवाल तो मैं तुझसे पूछता हूँ

रीना की आँखों में कशमकश थी जिसका मतलब ये था की उसे कल रात की घटना याद नहीं थी .

मैं- कल तू मुझसे मिलने आई थी और फिर यही रुक गयी .

रीना- और मेरे बदन पर ये तेरी शर्ट क्या कर रही है , रात को कुछ हुआ था क्या तेरे मेरे बीच .

मैं- क्या बात कर रही है तु, आजतक मैंने कभी ऐसा वैसा कुछ किया है क्या तेरे साथ .

रीना- तो फिर क्या छिपा रहा है तू

मैं-कुछ नहीं छिपा रहा तुझसे मेरी जान, सच ये है की कल रात तू मुझे रुद्रपुर के शिवाले में बेहोश मिली थी , मैं तुझे उठा कर यहाँ ले आया. सोचा की तू होश में आएगी तो तुझसे बात करूँगा.

रीना- मुझे याद नहीं मैं कब गयी वहां पर.

मैं- रीना मेरी बात ध्यान से सुन, मुझे तेरी हद से ज्यादा परवाह है तुझे अगर कुछ भी हुआ तो मैं सह नहीं पाउँगा. आज के बाद तू घर से बिना बताये कही भी नहीं आयेगी-जाएगी. मुझे चाहे लाख काम हो पर मैं हर कदम तेरे साथ रहूँगा.

रीना- मैं समझती हूँ

मैं- तो वादा कर , आज के बाद चाहे कुछ भी हो जाये तू रुद्रपुर की तरफ देखेगी भी नहीं .

रीना- ठीक है

मैं- क्या तुझे कुछ भी याद नहीं कल रात के बारे में

रीना - तेरी कसम

मेरे लिए ये अजीब स्तिथि हो गयी थी . रीना कल मरते मरते बची थी और उसे कुछ भी याद नहीं था . उसके जख्म् भी गायब थे .

मैं- तू चल मेरे साथ

रीना- कहाँ

मैं- संध्या चाची के पास.

मैं रीना को लेकर संध्या चाची के पास गया .

मैं- चाची मैं गोल मोल बात नहीं करूँगा पर कल रात सात अश्व्मान्वो की हत्या हो गयी है .

मेरी बात सुनकर चाची के चेहरे का रंग उड़ गया.

चाची- असंभव

मैं- तुम खुद जाकर पड़ताल कर लो रुद्रपुर में

संध्या- ऐसा कौन माई का लाल पैदा हो गया जिसने मृत्यु का वरन करने की ठान ली है .

मैं- वो कोई भी हो . पर अब मुझे तुम्हारी मदद की जरुरत है . तुम ही हो जो नहारविरो को काबू में कर सकती हो .

मेरी बात सुनकर चाची की आँखों की पुतलिया फ़ैल गयी .

चाची- किसने कहा तुमसे की मैं ऐसा कर सकती हूँ

मैं- किसी अपने ने , पर मैं तुमसे मदद की भीख मांगता हूँ

चाची- तूने सिर्फ नाहरविरो का जिक्र सुना है उनके बारे में तू जानता नहीं है

मैं- तुम बताओ

चाची- इस दुनिया में दो तरह के सच होते है एक जो सामने होता है दूसरा जो सामने होकर भी अनजान होता है . दुनिया में पूजा पाठ है तो तंत्र-मन्त्र भी है . कुछ लोग किताबी ज्ञान प्राप्त करते है , कुछ लोग दुनिया के अनसुने, अनसुलझे ज्ञान की तलाश करते है , भटकते रहते है बिना किसी बात के पर वो ही जानते है की वो बात क्या है . तो नाहरविरो की कहानी ये है की वो ऐसे रक्षक है जो सिर्फ साधने वाले या फिर साधक के बताये प्रमाण को ही पहचानते है , साधक उन्हें अपनी किसी खास चीज की सुरक्षा के लिए वचन घेरे में ले सकता है . एक नाहार्वीर ही बहुत होता है अपने आप में .

मैं- उन्हें कैसे साधा जाता है

चाची- तंत्र में कुछ मुमकिन है कुछ नहीं, साधक की जिजीविषा देखि जाती है

मैं- तुमने कैसे साधा था उन्हें.

चाची- मेरे गुरु का सामर्थ्य और मेरा हठ

मैं- जिसने सात अश्व मानवो को ढेर कर दिया उसका सामर्थ्य कितना होगा

चाची- मैं भी यही सोच रही हूँ, मेरी लालसा है उस से मिलने की

मैं- रीना ने कल ये काम किया है

जैसे ही मैंने ये कहा चाची ने अपने मुह पर हाथ रख लिया , उसे जरा भी यकीन नहीं था.

चाची-जो मैं कह रही हूँ रीना उसे ध्यान से समझना ये जो भी हुआ है , या नहीं हुआ है मुझे मतलब नहीं है पर अगर तू जिन्दा रहना चाहती है तो रुद्रपुर से दूर रहना . मैंने इन आँखों से बहुत कुछ देखा है, इतना कुछ देखा है की तू सोच भी नहीं सकती. इन हाथो से एक और चिता का बोझ नहीं उठाया जायेगा. वहां पर मौत है , और सबसे पहले उस तपिश में तू ही झुलसेगी. आगे तेरी मर्जी है , किस्मत हर दफा साथ नहीं देगी. जो चिंगारी बरसो पहले बुझ गयी उसे सुलगाने की गलती मत करना.

मैं- तुम बताती क्यों नहीं आखिर ऐसा क्या हुआ था बरसो पहले.

चाची- काश मैं जानती , काश मैं जानती तो आज हालात बेहतर होते. और तुम रीना मेरी बात पर विचार करना

चाची उठ कर चली गयी .रह गए हम दोनों.

मैं- सब मेरी गलती है मैं वो धागा तुझे नहीं देता तो ये सब होता ही नहीं

रीना- शायद यही नियति है .

मैं- बदल दूंगा मैं इस नियति को . अगर मौत भी तेरी तरफ आई तो उसे मुझसे पार पाना ही होगा.

रीना- अगर मैं मर भी गयी तो तेरी बाँहों में जान निकले मेरी

मैं- पागल हुई है क्या ये क्या बोल रही है तू तुझे जीना है मेरे साथ जीना है . तू अभी उतार फेंक उस धागे को

रीना- नहीं कर सकती

मैं- क्यों

रीना- क्योंकि वो मेरे गले में नहीं है , मुझे लगता है की वो मेरे अन्दर है .

रीना की बात सुनकर मैं और चिंतित हो गया .

मैं- तू फ़िक्र मत कर, मैं जल्दी ही मेरे पिता को तलाश कर लूँगा. उनके पास कोई समाधान जरुर होगा.

रीना- पर ऐसा कौन सा बोझ है जिसे मैं उठा रही हूँ तू नहीं

मैं- इसका जवाब अब चौधरी अर्जुन ही देंगे. तू बस घर पर ही रहना.

रीना- एक बात और थी

मैं- दो बात पूछ तू

रीना- वो लड़की कौन थी ...........

मैं- कौन लड़की

रीना- मुझे दोहराने की जरुरत नहीं

मैं- ठीक है फिर तू जब उस से मिले तो खुद पूछ लेना

रीना मेरे पास आई, इतना पास की उसकी सांसे मेरे सीने में उतरने लगी.

रीना- मैं कौन हूँ तेरी ये याद रखना हमेशा

मैं- तू मेरी सबकुछ है


रीना को छोड़कर मैं घर से बाहर तो आ गया था पर दिल में ये भी था की हालात ठीक नहीं होंगे जब ये दोनों सामने आएँगी. और मेरे लिए दोनों ही मेरी जिन्दगी थी , ये भी था की चाची जैसी घाघ औरत खुल कर मुझे अपना अतीत कभी नहीं बताएगी. रात को मैं और मीता एक बार फिर से कुवे पर बैठे रीना के लिए सोच रहे थे की मैंने तभी उसे आते हुए देखा..............................
रीना ने जो शिवालय में किया और उसके साथ जो हुआ उसके बारे में कुछ भी याद नहीं है यहां तक कि उसके जख्म भी नही लेकिन मीता याद है ऐसा क्यों????. संध्या को जबसे इस बारे में पता चला है वह चकित है लेकिन उससे कुछ काश पता नही चल संध्या कुछ तो अभी भी छुपा रही है संध्या ने साधना की हुई हैं
 

Sanju@

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#58

सुनार की घरवाली तेज तेज चलते हुए हमारी तरफ ही आ रही थी , पर किसलिए ये देखना था .

काकी- पिछले कुछ दिनों से मैं तुमसे मिलना चाह रही थी .

मैं- कुछ काम था क्या

काकी ने एक नजर डाली मीता पर और बोली- अकेले में बात हो सकती है

मैं- सब अपने ही है खुल कर कहो जो कहना है

काकी- लालाजी के जाने के बाद मैं ऐसे कुछ पुराणी चीजे जो जरुरत की नहीं थी उन्हें देख रही थी की मुझे कुछ ऐसा मिला जिसे मैं समझ नहीं पायी.

मैं- तो इसमें मेरा क्या लेना देना है .

काकी-मुझे एक चिट्ठी मिली जिसमे लिखा है अर्जुन के वारिस को दे देना, वो समझ जायेगा

मैं- क्या समझ जायेगा

काकी- यही तो उलझन है मेरी, चिट्ठी में बस इतना ही लिखा है ये नहीं लिखा की क्या दे देना .

काकी ने चिट्ठी मेरे हाथ पर रख दी. चमड़े के ऊपर लाल स्याही से लिखे गए शब्द थे . मीता ने भी पढ़ा उसे. एक तो जीवन में कम स्यापे थे ऊपर से ये चुतिया सुनार भी मरते मरते एक पहेली छोड़ गया .

मैं- काकी, जब्बर लाला और मेरे पिता किसी ज़माने में बड़े गहरे दोस्त थे पर उनकी दुश्मनी का क्या कारण था .

काकी- इसका जवाब उन तीनो में से ही कोई दे सकता है .

मैं- लालाजी के सामान को मैं देखना चाहूँगा अगर आपको कोई ऐतराज़ न हो तो .

काकी- मुझे भला क्या दिक्कत होगी, बस तुम अपना जो कुछ भी है वो ले जाओ .

मैं- ठीक है रात को आता हूँ मैं

काकी के जाने के बाद मैं और मीता उस चिट्ठी को देखने लगे.

मीता- अजीब सा चमड़ा है . ऐसी खाल मैंने देखि नहीं कभी

मैं- छोड़ अपने को क्या लेना देना. अपन रात को लाला के घर चलेंगे. तू ही जाना मेरा मन नहीं है .

मैं- क्या हुआ तेरे मन को

मीता- तेरी बातो ने उलझन में डाल दिया है मुझे, तूने कहा की रीना को अश्व मानव याद नहीं उसके घाव याद नहीं पर उसे ये याद थी मैं.

मैं- तू रीना पर शक कर रही है

मीता- नहीं, मैं बस सम्भावना तलाश रही हूँ . मुझे भी परवाह है रीना की . मुझे लगता है की वो बार बार रुद्रपुर जाएगी. उसे तलाश है किसी चीज की , उसकी आँखों में अजीब शिद्दत दिखी थी मुझे. मैं नहीं चल पाऊँगी तेरे साथ .

मैं- ठीक है . मैं ही जाऊँगा.

मीता- कल दोपहर को मिलेंगे फिर हम

मैं- कुछ देर तो रुक साथ मेरे

मीता- मुझे आदत होने लगी है तेरी, और ये आदत ठीक नहीं

मैं- मीता और मनीष एक ही तो है

मीता- ये तू कहता है तेरा दिल नहीं , वो किसी और के लिए धडकता है

मैं-इन धडकनों से अब डरने लगा हूँ मैं

मीता- समझा के रख इनको,

मीता ने अपना झोला उठाया और जाने लगी. कुछ कदम उसके साथ चला और फिर बावड़ी पे जाके बैठ गया .ये शाम ये डूबता सूरज . ये तन्हाई और मैं , मीता का कहना बिलकुल सही था मैं दो नावो की सवारी कर रहा था मेरे लिए रीना सबकुछ थी और मीता जिन्दगी थी . मुझे दोनों से बेपनाह प्यार था . ये जानते हुए भी की वो लम्हा मेरी जान ही ले जायेगा जब ये दोनों आमने सामने आएँगी जब किसी एक का साथ पकड़ना होगा , किसी एक का साथ छोड़ना होगा. सीने पर हाथ रखे मैं पत्थर पर लेटे हुए इसी कशमकश में डूबा था की एक आवाज ने मुझे धरातल पर ला पटका .

“चौधरी ओ चौधरी , तेरी मर्जी हो तो थोडा पानी पी लू ”

मैंने देखा ये वो ही आदमी था जो उस दिन मुझे कुवे पर मिला था . मैं लगभग दौड़ते हुए उसके पास गया .

मैं- तुम यहाँ

आदमी- इधर से गुजर रहा था प्यास लग आई. और आज मैंने पूछा भी है तुमसे

मैंने आँखों से इशारा किया तो उसने अंजुल भरी हौदी से और पीने लगा. उसकी दाढ़ी, मूंछे भीगने लगी पानी से.

“जी भर गया चौधरी , खूब असीश तुमको ” उसने कहा

मैं- जल्दी में नहीं हो तो आओ बैठते है थोड़ी देर.

उसने एक नजर आस पास डाली और बोला- जो तुम्हारी इच्छा चौधरी.

मैं उस से सीधा सीधा नहीं पूछ सकता था मैंने भूमिका बनानी शुरू की .

मैं- तुम किसान हो , मुझे बताओ ये कुवा मीठे पानी का है , पास में नहर है . आसपास का हर खेत फसल उगाता है पर मेरी जमीन ही बंजर क्यों .

आदमी-धरती हमारी माँ होती है चौधरी,और माँ भी संतान को तब तक दूध नहीं पिलाती जब तक की संतान रो रो कर उसे बताती नहीं की भूक्ख लगी है , तुम्हारे पास सब कुछ है , धरती माँ को बताओ की तुम उस पर आश्रित हो अपने पसीने से सींच दो उसके कलेजे को , वो किरपा करेगी तुम पर .

मैं- तुम मेरी मदद करोगे यहाँ खेती करने में, मैं तुम्हे मनचाही रकम दूंगा.

उस आदमी ने मेरी तरफ देख कर मुस्कुराया और बोला- चौधरी, लालच दे रहे हो मुझे, मैंने तुम्हे बताया था की मैं खुद किसान हूँ व्यापारी हूँ मुझे भला किसका मोह, पेट भरने लायक अनाज ये धरती माँ दे देती है .

मैं- उस रात जब तुम यहाँ से गए. इस हौदी का पानी मिटटी हो गया . मेर्रे किसी अपने की जान पर बन आई.

आदमी- खेद की बात है पर मेरा ऐसा कुछ प्रयोजन नहीं था . मैं बस पानी पीने रुका था .

मैं- हैरानी की बात जिस रात ये घटना हुई उसी रात किसी ने मेरे गाँव में एक आदमी को मार कर उसका दिल निकाल लिया और उसे शिवाले में भोग दे आया .

मेरी बात का उस आदमी पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा , जरा भी भाव नहीं बदले उसके .

आदमी- मैं देखना चाहता हूँ की तुम कैसे मेहनत करते हो इस जमीन पर हल चला कर दिखाओ जरा .

मैं- मेरे पास बैल कहाँ है .

आदमी- ये भुजाये किसी बल से कम है क्या . उठाओ हल दिखाओ मुझे तुम काबिल बी हो या नहीं.

मैंने हल काँधे पर लगाया और चलाने लगा. बेशक मिटटी ने खूब पानी पीया था पर फिर भी जल्दी ही मेरी हिम्मत जवाब दे गयी. उस आदमी के चेहरे पर मुस्कराहट थी .

उसने हल मेरे काँधे से लेकर खुद पर लगाया और मैं देखता रह गया. कितना शक्तिशाली था वो . धरती ने जैसे खुद रास्ता दे दिया था उसको .. मैंने आगे होकर हल की दूसरी तरफ अपना कन्धा लगा दिया. वो मुस्कुराया. और हल छोड़ दिया.

आदमी- मैंने कहा था न ये धरती हमारी माँ है इसे दिल से पुकारो . माँ संतान के लिए जरुर आती है .

उसने अपना गमछा सही किया और जाने लगा.

मैं- रुको जरा मुझे बहुत बाते करनी है तुमसे

पर वो नहीं रुका, उसने सुना ही नहीं मुझे बस चलता रहा .


“मैं जानता हूँ तुम कौन हो . रुक जाओ मत जाओ ” मैंने चिल्ला कर कहा पर उसके कदम नहीं रुके ........................ हलके अँधेरे में मैं उसके पीछे दौड़ा और जब तक मैं मुंडेर पर पहुंचा वहां पर कोई नहीं था कोई भी नहीं था .............
सुनार की बीवी ने मनीष को एक चिट्ठी दी जो की चमडे की थी। इस चिट्ठी से के सारे सवाल खड़े हो गए हैं जिनका जवाब शायद सुनार के घर में ही मिले। काफी दिनो बाद वो आदमी जो खुद को किसान और व्यापारी कहता है फिर मिला। वो आदमी भी रहस्यमयी है... और उसकी बात भी रहस्यमयी हैं। शिवाला की घटना के ज़िक्र से उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, ज़ाहिर है कुछ तो विशेष बात है उसमे। कुई में पानी पीने के लिए आना तो कदाचित एक बहाना है उसका, ज़रुर मनीष से उसका कोई ना कोई कनेक्शन है जो फिल्हाल परदे के पीछे हैं। खैर देखते हैं आगे क्या होता है।
 

Sanju@

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#59

ऐसा नहीं था की मैं पहले भी जिन्दगी से परेशां नहीं था , आज भी मैं उलझा था उन उलझनों में जो बस मेरे गले पड़ गयी थी. मैंने लाला के घर जाने का विचार त्यागा और कपडे उतार कर हौदी में घुस गया . ठंडा पानी जो बदन पर पड़ा तो कुछ देर के लिए आराम मिला. एक नजर आसमान पर डाली आज सितारे चमक रहे थे . मन में बेचैनी थी , करे तो क्या करे नंगे बदन हौदी पर बैठे मैं बहुत देर तक यही सोचता रहा . हर बार मेरे दिल ने बस यही कहा की हर सवाल का जवाब वहीँ पर है बस मेरी नजर उस कहानी की डोर को पकड़ नहीं पा रही है .



दूर शिवाले में............

रात बेशक गहरा गयी थी पर शिवाला जाग्रत था हजारो दियो की रौशनी में जगमगा रहा था .दींन दुनिया से बेखबर , उसकी पायल की झंकार शिवाले में ऐसे गूँज रही थी जैसे की सावन में कोई अल्हड झूला चढ़ रही हो . बिखरी जुल्फे, चेहरे पर बेताक्लुफ्फी पर आंखो में शांति, इतनी शांति की जो देखे वो आने वाले तूफ़ान को महसूस कर जाए. उसने मिटटी खोद कर एक दिया बनाया और फिर अंगुली पर घाव करके उस दिए को खून से भर दिया. जैसे वो दिया जगमगाया धरती में हलचल सी मच गयी . उसने अपने आस पास एक घेरा बनाया और जोर से जमीन पर थपकी मारी.

“मुझे लगता है ये सब करने की तुम्हे कोई जरुरत नहीं है ” ये मीता थी जो तेज तेज चलते हुए रीना की तरफ आ रही थी .

रीना ने घुर कर उसे देखा और बोली- तू मुझे समझाएगी की क्या करना है क्या नहीं

मीता अब तक रीना के बिलकुल पास आ चुकी थी .

मीता- रीना, बात को समझ मुझे तेरी परवाह है , तु नहीं जानती तू कितनी कीमती है

रीना- मेरी परवाह है तो चली जा यहाँ से , मुझे जो करना है करने दे.

मीता- मैं जानना चाहती हूँ तू क्या करना चाहती है , तूने शिवाले को कैसे जाग्रत किया .

रीना- बताने की जरुरत नहीं मुझे, देवो के देव सबको अपनाते है मुझे भी शरण दी है , उनका जो है अब मेरा है वो .

मीता-तेरा नहीं रीना, उस चीज का जो तुझे अपने इशारो पर नचा रही है .

रीना- मेरा दिमाग ख़राब मत कर चली जा यहाँ से .

मीता- मैं तुझे यहाँ मरने के लिए नहीं छोड़ सकती, तू चल मेरे साथ

मीता ने रीना का हाथ पकड़ा. पर रीना ने एक झटका दिया जिससे मीता का पूरा अस्तित्व हिल गया . रीना ने अपने होंठो को बुदबुदा कर न जाने क्या कहना शुरू किया , आसपास का माहौल बदलने लगा. एक बार फिर से वो कुछ अजीब कर रही थी की मीता ने उसको रोक लिया.

रीना- तू ऐसे नहीं मानेगी. पहले तेरा ही रोग काटती हूँ .

मीता- तेरी अगर यही मर्जी है तो ठीक है ,

रीना ने ताली बजाई और हवा में से बेतहाशा हथियार निकल कर दोनों के दरमियान गिर गए.

रीना- तेरे लहू की तपिश को महसूस किया था मैंने , उसे पीकर ही आज मेरी प्यास बुझेगी .

मीता- आ फिर देर किस बात की ये रही मैं और ये मेरी तलवार .

मीता ने एक तलवार उठाई और दूसरी रीना की तरफ फेंकी . रीना की आँखों का रंग एक बार फिर गहरा काला हो गया . इस से पहले की मीता कुछ करती बिजली की सी रफ़्तार से रीना ने उसकी पीठ चीर दी.

“बहुत बढ़िया ” चीखी मीता और उसने रीना के पैर पर वार किया पर रीना जिस पर रक्त का जूनून चढ़ने लगा था उसने फिर से बचाया और मीता के कंधे पर अपनी तलवार की मूठ दे मारी. मीता कुछ कदम पीछे हुई.

पानी की हौदी पर बैठे बैठे अचानक ही उदासी ने मुझे घेर लिया. अजीब सी बेचैनी हो रही थी दिमाग में बस उस अजनबी किसान की बाते घूम रही थी , उसने जो जो बात मुझे कही थी मैं उनके अर्थ समझने की कोशिश कर रहा था की अचानक से एक कोवा आकर मेरे सर से टकराया और मर गया . काले कौवे का अचानक से ऐसे सर पर आकर टकराना एक अपशकुन था, मेरा दिमाग घूम गया , दिल ने किसी अनिष्ट की आशंका से धडकनों की रफ़्तार शिथिल कर दी.

दूर शिवाले में दो बिजलिया एक दुसरे पर बरसने को बेताब हो रही थी . मीता की तलवार ने रीना की कोहनी से मांस का एक टुकड़ा उड़ा लिया था , रीना के चेहरे पर मुस्कान उभर आई . उसने मीता की पीठ पर लात मारी, मीता धडाम से जमीन पर गिर गयी. मौके का फायदा उठा कर रीना ने मीता की जांघ कर अपनी तलवार का निशाँ लगा दिया.

रीना ने तलवार पर लगे मीता के रक्त को अपने होंठो से चाटा और बोली- बरसो बाद इस लहू को चखा है , आज भी उतना ही ताजा और मजेदार है .

मीता- क्या बोल रही है तू रीना

रीना- अब क्या बोलना क्या सुनना अब तो बस तेरे लहू को पीना है शिवाले के कण कण को तेरे लहू से लीप दूंगी मैं.

उस कौवे को देखते हुए मैं ख्यालो में डूबा था की तभी मेरे दिमाग में बत्ती सी जली और मैं उसी पल शिवाले की तरफ दौड़ पड़ा. फूली हुई सांसो की बिना परवाह किये मैं बस दौड़ रहा था शिवाले की और. उस अजनबी की कही हुई बात का भेद शायद मैंने समझ लिया था . पर मैं कहाँ जानता था की वहां पर एक और तूफान मेरा इंतज़ार कर रहा है , शिवाले की रौशनी देखते ही मेरा दिल अनहोनी की आकांशा से घबराने लगा था और जब मैंने उस मैदान में उन दोनों को खून से लथपथ एक दुसरे पर वार करते हुए देखा तो मेरे दिल के दो टुकड़े हो गए.

“मीता, रीना ” चीखते हुए मैं दोनों की तरफ बढ़ा .

मैं- ये क्या कर रही हो तुम , पागल हुई हो क्या.

मीता- मनीष, पीछे हटो ये अपने होश में नहीं है , मैं संभाल लुंगी इसे.

मीता ने रीना को मारा पर उसे क्या पता था की चोट मेरे इड्ल पर लगी है .

मैं- नहीं मीता. नहीं, मैं संभाल लूँगा इसे. रीना होश में आओ देखो मेरी तरफ तुम्हारा मनीष तुमसे कह रहा है , छोड़ो इस हथियार को और पास आओ मेरे .

रीना- दूर हट जा , मैंने वादा किया है इस से की आज हम में से कोई एक ही रहेगा एक को जाना होगा.

मैं- कोइ नहीं जाएगा हम तीनो साथ है साथ ही रहेगे.

रीना मेरे पास आई बोली- कौन है तू , क्या तू भी मरना चाहता है इसके जैसे

मैं- अगर मेरे मरने से ही तेरा क्रोध शांत होता है तो मेरी जान , ये भी मंजूर है

रीना- आज की रात लगता है मेहरवान है , तू थोडा धैर्य रख इसके बाद तेरा ही नंबर है .

रीना ने मीता को मारने के लिए प्रहार किया पर मैंने उसकी तलवार पकड़ ली

मैं- शांत हो जा रीना , शांत हो जा. टाल दे इस घडी को . कही अनर्थ न हो जाये.

रीना ने मेरे पेट में लात मारी और मुझे फेंक दिए एक बार फिर से वो दोनों जुट गयी . अनिष्ट की शंका तो मुझे उसी पल हो गयी थी पर ऐसे होगा ये नहीं जानता था . मीता घायल थी , रीना पर जूनून शामिल था और इस से पहले की वो मीता पर उस जानलेवा वार को करती , मैंने अपने बदन को मीता की ढाल बना दिया.

रीना की तलवार मेरे बदन के आर पार हो गयी .

“नहीं ” चीखी मीता और मुझे अपने आप पर से हटाते हुए उसने रीना को धक्का दिया. रीना का सर चबूतरे से जा टकराया. मीता ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया

“क्यों, क्यों किया ऐसा तुमने ” सुबकते हुए बोली वो

मेरे बहते खून से धरती गीली होने लगी थी .

मीता- कुछ नहीं होने दूंगी तुझे

मैं- सहारा दे जरा मुझे

मीता ने मुझे खड़ा किया लड़खड़ाते कदमो से मीता का सहारा लिए कुछ कदम ही चल पाया था की एक बार फिर से मैं गिर गया .

“होश कर मनीष होश कर ” मीता ने मेरे गाल थपथपाते हुए कहा .

मैंने उसके हाथ को थामा और बोला- उसे कभी मालूम नहीं होना चाहिये, वादा कर मुझसे , चाहे कुछ भी हो जाये, मैं रहूँ न रहूँ तू उसका ध्यान रखेगी , उसे कभी मत बताना की ये उसके हाथो से हुआ है .

मीता- वादा मेरे सनम वादा

मीता के मुह से ये सुनते ही मैंने अपनी आँखे मूँद ली और खुद को उसके हवाले कर दिया...............................
दो वीरांगनाओं के बीच युद्ध हो रहा था। रीना रीना नहीं रह गई थी वो तो किसी ओर के वश में थी। कोई अंजानी शक्ति उससे ये सब करवा रही थी लेकिन क्यों ?? रीना और मीता की इस भयंकर लड़ाई में मनीष अब मौत के मुह मे चला गया है देखते हैं आगे मनीष के साथ क्या होता है,
 
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Ladies man

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भरी दोपहर में ही मौसम बदलने लगा था , काले बादलो की घटा ने आसमान संग आँख-मिचोली खेलनी शुरू कर दी थी .ऐसा लगता था की रात घिर आई हो. ये घिरता अपने अन्दर आज न जाने किसे सामने वाला था . हवेली से बाहर आकर मैंने मौसम का हाल देख कर अपने दुखते सीने पर हाथ रख लिया. मैं जानता था की रीना कहाँ होगी . मैंने चाची की गाडी ली और सीधा शिवाले पर पहुँच गया .

वहां जाकर जो मेरी आँखों ने देखा , मैं जानता तो था की पृथ्वी ये गुस्ताखी करेगा पर आज ही करेगा ये नहीं सोचा था . पृथ्वी जैसे सपोले को मुझे बहुत पहले कुचल देना चाहिए था . मैंने देखा अपने लठैतो की आड़ में पृथ्वी ने रीना को अगवा कर लिया था. उसके चेहरे की वो हंसी मेरे कलेजे को अन्दर तक चीर गयी .

पृथ्वी- मुझे मालूम था तू जरुर आएगा. न जाने कैसा बंधन है इस से तेरा दर्द इसे होता है चीखता तू है . मैंने बहुत विचार किया सोचा फिर सोचा की इसके लिए तुझे अपनी जान देनी होगी

मैं- रीना के लिए एक तो क्या हजार जान कुर्बान है

पृथ्वी- क़ुरबानी तो तुझे देनी ही है पर अभी के अभी तूने मुझ अम्रृत कुण्ड को देखने का रहस्य नहीं बताया तो मैं रीना को मार दूंगा

मैं- किसका रहस्य , जरा दुबारा तो कहना

पृथ्वी की बात मेरे सर के ऊपर से गयी .

“हरामजादे , मजाक करता है मुझसे ” पृथ्वी ने खींच कर रीना को थप्पड़ मारा

“पृथ्वी , इस से पहले की की अनर्थ हो जाये , छोड़ दे रीना को वर्ना सौगंध है महादेव की मुझे तेरी लाश तक उठाने वाला कोई नहीं बचेगा ” मैंने फड़कती भुजाओ को ऊपर करते हुए कहा .

बीस तीस लठैत तुरंत मेरे सामने आ गए.

मैं- हट जाओ मेरे रस्ते से , आज मैं कुछ नहीं सोचूंगा. चाहे इस दुनिया में आग लग जाए . हटो बहनचोदो

मैंने एक लठैत के पैर पर लात मारी और उसकी लाठी छीन ली .और मारा मारी शुरू हो गयी .

“इस को आज जिन्दा नहीं छोड़ना है ” पृथ्वी चिल्लाया और उसने फिर से रीना को थप्पड़ मारा

पृथ्वी- खोल उस अमृत कुण्ड का दरवाजा हरामजादी .

इधर मैं उन लठैतो से पार पाने की कोशिश कर रहा था पर उनकी संख्या ज्यादा थी इस बार पृथ्वी ने पुरी योजना बनाई हुई थी . एक लठैत की लाठी मेरे सर पर पड़ी और कुछ पलो के लिए मेरे होश घबरा गए और यही पर वो मुझ पर हावी हो गए. लगातार पड़ती लाठिया मुझे मौका नहीं दे रही थी . सर से बहता खून मुझे पागल कर रहा था .

“मनीष ” ये मीता की आवाज थी जो यहाँ आन पहुंची थी .

मीता ने आव देखा न ताव और तुरंत ही उन लठैतो से भीड़ गयी . जैसे तैसे करके उसने मुझे उठाया तब तक संध्या चाची भी वहां पहुँच गयी .

“पृथ्वी ये क्या पागलपन है ” चाची ने गुस्से से कहा

पृथ्वी- ये पागलपन तुम्हे तब नहीं दिखा बुआ जब अर्जुन से मेरे पिता को मार दिया. जब इसने मेरे दोस्तों को मार दिया .

संध्या- उनको अपने कर्मो की सजा मिली . उनकी नियति में यही था .

पृथ्वी- क्या थे उनके कर्म, जिस पर हमारा दिल आया उसके साथ थोड़े मजे ले लिए तो क्या गलती हुई भला. ये तो हमारे शौक है

संध्या- हर किसी की इज्जत उतनी ही है जितना मेरी या तेरी माँ की है या हवेली की किसी और दूसरी औरत की है

पृथ्वी- तुम तो मुझे ये पाठ मत पढाओ बुआ , वो तुम ही थी जो दुश्मनों की गोद में जाकर बैठ गयी थी .

संध्या- अपनी औकात मत भूल पृथ्वी, तू भी मेरा ही बेटा है ये याद रख तू और कोशिश कर की मैं भी न भूल पाऊ इस बात को

पृथ्वी- हमें तो तुम उसी दिन ही भुला गयी थी बुआ, जिस दिन तुम दुस्मानो के घर गयी .

संध्या- तो ठीक है , अब किसी रिश्ते नाते की बात नहीं होगी. किसी नाते की कोई दुहाई नहीं दी जाएगी. जिस लड़की को तूने अगवा किया है , ये लड़का जो घायल है ये मेरी औलादे है और इनके लिए मैं किस हद से गुजर जाऊंगी तू सोच भी नहीं सकता. जब तूने अमृत कुण्ड के बारे में मालूम कर लिया है तो उस सच के बारे में भी मालूम कर लिया होता. अगर तेरी रगों में सच्चा खून होता तो तू ये घ्रणित कार्य कभी नहीं करता .

“मनीष मेरे बेटे, मैं तुझसे कह रही हूँ, इसी समय इस दुष्ट पृथ्वी का सर धड से अलग कर दे. ” चाची ने क्रोध से फुफकारते हुए कहा.

मीता ने तुरंत ही एक लठैत की गर्दन तोड़ दी . पर तभी “धांय ” गोली की जोरदार आवाज गूंजी और ऐसा लगा की किसी ने मेरे कंधे को उखाड़ कर फेंक दिया हो . क्या मालूम वो गोली मुझे छू कर गुजरी थी या फिर कंधे में धंस गयी थी . क्योंकि उसके बाद जो कुछ भी हुआ वो किसी जलजले से कम नहीं था .

“मनीष ...... ” ये रीना की वो चीख थी जिसने वहां मोजूद हर शक्श के कानो की चूले हिला दी.

“दद्दा ठाकुर ” रीना ने गहरी आँखों जो अब पूरी तरह से काली हो चुकी थी नफरत से दद्दा ठाकुर की तरफ देखा जो कंधे पर बन्दूक लिए हमारे बीच आ चूका था . पर वो नहीं जानता था की उसके कदम उसे मौत की दहलीज पर ले आये थे. रीना ने एक लात पृथ्वी की छाती पर मारी . हैरत के मारे पृथ्वी बस देखता रह गया और बिजली की सी तेजी से रीना ददा ठाकुर की तरफ बढ़ी और उसके हाथ को उखाड़ दिया.

“आईईईईईईईईईईइ ” दद्दा की चीखे शिवाले में गूंजने लगी . पर वो मरजानी नहीं रुकी. जब उसका मन भरा तो वहां मोजूद लठैतो को मैंने धोती में मूतते देखा. दादा ठाकुर की लाश के टुकड़े इधर उधर बिखरे हुए थे. उसके गर्दन को रीना ने अपने होंठो से लगाया और ताजे गर्म खून को किसी शरबत की तरफ पीने लगी.

“मेरी जान है वो , मेरे होते हुए कैसे मार देगा तू उसे, ” रीना ने ददा की लाश से सवाल किया वो तमाम लठैत तुरंत ही वहां से भाग लिए. रह गए मैं रीना, मीता , चाची और पृथ्वी.

अचानक से बाज़ी पलट गयी थी . रीना ने अपने क्रोध में सब तहस नहस कर दिया था . सामने बाप की लाश पड़ी थी पर चाची के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी .


“मैं कभी नहीं चाहती थी ये दिन आये पृथ्वी , मैंने जितना चाह इस रण को टालना चाहा . मैंने तुझे कदम कदम पर माफ़ किया पर अब और नहीं ” इतना कह कर रीना जैसे ही पृथ्वी की तरफ बढ़ी, किसी ने उसका रास्ता रोक लिया और अगले ही पल रीना हवा में उड़ते हुए शिवाले की टूटी दिवार पर जा गिरी.....
🤯🤯🤯🤯 Bhai sahi mein kahani zabardast hai keep posting
 

Golu

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Shandar pichle do update se to dil ki dhadkan hi badha diya aapne dono update Aisa lga hm padh nhi rhe sb feel ho rha jaise sb real me samne ho rha shandar bhai.
Bs aapse request hai ki aap us character ko itna ashay kyu dikha dete hai jiske hi ird gird story ghum rhi wo bina kisi dusre ki madad ke jaise kuch bhi nhi bs yhi sikayat hai aapse
 

Lutgaya

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धीरे धीरे सभी खलनायक नेस्तनाबूद होते जा रहे है और कहानी एक सुखद अन्त की ओर जाने की राह पर है।
 
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